दोस्त के प्यार पर डाका – भाग 4

प्रेमिका की याद में घुट रहा था नवीन

नंदिनी भले ही अपने दिल से नवीन की यादें मिटा दी थीं, लेकिन नवीन उसे अभी भी भुला नहीं पाया था. उस के दिल में अब भी नंदिनी के साथ बिताए सुनहरे पल की यादें जवां थी. उस की एकएक सांस पर प्रेमिका का नाम लिखा हुआ था. जब उस की याद आती थी, उस की पलकें भीग जाती थीं. घुटता था वह दिल ही दिल में. आज भी वह इस बात को सोच कर परेशान हो जाता था कि नंदिनी ने किस कुसूर के लिए उसे अपने दिल से निकाल दिया.

तभी तो 2 साल बाद हिम्मत जुटा कर एक दिन नवीन ने नंदिनी को मैसेज किया. सालों बाद आए मैसेज को पढ़ कर वह हैरान रह गई थी. उस ने नवीन के भेजे गए मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि उस ने यह बात हरिहर कृष्णा को बता दी.

हरिहर कृष्णा ने जैसे ही सुना कि नवीन ने प्रेमिका को मैसेज किया है, वह सतर्क हो गया और डर भी गया कि सालों से पड़ा परदा नंदिनी के सामने कहीं उठ न जाए. वरना बना बनाया खेल बिगड़ सकता है, उस की सच्चाई जान कर नंदिनी उस से दूर चली जाएगी. वह ऐसा होने नहीं देना चाहता था.

उस ने प्रेमिका को समझाया कि वह उस के किसी भी मैसेज का जवाब नहीं दे. इस के बाद भी अगर वह मैसेज करता है तो कोई और रास्ता निकालना होगा.

उस दिन के बाद से नवीन नंदिनी को मैसेज बराबर भेजने लगा था. उस के बारबार मैसेज आने से वह बुरी तरह परेशान हो गई थी और हरिहर कृष्णा से एकएक बात बताती थी. नवीन के प्यार भरे मैसेज भेजने से वह जलभुन उठता था. उसे इस बात का डर सताने लगा था कि कहीं नंदिनी उस के हाथ से निकल न जाए.

नंदिनी ने नवीन से पीछा छुड़ाने की कोई कारगर युक्ति निकालने की बात कही तो उस ने उसे यकीन दिलाया कि जल्द ही नवीन नाम के कांटे से छुटकारा दिला देगा, इस की वह चिंता न करे.

हरिहर कृष्णा भी यही चाहता था कि नवीन जो उस के प्रेम की राह में कांटा बना हुआ है, उस कांटे को सदा के लिए रास्ते से उखाड़ फेंके. फिर प्रेमिका ने तो फरमान ही जारी कर दिया था तो भला उस के फरमान को वह कैसे पूरा न करता.

शातिर दिमाग वाला हरिहर कृष्णा ने फैसला कर लिया था उसे क्या करना है. उस ने मन ही मन खतरनाक योजना भी बना ली थी. योजना थी नवीन की हत्या. अब इसे यह तय करना था कि नवीन को नेलगोंडा से हैदराबाद कैसे बुलाया जाए. क्योंकि इस ने नवीन की हत्या की पटकथा इसी शहर में लिखी थी यानी उसे यहीं मारने का प्लान बनाया था.

अपनी योजना में उस ने नंदिनी को भी शामिल कर लिया था. उसे इस की हर गतिविधियों की पलपल की जानकारी दी.

दोस्त ने ही नवीन को लगा दिया ठिकाने

सूत्रों के अनुसार, 17 फरवरी 2023 की सुबह हरिहर कृष्णा ने नवीन को फोन किया और धोखे से उसे पुराने दोस्तों के साथ गेट टुगेदर पार्टी के लिए हैदराबाद बुलाया. इस पर नवीन ने अपनी तरफ से हां कह दिया और दोस्त (रूम पार्टनर) प्रदीप से हैदराबाद जाने और हरिहर कृष्णा के साथ पार्टी करने की बात कह कर हैदराबाद के लिए रवाना हो गया.

हरिहर कृष्णा ने जैसे ही सुना कि नवीन आ रहा है, उस ने छोटे आकार के पिट्ठू बैग में एक जोड़ा दस्ताना, नायलौन की रस्सी और फलदार चाकू रख लिया था ताकि मौका मिलते ही उसे रास्ते से हटा देगा.

सुबह 10 बजे के करीब नवीन हैदराबाद बस स्टैंड पहुंचा. वहां बाइक लिए हरिहर कृष्णा पहले से ही उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. बस से नीचे उतरते हुए दोस्त को देख कर हरिहर कृष्णा बुरी तरह जलभुन उठा, लेकिन चेहर ेपर जहरीली मुसकान थिरक रही थी.

दोस्त नवीन को बाइक पर बैठा कर हरिहर कृष्णा रेस्टोरेंट ले गया. वहां दोनों ने छक कर शराब पी. थोड़ी देर बाद शराब ने जब अपना रंग नवीन पर दिखाना शुरू कर दिया तो दिल में भरा गुब्बार फूट गया. उस ने अपनी प्रेमिका के छीनने का आरोप जब हरिहर कृष्णा पर मढ़ दिया तो हरिहर कृष्णा आगबबूला हो उठा और दोनों आपस में भिड़ गए.

एक पल को हरिहर कृष्णा उसे वहीं खत्म कर देने का मन बना लिया, लेकिन वहां भीड़ काफी थी, उसे अपने पकड़े जाने का भय सताने लगा था, इसलिए उस ने चुप रहने में ही भलाई समझी और बड़ी चालाकी से माहौल को दूसरी ओर घुमा दिया था.

फिर हरिहर कृष्णा नवीन को बाइक पर बैठा कर इधरउधर घुमाता रहा ताकि अंधेरा हो जाए. शाम 6 बजे के करीब बाइक ले कर वह अब्दुल्लापुरमेट थानाक्षेत्र के पेड्डा अंबरपेट की घनी झाडिय़ों के पास पहुंचा, जहां चारों ओर सन्नाटा और दूरदूर तक अंधेरा फैला था.

झाडिय़ों के पास उस ने बाइक रोक दी और दोनों पास स्थित रमादेवी पब्लिक स्कूल की ओर बढ़े, जहां पार्टी चलने की बात हरिहर कृष्ण ने बताई. आगेआगे लडख़ड़ाता हुआ नवीन चल रहा था, जबकि हरिहर कृष्णा उस के पीछेपीछे. यही सही मौका था. उस ने धीरे बैग से नायलौन की रस्सी निकाली और नवीन का गला घोंट कर उसे मौत के घाट उतार दिया. उस के बाद उस ने नफरत से एक लंबी हुंकार भरी.

हरिहर ने दिखा दी नफरत की इंतहा

फिर पिट्ठू बैग से दस्ताना निकाल कर हाथों में पहना और चाकू से उस का गला काट कर सिर धड़ से अलग कर दिया और मोबाइल की टार्च की रोशनी में मोबाइल कैमरे से फोटो खींचा और नंदिनी के वाट्सऐप पर भेज दिया. पुराने प्रेमी का कटा सिर देख कर नंदिनी बहुत खुश हुई.

हरिहर कृष्णा की नफरत की इंतहा यहीं खत्म नहीं हुई थी, उस ने उसी चाकू से नवीन का पेट फाड़ कर दिल बाहर दिया और नफरत व गुस्से से कहा, “ये दिल मेरी नंदिनी के लिए धडक़ता था न?” चाकू से दिल के कई टुकड़े कर डाले.

फिर उस ने कहा, “इन्हीं अंगुलियों से तू मेरी नंदिनी को मैसेज भेजता था न?” फिर उस ने दोनों हाथों की दसों अंगुलियों को काट कर अलग कर दिया.

फिर उस ने कहा, “तू मेरी नंदिनी के साथ शादी कर बच्चे पैदा करना चाहता था न?” उस के बाद उस ने उस के प्राइवेट पार्ट को भी काट कर अलग कर दिया और सबूत के तौर फोटो मोबाइल में उतार कर प्रेमिका के वाट्सऐप पर भेज दिया.

फिर उस की लाश को जला दिया ताकि कोई सबूत न मिले और रूमाल से अपने हाथों आदि पर खून पोंछ कर, चाकू, ग्लव्स वहीं फेंक दिया. उस के बाद वह अपने दोस्त हसन के कमरे पर पहुंचा. तब तक काफी रात हो चुकी थी, उस ने उसे सारी बात बता दी थी.

हरिहर कृष्णा की बात सुन कर वह सन्न रह गया था. फिर वह उस के वाशरूम में नहाया और उस के कपड़े पहने. उसी रात वह शहर छोड़ कर भाग जाना चाहता था तो उस ने नंदिनी से पैसे मांगे तो उस ने अपने मोबाइल से 1500 रुपए उस के अकांउट में ट्रांसफर किए और वह दूसरे शहर को फरार हो गया.

नवीन ने एक चालाकी की थी. हौस्टल से हैदराबाद के लिए निकलते समय उस ने बता दिया था कि अपने दोस्त हरिहर कृष्णा के पास पार्टी में जा रहा है. शाम तक वापस लौट आएगा. जब वह रात तक हौस्टल नहीं लौटा तो रूम पार्टनर प्रदीप ने पूरी बात उस के पिता शंकराय को बता दी थी. इसी वजह से पुलिस को यह केस खोलने में आसानी हुई.

पुलिस ने हरिहर कृष्णा से पूछताछ करने के बाद उस की प्रेमिका नंदिनी और दोस्त हसन को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

कथा लिखने पुलिस कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल कर चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में नंदिनी परिवर्तित नाम है.

अनुराधा रेड्डी हत्याकांड : सीसीटीवी फुटेज से खुली मर्डर मिस्ट्री

मैं चीज बड़ी हूं मस्त मस्त – भाग 3

गुड़गांव के अनाथालय में किआरा का एक और दोस्त था गुलफाम. गुलफाम उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर का रहने वाला था. वह 4 साल का था तभी उस के अब्बू की मौत हो गई थी. अब्बू की मौत के बाद मां हमीदा बेसहारा हो गई.

हमीदा ने फिर दूसरा निकाह कर लिया. दूसरे पति से उसे 4 बच्चे हुए. हमीदा दूसरे पति के साथ दिल्ली के आयानगर में रहने लगी. फिर सन 2004 में हमीदा की मौत हो जाने के बाद सौतेले पिता ने गुलफाम को गुड़गांव के अनाथालय में भरती करा दिया.

गुलफाम और रफीक अनाथालय में अच्छे दोस्त थे. करीब एक साल पहले गुलफाम किसी तरह अनाथालय से भाग गया. किआरा ने किसी तरह गुलफाम से संपर्क साध लिया.

10 मार्च, 2014 को उन दोनों ने गुड़गांव के एमजी रोड मेट्रो स्टेशन पर मुलाकात की. वहीं पर किआरा का एक दोस्त पवन आ गया. पवन द्वारका सेक्टर-3 में रहता था. फिर तीनों रफीक के कमरे पर पहुंच गए. कमरे पर 2 दिन रुक कर पवन तो चला गया. लेकिन गुलफाम वहीं रुका रहा. रफीक ने किआरा से जब पूछा कि ये गुलफाम यहां कब तक रहेगा तो किआरा ने कहा कि जब तक मैं यहां रहूंगी, ये भी रहेगा.

जब किआरा को रफीक अपनी बहन मान चुका था तो उसे अपने कमरे से जाने को भी नहीं कह सकता था, इसलिए न चाहते हुए भी किआरा को कमरे पर रखने के लिए उसे मजबूर होना पड़ा.

उधर आगरा में रहने वाले रोहित को जब पता चला कि किआरा गुड़गांव में रह रही है तो वह उस के पास आ गया और उसे अपने साथ आगरा ले जाने की जिद करने लगा. लेकिन किआरा ने उस के साथ जाने से मना ही नहीं किया बल्कि लड़ कर उसे कमरे से भगा भी दिया.

रफीक के कमरे पर आनेजाने वालों का तांता लगना शुरू हो गया तो मकान मालिक को शक हुआ. तब उस ने रफीक से कमरे पर आनेजाने वालों के बारे में पूछा और उस से अपना कमरा खाली करा लिया. तब ये तीनों दिल्ली चले आए.

गुलफाम की दिल्ली स्थित एक काल सेंटर में नौकरी लग गई तो उस ने अलग कमरा ले लिया तो वहीं किआरा ने दक्षिणपश्चिमी दिल्ली के थाना बिंदापुर के तहत सुखराम पार्क में रहने वाले अशोक कुमार सेठ के यहां ग्राउंड फ्लोर पर 3 हजार रुपए महीना किराए पर एक कमरा ले लिया. मकान मालिक से रफीक को उस ने अपना भाई बताया था. यह बात 4 अप्रैल, 2014 की है.

कुछ दिनों बाद उत्तम नगर क्षेत्र स्थित एक फोन कंपनी के शोरूम में किआरा की भी नौकरी लग गई. कुछ दिनों बाद गुलफाम ने भी किआरा के पास आना शुरू कर दिया. चूंकि किआरा और गुलफाम के बीच पहले से अवैध संबंध थे, इसलिए वह उसे छोड़ना नहीं चाहती थी.

ऐसा भी नहीं था कि उस के संबंध केवल गुलफाम से ही हों बल्कि पड़ोस में रहने वाले एक अन्य युवक से भी उस के नाजायज संबंध हो गए थे.

इतना ही नहीं, जिस शोरूम में वह नौकरी करती थी, वहां भी 2 लड़कों को उस ने अपने रूपजाल में फांस रखा था. दरअसल अब वह इस क्षेत्र की इतनी माहिर खिलाड़ी हो चुकी थी कि लड़कों को अपने रूपजाल में फांसना उस के बाएं हाथ का खेल बन चुका था. वह होटलों और क्लबों में भी जाने लगी.

यह केवल उस का शौक ही नहीं था बल्कि बदले में वह उन से अपनी जरूरत की चीजें या पैसे भी ऐंठ लेती थी. देर रात को शराब के नशे में कमरे पर लौटना जैसे उस का रूटीन बन चुका था.

रफीक और गुलफाम को पता लग चुका था कि किआरा अब होटलों और क्लबों में भी जाने लगी है. उन्होंने उसे समझाया और कमरे पर जल्दी लौटने की बात कही तो उस ने साफ कह दिया, ‘‘जब मेरी मरजी होगी, घर आऊंगी. मेरी निजी जिंदगी में कोई भी दखल देने की कोशिश न करे.’’

‘‘जब तुझे ऐसा ही करना है तो अलग कमरा ले ले.’’ रफीक बोला.

‘‘मैं हरगिज अलग कमरा नहीं लूंगी. यहीं पर रहूंगी और तुम लोग आइंदा इस बारे में कुछ मत कहना.’’

‘‘तू हमारे ही साथ रह रही है और हमें ही घुड़की दे रही है. कम से कम इतनी शरम तो कर कि हम तुझे खिलाते पिलाते हैं, तेरे कपड़े धोते हैं और सारा खर्चा हम ही उठा रहे हैं. यदि तूने हमारी बात नहीं मानी तो कहीं दूसरा कमरा ले ले.’’ रफीक ने कहा.

‘‘मैं कहीं कमरा नहीं लूंगी, यहीं रहूंगी. और अगर ज्यादा बात की तो तुम्हारे खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज करा कर जेल भिजवा दूंगी. इसलिए ज्यादा उड़ने की कोशिश मत करो.’’ किआरा ने धमकी दी.

रफीक को किआरा की यह बात बहुत बुरी लगी, क्योंकि उस ने किआरा को उस समय सहारा दिया था जब वह बहुत परेशान हालत में थी. उसे मुंहबोली बहन मान कर उस की सेवा भी की और आज वही उसे बलात्कार के केस में फंसाने की धमकी दे रही है.

बहरहाल, उस की धमकी पर रफीक और गुलफाम डर गए कि किआरा उन्हें वास्तव में जेल भिजवा सकती है. इस तरह वे चाहते हुए भी अपने कमरे से उसे निकाल नहीं सके.

एक दिन ये दोनों दोस्त उत्तम नगर किसी काम से गए हुए थे. घर पर किआरा रह गई थी. जब वे लौट कर आए तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. गुलफाम ने दरवाजे पर जोर से 2-3 धक्के दिए तो सिटकनी खुल गई. कमरे में किआरा और एक युवक अपने अपने कपड़े पहनते दिखे. बंद कमरे में किआरा को दूसरे लड़के साथ देख कर रफीक और गुलफाम हक्केबक्के रह गए.

उधर जब किआरा ने अचानक रफीक और गुलफाम को कमरे में आया देखा तो उस ने उन दोनों को जम कर फटकार लगाई.

रफीक और गुलफाम के लिए किआरा गले की एक ऐसी हड्डी बन चुकी थी जिसे न तो वे निगल सकते थे और न ही उगल सकते थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि उस से कैसे निजात पाएं. दोनों ही उस से निजात पाने के उपाय खोजने लगे. काफी सोचविचार के बाद उन्होंने उस का काम तमाम करने का फैसला कर लिया कि न रहेगा बांस, न बजेबी बांसुरी.

30 अप्रैल, 2014 को आधी रात के करीब किआरा पारकर नशे की हालत में कमरे पर लौटी. थोड़ी देर बाद ही वह सो गई. तभी रात सवा 2 बजे के करीब उन दोनों ने किआरा की गला घोंट कर हत्या कर दी. उस की हत्या करने के बाद दोनों ने राहत की सांस ली. फिर दोनों ने ही उस की लाश के साथ बारीबारी से अपनी हवस पूरी की.

रफीक और गुलफाम ने उस की हत्या तो कर दी लेकिन अब उन के सामने लाश को ठिकाने लगाने की समस्या थी. लाश को घर से बाहर ले जाने की उन की हिम्मत नहीं हो रही थी. तभी उन्हें कमरे की दीवार में बनी अलमारी का ध्यान आया. उस अलमारी को उन्होंने एक बार खोल कर देखा तो उस का बीच का खाना इतना बड़ा था कि उस में उस की लाश रखी जा सकती थी.

फिर दोनों ने उस की लाश उठा कर अलमारी के बीच वाले खाने में रख कर अलमारी के दरवाजे को सिटकनी से बंद कर दिया. फिर सुबह होने से पहले ही बैगों में अपने जरूरी सामान भर कर, कमरे का ताला बंद कर के चले गए.

दिल्ली से वे सीधे छत्तीसगढ़ पहुंचे. वहां पर गुलफाम का एक  दोस्त राजू रहता था. वे उस के पास ही रुक गए. 4-5 दिन छत्तीसगढ़ में रहने के बाद जब दोनों उत्कल एक्सप्रैस से दिल्ली पहुंचे तो वे पुलिस के शिकंजे में आ गए.

पुलिस ने रफीक और गुलफाम को किआरा पारकर की हत्या करने और लाश छिपाने (आईपीसी की धारा 302, 201) के तहत गिरफ्तार कर के 10 मई, 2014 को द्वारका कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी श्री विक्रम के समक्ष पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उन से किआरा की पर्सनल डायरी आदि सामान बरामद किया.

12 मई को पुन: न्यायालय में पेश कर उन्हें जेल भेज दिया. मामले की विवेचना इंसपेक्टर सत्यवीर जनौला कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

मौत के मुंह से वापसी – भाग 3

बस चल पड़ी. इराकी सेना ने बस को रोकने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुई. थोड़ा आगे जाने पर लड़ाकों ने नर्सों को दिलासा दिया कि वे परेशान न हों, उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा. उन्हें मोसुल ले जाया जा रहा है, जहां पहुंच कर उन्हें एरबिल हवाईअड्डे से आजाद कर दिया जाएगा. बस के चलते ही नर्सों के मोबाइल बजने लगे.

फोन दिल्ली से किया जा रहा था. लेकिन नर्सों को यह पता नहीं था कि फोन कौन कर रहा था. फोन करने वालों ने उन से कहा था कि वे खिड़की से झांक कर देखें कि बाहर साइनबोर्डों पर स्थान का नाम क्या लिखा है. उस के बाद स्थान का नाम उसी नंबर पर मैसेज कर दें.

नर्सों को ले जाने वाली बस जिस रास्ते से गुजर रही थी, वह काफी घुमावदार था. शायद सड़कें सुरक्षित नहीं थीं, इसलिए उन्हें उस रास्ते से ले जाया जा रहा था. नर्सों को पता नहीं चल पा रहा था कि उन्हें कहां ले जाया जा रहा है. बस की खिड़कियों पर मोटे परदे पड़े थे, जिस से बाहर का कुछ दिखाई नहीं दे रहा था.

बस के आगे एक काला झंडा लगा था, जिस पर वहां की भाषा में कुछ लिखा था. शायद ऐसा इसलिए किया गया था कि उन के लड़ाके साथी उस पर गोली न चलाएं. बस के पीछे एक वैन थी, जिस पर नर्सों का सामान लदा था. एक लड़ाका नर्सों के साथ था. बाकी के 3 लड़ाके एक कार में सवार थे.

मोसुल पहुंचने में उन्हें 8 घंटे लगे. पूरी रास्ते सभी नर्सें रोती रहीं. उन के आंसू एक पल के लिए भी नहीं रुके. मौत के डर से सभी के शरीर कांप रहे थे. एकदूसरे से लिपट कर वे एकदूसरे को ढांढस बंधा रही थीं. वहां उन्हें 10-10 की टोली में कतार से उतरने को कहा गया. लड़ाकों के इस हुक्म से उन नर्सों को लगा कि इस तरह कतार में उतारने का मतलब है, वे उन्हें मारना चाहते हैं.

मारे जाने के डर से सब बुरी तरह कांपने लगीं. लेकिन उस तरह कतार में उतार कर उन नर्सों को गलियारे से होते हुए एक हौल में ले जाया गया. जिस में कुल 4 एसी लगे थे. उन की पैकिंग से लग रहा था कि वे अभी नए हैं. नर्सों को लग रहा था कि ये लड़ाके उन्हें बंधक बना कर भारत सरकार से अच्छीखासी रकम वसूल करेंगे. सभी नर्सें हौल में आ गईं तो उन की सुरक्षा में लगे लड़ाके ने सभी नर्सों से अपने हाथपैर ढकने को कहा.

नर्सें वैसा ही करती रहीं, जैसा लड़ाके कहते रहे. उन्होंने सभी नर्सों को दाल रोटी, और चीज खाने को दी. इस के बाद कुछ चटाइयां दे कर उन्होंने सभी को आराम करने को कहा. नर्सें भले ही लड़ाकों की बंधक थीं, लेकिन मोबाइल से उन का भारतीय दूतावास से संपर्क बना था. दूतावास से लगातार उन के मोबाइल पर मैसेज आ रहे थे. दूतावास की ओर से उन के मोबाइल रिचार्ज भी कराए गए थे.

लेकिन परेशानी की बात यह थी कि नर्सों को जिस कमरे में ठहराया गया था, उस में बिजली का कोई स्विच नहीं था. इसलिए एकएक कर के उन के मोबाइल फोन की बैट्रियां खत्म होने लगी थीं.

4 जुलाई को लड़ाकों ने नर्सों से कहा कि वे एयरपोर्ट चलने को तैयार हो जाएं. नर्सों ने राजदूत अजय कुमार से संपर्क किया. उन्होंने पहले की ही तरह लड़ाकों का हुक्म मानने को कहा. एयरपोर्ट जाते हुए 3 जगहों पर उन की बस रोकी गई. शायद वे उन्हीं के साथी लडाके रहे होंगे. क्योंकि बातचीत के बाद उन्हें जाने के लिए कह दिया गया था.

बस एक मकान के सामने रुकी. सभी नर्सों को बस से उतार कर उस मकान में ले जाया गया. अच्छी बात यह थी कि उस मकान में बिजली का स्विच था. जिस से सभी नर्सों ने अपने मोबाइल फोन चार्ज किए. लेकिन वहां मोबाइल सिगनल नहीं मिल रहा था. उन नर्सों में से 2 के पास किसी दूसरी कंपनी का सिम था. उन्होंने उस सिम को मोबाइल में डाला तो सिगनल मिल गया.

इस के बाद उन्होंने राजदूत अजय कुमार से बात की. उन्होंने कहा कि मकान के बाहर एक बस खड़ी है, जिस का ड्राइवर अब्दुल शाह है. ड्राइवर का नाम पूछ कर सभी नर्सें उसी बस में बैठ जाएं. लेकिन नर्सों ने बाहर आ कर देखा तो वहां कोई बस नहीं थी.

लेकिन कुछ देर बाद कुछ लड़ाके एक बस ले कर आए और उस में सभी नर्सों को सवार होने के लिए कहा. इस के बाद वह बस सभी नर्सों को वहां ले गई, जहां भारतीय दूतावास के कुछ अधिकारी उन का इंतजार कर रहे थे. इस से यह साबित हो गया था कि दूतावास के अधिकारी लगातार आईएसआईएस के लड़ाकों के संपर्क में थे. रात पौने 9 बजे वे अधिकारी सभी नर्सों को एरबिल इंटरनेशनल एयरपोर्ट ले गए, जहां 5 जुलाई की सुबह 4 बजे उन्हें एयर इंडिया के विमान पर सवार करा दिया गया.

विमान 12 बजे दोपहर को केरल के कोच्चि एयरपोर्ट पर उतरा तो इराक से मुक्त हुई नर्सों ने राहत की सांस ली. घर वालों को पहले ही सूचना दे दी गई थी, इसलिए सभी के घर वाले हवाई अड्डे पर आ गए थे. सभी अपनेअपने घर घर वालों के गले लगीं तो उन की आंखों से आंसू बहने लगे.

इराक से सोना, वीना, नीनू जोंस, मरीना, श्रुथी शशिकुमार, ऐंसी जोसफ और सलीजा जोसफ अपनी साथिन नर्सों के साथ तो वापस आ गई हैं, लेकिन उन की दुश्वारियां कम होने के बजाय बढ़ गई हैं. ये बेहतर जिंदगी का जो सपना ले कर इराक गई थीं, वहां आए संकट ने इन के संकट को कम करने के बजाय और बढ़ा दिया है.

इस की वजह यह है कि अपना सपना पूरा करने के लिए किसी ने कर्ज लिया था तो किसी ने प्रौपर्टी बेची थी कि कमा कर फिर से खरीद लेंगे. लेकिन अब क्या होगा, क्योंकि भारत में नौकरी करने पर शायद उतना भी वेतन न मिले, जिस में वे ठीक से गुजरबसर कर सकें.

दोस्त के प्यार पर डाका – भाग 3

नंदिनी ने बना ली नवीन से दूरी

हरिहर कृष्णा ने अपना दांव चल दिया था. कान की कच्ची नंदिनी उस की बातों में आ गई थी. वैसे भी नारी यह कब बरदाश्त कर सकती है कि एक म्यान में 2 तलवार रह सके.

हरिहर कृष्णा ने जब से नवीन के खिलाफ उस के कान भरे थे, तब से नंदिनी ने उस से दूरी बना ली. वह न तो उस से बात करती थी और न ही उस की काल रिसीव कर रही थी. अचानक प्रेमिका में आए बदलाव को देख कर नवीन परेशान हो गया था. वह उस से यह जानने की कोशिश करता था कि आखिर उस से ऐसी कौन सी गलती हुई है कि उस ने उस से बातचीत करनी बंद कर दी.

यहां तक कि काल रिसीव करना भी छोड़ दिया था वरना एक घंटी बनते ही झट से उस की काल रिसीव कर लेती थी. नवीन को क्या पता था कि उस की प्रेमिका को अपनी प्रेमिका बनाने के लिए उसी के अजीज यार ने गद्दारी की थी. उसी ने भोलीभाली नंदिनी को उस के खिलाफ भडक़ाया था. बिना सोचेसमझे नंदिनी भी शक के दरिया में रफ्तार से बढ़ गई थी.

इस घटना के महीने भर बाद शाम की छुट्ïटी के बाद एक दिन रास्ते में नवीन ने नंदिनी को रोक लिया, “एक मिनट के लिए नंदिनी, प्लीज मेरी बात सुन लो.” नवीन उस के सामने गिड़गिड़ाया.

“मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनने वाली. और फिर तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई जो तुम ने मेरा रास्ता रोका?” गुस्से से नंदिनी तमतमा उठी थी.

“प्लीज नंदिनी, गुस्सा मत होओ,” एक बार फिर उस के सामने नवीन गिड़गिड़ाया, “सिर्फ इतना बता दो कि आखिर मुझ से ऐसी क्या गलती हुई है, जो तुम ने मुंह मोड़ लिया. प्लीज नंदिनी, प्लीज एक बार बता दो.”

“मैं ने कहा न, मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी है तो नहीं करनी है. प्लीज मेरा रास्ता छोड़ दो. प्लीज.. प्लीज.. प्लीज… मुझे घर पहुंचना है, मम्मी मेरी राह देख रही होगी.”

इस के बाद नवीन ने प्रेमिका के सामने दोनों हाथ जोड़ कर अपने प्यार की दुहाई दी कि उसे उस की गलती तो एक बार बता दो ताकि जीवन में दोबारा वैसी कोई गलती न हो. वह उस के बिना नहीं जी सकता, उस की जुदाई का गम बरदाश्त नहीं कर सकता. लेकिन नंदिनी ने उस से कुछ नहीं कहा तो नहीं कहा. हार कर नवीन ने उसे छोड़ दिया और वहीं खड़ाखड़ा एकटक उसे तब तक देखता रहा, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हुई.

हारे हुए जुआरी की तरह नवीन घर पहुंचा. दिल उस का नंदिनी के लिए सिसकियां भर रहा था, गंगा यमुना की धारा उस की आंखों से छलक रहा था. नंदिनी के वियोग में वह विरह की अग्नि में जल रहा था. आंखों के सामने बारबार नंदिनी का मुसकराता हुआ चेहरा थिरक उठता था.

बस, वह इसी उलझन में जकड़ा रहा कि आखिर उस से कौन सी गलती हुई थी, जो उस ने उसे इतनी बड़ी सजा दी. बहरहाल, क्या हुआ जो उस ने सच नहीं बताया, लेकिन वह भी चुप बैठने वालों में नहीं था. इस बात की सच्चाई पता लगा कर ही रहेगा. इस के बाद दोनों के बीच ब्रेकअप हो गया.

नवीन को छोड़ दोस्त की हो गई नंदिनी

आखिरकार, नवीन ने सच का पता लगा ही लिया था. गद्दार दोस्त हरिहर कृष्णा की सच्चाई जब खुल कर उस के सामने आई तो नवीन आगबबूला हो गया. दुख तो इस बात का था कि उस की प्रेमिका नंदिनी न तो उस की कोई बात सुनने के लिए तैयार थी और न ही उस से मिलना ही चाहती थी.

नवीन सही समय आने के इंतजार में बैठ गया कि एक न एक दिन वह समय आएगा, जब वह हरिहर कृष्णा की कलई उस के सामने खोल कर रख देगा.

शातिर हरिहर कृष्णा अपनी चाल की कामयाबी पर बेहद खुशी महसूस कर रहा था, उस ने अपनी दोगली चाल और दांवपेंच से 2 प्रेमियों को अलग कर दिया था. वह मन ही मन खुश था कि अब नंदिनी को अपना बनाने से कोई रोक नहीं सकता.

नंदिनी के दिल में हरिहर कृष्णा ने नवीन के खिलाफ इतना जहर भर दिया था कि वह उस के नाम से गुस्से की आग में जल उठती थी, ऐसा लगता था नवीन अगर उस के सामने आ जाए तो उस का खून पी जाएगी. हरिहर कृष्णा यही चाहता भी था कि नंदिनी के दिल और दिमाग से उस का पहला प्यार पूरी तरह खाली हो जाए ताकि उस के दिल के कैनवास पर अपने प्यार का मनचाहा रंग भर सके.

भले ही नंदिनी ने अपने दिल और दिमाग से नवीन को निकाल फेंका था, लेकिन जब वह अकेली होती थी तो उस की यादों के बादल और उस के साथ बिताए पल आंखों के सामने उमड़ पड़ते थे. वह उदास हो जाती थी, हरिहर इसी पल का इंतजार करता था ताकि उसे संभालने के बहाने उस के दिल के करीब पहुंच सके और अपने प्यार का मरहम लगा सके.

चतुर खिलाड़ी हरिहर कृष्णा धीरेधीरे नंदिनी के दिल के करीब पहुंचने में कामयाब हो गया. दिल के हरे जख्म को भरने के लिए उस ने सहानुभूति का जो मरहम लगाया था, नंदिनी उस की मुरीद हो गई थी. नंदिनी के दिल पर उस के प्यार का रंग चढऩे लगा था. वह उस के प्यार के रंग में रंगने लगी थी.

नंदिनी और हरिहर कृष्णा दोनों एकदूसरे से टूट कर प्यार करने लगे थे. उस ने नंदिनी के दिल पर अपने प्यार की ऐसी हुकूमत बैठा दी कि उस का दिल हरिहर कृष्णा के अलावा किसी और के बारे में धडक़ने की गुस्ताखी नहीं करता था.

धीरेधीरे 2 साल का समय बीत चुका था नंदिनी को हरिहर कृष्णा का हुए और पहले प्रेमी नवीन से दूरियां बनाए हुए. दोनों ही अपने प्यार की दुनिया में बहुत खुश थे. हरिहर कृष्णा ने जो चाहा था सो पा चुका था.

इधर नवीन ने नंदिनी से ब्रेकअप करने के बाद अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया. इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने नेलगोंडा जिले के महात्मा गांधी इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला ले लिया था, जबकि हरिहर कृष्णा जडीगुड़ा के इंजीनियरिंग कालेज से बी.टेक कर रहा था और नंदिनी हैदराबाद में ही रह कर बीएससी की पढ़ाई कर रही थी.

मैं चीज बड़ी हूं मस्त मस्त – भाग 2

पुलिस मान कर चल रही थी कि यदि वह दिल्ली आ रहा होगा तो या तो बस से आएगा या फिर ट्रेन से. छत्तीसगढ़ से आने वाली बसें सराय कालेखां अंतरराज्यीय बस टर्मिनल पर आती हैं और ट्रेनें हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन. इसलिए 9 मई, 2014 को 2 पुलिस टीमें हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन और सराय कालेखां बस टर्मिनल पर लगा दीं.

चूंकि सुखराम पार्क में रहने वाले अशोक कुमार सेठ और उन का बेटा अंकुश रफीक और गुलफाम को जानते थे इसलिए उन दोनों को भी पुलिस ने अपने साथ ले लिया था.

एक पुलिस टीम सर्विलांस के जरिए उस फोन नंबर पर नजर रखे हुई थी. सर्विलांस टीम को जो नई जानकारी मिल रही थी, टीम उस जानकारी को दोनों पुलिस टीमों को शेयर करा रही थी. इसी आधार पर पुलिस ने रफीक और गुलफाम को हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर उन दोनों से किआरा पारकर की हत्या की बाबत पूछताछ की तो उन्होंने बड़ी आसानी से किआरा की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. उस की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली.

किआरा दिल्ली के रहने वाले विनोद कुमार की बेटी थी. विनोद कुमार एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. उस के 2 बेटियां और एक बेटा था. किआरा दूसरे नंबर की थी. किआरा की मां रेखा को कैंसर था. विनोद ने पत्नी का काफी इलाज कराया लेकिन वह ठीक नहीं हो सकी.

एक दिन डाक्टरों ने विनोद को बता दिया कि रेखा का कैंसर ठीक होने वाला नहीं है, यह अब आखिरी स्टेज पर हैं. डाक्टरों से यह जानकारी मिलने के बाद विनोद ने पत्नी की तीमारदारी करनी बंद कर दी.

बताया जाता है कि विनोद का उस समय किसी महिला के साथ चक्कर चल रहा था. उसे यह तो पता चल ही गया था कि उस की पत्नी अब ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रहेगी इसलिए उस ने पत्नी के जीतेजी उस महिला से शादी कर ली जिस के साथ उस का चक्कर चल रहा था.

रेखा को पति द्वारा दूसरी शादी करने का ज्यादा दुख नहीं हुआ, बल्कि पति की आदतों को देखते हुए उसे इस बात की आशंका थी कि उस के मरने के बाद उस के तीनों बच्चों की दुर्दशा होगी. क्योंकि सौतन उस के बच्चों को तवज्जो नहीं देगी और उस के नातेरिश्तेदार भी ऐसे नहीं हैं जो बच्चों को पालपोस सकें.

बच्चों के भविष्य के बारे में उस ने अपने मिलने वालों से सलाह ली तो उन्होंने बच्चों को किसी अनाथालय में भरती करने की बात कही. इस बीच विनोद रेखा और बच्चों को दिल्ली में छोड़ कर अपनी दूसरी बीवी को ले कर मुंबई चला गया, जो आज तक नहीं लौटा.

पति द्वारा बच्चों को बेसहारा छोड़ जाने पर रेखा को बड़ा दुख हुआ. तब रेखा दक्षिणी दिल्ली के घिटोरनी गांव में रहने वाली अपनी मां के पास चली गई. रेखा नहीं चाहती थी कि उस के मरने के बाद बच्चे दरदर की ठोकरें खाएं इसलिए वह तीनों बच्चों को गुड़गांव के सेक्टर-10 स्थित शांति भवन ट्रस्ट औफ इंडिया नाम के अनाथालय में भरती करा आई.

बताया जाता है कि किआरा का घर का नाम कल्पना था. अनाथालय में उस का नाम किआरा पारकर रखा गया. बच्चों को अनाथालय में भरती कराने के कुछ दिनों बाद रेखा की मौत हो गई. यह करीब 8 साल पहले की बात है. उस समय किआरा करीब 10 साल की थी. अनाथालय में ही तीनों बच्चों की परवरिश होती रही. वहीं पर उन की पढ़ाई चलती रही. किआरा थोड़ी चंचल स्वभाव की थी. जब वह जवान हुई तो अनाथालय में ही रहने वाले कई लड़कों से उस की दोस्ती हो गई.

अधिकांशत: देखा गया है कि ऐसे जवान लड़के और लड़कियां जो आपस में सगेसंबंधी न हों उन की दोस्ती लंबे समय तक पाकसाफ नहीं रह पाती. एकांत में मिलने का मौका पाते ही वह खुद पर संयम नहीं रख पाते और उन के बीच जिस्मानी ताल्लुकात कायम हो जाते हैं. यही किआरा के साथ भी हुआ.

अनाथालय में ही रहने वाले एक नजदीकी दोस्त के साथ किआरा के अवैध संबंध कायम हो गए. काफी दिनों तक वह मौजमस्ती करती रही. इसी दौरान उस ने अपने और भी कई दोस्तों से नाजायज ताल्लुकात बना लिए. इस के बाद तो अनाथालय के तमाम लड़के किआरा के नजदीक आने की कोशिश करने लगे.

अवैध संबंधों को छिपाने के लिए कोई चाहे कितनी भी सावधानी क्यों न बरते, एक न एक दिन उन की पोल खुल ही जाती है. यानी किआरा के संबंधों की जानकारी भी अनाथालय के संचालकों तक पहुंच गई.

संचालकों ने किआरा को बहुत समझाया लेकिन उस ने अपनी आदत नहीं बदली तो उन के लिए यह बड़ी ही चिंता की बात हो गई. खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है. उस की देखादेखी अनाथालय के अन्य बच्चे न बिगड़ जाएं, संचालकों को इस बात की आशंका थी.

काफी सोचनेसमझने के बाद संचालकों ने किआरा को उस अनाथालय से किसी दूसरी जगह भेजने का फैसला ले लिया. करीब 1 साल पहले अनाथालय की तरफ से किआरा को पढ़ाई के लिए आगरा भेज दिया गया. वहां के एक हौस्टल में रह कर वह पढ़ने लगी.

चूंकि किआरा के कदम पहले ही बहक चुके थे इसलिए आगरा में उस के रोहित नाम के लड़के से अवैध संबंध हो गए. रोहित का एक दोस्त था विवेक चौहान जो दिल्ली में रहता था. वह भी आगरा आताजाता रहता था. किआरा ने उसे भी अपने जाल में फांस लिया. इसी दौरान किआरा गर्भवती हो गई. यह बात उस ने जब रोहित को बताई तो उस के हाथपैर फूल गए.

किआरा ने जब रोहित से शादी करने को कहा तो वह उस से कन्नी काटने लगा. उस समय किआरा के पेट में 2 माह का गर्भ था. जब किआरा को लगा कि उस का साथ देने वाला कोई नहीं है तो उस ने दवा खा कर गर्भ गिरा दिया.

किआरा का एक दोस्त था रफीक, जो गुड़गांव के अनाथालय में उस के साथ ही था. उस की उम्र जब 18 साल हो गई तो वह अनाथालय से बाहर आ गया. अनाथालय से निकलने के बाद रफीक ने गुड़गांव स्थित साउथ इंडियन होटल में नौकरी कर ली और में कादीपुर गांव में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगा.

किआरा को किसी तरह रफीक के बारे में जानकारी मिली. तब वह इस साल होली से पहले आगरा से भाग कर गुड़गांव चली आई. वह उस होटल पर पहुंच गई जहां रफीक नौकरी कर रहा था. किआरा को देख कर रफीक खुश हुआ. फिर किआरा ने रफीक को अपना गर्भ गिराने तक की पूरी कहानी बता दी.

उस ने आराम करने के लिए कुछ दिनों उस के यहां रुकने की इजाजत मांगी. रफीक उसे मुंहबोली बहन मानता था इसलिए उस ने उसे हर तरह का सहयोग करने का भरोसा दिया. वह उसे अपने कमरे पर ले गया. फिर वह वहीं रहने लगी. रफीक अपने काम पर निकल जाता तो किआरा घर पर ही रहती थी.

क्यों मजबूर हो गए थे वो दोनों किआरा की हत्या करने पर? जानेंगें कहानी के अंतिम भाग में.

मौत के मुंह से वापसी – भाग 2

इराक में जो हिंसा फैली थी, उस से टिकरित के उस विशाल अस्पताल के मरीज अस्पताल छोड़ कर जाने लगे थे. सोना, वीना और उस की अन्य साथी नर्सें टेलीविजन और मोबाइल फोन पर इंटरनेट के माध्यम से समाचार देख कर जानकारी प्राप्त करने के साथ समय काट रही थीं.

लेकिन जल्दी ही टेलीविजन भी बंद हो गया और इंटरनेट भी. अब वे बाहर की दुनिया से पूरी तरह कट गईं. उन्हें बिलकुल भी पता नहीं चलता था कि बाहर क्या हो रहा है. वे बस उतना ही जानती थीं, जो उन की खिड़कियों से दिखाई देता था.

सोना और उस की साथी नर्सें बाहर की दुनिया से पूरी तरह कटी थीं, इसलिए उन्हें असलियत का पता नहीं था. वे सिर्फ यही जानती थीं कि केवल टिकरित में ही स्थानीय 2 गुटों के बीच लड़ाई चल रही है. लेकिन जब बारबार तेज धमाकों से अस्पताल की बिल्डिंग थर्राने लगी तो उन्हें लगा कि यहां तो युद्ध हो रहा है. यह संदेह होते ही सभी नर्सें कांप उठीं. उन्हें सामने मौत नाचती नजर आने लगी. अपने बचाव का उन के पास कोई रास्ता नहीं था, इसलिए वे एकदूसरे के गले लग कर रोने लगीं. कोई आश्वासन देने वाला नहीं था, इसलिए खुद ही चुप भी हो गईं.

धमाके लगातार हो रहे थे. डरीसहमी नर्सें किसी तरह एकएक पल काट रही थीं. उन के पास खानेपीने का सामान भी कुछ ही दिनों का बचा था. तभी स्वास्थ्य विभाग के एक रहमदिल अधिकारी मदद के लिए आ गए. अगर उन्होंने साहस न दिखाया होता तो इन नर्सों को भूखी रहना पड़ता. उस अधिकारी ने अपनी ओर से सभी नर्सों के लिए अगले 2 सप्ताह के भोजन की व्यवस्था कर दी थी.

वह अधिकारी अस्पताल के नजदीक ही रहते थे. इसलिए नर्सें उन के मोबाइल पर जैसे ही मिस काल करतीं, वह तुरंत उन की मदद के लिए आ जाते थे. लेकिन जून के अंत में उन्होंने कहा कि अब वह उन की मदद नहीं कर पाएंगे. क्योंकि आईएसआईएस लड़ाके आगे बढ़ते आ रहे हैं, जो जल्दी ही इस अस्पताल पर भी कब्जा कर लेंगे. इसलिए वह यहां से जा रहे हैं. उस समय तक अस्पताल की सुरक्षा के लिए 2 फौजी तैनात थे. लेकिन उस अधिकारी के जाते ही, वे भी गायब हो गए थे.

सचमुच अगले दिन लड़ाके अस्पताल पहुंच गए. वे काले कपड़े पहने हुए थे. आंखों पर काला चश्मा लगाए वे अपने चेहरे को काले दुपट्टे से ढांपे हुए थे. उन्हें देख कर नर्सें बुरी तरह से डर गईं. वे लड़ाके बुरी तरह से जख्मी अपने साथियों को ले कर आए थे. लड़ाकों ने नर्सों से उन की मरहमपट्टी कराने के बाद अगले दिन यानी 30 जून की शाम तक अस्पताल को खाली करने के लिए कहा.

लड़ाकों के जाने के बाद नर्सों ने एक बार फिर राजदूत अजय कुमार और केरल के मुख्यमंत्री ओमन चांडी को फोन किया. दोनों ने ही नर्सों को सलाह दी कि लड़ाके जैसा कहते हैं, वे वैसा ही करें. क्योंकि उन की बात न मानना उन के लिए प्राणघातक सिद्ध हो सकता है. संयोग से उस शाम लड़ाके नहीं आए. इसीलिए उस दिन संकट टल गया.

इस के अगले दिन केरल सरकार के आप्रवासी केरलवासी मामलों के विभाग से नर्सों को फोन कर के उन्हें वहां से निकालने के लिए उन के पासपोर्ट के नंबर तथा अन्य जानकारी ली गई.

2 जुलाई को अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में ऐसा धमाका हुआ कि ब्लड बैंक सहित वह पूरा हिस्सा ढह गया. इसी के साथ पूरा अस्पताल हिल उठा. इस धमाके से नर्सें थरथर कांपने लगीं. चारों ओर उसी तरह के धमाके हो रहे थे. अस्पताल के पास ही कई इमारतें जल रही थीं. चारों ओर आग की लपटें, जली कारें और ट्रक दिखाई दे रहे थे.

उस दिन भी कुछ लड़ाके आए और सभी नर्सों से कहा कि वे अपना सामान बांध कर तैयार हो जाएं, शाम को उन्हें उन के साथ चलना है. इतना कह कर लड़ाके चले गए. उन के जाते ही नर्सों ने एक बार फिर राजदूत अजय कुमार और मुख्यमंत्री ओमन चांडी को फोन किया. दोनों ने सभी नर्सों को आश्वासन देने के साथ शांति से रहने को कहा और बताया कि भारत सरकार उन्हें हरसंभव वहां से किसी भी तरह निकालने की कोशिश में लगी है. मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने उन से यह भी कहा कि वह लगातार भारत सरकार की विदेशमंत्री सुषमा स्वराज के संपर्क में हैं.

संयोग से उस शाम भी लड़ाके नहीं आए, जिस से नर्सों ने थोड़ी राहत महसूस की. लेकिन अगले ही दिन वे दोपहर के आसपास फिर आ धमके. उन्होंने सभी नर्सों को 15 मिनट में अस्पताल से बाहर आने को कहा. उन का कहना था कि वे इस अस्पताल को अभी बम से उड़ाएंगे और उन्हें अपने साथ मोसुल ले जाएंगे.

नर्सों ने तुरंत भारतीय दूतावास को फोन किया. दूतावास के अधिकारी ने उन से कहा कि वे लड़ाकों से छोड़ देने की विनती करें. अगर वे मान जाते हैं तो कोई बात नहीं. अगर नहीं मानते हैं तो वे जैसा कहते हैं, सभी लोग वैसा ही करो. इसी के साथ उस अधिकारी ने यह भी कहा कि अगर स्थिति ज्यादा बिगड़ती है तो सरकार उन्हें बचाने के लिए कमांडो का उपयोग भी कर सकती हैं.

उन नर्सों को ले जाने के लिए इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) के 4 लड़ाके आए थे. वे काले कपड़े पहने थे और चेहरे पर काला दुपट्टा बांधे थे. आंखों पर काला चश्मा भी लगाए थे. सभी के कंधों पर एसाल्ट राइफलें लटक रही थीं. उन के आदेश का पालन करते हुए नर्सें अपना सामान समेट रही थीं कि तभी उन लड़ाकों में से एक ने मुड़ कर अपनी एसाल्ट राइफल की नाल अस्पताल की ऊपरी मंजिल की ओर कर के तड़ातड़ गोलियां चला दीं.

उसी मंजिल पर बने कमरों में सोना, वीना और उस की साथी नर्सें रहती थीं. जब से बम धमाके हो रहे थे और गोलियां चल रही थीं, ये नर्सें यहीं पर शरण लिए हुए थीं. लेकिन उस युवा लड़ाके ने जो गोलियां चलाई थीं. उस से उस मंजिल पर लगे शीशे टूटने लगे. उन शीशों के टुकड़े कुछ नर्सों के ऊपर गिरे, जिस से वे बुरी तरह से जख्मी हो कर खून से लथपथ हो गईं. बाकी नर्सें चीखतीचिल्लाती उन घायल नर्सों की ओर दौड़ीं.

लड़ाकों ने सभी नर्सों को बाहर खड़ी बस में चढ़ने को कहा. नर्सें जल्दीजल्दी बस में सवार होने लगीं. नर्सें बस में सवार हो रही थीं, तभी उस विशाल अस्पताल में एक जोरदार धमाका हुआ. उस से उठा काला धुआं चारों ओर फैलने लगा. धुएं के बाद ऊंचीऊंची उठती आग की लपटें दिखाई दीं. अस्पताल से बाहर निकलते समय नर्सों ने देखा कि पिछले दिन हुए धमाके से गिरी दीवारों पर खून लगा था. चारों ओर मांस के लोथडे़ बिखरे थे.

दोस्त के प्यार पर डाका – भाग 2

22 वर्षीय हरिहर कृष्णा मूलरूप से वेरांगल जिले का रहने वाला था. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ा था. उस के पिता एक बिजनैसमैन थे. बेटे की पढ़ाई पर वह खूब पैसे खर्च कर रहे थे. उन का सपना था कि बेटा पढ़लिख कर इंजीनियर बने तो उन का जीवन सार्थक हो जाए. भले ही उस की पढ़ाई पर ज्यादा खर्च आए, इस की कोई चिंता नहीं. उन का सोचना था कि जब हरिहर का जीवन संवर जाएगा तो बाकी दोनों बच्चों का भी भविष्य बन जाएगा.

नवीन और हरिहर कृष्णा एक ही कालेज और एक ही कक्षा में पढ़ते थे. इन दोनों के साथ ही हैदराबाद के हस्तिनापुरम की रहने वाली नंदिनी भी पढ़ती थी.

नंदिनी इकहरी बदन की दुबलीपतली और छरहरी लडक़ी थी. उस में कोई खास आकर्षण भी नहीं था, लेकिन न जाने क्यों नवीन उस की ओर चुंबक की तरह खिंचता चला जा रहा था. शायद नवीन को उस से प्यार हो गया था. तभी तो उस ने अपने दिल का दरवाजा नंदिनी के लिए खोल दिया था.

उस के दीदार के लिए हर घड़ी पलकें बिछाए रहता था. ऐसा नहीं था यह एकतरफा प्यार हो, नंदिनी भी नवीन को बेहद चाहती थी. अपने कोरे दिल पर अपने सपनों के राजकुमार के रूप में नवीन का नाम लिख दिया था. यह बात घटना से करीब 3 साल पहले 2020 की थी.

नंदिनी नवीन का पहला प्यार थी और नवीन भी उस का पहला प्यार. इन दोनों का प्यार ठीक उसी तरह था जैसे बाती बिन दीया नहीं, चांदनी बिन चांद नहीं और तपिश बिन सूरज नहीं. बेपनाह प्यार था दोनों के दिलों में एकदूसरे के लिए.

नंदिनी और नवीन ने एकदूजे को ले कर अपने भविष्य की कुछ सपने देखे थे. साथसाथ रहने की, साथसाथ जीवन के सुनहरे पल बिताने की. पते की बात तो ये थी कि नवीन अपने प्यार की पलपल की स्टोरी अपने अजीज दोस्त हरिहर कृष्णा को बताए बिना नहीं रहता था. इस से एकएक बात शेयर करता था.

हरिहर ने डाला दोस्त के प्यार पर डाका

हरिहर कृष्णा चटखारे ले कर मजे से दोनों की प्रेम कहानी सुनता था. दोनों की प्रेम कहानी सुनतेसुनते भी उस के दिल में दोस्त की प्रेमिका के लिए खास जगह बनने लगी थी. धीरेधीरे वह उस के प्रति आकर्षित होता चला गया था. जबकि हरिहर कृष्णा जानता था कि नंदिनी से उस का दोस्त प्यार करता था. किसी के प्यार को छीनना गलत है, लेकिन उस ने इस बात की परवाह किए बिना ही प्रेम और जंग में सब कुछ जायज है वाली नीति अपनाते हुए उसी ओर अपना कदम बढ़ा दिया था.

सीधासादा नवीन दोस्त हरिहर कृष्णा के मन में क्या चल रहा है, जान ही नहीं सका. वह समझ ही नहीं सका कि वह उस के प्यार पर डाका डालने के लिए कुंडली मार कर बैठा है. उसे अगर तनिक भी अंदेशा होता तो शायद अपने प्यार को दोस्त से कभी भी न तो शेयर करता और न ही उसे कुछ बताता. लेकिन हरिहर कृष्णा के मन में तो कुछ और ही चल रहा था.

नंदिनी को पाने के लिए हरिहर कृष्णा के मन में हसरतें जिंदा हो चुकी थीं. उसे किसी भी तरह हासिल करने की उस ने सौगंध ले ली थी. लेकिन उसे हासिल करे तो करे कैसे, इस जुगत में दिनरात परेशान रहा करता था. आखिरकार दोनों को अलग करने की उस ने तरकीब निकाल ही ली.

शातिर दिमाग वाले हरिहर कृष्णा ने दोनों को अलग करने के लिए उन में इस तरीके से फूट डाल दी थी कि बरसों का प्यार पल भर में रेत के मकान की तरह ढह गया था. एक दिन मौका देख कर हरिहर कृष्णा ने नंदिनी को भडक़ाया, “जानती हो नंदिनी, तुम जितनी भोली हो, नवीन उतना ही कमीना है.”

“तुम्हें शर्म नहीं आती अपने अजीज दोस्त के खिलाफ ऐसी बातें करते हुए.” प्रेमी की बुराई सुन कर नंदिनी गुस्सा हो गई थी.

“तभी तो कहता हूं नंदिनी तुम बहुत भोली हो. दोस्त के दोहरे चेहरे को तुम देख नहीं सकती.” हरिहर कृष्णा ने भडक़ाया.

“क्या मतलब है तुम्हारा, मैं अंधी हूं मुझे कुछ दिखता नहीं है?”

“नाराज क्यों होती हो यार, तुम्हें अपना समझ कर दोस्त की सच्चाई बता रहा हूं. तुम हो कि मेरी बात सुनने के बजाय मुझ पर ही नाराज हो रही हो. पता नहीं क्यों मुझ से तुम्हारे साथ हो रहा धोखा देखा नहीं जा रहा है.” इस बार हरिहर कृष्णा ने तीर निशाने पर लगाया था.

“कौन धोखा दे रहा है मुझे?” नंदिनी ने सवाल किया.

“तुम्हारा प्यार, नवीन. वही तुम्हें धोखा दे रहा है.”

“इसे मैं कतई मानने के लिए तैयार नहीं हूं कि नवीन मुझे कभी धोखा दे सकता है. वो मुझ से बहुत प्यार करता है, अंधा प्यार.”

“इसी बात का तो रोना है. उस ने तुम से अंधे प्यार वाली बात कर दी और तुम भी उसी तरह अंधी हो गई. पर इस में कोई सच्चाई नहीं है कि वो तुम से अंधा प्यार करता है.”

“तो फिर?”

“कई लड़कियों से उस के नाजायज संबंध हैं.”

“क्या?” नंदिनी उस की बात सुन कर बुरी तरह उछली.

“क्या कहते हो तुम? नवीन और कई लड़कियां? मैं और मेरा दिल इसे कभी मानने के लिए तैयार नहीं होगा कि मुझे छोड़ कर वह किसी और लडक़ी से प्यार करता है. नो…नेवर.”

“इसी बात का तो रोना है, तुम मेरी किसी बात को सीरियसली लेती नहीं हो. यह सब तुम्हें बता कर मुझे क्या बेनिफिट होने वाला, जरा सोचो.” इतना कह कर हरिहर कृष्णा ने नंदिनी के चेहरे पर अपनी शातिर नजरें गड़ा दी थीं और उस के हावभाव को पढऩे की कोशिश करने लगा था, जिस से उसे पता चल सके कि अब वह क्या सोच रही है.

कुछ पल के लिए वह गंभीर हुई, फिर कुछ सोच कर उस ने कहा, “पता नहीं क्यों मेरा दिल इसे मानने को तैयार नहीं हो रहा है कि नवीन के और लड़कियों से संबंध होंगे? लेकिन तुम कहते हो तो…”

“मेरा काम तुम्हें एलर्ट करना था, सो मैं ने कर दिया नंदिनी. बाकी मानना, न  मानना तुम्हारा काम. अच्छा चलता हूं. एक सच्चा दोस्त होने का फर्ज निभाया है मैं ने. बाकी सब ऊपर वाले के हाथ में…” कहते हुए वह आगे बढ़ गया.

परदेसी पति की बेवफा पत्नी

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंपियरगंज के थानाप्रभारी चौथीराम यादव रात की गश्त से लौट कर लेटे ही थे कि उन के फोन की घंटी बजी. बेमन से उन्होंने फोन उठा कर कहा, ‘‘हैलो, कौन?’’

‘‘सर मैं टैक्सी ड्राइवर किशोर बोल रहा हूं.’’ दूसरी ओर से कहा गया.

‘‘जो भी कहना है, सुबह थाने में आ कर कहना. अभी मैं सोने जा रहा हूं.’’

‘‘सर, जरूरी बात है… मोहम्मदपुर नवापार सीवान के पास सड़क के किनारे एक औरत की लाश पड़ी है. उस के सीने से एक छोटा बच्चा चिपका है. अभी बच्चा जीवित है.’’ किशोर ने कहा.

लाश की बात सुन कर थानाप्रभारी की नींद गायब हो गई. उन्होंने कहा, ‘‘ठीक है, मैं पहुंच रहा हूं. मेरे आने तक तुम वहीं रहना. बच्चे का खयाल रखना.’’

‘‘ठीक है सर, आप आइए. आप के आने तक मैं यहीं रहूंगा.’’

कह कर किशोर ने फोन काट दिया.

सूचना गंभीर थी, इसलिए थानाप्रभारी चौथीराम यादव ने तुरंत इस घटना की सूचना अधिकारियों को दी और खुद जल्दीजल्दी तैयार हो कर सबइंसपेक्टर विनोद कुमार सिंह, कांस्टेबल रामउजागर राय, अवधेश यादव और जगरनाथ यादव के साथ घटनास्थल की ओर चल पड़े. अब तक उजाला फैल चुका था. घटनास्थल पर काफी लोग जमा हो चुके थे. घटनास्थल पर पहुंचते ही थानाप्रभारी चौथीराम यादव ने सब से पहले उस बच्चे को उठाया, जो मरी हुई मां के सीने से चिपका सो रहा था.

स्थिति यही बता रही थी कि वह मृतका का बेटा था. उठाते ही बच्चा जाग गया. वह बिलखबिलख कर रोने लगा. चौथीराम ने उसे एक सिपाही को पकड़ाया तो वह उसे चुप कराने की कोशिश करने लगा.

पहनावे से मृतका मध्यमवर्गीय परिवार की लग रही थी. उस की उम्र यही कोई 25 साल के आसपास थी. उस के मुंह और सीने में एकदम करीब से गोलियां मारी गई थीं. मुंह में गोली मारी जाने की वजह से चेहरा खून से सना था. घावों से निकल कर बहा खून सूख चुका था. मृतका की कदकाठी ठीकठाक थी. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे कम से कम 2 तो रहे ही होंगे.

पुलिस ने घटनास्थल से 315 बोर के 2 खोखे बरामद किए थे. खोखे वही रहे होंगे, जो 2 गोलियां मृतका को मारी गई थीं. घटनास्थल पर मौजूद लोग लाश की शिनाख्त नहीं कर सके थे. इस का मतलब मृतका वहां की रहने वाली नहीं थी.

पुलिस लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने की काररवाई कर रही थी कि अचानक वहां एक युवक आया और लाश देख कर जोरजोर से रोने लगा. उस के रोने का मतलब था, वह मृतका का कोई अपना रहा होगा.

पुलिस ने उसे चुप करा कर पूछताछ की तो पता चला कि वह मृतका का भाई दीपचंद था. मृतका का नाम शीला था. कल सुबह वह ससुराल से अपने बेटे को ले कर मायके जाने के लिए निकली थी. शाम तक वह घर नहीं पहुंची तो उसे चिंता हुई. सुबह वह उसी की तलाश में निकला था. यहां भीड़ देख कर वह रुक गया. पूछने पर पता चला कि यहां एक महिला की लाश पड़ी है. वह लाश देखने आया तो पता चला वह लाश उस की बहन की है. उस के साथ उस का बेटा कृष्णा भी था.

पुलिस ने कृष्णा को उसे सौंप दिया. दीपचंद ने फोन द्वारा घटना की सूचना पिता वृजवंशी को दी तो घर में कोहराम मच गया. गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर वृजवंशी भी वहां पहुंच गया, जहां लाश पड़ी थी. बेटी की लाश और मासूम नाती कृष्णा को रोते देख वृजवंशी भी बिलखबिलख कर रोने लगा. उस से रहा नहीं गया और उस ने नाती को दीपचंद से ले कर सीने से चिपका लिया.

घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर पुलिस दीपचंद के साथ थाने आ गई. थाने में उस की ओर से शीला की हत्या का मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. यह 23 जनवरी, 2014 की बात है.

मुकदमा दर्ज होने के बाद थानाप्रभारी चौथीराम यादव ने जांच शुरू की. हत्यारों ने सिर्फ शीला की हत्या की थी, उस के बच्चे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था. इस का मतलब उस का जो कुछ था, वह शीला से ही था. उसे सिर्फ उसी से परेशानी थी. ऐसे में उस का कोई प्रेमी भी हो सकता था, जो उस से पीछा छुड़ाना चाहता रहा हो.

शीला की ससुराल गोरखपुर के थाना गुलरिहा के गांव बनरहा सरहरी में थी. थानाप्रभारी चौथीराम दीपचंद को ले कर शीला की ससुराल जा पहुंचे. बनरहा पहुंचने में उन्हें करीब 2 घंटे का समय लगा. शीला की ससुराल में उस की सास और ससुर थे. पूछताछ में उन्होंने बताया कि 22 जनवरी, 2014 को शीला अपने मुंहबोले भाई पप्पू और उस के दोस्त के साथ मोटरसाइकिल से मायके के लिए निकली थी. कृष्णा को भी वह अपने साथ ले गई थी.

इस के अलावा वे और कुछ नहीं बता सके थे. पूछताछ में सासससुर ने यह भी बताया था कि पप्पू अकसर उन के यहां आता रहता था. चौथीराम यादव ने दीपचंद से पप्पू के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि पप्पू उसी के गांव का रहने वाला था. वह आवारा किस्म का लड़का था.

थानाप्रभारी बनरहा से सीधे दीपचंद के गांव अहिरौली जा पहुंचे. पप्पू के बारे में पता किया गया तो घर वालों ने बताया कि वह 22 जनवरी, 2014 को नौतनवा जाने की बात कह कर घर से निकला था. तब से लौट कर नहीं आया है.

दीपचंद की मदद से पप्पू और शीला का मोबाइल नंबर मिल गया था. पुलिस ने दोनों नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि 22 जनवरी की सुबह शीला ने पप्पू को फोन किया था. उस के बाद पप्पू का मोबाइल फोन बंद हो गया था. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि दोनों में रोजाना घंटों बातें होती थीं. इस से साफ हो गया कि दोनों में संबंध थे. पप्पू ने ही किसी बात से नाराज हो कर दोस्त की मदद से शीला की हत्या की थी.

जांच कहां तक पहुंची है, थानाप्रभारी चौथीराम इस की जानकारी क्षेत्राधिकारी अजय कुमार पांडेय और पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) डा. यस चेन्नपा को भी दे रहे थे. पप्पू के बारे में जब घर वालों से कोई जानकारी नहीं मिली तो थानाप्रभारी ने उस के बारे में पता करने के लिए उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगवा दिया.

आखिर 2 फरवरी, 2014 को घटना के 10 दिनों बाद पुलिस ने मुखबिर के जरिए पप्पू और उस के दोस्त को मोटरसाइकिल सहित लोरपुरवा के पास से उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब दोनों नेपाल की ओर जा रहे थे.

पुलिस पप्पू और उस के दोस्त अवधेश को थाने ले आई. तलाशी में पुलिस को अवधेश के पास से 315 बोर का देशी तमंचा और कारतूस भी मिले. पुलिस ने दोनों चीजों को अपने कब्जे में ले लिया. जबकि पप्पू उर्फ दुर्गेश के पास से सिर्फ 2 सिम वाला मोबाइल फोन मिला था.

पुलिस दोनों से अलगअलग पूछताछ करने लगी. दोनों ने पहले तो शीला की हत्या से इनकार किया, लेकिन पुलिस के पास उन के खिलाफ इतने सुबूत थे कि ज्यादा देर तक वे अपनी बात पर टिके नहीं रह सके और सच्चाई कुबूल कर के शीला की हत्या की पूरी कहानी उगल दी. इस पूछताछ में पप्पू और अवधेश ने शीला की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

जिला महाराजगंज के थाना पनियरा के गांव अहिरौली में रहता था वृजवंशी. उस के परिवार में पत्नी फूलवासी के अलावा कुल 7 बच्चे थे. शीला उन में पांचवें नंबर पर थी. वृजवंशी के पास इतनी खेती थी कि उसी से उन के इतने बड़े परिवार का गुजरबसर हो रहा था. लेकिन बेटे बड़े हुए, उन्होंने काफी जिम्मेदारियां अपने कंधों पर ले ली थीं. बेटों की शादियां हो गईं तो बेटों की मदद से वृजवंशी बेटियों की शादियां करने लगा.

शीला जवान हुई तो वृजवंशी को उस की शादी की चिंता हुई. बाप और भाई उस के लिए लड़का ढूंढ पाते उस के पहले ही वह गांव में ही बचपन के साथी दुर्गेश उर्फ पप्पू से आंखें लड़ा बैठी. दोनों साथसाथ खेलेकूदे ही नहीं थे, बल्कि एक ही स्कूल में पढ़े भी थे.

दुर्गेश उर्फ पप्पू के पिता दूधनाथ भी खेती किसानी करते थे. उस के परिवार में पत्नी के अलावा एकलौता बेटा पप्पू और 3 बेटियां थीं. एकलौता होने की वजह से पप्पू को घर से कुछ ज्यादा ही लाडप्यार मिला, जिस की वजह से वह बिगड़ गया. जैसेतैसे उस ने इंटरमीडिएट कर के पढ़ाई छोड़ दी. इस के बाद गांव में घूमघूम कर आवारागर्दी करने लगा.

शीला और पप्पू के संबंधों की जानकारी गांव वालों को हुई तो इस से वृजवंशी की बदनामी होने लगी. तब उसे चिंता हुई कि बात ज्यादा फैल गई  तो बेटी की शादी होना मुश्किल हो जाएगा. अब इस से बचने का एक ही उपाय था, शीला की शादी. वह उस के लिए लड़का ढूंढने लगा. क्योंकि अब देर करना ठीक नहीं था.

उस ने कोशिश की तो गोरखपुर के थाना गुलरिहा के गांव बनरहा का रहने वाला दिनेश उसे पसंद आ गया. उस ने जल्दी से शीला की शादी उस के साथ कर दी. शीला विदा हो कर ससुराल आ गई. दिनेश मुंबई में रहता था. कुछ दिन पत्नी के साथ रह कर वह मुंबई चला गया. शीला को उस ने बूढ़े मांबाप के पास उन की सेवा के लिए छोड़ दिया, ताकि किसी को कुछ कहने का मौका न मिले. क्योंकि उन्हें तो पूरी जिंदगी साथ रहना है.

शीला भले ही 2 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन पति के परदेस में रहने की वजह से वह अपने पहले प्यार दुर्गेश उर्फ पप्पू को कभी नहीं भूल पाई. शादी के बाद भी वह प्रेमी से मिलती रही. शीला का मुंहबोला भाई बन कर वह उस की ससुराल भी आता रहा. उस के सासससुर पप्पू को उस का भाई समझते थे, इसलिए उस के आनेजाने पर कभी रोक नहीं लगाई. जबकि भाईबहन के रिश्ते की आड़ में दोनों कुछ और ही गुल खिला रहे थे.

पप्पू ने बातचीत के लिए शीला को मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था. सासससुर रात में सो जाते तो शीला मिस्डकाल कर देती. इस के बाद पप्पू फोन करता तो दोनों के बीच घंटों बातें होतीं. शीला को कई बार पप्पू से गर्भ भी ठहरा, लेकिन पप्पू ने हर बार उस का गर्भपात करा दिया. बारबार गर्भपात कराने से तंग आ कर शीला उस के साथ रहने की जिद करने लगी.

जबकि पप्पू को शीला से नहीं, सिर्फ उस की देह से प्रेम था. शीला जब भी उस से साथ रखने के लिए कहती, वह कोई न कोई बहाना बना देता. शीला जब उस पर जोर डालने लगी तो वह दूर भागने लगा. उस का कहना था कि घर वाले उसे रहने नहीं देंगे. अपना अलग घर है नहीं. तब शीला ने पप्पू को 1 लाख रुपए जमीन खरीद कर घर बनाने के लिए दिए. इस की जानकारी न तो शीला के पति को थी, न सासससुर को.

पप्पू ने पैसे तो लिए, लेकिन उस ने जमीन नहीं खरीदी. जब भी शीला जमीन और घर के बारे में पूछती, वह कोई न कोई बहाना बना देता. जब शीला को लगने लगा कि पप्पू उसे बेवकूफ बना रहा है तो वह बेचैन हो उठी.

वह समझ गई कि उस से बहुत बड़ी भूल हो गई है. जिस के लिए उस ने घरपरिवार के साथ विश्वासघात किया, वह उस के साथ विश्वासघात कर रहा है. उस ने ठान लिया कि वह ऐसे आदमी को किसी कीमत पर नहीं बख्शेगी. वह पप्पू से अपने रुपए मांगने लगी.

शीला ने जब पैसे के लिए पप्पू पर दबाव बनाया तो वह विचलित हो उठा. उस की समझ में आ गया कि शीला उस की नीयत जान गई है. अब उस की दाल गलने वाली नहीं है. शीला के पैसे उस ने खर्च कर दिए थे.  लाख रुपए की व्यवस्था वह कर नहीं सकता था. इसलिए शीला से पीछा छुड़ाने के लिए उस ने एक खतरनाक योजना बना डाली. शीला की हत्या करना उस के अकेले के वश का नहीं था, इसलिए उस ने एक पेशेवर बदमाश अवधेश से बात की.

अवधेश महाराजगंज के थाना पनियरा के गांव खजुही का रहने वाला था. पप्पू से उस की दोस्ती भी थी. पनियरा थाने में उस के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, दुष्कर्म, लूट और राहजनी के कई मुकदमे दर्ज थे.

योजना के मुताबिक, अवधेश ने 315 बोर के देशी कट्टे का इंतजाम किया. इस के बाद दोनों को मौके की तलाश थी. 22 जनवरी, 2014 की सुबह 7 बजे शीला ने पप्पू को फोन कर के पूछा कि इस समय वह कहां है, तो उस ने कहा कि इस समय वह शहर में है. कुछ देर में उस के पास पहुंच जाएगा.

इस के बाद शीला ने फोन काट दिया. जबकि सही बात यह थी कि पप्पू उस समय नौतनवा में मौजूद था. उस ने शीला से झूठ बोला था. शीला से बात करने के बाद उस ने अपना मोबाइल बंद कर दिया.

दुर्गेश उर्फ पप्पू को वह मौका मिल गया, जिस की तलाश में वह था. उस ने अवधेश को तैयार किया और मोटरसाइकिल से शीला की ससुराल बनरहा 11 बजे के आसपास पहुंच गया. शीला उसी का इंतजार कर रही थी. चायनाश्ता करा कर शीला मायके जाने की बात कह कर उन के साथ निकल पड़ी. उस ने सास से कहा था कि 2-1 दिन में वह लौट आएगी.

दिन में कुछ हो नहीं सकता था. इसलिए पप्पू को किसी तरह रात करनी थी. इस के लिए वह कुसुम्ही के जंगल स्थित बुढि़या माई के मंदिर दर्शन करने गया. वहां से निकल कर वह सब के साथ शहर में घूमता रहा. अचानक रात साढ़े 8 बजे पप्पू को कुछ याद आया तो उस ने मोबाइल औन कर के फोन किया. उस समय वह चिलुयाताल के मोहरीपुर में था. इस के बाद वे कैंपियरगंज पहुंचे.

रात साढ़े 10 बजे के करीब पप्पू सब के साथ मोहम्मदपुर नवापार पहुंचा तो ठंड का मौसम होने की वजह से चारों ओर सुनसान हो चुका था. पप्पू ने अचानक मोटरसाइकिल सड़क के किनारे रोक दी. शीला ने रुकने की वजह पूछी तो पप्पू ने कहा कि पेशाब करना है. पेशाब करने के बहाने वह थोड़ा आगे बढ़ गया तो अवधेश शीला के पास पहुंचा और कमर में खोंसा तमंचा निकाला और उस के सीने से सटा कर ट्रिगर दबा दिया.

गोली लगते ही शीला के मुंह से एक भयानक चीख निकली. तभी उस ने कट्टे की नाल उस के मुंह में घुसेड़ कर दूसरी गोली चला दी. इसी के साथ बच्चे को गोद में लिए हुए शीला जमीन पर गिरी और मौत के आगोश में समा गई. उस का मासूम बेटा सीने से चिपका सोता ही रहा.

अपना काम कर के पप्पू और अवधेश चले गए. टैक्सी ड्राइवर किशोर सुबह उधर से गुजरा तो उस ने सड़क किनारे पड़ी शीला की लाश देख कर थानाप्रभारी चौथीराम यादव को सूचना दी.

पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल, 315 बोर का तमंचा और मोबाइल फोन बरामद कर लिया था. थाने की सारी काररवाई निबटा कर थानाप्रभारी चौथीराम ने पप्पू और अवधेश को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.