प्यार का बदसूरत चेहरा

बर्दाश्त नहीं हुई बेवफाई – भाग 3

पहले तो ओमवीर को विश्वास नहीं हुआ. उसे हसीन सपने दिखाने वाली पूजा किसी दूसरे से कैसे प्यार कर सकती है? लेकिन जब उसे पूजा के बदले व्यवहार की याद आई तो गुस्से में वह पागल हो उठा. क्योंकि उस ने दिमाग में बैठा लिया था कि पूजा उस की है और उसी की रहेगी. वह किसी दूसरे की कैसे हो सकती है. अपनी यह बात कहने के लिए वह पूजा से मिलने का मौका तलाशने लगा. पूजा उसे मिली तो उस ने उस का हाथ पकड़ कर चेतावनी वाले अंदाज में कहा, ‘‘पूजा, तुम ने मेरी मोहब्बत को ठुकरा कर अच्छा नहीं किया. एक बात याद रखना, मैं तुम्हें किसी दूसरे की कतई नहीं होने दूंगा.’’

पूजा ने झटके से हाथ छुड़ा कर कहा, ‘‘आज के बाद अगर तुम ने मेरा रास्ता रोका तो ठीक नहीं होगा. मैं आज ही तुम्हारी शिकायत घर में करूंगी.’’

पूजा ने कहा ही नहीं, आ कर पिता से ओमवीर की शिकायत कर भी दी. अनोखेलाल ने ओमवीर की शिकायत नेम सिंह से की तो उस ने कहा, ‘‘तुम निश्चिंत रहो, मैं उसे समझा दूंगा.’’

नेम सिंह ने बेटे को समझाया जरूर, लेकिन उस के मन में क्या है, यह वह भी नहीं जान सका. ओमवीर प्रेमिका की बेवफाई की आग में जल रहा था. इस आग को शांत करने के लिए उस ने तय कर लिया कि अब वह उसे उस की बेवफाई की सजा जरूर देगा. उस का प्यार पूरी तरह नफरत में बदल चुका था. जबकि पूजा इस सब से बेखबर थी.

ओमवीर मौके की तलाश में था. 17 अक्तूबर, 2013 को वह पूजा के स्कूल जाने वाले रास्ते पर हंसिया ले कर खड़ा हो गया. पूजा अब निश्चिंत थी कि उस ने ओमवीर की शिकायत अपने पिता से कर दी है, इसलिए वह उस के रास्ते में नहीं आएगा. अनोखेलाल भी निश्चिंत था कि उस ने नेम सिंह से शिकायत कर दी है, इसलिए उस ने ओमवीर को डांटफटकार दिया होगा. जबकि ओमवीर अपनी जिद पर अड़ा था. नगला टिकुरिया से नगला भुलरिया तक जाने का रास्ता सुनसान रहता था. पूजा अपनी 2 सहेलियों के स्कूल जा रही थी. बीच रास्ते में आमेवीर ने उसे रोक कर कहा, ‘‘पूजा, तुम मेरे साथ चलो.’’

‘‘यह क्या बदतमीजी है. मुझे स्कूल के लिए देर हो रही है.’’ पूजा ने गुस्से में कहा.

ओमवीर ने हंसिया लहराते हुए कहा, ‘‘अगर किसी ने मुझे रोकने की कोशिश की तो काट कर रख दूंगा.’’

हंसिया देख कर पूजा की सहेलियां बगल हो गईं. इस के बाद ओमवीर पूजा को खेत में खींच ले गया. दोनों लड़कियों की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें? वे कुछ करने की सोच ही रही थीं कि उन्हे पूजा की चीख सुनाई दी. वे समझ गईं कि क्या हुआ है. दोनों कालेज की ओर भागीं.  कालेज पहुंच कर उन्होंने प्रिंसिपल को पूरी बात बताई. प्रिंसिपल ने तुरंत पुलिस को फोन किया.

दूसरी ओर आमेवीर ने पूजा पर हंसिए से वार किया तो वह जान की भीख मांगने लगी. लेकिन ओमवीर पर तो शैतान सवार था. उस ने पूजा की गर्दन पर लगातार कई वार किए. जब उसे लगा कि पूजा मर गई है तो वह भाग निकला.

थोड़ी ही देर में पूरे इलाके में खबर फैल गई कि एक लड़के ने किसी लड़की की हत्या कर दी है. लोग वहां पहुंचने लगे. सूचना पा कर थाना अमांपुर पुलिस भी आ गई. अनोखेलाल ने भी सुना कि किसी लड़की की हत्या कर दी गई है तो उत्सुकतावश वह भी वहां पहुंच गया. जब उस ने लाश देखी तो पता चला कि वह तो उस की बेटी पूजा है. वह सिर पीटपीट कर रोने लगा.

घटनास्थल पर आई पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि मृतका इसी की कोई है. लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर रहे थाना अमांपुर के थानाप्रभारी ने जब अनोखेलाल से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मृतका उस की बेटी पूजा है. जिस की हत्या गांव के ही ओमवीर ने की है. सूचना पा कर एसपी विनय कुमार यादव, एएसपी आर.एन. शर्मा और सीओ सरबजीत सिंह भी आ गए थे.

पुलिस अधिकारियों ने गांव वालों से पूछताछ की तो लोगों ने बताया कि आरोपी ओमवीर के पिता नेम सिंह पर भी कत्ल का मुकदमा चल रहा है. इस समय वह जमानत पर छूट कर आया है. उस ने मृतका के दादा की हत्या की थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

अनोखेलाल की ओर से थाना अमांपुर पुलिस ने पूजा की हत्या का मुकदमा ओमवीर, उस के भाई मुकेश तथा पिता नेम सिंह के खिलाफ दर्ज कर लिया. पुलिस ने उसी दिन रात को ओमवीर को गिरफ्तार कर लिया, जबकि मुकेश और नेम सिंह फरार हो गए थे. पूछताछ में ओमवीर ने अपना अपराध स्वीकार कर के हत्या में प्रयुक्त हंसिया भी बरामद करा दिया था.

अगले दिन पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मुखबिरों की मदद से पुलिस ने 27 अक्तूबर, 2013 को लखीमपुर से मुकेश को भी गिरफ्तार कर लिया. उस से की गई पूछताछ के आधार नेम सिंह भी पकड़ा गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने इन दोनों को भी अदालत में पेश किया, जहां से इन्हें भी जेल भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बर्दाश्त नहीं हुई बेवफाई – भाग 2

मामला इज्जत का था, इसलिए अनोखेलाल से रहा नहीं गया. न चाहते हुए भी उस ने पूजा से पूछ ही लिया, ‘‘तुम्हारा और ओमवीर का क्या चक्कर है?’’

एकाएक बाप के इस सवाल से पूजा घबरा गई. उस का कलेजा धड़कने लगा. कांपते स्वर में बोली, ‘‘मैं समझी नहीं पापा.’’

‘‘देखो बेटा, ओमवीर हमारे दुश्मन का बेटा है. उस के बाप ने हमारे ताऊ की हत्या की है. इसलिए तुम्हारा उस से दूर रहना ही ठीक रहेगा.’’

पिता की इन बातों से पूजा समझ गई कि आगे का रास्ता कांटों भरा है. पूजा ने कोई जवाब नहीं दिया, इसलिए अनोखेलाल को लगा कि बेटी उस के कहने का मतलब समझ गई है. वह निश्चिंत हो गया. लेकिन पूजा को अब परिवार से ज्यादा ओमवीर प्रिय लगने लगा था. ओमवीर मिला तो उस ने कहा, ‘‘ओमवीर अगर तुम अपनी मोहब्बत को पाना चाहते हो तो कोई कामधाम करो, जिस से वक्तजरूरत हम कहीं लुकछिप कर रह सकें. अगर इसी तरह घूमते रहे तो मुझे खो दोगे. और हां, पापा को कहीं से हमारे मिलनेजुलने का पता चल गया है. इसलिए अब बहुत संभल कर मिलना.’’

इस के बाद ओमवीर काम के लिए इधरउधर हाथपैर मारने लगा. क्योंकि अपने प्यार को पाने के लिए उस पर जुनून सवार था. आसपास उसे कोई काम नहीं मिला तो उस ने सूरत में रहने वाले अपने एक दोस्त को फोन किया. उस का वह दोस्त वहां किसी कपड़े की फैक्ट्री में नौकरी करता था. ओमवीर ने उस से कोई काम दिलाने को कहा तो उस ने उसे सूरत बुला लिया. ओमवीर जानता था कि गांव में रहते हुए वह पूजा को कभी नहीं पा सकेगा. क्योंकि पूजा के घर वालों से उस की ऐसी दुश्मनी थी कि कभी सुलह हो ही नहीं सकती थी. इसलिए पूजा को पाने के लिए उसे भगा कर ले जाना पड़ेगा.

यही वजह थी कि वह दोस्त के कहने पर सूरत चला गया. पूजा ने भी उसे विश्वास दिलाया था कि वह उस के लौटने का इंतजार करेगी. इसलिए ओमवीर निश्चिंत हो कर चला गया था.

दोस्त ने सूरत में ओमवीर को काम दिला दिया था. वह वहां आराम से नौकरी करने लगा था. दूसरेतीसरे दिन वह फोन से पूजा से बात कर लेता था. कुछ दिनों तक तो यह सिलसिला ठीकठाक चलता रहा, लेकिन धीरेधीरे पूजा की ओर से आने वाले फोन कम होने लगे. ओमवीर उसे फोन करता तो बातचीत से उसे लगता कि पूजा अब पहले की तरह उस से बात नहीं करती. उसे बात करने के बजाय फोन काटने में ज्यादा रुचि रहती है. कुछ दिनों बाद पूजा का फोन स्विच औफ बताने लगा.

ओमवीर परेशान हो उठा. पूजा का फोन बंद हो गया था. उस ने उसे अपना नया नंबर भी नहीं दिया था. उसे लगा, पूजा किसी परेशानी में पड़ गई है. अब उसे सूरत आने का पछतावा होने लगा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्या हो गया कि पूजा उस से बात नहीं कर रही है. उसी बीच गांव गया एक लड़का सूरत आया तो ओमवीर ने उस से गांव का हालचाल पूछा. इस के बाद उस ने पूजा के बारे में पूछा तो उस लड़के ने कहा, ‘‘वह तो मजे में है. मस्ती में घूम रही है.’’

पूजा मजे में है, मस्ती में घूम रही है, यह बात ओमवीर के गले नहीं उतरी. उस के बिना पूजा मजे में कैसे रह सकती है? क्योंकि उस के सूरत आते समय पूजा कह रही थी कि वह उस से दूर रह कर जी नहीं पाएगी. तरहतरह की बातें सोच कर ओमवीर को लगा कि अब यहां उस का रहना ठीक नहीं है. अगर वह यहां रहा तो उस का प्यार उस का नहीं रहेगा.

यही सोच कर ओमवीर लगीलगाई नौकरी छोड़ कर गांव वापस आ गया. घर वालों से उस ने बताया कि वह छुट्टी ले कर आया है. जबकि वह नौकरी छोड़ कर आया था.

अगले ही दिन वह पूजा से मिलने के लिए स्कूल जाने वाले रास्ते पर खड़ा हो गया. पूजा उसे देख कर हैरान रह गई. वह सहेलियों के साथ थी, इसलिए ओमवीर ने उस से सिर्फ यही कहा था कि वह शाम को तालाब पर उस का इंतजार करेगा. अगर वह तालाब पर नहीं आएगी तो वह उस के घर पहुंच जाएगा.

पूजा बिना कुछ कहे चली गई. पूजा के इस व्यवहार से ओमवीर को गुस्सा तो बहुत आया था, लेकिन वह कुछ कह नहीं सका था. उसे अहसास हो गया कि दाल में कुछ काला जरूर है. अब उसे शाम का इंतजार था. उसे पता था कि पूजा उस के जुनूनी प्यार को बखूबी जानती है, इसलिए शाम को तालाब पर आएगी जरूर. किसी तरह दिन बिता कर शाम होते ही वह तालाब पर पहुंच गया. थोड़ी देर में पूजा आती दिखाई दी तो उस ने राहत की सांसें ली. आते ही पूजा ने पूछा, ‘‘बोलो, क्या बात है?’’

‘‘यह क्या, पहले तो तुम्हें यह पूछना चाहिए कि मैं वापस क्यों आ गया?’’

‘‘मैं ने नहीं पूछा तो चलो तुम खुद ही बता दो.’’ पूजा ने कहा.

‘‘तुम ने अपना पुराना नंबर बंद कर दिया और नया नंबर नहीं दिया तो मजबूर हो कर मुझे वापस आना पड़ा.’’ कह कर ओमवीर ने पूजा का हाथ पकड़ना चाहा तो उस ने अपना हाथ पीछे खींच लिया.

‘‘बस, इतनी सी बात के लिए तुम अपनी लगीलगाई नौकरी छोड़ कर चले आए. तुम तो जानते ही हो कि इस साल मेरी बोर्ड की परीक्षा है. मैं पढ़ाई में लगी हूं. फिलहाल फालतू की बातों के लिए मेरे पास समय नहीं है.’’

‘‘क्या कहा, मेरा प्यार अब फालतू की बात हो गया. तुम्हारी ही वजह से मैं सूरत में पड़ा था और तुम्हारी ही वजह से लगी लगाई नौकरी छोड़ आया हूं. अब तुम्हारे पास मेरे लिए समय नहीं है. लगता है, तुम बदल गई हो?’’

‘‘तुम ने तो पढ़ाई छोड़ दी है, इसलिए पढ़ाई के महत्त्व को तुम समझ नहीं सकते. लेकिन मुझे पढ़ाई के महत्त्व का पता है. इसलिए मैं अभी फालतू की बातों में पड़ कर डिस्टर्ब नहीं होना चाहती.’’

‘‘मेरे प्यार का क्या होगा?’’ ओमवीर ने पूछा तो पूजा बोली, ‘‘पहले पढ़ाई, उस के बाद प्यार. वैसे भी हमारे और तुम्हारे यहां से दुश्मनी है. मेरे घर वाले कतई नहीं चाहेंगे कि मैं तुम से संबंध रखूं.’’

ओमवीर समझ गया कि अब यह पहले वाली पूजा नहीं रही. यह बदल गई है. इस बदलाव के पीछे जरूर कोई राज है. पूजा जाने लगी तो उस ने पूछा, ‘‘अब कब मिलोगी?’’

‘‘तुम्हें सूरत जा कर अपनी नौकरी करनी चाहिए,’’ पूजा ने कहा, ‘‘यहां मेरे पीछे नहीं घूमना चाहिए.’’

ओमवीर के गांव आने से अनोखेलाल परेशान हो उठा था. क्योंकि वह जानता था कि अब गांव वाले फिर पूजा और ओमवीर को ले कर तरहतरह की चर्चाएं करेंगे.

दूसरी ओर ओमवीर इस बात को ले कर परेशान था कि पूजा उस की उपेक्षा क्यों कर रही है. इस के समाधान के लिए एक दिन उस ने पूजा को फिर घेरा. तब पूजा ने कहा, ‘‘मुझे अपनी पढ़ाई की चिंता है और तुम्हें अपने प्यार की पड़ी है. तुम्हारे इस प्यार से पेट भरने वाला नहीं है. भूखे पेट प्यार भी अच्छा नहीं लगता. मेरी तुम से यही प्रार्थना है कि तुम अपने काम से काम रखो और मुझे अपना काम करने दो.’’

पूजा के इस व्यवहार से ओमवीर परेशान था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर पूजा बदल क्यों गई? अचानक उसे खयाल आया कि कहीं पूजा किसी दूसरे से तो प्यार नहीं करने लगी. इस के बाद वह अपने हिसाब से इस बारे में पता करने लगा. थोड़े प्रयास के बाद उसे पता चला कि पूजा का अब अल्लीपुर के योगेंद्र से चक्कर चल रहा है.

बर्दाश्त नहीं हुई बेवफाई – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला कासगंज के थाना अमांपुर के गांव टिकुरिया के रहने वाले अनोखेलाल की पत्नी बेटी को जनम दे कर गुजर गई थी. सब  इस बात को ले कर परेशान थे कि उस नवजात बच्ची को कौन संभालेगा. लेकिन उस बच्ची की जिम्मेदारी अनोखेलाल की बहन ने ले ली तो उसे अपने अन्य बच्चों की चिंता हुई. उस के 3 बच्चे और थे. जिन में सब से बड़ी बेटी अनिता थी तो उस के बाद बेटा सुनील तो उस से छोटी पूजा.

पत्नी की मौत के बाद बड़ी बेटी अनिता ने घर संभाल लिया था. अपनी जिम्मेदारी निभाने में उस की पढ़ाई जरूर छूट गई थी, लेकिन भाईबहनों की ओर से उस ने बाप को निश्चिंत कर दिया था. घरपरिवार संभालने के चक्कर में बड़ी बेटी की पढ़ाई छूट ही गई थी. अब अनोखेलाल सुनील और पूजा को खूब पढ़ाना चाहता था.

पूजा खूबसूरत थी ही, पढ़ाई में भी ठीकठाक थी. उस का व्यवहार भी बहुत अच्छा था, इसलिए उस से घर वाले ही नहीं, सभी खुश रहते थे. समय के साथ अनोखेलाल पत्नी का दुख भूलने लगा था. अब उस का एक ही उद्देश्य रह गया था कि किसी तरह बच्चों की जिंदगी संवर जाए. बाप बच्चों का कितना भी खयाल रखे, मां की बराबरी कतई नहीं कर सकता. इस की वजह यह होती है कि पिता को घर के बाहर के भी काम देखने पड़ते हैं.

अनोखेलाल की छोटी बेटी पूजा हाईस्कूल में पढ़ रही थी. वह पढ़लिख कर अध्यापिका बनना चाहती थी. इस के लिए वह मेहनत भी खूब कर रही थी. लेकिन जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही वह मोहब्बत के जाल में ऐसी उलझी कि उस का सपना ही नहीं टूटा, बल्कि जिंदगी से ही हाथ धो बैठी.

गांव का ही रहने वाला ओमवीर अचानक पूजा की जिंदगी में आ गया. जबकि ओमवीर और पूजा के घर वालों के बीच बरसों से दुश्मनी चली आ रही थी.

ओमवीर के पिता नेम सिंह ने पूजा के दादा गंगा सिंह (अनोखेलाल के ताऊ) की हत्या कर दी थी. हत्या के इस मामले में वह जेल भी गया था. कुछ दिनों पहले ही वह जमानत पर जेल से बाहर आया था. इतनी बड़ी दुश्मनी होने के बावजूद पूजा ओमवीर को दिल दे बैठी थी.

स्कूल आतेजाते जब कभी पूजा दिखाई दे जाती, ओमवीर उसे चाहतभरी नजरों से ताकता रहता. क्योंकि पूजा उसे बहुत अच्छी लगती थी. शुरूशुरू में तो पूजा ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब उसे इस बात का अहसास हुआ तो दुश्मन के बेटे के लिए जवानी की दहलीज पर कदम रख रही पूजा का दिल धड़क उठा. इस के बाद वह भी अपने पीछेपीछे आने वाले ओमवीर को पलटपलट कर देखने ही नहीं लगी, बल्कि नजर मिलने पर मुसकराने भी लगी.

गांव से स्कूल का रास्ता खेतों के बीच से होने की वजह से लगभग सुनसान रहता था. इसलिए गांव की लड़कियां एक साथ स्कूल जाती थीं. लड़कियों के साथ होने की वजह से ओमवीर को पूजा से अपने दिल की बात कहने का मौका नहीं मिलता था. लेकिन जहां चाह होती है, वहां राह मिल ही जाती है. ओमवीर पूजा के पीछे पड़ा ही था. पूजा के मन में भी उस के लिए चाहत जाग उठी थी.

पूजा को भी पता था कि वह सहेलियों के साथ रहेगी तो ओमवीर से उस की बात कभी नहीं हो सकेगी. उस से बात करने के लिए ही एक दिन वह घर से थोड़ा देर से निकली. वह जैसे ही गांव से बाहर निकली, ओमवीर उस के पीछेपीछे चल पड़ा. खेतों के बीच सुनसान जगह देख कर ओमवीर उस के पास जा कर बोला, ‘‘आज तुम अकेली ही स्कूल जा रही हो?’’

पूजा का दिल धड़क उठा. उस ने कांपते स्वर में कहा, ‘‘आज मुझे थोड़ी देर हो गई, इसलिए बाकी सब चली गईं.’’

‘‘पूजा, मुझे तुम से कुछ कहना था?’’ ओमवीर ने सकुचाते हुए कहा.

‘‘मुझे पता है, तुम क्या कहना चाहते हो?’’ पूजा ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि मैं क्या कहना चाहता हूं?’’ ओमवीर ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं बेवकूफ थोड़े ही हूं? तुम कितने दिनों से मेरे पीछे पड़े हो. कोई लड़का किसी लड़की के पीछे क्यों पड़ता है, इतना तो मुझे भी पता है.’’ पूजा ने बेबाकी से कहा तो ओमवीर में भी हिम्मत आ गई. उस ने कहा, ‘‘क्या करूं, तुम मुझे इतनी अच्छी लगती हो कि मन यही करता है कि हर वक्त तुम्हीं को देखता रहूं.’’

‘‘तो देखो न, मना किस ने किया है.’’ पूजा ढि़ठाई से बोली.

‘‘सिर्फ देखने से ही मन नहीं भरता. पूजा, मुझे तुम से प्यार हो गया है.’’

‘‘यह तो और भी अच्छी बात है. इस के लिए भी मैं ने कहां मना किया है. भई तुम्हारा मन है, वह किसी से भी प्यार कर सकता है.’’ कह कर पूजा हंस पड़ी तो ओमवीर को भी हंसी भी आ गई.

इस तरह दोनों ने जो चाहा था, वह पूरा हो गया. दोनों खुशीखुशी स्कूल चले गए. इस के बाद तो दोनों अकसर गांव के लड़केलड़कियों का साथ छोड़ कर खेतों के बीच मिलने लगे. इन मुलाकातों के साथ उन का प्यार बढ़ता गया. तब न पूजा को इस बात की चिंता थी और न ही ओमवीर को कि उन के इस प्यार का अंजाम क्या होगा? हर चिंता से मुक्त दोनों अपनी प्यारभरी दुनिया में डूबे रहते.

चोरीछिपे होने वाली मुलाकातों से दोनों दिनोंदिन करीब आते जा रहे थे. एक दिन ऐसा भी आया जब दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. उसी बीच अनोखेलाल ने अनिता की शादी कर दी तो घर की सारी जिम्मेदारी पूजा पर आ गई. पूजा ने घर की जिम्मेदारी बखूबी निभाते हुए अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. अनोखेलाल का भी कहना था कि अगर पढ़लिख कर वह कुछ बन जाएगी तो उस की जिंदगी संवर जाएगी अन्यथा अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए वह उस की शादी कर देगा.

पूजा पढ़ रही थी, जबकि ओमवीर ने पढ़ाई छोड़ दी थी. उस का बड़ा भाई मुकेश बाप के साथ खेती के कामों में उस की मदद करता था. पढ़ाई छोड़ कर ओमवीर को भी लगने लगा कि उसे भी कुछ करना चाहिए. क्योंकि वह पूजा को दीवानगी की हद तक प्यार करता था. और पूजा उसे तभी मिल सकती थी, जब वह उस के लायक बन जाए. इस के लिए वह भी पिता के साथ लग गया. उस ने पूजा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था. इसलिए वह उस की खातिर कुछ भी करने को तैयार था.

संयोग से उसी बीच किसी दिन गांव के किसी आदमी ने पूजा को ओमवीर के साथ देखा तो उसे बड़ी हैरानी हुई. उस ने यह बात अनोखेलाल को बताई तो वह भी हैरान रह गया. अपनी इस होनहार बेटी से उसे इस तरह की उम्मीद बिलकुल नहीं थी. दुश्मन के बेटे से अपनी बेटी का मिलनाजुलना वह कैसे बरदाश्त कर सकता था. उस ने अपनी आंखों से कुछ देखा नहीं था, इसलिए वह पूजा से सीधे कुछ कह भी नहीं सकता था. फिर गांव में तो इस तरह की चर्चाएं होती ही रहती हैं.

इश्क जान भी लेता है – भाग 3

काफी समझाने के बावजूद भी जब मानसी ने उस की बात नहीं मानी तो अभिषेक उर्फ नीतू ने मानसी को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. उस ने उसे ठिकाने लगाने की योजना बना भी ली.

योजना के तहत 5 जुलाई, 2014 को नीतू अपने 2 दोस्तों खुशीराम और कपिल के साथ गुडग़ांव के सैक्टर-17 स्थित गंदे नाले के पास पहुंचा. नीतू मानसी का काम तमाम कर के लाश को उसी नाले में ठिकाने लगाना चाहता था, लेकिन मानसी को नाले के पास बुलाना आसान नहीं था, क्योंकि उस ने उस से संबंध खत्म कर लिए थे.

नीतू जानता था कि मानसी बेहद लालची है. इसलिए उसे वहां बुलाने के लिए उस ने एक चाल चली. उस ने वहीं से मानसी को फोन किया. उस वक्त शाम को 5 बज रहे थे. उस ने कहा, “मानसी, मैं ने तुम्हारे लिए 8 तोले का एक हार बनवाया है. हार का डिजाइन इतना अच्छा है कि तुम्हें जरूर पसंद आएगा. आज रात ही मैं मुंबई जा रहा हूं. फिर हमारी मुलाकात हो या न हो, इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम इस हार को ले लो.”

मानसी 8 तोला सोने के हार के लालच में आ गई. वह हार लेने के लिए साढ़े 5 बजे गंदे नाले के पास पहुंच गई. नीतू को देखते ही वह चहक कर बोली, “नीतू, तुम तो मुझे एकदम भूल गए. कभीकभार तो मुझ से मिलने आ जाय करो. मैं तुम्हें बहुत मिस करती हूं.”

कुछ देर बाद नीतू के दोस्त खुशीराम और कपिल वहां पहुंचे तो वह चौंकी, क्योंकि वह पहले से उन्हें जानती थी. मानसी ने सोचा कि उन से उसे क्या मतलब. उसे तो हार ले कर वहां से निकल जाना है. उस ने नीतू का हाथ पकड़ते हुए कहा, “लाओ, वह हार कहां है.”

नीतू ने जेब से चाकू निकाल कर लहराया, “अब हार पहन कर क्या करोगी, जब तुम जीवित ही नहीं रहोगी.”

चाकू देख कर और उस की बातें सुन कर मानसी घबरा गई. इस से पहले कि वह कुछ कह पाती, अभिषेक ने चाकू से ताबड़तोड़ वार कर दिए. मानसी वहीं गिर गई और कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. इस के बाद खुशीराम और कपिल ने उस की लाश उठा कर नाले में फेंक दी.

4 दिनों बाद 9 जुलाई, 2014 को नाले में महिला की लाश पड़ी होने की सूचना थाना राजेंद्रपार्क पुलिस को मिली तो पुलिस ने नाले से लाश निकलवाई. लाश काफी सडग़ल गई थी. वह पूरी तरह कीचड़ में सनी हुई थी. मृतका कौन है, यह जानने के लिए पुलिस ने पहले लाश धुलवाई. उस का चेहरा गल चुका था, इसलिए वहां मौजूद भीड़ में से कोई भी उसे पहचान नहीं सका.

पुलिस को उस की बाईं हथेली पर नीतू नाम गुदा मिला. जब लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और लावारिस मान कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

अभिषेक उर्फ नीतू की गिरफ्तारी के बाद पुलिस को पता चला कि 9 जुलाई, 2014 थाना राजेंद्रपार्क पुलिस ने नाले से जो महिला की लाश बरामद की थी, वह मानसी की थी. अगर नीतू पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ता तो मानसी की हत्या का राज उजागर ही न हो पाता.

एक दिन गुडग़ांव के सैक्टर-28 स्थित एक कैफे में मोहित अपने दोस्तों के साथ मौजूद था, तभी अभिषेक उर्फ नीतू अपने दोस्तों के साथ वहां पहुंचा. मोहित के दोस्तों ने नीतू का मजाक उड़ाया तो नीतू गालियां बकने लगा. तभी मोहित और उस के दोस्तों ने नीतू और उस के दोस्तों की पिटाई कर दी. उसी पिटाई का बदला लेने के लिए नीतू मौका ढूंढ़ रहा था.

25 अगस्त, 2015 की शाम को उसे यह मौका मिल गया. उसे पता चला कि मोहित अपने दोस्त सक्षम व मामा नाहर सिंह के साथ ओल्ड बौक्स कैफे में है तो वह अपने साथियों के साथ वहां पहुंच गया और मोहित की गोली मार कर हत्या कर दी.

मोहित की हत्या एवं मानसी की हत्या के आरोप में पुलिस ने अभिषेक उर्फ नीतू, ब्रजेश, दीपांकर, बौबी, आदित्य को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर के 2 दिनों की पुलिस रिमांड पर ले कर हत्या में प्रयुक्त रिवौल्वर व मानसी की हत्या में प्रयुक्त चाकू बरामद कर लिया. मानसी की हत्या में शामिल खुशीराम और कपिल को गिरफ्तार करने पुलिस पहुंची तो वे घर से फरार मिले. कथा लिखे जाने तक वे पकड़े नहीं जा सके थे. इस के बाद सभी अभियुक्तों को 29 अगस्त, 2015 को पुन: न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इश्क जान भी लेता है – भाग 2

नाहर सिंह ने शादी नहीं की थी. वह अपनी बहनों और भांजों को बेहद चाहते थे. उन की बहनें भी संपन्न थीं. वह खुद भी उन के लिए काफी खर्च करते थे. अपने भांजों को भी वह जेब खर्च के लिए इतने पैसे देते थे, जिन से एक मध्यमवर्गीय परिवार का एक महीने का खर्च चल सकता था.

दरअसल, नाहर सिंह की सोच थी कि पढ़लिख कर उन के भांजों को कोई बहुत अच्छी नौकरी तो मिलेगी नहीं, इसलिए वह उन्हें नेता बनाना चाहते थे और नेता बनने के लिए शैक्षिक योग्यता की जगह दबंगई होनी चाहिए. अपनी इसी सोच के चलते वह मोहित और सचिन को दबंग बना रहे थे. मामा की शह पर मोहित कुछ ज्यादा ही बिगड़ चुका था. लोगों से मारपीट कर आतंक फैला कर उस ने इलाके में अपनी दबंगई कायम कर ली थी. वह कई संगीन वारदातों को भी अंजाम दे चुका था.

दरअसल, मोहित और अभिषेक उर्फ नीतू पहले दोस्त थे. उन के बीच दुश्मनी की शुरुआत सन 2012 में तब हुई थी, जब मानसी से नीतू ने कोर्टमैरिज कर ली थी.

मानसी मूलरूप से बिहार के रहने वाले फकीरेलाल की बेटी थी. फकीरेलाल गुडग़ांव की एक कंपनी में काम करते थे और गुडग़ांव के सैक्टर- 4 में किराए पर कमरा ले कर अपने बच्चों के साथ सपरिवार रहते थे. मानसी फैशनपरस्त और बिंदास लडक़ी थी. उस की कई लडक़ों से दोस्ती थी. वह उन के साथ कार या बाइक से घूमती, फिल्में देखती और महंगे रैस्टोरैंट में खाना खाती. कई युवकों से उस के शारीरिक संबंध भी थे.

रोजाना नएनए लडक़ों के साथ घूमते हुए उसे मोहल्ले के अनेक लोगों ने देखा था. उन्होंने उस की शिकायत फकीरेलाल से की तो उन्होंने उसे डांटा. लेकिन मानसी बहक कर उस ढलान पर पहुंच चुकी थी, जहां से वापस आना उस के लिए आसान नहीं था. इसलिए पिता के समझाने का उस पर जरा भी असर नहीं हुआ.

मानसी का अपने पुरुष दोस्तों के साथ घूमनेफिरने का सिलसिला कायम रहा. इस से मोहल्ले में फकीरेलाल की बदनामी हो रही थी. लाख समझाने के बावजूद भी जब मानसी नहीं मानी तो तंग आ कर फकीरेलाल ने उसे घर से निकाल दिया.

घर से निकालने पर मानसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की, बल्कि वह सैक्टर-18 में किराए के फ्लैट में रहने लगी. अब उस से कोई टोकाटाकी करने वाला नहीं था, जिस से वह पूरी तरह से आजाद हो गई थी. उसे जब जहां मन होता, जाती थी. वह क्लबों और पबों में डांस भी करने लगी थी.

सन 2012 के फरवरी महीने में एक पब में मानसी की मुलाकात विक्की से हुई. पहली ही मुलाकात में मानसी विक्की के दिल में उतर गई. विक्की उस पर खूब रुपए लुटाता था. वह विक्की की गाड़ी में घूमतीफिरती. विक्की उस की हर फरमाइश पूरी करता. विक्की भी गुडग़ांव का रहने वाला था. वह भी एक अमीर परिवार से ताल्लुक रखता था. विक्की और मोहित आपस में गहरे दोस्त थे.

विक्की ने मानसी से साफ कह दिया था, “मानसी, मैं तुम से शादी तो नहीं कर सकता. पर हां, तुम्हारा सारा खर्च ताउम्र उठाता रहूंगा. तुम्हें जीवन में किसी भी चीज की कमी नहीं होने दूंगा. परंतु बदले में मुझे तुम से इसी तरह का प्यार चाहिए. तुम एक बात का खास ध्यान रखना कि किसी दूसरे पुरुष ने तुम्हें छुआ भी तो मैं हरगिज बरदाश्त नहीं करूंगा.”

मानसी उस की शर्त मानने को तैयार हो गई. तब जिस फ्लैट में मानसी रहती थी, उस का किराया, कार, सौंदर्य प्रसाधन और खानेपीने का सारा खर्च विक्की उठाने लगा. वह हफ्ते में 1-2 बार उस से मिलने उस के फ्लैट पर पहुंच जाता था.

विक्की से मुलाकात के बाद मानसी ने अपने और पुरुष दोस्तों से मिलनाजुलना बंद कर दिया. विक्की उस से हफ्ते में 1-2 बार ही मिलने आता था. उस के जाने के बाद मानसी का मन नहीं लगता था. रोजना ही नएनए दोस्त बनाने वाली मानसी भला विक्की के साथ बंध कर कैसे रह सकती थी. लिहाजा उस ने फिर से लोगों से दोस्ती करनी शुरू कर दी.

उसी दौरान उस की मुलाकात अभिषेक उर्फ नीतू से हुई. नीतू की शानोशौकत देख कर मानसी का झुकाव उस की तरफ हो गया. नीतू हर मायने में उसे विक्की से अच्छा लगा. विक्की को जब यह बात पता चली तो उस ने मानसी से कहा, “मैं ने कहा था न कि अगर किसी पराए पुरुष ने तुम्हारे शरीर को छुआ भी तो मैं बरदाश्त नहीं करूंगा.”

“विक्की, मैं भी इंसान हूं और मेरी भी कुछ भावनाएं हैं,” मानसी ने नाराजगी प्रकट करते हुए कहा, “मैं भी चाहती हूं कि मेरा पति हो, घर हो, बच्चे हों. यह सब तुम्हारे साथ नहीं हो सकता. इसलिए मैं रखैल नहीं, पत्नी बन कर जीना चाहती हूं.”

मानसी की बात सुन कर विक्की को गुस्सा आ गया, वह चिल्लाते हुए बोला, “मानसी, मेरे जीतेजी तुम ऐसा कभी नहीं कर पाओगी.”

“चिल्लाओ मत. मैं तुम्हारी ब्याहता नहीं हूं, जो इस तरह मुझ पर अपना हक जता रहे हो.” मानसी भी गुस्से में आ गई. वह आगे बोली, “मैं नीतू से शादी कर रही हूं. वह तुम से ज्यादा दौलतमंद है और मेरे सारे अरमान पूरे करने की उस की हैसियत भी है. और सुन लो, आज के बाद मेरा तुम से कोई वास्ता नहीं.”

विक्की मानसी को धमकाते हुए वहां से चला गया. विक्की का पत्ता काटने के बाद अप्रैल, 2012 में अभिषेक उर्फ नीतू ने मानसी से कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज की बात जब विक्की को पता चली तो उसे बहुत बुरा लगा. गुस्से में तिलमिलाया हुआ वह नीतू से मिला.

“नीतू जब तुम्हें यह बात पता थी कि मानसी मेरी रखैल है तो तुम ने उस से कोर्टमैरिज क्यों कर ली?” विक्की ने पूछा.

“विक्की, मैं ने मानसी के साथ कोई जोरजबरदस्ती नहीं की. वह राजी थी, तभी तो शादी हुई. अगर वह मुझे नहीं चाहती तो भला मैं उसे कैसे पा सकता था. उस ने जब अपनी मरजी से शादी की है तो इस में तुम्हारे लिए बुरा मानने वाली क्या बात है.” नीतू बोला.

“देख नीतू, तू मेरा दोस्त है, इसलिए तुझे एक बात बता रहा हूं कि मानसी जैसी लड़कियां उसी पर प्यार न्यौछावर करती हैं, जिस के पास दौलत होती है. उस ने तुझ से यह जानने के बाद शादी की है कि तेरे पास मुझ से ज्यादा दौलत है. एक दिन उसे तुझ से ज्यादा पैसे वाला कोई और मिल गया तो वह तुझे भी ठुकरा देगी. फिर तुझे भी उस की हकीकत पता चलेगी और उस दिन तू बहुत पछताएगा.” यह कह कर विक्की वहां से चला गया.

समय गुजरता रहा और 2 साल बीत गए. नीतू तो उसे पहले की तरह प्यार करता था, लेकिन मानसी का प्यार जरूर फीका पड़ गया. उस का नीतू से एक तरह से मन भर गया था. हालांकि नीतू उस पर दोनों हाथों से पैसे खर्च कर रहा था. इस के बावजूद वह नए दोस्तों को तलाशने लगी. इस की वजह साफ थी कि उसे अलगअलग लोगों के साथ मौजमस्ती करने की आदत जो पड़ गई थी.

अभिषेक ने जब उसे डांस क्लबों में जाने से मना किया तो मानसी ने साफ कह दिया, “नीतू, मैं कोई ङ्क्षपजरे में बंद हो कर रहने वाली चिडिय़ा नहीं हूं. मेरा जो मन करेगा, मैं वही करूंगी. तुम कभी मुझे रोकने की कोशिश भी मत करना.”

इस के बाद वह नीतू को छोड़ कर अलग किराए के मकान में रहने लगी. अभिषेक उस से मिलने आता तो वह उसे दुत्कार देती. इस बात का अभिषेक को बड़ा दुख होता था. लाखों रुपए उस पर खर्च करने के बावजूद उसे प्रेमिका की दुत्कार मिलती थी.

दिल्ली का साहिल साक्षी केस : प्यार पर नफरत के वार

इश्क जान भी लेता है – भाग 1

नाहर सिंह गुडग़ांव के थाना सदर के अंतर्गत आने वाले गांव इसलापुर के रहने वाले थे. गुडग़ांव, सोनीपत और हिसार में उन की हार्डवेयर की 3 दुकानें थीं. गांव में भी उन की कई एकड़ खेती की जमीन थी. इस के अलावा गुडग़ांव में उन के 2 आलीशान मकान थे. उन की 3 बहनें थीं, जिन की शादियां हो चुकी थीं.

छोटी बहन विमला की शादी दौलताबाद के रहने वाले देवेंद्र कुमार के साथ हुई थी. देवेंद्र भारतीय सेना में सूबेदार थे. उन की पोस्टिंग सिक्किम में थी. विमला घर पर ही रह कर बच्चों आदि को देखती थी. उन के 2 बेटे थे, सचिन और मोहित. दोनों ही जवान थे. बच्चों की देखरेख के लिए नाहर सिंह भी विमला के यहां ही रहते थे. देवेंद्र को फौज से जब भी छुट्टी मिलती थी, वह अपनी बीवीबच्चों के पास आ जाया करते थे.

25 अगस्त, 2015 की शाम लगभग 5 बजे नाहर सिंह छोटे भांजे मोहित और उस के दोस्त सक्षम के साथ गुडग़ांव के सैक्टर- 23 स्थित एक कैफे में बैठे कौफी पी रहे थे, तभी वहां अभिषेक उर्फ नीतू अपने दोस्तों मन्ना, दीपांकर और नितेश के साथ आया. आते ही नीतू ने मोहित की मेज पर रखे कौफी के प्याले को उठा कर फेंक दिया.

नीतू की इस हरकत से मोहित और सक्षम को गुस्सा आ गया. पास बैठे नाहर सिंह समझ नहीं पाए कि नीतू ने ऐसा क्यों किया. इस से पहले कि नाहर सिंह कुछ कहते, सक्षम ने चिल्लाते हुए कहा, “लगता है, उस दिन की मार के तेरे निशान ठीक हो गए हैं, जो…”

उस की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि नीतू के दोस्त नितेश ने सक्षम के गाल पर जोरदार थप्पड़ मारते हुए कहा, “अपनी जुबान बंद रख, वरना अभी काट कर फेंक दूंगा.”

दोस्त की बेइज्जती मोहित बरदाश्त नहीं कर सका और नितेश से भिड़ गया, “तू ने इस पर हाथ उठाने की हिम्मत कैसे की?”

“ओए चल दूर हट यहां से. अब बहुत भौंक चुका तू.” नीतू ने अंटी से रिवौल्वर निकाल कर मोहित पर तानते हुए कहा, “मैं अपना अपमान कभी नहीं भूलता. अपमान का बदला जब तक ले न लूं, चैन की नींद सोना हराम समझता हूं. तेरी कोई आखिरी ख्वाहिश हो तो अपने मामू को बता दे.”

इसी के साथ नीतू के दोस्तों ने नाहर सिंह को हथियारों के बल पर काबू कर लिया था. नीतू की धमकी पर मोहित आगबबूला हो कर नीतू को पीटने के लिए आगे बढ़ा ही था कि अभिषेक ने उस पर एक के बाद एक कई फायर झोंक दिए. गोलियां मोहित के सीने, पेट व आंख के पास लगीं. मोहित लहूलुहान हो कर नीचे गिर कर कराहने लगा.

उस समय कैफे में और भी लोग थे. गोलियों की आवाज सुन कर सभी चौंके. लेकिन हथियारों को देख कर किसी की कुछ कहने की हिम्मत नहीं  हुई. वे सुरक्षित स्थान तलाशने लगे. अपने सामने भांजे के साथ हुई इस वारदात पर नाहर सिंह भी कुछ नहीं कर सके. मोहित की हत्या कर हमलावर कार से फरार हो गए.

नाहर सिंह ने तुरंत पुलिस को फोन कर के इस घटना की सूचना दी. गोली मारने की खबर पाते ही थाना पालम विहार के थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह राणा पुलिस टीम के साथ थोड़ी ही देर में सैक्टर-23 के उस कैफे में पहुंच गए. मोहित की कुछ देर बाद ही मौत हो चुकी थी. पुलिस ने अपने आला अधिकारियों को भी इस हत्या की सूचना दे दी थी.

थानाप्रभारी ने नाहर सिंह से बात की तो उन्होंने पूरा वाकया बता दिया. इस के अलावा थानाप्रभारी ने कैफे के मैनेजर, वेटरों और वहां मौजूद ग्राहकों से भी पूछताछ की. इस के बाद घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. नाहर सिंह की तहरीर पर पुलिस ने नामजद रिपोर्ट दर्ज कर ली. मामला एकदम स्पष्ट था. कैफे में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में भी साफ नजर आ रहा था कि मोहित पर गोलियां अभिषेक उर्फ नीतू ने चलाई थीं. इसलिए पुलिस को सिर्फ हत्याभियुक्तों को गिरफ्तार करना था.

उन की गिरफ्तारी के लिए पुलिस कमिश्नर नवदीप सिंह विर्क ने एसीपी (क्राइम) राजेश कुमार के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह राणा, एसआई सुखजीत सिंह, एएसआई सुरेश कुमार, सुनीता कुमार, हैडकांस्टेबल संदीप, धीरज सर्वसुख के अलावा कांस्टेबल धर्मेंद्र, नीति आदि को शामिल किया गया.

अगले दिन 28 अगस्त को पुलिस ने नामजद अभियुक्तों के घरों पर दबिश दी तो वे सभी अपनेअपने घरों से फरार मिले. फिर उसी दिन शाम के समय एक मुखबिर की सूचना पर गुडग़ांव के हिमगिरी चौक से अभिषेक उर्फ नीतू, ब्रजेश उर्फ नोनी, दीपांकर, बौबी तथा आदित्य को गिरफ्तार कर लिया गया.

थाने में जब उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने मोहित की हत्या की वजह तो बता ही दी, साथ ही एक ऐसे हत्याकांड से भी परदाफाश किया, जिस की फाइल पुलिस बंद कर चुकी थी.

21 वर्षीय अभिषेक उर्फ नीतू एक अमीर बाप की बिगड़ी औलाद था. उस के पिता भानमल गुडग़ांव के धनवापुर गांव में अपने परिवार के साथ रहते थे. करीब 4 साल पहले एक बहुराष्ट्रीय कंपनी ने उन की 5 एकड़ जमीन 22 करोड़ में खरीदी थी. जमीन बेचने के बाद उन्होंने आलीशान मकान बनवाया, नौकर रखे और 2 कारें खरीदीं. तब से यह परिवार ठाठबाट से रह रहा था.

अचानक पैसा आता है तो अपने साथ कई बुराइयां भी लाता है. ऐसा ही इस परिवार में भी हुआ. अभिषेक उर्फ नीतू भानमल का एकलौता बेटा था, इसलिए वह उस की हर फरमाइश पूरी करते थे. अभिषेक अपने यारदोस्तों के साथ कार ले कर दिन भर इधरउधर घूमता और अय्याशी करता. वह अपने पिता से जितने पैसे मांगता, वह उसे मिल जाते थे. जिन्हें वह खुले हाथों से खर्च करता था. इसलिए उस के दोस्त भी उस से खुश रहते थे.

उस के खास दोस्तों में 20 वर्षीय ब्रजेश उर्फ नोनी, 19 वर्षीय दीपांकर, 20 वर्षीय बौबी, 18 वर्षीय आदित्य थे. ये सभी उस के घर के आसपास ही रहते थे. ये सभी कार से जब भी घूमने निकलते, इतना ऊधम मचाते थे कि राहगीर भी परेशान हो जाते थे. कोई इन का विरोध करता तो ये उस की पिटाई कर देते. एक तरह से इलाके में इन का आतंक छा चुका था.

पिता ने भी कभी नीतू पर लगाम लगाने की कोशिश नहीं की, जिस से वह और ज्यादा उद्दंड होता चला गया. बातबात पर सीधेसादे लोगों को पीटना, राह चलती लड़कियों को छेडऩा, शराब पी कर हुड़दंग मचाना, हवाई फायर कर के दहशत फैलाना आदि नीतू का जैसे शगल बन गया था.

फुटबॉल खिलाड़ी शालिनी की अधूरी प्रेम कहानी

प्रेम की आग में भस्म – भाग 3

दीपक का एक दोस्त था वली, जिस के पास होंडा सिटी कार थी. दीपक पार्टी में जाने का बहाना कर के उस की कार मांग लाया. उस ने कार ला कर सुनील के घर के बाहर खड़ी कर दी. रात का खाना खाने के बाद सुनील ने रमा से बाहर घूमने जाने की बात कही तो वह चलने को तैयार हो गई.

12 नवंबर, 2013 की रात को सुनील रमा को होंडा सिटी कार में बैठा कर घूमने निकला. रमा उस वक्त काफी खुश थी. रमा को साथ ले कर सुनील चारकोप स्थित दीपक टाक के घर गया. सुनील ने उस से घूमने चलने को कहा तो वह बोला, ‘‘लौंग ड्राइव पर चलेंगे.’’

इस बात पर सुनील ने कोई आपत्ति नहीं की. लौंग ड्राइव के बहाने दीपक ने 5-5 लीटर की 2 खाली कैन और नायलौन की रस्सी का एक टुकड़ा कार में रख लिया. इस के बाद वे कार ले कर जिला ठाणे की तहसील भिवंडी की ओर चल दिए.

भिवंडी रोड पर जा कर दीपक टाक ने आदर्श पैट्रोल पंप से दोनों कैन पैट्रोल से भरवा लिए. इस के बाद ड्राइविंग सीट दीपक टाक ने संभाल ली. सुनील पीछे की सीट पर बैठ गया. इस बीच रमा ने घर लौट चलने को कहा तो वह बोला, ‘‘लौटने की इतनी जल्दी क्या है, इतने दिनों के बाद बाहर घूमने निकले हैं, घूमघाम कर आराम से लौटेंगे.’’

बातोंबातों में कार नासिक बाईपास रोड पर आ गई. तब तक रात के 12 बज गए थे. सडक़ सुनसान थी, सही मौका देख कर सुनील ने पीछे की सीट के पास पड़ी नायलौन की रस्सी उठाई और आगे की सीट पर बैठी रमा के गले में डाल कर तब तक कसता रहा, जब तक वह मर नहीं गई.

रमा की मौत हो चुकी थी. अब उन दोनों को उस की लाश ठिकाने लगानी थी. इस के लिए दीपक ने गाड़ी एक सुनसान जगह पर रोकी और दोनों ने रमा की लाश कार से निकाल कर सडक़ किनारे की खाई में डाल दी. इस के बाद उस पर पैट्रोल डाल कर आग लगा दी. फिर दोनों घर लौट आए.

कांताबाई ने जब कई महीने तक रमा को सुनील के साथ नहीं देखा तो सुनील से उस के बारे में पूछताछ की. लेकिन वह कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाया. उस का कहना था कि रमा गर्भवती थी, इसलिए उस ने उसे विरार में अपने एक रिश्तेदार के यहां भेज दिया है. इस से कांताबाई के मन में तरहतरह की आशंकाएं उठने लगीं.

संदेह हुआ तो कांताबाई ने ओशिवारा थाने जा कर सुनील के खिलाफ बेटी को गायब करने की रिपोर्ट लिखा दी. जब सुनील को इस बात का पता चला तो गिरफ्तारी और पुलिस पूछताछ से बचने के लिए उस ने हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत ले ली. इस तरह सुनील कांगड़ा ओशिवारा थाने की पुलिस के चंगुल से तो बच गया, लेकिन वह नारपोली थाने की पुलिस की गिरफ्त से नहीं बच सका.

नारपोली पुलिस के नवनियुक्त सीनियर इंसपेक्टर अनिल आकड़े ने लगभग 2 साल पुरानी फाइल को खोला और 2 साल पहले मौत के घाट उतारी गई महिला की पहचान कराई और फिर हत्यारे तक पहुंच गए. रमा का हत्यारा सुनील तो गिरफ्तार हो गया, लेकिन दीपक टाक घर से फरार हो गया था. उसे पुलिस ने काफी खोजा, कई जगह दबिश दी, लेकिन वह हत्थे नहीं चढ़ा.

जब दीपक टाक का कोई पता नहीं चला तो पुलिस ने सुनील से मिलने आने वाली उस की पत्नी बिंदिया जो दीपक टाक की बहन थी, को थाने बुला कर उस का मोबाइल चैक किया. उस के मोबाइल के वाट्सऐप में दीपक टाक का फोटो मिल गया. यह भी पता चल गया कि वह अपनी बहन के संपर्क में था. पुलिस ने वह तसवीर ले कर वाट्सऐप से मुखबिरों के मोबाइल पर भेज दीं.

इस का नतीजा जल्दी ही सामने आ गया. सुनील कांगड़ा की गिरफ्तारी के 15 दिनों बाद पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि दीपक टाक अपनी पत्नी के साथ घाटकोपर के फीनिक्स मौल में फिल्म देखने आने वाला है. सूचना महत्त्वपूर्ण थी. अनिल आकड़े अपनी पुलिस टीम के साथ वहां पहुंचे और दीपक टाक को गिरफ्तार कर लिया. 26 वर्षीय दीपक को गिरफ्तार कर के थाना नारपोली लाया गया. पुलिस ने उसे मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर पूछताछ के लिए 7 दिनों का पुलिस रिमांड लिया.

रिमांड के दौरान उस से पूछताछ की गई तो उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने वह होंडा सिटी कार भी बरामद कर ली, जिस में रमा कांगड़ा की हत्या की गई थी.

सुनील कांगड़ा और दीपक टाक से विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने उन के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 315, 201 और 34 के तहत केस बनाया और दोनों को अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया. फिलहाल दोनों जेल में हैं. इस केस की तफ्तीश इंसपेक्टर प्रकाश पाटिल कर रहे हैं.