
19 मार्च, 2018 की सुबह कमलप्रीत कौर अपने पति हरजिंदर सिंह से यह कहते हुए घर से निकली थी कि उस के मायके में किसी की तबीयत खराब है, इसलिए वह राहुल को ले कर वहां जा रही है. पत्नी की यह बात सुन र हरजिंदर ने कहा, ‘‘ठीक है, हो आओ. ज्यादा परेशानी वाली बात हो तो तुम मुझे फोन कर देना. मैं भी पहुंच जाऊंगा.’’
‘‘हां, तुम्हारी जरूरत हुई तो फोन कर दूंगी और कोई ज्यादा चिंता वाली बात नहीं हुई तो 2 दिन में वापस लौट आऊंगी.’’ कमलप्रीत बोली.
मूलरूप से पंजाब के जिला पटियाला के गांव बल्लोपुर की रहने वाली थी कमलप्रीत. करीब 12 साल पहले जब वह 19 बरस की थी, तब उस की शादी हरियाणा के गांव गणौली के रहने वाले हरजिंदर सिंह से हुई थी. यह गांव जिला अंबाला की तहसील नारायणगढ़ के तहत आता है.शादी के ठीक एक साल बाद कमलप्रीत ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम राहुल रखा गया. इन दिनों वह गांव के सरकारी स्कूल में 5वीं कक्षा में पढ़ रहा था.
हरजिंदर का अपना खेतीबाड़ी का काम था, जिस में वह काफी व्यस्त रहता था. कमलप्रीत घर पर रहते हुए चौकेचूल्हे से ले कर सब कम संभाले हुए थी. जो भी था, सब बड़े अच्छे से चल रहा था. पतिपत्नी में खूब प्यार था. दोनों में अच्छी अंडरस्टैंडिंग भी थी. दोनों अपने बच्चों का भी सलीके से ध्यान रखे हुए थे.
काफी दिनों से राहुल पिता से कहीं घुमा लाने की जिद कर रहा था तो पिता ने उस से पक्का वादा किया था कि वह उस के इम्तिहान खत्म होने के बाद उसे 2 दिन के लिए घुमाने शिमला ले चलेगा. मगर पेपर खत्म होने के अगले रोज ही उसे अपनी मां के साथ नानी के यहां जाना पड़ गया. पत्नी के मायके जाने वाली बात पर हरजिंदर को कोई परेशानी वाली बात नहीं थी. पति की निगाह में कमलप्रीत एक सुलझी हुई मेहनती औरत थी, जो ससुराल के साथसाथ अपने मायके वालों का भी पूरा ध्यान रखती थी.
सुखदुख में वह अपने अन्य रिश्तेदारों के यहां भी अकेली आयाजाया करती थी. कुल मिला कर बात यह थी कि हरजिंदर को पत्नी की तरफ से कोई चिंता नहीं थी. इसलिए जब वह 19 मार्च को बेटे के साथ मायके के लिए घर से अकेली निकली तो हरजिंदर ने कोई चिंता नहीं की.
उसी रोज शाम के समय हरजिंदर ने पत्नी को यूं ही रूटीन में फोन कर के पूछा, ‘‘हां कमल, पहुंचने में कोई परेशानी तो नहीं हुई? बल्लोपुर पहुंच कर तुम ने फोन भी नहीं किया?’’
‘‘हांहां…वो ऐसा है कि अभी मैं बल्लोपुर नहीं पहुंच पाई.’’ कमलप्रीत बोली तो उस की आवाज में हकलाहट थी.
पत्नी की ऐसी आवाज सुन कर हरजिंदर को थोड़ी घबराहट होने लगी. उस ने पूछा, ‘‘बल्लोपुर नहीं पहुंची तो फिर कहां हो?’’
‘‘अभी मैं शहजादपुर में हूं. किसी जरूरी काम से मुझे यहां रुकना पड़ गया.’’ कमलप्रीत ने पहले वाले लहजे में ही जवाब दिया.
‘‘शहजादपुर में ऐसा क्या काम पड़ गया तुम्हें? वहां तुम किस के यहां रुकी हो? सब ठीक तो है न? बताओ, कोई परेशानी हो तो मैं भी आ जाऊं क्या?’’
‘‘सब ठीक है, घबराने वाली कोई बात नहीं है. अच्छा, मैं फ्री हो कर अभी कुछ देर बाद फोन करती हूं. तब सब कुछ विस्तार से भी बता दूंगी.’’ कहने के साथ ही कमलप्रीत की ओर काल डिसकनेक्ट कर दी गई.
लेकिन हरजिंदर की घबराहट बढ़ गई थी. उस ने कमलप्रीत का नंबर फिर से मिला दिया. पर अब उस का फोन स्विच्ड औफ हो चुका था.
अचानक यह सब होने पर हरजिंदर का फिक्रमंद हो जाना लाजिमी था. कुछ नहीं सूझा तो उस ने उसी समय अपनी ससुराल के लैंडलाइन नंबर पर फोन किया. यहां से उसे जो जानकारी मिली, उस से उस के पैरों तले की जमीन सरक गई. ससुराल से उसे बताया गया कि यहां तो घर में कोई बीमार नहीं है और न ही कमलप्रीत के वहां आने की किसी को कोई जानकारी थी.
अब हरजिंदर के लिए एक मिनट भी रुके रहना संभव नहीं था. उस ने अपनी मोटरसाइकिल उठाई और शहजादपुर की ओर रवाना हो गया. रास्ते भर वह कमलप्रीत को फोन भी मिलाता रहा था, पर हर बार उसे फोन के स्विच्ड औफ होने की ही जानकारी मिलती रही.
आखिर वह शहजादपुर जा पहुंचा. पत्नी और बच्चे की तलाश में उस ने उस गांव का चप्पाचप्पा छान मारा मगर पत्नी और बेटे राहुल के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. वहां से वह मोटरसाइकिल से ही अपनी ससुराल बल्लोपुर चला गया. कमलप्रीत को ले कर वहां भी सब परेशान हो रहे थे.
इस के बाद तो हरजिंदर सिंह और उस की ससुराल वालों ने कमलप्रीत व राहुल की जैसे युद्धस्तर पर तलाश शुरू कर दी. मगर कहीं भी दोनों मांबेटे के बारे में जानकारी हाथ नहीं लगी.
19 मार्च, 2018 का दिन तो गुजर ही गया था, पूरी रात भी निकल गई. 20 मार्च को भी दोपहर तक तलाश करते रहने के बाद सभी निराश हो गए तो हरजिंदर शहजादपुर थाने पहुंच गया. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह को उस ने पत्नी और बेटे के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जानकारी दे दी. थानाप्रभारी ने कमलप्रीत और उस के बेटे राहुल की गुमशुदगी दर्ज कर ली. पुलिस ने अपने स्तर से दोनों मांबेटे को ढूंढने की काररवाई शुरू कर दी.
देखतेदेखते इस बात को एक सप्ताह गुजर गया, मगर पुलिस भी इस मामले में कुछ कर पाने में असफल रही.
बात 26 मार्च, 2018 की थी. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह उस वक्त अपने औफिस में थे. तभी एक अधेड़ उम्र के शख्स ने उन के सामने आ कर दोनों हाथ जोड़ते हुए दयनीय भाव से कहा, ‘‘सर, मेरा नाम ओमप्रकाश है और मैं यमुनानगर में रहता हूं.’’
‘‘जी हां, कहिए.’’ शैलेंद्र सिंह बोले.
‘‘अब क्या कहूं सर, एक भारी मुसीबत आन पड़ी है हमारे परिवार पर.’’
‘‘हांहां बताइए, क्या परेशानी है?’’ थानाप्रभारी ने कहा.
‘‘सर, मेरा एक भांजा है नीटू. उम्र उस की करीब 21 साल है. किसी बात पर उस का एक औरत से झगड़ा हुआ और हाथापाई में वह औरत मर गई. उस ने उस की लाश को कहीं ले जा कर दफन कर दिया. जब इस की जानकारी मुझे हुई तो हम ने उसे समझाया कि गलती हो जाने पर कानून से आंखमिचौली खेलने के बजाय पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना ही बेहतर होगा.’’ ओमप्रकाश ने बताया.
इस पर एकबारगी तो शैलेंद्र सिंह चौंके. फिर खुद को संभालने का प्रयास करते हुए बोले, ‘‘मतलब यह कि आप के भांजे ने किसी की जान ली, फिर उस की लाश भी ठिकाने लगा दी. अब सरेंडर का प्रस्ताव लेकर आए हो. तो यह भी बता दो कि किन शर्तों पर सरेंडर करवाओगे?’’
‘‘कोई शर्त नहीं सर. लड़का आप के सामने तो अपना अपराध कबूलेगा ही, अदालत में भी ठीक ऐसा ही बयान देगा. भले उसे कितनी भी सजा क्यों न हो जाए. बस आप से हमें सिर्फ इतना सहयोग चाहिए कि थाने में उस पर ज्यादा सख्ती न हो.’’ ओमप्रकाश ने कहा.
‘‘देखो, अगर वह हमें सहयोग करते हुए सच्चाई बयान करता रहेगा तो हमें क्या जरूरत पड़ी है उस से सख्ती से पेश आने की. जाओ, लड़के को ला कर पेश कर दो. यदि वह सच्चा है तो यहां उस के साथ किसी तरह की ज्यादती नहीं होगी.’’
‘‘ठीक है सर, मैं समझ गया. लड़का थाने के बाहर ही खड़ा है. मैं अभी उसे ला कर आप के सामने पेश करता हूं.’’ कहने के साथ ही ओमप्रकाश बाहर गया और थोड़ी ही देर में एक लड़के को ले कर थाने में आ गया.
‘‘यही है मेरा भांजा नीटू, सर.’’ उस ने बताया.
जिस वक्त ओमप्रकाश नीटू को ले कर थानाप्रभारी के औफिस में पहुंचा था, पुलिस वाले बगल वाले कमरे में एक अभियुक्त से गहन पूछताछ कर रहे थे. जरा सी देर में वहां से चीखचिल्लाहट की भयावह आवाजें आने लगी थीं.
ये आवाजें सुन कर नीटू थरथर कांपने लगा. फिर वह दबी सी आवाज में ओमप्रकाश से बोला, ‘‘मामा, ये लोग मेरा भी क्या ऐसा ही हाल करेंगे?’’
‘‘नहीं करेंगे बेटा, मैं ने एसएचओ साहब से सारी बात कर ली है. फिर जब तुम एकदम सच्चाई बयान कर ही रहे हो तो फिर डर कैसा?’’ ओमप्रकाश ने समझाया.
‘‘यही तो डर है मामा, मैं ने आप को भी पूरी सच्चाई नहीं बताई. दरअसल, मैं ने औरत के साथसाथ उस के बेटे का भी मर्डर कर दिया है और दोनों की लाशें एक साथ दफनाई हैं.’’
नीटू की यह बात थानाप्रभारी के कानों तक भी पहुंच गई थी. उन्होंने नीटू को खा जाने वाली नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘मुझे पहले ही से शक था कि तुम्हारे अपराध का संबंध गणौली की कमलप्रीत और उस के बच्चे की गुमशुदगी से है.
अब तुम्हारे लिए बेहतर यही है कि तुम अपने घिनौने अपराध की सच्ची दास्तान अपने मामा को बता दो, वरना दूसरे तरीके से सच्चाई उगलवानी भी आती है.’’
थानाप्रभारी के इतना कहते ही ओमप्रकाश नीटू को ले कर एक दूसरे कमरे में ले गया. इस के बाद नीटू ने अपने अपराध की पूरी कहानी मामा को बता दी. नीटू के बताने के बाद ओमप्रकाश ने सारी कहानी थानाप्रभारी को बता दी.
थानाप्रभारी ने ओमप्रकाश के बयान दर्ज करने के बाद उसे घर भेज दिया फिर नीटू को गिरफ्तार कर उसे अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस से व्यापक पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने जो कुछ पुलिस को बताया, उस से अपराध की एक सनसनीखेज कहानी कुछ इस तरह सामने आई—
करीब एक साल पहले की बात है. अपनी रिश्तेदारी के एक शादी समारोह में शामिल होने के लिए कमलप्रीत अकेली नारायणगढ़ के बड़ागांव गई थी. वहां जब वह नाचने लगी तो एक लड़के ने भी उस का खूब साथ दिया. उस ने बहुत अच्छा डांस किया था.
इस डांस के बाद भी दोनों एक साथ बैठ कर बतियाते रहे. लड़के ने अपना नाम सुमित उर्फ नीटू कहते हुए बताया कि यों तो वह शहजादपुर का रहने वाला है, मगर बड़ागांव में किराए का कमरा ले कर एक कंप्टीशन की तैयारी कर रहा है.
कमलप्रीत उस की बातों से तो प्रभावित हो ही रही थी, उस का सेवाभाव भी उसे खूब पसंद आया. कमलप्रीत तो थकहार कर एक जगह बैठ गई थी, पार्टी में खाने की जिस चीज का भी उस ने जिक्र किया, वह ला कर उसे वहीं बैठी को खिलाता रहा.
इसी तरह काफी रात गुजर जाने पर कमलप्रीत को नींद सताने लगी. नीटू ने सुझाव दिया कि वह उसे अपने कमरे पर छोड़ आता है, जहां वह बिना किसी शोरशराबे के आराम से सो सकती है. थोड़ी झिझक के बाद वह मान गई.
अब तक नीटू को भी नींद आने लगी थी. अत: कमरे में चारपाई पर कमलप्रीत को सुलाने के बाद वह खुद भी जमीन पर दरी बिछा कर सो गया.
आगे का सिलसिला शायद इन के वश में नहीं था. रात के जाने किस पहर में दोनों की एक साथ आंखें खुलीं और बिना आगेपीछे की सोचे, दोनों एकदूसरे में समा गए. कमलप्रीत से नीटू 10 साल छोटा था, अत: उस मिलन के बाद कमलप्रीत उस की दीवानी हो गई. इस के बाद यही सिलसिला चल निकला. दोनों किसी न किसी तरीके से, कहीं न कहीं मौजमस्ती करने का तरीका निकाल लेते.
देखतेदेखते एक बरस गुजर गया. अब कमलप्रीत ने नीटू से यह कहना शुरू कर दिया था कि वह अपने पति को तलाक दे कर उस से शादी कर लेगी. मौजमस्ती तक तो ठीक था, कमलप्रीत की इस बात ने नीटू को परेशान कर डाला.
नीटू ने इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए आखिर मन ही मन यह निर्णय लिया कि वह कमलप्रीत को अच्छी तरह से समझाएगा. फिर भी न मानी तो वह उस का खून कर देगा. इस के लिए उस ने एक चाकू भी खरीद कर रख लिया था.
19 मार्च, 2018 की सुबह कमलप्रीत उस के यहां आ धमकी. उस के साथ एक लड़का था, जिसे उस ने अपना बेटा बताया. आते ही उस ने कहा कि वह अपने पति को हमेशा के लिए छोड़ आई है. आगे वह उस से शादी कर के अपने लड़के सहित उसी के साथ रहेगी.
नीटू ने उसे समझाने की कोशिश की. लगातार समझाते समझाते पूरा दिन और सारी रात भी निकल गई. मगर वह अपनी जिद पर अड़ी रही तो 20 मार्च को नीटू ने चाकू से कमलप्रीत की हत्या कर दी.
यह देख कर उस का लड़का राहुल सहम गया. मगर वह इस मर्डर का चश्मदीद गवाह बन सकता था. इसलिए नीटू ने चाकू से उस का भी गला रेत दिया. दोनों लाशों को कमरे में छिपा कर नीटू अमृतसर चला गया.
वहां गोल्डन टेंपल में उस ने वाहेगुरु से अपने इस गुनाह की माफी मांगी. रात में वापस आ कर बड़ागांव के पास से गुजर रही बेगना नदी की तलहटी में दोनों लाशों को दफन कर आया. इस के बाद वह अपने मामा के पास यमुनानगर चला गया, जिन्होंने उसे पुलिस के सामने सरेंडर करने का सुझाव दिया था.
पुलिस ने उस की निशानदेही पर न केवल चाकू बरामद किया बल्कि दोनों लाशें भी खोज लीं, जो जरूरी काररवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर नीटू को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में अंबाला की केंद्रीय जेल भेज दिया गया था.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
30 जून, 2023 को गुजरात के जिला भरूच के थाना जंबुसर पुलिस को सूचना मिली कि पगरनाला में एक लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही थाना पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. लाश किसी पुरुष की थी, जिस की उम्र 36 साल के आसपास थी.
मरने वाले के शरीर पर कपड़े के नाम पर सिर्फ पैंट थी. पुलिस ने पैंट की तलाशी ली कि शायद उस की जेब से ऐसा कुछ मिल जाए, जिस से उस की पहचान हो जाए. पर उस की जेब से कुछ भी नहीं मिला. आसपास भी ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की पहचान हो पाती. तब पुलिस ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.
इस के बाद थाने आ कर यह पता करने की कोशिश की जाने लगी कि जिले में कहीं कोई गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. पर जिले के किसी थाने में उस हुलिए के किसी व्यक्ति की कोई गुमशुदगी दर्ज नहीं थी. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने लाश को बड़ौदा की मोर्चरी में रखवा दी. इस के बाद पुलिस यह पता करने की कोशिश करती रही कि मरने वाला कौन है?
10 दिन बाद हुई लाश की शिनाख्त
लाश मिलने के 10 दिनों बाद थाना जंबुसर से करीब 400 किलोमीटर दूर जिला बनासकांठा के थाना थराद के एसएचओ इंसपेक्टर सी.पी. चौधरी ने फोन कर के जंबुसर पुलिस से पूछा, “पता चला है कि आप के थानांतर्गत एक पुरुष की लाश मिली है. मरने वाले की उम्र 36 साल के आसपास है.”
“जी, आज से 10 दिन पहले नाले में एक लाश मिली थी. मरने वाले की यही उम्र होगी, जितनी आप बता रहे हैं. मैं उस के फोटो भेज रहा हूं. लाश अभी मोर्चरी में रखी है.” थाना जंबुसर पुलिस ने कहा.
जंबुसर पुलिस ने लाश के फोटो भेजे तो पता चला कि वह लाश गुजरात के जिला बनासकांठा की तहसील थराद के गांव चोटपा के रहने वाले मारवाड़ी चौधरी पटेल शंकरभाई की थी. वह गांव में रह कर खेती करने के साथसाथ मकान बनाने के ठेके लेता था. उस के परिवार में पत्नी भावना पटेल के अलावा 3 बच्चे और बूढ़े मांबाप थे. पिता को लकवा मार दिया था, इसलिए वह चलफिर नहीं सकते थे.
29 जून, 2023 को साइट से आने के बाद शाम का खाना खा कर शंकर यह कह कर घर से निकला था कि वह पड़ोस में रहने वाले ऊदाजी के पास जा रहा है. वह घर से गया तो फिर लौट कर नहीं आया. घर वालों ने थोड़ी देर इंतजार किया. पर जब समय ज्यादा होने लगा तो उस के बारे में पता करने लगे. फोन किया गया तो पता चला फोन बंद है.
अगले दिन यानी 30 जून को थाना थराद पुलिस को सूचना दी गई, लेकिन थाना थराद पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लेने के बजाय एकदो दिन और इंतजार करने के लिए कह कर सूचना देने गई शंकर की मां मीरादेवी को वापस भेज दिया था.
गुमशुदगी दर्ज कर पुलिस ने की कार्यवाही
जब 2 जुलाई तक शंकर नहीं आया तो मीरादेवी दोबारा थाने जा पहुंची. इस बार इंसपेक्टर सी.पी. चौधरी से उन की मुलाकात हो गई. उन्होंने तुरंत शंकर की गुमशुदगी दर्ज कराई और शंकर के बारे में पता कराने का आश्वासन दे कर मीरादेवी को घर भेज दिया.
इस के बाद एसएचओ ने शंकर की तलाश शुरू की. गांव वालों से पूछताछ में पता चला कि शंकर की पत्नी भावनाबेन का चरित्र ठीक नहीं है. इस के बाद उन्होंने भावना का फोन सर्विलांस पर लगवा दिया. इस से उन्हें पता चला कि भावना लगातार पड़ोसी गांव कलश के रहने वाले शिवा पटेल के संपर्क में है.
जब उन्होंने शिवा पटेल के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह 29 जून को अंकलेश्वर से गांव आया तो था, पर अपने घर नहीं गया था. इस के अलावा 29 जून को उस ने शंकर को फोन भी किया था. 29 जून की शंकर और शिवा के फोन की लोकेशन निकलवाई गई तो पता चला कि दोनों के फोन की लोकेशन एक साथ थी.
इस से पुलिस को उस पर शक हुआ तो पुलिस ने उस की लोकेशन निकलवाई. उस की लोकेशन अंकलेश्वर की मिली. इंसपेक्टर सी.पी. चौधरी की टीम अंकलेश्वर पहुंची और शिवा को गिरफ्तार कर के थाने ले आई.
थाने ला कर शिवा से पूछताछ शुरू हुई. शिवा पुलिस को गोलगोल घुमाता रहा. उस का कहना था कि वह 29 जून को गांव गया ही नहीं था. इधर शंकर से उस की मुलाकात ही नहीं हुई, लेकिन जब पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की लोकेशन उस के सामने रखी तो उस ने शंकर के मर्डर में अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि भावना के साथ रहने के लिए उस ने शंकर की हत्या की है. इस के बाद उस ने भावना से प्यार होने से ले कर शंकर की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.
मेले में मिल गए दोनों के दिल
शंकरभाई पटेल और भावनाबेन का विवाह करीब 14 साल पहले हुआ था. शंकर अपने परिवार के साथ चोटपा गांव में खेतों के बीच मकान बना कर रहता था. उस की दोस्ती कलश गांव के शिवाभाई पटेल से थी. वह भी मारवाड़ी चौधरी पटेल था. वह भी खेतों के बीच घर बना कर रहता था, शायद इसीलिए दोनों में कुछ ज्यादा पटती थी.
शिवा शंकर के घर भी खूब आताजाता था. शिवा अंकलेश्वर में मेटल का धंधा करता था. वह जब भी अंकलेश्वर से गांव आता, शंकर को अपनी क्रेटा गाड़ी में बैठा कर घुमाता था.
एक बार वह राजस्थान के बौर्डर पर लगने वाले लवाड़ा के मेले में घूमने जा रहा था तो शंकर के साथ उस की पत्नी भावना भी मेला देखने गई थी. उसी मेले में शिवा और भावना ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर ले लिया था. बाद में दोनों के बीच फोन पर बातें होने लगीं. फोन पर बातें करतेकरते दोनों के बीच प्रेम संबंध बना तो फिर शारीरिक संबंध भी बन गए.
शिवा कुंवारा था, जवान था, अच्छा पैसा कमाता था, उसे एक महिला शरीर की जरूरत भी थी, जो भावना ने पूरी कर दी थी. शिवा के पास पैसों की कमी नहीं थी, वह दिल खोल कर भावना पर पैसे खर्च करता था तो भावना भी प्यार से उस की शारीरिक जरूरतें पूरी करती थी. यह अवैध संबंध इसी तरह चलते रहे.
यह लगाव जब गहराया तो भावना अकसर शिवा से शिकायत करने लगी, “मेरा पति शंकर मुझे बहुत परेशान करता है. जराजरा सी बात पर मुझे मारता है.”
शिवा के प्यार में डूब गई भावना
जब कभी भावना और शंकर में झगड़ा होता तो भावना शिवा को फोन कर के पति और अपना झगड़ा शिवा को सुनाती भी थी. शंकर भावना के साथ जो बरताव कर रहा था, वह शिवा को अच्छा नहीं लगता था. पर वह शंकर से कुछ कह भी नहीं सकता था.
शिवा भावना से बहुत प्यार करता था, इसलिए एक दिन उस ने कहा, “तुम शंकर को छोड़ कर मेरे साथ क्यों नहीं रहने आ जाती? मैं तुम्हें रानी की तरह रखूंगा.”
इस पर भावना ने कहा, “घर में बूढ़े मांबाप हैं, उन्हें छोड़ कर आऊंगी तो समाज मुझ पर थूकेगा. मेरी बहुत बदनामी होगी.”
“तब तुम्हीं बताओ मैं क्या करूं?” शिवा ने कहा.
“कुछ तो करना ही होगा, मैं इस आदमी के साथ अब नहीं रह सकती.” भावना बोली.
28 जून, 2023 को किसी बात पर शंकर और भावना में झगड़ा हुआ. तब भावना ने शिवा को फोन कर के कहा, “शिवा, तुम किसी भी तरह मुझे इस आदमी से छुड़ाओ. अब मैं इस आदमी के साथ बिलकुल नहीं रह सकती.”
शिवा भावना से प्यार तो करता ही था. पर उस के लिए परेशानी यह थी कि उस की बिरादरी में पति या पत्नी को छोडऩा आसान नहीं है. इसलिए जब उस ने भावना से एक बार फिर शंकर को छोड़ कर आने को कहा तो भावना बोली, “अगर मैं शंकर को छोड़ कर आती हूं तो समाज में मेरी बहुत बदनामी होगी. इसलिए शंकर से छुटकारा पाने के लिए उस का कुछ करना होगा.”
“वही तो मैं पूछ रहा हूं कि शंकर का किया जाए?” शिवा ने पूछा.
“ऐसा है, अगर तुम मेरे साथ रहना चाहते हो तो उसे खत्म कर दो. वह नहीं रहेगा तो हम दोनों आराम से रह सकेंगे.” भावना ने कहा.
“ठीक है, जैसा तुम कह रही हो, वैसा ही करते हैं. आराम से बैठ कर योजना बनाते हैं, उस के बाद शंकर को खत्म कर देते हैं.” शिवा ने कहा.
शंकर की हत्या की हुई प्लानिंग
28 जून को यह बात हुई थी. इस के पहले भी दोनों में शंकर नाम के कांटे को निकालने की कई बार बात हो चुकी थी, लेकिन इस के पहले फाइनल योजना नहीं बनी थी. पर इस बार दोनों ने फोन पर ही शंकर को खत्म करने की फाइनल योजना बना डाली.
योजना बनाने के बाद किसी को शक न हो, इसलिए भावना 28 जून को ही मायके चली गई. 29 जून को शिवा ने एक दूसरे नंबर से अपने दोस्त शंकर को फोन कर के अच्छीअच्छी बातें करने के बाद विश्वास में ले कर कहा, “यार शंकर, तुम से एक जरूरी काम है. मैं गाड़ी ले कर आ रहा हूं. तुम ऐसा करो, सडक़ पर आ कर मुझ से मिलो.”
इस बीच भावना से भी शिवा की बातचीत होती रही. 2 महीने पहले भावना और शिवा के बीच शंकर को मारने की बात हुई थी, तब भावना ने कहा था कि शंकर को नींद की गोली खिला कर खत्म कर दो. इसलिए 2 महीने पहले ही उस ने भरूच सिटी से नींद की गोलियां खरीद कर रख ली थीं, जो उस की गाड़ी में ही रखी थीं. 2 महीने पहले हुई बातचीत के अनुसार शिवा अपनी योजना में आगे बढ़ रहा था.
कार में गला घोंट कर की थी हत्या
29 जून, 2023 की दोपहर को अपनी क्रेटा कार नंबर जीजे16डी के1389 ले कर शिवा अंकलेश्वर से निकला. उस ने अपने निकलने की बात शंकर को बता दी थी. चलने के पहले उस ने नींद की गोलियां पीस कर पानी की बोतल में मिला दी थीं.
रात करीब 9 बजे वह गांव चोटपा पहुंचा. उस ने शंकर से बता ही दिया था कि एक जरूरी काम से उसे साथ चलना है, इसलिए वह खाना खा कर तैयार था. गांव पहुंचते ही शिवा ने फोन किया तो शंकर आ कर उस की कार में बैठ गया. शिवा इधरउधर गाड़ी घुमाने लगा.
शिवा समय गुजार रहा था कि शंकर उस से पानी पीने के लिए मांगे. इसलिए वह शंकर को चोटपा से खोडा चरकपोस्ट, साचोर, ननेवा से घानेरा ले गया. जब वह काफी दूर निकल गया तो शंकर ने पानी पीने के लिए मांगा. शिवा ने तुरंत पानी की वही बोतल पकड़ा दी, जिस में उस ने नींद की गोलियां पीस कर मिलाई थीं.
वह पानी पीने के थोड़ी देर बाद शंकर को नींद आ गई. इस के बाद शिवा घानेरा से सीधे डीसा रोड पर गया. सडक़ पर सुनसान जगह देख कर शिवा ने कार रोकी और शंकर के मोबाइल को स्विच्ड औफ कर दिया कि किसी को पता न चल सके.
इस के बाद वह गाड़ी ले कर चल पड़ा. काफी दूर जाने के बाद सुनसान जगह देख कर उस ने सडक़ के किनारे गाड़ी रोक दी. शंकर गहरी नींद में था. शिवा ने कार में रखी रस्सी निकाली और शंकर के गले में लपेट कर कस दी. गला घोंटने से शंकर की सांस हमेशा हमेशा के लिए रुक गई.
बच्चों के अनाथ होने पर समाज ने की मदद
अब उसे शंकर की लाश को ठिकाने लगाना था. वह लाश को ऐसी जगह फेंकना चाहता था, जहां कोई उस की पहचान न कर सके. उस ने शंकर को आगे की सीट पर इस तरह बैठा दिया, जिस से लगे कि वह बैठेबैठे सो रहा हो.
शंकर की लाश को ले कर वह डीसा, पालनपुर, मेहसाणा, अहमदाबाद, बड़ौदा होते हुए वह जंबुसर गया. जंबुसर चौराहे से थोड़ी दूर आगे से सिंगल रोड गई थी. उसे वह रोड सुनसान दिखाई दी तो उस ने कार उसी रोड पर उतार दी. लगभग एक किलोमीटर जा कर शिवा को एक पगरनाला दिखाई दिया तो उस ने शंकर की लाश उसी पगरनाले में फेंक दी. उस समय सुबह के 6 बज रहे थे.
लाश को ठिकाने लगाने के बाद शिवा ने फोन कर के यह बात भावना को बताई और वहां से सीधे अंकलेश्वर चला गया. 2 दिन बाद भावना भी ससुराल आ गई, जिस से किसी को उस पर शक न हो.
हत्याकांड का खुलासा हो जाने के बाद थाना थराद पुलिस ने भावना को भी गिरफ्तार कर लिया. शिवा को थाने में देख कर उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. इस के बाद थाना थराद पुलिस ने शिवा और भावना को बनासकांठा की अदालत में पेश किया, जहां से दोनों का 6 दिन का रिमांड लिया गया.
रिमांड के दौरान बनासकांठा के एसपी अक्षयराज मकवाना ने प्रैस कौन्फ्रैंस की. पत्रकारों के सामने भी प्रेमिका प्रेमी भावना और शिवा ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद सारे सबूत जुटा कर पुलिस ने दोनों को दोबारा अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.
शंकर, जिस की हत्या हुई है, उस के पिता लकवाग्रस्त हैं, मां बूढ़ी है. 3 बच्चे हैं, जिस में सब से बड़ी बेटी 7 साल, उस से छोटा बेटा 4 साल और सब से छोटा बेटा 2 साल का है. पिता की हत्या हो गई है. पिता की हत्या के आरोप में मां जेल में है. बच्चों की हालत पर दया खा कर आजणा चौधरी समाज के बुजुर्गों ने बच्चों की मदद के लिए 15 लाख रुपए इकट्ठा कर के दिए हैं.
प्रभावती को ही नहीं, उस के घर वालों को भी पता चल गया था कि तेजभान शादीशुदा है. एक शादीशुदा आदमी के साथ जिंदगी नहीं पार हो सकती थी, इसलिए प्रभावती की बड़ी बहन सविता ने अपनी ससुराल लोहारपुर में उस के लिए एक लड़का देखा. वह उस के साथ प्रभावती की शादी कराना चाहती थी. लड़के को देखने और बातचीत करने के लिए उस ने प्रभावती को अपनी ससुराल बुला लिया.
जब इस बात की जानकारी तेजभान को हुई तो वह भी लोहारपुर पहुंच गया. जब उस ने देखा कि वहां एक लड़के के साथ प्रभावती बात कर रही है तो उसे गुस्सा आ गया. उस ने प्रभावती का हाथ पकड़ कर उस लड़के को 2-4 थप्पड़ लगाते हुए कहा, ‘‘तूने अपनी शकल देखी है जो इस से शादी करेगा.’’
प्रभावती के घर वाले उस की शादी जल्द से जल्द करना चाहते थे. लेकिन तेजभान टांग अड़ा रहा था. वह उस से खुद तो शादी कर नहीं सकता था लेकिन वह उस की शादी किसी ऐसे आदमी से कराना चाहता था, जो शादी के बाद भी उसे प्रभावती से मिलने से न रोके. क्योंकि वह प्रभावती को खुद से दूर नहीं जाने देना चाहता था. इसीलिए तेजभान ने अपने एक रिश्तेदार प्रदीप को तैयार किया.
वह रिश्ते में उस का मामा लगता था. तेजभान को पूरा विश्वास था कि प्रदीप से शादी होने के बाद भी उसे प्रभावती से मिलनेजुलने में कोई परेशानी नहीं होगी. प्रदीप उम्र में तेजभान से काफी बड़ा था. प्रभावती का भरोसा जीतने के लिए उस ने उस की एक जीवनबीमा पौलिसी भी करा दी थी.
प्रदीप से बात कर के तेजभान ने प्रभावती से कहा, ‘‘अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारी शादी प्रदीप से करा दूं. वह अच्छा आदमी है. खातेपीते घर का भी है.’’
प्रभावती ने तेजभान की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. 2 दिनों बाद तेजभान प्रदीप को साथ ले कर प्रभावती से मिला. तीनों ने साथ खायापिया. प्रदीप चला गया तो तेजभान ने कहा, ‘‘प्रभावती, प्रदीप तुम्हें कैसा लगा? मैं इसी से तुम्हारी कराना चाहता हूं.’’
एक तो प्रदीप शक्लसूरत से ठीक नहीं था, दूसरे उस की उम्र उस से दोगुनी थी. वह शराब भी पीता था, इसलिए प्रभावती ने कहा, ‘‘इस बूढ़े के साथ तुम मेरी शादी कराना चाहते हो?’’
‘‘यह बहुत अच्छा आदमी है. उस से शादी के बाद भी हमें मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी. दूसरी जगह शादी करोगी तो हमारा मिलनाजुलना नहीं हो पाएगा.’’
‘‘उस दिन मारपीट कर के तुम ने मेरी शादी तुड़वा दी थी. मैं उस बूढ़े से हरगिज शादी नहीं कर सकती. अब मैं तुम्हीं से शादी करूंगी. तुम्हें ही मुझे अपने घर में रखना पड़ेगा.’’ प्रभावती ने गुस्से में कहा.
प्रभावती अब तेजभान के लिए मुसीबत बन गई. वह उस से पीछा छुड़ाने की कोशिश करने लगा. तब प्रभावती उस से अपने वे पैसे मांगने लगी, जो उस ने उसे मोटरसाइकिल खरीदने के लिए दिए थे. दोनों के बीच टकराव होने लगा. तेजभान के साथ शादी कर के घर बसाने का प्रभावती का सपना तेजभान के लिए गले की हड्डी बन गया.
प्रभावती ने कह भी दिया कि जब तक वह शादी नहीं कर लेता, तब तक वह उसे अपने पास फटकने नहीं देगी. वह प्रभावती से शादी तो करना चाहता था, लेकिन उस की मजबूरी यह थी कि वह पहले से ही शादीशुदा था. उस की पत्नी को प्रभावती और उस के संबंधों के बारे में पता भी चल चुका था.
तेजभान को प्रभावती से पीछा छुड़ाने की कोई राह नहीं सूझी तो उस ने उसे रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के बाद 7 दिसंबर, 2013 की शाम प्रभावती को समझाबुझा कर वह पूरे मौकी मजरा जगदीशपुर चलने के लिए राजी कर लिया. प्रभावती तैयार हो गई तो वह उसे मोटरसाइकिल पर बैठा कर चल पड़ा. परशदेपुर गांव के पास वह नइया नाला पर रुक गया.
मोटरसाइकिल सड़क पर खड़ी कर के वह बहाने से प्रभावती को सड़क के नीचे पतावर के जंगल में ले गया. सुनसान जगह पर प्यार करने के बहाने उस ने प्रभावती को बांहों में समेटा और फिर उस का गला घोंट कर मार दिया. प्रभावती को मार कर उस की लाश उस ने नाले के किनारे पतावर में इस तरह छिपा दिया कि वह सड़गल जाए. इस के बाद उस का मोबाइल फोन और अन्य सामान ले कर वह अपने गांव डीह चला गया.
प्रभावती अपने घर नहीं पहुंची तो घर वालों को चिंता हुई. उन्होंने तेजभान को फोन किया तो उस ने कहा कि वह प्रभावती से कई दिनों से नहीं मिला है. उसी दिन प्रभावती के घर जा कर उस ने उस के घर वालों को प्रभावती के बारे में पता करने का आश्वासन दिया. प्रभावती के घर वालों ने पुलिस को सूचना देने की बात कही तो ऐसा करने से उस ने उन्हें रोक दिया. उस का सोचना था कि कुछ दिन बीत जाने पर प्रभावती की लाश सड़गल जाएगी तो वैसे ही उस का पता नहीं चलेगा.
प्रभावती की तलाश करने के बहाने वह रोज उस के घर जाता रहा. 4-5 दिनों बाद जब उसे लगा कि अब प्रभावती की लाश नहीं मिलेगी तो वह अपने काम पर जाने लगा. उस ने अपने साथियों से भी कह दिया था कि अगर उन से कोई प्रभावती के बारे में पूछे तो वे कह देंगे कि उन्होंने 10-15 दिनों से उसे नहीं देखा है.
11 दिसंबर, 2013 की सुबह चौकीदार छिटई को गांव वालों से पता चला कि नइया नाला के पास पतावर के बीच एक लड़की की लाश पड़ी है, जिस की उम्र 23-24 साल होगी. चौकीदार ने यह सूचना थाना डीह पुलिस को दी. उस दिन थानाप्रभारी बी.के. यादव छुट्टी पर थे. इसलिए सबइंसपेक्टर आर.के. कटियार सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. शव की पहचान नहीं हो पाई.
घटना की सूचना पा कर पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय और क्षेत्राधिकारी महमूद आलम सिद्दीकी भी पहुंच गए थे. उस समय जोरदार ठंड पड़ रही थी. चारों ओर घना कोहरा छाया था. निरीक्षण के दौरान देखा गया कि लड़की के हाथ पर ‘आई लव यू’ लिखा है.
पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय ने थाना डीह पुलिस को हत्यारे को जल्द से जल्द पकड़ने का आदेश दिया था. वह इस की रोज रिपोर्ट भी लेने लगे थे. पुलिस ने लड़की के कपड़े और उस के पास से मिले सामान को थाने में रख लिया था. 13 दिसंबर को जब इस घटना के बारे में अखबारों में छपा तो खबर पढ़ कर प्रभावती के घर वाले थाना डीह पहुंचे. उन्हें पूरा विश्वास था कि वह 6 दिनों पहले गायब हुई प्रभावती की ही लाश होगी.
थाने आ कर प्रभावती के भाई फूलचंद और पिता महादेव ने लाश से मिला सामान देखा तो उन्होंने बताया कि वह सारा सामान प्रभावती का है. अब तक थानाप्रभारी बी.के. यादव वापस आ चुके थे. शव की शिनाख्त होते ही उन्होंने जांच आगे बढ़ा दी.
प्रभावती के घर वालों से पूछताछ के बाद पुलिस की नजरें तेजभान पर टिक गईं. प्रभावती के गायब होने के कुछ दिनों बाद तक तो वह प्रभावती के घर जाता रहा था, लेकिन 2 दिनों से वह नहीं गया था. 15 दिसंबर को 2 बजे के आसपास तेजभान डीह के रेलवे मोड़ पर मिल गया तो थानाप्रभारी बी.के. यादव ने उसे पकड़ लिया.
शुरूशुरू में तो तेजभान प्रभावती के संबंध में कोई भी जानकारी देने से मना करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने उस के और प्रभावती के संबंधों के बारे में बताना शुरू किया तो मजबूर हो कर उसे सारी सच्चाई उगलनी पड़ी.
प्रभावती की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करते हुए उस ने कहा, ‘‘साहब, वह बहुत मतलबी और चालू औरत थी. मेरे अलावा भी उस के कई लोगों से संबंध थे. मैं ने उसे मना किया तो वह मुझ से शादी के लिए कहने लगी. उस ने मुझे जो पैसे दिए थे, उस से मैं ने उस का बीमा करा दिया था. फिर भी वह मुझ से अपने पैसे मांग रही थी. परेशान हो कर मैं ने उसे मार दिया.’’
पुलिस ने तेजभान के पास रखा प्रभावती का सामान भी बरामद कर लिया था. इस के तेजभान के खिलाफ प्रभावती की हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
संतोष और रेखा मिलते तो थे सब की नजरें बचा कर, लेकिन उन के हावभाव से रमा को उन पर शक हो गया. इस की एक वजह यह थी कि रमा को अपने पति की फितरत पता थी. उस ने रेखा को अपने घर में रखने से मना किया तो संतोष ने उसे अपने मामा चंद्रपाल के यहां बेलहिया पहुंचा दिया. अपनी होने वाली ससुराल देख कर और होने वाले पति से मिल कर रेखा खुश थी.
संतोष ने वहां पहुंच कर चंद्रपाल से कहा था, ‘‘मामा, तुम्हारी होने वाली बहू ले आया हूं. कुछ दिन रख कर देख लो. मैं 10 दिन बाद अंबाला जाऊंगा, तब इसे साथ ले जाऊंगा.’’
चंद्रपाल ने रेखा को अपने घर में रख लिया. रामकुमार अपनी होने वाली पत्नी से बातचीत तो करता था, लेकिन संतोष की तरह कभी उस के नजदीक जाने की कोशिश नहीं की थी. वह सोचता था कि जो काम शादी के बाद होता है, उसे शादी के बाद ही होना चाहिए.
रेखा को मामा के यहां छोड़ कर संतोष अपने घर तो लौट गया, लेकिन जल्दी ही उसे रेखा की याद सताने लगी. 2-3 दिन तो उस ने किसी तरह बिताए, लेकिन जब उस से नहीं रहा गया तो वह मामा के घर आ गया. रेखा चंद्रपाल के यहां घर के अंदर वाले कमरे में लेटती थी, जबकि रामकुमार अपनी मां जनकदुलारी के साथ वाले कमरे में सोता था. संतोष के सोने की व्यवस्था रामकुमार वाले कमरे में की गई थी.
रात में जब संतोष को लगा कि रामकुमार सो गया है तो वह चुपके से उठा और रेखा के कमरे में जा पहुंचा. रेखा ने उसे मना किया तो उस ने कहा, ‘‘यहां सभी घोड़े बेच कर सो रहे हैं, इसलिए चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. तुम्हें पता होना चाहिए कि इतनी दूर मैं सिर्फ तुम से मिलने आया हूं.’’
रेखा मान गई तो संतोष उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने लगा. इसी बीच अचानक रामकुमार की आंख खुल गई तो उसे रेखा के कमरे में फुसफुसाने की आवाज सुनाई दी. उस ने संतोष का बिस्तर टटोला तो वह गायब था.
रामकुमार सारा माजरा समझ गया, वह उठ कर सीधे रेखा के कमरे में जा पहुंचा. उस ने वहां जो देखा, उसे देख कर उसे गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन उस ने उस गुस्से को जब्त कर के सिर्फ इतना ही कहा,
‘‘तुम लोगों पर भरोसा कर के मैं ने शादी के लिए हामी भर दी थी. लेकिन यह सब देख कर मेरा इरादा बदल गया है. निश्चिंत रहो, मैं यह बात किसी से नहीं बताऊंगा. तुम लोग चुपचाप अपने घर चले जाना.’’
उन दोनों को चेतावनी दे कर रामकुमार अपने बिस्तर पर आ कर लेट गया. रामकुमार की इस धमकी से रेखा और संतोष सन्न रह गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. पलभर सोचविचार कर के रेखा बोली, ‘‘तुम शादीशुदा हो, इसलिए मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती. चिंता की बात यह है कि अंबाला लौट कर हम भैयाभाभी को क्या जवाब देंगे कि रामकुमार शादी क्यों नहीं करना चाहता? अगर रामकुमार ने यह बात सब को बता दी तो हम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.’’
सुन कर संतोष परेशान हो उठा. वह कुछ सोच कर बोला, ‘‘अगर रामकुमार न रहे तो किसी को पता ही नहीं चलेगा कि रात में क्या हुआ था. इस का हल अब यही है कि उसे खत्म कर दें. इस से सारा झंझट ही खत्म हो जाएगा.’’
‘‘मार तो देंगे, लेकिन उस की लाश का क्या करेंगे?’’ रेखा ने चिंता जाहिर की तो संतोष बोला, ‘‘उस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. मैं ने इस बारे में भी सोच लिया है.’’
उस समय रात के करीब 12 बज रहे थे. रेखा और संतोष दबे पांव रामकुमार के कमरे में पहुंचे. तब तक वह सो गया था. संतोष ने रेखा का दुपट्टा ले कर फुर्ती से रामकुमार के गले में डाला और जल्दी से कस दिया. रामकुमार छटपटा कर मर गया.
इस के बाद दोनों लाश को उसी कमरे में ले आए, जहां थोड़ी देर पहले रंगरलियां मना रहे थे. उन्होंने तख्त हटा कर वहां 3 फुट गहरा गड्ढा खोदा और उस में लाश डाल कर मिट्टी भर दी. सारा काम निपटा कर संतोष ने कहा, ‘‘रेखा हमें यहां 3-4 दिन रुकना पड़ेगा. अन्यथा लोग हम पर शंका करेंगे. जब मामला शांत हो जाएगा, उस के बाद अंबाला चले जाएंगे.’’
‘‘लेकिन लाश से बदबू आने लगेगी तो हमारा राज खुल जाएगा.’’ रेखा ने आशंका व्यक्त की.
‘‘तुम बेकार ही परेशान हो रही हो. आज मुझे किसी ने यहां आते देखा तो है नहीं. केवल रामकुमार जानता था, वह रहा नहीं. कल मैं 5-6 किलो नमक ले आऊंगा. उसे डाल देंगे तो लाश गल जाएगी और बदबू नहीं आएगी.’’ कह कर संतोष रात में ही अपने गांव चला गया.
सुबह किसी ने रामकुमार की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. लेकिन जैसेजैसे समय बीता, उस की तलाश शुरू हुई. शाम होतेहोते पूरे गांव में खबर फैल गई कि रामकुमार गायब है. रेखा भी घर वालों के साथ रामकुमार की तलाश में लगी थी.
चंद्रपाल ने संतोष को रामकुमार के गायब होने की बात बताई तो वह भी उस की तलाश के बहाने बेलहिया आ गया. जब सब सो गए तो वह रेखा के कमरे में गया और रामकुमार की लाश पर पड़ी मिट्टी हटा कर अपने साथ लाया नमक उस पर डाल कर ठीक से मिट्टी फैला कर गड्ढा बंद कर दिया. इस के बाद उस के ऊपर तख्त डाल दिया. उस कमरे में अंधेरा रहता था, इसलिए किसी का भी इस ओर ध्यान नहीं गया कि वहां गड्ढा खोदा गया है.
घर में अब रामकुमार की मां जनकदुलारी ही रह गई थी. ऐसे में उन्हें किसी का डर नहीं था. इसलिए संतोष रामकुमार की लाश के ऊपर पड़े तख्त पर रेखा के साथ हर रात रंगरलियां मनाने लगा. चूंकि उन्हें इस के बाद इस तरह का मौका फिर मिलने वाला नहीं था. इसलिए इस का वे भरपूर लाभ उठा रहे थे.
रामकुमार का जब कई दिनों तक पता नहीं चला तो चंद्रपाल ने थाना भदोखर में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. पुलिस ने भी 2-4 दिनों तक राजकुमार को इधरउधर खोजा. जब उस के बारे में कुछ पता नहीं चला तो पुलिस भी सुस्त पड़ गई. अब तक सभी को यकीन हो गया था कि रामकुमार घर छोड़ कर कहीं चला गया है.
उधर जब संतोष को पूरा यकीन हो गया कि गांव और घर वालों ने रामकुमार को लापता मान लिया है तो वह रेखा को ले कर वापस अंबाला चला गया. वहां उस ने रामकुमार के गायब होने की बात बता कर रेखा और रामकुमार की शादी वाली बात खत्म कर दी.
बाद में संतोष को रेखा से भी डर लगने लगा कि कहीं वह किसी से सच्चाई न बता दे. इस से बचने के लिए उस ने रेखा की शादी भोपाल के कटरा सुल्तान के रहने वाले रामगोपाल यादव से करा दी. रामगोपाल उसी के साथ नौकरी करता था. इस के बाद संतोष निश्चिंत हो गया, क्योंकि उस ने फंसने के सारे रास्ते साफ कर दिए थे.
वह समयसमय पर फोन कर के रामकुमार के पिता चंद्रपाल से उस का हालचाल लेता रहता था. लेकिन रामकुमार की लाश मिली तो पुलिस ने चंद्रपाल से विस्तार से पूछताछ की. उस ने उस रात घर में रेखा और संतोष के होने की बात बता कर उन के बारे में भी सारी बातें बता दी थीं.
पुलिस को रेखा और संतोष पर संदेह हुआ तो अंबाला जा कर दोनों को पकड़ लिया. पहले तो वे आनाकानी करते रहे, लेकिन पुलिस ने अंतत: सच्चाई उगलवा ही ली. रेखा और संतोष ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो थाना भदोखर पुलिस ने दोनों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.द्य
— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है.