आशिकी में भाई को किया दफन – भाग 1

नाबालिग गीता पर राहुल ने ऐसा जादू कर दिया था कि वह उस की प्रेम दीवानी हो गई थी, जबकि वह विवाहित और 2 बच्चों का बाप था. उन की आशिकी चरम पर थी. गीता रात को अपने परिवार वालों को दूध में नींद की गोलियां मिला कर दे देती थी फिर दोनों एकांत में मिल लेते थे.

एक बार राहुल प्रेमिका को बाहों में भरता हुआ बोला, “गीता, आखिर हम इस तरह छिप कर कब तक मिलते रहेंगे. कुलवीर हम पर हमेशा नजरें गड़ाए रहता है.’’

“हां, सही कहते हो, घर में केवल वही हमारे प्यार का दुश्मन बना बैठा है. मुझे लग रहा है कि कुछ करना ही होगा.’’ गीता तल्ख आवाज में बोली.

“क्या मतलब है तुम्हारा.’’ राहुल बोला.

“यही कि कोई तरीका निकालो इस समस्या के समाधान का,’’ गीता बोली.

“ठीक है, मैं कुछ सोचता हूं.’’ राहुल बोला और फटाफट अपने कपड़े पहन कर अपने घर चला गया.

इसी दौरान कुलवीर रहस्यमय तरीके से गायब हो गया. हरिद्वार जिले के एसएसपी अजय सिंह को करीब एक माह से लापता कुलवीर के बारे में एक सुराग मिल ही गया था. उस की पुष्टि के लिए उन्होंने तुरंत लक्सर थाने के कोतवाल अमरजीत सिंह को उस दिशा में काम करने का आदेश दे दिया.

आदेश पाते ही 12 मार्च, 2023 को अमरजीत सिंह ने भी फौरी काररवाई करते हुए ढाढेकी ढाणा के राहुल कुमार को थाने बुलवाया. उसे सीओ मनोज ठाकुर के सामने हाजिर किया गया. वह डरासहमा पुलिस के सामने खड़ा था. उस ने बताया कि उस की 9 साल पहले मोनिका से शादी हुई थी. उस से 2 बच्चे भी हैं. अपनी पत्नी मोनिका से बहुत खुश है.

उसी दौरान वह पड़ोसियों के नाम और उन के साथ अच्छे संबंध होने के बारे में बताने लगा, तभी जांच अधिकारी ने बीच में ही टोक दिया, “…अच्छा तो तुम कुलवीर के पड़ोसी हो?’’

“जी सर,’’ राहुल बोला.

“वह महीने भर से लापता है. उस के बारे में तुम क्या जानते हो?

“नहीं मालूम.’’ राहुल बोला.

“कुछ तो पता होगा. पिछली बार तुम उस से कब मिले थे?’’

“याद नहीं, लेकिन एक महीने से ज्यादा हो गया. कहां गया है…नहीं मालूम. उस से मेरे अच्छे संबंध थे.’’ राहुल बोला.

“अच्छे संबंध थे? क्या मतलब है तुम्हारा? अब नहीं है क्या?’’ जांच अधिकारी ने बीच में ही सवाल कर दिया.

यह सुनते ही राहुल थोड़ा असहज हो गया. हड़बड़ाता हुआ बोला, “मेरा मतलब है उस से मेरी पुरानी जानपहचान है. कुछ हफ्तों से वह नहीं दिखाई दिया है. कहीं गया होगा अपने कामधंधे को ले कर!’’

“गीता के बारे में तुम क्या जानते हो?’’ पुलिस ने बात बदल कर दूसरा सवाल किया.

“गीता? वह तो कुलवीर की बहन है. अच्छी लड़की है.’’ राहुल झट से बोल पड़ा.

“हां हां वही गीता, सुबह आई थी यहां. अपने लापता भाई की तहकीकात करने. तुम्हारी तो बहुत शिकायत कर रही थी. बोल गई है कि तुम ने ही उसे उस के खिलाफ भड़का दिया है, जिस से वह घर वालों से नाराज हो कर कहीं चला गया है. इसीलिए तुम्हें यहां बुलवाया गया है.’’ जांच अधिकारी बोले.

“मैं ने उसे भड़काया है? उसे! भला मैं क्यों ऐसा करूंगा, सर?’’ राहुल बोला.

“अपने मतलब के लिए.’’

“मेरा उस से क्या लेनादेना, क्या मतलब उस से…वह अपनी मरजी का मालिक और मैं…’’

“…और तुम अपनी मनमानी के मालिक… यही बात है न!’’ राहुल अपनी सफाई दे रहा था कि बीच में ही जांच अधिकारी बोल पड़े.

“जी…जी सर, मैं ने कोई मनमानी नहीं की उस के साथ.’’ राहुल अचानक घबरा गया.

“तो क्या कुछ किया उस के साथ, जो महीने भर से घर नहीं लौटा है? तुम्हीं बताओ न.’’ पुलिस के इस तर्क पर राहुल की जुबान से एक भी शब्द नहीं निकल पाया. जांच अधिकारी ने उस की चुप्पी और चेहरे पर उड़ती हवाइयों पर तीखी निगाह टिका दी. कुछ सेकेंड कमरे में सन्नाटा छाया रहा.

“कुलवीर के बारे कुछ बताया इस ने?’’ कोतवाल अमरजीत सिंह ने कमरे के दरवाजे से पूछा.

“अभी तक तो नहीं सर!’’ जांच अधिकारी बोले.

“कोई बात नहीं गीता ने सब कुछ बता दिया है. इसे मेरे कमरे में ले कर आओ, अब इस की खबर मैं लूंगा. यह इतनी आसानी से सच नहीं उगलने वाला है. इसे पुलिस सेवा की जरूरत है.’’ अमरजीत बोले.

“पुलिस सेवा!’’ अचानक रहुल बोला.

जांच अधिकारी बोले, “नहीं जानते पुलिस सेवा के बारे में? कोई बात नहीं, अब जान जाओगे. यह ऐसी सेवा होती है, जिसे कभी भी भूल नहीं पाओगे.’’

“सर जी, मैं ने कुछ भी नहीं किया कुलवीर के साथ…जो कुछ हुआ वह गीता के कहने पर ही कृष्णा ने किया…’’

“कृष्णा ने किया? कौन है कृष्णा? क्या किया उस के साथ? गीता ने उस के बारे में कुछ भी नहीं बताया…वह तो सिर्फ तुम्हारा ही नाम ले रही थी.’’ अमरजीत बोले.

“कृष्णा मेरी जानपहचान का है, दूसरे गांव में रहता है.’’ राहुल बोला.

“मुझे तो यह भी पता चला है कि तुम्हारा और गीता का चक्कर चल रहा है.’’ अमरजीत ने कहा.

“गलत बात है सर,’’ राहुल बोला.

“गलत नहीं है, तुम्हारे और गीता का राज कुलवीर को मालूम हो गया था. इसलिए तुम्हारी उस के साथ लड़ाई हो गई थी. अब वह कहां है किसी को नहीं मालूम. परिवार वालों ने उस के लापता होने की रिपोर्ट लिखवाई है. तुम उस के बारे में पूरी बात बताओगे तभी उसे तलाशने में मदद मिलेगी…वरना?’’ जांच अधिकारी ने कहा.

प्रेमी ने खोल दिया राज

पुलिस घुड़की और हमदर्दी से राहुल के चेहरे पर पसीना आ गया था. उस के चेहरे का भाव भांपते हुए अमरजीत समझ चुके थे कि उन्हें कुलवीर के बारे में नया सुराग मिल सकता है. उन्होंने उसे पानी पिलाया और उस के लिए चाय भी मंगवाई, फिर उसे ठंडे दिमाग से गीता, कुलवीर, कृष्णा और उस से जुड़ी सारी बातें बताने को कहा. उस के बाद जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार है—

उत्तराखंड के जिला हरिद्वार के लक्सर थानांतर्गत गांव ढाढेकी ढाणा में सेठपाल अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी, 3 बेटे और एक बेटी थी. वह एक साधारण किसान था. बड़ा बेटा कुलवीर पिता के साथ खेतीबाड़ी में हाथ बंटाता था.

पड़ोस में ही राहुल का भी घर था. वह भी अपने मातापिता, पत्नी और बच्चों के साथ खुशी से जीवनयापन करता रहा था. सेठपाल रिश्ते में उस का चाचा लगता है. राहुल का उन के घर में आनाजाना लगा रहता था. बीते एक साल से वह गीता की सुंदरता पर मर मिटा था. जब भी वह अकेले में मिलती, वह उस की तारीफ करता था. उन के बीच बढ़ती नजदीकियों की भनक परिवार में गीता के भाइयों को भी लग गई थी, लेकिन इसे उन्होंने गंभीरता से नहीं लिया.

कागज के टुकड़े की चोरी – भाग 3

जब वह घर पहुंचा तो गिलोरिया मौजूद नहीं थी. उस ने यह सोचते हुए जेब से कागज निकाला कि उस की उम्मीद के विपरीत जल्दी काम पूरा हो गया. लेकिन कागज खोल कर देखा तो उस की उम्मीदों पर पानी फिर गया. वह किसी पुरानी डायरी का कागज नहीं था. उस का साइज भी अलग था. निक ने मायूसी के साथ सिर को झटका और कागज को फाड़ने का इरादा किया.

तभी उस की नजर कागज पर लिखे हुए पते पर पड़ी. लिखा था : पाल गिलबर्ट, कमोडोर रेस्टोरेंट, कोस्ट रोड.

निक कुछ देर तक सोचता रहा. फिर वह कार में बैठ कर कोस्ट रोड की तरफ रवाना हो गया.

कमोडोर रेस्टोरेंट समुद्र के किनारे एक छोटा सा रेस्तरां था. काउंटर के पीछे एक मोटी सी औरत एप्रिन बांधे खड़ी थी. रेस्टोरेंट करीब करीब खाली पड़ा था. एक कोने में कुछ शिपमैन बैठे थे. निक ने काउंटर के पास पड़े एक स्टूल पर बैठ कर कौफी का आर्डर दिया. औरत ने कौफी का कप भर कर उस के सामने रख दिया और जिज्ञासा भरी नजरों से उस की ओर देखने लगी.

‘‘तुम शायद पहली बार यहां आए हो?’’ औरत ने पूछा तो निक बोला, ‘‘हां, दरअसल मेरे एक दोस्त ने बताया था कि यहां सी-फूड बहुत अच्छा मिलता है.’’

‘‘थैंक्स, क्या नाम है तुम्हारे दोस्त का?’’

निक ने थोड़ा रुक कर कहा, ‘‘माइकल गार्नर.’’

‘‘माइकल गार्नर?’’ औरत ने थोड़ा चौंकते हुए पूछा, ‘‘तुम उसे कैसे जानते हो?’’

‘‘हमारी मुलाकात एक बिजनैस फंक्शन के दौरान हुई थी.’’ निक आंख दबाते हुए बोला, ‘‘हमारी लाइन एक ही है. उम्मीद है, तुम मेरा मतलब समझ गई होगी.’’

वह औरत भौएं सिकोड़ कर निक को घूरने लगी. एक लंबी चुप्पी के बाद उस ने पूछा, ‘‘क्या तुम्हें माइकल ने भेजा है?’’

सुन कर निक चौंका, लेकिन उस ने जाहिर नहीं होने दिया. उस ने थोड़ा सा ड्रामा करने का फैसला किया. वह कौफी की चुस्कियां लेते हुए बोला, ‘‘माइकल ने पाल गिलबर्ट का नाम लिया था.’’

‘‘पाल मेरा पति है और बिलकुल बुद्धू है. मैं खुद माइकल से बात करना चाहती थी लेकिन परेशानी यह है कि वह कभी सामने नहीं आता. मैं ने आज तक उस की शक्ल नहीं देखी. वह पाल की सादगी से नाजायज फायदा उठा रहा है.’’

निक बड़ी मुश्किल से उस की बात को पचा गया. वह सोचने लग. अगर इस औरत ने माइकल की शक्ल नहीं देखी तो इस का मतलब माइकल ने कभी इस रेस्टोरेंट में कदम नहीं रखा था.

‘‘तुम माइकल के बजाय मुझ से बात कर सकती हो.’’ निक ने कहा, ‘‘मुझे निकोलस कहते हैं.’’

औरत धीमे स्वर में बोली, ‘‘माइकल से कह देना कि हम सिर्फ एक हजार डौलर के लिए इतना बड़ा खतरा मोल नहीं ले सकते.’’

‘‘मेरे ख्याल में तो एक हजार डौलर बहुत होते हैं.’’ निक ने अंधेरे में तीर चलाया. उसे इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि वह औरत किस मामले की बात कर रही है.

‘‘असल खतरा तो हम मोल लेते हैं. अगर कभी छापा पड़ गया तो माइकल का क्या नुकसान होगा? ज्यादा से ज्यादा एक पैकेज पकड़ा जाएगा. सारी मुसीबत तो हम पर आ पड़ेगी.’’

निक ने गहरी सांस ली. एक बात साफ हो गई थी कि मामला स्मगलिंग से संबंधित था.

‘‘मैं माइकल से बात करुंगा,’’ निक ने कहा, ‘‘तुम्हारे खयाल में कितने पैसे ठीक रहेंगे?’’

‘‘कम से कम 3 हजार डौलर.’’

‘‘यह तो बहुत ज्यादा हैं. बहरहाल, माइकल से बात करुंगा. मैं पैकेज के बारे में पूछना चाहता था.’’

‘‘मेरा खयाल है, यह बात माइकल को मालूम होनी चाहिए. आखिरी सूचना के अनुसार जहाज 15 तारीख को रात के किसी समय बंदरगाह पहुंचेगा. इस का मतलब डिलीवरी 16 या 17 तारीख को होगी.’’

निक ने कौफी का आखिरी घूंट लिया, पैसे निकाल कर काउंटर पर रखे और जाने के लिए खड़ा हो गया. जातेजाते उस ने कहा, ‘‘ओ.के. मिसेज गिलबर्ट. फिर मुलाकात होगी.’’

बाहर निकलकर निक अपनी कार में जा बैठा जो रेस्टोरेंट से कुछ दूरी पर सड़क के दूसरी ओर खड़ी थी. कुछ देर तक वह ड्राइविंग सीट पर बैठा परिस्थितियों पर विचार करता रहा. जाहिर था कोई चीज पानी के जहाज पर स्मगल कर के कमोडोर रेस्टोरेंट में पहुंचाई जाती थी और वहां से माइकल का कोई कारिंदा उसे वसूल कर लेता था और इस थोड़ी सी सेवा के बदले पाल गिलबर्ट एक हजार डौलर कमा लेता था. सौदा ज्यादा बुरा नहीं था.

निक ने इंजन स्टार्ट कर के कार को गियर में डाल दिया. उसी समय उस ने कमोडोर रेस्टोरेंट के सामने एक स्टेशन वैगन को रुकते हुए देखा. उस की ड्राइविंग सीट पर नारमन बैठा था. उस समय उस की आंख पर काली पट्टी के बजाय धूप का चश्मा था. निक ने अर्थपूर्ण भाव में सिर हिलाया और रुके बगैर बढ़ गया.

अगले दिन जब निक ने माइकल गार्नर के घर की कालबेल बजाई तो एक 30-32 साल की औरत ने दरवाजा खोला. वह वैलडे्रस्ड और आकर्षक औरत थी. उस ने सवालिया नजरों से निक और गिलोरिया की ओर देखा. निक के कंधे पर कैमरे लटक रहे थे. जबकि गिलोरिया एक मुस्तैद फीचर राइटर लग रही थी.

‘‘सौरी, मिस्टर माइकल घर पर नहीं हैं.’’ औरत ने उन दोनों को देखते ही कहा.

यह बात निक और गिलोरिया को पहले से ही मालूम थी. सच तो यह था कि उन्हें इस मौके के लिए डेढ़ घंटे तक इंतजार करना पड़ा था. वो औरत उस घर की हाउसकीपर थी. निक ने जेब से एक कार्ड निकाल कर उस औरत के हाथ में दिया.

उस कार्ड के अनुसार निक घरेलू नौकरों की एक संस्था का प्रतिनिधि था. विजिटिंग कार्ड उस ने फौरी तौर पर आर्डर दे कर तैयार करवाए थे.

‘‘मैं किसी संस्था की सदस्य नहीं बनना चाहती.’’ औरत ने कार्ड वापस करते हुए कहा तो निक 5 डौलर का नोट निकाल कर औरत की ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘हम तुम्हें संस्था का सदस्य बनाने नहीं आए. हम घरों में काम करने वाले नौकरों के बारे में सर्वे कर रहे हैं और तुम से कुछ सवाल करना चाहते हैं.’’

औरत असमंजस की नजरों से नोट की तरफ देखने लगी.

‘‘हम तुम्हारा ज्यादा समय नहीं लेंगे. कुछ सवाल करेंगे और कुछ फोटो खींचेंगे. ज्यादा से ज्यादा 15-20 मिनट लगेंगे. ये फोटो महिलाओं की मैगजीन में प्रकाशित की जाएंगी.’’

ऐसा क्या था रहस्य छिपा था उस कागज के टुकड़े में? जानने के लिए पढ़ें इस Fiction Crime Story का अगला भाग… 

लेडी कांस्टेबल मर्डर का कालगर्ल कनेक्शन

कालिंदी की जिद : पत्नी या प्रेमिका? – भाग 1

दिलीप रायपुर के खमतराई थाना से 4 किलोमीटर दूर बुनियाद नगर मोहल्ले में अपनी पत्नी कालिंदी के साथ रह रहा था. वह राजमिस्त्री का काम करता था. दिलीप की पत्नी कालिंदी चाहती थी कि दिलीप कोई ऐसा काम करे जो एक जगह बैठ कर हो जाए. उस की इस सोच के पीछे प्रमुख वजह यह थी कि एक तो दिलीप शारीरिक रूप से कमजोर था. दूसरे उसे मिर्गी के दौरे पड़ते थे.

दिलीप कौशिक और कालिंदी की शादी सन 2005 में हुई थी. पति की इस शारीरिक कमजोरी और मिर्गी रोग के बारे में कालिंदी को शादी के कई महीने बाद पता चला था. उस के मांबाप की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी. इसलिए उस के 18 वर्ष का होते ही उन्होंने दिलीप से उस की शादी कर दी थी. शादी से पहले वह ज्यादा छानबीन भी नहीं कर पाए थे.

शादी के बाद जब कालिंदी को पता चला तो उस ने कहसुन कर दिलीप का इलाज कराने का प्रयास किया. लेकिन इस से कोई खास लाभ नहीं हुआ. मिर्गी का दौरा कब कहां और किस समय आएगा इस का कोई पता नहीं होता. एक बार दिलीप जब नए बन रहे मकान की छत की ढलाई कर रहा था तो सीढ़ी पर चढ़ते समय उसे मिर्गी का दौरा पड़ गया. फलस्वरूप वह जमीन पर आ गिरा. गिरने से उस के शरीर में चोटें तो आई हीं, उस का दाहिना पैर फ्रैक्चर भी हो गया.

करीब सवा महीने तक उस के पैर पर प्लास्टर चढ़ा रहा. प्लास्टर कटा तो वह 8-10 दिन बाद तक काम पर नहीं जा सका. मजबूरी में घर का खर्च चलाने और पति के लिए दवा वगैरह के इंतजाम के लिए कालिंदी को बेलदारी का काम करना पड़ा. कहते हैं छत्तीसगढ़ की महिलाएं मेहनत व भार उठाने के मामले में मर्दों से कमतर नहीं होतीं. बेलदारी हो या फिर बोझा उठाने वाला दूसरा कोई काम, छत्तीसगढ़ की महिलाओं का कोई मुकाबला नहीं.

लगभग 2 महीने बाद दिलीप भी पत्नी के साथ काम पर जाने लगा, पर अब वह न तो पहले की तरह मेहनत कर पाता था और न भार उठा पाता था. अभी तक महीना ही बीता था कि अचानक एक दिन फिर से काम के दौरान दिलीप को मिर्गी का दौरा आ गया.

संयोग से उस समय वह बैठा हुआ था. दौरा पड़ते ही दिलीप जमीन पर लुढ़क गया और उस के हाथपांव ऐंठने लगे. कुछ देर बाद वह होश में तो आ गया, लेकिन ठेकेदार ने उस की हालत से डर कर उसे काम पर आने से मना कर दिया.

इस के 5-6 महीने पहले दिलीप जब अपना काम निपटा कर घर लौट रहा था तो लौटते वक्त अचानक उसे सड़क पर ही दौरा पड़ा और वह वहीं गिर गया. अगर पीछे से आ रहे ट्रक के ड्राइवर ने सावधानी न बरती होती तो वह जरूर ट्रक की चपेट में आ जाता. तब से कालिंदी उसे ले कर बहुत डरने लगी थी.

कालिंदी दिलीप को ले कर कोई खतरा नहीं उठाना चाहती थी इसलिए उस ने फैसला कर लिया कि अब काम पर वह अकेले ही जाया करेगी. कालिंदी जिस जगह काम कर रही थी वहां का काम खत्म हो गया तो वह एक बड़े कंस्ट्रक्शन ठेकेदार की साइट पर काम करने लगी. वहां पर मजदूरों के साथ 7-8 महिलाएं भी काम कर रही थीं.

कालिंदी काम पर जाने लगी तो दिलीप का ज्यादातर समय अपने 3 वर्षीय बेटे बबलू के साथ बीतने लगा. उस की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी. वह अड़ोसपड़ोस के कुछ दुकानदारों का छोटामोटा काम कर के अपने चायनाश्ते का जुगाड़ कर लेता था. शाम को कालिंदी काम से घर लौटती. फिर खाना बनाती और पति व बेटे को खिलाती.

दिलीप और कालिंदी की उम्र लगभग 30-31 साल थी. इस उम्र में दांपत्य सुख जरूरी होता है. लेकिन थकी हारी होने की वजह से कालिंदी का ध्यान इस ओर नहीं जा पाता था. जबकि दिलीप अपनी शारीरिक कमजोरी की वजह से पत्नी में कोई ज्यादा रुचि नहीं रखता था. दिलीप की शारीरिक कमजोरी की एक वजह यह भी थी कि वह बचपन में कुपोषण का शिकार हो गया था.

कालिंदी जिस जगह काम कर रही थी वहां बीसों महिला पुरुष काम करते थे. उन्हीं में एक थी चांदनी. कालिंदी की हमउम्र चांदनी भी एक गरीब परिवार की शादीशुदा महिला थी. वह बेलदारी करती थी जबकि उस का पति एक दुकान पर नौकरी करता था. एक ही जगह एक ही तरह का काम करतेकरते कालिंदी और चांदनी में अच्छी निभने लगी थी. दोनों एकदूसरे से सुखदुख की बातें भी करती थीं.

चांदनी कहने को तो बेलदारी करती थी लेकिन उस ने दुनिया देखी थी. वह तेजतर्रार औरत थी. घुलने मिलने के कारण चांदनी कालिंदी के जीवन से जुड़ी हर छोटीबड़ी बातें जान गई थी. इस के बाद दोनों खूब खुल कर बातें करने लगी थीं.

एक दिन लंच टाइम में चांदनी और कालिंदी जब साथसाथ लंच कर रही थीं तो चांदनी ने कालिंदी से कहा, ‘‘देख कालिंदी मेरा मानना है कि औरत के लिए पुरुष का प्यार उतना ही जरूरी है जितना पेट भरने के लिए रोटी. मैं तो यह कहती हूं कि तू अपने लिए एक अच्छा सा मर्द ढूंढ ले जो तेरी शारीरिक जरूरतों को पूरा कर सके. क्योंकि तेरा पति तो इस लायक है नहीं.’’

कालिंदी चांदनी की बातें चुपचाप सुन रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उस की बेतुकी बातों का क्या जवाब दे. फिर भी शरमाते सकुचाते हुए उस ने कह दिया, ‘‘क्या करूं चांदनी, मुझे दिलीप की हालत पर तरस आ जाता है. इसलिए अपनी इच्छाओं को दबा कर रखती हूं.’’

‘‘तो ठीक है, तरसती रह इसी तरह.’’ चांदनी ने थोड़ी कटुता से कहा, ‘‘तेरी जगह तेरा पति होता तो ढूंढ लेता किसी और को. अब कभी मुझे अपना दुखड़ा मत सुनाना.’’

कालिंदी को लगा कि चांदनी बुरा मान गई है, वह उस की मनुहार करते हुए बोली, ‘‘चांदनी, इस में बुरा मानने की कोई बात नहीं है. तू क्या समझती है, मेरा मन नहीं होता कि कोई चाहने वाला हो. लेकिन इस के लिए कोई ऐसा भी तो हो जो मन को भाए. जिस पर विश्वास किया जा सके…सड़क पर इज्जत थोड़े ही नीलाम करनी है.’’

‘‘तू जो कुछ कह रही है, मैं अच्छी तरह समझती हूं. मैं ने तुझे यह सब इसलिए कहा है कि हम लोग जिस सुपरवाइजर के साथ काम करते हैं मैं ने उस की आंखों की भाषा पढ़ी है, वह तुझ पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है.’’ चांदनी आगे कुछ कहती इस से पहले ही कालिंदी के चेहरे पर रहस्यमय सी मुसकान फैल गई. वह नजरें झुका कर बोली, ‘‘कहीं तू रामकुमार की बात तो नहीं कर रही है?’’

‘‘बिलकुल ठीक समझी तू.’’ कह कर चांदनी चुप हो गई तो कालिंदी ने कहा, ‘‘लेकिन वह तो शादीशुदा है, 2 बच्चों का बाप.’’

‘‘तो तुझे क्या लगता है, हमारे जैसी शादीशुदा और मां बन चुकी औरतों पर कोई कुंवारा लड़का लाइन मारेगा? पता है, औरत हो या मर्द शादीशुदा लोगों को दुनियादारी की ज्यादा समझ होती है. वैसे भी ऐसे लोगों को अपने पार्टनर की इज्जत से अपनी इज्जत की कहीं ज्यादा फिक्र रहती है. रही बात रामकुमार की तो वह तुझ से उम्र में 3-4 साल छोटा ही है.’’

कविता ने लिखी खूनी कविता – भाग 3

कविता अकसर दीपचंद को अपने से दूर रखती थी. इस से दीपचंद का संदेह और पुख्ता हो गया था. वह कविता पर दबाव बनाने लगा कि वह बृजेश से मेलजोल बंद कर दे और न ही उस से फोन पर बात करे. बृजेश को ले कर उस का कविता से विवाद भी होने लगा था.

इस कहासुनी में वह कभीकभी कविता की पिटाई भी कर देता था. यहां तक कि दीपचंद ने पत्नी कविता को खर्च के लिए पैसे देने भी बंद कर दिए तो कविता को समझ आ गया था कि अब पति के जिंदा रहते वह बृजेश से अपने संबंधों को जारी नहीं रख पाएगी.

बृजेश भी कविता के प्यार में इतना पागल हो चुका था कि उसे कविता से मिले बगैर चैन नहीं मिलता. कविता के मन में हरदम यही विचार आता था कि वह पति को रास्ते से हटा दे और उस के बाद बृजेश के साथ इसी तरह नाजायज संबंध बनाए रखेगी. इस से उस के ससुर की जमीनजायदाद में भी उस का हिस्सा बना रहेगा और प्रेमी की बाहों का झूला भी उसे मिलता रहेगा. यहीं से कविता ने बृजेश के साथ मिल कर पति को रास्ते से हटाने की साजिश रची.

प्रेमी के लिए मिटाया सिंदूर

जब कविता पति की हत्या के लिए तैयार हो गई तो बृजेश ने अपने साथ टेंटहाउस में साथ काम करने वाले दोस्त गणेश विश्वकर्मा को साजिश में शामिल कर लिया. उस ने गणेश को दोस्ती का वास्ता दे कर रुपए देने का लालच दिया.

योजना के मुताबिक कविता इस बीच मायके चली गई, जिस से दीपचंद के अचानक लापता होने पर संदेह न हो. हत्या के लिए 19 जुलाई, 2023 की तारीख तय की गई. उस दिन दीपचंद ने काम से छुट्टी ले रखी थी, यह बात कविता ने दीपचंद को फोन कर के तसल्ली भी कर ली थी कि वह घर पर ही है. इस के बाद उस ने बृजेश को फोन कर दीपचंद की लोकेशन बता दी.

बृजेश ने पन्ना जिले के अमानगंज निवासी बिट्टू दुबे की चार पहिया गाड़ी एमपी20 सीई 6749 किराए पर ले ली. इस के बाद वह सुनवानी से गणेश विश्वकर्मा को साथ ले कर खैरा गांव पहुंचा. वहां दीपचंद को फोन कर घर के बाहर मिलने बुलाया. फिर पार्टी के बहाने दीपचंद को साथ ले कर वर्धा होते हुए खजरूट स्थित पेट्रोल पंप के पास पहुंचे. वहां एक गुमटी से सिगरेट, पानी और नमकीन के पैकेट लिए. बृजेश ने शराब पहले ही खरीद ली थी. रास्ते में एक जगह रुक कर तीनों ने शराब पी.

बृजेश और गणेश ने दीपचंद को ज्यादा शराब पिलाई. दीपचंद जल्दी ही शराब के नशे में धुत हो गया. इस के बाद बृजेश ने गाड़ी पंडवन पुल के पास बने मंदिर की ओर मोड़ दी. कल्लू ने मंदिर के पास गाड़ी रोक कर दीपचंद को गाड़ी से उतारा. इस के बाद गणेश और बृजेश ने दीपचंद को जमीन पर पटक दिया और उस का गला दबा दिया. इस से दीपचंद बेहोश हो गया.

दीपचंद के बेहोश होने के बाद बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू ने गाड़ी में रखी लाठी उठाई और सिर पर तब तक वार किए, जब तक वह मर नहीं गया. इस के बाद उस के लोअर से मोबाइल और पर्स निकाल लिए. पर्स में करीब 700 रुपए थे, जो बृजेश ने रख लिए और पर्स और चप्पलें झाड़ी में फेंक दीं.

पुलिस ने बरामद किए अहम सबूत

इस के बाद बृजेश बर्मन और गणेश विश्वकर्मा ने दीपचंद की लाश को गाड़ी नंबर एमपी20 सीई6749 में डाल कर पंडवन की केन नदी में ले जा कर बहा दिया. दीपचंद का मोबाइल और घटना में प्रयुक्त खून से सना डंडा भी नदी में फेंक दिया. तब तक रात के साढ़े 10 बज चुके थे.

दोनों ने गाड़ी में लगे खून को साफ किया और रात में ही गाड़ी उस के मालिक बिट्टू दुबे को सौंप कर अपने अपने घर आ गए. 3 दिन बाद जब दीपचंद के लापता होने की खबर फैली तो बृजेश भी दिलासा देने उस के घर गया, जिस से किसी को उस पर शक न हो.

आरोपियों ने खजरूट की जिस दुकान से शराब व सिगरेट खरीदी थी, पुलिस ने उस दुकान मालिक वीरभान सिंह से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस दिन बृजेश बर्मन व गणेश विश्वकर्मा गाड़ी से आए थे और शराब व सिगरेट खरीदी थी. वीरभान ने यह भी बताया कि ड्राइवर वाली सीट पर बृजेश बर्मन बैठा था, बगल वाली सीट पर दीपचंद बैठा था.

बृजेश बर्मन और गणेश विश्वकर्मा पन्ना के सुनवानी के जिस टेंटहाउस में काम करते थे, उस के मालिक कमलेश विश्वकर्मा से भी पुलिस टीम ने पूछताछ की तो कमलेश ने बताया कि 21 अगस्त को जब गैसाबाद की पुलिस जांच करने सुनवानी आई थी, उस रात गणेश ने शराब के नशे में बृजेश बर्मन के साथ मिल कर दीपचंद की हत्या की बात बताई थी.

टीआई विकास सिंह चौहान ने बृजेश और गणेश की निशानदेही पर झाड़ियों में छिपाई चप्पलें और खाली पर्स जब्त कर लिया. इस के अलावा घटना में प्रयुक्त बिट्टू दुबे की गाड़ी भी जब्त कर ली. जहां दीपचंद का शव फेंका गया, वह जगह पन्ना जिले में आती है. केन नदी पन्ना जिले की सब से बड़ी नदी है और इस में बड़ी संख्या में मगरमच्छ भी रहते हैं.

इस से यह आशंका भी व्यक्त की जा रही थी कि नदी में बहाए गए शव को मगरमच्छों ने अपना ग्रास न बना लिया हो. स्थानीय पुलिस और एसडीआरएफ के सहयोग से केन नदी में दीपचंद की लाश की सर्चिंग करवाई, लेकिन लाश बरामद नहीं हो सकी.

25 अगस्त, 2023 को गैसाबाद पुलिस ने हत्या, साक्ष्य छिपाने और साजिश रचने का मामला दर्ज कर तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया, जहां से उन्हें दमोह जेल भेज दिया गया.

दीपचंद की हत्या को एक माह से अधिक समय हो गया था, मगर दीपचंद का शव बरामद नहीं हुआ था. इसे ले कर दीपचंद के परिवार और रिश्तेदारों ने पुलिस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था. एसडीआरएफ की टीमें केन नदी में लगातार शव तलाश रही थीं, परंतु सफलता नहीं मिल रही थी. एक माह के दौरान नदी में बाढ़ भी आ चुकी थी, इस से यह अनुमान लगाया जा रहा था कि शव कहीं दूर निकल गया हो. दमोह जिले के एसपी और एसडीओपी नितिन पटेल लगातार पुलिस टीमों को खोजबीन के लिए भेज रहे थे.

30 अगस्त, 2023 को गैसाबाद पुलिस को सूचना मिली कि अमानगंज थाने के जिज गांव के नाले के पास एक क्षतविक्षत शव के अवशेष पड़े हुए हैं. सूचना पर पहुंची पुलिस टीम को केन नदी और एक नाले के बीच बने टापू पर देर रात शव के अवशेष बरामद हुए.

शिनाख्त के लिए एसडीओपी (हटा) नीतेश पटेल के निर्देश पर गैसाबाद थाना पुलिस टीम मौके पर दीपचंद के पिता हाकम को ले कर पहुंची. हाकम ने हाथ में बंधे रक्षासूत्र और उस के पहने हुए कपड़ों से उस की शिनाख्त अपने बेटे दीपचंद पटेल के रूप में की.

पुलिस ने शव को बरामद कर पंचनामा और पोस्टमार्टम की काररवाई कर शव के अवशेष डीएनए टेस्ट के लिए सुरक्षित करने के बाद वह परिजनों के सुपुर्द कर दिया.

एसपी सुनील तिवारी ने शव की खोजबीन में लगे पुलिसकर्मियों और एसडीआरएफ टीम के प्रयासों की सराहना की. कविता पटेल ने एक गलती से अपनी मांग का सिंदूर पोंछ कर अपनी बसी बसाई घरगृहस्थी उजाड़ ली और जेल की हवा खानी पड़ी.

कागज के टुकड़े की चोरी – भाग 2

निक ने सोचा कि माइकल या तो उस बंगले में किराएदार है या उस ने वह बंगला हाल ही में खरीदा है. वह नेम प्लेट देखता हुआ थोड़ा आगे बढ़ गया और फिर वापस लौट आया. उसी वक्त बंगले का मुख्य दरवाजा खुला और अंदर से एक काली मर्सिडीज निकलती दिखाई दी. ड्राइविंग सीट पर एक स्वस्थ और अच्छी शक्लोसूरत का आदमी बैठा था. सफेद बाल और उम्र लगभग 60 साल.

पीछे की सीट पर उस से आधी उम्र की एक खूबसूरत औरत बैठी थी. निक अपनी कार में आ बैठा और उस ने मर्सिडीज का पीछा शुरू कर दिया. दूरी थोड़ी ज्यादा थी, जब वह गली के मोड़ पर पहुंचा तो मर्सिडीज नजरों से ओझल हो गई.

उसी रोज रात के 10 बजे निक ईस्ट हारलम के इलाके में जा पहुंचा. वह एक बदनाम इलाका था, शरीफ आदमी रात के समय वहां जाते हुए डरते थे. निक अपनी कार सबवे स्टेशन के पास खड़ी कर के पैदल ही एक ओर चल दिया. थोड़ी दूर चलने के बाद उस ने महसूस किया कि लफंगे टाइप के 2 युवक उस का पीछा कर रहे हैं.

वह जानबूझ कर एक अंधेरी गली में घुस गया. वे दोनों युवक उस के बिलकुल पास पहुंच गए. तभी एक ने उस के बाईं ओर के कंधे से कंधा टकराया. निक ने उस की ओर देखा तो दाईं ओर वाला उस के साथ रगड़ खाता हुआ आगे निकल गया. अगर निक इस ड्रामे के लिए तैयार न होता तो उसे हरगिज पता नहीं चलता कि दाईं ओर वाला युवक उस की पैंट की पिछली जेब से पर्स निकाल चुका है.

‘‘रुक जाओ.’’ निक ने जल्दी से आवाज लगाई, ‘‘पर्स खाली है, कुछ नहीं है उस में.’’

यह सुनते ही वे दोनों रुके और बाईं ओर वाले युवक ने कमानीदार चाकू निकाल लिया. हलके अंधेरे के बावजूद निक ने बड़ी फुरती से उस की बांह पकड़ कर चाकू छीन लिया. दूसरा युवक अपने साथी की मदद के लिए तेजी से आगे बढ़ा तो निक ने उस के पेट पर घुटने से जोरदार वार किया. वह तेज दर्द से कराहता हुआ दोहरा हो गया. उन दोनों को शायद यह बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि शरीफ सा दिखने वाला वह आदमी जवाबी हमला कर देगा. इसलिए दोनों बौखला गए.

निक ने अभी तक पहले वाले युवक की बांह नहीं छोड़ी थी. उस ने चाकू की नोक उस की गरदन से लगाते हुए कहा, ‘‘मैं बिजनेस की बात करना चाहता हूं.’’

‘‘कैसा बिजनेस? हमारी जेबें बिलकुल खाली हैं, तुम्हें कुछ हासिल नहीं होगा.’’

‘‘जानता हूं, तुम दोनों कंगले हो.’’

‘‘ओह, मेरी बांह तो छोड़ो.’’

‘‘चुपचाप मेरी बात सुनो.’’ निक ने उसे डांटा, ‘‘यह बताओ, चौबीस घंटों के अंदर 5 सौ डौलर कमाने के बारे में क्या खयाल है?’’

‘‘24 घंटे के अंदर 5 सौ डौलर?’’ दोनों एकसाथ बोले, ‘‘काम क्या है?’’

‘‘काम ज्यादा मुश्किल नहीं है.’’ कहते हुए निक ने उस युवक की बांह छोड़ दी. फिर कहा, ‘‘तुम्हें एक आदमी की जेब से पर्स निकालना और वापस डालना है.’’

‘‘निकालने वाली बात तो समझ में आती है, लेकिन वापस डालने का क्या मतलब?’’

‘‘समझ लो यह तुम्हारे हुनर की परीक्षा है. 5 सै डौलर तुम्हें इसी काम के मिलेंगे.’’

‘‘तुम ने हमारा हुनर देखा ही कहां है, हम एक बार नहीं 10 बार पर्स निकाल कर डाल सकते हैं. लेकिन परेशानी यह है कि पर्स में 25-50 डौलर से ज्यादा नहीं निकलते. आजकल आमतौर पर लोगों की जेब में क्रेडिट कार्ड होते हैं. बड़े लोगों ने जेबों में कैश रखना छोड़ दिया है. वैसे हमें अपने हुनर का प्रदर्शन कब और कहां करना होगा?’’

निक ने उन्हें विस्तार से सब कुछ समझा दिया. उन के नाम बर्ट और विकी थे.

अगले दिन 11 बज कर 10 मिनट पर माइकल गार्नर ने अपनी कार पार्किंग में खड़ी की और नजदीकी शौपिंग प्लाजा की ओर बढ़ गया. निक की कार भी उस के पीछेपीछे पार्किंग में दाखिल हुई थी. बर्ट और विकी नाम के देनों युवक पिछली सीट पर बैठे थे. तीनों लगभग 2 घंटे से माइकल का पीछा कर रहे थे. अब वह मौका उन के सामने था जिस की उन्हें तलाश थी.

निक के इशारे पर बर्ट और विकी कार से निकल कर माइकल के पीछे चल दिए. निक वहां नहीं रुका. उस ने अपनी कार पार्किंग से बाहर निकाल कर शौपिंग प्लाजा की ओर मोड़ दी. वह उन के ज्यादा से ज्यादा करीब रहना चाहता था. चंद पलों के बाद उस ने अपनी कार प्लाजा के सामने रोक दी.

बर्ट और विकी निक की उम्मीद से ज्यादा तेज साबित हुए. उन्होंने उस समय माइकल का पर्स पार कर लिया, जब वह स्टोर के अंदर दाखिल हो रहा था. विकी उस के पीछे ही रहा जबकि बर्ट पर्स ले कर निक के पास पहुंच गया. पर्स के अंदर लगभग डेढ़ सौ डौलर, क्रेडिट कार्ड, आइडिंटी कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, तीन विजिटिंग कार्ड और एक मुड़ा हुआ कागज था. निक ने कागज निकाल कर पर्स यह कह कर बर्ट को वापस दे दिया कि उसे फिर से उसी की जेब में डाल दे.

बर्ट पर्स लेते हुए बोला, ‘‘तुम ने केवल इस कागज के लिए 5 सौ डौलर खर्च किए हैं?’’

‘‘तुम अपने काम से मतलब रखो.’’ निक ने कहा, ‘‘पर्स से बिना कोई चीज निकाले इसे वापस माइकल की जेब में डाल देना.’’

‘‘और हमारा मेहनताना?’’ बर्ट ने कहा तो निक ने जेब से 2 सौ डौलर निकाल कर उस के हाथ पर रख दिए. बोला, ‘‘3 सौ डौलर काम पूरा होने पर. और हां, जरा जल्दी करो. कहीं वह वापस न चला जाए. मैं भी तुम्हारे पीछे ही आ रहा हूं.’’

बर्ट 2 सौ डौलर जेब में रख कर वापस चल दिया. निक कार से बाहर निकला और थोड़े फासले से उस के पीछे चलने लगा. स्टोर के दरवाजे पर पहुंच कर बर्ट ने पर्स की नकदी अपनी जेब में डाल ली लेकिन निक से उस की यह हरकत नहीं छुप सकी. माइमल अभी तक स्टोर के अंदर ही था. बर्ट ने विकी को इशारा किया और माइकल के पीछे पहुंच गया.

चंद पलों तक वह उस के पीछे चलता रहा. फिर मौका देख कर उस ने पर्स उस की जेब में डालने की कोशिश की. तभी अचानक माइकल घूमा और उस ने बर्ट की कलाई पकड़ ली. उस ने शोर मचाया तो शौपिंग प्लाजा के कोने पर खड़ा सिक्योरिटी गार्ड फौरन उस की मदद के लिए पहुंच गया. यह देख कर विकी ने वहां से खिसक जाने में ही भलाई समझी. निक भी तुरंत मुड़ गया क्योंकि अब वहां रुकना खतरनाक था.

निक कार के पास पहुंचा तो विकी वहां खड़ा उस का इंतजार कर रहा था. उस ने निक को देखते ही कहा, ‘‘बर्ट पकड़ लिया गया है.’’

‘‘मुझे मालूम है. उस ने मेरे मना करने के बावजूद भी पर्स से पैसे निकाल लिए. यह बात मुझे पसंद नहीं आई.’’

‘‘अब हमारे मेहनताने का क्या होगा?’’

‘‘उसूली तौर पर तो तुम्हें कोई मेहनताना नहीं मिलना चाहिए. क्योंकि तुम लोगों ने वादे के मुताबिक काम नहीं किया.’’ इस के साथ ही उस ने सौ डौलर निकाल कर विकी के हाथ पर रखते हुए कहा, ‘‘2 सौ डौलर बर्ट को दे चुका हूं. ये सौ डालर तुम्हारे हैं.’’

‘‘लेकिन बात 5 सौ डौलर की हुई थी.’’

‘‘हां, लेकिन काम पूरा होने की स्थिति में. इन्हें रखो और चलते बनो. वरना पुलिस तुम तक भी पहुंच सकती है.’’

विकी ने सौ डौलर ले कर जेब में डाले और बड़बड़ाते हुए एक ओर चल दिया. निक कार में बैठा और इंजन स्टार्ट कर के गाड़ी आगे बढ़ा दी.

क्या पुलिस निक तक पहुंच जाएगी या वो अपने मनसूबे में कामयाब हो जायेगा? इन सभी सवालों के जवाब मिलेंगे इस बेस्ट फिक्शन क्राइम स्टोरी के अगले अंक में..

प्यार का ‘दी एंड’

11जुलाई, 2014 को रात करीब 8 बजे होटल क्रिस्टल पैलेस के रिसैप्शन कांउटर पर एक युवक पहुंचा. उस युवक के पास 2 बैग थे. वह काउंटर पर बैठी लड़की से बोला, ‘‘हमें डबलबैड वाला एसी रूम चाहिए.’’

यह सुन कर रिसैप्शन पर बैठी लड़की उस युवक को गौर से देखने लगी. वह समझ नहीं पा रही थी कि जब वह अकेला है तो डबल बेड वाले कमरे की बात क्यों कर रहा है. उस ने पूछा, ‘‘आप अकेले हैं?’’

‘‘जी नहीं, मिसेज भी साथ हैं. वह बाहर आटो का किराया दे रही हैं.’’ युवक ने इतना ही कहा था कि एक युवती दरवाजा खोलते हुए अंदर दाखिल हुई और उस युवक के बराबर में आ कर खड़ी हो गई. रिसैप्शनिस्ट समझ गई कि यह इस की बीवी होगी. रिसैप्शनिस्ट ने एसी रूम का किराया एक हजार रुपए प्रतिदिन बताया तो युवक ने रूम लेने की सहमति जता दी.

रिसैप्शनिस्ट ने कमरा बुक करने की औपचारिकताएं पूरी कराने के लिए उस युवक और युवती से नाम पूछा तो उन्होंने अपने नाम दिलीप वर्मा और पिंकी बताए. आईडी के रूप में दिलीप वर्मा ने अपना पैन कार्ड और पिंकी ने वोटर आईडी कार्ड दिखा कर उन की फोटोकौपी जमा करा दी. औपचारिकताएं पूरी करने के बाद रिसैप्शनिस्ट ने कमरा नंबर 207 उन के नाम बुक कर दिया. होटल में काम करने वाले एक लड़के से उन का सामान कमरा नंबर 207 में पहुंचा दिया.

2 दिनों तक दिलीप और पिंकी होटल में सामान्य तरीके से रहे. लेकिन तीसरे दिन के क्रियाकलापों से रिसैप्शनिस्ट को दिलीप पर शक होने लगा. दरअसल हुआ यह कि 16 जुलाई की दोपहर 12 बजे के करीब दिलीप होटल से यह कह कर बाहर गया कि वह बाहर से खाना लाने और एटीएम से पैसे निकालने जा रहा है.

जब दिलीप 2 घंटे तक नहीं लौटा, तो रिसैप्शनिस्ट ने जानकारी लेने के लिए इंटरकौम से कमरा नंबर 207 में इंटरकौम की घंटी भी बजाई. लेकिन कई बार घंटी बजने के बाद भी पिंकी ने फोन नहीं उठाया तो रिसैप्शनिस्ट ने यह जानकारी होटल के मैनेजर गणेश सिंह को दी.

दिलीप खाना लेने और एटीएम मशीन से पैसे निकालने गया था. यह काम कर के उसे काफी देर पहले लौट आना चाहिए था. उस के न आने और पिंकी द्वारा कमरे का फोन न उठाने पर मैनेजर गणेश सिंह को भी शक होने लगा. मैनेजर ने उसी समय होटल मालिक प्रशांत गुप्ता को फोन कर के होटल बुला लिया.

कुछ देर बाद प्रशांत गुप्ता होटल पहुंचे तो मैनेजर गणेश सिंह ने सारी बात उन्हें बता दी. होटल क्रिस्टल पैलेस गाजियाबाद के सेक्टर-16 वसुंधरा में था. इस संदिग्ध मामले की जानकारी पुलिस को देनी जरूरी थी. इसलिए प्रशांत गुप्ता के कहने पर मैनेजर ने थाना इंदिरापुरम की पुलिस चौकी प्रहलाद गढ़ी के चौकीप्रभारी शिव कुमार राठी को फोन कर के यह सूचना दे दी.

सूचना पाते ही वह 2 सिपाहियों के साथ होटल क्रिस्टल पैलेस पहुंच गए. होटल के स्टाफ से बात करने के बाद उन्होंने ‘मास्टर की’ से कमरे का ताला खुलवाया तो डबल बैड पर एक युवती की लाश पड़ी दिखाई दी. होटल कर्मचारियों ने बताया कि यह लाश उसी युवती की है जो दिलीप के साथ आई थी. दिलीप ने इसे अपनी पत्नी बताया था. मामला हत्या का था इसलिए चौकीप्रभारी शिव कुमार राठी ने यह खबर इंदिरापुरम के थानाप्रभारी राशिद अली को भी दे दी. कुछ ही देर में वह क्रिस्टल होटल पहुंच गए.

थानाप्रभारी राशिद अली ने कमरे का निरीक्षण किया तो युवती के गले पर लाल घेरे का निशान दिखाई दिया. पलंग के पास ही मोबाइल चार्जर पड़ा हुआ मिला. इस से ऐसा लगा कि दिलीप ने शायद उसी तार से उस का गला घोंटा होगा. मृतका नीले रंग की जींस और टीशर्ट पहने थी. बिस्तर पर मिले संघर्ष के निशानों से अनुमान लगाया गया कि मृतका ने अपनी जान बचाने की कोशिश की होगी.

कमरे में 2 बैग भी रखे हुए थे. तलाशी लेने पर उन में से पेन कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, दोनों के कपड़े व कुछ अन्य सामान बरामद हुआ. बैग से शिरडी से दिल्ली तक के 2 टिकिट भी मिले, जो 11 जुलाई के थे. कमरे में बीयर की 3 खाली बोतलें भी मिलीं.

बरामद सामान से मृतका की पहचान पिंकी उर्फ प्रिया पुत्री राजेश्वर निवासी 115/4 बी ब्लौक, गली नं. 7, खिचड़ीपुर दिल्ली के रूप में हुई. यह भी पता चल गया कि जो युवक उस के साथ आया था, वह दिलीप वर्मा पुत्र श्रीप्रकाश वर्मा निवासी सी 912, बुधविहार मंडोली शाहदरा, दिल्ली का था. मृतका की तलाशी लेने पर उस की जेब से उस का मोबाइल बरामद हुआ. स्थितियों को देख कर अनुमान लगाया जा सकता था कि किसी बात को ले कर दोनों में तकरार इतनी बढ़ी होगी कि गुस्से में दिलीप ने उस का गला घोंट दिया होगा और फरार हो गया.

थानाप्रभारी ने मौके पर क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी बुला लिया. टीम ने विभिन्न कोणों से मृतका के फोटो खींचे और अन्य वैज्ञानिक सुबूत इकट्ठे किए. इस के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए हिंडन स्थित मोर्चरी भेज दिया गया और होटल मालिक प्रशांत गुप्ता की तहरीर पर दिलीप वर्मा के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

अगली काररवाई तक पुलिस ने होटल का वह कमरा सील कर के बुकिंग रजिस्टर अपने कब्जे में ले लिया. पुलिस ने मृतका पिंकी के फोन की काल लिस्ट देखने के बाद उस नंबर को मिलाया, जिस पर उस की आखिरी बार बात हुई थी. वह नंबर अक्षय नाम के एक युवक का था, जो पिंकी का परिचित था. पुलिस ने अजय को पिंकी की हत्या की सूचना दी तो वह उस के परिजनों के साथ थाना इंदिरापुरम पहुंच गया.

पुलिस उन्हें मोर्चरी ले गई तो उन्होंने लाश देख कर पुष्टि कर दी कि वह पिंकी ही थी. पिंकी के घरवालों ने बताया कि वह लक्ष्मीनगर के एक माल में नौकरी करती थी. जुलाई के पहले हफ्ते में वह एक दिन अपनी ड्यूटी पर तो गई लेकिन वापस नहीं लौटी. उन लोगों ने उस का फोन मिलाया तो वह स्विच औफ मिला था. जिस जगह वह नौकरी करती थी वहां भी मालूम किया गया और इधरउधर भी देखा गया. लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला था. इस पर उन लोगों पुलिस को सूचना दे दी.

लाश का पोस्टमार्टम हो जाने के बाद पुलिस ने पिंकी की लाश उस के घरवालों को सौंप दी. उस के घरवालों ने पुलिस को यह भी बताया कि वह दिलीप वर्मा नाम के किसी युवक को नहीं जानते.

घरवालों को पिंकी की लाश सौंपने के बाद इस मामले की जांच एसएसआई विशाल श्रीवास्तव को सौंप दी गई. विशाल श्रीवास्तव ने 17 जुलाई को होटल क्रिस्टल पैलेस के मैनेजर गणेश सिंह से पूछताछ की तो उस ने बताया कि 14 जुलाई, 2014 की देर शाम 8 बजे दिलीप वर्मा और पिंकी होटल पहुंचे थे. दिलीप ने पिंकी को अपनी पत्नी बता कर कमरा लिया था. अगले दिन दोनों एक साथ कहीं गए थे लेकिन वापसी में वे अलगअलग होटल लौटे थे.

16 जुलाई को दोपहर 12 बजे के आसपास दिलीप यह कह कर होटल से गया था कि वह खाना लाने व एटीएम से पैसे निकालने जा रहा है. वह काफी देर बाद नहीं लौटा तो उस का मोबाइल मिलाया गया. लेकिन वह स्विच्ड औफ था.

इस पर पिंकी के कमरे का फोन मिलाया. लेकिन जब कोई जवाब नहीं मिला तो यह सूचना होटल मालिक प्रशांत गुप्ता को दी गई. उन के होटल पहुंचने के बाद प्रह्लाद गढ़ी के चौकीप्रभारी को खबर की गई. एसएसआई ने गणेश सिंह के अलावा प्रशांत गुप्ता से भी पूछताछ की.

हत्यारोपी दिलीप वर्मा का पुलिस को पता मिल चुका था. उस की तलाश में एक पुलिस टीम उस के मंडोली, शाहदरा स्थित पते पर भेजी गई. लेकिन वह घर पर नहीं मिला. पुलिस ने उस के बारे में उस के पिता श्रीप्रकाश वर्मा से मालूमात की.

उन्होंने बताया कि दिलीप जुलाई के पहले हफ्ते में शिरडी घूमने गया था और अभी तक नहीं लौटा है. पुलिस उन्हें यह हिदायत दे कर लौट आई कि जैसे ही वह घर आए, उसे इंदिरापुरम थाने ले आएं.

थाना इंदिरापुरम पुलिस ने दिलीप के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगा दिया ताकि उस की लोकेशन का पता लग सके. इस से पहले कि पुलिस को उस की लोकेशन पता चलती, लोनी क्षेत्र में उस के द्वारा आत्महत्या कर लेने की सूचना मिल गई.

20 जुलाई, 2014 को दोपहर 2 बजे लोनी थाने को सूचना मिली कि अमित विहार के पास स्थित एक ढलाई फैक्ट्री की पहली मंजिल पर एक 25 वर्षीय युवक ने आत्महत्या कर ली है. पुलिस मौके पर पहुंची तो पता चला कि मरने वाला युवक दिलीप वर्मा है. पुलिस ने मौके पर जरूरी काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए हिंडन स्थित मोर्चरी भेज दी.

लोनी पुलिस ने दिलीप के पिता से मालूमात की तो उन्होंने बताया कि दिलीप ने 18 जुलाई को हरिद्वार से फोन कर के उन्हें बताया था कि उस ने वसुंधरा स्थित क्रिस्टल होटल में 16 जुलाई को अपनी प्रेमिका पिंकी की हत्या कर दी है और पुलिस के डर से वह इधरउधर छिप रहा है.

उस ने कहा था, ‘पापा, मुझ से बड़ी भूल हो गई है. आप मुझे बचा लो. नहीं तो मैं सुसाइड कर लूंगा.’

तब मैं ने उसे घर आने को कहा था. इस पर 18-19 जुलाई की रात 2 बजे वह घर पहुंचा. उस वक्त वह रो रहा था. तब मैं ने उसे अपने छोटे भाई भीष्म वर्मा के साथ लोनी स्थित फैक्ट्री भेज दिया था. जहां उस ने सुसाइड कर लिया.

लोनी पुलिस को जब पता चला कि मरने वाला युवक एक लड़की की हत्या के आरोप में वांछित था तो उस ने यह सूचना थाना इंदिरापुरम को दे दी. खबर मिलते ही एसएसआई विशाल श्रीवास्तव थाना लोनी पहुंच गए. लोनी पुलिस ने दिलीप के सुसाइड के मामले की फाइल विशाल श्रीवास्तव को सौंप दी.

विशाल श्रीवास्तव ने थाने बुला कर दिलीप के पिता श्रीप्रकाश वर्मा से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि 19 जुलाई, 2014 की सुबह दिलीप जब घर पहुंचा तो उस ने पिंकी और खुद के प्यार की पूरी कहानी बताई थी.

दिलीप पिंकी से प्यार वाली बात यदि पहले ही बता देता तो शायद आज उन्हें यह दिन देखने को नहीं मिलता. पुलिस को पिंकी और दिलीप के प्यार की जो कहानी पता चली, वह इस प्रकार थी.

19 वर्षीय पिंकी दिल्ली के खिचड़ीपुर निवासी राजेश की बेटी थी. 45 वर्षीय राजेश दिल्ली के हसनपुर डिपो के पास एक निजी कंपनी में चपरासी था. उस के 6 बेटियां और एक बेटा था. पिंकी उस की दूसरे नंबर की बेटी थी. राजेश को जो सैलरी मिलती थी उस से जैसेतैसे उस के घर का खर्च चल पाता था. तब उस की पत्नी आशा एक निजी अस्पताल में सफाई कर्मचारी के रूप में काम करने लगी. आर्थिक तंगी की वजह से वह बच्चों को ज्यादा पढ़ालिखा नहीं सका.

युवावस्था की ओर बढ़ती हर लड़की की तरह पिंकी के भी कुछ सपने थे. लेकिन परिवार के हालात ऐसे नहीं थे कि वह उन सपनों को साकार कर सके. अपने सपने पूरे करने के लिए उस ने खुद ही कुछ करने का फैसला किया. उस ने अपने लिए नौकरी ढूंढ़नी शुरू कर दी. वह खूबसूरत तो थी ही. इसलिए एक जानकार के जरिए उसे लक्ष्मी नगर स्थित एक माल में सेल्सगर्ल के रूप में नौकरी मिल गई.

नौकरी लगने के बाद पिंकी ने बनठन कर रहना शुरू कर दिया. यहीं पर जनवरी, 2014 के पहले सप्ताह में उस की मुलाकात दिलीप वर्मा से हुई. दिलीप अकसर उस माल में आता रहता था. पहली ही मुलाकात में दोनों आंखों के जरिए एकदूसरे के दिल में उतर गए थे.

बाद में दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर भी दे दिए. दोनों की फोन पर बातें होने लगीं. उन की दोस्ती प्यार के मुहाने की ओर बढ़ती चली गई. एकांत में मेलमुलाकातों के चलते उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए.

समाज भले ही ऐसे संबंधों को मान्यता न दे लेकिन आधुनिकता की इस दौड़ में आज का युवा ऐसे रिश्तों से परहेज नहीं करता. दिलीप से प्यार हो जाने के बाद पिंकी के संबंध और भी कई युवकों से हो गए. बाद में वह उन युवकों से पैसे भी ऐंठने लगी. वह अपने कपड़ों की तरह दोस्तों को बदलने लगी. ऐसे में उस की दिलीप से दूरी बढ़ गई.

पिंकी के बदले व्यवहार को दिलीप समझ नहीं सका. लेकिन जब उस ने एक दिन उसे किसी दूसरे युवक के साथ घूमते देखा तो उस का खून खौल गया. प्रेमिका की इस बेवफाई पर उस ने उस से कुछ नहीं कहा. ऐसा कर के वह उसे बदनाम नहीं करना चाहता था. लेकिन अगली मुलाकात में दिलीप ने जब उस युवक के बारे में उस से जानना चाहा तो वह साफ मुकर गई.

उस ने पिंकी को समझाने की बहुत कोशिश की. वह उस पर लगातार सुधरने के लिए दबाव डालता रहा. इसी दबाव के चलते एक दिन उस ने पिंकी के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया. जिसे सुन कर पहले तो पिंकी आश्चर्यचकित रह गई, लेकिन दिलीप के बारबार कहने पर उस ने कह दिया कि इस बारे में फिर किसी दिन बात करेंगे.

रूठी प्रेमिका को मनाने की दिलीप की कोशिश काफी दिनों तक चलती रही. इसी कोशिश के तहत जुलाई के पहले हफ्ते में दिलीप ने शिरडी जाने के 2 टिकिट बुक कराए. पिंकी शिरडी जाने को तैयार भी हो गई.

दोनों नियत समय पर शिरडी पहुंच गए. 11 जुलाई को शिरडी से लौटने का टिकिट भी बुक था. वहां से लौट कर दोनों 14 जुलाई को देर शाम 8 बजे गाजियाबाद के वसुंधरा स्थित क्रिस्टल होटल पहुंचे. वहां दिलीप ने उसे अपनी पत्नी बता कर कमरा बुक कराया. एक दिन का किराया उस ने जमा कर दिया.

16 जुलाई को दिलीप ने पिंकी से शादी के मसले पर फिर बात की. वह उस की बात को फिर से टालने लगी. तभी दिलीप ने उस से उस युवक के बारे में पूछा जिस के साथ वह घूम रही थी. इस बात पर पिंकी भड़क गई. बातोंबातों में दोनों में तकरार बढ़ गई. जब बात ज्यादा बढ़ी तो दिलीप ने गुस्से में मोबाइल फोन चार्जर के तार से पिंकी का गला घोंट दिया.

पिंकी की हत्या के आरोप में वह फंस सकता था इसलिए दोपहर 12 बजे के करीब वह रिसैप्शन पर बैठी लड़की से यह कह कर निकल गया कि वह ढाबे से खाना लेने जा रहा है. और आते समय वह एटीएम से पैसे निकाल कर लाएगा ताकि कमरे का किराया दे सके.

होटल से निकलते ही दिलीप ने अपना मोबाइल फोन बंद कर दिया था. वह वहां से सीधा हरिद्वार निकल गया. ताकि पुलिस उसे न ढूंढ़ सके. दिलीप के घरवालों को यही पता था कि वह शिरडी से नहीं लौटा है. उन्होंने 1-2 बार उस का फोन भी मिलाया था, लेकिन वह स्विच्ड औफ था.

18 जुलाई, 2014 को दिलीप ने अपने पिता को फोन कर के बताया कि वह हरिद्वार में है. उस समय उस की आवाज में घबराहट थी. हरिद्वार में होने की बात पर श्रीप्रकाश वर्मा ने चौंकते हुए पूछा, ‘‘तू गया तो शिरडी था, हरिद्वार कैसे पहुंचा?’’

‘‘पापा मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई है. मैं ने गाजियाबाद में एक लड़की का मर्डर कर दिया है. अब मैं बहुत परेशान हूं. मन करता है सुसाइड कर लूं.’’ दिलीप ने बताया.

मर्डर की बात सुनते ही वह अपने यहां पुलिस के आने की बात को समझ गए. बेटे ने अपराध तो किया ही था, लेकिन इस का मतलब यह नहीं था कि वह उसे सुसाइड करने देते. उन्होंने उसे काफी समझाया और सुसाइड जैसा कदम न उठाने की बजाय घर आने को कहा. पिता के समझाने पर दिलीप रात 2 बजे घर आ गया. उस समय वह काफी तनाव में था. उस समय श्रीप्रकाश वर्मा ने उस से कुछ नहीं कहा. अगले दिन सुबह उन्होंने उस से पूछा तो उस ने पिंकी से प्यार होने से ले कर हत्या तक की पूरी बात बता दी.

गाजियाबाद पुलिस दिलीप की तलाश में जब घर आई थी तो श्रीप्रकाश गुप्ता से कह गई थी कि जैसे ही दिलीप घर आए तो उसे इंदिरापुरम थाने ले आएं, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि उन्होंने उसे छोटे भाई भीष्म वर्मा के साथ लोनी में स्थित फैक्ट्री भेज दिया. जहां वह दोपहर 12 बजे के करीब पहली मंजिल पर गले में अंगोछे का फंदा बना कर पंखे के हुक से लटक गया और उस की मौत हो गई.

प्रेमिका पिंकी के हत्यारे प्रेमी दिलीप ने भी अपनी जीवनलीला खत्म कर ली थी इसलिए इस मामले में जांच के लिए अब कुछ खास बचा ही नहीं था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कविता ने लिखी खूनी कविता – भाग 2

शादी के पहले के प्रेमी से जोड़े संबंध

शादी के बाद दीपचंद जैसा पति और हाकम जैसा नेकदिल ससुर पा कर कविता भी काफी खुश थी, उस ने ससुराल को ही अपना घर मान लिया था. कविता के मम्मीपापा राजस्थान के जोधपुर में एक सीमेंट फैक्टी में काम करते थे.

दीपचंद का मन खेतीबाड़ी में नहीं लगता था. इस वजह से वह उन दिनों काम की तलाश कर रहा था. जब कविता के पिता ने उसे जोधपुर में काम दिलाने की बात की तो वह शादी के कुछ महीनों बाद ही राजस्थान पहुंच गया. दीपचंद तब राजस्थान की एक सीमेंट फैक्ट्री में नौकरी पर चला गया.

घर में अकेली कविता को तन्हाई ने डस लिया. उस के मन के एक कोने में अब भी अपने बचपन के प्यार बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू की यादें थीं. जब अकेलापन भारी पड़ने लगा तो उस ने बृजेश से फिर तार जोड़ लिए. कविता का मायका सुनवानी पन्ना में था, वह पहले शराब कंपनी में काम करता था. तब कविता के पापा के घर में ही किराए पर रहता था.

कविता ने बीएससी तक की पढ़ाई की थी और वह शुरू से ही सपनों की दुनिया में सैर करने वाली लड़की थी. बृजेश तब शराब कंपनी में काम कर के अच्छे पैसे कमा रहा था. उसे कविता पहली ही नजर में पसंद आ गई थी. वह आतेजाते कविता से बात करने के बहाने ढूंढता. उस समय कविता की उम्र महज 19 साल थी.

एक दिन बृजेश शाम को जल्दी अपने रूम पर आ गया. उस समय कविता की मां मंदिर गई थीं और पिता किसी काम से बाहर गए हुए थे. बृजेश ने मौका देखते ही अपने प्यार का इजहार करते हुए कहा, “कविता, तुम बहुत खूबसूरत हो. आई लव यू कविता.’’

कविता भी मन ही मन बृजेश को चाहने लगी थी, मगर डर के मारे यह बात दिल में दबाए बैठी थी. जब बृजेश ने प्यार का इजहार किया तो उस ने भी कह दिया, “आई लव यू टू बृजेश.’’

कविता की स्वीकृति मिलते ही बृजेश ने उस का हाथ पकड़ा और गालों पर चुंबन लेते हुए कहा, “कविता, मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता.’’

कविता का चेहरा मारे शर्म के लाल हो गया, उस ने जल्दी से अपना हाथ छुड़ाया और अपने कमरे की तरफ भाग गई. धीरेधीरे दोनों में गहरी दोस्ती और फिर प्यार परवान चढ़ने लगा. बृजेश अकसर कविता के लिए महंगे गिफ्ट भी ला कर देने लगा.

कविता पटेल और बृजेश बर्मन अलगअलग जाति के थे. दोनों शादी के लिए राजी थे, मगर सामाजिक रीतिरिवाजों में इस की इजाजत नहीं थी. बृजेश उसे घर से भगा कर शादी करना चाहता था, लेकिन कविता घर से भाग कर शादी करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. आखिर में मई, 2021 में कविता की शादी उस के घर वालों ने दमोह जिले के खैरा गांव निवासी दीपचंद से कर दी.

किराएदार से हुआ था प्यार

23 साल की कविता की शादी दीपचंद पटेल से हुई थी. उस समय कविता हायर सेकेंडरी तक पढ़ी थी. जब उस ने अपने ससुर से आगे पढ़ने की इच्छा जताई तो उन्होंने उस का एडमिशन पन्ना के अमानगंज कालेज में करवा दिया. शादी से पहले कविता का उस के मकान में रहने वाले किराएदार बृजेश बर्मन उर्फ कल्लू से अफेयर जरूर था, मगर दोनों की जाति अलग होने की वजह से उन की शादी नहीं हो पाई.

शादी के बाद सब ठीकठाक चल रहा था. कविता के ससुर उसे बेटी की तरह प्रेम करते थे. शादी के बाद कविता अपने प्रेमी बृजेश को भी भुला चुकी थी. कविता के पति की नौकरी राजस्थान की सीमेंट फैक्ट्री में थी. शादी के कुछ दिन बाद दीपचंद वापस नौकरी पर लौट गया तो कविता को खाली घर काटने लगा.

एक दिन वह मोबाइल के कौंटैक्ट नंबर देख रही थी, तभी उसे बृजेश का नंबर दिखा. उसे पुराने दिन याद आने लगे. वह बृजेश से बात करने की कोशिश तो करती, लेकिन कुछ सोच कर रुक जाती थी. आखिरकार एक दिन उस ने बृजेश से बात करने की गरज से फोन किया तो बृजेश ने काल रिसीव करते हुए कहा, “हैलो कौन?’’

“बृजेश, पहचाना नहीं मुझे. तुम तो बहुत बदल गए, अब तो मेरी आवाज भी भूल गए.’’ कविता ने शिकायत की.

“जानेमन तुम्हें कैसे भूल सकता हूं. इस अननोन नंबर से काल आई तो पहचान नहीं सका.’’ बृजेश सफाई देते हुए बोला.

“तुम ने तो मेरी शादी के बाद कभी काल भी नहीं की,’’ कविता बोली.

“कविता, मैं तुम्हें दिल से चाहता था, इसलिए मैं तुम्हारा बसा हुआ घर नहीं उजाड़ना चाहता था. मैं ने अपने दिल पर पत्थर रख कर तुम्हारी खुशियों की खातिर समझौता कर लिया था,’’ बृजेश बोला.

“सच में इतना प्यार करते हो तो मुझ से मिलने दमोह आ जाओ, तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही.’’ कविता ने फिर से उस के प्रति चाहत दिखाते हुए कहा.

कई महीने बाद बृजेश और कविता ने अपने दिल की बातें कीं तो उन का पुराना प्यार जाग गया. उस के बाद दोनों की मेल मुलाकात का सिलसिला चल निकला. बृजेश से जब कविता का दोबारा संपर्क हुआ तो उस समय वह टेंट हाउस में काम करने लगा था. कविता से उस की मुलाकात अकसर कालेज जाते समय होती थी. जब बृजेश कविता की ससुराल भी आने लगा तो कविता ने अपने ससुर और पति से उस का परिचय मुंहबोले भाई के तौर पर कराया.

बृजेश ने दीपचंद से भी दोस्ती कर ली थी. दीपचंद खाने पीने का शौकीन था, इसलिए अकसर ही दीपचंद की बैठक बृजेश के साथ होने लगी. दीपचंद और उस के पिता हाकम को यह शक तक नहीं हुआ कि वह यहां कविता के लिए आता है.

दीपचंद को उस की गैरमौजूदगी में जब बृजेश के कुछ अधिक ही घर आने की खबर मिलने लगी तो उसे संदेह हुआ. फिर दीपचंद राजस्थान से नौकरी छोड़ कर लौट आया. वह पन्ना की सीमेंट फैक्ट्री में काम पर लग गया. वह अपने गांव खैरा के घर से ही ड्यूटी आनेजाने लगा. दीपचंद के लौटने के बाद दोनों का मिलना मुश्किल हो गया था.

धीरेधीरे दीपचंद को पत्नी कविता और बृजेश के संबंधों की भनक लग चुकी थी. हालांकि दोनों ने अपने संबंधों को दीपचंद के सामने स्वीकार नहीं किया. कविता हमेशा बृजेश को मुंहबोला भाई ही बताती रही. शादी के 2 साल बाद भी उन के संतान नहीं हुई थी.

कागज के टुकड़े की चोरी – भाग 1

उस की बाईं आंख काली पट्टी से ढकी हुई थी. लेकिन निक वेलवेट को इस बात पर यकीन नहीं था कि उस की एक आंख नहीं है. शायद  उस ने वह पट्टी अपनी शख्सियत को रहस्यमय बनाने के लिए बांध रखी थी. वह औसत कद, आकर्षक शरीर का अधेड़ उम्र का आदमी था. उस का माथा ऊंचा और बाल भूरे थे. वह शेरों के पिंजरे के पास खड़ा लापरवाही से च्युंगम चबा रहा था. निक उस के पास जा कर खड़ा हो गया और पिंजरे में बंद शेर की ओर देखने लगा.

चंद पलों तक दोनों में से कोई नहीं बोला. आखिरकार निक को ही पहल करनी पड़ी, ‘‘मिस्टर नारमन आज सुबह हमारी फोन पर बात हुई थी.’’

नारमन ने हां में सिर हिलाया और निक की ओर देखे बिना बोला, ‘‘मिस्टर वेलवेट, तुम 5 मिनट देर से पहुंचे.’’

‘‘सौरी, मैं ट्रैफिक जाम में फंस गया था.’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं बोर नहीं हुआ. जानते हो मैं ने तुम्हें शेरों के पिंजरे के पास मिलने के लिए क्यों कहा था?’’

निक इनकार में सिर हिलाते हुए बोला, ‘‘अगर तुम शेरों का जोड़ा चोरी करवाने के बारे में सोच रहे तो बात खत्म समझो. मैं कीमती चीजें चोरी नहीं करता.’’

‘‘मुझे मालूम है, असल में शेर मेरा आइडियल जानवर है. शेरों को देख कर मेरे अंदर हिम्मत और हौसला पैदा होता है.’’

‘‘हम यहां कुछ और बात करने के लिए मिले हैं.’’ निक ने उसे याद दिलाया.

‘‘ठीक है, हम मुद्दे की बात करते हैं. मैं तुम से एक कागज का टुकड़ा चोरी करवाना चाहता हूं.’’

निक को आश्चर्य नहीं हुआ. क्योंकि वह इस से भी साधारण चीजें चोरी कर चुका था. फिरभी उस ने बात को और साफ करने के लिए पूछा, ‘‘किस तरह का कागज? मेरा मतलब कोई डाक्युमेंट, वसीयतनामा या कानूनी कागज?’’

‘‘महज एक कागज का टुकड़ा.’’ नारमन ने दोहराया, ‘‘जिस का साइज करीब 5 स्क्वायर इंच है और उसे एक पुरानी डायरी से फाड़ा गया है. पुराना होने की वजह से कागज पीला पड़ गया है.’’

‘‘क्या किसी खजाने का नक्शा है?’’ निक ने हलके व्यंग्य में पूछा, तो नारमन की नजर आने वाली इकलौती आंख में गुस्सा झलकने लगा. वह बोला, ‘‘जिस आदमी ने तुम्हारा परिचय कराया था, उस ने कहा था कि तुम ज्यादा सवाल नहीं करते.’’

‘‘उस ने ठीक कहा था.’’ निक बोला, ‘‘फिर भी मैं कोई काम हाथ में लेने से पहले इस बात की तसल्ली करना जरूरी समझता हूं कि जिस चीज को चोरी किए जाने के लिए कहा जा रहा है वह कीमती तो नहीं है.’’

‘‘जब तुम कागज के उस टुकड़े को देखोगे तो खुद समझ जाओगे कि वह कीमती नहीं है न ही उस पर किसी खजाने का नक्शा बना है. उसे एक पुरानी डायरी से फाड़ा गया है और उस के ऊपर तारीख और सन वगैरह छपा हुआ है. जैसे कि आमतौर पर डायरी के पन्नों पर छपा होता है.’’

‘‘ओ.के., तुम्हें यह तो मालूम होगा कि मेरी फीस 25 हजार डौलर है.’’

‘‘हां मुझे मालूम है.’’ नारमन ने कहा और जेब से एक लिफाफा निकाल कर निक के हाथ पर रख दिया, ‘‘इस में पेशगी के 10 हजार डौलर हैं. बाकी रकम काम पूरा होने के बाद. और हां, एक जरूरी बात. आज महीने की 10 तारीख है, 15 तारीख तक कागज का वह टुकड़ा मेरे हाथ में होना चाहिए.’’

‘‘कागज कहां है?’’

नारमन ने जेब से एक तसवीर निकाल कर निक को देते हुए कहा, ‘‘यह उस मकान की तसवीर है जिस के अंदर से तुम्हें वह कागज का टुकड़ा चोरी करना है. यह मकान शहर के बाहरी इलाके में है. तसवीर के पीछे मकान का पता लिखा हुआ है.’’

निक ने तसवीर ले कर उस का मुआयना किया. वह एक बड़ा और मार्डन शैली का मकान था. चारों तरफ हरेभरे पेड़ और फूलों से लदे पौधे खड़े थे. निक की आंखें सोचने के अंदाज में सिकुड़ गईं. इतने बड़े मकान में कागज का एक छोटा सा टुकड़ा तलाश करना वाकई बहुत मुश्किल काम था.

‘‘इस इमारत के अंदर 3 लोग रहते हैं और उन के साथ उन के 2 नौकर हैं. मकान मालिक का नाम माइकल गार्नर है. जिस कागज के टुकड़े का मैं जिक्र कर रहा हूं उस के बारे में माइकल के अलावा कोई और नहीं जानता. यह मालूम करना तुम्हारा काम है कि कागज का वह टुकड़ा माइकल के पर्स में रखा हुआ है या घर के अदंर किसी जगह पर. वैसे मेरे अंदाजे के मुताबिक वह कागज का टुकड़ा 2 जगह पर हो सकता है, माइकल की जेब में या उस के स्टडी रूम में.’’

‘‘काफी मुश्किल काम मालूम होता है.’’ निक ने कहा.

‘‘एक बात और बता दूं कि रात के ठीक 11 बजे इमारत के दरवाजे और खिड़कियों पर लगा हुआ सिक्योरिटी अलार्म औन कर दिया जाता है. इस अलार्म का संपर्क पुलिस हेडक्वार्टर से है.’’

निक ने लिफाफा खोल कर अंदर नजर डाली. उस में 100 डौलर वाले नोटों की पूरी गड्डी थी. निक ने स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया. लिफाफा जेब में डाला और नारमन को बाय कह कर चला गया. पार्किंग में गिलोरिया कार के अंदर उस का इंतजार कर रही थी. निक दरवाजा खोल कर ड्राइविंग सीट पर जा बैठा और इंजन स्टार्ट करने लगा.

‘‘क्या बात है निक?’’ गिलोरिया ने पूछा, ‘‘तुम कुछ खोए खोए से लग रहे हो. चिडि़याघर के अंदर कोई विचित्र जानवर तो नहीं देख लिया?’’

‘‘कुछ ऐसा ही समझ लो.’’ निक कार को गियर में डालते हुए बोला, ‘‘इंसान से बढ़ कर विचित्र जानवर कोई नहीं है.’’

थोड़ी देर बाद कार हाइवे पर दौड़ने लगी. गिलोरिया ने उस से पूछा, ‘‘हम कहां जा रहे हैं?’’

‘‘कुछ पल खुली हवा में सांस लेना चाहता हूं.’’ निक ने कहा, ‘‘शहर की हवा बड़ी दूषित है.’’

गिलोरिया ने कोई और सवाल नहीं किया. वह समझ गई कि निक ने कोई काम हाथ में लिया है. 25 मिनट के बाद उन की कार एक सफेद रंग की मार्डन इमारत के सामने पहुंच गई. निक ने जेब से तसवीर निकाल कर देखी और संतुष्टि के भाव से सिर हिलाते हुए तसवीर जेब में रख ली. वह बिलकुल ठीक जगह पहुंचा था. उस ने कार को इमारत से 50 मीटर दूर पार्क किया और इंजन बंद कर के बाहर निकल गया.

‘‘मैं अभी आता हूं.’’ उस ने गिलोरिया से कहा और लापरवाही से गली में घुस गया. वह साफसुथरा पौश इलाका था. वहां सारे बंगले लाइन में बने हुए थे. गली काफी चौड़ी और सुनसान थी. जिस बंगले की तसवीर उस की जेब में थी उस का मुख्य दरवाजा मजबूत लोहे की सलाखों का बना हुआ था. दरवाजे के साइड में 2 नाम लिखे हुए थे. उन में एक संगमरमर के स्तंभ पर लिखा हुआ था और दूसरा नाम उस के नीचे लगी नेम प्लेट पर. नेम प्लेट पर लिखा नाम माइकल गार्नर था.

क्या निक पता लगा पायेगा कागज के टुकड़े के बारे में? कैसे पहुंचेगा वो इस कागज तक? जानने के लिए पढ़ें इस दिलचस्प क्राइम स्टोरी का अगला भाग…

मामी का जानलेवा प्यार – भाग 3

पत्नी ने बनाई हत्या की योजना

रामवीर आरती को बहुत ही प्यार करता था, लेकिन उस की शादी हो जाने के बाद वह मजबूर हो गया था. आरती ने फिर से उसे अपनाने के लिए दूसरा रास्ता दिखाया तो वह रामवीर की हत्या करने के लिए तैयार हो गया था.

वहीं आरती की हरकतों से आजिज आ कर रामवीर भी दिल्ली से नौकरी छोड़ कर बरेली अपने घर चला आया था. घर आते ही उस ने नौकरी की तलाश शुरू कर दी थी. ऐसे में मानवेंद्र और आरती के मिलन में रामवीर सब से बड़ी बाधा बन गया था. रामवीर हर वक्त उसी पर नजर जमाए रहता था. इस के बावजूद भी आरती किसी न किसी तरह से मानवेंद्र से मिलती रहती थी.

आरती को पता था कि आजकल रामवीर बरेली में ही नौकरी की तलाश में लगा हुआ है. वह टाइम टाइम पर इधरउधर जाता ही रहता है. 19 सितंबर, 2023 को भी रामवीर नौकरी की तलाश में गया हुआ था. उसी समय आरती मौका पाते ही मानवेंद्र से मिली. उस ने मानवेंद्र को रामवीर की हत्या करने की योजना पूरी तरह से समझा दी थी.

रामवीर की हत्या की रूपरेखा तैयार होते ही मानवेंद्र ने इस मामले को निपटाने के लिए अपने दोस्त सौरभ को भी शामिल कर लिया था. सौरभ उर्फ छोटे रामवीर के बचपन का दोस्त था. वह भी शराब पीने का आदी था.

उसी योजनानुसार 20 सितंबर, 2023 को मानवेंद्र ने किसी अंजान फोन नंबर से रामवीर को फोन किया, “हैलो, मैं मानवेंद्र बोल रहा हूं.’’

“हां बोल, क्या कह रहा है?’’

तभी मानवेंद्र बोला, “मामा, तुम मुझ पर गलत शक करते हो. जैसा तुम सोचते हो, आरती और मेरे बीच में ऐसा कुछ भी नहीं. मैं तो केवल उस से फोन पर कभीकभार बातचीत ही कर लेता हूं. उस का भी एक कारण है. तुम तो पहले ही जानते हो कि आरती के पड़ोस में मेरे मामा रहते हैं. मेरा वहां पर पहले से ही आनाजाना लगा रहता है. इस रिश्ते से आप तो मेरे मामा हो. फिर मैं आप के साथ ऐसा काम कैसे कर सकता हूं.’’

उस के बाद मानवेंद्र ने कहा, “मामा, आज की पार्टी मेरी तरफ से है. मामा, मैं ने तुम्हारे लिए एक नौकरी की तलाश भी कर ली है. जल्दी ही वहां पर तुम्हें नौकरी मिल जाएगी. सब इंतजाम हो गया है. आप तुरंत ही नकसुआ फाटक के पास आ कर मुझ से मिलो.’’

रामवीर नौकरी के लिए काफी समय से परेशान था. जब मानवेंद्र ने उस से नौकरी लगवाने वाली बात कही तो वह खुश हो गया. रामवीर भी पक्का शराबी था. जब बात नौकरी और शराब पीने की आई तो वह मानवेंद्र के साथ पुरानी दुश्मनी को पलभर में भूल गया.

जिस वक्त वह फोन पर मानवेंद्र से बात कर रहा था, रामवीर का भाई अशोक भी उस की बात सुन रहा था. लेकिन वह किस से बात कर रहा था, वह यह नहीं समझ पाया था. घर से निकलते वक्त रामवीर ने केवल यही कहा था कि वह एक नौकरी के लिए जा रहा है. उस के बाद फोन काटते ही रामवीर ने अपनी बाइक उठाई और वह मानवेंद्र के बुलाई जगह नकसुआ फाटक के पास पहुंच गया. रामवीर के घर से निकलते ही आरती खुश हो गई थी. उसे पता था कि आज रामवीर का आखिरी दिन है.

हत्या करने के बाद लाश फेंकी ट्रैक पर

रामवीर के घर से निकलते ही आरती ने मानवेंद्र को फोन कर कहा, “बकरा हलाल होने के लिए घर से निकल गया है. काम ठीक वैसे ही करना जैसा तुम्हें बताया गया है. इस मामले में तनिक भी चूक नहीं होनी चाहिए. वरना मेरे साथसाथ तुम्हें भी जेल की हवा खानी पड़ेगी और जैसे ही वह खत्म हो जाए उस का फोटो मेरे वाट्सऐप पर भेज देना. ताकि मेरे दुखी मन को कुछ शांति मिल सके.’’

उस दिन मानवेंद्र शराब का पक्का इंतजाम कर के लाया था. रामवीर के वहां पर पहुंचते तीनों ने वहीं बैठ कर शराब पी. शराब पीतेपीते जब तीनों को नशा चढ़ने लगा तो मौका पाते ही मानवेंद्र अपनी लाइन पर आ गया. उस ने उसी समय रामवीर को प्यार से समझाते हुए आरती को तलाक देने के लिए कहा.

लेकिन तलाक की बात सामने आते ही रामवीर बिगड़ गया. फिर वह मानवेंद्र और सौरभ को भलाबुरा कहने लगा था. रामवीर के बिगड़ते ही मानवेंद्र ने रामवीर से क्षमा मांगी. उस के बाद उस ने उसे फिर से और शराब पिलाई,जिस के बाद रामवीर नशे में धुत हो गया.

रामवीर के नशे में होते ही सौरभ ने उस के गले में गमछा डाल कर खींच दिया. गला घुटते ही रामवीर ने चिल्लाने की कोशिश की तो मानवेंद्र ने उस का मुंह दबा दिया. कुछ ही देर में सांस रुकते ही रामवीर की मौत हो गई. उस के बाद दोनों ट्रेन के आने का इंतजार करने लगे. तभी मानवेंद्र ने मृत पड़े रामवीर का फोटो खींचा और आरती को वाट्सऐप कर दिया.

उस के तुरंत बाद ही मानवेंद्र ने आरती को काल कर हत्या की बात बता दी. योजना के मुताबिक सौरभ की सहायता से मानवेंद्र ने रामवीर की लाश को रेलवे ट्रैक पर डाल दिया. फिर दोनों ही रेलवे लाइन के पास छिप गए. जैसे ही ट्रेन आई, रामवीर का शरीर 2 भागों में कट गया. रामवीर के रेल से कटते ही दोनों वहां से फरार हो गए थे.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने तीनों आरोपियों आरती, उस के प्रेमी मानवेंद्र व सौरभ को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

पत्रकारों के पूछने पर आरती ने बेबाकी से जबाव देते हुए कहा कि रामवीर की हत्या का उसे जरा सा भी अफसोस नहीं है. उस का कहना था कि रामवीर के साथ शादी कर के वह खुश नहीं थी. उस ने शादी से ही उसे अपना पति नहीं माना था. वह पहले से ही मानवेंद्र को अपना पति मानती आ रही थी.

उस ने कहा कि वह रामवीर की हत्या के शोक में न तो अपने बिछिया ही उतारेगी और न ही मौत के बाद की जाने वाली कोई भी रस्म निभाएगी. पुलिस पूछताछ के दौरान आरती ने कहा कि उसे तो हर हाल में रामवीर की हत्या करानी ही थी. वह तो उस की हत्या में कुछ गड़बड़ हो गई, अन्यथा वह पकड़ी नहीं जाती.