कागज के टुकड़े की चोरी – भाग 6

निक अब दिन भर खाली था. वह गिलोरिया को एक बेहतरीन होटल में खाना खिलाने ले गया. शाम को दोनों एक संगीत के प्रोग्राम में चले गए. जो रात के 9 बजे तक चलता रहा. अपार्टमेंट पहुंच कर उस ने कमोडोर रेस्टोरेंट में फोन किया. इत्तफाक से दूसरी ओर मिसेज गिलबर्ट ने ही फोन उठाया.

‘‘मैं निकोलस बोल रहा हूं.’’ निक ने कहा, ‘‘मैं ने मिस्टर माइकल से बात की थी. उस ने मुआवजे की रकम दोगुनी कर दी है. यानि 2 हजार.’’

‘‘लेकिन मैं ने 3 हजार की मांग की थी.’’

‘‘तुम 3 के बजाय 30 हजार की मांग भी कर सकती थीं. लेकिन माइकल का कहना है कि वह 2 हजार से ज्यादा नहीं दे सकता. अगर तुम्हें मंजूर हो तो बोलो वरना आइंदा के लिए हम कहीं और इंतजाम कर लेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’ मिसेज गिलबर्ट ने दुखी मन से कहा, ‘‘फिलहाल 2 हजार ही ठीक हैं.’’

‘‘जहाज के बारे में क्या रिपोर्ट है?’’

निक ने महसूस किया कि मिसेज गिलबर्ट ने जवाब देने में कुछ हिचकिचाहट दिखाई. वह गंभीर हो कर बोली, ‘‘जहाज शेड्यूल से पहले पहुंच गया है. पैकेज थोड़ी देर पहले ही मिला है, लेकिन डिलिवरी के लिए तुम्हें कल तक इंतजार करना पड़ेगा.’’

‘‘कल तक क्यों?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम. सच पूछो तो पाल ने मुझे पैकेज के बारे में बताने से भी मना किया था.’’

‘‘हमें भी कोई खास जल्दी नहीं है.’’ निक ने कहा, ‘‘कल किसी समय सही.’’

‘‘सुनो, पाल से इस बात का जिक्र मत करना.’’

‘‘नहीं करूंगा, वैसे गिलबर्ट इस वक्त कहां है?’’

‘‘ऊपर औफिस में बैठा है.’’

‘‘क्या इसी फोन पर संपर्क किया जा सकता है?’’

‘‘नहीं, उस के कमरे में दूसरा फोन है?’’

पूछने पर मिसेज गिलवर्ट ने अपने पति के फोन का जो नंबर बताया उसे सुन कर निक का यह शक यकीन में बदल गया कि पाल गिलबर्ट और नारमन वास्तव में एक ही व्यक्ति के 2 नाम हैं. नारमन ने भी उसे वही फोन नंबर दिया था. उस ने फोन बंद कर दिया और नारमन यानी पाल गिलबर्ट को फोन करने के बारे में सोचने लगा. उसे मालूम था कि वह बेचैनी से उस के फोन का इंतजार कर रहा होगा.

वादे के अनुसार उसे रात के 12 बजे से पहले पहले कागज उस तक पहुंचाना था. वह अभी सोच ही रहा था कि फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठा कर अपना नाम बताया.

‘‘मिस्टर वेलवेट, मैं नारमन बोल रहा हूं.’’

‘‘हैलो नारमन, मैं तुम्हें फोन करने के बारे में ही सोच रहा था.’’

‘‘आज 15 तारीख है, तुम्हारा क्या इरादा है?’’

‘‘इरादा बिलकुल नेक है. काम हो गया है, बाकी रकम के साथ ठीक 11 बजे पार्क एवेन्यू स्थित बरकले होटल में पहुंच जाओ.’’

‘‘नहीं मिस्टर वेलवेट, इस बार मैं कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता. तुम ऐसा करो कि मेरे औफिस आ जाओ. मेरा औफिस 15 कोस्ट रोड पर स्थित कमोडोर रेस्टोरेंट के बिल्कुल ठीक ऊपर, सीढि़यों के पीछे गली में है. ठीक 11 बजे मैं सीढि़यों पर तुम्हारा इंतजार करूंगा. और देखो अपनी गाड़ी गली के कोने पर खड़ी करना.’’

‘‘ठीक है मिस्टर नारमन,’’ निक ने कहा, ‘‘उम्मीद है, इस बार कोई गड़बड़ नहीं होगी.’’

फोन बंद करने के बाद निक ने घड़ी पर नजर डाली. 10 बजने में 5 मिनट थे. उस ने दराज से रिवाल्वर निकाल कर जेब में रखा और फौरन रवाना हो गया. वह गिलबर्ट को तैयारी का मौका नहीं देना चाहता था.

10 बज कर 10 मिनट पर वह पाल गिलबर्ट के औफिस की सीढि़यां चढ़ रहा था. वहां मद्धिम रोशनी का बल्ब जल रहा था. निक को मालूम था कि औफिस का असल रास्ता रेस्टोरेंट के अंदर से है. जाहिर था कि गिलबर्ट इस मामले को अपनी बीवी से छुपा कर रखना चाहता था. इसीलिए उस ने निक को पिछले रास्ते से बुलाया था. सीढि़यों के अंत में एक गैलरी थी जिस के समाने केवल एक दरवाजा था. निक दरवाजा खटखटा कर इंतजार करने लगा. उस का दायां हाथ कोट की जेब में रिवाल्वर के दस्ते पर था.

कुछ पलों के बाद उस ने दोबारा दरवाजा खटखटाया और चाभी के छेद से अंदर झांका. कमरे में अंधेरा था. इस का मतलब गिलबर्ट या तो रेस्टोरेंट में था या कोई खास इंतजाम करने गया था. निक ने जेब से चाभियों का एक बड़ा गुच्छा निकाला और ताले पर जोर आजमाइश करने लगा.

3 मिनट की कोशिश के बाद वह ताला खोलने में कामयाब हो गया. वह सावधानीपूर्वक दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हुआ और अंदर से दरवाजा बंद कर दिया. खिड़की के रास्ते आने वाली रोशनी के कारण कमरे में हल्का सा प्रकाश फैला हुआ था. निक कुछ पलों तक सांस रोके दरवाजे के साथ खड़ा रहा. फिर सावधानी के साथ आगे बढ़ा.

कमरा ज्यादा बड़ा नहीं था. अंदर एक औफिस टेबल, एक अलमारी, एक रैक, कुछ कुर्सियां और कुछ छोटीमोटी चीजों के साए नजर आ रहे थे. मेज के पीछे कोने में कार्ड बोर्ड का एक डिब्बा रखा था. निक ने डिब्बा खोल कर देखा, उस के अंदर छोटेछोटे डिब्बे थे. उस ने एक डिब्बा उठा कर खोला तो उस के अंदर टार्च में इस्तेमाल होने वाली बैटरी सेल थे. हर डिब्बे में एक दर्जन सेल. निक ने ऊपर के चंद डिब्बे हटा कर नीचे देखा, लेकिन कोई और चीज नजर नहीं आई. उस ने कंधे उचकाए और डिब्बे वापस रखने लगा.

तभी अचानक उसे महसूस हुआ कि नीचे वाले एक डिब्बे का वजन काफी कम है. उसे इस बात का अहसास अंधेरे की वजह से हुआ था. उसे लगा कि या तो उस डिब्बे में कोई और चीज है या सेल पूरे नहीं हैं. उस ने डिब्बा खोल कर देखा तो उस में सेल ही थे और वह भी पूरे बारह. लेकिन उस डिब्बे का वजन दूसरे डिब्बों से कम था. उस ने एक सेल नीचे वाले डिब्बे से निकाला और एक ऊपर वाले से. फिर दोनों को हाथों में ले कर जांचा, तो नीचे वाले डिब्बे के सेल का वजन कम था.

क्या सच में पाल और नारमन एक ही व्यक्ति थे? क्या छिपा रहा था पाल अपनी पत्नी से? जानने के लिए पढ़ें हिंदी क्राइम स्टोरी का अगला भाग…

ये प्यार था या कुछ और था – भाग 1

बिहार के जिला अरवल के थाना कुर्था के गांव निगवां के रहने वाले फागूदास की 9 संतानों  में रिंकी कुमारी बचपन से ही अपने बहनभाइयों में सब से अलग थी. देश के कई राज्यों, जैसे उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और बिहार के ऐसे तमाम ग्रामीण इलाके हैं, जहां आज भी पिछड़ी जातियों में बालविवाह होता है.

इस बालविवाह के पीछे इन रूढि़वादियों का सोचना है कि अगर उन्होंने अपनी कन्या का विवाह (दान) रजस्वला होने से पहले कर दिया तो बहुत बड़ी पुण्य होगी. इसी पुण्य की लालसा में वे अपनी नादान बेटियों का भविष्य यानी जिंदगी दांव पर लगा देते हैं. जबकि उन लड़कियों को सही मायने में शादी का पता भी नहीं होता.

फागूदास की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी भले नहीं थी, लेकिन इतनी खराब भी नहीं थी कि उन्हें किसी के सामने हाथ फैलाना पड़ता. उन का गुजरबसर आराम से हो रहा था. बड़े हो कर बेटे पिता की मदद करने लगे तो फागूदास की आर्थिक स्थिति में और भी सुधार आ गया.

फागूदास जिस जाति के थे, उस जाति में बेटियों की शादी कमउम्र में ही कर दी जाती थी. लड़की की पसंद और नापसंद का कोई मतलब नहीं था. जो कुछ करना होता था, मांबाप अपनी मर्जी से करते थे.

रिंकी कुमारी 10-11 साल की हुई नहीं कि फागूदास ने तय कर लिया कि वह रिंकी की शादी उस के रजस्वला होने से पहले ही कर के पुण्य का लाभ कमा लेंगे. उन्होंने रिंकी के लिए लड़के की तलाश भी शुरू कर दी. थोड़ी भागदौड़ के बाद उन्हें रिंकी के लिए घरवर मिल गया. लड़का पड़ोसी जिला जहानाबाद के प्रखंड शर्कुराबाद के गांव रतनी फरीदपुर के रहने वाले विघ्नेश्वरदास का 23 वर्षीय बेटा अशोकदास था. बातचीत के बाद शादी तय हो गई. लेकिन शादी की तारीख उन्होंने पूरे एक साल बाद रखी.

रिंकी की शादी तय होने के बाद फागूदास तैयारी में जुट गया. एक एक दिन कर के समय बीत रहा था. रिंकी पूरे 12 साल की हो गई. महीने भर बाद ही उस की शादी होने वाली थी. लेकिन संयोग देखो, जिस पुण्य की लालसा में फागूदास नाबालिग बेटी की शादी दोगुनी उम्र के लड़के से कर रहा था, उस की यह लालसा पूरी नहीं हो सकी.

विवाह के महीना भर पहले रिंकी 12 साल की उम्र में ही रजस्वला हो गई. रिंकी की मां ने जब फागूदास को बेटी के रजस्वला होने की बात बताई तो वह अपने भाग्य को कोसने लगा. लेकिन कुदरत पर इंसान का कोई वश नहीं है, इसलिए फागूदास भी सिर पीट कर रह गया.

बुझे मन से ही सही, फागूदास ने भाग्य को कोसते हुए पहले से तय तारीख पर रिंकी की शादी उस से दोगुनी उम्र के मैट्रिक पास अशोकदास के साथ कर दी. फागूदास ने रिंकी की शादी तो कर दी थी, लेकिन विदा नहीं किया था. इसलिए मांबाप के यहां रहते हुए रिंकी आगे की पढ़ाई करने लगी. वह गांव के ही मिडिल स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ रही थी.

शादी के साल भर बाद सन 2000 में वादे के अनुसार फागूदास ने रिंकी को विदा कर दिया. रिंकी कुमारी विदा हो कर ससुराल पहुंची तो उस समय उस की उम्र 14 साल कुछ महीने थी. लगभग महीने भर ससुराल में रह कर रिंकी आ गई. रिंकी की पढ़ाई में रुचि थी, इसलिए शादी के समय ही उस ने कह दिया था कि वह अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ेगी. यही वजह थी कि शादी के बाद भी उस ने पढ़ाई जारी रखी. वह ग्रैजुएशन कर के कुछ करना चाहती थी.

ससुराल वालों की रजामंदी से रिंकी कुमारी ने गांव से इंटरमीडिएट कर के आगे की पढ़ाई के लिए जहानाबाद के अपने एक रिश्तेदार की मदद से जहानाबाद के मुरलीधर उच्च महाविद्यालय में दाखिला ले लिया. रिंकी ने बीए फर्स्ट ईयर की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में पास की. इस के बाद उस का पति अशोक उसे अपने साथ कोलकाता ले कर चला गया. वहां वह किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. 2 सालों तक वह पति के साथ कोलकाता में रही. इस बीच वह 1-2 बार ही जहानाबाद आई.

जिस समय रिंकी कुमारी की शादी अशोकदास से हुई थी, उस समय वह बेरोजगार था. घरगृहस्थी की सारी जिम्मेदारी रिंकी के ससुर विघ्नेश्वरदास के कंधों पर थी. यही वजह थी कि शादी के बाद भी रिंकी ने पढ़ाई जारी रखी थी. उस का सोचना था कि युवा और हट्टाकट्टा हो कर भी उस का पति कुछ नहीं करता तो अपनी जरूरतों के लिए वह कब तक सासससुर और मांबाप का मुंह ताकती रहेगी. यही वजह थी कि रिंकी ने सोच लिया था कि जैसे भी हो, वह पढ़लिख कर आत्मनिर्भर बनने (अपने पैरों पर खड़े होने) का प्रयास करेगी.

मैट्रिक तक पढ़े उस के पति अशोकदास को सरकारी नौकरी तो मिल नहीं सकती थी. कोई छोटामोटा काम वह करना नहीं चाहता था. इसलिए जब उसे कोलकाता में नौकरी मिली तो उसे वह नौकरी मनमाफिक लगी, जिस से वह वहां चला गया था.

कुछ दिनों बाद उस ने रिंकी को भी वहीं बुला लिया था. लेकिन वहां जा कर जल्दी ही रिंकी को लगने लगा कि जैसा कुछ उस ने सोचा था, वैसा यहां भी नहीं है. उस ने सोचा था कि अब तो पति की नौकरी लग ही गई है, इसलिए अब वह अपनी मनमरजी का खर्च कर सकेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि अभी भी उसे अपनी कुछ खास जरूरतों के लिए दूसरों के सामने ही हाथ फैलाना पड़ रहा है.

दरअसल, रिंकी कुमारी को जब पति की नौकरी के बारे में पता चला था तो उसे लगा था कि अब उसे अपनी छोटीमोटी जरूरतों के लिए मांबाप या सासससुर के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा. लेकिन जल्दी ही रिंकी का यह भ्रम टूट गया. क्योंकि अशोकदास खाने कपड़े के अलावा उस की अन्य जरूरतों के लिए पैसे नहीं देता था.

कभी वह कोई सामान लेने की जिद करती तो अशोक उसे दिलाने के बजाय समझाबुझा कर सामान लेने से मना कर देता. अगर इस पर रिंकी न मानती तो वह डांटफटकार कर या मारपीट कर उसे शांत करा देता. रिंकी ने जब भी अशोक से यह जानना चाहा कि उसे वेतन कितना मिलता है तो बताने के बजाए वह टाल देता. वह उसे यह कह कर चुप करा देता कि पति कितना कमाता है, पत्नी को इस सब से क्या मतलब. उसे अपने खाने कपडे़ से मतलब होना चाहिए. उसे यह सब मिल ही रहा है.

अशोक की इन बातों से रिंकी ने महसूस किया कि नौकरी लगने के बाद उस में काफी बदलाव आ गया है. वह उस के साथ पति जैसा व्यवहार न कर के अपने दायित्वों से भाग रहा है. रिंकी को लगता था कि अशोक उस की उपेक्षा करने के साथ उस का शारीरिक और मानसिक शोषण भी करने लगा है. रिंकी के लिए जब यह सब बरदाश्त से बाहर होने लगा तो अपने पैरों पर खड़ी होने का निर्णय ले कर वह कोलकाता से अपनी ससुराल जहानाबाद आ गई.

कालिंदी की जिद : पत्नी या प्रेमिका? – भाग 4

रामकुमार ने अपने बयान में बताया कि 22 नवंबर को कालिंदी उस के घर आ कर उस की पत्नी पूनम से बहस करने लगी तो उसे उस पर बहुत गुस्सा आया. जब उस से बरदाश्त नहीं हुआ तो वह उसे समझाबुझा कर अपनी मोटरसाइकिल पर दुर्ग बस स्टैंड छोड़ आया. जहां से वह अपने मायके चली गई.

अभी घर लौटे उसे डेढ़ घंटा ही हुआ था कि उस के मोबाइल पर कालिंदी का फोन आ गया. उस ने बताया कि वह मायके न जा कर बीच रास्ते में ही बस से उतर गई है और अब रायपुर लौट रही है. इसलिए वह उसे हीरापुर में मिले. कारण पूछने पर उस ने कहा कि उस के मायके वालों को ही नहीं बल्कि रिश्ते नातेदारों तक को हकीकत पता चल गई है. ऐसे में उसे कोई भी घर में नहीं रखेगा.

रामकुमार के अनुसार उसे कालिंदी की इस हरकत पर काफी गुस्सा आया. अगर वह हीरापुर में बताई गई जगह पर नहीं पहुंचता तो कालिंदी उस के घर पहुंच जाती. इसलिए वह उस की बताई जगह पर पहुंच गया. तब तक साढ़े 7 बज चुके थे. वहां से वह कालिंदी को अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर गोगांव नाले की ओर निकल गया क्योंकि उस रास्ते पर लोगों का कम ही आनाजाना होता है.

नाले के पास पहुंच कर उस ने अपनी बाइक नाले के किनारे खड़ी कर दी और कालिंदी पर गुस्सा होते हुए कहा, ‘‘मेरे इतना कहने और समझाने के बावजूद तुम हफ्ते भर अपने मायके में नहीं रह सकीं. अब बताओ मैं तुम्हें कहां रखूं? पूनम तो साथ रहने नहीं देगी.’’

इस पर कालिंदी नाराज होते हुए बोली, ‘‘अब न तो मेरा कोई मायका है और न ससुराल. मैं सब कुछ पीछे छोड़ आई हूं. तुम्हीं बताओ, ऐसे में कहां जाऊं?’’

‘‘जहन्नुम में जाओ, पर मेरा पीछा छोड़ दो.’’ रामकुमार ने कहा तो कालिंदी बिफर उठी और उस के दोनों हाथ पकड़ कर अपनी गरदन पर रखते हुए गुस्से में बोली, ‘‘मुझे जहन्नुम भेजना चाहते हो तो भेज दो. अभी इसी वक्त जहन्नुम में भेज दो मुझे.’’

रामकुमार के अनुसार वह अपने हाथोें से उस के दोनों हाथ पकड़ कर अपनी गरदन पर दबाव बनाने लगी. इस पर उस ने कालिंदी को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह गुस्से में आग बबूला होती हुई बारबार जहन्नुम भेजने की बात कह कर उसे गुस्सा दिलाने लगी. आखिर उसे गुस्सा आ ही गया और उस का हाथ सचमुच कालिंदी की गरदन पर कसने लगा. फिर देखते ही देखते उस के हलक से गूं…गूं…गूं… की आवाजें निकलने लगीं. फिर कुछ देर में उस का शरीर रामकुमार के कंधे पर लुढ़क गया.

कालिंदी को निष्प्राण हुआ देख वह डर गया. उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो वहां दूरदूर तक कोई भी नहीं था. यह देख उस ने राहत की सांस ली और पैंट व अंडरवियर पहने पहने ही कालिंदी के शव को ले कर नाले में उतर गया. किनारे से 2-4 कदम आगे जा कर उस ने उस की लाश को पानी में छोड़ा और फिर किनारे से वजनी पत्थर ला कर उस के ऊपर रख दिया. ताकि वह तुरंत पानी से ऊपर न आ सके. वहां से वह सीधे अपने घर लौट आया.

रामकुमार ने पश्चाताप जाहिर करते हुए कहा, ‘‘काश! कालिंदी बार बार जहन्नुम भेजने की बात कह कर मुझे गुस्सा न दिलाती तो शायद मेरे हाथों इतना बड़ा अनर्थ न होता. दरअसल वह यह नहीं समझ पा रही थी कि मेरी पत्नी और 2 बच्चे हैं और मुझे उन्हें भी देख कर चलना पड़ेगा.’’

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी कालिंदी की मौत की वजह दम घुटना ही बताई गई थी. उस की मौत पानी में दम घुटने से नहीं बल्कि गला दबाने से हुई थी. थानाप्रभारी संजय तिवारी ने कालिंदी की हत्या कर के लाश को छुपाने के आरोप में राकुमार के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 और 201 का इस्तेमाल किया. जरूरी पूछताछ के बाद पुलिस ने रामकुमार को 25 नवंबर को अदालत में पेश किया जहां से उसे न्यायिक हिरासत में रायपुर जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर

आशिकी में भाई को किया दफन – भाग 3

कोतवाल सिंह ने सेठपाल से उस के पूरे परिवार के सदस्यों के बारे में पूछताछ की. सेठपाल की बातें सुन कर श्री सिंह भी चौंक पड़े, क्योंकि 6 फरवरी की रात से ही कुलवीर के लापता होने की बात बताई गई थी. उन्हें इस के पीछे दाल में काला होने का शक हुआ.

यानी वह समझ गए कि इस मामले में परिवार या पासपड़ोस का ही कोई न कोई शामिल हो सकता है. यह भी सवाल था कि कुलवीर ने ही सब को बेहोश कर दिया हो और खुद भी घर से फरार हो गया हो? लेकिन यह जांच का विषय था कि उस ने आखिर ऐसा क्यों किया होगा? घर में गहने या रुपएपैसे सहीसलामत थे.

उसी तरीख से कुलवीर का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ था. श्री सिंह ने मामले की जांच करने के लिए एसएसआई अंकुर शर्मा को सेठपाल के साथ उस के गांव भेज दिया.

अंकुर शर्मा ने ढाढेकी ढाणा पहुंच कर सेठपाल के सभी परिजनों से उस की बेहोशी की हालत के बारे में गहन तहकीकात की. इस बाबत पड़ोसियों से भी बात की. इस की सिलसिलेवार जानकारी उन्होंने कोतवाल अमरजीत सिंह को दे दी.

श्री सिंह शर्मा की रिपोर्ट पढ़ कर इस निर्णय पर पहुंचे कि कुलवीर ही अपने घर वालों को बेहोश कर फरार हो गया होगा. सेठपाल की तहरीर पर कुलवीर की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद मामले की विवेचना महिला थानेदार एकता ममगई को सौंप दी गई.

नहीं मिला ठोस सुराग

इस की सूचना सीओ मनोज ठाकुर और एसपी (देहात) स्वप्न किशोर को भी दे दी गई. उन से आगे की जांच और काररवाई के निर्देश के बाद विवेचक एकता ममगई ने कुलवीर के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. जांच शुरू तो हो गई थी, कुलवीर की सरगरमी से तलाश हो रही थी. लेकिन कुलवीर के बारे में कोई ठोस जानकारी हाथ नहीं लगी थी. जबकि उस की फोटो के साथ आसपास के क्षेत्रों में पैंफ्लेट चिपका दिए गए थे.

कुलवीर के कुछ दोस्तों और घर वालों से भी उस के बारे में और उस की आदतों को ले कर पूछताछ की गई थी. यह सब करते हुए 3 सप्ताह से अधिक का समय निकल गया था. पुलिस को कुलवीर के बारे में कोई भी सटीक जानकारी नहीं मिल पाई थी.

अब बारी थी परिवार के सभी सदस्य और गांव के दूसरे लोगों से बारीबारी पूछताछ की. इस पर जब गहनता से काम किया जाने लगा किसी ने दबी जुबान में बताया कि उस की नाबालिग बहन गीता का पड़ोसी राहुल के साथ प्रेम संबंध है.

पुलिस ने गीता से की पूछताछ

इस सूचना के बाद देरी किए बगैर गीता से पूछताछ करने के लिए उसे थाने बुलाया गया. पहले तो गीता ने पुलिस को झूठी बातों में उलझाने की कोशिश की. उस ने बताया था कि कुलवीर पिता सेठपाल से नाराज हो कर घर से चला गया है. लेकिन वह नाराजगी की कोई ठोस वजह नहीं बता पाई.

इस के बाद जब अमरजीत सिंह ने गीता से उस के पड़ोसी शादीशुदा राहुल से चल रहे प्रेम संबंधों के बारे में पूछा तो उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. थाने में महिला सिपाही की सख्ती के सामने वह अधिक समय तक नहीं टिक पाई.

12 मार्च, 2023 को गीता ने स्वीकार कर लिया कि उसे कुलवीर पीटता रहा है, क्योंकि वह राहुल से प्यार करती है. उस ने उसे राहुल से दूर रहने की सख्त हिदायत दी थी. भाई की धमकी सुन कर वह डर गई थी. उस ने औनर किलिंग के बारे में काफी कुछ सुन रखा था कि कैसे मांबाप, भाई और रिश्तेदार अपनी प्रतिष्ठा की खातिर प्रेमी प्रेमिका को मौत के घाट उतार देते हैं.

इस बारे में उस ने राहुल को बताया, जिस से राहुल भी कुलवीर के खिलाफ आग उगलने लगा. और फिर उस ने गीता के साथ मिल कर एक योजना बनाई. इस से पहले कुलवीर गीता के खिलाफ कोई गंभीर कदम उठाए, उस से पहले क्यों न वही कुलवीर को ही निपटा दे.

इस योजना में उस ने अपने दोस्त कृष्णा को भी 40 हजार रुपए का लालच दे कर शामिल कर लिया. इस योजना को उन्होंने 6 फरवरी, 2023 की रात को अंजाम भी दे दिया.

आशिकी में निपटाया बहन ने भाई को

रात को 11 बजे राहुल ने सेठपाल के दरवाजे पर हल्की सी दस्तक दी थी. गीता ने तुरंत दरवाजा खोल दिया था. उस के साथ एक लड़का कृष्णा भी था. राहुल जब उसे ले कर घर में घुसा, तब बाहर के कमरे में कुलवीर को खाट पर गहरी नींद में सोया पाया.

गीता धीमे से राहुल से बोली, “इसे जल्दी निपटाओ.’’

इस के बाद गीता ने अपने भाई कुलवीर के हाथ पकड़ लिए, जबकि कृष्णा ने कुलवीर के पैर. उस के बाद राहुल ने दोनों हाथों से कुलवीर का गला घोंट दिया.

कुलवीर का शरीर कुछ समय में ही बेजान हो गया. राहुल और कृष्णा ने उस की लाश को एक चादर में बांध लिया. उसे कृष्णा अपने घर में ले आ आया. कृष्णा अपने घर में एक गड्ढा पहले से ही खोद कर रखा था. उस ने कुलवीर की लाश उसी में दबा दी. दूसरी ओर गीता ने कुलवीर का मोबाइल फोन स्विच औफ कर पास के तालाब में फेंक दिया और खुद नींद की गोलियां खा कर घर में ही सो गई.

पुलिस ने गीता से मिली जानकारी के बाद राहुल से भी उसी दिन पूछताछ की. इस के लिए उसे थाने बुलाया. उस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया गया. इस से भी बात नहीं बनी तब पुलिस सेवा की धमकी दी गई. इस धमकी से वह टूट गया और उस ने न केवल गीता के साथ अनैतिक संबंध की बात स्वीकार की, बल्कि कुलवीर की हत्या का जुर्म भी स्वीकार कर लिया.

कुलवीर के बारे में गीता और राहुल से वारदात के बारे में मिली जानकारी के बाद सीओ मनोज ठाकुर कोतवाली लक्सर आ गए थे. उन्होंने भी गीता से गहनता से पूछताछ की. इस के बाद एसएसआई अंकुर शर्मा और महिला थानेदार एकता ममगई ने कृष्णा को भी उस के घर से हिरासत में ले लिया.

गीता, राहुल और कृष्णा के बयान दर्ज कर लिए गए. तीनों के बयानों में एकरूपता थी. गीता और कृष्णा ने भी राहुल के ही बयान का समर्थन किया था. इस के बाद पुलिस ने कुलवीर की गुमशुदगी के मामले में हत्या कर लाश छिपाने की धाराएं जोड़ दीं. इस के बाद पुलिस ने राहुल की निशानदेही पर कृष्णा के घर से कुलवीर का शव भी बरामद कर लिया. उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

अगले दिन पुलिस ने राहुल और कृष्णा को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. गीता की उम्र 18 वर्ष से कम होने के कारण उसे कोर्ट ने बाल संरक्षण गृह भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक कुलवीर हत्याकांड की विवेचना महिला थानेदार एकता ममगई द्वारा की जा रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में गीता नाम परिवर्तित है.

कागज के टुकड़े की चोरी – भाग 5

सैंट्रल पार्क के उत्तरपश्चिमी कोने में हलका अंधेरा छाया हुआ था. आसपास फैली गगनचुंबी इमारतों की खिड़कियों से निकलता मद्धिममद्धिम प्रकाश वहां पहुंच रहा था, मगर फिर भी घने पेड़ों के नीचे अंधेरा था. ठीक 10 बजे निक ने पार्क में कदम रखा और सावधानीपूर्वक उत्तरपश्चिमी कोने की ओर बढ़ा. उस की तेज नजरें चारों ओर का जायजा ले रही थीं. पेड़ों के अंधेरे में पहुंच कर वह रुका और हौले से नारमन को आवाज दी.

यकायक उसे हलकी आहट सुनाई दी. वह आवाज की दिशा में मुड़ने का इरादा कर ही रहा था कि उसे अपनी कमर में कोई ठोस चीज चुभती हुई महसूस हुई. वह पत्थर की तरह अपनी जगह पर जम गया.

‘‘कोई हरकत मत करना.’’ किसी ने उस के कान में धीमे से कहा, ‘‘तुम्हारी कमर में जो चीज चुभ रही है वह 28 बोर की साइलेंसर लगी पिस्तौल की नाल है.’’

‘‘मैं इस हरकत का मतलब नहीं समझा, मिस्टर नारमन?’’ निक ने कहा.

उसी वक्त एक आदमी निक के सामने पहुंच गया और जल्दी से उस की जेब से पर्स निकाल लिया.

‘‘हमें उलझाने की कोशिश मत करो.’’ उस व्यक्ति ने कहा, ‘‘यहां कोई नारमन नहीं है.’’

‘‘तुम कौन हो?’’

‘‘इतने अंजान मत बनो.’’ पर्स निकालने वाले ने कहा, ‘‘हमें बस माल चाहिए, इत्मिनान से खड़े रहोगे तो तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे.’’

‘‘मैं इत्मिनान से ही खड़ा हूं.’’ निक ने कहा, ‘‘अपने हाथपैर गंदे करने का मेरा कोई इरादा नहीं है.’’

‘‘इसी में समझदारी भी है. ’’ वह आदमी पर्स से कैश निकालते हुए बोला. फिर उस ने चौंक कर कहा, ‘‘अरे, तुम तो बिलकुल ही कंगले मालूम होते हो. इस में तो एक समय के खाने के पैसे भी नहीं हैं.’’

निक के होंठों पर हलकी सी मुसकराहट आ गई. घर से चलते समय उस ने पर्स से कैश और पहचान पत्र आदि निकाल दिए थे. पर्स में केवल 3 डौलर और कुछ सिक्के ही थे.

‘‘अगर बात खाने की है तो मेरे साथ चलो.’’ निक ने कहा, ‘‘मेरे फ्रिज से 2 आदमियों का खाना तो निकल ही जाएगा.’’

‘‘शटअप, हम इतने भी मूर्ख नहीं हैं. जौनी, जरा इस की जेबें भी देख लेना. पर्स में काम की कोई चीज नहीं है.’’ उस ने अपने साथी से कहा.

निक समझ गया कि उन्हें पुरानी डायरी के टुकड़े की तलाश है. मगर उस ने कोई विरोध नहीं किया. उस आदमी ने बहुत फुर्ती से उस की सारी जेबें देख डालीं और आखिरकार अंदरूनी जेब से एक तह किया हुआ कागज निकाल लिया.

‘‘यह…यह क्या कर रहे हो?’’ निक ने जल्दी से कहा, ‘‘यह कागज तुम्हारे काम का नहीं है.’’

‘‘शट अप.’’ पीछे वाले आदमी ने कहा और पिस्तौल का हत्था उस के सिर पर दे मारा. इस के साथ ही निक की आंखों के सामने नीले पीले तारे नाच गए और वह जमीन पर ढेर हो गया.

जब निक को होश आया तो एक आदमी उस के ऊपर झुका हुआ था. वह कपड़े झाड़ते हुए उठ कर खड़ा हो गया.

‘‘तुम तो ठीक हो.’’ अजनबी ने हैरानी से कहा, ‘‘मैं तो एंबुलेंस के लिए फोन करने वाला था.’’

‘‘धन्यवाद, जरा नींद का झोंका आ गया था.’’ निक ने कहा और चोट वाली जगह पर हाथ फेराते हुए गेट की ओर चल दिया. कार में बैठने के बाद उस ने जुराब हटा कर देखी तो असली कागज मौजूद था. निक की आशा के अनुरूप एक घंटे बाद नारमन का फोन आ गया.

‘‘मिस्टर वेलवेट.’’ उस ने कहा, ‘‘मेरी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया था इसलिए मैं नियत जगह पर नहीं पहुंच सका.’’

‘‘मेरा भी एक्सीडेंट हो गया है.’’

‘‘क्या?’’ नारमन के लहजे में हैरत थी.

‘‘मेरा मतलब है कि मेरे साथ दुर्घटना हो गई है.’’ निक ने सफाई देते हुए कहा, ‘‘मैं पार्क में तुम्हारा इंतजार कर रहा था कि 2 बदमाशों ने मुझे आ कर घेर लिया और पिस्तौल दिखा कर लूट लिया.’’

‘‘ओह, यह तो बहुत बुरा हुआ.’’

‘‘वे लोग उस कागज को भी साथ ले गए हैं जो मैं तुम्हें देने के लिए साथ ले गया था.’’

‘‘लेकिन वह तो…’’ नारमन ने कहना शुरू किया, लेकिन फौरन ही चुप हो गया. निक के लिए इतना ही काफी था. इस से यह बात पक्की हो गई थी कि दोनों गुंडे उसी के भेजे हुए थे.

‘‘मिस्टर नारमन मैं बहुत शर्मिंदा हूं.’’ निक ने कहा, ‘‘मुझे दुख है कि वह कागज का टुकड़ा तुम तक नहीं पहुंचा सका. लेकिन गलती तुम्हारी है, तुम ने मुलाकात के लिए एक असुरक्षित जगह को चुना था.’’

‘‘लेकिन मैं तुम्हें 10 हजार डौलर पेशगी दे चुका हूं.’’

‘‘तुम्हारी रकम कल सुबह तुम्हें वापस मिल जाएगी.’’

‘‘रकम की बात नहीं है, मेरे लिए वह कागज ज्यादा महत्त्वपूर्ण है.’’

‘‘मैं दोबारा कोशिश कर सकता हूं.’’ निक ने दिखावे के तौर पर बेदिली से कहा, ‘‘मैं दोनों बदमाशों में से एक की शक्ल देख चुका हूं और मुझे उम्मीद है कि मैं उसे ढूंढ़ निकालूंगा. पुलिस हेडक्वार्टर में मेरे कुछ अच्छे दोस्त हैं.’’

‘‘ठीक है, ठीक है,’’ नारमन ने थोड़े गुस्से के साथ कहा. ‘‘मुझे लंबी चौड़ी भूमिका में कोई दिलचस्पी नहीं है. आज 14 तारीख है. एग्रीमेंट के अनुसार 15 तारीख तक काम हो जाना चाहिए. मुझे हर हाल में कागज का वह टुकड़ा चाहिए.’’

‘‘ठीक है, लेकिन अब तुम्हें दोगुनी फीस अदा करनी होगी.’’

‘‘यह नामुमकिन है.’’ नारमन चिल्लाया, ‘‘तुम्हें अपने वादे पर कायम रहना चाहिए.’’

‘‘अकसर लोग वादे को भूल जाते हैं.’’ निक ने सोचने वाले लहजे में कहा, ‘‘बहरहाल, अगर तुम चाहो तो 50 हजार डौलर में सौदा कर लो. वरना अपनी रकम वापस ले लो.’’

‘‘ओह, माई गाड. ठीक है, मुझे मंजूर है.’’

‘‘बहुत खूब, मुझे यकीन था कि तुम समझदारी से काम लोगे. कल सुबह ठीक 11 बजे शेर के पिंजरे के पास 20 हजार डौलर और ले कर पहुंच जाना.’’ कह कर उस ने नारमन के कुछ बोलने से पहले ही फोन बंद कर दिया.

अगली सुबह नारमन ने अपने वादे के अनुसार 20 हजार डौलर निक को अदा कर दिए. वह अच्छी तरह जानता था कि कागज का टुकड़ा निक के पास ही है. लेकिन उस ने इस बात का कोई जिक्र नहीं किया. वह कर भी नहीं सकता था क्योंकि अगर वह ऐसा करता तो एक तरह गुंडे भेजने की स्वीकारोक्ति कर लेता.

क्या निक नारमन की असलियत जान पायेगा? कहीं वो खुद ही किसी से चक्रव्यूह में तो नहीं फंस जायेगा? इन सवालों के जवाब मिलेंगे बेस्ट हिंदी फिक्शन क्राइम स्टोरी में…

कालिंदी की जिद : पत्नी या प्रेमिका? – भाग 3

उस वक्त तो वह खून का घूंट पी कर रह गई पर अगले दिन 22 नवंबर को सुबह लगभग 10 बजे वह पूनम के घर जा पहुंची और पूनम से साफसाफ कह दिया, ‘‘रामकुमार जब उस का पति था तब था, अब वह उस का भी है. वह उसे अपना तनमन सौंप कर अपना पति मान चुकी है.’’

उस दिन रामकुमार की मौजूदगी में उन दोनों के बीच काफी कहासुनी हुई. कालिंदी ने पूनम से साफसाफ कह दिया कि उस ने दिलीप को छोड़ दिया है और अब रामकुमार के साथ ही रहेगी.

कालिंदी का पूनम से इस तरह बहस करना रामकुमार को अच्छा नहीं लग रहा था. जब उस से नहीं रहा गया तो वह कालिंदी का हाथ पकड़ कर घर से बाहर ले आया. रामकुमार ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें जो भी कहना सुनना है मुझसे कहो लेकिन यहां नहीं, चलो हम कहीं बाहर चलते हैं. मैं वहीं तुम्हारी सारी बातों का जवाब दूंगा.’’

कालिंदी तैयार हो गई तो रामकुमार उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर एक रेस्टोरेंट में ले गया. वहां चायनाश्ते के दौरान उस ने कालिंदी को समझाया, ‘‘जब मैं तुम्हें अपने साथ रखने को तैयार हूं तो इस तरह घर आ कर तमाशा खड़ा करने का क्या मतलब? अब मेरी बात ध्यान से सुनो. तुम हफ्ते दस दिन के लिए अपनी मां के घर चली जाओ. इस बीच मैं यहां पर तुम्हारे रहने का कोई इंतजाम कर के तुम्हें फोन कर दूंगा.’’

रामकुमार ने समझाबुझा कर कालिंदी को मायके जाने के लिए राजी कर लिया. इस के बाद टिकट और रास्ते के खर्च के लिए 5 सौ रुपए दे कर उस ने कालिंदी को दुर्ग बस स्टैंड पर छोड़ दिया. उसे दुर्ग बस स्टैंड छोड़ने के बाद रामकुमार रायपुर लौट आया. रात में लगभग 10 बजे जब वह घर पहुंचा तब भी पूनम का मिजाज गरम था. लेकिन वह उस से बिना कोई बात किए खाना खा कर चुपचाप सो गया.

खमतराई थानाप्रभारी संजय तिवारी को 23 नवंबर की सुबह सूचना मिली कि गोगांव नाले में एक महिला की लाश पड़ी है. लाश की खबर मिलते ही संजय तिवारी एसआई आर.पी. मिश्रा, हेडकांस्टेबल साबिर खान, कांस्टेबल शिवशंकर तिवारी, उमेश पटेल, बच्चन सिंह ठाकुर, गिरधर गोपाल द्विवेदी और एस.एस. ठाकुर को साथ ले कर गोगांव नाले के पास पहुंचे तो वहां काफी भीड़ जमा थी.

वहां पीले रंग की साड़ी पहने एक महिला का शव नाले के किनारे पानी में पड़ा था. पानी कम होने की वजह से लाश साफ दिख रही थी. थानाप्रभारी ने 2 सिपाहियों को नाले से लाश को बाहर निकलवाया तो पता चला लाश को वजनी पत्थर से दबाने की कोशिश की गई थी. मौके पर मौजूद भीड़ में कोई भी लाश को नहीं पहचान सका.

जब लाश की शिनाख्त नहीं हुई तो पुलिस ने नियमानुसार उस के फोटो करा कर पंचनामा तैयार किया और उसे पोस्टमार्टम के लिए रायपुर भेज दिया. घटनास्थल की प्राथमिक औपचारिकता पूरी कर के संजय तिवारी अपनी टीम के साथ थाने लौट आए. इस बाबत हत्या का मुकदमा दर्ज कर के पुलिस अधीक्षक ओ.पी. पाल को भी सूचना दे दी गई.

अगले दिन थानाप्रभारी संजय तिवारी को एक दिन की छुट्टी पर घर जाना था. वह एसआई आर.पी. मिश्रा को लावारिस लाश की शिनाख्त के लिए निर्देश दे कर चले गए. लाश की शिनाख्त के लिए पुलिस के पास एक ही रास्ता था कि उस का फोटो अखबारों में छपाया जाए.

सबइंसपेक्टर आर.पी. मिश्रा ने लाश का फोटो बनवा कर सिपाही बच्चन सिंह को देते हुए कहा कि वह उसे अखबार के दफ्तर में दे आए. सिपाही बच्चन सिंह उस फोटो को 2-3 बार ध्यान से देखते हुए बोला, ‘‘साहब, पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि इस औरत की शक्ल 3-4 दिन पहले अपने पति के साथ थाने आई उस महिला से मिलती है जिस का पति से झगड़ा हुआ था.’’

आर.पी. मिश्रा ने गौर से देखा तो उन्हें भी बच्चन सिंह की बात में दम नजर आया. उन्होंने बच्चन सिंह से कहा, ‘‘रिकौर्ड से उस के पति का पता ले कर उस के घर जाओ. पहले उस से उस की पत्नी के बारे में पूछना. उस की बातों से कई चीजें साफ हो जाएंगी. कुछ गड़बड़ लगे तो उसे थाने ले आना.’’

सबइंसपेक्टर आर.पी. मिश्रा के निर्देश पर बच्चन सिंह ने दिलीप कौशिक के घर जा कर उस की पत्नी कालिंदी के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि वह 2 दिन पहले सुपरवाइजर रामकुमार से मिलने की बात कह कर घर से निकली थी. तब से वह वापस नहीं लौटी है. सिपाही बच्चन सिंह दिलीप से ज्यादा सवालजवाब न कर के उसे अपने साथ थाने ले आया.

थाने में एसआई आर.पी. मिश्रा ने जब गोगांव नाले में मिली लावारिस लाश के फोटो दिलीप के सामने रखे तो उस ने स्वीकार कर लिया कि वह लाश उस की पत्नी कालिंदी की ही है. अब सवाल यह था कि कालिंदी जब रामकुमार से मिलने की बात कह कर घर से निकली थी तो उस की लाश गोगांव नाले में कैसे पहुंच गई?

अगर दिलीप की बात सही थी तो इस सवाल का जवाब रामकुमार ही दे सकता था. आर.पी. मिश्रा 2 सिपाहियों को साथ ले कर रामकुमार के घर पहुंचे. रामकुमार तो घर पर नहीं मिला पर उस की पत्नी पूनम से यह पता जरूर चल गया कि वह 9 बजे ही अपनी कंस्ट्रक्शन साइट पर चला गया था. यह जानकारी भी मिली कि 22 नवंबर को कालिंदी पूनम के घर आई थी और उस से खूब लड़ी थी. बाद में रामकुमार उसे ले कर घर से बाहर निकल गया था. पूनम से कुछ और जानकारी और रामकुमार का मोबाइल नंबर ले कर थाने लौट आए.

थाने आ कर आर.पी. मिश्रा ने रामकुमार के मोबाइल पर फोन मिलाया तो पता चला वह संतोषी नगर जोन 4 में एक निर्माणाधीन बिल्डिंग की साइट पर काम करा रहा है. इस पर उन्होंने उस से कहा, ‘‘रामकुमार, मैं ने तुम्हें फोन इसलिए किया है कि दिलीप कौशिक अपनी पत्नी कालिंदी के साथ थाने में बैठा है. इन लोगों का कहना है कि तुम ने कालिंदी के सामने दिलीप को जान से मारने की धमकी दी है. इसलिए तुरंत थाने चले आओ. हम आप लोगों का समझौता करा देते हैं.’’

आर.पी. मिश्रा की बात सुन कर रामकुमार हड़बड़ी में बोला, ‘‘देखिए सर, अभी मैं अपनी साइट पर काम कर रहा हूं. काम खत्म होते ही मैं थाने आ जाऊंगा.’’

आर.पी. मिश्रा और कुछ कह पाते इस से पहले ही रामकुमार ने फोन काट दिया. इस के बाद उस का फोन स्विच्ड औफ हो गया. एसआई मिश्रा को लगा कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है. क्योंकि पहले तो रामकुमार थाने में कालिंदी की मौजूदगी की बात सुन कर चौंका था और फिर उस ने फोन बंद कर दिया था. उन्होंने तुरंत सिपाही बच्चन सिंह, शिवशंकर तिवारी और साबिर अली को संतोषी नगर के लिए रवाना कर दिया. जब पुलिस वहां पहुंची तो रामकुमार फरार होने की तैयारी में था.

पुलिस उसे पकड़ कर थाने ले आई. थाने में रामकुमार से पूछताछ की गई तो पहले तो वह कालिंदी की हत्या से इनकार करता रहा लेकिन जब उस से थोड़ी सख्ती की तो उस ने सच्चाई उगल दी.

आशिकी में भाई को किया दफन – भाग 2

एक बार राहुल और गीता के प्रेमसंबंध का खुला प्रदर्शन कुलवीर की नजरों के सामने आ गया. कुलवीर की आंखों में खून उतर आया. उस ने राहुल और गीता दोनों को जबरदस्त डांट लगाई. इतना ही नहीं, पारिवारिक रिश्ते और समाज की मानमर्यादा का हवाला देते हुए राहुल को घर आने से मना कर दिया. बहन गीता पर भी राहुल के घर आनेजाने से रोक लगा दी. दरअसल, गीता और राहुल को कुलवीर ने आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था.

गीता हुई राहुल की प्रेम दीवानी

बीते साल 2022 में दशहरे का त्योहार था, इस मौके पर घर के सभी सदस्य मेला घूमने लक्सर गए हुए थे. जबकि गीता किसी कारण साथ नहीं जा पाई थी. उसी समय कुलवीर ने राहुल को गीता के साथ देख लिया था. तभी से उस के दिमाग में खलबली मची हुई थी. वह गीता पर पैनी नजर रखे हुए था और राहुल से भी खिन्न रहने लगा था.

जब कभी राहुल उस के घर आता, तब वह उस से रूखेपन से बात करता. राहुल भी उस के इस व्यवहार से तंग आ गया था. गीता को तो घर से बाहर निकलने तक पर पाबंदी लगा दी थी. गीता जब इस का विरोध जताती थी तब वह उस की पिटाई कर देता था. कुलवीर ने गीता को राहुल से दूर रहने की सख्त चेतावनी दे दी थी. इस के उलट गीता का राहुल से छिप कर मिलना जारी था.

नाबालिग गीता पर राहुल ने ऐसा जादू कर दिया था कि वह उस की प्रेम दीवानी बनी हुई थी, जबकि वह विवाहित और 2 बच्चों का बाप था. उन की आशिकी चरम पर थी. अकसर उन की मुलाकातें रात को होने लगी थीं. उन्हें जब भी मिलना होता था, गीता रात को अपने घर वालों को दूध में नींद की गोलियां मिला कर दे देती थी फिर दोनों एकांत में मिल लेते थे.

एक बार राहुल प्रेमिका को बाहों में भरता हुआ बोला, “गीता, आखिर हम लोग इस तरह छिप कर कब तक मिलते रहेंगे. कुलवीर हम पर हमेशा नजरें गड़ाए रहता है.’’

“हां, सही कहते हो, केवल वही हमारे प्यार का दुश्मन बना बैठा है. मुझे लग रहा है कि उसे ठिकाने लगाना होगा.’’ गीता तल्ख आवाज में बोली.

“क्या मतलब है तुम्हारा.’’ राहुल बोला.

“यही कि कोई तरीका निकालो उसे खत्म करने का,’’ गीता बोली.

“ठीक है, तुम तैयारी करो, मैं किसी से बात करता हूं.’’ राहुल बोला और कपड़े सहेज कर अपने घर चला गया.

राहुल और गीता ने एक योजना बना ली थी. योजना के अनुसार 6 फरवरी, 2023 को रात के खाने के बाद गीता ने अपने घर वालों को दूध में नींद की गोलियां पीस कर दे दीं. कुछ समय में ही घर के सभी लोग अचेतावस्था में आ गए थे.

पूरा परिवार हो गया बेहोश

7 फरवरी की सुबह सूर्योदय होने के काफी समय बाद 55 वर्षीय सेठपाल के मंझले बेटे पंकज की नींद टूट गई. घर में सन्नाटा पा कर वह कुछ समझ नहीं पाया. हालांकि वह भी काफी सुस्ती महसूस कर रहा था. किसी तरह उठ कर अपने कमरे से बाहर निकला तो बाहर पिता को बेसुध सोया पाया. इतनी देर तक सोए रहने पर उसे आश्चर्य हुआ, जबकि वह सुबह के 5 बजे तक उठ जाते थे.

पंकज ने उन्हें झकझोर कर जगाया. उन्होंने आंखें खोलीं जरूर, मगर अर्द्धबेहोशी की हालत में ही रहे. उस वक्त भी उस पर कुछ बेहोशी छाई हुई थी. उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि नींद आ रही है. उस ने पाया कि घर में मां और बहन गीता की भी कोई चहलपहल नहीं हो रही है. रसोई में सन्नाटा है. बाथरूम में भी किसी तरह की आवाज नहीं आ रही है. कुलवीर के कमरे में भी सन्नाटा है.

सेठपाल ने बेटे पंकज से चाय लाने को बोला. पंकज ने गीता, मां, छोटे भाई और यहां तक कि अपने बड़े भाई कुलवीर तक को बारीबारी से कई आवाजें लगाईं. उस का कोई जवाब नहीं मिला. वह खुद सुस्ती में था, इसलिए पहले चाय पीने की सोची और रसोई में चाय बनाने चला गया.

चाय का पानी गैस पर चढ़ा कर खुद बाथरूम में मुंह धोने लगा. ब्रश करने और मुंह धोने के क्रम में उस ने चेहरे को कई बार ठंडे पानी से धोया. तब उस की थोड़ी सुस्ती कम हुई. रसोई में आ कर उस ने चाय बनाई और 2 कप में ले कर पिता के कमरे में गया.

पिता वहीं कंबल में ही अधलेटे थे. आंखें बंद कर रखी थीं. पंकज ने उन से मुंहहाथ धोने के लिए कहा. जबकि सेठपाल ने सहारे से उन्हें उठाने का इशारा किया. उस वक्त भी उन्हें नींद आ रही थी. ऐसा लग रहा था, मानो उन की नींद पूरी नहीं हुई हो. एक तरह से वह अर्धनिद्रा की हालत में ही थे. पंकज उन की हालत को देख कर घबरा गया. किसी तरह से उस ने अपनी चाय पी और पड़ोसियों को आवाज लगाई.

पंकज की आवाज सुन कर कुछ पड़ोसी वहां आ गए. उन्होंने सेठपाल की हालत देखते ही पूछा, “इन्होंने कोई दवा खाई है क्या? इन पर किसी नशीली दवाई का रिएक्शन हुआ लगता है.’’

पड़ोसियों ने पाया कि सेठपाल की पत्नी, बेटी और छोटा बेटा भी एक कमरे में बेसुध सोए हैं. जबकि बड़ा बेटा कुलवीर अपने कमरे में नहीं है. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि जरूर घर में कोई विवाद हुआ है. हो सकता है इसी कारण कुलवीर ने सभी को नशे की कोई दवा खिला दी हो और घर से चला गया हो.

पड़ोसियों ने सब से पहले गांव के एक आयुर्वेद डाक्टर को सेठपाल के घर पर बुलाया. परिवार के सभी सदस्यों के स्वास्थ्य की जांच करवाई. उन्होंने जांच में पाया था कि सेठपाल के परिवार वालों ने या तो किसी नशीली वस्तु का सेवन किया है या उन्हें किसी ने धोखे से ज्यादा मात्रा में नींद की गोलियां खिला दी हैं.

उन्हें कुछ दवाइयां दे कर प्राथमिक उपचार कर दिया गया. बाद में सभी को सरकारी अस्पताल में भरती करवाया गया. वहां वे 2 दिनों तक भरती रहने के बाद पूरी तरह से ठीक हो पाए. तब तक कुलवीर का कोई पता नहीं था. वह घर से गायब ही था.

कुलवीर की गुमशुदगी कराई दर्ज

तब सेठपाल व उस की पत्नी सुमन ने कुलवीर को ढूंढना शुरू कर दिया था. सेठपाल को कुलवीर की चिंता होनेलगी थी. उन्होंने उस के लापता होने की जानकारी कोतवाली लक्सर को देने का मन बनाया, जो उन के गांव से 5 किलोमीटर दूरी पर है.

वहां वह 10 फरवरी को दिन में 11 बजे के करीब पहुंचे और कोतवाल अमरजीत सिंह को बेटे कुलवीर के लापता होने की जानकारी दी. उस के बयानों के आधार पर कुलवीर की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कर ली गई. शिकायत में उन्होंने पूरे परिवार को किसी के द्वारा बेहोशी दवा खिलाए जाने के बारे में भी बताया.

कागज के टुकड़े की चोरी – भाग 4

फोटो छपने की बात सुनते ही औरत की आंखें चमकने लगीं. ऐसा लगता था जैसे वह लंबे समय से किसी ऐसे मौके की तलाश में थी. उस ने निक के हाथ से नोट ले कर मुट्ठी में दबा लिया और दोनों को अपने पीछे आने का इशारा करती हुई किचन में पहुंच गई.

उस ने बताया कि उस का नाम मिसेज जून व्हीलर है और वह पिछले 6 महीने से अपने पति डिक व्हीलर के साथ वहां काम कर रही है. उन दोनों का वेतन ठीकठाक था और काम भी ज्यादा नहीं था. माइकल वहां अपनी दूसरी पत्नी और तलाकशुदा बेटी के साथ रहता था.

‘‘क्या यह मिस्टर माइकल का निजी मकान है?’’ निक ने पूछा.

‘‘हां, यह मकान उन्होंने हाल ही में खरीदा है. इस से पहले वह कैलिफोर्निया में रहते थे.’’

निक को इन बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह जल्दी से अपना काम पूरा कर के वहां से निकल जाना चाहता था. लेकिन वह यह भी नहीं चाहता था कि उस औरत के दिमाग में कोई शक पैदा हो.

‘‘मिसेज व्हीलर, क्या तुम अपनी जिंदगी से संतुष्ट हो?’’ निक ने पूछा.

‘‘मैं ने कभी इस तरह की जिंदगी के बारे में सोचा भी नहीं था.’’ उस ने कहा, ‘‘यह कोई जिंदगी है. 15 साल पहले जब मैं इस शहर में आई थी तो टीवी स्टार बनना चाहती थी. मैं सुंदर थी, आकर्षक थी, एक्टिंग के बारे में बहुत कुछ जानती थी और हर तरह से फिल्म स्टार बनने की योग्यता रखती थी.’’

‘‘सुंदर और आकर्षक तो तुम अब भी हो.’’ निक ने कहा, ‘‘आखिर ऐसा क्या हुआ कि तुम्हें टीवी स्टार बनने का मौका नहीं मिला?’’

‘‘मेरी बदकिस्मती.’’ वह गहरी सांस लेती हुई बोली, ‘‘शुरू में मैं ने कुछ कमर्शियल विज्ञापन फिल्मों में काम किया भी, लेकिन 16 साल की उम्र में एक 40 साल के लेखक के चक्कर में फंस गई. वह सुनहरे सपने दिखा कर मुझे शो बिजनैस से बहुत दूर ले गया. और जब मेरा रंग फीका पड़ने लगा तो उस ने मुझे धक्का दे दिया.’’

‘‘ओह, यह तो बड़े दुख की बात है.’’ निक ने कहा, ‘‘लेकिन मुझे विश्वास है कि हमारी उतारी हुई कोई तसवीर जरूर किसी प्रोड्यूसर को आकर्षित करने में कामयाब रहेगी. हम तुम्हारे विभिन्न पोज उतारेंगे. कुछ किचन में, एक सिटिंग रूम में काम करते हुए, एक बेडरूम में और एक स्टडी में पढ़ते हुए. क्यों न पहले किचन में पोज ले लिए जाएं.’’ उस ने कैमरा फोकस किया और अलगअलग अंदाज से मिसेज व्हीलर के कुछ फोटो लिए.

‘‘उम्मीद है, तुम इन फोटो की एक कापी मुझे भी भिजवाओगे.’’

‘‘जरूर, मैगजीन की एक कापी भी भिजवाई जाएगी. अब दूसरे कमरों की कुछ फोटो हो जाएं.’’

मिसेज व्हीलर दोनों को रास्ता दिखाते हुए पहले सिटिंग रूम और फिर बैडरूम में ले गई. बैडरूम में फोटो उतारते समय निक ने ज्यादा समय लिया. इस मौके का फायदा उठाते हुए गिलोरिया ने साइड टेबल की दराज देख डालीं. फिर उस ने निक की तरफ देख कर मायूसी के साथ सिर हिलाया. दराजों से वह कागज नहीं मिला जिस की उन्हें तलाश थी.

कुछ देर बाद वे स्टडी में पहुंच गए. निक डर रहा था कि कहीं माइकल वापस न आ जाए. अचानक उसे खयाल आया तो उस ने कहा, ‘‘मिसेज व्हीलर. यहां फोटो उतरवाने से पहले थोड़ा सा मेकअप कर लो. यह वह तसवीरें होंगी जो जरूर किसी प्रोड्यूसर को अपनी तरफ आकर्षित करेंगी. उस के नीचे लिखा जाएगा कि मिसेज जून व्हीलर को स्टडी का बहुत शौक है. वह अपना बचा हुआ समय स्टडी में गुजारती हैं.’’ फिर उस ने गिलोरिया से कहा, ‘‘गिलोरिया, तुम मिसेज व्हीलर का मेकअप करने में मदद करो.’’

गिलोरिया ने सहमति में सिर हिलाया और जून व्हीलर के साथ दूसरे कमरे में चली गई. उस के जाते ही निक ने दराजों की तलाशी लेनी शुरू कर दी. खुशकिस्मती से वह कागज जो उसे चाहिए था ऊपर वाली दराज में ही मौजूद था.

उस कागज को सन 1950 की डायरी से फाड़ा गया था. पुराना होने की वजह से उस में पीलापन आ गया था. अलबत्ता उस का साइज 5 स्क्वायर इंच ही था. उस पर टूटे फूटे अक्षरों में कोई वाक्य लिखा था जो निक की समझ में नहीं आया. निक ने उसे तह कर के जेब में रखा और मिसेज व्हीलर की वापसी का इंतजार करने लगा.

उस का काम खत्म हो चुका था और अब वह जल्द से जल्द वापस जाना चाहता था. कुछ देर बाद मिसेज व्हीलर वापस आ गई, गिलोरिया भी साथ थी.

निक ने उस के हाथ में एक सुंदर जिल्द वाली किताब थमा दी और अलगअलग कोणों से कुछ फोटो लिए. फिर वह अपना कैमरा बंद करते हुए बोला, ‘‘धन्यवाद मिसेज व्हीलर, हम ने तुम्हारा बहुत समय बरबाद कर दिया है.’’

‘‘कोई बात नहीं.’’ मिसेज व्हीलर ने कहा और दोनों को दरवाजे तक छोड़ने आई.

निक दरवाजे के पास रुकता हुआ बोला, ‘‘मिसेज व्हीलर, मिस्टर माइकल से हमारा जिक्र मत करना. ये पैसे वाले लोग हमारी संस्था को पसंद नहीं करते.’’

‘‘चिंता मत करो, मैं मिस्टर माइकल को हवा भी नहीं लगने दूंगी.’’

कुछ देर बाद निक की कार हाइवे पर दौड़ रही थी.

‘‘काम हो गया है.’’ निक ने जेब से कागज निकाल कर गिलोरिया को दिखाते हुए कहा, ‘‘यह है वह कागज जिस के लिए यह सारी मुसीबत उठानी पड़ी.’’

गिलोरिया ने हैरत से कागज को देखते हुए कहा, ‘‘विश्वास नहीं होता कि कोई आदमी इस कागज के लिए 25 हजार डौलर खर्च कर सकता है.’’

अपार्टमेंट पहुंच कर निक ने नारमन को फोन किया, ‘‘मिस्टर नारमन, मैं निक वेलवेट बोल रहा हूं, तुम्हारा काम हो गया है.’’

‘‘वंडरफुल,’’ दूसरी ओर से नारमन की आवाज सुनाई दी, ‘‘रात के ठीक 10 बजे सैंट्रल पार्क में मिलो. मैं उत्तरपश्चिमी कोने में तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

‘‘सैंट्रल पार्क.’’ निक ने हैरानी से कहा, ‘‘क्या हम किसी बेहतर जगह पर मुलाकात नहीं कर सकते?’’

‘‘मैं ने एहतियात के तौर पर इस जगह को चुना है. मैं बाकी की रकम के साथ वहां मौजूद रहूंगा. किसी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं है. ठीक 10 बजे उत्तरीपश्चिमी कोने में.’’

निक ने फोन बंद कर दिया और जेब से कागज निकाल कर उसे गौर से देखने लगा. उस पर टूटेफूटे अक्षरों में कोई अर्थविहीन वाक्य लिखा था. उस के नीचे मकड़ी की शक्ल से मिलतीजुलती कोई तस्वीर बनी थी. यह भी संभव था कि वह किसी के हस्ताक्षर रहे हों. निक ने जेब से लैंस निकाला और कागज पर लिखे वाक्य का अर्थ समझने की कोशिश करने लगा.

जब निक वो कागज का टुकड़ा नारमन को देने जाता है तो उस पर हमला होता है. कौन था उस हमले के पीछे? जानने के लिए पढ़ें हिंदी फिक्शन क्राइम स्टोरी का अगला अंक…

कालिंदी की जिद : पत्नी या प्रेमिका? – भाग 2

जहां कालिंदी और चांदनी काम करती थीं, वहां रामकुमार सुपरवाइजर था. 25 वर्षीय रामकुमार बघेल का काम था बिल्डिंग निर्माण में लगे मजदूरों पर नजर रखना और इस्तेमाल होने वाले सामान का खयाल रखना. रामकुमार की नजर जवान औरतों पर रहती थी. चांदनी उस की गिरफ्त में थी जबकि कालिंदी पर उस की नजरें जमी हुई थीं. चांदनी से रामकुमार ने कहा था कि वह कालिंदी को उस के करीब ले आएगी तो वह उसे इनाम देगा. वैसे भी वह कालिंदी का खास खयाल रखता था.

कालिंदी जवान थी. पुरुष सान्निध्य की चाह उस के मन में भी थी. चांदनी के उकसाने पर वह भी धीरेधीरे रामकुमार की ओर आकर्षित होने लगी. जल्दी ही रामकुमार समझ गया कि वह समर्पण के लिए तैयार है. उस ने थोड़ा प्रयास किया तो वह उस की बांहों में सिमट गई.

रामकुमार बघेल का घर कालिंदी के घर से महज एक किलोमीटर दूर भनपुरी इलाके में था. उस के परिवार में पत्नी पूनम के अलावा 2 बच्चे थे. 4 साल का बेटा जीतू और 2 साल की बेटी जूली.

रामकुमार की कालिंदी से नजदीकी बढ़ी तो वह उसे शहर घुमाने ले जाने लगा. कालिंदी ने भी उसे अपने घर बुलाना शुरू कर दिया. वह जिस तरह से उस की खातिरदारी करती थी और जैसे उस से हंसीठिठोली करती थी उस से दिलीप को समझते देर नहीं लगी कि कालिंदी के पांव बहक गए हैं. चूंकि घर का खर्च कालिंदी की कमाई से ही चल रहा था. इसलिए शुरू शुरू में दिलीप जानबूझ कर चुप रहा.

उस की इस चुप्पी का कालिंदी ने नाजायज फायदा उठाया और रामकुमार के साथ घर में ही रास रचाने लगी. रामकुमार आता तो वह कभी बेटे बबलू को घुमाने के बहाने तो कभी कोई सामान लाने के बहाने दिलीप को घर से बाहर भेज देती थी और रामकुमार को ले कर अंदर से कमरा बंद कर के मस्ती में डूब जाती थी. ऐसा नहीं था कि दिलीप कालिंदी की इस चाल को समझता नहीं था. लेकिन मुहल्ले वालों और पड़ोसियों के बीच तमाशा न बने इसलिए चुप रह जाता था.

कोई भी पति शारीरिक, मानसिक या आर्थिक रूप से भले ही कितना भी कमजोर क्यों न हो, यह कभी बर्दाश्त नहीं करेगा कि उस की पत्नी उस की नजरों के सामने किसी पराए मर्द के साथ हमबिस्तर हो. यह बात दिलीप के साथ भी थी. एक तरफ दिलीप पत्नी और रामकुमार के संबंधों को ले कर परेशान था तो दूसरी तरफ कालिंदी की आंखों से शर्मोहया का परदा बिलकुल हट गया था. वह पूरी तरह बेशर्म और निर्लज्ज हो गई थी. अब वह पति की मौजूदगी में ही उसे ले कर कमरे में चली जाती और अंदर से दरवाजा बंद कर लेती.

जब यह सब दिलीप के लिए बरदाश्त करना मुश्किल हो गया तो एक दिन उस ने रामकुमार के सामने ही कालिंदी से साफसाफ कह दिया, ‘‘अब मैं और ज्यादा बरदाश्त नहीं कर सकता. अपने यार से कहो यहां न आया करे.’’

‘‘आएंगे…जरूर आएंगे. इस घर पर जितना तुम्हारा हक है उतना ही मेरा भी है. यह मत भूलो कि मेरी कमाई से ही घर का सारा खर्च चलता है. मैं अगर किसी को घर बुलाती हूं तो तुम्हें क्यों जलन होती है.’’ कालिंदी उल्टे अपने पति पर ही बिफर पड़ी.

देखते देखते दोनों में तूतू, मैंमैं होने लगी जिस ने बढ़ते बढ़ते झगड़े का रूप ले लिया. मामला बिगड़ते देख रामकुमार वहां से चुपचाप खिसक गया. रामकुमार के जाने के बाद इस झगड़े ने और भी विकराल रूप ले लिया. कालिंदी और दिलीप दोनों आपे से बाहर हो कर मार पिटाई पर उतर आए.

पतिपत्नी को लड़ते देख अड़ोसी पड़ोसी भी आ गए. पड़ोसियों ने दोनों को समझाया लेकिन कोई भी झुकने को तैयार नहीं हुआ. इसी बीच किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. झगड़े की सूचना पा कर खमतराई के थानाप्रभारी संजय तिवारी ने 2 सिपाहियों को मामला सुलझाने के लिए बुनियादनगर में दिलीप के घर भेज दिया. सिपाही साबिर खान व उमेश पटेल जब दिलीप के घर पहुंचे तब भी दोनों में तकरार जारी थी. मामला गंभीर देख पुलिस वाले दोनों को थाने ले आए.

थाने में दिलीप कौशिक ने थानाप्रभारी संजय तिवारी के सामने कालिंदी की हकीकत बता कर कहा, ‘‘आप ही बताइए सर, कौन पति होगा जो अपनी आंखों के सामने पत्नी को दूसरे की बांहों में सिमटते हुए देखेगा? मैं इसे रोकता हूं तो यह लड़ने को आमादा हो जाती है.’’

थानाप्रभारी तिवारी ने जब इस बारे में कालिंदी से बात की तो उस ने दिलीप की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘साहब, आप इन की हालत देखिए. इन से कामधाम तो कुछ होता नहीं, ऊपर से पत्नी की जरूरतों को भी पूरा नहीं कर सकते. आप ही बताइए ऐसे आदमी के साथ मैं कितने दिन तक निभा सकूंगी. मैं ने इन से साफ कह दिया है कि अब मैं इन के साथ नहीं रह सकती. रामकुमार मुझे अपनाने के लिए तैयार है.’’

कालिंदी और दिलीप दोनों ने ही अपने बयानों में रामकुमार का जिक्र किया था. इसलिए थानाप्रभारी संजय तिवारी ने एक सिपाही भेज कर रामकुमार को बुलवा लिया. थाने में रामकुमार से पूछताछ हुई तो उस ने नजरें झुका कर स्वीकार कर लिया कि कालिंदी के साथ उस के जिस्मानी संबंध हैं. लेकिन जब उसे पत्नी बना कर साथ रखने की बात आई तो रामकुमार ने साफ कह दिया कि जब तक दिलीप और कालिंदी का कानूनन तलाक नहीं हो जाता वह कालिंदी को अपने साथ नहीं रख सकता. क्योंकि उसे अपने परिवार के बारे में भी सोचना है.

इस मुद्दे पर थाने में घंटों तक बात हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. जहां एक तरफ कालिंदी किसी भी कीमत पर दिलीप के साथ रहने को तैयार नहीं थी, वहीं दूसरी ओर दिलीप इस शर्त पर कालिंदी को छोड़ने को राजी हो गया कि कालिंदी की डिलीवरी के समय उस ने जो कर्ज लिया था उस की पूरी भरपाई कालिंदी करेगी. इस पर भी दोनों में काफी देर तक बहस हुई.

इसे पतिपत्नी के आपसी विवाद का मामला समझ कर संजय तिवारी ने इस मामले में थाने में 155 सीआरपीसी के तहत दर्ज कर के उस की एक कौपी दिलीप को सौंप दी. इस के बाद उन्होंने रामकुमार, दिलीप और कालिंदी को समझाबुझा कर वापस भेज दिया. यह 20 नवंबर, 2013 की बात है.

इस पूरे मामले की जानकारी रामकुमार की पत्नी पूनम बघेल को हुई तो उस ने रामकुमार से इस बारे में तमाम तरह के सवालजवाब किए. फिर अगले दिन वह गुस्से में उफनती हुई सीधे कालिंदी के घर पहुंची और उसे खूब खरीखोटी सुनाई. उस ने कालिंदी से साफसाफ कह दिया कि वह उस के पति का पीछा करना छोड़ दे. उस की बसीबसाई गृहस्थी में आग लगा कर उसे कुछ हासिल नहीं होगा. कालिंदी को खरीखोटी सुना कर पूनम अपने घर लौट गई. कालिंदी को पूनम का इस तरह घर आ कर दिलीप के सामने ही अच्छा बुरा कहना अच्छा नहीं लगा.

दर्द का एक ही रंग : कौन सा दर्द छिपा था उन आंखों में?

जब तक बीजी और बाबूजी जिंदा थे और सुमन की शादी नहीं हुई थी, तब तक सुरेश और वंदना को बेऔलाद होने की उदासी का अहसास इतना गहरा नहीं था. घर की रौनक उदासी के अहसास को काफी हद तक हलका किए रहती थी. लेकिन सुमन की शादी के बाद पहले बाबूजी, फिर जल्दी ही बीजी की मौत के बाद हालात एकदम से बदल गए. घर में ऐसा सूनापन आया कि सुरेश और वंदना को बेऔलाद होने का अहसास कटार की तरह चुभने लगा. उन्हें लगता था कि ठीक समय पर कोई बच्चा गोद न ले कर उन्होंने बहुत बड़ी गलती की.

लेकिन इसे गलती भी नहीं कहा जा सकता था. अपनी औलाद अपनी ही होती है, इस सोच के साथ वंदना और सुरेश आखिर तक उम्मीद का दामन थामे रहे. लेकिन उन की उम्मीद पूरी नहीं हुई. कई रिश्तेदार अपना बच्चा गोद देने को तैयार भी थे, लेकिन उन्होंने ही मना कर दिया था. उम्मीद के सहारे एकएक कर के 22 साल बीत गए.

अब घर काटने को दौड़ता था. भविष्य की चिंता भी सताने लगी थी. इस मामले में सुरेश अपनी पत्नी से अधिक परेशान था. आसपड़ौस के किसी भी घर से आने वाली बच्चे की किलकारी से वह बेचैन हो उठता था. बच्चे के रोने से उसे गले लगाने की ललक जाग उठती थी. सुबह सुरेश और वंदना अपनीअपनी नौकरी के लिए निकल जाते थे. दिन तो काम में बीत जाता था. लेकिन घर आते ही सूनापन घेर लेता था. सुरेश को पता था कि वंदना जितना जाहिर करती है, उस से कहीं ज्यादा महसूस करती है.

कभीकभी वंदना के दिल का दर्द उस की जुबान पर आ भी जाता. उस वक्त वह अतीत के फैसलों की गलती मानने से परहेज भी नहीं करती थी. वह कहती, ‘‘क्या तुम्हें नहीं लगता कि अतीत में किए गए हमारे कुछ फैसले सचमुच गलत थे. सभी लोग बच्चा गोद लेने को कहते थे, हम ने ऐसा उन की बात मान कर गलती नहीं की?’’

‘‘फैसले गलत नहीं थे वंदना, समय ने उन्हें गलत बना दिया.’’ कह कर सुरेश चुप हो जाता.

ऐसे में वंदना की आंखों में एक घनी उदासी उतर आती. वह कहीं दूर की सोचते हुए सुरेश के सीने पर सिर रख कर कहती, ‘‘आज तो हम दोनों साथसाथ हैं, एकदूसरे को सहारा भी दे सकते हैं और हौसला भी. मैं तो उस दिन के खयाल से डर जाती हूं, जब हम दोनों में से कोई एक नहीं होगा?’’

‘‘तब भी कुछ नहीं होगा. किसी न किसी तरह दिन बीत जाएंगे. इसलिए ज्यादा मत सोचा करो.’’ सुरेश पत्नी को समझाता, लेकिन उस की बातों में छिपी सच्चाई को जान कर खुद भी बेचैन हो उठता.

भविष्य तो फिलहाल दीवार पर लिखी इबारत की तरह एकदम साफ था. सुरेश को लगता था कि वंदना भले ही जुबान से कुछ न कहे, लेकिन वह किसी बच्चे को गोद लेना चाहती है. घर के सूनेपन और भविष्य की चिंता ने सुरेश के मन को भी भटका दिया था. उसे भी लगता था कि घर की उदासी और सूनेपन में वंदना कहीं डिप्रैशन की शिकार न हो जाए.

लेकिन एक बड़ा सवाल यह भी था कि उम्र के इस पड़ाव पर किसी बच्चे को गोद लेना क्या समझदारी भरा कदम होगा? सुरेश 50 की उम्र पार कर चुका था, जबकि वंदना भी अगले साल उम्र के 50वें साल में कदम रखने जा रही थी. ऐसे में क्या वे बच्चे का पालनपोषण ठीक से कर पाएंगे?

काफी सोचविचार और जद्दोजहद के बाद सुरेश ने महसूस किया कि अब ऐसी बातें सोचने का समय नहीं, निर्णय लेने का समय है. बच्चा अब उस की और वंदना की बहुत बड़ी जरूरत है. वही उन के जीवन की नीरसता, उदासी और सूनेपन को मिटा सकता है.

सुरेश ने इस बारे में वंदना से बात की तो उस की बुझी हुई आंखों में एक चमक सी आ गई. उस ने पूछा, ‘‘क्या अब भी ऐसा हो सकता है?’’

‘‘क्यों नहीं हो सकता, हम इतने बूढ़े भी नहीं हो गए हैं कि एक बच्चे को न संभाल सकें.’’ सुरेश ने कहा.

बच्चे को गोद लेने की उम्मीद में वंदना उत्साह से भर उठी. लेकिन सवाल यह था कि बच्चा कहां से गोद लिया जाए. किसी अनाथालय से बच्चा गोद लेना असान नहीं था. क्योंकि गोद लेने की शर्तें और नियम काफी सख्त थे. रिश्तेदारों से भी अब कोई उम्मीद नहीं रह गई थी. किसी अस्पताल में नाम लिखवाने से भी महीनों या वर्षों लग सकते थे.

ऐसे में पैसा खर्च कर के ही बच्चा जल्दी मिल सकता था. मगर बच्चे की चाहत में वे कोई गलत और गैरकानूनी काम नहीं करना चाहते थे. जब से दोनों ने बच्चे को गोद लेने का मन बनाया था, तब से वंदना इस मामले में कुछ ज्यादा ही बेचैन दिख रही थी. शायद उस के नारी मन में सोई ममता शिद्दत से जाग उठी थी.

एक दिन शाम को सुरेश घर लौटा तो पत्नी को कुछ ज्यादा ही जोश और उत्साह में पाया. वह जोश और उत्साह इस बात का अहसास दिला रहा था कि बच्चा गोद लेने के मामले में कोई बात बन गई है. उस के पूछने की नौबत नहीं आई, क्योंकि वंदना ने खुद ही सबकुछ बता दिया.

वंदना के अनुसार, वह जिस स्कूल में पढ़ाती थी, उस स्कूल के एक रिक्शाचालक जगन की बीवी को 2 महीने पहले दूसरी संतान पैदा हुई थी. उस के 2 बेटे हैं. जगन अपनी इस दूसरी संतान को रखना नहीं चाहता था. वह उसे किसी को गोद देना चाहता था.

‘‘उस के ऐसा करने की वजह?’’ सुरेश ने पूछा, तो वंदना खुश हो कर बोली, ‘‘वजह आर्थिक हो सकती है. मुझे पता चला है, जगन पक्का शराबी है. जो कमाता है, उस का ज्यादातर हिस्सा पीनेपिलाने में ही उड़ा देता है. शराब की लत की वजह से उस का परिवार गरीबी झेल रहा है. मैं ने तो यह भी सुना है कि शराब की ही वजह से जगन ने ऊंचे ब्याज पर कर्ज भी ले रखा है. कर्ज न लौटा पाने की वजह से लेनदार उसे परेशान कर रहे हैं.

सुनने में आया है कि एक दिन उस का रिक्शा भी उठा ले गए थे. उन्होंने बड़ी मिन्नतों के बाद उस का रिक्शा वापस किया था. मुझे लगता है, जगन अपना यह दूसरा बच्चा किसी को गोद दे कर जिम्मेदारी से छुटकारा पाना चाहता है. इसी बहाने वह अपने सिर पर चढ़ा कर्ज भी उतार देगा.’’

‘‘इस का मतलब वह अपनी मुसीबतों से निजात पाने के लिए अपने बच्चे का सौदा करना चाहता है?’’ सुरेश ने व्यंग्य किया.

‘‘कोई भी आदमी बिना किसी स्वार्थ या मजबूरी के अपना बच्चा किसी दूसरे को क्यों देगा?’’ वंदना ने कहा तो सुरेश ने पूछा, ‘‘जगन की बीवी भी बच्चा देने के लिए तैयार है?’’

‘‘तैयार ही होगी. बिना उस के तैयार हुए जगन यह सब कैसे कर सकता है?’’

वंदना की बातें सुन कर सुरेश सोच में डूब गया. उसे सोच में डूबा देख कर वंदना बोली, ‘‘अगर तुम्हें  ऐतराज न हो तो मैं जगन से बच्चे के लिए बात करूं?’’

‘‘बच्चा गोद लेने का फैसला हम दोनों का है. ऐसे में मुझे ऐतराज क्यों होगा?’’ सुरेश बोला.

‘‘मैं जानती हूं, फिर भी मैं ने एक बार तुम से पूछना जरूरी समझा.’’

2 दिनों बाद वंदना ने सुरेश से कहा, ‘‘मैं ने स्कूल के चपरासी माधोराम के जरिए जगन से बात कर ली है. वह हमें अपना बच्चा पूरी लिखापढ़ी के साथ देने को राजी है. लेकिन इस के बदले 15 हजार रुपए मांग रहा है. मेरे खयाल से यह रकम ज्यादा नहीं है?’’

‘‘नहीं, बच्चे न तो बिकाऊ होते हैं और न उन की कोई कीमत होती है.’’

‘‘मैं जगन से उस का पता ले लूंगी. हम दोनों कल एकसाथ चल कर बच्चा देख लेंगे. तुम कल बैंक से कुछ पैसे निकलवा लेना. मेरे खयाल से इस मौके को हमें हाथ से नहीं जाने देना चाहिए.’’ वंदना ने बेसब्री से कहा.

उस की बात पर सुरेश ने खामोशी से गर्दन हिला दी.

अगले दिन सुरेश शाम को वापस आया तो वंदना तैयार बैठी थी. सुरेश के आते ही उस ने कहा, ‘‘मैं चाय बनाती हूं. चाय पी कर जगन के यहां चलते हैं.’’

कुछ देर में वंदना 2 प्याले चाय ला कर एक प्याला सुरेश को देते हुए बोली, ‘‘वैसे तो अभी पैसों की जरूरत नहीं लगती. फिर भी तुम ने बैंक से पैसे निकलवा लिए हैं या नहीं?’’

‘‘हां.’’ सुरेश ने चाय की चुस्की लेते हुए उत्साह में कहा.

चाय पी कर दोनों घर से निकल पड़े. आटोरिक्शा से दोनों जगन के घर जा पहुंचे. जगन का घर क्या 1 गंदी सी कोठरी थी, जो काफी गंदी बस्ती में थी. उस के घर की हालत बस्ती की हालत से भी बुरी थी. छोटे से कमरे में एक टूटीफूटी चारपाई, ईंटों के बने कच्ची फर्श पर एक स्टोव और कुछ बर्तन पड़े थे. कुल मिला कर वहां की हर चीज खामेश जुबान से गरीबी बयां कर रही थी.

जगन का 5 साल का बेटा छोटे भाई के साथ कमरे के कच्चे फर्श पर बैठा प्लास्टिक के एक खिलौने से खेल रहा था, जबकि उस की कुपोषण की शिकार पत्नी तीसरे बच्चे को छाती से चिपकाए दूध पिला रही थी. इसी तीसरे बच्चे को जगन सुरेश और वंदना को देना चाहता था. जगन ने पत्नी से बच्चा दिखाने के लिए मांगा.

पत्नी ने खामोश नजरों से पहले जगन को, उस के बाद सुरेश और वंदना को देखा, फिर कांपते हाथों से बच्चे को जगन को थमा दिया. उसी समय सुरेश के मन में शूल सा चुभा. उसे लगा, वह और वंदना बच्चे के मोह में जो करने जा रहे हैं, वह गलत और अन्याय है.

जगन ने बच्चा वंदना को दे दिया. बच्चा, जो एक लड़की थी सचमुच बड़ी प्यारी थी. नाकनक्श तीखे और खिला हुआ साफ रंग था. वंदना के चेहरे के भावों से लगता था कि बच्ची की सूरत ने उस की प्यासी ममता को छू लिया था.

बच्ची को छाती से चिपका कर वंदना ने एक बार उसे चूमा और फिर जगन को देते हुए बोली, ‘‘अब से यह बच्ची हमारी हुई जगन. लेकिन हम इसे लिखापढ़ी के बाद ही अपने घर ले जाएंगे. कल रविवार है. परसों कचहरी खुलने पर किसी वकील के जरिए सारी लिखापढ़ी कर लेंगे. एक बात और कह दूं, बच्चे के मामले में तुम्हारी बीवी की रजामंदी बेहद जरूरी है. लिखापढ़ी के कागजात पर तुम्हारे साथसाथ उस के भी दस्तखत होंगे.’’

‘‘हम सबकुछ करने को तैयार हैं.’’ जगन ने कहा.

‘‘ठीक है, हम अभी तुम्हें कुछ पैसे दे रहे हैं, बाकी के सारे पैसे तुम्हें लिखापढ़ी के बाद बच्चा लेते समय दे दूंगी.’’

जगन ने सहमति में गर्दन हिला दी. इस के बाद वंदना ने सुरेश से जगन को 3 हजार रुपए देने के लिए कहा. वंदना के कहने पर उस ने पर्स से 3 हजार रुपए निकाल कर जगन को दे दिए.

जगन को रुपए देते हुए सुरेश कनखियों से उस की पत्नी को देख रहा था. वह बच्चे को सीने से कस कर चिपकाए जगन और सुरेश को देख रही थी. सुरेश को जगन की पत्नी की आंखों में नमी और याचना दिखी, जिस से सुरेश का मन बेचैन हो उठा.

जगन के घर से आते समय सुरेश पूरे रास्ते खामोश रहा. बच्चे को सीने से चिपकाए जगन की पत्नी की आंखें सुरेश के जेहन से निकल नहीं पा रही थीं, सारी रात सुरेश ठीक से सो नहीं सका. जगन की पत्नी की आंखें उस के खयालों के इर्दगिर्द चक्कर काटती रहीं और वह उलझन में फंसा रहा.

अगले दिन रविवार था. दोनों की ही छुट्टी थी. वंदना चाहती थी कि बच्चे को गोद लेने के बारे में किसी वकील से पहले ही बात कर ली जाए. इस बारे में वह सुरेश से विस्तार से बात करना चाहती थी. लेकिन नाश्ते के समय उस ने उसे उखड़ा हुआ सा महसूस किया.

उस से रहा नहीं गया तो उस ने पूछा, ‘‘मैं देख रही हूं कि जगन के यहां से आने के बाद से ही तुम खामोश हो. तुम्हारे मन में जरूर कोई ऐसी बात है, जो तुम मुझ से छिपा रहे हो?’’

सुरेश ने हलके से मुसकरा कर चाय के प्याले को होंठों से लगा लिया. कहा कुछ नहीं. तब वंदना ही आगे बोली. ‘‘हम एक बहुत बड़ा फैसला लेने जा रहे हैं. इस फैसले को ले कर हम दोनों में से किसी के मन में किसी भी तरह की दुविधा या बात नहीं होनी चाहिए. मैं चाहती हूं कि अगर तुम्हारे मन में कोई बात है तो मुझ से कह दो.’’

चाय का प्याला टेबल पर रख कर सुरेश ने एक बार पत्नी को गहरी नजरों से देखा. उस के बाद आहिस्ता से बोला, ‘‘जगन के यहां हम दोनों एक साथ, एक ही मकसद से गए थे वंदना. लेकिन तुम बच्चे को देख रही थी और मैं उसे जन्म देने उस की मां को. इसलिए मेरी आंखों ने जो देखा, वह तुम नहीं देख सकीं. वरना तुम भी अपने सीने में वैसा ही दर्द महसूस करती, जैसा कि मैं कर रहा हूं.’’

वंदना की आंखों में उलझन और हैरानी उभर गई. उस ने कहा, ‘‘तुम क्या कहना चाहते हो, मैं समझी नहीं?’’

सुरेश के होठों पर एक फीकी मुसकराहट फैल गई. वह बोला, ‘‘जगन के यहां से आने के बाद मैं लगातार अपने आप से ही लड़ रहा हूं वंदना. बारबार मुझे लग रहा है कि जगन से उस का बच्चा ले कर हम एक बहुत बड़ा गुनाह करने जा रहे हैं. मैं ने तुम्हारी आंखों में औलाद के न होने का दर्द देखा है. मगर मुझे जगन की बीवी की आंखों में जो दर्द दिखा, वह शायद तुम्हारे इस दर्द से भी कहीं बड़ा था. इन दोनों दर्दों का एक ही रंग है, वजह भले ही अलगअलग हो.’’

बहुत दिनों से खिले हुए वंदना के चेहरे पर एकाएक निराशा की बदली छा गई. उस ने उदासी से कहा, ‘‘लगता है, तुम ने बच्चे को गोद लेने का इरादा बदल दिया है?’’

‘‘मैं ने बच्चा गोद लेने का नहीं, जगन के बच्चे को गोद लेने का इरादा बदल दिया है.’’

‘‘क्यों?’’ वंदना ने झल्ला कर पूछा.

‘‘जगन एक तरह से अपना कर्ज उतारने के लिए बच्चा बेच रहा है. वंदना यह फैसला उस का अकेले का है. इस में उस की पत्नी की रजामंदी बिलकुल नहीं है. जब वह बच्चे को अपने सीने से अलग कर के तुम्हें दे रही थी. तब मैं ने उस की उदास आंखों में जो तड़प और दर्द देखा था, वह मेरी आत्मा को आरी की तरह काट रहा है. हमें औलाद का दर्द है. अपने इस दर्द को दूर करने के लिए हमें किसी को भी दर्द देने का हक नहीं है.’’

सुरेश की इस बात पर वंदना सोचते हुए बोली, ‘‘हम बच्चा लेने से मना भी कर दें तो क्या होगा? जगन किसी दूसरे से पैसे ले कर उसे बच्चा दे देगा. हम जैसे तमाम लोग बच्चे के लिए परेशान हैं.’’

‘‘अगर हम बच्चा नहीं लेते तो किसी दूसरे को भी जगन को बच्चा नहीं देने देंगे.’’

‘‘वह कैसे?’’ वंदना ने पूछा.

‘‘जगन अपना कर्ज उतारने के लिए बच्चा बेच रहा है. अगर हम उस का कर्ज उतार दें तो वह बच्चा क्यों बेचेगा? पैसे देने से पहले हम उस से लिखवा लेंगे कि वह अपना बच्चा किसी दूसरे को अब नहीं देगा. इस के बाद अगर वह शर्त तोड़ेगा तो हम पुलिस की मदद लेंगे. साथ ही हम बच्चा गोद लेने की कोशिश भी करते रहेंगे. मैं कोई ऐसा बच्चा गोद नहीं लेना चाहता, जिस के पीछे देने वाले की मजबूरी और जन्म देने वाली मां का दर्द और आंसू हो.’’

सुरेश ने जब अपनी बात खत्म की, तो वंदना उसे टुकरटुकर ताक रही थी.

‘‘ऐसे क्या देख रही हो?’’ सुरेश ने पूछा तो वह मुसकरा कर बोली, ‘‘देख रही हूं कि तुम कितने महान हो, मुझे तुम्हारी पत्नी होने पर गर्व है.’’

सुरेश ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर हलके से दबा दिया. उसे लगा कि उस की आत्मा से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया है.