शौहर ने पत्नी की हत्या के लिए दिए 10 लाख

सिकंदर ने अपनी प्रेयसी और सेक्रेटरी रोमा के साथ मिल कर जो नाटक किया, वह वाकई जबरदस्त था. इस से उस की पत्नी भी संतुष्ट हो गई और उन दोनों के मिलने का रास्ता भी साफ हो गया. एक रोमांचक कहानी…   

पिछला टेलीफोन उस के लिए परेशानी भरा था. दूसरा फोन तो उसे खौफजदा करने के लिए काफी था. दोनों टेलीफोन दिन के वक्त आए थे. तब जब उस का हसबैंड सिकंदर अपने औफिस में था और वह घर पर अकेली थी.

‘‘मिसेज सिकंदर,’’ फोन पर एक अजनबी औरत की आवाज सुनाई दी.

‘‘हां, बोल रही हूं. आप कौन हैं?’’ मिसेज सिकंदर ने कहा.

‘‘एक दोस्त हूं. मकसद है आप की मदद करना. क्या आप सलिलि को जानती हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘तो क्या आप सलिलि हैं?’’ मिसेज सिकंदर ने पूछा.

‘‘नहीं मिसेज सिकंदर, सलिलि तो आप के शौहर की सेक्रेटरी का नाम है. मिस्टर सिकंदर और सलिलि के बीच जो चल रहा है, आप के लिए ठीक नहीं है. मेरा फर्ज है कि मैं आप को सही हालात की जानकारी दे दूं.’’

मिसेज सिकंदर गुस्से से चिल्लाई, ‘‘यह सब फालतू बकवास है. सलिलि मेरे शौहर की सेक्रेटरी जरूर है. वह उस का जिक्र भी करते हैं. पर उन का उस से कोई चक्कर है, यह बिलकुल गलत है. सलिलि को दिल की बीमारी है, इसलिए वह उस से हमदर्दी रखते हैं. अबकी बार तो वह कह रहे थे, अगर अब उस ने ज्यादा छुट्टियां लीं तो उसे नौकरी से निकाल देंगे.’’

दूसरी तरफ से औरत की जहरीली हंसी की आवाज आई, ‘‘हां, आप यह सच कह रही हैं मिसेज सिकंदर. सलिलि को दिल की बीमारी है, लेकिन वह दूसरी तरह की दिल की बीमारी है. वैसे मुझे सलिलि से कोई जलन नहीं है. मैं तो आप का भला चाहती हूं. आप यह मालूम करने की कोशिश करें कि जब आप के शौहर पिछले महीने बिजनैस के सिलसिले में सिंगापुर गए थे, उस वक्त उन की खूबसूरत सेक्रेटरी सलिलि कहां थी?’’

‘‘आप हद से आगे बढ़ रही हैं मैडम, अपनी बेहूदा बकवास बंद कीजिए.’’ गुस्से से मिसेज सिकंदर ने फोन रख दिया. दोनों हाथों से सिर थाम कर मिसेज सिकंदर सोच में डूब गईंउन्हें याद आया, जब पिछले महीने सिकंदर बिजनैस के लिए सिंगापुर गया था, तो उस ने उसे सिंगापुर के उस होटल का नाम बताया था, जहां वह ठहरने वाला था. लेकिन एक जरूरी काम के सिलसिले में जब उस ने सिकंदर को होटल फोन किया था तो होटल से बताया गया था कि सिकंदर नाम का कोई आदमी उन के होटल में नहीं ठहरा है. उस वक्त उस ने सोचा था कि सिकंदर ने किसी वजह से होटल बदल लिया होगा. लेकिन अब?

सिकंदर से उस की शादी किसी रोमांस का नतीजा नहीं थी. उसे कहीं देख कर सिकंदर ने उस के हुस्न की तारीफ की तो वह सोच में पड़ गई थी. वह सिकंदर से उम्र में बड़ी थी. देखने में भी कोई खास अच्छी नहीं थी. उसे अपने हुस्न के बारे में कोई गलतफहमी नहीं थी. सिकंदर ने उस से शादी सिर्फ इसलिए की थी कि वह एक बड़ी दौलत और जायदाद की वारिस थी. 14 साल से वह सिकंदर के साथ एक अच्छी जिंदगी गुजार रही थी. सिकंदर देखने में स्मार्ट था और बेहद जहीन भी.

उस ने रोमा की दौलत को इस तरह बिजनैस में लगाया कि कारोबार चमक उठा. बिजनैस खूब फलफूल रहा था. 14 साल के अरसे में उन की शादी को एक शानदार कारोबारी समझौता कहा जा सकता था. दोनों एकदूसरे से खुश थे और इस कामयाब फायदेमंद कौंट्रैक्ट को तोड़ने पर राजी नहीं थे. दोनों ही खुशहाल जिंदगी बसर कर रहे थे. शाम को सिकंदर की वापसी पर रोमा ने फोन काल के बारे में कुछ नहीं बताया. एक हफ्ता आराम से गुजरा. इस बार किसी आदमी का फोन था. जिस ने उसे दहशतजदा कर दिया. उस ने घबरा कर पूछा, ‘‘आप कौन हैं?’’

‘‘इस बारे में आप को फिक्र करने की जरूरत नहीं है. जो मैं कह रहा हूं, उसे ध्यान से सुनो मिसेज सिकंदर. मैं एक पेशेवर कातिल हूं. मैं मोटी रकम के बदले किसी का भी कत्ल कर सकता हूं. शायद यह जान कर आप को ताज्जुब होगा कि आप के शौहर सिकंदर ने आप को कत्ल करने के लिए मुझे 10 लाख रुपए की औफर दी है.’’ रोमा डर कर चिल्लाई, ‘‘तुम पागल हो गए हो या मजाक कर रहे हो? मेरा शौहर हरगिज ऐसा नहीं कर सकता.’’

मरदाना आवाज फिर उभरी, ‘‘अगर आप को आप के शौहर के औफर के बारे में बताता तो शायद मैं पागल कहलाता. मैं हर काम बहुत सोचसमझ कर करता हूं. 10 लाख का औफर मिलने के बाद मैं ने अपने शिकार के बारे में जानकारी हासिल की और आप तक पहुंचा

‘‘मैं कोई मामूली ठग या चोर नहीं हूं. अपने मैदान का कामयाब खिलाड़ी हूं. मैं इस तरह कत्ल करता हूं कि मौत नेचुरल लगे. किसी को भी कोई शक न हो. मैं अपने काम में कभी भी नाकाम नहीं रहा.’’

मिसेज सिकंदर ने कंपकंपाती आवाज में कहा, ‘‘यह सब क्या कह रहे हो तुम, मुझे कुछ समझ में नहीं रहा है.’’ अजनबी मर्द की आवाज गूंजी, ‘‘मैं आप को सब समझाता हूं. आप के हसबैंड की औफर कबूल करने के बाद मुझे आप के बारे में पता लगा कि सारी दौलत की मालिक आप हैं. आप का शौहर आप का कत्ल करवाने के बाद पूरी दौलत का मालिक बनना चाहता है

‘‘तब मुझे एक खयाल आया कि अगर मिसेज सिकंदर मुझे डबल रकम देने पर राजी हो जाएं तो मैं उन की जगह उन के शौहर को ही ठिकाने लगा दूं. आप क्या कहती हैं, इस बारे में मिसेज सिकंदर?’’

मिसेज सिकंदर खौफ से चीखीं, ‘‘तुम एकदम पागल आदमी हो. मैं पुलिस को खबर कर रही हूं.’’

मर्द ने जोरों से हंसते हुए कहा, ‘‘पुलिस, आप उन्हें क्या बताएंगी. चलिए, अगर उन्होंने यकीन कर भी लिया तो आप मुझे कहां तलाश करेंगी? मैं पीसीओ से फोन कर रहा हूं. आप बेकार की बातें छोड़ें और गौर करें. आप दोनों में से कोई एक मरने वाला है. अब रहा सवाल यह कि मरने वाला कौन होगा? आप या आप का शौहर? इस का फैसला आप को करना होगा. आप तसल्ली से सोच लें. कल मैं इसी वक्त फिर फोन करूंगा. आप का आखिरी फैसला जानने के लिए.’ दूसरी तरफ से फोन बंद हो गया.

शाम को सिकंदर घर नहीं आया. उस ने फोन कर दिया कि औफिस में काम ज्यादा है, वह देर रात तक काम करेगा. उस ने सोचा कि सलिलि के साथ ऐश करेगा. जब आधी रात को सिकंदर बैडरूम में दाखिल हुआ तो वह जाग रही थी और कुछ सोच रही थी. सोचतेसोचते वह इस फैसले पर पहुंच गई कि सुबह सिकंदर को टेलीफोन के बारे में बताएगी. मगर सिर्फ पहले फोन के बारे में. वह उस से कहेगी कि अगर उसे कोई कीप रखनी है तो रखे. उसे कोई ऐतराज नहीं, पर यह बात राज रहे. कोई बदनामी हो.

वह आखिर दूसरे फोन के बारे में क्या बताती कि एक आदमी ने कहा है कि मुझे कत्ल करने के लिए 10 लाख का औफर दिया गया है. अगर मैं औफर डबल कर दूं तो मेरी जगह वह मारा जाएगा. शायद यह सुन कर सिकंदर उसे पागलखाने में दाखिल करा दे.फिर उसे खयाल आया कि क्यों वह उस अजनबी मर्द के दूसरे फोन का इंतजार करे. हो सकता है बातचीत के दौरान उस की कोई ऐसी गलती पकड़ में जाए, जिस की वजह से सिकंदर और पुलिस दोनों को उस की बात का यकीन जाए. फिर उसे पागलखाने में डालने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

लेकिन उसे लगा कि पहले फोन के बारे में भी बताने की भी क्या जरूरत है. वह उस की कहानी सुन कर खूब हंसेगा. अफेयर से इनकार करेगा और चौकन्ना हो जाएगा. जैसेजैसे वह सोच रही थी, उसे लग रहा था कि फोन करने वाला आदमी पागल है. आखिर सिकंदर उस का कत्ल क्यों करवाएगा? वह खुद बूढ़ा हो रहा है, तोंद निकल आई है. अब क्या इश्क लड़ाएगा. पर यह बात भी सच है कि वह उसे तलाक नहीं दे सकता, क्योंकि सारी दौलत उस के हाथ से निकल जाएगी. पर अचानक एक खयाल ने उसे डरा दिया कि अगर आज वह मर जाती है तो सारी दौलत का मालिक सिकंदर होगा. इस तरह उसे अपनी बीवी से छुटकारा मिल जाएगा और वह सलिलि से शादी करने के लिए आजाद हो जाएगा.

इसी सोचविचार में सारी रात कट गई. दूसरे दिन जब फोन की घंटी बजी तो उसी मरदाना आवाज ने पूछा, ‘‘मैडम, आप ने क्या फैसला किया?’’ रोमा की पेशानी पसीने से भीग गई. उस ने कहा, ‘‘मैं तैयार हूं. मैं तुम्हें 20 लाख दूंगी, तुम शिकार बदल दो. पर शिकार सिकंदर नहीं, सलिलि होगी.’’

‘‘बहुत अच्छा फैसला है, मतलब अब इस लड़की को ठिकाने लगाना है.’’ मरदाना आवाज ने पूछा.

‘‘हां, मेरे शौहर के बजाए उस की सेक्रेटरी सलिलि को कत्ल करना बेहतर है. क्योंकि रहेगा बांस बजेगी बांसुरी. उसे लग रहा था, जैसे सलिलि और सिकंदर के अफेयर के बारे में सारी दुनिया जानती है. सलिलि के रहने से वह खुद ही वफादार बन जाएगा और अगर उस ने अपनी बीवी को कत्ल कराने की कोशिश की थी तो वह उस से खौफजदा भी रहेगा.’’

उस के दिमाग में एक खयाल और आया कि ये सारी बातें लिख कर अपने वकील के पास हिफाजत से रखवा देगी कि उस की अननेचुरल डैथ के बाद इसे खोला जाए और मौत का जिम्मेदार सिकंदर को ठहराया जाए. फोन में मरदाना आवाज उभरी, ‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं कि शिकार कौन है? मैं अपना काम बहुत ईमानदारी और सलीके से करता हूं. मैं आज ही आप के शौहर के औफर से इनकार कर दूंगा

‘‘आप का काम हो जाने के बाद फिर कभी आप मेरी आवाज नहीं सुनेंगी, पर एकदो चीजें बहुत जरूरी हैं. मैं अपनी फीस एडवांस में नहीं मांग रहा हूं पर आप को मेरे बताए पते पर मेरे कहे मुताबिक एक खत लिख कर भेजना पड़ेगा. मेरा पता हैरूस्तम, पोस्ट बौक्स-911, रौयल पैलेस.’’

रोमा ने घबरा कर पूछा, ‘‘मुझे क्या लिखना होगा?’’

‘‘आप को लिखना होगा कि आप ने 20 लाख के एवज में मुझे हायर किया है कि मैं आप के शौहर की सेक्रेटरी सलिलि फर्नांडीज को कत्ल कर दूं.’’ मरदानी आवाज सुनाई दी. रोमा चीख पड़ी, ‘‘नहीं, हरगिज नहीं. इस तरह तो मैं कत्ल में शामिल हो जाऊंगी.’’ ‘‘बेशक, पर यह खत मेरे लिए बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इसे लिखने के बाद आप मेरे बारे में छानबीन नहीं करेंगी. यही खत मेरी फीस की गारंटी भी है. जब आप को सबूत मिल जाए कि सलिलि मर चुकी है, आप मुझे 20 लाख की रकम भेजेंगी. उस के मिलते ही कुरियर से आप को आप का खत वापस मिल जाएगा.’’

‘‘नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती.’’ रोमा ने चिल्ला कर कहा.

‘‘मुझे बहुत दुख है मैडम कि आप के शौहर आप से कहीं ज्यादा अक्लमंद हैं. उन्होंने मेरी हर बात मंजूर कर ली थी. अब मैं आप के शौहर से ही सौदा कर लेता हूं.’’

रोमा ने कांपती आवाज में कहा, ‘‘ठहरो, मुझे तुम्हारी बात मंजूर है. बताओ, मुझे क्या लिखना है?’’

‘‘हां, यह ठीक है. आप कागज पेन ले लें, मैं आप को लिखवाता हूं.’’ 

रोमा ने कांपते हाथों से खत लिखा. फिर उस ने कहा, ‘‘मैं आप को खबर करूंगा कि आप खत भेज दें. खत मिलने के 2-3 दिन के अंदर ही अखबार में आप को सलिलि फर्नांडीस की मौत की खबर मिल जाएगी. फिर मैं आप को रकम के बारे में बताऊंगा कि कहां और कैसे भेजनी है. और फिर आप का खत आप को वापस मिल जाएगा. इस के बाद हमारा ताल्लुक खत्म.’’ दूसरी तरफ से फोन बंद हो गया. दिन बाद फिर फोन आया. उस ने खत भेजने की हिदायत दी. रोमा ने खत रवाना कर दिया. तीसरे दिन अखबार में सलिलि फर्नांडीस की मौत की खबर छपी कि कल रात सलिलि फर्नांडीस की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई.

रोमा का शौहर सिकंदर काम के सिलसिले में कलकत्ता गया हुआ था. अब उसे कोई फिक्र नहीं थी. वह कहां जाता है, कहां ठहरता है, क्या करता है. दूसरे दिन उसी आदमी ने रकम के बारे में कई हिदायतें दीं. रोमा ने अलगअलग बैंकों से रकम निकलवाई. कुछ अपने पास से मिलाई और बड़ी ईमानदारी से वहां पैसा पहुंचा दिया, जहां कहा गया था. वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. पेशेवर कातिल भी अपने वादे का पक्का निकला. दूसरे रोज ही रोमा को कुरियर से उस का खत वापस मिल गया. उस ने फौरन उसे जला दिया और चैन की नींद सो गई.

उसी रात रोमा का शौहर रोमा से कई सौ मील दूर अपनी खूबसूरत सेक्रेटरी सलिलि के साथ एक शानदार होटल में अपनी कामयाबी का जश्न मना रहा था. सलिलि ने पूछा, ‘‘सिकंदर, मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि यह सब कैसे हो गया? आखिर कैसे तुम ने मेरी मौत की खबर छपवा दी?’’ सिकंदर ने शराब का घूंट भरते हुए कहा, ‘‘बहुत आसानी से, तुम्हारे मरने की खबर और रकम मैं ने अखबार वालों को भेज दी थी और उस के साथ एक परचा रखा था—‘सलिलि फर्नांडीस का कोई रिश्तेदार या करीबी इस शहर में नहीं है और वह मेरी कंपनी में मुलाजिम थी. उस की सारी जिम्मेदारी मुझ पर आती है. उस के सारे मामलात मैं ही देख रहा हूं. बस अखबार के जरिए उस की मौत की खबर दुनिया को बताना चाहता हूं.’ 

उन लोगों ने दूसरे दिन ही यह खबर छाप दी. अच्छा जानेमन, तुम यह बताओ कि तुम ने फ्लैट छोड़ते वक्त अपनी मकान मालकिन से क्या कहा?’’ ‘‘मैं ने मकान मालकिन से कहा था कि मैं दिल की मरीज हूं. अपने शहर वापस जा कर अपने डाक्टर से इलाज कराऊंगी, क्योंकि अब तकलीफ बहुत बढ़ गई है.’’

‘‘शाबाश, तुम्हें मुंबई आए अभी बहुत कम अरसा हुआ है. कोई तुम्हें जानता भी नहीं है, कोई दोस्त है. अब तुम दूरदराज के इलाके में एक शानदार फ्लैट ले कर ठाठ से रहना. अपना नाम और पहचान भी बदल लेना. रोमा से मिले 20 लाख रुपए मैं किसी बिजनैस में लगा दूंगा ताकि हर महीने गुजारे के लिए अच्छीखासी रकम मिलती रहे.’’

‘‘डार्लिंग, तुम कितने अच्छे हो, सारी रकम मेरे नाम पर लगा रहे हो.’’

‘‘क्यों नहीं डियर, पहली बार टेलीफोन करने वाली तुम खुद थीं. तुम्हीं ने तो प्लान कामयाब बनाया.’’

‘‘मगर सिकंदर, सारी प्लानिंग तो तुम्हारी थी. तुम ने कितनी कामयाबी से आवाज बदल कर कातिल का रोल अदा किया. तुम्हारी आवाज सुन कर तो मैं भी धोखा खा गई थी. तुम वाकई में बहुत बड़े कलाकार हो.’’

‘‘चलो, फालतू बातें छोड़ो, अब हमारे मिलने में कोई रुकावट नहीं रहेगी. टूर का बहाना कर के मैं तुम्हारे पास जाया करूंगा. उधर रोमा अपनी दौलत पर नाज करते हुए चैन से सोएगी. अब मुझ पर शक भी नहीं करेगी.’’

अंधविश्वास के कारण परिवार के 11 लोगों ने की आत्महत्या

दिल्ली के संतनगर, बुराड़ी में जिस तरह एक ही परिवार के 11 लोगों ने आत्महत्या की, उसे देख कर लगता है कि देश में अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहराई तक पैठ बनाए हुए हैं कि उन्हें उखाड़ फेंकना आसान नहीं है. सुबह के साढ़े 7 बज चुके थे, पर ललित की दुकान अभी तक बंद थी. जबकि रोजाना साढ़े 6 बजे ही दुकान खुल जाती थी. दुकान बंद देख कर पड़ोस में रहने वाले गुरचरण सिंह को आश्चर्य हुआ. क्योंकि उन के घर का मुख्य दरवाजा खुला था. जबकि अमूमन होता उलटा था, दुकान खुली होती थी और घर का दरवाजा बंद होता था.

संतनगर, बुराड़ी की गली नंबर 2 में रहने वाले गुरचरण सिंह का घर ललित के पड़ोस में ही था. ललित के घर का मुख्य दरवाजा खुला देख गुरचरण सिंह उन के घर के भीतर चले गए. अंदर का दृश्य देख कर वह हक्केबक्के रह गए. छत पर लगी लोहे की ग्रिल से घर के सारे सदस्य फांसी के फंदे पर लटके हुए थे. यह खौफनाक दृश्य देख गुरचरण सिंह उल्टे पांव वापस लौट आए और पड़ोस के लोगों को इकट्ठा कर अंदर की जानकारी दी. साथ ही उन्होंने पुलिस को भी सूचना दे दी. गली नंबर 2 में रहने वाले जिस किसी ने भी घर में जा कर देखा, हैरान रह गया. घर के सभी 11 लोगों के फांसी के फंदे पर झूलने की बात सुन कर कुछ ही देर में वहां लोगों की भीड़ जुट गई.

कुछ ही देर में बुराड़ी थाने की पुलिस भी आ गई. यह बात पहली जुलाई 2018 की सुबह की थी. एक ही घर के 11 लोगों की मौत बहुत बड़ी घटना थी. सूचना पा कर थोड़ी देर में पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी घटनास्थल पर पहुंचना शुरू कर दिया था. पुलिस आयुक्त के आदेश पर क्राइम ब्रांच के कई अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए. फौरेंसिक और क्राइम इन्वैस्टीगेशन टीमें भी मौके पर पहुंच कर जांच में जुट गईं. मरने वालों में 4 पुरुष और 7 महिलाएं थीं. जांच के दौरान घर की बाहरी दीवार पर 11 पाइप लगे मिले. इन में से 4 पाइप बडे़ और सीधे थे, जबकि 7 अन्य पाइपों का मुंह नीचे की ओर था.

घर की मुखिया नारायणी देवी की लाश नीचे फर्श पर पड़ी थी. उन के 2 बेटों भुवनेश और ललित, उन की पत्नियां सविता और टीना, नारायणी की विधवा बेटी प्रतिभा और प्रतिभा की बेटी प्रियंका की लाशें जाल में बंधी चुन्नियों से लटकी थीं. भुवनेश के 3 बच्चे नीतू, मेनका ध्रुव और ललित के बेटे शिवम की लाशें भी चुन्नी के सहारे जाल से लटकी हुई थीं. सभी लाशें प्रथम तल पर थीं. यह पूरा परिवार भोपाल सिंह भाटिया का था. भोपाल सिंह की मौत करीब 11 साल पहले हो गई थी.

प्रथम तल पर जाने वाली सीढ़ी के दोनों दरवाजे खुले थे. घर में कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. ही लूटपाट के कोई निशान थे. संभवतया देश भर में यह अपनी तरह की पहली घटना थी. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के 11 लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. नारायणी देवी का एक बेटा दिनेश सिविल कौंट्रेक्टर है जो अपने परिवार के साथ राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में रहता है और उन की एक बेटी सुजाता पानीपत में रहती है. पुलिस ने इन दोनों भाईबहनों के पास भी सूचना भिजवा दी. सामूहिक आत्महत्या की देश की सब से बड़ी घटना मामले की जांच क्राइम ब्रांच ने शुरू कर दी. ज्योंज्यों तफ्तीश आगे बढ़ी मामला साफ होता गया. शुरू में हत्या और सामूहिक आत्महत्या, दोनों एंगल से जांच शुरू की गई.

भाटिया परिवार के बचे सदस्यों ने यह हत्या का मामला बताया. भोपाल सिंह की बेटी सुजाता ने कहा कि उन का परिवार आत्महत्या नहीं कर सकता. उन की योजनाबद्ध तरीके से किसी ने हत्या की है. परिवार धार्मिक जरूर था पर अंधविश्वासी नहीं था. पुलिस की जांच में 11 लोगों की मौत का खुलासा हुआ तो अंधविश्वास की एक ऐसी खौफनाक कहानी सामने आई जिसे सुन कर हर कोई दंग रह गया. अंधविश्वास के दलदल में फंस कर समूचा परिवार मौत के मुंह में समा गया. अंधविश्वास से जुड़ी यह विरल घटना थी, जिसे जान कर हर कोई हैरान और सन्न रह गया. टीवी चैनलों पर दिनभर भाटिया परिवार की मौत की सनसनीखेज खबरें प्रसारित होने लगीं.

अंधविश्वास की इस घटना ने तमाम वैज्ञानिक और शैक्षिक तरक्की को अंगूठा दिखा दिया. इस घटना ने समाज के उस अंधकार को उजागर किया, जिस के भीतर सदियों से डूबा यह देश परमात्मा, आत्मा, स्वर्ग, नरक, मुक्ति और मोक्ष को तलाशता रहा है. पुलिस जांच में सामने आया कि घर की मुखिया जिन नारायणी देवी की लाश फर्श पर पड़ी मिली, उन्हें गला घोंट कर मारा गया था. बाकी सभी के शव जाल से लटके मिले. उन की आंखों पर पट्टी बंधी थी, मुंह में कपड़ा ठूंसा हुआ था. हाथ बंधे हुए थे.

पुलिस को मकान से जो डायरी मिली उस से पता चला कि यह सब मौतें अंधविश्वास की वजह से हुई थीं. डायरी में लिखी बातों से पता लगा कि ललित पिता के अलावा परिवार से जुड़े 5 अन्य सदस्यों की आत्मा को भी मोक्ष दिलाना चाहता था. डायरी में 9 जून को लिखा था, ‘अभी 7 आत्माएं मेरे साथ भटक रही हैं. क्रिया में सुधार करोगे तो गति बढ़ेगी. मैं इस चीज के लिए भटक रहा हूं. ऐसे ही सज्जन सिंह, हीरा, दयानंद, कर्मानंद, राहुल, गंगा और जमुना देवी मेरे सहयोगी बने हुए हैं.’

ललित ने जिन लोगों का जिक्र किया है उन में सज्जन सिंह ललित का ससुर यानी उस की पत्नी टीना का पिता, हीरा प्रतिभा का पति, दयानंद और गंगा देवी ललित की बहन सुजाता के ससुराल पक्ष के लोग थे, जो कुछ समय पहले मरे थे. संयुक्त आयुक्त क्राइम ब्रांच आलोक कुमार के मुताबिक तफ्तीश में जितने भी सबूत मिले, उस से साफ हो गया कि परिवार के सभी सदस्यों ने अंधविश्वास के चलते सामूहिक आत्महत्या की थी. ऐसा करने के लिए पूरे परिवार को ललित ने मजबूर किया था.

शुरू में इन लोगों की हत्या का संदेह जताया गया पर बाद में सबूतों और पूछताछ के आधार पर एक ऐसे परिवार की कहानी सामने आई, जो अंधविश्वास के ऐसे खौफनाक अंधकार में फंसा हुआ था कि किसी में विवेक नाम की जरा भी शक्ति नहीं बची थी. अंधविश्वास के दलदल में फंसे इस परिवार की भयावह हकीकत जान कर हर कोई सन्न रह गया. अंधविश्वास का अंधकूप तलाशी के दौरान पुलिस को छानबीन में घर से कई डायरियां मिलीं, इन डायरियों में परिवार के सदस्यों की इन मौतों की पूरी पटकथा लिखी थी. पुलिस ने कडि़यां जोड़ीं तो इस परिवार द्वारा मृत पिता भोपाल सिंह कीआत्माके आदेश परपरमात्मासे मिल कर वापस लौट आने का झूठा भ्रम फैलाया गया था.

भाटिया परिवार के मझले बेटे ललित के सिर में कुछ साल पहले चोट लगी थी. जिस की वजह से वह बोल नहीं पाता था. चोट से उस के दिमाग पर बुरा असर पड़ा था. उस का 3 साल तक इलाज चला. इस के बाद वह थोड़ाथोड़ा बोलने लगा था. इसे वह चमत्कार मानता था. ललित ने दावा करना शुरू कर दिया था कि उस पर उस के पिता भोपाल सिंह की आत्मा आती है और वह परिवार को सुखी रखने और दुख दूर करने के उपाय बताती है. बाद में उस ने डायरी लिखनी शुरू की जिस में धार्मिक आदेशात्मक बातें लिखता था

पुलिस के अनुसार ललित ने अंधविश्वासी क्रियाएं जुलाई, 2007 से शुरू कीं. ललित पूजापाठ से परिवार की समस्याएं दूर करता था. पड़ोसी बताते हैं कि इस काम में ललित की पत्नी टीना भी मदद करती थी. वह पूरी धार्मिक हो गई थी. भाटिया परिवार हदे से परे तक धार्मिक प्रवृत्ति का था और पूजापाठ में डूबा रहता था. साथ ही वह घोर अंधविश्वासी भी था. पूरा परिवार सुबह, दोपहर और शाम यानी 3 टाइम पूजापाठ करता था. क्राइम ब्रांच को 5 जून, 2013 से 30 जून, 2018 तक की तारीखों में लिखी 11 डायरियां मिलीं

इन डायरियों में अलगअलग तरह की लिखावट थी. ज्यादातर लिखावट प्रियंका की थी. ललित पर जब पिता का साया आता था और वह जो बोलता था उसे प्रियंका ही नोट करती थी. भाटिया परिवार को भरोसा था कि दिवंगत पिता की आत्मा परिवार की मदद कर रही है. यह विश्वास इसलिए बढ़ा क्योंकि घर के बाहर दोनों भाइयों की 2 दुकानें अच्छी चल रही थीं. भुवनेश की बेटी मेनका भी स्कूल में टौपर बच्चों में से थी. भुवनेश की किराने की दुकान थी और ललित की प्लाईवुड की. भाइयों के बच्चे भी अच्छे नंबरों से पास होते थे. इन के अलावा ललित की भांजी प्रियंका को मांगलिक बताया गया था. इस के बावजूद उस का रिश्ता तय हो गया था. 17 जून, 2018 को ही प्रियंका की सगाई नोएडा के एक इंजीनियर लड़के से तय हो गई थी और परिवार ने सगाई का कार्यक्रम बड़ी खुशीखुशी किया था.

इस से पहले ललित ने प्रियंका का रिश्ता होने पर उसे मांगलिक मान कर घर में हवनपूजा की थी. जिस में उस ने दावा किया था कि उस के पिता की आत्मा भी मौजूद है. प्रियंका के मांगलिक होने पर ललित ने उज्जैन जा कर भी पूजापाठ कराया था. ललित तंत्रमंत्र क्रियाएं भी कराता रहता था. जांच के दौरान घर की बाहरी दीवार पर 11 पाइप लगे मिले. यह पाइप भी ललित ने ही लगवाए थे. इन की वहां जरूरत भी नहीं थी. पुलिस को यह पता नहीं लगा कि ललित ने ये पाइप किसलिए लगवाए थे. पढ़ेलिखे बेवकूफ पूरा भाटिया परिवार पढ़ालिखा था. 32 साल की प्रियंका ने एमबीए किया था. वह दिल्ली में ही पढ़ीलिखी थी. इस समय प्रियंका नोएडा की सीपीएम ग्लोबल कंपनी में नौकरी करती थी. इस से पहले वह एक नामी सौफ्टवेयर कंपनी में थी

प्रियंका की भी धर्म, ज्योतिष और धर्मगुरुओं के प्रति रुचि थी. वह सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती थी. जन्म के 2 साल बाद ही प्रियंका के पिता हीरा की मृत्यु हो गई थी. इस के बाद वह अपनी मां के साथ राजस्थान से कर संतनगर, बुराड़ी में रहने लगी थी. प्रियंका की मां प्रतिभा घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी. प्रियंका का रिश्ता हो जाने पर ललित ने अपने पिता और भगवान का शुक्रिया करने के लिए 24 से 30 जून तक 7 दिन की पूजा साधना क्रिया का प्रोग्राम तय किया था, जिस में पूरे परिवार को शामिल होना था. इस बात की तस्दीक डायरी में लिखी बातों से होती है

डायरी में एक सप्ताह पहले लिखा गया था कि इस पूजा का उद्देश्य भगवान को धन्यवाद देना था, क्योंकि पूरे परिवार का मानना था कि भगवान उन पर आशीर्वाद बनाए हुए हैं. कुछ वर्षों के दौरान ललित अपने परिवार को यह समझाने में सफल हो गया था कि पिता की आत्मा की वजह से उन का परिवार आर्थिक रूप से मजबूत हुआ है. डायरी में परिवार के सदस्यों की मौत का पूरा बयौरा लिखा गया था. डायरी में एक जगह लिखा था, ‘सभी सदस्य मोक्ष प्राप्त करने के बाद भगवान से मिल कर वापस धरती पर आ जाएंगे. इस के लिए तैयार रहना.’  आगे लिखा था, ‘बड़ पूजा क्रिया की जाएगी. यानी बड़ वृक्ष के नीचे लटकी जड़ों की तरह सब को लटकने की क्रिया करनी होगी. यह पूजा पूरी लगन और श्रद्धा से लगातार 7 दिन करनी है. पूजा के समय अगर कोई घर में आ जाए तो पूजा अगले दिन से शुरू होगी.’

एक जगह लिखा था, ‘9 सदस्यों के लिए भगवान का रास्ता जाल (घर में लगा लोहे का जाल) से शुरू होता है. बेबी (प्रतिभा) मंदिर के निकट स्टूल पर खड़ी होगी. 10 बजे भोजन का और्डर किया जाएगा. मां रोटी खिलाएंगी. क्रिया 1 बजे होगी. गीला कपड़ा मुंह में रखना होगा. टेप से हाथों को बांधना होगा और कानों को रूई से बंद करना होगा.’ आगे लिखा था, ‘पट्टियां अच्छे से बांधनी हैं. उस समय शून्य के अलावा कुछ भी नहीं दिखना चाहिए.’ यह भी लिखा था, ‘एक कप पानी का रखा जाएगा और जब पानी का रंग बदल जाएगा तब समझना कि पिता की आत्मा प्रकट हो चुकी है और वही आत्मा सब को बचा लेगी.’

ललित ने एक जगह लिखा था, ‘झूठ की जिंदगी से दूर रहना होगा. ऐसा करने से तुम्हारा जीवन आगे नहीं बढ़ेगा. मैं चाहता हूं कि आप ऐसा काम करो जिस से आप को कम मेहनत करनी पड़े और खुशहाल जिंदगी जी सको.’ हवाई खयालों में जीता था ललित 28 जून को डायरी में लिखी गई बात को पढ़ने से साफ हो जाता है कि परिवार का मरने का कोई इरादा नहीं था क्योंकि इस में अगले महीने तक की प्लानिंग लिखी थी. डायरी में लिखा था, ‘भूपी (भुवनेश) बैंक से पैसा निकालेगा. इस पैसे को दुकान में लगाया जाएगा. घर में इस पैसे का इस्तेमाल कदापि नहीं होगा.’

पुलिस ने दरवाजे के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज देखी तो 30 जून की सुबह प्रतिभा और प्रियंका मौर्निंग वाक पर जाती दिखीं. भुवनेश सुबह 5:40 बजे मंदिर गया और 5:51 बजे घर वापस गया. 10 बजे ललित अपनी दुकान पर गया. दोपहर में उस ने मोबाइल की एक दुकान से अपना फोन रिचार्ज करवाया. रात 10 बजे सीसीटीवी में घर की 2 महिलाएं स्टूल ले कर आती दिखीं. कुछ देर बाद बच्चे नीचे दुकान से तार ले जाते दिखे. 10:40 बजे डिलीवरी बौय खाना दे कर गया. खाने में केवल 20 रोटियां थीं. मुंह पर चिपकाने के लिए टेप और अलगअलग रंग की चुन्नियां खरीदी गई थीं. इस से स्पष्ट है कि यह सब ललित के दिमागी पागलपन की निर्धारित योजना के तहत था.

वास्तव में ललित मनोरोगी था. परिवार के किसी सदस्य को इस बात का पता नहीं चला. परिवार यही सोचता था कि जब ललित पर पिता की आत्मा सवार हो जाती है उस समय ललित के मुंह से पिता भोपाल की भाषा शैली में ही आवाज निकलती है. उस समय ललित जो कुछ बोलता था, पूरा परिवार ध्यान से सुन कर उस पर अमल करता था. डायरी में लिखे गए आदेशों के अनुसार 30 जून, 2018 की रात को पूरे परिवार ने 11 बजे के बाद मोक्ष की क्रिया शुरू की. रात को 10  बजे के करीब बाहर से रोटी मंगाई गई. परिवार के पास एक कुत्ता था, जिसे छत के ऊपर जाल में बांध दिया गया और फिर परिवार के सभी 11 सदस्य फंदे बना कर लटक गए. घर का दरवाजा इसलिए खुला रखा गया ताकिपिता की आत्मादरवाजे से प्रवेश कर सके.

ललित ने घर वालों को बताया था कि मोक्ष के लिए उन्हें 7 दिन तक मोक्ष क्रिया करनी होगी और जब यह क्रिया पूरी कर लेंगे तब पिता की आत्मा ही उन्हें बचाएगी. ईश्वर और पिता से मिलने के बाद वे वापस लौट आएंगे. भाटिया परिवार के सदस्य मरना नहीं चाहते थे और उन्हें जरा भी मालूम नहीं था कि ईश्वर से मिलने के लिए वे जो क्रिया कर रहे हैं, उस से वे सचमुच मौत को गले लगाने जा रहे हैं. उन्हें पूरा भरोसा था कि उन्हें पिताजी बचा लेंगे.

डायरी में लिखे मौत के रहस्य डायरी में फंदे पर कैसे लटकना है, इस का तरीका भी लिखा था. ‘7 दिन लगातार पूजा करनी है. थोड़ी श्रद्धा और लगन से. बेबी खड़ी नहीं हो सकतीं तो वह अलग कमरे में लेट सकती हैं. पट्टियां अच्छे से बांधनी हैं. हाथ प्रार्थना की मुद्रा में होने चाहिए.  गले में सूती चुन्नी या साड़ी का ही प्रयोग करना है.’ आगे लिखा था, ‘सब की सोच एक जैसी हो. पहले से ज्यादा दृढ़. स्नान की जरूरत नहीं है, मुंहहाथ धो कर ही काम चल सकता है. इस से तुम्हारे आगे के काम होने शुरू होंगे. ढीलापन और अविश्वास नुकसानदायक होते हैं. श्रद्धा में तालमेल और आपसी सहयोग जरूरी होता है. मंगल, शनि, वीर, इतवार को फिर आऊंगा. मध्यम रोशनी का प्रयोग करना है.

हाथों की पट्टी बचेगी. उसे डबल कर के आंखों पर बांधना है. मुंह की पट्टी को भी रूमाल बांध कर डबल कर लेनी है. जितनी दृढ़ता और श्रद्धा दिखाओगे, उतना ही उचित फल मिलेगा. जिस दिन यह प्रयोग करो उस दिन फोन कम से कम प्रयोग करना.’ एक पेज पर लिखा था, ‘धरती कांपे या आसमान हिले लेकिन तुम घबराना मत. मैं आऊंगा और सब को बचा लूंगा.’मनोचिकित्सकों का मानना है कि असल में ललित मनोरोगी था. उस का रोग धार्मिक मान्यता और अंधविश्वास से जुड़ा हुआ था. ऐसे में पीडि़त व्यक्ति को किसी अदृश्य शक्ति के वश में होने का अहसास होता है और अपने अस्तित्व को कुछ देर के लिए भूल जाता है. मनोचिकत्सक इसेशेयर्ड  साइकोथिक डिसऔर्डरकहते हैं. पूरा परिवार इस बीमारी का शिकार था. ललित जो भी बात बताता था, पूरा परिवार उसे उस का आदेश मानता था.

आज पूरे देश में जिस तरह के धार्मिक अंधविश्वास का माहौल बना हुआ है, उसे देखते हुए संतनगर की यह घटना कोई ताज्जुब वाली बात नहीं है. क्योंकि सारा देश ही अंधविश्वास के जंजाल में बुरी तरह उलझा नजर आता है. मौजूदा समय में लोगों में समस्याओं के समाधान के लिए पूजापाठ, हवनयज्ञ, तंत्रमंत्र, टोनेटोटकों का चलन चरम पर है. कदमकदम पर परेशानियां दूर करने वाले पंडेपुजारी, ज्योतिषी, तांत्रिक, साधु या गुरु अंधविश्वास का डेरा जमाए बैठे हैं. हर नुक्कड़ पर समस्याओं का समाधान करने का दावा करने वाले तथाकथित मार्गदर्शक बैठे हैं जो बदले में दानदक्षिणा, चढ़ावा मांगते हैं.

धर्मगुरु, पंडेपुजारी अंधविश्वास के अंधेरे को बढ़ावा दे रहे हैं. मीडिया ऐसे पाखंडियों का प्रचार करने में लगा हुआ है. भाग्यवाद, लोकपरलोक, स्वर्ग, नरक, पुनर्जन्म, मोक्ष, पूर्वजन्म के कर्मों का फल, 33 करोड़ देवीदेवता, 84 लाख योनियां, मोहमाया त्याग कर ईश्वर की शरण में चले जाने जैसी मूर्खता की बातें इंसान को बरगलाने, मानसिक रूप से कमजोर करने के लिए काफी हैं. अंधविश्वास का जाल अब गांवों के दायरे से निकल कर शहरों, महानगरों में शिक्षित युवाओं और विदेशों तक पहुंच चुका है. आज लोग विज्ञान से ज्यादा टोनेटोटकों, अंधविश्वास और तंत्रमंत्र में अपनी परेशानियों का समाधान तलाश रहे हैं. अंधविश्वास का यह कारोबार खूब फलफूल रहा है.

11 लोगों की मौत की घटना किसी दूरदराज के इलाके में नहीं बल्कि देश की राजधानी दिल्ली में घटित हुई जो शिक्षा, विज्ञान, सामाजिक सभ्यता और तथाकथित आध्यात्मिकता प्रगति संबंधी नीति निर्माण का केंद्र बिंदु है. यहां सामाजिक, आर्थिक और वैज्ञानिक विकास के बड़ेबड़े दावे किए जाते हैं. ज्योंज्यों शिक्षा का विस्तार और वैज्ञानिक उपलब्धियों का प्रसार हो रहा है, लोग उतने ही अंधविश्वास की गर्त में धंसते जा रहे हैं. अंधविश्वास तार्किक, उदार और स्वतंत्र विचारों पर हावी है. वैज्ञानिक और तार्किक विचारों की बात करने वालों पर हमले किए जाते हैं. ऐसे में संतनगर की घटना समूचे समाज के माथे पर कलंक है. यह घटना अंधविश्वास की इंतहा है.

                           

एक टुकड़ा सुख

संस्था में सुनील से मुलाकात के होने के बाद मुक्ता के मन में संस्था से निकल कर अपनी लाइफ को अपनी तरह से जीने की उम्मीद जागी थी. सुनील ने भी उस की सोच को नए पंख दे दिए थे. लेकिन यह पंख भी मुक्ता को एक टुकड़ा सुख से ज्यादा कुछ न दे सके.

आज सुबह से ही न जाने क्यों मेरा मन किसी काम में नहीं लग रहा था. किसी अनहोनी आशंका से मेरा मन घिरा हुआ था. मैं चाहते हुए भी स्वयं को संयत नहीं रख पा रहा था. जल्दीजल्दी नाश्ता किया और औफिस के लिए निकल पड़ा. मेरी पत्नी मानसी ने एकदो बार पूछा भी परंतु मैं उसे कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाया. बस, अनमने मन से कहा, ”नहीं, बस यूं ही, औफिस में थोड़ा ज्यादा काम है.’’ कह कर मैं ने बात टाल दी. अभी मैं अपने घर के दरवाजे तक भी नहीं पहुंचा था कि पीछे से मानसी ने आवाज दे कर याद दिलाया कि आप कार की चाबी और टिफिन बौक्स तो घर पर ही भूल गए हैं. वह मेरे पास आ कर बोली, ”तबीयत ठीक नहीं है तो मत जाओ.’’ 

जवाब में मैं ने कुछ नहीं कहा और बेमन से औफिस चला गया. अभी मैं औफिस में अपने कामों को देख ही रहा था कि याद आया आज तो मैं ने अपनी केबिन में रखे छोटे से मंदिर की दीयाबाती भी नहीं की. क्या हो गया है मुझे आज! मैं सोचने लगा. तब तक औफिस का चपरासी टेबल पर चाय और पानी का गिलास रख कर जाने लगा तो मैं ने उस से कहा, ”मिसेज शर्मा को भेज देना.’’ फिर कुछ सोच कर बोला, ”अच्छा रहने दो, मैं बाद में बुला लूंगा.’’ वह मेरा मुंह देखने लगा.

हमारे औफिस में मोबाइल सुनने पर पाबंदी थी, इसलिए सभी स्टाफ अपना मोबाइल साइलेंट मोड पर रखते थे. मैं ने भी अपना फोन वाइब्रेट मोड पर रख कर सामने रख दिया. तभी फोन धीरे से बज उठा. किसी अंजान नंबर से फोन था. मैं ने जैसे ही रिसीव किया तो दूसरी तरफ से किसी महिला की आवाज आई, ”नमस्ते सर, क्या मैं सुनीलजी से बात कर सकती हूं?’’

जी, बोल रहा हूं… आप कौन?’’

मैं देहरादून से बोल रही हूं बसेरासे.’’ 

मैं चौंक गया. बसेरावृद्ध असहाय लोगों का एक आश्रम था, जिसे एक एनजीओ चलाता था. 

जी, बात यह है कि आप को प्रशांतजी याद कर रहे थे… आज आप यहां आ सकते हैं क्या?’’

क्यों, क्या बात हो गई? सब ठीक तो है न?’’ मैं ने चिंतित होते हुए पूछा.

सब कुछ तो ठीक नहीं है, बस आप यहां आ जाइए.’’

ठीक है, मैं एकदो दिन में आता हूं,’’ मैं ने कहा.

क्या आप आज नहीं आ सकते?’’ उस के स्वर में थोड़ी कंपन थी. शायद थोड़ा घबराई हुई भी थी.

अच्छा, मैं कोशिश करता हूं.’’ कह कर मैं ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

10 बज चुके थे और मैं कितनी भी जल्दी करूं, 12 बजे से पहले की बस तो पकड़ ही नहीं सकता था. मैं ने जल्दीजल्दी अपना सारा काम मिसेज शर्मा को समझा दिया. उधर पत्नी मानसी को भी मैं ने जाने की तैयारी के लिए कह दिया. मुझे इसी भागदौड़ में बस मिल गई. मैं ने जानबूझ कर पीछे की सीट ली ताकि आगे के शोर से बच सकूं. बस चलते ही बाहर का शोर तो कम हो गया, पर अपने भीतर के शोर का क्या करता, वह तो देहरादून और बसेराकी यादों में उलझा रहा. मैं यादों को जितना दबाता, वह उतना ही उभर कर सामने आ जातीं और उन्हीं यादों में एक याद मुक्ता की भी थी.

 

2 साल पहले मुझे मेरी कंपनी ने उत्तराखंड में सर्वे के लिए भेजा था, ताकि हम अपना प्रोडक्ट ठीक से बाजार में उतार सकें. हमारी कंपनी हौट वाटर बोटल यानी गर्म पानी की रबर की बोतलें बनाती थी और उत्तराखंड ही ऐसा राज्य था, जहां इस का प्रचारप्रसार हो सकता था. मैं ने देहरादून को अपना स्टेशन बनाया और सर्वे करता रहा. कभी मसूरी, कभी नैनीताल और कभी ऋषिकेश में. मैं अपने सर्वे का दायरा बढ़ाता रहा. बीचबीच में जब भी समय मिलता, मैं आश्रमों और मंदिरों में जाने लगा. राजपुर रोड पर कई आश्रम थे और कहीं न कहीं कोई प्रोग्राम चलता ही रहता था.

एक दिन मैं यूं ही घूम रहा था कि मेरी नजर एक बोर्ड पर जा पड़ी. जिस पर लिखा था कि बसेरा नाम की संस्था भागवत सप्ताह मनाने जा रही है और योगदान की सारी राशि वृद्धाश्रम के लिए उपयोग की जाएगी. उन दोनों ही बातों ने मुझ में जिज्ञासा पैदा की. पता पढ़ कर मैं अगले दिन सुबह ही बसेरापहुंच गया. उस दिन रविवार था. जैसे ही मैं हाल में पहुंचा, लगभग सारी सीटें भर चुकी थीं. वह एक छोटा सा हाल था, जिस में 30-35 व्यक्तियों के बैठने की व्यवस्था थी. मैं ने उड़ती हुई नजर हाल में दौड़ाई और पीछे की एक कुरसी पर बैठ गया.

सामने की तरफ एक कोने में कुछ देवीदेवताओं की फोटो के सामने एक दीया जल रहा था और एक वृद्ध कुरसी पर बैठे किसी किताब के पन्ने पलट रहे थे. दूसरी तरफ एक मंडली भजन गा रही थी. भजन समाप्त होते ही महाराजजी ने धीमे मगर मधुर स्वर से भूमिका बांधनी शुरू की और भागवत का महत्त्व समझाने लगे. तभी एक 28-30 साल की महिला ने मेरे पास आ कर बड़ी विनम्रता से जूते बाहर उतारने के लिए निवेदन किया. मैं ने इस बात को पहले नहीं महसूस किया कि सभी के जूतेचप्पल हाल के बाहर रखे थे. मैं सब से पीछे बैठा था, इसलिए किसी का ध्यान मेरी तरफ नहीं गया. मेरे लिए जूते उतार कर बाहर रखना या जूते पहन कर बाहर जाना, सब का ध्यान आकर्षित करने जैसा था. 

मैं थोड़ा हिचकिचाने लगा कि अब क्या करूं. वह मेरी ही पंक्ति में कोने में बैठी थी. उस ने मेरी इस हिचकिचाहट को भांप लिया और इशारा किया कि चुपचाप जूते उतार कर अपनी कुरसी के नीचे रख दूं. उस दिन की भागवत की क्लास समाप्त होने पर शांति पाठ हुआ और सभी लोग महाराज के पीछे चले गए. वह जैसे ही अपने स्थान से उठी, मैं ने हाथ जोड़ कर उन्हें धन्यवाद दिया और जूते बाहर ले जा कर पहनने लगा. 

हाल में 2 व्हील चेयर पर वृद्ध से व्यक्ति बैठे थे. वह उठ कर उन में से एक को धीरेधीरे बाहर ले जाने लगी. मैं अपने स्थान पर खड़ा हो गया और धीरे से कहा, ”मैं कुछ मदद करूं?’’ तब तक वह दूसरी व्हील चेयर भी बाहर ले आई और हाल का दरवाजा बाहर से बंद करती हुई बोली, ”आप को कोई परेशानी न हो तो एक व्हील चेयर के साथ मेरे पीछेपीछे आ जाइए.’’  मैं ने अपने जीवन में कभी व्हील चेयर को हाथ तक नहीं लगाया था और किसी की मदद करने में बड़ा सुख महसूस हो रहा था. भीतर से कोई आवाज ऐसी भी आ रही थी कि कोई ऐसा मोहताज कभी न बने. उन में से एक को पार्क के पास छोड़ कर और दूसरे व्यक्ति को पास के ही एक कमरे में छोड़ कर वह मेरे पास आ गई.

आप पहली बार आए हैं यहां?’’ उस ने पूछा. 

मैं वहां का वातावरण देख कर इतना भावुक हो गया था कि मुंह से कोई शब्द नहीं निकला, सिर्फ सिर नीचा कर के हांकी. तब तक सामने से 2 व्यक्ति आ रहे थे. उस ने हाथ जोड़ कर उन्हें प्रणाम किया. मेरे हाथ भी खुदबखुद जुड़ गए. वह उन में से एक व्यक्ति की तरफ देखते हुए बोली, ”ये पहली बार आए हैं यहां, औफिस के बारे में पूछ रहे थे.’’ उन्होंने मुसकरा कर मेरा अभिनंदन किया और गेट के पास एक कमरे की तरफ इशारा कर के कहा कि आप वहां बैठिए, मैं थोड़ी देर में आता हूं. 

तब तक वह बोली, ”चलिए, आप को वहां तक ले चलती हूं. जिन से आप मिले थे, वह यहां के ट्रस्टी हैं.’’  बातों का सिलसिला जारी रखते हुए मैं ने अपना परिचय दिया, ”मेरा नाम सुनील है, अभी 3 महीने पहले ही यहां आया हूं. परसों आप की संस्था का बोर्ड पढ़ा था. सोचा एक बार देख लूं. किसी भी आश्रम में आने का मेरा यह पहला अनुभव है और वह भी ऐसी संस्था जहां ज्यादातर शायद वृद्ध ही रहते हैं. आप यहां के बारे में कुछ बताइए.’’

उस ने मुझे बताना शुरू किया, ”बसेरा नाम का यह ट्रस्ट केवल वृद्ध व्यक्तियों की सेवा करता है. सीनियर सिटिजन होम भी इसे कह सकते हैं. प्रशांतजी, जिन से आप अभी मिले थे, यहां के प्रधान ट्रस्टी हैं. उन्हीं का बनाया हुआ यह ट्रस्ट है. कुछ तो यहां अपनी खुशी से रह रहे हैं और कुछ मजबूरी से. समय बिताने के लिए यहां एक छोटा सा मंदिर, पार्क, सत्संग हाल और एक पुस्तकालय है, जिन की जैसी रुचि हो वहां चला जाता है. और एक किचन भी है जहां सभी पहुंच जाते हैं और जो नहीं पहुंच सकते, उन के कमरों तक भोजन, नाश्ता वगैरह पहुंचाया जाता है.’’

और इन सब के लिए धन कहां से आता है, मेरा मतलब खर्चे भी बहुत होते होंगे इतनी बड़ी संस्था को चलाने के लिए.’’

हां, वह तो है… यह सब तो मैनेजमेंट ही जाने.’’ कह कर उस ने सामने के कमरे की तरफ इशारा कर के इंतजार करने के कहा.

मैं उन के कमरे के बाहर बरामदे में बैठ गया. थोड़ी देर में प्रशांतजी आए, मैं ने उन्हें अपना परिचय दिया और बातोंबातों में कुछ अपनी गर्म पानी की बोतलें भेंट करने का आश्वासन दिया. वह लगभग 68 वर्ष के सौम्य और शालीन नेचर के व्यक्ति थे. लगभग 20 वर्ष पहले उन्होंने यह संस्था शुरू की थी. समय बीतता गया और लोग जुड़ते गए. समयसमय पर सत्संग, भजन, प्रवचन, होलीदिवाली मेलों इत्यादि का आयोजन करते रहते और इकट्ठा हुए धन से संस्था का काम करते रहते.

मेरे जीवन का किसी भी संस्था में जाने का यह पहला अनुभव था. मैं बहुत ही नपेतुले शब्दों का प्रयोग करता रहा और मेरे इसी व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर उन्होंने मुझे यहां आने का एक खुला आमंत्रण दे दिया. यहां पर 3-4 दंपतियों के अलावा 12 पुरुष और 8 महिलाएं भी रहते थे. मैं ने उस संस्था में जाना शुरू कर दिया और एकदम पीछे की कुरसी पर जा बैठता. कुछ व्यक्ति तो बैठेबैठे ही सो जाते और कुछ ध्यान से भागवत कथा सुनते रहते. मेरी मिलीजुली प्रक्रिया थी. कभी मन लगता, कभी इधरउधर देखने लगता. मैं यहां इसलिए आ जाता था कि मेरे पास औफिस के बाद और कोई काम नहीं था, दूसरा प्रसाद इतना मिल जाता कि रात को खाना खाने की जरूरत महसूस नहीं होती थी. 

शायद इस के अलावा भी एक और बात थी, वह थी उस 28-30 वर्षीय महिला का आकर्षक व्यक्तित्त्व. न जाने उस में ऐसा क्या था कि मेरी नजरें उसी पर अटक जातीं. एक दिन सत्संग के बाद सारे पंखे और लाइटें बंद कर के वह हाल से बाहर निकल रही थी तो मैं ने उस से पूछा, ”यहां कोई कैंटीन भी है, जहां चायनाश्ता मिलता हो.’’

जी,’’ वह थोड़ा मुसकरा कर बोली, ”लाइब्रेरी के पीछे किचन है, आप चाहें तो पेंमेंट दे कर ले सकते हैं. आइए, मैं आप को दिखा देती हूं.’’ कह कर वह मेरे साथ चलने लगी.

आप यहीं रहती हैं क्या?’’ मैं ने पूछा.

जी,’’ कह कर वह अपनी चुन्नी सिर पर लेती हुई मेरी ओर देखने लगी. 

बातों का सिलसिला जारी रखते हुए मैं ने कहा, ”कब से?’’

पता नहीं शायद 7-8 साल तो हो गए होंगे, मेरा नाम मुक्ता है.’’

उस ने फिर से एक बार मुझे मुसकरा कर देखते हुए कहा, ”आप इधर से सामने की तरफ चले जाइए, वहां लिखा हुआ है. अच्छा, अब मैं चलती हूं, मेरा लाइब्रेरी का समय हो गया है.’’

वहां पढ़ती हैं आप?’’

ऐसा ही कुछ समझ लीजिए. मैं यहां की लाइब्रेरी संभालती हूं… जीने का कोई तो बहाना चाहिए…’’ कह कर वह मुंह फेर कर वहां से चली गई. 

वह नम्र और संयत स्वर में बात करती थी. एकदम नपातुला. कुछ चेहरे ऐसे होते हैं, जो आंखों को बांध लेते हैं. वह भी ऐसी ही थी. परंतु उस के आखिरी वाक्य ने मेरे भीतर कई प्रश्न खड़े कर दिए. मैं रातभर उसी के बारे में सोचता रहा. अगले दिन मेरा आश्रम में जाना तय था. मैं सब से पहले वहां पहुंच गया और पीछे बैठ गया. धीरेधीरे लोग आते रहे, कुछ मेरी तरह बाहर से तो कुछ यहीं के. कुछ जानेपहचाने चेहरों ने मेरा मुसकरा कर स्वागत किया. मेरी नजरें जिसे तलाश रही थीं, वह वहां नहीं थी. 

इतने में एक व्हील चेयर के साथ वह आई. व्हील चेयर को एक कोने में खड़ा कर के टेबल पर रखी फोटो के सामने एक दीया और अगरबत्ती जला कर पीछे बैठ गई. मैं उसी को देखता रहा. उस ने भी चोर निगाहों से मुझे देखा और नजरें फेर लीं. सप्ताह के अंत तक यह भी स्पष्ट हो गया कि उसे भी मेरा इंतजार रहता है. बातचीत हम दोनों के बीच इतनी जरूरी नहीं थी जितना की आंखों का भाव. आखिरी दिन प्रसाद भंडारे में भी मैं ने अंत तक अपना योगदान दिया. यहां तक कि 10-12 सहायकों में मुझे भी शामिल कर लिया गया. मुझे जब भी समय मिलता, मैं किसी न किसी काम में शामिल कर लिया जाता. मुक्ता से भी मेरी मुलाकात लगभग हर रोज हो जाती. शायद यह भी झूठ नहीं होगा कि मैं मुक्ता से मिलने के बहाने इस संस्था से जुड़ता चला गया.

हमारे छोटे वाक्यों में बातचीत का सिलसिला चलता रहा. वह इस संस्था में काम न करती होती तो शायद मैं उसे कहीं घूमने के लिए कह देता. मुझे यहां की सीमाओं और मर्यादाओं ने बांध रखा था. एक दिन सुबह रविवार को मैं थोड़ा जल्दी पहुंच गया. पहुंचने का तो बहाना था. मैं ने सामने से मुक्ता को आते देखा. बजाय पार्क में जाने के, जहां पहले से ही कई बुजुर्ग व्यक्ति बैठे धूप का आनंद ले रहे थे, मैं लाइब्रेरी में चला गया. थोड़ी देर में वह इशारे से पूछने लगी कि मैं औफिस या पार्क में क्यों नहीं गया. यह मेरा सामान्य नियम था कि मैं औफिस से प्रशांतजी को मिल कर कुछ समय यहां सेवा करता रहता.

वो प्रशांतजी तो 11 बजे से पहले आएंगे नहीं, मुझे अपनी गाड़ी सर्विस करानी है तो सोचा पहले यहीं आ जाता हूं.’’ कह कर मैं ने मैगजीन स्टैंड से कुछ पत्रिकाएं उठा लीं और एक कोने में बैठ गया. वह इधरइधर पड़ी किताबें और अखबार समेटती रही.

एक बात पूछनी थी आप से?’’ मैं ने धीमे से कहा. वह मेरे पास आ कर बैठ गई और बहाने से एक रजिस्टर सामने रख लिया, जैसे वह भी मुझ से बात करने का कोई अवसर ढूंढ़ रही हो.

उस दिन आप ने कहा था कि जीने का कोई तो बहाना होना चाहिए, यह तो इतनी शांत जगह है फिर आप की शायद कोई जिम्मेदारियां भी नहीं लगतीं, यहां भी बहाने ढूंढने पड़ते हैं क्या?’’

वह मुझे ऐसे देखने लगी जैसे मैं ने कोई गलत बात पूछ ली हो. उस का चेहरा सफेद होने लगा. मुझे यहां आते लगभग 2 महीने बीत चुके थे पर मैं ने उस के चेहरे पर कभी कोई खुशी नहीं देखी. हमारे बीच एक सन्नाटा सा पसर गया. मुझे लगा कि या तो वह कुछ बताना नहीं चाहती थी या बताने के लिए शब्द ढूंढ रही थी. मैं ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ”माफ कीजिए, मैं कुछ ज्यादा ही बोल गया. कोई संकोच हो तो रहने दीजिए. मुझे तो यहां के तौरतरीके, बातचीत करने का ढंग भी नहीं आता.’’ कहतेकहते मैं ने अपनी लाचारी जताई और मैगजीन के पन्ने पलटने लगा.

मेरे पास बताने या छिपाने जैसी कोई बात नहीं है,’’ उस ने अपनी नजरें नीची कर लीं, ”अपने मम्मीपापा के साथ मैं काफी समय से यहां आती थी, लगभग हर छुट्टियों में. एक दिन पापा अचानक एक हादसे में चल बसे. न तो हमारे पास कोई जमापूंजी थी, न कोई अपना मकान. प्रशांतजी ने हमें हमारी हालत पर तरस खा कर यहां रहने की इजाजत दे दी. मम्मी भंडार घर में काम करने लगीं और मैं स्कूल जाने लगी.

”मेरी अभी इंटरमीडिएट की पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई कि मम्मी को कैंसर हो गया, न वह बच पाईं न मेरी पढ़ाई. मैं एकदम अकेली पड़ गई. कहां जाती. बस तब से यहीं पड़ी हूं. मेरा फिर हर चीज से मोह टूट गया. कुछ भी करने का मन नहीं करता…’’

तो क्या सारी जिंदगी यूं ही काट देंगी?’’

फिर कहां जाऊं, न कोई मेरी आमदनी है न कोई और ठिकाना, बस मजबूरी है. इतनी पढ़ीलिखी भी नहीं कि कोई मुझे काम दे देगा. और अकेली जवान लड़की. पापा को अपने परिवार के बारे में कुछ सोचना चाहिए था. कहीं कुछ तो जोड़ते.’’

कहतेकहते वह रुआंसी सी हो गई. मेरे पास कहने के लिए शब्द कम पड़ गए. मैं उस की तरफ देखता रहा. उस की आंखों में आंसू थे, जो मुझ से छिपा रही थी. घबरा कर मैं ने नजरें फेर लीं, हालात जैसे नजर आते हैं वैसे होते नहीं.

जिस का नसीब ही खोटा है वह क्या करे.’’ एक लंबी सांस भर कर उस ने कहा और वहां से चल दी. मैं भी बिना कुछ कहे वहां से उठ कर चला गया. दिन बीतते गए उन को तो बीतना ही था. मुक्ता मेरा अभिवादन अब मुसकरा कर करती. मैं कभीकभी चुपके से उस के लिए कोई मिठाई या कोई नियमित प्रयोग होने वाला कोई सामान देता रहता. कभीकभी वह भी छोटामोटा सामान मंगवाती रहती. मैं उस की मदद करना चाहता था. एक बार देर रात प्रशांतजी का फोन आया कि अचानक एक माताजी की तबीयत खराब हो गई है, उन को एम्स ले जाना है, वह स्वयं कहीं बाहर गए हुए थे. उन्होंने मुझ से निवेदन किया जो मैं मना नहीं कर सका. मेरे लिए उन वृद्ध माताजी को अस्पताल ले जाने का सौभाग्य तो था ही और उस से ज्यादा खुशी की बात यह थी कि मुक्ता को उन की सेवा में लगा दिया.

मैं ने उन दोनों को साथ ले जा कर इमरजेंसी में सारी औपचारिकताएं पूरी कर के भरती करा दिया. जब तक उन का चैकअप होता रहा, मुझे बाहर ही बैठना था, मुक्ता को उन माताजी के साथ रहना था. थोड़ी देर में मुक्ता भी बाहर आ कर मेरे पास बैठ गई. मैं ने सामने के कैफेटेरिया से 2 कप कौफी ली और उस के साथ बैठ गया. रात काफी हो चुकी थी. हमारे पास डाक्टर की रिपोर्ट का इंतजार करने के सिवाय और कोई रास्ता भी तो नहीं था. मुझे तो जैसे 

इसी अवसर की तलाश थी. मुक्ता के चेहरे पर मैं ने पहली बार खुशी देखी. कहने लगी, ”पिछले एक साल से मैं पहली बार बाहर निकली हूं.’’

आप के निकलने पर कोई पाबंदी है क्या?’’

”पाबंदी तो नहीं है पर जाऊं भी कहां? मेरा और है ही कौन? जो कोई दूर पास के रिश्तेनाते थे, उन्होंने भी मां के मरने के बाद किनारा कर लिया. शायद मैं कोई डिमांड ही न कर बैठूं… या शायद उन पर बोझ ही न बन बैठूं. यहां कुछ ऐसे भी व्यक्ति हैं जो साधनसंपन्न हैं, उन के मिलने वाले कभीकभी उन को मसूरी, देहरादून या ऋषिकेश घुमाने ले जाते हैं, वह मुझे भी साथ ले जाना चाहते थे, पर यहां से इजाजत नहीं मिली.’’

कह कर वह वहां से मेरा भी खाली कप ले कर उठ गई. शायद वह भरे गले से मुझ से और बातचीत करने से बचना चाहती थी. तब तक ड्यूटी डाक्टर ने आ कर बताया, ”कोई घबराने वाली बात नहीं है, थोड़ी गैस्ट्रिक प्राब्लम है, अब थोड़ा ठीक है, सुबह तक हम उन को यहां रखेंगे, आप चाहें तो उन्हें सुबह ले जा सकते हैं.’’

मैं मुक्ता की तरफ देखने लगा, वह मेरा इशारा समझ गई. वह इतनी नादान भी नहीं थी, जितना मैं समझता था. कहने लगी, ”आप चाहें तो इन्हें यहां भरती कर लीजिए, हम लोग तो वृद्धाश्रम से आए हैं इन को ले कर. एकदो दिन में उन का कोई न कोई रिश्तेदार भी आ जाएगा, आश्रम में इन की देखभाल करने वाला भी कोई नहीं है.’’

अस्पताल को भला इस में क्या परेशानी हो सकती थी, उन्होंने थोड़ी ही देर में उन को रूम में शिफ्ट कर दिया. मैं भी उन से इजाजत ले कर वहां से चला गया. मैं ने अगले 3 दिनों के लिए अपने औफिस से छुट्टी ले ली और दोपहर तक फिर से उन के रूम में पहुंच गया. माताजी मुझे देख कर बहुत खुश हुईं. बोली, ”बेटा, बहुतबहुत आशीर्वाद, कल रात तुम ने जो कुछ भी मेरे लिए किया, मैं हृदय से आभारी हूं. लोग अपनों के लिए इतना नहीं करते,’’ कहतेकहते उन की आवाज भर्रा गई.

तो क्या मैं पराया हूं. माताजी, जब एक रास्ता बंद हो जाता है तो कई और खुल जाते हैं. आप जब तक यहां हैं, मैं आप की सेवा में रहूंगा, आप चिंता मत कीजिए.’’ कह कर मैं सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गया. 

मुक्ता ने मुझे देखते ही कहा, ”माताजी काफी समय से आप को याद कर रही थीं, उन का कुछ सामान, कपड़े, दवाइयां वगैरह उन के कमरे से लाना है, आप चल सकेंगे क्या?’’

इन का काम तो मेरे लिए सौभाग्य की बात है, पर अकेले इन के कमरे में…’’

नहीं, मुझे साथ जाना होगा… मैं ने प्रशांतजी से बात कर ली है,’’ वह बोली.

कब जाना है?’’ मैं ने पूछा.

अभी चलें… अगर आप को कोई परेशानी न हो तो?’’

परेशानी होती तो यहां आता ही क्यों, आप बाहर आ जाइए, मैं गाड़ी निकाल कर लाता हूं.’’ कह कर मैं पार्किंग में चला गया. 

मेरी तो बांछें ही खिल गईं. अब तो मेरे पास उस के साथ जाने का आधिकारिक फरमान था. मैं ने उसे गाड़ी में बिठाया और रास्ते में पूछा, ”कुछ खाओगी क्या… कचौरी समोसे या कुछ और..?’’

हांहां क्यों नहीं…’’ उस ने चहकते हुए कहा.

चलो, फिर तुम को साउथ इंडियन खिलाता हूं,’’ कह कर मैं ने गाड़ी मद्रास कैफे की तरफ मोड़ दी. 

समोसेकचौरी तो तुम्हारे यहां भी मिल जाती होंगी, नहींï?’’ मैं ने उस की तरफ देखते हुए कहा, ”तुम्हें कोई जल्दी तो नहीं?’’

”मुझे कौन सी जल्दी है.’’ वह बोली तो मुझे लगा जैसे उस का बचपन फिर से लौट आया है. कितने अरमानों को मार कर वह बेचारी सी महसूस करती होगी. अपनी मरजी का कुछ भी नहीं. मैं ने थोड़ाथोड़ा कर के काफी कुछ मंगवा दिया. वह ऐसे खाती रही जैसे जीवन में पहली बार खाया हो.

कार में बैठते ही उस ने बिना किसी संकोच मेरे हाथ पर हाथ रख कर कहा, ”थैंक्यू.’’

उस के कोमल हाथों का स्पर्श मुझ में भीतर तक सिहरन पैदा करने लगा. स्पर्श का अपना ही एक सुख होता है. एक अनकहा पूरा वाक्य. मैं गियर बदलने के लिए वहां से हाथ हटाना नहीं चाहता था, देर तक हम दोनों यूं ही बैठे रहे. चुप्पी तोड़ते हुए मैं ने कहा, ”जानती हो, उस दिन रविवार सुबह मैं जल्दी आश्रम क्यों आ गया था?’’

”क्या आप नहीं जानते कि रविवार को लाइब्रेरी बंद रहती है? आप को दूर से आता देख कर मैं ने जानबूझ कर खोली थी कि शायद आप किसी बहाने वहां आओ. मुझे क्या मालूम था कि आप के भीतर कुछ चल रहा है.’’

मुक्ता के इस प्रतिप्रश्न से मेरे भीतर कुछ झन्न सा टूट गया. मैं ने यह तो सोचा भी न था, दिलों के इस खेल की शुरुआत तो दोनों तरफ से हो ही चुकी थी.

और शायद ऊपर वाले को मेरी नीरस सी जिंदगी पर तरस आ गया होगा, तभी तो आप मिल गए. अब मैं आप को खोना नहीं चाहती. सुना है इस जन्म के सारे संबंध पिछले जन्मों के बकाया लेनदेन को पूरा करने आते हैं.’’ कहतेकहते वह अपने विचारों में खो गई. मैं भी खयालों की दुनिया से यथार्थ में आ गया और यंत्रचलित हाथ कार को ठेल कर आश्रम आ गए. हमारे संबंध अब नजदीकी और मजबूत होते गए. मैं छोटेछोटे पल भी उस के साथ गुजारने लगा. उस को आश्रम से लाना, छोडऩा वगैरहवगैरह. तीसरे दिन माताजी को अस्पताल से छुट्टी मिलनी थी. 

मुक्ता ने बहुत कोशिश की कि किसी बहाने कुछ दिन और यहां माताजी को रखा जाए, पर ऐसा हो न सका. माताजी के घर से किसी व्यक्ति ने आ कर अस्पताल का सारा हिसाब कर दिया. मुक्ता माताजी के पास थी और मैं नीचे रिसैप्शन पर. जब सब कुछ सैटल हो गया तो मुक्ता भागीभागी मेरे पास आ कर बोली, ”अब तो यहां से जाना ही होगा. पता नहीं अब मेरा क्या होगा. कैसे रहूंगी आप के बिना.’’ कहतेकहते वह सारे संकोच छोड़ कर मुझ से लिपट गई और रोने लगी, ”मैं अब आश्रम नहीं जाना चाहती.’’

मेरे पास शब्द ही नहीं थे, अपने साथ भी नहीं रख सकता था और उस के बिना रहना भी मुश्किल था. पता नहीं वह कौन सा पल था, जो मुझे मुझ से ही चुरा कर ले गई. उस के शब्दों के साथ मेरा भी दिल बैठने लगा.

”क्या ऐसा कोई रास्ता नहीं कि मैं आप के आसपास रह सकूं… मेरा दिल बैठा जा रहा है, कोई तो उपाय होगा. झूठ ही कह दो कि आप भी मेरे बिना नहीं रह सकते.’’ वह भावुक हो कर बोली. तब तक दूर से माताजी को व्हील चेयर पर आते देख कर मैं उस से अलग हो गया. बड़े बेमन से वहां से उठा और कार ला कर पोर्च में खड़ी कर दी. माताजी रास्ते भर ढेर सारे आशीर्वचनों से मुझे लादती रहीं. उन सब को वृद्धाश्रम छोडऩे के बाद मैं वहां से निकल गया. मुक्ता से आंखें मिलाने का साहस अब मुझ में नहीं था, शब्दों की यहां कोई जरूरत नहीं थी.

दिन बीतते गए. बसेरा में मेरा आनाजाना लगा रहा. उस के निकट रहता तो सीमाएं टूटतीं और दूर रहता तो मन टूटता. सुबह उठते ही पहला खयाल उस का होता और आखिरी भी उस का. जिस दिन मैं नहीं आता, वह कहीं न कहीं से फोन करती. उस की आवाज भर्रा जाती और टूट भी जाती थी. जब से मैं ने माताजी की सेवा की, मेरा परिचय वहां के लोगों से बढऩे लगा. उन के मन में मेरे प्रति एक आदर का भाव था.

और एक दिन वही हुआ, जिस का मुझे डर था. प्रशांतजी ने मुझे बुला कर कहा, ”सुनीलजी, यह समाज पतिपत्नी के अलावा बाकी सभी रिश्तों को संदेह की नजर से देखता है, उन का न कोई नाम होता है न मुकाम. इन थोड़े से शब्दों को ही अधिक समझना, बाकी जैसा आप को ठीक लगे.’’ उन के शब्दों को मैं न समझ सकूं, ऐसा नासमझ भी नहीं था मैं. मुझ से न तो कोई जवाब देते बना, न ही मैं नजरें मिला सका. आगे कुछ और अप्रिय न सुनना पड़े, मैं वहां से उठ कर चला गया.

उस रात मेरी आंखों को नींद ने धोखा दे दिया. हार कर मुझे अपनी कामनाओं के पंख समेटने पड़े, जो इतना आसान नहीं था. मैं ने खुद को समझाने की कोशिश की, पर दिल कहां मानने वाला था. मैं ने वहां जाना अब कम करने का मन बनाया. मैं कोशिश करता कि उन जगहों पर न जाऊं, जहां मुक्ता के मिल जाने की संभावना थी. मैं अपने आप को ही धोखा दे रहा था. मैं उस को देखना भी चाहता था और उस से छिपना भी. महाशिवरात्रि के दिन मैं चुपचाप मंदिर में आया और पूजाअर्चना कर के पीछे के रास्ते से निकल रहा था. तभी अचानक मेरी नजर मुक्ता पर पड़ी. वह एक कोने में बैठी हुई थी. उस से नजरें मिलते ही मैं बेचैन हो गया. उस का चेहरा उतरा हुआ था और रंग भी पीला पड़ चुका था. निष्प्राण सा शरीर और निस्तेज आंखें मानों कई सालों से बीमार हो. मैं उस से नजरें चुरा कर पीछे के रास्ते से जा ही रहा था कि न जाने वह कहां से सामने आ गई.

ऐसा क्या गुनाह कर दिया मैं ने, एक टुकड़ा साथ ही तो मांगा था.’’ वह बोली.

क्या?’’ मैं ने जानबूझ कर अनजान बनने की कोशिश की.

न आप लाइब्रेरी में मुझ से मिलने आते हैं, न मेरा फोन ही सुनते हैं. मुझ से मिलना नहीं चाहते क्या? आप से मिल कर जीवन जीने की कुछ आस बंधी थी और अब वह भी टूटती जा रही है. मैं ने ऐसा क्या जुर्म कर दिया, जिस का फैसला आप सुना रहे हैं? तुम क्यों आए थे यहां…’’ कहतेकहते वह रो पड़ी और नजरें हटा कर वहां से चली गई.

सच्चाई से ज्यादा मुश्किल सवाल था यह, जिस का मेरे पास कोई उत्तर नहीं था. बस यह मेरी उस से आखिरी मुलाकात थी. इस के बाद मैं ने अपने दिल को मजबूत किया और वहां आनाजाना बंद कर दिया. उस ने कुछ दिनों तक तो बहुत फोन किए और करवाए भी, पर बड़ी विनम्रता से मैं ने पीठ दर्द का बहाना बना कर टाल दिया. असली दर्द तो मेरे सीने में था. मन के घावों को वक्त पर छोड़ कर वहां से चला आया. और आज अचानक ‘बसेरा’ से फोन आ गया. देहरादून छोड़े हुए मुझे 6 महीने से अधिक का समय हो गया था. मैं मुक्ता का सामना किस मुंह से कर पाऊंगा. सच कहूं तो एक भी दिन ऐसा नहीं गया, जब मैं ने उसे याद न किया हो. उस की यादें अब मेरी पर्सनल लाइफ को भी प्रभावित कर रही थीं.

शाम काफी हो चुकी थी. बसेराके गेट पर पहुंचते ही मेरा दिल जोरजोर से धड़कने लगा. मैं दुआ करता रहा कि मुक्ता से सामना न हो तो अच्छा. मैं सीधा प्रशांतजी के औफिस गया, जहां वह मेरा ही इंतजार कर रहे थे.

कैसा रहा सफर, बहुत थक गए होगे. कुछ बात ही ऐसी है कि तुम को बुलाना पड़ा और तुम ने मेरा आग्रह मान कर फौरन हां कर दी, यह मेरा सौभाग्य है.’’ प्रशांतजी बोले.

मैं सामने की कुरसी पर बैठ गया और अगले वाक्य का इंतजार करने लगा.

तुम्हारे लिए चायनाश्ता मंगवाता हूं. फिर आराम से बात करेंगे. रात में तुम्हारे रहने की व्यवस्था भी यहीं करवा देता हूं.’’

नहीं रहने दीजिए… थोड़ी देर बाद ले लूंगा…’’ कह कर मैं ने बात टाल दी. मैं नहीं चाहता था कि मेरे आने का पता सब को चले.

उन्होंने अपनी कुरसी पीछे की और फिर आराम से बैठ गए.

बात यह है सुनीलजी कि मैं ने इस संस्था की 20 वर्षों से अधिक सेवा की. इस को वृद्ध लोगों का बसेराबनाया. अच्छे दिन भी देखे और बुरे भी. कई आए और चले गए. मुझ से अब यह बसेरानहीं संभलता. इसलिए मैं ने इस को नए लोगों के हाथों में सौंपने का फैसला किया है. कल हमारे ट्रस्ट की आखिरी मीटिंग है. आप ने इस संस्था के लिए जो भी योगदान दिया, उस के लिए मैं हृदय से आभारी हूं. यदि आप चाहें तो मैं आप का नाम ट्रस्टी में करवा सकता हूं, अभी इतना अधिकार मेरे पास है.’’

मैं खामोश रहा और उन की बातों का मतलब समझने लगा. परंतु मेरे मन में तो कुछ और ही चल रहा था. मैं ने एक लंबी सांस भर कर कहा, ”मुझे सोचने के लिए थोड़ा वक्त चाहिए. खैर… यहां और सब लोग कैसे हैं?’’

आप का मतलब मुक्ता से है?’’ उन्होंने सीधा प्रश्न किया. मैं खामोश रहा.

मिलना चाहेंगे उस से?’’

मैं ने धीरे से सिर हिला कर इंकार कर दिया. इतना तो पता चल गया कि वह यहीं है. मुझे उस समय उस के साथ बिताए एकएक पल याद आने लगे. उन का यह ऐसा प्रश्न था, जिस की उम्मीद नहीं थी. यह प्रश्न पूछने का साफ मतलब था कि उन्हें हमारे संबंधों का पता है.

”सर, यदि आप मेरे लिए कुछ करना ही चाहते हैं तो मुक्ता के लिए कोई ऐसी व्यवस्था कर दीजिए कि उस को यहां से कोई निकाल न सके. मैं नहीं चाहता कि वह स्वयं को लाचार महसूस करे, अनाथ और बेसहारा महसूस करे.’’ पता नहीं उस समय मेरे मन में ऐसे विचार कहां से आए और मैं कह गया. वह कुछ देर मुझे देखते रहे. ट्रस्टी जैसे महत्त्वपूर्ण पद को छोड़ कर मैं मुक्ता के लिए कुछ मांग रहा था. फिर गंभीर हो कर कहने लगे, ”ठीक है, मैं उस को एक कमरा दिलवा देता हूं. वह जब तक जीवित रहेगी, उसे यहां से कोई नहीं निकालेगा, साथ ही वह यहां काम भी करती रहेगी, यह भी अभी तक मेरे अधिकार में है. परंतु आप को एक लाख रुपए की व्यवस्था करनी होगी. ट्रस्ट का ऐसा ही नियम है. मैं इस बारे में भी आप से बात करना चाहता था.’’

मैं अपनी कंपनी से आप को इस फंड में रुपए भिजवा देता हूं. यह मेरे अधिकार में है. हमारी कंपनी को ऐसे कार्य में योगदान के लिए कोई आपत्ति नहीं है.’’ मैं ने उन से धीरे से कहा.

मुक्ता को जीवन भर संस्था में रखने का भरोसा पा कर मैं बहुत खुश हुआ. मुझे बहुत सुकून मिला कि वह बेचारी अब जिंदगी भर वहां रह सकेगी.

लेखक –   डा. पंकज धवन

Webseries इल्लीगल : सीजन 3

वेब सीरीज इल्लीगल-3’ की कहानी तो कोई खास नहीं है, लेकिन इस में कई तरह के सब प्लौट हैं, जो कथा को व्यस्त और तनावपूर्ण रखते हैं. सीरीज में कानूनी लड़ाई से ले कर व्यक्तिगत संघर्षों तक कहानी एक तेज गति में दिखती है.

कलाकार: नेहा शर्मा, पीयूष मिश्रा, सत्यदीप मिश्रा, अक्षय ओबेराय, नील भूपलम, इरा दुबे, अचिंत कौर, विक्की अरोरा, अंशुमान मल्होत्रा, कीर्ति बिज, सोनाली सचदेवा, अशीमा वरदान

निर्माता: समर खान, आदित्य, निर्देशक: साहिर रजा, पटकथा: सुदीप निगम और भारत मिश्रा, लेखक: राधिका आनंद, ओटीटी: जियो सिनेमा

बौलीवुड एक्ट्रैस नेहा शर्मा और पीयूष मिश्रा की वेब सीरीज इल्लीगलका तीसरा सीजन 8 एपिसोड में जियो सिनेमा पर आ चुका है. पहले 2 सीजन की तरह इस बार भी इल्लीगल 3’ वेब सीरीज एक कोर्टरूम ड्रामा है. इस सीरीज में नेहा शर्मा एडवोकेट निहारिका सिंह के रोल में नजर आ रही हैं. सीरीज में नील भूपलम की एंट्री हुई है. नील भूपलम ने दुष्यंत राठौर के किरदार में लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है.

सीरीज की शुरुआत निहारिका सिंह और उन के सहयोगी पुनीत (सत्यदीप मिश्रा) के अलग होने से होती है. सीरीज में कोर्टरूम ड्रामा को काफी अच्छे से दिखाया गया है. नेहा सिंह के अलावा वेब सीरीज में मुख्यमंत्री जनार्दन जेटली के रूप में पीयूष मिश्रा का किरदार भी दर्शकों पर असर छोड़ता है. इस वेब सीरीज की स्टोरी कुछ खास नहीं है. सीरीज राजनैतिक दांवपेंच और कानूनी काररवाई से भरी पड़ी है. कहानी कभी दिल्ली के मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच के अधिकारों की याद दिलाती है तो मुख्यमंत्री की नाजायज औलाद रनदीप की कहानी से लगता है कि यह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी के व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी हुई नजर आती है.

‘इल्लीगल 3’ की कहानी वकील निहारिका सिंह पर केंद्रित है, जो दिल्ली के जानेमाने वकील जनार्दन जेटली की प्रेस्टिजियस ला फर्म में अपना करिअर शुरू करती है. जैसेजैसे सीरीज आगे बढ़ती है, निहारिका कई चौंकाने वाले खुलासे करती जाती है. पूरे सीजन में निहारिका का किरदार दिल्ली की प्रमुख वकील बनने की महत्त्वाकांक्षा में अपने सिद्धांतों से समझौता करने से जूझता है. कहानी में दिलचस्प मोड़ तब आते हैं, जब वह जिन मामलों पर काम करती है, उन से जुड़ी छिपी सच्चाइयों और काले रहस्यों का परदाफाश करती है.

पिछले सीजन में निहारिका ने लगातार अपने सीनियर जेजे (अब सीएम) को काम के प्रति उन के क्रूर रवैए के लिए दोषी ठहराया, लेकिन इस सीजन में उसे उसी राक्षस में बदलते हुए दिखाया गया है, जिस का उस ने कभी सामना किया था. निहारिका और जेजे के अलावा, ज्यादातर किरदार कार्डबोर्ड के टुकड़ों की तरह लगते हैं, जिन्हें ज्यादा बेहतरीन व्यक्तित्व की जरूरत होती है. अगर पुनीत एक आदर्शवादी है तो अक्षय डैडीमुद्दों वाला पुरुष है, जबकि जोया अहमद  निहारिका और दुष्यंत के युवा संस्करण की तरह लगती है.

इल्लीगल में सब से दिलचस्प एपिसोड दुष्यंत और उस की अभिनेत्री पत्नी अतीशा के बीच घरेलू हिंसा है, जिस में निहारिका न्याय के गलत छोर पर होने के बावजूद मामले को आगे बढ़ाती है. राजनीतिक ड्रामा तुलनात्मक रूप से उतना असरकारी नहीं है और पुनीत की पत्नी सू के गर्भपात के इर्दगिर्द का सबप्लौट भी बकवास लगता है.

एपीसोड

मेड लायर रिटर्ननाम के 40 मिनट के इस एपीसोड में पहले सीजन 2 का रिकैप दिखाया गया है, जिस में जनार्दन जेटली की ला फर्म में निहारिका काम करती है और बाद में दोनों आमनेसामने हो जाते हैं. जनार्दन जेटली के एक वकील से ले कर मुख्यमंत्री की कुरसी पाने की कहानी है. सीजन 3 की शुरुआत में एक एंबुलैंस में निहारिका सिंह (नेहा शर्मा) अपने साथी एडवोकेट पुनीत टंडन (सत्यदीप मिश्रा) को  हौस्पिटल ले कर पहुंचती है. एक घंटे पहले के घटनाक्रम को फ्लैशबैक में दिखाया गया है. 

नरेला में जिंगलपुर इंडस्ट्रीज के खिलाफ अर्थ नेक्स्ट एनजीओ के लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, उस प्रदर्शन में पुनीत और निहारिका शामिल होते हैं, तभी दुष्यंत राठौर के कहने पर पुलिस वहां आ कर प्रदर्शनकारियों को रोकती है. भीड़ में से कोई पुलिस पर पथराव कर देता है और पुलिस बल प्रयोग करती है, जिस में पुनीत घायल हो जाता है.

हौस्पिटल में पुनीत की पत्नी सू उस से मिलने आती है, तभी पुनीत बाहर आ कर कोर्ट जा कर अर्थ नेक्स्ट के फाउंडर रीमा और फरहान की बेल करने की बात कहता है. उसी समय अक्षय जेटली भी निहारिका से मिलने आता है. अक्षय जेटली जिस होटल में रहता है, वहां उस का पिता दिल्ली सरकार का मुख्यमंत्री जनार्दन जेटली उर्फ जेजे (पीयूष मिश्रा) मिलने आता है, जहां वह अक्षय को सफाई दे कर कहता है कि उस की मां रोहिणी का खून उस ने नहीं किया है, लेकिन अक्षय उस की बात सुनने के बजाय उसे होटल से बाहर जाने को कहता है. 

कार में जाते समय जेजे अपने पीए को पत्थरबाजी करने वालों की जानकारी लेने को कहता है. इधर पुनीत कोर्ट में जिरह कर के रीमा और फरहान की जमानत करवा लेता है. अंकुश सिंघल जो अर्थ नेक्स्ट संस्था का फाउंडर है, मीडिया के सामने पत्थरबाजी की जिम्मेदारी लेता है. इस के बाद पुलिस रीमा और फरहान को रात के समय घर से अरेस्ट कर लेती है. पुनीत और निहारिका फिर से उन की जमानत के लिए कोशिश करने लगते हैं. अक्षय निहारिका को बहुत सारे पार्सल भेज कर उस के घर मिलने पहुंच जाता है और फिर से दोस्ती का वास्ता दे कर उस के नजदीक आना चाहता है.

इधर निहारिका दुष्यंत राठौर (नील भूपलम) से मिल कर बताती है कि उस की फर्म ने उस की फर्म से लाखों रुपए के चैक से पारस जैम्स कंपनी को फायदा पहुंचाया है. यह कंपनी मिस्टर मुंजाल की है, जिस का दामाद अंकुश सिंघल है. जिंगलपुर इंडस्ट्रीज के खिलाफ आंदोलन को रोकने के लिए अंकुश सिंघल को पैसे देने की बात कहने पर दुष्यंत बिना डरे निहारिका को कोर्ट जाने की सलाह देता है.

जनार्दन जेटली प्रेस कौन्फ्रैंस कर जानकारी देता है कि सरकार अपनी जमीन दुष्यंत जैसे पूंजीपतियों के हाथों में नहीं जाने देगी. निहारिका कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर के जिंगलपुर इंडस्ट्रीज की जमीन शरणार्थियों को (आईडीपीएस) को वापस देने की गुहार लगाती है. निहारिका दुष्यंत से मिल कर नया दांव खेलती है. वह दुष्यंत से लिंगलपुर इंडस्टी से प्रभावित लोगों को मजनू का टीला के पास जमीन दे कर मुआवजा देने और सभी कामगारों को 2 साल तक फैक्ट्री में काम देने और अर्थ नेक्स्ट के खिलाफ शिकायतों को वापस लेने की शर्त पर पिटीशन वापस लेने का प्रस्ताव रखती है, जिन्हें दुष्यंत मान लेता है. 

लेखक ने डायलौग लिखते समय इस बात का ध्यान नहीं रखा कि दुष्यंत जैसा बिजनैसमैन, जो कई कंपनियों का मालिक है, वह बातचीत में तो अंगरेजी शब्दों का इस्तेमाल करता है, मगर दूसरी तरफ भद्दी और फूहड़ गालियां भी बकता है, जिन से उस के कैरेक्टर पर सवालिया निशान लगता है.

एपीसोड 2

37 मिनट के दूसरे एपीसोड का नाम लव एंड लासहै, जिस की शुरुआत एक गरमागरम सीन से होती है. दुष्यंत एक अवार्ड फंक्शन में जाने से पहले बंद कमरे में लड़की के साथ रोमांस कर रहा है. पुनीत रीमा और फरहान की रिहाई के लिए निहारिका के पास पहुंचता है, मगर निहारिका अपनी सहायक शायना के साथ किसी क्लाइंट से मिलने चली जाती है. अक्षय निहारिका को पुरानी बातें भुला कर फिर से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करता है. पार्टी में दुष्यंत की तीसरी बीवी अतीसा (इरा दुबे) किसी बात को ले कर दुष्यंत को भलाबुरा कहती हैं तो दुष्यंत गुस्से से उसे जमीन पर गिरा देता है. एपीसोड में अंगरेजी डायलौग की भरमार है. जिसे देख कर लगता है कि दर्शक कोई इंगलिश मूवी देख रहे हैं.

निहारिका पुनीत के किसी काम में रुचि नहीं ले रही है. शनाया इस बात से चिंतित हैं कि कहीं पुनीत को निहारिका और दुष्यंत के बीच की डील का पता न चल जाए. पुंडीर साहब की पार्टी में सीएम जेटली पहुंचता है, वहां महिला लीडर मृणालिनी (अचिंत कौर) से मुलाकात में पता चलता है कि वे दिल्ली की एलजी बनने वाली है. धर दुष्यंत के खिलाफ अतीशा कोर्ट में केस कर देती है और दुष्यंत की तरफ से निहारिका वकालत करती है. अतीशा की तरफ से जोया अहमद (जयन मेरी खान) कोर्ट में खड़ी होती है. 

जेटली पत्रकार के माध्यम से एक इंटरव्यू रिकौर्ड करवा कर यह बताता है कि नरेला की जमीन शरणार्थियों को दिलाने वह दुष्यंत जैसे दुशासन से लड़ता रहेगा. वह अपने पीए ओपी को कहता है कि सोशल मीडिया में यह खबर फैला दो कि लेफ्टिनेंट गवर्नर सीएम को काम नहीं करने दे रही.

एपीसोड

34 मिनट के तीसरे एपीसोड का नाम ‘लोनली ऐट द टौप’ है, जिस की शुरुआत कोर्ट के एक अर्दली शरद और एडवोकेट जोया अहमद की बातचीत से शुरू होती है. जोया अहमद शरद की बेटी सोनाली के डायवोर्स केस को लडऩे का फैसला करती है तो भावनात्मक रूप से शरद उस का शुक्रिया अदा करता है. दूसरे सीन में सीएम जेटली हुमायूं के मकबरे में अपने नाजायज बेटे रनदीप (विक्की अरोरा) से मिलता है तो रनदीप मेरठ से दिल्ली में उस के साथ रहने की जिद करता है. मगर जेटली उसे लंदन भेजने का बंदोबस्त करने को कह कर वहां से चला जाता है.

जेटली पुनीत को बुला कर बताता है कि पत्थरबाजी अर्थ नेक्स्ट के लोगों ने नहीं, बल्कि किसी और ने की थी. जेटली पुनीत को इस का सबूत देने और सरकार का चीफ पब्लिक प्रौसीक्यूटर बनाने का प्रलोभन देता है.  अक्षय जोया को उस की फर्म में उस का औफिस दिखाता है तो जोया कहती है कि वह निहारिका के खिलाफ केस लड़ कर उसे खत्म करना चाहती तो अक्षय मना करता है. तभी अतीसा का फोन आने पर जोया वहां से चली जाती है.

पुनीत पत्नी सुलेखा (कीर्ति विज) से जेजे के प्रपोजल पर बात करता है तो वह भी अपनी सहमति देते हुए कहती है कि रीमा और फरहान को जेल से बाहर निकालने के लिए जेजे की बात मान लेना ही समझदारी है. इधर दुष्यंत न्यूज सुन कर घबरा जाता है और निहारिका से फोन पर बात करता है तो निहारिका उस की जमानत करने की बात कहती है. मगर जोया अपनी चाल से किसी दूसरे क्लाइंट में निहारिका को उलझा देती है और जब तक निहारिका कोर्ट पहुंचती है, कोर्ट के दरवाजे बंद हो चुके होते है. 

दुष्यंत की जमानत के लिए निहारिका कोर्ट में देर से पहुंचे इस के लिए जोया द्वारा जिस पागल खानदान को भेजा गया है, वह दृश्य भी कोई खास प्रभाव दर्शकों पर नहीं छोड़ पाता है. यहां पर कमजोर पटकथा और निर्देशन की कमी साफ दिखाई देती है. पुलिस दुष्यंत को 2 दिन की न्यायिक हिरासत में लेती है, यह समाचार सुन कर सीएम जेटली बेहद खुश होता है. निहारिका पुलिस लौकअप में बंद दुष्यंत से मिलने जाती है तो दुष्यंत उसे डांटता है. इस पर निहारिका माफी मांगते हुए 2 दिन बाद जमानत करवाने का वचन देती है.

पुनीत को रात के अंधेरे में जेटली का पीए ओपी किसी लालू नाम के पेशेवर अपराधी से मिलवाता है जो पुनीत को बताता है कि दुष्यंत के लिए काम करने वाले लाखन मंडल और सुरेश जैन के कहने पर उस ने पत्थरबाजी की थी.

एपीसोड

35 मिनट के चौथे एपीसोड का नाम गेम औनहै. इस में शनाया के पास निखिल मेहरा (अंशुमान मल्होत्रा) की मां उसे ले कर आती है. निखिल को मल्टीपल स्केलिरिस बीमारी है, जिस की वजह से उसे असहनीय दर्द होता है. देशविदेश में इलाज के बाद भी कोई दवा, थैरेपी से उसे राहत नहीं मिल रही. निखिल इच्छामृत्यु के लिए कोर्ट में पिटीशन दाखिल करना चाहता है. इधर पुनीत रीमा और फरहान को रिहा करवा देता है. पुनीत और निहारिका में उसूलों को ले कर फिर बहस होती है. सबइंसपेक्टर दानियल शेख पुलिस स्टेशन में रनदीप को लंदन का टिकट, होटल बुकिंग के पेपर और खर्च के लिए पैसे दे कर कहता है कि कल सुबह की फ्लाइट से लंदन जाना है, ये जेजे सर का आदेश है, मगर रनदीप पेपर फाड़ कर कहता है कि वह कहीं नहीं जाएगा.

शनाया और निहारिका दुष्यंत की बेल के बारे में चर्चा करते हैं. सीएम जेजे पुनीत के औफिस खुद मिलने पहुंच जाता है और पुनीत को कहता है कि यदि दुष्यंत को हराना है तो दिल्ली पुलिस से 2 कदम आगे चलना होगा. अंकुश सिंघल को पकड़ो और कोर्ट में साबित कर दो कि उस बयान के पीछे दुष्यंत का हाथ था, फिर देखो यह जमीन हमारे कब्जे में होगी. निहारिका के घर में अक्षय उसे दुष्यंत की बेल के लिए शुभकामनाएं देता है तो निहारिका अक्षय को जोया अहमद को हायर करने की बधाई देती है. इस को ले कर निहारिका नाराज हो जाती है, मगर अक्षय उसे मना लेता है. दोनों खाना खाने मेज पर पहुंचते हैं, तभी दिलबहार आ कर निहारिका को उस दिन की घटना के संबंध में बताता है. 

दुष्यंत की रिहाई के बाद निहारिका अतीसा मेवानी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करती है. कोर्ट में जोया और निहारिका के बीच शानदार जिरह होती है. निहारिका अतीसा के खिलाफ जिंगलपुर इंडस्ट्रीज हड़पने का आरोप लगाती है तो जोया और निहारिका कोर्टरूम में भिड़ जाती हैं. इस पर मजिस्ट्रैट उन्हें फटकार लगाता है और सुनवाई की अगली तारीख देता है.

शनाया और निहारिका एक बार में बैठ कर बातें कर रहे होते हैं, तभी एक जगह से लड़की शोर मचाती है. शनाया का ध्यान उस तरफ जाता है, जहां तान्या नाम की लड़की निखिल पर इसलिए गुस्सा हो रही है कि निखिल ने पैंट में पेशाब कर ली है. वह सफाई देता है, मगर तान्या उस से गुस्सा हो कर भाग जाती है.  निखिल व्हीलचेयर से गिर जाता है. शनाया और निहारिका उसे उठा कर कपड़े साफ करती हैं और उस के घर छोडऩे जाती हैं. वहां उस की मां से बातचीत में निखिल की बीमारी और परेशानी से वाकिफ होती हैं और निखिल की इच्छामृत्यु का केस लडऩे के लिए तैयार होती है.

अर्थ नेक्स्ट के एक प्रोग्राम में सीएम जेटली मीडिया के सामने कहता है कि दिल्ली सरकार ने इस जमीन को दोबारा वापस लेने के लिए एक अरजी एलजी साहिबा के पास लगाई थी, मगर एलजी साहिबा केंद्र सरकार के इशारे पर काम कर रही हैं. न्यूज सुन रही मृणालिनी दिल्ली के पुलिस कमिश्नर से कहती है कि जांच को डिले करने से कुछ नहीं होगा, वह मीडिया के कंधे पर बंदूक रख कर चला रहा है. 

एपीसोड

41 मिनट के पांचवें एपीसोड का नाम पावर प्लेहै. इस एपिसोड की शुरुआत में दिखाया गया है कि लाखन मंडल अपने बेटे बिजू के घावों पर मरहमपट्टी लगाते हुए पूछ रहा है कि ये किस ने कियाबिजू बताता है कि जेटली की पार्टी की स्टूडेंट्स यूनियन के लड़कों ने उसे इसलिए मारा है, क्योंकि वह विरोधी पार्टी का है. एलजी मृणालिनी अक्षय को वह फाइल सौंपती है, जिस में जेटली और रनदीप के कारनामों का काला चिट्ठा है.

कोर्ट में निखिल मेहरा के इच्छामृत्यु के केस की सुनवाई होती है, जिस में निहारिका और पुनीत के द्वारा बेहतरीन तरीके से जिरह की जाती है और मजिस्ट्रैट भी इमोशनल हो कर एक्सपर्ट की राय सुनना चाहता है. इस रोग की एक्सपर्ट डा. भारती कोर्ट को बताती है कि इस रोग के इलाज हेतु नई थैरेपी ईजाद हो रही है. निहारिका के पूछने पर डा. भारती स्वीकार करती है कि निखिल का केस यूनिक है. निहारिका और पुनीत कोर्ट में बहस के दौरान आमनेसामने आ जाते हैं तो मजिस्ट्रैट डांटते हुए अगली सुनवाई की तारीख दे देता है.

पुनीत की पत्नी सुलेखा, जिस को 20 सप्ताह का गर्भ है, को डा. जाह्नïवी के क्लीनिक ले जाता है, जहां डा. जाह्नïवी बताती है कि भ्रूण का ब्रेन विकसित नहीं हुआ है, ऐसी स्थिति में यदि वह बच्चे को जन्म देगी तो बच्चे की अधिकतम उम्र 10 साल होगी और वह हमेशा दर्द से परेशान रहेगा, इसलिए डाक्टर एबार्शन करवाने की सलाह देती है. पुनीत की पत्नी सुलेखा की प्रेगनेंसी की रिपोर्ट में आने वाले बच्चे के रोग की वजह से एबार्शन की कहानी ज्यादा असर नहीं डाल पाई. इस समस्या की तुलना निखिल मेहरा के असहनीय दर्द और लाइलाज बीमारी से करना दर्शकों के गले नहीं उतरता.

कोर्ट में अतीसा मेवानी राठौर के केस की सुनवाई में भी जोया और निहारिका की बहस को रोचक अंदाज में पेश किया गया है. दुष्यंत के थप्पड़ मारने की रिपोर्ट में आंख के नीचे जिस चोट के निशान का उल्लेख किया गया है, उसे निहारिका फोरैंसिक एक्सपर्ट के बयान से यह साबित कर देती है कि वह मेकअप आर्टिस्ट द्वारा बनाया गया है. फोन काल आने पर पुनीत सीएम जेटली से मिलने जाता है, जहां पर वह बताता है कि जोया अहमद अब उन के लिए काम करेगी. सीएम का पीए ओमप्रकाश पुनीत को बताता है कि जोया ने कंफर्म किया है कि अंकुश ने दुष्यंत से पैसे ले कर मीडिया में बयान दिया था. मजिस्ट्रैट जोया को अपने क्लाइंट से बात करने का समय और चेतावनी दे कर अगली सुनवाई बंद कमरे की बजाय प्रिंट मीडिया की उपस्थिति में करने का आदेश देता है.

सीएम जेटली अपने निवास से एलजी से मिलने पदयात्रा करने का ड्रामा करता है. एलजी मृणालिनी से मिलबांट कर खाने और काम करने का समझौता होता है. रेस्टोरेंट में निहारिका अक्षय का इंतजार कर रही है. उधर अक्षय मृणालिनी की दी गई फाइल खोल कर देखता है तो रनदीप का पता लगाने वह फोन पर बुरी तरह चीखने लगता है. कुछ देर बाद निहारिका उस के पास पहुंचती है तो वह बताता है कि रनदीप ने उस की मां का मर्डर किया था और अब रनदीप मेरठ में है.

दिलबहार निहारिका को फोन कर के बताता है कि वह अतीसा के बौडीगार्ड रौकी का पीछा कर रहा है. इस के बाद निखिल मेहरा और निहारिका के बीच इमोशनल बातचीत होती है, जिस में निखिल अपनी परेशानी बता कर निहारिका को यह केस जीत लेने की बात कह कर रो पड़ता है.

एपीसोड

40 मिनट के छठवें एपीसोड का नाम सीक्रेट ऐंड सैक्रीफाइसहै, जिस की शुरुआत में शनाया हाथ में मोबाइल लिए रेलवे स्टेशन से बाहर निकलती है. उस के मोबाइल पर किसी बच्चे के रोने की आवाज आती है. शनाया घर पहुंचती है, जहां उस की बहन बेहोश पड़ी है और उस का बच्चा रो रहा है. वह एंबुलैंस से उन्हें हौस्पिटल पहुंचाती है. लाखन मंडल सीएम जेटली से मिल कर अपने बेटे पर हुए हमले का दुखड़ा सुनाता है तो जेटली उस का स्टेटमेंट रिकौर्ड कराता है, जिस में वह दुष्यंत राठौर पर आरोप लगाता है कि उस ने झूठी दिलासा दे कर शरणार्थियों की जमीन धोखे से अपने कब्जे में कर ली. सीएम जेटली इस स्टेटमेंट को सभी टीवी चैनल पर चलवाने का निर्देश देता है.

शनाया और प्रीति की बातचीत से पता चलता है कि शनाया का असली नाम आकांक्षा तिवारी है. मगर इस छोटे से सीन से दर्शकों को समझ नहीं आता कि आखिर आकांक्षा अपना असली नाम क्यों छिपा रही है. रनदीप अक्षय को कुरसी से बांध कर टौर्चर करता है और उस की फोटो जेटली को भेज देता है. इधर अक्षय किसी नुकीली चीज से अपने हाथों में बंधी रस्सी खोल लेता है. दर्शकों के लिए यह समझना बड़ा मुश्किल है कि बंधे हाथों में वह नुकीली चीज आई कहां से. 

अक्षय और रनदीप के बीच हाथापाई होती है, तभी रनदीप की पिस्टल गिर जाती है, जिसे अक्षय उठा कर उस के ऊपर तान देता है. उसी समय जेटली भी वहां पहुंचता है और गोली चलने की आवाज आती है. यह सस्पेंस बना रहता है कि रनदीप पर गोली किस ने चलाई. कोर्ट में निखिल मेहरा के केस की सुनवाई हो रही है. मजिस्ट्रैट निखिल की मां श्वेता और पिता हरीश के पक्ष को सुनते हैं, जहां मां निखिल के असहनीय दर्द और बीमारी का कोई इलाज न होने की बात कह कर इच्छा मृत्यु मांगती है तो वहीं पिता उसे जिंदा रखने की बात रखता है. मजिस्ट्रैट यह कह कर एक हफ्ते का वक्त मांगता है कि हिंदुस्तान में अभी तक इच्छामृत्यु के पक्ष में कोई फैसला नहीं हुआ है.

कोर्ट में दुष्यंत अतीसा केस की सुनवाई में निहारिका की जगह हड़बड़ी में देर से शनाया पहुंचती है और जज उसे बताता है कि जोया ने एक गवाह एंड किया है. इस पर शनाया वक्त मांगती है तो जज सुनवाई टाल देता है. कोर्टरूम से बाहर निकल कर शनाया दुष्यंत से उस गवाह आरती भटनागर के बारे में पूछती है तो पता चलता है कि आरती दुष्यंत की कालेज में क्लासमेट रही है, जिस के साथ दुष्यंत ने मारपीट की थी. 

निहारिका अक्षय को ले कर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराती है और अक्षय मीडिया के सामने बयान दे कर बताता है कि रनदीप का खून जेजे ने किया है. यह खबर सुन कर जेजे को दिल का दौरा पड़ता है.

एपीसोड

सातवें एपीसोड का नाम टेबल्स टर्नहै, जो 37 मिनट का है. मुख्यमंत्री जेटली के निवास के सामने लोग तख्तियां लिए जेटली के विरोध में नारेबाजी कर रहे हैं. दिल्ली और मेरठ पुलिस स्थिति पर नजर रख काररवाई करने की बात कर रही है. जेटली जोया और एसके से निहारिका को उस का केस लडऩे को कहते हैं. जोया और एसके के साथ जेटली एक फोटो शेयर करते हुए लिखता है कि जेटली एसोसिएट अब जनार्दन जेटली को रिप्रेजेंट करेंगे तो अक्षय बौखला जाता है.

जोया और निहारिका के बीच जोरदार बहस होती है. निहारिका अतीसा से कुछ सवाल पूछती है, जिस के उत्तर में अतीसा बताती है कि दुष्यंत नशे में धुत हो कर उस की पिटाई करता था और नशा उतरते ही अपने व्यवहार के लिए माफी मांगता. इस वजह से उस ने कभी इस की शिकायत नहीं की. एक फाइल देते हुए अतीसा से आखिरी सवाल पूछने की इजाजत निहारिका जज से मांगती है, जोया विरोध करती है. जज की इजाजत पर निहारिका अतीसा से पूछती है कि वह दुष्यंत की मार सहने के बाद कभी डाक्टर के पास गईं तो अतीसा मना कर देती है. इस पर निहारिका जज को अतीसा की मैडिकल रिपोर्ट पढऩे को कहती है, जिस में डाक्टर ने ऐसी बीमारी डायग्नोस की है, जिस में उस के रक्त का थक्का नहीं जमता. 

निहारिका अतीसा को झूठा साबित कर देती है. तब दुष्यंत को घरेलू हिंसा के केस में बाइज्जत बरी कर देता है. इधर पुनीत अक्षय को समझाता है कि उस की इमेज मीडिया में एक पागल की तरह बन गई है. वह पुनीत की सलाह पर एक यूट्यूबर की मदद से अक्षय के इंटरव्यू को रिकौर्ड कराता है, जिस में जेटली के खिलाफ बहुत सारे सबूत हैं. यही सबूत पुलिस को भी सौंपे जाते हैं. जेटली के खिलाफ मनी ट्रांसफर के सबूत तो हैं, परंतु रनदीप की बौडी न मिलने से जेटली के खिलाफ ऐक्शन नहीं हो रहा. अक्षय मृणालिनी से बात करता है तो दिल्ली पुलिस जेजे को गिरफ्तार कर लेती है.

मृणालिनी के कहने पर अक्षय मेरठ पुलिस स्टेशन जा कर इंसपेक्टर डेनियल शेख से रनदीप की बौडी खोजने की बात कहता है, उसी समय उस का सस्पेंशन और्डर का फोन आ जाता है. केस की जांच दिल्ली पुलिस के हाथों में आ जाती है और वह रनदीप की डैडबौडी खोज निकालती है. कोर्ट में सीएम जेटली के केस की सुनवाई शुरू होने वाली होती है. जज काररवाई शुरू करने के लिए निहारिका को बुलाते हैं. वह बताती है कि वह जेटली की अटर्नी नहीं है. तब जज उसे वकालतनामा दिखाते हुए पूछता है कि ये दस्तखत तो आप के ही हैं. निहारिका आश्चर्य से देखती है. तब पता चलता है कि किसी ने धोखे से उस के हस्ताक्षर वकालतनामा पर करवा लिए हैं.

एपीसोड

43 मिनट के आखिरी एपीसोड का नाम द बर्डन औफ ट्रुथहै. एपीसोड की शुरुआत में जज निहारिका को जेजे का केस न लडऩे पर लाइसेंस रद्द करने की हिदायत देता है. निहारिका के नाम का वकालतनामा के संबंध में शनाया कुछ सफाई देना चाहती है, मगर निहारिका उसे डांट लगाती है. अक्षय भी यह सुन कर नाराज हो जाता है. जेजे निहारिका को बुला कर बताता है कि रनदीप को उस ने नहीं, अक्षय ने मारा है. वह निहारिका को बताता है कि रनदीप उस का बेटा था, मगर उसे वह सब नहीं मिल सका, जो उस का हक था. वह निहारिका से कहता है कि केस तो कोई भी लड़ सकता है, मगर तुम दोनों को डिफेंड करोगी. 

तुम्हारा प्यार गुनहगार को बचाएगा और तुम्हारा ईमान बेकुसूर को न्याय दिलाएगा. कोर्ट में पुनीत और निहारिका की गरमागरम बहस होती है और निहारिका को कोर्ट एक हफ्ते का वक्त देता है. हौस्पिटल आ कर निखिल के पिता उसे क्लीनिकल ट्रायल के लिए बंगलुरु ले जाने की बात कह कर रूम से बाहर निकलते हैं. तभी निहारिका निखिल के पास लगे उपकरण को स्विच औफ करना चाहती है, मगर निखिल की मां वहां आ जाती है. वह निहारिका के गाल पर प्यार से हाथ फेरती है. निहारिका रूम से जैसे बाहर जाती है, निखिल की मां उस स्विच को बंद कर देती है और कुछ ही क्षणों में निखिल की मौत हो जाती है. बाहर निहारिका की आंखों में आंसू देख कर निखिल के पिता अंदर आते हैं.

शनाया निहारिका के घर जा कर बताती है कि उस का असली नाम आकांक्षा तिवारी है, वह गरीब परिवार से है. वकालत करने के बाद उसे जौब नहीं मिल रही थी, इसलिए उस ने अपना नाम शनाया रख लिया.  जोया को यह सब पता चल गया तो वह ब्लैकमैल करने लगी. जोया के कहने पर ही उस ने जेजे के केस के वकालतनामा पर आप से दस्तखत करवा लिए. निहारिका टीवी चैनल पर एक न्यूज देख रही होती है, जिस में बताया जा रहा है कि दिल्ली की उपराज्यपाल मृणालिनी ने उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा पराली जलाए जाने को ले कर वहां के मुख्यमंत्री की निंदा की है. एक किसान माधव चौहान कहता है कि जेटली के जाते ही यह सब आरोप लगना शुरू हो गए. किसान तो वही करेगा, जो उस के बापदादा करते आए हैं.

निहारिका जज को एक एफिडेविट दे कर बताती है कि मेरठ के श्याम नगर में रहने वाले उत्कर्ष गुप्ता ने रनदीप से 2 लाख रुपए उधार लिए थे, जो वह चुका नहीं सका. इस वजह से उस ने रनदीप को मार दिया है. निहारिका रनदीप के पास मिले गन और दूसरे सबूत भी अदालत में पेश करती है. कोर्ट दिल्ली पुलिस को उन के खिलाफ घूस का प्रकरण दर्ज करने और उत्कर्ष गुप्ता के खिलाफ रनदीप का मर्डर करने का केस दर्ज करने का निर्देश देता है. कोर्टरूम से बाहर निकलते ही अक्षय निहारिका के पास जा कर जेटली की तरफ इशारा कर कहता कि वह जेल जाएगा.

दिल्ली पुलिस अक्षय को गोली मारने के आरोप में डेनियल को गिरफ्तार कर लेती है. निहारिका की मौजूदगी में अक्षय का अंतिम संस्कार होता है, वहीं पर पुलिस आ कर निहारिका को निखिल के खिलाफ जान से मारने की कोशिश करने के आरोप में गिरफ्तार कर लेती है. वेब सीरीज का अंत बोरिंग तरीके से दिखाया गया है, जिस में जेल में बीड़ी पीते हुए जेटली को उपदेशक की भूमिका में दिखाया गया है.

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा का जन्म 21 नवंबर, 1987 को भागलपुर बिहार में हुआ था. नेहा शर्मा के पिता अजित शर्मा एक राजनेता हैं, जो भागलपुर से कांग्रेसी विधायक हैं. उन के पिता ने 2024 का लोकसभा चुनाव भागलपुर सीट से लड़ा था, परन्तु उन्हें हार का सामना करना पड़ा. नेहा शर्मा ने अपनी शुरुआती पढाई माउंट कार्मेल स्कूल भागलपुर से कर नैशनल इंस्टीट्यूट औफ फैशन टेक्नोलौजी (हृढ्ढस्नञ्ज) से फैशन डिजाइन की पढ़ाई की थी. नेहा शर्मा ने अपने करिअर की शुरुआत तेलुगू फिल्म चिरुथासे की थी. इस फिल्म में चरण तेज के अपोजिट नजर आई थी. उस ने हिंदी सिनेमा में मोहित सूरी की फिल्म क्रुकसे शुरुआत की थी, जिस में इमरान हाशमी भी था. 

उस की यह पहली फिल्म बौक्स औफिस पर कोई कमाल नहीं दिखा सकी. इस के बाद वह तेरी मेरी कहानीऔर कौमेडी फिल्म क्या सुपर कूल हैं हममें नजर आई. इस फिल्म में उस के अलावा रितेश देशमुख और तुषार कपूर भी थे. उसे इस फिल्म में अभिनय के लिए आलोचकों से मिलीजुली प्रतिक्रिया मिली थी. इस के बाद वह कौमेडी लव स्टोरी जयंतु भाई की लवस्टोरी में विवेक ओबराय संग नजर आई और यह फिल्म भी बौक्स औफिस पर बुरी तरह फ्लौप साबित हुई. उस का अब तक हिंदी फिल्मों का करिअर कुछ खास नहीं रहा. साल 2020 में आई फिल्म तान्हाजीउन के करिअर की इकलौती ब्लौकबस्टर फिल्म है. नेहा की आने वाली फिल्म जोगीरा सारा रा राहै, जिस में वह नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ नजर आएगी.

पीयूष मिश्रा

पीयूष मिश्रा का जन्म 13 जनवरी, 1963 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर में हुआ था. पीयूष मिश्रा को उस के पिता की बड़ी बुआ ने गोद लिया था, जिस के बाद उस का नाम प्रियाकांत शर्मा हुआ. पीयूष मिश्रा ने अपनी पढाई कार्मेल कौन्वेंट स्कूल, ग्वालियर से पूरी की थी. बचपन से ही पीयूष सिंगिंग, पेंटिंग और ऐक्टिंग में दिलचस्पी रखता था. ऐक्टिंग के शौक ने उसे नैशनल स्कूल औफ ड्रामा पहुंचा दिया. पीयूष मिश्रा की शादी प्रिया नारायण से हुई, दोनों की मुलाकात वर्ष 1992 में हुई थी.

वर्ष 1986 में नैशनल स्कूल औफ ड्रामा से पास आउट होने के बाद पीयूष ने दिल्ली में ही थिएटर करना शुरू कर दिया. फिल्मी दुनिया में कदम रखने से पहले पीयूष कई लोकप्रिय थिएटर स्टेज शोज का हिस्सा बना. उस ने हिंदी सिनेमा में कदम रखा वर्ष 1998 में फिल्म ‘दिल से’ में, इस फिल्म में वह एक सीबीआई इनवैस्टीगेशन औफिसर की भूमिका में नजर आया था. इस के बाद उस ने कुछ खास फिल्मों के डायलौग भी लिखे. पीयूष को हिंदी सिनेमा में पहचान विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘मकबूल’ से मिली, इस फिल्म में पीयूष ने काका की भूमिका निभाई थी, जिसे दर्शकों ने बेहद सराहा था. इस के बाद पीयूष ने ‘गुलाल’, ‘गैंग औफवासेपुर’ में महत्त्वपूर्ण किरदार निभाया है.

अक्षय ओबेराय

अक्षय ओबेराय भारतीय मूल का एक अमेरिकी अभिनेता है, जो हिंदी फिल्मों में ऐक्टिंग करता है. 2002 की कौमेडी-ड्रामा अमेरिकन चायमें बतौर बाल कलाकार के रूप में अभिनय की शुरुआत की थी, अक्षय ने 2010 में राजश्री प्रोडक्शंस में बनी फिल्म इसी लाइफमें अपनी पहली प्रमुख भूमिका निभाई थी. अक्षय ओबेराय का जन्म पहली जनवरी, 1985 को संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यू जर्सी में हुआ था. अक्षय के पिता कृष्ण ओबेराय, अभिनेता सुरेश ओबेराय के भाई हैं और अक्षय विवेक ओबेराय का चचेरा भाई है. 

अक्षय ने नेवार्क एकेडमी से स्कूली शिक्षा प्राप्त की और बाल्टीमोर में जोंस हापकिंस विश्वविद्यालय से रंगमंच कला और अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की है. उस ने न्यूयार्क शहर में स्टेला एडलर और फिर लौस एंजिल्स में प्लेहाउस वेस्ट में अभिनय प्रशिक्षण पूरा किया. अपनी शिक्षा के दौरान उस ने द एडम्स फैमिलीसे जौन एस्टिन के साथ अभिनय का अध्ययन किया. साथ ही, उस ने ब्रौडवे डांस सेंटर में बैले, जैज और हिपहौप नृत्य का भी अध्ययन किया.

भारत आने के बाद अक्षय ने पृथ्वी थिएटर  में नाटक किए और किशोर नमित कपूर से प्रशिक्षण लिया. फिल्म लाल रंगऔर गुडग़ांवमें दर्शकों ने अक्षय के काम को पसंद किया है. इल्लीगल 3’ में अक्षय ने सीएम के बेटे अक्षय जेटली का किरदार निभाया है. मानसिक रूप से अस्थिर और एक पागल प्रेमी के किरदार में फिट नजर आया है.

 

 

अश्लील वीडियो चैट गैंग की कई लड़कियां गिरफ्तार

अच्छी सैलरी के लालच में कुछ लड़कियां अश्लील वीडियो चैट गैंग के चंगुल में फंस जाती हैं. निकिता भी उन के चंगुल में जा फंसी. आप भी जानें कि गैंग नौकरी के लालच में किस तरह लड़कियों को फांस कर अश्लील वीडियो चैट कराने को मजबूर करता है?

राघव चड्ढा ने धड़कते दिल से अपने मोबाइल का वीडियो काल औन किया तो वह अपनी जगह से उछल पड़ा. क्योंकि उस के मोबाइल पर जो लड़की नजर आई, वह 22-23 साल की खूबसूरत नवयौवना थी. उस का एकएक अंग कसा हुआ और कमनीय था. रंग दूध में केसर मिले जैसा हल्का सा गुलाबी. काले बालों की लंबी चोटी जो इस वक्त उस के उभरे सीने पर नागिन सी बलखाती प्रतीत हो रही थी. पतले रसीले होंठ, लंबी नाक और हिरणी सी चंचल आंखें. वह सचमुच अप्सरा जैसी ही लग रही थी. उस के जिस्म पर रंगीन बेलबूटों वाली मिनी शर्ट और आसमानी रंग की जींस थी.

राघव चड्ïढा इस वक्त केवल टावेल लपेटे हुए था. शरमा कर वह शर्ट पहनने दौड़ा तो अप्सरा खिलखिला कर हंस पड़ी, ”रहने दो राघव, तुम्हारा नंगा बदन देखने में मुझे मजा आ रहा है. शर्ट पहनने की कोशिश करोगे तो सारा मजा ही खराब हो जाएगा.’’

राघव के पांव वहीं ठिठक गए. वह झेंप कर बोला, ”मैं नहा कर आया था, ध्यान ही नहीं रहा कि मैं ने अपनी शर्ट और पायजामा नहीं पहना है.’’

कोई बात नहीं,’’ अप्सरा मुसकराई, ”देखो, तुम्हारा टाइम निकल रहा है, तुम ने एक घंटे के लिए मुझे एक हजार रुपए दिए हैं.’’ 

”हां.’’ राघव ने सिर हिलाया और अप्सरा की खूबसूरत फिगर देखते हुए गहरी सांस भरी, ”तुम वाकई हसीन हो अप्सरा. तुम्हें देख कर दिल को सुकून पहुंच गया.’’

”मैं तुम्हारे दिल को गुदगुदाना चाहती हूं राधव, मैं और मेरी यह जवानी एकदम अछूती है, इसे आज तक किसी पुरुष ने छुआ तक नहीं है. तुम्हें मैं अपनी उफनती जवानी का नशीला डोज पिलाने को तैयार हूं, इस की कीमत दे सकोगे?’’  राघव ने पूरे जोश में कहा, ”क्या लोगी, हुक्म करो अप्सरा, तुम्हारी इस अछूती कातिल जवानी का जाम पीने के लिए मैं खुद को कुरबान कर सकता हूं.’’ 

मैं एक बार की बैठक के 5 हजार लूंगी. पूरी रात अपनी बांहों में रखोगे तो 20 हजार खर्च करने पड़ेंगे.’’

मैं 25 हजार दे दूंगा अप्सरा, तुम्हें मैं अपने बिस्तर पर हर सूरत में पाना चाहता हूं.’’ राधव के स्वर में मजबूती थी.

यह सौदा तुम्हारे और मेरे बीच का होगा राधव. इस के लिए मैं तुम से आज रात को 7 बजे संपर्क करूंगी.’’ अप्सरा बहुत धीमी आवाज में बोली, जिसे केवल राधव ही सुन पाया.

ठीक है अप्सरा, मैं 7 बजे तैयार रहूंगा. मुझे बता देना तुम्हें मैं कहां से पिक करूं.’’

”बता दूंगी,’’ अप्सरा ने कह कर कातिल अंगड़ाई ली. फिर बड़ी बेबाकी से उस ने शर्ट के बटन खोल दिए. उस का उफनता हुआ यौवन खजाना अब अधखुला था. राघव की आंखें फट पड़ीं. 

”देख लो राघव बाबू, तुम ने ऐसी जन्नत का नजारा शायद ही कभी किया होगा.’’

”सही कह रही हो अप्सरा.’’ फटीफटी आंखों से अप्सरा के अर्धनग्न उभारों का नजारा देखते हुए राघव चड्ïढा ने थूक निगला, ”मेरी शादी नहीं हुई है तो यह सब कहां देखने को मिलता.’’

कुछ और देखोगे…’’

नहीं.’’ राघव जल्दी से बोला, ”अगर शरीर के सारे भेद पहले ही खोल दोगी तो उन लम्हों का सारा मजा किरकिरा हो जाएगा जो मैं अपने पलंग पर देखना चाहता हूं. तुम्हारे जिस्म को मैं बेपरदा करूं, यह मेरी तमन्ना है.’’

ओके.’’ अप्सरा ने कहने के बाद अपनी शर्ट के बटन लगा लिए. 

तो मैं शेष बचे तुम्हारे 15 मिनट का आनंद बातों से ही चुका देती हूं. मेरी रसभरी बातें भी तुम्हें पूरा मजा देंगी राघव बाबू.’’

मुझे तुम्हारे रसभरे यौवन को देख कर ही मजा आ रहा है अप्सरा. अब शेष रात के लिए छोड़ो. कुछ अपने विषय में बताओ, कहां पर रहती हो तुम?’’

गाजियाबाद की ही हूं राघव,’’ अप्सरा फिर धीरे से फुसफुसाई, ”यह सब पूछताछ मेरी जौब में शामिल नहीं है. तुम रोमांटिक बातें करो.’’ 

जौब…’’ राघव चौंका, ”क्या तुम पुरुष का दिल बहलाने की जौब करती हो?’’

हां.’’ अप्सरा ने धीरे से कहा, ”मेरा मालिक सामने बैठा है, लेकिन इतनी दूर है जहां मेरी धीमी आवाज नहीं पहुंच पाएगी.’’ 

राघव चड्ïढा गाजियाबाद की एक प्राइवेट कंपनी में सेल्समैन का काम करता था. संडे या छुट्ïटी वाले दिन वह देर तक सोता था. उस की अभी शादी नहीं हुई थी. मम्मीपापा अलीगढ़ में रहते थे, अत: उसे यहां कोई डिस्टर्ब करने वाला भी नहीं था. राजनगर एक्सटेंशन में उस ने किराए का कमरा ले रखा था. फिलहाल मस्तमौला जिंदगी थी उस की. खाना वह घर पर ही बनाता था. छुट्टी वाले दिन वह 10 बजे तक सोता था, फिर उठ कर नित्यकर्म से निपटने के बाद चाय परांठे बनाता था. फिर मोबाइल ले कर पलंग पर पसर जाता था. कोई दोस्त वगैरह आ गया तो उस से गप्पें लड़ा कर टाइम पास हो जाता था. 

उस दिन रविवार को सवा 10 बजे राघव ने बिस्तर छोड़ा. टावेल बाथरूम में टांग कर वह फ्रेश होने के लिए टायलेट में घुस गया. टायलेट से निपट कर वह नहाया और टावेल लपेट कर किचन में आ गया. उस ने चाय गैस पर रखी ही थी कि तभी उस के मोबाइल की घंटी बजने लगी. स्क्रीन पर नया नंबर था, जो उस के लिए अनजान था. उस ने फोन काट दिया. थोड़ी देर में फिर मोबाइल की घंटी बजने लगी. वही नंबर स्क्रीन पर था.

राघव ने काल रिसीव कर के कहा, ”हैलो..’’

दूसरी ओर से किसी फीमेल की आवाज उस के कान में सुनाई दी, ”गुड मार्निंग राघवजी.’’

गुडमार्निंग.’’ हैरत में डूबे राघव ने जल्दी से कहा, ”मैं ने आप को पहचाना नहीं. आप कौन हैं?’’

मैं आप के पहचान की नही हूं मिस्टर राघवजी, लेकिन क्या अंजान लोगों से आप बात नहीं करते हैं?’’

स्वर में जैसे मिश्री घोल रखी हो उस युवती ने. राघव चड्ढा के दिल के तार झनझना उठे.

वह हड़बड़ा कर बोला, ”बात अंजान व्यक्ति से भी की जा सकती है लेकिन नाम मालूम हो जाता तो अच्छा रहता.’’

मेरा नाम अप्सरा है.’’ अपने एकएक शब्द में शहद घोलते हुए दूसरी ओर से युवती ने अपना परिचय दिया, ”मैं नाम की ही अप्सरा नहीं हूं, मेरा रूपयौवन इंद्र की अप्सरा को भी मात देने वाला है.’’

राघव उस के रूपयौवन की बात पर सिर से पांव तक रोमांच से भर गया. गैस बंद कर के वह पलंग पर आ कर बैठ गया. उस युवती की आवाज का जादू उस के सिर चढ़ कर बोलने लगा था. उसे लगा यह युवती दिलफेंक है और उस से दोस्ती करना चाहती है.

आप खामोश हो गए राघव बाबू. लगता है आप को मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा है.’’

नहीं, ऐसी बात नहीं है अप्सराजी,’’ राघव जल्दी से बोला, ”आप कह रही हैं तो आप होंगी इंद्र की अप्सरा से भी हसीन, जवान. लेकिन मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि आप मुझे कैसे जानती हैं. मेरा मोबाइल नंबर आप को किस ने दिया है और…’’

”आप जैसे हैंडसम बैचलर का नाम और मोबाइल नंबर को मालूम करना ही हमारा काम होता है मिस्टर राघव चड्ढाजी, हमें यह सब पता होगा तभी तो आप से मन की बात हो सकेगी.’’ राघव की बात काट कर अप्सरा ने मदहोश करने वाले अंदाज में कहा, ”मुझ से बात कर के आप सारे जहां का सुख पा लेंगे.’’

वाव! आप तो बहुत रोमांटिक मिजाज वाली हैं अप्सराजी, किंतु आप बातों से ही मन बहलाती हैं या इस से आगे भी जाने की कोशिश करती हैं. मेरा इशारा समझ रही हैं न आप?’’

मर्दों का चेहरा पढ़ कर उस के दिल की बात जान लेने की कला हर औरत को आती है राघव बाबू. आप के मन में जो कुछ है, वह मैं समझ रही हूं, लेकिन उस के लिए एक कीमत भी होती है और खुफिया जगह भी. खुफिया से मेरा मतलब है जहां बात परदे में ही रहे, न आप बदनाम हो न मैं.’’

जगह है मेरे पास.’’ राघव मस्ती से भर कर झट से बोला, ”मैं यहां अपने कमरे में अकेला रहता हूं. आप खुश हो जाएं, उस की कीमत भी मैं आप को दे दूंगा.’’

अप्सरा खिलखिला कर हंस पड़ी, ”बहुत उतावले हैं आप राघवजी. लेकिन कीमत मैं बिस्तर पर आने की ही नहीं, आप से रोमांटिक बातें करने की भी लूंगी.’’

कितना कीमत लेंगी आप?’’ राघव ने पूछा.

”बात करने की कीमत 15 मिनट के लिए केवल 250 रुपए. अगर मंजूर हो तो वीडियो काल औन कर सकते हैं.’’

राघव चड्ढा ने खुशी से कहा, ”आप से आमनेसामने रोमांटिक बात करने के लिए यह कीमत कुछ नहीं है अप्सराजी.’’

”तो आप एक हजार रुपए मेरे अकाउंट में डाल दीजिए, फिर मैं एक घंटे के लिए आप को अपने रेशमी जिस्म के वह गोपनीय हिस्से दिखाऊंगी, जो एक कुंवारे व्यक्ति ने केवल ब्लू फिल्म में ही देखे होते हैं.’’ 

अरे वाह! यह तो बहुत रोमांचकारी होने वाला है अप्सराजी. आप अपना अकाउंट नंबर बता दीजिए. मेरे दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही हैं.’’ 

अप्सरा ने तुरंत अपना अकाउंट नंबर राघव के मोबाइल पर वाट्सऐप कर दिया. राघव ने पेटीएम से एक हजार रुपए उस अकाउंट में डाल दिए. अप्सरा की ओर से मुसकरा कर कहा गया, ”अब आप अपनी ओर से मुझ से वीडियो कालिंग कर सकते हैं.’’ अप्सरा से बात करने के बाद राघव की खोपड़ी भन्ना गई. वह अप्सरा से बोला, ”यार, मैं पहली बार सुन रहा हूं पुरुष का दिल बहलाने के लिए भी लड़कियां जौब करती हैं.’’ 

यह हकीकत है राघव.’’ अप्सरा का स्वर गंभीर हो गया, ”हमारी मजबूरी कुछ भी करा लेती है राघव. लेकिन मैं ने तुम से एक घंटे के लिए जो रुपए लिए हैं, वह मेरे पर्स में नहीं आएंगे. मैं ड्यूटी पर हूं, यह रुपए मालिक की पौकेट में जाएंगे. हां, अगर तुम अपने दिल से मुझे रात को अपने पास बुलाओगे तो वह मेरी अपनी कमाई होगी.’’ 

राघव कुछ क्षण सोचा फिर बोला, ”तुम शाम को फोन करना अप्सरा. अब तो तुम से मिलना बहुत जरूरी हो गया है. बाय…’’ कहने के बाद राघव ने काल डिसकनेक्ट कर दी. वह अजीब सी उथलपुथल मन में लिए पलंग पर लेट गया. दुनिया में क्याक्या खेल हो रहे हैं, जान लेने के बाद वह गहरी सोच में डूब गया था. उसे कब नींद आ गई. वह जान ही नहीं पाया.

उत्तर प्रदेश के महानगर गाजियाबाद के थाना शालीमार गार्डन में 5 जुलाई, 2024 को शाम के समय एक महिला घबराई हुई आई. महिला की उम्र 25-26 साल के आसपास की होगी. देखने मे वह खूबसूरत थी. उस का रंग गेहुआं था. साधारण साड़ीब्लाउज में वह मध्यम परिवार से लग रही थी. उस के साथ एक व्यक्ति भी था. वह शर्ट पतलून पहने हुए था. दाढ़ी के बाल सफेद थे, सिर में भी हलकी सफेदी झलक रही थी. यह व्यक्ति 32 वर्ष के करीब होगा. पांव में उस ने रबड़ की चप्पलें पहन रखी थीं.

हैडकांस्टेबल मलखान सिंह उस समय बाहर ही बैठा था. उस से उस महिला के साथ आए व्यक्ति ने झिझकते हुए कहा, ”हमें एक शिकायत करनी है. साहब कहां बैठते हैं?’’

आज एसएचओ साहब नहीं आए हैं. सामने के रूम में एसआई जितेंद्र सिंह मौजूद हैं, तुम उन से मिल लो.’’ हैडकांस्टेबल मलखान सिंह ने सामने का कमरा दिखाते हुए कहा. दोनों उस रूम की तरफ बढऩे लगे तो हैडकांस्टेबल मलखान सिंह यह जानने के लिए कि मामला क्या है, दोनों के पीछे एसआई जितेंद्र सिंह के कमरे में पहुंच गया. एसआई जितेंद्र सिंह महिला और साथ में आए व्यक्ति की ओर देख कर पूछ रहे थे, ”क्या हुआ है, तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो?’’ 

मेरी जान को खतरा है साहब, वे लोग मुझे जान से मार डालने की धमकी दे रहे हैं.’’ महिला थरथराते लहजे में बोली. 

कौन लोग? किस से तुम्हारी जान को खतरा है?’’ एसआई सिंह हैरान हो कर बोले.

वे बहुत खतरनाक लोग हैं साहब.’’ महिला डरी आवाज मे बोली, ”तेजाब से मेरा चेहरा बिगाडऩे की धमकी दे रहे हैं.’’ 

मामला गंभीर लग रहा था. एसआई सिंह ने हैडकांस्टेबल मलखान को आंखों से इशारा किया. मलखान सिंह ने दोनों के करीब आ कर कहा, ”तुम दोनों बैंच पर बैठो. यह पुलिस थाना है, यहां डरने की कोई बात नहीं है. बैठो, मैं तुम्हारे लिए पानी लाता हूं.’’ 

दोनों बैंच पर बैठ गए. हैडकांस्टेबल दोनों के लिए पानी ले आया. पानी पी लेने के बाद महिला थोड़ा नारमल हुई. 

क्या नाम है तुम्हारा?’’ एसआई जितेंद्र सिंह ने पूछा.

मेरा नाम निकिता है, यह मेरे पति हैं, इन का नाम जितेंद्र यादव है.’’

कहां पर रहते हो जितेंद्र?’’

जी, राजनगर एक्सटेंशन, नंदग्राम नगर (गाजियाबाद) का निवासी हूं मैं. एक दुकान पर नौकरी करता हूं.’’ जितेंद्र यादव ने बताया.

तुम्हारी पत्नी निकिता को किस से जान का खतरा है?’’

यह खतरा इस ने खुद मोल लिया है साहब.’’ जितेंद्र के स्वर में अब खीझ थी, ”अच्छाभला घर के काम संभाल रही थी. मैं इतना कमा लाता हूं कि इसे घर से बाहर कदम निकालने की जरूरत ही न पड़े. लेकिन नहीं, 2 अक्षर क्या पढ़लिख गई, नौकरी करने का भूत सिर पर सवार हो गया. और मुसीबत मोल के आई अपनी जान को.’’

तुम कहां गई थी नौकरी करने के लिए? मुझे पूरी बात बताओ, वे कौन लोग हैं जो तुम्हारी जान लेना चाहते हैं और तुम्हारे मुंह पर तेजाब डालने की धमकी दे रहे हैं.’’ एसआई सिंह का स्वर गंभीर हो गया था.

निकिता अपने साथ घटी घटना का पूरा ब्यौरा चलचित्र की भांति सुनाने लगी.

सर, मैं इंटरमीडिएट तक पढ़ी हूं, पति की कमाई से मैं संतुष्ट नहीं थी. कारण, इतनी महंगाई में कम तनख्वाह में गुजारा तो हो रहा था, किंतु भविष्य के लिए कुछ बचता नहीं था. बहुत सोचविचार कर के मैं ने अपना रिज्यूम जौब हैएप्लीकेशन पर डाल दिया.

पहली जुलाई 2024 को मुझे मेरे मोबाइल पर एक काल आई. हैलो निकिता, आप ने जौब है ऐप पर अपना रिज्यूम डाला है, क्या आप अच्छी नौकरी करना चाहती हैं?’’

हां सर, लेकिन पहले यह बताइए आप कौन हैं?’’

मैं एक फाइनैंस कंपनी का एमडी रविंदर कुमार हूं. मेरी कंपनी में आप के लिए फाइनैंस एडवाइजर का पद खाली है, आप को यह जौब मैं दे सकता हूं.’’

मैं ने केवल इंटर किया है सर, मेरी इंगलिश भी कमजोर है. मैं यह जौब कैसे कर पाऊंगी.’’ निकिता ने सच्चाई बयां करते हुए कहा, ”आप की कंपनी में कोई दूसरा काम हो तो बताइए.’’

आप तो डर रही हैं, भाई मेरे यहां सारा काम हिंदी में ही होता है. हम भारतीय हैं निकिताजी, अंगरेज नहीं. फिर क्यों अंगरेजी की टांग अपने काम में घसीटें, आप बेफिक्र रहिए. आप फाइनैंस एडवाइजर का काम बखूबी कर लेंगी. मैं सैलरी भी 30 हजार से ऊपर दूंगा आप को.’’

”30 हजारï…’’ निकिता खुशी से उछल पड़ी, ”बताइए रविंदरजी, मैं कब से यह जौब जौइन करूं?’’

आज पहली जुलाई है, मैं कंपनी के काम से कोलकाता जा रहा हूं. 2 दिन का टूर है मेरा. मैं आज रात को फ्लाइट पकड़ूंगा और 3 जुलाई को फ्लाइट से वापस आ जाऊंगा. आप 4 जुलाई को मुझ से मिल कर अपना जौइनिंग लेटर ले लेना. उसी दिन से आप की सैलरी शुरू हो जाएगी.’’

धन्यवाद सर,’’ निकिता अपनी खुशी छिपाने की कोशिश करती हुई बोली, ”मुझे कहां आना होगा सर?’’

आप सुबह 10 बजे मुझे डीएलएफ के पास बस स्टाप पर मिलना, मैं आप को अपने औफिस ले जाने के लिए खुद वहां आ जाऊंगा. याद रहेगा न 4 जुलाई 10 बजे.’’

याद रहेगा सर. मैं ठीक समय पर आप को मिल जाऊंगी.’’ निकिता ने कहा.

दूसरी ओर से फोन कट गया तब निकिता खुशी से पूरे घर में नाचती रही. शाम को उस का पति जितेंद्र काम से लौटा तो निकिता ने उस के गले में प्यार से हाथ डाल कर चहकते हुए कहा, ”आप मुझे मना करते रहे, देख लो मुझे एक फाइनैंस कंपनी में फाइनैंस एडवाइजर की शानदार जौब मिल गई है. सैलरी जानते हो कितनी मिलेगी? पूरे 30 हजार रुपए.’’

”30 हजार…’’ जितेंद्र हैरत से बोला, ”अब हमारी गरीबी दूर हो जाएगी निकिता.’’

”जी हां,’’ निकिता मुसकराई, ”एक महीने की सैलरी मुझे मिल जाएगी तो तुम काम छोड़ देना, घर संभालना. मैं कमा कर लाऊंगी, तुम्हें घर संभालना होगा.’’

उड़ो मत निकिता, हम दोनों कमाएंगे. दोनों मिल कर घर को संभाल लेंगे. चलो, अब अपने हाथ से गरमागरम चाय बना कर पिलाओ मुझे.’’ जितेंद्र ने कहा और हाथमुंह धोने बाथरूम में चला गया.

निकिता 3 दिन बाद 4 जुलाई को सजसंवर कर ठीक 10 बजे डीएलएफ के बस स्टाप पर पहुंच गई. थोड़ी ही देर में एक सांवले रंग का युवक बाइक पर वहां आ गया.

निकिता?’’ उस ने अपने चेहरे से सुनहरी फ्रेम का चश्मा उतारते हुए निकिता की ओर देखा.

जी हां, मैं निकिता हूं.’’ निकिता उस युवक की ओर बढ़ते हुए मुसकरा कर बोली, ”आप ही रविंदर हैं?’’

युवक ने सिर हिलाया. निकिता ने दोनों हाथ जोड़ कर रविंदर को नमस्ते की. रविंदर ने उसे बाइक पर बैठने का इशारा किया तो वह उचक कर बैठ गई. रविंदर उसे राजेंद्र नगर ले कर गया. 

यहां 11/186, सेक्टर-3 के फस्र्ट फ्लोर पर उस का औफिस था. औफिस में उस समय शानदार कुरसियों पर एक युवा लड़की और एक युवक बैठे हुए थे. अंदर दूसरे रूम में 4-5 युवतियां भी थीं, जो कानों पर हेडफोन लगाए किसी से बातें करती नजर आ रही थीं.

बैठो निकिता.’’ रविंदर ने उस के लिए एक कुरसी बढ़ाई तो निकिता सकुचाती हुई बैठ गई.

यह है तुम्हारा औफिस. तुम्हें यहां बैठ कर काम करना है,’’ रविंदर ने मुसकरा कर कहा, ”मैं तुम्हें पूरे 30 हजार रुपए दूंगा, लेकिन तुम एक महीना ठीक काम कर पाओ, इस की मुझे गारंटी चाहिए.’’

मैं पूरी लगन से काम करूंगी सर, इतनी अच्छी नौकरी को मैं नहीं छोडऩे वाली.’’ निकिता ने दृढ़ स्वर में अपनी बात कही.

फिर भी मुझे विश्वास करने के लिए 25 हजार रुपए तुम से चाहिए. ये रुपए तुम्हारे मेरे पास जमा रहेंगे, मुझे जब विश्वास हो जाएगा कि तुम अब काम नहीं छोड़ोगी तो मैं 25 हजार रुपए वापस कर दूंगा.’’

”25 हजार?’’ निकिता कुछ क्षण के लिए गहरी सोच में डूब गई. फिर सामान्य हो कर बोली, ”मेरे पास 25 हजार रुपए हैं, लेकिन मैं पेटीएम कर सकती हूं सर.’’

ठीक है.’’ रविंदर खुश हो कर बोला. उस ने अपना क्यूआर कोड दिखा दिया.

निकिता ने अपने मोबाइल से 25 हजार रुपए रविंदर को पेटीएम कर दिए. संतुष्ट होने के बाद रविंदर अपनी कुरसी को सरका कर उस के करीब आ गया.

अब अपना काम समझ लो निकिता, यहां कोई फाइनैंसवाइनैंस का काम नहीं होता. तुम्हें यहां बैठ कर युवकों से न्यूड चैटिंग करनी होगी, न्यूड चैटिंग.’’ 

निकिता चौंक कर बोली, ”यह तो अच्छा काम नहीं है सर, मैं यह नहीं कर सकती.’’

”पूरी बात सुन लो.’’ रविंदर बेशरमी से बोला, ”तुम्हें युवकों को खुश करने के लिए वीडियो कालिंग पर अपने इस खूबसूरत जिस्म को नंगा भी करना पड़ेगा. युवकों से 10 मिनट की चैटिंग के बदले 200 रुपए लोगी तुम.’’

नहीं, मैं यह काम हरगिज नहीं करूंगी.’’ निकिता गुस्से से अपनी जगह पर खड़ी हो गई.

वहां बैठी युवती जिस का नाम पूजा था, वह उठ कर उस के पास आ खड़ी हुई, ”देखो निकिता, तुम प्यार से इस काम को करने की हां कर दो, नहीं तो तुम्हारी हां करवाने के दूसरे रास्ते भी हैं हमारे पास.’’ 

”क्या करोगी तुम?’’ निकिता गुस्से से चीखी, ”मैं यह गलीज काम नहीं करूंगी.’’

”तेरा तो बाप भी करेगा.’’ वहां बैठा विवेक नाम का युवक तमतमा कर अपनी कुरसी से उठा, ”मना करेगी तो यहीं तुझे नंगा कर के अश्लील वीडियो बना लूंगा और तेरे पति को भेज दूंगा.’’

नहीं.’’ निकिता भय से चीखी, ”तुम ऐसा नहीं करोगे. रविंदर उसे समझाओ, यह क्या बकवास कर रहा है.’’

यह सब कुछ करेगा निकिता. तुम्हें काम के लिए राजी करवाने के लिए यह हर हथकंडा अपनाएगा. मना कर के यहां से चली भी गई तो तुम्हारा यह खूबसूरत थोबड़ा, जिस पर तुम्हें नाज है, यह तेजाब से बिगाड़ देगा. यह तुम्हें कत्ल भी करने की हिम्मत रखता है.’’ रविंदर बेशरमी से बोला, ”तुम चुपचाप हां कर दोगी तो यह शांत बैठ जाएगा.’’

निकिता समझ गई थी, वह गलत लोगों के जाल में फंस गई है. वह धम्म से कुरसी पर बैठ गई और गहरीगहरी सांसें लेने लगी. थोड़ी देर बाद वह संयत हो कर बोली, ”मैं यह काम करूंगी रविंदर, लेकिन आज से नहीं. मैं बहुत नरवस हो गई हूं, मैं कल 10 बजे यहां फ्री माइंड हो कर आ जाऊंगी. प्लीज रविंदर, मेरा विश्वास करो, मुझे एक दिन का समय दे दो, खुद को इस काम के लिए तैयार होने के लिए.’’

ठीक है, आज तुम जाओ. लेकिन कल ठीक 10 बजे यहां आ जाना. नहीं आई तो विवेक तेजाब ले कर तुम्हारे घर पहुंच जाएगा.’’ रविंदर ने धमकी देते हुए कहा, ”कल 10 बजे मैं तुम्हें यहां देखना चाहता हूं.’’ 

मैं आऊंगी रविंदर सर.’’ निकिता जल्दी से बोली, ”मैं अपना चेहरा खराब नहीं करवाना चाहती.’’

जाओ.’’ रविंदर ने जैसे ही कहा मैं सिर पर पांव रख कर भागी. गिरतेपड़ते मैं किसी तरह घर पहुंची. शाम को मेरे पति काम से लौटे तो मैं ने इन्हें सारी बात बताई. यह घबरा गए. हम दोनों रात के अंधेरे में घर छोड़ कर गांव भाग गए. 

एक सप्ताह से हम वहां छिप कर रह रहे थे, लेकिन हम ने सोचा ऐसे कब तक छिपेंगे. पति का काम भी छूट जाएगा. हिम्मत कर के आज हम थाने में अपनी शिकायत लिखवाने आए हैं, सर! आप हमारी रिपोर्ट लिख कर उस बदमाश को गिरफ्तार कर लीजिए.’’

तुम अब हमारी सुरक्षा में हो, हम आज रात को ही रविंदर और उस के सहयोगियों को गिरफ्तार कर लेंगे.’’ एसआई जितेंद्र सिंह ने कहते हुए पास में खड़े हैडकांस्टेबल मलखान की ओर देखा, ”मलखान, तुम इन से लिखित शिकायत ले कर एफआईआर दर्ज कर लो, मैं एसीपी साहब से बात करता हूं.’’

ठीक है सर.’’ हैडकांस्टेबल ने सिर हिलाया और निकिता तथा जितेंद्र को ले कर रिसैप्शन रूम में आ गया.

निकिता से लिखित शिकायती पत्र ले कर उसे भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 56, 79, 351 (3), 352 के अंतर्गत एफआईआर दर्ज कर ली. एसआई जितेंद्र सिंह ने डीसीपी सिद्धार्थ गौतम को फोन पर सारा मामला बता दिया. डीसीपी ने एसीपी सिद्धार्थ गौतम के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर दिया. इस टीम ने दूसरे दिन 5 जुलाई को निकिता के द्वारा बताए गए सेक्टर-3, राजेंद्र नगर के फ्लैट 1/186 की फस्र्ट फ्लोर पर दबिश दी. पुलिस ने यहां न्यूड चैटिंग का धंधा करने वाले रविंदर, उस के साथी विवेक और पूजा सक्सेना को गिरफ्तार कर लिया गया.

अंदर के रूम में 5 युवतियां भी थीं, जो रविंदर के इस न्यूड चैटिंग धंधे में मजबूरी से शामिल हुई थीं. वे वहां से मोबाइल द्वारा विडियो काल पर युवकों से अश्लील बातें करती थीं, उन्हें उन युवकों को ज्यादा वक्त तक बातों में उलझाने के लिए अपने तन को निर्वस्त्र करने में भी संकोच नहीं होता था. जितना वक्त वह युवकों को बातों में उलझाती थी, उतनी ही कमाई होती थी. युवकों से दस मिनट अश्लील चैटिंग करने को 200-250 रुपया वसूला जाता था.

इस न्यूड चैटिंग गिरोह का सरगना रविंदर कुमार, राजबाग, साहिबाबाद का निवासी है. अपनी एक महिला मित्र के कहने पर उस ने अश्लील न्यूड चैटिंग का काम शुरू किया था. वह जौब एप्लीकेशन वेबसाइट से मैरिड, अनमैरिड युवतियों, औरतों के रिज्यूम लेता था. फिर उन युवतियों को फाइनैंस एडवाइजर या लोन एजेंट की जौब के लिए अच्छी सैलरी का लालच दे कर अपने औफिस में बुलाता था. बाद में उन्हें धमका कर या लालच दे कर युवकों से न्यूड हो कर चैटिंग करने के काम पर लगा लेता था. 

उन युवतियों ने बताया कि वह ऐसा करने के लिए उन्हें डरायाधमकाया गया था. मजबूरी में वह यह गलत काम कर रही थीं. इन पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 56, 79, 351 (3), 352 लगाई गई. सभी को सक्षम न्यायालय में पेश कर के रविंदर, विवेक और पूजा सक्सेना को जेल भेज दिया गया. शेष 5 युवतियों को चेतावनी दे कर उन के परिजनों के सुपुर्द कर दिया गया. रविंदर पहले वाहन इंश्योरेंस और एआरटीओ कार्यालय से लाइसेंस व अन्य कागजात बनाने का काम करता रहा है. उस ने यह न्यूड चैटिंग का धंधा करने के लिए डीएलएफ राजेंद्र नगर का वह फ्लैट 16,500 में किराए पर ले रखा था. कथा लिखने तक पुलिस उस के खिलाफ सबूत जुटाने का काम कर रही थी, ताकि उसे सख्त सजा दिलाई जा सके.

कथा में राघव चड्ïढा, अप्सरा, निकिता और जितेंद्र यादव परिवर्तित नाम हैं.

तंत्र साधना के लिए काटा दोस्त का सिर

तथाकथित तांत्रिक परमात्मा तंत्र साधना से अपार दौलत पाने का दावा करता था. इस के लिए उस ने अपने दोस्तों विकास और धनंजय से किसी इंसान का कटा सिर लाने को कहा. 5 लाख रुपए के लालच में विकास और धनंजय अपने दोस्त राजू कुमार की हत्या कर उस का सिर काट कर तांत्रिक परमात्मा के पास ले गए. तांत्रिक ने उस खोपड़ी पर 7 दिनों तक तंत्रमंत्र क्रियाएं कीं. यह सब करने के बाद क्या उन्हें दौलत मिल सकी?

सड़क किनारे जंगल में सुबह करीब साढ़े 6 बजे कुछ लोगों की नजर एक लाश पर गई. उस लाश का सिर कटा हुआ था. इस के बाद जो भी उधर से गुजर रहा था, लाश को देखने लगा. उसी दौरान किसी ने इस की सूचना गाजियाबाद के थाना टीला मोड़ पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. पुलिस ने देखा कि पेड़ों के बीच एक सिरकटी लहूलुहान लाश पड़ी है. युवक की उम्र करीब 29-30 वर्ष थी. शव के धड़ से सिर गायब था, जबकि शरीर के शेष अंग मौजूद थे. 

सूचना पर पहुंची पुलिस ने डौग स्क्वायड को भी बुला लिया. टीम ने जांचपड़ताल की. मृतक की नारंगी रंग की शर्ट खून से सनी थी, जबकि वह काला सफेद व लाल पट्टी का लोअर पहने हुआ था. पुलिस ने आसपास के क्षेत्र में उस का सिर तलाशा, लेकिन सिर नहीं मिला. एसीपी सिद्धार्थ गौतम भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस को शव के पास एक गद्दी का कवर भी खून से सना मिला. पुलिस ने शव की पहचान कराने का प्रयास किया, लेकिन  कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका. मौके की जांच करने के बाद ऐसा लग रहा था कि उस युवक की हत्या कहीं और करने के बाद शव वहां डाला गया था. 

पुलिस टीम को मृत युवक के दाहिने हाथ पर कुछ लिखा मिला, जो समझ में नहीं आ रहा था. इस के अलावा बाएं हाथ पर किसी नुकीली चीज से काटने के निशान थे. दोपहर को फोरैंसिक टीम घटनास्थल पर पहुंची और जांच की, लेकिन कोई अहम सुराग नहीं मिला. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. यह घटना गाजियाबाद जिले के टीला मोड़ थाने से करीब एक किलोमीटर दूर लोनी भोपुरा इलाके में 22 जून, 2024 को घटी थी.

डीसीपी (ट्रांस हिंडन) निमिष पाटिल ने इस केस को सुलझाने के लिए एसीपी सिद्धार्थ गौतम के निर्देशन में 6 पुलिस टीमों का गठन किया. सभी टीमें अपनेअपने काम में जुट गईं. पुलिस टीमों ने इस सनसनीखेज वारदात के खुलासे के लिए घटनास्थल के निकट के इलाके को खंगालना शुरू किया. पुलिस ने दिल्ली के 161 थानों से भी लापता व्यक्तियों के बारे में जानकारी हासिल की, लेकिन उन थानों में इस हुलिए के किसी युवक की गुमशुदगी दर्ज नहीं थी. 

पुलिस टीम को हाथ पर बने टैटू से सुराग मिलने की संभावना थी. जांच के दौरान टीम ने दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के आसपास के थानों में भी दर्ज गुमशुदगी के रिकौर्ड खंगालने शुरू कर दिए, लेकिन पुलिस को कुछ हासिल नहीं हुआ. पुलिस ने मृतक की फोटो लगे पैंफ्लेट गाजियाबाद और दिल्ली के सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा कर दिए थे. उन्हीं पैंफ्लेट को देख कर दिल्ली के ताहिरपुर का रहने वाला गणेश थाना टीला मोड़ पहुंचा.

उस ने पुलिस को बताया कि उस के साले का 29 साल का बेटा राजू कुमार अचानक 15 जून, 2024 को लापता हो गया. राजू बिहार के मोतिहारी जिला के पिपरा थाना का निवासी था. राजू के मातापिता का निधन हो चुका है. वह उन के साथ ही दिल्ली में ताहिरपुर में रहता था. राजू चाटपकौड़ी का ठेला कमला मार्केट में लगाता था. रात तक जब वह घर वापस नहीं आया, तब उन्हें चिंता हुई. अब सवाल था कि राजू बिना बताए कहां गायब हो गया? उन्होंने इस की संबंधित पुलिस थाने में जा कर शिकायत की, लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहींं की और जांच का आश्वासन दे कर घर लौटा दिया था. 

हत्यारों तक कैसे पहुंची पुलिस

पुलिस ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों को खंगालना शुरू किया. शुरुआती छानबीन के दौरान तुलसी निकेतन में एक बहुमंजिला इमारत की आठवीं मंजिल पर लगे सीसीटीवी कैमरे में एक धुंधली फुटेज हाथ लगी, जिस में एक आटो की हैड व टेल लाइट और पीछे लाल रंग के 2 ट्रायंगल रिफ्लेक्टर नजर आए थे. अब पुलिस ने उस आटो को तलाशना शुरू कर दिया. इस दौरान पुलिस सैकड़ों आटो चैक किए. पुलिस की डेढ़ महीने की मेहनत आखिर रंग लाई और पुलिस ने धुंधली फुटेज से तसवीर साफ कर उस आटोचालक के पास पहुंच गई और उस के आटो को बरामद कर लिया. पुलिस उसी आटो के आधार पर आरोपियों तक जा पहुंची.

आगे की जांच करते हुए पुलिस ने बिहार के मोतिहारी से हत्याकांड में शामिल 2 आरोपियों को 16 अगस्त, 2024 को गिरफ्तार कर लिया. इन में 24 वर्षीय विकास उर्फ मोटा निवासी गली नंबर-1,  ताहिरपुर, दिल्ली तथा उस का साथी 28 वर्षीय धनंजय निवासी कमला मार्केट, दिल्ली जो मूलरूप से हुसैनी, थाना डुमरिया घाट जिला मोतिहारी, बिहार का निवासी है, शामिल थे. जबकि तीसरा मुख्य आरोपी  विकास उर्फ परमात्मा निवासी मोतिहारी बिहार फरार हो गया. 

पता चला कि वह पुलिस से बचने के लिए नेपाल भाग गया है. इस वीभत्स हत्याकांड का खुलासा पुलिस ने घटना के पौने 2 माह बाद आखिर कर दिया. आरोपियों से पूछताछ के बाद जो कहानी सामने आई, उसे सुन कर पुलिस वालों के भी रोंगटे खड़े हो गए. पता चला कि तीनों दोस्तों ने तंत्रमंत्र के जरिए अमीर बनने के लिए राजू नाम के युवक की हत्या कर दी थी. पुलिस ने गिरफ्तार दोनों हत्यारोपियों के कब्जे से आलाकत्ल छुरियां, आटोरिक्शा, ईरिक्शा आदि बरामद कर लिए.

5 लाख के लालच में काटा सिर

आरोपी विकास उर्फ मोटा अपने मामा मुन्ना निवासी गोकुलधाम सोसाइटी शालीमार गार्डन, गाजियाबाद का आटो किराए पर ले कर चलाता था. कुछ महीने पहले उस की मुलाकात धनंजय से हुई थी. धनंजय नई दिल्ली के कमला मार्केट निवासी अपने मामा रंजीत और रणधीर साहनी के पास रह कर खाना बनाने का ठेला लगाता था. विकास उर्फ मोटा धनंजय के ठेले पर खाना खाने के लिए आता था. इस के चलते उस की उस से दोस्ती हो गई. उसी के माध्यम से धनंजय की परमात्मा से मुलाकात हुई. परमात्मा ईरिक्शा चालक था. वह कमला मार्केट के पास किराए के कमरे में रहता था. वह इन दोनों से तंत्रमंत्र विद्या और टोनेटोटके से रुपए कमाने के साथ ही सब कुछ हासिल करने की बात कहता रहता था.

परमात्मा ने धनंजय और विकास को एक दिन बताया कि वे तंत्र विद्या के जरिए बहुत पैसा कमा सकते हैं. उसे तंत्र विद्या करनी आती है. एक दिन तुम दोनों को भी बहुत पैसे मिलेंगे. परमात्मा ने दोनों को जल्द अमीर बनने का सपना दिखाया. उस ने कहा कि इस के लिए एक काम करना होगा. तुम दोनों को ऐसे अनाथ व्यक्ति की तलाश करनी होगी, जिस की हत्या कर के उस की खोपड़ी काटने के बाद उस खोपड़ी पर तंत्र क्रिया की जा सके. परमात्मा ने धनंजय से अनाथ युवक को तलाश करने के लिए 5 लाख रुपए देने का लालच भी दिया. 

रुपयों के लालच में धनंजय और विकास उर्फ मोटा एक साथ ऐसे युवक की तलाश करने लगे. इस दौरान धनंजय ने अपने पड़ोसी और दोस्त राजू कुमार, जो उस के साथ ही चाटपकौड़े का ठेला लगाता था, को निशाना बनाने के लिए अपने जाल में फंसाना शुरू कर दिया. राजू नशा करने का आदी था. इस का धनजंय और विकास ने फायदा उठाया. कई दिनों तक विकास और धनंजय ने राजू के साथ शराब पी. 15 जून, 2024 को दोनों राजू को शराब का लालच दे कर तथाकथित तांत्रिक परमात्मा के कमरे पर ले गए. वहां 6 दिन तक उसे शराब पिलाते रहे. उसे घर तक नहीं जाने दिया. सातवें दिन यानी 21-22 जून की दरमियानी रात को राजू की उन्होंने गमछे से गला दबा कर हत्या कर दी. इस के बाद शव को पंखे से लटका दिया. 

शव को छिपाने के लिए तीनों ने रात करीब ढाई बजे विकास उर्फ मोटा के आटो में शव को रखा और टीला मोड़ थाना क्षेत्र की पंचशील कालोनी ले कर गए. पुलिस द्वारा पकड़े जाने के डर से उन्होंने आटो को एक सुनसान जगह पर सड़क किनारे खड़ा किया और मीट काटने वाली छुरी से राजू का सिर काट कर अलग कर दिया. फिर उस के धड़ को जंगल में फेंक  दिया. तीनों ने राजू के कटे सिर को प्लास्टिक की बाल्टी में रखा और आटो में बैठ कर वापस दिल्ली आ गए.

कटे सिर पर 7 दिनों तक करते रहे तंत्रक्रिया

हत्या करने के बाद तीनों आरोपियों ने हैवानियत की सभी हदें पार कर दीं. परमात्मा के दिल्ली के कमला मार्केट स्थित कमरे पर चाकू से उन्होंने उस की आंखें निकालीं, फिर नाक, कान काट कर खोपड़ी की पूरी तरह खाल उतार दी. राजू की खोपड़ी के साथ परमात्मा ने काला टीका लगा कर व काले कपड़े पहन कर तंत्र साधना शुरू की. उस ने मानव खोपड़ी पर तंत्रमंत्र विद्या से पैसे कमाने का तरीका आजमाया. वह कुछ घंटे प्रयास के बावजूद सफल नहीं हुआ. लेकिन उस ने हार नहीं मानी और लगातार 7 दिनों तक वह तंत्र साधना करता रहा, फिर भी उसे कुछ हासिल नहीं हुआ.  

इस के बाद उस ने अपने दोनों साथियों से कहा कि खोपड़ी पर चोट का निशान है. यह क्रैक हो गई है. इसलिए यह खोपड़ी तंत्र साधना के लायक नहीं है. तुम लोगों को दूसरी मानव खोपड़ी लानी होगी. खोपड़ी को 7 दिनों तक कमरे में रखने से दुर्गंध आने लगी थी, तब तांत्रिक परमात्मा खोपड़ी ले कर भाग गया और उसे दिल्ली में जीटीबी अस्पताल के पास नाले में फेंक आया. अस्पताल के नाले में खोपड़ी को फेंकने की बात उस ने अपने दोनों साथियों को बताई.

आंखें निकाल कर खेले कंचे

इस घटना से 1994 की फिल्म अंदाज अपना अपनाकी याद आ जाती है. इस फिल्म में क्राइम मास्टर गोगो के किरदार में शक्ति कपूर का फेमस डायलौग था, आंखें निकाल कर गोटियां खेलूंगा.’ इन आरोपियों ने इस डायलौग को हकीकत में बदल दिया. तंत्रमंत्र क्रिया के दौरान राजू के कटे सिर से आंखें निकालने के बाद उन से तांत्रिक क्रिया करते हुए कंचे (गोटियां) भी खेले. इस बात की जानकारी पकड़े गए दोनों आरोपियों धनंजय व विकास उर्फ मोटा ने पुलिस को दी. 5 लाख रुपए का लालच दे कर परमात्मा ने जिंदा मानव की खोपड़ी लाने की बात कह कर एक निर्दोष युवक की हत्या करा दी. इस हत्याकांड का खुलासा करने व आरोपियों को गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम को पुलिस कमिश्नर (गाजियाबाद) अजय कुमार मिश्र की ओर से 25 हजार रुपए का तथा डीसीपी (ट्रांस हिंडन) निमिष पाटिल की ओर से 10 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की गई है. 

पुलिस पूछताछ में विकास और धनंजय ने बताया कि मुख्य आरोपी परमात्मा ने राजू की खोपड़ी को दिल्ली में जीटीबी अस्पताल के नाले में फेंक दिया था. उस के साथ उस की आंखें, नाक, कान और बाल भी थे.  इस तथ्य के सामने आने के बाद टीला मोड़ पुलिस ने दिल्ली पुलिस की मदद से नाले की सफाई कराई, लेकिन कई घंटे के प्रयास के बाद भी टीम को सफलता नहीं मिली. एसीपी सिद्धार्थ गौतम ने बताया, परमात्मा ने अपने एक परिचित के पास अपना ईरिक्शा 35 हजार रुपए में गिरवी रख दिया था. उस के बाद वह अपना मोबाइल बंद कर फरार हो गया. 

राजू कुमार की हत्या के बाद दोनों हत्यारोपी धनंजय और विकास एकदूसरे से मिलते थे. दोनों ने इस बीच परमात्मा से भी मिलने का प्रयास किया, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. पुलिस ने यदि मृतक राजू कुमार के फूफा गणेश की बात को गंभीरता से लेते हुए 15 जून, 2024 को राजू के लापता होने पर उन के द्वारा शिकायत करने पर राजू की गुमशुदगी दर्ज कर तलाश शुरू कर दी होती तो शायद राजू की जान बच सकती थी. क्योंकि उस की हत्या 21-22 जून की रात को की गई थी. ये लालच था जल्दी अमीर बनने का और इस लालच ने एक निर्दोष दोस्त को ऐसी मौत दी, जिसे सुन कर पुलिस भी हैरान रह गई. पैसे पाने का सपना पाले हत्यारे दोस्तों के हाथ यहीं नहीं कांपे, उन्होंने हैवानियत की सारी हदें पार कर दीं. इन के इस जघन्य अपराध ने दोस्ती को भी शर्मसार कर दिया. 

पुलिस ने दोनों आरोपियों विकास उर्फ मोटा और धनंजय को न्यायालय के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. वहीं पुलिस मुख्य आरोपी काला जादू करने वाले तथाकथित तांत्रिक परमात्मा की तलाश में जुटी थी. अपनी किस्मत बदलने की चाहत में एक निर्दोष को बलि का बकरा उस के ही वहशी बने दोस्तों ने बनाया. लेकिन तंत्र साधना के चक्कर में पड़ कर दोस्त की जान लेने पर भी उन्हें धन तो नहीं मिला. हां, जेल की सलाखों के पीछे जरूर जाना पड़ा.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

इश्क में अंधी मां ने कराया बेटे का मर्डर

पति की मौत के बाद आरफा बेगम की जिंदगी पटरी पर लौटने लगी थी. शादीशुदा बेटे मोहम्मद नदीम (30 वर्ष) ने भी पूरी तरह अब्बू का बिजनैस संभाल लिया था. लेकिन इसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि आरफा बेगम अपने इकलौते बेटे नदीम की कातिल बन गई? उस ने 25 लाख की सुपारी दे कर आंखों के तारे, राजदुलारे की क्रूरता से हत्या करा दी.

सचमुच कुएं में पानी पर एक लाश उतरा रही थी. इस के बाद तो जिस ने भी यह बात सुनी, वह मंदिर के पास स्थित उस कुएं की तरफ चल दिया. कुछ ही देर में सैकड़ों की भीड़ वहां जमा हो गई. इसी बीच किसी व्यक्ति ने फोन के जरिए कुएं में लाश पड़ी होने की सूचना थाना अजगैन पुलिस को दे दी. यह बात 5 जून, 2024 की सुबह की थी.

सूचना पाते ही एसएचओ अवनीश कुमार सिंह पुलिस बल के साथ घटना स्थल की तरफ रवाना हो गए. रवाना होने से पूर्व उन्होने प्राप्त सूचना से पुलिस अधिकारियों को भी अवगत करा दिया था. कुछ देर बाद ही अवनीश कुमार सिंह घटनास्थल पहुंच गए. वह भीड़ को परे हटाते कुएं के पास पहुंचे और झांक कर देखा तो सच में कुएं में किसी युवक की लाश उतरा रही थी. कुएं के पास खून फैला था और एक बाइक खड़ी थी. एसएचओ ने अनुमान लगाया कि बाइक या तो मृतक की है या फिर कातिल की होगी. 

चूंकि बाइक के नंबरों से उस के मालिक का पता चल सकता था. अत: उन्होंने आरटीओ औफिस से उस नंबर के संबंध में जानकारी जुटाई. इस जांच में पता चला कि उक्त बाइक का रजिस्ट्रैशन मोहम्मद नदीम निवासी अलहम्द रेजीडेंसी इफ्तखाराबाद थाना अनवरगंज, कानपुर नगर के नाम है. रजिस्ट्रैशन से बाइक के बारे में तो पता च ल गया, लेकिन कुएं में उतराती लाश नदीम की है या किसी और की, बिना शिनाख्त के कहना मुश्किल था. 

इस के बाद पुलिस ने कुएं से लाश बाहर निकलवाई. वहां मौजूद उस युवक की लाश की कोई शिनाख्त नहीं कर सका. पुलिस ने शिनाख्त के लिए नदीम के घर वालों को बुलवा लिया. शव देख कर एक अधेड़ उम्र की महिला फूटफूट कर रोने लगी. उस ने अपना नाम आरफा बेगम बताया और कहा कि यह लाश उस के इकलौते बेटे मोहम्मद नदीम की है. घर वालों ने बताया कि कुछ दिनों पहले ही आरफा बेगम के पति की मृत्यु हुई और अब इकलौता बेटा भी चला गया.

इस के बाद एसएचओ अवनीश सिंह ने शव का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. उस की हत्या चाकू से गोद कर की गई थी. उस के सिर व गरदन पर गहरे जख्म थे. उस का मोबाइल फोन व पर्स गायब था. यह सामान या तो कुएं में गिर गया था या फिर कातिल अपने साथ ले गए.

किस ने की नदीम की हत्या

कुछ ही देर में एडिशनल एसपी उन्नाव (दक्षिणी) प्रेमचंद्र तथा सीओ (हसनगंज) संतोष कुमार सिंह भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने जहां साक्ष्य जुटाए, वहीं पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र ने मौके पर मौजूद मृतक की मां आरफा बेगम व मामा ताहिर से पूछताछ की. आरफा बेगम ने बताया कि मोहम्मद नदीम घर से दुकान जाने के लिए कल 2 बजे बाइक से निकला था. जब वह रात 10 बजे तक घर नहीं पहुंचा तो उस ने उस के मोबाइल फोन पर काल की, लेकिन उस का फोन बंद था. आज उस की लाश मिल गई.

पूछताछ में पता चला कि नदीम रेडीमेड कपड़ों का कारोबारी था. अनवरगंज में उस की अपनी दुकान है. वह बेहद सीधा था. किसी से लड़ताझगड़ता नहीं था. उस की न तो किसी से दुश्मनी थी और न ही लेनदेन का झगड़ा था. पूछताछ के बाद पुलिस ने नदीम के शव को पोस्टमार्टम हेतु उन्नाव के जिला अस्पताल भेज दिया. वापस थाने आ कर मृतक के मामा ताहिर की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र के निर्देश पर एसएचओ अवनीश कुमार सिंह ने इस ब्लाइंड मर्डर की जांच बड़ी बारीकी से शुरू की. उन्होंने सब से पहले एक बार फिर घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. इस के बाद उन्होंने मृतक नदीम की मां आरफा बेगम व मामा ताहिर से पूछताछ कर उन के बयान दर्ज किए.

लाश उन्नाव जिले के गांव दरबारी खेड़ा के पास मिली थी, इसलिए एसएचओ अवनीश कुमार सिंह ने दरबारी खेड़ा व उसके आसपास के गांवों के कई अपराधी किस्म के लोगों को हिरासत में लिया तथा उन से सख्ती से पूछताछ की, लेकिन नदीम की हत्या का सुराग न लगा. इस के अलावा मुखबिर भी कोई खास जानकारी नहीं जुटा पा रहे थे. अब तक एक महीना से ज्यादा का समय गुजर गया था, लेकिन वह नदीम के हत्यारों के बारे में कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था. पुलिस अधिकारी भी जांच टीम पर दबाव बना रहे थे. नदीम की मां आरफा बेगम व मामा ताहिर भी जबतब थाने आ जाते और जवाबसवाल करते.

एक रोज एसएचओ अवनीश कुमार सिंह अपने सहयोगियों के साथ नदीम की हत्या के संबंध में विचारविमर्श कर रहे थे, तभी एक युवती ने उन के कक्ष में प्रवेश किया. वह मुसलिम समुदाय की लग रही थी. एसएचओ अवनीश कुमार सिंह ने सहयोगियों को बाहर जाने का इशारा करने के बाद उस युवती को कुरसी पर बैठने को कहा. वह फिर बोले, ”मोहतरमा, आप अपने बारे में बता कर अपनी समस्या बताएं, ताकि हम आप का सहयोग कर सकें.’’

उस युवती ने दाएंबाएं नजर घुमाई फिर बोली, ”हुजूर, मेरा नाम जीनत फातिमा है. मैं मरहूम नदीम की बीवी हूं. छिपतेछिपाते किसी तरह थाने आई हूं. मैं आप को एक ऐसा राज बताने आई हूं, जिस पर शायद आप को यकीन ही न हो.’’

”कैसा राज?’’ इंसपेक्टर अवनीश ने पूछा. 

”यही कि मेरे शौहर की हत्या का राज मेरी सास आरफा बेगम के पेट में छिपा है. मुझे शक है कि उन्होंने ही कोई योजना बना कर मेरे शौहर को मरवाया है.’’

इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह ने एक सरसरी निगाह जीनत फातिमा पर डाली, फिर बोले, ”न जानें क्यों मुझे तुम्हारी बातों पर यकीन नहीं हो रहा है. भला एक मां अपने एकलौते बेटे का कत्ल क्यों कराएगी? फिर भी मैं तुम्हारे शक का कारण जानना चाहता हूं.’’

हुजूर, शक का पहला कारण यह है कि आरफा बेगम मकान व दुकान बेचना चाहती थी, लेकिन मेरे पति इस का विरोध कर रहे थे. इस को ले कर मांबेटे में तकरार होती थी. शक का दूसरा कारण आरफा बेगम की यारी. यानी उस के नाजायज संबंध अजमेर निवासी एक रिश्तेदार से हैं. वह मकानदुकान बेच कर उस के साथ रहना चाहती थी. लेकिन मेरे पति विरोध करते थे. मुझे शक है कि इसी विरोध के चलते सासू अम्मी ने उन का काम तमाम करा दिया.’’

इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह सोच में पड़ गए, ”क्या एक मां इतनी बेरहम हो सकती है कि देहसुख के लिए जवान बेटे का कत्ल करा दे?’’

इस के बाद अवनीश कुमार सिंह ने एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र से मुलाकात की और उन्हें पूरी बात बताई. शक के आधार पर उन्होंने इस ब्लाइंड मर्डर को खोलने का आदेश दिया. यही नहीं उन्होंने एक पुलिस टीम का गठन भी कर दिया. इस टीम में इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह, इंसपेक्टर (क्राइम ब्रांच) राम नारायण, हैडकांस्टेबल राधेश्याम, कांस्टेबल पवन, अर्पित, सूरजपाल, अरुण कुमार, तथा महिला कांस्टेबल विमल को शामिल किया गया. टीम की बागडोर सीओ (हसनगंज) संतोष कुमार सिंह को सौंपी गई. 

पुलिस टीम ने शक के आधार पर मृतक की मां मोहम्मद आरफा बेगम की निगरानी शुरू कर दी. यही नहीं, आरफा बेगम व मृतक नदीम के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स रिपोर्ट निकलवाई. आरफा बेगम की काल डिटेल्स में कोई संदिग्ध नंबर नहीं मिला. वह किसी बाहरी व्यक्ति से बात नहीं करती थी. घटना वाले दिन भी उस ने किसी से बात नहीं की थी. रात 10 बजे उस ने नदीम को फोन किया था. 

लेकिन नदीम के मोबाइल फोन नंबर की काल डिटेल्स में टीम को एक संदिग्ध नंबर मिला. इस नंबर पर नदीम ने 4 जून, 2024 को बात की थी. इस संदिग्ध नंबर की पुलिस टीम ने जानकारी जुटाई तो पता चला यह नंबर सलीम पुत्र सिद्ïदीकी निवासी गली न 15 नवल नगर मोहल्ला लौंगिया थाना गंज, जिला अजमेर (राजस्थान) के नाम दर्ज है. संदिग्ध व्यक्ति सलीम पुलिस की रडार पर आया तो टीम उस की टोह में अजमेर जा पहुंची. टीम ने लौंगिया बस्ती में सलीम के घर दबिश दी, लेकिन वह घर से फरार था. पता चला कि वह किसी काम से उत्तर प्रदेश गया है. 

पुलिस टीम तब हाथ मलते हुए वापस लौट आई, लेकिन टीम हाथ पर हाथ रख कर नहीं बैठी. टीम ने खबरियों का जाल बिछा दिया और स्वयं भी टोह में लग गई. टीम ने उन्नाव के बस अड्ïडा व रेलवे स्टेशन पर निगरानी बढ़ा दी. 

सुपारी किलर ऐसे आया गिरफ्त में

19 जुलाई, 2024 को एसएचओ अवनीश कुमार सिंह को एक मुखबिर से पता चला कि सलीम उन्नाव स्टेशन पर मौजूद है. चूंकि सूचना अतिमहत्त्वपूर्ण थी, इसलिए अवनीश कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ उन्नाव स्टेशन पहुंचे और मुखबिर की निशानदेही पर टीम ने सलीम को दबोच लिया. उस समय वह स्टेशन के बाहर किसी व्यक्ति के आने का इंतजार कर रहा था. सलीम को थाना अजगैन लाया गया. यहां पुलिस टीम ने उस से नदीम की हत्या के बारे में पूछताछ की तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब उस से सख्ती की गई तो उस ने नदीम की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. 

उस ने बताया कि कानपुर निवासी कपड़ा कारोबारी मोहम्मद नदीम की हत्या उस ने ही पैसों के लालच में चाकू से गोद कर की थी तथा शव को कुएं में फेंक दिया था. उस ने यह भी बताया कि हत्या की साजिश नदीम की मां आरफा बेगम व उस के आशिक हासम अली निवासी कोडरा पसन नगर, थाना किशनगंज जिला अजमेर (राजस्थान) ने रची थी. उन्होंने ही नदीम की हत्या की सुपारी 25 लाख रुपए में उसे दी थी. 15 लाख रुपए उसे नकद दिया था. शेष रुपए काम तमाम होने के बाद देने का वादा किया था. शेष रुपए ही वह लेने आया था, लेकिन पकड़ा गया. इस के बाद सलीम ने हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल (चाकू) भी बरामद करा दिया, जिसे उस ने मांस तिराहे के पास पन्नी में लपेट कर छिपा दिया था. 

सलीम को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस टीम ने नाटकीय ढंग से आरफा बेगम व उस के आशिक हासम अली को भी गिरफ्तार कर लिया. उन दोनों ने जब सलीम को हवालात में देखा तो समझ गए कि अब झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं. अत: उन दोनों ने भी सहज में ही नदीम की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. इंसपेक्टर अवनीश कुमार सिंह ने नदीम की हत्या का परदाफाश करने तथा कातिलों को पकडऩे की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो एडिशनल एसपी प्रेमचंद्र ने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता कर नदीम की हत्या का खुलासा किया. 

पुलिस ने भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत सलीम, हासम अली तथा आरफा बेगम को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में एक ऐसी मां की कहानी सामने आई, जिस ने देहसुख के लिए अपने जवान बेटे को ही सुपारी दे कर कफन में लपेट दिया. कानपुर महानगर के अनवरगंज थाने के अंतर्गत एक मोहल्ला है-इफ्तखाराबाद. मुसलिम बाहुल्य इस मोहल्ले में ज्यादातर लोग व्यापार करते हैं. कोई कपड़े का व्यापार तो कोई लकड़ी का. कोई चमड़े का तो कोई मांसमछली का व्यापार करता है. घनी आबादी वाले इसी मोहल्ले में मोहम्मद नईम सपरिवार रहते थे. 

अलहम्द रेजीडेंसी में उन का निजी मकान था. उन के परिवार में पत्नी आरफा बेगम के अलावा एक बेटी आलिया तथा बेटा मोहम्मद नदीम था. मोहम्मद नईम रेडीमेड कपड़ा कारोबारी थे. अनवरगंज में उन की दुकान थी. बड़ी बेटी आलिया का वह निकाह कर चुके थे. मोहम्मद नदीम उन का इकलौता बेटा था. इसलिए वह सभी का दुलारा था. नदीम बचपन से ही तेज दिमाग था. वह जिद्ïदी व हठी भी था. उस के जिद्ïदी स्वभाव के कारण उस की अम्मी आरफा बेगम परेशान रहती थी. वह शौहर को उलाहना भी देती कि उन्होंने नदीम को बिगाड़ दिया है. 

नदीम का मन पढ़ाई में कम और गिल्लीडंडा खेलने में ज्यादा लगा रहता था. इस से नईम चिंतित रहते थे. जैसेतैसे नदीम ने 10वीं तक पढ़ाई की. फिर उस का मन पढ़ाई से उचट गया. नदीम कहीं गलत संगत में न पड़ जाए, इसलिए नईम ने उसे अपने कपड़ा व्यवसाय में लगा लिया. नदीम अब अब्बू के साथ कपड़े की दुकान पर जाता और दुकानदारी के गुर सीखता. मोहम्मद नदीम अब तक जवान हो चुका था और दुकान भी संभालने लगा था. इसलिए मोहम्मद नईम ने जुलाई, 2020 में उस का विवाह जीनत फातिमा नाम की लड़की से कर दिया.

जीनत फातिमा के अब्बू मोहम्मद कासिम बाकरगंज (बाबूपुरवा) कानपुर में रहते थे. बाकरगंज बाजार में उन की भी कपड़े की दुकान थी. अच्छा घरवर पा कर जीनत फातिमा भी खुश थी. घर में किसी चीज की कमी न थी और बेहद चाहने वाला शौहर मिला था. हंसीखुशी से दिन बीतते अभी एक साल ही बीता था कि नईम ऐसे बीमार पड़े कि उन्होंने खाट पकड़ ली. नदीम ने उन का कई डाक्टरों से इलाज कराया, लेकिन वह बच न पाए. आखिर उन्होंने दम तोड़ ही दिया. 

शौहर की मौत पर आरफा बेगम ने खूब आंसू बहाए. किसी तरह नदीम ने मां को संभाला. ताहिर ने भी बहन को समााया. तब कहीं जाकर वह सामान्य हुई. अब्बू के जाने का नदीम को भी बड़ा सदमा पहुंचा. उस ने अब्बू के गुजर जाने के बाद नदीम ने दुकान और घर चलाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली. बीवी ने भी उस का साथ दिया.

आरफा बेगम की तन्हाइयां कैसे हुईं दूर

कहते हैं वक्त बड़े से बड़ा घाव भर देता है. आरफा बेगम भी पति की मौत का गम भूल चुकी थी. बेटाबहू अपनी जिंदगी जी रहे थे और वह तन्हाइयों में जी रही थी. अकेलापन उसे बहुत खलता था. उन्हीं दिनों एक रोज हासम अली आरफा बेगम के घर आया. वह उस के मरहूम शौहर नईम का दोस्त व रिश्तेदार था. पहले भी वह घर आ चुका था. हासम अली, अजमेर (राजस्थान) शहर के कोडरा पसन नगर का रहने वाला था. वह कपड़ा व्यापारी था. दोनों में जानपहचान पहले से थी. इसलिए आरफा बेगम ने उस की खूब मेहमाननवाजी की. हासम अली ने दोस्त के गुजर जाने का दुख जताया और आरफा बेगम को धैर्य बंधाया. इस के बाद उस का वहां आनाजाना बढ़ गया.

आरफा बेगम के घर आतेजाते दोनों के बीच नजदीकियां बढऩे लगीं. उन के बीच छेड़छाड़ और हंसीमजाक भी होने लगी. दोनों तन्हा जिंदगी जी रहे थे. इसलिए दोनों को ही साथी चाहिए था. सो एक रात जब बेटाबहू सो गए, तब हासम अली आरफा बेगम के कमरे में पहुंचा और उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया. आरफा बेगम भी फिसल गई. फिर दोनों ने ही अपनी हसरतें पूरी कीं. उन के बीच नाजायज रिश्ता बना तो उस का दायरा बढ़ता ही गया. अधेड़ उम्र की बेवा आरफा बेगम के जीवन में अब बहार आ गई थी. वह हासम अली पर दिलोजान से फिदा हो गई थी. हासम भी उस का दीवाना था. हासम अली अब होटल में भी रुकने लगा था. आरफा को वह होटल में ही बुला लेता था. 

उधर नदीम की बीवी जीनत फातिमा ने अनुभव किया कि जब से हासम अली घर आने लगा, तब से सासू मां की चालढाल में बदलाव आ गया है. क्योंकि अब वह सजसंवर कर रहने लगी थी और चेहरा खिलाखिला सा रहने लगा था. एक रात जीनत फातिमा बाथरूम जाने को उठी तो उस ने सासू आरफा बेगम के कमरे से अजीब सी आवाजें सुनीं. वह कमरे के अंदर तो नहीं गई, लेकिन समझ गई कि सासूमां हासम अली के साथ मौजमस्ती में डूबी हुई है. अब वह सासू की चालढाल व संजनेसंवरने का मकसद समझ चुकी थी.

सुबह नाश्ते के समय जीनत फातिमा ने नाजायज रिश्तों की बात शौहर नदीम को बताई तो वह नाराज होते हुए बोला, ”जीनत, तुम उन दोनों की उम्र का लिहाज करो. हमारी मां को बदनाम करोगी तो मैं सहन नहीं करूंगा. तुम अपनी गलती सुधारो.’’ नदीम ने बीवी की बातों पर यकीन नहीं किया और उसे फटकार लगाई तो वह रूठ कर मायके चली गई. कुछ दिन बाद मिन्नतें कर नदीम उसे वापस घर लाया. उस के बाद उस ने चुप्पी साध ली. 

इधर आरफा बेगम हासम अली की मोहब्बत में इतनी अंधी हो गई थी कि उस ने दुकानमकान बेच कर हासम अली के साथ रहने का फैसला कर लिया. उस ने इस बाबत हासम अली से बात की तो वह उसे अपने साथ अजमेर ले जाने को राजी हो गया. वह तो चाहता ही था कि आरफा बेगम सदैव उस के साथ रहे.
इकलौते बेटे को मरवाने का क्यों आया विचार

एक रोज आरफा बेगम ने दुकानमकान बेचने की चर्चा बेटे नदीम से की तो वह मां पर भड़क उठा. उस ने साफ कह दिया कि वह पैतृक संपत्ति बेच कर दूसरे शहर बसने नहीं जाएगा. उस ने यह भी कहा कि वह किसी के बहकावे में न आए, वरना कुछ भी हो सकता है. इस के बाद तो आए दिन मांबेटे के बीच संपत्ति बेचने को ले कर झगड़ा होने लगा. कभीकभी तो झगड़ा इतना बड़ जाता कि नदीम घर के बजाय दुकान पर सोने चला जाता. 

आरफा बेगम जब समझ गई कि नदीम दुकानमकान नहीं बेचने देगा और वह उस के प्यार में भी बाधा बन सकता है तो उस ने उसे अपने आशिक हासम अली के साथ मिल कर इकलौते बेटे को ही रास्ते से हटाने का निश्चय किया. आरफा बेगम ने इस बाबत हासम से बात की तो वह राजी हो गया. उस ने आरफा से कहा, ”तुम रकम तैयार करो. हम सुपारी किलर को सुपारी दे कर नदीम को रास्ते से हटवा देंगे. इस की किसी को कानोकान खबर भी न होगी.’’

हासम अली की जानपहचान सुपारी किलर मोहम्मद सलीम से थी. वह अजमेर नवल नगर मोहल्ला लौंगिया का रहने वाला था. हासम अली ने सलीम से बात की और नदीम की हत्या की सुपारी 25 लाख में दे दी. सुपारी देने की बात हासम अली ने आरफा बेगम को बताई. आरफा बेगम ने तब अपने इकलौते बेटे को मरवाने के लिए 25 लाख रुपया हासम अली को दे दिए. इस रकम में से 15 लाख रुपया हासम अली ने सलीम को दे दिए. शेष काम होने के बाद देने को कहा. 

रकम मिलने के बाद सलीम 3 जून, 2024 को कानपुर शहर आ गया. वह परेड के एक साधारण होटल में रुका. सुपारी किलर के पहुंचने की जानकारी तथा उस का मोबाइल नंबर हासम अली ने आरफा बेगम को बता दिया. 4 जून, 2024 की दोपहर आरफा बेगम ने बेटे नदीम से कहा कि एक रिश्तेदार बाहर से आए हैं. वह परेड पर हैं. उन्हें शहर घुमा दो. नदीम ने पहले तो नानुकुर की फिर मान गया. उस की बीवी जीनत फातिमा एक सप्ताह से मायके में थी, सो वह निश्चिंत था. नदीम तैयार हुआ फिर अपनी बाइक से परेड के लिए निकल पड़ा. जाने से पहले उस ने मां से रिश्तेदार का फोन नंबर ले लिया था. वह कोई रिश्तेदार नहीं, बल्कि उस की मौत बन कर आया सलीम था.

परेड चौराहा पर पहुंच कर उस ने रिश्तेदार को काल की तो वह चौराहे पर ही मिल गया. दोनों में बातचीत हुई फिर सलीम ने कहा, ”मुझे देवा शरीफ ले चलो. वहां जाने की बड़ी इच्छा है. तुम पेट्रोल की चिंता मत करो.’’ इस के बाद लखनऊ होते हुए शाम को वह देवा शरीफ पहुंच गए. वहां दोनों घूमेफिरे, फिर वापस कानपुर को चल पड़े.  लखनऊ पहुंचने तक रात के 10 बज गए थे. यहां दोनों ने खाना खाया. फिर कानपुर की ओर निकल पड़े. इस बीच दोनों खूब हिल मिल गए थे. रात 11 बजे के लगभग सलीम व नदीम दरबारी खेड़ा गांव पहुंचे. यह गांव उन्नाव जिले के अजगैन थाना अंतर्गत आता है. हाइवे रोड किनारे एक वीरान मंदिर था. मंदिर के पास ही एक कुआं था.

समीप सलीम ने बाथरूम (पेशाब) के बहाने बाइक रुकवा दी. सलीम बाथरूम करने चला गया और नदीम बाइक की सीट पर बैठ कर मोबाइल देखने लगा. उचित मौका देख कर सलीम ने चाकू निकाला और पीछे से नदीम के सिर पर चाकू से 2 प्रहार किए. नदीम जख्मी हो कर जमीन पर गिर पड़ा. इस के बाद सलीम ने उस के गले व गरदन पर चाकू के प्रहार कर उसे मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद शव कुएं में फेंक दिया. फिर बाइक कुएं पर ही छोड़ कर फरार हो गया. चाकू को उस ने फरार होते समय मांस फैक्ट्री तिराहे के पास फेंक दिया था. 

इधर सुबह दरबारी खेड़ा के कुछ लोग खेतों की तरफ गए तो उन्होंने कुएं में उतराती लाश देखी. उन्होंने थाना अजगैन पुलिस को सूचना दी. 21 जुलाई, 2024 को पुलिस ने आरोपी आरफा बेगम, मोहम्मद सलीम व हासम अली को उन्नाव कोर्ट में पेश किया, जहां से उन को जिला जेल भेज दिया गया. 

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

शादीशुदा मर्द से अवैध संबंध ने ले ली विवाहिता की जान

कालिंदी के सामने निस्संदेह घरेलू समस्याएं थीं. लेकिन उस ने बिना सोचेसमझे जिद में जो राह पकड़ी, वही उस की दुश्मन बन गई. दिलीप रायपुर के खमतराई थाना से 4 किलोमीटर दूर बुनियाद नगर मोहल्ले में अपनी पत्नी कालिंदी के साथ रह रहा था. वह राजमिस्त्री का काम करता था. दिलीप की पत्नी कालिंदी चाहती थी कि दिलीप कोई ऐसा काम करे जो एक जगह बैठ कर हो जाए. उस की इस सोच के पीछे प्रमुख वजह यह थी कि एक तो दिलीप शारीरिक रूप से कमजोर था. दूसरे उसे मिर्गी के दौरे पड़ते थे.

दिलीप कौशिक और कालिंदी की शादी सन 2005 में हुई थी. पति की इस शारीरिक कमजोरी और मिर्गी रोग के बारे में कालिंदी को शादी के कई महीने बाद पता चला था. उस के मांबाप की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी. इसलिए उस के 18 वर्ष का होते ही उन्होंने दिलीप से उस की शादी कर दी थी. शादी से पहले वह ज्यादा छानबीन भी नहीं कर पाए थे. शादी के बाद जब कालिंदी को पता चला तो उस ने कहसुन कर दिलीप का इलाज कराने का प्रयास किया. लेकिन इस से कोई खास लाभ नहीं हुआ. मिर्गी का दौरा कब कहां और किस समय आएगा इस का कोई पता नहीं होता. एक बार दिलीप जब नए बन रहे मकान की छत की ढलाई कर रहा था तो सीढ़ी पर चढ़ते समय उसे मिर्गी का दौरा पड़ गया. फलस्वरूप वह जमीन पर गिरा. गिरने से उस के शरीर में चोटें तो आई हीं उस का दाहिना पैर फ्रैक्चर भी हो गया

करीब सवा महीने तक उस के पैर पर प्लास्टर चढ़ा रहा. प्लास्टर कटा तो वह 8-10 दिन बाद तक काम पर नहीं जा सका. मजबूरी में घर का खर्च चलाने और पति के लिए दवा वगैरह के इंतजाम के लिए कालिंदी को बेलदारी का काम करना पड़ा. कहते हैं छत्तीसगढ़ की महिलाएं मेहनत भार उठाने के मामले में मर्दों से कमतर नहीं होतीं. बेलदारी हो या फिर बोझा उठाने वाला दूसरा कोई काम, छत्तीसगढ़ की महिलाओं का कोई मुकाबला नहीं. लगभग 2 महीने बाद दिलीप भी पत्नी के साथ काम पर जाने लगा, पर अब वह तो पहले की तरह मेहनत कर पाता था और भार उठा पाता था. अभी तक महीना ही बीता था कि अचानक एक दिन फिर से काम के दौरान दिलीप को मिर्गी का दौरा गया

संयोग से उस समय वह बैठा हुआ था. दौरा पड़ते ही दिलीप जमीन पर लुढ़क गया और उस के हाथपांव ऐंठने लगे. कुछ देर बाद वह होश में तो आ गया, लेकिन ठेकेदार ने उस की हालत से डर कर उसे काम पर आने से मना कर दिया. इस के 5-6 महीने पहले दिलीप जब अपना काम निपटा कर घर लौट रहा था तो लौटते वक्त अचानक उसे सड़क पर ही दौरा पड़ा और वह वहीं गिर गया. अगर पीछे से आ रहे ट्रक के ड्राइवर ने सावधानी न बरती होती तो वह जरूर ट्रक की चपेट में आ जाता. तब से कालिंदी उसे ले कर बहुत डरने लगी थी.

कालिंदी दिलीप को ले कर कोई खतरा नहीं उठाना चाहती थी इसलिए उस ने फैसला कर लिया कि अब काम पर वह अकेले ही जाया करेगी. कालिंदी जिस जगह काम कर रही थी वहां का काम खत्म हो गया तो वह एक बड़े कंस्ट्रक्शन ठेकेदार की साइट पर काम करने लगी. वहां पर मजदूरों के साथ 7-8 महिलाएं भी काम कर रही थीं. कालिंदी काम पर जाने लगी तो दिलीप का ज्यादातर समय अपने 3 वर्षीय बेटे बबलू के साथ बीतने लगा. उस की देखभाल की पूरी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी. वह अड़ोसपड़ोस के कुछ दुकानदारों का छोटामोटा काम कर के अपने चायनाश्ते का जुगाड़ कर लेता था. शाम को कालिंदी काम से घर लौटती. फिर खाना बनाती और पति व बेटे को खिलाती.

दिलीप और कालिंदी की उम्र लगभग 30-31 साल थी. इस उम्र में दांपत्य सुख जरूरी होता है. लेकिन थकी हारी होने की वजह से कालिंदी का ध्यान इस ओर नहीं जा पाता था. जबकि दिलीप अपनी शारीरिक कमजोरी की वजह से पत्नी में कोई ज्यादा रुचि नहीं रखता था. दिलीप की शारीरिक कमजोरी की एक वजह यह भी थी कि वह बचपन में कुपोषण का शिकार हो गया था. कालिंदी जिस जगह काम कर रही थी वहां बीसों महिलापुरुष काम करते थे. उन्हीं में एक थी चांदनी. कालिंदी की हमउम्र चांदनी भी एक गरीब परिवार की शादीशुदा महिला थी. वह बेलदारी करती थी जबकि उस का पति एक दुकान पर नौकरी करता था. एक ही जगह एक ही तरह का काम करतेकरते कालिंदी और चांदनी में अच्छी निभने लगी थी. दोनों एकदूसरे से सुखदुख की बातें भी करती थीं.

चांदनी कहने को तो बेलदारी करती थी लेकिन उस ने दुनिया देखी थी. वह तेजतर्रार औरत थी. घुलनेमिलने के कारण चांदनी कालिंदी के जीवन से जुड़ी हर छोटीबड़ी बातें जान गई थी. इस के बाद दोनों खूब खुल कर बातें करने लगी थीं. एक दिन लंच टाइम में चांदनी और कालिंदी जब साथसाथ लंच कर रही थीं तो चांदनी ने कालिंदी से कहा, ‘‘देख कालिंदी मेरा मानना है कि औरत के लिए पुरुष का प्यार उतना ही जरूरी है जितना पेट भरने के लिए रोटी. मैं तो यह कहती हूं कि तू अपने लिए एक अच्छा सा मर्द ढूंढ ले जो तेरी शारीरिक जरूरतों को पूरा कर सके. क्योंकि तेरा पति तो इस लायक है नहीं.’’

कालिंदी चांदनी की बातें चुपचाप सुन रही थी. उस की समझ में नहीं रहा था कि वह उस की बेतुकी बातों का क्या जवाब दे. फिर भी शरमाते सकुचाते हुए उस ने कह दिया, ‘‘क्या करूं चांदनी, मुझे दिलीप की हालत पर तरस जाता है. इसलिए अपनी इच्छाओं को दबा कर रखती हूं.’’ ‘‘तो ठीक है, तरसती रह इसी तरह.’’ चांदनी ने थोड़ी कटुता से कहा, ‘‘तेरी जगह तेरा पति होता तो ढूंढ लेता किसी और को. अब कभी मुझे अपना दुखड़ा मत सुनाना.’’ कालिंदी को लगा कि चांदनी बुरा मान गई है, वह उस की मनुहार करते हुए बोली, ‘‘चांदनी, इस में बुरा मानने की कोई बात नहीं है. तू क्या समझती है, मेरा मन नहीं होता कि कोई चाहने वाला हो. लेकिन इस के लिए कोई ऐसा भी तो हो जो मन को भाए. जिस पर विश्वास किया जा सके…सड़क पर इज्जत थोड़े ही नीलाम करनी है.’’

‘‘तू जो कुछ कह रही है, मैं अच्छी तरह समझती हूं. मैं ने तुझे यह सब इसलिए कहा है कि हम लोग जिस सुपरवाइजर के साथ काम करते हैं मैं ने उस की आंखों की भाषा पढ़ी है, वह तुझ पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है.’’ चांदनी आगे कुछ कहती इस से पहले ही कालिंदी के चेहरे पर रहस्यमय सी मुसकान फैल गई. वह नजरें झुका कर बोली, ‘‘कहीं तू रामकुमार की बात तो नहीं कर रही है?’’ ‘‘बिलकुल ठीक समझी तू.’’ कह कर चांदनी चुप हो गई तो कालिंदी ने कहा, ‘‘लेकिन वह तो शादीशुदा है, 2 बच्चों का बाप.’’

‘‘तो तुझे क्या लगता है, हमारे जैसी शादीशुदा और मां बन चुकी औरतों पर कोई कुंवारा लड़का लाइन मारेगा? पता है, औरत हो या मर्द शादीशुदा लोगों को दुनियादारी की ज्यादा समझ होती है. वैसे भी ऐसे लोगों को अपने पार्टनर की इज्जत से अपनी इज्जत की कहीं ज्यादा फिक्र रहती है. रही बात रामकुमार की तो वह तुझ से उम्र में 3-4 साल छोटा ही है.’’ जहां कालिंदी और चांदनी काम करती थीं, वहां रामकुमार सुपरवाइजर था. 25 वर्षीय रामकुमार बघेल का काम था बिल्डिंग निर्माण में लगे मजदूरों पर नजर रखना और इस्तेमाल होने वाले सामान का खयाल रखना. रामकुमार की नजर जवान औरतों पर रहती थी. चांदनी उस की गिरफ्त में थी जबकि कालिंदी पर उस की नजरें जमी हुई थीं. चांदनी से रामकुमार ने कहा था कि वह कालिंदी को उस के करीब ले आएगी तो वह उसे इनाम देगा. वैसे भी वह कालिंदी का खास खयाल रखता था.

कालिंदी जवान थी. पुरुष सान्निध्य की चाह उस के मन में भी थी. चांदनी के उकसाने पर वह भी धीरेधीरे रामकुमार की ओर आकर्षित होने लगी. जल्दी ही रामकुमार समझ गया कि वह समर्पण के लिए तैयार है. उस ने थोड़ा प्रयास किया तो वह उस की बांहों में सिमट गई. रामकुमार बघेल का घर कालिंदी के घर से महज एक किलोमीटर दूर भनपुरी इलाके में था. उस के परिवार में पत्नी पूनम के अलावा 2 बच्चे थे. 4 साल का बेटा जीतू और 2 साल की बेटी जूली. रामकुमार की कालिंदी से नजदीकी बढ़ी तो वह उसे शहर घुमाने ले जाने लगा. कालिंदी ने भी उसे अपने घर बुलाना शुरू कर दिया. वह जिस तरह से उस की खातिरदारी करती थी और जैसे उस से हंसीठिठोली करती थी उस से दिलीप को समझते देर नहीं लगी कि कालिंदी के पांव बहक गए हैं. चूंकि घर का खर्च कालिंदी की कमाई से ही चल रहा था. इसलिए शुरूशुरू में दिलीप जानबूझ कर चुप रहा. 

उस की इस चुप्पी का कालिंदी ने नाजायज फायदा उठाया और रामकुमार के साथ घर में ही रास रचाने लगी. रामकुमार आता तो वह कभी बेटे बबलू को घुमाने के बहाने तो कभी कोई सामान लाने के बहाने दिलीप को घर से बाहर भेज देती थी और रामकुमार को ले कर अंदर से कमरा बंद कर के मस्ती में डूब जाती थी. ऐसा नहीं था कि दिलीप कालिंदी की इस चाल को समझता नहीं था. लेकिन मुहल्ले वालों और पड़ोसियों के बीच तमाशा बने इसलिए चुप रह जाता था. कोई भी पति शारीरिक, मानसिक या आर्थिक रूप से भले ही कितना भी कमजोर क्यों हो, यह कभी बर्दाश्त नहीं करेगा कि उस की पत्नी उस की नजरों के सामने किसी पराए मर्द के साथ हमबिस्तर हो. यह बात दिलीप के साथ भी थी. एक तरफ दिलीप पत्नी और रामकुमार के संबंधों को ले कर परेशान था तो दूसरी तरफ कालिंदी की आंखों से शर्मोहया का परदा बिलकुल हट गया था. वह पूरी तरह बेशर्म और निर्लज्ज हो गई थी. अब वह पति की मौजूदगी में ही उसे ले कर कमरे में चली जाती और अंदर से दरवाजा बंद कर लेती. 

जब यह सब दिलीप के लिए बरदाश्त करना मुश्किल हो गया तो एक दिन उस ने रामकुमार के सामने ही कालिंदी से साफसाफ कह दिया, ‘‘अब मैं और ज्यादा बरदाश्त नहीं कर सकता. अपने यार से कहो यहां आया करे.’’ ‘‘आएंगेजरूर आएंगे. इस घर पर जितना तुम्हारा हक है उतना ही मेरा भी है. यह मत भूलो कि मेरी कमाई से ही घर का सारा खर्च चलता है. मैं अगर किसी को घर बुलाती हूं तो तुम्हें क्यों जलन होती है.’’ कालिंदी उल्टे अपने पति पर ही बिफर पड़ी. देखतेदेखते दोनों में तूतू, मैंमैं होने लगी जिस ने बढ़तेबढ़ते झगड़े का रूप ले लिया. मामला बिगड़ते देख रामकुमार वहां से चुपचाप खिसक गया. रामकुमार के जाने के बाद इस झगड़े ने और भी विकराल रूप ले लिया. कालिंदी और दिलीप दोनों आपे से बाहर हो कर मारपिटाई पर उतर आए

पतिपत्नी को लड़ते देख अड़ोसीपड़ोसी भी गए. पड़ोसियों ने दोनों को समझाया लेकिन कोई भी झुकने को तैयार नहीं हुआ. इसी बीच किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. झगड़े की सूचना पा कर खमतराई के थानाप्रभारी संजय तिवारी ने 2 सिपाहियों को मामला सुलझाने के लिए बुनियादनगर में दिलीप के घर भेज दिया. सिपाही साबिर खान उमेश पटेल जब दिलीप के घर पहुंचे तब भी दोनों में तकरार जारी थी. मामला गंभीर देख पुलिस वाले दोनों को थाने ले आए. थाने में दिलीप कौशिक ने थानाप्रभारी संजय तिवारी के सामने कालिंदी की हकीकत बता कर कहा, ‘आप ही बताइए सर, कौन पति होगा जो अपनी आंखों के सामने पत्नी को दूसरे की बांहों में सिमटते हुए देखेगा? मैं इसे रोकता हूं तो यह लड़ने को आमादा हो जाती है.’’

थानाप्रभारी तिवारी ने जब इस बारे में कालिंदी से बात की तो उस ने दिलीप की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘साहब, आप इन की हालत देखिए. इन से कामधाम तो कुछ होता नहीं, ऊपर से पत्नी की जरूरतों को भी पूरा नहीं कर सकते. आप ही बताइए ऐसे आदमी के साथ मैं कितने दिन तक निभा सकूंगी. मैं ने इन से साफ कह दिया है कि अब मैं इन के साथ नहीं रह सकती. रामकुमार मुझे अपनाने के लिए तैयार है.’’ कालिंदी और दिलीप दोनों ने ही अपने बयानों में रामकुमार का जिक्र किया था. इसलिए थानाप्रभारी संजय तिवारी ने एक सिपाही भेज कर रामकुमार को बुलवा लिया. थाने में रामकुमार से पूछताछ हुई तो उस ने नजरें झुका कर स्वीकार कर लिया कि कालिंदी के साथ उस के जिस्मानी संबंध हैं. लेकिन जब उसे पत्नी बना कर साथ रखने की बात आई तो रामकुमार ने साफ कह दिया कि जब तक दिलीप और कालिंदी का कानूनन तलाक नहीं हो जाता वह कालिंदी को अपने साथ नहीं रख सकता. क्योंकि उसे अपने परिवार के बारे में भी सोचना है.

इस मुद्दे पर थाने में घंटों तक बात हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. जहां एक तरफ कालिंदी किसी भी कीमत पर दिलीप के साथ रहने को तैयार नहीं थी, वहीं दूसरी ओर दिलीप इस शर्त पर कालिंदी को छोड़ने को राजी हो गया कि कालिंदी की डिलीवरी के समय उस ने जो कर्ज लिया था उस की पूरी भरपाई कालिंदी करेगी. इस पर भी दोनों में काफी देर तक बहस हुई. इसे पतिपत्नी के आपसी विवाद का मामला समझ कर संजय तिवारी ने इस मामले में थाने में 155 सीआरपीसी के तहत दर्ज कर के उस की एक कौपी दिलीप को सौंप दी. इस के बाद उन्होंने रामकुमार, दिलीप और कालिंदी को समझाबुझा कर वापस भेज दिया. यह 20 नवंबर, 2013 की बात है.

इस पूरे मामले की जानकारी रामकुमार की पत्नी पूनम बघेल को हुई तो उस ने रामकुमार से इस बारे में तमाम तरह के सवालजवाब किए. फिर अगले दिन वह गुस्से में उफनती हुई सीधे कालिंदी के घर पहुंची और उसे खूब खरीखोटी सुनाई. उस ने कालिंदी से साफसाफ कह दिया कि वह उस के पति का पीछा करना छोड़ दे. उस की बसीबसाई गृहस्थी में आग लगा कर उसे कुछ हासिल नहीं होगा. कालिंदी को खरीखोटी सुना कर पूनम अपने घर लौट गई. कालिंदी को पूनम का इस तरह घर कर दिलीप के सामने ही अच्छाबुरा कहना अच्छा नहीं लगा.

उस वक्त तो वह खून का घूंट पी कर रह गई पर अगले दिन 22 नवंबर को सुबह लगभग 10 बजे वह पूनम के घर जा पहुंची और पूनम से साफसाफ कह दिया, ‘‘रामकुमार जब उस का पति था तब था, अब वह उस का भी है. वह उसे अपना तनमन सौंप कर अपना पति मान चुकी है.’’ उस दिन रामकुमार की मौजूदगी में उन दोनों के बीच काफी कहासुनी हुई. कालिंदी ने पूनम से साफसाफ कह दिया कि उस ने दिलीप को छोड़ दिया है और अब रामकुमार के साथ ही रहेगी. कालिंदी का पूनम से इस तरह बहस करना रामकुमार को अच्छा नहीं लग रहा था. जब उस से नहीं रहा गया तो वह कालिंदी का हाथ पकड़ कर घर से बाहर ले आया. रामकुमार ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें जो भी कहनासुनना है मुझसे कहो लेकिन यहां नहीं, चलो हम कहीं बाहर चलते हैं. मैं वहीं तुम्हारी सारी बातों का जवाब दूंगा.’’ 

कालिंदी तैयार हो गई तो रामकुमार उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर एक रेस्टोरेंट में ले गया. वहां चायनाश्ते के दौरान उस ने कालिंदी को समझाया, ‘‘जब मैं तुम्हें अपने साथ रखने को तैयार हूं तो इस तरह घर कर तमाशा खड़ा करने का क्या मतलब? अब मेरी बात ध्यान से सुनो. तुम हफ्तेदस दिन के लिए अपनी मां के घर चली जाओ. इस बीच मैं यहां पर तुम्हारे रहने का कोई इंतजाम कर के तुम्हें फोन कर दूंगा.’’ रामकुमार ने समझाबुझा कर कालिंदी को मायके जाने के लिए राजी कर लिया. इस के बाद टिकट और रास्ते के खर्च के लिए 5 सौ रुपए दे कर उस ने कालिंदी को दुर्ग बस स्टैंड पर छोड़ दिया. उसे दुर्ग बस स्टैंड छोड़ने के बाद रामकुमार रायपुर लौट आया. रात में लगभग 10 बजे जब वह घर पहुंचा तब भी पूनम का मिजाज गरम था. लेकिन वह उस से बिना कोई बात किए खाना खा कर चुपचाप सो गया.

खमतराई थानाप्रभारी संजय तिवारी को 23 नवंबर, 2013 की सुबह सूचना मिली कि गोगांव नाले में एक महिला की लाश पड़ी है. लाश की खबर मिलते ही संजय तिवारी एसआई आर.पी. मिश्रा, हेडकांस्टेबल साबिर खान, कांस्टेबल शिवशंकर तिवारी, उमेश पटेल, बच्चन सिंह ठाकुर, गिरधर गोपाल द्विवेदी और एस.एस. ठाकुर को साथ ले कर गोगांव नाले के पास पहुंचे तो वहां काफी भीड़ जमा थी. वहां पीले रंग की साड़ी पहने एक महिला का शव नाले के किनारे पानी में पड़ा था. पानी कम होने की वजह से लाश साफ दिख रही थी. थानाप्रभारी ने 2 सिपाहियों को नाले से लाश को बाहर निकलवाया तो पता चला लाश को वजनी पत्थर से दबाने की कोशिश की गई थी.

मौके पर मौजूद भीड़ में कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. जब लाश की शिनाख्त नहीं हुई तो पुलिस ने नियमानुसार उस के फोटो करा कर पंचनामा तैयार किया और उसे पोस्टमार्टम के लिए रायपुर भेज दिया. घटनास्थल की प्राथमिक औपचारिकता पूरी कर के संजय तिवारी अपनी टीम के साथ थाने लौट आए. इस बाबत हत्या का मुकदमा दर्ज कर के पुलिस अधीक्षक .पी. पाल को भी सूचना दे दी गई. अगले दिन थानाप्रभारी संजय तिवारी को एक दिन की छुट्टी पर घर जाना था. वह एसआई आर.पी. मिश्रा को लावारिस लाश की शिनाख्त के लिए निर्देश दे कर चले गए. लाश की शिनाख्त के लिए पुलिस के पास एक ही रास्ता था कि उस का फोटो अखबारों में छपाया जाए.

सबइंसपेक्टर आर.पी. मिश्रा ने लाश का फोटो बनवा कर सिपाही बच्चन सिंह को देते हुए कहा कि वह उसे अखबार के दफ्तर में दे आए. सिपाही बच्चन सिंह उस फोटो को 2-3 बार ध्यान से देखते हुए बोला, ‘‘साहब, पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि इस औरत की शक्ल 3-4 दिन पहले अपने पति के साथ थाने आई उस महिला से मिलती है जिस का पति से झगड़ा हुआ था.’’ आर.पी. मिश्रा ने गौर से देखा तो उन्हें भी बच्चन सिंह की बात में दम नजर आया. उन्होंने बच्चन सिंह से कहा, ‘‘रिकौर्ड से उस के पति का पता ले कर उस के घर जाओ. पहले उस से उस की पत्नी के बारे में पूछना. उस की बातों से कई चीजें साफ हो जाएंगी. कुछ गड़बड़ लगे तो उसे थाने ले आना.’’

सबइंसपेक्टर आर.पी. मिश्रा के निर्देश पर बच्चन सिंह ने दिलीप कौशिक के घर जा कर उस की पत्नी कालिंदी के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि वह 2 दिन पहले सुपरवाइजर रामकुमार से मिलने की बात कह कर घर से निकली थी. तब से वह वापस नहीं लौटी है. सिपाही बच्चन सिंह दिलीप से ज्यादा सवालजवाब कर के उसे अपने साथ थाने ले आया. थाने में एसआई आर.पी. मिश्रा ने जब गोगांव नाले में मिली लावारिस लाश के फोटो दिलीप के सामने रखे तो उस ने स्वीकार कर लिया कि वह लाश उस की पत्नी कालिंदी की ही है. अब सवाल यह था कि कालिंदी जब रामकुमार से मिलने की बात कह कर घर से निकली थी तो उस की लाश गोगांव नाले में कैसे पहुंच गई?

अगर दिलीप की बात सही थी तो इस सवाल का जवाब रामकुमार ही दे सकता था. आर.पी. मिश्रा 2 सिपाहियों को साथ ले कर रामकुमार के घर पहुंचे. रामकुमार तो घर पर नहीं मिला पर उस की पत्नी पूनम से यह पता जरूर चल गया कि वह 9 बजे ही अपनी कंस्ट्रक्शन साइट पर चला गया था. यह जानकारी भी मिली कि 22 नवंबर को कालिंदी पूनम के घर आई थी और उस से खूब लड़ी थी. बाद में रामकुमार उसे ले कर घर से बाहर निकल गया था. पूनम से कुछ और जानकारी और रामकुमार का मोबाइल नंबर ले कर थाने लौट आए.

थाने कर आर.पी. मिश्रा ने रामकुमार के मोबाइल पर फोन मिलाया तो पता चला वह संतोषी नगर जोन 4 में एक निर्माणाधीन बिल्डिंग की साइट पर काम करा रहा है. इस पर उन्होंने उस से कहा, ‘‘रामकुमार, मैं ने तुम्हें फोन इसलिए किया है कि दिलीप कौशिक अपनी पत्नी कालिंदी के साथ थाने में बैठा है. इन लोगों का कहना है कि तुम ने कालिंदी के सामने दिलीप को जान से मारने की धमकी दी है. इसलिए तुरंत थाने चले आओ. हम आप लोगों का समझौता करा देते हैं.’’ आर.पी. मिश्रा की बात सुन कर रामकुमार हड़बड़ी में बोला, ‘‘देखिए सर, अभी मैं अपनी साइट पर काम कर रहा हूं. काम खत्म होते ही मैं थाने जाऊंगा.’’

आर.पी. मिश्रा और कुछ कह पाते इस से पहले ही रामकुमार ने फोन काट दिया. इस के बाद उस का फोन स्विच्ड औफ हो गया. एसआई मिश्रा को लगा कि कुछ कुछ गड़बड़ जरूर है. क्योंकि पहले तो रामकुमार थाने में कालिंदी की मौजूदगी की बात सुन कर चौंका था और फिर उस ने फोन बंद कर दिया था. उन्होंने तुरंत सिपाही बच्चन सिंह, शिवशंकर तिवारी और साबिर अली को संतोषी नगर के लिए रवाना कर दिया. जब पुलिस वहां पहुंची तो रामकुमार फरार होने की तैयारी में था. पुलिस उसे पकड़ कर थाने ले आई. थाने में रामकुमार से पूछताछ की गई तो पहले तो वह कालिंदी की हत्या से इनकार करता रहा लेकिन जब उस से थोड़ी सख्ती की तो उस ने सच्चाई उगल दी.

रामकुमार ने अपने बयान में बताया कि 22 नवंबर को कालिंदी उस के घर आ कर उस की पत्नी पूनम से बहस करने लगी तो उसे उस पर बहुत गुस्सा आया. जब उस से बरदाश्त नहीं हुआ तो वह उसे समझाबुझा कर अपनी मोटरसाइकिल पर दुर्ग बस स्टैंड छोड़ आया. जहां से वह अपने मायके चली गई. अभी घर लौटे उसे डेढ़ घंटा ही हुआ था कि उस के मोबाइल पर कालिंदी का फोन आ गया. उस ने बताया कि वह मायके न जा कर बीच रास्ते में ही बस से उतर गई है और अब रायपुर लौट रही है. इसलिए वह उसे हीरापुर में मिले. कारण पूछने पर उस ने कहा कि उस के मायके वालों को ही नहीं बल्कि रिश्तेनातेदारों तक को हकीकत पता चल गई है. ऐसे में उसे कोई भी घर में नहीं रखेगा.

रामकुमार के अनुसार उसे कालिंदी की इस हरकत पर काफी गुस्सा आया. अगर वह हीरापुर में बताई गई जगह पर नहीं पहुंचता तो कालिंदी उस के घर पहुंच जाती. इसलिए वह उस की बताई जगह पर पहुंच गया. तब तक साढ़े 7 बज चुके थे. वहां से वह कालिंदी को अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर गोगांव नाले की ओर निकल गया क्योंकि उस रास्ते पर लोगों का कम ही आनाजाना होता है. नाले के पास पहुंच कर उस ने अपनी बाइक नाले के किनारे खड़ी कर दी और कालिंदी पर गुस्सा होते हुए कहा, ‘‘मेरे इतना कहने और समझाने के बावजूद तुम हफ्ते भर अपने मायके में नहीं रह सकीं. अब बताओ मैं तुम्हें कहां रखूं? पूनम तो साथ रहने नहीं देगी.’’

इस पर कालिंदी नाराज होते हुए बोली, ‘‘अब न तो मेरा कोई मायका है और न ससुराल. मैं सब कुछ पीछे छोड़ आई हूं. तुम्हीं बताओ, ऐसे में कहां जाऊं?’’ ‘‘जहन्नुम में जाओ, पर मेरा पीछा छोड़ दो.’’ रामकुमार ने कहा तो कालिंदी बिफर उठी और उस के दोनों हाथ पकड़ कर अपनी गरदन पर रखते हुए गुस्से में बोली, ‘‘मुझे जहन्नुम भेजना चाहते हो तो भेज दो. अभी इसी वक्त जहन्नुम में भेज दो मुझे.’’ रामकुमार के अनुसार वह अपने हाथोें से उस के दोनों हाथ पकड़ कर अपनी गरदन पर दबाव बनाने लगी. इस पर उस ने कालिंदी को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह गुस्से में आग बबूला होती हुई बारबार जहन्नुम भेजने की बात कह कर उसे गुस्सा दिलाने लगी. आखिर उसे गुस्सा  आ ही गया और उस का हाथ सचमुच कालिंदी की गरदन पर कसने लगा. फिर देखते ही देखते उस के हलक से गूं…गूं…गूं… की आवाजें निकलने लगीं. फिर कुछ देर में उस का शरीर रामकुमार के कंधे पर लुढ़क गया. 

कालिंदी को निष्प्राण हुआ देख वह डर गया. उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो वहां दूरदूर तक कोई भी नहीं था. यह देख उस ने राहत की सांस ली और पैंट अंडरवियर पहनेपहने ही कालिंदी के शव को ले कर नाले में उतर गया. किनारे से 2-4 कदम आगे जा कर उस ने उस की लाश को पानी में छोड़ा और फिर किनारे से वजनी पत्थर ला कर उस के ऊपर रख दिया. ताकि वह तुरंत पानी से ऊपर सके. वहां से वह सीधे अपने घर लौट आया. रामकुमार ने पश्चाताप जाहिर करते हुए कहा, ‘‘काश! कालिंदी बारबार जहन्नुम भेजने की बात कह कर मुझे गुस्सा दिलाती तो शायद मेरे हाथों इतना बड़ा अनर्थ होता. दरअसल वह यह नहीं समझ पा रही थी कि मेरी पत्नी और 2 बच्चे हैं और मुझे उन्हें भी देख कर चलना पड़ेगा.’’

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी कालिंदी की मौत की वजह दम घुटना ही बताई गई थी. उस की मौत पानी में दम घुटने से नहीं बल्कि गला दबाने से हुई थी. थानाप्रभारी संजय तिवारी ने कालिंदी की हत्या कर के लाश को छुपाने के आरोप में राकुमार के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 और 201 का इस्तेमाल किया. जरूरी पूछताछ के बाद पुलिस ने रामकुमार को 25 नवंबर को अदालत में पेश किया जहां से उसे न्यायिक हिरासत में रायपुर जिला जेल भेज दिया गया.

  —कथा पुलिस सूत्रों पर

इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

शराबी पति की वजह से पत्नी दीपा बनी चरित्रहीन

मजबूरी कहें या जरूरत, दीपा ने 2-2 प्रेमी तो बनाए ही, बाद में कई लड़कों से भी संबंध बना लिए. इस मामले में दिलीप ने तो दीपा को कुछ नहीं कहा, लेकिन धर्मेंद्र बरदाश्त नहीं कर पाया और उस ने इतने जघन्य तरीके से दीपा की हत्या कर दी कि…  

34वर्षीय दीपा वर्मा का भरापूरा गदराया बदन किसी भी मर्द की नीयत बिगाड़ने के लिए काफी थावजह यह कि दीपा की आंखों में पुरुषों के लिए एक आमंत्रण सा होता था. जो पुरुष इस आमंत्रण को समझ स्वीकार कर लेता था, वह फिर उस के हुस्न और अदाओं से खुद को आजाद नहीं कर पाता था. ऐसा ही कुछ उस से उम्र में 8-10 साल छोटे धर्मेंद्र गहलोत के साथ हुआ था. धर्मेंद्र प्रसिद्ध धर्मनगरी उज्जैन के देवास रोड पर अपनी पत्नी के साथ रहता था. पेशे से मांस व्यापारी इस युवक की जिंदगी सुकून से गुजर रही थी. अब से कोई 3 साल पहले वह दीपा से मिला था तो पहली नजर में ही उस पर फिदा हो गया था.

दीपा को देख कर धर्मेंद्र को यह तो समझ गया था कि वह शादीशुदा है. उस के गले में लटका मंगलसूत्र और मांग का सिंदूर उस के शादीशुदा होने की गवाही दे रहे थे. उज्जैन का फ्रीगंज इलाका रिहायशी भी है और व्यावसायिक भी, इसलिए जो भी पहली दफा उज्जैन जाता है वह महाकाल और दूसरे मंदिरों के नामों के साथसाथ फ्रीगंज नाम के मोहल्ले से भी वाकिफ हो जाता है. शहर के लगभग बीचोंबीच बसे इस इलाके की रौनक देखते ही बनती है. इसी इलाके में दीपा की साडि़यों पर फाल लगाने और पीको करने की छोटी सी दुकान थी, जिस से उसे ठीकठाक आमदनी हो जाती थी. करीब 3 साल पहले एक दिन धर्मेंद्र की पत्नी दीपा को अपनी साड़ी में फाल लगाने और पीको करने के लिए दे आई थी. उसे वहां से साड़ी लाने का टाइम नहीं मिल पा रहा था, इसलिए उस ने साड़ी लाने के लिए अपने पति धर्मेंद्र को भेज दिया. जब धर्मेंद्र दीपा की दुकान पर पहुंचा तो बेइंतहा खूबसूरत दीपा को देखता ही रह गया.

दीपा में कुछ बात तो थी, जो उसे देख धर्मेंद्र का दिल जोर से धड़कने लगा था. सामान्यत: बातचीत के बाद साड़ी ले कर जब उस ने दीपा को पैसे दिए तो उस की हथेली एक खास अंदाज में दबाने से वह खुद को रोक नहीं पाया. धर्मेंद्र ने उस की हथेली दबा तो दी थी, लेकिन उसे इस बात का डर भी था कि कहीं दीपा इस बात का बुरा मान कर उसे झिड़क न दे. दीपा ने इस हरकत पर कोई ऐतराज तो नहीं जताया बल्कि हंसते हुए यह जरूर कह दिया, ‘‘बड़े हिम्मत वाले हो जो पहली ही मुलाकात में हाथ दबा दिया.’’ इस जवाब से धर्मेंद्र का डर तो दूर हो गया पर दीपा के इस अप्रत्याशित जवाब से वह झेंप सा गया था. उसे यह समझ आ गया था कि अगर थोड़ी सी कोशिश की जाए तो यह खूबसूरत महिला जल्द ही उस के पहलू में आ जाएगी. कहने भर की बात है कि औरतें पहली नजर में मर्द की नीयत ताड़ जाती हैं पर यहां उलटा हुआ था. पहली ही नजर में धर्मेंद्र दीपा की नीयत ताड़ गया था.

धर्मेंद्र आया दीपा की जिंदगी में दुकान से जातेजाते उस ने दीपा का मोबाइल नंबर ले लिया और उसे भी अपना नंबर दे दिया था. दीपा के हुस्न में खोए धर्मेंद्र को इस वक्त यह समझाने वाला कोई नहीं था कि वह कितनी बड़ी आफत को न्यौता दे रहा है. यही बात दीपा पर भी लागू हो रही थी, जो धर्मेंद्र के आकर्षक चेहरे और गठीले कसरती बदन पर मर मिटी थी. जल्द ही दोनों के बीच मोबाइल पर लंबीलंबी बातें होने लगीं. ये बातें निहायत ही रोमांटिक होती थीं. जिस में यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि कौन किस को बहका और उकसा रहा है. दोनों शादीशुदा और खेलेखाए थे, इसलिए जल्द ही एकदूसरे से इतने खुल गए कि मिलने के लिए बेचैन रहने लगे.

सैक्सी बातें करतेकरते दोनों का सब्र जवाब देने लगा था. लेकिन पहल कौन करे, इस पर दोनों ही संकोच कर रहे थे. धर्मेंद्र ने पहल नहीं की तो एक दिन दीपा ने ही उसे फोन पर आमंत्रण भरा ताना मारा, ‘‘फोन पर ही सब कुछ करते रहोगे या फिर कभी मिलोगे भी.’’ बात अंधा क्या चाहे दो आंखें वाली थी. सो धर्मेंद्र ने मौका न गंवाते हुए कहा, ‘‘आ जाओ, आज ही मिलते हैं महाकाल मंदिर के पास.’’ इस मासूमियत पर दीपा जोर से हंस कर बोली, ‘‘मंदिर में क्या मुझ से भजन करवाना है. एक काम करो, तुम मेरे घर आ जाओ.’’ दीपा ने सिर्फ कहा ही नहीं बल्कि उसे अपने घर का पता भी दे दिया.

अब कहनेसुनने और सोचने को कुछ नहीं बचा था. धर्मेंद्र के तो मानो पर उग आए थे. वह बिना वक्त गंवाए दीपा के घर पहुंच गया, जहां वह सजसंवर कर उस का इंतजार कर रही थी. दरवाजा खुलते ही उस ने दीपा को देखा तो अपने होश खो बैठा. एक निहायत खूबसूरत महिला उस पर अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार थी. वह भी बगैर किसी मांग या खुदगर्जी के. यह खयाल ही धर्मेंद्र को और मर्द बनाए दे रहा था. दरवाजा बंद होते ही दोनों एकदूसरे से कुछ इस तरह लिपटे कि लंबे वक्त तक अलग नहीं हुए और जब अलग हुए तो एक अलग दुनिया में थे, जहां भलाबुरा, नैतिकअनैतिक, जायजनाजायज कुछ नहीं होता. होती है तो बस एक जरूरत जो रहरह कर सिर उठाती है.

चोरीछिपे बनाए गए नाजायज संबंधों का लुत्फ ही कुछ अलग होता है, यह बात दीपा और धर्मेंद्र की हालत देख कर समझी जा सकती थी. जब भी दीपा का मन होता, वह धर्मेंद्र को फोन कर के बुला लेती थी. कुछ महीनों बाद धर्मेंद्र ने दीपा की निजी जिंदगी में भी दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी. उसे हैरानी इस बात की थी कि कोई शादीशुदा औरत कैसे अपने पति के होते हुए उस की आंखों में धूल झोंक कर संबंध बना लेती है. इस दौरान धर्मेंद्र ने दीपा पर काफी पैसा लुटाया था. दीपा का झूठ आया सामने अपनी निजी जिंदगी से ताल्लुक रखते सवालों पर दीपा ज्यादा दिन खामोश नहीं रह पाई और उस ने आधी सच्ची और आधी झूठी कहानी धर्मेंद्र को यह बताई कि उस के पति का नाम दिलीप शर्मा है, जो नजदीक के गांव में खेती करते हैं और कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए हैं. जाने क्यों धर्मेंद्र को दीपा झूठ बोलती लगी.

अब उस के सामने दिक्कत यह थी कि वह अपनी मरजी या जरूरत के मुताबिक दीपा के पास नहीं जा सकता था क्योंकि उस का पति दिलीप कभी भी सकता था. दीपा का बोला हुआ जो झूठ धर्मेंद्र के दिलोदिमाग में खटक रहा था, वह जल्द ही सामने आ गया. पता चला कि दिलीप शर्मा उस का असली पति नहीं है, बल्कि वह दिलीप की रखैल है, जिसे आजकल की भाषा में लिवइन कहा जाता है. यह खुलासा धर्मेंद्र के लिए एक तरह का झटका ही था, लेकिन जल्द ही इस का भी तोड़ निकल आया. इस दिलचस्प तोड़ या समाधान को समझने के पहले दीपा की गुजरी जिंदगी जानना जरूरी है, जिसे देख कर कहा जा सकता है कि वह एक बदकिस्मत औरत थी. हालांकि इस बदकिस्मती की एक हद तक जिम्मेदार भी वही खुद थी

उज्जैन के मशहूर काल भैरव मंदिर से हर कोई वाकिफ है क्योंकि वहां शराब का प्रसाद चढ़ता है. काल भैरव जाने वाला एक रास्ता जेल रोड कहलाता है, जहां जेल बनी हुई है. जेल अफसर भी यहां बनी कालोनी में रहते हैं. दीपा इसी जेल रोड की ज्ञान टेकरी के एक मामूली से परिवार में पैदा हुई थी. कुदरत ने दीपा पर मेहरबान होते हुए उसे गजब की खूबसूरती बख्शी थी. उसे एक ऐसा रंगरूप मिला था, जिसे पाने के लिए तमाम महिलाएं तरसती हैं. दीपा ने किशोरावस्था में कदम रखा ही था कि उस के दीवाने भंवरों की तरह ज्ञान टेकरी और जेल रोड पर मंडराने लगे थे. खूबसूरत होने के साथसाथ दीपा अल्हड़ भी थे, इसलिए मांबाप और चिंतित रहने लगे थे. दीपा के 2 छोटे भाई भी घर में थे. लड़की मांबाप की इज्जत समझी जाती है. इस से पहले कि बेटी की वजह से मांबाप की इज्जत पर कोई आंच आए, मांबाप उस की शादी के लिए लड़का ढूंढने लगे.

अभी दीपा की उम्र महज 14 साल थी. मांबाप ने उस की शादी के लिए देवास जिले के गांव जलालखेड़ी में एक लड़का देख लिया, जिस का नाम राकेश वर्मा था. बात पक्की हो जाने पर उन्होंने राकेश वर्मा से दीपा की शादी कर दी. वह दीपा से 5 साल बड़ा था. शादी के बाद राकेश की रातें गुलजार हो उठीं. वह दिनरात पत्नी के खिलते यौवन में डूबा रहता था. आमतौर पर भले ही शादी कम उम्र में हो जाए, फिर भी युवक जिम्मेदारी उठानी सीख जाते हैं. लेकिन राकेश के साथ उलटा हुआ. वह दिनरात बिस्तर पर पड़ा दीपा के जिस्म से खेला करता था. शुरूशुरू में तो राकेश के घर वालों ने यह सोच कर कुछ नहीं कहा कि अभी बच्चा है, जब घरगृहस्थी के माने समझने लगेगा तो रास्ते पर जाएगा. लेकिन जब 5-6 साल गुजर गए और राकेश ने खुद कमानेखाने की कोई पहल नहीं की तो घर वाले उसे टोकने लगे.

सुधरने के बजाय राकेश और बिगड़ता चला गया और जल्द ही उसे शराब की लत लग गई. वह रोज शराब पीने लगा था. घर वालों ने उसे घर से तो नहीं निकाला लेकिन घर में ही रखते हुए उस का बहिष्कार सा कर दिया. चारों तरफ से हैरानपरेशान राकेश अपनी नाकामी और निकम्मेपन की खीझ दीपा पर उतारने लगा. दीपा के जिस संगमरमरी जिस्म को सहलातेचूमते वह कभी थकता नहीं था, उस पर अब राकेश की पिटाई के निशान बनने लगे. दीपा भी कम हैरानपरेशान नहीं थी, पर उस के पास रोज की इस मारपिटाई से बचने का एक ही रास्ता था मायका, क्योंकि राकेश अब उस पर चरित्रहीनता का आरोप भी लगाने लगा था. 10 साल यानी 24 साल की उम्र तक दीपा पति के पास रही, फिर एक दिन अपने मायके गई. जिस से दीपा के मांबाप के सिर पर बोझ और बढ़ गया था. लेकिन थोड़ा सुकून उन्हें उस वक्त मिला, जब दीपा ने फ्रीगंज में साड़ी पर फाल लगाने और पीको करने की दुकान खोल ली

दुकान चल निकली तो दीपा खुद के खर्चे उठाने लगी. पर जैसे ही लोगों को यह पता चला कि वह पति को छोड़ कर मायके में रह रही है तो फिर उस के दीवाने दुकान और घर के आसपास मंडराने लगे. दिलीप बन गया पार्टटाइम पति शुरुआत में उस ने कोशिश की कि वह किसी के चक्कर में न पड़े, लेकिन शरीर की मांग के आगे वह बेबस थी. कई लोगों ने प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष तरीके से उसे प्रपोज किया, लेकिन अब तक दीपा काफी सयानी और समझदार हो चुकी थी. दीपा को एक ऐसे पुरुष की जरूरत थी, जो शारीरिक के साथसाथ भावनात्मक और आर्थिक सहारा और सुरक्षा भी दे सके. आसपास मंडराते लोगों को देख वह समझ जाती थी कि उन का मकसद क्या है.

इसी ऊहापोह में उलझी दीपा की मुलाकात एक दिन दिलीप शर्मा से हुई तो वह उसे हर तरह उपयुक्त लगा. शादीशुदा दिलीप दीपा की खूबसूरती और अदाओं पर मर मिटा था. उस की पत्नी गांव में रहती थी, इसलिए उज्जैन में किसी महिला से मिलनेजुलने पर उसे कोई अड़ंगा या पाबंदी नहीं थी. दोनों की मेलमुलाकातें बड़े सधे ढंग से आगे बढ़ीं. दोनों ने एकदूसरे की जरूरतों को समझा और दोनों के बीच मौखिक अनुबंध यह हुआ कि दिलीप दीपा का पूरा खर्च उठाएगा, उसे अलग घर दिलाएगा और ज्यादा से ज्यादा वक्त भी देगा. एवज में दीपा उस के लिए हर तरह से समर्पित रहेगी. दिलीप ने दीपा को किराए के मकान में शिफ्ट करा कर घरगृहस्थी का सारा सामान जुटा दिया और पार्टटाइम पति की हैसियत से रहने भी लगा. दिलीप के पास पैसों की कमी नहीं थी. वह उन लोगों में से था, जो एक पत्नी गांव में और एक शहर में रखना अफोर्ड कर सकते हैं.

दीपा के साथ दूसरा फायदा उसे यह था कि उस से उस की पारिवारिक और सामाजिक जिंदगी और प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं रही थी. लिवइन के ये 8 साल अच्छे से कटे, लेकिन जैसा कि आमतौर पर ऐसे मामलों में होता है, इन दोनों के साथ भी हुआ. दिलीप का दिल दीपा से भरने लगा तो उस ने उस के पास आनाजाना कम कर दिया. पर अपने इस वादे पर वह कायम रहा कि जिंदगी भर दीपा का खर्च उठाएगा.  दीपा समझ रही थी कि प्रेमी का मन उस से भर चला है लेकिन अभी पूरी तरह उचटा नहीं है. पर दिक्क्त यह थी कि 14 साल की उम्र से ही सैक्स की आदी हो जाने के कारण वह अकसर रोजाना ही सैक्स चाहती थी, जो दिलीप के लिए संभव नहीं था.

इसी साल जनवरी में दिलीप ने उसे माधवनगर इलाके के वल्लभनगर में किराए के मकान में शिफ्ट कर दिया. मकान मालिक लक्ष्मणदास पमनानी को उस ने यही बताया कि दीपा उस की पत्नी है और वह खेतीबाड़ी के सिलसिले में गांव जाता रहता है. पर पड़ोसियों का माथा उस वक्त ठनका, जब कई अंजान युवक दीपा के पास दिलीप की गैरमौजूदगी में आनेजाने लगे. आजकल बिना वजह कोई किसी के फटे में टांग नहीं अड़ाना चाहता, इसलिए लोगों ने दीपा से कहा कुछ नहीं, बस देखते रहते. दिलीप को इस बात की भनक थी, इसलिए उस ने दीपा को समझाया कि वह फालतू लोगों का अपने यहां आनाजाना बंद करे. लेकिन दीपा नहीं मानी. दिलीप ने भी उस से कोई जबरदस्ती नहीं की. दिलीप को अब दीपा से ज्यादा अपनी इज्जत की चिंता होने लगी थी.

ये सारी बातें जब धर्मेंद्र को पता चलीं तो वह बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं तिलमिलाया. दिलीप दीपा का पति नहीं है, यह जान कर उसे खुशी ही हुई. हैरतअंगेज तरीके से जल्द ही धर्मेंद्र और दिलीप में दोस्ती हो गई और दोनों दीपा के साथ बैठ कर दारूचिकन की दावत उड़ाने लगे. अब दीपा 2 आशिकों की हो गई थी, जो उसे ले कर बजाय आपस में झगड़ने के उसे साझा कर रहे थे. पर वह यह नहीं समझ पा रही थी कि दोनों उस के शरीर और जवानी को भोग रहे हैं. दोनों में से कोई उसे प्यार नहीं करता. धर्मेंद्र और दिलीप को सहूलियत यह थी कि दीपा अब किसी एक पर भार नहीं थी.

2 प्रेमियों की रखैल की तरह रह रही दीपा का भी इन से मन भरने लगा तो उस ने और भी आशिकों को घर आने की छूट दे दी. जिस पर दिलीप को तो नहीं पर धर्मेंद्र को जरूर ऐतराज हुआ. यह ऐतराज जायज था या नाजायज, यह तय कर पाना तो मुश्किल है. लेकिन यह एक भयानक हादसे यानी कत्ल की वारदात के रूप में बीती 18 मई को सामने आया तो पूरा उज्जैन दहल सा गया. दीपा के पड़ोस में रहने वाले जितेंद्र पवार जब 18 मई, 2018 की सुबह करीब 8 बजे छत पर पहुंचे तो यह देख घबरा गए कि बगल में रहने वाली दीपा के घर से धुआं निकल रहा है. किसी अनहोनी की आशंका से घबराए जितेंद्र ने तुरंत पुलिस और दमकल विभाग को फोन कर इस की सूचना दी.

चंद मिनटों बाद ही पुलिस और दमकलकर्मी वल्लभनगर पहुंच गए. दमकलकर्मियों ने जैसेतैसे आग पर काबू पाया. इस के बाद पुलिस अंदर दाखिल हुई. पुलिस वाले यह देख दहल गए कि रसोई में एक जवान महिला की अर्धनग्न लाश औंधी पड़ी थी. लाश के ऊपर मोटे गद्दों के साथ अधजली दरी भी पड़ी थी. लाश दीपा की ही थी. उस के दोनों हाथों की नसें कटी हुई थीं और गरदन पर धारदार हथियार के निशान भी थे. दीवारों और दरवाजों पर भी खून के निशान थे. साफ दिख रहा था कि मामला बेरहमी से की गई हत्या का है.

बेरहमी से की गई हत्या माधवनगर थाने के इंचार्ज गगन बादल ने तुरंत इस जघन्य हत्या की खबर एसपी सचिन अतुलकर और एफएसएल अधिकारी डा. प्रीति गायकवाड़ को दी. मामला गंभीर था, इसलिए ये दोनों भी घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल के मुआयने में दिखा कि पूरा घर अस्तव्यस्त था और बैडरूम का दरवाजा टूटा पड़ा था. सब से अजीब और चौंका देने वाली बात यह थी कि दीपा की लाश के पैरों के बीच एलपीजी सिलेंडर की नली घुसी हुई थी. हत्या की ऐसी वारदात पुलिस वालों ने पहली बार देखी थी. लाश 90 फीसदी जली हुई थी.

तुरंत लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया. 3 डाक्टरों एल.के. तिवारी, अजय दिवाकर और रेखा की टीम ने उस का पोस्टमार्टम कर अपनी रिपोर्ट में कहा कि दीपा को जिंदा जलाया गया है. ऐसा क्यों किया गया, यह हत्यारा ही बता सकता था. अड़ोसपड़ोस में पूछताछ करने पर पता चला कि मृतका दीपा वर्मा दिलीप की पत्नी थी. सचिन अतुलकर ने जांच के लिए माधवनगर थाने के टीआई गगन बादल के नेतृत्व में टीम गठित कर जांच के आदेश दे दिए. टीम में एसआई बी.एस. मंडलोई, संजय राजपूत, हैडकांस्टेबल सुरेंद्र सिंह के अलावा साइबर सेल की तेजतर्रार इंसपेक्टर दीपिका शिंदे को शामिल किया गया

पूछताछ में दिलीप का नाम सामने आया. मकान मालिक ने भी अपने बयान में बताया कि जनवरी में उन्होंने मकान दिलीप को किराए पर दिया था. दीपिका शिंदे ने सब से पहले दिलीप की गरदन पकड़ी तो उस ने अपने और दीपा के संबंधों का सच उगलते हुए खुद के हत्यारे होने या हत्या में लिप्त होने से साफ इनकार कर दिया. दीपा के दोनों भाई बहन की लाश पर आंसू बहाने आए. उन्होंने भी दिलीप पर आरोप लगाया कि वह आए दिन दीपा के साथ मारपीट करता था. दिलीप ने पुलिस को बताया कि उस की गैरमौजूदगी में कई युवक दीपा से मिलने आते रहते थे. उस के इन प्रेमियों में एक नाम धर्मेंद्र का भी था. जांच करतेकरते शाम हो चली थी. पुलिस टीम आधी रात के करीब धर्मेंद्र के घर पहुंची तो वह घबरा उठा. इंसपेक्टर दीपिका शिंदे ने जब धर्मेंद्र पर नजर डाली तो उस के हाथ पर घाव दिखे. वह तुरंत समझ गईं कि दीपा का हत्यारा उन के सामने खड़ा है.

दीपिका शिंदे ने सीधा सवाल यह दागा, ‘तूने दीपा की हत्या क्यों की?’ तो बजाय इधरउधर की बातें करने या खुद का बचाव करने के उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. अपने बयान में हत्या की वजह का खुलासा करते हुए धर्मेंद्र ने बताया कि उसे दिलीप से कोई ऐतराज नहीं था, लेकिन उसे दूसरे लड़कों से उस की दोस्ती और शारीरिक संबंध मंजूर नहीं थे. आखिर प्रेमी से ही मौत मिली दीपा को हादसे के हफ्ते भर पहले ही धर्मेंद्र की पत्नी ने एक बच्चे को जन्म दिया था, इसलिए उस के साथ वह सो नहीं सकता था. जिस्म की तलब लगी तो उस ने दीपा को फोन किया. पहले तो दीपा ने मना कर दिया लेकिन उस के बारबार कहने पर वह राजी हो गई.

तय यह हुआ कि रात को एंजौय करने के पहले दोनों पार्टी करेंगे. इस बाबत शाम को धर्मेंद्र और दीपा बाजार गए और रात के जश्न के लिए शराब और चिकन खरीदा. बाजार में घूमने के दौरान ही दीपा के पास किसी का फोन आया था, जिसे उस ने कुछ हिचकते हुए रिसीव किया था. फोन करतेकरते उस ने कहा था कि आज नहीं क्योंकि उस का पति आया हुआ है. दीपा पर शक तो धर्मेंद्र को पहले से ही था, इसलिए उस ने उस से छिप कर दिलीप को फोन किया तो पता चला कि वह तो गांव में है. इस झूठ पर वह तिलमिला उठा. शक पैदा करने वाली दूसरी बात दीपा का जरूरत से ज्यादा शराब और चिकन खरीदना भी था.

शक में मूड खराब होने पर धर्मेंद्र घर चला गया. इसी शक के मारे उस के तनबदन में आग लग रही थी. दीपा उसे अब बेवफा और बदचलन लगने लगी थी. कुछ सोचते हुए वह दीपा की सच्चाई जानने के लिए आधी रात को उस के घर पहुंच गया. गया तो वह दीपा के साथ मौजमस्ती करने के इरादे से था लेकिन जब उसे यह पता चला कि उस के पैसे से लाई शराब और गोश्त से दीपा 2 दूसरे लड़कों रवि और मनोहर उर्फ कुक्कू के साथ पार्टी कर चुकी है तो उस का खून खौल उठा.

इस बात पर दोनों में खूब झगड़ा हुआ और फिर धर्मेंद्र ने दीपा की हत्या कर दी. जब इन दोनों का झगड़ा शुरू हुआ था तब कुक्कू बाहर ही छिपा था, लेकिन हत्या के पहले भाग गया था. जिसे पुलिस ने सरकारी गवाह बना लिया. चंद घंटों में ही कातिल को पकड़ लेने पर एसपी सचिन अतुलकर ने पुलिस टीम की पीठ थपथपाई. दीपा अब इस दुनिया में नहीं है और धर्मेंद्र जेल में है. दिलीप पहले की तरह जिंदगी जी रहा है पर दीपा की मौत कई सवाल छोड़ गई है कि आखिरकार उस की गलती क्या थी? शराबी और निकम्मे पति ने उसे छोड़ दिया था तो दूसरी गलती मांबाप ने कम उम्र में उस की शादी कर के पहले ही कर दी थी.

तनहाई की मारी दीपा एक से दूसरे मर्द की बाहों में झूलती हुई मारी गई तो इस की जिम्मेदार भी वही थी. अगर वह धर्मेंद्र और दूसरे लड़कों के पीछे नहीं भागती तो शायद बच जाती. लेकिन यह चिंता भी उसे सता रही होगी कि दिलीप और धर्मेंद्र कब तक उस का खर्चा उठाएंगे. इसलिए उस ने नए लड़कों से संबंध बनाए, जिन का अंजाम इस तरह सामने आया.

इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

सालगिरह पर टूटा दरखशां का दिल

प्यार के इजहार में कंजूसी करने वाले हम्माद ने जब दरखशां के जन्मदिन पर खुल कर प्यार का इजहार किया तो दरखशां का दिल मारे खुशी के उछल पड़ा. उसे लगा खुशियों के ढेर सारे गुलाब एक साथ खिल गए हैं. डैक पर बजने वाला गाना भले ही बैडरूम में बज रहा था, लेकिन वह इतनी जोर से बज रहा था कि उस की लपेट में पूरा घर आ रहा था. घर में प्रवेश करते ही हम्माद ने देखा,

लाउंज में खड़ा नौकर नसीर भी उस गाने का मजा ले रहा था. उसे देखते ही झट से सलाम कर के वह किचन की ओर बढ़ गया. हम्माद की अम्मी के कमरे का दरवाजा बंद था. सुबह से ही उन की तबीयत खराब थी. वह दवा खा कर लेटी थीं, मगर इस हंगामे में भला आराम कहां से मिलता. काम की थकान की वजह से हम्माद का दिमाग पहले से ही खराब था, इस शोरगुल ने उसे और खराब कर दिया था. बैडरूम का दरवाजा खुला था. उस की बीवी दरखशां बैड पर औंधी लेटी गाने का मजा लेती हुई पैर हिला रही थी. हम्माद सिर दर्द की वजह से जल्दी घर आ गया था. इस हंगामे से उस की कनपटियां चटखने लगीं. दरखशां के करीब जा कर उस ने तेज आवाज में कहा, ‘‘मैडम…’’

दरखशां इस तरह चौंकी, जैसे किसी सुहाने ख्वाब में खोई रही है. वह एकदम से उठ बैठी. हम्माद ने डेक औफ किया और उसे घूरते हुए बोला, ‘‘यह घर है दरखशां. फिर अम्मी की तबीयत भी खराब है, इस के बावजूद तुम ने फुल वाल्यूम में डेक चला रखा है.’’ ‘‘वो मैं… सौरी.’’ दरखशां घबराहट में बोली. उस का दिल बुरी तरह धड़क रहा था. यह वक्त हम्माद के आने का नहीं था, इसलिए वह अपनी मनमर्जी कर रही थी. उस समय उस के दिमाग से यह बात निकल गई थी कि सास की तबीयत खराब है. उसे शर्मिंदगी महसूस हुई. वह इस तरह उठ कर खड़ी हुई, जैसे उस की टांगों में जान न हो.

‘‘एक कप चाय.’’ हम्माद की आवाज में गुस्सा साफ झलक रहा था. कह कर वह वौशरूम में घुस गया. दरखशां की आंखें भर आईं. क्योंकि वह ऐसे लहजे की आदी नहीं थी. आंसू पीते हुए उस ने नसीर से चाय बनाने को कहा और खुद लाउंज में जा कर खड़ी हो गई. चाय ले कर दरखशां कमरे में आई तो हम्माद कपड़े बदल कर बिस्तर पर लेट चुका था. चाय के साथ 2 गोलियां निगल कर उस ने कप तिपाई पर रख दिया और खुद कंबल ओढ़ कर लेट गया. दरखशां यह भी नहीं कह सकी कि सिर दबा दे. कंबल के साथ हम्माद ने खामोशी भी ओढ़ ली थी. वह लाइट औफ कर के सोफे पर बैठ गई. उस का मन रोने को हो रहा था. हम्माद का यह रवैया उसे पसंद नहीं आया था. उस ने आंखें मूंद लीं. तभी उस के जेहन में गुजरे दिनों की फिल्म चलने लगी.

इंटर पास कर के दरखशां ने कालेज में दाखिला ले लिया था, इस के बावजूद गुड्डेगुडियों से खेलने का शौक उस का गया नहीं था. उस ने गुड्डे का नाम मून रखा था तो गुडि़या का पिंकी. उस के इस खेल में उस की सहेली मारिया के अलावा आसपड़ोस की कुछ अन्य लड़कियां भी शामिल होती थीं. मारिया का घर पड़ोस में ही था. इसलिए वह अकसर दरखशां के साथ ही रहती थी. दरखशां को गुड्डेगुडि़या के साथ खेलते देख उस की अम्मी अमीना अकसर नाराज हो कर कहतीं, ‘‘इतनी बड़ी हो गई है, फिर भी गुड्डेगुडि़यों के साथ खेलती रहती है.’’

तब दरखशां के वालिद राशिद कहते, ‘‘खेलती है तो खेलने दो, हमारी एक ही तो बेटी है. कम से कम सहेलियों के साथ घर में खेलती है, बेटों की तरह बाहर तो नहीं जाती.’’ दरखशां थी ही इतनी प्यारी, मासूम सूरत, सुर्खी लिए सफेद रंगत, बड़ीबड़ी नशीली आंखें, दरमियाना कद, उस पर सितम ढाती भोलीभाली सूरत. दरखशां के वालिद एक विदेशी कंपनी में अच्छी पोस्ट पर नौकरी करते थे. दरखशां से 3 साल छोटे 2 जुड़वां भाई थे – शाहिद और जाहिद. भाईबहन आपस में दोस्ताना रवैया रखते थे, मगर दोनों भाई दरखशां को परेशान करने से बाज नहीं आते थे. वे शरारती भी बहुत थे. अक्सर वे दरखशां के गुड्डेगुडि़यों को छिपा देते. दरखशां अम्मी से शिकायत करती तो वे मून और पिंकी को उस के हाथ में थाम कर कहते, ‘‘अम्मी लगता है, आपी इन्हें अपने साथ ससुराल भी ले जाएंगी.’’

ससुराल के नाम पर घबरा कर दरखशां अम्मी के सीने से चिपक जाती. ससुराल जाने के खयाल से ही वह घबरा जाती थी. अभी वह 17 साल की ही तो थी. अगले महीने 5 अप्रैल को उस की सालगिरह थी, जिस की तैयारी अभी से शुरू हो गई थी. दरखशां की सालगिरह हमेशा बड़े धूमधाम से मनाई जाती थी. कालेज की पढ़ाई के दौरान दरखशां को गुड्डेगुडि़यों से खेलने का मौका कम ही मिलता था. लेकिन दिन में एक बार उन्हें अच्छी तरह देख कर वह तसल्ली जरूर कर लेती थी. एक दिन वह कुछ पढ़ रही थी, तभी उस के वालिद ने उस की अम्मी से कहा, ‘‘अमीना, अब हमें दरखशां की शादी कर देनी चाहिए. रिश्ता अच्छा है, मना नहीं किया जा सकता. हम्माद मेरे दोस्त का बेटा है, डाक्टर है. देखाभला और जानासुना है. अब दोस्त नहीं रहा तो मना करना ठीक नहीं है. रजा ने इस रिश्ते के लिए मुझ से बहुत पहले ही वादा करा लिया था. उन की बेगम ने पैगाम भिजवाया है. कल वह आ रही हैं. सारी तैयारी कर लो. दरखशां को भी समझा देना. आज के जमाने में इस तरह का रिश्ता जल्दी कहां मिलता है.’’

अगले दिन हम्माद अपनी अम्मी साफिया बेगम और बहन शहनाज के साथ दरखशां को देखने आया. शहनाज की शादी हो चुकी थी. मारिया ने दिल खोल कर हम्माद की तारीफें कीं. साफिया बेगम ने दरखशां को अपने पास बिठाया और उस की नाजुक अंगुली में अंगूठी पहना कर रिश्ते के लिए हामी भर दी. राशिद के सिर का बोझ उतर गया. दरखशां ने सरसरी तौर पर हम्माद को देखा. रौबदार संजीदा चेहरा, गंभीर आवाज. दरखशां का नन्हा सा दिल कांप उठा. उसे वह काफी गुस्से वाला लगा. खाना वगैरह खा कर सभी चले गए. उन के जाते ही शाहिद और जाहिद ने दरखशां से छेड़छाड़ शुरू कर दी. उस की नाक में दम कर दिया. बेटी को परेशान होते देख अमीना नम आवाज में बोली, ‘‘मेरी बेटी को परेशान मत करो. अब सिर्फ 3 महीने की ही तो मेहमान है.’’

3 महीने गुजरते देर कहां लगती है. हम्माद और दरखशां की शादी हो गई. दरखशां रुखसत हो कर पिया के घर आ गई. हम्माद के घर पहंचने पर साफिया बेगम और शहनाज ने उस का स्वागत किया. शहनाज और अन्य औरतें उसे सजा कर सुहाग के कमरे में ले गईं. शहनाज ने उसे बैड पर बैठा दिया. इस के बाद चुहलबाजी करती हुई चली गई. काफी देर बाद कमरे का दरवाजा खुला. हम्माद अंदर आ कर उस के पास बैठ गया. दरखशां का घूंघट उलट कर बोला, ‘‘माशा अल्लाह, आंखें तो खोलिए.’’ हम्माद की इस आवाज में न बेताबी थी और न दीवानगी न जज्बों की लपक थी और न इंतजार की कशमकश. दरखशां ने पलकें उठाईं तो हम्माद का दिलकश चेहरा सामने था.

‘‘मैं खुशकिस्मत हूं कि तुम मेरी शरीके हयात बन गई हो.’’ हम्माद लापरवाही से बोला. दरखशां के दिल में खौफ के बजाय अब एक बेनाम सी उदासी थी. वह रात हम्माद ने वादों के साथ बिताई. दरखशां अपने हुस्न के कसीदे सुनने की ख्वाहिशमंद थी, जबकि हम्माद ने संक्षिप्त सी बात कर के इस टौपिक को ही बंद कर दिया था. इस उपेक्षा से उस के दिल पर एक बोझ सा आ पड़ा, जैसे कुछ खो गया हो. एक नईनवेली दुलहन के लिए कुछ तो कहना चाहिए. वह अपना पोरपोर सजा कर इन्हीं के लिए तो आई थी. लेकिन जैसे वह जज्बों से बिलकुल खाली था.

शादी हुए काफी दिन गुजर गए. हम्माद उसे मायके भी ले जाता और घुमानेफिराने भी. होटल और रेस्त्रां में खिलातापिलाता भी, लेकिन कभी प्यार का इजहार नहीं करता था और न ही उस की खूबसूरती के कसीदे पढ़ता. वह एक प्रैक्टिकल सोच वाला इंसान था. अपने काम के प्रति बेहद ईमानदार. हम्माद का घर बेहद खूबसूरत था. घर में एक नौकर नसीर तो था ही, साफसफाई के लिए एक नौकरानी भी रखी हुई थी. घर में कोई अधिक काम नहीं था, इसलिए दरखशां सारा दिन बौखलाई फिरती थी. जब उस का मन घबराता तो वह तेज आवाज में डैक चला कर गाने सुनती या फिर कंप्यूटर से दिल बहलाती.

हम्माद सुबह निकलता था तो रात को ही आता था. ऐसे में कभीकभी दरखशां को अपने मून और पिंकी की याद आती तो वह मारिया को फोन करती. मारिया उस की बात सुन कर बेसाख्ता हंसते हुए कहती, ‘‘अरे पगली, अब तू शादीशुदा है. मून और पिंकी की फिक्र छोड़, कल को तेरे अपने गुड्डेगुडि़यां आ जाएंगे, उन्हीं से खेलना.’’ ऊब कर दरखशां सास साफिया बेगम के पास बैठ जाती तो वह उसे किस्सेकहानियां सुनातीं. वह उन की अच्छी तरह देखभाल करती थी, क्योंकि वह जोड़ों के दर्द की मरीज थीं. हम्माद के आने का समय होता तो वह उसे जबरदस्ती तैयार होने को कहतीं. वह सोचती कि पत्थर दिल बेहिस डाक्टर साहब सारा दिन दवाइयों की गंध सूंघते रहते हैं. ऐसे में उस के सजसंवर कर रहने का उन पर क्या असर होगा. सच भी था, हम्माद को अपने पेशे से काफी लगाव था. घर आने पर वह दरखशां से भी ज्यादा बात नहीं करते थे. सिर्फ मतलब की बात करते, वरना खामोशी, किताबें या फिर कंप्यूटर.

साफिया बेगम की आवाज उस के कानों में पड़ी तो वह यादों से बाहर आ गई. वह साफिया बेगम के कमरे की ओर भागी. अब तक हम्माद सो गया था. इसी तरह दिन बीत रहे थे. अचानक हम्माद की ड्यूटी रात में लगा दी गई थी. दरखशां ने आह सी भरी तो हम्माद ने कहा, ‘‘अरे भई, यह पेशा ही ऐसा है. कभी रात तो कभी दिन. असल काम तो मरीजों की सेवा करना है.’’ उसी बीच दरखशां मायके गई और कई दिनों बाद वापस आई. संयोग से उसी समय हम्माद भी घर आ गया. वह जूते के बंद खोलते हुए तल्खी से बोला, ‘‘तुम्हारा मन मायके में कुछ ज्यादा ही लगता है.’’

‘‘क्यों न लगे. अपने मांबाप को देखने भी नहीं जा सकती क्या?’’ दरखशां ने कहा. हम्माद चुप रह गया. दरखशां जब भी मायके जाती, अपने मून और पिंकी को गले लगाती. अपनी अम्मी से खूब बातें करती. मायके से आने लगती तो खूब रोती. शादी हुए एक साल हो रहा था, लेकिन वह खुद को ससुराल में एडजस्ट नहीं कर पा रही थी. वह सोचती थी कि जब वह ससुराल आए तो हम्माद कहे कि तुम्हारे बगैर ये 2 दिन मैं ने कांटों पर गुजारे हैं. रात को तुम मेरे पहलू में नहीं होती तो मैं करवट बदलता रहता हूं. लेकिन उस के मुंह से कभी ऐसे वाक्य नहीं निकलते, जो दरखशां के मोहब्बत के तरसे दिल पर फव्वारा बन कर गिरते.

किचन का ज्यादातर काम दरखशां करती थी, नसीर उस के साथ लगा रहता था. साफिया उसे समझातीं, मगर वह नहीं मानती. दरखशां अब अच्छा खाना बनाने लगी थी. लेकिन हम्माद ने कभी उस के खाने की तारीफ नहीं की. ऐसे में दरखशां झुंझला जाती. साफिया उस की तारीफें करती तो दरखशां कमरे में आ कर रोती. एक दिन दरखशां ने साफिया बेगम से हम्माद के ऐसे मिजाज के बारे में पूछा तो वह बोली, ‘‘अरे बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है. जब से उस के अब्बू का इंतकाल हुआ है, तब से यह खामोश और तनहाई पसंद हो गया है. बस पढ़ाई में मगन रहा. लेकिन जब से तुम आई हो, इस में काफी बदलाव आया है.’’

कुछ दिनों बाद हम्माद को पास के एक कस्बे के अस्पताल का इंचार्ज बना कर भेज दिया गया. नया अस्पताल बना था. हम्माद को जूनियर डाक्टरों के साथ इंचार्ज बन कर जाना था. 2 दिनों बाद हम्माद वहां जाने के लिए तैयार था. जाते वक्त उस ने कहा, ‘‘मैं 15 दिनों बाद आऊंगा.’’ हम्माद के अंदाज में न तो उदासी थी और न ही कोई परेशानी. वह बाहर जाने में बड़ा संतुष्ट लग रहा था. अम्मी ने कहा, ‘‘बेटा, दुलहन को भी साथ ले जाते तो अच्छा रहता.’’ ‘‘नहीं अम्मी, अभी मुमकिन नहीं है. पहले जगह वगैरह देख लूं. घर तो मिल जाएगा, लेकिन कैसा माहौल है, क्या सहूलियतें हैं, यह सब देखना पड़ेगा.’’

हम्माद की बात सुन कर दरखशां तिलमिला उठी. उस की आंखों में आंसू भर आए. नई जगह होने की वजह से हम्माद को फुरसत नहीं मिलती थी. सहूलियतें भी काफी कम थीं. मरीजों का दिनरात तांता लगा रहता था. यह पिछड़ा इलाका था. हम्माद दिनभर काम में लगा रहता. रात को कमरे में आता तो दरखशां की याद दिल से लिपट जाती. उस का मासूम, भोलाभाला चेहरा और मंदमंद मुसकराहट उसे बेचैन कर देती. हालांकि हम्माद रात की भी ड्यूटी करता था, मगर इतने दिनों के लिए वह पहली बार दरखशां से जुदा हुआ था. दरखशां की कमी और दूरी उसे परेशान कर रही थी.

दरखशां के दिन भी उदासी से बीत रहे थे. कभी अमीना आ जातीं तो कभी अब्बू या शाहिद जाहिद. कभीकभी वह खुद भी मायके चली जाती. 15 दिनों बाद हम्माद आया तो दरखशां पहले की ही तरह उदास थी. हम्माद ने सोचा कि क्या मेरी कमी इस ने महसूस नहीं की. मेरे आने पर न आंखों में चमक आई न चेहरे पर खुशी. हम्माद भी उदास हो गया. आम बीवियों की तरह दरखशां खाने का इंतजाम करने लगी. हम्माद ने उस से यह भी नहीं पूछा कि वह कैसी है? न कोई जुदाई के किस्से, न तनहाई की बातें. वह सोच रही थी कि यह कितने कठोर इंसान है. इतने दिनों बाद आए हैं, फिर भी कोई बेचैनी नहीं दिखती. शायद उस के बिना खुश थे. उस ने किचन में अपनी नम आंखें पोंछी. दो दिन रह कर हम्माद चला गया.

अगले हफ्ते दरखशां की सालगिरह थी. उस की जिंदगी का सब से अहम और खूबसूरत दिन. वह परेशान थी कि अपनी सालगिरह कैसे और किस के साथ मनाए. हम्माद के आने में एक सप्ताह बाकी रहेगा. वह अकेली क्या करेगी. यह सोच कर वह रो पड़ी. पिछले साल उस की सालगिरह पर कितना अच्छा इंतजाम किया गया था. सारी सहेलियां आई थीं. घर को खूब सजाया गया था. यही सब सोचसोच कर दरखशां का सिर दर्द करने लगा. क्या इस बार 5 अप्रैल का दिन यूं ही गुजर जाएगा. वह अपनी सालगिरह नहीं मना पाएगी. बेबसी और बेचैनी से उस का वजूद थर्रा उठा.

सालगिरह वाले दिन जब दरखशां सो कर उठी तो उस का मन काफी खिन्न था. लेकिन मौसम बड़ा खुशगवार था. उस के अब्बू और अम्मी ने उसे फोन कर के मुबारकबाद दे दी थी. दरखशां सिसक कर रह गई. दोपहर 12 बजे नसीर ने एक कुरियर पैकेट ला कर दिया, जो मारिया की ओर से गिफ्ट था. शाहिद और जाहिद ने भी कार्ड भेजे थे. दरखशां की आंखें बेसाख्ता भर आईं. सब को यह दिन याद रहा, लेकिन हम्माद को..? हम्माद के न होने से उसे बड़ी उदासी लग रही थी. उस ने मारिया द्वारा भेजी गई खूबसूरत ज्वैलरी और परफ्यूम तथा अपने भाइयों द्वारा भेजे गए रंगबिरंगे कार्डों को ले जा कर साफिया बेगम को दिखाए. वह उसे दुआएं देती हुई बोलीं, ‘‘मुबारक हो बेटा, पहले जिक्र किया होता तो मैं भी कुछ ले आती.’’

रुलाई दबा कर दरखशां बोली, ‘‘अम्मी, मैं तो ऐसे ही…’’ ‘‘चलो, कोई बात नहीं. हम्माद आ जाए तो मिल कर सालगिरह मना लेंगे. खुदा तुम्हें सुखी रखे, सदा सुहागन रहो, शादोआबाद रहो.’’ अम्मी ने कहा. दरखशां अपने कमरे में चली गई. उसे तनहाई और हम्माद की बेवफाई अंदर ही अंदर खाए जा रही थी. वह रोने ही वाली थी कि मारिया का फोन आ गया. उस ने सालगिरह की मुबारकबाद दी तो उस का दिल भर आया. वह तड़प कर बोली, ‘‘हुंह, कैसी सालगिरह, कैसा इंतजाम. मारिया, मैं बिलकुल अकेली हूं. उन्हें तो मुझ से ज्यादा मरीजों से प्यार है.’’ इस के बाद सिसकते हुए आगे बोली, ‘‘ये डाक्टर लोग होते ही कठोर हैं. उन्हें मेरी सालगिरह कैसे याद रहेगी. यहां तो वीरानी और तनहाई है. मैं उन से यह भी नहीं कह सकती कि मैं उन के बगैर कितनी अधूरी और उदास हूं. उन से कितनी मोहब्बत करती हूं.’’

काफी देर तक दरखशां मारिया से गिलेशिकवे करती रही. दूसरी ओर से मारिया उसे तसल्ली देती रही. वह अर्थपूर्ण ढंग से हंस भी रही थी, जो दरखशां की समझ से बाहर था. आखिर उस ने ‘खुदा हाफिज’ कह कर फोन रख दिया. दरखशां फोन मेज पर रख कर मुड़ी तो जैसे पत्थर हो गई. दरवाजे के पास हम्माद खड़ा था. उस के होठों पर बेहद शरारती मुसकराहट थी. ‘‘अ…अ…आप?’’ दरखशां उसे देख कर हैरानी से हिसाब लगाते हुए बोली, ‘‘लेकिन आप तो 6 दिन बाद आने वाले थे.’’ दरखशां के दिल में उथलपुथल मची थी. हम्माद कुछ बोले बगैर अंदर आ गया और कमरे का दरवाजा बंद कर दिया. ऐसे में दरखशां का दिल तेजी से धड़कने लगा. दरखशां के करीब आ कर अपने दोनों हाथ उस के कांपते कंधों पर रख कर हम्माद ने दबाव डाला तो वह बेड पर बैठ गई. इस के बाद उस की आंखों में आंखें डाल कर हम्माद ने कहा, ‘‘यह कठोर मुझे ही कहा जा रहा था न?’’

‘‘म…म…मैं…नहीं…वह…’’ दरखशां हकलाई. ‘‘सालगिरह मुबारक हो.’’ हम्माद दरखशां के बगल में बैठ कर अपनी बांहें उस के गले में डाल कर बोला. हम्माद जिस तरह प्यार से दरखशां से अपनी बातें कह रहा था, वे उस पर बहारों के फूल की तरह गिर रही थीं. प्यार से भरे शब्द सारे गिलेशिकवे धो रहे थे. उदासी के गुबार मिटा रहे थे. ‘‘तुम्हारी सालगिरह भला मुझे क्यों न याद रहती,’’ दरखशां की नाजुक नाक को 2 अंगुलियों से पकड़ कर हिलाते हुए हम्माद ने कहा ‘‘जानम, जिन से मोहब्बत होती है, उन के बारे में हमेशा सजग रहना पड़ता है. तुम ने यह कैसे कह दिया कि मैं मरीजों का हूं, तुम्हारा नहीं.’’

हम्माद अपनी बात कहते हुए अंगुली से दरखशां की ठोढ़ी को उठा कर सवालिया नजरों से देखा. दरखशां ने शरम के मारे आंखें झुका ली थीं. वह उस से आंखें नहीं मिला पा रही थी. हम्माद ने आगे कहा, ‘‘तुम मेरी जान हो दरखशां. माना कि मैं इजहार में कंजूसी करता हूं. लेकिन अब तुम्हें कोई शिकवा नहीं होना चाहिए. मैं जानता हूं कि तुम कुछ नहीं कहोगी, फिर भी मेरी जुदाई में घुली जा रही हो. तुम मेरे बिना नहीं रह सकती तो मैं भी तुम्हारे बिना अधूरा हूं. अब वादा करो, तुम सारे गिलेशिकवे भुला दोगी.’’

दरखशां ने ‘हां’ में सिर हिलाया तो हम्माद ने जेब से एक डिबिया निकाल कर उस में से सोने की एक चैन निकाली. उसे दरखशां के गले में डाला तो वह हैरान रह गई. वह हम्माद के सीने से लग गई तो हम्माद को लगा कि उस के दिल का सारा बोझ उतर गया है. उस ने दरखशां को बांहों में समेट कर कहा, ‘‘चलो मेरे साथ, तुमहारे लिए एक और सरप्राइज है.’’ ‘‘क्या?’’ दरखशां ने पूछा.

‘‘साथ चलो तो…, कह कर हम्माद उसे लाउज में ले आया. अम्मी वहीं सोफे पर बैठी थीं. तरहतरह की खानेपीने की चीजों के साथ मेज पर केक भी रखा था. तभी दरवाजा खुला और अमीना, राशिद, जाहिद, शाहिद, मारिया और उस की अन्य सहेलियां मुसकराते हुए अंदर आ गईं. दरखशां का दिल मारे खुशी के उछल पड़ा. उसे लगा कि खुशियों में ढेर सारे गुलाब एक साथ खिल गए हैं. सब ने उसे ‘हैप्पी बर्थ डे’ कहा. अम्मी के कहने पर वह तैयार होने के लिए अपने कमरे की ओर चल पड़ी. हम्माद ने एक आंख दबाते हुए कहा, ‘‘जल्दी आना.’’ दरखशां शरम और खुशी से दोहरी हो गई.

— प्रस्तुति : कलीम आनंद