शादी की जिद में पति मिला न प्रेमी – भाग 1

5 अप्रैल, 2023 को दोपहर करीब 12 बजे की बात है. पूर्णिमा बिसेन अपनी मां से बोली, “मम्मी मैं सिलाईकढ़ाई सीखने जा रही हूं.”

“बेटा, तेरी लग्न हो गई है. ये सिलाईकढ़ाई सीखना बंद कर दे,” पूर्णिमा की मां ने उसे रोकते हुए कहा.

“नहीं मम्मी, अभी शादी तो 22 तारीख को है, जब तक कुछ और सीख लेने दो. फिर तो घरगृहस्थी से फुरसत कहां मिलेगी,” पूर्णिमा ने जिद करते हुए कहा.

“ठीक है बेटा, जैसी तेरी मरजी, मगर शाम ढलने से पहले घर आ जाना.” मां ने समझाते हुए कहा.

प्रेमी से मिलने पहुंच गई पूर्णिमा बिसेन

“मां आज साइकिल में हवा कम है, इसलिए पैदल ही जा रही हूं.” पूर्णिमा ने दुपट्ïटा सिर पर बांधते हुए कहा.

“बापू के आने के पहले ही घर वापस आ जाना, वरना मुझे उलाहना देंगे.” मां ने सीख देते हुए कहा.

मां की हरी झंडी मिलते ही पूर्णिमा अपने घर से पास ही के गांव डूंडा सिवनी चली गई, किंतु शाम तक घर नहीं लौटी. पूर्णिमा के समय पर घर वापस न आने से मां के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. पूर्णिमा के पिता धनराज और भाई बाइक ले कर अपने रिश्तेदारों को पूर्णिमा की शादी का आमंत्रण दे रहे थे. शाम को जब वे घर लौटे तो पूर्णिमा की मां बोली, “पूर्णिमा अभी तक सिलाई सीख कर घर वापस नहीं आई है.”

“आखिर अब सिलाई सीखने की क्या जरूरत है, विवाह तो होने वाला है.” दिन भर निमंत्रण कार्ड बांट कर थकेहारे लौटे धनराज बोले. धनराज मुंहहाथ धो कर खाना खाने की तैयारी में थे. पूर्णिमा के घर न लौटने की बात सुन कर वे अपने बेटे से बोले, “बेटा, जरा पूर्णिमा को फोन लगा कर पूछ, घर आने में देर क्यों हो गई?”

धनराज के बेटे ने पूर्णिमा को फोन लगाया तो उस का मोबाइल स्विच्ड औफ बता रहा था. जब उस ने पिता को यह जानकारी दी तो उन की चिंता बढ़ गई. अनमने ढंग से जल्द ही भोजन खत्म कर के उठे धनराज ने आसपास के गांव में रिश्तेदारी के अलावा पूर्णिमा के जानपहचान वालों के घर फोन लगा कर पूछताछ की, परंतु पूर्णिमा का कोई पता नहीं चला.

मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के हट्ïटा थाना इलाके में एक छोटा सा गांव लिम्देवाड़ा है, जिस की आबादी बमुश्किल एक हजार होगी. खेतीकिसानी वाले इस गांव में 55 साल के धनराज बिसेन खेतीबाड़ी करते हैं. धनराज का एक बेटा और पूर्णिमा नाम की एक बेटी है.

धनराज बिसेन खुद तो ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं हैं, परंतु अपनी बेटी को पढ़ा कर उसे काबिल बनाना चाहते थे. यही वजह थी कि गांव की 23 साल की लडक़ी पूर्णिमा एमएससी फाइनल की पढ़ाई बालाघाट कालेज से कर रही थी. हाल ही में उस ने परीक्षा दी थी. परीक्षा खत्म होते ही वह पास के गांव डूंडा सिवनी में सिलाईकढ़ाई सीख रही थी. पूर्णिमा की पढ़ाई के अलावा सिलाईकढ़ाई में भी रुचि को देखते हुए घर वालों ने उसे सिलाईकढ़ाई सीखने के लिए हंसीखुशी इजाजत दी थी.

शादी से पहले पूर्णिमा हो गई गायब

इस साल कालेज की पढ़ाई खत्म होने वाली थी, यही सोच कर धनराज बिसेन ने अपनी बेटी पूर्णिमा का विवाह ग्राम सारद में तय कर दिया था और 22 अप्रैल अक्षय तृतीया के दिन पूर्णिमा की शादी होने वाली थी. शादी को ले कर पूरे घरपरिवार में उत्साह और उमंग का माहौल था, मगर पूर्णिमा के घर से गायब होते ही शादी का जश्न मातम में बदल गया था.

धनराज के परिवार को बदनामी भी झेलनी पड़ रही थी. लोग दबी जुबान से यह भी कह रहे थे कि प्यारमोहब्बत के चक्कर में किसी के साथ भाग गई होगी. मामला जवान बेटी के शादी के ऐन वक्त घर से गायब होने का था, लिहाजा गांव के बड़ेबुजुर्गों की सलाह पर धनराज ने दूसरे दिन 6 अप्रैल को हट्ïटा थाने में जा कर पूर्णिमा की गुमशुदगी दर्ज करा दी. टीआई अमित कुमार कुशवाहा ने पूर्णिमा की फोटो और जानकारी ले कर धनराज को भरोसा दिया कि जल्द ही पूर्णिमा को खोज निकालेंगे.

पूर्णिमा के गुम होने की खबर उस के होने वाले पति के घर वालों तक पहुंच चुकी थी. वहां भी शादी की तैयारियां चल रही थीं. पूर्णिमा का मंगेतर रातदिन उस के ख्वाबों में डूबा उस दिन का इंतजार कर रहा था कि कब उस की डोली घर आए और वह पूर्णिमा के साथ सुहागरात मनाए. मगर पूर्णिमा के गायब होने की खबर से मंगेतर ने यह सोच कर राहत की सांस ली कि अच्छा हुआ कि वह शादी के पहले भाग गई, बाद में कुछ ऊंचनीच होती तो गांव में उस की बदनामी ही होती.

पूर्णिमा कर रही थी एमएससी की पढ़ाई

पूर्णिमा कालेज से अपनी एमएससी की पढ़ाई कर ही रही थी, वह साइकिल से गांव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने भी जाती थी. अपने गांव से 3-4 किलोमीटर दूर डूंडा सिवनी सिलाई क्लास भी साइकिल से ही जाती थी, लेकिन 5 अप्रैल को वह साइकिल के बजाय पैदल ही घर से चेहरे पर दुपट्ïटा बांध कर निकली थी, जिसे गांव के कुछ नवयुवकों ने गांव से जाते हुए देखा था.

पुलिस पूछताछ में एक नवयुवक ने बताया कि उस दिन भी दोपहर के समय एक युवक बाइक से उस के पास पहुंचा, जिस के साथ बैठ कर वह चली गई. जैसेजैसे दिन गुजर रहे थे, पूर्णिमा के घर वालों की चिंता बढ़ती जा रही थी. पुलिस भी पूर्णिमा की खोज में जुटी हुई थी. पुलिस को शक था कि कहीं प्रेम प्रसंग के चक्कर में पूर्णिमा घर से भागी होगी.

जांच के दौरान पुलिस का यह संदेह सच साबित भी हुआ. जांच में पता चला कि पूर्णिमा का प्रेम संबंध पिछले कुछ सालों से उस की भाभी के भाई गिरिजा शंकर पटले के साथ चल रहा था. गिरिजा शंकर भरवेली थाना क्षेत्र के मोहगांव खारा का रहने वाला था. घर के आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ में पुलिस को यह भी पता चला कि घटना वाले दिन पूर्णिमा गिरिजा शंकर के साथ अंतिम बार देखी गई थी.

पुलिस टीम ने साइबर सेल की मदद से गिरिजा शंकर और पूर्णिमा के मोबाइल नंबर ले कर काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स में 5 अप्रैल को पूर्णिमा और गिरिजा शंकर के बीच बातचीत के अलावा उन की मोबाइल लोकेशन भरवेली थाना क्षेत्र में आने वाले गांगुलपरा और बंजारी के बीच पहाड़ी जंगल में मिल रही थी.

तब पुलिस ने शक के आधार पर गिरिजा शंकर को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो पहले तो वह पुलिस को गुमराह करता रहा. पहले तो गिरिजा शंकर ने बताया कि वे बालाघाट घूमने गए थे और घूमने के बाद पूर्णिमा को गांव के बाहर छोड़ दिया था, परंतु पुलिस जांच में दोनों के मोबाइल फोन की लोकेशन बंजारी के जंगल की मिल रही थी.

                                                                                                                                                क्रमशः

एकतरफा मोहब्बत की दीवानगी

राजस्थान की राजधानी जयपुर के रहनसहन में चकाचौंध और आधुनिकता घुली आबोहवा से अलग करीब 65 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक पहचान रखने वाला शहर शाहपुर है. वहीं मनोहरपुर इलाके के एकलव्य एकेडमी क्लासेज फौर लाइब्रेरी सेंटर में ग्रामीण परिवेश की शोभा चौधरी (23) पढ़ाई कर रही थी. वह चिमनपुरा के बाबा भगवानदास पीजी कालेज में जियोग्राफी की स्टूडेंट भी थी.  वह एमए फाइनल की पढ़ाई के साथसाथ सीईटी की तैयारी भी कर रही थी. इस कारण ही उस ने कोचिंग सेंटर में अक्तूबर 2022 में दखिला लिया था.

दोस्ती की पड़ी बुनियाद

नए साल का पहला दिन था. कोचिंग क्लास खत्म होने पर शोभा जल्दीजल्दी अपनी किताबेंकौपियां बैग में समेट रही थी. इसी जल्दबाजी में उस की एक नोटबुक बेंच के नीचे जा गिरी थी. उस में रखे कुछ खुले पन्ने वहीं आसपास बिखर गए थे. उन्हें समेटने के लिए शोभा नीचे झुकने वाली ही थी कि तभी एक युवक बिखरे पन्ने समेटने लगा. कुछ सेकेंड बाद वह नोटबुक और पन्ने शोभा को देता हुआ बोला, ‘‘हाय! आई एम सुनील बागड़ी. तुम भी बागड़ी मैं भी बागड़ी. अच्छा है न.’’

शोभा मुसकराई, कुछ पल रुक कर बोली, ‘‘तुम्हें कैसे पता मैं…’’

वह तुरंत बीच में ही वह बोल पड़ा, ‘‘अब यह मत पूछो कैसे पता…क्यों पता? तुम्हारे बारे में मुझे बहुत कुछ पता है. तुम्हारा नाम शोभा बागड़ी है, तुम्हारा गठवाड़ में ननिहाल है. कहो तो कुछ और बताऊं?’’

शोभा एक बार फिर मुसकराई और युवक से नोटबुक ले कर बैग में रख ली. बैग पीठ पर टांगती हुई बोली, ‘‘थैंक्स.’’

“सिर्फ थैंक्स? मैं तुम से जानपहचान बनाना चाहता हूं. मेरा घर भी गठवाड़ में है.’’ युवक बोला.

उस की बात सुन कर शोभा ठिठक गई. बोली, ‘‘तो तुम मेरे रिश्तेदार हो?’’

“रिश्तेदार? अभी तक तो नहीं. लेकिन बनना चाहता हूं.’’ युवक बोला.

इस पर शोभा चौंक पड़ी, ‘‘रिश्तेदार बनना चाहते हो, क्या मतलब है इस का? मैं कुछ समझी नहीं?’’ शोभा अब थोड़े ठहराव के साथ बोली.

“इस बारे में कहीं बैठ कर बात करते हैं न,’’ लडक़ा बोला.

“नहीं, मुझे जल्दी है…’’ कहती हुई शोभा तेज कदमों से कोचिंग से बाहर निकल गई.

पीछेपीछे युवक भी चलता हुआ बोला, ‘‘अभी कम से कम दोस्ती का हाथ तो मिला लो.’’

“ठीक है,’’ शोभा बोली और युवक के बढ़े हाथ से अपना हाथ मिला लिया.

इस तरह शोभा और सुनील बागड़ी के बीच पहली जानपहचान और दोस्ती की बुनियाद पड़ गई. कोचिंग में दोनों के अलगअलग क्लासेज थे. शोभा अपनी पढ़ाई पूरी करने में लगी हुई थी, वह नोट्स, किताबें और आगामी परीक्षाओं की दुनिया में खोई रहती थी. जबकि सुनील के दिलोदिमाग में कुछ और ही चलता रहता था. वह खोयाखोया रहता था. शोभा से मिलने के लिए अकसर वही पहल करता था.

असल में सुनील बागड़ी, जिस का असली नाम सुरेंद्र मीणा है, ने शोभा को एक विवाह समारोह में 6 साल पहले 2017 में देखा था. तब वह अपनी ननिहाल गठवाड़ी में मामा राजेंद्र चौधरी के यहां शादी में गई हुई थी. सुरेंद्र मीणा उर्फ सुनील बागड़ी शोभा के मामा के घर के पास में ही रहता था. वह शोभा को दूर से देखते ही उस पर मर मिटा था.

एकतरफा प्रेम करता था सुरेंद्र मीणा

यह कहें कि सुरेंद्र मीणा ने जब से उसे देखा था, तभी से वह उस पर फिदा हो गया था. उस की अदाओं पर मर मिटा था. उस से एकतरफा प्रेम करने लगा था. जबकि शोभा से आमनासामना नहीं हुआ था, बातचीत तो दूर की बात थी. उस के दिमाग में शोभा की सुंदरता बैठ गई थी और उस का ध्यान आते ही उस के दिल की धडक़नें बढ़ जाती थीं. शादी के बाद वह अपने घर अरनिया गांव लौट गई थी, जबकि धीरेधीरे कर सुरेंद्र ने उस के बारे में बहुत सारी जानकारी मालूम कर ली थी. जैसे वह कौन है, कहां की रहने वाली है, क्या करती है, आदिआदि.

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इसी सिलसिले में उसे मालूम हुआ कि वह कालूराम बागड़ी की बेटी शोभा बागड़ी है, जो शाहपुर में रह कर पढ़ाई कर रही है. एकतरफा प्यार में दीवाना बना सुरेंद्र उसे सालों से तलाश रहा था. प्यार को पाने के लिए उस ने भी उसी कोचिंग सेंटर में दखिला ले लिया था. शोभा का सजातीय बनने के लिए सनकी प्रेमी ने अपने नाम के साथ उस की जाति का टाइटल बागड़ी भी लगा लिया था.

मौका देख कर सुनील शोभा से दोस्ती कर उस के दिल में अपनी जगह बनाने की कोशिश में लग गया था. उसे प्यार की मंजिल तक पहुंचने का भरोसा था. इसी विचार के साथ शोभा से नजदीकियां बढ़ाने लगा, जबकि शोभा अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहती थी. उसे 2 तरह की पढ़ाई करनी पड़ रही थी. कालेज की पढ़ाई के अलावा कोचिंग में पढऩे जाना होता था, जिस से वह हमेशा जल्दबाजी में रहती थी. सुरेंद्र के साथ बहुत ज्यादा समय नहीं गुजार पाती थी.

शोभा आज के जमाने की लडक़ी थी, लेकिन उस के लिए करिअर सब से महत्तवपूर्ण था. वह सुरेंद्र की दोस्त बन गई थी, लेकिन उस की दोस्ती हालसमाचार के आदानप्रदान तक ही सीमित थी. जबकि सुरेंद्र उसे अपना जीवनसाथी बनाने के सपने देखने लगा था. कोचिंग सेंटर में शोभा से अधिक बात नहीं होने पर वह उसे फोन पर बातें करने की कोशिश करता था. लंबी प्यार की बातें करने की शुरुआत करने से पहले ही शोभा कोई न कोई बहाने से फोन कट कर देती थी. जिस से सुनील उस का हालचाल तक ही ले पाता था. किसी तरह वह शोभा को इतना बता पाया कि 6 साल पहले उस ने जब से उसे देखा है, वह उसे रातों को सपने में आती है.

शोभा ने समझाया सुरेंद्र मीणा को

यह सुन कर शोभा ने हंसते हुए अपनी सुंदरता की तारीफ पर सुनील को धन्यवाद दिया, साथ ही यह भी कह दिया कि उस की सुंदरता की सभी तारीफ करते हैं, इस का मतलब यह नहीं कि वह अपने रूपरंग की बातों पर ध्यान देती रहे. उसे फिजूल की बातों से मतलब नहीं है. पहले वह अच्छा करिअर बनाना चाहती है. शोभा की बातें सुन कर सुनील मन मसोस कर रह जाता. उस की स्थिति एक पागल प्रेमी की तरह हो जाती और वह गहरे अवसाद में घिर जाता. वह बारबार शोभा को समझाने की कोशिश करता कि उस ने सिर्फ दोस्ती नहीं की है, बल्कि उस से मोहब्बत की है. बातोंबातों में उस ने कह भी दिया था कि वह उस से प्यार करता है.

एक बार सुनील ने शोभा की एक सहेली के जरिए अपने दिल की बात पहुंचाने की कोशिश की. उस के जरिए कहलवाया कि यदि वह उस के प्यार को नहीं स्वीकारेगी तब वह अपना जीवन खत्म कर लेगा. इस बात का असर शोभा पर हुआ. उस ने तुरंत सुनील को अकेले में बात करने के लिए बुलाया. सुनील खुश हो कर उस से मिलने चला गया.

शोभा ने उस से कहा, ‘‘सुनील, प्यार करना अच्छी बात है, लेकिन यह दोनों तरफ से होना चाहिए. तुम्हें मैं अच्छी लगती हूं, इस का मतलब यह नहीं है कि मेरे दिल में तुम्हारे लिए जगह है. मैं लडक़ी हूं, मेरा भी अपना बहुत कुछ है, मुझे भी अपने दिल की सुननी पड़ती है. समाज और परिवार की मानमर्यादा का खयाल रखना होता है.’’

“तुम ने यही समझाने के लिए मुझे यहां बुलाया है?’’ सुनील बीच में ही बोल पड़ा.

“नहीं समझाने के लिए नहीं, बल्कि बताने के लिए कि मैं शादीशुदा हूं.’’ शोभा सहजता के साथ बोल पड़ी.

“…लेकिन तुम्हारी तो मांग सूनी है, गले में मंगलसूत्र भी नहीं है, शादी की कोई निशानी?’’ सुनील आश्चर्य से बोला.

“तुम सही कह रहे हो, मेरी अभी मंडप पर शादी नहीं हुई है, लेकिन मेरी शादी 12 साल पहले एक शादी समारोह में ही तय हो चुकी है. मैं अपने मातापिता के फैसले को नहीं टाल सकती हूं.’’ शोभा ने अपने बारे में और स्पष्ट किया.

“बेकार की बातें हैं, मैं नहीं मानता इसे. आज के जमाने के अनुसार तो यह बाल विवाह जैसी बात हो गई.’’ सुनील बहस करने लगा.

“तुम जो कुछ समझो या कहो, मेरे लिए यह एक सच्चाई है. मैं ने 12 साल पहले जिसे अपना जीवनसाथी मान लिया है, उसे कैसे ठुकरा दूं?’’ शोभा बोली.

“मैं भी तो 6 साल से तुम से प्यार करता हूं!’’ सुनील बिफरता हुआ बोला.

“यह सिर्फ तुम समझते हो, इस बारे में केवल तुम्हें ही मालूम है. मैं तुम्हें एक दोस्त के अलावा और कुछ नहीं समझती हूं. हम दोनों एक ही जाति के हैं, इसलिए भी थोड़ा लगाव है.’’

शोभा की बात सुन कर सुनील का कोई जवाब नहीं निकला, लेकिन अंदर ही अंदर वह उस से नाराज था. उस वक्त उस की आंखें नम हो गई थीं. उस ने कातर आवाज में सिर्फ इतना कहा, ‘‘शोभा, एक बार ठंडे दिल और दिमाग से मेरे प्यार के बारे में विचार करो.’’

बचपन में हो गई थी शोभा की शादी

शोभा इस का कोई भी जवाब दिए बगैर वहां से चली गई. सुनील के दिमाग में खलल पैदा हो गई. उस ने किसी प्रिय चीज के खो जाने का अपने भीतर गुस्सा भी महसूस किया. उस की आखिरी कही बात ‘सिर्फ दोस्त हूं’ दिमाग पर हथौड़े की तरह पडऩे लगी. फिर भी सुनील ने उम्मीद नहीं छोड़ी. शोभा से बातचीत का सिलसिला पहले की तरह जारी रखा. आखिरी बार शोभा ने दोटूक जवाब दे दिया,‘‘सुनील, तुम मुझे भूल जाओ, मैं अपनी इज्जत नीलाम नहीं करूंगी.’’

यह बात सुनील के दिल में चुभ गई. उस के बाद तो सुनील की स्थिति पागल प्रेमी जैसी हो गई. वह किसी भी कीमत पर शोभा को हासिल करना चाहता था.

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दरअसल, शोभा के पिता ने उस की शादी साल 2011 में जयपुर में चंदवाजी के अरनिया गांव निवासी राजू लील के साथ तभी तय कर दी थी, जब उस की 2 बड़ी बहनों की शादी हो रही थी. राजू प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहा था. उस के चचेरे भाइयों के साथ शोभा की दोनों बहनों की शादी हुई थी. इस कारण शोभा के मम्मीपापा उसी परिवार में शोभा को ब्याहना चाहते थे.

यह जान कर भी सुनील बागड़ी उर्फ सुरेंद्र मीणा शोभा के पीछे लगा हुआ था. मार्च 2023 के तीसरे हफ्ते की बात है. शोभा अपने पिता की खेतीकिसानी के कटाई में हाथ बंटा रही थी. इस कारण वह बीते 10 दिनों से कोचिंग नहीं गई थी. सुनील उसे बारबार फोन कर रहा था. उन दिनों शोभा का फोन घर पर होता था. उसे लगा कि सुनील के लगातार फोन आने से घर वाले उस का गलत अर्थ लगा सकते हैं. इस कारण उस ने सुनील के नंबर को ब्लौक कर दिया था.

नंबर ब्लौक होने पर सुनील नाराज हो गया था. अपनी नाराजगी के साथ उस ने शोभा की सहेली को फोन किया. उस रोज 21 मार्च की तारीख थी. उस ने सहेली को शोभा से बात करवाने की जिद की. शोभा की सहेली ने बताया कि वह 10 दिनों से कोचिंग नहीं आई है और उस की शोभा से इस बीच एक बार भी बात नहीं हुई है.

सुनील को शोभा की सहेली की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. वह गुस्से में आ गया. उसे लगा कि शोभा के बारे में उस की सहेली भी उसे बरगला रही है. सुनील के दिमाग में अजीब तरह की शैतानियत कौंध गई. वह आक्रोशित हो गया. उस की मुट्ïिठयां भिंच गईं. उस ने मन ही मन एक योजना बना ली.

सुरेंद्र ने कर दिया शोभा पर हमला

इधर शोभा ने अपने मामा राजेंद्र चौधरी से बात की. उन से पीजी कालेज साथ चलने के लिए आग्रह किया. उस ने मामा से कहा कि उसे कालेज में प्रैक्टिकल बुक जमा करवानी है और एक एफीडेविट बनवाना है. तय कार्यक्रम के अनुसार मामा उस के गांव आ गए. वह 25 मार्च को साढ़े 10 बजे मामा और एक अन्य युवक विकास के साथ घर से निकली. उस ने रास्ते में मामा से कहा कि उसे पहले अपनी सहेली के यहां कोचिंग के लिए एकलव्य एकेडमी में जाना है. सहेली से प्रैक्टिकल कौपी लेनी है.

शोभा के मामा उस के कहे अनुसार पहले एकेडमी गए, लेकिन वह विकास के साथ बाहर ही रुके. शोभा अकेली एकेडमी में गई. पहली मंजिल पर ही वह सुरेंद्र से टकरा गई. उस ने उसे जरूरी बात करने के लिए तीसरी मंजिल पर चलने को कहा. न चाहते हुए भी सुरेंद्र के कहे पर उस के साथ चली गई, लेकिन कुछ मिनटों में ही सीढिय़ों पर शोभा के चीखने की आवाज गूंज गई.

तेज आवाज सुन कर कुछ स्टूडेंट दौड़ कर तीसरी मंजिल पर जा पहुंचे. वहां जख्मी शोभा सीढिय़ों पर गिरी हुई थी, जबकि सुरेंद्र पास सटे मकान की छत पर कूद कर भाग गया था. उसे भागते कई छात्रों ने देखा. सभी तुरंत खून से लथपथ शोभा को निम्स अस्पताल ले कर गए, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका. कुछ घंटे में ही उस की मौत हो गई.

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शोभा हत्याकांड की सूचना एकेडमी के संचालक ने पुलिस को दे दी. घटना की सूचना पाते ही मनोहरपुर थाने के एसएचओ मनीष शर्मा एएसआई हरीराम और पुलिस टीम सहित घटनास्थल पर पहुंचे. एकेडमी के संचालक और वहां के स्टूडेंट से उन्होंने छात्रा की हत्या के बारे में पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल के साक्ष्य जुटाए. उस के बाद पुलिस टीम निम्स अस्पताल पहुंची, जहां शोभा की मौत हो चुकी थी.

शोभा के शव की तहकीकात इमरजेंसी में इलाज करने डाक्टर से की गई. इसी बीच पुलिस को मालूम हुआ कि शोभा का मर्डर करने वाला युवक भी इसी अस्पताल में जीवन और मौत से जूझ रहा है. उस ने जहर खा लिया है. शोभा के साथ हुई घटना के बारे में सुन कर उस के पापा, भाई और अन्य घर वाले भागेभागे अस्पताल पहुंचे. उन का रोरो कर हाल बेहाल हो गया था.

पुलिस ने कालूराम की रिपोर्ट पर शोभा की हत्या का मामला दर्ज पर कर लिया. इस का आरोपी सुरेंद्र मीणा उर्फ सुनील बागड़ी को बनाया गया. डाक्टरों ने शोभा की लाश का पोस्टमार्टम कर उसी दिन शव उस के घर वालों को सौंप दिया. पोस्टमार्टम में शोभा के शरीर पर चाकू के 6 निशान पाए गए. वे निशान छाती, हाथ और गरदन पर थे. फेफड़े वाली जगह पर 6 इंच का घाव बन गया था. काफी मात्रा में खून बह चुका था. इसी कारण उस की मौत बताई गई.

उसी रात सुरेंद्र मीणा की भी मौत हो गई. उस के बाद पुलिस ने मामले को हत्या और आत्महत्या में बदल कर बंद कर दिया.

माँ का प्रेमी गया जान से

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद के गांव नेखुआ बनवीरकाछ में 27 फरवरी, 2023 की सर्द रात को अचानक एक चीख सन्नाटे को चीरती हुई निकल गई थी. चीख काफी तेज थी. रात का पहला पहर ही था और गांव के लोग अपनेअपने घरों में सोने की तैयारी कर रहे थे. अचानक तेज चीख सुन कर कुछ लोग घरों से बाहर निकल आए.

“चीख किधर से आई?’’ एक व्यक्ति ने पड़ोसी से पूछा, जो हड़बड़ाता हुआ घर से बाहर निकला था. जवाब देने के बजाय उस ने भी सवाल कर दिया, ‘‘कौन चीखा?…क्या हुआ इतनी रात को?’’

“अरे लगता है, चीखने की आवाज खजांची के घर से आई है…’’ उसी वक्त तीसरा व्यक्ति बोल पड़ा.

“हां…हां… चलो, चल कर देखते हैं. न जाने क्या हुआ उस के घर पर?’’ पहला व्यक्ति बोला.

“लगता है कोई गिर पड़ा है.’’

“जो भी हुआ हो, चलो देखते हैं.’’ कहते हुए तीनों ग्रामीण खजांची वर्मा के घर की ओर जाने के लिए मुड़ गए .तभी उन्होंने खजांची के घर की तरफ से आते हुए कुछ लोगों को देखा. वे कितने लोग थे, गिनती नहीं कर पाए. उन्हें लगा कि वे भी चीख सुन कर ही उस के घर पर आए होंगे. लेकिन यह क्या वे तो अंधेरे में ही कहीं गुम हो गए. खजांची के घर जाने वाले ग्रामीण समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर बात क्या है?

खजांची के बारे में जानने के लिए सभी की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी. थोड़ी देर में ही वे खजांची के घर के बाहर पहुंच गए. वहां सन्नाटा था. दरवाजा भी बंद था. अंधेरा भी था. कुछ पल ठिठक कर उन लोगों ने घर के भीतर से किसी के कराहने की आवाज सुनी.

लोगों ने बुलाई पुलिस

पहले तेजी से चीखने और अब कराहने की आवाज सुन कर सभी सशंकित हो गए. उन्हें कोई गड़बड़ी या अनहोनी की आशंका हुई. खजांची के घर के बाहर मौजूद ग्रामीणों के बीच खुसरफुसर होने लगी. आवाज देने पर भी घर से कोई बाहर निकल नहीं रहा था और वे रात होने के चलते घर के अंदर जा नहीं पा रहे थे. ऐसे में ग्रामीणों ने पुलिस को सूचना देना सही समझा. आपसी निर्णय के बाद उन्होंने लीलापुर थाने को किसी अनहोनी की आशंका की सूचना दे दी. कुछ देर बाद ही वहां पुलिस भी आ गई.

कुछ पुलिसकर्मियों के साथ पहुंचे एसएचओ एसएचओ सुभाष कुमार यादव ने पहले खजांची के घर के बाहर जमा लोगों से बात की. थाने में काल करने वाले से मामले की जानकारी ली. वहां मौजूद लोगों ने खजांची के घर में होने वाली गतिविधि के बारे में अनभिज्ञता जताई. आखिर में साथ आए सिपाहियों ने खजांची के बंद दरवाजे को खटखटाना शुरू किया. वे कुंडी को बारबार खडक़ा कर आवाज देने लगे. आवाज देने पर अंदर से एक घबराई हुई महिला की आवाज आई, ‘‘कौन है?’’

एसएचओ यादव ने अपना परिचय दे कर तुरंत दरवाजा खोलने को कहा. भीतर से दोबारा आवाज आई, ‘‘क्या.. पुलिस? इतनी रात को? क्या बात है साहब?’’

“हांहां! हमें सूचना मिली है कि तुम्हारे घर में कोई घटना हो गई है, इसलिए आना पड़ा. बाहर आओ, घर में कोई मर्द नहीं है क्या?’’ यादव के कहने पर दरवाजा थोड़ा खुला. अंदर से एक औरत झांकने लगी. बाहर खड़ी पुलिस ने बाहर से दरवाजे को धक्का दिया और पूरा दरवाजा खुल गया. दरवाजा खुलते ही एसएचओ यादव महिला पुलिस के साथ घर में घुस गए. उन के साथ कुछ ग्रामीण भी चले गए. अंदर का नजारा देख कर सभी हैरान रह गए.

वहां का माजरा देख कर कुछ पल के लिए सभी की सांसें थम सी गईं. सभी अवाक रह गए. घर में जमीन पर एक युवक मरणासन्न लहूलुहान पड़ा था, वह कराह रहा था. उस का एक हाथ कटा हुआ था और दोनों आंखें किसी नुकीली चीज से फोड़ी गई थीं. युवक की दशा देख कर एसएचओ ने फौरन उसे इलाज के लिए अस्पताल भिजवाने का इंतजाम करवाया. लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले ही रास्ते में युवक की मौत हो गई.

मृतक के भाई ने लिखाई रिपोर्ट

कुछ घंटे में ही खजांची के घर मरणासन्न युवक की बात पूरे गांव में फैल गई. जल्द ही उस की पहचान भी हो गई. वह कोई और नहीं, उसी गांव का 32 वर्षीय अभिनंदन सिंह था. इस खबर के फैलते ही अभिनंदन के घर वाले भी खजांची के घर आ गए. गांव का माहौल पूरी तरह से तनावपूर्ण हो गया था. पुलिस को अभिनंदन के घर वालों ने बताया कि उसे फोन कर खजांची के घर बुलाया गया था. मौका देख कर खजांची पत्नी समेत मौके से फरार हो गया. उन की तलाश की जाने लगी, लेकिन वे दोनों नहीं मिल पाए. दोनों की तलाशी के लिए पुलिस टीम लगा दी गई. इस के साथ ही यादव ने मामले की पूरी जानकारी उच्चाधिकारियों को भी दे दी. मौके की आवश्यक काररवाई करने के बाद वह थाने लौट आए.

पुलिस ने उसी रात मृतक अभिनंदन सिंह के बड़े भाई आनंद सिंह की तरफ से खजांची वर्मा, उस की पत्नी सपना, बेटे संजय वर्मा (28 साल), सपना के भाई व उस के साथियों शंकर वर्मा, सुरेश वर्मा, कमलेश वर्मा सहित 8 लोागें के खिलाफ भादंवि की धाराओं 147, 148, 149 और 302 के तहत रिपोर्ट लिखवा दी. लाश को भी पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. मामले की जानकारी पा कर एसपी (प्रतापगढ़) सतपाल अंतिल, एएसपी (पश्चिमी) रोहित मिश्रा ने मौके का मुआयना किया. पीडि़त परिवार से मिल कर सारी जानकारी हासिल की तो मामले की तह में प्रेम प्रसंग की बात सामने आई.

पुलिस अधिकारियों ने अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए फौरन टीमें गठित कर कड़े निर्देश जारी कर दिए. पुलिस टीम को तीसरे दिन ही सफलता मिल गई. एसएचओ यादव ने पहली मार्च, 2023 को मुखबिर की सूचना पर देवीघाट पुल भुवालपुर के पास से एक अधेड़ महिला के साथ युवक को पकड़ लिया. पूछताछ में पता चला कि औरत खजांची वर्मा की पत्नी सपना (50) और युवक उस का बेटा संजय वर्मा (28) था. वे बनवीर काछनेखुआ निवासी हैं. उन्हें थाने ला कर पूछताछ की गई. थोड़ी सख्ती के बाद ही उन्होंने अभिनंदन मर्डर केस का खुलासा कर दिया. उन्होंने अभिनंदन सिंह की हत्या की जो कहानी बताई, वह प्रेम और अपराध से जुड़ी थी. उन की कहानी इस प्रकार निकली—

अधेड़ उम्र में सपना को हुआ प्यार

उत्तर प्रदेश का प्रतापगढ़ जिला राजनैतिक और सामाजिक गतिविधियों की गहमागहमी से भरा रहने वाला इलाका है. वहीं नेखुआ बनवीरकाछ गांव में मिश्रित आबादी है. उन में खजांची वर्मा का भी परिवार रहता है. उसी गांव में अभिनंदन सिंह (32) भी अपने परिवार के साथ रहता था. वह 2 बच्चों का पिता भी था. दुबलेपतले कदकाठी का अभिनंदन खुशमिजाज और मिलनसार व्यक्तित्व का युवक था. वह सुखीसंपन्न परिवार से था. उस के खजांची के परिवार से भी अच्छे संबंध थे.

अभिनंदन की मुलाकात सपना से भी होती रहती थी. वह 50 की उम्र हो जरूर गई थी, लेकिन कदकाठी की वजह से 10 साल कम उम्र की दिखती थी. उस के बदन की कसक बरकरार थी. हर किसी के साथ गर्मजोशी के साथ मिलती थी. हंसहंस कर बातें करने और अपनी मनमोहिनी अदाओं से सब को लुभा लेती थी. अकसर जब वह हंसती थी, तब उस के चेहरे की रौनक और भी बढ़ जाती थी. खेती के काम में खेतों पर भी आतीजाती रहती थी.

गांव के कई युवा उसे प्यार से भाभी कह कर बुलाते थे. उन में अभिनंदन भी था. बात कुछ साल पहले की है, सपना खेतों से घर की ओर लौट रही थी, उस के सिर पर घास का गट्ïठर था. अचानक उसे सामने से अभिनंदन आता हुआ दिखा. गट्ïठर भारी था, सिर पर संभल नहीं रहा था. उस ने अभिनंदन से गट्ïठर नीचे उतारने के लिए मदद मांगी, ताकि थोड़ी देर पगडंडी पर बैठ कर सुस्ता ले. अभिनंदन ने उस की मदद की और सिर से घास का गट्ïठर उतार दिया. तभी वह थोड़ा लडख़ड़ा गई.

अभिनंदन ने उसे संभालते हुए पकड़ लिया. इसी दौरान उस का हाथ सपना के वक्षों से छू गया. सपना शरमा गई, लेकिन उस ने इस का जरा भी बुरा नहीं माना. अपना आंचल संभालती हुए मुसकरा दी. हालांकि ऐसा अभिनंदन से भी अनजाने में हुआ था. फिर उस ने जमीन पर बैठते हुए अभिनंदन को भी हाथ पकड़ कर बिठा लिया. अभिनंदन झिझकते हुए बैठ गया. थोड़ा सांस लेते हुए बोला, ‘‘बहुत भारी गट्ïठर था. इतना भारी मत लिया करो…गरदन में मोच आ सकती है.’’

“अरे क्या करूं, काम तो करना है. यह तो रोज का हो गया है.’’ सपना बोली.

“इस गट्ïठर के 2 बना दूं क्या?’’ अभिनंदन ने हमदर्दी जताई.

“अरे नहीं, थोड़ी देर बैठूंगी, उस के बाद सिर पर उठा देना…वैसे तुम कहां से आ रहे थे?’’ सपना बोली.

“कुछ काम के लिए बाजार चला गया था, वहीं से लौट रहा था.’’ अभिनंदन बोला.

“जब भी बाजार जाना हो तो मुझ से एक बार मिल लेना. मुझे भी कुछ मंगवाना होता है.’’

“तुम्हें बता दूंगा. कहो तो गट्ïठर सिर पर उठा कर रख दूं या घर तक पहुंचा दूं?’’ अभिनंदन का इतना कहना ही था कि सपना बोली, ‘‘क्या देवरजी, इतनी जल्दी जाने की क्यों पड़ी है. थोड़ी देर बैठते हैं. बाते करते हैं.’’

अभिनंदन उस के कहने पर वहीं बैठ गया. दोनों कुछ समय तक बैठे रहे. इधरउधर की बातें करते रहे. थोड़ी देर बाद अभिनंदन ने सपना के सिर पर गट्ïठर उठा दिया और लंबे कदमों से आगे बढ़ गया. सपना आवाज दे कर बोली, ‘‘शाम को घर पर आना तुम से कुछ काम है.’’

अवैध संबंधों की फैल गई बात

अभिनंदन को भी क्या सूझी शाम को सपना के घर जा धमका. सपना ने भी उस की खूब खातिरदारी की. जाने लगा तब हाथ में कुछ पैसे पकड़ाती हुई बाजार से अपने सामान की एक लिस्ट पकड़ा दी. अभिनंदन लिस्ट खोल कर पढऩे लगा, लेकिन हैंडराइटिंग समझ में नहीं आई, तब उसे पढ़ कर बताने को कहा. सपना उस की हाथ से लिस्ट ले कर पढऩे लगी. उस में उस के कुछ निजी इस्तेमाल के सामान थे. अभिनंदन ने झेंपते हुए लिस्ट अपनी जेब में रख ली और चला गया.

पहले दिन की 2 मुलाकातों ने सपना और अभिनंदन के दिल के तार झनझना दिए थे. उन के दिल में एकदूसरे की भावनाओं ने थोड़ी जगह बना ली थी. उस के बाद से दोनों जब भी मिलते, उन की मुलाकातें काफी हसीन और रंगीन बातों से शुरू होती थीं. बातोंबातों जब कभी अभिनंदन सपना के रूपरंग और मादकता की तारीफ करता, तब सपना इठलाने लगती थी. मस्त अदा से मजाकिया अंदाज में जवाब देती और अभिनंदन खुश हो जाता था. दोनों बहुत जल्द ही काफी खुल गए थे. मौका देख कर अभिनंदन ने सपना के साथ शारीरिक संबंध भी बना लिए.

सपना और शादीशुदा बालबच्चेदार अभिनंदन की उम्र में काफी अंतर था. अभिनंदन बांका युवक था, जबकि सपना अधेड़ उम्र की थी. दोनों यौन पिपासा से भरे हुए थे. बावजूद इस के दोनों को जब भी समय मिलता, 2 जिस्म एक जान हो जाया करते थे.

मां के प्रेमी का किया मर्डर

दोनों का मिलना दिनप्रतिदिन बढ़ता चला गया. नतीजा यह हुआ कि उन के इश्क के चर्चे गांव में एक कान से होते हुए दूसरे कान तक फैल गए. यह बात अभिनंदन और सपना के घरवालों के कानों तक भी जा पहुंची. फिर क्या था, अच्छाखासा विवाद खड़ा हो गया. वहीं दोनों का चोरीछिपे मिलना जारी रहा. इस की भनक जब खजांची और उस के बेटे संजय को लगी, तब वे बौखला गए. इस से निपटने के लिए दोनों ने एक गहरी साजिश रची.

उन्होंने सजिश के तहत ही 27 फरवरी, 2023 की रात अभिनंदन को सपना से फोन करवा कर बुला लिया. सपना भी बहुत बदनाम हो चुकी थी. वह भी अब अभिनंदन से पीछा छुड़ाना चाहती थी. उसे भी अपने पति और बेटे की साजिश की भनक लग गई थी. अभिनंदन सपना के बुलाने पर भागाभागा चला आया. घर वाले उस का इंतजार कर रहे थे. जैसे ही अभिनंदन आया, उस पर घर वालों ने मिल कर लाठी, डंडा, कुल्हाड़ी से वार कर दिया था, जिस से वह मरणासन्न हो गया था.

उसे ठिकाने लगाने की बात हो ही रही थी कि तभी गांव वालों को भनक लग गई थी और पुलिस मौके पर आ गई थी. पुलिस ने आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन की निशानदेही पर कुल्हाड़ी और डंडा, सफेद कपड़ा बरामद कर लिया गया. पुलिस ने दोनों मांबेटे को सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायायिक हिरासत में ले कर जेल भेज दिया गया.

कहानी लिखे जाने तक पुलिस अन्य फरार हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी करने में जुटी हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेईमान प्यार : बेमौत मारा गया परिवार – भाग 4

इस से रमित बुरी तरह डर गया. उस ने अपना पीछा छुड़ाने के लिए निशा के पिता को चैक काट कर दे दिए. उस ने चैक तो दे दिए, लेकिन चैक देने के बाद वह परेशान रहने लगा. क्योंकि उस के खाते में पैसे नहीं थे. उसे पता था कि अगर चेक बाउंस हो गए तो एक और नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी. इसलिए उस ने इस मुसीबत से पीछा छुड़ाने के लिए एक भयानक योजना बना डाली.

रोशनलाल के परिवार में गहरी पैठ होने की वजह से रमित उन के परिवार की हर गतिविधियों को जानता था. वह यह भी जानता था कि हर रविवार की सुबह रोशनलाल और निशा हैबोवाल स्थित राधास्वामी सत्संग भवन में सत्संग सुनने जाते हैं. रविवार को साप्ताहिक अवकाश होने की वजह से लुधियाना के सारे बाजार और उद्योग बंद रहते हैं. रमित की फैक्ट्री भी उस दिन बंद थी. इन्हीं बातों के मद्देनजर रमित ने शनिवार शाम यानी 21 अगस्त को रोशनलाल को फोन कर के कहा, ‘‘पापा, मैं कल सुबह एटीएम से रुपए निकाल कर आप को दे दूंगा. आप चैक बैंक में मत डालना.’’

अगले दिन सुबह जब रोशनलाल और निशा सत्संग के लिए जा रहे थे तो रास्ते में ही रमित ने उन्हें अपनी कार में बिठा लिया. हालांकि रोशनलाल ने बहुत कहा कि रुपए निकालने ही तो हैं, सत्संग के बाद निकाल लेंगे. लेकिन रमित ने यह कह कर उन्हें खामोश कर दिया कि वह पैसे दे देगा तो उस के सिर से बोझ उतर जाएगा.

रमित की गाड़ी दुगड़ी स्थित एटीएम पर रुकी. उस ने यह कह कर रोशनलाल को वहीं उतार दिया कि वह 10 मिनट वहीं रुकें, एटीएम कार्ड वह घर भूल आया है. झूठ बोल कर वह निशा को साथ ले कर सीधा फैक्ट्री पहुंचा. फैक्ट्री ले जा कर उस ने निशा को केबिन में बिठा दिया और पहले से खरीद कर रखा चाकू निकाल कर उस पर चाकू से ताबड़तोड़ वार कर उस की हत्या कर दी.

निशा की हत्या कर के उस ने अपने 2 कर्मचारियों विजय व कुमार की मदद से निशा की लाश प्लास्टिक के एक बोरे में भरी और उन्हीं की मदद से वह बोरा कार की डिग्गी में रख कर जस्सियां के एक खाली प्लाट में फेंक आया. इस के बाद वह दुगड़ी स्थित एटीएम पर पहुंचा, जहां रोशनलाल खड़ा था. वह उसे भी कार में बैठा कर फैक्ट्री ले आया. निशा की तरह उस ने उस की भी हत्या कर दी और उस की लाश भी प्लास्टिक के बोरे में भर कर दोराहा नहर में फेंक दी.

बापबेटी की हत्या करने के बाद रमित कार से सीधा रोशनलाल के घर पहुंचा. कार उस ने मकान के पीछे वाली गली में खड़ी कर दी. इस के बाद वह मकान के भीतर गया. पहले वाले कमरे में शकुंतला बैठी थी. रमित ने चाकू निकाल कर उस पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. वह ढेर हो गई. इस के बाद वह भीतर वाले कमरे में पहुंचा, जहां राजेश टीवी देख रहा था.

कमरे में पहुंचते ही उस ने सब से पहले टीवी की आवाज तेज की और फिर राजेश पर अचानक हमला बोल दिया. अचानक हमला हुआ था, फिर भी अपाहिज राजेश चीखाचिल्लाया. उस ने रमित का विरोध करते हुए आखिरी क्षणों तक उस के साथ संघर्ष किया. राजेश की हत्या करने के बाद रमित बाथरूम में हाथमुंह धोना चाहता था, लेकिन उसी समय मोहल्ले वालों ने बाहर का दरवाजा तोड़ना शुरू कर दिया.

हड़बड़ाहट में वह चाकू वहीं छोड़ कर मकान के पिछले दरवाजे से भाग निकला. पूरे परिवार की हत्या करने के बाद वह पुन: फैक्ट्री आया, जहां उस ने हाथमुंह धोया. चार लोगों की हत्याएं करने में चाकू की कुछ खरोंचे उस के हाथ पर भी लग गई थीं. उस ने दुगड़ी की एक डिस्पेंसरी में जा कर हाथ पर पट्टी करवाई और फिर आगे के बारे में सोचने लगा. पर वह कुछ सोचता या करता, इस से पहले ही वह पुलिस की गिरफ्त में आ गया.

पुलिस ने रमित भंडारी के साथ उस के दोनों कर्मचारियों को भी हिरासत में ले कर अगले दिन मेट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट परमिंदर कौर की अदालत में पेश कर के 5 दिनों के रिमांड पर ले लिया. रिमांड की अवधि में रमित की निशानदेही पर जस्सियां से निशा की तथा दोराहा नहर के किनारे से रोशनलाल की लाश बरामद कर ली. पुलिस ने रमित की 2 कारें भी जब्त कर लीं. पुलिस ने 7-7 लाख रुपए के वे 2 चैक भी बरामद किए, जो रमित ने रोशनलाल को दिए थे. तलाशी लेने पर निशा के पर्स से डेढ़ लाख कैश भी मिला था.

इस तरह यह हत्याकांड पुलिस कमिश्नर ईश्वर सिंह की देखरेख में एसीपी नरेंद्र रूबी व अन्य अधिकारियों की सूझबूझ से 24 घंटे के भीतर ही सुलझा लिया गया. एक तरह से इस में रुपए दे कर दुश्मन बनाने वाली बात हुई थी. रोशनलाल रमित को रुपए दे कर न उस की सहायता करता और न ही उस का परिवार यूं बेमौत मारा जाता. शायद सांप को दूध पिलाने का यही अंजाम होता है.

बेईमान प्यार : बेमौत मारा गया परिवार – भाग 3

रमित की यह बात हमारे गले नहीं उतर रही थी. इस में कई ऐसे पेंच थे, जो समझ से बाहर थे. मैं ने रमित से पूछा, ‘‘अच्छा, यह बताओ कि इस वक्त निशा कहां है?’’

मेरे सवाल पर वह बौखला उठा और झल्ला कर बोला, ‘‘मैं क्या जानूं, भाग गई होगी अपने किसी यार के साथ.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता?’’ मैं ने पूछा तो रमित बोला, ‘‘जनाब ऐसी औरतें यही तो करती हैं. एक से दिल भर गया तो दूसरे के पास और दूसरे से भर गया तो तीसरे के पास.’’

‘‘वाह रमित कुमार.’’ मैं ने कहा, ‘‘मैं ने तो तुम से केवल निशा के बारे में पूछा था और तुम ने पूरी रामायण सुना दी. खैर छोड़ो, यह बताओ कि तुम्हें ब्लैकमेल तो निशा कर रही थी, फिर तुम ने उस की मां और भाई की हत्या क्यों की?’’

मेरे इस सवाल पर वह बगले झांकने लगा. मैं ने उसे चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘देखो, हमें सब पता है. अच्छा यही है कि तुम हमें पूरी बात सचसच बता दो, वरना तुम्हें फांसी के फंदे से कोई नहीं बचा सकता.’’

मेरी बात सुन कर उस ने गर्दन झुका ली. मैं इंसपेक्टर हरपाल सिंह, निर्मल सिंह और बिट्टन कुमार को साथ ले कर उस की मौसी की फैक्ट्री पहुंचा. वहां रमित की कार बाहर ही खड़ी थी. कार का बारीकी से मुआयना किया गया तो उस में कई जगह खून के धब्बे दिखाई दिए. ठीक वैसे ही खून के धब्बे फैक्ट्री के औफिस में भी मिले. फैक्ट्री की अच्छी तरह तलाशी लेने पर हमें एक लेडीज सैंडिल भी मिली. फैक्ट्री में 2 कर्मचारी मिले, जिन के नाम विजय प्रसाद और कुमार थे. विजय प्रसाद गहरी कोठी, थाना नोतन, जिला पश्चिमी चंपारण (बिहार) का रहने वाला था तो कुमार गांव मुकार, जिला प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था.

दोनों से पूछताछ करने पर इस दोहरे हत्याकांड के साथसाथ रिटायर्ड स्टेशन मास्टर रोशनलाल और उस की बेटी निशा की गुमशुदगी का रहस्य भी खुल गया. मेरे आदेश पर इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने विजय प्रसाद और कुमार को पुलिस हिरासत में ले लिया. रमित भंडारी को हम ने पहले ही गिरफ्तार कर लिया था. अब तक की तफ्तीश, रमित भंडारी और फैक्ट्री से दबोचे गए दोनों कर्मचारियों से की गई पूछताछ के बाद इस जघन्य हत्याकांड की जो कहानी प्रकाश में आई, वह स्वार्थ के रिश्तों और विश्वास की नींव पर झूठ का महल खड़ा करने जैसी थी.

36 वर्षीया निशा काफी खूबसूरत, मिलनसार व हंसमुख स्वभाव की युवती थी. संभवत: उस का यही स्वभाव उस की और उस के परिवार की हत्या का कारण बना था. सीधीसादी निशा की बीए पास करने के बाद शादी हो गई थी. लेकिन पति से उस की नहीं बनी, जिस से जल्दी ही उस का तलाक हो गया था. निशा ने इसे भाग्य मान कर चुपचाप स्वीकार कर लिया और मन ही मन तय कर लिया कि अब वह कभी शादी नहीं करेगी. गुजरबसर के लिए उस ने एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली.

सन 2008 में जब निशा का परिवार चंद्रनगर, सुंदरनगर में रहता था, तभी अचानक एक दिन निशा की मुलाकात रमित भंडारी से हुई. रमित महत्त्वाकांक्षी, चतुरचालाक युवक था. उस ने शादीशुदा होते हुए भी अपनी शादी की बात निशा से छिपा ली थी. हालांकि निशा ने कभी शादी न करने का फैसला किया था. लेकिन रमित ने उस की सोई कामनाओं को जगा कर उस से शादी करने का वादा कर लिया. न चाहते हुए भी निशा धीरेधीरे रमित के आकर्षण में बंधती चली गई. जल्दी ही दोनों के बीच आंतरिक संबंध बन गए. एक दिन निशा ने रमित को अपने घर ले जा कर उस का परिचय अपने मातापिता से करवा दिया.

रोशनलाल के परिवार की समस्या यह थी कि उस के परिवार में कोई भी युवा पुरुष नहीं था. बेटा राजेश था भी तो अपाहिज था. इसीलिए पूरा परिवार रमित से खुश रहता था और उसे बेटे की तरह मानता था. निशा का भी सोचना था कि उस की अन्य बहनें दूर रहती थीं, अगर शादी के बाद रमित उस के मातापिता और अपाहिज भाई का खयाल रखेगा तो इस से अच्छा और क्या हो सकता था.

समय के साथ निशा और रमित के आपसी संबंध बन गए थे. सन् 2009 के अंत में रोशनलाल स्टेशन मास्टर से रिटायर हो गए थे. उन्हें रिटायरमेंट पर काफी रुपए मिले थे. कुछ दिनों बाद उन्होंने चंद्रनगर वाला मकान 70 लाख रुपए में बेच दिया था. नया मकान लेने के बाद भी उन के पास 35-40 लाख रुपया बच गया था.

एक दिन जब रमित रोशनलाल के घर आया तो बहुत परेशान था. पूरे परिवार ने उस की परेशानी का कारण पूछा, पर उस ने कुछ नहीं बताया. बाद में उस ने निशा को अलग ले जा कर बताया, ‘‘निशा, मुझे बिजनैस में बहुत बड़ा घाटा हो गया है. बाजार का लाखों रुपया देना है. अगर मैं ने रुपए नहीं दिए तो मैं बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जाऊंगा.’’

‘‘तुम्हें कितने रुपए चाहिए?’’ निशा ने पूछा तो रमित बोला, ‘‘यही कोई 40-45 लाख…’’

रमित की बात सुन कर निशा हतप्रभ रह गई. पल भर बाद वह कुछ सोच कर बोली, ‘‘रमित, पापा के पास 30-35 लाख रुपए होंगे, वे तुम्हें इनकार नहीं करेंगे. जब तुम्हारा बिजनैस ठीक हो जाए तो पापा के पैसे लौटा देना.’’

‘‘वह सब तो ठीक है, पर मैं तुम्हारे पापा से रुपए नहीं मांगूगा. मुझे शर्म आती है.’’ रमित ने अभिनय करते हुए कहा तो निशा बोली, ‘‘ठीक है, तुम रुपए मत मांगना. रुपए मैं मांग लूंगी, पर तुम साथ तो चलो.’’

निशा के समझाने पर रमित उस के साथ चलने को तैयार हो गया. निशा ने जब अपने पिता रोशनलाल को रमित की परेशानी का कारण बताया तो वे हंसते हुए बोले, ‘‘तुम भी कमाल करते हो बेटा, यह घर तुम्हारा है. यहां की हर चीज पर तुम्हारा अधिकार है. रुपए मेरे पास बढ़ तो रहे नहीं हैं. तुम अपना काम निपटा लो. जब आ जाएं तो मुझे लौटा देना.’’

अगले दिन ही रोशनलाल ने रमित को 35 लाख रुपए कैश दे दिए. रुपए लेते समय उस ने वादा किया था कि वह एक महीने में रुपए लौटा देगा. लेकिन कई महीने बीत जाने के बाद भी जब उस ने न तो पैसे लौटाए और न कभी इस विषय में बात की तो रोशनलाल और निशा को चिंता होने लगी. उसी बीच कहीं से निशा को पता चल गया कि रमित शादीशुदा है. उस ने उस से झूठ बोला था.

इस बात से निशा के दिल को बहुत ठेस पहुंची. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि पिता का पैसा वापस मिलने के बाद वह रमित से संबंध तोड़ लेगी. यह बात उस ने रमित से कह भी दी थी, लेकिन समस्या यह थी कि रमित पैसा लौटाने का नाम नहीं ले रहा था. इस पर निशा ने उसे धमकी देते हुए कहा कि अगर उस ने शराफत से उस के पिता का पैसा नहीं लौटाया तो वह अपने और उस के संबंधों की बात उस की मां और पत्नी को बता देगी.

                                                                                                                                         क्रमशः

मजे मजे की आशिकी में गयी जान

बेईमान प्यार : बेमौत मारा गया परिवार – भाग 2

पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई थी, जिस के अनुसार मौत का कारण अधिक खून बह जाना था. फगवाड़ा से शकुंतला के मायके वाले आ गए थे. पोस्टमार्टम के बाद लाशें उन्हें सौंप दी गई थीं. मृतका के भाइयों ने दोनों लाशों का अंतिम संस्कार कर दिया था. मैं ने उन से भी पूछताछ की. उन्होंने केवल इतना ही बताया था कि रोशनलाल ने रिटायर होने के बाद चंद्रनगर वाला मकान 70 लाख में बेचा था. नया मकान उन्होंने 35-40  लाख रुपए में खरीदा था.

कुछ पैसा उन्हें रिटायर होने पर मिला था. कुल मिला कर उन के पास करीब 35 लाख रुपए थे. रुपए उन्होंने कहां रखे थे या किसी को दिए थे, इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. फलस्वरूप बात वहीं की वहीं रह गई. मैं ने सोचा था कि शायद मृतका के मायके वालों से काम की कोई बात पता चल जाएगी, पर मायूस ही होना पड़ा. घूमफिर कर हमारी नजर फिर रमित भंडारी पर ही जा कर टिक गई थी.

रमित ने आधा घंटे बाद आने को कहा था. मैं ने घड़ी देखी. अब तक पौन घंटा हो चुका था. मैं ने सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार से कहा कि वह रमित को फोन कर के पूछे. बिट्टन कुमार ने बताया कि उस ने 10 मिनट में आने को कहा है, लेकिन वह दस मिनट बाद भी नहीं आया. इस प्रकार 10-10 मिनट करतेकरते उस ने 2 घंटे बरबाद कर दिए. उधर पुलिस के सिर पर उच्च अधिकारियों की तलवार लटक रही थी.

मेरी टीम की जान सांसत में थी. मुझे रमित भंडारी पर गुस्सा आ रहा था. जब बात बरदाश्त के बाहर हो गई तो मैं ने भंडारी से मोबाइल पर खुद बात की. मैं ने उसे डांटते हुए कहा कि वह तुरंत मेरे औफिस पहुंचे. उस ने मुझ से भी 10 मिनट का समय मांगा. जब वह 10 मिनट तक नहीं आया तो मैं ने फिर फोन किया. लेकिन इस बार उस के फोन का स्विच बंद मिला. इस के बाद उस के फोन का स्विच हमेशा के लिए बंद हो गया.

रमित के इस व्यवहार से मुझे उस पर संदेह हुआ. मैं समझ गया कि वह जानबूझ कर पूछताछ से बचना चाहता था. मैं ने हरपाल सिंह से उस के फोन की लोकेशन पता करने को कहा. इंसपेक्टर हरपाल ने रमित के फोन की लोकेशन चैक करवाई तो उस की लोकेशन जस्सियां रोड, लुधियाना की मिली. इस से यह बात साफ हो गई कि वह हम से झूठ बोल रहा था. इस से उस पर हमारा संदेह और बढ़ गया.

अभी मैं और हरपाल सिंह इस मुद्दे पर बातें कर ही रहे थे कि सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार ने आ कर बताया कि रमित भंडारी अपनी मौसी की फैक्ट्री नैना क्वायर प्रोडक्ट्स में कहने को तो मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव था, लेकिन एक तरह से उस गद्दा फैक्ट्री का सर्वेसर्वा वही था. बिट्टन कुमार ने यह भी बताया कि रिटायर्ड स्टेशन मास्टर रोशनलाल की छोटी बेटी निशा से उस के मधुर संबंध थे. वह उस के घर खूब आताजाता था. रोशनलाल ने उसे अपना बेटा बना रखा था.

मेरे लिए यह जानकारी काफी थी. इस से मुझे पक्का यकीन हो गया था कि वह इस दोहरे हत्याकांड का रहस्य जरूर जानता होगा. इसीलिए पुलिस के सामने आने से कतरा रहा था. मुझे समय बेकार करना उचित नहीं लगा. इसलिए मैं ने इंसपेक्टर हरपाल सिंह को तुरंत पुलिस टीम के साथ घाघरा रोड पहुंचने को कहा.

एक टीम मैं ने एसीपी परमजीत सिंह पन्नू की अगुवाई में तैयार करवाई. रमित भंडारी हमें फैक्ट्री के पास ही मिल गया. उस से वहीं पूछताछ की गई. वह हमें बहकाने की कोशिश करने लगा. वह हर सवाल का जवाब घुमाफिरा कर दे रहा था. उस के चेहरे पर काफी उलझन और घबराहट के मिलेजुले भाव थे. बात करते हुए वह हकला भी रहा था. तभी अचानक मेरा ध्यान उस के हाथ की ओर चला गया. उस के हाथ पर ताजी पट्टी बंधी थी. मैं ने इस बारे में पूछा तो वह बोला, ‘‘ऐसे ही मामूली सी खरोंच आ गई थी. सावधानी के तौर पर मैं ने पट्टी बंधवा ली.’’

खरोंच कैसे और किस चीज से आई, यह वह नहीं बता सका. इस बातचीत के बाद मेरा शक विश्वास में बदलने लगा. मैं ने उसे अपने औफिस चलने को कहा.

औफिस आ कर इंसपेक्टर हरपाल सिंह और बिट्टन कुमार ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने शकुंतला और राजेश की हत्या की बात स्वीकार कर ली. मैं ने कारण पूछा तो उस ने कोई कारण नहीं बताया. लेकिन जब थोड़ी सख्ती की गई तो उस ने बताया कि रिटार्यड स्टेशन मास्टर रोशनलाल की बेटी निशा उसे ब्लैकमेल कर रही थी. उस के अनुसार निशा के साथ उस के तीन सालों से अवैध संबंध थे. वह शादीशुदा था, जबकि निशा तलाकशुदा थी.

निशा बहुत ही खूबसूरत थी. पहली मुलाकात में ही दोनों एकदूसरे पर फिदा हो गए थे. दोनों के संबंध इतनी तेजी से परवान चढ़े कि रमित आए दिन उस के घर आनेजाने लगा. परिवार के लोगों को भी उस का आनाजाना अच्छा लगता था. शकुंतला तो उसे बेटाबेटा कहते नहीं थकती थी. निशा के साथ रमित के संबंधों की उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. वे लोग अपने घर के छोटे से ले कर बडे़ कामों तक में रमित की सलाह लेने लगे थे.

रमित के अनुसार पिछले कुछ समय से निशा उसे ब्लैकमेल कर रही थी. वह कई बार उस की मांग पूरी भी कर चुका था. उस के घर वाले भी इस बात का फायदा उठा रहे थे. कुछ ही दिनों पहले निशा ने उस से 50 हजार रुपए की मांग की थी, लेकिन उस ने इतना पैसा देने से मना कर दिया था. शनिवार को निशा ने रमित की मां को फोन कर के कहा था कि वह उन्हें कुछ राज बताना चाहती है.

उसी दिन निशा ने फोन पर रमित को भी धमकी दी थी कि उस ने दोनों के निजी संबंधों की सीडी बनवा रखी है. अगर उस ने 50 हजार रुपए नहीं दिए तो वह उस सीडी को उस की मां और पत्नी को दे देगी. इसी बात से गुस्से में उस ने निशा से बदला लेने के लिए उस की मां और भाई की हत्या कर दी थी.

                                                                                                                                              क्रमशः

बेईमान प्यार : बेमौत मारा गया परिवार – भाग 1

22 अगस्त, 2010 की सुबह 10 बजे पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना मिली कि हैबोवाल की दुर्गापुरी कालोनी की गली नंबर 5 के मकान नंबर- 7187/1 में 2 लोगों की हत्या हो गई है. सूचना मिलते ही थाना सलेम टाबरी के थानाप्रभारी इंसपेक्टर निर्मल सिंह, सीआईए इंचार्ज इंसपेक्टर हरपाल सिंह, इंसपेक्टर दविंद्र कुमार, एसएचओ डिवीजन नंबर 4 तथा दुर्गापुरी पुलिसचौकी इंचार्ज सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार मेरे पहुंचने से पहले ही घटनास्थल पर पहुंच गए थे. जिस मकान में हत्याएं हुई थीं, उस के बाहर लोगों की काफी भीड़ लगी थी.

पड़ोसियों ने बताया कि उन्होंने सुबह लगभग साढ़े 9 बजे मकान के भीतर तेज चीखों की आवाजें सुनी थीं. चूंकि उस वक्त अंदर तेज आवाज में टीवी चल रहा था, इसलिए यह समझना मुश्किल था कि आवाजें टीवी की थीं या मकान में रहने वालों की. मकान का दरवाजा अंदर से बंद था. थोड़ी देर बाद जब पड़ोसियों को लगा कि चीखें टीवी की नहीं, बल्कि उस में रहने वालों की थीं तो उन्होंने मुख्य द्वार तोड़ कर भीतर जा कर देखा.

अंदर अलगअलग कमरों में 2 लाशें पड़ी थीं. इस के बाद घटना की सूचना पुलिस को दी गई थी. मैं ने मकान के भीतर जा कर देखा. एक कमरे में अधेड़ उम्र की महिला की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. उस के शरीर पर तेजधार हथियार के कई घाव थे, जिस में से खून रिस रहा था. दूसरे कमरे में लगभग 40 वर्षीय एक व्यक्ति की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. उस के शरीर पर भी तेजधार हथियार के घाव थे. वह विकलांग था. उस की व्हीलचेयर वहीं पास में उलटी पड़ी थी. देखने से ही लग रहा था कि विकलांग होने के बावजूद उस ने हत्यारों का विरोध किया था. दोनों को ही बड़ी बेरहमी से मारा गया था.

मैं ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. कमरे में रखा टीवी अभी भी चल रहा था. मेरे इशारे पर सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार ने टीवी बंद कर दिया. क्राइम टीम और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को भी बुलाया गया था, साथ ही डौग स्क्वायड को भी. जासूस कुत्ते लाश को सूंघ कर मकान के पिछवाड़े जा कर रुक गए. संभवत: हत्यारे वहां से किसी सवारी में बैठ कर गए थे.

मकान की अच्छी तरह छानबीन की गई. लूटपाट के लक्षण दिखाई नहीं दे रहे थे. हत्याएं शायद आपसी रंजिश के कारण हुई थीं. टीवी के पास खून सना एक खंजरनुमा चाकू पड़ा था. मैं ने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को उसे संभाल कर रखने के लिए कहा. हत्याएं शायद चाकू से की गई थीं. मैं पुलिस टीम के साथ मुआयना कर रहा था कि पड़ोसियों से पता चला कि यहां सिर्फ हत्याएं ही नहीं हुई थीं, बल्कि इस परिवार के 2 अन्य लोग लापता भी थे.

इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने पूछताछ के आधार पर मुझे बताया कि इस परिवार के मुखिया का नाम रोशनलाल था और वह रेलवे से रिटायर्ड था. इस के पहले यह परिवार चंद्रनगर में रहता था. रोशनलाल की पत्नी का नाम शकुंतला था. दोनों की 4 संतानें थीं, जिन में सब से बड़ी 47 वर्षीया बेटी स्वीटी शादीशुदा थी और इंग्लैंड में रहती थी. दूसरे नंबर का बेटा राजेश कुमार उर्फ राजू अपाहिज था, लेकिन घर में काम कर के लगभग 10 हजार रुपए महीना कमा लेता था.

तीसरे नंबर की बेटी सीमा भी शादीशुदा थी, लेकिन 3 साल पहले पीलिया से उस की मृत्यु हो चुकी थी. सब से छोटी 36 वर्षीया निशा थी. बीए पास निशा किसी प्राइवेट कंपनी में कार्यरत थी. लगभग 2 महीने पहले इन लोगों ने अपना चंद्रनगर वाला मकान 70 लाख रुपए में बेचा था. लगभग डेढ़ महीने पहले ही यह परिवार इस मकान में रहने आया था. यह मकान उन्होंने 40 लाख रुपए में खरीदा था. कत्ल शकुंतला और राजेश कुमार उर्फ राजू का हुआ था. जबकि रोशनलाल और निशा गायब थे.

मैं ने इंसपेक्टर निर्मल सिंह को आदेश दिया कि लाशों का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दें. साथ ही इंसपेक्टर हरपाल सिंह से कहा कि पड़ोसियों से पूछताछ कर के बापबेटी की तलाश में संभावित जगहों पर छापे मारें. जबकि सबइंस्पेक्टर बिट्टन कुमार को मैं ने अस्पतालों, बसस्टैंड, रेलवे स्टेशन पर बापबेटी की तलाश करवाने तथा जिले के अन्य सभी थानों में उन का हुलिया बता कर वायरलैस मैसेज भिजवाने की जिम्मेदारी सौंपी.

चूंकि यह केस पुलिस कमिश्नर की नजर में आ गया था, इसलिए इन कामों से फारिग हो कर उन्हें रिपोर्ट देने मैं उन के औफिस पहुंच गया. मैं ने अपनी परेशानी बता कर उन से कहा, ‘‘सर, समस्या यह है कि यह परिवार मोहल्ले में नया है. पड़ोसियों को इन के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं है.’’

‘‘ठीक है, जैसा भी हो हर नजरिए से जांच करो. इस के लिए कई टीमें बना कर लगाओ. और हां, सब से जरूरी है बापबेटी का पता लगाना.’’

कमिश्नर साहब के पास से लौट कर मैं ने एक बार फिर घटनास्थल पर जा कर पड़ोसियों से पूछताछ की. काफी लंबी छानबीन के बाद काम की एक बात पता चली. मैं ने जब रोशनलाल के घर पर आनेजाने वाले लोगों की लिस्ट बनाई तो पता चला कि रमित कुमार भंडारी उर्फ रिकी नाम का एक युवक रोशनलाल के घर कुछ ज्यादा ही आताजाता था. मैं ने हरपाल सिंह से रमित के बारे पता लगाने को कहा.

हरपाल सिंह ने पता लगा कर बताया कि रमित कुमार भंडारी जस्स्यिं रोड, तरसेम कालोनी के मकान नंबर बी34/6614 में रहता था. वह रमित का मोबाइल नंबर भी ले आए थे. मेरे कहने पर सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार ने रमित को फोन किया, पर उस ने फोन नहीं उठाया. जब उसे कई बार फोन किया गया तो उधर से कंप्यूटराइज्ड आवाज आने लगी कि यह नंबर पहुंच के बाहर है.

काफी कोशिशों के बावजूद हमें तफ्तीश को आगे बढ़ाने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था. कह सकते हैं कि हम अंधेरे में तीर मार रहे थे. ऐसे में जांच आगे बढ़ाने के लिए हमें केवल रमित भंडारी ही एकमात्र सहारा नजर आ रहा था. हमारी सारी उम्मीदें उसी पर टिकी थीं. इसलिए हम उस का नंबर मिलाते रहे.

आखिर उस ने फोन उठा लिया. सबइंस्पेक्टर बिट्टन कुमार ने उसे मेरे औफिस आने को कहा. उस ने बताया था कि उस समय वह जालंधर में है और आधे घंटे में हाजिर हो जाएगा. मैं अपने औफिस में बैठा उस का इंतजार करता रहा.

इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने कहीं से मृतका शकुंतला के मायके का पता ढूंढ़ निकाला था. उस के पिता जगतराम की फगवाड़ा में टेलरिंग की दुकान थी.  पता मिल गया तो इस घटना की सूचना मृतका के भाइयों अशोक, सुखविंदर और जसविंदर को दे दी गई थी.

                                                                                                                                             क्रमशः

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 4

नर्सिंग होम मालिकों ने रची साजिश

इधर अनुज महतो अविनाश के किसी भी मकसद को और पनपने देना नहीं चाहता था क्योंकि वह उस के लिए बेहद खतरनाक बन चुका था.

पहले रची योजना के मुताबिक 9 नवंबर, 21 को अनुज महतो ने रात 9 बज कर 58 मिनट पर पूर्णकला देवी से अविनाश को फोन करवाया और एक अहम जानकारी देने के लिए उसे अपने नर्सिंग होम बुलवाया. नर्स पूर्णकला देवी ने वैसा ही किया जैसा मालिक ने उसे करने को कहा.

नर्स पूर्णकला देवी का फोन आने के बाद अविनाश उस से मिलने फोन पर बात करते हुए अपने औफिस से पैदल ही निकल गया और अपनी बाइक वहीं छोड़ गया था. उसी समय उस की मां संगीता जब खाना खाने के लिए उसे बुलाने पहुंची तो औफिस खुला देख समझा कि यहीं कहीं बाहर गया होगा, आ जाएगा. फिर वह वापस घर लौट आई थीं.

इधर फोन पर बात करता हुआ अविनाश थाना बेनीपट्टी से 400 मीटर दूर कटैया रोड पहुंचा, जहां एक कार उस के आने के इंतजार में खड़ी थी. कार में नर्स पूर्णकला देवी सवार थी. अविनाश को देखते ही उस ने पीछे का दरवाजा खोल कर उसे बैठा लिया.

फिर वहां से सीधे अनुराग हेल्थकेयर सेंटर पहुंची, जहां पहले से घात लगाए सब से आगे वाले कमरे में अनुज महतो बैठा था. उसी कमरे में उस ने लकड़ी का मूसल भी छिपा कर रखा था, जबकि पूर्णकला ने अनुज महतो के चैंबर में लाल मिर्च का पाउडर और एक पैकेट कंडोम रखा था.

अविनाश को साथ ले कर वह सीधा चैंबर में पहुंची, जहां उस ने उपर्युक्त सामान छिपा कर रखा था. खाली पड़ी एक कुरसी पर उसे बैठने का इशरा कर भीतर कमरे में गई और जब लौटी तो उस के हाथ में पानी भरा कांच का गिलास था.

उस ने पानी अविनाश की ओर बढ़ा दिया. अविनाश ने पानी भरा गिलास नर्स के हाथों से ले कर जैसे ही अपने होठों से लगाया, फुरती से मिर्च पाउडर पूर्णकला ने उस की आंखों में झोंक दिया. मिर्च की जलन से अविनाश के हाथ से कांच का गिलास छूट कर फर्श पर गिर पड़ा और खतरे को भांप कर अविनाश आंखें मलता हुआ बाहर की ओर भागा.

तब तक मूसल ले कर कमरे में पहले से घात लगाए बैठा अनुज महतो बाहर निकला और उस के सिर पर पीछे से मूसल का जोरदार वार किया. वार इतना जोरदार था कि वह धड़ाम से फर्श पर जा गिरा. तब तक वहां रोशन, बिट्टू, दीपक, पवन और मनीष भी आ पहुंचे.

फर्श पर गिरे अविनाश की सांसों की डोर अभी टूटी नहीं थी. वह बेहोश हुआ था. फिर उसे खींचकर चैंबर में ले जाया गया. वहां अस्पताल की चादर से अविनाश का गला तब तक दबाया गया, जब तक उस का बदन ठंडा नहीं पड़ गया. इस के बाद अनुज महतो पांचों की मदद से एक बोरे में अविनाश की लाश भर कर जिस कार से आया था, उसी कार की डिक्की में छिपा कर औंसी थानाक्षेत्र के उड़ने चौर थेपुरा के जंगल में फेंक कर फरार हो गए.

2 दिनों बाद जब अविनाश की खोज जोर पकड़ी तो अनुज महतो सहित सभी घबरा गए कि कहीं उस की लाश बरामद न हो जाए, नहीं तो सब के सब पकड़े जाएंगे. बुरी तरह परेशन अनुज महतो 11 नवंबर की रात अपनी बाइक ले कर उड़ने चौर थेपुरा पहुंचे, जहां अविनाश की लाश फेंकी थी. उस की लाश अभी वहीं पड़ी थी. फिर क्या था, उस ने बोरे के ऊपर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी और अपनी बाइक थेपुरा गांव में छोड़ कर फरार हो गया.

अपने दुश्मन अविनाश को रास्ते से हटाने के बाद अनुज महतो ने जो फूलप्रूफ योजना बनाई थी, वह फेल हो गई और आरोपी कानून के मजबूत फंदों से बच नहीं सके. वह असल ठिकाने पहुंच गए. अनुज महतो कथा लिखने तक फरार चल रहा था.

पुलिस ने नर्स पूर्णकला देवी की निशानदेही पर अनुराग हेल्थकेयर सेंटर से मिर्च से भरी डिब्बी, कंडोम का पैकेट, खून से सनी चादर और मूसल बरामद कर लिया था. जांचपड़ताल में यह पता चली थी कि अविनाश और नर्स पूर्णकला देवी के बीच मधुर संबंध थे. ये मधुर संबंध भी अविनाश की हत्या का एक वजह बनी थी.

अविनाश की हत्या के मुख्य आरोपी अनुज महतो, जो फरार चल रहा था, ने पुलिस के दबाव में आ कर 21 जनवरी, 2022 को व्यवहार न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया था, जहां पुलिस ने 48 घंटे की रिमांड पर ले कर उस से हत्या की जानकारी जुटाई और फिर जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक पत्रकार अविनाश के सभी आरोपी जेल की सलाखों के पीछे कैद अपनी करनी पर पछता रहे थे

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इंतकाम की आग में खाक हुआ पत्रकार- भाग 3

अपने ही इलाके बेनीपट्टी के कटैया रोड पर किराए का 5 कमरों का एक मकान ले कर उस में जयश्री हेल्थकेयर के नाम से नर्सिंग होम खोल लिया. भिन्नभिन्न इलाजों के लिए अलगअलग डाक्टरों को नियुक्त कर के नर्सिंग होम शुरू किया था. थोड़ी मेहनत से अविनाश का नर्सिंग होम चल निकला. लेकिन उस के सपनों का शीशमहल धरातल पर ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सका. इस की बड़ी वजह थी बेनीपट्टी में कुकुरमुत्तों की तरह नर्सिंग होम्स का पहले से संचालित होना.

दरअसल, दरजनों नर्सिंग होम उस इलाके में पहले से चल रहे थे. अच्छी जगह पर अविनाश का नर्सिंग होम खुल जाने और सब से कम पैसों में इलाज करने से बाकी के नर्सिंग होम्स की कमाई बुरी तरह प्रभावित हुई थी, जिस से सभी नर्सिंग होम संचालकों की नींद हराम हो गई थी.

वे नहीं चाहते थे कि जयश्री हेल्थकेयर चले. फिर क्या था, सभी संचालकों ने मिल कर स्वास्थ्य विभाग में झूठी शिकायत कर के उस का नर्सिंग होम बंद करवा दिया. एक साल के भीतर ही उस का नर्सिंग होम बंद हो गया. यह बात 2019 की है.

ऐसा नहीं था कि धन माफियाओं के डर से हार मान कर अविनाश ने हथियार डाल दिया हो. उस दिन के बाद से अविनाश ने दृढ़ प्रतिज्ञा कर ली कि स्वास्थ्य के नाम पर नर्सिंग होमों द्वारा गरीबों से मनमाने तरीके से की जा रही वसूली को वह ज्यादा दिनों तक चलने नहीं देगा. उन नर्सिंग होमों को भी वह बंद करवा कर दम लेगा, जिन्होंने उस के सपनों को कुचलामसला था. क्योंकि उसे पता था कि जिले के अधिकांश नर्सिंग होम अपने आर्थिक लाभ के लिए नियमकानून को ताख पर रख कर कैसे संचालित हो रहे हैं.

अवैध नर्सिंग होम्स के खिलाफ अविनाश ने उठाई आवाज

बड़ेबड़े मगरमच्छों से टकराना अविनाश के लिए आसान नहीं था. क्योंकि वह उन की ताकत को देख चुका था. उन्हें कुचलने के लिए एक ऐसे हथियार की उसे जरूरत थी, जो उसे सुरक्षा भी दे सके और दुश्मनों को मीठे जहर के समान धीरेधीरे मार भी सके.

विकास झा अविनाश का सब से अच्छा दोस्त भी था और हमदर्द भी. उस के सीने में सुलग रही आग को वह अच्छी तरह जानता था. बीएनएन न्यूज पोर्टल नाम से वह एक न्यूज चैनल भी चलाता था. शार्प दिमाग वाले अविनाश के मन में आया कि दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए क्यों न पत्रकारिता को अपना ले. फिर उस ने विकास से बात कर के बीएनएन न्यूज पोर्टल जौइन कर लिया.

पत्रकारिता का चोला ओढ़ने के बाद अविनाश बेहद ताकतवर बन गया था. खाकी वरदी से ले कर खद्दर वालों के बीच उस ने एक अच्छा मुकाम हासिल कर लिया था. धीरेधीरे वह लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया था. अपने विरोधियों और दुश्मनों को धूल चटाने के लिए वह परिपक्व हो चुका था. उस के दुश्मनों की लिस्ट में बेनीपट्टी के 2 नर्सिंग होम अनन्या नर्सिंग होम के संचालक डा. संजय और अनुराग हेल्थकेयर सेंटर के मालिक डा. अनुज महतो थे.

2019 के अगस्त महीने में अविनाश ने आरटीआई के माध्यम से दरजन भर नर्सिंग होम्स से सूचना मांगी थी, जिन के नाम अलजीना हेल्थकेयर, शिवा पाली क्लीनिक, सुदामा हेल्थेयर, सोनाली हेल्थकेयर, मां जानकी सेवा सदन, आराधना हेल्थ ऐंड डेंटल केयर क्लिनिक, जय मां काली सेवा सदन, अंशु हेल्थकेयर सेंटर, सानवी हौस्पिटल, अनन्या नर्सिंग होम, अनुराग हेल्थकेयर सेंटर और आर.एस. मेमोरियल हौस्पिटल थे.

अविनाश के इस काम से सभी नर्सिंग होम के संचालकों की भौहें तन गईं कि इस की इतनी हिम्मत कि हमें ही आंखें दिखाने लगा. उसे पता नहीं है किस से टकराने की कोशिश कर रहा है. बात यहीं खत्म नहीं हुई थी. इन धन माफियाओं की गीदड़भभकी के आगे अविनाश न झुका और न ही डरा. बल्कि इन से टक्कर लेने के लिए वह डट कर खड़ा हो गया था.

काररवाई से तिलमिला गए नर्सिंग होम मालिक

अविनाश द्वारा डाली गई आरटीआई का  किसी भी नर्सिंग होम के संचालकों ने उत्तर नहीं दिया तो उस ने लोक जन शिकायत के माध्यम से इस की शिकायत ऊपर के अधिकारियों तक पहुंचा दी. अविनाश की शिकायत पर स्वास्थ्य विभाग की टीम ने उपर्युक्त नर्सिंग होमों की जांच की तो उन में से कई नर्सिंग होम स्वास्थ्य विभाग के मानक पर खरे नहीं उतरे. अंतत: उन्हें स्वास्थ्य विभाग के कोप का भाजन पड़ा और उन पर ताला लगा दिया गया.

अविनाश ने पानी में रह कर मगरमच्छों से दुश्मनी मोल ले ली थी. विरोधियों की कमर तोड़ने के लिए अविनाश ने जो तीर छोड़ा था, वह ठीक उस के निशाने पर जा कर लगा था. अविनाश के इस काम से खफा चल रहे सभी नर्सिंग होम संचालक आपस में एकजुट हो गए और मिल कर अविनाश को सबक सिखाने की तैयारी में जुट गए थे. इसी कड़ी में अनन्या नर्सिंग होम के संचालक डा. संतोष एक दिन अविनाश के घर जा पहुंचे.

इत्तफाक से उन की मुलाकात अविनाश के बडे़ भाई त्रिलोकीनाथ झा उर्फ चंद्रशेखर से हुई. उस समय अविनाश घर पर नहीं था, कहीं गया हुआ था.

त्रिलोकीनाथ को समझाते हुए डा. संतोष ने कहा, ‘‘तुम अपने भाई अविनाश को समझाओ कि वह जो कर रहा है, उसे तुरंत बंद कर दे. वरना जानते ही हो आए दिन सड़कों पर तमाम एक्सीडेंट होते रहते हैं. वह भी किसी दुर्घटना का शिकार हो कर कहीं सड़क किनारे पड़ा मिलेगा. फिर मत कहना कि मैं ने समझाया नहीं.’’

डा. संतोष त्रिलोकीनाथ को धमकी दे कर चला गया. त्रिलोकीनाथ जानता था कि बदले की आग में जल रहा अविनाश अपने विरोधियों को धूल चटाने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा रहा है. उस ने संतोष की धमकी को दरकिनार कर दिया और छोटे भाई को कुछ नहीं बताया.

विरोधियों को खाक में मिलाने के लिए पत्रकार अविनाश बहुत आगे निकल चुका था. उस के आरटीआई पर 2 और नर्सिंग होमों अनन्या और अनुराग पर स्वास्थ्य विभाग की काररवाई होनी तय हो गई थी. दोनों नर्सिंग होम भी स्वास्थ्य विभाग के मानकों पर खरे नहीं उतरे थे. अनन्या के मालिक संतोष और अनुराग के मालिक अनुज महतो किसी कीमत पर अपने नर्सिंग होम बंद होने नहीं देना चाहते थे. उन के बंद होने से हाथों से लाखों रुपए की कमाई जा रही थी.

क्रोध की आग में जल रहे अनुज महतो ने अविनाश को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. अपनी इस योजना में उस ने अपने नर्सिंग होम की सब से विश्वासपात्र नर्स पूर्णकला देवी के साथ रोशन कुमार, बिट्टू कुमार पंडित, दीपक कुमार पंडित, पवन कुमार पंडित और मनीष कुमार को मिला लिया.

कहीं से इस की भनक अविनाश को मिल गई थी. 7 नवंबर को फेसबुक पर उस ने बेहद मार्मिक पोस्ट शेयर की, जिस में उस ने अपनी हत्या किए जाने की आशंका जाहिर करते हुए 15 नवंबर को ‘द गेम इज ओवर’ लिखते हुए बड़ा खेल होना पोस्ट किया था.

                                                                                                                                         क्रमशः