पत्नी पर दांव : एक और द्रोपदी

दिलीप को पता था कि उस के गुरू पं. भगवती प्रसाद चौबे सवेरेसवेरे मोहल्ले के नाई से मालिश करवाते थे. उस वक्त वह फुरसत में होते थे, इसलिए उन से बातचीत की जा सकती थी. वह चोटी के वकील थे. उन की बैठक में पहुंच कर दिलीप ने नमस्ते किया तो वह मुसकुराए. उन्होंने दिलीप को देखते ही पूछा, “आओ दिलीप बेटा, सुबहसुबह कैसे?”

“बाबूजी, मैं ने वकालत तो शुरू कर दी है, पर मेरी मां कहती हैं कि इस पेशे में झूठ बहुत बोलना पड़ता है, जिस से चरित्रहीनता आ जाती है.”

“बेटे, हर झूठ, झूठ नहीं होता. हमें देखना होता है कि क्या, किस से, कहां और क्यों बोला जा रहा है और कितना बोला जा रहा है.”

“यानी झूठ कई तरह के होते हैं?”

“यही तो समझने की बात है. मिसाल के तौर पर एक फौजदारी अदालत में पुलिस ने एक नाजायज तमंचा रखने पर अभियुक्त को न्यायालय में पेश कर दिया. पुलिस ने 4 चश्मदीद गवाह पेश किए, जिन्होंने अभियुक्त के पास से पिस्तौल की बरामदगी की पक्की गवाही दी. जबकि अभियुक्त ने अपने वकील को बताया है कि रंजिश की वजह से उस पर झूठा मुकदमा बनाया गया है और गवाह पुलिस के दबाव से झूठी गवाही दे रहे है. वकील साहब जिरह करते करते थक गए, पर कोई गवाह सच नहीं बोला.”

“इस का मतलब बेगुनाह गया जेल.” दिलीप ने कहा.

“अब या तो वकील यह नाइंसाफी देखता रहे या फिर इस की कुछ काट कर के अभियुक्त को बचा ले.”

“बाबूजी, ऐसी स्थिति में भला क्या हो सकता है?”

“हो क्यों नहीं सकता.” भगवतीप्रसाद चौबे बोले, “वकील को जैसे का तैसा जवाब देना चाहिए, मतलब उसे भी 4 झूठे गवाह पेश करने चाहिए. यह झूठ चूंकि सच उगलवाने के लिए बोला जाएगा, इसलिए झूठ नहीं कहलाएगा. क्योंकि इस से किसी निर्दोष की जान बचेगी.”

“ऐसा भी होता है क्या?” दिलीप ने थोड़ा आश्चर्य से पूछा.

“ज्यादातर मामलों में ऐसा ही करना पड़ता है, वरना हमारी तो वकालत ही बंद हो जाएगी.”

चौबे साहब से बात कर के दिलीप जब वापस अपने औफिस पहुंचा तो वहां करीब 60 साल की उम्र वाला एक व्यक्ति बैठा था. अभिवादन करने के बाद उस ने कहा, “वकील साहब, मेरा एक औरत भगाने का मुकदमा है. आप उस की पैरवी कर दीजिए. फीस जो आप कहेंगे, मिल जाएगी.”

“यह तो बहुत गंभीर केस है, इस के लिए किसी सीनियर वकील की सेवाएं लो. मैं तो अभी बहुत जूनियर हूं.”

“उन लोगों के पास हो कर यहां आया हूं. सब ने इनकार कर दिया है. मेरा यह केस अब आप को ही लडऩा होगा. वकील साहब मैं आप को दोगुनी फीस दूंगा.”

दिलीप ने उस के कागजात, गवाहों के बयान, एफआईआर तथा डाक्टरी रिपोर्ट देख कर उस के बारे में पूरी जानकारी ली. उस व्यक्ति ने इस मुकदमे के बारे जो बताया, वह कुछ इस तरह था.

रायबरेली जिले में एक कस्बा है बछरावां. वहां से 4 किलोमीटर दूर ठाकुरों का एक गांव था, जिस के प्रधान थे रंजीत सिंह. उन का एक बेटा था बिच्छू सिंह, जो 22 साल का दबंग व रंगीला नौजवान था. वह खूब शराब पीता था और अपने साथियों के साथ जुआ खेलने के अलावा मेलेठेले में अपनी पसंद का शिकार करता था.

इसी गांव का एक पुरवा था राधेग्राम, जहां गरीब खेतिहर मजदूर रहते थे. इसी पुरवा में आसरे नाम का एक 20 साल का लडक़ा रहता था. इस के पास थोड़ी खेती की जमीन थी, बाकी वह मेहनतमजदूरी कर के अपना काम चला लेता था. राधा से उस की नईनई शादी हुई थी. राधा एक सुंदर सुशील लडक़ी थी. उसने एक गाय पाला रखी थी, जिस का दूध बेच कर कुछ आमदनी हो जाती थी.

बिच्छू सिंह के गुर्गों ने जब उसे राधा की सुंदरता के बारे में बताया तो बिच्छू सिंह उसे पाने के लिए अपने अवारा साथियों से सलाह करने लगा. उस ने आसरे को अपने खेतों पर डबल मजदूरी पर काम दे दिया और उस के साथ देसी शराब के ठेके पर भी जाने लगा. वहां वह एक बोतल शराब और एक प्लेट मछली ले कर उस के साथ खातापीता.

कुछ दिनों बाद बिच्छू सिंह ने आसरे से कहा, “का रे आसरे, ताश खेलना जानता है? हमारे सब साथी तो रात में ताश खेलते है.”

“छोटे ठाकुर, हम तो ताश कभी देखे भी नहीं, भला खेलेंगे क्या?”

“लो कर लो बात, इतना बड़ा हो गया और ताश खेलना भी नहीं जानता. चल मैं तुझे सिखाता हूं. पहले तू ताश के पत्ते पहचान ले, बाकी खेल देख कर खुद ही सीख जाएगा.”

इस तरह छोटे ठाकुर ने आसरे को न केवल शराब का आदी बना दिया, बल्कि जुआ खेलना भी सिखा दिया. वह आसरे के साथ ऐसी तिकड़म से जुआ खेलता कि आसरे हर बार 100-200 रुपए जीत कर नशे की हालत में घर जाता और पत्नी से छोटे ठाकुर की बहुत तारीफ करता.

एक दिन राधा ने उसे समझाया, “देखो जी, शराब व जुआ बहुत बुरी चीज है. इस से घर बरबाद हो जाते हैं. महाभारत का युद्ध इसी जुए के कारण हुआ था.”

“मैं क्या तुम्हें बेवकूफ लगता हूं? मुझे जिस काम में फायदा नजर आएगा, वही करूंगा न, तुझे तो पूरा पैसा देता हूं.” आसरे ने गुस्से में जवाब दिया.

“मुझे हराम का पैसा नहीं चाहिए. बरकत ईमानदारी के पैसे से होती है. वैसे भी शराब से तुम्हारा शरीर खराब हो रहा है.”

“तू बड़े आदमियों को नहीं जानती. वे मुझे अपना दोस्त कहते हैं. चल खाना दे, बड़े जोर की भूख लगी है.”

एक दिन छोटे ठाकुर ने आसरे से कहा, “आज हम तुम्हारे घर ताश खेलने चलेंगे. वहीं शराब भी चलेगी.”

आसरे तैयार हो गया और सब को साथ ले कर अपने घर आ गया. सब ने बाहरी कोठरी में अड्डा जमाया. छोटे ठाकुर ने बोतल खोली और आसरे की पत्नी से कुछ नमकीन मांगी. जब वह चना ले कर आई तो बिच्छू सिंह ने कहा, “तेरी पत्नी तो हीरोइन है आसरे. बहुत किस्मत वाला है. बोल मेरी पत्नी से बदलेगा.”

इस फूहड़ मजाक पर सब जोरजोर से हंसने लगे. राधा जल्दी से अंदर चली गई. जुआ शुरू हुआ. उस दिन आसरे हारने लगा. जब उस के सारे पैसे खत्म हो गए तो छोटे ठाकुर ने खेलने के लिए उसे कुछ रुपए उधार दे दिए. जब आसरे उन्हें भी हार गया तो उस ने कहा,”छोटे ठाकुर, अब हमारे पल्ले कुछ नहीं बचा. खानेपीने के भी लाले पड़ जाएंगे.”

“तू घबरा मत, मैं हूं ना. अभी भी तू हारी हुई अपनी सारी रकम जीत सकता है.”

“वह कैसे?”

“एक तगड़ा दाव खेल जा, सब कुछ तेरा.”

“कैसे खेलूं ठाकुर, मेरे पल्ले तो अब कुछ है नहीं.”

“जैसे महाभारत में युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगाया था, उसी तरह तू भी लगा दे पत्नी को दांव पर, पत्नी का तो कुछ नहीं होगा. ढेर सारा पैसा जरूर आ जाएगा.”

एक तो आसरे पहले ही नशे में था, ऊपर से ठाकुर ने उसे चढ़ा दिया. कुछ सोचने के बाद वह उस दांव को खेलने के लिए राजी हो गया. इस बार खेल बड़ा था. वही हुआ, जो ठाकुर चाहता था. आसरे अपनी पत्नी हार गया.

उस के हारते ही ठाकुर के तेवर बदल गए. उस ने गुर्रा कर कहा, “अब राधा मेरी हो गई. तेरा उस पर कोई अधिकार नहीं रहा. रात को इसे खेतों वाले मकान पर पहुंचा देना, नहीं तो जबरदस्ती करनी पड़ेगी.”

इस के बाद वे भी चले गए, आसरे मुंह लटकाए बाहर बैठा सोचता रहा कि पत्नी को कैसे बचाए. काफी देर बाद जब वह घर के अंदर आया तो राधा गायब थी. उस ने चारों ओर ढूंढा, ठाकुर से पूछा, पर राधा का कुछ पता नहीं चला.

राधा के बारे में जैसे ही ठाकुर को पता चला, उस ने साइकिलों से अपने आदमी थाने चौकी व रेलवे स्टेशन की ओर दौड़ाए और खुद बसअड्डे जा पहुंचा. वहीं उस ने राधा को एक तैयार बस में बैठे देख लिया.

वह भी उस बस में चढ़ गया और राधा से बहुत प्यार एवं इज्जत से बोला, “राधा, तुम ख्वाहमख्वाह नाराज हो कर चली आईं. अरे हम तो रामलीला की तरह महाभारत लीला खेल रहे थे. भला आजकल के जमाने में कोई पत्नी को संपत्ति समझ कर जुआ खेल सकता है? पुलिस हमारी हड्डी पसली तोड़ देगी. चलो घर चलो, मजाक को मजाक ही समझा करो.”

लेकिन राधा इन चिकनीचुपड़ी बातों में नहीं आई. उस ने साफसाफ कहा, “ठाकुर, तुम नीचे उतरो, वरना हम शोर मचा कर सामने खड़ी पुलिस को बुला लेंगे.”

ठाकुर बाजी हार कर बस से नीचे उतर आया, बस चली गई. रास्ते में एक शरीफ आदमी मिला तो उस ने राधा के सिर पर हाथ रख कर उस की मदद की जिम्मेदारी ली. राधा के पिता के उम्र का वह आदमी अगले स्टाप पर उसे फुसला कर अपने घर ले गया.

“बेटी, तुम आराम करो. खानापानी कर लो. अभी रात हो गई. सुबह मैं तुम्हें तुम्हारे पिता के पास पहुंचा दूंगा. और हां, दरवाजा अंदर से बंद कर लेना.”

राधा ने ऐसा ही किया. परंतु राधा के कान तब खड़े हुए, जब वह व्यक्ति अपनी पत्नी से कहने लगा, “तुम्हारे भाई की शादी कहीं नहीं हो रही है. उस के लिए एक दुलहन ले कर आया हूं. सुबह को इसे तेरे गांव ले जा कर साले से इस की शादी करा दूंगा. लडक़ी अच्छी है, लगता है घर से भागी है.”

सुन कर राधा सन्न रह गई. जिस पर विश्वास किया, वही दामन चाक करने को तैयार था. कमरे की पिछली खिडक़ी खुली थी, उस में सलाखें भी नहीं लगी थीं. राधा धीरे से उस खिडक़ी से बाहर आई और रात भर सडक़ पकड़ कर चलती रही. उसे कुछ पता नहीं था कि वह कहां है और किधर जा रही है.

भोर होतेहोते वह एक गांव में पहुंची, जहां लोगों ने उस अजनबी महिला को देख कर चोर समझ लिया, वे उसे ले कर प्रधान के पास पहुंचे, “वीरजी, यह महिला गांव की नहीं है. चुपकेचुपके गांव में घुस रही थी. हम इसे पकड़ लाए. कोई चोर लगती है. घरों का भेद जान कर यह अपने साथियों को इशारे से बुला लेगी.”

वीरजी को लडक़ी परेशान व थकी हुई लगी. उस ने पूछा “भूखी हो?”

“हां, लेकिन मैं चोर नहीं, बल्कि एक दुखयारी औरत हूं. मेरे पीछे बदमाश पड़े हैं और मेरी इज्जत खतरे में है. आप मेरी मदद कर के मुझे मेरे पिता के घर पहुंचा दीजिए.”

वीरजी ने उस से उस के पिता का पता पूछा. फिर कहा कि वह थोड़ा आराम कर ले, कुछ खापी ले. उसे उस के घर पहुंचा दिया जाएगा. अब उसे डरने की जरूरत नहीं है. वीरजी ने राधा की कदकाठी और उम्र देखी तो उस के मुंह में पानी आ गया. उस ने सोचा कि क्यों न इसे पुत्तनबाई के हाथ बेच दिया जाए. वहां से अच्छे पैसे मिल जाएंगे, साथ ही वहां उस का आनाजाना भी होता रहेगा.

राधा थकी थी. नाश्ता कर के लेटी तो उसे नींद आ गई. उस की आंख खुली तो देखा वीरजी पास खड़ा उसे ललचाई नजरों से देख रहा है. वह हड़बड़ा कर उठ बैठी तो वीरजी बोले, “बेटी, बस का समय हो गया है. मैं तुम्हें जगाने आया था. चलो, पास ही बस स्टाप है, वहीं से बस पकड़ लेंगे.”

राधा अपनी साड़ी ठीक कर के तैयार हो गई. दोनों बसस्टाप पर आ गए. बस आई तो वह वीरजी के साथ बस में बैठ गई. अब वह बहुत चौकन्नी थी. उसे वीरजी अच्छा आदमी नहीं लग रहा था. बस जब फर्रुखाबाद बस अड्डे पर पहुंची तो वीरजी ने राधा को बस से उतारा और बाहर की ओर ले कर चल दिया. वहीं फाटक पर एक सिपाही ड्यूटी पर था.

राधा जोर से चिल्लाई तो सिपाही ने पास आ कर पूछा, “क्या बात है, क्यों शोर मचा रही है?”

“यह आदमी मुझे घर से भगा कर कहीं खतरे की जगह ले जा रहा है. आप मेरी मदद कीजिए.”

वीरजी ने पासा पलटते देखा तो धीरे से वहां से खिसक गया. राधा के इशारे पर सिपाही ने उसे रोक लिया और दोनों को सीधे पुलिस थाने ले गया. राधा ने वहां अपना पूरा हाल बताया तो थानेदार ने रिपोर्ट लिख कर वीरजी को लौकअप में डाल दिया और राधा को डाक्टरी मुआएने के लिए भेज दिया.

बाद में राधा तो अपने पिता के घर पहुंच गई, परंतु वीरजी को मजिस्ट्रेट ने जेल भेज दिया. वीरजी ने अपने घर वालों को बुला कर जमानत कराई और सीधे रायबरेली पहुंच कर दिलीप के पास पहुंचा. चूंकि मुकदमा इसी जिले का था, इसलिए फर्रुखाबाद थाने ने बछरावां थाने को तफतीश के लिए कागजात भेज दिए. मुकदमा यहीं चलना था.

बछरावां के थानेदार ने बिच्छू सिंह से ले कर वीरजी तक सभी को इस मुकदमे में मुलजिम बनाया और न्यायालय में चार्जशीट दाखिल कर दी. चूंकि मुकदमा भादंवि की धारा 365, 366 के अंतर्गत था, इसलिए निचली अदालत ने इसे सेशन कोर्ट के सुपुर्द कर दिया. जब इस न्यायालय में काररवाई शुरु हुई तो सब से पहले सरकारी वकील ने अभियुक्तों को न्यायालय में हाजिर किया.

उस के बाद अभियुक्तों के विरुद्ध अभियोग पढ़ा और बताया कि इसे सिद्ध करने के लिए वकील साहब क्या साक्ष्य पेश करेंगे. न्यायालय ने कागजात और अभियोग को देखते हुए दिलीप से इस पर बहस करने को कहा, पर दिलीप ने इनकार कर दिया.

इस के बाद जज ने अभियुक्तों पर धारा 365, 366, 368 का अभियोग लगाया तो अभियुक्तों ने यह आरोप मानने से इनकार करते हुए मुकदमा लडऩे की प्रार्थना की. इस पर जज साहब ने अगली तारीख पर अभियोजन पक्ष को साक्ष्य पेश करने को कहा. साथ ही उन के गवाहों को सम्मान जारी कर के बुलाया गया.

अगली तारीख पर सरकारी वकील ने 3 गवाह व अन्य सबूत न्यायालय में पेश किए, जिन से दिलीप ने एक ही प्रश्न पूछा, “क्या आप ने देखा था कि राधा अपने घर से बिच्छू सिंह के साथ जबरदस्ती ले जाई जा रही थी?”

“जी नहीं, मुझे गांव में पता चला था.” गवाह ने जवाब दिया.

“आप राधा को पहचानते हैं?” दिलीप का अगला सवाल था.

“जी हां, उसे गांव में देखा था.”

“बताइए, न्यायालय में हाजिर 4 महिलाओं में राधा कौन है?” दिलीप ने पूछा.

गवाहों ने राधा को नहीं पहचाना.

“आप बिच्छू सिंह और वीरजी को इस अदालत में 10 आदमियों के बीच में पहचान सकते हैं?”

“जी हां.”

लेकिन उन्होंने 3 गलतियां करने के बाद भी उन्हें नहीं पहचाना.

सरकारी गवाह जब पूरे उतर गए तो दिलीप ने बचाव में कोई गवाह पेश नहीं किया. इस के बाद मुकदमा बहस में पहुंच गया. बहस में सरकारी वकील ने कहा, “सर, औरत चूंकि 18 साल से अधिक उम्र की है, इसलिए यह अपहरण का मुकदमा बनता है.”

वकील एक पल रुक कर बोला, “पहली बात तो यह कि बिच्छू सिंह ने बुरी नीयत से आसरे से राधा को जुए के दांव पर लगवाया और उसे चालाकी से जीत कर अपने खेतों वाले घर पर जबरन बुलाया. यह बात गवाही से साबित हो चुकी है.

दूसरे शेष 2 अभियुक्तों, जिन में वीरजी भी शामिल हैं, ने राधा को बुरी नीयत से अपनेअपने घरों में बंद कर के रखा, जो कानूनन उतना ही बड़ा जुर्म है, जितना अपहरण. इतना ही नहीं, राधा को शादी के लिए मजबूर करना भी गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है.”

सरकारी वकील ने आखिर में कहा कि गवाहों और राधा द्वारा यह आरोप पूरी तरह सिद्ध कर दिए गए हैं कि इन लोगों ने कानूनी अपराध तो किया ही है, एक महिला के साथ दुर्व्यवहार भी किया है, जो एक सामाजिक अपराध है. इसलिए इन्हें सख्त सजा दी जाए.”

इस के बाद दिलीप ने अपना बचाव पक्ष रखा, “सर, मैं सच्चाई से पूरा खुलासा करना चाहता हूं ताकि न्यायालय को न्याय करने में आसानी रहे.”

आरोपियों की ओर देख कर दिलीप ने कहना शुरू किया, “पहली बात तो यह कि अपहरण का आरोप साबित नहीं हो सका कि बिच्छू सिंह ने राधा को उस के घर से भगाया था. वह उसे बसअड्डे पर मिली थी, वहां भी उस के साथ कोई जोरजबरदस्ती नहीं की गई. वीरजी राधा को उस के पिता के घर ले जा रहा था. वह पुलिस को देख कर डर कर भागा, जो अपराध नहीं है.

“वीरजी के मन की बात सरकारी वकील नहीं साबित कर सके. लिहाजा वही माना जाए, जो उस ने राधा से चलते समय कहा. दूसरे न तो गवाहों ने यह नहीं कहा और न ही राधा ने दुर्व्यवहार की शिकायत की. यह सरकारी वकील का अनुमान ही हो सकता है. तीसरे आसरे को धोखा दे कर जुआ खिलाया गया और शराब पिला कर राधा को दांव पर लगवाया गया. अत: उस की भी गलती सिद्ध नहीं हुई.”

अंत में दिलीप ने कहा, “सर, निवेदन है कि अभियुक्तों को बेगुनाह मानते हुए इज्जत के साथ दोषमुक्त कर दिया जाए.”

अगली तारीख पर जज साहब ने सभी अभियुक्तों को मुक्त कर दिया, पर बिच्छू सिंह को धोखाधड़ी के इलजाम में 6 महीने की सजा बामशक्कत सुनाई गई.

वो कैसे बना 40 बच्चों का रेपिस्ट व सीरियल किलर? – भाग 3

रविंद्र ने 6 साल की बच्ची को बनाया था पहला शिकार

सन 2008 की बात है. उस समय रविंद्र करीब 17 साल का था. एक बार वह आधी रात को दोस्तों से फारिग हो कर अपने घर लौट रहा था. उस ने कराला में एक झुग्गी के बाहर मांबाप के साथ सो रही बच्ची को देखा. उस बच्ची की उम्र कोई 6 साल थी.

उस बच्ची को देख कर रविंद्र की कामवासना जाग उठी. वह चुपके से गहरी नींद में सो रही उस बच्ची को उठा ले गया. बच्ची के मांबाप को पता ही नहीं चला कि उन की बेटी उन के पास से गायब हो चुकी है. रविंद्र उस बच्ची को सूखी नहर की तरफ ले गया. जैसे ही उस ने उस बच्ची को जमीन पर लिटाया वह जाग गई.

खुद को सुनसान और अंधेरे में देख कर वह डर गई. वहां उस के मांबाप की जगह एक अनजान आदमी था. वह रोने लगी तो रविंद्र ने डराधमका कर उसे चुप करा दिया. उस के बाद उस ने उस के साथ कुकर्म किया. बच्ची दर्द से चिल्लाने लगी तो उस ने उस का मुंह दबा दिया. कुछ ही देर में वह बेहोश हो गई. भेद खुलने के डर से उस ने बच्ची की गला दबा कर हत्या कर दी और अपने घर चला गया.

अगली सुबह झुग्गी के बाहर सो रहे दंपति को जब अपनी बेटी गायब मिली तो वह उसे खोजने लगे. उसी दौरान उन्हें सूखी नहर में बेटी की लाश पड़ी होने की जानकारी मिली तो वे वहां पहुंचे. इस मामले की थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई, लेकिन पुलिस केस को नहीं खोल सकी.

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केस न खुलने से रविंद्र की हिम्मत बढ़ गई. इस के बाद सन 2009 में बाहरी दिल्ली के ही विजय विहार, रोहिणी इलाके से 6- 7 साल के एक लडक़े को बहलाफुसला कर वह सुनसान जगह पर ले गया और कुकर्म करने के बाद उस की हत्या कर दी. इस मामले को भी पुलिस नहीं खोल सकी.

रविंद्र को अपनी कामवासना शांत करने का यह तरीका अच्छा लगा. क्योंकि वह 2 हत्याएं कर चुका था और दोनों ही मामलों में वह सुरक्षित रहा, इस से उस के मन का डर निकल गया. इस के बाद वह कंझावला इलाके में एक बच्ची को बहलाफुसला कर सुनसान जगह पर ले गया और उस के साथ कुकर्म कर के उस की हत्या कर दी.

बच्चियों को देख कर जाग जाती थी कामकुंठा

वह कोई एक काम जम कर नहीं करता था. कभी गाड़ी पर हेल्परी का काम करता तो कभी बेलदारी करने लगता. नोएडा के सेक्टर-72 में वह एक बिल्डिंग में काम कर रहा था. वहां भी उस ने अपने साथ काम करने वाली महिला बेलदारों की 2 बच्चियों को अलगअलग समय पर अपनी हवस का शिकार बनाया. वह उन बच्चियों को चौकलेट दिलाने के लालच में गेहूं के खेत में ले गया था. वहीं पर उस ने उन की गला दबा कर हत्या कर दी थी.

उस के पिता ब्रह्मानंद का दिल्ली आने के बाद अपने गांव जाना नहीं हो पाता था, लेकिन रविंद्र कभीकभी अपने गांव जाता रहता था. खानदान के और लोग भी दिल्ली और नोएडा चले आए थे. रविंद्र जब भी गांव जाता, गंज डुंडवारा के पास गांव नूरपुर में अपनी मौसी मुन्नी देवी के यहां ठहरता था. वहीं पास के ही बिरारपुर गांव में उस की बुआ कृपा देवी का घर था. कभीकभी वह उन के यहां भी चला जाता था.

उस की हैवानियत वहां भी जाग उठी तो उस ने वहां भी अलगअलग समय पर 2 बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाया. अब तक रविंद्र सैक्स एडिक्ट हो चुका था. उस की मानसिकता ऐसी हो गई थी कि वह अपने शिकार को तलाशता रहता. बच्चे उस का शिकार आसानी से बन जाते थे, इसलिए वे उस का सौफ्ट टारगेट बन जाते थे. ज्यादातर वह झुग्गीझोपडिय़ों या गरीब परिवारों के बच्चों को ही निशाना बनाता था, ताकि वे लोग ज्यादा कानूनी काररवाई न कर सकें.

इस तरह उस ने दिल्ली के निहाल विहार, मुंडका, कंझावला, बादली, शालीमार बाग, नरेला, विजय विहार, अलीपुर के अलावा हरियाणा के बहादुरगढ़, फरीदाबाद, उत्तर प्रदेश के सिकंदराऊ, अलीगढ़ आदि जगहों पर 6 से 9 साल के करीब 40 लडक़ेलड़कियों को अपना निशाना बनाया. उस की मानसिकता ऐसी हो गई थी कि वह कुकर्म के बाद हर बच्चे की हत्या कर देता था. ज्यादातर के साथ उस ने मारने के बाद कुकर्म किया था.

पहली बार दोस्त के साथ हुआ गिरफ्तार

उस ने कई बच्चों की लाशें ऐसी जगहों पर डाली थीं कि पुलिस भी उन्हें बरामद नहीं कर सकी. 4 जून  को उस ने अपने दोस्त राहुल के साथ अपनी ही बस्ती जैन नगर के कृष्ण कुमार के 6 साल के बेटे शिबू को सोते हुए उठा लिया. दोनों उसे आधा किलोमीटर दूर सुनसान जगह पर ले गए और उस के साथ कुकर्म किया.

राहुल नाई था. वह अपने साथ उस्तरा भी ले गया था. बाद में उस ने उसी उस्तरे से उस का गला काट कर लाश सूखे गटर में डाल दी थी. बच्चे को गटर में डालते हुए उन्हें किसी ने देख लिया था. उन दोनों ने तो यही समझा था कि शिबू मर चुका है, लेकिन वह जीवित था. अगले दिन जब खोजबीन हुई तो वह सूखे गटर में पड़ा मिला.

जिस शख्स ने रविंद्र और राहुल को देखा था, उसी ने अगले दिन पुलिस को सब बता दिया. नतीजा यह हुआ कि पुलिस ने रविंद्र और राहुल को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

रविंद्र जिस सन्नी के साथ ट्रेलर पर हैल्परी करता था, उसी सन्नी के रविंद्र की मां मंजू से अवैध संबंध थे. रविंद्र के जेल जाने के बाद मंजू परेशान हो गई. वह बेटे की जमानत की कोशिश में लग गई. कहसुन कर उस ने सन्नी के पिता सुरेंद्र से बेटे की जमानत करवा ली. लिहाजा 20 मई, 2015 को रविंद्र जेल से बाहर आ गया.

बात 13 जुलाई की है. मंजू अपने घर में अकेली थी. उस ने फोन कर के अपने प्रेमी सन्नी को घर पर बुला लिया. दोनों अपनी हसरतें पूरी करते, अचानक रविंद्र घर आ गया था. सन्नी उस समय मंजू से बातें कर रहा था. इसलिए रविंद्र को उस पर कोई शक वगैरह नहीं हुआ. रविंद्र के आने के बाद मंजू और सन्नी की योजना खटाई में पड़ती नजर आ रही थी.

बेटे को बाहर भेजने के लिए मंजू ने घर में पड़ा टेप रिकौर्डर रविंद्र को देते हुए कहा कि वह उसे ठीक करा लाए. मां के कहने पर रविंद्र टेप रिकौर्डर ठीक कराने चला गया.

एक रात में टूटी दोस्ती की इमारत – भाग 3

18 जुलाई को जावेद ने फोन कर के गौहर को जयपुर से फर्रूखाबाद बुलाया. वह 19 जुलाई की सुबह फर्रूखाबाद पहुंच गया. काम के सिलसिले में दोनों पूरे दिन भागदौड़ करते रहे. गौहर ने चौक क्षेत्र स्थित एक एटीएम से कई बार में 50 हजार रुपए निकाले. उसे इन पैसों की किसी काम के लिए जरूरत थी.

रात में गौहर हमेशा की तरह जावेद के घर रुका. रात में सब के सो जाने के बाद रुखसाना गौहर के कमरे में पहुंच गई और रोजाना की तरह दोनों मस्ती के खेल में डूब गए. रात में जावेद बाथरूम जाने के लिए उठा तो उसे गौहर के कमरे से आवाजें आती सुनाई दीं. उस ने अंदर झांक कर देखा तो उस की आंखें हैरत से फटी रह गईं. उस का दोस्त गौहर उस के घर की इज्जत से खेल रहा था.

यह देख कर वह गुस्से से भर उठा. लेकिन किसी तरह उस ने खुद पर काबू पाया और वहां से अपने कमरे में चला आया. उसे दोस्ती में इतना बड़ा धोखा मिलने की कतई उम्मीद नहीं थी. इस धोखे से जावेद इतना तिलमिला उठा कि उस ने गौहर की हत्या करने की ठान ली. इसी उधेड़बुन में वह पूरी रात नहीं सो सका.

अगले दिन यानी 20 जुलाई की सुबह वह उठ कर बाइक से बाजार गया और 70 रुपए में एक छुरी खरीद कर अपनी बाइक की डिक्की में डाल ली. इस के अलावा उस ने नींद की गोलियां भी खरीद कर, पीसने के बाद जेब में रख लीं. दिन में गौहर और जावेद काम के सिलसिले में घूमते रहे. इसी बीच गौहर ने एटीएम से कई बार पैसे निकाले. अब कुल मिला कर उस के पास एक लाख रुपए की रकम हो गई थी.

जावेद के मोहल्ले में ही कासिम नाम का एक युवक रहता था. वह फर्रूखाबाद थाना कोतवाली के पास बूरा वाली गली में स्थित एक होटल में काम करता था. जावेद उस होटल में जाता रहता था. कासिम उसी के मोहल्ले में रहता था. जावेद उसे चेले के रूप में अपने साथ रखने लगा था. वह शराब पीता या होटल में खाता था तो कासिम को भी शामिल कर लेता था.

20 जुलाई को जब जावेद गौहर के साथ था तो कासिम उसे मिल गया. उस ने कासिम को भी अपनी बाइक पर बैठा लिया. रात में गौहर को जयपुर वापस जाना था, इसलिए उस ने अपना बैग साथ में ले रखा था. बैग में उस के कपड़े व एटीएम से निकाले गए एक लाख रुपए थे.

कासिम को साथ लेने के बाद जावेद और गौहर असगर रोड गए. गौहर को जाने से पहले अपने मामा आफाक से मिलना था. वहां जा कर कासिम बाहर रोड पर ही उतर गया. जबकि गौहर जावेद के साथ मामा के घर चला गया. वहां से दोनों देर शाम निकले. कासिम बाहर ही उन का इंतजार कर रहा था. वह फिर बाइक पर उन के साथ हो लिया.

रात 8 बजे जावेद दोनों को ले कर चौक स्थित एक जूस के स्टाल पर गया. वहां उस ने गौहर के गिलास में नींद की गोलियों का पाउडर मिला दिया. जूस पीने के बाद वह कासिम के साथ गौहर को बाइक पर बैठा कर कायमगंज रोड पर ले गया. तब तक गौहर अर्द्धमूर्छित हो गया था. जावेद ने सारी योजना पहले ही बना रखी थी. वह बाइक सड़क से 300 मीटर दूर बजरंग ईंट भट्ठे के पास एक खेत में ले गया. वहां उस ने गौहर को धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया.

जब जावेद ने डिक्की से छुरी निकाली तो उस की मंशा भांप कर कासिम उस का साथ देने से मना कर के जाने लगा. इस पर जावेद ने उसे धमकाया कि अगर वह उस का साथ नहीं देगा तो वह गौहर के साथसाथ उसे भी जान से मार देगा.

जावेद ने कासिम के साथ मिल कर गौहर को दबोच लिया. इस के बाद जावेद गौहर के सीने पर बैठ गया और साथ लाई तेज धारदार छुरी से गौहर का गला काटने लगा. अर्द्धमूर्छित होने की वजह से गौहर अपने बचाव में कुछ नहीं कर सका. जावेद ने गौहर के सिर को काट कर धड़ से अलग कर दिया. इस के बाद उस ने गौहर की कमीज और पैंट उस के शरीर से निकाल कर वहीं डाल दी.

उधर कासिम ने गौहर के बैग में रखे कपड़े निकाल कर जमीन पर फेंक दिए. बैग में रखे पैसे निकाल कर कुछ रुपए कासिम ने जावेद की आंख बचा कर अपने जेब में ठूंस लिए, बाकी पैसे उस ने जावेद को दे दिए.

जावेद ने गौहर के कपड़ों की तलाशी ली तो उस का मोबाइल मिल गया. जावेद ने खाली बैग में गौहर के कटे सिर को रखने के बाद उसी में हत्या में इस्तेमाल की गई छुरी और गौहर का मोबाइल डाला और बैग बंद कर दिया. इस के बाद जावेद कासिम के साथ घटियाघाट पुल पर गया. वहां उन्होंने बैग से सिर, छुरी और मोबाइल निकाल कर गंगा नदी में फेंक दिए, साथ ही खाली बैग भी उसी नदी में फेंक दिया. तत्पश्चात दोनों अपने घर लौट आए.

लाश की शिनाख्त न हो पाए, इसी वजह से जावेद और कासिम ने गौहर का सिर काट कर गंगा नदी में फेंका था, लेकिन उन की एक गलती उन्हें भारी पड़ गई. तलाशी में वह गौहर का एटीएम कार्ड नहीं देख पाए, उसी एटीएम कार्ड से पुलिस लाश की शिनाख्त कर के उन तक पहुंच गई.

यह सच है कि गुनहगार कितनी सफाई से भी अपराध को अंजाम दे, कोई न कोई सुबूत छोड़ ही देता है, जो उस के गले का फंदा बन जाता है. यही जावेद और कासिम के साथ हुआ.

पुलिस ने जावेद से पूछताछ के बाद गौहर से लूटे गए 65 हजार रुपए और गौहर की होंडा बाइक उस के घर से बरामद कर ली. गौहर के सिर की बरामदगी के लिए कई बार गोताखोरों को गंगा नदी में उतारा गया, लेकिन सिर बरामद नहीं हो सका.

थानाप्रभारी राघवन सिंह ने 26 जुलाई की शाम 4 बजे कासिम को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. उस के घर से लूटे गए 15 हजार रुपए भी बरामद कर लिए.

बाद में पुलिस ने इस केस में भादंवि की धारा 404/34 और बढ़ा दी. साथ ही केस में जावेद के साथ ही कासिम को भी नामजद कर दिया गया. इस के बाद दोनों आरोपियों को अदालत पर पेश कर के न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बुरी नीयत वाला दोस्त

सुबह के लगभग 9 बजे थाना गोरेगांव पश्चिम में ड्यूटी पर तैनात पुलिस उपनिरीक्षक कादवाने को सूचना मिली कि  गोरेगांव के प्रेमनगर के विश्वकर्मा रोड की अंकुर बिल्डिंग के पास हाइपर सिटी मौल के पीछे से बहने वाले नाले में एक लाश पड़ी है. मामला हत्या का लगता है. यह सूचना उन्हें पुलिस कंट्रोल रूम से मिली थी. उन्होंने तुरंत यह जानकारी थाने में उपस्थित पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर को दी.

भाई माहाडेश्वर सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. घटनास्थल थाना से लगभग 1 किलोमीटर दूर था. घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस ने देखा, प्लास्टिक की एक बड़ी सी थैली में लाश भरी थी, जिस का मुंह मजबूत रस्सी से बंधा हुआ था. पुलिस ने थैली को नाले से बाहर निकाल कर खुलवाया. लाश निकाल कर उस का निरीक्षण शुरू हुआ.

मृतक की उम्र 35 से 40 साल के बीच थी. उस की हत्या जिस बेरहमी से की गई थी, इस से अंदाजा लगाया गया कि हत्यारे को मृतक से गहरी नफरत थी. उस के गले, पेट, सीने और सिर पर काफी बड़ेबड़े घाव थे. लाश मोटी सी चादर में लपेट कर थैली में भरी गई थी. पूरी चादर खून से भीगी हुई थी.

पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि सूचना पा कर थाना गोरेगांव के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक अरुण जाधव भी आ पहुंचे. वह भी शव का बारीकी से निरीक्षण करने लगे. निरीक्षण के बाद शव की शिनाख्त कराने की कोशिश की जा रही थी कि पुलिस उपायुक्त महेश पाटिल और सहायक पुलिस आयुक्त उत्तम खैर भोड़े भी आ पहुंचे. पुलिस अधिकारियों ने भी शव और घटनास्थल का निरीक्षण किया.

पुलिस अधिकारी शव एवं घटनास्थल का निरीक्षण कर के चले गए. इस के बाद वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक अरुण जाधव ने घटनास्थल की औपचारिकताएं पूरी कीं और शव को पोस्टमार्टम के लिए बोरीवली के भगवती अस्पताल भिजवा दिया. न तो लाश की शिनाख्त हुई थी, न घटनास्थल से ऐसी कोई चीज मिली थी, जिस से मामले की जांच में उन्हें मदद मिलती. उन्होंने इस मामले को सुलझाने की जिम्मेदारी पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर को सौंप दी.

पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर ने जांच को आगे बढ़ाने के लिए अपनी एक टीम बनाई, जिस में सहायक पुलिस निरीक्षक प्रकाश जाधव, पुलिस उपनिरीक्षक संजय निवालकर, सिपाही प्रमोद तावड़े, मंगेश घोमणे, शिवराज सावंत, किरण लंगड़े और रामचंद्र सारंग को शामिल किया. पुलिस टीम यह पता लगाने में जुट गई कि मृतक कौन था, क्योंकि जब तक शिनाख्त नहीं हो जाती, जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी.

पहले तो इस टीम ने मृतक का हुलिया बता कर शहर के सभी पुलिस थानों से यह जानने की कोशिश की इस तरह के आदमी की कहीं गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. जब इस पुलिस टीम को शहर के किसी थाने में कोई गुमशुदगी न दर्ज होने की सूचना मिली तो पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर ने मुंबई से निकलने वाले सभी दैनिक समाचार पत्रों में शव की तसवीरें छपवा कर शिनाख्त की अपील की. मगर इस से भी कोई लाभ नहीं हुआ.

जब पुलिस टीम को कोई रास्ता नहीं सूझा तो टीम में शामिल पुलिस उपनिरीक्षक संजय निवालकर ने मृतक की फ्रिंगरप्रिंट ब्यूरो भेज कर यह जानने की कोशिश की कि उस के बारे में कोई जानकारी तो नहीं दर्ज है.  आखिर सप्ताह भर बाद फिंगरप्रिंट ब्यूरो से मृतक के बारे में जो जानकारी मिली, वह चौंकाने वाली थी. फ्रिंगरप्रिंट ब्यूरो के रिकौर्ड के अनुसार मृतक का नाम मोहम्मद अब्दुल हसन बाबू चौधरी उर्फ बाबू लाईटवाला था. वह मालाड पूर्व के मातंगगढ़ की स्लम बस्ती की पिपली पाड़ा पानी की टंकी के पास रहता था.

वह अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति था. 2002 में उसे थाना मालाड कुराद विलेज पुलिस ने दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार कर के जेल भेजा था. इस मामले में उसे सन 2003 में 7 साल की सजा हुई थी. लेकिन उस ने यह सजा पूरी नहीं की. 2005 में वह पैरोल पर बाहर आया तो वापस जेल नहीं गया.

मृतक की शिनाख्त हो गई तो पुलिस निरीक्षक भाई माहाडेश्वर उस के बारे में पता लगाने लगे. वह फिंगरप्रिंट ब्यूरो द्वारा मिले पते पर पहुंचे तो वहां उस की पूर्व पत्नी रेहाना चौधरी मिली. उसे थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि उस का और बाबू लाईटवाले का वैवाहिक संबंध 2001 में उसी दिन खत्म हो गया था, जिस दिन वह दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार कर के जेल भेजा गया था. उस के जेल जाने के बाद उस ने अजीत पटेल से विवाह कर के अपनी अलग गृहस्थी बसा ली थी. उस के बाद बाबू लाईटवाला का उस से कोई संबंध नहीं रह गया था.

रेहाना चौधरी के इस बयान से पुलिस की उम्मीदों पर पानी फिर गया था. लेकिन पुलिस निराश नहीं हुई. रेहाना चौधरी को विश्वास में ले कर बाबू लाईटवाला के दोस्तों के बारे में पूछा गया तो उस ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘उस के दोस्तों के बारे में मुझे अधिक तो नहीं मालूम, लेकिन 3 महीने पहले उस का एक दोस्त मेरे पास पैसों के लिए आया था. उस ने फोन कर के कहा था कि उसे पैसों की बहुत जरूरत है, इसलिए वह अपने एक दोस्त को भेज रहा है. उसे एक हजार रुपए दे देना.’’

रेहाना चौधरी की इस बात से पुलिस टीम को आशा की एक किरण दिखाई दी. आगे की जांच के लिए पुलिस ने रेहाना चौधरी से वह मोबाइल नंबर ले लिया, जिस से बाबू लाईटवाला ने फोन कर के 1 हजार रुपए मंगाए थे. पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर चेक की तो उस में एक नंबर ऐसा था, जिस पर उस नंबर से सब से ज्यादा बात हुई थी.

पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो वह बंद था. तब पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर नीलेश का था. लेकिन उस की आईडी में जो पता लिखा था, उस पर वह नहीं मिला. तब पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस में भी एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर उस ने सब से अधिक बात की थी. पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो वह चल रहा था. बातचीत में पता चला कि वह नंबर नीलेश की प्रेमिका का था.

पुलिस नीलेश के बारे में पता करने उस की प्रेमिका के पास पहुंची तो पूछताछ में उस ने बताया कि कुछ दिनों पहले नीलेश ने उसे फोन कर के बताया था कि उस पर लाईटवाला की हत्या का आरोप है, इसलिए इन दिनों वह उस से मिलने नहीं आ सकता. उस ने यह भी कहा था कि वह उसे भूल जाए और किसी दूसरे से शादी कर के अपनी गृहस्थी बसा ले. प्रेमी की इस बात से वह काफी परेशान थी.

इस बात से साफ हो गया था कि बाबू लाईटवाला की हत्या नीलेश ने की थी. अब पुलिस उसे गिरफ्तार करने की फिराक में लग गई थी. प्रेमिका से पुलिस को नीलेश का पता मिल ही गया था. पुलिस टीम उस के घर पहुंची तो संयोग से वह घर पर ही मिल गया. लेकिन बड़ी आसानी से वह पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गया.

दरअसल पुलिस टीम उसे पहचानती तो थी नहीं, इसलिए उस के घर पहुंच कर जब पुलिस वालों ने उसी से नीलेश के बारे में पूछा तो उस ने पुलिस से कह दिया कि वह शूटिंग पर गया है, शाम को मिलेगा. पुलिस टीम वापस चली गई तो वह फरार हो गया.   बाद में जब पुलिस टीम को इस बात की जानकारी हुई तो वह हाथ मल कर रह गई. लेकिन पुलिस टीम निराश नहीं हुई. वह नीलेश की तलाश में तेजी से लग गई. आखिर अपने मुखबिरों की मदद से पुलिस ने नीलेश को ढूंढ़ निकाला.

10 अक्तूबर, 2013 को पुलिस टीम को सूचना मिली कि नीलेश अपने किसी रिश्तेदार से मिलने गोरेगांव राम मंदिर रोड़ पर स्थित एमएमआरडी में आने वाला है. इसी सूचना के आधार पर पुलिस टीम ने घेर कर उसे गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद उसे थाने ला कर पूछताछ की गई तो मोहम्मद अब्दुल हसन चौधरी उर्फ बाबू लाईटवाला की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

तमिलनाडु का रहने वाला 30 वर्षीय नीलेश गोडसे लगभग 10 साल पहले मुंबई आया तो गोरेगांव पूर्व चरण देव पाड़ा आदर्श नगर आरे कालोनी में रह रहे अपने 2 भाइयों संतोष गोडसे, शंकर गोडसे और भाभी सविता के साथ रहने लगा. नीलेश सुंदर, स्वस्थ और महत्त्वाकांक्षी युवक था. गांव से 10वीं पास कर के कामधाम की तलाश में वह मुंबई में रहने वाले अपने भाइयों और भाभी के पास आया था. यहां वह फिल्मों में डुप्लीकेट का काम करने लगा.

मोहम्मद अब्दुल हसन चौधरी उर्फ बाबू लाईटवाला पैरोल पर जेल से बाहर आने के बाद वापस नहीं गया तो अपने रहने और छिपने के लिए स्थाई ठिकाना ढूंढ़ने लगा. क्योंकि पुलिस से बचने के लिए उसे इधरउधर भागना पड़ रहा था. इस बीच वह अपने खर्च के लिए फिल्मों के सेटों पर जा कर छोटामोटा लाईट का काम कर लेता था. उसी दौरान किसी फिल्म की शूटिंग के सेट पर बाबू लाईटवाला की मुलाकात नीलेश से हुई तो दोनों में जल्दी ही गहरी दोस्ती हो गई.

दोस्ती होने के बाद बाबू लाईटवाला ने अपनी परेशानी नीलेश को बताई तो आंख बंद कर के वह उस की मदद को तैयार हो गया. उस ने अपने पड़ोस में ही बाबू लाईटवाला को एक कमरा किराए पर दिला दिया. यही नहीं, उस ने कामधाम के लिए बाबू लाईटवाला को 80 हजार रुपए उधार भी दिए. इन पैसों से बाबू लाईटवाला अवैध झोपड़े बना कर बेचने लगा.

जैसा कि कहा जाता है, सांप को कितना भी दूध पिलाओ, मौका मिलने पर वह डंसने से नहीं चूकता. कुछ ऐसा ही हाल बाबू लाईटवाला का भी था. उस की नजर नीलेश की खूबसूरत भाभी पर पड़ी तो वह उस का दीवाना हो गया. उसे जब भी मौका मिलता, नीलेश की भाभी सविता से गंदेगंदे मजाक करने लगता.

कुछ दिनों तक सविता ने बाबू लाईटवाला की इस हंसीमजाक पर ध्यान नहीं दिया. इस से उस का साहस बढ़ता गया और वह शारीरिक छेड़छाड़ करने लगा. सविता को जब बाबू लाईटवाला के बुरे इरादे का अहसास हुआ तो उस ने यह बात अपने पति संतोष तथा देवरों नीलेश और शंकर को बताई.

बाबू लाईटवाला की गंदी नीयत का पता जब तीनों भाइयों को चला तो उन का खून खौल उठा. उन्होंने उसे सबक सिखाने का क्रूर फैसला ले लिया और इस में नीलेश गोडसे ने अपने एक दोस्त सतीश यादव को भी शामिल कर लिया.

अपने उसी फैसले के अनुसार 9 अक्तूबर, 2013 की शाम को बाबू लाईटवाला जब अपने कमरे पर आया तो नीलेश ने पार्टी के बहाने उसे अपने घर बुला लिया. उस बस्ती में नीलेश के 3 कमरे थे, जिन में से एक में नीलेश अकेला ही रहता था. नीलेश गोडसे ने पहले बाबू लाईटवाला को जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में धुत हो गया तो तीनों भाइयों ने सतीश यादव की मदद से उसे मौत के घाट उतार दिया. बाबू लाईटवाला की हत्या करते समय सतीश यादव जख्मी भी हो गया.

बाबू लाईटवाला की हत्या करने के बाद उन्होंने लाश को मोटी चादर में लपेटी और एक बड़ी सी प्लास्टिक की थैली में भर कर उस का मुंह मजबूत रस्सी से बांध दिया. लाश ठिकाने लगाने के लिए वे रात होने का इंतजार करने लगे. रात गहरी होने पर वे लाश को ले जा कर आभू कालोनी के घने जंगलों में फेंक देना चाहते थे. लेकिन इस के लिए नीलेश तैयार नहीं हुआ, क्योंकि उसे संदेह था कि अगर लाश आभू कालोनी के घने जंगलों में फेंकी गई तो बरामद होने पर पुलिस और बस्ती वालों को उसी पर शक होगा.

क्योंकि बाबू लाईटवाला और नीलेश की दोस्ती के बारे में वहां सभी को पता था. इसलिए वह लाश को ऐसी जगह फेंकना चाहता था, जहां उसे कोई न पहचान सके. रात होने पर नीलेश अपने एक दोस्त की एसेंट कार यह कह कर मांग लाया कि उस की मां को दिल का दौरा पड़ा है, जिसे उसे अस्पताल ले जाना है.

उसी कार की डिग्गी में बाबू लाईटवाला की लाश रख कर चारों ठिकाने लगाने के लिए निकल पड़े. घूमतेफिरते वे गोरेगांव (पश्चिम) हाइपर सिटी मौल के पीछे पहुंचे तो उन्हें नाला दिखाई दिया. सुनसान जगह देख कर उन्होंने लाश को उसी नाले में फेंक दी और चलते बने.

बाबू लाईटवाला हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त नीलेश पुलिस टीम के हाथ लग गया था. लेकिन अभी 3 लोगों को गिरफ्तार करना था. पुलिस टीम उन की तलाश में लग गई. पुलिस को सभी के मोबाइल नंबर मिल ही गए थे. उन्हीं से पुलिस उन लोगों की लोकेशन पता करने लगी.

संतोष और शंकर के मोबाइल फोन की लोकेशन उन के घर की ही मिल रही थी. पुलिस टीम उन के घर पहुंची तो घर के बाहर ताला लगा था. यह देख कर पुलिस पशोपेश में पड़ गई, क्योंकि मोबाइल फोन की लोकेशन के अनुसार उन्हें घर पर ही होना चाहिए था. पुलिस ने आसपड़ोस के लोगों से पूछताछ की तो वे भी कुछ नहीं बता सके. अंत में मोहल्ले वालों की उपस्थिति में घर का ताला तोड़ा गया तो दोनों भाई घर के अंदर ही छिपे मिल गए.

अब पुलिस को सतीश यादव को गिरफ्तार करना था. उस के मोबाइल फोन की लोकेशन निकलवाई गई तो वह मुंबई के जे.जे. अस्पताल की मिली. पुलिस को इस बात पर हैरानी हुई. लेकिन जब पुलिस वहां पहुंची तो पता चला कि जब वे लोग बाबू लाईटवाला की चापड़ से हत्या कर रहे थे तो सतीश को चोट लग गई थी. सतीश वहां भरती हो कर उसी का इलाज करा रहा था.

अस्पताल पहुंच कर भी सतीश को  गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को काफी परेशान होना पड़ा था. क्योंकि वहां वह नाम बदल कर वहां भरती था. इस वजह से पुलिस को अस्पताल का एकएक बेड चैक करना पड़ा था. इस के बावजूद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था.

मोहम्मद अब्दुल हसन बाबू चौधरी उर्फ बाबू लाईटवाला की हत्या करने वाले चारों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के पुलिस ने महानगर मेट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक किसी भी अभियुक्त की जमानत नहीं हुई थी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

देह का भूखा दानव

12 सितंबर, 2014 को सुबह कोई 10 बजे की बात थी. चांदनी अपने रोजमर्रा के कामों को निपटा कर कालेज जाने की  तैयारी कर रही थी कि उसी बीच उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी. वह एक खास तरह की रिंगटोन थी. वह रिंगटोन उस ने अपने प्रेमी संदीप के फोन नंबर के साथ सेट कर रखी थी. इसलिए रिंगटोन बजाते ही वह समझ गई कि संदीप का फोन आया है.

संदीप का फोन आने पर उस का दिमाग गुस्से से झनझनाने लगा. एक समय ऐसा भी था, जब उस का फोन आता था तो वह मारे खुशी के फूले नहीं समाती थी, लेकिन अब उस का फोन आने पर वह टेंशन में आ गई. एक दफा तो उस के मन में आया कि वह फोन काट दे या यूं ही घंटी बजने दे. कुछ देर तक वह फोन नहीं उठाएगी तो वह अपने आप ही फिर फोन नहीं करेगा.

लेकिन दूसरे ही पल दिमाग में विचार आया कि नहीं, आज वह आखिरी बार उस से बात कर ही ले कि आखिर ऐसा कब तक चलेगा. यही सोच कर उस ने फोन रिसीव कर लिया. तभी चिरपरिचित अंदाज में फोन करने वाला संदीप बोला, ‘‘मैं एकडेढ़ घंटे में आ रहा हूं, तुम तैयार रहना.’’

‘‘लेकिन सुनो तो…’’ चांदनी ने अपनी बात कहने की कोशिश की. संदीप जानता था कि वह क्या कहेगी, इसलिए अपनी बात कहने के बाद बोला, ‘‘अब जो भी कहनासुनना है, वहीं कहना. ओके, बस तुम तैयार रहना.’’

चांदनी और संदीप कमल द्विवेदी के कैलाशपुरी कालोनी स्थित घर पर मिलते थे. कमल द्विवेदी संदीप का दोस्त था, जो कैलाशपुरी वाले घर में अकेला रहता था. जब भी वे दोनों उस के घर पहुंचते, दोस्ती निभाते हुए वह उन्हें खुल कर मौजमस्ती करने का मौका देने के लिए उन्हें अकेला छोड़ कर बाहर चला जाता था.

संदीप ने चांदनी को कमल के घर पहुंचने को कहा था, इसलिए वह बेबसी से तैयार होने के नाम पर कपड़े बदलने लगी. एक वक्त था जब वह संदीप से मिलने कमल के घर जाती थी तो वह उस की पसंद के कपड़े पहनती थी. जाने से पहले वह खूब मेकअप करती थी और बीच रास्ते में उस के लिए चाकलेट आदि खरीद कर ले जाती थी. घर से निकलते ही उस का दिल करता था कि उड़ कर चली जाए. तब उस के पैरों में पंख लगे रहते थे और दिल बेतहाशा धड़कता था.

लेकिन अब बात और थी. आज वह मन ही मन सख्त फैसला ले कर संदीप से मिलने जा रही थी. उस के मन में बेचैनी थी कि जाने आज भी संदीप उस के सवालों का ठीकठाक जवाब देगा या नहीं या हमेशा की तरह अपनी हवस की आग बुझाएगा और थोड़ाबहुत समझाबुझा या दुलारपुचकार कर चलता बनेगा. इन्हीं खयालों में डूबी चांदनी ने कमरे पर ताला लगाया. चांदनी रीवां के गवर्नमेंट गर्ल्स कालेज से एमएससी कर रही थी और रतहरा मोहल्ले में किराए पर रहती थी. कमरे पर ताला लगा कर वह बाहर आ गई.

सड़क पर धीरेधीरे पैदल चलती चांदनी अभी आधा किलोमीटर भी नहीं चली थी कि संदीप की बाइक उस के नजदीक आ कर रुकी. बगैर कुछ कहेसुने वह कूद कर संदीप के पीछे बैठ गई. संदीप तेज गति से बाइक चलाता हुआ कैलाशपुरी की तरफ निकल गया. वह इतनी नाराज थी कि उस ने रास्ते में उस से कोई बात नहीं की.

कमल ने जैसे ही अपने दोस्त को माशूका के साथ घर पर आया देखा, हर बार की तरह चुपचाप घर से बाहर निकल गया. संदीप और चांदनी एक कमरे में चले गए. अंदर पहुंचते ही संदीप ने पहला काम दरवाजा बंद करने का किया. इस के बाद हर बार की तरह उस ने चांदनी को अपनी बांहों में भर लिया और ताबड़तोड़ उसे चूमने लगा.

अपनी परेशानी में डूबी चांदनी को संदीप की यह हरकत पसंद नहीं आई. उस ने उसे झटक दिया और बेहद सख्त लहजे में कहा, ‘‘आज यह सब नहीं चलेगा. पहले मेरे सवालों का जवाब दो.’’

संदीप के ऊपर तो मिलन का भूत सवार था. प्रेमिका के व्यवहार से उसे झटका लगा. मौके की नजाकत को समझते हुए उस ने अपनी जल्दबाजी और बेसब्री पर काबू में ही भलाई समझी. पर उसे इस बात का भरोसा था कि थोड़ी नानुकुर के बाद चांदनी नौरमल हो जाएगी. क्योंकि बीते एक साल से यही हो रहा था.

चांदनी हर बार उस से यही पूछती, ‘‘संदीप, तुम शादी कब करोगे. आखिरकार हमारे इस रिश्ते का नाम क्या है. मैं खुद को भी मुंह दिखाने लायक नहीं रही. तुम आखिर समझते क्यों नहीं.’’

उस की बातों को वह एक कान से सुनता, दूसरे से निकाल देता था. उस का मकसद अपनी वासना को शांत करना होता था, इसलिए वह किसी तरह उसे बहलाफुसला कर रास्ते पर ला कर अपनी इच्छा पूरी कर लेता था.

इस तरह पिछले 2 सालों में वह चांदनी की रगरग से वाकिफ हो चुका था. काफी देर तक वह प्रेमिका की बातों को सुनता रहा. चांदनी की बात पूरी हो जाने के बाद वह अपनी लच्छेदार बातों से उसे संतुष्ट करने की कोशिश करने लगा. मानमनुहार करते हुए काफी देर हो गई, लेकिन चांदनी उस की बात मानने को तैयार नहीं थी. उस दिन वाकई बात जुदा थी.

अपनी बातों से बहलाने की कोशिश करते हुए संदीप को कोई एक घंटा बीत चुका था. चांदनी ने भी शायद खुद को उस के सामने समर्पण न करने का फैसला कर रखा था. तभी तो जब भी संदीप उसे स्पर्श करता, वह उस का हाथ झटक देती. जब काफी देर हो गई तो संदीप झुंझला कर बोला, ‘‘चांदनी, तुम यह बताओ कि हमारे बीच यह सब पहली बार थोड़े न हो रहा है, जो तुम इस तरह की बातें कर रही हो.’’

‘‘पहले जो भी हुआ, उसे भूल जाओ. लेकिन अब नहीं होगा.’’ चांदनी बोली.

संदीप के सब्र का बांध टूट चुका था. वह भी जिद करते हुए बोला, ‘‘होगा, आज भी होगा और प्यार से नहीं तो रिवाल्वर से होगा.’’ कहने के साथ ही उस ने जेब से रिवाल्वर निकाल लिया.

‘‘तो तुम मुझे मारोगे, मेरी हत्या करोगे?’’ बजाय डरने के चांदनी बेखौफ हो कर बोली, ‘‘तो कर लो मन की. तुम्हारी आज हरगिज नहीं चलेगी.’’

चांदनी नहीं डरी तो संदीप और झल्ला उठा, ‘‘मैं मजाक नहीं कर रहा. सीरियसली कह रहा हूं कि सीधेसीधे मान जाओ, नहीं तो…’’

‘‘नहीं तो क्या…’’

‘‘नहीं तो…’’ कहतेकहते संदीप ने उस के गुप्तांग पर निशाना साधते हुए गोली चला दी, जो कमर को चीरती हुई पार निकल गई.

चांदनी ने यह कभी सोचा भी नहीं था कि जिस प्रेमी को वह अपना सब कुछ सौंप चुकी थी, हवस के लिए वह उस का खून कर देगा. वह तो नाजनखरे दिखा कर उस से केवल शादी की बात पक्की करना चाहती थी. बहरहाल गोली लगते ही चांदनी की सलवार खून से लथपथ हो गई. संदीप ने प्रेमिका पर गोली तो चला दी, लेकिन खून देखते ही वह घबरा गया. उस के सिर से वासना का भूत उतर हो चुका था. अब उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे?

चांदनी असहनीय दर्द से जूझने लगी. संदीप से बोली, ‘‘संदीप मुझे अस्पताल ले चलो. मैं किसी से नहीं कहूंगी कि यह गोली तुम ने मारी है. अस्पताल वालों और पुलिस से कह दूंगी कि सेलिब्रेशन होटल के पास एक मोटरसाइकिल पर सवार अज्ञात लोगों ने उसे गोली मार दी. प्लीज, मुझे जल्दी ले चलो.’’

प्रेमिका की बात सुनने के बाद संदीप को भी लग रहा था कि चांदनी सच बोल रही है. इसलिए उस ने फोन कर के अपने दोस्त कमल द्विवेदी को बुला लिया और उसे संक्षेप में जानकारी दे दी. इस के बाद दोनों चांदनी को ले कर रीवां के नामी संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल पहुंच गए. कमल की परेशानी यह थी कि अगर चांदनी को उस के घर में कुछ हो जाता तो उस के लेने के देने पड़ जाते. लिहाजा वह संदीप का साथ देने को तैयार हो गया. इसलिए अपनी बोलेरो कार से वह चांदनी को अस्पताल ले गया.

आपातकालीन वार्ड में मौजूद डाक्टरों ने चांदनी की हालत देखते हुए उसे तुरंत भरती कर इलाज शुरू कर दिया. मामला पुलिस केस का लग रहा था, इसलिए अस्पताल की तरफ से इस की सूचना थाना सिविल लाइंस को दे दी गई.

सूचना मिलते ही सिविल लाइंस के थानाप्रभारी बृजेंद्र मोहन दुबे तुरंत अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने लड़की का इलाज कर रहे डाक्टरों से बात की. डाक्टरों ने जब बताया कि लड़की बयान देने की हालत में नहीं है तो उन्होंने लड़की को अस्पताल लाने वाले संदीप और कमल द्विवेदी से बात की. उन से बात करने के बाद वह हैरानी में पड़ गए कि एक लड़की को दिनदहाड़े गोली आखिर किस ने मारी? और गोली भी उस के खास अंग को निशाना साधते हुए चलाई.

संदीप और कमल काफी हद तक अपनी घबराहट पर काबू पा चुके थे. उन्हें उम्मीद थी कि ठीक होने पर चांदनी भी पुलिस को गुमराह करने वाला बयान दे देगी और वह बच जाएंगे.

संदीप ने थानाप्रभारी को दिए बयान में बताया, ‘‘चांदनी पटेल हमारी परिचित है. वह यहीं के रतहरा मोहल्ले में रहती है. वह गर्वमेंट गर्ल्स कालेज से एमएससी कर रही है. इस का छोटा भाई राहुल मेरा दोस्त है. चांदनी ने दोपहर कोई साढ़े बारह बजे मुझे फोन पर बताया था कि वह कालेज जा रही थी, तभी सेलीब्रेशन होटल के पास अज्ञात युवकों ने पीछे से आ कर उसे गोली मार दी. यह खबर मिलने पर मैं ने तुरंत अपने दोस्त कमल द्विवेदी को फोन कर के बुलाया और उस की बोलेरो जीप में डाल कर अस्पताल ले आए.’’

संदीप ने पूरे आत्मविश्वास के साथ पुलिस को बयान दिया था, इसलिए पुलिस को उस पर कोई शक नहीं हुआ. चांदनी अभी बेहोश थी, उस के होश में आने के बाद ही पूरी जानकारी मिल सकती थी. इसलिए पुलिस उस जगह रवाना हो गई, जहां चांदनी को गोली मारने की बात बताई गई थी.

पुलिस ने होटल सेलिब्रेशन के आसपास के लोगों से अज्ञात बाइक सवारों द्वारा किसी लड़की को घायल करने के बारे में पूछा. तमाम लोगों से पूछताछ करने के बाद भी पुलिस को ऐसा कोई चश्मदीद गवाह नहीं मिला, जिस ने गोली मारते देखी हो. वहां खून आदि के निशान भी नहीं मिले. पुलिस के लिए यह बात बड़ी ताज्जुब की थी. चांदनी की सलवार खून से तरबतर थी और घटनास्थल पर खून की बूंद तक नहीं गिरी थी. पहली ही नजर में मामला कोई दूसरा दिख रहा था.

उधर डाक्टर चांदनी के इलाज में लगे थे. पुलिस को इंतजार था कि चांदनी होश में आ कर बयान दे, जिस से पता चले कि आखिरकार हुआ क्या था. चांदनी के घायल होने की खबर उस के घर वालों को दी गई तो उस के पिता और भाई संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल पहुंच गए. जैसेजैसे गांव वालों को चांदनी के घायल होने की जानकारी मिलती गई, वे अस्पताल पहुंचने लगे. कुछ ही देर में तमाम लोग अस्पताल के बाहर जमा हो गए.

अस्पताल में भीड़ बढ़ती देख रीवां के एएसपी प्रणय नागवंशी भी वहां पहुंच गए. उन्होंने भी संदीप से पूछताछ की. जिस कालेज में चांदनी पढ़ती थी, उस कालेज के भी तमाम छात्रछात्राएं अस्पताल पहुंच गए. लोगों में पुलिस के प्रति आक्रोश बढ़ता जा रहा था. वे नारेबाजी करने लगे.

थोड़ी देर में एसपी के आदेश पर आसपास के थानों की पुलिस भी अस्पताल पहुंच गई. पुलिस अधिकारियों ने जैसेतैसे लोगों को समझा कर आश्वासन दिया कि जल्दी ही हमलावरों का पता लगा कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

डाक्टर चांदनी के इलाज में लगे हुए थे, लेकिन उस की हालत में सुधार नहीं हो रहा था. आखिरकार दोपहर कोई 3 बजे उस ने दम तोड़ दिया. चांदनी के मरते ही संदीप ने चैन की सांस ली कि घटना की हकीकत उस के साथ ही दफन हो जाएगी. पुलिस को सच्चाई पता नहीं चलेगी. लेकिन चांदनी के मरने के बाद पुलिस की चिंता और बढ़ने लगी, क्योंकि लोगों के उग्र होने की संभावना थी. पुलिस ने फटाफट चांदनी का पोस्टमार्टम करा कर शव परिजनों को सौंप दिया.

इस के बाद पुलिस एक बार फिर होटल सेलिब्रेशन पहुंची. शायद इस बार वहां से हत्यारों के बारे में कोई क्लू मिल जाए. वह फिर से चश्मदीद को तलाशने लगी. काफी कोशिशों के बावजूद भी पुलिस को एक भी चश्मदीद नहीं मिला. आसपास के काम करने वाले लोगों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने गोली चलने तक की आवाज नहीं सुनी. यह जान कर पुलिस को ताज्जुब हुआ कि इतनी बड़ी घटना हो गई और लोगों को पता तक नहीं चला. जबकि वह इलाका भीड़भाड़ वाला था.

इन बातों से पुलिस को संदीप के बयान पर शक होने लगा. लिहाजा पुलिस ने संदीप के बयान का पोस्टमार्टम करना शुरू किया. वह संदीप को घटनास्थल पर ले गई तो वह यह तक नहीं बता पाया कि वारदात किस जगह हुई थी.

अब पुलिस का शक यकीन में बदलता दिख रहा था, लिहाजा पुलिस ने संदीप से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने सारी कहानी बयां कर दी. उस ने चांदनी से प्यार होने से ले कर हत्या तक की सिलसिलेवार जो कहानी बताई वह इस प्रकार निकली:

मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र के रीवां जिले के एक गांव की रहने वाली चांदनी राजकीय कन्या महाविद्यालय से एमएससी कर रही थी. चूंकि रोजाना घर से कालेज आने में उस की पढ़ाई बाधित हो रही थी, इसलिए उस ने रतहरा में किराए पर कमरा ले लिया. कमरे पर उस ने अपने छोटे भाई को भी रख लिया था. वह भी बहन के साथ रह कर पढ़ाई करने लगा.

उसी दौरान सैमसंग कंपनी में नौकरी करने वाले संदीप नाम के युवक से उस की दोस्ती हुई, संदीप को जब पता चला कि चांदनी के साथ उस का भाई भी रह रहा है तो चांदनी से नजदीकी बढ़ाने के लिए उस ने उस के छोटे भाई से दोस्ती कर ली. इस के बाद वह चांदनी से मिलने लगा.

संदीप की चांदनी के साथ हुई दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदल गई. उन का प्यार परवान चढ़ते हुए इतना आगे निकल गया कि वे सारी हदें पार कर गए. उन के बीच जिस्मानी संबंध कायम हो गए. इतना ही नहीं, उन्होंने शादी कर के साथसाथ रहने का फैसला कर लिया था.

काफी दिनों तक दोनों चोरीछिपे मिलते रहे. संदीप का एक दोस्त था कमल द्विवेदी, जो अपने जमाने के कुख्यात डकैत महेश द्विवेदी का बेटा था. कमल कैलाशपुरी स्थित मकान में अकेला रहता था. कमल संदीप और चांदनी के प्रेमप्रसंग से वाकिफ था. इसलिए संदीप चांदनी को कमल के घर पर मिलने के लिए बुला लेता था.

जब भी मन होता, वे कमल के घर पर मौजमस्ती कर लेते थे. लेकिन कुछ दिनों बाद ही संदीप में बदलाव आना शुरू हो गया. जो संदीप जीवनभर प्रेमिका का साथ निभाने का वादा करता था, वह शादी करने से कतराने लगा. अब वह चांदनी को केवल मौजमस्ती का साधन समझने लगा. जब भी चांदनी उस से शादी की बात करती, वह कोई न कोई बहाना बना कर बात टाल देता था. चांदनी उस की बात समझ गई.

चूंकि वह अपनी इज्जत उस के हवाले कर चुकी थी, इसलिए उस पर शादी का दबाव बनाने लगी. शादी की बात सुनते ही संदीप असमंजस में फंसा महसूस करता. फिर भी वह किसी तरह उसे झूठा भरोसा दे कर उस के साथ मौजमस्ती करने में कामयाब हो जाता था. 12 सितंबर, 2014 को चांदनी ने अपने उस के सामने देह समर्पण नहीं किया तो वह हैवान बन उठा और उसे गोली मार दी.

संदीप से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के दोस्त कमल द्विवेदी को भी सह अभियुक्त बना कर उसे गिरफ्तार कर लिया. दोनों को न्यायालय में पेश करने के बाद उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया. पुलिस मामले की तफतीश कर रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सावधान! ऐसे दोस्तों से : दोस्त की बेटी पर बुरी नजर – भाग 3

रईस मंसूरी ने बाद में इनवर्टर का काम शुरू कर दिया. उस ने एकएक कर के 4 शादियां कीं. 3 बीवियों को वह तलाक दे चुका था, अब चौथी बीवी नुसरतजहां के साथ रह रहा था. पति के मरने के बाद तसलीमा को आर्थिक परेशानी हुई तो रईस ने उस की काफी मदद की. इस वजह से वह रईस की एहसानमंद हो गई.

तसलीमा की बेटियां जवान हो चुकी थीं. रईस की नीयत उस की बड़ी बेटी पर खराब हो गई. वह उसे फंसाने की कोशिश करने लगा. उसे इस बात की भी शर्म नहीं आई कि वह उस के लंगोटिया यार की बेटी है. एक तरह से वह उस की बेटी की तरह है. लेकिन उस ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.

उसे फंसाने के लिए वह उस की पसंद की चीजें खरीद कर देने लगा. आखिर एक दिन वह अपनी योजना में सफल हो गया. नाजायज संबंध बने तो यह सिलसिला काफी दिनों तक चला. उस ने उस के अंतरंग संबंधों की मोबाइल से फिल्म भी बना ली थी.

तसलीमा के घर वालों को रईस मंसूरी पर इतना विश्वास था कि कोई उस के बारे में कुछ गलत सोच भी नहीं सकता था. इसी की आड़ में वह अपने मंसूबे पूरे कर रहा था. कुछ दिनों बाद तसलीमा की बेटी ने महसूस किया कि रईस से संबंध बना कर उस ने ठीक नहीं किया, क्योंकि वह उस की पिता की उम्र का है. उस से वह शादी भी नहीं कर सकती.

यह अहसास होने के बाद वह उस से दूरियां बनाने लगी. लेकिन रईस उस का पीछा छोडऩे को तैयार नहीं था. उस ने जो वीडियो बना रखी थी, उसी के बल पर वह उसे ब्लैकमेल करने लगा. रईस ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह उस वीडियो को इंटरनेट पर डाल देगा. इस धमकी से वह डर गई. इस तरह रईस उस का शारीरिक व मानसिक शोषण करने लगा.

तसलीमा का बेटा आलम अब जवान हो चुका था. वह दुनियादारी समझने लगा था. अपने घर आने वाले रईस की गतिविधियां उसे अच्छी नहीं लगती थीं. क्योंकि वह जब भी उस के घर आता था, उस की बहन के आगेपीछे मंडराता रहता था. वह रईस से तो कुछ कह नहीं कहा, क्योंकि वह उस के मरहूम पिता की उम्र का था. उस की अम्मी भी उस की बड़ी इज्जत करती थी. इसलिए उस ने बहन को ही डांटा कि वह रईस ज्यादा बातें न किया करे.

आलम को पता नहीं था कि बात तो उस की बहन भी नहीं करना चाहती, पर रईस ने वीडियो फिल्म का ऐसा खौफ उस के दिल में बैठा दिया है कि ना चाहते हुए भी वह रईस की हर बात मानती है. एक दिन आलम के एक दोस्त ने अपने मोबाइल में उसे एक वीडियो दिखाई. वह वीडियो देख कर आलम का खून खौल उठा. उस वीडियो में उस की बहन रईस के साथ आपत्तिजनक स्थिति में थी. उस के दोस्त को वह फिल्म रईस ने ही दी थी.

इस के बाद रईस आलम का दुश्मन बन गया. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि वह उसे उस के किए की सजा जरूर देगा. अपने दिल में उठ रहे गुस्से के सैलाब को उस ने जाहिर नहीं होने दिया और रईस को ठिकाने लगाने का उपाय खोजने लगा. आखिर उस ने एक खौफनाक योजना बना ही ली.

आलम को अपने घर में इनवर्टर लगवाना था. चूंकि रईस इनवर्टर का काम करता था, इसलिए उस ने रईस को इनवर्टर लगाने के लिए 5 हजार रुपए दे दिए. रईस के पास काम ज्यादा था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे टाइम मिलेगा, वह आलम के यहां जा कर इनवर्टर लगा देगा.

आलम ने रईस को फोन किया तो उस ने आलम से कह दिया कि 15 दिसंबर की शाम को वह उस के यहां इनवर्टर लगा देगा. आलम ने उसी दिन रईस को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. इस काम में उस ने अपने एक दोस्त शोएब को भी शामिल कर लिया.

उस दिन शाम को वह रईस के आने का इंतजार करने लगा. शाम साढ़े 7 बजे तक रईस उस के यहां नहीं पहुंचा तो उस ने उसे फोन किया. फोन पर बात करने के कुछ देर बाद रईस अपनी स्कूटी से आलम के यहां पहुंच गया.

योजना के अनुसार, आलम ने शराब की एक बोतल पहले से ही खरीद कर रख ली थी. रईस ने जब उस के यहां इनवर्टर लगा दिया तो वह रईस को एक कमरे में ले गया. उस कमरे में मेज पर शराब की बोतल और नमकीन पहले से ही रखी थी.

आलम ने कहा, “इनवर्टर लगने की खुशी में मैं ने छोटी सी पार्टी रखी है.”

रईस मना नहीं कर सका और आलम तथा शोएब के साथ शराब पीने बैठ गया. आलम ने तेज आवाज में डेक बजा दिया. जैसे ही उन का पीनेपिलाने का दौर खत्म हुआ, आलम अपनी जगह से उठा और कमरे में पहले से रखे हथौड़े से रईस के सिर पर जोरदार वार कर दिया. एक ही वार में रईस बिना कोई आवाज किए नीचे गिर गया. सिर से खून बहने लगा. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

हत्या के बाद उन के सामने समस्या लाश ठिकाने लगाने की थी. नाराज आलम ने उस की गरदन काट दी. इस के बाद उस ने लाश के टुकड़े कर के 4 बोरों में भर दिए और आधी रात को उन बोरों को एकएक कर के रामगंगा नदी के किनारे फेंक आया. कमरे में जमीन पर जो खून फैला था, उसे भी उस ने मिट्टी सहित कुरच कर एक बोरे में भर दिया और उसे भी जामा मस्जिद के नाले में डाल आया. उस की स्कूटी को उस ने रामगंगा नदी के पार मजार के पास बने कुंड में फेंक दी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने आलम के साथी शोएब को भी गिरफ्तार कर लिया. आलम की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त हथौड़ा, चाकू, आरी के ब्लेड, मृतक का मोबाइल फोन और स्कूटी बरामद कर ली. इस के बाद उन्हें न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस सूत्रों व अभियुक्त आलम के बयान पर आधारित. कथा में तसलीमा परिवर्तित नाम है)

विवाहिता के प्यार में फंसा समीर – भाग 3

जब समीर और अपने से दोगुनी उम्र की सोफिया के प्यार की जानकारी समीर के घर वालों की हुई तो वे परेशान हो उठे. उन्हें इज्जत के साथसाथ उस के भविष्य की भी चिंता सताने लगी. उन्होंने दुनियादारी बता कर उसे समझायाबुझाया तो वह शादी के लिए राजी हो गया. इस के बाद उस के लिए पारिवारिक लड़की खोजी जाने लगी.

समीर शादी के लिए तैयार तो हो गया था, लेकिन वह जानता था कि सोफिया आसानी से मानने वाली औरतों में नहीं है. उस ने सिर्फ शारीरिक जरूरत के लिए ही उस से प्यार नहीं किया था. उस ने उसे दिल से प्यार किया था, इसलिए वह जानता था कि सोफिया आसानी से उसे छोड़ने वाली नहीं है.

समीर भले ही उस से शादी का वादा करता रहा था, लेकिन सच्चाई यह थी कि उस ने मात्र शारीरिक जरूरत पूरी करने के लिए सोफिया से प्यार किया था. यही वजह थी कि घर वालों ने उस के लिए लड़की की तलाश शुरू की तो वह सोफिया को ले कर परेशान रहने लगा. क्योंकि वह जानता था कि सोफिया आसानी से तो क्या, बिलकुल ही नहीं मानने वाली. पता चलने पर यह भी हो सकता था कि वह उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दे.

तब बदनामी भी होती और समीर कानूनी शिकंजे में भी फंस जाता. इसलिए सोफिया नाम के इस कांटे को अपनी जिंदगी से निकालने के लिए उस ने एक खतरनाक फैसला ले कर इस की जिम्मेदारी अपने एक दोस्त पप्पू उर्फ इस्माइल शेख को सौंप दी. इस के बाद वह सोफिया से एक बार फिर शादी का वादा कर के 20 नवंबर, 2013 को दुबई चला गया.

28 वर्षीय पप्पू उर्फ इस्माइल शेख शिवाजीनगर में उसी इमारत में रहता था, जिस में समीर शेख का परिवार रहता था. उस की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए उस ने लगभग साल भर पहले व्यवसाय करने के लिए समीर से 35 हजार रुपए उधार लिए थे. समीर से रुपए ले कर उस ने जो व्यवसाय किया था, संयोग से वह चला नहीं. फायदा होने की कौन कहे, उस में उस की जमापूंजी भी डूब गई.

जब पैसे ही नहीं रहे तो पप्पू समीर का कर्ज कहां से अदा कर पाता. समीर ने रुपए ब्याज पर दिए थे, जो ब्याज के साथ 50 हजार रुपए हो गए थे. समीर ने अपने रुपए मांगे तो पप्पू ने रुपए लौटाने में मजबूरी जताई और कुछ दिनों की मोहलत मांगी. समीर जानता था कि पप्पू जल्दी रुपए नहीं लौटा सकता, इसलिए उस ने मौका देख कर कहा, ‘‘अगर तुम मेरा एक काम कर दो तो मैं तुम्हारा यह कर्ज माफ कर दूंगा.’’

‘‘ऐसा कौन सा काम है, जिस के लिए तुम इतना कर्ज माफ करने को तैयार हो?’’ पप्पू ने पूछा.

‘‘भाई, इतनी बड़ी रकम माफ करने को तैयार हूं तो काम भी बड़ा ही होगा.’’ समीर ने कहा.

‘‘ठीक है, काम बताओ.’’

‘‘सोफिया शेख की हत्या करनी है.’’ समीर ने कहा तो पप्पू को झटका सा लगा. क्योंकि काम काफी खतरनाक था. लेकिन समीर के 50 हजार रुपए देना भी उस के लिए काफी मुश्किल था, इसलिए मजबूरी में वह यह मुश्किल और खतरनाक काम करने को राजी हो गया. इस के बाद सोफिया की हत्या कैसे और कब करनी है, समीर ने पूरी योजना उसे समझा दी.

समीर के दुबई चले जाने के बाद पप्पू उस के द्वारा बनाई योजना को साकार करने की कोशिश में लग गया. यह काम उस के अकेले के वश का नहीं था, इसलिए मदद के लिए उस ने अपने एक परिचित 15 वर्षीय मुन्ना उर्फ परवेज शेख को साथ ले लिया. इस के बाद अपने दोस्त जावेद का मोबाइल फोन ले कर 9 दिसंबर, 2013 को मुन्ना के घर जा पहुंचा. पूरी रात दोनों समीर द्वारा बताई योजना पर विचार करते रहे.

अगले दिन 10 दिसंबर, 2013 की सुबह पप्पू मुन्ना के साथ बाजार गया और वहां से एक तेज धार वाला बड़ा सा चाकू खरीदा. अब उसे यह पता करना था कि सोफिया घर में है या कहीं बाहर. इस के लिए उस ने सोफिया को फोन किया. उस ने फोन रिसीव किया तो पप्पू ने छूटते ही कहा, ‘‘समीरभाई ने मेरा पासपोर्ट और कुछ जरूरी कागजात तुम्हारे घर पर रखे हैं, मैं उन्हें लेने आ रहा हूं. आप उन्हें ढूंढ़ कर रखें.’’

सोफिया कुछ कहती, उस के पहले ही पप्पू ने फोन काट दिया. इस के बाद पप्पू ने आटो किया और मुन्ना के साथ सोफिया के घर जा पहुंचा. उस ने घंटी बजाई तो सोफिया ने दरवाजा खोल दिया. पप्पू ने अपने पासपोर्ट और कागजातों के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘समीर मेरे पास न तो कोई पासपोर्ट रख गया है न कोई कागजात. जा कर उसी से पूछो, उस ने कहां रखे हैं.’’

इसी बात को ले कर पप्पू सोफिया से बहस करने लगा तो उस ने नाराज हो कर पप्पू को घर से निकल जाने को कहा. तभी पप्पू ने चाकू निकाल कर उस के सिर पर पूरी ताकत से वार कर दिया. वार इतना तेज था कि सोफिया संभल नहीं पाई और गिर पड़ी. गिरते ही वह बेहोश हो गई. इस के बाद पप्पू और मुन्ना ने सोफिया के सारे गहने उतार कर उसे उसी हालत में गद्दे में लपेट कर आग लगा दी. अपना काम कर के वे बाहर आ गए और काम हो जाने की सूचना समीर को दे दी.

रिमांड अवधि खत्म होने पर एक बार फिर पप्पू और मुन्ना को महानगर मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया, जहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक दोनों जेल में थे. हत्या की साजिश रचने वाला समीर शेख दुबई में था. पुलिस उसे वहां से भारत बुलाने की कोशिश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दिल आया जब दूसरे पर

विनोद एक निजी नौन बैंकिंग कंपनी में एजेंट था, इसलिए उस का घर आने का कोई निश्चित समय नहीं था. लेकिन जब भी उसे  घर लौटने में देर होती, वह पत्नी सुनीता को फोन कर के बता जरूर देता था.

26 दिसंबर, 2013 को भी विनोद एक परिचित के यहां जाने की बात कह कर घर से निकला था. जब लौटने में उसे देर होने लगी और उस का फोन नहीं आया तो सुनीता ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था, इसलिए बात नहीं हो पाई.

विनोद जिस कंपनी का एजेंट था, वह कंपनी आकर्षक ब्याज पर लोगों के पैसे जमा कराती थी. सुनीता ने यह सोच कर दोबारा फोन नहीं मिलाया कि वह किसी ग्राहक के साथ मीटिंग में होगा. जब काफी देर हो गई और न विनोद का फोन आया, न वह खुद आया तो सुनीता ने एक बार फिर फोन मिलाया. इस बार भी उस का फोन बंद था. अब तक रात के 10 बज गए थे. इतनी देर तक विनोद बिना बताए कभी बाहर नहीं रहा था.

यही सोच कर सुनीता को पति की चिंता सताने लगी. जिस आदमी से मिलने की बात कह कर विनोद घर से निकला था, सुनीता उसे जानती थी. वह उस आदमी के घर गई तो पता चला कि विनोद उस के पास आया तो था, लेकिन थोड़ी देर बाद ही चला गया था. उस के यहां से जाने के बाद वह कहां गया, यह उसे पता नहीं था.

सुनीता ने बच्चों को तो खाना खिला कर सुला दिया था, लेकिन पति की वजह से उस ने खुद खाना नहीं खाया था. पति की चिंता में उस की भूखप्यास मर चुकी थी. किसी अनहोनी की आशंका से उस के दिमाग में तरहतरह के विचार आ रहे थे. व्याकुल होने के साथ उस की घबराहट भी बढ़ती जा रही थी. चारपाई पर बैठे हुए उस की निगाहें दरवाजे पर ही टिकी थीं.

बाहर कैसी भी आहट होती, सुनीता लपक कर दरवाजे तक आ जाती. लेकिन दरवाजा खोलने के बाद जब उसे कोई नहीं दिखाई देता तो वह मायूस हो कर वापस चली जाती. सुनीता ने पति के दोस्तों और सभी संबंधियों को भी फोन कर के पूछ लिया था. जब कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो रात 12 बजे के करीब वह कुछ रिश्तेदारों के साथ थाना कोतवाली पहुंची और थानाप्रभारी को विनोद के गायब होने की सूचना दी.

सुनीता की रात जैसेतैसे कटी. पूरी रात बहनबहनोई विनोद के वापस आने का भरोसा देते रहे. उन्होंने भी अपने स्तर से विनोद के बारे में पता लगाने की कोशिश की थी, लेकिन उन की भी कोशिश बेकार रही थी. विनोद का कहीं पता नहीं चला था.

विनोद का इस तरह लापता होना चिंता की ही नहीं, परेशानी की बात थी. सुबह होते ही सुनीता के बहनोई राकेश शर्मा को हाथरस के थाना मुरसान के गांव नगला धर्मा के निकट एक अज्ञात व्यक्ति की लाश पड़ी होने की सूचना मिली.

सूचना मिलते ही राकेश शर्मा कुछ लोगों के साथ गांव नगला धर्मा के लिए रवाना हो गए. लेकिन उन के वहां पहुंचने तक पुलिस लाश को सील कर चुकी थी. उस के पूछने पर पुलिस ने मृतक का जो हुलिया बताया, वह लापता विनोद शर्मा से हूबहू मिलता था. इसलिए लाश की शिनाख्त के लिए वह पोस्टमार्टम हाउस जा पहुंचे. वहां देखने पर पता चला कि वह लाश विनोद शर्मा की ही थी.

लाश देख कर राकेश शर्मा सन्न रह गए. वह सिर थाम कर बैठ गए. यह खबर जब विनोद शर्मा के घर पहुंची तो वहां कोहराम मच गया. सुनीता का रोरो कर बुरा हाल था. पल भर में उस के घर पर पूरा गांव इकट्ठा हो गया. पोस्टमार्टम के बाद देर शाम विनोद की लाश गांव आई तो घर वालों के साथ पूरा गांव रो पड़ा. गांव वालों ने पहले तो विनोद का अंतिम संस्कार किया, उस के बाद आगरा-अलीगढ़ राजमार्ग पर जाम लगा दिया.

मृतक विनोद की पत्नी सुनीता की ओर से थाना मुरसान में विनोद शर्मा की हत्या का मुकदमा राजकुमार उर्फ डैनी के खिलाफ नामजद दर्ज कराया गया. सुनीता का कहना था कि 26 दिसंबर, 2013 की दोपहर को विनोद डैनी के यहां जाने की बात कह कर घर से निकले थे.

थानाप्रभारी संसार सिंह राठी ने राजकुमार उर्फ डैनी के बारे में पता किया तो जो जानकारी मिली, उस के अनुसार वह फितरती प्रवृत्ति का आदमी था. वह सीडीओ औफिस से पेंशन आदि के काम कराने के बहाने लोगों को ठगता था.

सुनीता शर्मा ने पुलिस को बताया था कि डैनी ने जिला नगरीय विकास अभिकरण विभाग से कर्ज दिलाने के नाम पर उस के पति से 10-12 हजार रुपए ऐंठ लिए थे. काम नहीं हुआ तो विनोद उस से अपने पैसे मांग रहा था. 2 दिन पहले इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा भी हुआ था. तब 26 दिसंबर को उस ने पैसे देने के लिए कहा था.

26 दिसंबर, 2013 की दोपहर को विनोद राजकुमार उर्फ डैनी के घर जाने की बात कह कर घर से निकला था. बात पैसों के लेनदेन की थी, इसलिए डैनी पूरी तरह संदेह के घेरे में था. पुलिस ने राजकुमार उर्फ डैनी को उस के नबीपुर स्थित घर पर छापा मार कर हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर राजकुमार उर्फ डैनी से पूछताछ की गई तो उस के जवाबों से साफ हो गया कि डैनी शातिर दिमाग तो है, लेकिन इस ने विनोद शर्मा की हत्या नहीं की. इस के बाद पुलिस ने उसे घर पर रहने और बुलाने पर तुरंत थाने आने का निर्देश दे कर घर भेज दिया.

थानाप्रभारी संसार सिंह राठी ने कोशिश तो बहुत की, पर वह विनोद के हत्यारों तक पहुंच नहीं सके. धीरेधीरे 15 दिन बीत गए. तब पुलिस अधीक्षक और क्षेत्राधिकारी ने सलाहमशविरा कर के इस मामले की जांच में थाना पुलिस की मदद के लिए एसओजी टीम के प्रभारी अशोक कुमार को भी लगा दिया.

अशोक कुमार ने सब से पहले विनोद शर्मा के मोबाइल नंबर की पिछले एक महीने की काल डिटेल्स निकलवाईं. उन की नजर उस नंबर पर जम गईं, जिस नंबर पर विनोद ने सब से अधिक बात की थी. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर एक महिला का निकला.

एक तो नंबर महिला का था, दूसरे उसी पर विनोद की सब से ज्यादा बातें हुई थीं, इसलिए पुलिस को उस पर संदेह हुआ. इस के बाद पुलिस ने उस महिला के बारे में पता किया.महिला का नाम अंजलि था. वह गांव झींगुरा की रहने वाली थी. पुलिस ने छापा मार कर उसे उस के घर से हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से विनोद की हत्या के बारे में पूछा गया तो उस ने साफ मना कर दिया.

लेकिन पुलिस के सामने वह कहां तक झूठ बोलती. पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो उस ने सच्चाई बता दी. उस ने विनोद की हत्या का जुर्म स्वीकार कर के अपने उन साथियों के नाम भी बता दिए, जिन के साथ मिल कर उस ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया था.

अंजलि जिला बुलंदशहर के गांव वाजिदपुर के रहने वाले मुन्नाबाबू की 4 बेटों पर एकलौती बेटी थी. करीब 10 साल पहले उस का विवाह जिला हाथरस के गांव झींगुरा के रहने वाले राजकुमार के छोटे बेटे अनीस के साथ हुआ था. राजकुमार का बड़ा बेटा पवन जयपुर में अपने फूफा के पास रह कर नौकरी करता था.

ससुराल और पति से अंजलि खुश थी. शादी के कुछ दिनों बाद अंजलि गर्भवती हुई तो उस का पति अनीस गांव के ही भीष्मपाल सिंह की हत्या के आरेप में जेल चला गया. पति के जेल जाने के बाद अंजलि अकेली पड़ गई. कुछ दिनों बाद उस ने बेटे को जन्म दिया. वह सोच रही थी कि कुछ दिनों में पति जेल से छूट कर घर आ जाएगा. लेकिन धीरेधीरे 7 साल बीत गए और अनीस छूट कर घर नहीं आया.

एक जवान औरत के लिए पति के बिना रहना आसान नहीं है. जब वह अकेली हो, तब परेशानी और बढ़ जाती है. लेकिन अंजलि इस उम्मीद में दिन काट रही थी कि आज नहीं तो कल, अनीस छूट कर आ ही जाएगा.

जिंदगी इंतजार में नहीं कटती. आदमी की तमाम जरूरतें होती हैं. उन्हें पूरी करने के लिए आदमी को तरहतरह के काम करने पड़ते हैं. अंजलि अकेली नहीं थी, उस का एक बेटा भी था. दोनों की जरूरतें पूरी करने के लिए काम करना जरूरी था. अंजलि अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सहारा इंडिया में कमीशन पर पैसे जमा कराने लगी.

अंजलि की उम्र 24-25 साल थी. उस की जवानी पूरे जोश पर थी. वह सुंदर तो थी ही, घर से बाहर कदम रखा तो मर्दों की नजरें उसे घूरने लगीं. क्योंकि सभी को पता था कि उस का पति जेल में है. अंजलि दूध पीती बच्ची नहीं थी कि मर्दों की निगाहों का मतलब न समझती. मन तो उस का भी करता था कि उन से नजरें मिलाए, लेकिन लोकलाज की वजह से वह अपनी इच्छा को दबाए रही.

एक दिन सहारा इंडिया के औफिस में बैठी अंजलि कुछ ऐसी ही सोच में डूबी थी कि साथ काम करने वाले विनोद शर्मा ने पूछा, ‘‘क्या हुआ अंजलि, किस सोच में डूबी हो?’’

‘‘कुछ नहीं, अपनी जिंदगी के बारे में सोच रही थी.’’ अचकचा कर अंजलि ने जवाब दिया.

विनोद ने उस के बगल बैठ कर सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘परेशानी की बात तो है ही, फिर भी हिम्मत से काम लो. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘ठीक तो तभी होगा, जब अनीस जेल से बाहर आए. पता नहीं वह कब बाहर आएगा. कभीकभी उस की बड़ी याद आती है.’’ अंजलि ने मायूसी से कहा.

‘‘हिम्मत मत हारो अंजलि. जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा.’’ विनोद ने उसे हिम्मत बंधाई.

विनोद अंजलि से करीब 20 साल बड़ा था. इस नाते अंजलि उस की बहुत इज्जत करती थी. विनोद उसे हमेशा उचित सलाह देता था. जरूरत पड़ने पर या देर होने पर वह अपनी मोटरसाइकिल से उसे उस के घर भी पहुंचा देता था. अंजलि को विनोद पर पूरा विश्वास था, इसलिए वह उस से अपना हर सुखदुख बता देती थी.

विनोद जिला हाथरस के गांव बिजरौली के रहने वाले छेदालाल शर्मा का बेटा था. घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, इसलिए वह ज्यादा पढ़लिख नहीं सका. उम्र होने पर नजदीक के ही गांव जगीपुर के रहने वाले करन सिंह की बेटी सुनीता से उस की शादी हो गई थी.

तब विनोद बिजली फिंटिंग एवं मोटर वाइंडिंग का काम करता था. इस कमाई से वह खर्च भर के लिए कमा लेता था. इस तरह आराम से जिंदगी कट रही थी. धीरेधीरे वह 4 बेटों तथा 3 बेटियों का बाप बन गया. कुछ दिनों बाद उस ने बिजली का काम छोड़ कर सहारा इंडिया में कमीशन पर पैसे जमा करने का काम शुरू कर दिया.

एजेंट का काम करते हुए ही अंजलि से विनोद की मुलाकात हुई थी. उसे जब अंजलि के बारे में पता चला तो उसे उस से सहानुभूति हो गई. फिर वह उस की हर तरह से मदद करने लगा. यही वजह थी कि अंजलि उसे अपने कमरे पर आनेजाने देने लगी. हाथरस में उस ने अपने रहने के लिए एक कमरा ले रखा था.

घर परिवार के साथ रहने पर अकेलापन उतना परेशान नहीं करता, जितना अकेले रहने पर करता है. अंजलि हाथरस में अकेली रहने लगी तो उसे पति की कमी और ज्यादा खलने लगी. दिन तो कामधाम में बीत जाता था, लेकिन रात काटे नहीं कटती थी. मानसिक और शारीरिक बेचैनी उसे परेशान कर देती.

उन दिनों हाथरस में अंजलि का सब से करीबी विनोद ही था. वह उस के कमरे पर भी आताजाता था. अपनी बेचैनी कम करने के लिए वह विनोद से हर तरह की बातें कर लेती थी. धीरेधीरे दोनों आपस में इस तरह खुल गए कि उन्हें एकदूसरे के सामने तन खोलने में भी संकोच नहीं रहा. विनोद से संबंध बनने के बाद अंजलि की बेचैनी काफी हद तक कम हो गई.

एक बार अंजलि का संकोच खत्म हुआ तो फिर यह रोज का खेल बन गया. विनोद और उस की उम्र में 20 साल का अंतर था. अंजलि जवान थी तो विनोद अधेड़. अंजलि ने उस से मजबूरी में संबंध बनाए थे. लेकिन अब उस की मजबूरी भी खत्म हो गई थी और संकोच भी. इसलिए उस ने नया हमउम्र साथी ढूंढ़ लिया. उस का नाम था सत्येंद्र, जो थोड़ा अपराधी प्रवृत्ति का था.

सत्येंद्र हाथरस के ही गांव चंदपा के रहने वाले भूमिराज शर्मा का बेटा था. उस की गांव में ही बिल्डिंग मैटेरियल्स की दुकान थी. उसी के साथ उस ने दवाओं की भी दुकान खोल रखी थी. वह शादीशुदा था और उस के बच्चे भी थे.

सत्येंद्र विनोद से संपन्न भी था और हृष्टपुष्ट भी. उम्र में भी वह विनोद से कम था. अंजलि अकसर सत्येंद्र के घर के सामने से गुजरती थी. अंजलि कभी पैसा जमा कराने के चक्कर में उस से मिली तो बात शारीरिक संबंधों तक जा पहुंची. इस के बाद तो जब देखो, तब सत्येंद्र अंजलि के कमरे पर पड़ा रहने लगा.

सत्येंद्र से संबंध बना कर अंजलि ने विनोद से दूरी बना ली. जबकि विनोद उसे छोड़ने को तैयार नहीं था. अंजलि विनोद से जितना दूर जाने की कोशिश कर रही थी, विनोद उस के उतना ही नजदीक आने की कोशिश कर रहा था. वह फोन तथा एसएमएस कर के अंजलि से उस के पास आने को कहता, जबकि अंजलि उसे भाव नहीं दे रही थी.

अंजलि विनोद का नंबर देख कर ही फोन काट देती थी. क्योंकि अब उसे उस में जरा भी रुचि नहीं रह गई थी. सत्येंद्र ने सहारा इंडिया का उस का काम बंद करवा कर उस का पूरा खर्च उठाने लगा था. एक तरह से अब वह उस की रखैल बन कर रह रही थी.

विनोद को पता नहीं था कि अंजलि किसी और की रखैल बन गई है. यही वजह थी कि वह पहले की ही तरह उस से मिलना चाहता था. अंजलि ने मना किया तो वह उस पर दबाव बनाने लगा, जो अंजलि को पसंद नहीं आया. उस ने इस बात की शिकायत सत्येंद्र से कर दी. सत्येंद्र भला कैसे चाहता कि कोई और उस की प्रेमिका से मिले.

सत्येंद्र अंजलि के प्यार में आकंठ डूबा था. उस की प्रेमिका को कोई परेशान करे, यह वह कैसे बरदाश्त कर सकता था. यही वजह थी कि उस ने विनोद को अंजलि के रास्ते से हटाने का निश्चय कर लिया. इस के बाद उस ने बगल के गांव खेड़ा परसौली के रहने वाले संजीव पाठक के साथ मिल कर विनोद को खत्म करने की योजना बना डाली. इस योजना में उस ने अंजलि को भी शामिल किया.

संजीव आपराधिक प्रवृत्ति का युवक था. उस पर कई मामले चल रहे थे. सत्येंद्र शर्मा से उस की अच्छी मित्रता थी. पूरी योजना तैयार कर के तीनों 26 दिसंबर, 2013 को हाथरस पहुंच गए.

हाथरस से ही अंजलि ने विनोद को फोन कर के आरपीएम स्कूल के निकट मिलने के लिए बुलाया. विनोद उस समय पैसों के सिलसिले में राजकुमार के यहां जा रहा था. अंजलि का फोन आने के बाद यहां से वह सीधे हाथरस स्थित आरपीएम स्कूल जा पहुंचा.

विनोद खुश था कि महीनों बाद आज वह अपनी प्रेमिका से मिलेगा. वह वहां पहुंचा तो अंजलि सत्येंद्र शर्मा एवं संजीव पाठक के साथ इंतजार करती मिली. सहारा इंडिया में पैसा जमा कराने की चर्चा करते हुए सभी अंजलि के कमरे पर आ गए.

कमरे पर बातचीत के दौरान संजीव ने विनोद को पकड़ लिया तो सत्येंद्र ने उस के गले में अंगौछा लपेट कर कस दिया. कुछ देर छटपटा कर विनोद शांत हो गया. विनोद की लाश को ठिकाने लगाने के लिए वे रात होने का इंतजार करने लगे. इस बीच सत्येंद्र और संजीव पाठक ने अंजलि से शारीरिक संबंध भी बनाए. अंधेरा होते ही उन्होंने विनोद की लाश को मारुति वैन में डाला और मथुरा रोड पर चल पड़े.

कुछ दूर जा कर गांव नगला धर्मा के निकट वीरान जगह देख कर उन्होंने लाश को फेंक दिया और अपनेअपने घर चले गए. विनोद की मोटरसाइकिल उन्होंने मथुरा रोड पर एक गेस्टहाउस के पास खड़ी कर दी थी.

अंजलि के बयान के आधार पर पुलिस ने 1 जनवरी, 2014 को सत्येंद्र शर्मा और संजीव पाठक को हत्या में प्रयुक्त मारुति वैन नंबर डीएल6सी1687 के साथ गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उन दोनों ने भी विनोद की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने सभी अभियुक्तों को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जिला जेल अलीगढ़ भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चाहत की दर्दनाक दास्तान

9 अगस्त की सुबह फताराम सो कर उठा तो घर में पत्नी मेहर और बच्चों को न पा कर वह परेशान हो उठा. उस ने पूरे गांव में उन्हें इधरउधर खोजा. जब वे कहीं नहीं मिले तो वह किसी अनहोनी के बारे में सोच कर चिंतित हो उठा. उस ने पत्नी और बच्चों की तलाश रिश्तेदारों एवं जानपहचान वालों के यहां की. लेकिन वे वहां भी नहीं थे.

जब मेहर और बच्चों का कहीं कुछ पता नहीं चला तो अगले दिन यानी 10 अगस्त को परिजनों की सलाह पर फताराम ने थाना पल्लू में अपनी पत्नी और बच्चों की गुमशुदगी दर्ज करा दी. अब फताराम और उस के घर वालों के साथ पुलिस भी मेहर और बच्चों की तलाश करने लगी.

लेकिन कई दिनों बाद भी मेहर और बच्चों का कुछ पता  नहीं चला. जब इस बात की जानकारी गांव के ही मनीराम और रूपाराम को हुई तो उन्होंने फताराम के घर जा कर बताया कि कई दिन पहले रात को उन्होंने मेहर को गांव के बाहर वाले तालाब के पास राजमिस्त्री कृष्ण से बातें करते देखा था. तब बच्चे भी उस के साथ थे..

कृष्ण और मेहर के बीच अवैध संबंधों की जानकारी फताराम को थी. लेकिन मेहर बच्चों को ले कर उसके साथ भाग जाएगी, यह उस ने नहीं सोचा था. एक बार उसे विश्वास भी नहीं हुआ कि मेहर ऐसा करेगी. लेकिन जब उस ने इस बात पर गहराई से विचार किया तो उसे लगा कि मेहर बच्चों को ले कर उसी के साथ चली गई है.

19 अगस्त को फताराम अपने एक रिश्तेदार नंदलाल के साथ कृष्ण के गांव आशाखेड़ा पहुंचा. उन दोनों को देख कर कृष्ण के होश उड़ गए. मेहर का मोबाइल फोन कृष्ण के हाथ में देख कर फताराम ने पूछा, ‘‘मेहर कहां है?’’

‘‘मैं क्या जानूं, वह कहां है?’’

‘‘लेकिन तुम्हारे पास यह जो मोबाइल फोन है, वह मेहर का है.’’ फताराम ने कहा.

‘‘इसे तो उस ने गांव में ही मुझे बेच दिया था.’’  कृष्ण ने कहा.

जब कृष्ण ने मेहर के बारे में कुछ नहीं बताया तो फताराम वापस आ गया. अगले दिन वह नंदलाल के साथ थाना पल्लू पहुंचा और थानाप्रभारी सुनील चारण को बताया कि उस ने अपनी पत्नी मेहर का मोबाइल फोन कृष्ण के पास देखा है.

इस के बाद फताराम की तहरीर पर थानाप्रभारी सुनील चारण ने राजमिस्त्री कृष्ण कुमार के खिलाफ भादंवि की धारा 365, 366 तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद थानाप्रभारी ने इस बात की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी तो पुलिस उपाधीक्षक सत्यपाल सोलंकी के आदेश पर थानाप्रभारी सुनील चारण ने अगले दिन यानी 21 अगस्त को हरियाणा के चौटाला गांव से कृष्ण को गिरफ्तार कर लिया.

उसी दिन रावतसर के नजदीक से गुजरने वाली इंदिरा गांधी कैनाल की आरडी 84 के पास पुलिस ने एक बच्ची की लाश बरामद की. जब फताराम को बुला कर उस बच्ची की लाश दिखाई गई तो उस ने उस की शिनाख्त अपनी बेटी गरिमा के रूप में की. पोस्टमार्टम के बाद लाश पुलिस ने उसे सौंप दी.

गिरफ्तार अभियुक्त कृष्ण को पुलिस ने नोहर के एसीजेएम की अदालत में पेश किया और पूछताछ के लिए पुलिस रिमांड की मांग की. जांच अधिकारी ने जो दलीलें दी थीं, उन्हें सुन कर अदालत ने आरोपी को 9 दिनों के पुलिस रिमांड पर दे दिया.

रिमांड अवधि के दौरान कृष्ण ने मेहर की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए उस का मोबाइल फोन और वह मोटरसाइकिल भी बरामद करा दी, जिस से वह मेहर को ले कर भागा था. इस के बाद उस ने मेहर और उस के बच्चों की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह पूरी कहानी कुछ इस प्रकार थी.

राजस्थान के जिला चुरू की तहसील सरदार शहर का एक गांव है पुनसीसर. इसी गांव की रहने वाली थी मेहर उर्फ मोहरां. मेहर शादी लायक हुई तो उस के पिता ने सन 2008 में उस की शादी जिला हनुमानगढ़ की तहसील नोहर के थिराना गांव के रहने वाले हेतराम के बेटे फताराम के साथ कर दी.

सुंदर सलोनी मेहर को पत्नी के रूप में पा कर फताराम निहाल हो गया था. जबकि मेहर की उम्मीदों पर पानी फिर गया. क्योंकि मेहर का सपनों का राजकुमार तो छैलछबीला था. उस की जगह उसे एक मेहनती, कर्मठ और सच्चा प्रेम करने वाला आम शक्लसूरत का साधारण पति मिला था.

मेहर ने हालात से समझौता किया और समझदार घर वाली के रूप में अपनी गृहस्थी संभाल ली. समय अपनी गति से  गुजरता रहा. फताराम के पिता के पास खेती लायक थोड़ी जमीन थी. सिचाई के अभाव से उस में कोई खास पैदावार नहीं होती थी. इसलिए हेतराम के तीनों बेटे मेहनतमजदूरी करते थे.

फताराम शादियों में खाना बना कर थोड़ीबहुत कमाई कर लेता था. खाली समय में वह भी पिता और भाइयों की तरह मजदूरी करता था.

सन 2011 में मेहर ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने गरिमा रखा. इस के बाद हेतराम ने बड़े बेटे की तरह फताराम को भी अलग कर दिया. फताराम अपने पुश्तैनी मकान से अलग कमरा बना कर मेहर और बेटी के साथ रहने लगा.

परिवार से अलग होने और बिटिया के पैदा होने से फताराम काफी मेहनत कर के भी घर के खर्चे पूरे नहीं कर पा रहा था. गुजरबसर के लिए फताराम को हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ रही थी. इस के बावजूद उस की स्थिति में जरा भी सुधार नहीं हो रहा था.

पति को परेशान देख कर एक दिन मेहर ने कहा, ‘‘अगर तुम कहो तो मैं भी तुम्हारे साथ मजदूरी करने चलूं. दोनों जन मजदूरी करेंगे तो कमाई दोगुनी हो जाएगी. उस के बाद तुम्हें इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी.’’

‘‘ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि मेरे घर की कोई भी औरत आज तक मजदूरी करने नहीं गई तो भला मैं तुम से कैसे मजदूरी करवा सकता हूं. अगर तुम्हें अपने साथ काम पर ले गया तो गांव वाले मेरी हंसी उड़ाएंगे कि औरत की कमाई खाता है.’’

‘‘अपने गांव में मैं मजदूरी नहीं कर सकती तो हम कहीं दूर अंजान जगह पर चलते हैं, जहां दोनों मजदूरी कर सकें. मैं ने मायके में खूब मजदूरी की है. तुम मर्दों से मैं दोगुना काम कर सकती हूं.’’ मेहर ने कहा.

पत्नी की इस बात पर फताराम को हंसी आ गई. लेकिन उसे मेहर की यह सलाह जंच गई.

अगले ही दिन फताराम मेहर और बेटी को ले कर हरियाणा के रहने वाले अपने एक दूर के रिश्तेदार के यहां पन्नीवाली चला गया. वहां गांव में ही किसी का मकान बन रहा था, उसी में फताराम और मेहर मजदूरी करने लगे.

उसी मकान पर कृष्ण कुमार राजमिस्त्री के रूप में काम करता था. वह हरियाणा के जिला सिरसा के गांव आशाखेड़ा के रहने वाले रामप्रताप का बेटा था. वह भी काम की तलाश में वहां गया था. मेहर के काम करने के ढंग और फुर्तीलेपन से वह काफी प्रभावित हुआ. उस ने मेहर के काम की प्रशंसा की तो वह खुशी से गदगद हो उठी. वह घूंघट हटा कर मंदमंद मुसकराई तो कृष्ण का हौंसला बढ़ गया.

धीरेधीरे कृष्ण मेहर पर डोरे डालने लगा. उसे अपने प्रेमजाल में फंसाने के लिए वह उस की कदकाठी और सुंदरता की प्रशंसा के पुल बांधने लगा. बातचीत का सिलसिला चल पड़ा था, इसलिए वह मेहर को भाभी कहने लगा था. अपने लिए कृष्ण के मन में रुचि देख कर मेहर भी उस की तरफ खिंची चली गई.

औरतों को प्रेमजाल में फंसाने में माहिर कृष्ण ने मेहर पर पैसे भी खर्च करने शुरू कर दिए. परिणामस्वरूप जल्दी ही देवरभाभी के मुंहबोले पवित्र रिश्ते को दोनों ने तारतार कर दिया. इस तरह मन से कृष्ण की हुई मेहर, तन से भी उस की हो गई.

कृष्ण कुंवारा था, इसलिए मेहर को वह सपनों का राजकुमार लगने लगा. दोनों इस तरह चोरी से मिलते थे कि फताराम को उन के इस संबंध की भनक तक नहीं लग पाई. कुछ दिनों बाद फताराम को गांव में पानी बरसने की जानकारी मिली तो उस ने अपने खेतों की जुताईबुवाई के लिए गांव जाने की तैयारी कर ली.

जब उस ने यह बात मेहर को बताई तो कृष्ण से दूर होने की बात सोच कर वह उदास हो गई. उस ने यह बात कृष्ण से कही तो उस ने कहा, ‘‘इस में परेशान होने की क्या बात है. मैं तुम्हें एक मोबाइल फोन ला कर दिए देता हूं, उस से हमारी बातें तो होती ही रहेंगी, मिलने में भी वह हमारी मदद करेगा.’’

मेहर कृष्ण का इशारा समझ गई. उस ने कहा, ‘‘कृष्ण वह मोबाइल फोन तुम मुझे उन के सामने गिफ्ट के रूप में देना, ताकि उन्हें किसी प्रकार शक न हो, क्योंकि वह बहुत शक्की स्वभाव के हैं.’’

वादे के अनुसार कृष्ण ने एक नया मोबाइल फोन ला कर फताराम के सामने मेहर को गिफ्ट कर दिया. अगले दिन फताराम मेहर को ले कर अपने गांव थिराना आ गया.

मेहर के जाने के बाद उस के प्रेम में पागल कृष्ण को उस के बिना एक भी पल काटना मुश्किल लगता था. मेहर की हालत तो उस से भी बदतर थी. हालांकि दोनों की फोन पर बातें होती रहती थीं, लेकिन बातों से मन नहीं भरता था. वे तो एकदूसरे को बांहों में भर कर प्यार करना चाहते थे. लेकिन यह संभव नहीं हो पा रहा था.

इस बीच मेहर ने एक बेटे को भी जन्म दिया था. अब वह 2 बच्चों की मां बन गई थी. बेचैनी ज्यादा बढ़ी तो एक दिन मेहर ने फोन पर कह दिया, ‘‘कृष्ण, मैं औरत हूं, लेकिन तू तो मर्द है. अगर तू चाहे तो मिलने का कोई न कोई रास्ता निकाल सकता है.’’

कृष्ण ने जवाब में कहा, ‘‘मेहर, मैं ने रास्ता निकाल लिया है. मैं कल ही तुम्हारे गांव आ रहा हूं. वहां भी कोई न कोई काम मिल ही जाएगा.’’

कृष्ण ने कहा ही नहीं, बल्कि अगले दिन थिराना पहुंच भी गया. बगल के गांव में किसी का मकान बन रहा था, वहां उसे राजमिस्त्री का काम भी मिल गया. गांवों में वैसे भी किसी का घर ढूंढ़ने में दिक्कत नहीं होती, कृष्ण को भी फताराम का घर आसानी से मिल गया. मियांबीवी ने कृष्ण की दिल खोल कर आवभगत की.

गांव आने के बाद फताराम शादीब्याह में खाना बनाने का काम करने लगा था. यहां मेहर मजदूरी करने नहीं जाती थी. कुछ देर रुक कर कृष्ण लौट गया.

रात का खाना खा कर कृष्ण सोने की कोशिश कर रहा था. लेकिन आंखों के सामने तो मेहर का गदराया बदन घूम रहा था, इसलिए उसे नींद नहीं आ रही थी. अचानक उस के मोबाइल की घंटी बजी. फोन उठा कर देखा तो मेहर का फोन था.

कृष्ण ने जैसे ही फोन रिसीव किया, मेहर ने कहा, ‘‘अभी जाग रहे हो? लगता है नींद नहीं आ रही है?’’

‘‘तुम्हें देखने के बाद भला नींद आ सकती है. नींद और दिल तो तुम ने चुरा लिया है.’’ कृष्ण ने आह भरते हुए कहा.

‘‘सुनो, कल यह एक विवाह में खाना बनाने जाएंगे. वहां इन्हें 3 दिनों तक रुकना है. इन के जाते ही मैं तुम्हें फोन कर दूंगी. 3 दिन दोनों मौज करेंगे.’’ कह कर मेहर ने फोन काट दिया.

प्रेमिका का संदेश मिलते ही कृष्ण छिपतेछिपाते मेहर के घर पहुंच गया. कई महीने से मिलन के लिए तरस रहे मेहर और कृष्ण ने पूरी रात जश्न मनाया. इस तरह एक बार फिर दोनों के मिलने का सिलसिला शुरू हो गया. जब भी मौका मिलता, मेहर कृष्ण को फोन कर के बुला लेती और दोनों मौजमस्ती करते.

कहावत है कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते, कृष्ण और मेहर का भी यह मिलन उजागर हो गया. दोनों के लाख सावधानी बरतने के बावजूद एक रात मेहर के देवर ने दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया. उस ने कृष्ण को धमकाया, ‘‘फिर कभी इधर दिखाई दिया तो हाथपैर तोड़ कर रख दूंगा.’’

भाभी को कुछ कहने के बजाय उस ने यह बात फताराम को बता दी. पत्नी की चरित्रहीनता से नाराज हो कर फताराम ने मेहर की जम कर पिटाई की. इस के बाद उस ने पत्नी पर नजर रखने के साथसाथ बंदिशें भी लगा दीं. बंदिशों से मेहर को घुटन सी होने लगी. मेहर से न मिल पाने की वजह से कृष्ण भी बेचैन था.

जब नहीं रहा गया तो मोबाइल पर बात कर के मेहर ने कृष्ण के साथ भाग जाने की योजना बना डाली. इस के बाद अगली रात यानी 8 अगस्त की रात मेहर बच्चों को ले कर अकेली ही गांव के बाहर तालाब पर पहुंच गई. मोटरसाइकिल लिए कृष्ण वहां पहले से ही खड़ा था.

कृष्ण मेहर और बच्चों को ले कर हरियाणा की ओर जाने वाली सड़क पर चल पड़ा. कुछ घंटों की यात्रा के बाद वह सभी को ले कर हरियाणा के गोरीवाला गांव पहुंचा. गांव में सत्संग चल रहा था. कृष्ण मेहर और बच्चों को ले कर सत्संग में बैठ गया. सवेरा होने पर कृष्ण सभी को ले कर राजस्थान के संगरिया कस्बे में पहुंचा. वहां उस ने मेहर तथा बच्चों को रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया और खुद नजदीक ही एक जगह पर मजदूरी करने चला गया.

दिन भर कृष्ण मजदूरी करता था तो मेहर रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय में बच्चों को लिए बैठी रहती थी. रात में कृष्ण भी वहीं आ कर सो जाता था. खानेपीने की व्यवस्था वह बाहर से करता. वे वहां रह तो रहे थे, लेकिन दोनों को इस बात का डर सता रहा था कि फताराम ने रिपोर्ट लिखा दी होगी और पुलिस उन के पीछे पड़ी होगी. अगर वे पकड़े गए तो फजीहत तो होगी ही, जेल भी जाना पड़ेगा.

पुलिस के डर से दोनों का खानापीना और नींद हराम हो गई थी. पकड़े जाने के ही डर से कृष्ण मेहर को ले कर घर नहीं जा रहा था. इसी तरह 5 दिन बीत गए. जब कोई राह नहीं सूझी तो उन्होंने आत्महत्या करने का मन बना लिया. इस के बाद कृष्ण मेहर और उस के बच्चों को ले कर कालुआना गांव के नजदीक से बहने वाली इंदिरा गांधी नहर पर पहुंचा.

सूरज के डूब जाने से अंधेरा फैलने लगा था. नहर की पटरी पर बैठे कृष्ण ने एक बार फिर मेहर को समझाते हुए कहा, ‘‘मेहर, मैं जो कह रहा हूं, उसे मान लेने में ही हम दोनों की भलाई है. मैं तुझे रात में तेरे गांव पहुंचा देता हूं. मेरे पास ढेर सारे पैसे हो जाएंगे तो मैं तुझे कहीं दूर ले चलूंगा.’’

‘‘कृष्ण, गांव जाने के अलावा तू कुछ भी कहेगा, मैं करने को तैयार हूं. जिस दिन मैं ने तेरे साथ घर छोड़ा है, उसी दिन मैं गांव और घर वालों के लिए मर चुकी हूं. पति के पास या मायके जाने के बजाय मैं इस नहर में डूब मर जाना बेहतर समझती हूं.’’ मेहर ने कहा.

‘‘मर जाना किसी समस्या का हल नहीं है मेहर. हमें जीना चाहिए. जिएंगे तभी तो एकदूसरे को प्यार कर पाएंगे.’’ कृष्ण ने कहा.

‘‘तुम्हें प्यार करने की पड़ी है. फताराम पुलिस वालों को साथ लिए हमें ढूंढ रहा होगा. जिस दिन दोनों पकड़े गए, प्यार करना भूल जाएंगे.’’ मेहर ने कहा.

पुलिस के डर से ही तो कृष्ण भागाभागा फिर रहा था. उसे लगा, मेहर सच कह रही है. लेकिन वह मरना नहीं चाहता था, इसीलिए मेहर को बहकाते हुए इसी तरह लगभग घंटे भर चर्चा करता रहा. लेकिन अंत में मेहर ने कहा, ‘‘मेरी इच्छा यही है कि जिस तरह इस जन्म में मैं तेरी हो गई, उसी तरह अगले जन्म में भी तेरी ही रहूं. इसलिए हम दोनों को एक साथ नहर में कूद कर जान दे देनी चाहिए. कहते हैं, इस तरह एक साथ मरने से अगले जन्म में साथ मिल जाते हैं.’’

‘‘इन बच्चों का क्या होगा?’’ कृष्ण ने पूछा.

‘‘इन्हें हम किसी के भरोसे क्यों छोड़ेंगे. इन दोनों  को भी साथ ले कर कूदेंगे.’’ मेहर ने कहा.

कुछ देर दोनों मौन बैठे रहे. कृष्ण खड़ा हुआ तो मेहर भी उठ कर खड़ी हो गई. उस ने बेटी का हाथ पकड़ा और बेटे को गोद में उठा लिया. दोनों की सांसें घबराहट की वजह से धौंकनी की तरह चल रही थीं. योजना के अनुसार कृष्ण ने गिनती शुरू की. जैसे ही उस ने 3 कहा, मेहर दोनों बच्चों के साथ नहर में कूद गई. लेकिन कृष्ण जस का तस खड़ा रह गया.

नहर के तेज बहाव में मेहर बच्चों के साथ बह गई. कृष्ण बुत बना थोड़ी देर तक नहर के बहते पानी को देखता रहा. उस के मन में क्या चल रहा था, वह तो वही जाने, लेकिन उस ने मेहर के साथ जीने और साथ मरने की जो कसमें खाई थीं, उन्हें पूरा नहीं कर सका. कुछ देर बाद उस ने मोटरसाइकिल उठाई और अपने घर की ओर चल पड़ा.

रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने कृष्ण को फिर से अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पता चला है कि कृष्ण की कहीं और शादी तय हो गई थी, इसीलिए वह मेहर से छुटकारा पाना चाहता था. शायद इसीलिए धोखे से उस ने उसे नहर में गिरा दिया था, साथ ही बच्चों को भी नहर में फेंक दिया था.

पुलिस मेहर और उस के बेटे के शव को बरामद करने के लिए नहर पर नजर रख रही थी. सभी थानों को भी सूचना दे दी गई थी. मेहर की नादानी की वजह से एक भरापूरा परिवार खत्म हो गया.