अपहरण का कारण बना लिव इन रिलेशन – भाग 3

एक दिन बबीता की मुलाकात रविंद्र से हुई तो रविंद्र ने उसे अपने दिल में बसा लिया. इस के बाद वह उस दुकान के आसपास मंडराने लगा, जहां बबीता काम करती थी. धीरेधीरे बबीता का झुकाव भी रविंद्र की ओर हो गया. दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर भी दे दिए. जल्दी ही दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. यहां तक कि उन के बीच जिस्मानी संबंध भी कायम हो गए. उन के दिलों में पनपी मोहब्बत पूरे शबाब पर थी.

रविंद्र ने अपने दोस्त अनिल की मदद से अंजलि और बबीता को बदरपुर में ही दूसरी जगह किराए पर मकान दिलवा दिया और वह खुद भी उन दोनों के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगा.

चंद्रा दिल्ली के सराय कालेखां इलाके में रहने वाले रामपथ चौधरी की बेटी थी. रामपथ चौधरी की चंद्रा के अलावा एक बेटा नरेंद्र चौधरी और 2 बेटियां थीं. वह सभी बच्चों की शादी कर चुके थे. नरेंद्र चौधरी का दूध बेचने का धंधा था. करीब 15 साल पहले उन्होंने चंद्रा का ब्याह नोएडा सेक्टर-5 स्थित हरौला गांव में रहने वाले महावीर अवाना के साथ किया था. महावीर अवाना प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था.

शादी के कुछ सालों तक महावीर और चंद्रा के बीच सब कुछ ठीक रहा, लेकिन बाद में उन के बीच मनमुटाव रहने लगा. इस की वजह यह थी कि वह शराब पीने का आदी था. चंद्रा शराब पीने को मना करती तो वह उस के साथ गालीगलौज करता और उस की पिटाई कर देता था. रोजरोज पति की पिटाई से परेशान हो कर चंद्रा अपनी मां के पास आ जाती थी.

इस दरम्यान वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. उस की बेटी सोनिया 11 साल की और बेटा प्रिंस 7 साल का था. सोनिया 5वीं में पढ़ रही थी और प्रिंस यूकेजी में. कुछ दिन मां के यहां रहने के बाद चंद्रा ससुराल लौट जाती थी.

20 नवंबर, 2013 को भी चंद्रा बच्चों के साथ मायके आई थी. नानी के यहां आ कर बच्चे बहुत खुश थे, क्योंकि यहां वे एमसीडी के पार्क में मोहल्ले के अन्य बच्चों के साथ जी भर कर खेलते थे. दूसरी ओर नरेंद्र के रिश्ते का भाई रविंद्र कोई कामधंधा नहीं करता था. उस का खर्चा बबीता ही उठाती थी.

एक दिन अंजलि ने रविंद्र से कहा, ‘‘तुम बबीता के साथ बिना शादी किए पतिपत्नी की तरह रह रहे हो. वह कमाती है और तुम खाली रहते हो. आखिर ऐसा कब तक चलेगा. तुम कोई काम क्यों नहीं करते?’’

रविंद्र भी कोई काम करना चाहता था, लेकिन काम शुरू करने के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. वह सोचता था कि कहीं से मोटी रकम हाथ लग जाए तो वह कोई कामधंधा शुरू करे. यह बात उस ने अंजलि और बबीता को बताई. काम शुरू करने के लिए रविंद्र 1-2 लाख रुपए की बात कर रहा था. इतने पैसे दोनों बहनों के पास नहीं थे. रविंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह ऐसा क्या करे, जिस से उस के हाथ मोटी रकम लग जाए. काफी सोचने के बाद उस के दिमाग में एक योजना आई तो वह उछल पड़ा.

उस ने उन दोनों से कहा, ‘‘मैं ने एक योजना सोची है, अगर तुम मेरा साथ दो तो वह पूरी हो सकती है.’’

‘‘क्या योजना है?’’ अंजलि ने पूछा.

‘‘हम किसी बच्चे का अपहरण कर लेंगे. फिरौती में जो रकम मिलेगी, उस से हम कोई अच्छा काम शुरू कर सकते हैं. काम जोखिम भरा है, लेकिन अगर सावधानी से किया जाएगा तो जरूर सफल होगा. काम हो जाने पर हम दिल्ली से कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसा लेंगे.’’

‘‘अगर कहीं पुलिस के हत्थे चढ़ गए तो सारी उम्र जेल में चक्की पीसनी पड़ेगी.’’ अंजलि और बबीता ने कहा.

‘‘पुलिस को पता तो तब चलेगा, जब हम उस बच्चे को जिंदा छोड़ेंगे. मैं ने पूरी योजना तैयार कर ली है.’’ रविंद्र ने अपने मन की बात बता दी.

‘‘मगर अपहरण करोगे किस का?’’

‘‘सराय कालेखां में नरेंद्र की बहन चंद्रा अपने बच्चों के साथ आई हुई है. मैं चाहता हूं कि नरेंद्र के भांजे प्रिंस को किसी तरह उठा लें. उस से हमें मोटी रकम मिल सकती है.’’

बबीता और अंजलि भी उस की बात से सहमत हो गईं. रविंद्र प्रिंस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए बड़ा सा एक ट्रैवलिंग बैग भी ले आया.

इस के बाद रविंद्र ने अपने दोस्तों अनिल और संदीप को भी पैसों का लालच दे कर अपहरण की योजना में शामिल कर लिया. संदीप के पास पल्सर मोटरसाइकिल थी, उसी से तीनों ने अपहरण की वारदात को अंजाम देने का फैसला किया. इन लोगों ने तय किया कि फिरौती मिलने के बाद वे बच्चे को मौत के घाट उतार देंगे और उस की लाश के टुकड़ेटुकड़े कर के बैग में भर कर बदरपुर के पास वाले बूचड़खाने में डाल देंगे.

पूरी योजना बन जाने के बाद तीनों प्रिंस को अगवा करने का मौका देखने लगे. 24 नवंबर, 2013 को कुछ बच्चे इलाके में बने एमसीडी पार्क में खेल रहे थे. उस वक्त प्रिंस बच्चों से अलग पार्क के किनारे चुपचाप बैठा था. रविंद्र अनिल के साथ आहिस्ता से वहां गया और उस ने प्रिंस को गोद में उठा लिया. इस से पहले कि प्रिंस शोर मचाता, उस ने उस का मुंह दबा कर उसे शौल से ढक लिया. फिर तीनों मोटरसाइकिल से फरार हो गए. उन्होंने अपने चेहरे रूमाल से ढक रखे थे.

सोनिया ने यह सब देख लिया था, वह भागती हुई घर गई और अपनी मां से सारी बात बता दी.

सभी आरोपियों ने पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने अनिल के पास से 6 फोन भी बरामद किए, जिन से उस ने फिरौती की काल्स की थीं. पता चला कि वे फोन भी चोरी के थे. पुलिस ने पल्सर मोटरसाइकिल के अलावा वह बैग भी बरामद कर लिया, जिस में ये लोग प्रिंस को मारने के बाद लाश के टुकड़े भर कर फेंकते.

पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि फिरौती की रकम मिलती या न मिलती, वे लोग प्रिंस को मौत के घाट उतारने वाले थे, क्योंकि प्रिंस ने रविंद्र उर्फ रवि गुर्जर को पहचान लिया था. क्राइम ब्रांच ने सभी आरोपियों को 29 नवंबर, 2013 को साकेत कोर्ट में पेश कर के थाना सनलाइट कालोनी पुलिस के हवाले कर दिया.

बाद में सनलाइट कालोनी थाना पुलिस ने रविंद्र उर्फ रवि, अनिल, संदीप, अंजलि और बबीता को अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में भेज दिया. कथा लिखे जाने तक सभी आरोपी जेल में बंद थे.

—कथा पुलिस सूत्रों तथा चंद्रा और नरेंद्र चौधरी के बयानों पर आधारित है.

प्यार ने बना दिया नागिन – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला मथुरा के थाना छाता के गांव मांगरौली के रहने वाले हाकिम सिंह की 3 बेटियों में रचना दूसरे नंबर की थी. वह थोड़ा चंचल  स्वभाव की थी, इसलिए हर समय घर की रौनक बनी रहती थी. लेकिन अब उस की यही चंचलता मांबाप को परेशान करने लगी थी, क्योंकि वह जवान हो चुकी थी.

बड़ी बेटी की शादी करने के बाद हाकिम सिंह रचना की शादी के बारे में सोचने लगे थे. लेकिन रचना ने यह कह कर शादी से मना कर दिया कि वह पढ़ना चाहती है. चूंकि वह पढ़ने में ठीकठाक थी, इसलिए हाकिम सिंह ने सोचा कि अगर बेटी पढ़ना चाहती है तो इस में बुराई क्या है.

रचना गांव की लड़कियों में सब से ज्यादा खूबसूरत थी. वह बनसंवर कर तो रहती ही थी, उसे अपनी खूबसूरती पर गुरुर भी था, इसलिए वह सपने भी अपने ही जैसे खूबसूरत साथी के देखती थी.

हाकिम सिंह के पड़ोस में ही राम सिंह का घर था. राम सिंह उसी की जाति बिरादरी का था, इसलिए दोनों परिवारों में खूब पटती थी. इसी वजह से एकदूसरे के यहां आनाजाना भी खूब था. राम सिंह की ससुराल मथुरा के ही थाना शेरगढ़ के गांव राम्हेरा में थी. उन के साले का बेटा रामेश्वर उन के यहां खूब आताजाता था. वह जब भी आता, बूआ के यहां कईकई दिनों तक रुकता.

रामेश्वर शक्लसूरत से तो ठीकठाक था ही, कदकाठी से भी मजबूत था. बातें भी वह बड़ी मजेदार करता था. बूआ के यहां आनेजाने और कईकई दिनों तक रहने की वजह से रचना से भी उस की अच्छीखासी जानपहचान हो गई थी. दोनों में बातें भी खूब होने लगी थी. अपनी लच्छेदार बातों से रामेश्वर रचना को धीरेधीरे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करने लगा था.

कुछ ही दिनों में रचना को लगने लगा कि वह जैसा साथी चाहती है, रामेश्वर बिलकुल वैसा ही है. दिल में यह खयाल आते ही उस के मन में रामेश्वर से मिलने की बेचैनी होने लगी. इस का नतीजा यह हुआ कि रामेश्वर जब भी आता, रचना ज्यादा से ज्यादा समय राम सिंह के घर ही बिताती.

रामेश्वर बेवकूफ नहीं था कि वह रचना के दिल की बात न भांप पाता. रचना के मन में उस के लिए क्या है, इस बात का अहसास होते ही रामेश्वर फूला नहीं समाया. बात ही ऐसी थी. रचना जैसी खूबसूरत लड़की के मन में उस के प्रति चाहत जागना सामान्य बात नहीं थी. उस की जगह कोई भी होता, उस का भी यही हाल होता.

रचना के मन में उस के लिए क्या है, इस बात का अहसास होने के बाद भला रामेश्वर ही क्यों पीछे रहता. वह भी अपनी चाहत व्यक्त करने की कोशिश करने लगा यह बात चूंकि किसी के सामने कही नहीं जा सकती थी. इसलिए वह मौके की तलाश में रहने लगा. रामेश्वर की यह तलाश जल्दी ही पूरी हो गई. एक दिन वह बूआ के घर जा रहा था, तभी रास्ते में रचना मिल गई. उस समय वह स्कूल से आ रही थी.

रामेश्वर को तो जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. क्योंकि उस के मिलते ही रचना ने सहेलियों का साथ छोड़ दिया था. वह रामेश्वर से बातें करने में इस तरह तल्लीन हो गई कि उस की सारी सहेलियां उस से काफी आगे निकल गईं. रामेश्वर को ऐसे ही मौके की तलाश थी. उस ने मौका देख कर दिल की बात कह दी. रचना ने पहले से ही इरादा बना रखा था, इसलिए उसे हामी भरते देर नहीं लगी.

इस तरह उन दोनों की मोहब्बत की बुनियाद रखी गई तो धीरेधीरे उस पर प्यार की दीवारें भी खड़ी होने लगीं. लेकिन उन के प्यार की इमारत तैयार होती, उस के पहले ही लोगों को उन पर शक होने लगा. इस की वजह यह थी कि रचना को लगता था कि वह जो कर रही है, किसी को पता नहीं है. वह बेखौफ होती गई. उस का बेखौफ होना ही उस के प्यार की चुगली कर गया. रामेश्वर से मिलनाजुलना, हंसना खिलखिलाना तमाम लोगों की नजरों में आया तो उस की इन्हीं हरकतों से उस की मां को भी संदेह हो गया.

संदेह हुआ तो रामवती रचना पर नजर रखने लगी. जल्दी ही उसे पता चल गया कि रचना का पड़ोसी राम सिंह के रिश्तेदार रामेश्वर से कुछ ज्यादा ही मिलनाजुलना होता है. रामवती के लिए यह चिंता की बात थी. उस से भी ज्यादा चिंता की बात यह थी कि बिटिया पढ़ीलिखी होने के साथसाथ बालिग भी हो चुकी थी. अगर वह कोई उलटासीधा कदम उठा लेती तो उन के पास तमाशा देखने के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं था. इसलिए उस ने हाकिम सिंह से पूरी बात बता कर जल्दी से जल्दी रचना के लिए घरवर ढूंढने को कहा.

बेटी की इस हरकत के बारे में जान कर हाकिम सिंह हैरान रह गया. जिस बेटी को उस ने हमेशा पलकों पर बैठाए रखा, वही उस की इज्जत का जनाजा निकालने पर तुली थी. हाकिम सिंह ने पत्नी की बातें सुन तो ली थीं, लेकिन उसे विश्वास नहीं हुआ था कि रचना ऐसा कर सकती है. सच्चाई जानने के लिए उन्होंने रचना से पूछा तो वह साफ मुकर गई. उस ने कहा कि उस का रामेश्वर से कोई लेनादेना नहीं है.

रचना ने भले ही झूठ बोल कर बाप को संतुष्ट कर दिया था, लेकिन हाकिम सिंह को अब रामेश्वर खटकने लगा था. उस ने राम सिंह से बात की. रामेश्वर भले ही रिश्तेदार था, लेकिन हाकिम सिंह पड़ोसी ही नहीं था, बल्कि जातिबिरादरी का भी था. बात गांव और परिवार की इज्जत की थी, इसलिए उस ने रामेश्वर को काफी डांटाफटकारा. उस ने उस से यहां तक कह दिया कि वह उस के घर तभी आए, जब कोई बहुत जरूरी काम हो.

रचना पर भी सख्ती की जाने लगी, जिस से रामेश्वर से उस का मिलनाजुलना नामुमकिन सा हो गया. बंदिशों से प्यार कम होने के बजाय बढ़ता ही है. रचना और रामेश्वर का प्यार बढ़ा जरूर, लेकिन वे कुछ कर पाते, उस के पहले ही राम सिंह की मदद से हाकिम सिंह ने रचना की शादी मथुरा के ही थाना गोवर्धन के गांव मडौरा के रहने वाले पतिराम के बेटे बिहारी से तय कर दी.

दरअसल, पतिराम की बेटी राम सिंह की सलहज थी. इसी रिश्ते की वजह से राम सिंह ने यह शादी तय करा दी थी. पतिराम का खाता पीता परिवार था. उस के 3 बेटे थे, मोहर सिंह, बिहारी सिंह और रोहतान सिंह. पतिराम के पास खेती की जो जमीन थी, उस पर पतिराम और उस के बेटे मेहनत से खेती करते थे, इसलिए घरपरिवार में खुशी और समृद्धि थी.

अपहरण का कारण बना लिव इन रिलेशन – भाग 2

28 नवंबर को दोपहर 12 बजे के करीब अपहर्त्ताओं का फोन फिर आया. उन्होंने कहा, ‘‘पैसे ले कर हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंचो. वहां से 5 बजे बल्लभगढ़ जाने वाली ट्रेन पकड़ो. 5 बजे के बाद हम फिर फोन करेंगे.’’

नरेंद्र ने यह जानकारी पुलिस को दी तो सादा कपड़ों में पुलिस भी उस के साथ हो गई. पुलिस ने एक बैग में नोटों के बराबर कागज की गड्डियां रख कर नरेंद्र को दे दीं. बैग ले कर वे लोग हजरत निजामुद्दीन स्टेशन से बल्लभगढ़ जाने वाली ट्रेन में बैठ गए. जिस मोबाइल पर अपहर्त्ताओं का फोन आया था, वह फोन नरेंद्र ने अपने पास रख लिया था. ट्रेन ओखला स्टेशन से निकली ही थी कि अपहर्त्ताओं का फिर फोन आ गया. अपहर्त्ताओं द्वारा उन्हें फरीदाबाद रेलवे स्टेशन पर उतरने के लिए कहा गया.

फरीदाबाद स्टेशन पर उतरने के 10 मिनट बाद उन्होंने फोन कर के नरेंद्र को बताया कि वह दोबारा ट्रेन पकड़ कर हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंच जाएं. नरेंद्र ने ऐसा ही किया. हजरत निजामुद्दीन पहुंचने के बाद फिर अपहर्त्ताओं का फोन आया कि वह ट्रेन पकड़ कर वापस फरीदाबाद आ जाएं. नरेंद्र और पुलिस टीम के जवान फिर से फरीदाबाद के लिए ट्रेन में बैठ गए. वे लोग इधर से उधर भागभाग कर परेशान हो गए थे. लेकिन बच्चे की खातिर वे अपहर्त्ताओं के इशारों पर नाचने को मजबूर थे. ट्रेन में बैठने के 5 मिनट बाद ही नरेंद्र के पास फिर से फोन आया.

इस बार अपहर्त्ताओं ने कहा, ‘‘तुगलकाबाद में पैसों का बैग चलती ट्रेन से नीचे फेंक देना.’’

‘‘आप लोग कोई एक जगह बताओ, हम आप को वहीं पैसे दे देंगे. इस तरह से परेशान मत करो. हम वैसे भी बहुत परेशान हैं.’’ नरेंद्र ने गुजारिश की.

‘‘अगर बच्चा जिंदा चाहिए तो जैसा हम कहते हैं करते रहो, वरना बच्चे से हाथ धो बैठोगे.’’

‘‘नहीं, आप बच्चे को कुछ मत करना. और हां, आप लोग हमें बच्चे की आवाज सुना दो, जिस से हमें विश्वास हो जाए कि बच्चा तुम्हारे पास ही है.’’

‘‘आवाज क्या सुनाएं, पैसे मिलने पर हम बच्चा ही वापस कर देंगे. लेकिन फिलहाल वही करो, जो हम कह रहे हैं.’’

अपहर्त्ताओं के कहने पर नरेंद्र चौधरी और पुलिस वाले फिर फरीदाबाद रेलवे स्टेशन पर उतर गए. उस समय रात के 10 बज चुके थे. नरेंद्र ने स्टेशन पर इधरउधर देखा. लेकिन उन्हें कोई नजर नहीं आया. जिन नंबरों से अपहर्त्ताओं के फोन आ रहे थे, नरेंद्र ने उन्हें मिलाए. लेकिन सभी स्विच औफ मिले. इस का मतलब फोन पर बात करते ही वे उस का स्विच औफ कर देते थे.

काफी देर इंतजार करने के बाद अपहर्त्ता का फोन आया. उस ने कहा कि अब वापस हजरत निजामुद्दीन चले जाओ और तुगलकाबाद के आगे रास्ते में रुपयों का बैग फेंक देना. तुगलकाबाद से आगे किस खास जगह बैग फेंकना था, यह बात उन्होंने फोन पर नहीं बताई थी, इसलिए नरेंद्र चौधरी ने रास्ते में बैग नहीं फेंका. वह वापस हजरत निजामुद्दीन पहुंच गए.

उधर क्राइम ब्रांच की एक टीम इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस के जरिए अपहर्त्ताओं द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे फोन नंबरों की जांच में लगी थी. उन की लोकेशन तुगलकाबाद इलाके की ही आ रही थी.

हजरत निजामुद्दीन लौटने के बाद नरेंद्र चौधरी क्राइम ब्रांच औफिस पहुंचे तो इंसपेक्टर सुनील कुमार ने बताया, ‘‘हमें अपहर्त्ताओं का सुराग मिल चुका है. लेकिन अभी भी हालात गंभीर हैं, क्योंकि बच्चा उन की कैद में है. हमें उम्मीद है कि कल सुबह तक आप का भांजा आप के पास होगा.’’

इस दौरान पुलिस ने जांच में यह पाया कि अपहर्त्ता अलगअलग नंबरों से नरेंद्र चौधरी को फोन करने के बाद एक दूसरे मोबाइल नंबर पर तुरंत काल करते थे. जिस नंबर पर वे काल करते थे, उस नंबर को पुलिस ने सर्विलांस पर लगा कर ट्रेस करना शुरू कर दिया था.

उस नंबर की लोकेशन बदरपुर बार्डर स्थित बाबा मोहननगर की आ रही थी और वह नंबर सराय कालेखां निवासी रविंद्र के नाम पर लिया गया था. एक पुलिस टीम उस पते पर पहुंची तो वहां रविंद्र नहीं मिला.

पुलिस ने अपने कुछ खास मुखबिरों को भी बाबा मोहननगर इलाके में लगा दिया. इसी दौरान एक मुखबिर ने पुलिस को सूचना दी कि बाबा मोहननगर की गली नंबर 6 स्थित मकान नंबर 21 की पहली मंजिल पर कुछ लोग ठहरे हुए हैं. उन के साथ 2 औरतें और एक बच्चा भी है.

मुखबिर द्वारा दी गई जानकारी पुलिस के लिए बहुत खास थी, इसलिए इंसपेक्टर सुनील कुमार ने तुरंत एसआई रविंद्र तेवतिया, रविंद्र वर्मा, एन.एस. राणा, कांस्टेबल मोहित और मनोज को बदरपुर के बाबा मोहननगर इलाके में भेज दिया. उस समय रात के 12 बजने वाले थे. पुलिस टीम मुखबिर द्वारा बताए पते पर पहुंच गई.

पुलिस को वहां पर बबीता और अंजलि नाम की 2 युवतियां मिलीं. वहीं पर एक कोने में डरासहमा एक बच्चा भी बैठा था. पुलिस ने तुरंत उस बच्चे को अपनी सुरक्षा में ले कर उस का नाम पूछा तो उस ने अपना नाम प्रिंस बताया. प्रिंस को सहीसलामत बरामद कर के पुलिस बहुत खुश हुई.

पुलिस ने दोनों युवतियों से उन के साथियों के बारे में पूछा तो उन्होंने पुलिस को सब कुछ बता दिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने पहले तो बाबा मोहननगर की ही एक जगह से रविंद्र को गिरफ्तार किया. फिर उस के साथी संदीप और अनिल को सिब्बल सिनेमा के पास से धर दबोचा.

पांचों आरोपियों को पुलिस टीम क्राइम ब्रांच ले आई. इंसपेक्टर सुनील कुमार ने नरेंद्र चौधरी को फोन कर के बुला लिया. नरेंद्र और चंद्रा रात के 1 बजे ही क्राइम ब्रांच पहुंच गए. वहां प्रिंस को देख कर दोनों बहुत खुश हुए. चंद्रा उसे अपने सीने से लगा कर रोने लगी.

पुलिस ने दोनों को जब अपहर्त्ताओं से मिलाया तो नरेंद्र चौधरी देखते ही बोला, ‘‘रविंदर, तू..? तूने प्रिंस को अगवा किया था? भाई, तू इतना गिर गया कि…’’

‘‘आप इसे जानते हैं?’’ एसआई एन.एस. राणा ने बात काट कर बीच में ही पूछा.

‘‘जानता हूं सर, यह रिश्ते में मेरा भाई लगता है. इस से सारा परिवार परेशान है.’’

रविंद्र सिर झुकाए चुपचाप खड़ा सब कुछ सुनता रहा. पुलिस ने पांचों आरोपियों से पूछताछ की तो पता चला कि सारी घटना का मास्टरमाइंड खुद प्रिंस का मामा रविंद्र ही था.

रविंद्र उर्फ रवि गुर्जर सराय कालेखां में रहने वाले महिपाल का बेटा है. मातापिता के अलावा परिवार में रविंद्र के 3 भाई और भी हैं. वह सब से छोटा है. बेरोजगार रविंद्र आवारागर्दी और अपने साथियों के साथ छोटीमोटी चोरी जैसी घटनाओं को अंजाम दिया करता था. उस की इन्हीं हरकतों से परिवार के दूसरे लोग परेशान रहते थे. वह कोई अपराध कर के फरार हो जाता तो पुलिस उस के घर वालों को तंग करती थी. इसी वजह से उस के घर वालों ने उस से संबंध खत्म कर लिए थे. अनिल और संदीप उस के गहरे दोस्त थे.

22 वर्षीय अनिल दिल्ली के गौतमपुरी इलाके में रहता था. 12वीं पास करने के बाद वह रविंद्र की संगत में पड़ गया था. जबकि रविंद्र का तीसरा दोस्त संदीप दिल्ली के ही कोटला मुबारकपुर इलाके में रहता था. तीनों ही अविवाहित और आवारा थे.

रविंद्र और संदीप अकसर गौतमपुरी में अनिल के पास आते रहते थे. इसी दौरान रविंद्र की मुलाकात बबीता से हुई. बबीता अपनी बड़ी बहन अंजलि के साथ बाबा मोहननगर, बदरपुर, दिल्ली में किराए पर रहती थी. दोनों सगी बहनें मूलरूप से उत्तराखंड के कस्बा धारचुला की रहने वाली थीं.

बबीता अविवाहित थी और अंजलि शादीशुदा. किसी वजह से बबीता का अपने पति प्रमोद से संबंध टूट गया था तो वह मायके चली आई थी. करीब 8 महीने पहले अंजलि और बबीता काम की तलाश में दिल्ली आई थीं और बदरपुर क्षेत्र में दोनों एक दरजी के यहां कपड़ों की सिलाई करने लगी थीं. वहां से होने वाली आमदनी से उन का खर्च चल रहा था.

मिसकाल का प्यार – भाग 1

शाम का खाना खाने के बाद रूबी सोने के लिए अपने कमरे में जा रही थी कि उस के मोबाइल की घंटी  बज उठी. मोबाइल उस की जींस की जेब में रखा था. फोन रिसीव करने के लिए उस ने जैसे ही जेब से मोबाइल निकाला, तब तक घंटी बजनी बंद हो गई. उस ने फोन में देखा कि यह मिस काल किस की है.

जिस फोन नंबर से मिस काल आई थी, वह नंबर उस के फोन में सेव नहीं था यानी उस के लिए वह नंबर अनजाना था. वह यह सोचने लगी कि पता नहीं यह नंबर किस का है और उस ने मिस काल क्यों की है?

कभीकभी ऐसा भी होता है कि किसी को किसी से जरूरी बात करनी होती है, लेकिन इत्तफाक से उस के फोन मेें बैलेंस नहीं होता है तो मजबूरी में उसे मिस काल करनी पड़ जाती है. रूबी के दिमाग में भी यही आया कि कहीं यह मिस काल ऐसे ही व्यक्ति की तो नहीं है. उस ने तुरंत कालबैक की. कुछ सेकेंड बाद किसी आदमी ने काल रिसीव करते हुए जैसे ही ‘हैलो’ कहा, रूबी बोली, ‘‘हैलो, कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘जी, मैं सुजाय डे बोल रहा हूं. क्या मैं जान सकता हूं कि जिन से मैं बात कर रहा हूं वह कौन हैं?’’ दूसरी तरफ से आवाज आई.

‘‘मैं रूबी बोल रही हूं. अभी मेरे फोन पर आप की मिस काल आई थी.’’

‘‘रूबीजी, सौरी. गलती से आप का नंबर लग गया होगा. मेरी वजह से आप को जो तकलीफ हुई, मुझे अफसोस है. मुझे लगता है कि आप आराम कर रही होंगी, मैं ने आप को डिस्टर्ब कर दिया.’’ सुजाय डे अपनी गलती का आभास कराते हुए बोला.

‘‘नहीं सुजायजी, ऐसी कोई बात नहीं है. कभीकभी गलती से किसी और का नंबर लग जाता है.’’

‘‘रूबीजी, आप से बात कर के लग रहा है कि आप बहुत नेकदिल हैं. आप की जगह कोई और लड़की होती तो शायद इतनी सी बात पर मुझे तमाम बातें सुना देती.’’

‘‘देखो, मेरा मानना है कि गलती हर इंसान से होती है. आप ने ऐसा जानबूझ कर थोड़े ही किया है. मुझे आप की बातों से लग रहा है कि आप भी कोई सड़कछाप नहीं, बल्कि एक समझदार इंसान हैं.’’ अब तक रूबी अपने कमरे में पहुंच चुकी थी. उसे भी उस से बात करने में इंटरेस्ट आ रहा था.

‘‘रूबीजी, जब आप इतना कह रही हैं तो मैं बताना चाहता हूं कि मैं एक बिजनैसमैन हूं. मेरे पिता की हौजरी गारमेंट्स की फैक्ट्री है. मैं उन के साथ उन के इस बिजनैस को संभाल रहा हूं. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं ने बिजनैस संभाल लिया था. वैसे अगर आप को बुरा न लगे तो क्या मैं जान सकता हूं कि आप क्या कर रही हैं? मेरा मतलब पढ़ाई या कोई जौब?’’

‘‘अभी तो मैं बीए सेकेंड ईयर में पढ़ रही हूं. इस के अलावा टेलरिंग का काम भी सीख रही हूं.’’ इस से आगे रूबी और कुछ कहती कि उस ने अपने कमरे की तरफ मम्मी को आते देखा तो उस ने कहा, ‘‘सुजायजी, अभी कमरे में मम्मी आ रही हैं, मैं बाद में बात करूंगी.’’

‘‘ठीक है रूबीजी, ओके बाय.’’ सुजाय ने इतना ही कहा था कि दूसरी ओर से फोन कट गया.

रूबी से इतनी देर तक बात करना सुजाय को अच्छा लगा. इस बातचीत में 27 साल का सुजाय भले ही उस से उस की उम्र नहीं पूछ सका था, लेकिन उस ने अनुमान जरूर लगा लिया था कि जब वह बीए सेकेंड ईयर में पढ़ रही है तो उस की उम्र 20-22 साल तो होगी ही. और तो और वह यह तक नहीं पूछ सका था कि वह कहां की रहने वाली है और न ही वह भी उसे अपने शहर के बारे में बता पाया.

‘मम्मी आ रही हैं, अब बाद में बात करेंगे’. इन शब्दों ने फिर से बातचीत करने का रास्ता खुला छोड़ दिया था. सुजाय को भी लगा कि रूबी को उस से बात करने में कोई ऐतराज नहीं है. वरना वह काल डिसकनेक्ट करते समय इस तरह की बात क्यों कहती.

रूबी से की गई बातें रात भर सुजाय के दिमाग में घूमती रहीं. की गई बातचीत और आवाज के आधार पर उस ने रूबी की सूरत भी अपने मन में बसा ली थी.

जैसेतैसे रात कट गई. अगले दिन उस का मन बारबार कर रहा था कि वह रूबी से बात करे, लेकिन उस ने यह जान कर फोन नहीं किया कि इस समय वह शायद कालेज जाने की तैयारी कर रही होगी. इसलिए उस ने कालेज टाइम के बाद अपराह्न 3 बजे के करीब रूबी को फोन किया.

चूंकि रूबी ने रात को ही अपने मोबाइल में उस के नंबर को नाम के साथ सेव कर लिया था. फोन की घंटी बजने पर जब उस ने इनकमिंग काल के साथ अपने मोबाइल की स्क्रीन पर सुजाय का नाम आया देखा तो स्वाभाविक तौर पर उस के चेहरे पर मुसकान आ गई. वह बोली, ‘‘हाय, सुजाय कैसे हो?’’

‘‘आई एम फाइन. आप कैसी हैं? रूबीजी, कहीं इस समय आप क्लास में तो नहीं हैं? अगर बिजी होंगी तो मैं बाद में बात कर लूंगा.’’ सुजाय ने कहा.

‘‘नहीं, अब मैं कालेज से घर जा रही हूं. सौरी सुजाय, कल रात कमरे में मम्मी आ गई थीं, इसलिए बात बीच में ही छोड़नी पड़ी थी.’’ चूंकि अब रूबी के परिवार का कोई भी सदस्य उस के आसपास नहीं था, इसलिए उस ने बिना किसी झिझक के सुजाय डे से काफी देर तक बात की.

इस बातचीत में उन्होंने अपने और अपने परिवार के बारे में भी जाना. सुजाय को पता चल गया था कि मुसलिम धर्म की रूबी अविवाहिता है और कर्नाटक के जिला बगालकोट स्थित इलकल कस्बे में अपने मांबाप और भाईबहनों के साथ रहती है. उस के पिता सब्जियों के एक बड़े आढ़ती हैं.

वहीं रूबी को जानकारी हो गई कि सुजाय डे भी अविवाहित है और वह पश्चिम बंगाल के जिला 24 परगना स्थित गोबरडंग गांव का रहने वाला है. इस तरह कई महीने तक उन के बीच फोन पर बातें होती रहीं.

करीब 6-7 साल पहले केवल एक मिस काल से शुरू हुआ बातों का सिलसिला ऐसा चला कि इस का दायरा बढ़ता गया. इस के बाद तो उन के बीच अकसर बात होती रहती थी, इस की एक वजह यह भी थी कि सुजाय को पता लग चुका था कि रूबी भले ही मुसलिम परिवार की है, मगर वह एक बड़े बिजनैसमैन की बेटी है.

दूसरी ओर रूबी भी बातचीत से सुजाय की उम्र, पेशा, परिवार आदि के बारे में जान चुकी थी. फोन पर हुई बातचीत से उसे सुजाय एक अच्छा लड़का लगा था. इस के अलावा उसे यह भी जानकारी मिल चुकी थी कि वह बिजनैसमैन है.

फोन के जरिए वे एकदूसरे से अपने मन की बातें भी कहने लगे थे. बातों ही बातों में उन के बीच प्यार हो गया था.

अपहरण का कारण बना लिव इन रिलेशन – भाग 1

चंद्रा का मायके जाने का प्रोग्राम था, इसलिए उस ने घर का अगले दिन का काफी काम शाम को  ही निपटा दिया था. बचाखुचा काम अगले दिन पूरा कर के वह दोनों बच्चों सोनिया और प्रिंस को ले कर 20 नवंबर, 2013 को नोएडा से बस पकड़ कर दिल्ली आ गई. दिल्ली के सराय कालेखां में उस का मायका था. नानी के घर आ कर दोनों बच्चे बहुत खुश थे.

चंद्रा के मायके के सामने ही दिल्ली नगर निगम का पार्क था. मोहल्ले के अन्य बच्चों के साथ सोनिया और प्रिंस भी सुबह ही पार्क में खेलने के लिए निकल जाते थे. दोनों बच्चों के साथ खेलने में इतने मस्त हो जाते थे कि उन्हें खाना खाने के लिए चंद्रा को बुलाने जाना पड़ता था. चंद्रा सोचती थी कि 2-4 दिनों में वह फिर ससुराल लौट जाएगी और वहां जा कर बच्चे स्कूल के काम में लग जाएंगे, इसलिए वह बच्चों के साथ ज्यादा टोकाटाकी नहीं करती थी.

24 नवंबर की सुबह भी प्रिंस रोजाना की तरह अपनी बहन सोनिया के साथ पार्क में खेलने गया. जब वह खेलतेखेलते थक गया तो पार्क के किनारे बैठ गया और अन्य बच्चों का खेल देखने लगा. उसे वहां बैठे अभी थोड़ी देर ही हुई थी कि 2 आदमी उस के पास आ कर खड़े हो गए. उन का चेहरा रूमाल से ढका हुआ था.

उन में से एक ने प्रिंस को गोद में उठा कर उस का मुंह दबा कर उसे शौल से ढक लिया और पास खड़ी मोटरसाइकिल के पास पहुंच गए. मोटरसाइकिल को पहले से ही एक आदमी स्टार्ट किए उस पर बैठा था. वे दोनों भी मोटरसाइकिल पर उस के पीछे बैठ कर फरार हो गए.

सोनिया ने यह सब खुद अपनी आंखों से देखा, लेकिन डर की वजह से वह कुछ नहीं बोल सकी. वह भागती हुई घर पहुंची और अपनी मां चंद्रा को बताया कि कुछ लोग मोटरसाइकिल पर आए थे और भैया को पकड़ कर ले गए. उन का मुंह ढका हुआ था.

सोनिया की बात सुन कर चंद्रा जल्दी से अपने भाई नरेंद्र के पास पहुंचीं, जो अपने परिवार के साथ ऊपर वाले फ्लोर पर रहते थे. चंद्रा रोते हुए सोनिया द्वारा बताई गई बात अपने भाई नरेंद्र चौधरी को बता दी.

हकीकत जान कर नरेंद्र के भी होश उड़ गए. वह फटाफट घर से बाहर निकला और प्रिंस को सभी संभावित जगहों पर ढूंढ़ने की कोशिश की. मोहल्ले के जिन लोगों को पता चला, वे भी उसे इधरउधर खोजने निकल गए. जब काफी देर की खोजबीन के बाद भी प्रिंस का कहीं पता नहीं चला तो चंद्रा नरेंद्र के साथ सनलाइट कालोनी थाने पहुंची.

थाने में नरेंद्र चौधरी ने पुलिस को सारी बातें बता कर 7 वर्षीय प्रिंस का हुलिया बता दिया. पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भादंवि की धारा 363 के तहत अपहरण का मुकदमा दर्ज कर के प्रिंस की तलाश शुरू कर दी.

काफी कोशिशों के बावजूद पुलिस को प्रिंस का कहीं पता नहीं चल पा रहा था. चूंकि चंद्रा के पास प्रिंस की कोई तसवीर नहीं थी, इसलिए तलाश करने में और भी ज्यादा असुविधा हो रही थी. प्रिंस को गायब हुए 24 घंटे से भी ज्यादा गुजर चुके थे. बेटे का कोई सुराग न मिलने पर चंद्रा की रोरो कर आंखें सूज गई थीं.

26 नवंबर की रात करीब पौने 8 बजे पड़ोस में रहने वाले एक आदमी ने आ कर नरेंद्र चौधरी को बताया, ‘‘अभीअभी किसी ने मेरे मोबाइल पर फोन कर के पूछा है कि आप के पड़ोस में कोई बच्चा गायब हुआ है क्या?’’

नरेंद्र ने सोचा कि हो सकता है जिस आदमी ने फोन किया हो उसे प्रिंस मिल गया हो, इसलिए जिस नंबर से फोन आया था, उन्होंने वह नंबर मिलाया. लेकिन उस नंबर का मोबाइल स्विच्ड औफ था. थोड़ी देर बाद उसी पड़ोसी के नंबर पर फिर काल आई. इस बार नरेंद्र ने फोन रिसीव किया.

‘‘क्या तुम्हारा कोई बच्चा अगवा हो गया है?’’ दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने पूछा.

‘‘हां जी, मेरा भांजा अगवा हुआ है. आप जानते हैं उस के बारे में?’’ नरेंद्र ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘अगर तुम्हें बच्चा सहीसलामत और जिंदा चाहिए तो जैसा हम कहते हैं, वैसा करो.’’ दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने कड़कती आवाज में कहा.

‘‘हां जी, बताइए आप क्या चाहते हैं?’’ नरेंद्र ने पूछा.

‘‘फौरन 14 लाख रुपए का इंतजाम करो और बच्चा ले जाओ. और हां, एक बात ध्यान से सुनो. तुम ने ज्यादा होशियारी की या पुलिस को कुछ भी बताया तो समझो बच्चा हाथ से गया.’’

‘‘जी, मैं समझ गया. मैं पुलिस के पास नहीं जाऊंगा. आप लोग बच्चे को कुछ मत करना, मैं पैसों का बंदोबस्त कर दूंगा. लेकिन 14 लाख रुपए बहुत ज्यादा हैं. आप कुछ कम नहीं कर सकते?’’ नरेंद्र ने गुजारिश करते हुए कहा.

‘‘ठीक है, हम सोच कर बताते हैं.’’ कह कर दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.

पैसे लेने के बाद भी अपहर्त्ता बच्चे को सहीसलामत दे देंगे, इस बात पर नरेंद्र को विश्वास नहीं था. इसलिए उस ने चुपके से फोन वाली बात पुलिस को बता दी. बच्चे के अपहरण की इस वारदात को पुलिस ने गंभीरता से ले कर क्राइम ब्रांच को सौंप दिया.

एडिशनल डीसीपी भीष्म सिंह ने इस मामले को सुलझाने के लिए एसीपी राजाराम के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में एसआई रविंदर तेवतिया, रविंद्र वर्मा, एन.एस. राना, एएसआई धर्मेंद्र, हेडकांस्टेबल विक्रम दत्त, अजय शर्मा, दिनेश, कांस्टेबल मोहित, मनोज, प्रेमपाल, सुरेंदर, राकेश, देवेंद्र, कुसुमपाल, उदयराम और सुरेंद्र आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले उस मोबाइल फोन की जांच की, जिस से अपहर्त्ताओं ने फोन किए थे. इस से पता चला कि उस की लोकेशन सराय कालेखां की आ रही थी. बच्चा सराय कालेखां से ही उठाया गया था और उसी इलाके में अपहर्त्ताओं के फोन की लोकेशन आ रही थी. पुलिस को लगा कि बच्चे को शायद वहीं कहीं छिपा कर रखा गया है. इसलिए पुलिस ने वहां के हर घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी. लेकिन वहां बच्चा नहीं मिला.

पुलिस के पूछने पर प्रिंस के घर वालों ने अपने एक परिचित पर शक जताया, जिस के बाद पुलिस ने उस परिचित को हिरासत में ले कर पूछताछ की. लेकिन उस से कोई सुराग हाथ नहीं लग पाया तो पुलिस ने उसे छोड़ दिया.

अगले दिन यानी 27 नवंबर को दोपहर करीब 12 बजे अपहर्त्ता ने फिर से उसी पड़ोसी के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन इस बार उन्होंने किसी दूसरे नंबर का इस्तेमाल किया था. काल नरेंद्र चौधरी ने रिसीव की. फोन करने वाले ने नरेंद्र चौधरी से सीधे पूछा, ‘‘पैसों का इंतजाम हो गया या नहीं?’’

‘‘जी, हम ने पैसों का इंतजाम कर लिया है. आप यह बताइए कि पैसे ले कर हम कहां आएं?’’

बिना कुछ कहे ही दूसरी तरफ से फोन कट गया. बाद में नरेंद्र ने वह नंबर कई बार मिलाया, लेकिन हर बार स्विच्ड औफ मिला. अब उन लोगों के अगले फोन का इंतजार करने के अलावा नरेंद्र के पास कोई दूसरा उपाय नहीं था.

उसी दिन शाम को करीब 4 बजे फिर काल आई. इस बार भी अपहर्त्ता ने पैसों के इंतजाम के बारे में पूछा. नरेंद्र ने पैसे तैयार होने की बात कर पूछा कि पैसे कहां पहुंचाने हैं? अपहर्त्ता ने सिर्फ इतना ही कहा कि जगह बाद में बताएंगे. इस बार भी नए नंबर से काल आई थी.

नरेंद्र ने यह बात भी जांच टीम को बता दी. चूंकि अपहर्त्ताओं की तरफ से जो भी फोन आए, वह पड़ोसी के ही मोबाइल पर आए थे, इसलिए पुलिस को शक हो रहा था कि बच्चे को अगवा करने में किसी जानपहचान वाले का हाथ हो सकता है.

प्यार की जीत : सुनीता और सुमेर की प्रेम कहानी

दांपत्य की लालसा

मंगेतर की कब्र पर रासलीला

दगा दे गई सोशल मीडिया की गर्लफ्रैंड

खूनी बन गई झूठी मोहब्बत

19 मार्च, 2018 की सुबह कमलप्रीत कौर अपने पति हरजिंदर सिंह से यह कहते हुए घर से निकली थी कि उस के मायके में किसी की तबीयत खराब है, इसलिए वह राहुल को ले कर वहां जा रही है. पत्नी की यह बात सुन र हरजिंदर ने कहा, ‘‘ठीक है, हो आओ. ज्यादा परेशानी वाली बात हो तो तुम मुझे फोन कर देना. मैं भी पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘हां, तुम्हारी जरूरत हुई तो फोन कर दूंगी और कोई ज्यादा चिंता वाली बात नहीं हुई तो 2 दिन में वापस लौट आऊंगी.’’ कमलप्रीत बोली.

मूलरूप से पंजाब के जिला पटियाला के गांव बल्लोपुर की रहने वाली थी कमलप्रीत. करीब 12 साल पहले जब वह 19 बरस की थी, तब उस की शादी हरियाणा के गांव गणौली के रहने वाले हरजिंदर सिंह से हुई थी. यह गांव जिला अंबाला की तहसील नारायणगढ़ के तहत आता है.शादी के ठीक एक साल बाद कमलप्रीत ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम राहुल रखा गया. इन दिनों वह गांव के सरकारी स्कूल में 5वीं कक्षा में पढ़ रहा था.

हरजिंदर का अपना खेतीबाड़ी का काम था, जिस में वह काफी व्यस्त रहता था. कमलप्रीत घर पर रहते हुए चौकेचूल्हे से ले कर सब कम संभाले हुए थी. जो भी था, सब बड़े अच्छे से चल रहा था. पतिपत्नी में खूब प्यार था. दोनों में अच्छी अंडरस्टैंडिंग भी थी. दोनों अपने बच्चों का भी सलीके से ध्यान रखे हुए थे.

काफी दिनों से राहुल पिता से कहीं घुमा लाने की जिद कर रहा था तो पिता ने उस से पक्का वादा किया था कि वह उस के इम्तिहान खत्म होने के बाद उसे 2 दिन के लिए घुमाने शिमला ले चलेगा. मगर पेपर खत्म होने के अगले रोज ही उसे अपनी मां के साथ नानी के यहां जाना पड़ गया. पत्नी के मायके जाने वाली बात पर हरजिंदर को कोई परेशानी वाली बात नहीं थी. पति की निगाह में कमलप्रीत एक सुलझी हुई मेहनती औरत थी, जो ससुराल के साथसाथ अपने मायके वालों का भी पूरा ध्यान रखती थी.

सुखदुख में वह अपने अन्य रिश्तेदारों के यहां भी अकेली आयाजाया करती थी. कुल मिला कर बात यह थी कि हरजिंदर को पत्नी की तरफ से कोई चिंता नहीं थी. इसलिए जब वह 19 मार्च को बेटे के साथ मायके के लिए घर से अकेली निकली तो हरजिंदर ने कोई चिंता नहीं की.

उसी रोज शाम के समय हरजिंदर ने पत्नी को यूं ही रूटीन में फोन कर के पूछा, ‘‘हां कमल, पहुंचने में कोई परेशानी तो नहीं हुई? बल्लोपुर पहुंच कर तुम ने फोन भी नहीं किया?’’

‘‘हांहां…वो ऐसा है कि अभी मैं बल्लोपुर नहीं पहुंच पाई.’’ कमलप्रीत बोली तो उस की आवाज में हकलाहट थी.

society

पत्नी की ऐसी आवाज सुन कर हरजिंदर को थोड़ी घबराहट होने लगी. उस ने पूछा, ‘‘बल्लोपुर नहीं पहुंची तो फिर कहां हो?’’

‘‘अभी मैं शहजादपुर में हूं. किसी जरूरी काम से मुझे यहां रुकना पड़ गया.’’ कमलप्रीत ने पहले वाले लहजे में ही जवाब दिया.

‘‘शहजादपुर में ऐसा क्या काम पड़ गया तुम्हें? वहां तुम किस के यहां रुकी हो? सब ठीक तो है न? बताओ, कोई परेशानी हो तो मैं भी आ जाऊं क्या?’’

‘‘सब ठीक है, घबराने वाली कोई बात नहीं है. अच्छा, मैं फ्री हो कर अभी कुछ देर बाद फोन करती हूं. तब सब कुछ विस्तार से भी बता दूंगी.’’ कहने के साथ ही कमलप्रीत की ओर काल डिसकनेक्ट कर दी गई.

लेकिन हरजिंदर की घबराहट बढ़ गई थी. उस ने कमलप्रीत का नंबर फिर से मिला दिया. पर अब उस का फोन स्विच्ड औफ हो चुका था.

अचानक यह सब होने पर हरजिंदर का फिक्रमंद हो जाना लाजिमी था. कुछ नहीं सूझा तो उस ने उसी समय अपनी ससुराल के लैंडलाइन नंबर पर फोन किया. यहां से उसे जो जानकारी मिली, उस से उस के पैरों तले की जमीन सरक गई. ससुराल से उसे बताया गया कि यहां तो घर में कोई बीमार नहीं है और न ही कमलप्रीत के वहां आने की किसी को कोई जानकारी थी.

अब हरजिंदर के लिए एक मिनट भी रुके रहना संभव नहीं था. उस ने अपनी मोटरसाइकिल उठाई और शहजादपुर की ओर रवाना हो गया. रास्ते भर वह कमलप्रीत को फोन भी मिलाता रहा था, पर हर बार उसे फोन के स्विच्ड औफ होने की ही जानकारी मिलती रही.

आखिर वह शहजादपुर जा पहुंचा. पत्नी और बच्चे की तलाश में उस ने उस गांव का चप्पाचप्पा छान मारा मगर पत्नी और बेटे राहुल के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. वहां से वह मोटरसाइकिल से ही अपनी ससुराल बल्लोपुर चला गया. कमलप्रीत को ले कर वहां भी सब परेशान हो रहे थे.

इस के बाद तो हरजिंदर सिंह और उस की ससुराल वालों ने कमलप्रीत व राहुल की जैसे युद्धस्तर पर तलाश शुरू कर दी. मगर कहीं भी दोनों मांबेटे के बारे में जानकारी हाथ नहीं लगी.

19 मार्च, 2018 का दिन तो गुजर ही गया था, पूरी रात भी निकल गई. 20 मार्च को भी दोपहर तक तलाश करते रहने के बाद सभी निराश हो गए तो हरजिंदर शहजादपुर थाने पहुंच गया. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह को उस ने पत्नी और बेटे के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जानकारी दे दी. थानाप्रभारी ने कमलप्रीत और उस के बेटे राहुल की गुमशुदगी दर्ज कर ली. पुलिस ने अपने स्तर से दोनों मांबेटे को ढूंढने की काररवाई शुरू कर दी.

देखतेदेखते इस बात को एक सप्ताह गुजर गया, मगर पुलिस भी इस मामले में कुछ कर पाने में असफल रही.

बात 26 मार्च, 2018 की थी. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह उस वक्त अपने औफिस में थे. तभी एक अधेड़ उम्र के शख्स ने उन के सामने आ कर दोनों हाथ जोड़ते हुए दयनीय भाव से कहा, ‘‘सर, मेरा नाम ओमप्रकाश है और मैं यमुनानगर में रहता हूं.’’

‘‘जी हां, कहिए.’’ शैलेंद्र सिंह बोले.

‘‘अब क्या कहूं सर, एक भारी मुसीबत आन पड़ी है हमारे परिवार पर.’’

‘‘हांहां बताइए, क्या परेशानी है?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

society

‘‘सर, मेरा एक भांजा है नीटू. उम्र उस की करीब 21 साल है. किसी बात पर उस का एक औरत से झगड़ा हुआ और हाथापाई में वह औरत मर गई. उस ने उस की लाश को कहीं ले जा कर दफन कर दिया. जब इस की जानकारी मुझे हुई तो हम ने उसे समझाया कि गलती हो जाने पर कानून से आंखमिचौली खेलने के बजाय पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना ही बेहतर होगा.’’ ओमप्रकाश ने बताया.

इस पर एकबारगी तो शैलेंद्र सिंह चौंके. फिर खुद को संभालने का प्रयास करते हुए बोले, ‘‘मतलब यह कि आप के भांजे ने किसी की जान ली, फिर उस की लाश भी ठिकाने लगा दी. अब सरेंडर का प्रस्ताव लेकर आए हो. तो यह भी बता दो कि किन शर्तों पर सरेंडर करवाओगे?’’

‘‘कोई शर्त नहीं सर. लड़का आप के सामने तो अपना अपराध कबूलेगा ही, अदालत में भी ठीक ऐसा ही बयान देगा. भले उसे कितनी भी सजा क्यों न हो जाए. बस आप से हमें सिर्फ इतना सहयोग चाहिए कि थाने में उस पर ज्यादा सख्ती न हो.’’ ओमप्रकाश ने कहा.

‘‘देखो, अगर वह हमें सहयोग करते हुए सच्चाई बयान करता रहेगा तो हमें क्या जरूरत पड़ी है उस से सख्ती से पेश आने की. जाओ, लड़के को ला कर पेश कर दो. यदि वह सच्चा है तो यहां उस के साथ किसी तरह की ज्यादती नहीं होगी.’’

‘‘ठीक है सर, मैं समझ गया. लड़का थाने के बाहर ही खड़ा है. मैं अभी उसे ला कर आप के सामने पेश करता हूं.’’ कहने के साथ ही ओमप्रकाश बाहर गया और थोड़ी ही देर में एक लड़के को ले कर थाने में आ गया.

‘‘यही है मेरा भांजा नीटू, सर.’’ उस ने बताया.

जिस वक्त ओमप्रकाश नीटू को ले कर थानाप्रभारी के औफिस में पहुंचा था, पुलिस वाले बगल वाले कमरे में एक अभियुक्त से गहन पूछताछ कर रहे थे. जरा सी देर में वहां से चीखचिल्लाहट की भयावह आवाजें आने लगी थीं.

ये आवाजें सुन कर नीटू थरथर कांपने लगा. फिर वह दबी सी आवाज में ओमप्रकाश से बोला, ‘‘मामा, ये लोग मेरा भी क्या ऐसा ही हाल करेंगे?’’

‘‘नहीं करेंगे बेटा, मैं ने एसएचओ साहब से सारी बात कर ली है. फिर जब तुम एकदम सच्चाई बयान कर ही रहे हो तो फिर डर कैसा?’’ ओमप्रकाश ने समझाया.

‘‘यही तो डर है मामा, मैं ने आप को भी पूरी सच्चाई नहीं बताई. दरअसल, मैं ने औरत के साथसाथ उस के बेटे का भी मर्डर कर दिया है और दोनों की लाशें एक साथ दफनाई हैं.’’

नीटू की यह बात थानाप्रभारी के कानों तक भी पहुंच गई थी. उन्होंने नीटू को खा जाने वाली नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘मुझे पहले ही से शक था कि तुम्हारे अपराध का संबंध गणौली की कमलप्रीत और उस के बच्चे की गुमशुदगी से है.

अब तुम्हारे लिए बेहतर यही है कि तुम अपने घिनौने अपराध की सच्ची दास्तान अपने मामा को बता दो, वरना दूसरे तरीके से सच्चाई उगलवानी भी आती है.’’

थानाप्रभारी के इतना कहते ही ओमप्रकाश नीटू को ले कर एक दूसरे कमरे में ले गया. इस के बाद नीटू ने अपने अपराध की पूरी कहानी मामा को बता दी. नीटू के बताने के बाद ओमप्रकाश ने सारी कहानी थानाप्रभारी को बता दी.

थानाप्रभारी ने ओमप्रकाश के बयान दर्ज करने के बाद उसे घर भेज दिया फिर नीटू को गिरफ्तार कर उसे अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस से व्यापक पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने जो कुछ पुलिस को बताया, उस से अपराध की एक सनसनीखेज कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

करीब एक साल पहले की बात है. अपनी रिश्तेदारी के एक शादी समारोह में शामिल होने के लिए कमलप्रीत अकेली नारायणगढ़ के बड़ागांव गई थी. वहां जब वह नाचने लगी तो एक लड़के ने भी उस का खूब साथ दिया. उस ने बहुत अच्छा डांस किया था.

इस डांस के बाद भी दोनों एक साथ बैठ कर बतियाते रहे. लड़के ने अपना नाम सुमित उर्फ नीटू कहते हुए बताया कि यों तो वह शहजादपुर का रहने वाला है, मगर बड़ागांव में किराए का कमरा ले कर एक कंप्टीशन की तैयारी कर रहा है.

society

कमलप्रीत उस की बातों से तो प्रभावित हो ही रही थी, उस का सेवाभाव भी उसे खूब पसंद आया. कमलप्रीत तो थकहार कर एक जगह बैठ गई थी, पार्टी में खाने की जिस चीज का भी उस ने जिक्र किया, वह ला कर उसे वहीं बैठी को खिलाता रहा.

इसी तरह काफी रात गुजर जाने पर कमलप्रीत को नींद सताने लगी. नीटू ने सुझाव दिया कि वह उसे अपने कमरे पर छोड़ आता है, जहां वह बिना किसी शोरशराबे के आराम से सो सकती है. थोड़ी झिझक के बाद वह मान गई.

अब तक नीटू को भी नींद आने लगी थी. अत: कमरे में चारपाई पर कमलप्रीत को सुलाने के बाद वह खुद भी जमीन पर दरी बिछा कर सो गया.

आगे का सिलसिला शायद इन के वश में नहीं था. रात के जाने किस पहर में दोनों की एक साथ आंखें खुलीं और बिना आगेपीछे की सोचे, दोनों एकदूसरे में समा गए. कमलप्रीत से नीटू 10 साल छोटा था, अत: उस मिलन के बाद कमलप्रीत उस की दीवानी हो गई. इस के बाद यही सिलसिला चल निकला. दोनों किसी न किसी तरीके से, कहीं न कहीं मौजमस्ती करने का तरीका निकाल लेते.

देखतेदेखते एक बरस गुजर गया. अब कमलप्रीत ने नीटू से यह कहना शुरू कर दिया था कि वह अपने पति को तलाक दे कर उस से शादी कर लेगी. मौजमस्ती तक तो ठीक था, कमलप्रीत की इस बात ने नीटू को परेशान कर डाला.

नीटू ने इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए आखिर मन ही मन यह निर्णय लिया कि वह कमलप्रीत को अच्छी तरह से समझाएगा. फिर भी न मानी तो वह उस का खून कर देगा. इस के लिए उस ने एक चाकू भी खरीद कर रख लिया था.

19 मार्च, 2018 की सुबह कमलप्रीत उस के यहां आ धमकी. उस के साथ एक लड़का था, जिसे उस ने अपना बेटा बताया. आते ही उस ने कहा कि वह अपने पति को हमेशा के लिए छोड़ आई है. आगे वह उस से शादी कर के अपने लड़के सहित उसी के साथ रहेगी.

नीटू ने उसे समझाने की कोशिश की. लगातार समझाते समझाते पूरा दिन और सारी रात भी निकल गई. मगर वह अपनी जिद पर अड़ी रही तो 20 मार्च को नीटू ने चाकू से कमलप्रीत की हत्या कर दी.

यह देख कर उस का लड़का राहुल सहम गया. मगर वह इस मर्डर का चश्मदीद गवाह बन सकता था. इसलिए नीटू ने चाकू से उस का भी गला रेत दिया. दोनों लाशों को कमरे में छिपा कर नीटू अमृतसर चला गया.

वहां गोल्डन टेंपल में उस ने वाहेगुरु से अपने इस गुनाह की माफी मांगी. रात में वापस आ कर बड़ागांव के पास से गुजर रही बेगना नदी की तलहटी में दोनों लाशों को दफन कर आया. इस के बाद वह अपने मामा के पास यमुनानगर चला गया, जिन्होंने उसे पुलिस के सामने सरेंडर करने का सुझाव दिया था.

पुलिस ने उस की निशानदेही पर न केवल चाकू बरामद किया बल्कि दोनों लाशें भी खोज लीं, जो जरूरी काररवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर नीटू को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में अंबाला की केंद्रीय जेल भेज दिया गया था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित