संचालिका ने संरक्षण गृह ‘अपना घर’ को बना दिया वेश्यालय जैसा

समयसमय पर यह बात सुनने को मिलती रहती है कि नारी संरक्षण गृहों में दुराचार भी होते हैं, लेकिन जसवंती ने तो अपने निजी संरक्षण गृहअपना घरको एक तरह से वेश्यालय ही बना लिया था. अदालत ने जसवंती और उस के साथियों को सख्त सजा दे कर…     

18 अप्रैल, 2018 को पंचकूला की सीबीआई अदालत के विशेष जज जगदीप सिंह की कोर्ट के भीतरबाहर लोगों की काफी भीड़ थी. उल्लेखनीय है कि इन्हीं विशेष न्यायाधीश ने 28 अगस्त, 2017 को साध्वी यौनशोषण मामले में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख कथित संत गुरमीत राम रहीम सिंह को 20 साल कैद की सजा सुनाई थी. आज उन्हीं विद्वान एवं सक्षम न्यायाधीश द्वारा हरियाणा के एक अन्य बेहद चर्चित रहे केस का फैसला सुनाया जाना था.

वहां मौजूद लोगों को इसी केस का फैसला सुनने का बेसब्री से इंतजार था. दरअसल इन लोगों को पूरी उम्मीद थी कि जज महोदय इस केस का भी ऐतिहासिक फैसला ही सुनाएंगे. मगर जज साहब ने उस रोज इस केस का फैसला तो नहीं सुनाया, अलबत्ता फिलहाल जसवंती देवी, जसवंत, शीला, वीना, सतीश, रामप्रकाश सैनी, जयभगवान, सिम्मी रोशनी वगैरह अभियुक्तों को विभिन्न आरोपों में दोषी करार दे दिया. जबकि एक आरोपी अंगरेज कौर को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया.

दोषियों को सजा सुनाए जाने की तारीख 24 अप्रैल, 2018 निर्धारित की गई थी. कहावत है कि मानव सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं. इसी के मद्देनजर समाज के ठुकराए लोगों पर मानवीय रहमोकरम दिखाने का आश्रयस्थल स्थापित करने का प्रावधान रखा गया था. खासकर उन बच्चों का भविष्य संवारने को ज्यादा तरजीह दी गई थी, जो किसी वजह से यतीम करार दे दिए गए थे या फिर वे मानसिक रूप से कमजोर थेसरकारी स्तर पर उन्हें संरक्षण देने के अलावा इस तरह की अनेक निजी संस्थाओं को भी प्रोत्साहित किया गया था. ऐसे कामों पर हर साल करोड़ों रुपया खर्च भी किया जाता रहा था.

मगर कुछ लोगों ने इस की आड़ में केवल अनैतिक कार्य करने शुरू किए, बल्कि गलीज धंधे की तरह इस से पैसा भी खूब कमाया. लेकिन गलत काम की एक दिन पोल खुलती ही है. मई, 2012 के प्रथम सप्ताह में दिल्ली पुलिस ने 3 लड़कियों को संदिग्ध हालत में पकड़ा था. इन से पूछताछ की गई तो इन की आपबीती सुन कर पुलिस वालों के जैसे होश उड़ गए. तत्काल मामला उच्चाधिकारियों के नोटिस में लाया गया. ‘अपना घर’ नाम से हरियाणा के शहर रोहतक की श्रीनगर कालोनी में एक ऐसा एनजीओ चलाया जा रहा था, जिस की प्रसिद्धि चंद सालों में कहीं से कहीं पहुंच गई थी. इस संस्था की संचालिका इस क्षेत्र की जानीमानी हस्ती बन चुकी थी. 

समाजसेवा के कार्यों के लिए उसे कितनी ही बार सम्मानित किया गया था. इंदिरा गांधी नारी शक्ति पुरस्कार जिस में एक लाख रुपया नकद दिया जाता है, से भी उसे नवाजा गया था. जुवेनाइल कोर्ट की सदस्या के रूप में भी उसे मनोनीत किया हुआ था. इस एनजीओ को सरकार की तरफ से मोटी आर्थिक मदद मिल रही थी. यहां सैकड़ों बच्चे थे, जिन की हर तरह की देखभाल के अलावा उन की पढ़ाईलिखाई का जिम्मा भी इस संस्था पर था. दिल्ली में संदिग्ध हालत में पकड़ी गई उक्त 3 लड़कियां भी सदस्याओं के रूप में अपनाघर में रह रही थीं

कुछ दिन पहले ये भाग कर दिल्ली चली गई थीं, जहां संदेहास्पद स्थिति में पुलिस के हत्थे चढ़ गई थीं. पूछताछ में इन्होंने पुलिस को बताया था कि अपना घर की संचालिका जसवंती नरवाल, उस की छोटी बेटी सिम्मी और एक दामाद जयभगवान केवल संस्था के लोगों से मारपीट करते थे, बल्कि वहां आश्रय ले रही लड़कियों का दुराचार के लिए भी इस्तेमाल करते थे. मामला राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के नोटिस में लाया गया तो आयोग की 4 सदस्यीय टीमडा. अजय कुमार, दिनेश लाहौरिया, विनोद टिक्कू रामानाथ नैयर ने 9 मई, 2012 को अपना घर पर पुलिस की मदद से रेड कर दी. तदनंतर  120 लोगों, जिन में 94 अवयस्क औरतों को इस प्रोटेक्शन होम से बचा कर 62 बच्चों 32 महिलाओं के बयान दर्ज करने के बाद उन का मैडिकल करवाया गया.

इन के बयानों में यह बात उभर कर सामने आई कि केंद्र की संचालिका जसवंती नरवाल लड़कियों को दिल्ली भेज कर उन से देहव्यापार करवाती थी. कोलकाता की रहने वाली 18 वर्षीय लड़की समीना (बदला हुआ नाम) ने अपने बयान में बताया था कि एक साल पहले पुलिस ने उसे आवारागर्दी के आरोप में स्थानीय रेलवे स्टेशन से पकड़ा था. चूंकि उस का इस दुनिया में कोई नहीं है, इसलिए उसे अपना घर के संरक्षण में भेज दिया गया था. यहां उस से गलत काम करवाया जाने लगा. इस गलत काम के बारे में उस ने पूरा विस्तार से बताया. उस के बताए अनुसार, अन्य कई लड़कियों के साथ उसे भी अकसर दिल्ली के जी.बी. रोड पर ले जा कर वहां के वेश्यालयों में देहव्यापार करवाया जाता था.

समीना का आरोप था कि संचालिका कई लड़कियों को एक साथ ले जाया करती थी, जिस के लिए एक दिन पहले लड़कियों को समझाया बुझाया जाता था. जो लड़की इन के कहे अनुसार चलती थी, उसे खूब खिलायापिलाया जाता था. उस से अच्छे ढंग से बात की जाती थी, जो आनाकानी करती उस के साथ मारपीट की जाती. खाना भी न दे कर उसे रात भर नंगा रखा जाता था. बयान के अनुसार, अपना घर की लड़कियों को कई बार आसपास के गांवों में भेज कर भी उन से देहधंधा करवाते हुए ग्राहकों से मोटी रकम वसूली जाती थी. जयभगवान पर आरोप था कि वह इन लड़कियों से मारपीट करने के अलावा इन से दुराचार भी किया करता था. 

जसवंती यह देख कर भी आंखें फेर लिया करती थी. यदि कोई लड़की संचालिका से शिकायत करने जाती तो वह अपने औफिस के दरवाजे बंद करवा कर उस की जम कर पिटाई करवाती थी. सिम्मी तो ऐसी लड़कियों को कुछ ज्यादा ही पीटा करती थी. दिल्ली में पकड़ी जाने वाली लड़कियां इसी सब से परेशान हो कर वहां से भागी थीं. अब उन्हीं के माध्यम से अपना घर का घिनौना सच बाहर गया था. पुलिस ने इस संबंध में समीना की तहरीर के आधार पर भादंवि की धाराओं 294, 323, 342, 354, 376, 109 और 506 के अलावा इम्मोरल ट्रैफिकिंग एक्ट (प्रिवेंशन) की धारा 3, 4, 5 बांडेड लेबर सिस्टम (एबोलिशन) एक्ट के सेक्शन-16 के तहत आपराधिक मामला दर्ज कर 10 मई, 2012 को जसवंती नरवाल, सिम्मी और जयभगवान को गिरफ्तार कर लिया.

इसी दिन इन तीनों आरोपियों को इलाका मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश कर के 3 दिनों के कस्टडी रिमांड पर ले लिया गया. इन से पूछताछ के अलावा अपना घर की तलाशी भी शुरू कर दी गई थी. आयोग की टीम के अलावा रोहतक के तत्कालीन एसपी विवेक शर्मा, एसडीएम पंकज यादव, डीएसपी सुमित कुमार, लेडी डीएसपी धारणा यादव, समाज कल्याण अधिकारी एम.पी. गोदारा रोहतक रेंज के आईजी आलोक मित्तल भी अपनी टीमों के साथ इस काम में आयोग को अपना सहयोग दे रहे थे.

आईजी आलोक मित्तल ने तो यह भी घोषणा कर दी कि रोहतक रेंज में आने वाली उन सभी एनजीओ की व्यापक जांच होगी, जहां बच्चों युवतियों को संरक्षण दिया जाता है. इस संबंध में उन्होंने तत्काल रोहतक, झज्जर, पानीपत सोनीपत के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को पत्र लिख कर जांच रिपोर्ट भिजवाने के आदेश भी कर दिए. अपना घर की व्यापक तलाशी लिए जाने पर इस के कमरों से करीब 2 दरजन डंडे, लोहे की रौड, मोटे रस्से व दरांत वगैरह बरामद हुईं. यहां के बच्चों ने बताया था कि उन्हें इन्हीं डंडों व रौड्स से पीटा जाता था. अनेक बार रस्सों से बांध कर पंखे से भी लटका दिया जाता था. कई बार जसवंती इन्हें खेतों पर ले जा कर दरांत से फसल भी कटवाया करती थी.

यहां रहने वाली एक महिला ने आयोग की टीम पुलिस के सामने केंद्र की संचालिका जसवंती नरवाल पर अपना बच्चा बेचने का आरोप भी लगाया. अपने आरोप में उस ने बताया कि करीब 3 महीने पहले जब उस ने अपना घर में रहते हुए एक बेटे को जन्म दिया था तो जसवंती ने उस का बेटा उठा कर किसी को बेच दिया था. उस के शोर मचाने पर उसे 10 हजार रुपए देते हुए जसवंती ने कहा था, ‘तुम्हारी हालत पर तरस खा कर मैं यह तुम्हारे भले के लिए कर रही हूं. आगे ज्यादा शोर मचाया तो पैसे भी वापस छीन लूंगी और पंखे से उल्टा टंगवा के धुलाई भी ऐसी करवाऊंगी कि जिंदगी में दोबारा बच्चा जनने के काबिल नहीं रहेगी.’ इस धमकी से औरत अवसाद में तो चली ही गई, भयभीत भी इस कदर हुई कि 3 महीनों तक मुंह खोलने का साहस नहीं जुटा पाई. अब पुलिस के हाथों जसवंती को प्रताडि़त होते देख उस का भी साहस लौट आया था.

एसपी विवेक शर्मा ने इस औरत के बयान दर्ज करवा कर मामले की व्यापक छानबीन शुरू करवा दी. कुछ महिलाओं ने बताया कि यहां छापेमारी की सूचना जसवंती नरवाल को गई थी तो उस ने ऐसे करीब दरजन भर बच्चों को वहां से भगा दिया था, जिन की उस दिन बेतहाशा पिटाई हुई थी. इस तरह के संगीन आरोप सामने आने पर आयोग की टीम सकते में गई थी. 9 मई को देर रात तक जांच करते रहने के बाद 10 मई की सुबह ही टीम के सदस्य फिर से अपना घर में पहुंचे थे और लगातार छानबीन करते रहे थे. संस्था से संबंधित पूरा रेकार्ड इन्होंने अपने कब्जे में ले लिया था. उपस्थिति रजिस्टर से ले कर हरबच्चे के बारे में उपलब्ध जानकारी रखने वाला रेकार्ड भी कब्जे में ले लिया गया था.

इस बीच 8 अन्य युवतियों ने आयोग की टीम के सामने पेश हो कर अपने बयान दर्ज करवाए थे कि अपना घर में उन के साथ दुराचार हुआ है. उन का मैडिकल करवा कर उन की शिकायतों से संबंधित छानबीन भी शुरू कर दी गई. व्यापक छानबीन व पूछताछ में यह बात भी सामने आई कि जसवंती ने अपने ममेरे भाई सतीश के साथ मिल कर छापामारी से एक रोज पहले 6 लड़कियों को दिल्ली ले जा कर छोड़ दिया था. इस पर जसवंती के ममेरे भाई सतीश को काबू कर के उस से गहन पूछताछ की गई. उस ने पुलिस को बताया कि 8 मई की रात में वह अपना घर की 6 युवतियों को स्कौर्पियो गाड़ी में ले जा कर दिल्ली के बवाना क्षेत्र में छोड़ आया था. सतीश के बताए अनुसार जसवंती भी उस के साथ गई थी.

इस तरह की जानकारी सामने आने पर सिविललाइंस थाने में अन्य केस दर्ज कर सतीश को विधिवत गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. उक्त लड़कियां कहां हैं, इस बाबत कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. मालूम पड़ा कि लड़कियां मानसिक रूप से परेशान थीं. अपना घर की चल रही गहन छानबीन में पुलिस के सामने 17 ऐसे बच्चे भी आए, जिन का संस्था के रेकार्ड में कहीं कोई उल्लेख नहीं था. सूखी रोटी देने के नाम पर इन से मजदूरी करवाई जाती थी.

इस प्रकरण का काला सच उजागर होते ही इस विषय ने जैसे देश भर में बहस का रूप ले लिया. इस बात की भी जोरदार चर्चा होने लगी कि इस संस्था को जिला प्रशासन ने केंद्र राज्य सरकार से मिलने वाली वित्तीय सहायता तो नियमित दी, लेकिन रेकार्ड को जांचने की जहमत कभी नहीं उठाई. व्यापक छानबीन में यह बात भी सामने आई थी कि इस सिलसिले में औपचारिकता निभाने को अधिकारियों की टीम जब अपना घर में आती थी तो जसवंती अपने औफिस में बिठा कर ऐसी जोरदार खातिरदारी करती थी कि वे लोग उस के औफिस में बैठेबैठे ही अपनी रिपोर्ट तैयार कर वापस चले जाते थे.

खैर, अपना घर की युवतियों की जांच के लिए 12 मई, 2012 को मैडिकल बोर्ड गठित कर के जांच का कार्य आगे बढ़ा दिया गया था. जसवंती की पूछताछ में यह बात भी सामने रही थी कि संस्था के सदस्यों का उत्पीड़न करने महिलाओं का यौनशोषण करने के अलावा उस ने एक नहीं 2 नवजात शिशुओं को भी बेचा थाइस संबंध में जसवंती का एक ही स्पष्टीकरण था कि इन बच्चों की अच्छी परवरिश और उन के उज्ज्वल भविष्य को देखते हुए उस ने उन्हें दिल्ली अलीगढ़ के संपन्न दंपतियों को गोद दिया था. हालांकि इस सब का कोई रेकार्ड संस्था के पास उपलब्ध नहीं था.

पुलिस की 2 टीमों को इन दंपतियों की खोज के लिए अलीगढ़ दिल्ली भी भेजा गया, मगर कोई सफलता नहीं मिल पाईपूछताछ में जसवंती ने यह बात कबूल की थी कि अलीगढ़ वाले लोग 31 हजार में दिल्ली वाले 60 हजार में बच्चा ले कर गए थे. इस संबंध में संस्था के नाम पर डोनेशन की रसीदें कटवा ली गई थीं. पुलिस की गहन पूछताछ में जसवंती ने यह भी स्वीकार किया कि वह केंद्र की लड़कियों को बार गर्ल्स की तरह शादी समारोहों में नाचगाने के लिए भी भेजा करती थी. तरीका सही हो या गलत, जसवंती का मकसद ज्यादा से ज्यादा पैसा इकट्ठा करना था.

1992-93 में जसवंती का अपने पति से तलाक हुआ था. तब ये लोग गाय के गोबर की खाद बेचने का धंधा करते थे. तलाक के बाद जसवंती अनाथ बच्चों के एक आश्रम की केयरटेकर बन गई. इस का फायदा उसे यह हुआ कि उस के संपर्क सूत्र बढ़ने लगे. नगर के प्रभावशाली लोगों से वह नित्यप्रति मिलने लगी. फिर वह दिन आते भी देर नहीं लगी, जब उक्त लोगों की सहायता से उस ने अपना खुद का एनजीओ भी स्थापित कर लिया. देखतेदेखते अपनी संस्था की कमाई से वह इतनी अमीर हो गई कि धनदौलत अर्जित करने के अलावा उस ने अपनी अच्छीखासी प्रौपर्टी भी बना ली

रोहतक की श्रीनगर कालोनी की तिमंजिला विशाल इमारत में अपना घर की स्थापना करने के बाद उस ने यहां के अबोध सदस्यों से अपने खेतों पर बेगार कराना भी शुरू कर दिया. जसवंती नरवाल कुछ ही समय में इतनी मालामाल हो गई थी कि उस के परिचितों को यह सब सपने की तरह लगा करता था. दरअसल, जिले की अधिकतर योजनाओं का कार्य उसी को सौंपा गया था. इन में एक योजना थी ईंट भट्ठों पर चलने वाली बचपन पाठशाला, जिस के लिए इसे चलाने वाली गैरसरकारी संस्था को भारीभरकम राशि देने का प्रावधान था. एनजीओ का अपना धंधा शुरू करने के 4 साल के भीतर ही जसवंती ने ऐसी रफ्तार पकड़ी कि उस का नाम प्रतिष्ठित के साथसाथ अमीर लोगों की सूची में भी आ गया. अमीर बनने के पीछे की उस की घिनौनी सच्चाई जब सामने आई तो सब आश्चर्यचकित हो उठे थे.

आगे की काररवाई करते हुए जसवंती के बयानों पर 15 मई को पुलिस ने अपना घर की काउंसलर वीना जसवंती के कजिन सतीश को भी गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद प्रशासन ने यह काम किया कि जसवंती को दिए सभी सम्मान उस से वापस ले लिए. फिर अपना घर के तमाम शरणदाताओं को अलगअलग शहरों के आश्रय केंद्रों में भेज दिया. अन्य कई बच्चों के साथ एक गूंगीबहरी लड़की भी थी, जिसे रोहतक के अपना घर से भिवानी के सवधार केंद्र में शिफ्ट किया गया था. यहां उस का मैडिकल होने पर वह गर्भवती पाई गई. फिर तो हड़कंप मच गया. तुरंत एक पुलिस टीम और गूंगेबहरों के विशेषज्ञ को भिवानी भेजा गया. 

युवती से इशारों में यह बात तो समझ ली गई कि वह पिछले 2 सालों से अपना घर में थी, जहां उस से अकसर दुराचार होता था. मगर इन दुराचारियों के बारे में वह ज्यादा नहीं समझा पाई. बाद में सामने लाए जाने पर उस ने जयभगवान की पहचान अपने साथ दुराचार करने वाले के रूप में की थी. पहली जून को डीजीपी की ओर से अपना घर सिलसिले की स्टेटस रिपोर्ट हाईकोर्ट में प्रेषित की गई. हरियाणा सरकार की तरफ से अपना घर में रहते रहे सभी लोगों की सीलबंद मैडिकल रिपोर्ट भी हाईकोर्ट में दाखिल करवाई गई. लेकिन इन क्रियाओं से संतुष्ट हो कर कार्यवाहक चीफ जस्टिस एम.एम. कुमार जस्टिस आलोक सिंह की खंडपीठ ने मामले की गहराई में जाने के लिए हरियाणा के स्टैंडिंग काउंसिल अनिल मल्होत्रा के नेतृत्व में एक विशेष कमेटी गठित कर दी, जिस ने अपनी रिपोर्ट में पुलिस प्रशासन की भूमिका को संदिग्ध आंकते हुए मामले की तफ्तीश सीबीआई को सौंपे जाने की सिफारिश कर दी.

13 जुलाई, 2012 को सीबीआई की टीम ने रोहतक पहुंच कर इस केस का जांच कार्य एकदम नए सिरे से शुरू किया. सीबीआई अधिकारियों द्वारा अपनी जांच पूरी कर 7 अगस्त, 2012 को 10 लोगों के खिलाफ आरोपपत्र सीबीआई की विशेष अदालत में दाखिल कर दिए गए23 सितंबर, 2014 से इस केस के आरोपियों का विधिवत ट्रायल शुरू हो गया. 14 फरवरी, 2018 को गवाहियां पूरी हो चुकने के बाद मामले में अंतिम बहस शुरू हुई जो 10 अप्रैल, 2018 को पूरी हुई. 18 अप्रैल को सीबीआई अदालत की ओर से एक आरोपी को बरी करते हुए अन्य 9 को दोषी करार दे कर इन्हें सजा सुनाए जाने की तारीख 24 अप्रैल, 2018 निर्धारित कर दी.

इस रोज खचाखच भरी अदालत में सीबीआई के माननीय विशेष जज जगदीप सिंह ने उक्त दोषियों को जो सजा सुनाई, वह इस प्रकार रही

मुख्य आरोपी व अपना घर की संचालिका जसवंती नरवाल के अलावा उस के दामाद जयभगवान व कजिन कम ड्राइवर सतीश को उम्रकैद की सजा. जसवंती के बेटे जसवंत सिंह को 7 साल कैद की सजा. जसवंती पर 52 हजार, जयभगवान व सतीश पर 50-50 हजार व जसवंत पर 20 हजार रुपयों का जुरमाना भी लगाया गया, जिस के अदा न करने पर इन्हें अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी. माननीय अदालत की इस सजा में जसवंती की बेटी सुषमा उर्फ सिम्मी, चचेरी बहन शीला व अपना घर की काउंसलर वीना को अंडरगोन किया गया है यानी जितना अरसा वे अंडरट्रायल के रूप में जेल में बिता चुकी हैं, वही उन की सजा रहेगी.

जसवंती की सहेली रोशनी अपना घर के कर्मचारी रामप्रकाश सैनी को फिलहाल प्रोबेशन पर छोड़ा गया है यानी कुछ समय के लिए उन का आचरण देखा जाएगा. शिकायत मिलने की सूरत में इन पर दोबारा काररवाई की जा सकती हैसजा सुनाए जाने के दौरान जसवंती फूटफूट कर रोते हुए अदालत से सजा कम किए जाने की गुहार लगाती रही. मगर अब उस की चीखोपुकार का किसी पर कोई असर होने वाला नहीं था. अदालत के उठते ही अन्य सजायाफ्ता आरोपियों के साथ जसवंती को भी अंबाला की सेंट्रल जेल में भेज दिया गया. अपना घर की शाही जिंदगी के बाद तमाम कड़ाई वाला यह बड़ा घर (जेल) ही अब उस का उस के साथियों का नया ठिकाना होगा.

  

पति को भेजा जेल खुद प्रेमी संग हुई फरार

जिस पिंकी की हत्या के आरोप में उस का पति अरुण और उस के घर के अन्य सभी लोग जेल की हवा खा आए, वही पिंकी वाराणसी में अपने प्रेमी नितेश के साथ मौज से रह रही थी वाराणसी के थाना कैंट के थानाप्रभारी इंसपेक्टर विपिन राय अपने औफिस में बैठे सहयोगियों से किसी मामले पर चर्चा कर रहे थे कि तभी उन के सीयूजी मोबाइल फोन की घंटी बजी. उन्होंने फोन उठा कर देखा, नंबर बिहार का था. उन्होंने फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘जयहिंद सर, मैं झारखंड के जिला गिरिडीह से सिपाही रामकुमार बोल रहा हूं. हमारे एसपी साहब आप से बात करना चाहते हैं.’’

‘‘ठीक है, बात कराएं.’’ इंसपेक्टर विपिन राय ने कहा. इस के तुरंत बाद फोन एसपी साहब को स्थानांतरित किया गया तो इंसपेक्टर विपिन राय ने कहा, ‘‘जयहिंद सर, मैं वाराणसी के थाना कैंट का थानाप्रभारी इंसपेक्टर विपिन राय, आदेश दें सर.’’

‘‘विपिनजी, मेरे जिले के थाना घनावर की एक टीम कुछ अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए कल वाराणसी जा रही है. चूंकि अभियुक्तों का हालमुकाम पांडेपुर है, जो थाना कैंट के अंतर्गत आता है, इसलिए मैं चाहता हूं कि आप उन की हर संभव मदद करें.’’

‘‘सर, उन की हर संभव मदद की जाएगी.’’ इंसपेक्टर विपिन राय ने कहा तो दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. यह 20 दिसंबर, 2013 की बात है.

अगले दिन 21 दिसंबर, 2013 की दोपहर को थाना घनावर की पुलिस टीम थाना कैंट पहुंची, जिस में एक सबइंस्पेक्टर, एक हेडकांस्टेबल और 2 महिला सिपाही थीं. सबइंसपेक्टर ने इंसपेक्टर विपिन राय के औफिस में जा कर कहा, ‘‘सर, मैं गिरिडीह के थाना घनावर का सबइंस्पेक्टर पशुपतिनाथ राय. कल आप की हमारे एसपी साहब से बात हुई थी ?’’

‘‘बैठिए, पहले चाय वगैरह पी लीजिए, उस के बाद अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए चलते हैं.’’

इस के बाद थानाप्रभारी विपिन राय ने मुंशी को आवाज दे कर चाय और नाश्ता भिजवाने को कहा. इसी के साथ उन्होंने छापा मारने के लिए ड्राइवर को भी तैयार होने के लिए कह दिया. चायनाश्ता आता, उस से पहले इंसपेक्टर विपिन राय ने पूछा, ‘‘मामला क्या, जिस में आप गिरफ्तारी के लिए यहां आए हैं?’’

 ‘‘सर, हमारे थानाक्षेत्र की एक शादीशुदा लड़की पिंकी 2 जून, 2011 को राउरकेला से नागपुर जाते समय बिलासपुर से रहस्यमय परिस्थितियों में गायब हो गई थी. मायके वालों का कहना था कि ससुराल वालों ने उस की हत्या कर दी है. उस की हत्या के आरोप में पति समेत ससुराल के 5 लोगों को जेल भेज दिया गया था, जिन में से सब की जमानतें तो हो गई थीं, लेकिन उस का पति अरुण अभी भी जेल में बंद है. जबकि हमें पता चला है कि पिंकी अपने प्रेमी नितेश के साथ आप के थानाक्षेत्र के पांडेपुर में किराए का कमरा ले कर 2 सालों से छिप कर मजे से रह रही है.’’

चायनाश्ता करा कर थानाप्रभारी इंसपेक्टर विपिन राय गिरिडीह से आई पुलिस टीम को साथ ले कर पांडेपुर के लिए रवाना हो गए. जिस मकान में पिंकी और नितेश के किराए पर रहने की सूचना मिली थी, उस पर छापा मारा गया तो दोनों जिस कमरे में रहते थे, उस में ताला बंद मिला. पूछने पर मकान मालिक ने बताया, ‘‘मेरे मकान में गिरिडीह का रहने वाला नितेश अपनी पत्नी पिंकी और बेटे के साथ लगभग 2 सालों से रह रहा था. लेकिन आज सुबह ही वह गिरिडीह चला गया है. दोनों निकले भी बड़ी हड़बड़ी में हैं. शायद उन्हें आप लोगों के आने का आभास हो गया था.’’

सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय ने मकान मालिक से उन के मोबाइल नंबर के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘सर, मोबाइल फोन तो दोनों के पास अलगअलग थे, लेकिन हमें कभी उन के नंबरों की जरूरत ही नहीं पड़ी, इसलिए मैं ने उन के नंबर लिए ही नहीं. हर महीने समय पर वे हमारा किराया दे देते थे, बाकी हम से कोई ज्यादा मतलब नहीं था.’’

आसपड़ोस वालों से भी नितेश और पिंकी का मोबाइल नंबर पूछा गया. सभी ने कहा कि उन से उन के संबंध तो अच्छे थे, लेकिन उन का नंबर उन के पास नहीं है. सभी हैरान भी थे कि आखिर उन्होंने ऐसा कौन सा अपराध किया है कि गिरिडीह से पुलिस उन की तलाश में इतनी दूर आई है. पुलिस ने कुछ बताया नहीं. इसलिए सभी ने यही अंदाजा लगाया कि दोनों घर से भागे होंगे. थानाप्रभारी विपिन राय गिरिडीह से आई पुलिस टीम के साथ वापस थाने गए. थाने कर उन्होंने सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय को आश्वसन दे कर वापस भेज दिया कि नितेश और पिंकी के यहां आते ही वह उन्हें गिरफ्तार कर के सूचना देंगे.

 इतना कुछ जानने के बाद मन में यह उत्सुकता तो पैदा ही होती है कि मामला क्या था, जो गिरिडीह पुलिस को नितेश और पिंकी की गिरफ्तारी के लिए वाराणसी आना पड़ा. यह जानने के लिए हमें गिरिडीह ही चलना होगा. झारखंड के जिला गिरिडीह के थाना घनावर के गांव ओरखार के रहने वाले नूनूराम खेतीबाड़ी तो करते ही थे, वह लकड़ी के फर्नीचर के कारीगर भी बहुत अच्छे थे. उन के 2 बेटों में परमेश्वर बड़ा था तो अरुण छोटा. खेती और फर्नीचर बनाने के काम से उन्हें अच्छी आमदनी हो रही थी, इसलिए उन की जिंदगी आराम से कट रही थी.

नूनूराम विश्वकर्मा भले ही ज्याद पढ़ेलिखे नहीं थे, लेकिन वह बेटों को पढ़ने के लिए प्रेरित करते रहते थे. उन के लाख चाहने पर भी बड़ा बेटा परमेश्वर हाईस्कूल से ज्यादा नहीं पढ़ सका. उस का मन पढ़ने में नहीं लगा तो उन्होंने उसे भी अपने काम में लगा लिया. परंतु छोटा बेटा अरुण पढ़ने में ठीकठाक था, इसलिए वह उस के मनोबल को बढ़ाते हुए आगे पढ़ने के लिए प्रेरित करे रहे. परमेश्वर अपने पैरों पर खड़ा हो गया तो नूनूराम ने कोडरमा के रहने वाले अपने एक रिश्तेदार की ममेरी साली की बेटी गुडि़या के साथ उस का विवाह करा दिया. तब तक अरुण भी बीए कर चुका था. अब वह पढ़ाई के साथसाथ पिता के काम में उन की मदद करने लगा था. 

नूनूराम का अपना ही काम इतना फैला हुआ था कि उन्हें बेटों से नौकरी कराने की जरूरत नहीं थी. इसलिए अरुण शादी लायक हुआ तो वह उस के लिए रिश्ता ढूंढ़ने लगे. संयोग से अरुण के लिए उन्हें गांव के नजदीक ही अलगदेशियो कुबरी गांव में बढि़या रिश्ता मिल गया. केदार राणा की बेटी पिंकी हाईस्कूल तक पढ़ी थी. नूनूराम को वह बेटे के लिए पहली ही नजर में पसंद गई. इस के बाद 26 मई, 2010 को अरुण और पिंकी की शादी हो गई. पिंकी ने ससुराल आ कर अपने बात व्यवहार से ससुराल वालों का मन मोह लिया था. अरुण तो उसे पा कर बहुत खुश था. वह रहने वाली भले गांव की थी, लेकिन उस का रहनसहन शहर की लड़कियों जैसा था. अरुण और पिंकी के दिन हंसीखुशी से गुजरने लगे. दिनभर का थकामांदा अरुण पत्नी के पास आता तो उस की एक झलक पा कर सारी थकान भूल जाता.

आदमी कामधंधे से लगा हो तो उसे समय का कहां पता चलता है. अरुण की शादी के भी 11 महीने बीत गए, उसे पता नहीं चला. अचानक उस ने पिंकी के साथ कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम बनाया. वह नागपुर जाना चाहता था, जिस के लिए उस ने पहले ही टे्रन में सीट रिजर्व करा ली. 1 जून, 2011 को पिंकी अरुण के साथ टे्रन से नागपुर जा रही थी तो जब टे्रन बिलासपुर में रुकी तो वह अचानक गायब हो गई. यह 1 जून, 2011 की बात थी.

पिंकी के एकाएक गायब होने से अरुण परेशान हो उठा. जब तक ट्रेन स्टेशन पर रुकी रही, वह उसे टे्रन में ढूंढता रहा. टे्रन चली गई तो उस ने स्टेशन का चप्पाचप्पा छान मारा, लेकिन पिंकी का कुछ पता नहीं चला. अरुण पिंकी को खोज ही रहा था कि उस के मोबाइल पर उस के साले दिनेश ने फोन कर के कहा कि वह पिंकी से उस की बात कराए. जब अरुण ने उसे बताया कि पिंकी टे्रन से गायब हो गई है तो पहले दिनेश ने उसे खूब गंदीगंदी गालियां दीं, उस के बाद उस पर सीधे आरोप लगाया कि उस ने पिंकी को ट्रेन के नीचे फेंक कर मार दिया है.

अरुण लाख सफाई देता रहा, लेकिन दिनेश ने उस की एक नहीं सुनी. उसे गालियां देते हुए दिनेश एक ही बात कहता रहा कि उस ने पिंकी को मार डाला है, इसलिए उसे इस करनी का फल भोगना ही होगा. अरुण वैसे ही परेशान था, साले की इस धमकी ने उस की परेशानी और बढ़ा दी. अरुण बिलासपुर में पिंकी को खोज ही रहा था कि दूसरी ओर उस के ससुर केदार राणा ने थाना घनावर जा कर तत्कालीन थानाप्रभारी महेंद्र प्रसाद सिंह से मिल कर पिंकी को टे्रन से फेंक कर मार डालने की रिपोर्ट अरुण, उस के पिता नूनूराम, मां रामनी, भाई परमेश्वर और भाभी गुडि़या के खिलाफ दर्ज करा दी.

मुकदमा दर्ज होते ही थाना घनावर पुलिस ने नामजद लोगों को गिरफ्तार करने के लिए छापा मारा. नूनूराम को रिपोर्ट दर्ज होने का पता चल गया था, इसलिए पुलिस से बचने के लिए वह परिवार सहित छिप गया था. लेकिन वे लोग कितने दिनों तक रिश्तेदारों के यहां छिपे रह सकते थे, इसलिए धीरेधीरे सभी ने आत्मसमर्पण कर दिया. अरुण तो पहले ही पकड़ा जा चुका था. इस तरह नूनूराम का पूरा परिवार पिंकी की हत्या के आरोप में जेल चला गया. नूनूराम, परमेश्वर, रामनी और गुडि़या की तो जमानतें हो गईं, पर अरुण की जमानत नहीं हो सकी. नूनूराम के जमानत पर जेल से बाहर आने के कुछ दिनों बाद पिंकी का बाप केदार राणा उन से मिलने आया. इस मुलाकात में उस ने नूनूराम से कहा कि अगर वह चाहें तो इस मामले में वह समझौता कर सकता है. लेकिन इस के लिए उन्हें उसे 8 लाख रुपए देने होंगे.

समधी की इन बातों से नूनूराम का माथा ठनका. वह इस बात पर गौर करने लगा कि जिस आदमी ने बेटी की हत्या के आरोप में उस के पूरे परिवार को जेल भिजवाया हो, वह पैसे ले कर समझौता करने को क्यों तैयार है? जरूर इस में कोई राज है. उस ने केदार राणा से कहा, ‘‘जिस अपराध को हमारे परिवार ने किया ही नहीं, उस के लिए समझौता करने की बात कहां से गई. हम तो वैसे भी जेल हो आए हैं, तुम 8 लाख की बात कर रहे हो, हम फ्री में भी समझौता नहीं करेेंगे.’’

इस के बाद नूनूराम ने एक वकील से सलाह कर के गिरिडीह की अदालत में 10 दिसंबर, 2012 को पिंकी की हत्या के मामले में अपने परिवार को निर्दोष बताते हुए एक परिवाद दाखिल किया. यही नहीं, अपने समधी की बातों से उन्हें पूरा यकीन हो गया था कि इस मामले में उन के परिवार को फंसाया गया है. यही सोच कर उन्होंने निश्चय कर लिया कि वह असलियत का पता लगा कर रहेंगे. पिंकी जिंदा है, लेकिन कहां है, इस का पता उन्हें लगाना था. नूनूराम को पता था कि आदमी कैसा भी हो, उस का कोई कोई दुश्मन होता ही है. उन्हीं दुश्मनों से मिल कर नूनूराम सच्चाई का पता लगाने लगे. इसी खोजबीन में उन्हें पता चला कि कुबरी के जिस स्कूल में पिंकी पढ़ती थी, उसी स्कूल के प्रिंसिपल चंद्रभानु राय का बेटा नितेश कुमार भी पिंकी के साथ पढ़ रहा था. पढ़ाई के दौरान ही दोनों में प्यार हो गया था.

नितेश के घर वालों को तो पिंकी को बहू बनाने में कोई ऐतराज नहीं था, लेकिन जब इस बात की जानकारी पिंकी के घर वालों को हुई तो उन लोगों ने हंगामा खड़ा कर दिया. इस की वजह यह थी कि नितेश उन की जाति का नहीं थानितेश और पिंकी का प्यार अब तक इस स्थिति तक पहुंच चुका था कि वे अलग होने के बारे में सोच कर ही डर जाते थे. इसलिए पिंकी ने नितेश के साथ भाग कर अपनी अलग दुनिया बसाने का निर्णय कर लिया था. इस के लिए नितेश भी तैयार था. अब वे मौके की तलाश में थे. लेकिन घर वालों ने पिंकी को घर में कैद कर दिया था, इसलिए उसे मौका ही नहीं मिल रहा था. उसे मौका मिलता, उस के पहले ही केदार राणा ने नूनूराम के बेटे अरुण के साथ उस की शादी कर दी. अरुण बीए तक पढ़ा भी था और उस का फर्नीचर का काम भी बढि़या चल रहा था.

पिंकी दुलहन बन कर अरुण के घर आ तो गई, लेकिन वह अपने प्रेमी नितेश को दिल से निकाल नहीं पाई. ऐसे में ही जब कहीं से नितेश ने उस का नंबर ले कर उसे फोन किया तो वह यह भूल गई कि अब वह किसी और की अमानत हो चुकी है. फिर तो दोनों में लगातार बाते होने लगीं. इन्हीं बातों में यह बातें भी होती थीं कि वह किस तरह उस के पास पहुंचे. क्योंकि नितेश अभी भी उसे अपनाने को तैयार था. शादी होने पर अरुण पत्नी को कहीं घुमाने नहीं ले गया था. इसलिए उस ने पिंकी के साथ नागपुर घूमने जाने का कार्यक्रम बनाया. उस ने टिकट भी करा लिया था. पिंकी ने यह बात अपने प्रेमी नितेश को बताई तो उस के लिए आतुर शातिर दिमाग नितेश ने उसे पाने की योजना बना डाली. उस ने पिंकी से कहा, ‘‘अगर तुम मेरे साथ भागना चाहो तो मैं तुम्हें उपाय बताऊं?’’

‘‘मैं तो तुम्हारे साथ भागने को कब से तैयार हूं, तुम उपाय बताओ.’’ पिंकी ने कहा.

‘‘जब तुम नागपुर जाने लगोगी, मैं तुम्हें बिलासपुर में मिलूंगा. तुम वहीं टे्रन से उतर जाना.’’ नितेश ने उपाय बताया तो पिंकी बोली, ‘‘ठीक है, मैं पूरी तैयारी कर के आऊंगी. लेकिन तुम समय से पहुंच जाना.’’

इस के बाद नितेश ने पिंकी से कोच और सीट नंबर पूछ लिया. 1 जून, 2011 को अरुण पिंकी के साथ राउरकेला से नागपुर जा रहा था तो रात में जब टे्रन बिलासपुर में रुकी तो योजनानुसार नितेश वहां मिल गया. पिंकी चुपके से उस के साथ टे्रन से उतर गई. नितेश वहां से उसे ले कर दिल्ली चला गया. पिंकी के टे्रन से उतरते ही उस के भाई दिनेश ने अरुण को फोन किया कि वह पिंकी से उस की बात कराए. जब अरुण ने बताया कि पिंकी ट्रेन से लापता हो गई है तो दिनेश ने आरोप लगाया कि उस ने पिंकी को मार दिया है और टे्रन से गायब होने का नाटक कर रहा है. यही नहीं, पिंकी के पिता केदार राणा ने अगले दिन यानी 2 जून, 2011 को थाना घनावर में अरुण और उस के घर वालों के खिलाफ बेटी की हत्या की रिपोर्ट भी दर्ज कर दी थी.

नूनूराम को जब पिंकी और प्रिंसिपल चंद्रभानु राय के बेटे नितेश कुमार के प्रेमसंबंधों के बारे में पता चला तो उस ने नितेश के बारे में पता किया. पता चला, नितेश भी तब से गांव में नहीं दिखाई दिया है, जब से पिंकी गायब है. वह समझ गया कि इस का मतलब पिंकी जहां कहीं भी है, नितेश के साथ ही है. यही नहीं, पिंकी के जिंदा होने और निलेश के साथ होने की जानकारी पिंकी के घर वालों को भी है. साफ था केदार राणा के घर वालों ने पूरा षडयंत्र रच कर उस के घर वालों को फंसाया था. नूनूराम ने पत्नी और बेटे से भी पिंकी के बारे में पूछा. पत्नी ने बताया कि काम खत्म होते ही बहू कमरे में बंद हो जाती थी.

फिर वह फोन पर फुसुरफुसुर बातें करती रहती थी. बेटे ने भी कुछ ऐसा ही बताया. उस का कहना था कि एक पत्नी को जिस तरह अपने पति के प्रति समर्पित होना चाहिए, वह समर्पण भाव पिंकी में नहीं था. इन बातों ने साफ कर दिया था कि पिंकी का प्रेमसंबंध नितेश था. सारी जानकारी जुटा कर नूनूराम ने थाना घनावर में पिंकी को षडयंत्र रच कर गायब करने और उन के परिवार को झूठे मुकदमे में फंसाने का मुकदमा 6 फरवरी, 2013 को केदार राणा, पिंकी, उस के प्रेमी नितेश राय, उस के भाई निरेश राय, पिता चंद्रभानु राय, नितेश की बहन कल्याणी, केदार राणा के दामाद चतुर शर्मा के खिलाफ दर्ज करा दिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने नामजद लोगों से पूछताछ तो की, लेकिन सुबूत होने की वजह से कोई काररवाई नहीं कर सकी.

नूनूराम ने देखा कि पुलिस कुछ नहीं कर पा रही है तो वह अपने स्तर से नितेश के बारे में पता लगाने लगे. आदमी चाह ले तो कौन सा काम नहीं हो सकता. आखिर नूनूराम ने पता कर ही लिया कि नितेश के पिता चंद्रभानु राय अपने खाते से हर महीने नितेश के खर्च के लिए पैसा ट्रांसफर करते हैं. लेकिन वह पैसा कहां ट्रांसफर करते हैं, यह पता नहीं चल रहा था. उन्होंने हार नहीं मानी और अंत में पता कर ही लिया कि वह पैसा कहां जाता है. नूनूराम ने पता कर लिया था कि निश्चित तारीख पर चंद्रभानु वाराणसी के लिए पैसा ट्रांसफर करते हैं. इस से उन्हें लगा कि नितेश और उन की बहू पिंकी, जिस की हत्या के आरोप में उन का बेटा अरुण जेल में बंद है, वह वाराणसी में कहीं रह रही हैं.

इतने बड़े वाराणसी में उन्हें खोजना आसान नहीं था. लेकिन नूनूराम ने घुटने नहीं टेके और मेहनत कर के पता लगा ही लिया कि नितेश और पिंकी वाराणसी के पांडेपुर में रह रहे हैं. उन्हें यह भी पता चल गया था कि पिंकी अब नितेश के बेटे की मां भी बन चुकी है. पूरी जानकारी जुटाने के बाद नूनूराम ने इस बात की सूचना इस मामले की जांच कर रहे सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय और थाना घनावर के थानाप्रभारी रासबिहारी लाल को दे दी. थानाप्रभारी रासबिहारी लाल के लिए इतनी जानकारी काफी थी. उन्होंने सारी बात गिरिडीह के पुलिस अधीक्षक क्रांति कुमार गढ़देसिया को बताई तो उन्होंने पिंकी और नितेश की गिरफ्तारी के लिए सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी, जिस में हेडकांस्टेबल हरेंद्र सिंह, 2 महिला कांस्टेबल सुनीता और सरिता को शामिल किया गया

पुलिस अधीक्षक क्रांति कुमार ने थाना कैंट के इंस्पेक्टर विपिन राय को फोन कर के इस टीम का सहयोग करने के लिए भी कह दिया. लेकिन वाराणसी से इस पुलिस टीम को खाली हाथ लौटना पड़ा. क्योंकि नितेश, पिंकी और बेटे को ले कर एक दिन पहले ही गिरिडीह चला आया था. गिरिडीह पुलिस को नितेश और पिंकी भले ही नहीं मिले, लेकिन यह तो पता चल ही गया था कि पिंकी जिंदा थी और नितेश के साथ रह रही थी. सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ ने वहीं से थानाप्रभारी रासबिहारी लाल को नितेश और पिंकी के गिरिडीह जाने की सूचना दे दी थी. सूचना मिलते ही उन्होंने तुरंत मुखबिरों को नितेश के घर पर नजर रखने के लिए सहेज दिया.

उन्हीं मुखबिरों में से किसी मुखबिर ने थानाप्रभारी रासबिहारी लाल को सूचना दी कि पिंकी और नितेश गिरिडीह के टावर चौक पर कहीं जाने की फिराक में खड़े हैं. यह सूचना मिलते ही थानाप्रभारी रासबिहारी लाल सहयोगियों के साथ टावर चौक पहुंच गए. महिला सिपाहियों की मदद से पिंकी तो बेटे के साथ पकड़ी गई, लेकिन नितेश फरार होने में कामयाब हो गया. पिंकी को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने जो बताया, वह कुछ इस तरह थापिंकी के बताए अनुसार, 11 जून, 2011 को पिंकी अपने पति अरुण के साथ नागपुर जाने के लिए निकली तो योजनानुसार टे्रन के बिलासपुर पहुंचने पर वह चुपके से नितेश के साथ टे्रन से उतर गई.

नितेश उसे ले कर रेलवे स्टेशन के बाहर गया और वहां से दोनों दिल्ली चले गए. कुछ दिनों तक दोनों दिल्ली से जुड़े गाजियाबाद में किराए का कमरा ले कर रहे. उस के बाद दोनों उत्तर प्रदेश के वाराणसी गए, जहां थाना कैंट के मोहल्ला पांडेपुर में किराए का कमरा ले कर रहने लगे. यहीं उन्हें एक बेटा पैदा हुआ. पिंकी ने थानाप्रभारी को बताया कि वह अरुण से शादी नहीं करना चाहती थी, लेकिन मांबाप के दबाव के आगे उस ने उस से शादी कर ली थी. 11 महीनों तक उस के साथ रही, लेकिन एक दिन के लिए भी वह दिल से उस की नहीं हो सकी. जबकि अरुण और उस के घर वाले उसे पूरा प्यार और सम्मान दे रहे थे. अरुण के साथ रहते हुए वह पल भर के लिए भी नितेश को भूल नहीं पाई. इसीलिए मौका मिलते ही उस के साथ भाग निकली. वह उसी के साथ अपना यह जीवन बिताना चाहती थी.

उस ने यह भी बताया कि उस के मांबाप और भाई को पता था कि वह जीवित है और नितेश के साथ वाराणसी में रह रही है. नितेश उस के साथ रह कर पढ़ाई कर रहा था. उन का खर्च नितेश के पिता चंद्रभानु राय वहन कर रहे थे. यह जो कुछ भी हुआ था, वह उस के परिवार वालों की सहमति से हुआ था. पिंकी के अपराध स्वीकार कर लेने के बाद थानाप्रभारी रासबिहारी लाल ने 23 दिसंबर, 2013 को उसे न्यायिक दण्डाधिकारी प्रथम श्रीमती अपर्णा कुजूर की अदालत में पेश किया, जहां उस का धारा 164 के तहत कलमबद्ध बयान दर्ज कराया गया. बयान दर्ज कराने के बाद उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में गिरिडीह की जिला जेल भेज दिया गया

पिंकी को जेल भेजने के बाद थाना घनावर पुलिस ने नामजद अन्य अभियुक्तों में से नितेश को छोड़ कर सभी को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक नितेश पुलिस के हाथ नहीं लगा था पुलिस उस की तलाश कर रही थी. अरुण को जेल से रिहा कराने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. मामले की जांच सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय कर रहे थे.

   

महिला आईएएस अधिकारी ने गलत ढ़ग से बेचे करोड़ों के गेहूं

 ऊंचे पदों पर बैठे कई अधिकारी अपने पद का लाभ उठा कर करोड़ों कमाते हैं. जोधपुर की सीनियर आईएएस अधिकारी निर्मला मीणा पर 8 करोड़ रुपए के गेहूं को गलत ढंग से बेचने का आरोप है. बीती 16 मई की बात है. सुबह के करीब 10-साढ़े 10 बज रहे थे. राजस्थान की सूर्यनगरी जोधपुर में सूरज अपना रौद्र रूप दिखा रहा था, भीषण गरमी थी. भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो यानी एसीबी के एसपी अजयपाल लांबा कुछ देर पहले ही अपने औफिस आए थे और अपने चैंबर में बैठे एक फाइल पर सरसरी नजर डाल रहे थे. इसी बीच उन के पीए ने टेलीफोन पर घंटी दे कर कहा, ‘‘सर, एक वकील साहब आप से मिलना चाहते हैं.’

लांबा ने एक पल सोचा फिर पीए से कह दिया, ‘‘मेरे पास भेज दो.’’

2 मिनट बाद ही एक सज्जन एसपी साहब के चैंबर का गेट खोल कर अंदर आए और एसपी साहब की ओर मुखातिब हो कर बोले, ‘‘सर, मैं आईएएस औफिसर निर्मला मीणा का वकील हूं.’’

‘‘हां वकील साहब, बैठिए.’’ एसपी साहब ने बैठने के लिए इशारा किया. वकील साहब कुरसी पर बैठते हुए बोले, ‘‘सर, निर्मलाजी आज 2-3 घंटे बाद सरेंडर कर देंगी.’’

‘‘वकील साहब, उन्होंने एसीबी की गिरफ्त से बचने के तो सारे जतन किए थे. लेकिन अब उन के पास इस के अलावा कोई और रास्ता बचा ही नहीं था.’’ एसपी लांबा ने कहा, ‘‘चलो, देर आए दुरुस्त आए.’’

इधरउधर की कुछ और बातें करने के बाद वकील साहब एसपी अजयपाल लांबा से विदा ले कर चले गए तो एसपी ने अपने पीए से कहा कि निर्मला मीणा केस के जांच अधिकारी मुकेश सोनी से बात कराओ. पीए ने एक मिनट बाद ही लाइन मिला कर फोन की घंटी दे कर कहा, ‘‘सर, सोनीजी लाइन पर हैं.’’

एसपी साहब ने फोन रिसीव करते हुए कहा, ‘‘सोनी, तुम जिस आईएएस अधिकारी निर्मला मीणा को कई महीने से ढूंढ रहे हो, वह आज सरेंडर कर रही हैं. अभी उन के वकील साहब आए थे, वही बता कर गए हैं.’’

‘‘सर, यह तो अच्छी बात है.’’ दूसरी ओर से सोनी ने कहा.

‘‘हां, ठीक तो है. तुम फटाफट एक काम करो. निर्मला मीणा से पूछे जाने वाले सवालों की एक लंबी लिस्ट बना लो, ताकि पूछताछ में आसानी रहे.’’ एसपी ने सोनी को फोन पर निर्देश देते हुए कहा, ‘‘ध्यान रखना, उन से 8 करोड़ रुपए के गेहूं घोटाले मामले से जुड़ी हर बात पूछनी है ताकि हमारा केस पूरी तरह मजबूत रहे.’’

‘‘सर, मुझे पूरे मामले की एकएक बात पता है.’’ सोनी ने एसपी साहब को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘मैं निर्मला मीणा से पौइंट टू पौइंट सीधे सवाल करूंगा.’’

‘‘ठीक है,’’ कहते हुए एसपी साहब ने लाइन काट दी.

इस बातचीत के करीब ढाई घंटे बाद दोपहर करीब एक बजे आईएएस औफिसर निर्मला मीणा एक गाड़ी से एसीबी की स्पैशल यूनिट के औफिस पहुंचीं. वे अपने वकील के साथ आई थीं. सलवारकुरता पहने हुए आई निर्मला ने अपना मुंह दुपट्टे से ढक रखा था. उन की केवल आंखें नजर रही थीं. निर्मला मीणा ने वहां मौजूद एसीबी कर्मचारियों को अपना नाम बताया तो वे उन्हें सीधे जांच अधिकारी मुकेश सोनी के कमरे में ले गए. एसीबी के औफिस में मामले के जांच अधिकारी मुकेश सोनी पहले से तैयार बैठे थे. उन्होंने निर्मला मीणा को कुरसी पर बैठने को कहा. कुछ ही देर में एसीबी के एसपी अजयपाल लांबा भी वहां पहुंच गए.

एसपी लांबा और जांच अधिकारी सोनी ने निर्मला मीणा से अपने चेहरे पर ढका दुपट्टा हटाने को कहा तो उन्होंने इनकार कर दिया. एसीबी अधिकारियों ने उन से साफ कहा कि अगर वह जांच में सहयोग नहीं करेंगी तो सख्ती करनी पड़ेगी. एसीबी अधिकारियों के सख्त रवैए को देख कर निर्मला मीणा ने कुछ देर नानुकुर के बाद आखिर अपने चेहरे से दुपट्टा हटा दिया. इस के बाद अधिकारियों ने उन पर सवालों की बौछार शुरू की तो उन्होंने तबीयत खराब होने की बात कह कर किसी सवाल का जवाब नहीं दिया. एसीबी अधिकारियों को अच्छी तरह पता था कि निर्मला मीणा सीनियर आईएएस औफिसर हैं. वे पुलिस की कार्यप्रणाली के साथ पुलिस की मजबूरियों को भी बखूबी जानती हैं. 

अधिकारियों ने निर्मला मीणा से घुमाफिरा कर कई तरह के सवाल पूछे लेकिन वह तबीयत ठीक नहीं होने और गेहूं घोटाले के मामले में कोई बात याद नहीं होने की बात कहती रहीं. मीणा से उन के पति पवन मित्तल के बारे में भी सवाल पूछे गए. मीणा के साथ उन के पति भी इस मामले में आरोपी थे. मीणा ने पति के बारे में भी कोई जानकारी नहीं होने की बात कही. लगभग 3 घंटे तक एसीबी अधिकारियों ने निर्मला मीणा से पूछताछ की, लेकिन मीणा ने ऐसी कोई खास बात नहीं बताई, जिस से गेहूं घोटाले के मामले में कोई नए तथ्य सामने आते. मीणा के बारबार तबीयत खराब होने की बात कहने पर एसपी लांबा ने अधिकारियों को उन का मैडिकल चैकअप कराने के निर्देश दिए.

एसीबी अधिकारियों ने पावटा सेटेलाइट हौस्पिटल ले जा कर निर्मला मीणा का चैकअप कराया. जांच में वह पूरी तरह सामान्य पाई गईं. आईएएस औफिसर निर्मला मीणा कौन थीं और उन्होंने एसीबी के सामने क्यों सरेंडर किया, यह जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे चलना पड़ेगा. उदयपुर की रहने वाली आईएएस औफिसर निर्मला मीणा को सब से पहली पोस्टिंग 9 अप्रैल, 1990 को अजमेर में सहायक कलेक्टर एवं कार्यपालक मजिस्ट्रैट के पद पर मिली थी. अपनी 29 साल की नौकरी में 24 साल तक वह जोधपुर में रहीं

इस दौरान वह सहायक कलेक्टर एवं कार्यपालक मजिस्ट्रैट, सहायक निदेशक भूमि एवं भवन कर, अतिरिक्त जिला कलेक्टर, उपनिदेशक स्थानीय विभाग, जिला रसद अधिकारी, रजिस्ट्रार जोधपुर यूनिवर्सिटी, रजिस्ट्रार पुलिस यूनिवर्सिटी जोधपुर, संगीत नाटक अकादमी आदि विभाग में तैनात रहीं. वह 6 बार जोधपुर की जिला रसद अधिकारी रहीं. जोधपुर में जिला रसद अधिकारी के पद पर रहते हुए फरवरी, 2016 में निर्मला मीणा ने खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के मुख्यालय जयपुर को शासकीय पत्र लिख कर कहा कि जोधपुर में लाभान्वित किए जाने वाले परिवारों की संख्या 33 हजार बढ़ गई है, इसलिए खाद्य सुरक्षा योजना के तहत जोधपुर के लिए राशन का 35 हजार क्विंटल गेहूं ज्यादा आवंटित किया जाए.

जिला रसद अधिकारी के पत्र के आधार पर जयपुर से जोधपुर के लिए 35 हजार क्विंटल राशन के गेहूं का ज्यादा आवंटन कर दिया गया. इस मामले में लापरवाही यह रही कि जयपुर मुख्यालय के किसी अधिकारी ने इस बात की सच्चाई का पता नहीं लगाया कि जोधपुर में अचानक 33 हजार परिवारों की संख्या कैसे बढ़ गई? बाद में शिकायत मिलने पर राजस्थान सरकार ने इस मामले की जांच कराई. जांच में खुलासा हुआ कि परिवार बढ़ने के नाम पर राशन का जो अतिरिक्त गेहूं मंगाया गया, वह आटा मिलों को बेच दिया गया. जो गरीब परिवार बढ़े हुए बताए गए, वे सब फरजी निकले.

व्यापक जांचपड़ताल के बाद राज्य सरकार ने भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी निर्मला मीणा को 11 अक्तूबर, 2017 को निलंबित कर दिया. निलंबन के समय मीणा जोधपुर में जिला रसद अधिकारी के पद पर कार्यरत थीं. निलंबन काल में निर्मला मीणा का तबादला मुख्यालय जयपुर में शासन सचिवालय के कार्मिक विभाग में कर दिया गया. इस के बाद भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने 2 नवंबर, 2017 को निर्मला मीणा एवं अन्य लोगों के खिलाफ अपने पदों का दुरुपयोग कर फरजी रिकौर्ड तैयार करने और गेहूं का घोटाला करने का मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होने पर एसीबी के जोधपुर एसपी अजयपाल लांबा के निर्देशन में इस मामले की जांच मुकेश सोनी को सौंपी गई.

सोनी ने मामले की जांच शुरू कर दी. इस बीच एक जोरदार वाकया हुआ. फरवरी के पहले सप्ताह में एक युवक निलंबित आईएएस अधिकारी निर्मला मीणा के पति पवन मित्तल से मिला. मित्तल सेवानिवृत्त एकाउंट अफसर हैं. युवक ने खुद को एसीबी के एसपी अजयपाल लांबा का गनमैन बता कर कहा कि 45 लाख रुपए में गेहूं घोटाले का पूरा मामला सैटल करवा देगा. पत्नी निर्मला मीणा के गेहूं घोटाले में फंसने से मित्तल वैसे ही परेशान थे. उन्हें लगा कि अगर पैसे दे कर यह मामला रफादफा हो सकता है तो झंझट खत्म हो जाएगा. लेकिन सवाल यह था कि गनमैन 45 लाख रुपए मांग रहा था. इतनी बड़ी रकम मित्तल के पास नहीं थी. 

वे कई दिनों तक उस युवक से टालमटोल कर सोचविचार करते रहे. इस बीच युवक ने मित्तल को भरोसा दिलाने के लिए एक नंबर से वाट्सऐप मैसेज भी किए. इस वाट्सऐप मैसेज की डीपी में आईपीएस औफिसर की यूनिफौर्म पहने हुए अजयपाल लांबा की फोटो लगी हुई थी. मित्तल ने सोचा कि जब एसपी साहब का गनमैन मामला सैटल करवाने की बात कर रहा है तो क्यों खुद जा कर एसपी साहब से मिल लिया जाए. यही सोच कर मित्तल एक दिन एसीबी औफिस जा कर एसपी लांबा से मिले. मित्तल ने उन्हें सारी बात बता कर 45 लाख रुपए देने में असमर्थता जताई. मित्तल की बातें सुन कर एसपी साहब आश्चर्य में पड़ गए. आश्चर्य की बात थी भी, कोई बदमाश उन के नाम पर आरोपी के पति से मोटी रकम मांग रहा था.

लांबा साहब ने बदमाश का पता लगाने के लिए डिप्टी एसपी जगदीश सोनी के नेतृत्व में तुरंत इंटेलीजेंस की टीम लगाई. टीम ने जांचपड़ताल की और मित्तल के रानाताड़ा स्थित मकान पर निगरानी रखीपुलिस ने 13 फरवरी को उस बदमाश को पकड़ लिया. यह बदमाश गुड़ा विश्नोइयान का रहने वाला सुनील विश्नोई था. सुनील विश्नोई के खिलाफ जोधपुर के रातानाड़ा पुलिस थाने में मामला दर्ज किया गया. सुनील से पूछताछ में पता चला कि गरीबों को बांटे जाने वाले 35 हजार क्विंटल गेहूं की कालाबाजारी कर के 8 करोड़ रुपए का घोटाला करने की खबरें अखबारों में छपने व न्यूज चैनलों पर देखने के बाद उस ने आईएएस अधिकारी निर्मला मीणा को ही शिकार बनाने की योजना बनाई थी. 

इसी के लिए उस ने मीणा के पति पवन मित्तल से संपर्क किया था. वह लोगों को इसी तरह ठग कर या ब्लैकमेल कर के ऐश करता था. इधर निर्मला मीणा पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही थी. वह अपनी अग्रिम जमानत कराने के प्रयास में जुटी हुई थीं. सब से पहले उन्होंने सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत की अरजी दाखिल की. एसीबी ने जनवरी में सेशन कोर्ट से मीणा की अर्जी खारिज करवा दी. इस के बाद निर्मला मीणा भूमिगत हो गईर्ं. कुछ दिनों बाद उन्होंने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए याचिका लगाई. हाईकोट्र ने मीणा की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी.

इस बीच एसीबी ने मार्च के पहले पखवाड़े में मीणा के जोधपुर में सरकारी आवास सहित जयपुर उदयपुर स्थित ठिकानों पर छापे मारे. इन छापों में मीणा के पास 10 करोड़ रुपए से ज्यादा की प्रौपर्टी होने का पता चला. इन में जोधपुर में एक बंगला, फ्लैट व कई प्लौट के अलावा कई बीघा जमीन, एक पैट्रोलपंप, बाड़मेर के पचपदरा में 2 करोड़ रुपए कीमत की 15 बीघा जमीन और जयपुर में मानसरोवर व गोपालपुरा बाइपास पर 2 बंगलों के कागजात मिले. एसीबी अधिकारियों ने छापे के दौरान निर्मला मीणा से पूछताछ भी की.

उसी दिन एसीबी ने गेहूं घोटाले के अन्य आरोपियों ठेकेदार सुरेश उपाध्याय और रसद विभाग के लिपिक अशोक पालीवाल के मकानों पर भी छापे मार कर तलाशी ली. इन 2 आरोपियों के मकानों से गेहूं घोटाले से संबंधित कुछ दस्तावेज मिले. निर्मला मीणा के ठिकानों पर छापे की काररवाई दूसरे दिन भी चली. इस दौरान माउंट आबू के एक रिसोर्ट में उन की कौटेज होने का पता चला. मीणा ने यह कौटेज 2013 में पति के नाम से जोधपुर के एक आदमी से खरीदा था. मीणा के 2 नाबालिग बेटों के नाम जोधपुर में 300-300 वर्गगज के 2 भूखंडों का भी पता चला. इस के अलावा निर्मला मीणा, उन के पति पवन मित्तल और उन के 2 बच्चों के नाम 17 बैंक खाते तथा 3 लौकर मिले. इन बैंक खातों व लौकरों को एसीबी ने सीज करवा दिया.

एसीबी को इन छापों में मीणा परिवार की कुल 18 संपत्तियों का पता चला. निर्मला मीणा ने आईएएस अधिकारी के तौर पर हर साल की जाने वाली अपनी चलअचल संपत्तियों की घोषणा में इन में से केवल 4 संपत्तियां ही सरकार को बता रखी थीं. निर्मला मीणा ने 20 फरवरी, 2017 को सरकार को पेश अपने अचल संपत्ति विवरण में जयपुर में 26 लाख का मकान, जोधपुर में 16 लाख का मकान और 18 लाख रुपए का भूखंड तथा बाड़मेर के पचपदरा में 14 लाख रुपए की 15 बीघा जमीन बताई थी. बाद में एसीबी ने इस मामले में निर्मला मीणा के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का एक अलग केस दर्ज किया.

एक तरफ एसीबी निर्मला मीणा पर शिकंजा कसती जा रही थी और दूसरी तरफ मीणा अपनी गिरफ्तारी से रोक हटवाने की कोशिश में जुटी हुई थींइस के लिए एसीबी सुप्रीम कोर्ट भी गई. सुप्रीम कोर्ट ने 14 मार्च को एसीबी को बैरंग लौटा दिया और कहा कि हाईकोर्ट ही इस का फैसला करेगा. फैसला होने के बाद आप सुप्रीम कोर्ट आएं. हाईकोर्ट में 2 महीने तक सुनवाई हुई. इस के बाद हाईकोर्ट ने 17 अप्रैल को निर्मला मीणा को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया. हाईकोर्ट के जस्टिस विजय विश्नोई ने मीणा की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि वे जांच एजेंसी के इस तर्क से सहमत हैं कि इस घोटाले की गहन जांच की आवश्यकता है. इस मामले में कई और उच्चाधिकारी शामिल हो सकते हैं

इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत में कहा कि गेहूं के गबन का लगाया गया आरोप झूठा है. आवंटित गेहूं अगर जरूरतमंदों तक नहीं पहुंचा तो इस के लिए जिला रसद अधिकारी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. अग्रिम जमानत याचिका हाईकोर्ट से खारिज होने पर मीणा की मुश्किलें बढ़ गईं. एसीबी ने उन की गिरफ्तारी के लिए छापे मारने शुरू कर दिए. एसीबी की टीम 17 अप्रैल को ही मीणा के सरकारी आवास पर पहुंची लेकिन मीणा और उन के पति नहीं मिले. इस पर एसीबी अधिकारियों ने उन के घर पर नोटिस चस्पा कर दिया. इस नोटिस में मीणा और उन के पति को अगले दिन एसीबी की चौकी में उपस्थित होने की बात लिखी थी.

दूसरे दिन तो निर्मला मीणा एसीबी के सामने हाजिर हुईं और ही उन के पति. इस पर एसीबी ने फिर मीणा के सरकारी आवास पर दबिश दी लेकिन वह नहीं मिलीं. एसीबी को यह आशंका थी कि निर्मला मीणा फरार हो गई हैं. इसलिए एसीबी ने मीणा के गिरफ्तारी वारंट जारी कराएइस बीच निर्मला मीणा के खिलाफ एसीबी ने केरोसिन की कालाबाजारी का परिवाद और दर्ज कर लिया. इस से पहले मीणा पर गेहूं घोटाले और आय से अधिक संपत्ति के मुकदमे दर्ज किए गए थे. एसीबी की गिरफ्तारी से बचती हुई निर्मला मीणा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं. सुप्रीम कोर्ट ने मीणा की ओर से सीनियर एडवोकेट के.टी.एस. तुलसी ने दलीलें पेश कीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई को मीणा की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी.

सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिलने पर मीणा के सामने सरेंडर करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. एसीबी से लुकाछिपी के खेल में मीणा जयपुर के कार्मिक विभाग में भी उपस्थिति दर्ज नहीं करा रही थीं. इस दौरान वह करीब 2 महीने तक बिना सूचना के अनुपस्थित रहीं. निर्मला मीणा 8 करोड़ के गेहूं घोटाले के मामले में खुद को बचाना चाहती थीं. लेकिन गिरफ्तारी से बचने के लिए वह इतनी भागदौड़ करती रहीं कि एसीबी को उन के नित नए मामलों और संपत्तियों का पता लगता रहा. इस में उन के पति भी फंस गएएसीबी ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में मीणा के पति को भी आरोपी बनाया. इस मामले में मीणा के पति ने अगर सही जवाब और सबूत नहीं दिए तो उन की गिरफ्तारी भी हो सकती है.

एसीबी ने सरेंडर करने वाली आईएएस औफिसर निर्मला मीणा को 17 मई को अदालत में पेश कर के 7 दिन का रिमांड मांगा. अदालत ने 2 दिन का रिमांड दिया. अदालत से स्पैशल यूनिट में ला कर एसीबी ने निर्मला मीणा से पूछताछ की तो उन्होंने कहा कि मेरा गुरुवार का उपवास है, तबीयत भी ठीक नहीं है. 6 घंटे की पूछताछ में निर्मला मीणा ने किसी सवाल का संतोषजनक जवाब नहीं दिया. रिमांड अवधि के दौरान दूसरे दिन भी एसीबी अधिकारियों ने निर्मला मीणा से 8 घंटे तक पूछताछ की लेकिन उन्होंने बीमार होने, सिर चकराने और मुझे नहीं पता कह कर सारे सवालों को टाल दिया

मीणा से पूछताछ में गेहूं घोटाले में सुरेश उपाध्याय, स्वरूप सिंह राजपुरोहित और अशोक पालीवाल का नाम उभर कर सामने आया था. इन में आटा मिल संचालक स्वरूप सिंह राजपुरोहित को एसीबी ने पहले ही गिरफ्तार कर लिया था. 2 दिन का रिमांड पूरा होने पर एसीबी ने 19 मई को निर्मला मीणा को फिर अदालत में पेश किया. इस बार अदालत ने मीणा की रिमांड अवधि 22 मई तक बढ़ा दी. इस के अगले ही दिन गेहूं घोटाले में फरार परिवहन ठेकेदार सुरेश उपाध्याय ने एसीबी के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. जिला रसद विभाग में गेहूं का परिवहन ठेका सुरेश के पास था. उस का काम भारतीय खाद्य निगम के गोदाम से गेहूं उठा कर राशन डीलरों तक पहुंचाना था. आरोप है कि सुरेश उपाध्याय ने भी निर्मला मीणा और अन्य आरोपियों के साथ मिल कर राशन के गेहूं की कालाबाजारी कर के आटा मिलों को बेच दिया था.

गेहूं घोटाले की कडि़यां जोड़ने के लिए एसीबी ने खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग जयपुर के तत्कालीन उपायुक्त राजस्थान प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी मुकेश मीणा को जोधपुर तलब किया. मुकेश मीणा 2 दिन बाद हाजिर हुए तो एसीबी अधिकारियों ने मुकेश मीणा और निर्मला मीणा को आमनेसामने बैठा कर पूछताछ कीनिर्मला मीणा के सरकारी पत्र पर 35 हजार क्विंटल गेहूं आवंटित करने की फाइल तत्कालीन उपायुक्त मुकेश मीणा के हाथ से ही निकली थी. उन की सहमति से ही गेहूं आवंटित किया गया था. एसीबी ने मुकेश मीणा के बयान दर्ज कर लिए.

रिमांड अवधि पूरी होने पर 22 मई को एसीबी ने निर्मला मीणा को अदालत में पेश किया. अदालत ने उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया. निर्मला मीणा जोधपुर सेंट्रल जेल में बतौर आरोपी जाने वाली पहली महिला आईएएस अधिकारी बन गई हैं. 24 मई को अदालत ने निर्मला मीणा और परिवहन ठेकेदार सुरेश उपाध्याय की जमानत याचिका खारिज कर दी. सुरेश उपाध्याय भी जेल में है. एसीबी अभी तक इस मामले की जांच में जुटी है. हो सकता है कि कुछ अन्य अफसर भी इस घोटाले में पकड़े जाएं. निर्मला मीणा के पति पर भी गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है. कथा लिखे जाने तक एसीबी इस मामले में रसद विभाग के तत्कालीन क्लर्क अशोक पालीवाल की तलाश कर रही थी.

       

चार बेटियों के साथ मिलकर मां ने की दरोगा की हत्या

दरोगा भौंदे खान अपने घर को अपने हिसाब से चलाना चाहता था, लेकिन उस की पत्नी जाहिदा ने अपनी तरह बेटियों को भी बिगाड़ रखा था. लिहाजा एक तीर से 2 शिकार करने के लिए जाहिदा और बेटियों ने भौंदे खान की ऐसी हत्या की कि… 

विवार 24 जून, 2018 की सुबह करीब 9 बजे का वक्त था. उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के रहने वाले शरीफुद्दीन और बाबू मियां जलालनगर मोहल्ले के बगल से गुजरने वाले नाले के किनारे होते हुए पैदल ही बस अड्डे की तरफ जा रहे थे. अचानक शरीफुद्दीन की नजर नाले में गिरी पड़ी एक मोटरसाइकिल पर पड़ी, जिस का कुछ हिस्सा नाले के पानी के ऊपर था. यह देखते ही शरीफुद्दीन बोला, ‘‘अरे बाबू भाई, लगता है कोई आदमी नाले में गिर गया है. उस की बाइक यहीं से दिख रही है.’’

शरीफुद्दीन की बात पर बाबू ने जब नाले की तरफ देखा तो वह चौंकते हुए बोला, ‘‘हां शरीफ भाई, लग तो रहा हैचलो चल कर देखते हैं.’’

इस के बाद वह दोनों तेजी से कदम बढ़ाते हुए उधर ही पहुंच गए जहां मोटरसाइकिल पड़ी थी. उन्होंने देखा कि वहां सिर्फ मोटरसाइकिल थी बल्कि चंद कदम की दूरी पर एक आदमी भी औंधे मुंह पड़ा हुआ थाऐसा लग रहा था कि या तो वह शराब के नशे में बाइक समेत नाले में जा गिरा या किसी चीज से टकरा कर वह बाइक समेत नाले में गिर गया है. वह दोनों उस व्यक्ति के करीब पहुंच गए, उस व्यक्ति के शरीर के ऊपर का कुछ भाग नाले के किनारे पर था. उस के सिर से खून बह कर जम गया था. वह व्यक्ति कौन है जानने के लिए दोनों ने जैसे ही उसे पलट कर देखा तो बाबू के मुंह से चीख निकल गई, ‘‘अरे बाप रे, ये तो अपने दरोगाजी भौंदे खान हैं.’’ दरोगा भौंदे खान उर्फ मेहरबान अली उन्हीं के मोहल्ले में रहते थे

‘‘चल, इन के घर जा कर खबर करते हैं.’’ बाबू ने अपने साथी से कहा और उल्टे पांव अपने मोहल्ले की तरफ चल दिए. वहां से बमुश्किल 400 मीटर की दूरी पर एमनजई जलालनगर मोहल्ला था. उस मोहल्ले में घुसते ही 20 कदम की दूरी पर दरोगा मेहरबान अली उर्फ भौंदे खान का घर था. चेहरे पर उड़ती हवाइयों के बीच दरोगाजी के घर पहुंचे तो घर के बाहर ही उन्हें दरोगाजी का दामाद अनीस मिल गया. दरोगाजी अपने दामाद के साथ ही रहते थे. शरीफुद्दीन और बाबू मियां ने एक ही सांस में अनीस को बता दिया कि उस के ससुर दरोगाजी अपनी मोटरसाइकिल के साथ नाले में गिरे पड़े हैं.

यह सुनते ही अनीस ने दौड़ कर अपने घर में अपनी सास जाहिदा, पत्नी और सालियों को ये बात बताई. जैसे ही परिवार वालों को भौंदे खान के नाले में गिरने की बात पता चली तो पूरे घर में जैसे कोहराम मच गया. उन की पत्नी जाहिदा और घर में मौजूद तीनों बेटियां अनीस के साथ नाले के उसी हिस्से की तरफ दौड़ पड़ीं, जहां उन के गिरे होने की जानकारी मिली थी. मोहल्ले के अनेक लोग भी उन के साथ हो लिए.

मरने वाला निकला दरोगा भौंदे खान जाहिदा ने अपने पति को काफी हिलायाडुलाया लेकिन खून से लथपथ पति के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई तो कुछ लोगों ने उन की नब्ज टटोली तब पता चला कि उन की मौत हो चुकी है. इस के बाद तो जाहिदा और उन की बेटियां छाती पीटपीट कर रोने लगीं. थोड़ी ही देर में घटनास्थल पर लोगों का हुजूम लग गया. अनीस ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के दरोगा मेहरबान अली का शव नाले में मिलने की सूचना दे दी.

यह इलाका सदर कोतवाली क्षेत्र में पड़ता था. मामला चूंकि विभाग के ही एक सबइंसपेक्टर की मौत से संबंधित था, इसलिए सूचना मिलते ही सदर कोतवाली थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा तथा एसएसआई रामनरेश यादव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी ने जब मेहरबान अली के शव को नाले से बाहर निकलवा कर बारीकी से उस की पड़ताल की तो पहली ही नजर में मामला दुर्घटना का नजर आयाऐसा लग रहा था कि नाले में गिरने पर सिर में लगी चोट के कारण शायद उन की मौत हो गई है. सूचना मिलने पर एसपी का प्रभार देख रहे एसपी (ग्रामीण) सुभाष चंद्र शाक्य, एसपी (सिटी) दिनेश त्रिपाठी और सीओ (सदर) सुमित शुक्ला भी घटनास्थल पर पहुंच गए

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया. फोरैंसिक टीम ने भी वहां पहुंच कर सबूत जुटाए. घटना की सूचना आईजी और डीआईजी तक पहुंच गई थी लिहाजा अगले 2 घंटे में पुलिस के ये आला अफसर भी घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. अगले दिन दरोगा मेहरबान अली के शव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उसे पढ़ कर पुलिस भी हैरान रह गई. क्योंकि उस में बताया गया कि उन की मौत दुर्घटना के कारण नहीं हुई थी बल्कि उन की हत्या की गई थी

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि सिर में दाहिनी तरफ चोट लगने के अलावा इस तरह की चोट थी, जैसे किसी ने कई बार भारीभरकम चीज से सिर पर चोट पहुंचाई हो. साथ ही गला भी दबाया गया था. उन की गरदन पर बाकायदा कुछ लोगों की अंगुलियों के निशान थे, मानो उन का गला दबाने की कोशिश भी की गई हो. पोस्टमार्टम रिपोर्ट सीधे तौर पर उन की हत्या की ओर इशारा कर रही थी. मृतक दरोगाजी के परिवार वालों से जब पूछा कि उन्हें किसी पर हत्या करने का शक है तो उन्होंने किसी पर शक नहीं जताया. लेकिन उन के दामाद अनीस ने सदर कोतवाली में तहरीर दे कर अज्ञात लोगों के खिलाफ उन की हत्या करने की शिकायत दर्ज करा दी

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा ने जांच अपने हाथ में ले ली. अनीस ने थानाप्रभारी को बताया कि एक दिन पहले शनिवार को भौंदे खान दोपहर करीब साढ़े 11 बजे खाना खा कर मोटसाइकिल ले कर ड्यूटी के लिए गए थे. पुलिस ने की दरोगा के घर वालों से पूछताछ वह ड्यूटी से रात 8 बजे तक घर लौटने वाले थे. लेकिन 11 बजे तक भी वह नहीं लौटे तो घर वालों को चिंता होने लगी तब साजिदा ने वायरलैस कंट्रोल रूम में फोन कर के पूछा तो पता चला कि मेहरबान अली तो उस दिन ड्यटी पर पहुंचे ही नहीं थे

जाहिदा जानती थी कि उस के पति कभीकभी दोस्तों के साथ शराब की पार्टी में बैठ जाते हैं. ऐसे में वह कभीकभी ड्यटी पर भी नहीं जाते थे और देर रात तक घर लौटते थे. उस ने सोचा कि हो सकता है आज भी वह कहीं ऐसी ही किसी पार्टी में शामिल हो गए होंगे और सुबह तक जाएंगे. यह सोच कर जाहिदा सो गईसुबह हो गई, भौंदे खान तब भी घर नहीं लौटे. अनीस उस रोज शहर से बाहर गया हुआ था. सुबह जब वह घर लौटा तो सास जाहिदा ने उसे यह बात बताई. अनीस ने सास से कहा कि वह कुछ देर बाद पुलिस लाइन जा कर देख आएगा कि आखिर बात क्या है. लेकिन उस से पहले ही उसे भौंदे खान की लाश मिलने की सूचना मिल गई.

सीओ (सदर) सुमित शुक्ला और थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा की समझ में नहीं रहा था कि आखिर ऐसी कौन सी वजह रही होगी जिस के कारण उन की हत्या की गई. मामला लूटपाट का नहीं था क्योंकि उन की मोटरसाइकिल, कलाई घड़ी और जेब में उन का पर्स ज्यों का त्यों बरामद हुआ था. पर्स में आईडी कार्ड से ले कर डेबिट कार्ड तथा कुछ रुपए सहीसलामत पाए गए थे. थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा को लग रहा था कि दरोगा मेहरबान अली की हत्या का मामला उतना सीधा नहीं है, जितना कि नजर रहा है. इसलिए उन्होंने एक टीम मेहरबान अली के परिवार और उन के मेलजोल वालों के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए गठित कर दी, जिस में एसएसआई रामनरेश यादव, महिला एसआई ज्योति त्यागी, कांस्टेबल अनूप मिश्रा, माधुरी के साथ एक दरजन पुलिस वाले शामिल थे.

थानाप्रभारी ने यह कदम यूं ही नहीं उठाया, बल्कि उन्हें 2 महीने पहले दरोगा मेहरबान अली के घर में हुई एक ऐसी घटना याद गई जिस की तफ्तीश खुद उन्होंने ही की थी. मेहरबान अली उर्फ भौंदे खान मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर की तहसील बुढ़ाना के गांव कसेरवा के रहने वाले थे. वह उत्तर प्रदेश पुलिस में सब इंसपेक्टर के पद पर तैनात थे. उन की नियुक्ति उत्तर प्रदेश के अलगअलग जिलों में रहने के बाद सन 2007 में शाहजहांपुर जिले की पुलिस लाइन में वायरलैस सेल में हुई थी

वह थाना सदर क्षेत्र के मोहल्ला एमनजई जलालनगर में अपने दामाद अनीस के साथ रहते थे. मकान की दूसरी मंजिल पर अनीस अपनी पत्नी सबा के साथ रहता था. अनीस मशीनरी टूल की ट्रेडिंग का धंधा करता था. जिस के सिलसिले में उसे अकसर शहर से बाहर भी आनाजाना पड़ता था. जिस दिन मेहरबान अली गायब हुए थे, अनीस उस दिन शहर से बाहर गया हुआ था. मेहरबान अली के परिवार में उन की पत्नी जाहिदा के अलावा 5 बेटियां एक बेटा था. बड़ी बेटी सबा की शादी अनीस के साथ डेढ़ साल पहले हुई थी. उस से छोटी 4 बेटियां सना, जीनत, इरम, आलिया तथा एक बेटा मोहसिन है, जो परिवार में सब से छोटा है. दूसरे नंबर की बेटी सना खान की 2 महीने पहले हत्या हो गई थी. थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा ने ही उस मामले की जांच की थी.

दरोगा की बेटी की हुई थी हत्या सना जी.एस. कालेज में बीए फाइनल की छात्रा थी. वह यूपी पुलिस परीक्षा की तैयारी कर रही थी. इस के लिए वह रामनगर कालोनी स्थित एक कोचिंग सेंटर, अपनी छोटी बहन जीनत के साथ जाती थी. 7 अप्रैल, 2018 को भी सना जीनत के साथ कोचिंग सेंटर से बाहर निकल कर 200 मीटर दूर पहुंची थी. तभी अरशद वहां आया. वह अपने एक दोस्त के साथ बाइक पर सवार था. उस ने सना से बात करने के लिए दोनों बहनों को रोक लिया

अरशद भी उन के साथ उसी कोचिंग सेंटर में जाता था. दोनों आपस में अच्छे दोस्त थे. अरशद सना से बात करने लगा. बात करतेकरते दोनों जैसे ही इलाके के डा. मुबीन के घर के पास पहुंचे तभी अरशद की सना से किसी बात को ले कर नोकझोंक और गालीगलौज होने लगी. तभी गुस्से में आ कर अरशद ने जेब से तमंचा निकाल कर सना को गोली मार दी. गोली उस के सीने पर लगी और वह वहीं जमीन पर गिर पड़ी. गोली मारते ही अरशद अपने दोस्त के साथ बाइक से फरार हो गया था.

इधर, बहन को गोली लगते ही जीनत जोरजोर से चीखने लगी. जीनत की चीखपुकार सुन कर कोचिंग सेंटर से अन्य छात्र बाहर गए. उन्होंने खून से लथपथ सना को देखा तो तुरंत एंबुलेंस को फोन किया. लेकिन एंबुलेंस के आने से पहले ही कोचिंग के दोस्त सना को मोटरसाइकिल पर बीच में बैठा कर अस्पताल ले गए. लेकिन अस्पताल पहुंचने पर डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. जिस इलाके में वारदात हुई वह सदर थाना क्षेत्र में आता है. सना के पिता मेहरबान अली चूंकि पुलिस में ही दरोगा थे, इसलिए थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा ने मामले को गंभीरता से लिया. जीनत के बयान के आधार पर सना की हत्या की रिपोर्ट दर्ज की गई.

अरशद नाम के जिस युवक ने सना को गोली मारी थी उस के बारे में जानकारी हासिल करने में पुलिस को ज्यादा वक्त नहीं लगा. अरशद प्रतापगढ़ के थाना कन्हई के कठहार गांव का रहने वाला था. उस के पिता जहीरूद्दीन सिद्दीकी भी उत्तर प्रदेश पुलिस में थे. अरशद के चाचा सौराब खां शाहजहांपुर में ही बतौर कांस्टेबल तैनात थे. अरशद उन्हीं के साथ रहता था. वह पुलिस लाइन में रह कर पुलिस सेना में भरती होने की तैयारी करता था. इसलिए वह रोजाना दौड़ लगाने के लिए पुलिस लाइन के परेड ग्राउंड में जाता था.

उसी ग्राउंड में सना खान और उस की बहन जीनत भी दौड़ने आती थी. वह भी पुलिस में भरती होने की तैयारी कर रही थीं. बातों ही बातों में अरशद की उन से दोस्ती हो गई. सना मन ही मन अरशद को पसंद करने लगी और जल्द ही दोनों का अकेले में मिलनाजुलना शुरू हो गया. लेकिन अरशद सना की बहन जीनत को ज्यादा पसंद करता था और उसी के साथ निकाह करना चाहता था. जीनत भी अरशद को चाहने लगी थी.

अरशद जब जीनत के साथ हंसीमजाक करता तो सना को ये बात नागवार गुजरती थी. उस ने इस बात पर अरशद को कई बार झिड़कते हुए कह दिया था कि वह उसे पसंद करती है इसलिए वह उस की बहन जीनत पर गलत नजर रखे. सना के कई बार ऐसा कहने पर एक दिन अरशद ने सना से साफ कह दिया कि वह उस से नहीं बल्कि जीनत को पसंद करता है और उस से निकाह करना चाहता है. इस के बाद से सना अरशद के जीनत से मेलजोल का विरोध करने लगी. इतना ही नहीं उस ने अपनी मां जाहिदा और पिता मेहरबान अली को भी यह बात बता दी थी. जिस पर जीनत को घर वालों से डांट भी पड़ी थी.

अरशद ने मारा था सना को जीनत ने यह बात अरशद को बताई तो अरशद ने सना की हत्या कराने का फैसला कर लिया. उस ने सोचा कि सना के न रहने पर उसे जीनत से मिलने में कोई बाधा नहीं आएगी. इस बारे में अरशद ने अपने गांव के बचपन के दोस्त सलमान से बात की. सलमान अरशद का साथ देने के लिए तैयार हो गया और एक दिन उस ने सना को गोली मार दी. हत्याकांड की जानकारी मिलने के बाद सदर पुलिस ने अगले 24 घंटे में ही अरशद को गिरफ्तार कर के उस के कब्जे से हत्या में प्रयुक्त 315 बोर का देशी तमंचा, 2 कारतूस और मोटरसाइकिल बरामद कर ली थी.

अरशद से पूछताछ में पता चला था कि हत्या में मदद करने वाला उस का दूसरा साथी भी प्रतापगढ़ जिले के गांव कढ़ार का रहने वाला सलमान है, तो पुलिस ने सलमान की गिरफ्तारी के प्रयास करते हुए कई बार उस के ठिकानों पर दबिशें दीं, लेकिन सलमान हर बार पुलिस की पकड़ में आने से बचता रहाआखिरकार एसपी सुभाष चंद्र शाक्य ने उस की गिरफ्तारी पर 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया. जिस के एक हफ्ते बाद सलमान को सदर पुलिस ने रोडवेज बस स्टैंड से गिरफ्तार कर लिया. आरोपी को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा को अनायास सना की हत्या करने वाले कातिल अरशद का वह कबूल नामा भी याद आने लगा जब उस ने बताया था कि सना चाहती थी कि अगर वह उस के पिता मेहरबान अली को मार देने में उस की मदद करे तो अनुकंपा के आधार पर उन की नौकरी उसे मिल जाएगी. सना ने अरशद से ये भी कहा था कि यदि वह ऐसा कर देगा तो वह उस से शादी कर लेगी. अरशद ने ये भी बताया था कि सना ने उस से कहा था कि उस के पिता उस की मां और सभी बहनों के साथ न सिर्फ मारपीट करते हैं बल्कि सभी बहनों पर पाबंदियां भी लगाते हैं. लेकिन अरशद ने सना का ये औफर इसलिए ठुकरा दिया था, क्योंकि वह सना से नहीं बल्कि उस की बहन जीनत से प्यार करता था.

घर वालों के बयानों में मिला विरोधाभास उस वक्त तो थानाप्रभारी को लगा था कि अरशद शायद अपने बचाव में और सना को ही दोषी ठहराने के लिए झूठी कहानी गढ़ रहा है. लेकिन अब जबकि दरोगा मेहरबान अली की हत्या हुई तो उन्हें अरशद के उस बयान में सच्चाई नजर आने लगी. उन्हें लगने लगा कि संभव है, मेहरबान अली की हत्या का राज कहीं कहीं उन के घर में ही छिपा हो. अगली सुबह सब से पहले उन्होंने पुलिस टीम के साथ मेहरबान अली के घर का दौरा किया. उन्होंने एकएक कर के मेहरबान अली की पत्नी और उस की बेटियों से पूछताछ की. उन्होंने सभी से मेहरबान अली के शनिवार को घर से बाहर जाने का घटनाक्रम पूछा था. तो जाने क्यों मांबेटियों के बयानों में एक के बाद एक कई विरोधाभास नजर आए.

किसी ने बताया कि वह दोपहर को खाना खा कर ड्यूटी चले गए थे. किसी ने बताया कि वह सुबह 10 बजे ही रात की ड्यूटी कर के घर लौटे थे और शाम को घर से गए थे. यह भी पता चला कि उन्होंने रात को घर लौटने पर पुलिस लाइन में फोन कर के उन के घर लौटने के बारे में पूछा था. लेकिन वहां से पता चला कि उस दिन मेहरबान अली ड्यूटी पर आए ही नहीं थे. थानाप्रभारी शर्मा ने एसएसआई रामनरेश यादव को पुलिस लाइन में बने वायरलैस कंट्रोल रूम भेजा तो उन्हें पता चला कि मेहरबान अली के बारे में जानकारी लेने के लिए उन की पत्नी जाहिदा ने पुलिस लाइन में कोई फोन नहीं किया था. यह सुन कर थानाप्रभारी का शक यकीन में बदलने लगा कि हो हो मेहरबान अली के कातिल उन के घर में ही छिपे हैं

अपने शक को पुख्ता करने के लिए जब उन्होंने वायरलैस औफिस में मेहरबान अली की ड्यूटी का चार्ट निकलवाया तो जानकारी मिली कि मेहरबान अली इस सप्ताह रात की ड्यूटी पर तैनात थे. वह शुक्रवार की रात को ड्यूटी कर के शनिवार सुबह अपने घर आए थे. डी.सी. शर्मा सोचने लगे कि अगर मेहरबान अली रात की ड्यूटी कर के घर लौटे थे तो दोपहर साढ़े 12 बजे वह भला दोबारा ड्यूटी पर क्यों जाएंगे. अब उन्हें लगने लगा कि मेहरबान अली को ले कर घर वाले झूठ बोल रहे हैं. इस झूठ का परदाफाश करना ही पड़ेगा

थानाप्रभारी पुलिस टीम और फोरेंसिक टीम को ले कर एक बार फिर मेहरबान अली के घर पहुंचे. उन्होंने जब उन के घर आसपास के घरों का निरीक्षण किया तो अनायास उन की नजर उन के घर के सामने वाले घर की छत पर लगे सीसीटीवी कैमरे पर पड़ी. सीसीटीवी कैमरे से मिला क्लू संयोग से सीसीटीवी कैमरे की दिशा ऐसी थी कि मेहरबान अली के घर आनेजाने वाला हर शख्स वीडियो में कैद हो सकता था. उन्होंने सीसीटीवी की फुटेज देखी तो अचानक मेहरबान अली हत्याकांड का पूरा सच सब के सामने गया.

सीसीटीवी वीडियो में 23 जून, 2018 को सुबह 9 बजे दरोगा मेहरबान अली घर के अंदर दाखिल होते दिखे थे. संभवत: वह उस वक्त अपनी ड्यूटी से लौटे थे. लगभग डेढ़ घंटे बाद घर के अंदर 2 अन्य लोग जाते दिखे लेकिन देर रात तक वह दोनों वापस लौटते नहीं दिखे. इस के बाद रात होने तक कोई असामान्य बात नहीं दिखी. लेकिन रात को 10 बजे के बाद अचानक मेहरबान अली की पत्नी बेटियों की असामान्य गतिविधियां दिखाई पड़ीं. करीब 10 बजे मेहरबान अली की पत्नी जाहिदा दरवाजे तक आई कुछ देर रोड पर इधरउधर देखा और लौट गई. उस के बाद कुछ देर बाद उस की बेटी आलिया और इरम बाहर आईं उन्होंने भी गली में इधरउधर देखा और वहां रुक कर मोबाइल देखती रहीं फिर वापस घर में भीतर चली गईं. इस के बाद मेहरबान अली की बड़ी बेटी शबा भी बाहर आई और कुछ देर रुक कर वह भी अंदर चली गई. 

इस के बाद जाहिदा फिर एक बार दरवाजे पर कर लौट गई. फिर रात 10 बज कर 40 मिनट पर घर के बाहर 2 लोग जो सुबह घर के भीतर घुसे थे, वह एक बाइक पर मेहरबान अली को बीच में बैठा कर बाहर आते दिखाई दिए. घर से बाइक बाहर निकालने के लिए पीछे से जाहिदा और उस की 2 बेटियों को बाइक को धक्का लगाते देखा गया. जाहिदा फिर गली में आई. उस ने देखा कि रोड पर कोई नहीं है तो रास्ता साफ होने का इशारा कर के बाइक को आगे ले जाने का उस ने इशारा किया.

इस के बाद 2 लोग बाइक को ले कर चले गए. लेकिन हैरानी की बात यह थी कि इस दौरान मेहरबान अली का शरीर बेजान सा बीच में रखा था. सीसीटीवी फुटेज को देख कर ऐसा लग रहा था कि वह मेहरबान अली के मृत शरीर को मोटरसाइकिल पर ले जा रहे थे. जाहिदा और बेटियां ही निकलीं कातिल अब सब कुछ आईने की तरह साफ था. सीसीटीवी फुटेज कब्जे में ले कर थानाप्रभारी शर्मा एक बार फिर जाहिदा के घर पहुंचे. उन्होंने जब पूछा कि शनिवार की सुबह उन के यहां कौन 2 लोग आए थे तो कोई भी ठीकठाक उन के सवालों का जवाब नहीं दे सका. वह जानते थे कि कोई भी गुनहगार आसानी से अपना गुनाह नहीं कबूलता.

उन्होंने जाहिदा और उस की बेटियों को पुरुषोत्तम आहूजा के घर से बरामद की गई सीसीटीवी फुटेज दिखाई तो उन के पास बचने का कोई बहाना नहीं रहा. थोड़ी सी डांटफटकार के बाद ही जाहिदा ने कबूल कर लिया कि अपने पति मेहरबान अली की हत्या उस ने अपनी बेटियों के साथ साजिश रच कर भाडे़ के 2 हत्यारों से कराई थी. और उन की लाश को करीब 11 घंटे तक अपने कमरे में ही रखा. इस दौरान दोनों हत्यारे भी उन के साथ घर में मौजूद रहे. फिर मौका मिलने पर रात के अंधेरे में लाश फेंकी गई.

जाहिदा से पूछताछ के बाद थानाप्रभारी डी.के. शर्मा ने उसे उस की चारों बेटियों जीनत, इरम, आलिया तथा शादीशुदा बेटी सबा को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया. पांचों को थाने ला कर उन्होंने उच्चाधिकारियों को हत्याकांड का खुलासा करने की सूचना दे दी. इस के बाद एसपी सुभाषचंद्र शाक्य, एसपी (सिटी) दिनेश त्रिपाठी और सीओ(सदर) सुमित शुक्ला के समने मेहरबान अली हत्याकांड की साजिश बेनकाब हो गई. जाहिदा के अपने बहनोई से थे अवैध संबंध जाहिदा ने बताया कि उस के नाजायज संबंध मुजफ्फरनगर के गांव तावली में रहने वाले अपने बहनोई फारुख से थे. उस के संबंधों की जानकारी जब मेहरबान अली को हुई तो उस ने जाहिदा को समझानेबुझाने की कोशिश की लेकिन बाद में जब जाहिदा नहीं मानी तो मेहरबान अली उस के साथ मारपीट करने लगे इसलिए जाहिदा के मन में अपनी पति के लिए नफरत भर गई.

इतना सब तो ठीक था, लेकिन जाहिदा ने अपनी बेटियों को भी अपने रंग में ढालना शुरू कर दिया. मेहरबान अली धार्मिक प्रवृत्ति के थे उन्हें बेटियों का आधुनिक फैशन करना और बेपर्दा हो कर घर से निकलना पसंद नहीं था. वह उन के आधुनिक फैशन पर रोकटोक लगाते थे. इसलिए उन की बेटियां भी उन के से तंग थीं. वे भी अपनी मां की तरह चाहने लगीं कि ऐसे पिता उन की जिंदगी में न रहे. आए दिन मेहरबान अली की टोकाटाकी और अपने बहनोई से मेलजोल में बाधा बनने की वजह से जाहिदा ने करीब 6 महीने पहले अपने पति मेहरबान अली की हत्या कराने की साजिश रचनी शुरू कर दी

वह इस बात की कोशिश कर रही थी कि किसी तरह पति रास्ते से हट जाएगा तो उन की जगह अनुकंपा के आधार पर बेटी जीनत को नौकरी पर लगवा दिया जाएगा. इस से उस का रास्ता भी साफ हो जाएगा और परिवार की गुजरबसर भी होती रहेगी. पति की हत्या कराने के लिए जाहिदा ने 6 महीने पहले अपने बहनोई फारुख के गांव के रहने वाले तहसीन तथा कासिम से बात की. वे दोनों फारुख के दूर के रिश्तेदार भी थे

जाहिदा ने उन से एक लाख रुपए में सौदा तय कर लिया. इस के लिए वह सही मौके का इंतजार करने लगी. जिस के लिए वह अकसर उन दोनों से फोन पर बात करती रहती. इधर जीनत से एकतरफा प्यार करने के कारण अरशद ने जब सना की हत्या कर दी तो मेहरबान अली ने पत्नी और बेटियों पर ज्यादा सख्ती करनी शुरू कर दी. भाड़े के हत्यारों से कराया था कत्ल जाहिदा को लगा कि इस काम को अब जल्द अंजाम देना होगा. सना की भले ही हत्या हो चुकी थी लेकिन वह जानती थी कि मेहरबान अली की मौत हो जाएगी तो जीनत को ये नौकरी मिल जाएगी. लिहाजा इस के लिए 23 जून, 2018 जाहिदा ने तहसीन और कासिम को फोन कर के मुजफ्फरनगर से शाहजहांपुर बुला लिया

क्योंकि उस दिन सुबह उस का दामाद अनीस शहर से बाहर जाने वाला था और उस के होने पर बारदात को अंजाम देना आसान था. जाहिदा के बुलाने पर तहसीन और कासिम शाहजहांपुर गए. और सुबह करीब साढ़े 10 बजे घर में पहुंचे. उस वक्त मेहरबान अली खाना खा कर रात की ड्यूटी से थका होने के कारण बिस्तर पर जा लेटे थे और जल्द ही गहरी नींद में सो गए. तहसीन और कासिम ने गहरी नींद में सोए हुए मेहरबान अली का गला दबा दिया. बचने की कोई गुंजाइश न रहे, इसलिए उन्होंने उन के सिर को कई बार दीवार से दे कर मारा. जिस से उन के सिर में चोट आई. इस के बाद रात को उन्होंने करीब साढ़े 10 बजे मेहरबान अली की बाइक पर ही डैडबौडी को बीच में बैठाने की स्थिति में रखा और लाश 400 मीटर दूर नाले में ले जा कर डाल दी. लेकिन इस से पहले उन्होंने मेहरबान अली के शरीर पर वही कपड़े पहना दिए जिन्हें पहन कर वह ड्यूटी जाते थे.

हाथ में घड़ी और जेब पर्स डाल कर ऐसा बना दिया ताकि लगे कि वह वाकई अपनी ड्यूटी पर गया हो. जाहिदा ने अपने पति के वेतन में से 50 हजार रुपए भाडे़ के कातिलों को एडवांस के रूप में दे दिए. 5 जून, 2018 को ही मेहरबान अली अपनी सैलरी 68 हजार 500 रुपए निकाल कर घर लाए थे. वह पैसे उस ने जाहिदा को दिए थेजाहिदा ने उसी रकम में से 50 हजार रुपए हत्यारों को दिए थे. शेष रकम उस ने जल्द ही देने का आश्वासन दिया था और उन से यह भी कह दिया था कि वह उस से संपर्क करें. काम निपटाने के बाद रात को ही अपने घर चले गए थे.

दरोगा की पत्नी और बेटियां हुईं गिरफ्तार जाहिदा ने अपने नाजायज रिश्तों को बनाए रखने के लिए पति मेहरबान अली को रास्ते से हटाने की साजिश तो पुख्ता रची थी लेकिन वह यह बात शायद नहीं जानती थी कि अपराध चाहे कितनी भी चालाकी से क्यों न किया जाए, एक एक दिन वह खुल ही जाता है. कहते हैं कि कातिल कितना भी चालाक हो वह कोई चूक कर ही जाता है. जरूरी पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ने जाहिदा और उस की चारों बेटियों को अदालत में पेश किया जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. उन के जेल भेजने के बाद थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा को आशंका थी कि हत्याकांड का खुलासा होने के बाद कहीं भाड़े के हत्यारे पुलिस के चंगुल से दूर हो जाएं इसलिए शाहजहांपुर एसपी सुभाषचंद्र शाक्य ने एसएसपी मुजफ्फरनगर अनंत देव को वारदात की जानकारी देते हुए तावली गांव में रहने वाले दोनों आरोपियों तहसीन और कासिम को तुरंत गिरफ्तार कराने का अनुरोध किया.

तावली गांव शाहपुर थानाक्षेत्र में आता था. पता चला कि तहसीन और कासिम इलाके के शातिर बदमाश हैं. उन के ऊपर जिला पुलिस ने 5-5 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित किया हुआ थाएसएसपी मुजफ्फरनगर अनंत देव के निर्देश पर शाहपुर के थानाप्रभारी कुशलपाल ने उक्त दोनों बदमाशों के घर दबिश दी लेकिन वह घर पर नहीं मिले. इस के बाद मुखबिर की सूचना पर उन दोनों को एक मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार कर लिया

पूछताछ में कासिम और तहसीन ने बताया कि दोनों ने जाहिदा के कहने पर दरोगा मेहरबान अली की हत्या कर उन का शव नाले में डाला था. शाहजहांपुर पुलिस को जब उन के गिरफ्तार होने की जानकारी मिली तो उस ने मुजफ्फनगर पहुंच कर कोर्ट के द्वारा उन्हें हिरासत में ले लिया. बाद में वह उन्हें शाहजहांपुर ले आई. पुलिस ने रिमांड पर ले कर उन से विस्तार से पूछताछ की फिर कोर्ट में पेश कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया. 

फिंगर प्रिंट से बचने के लिए पॉलिथिन से प्रेमिका का दबा दिया गला

सोफिया जैसी जाने कितनी लड़कियां हैं जो फोन और इंटरनेट पर बने दोस्तों के झांसे में कर उन्हें अपना सर्वस्व मान बैठती हैं. काश! नादान सोफिया ने सचिन की फितरत को समय रहते समझ लिया होता तो वह आज जीवित होती. उन्नाव जिले के गांव हरचंदपुर के रहने वाले रफीक के परिवार में पत्नी रेहाना के अलावा 2 बेटे थे और 2 बेटियां. खेतीकिसानी के काम में ज्यादा आय होने के बावजूद रफीक चाहते थे कि उन के बच्चे पढ़लिख कर किसी लायक बन जाएं. इसीलिए उन्होंने अपनी बड़ी बेटी सोफिया को पढ़ाने में कोई कोताही नहीं की थी. सोफिया हाईस्कूल कर के आगे की पढ़ाई कर रही थी. उसे चूंकि स्कूल जाना होता था, इसलिए रफीक ने उसे मोबाइल फोन ले कर दे दिया था, ताकि वक्तजरूरत पर घर से संपर्क कर सके. नातेरिश्तेदारों के फोन भी उसी फोन पर आते थे.

जैसा कि आजकल के बच्चे करते हैं, फोन मिलने के बाद सोफिया का ज्यादातर वक्त फोन पर ही गुजरने लगा. सहेलियों को एसएमएस भेजना, उन से लंबीलंबी बातें करना उस की आदत में शुमार हो गया. यहां तक कि उस के मोबाइल पर कोई मिसकाल भी आती तो वह उस नंबर पर फोन कर के जरूर पूछती कि मिसकाल किस ने दी. एक दिन सोफिया के फोन पर एक मिसकाल आई तो उस ने फोन कर के पूछा कि वह किस का नंबर है. वह नंबर लखनऊ के यासीनगंज स्थित मोअज्जम नगर के रहने वाले सचिन का था. उस ने सोफिया को बताया कि किसी और का नंबर लगाते वक्त धोखे से उस का नंबर मिल गया होगा और काल चली गई होगी

बातचीत हुई तो सचिन ने सोफिया को अपना नाम ही नहीं, बल्कि यह भी बता दिया कि वह लखनऊ के मोअज्जमनगर का रहने वाला है. बात हालांकि वहीं खत्म हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सोफिया को सचिन की बातें इतनी अच्छी लगीं कि उस ने उस का नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया. सचिन को भी सोफिया से बात करना अच्छा लगा था. इसलिए उस ने भी बिना नाम के ही उस का नंबर अपने मोबाइल फोन में सेव कर लिया था. करीब एक हफ्ते बाद अचानक सचिन का फोन आया तो मोबाइल स्क्रीन पर उस का नाम देख कर सोफिया खुशी से उछल पड़ी. उस ने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘मैं सचिन बोल रहा हूं. पहचाना मुझे?’’

 ‘‘तुम्हारा नंबर मेरे मोबाइल में सेव है.’’ सोफिया ने खुश हो कर कहा, ‘‘तुम्हारी आवाज सुनने से पहले ही पता चल गया था कि तुम हो. कहो, कैसे हो सचिन?’’

‘‘अरे वाह, तुम ने मेरा नंबर सेव कर रखा है. मैं तो डर रहा था कि कहीं बुरा मान जाओ. इसलिए फोन भी नहीं किया.’’ सचिन ने कहा तो सोफिया बोली, ‘‘बुरा क्यों मानूंगी, तुम ने ऐसा कुछ तो कहा नहीं था, जो बुरा मानने लायक हो.’’

सोफिया की खुशी से खनकती आवाज सुन कर सचिन को लगा कि लड़की उस से बातचीत करने में रुचि ले रही है. इसलिए उस ने इस सिलसिले को आगे बढ़ाने के लिए कहा, ‘‘मैं खुशनसीब हूं, जो तुम ने मेरे दोबारा फोन करने का बुरा नहीं माना. पर हो सकता है, अब बुरा मान जाओ.’’

‘‘क्यों, मैं भला बुरा क्यों मानूंगी?’’

‘‘इसलिए कि मैं यह जानना चाहता हूं कि मैं जिस से बात कर रहा हूं, उस का नाम क्या है. बोलो, बताओगी?’’

‘‘इस में बुरा मानने की क्या बात है. मेरा नाम सोफिया है और मैं उन्नाव के गांव हरचंदपुर की रहने वाली हूं.’’

‘‘जब इतना बता दिया है तो फिर यह भी बता दो कि करती क्या हो, दिखती कैसी हो? और भी कुछ बताना चाहो तो वह भी.’’ सचिन ने सोफिया को बातों के जाल में उलझाने के लिए कहा तो सोफिया हलकी सी हंसी के साथ बोली, ‘‘मैं हाईस्कूल कर चुकी हूं, आगे पढ़ रही हूं. मुझे फोन पर बात करना बहुत अच्छा लगता है. रही बात दिखने की तो मेरी आवाज से खुद ही अंदाजा लगा लो कि मैं कैसी दिखती हूं.’’

‘‘तुम्हारी आवाज और मेरा दिल, दोनों ही एक बात कह रहे हैं कि तुम बहुत खूबसूरत होगी. खूबसूरत आंखें, गोरा रंग, छरहरा बदन.’’ सचिन ने कहा तो सोफिया हंसते हुए बोली, ‘‘तुम ज्योतिषी हो क्या? बिना देखे ही मेरे बारे में सारी बातें पता चल गईं.’’

सोफिया की इस बात से सचिन को उस में और भी दिलचस्पी बढ़ गई. वह उस से लंबी बात करना चाहता था. लेकिन सोफिया को स्कूल जाना था. इसलिए उस ने सचिन से कहा, ‘‘अभी नहीं, पढ़ाई भी जरूरी है. फोन करना हो तो रात में करना. तब आराम से बात हो जाएगी.’’ रात को फोन करने की बात सुन कर सचिन मन ही मन खिल उठा. उस का वह दिन बड़ी बेचैनी से गुजरा. रात हुई तो उस ने सोफिया को फोन किया. सोफिया सचिन के ही फोन का इंतजार कर रही थी. उसे पूरा यकीन था कि वह फोन जरूर करेगा. उस ने सचिन से बड़े प्यार से बात की. प्यार की सही परिभाषा को समझने वाला उस का किशोर मन समझ रहा था कि सचिन उसे प्यार करने लगा है. इसलिए वह प्यार की ही बातें करना चाहती थी.

उस रात बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर आगे बढ़ता ही गया. अब सोफिया रात को रोजाना उस के फोन का इंतजार करती थी. इस के लिए दोनों के बीच समय तय थाकामकाज से निपट कर रात में जैसे ही वह अपने कमरे में जाती, सचिन का फोन जाता. वह कानों में ईयरफोन लगा कर उस से देर तक बातें करती रहती. अब रात में वह अपना फोन साइलेंट मोड पर रखने लगी थी. उधर सचिन जो भी कमाता था, उस में से उस का ज्यादातर पैसा फोन पर ही खर्च होने लगा था

एक दिन बातों ही बातों में सचिन ने कहा, ‘‘सोफिया, मुझे तुम से प्यार हो गया है. अब मैं तुम्हारे बिना रह नहीं पाऊंगा.’’ दरअसल इस बीच सोफिया की बातों से सचिन ने अंदाजा लगा लिया था कि जब तक वह सोफिया से प्यार की बात नहीं करेगा, वह उस के चंगुल में नहीं फंसेगी. इसीलिए उस ने यह चाल चली थी. सोफिया तो कब से उस के मुंह से यही सुनने को तरस रही थी. वह बोली, ‘‘सचिन, जो हाल तुम्हारा है, वही मेरा भी है. मैं भी तुम से यही बात कहना चाहती थी. पर समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे कहूं. मैं गांव की रहने वाली सीधीसादी लड़की हूं. जबकि तुम शहर में रहते हो. सोचती थी कि मेरे बारे में पता नहीं क्या समझ बैठोगे, इसलिए कह नहीं पा रही थी. मैं भी तुम से उतना ही प्यार करती हूं, जितना तुम मुझ से करते हो.’’

सोफिया और सचिन भले ही दूरदूर रहते थे, पर दोनों अपने को एकदूसरे के बहुत करीब महसूस करते थे. बातों ने उन के बीच की सारी दूरियां मिटा दी थीं. सोफिया और सचिन को लगने लगा था कि अब वे एकदूसरे के बिना नहीं रह पाएंगे. 12 दिसंबर, 2013 की सुबह के 4 बजे का समय था. लखनऊ की सब से पौश कालोनी आशियाना स्थित थाना आशियाना में सन्नाटा पसरा हुआ था. थाने में पहरे पर तैनात सिपाही और अंदर बैठे दीवान के अलावा कोई नजर नहीं रहा था. तभी साधारण सी एक जैकेट पहने 25 साल का एक युवक थाने में आया.

पहरे पर तैनात सिपाही से इजाजत ले कर वह ड्यूटी पर तैनात दीवान के सामने जा खड़ा हुआ. पूछने पर उस ने बताया, ‘‘दीवान साहब, मैं यहां से 2 किलोमीटर दूर किला चौराहे के पास आशियाना कालोनी में किराए के मकान में रहता हूं. मेरी बीवी मर गई है, थानेदार साहब से मिलने आया हूं.’’ सुबहसुबह ऐसी खबरें किसी भी पुलिस वाले को अच्छी नहीं लगतीं. दीवान को भी अच्छा नहीं लगा. वह उस युवक से ज्यादा पूछताछ करने के बजाए उसे बैठा कर यह बात थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह को बताने चला गया. सुधीर कुमार सिंह को कच्ची नींद में ही उठ कर आना पड़ा. उन्होंने थाने में आते ही युवक से पूछा, ‘‘हां भाई, बता क्या बात है?’’

बुरी तरह घबराए युवक ने कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम सचिन है और मैं रुचिखंड के मकान नंबर ईडब्ल्यूएस 2/341 में किराए के कमरे में रहता हूं. यह मकान पीडब्ल्यूडी कर्मचारी गुलाबचंद सिंह का है. उन का बेटा अजय मेरा दोस्त है. जिस कमरे में मैं रहता हूं, वह मकान के ऊपर बना हुआ है. मेरी पत्नी ने मुझे दवा लेने के लिए भेजा था, जब मैं दवा ले कर वापस आया तो देखा, मेरी पत्नी छत के कुंडे से लटकी हुई थी. मैं ने घबरा कर उसे हाथ लगाया तो वह नीचे गिर गई. वह मर चुकी है.’’

‘‘घटना कब घटी?’’ सुधीर कुमार सिंह ने पूछा तो सचिन ने बताया, ‘‘रात 10 बजे.’’

‘‘तब से अब तक क्या कर रहे थे?’’ यह पूछने पर सचिन बोला, ‘‘रात भर उस की लाश के पास बैठा रोता रहा. सुबह हुई तो आप के पास चला आया.’’

सचिन ने आगे बताया कि वह यासीनगंज के मोअज्जमनगर का रहने वाला है और एक निजी कंपनी में नौकरी करता है. उस के पिता का नाम रमेश कुमार है. सचिन की बातों में एसओ सुधीर कुमार सिंह को सच्चाई नजर रही थी. मामला चूंकि संदिग्ध लग रहा था, इसलिए उन्होंने इस मामले की सूचना क्षेत्राधिकारी कैंट बबीता सिंह को दी और सचिन को ले कर पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने जब उस के कमरे का दरवाजा खोला तो फर्श पर एक कमउम्र लड़की की लाश पड़ी थी. उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह शादीशुदा रही होगी.

इसी बीच सीओ कैंट बबीता सिंह भी वहां पहुंच गई थीं. सचिन की पूरी बात सुनने के बाद उन्होंने लड़की की लाश को गौर से देखा. उन्हें यह आत्महत्या का मामला नहीं लगा. बहरहाल, घटनास्थल की प्राथमिक काररवाई निपटा कर पुलिस ने मृतका की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और सचिन को थाने ले आई. कुछ पुलिस वालों का कहना था कि सचिन की बात सच है. लेकिन बबीता सिंह यह मानने को तैयार नहीं थीं. उन्होंने मृतका के गले पर निशान देखे थे और उन का कहना था कि संभवत: उस का गला घोंटा गया है.

कुछ पुलिस वालों का कहना था कि अगर सचिन ने ऐसा किया होता तो वह खुद थाने क्यों आता? अगर उस ने हत्या की होती तो वह भाग जाता. इस तर्क का सीओ बबीता सिंह के पास कोई जवाब नहीं था. बहरहाल, हकीकत पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल सकती थी. सावधानी के तौर पर पुलिस ने सचिन को थाने में ही बिठाए रखा. इस बीच सचिन पुलिस को बारबार अलगअलग कहानी सुनाता रहा. देर शाम जब पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो इस मामले से परदा उठा. पता चला, मृतका की मौत दम घुटने से हुई थी और उसे गला घोंट कर मारा गया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखने के बाद पुलिस ने सचिन से थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो उस ने मुंह खोल दिया. सचिन ने जो कुछ बताया, वह एक किशोरी द्वारा अविवेक में उठाए कदम और वासना के रंग में रंगे एक युवक की ऐसी कहानी थी, जो प्यार के नाम पर दुखद परिणति तक पहुंच गई थी. मृतका सोफिया थी. मिसकाल से शुरू हुई सचिन और सोफिया की प्रेमकहानी काफी आगे बढ़ चुकी थी. फोन पर होने वाली बातचीत के बाद दोनों के मन में एकदूसरे से मिलने की इच्छा बलवती होने लगी थी. तभी एक दिन सचिन ने कहा, ‘‘सोफिया, हमें आपस में बात करते 2 महीने बीत चुके हैं. अब तुम से मिलने का मन हो रहा है.’’

‘‘सचिन, चाहती तो मैं भी यही हूं. लेकिन कैसे मिलूं, समझ में नहीं आता. मैं अभी तक कभी अजगैन से बाहर नहीं गई हूं. ऐसे में लखनऊ कैसे आ पाऊंगी?’’ सोफिया ने कहा तो सचिन सोफिया की नादानी और भावुकता का लाभ उठाते हुए बोला, ‘‘इस का मतलब तुम मुझ से प्यार नहीं करतीं. अगर प्यार करतीं तो ऐसा नहीं कहतीं. प्यार इंसान को कहीं से कहीं ले जाता है.’’

‘‘ऐसा मत सोचो सचिन. तुम कहो तो मैं अपना सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे पास चली आऊं?’’ सोफिया ने भावुकता में कहा.

‘‘ठीक है, तुम 1-2 दिन इंतजार करो, तब तक मैं कुछ करता हूं.’’  कह कर सचिन ने बात खत्म कर दीदरअसल वह किसी भी कीमत पर सोफिया को हासिल करना चाहता था. इस के लिए वह मन ही मन आगे की योजना बनाने लगा. सचिन का एक दोस्त था सुवेश. सचिन ने उस से कोई कमरा किराए पर दिलाने को कहा. सुवेश को कोई शक हो, इसलिए सचिन ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘दरअसल मैं एक लड़की से प्यार करता हूं और मैं ने उस से शादी करने का फैसला कर लिया है. चूंकि मेरे घर वाले अभी उसे घर में नहीं रखेंगे, इसलिए तुम किसी का मकान किराए पर दिला दो तो बड़ी मेहरबानी होगी. बाद में जब घर के लोग राजी हो जाएंगे तो मैं उसे ले कर अपने घर चला जाऊंगा.’’

सुवेश सचिन का अच्छा दोस्त था. उस की परेशानी समझ कर उस ने कहा, ‘‘मेरा एक दोस्त है अजय. उस का घर रुचिखंड में है. उस के मकान का ऊपर वाला हिस्सा खाली है. मैं उस से बात करता हूं. अगर अजय तैयार हो गया तो तुम्हें कमरा मिल जाएगा. वह 2 हजार रुपए कमरे का किराया लेगा. साथ ही एक महीने का एडवांस देना होगा.’’ सचिन इस के लिए तैयार हो गया. सुवेश ने अजय से बात की और अजय ने अपने पिता से. अजय का कोई दोस्त अपनी पत्नी के साथ रहेगा यह जान कर अजय के पिता गुलाबचंद राजी हो गए. सचिन ने कमरा देख कर एडवांस किराया दे दिया. इस के बाद उस ने 8 दिसंबर को सोफिया को फोन कर के कहा, ‘‘सोफिया, मैं तुम्हें लखनऊ बुलाना चाहता हूं. मैं 10 तारीख को तुम्हें अजगैन में मिलूंगा. हम 1-2 महीने अकेले रहेंगे. इस बीच मैं अपने घर वालों को राजी कर लूंगा और फिर तुम्हें अपने घर ले जाऊंगा.’’

सोफिया यही चाहती थी. वह पहले से ही सचिन के साथ जिंदगी जीने के सपने देख रही थी. योजनानुसार सोफिया 10 दिसंबर की सुबह अपने घर से निकली तो उस की मां ने पूछा, ‘‘आज स्कूल नहीं जाएगी क्या?’’

‘‘नहीं मां, आज दादी की दवा लेनी है, वही लेने जा रही हूं. थोड़ी देर में लौट आऊंगी.’’ कह कर सोफिया घर से निकल गई. उस ने घर से 10 हजार रुपए और चांदी की एक जोड़ी पायल भी साथ ले ली थी. अपने गांव से वह सीधी अजगैन पहुंची. सचिन उसे तयशुदा जगह पर मिल गया. उस से मिलने की खुशी में 17 साल की सोफिया अपने मांबाप की इज्जतआबरू, मानसम्मान, प्यार और विश्वास सब भूल गई. वहां से दोनों लखनऊ गए. सचिन सोफिया को अपने कमरे पर ले गया. खाना वगैरह दोनों ने बाहर ही खा लिया था.

कमरे पर पहुंचते ही सोफिया सचिन से शादी की बात करने लगी. सचिन ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘मुझ पर भरोसा रखो. हम जल्द ही शादी भी कर लेंगे. मैं तुम्हें सारी बातें पहले ही बता चुका हूं.’’  दरअसल सचिन किसी भी तरह जल्द से जल्द सोफिया को हासिल कर लेना चाहता था. गहराती रात के साथ सचिन की जवानी हिलोरें मारने लगी तो वह सोफिया के चाहते हुए भी अकेलेपन का लाभ उठा कर उसे हासिल करने की कोशिश करने लगा. सोफिया ने काफी हद तक खुद को बचाने की कोशिश की. लेकिन धीरेधीरे उस का विरोध कम हो गया और सचिन मनमानी करने में सफल रहा. सोफिया खुद को यह दिलासा दे रही थी कि आज सही कल शादी तो होनी ही है. जो शादी के बाद होना था वह पहले ही सही.

अगले दिन सोफिया सचिन से शादी करने की जिद करने लगी. जबकि सचिन चाहता था कि वह किसी तरह अपने घर वापस चली जाए. उस ने बहानेबाजी कर के उसे लौट जाने को कहा तो सोफिया बोली, ‘‘घर से भाग कर आने वाली लड़की के लिए घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाते हैं. मैं अब वापस नहीं लौट सकती.’’ 

सचिन और सोफिया का वह पूरा दिन प्यार और मनुहार के बीच गुजरा. रात गहरा गई तो सोफिया खाना खा कर सो गई. जबकि सचिन जाग रहा था. उस की समझ में नहीं रहा था कि सोफिया से कैसे पीछा छुड़ाए. उस के मन में खयाल आया कि क्यों वह गला दबा कर सोफिया को मार डाले. लेकिन उसे लगा कि इस से उस की अंगुलियों के निशान सोफिया के गले पर जाएंगे और वह पकड़ा जाएगा. आखिरकार काफी सोचविचार कर उस ने अपने हाथों पर पौलीथिन लपेट ली और सोती हुई सोफिया का गला दबाने लगा.

इस से सोफिया जाग गई और अपना बचाव करने का प्रयास करने लगी. सचिन जवान था और सोफिया से ताकतवर भी. वैसे भी वह योजना बना कर उस की हत्या कर रहा था. सोफिया एक तो शरीर से कमजोर थी, दूसरे उसे सचिन से ऐसी उम्मीद नहीं थी. इस के बावजूद वह पूरा जोर लगा कर बचने की कोशिश करने लगी. इस पर सचिन ने उस के सिर पर जोरो से वार किया. इस से वह बेहोश हो गई. सचिन को मौका मिला तो उस ने सोफिया का गला दबा कर उसे मार डाला. 

सोफिया के मरने के बाद सचिन के हाथपांव फूल गए. उस की समझ में नहीं रहा था कि वह करे तो क्या करे. रात भर वह सोफिया की लाश के पास बैठा रोता रहा. काफी सोचने के बाद जब उसे लगा कि अब वह बच नहीं पाएगा तो वह सुबह 4 बजे आशियाना थाने जा पहुंचा. उस ने अपने बचाव के लिए झूठी कहानी भी गढ़ी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट और सीओ बबीता सिंह के सामने उस का झूठ टिक नहीं सका.पुलिस ने मामले की जानकारी सोफिया के घर वालों को दी तो वे लखनऊ गए. उन लोगों ने बताया कि सोफिया किसी लड़के के साथ भाग आई थी. उन्हें सोफिया का शव सौंप दिया गया. लंबी पूछताछ के बाद सचिन के बयान की पुष्टि के लिए पुलिस ने मकान मालिक गुलाबचंद और उन के बेटे अजय उस के दोस्त सुवेश से भी पूछताछ की.

आशियाना पुलिस ने सचिन के खिलाफ भादंवि की धारा 363, 376, 302 और पोक्सो एक्ट (प्रोटेक्शन औफ चिल्ड्रन फ्राम सैक्सुअल आफेंसेज एक्ट) की धारा 3/4 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. पूछताछ के बाद उसे जेल भेज दिया गया. इस में कोई दो राय नहीं कि सचिन के पास बचने के तमाम रास्ते थे. वह सोफिया को कहीं बाजार में अकेला छोड़ कर भाग सकता था. उसे उस के घर पहुंचा सकता था. सोफिया नादान और नासमझ थी. वह 2 माह पुरानी मोबाइल की दोस्ती पर इतना भरोसा कर बैठी कि परिवार छोड़ कर लखनऊ गई. उस ने जिस पर भरोसा किया, वही उस का कातिल बन गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में सोफिया नाम परिवर्तित है.

भांजे को किडनैप कर मांगे 14 लाख और टुकडे़ करने की दी धमकी

बबीता के साथ लिव इन रिलेशन में रहने वाले रविंद्र ने मोटी रकम हासिल करने के लिए रिश्ते के भांजे प्रिंस का अपहरण कर 14 लाख रुपए की फिरौती मांगी. इस से पहले कि वह फिरौती की रकम हासिल कर प्रिंस की हत्या करता, पुलिस के जाल में फंस गया.   

चंद्रा का मायके जाने का प्रोग्राम था, इसलिए उस ने घर का अगले दिन का काफी काम शाम को ही निपटा दिया था. बचाखुचा काम अगले दिन पूरा कर के वह दोनों बच्चों सोनिया और प्रिंस को ले कर 20 नवंबर, 2013 को नोएडा से बस पकड़ कर दिल्ली गई. दिल्ली के सराय कालेखां में उस का मायका था. नानी के घर कर दोनों बच्चे बहुत खुश थे.

चंद्रा के मायके के सामने ही दिल्ली नगर निगम का पार्क था. मोहल्ले के अन्य बच्चों के साथ सोनिया और प्रिंस भी सुबह ही पार्क में खेलने के लिए निकल जाते थे. दोनों बच्चों के साथ खेलने में इतने मस्त हो जाते थे कि उन्हें खाना खाने के लिए चंद्रा को बुलाने जाना पड़ता था. चंद्रा सोचती थी कि 2-4 दिनों में वह फिर ससुराल लौट जाएगी और वहां जा कर बच्चे स्कूल के काम में लग जाएंगे, इसलिए वह बच्चों के साथ ज्यादा टोकाटाकी नहीं करती थी

24 नवंबर की सुबह भी प्रिंस रोजाना की तरह अपनी बहन सोनिया के साथ पार्क में खेलने गया. जब वह खेलतेखेलते थक गया तो पार्क के किनारे बैठ गया और अन्य बच्चों का खेल देखने लगा. उसे वहां बैठे अभी थोड़ी देर ही हुई थी कि 2 आदमी उस के पास कर खड़े हो गए. उन का चेहरा रूमाल से ढका हुआ था. उन में से एक ने प्रिंस को गोद में उठा कर उस का मुंह दबा कर उसे शौल से ढक लिया और पास खड़ी मोटरसाइकिल के पास पहुंच गए. मोटरसाइकिल को पहले से ही एक आदमी स्टार्ट किए उस पर बैठा था. वे दोनों भी मोटरसाइकिल पर उस के पीछे बैठ कर फरार हो गए.

सोनिया ने यह सब खुद अपनी आंखों से देखा, लेकिन डर की वजह से वह कुछ नहीं बोल सकी. वह भागती हुई घर पहुंची और अपनी मां चंद्रा को बताया कि कुछ लोग मोटरसाइकिल पर आए थे और भैया को पकड़ कर ले गए. उन का मुंह ढका हुआ था. सोनिया की बात सुन कर चंद्रा जल्दी से अपने भाई नरेंद्र के पास पहुंचीं, जो अपने परिवार के साथ ऊपर वाले फ्लोर पर रहते थे. चंद्रा रोते हुए सोनिया द्वारा बताई गई बात अपने भाई नरेंद्र चौधरी को बता दी.

हकीकत जान कर नरेंद्र के भी होश उड़ गए. वह फटाफट घर से बाहर निकला और प्रिंस को सभी संभावित जगहों पर ढूंढ़ने की कोशिश की. मोहल्ले के जिन लोगों को पता चला, वे भी उसे इधरउधर खोजने निकल गए. जब काफी देर की खोजबीन के बाद भी प्रिंस का कहीं पता नहीं चला तो चंद्रा नरेंद्र के साथ सनलाइट कालोनी थाने पहुंची. थाने में नरेंद्र चौधरी ने पुलिस को सारी बातें बता कर 7 वर्षीय प्रिंस का हुलिया बता दिया. पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भादंवि की धारा 363 के तहत अपहरण का मुकदमा दर्ज कर के प्रिंस की तलाश शुरू कर दी.

काफी कोशिशों के बावजूद पुलिस को प्रिंस का कहीं पता नहीं चल पा रहा था. चूंकि चंद्रा के पास प्रिंस की कोई तसवीर नहीं थी, इसलिए तलाश करने में और भी ज्यादा असुविधा हो रही थी. प्रिंस को गायब हुए 24 घंटे से भी ज्यादा गुजर चुके थे. बेटे का कोई सुराग मिलने पर चंद्रा की रोरो कर आंखें सूज गई थीं. 26 नवंबर की रात करीब पौने 8 बजे पड़ोस में रहने वाले एक आदमी ने कर नरेंद्र चौधरी को बताया, ‘‘अभीअभी किसी ने मेरे मोबाइल पर फोन कर के पूछा है कि आप के पड़ोस में कोई बच्चा गायब हुआ है क्या?’’

नरेंद्र ने सोचा कि हो सकता है जिस आदमी ने फोन किया हो उसे प्रिंस मिल गया हो, इसलिए जिस नंबर से फोन आया था, उन्होंने वह नंबर मिलाया. लेकिन उस नंबर का मोबाइल स्विच्ड औफ था. थोड़ी देर बाद उसी पड़ोसी के नंबर पर फिर काल आई. इस बार नरेंद्र ने फोन रिसीव किया.

 ‘‘क्या तुम्हारा कोई बच्चा अगवा हो गया है?’’ दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने पूछा.

 ‘‘हां जी, मेरा भांजा अगवा हुआ है. आप जानते हैं उस के बारे में?’’ नरेंद्र ने उत्सुकता से पूछा.

 ‘‘अगर तुम्हें बच्चा सहीसलामत और जिंदा चाहिए तो जैसा हम कहते हैं, वैसा करो.’’ दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने कड़कती आवाज में कहा.

 ‘‘हां जी, बताइए आप क्या चाहते हैं?’’ नरेंद्र ने पूछा.

 ‘‘फौरन 14 लाख रुपए का इंतजाम करो और बच्चा ले जाओ. और हां, एक बात ध्यान से सुनो. तुम ने ज्यादा होशियारी की या पुलिस को कुछ भी बताया तो समझो बच्चा हाथ से गया.’’

 ‘‘जी, मैं समझ गया. मैं पुलिस के पास नहीं जाऊंगा. आप लोग बच्चे को कुछ मत करना, मैं पैसों का बंदोबस्त कर दूंगा. लेकिन 14 लाख रुपए बहुत ज्यादा हैं. आप कुछ कम नहीं कर सकते?’’ नरेंद्र ने गुजारिश करते हुए कहा.

 ‘‘ठीक है, हम सोच कर बताते हैं.’’ कह कर दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.

पैसे लेने के बाद भी अपहर्त्ता बच्चे को सहीसलामत दे देंगे, इस बात पर नरेंद्र को विश्वास नहीं था. इसलिए उस ने चुपके से फोन वाली बात पुलिस को बता दी. बच्चे के अपहरण की इस वारदात को पुलिस ने गंभीरता से ले कर क्राइम ब्रांच को सौंप दिया. एडिशनल डीसीपी भीष्म सिंह ने इस मामले को सुलझाने के लिए एसीपी राजाराम के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में एसआई रविंदर तेवतिया, रविंद्र वर्मा, एन.एस. राना, एएसआई धर्मेंद्र, हेडकांस्टेबल विक्रम दत्त, अजय शर्मा, दिनेश, कांस्टेबल मोहित, मनोज, प्रेमपाल, सुरेंदर, राकेश, देवेंद्र, कुसुमपाल, उदयराम और सुरेंद्र आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले उस मोबाइल फोन की जांच की, जिस से अपहर्त्ताओं ने फोन किए थे. इस से पता चला कि उस की लोकेशन सराय कालेखां की रही थीबच्चा सराय कालेखां से ही उठाया गया था और उसी इलाके में अपहर्त्ताओं के फोन की लोकेशन रही थी. पुलिस को लगा कि बच्चे को शायद वहीं कहीं छिपा कर रखा गया है. इसलिए पुलिस ने वहां के हर घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी. लेकिन वहां बच्चा नहीं मिला. पुलिस के पूछने पर प्रिंस के घर वालों ने अपने एक परिचित पर शक जताया, जिस के बाद पुलिस ने उस परिचित को हिरासत में ले कर पूछताछ की. लेकिन उस से कोई सुराग हाथ नहीं लग पाया तो पुलिस ने उसे छोड़ दिया.

अगले दिन यानी 27 नवंबर को दोपहर करीब 12 बजे अपहर्त्ता ने फिर से उसी पड़ोसी के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन इस बार उन्होंने किसी दूसरे नंबर का इस्तेमाल किया था. काल नरेंद्र चौधरी ने रिसीव की. फोन करने वाले ने नरेंद्र चौधरी से सीधे पूछा, ‘‘पैसों का इंतजाम हो गया या नहीं?’’

‘‘जी, हम ने पैसों का इंतजाम कर लिया है. आप यह बताइए कि पैसे ले कर हम कहां आएं?’’

बिना कुछ कहे ही दूसरी तरफ से फोन कट गया. बाद में नरेंद्र ने वह नंबर कई बार मिलाया, लेकिन हर बार स्विच्ड औफ मिला. अब उन लोगों के अगले फोन का इंतजार करने के अलावा नरेंद्र के पास कोई दूसरा उपाय नहीं था. उसी दिन शाम को करीब 4 बजे फिर काल आई. इस बार भी अपहर्त्ता ने पैसों के इंतजाम के बारे में पूछा. नरेंद्र ने पैसे तैयार होने की बात कर पूछा कि पैसे कहां पहुंचाने हैं? अपहर्त्ता ने सिर्फ इतना ही कहा कि जगह बाद में बताएंगे. इस बार भी नए नंबर से काल आई थी.

नरेंद्र ने यह बात भी जांच टीम को बता दी. चूंकि अपहर्त्ताओं की तरफ से जो भी फोन आए, वह पड़ोसी के ही मोबाइल पर आए थे, इसलिए पुलिस को शक हो रहा था कि बच्चे को अगवा करने में किसी जानपहचान वाले का हाथ हो सकता है. 28 नवंबर को दोपहर 12 बजे के करीब अपहर्त्ताओं का फोन फिर आया. उन्होंने कहा, ‘पैसे ले कर हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंचो. वहां से 5 बजे बल्लभगढ़ जाने वाली ट्रेन पकड़ो. 5 बजे के बाद हम फिर फोन करेंगे.’’

नरेंद्र ने यह जानकारी पुलिस को दी तो सादा कपड़ों में पुलिस भी उस के साथ हो गई. पुलिस ने एक बैग में नोटों के बराबर कागज की गड्डियां रख कर नरेंद्र को दे दीं. बैग ले कर वे लोग हजरत निजामुद्दीन स्टेशन से बल्लभगढ़ जाने वाली ट्रेन में बैठ गए. जिस मोबाइल पर अपहर्त्ताओं का फोन आया था, वह फोन नरेंद्र ने अपने पास रख लिया था. ट्रेन ओखला स्टेशन से निकली ही थी कि अपहर्त्ताओं का फिर फोन गया. अपहर्त्ताओं द्वारा उन्हें फरीदाबाद रेलवे स्टेशन पर उतरने के लिए कहा गया

फरीदाबाद स्टेशन पर उतरने के 10 मिनट बाद उन्होंने फोन कर के नरेंद्र को बताया कि वह दोबारा ट्रेन पकड़ कर हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पहुंच जाएं. नरेंद्र ने ऐसा ही किया. हजरत निजामुद्दीन पहुंचने के बाद फिर अपहर्त्ताओं का फोन आया कि वह ट्रेन पकड़ कर वापस फरीदाबाद जाएं. नरेंद्र और पुलिस टीम के जवान फिर से फरीदाबाद के लिए ट्रेन में बैठ गए. वे लोग इधर से उधर भागभाग कर परेशान हो गए थे. लेकिन बच्चे की खातिर वे अपहर्त्ताओं के इशारों पर नाचने को मजबूर थे. ट्रेन में बैठने के 5 मिनट बाद ही नरेंद्र के पास फिर से फोन आया. इस बार अपहर्त्ताओं ने कहा, ‘‘तुगलकाबाद में पैसों का बैग चलती ट्रेन से नीचे फेंक देना.’’

 ‘‘आप लोग कोई एक जगह बताओ, हम आप को वहीं पैसे दे देंगे. इस तरह से परेशान मत करो. हम वैसे भी बहुत परेशान हैं.’’ नरेंद्र ने गुजारिश की.

 ‘‘अगर बच्चा जिंदा चाहिए तो जैसा हम कहते हैं करते रहो, वरना बच्चे से हाथ धो बैठोगे.’’

 ‘‘नहीं, आप बच्चे को कुछ मत करना. और हां, आप लोग हमें बच्चे की आवाज सुना दो, जिस से हमें विश्वास हो जाए कि बच्चा तुम्हारे पास ही है.’’

 ‘‘आवाज क्या सुनाएं, पैसे मिलने पर हम बच्चा ही वापस कर देंगे. लेकिन फिलहाल वही करो, जो हम कह रहे हैं.’’

अपहर्त्ताओं के कहने पर नरेंद्र चौधरी और पुलिस वाले फिर फरीदाबाद रेलवे स्टेशन पर उतर गए. उस समय रात के 10 बज चुके थे. नरेंद्र ने स्टेशन पर इधरउधर देखा. लेकिन उन्हें कोई नजर नहीं आया. जिन नंबरों से अपहर्त्ताओं के फोन रहे थे, नरेंद्र ने उन्हें मिलाए. लेकिन सभी स्विच औफ मिले. इस का मतलब फोन पर बात करते ही वे उस का स्विच औफ कर देते थे. काफी देर इंतजार करने के बाद अपहर्त्ता का फोन आया. उस ने कहा कि अब वापस हजरत निजामुद्दीन चले जाओ और तुगलकाबाद के आगे रास्ते में रुपयों का बैग फेंक देना.

तुगलकाबाद से आगे किस खास जगह बैग फेंकना था, यह बात उन्होंने फोन पर नहीं बताई थी, इसलिए नरेंद्र चौधरी ने रास्ते में बैग नहीं फेंका. वह वापस हजरत निजामुद्दीन पहुंच गए. उधर क्राइम ब्रांच की एक टीम इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस के जरिए अपहर्त्ताओं द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे फोन नंबरों की जांच में लगी थी. उन की लोकेशन तुगलकाबाद इलाके की ही रही थी. हजरत निजामुद्दीन लौटने के बाद नरेंद्र चौधरी क्राइम ब्रांच औफिस पहुंचे तो इंसपेक्टर सुनील कुमार ने बताया, ‘‘हमें अपहर्त्ताओं का सुराग मिल चुका है. लेकिन अभी भी हालात गंभीर हैं, क्योंकि बच्चा उन की कैद में है. हमें उम्मीद है कि कल सुबह तक आप का भांजा आप के पास होगा.’’

इस दौरान पुलिस ने जांच में यह पाया कि अपहर्त्ता अलगअलग नंबरों से नरेंद्र चौधरी को फोन करने के बाद एक दूसरे मोबाइल नंबर पर तुरंत काल करते थे. जिस नंबर पर वे काल करते थे, उस नंबर को पुलिस ने सर्विलांस पर लगा कर ट्रेस करना शुरू कर दिया था. उस नंबर की लोकेशन बदरपुर बार्डर स्थित बाबा मोहननगर की आ रही थी और वह नंबर सराय कालेखां निवासी रविंद्र के नाम पर लिया गया था. एक पुलिस टीम उस पते पर पहुंची तो वहां रविंद्र नहीं मिला. पुलिस ने अपने कुछ खास मुखबिरों को भी बाबा मोहननगर इलाके में लगा दिया. इसी दौरान एक मुखबिर ने पुलिस को सूचना दी कि बाबा मोहननगर की गली नंबर 6 स्थित मकान नंबर 21 की पहली मंजिल पर कुछ लोग ठहरे हुए हैं. उन के साथ 2 औरतें और एक बच्चा भी है.

मुखबिर द्वारा दी गई जानकारी पुलिस के लिए बहुत खास थी, इसलिए इंसपेक्टर सुनील कुमार ने तुरंत एसआई रविंद्र तेवतिया, रविंद्र वर्मा, एन.एस. राणा, कांस्टेबल मोहित और मनोज को बदरपुर के बाबा मोहननगर इलाके में भेज दिया. उस समय रात के 12 बजने वाले थे. पुलिस टीम मुखबिर द्वारा बताए पते पर पहुंच गई. पुलिस को वहां पर बबीता और अंजलि नाम की 2 युवतियां मिलीं. वहीं पर एक कोने में डरासहमा एक बच्चा भी बैठा था. पुलिस ने तुरंत उस बच्चे को अपनी सुरक्षा में ले कर उस का नाम पूछा तो उस ने अपना नाम प्रिंस बताया. प्रिंस को सहीसलामत बरामद कर के पुलिस बहुत खुश हुई.

पुलिस ने दोनों युवतियों से उन के साथियों के बारे में पूछा तो उन्होंने पुलिस को सब कुछ बता दिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने पहले तो बाबा मोहननगर की ही एक जगह से रविंद्र को गिरफ्तार किया. फिर उस के साथी संदीप और अनिल को सिब्बल सिनेमा के पास से धर दबोचा. पांचों आरोपियों को पुलिस टीम क्राइम ब्रांच ले आई. इंसपेक्टर सुनील कुमार ने नरेंद्र चौधरी को फोन कर के बुला लिया. नरेंद्र और चंद्रा रात के 1 बजे ही क्राइम ब्रांच पहुंच गए. वहां प्रिंस को देख कर दोनों बहुत खुश हुए. चंद्रा उसे अपने सीने से लगा कर रोने लगी.

पुलिस ने दोनों को जब अपहर्त्ताओं से मिलाया तो नरेंद्र चौधरी देखते ही बोला, ‘‘रविंदर, तू..? तूने प्रिंस को अगवा किया था? भाई, तू इतना गिर गया कि…’’

‘‘आप इसे जानते हैं?’’ एसआई एन.एस. राणा ने बात काट कर बीच में ही पूछा.

 ‘‘जानता हूं सर, यह रिश्ते में मेरा भाई लगता है. इस से सारा परिवार परेशान है.’’

रविंद्र सिर झुकाए चुपचाप खड़ा सब कुछ सुनता रहा. पुलिस ने पांचों आरोपियों से पूछताछ की तो पता चला कि सारी घटना का मास्टरमाइंड खुद प्रिंस का मामा रविंद्र ही था.

रविंद्र उर्फ रवि गुर्जर सराय कालेखां में रहने वाले महिपाल का बेटा है. मातापिता के अलावा परिवार में रविंद्र के 3 भाई और भी हैं. वह सब से छोटा है. बेरोजगार रविंद्र आवारागर्दी और अपने साथियों के साथ छोटीमोटी चोरी जैसी घटनाओं को अंजाम दिया करता था. उस की इन्हीं हरकतों से परिवार के दूसरे लोग परेशान रहते थे. वह कोई अपराध कर के फरार हो जाता तो पुलिस उस के घर वालों को तंग करती थी. इसी वजह से उस के घर वालों ने उस से संबंध खत्म कर लिए थे. अनिल और संदीप उस के गहरे दोस्त थे.

22 वर्षीय अनिल दिल्ली के गौतमपुरी इलाके में रहता था. 12वीं पास करने के बाद वह रविंद्र की संगत में पड़ गया था. जबकि रविंद्र का तीसरा दोस्त संदीप दिल्ली के ही कोटला मुबारकपुर इलाके में रहता था. तीनों ही अविवाहित और आवारा थे. रविंद्र और संदीप अकसर गौतमपुरी में अनिल के पास आते रहते थे. इसी दौरान रविंद्र की मुलाकात बबीता से हुई. बबीता अपनी बड़ी बहन अंजलि के साथ बाबा मोहननगर, बदरपुर, दिल्ली में किराए पर रहती थी. दोनों सगी बहनें मूलरूप से उत्तराखंड के कस्बा धारचुला की रहने वाली थीं.

बबीता अविवाहित थी और अंजलि शादीशुदा. किसी वजह से बबीता का अपने पति प्रमोद से संबंध टूट गया था तो वह मायके चली आई थी. करीब 8 महीने पहले अंजलि और बबीता काम की तलाश में दिल्ली आई थीं और बदरपुर क्षेत्र में दोनों एक दरजी के यहां कपड़ों की सिलाई करने लगी थीं. वहां से होने वाली आमदनी से उन का खर्च चल रहा था. एक दिन बबीता की मुलाकात रविंद्र से हुई तो रविंद्र ने उसे अपने दिल में बसा लिया. इस के बाद वह उस दुकान के आसपास मंडराने लगा, जहां बबीता काम करती थी. धीरेधीरे बबीता का झुकाव भी रविंद्र की ओर हो गया. दोनों ने एकदूसरे को अपने फोन नंबर भी दे दिए. जल्दी ही दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. यहां तक कि उन के बीच जिस्मानी संबंध भी कायम हो गए. उन के दिलों में पनपी मोहब्बत पूरे शबाब पर थी.

रविंद्र ने अपने दोस्त अनिल की मदद से अंजलि और बबीता को बदरपुर में ही दूसरी जगह किराए पर मकान दिलवा दिया और वह खुद भी उन दोनों के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगा. चंद्रा दिल्ली के सराय कालेखां इलाके में रहने वाले रामपथ चौधरी की बेटी थी. रामपथ चौधरी की चंद्रा के अलावा एक बेटा नरेंद्र चौधरी और 2 बेटियां थीं. वह सभी बच्चों की शादी कर चुके थे. नरेंद्र चौधरी का दूध बेचने का धंधा था. करीब 15 साल पहले उन्होंने चंद्रा का ब्याह नोएडा सेक्टर-5 स्थित हरौला गांव में रहने वाले महावीर अवाना के साथ किया था. महावीर अवाना प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था.

शादी के कुछ सालों तक महावीर और चंद्रा के बीच सब कुछ ठीक रहा, लेकिन बाद में उन के बीच मनमुटाव रहने लगा. इस की वजह यह थी कि वह शराब पीने का आदी था. चंद्रा शराब पीने को मना करती तो वह उस के साथ गालीगलौज करता और उस की पिटाई कर देता था. रोजरोज पति की पिटाई से परेशान हो कर चंद्रा अपनी मां के पास जाती थी. इस दरम्यान वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. उस की बेटी सोनिया 11 साल की और बेटा प्रिंस 7 साल का था. सोनिया 5वीं में पढ़ रही थी और प्रिंस यूकेजी में. कुछ दिन मां के यहां रहने के बाद चंद्रा ससुराल लौट जाती थी.

20 नवंबर, 2013 को भी चंद्रा बच्चों के साथ मायके आई थी. नानी के यहां कर बच्चे बहुत खुश थे, क्योंकि यहां वे एमसीडी के पार्क में मोहल्ले के अन्य बच्चों के साथ जी भर कर खेलते थे. दूसरी ओर नरेंद्र के रिश्ते का भाई रविंद्र कोई कामधंधा नहीं करता था. उस का खर्चा बबीता ही उठाती थी. एक दिन अंजलि ने रविंद्र से कहा, ‘‘तुम बबीता के साथ बिना शादी किए पतिपत्नी की तरह रह रहे हो. वह कमाती है और तुम खाली रहते हो. आखिर ऐसा कब तक चलेगा. तुम कोई काम क्यों नहीं करते?’’

रविंद्र भी कोई काम करना चाहता था, लेकिन काम शुरू करने के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. वह सोचता था कि कहीं से मोटी रकम हाथ लग जाए तो वह कोई कामधंधा शुरू करे. यह बात उस ने अंजलि और बबीता को बताई. काम शुरू करने के लिए रविंद्र 1-2 लाख रुपए की बात कर रहा था. इतने पैसे दोनों बहनों के पास नहीं थे. रविंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह ऐसा क्या करे, जिस से उस के हाथ मोटी रकम लग जाए. काफी सोचने के बाद उस के दिमाग में एक योजना आई तो वह उछल पड़ा. उस ने उन दोनों से कहा, ‘‘मैं ने एक योजना सोची है, अगर तुम मेरा साथ दो तो वह पूरी हो सकती है.’’

 ‘‘क्या योजना है?’’ अंजलि ने पूछा.

 ‘‘हम किसी बच्चे का अपहरण कर लेंगे. फिरौती में जो रकम मिलेगी, उस से हम कोई अच्छा काम शुरू कर सकते हैं. काम जोखिम भरा है, लेकिन अगर सावधानी से किया जाएगा तो जरूर सफल होगा. काम हो जाने पर हम दिल्ली से कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसा लेंगे.’’

 ‘‘अगर कहीं पुलिस के हत्थे चढ़ गए तो सारी उम्र जेल में चक्की पीसनी पड़ेगी.’’ अंजलि और बबीता ने कहा.

 ‘‘पुलिस को पता तो तब चलेगा, जब हम उस बच्चे को जिंदा छोड़ेंगे. मैं ने पूरी योजना तैयार कर ली है.’’ रविंद्र ने अपने मन की बात बता दी.

 ‘‘मगर अपहरण करोगे किस का?’’

 ‘‘सराय कालेखां में नरेंद्र की बहन चंद्रा अपने बच्चों के साथ आई हुई है. मैं चाहता हूं कि नरेंद्र के भांजे प्रिंस को किसी तरह उठा लें. उस से हमें मोटी रकम मिल सकती है.’’

 बबीता और अंजलि भी उस की बात से सहमत हो गईं. रविंद्र प्रिंस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए बड़ा सा एक ट्रैवलिंग बैग भी ले आया. इस के बाद रविंद्र ने अपने दोस्तों अनिल और संदीप को भी पैसों का लालच दे कर अपहरण की योजना में शामिल कर लिया. संदीप के पास पल्सर मोटरसाइकिल थी, उसी से तीनों ने अपहरण की वारदात को अंजाम देने का फैसला किया. इन लोगों ने तय किया कि फिरौती मिलने के बाद वे बच्चे को मौत के घाट उतार देंगे और उस की लाश के टुकड़ेटुकड़े कर के बैग में भर कर बदरपुर के पास वाले बूचड़खाने में डाल देंगे.

पूरी योजना बन जाने के बाद तीनों प्रिंस को अगवा करने का मौका देखने लगे. 24 नवंबर, 2013 को कुछ बच्चे इलाके में बने एमसीडी पार्क में खेल रहे थे. उस वक्त प्रिंस बच्चों से अलग पार्क के किनारे चुपचाप बैठा था. रविंद्र अनिल के साथ आहिस्ता से वहां गया और उस ने प्रिंस को गोद में उठा लिया. इस से पहले कि प्रिंस शोर मचाता, उस ने उस का मुंह दबा कर उसे शौल से ढक लिया. फिर तीनों मोटरसाइकिल से फरार हो गए. उन्होंने अपने चेहरे रूमाल से ढक रखे थे. सोनिया ने यह सब देख लिया था, वह भागती हुई घर गई और अपनी मां से सारी बात बता दी.

सभी आरोपियों ने पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने अनिल के पास से 6 फोन भी बरामद किए, जिन से उस ने फिरौती की काल्स की थीं. पता चला कि वे फोन भी चोरी के थे. पुलिस ने पल्सर मोटरसाइकिल के अलावा वह बैग भी बरामद कर लिया, जिस में ये लोग प्रिंस को मारने के बाद लाश के टुकड़े भर कर फेंकते. पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि फिरौती की रकम मिलती या न मिलती, वे लोग प्रिंस को मौत के घाट उतारने वाले थे, क्योंकि प्रिंस ने रविंद्र उर्फ रवि गुर्जर को पहचान लिया था. क्राइम ब्रांच ने सभी आरोपियों को 29 नवंबर, 2013 को साकेत कोर्ट में पेश कर के थाना सनलाइट कालोनी पुलिस के हवाले कर दिया

बाद में सनलाइट कालोनी थाना पुलिस ने रविंद्र उर्फ रवि, अनिल, संदीप, अंजलि और बबीता को अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में भेज दिया. कथा लिखे जाने तक सभी आरोपी जेल में बंद थे. द्य

   —कथा पुलिस सूत्रों तथा चंद्रा और नरेंद्र चौधरी के बयानों पर आधारित है.

इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

                                 

बारात से एक दिन पहले युवक ने किया प्रेमिका के साथ सुसाइड

प्रिया रज्जनलाल से प्यार करने लगी थी और उसे ही अपना जीवनसाथी बनाना चाहती थी, लेकिन दोनों का सामाजिक स्तर आड़े रहा था. ऐसे में प्रिया और रज्जनलाल ने ऐसा कदम उठाया कि…  

15साल की प्रिया लखनऊ के बंथरा कस्बे से कुछ दूर दरोगाखेड़ा के एक प्राइवेट स्कूल में 10वीं में पढ़ती थी. उस के पिता रमाशंकर गुप्ता की जुराबगंज में हार्डवेयर की दुकान थीप्रिया के अलावा रमाशंकर गुप्ता के 2 और बच्चे थे, जो अलगअलग स्कूलों में पढ़ रहे थे. प्रिया देखने में सुंदर और मासूम सी थी. घर में सब लोग उसे प्यार से मुन्नू कहते थे. घर के बच्चों में वह सब से बड़ी थी, इसलिए मातापिता उसे कुछ ज्यादा ही प्यार करते थे. घर वालों के इसी लाडप्यार में वह कुछ जिद्दी सी हो गई थी.

स्कूल में प्रिया की दोस्ती कुछ ऐसी लड़कियों से थी, जो खुद को ज्यादा मौडर्न समझने के चक्कर में प्यारमोहब्बत में पड़ गई थीं. उस की कई सहेलियों के बौयफ्रेंड थे, जिन से वे उस के सामने ही बातें करती थीं. प्रिया इन बातों से दूर रहती थी. वह अपना ज्यादा ध्यान पढ़ाई पर देती थी. लेकिन कहते हैं कि साथ रहने वाले पर थोड़ाबहुत संगत का असर पड़ ही जाता है. सुप्रिया ने कहा, ‘‘प्रिया, तू हमारी बातें तो खूब सुनती है, कभी अपने बारे में नहीं बताती. तेरा कोई बौयफ्रेंड नहीं है क्या?’’

  ‘‘नहीं, मैं इन चक्करों में नहीं पड़ती.’’

  ‘‘अच्छा, और मोबाइल.’’ आरती ने चौंकते हुए सवाल किया.

  ‘‘नहीं, अभी तो मोबाइल भी नहीं है. मैं तो तुम लोगों से अपनी मां के मोबाइल से ही बातें करती हूं.’’

  ‘‘अरे, किस जमाने में जी रही है तू. यार, यहां लोगों के पास स्मार्टफोन हैं, जिस से वे फेसबुक और वाट्सअप का उपयोग कर रहे हैं और एक तू है कि तेरे पास मोबाइल भी नहीं है.’’ आरती ने उपेक्षा से कहा. सहेली की बात प्रिया को भी चुभी. उसे लगा कि वह अपने स्कूल की सभी लड़कियों में सब से पीछे है. उस का तो कोई बौयफ्रेंड है और ही उस के पास कोई मोबाइल. वह यह सब सोच ही रही थी कि उस की दूसरी सहेली बोली, ‘‘प्रिया यह बता कि कभी तूने खुद को आईने में गौर से देखा है? जानती है जितनी तू सुंदर और समझदार है, तुझे तमाम लड़के मिल जाएंगे. उन में जो सही लगे, उसे बौयफ्रैंड बना लेना. फिर देखना, मोबाइल वह खुद ही दिला देगा.’’ 

सहेलियों की बातों ने प्रिया पर असर डालना शुरू कर दिया. वैसे प्रिया महसूस करती थी कि जब वह स्कूल आतीजाती है तो कई लड़के उसे चाहत भरी नजरों से देखते हैं. लेकिन उस ने कभी उन की तरफ ध्यान नहीं दिया. अब उन मनचलों के चेहरे उस के दिमाग में घूमने लगे. वह यह सोचने लगी कि वह किस लड़के से दोस्ती करे. प्रिया के स्कूल आनेजाने वाले रास्ते में एक लड़का हमेशा बनठन कर खड़ा रहता था. वह उम्र में उस से कुछ बड़ा था. प्रिया को और लड़कों के बजाए वह लड़का अच्छा लगा.

अगले दिन प्रिया जब घर से स्कूल के लिए निकली तो रास्ते में उसे वही लड़का मिल गया. प्रिया उसे देख कर मुसकराई तो उस लड़के की जैसे बांछे खिल गईं. वह समझ गया कि लड़की की तरफ से उसे ग्रीन सिग्नल मिल गया है. जल्दी ही वह लड़का स्कूल जाते समय मोटरसाइकिल से प्रिया के पीछेपीछे जाने लगा और उस से बातें करने का मौका तलाशने लगा. एक दिन मौका मिला तो उस ने प्रिया से बात की और उसे बताया कि उस का नाम रज्जनलाल है, वह हमीरपुर गांव का रहने वाला है. हमीरपुर बंथरा के पास ही था. इस के बाद दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई. कुछ दिनों बाद रज्जनलाल ने प्रिया के सामने प्यार का इजहार किया तो उस ने हंसी में जवाब दे कर सहमति जता दी. इस के बाद दोनों स्कूल आनेजाने के रास्ते में मिलनेजुलने लगे.

रज्जनलाल टैंपो चलाता था. प्रिया को जब उस के काम के बारे में पता चला तो उस ने रज्जनलाल को टैंपो चलाने के बजाए कोई दूसरा काम करने की सलाह दी. बात प्रेमिका की पसंदगी की थी, इसलिए उस ने अगले दिन से ही टैंपो चलाना बंद कर दिया और कोई दूसरा काम खोजने लगा. वह चूंकि ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था, इसलिए काफी कोशिश के बाद भी उसे दूसरा काम नहीं मिला. रज्जनलाल को पता था कि प्रिया के पिता रमाशंकर गुप्ता की हार्डवेयर की दुकान है. उन की दुकान पर उस का एक दोस्त काम करता था. उसी की मार्फत उसे जानकारी मिली कि रमाशंकर को अपनी दुकान के लिए एक और लड़के की जरूरत है. रज्जनलाल ने सोचा था कि अगर उन की दुकान पर उसे नौकरी मिल जाती है तो उसे प्रिया से मिलने में आसानी होगी. अपने उसी दोस्त की मार्फत रज्जनलाल ने रमाशंकर गुप्ता से नौकरी के बारे में बात की. फलस्वरूप उन के यहां उसे नौकरी मिल गई.

अगले कुछ दिनों में ही रज्जनलाल ने अपने कामकाज से रमाशंकर पर विश्वास जमा लिया. उन्हें यह पता नहीं था कि उस का उन की बेटी प्रिया के साथ कोई चक्कर चल रहा है. यही वजह थी कि कोई काम होने पर वह उसे अपने घर भी भेज देते थे. घर जाता तो वह प्रिया से भी मिल लेता था. चूंकि घर पर वह प्रिया से ज्यादा बात नहीं कर पाता था, इसलिए उस ने एक चाइनीज फोन खरीद कर प्रिया को दे दिया. इस के बाद दोनों की रात में फोन पर लंबीलंबी बातें होने लगीं. दिन में वे एकदूसरे को एसएमएस भेज कर काम चलाते. बीतते वक्त के साथ उन के बीच प्यार गहराता जा रहा था.

प्यार में फंस कर प्रिया को अपने कैरियर और मांबाप के प्यार की भी परवाह नहीं रह गई थी. सब ठीक चल रहा था कि एक दिन प्रिया की मां सपना को पता चल गया कि प्रिया का दुकान पर काम करने वाले रज्जनलाल के साथ चक्कर चल रहा है. उन्होंने प्रिया से मोबाइल छीन लिया और पति को सारी बात बता कर रज्जनलाल की दुकान से छुट्टी करवा दी. इस के बाद दोनों का एकदूसरे से संपर्क नहीं हो सका. प्रिया रज्जनलाल को अपने दिल में बसा चुकी थी, इसलिए पाबंदी लगाने के बाद भी वह उसे भुला सकी.

उधर रज्जनलाल गांव की प्रधान बिमला प्रसाद की कार चलाने लगा था. प्रिया और रज्जन एक बार फिर स्कूल आनेजाने के रास्ते में मिलने लगे. रज्जनलाल के प्यार में पड़ कर प्रिया ने केवल अपने मातापिता का विश्वास खो दिया था, बल्कि वह अपनी पढ़ाई भी नहीं कर पा रही थी. स्कूल के टीचरों और छात्रों के बीच भी उस के और रज्जनलाल के संबंध के चरचे होने लगे थे. बेटी की वजह से रमाशंकर की कस्बे में खासी बदनामी होने लगी तो उन्होंने प्रिया को डांटा और उस का स्कूल जाना बंद करा दिया. इस से रमाशंकर को लगा कि अब शायद प्रिया सुधर जाएगी और रज्जनलाल से दूरी बना लेगी.

हालांकि वह चाहते थे कि प्रिया अपनी पढ़ाई पूरी कर ले. लेकिन उस के बदम बहक जाने की वजह से उन्हें यह कठोर फैसला लेना पड़ा था. खुद के ऊपर पाबंदी लगाए जाने पर एक दिन प्रिया ने ज्यादा मात्रा में नींद की गोली खा कर जान देने की कोशिश की. यह बात रज्जनलाल को पता चली तो उसे इस बात का दुख हुआ. वह प्रिया से बात कर के उसे समझाना चाहता था. लेकिन उसे प्रिया से मिलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. ऐसे में उसे अपने उस दोस्त की याद आई, जो प्रिया के पिता की दुकान पर काम करता था. उस ने एक मोबाइल और सिम कार्ड खरीद कर उस के हाथों प्रिया के पास भिजवा दिया. इस के बाद उन दोनों के बीच फिर से बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया.

इस के साथ ही रज्जनलाल प्रिया का दीदार करने की कोशिश में उस के घर के आसपास मंडराने लगा. रमाशंकर ने जब यह देखा तो उन्होंने इस की शिकायत उस के घर वालों से की. रज्जनलाल की शिकायतें सुनसुन कर उस के घर वाले परेशान हो चुके थे. उन्होंने सोचा कि अगर रज्जनलाल की शादी कर दी जाए तो वह प्रिया को भूल जाएगा. कुछ दिनों बाद रज्जनलाल के लिए उन्नाव जिले के गांव मटियारी में रहने वाले प्रहलाद की बेटी अलका से शादी का प्रस्ताव आया. लड़की ठीकठाक थी, इसलिए घर वालों ने फटाफट उस की शादी अलका से तय कर दी. चूंकि घर वालों को शादी की जल्दी थी, इसलिए 21 फरवरी, 2014 को शादी का दिन मुकर्रर कर दिया गया. दोनों ही तरफ से शादी की तैयारियां होने लगीं.

उधर घर वालों के दबाव में रज्जनलाल शादी के लिए इनकार तो नहीं कर सका, लेकिन वह मन से इस शादी के लिए तैयार नहीं था. उस के दिल में तो प्रिया ही बसी थी. जैसेजैसे 21 फरवरी नजदीक रही थी, उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. इसी चिंता में 19-20 फरवरी की रात उसे नींद नहीं रही थी. करीब 12 बजे उस ने प्रिया के मोबाइल पर एसएमएस किया. जिस में लिखा था, ‘हम तेरे बिन अब जी नहीं सकते. हम न खुद किसी के होंगे और तुम को किसी और का होने देंगे.’ दूसरी तरफ से प्रिया ने भी उस का साथ निभाने के वादे के साथ एसएमएस किया. प्रिया का एसएमएस पाने के बाद रज्जनलाल ने मन ही मन एक खतरनाक योजना बना ली. जिस के बारे में उस ने प्रिया को भी बता दिया.

उस रात प्रिया अपनी मां के पास लेटी थी. बेटी को देख कर मां यह अंदाजा नहीं लगा पाई कि वह उन के विश्वास को तोड़ने की साजिश रच चुकी थी. देर रात जब घर के सब लोग सो गए तो करीब 1 बजे प्रिया छत के रास्ते से निकल कर घर से बाहर आ गई. योजना के अनुसार रज्जनलाल अपनी मोटरसाइकिल ले कर उस के घर से कुछ दूर कर खड़ा हो गया. प्रिया उस के पास पहुंच गई. वहां से दोनों मोटरसाइकिल से लालाखेड़ा चले गए.

बंथरा के पास स्थित लालाखेड़ा के टुडियाबाग स्थित प्राथमिक विद्यालय में एनएसएस का शिविर लगा था. इस शिविर में छात्र अपने टीचरों के साथ रुके हुए थे. 20 फरवरी, 2014 की सुबह 7 बजे के वक्त शिविर के कुछ छात्र खाना बनाने के लिए लकड़ी लेने गांव से कुछ दूर एक खेत के नजदीक पहुंचे तो वहां एक लड़की की लाश देख कर उन की चीख निकल गई. लाश औंधे मुंह पड़ी थी. छात्रों ने यह बात अपने टीचरों को बताई तो उन्होंने इस की सूचना थाना बंथरा पुलिस को दी. थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह यादव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर  पहुंच गए. तब तक वहां गांव के तमाम लोग एकत्र हो गए थे.

पुलिस ने जब लड़की की लाश सीधी की तो उसे देखते ही लोग चौंक गए. क्योंकि वह बंथरा के ही रहने वाले रमाशंकर गुप्ता की बेटी प्रिया थी. जिस जगह लाश पड़ी थी, वहीं पर एक मोटरसाइकिल खड़ी थी और एक तमंचा भी पड़ा हुआ था. पुलिस लाश का अभी मुआयना कर ही रही थी कि कुछ लोगों ने बताया कि पास के ही एक पेड़ पर एक युवक ने फांसी लगा ली है. उस की लाश महुआ के पेड़ में लटक रही है. थानाप्रभारी तुरंत उस महुआ के पेड़ के पास पहुंचे. वह पेड़ वहां से लगभग 50 मीटर दूर था. उन्होंने देखा पेड़ में बंधी लाल रंग की चुन्नी से एक युवक की लाश लटक रही है. पुलिस ने जब लाश को नीचे उतरवाया तो लोगों ने उस की शिनाख्त रज्जनलाल के रूप में की. पुलिस को लोगों से यह भी पता चला कि प्रिया और रज्जन का प्रेम संबंध चल रहा था.

2-2 लाशें मिलने की खबर आसपास के गांव वालों को चली तो सैकड़ों की संख्या में लोग वहां पहुंच गए. प्रिया और रज्जनलाल के घर वाले भी वहां पहुंच चुके थे. थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह यादव ने यह सूचना अपने अधिकारियों को दी तो लखनऊ के एसएसपी प्रवीण कुमार त्रिपाठी, एसपी (पूर्वी क्षेत्र) राजेश कुमार, एसपी (क्राइम) रविंद्र कुमार सिंह और सीओ (कृष्णानगर) हरेंद्र कुमार भी मौके पर  पहुंच गए.

सभी पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल और लाशों का मुआयना किया. प्रिया की कमर का घाव देख कर लग रहा था कि उस की हत्या वहां पड़े तमंचा से गोली मार कर की गई थी. अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि रज्जनलाल ने पहले प्रिया को गोली मारी होगी और बाद में उस ने खुद को फांसी लगाई होगी. प्रिया की लाश के पास जो मोटरसाइकिल बरामद हुई थी, पता चला कि वह रज्जनलाल की थी. पुलिस ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटा कर दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. उधर रज्जनलाल के भाई राजकुमार ने आरोप लगाया कि उस के भाई और प्रिया एकदूसरे से प्यार करते थे, इसलिए प्रिया के पिता रमाशंकर ने कुछ लोगों के साथ मिल कर प्रिया और रज्जनलाल की हत्या की है. उस ने इसे औनर किलिंग का मामला बताते हुए आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने की मांग की.

रज्जनलाल बंथरा की ग्राम प्रधान विमला कुमार की गाड़ी चलाता था. विमला के पति रिटायर पुलिस आफिसर थे. वह भी थाना पुलिस के ऊपर दबाव डालने लगे तो पुलिस ने राजकुमार की तहरीर पर रमाशंकर और उन के नौकर राजू आदि के खिलाफ भादंवि की धारा 302 और 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. दूसरी ओर प्रिया के पिता रमाशंकर का आरोप था कि रज्जनलाल उन की बेटी को बहलाफुसला कर भगा ले गया और उस की गोली मार कर हत्या कर दी. रमाशंकर गुप्ता ने इस संबंध में थानाप्रभारी को एक तहरीर भी दी. इस मामले की जांच थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह यादव खुद कर रहे थे.

20 फरवरी को जब दोनों लाशों का पोस्टमार्टम हुआ तो उस की पूरी वीडियोग्राफी कराई गई, जिस से काररवाई में पारदर्शिता बनी रहे और पुलिस के ऊपर अंगुली न उठे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रज्जनलाल के मरने की वजह फांसी के फंदे के कारण दम घुटना बताया गया. उस के शरीर पर किसी तरह की चोट का कोई निशान नहीं था. सारी हकीकत सामने आ सके इस के लिए एसएसपी प्रवीण कुमार ने एसपी रविंद्र कुमार सिंह को भी इस मामले की जांच में लगा दिया. रज्जनलाल ने हताशा में यह कदम उठा तो लिया, लेकिन ऐसा करने से पहले उस ने यह नहीं सोचा कि जिस लड़की से अगले ही दिन उस की शादी होने वाली थी, उस पर और उस के घर वालों पर क्या गुजरेगी? अलका को जब पता चला कि उस के होने वाले पति रज्जनलाल ने खुदकुशी कर ली है तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस के यहां शादी की जो तैयारियां चल रही थीं, वह मातम में बदल गईं.

पिता प्रहलाद की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे में करें तो क्या करें, ऐसे में लोगों ने उन्हें सलाह दी कि जब शादी की सारी तैयारियां हो ही चुकी हैं तो क्यों न अलका की शादी रज्जनलाल के छोटे भाई राजकुमार से कर दी जाए. प्रहलाद ने जब यह प्रस्ताव राजकुमार के सामने रखा तो उस ने सहमति जता दी. इस पर 20 फरवरी, 2014 को जिस समय रज्जनलाल के अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी, उसी समय राजकुमार 5 लोगों के साथ अलका से शादी रचाने चला गया.

जांच के बाद पुलिस ने इस मामले को आनर किलिंग की घटना मानने से इनकार कर दिया. कुछ लोगों ने पुलिस की इस बात को झुठलाते हुए पुलिस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और कानपुर लखनऊ हाईवे पर जाम लगा दिया. जाम लगाने वालों की पुलिस ने वीडियोग्राफी कराई और बड़ी मुश्किल से समझाबुझा कर जाम खुलवाया. इस के बाद पुलिस ने हाइवे जाम करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

(प्रिया परिवर्तित नाम है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

छः टुकड़े कर गटर में फेंका और मांगी 50 लाख की फिरौती

भूषण कुमार सिंह और विक्की कुमार काम की तलाश में बिहार से दिल्ली आए थे. चाहते तो उन्हें काम मिल जाता, लेकिन उन्होंने शौर्टकट चुना और अपहरण हत्या के आरोप में जा पहुंचे जेल. मूलरूप से मुजफ्फरपुर, बिहार के रहने वाले रामनाथ यादव सालों पहले काम की तलाश में दिल्ली आए थे. वह पढ़ेलिखे थे, इसलिए 

किसी अच्छी कंपनी में नौकरी ढूंढने लगे. जब उन के मनमुताबिक नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने एक सीए के यहां नौकरी कर ली. नौकरी मिल गई तो वह अपने बीवीबच्चों को भी दिल्ली ले आए और परिवार के साथ पश्चिमी दिल्ली के नांगलोई रोड पर स्थित अग्रसेन पार्क में रहने लगे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा सचिन यादव था.

21 साल का सचिन कृष्णा मंदिर नजफगढ़ के पास स्थित बालाजी कारपेट की दुकान पर नौकरी करता था. रामनाथ ने सचिन की शादी कर दी थी. करीब 2 महीने पहले ही सचिन के बेटा हुआ था. घर में बच्चे की किलकारियां गूंजने से सभी खुश थे. लेकिन इसी साल मई के दूसरे सप्ताह में उन के घर में एक ऐसी घटना घटी, जिसे यह परिवार जिंदगी भर नहीं भुला सकेगा.

दरअसल 12 मई, 2018 को सुबह करीब साढ़े 7 बजे सचिन के मोबाइल पर किसी की काल आई. फोन पर बात करने के कुछ देर बाद वह किसी के साथ बाइक पर बैठ कर निकल गया. जब 2 घंटे बाद भी सचिन घर नहीं लौटा तो घर वालों ने उस का फोन नंबर मिलाया, पर उस का फोन स्विच्ड औफ मिलासचिन वैसे तो कभी भी अपना फोन बंद नहीं करता था, पर फोन बंद आने पर घर वालों ने सोचा कि शायद उस के फोन की बैटरी डाउन हो गई होगी.

उस के एकाध घंटे बाद उन्होंने फिर से सचिन का नंबर मिलाया. इस बार भी उस का फोन बंद ही मिला. घर वालों ने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि वह उधर से ही अपनी ड्यूटी पर चला गया हो. इस बात की पुष्टि करने के लिए रामनाथ यादव ने बालाजी कारपेट की दुकान का फोन मिलाया. वहां बात करने पर पता चला कि वह दुकान पर नहीं पहुंचा है. यह जानकारी मिलने के बाद घर वालों का परेशान होना लाजिमी था. फिर तो उन्होंने उस के यारदोस्तों और जानपहचान वालों के पास फोन करने शुरू कर दिए

रामनाथ यादव पूरे दिन इधरउधर बेटे को तलाशते रहे, लेकिन कहीं से भी उस के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली. जवान बेटे के गायब होने के बात रामनाथ के परिचितों को पता लगी तो वह भी खोजने में उन की मदद करने लगे. बीचबीच में घर वाले सचिन का फोन भी मिलाते रहे लेकिन उस का फोन बंद ही मिलता रहा. सचिन की पत्नी, मां और बहनों का तो रोरो कर बुरा हाल था. 12-13 मई की रात को घर के सभी लोगों की नींद गायब थी. सभी की निगाहें दरवाजे पर ही लगी हुई थीं. 

कभीकभी तो उन के दिमाग में सचिन को ले कर तरहतरह के विचार आते. सभी लोग यह नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर सचिन मोटरसाइकिल पर बैठ कर कहां चला गया. सचिन जिस युवक के साथ गया था, उसे कोई नहीं जानता था. घर वाले सभी संभावित जगहों पर सचिन को ढूंढ चुके थे. इस के बावजूद भी 13 मई की पौ फटने के बाद वह फिर से सचिन की तलाश में जुट गए. चारों ओर से हताश होने के बाद जब उस का कहीं पता नहीं चला तो आखिर वह क्षेत्र के थाना हरिदासनगर पहुंच गए

रामनाथ ने थानाप्रभारी को सचिन के गायब होने की बात बताई. थानाप्रभारी ने सचिन की गुमशुदगी दर्ज कर ली. उस की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद उन्होंने वह सब जरूरी काररवाई की, जो किसी की भी गुमशुदगी दर्ज होने के बाद अमूमन की जाती है. मसलन सभी थानों को गुम हुए व्यक्ति का हुलिया भेजना, पैंफ्लेट छपवा कर सार्वजनिक स्थानों पर चिपकवाना आदि. अपने स्तर से पुलिस भी सचिन का पता लगाने में जुट गई. सचिन 21 साल का युवक था, इस बात को देखते हुए इस बात की भी आशंका जताई जा रही थी कि कहीं उस का किसी के साथ कोई अफेयर तो नहीं चल रहा था

हालांकि वह शादीशुदा था, लेकिन प्यारमोहब्बत के मामले में किसी का कुछ नहीं कहा जा सकता. इसलिए पुलिस उस के दोस्तों से यह जानने में लग गई कि कहीं उस का किसी लड़की के साथ कोई चक्कर तो नहीं था. दोस्तों ने थानाप्रभारी को बताया कि सचिन इस किस्म का नहीं था. और तो और वह किसी से फालतू बात तक नहीं करता था. सचिन को गायब हुए 3 दिन बीत चुके थे, तो पुलिस और ही सचिन के घर वालों को उस के बारे में कोई जानकारी मिल पा रही थी. 15 मई को सचिन की बहन ने फिर सचिन का फोन नंबर मिलाने की कोशिश की तो उस दिन उस का नंबर मिल गया. इस से बहन बहुत खुश हुई. लेकिन फोन उस के भाई के बजाय किसी और ने उठाया. बहन ने जब सचिन के बारे में पूछा तो उस व्यक्ति ने कहा कि सचिन अभी टायलेट में है.

पास में रामनाथ यादव भी थे. बेटी से हो रही बातचीत को सुन कर उन्हें लगा कि सचिन के बारे में शायद जानकारी मिल गई है. इसलिए बेटी से फोन ले कर वह खुद बात करने लगे. उन्होंने भी उस शख्स से बेटे के बारे में जानकारी हासिल करनी चाही, लेकिन वह शख्स उन्हें इधरउधर की बातें सुनाने लगा. उन्होंने जब पूछा कि वह कौन और कहां से बोल रहे हैं तो वह रामनाथ यादव से उलटीसीधी बातें करने लगा. इतना ही नहीं, वह उन्हें धमकी भी देने लगा. इस के बाद उस ने फोन काट दिया.

रामनाथ ने फिर से बेटे का नंबर मिलाया, लेकिन इस बार वह स्विच्ड औफ हो गया. वह घबरा गए कि जो शख्स उन से बात कर रहा था वह कौन था. कहीं ऐसा तो नहीं कि सचिन का किसी ने अपहरण कर लिया हो. वह घबराए हुए सीधे थाना हरिदासनगर पहुंचे और थानाप्रभारी को बात बताई. थानाप्रभारी ने उसी समय अपने फोन से सचिन का नंबर मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने सचिन यादव के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद पुलिस ने सचिन के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाने की काररवाई शुरू कर दी.

15 मई, 2018 को ही रामनाथ यादव के पास उन के बेटे सचिन के फोन से काल आई. अपने फोन स्क्रीन पर बेटे का नंबर देख कर रामनाथ यादव खुश हो गए. उन्होंने जैसे ही काल रिसीव की, तभी दूसरी ओर से किसी ने रौबदार आवाज में कहा, ‘‘तुम घबराओ मत, सचिन हमारे कब्जे में है. यदि तुम उसे सहीसलामत चाहते हो तो 50 लाख रुपए का इंतजाम कर लो, वरना सचिन की लाश कई टुकड़ों में मिलेगी.’’ ‘‘देखो जी, मैं आप के आगे हाथ जोड़ कर विनती करता हूं कि मेरे बेटे को कुछ नहीं कहना. आप चाहे मेरा सब कुछ ले लो, मगर मेरे सचिन को मुझे दे दो.’’

‘‘हम भी तो यही कह रहे हैं कि यदि बेटा जिंदा चाहिए तो 50 लाख रुपए हमें दे दो.’’ अपहर्त्ता ने कहा. ‘‘देखिए साहब, मैं एक मामूली नौकरी वाला आदमी हूं. इतने पैसे तो पूरी उमर काम कर के भी नहीं कमा सकूंगा. मेरी प्राइवेट नौकरी है. इतने पैसे भला मैं कहां से लाऊंगा.’’ रामनाथ गिड़गिड़ाए.

‘‘यदि तुम्हारा बेटा अस्पताल के आईसीयू में भरती हो और डाक्टर इलाज के 50 लाख बता रहा हो तो बताओ उसे ऐसे ही मर जाने दोगे या बचाने की कोशिश करोगे?’’ उस शख्स ने सवाल किया.

‘‘देखिए जी, मैं क्या दुनिया का हर बाप बेटे को बचाने की कोशिश करेगा लेकिन जब डाक्टर द्वारा मांगी गई वह रकम उस के बूते के बाहर की होगी तो वह हाथ खड़े कर देगा. क्योंकि यह उस की मजबूरी होगी.’’ रामनाथ यादव बोले.

‘‘बहरहाल, अब तुम देख लो कि तुम्हें पैसा प्यारा है या बेटा.’’ अपहर्त्ता ने एक तरह से धमकी दी.

‘‘देखिए साहब, मैं गरीब आदमी हूं. इतने पैसे मेरे पास नहीं हैं.’’ रामनाथ यादव ने मजबूरी जताई, ‘‘मैं अपनी हैसियत के अनुसार दे सकता हूं.’’

दोनों तरफ से बात होती रही और अंत में 4 लाख रुपए में बात तय हो गई. अपहर्त्ता ने फिरौती की रकम एशिया की सब से बड़ी आजादपुर सब्जीमंडी में ले कर आने को कहा. फिरौती मांगने पर यह स्पष्ट हो गया कि सचिन का अपहरण कर लिया गया है और इस समय वह अपहर्त्ताओं के कब्जे में हैं. घर वाले और अन्य लोग सचिन के सहीसलामत होने की कामना करने लगे. अपहर्त्ता से रामनाथ की फोन पर जो बातचीत हुई थी, उस के बारे में उन्होंने पुलिस को भी बता दिया. फिर तो पुलिस भी सक्रिय हो गई. अब पुलिस ने उस फोन नंबर पर जांच केंद्रित कर दी, जिस नंबर से फिरौती की काल आई थी. उधर अपहर्त्ता की जो 4 लाख रुपए की डील फाइनल हुई थी, पुलिस ने योजना बना कर रामनाथ को पैसे ले कर आजादपुर मंडी भेजा

पुलिस टीम भी सादा कपड़ों में रामनाथ के इधरउधर रही. लेकिन अपहर्त्ता वहां पैसे लेने नहीं आया और न ही उस ने इस के लिए रामनाथ को फिर से फोन किया. इस से यही लगा कि अपहर्त्ता को पुलिस के मौजूद होने की भनक लग गई थी. पुलिस की टैक्निकल सर्विलांस टीम ने बताया कि अपहर्त्ता ने उत्तरी दिल्ली के मजनूं का टीला इलाके से फोन कर के फिरौती मांगी थी. पुलिस मजनूं का टीला इलाके में पहुंच गई. फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस मजनूं के टीला से हरियाणा के पानीपत शहर पहुंची, लेकिन किडनैपर्स वहां भी नहीं मिले. पकड़े जाने के भय से वे बिहार भाग गए.

दिल्ली पुलिस की टीम भी पीछा करते हुए बिहार चली गई और उस ने 20 मई की रात को बिहार में एक जगह दबिश डाल कर भूषण कुमार सिंह उर्फ वरुण को हिरासत में ले लिया. उस से सचिन यादव के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि सचिन तो दिल्ली में ही है. दिल्ली में वह किस जगह पर है, पूछने पर भूषण ने बताया कि वह अब जीवित नहीं है. बल्कि उन्होंने उस की हत्या कर लाश के टुकड़े गटर में डाल दिए हैं. यह बात सुन कर पुलिस टीम को धक्का लगा. पुलिस ने भूषण से पूछताछ की तो उस ने बताया कि इस मामले में उस के साथ विक्की कुमार भी शामिल था. करीब 2 घंटे की मशक्कत के बाद पुलिस ने विक्की कुमार को भी बिहार से ही गिरफ्तार कर लिया. ये दोनों आपस में सालेबहनोई थे. 

दोनों आरोपियों को ट्रांजिट रिमांड पर ले कर टीम दिल्ली लौट आई. दिल्ली के कोर्ट में पेश करने के बाद थानाप्रभारी ने दोनों आरोपियों से पूछताछ की तो उन्होंने अपहरण की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली. भूषण कुमार सिंह और विक्की कुमार दोनों ही बिहार के रहने वाले थे. दोनों काम की तलाश में बिहार से दिल्ली आए थे. ये दोनों उसी शोरूम पर ठेके पर काम करते थे, जहां सचिन नौकरी करता था. पर वहां सचिन की नौकरी लग जाने के बाद शोरूम मालिक ने इन दोनों को काम से हटा दिया था. इन के वहां से हट जाने के बाद भी सचिन की उन से फोन पर बातचीत होती रहती थी. करीब 2 महीने पहले सचिन के घर बेटा हुआ तो उस ने इस खुशी में कुछ लोगों को घर पर पार्टी दी थी. इस पार्टी में उस ने भूषण और विक्की को भी बुलाया था.

भूषण और विक्की तो सचिन से इस बात की रंजिश रखते थे कि उस के शोरूम पर नौकरी पर लगने के बाद उन दोनों की छुट्टी हो गई थी. इस के लिए वह सचिन को ही दोषी मानते थे. इस बात का सचिन को आभास नहीं हुआ. वह तो उन्हें अपना दोस्त ही समझता था, तभी तो उस ने बेटा पैदा होने पर दोनों को अपने घर पार्टी में बुलाया था. सचिन का रहनसहन देख कर भूषण और विक्की समझने लगे कि सचिन अमीर बाप का बेटा है. उसी दिन उन्होंने सचिन को सबक सिखाने की ठान ली. उन्होंने सोचा कि यदि किसी तरह सचिन का अपहरण कर लिया जाए तो इस के बदले में मोटी फिरौती मिल सकती है. इस के बाद उन्होंने सचिन का अपहरण करने की योजना बना ली.

योजना बनाने के बाद उन्होंने 12 मई, 2018 को सुबह करीब साढ़े 7 बजे सचिन को फोन किया और भूषण मोटरसाइकिल ले कर सचिन के घर के पास पहुंच गया. चूंकि सचिन उस की योजना से अनजान था और वह उस पर विश्वास करता था, इसलिए वह उस के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर चला गया. मोटरसाइकिल से वह सचिन को दिल्ली के ओल्ड खयाला रोड पर प्रेमनगर स्थित एक कमरे पर ले गया. वह कमरा उस ने 2 दिन पहले ही किराए पर लिया था. भूषण और विक्की ने वहां उसे नशे की गोली मिली कोल्डड्रिंक पीने को दी. 

जब सचिन अर्द्धबेहोशी की हालत में हो गया तो उन दोनों ने गला दबा कर उस की हत्या कर दी. हत्या करने के बाद उन्होंने उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ कर के अपने कब्जे में ले लिया और लाश टांड पर छिपा दी. इस के बाद वे लाश को ठिकाने लगाने के उपाय खोजने लगे. लाश को वे बाहर ले कर नहीं जा सकते थे लिहाजा उन्होंने 21 वर्षीय सचिन की लाश के 6 टुकड़े किए और उन टुकड़ों को गटर में डाल दिया. लाश ठिकाने लगा कर वे निश्चिंत हो गए थे. फिर उन्होंने सचिन का फोन प्रयोग करते हुए उस के घर वालों से फिरौती मांगनी शुरू कर दी. जिस में वे सफल नहीं हो सके. 

उन्हें शक हो गया कि मामला पुलिस तक पहुंच गया है. पुलिस कभी भी उन के पास पहुंच सकती है, लिहाजा दोनों बिहार भाग गए पर दिल्ली पुलिस उन्हें वहीं से गिरफ्तार कर लाई. दोनों अभियुक्तों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर खयाला रोड, प्रेमनगर के गटर से भारी मशक्कत के बाद सचिन के शरीर के सभी टुकड़े बरामद कर लिए, जिन्हें पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए राव तुलाराम अस्पताल भेज दिया. अभियुक्त भूषण कुमार सिंह उर्फ वरुण और विक्की कुमार को गिरफ्तार कर पुलिस ने न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. पुलिस अब यह जांच कर रही है कि इस मामले में इन दोनों के अलावा कहीं कोई तीसरा तो शामिल नहीं था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

   

एक्ट्रेस ने तीसरी शादी के लिए रचा मौत का नाटक

मराठी फिल्मों  और धारावाहिकों में  काम करने वाली 2 शादियां कर चुकी 3 बच्चों की मां अलका पुनेवर को अपनी बड़ी बेटी से भी कम उम्र के आलोक पालीवाल से प्यार हुआ तो उस की पत्नी बनने के लिए उस ने अपनी ही मौत का ड्रामा रच डालामराठी फिल्मों और टीवी सीरियलों की जानीमानी सहअभिनेत्री अलका पुनेवर नाश्ता करते समय पति संजय पुनेवर से बोली, ‘‘मेरा आज का शेड्यूल बहुत बिजी है.

पहले मुझे एक स्टेज कार्यक्रम में भाग लेने के लिए नवी मुंबई के उरण जाना है. इस के बाद एक फिल्म की शूटिंग के लिए पूना जाऊंगी. जो लोग उरण में कार्यक्रम करा रहे हैं, वही थाणे रेलवे स्टेशन पर एक कार भेज देंगे. कार्यक्रम खत्म होने के बाद वही कार मुझे पूना छोड़ देगी.’’ अलका पुनेवर की इस बात पर संजय पुनेवर और उन के दोनों बच्चों को जरा भी हैरानी नहीं हुई, क्योंकि इस तरह की बातें उन के लिए आम थीं. नाश्ता करने के बाद संजय पुनेवर पत्नी को कार से थाणे रेलवे स्टेशन के पास छोड़ कर अपने औफिस चले गए. यह 27 दिसंबर, 2013 की बात है.

रात करीब 10 बजे संजय पुनेवर घर लौटे तो उन्होंने अपने बच्चों प्रतीक और पीयूष से अलका के बारे में पूछा. बच्चों ने बताया कि वह अभी नहीं लौटी हैं. अलका को शूटिंग से लौटने में कभी देर भी हो जाया करती थी, इसलिए उन्होंने सोचा कि खाना खाने के बाद वह उस से इत्मीनान से बात करेंगे. खाना खाने के बाद उन्होंने पत्नी अलका को फोन लगाया, लेकिन उस का फोन स्विच औफ बता रहा था. उन्होंने कई बार नंबर मिलाया, हर बार यही बताया गया कि डायल किया गया नंबर स्विच्ड औफ है. फोन नहीं मिला तो वह यह सोच कर सोने चले गए कि वह किसी खास काम में बिजी होगी, सुबह बात कर लेंगे.

28 दिसंबर, 2013 की सुबह जब उन की आंखें खुलीं तो उन्होंने अपने मोबाइल पर अलका का एसएमएस देखा. उन की जान में थोड़ी जान आई. वह एसएमएस सुबह साढ़े 4 बजे आया था. मगर उस एसएमएस में अलका ने यह नहीं लिखा था कि वह कहां है और घर कब लौटेगी. उस ने बेटे प्रतीक को लिखा था कि वह अपना बायोडाटा फलां कंपनी को मेल कर देअलका और संजय के जुड़वां बेटे प्रतीक और पीयूष थे, जो अब 19-19 साल के हो चुके हैं. प्रतीक इंजीनियरिंग कर रहा था और पीयूष मैनेजमेंट. एसएमएस पढ़ने के बाद संजय ने अलका को फोन किया, लेकिन इस बार भी उस के फोन ने स्विच्ड औफ बताया.

धीरेधीरे अलका को घर से गए 36 घंटे बीत चुके थे. इस बीच उस के बारे में पता नहीं चला कि वह कहां है, क्या कर रही है, कब लौटेगी? उसे ले कर संजय पुनेवर और उन के दोनों बेटे परेशान थे. संजय को अलका से शादी किए 22 साल हो चुके थे. इन 22 सालों में ऐसा पहली बार हुआ था कि आउटडोर शूटिंग पर जाने के दौरान उस का मोबाइल फोन बंद हुआ था.

संजय का धैर्य जवाब दे चुका था. किसी अनहोनी की आशंका को देखते हुए वह बच्चों के साथ पत्नी को ढूंढ़ने के लिए निकल पड़े. उन्होंने उस के सभी दोस्तों को फोन कर के उस के बारे में पूछा, नातेरिश्तेदारों के यहां भी फोन किया. लेकिन कहीं से भी उस के बारे में कोई खबर नहीं मिली. थकहार कर वह थाना कोपरी पहुंचे और थानाप्रभारी मीरा वनसोडे को पत्नी के गायब होने की सूचना दी तो थानाप्रभारी ने अलका पुनेवर की गुमशुदगी दर्ज कर ली.

मामला एक प्रतिष्ठित परिवार और फिल्म अभिनेत्री की गुमशुदगी का था, इसलिए थानाप्रभारी ने अलका पुनेवर के गायब होने की जानकारी पुलिस आयुक्त के.पी. रघुवंशी, पुलिस उपायुक्त बालासाहेब पाटिल के साथ पुलिस कंट्रोलरूम को भी दे कर खुद अपने स्तर से उस की तलाश भी करने लगीं. गुमशुदगी दर्ज करा कर संजय अभी घर लौटे ही थे कि उन के साले अमित मिश्रा का फोन आया कि मुंबई से पूना जाने वाली रोड पर गहरी खाई में एक कार गिरी मिली है, जिसे खापोली पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया है. उस कार के अंदर से अलका के कुछ कागजात बरामद हुए हैं. मैं खापोली थाने के लिए निकल रहा हूं, आप भी वहां जल्दी से पहुंचें.

खाई में कार गिरने की जानकारी थाना कोपरी के थानाप्रभारी को भी मिल चुकी थी. संजय पुनेवर उस जगह के लिए निकल पड़े, जहां खाई में कार गिरे होने की जानकारी मिली थी. उन के और उन के साले अमित मिश्रा के वहां पहुंचने से पहले कोपरी थाने की पुलिस वहां पहुंच चुकी थी. कार देखने के बाद संजय ने पुलिस को बताया कि यह कार अलका की नहीं है.

थाना खापोली पुलिस ने खाई में गिरी कार से जो कागजात बरामद किए थे, उन में अलका पुनेवर का पासपोर्ट भी था. सारे कागजातों को थाना कोपरी पुलिस ने थाना खापोली पुलिस से अपने कब्जे में ले लिए. कार की छानबीन की गई तो उस में एक भी ऐसा सुबूत नहीं मिला, जिस से लगता कि इस दुर्घटना में किसी की जान की क्षति हुई हो. इस से संजय पुनेवर की जान में जान आई.

उन्होंने राहत की सांस ली. पुलिस यह नहीं समझ पा रही थी कि जब कार खाई में गिरी तो इसे चलाने वाला कहां चला गया? और यह कार अलका की नहीं है तो और किस की है? पुलिस को इस मामले में किसी गहरी साजिश की गंध आने लगी. मामला हाईप्रोफाइल परिवार से जुड़ा था, इसलिए पुलिस कमिश्नर ने इस मामले की जांच में क्राइम ब्रांच को भी लगा दिया. क्राइम ब्रांच के चीफ हिमांशु राय के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में अपर पुलिस आयुक्त निकेत कौशिक, पुलिस उपायुक्त अंबादास पोटे, सहायक पुलिस आयुक्त प्रफुल्ल जोशी क्राइम यूनिट-1 के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक नंदकुमार गोपाले को शामिल किया गया. इस टीम ने अभिनेत्री अलका के मामले की तफ्तीश बड़ी सरगरमी से शुरू कर दी.

टीम ने अलका के पति संजय पुनेवर और उन के दोनों बेटों प्रतीक पीयूष को क्राइम ब्रांच के औफिस में बुला कर उन से अलका के बारे में गहन पूछताछ की. पुलिस ने संजय पुनेवर का वह मोबाइल फोन भी अपने कब्जे में लिया, जिस पर अलका का एसएमएस आया था. जिस फोन नंबर से वह एसएमएस भेजा गया था, उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि जिस समय संजय के फोन पर वह एसएमएस आया था, उस के चंद सेकेंड बाद वही एसएमएस एक दूसरे फोन नंबर पर भी भेजा गया था. पुलिस ने उस नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई तो जानकारी मिली कि यह नंबर किसी आलोक पालीवाल का था और वह नंबर तकरीबन 6 महीने पहले बंद हो चुका था.

अब पुलिस की जांच की दिशा बदल गई. पुलिस पता लगाने लगी कि आलोक पालीवाल कौन है? पुलिस पता लगाने की कोशिश करने लगी कि आलोक पालीवाल के फोन में अब किस कंपनी का सिम कार्ड ऐक्टिव है. फोन के आईएमईआई नंबर से पुलिस को आलोक का नया नंबर मिल गया. इस के बाद पुलिस ने उस के नए नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. इस काल डिटेल्स के अध्ययन पर चौंकाने वाली जानकारी मिली. पता चला कि उस नंबर से अलका पुनेवर की नियमित लंबी बातें होती थीं. वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक नंदकुमार गोपाले ने अलका के पति से आलोक पालीवाल के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि इस नाम का उस का कोई रिश्तेदार नहीं है और ही उन्होंने कभी अलका के मुंह से आलोक पालीवाल के बारे में कुछ सुना है.

आलोक पालीवाल की काल डिटेल्स में मिले नंबरों में से पुलिस टीम को एक नंबर पर शक हुआ. जांच में पता चला कि वह नंबर उस के दोस्त संजीव कुमार का था. पुलिस ने आलोक को डिस्टर्ब करने के बजाए संजीव कुमार को बुला लिया. उस से आलोक और अलका के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने अलका और आलोक पालीवाल की लवस्टोरी का सारा रहस्य उजागर करते हुए पूरी साजिश का खुलासा कर दिया. संजीव की निशानदेही पर क्राइम ब्रांच पुलिस चेन्नई पुलिस के सहयोग से 4 फरवरी, 2014 को अलका पुनेवर और आलोक पालीवाल को चेन्नई के एक फाइवस्टार होटल से हिरासत में ले कर पूछताछ के लिए मुंबई ले आई. पुलिस अनुमान लगा रही थी कि अलका किसी साजिश का शिकार हुई है. लेकिन अलका से की गई पूछताछ में जो जानकारी मिली, उस के अनुसार खापोली थाना के अंतर्गत खाई में जो कार गिरी थी, वह एक साजिश के तहत गिराई गई थी. इस साजिश के पीछे के इरादे का पता चलने पर सभी दंग रह गए.

50 वर्षीया अलका पुनेवर के बचपन का नाम अलका मिश्रा था. सालों पहले उस के दादापरदादा रोजीरोटी की तलाश में उत्तर प्रदेश से नागपुर (महाराष्ट्र) कर बस गए थे. धीरेधीरे यह परिवार महाराष्ट्र की भाषा और रीतिरिवाजों में रंग गया. अलका की पढ़ाईलिखाई मराठी मीडियम से हुई. वह परिवार की एकलौती बेटी थी. उस का एक छोटा भाई था अमित मिश्रा. ऐशोआराम से पलीबढ़ी अलका अतिमहत्वाकांक्षी लड़की थी. उसे बचपन से ही मराठी फिल्में और टीवी सीरियल्स देखने का शौक था, इसलिए उस का झुकाव मराठी फिल्मों और टीवी सीरियलों की तरफ अधिक था. खूबसूरत अलका मराठी फिल्म और टीवी सीरियलों में काम कर के ग्लैमर की दुनिया में चमकना चाहती थी.

जब इस बात का अलका के पिता को पता चला तो वह परेशान हो उठे. वह नहीं चाहते थे कि उन की बेटी फिल्मों या टीवी सीरियलों में काम करे. उन्होंने अलका को समझाया, लेकिन वह नहीं मानी. इसलिए अलका के पढ़ाई खत्म करते ही उन्होंने उस की शादी तय कर दी. लड़का एक जानीमानी कंपनी में अच्छी पोस्ट पर था. उस के सिर से फिल्मों का भूत उतर जाए, इसलिए घर वालों ने उसे सात फेरों के बंधन में बांध दिया.

शादी के बाद अलका को एक बेटी पैदा हुई. लेकिन फिल्मों की दीवानी अलका को शादी का बंधन रास नहीं आया. एक बच्ची की मां होने के बाद भी उस की फिगर में गजब का आकर्षण था. उस के दिमाग से फिल्मों और टीवी सीरियलों का भूत नहीं उतरा था. वह अपनी दुधमुंही बच्ची की परवाह किए बिना सिल्वर स्क्रीन पर काम करने के लिए स्ट्रगल करने लगी. पति को उस की यह बात अच्छी नहीं लगी. लिहाजा दोनों के बीच मतभेद होने से परिवार में विवाद होने लगा. फिर नौबत तलाक तक पहुंच गई.

पति से तलाक होने के बाद अलका मुंबई में अपने एक रिश्तेदार के यहां गई. अब वह अकेली थी, इसलिए काम के लिए फिल्म निर्माताओं के यहां चक्कर लगाने लगी. उस की मेहनत रंग लाई और उसे मराठी फिल्मों और टीवी सीरियलों में सहकलाकार की भूमिकाएं मिलने लगीं. कुछ दिनों बाद अलका को पति की कमी खलने लगी. तब अलका ने मुंबई के सटे जनपद थाणे के कोपरी में रहने वाले संजय पुनेवर से विवाह कर लिया. संजय पुनेवर एयरफोर्स में अधिकारी और खुले विचारों वाले आदमी थे. उन्हें अलका के मामलों से कुछ लेनादेना नहीं था और ही अलका के फिल्मों में काम करने से कोई परहेज था.

संजय पुनेवर का परिवार आधुनिक विचारों वाला था, इसलिए अलका को उस के परिवार ने स्वीकार कर लिया. फिल्मों और टीवी सीरियलों में काम करते हुए उन का दांपत्यजीवन अच्छी तरह से चल रहा था. अलका ने जुड़वां बेटों को जन्म दिया, जिन का नाम प्रतीक और पीयूष रखा गया. संजय पुनेवर अपने दांपत्यजीवन से बहुत खुश थे. ग्लैमर की दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाली अलका पुनेवर खुले दिल और विचारों वाली महिला थी. जिस संजय पुनेवर से 20 साल पहले अलका ने अपनी नन्ही सी बच्ची और पति को छोड़ कर शादी की थी, अब उसी संजय को छोड़ कर उस का झुकाव अपने से आधी उम्र वाले युवक आलोक पालीवाल की तरफ हो गया था.

अलका पुनेवर का दिल जिस आलोक पालीवाल के लिए धड़क रहा था, उस की उम्र उस के पहले पति से जन्मी बेटी से भी कम थी. नागपुर में रहने वाला आलोक पालीवाल का परिवार भी अलका के परिवार वालों की तरह उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. आलोक पालीवाल के पिता रामचंद्र पालीवाल सुप्रसिद्ध प्लास्टिक सर्जन थे, जो बैंकाक के किसी अस्पताल में काम करते थे. चूंकि अलका अपनी खूबसूरती को बनाए रखना चाहती थी, इसलिए आलोक पालीवाल से मिलने के बाद बैंकाक जा कर उस के पिता से अपने चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी भी करवाई थी.

आलोक पालीवाल एक हैंडसम युवक था. इंजीनियरिंग करने के बाद उस ने बैंकाक से एमबीए किया था. उस के बाद एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस में एक बड़ी पोस्ट पर काम करने लगा था. अलका पुनेवर और आलोक पालीवाल की मुलाकात लगभग 6 महीने पहले एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस की एक बिजनैस मीटिंग में हुई थी. उस मीटिंग में अलका पुनेवर एक गेस्ट के रूप में आई थी. उसी दौरान अलका को पता चला था कि आलोक का परिवार भी मूलरूप से उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. इस मुलाकात के बाद उन के बीच होने वाली मुलाकातों ने उन्हें प्यार के मुकाम तक पहुंचा दिया था.

आलोक पालीवाल भी अपनी उम्र से 25 साल बड़ी अलका पुनेवर के प्यार में दीवाना हो गया था. दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. आलोक पालीवाल ने जब अलका से शादी करने की बात घर वालों से कही तो घर वाले उस की पसंद पर चौंके. क्योंकि पहली बात तो यह थी कि अलका उस से उम्र में लगभग दोगुनी थी. इस के अलावा यह भी पता चला था कि अलका की 2 शादियां पहले भी हो चुकी थीं. पहले पति से उस की एक 24 साल की बेटी थी. दूसरे पति संजय पुनेवर से 19-19 साल के 2 बेटे थे. अमित ने तय कर लिया था कि कुछ भी हो जाए, वह अलका से जुदा नहीं होगा.

फिल्म और टीवी सीरियलों की लिखी गई स्क्रिप्ट पर काम करने वाली अलका पुनेवर ने आलोक के साथ रहने के लिए उस के साथ मिल कर एक रहस्यमय स्क्रिप्ट लिख डाली. उस स्क्रिप्ट में अलका पुनेवर और आलोक पालीवाल ने अपने एक दोस्त संजीव कुमार को भी शामिल कर लिया. संजीव कुमार और आलोक पालीवाल बचपन के दोस्त थे. स्कूल और कालेज की पढ़ाई भी दोनों ने साथसाथ की थी. आलोक की नौकरी बंगलुरू स्थित एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस में लगी तो संजीव कुमार एयरटेल कंपनी में नौकरी पर लग गया. उस की पोस्टिंग मुंबई में थी.

अपनी लिखी गई स्क्रिप्ट के अनुसार आलोक पालीवाल संजीव कुमार और अलका पुनेवर ने घटना से 5 दिनों पहले 22 दिसंबर, 2013 को 28 हजार रुपए में एक पुरानी कार खरीदी. योजनानुसार, 27 दिसंबर, 2013 को अलका अपने पति संजय पुनेवर और बच्चों से शूटिंग पर जाने के लिए कह कर घर से निकली. संजय ने उसे कार से थाणे रेलवे स्टेशन के पास छोड़ दिया. कुछ देर बाद आलोक पालीवाल और संजीव कुमार कार ले कर वहां गए. अलका उन की कार में बैठ गई. उन्होंने उसे सीएसटी रेलवे स्टेशन छोड़ा और उसे लोकल ट्रेन पकड़ कर उरण आने को कहा. मगर अलका ट्रेन के बजाए बस से उरण जा पहुंची. थोड़ी देर बाद आलोक और संजीव भी कार से उरण पहुंच गए.

तीनों ने एक होटल में बैठ कर आगे की योजना बनाई. योजना के अनुसार अलका पूना के लिए निकल पड़ी. जबकि आलोक पालीवाल और संजीव कुमार कार ले कर पूनाखडाला की तरफ. रात 12 बजे के करीब वह खापोली पहुंचे, जहां 8-9 सौ फुट गहरी खाई थी. पोली के हील पौइंट पर ले जा कर दोनों कार से उतर गए. उन्होंने अलका के पासपोर्ट की फोटोकौफी और अन्य कागज कार में रख कर धक्का दिया तो कार खाई में गिर गई. उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि लोग समझें कि अलका पुनेवर की इस हादसे में मौत हो गई है.

उन्होंने कार तो खाई में गिरा दी, लेकिन इस बात की जानकारी लोगों तक कैसे पहुंचे कि मराठी फिल्मों और टीवी सीरियलों की जानीमानी अभिनेत्री अलका पुनेवर की कार ऐक्सीडेंट में मौत हो गई है, इस के लिए आलोक और संजीव मुंबईपूना एक्सप्रेस हाइवे पर आए और वहां से गुजरने वाले ट्रक ड्राइवरों को रोक कर उन्हें खाई में गिरी कार की जानकारी दी. उन की बात सुन कर ट्रक चालक उस कार और उस महिला की मदद के लिए आगे आए. थोड़ी देर में वहां काफी लोग जमा हो गए. आलोक और संजीव मौका देख कर वहां से खिसक गए और बस पकड़ कर पूना चले गए. वहां उन्हें अलका मिल गई. आलोक और अलका वहां से बंगलुरू और फिर चेन्नई चले गए, जबकि संजीव कुमार मुंबई लौट गया. वहीं से आलोक पालीवाल ने अपने पास छोड़े गए अलका के मोबाइल से संजय पुनेवर और एक दूसरे नंबर पर एसएमएस कर दिया था.

अलका का सोचना था कि वह मामला शांत होने पर अपने चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी करवा कर आलोक पालीवाल से शादी कर लेगी. प्लास्टिक सर्जरी कराने के बाद उसे कोई पहचान नहीं पाएगा. मगर उस की इस साजिश का खेल एसएमएस ने बिगाड़ दिया और वह पकड़ी गई. उसी के साथ साजिश रचने वाला आलोक भी पकड़ा गया. अलका पुनेवर ने पुलिस को बताया कि उस का पति संजय पुनेवर उसे मानसिक रूप से परेशान करता था, जिस की वजह से उस ने यह कदम उठाया. क्राइम ब्रांच यूनिट-1 की टीम ने तीनों को थाना कोपरी की थानाप्रभारी मीरा वनसोडे को सौंप दिया. जांच पूरी कर के मीरा वनसोडे ने मामले की फाइल पुलिस उपायुक्त बालासाहेब पाटिल को सौंप दी.

आलोक पालीवाल और अलका पुनेवर का मकसद किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं था. उन के खिलाफ किसी ने कोई शिकायत भी नहीं दर्ज नहीं कराई थी. इसलिए उन के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता था. पुलिस उपायुक्त बालासाहेब ने तीनों को घर जाने दिया. थाने से निकल कर अलका पुनेवर घर जाने के बजाए आलोक पालीवाल के साथ चली गई थी.

    

कौन थी मरजान जिसे गुल का प्यार नहीं मिला तो कहा अलविदा

समर गुल हत्या कर के फरार हुआ था, सरहद पार कबीले के सरदार नौरोज खान ने उसे शरण दी. लेकिन नौरोज की बेटी समर गुल और मरजाना एकदूसरे को प्यार कर बैठे, जो कबाइली परंपरा के विपरीत था. आखिर क्या हुआ उन के प्यार का अंजाम…    

मर गुल ने जानबूझ कर एक अभागे की हत्या कर दी थी. पठानों में ऐसी हत्या को बड़ी इज्जत की नजर से देखा जाता था और हत्यारे की समाज में धाक बैठ जाती थी. समर गुल की उमर ही क्या थी, अभी तो वह विद्यार्थी था. मामूली तकरार पर उस ने एक आदमी को चाकू घोंप दिया था और वह आदमी अस्पताल ले जाते हुए मर गया था. गिरफ्तारी से बचने के लिए समर गुल कबाइली इलाके की ओर भाग गया था.

 जब वह वहां के गगनचुंबी पहाड़ों के पास पहुंचा तो उसे कुछ ऐसा सकून मिला, जैसे वे पहाड़ उस की सुरक्षा के लिए हों. सरहदें कितनी अच्छी होती हैं, इंसान को नया जन्म देती हैं. फिर भी यह इलाका उस के लिए अजनबी था, उसे कहीं शरण लेनी थी, किसी बड़े खान की शरण. क्योंकि मृतक के घर वाले किसी कबाइली आदमी को पैसे दे कर उस की हत्या करवा सकते थे. पठानों की यह रीत थी कि अगर वे किसी को शरण देते थे तो वे अपने मेहमान की जान पर खेल कर रक्षा करते थे.

वह एक पहाड़ी पर खड़ा था, उसे एक गांव की तलाश थी. दूर नीचे की ओर उसे कुछ भेड़बकरियां चरती दिखाई दीं. उस ने सोचा, पास ही कहीं आबादी होगी. वह रेवड़ के पास पहुंच कर इधरउधर देखने लगा. गड़रिया उसे कहीं दिखाई नहीं दिया. अचानक एक काले बालों वाला कुत्ता भौंकता हुआ उस की ओर लपका. उस ने एक पत्थर उठा कर मारा, लेकिन कुत्ता नहीं रुका. उस ने चाकू निकाल लिया, तभी एक लड़की की आवाज आई, ‘‘खबरदार, कुत्ते पर चाकू चलाया तो…’’ 

उस ने उस आवाज की ओर देखा तो कुत्ता उस से उलझ गया. उस की सलवार फट गई. कुत्ते ने उस की पिंडली में दांत गड़ा दिए थे. आवाज एक लड़की की थी, उस ने कुत्ते को प्यार से अलग किया और उसे एक पेड़ से बांध दिया. समर गुल एक चट्टान पर बैठ कर अपने घाव का देखने लगा. लड़की ने पास कर कहा, ‘‘मुझे अफसोस है, मेरी लापरवाही की वजह से आप को कुत्ते ने काट लिया.’’

समर गुल ने गुस्से से लड़की की ओर देखा तो उसे देखता ही रह गया. वह बहुत सुंदर लड़की थी. उस की शरबती आंखों में शराब जैसा नशा था. लड़की ने पिंडली से रिसता हुआ खून देखा तो भाग कर पानी लाई और उस का खून साफ किया. फिर अपना दुपट्टा फाड़ कर उसे जलाया और समर के घाव पर उस की राख रखी, जिस से खून बंद हो गया. समर गुल उस लड़की की बेचैनी और तड़प को देखता रहा. खून बंद हो गया तो वह खड़ी हो गई.

‘‘कोई बात नहीं,’’ समर गुल ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘कुत्ते ने अपनी ड्यूटी की और इंसान ने अपनी ड्यूटी.’’

‘‘अजनबी लगते हैं आप.’’ लड़की ने कहा तो उस ने अपनी पूरी कहानी उसे सुना दी.

‘‘अच्छा तो आप फरार हो कर आए हैं. मैं बाबा को आप की कहानी सुनाऊंगी तो वह खुश होंगे, क्योंकि काफी दिन बाद हमारे घर में किसी फरारी के आने की चर्चा होगी.’’

मलिक नौरोज खान एक जिंदादिल इंसान था. 70-75 साल की उमर होने पर भी स्वस्थ और ताकतवर जवान लड़कों जैसा. बड़ा बेटा शाहदाद खान सरकारी नौकरी में था जबकि छोटा बेटा शाहबाज खान जिसे सब प्यार से बाजू कहते थे, बड़ा ही खिलंदड़ा और नटखट था. वह बहन ही की तरह सुंदर और प्यारा था. बेटी की जुबानी समर गुल की कहानी सुन कर नौरोज ने सोचा कि इतनी कम उम्र का बच्चा हत्यारा कैसे हो सकता है. फिर भी उस के लिए अच्छेअच्छे खाने बनवाए गए. उसे घर में रख लिया गया. कुछ दिन के बाद समर गुल ने सोचा, कब तक मेहमान बन कर इन के ऊपर बोझ बनूंगा, इसलिए कोई काम देखना चाहिए. उस ने नौरोज खान से बात करना ठीक नहीं समझा. के लिए उसे मरजाना से बात करना ठीक लगा. हां, उस लड़की का ही नाम मरजाना था.

अगले दिन सुबह उस ने मरजाना से कहा, ‘‘बात यह है कि मुझे लकड़ी काटना नहीं आता, हल चलाना नहीं आता. मैं ने सोचा कि रेवड़ तो चरा सकता हूं. मुफ्त की रोटी खाते मुझे शरम आती है.’’

‘‘यह काम भी तुम से नहीं होगा, तुम इस काम के लिए पैदा ही नहीं हुए हो. मुझे तो हैरानी है कि तुम ने हत्या कैसे कर दी. तुम ऐसे ही रहो, तुम्हें मुफ्त की रोटी खाने का ताना कोई नहीं देगा.’’

‘‘अगर मुझे सारा जीवन फरारी बन कर रहना पड़ा तो?’’

‘‘मैं बाबा से बात करूंगी, वह भी यही कहेंगे जो मैं ने कहा है.’’ इतना कह कर वह रेवड़ ले कर चली गई और समर गुल उसे जाते हुए देखता रहा. हकीकत जान कर नौरोज ठहाका मार कर हंसा और समर से बोला, ‘‘फरारी बाबू, मैं ने तुम्हारे लिए काम ढूंढ लिया है. तुम बाजू को पढ़ाया करोगे.’’

यह काम उस के लिए बहुत अच्छा था. अगले दिन से उस ने केवल बाजू को बल्कि गांव के और बच्चों को इकट्ठा कर के पढ़ाना शुरू कर दिया. शाम के समय चौपाल लगती थी, गांव के सब बूढ़ेबच्चे इकट्ठे हो जाते. समर गुल भी चौपाल पर चला जाता था. वहां कोई कहानी सुनाता, कोई चुटकुले और कोई शेरोशायरी. यह सभा आधीआधी रात तक जमी रहती थी. रात को लौट कर समर गुल जब दरवाजा खटखटाता तो मरजाना ही दरवाजा खोलती, क्योंकि मलिक नौरोज खान ऊपर के माले पर सोता था.

समर गुल को यहां आए हुए 2-3 महीने हो गए थे, लेकिन मरजाना से उस की बात नहीं हो पाई थी, क्योंकि वह उस से डराडरा सा रहता था. वह समर से हंस कर पूछती, ‘‘ गए…’’ वह उसे सिर झुकाए जवाब देता, लेकिन एक पल के लिए भी वहां नहीं रुकता था और अपने कमरे में जा कर लेट जाता था. वह बिस्तर पर भी मरजाना के बारे में सोचता रहता थामरजाना का व्यवहार सदैव उस के प्रति प्यार भरा होता था. लेकिन अब वह उस की तरफ और भी ज्यादा ध्यान देने लगी थी. एक रात जब वह आया तो मरजाना ने रोज की तरह कहा, ‘‘ गए…’’

वह कुछ नहीं बोला और खड़ा रहा. दोनों के ही दिल तेजी से धड़क रहे थे. दोनों ने एक अनजानी सी खुशी और डर अपने अंदर महसूस किया. मरजाना ने धीरे से कहा, ‘‘अंदर आ जाओ.’’ वह अंदर आ गया. मरजाना ने दरवाजा बंद कर के कुंडी लगा दी. फिर भी वह वहीं खड़ा रहा. मरजाना भी वहीं खड़ी उसे निहारती रही. फिर धीरे से बोली, ‘‘जाओ, सो जाओ.’’ वह चला गया, लेकिन मरजाना वहीं खड़ी रही. उस का अंगअंग एक अनोखी मस्ती से बहक रहा था. साथ ही दिल भी एक अनजानी खुशी से भर गया था. समर गुल अपने कमरे में पहुंचा तो उस की आंखों में खुशी के आंसू आ गए. वह बारबार होंठों ही होंठों में दोहरा रहा था, ‘‘जाओ,सो जाओ.’’

मरजाना का प्यारभरा स्वर उस की आत्मा को झिंझोड़ गया था. वह भावुक हो गया और सिसकियां ले कर रोने लगा. यह खुशी के आंसू थे. उस की हालत एक बच्चे जैसी हो गई थी. उसे यह अहसास डंक मार रहा था कि उस ने किसी की हत्या की हैवह पहली बार दिल की गहराइयों से अपने किए पर लज्जित था, उस की आत्मा पर पाप का बोझ पड़ा था. इस बोझ को उस ने पहले महसूस नहीं किया था, लेकिन प्रेम की अग्नि ने उसे कुंदन बना दिया था. आज वह किसी का दुश्मन नहीं रहा. मरजाना अपने बिस्तर पर लेट कर अंदर ही अंदर खुश हो रही थी, ऐसी खुशी उसे पहली बार मिली थी. वह सोच रही थी कि जब मैं ने दरवाजा बंद किया तो समर वहीं खड़ा रहा. वह चुपचाप था. उस की खामोशी ने मुझे अंदर तक हिला डाला. क्या इसी को प्रेम कहते हैं?

सोच रही थी कि क्या यही मीठामीठा प्रेम का दर्द है, जिस के लिए दरखुई आदम खान के लिए मर गई थी और आदम खान दरखुई के लिए मरा था. गुल मकई मूसा खान के लिए मरी और मूसा खान गुल मकई के लिएहां, ये सब प्रेम के लिए मर गए थे, लेकिन लोग प्रेम करने वालों के दुश्मन क्यों होते हैं. इतनी पवित्र चीज और खुशी से इंसानों को क्यों दूर रखा जाता है. लेकिन मेरी अंतरात्मा पवित्र है, मैं ने कोई पाप नहीं किया. वह झटके से बोली, ‘‘नहींनहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. अपने आप को इस अनजानी खुशी से वंचित नहीं होने दूंगी.’’ सुबह हुई तो मरजाना ने उजाले में वह सुंदरता देखी जो उसे पहले कभी दिखाई नहीं दी थी. समर गुल जाग रहा था. वह उठा और उस ने बाहर जा कर देखा, मरजाना रेवड़ ले कर जा चुकी थी. उस की निगाहें हवेली की दीवारों पर टिक गईं, ऐसा लगा जैसे उस का बचपन यहीं गुजरा हो.

तभी बाजू पास कर बोला, ‘‘गुल लाला चलो, सब बच्चे आप का इंतजार कर रहे हैं. आप अभी तक पढ़ाने नहीं आए.’’ उस ने बाजू को गोद में उठा लिया और उसे चूमने लगा. बाजू बोला, ‘‘लाला, इतना प्यार तो आप ने मुझे कभी नहीं किया.’’ उस ने कहा, ‘‘हां बाजू, मैं ने कभी इतना प्यार नहीं किया, लेकिन दिल में तुम्हारे लिए बहुत प्यार रखता था.’’ फिर वह उसे नीचे उतार कर बोला, ‘‘बाजू, जाओ आज तुम सब छुट्टी कर लो.’’ वह खुश हो कर चला गया. गुल घर में रखी रायफल ले कर जंगल चला गया. मरजाना रेवड़ के पास डलिया बुन रही थी. साथ ही धीमे स्वर में गा रही थी. समर गुल चुपके से उस के पीछे खड़ा हो कर उस का गाना सुनने लगा.

मरजाना जो गा रही थी, उस का सार कुछ इस तरह था, ‘तुम नहीं आए थे तो दिल में कोई हलचल नहीं थी, जीवन शांति से अपनी डगर पर चल रहा था. तुम आते तो यह जीवन इसी तरह कट जाता. लेकिन तुम ने अपनी सुंदर आंखों से मेरे दिल को जगमगा दिया है. तुम ने यह क्या कियापलक झपकते ही मेरी दुनिया ही बदल डाली. बाप, भाई, मां सब से नाता टूट गया, यह तुम ने क्या किया. अब तुम मेरे खून में दौड़ने लगे.’ समर गुल चुपचाप सुनता रहा. फिर धीरे से बोला, ‘‘मरजाना!’’ वह एकदम चौंक पड़ी. उस के होंठ कांपने लगे. उस की भूरी आंखें खुशी के आंसुओं से भर गईं.

समर गुल उस के आंसू पोंछते हुए बोला, ‘‘तुम मुझे दूर पहाडि़यों में ढूंढ रही थी, लेकिन मैं यहां तुम्हारे दिल के पास खड़ा था.’’ ‘‘खुदा करे, मैं तुम्हें हर पल ढूंढती रहूं.’’ वह उस के पास बैठते हुए बोला, ‘‘मरजाना, मैं हत्या कर के बहुत पछता रहा हूं. लेकिन लगता है कि कुदरत ने तुम से मिलवाने के लिए मुझ से यह हत्या करवाई थी. मुझे हैरानी है कि पाप के बदले इतनी बड़ी खुशी मिली. डरता हूं कि यह खुशी छिन जाए.’’

मरजाना बोली, ‘‘तुम्हारे बिना मैं जीने की चाहत भी नहीं कर सकती. मुझे तुम पहले दिन से ही अच्छे लगने लगे थे. कुछ भी हो जाए, मुझे तुम अपने साथ ही पाओगे. मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकती.’’ ‘‘मरने की बात न करो मरजाना.’’ ‘‘मेरा नाम मरजाना है गुल, मुझे मर जाना आता है. मरने की बात क्यों न करूं?’’ ‘‘नहीं मरजाना नहीं, मैं तुम्हें बाबा से मांग लूंगा. पूरी जिंदगी की गुलामी कर लूंगा. अगर तब भी नहीं माने तो बापभाइयों से कहूंगा कि मरजाना के कदमों में पैसे का ढेर लगा दो, उसे हीरेजवाहरात में तोल दो. सब कुछ ले लो मगर मरजाना को दे दो.’’

‘‘यह सब तो ठीक है, लेकिन गुल यहां के कानून के मुताबिक यहां के लोग अपनी बेटियों को सरहद के पार नहीं देते. देख लेना, बाबा तुम से यही कहेगा.’’ ‘‘इस का मतलब मरजाना, मैं तुम्हें कभी नहीं पा सकूंगा?’’ ‘‘मैं ने कह तो दिया मेरा नाम मरजाना है और मुझे मरना आता है.’’  ‘‘मरने की बातें मत करो मरजाना,’’ गुल ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया. अचानक कहीं से उस का कुत्ता गया और गुल के पांव चाटने लगा. गुल बोला, ‘‘देखो, एक दिन इस ने मेरी टांग पर काटा था और अब पैर चाट रहा है.’’ मरजाना बोली, ‘‘यह तुम्हारे प्रेम को समझ गया है.’’

कुछ देर बातें करने के बाद दोनों घर पहुंचे तो गुल के पिता, भाई और मामा बैठे थे और चाय पी रहे थे. गुल को उन्होंने गले लगा लिया. गुल के चेहरे की रंगत और सेहत देख कर सब हैरत में पड़ गए. उन के आने से केस के बारे में पता चला, पुलिस ने दोनों पार्टियों का समझौता करा कर केस बंद कर दिया था. वे लोग गुल को लेने के लिए आए थे. रात में गुल ने बड़े भाई को सब बातें बता दीं. साथ ही अपना फैसला भी सुना दिया कि वह वापस नहीं जाएगा और अगर जाएगा तो मरजाना भी साथ जाएगी. 

उस की बातें सुन कर उस का भाई परेशान हो गया. अंत में यह तय हुआ कि मरजाना के पिता से रिश्ता मांग लिया जाए. बहुत झिझक के साथ मरजाना के बाबा से उस के रिश्ते की बात की तो उस ने कहा, ‘‘देखो, मैं बहादुर आदमियों की इज्जत करता हूं. घर में शरण भी देता हूं लेकिन सरहद पार का पठान कितना भी बड़ा क्यों हो, हमारे कबीले के सरदारों का मुकाबला नहीं कर सकता. मैं किसी ऐसे आदमी को दामाद नहीं बना सकता, जो हमारे खून की बराबरी कर सके.’’

समर गुल के बाप ने मिन्नत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हजारों रुपयों का लालच दिया, लेकिन रुपयों की बात सुन कर उस ने कहा, ‘‘हमें रुपयों का लालच दो, हमारे पास पैसे की कोई कमी नहीं है. हम सरहद पार अपनी लड़की नहीं देंगे.’’ समर गुल ने ये बातें सुनीं तो उस की आंखों से नींद ही गायब हो गई. कुछ दिन पहले उस ने जो ख्वाब देखे थे, वे तिनके की तरह बिखर गए. इस का मतलब यह कि उसे बिना मरजाना के जाना होगा. अगली सुबह वे लोग अपने घर की ओर चल दिए. समर गुल ने आखिरी बार पीछे मुड़ कर देखा. वह रोने लगा. उस के भाई ने उसे गले से लगा लिया. उस का बाप, भाई और मामा उस के दुख को समझते थे. सब लोग चले जा रहे कि अचानक कुत्ते के भौंकने की आवाज आई. वह गुल की ओर दौड़ा चला आ रहा था. उस के पीछे मरजाना दौड़ी आ रही थी.

‘‘मरजाना…’’ गुल जोर से चीखा. मरजाना उस के पास आ कर उस के सामने खड़ी हो गई. वह हांफते हुए बोली, ‘‘मैं ने कहा था न, मेरा नाम मरजाना है, मुझे मरना आता है.’’ गुल ने अपने बाप की ओर इशारा करते हुए  मरजाना से कहा, ‘‘यह मेरे बाबा हैं.’’ मरजाना उस के बाप के पैरों में गिर गई और बोली, ‘‘बाबा, मुझे भी अपनी बेटी बना लो, अब मैं वापस नहीं जाऊंगी.’’ समर गुल का बाप उसे देख कर भौचक्का रह गया. उस ने उसे उठाया और ध्यान से देखा. वह लड़की उस के बेटे के लिए अपना परिवार, अपना वतन सब कुछ छोड़ कर आ गई थी. लेकिन वह तुरंत संभल गया. उस ने सोचा कि यह उस आदमी की बेटी भी तो है, जिस ने मेरे बेटे पर बड़े उपकार किए हैं. 

गुल के पिता ने उस के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बेटी, मैं तुम्हारी इज्जत करता हूं. तुम ने मेरे बेटे से प्यार किया है, तुम जैसी लड़की लाखों में भी नहीं मिलेगी. लेकिन बेटी तुझे साथ ले जा कर मैं दुनिया को क्या मुंह दिखाऊंगा. लोग कहेंगे सरहद के पठान का क्या यही किरदार होता है कि जिस थाली में खाए उसी में छेद करे.’’ मरजाना गिड़गिड़ाई, ‘‘बाबा, मैं वापस नहीं जाऊंगी, आप के साथ ही चलूंगी. यह सब दुनियादारी की बातें हैं.’’

समर गुल के बाप ने मरजाना को गले लगा कर कहा, ‘‘बेटी, जरा सोचो तुम अपने बाप की इज्जत हो. अपने भाइयों की आन हो, जब दुनिया यह सुनेगी, नौरोज खान की बेटी घर से भाग गई है तो तुम्हारे बाप के दिल पर क्या गुजरेगी? एक बाप के लिए यह बात मरने के बराबर होगी.’’ उस ने कहा, ‘‘बाबा, रात मैं ने कसम खाई थी कि जो रास्ता मैं ने चुना है, उस से पीछे नहीं हटूंगी.’’

समर गुल ने बाप से कहा, ‘‘बाबा, मान जाइए. इस ने कसम खा ली है. अगर यह मेरी नहीं हुई तो अपनी जान दे देगी और फिर मैं भी जिंदा नहीं रहूंगा.’’ बाप चुप हो गया और समर गुल का भाई व मामा भी चुप रहे. लगता था मोहब्बत जीत गई थी. मरजाना का कुत्ता बारीबारी से सब को सूंघ रहा था, जैसे सब को पहचानने की कोशिश कर रहा हो. समर गुल के बाप ने भीगी आंखों से मरजाना को गले लगा लिया और उस के सिर पर हाथ रख दिया.

शाम को इक्कादुक्का भेड़ें घर पहुंचीं, लेकिन उन के साथ मरजाना नहीं थी. कुत्ता भी गायब था, नौरोज का दिल बैठा जा रहा था. कुछ ही देर में पूरे गांव में यह खबर फैल गई कि नौरोज की लड़की मरजाना घर से भाग गई.अगले दिन तक आसपास के कबीलों में यह खबर पहुंच गई. दोस्त या दुश्मन सब के लिए यह खबर दुख की थी. यह सवाल नौरोज के घर की इज्जत का ही नहीं, बल्कि पूरे कबीले की इज्जत का था. तक हर गांव से हथियारबंद लड़के पहुंचने शुरू हो गए. कबीले का जिरगा (कबीले की संसद) बुलाया गया और यह तय किया गया कि हर गांव से एक जवान चुना जाए और ये जवान चारों ओर फैल जाएं. इन्हें हर हाल में मरजाना को ले कर आना होगा. जो जवान खाली हाथ सरहद पर वापस आता दिखाई दे, उसे तुरंत गोली मार दी जाए. इसलिए 25 जवानों का दस्ता मालिक नौरोज के नेतृत्व में रवाना हो गया.

समर गुल के बाप ने अपने गांव पहुंचते ही समर गुल और मरजाना का निकाह करा दिया. अभी उन की शादी को एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि उन के गांव को चारों ओर से घेर कर अंधाधुंध फायरिंग होने लगी. गांव के लोग भी चुप नहीं थे. एक कबीले के सरदार की बेटी उन की बहू बनी थी, इसलिए गोली का जवाब गोली से दिया गया. 2 दिन तक फायरिंग होती रही, दोनों ओर से कई लोग घायल भी हुए लेकिन फायरिंग बंद नहीं हुई. मरजाना के हाथों की मेहंदी का रंग अभी ताजा था, उस में अभी तक महक थी. तीसरे दिन पुलिस की भारी कुमुक पहुंच गई और बहुत मुश्किल से फायरिंग पर काबू पाया गया. लेकिन नौरोज घेरा तोड़ने को तैयार नहीं हुआ. पुलिस औफीसर ने सोचा अगर इन पर सख्ती की गई तो यह कबीला मरनेमारने पर तैयार हो जाएगा. पुलिस अधिकारी ने समझदारी से काम लेते हुए दोनों ओर के 4-4 जवानों को चुना और उन की मीटिंग बैठा दी.

समर गुल के बाप ने कहा, ‘‘जो कुछ हुआ, मुझे उस का खेद है. हम पहले से ही मरजाना के पिता के सामने आंख उठा कर नहीं देख सकते. मैं उस से माफी मांगने के लिए भी पीछे नहीं हटूंगा. यह मैं किसी दबाव में नहीं कह रहा हूं बल्कि यह मेरे दिल की आवाज है. नौरोज ने हमारे ऊपर उपकार किया है, हम नौरोज से दगा करने वाले लोग नहीं हैं. अगर वह चाहे तो मरजाना के बदले मैं अपनी बेटी उस के बेटे से ब्याह सकता हूं. और अगर खून बहाना हो तो मेरे बेटे के बदले मैं अपना खून दे सकता हूं. मैं उन के साथ सरहद पर जा सकता हूं. वे मेरी हत्या कर के अपने दिल की भड़ास निकाल लें. जहां तक मरजाना का सवाल है, मेरा बेटा उसे भगा कर नहीं लाया है. हम ऐसा कर ही नहीं सकते. अब वह मेरी बहू बन चुकी है और उसे मैं किसी भी कीमत पर वापस नहीं करूंगा. बहू परिवार की इज्जत होती है.’’

जिरगे में मौजूद नौरोज खान ने कहा, ‘‘मुझे समर गुल के बाप का खून नहीं चाहिए. उस से मेरी प्यास नहीं बुझ सकती और ही उस की लड़की का रिश्ता चाहिए. उस से मेरी तसल्ली नहीं होगी. मुझे हीरेजवाहरात भी नहीं चाहिए, उन से मेरे घाव नहीं भर सकते. भागी हुई बेटी बाप की आत्मा में जो घाव लगा देती है, दुनिया की कोई दवा उसे ठीक नहीं कर सकती. थप्पड़ के बदले थप्पड़, हत्या के बदले हत्या की जा सकती है, लेकिन मैं दिल वालों से पूछता हूं, भागी हुई बेटी का बदला कोई किस तरह ले? मुझे समझाओ, मैं यहां क्या लेने आया हूं? समर के पिता को गोली मारूं, समर को गोली मारूं या अपनी बेटी को? कोई बतलाए कि मैं क्या करूं?’’ 

इतना कह कर मलिक नौरोज फूटफूट कर रोने लगा. सब ने पहली बार एक चट्टान को रोते देखा. मरजाना ने सब कुछ सुन लिया था. अपनी खुशी के लिए उस ने जो कदम उठाया था, वह अपने बाप के दुख के सामने कितना मामूली था. यह जीवन कितना अजीब है, दूसरों के लिए जीना, दूसरों के लिए मरना, उस ने समर गुल से कहा, ‘‘मेरे प्रियतम, अब मैं बहुत दूर चली जाऊंगी.’’

समर गुल कुछ नहीं बोला. उसे हक्काबक्का देखता रहा.

‘‘समर गुल,’’ उस ने रुंधी आवाज में कहा, ‘‘मुझे जाना ही होगा, मुझे मान लेना चाहिए. मैं बाप की इज्जत से खेली हूं. जीवन दूसरों के लिए होता है, मुझे आज इस का अहसास हुआ है.’’ ‘‘जो होना था, वह तो हो चुका.’’ समर गुल ने तड़प कर कहा, ‘‘गई हुई इज्जत तो गिरे हुए आंसुओं की तरह होती है, जो फिर हाथ नहीं आते.’’

‘‘हां, इज्जत वापस नहीं सकती, लेकिन मैं उस का प्रायश्चित करना चाहती हूं, मेरे जानम.’’ ‘‘तो तुम मरना चाहती हो?’’ ‘‘हां, मेरे बाप का कुछ तो बोझ हलका होगा, उस की आनबान को कुछ तो सहारा मिल जाएगा.’’ उस ने समर के सीने पर अपना सिर रख कर कहा, ‘‘यह मेरा आखिरी फैसला है, समर गुल. मेरे बाबा से कह दो, मैं उस के साथ जाने के लिए तैयार हूं.’’ जिरगे को बता दिया गया. समर गुल के बाप को बड़ी हैरत हुई. लेकिन मरजाना के बाप के चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. उस ने राइफल की गोलियां निकाल कर फेंक दी, जंग खत्म हो गईवे लोग मरजाना को ले कर चल दिए. पूरा गांव उदास था. आई थी तो गई ही क्यों, हर एक की जुबान पर यही सवाल था. उस के जाने का कारण समर गुल के अलावा और कोई नहीं जानता था.

अगले दिन वे सरहद पर पहुंच गए. सब लोग सरहद पर रुक गए, लेकिन मरजाना नहीं रुकी. वह आगे बढ़ती रही. अचानक गोलियां की बौछार हुई, मरजाना तड़प कर मुड़ी और गिर पड़ी. हिचकी ली, एकदो बार मुंह खोला और शांत हो गई. उस की आंखें आसमान की ओर थीं, जैसे कह रही हों, ‘मेरा नाम मरजाना है, मुझे मर जाना आता है.’