होटल में सीबीएसई प्रश्नपत्र हल कर रहे थे नकल माफिया

सीबीएसई और राजस्थान सिपाही भरती घोटाले के बाद अब एफसीआई द्वारा आयोजित वाचमैन पद की परीक्षा में भी घोटाले की पोल खुल गई है. ऐसा लगता है कि नकल माफिया सरकार और प्रशासन को मात देने में माहिर हो चुका है. क्या इस के पीछे सारा खेल पैसे का है?   

2 अप्रैल, 2018 को दलितों के भारत बंद आह्वान के चलते ग्वालियर शहर में कुछ ज्यादा ही तनाव था, जो जातिगत रूप से बेहद संवेदनशील माना जाता है. मार्च के आखिरी सप्ताह से पुलिस कुछ ज्यादा ही सतर्क थी और मुखबिरों के जरिए लगातार इलाके की टोह ले रही थी. सावधानी बरतते हुए वह रात की गश्त में भी कोई ढील नहीं दे रही थी. 31 मार्च की रात जब एक पुलिस दल पड़ाव इलाके के गांधीनगर स्थित नामी होटल सिद्धार्थ पैलेस पहुंचा तो होटल में अफरातफरी मच गई. आमतौर पर देर रात मारे जाने वाले ऐसे छापों का मकसद देहव्यापार में लिप्त लोगों को पकड़ना होता है, पर इस रात बात कुछ और थी

सिद्धार्थ होटल ग्वालियर का एक नामी होटल है, जिस की गिनती बजट होटलों में होती है. मोलभाव करने पर इस होटल में डेढ़ हजार रुपए वाला एसी कमरा एक हजार रुपए में मिल जाता है, जिस में वे तमाम सुविधाएं मिल जाती हैं जिन की दरकार ठहरने वालों को होती है. गरमियों में रात के करीब साढ़े 9 बजे पड़ाव इलाके में चहलपहल शवाब पर होती है. ऐसे में पुलिस की गाडि़यों का काफिला देख राहगीर ठिठक कर देखने लगे कि आखिरकार माजरा क्या है. कोई देहव्यापार का अंदाजा लगा रहा था तो कोई 2 अप्रैल के बंद के मद्देनजर सोच रहा था कि जरूर यहां कोई गुप्त मीटिंग चल रही होगी.

लेकिन दोनों ही अंदाजे गलत थे और जो सच था, वह दूसरे दिन विस्तार से लोगों के सामने आ गया. दरअसल इस होटल में एक और लीक पेपर की स्क्रिप्ट लिखी जा रही थी. यह पेपर किसी स्कूलकालेज का न हो कर एफसीआई (भारतीय खाद्य निगम) का था. यह जानकारी मिलने के बाद लोगों ने दांतों तले अंगुलियां दबा लीं कि देश में यह हो क्या रहा है. लीक पर लीक… यह तो भ्रष्टाचार की हद है.

छापे की काररवाई देर रात तक चली जिस में पूरे 50 लोगों को पुलिस की एसटीएफ ने गिरफ्तार किया. दरअसल, एसटीफ के एसपी सुनील कुमार शिवहरे को मुखबिर से जो खबर मिली थी, वह एकदम सच निकली. एफसीआई की यह परीक्षा मध्य प्रदेश में रविवार पहली अप्रैल को होनी थी, जिस में 217 वाचमैन पदों के लिए रिकौर्ड 50 हजार से भी ज्यादा आवेदन आए थे. ग्वालियर के अलावा वाचमैन भरती परीक्षा भोपाल, इंदौर, उज्जैन, सागर, जबलपुर और सतना शहरों में होनी थी. इन शहरों में अनेक परीक्षा केंद्र बनाए गए थे. वाचमैन के पद के लिए शैक्षणिक योग्यता 8वीं पास होना रहती है, इसलिए भी आवेदन उम्मीद से ज्यादा आए थे.

अब तमाम छोटे पदों की भरती के लिए भी लिखित परीक्षाएं होने लगी हैं, जिन का मकसद योग्य उम्मीदवारों का चयन करना होता है. वाचमैन भरती परीक्षा में भी मौखिक परीक्षा यानी इंटरव्यू के पहले लिखित परीक्षा ली जाने लगी है. इस की वजह यह है कि नाकाबिल उम्मीदवारों की छंटनी हो जाती है और तयशुदा पैमाने और पदों की संख्या के अनुपात में वे उम्मीदवार इंटरव्यू के लिए बुलाए जाते हैं जो लिखित परीक्षा पास कर चुके होते हैं

वाचमैन भरती परीक्षा में ज्यादा कठिन सवाल नहीं पूछे जाते, क्योंकि इस का मकसद केवल उम्मीदवार का सामान्य ज्ञान, गणित और तर्कशक्ति को आंकना होता है. सिद्धार्थ होटल में मौजूद 48 उम्मीदवारों को 2 दलाल अगले दिन होने वाला परचा हल कर के दे रहे थे और उम्मीदवारों को परीक्षा का अभ्यास करा रहे थे कि किस सवाल का सही जवाब क्या है. एसटीएफ की टीम ने जब होटल के एकएक कमरे में जा कर उम्मीदवारों को पकड़ा तो सब के सब बड़ी शांति से प्रश्नपत्र हल करने की प्रैक्टिस कर रहे थे. 

अचानक पुलिस को आया देख सभी हड़बड़ा उठे. दरअसल, उन्हें आश्वस्त किया गया था कि परीक्षा देने में उन्हें कोई झंझट नहीं होगा, फिर भी झंझट हो ही गया. वह भी कुछ इस तरह कि ये लोग शायद जिंदगी भर चौकीदारी के नाम से भी कांपते रहेंगे. थोड़ी देर पहले तक वातानुकूलित कमरों में बैठ कर परीक्षा की तैयारी करना तो ज्यादती होगी, घोटाला करने जा रहे ये लड़के पुलिस को देख कर होटल के हौल में खड़े थरथर कांप रहे थे. इन का रहनसहन देख कर ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि इन में से शायद पहले कभी कोई इतने बड़े होटल में गया होगा. और जेल तो शायद ही कभी कोई गया होगा.

एफसीआई में वाचमैन पदों के लिए परीक्षा देश भर में होनी थी. अलगअलग राज्यों में इस की तारीखें अलगअलग रखी गई थीं. मध्य प्रदेश की परीक्षा की जानकारी सिर्फ उन्हीं युवाओं को लगी थी, जो जागरूक हैं और 8वीं या इस से आगे तक पढ़ेलिखे हो कर सरकारी नौकरी की तलाश में रहते हैं. ऐसे राज्यों में बिहार का नाम सब से ऊपर आता है, जहां के युवा सरकारी नौकरी वाला विज्ञापन देखते ही फौर्म भर देते हैं और परीक्षा की तैयारियां भी शुरू कर देते हैं. जो 48 लोग परचा हल करते पकड़े गए, उन में 35 बिहार के थे और 13 अन्य राज्यों के थे, मध्य प्रदेश का उन में कोई नहीं था. मध्य प्रदेश का इसलिए नहीं था कि परचा बेचने वाला गिरोह कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता था. इस गिरोह को डर था कि अगर मध्य प्रदेश के उम्मीदवारों को पेपर बेचा गया तो जरूर पकड़े जाएंगे

क्योंकि होता यह है कि जिसे पेपर बेचो, वह या तो उस का ढिंढोरा साथियों से पीट देता है या फिर अपने पैसे वसूलने के लिए किसी और को भी बेच देता है, जिस से पेपर लीक होने की संभावनाएं ज्यादा हो जाती हैं. गिरफ्तार 48 उम्मीदवारों से एसटीएफ ने पूछताछ की तो उन्होंने बिना किसी लागलपेट के सच उगल दिया. यह सच था कि उन्होंने इस पेपर के बाबत गिरोह से 5-5 लाख रुपए में सौदा किया था, लेकिन अभी पूरा भुगतान नहीं किया था. अपनी हैसियत के मुताबिक उम्मीदवारों ने 10 हजार से ले कर एक लाख रुपए तक एडवांस दिए थे. बाकी की राशि चयन हो जाने के बाद देनी तय हुई थी.

बाहरी राज्यों के ये उम्मीदवार कैसे इस गिरोह के संपर्क या चंगुल में आए, यह बात भी कम दिलचस्प नहीं, जिस का खुलासा अगर हो पाया तो उस से केवल असली मुलजिमों के चेहरे बेनकाब होंगे, बल्कि यह भी साबित होगा कि भ्रष्टाचार की जड़ें पाताल से भी नीचे पांव पसार चुकी हैं. 48 उम्मीदवारों को पेपर हल कराते जो 2 दलाल पकड़े गए, उन के नाम हरीश कुमार और आशुतोष कुमार हैं. ये दोनों ही दिल्ली के रहने वाले हैं. पूछताछ में इन दोनों ने भी माना कि उन्होंने हल किया पेपर इन लोगों को दिया था और वे कल होने वाली परीक्षा की तैयारी करा रहे थे.

इन दोनों ने बताया कि वे तो सिर्फ निचली कड़ी हैं, जिन का काम उम्मीदवारों को इकट्ठा कर उन्हें पेपर हल कराना था. इस बाबत गिरोह से उन्हें 30-30 हजार रुपए मिले थे. इन दोनों की एक जिम्मेदारी उम्मीदवारों को परीक्षा केंद्र तक रवाना करने की भी थी. सभी उम्मीदवारों के मोबाइल फोन इन्होंने अपने पास रख लिए थे. केवल मोबाइल फोन ही नहीं, बल्कि उम्मीदवार कहीं परीक्षा के बाद बाकी के पैसे देने से मुकर जाए, इसलिए उन्होंने उन के आधार कार्ड और मार्कशीट जैसे महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों की मूल प्रतियां भी अपने पास रख ली थीं. तय यह हुआ था कि परीक्षा पास कर लेने के बाद उन्हें इन दस्तावेजों की मूल प्रतियां वापस कर दी जाएंगी.

हल की गई आंसरशीट तो एसटीएफ को मिल गई लेकिन उम्मीदवारों के दस्तावेजों की मूल प्रतियां नहीं मिलीं. आशुतोष और हरीश के मुताबिक, वे दस्तावेज और इकट्ठा किए गए पैसे तो गिरोह का मास्टरमाइंड किशोर कुमार अपने साथ दिल्ली ले गया था. बीकौम सेकेंड ईयर के छात्र आशुतोष और अपनी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी चलाने वाले हरीश कुमार पुलिस को झूठ बोलते नहीं लगे. लेकिन असली अपराधी या वह कड़ी जिस से असली अपराधी तक पहुंचा जा सकता था, वह किशोर कुमार छापे के कुछ घंटों पहले ही ग्वालियर से निकल चुका था.

यह साफ जरूर हो गया था कि पेपर मध्य प्रदेश से नहीं बल्कि दिल्ली से लीक हुआ था और यह सिर्फ किशोर कुमार के पास था. शुरुआती पूछताछ से इतना ही पता चल पाया कि किशोर दिल्ली में कोचिंग क्लासेज चलाता है. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक किशोर कुमार की गिरफ्तारी नहीं हुई थी, लेकिन यह जरूर उस के बारे में पता चला कि श्योपुर में उस का एक बीएड कालेज भी है और उस के औफिसों में कई नामी नेताओं के साथ फोटो लगे हुए हैं. केंद्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों में भी उस की खासी घुसपैठ है.

किशोर कुमार को अंदेशा था कि छापा पड़ सकता है, इसलिए उस ने खिसक लेने में ही भलाई और सलामती समझी. दरअसल, एसटीएफ को काफी पहले से खबरें मिल रही थीं कि यह पेपर लीक होने वाला हैइस की जिम्मेदारी सुनील कुमार शिवहरे को सौंपी गई तो उन्होंने अपनी टीम में इंसपेक्टर एजाज अहमद, चेतन सिंह बैंस और जहीर खान सहित 2 दरजन पुलिसकर्मियों को शामिल किया. इस टीम के कुछ सदस्यों ने भनक लगने पर इस गिरोह के सदस्यों से उम्मीदवार बन कर संपर्क भी किया था. गिरोह की तरफ से टीम के सदस्यों को यह जवाब दिया गया था कि अभी उन का काम भोपाल और मध्य प्रदेश में नहीं चल रहा है

इस जवाब के मायने बेहद साफ हैं कि यह गिरोह कंस्ट्रक्शन कंपनियों और ठेकेदारों की भाषा बोल रहा था, जिस से लगता है कि इस का काम देश भर में कहीं कहीं चल रहा होता है और अब इस तरह के पेपर भी सोचसमझ कर सावधानी से बेचे जाते हैं. ग्वालियर में पकड़े गए इस का मतलब यह नहीं कि दूसरे शहरों या राज्यों में इन का काम नहीं चलता होगा. इस फूलप्रूफ तैयारी में अगर पुलिस सेंधमार पाई तो उसे अपने मुखबिरों के साथसाथ खुद की मुस्तैदी पर भी फख्र होना स्वाभाविक बात है. सिद्धार्थ होटल में पहले आरोपियों ने 10 कमरे बुक कराए थे, लेकिन जब उन्हें लगा कि होटल के दूसरे कमरों में ठहरे लोग अड़ंगा बन सकते हैं तो उन्होंने पूरा होटल ही बुक करा लिया था. होटल बुक कराने की वजह उम्मीदवारों द्वारा बीएड की परीक्षा का प्रैक्टिकल देना बताई गई थी.

होटल बुक कराते वक्त इन्होंने मैनेजर शैलेंद्र सिंह को 10 हजार रुपए एडवांस दिए थे और जब पूरा होटल बुक कराया तो 5 हजार रुपए और दिए थे. उम्मीदवारों के आने का सिलसिला 30 मार्च की रात से ही शुरू हो गया था जो 31 मार्च की शाम 6 बजे तक चला. एसटीएफ की 31 मार्च की कामयाबी मिट्टी में मिलती दिख रही है, क्योंकि दिल्ली के इंद्रपुरी इलाके में स्कूल और कोचिंग सेंटर चलाने वाला किशोर कुमार गिरफ्तार नहीं हो पाया था. छापे के बाद जो हुआ, वह सीबीएसई के 10वीं और 12वीं के पेपर लीक होने जैसा था, जिस से लगता है इस फ्रौड और करप्शन में एफसीआई का रोल भी कमतर शक वाला नहीं है. 

किशोर कुमार को पेपर कहां से मिला होगा, फौरी तौर पर तो हर किसी का जवाब यही होगा कि जाहिर है एफसीआई से. क्योंकि परीक्षा तो उस की ही थी. लेकिन ऐसा है नहीं, जिस में कई नए पेच सामने आए. एसटीएफ ने छापेमारी के बाद जब इस अहम मामले से एफसीआई के अधिकारियों को अवगत कराया तो उन की प्रतिक्रिया बेहद निराशा भरी लेकिन चौंकाने वाली निकली. एफसीआई के मध्य प्रदेश के महाप्रबंधक अभिषेक यादव को यह जानकारी मिल चुकी थी कि विभाग में वाचमैन की परीक्षा के लिए जो 50 हजार से ज्यादा अभ्यर्थी शामिल होने वाले हैं, उस का प्रश्नपत्र लीक हो चुका है

इस के बावजूद भी उन्होंने परीक्षा रद्द करने की कोई बात नहीं की. बल्कि उन्होंने कहा कि एसटीएफ की काररवाई की रिपोर्ट मिल जाने के बाद अगर जरूरी हुआ तो परीक्षा रद्द कर देंगे. यानी अभिषेक यादव यह मानने से इनकार कर रहे हैं कि पेपर किसी दूसरे शहर में लीक नहीं हुआ होगा. यह उतनी ही बेहूदा बात थी जितनी यह कि पहली बार एफसीआई ने खुद परीक्षा आयोजित कराने के बजाए किसी एजेंसी को यह जिम्मेदारी सौंप दी थी.

परीक्षा के बाद जब सिद्धार्थ होटल में हल कराए गए पेपरों का मिलान कराया गया तो साबित हो गया कि 80 फीसदी प्रश्न मेल खा रहे थे. यह बात गिरफ्तारी के बाद अभिषेक और हरीश बता चुके थे कि प्रश्नपत्र में बीचबीच में दूसरे सवाल डाल दिए गए थे. जाहिर है ऐसा बाद के बचाव के लिए किया गया था जो खरीदफरोख्त की बात के चलते बेमानी ही है. एफसीआई के भोपाल कार्यालय के पर्सनल डिपार्टमेंट के डीजीएम जी.पी. यादव भी यह कहते पल्ला झाड़ने की कोशिश करते रहे कि परीक्षा की जिम्मेदारी एक निजी एजेंसी को दी थी, इसलिए गड़बड़ी की वही जिम्मेदार है.

बात बेहद चिंताजदक है कि तमाम कायदेकानूनों को ताक में रखते हुए भोपाल एफसीआई के अधिकारियों ने कोलकाता की एक एजेंसी को परीक्षा का ठेका दे दिया था. जबकि यह परीक्षा अब तक एसएससी कराती रही है. क्या सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए किसी प्राइवेट एजेंसी की सेवाएं लेनी चाहिए, इस सवाल का साफसाफ जवाब कोई नहीं दे पा रहा. यह ठेका देने का ही नतीजा था कि परीक्षा के लिए जिन लोगों ने आवेदन किए थे, उन में से कोई 2 हजार के डाटा लीक हो गए और मय नामपते व मोबाइल नंबरों के जादुई तरीके से इस गुमनाम गिरोह तक पहुंच गए. गिरोह ने आवेदकों से मिल कर सौदेबाजी की, जिस में 135 आवेदक 5-5 लाख रुपए दे कर 15 हजार रुपए महीने वाली यह नौकरी हासिल करने को तैयार हो गए.

सीधेसीधे गिरोह ने 7 करोड़ रुपए का सौदा कर डाला, जिस से एफसीआई को कोई मतलब नहीं था. शायद ही एफसीआई के ये होनहार अफसर यह बता पाएं कि क्या एजेंसी को यह ठेका भी दिया गया था कि वह आवेदकों का डाटा लीक कर पैसे बनाए? इस से तो बेहतर होता कि एफसीआई इन पदों की खुलेआम नीलामी ही कर डालता, जिस से उसे करोड़ों की आमदनी होती. लेकिन इस काम को ही अंजाम देने के लिए उस ने एक एजेंसी की सेवाएं लीं. गौर करने वाली बात यह है कि इस एजेंसी को सरकारी नौकरियों में भरती का कोई तजुरबा भी नहीं था.

केंद्र सरकार के इस अहम सार्वजनिक उपक्रम की साख पर आए दिन बट्टा लगता रहा है पर परीक्षा के मामले में पहली बार बट्टा लगा है. इस पर भी नीचे से ले कर ऊपर तक सब खामोश हैं तो लगता है कि लीक अब बड़ा धंधा बन चुका है, जिसे मोहरों के जरिए खेला जाता है. केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने भी बेरोजगार युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करते इस घोटाले से कोई वास्ता नहीं रखा, मानो यह कोई छोटामोटा मामला हो. अब होगा यह कि आशुतोष और हरीश कुमार जैसे प्यादे कानून की बलि चढ़ जाएंगे और असली गुनहगार कहीं और अगले लीक की तैयारी में जुटे होंगे.

एसटीएफ के मुताबिक लीक पेपरों का सौदा ग्वालियर के अलावा इंदौर, भोपाल और उज्जैन में भी हुआ था, लेकिन गिरफ्तार सिर्फ 48 हुए. 135 में से 87 का पैसा गिरोह डकार गया और अपराधी मौज कर रहे हैं. कथा लिखे जाने तक एफसीआई दोबारा परीक्षा कराने का फैसला नहीं ले पाया थाएसटीएफ ने हालांकि एफसीआई से जवाब मांगा है, जो जाहिर है गोलमोल ही होगा. परीक्षा कराने वाली एजेंसी के एक कोऔर्डिनेटर संदीप मोगा के मुताबिक, हम डिटेल नहीं दे सकते क्योंकि हम गोपनीयता की शपथ से बंधे हुए हैं. यह गोपनीयता वही थी, जिस के चिथड़े 31 मार्च के छापे में उड़ चुके हैं.

  

रोग दूर करने वाला बाबा खुद कर लिया सुसाइड

भय्यूजी महाराज मौडर्न संत थे, लग्जरी लाइफस्टाइल वाले. इस के बावजूद उन के करोड़ों भक्त थे और वह उन की समस्याएं सुलझाते थे. लेकिन यह कितने आश्चर्य की बात है कि वह अपने घर की समस्या को नहीं सुलझा पाए और आत्महत्या कर ली. आखिर क्यों… 

पारिवारिक जिम्मेदारी संभालने के लिए यहां कोई होना चाहिए, मैं बहुत तनाव में हूं. थक चुका हूं

इसलिए जा रहा हूं.’ विनायक मेरे विश्वासपात्र हैं, सब प्रौपर्टी इन्वेस्टमेंट वही संभाले. किसी को तो परिवार की ड्यूटी करनी है तो वही करेगा. मुझे उस पर विश्वास है. मैं कमरे में अकेला हूं और सुसाइड नोट लिख रहा हूं. किसी के दबाव में कर नहीं लिख रहा हूं, कोई इस के लिए जिम्मेदार नहीं है.’

बीती 12 जून की दोपहर इंदौर के पौश रिहायशी इलाके सिलवर स्प्रिंग स्थित अपने घर में आत्महत्या करने वाले मशहूर संत भय्यूजी महाराज के 2 सुसाइड नोट मिले थे. दोनों में कोई खास फर्क नहीं है. सिवाए इस के कि दूसरे को एक कुशल संपादक की तरह संपादित कर छोटा कर दिया है और भाव बिलकुल नहीं बदले हैं. डायरी के पन्नों पर लिखे ये सुसाइड नोट बयां करते हैं कि भय्यूजी महाराज किस भीषण तनाव और द्वंद्व से गुजर रहे होंगे. अंतिम समय में उन्हें सिर्फ 2 चीजों परिवार और प्रौपर्टी की चिंता थी. उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा भक्तों और बाद के परिणामों पर अगर सोचा होगा तो तय है कि उन्हें अपनी समस्या का कोई हल नहीं सूझ रहा होगा.

12 जून की दोपहर जैसे ही 50 वर्षीय भय्यूजी महाराज की आत्महत्या की खबर आई तो लोग स्तब्ध रह गए. अपना जीवन फिल्मी स्टाइल में गुजार चुके इस संत ने आत्महत्या भी फिल्मी स्टाइल में की. फोरैंसिक रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने गोली अपनी दाईं कनपटी पर मारी थी लेकिन वह सिर के बीचोंबीच लगी और आरपार हो गई थी. उस वक्त उन के आलीशान घर में बुजुर्ग मां के अलावा कुछ वफादार सेवादार ही थे जिनमें से एक का जिक्र उन्होंने अपने सुसाइड नोट में किया है. धमाके की हल्की सी आवाज आई, लेकिन किसी को उम्मीद नहीं थी कि यह हल्का सा धमाका किस चीज का है. कुछ देर बाद उधर भय्यूजी महाराज की पत्नी डा. आयुषि आईं और भय्यूजी महाराज को ढूंढने लगीं.

आमतौर पर अपने कमरे में रहने वाले भय्यूजी महाराज वहां नहीं दिखे तो आयुषी ने एक एक कर सारे कमरे और टौयलेट बाथरूम तक में उन्हें देखा. बेटी कुहू का कमरा अंदर से बंद था जो खटखटाने पर नहीं खुला तो आयुषि ने सेवादारों को आवाज लगाई. विनायक और दूसरा वफादार सेवादार योगेश भागेभागे आए और दरवाजा तोड़ डाला. अंदर का दृश्य देख कर तीनों हतप्रभ रह गए, पलंग पर भय्यूजी महाराज की लाश पड़ी थी. सिर से रिसा खून चेहरे और बिस्तर पर बह रहा था

वक्त सवालजवाब या सोचविचारी का नहीं था, इसलिए तुरंत एंबुलेंस बुलाई गई और भय्यूजी महाराज को इंदौर के नामी बौंबे हौस्पिटल ले जाया गया. अस्पताल में डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया तो आयुषि दहाड़े मार कर रोतेरोते बेसुध हो गईं और दोनों सेवादार जड़ हो कर रह गए. अस्पताल से खबर मिलने पर पुलिस वहां आई और भय्यूजी महाराज की मौत की पुष्टि के बाद खबर आम हो गई. इस हाईप्रोफाइल संत की आत्महत्या से देश भर में सनाका खिंच गया.

सवालों के ढेर पर भय्यूजी महाराज की आत्महत्या कौन थे भय्यूजी महाराज और कैसे देखते ही देखते करोड़ों भक्तों के आदर्श बन गए? और वह प्रौपर्टी कितनी थी, जिस की जिम्मेदारी वह विनायक को सौंपना चाहते थे, इन सवालों के जवाबों के अलावा उस तनाव और पारिवारिक कलह की वजहें जानना जरूरी है. इससे भी पहले यह जानना जरूरी है कि मौत के दिन क्याक्या हुआ था.

जो हुआ था उस से साफ लग रहा है कि भय्यूजी महाराज का खुदकुशी करने का फैसला और वजह तात्कालिक नहीं थे. वे वाकई लंबे समय से भीषण तनाव में थे. 12 जून को तो उन्होंने इस तनाव से मुक्ति पाने का आखिरी फैसला लिया था. दोपहर कोई सवा 12 बजे भय्यूजी महाराज अपने कमरे से निकले और सीधे बेटी कुहू के कमरे में चले गए थे. इस के पहले उन्होंने अपने कमरे से 3 ट्वीट किए थे. कुहू इसी दिन पुणे से इंदौर आने वाली थी जिसे ले कर भय्यूजी महाराज कुदरती तौर पर खुश थे क्योंकि उन की लाडली करीब 3 महीने बाद घर आ रही थी. 

कुहू के कमरे को अस्तव्यस्त देख उन्हें गुस्सा आया तो उन्होंने नौकरों को फटकार लगाई कि आज कुहू आने वाली है और अभी तक उस के कमरे की साफ सफाई नहीं हुई है. गुस्सा उतारने के बाद उन्होंने शेखर को बुला कर अब तक आई फोन काल की डिटेल्स लीं. उन्होंने उस से कहा कि सभी को कह दो कि कुछ देर बाद बात करूंगा. तब तक उन्हें डिस्टर्ब किया जाए. गौरतलब है कि अपने लिए आई फोन काल्स खुद भय्यूजी महाराज रिसीव नहीं करते थे. यह जिम्मेदारी बीते कई सालों से शेखर उठा रहा था.

डीआईजी हरिनारायणचारी मिश्रा और आईजी (इंटेलीजेंस) मकरंद देउस्कर इस खुदकुशी की जांच में जुट गए, जिन के पास बताने को कुछ नहीं था और जो था वह पुलिस जांच के पहले ही आम हो गया था. हादसे के बाद घर में मौजूद लोगों के बयान लेने के बाद पुलिस इन बातों की पुष्टि भर कर पाई कि हां, भय्यूजी महाराज पारिवारिक कलह की वजह से तनाव में थे और इसी के चलते उन्होंने खुदकुशी की. भय्यूजी महाराज का वास्तविक नाम उदय सिंह देशमुख था. उदय सिंह मालवांचल के पुराने शहर शुजालपुर में एक जमींदार घराने में 1968 में पैदा हुए थे. उदय सिंह केवल खूबसूरत थे बल्कि बेइंतहा प्रतिभाशाली और महत्त्वाकांक्षी भी थे. किशोरावस्था तक तो उन्होंने खेती किसानी में दिलचस्पी ली लेकिन फिर पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई चले गए और वहां एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पद पर नौकरी कर ली.

मुंबई वाकई मुंबई है जो एक बार जिसे अपने मायाजाल में फंसा लेती है उसे आसानी से नहीं छोड़ती. छोटे से पिछड़े कस्बे से आए उदय सिंह को मुंबई की रंगीनियां भा गईं. अपने खूबसूरत चेहरेमोहरे के दम पर उन्होंने मौडलिंग की दुनिया में भी किस्मत आजमाई. सियाराम जैसी नामी सूटिंग कंपनी ने उन्हें मौका दिया लेकिन उदय सिंह प्रोफेशनल मौडल नहीं बन पाए. कामयाबी फिल्मी सी मुंबई में नौकरी करते उदय सिंह को लगा था कि दौलत और शोहरत ही सब कुछ है. बाकी सब मिथ्या है. बस इतना सोचना भर था कि उन्होंने संन्यास लेने का फैसला ले लिया. हैरत की बात यह है कि उन का कोई धार्मिक या आध्यात्मिक गुरु नहीं था अलबत्ता वे दत्तात्रेय को अपना आदर्श मानते थे

दत्तात्रेय एक पौराणिक पात्र हैं जिन के बारे में कहा और माना जाता है कि वे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संयुक्त अवतार थे. दत्तात्रेय हर किसी से कुछ कुछ सीखने के लिए उसे अपना गुरु मान लेते थे, जिन में पशुपक्षी तक शामिल होते थे. सूर्य की उपासना करने वाले भय्यूजी महाराज संत जीवन की शुरुआत में कभी जल समाधि लेने के लिए भी मशहूर थे. हिंदी के अलावा धाराप्रवाह अंग्रेजी, मराठी, मालवी और निमाड़ी भाषा बोलने वाले उदय सिंह के प्रवचनों को लेक्चर कहा जाता था. उन का आध्यात्मिक सफर छोटे से स्तर से शुरू हो कर बड़े मुकाम तक जा पहुंचा. जिस के चलते वह इतने कम वक्त में अपार दौलत और शोहरत के मालिक बन गए थे. इस सब की कल्पना खुद उदय सिंह ने भी नहीं की थी जो भय्यूजी महाराज के नाम से विख्यात हो गए थे.

नाम के लिहाज से देखें तो भय्यूजी महाराज के भक्तों और अनुयायियों की संख्या करोड़ों में जा पहुंची थी. और दाम के लिहाज से आंकें तो मौत के दिन तक उन के पास एक हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा की संपत्ति थी. मालवांचल और महाराष्ट्र के सभी प्रमुख शहरों में उन के आश्रम खुल चुके थे. मध्य प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर को अपना ठिकाना भय्यूजी महाराज ने बनाया था तो इस की एक बड़ी वजह उन की महाराष्ट्र से जुड़े रहने की इच्छा थी. क्योंकि उन के भक्तों में खासी संख्या महाराष्ट्रियनों की है

मौडर्न संत थे भय्यूजी महाराज भय्यूजी महाराज के शौक शाही भी थे और कलात्मक भी. घुड़सवारी और तीरंदाजी के शौकीन भय्यूजी महाराज भजन अच्छा गाते थे और लिखते भी सरल भाषा में थे. सुसाइड नोट को संपादित उन्होंने शायद इसी वजह के चलते किया था कि बात अनावश्यक रूप से बड़ी लगे. भय्यूजी महाराज के लेक्चर दरअसल ब्रह्म या ईश्वर आधारित हो कर मनोवैज्ञानिक ज्यादा होते थे. वे भक्तों को उत्साहित करते, उन में जोश भर देते थे. जब वे बोलते थे यानी लेक्चर देते थे तो ऐसा लगता था मानो साक्षात डेल कार्नेगी या स्वेट मार्टन की आत्मा उन में गई है.

उन्हें बस करना इतना होता था कि इन दो अहम दार्शनिकों के विचारों को हिंदू धर्म और संस्कृति से जोड़ना और उन्हें उस क्षेत्रीय भाषा में प्रस्तुत करना होता था, जहां वे लेक्चर दे रहे होते थे.सीधेसीधे कहा जाए तो भय्यूजी महाराज एक तरह से मेंटर थे, जो आमआदमी की नब्ज पकड़ कर बात करते थे. आप परेशान क्यों हैं, यह बात अगर कोई धर्मगुरु मंच से बता दे और समस्याओं का गैरईश्वरीय हल भी सुझाए तो लोगों का नैराश्य भाव स्वाभाविक रूप से दूर हो जाएगा. यही भय्यूजी महाराज करते थे. सनातन धर्म और धार्मिक कर्मकांडों पर उन का ज्यादा जोर कभी नहीं रहा. अलबत्ता बातबात में वे दत्तात्रेय को जरूर घसीट लाते थे.

जादूटोना, तंत्रमंत्र और ज्योतिष से परे भी समस्याओं का कोई हल होता है, यह बात हमेशा से ही जिज्ञासा का विषय रही है. लोगों की इसी कमजोरी को भय्यूजी महाराज ने खूब भुनाया और देखते ही देखते छा गए. जहां से वे गुजरते थे वहां उन के पैर छूने वालों की लाइन लग जाती थी. लोगों की तकलीफें दूर करने वे शहरशहर प्रवचन शिविर लगाने लगे थे. इंदौर के बापट चौराहे पर उन्होंने सद्गुरु दत्त परमार्थिक ट्रस्ट बनवाया था. आश्रम चौबीसों घंटे खुला रहता था. इंदौर आने वाली हर बस या ट्रेन से उन का कोई कोई भक्त उतरता था. उसे देख आटोरिक्शा वाले तुरंत ताड़ लेते थे कि यह भय्यूजी महाराज का भक्त है.

भय्यूजी महाराज का नाम लोग इज्जत से लेते थे तो इस की वजह सिर्फ इतनी नहीं थी कि उन्होंने अकूत दौलत कमा ली थी बल्कि यह भी थी कि कमाए गए पैसे का बड़ा हिस्सा वे गरीबों और जरूरतमंदों पर खर्च करते थे. इस से हालांकि उन का कारोबार और बढ़ता था, लेकिन उन के जज्बे को इस से नहीं तौला जा सकता. कुछ हट कर काम किए भय्यूजी ने इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पंढरपुर इलाके की वेश्याओं के 51 बच्चों को बतौर पिता अपना नाम दिया था. आमतौर पर संत और धर्मगुरु वेश्याओं से परहेज ही करते हैं, लेकिन समाज के इस जरूरी तबके की अनिवार्यता की अहमियत समझते हुए उन्होंने यह अनूठी पहल कर एक तरह से जोखिम ही उठाया था.

महाराष्ट्र के ही बुलढाना जिले के खामगांव में उन्होंने एक आवासीय स्कूल भी बनवाया था, जिस में करीब 700 आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं. मुमकिन है इस के पीछे उन की एक मंशा ग्राहकों की भीड़ बढ़ाना भी रही हो लेकिन इस से कुछ गरीब आदिवासी बच्चों की जिंदगी तो संवरी और संभली, इस में कोई शक नहीं. बुलढाना में पारधी जाति के आदिवासी रहते हैं जो चोरी और अपराधी प्रवृत्ति के लिए कुख्यात हैं. ये लोग न तो कभी मुख्यधारा से जुड़े और न ही मुख्यधारा हांकने वालों ने चाहा कि यह तिरस्कृत जाति उन से जुड़े.

पारधी सहसा ही किसी बाहरी आदमी पर विश्वास नहीं करते, यही भय्यूजी महाराज के साथ भी हुआ. जब उन्होंने स्कूल खोलने की घोषणा की और निर्माण कार्य भी शुरू हो गया तो उन्हें पारधियों का विरोध भी झेलना पड़ा. लेकिन भय्यूजी महाराज घबराए नहीं. एक बार तो पारधियों ने पथराव कर उन्हें भगा दिया था लेकिन वे अपनी जिद पर अड़े रहे और इस में उन्हें कामयाबी भी मिली. कृषक परिवार से ताल्लुक रखने के कारण वह किसानों की परेशानियां अच्छी तरह समझते थे लिहाजा उन्होंने मध्यप्रदेश के धार और देवास जिलों में लगभग एक हजार तालाब खुदवाए और हर जगह गरीब किसानों को खादबीज वगैरह भी बंटवाए थे. पूजने के लिए इतने काम काफी थे, लेकिन भय्यूजी महाराज का एक अलग चेहरा उस वक्त सामने आया, जब उन्होंने इंदौर में आयोजित हुई धर्मसंसद की आलोचना की थी.

मठों और व्यक्ति पूजा के आलोचक भय्यूजी महाराज का दूसरा चेहरा और दोहरा व्यक्तित्व उस वक्त भी सामने आया था, जब उन्हें उज्जैन में आयोजित सिंहस्थ मेले में आमंत्रित नहीं किया गया था. इस से वह दुखी थे. जाहिर है लीक से हट कर वे इसलिए चल रहे थे कि नाम मिले और उन की चरचा हो और ऐसा हुआ भी. व्यक्ति पूजा को अपराध मानने वाले भय्यूजी महाराज हर गुरु पूर्णिमा पर अपनी पूजा धूमधड़ाके से करवाते थे. जिंदगी शानोशौकत की इस खूबसूरत और हैंडसम युवा संत की व्यक्तिगत जिंदगी शानोशौकत और शौकों से भरी रही.

भय्यू जी महाराज नएनए मौडल की कारों और महंगी स्विस घडि़यों के शौकीन थे. मर्सिडीज और औडी जैसी कारों में चलने वाले इस संत के हाथ में हमेशा रोलेक्स घड़ी जरूर होती थी.भक्तों और अनुयायियों के लिए वे इसी लिहाज से अजूबे थे कि जब वह उन के बीच होते थे तो खालिस संत होते थे, लेकिन लग्जरी लाइफ जीते थे. परंपरागत संतों की छवि तोड़ने वाले भय्यूजी महाराज कभी कभी ट्रैक सूट, पैंट शर्ट में भी नजर आते थे. अच्छे और महंगे कपड़ों का शौक भी उन्हें था.उन के घर और आश्रम में भी आधुनिक सुखसुविधाओं के तमाम गैजेट्स मौजूद थे. भक्तों की सहूलियत का वे उसी तरह ध्यान रखते थे जैसे दुकानदार ग्राहकों का रखता है यानी वे ग्राहक ही भगवान हैं, के सिद्धांत पर चलते थे.

करोड़ोंअरबों की आमदनी का हिसाब भय्यू जी महाराज को मुंह जुबानी याद रहता था और इस से ज्यादा उन्हें यह याद रहता था कि मीडिया को यह गिनाना कि वे संत के रूप में समाजसेवी और पर्यावरणविद हैं जो भक्त से गुरु दक्षिणा में एक पेड़ लगाने को जरूर कहता हैब्रांडिंग के इन अनूठे तरीकों ने भय्यूजी महाराज को कामयाबी के आसमान तक पहुंचा दिया, जहां उस के पास वह सब कुछ होता है जिस की ख्वाहिश हर कोई करता है. महत्त्वाकांक्षी भय्यूजी महाराज को संन्यास लेते ही ज्ञान की एक बात जरूर समझ गई थी कि अगर ब्रांडेड बाबा बनना है तो राजनेताओं और फिल्मी हस्तियों से जरूर संपर्क बढ़ाओ, नहीं तो जिंदगी भर पंडाल लगा कर उपदेश देते रहने से खास कुछ हासिल नहीं होने वाला.

संतों और नेताओं का समीकरण बेहद संतुलित है कि जिस संत के पीछे जितनी ज्यादा भीड़ नजर आती है, उसे भुनाने के लिए नेता भी उस के आगेपीछे दौड़ने लगते हैं. जब संन्यास के 3-4 सालों में ही भय्यूजी महाराज ने अपने दम पर अनुयायियों की खासी भीड़ जुटा ली तो साल 2000 के आसपास महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख की नजर उन पर पड़ी.

दोनों की नजरें मिलीं और विलासराव उन पर मेहरबान हो गए. फलस्वरूप सियासी गलियारों में भय्यूजी महाराज का नाम और इज्जत से लिया जाने लगा. उन्हें महाराष्ट्र सरकार ने राज्य अतिथि का दरजा दे दिया. फिर देखते ही देखते उन के पीछे महाराष्ट्र कांग्रेस के तमाम छोटेबड़े नेता नजर आने लगे, जिन में पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, केंद्रीय मंत्री शरद पवार और पृथ्वीराज चह्वाण जैसे बड़े नाम शामिल थे.

लेकिन भय्यूजी महाराज को अहसास था कि अगर उन पर एक बार कांग्रेसी संत होने का ठप्पा लग गया तो दुकान चलाना मुश्किल हो जाएगा, लिहाजा उन्होंने कांग्रेस से इतर और पींगें बढ़ानी शुरू कीं. अपने घर और आश्रम के दरवाजे उन्होंने भाजपा और शिवसेना के अलावा अछूतों की पार्टी मानी जाने वाली आरपीआई के लिए भी खोल दिए. महाराष्ट्र के शेर कहे जाने वाले शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के अंतिम संस्कार में भय्यूजी महाराज परिवार सहित सक्रिय दिखे थे, तब यह स्पष्ट हुआ था कि वे सभी राजनैतिक दलों के हैं. उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे से उन की नजदीकियां कभी किसी सबूत की मोहताज नहीं रहीं. 

मिला राज्यमंत्री का दरजा इस का यह मतलब नहीं था कि भय्यूजी महाराज कांगे्रस, भाजपा या शिवसेना की विचारधारा से सहमत हो गए थे, बल्कि इस का मतलब यह था कि उन के भक्तों को वोटों की शक्ल में बदलते हुए हर कोई देखना चाहता था.जल्द ही भाजपाई नेता भी उन से जुड़ने लगे. इन में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, स्मृति ईरानी, पंकजा मुंडे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नाम प्रमुख हैं. अपनी अलग पार्टी एनसीपी बना लेने के बाद भी शरद पवार भय्यूजी महाराज के दरबार में हाजिरी लगाते रहे. अलबत्ता रामदास अठावले इकलौती राजनैतिक हस्ती थे, जो उन के अंतिम संस्कार में शामिल होने इंदौर पहुंचे थे.

फिल्मी हस्तियों में मशहूर गायिका लता मंगेशकर उन की मुरीद थीं तो अभिनेता मिलिंद गुणाजी और गायक बप्पी लहरी भी उन के अनुयाई हो गए थे.राजनीतिक स्तर पर पहली दफा भय्यूजी महाराज उस वक्त सुर्खियों में आए थे, जब अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी उपवास तुड़वाने के लिए यूपीए सरकार ने उन्हें भी आमंत्रित किया था. तब मंच पर वे अलग ही चमक रहे थे. गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी का सद्भावना उपवास तोड़ने की भी जिम्मेदारी उन्हें ही सौंपी गई थी.

इसी साल अप्रैल में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिन 5 बाबाओं को राज्यमंत्री का दरजा दिया था, उन में से एक भय्यूजी महाराज भी थे, लेकिन उन्होंने इस पेशकश को ठुकरा दिया था. उन की मौत के बाद कांग्रेसी यह कह कर हमलावर हुए थे कि भय्यूजी महाराज ने मध्य प्रदेश सरकार के दबाव में कर आत्महत्या की है. यह दांव ज्यादा चला नहीं, क्योंकि उन की खुदकुशी की वजह कुछ और ही थी. दूसरी शादी के बाद शुरू हुआ बुरा वक्त

कुल मिला कर भय्यूजी महाराज काफी कुछ हासिल कर चुके थे और आम भक्तों की परेशानियां सुलझाने का अपना काम बखूबी कर रहे थे. लेकिन उन के इर्द गिर्द रहने वाले चुनिंदा लोग ही जानते थे कि दुनियाभर की समस्याएं सुलझाने वाले भय्यूजी महाराज से खुद अपने घर की कलह लाख कोशिशों के बाद भी नहीं सुलझ रही है. अपनी कामयाबी के दिनों में भय्यूजी महाराज ने जो दौलत और शोहरत हासिल की, वह कभी किसी सबूत की मोहताज नहीं रही. लेकिन उन का बुरा वक्त दूसरी शादी के बाद शुरू हुआ, जब  उन्होंने अप्रैल 2017 में आयुषि शर्मा से शादी की थी. उन की पहली पत्नी माधवी निंबालकर का निधन पुणे में 22 जनवरी, 2015 को हुआ था, जिन से उन्हें एक बेटी हुई थी

अपनी बेटी कल्याणी का घर का नाम उन्होंने प्यार से कुहू रखा था. एक साधारण पिता की तरह वे कुहू को बहुत चाहते थे और कुहू भी उन्हें इतना चाहती थी कि पिता की दूसरी शादी बरदाश्त नहीं कर पाई. आयुषि शर्मा मूलत: शिवपुरी के धनियारवाना कस्बे की रहने वाली हैं और उन के पिता अतुल शर्मा कुंडोली नदनबारा मिडिल स्कूल में शिक्षक हैं. पढ़ाई पूरी करने के बाद आयुषि ने कुछ दिन बैंक में नौकरी की और फिर कैरियर संवारने की गरज से पीएच.डी. करने लगीं. 

इसी शोध के सिलसिले में उन का भय्यूजी महाराज के घर और आश्रम में आनाजाना शुरू हुआ था. इंदौर में वह एक हौस्टल में रहती थीं और उन की दोस्ती कई लड़कों से भी थी, जिन की जन्मकुंडली पुलिस खंगाल रही हैभय्यूजी महाराज व्यस्तता के चलते ऐसे शोधार्थियों को ज्यादा वक्त नहीं दे पाते थे, लिहाजा आयुषि की मां और बहन के संपर्क में आई और घंटों उन से बतियाती रहती थीं. इसी दौरान वह भय्यूजी महाराज की बहनों रेणुका और अनुराधा के संपर्क में आईं.

इधर परिजन देख रहे थे कि माधवी की मौत के बाद भय्यूजी महाराज का दिल दुनियादारी से उचटने लगा है तो वे चिंतित हो उठे. भय्यूजी महाराज की एक बहन जिन्हें आयुषि अक्का कहती हैं, ने एक दिन आयुषि के सामने यह प्रस्ताव रख उसे चौंका दिया कि क्या वह उन के भाई से शादी करेंगी. उम्र में भय्यूजी महाराज से आधी यानी 24 साल की आयुषि के लिए यह फैसला लेना कोई कठिन काम नहीं था. भय्यूजी महाराज का साम्राज्य और वैभव वह पहले ही देख चुकी थीं. प्रस्ताव कुछकुछ ऐसा ही था जैसे किसी झोपड़ी में रहने वाली गरीब कन्या को राजकुमार से शादी करने का मौका मिल रहा हो

आयुषि तैयार हो गईं तो भय्यूजी महाराज भी उसे देख कर इनकार नहीं कर पाए. वह थी ही इतनी कमसिन और चंचल कि किसी भी विश्वामित्र की तपस्या भंग करने की क्षमता रखती थींकुहू इस शादी के लिए जरा भी तैयार नहीं थी. यहां भय्यूजी महाराज ने जिंदगी में पहला गच्चा खाया, जो यह सोच रहे थे कि 15 साल की कुहू आज नहीं तो कल आयुषि को मां मान ही लेगी, पर हुआ उलटा. जब शादी के बाद पहली दफा आयुषि घर आई तो गुस्साई कुहू ने पूजा का सामान फेंक दिया.

इस के बाद तो इंदौर बाईपास स्थित सिलवर स्प्रिंग फेज स्थित बंगला नंबर एक किसी पारिवारिक टीवी धारावाहिक का स्टूडियो बन गया, जहां सौतेली मां और बेटी में जम कर कलह होती थी. दोनों एकदूसरे से शक्ल न देखने की हद तक नफरत करती थीं. इन 2 पाटों के बीच पिस रहा था, वह शख्स जिस के आगे करोड़ों लोग श्रद्धा से सिर झुकाते थे और मानते थे कि भय्यूजी महाराज के पास हर परेशानी के ताले की चाबी है. 

निस्संदेह भय्यूजी महाराज आयुषि को चाहते थे, लेकिन कुहू पर तो वे जान छिड़कते थे. उन्होंने बहुत कोशिश की कि मांबेटी झगड़े नहीं करें. इस बाबत वे कुछ भी करने तैयार थे लेकिन ऐसा क्या करें जिससे बिल्लियों की तरह लड़ती मांबेटी मान जाएं यह बताने वाला कोई नहीं था. पुणे में रह कर पढ़ाई कर रही कुहू का खून हर वक्त यह सोचतेसोचते जल रहा होता था कि बाबा आयुषि के साथ घूमफिर रहे होंगे, यह कर रहे होंगे, वह कर रहे होंगे. कोई दूसरी औरत आ कर उस की मां माधवी की जगह ले और रानियों सा हुक्म चलाए, यह उसे किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं था. 

इस बाबत वह सेवादारों की सेवाएं लेती थी, यह बात पुलिस पूछताछ में उजागर हुई थी. लेकिन आयुषि भी कम नहीं थी, उस ने भी एक सेवादार को इस काम के लिए नियुक्त कर रखा था कि वह भय्यूजी महाराज और आयुषि की फोन पर हुई बातचीत का ब्यौरा उसे दे. शुरूशुरू में तो आयुषि यह सोच कर अपमान के घूंट पीती रही कि बच्ची है, भड़ास निकल जाएगी तो ठीक हो जाएगी. इस बाबत भय्यूजी महाराज भी उसे समझाते रहते थे, जिन की एक बड़ी परेशानी यह थी कि उन की दूसरी शादी को भक्तों और परिवारजनों ने भी सहज नहीं स्वीकारा था. कई परिवारजन तो उन के इस फैसले से इतने नाराज थे कि उन्होंने भय्यूजी महाराज से कन्नी काटनी शुरू कर दी थी.

घरेलू कलह बढ़ी तो भय्यू जी महाराज घबरा उठे. आखिरकार उन्होंने बीच का रास्ता यह निकाला कि कुहू को पढ़ाई के लिए विदेश भेज दिया जाए. इस सिलसिले में वे खुदकुशी वाले दिन इंदौर के एक होटल में एक महिला से मिले भी थे, जो अपने बेटे को पढ़ाई के लिए विदेश भेजने वाली थी.हादसे के एक दिन पहले वे पुणे भी जाने वाले थे, लेकिन बीच रास्ते से ही उन्हें लौटना पड़ा था. क्योंकि बारबार उन के पास किसी का फोन रहा था, जिसे सुन कर वह परेशान हो रहे थे. ये फोन किस के थे, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक पुलिस ने यह उजागर नहीं किया था. पुलिस टीम भय्यूजी महाराज का कंप्यूटर, लैपटाप, टैबलेट और मोबाइल जांच के लिए जब्त कर चुकी थी

उन का फोन अटैंड करने वाले शेखर ने पुलिस को दिए अपने बयान में बताया था कि ऐसा पहली बार हुआ था, जब गुरुजी ने फोन खुद अटैंड किए और जब भी काल आई तो कार में मौजूद हम सब लोगों को नीचे उतार कर अकेले में बात की. अगर यह वाकई खुदकुशी है तो संभावना इस बात की भी ज्यादा है कि ये फोन आयुषि और कुहू के ही रहे होंगे. इन तीनों के बीच क्या खिचड़ी पक रही थी, यह खुलासा भी इन पंक्तियों के लिखे जाने तक नहीं हो पाया था. पुलिसिया पूछताछ में ही सेवादारों ने यह बात बताई थी कि भय्यूजी महाराज कुछ दिनों से पैसों की तंगी से इतने जूझ रहे थे कि कुछ दिन पहले उन्होंने अपनी औडी कार 20 लाख रुपये में बेची थी और अपने एक मालदार भक्त से 10 लाख रुपए उधार मांगे थे.

अलबत्ता पुलिस को दिए बयानों में आयुषी और कुहू के बीच खटास और भड़ास खुले तौर पर उजागर हुई. दोनों भय्यूजी महाराज के पार्थिव शरीर के पास 3 फीट के अंतर से बैठी थीं और एकदूसरे की तरफ देख भी नहीं रही थीं. दोनों के बीच किसी तरह की बातचीत का तो कोई सवाल ही नहीं था. कुहू ने जोर दे कर यह कहा कि उस के बाबा की मौत की जिम्मेदार आयुषि ही है, उसे जेल में डाल देना चाहिए. दूसरी ओर आयुषि ने बताया कि कुहू ने उसे कभी मां नहीं माना और हमेशा उस से और उस की 5 महीने की बेटी से नफरत करती रही. यहां गौरतलब है कि आयुषि से पैदा हुई भय्यूजी महाराज की बेटी की बात आश्रम के विश्वसनीय लोग और परिवारजन ही जानते थे.

कलह की समस्याएं इतनी उलझीं कि भय्यूजी को करना पड़ा सुसाइड आखिरकार 12 जून को पत्नी और बेटी की कलह से तंग आकर उन्होंने खुदकुशी कर ली. कुहू और आयुषी दोनों अलगअलग भय्यूजी महाराज की लाश पर विलाप करती रहीं. इस बीच जम कर अफवाहें उड़ीं और भक्तों का इंदौर आने का सिलसिला शुरू हो गया. 13 जून को भय्यूजी महाराज का विधिविधान से अंतिम संस्कार हो गया, जिस की सारी रस्में कुहू ने पूरी कीं. इस दिन राजनेताओं का दोगलापन भी उजागर हुआ. उन का कोई दिग्गज भक्त उन के अंतिम संस्कार में शामिल होने इंदौर नहीं आया. अब चर्चा शुरू हुई कि भय्यूजी महाराज की बेशुमार दौलत की, जिस के बारे में वफादार सेवादार विनायक ने कह कर खुद को विवाद से दूर कर लिया कि जैसा परिवार कहेगा, वह वैसा ही करेगा.

भय्यूजी महाराज के परिवारजनों की एक मीटिंग में यह तय हुआ कि आयुषि को गुरुजी की जायदाद का 30 और कुहू को 70 फीसदी मिलेगा. लेकिन जल्द ही सूर्योदय आश्रम के प्रवक्ता तुषार पाटिल ने इस अफवाह को यह कहते खारिज कर दिया कि अभी ऐसा कोई फैसला नहीं हुआ है.

पुलिस जांच जारी थी, जिस में कुछ नया निकलने की उम्मीद किसी को नहीं दिख रही, सिवाय इस के कि दुनिया भर के लोगों की परेशानियां सुलझाने वाले भय्यूजी महाराज अपने ही घर की कलह नहीं सुलझा पाए तो ऐसे धर्म और अध्यात्म के माने क्या जिस के दम पर उन्होंने अपना एक अलग साम्राज्य स्थापित किया था.                          

    

आश्रम में खूबसूरत महिला को बुलाकर कई बार किया दुष्कर्म

फलाहारी बाबा, वीरेंद्र बाबा, आसाराम और रामरहीम के बाद अब नंबर आया है दाती महाराज का, जिन पर यौनशोषण का आरोप लगा है. आसाराम और रामरहीम को सजा हो चुकी है, जबकि फलाहारी बाबा जेल में हैं. दाती महाराज का क्या होगा, कोई नहीं जानता.   

दिल्ली में छतरपुर स्थित शनिधाम मंदिर के संस्थापक मदनलाल मेघवाल उर्फ दाती महाराज उर्फ मदनलाल राजस्थानी एक युवती के यौनशोषण के आरोपों से घिरे हुए हैं. टीवी चैनलों परशनि शत्रु नहीं मित्रका स्लोगन दे कर पिछले करीब 15 साल से ज्यादा समय से दिल्ली ही नहीं पूरे देश में अपने आभामंडल का प्रभाव फैला कर ख्याति पाने वाले दाती महाराज के खिलाफ एक युवती ने जून के पहले सप्ताह में दिल्ली के फतेहपुर बेरी पुलिस थाने में शिकायत दी. इस शिकायत का मजमून इस प्रकार था

मदनलाल राजस्थानी ने अपने सहयोगियों श्रद्धा उर्फ नीतू, अशोक, अर्जुन आदि के साथ मिल कर 9 जनवरी, 2016 को दिल्ली स्थित आश्रम श्री शनि तीर्थ असोला फतेहपुर बेरी में मेरे साथ दुष्कर्म किया. यह तब हुआ, जब मुझे श्रद्धा उर्फ नीतू ‘चरण सेवा’ के लिए दाती मदनलाल राजस्थानी के पास ले गई. मैं चीखती रही, लेकिन किसी ने मेरी आवाज नहीं सुनी.

इस के बाद 26 से 28 मार्च, 2016 तक राजस्थान के पाली जिले में सोजत शहर स्थित आश्रम में दाती महाराज ने फिर मुझ से वही सब किया, जो दिल्ली के आश्रम में किया था. इस में अनिल और श्रद्धा ने दाती महाराज का साथ दिया. इन 3 दिनों में अनिल ने भी वही सब किया. चरण सेवा के नाम पर इन लोगों ने मेरे शरीर को जानवरों की तरह रौंदा.

इस घृणित कार्य के दौरान श्रद्धा ने कहा कि इस से तुम्हें मोक्ष प्राप्त होगा, यह भी सेवा ही है. तुम बाबा की हो और बाबा तुम्हारे. तुम कोई नया काम नहीं कर रही हो, सब करते आए हैं. कल हमारी बारी थी, आज तुम्हारी बारी है. कल जाने किस की बारी होगी, बाबा समंदर है और हम सब उस की मछलियां हैं. इसे कर्ज समझ कर चुका दो. ये 3 रातें मेरी जिंदगी की सब से भयानक रातें थीं. इन 3 रातों में मेरे साथ जाने कितनी बार दुष्कर्म किया गया. यह सब करते हुए दाती महाराज ने एक बात कही, ‘‘तुम्हारी सेवा पूरी हुई.’’

 इस घटना के बाद मेरी सोचनेसमझने की शक्ति जैसे खत्म हो गई थी. घुटघुट कर जीने से अच्छा है कि एक बार लड़ कर मरूं ताकि इस राक्षस की सच्चाई सब के सामने ला सकूं. जाने कितनी ही लड़कियां यहां मेरी तरह बेबस और लाचार हैं. मुझे नहीं पता कि इस शिकायत के बाद मेरा क्या होगा. शायद मैं आप लोगों के बीच रहूं, पर मेरी पुकार आप सभी के बीच रहेगी. सिर्फ इसी उम्मीद के सहारे ये पत्र लिख रही हूं. शायद मुझे न्याय मिले और दूसरी लड़कियों की जिंदगियां बरबाद होने से बच सके. दाती महाराज को जीने का अधिकार नहीं है.

मेरी एक ही इच्छा है कि इस के कर्मों की सजा फांसी होनी चाहिए. आप से प्रार्थना है कि मेरा नाम, मेरी पहचान और मेरा पता गुप्त रखा जाए. वरना उस के द्वारा दी गई धमकियां तू रहेगी तेरा अस्तित्वसच हो जाएगी. इन्हीं धमकियों की वजह से आज तक मैं चुप रही. मुझे और मेरे परिवार को सुरक्षा प्रदान की जाए. अगर मुझे सुरक्षा नहीं दी गई तो यह तय है कि मैं रहूंगी और मेरा परिवार. सब खत्म हो जाएगा. दाती महाराज बहुत खतरनाक आदमी है. अब तक इसलिए चुप रही कि मुझे नहीं लगता था कि मेरा कोई साथ देगा लेकिन अब बरदाश्त के बाहर हो गया तो इस बारे में अपने मम्मीपापा को बताया. उन्होंने वचन दिया कि आखिरी सांस तक तुम्हारा साथ देंगे.

दाती महाराज के खिलाफ दर्ज हुआ मुकदमा युवती की इस शिकायत पर दिल्ली के फतेहपुर बेरी पुलिस थाने में 10 जून, 2018 को दाती महाराज उर्फ मदनलाल राजस्थानी और अन्य लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस में दुष्कर्म की धारा 376, अप्राकृतिक संबंध की धारा 377, छेड़छाड़ की धारा 354 और धमकी देने की धारा 506 लगाई गई. पुलिस ने इस मामले में दाती महाराज के अलावा 2 महिलाओं और 2 पुरुषों को नामजद किया. इन में एक महिला श्रद्धा उर्फ नीतू और दूसरी नीमा जोशी शामिल थीं. 2 पुरुष दाती महाराज के भाई हैं.

आमतौर पर टीवी चैनलों पर छाए रहने वाले और दिल्ली के फतेहपुर बेरी स्थित शनिधाम मंदिर के संस्थापक दाती महाराज कौन हैं, यह जानने के लिए हमें राजस्थान से शुरुआत करनी होगी. दाती महाराज का असली नाम मदनलाल मेघवाल है. मदनलाल का जन्म 10 जुलाई 1950 को राजस्थान के पाली जिले के आलावास गांव में हुआ था. उस के पिता देवाराम मेघवाल ढोलक बजाने का काम करते थे. मदनलाल के जन्म के कुछ महीने बाद ही उस की मां का निधन हो गया था. पिता ने दूसरी शादी कर ली. इस के बाद गांव के एक आदमी के साथ मदनलाल दिल्ली गया था.

दिल्ली में उस ने कई दिनों तक दिहाड़ी मजदूरी की. फिर चाय की दुकानों पर छोटामोटा काम किया. इस के बाद वह टेंट की दुकान पर काम करने लगा. अपना खुद का काम करने के लिए उस ने कैटरिंग का काम सीखा और बर्थडे एवं छोटीमोटी अन्य पार्टियों में कैटरिंग करने लगा. 1996 में मदन की मुलाकात राजस्थान के एक ज्योतिषी से हुई. उस ज्योतिषी से उस ने जन्मपत्री और कुंडली वगैरह देखना सीख ली. इस के बाद मदनलाल ने कैटरिंग का काम छोड़ कर दिल्ली की कैलाश कालोनी में ज्योतिष केंद्र खोल लिया. साथ ही उस ने अपना नाम मदनलाल से बदल कर दाती महाराज कर लिया. उस ने अपना हुलिया और चोला भी बदल लिया था. 

मदनलाल ने लोगों की कमजोर नस पकड़ी और अपना ज्योतिष ज्ञान शनि ग्रह के आसपास कें्रदित रखा. ऐसा इसलिए कि धर्मभीरु लोग सब से ज्यादा शनि से ही घबराते हैं. दाती महाराज लोगों की जन्मपत्री देख कर शनि की चाल का खौफ दिखाने लगा. साथ ही शनि के खौफ से बचने के ऐसे उपाय भी बताने लगा, जिस से उसे लाभ हो. सन 1998 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने थे. इस दौरान एक नेता की जन्मपत्री देख कर दाती ने कह दिया कि वह चुनाव जीत जाएगा. परिस्थितियां ऐसी बनीं कि वह नेता चुनाव जीत गया. इस खुशी में उस नेता ने फतेहपुर बेरी के अपने पुश्तैनी मंदिर का काम दाती मदनलाल को सौंप दिया.

बस फिर क्या था दाती महाराज के सितारे चमक उठे. वह राजनीतिक और कई तरह की भविष्यवाणी करने लगा. संयोग ऐसा रहा कि उन में से कुछ भविष्यवाणियां सच हो गईं. इस से दाती महाराज चर्चा में रहने लगा और उस की पूछ बढ़ गई. न्यूज चैनलों के माध्यम से टीवी तक 

पहुंचे दाती महाराज इस बीच दाती महाराज ने फतेहपुर बेरी में नेताजी द्वारा दिए गए मंदिर में शनिधाम मंदिर की स्थापना कर दी थी. मंदिर में आश्रम भी बना लिया था. साथ ही पाली के आलावास गांव से अपने 3 सौतेले भाइयों अशोक, अर्जुन और अनिल को भी दिल्ली बुला लिया था. आरोप है कि दाती ने अपने भाइयों अन्य सहयोगियों के साथ मिल कर शनिधाम मंदिर के आसपास की जमीनों पर कब्जा कर लिया. दाती के सारे कामकाज, दिल्ली पाली स्थित आश्रम, कालेज अस्पताल का प्रबंधन तीनों सौतेले भाई देखते थे. वे ही रुपएपैसे का भी हिसाबकिताब रखते थे. दाती महाराज के सितारे बुलंदी पर पहुंच गए तो उस ने टीवी चैनलों परशनि शत्रु नहीं मित्र हैके नाम से कार्यक्रमों का प्रसारण शुरू करवा दिया. साथ ही दाती ने खुद का यूट्यूब चैनल भी शुरू किया. टीवी कार्यक्रमों के जरिए दाती देश भर में मशहूर हो गया. वह शनि महाराज के नाम से ही पहचाना जाने लगा

सांवला रंग, माथे पर तिलक, सिर पर लंबे बाल, चेहरे पर संवरी हुई काली दाढ़ी के बीच ठोढ़ी पर सफेद रंग और गले में रुद्राक्ष की माला, यही पहचान बनी दाती महाराज की. दाती महाराज केवल शनि ग्रह को शांत रखने के उपाय बताता था. दरअसल, ग्रहनक्षत्रों में केवल शनि ही ऐसा ग्रह है, जो सब से ज्यादा समय तक मानव जीवन को प्रभावित करता हैमिली महामंडलेश्वर की उपाधि कहा जाता है कि शनि के प्रभाव से इंसान रंक से राजा और राजा से रंक बन सकता है. दाती ने शनि ग्रह को भुनाने की कोशिश की और इसी के मद्देनजर अपने संस्थान का नाम शनिधाम रखा, जहां वह केवल शनि ग्रह पर ही चर्चा करता था.

सन 2010 में हरिद्वार में आयोजित महाकुंभ में श्री पंचायती महानिर्वाण अखाड़े की ओर से दाती महाराज को महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई. इस के बाद उस ने अपना नाम श्रीश्री 1008 महामंडलेश्वर परमहंस दाती महाराज रख लिया. इस से पहले दाती महाराज दिल्ली के छतरपुर इलाके के फतेहपुर बेरी में शनिधाम मंदिर का निर्माण करा चुके थे. इस मंदिर को उस ने श्री सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम पीठाधीश्वर नाम दिया. मंदिर में 2003 में शनिदेव की प्रतिमा स्थापित की गई. इस मंदिर में बने आश्रम में अस्पताल, गौशाला अनाथालय भी हैं. बाद में दाती ने पाली के आलावास गांव में भी आश्रम बनवाया. इस के अलावा उन्होंने उज्जैन में भी अपने आश्रम की स्थापना की.

दुष्कर्म के मामले में जिस महिला श्रद्धा को भी आरोपी बनाया गया है, वह दिल्ली और पाली के आश्रम का कामकाज संभालती थी. ट्रस्ट में दाती महाराज के बाद दूसरे नंबर का स्थान श्रद्धा का ही था.दाती महाराज के तमाम प्रमुख राजनेताओं और नौकरशाहों से संबंध हैं. उन्होंने कई प्रमुख नेताओं के साथ अपनी फोटो के फ्लैक्स आश्रम सहित पूरी दिल्ली में लगवा रखे थे. इन के जरिए वह अपना राजनीतिक रसूख दिखाते थे. फतेहपुर बेरी स्थित आश्रम पर शनि अमावस्या पर होने वाले कार्यक्रम में देश भर से कई प्रमुख नेता और दिग्गज हस्तियां आती थीं. बेटियों का जन्मदिन मनाने, अनाथ बेटियों की शादी करवाने और कंबल बांटने जैसे कामों से दाती महाराज ने सुर्खियां बटोरीं.

डरी हुई थी पीडि़ता अब बात करते हैं पीडि़ता की. मूलरूप से उत्तर प्रदेश की रहने वाली यह लड़की आजकल दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहती है. उस के परिवार में मातापिता, 2 बहनें और एक भाई है. दोनों बहनों की शादी हो चुकी है. करीब 25 साल की पीडि़ता दाती महाराज के उपदेश सुनने नियमित तौर पर उन के आश्रम जाती थी. दाती के एक सहयोगी ने उस की मुलाकात दाती से कराई. इस के बाद 2007 से 2016 तक वह सेवादार के तौर पर दाती के आश्रम में रही. उस ने दाती के आश्रम के सहयोग से अजमेर से एमसीए किया था

बाद में वह अपने परिवार के साथ रहने लगी थी. लेकिन इस बीच उस का आश्रम में आनाजाना लगा रहा. इसी दौरान फरवरी 2016 में पहली बार दिल्ली के शनि मंदिर में उस से दुष्कर्म किया गया. फिर मार्च 2016 में उसे राजस्थान के पाली ले जा कर दुष्कर्म किया गया. पीडि़ता का कहना है कि दाती महाराज ने उसे पुलिस में शिकायत नहीं करने के लिए धमकाया था. युवती ने पुलिस को बताया कि डर के मारे वह इतने समय तक चुप रही. परिवार की बदनामी का भी डर था.

पुलिस में रिपोर्ट दर्ज होने पर दाती महाराज ने कहा कि उन्हें बदनाम करने की साजिश के तहत उन के खिलाफ झूठा मामला दर्ज कराया गया है. दाती ने दावा किया कि पीडि़ता अपनी 2 अन्य बहनों के साथ आश्रम में रहती थी. वह खुद 2 साल पहले अपनी मरजी से आश्रम छोड़ने से पहले खुद शपथपत्र दे कर गई थी. कुछ लोगों ने इस लड़की और उस के पिता को प्रलोभन दिया, जिस से ये लोग मुझ पर आरोप लगाने को तैयार हो गए. दाती का कहना था कि 2015 में अभिषेक नाम का आदमी शनिधाम में आता था. उस ने सेवादारों से मेलमिलाप बढ़ाया. इस में कई लोग शामिल थे, इन्होंने पैसे का लेनदेन किया. विवाद होने पर अभिषेक ने उन्हें बताया कि उस ने सारा पैसा दाती महाराज को दिया है. दाती ने कहा कि अभिषेक ने उन्हें कोई पैसा नहीं दिया. इस के बाद उन लोगों ने यह साजिश रची.

पुलिस में रिपोर्ट दर्ज होने पर दाती महाराज गायब हो गए. वह बिना किसी को बताए दिल्ली छोड़ कर राजस्थान के पाली स्थित अपने आश्रम में चले गए. आश्रम में पुलिस की काररवाई इस के दूसरे दिन 11 जून को पीडि़ता ने दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल से मुलाकात कर अपनी आपबीती सुनाई. पीडि़ता से मुलाकात के बाद स्वाति ने ट्वीट कर कहा कि पीडि़ता गहरे सदमे में है. साथ ही उस की जान को खतरा भी है. इसलिए दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर तत्काल उसे सुरक्षा मुहैया कराने और दाती महाराज को गिरफ्तार करने को कहा गया है. पुलिस ने सफदरजंग अस्पताल में पीडि़ता की मैडिकल जांच कराई.

पुलिस ने 12 जून को पीडि़ता के साकेत कोर्ट में धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराए. इस में पीडि़ता ने बताया कि 9 फरवरी, 2016 को दाती की सेवादार श्रद्धा उसे असोला स्थित शनिधाम आश्रम में चरण सेवा के लिए दाती के पास ले गई. मुझे गुफानुमा अंधेरे कमरे में सफेद रंग के कपड़े पहना कर भेजा गया. वहां दाती ने कहा, ‘मैं तुम्हारा प्रभु हूं. इधरउधर क्यों भटकना. मैं सब वासना खत्म कर दूंगा.’ फिर दाती व उस के सहयोगियों ने मेरे साथ दुष्कर्म किया. मार्च में पाली में यही कहानी दोहराई गई.

दाती महाराज ने 12 जून को विभिन्न समाचार चैनलों को मोबाइल से वीडियो बना कर भेजा और खुद पर लगे आरोपों को खारिज करते हुए पुलिस जांच में शामिल होने की बात कही. उन्होंने कहा कि वह फरार नहीं है. इसी दिन पाली जिले के आलावास स्थित आश्रम की निदेशिका श्रद्धा ने दावा किया कि बाबा पाली स्थित आश्रम में हैं. फिलहाल पुलिस ने उन से कोई संपर्क नहीं किया है. जांच में पूरा सहयोग किया जाएगा. मामला हाईप्रोफाइल होने के कारण दिल्ली के पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने इस मामले की जांच 12 जून को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंप दी. इसी के साथ पुलिस ने पीडि़ता और उस के परिवार को जान का खतरा देखते हुए सुरक्षा मुहैया करा दी.

दाती ने दावा किया कि वह फरार नहीं है 13 जून को दाती महाराज पाली जिले के आलावास स्थित श्री आश्वासन बालग्राम में दिन भर रहे. इस दौरान वह साधकों और मीडियाकर्मियों से मिलते रहे. मीडिया के समक्ष उन्होंने फिर दोहराया कि वह निर्दोष है. उन्हें झूठा फंसाया जा रहा है. दाती महाराज पर यौनशोषण का आरोप लगने के बाद पाली जिले में सोजत रोड पर स्थित आलावास आश्रम में रहने वाली 500 से ज्यादा बच्चियों के घरवाले वहां पहुंचने लगे. ये लोग अपनी बच्चियों की खैरखबर लेने आए थे.

14 जून को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने सर्चवारंट ले कर असोला स्थित शनिधाम मंदिर पर छापा मारा. इस दौरान पीडि़ता भी पुलिस दल के साथ मौजूद रही. पुलिस ने पीडि़ता के साथ उस जगह की पहचान की, जहां उस से दुष्कर्म किया गया था. सर्च अभियान के दौरान क्राइम ब्रांच टीम ने मंदिर में सेवादारों सहित अन्य लोगों से पूछताछ की और सबूत जुटाए. पुलिस ने कहा कि बाबा की गिरफ्तारी को ले कर कोई जल्दबाजी नहीं है. पहली कोशिश पर्याप्त सबूत जुटाने की है, ताकि बाद में अदालत में केस कमजोर पड़े.

दुष्कर्म के आरोपों में फंसने पर दाती के विदेश भागने की आशंका को देखते हुए 14 जून को दिल्ली पुलिस ने दाती का लुकआउट नोटिस जारी कर दिया. साथ ही सभी हवाईअड्डों को दाती के मामले की सूचना दे दी गई. एयरपोर्ट अथौरिटी से कहा गया कि दाती विदेश जाते हैं तो पहले दिल्ली पुलिस को सूचना दी जाए. इस बीच दाती महाराज ने आलावास आश्रम से ही मीडिया से कहा कि वह 18 जून, 2018 को दिल्ली पुलिस के सामने पेश होंगे. उन्होंने कहा कि उन्हें 18 जून तक का समय दिया जाए ताकि वह गुरुकुल में रहने वाली बच्चियों के लिए आवश्यक व्यवस्था कर सकें. दूसरी ओर, दिल्ली महिला आयोग ने दाती की गिरफ्तारी होने पर नाराजगी जताते हुए दिल्ली पुलिस को नोटिस दे कर जवाब मांगा.

दिल्ली के असोला स्थित शनिधाम मंदिर में क्राइम ब्रांच का सर्च अभियान 15 जून को भी चला. इस दौरान पुलिस ने कई सबूत जुटाए. मौके से डीवीआर हार्डडिस्क, पैनड्राइव आदि जब्त किए. मंदिर की तलाशी के दौरान क्राइम ब्रांच की टीम के साथ पीडि़ता भी रही, उस ने मंदिर में बने आश्रम के वे 2 कमरे पुलिस को दिखाए, जिन में उस से दुष्कर्म किया गया था. दिल्ली के आश्रम की तलाशी का काम पूरा होने के बाद 15 जून को ही क्राइम ब्रांच की एक टीम पीडि़ता को साथ ले कर पाली के लिए रवाना हो गई. इसी के साथ दिल्ली पुलिस ने दाती महाराज को नोटिस जारी कर के पूछताछ के लिए 16 जून को दिल्ली तलब किया. हालांकि पुलिस के नोटिस पर दाती ने जांच में शामिल होने के लिए 18 जून तक का समय मांगा.

16 जून को क्राइम ब्रांच की टीम जब पाली जिले के आलावास स्थित उन के आश्रम में पहुंची तो इस से पहले ही वह वहां से फरार हो गए. उन के साथ आश्रम की संचालिका श्रद्धा और अन्य सहयोगी भी भाग गए. दाती ने अपना मोबाइल भी स्विच्ड औफ कर लिया. दूसरी ओर दिल्ली स्थित आश्रम से बाबा के भाई भी भूमिगत हो गए. एसीपी जसवीर मलिक के नेतृत्व में पहुंची क्राइम ब्रांच टीम ने आलावास आश्रम में 3 घंटे तक जांचपड़ताल की. इस दौरान पीडि़ता भी पुलिस टीम के साथ रही. पीडि़ता ने पूरे आत्मविश्वास के साथ उन 6 कमरों की तसदीक कराई, जहां उस के साथ यौनाचार हुआ था

 पुलिस टीम ने आश्रम से कई सबूत जुटाए. जांच काररवाई की वीडियोग्राफी भी कराई गई. पुलिस ने आश्रम के सीसीटीवी कैमरे भी खंगाले और उन की डीवीआर हार्डडिस्क जब्त कर ली. कई रजिस्टर दस्तावेज भी जब्त किए गएइस दौरान आश्रम के उपमुख्य संचालक सहित करीब 20 सेवादारों से पूछताछ कर उन के बयान लिए गए. पीडि़ता के साथ रही बालिकाओं युवतियों के भी बयान दर्ज किए गए. सर्च वारंट से ली गई आश्रम की तलाशी के दौरान वहां पुलिस बल तैनात रहा.

पुलिस टीम को आलावास आश्रम में उस समय हैरानी हुई, जब वहां लगभग 100 बालिकाएं ही मिलीं. अधिकांश कमरे खाली मिले, जबकि दाती कई दिनों से दावा कर रहे थे कि इस आश्रम में 700 से अधिक बालिकाएं हैं. पुलिस को संदेह है कि आश्रम में रहने वाली बालिकाओं को दाती ने जबरन घर या अन्यत्र भेज दिया, क्योंकि दाती को डर था कि क्राइम ब्रांच की टीम बालिकाओं के बयान लेगी और उन से पूछताछ करेगी तो उस की पोल खुल सकती है. दिल्ली पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है क्योंकि आश्रम में दाती की बिना अनुमति कोई आजा नहीं सकता था.

16 जून को क्राइम ब्रांच टीम दिल्ली में दाती महाराज का इंतजार करती रही लेकिन वह नहीं पहुंचे. दाती ने पुलिस से 18 जून तक का समय पहले ही मांग लिया था. दाती के पाली आश्रम में भी नहीं मिलने पर पुलिस ने नोटिस जारी कर उन से 18 जून को पेश होने को कहा. बाबा पर दुष्कर्म का आरोप लगने के बाद पहली बार 16 जून शनिवार को दिल्ली स्थित शनिधाम मंदिर में दाती महाराज की गैरमौजूदगी में पूजा की गई. सुबह साढ़े 5 बजे होने वाली पूजा आश्रम के सेवादारों ने की. इस से पहले प्रत्येक शनिवार को होने वाली इस पूजा को दाती महाराज ही करते थे. दाती पर आरोपों के कारण इस दौरान उन के सेवादार श्रद्धालुओं पर नजर रखे हुए थे.

16 जून को पाली स्थित आश्रम से फरार हुए दाती और आश्रम संचालिका श्रद्धा 17 जून को भी पुलिस या मीडिया के सामने नहीं आए. पुलिस 17 जून को दिल्ली एवं पाली स्थित आश्रमों पर नजर रखे रही, लेकिन दाती दोनों जगह ही नहीं पहुंचे. पुलिस को उम्मीद थी कि दाती 18 जून को दिल्ली में पुलिस के सामने पेश हो जाएंगे. इस बीच क्राइम ब्रांच को दाती के खिलाफ ठगी की कई शिकायतें मिलीं. इन में धन दोगुना करने का झांसा दे कर रकम हड़पने की शिकायत भी शामिल रही. क्राइम ब्रांच ने इन शिकायतों को भी जांच के दायरे में ले लिया. दाती महाराज समेत पांचों आरोपी 18 जून को भी दिल्ली में क्राइम ब्रांच के समक्ष पेश नहीं हुए. दाती की ओर से उन के वकील ने क्राइम ब्रांच में पेश हो कर दाती के स्वास्थ्य कारणों का हवाला दे कर पूछताछ को पेश होने के लिए एक सप्ताह की मोहलत मांगी

इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने कानूनविदों से सलाह कर दूसरा नोटिस जारी किया और दाती समेत सभी 5 आरोपियों को पेश होने के लिए 20 जून, 2018 तक का समय दे दिया. साथ ही यह भी कह दिया गया कि 20 जून तक हाजिर नहीं हुए तो उन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया जाएगा. इस के बाद पुलिस ने जांच काररवाई तेज कर सभी आरोपियों के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. वहीं जयपुर से सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता तथा बाल अधिकार विभाग की एक टीम उपनिदेशक के नेतृत्व में पाली स्थित आश्रम पहुंची और गायब बच्चियों के बारे में जानकारी जुटाई. इस के अलावा आश्रम के पंजीयन का नवीनीकरण कई साल से नहीं होने के मामले की भी जांच की.

इस बीच, योगगुरु स्वामी रामदेव ने 18 जून को कोटा में यह कह कर इस पूरे मामले में उबाल ला दिया कि जिन साधुओं का चरित्र ठीक नहीं है, उन्हें फांसी पर लटका देना चाहिए. केवल भगवा वस्त्र पहनने से साधु नहीं बनते, उन का आचरण चरित्र भी ठीक होना चाहिए. धर्माचार्यों को भी चाहिए कि वे ऐसे संन्यासियों की गारंटी लें. दबाव बढ़ने पर हाजिर होना पड़ा क्राइम ब्रांच के सामने 19 जून की दोपहर दाती महाराज दिल्ली में चाणकयपुरी स्थित क्राइम ब्रांच के औफिस में हाजिर हो गए. दरअसल, दाती के अचानक हाजिर होने के पीछे की कहानी यह रही कि दिल्ली की साकेत कोर्ट ने 21 जून तक दिल्ली पुलिस से स्टेटस रिपोर्ट मांगी. इस पर पुलिस ने दाती के वकील के जरिए उन पर तुरंत हाजिर होने का दबाव बनाया.

इस बीच पुलिस को पता चला कि दाती महाराज दिल्ली में ही एक पांचसितारा होटल में ठहरे हुए हैं. पुलिस के भारी दबाव के चलते दाती 3 दिनों तक भूमिगत रहने के बाद 19 जून की दोपहर अपने वकील के साथ क्राइम ब्रांच के औफिस पहुंचेक्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने दाती से 7 घंटे तक पूछताछ कर करीब डेढ़ सौ सवाल किए. दाती के कुछ जवाबों से पुलिस अधिकारी संतुष्ट नहीं थे. बाद में उन्हें रात 10 बजे छोड़ दिया गया और 22 जून को फिर हाजिर होने के निर्देश दिए.

अब सवाल दाती की गिरफ्तारी का नहीं, बल्कि इस बात का है कि दाती को अपनी बेगुनाही के सबूत खुद देने होंगे. अगर दाती ने गुनाह किया है तो पुलिस गिरफ्तार भी करेगी और अदालत में मुकदमा भी चलेगा. गुनहगारों को कानून सजा देगा. यह तय है कि इस मामले से लोगों का बाबाओं से भरोसा और कम हुआ है.

देखना यह है कि खुद को निर्दोष बताने वाले दाती महाराज पर शनि की कृपा होती है या उन के सिर पर शनि की ढैय्या गिरती है

देवर ने रेता भाभी का गला, काटा सीना

दूरदराज से रोजीरोटी के लिए महानगरों में कर रहने वाले लोग जरूरत पड़ने पर अपने रिश्तेदार, करीबी और अपने गांव के लोगों की यह सोच कर मदद कर देते हैं कि उन की भी रोजीरोटी का साधन बन जाएगा. लेकिन कई बार उन्हीं में कोई आस्तीन का सांप भी निकल आता है. हितेश कर्तकपांडी ऐसा ही सांप था…  

54 वर्षीय धनंजय नारायण तांडेल दक्षिण मुंबई के समुद्र किनारे बसी पौश कालोनी कोलाबा की सुंदर नगर बस्ती में अपने परिवार के साथ रहते थे. परिवार में उन के अलावा 2 बेटे और एक सुंदर सी बहू थी. उन की पत्नी का काफी समय पहले देहांत हो चुका था. उन का छोटा सा परिवार था, जहां सभी लोग सुखचैन से रह रहे थेधनंजय नारायण सुंदर नगर में करीब 30 सालों से रहते रहे थे. उन के प्रेमिल स्वभाव की वजह से बस्ती के सारे लोग उन के परिवार को खूब मानसम्मान देते थे.

धनंजय नारायण का बड़ा बेटा महेंद्र तांडेल मुंबई की एक प्रतिष्ठित कंपनी में काम करता था, जबकि छोटा बेटा चेतन कोलाबा के एक शोरूम में नौकरी करता था. तांडेल भी एक शोरूम में चपरासी थे. सभी लोग सुबह को अपनेअपने काम पर निकल जाने के बाद सब शाम को ही घर लौटते थे. महेंद्र की पत्नी श्वेता सुबह जल्दी उठ कर सब के लिए टिफिन और चायनाश्ता तैयार करती और उन के जाने के बाद घर के रोजमर्रा के कामों में जुट जाया करती थी.

घटना 10 मई, 2017 की है. हमेशा की तरह घर के सभी लोग अपनेअपने काम पर निकल गए थे. दोपहर लंच के बाद महेंद्र तांडेल ने अपनी आदत के अनुसार पत्नी श्वेता को फोन किया. यह उन का रोजाना का नियम था. काफी देर तक घंटी बजती रही. लेकिन श्वेता ने उस की काल रिसीव नहीं की. बारबार नंबर मिलाने के बाद भी जब श्वेता ने फोन रिसीव नहीं किया तो महेंद्र के दिल की धड़कनें तेज हो गईं, क्योंकि इस से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था.

वह हमेशा महेंद्र के फोन की राह देखा करती थी. श्वेता कहां है और क्या कर रही है, यह जानने के लिए महेंद्र ने अपने पड़ोसी को फोन कर के श्वेता के बारे में पूछा. कुछ समय बाद पड़ोसी ने महेंद्र को जो खबर दी, उस से वह चौंक गया. पड़ोसी ने बताया कि श्वेता ने घर का मुख्य दरवाजा बंद कर रखा है और घर के अंदर तेज आवाज में टीवी चल रहा है. दरवाजा थपथपाने और आवाज देने पर भी वह दरवाजा नहीं खोल रही. ऐसी क्या बात हो गई जो श्वेता दरवाजा बंद कर के तेज आवाज में टीवी देख रही है.

महेंद्र ने बिना देर किए अपने पिता धनंजय को सारी बातें बता कर उन्हें घर पहुंचने को कहा. बेटे की बात सुन कर धनंजय घर की तरफ निकल गए. किसी अनहोनी के खयाल से वह रास्ते भर परेशान रहे. घर पहुंचने के बाद उन्होंने जैसेतैसे कर के दरवाजा खोला तो अंदर का जो नजारा था,उसे देख कर उन के होश उड़ गए. बहू श्वेता की बाथरूम में लहूलुहान लाश पड़ी थी. उन्होंने यह जानकारी अपने दोनों बेटों को दी तो वे भी थोड़ी देर में रोतेपीटते घर पहुंच गए.

पड़ोसियों ने पूरे परिवार को धीरज बंधाते हुए मामले की खबर पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी. कोलाबा के थानाप्रभारी विजय धोपावकर को जब पुलिस कंट्रोल रूम से यह जानकारी मिली तो वह पीआई इमाम शिंदे, सुभाष दुधगांवकर, एपीआई विजय जाधव, सुदर्शन चव्हाण, अमोल ढोले, महिला एसआई प्रियंका देवकर, कांस्टेबल प्रवीण भालेराव, निकम पाटिल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन्होंने इस की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी.

घटनास्थल कोलाबा थाने से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर था, इसलिए पुलिस टीम करीब 10 मिनट में वहां पहुंच गई. तब तक धनंजय के मकान के पास मोहल्ले के तमाम लोग जमा हो चुके थे. पुलिस जब मकान में पहुंची तो घर का सारा सामान बिखरा पड़ा था. कांच के कई बरतन टूटे हुए थे. श्वेता का शव बाथरूम के अंदर पड़ा हुआ था. उस के गले और छाती पर चाकू के कई गहरे घाव थे. उस के बदन पर सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज था, जो कई जगह से फटा हुआ था, जिस से यह संभावना लग रही थी कि अभियुक्त उस के साथ मनमानी करना चाहता था. कमरे की स्थिति देख कर ऐसा लग रहा था जैसे मृतका और अभियुक्त के बीच काफी हाथापाई वगैरह हुई थी.

थानाप्रभारी अभी घटनास्थल का निरीक्षण और पूछताछ कर ही रहे थे कि डीसीपी मनोज कुमार शर्मा, एसीपी राजेंद्र चव्हाण भी वहां पहुंच गए. मौकामुआयना करने के बाद अधिकारियों ने वहां मौजूद लोगों से बात की. इस के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल की काररवाई पूरी कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए जे.जे. अस्पताल भेज दी. डीसीपी के दिशानिर्देश के बाद थानाप्रभारी विजय धोपावकर ने जांच की एक रूपरेखा तैयार की, जिस की जिम्मेदारी उन्होंने पीआई इमाम शिंदे और सुभाष दुधगांवकर को सौंप दी थी

घटनास्थल कोलाबा जैसे पौश इलाके में था, जहां सेना के तीनों अंगों के अधिकारियों की कालोनियां हैं. मामला कहीं तूल पकड़ ले, इसलिए डीसीपी ने कोलाबा पुलिस की सहायता के लिए माता रमाबाई अंबेडकर पुलिस थाने के तेजतर्रार थानाप्रभारी सुखलाल बर्पे को भी लगा दिया. थानाप्रभारी सुखलाल बर्पे ने मामले की समानांतर रूप से जांच शुरू कर दी. कोलाबा थाने की पुलिस टीम मृतक के ससुराल वालों से बातचीत कर परिजनों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन कर ही रही थी कि समानांतर जांच कर रहे पीआई सुखलाल बर्पे ने एक गुप्त सूचना के आधार पर श्वेता के कातिल का पता लगा कर उसे हिरासत में ले लिया

पीआई सुखलाल बर्पे ने अपने सहायकों के साथ अपनी जांच का मुख्य केंद्र मृतक श्वेता के परिवार को ही बनाया था, क्योंकि वह यह जानते थे कि इस तरह की घटना अधिकतर अपनी जानपहचान वालों के बीच ही घटती है. इसलिए उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से अध्ययन किया थाइस विषय में उन्हें अधिक से अधिक जानकारी मृतका के परिवार वालों से ही मिल सकती थी. उन्होंने श्वेता के साथ रहने वालों की जन्मकुंडली को खंगाला. उन्हें अपनी इस मुहिम में कामयाबी भी मिली. तांडेल परिवार का करीबी और चेतन तांडेल का जिगरी दोस्त हितेश कर्तकपांडी उन के रडार पर गया.

14 मई, 2017 को पीआई सुखलाल बर्पे की जांच टीम ने उसे फोर्ट इलाके के एक शोरूम से हिरासत में ले लिया. पुलिस टीम के अनुसार, जिस दिन यह घटना घटी थी, उस दिन वह सब के साथ काम पर गया जरूर था लेकिन कुछ ही समय बाद वापस घर लौट आया. इस के अलावा वह पुलिस के एक भी सवाल का जवाब सही ढंग से नहीं दे पाया थाकोलाबा पुलिस और माता रमाबाई अंबेडकर थाने की संयुक्त टीम ने हितेश से पूछताछ शुरू की तो उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. उस ने श्वेता की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

23 वर्षीय हितेश कर्तकपांडी महाराष्ट्र के जिला पालघर के उसी गांव का रहने वाला था, जिस गांव के धनंजय नारायण तांडेल मूल निवासी थे. पारिवारिक स्थिति ठीक होने के कारण धनंजय तांडेल रोजीरोटी की तलाश में महानगर मुंबई गए थेवह कोई ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं थे, इसलिए उन्हें कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने एक शोरूम में चपरासी की नौकरी कर ली. फिर वह सुंदर नगर बस्ती में किराए पर रहने लगे. बाद में वह अपने बीवीबच्चों को भी ले आए

उन के बीवीबच्चों को मुंबई आए अभी कुछ ही साल हुए थे कि अचानक उन की पत्नी की मृत्यु हो गई. पत्नी की मौत के बाद वह टूट से गए थे, लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को नहीं टूटने दिया. दोनों बेटों को उन्होंने पढ़ालिखा कर इस काबिल बना दिया कि उन की नौकरी लग गई. परिवार में आमदनी बढ़ी तो उन्होंने सुंदरनगर में ही खुद का एक मकान खरीद लिया. धनंजय तांडेल की पत्नी के गुजर जाने के बाद घर सूनासूना सा हो गया था. ऐसे में उन्होंने अपने बड़े बेटे महेंद्र तांडेल का विवाह श्वेता से कर दिया. श्वेता देखने में जितनी सुंदर थी, उतनी ही पढ़ीलिखी और घर के काम में होशियार थी. 

श्वेता और महेंद्र के विचार आपस में खूब मिलते थे, इसलिए दोनों ही एकदूसरे को बहुत चाहते थे. औफिस पहुंचने के बाद भी महेंद्र को जब भी समय मिलता, वह श्वेता को फोन कर लेता था. उन की शादी के 2 साल कैसे बीत गए, पता ही नहीं चलाधनंजय अपने दोनों बेटों के साथ कभीकभी अपने पैतृक गांव भी जाते रहते थे. उन के छोटे बेटे चेतन की गांव के ही हितेश कर्तकपांडी से दोस्ती हो गई थी. दोनों ही हमउम्र थे. चेतन जब कभी अपने गांव जाता तो हितेश के साथ सैरसपाटा करता था.

जब हितेश कामधंधे की तलाश में मुंबई आया तो तांडेल परिवार ने उस की काफी मदद की. इतना ही नहीं, महेंद्र ने कोशिश कर के उस की कोलाबा के प्यूमा शोरूम में नौकरी भी लगवा दी. उस के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, उस के रहने का बंदोबस्त भी उस ने अपने घर में ही कर दिया था. पहली मंजिल पर धनंजय, उन का बेटा चेतन और चेतन का दोस्त हितेश रहता था, जबकि नीचे के भाग में महेंद्र अपनी पत्नी श्वेता के साथ रहता था.

कुछ दिनों तक तो हितेश कर्तकपांडी ठीक रहा, लेकिन जैसेजैसे वह महेंद्र के परिवार में घुलता गया, उस की झिझक भी दूर हो गई. वह श्वेता से कुछ ज्यादा ही घुलनेमिलने लगा. देवर का रिश्ता होने की वजह से दोनों के बीच हंसीमजाक भी चलती रहती थी. हितेश श्वेता को अपने रंग में रंगने की कोशिश करने लगा. यानी वह श्वेता को मन ही मन चाहने लगा था, जबकि श्वेता केवल चेतन की तरह हितेश को अपना देवर ही मानती थी. इस से आगे और कुछ नहीं. पति और देवर की तरह वह हितेश का भी टिफिन तैयार कर देती थी.

घटना के दिन हितेश काम पर तो सब के साथ गया, लेकिन कुछ देर बाद वह घर वापस आ गया. श्वेता के पूछने पर उस ने सिरदर्द का बहाना बनाया. श्वेता ने उसे चाय के साथ सिरदर्द की गोली दे कर उसे ऊपर के कमरे में जा कर आराम करने को कहा और फिर वह घर के कामों में लग गई. उसे क्या मालूम था कि उस की मौत का वारंट निकल चुका था. हितेश ऊपर के कमरे में न जा कर कुछ देर तक श्वेता के सौंदर्य को निहारता रहा. इस के बाद जब श्वेता बाथरूम में चली गई तो उठ कर हितेश ने अपनी योजना के अनुसार टीवी की आवाज तेज कर दी, साथ ही एसी का टेंपरेचर भी हाई कर दिया. फिर वह श्वेता के साथ मनमानी करने के उद्देश्य से बाथरूम की तरफ गया.  

बाथरूम का दरवाजा खुलते ही वह श्वेता से मनमानी करने पर उतर आया. उस ने श्वेता को दबोच लिया और बोला, ‘‘भाभी, आज मुझे अपने मन की मुराद पूरी कर लेने दो. मैं ने जब से तुम्हें देखा है, तब से तड़प रहा हूं. दिन का चैन और रातों की नींद हराम हो गई है.’’

हितेश की यह बात सुन कर श्वेता बुरी तरह घबरा गई थी. अपने आप को उस से बचाने के लिए वह पूरे कमरे में इधरउधर भागने लगी. वह अपने बचाव के लिए चीखचिल्ला भी रही थी लेकिन टीवी की तेज आवाज में उस की आवाज दब गई थी. हितेश के सिर पर वासना का भूत कुछ इस तरह सवार था कि उस के सोचनेसमझने की सारी शक्ति खत्म हो गई थी. वह श्वेता के जिस्म के लिए पागल सा हो गया था. हितेश की इस हरकत से श्वेता भी अपना आपा खो बैठी थी. वह कमरे में रखा सामान तोड़ने लगी ताकि आवाज सुन कर पड़ोसी जाएं.   

मुख्य दरवाजे पर आधुनिक लौक लगा था,जिसे वह जल्दबाजी में खोल नहीं सकी. उस समय श्वेता की ऐसी स्थिति थी, जैसे एक पिंजरे में बाघ के सामने बकरी की होती है. इस दौरान उस के कपड़े भी फट गए थे. अपने मकसद में कामयाब न होते देख हितेश को श्वेता पर गुस्सा आ गया. वह किचन में गया और वहां से सब्जी काटने वाला चाकू उठा लाया. उस चाकू से उस ने श्वेता के गले और सीने पर कई वार कर के उसे मौत के घाट उतार दिया और उस की लाश को बाथरूम के पास डाल दिया.

श्वेता की हत्या के बाद वह बुरी तरह डर गया था. कुछ समय तक वह वहीं बैठा रहा. इस के बाद उस ने बाथरूम में जा कर अपने हाथमुंह साफ किए, कपड़े बदले और कमरे को उसी स्थिति में छोड़ कर अपने काम पर चला गया. दरवाजा भिड़ते ही आधुनिक लौक फिर से बंद हो गया था. पुलिस टीम ने हितेश कर्तकपांडी से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उस के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 452 के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे पुलिस हिरासत में आर्थर रोड जेल भेज दिया.

जांच अधिकारी पीआई इमाम शिंदे और सुभाष दुधगांवकर ने अपनी जांच पूरी कर मामले का आरोपपत्र अदालत में दाखिल कर दिया. कथा लिखने तक मामला अदालत में विचाराधीन था.

 

लाशों के टुकड़ों से भरी 7 अटैचियां किसकी निकली

सीरियल किलर जगरूप ने केवल अपनी अय्याशी के लिए 7 कत्ल किए. मजे की बात यह कि 23 सालों तक पुलिस उसे पकड़ना तो दूर उस के बारे में कोई जानकारी तक नहीं जुटा पाई. आखिर…  

मार्च 2015 के अंतिम सप्ताह की 24 तारीख को पटियाला की विकास कालोनी में एक युवक की लाश मिली  थी. लाश के टुकड़े कर के एक अटैची में बंद कर के अटैची को सुनसान जगह पर फेंक दिया गया था. मृतक के कई टुकड़े करने के बाद उस के चेहरे पर ईंटें मार कर कुचला गया थापुलिस ने मुकदमा दर्ज कर के लाश की शिनाख्त करवाई तो पता चला कि अटैची में मिली लाश अनिल कुमार नामक युवक की थी. इस हत्या ने पूरे शहर में दहशत पैदा कर दी थी.

दहशत का एक कारण यह भी था कि पुलिस को इस तरह लाश कोई पहली बार नहीं मिली थी. सन 1995 से ले कर अब तक इसी तरह पुलिस ने पंजाब के अलगअलग शहरों से करीब 8 लाशें बरामद की थीं और ये सभी अनसुलझे मामले फाइलों में बंद हो चुके थे. यह ताजा मामला भी पहले मिली लाशों की फेहरिस्त में शामिल कर लिया गया था, क्योंकि अब से पहले मिली लाशें और अब मिली लाश को देख कर ऐसा लगता था जैसे इन सब का कातिल एक ही रहा हो.

इन सभी हत्याओं की कार्यप्रणाली एक जैसी ही थी. अब तक मिली सभी लाशें टुकड़ों में मिली थीं और उन सब के चेहरे पर ईंटें मार कर चेहरा बिगाड़ा गया था. इस तरह की हत्याओं का पहला मामला सन 1995 में लुधियाना में सामने आया था. मृतक का नाम नंदलाल था और उस की लाश भी पुलिस को अटैची में बंद टुकड़ों के रूप में मिली थी.अनिल की तरह नंदलाल के चेहरे को भी ईंटें मार कर बिगाड़ा गया था. बाद में पुलिस की काफी मशक्कत के बाद मृतक की पहचान नंदलाल के रूप में हुई थी, पर पुलिस की दिनरात की मेहनत के बाद भी वह कातिल तक नहीं पहुंच पाई थी. अंतत: इस केस को अनसुलझा करार देने के बाद इस की फाइल बंद कर दी गई थी. इस के बाद साल, 6 महीने में लुधियाना और पटियाला में इसी तरह लाशें मिलती रहीं और उन हत्याओं की जांच भी होती रही, पर कातिल को पकड़ना तो दूर की बात पुलिस उस का पता तक नहीं लगा पाई. समय के साथसाथ हत्याओं के ये सारे केस फाइलों में बंद हो कर रह गए थे. 

लेकिन अनिल की इस ताजा हत्या ने एसपी (देहात) हरविंदर सिंह विर्क का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया और उन्होंने इस तरह हुई हत्याओं की सभी फाइलें मंगवा कर उन का बारीकी से अध्ययन करने के बाद हत्यारे को पकड़ने का काम डीएसपी सौरभ जिंदल को सौंप दियाडीएसपी सौरभ जिंदल ने अपने विश्वसनीय पुलिसकर्मियों की टीम बना कर इस मामले की जांच शुरू कर दी. सब से पहले उन्होंने पटियाला के टैगोर सिनेमा के पीछे मिली राजिंदर कुमार नामक युवक की लाश से अपनी जांच शुरू की. राजिंदर की लाश भी 2015 में मिली थी और अब तक मिली अन्य लाशों की तरह उस की लाश के भी टुकड़े कर अटैची में बंद कर के टैगोर सिनेमा के पिछवाड़े फेंके गए थे. उस का चेहरा भी ईंट मार कर बिगाड़ा गया था. 

डीएसपी सौरभ जिंदल ने जब राजिंदर की फाइल का बारीकी से निरीक्षण किया तो पता चला कि राजिंदर की लाश के टुकड़ों के साथ उस के कपड़े भी मिले थे और उन कपड़ों में एक विजिटिंग कार्ड भी था, जो किसी सुरजीत नामक कौंटैक्टर का था. डीएसपी सौरभ जिंदल ने सुरजीत को बुलवाया और मृतक राजिंदर की फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछा. फोटो देख कर उस ने झट से बता दिया कि राजिंदर उसी मकान मेंअपनी पत्नी के साथ किराए पर रहता था, जिस में वह खुद रह रहा था. आगे की पूछताछ में पता चल कि वह मकान किसी रीना नाम की औरत का था

यह जानकारी भी मिली कि रीना का चालचलन ठीक नहीं था. रीना के अवैध संबंध एक आदमी से थे और वह अकसर रीना के घर आया करता था. पड़ोसियों के अनुसार, रीना उस आदमी की रखैल थी और वह उस के इशारों पर नाचती थी. रीना के पास आने वाला आदमी कौन था, उस का नाम क्या था और वह कहां का रहने वाला था, रीना के अलावा यह बात और कोई नहीं जानता था. बहरहाल, डीएसपी सौरभ जिंदल ने सब से पहले राजिंदर के बारे में उस की पत्नी से पूछताछ की

उस की पत्नी का कहना था कि उस का पति सिंचाई विभाग में कार्यरत था और कई दिनों से घर से लापता था. आश्चर्यजनक बात यह थी कि राजिंदर की पत्नी ने उस के गायब होने की कहीं रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करवाई थी. जांच में यह भी पता चला कि राजिंदर कुमार भी रीना पर गलत नजर रखता था. डीएसपी सौरभ जिंदल ने मामले की गहनता से जांचपड़ताल की तो कई बातें बड़ी विचित्र और रहस्यमयी दिखाई दीं. इसलिए जिंदल ने रीना से ही पूछताछ करना उचित समझा. रीना को अपने औफिस बुला कर जब उस से उस के प्रेमी के बारे में पूछा गया तो रीना ने अपने प्रेमी के बारे में कई रहस्य उजागर किए

उस ने बताया कि उस के प्रेमी का नाम जगरूप सिंह था और वह पिछले काफी समय से अपनी मजबूरी के कारण उस के साथ रह रही थी, क्योंकि जगरूप उसे ब्लैकमेल कर रहा था और वह उसे धमकी दे कर कई बार कह चुका था कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी या उस के बारे में किसी से कुछ कहा तो अन्य लोगों की तरह वह उस की भी हत्या कर देगा और उस की लाश के टुकड़ेटुकड़े कर चीलकौवों को खिला देगा. इन सब बातों के अलावा रीना से यह भी पता चला कि 45 वर्षीय जगरूप सिंह बदोवाल, लुधियाना का रहने वाला है. बदोवाल में जगरूप कहां रहता था, इस बात का रीना को पता नहीं था. डीएसपी सौरभ जिंदल के आदेश पर उन की पुलिस टीम ने बड़ी मेहनत करने के बाद लुधियाना के बदोवाल में जगरूप का घर ढूंढ निकाला, पर इतनी मेहनत के बाद यहां भी पुलिस के हाथ निराशा ही लगी.

दरअसल, जगरूप को किसी तरह से यह सूचना मिल गई थी कि पुलिस ने अब तक हुए ब्लाइंड मर्डर्स की फाइलों को खोल कर नए सिरे से जांच शुरू कर दी है और जल्द ही पुलिस उस तक पहुंचने वाली है. इसीलिए वह अपने घर बदोवाल से फरार हो गया था. जगरूप की गिरफ्तारी को ले कर पुलिस ने रेड अलर्ट घोषित कर जगहजगह उस की तलाश में छापेमारी शुरू कर दी. इस बीच पुलिस को पता चला कि जगरूप लुधियाना के जालंधर बाईपास इलाके में कहीं रह रहा है. दिनरात मेहनत कर के पुलिस ने उस का ठिकाना ढूंढ तो लिया, लेकिन पुलिस के वहां पहुंचने से पहले ही वह वहां से भी फरार हो गया. पुलिस खाली हाथ पटियाला लौट आई.

अगली बार पुलिस ने रीना से पुन: पूछताछ कर जगरूप के उन सभी ठिकानों को घेर लिया, जहां उस के छिपने की संभावना हो सकती थी. अंत में अपने आप को चारों ओर से घिरा देख कर 4 जनवरी, 2018 को जगरूप सिंह ने एक व्यक्ति के जरिए सिविललाइंस थाने में कर सरेंडर कर दिया. इसी के साथ पिछले कई महीनों से जगरूप और पुलिस के बीच चल रहे चूहेबिल्ली के खेल का अंत हो गया. जगरूप सिंह के पिता की मृत्यु उस के बचपन में ही हो गई थी. जगरूप बचपन से ही अय्याश प्रवृत्ति का था और ऐशोआराम की जिंदगी जीना चाहता था. बचपन से ही वह स्कूल में हमउम्र और अपनी उम्र से बड़ी लड़कियों से छेड़छाड़ करता रहता था. इसी के चलते उसे स्कूल से निकाल दिया गया था. उम्र के साथसाथ उस का अय्याशी वाला शौक भी बढ़ता गया.

लेकिन अय्याशी के लिए ढेर सारे पैसों की जरूरत थी, जो उस के पास नहीं थे. अंतत: अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उस ने एक रास्ता खोज निकाला. अपने आप को शरीफ और पैसे वाला दिखा कर वह लड़कियों से पहले दोस्ती करता था और बाद में उन की अश्लील फोटो खींच कर उन्हें ब्लैकमेल करते हुए देहव्यापार के धंधे में धकेल देता था. उन की कमाई से वह खुद ऐश करने लगा. इस तरह जगरूप ने अनेकों लड़कियों की जिंदगी बरबाद की थी. उस के चंगुल में फंसने वाली लड़की का उस से बच निकलना असंभव था. सन 1994 में जगरूप का बड़ा भाई आस्ट्रेलिया चला गया. वह वहां टैक्सी चलाने का काम करने लगा. इस काम में उसे अच्छी कमाई होने लगी. जब धंधा जम गया तो उस ने अपनी मां को भी हमेशा के लिए अपने पास आस्ट्रेलिया बुला लिया

आस्ट्रेलिया जाने से पहले जगरूप की मां ने एक लड़की देख कर उस की शादी यह सोच कर करवा दी थी कि एक तो उन के आस्ट्रेलिया चले जाने के बाद जगरूप का खयाल कौन रखेगा और दूसरे उन का सोचना था कि शादी के बाद शायद जगरूप की जिंदगी में कोई ठहराव जाए, पर यह उन का मात्र भ्रम था. जगरूप को सुधरना था और ही वह सुधरा. बल्कि दिनप्रतिदिन उस की अय्याशियां बढ़ती गईं. नईनवेली पत्नी के सामने जब जगरूप का घिनौना चेहरा आया तो समझदारी दिखाते हुए वह चुपचाप घर छोड़ कर अपने मायके चली गई और उस ने दोबारा मुड़ कर पति की तरफ नहीं देखा.

जगरूप के बताए अनुसार, उस ने अपनी जिंदगी का पहला कत्ल 22 साल की उम्र में मई 1995 में लुधियाना निवासी नंदलाल का किया था. नंदलाल की पत्नी जगरूप की प्रेमिका थी. नंदलाल को जब जगरूप के साथ अपनी पत्नी के संबंध होने का पता चला तो वह अपनी पत्नी को उस से संबंध तोड़ने के लिए कहने लगा. इसी बात को ले कर घर में क्लेश होने लगा था. अपनी प्रेमिका के माध्यम से जगरूप को जब नंदलाल के क्लेश करने का पता चला तो उस ने बड़ी बेरहमी से उस की हत्या करने के बाद उस की लाश के कई टुकड़े कर दिए और चेहरे पर ईंटें मारमार कर उस का चेहरा बिगाड़ दिया. जगरूप के आत्मसमर्पण करने से पहले बीते 23 सालों में भी लुधियाना पुलिस नंदलाल की हत्या की गुत्थी को नहीं सुलझा पाई थी.

इस बीच नंदलाल की हत्या के बाद पुलिस को या किसी अन्य व्यक्ति को उस के कार्यकलापों पर संदेह हो, इस के लिए दिखावे के तौर पर जगरूप ने औटोरिक्शा चलाना शुरू कर दिया था. पर उस का असली धंधा वही रहा. नाजायज संबंधों के चलते साल 1995 से अब तक 7 कत्ल करने वाला सीरियल किलर ऐश और आराम की जिंदगी जीने के लिए लड़कियों से गलत काम करवाता रहा. जगरूप के पकड़े जाने से कई ब्लाइंड मर्डर केस जो पुलिस की फाइलों में बंद हो चुके थे, खुल गए.

जगरूप ने अब तक लुधियाना और पटियाला में 7 हत्याएं करने का अपराध स्वीकार कर लिया. एसपी (डी) हरविंदर सिंह विर्क के सामने जगरूप ने यह भी स्वीकार किया कि वह 2 कत्ल के केसों में 4-5 साल तक जेल में भी रहा है. पुलिस जगरूप के इस बयान की जांच करेगी कि वह किनकिन केसों में जेल गया था, गया भी था या नहीं.  इस के अलावा पुलिस इस बात की भी जांच करेगी कि इन 7 हत्याओं के अतिरिक्त उस ने और कितनी हत्याएं की हैं. इन केसों के बारे में फिलहाल जानकारी जुटाई जा रही है. पुलिस के मुताबिक जगरूप सिंह महिलाओं के साथ संबंध बनाने के लिए उतावला रहता था.

उस का शिकार अधिकतर खूबसूरत विधवा या तलाकशुदा महिलाएं ही बनती थीं. अपने शिकार को जाल में फांसने के बाद वह धीरेधीरे उसे हलाल कर के अय्याशी के लिए रकम जुटाता था. अब तक जगरूप ने कितनी महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बना कर उन्हें देहव्यापार के धंधे में झोंका, पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है. हालांकि जगरूप को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया है, फिर भी समयसमय पर पुलिस पूछताछ के लिए उस का रिमांड ले कर वास्तविकता तक पहुंचने का प्रयास कर रही है. अब तक की गई पूछताछ से यह बात सामने आई कि आरोपी पहले महिलाओं को अपने प्रेमजाल में फंसाता था और फिर जबरदस्ती उन से धंधा करवा कर पैसे बनाता था. अगर कोई उस के बीच में आता था, तो वह उसे बड़ी बेरहमी के साथ मार देता था. अब तक उस ने जितने भी लोगों को मौत के घाट उतारा था, सभी हत्याएं उस ने बड़ी निर्ममता के साथ की थीं.

दुपट्टे से कस दिया गला, तड़पती रही रेखा

अनैतिक संबंध कभी भी विस्फोटक बन सकते हैं, यह बात ऐसे संबंधों को प्रेम का नाम देने वालों को पता होनी चाहिए. रेखा और वीरेंद्र के साथ भी यही हुआ. नतीजा एक को मौत मिली और दूसरे को जेल.    

रेखा ने वीरेंद्र को प्यार से समझाते हुए कहा था, ‘‘देखो वीरेंद्र, बात को समझने की कोशिश करो. जो तुम कह रहे हो वह संभव नहीं है. मेरा अपना एक घरसंसार है, पति है, 2 बच्चे हैं, अच्छीखासी गृहस्थी है हमारी. और तुम कहते हो मैं सब कुछ छोड़छाड़ कर तुम्हारे साथ भाग चलूं. नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. हम दोनों अच्छे दोस्त हैं और हमेशा दोस्त ही रहेंगे. हमारे बीच जो रिश्ता है, जो संबंध है, वह हमेशा बना रहेगा. हां, एक बात का मैं वादा करती हूं कि जो रिश्ता हम दोनों के बीच है, उसे तोड़ने में मैं पहल नहीं करूंगी.’’

 ‘‘तुम मेरी बात समझने की कोशिश नहीं कर रही हो.’’ वीरेंद्र हताश सा बोला.

 ‘‘मैं सब समझ रही हूं वीरेंद्र, मैं कोई दूधपीती बच्ची नहीं हूं. तुम चाहते हो मैं अपने पति को, अपने बच्चों को हमेशा के लिए छोड़ कर तुम्हारे साथ चली आऊं. यह मुझे मंजूर नहीं है.’’

 ‘‘तुम मेरी बात सुनोगी भी या नहीं. तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं, तुम्हारे बिना एक पल रहने की कल्पना भी नहीं कर सकता. इसीलिए कह रहा हूं कि पति और बच्चों का मोह त्याग कर मेरे साथ चली चलो, हम अपनी एक नई दुनिया बसाएंगे, जहां सिर्फ मैं रहूंगा और तुम होगी. रहा सवाल बच्चों का तो हम दोनों के और बच्चे पैदा हो जाएंगे. तुम नहीं जानती, तुम मेरी कल्पना हो, तुम्हें पाना ही मेरा एकमात्र सपना है.’’

‘‘वाह वीरेंद्र बाबू, वाह.’’ रेखा ने वीरेंद्र का मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे सपने और कल्पनाओं को पूरा करने के लिए मैं अपने परिवार की बलि चढ़ा दूं? ऐसा हरगिज नहीं होगा.’’

‘‘अच्छी तरह सोच लो रेखा रानी. मैं तुम्हें बदनाम और बरबाद कर दूंगा.’’ अपनी बात मानते देख वीरेंद्र ने रेखा को धमकी दी.

‘‘बदनाम करने की धमकी किसे दे रहे हो?’’ रेखा भी गुस्से में आ गई, ‘‘बरबाद तो मैं उसी दिन हो गई थी, जिस दिन मैं ने अपने सीधेसादे पति को धोखा दे कर तुम्हारे साथ संबंध बनाए थे. रहा बदनामी का सवाल तो तुम्हारे साथ संबंधों को ले कर पूरा मोहल्ला मुझ पर थूकता है, यहां तक कि मेरे पति को भी मेरे और तुम्हारे संबंधों के बारे में पता है. 

 ‘‘उन की जगह कोई और होता तो मुझे अपने घर से कब का निकाल कर बाहर कर दिया होता. यह उन की शराफत है कि उन्होंने कभी मुझे तुम्हारे नाम का ताना दे कर जलील तक नहीं किया. अरे ऐसे पति के तो पैर धो कर पीने चाहिए और तुम कहते हो कि मैं पति को छोड़ कर तुम्हारे साथ भाग जाऊं.’’

‘‘वाह क्या कहने, नौ सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली है. पतिव्रता और सती सावित्री होने का ढोंग कर के दिखा रही है मुझे. वह दिन भूल गई, जब अपने उसी पति की आंखों में धूल झोंक कर मुझ से मिलने आया करती थी.’’

 ‘‘अपनी जिंदगी की इस भयानक भूल को मैं कैसे भूल सकती हूं, जब तुम्हारे सपनों के झूठे मायाजाल में फंस कर मैं ने अपना सब कुछ तुम्हें सौंप दिया था. आज मैं अपनी उसी गलती की सजा भुगत रही हूं.’’ कहते हुए एकाएक रेखा क्रोध से भड़क उठी और उस ने गुस्से में वीरेंद्र से कहा, ‘‘जाओ, निकल जाओ मेरे घर से. अपनी मनहूस शक्ल दोबारा मत दिखाना. तुम्हें जो करना है कर लेना, अब दफा हो जाओ.’’

लोकेश की बैकग्राउंड रेखा का पति लोकेश मूलत: जिला सहारनपुर, उत्तर प्रदेश के गांव कंबोह माजरा का रहने वाला था. साल 2006 में उस की शादी देहरादून, उत्तराखंड के गांव दंदोली निवासी ठेपादास की मंझली बेटी रेखा के साथ हुई थी. लोकेश साधारण शक्लसूरत का सीधासादा युवक था, जबकि रेखा खूबसूरत थी. रेखा जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर लोकेश अपने आप को बड़ा भाग्यशाली समझता था. वह रेखा से बहुत प्यार करता था और रेखा भी उसे प्यार करने लगी थी. कुल मिला कर पतिपत्नी दोनों एकदूसरे से संतुष्ट थे. वक्त के साथ लोकेश और रेखा अब तक 2 बच्चों 10 वर्षीय कार्तिक और 7 वर्षीय कृष के मातापिता बन गए थे.

लोकेश के मातापिता के पास थोड़ी सी खेती थी, जिस से घर खर्च भी बड़ी मुश्किल से चल पाता था, इसलिए 7 साल पहले लोकेश काम की तलाश में लुधियाना चला आया था. अपने पैर जमाने के लिए शुरू में वह छोटीमोटी नौकरियां करता रहा. साथ ही किसी अच्छे काम की तलाश में भी जुटा रहा. आखिर उसे सन 2014 में भारत की प्रसिद्ध साइकिल कंपनी हीरो में नौकरी मिल गई थी. वेतन भी अच्छा था और अन्य सुखसुविधाएं भी थीं.

हीरो साइकिल में नौकरी लगने के बाद लोकेश ने रहने के लिए सुरजीतनगर, 33 फुटा रोड, गली नंबर-1 ग्यासपुरा स्थित एक वेहड़े में किराए पर कमरा ले लिया और गांव से अपनी पत्नी रेखा और बच्चों को भी लुधियाना ले आया. लुधियाना आने के बाद लोकेश ने अपने दोनों बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिल करवा दिया था. पतिपत्नी दोनों मजे में रहने लगे थे कि अचानक एक दिन वीरेंद्र सिंह उर्फ चाचा की नजर रेखा पर पड़ी. वीरेंद्र भी उसी गली नंबर-1 में लोकेश के घर के सामने ही रहता था.

वीरेंद्र की कामयाब चाल शातिर वीरेंद्र की नजर जब खूबसूरत रेखा पर पड़ी तो वह उसे पाने के लिए छटपटाने लगा. उस ने रेखा को भी देखा था और उस के पति लोकेश को भी. साधारण शक्लसूरत वाले लोकेश की इतनी खूबसूरत बीवी देख वीरेंद्र के कलेजे पर सांप लोटने लगा था. वह हर हाल में रेखा से संबंध बनाना चाहता था.

इस के लिए 2-4 बार उस ने रेखा को छेड़ने की कोशिश भी की थी, पर रेखा ने उसे घास नहीं डाली तो शातिर दिमाग वीरेंद्र ने रेखा के निकट आने का एक दूसरा रास्ता अपनाया. उस ने रेखा के पति लोकेश के साथ दोस्ती कर ली और दोस्ती की आड़ ले कर वह लोकेश के घर आनेजाने लगा. जबकि दूसरी ओर वीरेंद्र के नापाक इरादों से अनजान भोलाभाला लोकेश उसे अपना हितैषी समझ रहा था. रेखा को अपने जाल में फंसाने के लिए उस ने लोकेश और उस के बीच ऐसी दरार पैदा की कि घर में अकसर झगड़ा रहने लगा.

लोकेश की अधिकांश नाइट ड्यूटी होती थी, जिस का वीरेंद्र ने जम कर फायदा उठाया. शातिर वीरेंद्र ने रेखा को अपने प्रेम जाल में फंसा कर उस के साथ अवैध संबंध बना लिए. दोनों के बीच बने अवैध संबंधों ने उस समय गंभीर मोड़ ले लिया, जब वीरेंद्र ने रेखा पर पति बच्चों को छोड़ कर साथ भागने का दबाव बनाना शुरू किया

उस की बात सुन कर रेखा को अपनी गलती का अहसास हुआ कि उस ने अपने पति और बच्चों को धोखा दे कर अच्छा नहीं किया. लेकिन अब क्या हो सकता था, अब तो वह शैतान के जाल में फंस चुकी थीपहले तो रेखा उसे टालती रही, परंतु जब वह उसे अधिक परेशान करने लगा तो रेखा ने पति बच्चों को छोड़ कर उस के साथ भागने से साफ इनकार कर दिया था. रेखा के स्पष्ट इनकार करने से वीरेंद्र तड़प कर रह गया. हर तरह के हथकंडे अपनाने के बाद भी जब वह नाकाम रहा तो उस ने रेखा को सबक सिखाने की ठान ली.

रेखा द्वारा किए इनकार से गुस्साया वीरेंद्र 2 अप्रैल की सुबह मौका पा कर तब रेखा के घर पहुंचा, जब वह घर में अकेली थी. उस का पति लोकेश ड्यूटी पर बच्चे स्कूल गए हुए थे. वीरेंद्र ने रेखा से साफ शब्दों में पूछा कि वह उस के साथ भागेगी या नहीं? रेखा के इनकार करने पर वीरेंद्र भाग कर रसोई से चाकू उठा लाया और रेखा के पेट में वार कर दिया. 

वीरेंद्र ने खुद भी कोशिश की मरने की अचानक हुए वार से रेखा घबरा गई. उसे वीरेंद्र से ऐसी उम्मीद नहीं थी. उस ने वीरेंद्र के वार से बचने की कोशिश की, लेकिन बचाव करते समय रेखा की एक अंगुली कट गई. इस के बाद वीरेंद्र ने उसे धक्का दे कर बैड पर गिरा दिया और उस के गले में चुनरी डाल गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. वारदात को अंजाम देने के बाद वह अपने घर चला गया. अपने घर पर रखी चूहे मारने की दवा निगल कर उस ने आत्महत्या करने की कोशिश की.

इसी दौरान संदेह होने पर मोहल्ले के लोगों ने तुरंत पुलिस को फोन किया. सूचना मिलते ही एसीपी अमन बराड़ डाबा थाने के प्रभारी इंसपेक्टर गुरविंदर सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने वीरेंद्र को काबू कर के जब लोकेश के घर जा कर देखा तो बिस्तर पर रेखा का शव पड़ा हुआ था. पुलिस ने शव कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दिया.

लोकेश की तहरीर पर इंसपेक्टर गुरविंदर सिंह ने रेखा की हत्या के अपराध में वीरेंद्र के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया, जहां अदालत के आदेश पर उसे जिला जेल भेज दिया गया था. रेखा ने जो किया, उस का नतीजा उसे भोगना पड़ा. अपने पति से बेवफाई की सजा रेखा को अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी, पर इस सारे प्रकरण में लोकेश और उस के बच्चों का क्या दोष था, जिस की सजा वे आजीवन भोगते रहेंगे.

यह सच है कि लोकेश के मुकाबले उस की पत्नी रेखा कहीं अधिक खूबसूरत थी. पतिपत्नी के मजबूत रिश्ते में दरार डालने के लिए शातिर वीरेंद्र ने इसी फर्क को मुख्य वजह बनाते हुए हंसतेखेलते परिवार में जहर घोल दिया.

   —पुलिस सूत्रों पर आधारित

50 करोड़ की संपत्ति के लिए समाजवादी पार्टी का नेता बना लुटेरा

समाजवादी पार्टी के छुटभैये नेता रामप्रवेश यादव ने करोड़ों की संपत्ति के मालिक दीपकमणि को पहले तो अपने चंगुल में फांस कर उस की जमीन हथियानी चाही, लेकिन जब दीपक उस की चाल में नहीं फंसा तो उस ने उस का अपहरण करा कर कुचक्र रचा पर वह…

40 वर्षीय दीपकमणि त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के कोतवाली थाना क्षेत्र के देवरिया खास (नगर) मोहल्ले का रहने वाला था. देवरिया खास में उस की अपनी आलीशान कोठी है. फिर भी वह भटनी में किराए का कमरा ले कर अकेला रहता था. उस के परिवार में बड़ी बहन डा. शालिनी शुक्ला के अलावा कोई नहीं है. दीपक ने शादी नहीं की थी.

सालों पहले दीपक के पिता मंगलेश्वरमणि त्रिपाठी का उस समय रहस्यमय तरीके से कत्ल कर दिया गया था, जब वह घर में अकेले सो रहे थे. अपनी जांच के बाद पुलिस ने दीपक को पिता की हत्या का आरोपी बनाया था. पिता की हत्या के आरोप में वह कई साल तक जेल में रहा. इन दिनों वह जमानत पर जेल से बाहर था. कहा जाता है कि दीपक को दांवपेंच खेल कर एक गहरी साजिश के तहत पिता की हत्या के आरोप फंसाया गया था.

शादीशुदा डा. शालिनी की ससुराल छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में है. वह अपनी ससुराल में परिवार के साथ रहती हैं. उन्हें दीपक की चिंता रहती है. वैसे भी बहन के अलावा दीपक का कोई और सहारा नहीं था. इसलिए कोई भी बात होती थी तो वह बहन और बहनोई को बता देता था. 20 मार्च, 2018 को मुकदमे की तारीख थी. दीपक को तारीख पर पेश होना था. उधर उस की एमएसटी टिकट की तारीख भी बढ़वानी थी. उस ने सोचा एमएसटी की डेट बढ़वा कर कचहरी चला जाएगा. इसलिए सुबह उठ कर वह सभी कामों से फारिग हो कर करीब 10 बजे एमएसटी की तारीख बढ़वाने भटनी स्टेशन चला गया.

एमएसटी बनवा कर वहीं से दीपक सलेमपुर कचहरी पहुंच गया. भटनी से सलेमपुर कुल 20-22 किलोमीटर दूर है. सलेमपुर पहुंचने में उसे कुल आधे घंटे का समय लगा होगा. सलेमपुर जाते समय उस ने बहन शालिनी को फोन कर के बता दिया था कि वह मुकदमे की तारीख पर पेश होने सलेमपुर जा रहा है. कचहरी से लौटने के बाद मुकदमे की स्थिति बताएगा.

धीरेधीरे शाम ढलने को आ गई. शालिनी भाई के फोन का इंतजार कर रही थी. जब उस का फोन नहीं आया तो उस ने खुद ही भाई के नंबर पर काल की. लेकिन दीपक का मोबाइल स्विच्ड औफ था. शालिनी ने 3-4 बार दीपक के फोन पर काल की. हर बार उसे एक ही जवाब मिल रहा था, ‘उपभोक्ता के जिस नंबर पर आप काल कर रहे हैं वो अभी बंद है.’ शालिनी ने सोचा कि हो सकता है, दीपक के फोन की बैटरी डिस्चार्ज हो गई हो इसलिए फोन बंद है. रात में फिर से फोन कर के बात कर लेगी.

लापता हुआ दीपक रात में 10 साढ़े 10 बजे के करीब शालिनी ने फिर दीपक के मोबाइल पर काल की. लेकिन तब भी उस का फोन स्विच्ड औफ था. यह बात शालिनी को कुछ अटपटी सी लगी, क्योंकि दीपक अपना फोन इतनी देर तक कभी बंद नहीं रखता था. उस ने यह बात जब अपने पति को बताई तो वह भी चौंके. दीपक को ले कर किसी अनहोनी की आशंका से दोनों चिंता में पड़ गए.

रात काफी गहरा चुकी थी. शालिनी ने सोचा कि इतनी रात में किसी से बात करने से कोई फायदा नहीं होगा. अगले दिन ही कुछ हो सकता था. अगले दिन सुबह होते ही शालिनी ने अपने नातेरिश्तेदारों के यहां फोन कर के दीपक के बारे में पता किया, लेकिन दीपक का कहीं कुछ पता नहीं चला. वैसे भी वह किसी नातेरिश्तेदार के यहां जाना पसंद नहीं करता था, सिवाय शालिनी को छोड़ कर. शालिनी की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि दीपक गया तो गया कहां? कहीं उस के साथ कोई घटनादुर्घटना तो नहीं घट गई, यह सोच कर शालिनी परेशान हो रही थी.

धीरेधीरे एक सप्ताह बीत गया लेकिन दीपक का कहीं कोई पता नहीं चला. अपने स्तर पर शालिनी ने भाई का हर जगह पता लगा लिया था, उसे हर जगह से निराशा ही मिली थी. दीपक करोड़ों की संपत्ति का इकलौता वारिस था. सालों से बदमाश उसे जान से मारने की धमकी दे रहे थे. इसीलिए वह गांव की कोठी छोड़ कर भटनी कस्बे में किराए का कमरा ले कर रहता था ताकि चैन और सुकून से जी सके. लेकिन बदमाशों ने उस का यहां भी पीछा नहीं छोड़ा था.

यह बात डाक्टर शालिनी शुक्ला भी जानती थीं. इसीलिए वह भाई के लिए फिक्रमंद थी. शहर के कुछ नामचीन बदमाश और भूमाफिया उस की करोड़ों की संपत्ति को हथियाने की कोशिश में लगे हुए थे. 10 दिन बीत जाने के बाद भी जब दीपक का कहीं कोई पता नहीं चला तो डाक्टर शालिनी सक्रिय हुईं. शालिनी ने 10 अप्रैल, 2018 को बिलासपुर से ही भाई के अपहरण की शिकायत पुलिस अधीक्षक रोहन पी. कनय और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को रजिस्ट्री व ईमेल के माध्यम से भेज दी. दीपक की गुमशुदगी की सूचना मिलते ही पुलिस महकमे में खलबली मच गई.

दीपक करोड़ों की संपत्ति का इकलौता वारिस था. उसे गायब हुए करीब 20 दिन बीत चुके थे. उस के गायब होने के बारे में पुलिस को भनक तक नहीं लगी थी. डा. शालिनी शुक्ला की शिकायत पर सदर कोतवाली में भादंवि की धारा 365 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. रहस्य से हटा परदा खैर, एक सप्ताह बाद भी कोई काररवाई न होने पर 17 अप्रैल, 2018 को उन्होंने फिर शिकायत की. 17 अप्रैल को ही पुलिस अधीक्षक रोहन पी. कनय को एक चौंका देने वाली सूचना मिली. सूचना यह थी कि नियमों को दरकिनार कर के एक ही दिन में गायब हुए व्यक्ति से कई बैनामे कराए गए थे.

इस में 2 बैनामे जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश यादव उर्फ बबलू के नाम से, तीसरा उस की मां मेवाती देवी, चौथा भाई अमित कुमार यादव और 5वीं रजिस्ट्री मधु देवी पत्नी ब्रह्मानंद चौहान निवासी खोराराम के नाम से हुई थी. बैनामा के साथ ही बड़े पैमाने पर स्टांप की चोरी की गई थी. पुलिस अधीक्षक रोहन सकते में आ गए और उन्होंने तत्काल पूरे मामले से जिलाधिकारी को अवगत करा दिया. बैनामा किसी और के द्वारा नहीं बल्कि कई दिनों से लापता दीपकमणि त्रिपाठी के द्वारा जबरन कराया गया था.

इस का मतलब था कि दीपकमणि त्रिपाठी जिंदा है और बदमाशों के कब्जे में है. बदमाशों ने दीपक को कहां छिपा रखा है, ये कोई नहीं जानता था. एसपी रोहन ने दीपक को बदमाशों के चंगुल के सहीसलामत छुड़ाने के लिए कमर कस ली. उन्होंने सीओ सदर सीताराम के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में सीओ सदर के अलावा सदर कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक प्रभातेश श्रीवास्तव, प्रभारी स्वाट टीम सीआईयू सर्विलांस अनिल यादव, स्वाट टीम के कांस्टेबल घनश्याम सिंह, अरुण खरवार, धनंजय श्रीवास्तव, प्रशांत शर्मा, मेराज खान, सर्विलांस सेल के राहुल सिंह, विमलेश, प्रद्युम्न जायसवाल, कांस्टेबल सूबेदार विश्वकर्मा, रमेश सिंह और सौरभ त्रिपाठी शामिल थे.

उधर डा. शालिनी ने तीसरी बार 23 अप्रैल को मुख्यमंत्री के जन सुनवाई पोर्टल पर शिकायत की. उन्हें पता चला था कि मुख्यमंत्री के वाट्सऐप नंबर पर शिकायत करने के 3-4 घंटे के भीतर काररवाई हो जाती है. उन का सोचना सही साबित हुआ. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक शिकायत पहुंचने के बाद जिले की पुलिस सक्रिय हो गई और एसपी रोहन पी. कनय मामले में विशेष रुचि लेने लगे. इधर बदमाशों की सुरागरसी में सीओ सदर सीताराम ने मुखबिर लगा दिए थे. इस बीच पुलिस को जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश यादव और उस के भाई अमित यादव का मोबाइल नंबर मिल गया था. दोनों नंबरों को पुलिस ने सर्विलांस पर लगा दिया.

आखिरकार पुलिस की मेहनत रंग लाई. 2 मई, 2018 को पुलिस को पता चल गया कि बदमाशों ने अपहृत दीपकमणि त्रिपाठी को देवरिया शहर के निकट अमेठी मंदिर, स्थित पूर्व सांसद व सपा के राष्ट्रीय महासचिव रमाशंकर विद्यार्थी के कटरे में रखा है. पुलिस को मिली बड़ी सफलता सूचना पक्की थी. सीओ सदर सीताराम ने कुछ चुनिंदा पुलिसकर्मियों की टीम बनाई और इस मिशन को गोपनीय रखा ताकि मिशन कामयाब रहे. वे बदमाशों को किसी भी तरह  भागने का मौका नहीं देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने पूरी तैयारी के साथ सपा नेता रमाशंकर विद्यार्थी के अमेठी आवास स्थित कटरे पर दबिश दी.

पुलिस टीम ने कटरे को चारों ओर से घेर लिया. उसी कटरे के एक कमरे में बदमाशों ने दीपकमणि त्रिपाठी को हाथपैर बांध कर रख रखा था. उस वक्त वह अर्द्धविक्षिप्तावस्था में था. बदमाशों ने उसे काबू में रखने के लिए नशे का इंजेक्शन लगा रखा था. पुलिस ने दीपकमणि त्रिपाठी को बदमाशों के चंगुल से सकुशल मुक्त करा लिया. पुलिस ने दबिश के दौरान मौके से 4 बदमाशों को गिरफ्तार किया. पूछताछ में चारों बदमाशों ने अपना नाम अमित यादव, धर्मेंद्र गौड़, मुन्ना चौहान और ब्रह्मानंद बताया.

पुलिस चारों बदमाशों और उन के कब्जे से मुक्त कराए गए दीपकमणि त्रिपाठी को ले कर सदर कोतवाली लौट आई. सूचना  पा कर पुलिस अधीक्षक रोहन पी. कनय बदमाशों से पूछताछ करने कोतवाली पहुंच गए. इस पूछताछ में पता चला कि दीपक अपहरणकांड का मास्टरमाइंड कोई और नहीं, जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश यादव था. दीपक का अपहरण 10 करोड़ की जमीन का बैनामा कराने के लिए किया गया था. बदमाशों ने शहर में स्थित 40 करोड़ से अधिक की बची जमीन का बैनामा बाद में कराने की योजना बनाई थी. लेकिन पुलिस ने उन की योजना पर पानी फेर दिया.

बदमाशों से पूछताछ में पता चला कि अमित यादव इस मामले के मास्टरमाइंड रामप्रवेश का सगा भाई था. धर्मेंद्र गौड़ जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश का वाहन चालक था. मुन्ना चौहान और ब्रह्मानंद रामप्रवेश यादव के गांव के रहने वाले थे और उस के सहयोगियों में से थे. खैर, बदमाशों के पकड़े जाते ही जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश यादव भूमिगत हो गया. दीपकमणि त्रिपाठी को सकुशल बरामद करने के बाद पुलिस लाइंस में एसपी रोहन पी. कनय ने एक पत्रकार वार्ता का आयोजन किया. उन्होंने पत्रकारों के सामने दीपक को पेश किया. दीपक ने अपहरण की पूरी घटना सिलसिलेवार बता दी कि उस के साथ क्याक्या हुआ था?

बाद में पुलिस ने चारों अभियुक्तों अमित यादव, धर्मेंद्र गौड़, मुन्ना चौहान और ब्रह्मानंद को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. अभियुक्तों के बयान के आधार पर पुलिस ने इस केस में धारा 365 के साथ धारा 467, 471, 472 व 120 बी भी जोड़ दीं. भगोड़े नेता रामप्रवेश यादव पर 10 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया गया. सरकारी कर्मचारी भी थे. साजिश में शामिल पुलिस ने दीपक अपहरणकांड की जांच आगे बढ़ाई तो कई और चौंकाने वाले तथ्य खुल कर सामने आए. जांच के दौरान पुलिस को यह भी पता चला कि दीपकमणि से जमीन का बैनामा करवाने में आरोपी अध्यक्ष रामप्रवेश यादव का साथ रजिस्ट्री विभाग के फूलचंद यादव निवासी अब्दोपुर, थाना चिरैयाकोट, जनपद मऊ (उप निबंधन अधिकारी), रामशरन सिंह निवासी अंसारी रोड, थाना कोतवाली, देवरिया (वरिष्ठ सहायक निबंधन अधिकारी) ने भी दिया था.

इन के अलावा बैनामा कराने में शोभनाथ राव निवासी राघवनगर, चंदेल भवन, थाना कोतवाली, देवरिया (वरिष्ठ सहायक निबंधन अधिकारी), शोएब चिश्ती निवासी करैली, थाना करैली, इलाहाबाद (कंप्यूटर आपरेटर), कौशलकिशोर निवासी रामगुलाम टोला, थाना कोतवाली, देवरिया और विनोद तिवारी उर्फ मंटू तिवारी निवासी विशुनपुर, थाना भटनी, देवरिया ने भी पूरा सहयोग दिया था. पुलिस ने रजिस्ट्री विभाग के उक्त 6 कर्मियों को भी कानून के शिकंजे में जकड़ लिया. 5 मई, 2018 को इन 6 आरोपियों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया. अब तक कुल 10 आरोपी गिरफ्तार किए जा चुके थे. लेकिन रामप्रवेश का कहीं पता नहीं चल पा रहा था. इस बीच पुलिस ने उस पर इनाम बढ़ा कर 25 हजार कर दिया था. पुलिस रामप्रवेश यादव की तलाश में दिनरात एक किए हुए थी.

आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई, उसे कहीं से रामप्रवेश का मोबाइल नंबर मिल गया. उस नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया गया. सर्विलांस के जरिए भगोड़े रामप्रवेश यादव की लोकेशन नेपाल में पता चली. इधर यादव की गिरफ्तारी के लिए पुलिस पर भारी दबाव बनने लगा था. शासन के आदेश के बाद आईजी जोन निलाब्जा चौधरी ने रामप्रवेश यादव का इनाम बढ़ा कर 50 हजार रुपए कर दिया. इनाम बढ़ने के साथसाथ पुलिस की जिम्मेदारी भी बढ़ गई थी. जब से पुलिस को रामप्रवेश के नेपाल में छिपे होने की बात पता चली थी, पुलिस उसे गिरफ्तार करने के लिए बेचैन थी. चूंकि मामला दूसरे देश से जुड़ा था, इसलिए उसे नेपाल में गिरफ्तार करना पुलिस के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा था.

पुलिस ने भारतनेपाल के सोनौली बौर्डर पर अपने मुखबिरों का जाल बिछा दिया था. ऐसा इसलिए ताकि यादव जैसे ही नेपाल से निकल कर भारत की सीमा सोनौली में प्रवेश करे, मुखबिर सूचित कर दें. पकड़ा गया मास्टरमाइंड नेता आखिरकार 25 मई, 2018 को पुलिस को बड़ी सफलता मिल ही गई. मुखबिर की सूचना पर रामप्रवेश यादव को देवरिया पुलिस ने भारतनेपाल बौर्डर के सोनौली से गिरफ्तार कर लिया. वहां से उसे कोतवाली सदर थाना लाया गया.

पूछताछ में रामप्रवेश ने खुद को बचाते हुए पैतरा चला. उस ने पुलिस के सामने कबूल किया कि दीपकमणि त्रिपाठी से उस के वर्षों से घरेलू संबंध रहे हैं. दीपक का उस के घर खानेपीने से ले कर परेशानी के समय दवा तक का इंतजाम होता था. उस पर अपहरण का आरोप लगाया जाना विपक्षियों की चाल है. उसे किसी ने फंसाने के लिए जानबूझ कर जाल बिछाया है. लेकिन पुलिस के सामने उस की दाल नहीं गली. अंतत: उसे झुकना ही पड़ा. रामप्रवेश ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि दीपकमणि त्रिपाठी अपहरणकांड के पीछे असल हाथ उसी का था. उसी ने लालच में उस के अपहरण की पटकथा लिखी थी.

रामप्रवेश यादव के इकबालिया बयान के बाद पुलिस ने उसे अदालत के सामने पेश किया. अदालत ने रामप्रवेश यादव को न्यायिक हिरासत में जेल भेजने का आदेश दिया. उसे हिरासत में ले कर देवरिया जेल भेज दिया गया. आरोपियों से की गई गहन पूछताछ और अपहृत दीपकमणि त्रिपाठी के बयान से अपहरण की पूरी कहानी सामने आ गई—

यूं तो दीपकमणि त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले की देवरिया खास का ही रहने वाला था. उस के पास पैसे की खूब रेलमपेल थी, लेकिन वह अकेला था. शहर की अलगअलग जगहों पर उस की 50 करोड़ से अधिक की संपत्ति थी. इस के साथ ही गांव में भी उस की काफी जमीन थी. पिता की हत्या के बाद वह सारी जायदाद का एकलौता वारिस था. कुछ लोगों ने दीपक से शहर के सीसी रोड और चीनी मिल के पीछे की जमीन वर्षों पहले खरीद ली थी. इस के बाद भी शहर के राघव नगर, सीसी रोड, परशुराम चौराहा, देवरिया खास, सुगर मिल के पास उस की करोड़ों की संपत्ति थी. इस के साथ ही गांव रघवापुर, लिलमोहना समेत कई जगहों पर उस की जमीन थी.

करोड़ों का मालिक, लेकिन अकेला था दीपक पिता मंगलेश्वरमणि त्रिपाठी की हत्या के बाद से दीपक अकेला रह रहा था. उस की एकमात्र बहन डाक्टर शालिनी शुक्ला छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में रहती थी. वह बराबर फोन कर के भाई का हालचाल लेती रहती थी. वह जानती थी कि इस जमाने में सीधेसादे लोगों का जीना आसान नहीं है, वह तो वैसे भी करोडों की संपत्ति का मालिक था. यह करोड़ों की संपत्ति ही दीपक की जान के लिए आफत बनी हुई थी.

उस की संपत्ति को ले कर कुछ लोग पहले ही दीपक पर जानलेवा हमला कर चुके थे. इसलिए वह शहर को छोड़ कर भटनी कस्बे में किराए पर कमरा ले कर रहता था. वहीं से वह पिता की हत्या के मुकदमे की पैरवी करता था. उस की संपत्ति पर 2011 से रामप्रवेश यादव की भी नजर गड़ी हुई थी. 40 वर्षीय रामप्रवेश यादव देवरिया जिले के रजला गांव का रहने वाला था. 2 भाइयों में वह बड़ा था. उस के छोटे भाई का नाम अमित यादव था. रामप्रवेश शादीशुदा था. रजला गांव में उस की बडे़ रसूख वालों में गिनती होती थी. रामप्रवेश का ईंट भट्ठे की व्यवसाय था.

भट्ठे की कमाई से पैसा आया तो वह राजनीति की गलियों में पहुंच कर बड़ा नेता बनने का ख्वाब देखने लगा. रामप्रवेश यादव ने गंवई राजनीति से अपनी राजनीतिक पारी खेलनी शुरू की. एक नेता के जरिए उस ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता ले ली. समाजवादी पार्टी की राजनीति करने के साथ ही वह जिला पंचायत सदस्य के लिए चुनाव में कूद पड़ा और जिला पंचायत सदस्य की कुर्सी हासिल कर ली. जिला पंचायत सदस्य बनने के बाद उस के सपा मुखिया अखिलेश यादव व मुलायम सिंह यादव से अच्छे संबंध बन गए. अखिलेश यादव से संबंधों के चलते उसे पार्टी की ओर से जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में टिकट मिल गया. इस में वह जीता और जिला पंचायत अध्यक्ष बन गया.

अध्यक्ष बनते ही रामप्रवेश ने भरी उड़ान जिला पंचायत अध्यक्ष बनते ही रामप्रवेश यादव की गिनती बड़े नेताओं में होने लगी. पार्टी के बडे़बड़े नेताओं के बीच उठतेबैठते उस के पैर जमीन पर नहीं टिकते थे. कुछ ही दिनों में आगे का सफर तय करते हुए उस ने लोगों के बीच अपनी अच्छी छवि बना ली. सपा पार्टी की सदस्यता ग्रहण करने के बाद 2011 से ही रामप्रवेश की निगाह दीपकमणि त्रिपाठी की करोड़ों की संपत्ति पर जम गई थी. उसे हथियाने के लिए वह साम दाम दंड भेद सभी तरीके अपनाने के लिए तैयार था, लेकिन दीपक तक उस की पकड़ नहीं बन पा रही थी. दीपक को अपने चंगुल में फांसने के लिए उस ने अपने खास सिपहसालार ब्रह्मानंद चौहान को उस के पीछे लगा दिया.

ब्रह्मानंद चौहान के जरिए दीपक को वह अपने नजदीक लाने में कामयाब रहा. रामप्रवेश यादव जानता था कि दीपक अकेला है. उस के आगेपीछे कोई नहीं है. वह जैसा चाहेगा, उसे अपनी धारा में मोड़ लेगा. सीधासादा दीपक रामप्रवेश के मन क्या चल रहा है, नहीं समझ पाया और उस की राजनीतिक यारी का कायल हो कर रह गया. दीपक की एक बड़ी संपत्ति कुछ दबंगों के हाथों में चली गई थी, जहां दीपक कुछ नहीं कर पा रहा था. यह बात रामप्रवेश को पता थी. वह इसी बात का फायदा उठा कर दीपक के दिल में जगह बनाना चाहता था और उस ने ऐसा ही किया भी.

दीपक की जमीन से कब्जा हटवा कर रामप्रवेश ने उस के दिल में जगह बना ली. रामप्रवेश यादव दीपक से इस एहसान का बदला उस की बेनामी संपत्तियों को अपने नाम बैनामा करवा कर लेना चाहता था. उस ने अपनी मंशा दीपक के सामने रख भी दी थी कि वह कुछ संपत्ति का उस के नाम बैनामा कर दे. फिर किसी की हिम्मत नहीं होगी, उस की ओर आंख उठा कर देखने की. रामप्रवेश की पहली चाल यह रामप्रवेश के तरकश का पहला तीर था. उस का तर्क था कि एक बार दीपक थोड़ी सी जमीन उस के नाम बैनामा कर दे तो बाकी संपत्ति को वह धीरेधीरे हथिया लेगा. इसलिए वह दीपक का खास ख्याल रखता था. इसी गरज से उस ने दीपक को अपने यहां पनाह दी. उस की खूब सेवासत्कार करता था.

देखने में दीपक भले ही सीधासादा था, पर कम चालाक नहीं था. वह रामप्रवेश की मंशा भांप गया था. एक दिन बातोंबातों में रामप्रवेश ने उस के सामने प्रस्ताव रखा कि वह अपनी कुछ जमीन का बैनामा उस के नाम कर दे, बदले में वह उस की देखभाल करता रहेगा. लेकिन दीपक इस के लिए तैयार नहीं हुआ. उसे लगा कि रामप्रवेश ताकतवर राजनेता है. वो उस की जमीन का बैनामा करा लेगा. उस के बाद से दीपक ने रामप्रवेश का साथ छोड़ दिया. यही नहीं अपनी जानमाल की सुरक्षा के दृष्टिकोण से उस ने देवरिया की धरती ही छोड़ दी और भटनी में जा कर किराए का कमरा ले कर रहने लगा.

रामप्रवेश यादव की मंशा पर दीपक ने पानी फेर दिया था. उसे यह बात गंवारा नहीं थी कि कमजोर सा दिखने वाला दीपक उसे हरा दे. उस के इनकार कर देने से रामप्रवेश यादव तिलमिला कर रह गया. लेकिन वह बैकफुट पर जाने के लिए तैयार नहीं था. जब उस ने देखा कि अब सीधी अंगुली से घी नहीं निकलने वाला तो उस ने अंगुली टेढ़ी कर दी. रामप्रवेश ने दीपक का अपहरण करने और जबरन बैनामा करने की योजना बनाई.

इस योजना में उस ने अपने छोटे भाई अमित यादव सहित ड्राइवर धर्मेंद्र गौड़, मुन्ना चौहान और ब्रह्मानंद चौहान को शामिल कर लिया. रामप्रवेश यादव को सुरक्षा में एक सरकारी गनर मिला हुआ था. अपहरण की योजना को अंजाम देने से 2 दिन पहले उस ने गनर को यह कह कर वापस भेज दिया था कि अभी उसे उस की जरूरत नहीं है. आवश्यकता पड़ने पर वो खुद ही उसे वापस बुला लेगा.

इस की जानकारी उस ने कप्तान रोहन पी. तनय को दे दी थी ताकि कोई बात हो तो वह खुद को सुरक्षित बचा सके. ऐसा उस ने इसलिए किया था, ताकि उस की योजना विफल न हो जाए. गनर के साथ रहते हुए वह योजना को अंजाम नहीं दे सकता था. दीपक का अपहरण दीपक के क्रियाकलापों से रामप्रवेश यादव वाकिफ था. 20 मार्च, 2018 को मुकदमे की तारीख थी. मुकदमे की पेशी के लिए दीपक भटनी से सलेमपुर कोर्ट पहुंचा. रामप्रवेश को ये बात पता थी. उस ने दीपक का अपहरण करने के लिए अमित, धर्मेंद्र, मुन्ना और ब्रह्मानंद को उस के पीछे लगा दिया.

कोर्ट जाते समय इन चारों को मौका नहीं मिला, लेकिन शाम ढलने के बाद अदालत से घर लौटते समय इन लोगों ने दीपक को सलेमपुर चौराहे पर हथियारों के बल पर घेर लिया और कार में बैठा कर फरार हो गए. 40 दिनों तक जिला पंचायत अध्यक्ष रामप्रवेश यादव दीपकमणि त्रिपाठी को शहर के विभिन्न स्थानों पर रखे रहा. इस दौरान बदमाश उसे नशीला इंजेक्शन लगा कर काबू में करते रहे, उसे शारीरिक यातनाएं देते रहे. साथ ही दबाव बनाने के लिए उसे मारतेपीटते भी रहे. उस से कहा गया कि अगर वह शहर की 50 करोड़ की संपत्ति नेताजी के नाम पर बैनामा कर दे तो उसे जिंदा छोड़ दिया जाएगा. नहीं तो ऐसे ही यातना दी जाएगी. दीपक अपनी बात पर अडिग रहा कि उसे चाहे जो सजा दे दो, लेकिन वह संपत्ति का बैनामा नहीं करेगा.

जमीन का बैनामा कराने से पहले ही रामप्रवेश ने दीपक के ओरियंटल बैंक के खाते में साढ़े 4 लाख रुपए का आरटीजीएस भी किया था. बाद में 17 अप्रैल को जमीन का बैनामा कराने के बाद उस ने उस रुपए को निकालने के लिए दीपक से उस के चेक पर हस्ताक्षर करा कर बैंक भिजवाया. लेकिन दीपक ने खाता खोलने के दिन से ही शाखा प्रबंधक से कह दिया था कि कभी भी बिना उस की जानकारी के कोई बड़ी रकम उस के खाते से नहीं निकाली जानी चाहिए.

इसलिए वह उस के खाते से रुपए नहीं निकल पाया. ये मात्र साढ़े 4 लाख रुपए जिला पंचायत अध्यक्ष ने जमीन के लिए दिए थे और फिर दिए गए रुपए को वह साजिश रच कर वापस पाना चाहता था. लेकिन उस का इरादा कामयाब नहीं हुआ. पुलिस ने रामप्रवेश के कब्जे से वह चैक भी बरामद कर लिया. रामप्रवेश यादव ने आस्तीन का सांप बन कर दीपक को डंसा. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि रामप्रवेश उस के साथ ऐसी घिनौनी हरकत करेगा. नेताजी के कुकृत्यों में साथ दे कर रजिस्ट्री विभाग के अधिकारियों ने अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली और नाहक जेल की हवा खानी पड़ी.

नेता रामप्रवेश यादव कभी डीएम और एसपी की कुर्सी के बीच बैठ कर शेखी बघारता था. लेकिन जब पुलिस ने उसे हथकड़ी पहनाई तो उस की सारी हेकड़ी धरी रह गई. कथा लिखे जाने तक सभी 11 आरोपी जेल में बंद थे. बुरी तरह डरा हुआ दीपक कुछ दिनों के लिए अपनी बहन शालिनी के पास छत्तीसगढ़ चला गया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

बेटी ने मुस्लिम प्रेमी से करवाई पिता की हत्या

अपराध की भूमिका उसी दिन बनने लगी थी, जिस दिन से राकेश रूहेला ने पत्नी और बेटी पर लगाम कसनी शुरू की थी. वह नहीं जानता था कि पत्नी और बेटी ही उस का कत्ल करा देंगी. अब वैशाली और समीर की लव स्टोरी…    

प्रैल के महीने में यूं तो इतनी गरमी नहीं पड़ती, लेकिन 2018 का अप्रैल महीना इस बार शुरू से ही कुछ ज्यादा गरमाने लगा था. इसीलिए जल्दी बंद होने वाले बाजार भी देर तक खुलने लगे थे. दिल्ली से मात्र 60 किलोमीटर दूर बसे उत्तर प्रदेश के शामली जिले में एक मोहल्ला है दयानंद नगर, जो शहर के सब से बड़े नाले के किनारे तंग गलियों वाला मोहल्ला है. इसी मोहल्ले में राकेश रूहेला अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी कृष्णा के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था.

राकेश दिल्ली के शाहदरा के भोलानाथ नगर स्थित बाबूराम टैक्नीकल इंस्टीट्यूट में लैब टेक्नीशियन की नौकरी करते थे. वह सुबह 7 बजे अपने घर से निकल कर करीब डेढ़ किलोमीटर दूर रेलवे स्टेशन तक पैदल जाते थे. वहां से दिल्ली जाने वाली ट्रेन में सवार हो कर वह शाहदरा रेलवे स्टेशन पर उतरते और अपने इंस्टीट्यूट पहुंचते थे. शाम को भी वह इसी तरह ड्यूटी पूरी कर घर पहुंचते थे. ये उन का लगभग रोज का रूटीन था.

7 अप्रैल, 2018 की रात भी राकेश रूहेला रोजमर्रा की तरह करीब साढ़े 9 बजे दिल्ली से अपनी ड्यूटी खत्म कर के ट्रेन से शामली पहुंचे और वहां से नाला पट्टी रोड से पैदल घर की तरफ जा रहे थे. रात करीब पौने 10 बजे वह अपने घर की गली के मोड़ के करीब पहुंचे ही थे कि उन के पास अचानक 2 युवक तेजी से आए, उन में से एक ने उन के पास जा कर गोली चला दी. 

फायर की आवाज सुन कर आसपास खुली इक्कादुक्का दुकानों पर खड़े लोगों ने जब तक पलट कर देखा तब तक राकेश लहरा कर जमीन पर गिर चुके थे और उन्हें गोली मारने वाले दोनों युवक तेजी से विपरीत दिशा की तरफ भाग रहे थे. लोगों ने देखते ही पहचान लिया कि गोली लगने के बाद जमीन पर खून से लथपथ पड़ा व्यक्ति राकेश रूहेला है. गली के नुक्कड़ पर ही किराने की दुकान चलाने वाला शैलेंद्र कुछ लोगों की मदद से जख्मी राकेश को एक टैंपो में लाद कर जिला अस्पताल ले गया. कुछ लोगों ने तब तक राकेश के घर जा कर इस बात की सूचना दे दी कि किसी ने राकेश पर गोली चलाई है.   

मौत पर पत्नी और बेटी का नाटक इस के बाद उन के घर में कोहराम मच गया. राकेश की पत्नी कृष्णा और बेटा तत्काल आसपड़ोस के लोगों को साथ ले कर सरकारी अस्पताल पहुंच गए. कृष्णा ने 3 नंबर गली में रहने वाले अपने देवर मुकेश को फोन कर के सारी बात बताई और जल्दी से सरकारी अस्पताल पहुंचने के लिए कहा. सरकारी अस्पताल पहुंचने के बाद घर वालों को डाक्टरों ने बताया कि राकेश की रास्ते में ही मौत हो चुकी थी.

पति की मौत की खबर सुनते ही कृष्णा का विलाप शुरू हो गया. मुकेश कुछ लोगों को साथ ले कर शामली कोतवाली पहुंचा, उस वक्त तक रात के करीब 11 बज चुके थे. थाने में मौजूद एसएसआई रफी परवेज को उस ने भाई की हत्या की जानकारी दी. उस वक्त थानाप्रभारी अवनीश गौतम क्षेत्र की गश्त पर निकले हुए थे. जैसे ही थानाप्रभारी को इस घटना की खबर मिली तो उन्होंने एसएसआई को शिकायत की तहरीर ले कर मुकदमा दर्ज कराने और पुलिस दल के साथ सरकारी अस्पताल पहुंचने के निर्देश दिए

राकेश का शव अस्पताल में ही रखा हुआ था. एसएसआई रफी परवेज ने मुकेश से ली गई तहरीर के आधार पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद वह एसआई सत्यनारायण दहिया, महिला एसआई नीमा गौतम, कांस्टेबल प्रताप अन्य स्टाफ को साथ ले कर सरकारी अस्पताल पहुंच गए. तब तक थानाप्रभारी अवनीश गौतम भी वहां पहुंच गए. घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को भी दे दी गई थी. इसलिए सूचना मिलने के बाद सीओ (सिटी) अशोक कुमार सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए

पुलिस के सभी अधिकारियों ने मृतक के परिवार वालों के अलावा राकेश को अस्पताल लाने वाले शैलेंद्र से राकेश पर हमला करने वालों और घटनाक्रम के बारे में पूछताछ की. लेकिन तो किसी ने ये बताया कि वे हमलावरों को पहचानते हैं, ही परिजनों ने किसी पर हत्या का शक जतायाहां, इतना जरूर पता चला कि मृतक अपने औफिस के लोगों और जानपहचान वालों के साथ मिल कर महीने की कमेटी डालने का काम करता था. अकसर उस के पास कमेटी की रकम होती थी

परिजनों ने आशंका जताई कि कहीं राकेश को किसी ने लूटपाट के उद्देश्य से तो गोली नहीं मार दी. मगर घटनास्थल पर बतौर चश्मदीद शैलेंद्र व अन्य लोगों से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि गोली चलने के तुरंत बाद हमलावर तेजी से भाग गए थे. उन्होंने राकेश से किसी तरह की छीनाझपटी होते नहीं देखी. पुलिस को भी चश्मदीदों की बात में सच्चाई दिखी, क्योंकि राकेश की जेब में रुपयों से भरा पर्स, अंगुली में सोने की अंगूठी, कलाई में घड़ी और हाथ में लिया बैग एकदम सहीसलामत थे. रात बहुत अधिक हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.  

अगले दिन सीओ (सिटी) और थानाप्रभारी ने जांच अधिकारी रफी परवेज के साथ बैठ कर जब पूरे घटनाक्रम पर विचार करना शुरू किया तो उन्हें लगा कि मामला उतना सीधा नहीं है, जितना दिखाई पड़ रहा हैक्योंकि अगर बदमाशों को लूटपाट या छीनाझपटी करने के लिए राकेश को गोली मारनी होती तो वे किसी सुनसान जगह को चुनते कि उस के घर के पास ऐसी जगह को, जहां लोगों की काफी आवाजाही थीपुलिस को बेलने पड़े पापड़ पुलिस को लगा कि या तो हत्या किसी रंजिश के कारण की गई है या फिर किसी ऐसे कारण से जो फिलहाल पुलिस की नजरों से छिपा है. थानाप्रभारी एक बार फिर राकेश रूहेला के घर पहुंचे. उन्होंने राकेश की पत्नी, उन की दोनों बेटियों, बेटे और भाई मुकेश से पूछताछ की

किसी ने भी राकेश की हत्या के लिए तो किसी पर शक जाहिर किया और ही किसी से रंजिश की बात बताई. सीओ (सिटी) अशोक कुमार सिंह ने क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर धर्मेंद्र पंवार को भी बुला कर अपराध की इस गुत्थी को सुलझाने के काम पर लगा दिया. राकेश की हत्या के अगले दिन पुलिस का सारा वक्त घर वालों और जानपहचान वालों से पूछताछ में लग गया. दोपहर बाद पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद राकेश का शव घर वालों को सौंप दियापोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि राकेश की मौत सिर में गोली लगने से हुई थी और गोली करीब डेढ़ फुट की दूरी से मारी गई थी, जिस का मतलब था कि हत्यारे राकेश की हत्या करना चाहते थे.

अगले दिन राकेश की हत्या की जांच का काम तेजी से शुरू हो गया. कातिल तक पहुंचने के लिए पुलिस के पास बस अब एक ही रास्ता था कि वह इलाके में लगे सीसीटीवी की फुटेज का सहारा ले कर पता लगाए कि राकेश को गोली मारने वाले कौन लोग थेहांलाकि इस दौरान क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर धर्मेंद्र पंवार ने अपनी टीम के साथ इलाके में सक्रिय लूटपाट गिरोह से जुड़े कई बदमाशों को हिरासत में ले कर पूछताछ कर ली थी. सत्यता की जांच के लिए तमाम बदमाशों के मोबाइल नंबरों की लोकेशन भी देखी गई, मगर इस वारदात में किसी के भी शामिल होने की पुष्टि नहीं हो सकी.

सीसीटीवी से खुलना शुरू हुआ राज इधर थानाप्रभारी अवनीश गौतम ने स्टेशन से घटनास्थल तक लगे 6 सीसीटीवी कैमरों की जांच की, तो पता चला कि उन में से एक खराब था. कुल बचे 5 सीसीटीवी कैमरे बाकायदा काम कर रहे थे. पुलिस को पूरी उम्मीद थी कि अगर हत्यारे काफी दूर से राकेश रूहेला का पीछा कर रहे थे तो कहीं कहीं वे सीसीटीवी फुटेज में जरूर कैद हुए होंगे

थाना पुलिस ने क्राइम ब्रांच की मदद से इन सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखनी शुरू कर दीं. इसी बीच 12 अप्रैल को कोतवाली प्रभारी अवनीश गौतम का तबादला हो गया. उन की जगह जितेंद्र सिंह कालरा आए. जितेंद्र सिंह कालरा को यूपी पुलिस में सुपरकौप के नाम से जाना जाता है. कार्यभार संभालते ही नए थानाप्रभारी का सामना सब से पहले राकेश रूहेला के पेचीदा केस से हुआ. उन्होंने इस मामले में अब तक की गई जांच पर नजर डाली. राकेश हत्याकांड के हर पहलू को बारीकी से समझने के बाद कालरा को लगा कि जांच आगे बढ़ने से पहले उन्हें उन सीसीटीवी फुटेज को जरूर देखना चाहिए.

कालरा ने क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर धर्मेंद्र पंवार और उन की टीम के साथ बैठ कर फुटेज देखने का काम शुरू किया. 5 घंटे तक फोरैंसिक एक्सपर्ट के साथ सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद आखिर पुलिस को एक बड़ी कामयाबी मिली. पता चला कि जिस जगह राकेश रूहेला को गोली मारी गई थी, उस से 50 कदम की दूरी पर एक इलैक्ट्रौनिक शौप से राकेश ने कुछ सामान खरीदा था. उसी समय 2 युवक राकेश का पीछा करते हुए दिखे. इन में से एक के हाथ में तमंचे जैसा हथियार दिखाई दे रहा था.  हालांकि उन के चेहरे पूरी तरह तो नहीं दिख रहे थे, लेकिन आकृति देख कर ऐसा कोई भी व्यक्ति जिस ने उन लोगों को पहले कभी देखा हो, पहचान कर बता सकता था कि वे कौन हैं. सब से पहले थानाप्रभारी ने उस रात घटनास्थल के चश्मदीदों, इस के बाद मुकेश को थाने बुला कर उन से फुटेज देख कर कातिल की पहचान करने को कहा.

 राकेश रूहेला की पत्नी कृष्णा दोनों बेटियों तथा कृष्णा के देवर मुकेश ने सीसीटीवी में दिखे उन 2 लोगों को पहचानने से साफ इनकार कर दिया. लेकिन पुलिस को 2 ऐसे व्यक्ति मिल गए, जिन्होंने जांच को एक नई दिशा दे दी. जिस किराने की दुकान के सामने राकेश को गोली मारी गई थी, उस समय उस दुकान के पास शैलेंद्र सिंह और राकेश का बेटा विशाल खड़े थे, उन्होंने सीसीटीवी में दिख रहे संदिग्धों की पहचान कर ली. शैलेंद्र ने फुटेज में दिख रहे दोनों युवकों की पहचान कर बताया कि राकेश को गोली मार कर जो युवक भागे थे, उन की आकृति बिलकुल सीसीटीवी फुटेज में दिखाई पड़ रहे युवकों जैसी ही थी.

संदेह गहराता गया, दायरा छोटा होता गया शैलेंद्र ने बताया कि इन में से एक युवक को उस ने कई बार उसी गली में आतेजाते देखा था, जहां राकेश का घर था. कालरा ने गली के नुक्कड़ पर खड़े रहने वाले कुछ दूसरे लोगों से कुरेद कर पूछा तो उन्होंने भी दबी जुबान से बताया कि उन्होंने उस युवक को कई बार दिन में राकेश के घर आतेजाते देखा था. इस के बाद थानाप्रभारी कालरा ने मृतक के परिजनों को भी सीसीटीवी फुटेज दिखाई. परिवार के सभी सदस्यों में से सिर्फ राकेश के 20 वर्षीय बेटे विशाल ने बताया कि सीसीटीवी में दिख रहे युवक का नाम समीर है, जो उस की बहन वैष्णवी उर्फ काव्या का पूर्व सहपाठी है और अकसर काव्या से मिलने के लिए भी आता था.

यह बात चौंकाने वाली थी. क्योंकि जब सीसीटीवी में दिख रहे युवक को राकेश की पत्नी बेटियां जानतीपहचानती थीं तो उन्होंने उसे पहचानने से इनकार क्यों किया. थानाप्रभारी कालरा को साफ लगने लगा कि दाल में कुछ काला है. क्योंकि जबजब उन्होंने कृष्णा और उस की दोनों बेटियों से पूछताछ की, तबतब वो रोनेबिलखने के साथ पूछताछ के मकसद को भटका देती थीं. कालरा ने मृतक की पत्नी कृष्णा और उस के बच्चों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि कृष्णा की छोटी बेटी काव्या और समीर के बीच घटना के 2 दिन पहले से दिन और रात में कई बार बातचीत हुई थी. इतना ही नहीं जिस वक्त वारदात को अंजाम दिया गया, उस के कुछ देर बाद भी 3-4 बार दोनों के बीच लंबी बातचीत हुई थी. समीर के मोबाइल नंबर की लोकेशन भी घटनास्थल के पास की मिली

अब पूरी तरह साफ हो चुका था कि राकेश रूहेला की हत्या में कहीं कहीं समीर शामिल है. पुलिस को यह भी पता चल गया कि समीर मोहल्ला हाजीपुरा नाला पटरी में रहने वाले डा. जरीफ का बेटा है. समीर आया पुलिस की पकड़ में थानाप्रभारी कालरा के पास अब समीर को पूछताछ के लिए हिरासत में लेने के लिए तमाम सबूत थे. उन्होंने टीम के सदस्यों को उस का सुराग लगाने को कहा. आखिर एक कांस्टेबल की सूचना पर उन्होंने 17 अप्रैल को नाला पटरी के पास खेड़ी करमू के रेस्तरां से उसे हिरासत में ले लिया. उस समय उस के साथ मृतक राकेश की बेटी काव्या के अलावा समीर का चचेरा भाई शादाब भी था.

थानाप्रभारी ने समीर को थाने ले जा कर पूछताछ की तो उसे टूटने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. समीर ने कबूल कर लिया कि राकेश रूहेला की हत्या उस ने ही अपने चचेरे भाई शादाब के साथ मिल कर की थी और हत्या करने के लिए काव्या ने ही उसे मजबूर किया था. समीर से पूछताछ के बाद हत्या की जो हैरतअंगेज कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी. काव्या की समीर के साथ पिछले 3 सालों से दोस्ती थी. वे दोनों हाईस्कूल में साथ पढ़ते थे. इंटरमीडिएट तक पढ़ाई के बाद काव्या कैराना स्थित एक कालेज से बीएससी करने लगी, जबकि समीर को उस के घर वालों ने एमबीबीएस की कोचिंग करने के लिए राजस्थान के कोटा में अपने एक रिश्तेदार के पास भेज दिया. 

दरअसल, समीर के पिता जरीफ बीएएमएस डाक्टर थे और शामली में अपना क्लीनिक चलाते थे. उन की चाहत थी कि समीर बड़ा हो कर डाक्टर बने. इसीलिए उन्होंने डाक्टरी की कोचिंग के लिए उसे कोटा भेज दिया था. उन के रिश्तेदार का बेटा भी समीर के साथ ही एमबीबीएस की तैयारी कर रहा था. काव्या से शुरू हुई समीर की दोस्ती गुजरते वक्त के साथ प्यार में बदल गई थी. काव्या के प्रति समीर की चाहत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि एक दिन उस ने अपने हाथ पर उस का नाम भी गुदवा लिया. काव्या को यह तो पता था कि समीर उस पर मरता है लेकिन उसे ये नहीं मालूम था कि उस की दीवानगी में वह उस का नाम अपने हाथ पर भी गुदवा लेगा. 

इधर इंटरमीडिएट के बाद दोनों चोरीछिपे पढ़ाई के बहाने कभी घर में तो कभी घर के बाहर मिलतेजुलते थे. धीरेधीरे यह बात राकेश के कानों तक जा पहुंची. राकेश की पत्नी कृष्णा के संबध भी अपने पति से ठीक नहीं थे. दरअसल, तेजतर्रार और चंचल स्वभाव वाली कृष्णा के चरित्र पर राकेश को पहले से ही शक था. राकेश को भनक थी कि कृष्णा उस के ड्यूटी जाने के बाद घर से बाहर अपने चाहने वालों से मिलती रहती है. राकेश को तो इस बात का भी शक था कि कृष्णा के चाहने वाले उस से मिलने के लिए घर में भी आते हैं. यही कारण था कि अकसर राकेश और कृष्णा के बीच झगड़ा होता रहता था. अपनी इसी झल्लाहट में राकेश कृष्णा पर अकसर हाथ भी छोड़ देता था. जब राकेश शराब पी लेता तो वह कृष्णा को न सिर्फ गालियां देता, बल्कि मारपीट करने के दौरान यहां तक तंज कस देता कि उसे शक है कि उस की तीनों औलाद असल में उस की हैं या किसी और की. 

पिता का विरोध करने के लिए जब उस की दोनों बेटियां वैशाली और वैष्णवी उर्फ काव्या कोशिश करतीं तो उन्हें भी राकेश की मार का शिकार होना पड़ता. इस दौरान जब एक दिन राकेश को पता चला कि काव्या का चक्कर समीर नाम के एक मुसलिम युवक से चल रहा है तो उन का गुस्सा और बढ़ गया. उस ने पत्नी के साथ अब दोनों बेटियों पर भी लगाम कसनी शुरू कर दी. हालांकि समीर एमबीबीएस की तैयारी करने के लिए कोटा जरूर चला गया था, लेकिन वह हर हफ्ते चोरीछिपे अपने परिवार को बताए बिना शामली आता और काव्या से मिल कर चला जाता था

काव्या और समीर की दोस्ती और परवान चढ़ रहे प्यार की कहानी की खबर काव्या की मां कृष्णा और उस की बड़ी बहन वैशाली को थी. इस की जानकारी राकेश को जब मोहल्ले के कुछ लोगों से मिली तो उस ने काव्या के साथ सख्ती से पेश आना शुरू कर दियाराकेश थक गया था. लोगों के ताने सुन कर शक की आग में जल रहे राकेश के गुस्से में एक दिन उस समय घी पड़ गया, वह अपनी ड्यूटी से घर लौट रहा था. मोहल्ले के ही एक व्यक्ति ने उसे रोक कर कहा, ‘‘राकेश भाई, आंखों पर ऐसी कौन से पट्टी बांध रखी है आप ने, जो दूसरे मजहब का एक लड़का सरेआम आप की बेटी को ले कर घूमता है. आप के घर आताजाता है. लेकिन न तो आप उसे रोक रहे हैं और न ही आप की धर्मपत्नी. अरे भाई अगर कोई डर या कोई दूसरी वजह है तो हमें बताओ, हम रोक देंगे उस लड़के को.’’

उस दिन कालोनी के व्यक्ति का ताना सुन कर राकेश के तनबदन में आग लग गई. ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. इस से पहले भी अलगअलग लोगों ने दबी जुबान में इस बात की शिकायत की थी, लेकिन अब काव्या की शिकायतें खुल कर होने लगीं. खुद राकेश ने भी एकदो बार समीर को अपने घर आते देखा था. राकेश ने पहले समीर को समझा कर कह दिया कि वह उस के घर आया करे, क्योंकि काव्या से उस का मिलनाजुलना उन्हें पसंद नहीं है. बाद में जब समझाने पर भी समीर नहीं माना तो उस ने समीर को एक बार 2-3 थप्पड़ भी जड़ दिए. साथ ही धमकी भी दी कि अगर फिर कभी काव्या से मिलने की कोशिश की तो वह उसे पुलिस को सौंप देंगे

इस के बाद से समीर ने काव्या से मिलने में सावधानी बरतनी शुरू कर दी. अब या तो वह काव्या से सिर्फ उस के घर पर ही मिलता था या फिर दोनों शहर से बाहर कहीं दूर जा कर मिलते थे. राकेश के ड्यूटी पर निकल जाने के बाद घर में क्याक्या होता, यह खबर रखने के लिए राकेश ने अपने घर में सीसीटीवी कैमरे लगवा लिए. इन सीसीटीवी कैमरों का मौनीटर उस ने अपने मोबाइल फोन में इंस्टाल करवा लिया. इसी सीसीटीवी के जरिए वह राज खुल गया, जिस का राकेश को शक था. उस ने मौनीटर पर खुद देखा कि किस तरह उस की गैरमौजूदगी में उस की पत्नी और बेटी से मिलने के लिए उन के आशिक उसी के घर में आते हैं. 

पहले पत्नी उतरी विरोध पर पत्नी और बेटी के चरित्र के इस खुलासे के बाद राकेश का मन बेटियों और पत्नी के प्रति खट्टा हो गया. राकेश के लिए पत्नी और बेटियों के साथ मारपीट करना अब आए दिए की बात हो गई. रोजरोज की मारपीट और बंधनों से परेशान कृष्णा ने एक दिन अपनी दोनों बेटियों के सामने खीझते हुए बस यूं ही कह दिया कि जिंदा रहने से तो अच्छा है कि ये इंसान मर जाए, पता नहीं वो कौन सा दिन होगा जब हमें इस आदमी से छुटकारा मिलेगा. बस उसी दिन काव्या के दिलोदिमाग में ये बात बैठ गई कि जब तक उस का पिता जिंदा है, वह और उस की मांबहनें आजादी की सांस नहीं ले सकतीं, ही अपनी मरजी से जिंदगी जी सकती हैं.

काव्या के दिमाग में उसी दिन से उधेड़बुन चलने लगी कि आखिर ऐसा क्या किया जाए कि उस का पिता उन के रास्ते से हट जाए. अचानक उस की सोच समीर पर कर ठहर गई. उसे लगने लगा कि समीर उस से जिस कदर प्यार करता है, बस एक वही है, जो उस की खातिर ये काम कर सकता है. लेकिन इस के लिए जरूरी था कि समीर को भावनात्मक रूप से और लालच दे कर इस काम के लिए तैयार किया जाए. इस बात का जिक्र काव्या ने अपनी मां से किया तो उस ने भी हामी भर दी. बस फिर क्या था काव्या मौके का इंतजार करने लगी.

एक दिन मौका मिल गया. समीर ने रोजरोज चोरीछिपे मिलने से परेशान हो कर काव्या से कहा कि वह इस तरह मिलनेजुलने से परेशान हो चुका है, क्यों वे दोनों भाग जाएं और शादी कर लें. पिता को बताया जल्लाद काव्या ने कहा कि वह उस से भाग कर नहीं बल्कि पूरे जमाने के सामने ही शादी करेगी लेकिन इस के लिए एक समस्या है. काव्या ने समीर से कहा कि उस के पिता उन के प्रेम में बाधा बने हैं. उन के जीते जी कभी वे दोनों एक नहीं हो सकते. उन के मेलजोल के कारण ही पिता आए दिन पूरे परिवार के साथ मारपीट करते है

यदि वह उन्हें रास्ते से हटा दे तो वह उस के साथ शादी कर लेगी. काव्या ने समीर को ये भी लालच दिया कि सहारनपुर में उन का एक 100 वर्गगज का प्लौट है. अगर वो उस के पिता की हत्या कर देगा तो वह प्लौट वह उस के नाम कर देगी. ‘‘काव्या, ये तुम कैसी बात कर रही हो. ठीक है वो तुम लोगों के साथ सख्ती करते हैं, लेकिन इस का मतलब ये तो नहीं कि तुम उन की हत्या करने की बात सोचो.’’ समीर बोला.

‘‘समीर, तुम मेरी बात समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रहे हो. तुम्हें पता नहीं मेरा बाप इंसान नहीं है जानवर है, जानवर. वो सिर्फ मुझे ही नहीं मेरी बहन और मां को भी छोटीछोटी बात पर पीटता है.’’

काव्या ने समीर के सामने अपने पिता को ऐसे जल्लाद इंसान के रूप में पेश किया कि समीर को यकीन हो गया कि राकेश की हत्या के बाद ही काव्या और उस के घर वालों को चैन की सांस मिल सकेगी. लिहाजा उस ने काव्या से वादा किया कि वह किसी भी तरह उस के पिता की हत्या कर के रहेगा

काव्या ने एक और बात कही, जिस से समीर का मनोबल और बढ़ गया. उस ने समीर को बताया कि उस के पिता कमेटी डालने का धंधा भी करते हैं, जिस की वजह से रोज उन के पास हजारों रुपए रहते हैं. काव्या ने उसे समझाया कि जब तुम उन्हें गोली मारो तो उन का बैग छीन कर भाग जाना, इस से लगेगा कि उन की हत्या लूट के लिए हुई है. और हां, बैग में जो भी रकम हो वो तुम्हारी. इस के बाद समीर के सामने समस्या यह थी कि वह राकेश की हत्या करने के लिए हथियार कहां से लाए. लिहाजा उस ने काव्या से सवाल किया, ‘‘यार, तुम्हारे बाप को तो मैं मार दूंगा लेकिन समस्या ये है कि मेरे पास कोई पिस्तौल वगैरह तो है नहीं फिर मारूंगा कैसे?’’

‘‘तुम उस की फिक्र मत करो. कैराना में हुए दंगों के वक्त पापा ने अपनी हिफाजत के लिए एक तमंचा खरीदा था, साथ में कुछ कारतूस भी हैं. मैं 1-2 दिन में तुम्हें ला कर दे दूंगी. उसी से गोली मार देना उन को.’’

समीर तो पेशेवर अपराधी था और ही उस में अपराध करने की हिम्मत थी. इसलिए उस ने अपने चाचा अनीस के बड़े बेटे शादाब से बात की. वह समीर का ही हमउम्र था. दोनों की खूब पटती थीजब समीर ने अपनी मोहब्बत की मजबूरी शादाब के सामने बयां की तो वह भी पशोपेश में पड़ गया. समीर ने शादाब को ये भी बता दिया था कि इस काम को करने के बाद उसे सिर्फ उस की मोहब्बत मिल जाएगी बल्कि सहारनपुर में 100 वर्गगज का एक प्लौट तथा वारदात के बाद कुछ नकदी भी मिलेगी, जिस में से वह उसे भी बराबर का हिस्सा देगा.

शादाब भी लड़कपन की उम्र से गुजर रहा था. लालच ने उस के मन में भी घर कर लिया. इसलिए उस ने समीर से कह दिया, ‘‘चल भाई, तेरी मोहब्बत के लिए मैं तेरा साथ दूंगा.’’

वारदात से 3 दिन पहले किसी बात पर राकेश ने फिर से अपनी पत्नी कृष्णा और बेटी काव्या की पिटाई कर दी. जिस के बाद काव्या को लगा कि अब पिता को रास्ते से हटाने में देर नहीं करनी चाहिएउस ने अगली सुबह ही समीर को फोन कर उसे एक जगह मिलने के बुलाया और वहां उसे घर में रखा पिता का तमंचा और 2 कारतूस ले जा कर सौंप दिए

 खेला मौत का खेल उसी दिन उस ने अपने पिता की हत्या के लिए 7 अप्रैल की तारीख भी मुकर्रर कर दी. काव्या ने समीर से साफ कह दिया कि अब वह उस से उसी दिन मिलेगी जब वह उस के पिता की हत्या को अंजाम दे देगा. मोहब्बत से मिलने की आस में समीर ने भी अब देर करना उचित नहीं समझा. 7 अप्रैल को जब राकेश अपनी ड्यूटी पर गया तो उस दिन सुबह से ही समीर काव्या से लगातार फोन पर संपर्क में रहा. और दिन भर ये जानकारी लेता रहा कि उस के पिता दिल्ली से कब चलेंगे. काव्या वैसे तो अपने पिता को फोन नहीं करती थी, लेकिन उस दिन उस ने दिन में 2 बार उन्हें किसी किसी बहाने फोन किया.  

शाम को भी करीब साढे़ 8 बजे काव्या ने पिता को फोन कर के पूछा कि वह कहां हैं. राकेश ने बेटी को बताया कि वह ट्रेन में हैं. काव्या ने फोन करने की वजह छिपाने के लिए कहा कि इलैक्ट्रिक प्रेस का प्लग खराब हो गया है, जब वह घर आएं तो बिजली वाले की दुकान से एक प्लग लेते आएं. बस ये जानकारी मिलते ही काव्या ने समीर को फोन कर के बता दिया कि उस के पिता रोज की तरह 9, सवा 9 बजे तक शामली स्टेशन पहुंच जाएंगे. जिस के बाद समीर भी शादाब को लेकर स्टेशन पहुंच गया

रात को करीब साढ़े 9 बजे राकेश जब स्टेशन से बाहर आया तो समीर शादाब उस का पीछा करने लगे. रास्ते में कई जगह ऐसा मौका आया कि एकांत पा कर वे राकेश पर गोली चलाने ही वाले थे कि अचानक किसी गाड़ी या राहगीर के आने पर वे राकेश को गोली मार सके. इसी तरह पीछा करतेकरते दोनों राकेश के घर के करीब पहुंच गए. इस दौरान राकेश ने बिजली की दुकान से इलैक्ट्रिक प्रेस का प्लग खरीदा और फिर घर की तरफ चल दिया. समीर को लगा कि अगर वह अब भी राकेश का काम तमाम नहीं कर सका तो मौका हाथ से निकल जाएगा और काव्या कभी उसे नहीं मिल सकेगी. उस ने तमंचा झट से शादाब के हाथ में थमा दिया और बोला, ‘‘ले भाई, मार दे इसे गोली.’’ 

सब कुछ अप्रत्याशित ढंग से हुआ. शादाब ने तमंचा हाथ में लिया और भागते हुए बराबर में पहुंच कर राकेश पर गोली चला दी. गोली मारने के बाद समीर और शादाब ने पलट कर यह भी नहीं देखा कि गोली राकेश को कहां लगी है और वो जिंदा है या मर गया. बस उन्हें डर था कि वो कहीं पकड़े जाएं, इसलिए वे तुरंत घटनास्थल से भाग गए. समीर ने सुरक्षित स्थान पर पहुंचते ही काव्या को फोन कर के सूचना दे दी कि उस ने उस के पिता को गोली मार दी है

इस के बाद रात भर में काव्या और समीर के बीच कई बार बातचीत हुई. समीर को ये जान कर सुकून मिला कि गोली सही निशाने पर लगी और उस ने राकेश का काम तमाम कर दिया है. समीर ने तमंचा और बचा हुआ एक कारतूस उसी रात घर के पास नाले के किनारे एक झाड़ी में छिपा कर रख दिया था, जिसे पुलिस ने गिरफ्तारी के बाद उस की निशानदेही पर बरामद कर लिया. पुलिस ने इस मामले में हत्या के अभियोग के अलावा समीर और शादाब के खिलाफ शस्त्र अधिनियम का मामला भी दर्ज कर लिया.

एक गोली ने खत्म की लव स्टोरी विस्तृत पूछताछ के बाद थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह कालरा ने समीर और शादाब के साथ काव्या को भी हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गयालिहाजा 3 दिन तक जांच और कुछ अन्य साक्ष्य जुटाने के बाद थानाप्रभारी कालरा के निर्देश पर पुलिस टीम ने कृष्णा और वैशाली को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों ने पुलिस पूछताछ में राकेश की हत्या की साजिश में शामिल होने का अपराध कबूल कर लिया. पुलिस ने 17 अप्रैल को दोनों को जेल भेज दिया.

अनैतिक रिश्तों का विरोध करने वाले पति और पिता की हत्या की सुपारी देने वाली मां और बेटियां तो जेल में अपने किए की सजा भुगत ही रही हैं, लेकिन समीर ने प्रेम में अंधे हो कर अपने डाक्टर बनने के सपने को खुद ही तोड़ दिया.

   —कथा पुलिस की जांच और काररवाई पर आधारित

   

बेटी की हत्या कर मां पूरी रात उसके ऊपर खड़ी रही

गृहक्लेश में जब बात बढ़ जाती है तो परिवार के परिवार बरबाद हो जाते हैं. फौजी इंद्रराम के साथ भी यही हुआ. उस की पत्नी संतोष ने उस की गृहस्थी को ऐसे उजाड़ा कि लोग हैरत में रह गए. कोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई.   

24 मार्च, 2018 को राजस्थान के जिला चुरू के एडीजे जगदीश ज्याणी की अदालत में और दिन से ज्यादा भीड़ थी. इस की वजह यह थी कि उस दिन माननीय न्यायाधीश द्वारा एक बहुचर्चित मामले का फैसला सुनाया जाना था. फैसला सुनने की उत्सुकता में कोर्ट में वकीलों के अलावा आम लोग भी मौजूद थे. कोर्ट रूम में मौजूद सभी को लग रहा था कि संतोष ने जिस तरह से अपने दोनों बच्चों की निर्दयतापूर्वक हत्या की थी, उसे देखते हुए उस निर्दयी औरत को फांसी की सजा तो होनी चाहिए. सभी लोग सजा को ले कर उत्सुक थे. आखिर ऐसा क्या मामला था कि संतोष को अपने जिगर के टुकड़ों 2 बेटों और एक बेटी की हत्या के लिए मजबूर होना पड़ा. यह जानने के लिए हमें घटना की पृष्ठभूमि में जाना पड़ेगा.

राजस्थान का एक जिला है चुरू. इसी जिले के थाना राजलदेसर के अंतर्गत आता है एक गांव हामूसर. इंद्रराम इसी गांव में रहता था, जो कबड्डी का खिलाड़ी था. बाद में उस की नौकरी भारतीय सेना में लग गई. उस की पोस्टिंग बरेली की जाट रेजीमेंट में थी. उस की शादी संतोष से हुई थी. इंद्रराम से ब्याह कर संतोष जब ससुराल आई थी, तब वह बहुत खुश थी. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. पर धीरेधीरे संतोष का स्वभाव सामने आने लगा. उस ने घर में कलह करनी शुरू कर दी. वह सास, पति, देवर और अन्य पारिवारिक लोगों से लड़ाईझगड़ा करने लगी. बातबात पर गुस्सा हो जाती थी.

इंद्रराम सालभर में दोढाई महीने की छुट्टी पर घर आता था. मगर बीवी की कलह से घर में हर समय लड़ाई होती रहती थी. तब इंद्रराम को लगता कि अगर वह छुट्टी पर नहीं आता तो ठीक रहता. जैसेतैसे छुट्टियां काट कर वह अपनी ड्यूटी चला जाता. इसी तरह कई साल बीत गए और संतोष 2 बेटों और एक बेटी की मां बन गई. पति के ड्यूटी पर चले जाने के बाद संतोष ससुराल वालों के साथ कलह करती रहती थी. जब इंद्रराम को घर वाले फोन कर के उस की शिकायत करते तो उसे पत्नी पर बहुत गुस्सा आता था. 

वह अपना घर टूटते नहीं देखना चाहता था. इसलिए वह चुप रह कर सब कुछ सहने लगा. छुट्टी में इंद्रराम के घर आने पर पत्नी क्लेश करती तो वह घर से बाहर जा कर वक्त काटता. उस की बड़ी बेटी करुणा 12 साल की हो चुकी थी और बेटे अनीश जितेंद्र 9 7 साल के थे. तीनों बच्चों की पढ़ाई चल रही थी. संतोष ने अपनी ससुराल वालों के साथ कलह करनी बंद नहीं की तो वह परेशान हो गए. उन लोगों ने अपने खेतों में एक मकान बना रखा था. उन्होंने संतोष से कहा कि वह खेतों वाले मकान में रहे, इस के बाद संतोष बच्चों को ले कर खेतों वाले मकान में रहने लगी

इस तरह सासससुर और देवर अलग हो गए. संतोष अपने बच्चों से कहती कि वे दादा के घर जाएं. फोन पर भी वह पति से भी सीधे मुंह बात नहीं करती थी. 12 जुलाई, 2015 का दिन था. इंद्रराम ने संतोष को फोन किया. किसी बात को ले कर वह पति से फोन पर झगड़ने लगी. झगड़ा बढ़ा तो गुस्से में तमतमाई संतोष ने पति से कहा कि वह अपने तीनों बच्चों के साथ पानी के टांके (कुंड) में डूब कर जीवनलीला समाप्त कर लेगी.

इतना कह कर उस ने फोन काट दिया. इंद्रराम ने उसे दोबारा फोन किया मगर संतोष ने बात नहीं की. इस के बाद वह अपने तीनों बच्चों को ले कर रात में ही कुंड के पास पहुंच गई. तीनों बच्चों को उस ने एकएक कर के कुंड में धकेल दिया. इस के बाद वह स्वयं भी आत्महत्या के इरादे से कुंड में कूद गई. कुंड में करीब पौने 5 फुट पानी था, जिस की वजह से तीनों बच्चों की डूबने से मौत हो गई थी. संतोष जब पानी में डूबने लगी तो वह बचने के लिए हाथपैर मारने लगी. वह पानी में बेटी के ऊपर खड़ी हो गई. रात भर वह पानी में बेटी के ऊपर खड़ी रही. पानी संतोष के गले तक था. सारी रात वह ऐसे ही खड़ी रही.  

संतोष के ससुराल वाले पास के खेत में रहते थे. उन्होंने जब रात में संतोष और उस के बच्चों को नहीं देखा तो उन्होंने इंद्रराम को फोन किया. इंद्रराम ने संतोष से हुई लड़ाई वाली बात बताते हुए कहा कि संतोष ने यह कहा था कि वह बच्चों सहित पानी के कुंड में कूद कर मरने जा रही है. मैं ने उस की बात को केवल धमकी समझा थाइद्रराम से बात कर के घर के लोग कुंड पर पहुंचे तो संतोष पानी में खड़ी दिखी. तीनों बच्चे दिखाई नहीं दे रहे थे. घर वालों के शोर मचाने के बाद गांव के कई लोग इंद्रराम फौजी के खेत में बने पानी के कुंड पर पहुंच गए. गांव के ही मनफूल टांडी ने राजलदेसर थाने में इस की सूचना दे दी

तत्कालीन थानाप्रभारी सुभाष शर्मा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने संतोष को कुंड से जीवित निकाल लिया लिया जबकि तीनों बच्चों की मौत हो चुकी थी. प्रारंभिक पूछताछ में संतोष ने पुलिस को कोई संजोषजनक जवाब नहीं दिया. इस के बजाय उस ने पुलिस को गुमराह करने का प्रयास किया. घटना के समय खेतों में बनी उस ढाणी में संतोष उस के 3 बच्चों के अलावा कोई दूसरा नहीं रहता था. पुलिस ने जांचपड़ताल की तो स्पष्ट हुआ कि संतोष ने ही अपनी बेटी करुणा, बेटे अनीश व जितेंद्र को कुंड में धकेला था, जिस से उन की मौत हो गई.

पुलिस ने संतोष के खिलाफ हत्या आत्महत्या के प्रयास का मामला दर्ज कि या और उसे गिरफ्तार कर लिया. थानाप्रभारी संतोष शर्मा द्वारा की गई जांच में पाया गया कि संतोष उस के पति इंद्रराम के बीच काफी समय से गृहक्लेश चल रहा था. इंद्रराम भी छुट्टी ले कर अपने घर गया था. पत्नी द्वारा परिवार उजड़ जाने का उसे बड़ा दुख हुआ. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की बीवी ऐसा भी कर सकती है. बच्चों की मौत ने इंद्रराम को तोड़ कर रख दिया. मगर उस ने भी कसम खा ली कि वह पत्नी को सजा दिला कर ही दम लेगा. संतोष की गिरफ्तारी के बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

जांच अधिकारी द्वारा आरोपपत्र दाखिल करने के बाद यह मामला एडीजे कोर्ट में चला. अभियोग को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष ने कोर्ट में 16 गवाह पेश किए, जिन में मृत बच्चों के पिता इंद्रराम, दादी जोरादेवी, ताऊ श्रवण कुमार सांवरमल भी शामिल थे. बचावपक्ष को भी साक्ष्य पेश करने का मौका दिया गया. लेकिन वह कोई भी साक्ष्य कोर्ट में प्रस्तुत नहीं कर पाया. 13 मार्च, 2018 को कोर्ट ने दोनों पक्षों की अंतिम बहस सुनने के बाद 24 मार्च, 2018 को एडीजे जगदीश ज्याणी ने हत्यारी मां संतोष को धारा 302 यानी हत्या का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास 10 हजार रुपए जुरमाना और धारा 309 में एक हजार रुपए के जुरमाने की सजा सुनाई.

बीवी को उम्रकैद की सजा मिलने पर इंद्रराम ने पत्रकारों को बताया कि अपने कलेजे के टुकड़ों को इस तरह पानी के कुंड में डाल कर हत्या कर देने वाली मां को सजा देने के लिए कोर्ट पर पूरा विश्वास था. उसे विश्वास था कि आरोपी को कड़ी से कड़ी सजा मिलेगी और आज फैसला आने के बाद यह स्पष्ट भी हो गया

वहीं अपर लोक अभियोजक एडवोकेट राजकुमार चोटिया ने मामले को अप्रत्याशित बताते हुए कोर्ट से आरोपी को मृत्युदंड की सजा देने का निवेदन किया था. मगर सजा मिली उम्रकैद.

 

फर्जी औफिस बनाकर डेढ़ सौ करोड़ का घोटाला कर फरार

चालाक लोग सोचते हैं कि लालच दे कर लोगों को ठगना सब से आसान है. यह बात किसी हद तक सही भी है, तभी तो विक्रम सिंह जैसे लोग दूसरों की जेब से पैसा निकाल कर करोड़पति बन जाते हैं.   

माकर्ताओं के करीब 150 करोड़ रुपए से ज्यादा हड़पने के आरोपी खेतेश्वर अरबन क्रैडिट सोसाइटी  के चेयरमैन विक्रम सिंह राजपुरोजित को लंबे समय बाद आखिर सिरोही पुलिस ने पकड़ ही लिया. पुलिस ने उसे 9 जनवरी, 2018 को जोधपुर से गिरफ्तार कर लिया. करीब डेढ़ साल पहले सोसायटी में परिपक्व हो चुकी अपनी जमापूंजी लेने निवेशक सिरोही स्थित खेतेश्वर सोसायटी के हैड औफिस पहुंचे तो उस समय उन्हें किसी तरह झांसा दे कर टाल दिया गया था. पर सोसायटी कर्मचारियों की बहानेबाजी ज्यादा दिनों तक नहीं चली.

निवेशकों को जब बारबार टरकाया जाने लगा तो वे परेशान होने लगे. फिर जुलाई 2016 में सोसायटी की सभी शाखाओं में ताले लटक गए तो निवेशकों को अपने ठगे जाने का अहसास हुआ. इस के बाद निवेशकों ने अलगअलग थानों में सोसायटी संचालकों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी थीं. लोगों ने जोधपुर, पाली, सिरोही, पिंडवाड़ा, गुजरात के दमन दीव समेत कई जगहों पर उस के खिलाफ मामले दर्ज कराए. शुरुआत में संबंधित थानों की पुलिस भी केवल मामले दर्ज कर उन्हें रफादफा कराने की कोशिश में रही, लेकिन जब इस डेढ़ सौ करोड़ की ठगी की बात उच्चाधिकारियों के संज्ञान में आई तो थाना पुलिस हरकत में गई.

विक्रम सिंह ने सन 1992 में सिरोही जिले के पालड़ीएम कस्बे से स्टोन क्रैशर लगा कर व्यवसाय शुरू किया था. जल्द ही उस के दिमाग में मोटा पैसा कमाने का आइडिया आया तो उस ने सन 2003 में खेतेश्वर अरबन क्रैडिट सोसायटी बनाई. विक्रम सिंह ने अपने एक भाई राजवीर सिंह को सोसायटी का एमडी और दूसरे भाई शैतान सिंह को सोसायटी का पीआरओ बना दिया था. सोसायटी की ओर से वलसाड़, वापी, सेलवास, दमन, सरीगांव, उमरगांव, धरमपुर और चिखली में कुल मिला कर 9 ब्रांच खोली गई थीं. 

गुजरात के अलावा उस ने गोवा, दमन, दादर नगर हवेली में भी सोसायटी की शाखाएं खोली थीं. इन सभी में मैनेजर और अन्य स्टाफ की नियुक्तियां की गईं. इस के बाद आकर्षक जमा योजनाओं के जरिए लोगों से पैसे जमा कराए गए. लोगों में विश्वास बढ़ाने के लिए इन्होंने स्थानीय लोगों को अपनी शाखाओं में नौकरी पर रखा. हालांकि बीच में जब किसी जमाकर्ता की मियाद पूरी हुई तो उन्हें रकम लौटाई भी गई, लेकिन उसी दौरान दूसरी आकर्षक योजनाएं भी लाई गईं, जिस से ग्राहक अपनी परिपक्व हुई राशि को फिर से सोसायटी में जमा करा दे

जमा कराए लोगों के पैसों से सोसायटी के अध्यक्ष विक्रम सिंह राजपुरोहित ने सिरोही, पाड़ीव, आबू रोड, तलेटी, नयासानवाड़ा, पिंडवाड़ा, रामपुरा, अहमदाबाद, अंबाजी, मुंबई आदि जगहों पर अपने और रिश्तेदारों के नाम से करोड़ों रुपए की बेनामी संपत्ति खरीदी. इतना ही नहीं, उसने अपनी ही सोसायटी से अपने नाम 12 करोड़ का लोन भी लिया था. इस तर हलोगों को करीब डेढ़ सौ करोड़ का चूना लगाकर शातिर दिमाग विक्रम सिंह फरार हो गया.

फरारी के बाद वह नेपाल, गोवा, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा आदि जगहों पर घूमता रहा. कोई उसे पहचान सके, इस के लिए वह साधु के भेष में रहता था. कभीकभी वह सपेरा भी बन जाता था. जोधपुर में वह महामंदिर इलाके में किराए पर मकान ले कर भी रहा था. वहां वह अपने भतीजे के संपर्क में थापिछले डेढ़ साल से पुलिस पर विक्रम को पकड़ने का दबाव था, लेकिन वह पुलिस को लगातार चकमा दे कर बच निकलता था. उस की गिरफ्तारी पुलिस के लिए एक चुनौती बनी हुई थी, लेकिन सिरोही के एसपी ओमप्रकाश के निर्देश पर उस की गिरफ्तारी के लिए एक गोपनीय योजना बनाई गई, जिस की जानकारी केवल 2 लोगों को ही थी. एक थाना सिरोही के सीआई आनंद कुमार और दूसरे कांस्टेबल योगेंद्र सिंह को

उन्हें यह निर्देश दिया गया था कि किसी भी तरह विक्रम सिंह का पता लगा कर उसे गिरफ्तार किया जाए. ये दोनों क्या प्लान कर रहे हैं, कहां आजा रहे हैं, यह बात थाने में किसी को भी पता नहीं रहती थी. कांस्टेबल योगेंद्र सिंह जब भी विक्रम सिंह की तलाश में बाहर गए, तब उन्होंने जरूरी काम बता कर थाने से छुट्टी ली थी. 3-4 दिन तक तलाश कर के वे वापस लौट आते, दोबारा जाते तो भी छुट्टी ले कर ही जाते थे

उधर विक्रम सिंह भी इतना शातिर था कि वह कभी मोबाइल से बात तक नहीं करता था. बहुत जरूरी होने पर विक्रम सिंह किसी नए फोन नंबर से बात करता था. इस के बाद वह तुरंत अपनी लोकेशन बदल लेता था. ऐसे में पुलिस के लिए यह चुनौती बन जाती थी कि लोकेशन को कैसे ट्रेस किया जाए. पुलिस अपने मुखबिरों का भी सहारा ले रही थी. मुखबिरों की सूचनाओं पर काम किया गया. आखिरकार इन दोनों पुलिसकर्मियों की मेहनत रंग लाई. ये दोनों ही उस का करीब एक महीने से पीछा कर रहे थे

कांस्टेबल योगेंद्र सिंह को पक्की खबर मिली कि आरोपी विक्रम सिंह जोधपुर में ही है. इस पर उन के साथ एक एसआई को भेजा गया. एसआई को यह नहीं पता था कि किस की गिरफ्तारी के लिए निकले हैं. आखिर 9 जनवरी, 2018 को विक्रम सिंह जोधपुर में पुलिस के हत्थे चढ़ गया. उसे जोधपुर से सिरोही ला कर पूछताछ की गई. फिर पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर के उस का रिमांड लिया और विस्तार से पूछताछ की. सीआई आनंद कुमार 13 जनवरी को विक्रम सिंह राजपुरोहित को सिरोही स्थित खेतेश्वर सोसायटी के कार्यालय पर ले गए.

पुलिस ने कार्यालय की चाबी के बारे में विक्रम सिंह से पूछा तो उस ने चाबी की जानकारी होने से मना कर दिया. इस पर पुलिस ने ताला खोलने वाले एक युवक को बुला लिया. लेकिन वहां उन्हें मुख्य दरवाजे पर लगा ताला कुंदे समेत पहले से ही टूटा मिलामुख्य दरवाजे से लगते दूसरे दरवाजे पर इंटरलौक जरूर था, लेकिन वह भी अंदर से तोड़ा हुआ था. अंदर की अलमारी को तोड़ने पर उस में पुराने रेकौर्ड मिले

इस के साथ ही उसी अलमारी के अंदर एक लौकर और था, उस में एक हजार 500 का एकएक पुराना नोट मिला. कुछ नोट और पूजा सामग्री भी मिली. पुलिस जब खेतेश्वर सोसायटी के सिरोही कार्यालय पहुंची तो वहां लाइट कनेक्शन कटा मिला. पुलिस को टौर्च मोबाइल की रोशनी में जांच करनी पड़ी. काररवाई के दौरान विक्रम सिंह भी साथ था. उस ने खुद पुलिस को फाइलों के बारे में जानकारी दी कि किस से संबंधित कौन सी फाइल है

पुलिस ने कार्यालय में रखी फाइलों और अन्य दस्तावेजों के बारे में जानकारी ली. इन फाइलों में लोगों की एफडी, बैंकों में पूर्व में जमा करवाए गए पैसों का लेखाजोखा था. पुलिस का कहना है कि विक्रम सिंह ने रेकौर्ड के अलावा अन्य दस्तावेज अपने बड़े भाई शैतान सिंह व छोटे भाई राजवीर सिंह के पास बताए होने की बात कही. पुलिस का कहना है कि ये सभी पुराने लेनदेन का रेकार्ड है, जो सन 2010 से पहले के हैं. उस के बाद के कागजातों के बारे में भी पूछताछ की गई. कार्यालय में मैनेजर के कमरे की टेबल के पास कुछ कागजातों को जलाए जाने के भी सबूत मिले.

जांच से संबंधित तमाम दस्तावेज पुलिस थाने ले आई. पूछताछ में पता चला कि उस ने सोसायटी के माध्यम से हजारों लोगों की खूनपसीने की कमाई से करीब डेढ़ सौ करोड़ रुपए ठगे थे. यहां एक बात यह भी बता दें कि खेतेश्वर सोसायटी में रुपए जमा करने वाले सब से ज्यादा जमाकर्ता सिरोही जिले के ही थे. विक्रम सिंह की गिरफ्तारी के बाद जमाकर्ताओं को उम्मीद बंधी है कि शायद उन के खूनपसीने की कमाई उन्हें वापस मिल जाए. विक्रम सिंह और उस की खेतेश्वर सोसायटी के खिलाफ जमाकर्ताओं ने जहांजहां रिपोर्ट दर्ज कराई थी, वहां की पुलिस भी विक्रम सिंह से पूछताछ की तैयारी में थी.

विक्रम सिंह के एक भाई श्याम सिंह पुरोहित भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं. ठगी का मामला सामने आने पर विक्रम के भाई श्याम सिंह ने मीडिया के सामने कर सफाई दी कि पिछले लंबे समय से उन का विक्रम सिंह से कोई वास्ता नहीं रहा. वह घर आताजाता भी नहीं और यहां तक कि उस से बोलचाल तक नहीं है. साथ ही यह भी कि 4 महीने पहले जब उन की पत्नी की मृत्यु हो गई, तब भी वह घर पर नहीं आया था.   पुलिस विक्रम सिंह के उन भाइयों को भी गिरफ्तार करेगी जो सोसायटी में शामिल थे और उन तमाम शाखाओं के मैनेजरों से भी पूछताछ करेगी, जिन्होंने सोसायटी के माध्यम से लोगों को अच्छा रिटर्न देने का वादा कर के उन की खूनपसीने की कमाई हड़प ली थी.

  कथा लिखने तक विक्रम सिंह की जमानत नहीं हो सकी थी. कोर्ट के आदेश पर उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित