बंजरंगी भाई जान फिल्म से जुड़ी गीता की रहस्यमयी कहानी

ज्ञानेंद्र पुरोहित और मोनिका पुरोहित बौर्डर पार कर के पाकिस्तान पहुंची गीता, विदेश मंत्रालय के प्रयासों से 13 साल बाद भारत लौट तो आई लेकिन रहस्यमय पहेली बन कर. न तो यहां उस के मांबाप मिले और न स्वयंवर के बावजूद वर मिला. आखिर रहस्य क्या है गीता का?

गीता एक ऐसी गुत्थी का नाम है, जो सुलझाने की कोशिशों में इतनी उलझती जा रही है कि कभीकभी
तो लगता है, कहीं इंसानियत के नाम पर हम उस पर जुल्म तो नहीं ढा रहे हैं. हालांकि इस बात से इत्तफाक रखने वालों की तादाद न के बराबर ही होगी क्योंकि हर किसी की आदत किसी भी घटना या व्यक्ति को मीडिया और सरकारी नजरिए से देखने की पड़ती जा रही है. गीता इसी नजरिए की कैद में छटपटाती आज भी अपनी पहचान की मोहताज है. इस की जिम्मेदारी लेने के लिए किसी न किसी को आज नहीं तो कल सामने आना ही होगा.

कौन है गीता, क्या है उस की कहानी और क्यों रचा गया था उस के स्वयंवर का ड्रामा, यह सब जानने से पहले गीता की कहानी को जानना जरूरी है. गीता के अतीत को 2 भागों में बांट कर देखा जाना सहूलियत वाली बात होगी. उस की जिंदगी का दूसरा अतीत जो ज्ञात है, वह साल 2003-04 से शुरू होता है, जिस की ठीकठाक तारीख किसी को नहीं मालूम. इस के पहले गीता क्या थी, यह वह खुद भी नहीं जानती. चूंकि उस का पहला अतीत अज्ञात है, इसलिए स्वाभाविक रूप से वह रहस्यरोमांच से भरा है. जिस के चक्रव्यूह में खुद गीता अभिमन्यु की तरह फंसी हुई है.

ईधी फाउंडेशन ने बेटी की तरह पाला गीता को भारत और पाकिस्तान के संबंध विभाजन के बाद से बारूद के ढेर पर सुलगते रहे हैं, जिन में से कभी दोस्ती की महक नहीं आई. दोनों देशों के लोग एकदूसरे को कट्टर दुश्मन मानते हैं. इस धर्मांधता और कट्टरवाद से इतर इत्तफाक से यहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वाकई मानवता के लिए जीतेमरते हैं. ऐसे ही एक पाकिस्तानी शख्स थे अब्दुल सत्तार ईधी, जिन का नाम न केवल पाकिस्तान में बल्कि पूरी दुनिया में इज्जत से लिया जाता है. पाकिस्तान में उन्हें लोग गौडफादर, फरिश्ता और गांधी तक कहते हैं तो इस की कई वजहें और प्रमाण भी हैं.

ईधी फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष अब्दुल सत्तार के नाम के पहले अब्बा संबोधन भी लगाया जाता है. मानवतावादी अब्दुल सत्तार का जन्म गुजरात के ऐतिहासिक शहर जूनागढ़ में हुआ था. भारतपाक बंटवारा हुआ तो वह पाकिस्तान चले गए. अब्दुल सत्तार की जिंदगी कई संघर्षों से भरी है, जिन्होंने उन्हें मानवतावादी बना दिया. मानवता के क्षेत्र में उन के और ईधी फाउंडेशन के नाम ढेरों उपलब्धियां और काम दर्ज हैं. अब्दुल सत्तार को साल 1996 में रेमन मैगसेसे पुरस्कार से नवाजा गया था. लेनिन शांति पुरस्कार भी उन्हें प्रदान किया गया था.

दुनिया की सब से बड़ी एंबुलेंस उन के ईधी फाउंडेशन के पास है. यह बात गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स में भी दर्ज है. जुलाई, 2016 में उन की मौत के बाद से ईधी फाउंडेशन की जिम्मेदारी उन की बेगम बिल्कीस संभाल रही हैं. सन 2003-04 में कभी गीता नाम की एक भारतीय लड़की बेहद फिल्मी अंदाज में पाकिस्तान पहुंच गई थी. गीता न तो बोल सकती है और न ही सुन सकती है, यानी मूकबधिर है. लावारिस हालत में गीता समझौता एक्सप्रैस के द्वारा पाकिस्तान पहुंची थी.

पाकिस्तानी बौर्डर अथौरिटी ने गीता पर दया खा कर उसे ईधी फाउंडेशन पहुंचा दिया था. सत्तार दंपति ने एक तरह से गीता को गोद ले लिया और सगी बेटी की तरह उस की परवरिश और देखभाल की. गीता के पास तब कोई सामान नहीं था, बस एक फोटो थी जिस में वह अपने परिवारजनों के साथ दिख रही थी. गीता का तब कोई नाम नहीं था और जो था उसे वह बता नहीं सकती थी. चूंकि वह समझौता एक्सप्रैस में मिली थी, इसलिए उसे अंदाजे के आधार पर भारतीय हिंदू मानते हुए सत्तार दंपति ने गीता नाम दे दिया, जो हिंदुओं का धर्मग्रंथ है. अब्दुल सत्तार ने अपने यतीमखाने में गीता के लिए एक मंदिर भी बनवा दिया था, जिस में तरहतरह के हिंदू देवीदेवताओं की तसवीरें लगा दी गई थीं. गीता इस मंदिर में रोज पूजापाठ करती थी.

गीता चाहती थी भारत आना एक लावारिस भारतीय लड़की के यूं मिलने की पाकिस्तानी मीडिया में तब खासी चर्चा रही थी. पाकिस्तान सरकार ने औपचारिक रूप से भारत सरकार और भारतीय दूतावास को गीता के मिलने की सूचना दी थी पर भारत की ओर से कोई पहल नहीं हुई तो गीता पाकिस्तान और ईधी फाउंडेशन की हो कर रह गई. गीता एक महफूज जगह पर इंसानियत के पुजारियों की सरपरस्ती में थी, इसलिए उसे कोई परेशानी पेश नहीं आई. नहीं तो हर कोई जानता है कि जानेअनजाने में नाजायज तरीके से पाकिस्तान में दाखिल हो गए ऐसे भारतीयों के साथ पाकिस्तानी सेना और पुलिस क्या सलूक करती है.
वक्त गुजरते गीता बच्ची से युवती हो गई लेकिन जिंदगी के इस अहम और नाजुक सफर में सत्तार दंपति ने उसे मांबाप की और किसी दूसरे किस्म की कमी महसूस नहीं होने दी और पूरी ईमानदारी से इंसानियत का जज्बा निभाया.

दुबलीपतली, सांवली रंगत और आकर्षक नैननक्श वाली गीता ईधी फाउंडेशन में रह रहे मुसलिम बच्चों में जल्द ही घुलमिल गई लेकिन अपने घर और देश की याद उसे अकसर सताती रहती थी. बिलकीस बेगम से भी उसे खासा लगाव हो गया था, जो चाहती थीं कि गीता अपने देश और घर पहुंच जाए, जिस की इच्छा वह अकसर जताती रहती थी. देश लौटने की आस में गिनगिन कर दिन काट रही गीता के साथ एक और अच्छी बात यह हुई कि उस पर भारतीय जासूस होने का शक नहीं किया गया, क्योंकि इस की कोई मुकम्मल वजह भी नहीं थी. एकदो साल पाकिस्तानी मीडिया में गीता की चर्चा रही लेकिन जब किसी स्तर पर भी वापसी की कोई पहल नहीं हुई तो लोग उसे भूलने लगे.

जब अपनों को याद कर गीता उदास होती थी तो सत्तार परिवार उस का जी बहलाता था. बिलकीस बेगम अकसर उसे खरीदारी कराने ले जाती थीं. यानी गीता को कैद कर के नहीं रखा गया था. वह भले ही सुन, बोल नहीं सकती थी लेकिन सारे हालात तो समझती थी. वतनवापसी की भूमिका उस वक्त गीता की दिमागी हालत क्या रही होगी, इस का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह एक ऐसी लड़की
थी जिस की कोई पहचान नहीं थी. ईधी फाउंडेशन में उसे किसी बात की कमी नहीं थी और जो थी, उसे वक्त ही पूरा कर सकता था जिस का दूरदूर तक कोई अतापता नहीं था.

फिर रिलीज हुई अभिनेता सलमान खान की बहुचर्चित सुपरडुपर हिट फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’, जिस के चलते गीता की कहानी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की जानकारी में आई. सुषमा स्वराज को लगा कि गीता की भारत वापसी की कोशिश की जाए. उसे अगर उस के घर वालों से मिलवा दिया गया तो यह वाकई एक नेक काम होगा. गीता से संबंधित तमाम जानकारियां जुटाई गईं तो शुरुआती दौर में परिणाम उत्साहजनक रहे और लोगों ने उन की इस अनूठी पहल की जम कर तारीफ की.

गीता के घरवालों की तलाश हालांकि यह कोई आसान काम नहीं था क्योंकि गीता के परिवारजनों का कोई अतापता नहीं था. इस के लिए गीता की एकलौती जायदाद उस के पास मौजूद फोटो का सहारा लिया गया. कूटनीतिक लिहाज से पाकिस्तान उस वक्त तक गीता को भारत को सौंपने के लिए बाध्य नहीं था, जब तक उस के परिवारजनों का पता नहीं चल जाता. और बिना पहचान मिले उसे भारत भेज भी दिया जाता तो होता इतना भर कि वह एक यतीमखाने से निकल कर दूसरे यतीमखाने में आ जाती,जो कहने को अपने देश का होता.

बहरहाल, इस अंजाम की परवाह किए बगैर सुषमा स्वराज और विदेश मंत्रालय ने गीता का फोटो मीडिया औरसोशल मीडिया के जरिए वायरल किया तो परिणाम उत्साहजनक रहे. इस फोटो को देख कर देश भर के विभिन्न राज्यों के कोई दरजन भर अभिभावकों ने गीता को अपनी बेटी बताया. दोनों देशों के बीच गीता को ले कर खूब खतोकिताबत हुई तो देश भर का ध्यान गीता पर गया. हर किसी को उस से सहानुभूति हुई और हर कोई यह दुआ मांगने लगा कि इस मूकबधिर और अनाथ युवती को उस के मांबाप और घर वाले मिल जाएं. यह दीगर बात है कि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक किसी की दुआ कबूल नहीं हुई थी.

अब तक गीता को पाकिस्तान में रहते हुए तकरीबन 13 साल हो गए थे. रेगिस्तान में पानी की उम्मीद उस वक्त नजर आई, जब यह बात लगभग तय हो गई कि गीता के मांबाप मिल गए हैं और उसे भारत भेजने के लिए दोनों देशों के बीच सहमति बन चुकी है. हुआ इतना भर था कि भारतीय उच्चायोग ने पाकिस्तान को उन कुछ लोगों की तसवीरें भेजी थीं, जिन्होंने गीता पर अपना हक जताया था. इन में से एक को गीता ने पहचान लिया तो सभी की बांछें खिल उठीं.

लेकिन गीता की कहानी शायद इतने सहज ढंग से खत्म होने के लिए नहीं थी. जिस परिवार को उसनेअपना होने की संभावना व्यक्त की थी, उस के मुखिया बिहार के सहरसा जिले के एक गांव के जनार्दन महतो हैं. उन की बेटी लगभग उसी वक्त गुम हुई थी, जिन दिनों गीता पाकिस्तान जा पहुंची थी. जनार्दन महतो को गीता की तसवीर हूबहू अपनी लापता बेटी जैसी लगी थी और गीता भी एकदम इस बात से इनकार नहीं कर रही थी कि जनार्दन महतो उस के पिता नहीं हैं.

यह एक अच्छी खबर थी, जिस के चलते तय हुआ कि गीता 26 अक्तूबर, 2015 को पाकिस्तान से भारत भेज दी जाएगी. उस की वापसी की खासी तैयारियां भी की गईं. अब्दुल सत्तार ईधी के बेटे फैजल ईधी के दिल में न जाने क्यों गीता को ले कर यह खटका था कि वह महज भारत जाने के लिए जनार्दन महतो को पिता मान रही है. रहस्य बनने लगी गीता के मांबाप की कहानी बात इस मुकाम तक आ पहुंची थी कि अगर फैजल ऐतराज जताते तो और हल्ला मचता. खामोश तो वह नहीं रहे

और इशारों में उन्होंने यह कह ही डाला कि जिस गीता की बात जनार्दन महतो के गांव वाले कर रहे हैं, उन के मुताबिक गीता की शादी बहुत कम उम्र में उमेश महतो नाम के शख्स से हो चुकी थी. उमेश से गीता को एक बेटा भी है, जिस की उम्र अब लगभग 12 साल है. फैजल ने माना था कि अब मामला जटिल हो गया है, क्योंकि गीता इस बात से मना कर रही है कि वह शादीशुदा है. बकौल फैजल उन्होंने इस बात का पता करने की कोशिश की थी कि कहीं गीता उन्हें गुमराह तो नहीं कर रही है या फिर कुछ छिपा तो नहीं रही है. इधर भारत में गीता की वापसी का इतना हल्ला मचने लगा था कि फैजल की बात उस शोरशराबे में दब कर रह गई.

गीता की घर वापसी सन 2015 की खास घटनाओं में से एक थी. ‘बजरंगी भाईजान’ फिल्म का हवाला देते हुए किसी ने गीता को भाईचारे और भारतपाक की एकता की मिसाल बताया तो किसी ने उस की अनूठी कहानी को चमत्कार से कम नहीं माना. भारतीय मीडिया और सरकार ने गीता के स्वागत में पलकपांवड़े बिछा दिए, जिस के चलते वह रातोंरात सेलिब्रिटी बन गई या बना दी गई, बात एक ही है. एयरपोर्ट पर उस का स्वागत करने के लिए अधिकारियों की फौज खड़ी कर दीगई.

गीता के साथ बिलकीस बेगम और फैजल ईधी भी थे. यह फैजल की ही जिद या शर्त थी कि गीता की वतनवापसी हर्ज की बात नहीं है, लेकिन किसी भी दावेदार मांबाप को उसे सौंपने से पहले उन का डीएनए मैच करा लेना चाहिए. भारत सरकार ने भी इस पर हामी भरी थी. विख्यात हो गई गीता भारत आ कर गीता को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिलवाया गया. इस देश में सेलिब्रिटी होना इतना ही काफी होता है. सुषमा स्वराज तो साए की तरह
गीता के साथ ही रहीं.

इन हस्तियों से मिलते वक्त गीता के चेहरे पर कोई डर या संकोच नहीं था. यह शायद इसलिए भी नहीं होगा कि वह तब जानतीसमझती ही नहीं थी कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री क्या बला होते हैं. वह तो विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के इशारों पर नाच रही गुडि़या थी. तब इस सवाल ने सिर उठाया कि अगर कहीं खुदा न खास्ता गीता का डीएनए जनार्दन महतो से नहीं मिला तो क्या होगा. इस सवाल के जवाब में विदेश मंत्रालय की तरफ से कहा गया कि ऐसी सूरत में गीता को किसी सुरक्षित जगह भेजे जाने का फैसला लिया जा चुका है. जब तक उस के मांबाप नहीं मिल जाते, तब तक गीता वहीं रहेगी.

दिल्ली में कई नामचीन राजनैतिक हस्तियों से मिल कर गीता इंदौर के स्कीम नंबर 71 स्थित मूक बधिर संस्थान भेज दी गई, जिस की कर्ताधर्ता शहर की मशहूर समाजसेवी मोनिका पंजाबी हैं. इस संस्थान में रह रहे दिव्यांगों ने गीता के आने पर दीवाली सा त्यौहार मनाया. हैरत और दिलचस्पी की बात गीता का उन से इतने आत्मीय ढंग से मिलना रहा, जैसे वह उन्हें बरसों से जानती हो. देश आ कर खुद को बेहद खुश और जज्बाती बता रही गीता के पांव वाकई ऐसा स्वागतसत्कार देख कर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उसे अपनी अहमियत का अहसास हो चला था कि वह वाकई कुछ खास है.

जनार्दन महतो और गीता का डीएनए नहीं मिला तो सुषमा स्वराज की नेक कोशिशों को झटका लगा. साथ ही विदेश मंत्रालय के उन होनहार और अतिउत्साही अधिकारियों के चेहरे धुल गए, जिन्होंने एक मामूली सी यह बात सोचने की भी जहमत नहीं उठाई थी कि जिस गीता की बात सहरसा के गांव के लोग कर रहे हैं, उस का पति अगर पंजाब में रहता है, जिस ने गीता के मामले में कोई पहल नहीं की थी. फिर एक के बाद एक गीता के कई कथित मांबाप आए और उन्होंने उसे अपनी बिछड़ी बेटी बताया पर किसी का डीएनए गीता से मैच नहीं हुआ और न ही किसी को गीता ने बतौर मांबाप पहचाना.

धीरेधीरे गीता के असल मांबाप के मिलने की उम्मीदें धूमिल होती गईं. अब तक गीता का इतना प्रचारप्रसार हो चुका था कि अगर उस के मांबाप किसी घने जंगल में भी रह रहे होते तो उन्हें खबर लग जाती कि गीता करांची से इंदौर वापस आ चुकी है, लिहाजा उसे घर ले आना चाहिए. अपने मांबाप की बाट जोह रही गीता को इंदौर में रहते भी लंबा वक्त बीत गया था. इंदौर स्थानीय मीडिया में अकसर वह सुर्खियों में रही. उस का खानापीना और उठनाबैठना तक खबर बनने लगा था तो इस की वजह प्रशासन की सतर्कता थी जो पूरी तरह विदेश मंत्रालय के दिशानिर्देशों पर काम कर रहा था और आज भी कर रहा है.

पेचीदा हुई गीता की रहस्यमय कहानी जब दरजनों मांबाप दावेदारी ले कर आए और मुंह लटका कर लौट गए तो इंदौर प्रशासन से ले कर विदेश मंत्रालय के गलियारों तक में गीता को ले कर घबराहट फैलने लगी. सुषमा स्वराज कब गीता की खैरियत पूछ बैठें, इस खयाल से ही अधिकारी कांपने लगे थे. जल्दबाजी में गीता के मांबाप को ढूंढने वाले को एक लाख रुपए का इनाम देने की घोषणा कर दी गई. लेकिन उस से कोई फायदा नहीं हुआ.

अब तक यह बात भी साबित हो चुकी थी कि गीता के मांबाप अगर मिल जाएं तो उन की चांदी हो जाना तय है. क्योंकि सरकार उस पर मेहरबान है. यह मामला ऐसा था कि इस में कोई कुछ नहीं कर सकता था. सुषमा स्वराज भी अकसर गीता को ले कर ट्वीट करती रहीं कि वह देश आ कर खुश है और उस के मांबाप को ढूंढने की पूरी कोशिशें की जा रही हैं.

पर गीता खुश नहीं थी. पिछले साल जुलाई के पहले सप्ताह में अचानक वह मूकबधिर केंद्र से लापता हो गई. इस के बाद तो इंदौर से ले कर दिल्ली और करांची तक हड़कंप मच गया. गीता की गुमशुदगी की खबर कुछ देर के लिए ही सही, आग की तरह फैली और उसे ले कर तरहतरह की वे बातें हुईं जो नहीं होनी चाहिए थीं. इंदौर के 3 थानों की पुलिस गीता की खोज में जुट गई और कुछ देर बाद रात होने से पहले उसे रणजीत हनुमान मंदिर से पकड़ लिया गया. चंदननगर थाने की पुलिस जब गीता को सहीसलामत मूकबधिर केंद्र छोड़ गई, तब कहीं जा कर प्रशासन और केंद्र की संचालिका मोनिका पंजाबी की जान में जान आई.

गीता मूकबधिर केंद्र से गायब क्यों और कैसे हुई थी, इन 2 सवालों का जवाब आज तक किसी ने नहीं दिया, खासतौर से यह जवाबदेही केंद्र की संचालिका मोनिका पंजाबी की बनती थी. इन सवालों का जवाब मांगने के लिए जब कुछ मीडियाकर्मी मूकबधिर केंद्र पहुंचे तो वहां की एक महिला कर्मचारी ने उन से बदतमीजी करते हुए उन्हें कैमरे बंद कर दरवाजे के बाहर चले जाने का फरमान सुना दिया. पुलिस की तरफ से भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला था. एडीशनल एसपी रूपेश द्विवेदी ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि मूकबधिर केंद्र के संचालन पर बात करना पुलिस के कार्यक्षेत्र से बाहर है.

बात आईगई हो गई लेकिन समझदारों को यह इशारा जरूर कर गई कि गीता बोझ नहीं तो सरकार के गले का ढोल जरूर बनती जा रही है, जिसे खुद जोशजोश में सरकार ने अपने गले में बांधा था. मूकबधिर संस्थान को गीता के खर्चे के लिए 30 हजार रुपए दिए जा रहे थे. बात पहुंच गई शादी तक यहां पर एक बात यह उठी कि गीता को संस्थान में पर्याप्त सुविधाएं मिल भी रही थीं या नहीं, जिस से उसे वहां घुटन महसूस होने लगी थी. ऐसे सवाल जब सुषमा की जानकारी में आए तो उन्हें चिंता हुई. उन्होंने अपने भोपाल प्रवास के दौरान गीता की शादी के संकेत दिए. चूंकि बात सुषमा स्वराज की थी, इसलिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी भागेभागे इंदौर पहुंच गए और गीता से मिल कर बोले कि मांबाप नहीं मिले तो क्या हुआ,

मामा तो है. गौरतलब है कि शिवराज सिंह को खुद को मामा कहलवाना अच्छा लगता है. एकाएक ही इसी साल फरवरी के महीने में गीता को लगा कि अब उसे शादी कर घर बसा लेना चाहिए. उस ने सुषमा स्वराज को अपनी यह इच्छा बताई तो गीता के मामले में एक बार फिर उबाल आ गया. सरकार ने उस के स्वयंवर की तैयारियां शुरू कर दीं. स्वयंवर का यह ड्रामा कैसे परवान चढ़ा और फिर कैसे औंधे मुंह लुढ़का, यह जानने से पहले ज्ञानेंद्र पुरोहित नाम के शख्स से रूबरू होना जरूरी है, जो गीता की जिंदगी में सत्तार परिवार और सुषमा स्वराज के बाद आए तीसरे अहम किरदार हैं.

ज्ञानेंद्र की दास्तां भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. वह उस वक्त महज 21 साल के थे, जब 1997 में उन के बड़े भाई 26 वर्षीय आनंद पुरोहित की भोपाल के नजदीक एक रेल हादसे में मौत हो गई थी. ज्ञानेंद्र आनंद के काफी चहेते थे. उम्र में छोटे होते हुए भी वह बड़े भाई की सेवा करते थे क्योंकि आनंद मूकबधिर थे. जाहिर है मूकबधिरों की परेशानियों और दुख का अंदाजा उन्हें बचपन से ही था.

बड़े भाई की एक्सीडेंट में दर्दनाक मौत ज्ञानेंद्र के लिए एक बहुत बड़ा सदमा थी. तब ज्ञानेंद्र सीए कर रहे थे लेकिन उन्होंने पढ़ाई छोड़ कर मूकबधिरों की सेवा करने की ठान ली. परिवारजनों और दोस्तों ने हर तरह से समझाया लेकिन बेचैन ज्ञानेंद्र के मन की छटपटाहट ने किसी की एक नहीं सुनी. मूकबधिरों के मसीहा ज्ञानेंद्र मूकबधिरों पर ज्ञानेंद्र ने जितना काम किया, उतना शायद ही देश में किसी और ने किया होगा. सन 1997 से ले कर 1999 तक वह देशविदेश घूमे. इस दौरान ज्ञानेंद्र ने शिद्दत से महसूस किया कि देश में मूकबधिर बेहद दयनीय हालत में रह रहे हैं. उन की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती और उन से सरकारी या सामाजिक हमदर्दी एक दिखावा और छलावा भर है.

सांकेतिक भाषा यानी साइन लैंग्वेज तो वह पहले से ही जानते थे लिहाजा दुनिया घूमने के दौरान उन्हें कई करुण अनुभव हुए. आस्ट्रेलिया के पर्थ शहर में हुई वर्ल्ड डैफ कौन्फ्रैंस में ज्ञानेंद्र का प्रस्तुतीकरण इतना प्रभावी था कि उन्हें वहीं की एक संस्था वेस्टर्न डैफ सोसायटी ने अच्छे पैकेज पर नौकरी की पेशकश कर डाली. लेकिन सिर्फ पैसे कमाना या विदेश में रहने की शान बघारना ज्ञानेंद्र की जिंदगी का मकसद नहीं था. अपना मकसद पूरा करने के लिए उन्होंने बड़े भाई के नाम पर आनंद सर्विस सोसायटी बना ली थी.

सन 2001 में ज्ञानेंद्र ने मोनिका पुरोहित से शादी कर ली, जो खुद मूकबधिरों के लिए काम करती थीं. पुरोहित दंपति ने मूकबधिरों के लिए अपनी जिंदगी झोंक दी जो एक असामान्य काम था. इसी दौरान ज्ञानेंद्र ने अपनी अधूरी पढ़ाई शुरू की और एक खास मकसद से एलएलबी के बाद एलएलएम भी किया. ज्ञानेंद्र मूकबधिरों के मुकदमे मुफ्त में लड़ने लगे तो उन की चर्चा इंदौर के बाहर भी शुरू हो गई. ज्ञानेंद्र की पहल पर ही इंदौर के तुकोगंज इलाके में पहला मूकबधिर थाना खोला गया. बड़े पैमाने पर चर्चा में वह तब आए जब उन्होंने राष्ट्रगान का सांकेतिक भाषा में न केवल अनुवाद किया बल्कि राष्ट्रगान को सांकेतिक भाषा में
मान्यता दिलवाने का काम भी किया. लंबी कानूनी अड़चनों को लांघते हुए उन्होंने मूकबधिरों के लिए राष्ट्रगान की सरकारी मान्यता हासिल की. सन 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी सरकार ने ज्ञानेंद्र के इस जज्बे की कद्र भी की थी.

आज सरकारी नौकरियों में मूकबधिरों के लिए जो आरक्षण मिला हुआ है, वह भी ज्ञानेंद्र की ही एक अहम उपलब्धि है जिस के बाबत उन्होंने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ते हुए आंदोलन भी छेड़ा था. अब ज्ञानेंद्र की नई कोशिश या लड़ाई इस बात की है कि सांकेतिक भाषा को संवैधानिक भाषा का दरजा मिले. वह ज्ञानेंद्र पुरोहित ही थे, जिन्होंने न केवल गीता की खोज में अहम रोल निभाया बल्कि उस की हर मुश्किल आसान
करने में उस की पूरी मदद भी की. जब गीता के भारत आने की बात चली तो ज्ञानेंद्र ने औनलाइन उस से सांकेतिक भाषा में बात की और बताया था कि गीता भारत आ कर सलमान खान से मिलना चाहती है और सहरसा के जनार्दन महतो को अपना पिता होना बता रही है.

गीता जब इंदौर आई तो ज्ञानेंद्र ने उसे सांकेतिक भाषा सिखाई. गीता और बाकी दुनिया के बीच उन्होंने दुभाषिए और मध्यस्थ का काम किया. ईधी फाउंडेशन भी चाहता था कि भारत जा कर गीता ज्ञानेंद्र के संरक्षण में रहे ताकि उस की बातें लोगों को ठीक तरह से समझ आ सकें और उस का सच सामने आए.
ज्ञानेंद्र के मुताबिक पाकिस्तान में रहते गीता ठीक से सांकेतिक भाषा नहीं जानती थी. गीता ने खुद ही अपने इशारे बना रखे थे, जिन में बाद में ज्ञानेंद्र ने सुधार किया और देखते ही देखते गीता सांकेतिक भाषा सीख गई.

आगे बढ़ी शादी की बात गीता ने जब शादी की इच्छा व्यक्त की तो एक बार फिर मीडिया उस के रंग में रंग गया. विदेश मंत्रालय ने गीता के लिए उपयुक्त वर ढूंढने की कोई कसर नहीं छोड़ी. फेसबुक पर खासतौर से एक पेज बनाया गया, जिस के जरिए गीता से शादी करने के इच्छुक युवकों से विवाह प्रस्ताव कुछ शर्तों पर मांगे गए. मीडिया और सोशल मीडिया पर भी गीता के स्वयंवर की जम कर चर्चा हुई. सरकार ने घोषणा कर डाली कि जिसे गीता जीवनसाथी के रूप में चुनेगी, उसे सरकारी नौकरी, मकान और दूसरी सहूलियतें दी जाएंगी. पर्याप्त प्रचारप्रसार के बाद भी गीता के स्वयंवर में युवक मधुमक्खियों की तरह नहीं टूटे.

सरकारी दहेज का तगड़ा लालच भी जातपात, नाथअनाथ और धर्म की दीवार नहीं भेद पाया. फिर भी गीता के लिए कुछ प्रस्ताव आए. इस में भी ज्ञानेंद्र ने पूरी सहायता की. आखिर में विदेश मंत्रालय की सहमति के बाद 14 युवकों के प्रस्ताव गीता के पास भेजे गए. यह कोई त्रेता या द्वापर युग का स्वयंवर नहीं था, जिस में उम्मीदवार को धनुष तोड़ना हो या फिर घूमती मछली की आंख पर निशाना साधना हो. यह लोकतांत्रिक कागजी स्वयंवर था, जिस में अंतिम फैसला गीता को लेना था. गीता से शादी करने के लिए कर्मकांडी पंडित से ले कर लेखक तक आगे आए तो एक बार लगा कि बात बन जाएगी. मांबाप भले ही न मिले हों लेकिन उपयुक्त जीवनसाथी चुन कर गीता पति के साथ बाकी जिंदगी चैन, सुकून और आराम से गुजारेगी.

7 जून को जिन 6 उम्मीदवारों को इंदौर बुलाया गया था, उन में से केवल 4 ही पहुंचे. चुनिंदा लोगों की मौजूदगी में स्वयंवर की प्रक्रिया शुरू हुई, जिस में गीता को इन युवाओं से सवालजवाब करने की आजादी मिली हुई थी. यह छूट उम्मीदवारों को भी दी गई थी ताकि वे गीता से सवाल कर सकें. इंदौर शहर का माहौल तो गीता के इस अनूठे स्वयंवर को ले कर गर्म था ही लेकिन देश भर के लोग दिलचस्पी से टीवी स्क्रीन के सामने टकटकी लगाए देख रहे थे कि कब गीता के स्वयंवर वाली खबर दिखाई जाती है. स्वयंवर में गीता की शर्तें उस दिन दोपहर ठीक साढ़े 12 बजे गीता नीले रंग के सलवारसूट में मूकबधिर संस्थान के हौल में आई तो खूब फब रही थी. यह मालवांचल की आबोहवा का ही असर था कि कल तक दुबलीपतली और हमेशा घबराई सी दिखने वाली गीता भरीपूरी और आत्मविश्वास से लबरेज दिख रही थी. उस ने भरपूर नजरों से उम्मीदवारों की तरफ देखा और इशारे से स्वयंवर के पहले चरण को शुरू करने का इशारा कर दिया.

प्रथम ग्रासे मच्छिका वाली कहावत उस समय लागू हुई, जब इंदौर के ही एक उम्मीदवार 21 वर्षीय सचिन पाल नेगीता की इस शर्त को मानने से इनकार कर दिया कि उस के भावी पति को सांकेतिक भाषा आनी चाहिए और नहीं आती है तो सीखनी होगी.अलबत्ता पेशे से मोल्डिंग मशीन औपरेटर सचिन ने गीता को हर हाल में खुश रखने की शर्त मानी लेकिन गीता की दूसरी इस अहम शर्त से वह मुकर गया कि वह गीता के मांबाप को ढूंढने में मदद करेगा. उस का यह कहना व्यवहारिक बात थी कि अब गीता के मांबाप को ढूंढना वक्त और पैसे की बरबादी है.

भोपाल से गए राजकुमार स्वर्णकार और उन के साथ गए मांबाप को गीता की हर शर्त मंजूर थी. राजकुमार भोपाल में ई-रजिस्ट्री कराने और स्टांप पेपर बेचने का काम करता है. यह परिवार किसी भी कीमत पर गीता को अपनी बहू बनाने के लिए तैयार दिखा. राजकुमार के पिता प्रेमनारायण स्वर्णकार ने बताया कि गीता की खुशी के लिए उन का पूरा परिवार ही सांकेतिक भाषा सीखने को तैयार है. अहमदाबाद से आया 26 वर्षीय रितेश पटेल तो गीता को ले कर काफी उत्साहित नजर आया. रट्टू तोते की तरह उस ने भी गीता को खुश रखने का वचन दोहराया. टीकमगढ़ से आया 30 वर्षीय अरुण नामदेव आबकारी विभाग में नौकरी करता था.

अरुण का नजरिया यह था कि गीता एक फेमस और सेलिब्रिटी है, जिसे जीवनसाथी बना कर उसे अच्छा
लगेगा. अरुण ने गीता के मांबाप को ढूंढने का वादा भी किया. जब गीता के पूछने की बारी आई तो उस ने इधरउधर के बजाय मुद्दे की यह बात उम्मीदवारों से पूछी कि उन की आर्थिक और पारिवारिक हैसियत क्या है. इस के बाद स्वयंवर में दरबारियों की हैसियत से बैठे लोगों के चेहरे पर निराशा के भाव नजर आने लगे. क्योंकि गीता ने वह रिस्पौंस नहीं दिया, जिस की उन्हें उम्मीद थी. मूकबधिर संस्था की कर्ताधर्ता मोनिका और ऊषा पंजाबी के अलावा ज्ञानेंद्र पुरोहित और उन की पत्नी मोनिका पुरोहित भी स्वयंवर में
मौजूद थे.

फजीहत बना स्वयंवर स्वयंवर के दूसरे दिन 8 जून को आमंत्रित 7 में से मात्र 2 ही उम्मीदवार पहुंचे तो साफ लगने लगा था कि शायद ही बात बने. इस दिन पिछले दिन के मुकाबले गीता काफी आक्रामक मूड में नजर आई और उस ने मथुरा और जयपुर से आए युवकों पर सवालों की बौछार लगा दी तो दोनों घबरा गए.
गीता ने एक परिपक्व और दुनियादारी देख चुकी लड़की की तरह इन दोनों से पूछा कि वे जहां रहते हैं, वह शहर है या गांव. वे खुद के मकान में रहते हैं या किराए के मकान में? कार है या नहीं और शादी के बाद क्या वह इंदौर में रहेंगे? गीता ने यह भी जोर दे कर पूछा कि आप मांबाप को ढूंढने में मेरी मदद करोगे या नहीं. युवकों की पढ़ाईलिखाई की जानकारी भी उस ने ली.

ये युवक दुम दबा कर चले गए तो स्वयंवर का यह ड्रामा भी खत्म हो गया. गीता ने इन पंक्तियों के लिखे जाने तक कोई नाम फाइनल नहीं किया था, उलटे वह और उम्मीदवारों से मिलने की बात कर रही थी. इधर स्वयंवर के आयोजक पहले से ही अपना सिर धुन रहे थे कि जैसेतैसे बायोडाटा छांटछांट कर 14 लोगों को बुलाया था, उन में से भी केवल 6 ही आए और वे भी गीता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे. इस के बाद यह खबर आई कि गीता ने अपने हमदर्द और मददगार ज्ञानेंद्र पुरोहित की यह कहते हुए जम कर क्लास लगाई कि वह उस की तसवीरें और जानकारी मीडिया में लीक कर रहे हैं. और तो और एक बार तो उस ने ज्ञानेंद्र को पहचानने तक से इनकार कर दिया.

अब यह किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि गीता आखिरकार चाहती क्या है. एक कयास यह भी लगाया गया कि वह सरकारी इमदाद और मूकबधिर संस्था छोड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है तो दूसरा अंदाजा यह लगाया कि कहीं सचमुच में गीता शादी कर घर बसाना चाहती है या फिर उस ने सरकारी दबाव में आ कर स्वयंवर रचाने की सहमति दे दी थी. अब आगे जो भी हो, लेकिन गीता को ले कर कई सवाल और शक स्वाभाविक रूप से उठ रहे हैं. इन में पहला यह है कि क्या वह सचमुच भारतीय ही है. सवाल नाजुक है लेकिन है अहम, वजह गीता को भारत वापस आते तो सभी ने देखा लेकिन मांबाप से बिछुड़ते किसी ने नहीं देखा था.

सवालों के चक्रव्यूह में गीता उच्चायोग और विदेश मंत्रालय ने ईधी फाउंडेशन के कहने भर से कैसे मान लिया कि वह अब से कोई 14 साल पहले समझौता एक्सप्रैस में मिली थी. मुमकिन तो यह भी है कि वह पाकिस्तान की ही हो. ईधी फाउंडेशन को क्या जरूरत थी कि गीता द्वारा हिंदू देवीदेवताओं की पूजापाठ करती तसवीरें वायरल करे. दरजन भर लोगों की डीएनए जांच हुई लेकिन इन में से कोई गीता का मांबाप नहीं निकला तो महज इस उम्मीद व दाजे की बिना पर गीता को भारत क्यों लाया गया कि आज नहीं तो कल उस के मांबाप मिल ही जाएंगे. सवाल यह भी है कि गीता संस्थान से भागी क्यों थी? और आखिर में उस ने स्वयंवर में आए उम्मीदवारों को रिजेक्ट क्यों कर दिया? जब उसे शादी नहीं करनी थी तो इस ड्रामे की क्या जरूरत थी?

सरकार के गले की हड्डी बन चुकी गीता की कहानी एक नाजुक मसला है, जिसे हलके में लेने की चूक सरकार कर चुकी है. उस की शादी कर पल्ला झाड़ने या छुटकारा पाने की आखिरी कोशिश भी बेकार गई तो लगता है गीता या तो किसी मनोविकार जैसे अवसाद की शिकार हो गई है और उस ने जानबूझ कर ज्ञानेंद्र पुरोहित को लताड़ लगाई. लाख टके का सवाल यह भी है कि अगर उस के मांबाप नहीं मिले और अब शादी के लिए कोई आगे नहीं आया तो सरकार क्या करेगी? गीता की देखरेख और शाही आवभगत में करीब 6 लाख रुपए प्रतिवर्ष से भी ज्यादा का खर्च आ रहा है. सरकार कब तक यह खर्च उठाएगी और क्यों उठाएगी, जबकि गीता के भारतीय होने की पुष्टि अभी तक नहीं हुई है?

मान भी लिया जाए कि गीता भारतीय है और सच बोल रही है तो उस का भविष्य क्या है? सरकार कैसे उस का पुनर्वास करेगी और भविष्य में कभी गीता फिर भागने की कोशिश नहीं करेगी, इस बात की गारंटी कौन ले रहा है? मनोहर कहानियां से खास बातचीत में ज्ञानेंद्र पुरोहित ने यह आशंका जताई कि गीता इन दिनों अवसाद में है और इसी के चलते कोई आत्मघाती कदम भी उठा सकती है. लिहाजा उस पर विशेष ध्यान दिया जाना जरूरी है.

पति ने झगड़े में कैंची से काटी पत्नी की गर्दन

अंजू 15 साल के बेटे की मां थी. इस के बावजूद उस के अपने ननदोई से अवैध संबंध हो गए. पति संजीव के समझाने पर भी वह  नहीं मानी तो… 

दिल्ली जल बोर्ड में नौकरी करने वाला संजीव कौशिक अपनी पत्नी अंजू कौशिक को हर तरह से खुश रखता था. वह जो भी मांग करती, संजीव उसे जल्द से जल्द पूरी करने की कोशिश करता था. इस के बावजूद भी अंजू उसे पहले की तरह प्यार नहीं करती. आए दिन पति के प्रति उस का व्यवहार बदलता जा रहा था. बेटे के भविष्य को देखते हुए संजीव अपने घर में कलह नहीं करना चाहता था पर अंजू उस की बात को गंभीरता से समझने की कोशिश नहीं कर रही थी.

संजीव फरीदाबाद की ग्रीनफील्ड कालोनी का रहने वाला था. दिल्ली ड्यूटी करने के बाद जब वह घर पर पहुंचता तो घर वाले अंजू के बारे में बताते कि वह बेलगाम हो कर अकेली पता नहीं कहांकहां घूमती है. संजीव इस बारे में जब पत्नी से पूछता तो वह उलटे उस से झगड़ने पर आमादा हो जाती थी. इस के बाद संजीव को भी गुस्सा आ जाता तो वह उस की पिटाई कर देता था. इस तरह उन दोनों के बीच आए दिन झगड़ा होने लगा.

संजीव अपने स्तर से यही पता लगाने की कोशिश करने लगा कि आखिर उस की पत्नी का किस के साथ चक्कर चल रहा है. पर उसे इस काम में सफलता नहीं मिल सकी. आखिर इसी साल जनवरी महीने में जब अंजू घर से भाग गई तो हकीकत सामने आई. पता चला कि अंजू के अपने ही ननदोई यानी संजीव के बहनोई राजू के साथ ही नाजायज संबंध थे.

जबकि संजीव का शक किसी मोहल्ले वाले पर था, लेकिन उसे क्या पता था कि उस का बहनोई ही आस्तीन का सांप बना हुआ है. अंजू जब राजू के साथ भागी थी तो अपने बेटे को भी साथ ले गई थी. तब संजीव ने फरीदाबाद के सेक्टर-7 थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इस के करीब एक महीने बाद अंजू को करनाल से बरामद किया गया था. घर लौटने के बाद अंजू ने अपने किए की पति से माफी मांगी और भविष्य में राजू से न मिलने का वादा भी किया था. संजीव ने उसे माफ कर फिर से स्वीकार कर लिया. लेकिन कहते हैं कि चोर चोरी भले छोड़ दे लेकिन हेराफेरी नहीं छोड़ता. यही हाल अंजू का भी था

 कुछ दिनों तक तो अंजू ठीक रही लेकिन जब उसे अपने ननदोई यानी प्रेमी राजू की याद आती तो वह बेचैन रहने लगी. उधर राजू भी अंजू से मिलने के लिए बेताब थादोनों ही जब एकदूसरे से मिलने के लिए मचलने लगे तब वे चोरीछिपे मिलने लगे. संजीव को जब पता चला तो उस ने पत्नी को समझाया पर वह नहीं मानी. वैसे भी जब किसी महिला के एक बार पैर फिसल जाते हैं तो वह रोके से भी नहीं रुकते. क्योंकि अवैध संबंधों की राह बड़ी ही ढलवां होती है. उस राह पर यदि कोई एक बार कदम रख देता है तो उस का संभलना मुश्किल होता है. यही हाल अंजू का हुआ.

संजीव अंजू के चालचलन से बहुत परेशान हो चुका था. उस की वजह से उस की रिश्तेदारियों में ही नहीं, बल्कि मोहल्ले में भी बदनामी हो रही थी. त्नी को समझासमझा कर वह हार चुका था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह ऐसी बदचलन पत्नी का क्या करे. पत्नी की वजह से वह तनाव में रहने लगा. 17 मार्च, 2018 को भी किसी बात को ले कर संजीव का पत्नी से झगड़ा हो गया. उस समय उस का 15 वर्षीय बेटा मनन अपने ताऊ के यहां था. झगड़े के दौरान अंजू ने ड्रेसिंग टेबल से कैंची निकाल कर पति पर हमला कर दिया. बचाव की कोशिश में संजीव की छोटी अंगुली (कनिष्ठा) कट गई. अंगुली कटने पर संजीव के हाथों से खून टपकने लगा.

इस के बाद संजीव को गुस्सा आ गया. उस ने पत्नी से कैंची छीन कर उसी कैंची से उस की गरदन पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. उस ने उस की गरदन पर तब तक वार किए, जब तक उस की मौत नहीं हो गई. इस के बाद उस ने उस की गरदन काट कर अलग कर दी. पत्नी की हत्या करने के बाद संजीव ने खून से सने अपने हाथपैर साफ किए और कपड़े बदल कर उस ने कहीं भाग जाने के मकसद से एक बैग में अपने कुछ कपड़े भर लिए. फिर वह अपने बड़े भाई के पास गया. वहां मौजूद बेटे ने बैग के बारे में पूछा तो उस ने बता दिया कि इस में कपड़े हैं जो धोबी को देने हैं. फिर वह वहां से चला गया.

दोपहर करीब एक बजे मनन जब घर पहुंचा तो दरवाजे पर ताला लगा हुआ था. उस ने पड़ोसियों से अपनी मां के बारे में पूछा तो कुछ पता नहीं चला. पिता को फोन मिलाया तो वह भी बंद मिला. तब उस ने फोन कर के अपने ताऊ को वहां बुला लियाताऊ ने शक होने के बाद पुलिस को सूचना दी. पुलिस जब वहां पहुंची तो आसपास के लोग जमा थे. कमरे का ताला तोड़ कर पुलिस जब कमरे में गई तो बैडरूम में अंजू की लाश पड़ी थी, जिस का सिर धड़ से अलग था. फिर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी

पत्नी की हत्या करने के बाद संजीव 3 दिनों तक इधरउधर घूमता रहा. बाद में उसे लगा कि चाहे वह कितना भी छिपा रहे, पुलिस एक एक दिन उसे गिरफ्तार कर ही लेगी. यही सोच कर उस ने खुद ही न्यायालय में आत्मसमर्पण करने का फैसला ले लिया और 21 मार्च, 2018 को फरीदाबाद न्यायालय में पहुंच कर आत्मसमर्पण कर दिया.

कोर्ट ने इस की सूचना डीएलएफ क्राइम ब्रांच को दे दी. तब क्राइम ब्रांच के इंचार्ज अशोक कुमार कोर्ट पहुंच गए. उन्होंने संजीव कौशिक को गिरफ्तार कर पूछताछ की, जिस में संजीव ने अपना अपराध स्वीकार कर पत्नी की हत्या में प्रयुक्त कैंची आदि पुलिस को बरामद करा दी. पुलिस ने संजीव कौशिक से पूछताछ के बाद उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

जिम में युवक को 16 गोलियाँ मारकर अपराधी फरार

दिल्ली, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में तमाम ऐसे खतरनाक अपराधी हैं, जो मुंबई की तरह इन राज्यों में अंडरवर्ल्ड बनाना चाहते हैं. लेकिन पुलिस की सक्रियता के चलते उन के मंसूबे पूरे नहीं हो पाते, फिर भी इन के गिरोह खौफ फैलाने के लिए खूनखराबा करने से बाज नहीं आते.   

सी साल 22 मई की बात है. सुबह के करीब सवा 5 बजे होंगे. श्रीगंगानगर शहर के जवाहरनगर इलाके में मीरा चौक के पास स्थित मेटेलिका जिम के बाहर एक कार कर रुकी. इस कार में 5 युवक सवार थे. इन में से 2 युवक कार में ही बैठे रहे और 3 जिम की तरफ बढ़ गए. जिम का मेनगेट खुला था. तीनों युवक जिम के औफिस में चले गए. जिधर एक्सरसाइज करने की मशीनें लगी हुई थीं, वहां के दरवाजे का लौक बायोमेट्रिक तरीके से बंद था. इस गेट के पास सोफे पर ट्रेनर साजिद सो रहा था. उन तीनों युवकों में से एक युवक ने साजिद को जगाया और उसे पिस्तौल दिखाते हुए गेट खोलने को कहा. साजिद ने मना किया तो उन्होंने उसे जान से मारने की धमकी दी. डर की वजह से घबराए साजिद ने बायोमेट्रिक मशीन में अंगुली लगा कर गेट खोल दिया.

गेट खुलते ही 2 युवक जिम के अंदर घुस गए और तीसरे युवक ने साजिद से उस का मोबाइल छीन कर तोड़ दिया. फिर तीसरा युवक भी जिम में घुस गया. जिम के अंदर विनोद चौधरी उर्फ जौर्डन मशीनों पर एक्सरसाइज कर रहा था. ज्यादा सुबह होने के कारण उस समय जिम में वह अकेला ही था. जिम में घुसे तीनों युवकों ने पिस्तौलें निकालीं और विनोद को निशाना बना कर दनादन गोलियां दाग दीं. विनोद निहत्था था, उस ने जिम का शीशा तोड़ कर बाहर भागने की कोशिश की, लेकिन वह कामयाब नहीं हो सका

लगातार गोलियां लगने से विनोद के शरीर से खून बहने लगा और वह छटपटाता हुआ एक तरफ लुढ़क गया. मुश्किल से 8-10 मिनट में विनोद को मौत के घाट उतार कर वे तीनों युवक वहां से चले गए. यह वारदात पुलिस चौकी से मात्र 200 मीटर की दूरी पर हुई थी. जिम के ट्रेनर साजिद ने विनोद उर्फ जौर्डन की हत्या की सूचना तुरंत पुलिस और अन्य लोगों को दे दी. सूचना मिलने पर पुलिस के अधिकारी मौके पर पहुंच गए. शहर में चारों तरफ नाकेबंदी करा दी गई. जौर्डन की हत्या की खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई. सैकड़ों लोग मौके पर जमा हो गए.

जौर्डन की हत्या से शहर में दहशत सी फैल गई. इस का कारण यह था कि 36 वर्षीय जौर्डन पर शहर के पुरानी आबादी, कोतवाली, सदर और जवाहरनगर थाने में मारपीट, छीनाझपटी और प्राणघातक हमले के करीब दरजन भर मामले दर्ज थे. मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों ने जांचपड़ताल की. फिर जौर्डन की हत्या के एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी जिम के ट्रेनर साजिद से पूछताछ की. जिम में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकाली गई. विधिविज्ञान प्रयोगशाला की टीम भी बुला ली गई. इस टीम ने मौके से गोलियों के खोखे और अन्य साक्ष्य जुटाए. जौर्डन के शरीर पर सिर से पैर तक 15 से ज्यादा गोलियों के निशान थे. जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दिया.

जौर्डन ने दोस्ती नहीं स्वीकारी तो मिली गोली जौर्डन के चाचा धर्मपाल ने उसी दिन जवाहरनगर थाने में उस की हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. इस में बताया कि उस का भतीजा विनोद उर्फ जौर्डन अलसुबह पुरानी आबादी में उदयराम चौक के पास स्थित घर से जिम के लिए निकला था. वह अपने अतीत को भुला कर अब समाजसेवा के काम करता था. अब वह खिलाडि़यों का नेतृत्व करता था और बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाता था.

जौर्डन को गैंगस्टर लारेंस, अंकित भादू, संपत नेहरा, अमित काजला, आरजू विश्नोई, झींझा और विशाल पचार ने जान से मारने की धमकी दी थी. इस के अलावा श्रीगंगानगर के ही रहने वाले सट्टा किंग राकेश नारंग व करमवीर ने भी उसे चेतावनी दी थी. धर्मपाल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जौर्डन ने एक बार मुझे बताया था कि इन लोगों ने उसे मरवाने के लिए 25 से 50 लाख रुपए में गैंगस्टर बुक कर उस की हत्या की सुपारी दे रखी थी.

जौर्डन की हत्या का मामला साफतौर पर अपराधी गिरोहों से जुड़ा हुआ था. इसलिए पुलिस ने सभी पहलुओं को ध्यान में रख कर जांचपड़ताल शुरू की. जांच में यह भी पता चला कि कुख्यात गैंगस्टर श्रीगंगानगर में अपने गैंग को बढ़ाना चाहता था. इस के लिए उस ने जौर्डन की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, लेकिन जौर्डन ने मना कर दिया. इस बात को ले कर लारेंस उस से रंजिश रखने लगा. लारेंस ने जौर्डन को धमकी भी दी थी. लारेंस अब अजमेर जेल में बंद है. लारेंस गैंग के शूटर संपत नेहरा, अंकित भादू, रविंद्र काली, हरेंद्र जाट आदि ने दहशत पैदा करने के लिए श्रीगंगानगर में नवंबर, 2017 में पुलिस इंसपेक्टर भूपेंद्र सोनी के भांजे पंकज सोनी की सरेआम गोलियां मार कर हत्या कर दी थी.

इसी 26 जनवरी को श्रीगंगानगर के हिंदूमलकोट बौर्डर पर पंजाब पुलिस ने कुख्यात गैंगस्टर विक्की गोंडर, प्रेमा लाहौरिया समेत 3 बदमाशों का एनकाउंटर किया था. इस के बाद सतर्क हुई श्रीगंगानगर पुलिस ने पंकज सोनी हत्याकांड में 30 जनवरी को लारेंस गिरोह के 2 गुर्गे पकड़े थे. पुलिस को इन बदमाशों के मोबाइल से अजमेर जेल में बंद गैंगस्टर लारेंस से वाट्सऐप पर हुई चैटिंग की जानकारी मिली. चैटिंग में दोनों गुर्गे हिस्ट्रीशीटर विनोद चौधरी उर्फ जौर्डन की रेकी की सूचनाएं लारेंस को दे रहे थे. इस से पुलिस को इस बात का अंदाजा हो गया था कि लारेंस जौर्डन को मरवाना चाहता था.

इस के बाद श्रीगंगानगर पुलिस ने जौर्डन को बुला कर सतर्क रहने को कहा था. कुछ दिन पहले कुछ लोगों ने भी जौर्डन को संभल कर रहने को कहा था. धमकियां मिलने के बाद जौर्डन काफी सतर्क रहता भी था. वह घटना से करीब 15 दिन पहले से ही जिम जाने लगा था. वह समय बदलबदल कर जिम जाता था. अपनी कार को भी वह जिम के सामने खड़ी कर के आसपास खड़ी करता था. लेकिन फिर भी बदमाशों ने उसे मौत के घाट उतार दिया था. इस का मतलब यह था कि कोई कोई लगातार उस की हरेक गतिविधि पर नजर रखे हुए था.

श्रीगंगानगर में इसी तरह 17 अगस्त, 2016 को जिम में एक युवक की हत्या कर दी गई थी. उस समय पुरानी आबादी स्थित ग्रेट बौडी फिटनेस सेंटर में पुरानी लेबर कालोनी में रहने वाले दीपक उर्फ बिट्टू शर्मा की हत्या की गई थी. दीपक उस दौरान हत्या के प्रयास के मामले में जमानत पर छूटा हुआ था. पुलिस इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रख कर जांच करने लगी. जौर्डन की हत्या वाले दिन ही शाम को उस के घर वाले और रिश्तेदार जवाहरनगर थाने पहुंचे और वहां धरना दे कर बैठ गए. उन्होंने मामले की जांच स्पैशल औपरेशन ग्रुप यानी एसओजी से कराने और हत्यारों को जल्द पकड़ने की मांग की. मांग पूरी नहीं होने तक उन्होंने जौर्डन का शव नहीं लेने की बात कही. पुलिस अधिकारियों ने थाने पहुंच कर उन्हें समझाया और आश्वासन दिया कि जांच एसओजी से करा कर हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. इस आश्वासन के बाद ही उन्होंने धरना समाप्त किया.

पंजाब और हरियाणा के बड़े आपराधिक गिरोह के तार जौर्डन की हत्या से जुड़े होने की संभावना को देखते हुए पुलिस ने कई जगह छापेमारी कर के संदिग्ध लोगों को हिरासत में लिया. कई लोगों से पूछताछ की गई, लेकिन पुलिस को कोई ठोस जानकारी नहीं मिली. जांच सौंपी गई एसओजी को दूसरे दिन 23 मई को जौर्डन हत्याकांड की जांच एसओजी को सौंप दी गई. इस के लिए एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. ने एएसपी संजीव भटनागर के साथ एक टीम का गठन किया

इस टीम को श्रीगंगानगर पुलिस के साथ समन्वय बना कर अंतरराज्यीय संगठित अपराधी गिरोहों के खिलाफ कड़ी काररवाई के निर्देश दिए गए. इस के साथ यह भी तय किया गया कि इस मामले में पंजाब पुलिस की ओकू (आर्गनाइज्ड क्राइम कंट्रोल यूनिट) टीम का भी सहयोग लिया जाएगा. पंजाब की ओकू टीम ने 26 जनवरी को गैंगस्टर विक्की गोंडर व उस के साथियों का एनकाउंटर किया था. 3 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने के बाद जौर्डन का शव उस के परिजनों को सौंप दिया गया. पुलिस के पहरे में 4 घंटे तक चले पोस्टमार्टम में पता चला कि जौर्डन को 16 गोलियां लगी थीं. इन में 3 गोलियां उस के सिर, 6 सीने पर, 3 पेट में और 4 गोलियां उस के दोनों हाथों पर लगी थीं. परिजनों ने भारी पुलिस की मौजूदगी में शव का अंतिम संस्कार कर दिया.

 एसओजी की टीम जयपुर से उसी दिन श्रीगंगानगर पहुंच गई. एसओजी टीम के साथ एसपी हरेंद्र कुमार, एएसपी सुरेंद्र सिंह राठौड़, सीआई नरेंद्र पूनिया जवाहरनगर थानाप्रभारी प्रशांत कौशिक ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. इस में एसओजी टीम ने कुछ महत्त्वपूर्ण साक्ष्य जुटाएसीसीटीवी फुटेज भी देखी. दूसरी ओर श्रीगंगानगर पुलिस ने गैंगस्टर अंकित भादू और संपत नेहरा की तलाश में कई जगह छापे मारे. पुलिस की एक टीम घटनास्थल के आसपास वारदात के समय हुई मोबाइल काल्स खंगालने में जुटी रही.

तीसरे दिन भी श्रीगंगानगर पुलिस की 3 टीमें और एसओजी की टीम अलगअलग तरीके से जांच में जुटी रहीं. पुलिस ने कई जगह छापेमारी की, लेकिन अंकित भादू और संपत नेहरा का कोई सुराग नहीं मिला. अलबत्ता जांचपड़ताल में पुलिस को यह जानकारी मिली कि जौर्डन की हत्या के लिए अंकित भादू, संपत नेहरा और उन के साथी 22 मई को सफेद कार से हनुमानगढ़ की तरफ से श्रीगंगानगर में मेटेलिका जिम पहुंचे थे और वारदात के बाद उसी कार से हनुमानगढ़ रोड की ओर भाग गए थे. सोशल मीडिया पर सक्रिय था 

गैंगस्टर लारेंस श्रीगंगानगर पुलिस ने ओकू टीम की मदद से पंजाब में स्टूडेंट आर्गनाइजेशन औफ पंजाब यूनिवर्सिटी यानी सोपू से जुड़े कई युवाओं को भी इस मामले में तलाश किया. दरअसल, पंजाब चंडीगढ़ इलाके में हजारों युवा सोपू संगठन से जुड़े हुए हैं. इन में चुनाव सदस्यता को ले कर गुटबाजी भी है. इस में गैंगस्टर लारेंस की गैंग का काफी प्रभाव है. भादू और नेहरा भी इसी संगठन के जरिए लारेंस से जुड़े थे. इसीलिए पुलिस इस संगठन से जुड़े आपराधिक गतिविधियों में लिप्त युवाओं की तलाश कर रही थी.

बीकानेर आईजी विपिन पांडे ने रेंज की पुलिस को भादू और नेहरा को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए एक्शन मोड पर रहने के निर्देश दे रखे थे. पुलिस की इन तमाम काररवाइयों के बीच 24 मई को सोशल मीडिया पर यह खबर चलती रही कि हनुमानगढ़ जिले के नोहराभादरा इलाके में राजस्थान पुलिस ने भादू और नेहरा का एनकाउंटर कर दिया है. इस खबर से दिन भर सनसनी फैली रही. एसपी हरेंद्र कुमार ने इन खबरों को अफवाह बताया, तब जा कर इस पर विराम लगा.

एनकाउंटर की अफवाह उड़ने के दूसरे ही दिन 25 मई को लारेंस के गुर्गे अंकित भादू ने अपने फेसबुक अकाउंट को अपडेट करते हुए जौर्डन की हत्या की जिम्मेदारी ली. उस ने फेसबुक पर लिखा कि फेक आईडी बना कर कमेंट कर रहे होएक बाप के हो तो डायरेक्ट मैसेज करो. जौर्डन को चैलेंज कर के ठोक्यो है. जिस को वहम हो, वो अपना मोबाइल नंबर इनबौक्स कर दे और बदला ले ले. यह भी समझना चाहिए कि बाप बाप ही होता है और बेटा बेटा रहता है. रही बात प्रेसीडेंट की तो वह भी खड़ा होगा और जीतेगा भी. जिस मां के लाल में दम हो वो जाए. थारो बाप 3 स्टेट पर राज करे है.

फेसबुक पर भादू की ओर से खुला चैलेंज दिए जाने के बाद पुलिस की साइबर सेल ने उस के फालोअर्स और फेसबुक पर भादू की पोस्ट पर कमेंट करने वाले लोगों को तलाशना शुरू कर दिया, ताकि भादू के बारे में सुराग मिल सके. उधर बीकानेर के आईजी विपिन पांडे भी श्रीगंगानगर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया और अधिकारियों की बैठक कर जौर्डन हत्याकांड की पूरी जांच रिपोर्ट ली.

पकड़े गए कई गुर्गे छापेमारी के बीच पंजाब की अबोहर पुलिस ने 26 मई, 2018 को लारेंस के 3 गुर्गों को हथियारों सहित पकड़ा. इन में राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के सांगरिया इलाके का अभिषेक गोदारा, हनुमानगढ़ क्षेत्र की नोहर तहसील का विकास सिंह जाट और पंजाब के बल्लुआना क्षेत्र का नरेंद्र सिंह शामिल थाइन में अभिषेक गैंगस्टर लारेंस की बुआ का बेटा है. वह जोधपुर में एमएससी का छात्र है, लेकिन कुछ समय से श्रीगंगानगर में रह रहा था. राजस्थान पुलिस को शक है कि लारेंस ने जौर्डन की रेकी के लिए अभिषेक को श्रीगंगानगर भेजा था. इसलिए वह किराए के मकान में रह रहा था. श्रीगंगानगर के एसपी हरेंद्र कुमार इन तीनों आरोपियों से पूछताछ के  लिए उसी दिन अबोहर पहुंच गए.

जौर्डन की हत्या के छठे दिन भी पुलिस ने राजस्थान, हरियाणा व पंजाब में कई जगह दबिश डाली लेकिन न तो भादू व नेहरा का पता चला और न ही जौर्डन हत्याकांड के ठोस सुराग मिले. इस दौरान श्रीगंगानगर पुलिस ने शहर में पेइंगगेस्ट हौस्टलों की भी जांचपड़ताल शुरू कर दी. गैंगस्टर लारेंस के गिरोह की बढ़ती वारदातों के सिलसिले में 29 मई को हनुमानगढ़ में एटीएस के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक उमेश मिश्रा की अध्यक्षता में पुलिस की अंतरराज्यीय समन्वय बैठक हुई. इस बैठक में हरियाणा, पंजाब व राजस्थान के पुलिस अफसर शामिल हुए.

इन में राजस्थान से उमेश मिश्रा के अलावा एडीजी राजीव शर्मा, एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन., बीकानेर आईजी विपिन पांडे, चुरू एसपी राहुल बारहट, श्रीगंगानगर एसपी हरेंद्र कुमार, हनुमानगढ़ एसपी यादराम फांसल, हरियाणा से सिरसा के एसपी हमीद अख्तर, भिवानी एसपी गंगाराम पूनिया, हांसी एसपी प्रतीक्षा गोदारा आदि मुख्य थे. बैठक का विषय जौर्डन हत्याकांड पर फोकस रहा. साथ ही तीनों राज्यों की पुलिस के लिए सिरदर्द बने गैंगस्टरों और उन के गुर्गों को पकड़ने तथा उन की आपराधिक गतिविधियों पर रोक लगाने के संबंध में भी फैसले लिए गए.

इस बैठक के दूसरे ही दिन 30 मई, 2018 को अंकित भादू ने अपना फेसबुक अकाउंट अपडेट किया. भादू ने लिखा कि अगर परिस्थितियों पर आप की पकड़ मजबूत है तो जहर उगलने वाले आप का कुछ नहीं बिगाड़ सकते. 31 मई, 2018 को श्रीगंगानगर पुलिस ने पंजाब पुलिस के साथ मिल कर गैंगस्टर लारेंस विश्नोई के पंजाब स्थित पैतृक गांव दुतारांवाली विश्नोइयान और राजांवाली में छापेमारी की11 गाडि़यों में सवार हो कर पहुंचे 90 से ज्यादा पुलिस अधिकारियों व जवानों ने करीब 2 घटे तक सर्च अभियान चलाया. इस के अलावा 2 पुलिस टीमें भादू व नेहरा की तलाश में जुटी रहीं.

श्रीगंगानगर में चल रही जांचपड़ताल में पुलिस को पता चला कि जौर्डन की हत्या से पहले उस की रेकी की गई थी. पुलिस ने जौर्डन की रेकी करने के मामले में एक नाबालिग किशोर को 3 जून को जयपुर से पकड़ लिया. इस किशोर ने ही जौर्डन के घर से निकल कर जिम जाने की सूचना हत्यारों को दी थी. वह करीब एक साल से अंकित भादू के गिरोह से जुड़ा हुआ था और उस से कई बार मिल भी चुका था. किशोरों को बनाया जाता था सहायक यह किशोर श्रीगंगानगर के पुरानी आबादी इलाके का रहने वाला था. जौर्डन भी इसी इलाके का रहने वाला था. पूछताछ और घटनास्थल का सत्यापन कराने के बाद इस किशोर को निरुद्ध कर बाल न्यायालय में पेश कर सुधारगृह भेज दिया गया. 12वीं में पढ़ रहे इस किशोर ने पुलिस पूछताछ में गिरोह से जुड़े श्रीगंगानगर के रहने वाले कुछ सक्रिय सदस्यों के नाम भी बताए.

इस किशोर के पकडे़ जाने से पुलिस अधिकारियों के सामने यह बात आई कि गैंगस्टर कम उम्र के युवाओं व नाबालिगों को ग्लैमर दिखा कर अपने जाल में फांस लेते हैं और उन को संगठन से जोड़ कर पदाधिकारी बना देते हैं. इस के बाद उन को किसी काम का जिम्मा सौंप देते हैं. कम उम्र के युवा सही व गलत का अंदाज नहीं लगा पाते. पुलिस ने बाद में सोपू संगठन से जुड़े 3 पदाधिकारियों सहित 5 युवाओं को गिरफ्तार कर भविष्य में इस संगठन से न जुड़ने की पाबंदी लगा दी. बाद में इन को जमानत पर छोड़ दिया गया. इन युवकों के परिजनों को भी उन पर नजर रखने की हिदायत दी गई.

एक तरफ पुलिस भादू और नेहरा की तलाश में जुटी थी, दूसरी तरफ 4 जून को एक नया मामला सामने गया. गैंगस्टर अंकित भादू और संपत नेहरा के नाम से श्रीगंगानगर के कांग्रेसी नेता जयदीप बिहाड़ी अरोड़वंश ट्रस्ट के पूर्व अध्यक्ष जोगेंद्र बजाज को वाट्सऐप काल कर 25 लाख रुपए की रंगदारी मांगी गई. धमकियां मिलने से सहमे व्यापारियों के प्रतिनिधि मंडल ने एसपी से मुलाकात कर सुरक्षा मांगी. जिस मेटेलिका जिम में जौर्डन की हत्या की गई, उस जिम में जोगेंद्र बजाज का बेटा साझेदार था. धमकी मिलने पर बजाज के घर पर पुलिस तैनात कर दी गई. श्रीगंगानगर कोतवाली में बजाज को धमकी देने और रंगदारी मांगने के मामले में रिपोर्ट दर्ज की गई.

कांग्रेस नेता जयदीप बिहाणी के पास 5 जून को इंटरनेशनल नंबर से दोबारा काल आई. हालांकि बिहाड़ी ने वह काल रिसीव नहीं की. विशेषज्ञों का मानना है कि धमकी देने वाला लैपटाप या मोबाइल ऐप का इस्तेमाल कर काल कर रहा था. इस ऐप से जिस के पास काल आती है, उस के मोबाइल स्क्रीन पर इंटरनेशनल नंबर प्रदर्शित होते हैं. गर्लफ्रैंड के चक्कर में पकड़ा गया संपत नेहरा 5 जून को आधी रात के बाद हरियाणा एसटीएफ की टीम ने जौर्डन की हत्या और व्यापारियों को धमका कर रंगदारी मांगने के आरोपी गैंगस्टर संपत नेहरा को आंध्र प्रदेश में दबोचने में सफलता हासिल कर ली. वह हैदराबाद की मइयापुर कालोनी के एक कौंप्लेक्स में छिपा हुआ था. पुलिस को उस के पास से अत्याधुनिक हथियार भी मिले. संपत नेहरा पर पंजाब पुलिस ने 5 लाख और हरियाणा पुलिस ने 50 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर रखा था.

संपत नेहरा अपनी प्रेमिका को फोन करने के चक्कर में हरियाणा पुलिस के जाल में फंस गया. वह हिसार में रहने वाली अपनी प्रेमिका को फोन करता था. हरियाणा की एसटीएफ कई दिनों से उस की प्रेमिका की काल टेप कर रही थी. प्रेमिका का फोन टेप करने के दौरान ही पुलिस को संपत की लोकेशन की जानकारी मिल गई. इसी आधार पर पुलिस ने हैदराबाद में छापेमारी कर संपत को धर दबोचा. संपत के पकड़े जाने पर उस की फेसबुक भी अपडेट होती रही. इस में समर्थकों ने पोस्ट डाल कर संपत की गिरफ्तारी की पुष्टि की. फेसबुक पोस्ट में कहा गया कि अपने भाई संपत नेहरा को हरियाणा पुलिस ने आंध्र प्रदेश से सहीसलामत पकड़ा है. उस के साथ पुलिस कुछ नाजायज कर सकती है. उस का एनकाउंटर भी किया जा सकता है.

मूलरूप से चंडीगढ़ का रहने वाला संपत नेहरा चंडीगढ़ पुलिस के ही एक जवान का बेटा है. वह 100 मीटर बाधा दौड़ का स्टेट लेवल का खिलाड़ी रहा है. चंडीगढ़ में पढ़ते हुए उस ने पंजाब के गैंगस्टर लारेंस विश्नोई के साथ मिल कर 3 राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में आतंक फैला रखा था. उस के खिलाफ लूट, फिरौती, सुपारी ले कर हत्या करने और हत्या के प्रयास जैसे कई संगीन मामले दर्ज हैं. पंजाब में जब आर्गनाइज्ड क्राइम कंट्रोल यूनिट (ओकू) बनी और गैंगस्टरों की धरपकड़ शुरू हुई तो फरीदकोट जेल में बंद लारेंस ने अपने शूटर संपत नेहरा, रविंद्र काली और हरेंद्र जाट के माध्यम से राजस्थान के जोधपुर में व्यापारियों को धमका कर रंगदारी मांगनी शुरू कर दी थी. गतवर्ष लारेंस के इशारे पर संपत, काली व हरेंद्र ने जोधपुर में व्यवसायी वासुदेव असरानी की हत्या कर दी थी. पिछले एक साल में इस गिरोह ने 5 हत्याएं कीं.

जून 2017 में संपत ने पंजाब के कोटकपुरा में लवी दचौड़ा नामक युवक की सरेआम गोलियां मार कर हत्या की थी. सीकर के पास एक पूर्व सरपंच की हत्या भी संपत ने ही की थी. पिछले साल 6 दिसंबर को उस ने श्रीगंगानगर में पुलिस इंसपेक्टर भूपेंद्र सोनी के भांजे पंकज सोनी की हत्या कर के सोनेचांदी के गहने और पौने 2 लाख रुपए लूट लिए थे. पिछले साल ही 25 दिसंबर को उसी ने गुड़गांव में पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह के विधायक बेटे जगत सिंह की फार्च्युनर गाड़ी लूटी. इसी गाड़ी में सवार हो कर 17 जनवरी, 2018 को उस ने चुरू जिले के सादुलपुर में कोर्ट के अंदर गैंगस्टर अजय जैतपुरा की गोलियां मार कर हत्या कर दी थी.

संपत के खिलाफ हिसार में शराब ठेकेदार जयसिंह उर्फ धौलिया गुर्जर की गोली मार कर हत्या करने और संपत के इशारे पर उस के गुर्गों द्वारा बालरोग विशेषज्ञ डा. राजेश गुप्ता का पिस्तौल के बल पर अपहरण कर होंडा सिटी कार लूटने का मामला दर्ज है. हरियाणा में हत्या की 3 और लूट की 8 वारदातों के मामले दर्ज हैं. सलमान खान को भी दी थी धमकी गैंगस्टर लारेंस ने फिल्म अभिनेता सलमान खान को भी जोधपुर में मारने की धमकी दी थी. इसी तरह की खौफनाक वारदातों के दम पर डरा कर लारेंस का गिरोह व्यापारियों से रंगदारी वसूलता रहा. वासुदेव हत्याकांड में पूछताछ के लिए पुलिस लारेंस को पंजाब से जोधपुर ले गई थी. बाद में उसे अजमेर जेल में शिफ्ट कर दिया गया. आजकल लारेंस अजमेर जेल से ही अपने गैंग को औपरेट कर रहा है. उस के गिरोह में संपत नेहरा के अलावा अंकित भादू, काली, हरेंद्र आदि मुख्य हैं.

आरोप है कि संपत नेहरा ने श्रीगंगानगर के करीब 15 व्यापारियों से वाट्सऐप कालिंग कर के रंगदारी मांगी थी. इन में से 4 व्यापारियों ने उस तक रकम पहुंचा भी दी थी. पुलिस अब ऐसे व्यापारियों का पता लगा रही है, जिन्होंने संपत को रकम दी थी.

संपत की गिरफ्तारी के 2 दिन बाद ही 8 जून को कांग्रेस नेता और बिहाणी शिक्षा न्यास के अध्यक्ष जयदीप बिहाणी को धमकी भरा वाट्सऐप मैसेज आया. इस में कहा गया कि पुलिस उन की कितने दिन सुरक्षा करेगी. फिरौती के 50 लाख रुपए नहीं दिए तो अंजाम अच्छा नहीं होगा. पुलिस इस मामले की भी जांचपड़ताल करने लगी. इस बीच श्रीगंगानगर पुलिस ने रिडमलसर निवासी हिमांशु खींचड़ उर्फ काका पिस्तौली को 7 जून को गिरफ्तार कर लिया. उस पर गैंगस्टरों का सहयोग करने और उन्हें शरण देने का आरोप है. वह ग्रैजुएट है और सोपू का सदस्य भी है. उस के पास अंतरराष्ट्रीय सिमकार्ड भी मिला.

श्रीगंगानगर पुलिस संपत नेहरा को हरियाणा से प्रोडक्शन वारंट पर ला कर पूछताछ करेगी. पुलिस का मानना है कि जौर्डन की हत्या में शामिल अंकित भादू और उस के बाकी साथी भी जल्दी ही सींखचों के पीछे होंगे.

     

बिजनेस हड़पने के लिए बेटों ने मां को भेजा पागलखाना

अच्छाई की हमेशा जीत होती है, नूर इस की जीतीजागती मिसाल थी. लेकिन उस का मानना था कि गुनहगार चाहे जो भी, जैसा भी हो, उसे सुधरने का एक मौका जरूर मिलना चाहिए. इसलिए उस ने राहिल को कुछ नहीं कहा.  

माल खान के पिता स्क्रैप कारोबारी थे. कमाल अपने मांबाप की एकलौती संतान था इसलिए लाड़प्यार में वह पढ़ नहीं सका तो पिता ने उसे अपने धंधे में ही लगा लिया. कमाल ने जल्द ही अपने पिता के धंधे को संभाल लिया. अपनी मेहनत और होशियारी से उस ने अपने पिता से ज्यादा तरक्की की. जल्दी ही वह लाखोंकरोड़ों में खेलने लगा. उस ने अपनी काफी बड़ी फैक्ट्री भी खड़ी कर ली. यह देख पिता ने उस की जल्द ही शादी भी कर दी. कमाल जिस तरह पैसा कमाता था, उसी तरह अय्याशी और अपने दूसरे शौकों पर लुटाता भी था. पिता ने उसे बहुत समझाया पर उस ने उन की बातों पर ध्यान नहीं दिया. इसी वजह से पत्नी से भी उस की नहीं बनती थी, जिस से वह बहुत तनाव में रहने लगी थी

इस का नतीजा यह हुआ कि 10-12 साल बाद ही बीवी दुनिया ही छोड़ गई. कमाल के पिता दिल के मरीज थे, पर उस ने साधनसंपन्न होने के बावजूद तो उन का किसी अच्छे अस्पताल में इलाज कराया और ही उन की देखभाल की, जिस से उन की भी मौत हो गई. पिता के मर जाने के बाद कमाल पूरी तरह से आजाद हो गया था. अब वह अपनी जिंदगी मनमाने तरीके से गुजारने लगा. एक बार कमाल खान को ईमान ट्रस्ट के स्कूल में चीफ गेस्ट के तौर पर बुलाया गया था. वहां उस की नजर नूर पर पड़ी जो सिर्फ 15 साल की थी और वहां 11वीं कक्षा में पढ़ती थी.

कमाल खान उस पर जीजान से फिदा हो गया. उस ने फैसला कर लिया कि वह नूर से शादी करेगा. जल्द ही उस ने पता लगाया तो जानकारी मिली कि वह रहमत की बेटी है. रहमत चाटपकौड़ी का ठेला लगाता था. इस काम से उस के परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से होता था. इसी बीच अचानक एक दिन रात को उस के ठेले को किसी ने आग लगा दी. वही ठेला उस की रोजीरोटी का सहारा था. रहमत बहुत परेशान हुआ. उस के परिवार की भूखों मरने की नौबत आ गई. ऐसे वक्त पर कमाल खान एक फरिश्ते की तरह उस के पास पहुंचा. उस ने रहमत की खूब आर्थिक मदद की. इतना ही नहीं, उस ने उसे एक पक्की दुकान दिला कर उस का कारोबार भी जमवा दिया.

रहमत हैरान था कि इतना बड़ा सेठ उस पर इतना मेहरबान क्यों है. लेकिन रहमत की अनपढ़ बीवी समझ गई थी कि कमाल खान की नजर उस की बेटी नूर पर है. जल्दी ही कमाल खान ने नूर का रिश्ता मांग लिया. रहमत इतनी बड़ी उम्र के व्यक्ति के साथ बेटी की शादी नहीं करना चाहता था, पर उस की बीवी ने कहा, ‘‘मर्द की उम्र नहीं, उस की हैसियत और दौलत देखी जाती है. हमारी बेटी वहां ऐश करेगी. फौरन हां कर दो.’’ रहमत ने पत्नी की बात मान कर हां कर के शादी की तारीख भी तय कर दी. नूर तो वेसे ही खूबसूरत थी, पर उस दिन लाल जोड़े में उस की खूबसूरती और ज्यादा बढ़ गई थी. मांबाप ने ढेरों आशीर्वाद दे कर नूर को विदा किया.

कमाल खान उसे पा कर खुश था. अब नूर की किस्मत भी एकदम पलट गई थी. अभावों भरी जिंदगी से निकल कर वह ऐसी जगह गई थी, जहां रुपएपैसे की कोई कमी नहीं थी. नूर से निकाह करने के बाद कमाल खान में भी सुधार गया था. उस ने अब बाहरी औरतों से मिलना बंद कर दिया. वह नूर को दिलोजान से प्यार करने लगा. उस के अंदर यह बदलाव नूर की मोहब्बत और खिदमत से आया था. कमाल ने सारी बुरी आदतें छोड़ दीं. जिंदगी खुशी से बसर होने लगी. देखतेदेखते 5 साल कब गुजर गए, उन्हें पता ही नहीं चला. उन के यहां 2 बेटे और एक बेटी पैदा हो गई. कमाल खान ने अपने बच्चों की अच्छी परवरिश की. इसी दौरान कमाल अपने आप को कमजोर सा महसूस करने लगा. पता नहीं उसे क्यों लग रहा था कि वह अब ज्यादा नहीं जिएगा. एक दिन उस ने नूर से कहा, ‘‘नूर, तुम अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर दो.’’

पति की यह बात सुन कर नूर चौंकते हुए बोली, ‘‘यह आप क्या कह रहे हैं. मैं अब पढ़ाई करूंगी? यह तो बेटे के स्कूल जाने का वक्त है.’’

‘‘देखो नूर, मेरे बाद तुम्हें ही अपना सारा बिजनैस संभालना है. तुम बच्चों पर कभी भरोसा मत करना. मुझे उम्मीद है कि मेरे बच्चे भी मेरी तरह ही खुदगर्ज निकलेंगे.’’ कमाल खान ने पत्नी को समझाया

नूर को शौहर की बात माननी पड़ी और उस ने पढ़ाई शुरू कर दी. 4 साल में उस ने ग्रैजुएशन पूरा कर लिया. अब उस की बेटी भी स्कूल जाने लगी थी. नूर अपने बच्चों से बहुत प्यार करती थी. कालेज के बाद वह अपना सारा वक्त उन्हीं के साथ गुजारती थी. बच्चों की पढ़ाई भी महंगे स्कूलों में हो रही थी. कमाल खान ने नूर के मायके वालों को भी इतना कुछ दे दिया था कि वे सभी ऐश की जिंदगी गुजार रहे थे. नूर के सभी भाईबहनों की शादियां हो गई थीं. नूर के ग्रैजुएशन के बाद कमाल खान ने उस का एडमिशन एमबीए की ईवनिंग क्लास में करा दिया था.

सुबह वह उसे अपने साथ नई फैक्ट्री ले जाता, जहां वह उसे कारोबार की बारीकियां बताता. नूर काफी जहीन थी. जल्दी ही वह कारोबार की सारी बारीकियां समझ गईउस का एमबीए पूरा होते ही कमाल ने उसे बोर्ड औफ डायरेक्टर्स का मेंबर बना दिया और कंपनी के एकतिहाई शेयर उस के नाम कर दिए. नूर समझ नहीं पा रही थी कि पति उसे फैक्ट्री के कामों में इतनी जल्दी एक्सपर्ट क्यों बनाना चाहते हैं.

इस के पीछे कमाल खान का अपना डर और अंदेशा था कि जिस तरह वह स्वार्थ और खुदगर्जी की वजह से अपने पिता की देखभाल नहीं कर पाया तो उस के बच्चे उस की सेवा नहीं करेंगे, क्योंकि स्वार्थ लालच के कीटाणु उस के बच्चों के अंदर भी गए होंगे. इसलिए वह नूर को पूरी तरह से परफेक्ट बनाना चाहता था. नूर ने फैक्ट्री का सारा काम बखूबी संभाल लिया था. एक दिन अचानक ही उस के शौहर की तबीयत खराब हो गई. उसे बड़े से बड़े डाक्टरों को दिखाया गया. पता चला कि उसे फेफड़ों का कैंसर है. पत्नी इलाज के लिए उसे सिंगापुर ले गई. वहां उस का औपरेशन हुआ. उसे सांस की नकली नली लगा दी गई. 

औपरेशन कामयाब रहा. ठीक हो कर वह घर लौट आया. वह फिर से तंदुरुस्त हो कर अपना कामकाज देखने लगा. हालांकि वह पूरी तरह स्वस्थ था, इस के बावजूद भी उसे चैन नहीं था. उस ने धीरेधीरे कंपनी के सारे अधिकार और शेयर्स पत्नी नूर के नाम कर दिए. अपनी सारी प्रौपर्टी और बंगला भी नूर के नाम कर दिया. इस के 2 साल बाद कैंसर उस के पूरे जिस्म में फैल गया. लाख इलाज के बावजूद भी वह बच नहीं सका. उस के मरते ही उस के रिश्तेदारों ने नूर के आसपास चक्कर काटने शुरू कर दिए. पर नूर ने किसी को भी भाव नहीं दिया, क्योंकि पति के जीते जी उन में से कोई भी रिश्तेदार उन के यहां नहीं आता था

वैसे भी कमाल खान पहले ही प्रौपर्टी का सारा काम इतना पक्का कर के गया था कि किसी बाहरी व्यक्ति के दखलंदाजी करने की कोई गुंजाइश नहीं थी. उस का मैनेजर भी मेहनती और वफादार था. इसलिए बिना किसी परेशानी के नूर ने सारा कारोबार खुद संभाल लिया. नूर के बच्चे भी अब बड़े हो चुके थे. एक बार की बात है. कारोबार की बातों को ले कर नूर की अपने तीनों बच्चों से तीखी नोंकझोंक हो गई. उसी दौरान नूर की बेटी हुमा एक गिलास में जूस ले आई. नूर ने जैसे ही जूस पिया तो उस का सिर चकराने लगा और आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह बिस्तर पर ही लुढ़क गई. जब होश आया तो उस ने खुद को एक अस्पताल में पाया

नूर ने पास खड़ी नर्स से पूछा कि उसे यहां क्यों लाया गया है तो उस ने बताया कि आप पागलों की तरह हरकतें कर रही थीं, इसलिए आप का यहां इलाज किया जाएगा. नूर आश्चर्यचकित रह गई क्योंकि वह पूरे होशोहवास में थी. तभी अचानक उसे लगा कि यह सब उस के बच्चों ने किया होगा. नूर ने नर्स को काफी समझाने की कोशिश की कि वह स्वस्थ है, लेकिन नर्स ने उस की एक नहीं सुनी. वह उसे एक इंजेक्शन लगा कर चली गई. इस के बाद नूर फिर से सो गई. जब नूर की आंखें खुलीं तो उसे सामने वाले कमरे में एक आदमी दिखा, जिस की उम्र करीब 45 साल थी पर उस के बाद सफेद थे. बाद में पता लगा कि उस का नाम सोहेल है. उस ने सफेद कुरतापायजामा पहन रखा था. वह बेहद खूबसूरत और स्मार्ट था. सामने खड़ा फोटोग्राफर उस के फोटो खींच रहा था. 

पता चला सोहेल को भी किसी ने इस पागलों वाले अस्पताल में भरती करा दिया था, जबकि वह भी पूरी तरह स्वस्थ था. वह अस्पताल डा. काशान का था. कुछ देर बाद डा. काशान वहां आया तो साहेल चीख पड़ा, ‘‘यह गलत है. आप सब धोखा कर रहे हैं. सही इंसान को यहां क्यों भरती कर रखा है?’’ डा. काशान ने इत्मीनान से कहा, ‘‘ये देखो.’’

इस के बाद उस ने रिमोट से एक स्क्रीन औन कर दी. स्क्रीन पर एक स्लाइड चलने लगी, जिस में सोहेल पागलों की तरह चीख रहा था, चिल्ला रहा था. 2 नर्सें उसे बांध रही थीं. वह देख कर सोहेल फिर चीखा, ‘‘यह सरासर झूठ है.’’

उस के इतना कहते ही डाक्टर के इशारे पर नर्स ने फिर से सोहेल को इंजेक्शन लगा कर सुला दिया. सोहेल को जब होश आया तो उस ने नूर को गौर से देखा. उसे याद आया कि यह लड़की तो वही है जो ईमान ट्रस्ट स्कूल में पढ़ती थी. सोहेल भी बीकौम करने के बाद स्कूल में मदद के तौर पर पढ़ाने जाता था. वैसे सोहेल भी एक अच्छे परिवार से ताल्लुक रखता था. उस के पिता की एक फैक्ट्री थी. फैक्ट्री में अचानक लगने वाली आग ने सब कुछ बरबाद कर दिया था. उस में उस के पिता की भी मौत हो गई थी. उस समय सोहेल 19 साल का था. उन दिनों वह ईमान ट्रस्ट के स्कूल में पढ़ा रहा था.

सोहेल के लिए पिता की मौत बहुत बड़ा सदमा थी. उस ने अपने कुछ हमदर्दों की मदद से इंश्योरेंस का क्लेम हासिल किया. फिर से फैक्ट्री शुरू करने के बजाय उस ने वे पैसे बैंक में जमा कर दिए. फैक्ट्री की जमीन भी किराए पर दे दी, जिस से परिवार की गुजरबसर ठीक से होती रहे. उस के 2 और भाई थे जो उस से छोटे थे. एक था कामिल जिस की उम्र 15 साल थी, उस से छोटा था 12 साल का जमीलभाइयों और मां की जिम्मेदारी सोहेल पर ही थी. यह जिम्मेदारी वह बहुत अच्छे से निभा रहा था. एमबीए के एडमिशन में अभी टाइम था, इसलिए वह ट्रस्ट के स्कूल में पढ़ाता रहा. इस स्कूल में ज्यादातर गरीब घरों के बच्चे पढ़ते थे. नूर को उस ने उसी स्कूल में देखा था. वह बेहद खूबसूरत थी. उस नूर को आज वह एक मेच्योर औरत के रूप में देख रहा था. वही बाल, वही आंखें, वही नैननक्श.

यह क्लिनिक शहर से बाहर सुनसान सी जगह पर था. चारदीवारी बहुत ऊंची थी. ऊपरी मंजिल की सब खिड़कियों में मोटीमोटी ग्रिल लगी हुई थी. इंतजाम ऐसा था कि कोई भी अपनी मरजी से बाहर नहीं निकल सकता था. पहले डा. काशान एक मामूली मनोचिकित्सक था. वह प्रोफेसर मुनीर के साथ काम करता था. फिर उस ने अपना खुद का क्लिनिक खोल लिया. लोगों को ब्लैकमेल करकर के वह कुछ ही दिनों में अमीर हो गया. इस के बाद उस ने शहर के बाहर यह क्लिनिक बनवा लिया.

इस इमारत में आनेजाने के खास नियम थे. एक अलग अंदाज में दस्तक देने से ही दरवाजे खुलते थे. काशान ने यहां 5 लोग रखे थे. 2 नर्सें, 2 कंपाउंडर, एक मैनेजर कम फोटोग्राफर जिस का नाम राहिल था. सही मायनों में राहिल ही उस क्लिनिक का कर्ताधर्ता था. डा. काशान उसे उस समय यतीमखाने से ले कर आया था, जब वह बहुत छोटा था. अपने यहां ला कर उस ने उस की परवरिश की. धीरेधीरे उसे क्लिनिक के सारे कामों में टे्रंड कर दिया. अब वह इतना सक्षम हो गया था कि काशान की गैरमौजूदगी में अकेला ही सारे मरीजों को संभाल लेता था. एक तरह से वह डा. काशान का दाहिना हाथ था.

एक दिन डा. काशान कुछ परेशान सा था. उस ने राहिल की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘राहिल, मुझे कुछ खतरा महसूस हो रहा है. शायद किसी को हमारे गोरखधंधे की खबर लग गई है. इसलिए मैं सोच रहा हूं कि सब कुछ खत्म कर दिया जाए.’’

राहिल घबरा कर बोला, ‘‘डाक्टर साहब, ऐसा कैसे हो सकता है? यह तो बहुत बड़ा जुल्म होगा.’’

‘‘तुम मेरे टुकड़ों पर पल कर यहां तक पहुंचे हो. तुम्हें सहीगलत की पहचान कब से हो गई. मैं जो कह रहा हूं, वही होगा. अगले हफ्ते यह काम हर हाल में करना है.’’ डाक्टर ने दहाड़ कर कहा.

 नूर को ऐसा लगा जैसे कोई उस का नाम पुकार रहा है. उस ने दरवाजे की जाली की तरफ देखा तो वहां सोहेल के सफेद बाल दिखाई दे रहे थे. यह पहला मौका था जब किसी ने उसे पुकारा था. वरना वहां इतना सख्त पहरा था कि कोई किसी से बात तक नहीं कर सकता था. चोरीछिपे बात कर ले तो अलग बात हैनूर को यहां आए दूसरा महीना चल रहा था. उसे अब लगने लगा था कि वह सचमुच ही पागल है. सोहेल ने फिर कहा, ‘‘नूर, मैं सोहेल हूं. याद है, जब मैं तुम्हें स्कूल में पढ़ाने आता था…’’

नूर ने कुछ याद करते हुए कहा, ‘‘हां, मुझे याद रहा है. आप हमारे स्कूल में पढ़ाते थे. मगर आप यहां कैसे?’’

‘‘मुझे एक साजिश के तहत यहां डाला गया है. मुझे लगता है कि तुम भी किसी साजिश का शिकार हो कर यहां पहुंची हो. इस बारे में मैं तुम से बाद में बात करूंगा.’’

नूर सोच में पड़ गई. उस के दिमाग में परिवार और कारोबार की पुरानी बातें घूमने लगीं. उस के दोनों बेटे सफदर और असगर ने कालेज के जमाने से ही पर निकालना शुरू कर दिया था. दौलत के साथ सारी बुराइयां भी उन दोनों में आती गईं. नूर उन्हें समझाने की बहुत कोशिश करती लेकिन उन पर कुछ असर नहीं हुआ. दूसरी तरफ उस का टेक्सटाइल मिल का बिजनैस भी आसान नहीं था. उस में भी उसे सिर खपाना पड़ता था. हालात बुरे से बुरे होते गए. अब दोनों बेटों ने घर पर शराब भी पीनी शुरू कर दी थी. रोज नईनई लड़कियां घर पर दिखाई देतीं.

नूर अगर ज्यादा जिरह करती या उन्हें कम पैसे देती तो घर की कीमती चीजें गायब होने लगतीं. अगर वह मेनगेट बंद करती तो पीछे के दरवाजे से निकल जाते. यहां तक कि उस के जेवर भी गायब होने लगे थे. जैसेतैसे उन दोनों ने ग्रैजुएशन किया और मां के सामने तन कर खड़े हो गए, ‘‘अम्मी, अब हम पढ़लिख कर इस काबिल हो गए हैं कि अपना बिजनैस संभाल सकें.’’

‘‘अच्छा, ठीक है. कल से तुम औफिस आओ. मैं देखती हूं कि तुम दोनों को क्या काम दिया जा सकता है.’’ नूर ने कहा.

बेटी हुमा भी भाइयों से किसी तरह पीछे थी. उस ने भी भाइयों की देखादेखी मौडर्न कल्चर सीख लिया था. रोज उस के बौयफ्रैंड बदलते थे. नूर कमाल के बिना अपने को बेहद अकेला और कमजोर समझने लगी थी. अब हालात उस के काबू से बाहर होते दिख रहे थे. मजबूर हो कर वह बेटी से बोली, ‘‘बेटा, जिसे तुम पसंद करती हो, उसे मुझ से मिलवाओ. अगर वह ठीक होगा तो उसी से तुम्हारी शादी कर दूंगी.’’

हुमा दूसरे दिन ही एक लड़के को ले आई, जिस का नाम अहमद था. वह शक्ल से ही मक्कार नजर आ रहा था. उस के मांबाप नहीं थे, चचा के पास रहता था. बीकौम कर के नौकरी की तलाश में था. हुमा के दोनों भाई इस लड़के से शादी के खिलाफ थे. नूर कोई नया तमाशा नहीं करना चाहती थी. उस ने बेटों को समझाया. 4 लोगों को जमा कर के बेटी का निकाह अहमद से कर दिया.

बेटी ने गरीब ससुराल जाने से साफ मना कर दिया. इसलिए अहमद भी घरजंवाई बन कर रहने लगा. असगर और सफदर तो बराबर औफिस जा रहे थे. काम भी सीख रहे थे पर पैसे मारने में कोई मौका नहीं छोड़ते थे. धीरेधीरे असगर मैनेजर की पोस्ट पर पहुंच गया. इस के बाद तो वह बड़ीबड़ी रकमों के घपले करने लगा, जिस में सफदर उस का साथ देता था. हुमा के कहने पर अहमद को भी नौकरी देनी पड़ी. हालात दिनबदिन खराब हो रहे थे. कंपनी लगातार घाटे में चलने लगी.

तब एक दिन नूर ने असगर, सफदर, हुमा और अहमद चारों को बैठा कर बहुत समझाया. बिजनैस की ऊंचनीच बताईं. आमदनी के गिरते ग्राफ के बारे में उन से बात की. उन चारों ने सारा दोष नूर के सिर जड़ दिया. इतना ही नहीं उन्होंने यहां तक कह दिया, ‘‘आप का काम करने का तरीका गलत है. अभी तक आप पुरानी टेक्नोलौजी से काम कर रही हैं. एक बार नए जमाने के तकाजे के मुताबिक सब कुछ बदल दीजिए, फिर देखिए आमदनी में कैसी बढ़त होती है.’’

2-3 दिन तक इस मामले को ले कर उन के बीच खूब बहस होती रही. पुराने मैनेजर भी शामिल हुए. वे नूर का साथ दे रहे थे. चौथे दिन बड़े बेटे ने फैसला सुना दिया, ‘‘अम्मी, अब आप बिजनैस संभालने के काबिल नहीं रहीं. अब आप की उम्र हो गई है. लगता है, आप का दिमाग भी काम नहीं कर रहा. ऐसे में आप आराम कीजिए, बिजनैस हम संभाल लेंगे.’’

इतना सुनते ही नूर गुस्से से फट पड़ी, ‘‘तुम में से कोई भी इस काबिल नहीं है कि इस बिजनैस के एक हिस्से को भी संभाल सके. मैं ने सब कुछ तुम्हारे बाप के साथ रह कर सीखा था. तब कहीं जा कर मैं परफेक्ट हुई. जब तुम लोग भी इस लायक हो जाओगे तो मैं सब कुछ तुम्हें खुद ही सौंप दूंगी.’’

बच्चे इस बात पर राजी नहीं थे. माहौल में तनातनी फैल गई. फिर योजना बना कर बच्चों ने नूर को पागलखाने भेजने की योजना बनाई. इस संबंध में उन्होंने डा. काशान से बात की. वह मोटा पैसा ले कर किसी को भी पागल बना देता था. नूर के बच्चों ने नशीला जूस पिला कर उसे डा. काशान के क्लिनिक पहुंचा दिया. सारी कहानी सुन कर सोहेल ने कहा, ‘‘यह सब एक साजिश है. तुम्हारे बच्चों ने बिजनैस हड़पने के लिए तुम्हें पागलखाने में दाखिल करा दिया और डाक्टर ने तुम्हें ऐसी दवाएं दीं कि तुम पागलों जैसी हरकतें करने लगीं. मैं डा. काशान को अच्छी तरह समझ गया हूं. तुम घबराओ मत. मैं जरूर कुछ करूंगा. मेरी कहानी भी कुछ तुम्हारे जैसी ही है, बाद में कभी सुनाऊंगा.’’

उस क्लिनिक में शमा नाम की 24-25 साल की एक खूबसूरत लड़की भी कैद थी. सोहेल ने उस के बारे में बताया कि यह एक बहुत बड़े जमींदार की बेटी है. एक दुर्घटना में इस के मांबाप का इंतकाल हो गया. मांबाप ने शमा की शादी तय कर दी थी. इस से पहले कि वह उस की शादी करते, दोनों चल बसे. उन की मौत के बाद चाचा ने उन की प्रौपर्टी पर कब्जा करने के लिए शमा को यहां भरती करा दिया. वह जवान और मजबूत इच्छाशक्ति वाली थी. दवाएं देने के बाद भी जब उस पर पागलपन नहीं दिखा तो डा. काशान ने राहिल से कहा कि शमा को दवाएं देने के साथ बिजली के शाक भी दें. 

ये सारे काम राहिल करता था. 2-4 बार शाक देने के बाद राहिल के दिल में शमा की बेबसी और मासूमियत देख कर मोहब्बत जाग उठी. उस ने उसे शाक देना बंद कर दिया. राहिल ने शमा को बताया कि उस का सगा चाचा ही उसे नशे की हालत में यहां छोड़ गया था और उसे पूरी तरह पागल बनाने के उस ने पूरे 20 लाख दिए थे. सारी बातें सुन कर शमा रो पड़ी. तनहाई की मोहब्बत और हमदर्दी ने रंग दिखाया और वह राहिल से प्यार करने लगी. राहिल के लिए यह मोहब्बत किसी अनमोल खजाने की तरह थी. उसे जिंदगी में कभी किसी का प्यार नहीं मिला था. उस की आंखों में एक अच्छी जिंदगी के ख्वाब सजने लगे. पर उस के लिए इस जिंदगी को छोड़ना नामुमकिन था

वह डा. काशान को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता था. अगर जाता भी तो उसे ढूंढ कर मार दिया जाता. क्योंकि काशान के गुनाह के खेल के सारे राज वह जानता था. उस की जबान खुलते ही काशान बरबाद हो जाता. उस ने सोचा कि उसे तो मरना ही है, क्यों शमा की जिंदगी बचा ली जाए. उस ने कहा, ‘‘सुनो शमा, मैं तुम्हें यहां से निकाल दूंगा. तुम अपने चाचा के पास चली जाओ.’’

शमा लरज गई. उस ने तड़प कर राहिल का हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘‘मैं कहीं नहीं जाऊंगी. मैं अब आप के साथ ही जिऊंगी और मरूंगी.’’

राहिल को तो जैसे नई जिंदगी मिल गई. उस ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें एक राज की बात बता रहा हूं. डा. काशान ने इस क्लिनिक को तबाह करने का हुक्म दिया है, यहां कोई नहीं बचेगा.’’

‘‘राहिल, तुम इतने पत्थरदिल नहीं हो सकते. तुम इस जुर्म का हिस्सा नहीं बनोगे. यह 17 लोगों की जिंदगी का सवाल है. तुम्हें मेरी कसम है. तुम ऐसा हरगिज नहीं करना.’’ वह बोली.

 ‘‘मैं पूरी कोशिश करूंगा कि यह काम करूं, पर उस से पहले मैं तुम्हें एक महफूज जगह पहुंचा देना चाहता हूं. वहां पहुंचा कर मैं तुम से मिलता रहूंगा. फोन पर बात भी करता रहूंगा.’’ राहिल ने कहा. दूसरे दिन ही मौका देख कर उस ने बहुत खामोशी से शमा को लांड्री के कपड़े ले जाने वाली गाड़ी में कपड़ों के नीचे छिपा कर क्लिनिक से निकाल दिया. साथ ही एक फ्लैट का पता बता कर उसे उस की चाबी दे दी.

शमा सब की नजरों से बच कर उस फ्लैट तक पहुंच गई. यह फ्लैट राहिल का ही था पर इस के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. वहां खानेपीने का सब सामान था. राहिल की दी हुई दवाओं से अब शमा की तबीयत भी ठीक हो रही थी. राहिल ने उसे बताया कि वह डा. काशान का क्लिनिक तबाह कर के बाहर जाने की फिराक में है. डा. काशान ने मरीजों के रिश्तेदारों को सब बता कर उन से काफी पैसे ऐंठ लिए हैं. किसी को भी उन की मौत से कोई ऐतराज नहीं है.

शमा के क्लिनिक से गायब हो जाने के बाद उस की गुमशुदगी की 1-2 दिन चर्चा रही. डा. काशान वैसे ही परेशान चल रहा था. पता चला कि शमा अपने घर नहीं पहुंची है. पर उस के चाचा के पास से कोई खबर आने पर काशान निश्चित हो कर बैठ गया. शमा की मोहब्बत ने राहिल को पूरी तरह बदल दिया था. बचपन से वह डा. काशान के साथ था. इस बीच उस के सामने 30 मरीज दुनिया से रुखसत हो चुके थे. जिस किसी को मारना होता था, उसे एक इंजेक्शन दे दिया जाता था, वह पागलों जैसी हरकतें करने लगता था. उस के 12 घंटे बाद डा. काशान मरीज को एक और इंजेक्शन लगाता. उस इंजेक्शन के लगाने के कुछ मिनट बाद ही मरीज ऐंठ कर खत्म हो जाता.

मौत इतनी भयानक होती थी कि राहिल खुद कांप जाता था. डा. काशान मरीज की लाश डेथ सर्टिफिकेट के साथ उस के रिश्तेदारों को सौंप देता था. जिस की एवज में वह उन से एक मोटी रकम वसूल करता थाशमा की मोहब्बत ने राहिल के अंदर के इंसान को जगा दिया था. 17 लोगों को एक साथ मारना उस के वश की बात नहीं थी. उस ने सोचा कि अगर वह पुलिस को खबर करता है तो वह खुद भी पकड़ा जाएगा. यह दरिंदा तो पैसे दे कर छूट जाएगा.

डा. काशान ने क्लिनिक खत्म करने की सारी जिम्मेदारी राहिल को सौंप दी थी. राहिल और क्लिनिक में काम करने वालों को काशान ने अच्छीखासी रकम दे दी थी. उसी रात क्लिनिक उड़ाना था. डा. काशान ने अपनी पूरी तैयारी कर लीरकम वह पहले ही बाहर के बैंकों में भेज चुका था. 10 हजार डौलर वह अपने साथ ले जा रहा था. रात 2 बजे उस की फ्लाइट थी. वह बैठा हुआ बड़ी बेचैनी से तबाही की खबर मिलने का इंतजार कर रहा था. तभी 8 बजे उस के मोबाइल पर राहिल का फोन आया, ‘‘बौस, यहां एक बड़ा मसला हो गया है.’’

‘‘कैसा मसला? जो भी है तुम उसे खुद सौल्व करो.’’ डा. काशान ने उस से कहा.

‘‘मैं नहीं कर सकता. आप का यहां आना जरूरी है, नहीं तो आज रात के प्लान पर अमल नहीं किया जा सकेगा. मैं आप को फोन पर कुछ नहीं बता सकता.’’ राहिल ने बताया.

डा. काशान ने सोचा आज की रात क्लिनिक बरबाद होना जरूरी है, क्योंकि कुछ लोगों को इस की भनक मिल चुकी थी. कहीं कोई मसला न खड़ा हो जाए, सोचते हुए उस ने अपना एक सूटकेस कार में रखा और क्लिनिक की तरफ रवाना हो गया. सूटकेस में 10 हजार डौलर और अहम कागजात थे. कार उस ने क्लिनिक के गेट पर ही खड़ी कर दी. वह राहिल के साथ क्लिनिक के औफिस में आया तो ठिठक गया. सामने नर्सें, कंपाउंडर और गार्ड नीचे फर्श पर पड़े थे. डाक्टर ने राहिल की तरफ मुड़ना चाहा तो उसे कमर में चुभन का अहसास हुआ. कुछ ही देर में वह बेहोश हो गया. उस के बाद राहिल बाहर आया. बाहर वाले गार्ड को भी वह बेहोश कर के अंदर ले गया.

प्लान के मुताबिक शमा भी वहां पहुंच गई. उस ने पूछा, ‘‘सब ठीक है?’’

राहिल ने जवाब दिया, ‘‘सब पूरी तरह काबू में हैं.’’

उस ने मास्क लगा कर लोगों को एक जगह जमा कर लिया. ये वे जालिम और कातिल लोग थे, जिन्होंने मजबूर और बेबस लोगों को तड़पातड़पा कर मारा था. शमा ने पूछा, ‘‘अब इन के साथ क्या करोगे?’’

‘‘वही, जो इन्होंने दूसरों के साथ किया है,’’ राहिल आगे बोला, ‘‘चलो शमा, जल्दी आओ. हमें बाकी लोगों को यहां से आजाद करना है.’’

चाबियां राहिल के पास थीं. पहले उस ने ऊपर के लोगों को एकएक कर आजाद किया और उन्हें धीमी आवाज में सारे हालात समझा दिए. उन्हें सलाह दी कि अपने रिश्तेदारों से बच कर किसी टीवी चैनल में चले जाओ. जब चैनल वाले तुम्हारी कहानी प्रसारित करेंगे, पुलिस खुदबखुद मदद को जाएगी. सभी 17 मरीज आजाद हो गए. इन में नूर और सोहेल भी थे. सारे मरीज डरेसहमे जरूर थे लेकिन आजादी पर खुश नजर रहे थे. फिर राहिल औफिस में आया, जहां डा. काशान और उस के साथी बेहोश पड़े थे. उस ने सब की तलाशी ली. उन के पास हजारों रुपए मिले. वह सब उस ने अपने पास रख लिए. डा. काशान के सूटकेस से 10 हजार डौलर निकले जो उस ने सुरक्षित रख लिए. बाकी की सारी लोकल करेंसी मरीजों में बांट दी.

सभी मरीजों के क्लिनिक से निकल जाने के बाद वह औफिस के पास वाले कमरे में आया, जहां बड़ेबड़े डिब्बे रखे थे, जिन से एक सुतली निकल कर बाहर जा रही थी. सुतली को आग दिखा कर राहिल शमा का हाथ पकड़ कर फौरन इमारत से बाहर गया. क्योंकि इमारत को जला कर खाक करने का इंतजाम वह पहले ही कर चुका थाबाहर डा. काशान की कार खड़ी थी. उस ने सूटकेस उठा कर आग में फेंक दिया. कार की चाबी वह पहले ही ले चुका था. जैसे ही वे दोनों कार में बैठ कर कुछ दूर पहुंचे, बड़े जोर का धमाका हुआ. पूरी इमारत आग की लपटों में घिर गई.

नूर और सोहेल साथसाथ बाहर आए और एक तरफ चल पड़े. सोहेल ने नूर से कहा, ‘‘तुम अभी मेरे साथ चलो. दोनों सोचसमझ कर कोई कदम उठाएंगे.’’ बाकी के 15 लोग बस में बैठ कर एक टीवी चैनल के स्टूडियो की तरफ रवाना हो गए. सोहेल ने एक टैक्सी रोकी. रास्ते से कुछ खानेपीने का सामान लिया और एक शानदार बिल्डिंग के सामने उतरे. इस बिल्डिंग की दूसरी मंजिल पर सोहेल का एक शानदार फ्लैट था

दरवाजे पर सोहेल ने कुछ नंबर बोल कर अनलौक कहा. दरवाजा क्लिक की आवाज के साथ खुल गया. यह आवाज से खुलने वाला दरवाजा था. दोनों ने फ्रैश हो कर खाना खाया.वहां पहुंच सोहेल ने नूर को अपनी कहानी सुनाई. पिता की जमीन पर सोहेल ने एक होजरी की फैक्ट्री लगाई थी. धीरेधीरे उस का बिजनैस अच्छी तरह चल निकला. उस ने अपने दोनों भाइयों को भी पढ़ालिखा कर अपने साथ लगा लिया. 

सोहेल आमदनी का एक चौथाई हिस्सा गरीब और मजबूर लोगों में बांट देता था और एक चौथाई अपने भाइयों को देता था, जो एक बड़ी रकम थी. पर भाइयों की नीयत बिगड़ गई. बिजनैस पर कब्जा करने के लिए उन्होंने सोहेल को नशीली चीज पिला कर उसे डा. काशान के क्लिनिक में भरती करा दिया. उस दिन सोहेल ने इतने सालों के बाद नूर से अपनी मोहब्बत का इजहार किया. नूर ने शरमा कर सिर झुका लिया.

सारे मरीज टीवी चैनल के स्टूडियो पहुंचे और जब उन्होंने अपनी दास्तान सुनाई तो पूरे शहर में हंगामा मच गया. आईजी पुलिस ने मीडिया में खबर आते ही उन में से कुछ मरीजों के रिश्तेदारों के भागने से पहले ही दबिश डलवा कर हिरासत में ले लिया. हजारों की संख्या में लोग टीवी चैनल के सामने जमा हो गएआईजी ने वहां पहुंच कर वादा किया, ‘‘इन मजबूर और बेबस लोगों को जरूर इंसाफ मिलेगा. जो बीमार हैं, उन का इलाज कराया जाएगा. आरोपियों को हिरासत में लिया जा चुका है और उन के खिलाफ सख्त काररवाई की जाएगी.’’

दूसरे दिन यह सारी कहानी आम हो गई. पुलिस डा. काशान के क्लिनिक पर भी पहुंची. वहां राख और हड्डियों के अलावा कुछ नहीं मिला. क्या हुआ? कैसे हुआ? क्यों हुआ? यह किसी भी मरीज को पता नहीं था. नूर जब दूसरे दिन भी घर नहीं पहुंची तो सफदर, असगर और हुमा बेहद परेशान हो गए. डर से उन का बुरा हाल था. तीसरे दिन उन्हें नूर का फोन आया. उस ने उन्हें एक होटल में मिलने के लिए बुलाया.

नूर को सहीसलामत देख कर उन तीनों की हालत खराब हो गई. वे सब रोरो कर माफी मांगने लगे. नूर ने कहा, ‘‘तुम मेरी औलाद हो. मैं तुम्हें माफ करती हूं पर एक शर्त पर. कंपनी के 55 प्रतिशत शेयर मेरे पास रहेंगे और 45 प्रतिशत तुम तीनों के. अगर तुम्हें मंजूर है तो मैं घर भी तुम्हारे नाम कर देती हूं. नहीं तो अगली मुलाकात अदालत में होगी. सोचने के लिए 2 दिन का टाइम दे रही हूं.’’ यह सब सोहेल का प्लान था.

2 दिन बाद उन लोगों ने इनकार में जवाब दिया. क्योंकि 55 प्रतिशत शेयर नूर के पास होने से वह उन्हें किसी भी बात के लिए मजबूर कर सकती थी. नूर ने पूरी तैयारी कीनूर ने सीनियर मनोचिकित्सक से दिमागी तौर पर सही होने का सर्टिफिकेट भी ले लिया. इस के बाद उस ने अदालत में केस डाल दिया. सोहेल पूरी तरह से उस के साथ था. उस के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी. एक अच्छा वकील भी उस ने कर लिया.

उस दिन अदालत में बहुत हुजूम था. नूर बहुत अच्छे से तैयार हो कर आई थी. अदालत में एक घंटे बहस चलती रही. सबूतों और दलीलों पर जज ने फैसला सुनाया कि नूर पूरी तरह से सेहतमंद है और अपनी कंपनी बहुत अच्छे से चला सकती हैं. इसलिए तीनों औलादें फैक्ट्री से बेदखल की जाती हैं. एक बात और ध्यान रखी जाए कि नूर की शिकायत पर उन्हें जेल भेज दिया जाएगा. तीनों नाकाम हो कर अदालत से बाहर निकले. पहले ही उन का इतना पैसा खर्च हो चुका था. वे पैसेपैसे को मोहताज हो गए. नूर सोहेल के साथ उस के फ्लैट में चली गई.

सोहेल ने भी अपने भाइयों को 5-5 करोड़ और घर दे कर अपने बिजनैस से अलग कर दिया. वे लोग तो इतने डरे हुए थे कि पता नहीं सोहेल उन के साथ क्या करेगा. पैसे ले कर खुशीखुशी वे अलग हो गए. दूसरे दिन शाम को चंद दोस्तों की मौजूदगी में नूर और साहेल ने निकाह कर लिया. नूर और सोहेल की बरसों की आरजू पूरी हुई. नूर को एक चाहने वाला जीवनसाथी मिल गया. नूर ने सोहेल से कहा, ‘‘सोहेल मेरे बच्चे अब बहुत भुगत चुके हैं. उन्हें बहुत सजा मिल चुकी है. इसलिए वह फैक्ट्री में उन के नाम कर के सुकून की जिंदगी जीना चाहती हूं.’’

फिर नूर ने उन्हें बुला कर फैक्ट्री उन के सुपुर्द कर दी. पुराने मैनेजर को बहाल कर दिया और शर्त लगा दी कि चौथाई आमदनी गरीब लोगों में बांटी जाएगी. अगर इस में जरा सी भी गलती हुई तो अंजाम के वे खुद जिम्मेदार होंगे. सारी बातें पक्के तौर पर लिखी गईं. नूर ने एक धमकी और दे दी कि कभी भी उस की और सोहेल की अननेचुरल डेथ होती है तो उस की जिम्मेदारी उन तीनों की ही होगी.

दूसरे दिन नूर और सोहेल हनीमून मनाने के लिए एक हिल स्टेशन की तरफ निकल गए. वहां पर नूर के मोबाइल में कुछ खराबी गई थी. माल रोड पर घूमते हुए दोनों एक मोबाइल की दुकान पर पहुंचे. दुकानदार को देख कर दोनों चौंक गए. दुकानदार का भी चेहरा उतर गया. वह जल्दी से बोला, ‘‘मैं आप की क्या खिदमत कर सकता हूं?’’

‘‘कोई अच्छा सा मोबाइल दिखाइए.’’ सोहेल ने कहा.

एक अच्छा सा मोबाइल पसंद कर के सोहेल ने पैसे देते हुए कहा, ‘‘आप हमारे एक पहचान वाले से बहुत मिल रहे हैं. क्या मैं आप नाम जान सकता हूं?’’

‘‘मेरा नाम नजीर हसन है.’’

नूर ने सोहेल का हाथ दबाते हुए कहा, ‘‘मेरा खयाल है यह वो नहीं है. आइए चलें. शायद आप को गलतफहमी हुई है.’’

सोहेल ने बाहर निकल कर कहा, ‘‘नूर वह राहिल था.’’‘‘आप ठीक कह रहे हैं. पर उसी ने तो हम सब को बचाया है. अब वह बहुत बदल गया है.’’ सोहेल ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘सच कह रही हो. उसे भी तो एक मौका मिलना चाहिए.’’

  नूर और सोहेल पुरसकून हो कर वहां से चले गए एक लंबी और खुशहाल जिंदगी गुजारने के लिए.

 

प्रेमिका से शादी करने के लिए पति ने दो चाकुओं से किया पत्नी का कत्ल

आशिकमिजाज कमलेश जानता था कि पिंकी के रहते वह दूसरी शादी कतई नहीं कर सकता. इस के लिए उस ने योजना तो बहुत बढि़या बनाईलेकिन पुलिस ने उस की होशियारी को धता बता कर उसे उस के अंजाम तक पहुंचा ही दिया  राहुल इंदौर के एयरोड्रम रोड पर स्थित कृष्णबाग कालोनी में रहने वाले अपने मामा मनोहर पांचाल के यहां शादी का कार्ड देने पहुंचा 

तो घर में सन्नाटा छाया हुआ था. पहली मंजिल पर जा कर उस ने कमरे का दरवाजा खटखटाया तो अंदर कोई हलचल नहीं सुनाई दी. कुछ देर उस ने इंतजार किया. जब दरवाजा नहीं खुला तो उसे हैरानी हुई. क्योंकि दरवाजे के बाहर की कुंडी खुली थी. इस का मतलब घर खाली नहीं  था

राहुल ने एक बार फिर दरवाजा खटखटाया. इस बार भी दरवाजा नहीं खुला तो उस ने दरवाजे पर धक्का दिया. अंदर से सिटकनी बंद नहीं थी, इसलिए दरवाजा खुल गया. वह अंदर कमरे में पहुंचा तो कोई दिखाई नहीं दिया. उस ने बेडरूम में झांका. वहां भी कोई दिखाई नहीं दिया तो वह किचन की ओर बढ़ा. वहां उस ने जो देखा, उस की रूह कांप उठी. उस के मामा के बेटे कमलेश की पत्नी खून से लथपथ फर्श पर पड़ी थी. उसी के ऊपर कमलेश औंधा पड़ा था.

यह भयानक दृश्य देख कर वह घबरा तो गया, लेकिन धैर्य नहीं खोया. उस ने तुरंत 108 नंबर पर एंबुलेंस के लिए फोन किया. इस के बाद उस ने अपने कुछ दोस्तों को फोन किया. यह 17 फरवरी, 2014 की बात है. उस समय शाम के साढ़े 4 बज रहे थे. राहुल को पता था कि उस समय उस के मामा मनोहर पांचाल ड्युटी पर होंगे. वह हाईकोर्ट जज की गाड़ी चलाते थे. मामी किरण पांचाल के पिता की मौत हो गई थी, इसलिए वह अपने मायके गई हुई थीं. उन का मायका बड़नगर के पास लोहाना गांव में था. बाकी बच्चे स्कूल गए हुए थे

थोड़ी ही देर में राहुल के दोस्त तो गए, लेकिन एंबुलेंस नहीं आई. राहुल ने कमलेश और पिंकी की नब्ज टटोली. पता चला पिंकी मर चुकी है. लेकिन कमलेश की सांस अच्छी तरह चल रही थी. वह सिर्फ बेहोश था. वे कार से कमलेश को नजदीक के एक प्राइवेट अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने जांच कर के बताया कि यह पूरी तरह से स्वस्थ है. शायद घबरा गया है, जिस से चक्कर खा कर गिर गया है.

लेकिन राहुल और उस के दोस्तों को डाक्टरों की इस बात पर भरोसा नहीं हुआ, इसलिए वे कमलेश को दूसरे बड़े सीएचएल अस्पताल ले गए, जहां उसे आईसीयू में भरती करा दिया. एक राहुल और उस के दोस्त कमलेश को इलाज के लिए अस्पताल ले कर चले गए थे, जबकि दूसरी ओर इस घटना की सूचना थाना एयरोड्रम पुलिस को दे दी गई थी. मामला हत्या का था, इसलिए सूचना मिलते ही थानाप्रभारी मंजू यादव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गईं

लाश निरीक्षण और पूछताछ में उन्हें मामला रहस्यमय लगा, इसलिए थानाप्रभारी ने अधिकारियों को सूचना देने के साथ जरूरी साक्ष्य एकत्र करने के लिए एफएसएल अधिकारी डा. सुधीर शर्मा को बुला लिया था. निरीक्षण के दौरान सुधीर शर्मा ने देखा कि वहां 2 चाकू पडे़ हैं. दोनों ही चाकू अपराध को अंजाम देने वाले न हो कर किचन के उपयोग में लाए जाने वाले थे. उन में से एक चाकू टूटा हुआ था. जो चाकू टूटा था, उस पर खून नहीं लगा था. इस से अंदाजा लगाया गया कि हमला करने में वह चाकू टूट गया होगा, तब हत्यारे ने दूसरा चाकू ले कर हत्या की होगी, क्योंकि दूसरा चाकू खून से लथपथ था. डा. सुधीर शर्मा ने घटनास्थल का निरीक्षण कर के अंगुलियों के निशान, खून के नमूने और चाकू वगैरह अपने कब्जे में ले लिए तो पुलिस ने अपना काम शुरू किया. 

जांच में पुलिस ने देखा कि कमरे का सामान बिखरा हुआ था. अलमारियां खाली पड़ी थीं. पुलिस ने इधरउधर देखा तो पलंग के नीचे कुछ गहने उसे मिल गए. मृतका शरीर पर भी सारे गहने मौजूद थे. इस से पुलिस और एफएसएल अधिकारी डा. सुधीर शर्मा ने अनुमान लगाया कि वारदात को किसी जानपहचान वाले ने ही अंजाम दिया है. शायद हत्या उस ने पहचाने जाने की वजह से की है. पुलिस लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रही थी कि सूचना पा कर मनोहर पांचाल गए थे. पुलिस ने उन से कहा कि वह देख कर बताएं कि घर का क्याक्या सामान गायब है. इस पर उन्होंने कहा, ‘‘घर का सामान तो गायब नहीं लगता, रही बात गहनों की तो उस के बारे में मैं ज्यादा कुछ बता नहीं सकता. लेकिन जो गहने मिले हैं, वे पूरे नहीं हैं. हो सकता है, घर में कहीं और रखे हों या अपराध को अंजाम देने वाले अपने साथ ले गए हों.’’

लूट के बारे में मनोहर से ज्यादा कुछ जानकारी नहीं मिल सकी थी. औपचारिक पूछताछ के बाद पुलिस ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद मामले की जांच आगे बढ़ाने के लिए कमलेश से पूछताछ करना जरूरी था. क्योंकि राहुल द्वारा मिली जानकारी के अनुसार वह लाश के पास ही बेहोश मिला था. इसलिए घटना के बारे में उसी से कुछ पता चल सकता था. उस से पूछताछ करने पुलिस अस्पताल पहुंची तो पता चला कि वह अभी भी बेहोश है. पुलिस ने डाक्टरों से पूछा तो उन्होंने बताया कि वह शारीरिक रूप से तो स्वस्थ है. लेकिन शायद घटना से घबरा गया है, इसलिए बेहोश है. पुलिस बिना पूछताछ के ही लौट आई.

घटना की जांच के लिए थानाप्रभारी मंजू यादव ने सबइंसपेक्टर राजेंद्र सिंह दंडोत्या और भीम सिंह रघुवंशी के नेतृत्व में एक टीम बना कर लगा दी. इन दोनों सबइंसपेक्टरों ने जो जानकारी जुटाई, उस के अनुसार मृतका पिंकी का पति कमलेश पांचाल इंदौर की कृष्णबाग कालोनी के मकान नंबर 126 में रहने वाले मनोहर पांचाल का बेटा था. बीकौम करने के बाद वह एक काल सेंटर में नौकरी करने लगा था. अभिनय का शौकीन कमलेश कालेज के नाटकों में भी भाग लेता रहा था. नाटकों में भाग लेने की ही वजह से वह काफी फ्रैंक हो गया था.

हर किसी से वह बेझिझक बात कर लेता था. ऐसे में उसे किसी से भी दोस्ती करने या बातचीत में जरा भी हिचक नहीं होती थी. यही वजह थी कि उस की कालेज की तमाम लड़कियों से तो दोस्ती हो ही गई थी, काल सेंटर में साथ काम करने वाली लडकियों से भी दोस्ती हो गई थी. इन लड़कियों से अकसर वह फोन पर बातें करता रहता थाकमलेश शादी लायक हो गया था. वह नौकरी भी कर रहा था, इसलिए उस की शादी के लिए रिश्ते आने लगे थे. मनोहर और किरण भी बेटे की शादी करना चाहते थे, इसलिए वे बेटे के लिए लड़की देखने लगे थे. काफी खोजबीन के बाद आखिर उन्होंने नागदा के रहने वाले नंदकिशोर पांचाल की बेटी प्रियंका उर्फ पिंकी को पसंद कर लिया था. 

जैसा कमलेश के मांबाप चाहते थे, पिंकी वैसी ही पढ़ीलिखी, खूबसूरत, सुशील और समझदार घरेलू लड़की थी. सारी बातचीत के बाद पूरी रस्मोरिवाज के साथ 12 मई, 2013 को कमलेश और पिंकी का धूमधाम से विवाह हो गया. पिंकी बाबुल के घर से विदा हो कर अपने सपनों के राजकुमार के घर गई. अब पिंकी को उस पल का इंतजार था, जो जिंदगी में सिर्फ एक बार आता है. वह पल गया, लेकिन उस का पति कमलेश उस का घूंघट उठा कर प्यार करने के बजाय उतनी रात को भी जाने किस से फोन पर बातें करने में लगा था. पिंकी को यह सब अच्छा तो नहीं लग रहा था, लेकिन संकोचवश वह कुछ कह नहीं पा रही थी. वह भले ही कुछ नहीं कह पा रही थी, लेकिन यह जरूर सोच रही थी कि ऐसा कौन सा खास आदमी है, जिस से वह उसे छोड़ कर फोन पर बातें करने में लगा है.

कमलेश ने सुहागरात तो मनाई, लेकिन उस में वह जोश नहीं था, जो होना चाहिए था. जिस की कसक पिंकी साफ महसूस कर रही थी. उस की यह कसक बढ़ती जा रही थी, क्योंकि कमलेश का लगभग रोज का वही नियम था. वह होता तो पिंकी के पास था, लेकिन बातें किसी और से करता रहता था. उस की बातें सुन जब पिंकी को लगा कि वह लड़कियों से बातें करता है तो उस की कसक और बढ़ गई. कमलेश की काल सेंटर की नौकरी कोई बहुत अच्छी नहीं थी, इसलिए वह किसी अच्छी नौकरी की तलाश में था. उसे एक एनजीओ में काम मिल गया तो उस ने काल सेंटर वाली नौकरी छोड़ दी. यह लगभग 6 महीने पहले की बात है.

उस एनजीओ की ओर से वह मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत लोगों को प्रशिक्षण देता था. उस ने अपना यह काम पूरी ईमानदारी और लगन से किया था. इसलिए उसे मुख्यमंत्री ने अवार्ड भी प्रदान किया था. एनजीओ से जुड़ने के बाद कमलेश फोन पर कुछ ज्यादा ही व्यस्त रहने लगा था. वह देर रात तक फोन पर बातें करता रहता था. पिंकी अकसर उकता कर सो जाती थी. पिंकी इस का पुरजोर विरोध कर रही थी. लेकिन कमलेश में कोई सुधार नहीं रहा था. तब पिंकी ने इस बात की शिकायत अपने सासससुर से ही नहीं, मांबाप से भी की. कमलेश के मांबाप ने जब उसे टोका तो यह बात उसे बड़ी नागवार लगी. पिंकी का इस तरह जिंदगी में दखल देना उसे अच्छा नहीं लगा. इस के बाद पतिपत्नी में तनाव रहने लगा

कमलेश पिंकी को इसलिए कुछ नहीं कह पाता था, क्योंकि उस के मांबाप बहू को बहुत प्यार करते थे. उन की बहू थी भी इस लायक. वह सासससुर का हर तरह से खयाल रखती थी. उन्हें हमेशा हाथों पर लिए रहती थी. ऐसी बहू की हत्या हो जाने से मनोहर और किरण बहुत परेशान थे, इसलिए वे केस को खोलने और हत्यारे को पकड़वाने के लिए पुलिस पर दबाव बनाए हुए थे. चूंकि वह ज्युडिशियरी से जुड़े थे, इसलिए पुलिस पर इस मामले को जल्द से जल्द खोलने का दबाव भी था.

कमलेश अगर अपना बयान दे देता तो पुलिस को हत्यारे तक पहुंचने में आसानी होती. इसलिए पुलिस उस से पूछताछ के लिए अस्पताल के चक्कर लगा रही थी. लेकिन पुलिस जब भी अस्पताल पहुंचती, पता चलता वह बेहोश है. जबकि डाक्टरों के अनुसार वह पूरी तरह से स्वस्थ था. अब पुलिस को उसी पर शक होने लगा. लेकिन पुलिस उस पर शक के आधार पर हाथ नहीं डाल सकती थी, क्योंकि उस के पिता हाईकोर्ट के जज की गाड़ी चलाते थे. जरा भी इधरउधर हो जाता तो पुलिस को जवाब देना मुश्किल हो जाता. इसलिए पुलिस उस के खिलाफ सुबूत जुटाने लगी.

 पुलिस ने सब से पहले उस के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. इस काल डिटेल्स से ऐसे तमाम नंबर मिले, जिन पर उस की लंबीलंबी बातें हुई थीं. पुलिस ने जब उन नंबरों के बारे में पता किया तो वे सभी नंबर लड़कियों के थे. इस से यह बात साफ हो गई कि वह काफी आशिकमिजाज लड़का था. थानाप्रभारी मंजू यादव की समझ में गया था कि कमलेश पुलिस की पूछताछ से बचने के लिए बेहोश और कमजोरी होने का नाटक कर रहा है. वैसे भी वह नाटकों में काम कर चुका था. कालेज के समय में उसे अभिनय सम्राट कहा जाता था. उसे नाटकों के लिए कई अवार्ड भी मिले थे. इसलिए मंजू यादव ने भी उस के साथ नाटक करने की योजना बनाई

वह सबइंसपेक्टर राजेंद्र सिंह दंडोत्या, भीम सिंह रघुवंशी और कुछ पुलिस वालों को साथ ले कर अस्पताल पहुंचीं. क्योंकि अब तक उन्हें कुछ ऐसे सुबूत मिल चुके थे, जिस से उन्हें लग रहा था कि पिंकी की हत्या कमलेश ने ही की है. इस की वजह यह थी कि कमरे में केवल उसी की अंगुली के निशान मिले थे. जांच के लिए कमलेश के खून से सने कपड़े और पलंग के नीचे से मिले जो गहने पुलिस ने बरमाद किए थे, उन पर जो खून के दाग लगे थे, वह पिंकी के खून के थे.

अपने शक को दूर करने के लिए पुलिस ने कमलेश की काल डिटेल्स से मिले एक नंबर पर उसी के फोन से फोन किया, जिस पर उस ने उसी रात काफी लंबीलंबी बातचीत की थी. फोन लगते ही दूसरी ओर से फोन रिसीव कर लिया गया था, इधर से बिना कुछ कहे ही दूसरी ओर से सीधे कहा गया, ‘‘कमलेश, तुम ने जो किया, वह ठीक नहीं किया. तुम बहुत ही गंदे आदमी हो. आखिर तुम ने अपनी पत्नी की हत्या कर ही दी. लेकिन अब इस मामले में मुझे मत फंसाना, क्योंकि इस में मेरी कोई भूमिका नहीं है. और हां, अब कभी मुझे भूल कर भी फोन मत करना.’’

इतना कह कर फोन रिसीव करने वाली लड़की ने फोन काट दिया था. पुलिस ने लड़की की यह बातचीत टेप कर ली थी. बाद में पुलिस ने उस  लड़की के बारे में पता किया तो वह बाणगंगा मोहल्ले की निकली. थानाप्रभारी मंजू यादव अपने साथियों के साथ सीएचएल अस्पताल के उस कमरे में जैसे ही पहुंचीं, जिस में कमलेश भरती था, उन्हें देख कर कमलेश तुरंत बेहोश हो गया. कमलेश की मां किरण उस की देखभाल के लिए वहीं थीं. पुलिस उन्हें बाहर भेज कर कमलेश से बात करने की कोशिश करने लगी. कमलेश बेहोशी का नाटक तो किए ही था, अब कराहने भी लगा.

थानाप्रभारी मंजू यादव भी कम नाटकबाज नहीं थीं. उन्होंने सच्चाई का पता लगाने के लिए एक योजना बनाई. उस योजना के तहत उन्होंने एक सिपाही को परदे के पीछे छिपा कर खड़ा कर दिया और एक मोबाइल फोन का वाइस रिकौर्ड चालू कर के कमलेश के बेड पर इस तरह रख दिया कि उसे पता नहीं चला. इस के बाद उन्होंने साथियों के साथ बाहर कर कमलेश की मां से कहा, ‘‘कमलेश अभी बयान देने लायक नहीं है. जब वह बयान देने लायक हो जाए, आप हमें सूचना भिजवा दीजिएगा. हम सभी कर बयान ले लेंगे.’’ 

इतना कह कर थानाप्रभारी मंजू यादव ने किरण को अंदर भेज दिया. मां के अंदर आते ही कमलेश को होश गया. उस ने तुरंत पूछा, ‘‘पुलिस वाले चले गए?’’ मां ने हां में सिर हिलाया तो वह उन से अच्छी तरह बातें करने लगा. उसे अच्छी तरह बातें करते देख परदे के पीछे छिप कर खड़े सिपाही ने मिसकाल दे कर थानाप्रभारी मंजू यादव को अंदर आने का इशारा कर दिया. वह साथियों के साथ तुरंत अंदर गईं. कमरे में अचानक पुलिस को देखते ही कमलेश फिर से बेहोशी का नाटक कर के कराहने लगा

मंजू यादव ने हंसते हुए पलंग पर छिपा कर रखे मोबाइल फोन को उठा कर रिकौर्ड हुई मांबेटे की बातचीत सुनाई तो कमलेश का कराहना बंद हो गया. उसे तुरंत अस्पताल से छुट्टी करा कर थानाप्रभारी मंजू यादव रानीसराय स्थित पुलिस मुख्यालय ले गईं. उन्होंने वहां वीडियोग्राफी की तैयारी पहले से ही करा रखी थीवीडियोग्राफी कराते हुए कमलेश से पूछताछ शुरू हुई. इस पूछताछ में उस ने पुलिस को भरमाने के लिए एक कहानी सुनाई, जो इस प्रकार थी.

कमलेश ने बताया कि 4-5 दिनों से काले रंग की एक पलसर मोटरसाइकिल से 2 लड़के मुंह पर कपड़ा बांध कर उस के घर के आसपास चक्कर लगा रहे थे. उस दिन वही दोनों लड़के उस के घर में घुस आए और उस के सिर पर डंडा मार कर उसे बेहोश कर दिया. इस के बाद उन्होंने लूटपाट की होगी. पिंकी ने विरोध किया होगा या उन्हें पहचान लिया होगा, जिस की वजह से उन्होंने उस की हत्या कर दी होगी. कमलेश की इस कहानी में कितनी सच्चाई है, मंजू यादव ने यह पता लगाने के लिए तुरंत सबइंसपेक्टर भीम सिंह रघुवंशी को कृष्णाबाग कालोनी स्थित कमलेश के घर भेजा. पूछताछ में कमलेश के पिता मनोहर पांचाल ने बताया कि कमलेश कह तो रहा था कि एक मोटरसाइकिल पर सवार 2 लड़के मुंह पर कपड़ा बांध कर घर की रेकी कर रहे थे.

तब उन्होंने मोहल्ले वालों से इस बारे में पता किया था. लेकिन मोहल्ले वालों का कहना था कि इस तरह की तो कोई मोटरसाइकिल दिखाई दी थी, लड़के. इस से उन्हें लगा कि कमलेश को भ्रम हुआ होगा. कमलेश की यह कहानी झूठी निकली तो पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के सुबूतों के आधार पर आगे की पूछताछ के लिए उसे 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. दूसरी ओर कमलेश के ससुर नंदकिशोर पांचाल ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिख कर निष्पक्ष जांच की गुहार की थी. उन का कहना था कि कमलेश के पिता मनोहर पांचाल हाईकोर्ट के जज की गाड़ी चलाते हैं, इसलिए कहीं मामले की जांच प्रभावित करा दें.

उन्होंने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में पिंकी की हत्या का आरोप सीधे कमलेश पर लगाया था. उन का कहना था कि बाकी तो सब ठीक था, लेकिन कमलेश के संबंध अन्य लड़कियों से थे. इसी वजह से वह पिंकी को नजरअंदाज करता था. पिंकी इस बात का विरोध कर रही थी, इसलिए कमलेश ने उस की हत्या कर दी है. नंदकिशोर के भाई यानी पिंकी के एक चाचा इंदौर में ही एरोड्रम रोड पर स्थित राजनगर में रहते थे. उन का नाम भी कमलेश था. वह प्रेस फोटोग्राफर थे. उन का घर पिंकी के घर से मात्र एक किलोमीटर दूर था. पिंकी ने उन से भी कमलेश से अन्य लड़कियों से दोस्ती की बात बताई थी. इसलिए उन्होंने भी पुलिस को बताया था कि उन की भतीजी की हत्या उन के दामाद कमलेश ने अन्य लड़कियों की वजह से उस से छुटकारा पाने के लिए की है.

तमाम सुबूत होने के बावजूद कमलेश अपनी बात पर अड़ा था. उस का कहना था कि पिंकी की हत्या उन्हीं दोनों लड़कों ने की है, जो उस के घर लूटपाट करने आए थे. जब पुलिस ने कहा कि सारे गहने तो घर में ही मिल गए हैं तो इस पर कमलेश ने कहा, ‘‘हो सकता है, उन्हें ले जाने का मौका मिला हो?’’ थानाप्रभारी मंजू यादव ने देखा कि कमलेश सीधे रास्ते पर नहीं रहा है तो उन्होंने अपने दोनों सबइंसपेक्टरों राजेंद्र सिंह दंडोत्या और भीम सिंह रघुवंशी से कहा, ‘‘यह सीधे सच्चाई बताने वाला नहीं है. इस के ससुर ने दहेज मांगने की जो रिपोर्ट दर्ज कराई है, उस के तहत इस के घर जा कर इस के पिता मनोहर, मां किरण और बहन को पकड़ लाओ. कल सभी को अदालत में पेश कर के जेल भिजवा दो.’’

थानाप्रभारी की इस धमकी पर कमलेश कांप उठा. उस ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘प्लीज, मेरे मातापिता और बहन को मत परेशान कीजिए. मेरे ससुर ने झूठा आरोप लगाया है. हम लोगों ने कभी दहेज मांगा ही नहीं है.’’

‘‘तो सच क्या है?’’ थानाप्रभारी मंजू यादव ने पूछा, ‘‘पिंकी की हत्या किस ने और क्यों की है?’’

‘‘उस की हत्या मैं ने की है. इस में मेरे घर वालों का कोई हाथ नहीं है.’’ कमलेश ने कहा

इस तरह थानाप्रभारी मंजू यादव ने कमलेश से पिंकी की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने पिंकी की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी. कमलेश कालेज में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता था. वह स्टेज पर भी बढि़या अभिनय करता था. देखने में ठीकठाक था ही, इसलिए लड़कियां उस की ओर आकर्षित होने लगीं. कई लड़कियों से उस की दोस्ती भी हो गई. पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने काल सेंटर में नौकरी की. वहां भी उस के साथ तमाम लड़कियां नौकरी करती थीं. उन में से भी कई लड़कियों से उस की दोस्ती हो गई, जिन से वह घर आ कर भी फोन पर बातें करता रहता था.

कमलेश ने काल सेंटर की नौकरी छोड़ी तो उसे एक ऐसे एनजीओ में नौकरी मिल गई, जो रोजगार के लिए प्रेरित और दिलाने का काम करती थी. वहां स्वरोजगार का प्रशिक्षण भी दिया जाता था. इसलिए वहां भी तमाम लड़कियां रोजगार के लिए आती रहती थीं. लड़कियां जो फार्म भरती थीं, उन में उन के फोटो के साथ जरूरी जानकारी तो होती ही थी, मोबाइल नंबर भी होता था. ऐसे में जो लड़की उसे पसंद जाती, नौकरी दिलाने के बहाने वह उस से बातचीत करने लगता था. कई लड़कियों को उस ने नौकरी भी दिलाई थी, जिस की वजह से उसे मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री की ओर से अवार्ड भी मिला था

उसी बीच प्रियंका उर्फ पिंकी से उस की शादी हो गई. लेकिन शादी के बाद उस की आदत में कोई बदलाव नहीं आया. वह पहले की ही तरह लड़कियों से दोस्ती और फोन पर बातें करता रहा. पिंकी ने कई बार टोका भी लेकिन वह नहीं माना. इस के बाद पिंकी ने सासससुर से ही नहीं, मांबाप से भी उस की शिकायत की. सब ने कमलेश को समझाया, लेकिन वह अपनी आदत से बाज नहीं आया. उसी बीच कमलेश की मुलाकात बाणगंगा की रहने वाली एक लड़की से हुई. वह लड़की स्वरोजगार प्रशिक्षण लेने आई थी. लड़की काफी खूबसूरत थी, इसलिए वह उसे दिल दे बैठा.

संयोग से लड़की उस की मीठीमीठी बातों में फंस भी गई. कमलेश उस से शादी के बारे में सोचने लगा. उस ने लड़की से बताया था कि अभी वह पढ़ रहा है, इसलिए लड़की  ने भी शादी के लिए हामी भर दी थी. लड़की के हामी भरने के बाद कमलेश पिंकी से छुटकारा पाने के उपाय सोचने लगा. पिंकी सासससुर की लाडली बहू थी. इसलिए वह उसे छोड़ नहीं सकता था. ऐसे में पिंकी से छुटकारा पाने का उस के पास एक ही उपाय था कि वह उस की हत्या कर दे. इस के बाद उस ने पिंकी की हत्या की जो योजना बनाई, उस के अनुसार वह सब से कहने लगा कि सुबहशाम मुंह पर कपड़ा बांध कर 2 लड़के पलसर मोटरसाइकिल से उस के घर के आसपास चक्कर लगा रहे हैं. लेकिन मोहल्ले के किसी आदमी ने ऐसे लोगों को देखा नहीं. 

वह पिंकी की हत्या के लिए मौके की तलाश में था. वह इस काम को तभी अंजाम दे सकता था, जब पिंकी घर में अकेली हो. उसे तब मौका मिल गया, जब उस के नाना के मरने पर मां अपने मायके चली गईं. 17 फरवरी, 2014 सोमवार को पिता के ड्यूटी पर चले जाने के बाद घर में पिंकी और कमलेश ही घर में रह गए. पिंकी घर के काम निपटाने में लगी थी. तभी कमलेश ने योजना के तहत पिंकी की हत्या करने में चाकू वगैरह पर अंगुलियों के निशान आएं, इस के लिए रबर के दास्ताने पहन लिए. वह दास्ताने पहन कर तैयार हुआ था कि किसी का फोन गया तो वह फोन पर बातें करने लगा. उसी बीच पिंकी ने कमलेश से कहा, ‘‘आप कपड़े भिगो देते तो खाली होने पर मैं धो लेती.’’

कमलेश कपड़े भिगोने के बजाय किचन में जा कर फोन पर बातें करने लगा. पिंकी ने देखा कि वह कपड़े भिगोने के बजाय फोन पर ही बातें कर रहा है तो उस ने झुंझला कर कहा, ‘‘कपड़े भिगोने के लिए कह रही हूं, वह तो करते नहीं, फालतू फोन पर बातें कर रहे हो.’’ पिंकी की इस बात पर कमलेश को गुस्सा गया तो उस ने पिंकी को एक तमाचा मार दिया. पति की इस हरकत से नाराज हो कर पिंकी ने भी उसे ऐसा धक्का दिया कि उस का सिर दीवार से टकरा गया, जिस की वजह से वह चकरा कर गिर पड़ा.

कमलेश तो चाहता ही था कि कुछ ऐसा हो, जिस से वह पिंकी से भिड़ सके. संयोग से मौका भी मिल गया गया. चोट लगने से वह तिलमिला कर उठा और किचन में रखा सब्जी काटने का चाकू उठा कर पिंकी पर झपटा. लेकिन पिंकी हट गई तो चाकू दीवार से जा लगा, जिस की वजह से टूट गया. कमलेश इस मौके को गंवाना नहीं चाहता था, इसलिए दूसरा चाकू उठा कर पिंकी पर टूट पड़ा. पिंकी का मुंह दबा कर लगातार वार करने लगा. पिंकी मूर्छित हो कर जमीन पर गिर पड़ी तो उस ने उस का गला रेत दिया. थोड़ी देर छटपटा कर पिंकी मर गई. कमलेश ने देखा की पिंकी मर गई है तो उस ने खून सने कपड़े उतार कर बेडरूम में छिपा दिए और फिर बाथरूम में जा कर हाथपैर साफ किए. 

दूसरे कपड़े पहन कर उस ने इस हत्या को लूट में हत्या का रूप देने के लिए अलमारी खोल कर सारा सामान बिखेर दिया. कुछ गहने उस ने पलंग के नीचे डाल दिए तो कुछ खिड़की से पिछवाड़े फेंक दिए. इतना सब करने के बाद वह वहां से भाग जाना चाहता था, लेकिन तभी उस की बुआ के बेटे राहुल ने दरवाजा खटखटा दिया. अब वह बाहर तो जा नहीं सकता था, इसलिए खुद को बचाने के लिए वह मरी पड़ी पिंकी के ऊपर लेट गया. इस के बाद राहुल ने अंदर कर उसे अस्पताल में भरती कराया और घटना की जानकारी पुलिस को दी.

पूछताछ के बाद पुलिस कमलेश को उस के घर ले गई, जहां घर के पीछे से उस के द्वारा फेंके गए गहने बरामद कर लिए. पुलिस ने उस के फोन की काल डिटेल्स पहले ही निकलवा ली थी. उस के अनुसार उस ने साल भर में लड़कियों को 24 हजार फोन और एसएमएस किए थे. पुलिस ने सारे सुबूत जुटा कर 24 फरवरी, 2014 को कमलेश को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था.

कथा पुलिस सूत्रों एवं घर वालों से की गई बातचीत पर आधारित

 

पिता ने जमीन जायदाद से बेदखल किया, बेटे ने की हत्या

हालात इंसान को शैतान तो शैतान सरीखे इंसान को भलामानुष बना देता है. कुछ ऐसी ही कहानी शहजाद उर्फ शादा की थी. नाम तो उस का शहजाद था लेकिन अपराध की दुनिया में आने के बाद वह शादा के नाम से जाना जाने लगा था.      

विदेश से आए उस लिफाफे को देख कर मुझे हैरानी हुई थी. क्योंकि मेरा अपना कोई ऐसा विदेश में नहीं रहता था, जो मुझे चिट्ठी लिखता. लेकिन उस लिफाफे पर मेरा नामपता लिखा था. इस का मतलब लिफाफा चाहे जिस ने भी भेजा था, मेरे लिए ही भेजा गया था. लिफाफे पर भेजने वाले का नाम शहजाद मलिक लिखा था. दिमाग पर काफी जोर दिया, फिर भी शहजाद मलिक का नाम याद नहीं आयाउत्सुकतावश मैं ने उसे खोला तो उस में से 2 सुंदर फोटो निकले. उन में से एक 2 नन्हेमुन्ने बच्चों की फोटो थी और दूसरी फोटो एक आदमी एक औरत की. पहली नजर में मैं उन्हें पहचान नहीं पाया. तसवीरों के साथ एक चिट्ठी भी थी. मैं ने सरसरी नजर से उसे पढ़ा तो याद आया, ‘अरे यह तो शादा ने भेजी है. लेकिन वह तो कुवैत में रहता था, कनाडा कब चला गया.’

शहजाद उर्फ शादा की फोटो देख कर मुझे उस का अतीत याद आने लगा. लगभग 12 साल पहले मैं उस से मियांवाली की मशहूर सैंट्रल जेल की काल कोठरी में मिला था, जहां वह एक खूंख्वार अपराधी के रूप में बंद था. पूरी जेल में उस की दहशत थी. जेल में कैदियों का मनोवैज्ञानिक इलाज भी किया जाता था. शादे के इलाज के लिए भी तमाम प्रयोग किए गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. वह पहले की ही तरह झगड़ाफसाद करता रहा. उस के इस झगड़े फसाद से कैदी तो आतंकित रहते ही थे, जेल के कर्मचारी भी डरते थे. यही वजह थी कि उसे काल कोठरी में अकेला छोड़ दिया गया था. तनहाई में रहतेरहते वह इंसान से हैवान बन गया था.

मैं ने जेल का चार्ज संभाला तो उस के अहाते में गया. मुझे उस के पास जाते देख मेरे डिप्टी जेलर ने कहा, ‘‘साहब, यहीं से लौट चलें. आगे जाना ठीक नहीं है.’’

 ‘‘क्यों? जब यहां तक गया हूं तो उन कैदियों से भी मिल लूं.’’ कहते हुए मैं ने डिप्टी जेलर ने साथ चल रहे अन्य कर्मचारियों की ओर देखा. सभी सहमे हुए से थे. वे आपस में खुसरपुसर करने लगे. तभी उन में से एक हवलदार ने कहा, ‘‘सर, उस में शादा बंद है.’’

‘‘शादा भी आदमी ही है, कोई खूंख्वार जानवर तो नहीं.’’ यह कह कर मैं आगे बढ़ा तो साथ चल रहे स्टाफ को मजबूरन मेरे साथ चलना पड़ा. जैसे ही मैं अंदर पहुंचा, एक कोेठरी  से आवाज आई, ‘‘ओए…’’

‘ओए’ एक तरह से चेतावनी थी. इस का मतलब था, जो भी हो, यहां से वापस चले जाओ, वरना ठीक नहीं होगा. मैं बिना डरे आगे बढ़ता रहा. मेरे साथ लाठी लिए सिपाही भी थे. जब मैं शादा की कोठरी के सामने पहुंचा तो वह सख्त लहजे में बोला, ‘‘तो यह है नया साहब… पहले ही दिन मुझ से टक्कर लेने आ गया.’’ मैं पुराना जेलर था. न जाने कितने बिगड़े हुए कैदियों से मेरा सामना हो चुका था. इसलिए मैं मुसकराते हुए उस की आंखों में आंखें डाल कर बोला, ‘‘नहीं शादे… मैं तुझ से टक्कर लेने नहीं, मिलने आया हूं.’’

‘‘मिलने आए होहाहाहा…’’ शादा मेरी खिल्ली उड़ाने वाले अंदाज में हंसा.

‘‘शादे मैं तुम से विस्तार से बातें करना चाहता हूं. क्या तुम मेरे औफिस में सकते हो?’’

‘‘साहब, बातें करने के लिए इन लाठियों की भी जरूरत पड़ती है क्या? बातचीत तो मुंह से होती है, लाठियों से नहीं.’’

मैं समझ गया कि आदमी पढ़ालिखा है, लेकिन हालात ने इसे जंगली बना दिया है. सच भी है, हालात आदमी को शैतान और शैतान को भलामानुष बना देते हैं. शायद ऐसे ही किसी हालात का मारा यह भी है. मैं ने कहा, ‘‘मैं तुम से वादा करता हूं कि औफिस में हम दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं होगा,’’ इस के बाद मैं ने अपने सफेद बालों की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘मैं तुम्हारे पिता के समान हूं.’’

पता नहीं क्यों पिता का नाम सुन कर उस के माथे पर बल पड़ गए. उस ने कुछ कहना चाहा, लेकिन मेरी विनम्रता की वजह से वह चुप रह गया था. थोड़ी देर बाद वह मेरे औफिस में आया. औफिस में मैं ने जिस शादे को देखा, वह जेल में बंद शादे से एकदम अलग था. वह 24-25 साल का जवान लड़का था, जो इस जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा था. जब मैं ने उस से प्यार से बात की तो उस के अंदर का इंसान जाग गया.

शादा ने जो बताया उस के अनुसार उस का बाप इलाके का नंबरदार था. काफी जमीनें थीं उस के पास. रहने के लिए गांव के बाहर हवेली जैसा मकान था. काम करने के लिए नौकर थे. तब लोग उसे शहजादा कहते थे. उस ने इंटर अच्छे नंबरों से पास किया तो उस का दाखिला इंजीनियरिंग में हो गया. जब इंजीनियरिंग का उस का आखिरी साल था, तो उस की मां मर गई. मां के मरने के कुछ दिनों बाद ही उस के बाप ने पास के गांव की एक औरत से शादी कर ली.

उस औरत के पहले से ही 2 जवान बेटे थे, जो निठल्ले थे. वे दिन भर आवारों की तरह घूमते रहते थे. पढ़ाईलिखाई से उन्हें कोई मतलब नहीं था. शादे की सौतेली मां चाहती थी कि उस के बेटों की तरह शादा भी पढ़ेलिखे. उस ने शादे के बाप को भड़काना शुरू किया, ‘वह जवान हो चुका है. चाहे तो अपने आप कमा कर पढ़ाई कर सकता है.’ बाप ने सौतेली मां की बात मानी. शादा ने पिता से बहुत मिन्नतें कीं कि उस का पढ़ाई का यह आखिरी साल है, इसलिए उस की पढ़ाई का खर्च उठाते रहें. पढ़ाई के बाद नौकरी लग जाएगी तो वह उन के पैसे वापस कर देगा.

लेकिन उस के बाप ने उस की एक नहीं सुनी और पढ़ाई का खर्च तो देना बंद कर ही कर दिया, उसे जमीनजायदाद से भी बेदखल कर दिया. इस के बाद शादे के सभी रास्ते बंद हो गए. उस के पास कुछ भी नहीं रह गया. पढ़ाई की छोड़ो, उसे खानेपहनने तक के लाले पड़ गए. उस की पढ़ाई अधूरी रह गई. अपने ऊपर हुए अत्याचार से उसे इतना गुस्सा आया कि उसे अत्याचार करने वाले की हत्या कर देना ही ठीक लगा. उस ने यही किया भी. उस ने अपने बाप की हत्या कर दी.

 शादा ने खुद अपराध स्वीकार किया था, इसलिए बचने का कोई सवाल ही नहीं था. सारे सुबूत और गवाह उस के खिलाफ थे, इसलिए अदालत ने उसे उम्रकैद की सजा सुना दी थी. चूंकि वह जवान था, इसलिए अदालत ने उस के साथ थोड़ी नरमी बरती थी. जेल में वह अपने साथी कैदियों को डराधमका कर अपने आप को बड़ा साबित करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अंदर से वह अभी भी शहजाद था. कुछ दिनों बाद मैं ने शहजाद से कहा कि अगर वह चाहे तो अपनी इंजीनियरिंग की तैयारी जेल में रह कर कर सकता है. मेरी इस बात पर वह मुझे हैरानी से देखने लगा. उसे मेरे चेहरे पर हमदर्दी की झलक दिखाई दी तो उस ने पूछा, ‘‘वह कैसे?’’

‘‘मैं ने इंजीनियरिंग कालेज के प्रिंसिपल से बात की है. उन्होंने मदद का वादा किया है. उन्होंने तुम्हारे लिए इस संबंध में विशेष रूप से गवर्नर को लिखा है. उम्मीद है, वहां से स्पेशल केस के तौर पर तुम्हारे लिए मंजूरी मिल जाएगी.’’ मेरी बात सुन कर वह खुश हुआ. मैं ने अपने स्तर पर काररवाई की. नतीजतन जिस कोठरी में कभी गालियां गूंजती थी और लाठियां चलती थीं, अब वही कोठरी एक विद्यार्थी का कमरा बन गई थी. जेल के वैलफेयर फंड से उस के लिए किताबें मंगवा दी गई थीं. उस की ड्यूटी जेल में लगी मशीनों पर लगा दी गई थी.

पुलिस की देखरेख में वह कालेज भी जाता रहा. आखिर उस ने फाइनल परीक्षा दी. तमाम परेशानियों के बावजूद उस की प्रथम पोजीशन आई. जो शहजाद कभी जेल में आतंक का पर्याय था और खौफनाक कैदी के रूप में मशहूर था, अब वही शहजाद जेल का सब से अच्छा और मेहनती इंसान बन गया था. संयोग से उसी बीच जेल मंत्री जेल का निरीक्षण करने आए तो शहजाद ने उन के प्रति अभिनंदन पत्र प्रस्तुत करने के बाद मेरी प्रशंसा करते हुए कहा, ‘‘आज मैं जो कुछ भी हूं, जेलर फीरोज अली खां साहब की वजह से हूं. इन्होंने मुझे बहुत अच्छा रास्ता दिखाया.’’

मैं ने जेल मंत्री से सिफारिश की कि शहजाद की सजा कम कर दी जाए. जेल मंत्री की सिफारिश पर कुछ दिनों बाद शहजाद जेल से रिहा हो गया. समय गुजरता रहा. कुछ दिनों बाद मैं अपनी नौकरी से रिटायर हो गया तो शहर से जुड़े एक गांव में जमीन खरीद कर मैं ने अपना एक छोटा सा फार्महाऊस बना लिया. मैं खेतों में थोड़ाबहुत काम करने के साथ पढ़ाईलिखाई कर के समय बिताने लगा. एक दिन मैं खेतों में काम कर रहा था, तभी घबराया हुआ शहजाद मेरे पास आया. उस के चेहरे पर कोठरी वाले शादे की परछाइयां झलक रही थीं. मैं ने उसे बिठा कर पानी पिलाया. उस के बाद पूछा, ‘‘समस्या क्या है, जो तुम इतना घबराए हुए हो?’’

‘‘मैं एक साल से कोशिश कर रहा हूं कि गांव की जमीन से मेरे हिस्से की कुछ जमीन मुझे मिल जाए तो मैं उसे बेच कर अपना वर्कशौप खोल लूं. पंचायत भी बुलाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. मेरी सौतेली मां मुझे मेरी हत्या करवाने की धमकी दे रही है. उस ने अपने बेटों को मेरी हत्या के लिए मेरे पीछे लगा भी दिया है.’’ मेरी समझ में नहीं रहा था कि मैं उस से क्या कहूं. काफी सोचविचार कर मैं ने कहा, ‘‘बेटा शहजाद, तुम पढे़लिखे हो, तुम्हारे लिए काम की कोई कमी नहीं है, मैं चाहता हूं, तुम यह देश छोड़ कर कुवैत चले जाओ. वहां तुम्हें अच्छी नौकरी मिल जाएगी.’’

‘‘यह सब इतना आसान है क्या? मेरे पास तो पैसा भी नहीं है.’’ वह बोला.

‘‘यह तुम मेरे ऊपर छोड़ दो. पासपोर्ट और नौकरी की व्यवस्था मैं करवाऊंगा. वहां जाने तक तुम किसी अच्छे वर्कशौप में नौकरी कर के अनुभव प्राप्त कर लो.’’

मैं ने शहजाद का पासपोर्ट अपने एक जानने वाले की मदद से बनवा दिया. कुवैत में मेरी जानपहचान के तमाम लोग थे, उन की मदद से मैं ने उस के लिए वहां नौकरी की व्यवस्था करवा दी. शहजाद कुवैत चला गया. उस की पढ़ाई, अनुभव और व्यवहार काम आया और उसे वहां एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई. कई सालों तक उस की चिट्ठियां आती रहीं. उस ने 2-3 बार ड्राफ्ट भी भेजे. लेकिन जब मैं ने उसे डांट कर ड्राफ्ट भेजने से मना किया तो उस ने ड्राफ्ट भेजने बंद कर दिए. उस ने अपने आखिरी खत में लिखा था कि वह कुवैत में बहुत मजे से है और अब शादी करने के बारे में सोच रहा है.

इस के बाद शहजाद का कोई खत नहीं आया. जब खत आने बंद हो गए तो उस के बारे में कोई अतापता नहीं चला. आज आने वाला खत उस के जीवन का नया मोड़ था, जिस में उस की पत्नी और बच्चे भी शामिल थे. उस ने लिखा था, ‘‘सरजीआप को शायद आप का सिरफिरा बेटा याद हो, लेकिन मैं आप को हमेशा याद रखता हूं. मेरी समझ में नहीं आता कि मैं आप के उपकारों का बदला कैसे चुकाऊं? अगर आप नहीं होते तो मैं आत्महत्या कर लेता या फिर किसी की हत्या कर के फांसी चढ़ जाता. आप को जान कर खुशी होगी कि आप का यह बेटा कनाडा में इंजीनियर है और खूब मजे की जिंदगी जी रहा है.’’

उस ने आगे लिखा था, ‘‘कुवैत में मैं ने एक पाकिस्तानी लड़की से शादी कर ली थी. उस के बाद मैं कनाडा गया था. मेरे दोनों बच्चे स्कूल जाते हैं, जिन की फोटो आप को भेज रहा हूं. ये आप के पोतापोती हैं. दूसरी फोटो मेरी और मेरी पत्नी की है. हम भले ही कनाडा मे रहते हैं, लेकिन मैं मियांवाली का रहने वाला हूं, इसलिए घर के बाहर भी मियांवाली हाऊस लिखवा रखा है. हमारा रहनसहन भी अपने देश जैसा ही है. हम विदेशी रंग में नहीं रंगे हैं.

‘‘मैं ने अपनी पत्नी को भी आप के बारे में सब बता दिया है. वह आप के बारे में जान कर बहुत खुश हुई और अपने ससुर से मिलने के लिए बेचैन है. इसलिए अब मेरी आप से एक विनती है, जिसे आप ठुकराएंगे नहीं. आप कनाडा जाइए. यहां आप की बहू और बच्चे आप का इंतजार कर रहे हैं. मैं ने आप के टिकट और वीजा का इंतजाम कर दिया है. कुछ दिनों में वे आप को मिल जाएंगे. यह आप की मोहब्बत का कर्ज है. खत का जवाब जरूर देंगे.’’

खत पढ़ कर मैं सोचने लगा कि हालात आदमी को शैतान तो शैतान को भलामानुष बना देते हैं. इस का सब से बड़ा उदाहरण शहजाद है. कुछ दिनों बाद मैं कनाडा की यात्रा पर था. पूरे रास्ते मैं शहजाद, बहू और बच्चों के बारे में सोचता रहा. क्योंकि जिंदगी के आखिरी दिनों में यह मेरे लिए कुदरत का दिया इनाम था, जिस के लिए मैं सारी जिंदगी तरसता रहा था. इस की वजह यह थी कि मैं ने शादी नहीं की थी.

 

 

  

वह पुलिस अधिकारी जिसे रोबोट कहा गया

 दिल्ली पुलिस में इंसानी रोबोट के नाम से मशहूर बलजीत राणा पिछले 20 सालों से बिना कोई छुट्टी लिए रोजाना 16 घंटे काम करते हैं. 66 साल की उम्र में बने हुए उन के जुनून का आखिर राज क्या है…  

धिकांश वेतनभोगी कर्मचारी छुट्टियां पाने के लिए लालायित रहते हैं. विभाग से मिलने वाली हर तरह की छुट्टी का लाभ वे लेने की कोशिश करते हैं. यानी वे किसी भी छुट्टी को जाया नहीं करना चाहतेइस के विपरीत दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ऐसे भी हैं जिन्होंने पिछले 20 सालों से कोई भी छुट्टी नहीं ली. अर्जित अवकाश, आकस्मिक अवकाश, चिकित्सा अवकाश आदि की बात तो छोडि़ए, उन्होंने शनिवार, रविवार के साप्ताहिक अवकाश भी नहीं लिए

पिछले 20 सालों से वह सुबह 7 बजे से रात 11 बजे की ड्यूटी लगातार करते आ रहे हैं. और तो और रिटायर होने के बाद भी वह पहले की तरह अपनी ड्यूटी को अंजाम दे रहे हैं. विभाग में इस अधिकारी को इंसानी रोबोट के नाम से जाना जाता है. इस इंसानी रोबोट का नाम है बलजीत सिंह राणा. बलजीत सिंह राणा मूलरूप से हरियाणा के सोनीपत जिले के कुंडल गांव के रहने वाले श्रीराम राणा के बेटे हैं. उन का जन्म 14 अगस्त, 1952 को हुआ था. श्रीराम राणा आसपास के गांवों में नंबरदार के नाम से जाने जाते थे. उन के 3 बच्चे थे. बेटी शकुंतला, बलजीत सिंह और जगदीश सिंह. इन में बलजीत सिंह मंझले नंबर के थे.

बलजीत सिंह ने 1971 में गांव के ही सरकारी स्कूल से हाईस्कूल की परीक्षा पास की. बलजीत बताते हैं कि उन की दिल्ली पुलिस में भरती मौजमजे में ही हो गई थी. वह दोस्तों के साथ दिल्ली घूमने आए थे. वहां कर पता चला कि किंग्सवे कैंप में दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल की भरती चल रही हैबलजीत भी जा कर कतार में खड़े हो गए. शारीरिक रूप से वह हृष्टपुष्ट थे, इसलिए शारीरिक नापतौल में फिट पाए गए. बाद में उन्होंने दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के पद पर भरती की सूचना अपने घर वालों को दे दी. यह बात पहली सितंबर, 1972 की है.

कांस्टेबल की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद 1973 में उन की पहली पोस्टिंग राष्ट्रपति भवन में हुई. वहां 4 साल नौकरी करने के बाद उन का ट्रांसफर नई दिल्ली के संसद मार्ग थाने में कर दिया गया. यहां पर इन की ड्यूटी डिप्लायमेंट सेल में लगा दी. इस सेल में काम करने वालों के साथ चौबीसों घंटे सिरदर्दी बनी रहती है. वीआईपी, वीवीआईपी मूवमेंट, विदेशी मेहमानों की सुरक्षा, रूट निर्धारण, विभिन्न धरनाप्रदर्शनों को शांतिपूर्वक संपन्न कराना, फोर्स का इंतजाम करना आदि जिम्मेदारी इसी सेल की होती है. यहां काम करने वालों की ड्यूटी हर वक्त तलवार की धार पर टिकी रहती है.

बलजीत सिंह ने यहां मन लगा कर काम किया. तत्कालीन पुलिस उपायुक्त बी.के. गुप्ता ने सन 1982 में बलजीत सिंह का प्रमोशन कर हैडकांस्टेबल बना कर उन्हें डिप्लायमेंट सेल का इंचार्ज बना दिया. इंचार्ज बन जाने के बाद उन की जिम्मेदारियां बढ़ गईंइस पद पर रहने से जरा सी गलती का होना दिल्ली और देश में बवाल मचाने वाली खबरों को जन्म देना था. डीसीपी बी.के. गुप्ता ने उन्हें इसी संवेदनशील पद की जिम्मेदारी दे दी. उन्होंने अपनी इस जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन किया.

सन 1992 में तत्कालीन डीसीपी कंवलजीत देओल ने बलजीत सिंह का प्रमोशन कर एएसआई बना दिया. अपनी मेहनत के बलबूते वह प्रमोट हो कर सन 1998 में एएसआई से एसआई बन गए. उस समय नई दिल्ली जिले के डीसीपी टी.एन. मोहन और पुलिस कमिश्नर वी.एन. सिंह थे. सबइंसपेक्टर बनने के बाद तो वह एक तरह से दिल्ली पुलिस के ही बन कर रह गए. उन की पोस्टिंग संसद मार्ग थाने में ही डिप्लायमेंट सेल के इंचार्ज के रूप में रही. वह सुबह 7 बजे अपनी ड्यूटी पर पहुंच जाते और रात 11 बजे तक ड्यूटी पर रहते. घर जाने से पहले वह स्टाफ का अरेंजमेंट कर के जाते थे. 

इस के बाद उन का ड्यूटी का यही सिलसिला चलता रहा. उन्होंने किसी भी तरह की कोई छुट्टी नहीं ली. साप्ताहिक अवकाश हो या कोई त्यौहार, वह उस दिन भी अपनी ड्यूटी बखूबी पूरी करते. कहने का मतलब साल के 365 दिन बड़ी ही जिम्मेदारी से अपनी ड्यूटी करते रहे. बारहों महीने लगातार रोजाना 16 घंटे तक ड्यूटी पूरी करने वाले इस पुलिस अधिकारी की विभाग में चर्चा होने लगी. अन्य पुलिस वाले इस बात पर आश्चर्यचकित होने लगे कि लगातार इतनी कठिन ड्यूटी करने के बाद यह कभी बीमार नहीं होते. वास्तव में वह कभी बीमार नहीं हुए.

अपनी ड्यूटी पर पूरी तरह समर्पित रहने वाले बलजीत राणा के सामने कई समस्याएं भी आईं. वह अपने रिश्तेदार या परिचित के शादी समारोह या अन्य सामाजिक कार्यों में भाग नहीं ले पाते. वह अपने बच्चों तक को पर्याप्त समय नहीं दे पाते थे. ऐसे में इन की पत्नी सुशीला ने उन की यह जिम्मेदारी निभाई. वही घर और समाज की सभी जिम्मेदारियां पूरी करती थीं. सरकारी विभागों में डिपार्टमेंटल सर्विस रिकौर्ड शीट में लिखी गई टिप्पणी बहुत कुछ कैरियर पर निर्भर करती है. बलजीत सिंह ने बताया कि नई दिल्ली जिले के तत्कालीन एडीशनल पुलिस कमिश्नर केशव द्विवेदी ने जैसी उन की एसीआर लिखी, वैसी कम ही मिलती है. उन्होंने लिखा था, ‘मैं ने अपनी सर्विस में ऐसा कोई कर्मचारी नहीं देखा, जिस ने छुट्टी ली हो. मैं हैरान हूं. राणा ने 24 घंटे और 365 दिन नौकरी को दिए हैं.’

अपनी ड्यूटी के लिए समर्पित रहने वाले बलजीत सिंह राणा विभाग में एक चलतेफिरते बोलने वाले इंसानी रोबोट के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे. वह सन 2012 में सेवानिवृत्त हो गए. यानी उन्होंने 7454 दिन बिना किसी छुट्टी के रोजाना सुबह 7 बजे से रात 11 बजे तक ड्यूटी की. इसे इत्तफाक ही कहा जाएगा कि जिन आईपीएस अधिकारी बी.के. गुप्ता ने उन्हें नई दिल्ली जिले के डिप्लायमेंट सेल का इंचार्ज बनाया था, उन्हीं बी.के. गुप्ता के पुलिस कमिश्नर के कार्यकाल में बलजीत राणा रिटायर हुए. तत्कालीन पुलिस कमिश्नर बी.के. गुप्ता बलजीत राणा के काम से बहुत खुश थे. उन के रिटायरमेंट के बाद भी वह उन्हें इसी पद पर बनाए रखना चाहते थे. इसलिए वह खुद बलजीत राणा को तत्कालीन उपराज्यपाल के पास ले गए

कमिश्नर ने उपराज्यपाल से बलजीत राणा को कंसलटेंट पद पर बने रहने की अनुमति देने की सिफारिश की तो उपराज्यपाल ने पुलिस कमिश्नर की सिफारिश पर मोहर लगाते हुए बलजीत राणा को कंसलटेंट के पद पर अस्थाई रूप से बने रहने की अनुमति दे दी. साथ ही उन की 10,570 रुपए प्रतिमाह की सैलरी भी निर्धारित कर दी. लेकिन बलजीत ने बिना सैलरी लिए काम करने की इच्छा जाहिर की. पिछले 6 सालों से वह लगातार अपने पुराने रूटीन पर ही संसद मार्ग थाने में बिना कोई पैसे लिए ड्यूटी कर रहे हैं. 66 साल के बलजीत राणा का शरीर अभी भी बहुत फुरतीला है. अभी भी उन के अंदर पहले की तरह ऊर्जा है. 

जब उन से उन के स्वस्थ रहने का राज पूछा तो उन्होंने बताया कि वह रोजाना 5-6 किलोमीटर की दौड़ पूरी कर के योगा करते हैं. इस के बाद हैवी नाश्ता करते हैं. नाश्ते में ड्राईफ्रूट्स के अलावा रोटी, दाल आदि शामिल रहती है. लंच में वह छाछ या एक किलोग्राम दही लेते हैं और शाम को केवल फ्रूट्स. बलजीत सिंह राणा ने अपने 35-36 साल की नौकरी में दिल्ली के नौकरशाही सिस्टम को भी बदलते देखा. सन 1970 में जब वह भरती हुए तो उस समय दिल्ली में आईजी सिस्टम था. उस समय लीली सिंह बिष्ट दिल्ली के आईजी थे. कश्मीरी गेट के रिट्ज सिनेमा के पीछे पुलिस मुख्यालय था. जब कमिश्नर सिस्टम शुरू हुआ तो जे.एन. चतुर्वेदी दिल्ली के पहले पुलिस कमिश्नर बने. तब से अब तक 19 पुलिस कमिश्नरों को उन्होंने विदा होते देखा.

बलजीत भले ही अपने परिवार को समय नहीं दे पाए, लेकिन उन की पत्नी सुशीला ने अपने तीनों बच्चों की जिम्मेदारी पूरी करते हुए बच्चों को काबिल बना दिया. उन की बड़ी बेटी नीलम एक एयरलाइंस में है. वह अपने परिवार के साथ नोएडा में रहती हैं तो वहीं छोटी बेटी आस्ट्रेलिया के मेलबोर्न में टीचर हैं. वह भी पति और बच्चों के साथ आस्ट्रेलिया में रह रही है. बेटा संजीव राणा चंडीगढ़ में स्थित एबीएन एमरो बैंक में अधिकारी है. अपने काम के प्रति निष्ठावान और समर्पित रहने वाले बलजीत राणा को इस उपलब्धि पर कई सम्मान भी मिल चुके हैं. सन 2001 और 2012 में उन्हें राष्ट्रपति मेडल, 2015 में दिल्ली पुलिस का एक्सीलेंस अवार्ड के अलावा कई विदेशी सम्मान भी उन्हें मिल चुके हैं. रिटायर होने के बाद 2 हजार दिनों से ज्यादा वह काम कर चुके हैं. बलजीत राणा का कहना है कि वह अपने अंतिम समय तक दिल्ली पुलिस में फ्री में सेवा करते रहेंगे.

 

ससुर ने बहु के नाजुक अंगों को नोंचा, जला डाला

नीतू के साथ जो हुआ था, वह निस्संदेह अच्छा नहीं था, लेकिन उस के ससुर बाबूलाल ने कोई सही समाधान खोजने के बजाए जो किया, वह और भी बुरा था. बाबूलाल को अब अपनी गलती का अहसास हो भी तो क्या फायदा. अब तो उसे…    

ला की हालत देख कर पुलिस वाले तो दूर की बात कोई भी आम आदमी बता देता कि हत्यारा या हत्यारे मृतका से किस हद तक नफरत करते होंगे. साफ लग रहा था कि हत्या प्रतिशोध के चलते पूरी नृशंसता से की गई थी और युवती के साथ बेरहमी से बलात्कार भी किया गया था. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को जोड़ते जिला शहडोल के ब्यौहारी थाने के इंचार्ज इंसपेक्टर सुदीप सोनी को भांपते देर नहीं लगी कि मामला उम्मीद से ज्यादा गंभीर है. 25 मार्च की सुबहसुबह ही उन्हें नजदीक के गांव खामडांड में एक युवती की लाश पड़ी होने की खबर मिली थी. वक्त गंवा कर सुदीप सोनी ने तुरंत इस वारदात की खबर शहडोल से एसपी सुशांत सक्सेना को दी और पुलिस टीम ले कर खामडांड घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

गांव वाले जैसे उन के आने का ही इंतजार कर रहे थे. पुलिस टीम के आते ही मारे उत्तेजना और रोमांच के उन्होंने सुदीप को बताया कि लाश गांव से थोड़ी दूर आम के बगीचे में पड़ी है. पुलिस टीम जब आम के बाग में पहुंची तो लाश देखते ही दहल उठी. ऐसा बहुत कम होता है कि लाश देख कर पुलिस वाले ही अचकचा जाएं. लाश लगभग 24 वर्षीय युवती की थी, जिस की गरदन कटी पड़ी थी. अर्धनग्न सी युवती के शरीर पर केवल ब्लाउज और पेटीकोट थे. ब्लाउज इतना ज्यादा फटा हुआ था कि उस के होने न होने के कोई माने नहीं थे. दोनों स्तनों पर नाखूनों की खरोंच के निशान साफसाफ दिखाई दे रहे थे. 

पेटीकोट देख कर भी लगता था कि हत्यारे चूंकि उसे साथ नहीं ले जा सकते थे इसलिए मृतका की कमर पर फेंक गए थे. युवती के गुप्तांग पर जलाए जाने के निशान भी साफसाफ नजर आ रहे थे. गाल पर दांतों से काटे जाने के निशान देख कर शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी कि मामला बलात्कार और हत्या का था. खामडांड छोटा सा गांव है जिस में अधिकतर पिछडे़ और आदिवासी रहते हैं इसलिए पुलिस को लाश की शिनाख्त में दिक्कत पेश नहीं आई. लाश के मुआयने के बाद जैसे ही सुदीप सोनी गांव वालों से मुखातिब हुए तो पता चला कि मृतका का नाम नीतू राठौर है और वह इसी गांव के किसान बाबूलाल राठौर की बहू और रामजी राठौर की पत्नी है.

सुदीप ने तुरंत उपलब्ध तमाम जानकारियां सुशांत सक्सेना को दीं और उन के निर्देशानुसार जांच की जिम्मेदारी एसआई अभयराज सिंह को सौंप दी. चूंकि लाश की शिनाख्त हो चुकी थी इसलिए पुलिस के पास करने को एक ही काम रह गया था कि जल्द से जल्द कातिल का पता लगाए. कागजी काररवाई पूरी कर  के नीतू की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. नीतू की हत्या की खबर उस के मायके वालों को भी दे दी गई थी जो मऊ गांव में रहते थे.

मौके पर अभयराज सिंह को कोई सुराग नहीं लग रहा था. अलबत्ता यह बात जरूर उन की समझ में गई थी कि कातिल उन की पहुंच से ज्यादा दूर नहीं है. छोटे से गांव में मामूली पूछताछ में यह उजागर हुआ कि नीतू के घर में उस के ससुर बाबूलाल और पति रामजी के अलावा और कोई नहीं हैनीतू और रामजी की शादी अब से कोई 4 साल पहले हुई थी. बाबूलाल का अधिकांश वक्त खेत में ही बीतता था और इन दिनों तो फसल पकने को थी इसलिए दूसरे किसानों की तरह वह खाना खाने ही घर आता था. फसल की रखवाली के लिए वह रात में सोता भी खेत पर ही था.

इसी पूछताछ में जो अहम जानकारियां पुलिस के हाथ लगीं उन में से पहली यह थी कि रामजी एक कम बुद्धि वाला आदमी है और आए दिन नीतू से उस की खटपट होती रहती थी. दूसरी जानकारी भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं थी कि 2 साल पहले 2016 में इन पतिपत्नी के बीच जम कर झगड़ा हुआ था. झगड़े के बाद नीतू मायके चली गई थी और उस ने ससुर पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज कराया था, पर बाद में सुलह हो जाने पर नीतू वापस ससुराल गई थी.

ब्यौहारी थाने में पुलिस ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया और नीतू का शव उस के ससुराल वालों को सौंप दिया. दूसरे दिन ही उस का अंतिम संस्कार भी हो गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उस की हत्या धारदार हथियार से गला काट कर की गई थी. ये जानकारियां अहम तो थीं लेकिन हत्यारों तक पहुंचने में कोई मदद नहीं कर पा रही थीं. गांव वाले भी कोई ऐसी जानकारी नहीं दे पा रहे थे जिस से कातिल तक पहुंचने में कोई मदद मिलती.

नीतू के अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने उस के मायके वालों से पूछताछ की तो उन्होंने सीधेसीधे हत्या का आरोप बाबूलाल और रामजीलाल पर लगाया. उन का कहना था कि शादी के बाद से ही बापबेटे दोनों नीतू को दहेज के लिए मारतेपीटते रहते थे. लेकिन नीतू की हत्या जिस तरह हुई थी उस से साफ उजागर हो रहा था कि हत्या बलात्कार के बाद इसलिए की गई थी कि हत्यारा अपनी पहचान छिपा सके. वैसे भी आमतौर पर दहेज के लिए हत्याएं इस तरह नहीं की जातीं.

रामजी राठौर के बयानों से पुलिस वालों को कुछ खास हासिल नहीं हुआ, क्योंकि बातचीत करने पर ही समझ गया था कि यह मंदबुद्धि आदमी कुछ भी बोल रहा है. पत्नी की मौत का उस पर कोई खास असर नहीं हुआ था. अभयराज सिंह को वह कहीं से झूठ बोलता नहीं लगा. मंदबुद्धि लोगों को गुस्सा जाए तो वे हिंसक भी हो उठते हैं पर इतने योजनाबद्ध तरीके से हत्या करने की बुद्धि उन में होती तो वे मंदबुद्धि क्यों कहलाते.

बाबूलाल से पूछताछ की गई तो उस ने अपने खेत पर व्यस्त होने की बात कही. लेकिन हत्या का शक बेटे रामजी पर ही जताया. इशारों में उस ने पुलिस को बताया कि रामजी चूंकि पागल है इसलिए गुस्से में कर पत्नी की हत्या कर सकता है. बाबूलाल ने अपनी बात में दम लाते हुए यह भी कहा कि मुमकिन है कि नीतू रामजी के साथ सोने से इनकार कर रही हो, इसलिए रामजी को उसे मारने की हद तक गुस्सा गया हो और इसी पागलपन में उस ने नीतू की हत्या कर डाली हो.

यह एक अजीब सी बात इस लिहाज से थी कि हत्या के मामले में किसी भी पिता की कोशिश बेटे को बचाने की रहती है. लेकिन बाबूलाल इस का अपवाद था. हालांकि संभावना इस बात की भी थी कि वह वाकई सच बोल रहा हो क्योंकि रामजी घोषित तौर पर मंदबुद्धि वाला था और गुस्सा जाने पर ऐसा कर भी सकता था. लेकिन इस थ्यौरी में आड़े यही बात रही थी कि कोई मंदबुद्धि इतनी प्लानिंग से हत्या नहीं कर सकता.

अभयराज सिंह ने नीतू के बारे में जानकारियां इकट्ठी करने के लिए एक लेडी कांस्टेबल को काम पर लगा दिया था. अलबत्ता अभी तक की जांच में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई थी जिस से यह लगे कि नीतू के चालचलन में कोई खोट थी. ये सब बातें अभयराज ने जब आला अफसरों से साझा कीं तो उन्होंने बाबूलाल को टारगेट करने की सलाह दी. महिला कांस्टेबल की दी जानकारियों ने मामला सुलझाने में बड़ी मदद की. पता यह चला कि नीतू दूसरी महिलाओं के साथ मजदूरी करने ब्यौहारी जाती थी और शाम तक लौट आती थी. 25 मार्च को यानी हादसे के दिन भी वह मजदूरी करने गई थी. लेकिन लौटते वक्त वह गांव के बाहर से ही अपने ससुर बाबूलाल से मिलने खेत की तरफ चली गई थी

बाबूलाल शक के दायरे में तो पहले से ही था पर इस खुलासे से उस पर शक और गहरा गया था. चूंकि उसे धर दबोचने के लिए कोई पुख्ता सबूत या गवाह नहीं था. इसलिए पुलिस ने बारबार पूछताछ करने का अपना परंपरागत तरीका आजमाया. इस पूछताछ में उस के साथ कोई जोर जबरदस्ती नहीं की गई और ही कोई यातना दी गई. पुलिस ने तरहतरह से उसे धर्मग्रंथों का हवाला दिया कि जो जैसे कर्म करता है उसे वैसा ही फल भुगतना पड़ता है. फिर चाहे वह नीचे धरती पर मिले या ऊपर कहीं मिले.

धर्मगुरुओं  की तरह प्रवचन दे कर जुर्म कबूलवाने का शायद यह पहला मामला था. कर्म फल और पाप पुण्य की पौराणिक कहानियों का बाबूलाल पर वाजिब असर पड़ा और उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. यह डर था या ग्लानि थी यह तो शायद बाबूलाल भी बता पाए, लेकिन नीतू की हत्या की जो वजह उस ने बताई वह वाकई अनूठी थी. कहानी सुनने से पहले पुलिस ने उस की निशानदेही पर खेत में छिपाई गई चप्पलें व साड़ी बरामद करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई.

बहू नीतू की हत्या की वजह बताते हुए बाबूलाल का चेहरा सपाट था. बाबूलाल तब किशोरावस्था में था जब उस के पिता संतोषी राठौर की मौत हो गई थी. शादी के बाद पत्नी भी ज्यादा साथ नहीं निभा पाई, लेकिन इन तकलीफों से बड़ी उस की तकलीफ मंदबुद्धि बेटा रामजी था. जवान होते रामजी को देख बाबूलाल का कलेजा मुंह को आता था कि उस के बाद यह लड़का किस के भरोसे रहेगा. कम अक्ल रामजी को पालतेपोसते बाबूलाल ने कई जगह उस की शादी की बात चलाई लेकिन जिस ने भी रामजी की मंदबुद्धि के चर्चे सुने उस ने बाबूलाल के सामने हाथ जोड़ लिए

खेतीकिसानी बहुत ज्यादा भी नहीं थी, इसलिए बाबूलाल ज्यादा पैसों के लिए खेतों में हाड़तोड़ मेहनत करता था, जिस के चलते 54 साल की उम्र भी उस पर हावी नहीं हो पाई थी. फिर एक दिन पागल कहे जाने वाले रामजी की तब मानो लाटरी लग गई, जब बात चलाने पर नीतू के घर वाले रामजी से उस की शादी करने तैयार हो गए. नीतू गठीले बदन की चंचल लड़की थी, जिसे पत्नी बनाने का सपना आसपास के गांवों के कई युवक देख रहे थे. 

गोरीचिट्टी नीतू की खूबसूरती के चर्चे हर कहीं थे पर लोग यह जानकर हैरान रह गए कि उस की शादी रामजी से हो रही है, जिसे गांव की भाषा में पागल, सभ्य लोगों की भाषा में मंदबुद्धि और आजकल सरकारी जुबां में मानसिक रूप से दिव्यांग कहा जाता है. जब नीतू के घर वालों ने रिश्ते के बाबत हां भर दी तो बाबूलाल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. घर में बहू के पांव पड़ेंगे, अरसे बाद छमछम पायल बजेगी और जल्द ही पोता उस की गोद में होगा जैसी बातें सोच कर वह अपनी गुजरी और मौजूदा जिंदगी के दुख भूलता जा रहा था.

उधर रामजी पर इस का कोई असर नहीं पड़ा था, वह तो अपनी दुनिया में मस्त था, जैसे कुछ हो ही नहीं रहा हो. शादी के नए कपड़े, धूमधड़ाका, बैंडबाजा बारात वगैरह उस के लिए बच्चों के खेल जैसी बातें थीं. पर बाबूलाल का मन कह रह था कि बहू के आते ही वह सुधर भी सकता है. खुशी से फूले नहीं समा रहे बाबूलाल को आने वाली परेशानियों और दुश्वारियों का अहसास तक नहीं था. नीतू बहू बन कर आई तो वाकई घर में रौनक गई. पर यह रौनक चार दिन की चांदनी सरीखी साबित हुई.

सुहागरात के वक्त नीतू शर्माती लजाती कमरे में बैठी पति का इंतजार कर रही थी कि वह आएगा, रोमांटिक और प्यार भरी बातें करेगा, फिर मन की बातों के बाद धीरे से तन की बात करेगा और फिर… फिल्मों और टीवी सीरियलों में देखे सुहागरात के दृश्य नीतू की जवानी और सपनों को पर लगा रहे थे जिन्हें सोच कर ही वह रोमांचित हुई जा रही थी. रामजी कमरे में आया और बगैर कुछ कहे सुने बिस्तर पर गया तो नीतू एकदम से कुछ समझ नहीं पाई. उस रात रामजी ने कुछ नहीं किया तो यह सोच कर नीतू ने खुद के मन को तसल्ली दी कि होगी कोई वजह और आजकल के मर्द भी शर्माने में औरतों से कम नहीं हैं.

यह सिलसिला लगातार चला तो शर्म छोड़ते खुद नीतू ने पहल की लेकिन यह जानसमझ कर वह सन्न रह गई कि रामजी मानसिक ही नहीं बल्कि शारीरिक तौर पर भी अक्षम है. एक झटके में आसमान से जमीन पर गिरी नीतू की हालत काटो तो खून नहीं जैसी हो गई थी. घर के कामकाज करती नीतू को लगने लगा था कि उस की हैसियत एक नौकरानी से ज्यादा कुछ नहीं है और बाबूलाल रामजी ने उसे धोखा दिया है. यह सोच कर वह चोट खाई नागिन की तरह फुंफकारने लगी. इस पर रामजी ने उसे मारना पीटना शुरू कर दिया तो वह मायके चली गई और दहेज की रिपोर्ट भी लिखा दी. बेटेबहू के बीच अनबन की असल वजह जब बाबूलाल को पता चली तो वह अवाक रह गया

अब उसे समझ आया कि क्यों बातबात पर नीतू गुस्सा होती रहती है. इधर दहेज की रिपोर्ट तलवार बन कर उस के सिर पर लटक रही थी. रामजी को तो कोई फर्क नहीं पड़ता था लेकिन पुलिस काररवाई से उस का नप जाना तय था. एक समझदार ससुर की तरह बाबूलाल मऊ नीतू के मायके पहुंचा और दुनिया की ऊंच नीच और इज्जत दुहाई देते उसे मना कर वापस ले आया. यह पिछले साल नवरात्रि की बात है. नीतू दोबारा ससुराल गई. पत्नी क्यों मायके चली गई थी और फिर वापस क्यों गई और सेक्स से अंजान रामजी को इन बातों से कोई सरोकार नहीं था.

हालात देख बाबूलाल के मन में पाप पनपा और उस ने नीतू से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दीं. किसी नएनवेले आशिक की तरह बाबूलाल नीतू की हर पसंदनापसंद का खयाल रखने लगा तो नीतू भी उस की तरफ झुकने लगी. आखिर उसे भी पुरुष सुख की जरूरत थी, जिसे वह कहीं बाहर से हासिल करती तो बदनामी भी होती और गलत भी वही ठहराई जाती. देहसुख का अघोषित अनुबंध तो बाबूलाल और नीतू के बीच हो गया लेकिन पहल कौन और कैसे करे, यह दोनों को समझ नहीं आ रहा था. मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी वाली बात इन दोनों पर इसलिए लागू नहीं हो रही थी कि दोनों के बीच कोई काजी था ही नहीं. दोनों भीतर ही भीतर सुलगने लगे थे पर शायद लोकलाज का झीना सा परदा अभी बाकी था.

यह परदा भी एक दिन टूट गया जब आंगन में नहाती नीतू को बाबूलाल ने देखा. उस के दुधिया और भरे मांसल बदन को देखते ही बाबूलाल के जिस्म में चीटियां सी रेंगी तो सब्र ने जवाब दे दिया. एकाएक उस ने नीतू को जकड़ लिया. नीतू ने कोई एतराज नहीं जताया. वह तो खुद पुरुष संसर्ग के लिए बेचैन थी. उस दिन जो हुआ नीतू के लिए किसी मनोकामना के पूरी होने से कम नहीं था. बाबूलाल को भी सालों बाद स्त्री सुख मिला था, सो वह भी निहाल हो गया.

अब यह रोजरोज का काम हो गया था. दोनों को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. रामजी जैसे ही बिस्तर पर कर सोता था, नीतू सीधे बाबूलाल के कमरे में जा पहुंचती थी. उम्र और रिश्तों का लिहाज नाजायज संबंधों में नहीं होता और आमतौर पर उन का अंत में किसी तीसरे का रोल जरूर रहता है. पर इन दोनों पर यह बात लागू नहीं थी. ससुर की मर्दानगी पर निहाल हो चली नीतू ने एक दिन बाबूलाल से साफ कह दिया कि अब मुझ से शादी करो नहीं तो

इसनहीं तोमें छिपी धमकी बाबूलाल को समझ रही थी और मजबूरी भी, लेकिन जो जिद नीतू कर रही थी उसे वह पूरी नहीं कर सकता था. अब जा कर बाबूलाल को समाज और रिश्तों के मायने समझ आए. समझाने और मना करने पर नीतू झल्लाने लगी थी, जिस से बाबूलाल घबराया हुआ रहने लगा था. नीतू की लत तो उसे भी लग गई थी पर उस पर लदी शर्त उस से पूरी करते नहीं बन रही थी.

साफ है बाबूलाल बहू के जिस्म को तो भोगना चाहता था लेकिन समाज को ठेंगा बता कर उसे पत्नी बनाने की बात सोचते ही उस के पैरों तले से जमीन खिसकने लगती थी. जितना वह समझाता था नीतू उसी तादाद में एक बेतुकी जिद पर अड़ती जा रही थी. अब बाबूलाल नीतू से बचने के बहाने ढूंढने लगा था, जिन में से एक उसे मिल भी गया था कि फसल पक रही है, इसलिए उसे चौकीदारी के लिए खेत पर सोना पड़ेगा. इस के लिए उस ने खेत में झोपड़ी भी डाल ली थी.

नीतू जब शहर से मजदूरी कर लौटती थी तब तक बाबूलाल खेत पर जा चुका होता था. कुछ दिन ऐसे ही बिना मिले गुजरे तो नीतू का सब्र जवाब देने लगा. वैसे भी वह महसूस रह रही थी कि बाबूलाल अब उस में पहले जैसी दिलचस्पी नहीं लेता. 25 मार्च को नीतू जब सहेलियों के साथ लौटी तो उसे याद आया कि अगले दिन उसे मायके जाना है. मायके जाने से पहले वह अपनी प्यास बुझा लेना चाहती थी. इसलिए सीधे खेत पर पहुंच गई और बाबूलाल को इशारा किया कि आज रात वह यहीं रुकेगी तो बाबूलाल के हाथ के तोते उड़ गए, क्योंकि रात में दूसरे किसान तंबाकू और बीड़ी के लिए उस के पास आते रहते थे.

समझाने की कोशिश बेकार थी फिर भी बाबूलाल ने दूसरे किसानों के आनेजाने की बात बताई तो नीतू ने खुद अपने हाथों से अपने कपड़े उतार लिए और धमकी देते हुए बोली, ‘‘खुले तौर पर मुझ से बीवी की तरह पेश आओ नहीं तो पुलिस में रिपोर्ट लिखा दूंगी.’’ उस दिन सुबह वह बाबूलाल से कह भी रही थी कि रात में घर पर ही मिलना. रोजरोज की धमकियों और परेशानियों से तंग आ गए बाबूलाल को कुछ नहीं सूझा तो उस ने बेरहमी से नीतू की हत्या कर दी और स्तनों को खरोंचा, जिस से मामला सामूहिक बलात्कार का लगे. नीतू का गुप्तांग भी उस ने इसी वजह के चलते जलाया था.

नीतू की हत्या पर वह उस की लाश को कंधे पर उठा कर ले गया और आम के बाग में फेंक आया. पुलिस को दिए शुरुआती बयान में वह रामजी को फंसा देना चाहता था जिस से खुद साफ बच निकले. पर ऐसा नहीं हो पाया. ससुर बहू के अवैध संबंधों का यह मामला अजीब इस लिहाज से है कि इसे और ज्यादा ढोने की हिम्मत नीतू में नहीं बची थी और वह अधेड़ ससुर को ही पति बनाने पर उतारू हो आई थी यानी राजकुमार, हेमामालिनी, कमल हासन और पद्मिनी कोल्हापुरे अभिनीत फिल्मएक नई पहेलीकी तर्ज पर वह अपने ही पति की मां बनने तैयार थी.

बड़ी गलती बाबूलाल की है जिस की सजा भी वह भुगत रहा है. उस ने पहले पागल बेटे की शादी करा दी और जब बेटा बहू की शारीरिक जरूरतें पूरी नहीं कर पाया तो खुद पाप की दलदल में उतर गयानीतू रखैल की तरह नहीं रहना चाह रही थी. साथ ही वह दुनियादारी की परवाह भी नहीं कर रही थी, इसलिए उस से छुटकारा पाने के लिए बाबूलाल को उस की हत्या ही आसान रास्ता लगा पर कानून के हाथों से वह भी नहीं बच पाया.

सिख महिला ने भारत में तीन बच्चों को छोड़ा पाकिस्तान में किया निकाह

किरनबाला धार्मिक जत्थे के साथ पाकिस्तान गई तो थी धार्मिक यात्रा पर, लेकिन वहां जा कर उस ने केवल इसलाम धर्म कबूला बल्कि निकाह भी कर लिया. आईएसआई की गतिविधियों के चलते उस की भूमिका संदेह के घेरे में है…   

साल बैसाखी के पर्व पर भारत से सिख हिंदू श्रद्धालुओं का एक जत्था पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा पंजा साहिब ननकाना साहिब जाता है. वैसे समय समय पर गुरुओं के प्रकाशपर्व या गुरुपर्व पर श्रद्धालु पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारों के दर्शन, सेवा आदि करने जाते रहते हैं. पर 13 अप्रैल, 2018 की बैसाखी के पर्व का अपना एक विशेष महत्त्व होता है.

 वहां जाने वाले श्रद्धालुओं में उस समय एक अजीब सा उत्साह होता है. जो जत्था पाकिस्तान जाता है, उस की तैयारियां और श्रद्धालुओं की बुकिंग का काम कई महीने पहले से ही शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की देखरेख में किया जाता है और जत्थे को सहीसलामत पाकिस्तान ले कर जाने और दर्शन करवा कर वहां से वापस भारत आने तक की जिम्मेदारी एसजीपीसी की ही होती है. इस साल 12 अप्रैल को एसजीपीसी के कार्यकारी सदस्य गुरमीत सिंह की अगुवाई में 717 सदस्यों का जत्था गुरुद्वारा पंजा साहिब में बैसाखी का जश्न मनाने के लिए भारत से पाकिस्तान के लिए रवाना हुआ.

पाकिस्तान के पवित्र मंदिरों, गुरुद्वारों की यात्रा करने के बाद यात्री जत्था जब 21 अप्रैल को वापस भारतपाक बौर्डर पर पहुंचा तो पता चला कि जत्थे में एक यात्री कम है. इस मामले में जब छानबीन की गई तो पंजाब के होशियारपुर जिले के गढ़शंकर की एक सिख महिला किरनबाला जत्थे में नहीं थी. वह तीर्थयात्रा के दौरान गायब हो गई थी. उस समय ऐसा संभव नहीं था कि किरनबाला की तलाश की जाए, अत: जत्था किरनबाला के बिना ही अमृतसर लौट आया. 

किरनबाला हुई लापता बाद में पता चला कि जत्थे से अलग हो कर किरनबाला ने 16 अप्रैल, 2018 को लाहौर में एक मुसलमान युवक से विवाह कर लिया था. यात्रियों से पूछताछ के बाद पता चला कि पंजा साहिब से लाहौर लौटते समय रावी नदी के निकट से ही किरनबाला अचानक बस से गायब हा गई थी. वह अपना सामान भी बस में ही छोड़ गई थी. उस समय इस बात की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया था कि उस के मन में क्या खिचड़ी पक रही है.

किरनबाला एसजीपीसी के प्रतिनिधिमंडल की ओर से बतौर तीर्थयात्री 12 अपैल को पाकिस्तान रवाना हुई थी. वह भारतीय पासपोर्ट पर पाकिस्तानी वीजा के साथ गई थी, जो 21 अप्रैल तक वैध थाबाद में उस ने इस्लामाबाद में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय को चिट्ठी लिख कर अनुरोध किया कि मैं ने लाहौर के दारुल उलूम जामिया नईमिया में अपनी मरजी से इसलाम धर्म अपनाया है और लाहौर के हंजरवाल मुलतान रोड निवासी मोहम्मद आजम से निकाह कर लिया है. इसलिए मेरे वीजा की अवधि बढ़ाई जाए ताकि मैं अपने शौहर के साथ पाकिस्तान में रह सकूं.

आवेदन में उस का नाम आमना बीबी लिखा था. मंत्रालय ने उस की अरजी स्वीकार कर वीजा की अवधि 30 दिन के लिए बढ़ा दी. यह मामला पाकिस्तानी मीडिया में भी चर्चित हो गया. यह जानकारी मिलने के बाद एसजीपीसी और भारतीय सुरक्षा एजेंसियों में हड़कंप मच गया. सुरक्षा एजेंसियों को जांच के बाद पता चला कि किरनबाला को सिख जत्थे के साथ श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे के मैनेजर की सिफारिश पर जत्थे के साथ पाकिस्तान भेजा गया था. जब मैनेजर के बारे में पता किया गया तो जानकारी मिली कि वह छुट्टी ले कर कनाडा जा चुका है.

खुफिया एजेंसियों ने मैनेजर का भी रिकौर्ड खंगालना शुरू कर दिया कि उस की ओर से अब तक पाकिस्तान गए सिख श्रद्धालुओं के जत्थे में किनकिन लोगों की सिफारिश की गई है. कुछ केंद्रीय एजेंसियों और राज्य की खुफिया एजेंसियों के अधिकारियों ने भी एसजीपीसी के कर्मचारियों से बात कर के तथ्य जुटाने की कोशिश की. खुफिया एजेंसियों का अलर्ट खुफिया एजेंसियां यह पता लगाने की कोशिश कर रही थीं कि किरनबाला ने जत्थे के साथ जाने के लिए अपने क्षेत्र के एसजीपीसी के सदस्यों से सिफारिश करवा कर अमृतसर जिले के रहने वाले उस मैनेजर से ही क्यों सिफारिश करवाई. यह मैनेजर एक पूर्वमंत्री के पीए का अतिकरीबी था.

किरनबाला पंजाब में अपने 3 बच्चे छोड़ गई थी, जिन में 2 बेटे और एक बेटी है. लेकिन पाकिस्तान में मोहम्मद आजम से शादी करने के बाद वह अपने 3 बच्चों के होने से भी मुकर गई. उस ने पाकिस्तानी मीडिया से कहा कि उस के कोई बच्चा नहीं है. अपने तीनों बच्चों को उस ने अपनी मौसी के बच्चे बताया. जबकि उस की सास और ससुर ने बताया कि किरनबाला वैसे तो 5 बच्चों की मां है. उस के एक बच्चे की मौत उस के जन्म के 4 दिन बाद ही हो गई थी, जबकि दूसरा बच्चा मृत पैदा हुआ था.

अपनी बात को साबित करने के लिए उस के ससुर तरसेम सिंह ने किरनबाला का आधार कार्ड, राशन कार्ड और किरनबाला के तीनों बच्चों के जन्म प्रमाणपत्र, बीपीएल कार्ड और बेटी के साथ खोले गए बैंक खाते की प्रतियां भी दिखाईं. पाकिस्तान जाते समय किरनबाला 12 साल की अपनी बड़ी बेटी को यह समझा कर गई थी कि वह 21 तारीख को लौट आएगी. तब तक वह अपने छोटे भाइयों का ध्यान रखे. उस ने बच्चों को यह भी समझाया था कि वह दादादादी की बात मानें और घर में किसी को तंग करें.

किरनबाला की पृष्ठभूमि किरनबाला का परिवार मूलरूप से पठानकोट के गांव शेरपुर का निवासी था. लेकिन उस के पिता मनोहरलाल लंबे समय से उत्तरी दिल्ली के मुखर्जीनगर इलाके में रहने लगे थे. किरन का जन्म पंजाब के होशियारपुर  के गढ़शंकर गांव में हुआ था. मातापिता के अलावा मायके में उस की एक छोटी बहन और छोटा भाई है. बहन की शादी हो चुकी है, जबकि भाई दिल्ली में पुरानी गाडि़यों की खरीदफरोख्त का काम करता है.

किरनबाला के ससुर तरसेम सिंह के मुताबिक, वह सन 1971 की जंग में भारतीय सेना में सेवा के दौरान जख्मी हो गए थे. इस के बाद वह वीआरएस ले कर घर लौट आए थे. सन 2005 में वह अपने बेटे को फौज में भरती कराने के लिए दिल्ली गए थे. दिल्ली प्रवास के दौरान उन के बेटे नरिंदर की किरनबाला से मुलाकात हो गई. किरन का घर भरती केंद्र के पास ही था. उस वक्त किरनबाला 10वीं कक्षा में पढ़ती थी. इस दौरान कब उन के बेटे और किरन के बीच प्यार परवान चढ़ा, इस का पता परिजनों को भी नहीं लगा और फिर एक दिन उन का बेटा नरिंदर किरनबाला को साथ ले कर घर आ गया.

उस ने बताया कि किरन अपना घर छोड़ कर उस के साथ घर बसाने के लिए आई है और अब वह इस घर की बहू बन कर यहां रहेगी. उस समय किरन की उम्र 18 साल थी. शादी के बाद किरन ने 5 बच्चों को जन्म दिया, जिन में से 2 बच्चों की मौत हो गई थी और 3 बच्चे मौजूद हैंनरिंदर की सेना में भरती तो नहीं हो सकी पर उस ने एक गैस एजेंसी में डिलीवरीमैन का काम करना शुरू कर दिया था. वह थोड़ेथोड़े समय बाद दिल्ली जाया करता था. इसी बीच नवंबर, 2013 को एक दुर्घटना में नरिंदर की मौत हो गई.

बेटे की मौत के बाद नवंबर, 2013 में ही किरन घर छोड़ कर अपने मायके दिल्ली चली गई थी. अपने पोतीपोतों के बिना तरसेम का मन नहीं लग रहा था तो वह बहू और बच्चों को लेने के लिए दिल्ली चले गए और बाकायदा एग्रीमेंट कर के किरनबाला को अपने यहां ले आए. उन्होंने कई बार किरनबाला से दूसरी शादी करने की भी बात कही और कहा कि वह खुद अपनी बेटी की तरह उस का कन्यादान करेंगे, लेकिन वह दूसरी शादी के लिए राजी नहीं हुई. लिहाजा अब उस का इस तरह घर छोड़ कर पाकिस्तान जाना और निकाह करना तरसेम सिंह की समझ में नहीं रहा था.

वहीं किरनबाला की सास कृष्णा कौर के मुताबिक, बेटे की मौत के बाद किरनबाला का चालचलन कुछ अच्छा नहीं रहा था. कई बार उन्होंने उसे रंगेहाथ पकड़ भी लिया था. इस बीच साल डेढ़ साल के लिए उस ने नंगल के करीब टाहलीवाल में एक फैक्ट्री में भी काम किया, लेकिन जब लोग उस के बारे में तरहतरह की बातें बनाने लगे तो उन्होंने उसे काम करने से मना कर दिया था. किरन की बदल गई पहचान तरसेम सिंह का कहना है कि अगर उन्हें जरा भी पता होता कि किरन के मन में ऐसा कुछ चल रहा है तो वह उसे किसी भी कीमत पर पाकिस्तान नहीं जाने देते. पाकिस्तान जाने के बाद 15 तारीख तक तो वह लगातार उन्हें फोन कर के बच्चों और परिवार का हाल जानती रही थी लेकिन एकाएक उस ने बच्चों परिवार से मुंह मोड़ लिया

इस के बाद 16 तारीख को उस ने तरसेम सिंह को फोन कर के कहा, ‘‘पिताजी, अब मैं लौट कर नहीं आऊंगी. मैं ने यहां इसलाम धर्म कबूल कर के मोहम्मद आजम नाम के शख्स से निकाह कर लिया है. और अब मेरा नाम आमना बीबी हो गया है.’’ तरसेम सिंह को लगा कि किरन मजाक कर रही है. इस पर उन्होंने उस से कहा, ‘‘क्यों मजाक करती हो बेटा. छोड़ो कोई बात नहीं, तुम यात्रा पूरी कर के जल्दी घर आ जाओ. बच्चे और हम सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’

इस के बाद किरन का कोई फोन नहीं आया और ही उस से कोई संपर्क हो सका था. 18 अप्रैल, 2018 को जब तरसेम सिंह को एक अंतरराष्ट्रीय संवाद एजेंसी के पत्रकार का फोन आया और उस ने भी वही बात दोहराई तो वह चकित रह गए. तरसेम का मानना है कि किरन शायद पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई या आतंकी संगठनों की साजिश का शिकार हो सकती है. जिस तरह वह बात कर रही है और जो बोल रही है, उस से जाहिर है कि उस का ब्रेनवाश किया गया है. अब वह वही बोल रही है जो आईएसआई या आईएसआईएस के लोगों ने उसे सिखाया होगा.

लेकिन इतना सब होने के बावजूद अब भी वह बच्चों की खातिर किरनबाला को वापस लाना चाहते हैं ताकि वह किसी साजिश का शिकार हो कर नारकीय जीवन जीने को मजबूर हो सके और बच्चे भी मां की देखभाल से महरूम रहें. तरसेम सिंह ने अंदेशा जताया कि शायद सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिए वह पाकिस्तान के लोगों के संपर्क में आई होगी. इस के बाद वह शायद आईएसआई के हाथों में पड़ गई हो. यह भी हो सकता है कि उसे धर्म परिवर्तन या फिर से शादी करने के लिए मजबूर किया गया हो.

किरनबाला ने फैक्ट्री में काम कर के बचाए अपने पैसों को अपने पास ही रखा था. पति की मौत के बाद मुआवजे के तौर पर मिले 25 हजार रुपए भी उसी के पास थे. इन्हीं पैसों से साल भर पहले उस ने एक स्मार्टफोन खरीदा था, जिस के बाद वह सोशल नेटवर्किंग साइटों से जुड़ी और सोशल नेटवर्क पर चैटिंग और वाइस काल में ऐसी डूबी कि ये कारनामा कर डाला. वह घंटों तक फोन पर बातें करती रहती थी. जब उस के ससुर उस पूछते तो वह अपनी मां, भाई या किसी अन्य रिश्तेदार से बात करने की बात कह कर टाल देती थी.

तरसेम सिंह उसे फोन पर ज्यादा बात करने को ले कर टोकते थे, लेकिन उस ने कभी उन की एक नहीं सुनी और फोन पर उस की यह बातचीत लगातार बढ़ती ही चली गई. सोशल नेटवर्किंग से जुड़ी मोहम्मद आजम से किरनबाला की पड़ोसन और सहेली रही गिस्टी ने बताया था, ‘‘पति की मौत के बाद अपने मायके दिल्ली रहने के दौरान ही वह मोहम्मद आजम के संपर्क में आई थी.’’ किरन ने मुझे बताया था कि आजम दुबई में रहता है. पाकिस्तान जाने से पहले किरन ने अपने बैंक खाते से साढ़े 14 हजार रुपए निकलवाए थे. किरन फेसबुक पर ज्यादा सक्रिय थी. वह बिग लाइव, एक वीडियो आधारित सोशल नेटवर्क साइट पर भी बहुत सक्रिय थी.

किरन ने नरिंदर के साथ प्रेम विवाह करने के लिए हिंदू धर्म से सिख धर्म अपनाया था और अब मोहम्मद आजम से निकाह करने के लिए इसलाम धर्म को कबूल कर लिया. पाकिस्तान जाने से पहले वह दिल्ली के अस्पताल में अपने बीमार पिता को भी देखने गई थी. किरन द्वारा यह कदम उठाने के बाद उस के बच्चे भी डरने लगे हैं. किरन की बेटी अपनी मां के धर्म परिवर्तन कर पुनर्विवाह करने पर काफी शर्मिंदा है. वह स्कूल जाना नहीं चाहती. वह कहती है कि बच्चे उसे तंग करते हैं और उस का मजाक उड़ाते हैं. किरन की भूमिका संदेह के घेरे में इस बीच होशियारपुर, महिलपुर और गढ़शंकर के सभी निर्वाचित और चुने गए एसजीपीसी सदस्यों ने किरन के लिए वीजा की सिफारिश करने से इनकार कर दिया. सुरिंदर सिंह भुलेवाल राथन, जंगबहादुर सिंह, रणजीत कौर और चरनजीत सिंह ने कहा कि उन्हें बैसाखी तीर्थयात्रा के लिए उस का कोई आवेदन नहीं मिला था.

तरसेम सिंह ने अब इस मामले में एसजीपीसी की भूमिका पर सवाल उठाए हैं. उन का कहना है कि इस मामले में एसजीपीसी उन की लगातार अनदेखी कर रही है. लिहाजा, इस की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए. उन्होंने मांग की है कि किरन को वीजा दिलाने के लिए मदद करने वालों, उस के नाम की सिफारिश करने वाले एसजीपीसी के अधिकारियों और अन्य लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया जाना चाहिए. तरसेम सिंह ने होशियारपुर के एसएसपी को दी गई शिकायत में देश को बदनाम करने और धोखा देने के आरोप में किरनबाला के खिलाफ भी मामला दर्ज किए जाने की मांग की. उन्होंने आरोप लगाया है कि इस पूरे प्रकरण में पाकिस्तानी पुलिस भी शामिल रही है. किरन पाकिस्तानी पुलिस के संपर्क में थी.

तरसेम सिंह ने बताया कि नंगल के रहने वाले और पाकिस्तान जत्थे में गए नछत्तर सिंह से उन की फोन पर बात हुई थी. तरसेम के मुताबिक, नछत्तर ने उन्हें बताया था कि पाकिस्तान में प्रवेश करने के बाद से ही पाकिस्तानी पुलिस किरन के आसपास मंडरा रही थी. पाकिस्तानी पुलिस के अधिकारी और कर्मचारी थोड़ीथोड़ी देर में उस से बातचीत कर रहे थे.

नछत्तर का कहना था कि लाहौर पहुंचने के बाद जब जत्थे में शामिल महिलाओं पुरुषों को अलगअलग कमरों में भेजा गया तो भी पाकिस्तानी पुलिस के कर्मचारी किरन से मिलते रहे थे. इस के बाद 15 अप्रैल तक लगातार किरन जत्थे के साथ रही और पाकिस्तान पुलिस ने उस से संपर्क बनाए रखा था. इस के बाद 16 अप्रैल को वह रुमाला लाने के बहाने से जत्थे से अलग हो कर गायब हो गई थी. इस मामले की होनी  चाहिए उच्चस्तरीय जांच तरसेम सिंह ने एसएसपी को शिकायती पत्र दे कर किरन के वहां जाने, जत्थे में शामिल होने और वहां से गायब होने के मामले में एसजीपीसी के अधिकारियों और पदाधिकारियों पर संदेह जताते हुए मामले की जांच कराए जाने और संबंधित लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर कड़ी काररवाई किए जाने की मांग की है.

तरसेम सिंह ने किरनबाला को पाकिस्तान सरकार से तालमेल कर वापस लाए जाने की मांग को ले कर भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अविनाश राय खन्ना से भी मुलाकात की. खन्ना को दिए पत्र में तरसेम सिंह ने कहा है कि किरनबाला को पाकिस्तान से वापस ला कर परिवार को सौंपा जाए, ताकि उस के बच्चों की परवरिश सही ढंग से हो सके. दूसरी ओर, किरनबाला उर्फ आमना बीबी ने पति मोहम्मद आजम के साथ लाहौर हाईकोर्ट में अब याचिका दायर की है. इस में बताया गया है कि उस ने दिल्ली में रहते हुए पहले फेसबुक के माध्यम से लाहौर निवासी मोहम्मद आजम से दोस्ती की थी और अब पाकिस्तान आ कर रजामंदी से इसलाम धर्म कबूल कर के उस ने निकाह भी कर लिया है. इसलिए पाकिस्तान सरकार उसे यहां की नागरिकता दे, यह उस का अधिकार है.

इस सब के बीच आमना बीबी बनने के बाद उस के पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने के वायरल वीडियो ने खुफिया एजेंसियों को सकते में डाल दिया है. इस से उस के ससुर तरसेम सिंह की इस बात को बल मिल रहा है कि कहीं वह आईएसआई की एजेंट तो नहीं बन गई. वीडियो फुटेज में किरनबाला अपने नए पाकिस्तानी पति मोहम्मद आजम के साथ कोर्ट के बाहर खड़ी दिखाई दी. बहरहाल, यह दिल का मामला है या कोई बड़ी साजिश, कहा नहीं जा सकता. परंतु किरनबाला से आमना बीबी बनी पाकिस्तान की नई दुलहन के बारे में अब ताजा बात यह सामने आई है कि अपने फेसबुक के प्रेम और इसलाम धर्म के साथ वफादारी निभाते हुए उस ने लाहौर स्थित अपने घर में रोजे रखे. किरन वहां पर बच्चों से उर्दू भी सीख रही है और कुरआन शरीफ की आयतें भी याद कर रही है.

इन दिनों उस का पति काम के सिलसिले में सऊदी अरब चला गया है. पंजाब पुलिस और अन्य खुफिया एजेंसियां अब किरन के फेसबुक एकाउंट को स्कैन कर के गहनता से इस मामले की जांच कर रही हैं.

  

जादुई चश्मा जिससे समुद्र के अंदर तेल और दिखता था यूरेनियम का भंडार

गुजरात में कारोबार करने गए कारोबारी भानुप्रताप को बंधक बना कर बदमाशों ने 21 लाख रुपए ठगे थे. इस के बाद भानुप्रताप ने भी गुजरात के कारोबारियों को जादुई चश्मा के नाम पर ऐसा ठगना शुरू किया कि…   

लालच बुरी बला होती है. यह समझते हुए भी गुजरात के कुछ कारोबारी बदमाशों के चंगुल में फंस करजादुई चश्माऔर नेपाल की महारानी केहीरों का हारलेने के लिए बदमाशों के चंगुल में फंस जाते थे. बदमाशों ने अपना जाल गुजरात, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे 3 प्रदेशों में फैला रखा थागुजरात से शिकार को फंसा कर लखनऊ बुलाया जाता था, फिर उन्हें लखनऊ में रखा जाता था. लाखों की फिरौती देने के बाद भी कारोबारी बदमाशों की पकड़ से आजाद नहीं हो पाता था. बदमाश फिरौती लेने के लिए अमानवीय व्यवहार करते थे. लखनऊ पुलिस ने इन लोगों को पकड़ कर 3 राज्यों में फैले इस ठगी के कारोबार का परदाफाश कर दिया.

‘‘मोटा भाई, यह बात केवल खास लोगों को ही बताता हूं. आप मेरे लिए बहुत खास हो और यह जादुई चश्मा आप के लिए बहुत खास है. आप जैसे लोगों के लिए ही इसे बनाया गया है.’’

भानु ने गुजरात के जूनागढ़ में रहने वाले कारोबारी सुरेशभाई से कहा. ‘‘तुम्हारी बात सही है भाया, पर यह तो बताओ कि तुम्हारे इस खास जादुई चश्मे का राज क्या है? क्याक्या दिखता है इस से?’’ सुरेश ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘मोटा भाई, यह पूछो क्या नहीं दिखता. समुद्र के अंदर कहां तेल और यूरेनियम हो सकता है, किसी पुरानी हवेली में कहां खजाना हो सकता है, हीरे की खदानें कहां हैं, यह सब इस जादुई चश्मे से दिख जाता है.’’ भानु ने जादुई चश्मे की खासियत बताते हुए कहा.

‘‘बहुत करामाती चश्मा है यह तो.’’ जादुई चश्मे के गुण सुन कर सुरेश चकित रह गया.

 ‘‘और नहीं तो क्या मोटा भाई. सालों की मेहनत का नतीजा है. सरकार इसे बाजार में बेचना थोड़े ही चाहती है. इसलिए नजर बचा कर बेचना पड़ रहा है.’’ जादुई चश्मा के बारे में भानु ने ज्यादा जानकारी देते हुए कहा.

‘‘कितनी गहराई तक देख लेता है?’’ सुरेशभाई की उत्सुकता लगातार बढ़ती जा रही थी.

‘‘मोटा भाई, 7 फीट गहराई में तो यह साफ देख लेता है. अगर उस से गहरा कुछ है तो यह सिगनल भेज देता है.’’ भानु ने उस की दूसरी खासियत भी बताई.

‘‘तब तो यह कपड़ों के आरपार भी देख लेता होगा?’’ सुरेशभाई का लालच बढ़ गया था.

‘‘मोटा भाई, एक रुपए में 6 चवन्नी करना चाहते हो तो जादुई चश्मा ले लो फिर देखना क्याक्या दिखता है.’’ सुरेश की उत्सुकता को देख कर भानु ने कहा.

‘‘इस की कीमत तो बताई नहीं?’’

‘‘इस की कीमत तो माटी के भाव जैसी है. केवल एक करोड़ रुपए.’’

‘‘यह तो बहुत ज्यादा है.’’

‘‘ज्यादा नहीं है. एक बार भी इसे लगा कर वह दिख गया जो सब को नहीं दिखता तो कीमत से कई गुना मिल जाएगा.’’

‘‘कुछ भी हो पर एक करोड़ होता तो ज्यादा ही है. कैसे देखने को मिलेगा?’’

‘‘मोटा भाई, ज्यादा लग रहा है तो 2 लोग मिल कर ले लो. आप दोनों को लखनऊ आने का हवाई टिकट करा देता हूं. यहां होटल में रुको, चश्मा देखो और फिर पैसे दे कर ले जाओ.’’ भानु ने मछली फंसती देखी और उसे यकीन हो गया कि अब सौदा हो जाएगा.

‘‘ठीक है भाया, हम और साथी केतनभाई लखनऊ आएंगे, तुम जादुई चश्मा तैयार रखना.’’

भानुप्रताप सिंह बहराइच के केवलपुर का रहने वाला था. सूरत से कपड़े ले जा कर वह नेपाल में बेचने का धंधा करता था. गुजरात में 3 साल पहले काम शुरू करने वाले भानुप्रताप ने सोचा था कि कपड़े बेच कर वह बड़ा कारोबारी बन जाएगा. पर उस की यह धारणा जल्द ही गलत साबित हुई थी. गुजरात में कारोबार करने गए भानुप्रताप सिंह को खुद ठगी का शिकार होना पड़ा था. ठगी करने वाले बदमाशों ने उसे बंधक बना कर 21 लाख रुपए ऐंठ लिए. इतना पैसा देने से उस का पूरा कारोबार डूब गया. यह पैसा उसे कई लोगों से कर्ज ले कर देना पड़ा था.

इस घटना से भानुप्रताप को पता चल गया कि ईमानदारी से कारोबार करना बहुत मुश्किल है. ऐसे में उस ने अब पैसा कमाने के लिए ठगी का धंधा शुरू कर दिया. जिस तरह से वह फंसा था, वैसे ही उस ने भी दूसरों को फंसाना शुरू किया. भानुप्रताप ने बहराइच के रहने वाले जितेंद्र सोनी को अपने साथ लिया और वापस गुजरात पहुंच गया. यहां उस ने कई बेरोजगारों को अपने साथ मिलाया. ये युवक बिना किसी मेहनत के लाखों रुपया कमाना चाहते थे. इन का काम गुजरात में रहने वालों से संपर्क कर उन्हें जादुई चश्मा बेचने का था. 

गांधीनगर के रहने वाले कैमिकल कारोबारी भूपेंद्र पटेल को भी इन लोगों ने संपर्क कर जादुई चश्मा खरीदने के लिए कहा. इस के लिए 6 जनवरी को उन्हें लखनऊ बुलाया और बंधक बना कर रख लिया. इस के बाद फिरौती के 15 लाख रुपए वसूल किए. बंधक बना कर भूपेंद्र को कई तरह से यातनाएं दी गईं. बेल्ट से पिटाई और नाखून उखाड़ने तक की यातना दी गई. वह जान बख्श देने की दुहाई देते रहे.

भूपेंद्र घर वालों के संपर्क में थे. किसी तरह से 14 जनवरी को बंधकों के चंगुल से आजाद हो कर अपने घर पहुंचे. लगातार मिली प्रताड़ना से उन का जिस्म बुखार से तप रहा था. अगले ही दिन उन की मौत हो गई. घर वालों को पहले लगा कि बुखार की वजह से मौत हुई है. जब उन का अंतिम संस्कार की तैयारी हो रही था तो घर वालों ने देखा कि उन के नाखून गायब थे. शरीर पर डंडे की पिटाई के निशान दिख रहे थे. भूपेंद्र का मोबाइल खंगालने के बाद पता चला कि वह एक सप्ताह लखनऊ में थे. उन के बैंक खातों से लाखों रुपए निकाले गए थे. पुलिस की छानबीन से पता चला कि जादुई चश्मा लेने के लिए भूपेंद्र ने कई लोगों से ले कर पैसे दिए थे. भानु का गैंग जादुई चश्मा बेचने में लगा हुआ था.

भानु ने खुद को कारोबारी बता कर जानकीपुरम कालोनी में रहने वाले आफाक अहमद से उन के साढ़ू नियाज अहमद का मकान किराए पर लिया, जो सऊदी में रहते हैं. इस के बाद बदमाशों ने जूनागढ़ के दवा कारोबारी सुरेश भाई और सूरत के मयंक भाई और केतन जरीवाला को जादुई चश्मे का झांसा दे कर बुलाया. ये लोग 21 फरवरी को हवाईजहाज से लखनऊ गए. पहले उन्हें रेलवे स्टेशन के पास चारबाग इलाके में होटल में ठहराया गया. यहां पर होटल सस्ते मिल जाते हैं.

यहां से इन्हें बंधक बना कर अड्डे पर ले गए. वहां इन लोगों को प्रताडि़त कर के पैसे वसूल करने शुरू किए. बदमाशों ने तीनों से 20 लाख रुपए वसूले. 28 फरवरी को जब इन्हें दूसरे ठिकाने पर ले जाया जा रहा था तो तीनों व्यापारी औटो से कूद कर भाग निकले. सुरेश ने पुलिस में मुकदमा दर्ज कराया. केतनभाई की लखनऊ के मैडिकल कालेज में 9 मार्च को मौत हो गई. जादुई चश्मा लेने के झांसे में फंसने के बाद व्यापारी को बंधक बना लिया जाता था. इस के बाद रिहाई के लिए उस के रिश्तेदारों से फिरौती मांगी जाती थी. पैसे देने के बाद भी उन्हें रिहा नहीं किया जाता था. जब मुंहमांगी रकम नहीं मिलती थी तो बदमाश कहते थे कि अगर पैसा नहीं मिला तो 20 से 50 लाख रुपए में उन के गुर्दे का सौदा हो रहा है.

इस से घबरा कर कारोबारी खुद पैसे का इंतजाम करने लगता था. फिरौती की रकम हवाला के जरिए वसूल होती थी. ये लोग खुद को व्यापारी बता कर किराए पर पूरा मकान लेते थे. लोगों को वहीं पर बंधक बना कर रखा जाता था. एक माह में 4 से 6 कारोबारियों से वसूली करने के बाद ये लोग मकान छोड़ देते थे. लखनऊ के जानकीपुरम में गुजरात के 6-7 कारोबारियों को लूटने के बाद इन लोगों ने राजस्थान के राजसमंद जिले में अपना ठिकाना बनाया था. वहां भी 3 लोगों से 15 लाख रुपए वसूल चुके थे. धमकी और यातना से परेशान कारोबारी पैसा दे देते थे

लखनऊ पुलिस ने इन बदमाशों की तलाश शुरू कर दी थी. एसपी (ट्रांसगोमती) हरेंद्र कुमार की अगुवाई में यह टीम काम कर रही थी. इस टीम को बदमाशों तक पहुंचना आसान काम नहीं था. सब से अहम भूमिका सर्विलांस सेल की थी. कई नंबरों को सामने रख कर छानबीन शुरू हुई. सर्विलांस और स्वाट टीम के एसआई अजय प्रकाश त्रिपाठी, कांस्टेबल विद्यासागर, रामनरेश कनौजिया, मोहम्मद आजम खां और सुधीर सिंह ने लोकेशन ट्रेस करने का काम शुरू किया.

जानकीपुरम थाने के एसआई दयाशंकर सिंह, कांस्टेबल जितेंद्र प्रताप सिंह को राजसमंद के काकरौली थाने की पुलिस को साथ ले कर उदयपुर जाना पड़ा. वहां इन के ठिकाने पर दबिश दी गई. राजस्थान पुलिस को अपनी नाक के नीचे हो रहे अपराध का पता तक नहीं था. जैसे ही लखनऊ पुलिस ने इन्हें पकड़ा, वहां पुलिस ने खुद के गुडवर्क की खबर फैला दी. वहां दबिश देने पर पुलिस को गुजरात के भावनगर के रहने वाले रामजीभाई, आरिफ, राजकोट के भावेश, दिलीपभाई और बहराइच के भानुप्रताप सिंह को पकड़ा गया. इन लोगों ने गुजरात के कच्छ निवासी इरफान, विनोद, सरफराज को पकड़ रखा था

ये लोग कमरे में रस्सी से जकड़े पड़े थे. इन तीनों को बेरहमी से पीटा गया था. ये लोग बंधकों से 16 लाख रुपए वसूल कर चुके थे. पिटाई से तीनों की चमड़ी उधेड़ी गई थी. इन तीनों ने राजस्थान के राजसमंद जिले के काकरौली थाने में मुकदमा लिखाया. बदमाशों ने सरफराज को गैराज का मालिक समझ कर उठा लिया था. लेकिन वह मैकेनिक निकला. सरफराज को बताया कि उन के पास नेपाल की महारानी का चुराया हुआ हीरों का हार है, जबकि इरफान और विनोद को जादुई चश्मे के झांसे में बुलाया गया था. 

इस गिरोह की सफलता पर बात करते हुए पुलिस ने बताया कि पकड़े गए 5 बदमाशों को काकरौली थाने की पुलिस ने मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया और न्यायिक हिरासत में भेज दिया. जानकीपुरम थाने में दर्ज एफआईआर की विवेचना कर रहे एसएसआई दयाशंकर सिंह ने पांचों बदमाशों को अपनी कस्टडी में लेने के लिए रिमांड की अरजी दी, लेकिन उन्हें लखनऊ लाने की अनुमति नहीं दी गई. अब बदमाशों को वारंट बी बना कर लखनऊ लाया जाएगा, जिस से आगे की पूछताछ की जा सके.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित