फर्जी आईपीएस बनकर खेलता रहा जवान लड़कियों की इज्जत से

इंसान बड़ा फितरती होता है. अपनी फितरत की बदौलत ही वह जाने कितनों की जिंदगी बोझ बना देता है. ऐसा वह कभी पैसों के लिए करता है तो कभी अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए. समीर भी ऐसा ही फितरती इंसान था.   

12 दिसंबर, 2017 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के थाना अशोका गार्डन में काफी भीड़भाड़ थीधीरेधीरे यह भीड़ बढ़ती जा रही थी. लोग यह जानने के लिए उस भीड़ का हिस्सा बनते जा रहे थे कि आखिर यहां हो क्या रहा है? लोग उत्सुकता से एकदूसरे का मुंह भी ताक रहे थे कि यहां हो क्या रहा है? उधर से गुजरने वाला हर आदमी बिना ठिठके आगे नहीं बढ़ रहा था

इस की वजह यह थी कि शायद माजरा उस की समझ में आ जाए. जब उन्हें सच्चाई का पता चला तो सभी के सभी हक्केबक्के रह गए. एक लड़की, जिस की उम्र 23-24 साल रही होगी, वह एक लड़के का गिरेबान पकड़ कर कह रही थी, ‘‘सर, इस ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी. इस ने मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा किया है.’’

इस के बाद उस लड़की ने थाना पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार उस लड़के ने फरजी आईपीएस अधिकारी बन कर उसे शादी का झांसा दिया था. काफी समय तक वह उस की इज्जत को तारतार करते हुए उस के भरोसे से खेलता रहा. यही नहीं, शादी करने के नाम पर उस ने उस से लाखों रुपए भी लिए थे.  लड़की को जब लड़के की सच्चाई का पता चला तो उस ने फरार होने की कोशिश की, लेकिन लड़की ने घर वालों की मदद से उसे पकड़ लिया और थाने ले आई. हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि वह अपनी औलाद को पढ़ालिखा कर इस काबिल बना दे कि वह खूब तरक्की करे

ऐसी ही ख्वाहिश याकूब मंसूरी की भी थी. वह अपनी बेटी जेबा को गेट की तैयारी करवा रहे थे. जबकि मुसलमानों में आमतौर पर यही माना जाता है कि लड़कियों को ज्यादा पढ़ालिखा कर उन से नौकरी थोड़ी ही करानी है. लेकिन याकूब मंसूरी की सोच इस के विपरीत थी. वह जेबा को पढ़ालिखा कर कुछ करने के लिए प्रेरित करने के साथसाथ हर तरह से उस की मदद भी कर रहे थे.

जेबा मंसूरी भी अपने वालिद के सपनों को साकार करने में पूरी ईमानदारी से जुटी थी. वह परीक्षा की तैयारी मेहनत से कर रही थी. वह पढ़ने में भी काफी होशियार थी. उसे पूरी उम्मीद थी कि इस साल वह गेट की परीक्षा पास कर लेगी. इस के लिए वह रातदिन मेहनत कर रही थी. लेकिन जो सपने उस ने बुने थे, उस पर समीर खान की नजर लग गई.

मैट्रीमोनियल साइट से हुई दोस्ती जवान होती लड़की के लिए हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि उन की बेटी के लिए किसी भी तरह एक अच्छा सा लड़का मिल जाए. इस के लिए मांबाप लड़के वालों की तमाम तरह की मांगों को पूरी करने की कोशिश भी करते हैं. अच्छे रिश्ते के लिए ही याकूब मंसूरी ने शादी डाटकौम पर बेटी जेबा की प्रोफाइल बनाई थी

उन्होंने ऐसा बेटी के सुखद भविष्य के लिए किया था. लेकिन हो गया उल्टा. शायद इसीलिए जहां शादी की शहनाई बजनी थी, वहां अब मातम पसरा था. समाज में आज इतना बदलाव गया है कि लड़केलड़कियां अपनी पसंद से शादी करने लगे हैं. इस में कोई बुराई भी नहीं है. क्योंकि जब लड़के और लड़की को जीवन भर साथ रहना है तो पसंद भी उन्हीं की होनी चाहिए

इसीलिए अब परिचय सम्मेलन आयोजित किए जाने लगे हैं. इस से सब से बड़ा फायदा यह हुआ है कि लड़के के साथ लड़की को भी अपनी पसंद का जीवनसाथी मिल जाता है. चूंकि जमाना हाइटेक हो चुका है, इसलिए अब विवाह के लिए जीवनसाथी तलाशने का काम औनलाइन भी होने लगा है. कई प्लेटफार्म लोगों की शादी के लिए अच्छा जरिया बन गए हैं.

जेबा मंसूरी ने थाना अशोका गार्डन पुलिस को जो तहरीर दी थी, उस के अनुसार शादी के नाम पर उस के साथ धोखा हुआ था. जेबा ने नए साल में अपने लिए तरहतरह के जो अरमान पाले थे, नए साल के कुछ दिनों पहले ही उस के साथ जो हुआ, उस से उस के सारे अरमान एक ही झटके में चकनाचूर हो गएउस ने क्या सोचा था और उस के साथ क्या हो गया. शादी के नाम पर उस लड़के ने उस के साथ बहुत भयानक खेल खेला था, जिसे वह चाह कर भी इस जनम में नहीं भुला पाएगी. जेबा ने जो शिकायत दर्ज कराई है, उस के अनुसार उस के शादी के नाम पर धोखा खाने की कहानी कुछ इस प्रकार है

जेबा प्रतियोगी परीक्षा गेट की तैयारी कर रही थी. जवान होती बेटी की शादी के लिए पिता याकूब मंसूरी ने शादी डाटकौम पर प्रोफाइल बना दी थी. शादी डाटकौम के जरिए शादी के लिए उस की प्रोफाइल पर एक रिक्वेस्ट आई. रिक्वेस्ट में दिए मोबाइल नंबर पर याकूब मंसूरी ने बात कीइस बातचीत में उस ने अपना नाम समीर खान बताया था. उस ने बताया कि वह चेन्नई में सीबीआई में बतौर अंडरकवर डीएसपी नौकरी करता है. याकूब ने उस के घर वालों से बात करने की इच्छा जाहिर की तो उस ने अपने पिता अनवर खान का नंबर दे दिया. अनवर खान से समीर खान के बारे में जानकारी ली गई तो पता चला कि उन का बेटा समीर सीबीआई में अंडरकवर डीएसपी है. फिलहाल उस की पोस्टिंग चेन्नई में है.

बातचीत के लिए जेबा को ले गया होटल में इस के बाद समीर ने याकूब मंसूरी से जेबा का मोबाइल नंबर यह कह कर मांग लिया कि वह उस से बात करेगा. अगर वह उसे पसंद आ गई तो वह इस जानपहचान को जल्दी ही शादी जैसे खूबसूरत रिश्ते में बदल देगा. याकूब मंसूरी ने समीर की बातों पर विश्वास कर के उसे जेबा का नंबर दे दिया.

अक्तूबर महीने में एक दिन जेबा के मोबाइल पर समीर ने फोन किया. दोनों में काफी देर तक बातें हुईं. दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने घर परिवार और विचारों के बारे में बताया. समीर ने ऐसी लच्छेदार बातें कीं कि जेबा उस के दिखाए सब्जबाग में फंस गई. इस के बाद अकसर उन की बातें होने लगीं. वाट्सऐप पर भी संदेशों का आदानप्रदान होने लगा.

ऐसे में ही एक दिन समीर ने भोपाल कर जेबा से मिलने की ख्वाहिश जाहिर की, जिसे वह मना नहीं कर सकी. समीर के भोपाल आने की बात पर एक ओर जहां जेबा खुश हो रही थी, वहीं दूसरी ओर अंजाना सा डर भी सता रहा था. क्योंकि किसी से फोन पर बात करना अलग बात होती है और आमनेसामने मिलना अलगलेकिन शादी का मामला था, इसलिए जेबा ने मिलना मुनासिब समझा. आखिर वह समीर को लेने भोपाल रेलवे स्टेशन पर पहुंच गईयह 22 नवंबर, 2017 की बात है. दोनों ने एकदूसरे को देखा तो पहली नजर में ही पसंद कर लिया

समीर ने जेबा के घर जाने के बजाय उस के साथ स्टेशन से सीधे नूरउससबा पैलेस होटल पहुंचा. जबकि जेबा उसे घर ले जाना चाहती थी. लेकिन समीर की मरजी के आगे उस की एक न चली. होटल में उस ने डबलबैड कमरा लिया था, जिस में दोनों 2 दिनों तक रुके. इस बीच समीर ने अपने परिवार के बारे में जेबा को खूब बढ़ाचढ़ा कर बताया. उस के बताए अनुसार, उस के परिवार के ज्यादातर लोग सरकारी नौकरियों में हैं. कोई जज है तो कोई इसी तरह की अन्य सरकारी नौकरी में. अपने पिता के बारे में उस ने बताया कि उन का मुंबई में कपड़ों का बहुत बड़ा बिजनैस है, इसलिए वह वहीं रहते हैं. वह बनारस का रहने वाला है, जहां उस की काफी जमीनजायदाद है.

 समीर ने पसंद किया जेबा को अपने घरपरिवार के बारे में बता कर समीर ने जेबा से कहा कि वह उसे पसंद है और उस से शादी के लिए तैयार है. समीर अच्छे घर का लड़का था और सीबीआई में अफसर था, इसलिए जेबा ने भी हामी भर दी. जेबा के हां करते ही समीर उस से छेड़छाड़ करने लगा. इस के बाद सारी मर्यादाएं लांघते हुए उस ने उस के साथ शारीरिक संबंध बना लिए. 

जेबा भी उस के बहकावे में कर गुनाहों के ऐसे दलदल में जा फंसी, जहां से निकलना किसी भी लड़की के लिए बहुत मुश्किल होता है. भोपाल में 2 दिन रुकने के बाद समीर ने कहा कि औफिशियल काम से उसे दिल्ली जाना है. इस से जेबा को लगा कि वाकई उसे वहां जरूरी काम होगालेकिन बाद में पता चला कि वह सब झूठ था. यह सब जेबा काफी बाद में जान पाई. दिल्ली जाने के बाद समीर ने उसे फोन किया. डरते हुए उस ने बताया कि उन के होटल में रुकने का पता उस के घर वालों को चल गया है, जिस से वे काफी नाराज हैं. उस की बातें सुन कर जेबा शौक्ड रह गई. वह यह क्या कह रहा है, अब क्या होगा, उस की कितनी बदनामी होगी?

समीर ने जेबा को समझाते हुए कहा कि वह बिलकुल परेशान हो. यह बात भोपाल में किसी को पता नहीं है, सिर्फ उस के घर वालों को ही पता है. इस बात से वे काफी नाराज हैं. लेकिन घबराने की कोई बात नहीं है. कुछ दिनों में वह सब संभाल लेगा. वह बिलकुल परेशान हो. वह उन्हें मना लेगा. वह फिर भोपाल रहा है. 2 दिन बाद समीर फिर भोपाल आया और नूरउससबा होटल के उसी कमरे में ही रुका. लेकिन इस बार जेबा होटल में उस के साथ नहीं रुकी, लेकिन उस से मिलने रोज आती रही

अंत में जब समीर ने दबाव डाला तो वह 8 नवंबर से 23 नवंबर तक होटल में रुकी. समीर से उस के शारीरिक संबंध बन ही चुके थे, इसलिए इस बार भी वह उस से शारीरिक संबंध बनाता रहा.जेबा ने ऐतराज जताया तो उस ने होटल में ही काजी को बुला लिया और उन के सामने कहा कि वह उस से निकाह कर के उसे अपनी बीवी मान रहा है. इस तरह से जेबा का निकाह समीर से हो गया. वह समीर की बीवी बन कर रहने लगी, जबकि उन के इस निकाह का कोई लिखित सबूत नहीं था.

 इतने दिनों तक होटल में साथ रुकने के बाद जेबा समीर को अपने मम्मीपापा से मिलवाने के लिए सागर ले गई, जहां मकरोनिया सागर में उस का पुश्तैनी मकान था. वहां भी वह अपनी लच्छेदार बातों के जाल में फंसा कर जेबा के घर वालों के सामने एक अच्छा लड़का बना रहा. याकूब मंसूरी और उन की पत्नी को भी समीर पसंद गया था. अब इस रिश्ते में कोई अड़चन नहीं थी. कुछ समय तक सागर में रुक कर दोनों भोपाल लौट आए. समीर भोपाल स्थित जेबा के घर पर भी कई दिनों तक रुका. वहां भी दोनों ने जिस्मानी रिश्ते बनाए.

 निंग के लिए जाने की बात कह कर ठगे लाखों रुपए समीर ने जेबा के साथसाथ उस के घर वालों को भी इस बात का पक्का यकीन दिला दिया था कि वह सीबीआई में अंडरकवर डीएसपी है और उस का सिलेक्शन आईपीएस के रूप में हो गया है, जिस की ट्रेनिंग हैदराबाद में होनी है. आईपीएस की ट्रेनिंग पर वह इसलिए नहीं जा पा रहा था, क्योंकि किसी वजह से स्टे लगा था. लेकिन अब स्टे हट गया है, इसलिए उसे ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाना है.

ऐसे में ही जेबा ने उस से पूछ लिया कि वह वरदी क्यों नहीं पहनता तो उस ने कहा कि वह सीबीआई अफसर है, इसलिए उसे पहचान छिपा कर रखनी पड़ती है. जब कभी औफिस जाना होता है तो वह वरदी पहनता है. जेबा के कहने पर एक दिन समीर ने उसे आईपीएस की वरदी पहन कर दिखाते हुए कहा कि जब कभी औफिशियल मीटिंग होती है, तब वह यह वरदी पहन कर जाता है. जेबा को उस वरदी पर संदेह हुआ, क्योंकि उस पर सीनियर अफसरों के बैज लगे थे. इस के बाद समीर ने उसे सील लगे हुए कई दस्तावेज दिखाए.

एक दिन समीर परेशान सा सोफे पर चुपचाप बैठा था. जेबा ने परेशानी की वजह पूछी तो उस ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘क्या बताऊं, मुझे ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाना है, जिस के लिए काफी पैसों की जरूरत है. होटल में मिलने को ले कर पापा अभी तक नाराज हैं, इसलिए उन से किसी तरह की मदद की उम्मीद नहीं है. अब परेशानी यह है कि ट्रेनिंग का खर्च कहां से आएगा.’’

समीर की बातों में कर जेबा ने कहा, ‘‘आप परेशान मत होइए, मैं आप के लिए पैसों का इंतजाम कर दूंगी.’’ समीर मना करता रहा, इस के बावजूद कई बार में जेबा ने तकरीबन 2 लाख रुपए उसे दे दिए. क्योंकि उसे कभी उस पर संदेह नहीं हुआ था. परिवार से मिलवाने की बात को टाल जाता था जब भी जेबा समीर से घर वालों के बारे में पूछती या मिलवाने की बात कहती, वह कोई कोई बहाना बना कर टाल जाता. जेबा को उस से मिले करीब 2 महीने हो गए थे, लेकिन उस ने अपने मम्मीपापा से मिलवाने की कौन कहे, फोन पर बात तक नहीं करवाई थी

इन्हीं बातों से जेबा को उस पर शक होने लगा. संदेह गहराया तो उस ने अपने पापा से समीर के बारे में पता करने को कहा. उस ने और उस के मम्मीपापा ने समीर से उस की नौकरी और पढ़ाई के कागजात मांगे तो वह टालमटोल करने लगा. याकूब मंसूरी ने अपने कई परिचितों को समीर के बारे में पता करने के लिए लगा दिया. नतीजा यह निकला कि उस की असलियत का पता चल गया.

समीर को पता नहीं कैसे भनक लग गई कि उस की पोल खुल गई है. वह अपना बैग ले कर घर से भागने की फिराक में था, तभी जेबा ने कहा, ‘‘समीर, हमें तुम्हारी असलियत का पता चल गया है. अब मैं तुम्हें पुलिस के हवाले करूंगी, जिस से तुम्हारी जिंदगी जेल में कटेगी.’’ समीर डर गया. उस ने कहा, ‘‘अगर तुम लोगों ने मेरी शिकायत पुलिस में की तो मैं तुम सभी को जान से मार दूंगा.’’

लेकिन उस की इस धमकी से जेबा डरी और उस के मम्मीपापा. याकूब मंसूरी ने अपने दोस्तों की मदद से समीर को पकड़ लिया और थाना अशोका गार्डन ले गए, जहां वह खुद को पुलिस अधिकारी होने का भरोसा दिलाता रहा और वादा करता रहा कि जेबा से ही शादी करेगालेकिन शादी का झांसा दे कर शारीरिक शोषण करने के साथ लाखों रुपए ऐंठने वाले समीर की असलियत जेबा को पता चल गई थी, इसलिए उस ने उस की किसी बात पर भरोसा नहीं किया. मामले की नजाकत को भांपते हुए अशोका गार्डन पुलिस ने समीर को तुरंत हिरासत में ले लिया.

समीर को हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने याकूब मंसूरी के घर में रखे उस के बैग को कब्जे में ले कर तलाशी ली तो उस में से राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, सीबीआई सहित कई संस्थानों की फरजी मोहरें मिलीं. यही नहीं, उस के पास से डीआईजी रैंक के पुलिस अधिकारी की वरदी भी मिली. समीर ने एक गलती यह की थी कि उस ने जो वरदी खरीदी थी, वह डीआईजी रैंक के पुलिस अधिकारी की थी. 3 स्टार और अशोक चक्र लगी वरदी को पुलिस ने कब्जे में ले लिया था. पूछताछ में उस ने बताया कि यह वरदी उस ने बिहार के भागलपुर से खरीदी थी.

 शातिर दिमाग है ठग समीर खान एएसपी हितेश चौहान के अनुसार, समीर अनवर खान बहुत ही शातिर दिमाग था. उस ने बड़ी चालाकी से शादी डाटकौम पर अपनी प्रोफाइल बना कर जेबा मंसूरी जैसी पढ़ीलिखी लड़की को अपने जाल में फांस लिया था. बाद में पता चला कि उस ने ऐसा ही कारनामा पंजाब में किया था. मध्य प्रदेश पुलिस ने पंजाब पुलिस से जानकारी हासिल की तो पता चला कि ऐसे ही मामले में वह वहां भी गिरफ्तार किया गया था. जमानत पर रिहा होने के बाद वह फरार हो गया था.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ के अनुसार, समीर मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला वाराणसी का रहने वाला था. उस ने दिखावे के लिए एमटेक में अप्लाई कर रखा था. उस के पिता मुंबई में झुग्गीझोपड़ी में रहते थे और फेरी में कपड़े बेच कर गुजरबसर करते थे. उस ने जेबा से बताया था कि वाराणसी में उस की तमाम जमीनजायदाद है, लेकिन यह सब झूठ था

मजे की बात यह थी कि उस ने पंजाब में जो धोखाधड़ी की थी, उस में उस ने 40-50 लाख रुपए की चपत लगाई थी. लेकिन कहीं से भी नहीं लगता था कि इतना पैसा उस के पास होगा. थाना अशोका गार्डन पुलिस ने समीर के खिलाफ भादंवि की धारा 170, 419, 420, 471, 472, 473, 376 और 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया था. कथा लिखे जाने तक समीर पुलिस रिमांड पर था. पुलिस उस से कई पहलुओं पर पूछताछ कर रही थी. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में समीर ने जो बताया है, उस से जाहिर होता है कि वह छोटामोटा अपराधी नहीं है.

होटल प्रबंधन को भी लगाया लाखों का चूना समीर कितना शातिरदिमाग है, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह भोपाल के सब से मशहूर होटल नूरउससबा में 2 नवंबर, 2017  से 23 नवंबर, 2017 तक लड़की के साथ रुका रहा, लेकिन होटल प्रबंधन को उस की कारगुजारियों की तनिक भी भनक नहीं लगी. वह इतने बड़े होटल को लाखों का चूना लगा कर रफूचक्कर हो गया था

अच्छा हुआ कि वक्त रहते जेबा मंसूरी को उस पर शक हो गया, वरना हाथ से निकलने के बाद फिर शायद ही कभी वह चंगुल में फंसता. नूरउससबा पैलेस होटल में 20 दिनों से ज्यादा रहने के बाद भी वह पैसे दिए बिना  वहां से फरार हो गया था. होटल प्रबंधन के बताए अनुसार, 2 नवंबर से 23 नवंबर, 2017 तक होटल में रहने और खानेपीने का बिल 2 लाख 15 हजार 311 रुपए बना था. समीर ने चालाकी से काम लेते हुए होटल प्रबंधन को भरोसे में लेने के लिए 20 हजार रुपए एडवांस जमा करा दिए थे. उसे वहां 24 नवंबर तक रुकना था, लेकिन एक दिन पहले ही वह अपना बोरियाबिस्तर समेट कर वहां से चलता बना.

पंजाब में आईएएस बन कर कर चुका है फरजीवाड़ा समीर के बताए अनुसार, उस ने पंजाब के कपूरथला में भी एक बीएससी की छात्रा के साथ जालसाजी की थी. वहां भी उस ने कुछ ऐसी ही कहानी गढ़ी थी. उस ने वहां बताया था कि उस का सिलेक्शन आईएएस में हो गया है. इस तरह उस के बहकावे में कर उस लड़की ने समीर से सन 2016 में निकाह कर लिया था. वहां उस ने अपना नाम शमशेर बताया था.

जब फरजी आईएएस का झूठ सामने आया तो कपूरथला के थाना फगवाड़ा पुलिस ने जनवरी, 2016 में शमशेर के खिलाफ धोखाधड़ी, दहेज अधिनियम और धमकाने की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर के उसे गिरफ्तार कर लिया था. शमशेर उर्फ समीर वहां 2 महीने तक जेल में बंद रहा. उस की दादी ने जमानत कराई तो जेल से बाहर आते ही वह फरार हो गया.

अब देखना यह है कि मध्य प्रदेश के साथसाथ पंजाब पुलिस समीर उर्फ शमशेर को धोखाधड़ी, पैसे ऐंठने, शारीरिक शोषण और फरजी पदों का गलत इस्तेमाल करने के अपराध में कितनी सजा दिलवा सकती है. पुलिस यह भी पता कर रही है कि यह काम समीर अकेला ही करता था या उस के साथ और कोई भी था.

पथरी निकालने का दावा झूठा, बाबा का सच उजागर

कुछ लोग इतने अंधविश्वासी होते हैं कि वह ढोंगी बाबाओं से अपना इलाज तक कराने पहुंच जाते हैं. ऐसे ही
राजस्थान के एक कथित बाबा द्वारा मरीज की पथरी अपने मुंह से निकालने की सच्चाई सामने आई तो…

हमारे देश में आस्था के नाम पर अंधविश्वास का खेल सदियों से चला आ रहा है. कहीं सयानेभोपो
झाड़फूंक से लोगों का इलाज करते हैं. कहीं तांत्रिक अपने टोटकों से लोगों की समस्याएं दूर करने का दावा करते हैं, तो कहीं ढोंगी बाबा अपने चमत्कार दिखाते हैं. कहीं फकीर का चोला पहन कर लोगों का दुख दूर किया जाता है. कोई बाबा दरबार सजाता है तो कोई मंदिर की आड़ में इस तरह के काम करता है. कोई मजार पर बैठ कर झाड़ा लगाता है.

यह सिलसिला आज से नहीं बल्कि लंबे समय से चला आ रहा है. कोई तथाकथित भूत उतारने का दावा करता है तो कोई लड़का पैदा होने की दवा देता है. कोई कैंसर की बीमारी का इलाज करने की बात करता है तो कोई वशीकरण मंत्र के नाम पर मुकदमा जीतने और खोया प्यार दिलाने की गारंटी देता है.
कई जगह तो महिलाएं भी ऐसे कथित चमत्कार दिखाती हैं कि अंधविश्वास में डूबे लोग उन की जयजय कार करते हैं. कई जगह तो इलाज के नाम पर पीडि़त पर अत्याचार भी किए जाते हैं. पीडि़त को लोहे की जंजीरों से पीटा जाता है.

विज्ञान के इस युग में ये कथित बाबा और भोपाभोपी आमजन के विश्वास से खिलवाड़ कर रहे हैं. शिकायत होने पर पुलिस और संबंधित विभागों के अधिकारी कभीकभार इन के खिलाफ काररवाई करते हैं. लेकिन ये काररवाई इतनी हल्की होती है कि ढोंगी बाबाओं पर कोई असर नहीं पड़ता. कुछ दिन के बाद ये लोग फिर अपनी दुकान जमा लेते हैं. अपने ही लोगों के माध्यम से ये भक्तों का ऐसा मायाजाल बुनते हैं कि दुखी, पीडि़त लोग इन की चौखट पर माथा टेकने पहुंच जाते हैं और फिर शुरू कर देते हैं आस्था के नाम पर
लोगों को ठगना.

अंधविश्वास की इस कमाई से आजकल दूर देहात के गांव और पहाड़ों में रहने वाले ये कथित बाबा भी हाईटेक हो गए हैं. उन के पास नएनए मौडल के मोबाइल फोन और लैपटाप के अलावा अपने वाहन तक हैं. राजस्थान में ढोंगी बाबाओं की बाढ़ सी आ गई है. कई तो चमत्कारिक तरीके से लोगों का इलाज करने का दावा करते हैं. यहां पर हम ऐसे ही एक कथित बाबा के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपनी कथित शक्ति के बल पर किसी भी तरह की पथरी चुटकी में निकालने का दावा करता है.

राजस्थान के अलवर जिले में स्थित है विश्व प्रसिद्ध सरिस्का बाघ अभयारण्य. इसी अभयारण्य के मुख्यालय के पास भर्तृहरि का समाधि स्थल है. भर्तृहरि मध्य प्रदेश की रियासत उज्जैन के राजा थे. वह न्यायप्रिय और जनसेवक थे. बाद में वह भोगविलास में उलझ गए. जब उन्हें अपनी गलती का पश्चाताप हुआ तो वह राजपाट छोड़ कर जंगलों में चले गए. बाद में उन्होंने सरिस्का के रमणीक जंगलों में समाधि ले ली. फिर वहीं पर उन का विशाल मंदिर बन गया.

भर्तृहरि बाबा के समाधिस्थल के पास इंदौक गांव है. इस गांव में ढोलमजीरे की आवाज के साथ बंदर की तरह कूदने वाला एक बाबा कथित चमत्कार दिखाता है. नारायण मीणा नाम का यह बाबा किडनी और पित्त की थैली की पथरी मुंह से उगलने के नाम पर पिछले करीब 8 सालों से लोगों को बेवकूफ बना रहा है.

अलवर शहर से करीब 32 किलोमीटर दूर इस गांव के एक छोटे से मंदिर पर बाबा हर बुधवार और शनिवार को दरबार लगाता है. बाबा ने आस्था के नाम पर भक्तों का ऐसा मायाजाल बना रखा है कि उस के दरबार में राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों से लोग आते हैं. इस कथित बाबा के गोरखधंधे में 8-10 लोग शामिल हैं. ये लोग मरीज की किडनी या पित्त की थैली की पथरी निकालने से पहले बाकायदा अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट ऐसे देखते हैं जैसे वह कोई डाक्टर हों. इस के कुछ देर बाद ही बाबा अपने मुंह से पथरी के नाम से पत्थर उगल देता है.

मजे की बात तो यह है कि अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में जितनी पथरी बताई जाती हैं, बाबा उतने ही आकार की और उतने ही पत्थर अपने मुंह से उगल देता है. निर्धारित दिन मरीज जब बाबा के दरबार में पहुंचते हैं तो सब से पहले बाबा   के दरबार में अगरबत्ती और प्रसाद चढ़ाने के नाम पर उन से 120 रुपए लिए जाते हैं. यह प्रसाद बाबा के परिवारजन ही मंदिर के बाहर बेचते हैं. इस के बाद बाबा का बेटा प्रत्येक मरीज से नाम पूछता है और उन से 300-300 रुपए लेता है.

फिर सभी मरीजों की कतार लगवा ली जाती है. इस के बाद मजीरे बजते हैं. इन्हीं ढोलमजीरों की तेज आवाज के बीच बंदर की तरह उछलताकूदता हुआ नारायण मीणा नाम का बाबा मंदिर पर पहुंचता है. बाबा मंदिर में कई बार ऐसा दिखावा करता है जैसे कि उस के शरीर में किसी देवता का प्रवेश हो गया है. इस के बाद बाबा मंदिर के चबूतरे पर चुपचाप बैठ जाता है.

बाबा के पास बैठा उस का परिजन मरीज की अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट देख कर उस से पथरी की संख्या पूछता है. कोई मरीज अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट नहीं लाता तो उस से मुंहजबानी पूछा जाता है कि पथरी कहां और कितनी हैं. इस के बाद रिपोर्ट देखने वाला वह व्यक्ति बाबा को अंगुलियों से इशारा करता है. इस बीच वही व्यक्ति बालों की बनी रस्सी मरीज के शरीर पर उस जगह घुमाताफिराता है. जहां पथरी बताई गई है. फिर बाबा को एक आदमी पानी पिलाता है. इस के बाद बाबा वहां बैठे अपने परिजन के हाथ में थमी हुई थाली में अपने मुंह से छोटेछोटे पत्थर उगल देता है. इन पत्थरों की संख्या उतनी ही होती है, जितनी मरीज ने अपने शरीर में पथरी बताई थीं.

आमतौर पर इन पत्थरों की संख्या एक या 2 होती है. इन पत्थरों को बाबा का परिजन कागज की एक पुडि़या में बांध कर मरीज को दे देता है और कहता है कि ये लो पथरी निकल गई है. पर हाल ही में एक स्टिंग औपरेशन में इस बाबा की करतूत सामने आ गई है. इस स्टिंग औपरेशन में अलवर जिले के राजगढ़ के थाना राजाजी निवासी बबली सैनी का जिला अस्पताल में अल्ट्रासाउंड कराया गया.

अल्ट्रासाउंड में बबली सैनी की दाईं किडनी में 3 और बाईं किडनी में एक पथरी बताई गई. बबली की यह अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट देख कर मंदिर में कथित बाबा ने अपने मुंह से पत्थर के 3 टुकड़े उगल कर उसे थमा दिए. इस के बाद बबली सैनी का दोबारा अलवर के जिला अस्पताल में अल्ट्रासाउंड कराया तो उस की दोनों किडनियों में चारों पथरियां मौजूद मिलीं.

स्टिंग औपरेशन में इस कथित बाबा ने एक मीडियाकर्मी को भी अपने मुंह से एक पत्थर का टुकड़ा उगल कर दे दिया जबकि उस मीडियाकर्मी के कोई पथरी नहीं थी. बाबा की करतूत उजागर करने के लिए दरबार में पहुंचे मीडियाकर्मी से जब बाबा के परिजन ने अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट मांगी तो उस ने कहा कि रिपोर्ट घर पर रह गई है. लेकिन पेट में साढ़े 6 एमएम की पथरी है.

इस पर बाबा ने अपने मुंह से पथरी के नाम पर पत्थर का एक टुकड़ा उगल दिया. इन पत्थरों की जांच कराई गई तो ये नदियों में बजरी के साथ निकलने वाले कंकड़ पत्थर निकले. बाबा के इस कथित चमत्कार के पीछे का सच यह है कि उसी के परिवार के 8-10 लोग इस पूरे ढोंग को अंजाम देते हैं. अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट देखने के बाद मरीज से पथरी की संख्या पूछ कर बाबा का परिजन इशारे से बाबा को पथरी की संख्या बताता है इसी के साथ दूसरा आदमी उस मरीज के शरीर पर पथरी वाली जगह पर बालों को बनी एक रस्सी घुमाताफिराता है. इसी दौरान बाबा कथित चमत्कार दिखाते हुए अपने मुंह से पथरी के नाम पर उतने ही कंकड़पत्थर उगल देता है.

बाबा दरबार में पहुंचने से पहले अपने मुंह में छोटेछोटे कंकड़पत्थर दबा कर लाता है. इसीलिए पथरी निकालने के ढोंग के दौरान वह किसी से बात तक नहीं करता. जब उस के मुंह में पत्थर खत्म हो जाते हैं. तब वह चादर ओढ़ कर एक तरफ बैठ जाता है. उस चादर की आड में वह फिर से अपने मुंह में पत्थर भर लेता है. पथरी निकालने का दावा करने के बाद बाबा के परिजन उस मरीज को भभूत की एक पुडि़या देते हैं. साथ ही यह भी कह देते हैं कि भर्तृहरि धाम जा कर वहां से एक और भभूत की पुडि़या लेकर पानी में मिला कर पीनी है. इस के बाद भगवान शंकर का जल और दूध से अभिषेक कर के और बंदरों को चने खिलाने हैं.

मछली को गुंथा हुआ आटा और गाय को ढाई किलो दलिया खिलाना है. कन्या को भोजन करा कर दक्षिणा देनी है. फिर चीटिंयों को मीठा आटा डालना है. बाबा का यह कथित चमत्कार सप्ताह में 2 दिन और महीने में 8 दिन चलता है. हर बार मोटे तौर पर 250 से 300 मरीज वहां पहुंचते हैं. इस तरह बाबा का परिवार लोगों को बेवकूफ बनाकर हर महीने करीब 4 लाख रुपए तक ठग रहा है.

चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि मानव शरीर में सामान्य तौर पर पथरी पित्त की थैली यानी गाल ब्लेडर और किडनी में बनती है. मैडिकल साइंस में पित्त की थैली की पथरी को आमतौर पर औपरेशन से निकाला जाता है. किडनी की पथरी एवं यूरिनरी सिस्टम, यूरेटर और ब्लेडर की पथरियों का इलाज उन के आकार और स्थान पर निर्भर करता है.

कानूनी रूप से औषधि और जादुई उपचार अधिनियम 1954 आपित्तजनक विज्ञापन तथा औषधि प्रसाधन
अधिनियम 1940 के अंतर्गत जादूटोना, चमत्कार आदि से इलाज करना प्रतिबंधित है. ऐसे मामलों में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग सीधे तौर पर काररवाई कर सकता है. पहली बार पकड़े जाने पर 6 महीने तक और दूसरी बार पकडे़ जाने पर एक साल तक की सजा का प्रावधान है. इस अधिनियम में पथरी, अंधता, कैंसर, मिर्गी, डायबिटीज, बहरापन, मोतियाबिंद सहित 54 बीमारियों को शामिल किया गया है. इतना सब कुछ होने के बावजूद कथित चमत्कारी बाबा आस्था के नाम पर लोगों को ठग कर खूब फलफूल
रहा है.

गोरी चिट्टी प्रिया ने हुस्न के जाल में अरबपति को फंसा कर दिया उसके कत्ल को अंजाम

खूबसूरती के जाल में लोग, खासकर युवा जल्दी फंस जाते हैं बिना यह सोचे कि बिछाया गया जाल खतरनाक भी हो सकता है. प्रिया भी ऐसा ही जाल बिछाती थी, जिस में दुष्यंत फंस गया…

प्रिया सेठ. यही नाम है उस भोलीभाली और खूबसूरत चेहरे वाली लड़का का. वह चंद पलों में नौजवानों के दिल में उतर जाती है. अपनी इसी खूबसूरती से प्रिया हजारों लोगों को शिकार बना चुकी है. पुलिस के रिकौर्ड में प्रिया के खिलाफ केवल 4 मामले दर्ज हैं. इन में एक हत्या, दूसरा एटीएम तोड़ने, तीसरा ब्लैकमेलिंग और चौथा पीटा एक्ट का.

वह पढ़ीलिखी है. राजस्थान के पाली जिले के छोटे से शहर फालना में नेहरू कालोनी की रहने वाली प्रिया के पिता अशोक सेठ सरकारी कौलेज में लेक्चरर हैं. मां अध्यापिका रही हैं. दादा सिरोही में प्रिंसिपल रहे. फूफा जोधपुर की यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. एक बहन और एक भाई है. इंगलिश मीडियम से 82 प्रतिशत अंकों के साथ प्रिया ने फालना से 10वीं कक्षा पास की थी. फिर सीनियर सेकैंडरी में 78 प्रतिशत नंबर आए. मातापिता अपनी इस लाडली बड़ी बेटी को प्रोफेसर बनाना चाहते थे. इसलिए कौलेज की पढ़ाई के लिए 20 साल की उम्र में ही जयपुर भेज दिया. यह सन 2011 की बात है.

छोटे से शहर फालना से जयपुर आ कर प्रिया ने मानसरोवर कालोनी के एक निजी कौलेज में प्रवेश लिया तो उस की आंखों में प्रोफेसर बनने के सपने तैर रहे थे. पहले वह रिश्तेदार के घर पर ठहरी. कौलेज जाने के बाद जब भी मौका मिलता, वह जयपुर में घूमती. कभीकभी दिन ढले घर लौटती.

जल्दी ही वह जयपुर महानगर की चकाचौंध में खो गई और उन्मुक्त जीवन जीने के बारे में सोचने लगी, जिस में ना किसी की रोकटोक हो और ना ही कोई बंधन. प्रिया की उन्मुक्तता में प्रोफेसर बनने का सपना धुंधला सा गया. वह रिश्तेदार का घर छोड़ कर मानसरोवर में ही पेइंगगेस्ट के रूप में रहने लगी. वैसे तो मातापिता उसे जयपुर में रहनेखाने और पढ़ाई के खर्च के लिए पैसे भेज देते थे,

लेकिन उन पैसों से उस की मनचाही आवश्यकताएं पूरी नहीं हो पाती थीं. अपने शौक पूरे करने के लिए प्रिया को पैसों की जरूरत महसूस होने लगी. अकेले रहते हुए दौलत की चाह में वह कब अनैतिक काम करते हुए अपराध की दलदल में उतर गई, उसे खुद पता नहीं चला.

आज प्रिया के हाथ खून से रंगे हुए हैं. उस ने जयपुर में रहते हुए 5 साल के दौरान हर तरह के हथकंडे अपनाए.आलीशान फ्लैट में रहना, लग्जरी कार में घूमना, महंगी शराब पीना, गांजे की सिगरेट का नशा और मौजमस्ती. उस ने सब तरह की ऐश की. अपने हुस्न की झलक दिखाने के लिए वेबसाइट भी बनाई. वह करोड़पति और अरबपति लोगों को अपने हुस्न के जाल में फांसने की फिराक में रहती थी. बहुत से नवधनाढ्य उस की अदाओं पर फिदा हुए. प्रिया ने उन को अपने गोरे बदन की चमक दिखाई और पैसे झटकने के बाद उन को ही झटक दिया.

पहली मुलाकात में ही अपनी मोहक मुस्कान दिखा कर वह 20-25 हजार रुपए आराम से झटक लेती थी. बीच में कुछ समय के लिए वह दिल्ली और नोएडा में जा कर रहने लगी थी, लेकिन वहां से जल्दी ही वापस जयपुर लौट आई. अब वह जयपुर के व्यवसायी दुष्यंत शर्मा की हत्या के मामले में अपने बौयफ्रैंड और एक दोस्त के साथ सलाखों के पीछे है. 3 बार पहले भी वह गिरफ्तार हो चुकी है. उसे ना तो दुष्यंत की हत्या का मलाल है और ना ही कोई अपराधबोध.

प्रिया कुख्यात लेडी डौन बनना चाहती है. वह कहती है, ‘मैं ने दुनिया का कोई पहला मर्डर नहीं किया है.’ शायद उसे पता नहीं है कि कोई मर्डर पहला या आखिरी नहीं होता. प्रिया कहती है, ‘मुझे सिर्फ दौलत चाहिए. मैं पैसे की बदौलत वे सब चीजें खरीदना चाहती हूं, जिस की मुझे ख्वाहिश है.’ वह यह भी कबूलती है कि 2 साल में उस ने डेढ़ करोड़ रुपया कमाया है.

प्रिया की घुमावदार राहें प्रिया जितनी खूबसूरत है, उस की मेधावी लड़की से कातिल बनने और लेडी डौन बनने की तमन्ना रखने तक की कहानी उतनी ही घुमावदार है. अपनी तमन्नाओं को पूरा करने के लिए ही उस ने दुष्यंत का अपहरण कर लिया और फिरौती वसूलने के बाद भी उसे मौत के घाट उतार दिया.
जयपुर में शिवपुरी विस्तार झोटवाड़ा के रहने वाले रामेश्वर प्रसाद शर्मा सहकारिता विभाग में नौकरी करते हैं. उन का इकलौता बेटा दुष्यंत फ्लाई ऐश और बिल्डिंग मैटेरियल का काम करता था.

दुष्यंत की शादी करीब 3 साल पहले विनीता से हुई थी. उन का करीब डेढ़ साल का एक बेटा है, जिस का नाम है कान्हा. इसी 2 मई की शाम करीब 6 बजे दुष्यंत अपने घर पहुंचा था. इस के कुछ देर बाद ही उस के मोबाइल पर फोन आया तो वह परिवार वालों से यह कह कर कार में बैठ कर घर से निकला कि जरूरी काम है, निपटा कर आता हूं. दुष्यंत देर रात तक घर नहीं लौटा तो पिता रामेश्वर ने उस की तलाश की, लेकिन कुछ पता नहीं चला.

दुष्यंत अगले दिन सुबह भी घर वापस नहीं लौटा तो परिवार वाले चिंतित हो गए. वे उस के कारोबारी दोस्तों और अन्य लोगों से पता करने लगे. इस बीच, सुबह करीब सवा 10 बजे रामेश्वर प्रसाद शर्मा के मोबाइल पर  दुष्यंत का फोन आया. दुष्यंत ने मोबाइल पर ही रोते हुए पिता से कहा, ‘ये लोग मुझे मार देंगे या रेप के केस में फंसा देंगे. इन को पैसे दे दो.’

रामेश्वर प्रसाद बेटे की बात समझ पाते, इस से पहले ही दुष्यंत से एक युवती ने फोन छीन लिया और रामेश्वर प्रसाद से कहा, ‘दुष्यंत हमारे कब्जे में है. अभी आधे घंटे में 10 लाख रुपए इस के खाते में जमा करा दो, पुलिस को बताया तो इस को मार डालेंगे.’

युवती की बात सुन कर रामेश्वर प्रसाद समझ गए कि बेटा दुष्यंत किसी संकट में है. वे दुष्यंत को मारने की धमकी दिए जाने से घबरा गए. उन्होंने युवती से फोन पर गिड़गिड़ाते हुए कहा कि इतने पैसे तो हमारे पास नहीं हैं. अभी मैं 3 लाख रुपए दे सकता हूं. इस पर वह युवती गालियां देने लगी और तुरंत पैसे जमा कराने को कहा. रामेश्वर प्रसाद ने करीब एक घंटे में 3 लाख रुपए का इंतजाम कर दुष्यंत के खाते में डलवा दिए. फिर दुष्यंत के फोन पर उस युवती को 3 लाख रुपए जमा कराने की सूचना दी. इस पर युवती ने वाट्सऐप पर 3 लाख रुपए की रसीद मंगवाई और बाकी रुपए जल्दी से जल्दी डालने को कहा.

इस बीच, दुष्यंत की पत्नी विनीता को पति के अपहरण और हत्या की धमकी की बात पता चली, तो उस ने अपने भाई को यह बात बताई. विनीता के भाई ने पुलिस को सूचना दी. दुष्यंत के अपहरण की सूचना पर पुलिस उपायुक्त (पश्चिम) अशोक कुमार गुप्ता ने अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (पश्चिम) रतन सिंह, झोटवाड़ा के सहायक पुलिस आयुक्त आस मोहम्मद, करघनी थानाप्रभारी अनिल जसोरिया, झोटवाड़ा थानाप्रभारी गुर भूपेंद्र सिंह, सबइंसपेक्ट हेमंत व मानसिंह और कांस्टेबल सुरेश, अमन एवं प्रवीण की एक
टीम गठित की.

इस पुलिस टीम ने दुष्यंत की तलाश की. उस की मोबाइल लोकेशन और काल डिटेल्स निकलवाई गई. दुष्यंत के घरवालों, रिश्तेदारों, दोस्तों और कारोबारियों से पूछताछ की गई. दुष्यंत के मोबाइल की लोकेशन जयपुर में बजाजनगर, अनिता कालोनी के आसपास आ रही थी. इस पर पुलिस दोपहर करीब साढ़े 12 बजे अनिता कालोनी पहुंच गई और दुष्यंत व उस की कार को तलाशती रही, लेकिन कुछ पता नहीं चला.

पुलिस जांचपड़ताल में जुटी थी. उसे यह पता लग गया था कि दुष्यंत के अपहर्त्ताओं ने उस के बैंक खाते में रकम डलवाई है. इसलिए पुलिस उस के बैंक खाते पर भी नजर रखे हुए थी. इसी बीच, पता चला कि दुष्यंत के खाते से जयपुर में टोंक रोड पर नेहरू उद्यान के पास स्थित एक एटीएम से किसी युवती ने 20 हजार रुपए निकाले हैं. एक तरफ पुलिस की टीमें दुष्यंत को तलाश कर रही थीं. दूसरी ओर 3 मई की देर शाम जयपुर के ही आमेर थाना इलाके में दिल्ली बाईपास पर नई माता मंदिर के पास सुनसान जगह पर ट्रौली वाले सूटकेस में एक युवक की लाश बरामद हुई. मृतक के सिर पर चोट के निशान मिले. गले पर भी 4-5 निशान थे.

वह दुष्यंत ही था जहां सूटकेस मिला, वहां एक कार के पहियों के निशान भी नजर आए. ट्रौली सूटकेस में लाश मिलने की सूचना पर पुलिस उपायुक्त (उत्तर) सत्येंद्र सिंह मौके पर पहुंचे. युवक के हाथपैर चुनरी व स्कार्फ से बंधे हुए थे. उस के कपड़ों की जेब में ऐसी कोई चीज नहीं मिली, जिस से उस की शिनाख्त होती.
दूसरी ओर, पुलिस की एक टीम ने दुष्यंत की काल डिटेल्स के आधार पर कुछ मोबाइल नंबरों पर संपर्क किया तो पता चला कि दुष्यंत ने उन से पैसे मांगे थे, लेकिन वह पैसे लेने नहीं आया. एक मोबाइल नंबर पर पुलिस की बात दुष्यंत के दोस्त महेश से हुई.

महेश ने पुलिस को बताया कि दुष्यंत का एक युवती से प्रेमप्रसंग चल रहा था. वह युवती बजाजनगर अनिता कालोनी के ईडन गार्डन अपार्टमेंट में रहती है. दुष्यंत की प्रेमिका का पता चलते ही झोटवाड़ा पुलिस 3 मई की रात अनिता कालोनी के ईडन गार्डन अपार्टमेंट स्थित 402 नंबर के फ्लैट पर पहुंची. वहां एक युवती और एक युवक कहीं जाने की तैयारी करते मिले. पुलिस ने फ्लैट की तलाशी ली तो वहां खून फैला हुआ था. दोनों से पूछताछ की गई, तो युवती का नाम प्रिया सेठ और युवक का नाम दीक्षांत कामरा पता चला. उन्होंने दुष्यंत का अपहरण करने के बाद उस की हत्या करने की बात बता दी.

दुष्यंत की हत्या होने का पता चलने पर मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारी सन्न रह गए. उन्होंने दुष्यंत की लाश के बारे में पूछा तो प्रिया व दीक्षांत ने बताया कि उन्होंने दुष्यंत की लाश एक ट्रौली सूटकेस में बंद कर के आमेर इलाके में फेंक दी है. इस पर पुलिस ने दुष्यंत के परिजनों से लाश की शिनाख्त कराई. दुष्यंत की लाश मिलने के बाद मामला बेहद संगीन हो गया था.

पुलिस ने दुष्यंत के अपहरण और हत्या के मामले में प्रिया सेठ व दीक्षांत कामरा से पूछताछ के बाद एक दूसरे युवक लक्ष्य वालिया को भी हिरासत में ले लिया. बाद में तीनों को भादंसं की धारा 364ए एवं 302 के तहत गिरफ्तार कर लिया गया. प्रिया के अपार्टमेंट में खड़ी दुष्यंत की कार भी बरामद कर ली गई. गिरफ्तार आरोपियों में दीक्षांत कामरा श्रीगंगानगर जिले के पदमपुर कस्बे में इंद्रा कालोनी और लक्ष्य वालिया श्रीगंगानगर के चावला चौक पुरानी आबादी का रहने वाला था.

ऊंचे सपनों की चाह वाले बने कातिल दीक्षांत कामरा मुंबई में मौडलिंग करता था. वह आजकल प्रिया सेठ के साथ लिवइन रिलेशनशिप में जयपुर के ईडन गार्डन अपार्टमेंट में रह रहा था. दीक्षांत के पिता सरकारी स्कूल में हैडमास्टर हैं. लक्ष्य वालिया जयपुर में मालवीय नगर स्थित तनिश अपार्टमेंट में रहता था. उस के पिता जीवित नहीं हैं. मां सेल्स टैक्स विभाग में कर्मचारी है. प्रिया सेठ ने ईडन गार्डन अपार्टमेंट में करीब डेढ़ महीने पहले ही दिल्ली निवासी हर्ष कुमार यादव से 402 नंबर का फ्लैट किराए पर लिया था. तीनों आरोपियों से पूछताछ में दुष्यंत के अपहरण और हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार
है—

प्रिया सेठ सोशल मीडिया टिंडर ऐप पर एक्टिव थी. इसी साल फरवरी-मार्च महीने में इसी ऐप पर दुष्यंत का प्रिया से संपर्क हुआ था. दुष्यंत ने खुद को दिल्ली निवासी विवान कोहली बता कर प्रिया से चैटिंग शुरू की थी. चैटिंग करते हुए दोनों के बीच दोस्ती हो गई. फिर मिलनाजुलना और घूमनाफिरना भी होने लगा. दुष्यंत ने प्रिया से खुद को विवान कोहली के रूप में दिल्ली का अरबपति व्यापारी बताया था. उस ने प्रिया से कहा था कि उस के बिजनैस का सालाना टर्नओवर 25 करोड़ रुपए से ज्यादा का है. दुष्यंत का रहनसहन करोड़पति व्यापारी जैसा था भी.

विवान कोहली को अरबपति व्यापारी समझ कर प्रिया उसे अपने हुस्न के जाल में फांसना चाहती थी. दरअसल, प्रिया के बौयफ्रैंड दीक्षांत कामरा पर काफी कर्जा हो गया था. इसलिए प्रिया ने दीक्षांत का कर्ज उतारने के लिए अपने दोस्तों के साथ मिल कर विवान कोहली को फांसने की योजना बनाई. योजना के अनुसार, प्रिया ने 2 मई को विवान कोहली बने दुष्यंत को फोन कर के जयपुर में अपने फ्लैट पर बुलाया.
दुष्यंत उस दिन शाम को प्रिया के ईडन गार्डन अपार्टमेंट स्थित फ्लैट पर पहुंचा तो प्रिया ने अपने दोस्तों दीक्षांत कामरा और लक्ष्य वालिया के साथ मिल कर उसे बंधक बना लिया.

दुष्यंत को बंधक बनाने के बाद प्रिया ने उस के कपड़ों की तलाशी ली, तो जेब में मिले दस्तावेजों से उसे पता चला कि वह दिल्ली का विवान कोहली नहीं, बल्कि जयपुर के झोटवाड़ा का रहने वाला दुष्यंत है. उस के बैंक खाते में भी ज्यादा रकम नहीं थी. इस पर तीनों ने मिल कर पहले दुष्यंत के परिजनों से फिरौती वसूलने की बात तय की. इसी के तहत 3 मई को सुबह करीब सवा 10 बजे दुष्यंत से उस के पिता रामेश्वर प्रसाद को फोन कर 10 लाख रुपए मांगे गए.

ऐसे लिखी गई खूनी स्क्रिप्ट रामेश्वर प्रसाद ने बेटे दुष्यंत के खाते में 3 लाख रुपए डाल दिए, तो प्रिया सेठ ने कुछ देर बाद ही अपने फ्लैट से कुछ दूर स्थित एटीएम से 20 हजार रुपए निकाल भी लिए. बाद में प्रिया और उस के दोस्तों को यह डर लगा कि दुष्यंत को छोड़ देने से उन का भांडा फूट जाएगा. इसलिए 3 मई की दोपहर में फ्लैट पर ही उन्होंने चाकू से गोद कर दुष्यंत को मार डाला. फिर उस के हाथपैर बांध दिए. इस के बाद ये लोग दुष्यंत के शव को एक ट्रौली सूटकेस में रख क र दुष्यंत की ही कार से उसी दिन दोपहर को आमेर इलाके में दिल्ली बाईपास पर फेंक आए.

प्रिया के लालच ने रामेश्वर प्रसाद शर्मा के घर का आखिरी चिराग भी बुझा दिया. 2 बेटों की अर्थियों को कंधा दे चुके रामेश्वर प्रसाद की आंखें पथरा गईं. उन का सबसे बड़ा बेटा हिमांशु 30 साल पहले महज डेढ़ साल की उम्र में ही चल बसा था. इस के बाद 2 बेटे दुष्यंत और पीयूष पैदा हुए, तो उन की जिंदगी फिर पटरी पर लौटने लगी. लेकिन करीब 6 साल पहले सड़क दुर्घटना में पीयूष की मौत हो गई थी. दुखों का पहाड़ छंटा भी नहीं था कि इन लोगों ने दोस्त बन कर अपने लालच के लिए दुष्यंत को मौत की नींद सुला कर रामेश्वर के बुढ़ापे का आखिरी सहारा भी छीन लिया.

सन 2011 में कालेज की पढ़ाई करने जयपुर आई प्रिया अपनी रूममेट के साथ रहते हुए देह व्यापार से जुड़े गिरोह के संपर्क में आई थी. पहली बार जुलाई 2014 में जयपुर के श्याम नगर थाना इलाके में वह देह व्यापार में पकड़ी गई थी. इस के 5 महीने बाद ही 30 नवंबर, 2014 की रात वह मानसरोवर इलाके में रजत पथ पर एक एटीएम तोड़ने के प्रयास में अपने साथी अनिल जांगिड़ के साथ पकड़ी गई. उस समय वह जयपुर में गजसिंहपुरा के सुंदर नगर में किराए पर रहती थी.

अनिल जांगिड़ अजमेर में किशनगढ़ के पास कासिर गांव का रहने वाला है. वह जयपुर में गजसिंहपुरा में रहता था और फर्नीचर का काम करता था. प्रिया ने एक दिन अनिल को अपने कमरे का फर्नीचर ठीक करने के लिए बुलाया था. इस के बाद दोनों मिलने लगे. प्रिया ने अनिल को मोटा पैसा कमाने का झांसा दिया और एटीएम लूटने की योजना बनाई.

कैसेकैसे खेल खेले प्रिया ने योजनानुसार वे रैकी करने के बाद गैस कटर और जरूरी औजार लेकर टैक्सी से बैंक औफ इंडिया का एटीएम लूटने रजतपथ पर पहुंचे. टैक्सी उन्होंने दूर खड़ी कर दी. उन्होंने गैस कटर से एटीएम को काट भी दिया. इस दौरान पुलिस का मोटरसाइकिल गश्ती दल आ गया. पुलिस को देख कर प्रिया भाग गई. पुलिस ने अनिल जांगिड़ को मौके पर ही पकड़ लिया. कई घंटे बाद मोबाइल लोकेशन के आधार पर पुलिस ने प्रिया सेठ को भी गिरफ्तार कर लिया.

एटीएम लूटने के मामले में जमानत पर छूटने के बाद प्रिया जयपुर छोड़ कर दिल्ली चली गई. वहां नोएडा में रहते हुए जयपुर के रहने वाले गजराज सिंह से उस की जानपहचान हुई. इस दौरान प्रिया व गजराज सिंह आपस में मिलनेजुलने लगे. बाद में प्रिया सेठ वापस जयपुर आ गई.

इसी साल जनवरी में जयपुर के वैशाली नगर में रहने वाले गजराज सिंह ने प्रिया के खिलाफ वैशाली नगर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी. रिपोर्ट में कहा था कि 4 महीने पहले प्रिया ने गजराज को रेप केस में फंसाने की धमकी दे कर 10 लाख रुपए मांगे थे और कहा था कि पैसे नहीं दिए तो तेजाब फेंक कर जलवा भी दूंगी.
इस से घबरा कर गजराज ने प्रिया को साढ़े सात लाख रुपए दे दिए थे. पूरे 10 लाख रुपए नहीं मिलने पर वह आए दिन गजराज के घर आ कर हंगामा करने की धमकी देने लगी. तब गजराज ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई. गजराज की रिपोर्ट पर वैशाली नगर थाना पुलिस ने इसी साल 8 मार्च को प्रिया को गिरफ्तार किया था.

पुलिस की पूछताछ में सामने आया कि प्रिया अनैतिक काम के लिए औनलाइन एस्कौर्ट सेवा भी चलाती थी. इस के अलावा ऐप की मदद भी लेती थी. औनलाइन संपर्क होने के बाद प्रिया कार से अपने ड्राइवर गणेश के साथ ग्राहक के पास पहुंचती और वहां अनैतिक काम का 10 से 50 हजार रुपए में सौदा कर पैसे ले लेती. इस के बाद पैसे गाड़ी में रख कर आने की बात कह कर वह ड्राइवर के साथ अपनी कार से भाग जाती थी.
प्रिया ने पैसे के लिए सोशल मीडिया को बनाया.

सोशल मीडिया के जरिए प्रिया लोगों से दोस्ती करती और मिलने के लिए फ्लैट पर बुलाती. वह पहले महंगी शराब पिलाती और आवभगत करने के बाद खुद ही अपने कपड़े फाड़ कर रेप केस में फंसाने की धमकी देती और पैसों की डिमांड करती. पीडि़त लोग मजबूरन उसे पैसे दे कर पीछा छुड़ाते. लोकलाज के भय से पुलिस में शिकायत भी नहीं करते.

प्रिया सेठ ने इस तरह की सैकड़ों वारदातें की हैं, लेकिन वे पुलिस के रिकौर्ड में कहीं दर्ज नहीं हैं, क्योंकि पीडि़त लोगों ने ऐसे मामलों की शिकायत ही नहीं की. प्रिया इतनी शातिर है कि जब उस ने अपने साथियों के साथ मिल कर 3 मई को दुष्यंत की हत्या की थी, तभी उस के पास एक व्यक्ति का अनैतिक काम के लिए फोन आया. उस व्यक्ति ने प्रिया को रेलवे स्टेशन के पास नामचीन होटल में बुलाया. प्रिया कैब ले कर उस होटल में पहुंच गई और उस व्यक्ति से रुपए ले कर भाग आई.

पूछताछ में सामने आया कि प्रिया और दीक्षांत का एक महीने का खर्चा करीब 2 लाख रुपए है. खाने से पहनने तक उन के लग्जरी शौक हैं. दीक्षांत 80 हजार के विदेशी ब्रांड के जूते और 45 हजार की घड़ी पहनता है. कपड़े भी ऐसे ब्रांड के पहनता है, जिन के स्टोर राजस्थान में नहीं हैं. प्रिया भी 45 हजार रुपए कीमत के सैंडल पहनती थी. उसे महंगे कपड़े, परफ्यूम, सौंदर्य प्रसाधन के अलावा कीमती शराब व नशीली सिगरेटों का शौक था. वह हमेशा हवाई जहाज में सफर करती थी.

यह भी विडंबना है कि प्रिया और उस का बौयफ्रैंड दीक्षांत लोगों को ही नहीं, एकदूसरे को भी धोखा दे रहे थे. वैसे तो दोनों ने अपने हाथों पर एकदूसरे के नाम के टैटू बनवा रखे थे. दोनों के ही कई लोगों से संबंध थे. प्रिया ने दीक्षांत का पासपोर्ट भी छीन कर अपने पास रखा हुआ था. एक बार दीक्षांत प्रिया को छोड़ कर गंगानगर चला गया, तो प्रिया ने उसे रेप केस में फंसाने की धमकी दे कर ब्लैकमेल भी किया था. बाद में दीक्षांत वापस जयपुर आ कर प्रिया के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगा था. प्रिया ही उस का खर्च उठाती थी.

लक्ष्य इन दोनों का दोस्त था. ये तीनों मिल कर शराब पार्टी करते थे. 2 मई को भी लक्ष्य वालिया शराब पीने    प्रिया के फ्लैट पर आया था. वहां दुष्यंत से मोटी रकम वसूलने की योजना बनाई गई. बाद में अगले दिन प्रिया और दीक्षांत का साथ देते हुए उस ने दुष्यंत की हत्या में सहयोग किया. दुष्यंत की लाश ठिकाने लगाने भी वह कार से प्रिया और दीक्षांत के साथ गया था.

दीक्षांत का ईवौलेट अकाउंट है. आरोपियों का दुष्यंत के बैंक खाते से 3 लाख रुपए ईवौलेट में ट्रांसफर कराने का इरादा था. यह काम करने से पहले ही वे पुलिस की पकड़ में आ गए. आरोपियों का इरादा दुष्यंत की कार ले कर जयपुर से बाहर भाग जाने का भी था. इस के लिए उन्होंने फरजी नंबर प्लेट भी तैयार करवा ली थी, लेकिन वे पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

पुलिस ने तीनों आरोपियों को 5 मई को अदालत में पेश कर 11 मई तक रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में पुलिस ने प्रिया के फ्लैट से बैग, चाकू, खून से सने कपड़े, चादर, रस्सियां और सूटकेस आदि बरामद किए. इस के अलावा शराब की बोतलें, कागज में लिपटी नशीली सिगरेट आदि भी मिलीं.

मीडिया टाइकून इंद्राणी मुखर्जी ने स्टैप बाय स्टैप बनाया अपने ही बेटी का मर्डर प्लान

साल 2012 में हुए शीना बोरा हत्याकांड की गूंज पूरे देश में फैली थी. इस हाईप्रोफाइल केस ने सरकार तक की नींद उड़ा दी थी. सीबीआई ने हत्या के आरोप में उस की मां इंद्राणी मुखर्जी, उस के पूर्वपति संजीव खन्ना और ड्राइवर श्यामवर राय को गिरफ्तार किया. इस वेब सीरीज में आप भी जानिए कि इंद्राणी मुखर्जी ने आखिर क्यों की थी अपनी होनहार बेटी की हत्या?

शीना बोरा हत्याकांड की पूरी कहानी नेटफ्लिक्स पर प्रसारित डाक्यूड्रामा वेब सीरीज द इंद्राणी मुखर्जी स्टोरी: बरीड ट्रुथमें शामिल करने के लिए चारों अभियुक्तों को प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन 3 अभियुक्त पीटर मुखर्जी, संजीव खन्ना और श्यामवर राय ने साफ इनकार कर दिया. डाक्यूमेंट्री को अजीबोगरीब तरीके से फिल्माया गया है. इस में ऐसी काल रिकौर्ड, जो पुलिस को भी उपलब्ध नहीं हुई थी, दिखाई गई है. 

शीना बोरा और उस के परिवार के अनुपलब्ध फोटो भी दिखाए गए हैं. बीचबीच में अभियुक्तों की गिरफ्तारी की वीडियो भी शामिल की गई है. सीरीज देख कर यह समझ नहीं आता कि यह स्टोरी क्या है और क्यों बनाई गई है. सीरीज देखनी है तो इस के लिए सब से जरूरी है कि सन 2012 में महाराष्ट्र के मुंबई नगर में हुए शीना बोरा हत्याकांड को समझा जाए.

इंद्राणी का जन्म गुवाहाटी में एक असमिया परिवार उपेंद्र कुमार बोरा मां दुर्गा रानी बोरा के घर 1972 में औन रिकौर्ड दिखाया गया है. जबकि असली जन्मतिथि 1965 से 1968 के बीच की बताई जाती है. यह अपने परिवार के साथ गुवाहाटी की कालोनी सुंदरपुर में रहती थी. इंद्राणी के घर का नाम पोरी बोरा था. उपेंद्र कुमार बोरा कभी पेंट के कारखाने में मैनेजर की नौकरी करते थे. बोरा परिवार का गुवाहाटी में कभी चाणक्य इननाम का एक गेस्टहाउस भी हुआ करता था.

इन्होंने अपनी इकलौती बेटी इंद्राणी को सेंट मेरीज, गुवाहाटी में पढऩे के लिए भेजा था, जो राज्य के प्रतिष्ठित महिला स्कूलों में एक था. बताया जाता है कि इंद्राणी जब नौवीं क्लास में थी, तब एक नेपाली युवक के साथ प्रेम प्रसंग हो गया था, जिस के कारण उसे स्कूल से निकाल दिया गया था.

दसवीं के बाद इंद्राणी ने गुवाहाटी के काटन कालेज में दाखिला लिया. कालेज में ही इंद्राणी की मुलाकात विष्णु चौधरी से हुई, जो वहां कानून की पढ़ाई कर रहा था और गुवाहाटी के मशहूर चिकित्सक बी.एल. चौधरी का बेटा था. चौधरी का कहना है कि उन के और इंद्राणी के बीच संबंध जरूर था, लेकिन उन्होंने कभी भी शादी नहीं की. जबकि चर्चा थी कि इंद्राणी से विष्णु चौधरी ने शादी कर ली है.

इंटरमीडिएट के बीच में ही इंद्राणी शिलौंग के लेडी कीन कालेज चली आई और 1985 में बारहवीं की बोर्ड परीक्षा यहां से पास की. यहां वह अकसर एक लोकप्रिय रेस्तरां चिराग में जाया करती थी, जहां उस की मुलाकात सिद्धार्थ दास से हुई, जो एक निजी फर्म में नौकरी करता था.

ऐसा लगता है कि मीडिया में खुलासे से पहले सिद्धार्थ की पत्नी बबली को इंद्राणी के साथ रिश्तों की कोई जानकारी नहीं थी. सिद्धार्थ ने वादा किया कि वह इंद्राणी मुखर्जी की बेटी शीना को अपना नाम देगा. सिद्धार्थ दास से एक बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम मिखाइल रखा गया. इंद्राणी ने 1986 में अपने परिवार को बता दिया था कि सिद्धार्थ दास उस का पति है और उसे ले कर वह सुंदरपुर में अपने मांबाप के साथ रहने आ गई थी.

इंद्राणी के पिता ने सिद्धार्थ दास के लिए गणेशगुरी में एक रेस्तरां खोला, लेकिन वह चल नहीं सका. इंद्राणी को बेरोजगार पति मंजूर नहीं था. उस की महत्त्वाकांक्षा ने फिर अंगड़ाई ली. जून 1990 में इंद्राणी यह कह कर कोलकाता चली गई कि वह अब अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करना चाहती है. 

बताया जाता है कि उस के 3 दिनों के भीतर सिद्धार्थ दास को उस के गुवाहाटी वाले मकान से बाहर निकाल दिया था. इंद्राणी के उस समय 2 बच्चे शीना और मिखाइल थे. इंद्राणी के मातापिता ने दोनों बच्चे अपने ही पास रख लिए. शीना को जब 1992 में स्कूल में डालने का वक्त आया तो बोरा परिवार ने तय किया कि दोनों बच्चों के कानूनी अभिभावक उन के नानानानी को ही होना चाहिए. अगले साल इंद्राणी ने कामरूप न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में एक हलफनामा दाखिल कर के अपने दोनों बच्चों की देखभाल कानूनी रूप से अपनी मां को सौंप दी.

शीना का नाम डिज्नीलैंड स्कूल में लिखवाया गया, जो आज सुदर्शन पब्लिक स्कूल के नाम से जाना जाता है. यह गुवाहाटी के खानपाड़ा में स्थित है. शांत स्वभाव की शीना ने दसवीं की परीक्षा 80 फीसदी से ज्यादा अंकों से पास की और बारहवीं की बोर्ड परीक्षा फैकल्टी हायर सेकेंडरी स्कूल से पास की. मिखाइल पढ़ाई में उतना तेज नहीं था. नौवीं कक्षा में डिज्नीलैंड स्कूल से उस का नाम कट गया और दसवीं की परीक्षा उस ने प्राइवेट छात्र के रूप में पास की.

कोलकाता में इंद्राणी एक मामूली पीजी आवास में रहती थी. 1993 में संजीव खन्ना से मुलाकात हुई. संजीव खन्ना का एक सम्मानित शिक्षित और प्रभावी परिवार था. उन की आर्थिक हालात मजबूत थी. अच्छाखासा कारोबार था. थोड़े ही दिन प्रेमप्रसंग चला. जल्दबाजी में इंद्राणी ने संजीव खन्ना से विवाह कर लिया. दोनों की 1997 में एक बेटी हुई, जिस का नाम विधि है. इन दिनों तक इंद्राणी कारोबार से जुड़ चुकी थी.

इंद्राणी ने आइएनएक्स 1996 के आसपास खोला था. वह रेस्तरां, छोटे होटलों और इवेंट वगैरह में अपनी सेवाएं देती थी. बुनियादी रूप से उस का काम कालेज से निकली नई लड़कियों को काम पर रखवाना था.  कुछ साल में उस का नेटवर्क काफी फैल गया. इंद्राणी कामयाबी की सीढिय़ां चढ़ती गई. वह हर क्षेत्र में सक्षम हो चुकी थी. उस ने इस की एक ब्रांच मुंबई में स्थापित की. अब उसे संजीव खन्ना की कोई जरूरत नहीं थी. फलस्वरुप इंद्राणी और खन्ना में धीरेधीरे दूरियां बढऩे लगीं और अंत में वे अलग हो गए. 

इस के बाद इंद्राणी ने कोलकाता शहर छोड़ दिया. संजीव खन्ना को छोड़ कर और अपनी सारी दौलत बटोर कर इंद्राणी अपनी बेटी विधि के साथ मुंबई में रहने लगी. मुंबई में आ कर इंद्राणी की किस्मत बदल गई. यहां उस की मुलाकात स्टार टीवी के सीईओ पीटर मुखर्जी से हुई. कुछ महीने बाद इंद्राणी पीटर के साथ रहने लगी. 3 महीने बाद दोनों ने शादी कर ली.

इन दोनों का नाम एक चर्चित युगल के रूप में मुंबई में प्रसिद्ध हुआ. पहले इंद्राणी बोरा प्रथम शादी कर के इंद्राणी दास और दूसरी शादी करने के बाद इंद्राणी खन्ना हुई फिर तीसरी शादी कर के वह इंद्राणी मुखर्जी हो गई. तीसरे पति से भी तलाक हो चुका है. अब आगे क्या होगा कुछ कहा नहीं जा सकता. असम की इस मामूली लड़की ने महत्त्वाकांक्षाओं के चलते मुंबई में अपना यह नया अवतार लिया था. अब वह बहुत कुछ बन चुकी थी. मुखर्जी दंपति के लिए मुंबई के पैसे वाले तबके ने अपने दरवाजे खोल दिए. इंद्राणी अब दौलत से मालामाल हो चुकी थी.  

इंद्राणी की नई शादी की खबर जब 2002 में गुवाहाटी तक पहुंची तो उस के मातापिता ने तकरीबन एक दशक में उसे पहली बार चिट्ठी लिखी. उन्होंने उसे बताया कि उन्हें पैसों की दिक्कत है और वे बच्चों का खयाल अब नहीं रख सकते. उन्होंने इंद्राणी से हर महीने कुछ पैसे भेजने का आग्रह किया. इंद्राणी को डर था कि इस पत्र से कहीं उस का अतीत पीटर के सामने खुल न जाए, इंद्राणी को विश्वास था कि पीटर मुखर्जी उस के प्यार के जाल में इतना फंसा हुआ है कि वह जो कुछ कहेगी, उसे आसानी से स्वीकार कर लेगा. इसलिए उस ने अपने मातापिता और बेटेबेटी की मदद करने का फैसला किया. 

दोनों बच्चों के प्रति या तो उस के दिल में प्रेम फूट पड़ा था या वह पश्चाताप करना चाहती थी, कारण जो भी हो. अब उस पर दौलत की कोई कमी भी नहीं थी. 2008 में वाल स्ट्रीट जर्नल ने इंद्राणी को दुनिया की 50 उद्यमियों में 41वें स्थान पर रखा था. फिर तो रातोंरात उस के घर की रंगत ही बदल गई. मकान की साजसज्जा कराई गई. 2 नई कारें खरीद ली गईं. इतना ही नहीं, इंद्राणी 2006 में गुवाहाटी गई और शीना को मुंबई ले आई. शीना को यहां उस ने अपनी बहन बताया. मुखर्जी परिवार ने उस का दाखिला सेंट जेवियर कालेज में करवा दिया और शीना की दोस्ती विधि के साथ हो गई. 

अकसर सामाजिक आयोजनों में उसे मुखर्जी परिवार के साथ देखा जाने लगा. मिखाइल को आगे की पढ़ाई के लिए पुणे भेज दिया गया. पीटर की पहली पत्नी शबनम सिंह थी. पीटर के उस से 2 बेटे थे. शबनम सिंह से पीटर मुखर्जी का तलाक हो गया. बड़ा बेटा राहुल था, जो पिता के साथ रहता था. छोटा बेटा राबिन अपनी मां के साथ देहरादून में रहने लगा. 

राहुल कभी भी इंद्राणी से अच्छे रिश्ते नहीं बना सका, लेकिन शीना के साथ उस की दोस्ती हो गई. दोस्ती प्यार में बदल गई. बाद में दोनों डेट करने लगे. यह वही एक अजीबोगरीब रिश्ता था, जिस  ने मुखर्जी परिवार में काफी तनाव पैदा कर दिया. इस जटिल पारिवारिक जाल के बीच ही पीटर और इंद्राणी ने 2007 में आईएनएक्स मीडिया की शुरुआत करने का फैसला किया.

‘कौन बनेगा करोड़पति’ जैसे कार्यक्रमों से भारतीय टीवी की दुनिया बदल देने वाले सीईओ पीटर मुखर्जी को 2006 में निकाल दिया गया था. जब स्टार चैनल को जी नाम के चैनल ने खरीद लिया था. चैनल 9 एक्स और संगीत चैनल 9 एक्सएम के लौंच होने के कुछ समय बाद ही 9 एक्स की रेटिंग गिर रही थी. आईएनएक्स के साथ अपना रिश्ता खत्म हो जाने के बाद मुखर्जी दंपति मुंबई के अमीर तबके में हाशिए पर चले गए और बाद में विदेश में जा कर बस गए. वे ब्रिस्टल चले गए, जहां विधि पड़ रही थी. इस दौरान शीना ने 2011 में रिलायंस एडीएजी की इकाई मुंबई मेट्रो वन में सहायक प्रबंधक की नौकरी कर ली.

कहानी जून 2012 से शुरू होती है. राकेश मारिया मुंबई पुलिस कमिश्नर थे. उन के पास एक काल आती है. काल करने वाला कहता है कि शीना बोरा नाम की लड़की लापता है. वह हाईप्रोफाइल लोगों का हवाला देते हुए इस की जांच करने की मांग करता है. पता चलता है कि शीना बोरा इंद्राणी मुखर्जी की बहन है. इंद्राणी मुखर्जी पीटर मुखर्जी की पत्नी है. ये दोनों मीडिया जगत के बहुत शक्तिशाली लोग हैं. 

पुलिस कमिश्नर इस केस की सीक्रेट जांच कराते हैं. पता चला कि इंद्राणी और पीटर दोनों इंडिया में नहीं हैं. पुलिस कमिश्नर को पता चला कि इंद्राणी मुखर्जी का ड्राइवर श्यामवर राय है. श्यामवर राय ने कुछ साल पहले नौकरी छोड़ दी थी. 21 अगस्त, 2015 को श्यामवर राय को अरेस्ट कर लिया. उस के पास से एक तमंचा बरामद हुआ.

पुलिस ने थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो श्यामवर राय ने कहा कि 24 अप्रैल, 2012 को मैं, संजीव खन्ना और इंद्राणी मुखर्जी हम तीनों ने मिलक शीना बोरा का मर्डर कर दिया था. उस ने बताया कि उस के बाद हम लोग मुंबई से करीब 100 किलोमीटर दूर रायगढ़ पहुंचे. वहां पहुंचने के बाद इंद्राणी ने 3 जोड़ी जूते निकाले. तीनों ने वह जूते पहने, ताकि सुनसान जंगल की मिट्टी केस खोलने के लिए कोई सबूत न बन जाए. 

उस के बाद डैडबौडी को नीचे उतार कर साथ ले कर आए 20 लीटर पैट्रोल डाल दिया. फिर इंद्राणी ने माचिस से बौडी को आग लगा दी. वहां से तीनों लौट आए. यह कार किराए पर ली गई थी. इंद्राणी ने कहा कि कार धुलवा कर कार वापस कर देना. गाड़ी के अंदर एक पार्सल रखा है, उस पार्सल को अपने साथ ले जाना. उस के साथ क्या करना है, वो मैं तुम्हें बाद में बताऊंगी. 

3 साल बाद श्यामवर राय ने उस पार्सल को खोल कर देखा तो उस में तमंचा था. जिस दिन वह उस तमंचे को ठिकाने लगाने जा रहा था, वह 21 अगस्त, 2015 का दिन था. क्योंकि पुलिस उस पर निरंतर निगरानी रख रही थी, अत: उसी दिन पुलिस ने उसे पकड़ लिया. 25 अगस्त, 2015 को पूर्व ड्राइवर के खुलासे के बाद इंद्राणी मुखर्जी को मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार किया. पुलिस ने इंद्राणी से पूछताछ की, लेकिन इंद्राणी काफी समय तक शीना को अपनी बेटी के बजाय बहन बताती रही और कहती रही कि शीना अमेरिका में है. फिर ड्राइवर का आमनासामना कराए जाने पर इंद्राणी ने शीना को मारा जाना स्वीकार कर लिया. 

उस के बाद इंद्राणी को शीना मर्डर केस में गिरफ्तार कर लिया गया. इंद्राणी मुखर्जी के पूर्व पति संजीय खन्ना को भी दूसरे दिन कोलकाता से गिरफ्तार कर लिया गया. इंद्राणी मुखर्जी उस वक्त एक बहुत ही बड़ी हस्ती थी, क्योंकि वह एक बहुत बड़ी कंपनी की सीईओ थी. पत्रकार जगत में जलजला आ गया. सारी मीडिया इस मामले की कवरेज में जुट गई. 

जैसेजैसे जांच आगे बढ़ी है, चौंकाने वाले खुलासे होते गए. पता चला है कि शीना, इंद्राणी की बहन नहीं, बल्कि बेटी थी. एक बेटा मिखाइल भी है. वह कौन से पति से है, यह भी खुलासा बाद में इंद्राणी करती है. एक और खुलासा यह भी हुआ कि इंद्राणी के पति पीटर के बेटे राहुल के साथ शीना का अफेयर चल रहा था.

संजीव खन्ना और इंद्राणी की जो बेटी थी, उस का नाम विधि था. उन के डिवोर्स के बाद विधि इंद्राणी के साथ ही रहा करती थी. बच्ची को ले कर दोनों के बीच मुकदमेबाजी भी चली, लेकिन इंद्राणी मुकदमा जीत गई. जिस की वजह से पीटर भी विधि को गोद लेने के लिए राजी हो गया था. वह विधि को अपनी ही बेटी की तरह मानता था. उसे जरा भी भेदभाव नहीं करता था. शीना बोरा का एक भाई भी था, जिस का नाम मिखाइल बोरा था. 

पुलिस शीना बोरा की लाश की तलाश में जुट गई. पुलिस को पता चला कि जब शीना गायब हुई थी तो उस के ठीक एक महीने बाद एक आटो चालक जब मुंबई के एक रोड से जा रहा था तो उसे कुछ आम गिरे हुए नजर आए. जब वह गाड़ी रोक कर आम को उठाने लगा तो उसे वहां पर एक लाश का हाथ नजर आया. यह देख कर वो चौंक गया. उस ने तुरंत पुलिस को इस बारे में सूचित किया. क्योंकि वह पुलिस का इनफौर्मर भी था.

जब पुलिस वहां पर पहुंची तो उस लाश को देख कर तुरंत उन लोगों ने उसे वहीं गड्ढा खोद कर गाड़ दिया. पुलिस के अनुसार यह वही स्थान था, जो इंद्राणी मुखर्जी के ड्राइवर श्यामवर राय ने बताया था. यह पहली बार हो रहा था कि पुलिस ने रिपोर्ट नहीं लिखी, बल्कि उस लाश को ही गायब कर दिया. मामला इतना तूल पकड़ा कि सरकार को भी उस में हस्तक्षेप करना पड़ा. इस केस को लीड कर रहे मुंबई पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया का स्थानांतरण हो गया. इस से मामला और भी तूल पकड़ गया. सरकार ने केंद्र सरकार से शीना बोरा प्रकरण की जांच सीबीआई से करने की सिफारिश की. 

18 सितंबर, 2015 मामला सीबीआई को स्थानांतरित हो गया. केंद्रीय एजेंसी ने इंद्राणी मुखर्जी, संजीव खन्ना और श्यामवर राय के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की. 19 नवंबर, 2015 इंद्राणी के तत्कालीन पति पीटर मुखर्जी को सीबीआई ने गिरफ्तार किया. जनवरी 2016 सीबीआई ने इंद्राणी मुखर्जी और श्यामवर राय के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया. बाद में पूरक आरोपपत्र में पीटर मुखर्जी का भी नाम भी शामिल किया गया.

सीबीआई के अनुसार, इंद्राणी ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह राहुल मुखर्जी के साथ रिश्ते को ले कर शीना से नाराज थी. सीबीआई ने यह भी कहा कि शीना बोरा ने उन के बीच वित्तीय विवाद के बाद अपनी मां को बेनकाब करने की धमकी दी थी. ड्राइवर के बयान के आधार पर शीना की अधजली लाश को मुंबई से लगभग 100 किलोमीटर दूर रायगढ़ के जंगल से निकाला गया था. पुलिस ने उस गड्ढे को खोद कर अधजली लाश के अवशेष को निकाल कर फोरैंसिक टीम को सौंप दिया, ताकि वह पता लगा सके कि आखिर यह किस की बौडी है. 

पुलिस का कहना है कि डीएनए टेस्ट में साबित हुआ कि वह इंद्राणी मुखर्जी की बेटी शीना की ही लाश है. जांच में रायगढ़ में लाश के आसपास इंद्राणी की लोकेशन पाई गई. खन्ना की लोकेशन भी मुंबई में इंद्राणी के निवास के आसपास सामने आई. कड़ी से कड़ी और सबूत दर सबूत मिलने पर सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की थी. 2017 में शुरू हुए मुकदमे में करीब 60 गवाहों ने अपने बयान दर्ज किए.

सीबीआई ने इस डाक्यूमेंट्री को रिलीज करने से रोकने के लिए पहले एक विशेष अदालत में याचिका दायर की. वहां से रिट खारिज हो जाने पर हाईकोर्ट मुंबई में गुहार लगाई गई. हाईकोर्ट ने डाक्यूमेंट्री का अध्ययन करने के बाद उसे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. इस तरह द इंद्राणी मुखर्जी स्टोरी: बरीड ट्रुथनाम की वेब डाक्यूमेंट्री रिलीज हुई.

एपिसोड नंबर 1

द इंद्राणी मुखर्जी स्टोरी: बरीड ट्रुथके पहले एपिसोड की शुरुआत मुंबई के उलटे अक्षरों से होती है. पीटर मुखर्जी और राहुल मुखर्जी बापबेटों के बीच फोन पर आडियो काल की आवाज सुनाई जाती है, जिस में राहुल अपने पिता से पूछ रहा है कि शीना कहां है? जब इंद्राणी से शीना के बारे में बात की जाती, तब वह चिढ़ जाती और यही कहती है कि यूएई चली गई है. किसी से कोई संपर्क रखना नहीं चाहती. जबकि राहुल मुखर्जी का दावा है कि शीना का पासपोर्ट उस के पास था तो वह विदेश कैसे चली जाएगी. इस के बाद इंद्राणी मुखर्जी के घर पुलिस की दबिश दिखाई जाती है. 

उस के बाद दिखाया जाता है कि गणेश गने नाम का एक व्यक्ति रायगढ़ से गुजरते वक्त आम के पेड़ से गिरे हुए आम उठाने पहुंचता है. उसे कोई जली हुई लाश का हाथ दिखाई देता है. वह पुलिस का मुखबिर भी है. उस की सूचना पर पुलिस वहीं पास में ही गड्ढा खुदवा कर उस में लाश को दबा देती है. 

इस एपिसोड में इंद्राणी के पति संजीव खन्ना की गिरफ्तारी के सीन दिखाए गए हैं. श्यामवर राय का जिक्र भी है, जिस ने पुलिस को 3 साल पहले शीना के मर्डर के बारे में जानकारी दी थी. यह अपराध की दुनिया में अकसर होता रहता है लेकिन 3 सालों तक इंद्राणी ने इस बात को आखिर छिपाए कैसे रखा? यह सवाल इंद्राणी मुखर्जी के सपोर्ट में दिखाई देता है. कोलकाता के सीन और दूसरे पति की गिरफ्तारी दिखाई जाती है. 

विधि को दिखाया जाता है कि इस के 3 पैरेंट हैं. इंद्राणी मुखर्जी, पीटर मुखर्जी और संजीव खन्ना तीनों जेल में है. इन लोगों की गिरफ्तारी दिखाई जाती है. इस के आगे डाक्यूमेंट्री में इंद्राणी की बहन है शीना या बेटी है, इस मामले को दिखाया गया है. वेब डाक्यूमेंट्री में दिखाया जाता है कि शीना को जब इंद्राणी ने एक व्यावसायिक केंद्र पर बुलाया था. राहुल ही उसे वहां तक छोडऩे गया था. यहां ड्रिंक में नशीला पदार्थ मिलाया गया, फिर उस की हत्या कर के उस की लाश को पिछली सीट पर रखा था. उस का मेकअप किया गया. इस के बाद इंद्राणी के जेल से छूटने के सीन दिखाए गए हैं और पहला एपिसोड यहीं खत्म हो जाता है. पहले एपिसोड से कुछ पता नहीं चलता कि इस सीरीज की कहानी क्या है?

एपिसोड नंबर-2

दूसरे एपिसोड की शुरुआत में इंद्राणी को जेल से बाहर निकलने पर पत्रकारों की भीड़ के साथ घिरा हुआ दिखाया गया है. एपिसोड की शुरुआत में राहुल और उस के पिता पीटर मुखर्जी के बीच फोन पर बातचीत दिखाई गई है. वैहयासी पांडे डेनियल पत्रकार, राजदीप सरदेसाई पत्रकार इंद्राणी के परिचित अभिजीत सेन, सना रईस खान वकील, कावेरी बांमजई पत्रकार अमृता माधुकले पौलिटिकल रिपोर्टर को दिखाया गया है.

इंद्राणी मुखर्जी सहानुभूति हासिल करने के लिए कह रही है कि उस पर हत्या के आरोप लगाए गए. गालियां दी गईं. बुराभला कहा गया. लेकिन यह सब झूठ है. उस ने अपनी बेटी का कत्ल नहीं किया.  वह बताती है कि शीना सिद्धार्थ की बेटी नहीं है, बल्कि 1985 में उस के पिता ने उस के साथ बलात्कार किया. वह अपने पिता की अकेली संतान है. उस समय उस की उम्र 14 साल की थी. परिवार के फोटो दिखाए गए हैं. 

इंद्राणी मुखर्जी कहती है 16 वर्ष की हुई तो दूसरी बार उस के साथ रेप उस के पिता ने किया. मातापिता में झगड़ा हुआ, फिर पिता घर छोड़ कर चले गए. 4 महीने बाद पता चला कि वह प्रेग्नेंट है. अबौर्शन की गुंजाइश नहीं थी. डाक्टर ने इनकार कर दिया. कितनी बेशरमी से पिता पर आरोप लगा रही है. उस समय के पिता उपेंद्र कुमार बोरा के साथ फोटो दिखाए गए हैं. पिता उपेंद्र कुमार का बयान दिखाया गया, वह कह रहे हैं कि शीना उस की नहीं सिद्धार्थ राय की बेटी है. 

इंद्राणी मुखर्जी अपने प्रेमी सिद्धार्थ से मुलाकात और शादी की कहानी सुनाती है. सिद्धार्थ को दिखाया जाता है कहते हैं कि 11 फरवरी, 1987 को शीना और 9 सितंबर, 1988 को मिखाइल का जन्म हुआ. ये दोनों बच्चे उस के ही हैं. उन के बचपन के फोटो दिखाए गए. उस के बाद इंद्राणी सिद्धार्थ को ले कर गुवाहाटी अपने घर आ जाती है. उस की मम्मी उस के पापा को घर वापस बुलाने के लिए कहती है, जिन्हें दूसरी बार इंद्राणी से रेप करने पर घर से निकाल दिया गया था. तब इंद्राणी इसलिए घर छोड़ कर चली गई कि उस के पिता तीसरी बार बलात्कार न कर सकें. 

दूसरे एपिसोड में भी कभी कहीं की बात तो कहीं कभी की घटना दिखाई जाती है. इसे देख कर भी कोई नहीं समझ सकता कि आखिर शीना हत्याकांड क्या है? पीटर मुखर्जी से मुलाकात और उस से शादी का पूरा अफसाना सुनाया जाता है. पुलिस का कहना है कि संजीव खन्ना हत्या में शामिल हुआ. क्योंकि बेटी विधि को, शीना व राहुल की शादी हो जाने पर पीटर मुखर्जी की संपत्ति से वंचित होना पड़ता. बीचबीच में विधि को भी दिखाया जाता है. विधि अधिकतर मामलों में इंद्राणी मुखर्जी की पैरवी करती है. 

एपिसोड नंबर-3

एपिसोड 3 की शुरुआत में इंद्राणी शीना के फोटो दिखाती है. फोटो एलबम लिए बैठी है. यही साबित करना चाहती है कि तीनों बच्चों को वह बराबर प्रेम करती थी. मिखाइल बताता है कि इंद्राणी इस शर्त पर मदद करती थी कि तुम पीटर को नहीं बताओगे कि इंद्राणी उन की मां है. विधि को भी नहीं पता चलना चाहिए. मिखाइल कहता है. यह सब हमें अच्छा नहीं लगा, लेकिन नानानानी ने समझा दिया कि अपने भविष्य के लिए इंद्राणी की बात मान ली जाए. यही उस की गलती थी कि वह शीना को साथ ले कर इंद्राणी के पास मुंबई आया, यदि नहीं जाता तो उस की बहन शीना जीवित होती.

वेब डाक्यूमेंट्री में मीडिया कारोबार की बातें दिखाई जाती हैं. इंद्राणी को सीईओ बनाए जाने पर जो समारोह हुआ, वह दिखाया जाता है. इंद्राणी अपनी बेटी शीना की तारीफ करती है. मुंबई लाने की वजह बताती है. कहती है सब कुछ ठीक था. तीनों बच्चे एक साथ हंसीखुशी से रहते थे. जरमनी और अन्य विदेश में तफरी के लिए गए उस की तसवीर दिखाती है.

मिखाइल बताता है कि मुंबई आने पर संजीव खन्ना उसे एक अस्पताल में ले गए. वहां एक इंजेक्शन लगाया. उस के बाद वह बेहोश हो गया. होश में आया तो हाथ व पैर बैड से बंधे हुए थे. वार्ड बौय ने आ कर उस की जम कर पिटाई की. डाक्टर आया, उस ने बताया कि ड्रग्स पीने से छुटकारा दिलाने के लिए उस की बहन इंद्राणी ने उसे यहां भरती कराया है. करीब डेढ़ महीने बाद इंद्राणी मिलने आई. शिकायत की तो बोली पागल हो गया है और डाक्टर लोग मुझे खींच कर ले गए. एक साल तक मेरा उत्पीडऩ किया गया. इसलिए किया गया क्योंकि मुंबई में उस ने कुछ लोगों को बता दिया था कि इंद्राणी मेरी मां है.

आगे दिखाया जाता है कि पीटर जब अपने बेटे राहुल को भारत ले कर आया तो वह इंद्राणी से की गई शादी से खुश नहीं था. उस की इंद्राणी से नाराजगी रहती, लेकिन इंद्राणी की बहन शीना से उस की खूब दोस्ती हो गई. विधि बताती है कि अचानक वह कमरे में गई तो ये दोनों एक साथ लेटे हुए थे. दोनों रिश्ता करने को तैयार हुए. इंद्राणी इस रिश्ते के खिलाफ नहीं थी. वह कहती है कि राहुल कुछ नहीं करता और शीना को उस के खिलाफ भड़काती है. सीबीआई ने भी शीना की हत्या का कारण राहुल शीना के प्रेम प्रसंग को ही बताया है. डाक्यूमेंट्री में इंद्राणी ने इस कारण को गलत बताने की कोशिश की है. विधि स्वीकारती है कि राहुल की अपने पिता से बातचीत बंद थी और शीना की अपनी मां इंद्राणी से. दोनों का दोनों से खूब मनमुटाव व झगड़ा था. 

एपिसोड नंबर-4

चौथा एपिसोड इंद्राणी मुखर्जी के वकील रंजीत सिंगल से शुरू होता है. इंद्राणी की अपने वकील से बातचीत दिखाई गई है. बात 2012 से शुरू होती है. विद्या पत्रकार को दिखाया जाता है. इंद्राणी की फोन पर राहुल से बात दिखाई जाती है. शीना के मैसेज के बारे में बताता है जिस मैसेज के बारे में इंद्राणी राहुल को समझती है कि शीना से ब्रेकअप हुआ है. ऐसा होता रहता है. इंद्राणी ने दावा किया कि 24 अप्रैल, 2012 के बाद भी शीना को जम्मू कश्मीर में देखा गया है.

एक सवाल उठाया गया है कि श्यामवर राय तमंचा ठिकाने लगाने इतनी दूर क्यों जाएगा. उस के घर के पास एक नदी बहती है. पुलिस ने इस मामले की कड़ी से कड़ी मिलाई है. इंद्राणी कहती है कि उस दिन टाइम से घर आ गई थी, क्योंकि मिखाइल घर पर था. मिखाइल कहता है कि घर पहुंचा तो इंद्राणी घर पर नहीं थी. उस ने फोन किया तो इंद्राणी ने बताया कि वह आने वाली है. उसे लगता है कि इसी समय शीना की हत्या हुई थी. शीना की हत्या के सीन को फिर दिखाया जाता है. 

मिखाइल आगे बताता है कि इंद्राणी और संजीव खन्ना जब रात घर पर आए तो वह संजीव को देख कर डर गया. क्योंकि पागलखाने में भी संदीप खन्ना ही उसे पहुंचा कर आया था. फिर उस को ड्रिंक करने को दिया गया. एक घूंट में ही उसे चक्कर आने लगा. वह समझ गया कि जरूर दाल में काला है. उस समय रात के लगभग 2 बजे थे. किसी तरह से जान बचा के घर से भागा वरना मारा जाता. 

आरोप है कि इंद्राणी ने बेटी की हत्या के बाद शीना बनकर राहुल को मैसेज किया, जिस में राहुल से ब्रेकअप करने की जानकारी दी गई. नौकरी से इस्तीफा दिए जाने का मैसेज भी इंद्राणी ने शीना के दफ्तर भेजा. इंद्राणी इस से इंकार करती रही. अपने परिवार को इंद्राणी उल्लेख करती है कि मैं शीना को क्यों ढूंढूं. जब मैं ने घर छोड़ा था तो मुझे किसी ने नहीं ढूंढा था. इस बात से इंद्राणी का बचाव नहीं हो सकता, क्योंकि 3 साल तक शीना की किसी ने गुमशुदगी तक दर्ज नहीं कराई. अंतिम सीन इंद्राणी का यह है कि कोई सवाल करता है कि आप ने अपनी बेटी की हत्या क्यों की?

वह कहती है कि यह कैसा बेतुका सवाल है और एपिसोड खत्म हो जाता है. इस तरह कहा जा सकता है कि इंद्राणी ने ऐसे सवालों को खड़ा किया है, जिस से उस के बचाव में समाज खड़ा हो जाए और उस की खोई हुई इज्जत और शोहरत वापस आ सके. लेकिन पुलिस रिपोर्ट से तो स्पष्ट है कि इंद्राणी व संजीव खन्ना ने ही शीना की हत्या की थी. 

यह पूरा मामला इंद्राणी के ड्राइवर श्यामवर राय ने बताया है. श्यामवर राय सरकारी गवाह बन चुका है. पीटर मुखर्जी भी इस में पूरा दोषी है. कानून के जानकारों का कहना है कि पुलिस ने पर्याप्त सबूत दिखाए हैं. ये तीनों सजा से बच जाएं, कहा नहीं जा सकता.

प्रेमिका का सिर कलम कर नहर में फेंका

अरुण और शीबा की छोटी सी मुलाकात पहले बौयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड में बदली, फिर वे आपस में बेइंतहा मोहब्बत के सफर पर निकल पड़े. इसी मस्ती के बीच न जाने कब किस ने 2 जिस्म एक जान बने रहने का वादा तोड़ डाला. और फिर जो हुआ, उस में एक की जान चली गई और दूसरे की जिंदगी कोर्ट, कानून, पुलिस के जांचमुकदमे और सजा के पचड़े में फंस गई…

बहराइच जिले के थाना नानपारा के अंतर्गत हांडा बसेहरी गांव के पास झाडिय़ों में 23 जुलाई, 2024 को मिली एक युवती की सिरकटी लाश की पहचान अगर पुलिस के सामने एक बड़ी चुनौती थी तो उस इलाके के लिए यह एक सनसनीखेज दिल दहला देने वाली घटना थी.

पुलिस ने शव की पहचान के लिए बहुत प्रयास किए, लेकिन सिर कटा होने के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा था, सिर्फ इस के कि लाश बेहद खूबसूरत और कमसिन लड़की की थी. वह निर्वस्त्र थी और उस की शारीरिक सुंदरता में उन्नत और सुडौल उरोज के अनुसार उम्र करीब 20-22 साल आंकी गई थी. सुंदर मांसल देह पर खून की महीन और मोटी लकीरें ही परिधान बन गई थीं.  

बहराइच के एसपी वृंदा शुक्ला ने इस मामले की जांच के लिए प्रशिक्षु पुलिस सीओ हर्षिता तिवारी की अगुवाई में एक टीम गठित करवा दी थी. जांच में तेजी थी, फिर भी लाश की पहचान नहीं हो पा रही थी, जिस की सूचना किसी राहगीर ने पुलिस दी थी.

जब पुलिस ने 22 जुलाई को गुमशुदगी की रिपोर्ट पर ध्यान दिया तो पता चला कि 20 वर्षीय शीबा नाम की युवती उसी इलाके से लापता थी. लाश की पहचान शीबा के रूप में हुई. यह गुमशुदा शीबा की तसवीर और शव के दाहिने पैर में बंधे काले धागे के मिलान करने पर संभव हो पाया.

इस पहचान की शीबा के परिजनों ने भी पुष्टि कर दी. इस पहचान के सिलसिले में पुलिस को मालूम हुआ कि शीबा की फोन पर अकसर एक हिंदू लड़के अरुण सैनी से बात होती थी. वह श्रावस्ती जिले के थाना मल्हीपुर अंतर्गत मल्हीपुर खुर्द का रहने वाला था.

पुलिस ने बरामद लाश के बारे में सब कुछ पता करने के लिए आपनी जांच की सूई पूरी तरह से शीबा के लापता होने के मामले और अरुण की तरफ घुमा दी थी. हालांकि शीबा के बारे में तहकीकात करने पर पुलिस को पता चला कि वह अपने मामा हशमत अली के घर जमोग गांव में रहती थी और अरुण अपने मामा के पास बगल के गांव में रहता था.

दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे और पिछले एक साल से दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी. इस दोस्ती को लेकर भी गहन छानबीन करने पर पुलिस को मालूम हुआ कि शीबा के मामा उन के बीच की दोस्ती से बेहद खफा थे. 

अरुण की शादी तय हो गई थी. शीबा का मामा नहीं चाहता था कि दोनों का किसी भी तरह से मेलजोल बने. यहां तक कि उन के बीच फोन पर भी बातचीत नहीं हो. मामा एक तरह से मोहब्बत में खलनायक बन गए थे. वह बातबात पर शीबा को टोकते रहते थे और अरुण को भी उस से दूर रहने की हिदायत दिया करते थे. यह घोर विरोध धर्म के अंतर की वजह से था. पुलिस को जब मालूम हुआ कि शीबा और अरुण के बीच मामा कबाब में हड्डी की तरह घुसा हुआ था, तब अपनी जांच और भी गहनता से करने लगी.

इलाके में पूछताछ पर पता चला कि एक बार शीबा के मामा ने अरुण की पिटाई तक कर दी थी, जिस से अरुण काफी गुस्से में आ गया था और उस ने मामा को काफी खरीखोटी सुनाई थी. पुलिस को समझने में देर नहीं लगी कि शीबा की हत्या का पूरा मामला प्रेम कहानी, धार्मिक अंतर और परिवार की प्रतिष्ठा के साथ जुड़ा हुआ है. शीबा के मामा का पक्ष तो सामने आ गया था, लेकिन अरुण की तरफ से किसी भी तरह की सच्चाई सामने नहीं आ पाई थी.

इस मामले में पुलिस की जांच टीम अज्ञात हत्यारोपियों पर नजर रखे हुए थी. लाश बरामदगी के हफ्ते भर बाद 29 जुलाई, 2024 को केस दर्ज कर लिया गया था. एसओजी यानी स्पेशल औपरेशन ग्रुप के प्रभारी दिवाकर तिवारी और सर्विलांस सहित पुलिस की टीमों ने घटनास्थल पर सक्रिय मोबाइल नंबरों और कई संदिग्धों को उठा कर पूछताछ करने के बाद अरुण सैनी को पकड़ लिया था. 

बहराइच की मिलीजुली जातियों की आबादी वाले जमोग गांव में मुसलिम परिवारों की भी अच्छीखासी संख्या थी. उन्हीं में एक परिवार हशमत अली का भी है. शीबा उन्हीं की भांजी थी. गिरफ्तार किया गया अरुण भी पास के गांव में अपने ननिहाल में ही रहता था. वह भी उसी स्कूल में पढ़ता था, जहां शीबा पढ़ती थी. लेकिन उन की कक्षाएं अलगअलग थीं. शीबा आठवीं में पढ़ती थी, जबकि अरुण नौंवी में पढ़ता था. दोनों जब स्कूल से निकलते थे, तब अपनेअपने गांव जाने के दौरान कुछ दूरी पर साथ होते थे. उस के बाद शीबा को खेतों के रास्ते जाना होता था और वह सड़क के नीचे पगडंडियों से होते हुए अपने ननिहाल चली जाती थी.

हालांकि सड़क उस के गांव से हो कर गुजरती थी, लेकिन उस रास्ते जाने पर शीबा को अधिक पैदल चलना होता था. इस कारण शीबा पगडंडियों के छोटे रास्ते से गुजरती हुई अपने मामा के घर जाती थी. वहां तक जाने में उसे 5 से 7 मिनट का समय लगता था. अरुण उसे पगडंडियों पर कमर लचकाती जाती हुई सड़क पर खड़ेखड़े तब तक देखता रहता था, जब तक कि वह उस की आंखों से ओझल हो नहीं जाती थी.

बीते कुछ दिनों से उस ने महसूस किया था कि शीबा जब पगडंडी पर संभलती हुई तेजी से चलती थी, तब उस की कमर कुछ ज्यादा ही लचकती थी. यह देखना उसे बहुत अच्छा लगता था. कई बार उस ने देखा था कि शीबा पगडंडी से गिरनेगिरने को हो… इच्छा होती थी कि जा कर पीछे से उस की कमर को सहारा दे दे. उसे दिल में गुदगुदी का एहसास होने लगता था.

करीब एक साल पहले की बात है. एक बार अरुण स्कूल जाते वक्त उसी पगडंडी के पास सड़क के किनारे खड़ा शीबा के आने का इंतजार कर रहा था. कुछ सेकेंड बाद ही उस ने देखा, शीबा दौड़ती हुई आ रही है. असल में उस रोज स्कूल का समय करीबकरीब हो चुका था. जैसे ही शीबा सड़क के पास आई, उस का पैर पगडंडी से फिसल गया और नीचे खेत में लुढ़क गई. अरुण कुछ दूरी पर ही था. वह दौड़ कर उस के पास गया. अपना बैग रखा और उसे उठाने के लिए अपना हाथ बढ़ा दिया. 

शीबा भी संभलती हुई उस के हाथ के सहारे से उठी और संभलते हुए उस के कंधे को पकड़ लिया. अरुण उसे संभालते हुए उस का हाथ पकड़ कर उठाने लगा. जब वह नहीं उठ पाई, तब उस ने दूसरे हाथ से उस की कमर पकड़ कर खेत से पगडंडी तक ले आया.

अरे छोड़ो, मेरी कमर छोड़ो.’’ शीबा बोल पड़ी.

छोड़ दूंगा तब तुम फिर गिर जाओगी. नहीं दिख रहा नीचे कितना गड्ढा है.’’ अरुण बोला.

अरे मैं कह रही हूं…छोड़ो न, गुदगुदी हो रही है.’’ शीबा बोली.  

अच्छा तो यह बोलो न.’’ यह कहते हुए अरुण ने उसे तुरंत छोड़ दिया और अपने कंधे पर लग आई मिट्टी को साफ करने लगा. शीबा ने भी अपने कपड़े झाडऩे के बाद पास गिरे स्कूल बैग को उठा लिया. अरुण उसे गौर से देखने लगा.

अब क्या देख रहे हो? चलो, रास्ता छोड़ो स्कूल को देर हो रही है.’’ शीबा बोली. 

लेकिन अरुण को अचानक शरारत सूझी, उस ने उस की पेट के बगल में एक बार फिर गुदगुदाने के लिए हाथ लगा दिया.

”अरे, क्या करते हो. मैं लड़की हूं, तुम्हें नहीं पता क्या?’’ यह कहती हुई शीबा ने एक तरह से अरुण को डपट दिया था और उसे धक्का दे कर सड़क पर तेजी से चली आई थी. पीछेपीछे अरुण भी उस के पास आ गया. बोला, ”एक तो मैंने तुम्हें बचाया और तुम मुझे थैंक्यू बोलने के बजाए गुस्सा हो रही हो.’’

नाराज होने वाली हरकत ही तुम ने की तो मैं क्या करती?’’ शीबा नरमी से बोली. 

अरुण भी चुप रहा और साथसाथ स्कूल पहुंच गया. उस रोज दोनों के बीच दोस्ती की बुनियाद पड़ गई थी. स्कूल से छुट्टी होने पर शीबा ने देखा कि अरुण सड़क के एक किनारे उस का इंतजार कर रहा है. शीबा अपनी सहेलियों से विदा ली और अरुण के पास आ कर बोली, ”मेरा इंतजार कर रहे हो?’’

नहीं तो!’’

तो फिर यहां क्यों खड़े हो?’’ शीबा बोली और मुसकराने लगी.

सुबह तुम्हें कहीं चोट तो नहीं लगी थी?’’ अरुण हमदर्दी के साथ पूछा.

तुम्हें मेरा बड़ा खयाल है!’’ शीबा मजाकिया अंदाज में बोली.

क्यों न हो, तुम लड़की जो हो और वह भी सुंदर लड़की.’’अरुण बोला. 

अपनी सुंदरता की बात सुन कर शीबा शरमा गई. बोली, ”अच्छाअच्छा चलो.’’

उन के बीच न केवल दोस्ती हो गई थी, अरुण को शीबा की सुंदरता और देह से फूटती सैक्स की गंध लुभाने लगी थी. गाहेबगाहे उस के शरीर की मांसलता, कमर की लोच और स्तन के उभार पर उस की नजर टिक जाती थी. इस का एहसास शीबा को भी हो चुका था, लेकिन इस बारे में अरुण को जरा भी पता चलने नहीं देती थी. सच तो यह था कि शीबा भी मन ही मन अरुण से प्रेम कर बैठी थी.

दोनों के बीच मोहब्बत की लौ जल चुकी थी. वे आपस में मिले बगैर नहीं रह पाते थे. स्कूल में मुलाकात हुई तब ठीक, नहीं तो फोन पर बातें करने लगे थे. समय अपनी गति से चलता रहा, लेकिन उन के बीच के प्रेम को पंख लग चुके थे और गंध भी फैल चुकी थी. शीबा को एक दिन मामा ने ही डपट दिया था और उस का स्कूल जाना बंद करवा दिया.

एक तरह से शीबा पर कहीं भी बाहर आनेजाने से ले कर फोन करने पर पाबंदी लगा दी गई थी. शीबा के मामा अरुण के साथ भांजी के प्रेम संबंध का पता चलने पर और भी चिंतित हो गए थे. वह मुसलिम थे और अरुण का परिवार हिंदू था. दोनों के बीच शादीब्याह तो बहुत दूर की बात थी. 

वह जानते थे कि ऐसे रिश्ते का दोनों समाज के लोग घोर विरोधी थे. इस के खतरनाक अंजाम की आशंका से शीबा के मामा ने अरुण को प्यार से समझाया. उसे शीबा से संबंध खत्म करने के लिए कहा. यहां तक कि उसे धमकी दी. पारिवारिक विरोध और बंदिशों के चलते शीबा कुछ समय तक अपने मन को काबू में रखे रही. अरुण भी पढ़ाई, करिअर अपने कामकाज में व्यस्त हो गया. एक दिन उसे बाजार में शीबा मिल गई. शिकायती लहजे में 5-6 महीने से नहीं मिलने का कारण पूछ बैठी. 

कुछ देर तक उन के बीच इधरउधर की बातें होती रहीं. इसी सिलसिले में अरुण ने बताया कि उस की शादी तय हो चुकी है. इसलिए वह उसे भूल जाए. अरुण की बात सुन कर शीबा को झटका लगा. वह बिफरती हुई बोली, ”तुम ऐसा कैसे कर सकते हो. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं. मैं तुम्हारे अलावा और किसी से निकाह नहीं कर सकती. ऐसा होने से पहले मैं अपनी जान दे दूंगी.’’

अरुण ने उसे समझाने की कोशिश की. अपनी जाति, धर्म और समाज की बात समझाते हुए तमाम बाध्यताओं की बातें की, लेकिन शीबा के दिलोदिमाग पर इस का कोई असर नहीं हुआ. उस रोज तो बात आईगई हो गई, लेकिन शीबा का दिल यह मानने को कतई तैयार नहीं था कि वह अरुण से संबंध तोड़ ले. वह उस से फोन पर बातें करने लगी.

कभी भी वह अरुण को काल कर देती थी. कभी वाट्सऐप मैसेज भेज देती तो कभी वीडियो काल कर देती थी. शीबा का फोन आने पर अरुण न चाहते हुए भी उस से बात करने को मजबूर हो जाता था. वह बातोंबातों में धमकी तक दे डालती थी. काल रिकार्डिंग और पुरानी बातों के हवाले से उसे बदनाम करने तक की बातें करने लगती थी.

एक दिन तो शीबा ने फोन पर हद ही कर दी. रात का वक्त था. सभी गहरी नींद में सो रहे थे. जबकि शीबा फोन पर लगी हुई थी. वह बेहद गुस्से में थी. अरुण नरमी से बातें कर रहा था, जबकि शीबा बारबार बोले जा रही थी, ”मैं देख लूंगी, सब को देख लूंगी! जिसजिस ने मुझे सताया है, जिस ने भी धोखा देने का काम किया है, जो भी ऐसा करेगा, मैं सब को फंसा दूंगी. उन को जेल नहीं भिजवाया तो मेरा नाम शीबा नहीं…’’

यह सुन कर अरुण तिलमिला गया, जबकि शीबा की ये बातें उस के मामा ने भी सुनीं. वह अरुण के प्रति आगबबूला हो गए. वह गलतफहमी में आ गए… उन्हें लगा कि अरुण उस के मना करने के बावजूद शीबा को अपनी मोहब्बत के रंग में रंगे हुए है. उस के दिमाग से मोहब्बत का फितूर उतरा नहीं है. फिर क्या था, उन्होंने उसे सबक सिखाने के लिए उस की जम कर पिटाई करवा दी. अरुण दोहरे तनाव से घिर गया था. एक तरफ शीबा थी, जो उसे अपने प्रेम के जाल में फांसे हुए थी और बारबार शादी करने का दबाव बना रही थी, कानूनी जाल में फंसाने की धमकी देती थी, जबकि दूसरी तरफ उस के परिवार वाले भी धमकियां देते रहते थे. 

अरुण से शादी करने की जिद पर शीबा अड़ी थी. अरुण को समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे उस से छुटकारा पाए. वही अरुण पुलिस हिरासत में था. उसे शीबा की मौत का जिम्मेदार माना जा रहा था. शीबा के परिजनों के मुताबिक उस की हत्या उसी ने करवाई थी. किंतु पुलिस के सामने यह सवाल था कि जब दोनों एकदूसरे से प्रेम करते थे, तब एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को क्यों मारेगा?

इस बाबत पुलिस ने जब सख्ती के साथ उस से पूछताछ की, तब उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि अपने एक दोस्त कुलदीप के साथ मिल कर उस ने शीबा का बेरहमी के साथ कत्ल किया था. उस ने यह कबूल कर लिया कि कत्ल के बाद हत्या के सबूत मिटाने के मकसद से उस का सिर और हाथ काट कर नहर में फेंक दिए थे. शीबा की लाश पहचानी न जा सके, इस के लिए अरुण ने उस के शरीर से सारे कपड़े उतार कर नहर में फेंक दिए थे.

अब सवाल था कि जिस के प्यार में शीबा सब कुछ छोडऩे को तैयार थी, उसी अरुण ने उसे क्यों मार डाला? पुलिस पूछताछ में पता चला कि दोनों के प्रेम प्रसंग करीब सालभर तक चले. उन के प्यार के बारे में जब दोनों के परिजनों को पता चला, तब उन्होंने इस रिश्ते को अपनाने से मना कर दिया. 

ऐसे में अरुण ने किनारा करना शुरू कर दिया, लेकिन शीबा उस के साथ शादी की जिद पर अड़ी रही. जबकि शीबा ने अरुण से कहा कि वो उस के लिए अपना घर और धर्म दोनों छोडऩे के लिए तैयार है. फिर भी अरुण को यह सब ठीक नहीं लगा और वह शीबा से छुटकारा पाने का उपाय तलाशने लगा.

उस ने एक योजना बनाई और 21 जुलाई को शीबा से कहा कि वो दोनों भाग कर शादी कर लेंगे. शीबा मान गई थी और बैग में अपने कुछ कपड़े रख कर अरुण की बताई जगह पर पहुंच गई थी. वहां अरुण के साथ उस का दोस्त कुलदीप भी था. अरुण ने शीबा को बातों में उलझाया और मौका देख कर उस का गला घोंट दिया. इस के बाद अरुण और कुलदीप ने शीबा का सिर और एक हाथ काट कर अलग कर दिए. दोनों ने उस के शरीर से सारे कपड़े उतारे और काटे गए अंगों के साथ ही सरयू नहर में फेंक दिया. लाश को वहीं पुल के पास छोड़ कर दोनों ने खून से सने अपने कपड़े उतारे और उन्हें कुछ दूरी पर झाडिय़ों में छिपा दिया.

इस की पुष्टि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से हो गई. किंतु शीबा के शरीर पर कई जगह धारदार हथियार से काटे जाने के निशान भी मिले. इस बारे में पूछने पर अरुण ने बताया कि उस की प्लानिंग शीबा की लाश के टुकड़ेटुकड़े करने की थी, लेकिन किसी वजह से वह ऐसा नहीं कर पाया था. 

पुलिस ने उस की निशानदेही पर शीबा की लाश को काटने वाला हथियार भी बरामद कर लिया. कातिलों पर संबंधित धाराओं में केस दर्ज कर जेल भेज दिया गया. उस के बाद उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. लिखे जाने तक जांच जारी थी.

  7 साल पहले दौड़ में हराया, अब डेढ़ करोड़ की चोरी करते पकड़ा

आपराधिक पृष्ठभूमि वाले रऊफ और हैदर ने एक टूल फैक्ट्री से कर्मचारियों के वेतन की डेढ़ करोड़ की रकम लूटने की योजना बनाई. लेकिन इस के लिए उन्हें तेज धावक की जरूरत थी, जो 500 गज के मैदान को दौड़ कर जल्दी से पार कर सके. उन्हें अपना पुराना क्लासफेलो तेज धावक आजम मिल भी गया. लेकिन क्या वे डेढ़ करोड़ की रकम लूट पाएएक रोमांचक कहानी     

जम, हैदर और रऊफ एक मिडिल क्लास के कौफी हाउस में बैठे कौफी की चुस्कियां ले रहे थे. तीनों दसवीं क्लास तक साथसाथ पढ़े थे. हैदर और रऊफ पहले से कौफी हाउस में थे, जबकि आजम थोड़ी देर पहले वहां पहुंचा था. तीनों की भेंट कभीकभार ही होती थी.

‘‘तो तुम आजकल टैक्सी चला रहे हो?’’ हैदर ने आजम से पूछा.

‘‘हां, क्या तुम ने यही पूछने के लिए बुलाया था?’’ आजम ने खुश्क स्वर में कहा और हैदर के कीमती सूट की तरफ देखा. हैदर उस के चेहरे को ताकतेहुए बोला, ‘‘और तुम्हारी टांगें? क्या तुम पहले की तरह अब भी तेज दौड़ सकते हो?’’

‘‘टांगें भी ठीक हैं, लेकिन इस बात का मुझे यहां बुलाने से क्या संबंध है?’’ आजम ने उसे घूरते हुए कहा.

‘‘इस बारे में तुम्हें रऊफ बताएगा.’’ हैदर ने रऊफ की ओर इशारा करते हुए कहा, जो अब तक बिलकुल चुपचाप बैठा था. वह दुबलापतला युवक था, लेकिन उस का सिर एक तरफ झुका हुआ था, जैसे वह कान लगा कर कोई आवाज सुन रहा हो. उस के बारे में यह मशहूर था कि वह पचास गज के फासले से ही पुलिस वालों के कदमों की आहट सुन लेता था. हैदर और रऊफ आपराधिक गतिविधियों में संलग्न रहते थे. वे कभीकभी बड़ा हाथ भी मार लेते थे.

रऊफ बोला, ‘‘तुम्हें स्कूल में सब से तेज दौड़ने वाला छात्र कहा जाता था. मैं ने अपनी जिंदगी में किसी को इतना तेज दौड़ते हुए नहीं देखा. तुम ने एक किलोमीटर दौड़ने का क्या रिकौर्ड बनाया था आजम?’’

‘‘4 मिनट 10 सेकेंड. लेकिन यह स्कूल के जमाने की बात है. बाद में तो मैं 24 सेकेंड में 220 गज का फासला तय कर के स्टेट चैंपियन बन गया था. लेकिन उस के बाद कमबख्त शकील ने 22 सेकेंड में यह फासला तय कर के मेरा रिकार्ड तोड़ दिया. कोई सोच सकता है कि सिर्फ 2 सेकेंड के फर्क से मैं दूसरे नंबर पर गया.’’ आजम निराश स्वर में बोला. हैदर धीरे से हंसा, ‘‘मुझे यकीन था कि तुम उस मनहूस शकील को पराजित करने में कामयाब हो जाओगे? वह बड़ा मगरूर और बददिमाग लड़का था.’’

‘‘शकील कहां है आजकल?’’ रऊफ ने पूछा.

‘‘पता नहीं, किसी बड़ी कंपनी में ऊंची पोस्ट पर नौकरी कर रहा होगा. वह पढ़ने में भी तो काफी तेज था.’’ आजम ने कहा.

‘‘शकील ऊंची पोस्ट पर और तुम टैक्सी ड्राइवरयहां भी तुम उस से मात खा गए.’’ रऊफ आंखें बंद कर के मुस्कराया.

आजम की मुट्ठियां भिंच गईं, ‘‘अब यह सब बातें छोड़ो. बताओ, मुझे यहां क्यों बुलाया है.’’

‘‘50 लाख रुपए. क्या तुम यह रकम लेना पसंद करोगी.’’

आजम का चेहरा पीला पड़ गया. वह कुछ देर चुप रहने के बाद बोला, ‘‘क्या तुम लोग कहीं डाका डालना चाहते हो.’’

‘‘तुम्हें हम दोनों के कामों के बारे में तो मालूम ही होगा. इसलिए ताज्जुब करने की कोई जरूरत नहीं है. अगर तुम्हें 50 लाख रुपए कमाने में दिलचस्पी हो तो बोलो. नहीं तो कोई बात नहीं.’’ हैदर ने उस के चेहरे पर निगाहें गड़ाते हुए कहा.

‘‘लेकिन मैं ही क्यों?’’ आजम बोला.

‘‘हमें एक तेज दौड़ने वाले आदमी की जरूरत है. काम बहुत आसान है, जिस में नाकामी का सवाल ही नहीं पैदा होता और आमदनीतुम सुन ही चुके हो. तीसरा हिस्सा 50 लाख रुपए बनता है. क्या खयाल है?’’ रऊफ ने कहा. ‘‘पूरी बात सुने बगैर मैं क्या जवाब दे सकता हूं.’’ आजम को अब 50 लाख रुपए लहराते हुए दिखाई देने लगे थे.

रऊफ ने सिर हिलाया और मेज पर आगे की तरफ झुकता हुआ बोला, ‘‘नाजिमाबाद में एक बहुत बड़ी टूल फैक्ट्री है. हैदर पिछले 2 महीने से वहीं नौकरी कर रहा है. हर माह की 5 तारीख को वहां के कर्मचारियों को तनख्वाह दी जाती है. यह धनराशि लगभग एक सौ पचास लाख होती है.’’ रऊफ ने जेब से कागज का एक टुकड़ा निकाल कर मेज पर फैला दिया. आजम ने उस पर खिंची हुई टेढ़ी तिरछी लकीरों को देखा, लेकिन उस की समझ में कुछ नहीं आया.

‘‘ये देखो, यह है फैक्ट्री की चारदीवारी और यह है प्रवेश द्वार. इस के पास ही एक छोटा सा दरवाजा है. बड़े दरवाजे से फैक्ट्री के कर्मचारी आतेजाते हैं. इसलिए यह दिन में 4 बार ही खुलता है. लेकिन छोटा दरवाजा खुला रहता है, जहां से फैक्ट्री के दफ्तर के लोग आतेजाते हैं. दरवाजे के अंदर दाखिल हो तो खुला मैदान आता है जो सीमेंट का बना हुआ है. यह मैदान पार करने के बाद फैक्ट्री का औफिस है

‘‘फैक्ट्री के मुख्य प्रवेश द्वार और औफिस के बीच करीब 5 सौ फुट की दूरी है. पहले यह मैदान औफिस के कर्मचारियों द्वारा अपनी गाडि़यां खड़ी करने के काम आता था, लेकिन अब फैक्ट्री के मालिकों ने सामने वाला प्लाट भी खरीद लिया है, जहां सभी गाडि़यां खड़ी की जाती हैं. मैदान में सुबहशाम ट्रकों पर माल लादा और उतारा जाता है. बाकी समय यह खाली पड़ा रहता है.’’ हैदर ने विस्तार से आजम को बताते हुए कहा, ‘‘अब तुम समझे कि हमें तुम्हारी मदद की क्यों जरूरत पड़ी.’’

आजम हैरानी से उन दोनों को बारीबारी से देखता रहा. रऊफ बोला, ‘‘फैक्ट्री के प्रवेश द्वार से गाड़ी अंदर नहीं जा सकती. फैक्ट्री के औफिस में एक सौ पचास लाख की धनराशि होती है. तुम्हें औफिस के अंदर से धनराशि का थैला उठा कर फैक्ट्री के प्रवेश द्वार तक दौड़ लगानी है-बहुत तेज. बाहर हम लोग गाड़ी में बैठे तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे. जैसे ही तुम गाड़ी में बैठोगे, गाड़ी दस सेकेंड में वहां से एक मील दूर पहुंच जाएगी. सारा मामला 500 फुट मैदान पार करने का है.’’

‘‘यानी मैं…’’ आजम ने कुछ कहना चाहा. ‘‘हां, तुमतुम्हारे जैसा तेज दौड़ने वाला आदमी ही यह काम कर सकता है. 5 तारीख को सुबह ठीक साढ़े 10 बजे एकाउंटेंट तिजोरी में से एक सौ पचास लाख रुपए निकालता है. उस की मदद के लिए 3 औरतें होती हैं. वे कमरा बंद कर के रकम गिनते हैं और हर कर्मचारी की तनख्वाह के अनुसार रकम को लिफाफों में बंद करते जाते हैं

रकम प्राप्त करना कोई मसला नहीं है. एकाउंटेंट एक बूढा आदमी है. रिवाल्वर देख कर वह कोई विरोध नहीं करेगा. और तीनों औरतें तो डर के मारे कांपने लगेंगी. बस, तुम्हें रुपयों का थैला उठा कर फैक्ट्री के प्रवेश द्वार तक दौड़ लगानी है-तेज, खूब तेज. तुम्हें सारे रिकौर्ड तोड़ देने हैं.’’ हैदर ने आजम को उत्साहित करते हुए कहा.

‘‘नहींनहीं.’’ आजम ने जल्दी से कहा, ‘‘मैं यह काम नहीं कर सकता, चाहे तुम मुझे कितने ही रुपए दो. इस काम में बहुत खतरा है. फिर सवाल यह भी है कि मुझे प्रवेश द्वार के अंदर कौन जाने देगा. फैक्ट्री के कर्मचारियों को पहचान पत्र जारी किए जाते हैं, जिन्हें दिखा कर अंदर जाने की अनुमति मिलती है.’’

रऊफ बोला, ‘‘पहचान पत्र पर फोटो नहीं होती. तुम हैदर का पहचान पत्र दिखा कर अंदर जा सकते हो. तुम्हें कोई नहीं रोकेगा. फैक्ट्री में रोजाना नए कर्मचारी भर्ती किए जाते हैं, क्योंकि 1-2 कर्मचारी नौकरी छोड़ कर चले जाते हैं. फैक्ट्री काफी बड़ी है, इसलिए कोई भी गार्ड या गेटमैन इतने कर्मचारियों या मजदूरों के चेहरे याद नहीं रख सकता. आजम, यह बड़ा आसान काम है और तुम जैसे तेज दौड़ने वाले आदमी के लिए तो यह कोई काम ही नहीं है.’’

‘‘मैं तेज दौड़ सकता हूं लेकिन गोली की रफ्तार से मुकाबला नहीं कर सकता.’’ आजम ने हकबकाते हुए कहा. ‘‘गोली चलने की नौबत नहीं आएगी. बूढे़ एकाउंटेंट को गोली चलानी नहीं आती. वह कमरे का दरवाजा बंद रखने का आदी है.’’ हैदर बोला. लेकिन आजम फिर भी नहीं तैयार हुआ. उस ने कहा कि वह बंद दरवाजा कैसे तोड़ेगा. इस पर हैदर ने कहा, ‘‘मैं रिपेयरिंग विभाग में कार्यरत हूं. मैं घटना से एक दिन पहले उस दरवाजे की कुंडी कुछ ढीली कर दूंगा, जिस से वह एक धक्के में खुल जाएगा.’’

लेकिन तब भी आजम यह काम करने को तैयार नहीं हुआ. इस पर रऊफ बोला, ‘‘आजम अब दौड़ने के काबिल नहीं रहा.’’

 ‘‘ये बात नहीं है.’’ आजम ने विरोध किया.

‘‘हमें मालूम है, तुम दौड़ सकते हो, लेकिन तुम्हारे अंदर हौसले की कमी है. यही वजह है कि तुम शकील से शिकस्त खा गए.’’ रऊफ जोर से हंसा, ‘‘50 लाख से तो तुम कई टैक्सियों के मालिक बन सकते हो. लेकिन तुम इस के लिए कोशिश करना ही नहीं चाहते.’’ फिर वह हैदर से बोला, ‘‘चलो हैदर, किसी दूसरे की तलाश करें, जो तेज दौड़ने के साथसाथ शानदार भविष्य का इच्छुक हो.’’

रऊफ और हैदर उठ खड़े हुए. रऊफ जाते समय आजम से बोला कि अगर वह अपना फैसला बदले तो हैदर को फोन कर दे. आजम ने कहा, ‘‘मैं अपना फैसला नहीं बदलूंगा.’’ लेकिन अगली रात आजम ने अपना फैसला बदल दिया और उन के साथ काम करने को तैयार हो गया. फिर दूसरे ही दिन से आजम ने मैदान में दौड़ लगाने का अभ्यास शुरू कर दिया. उसे यह देख कर बहुत तसल्ली हुई कि वह अब भी उतना ही तेज दौड़ सकता है. फर्क सिर्फ यह पड़ा था कि अभ्यास छूटने से उस की सांस अब जल्दी फूलने लगी थी. 

लेकिन फिक्र की कोई बात नहीं थी, उसे फैक्ट्री के औफिस से प्रवेश द्वार तक सिर्फ एक ही बार दौड़ लगानी थी. फिर तो उसे गाड़ी में बैठ कर वहां से निकल भागना था. रविवार के दिन आजम ने जब मैदान में दौड़ लगाई तो वह आश्चर्यचकित रह गया. उस की रफ्तार पहले से काफी ज्यादा बढ़ गई है.

शीघ्र ही 5 तारीख गई, जिस दिन टूल फैक्ट्री में तनख्वाह बंटनी थी और आजम को रऊफ एवं हैदर के साथ नाजिमाबाद पहुंचना था. एक घंटे के बाद वे लोग फैक्ट्री के पास पहुंच गए. रऊफ ने फैक्ट्री के मुख्य प्रवेश द्वार से कुछ दूर पहले ही अपनी गाड़ी रोक दी. वहां से आजम पैदल ही फैक्ट्री तक पहुंचा. ठीक 10 बजे फैक्ट्री का दरवाजा खुला और कर्मचारी कतारबद्ध हो कर अंदर जाने लगे.

आजम भी लाइन में लग गया. नंबर आने पर उस ने चौकीदार को हैदर का पहचान पत्र दिखाया, जिस ने सरसरी तौर से उस पर नजर डाली और आगे बढ़ने का इशारा किया. दरवाजे से घुसने पर उस ने अंदर का निरीक्षण किया. रऊफ ने वहां का जो नक्शा बनाया था, वह एकदम ठीक था

आजम ने फैक्ट्री के औफिस से छोटे दरवाजे तक का फासला नजरों से मापा, वह लगभग, 500 फुट ही था. यानी 150 गज. आजम यह फासला 15-16 सेकेंड में तय कर सकता था. अब उसे यह इत्मीनान हो गया कि यह काम वाकई ज्यादा मुश्किल नहीं है

इस से पहले आजम, रऊफ और हैदर इस योजना पर कई बार बात कर चुके थे तथा हर मामले पर अपनी दृष्टि डाल चुके थे. यही नहीं, आजम हैदर से मिलने के बहाने पूरी फैक्ट्री बाहर से देख चुका था.आजम आगे बढ़ता जा रहा था. लेकिन वह अन्य कर्मचारियों के साथ फैक्ट्री के अंदर नहीं गया, बल्कि कुछ दूरी पर बने शौचालय की ओर बढ़ गया. उसे अपना काम ठीक साढ़े 10 बजे अंजाम देना था. 10:25 पर वह शौचालय से बाहर निकला और फैक्ट्री के औफिस के पास पहुंच कर रुक गया. उस ने जेब में रिवाल्वर टटोला जिसे रऊफ ने दिया था. फिर वह औफिस के अंदर पहुंचा.

आजम ने खिड़की से देखा कि तनख्वाह बांटने वाले कमरे में बूढ़ा एकाउंटेंट और 3 औरतें थीं. एकाउंटेंट तिजोरी से रुपए निकाल कर थैले में डाल चुका था. आजम ने दरवाजे का हैंडल घुमाया और दरवाजे को धक्का दिया. मगर दरवाजा टस से मस न हुआ. एक क्षण के लिए उस के होश उड़ गए. 

लेकिन जब उस ने थोड़ा जोर से धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया. बूढे़ एकाउंटेंट ने सिर उठा कर उस की ओर देखा, फिर उस के माथे पर बल पड़ गए. उस ने प्रश्नवाचक नजरों से आजम को देखा, जो अब तक रिवाल्वर निकाल चुका था. रिवाल्वर देख कर तीनों औरतों की चीखें निकल गईं.

‘‘खामोश!’’ आजम ने सख्त स्वर में कहा, ‘‘चुपचाप रुपयों का थैला मेरे हवाले कर दो, नहीं तो तुम लोग बेमौत मारे जाओगे.’’

 ‘‘नहीं.’’ बूढ़े एकाउंटेंट की सांसें फूलने लगीं, ‘‘इस में हमारी तनख्वाहें हैं.’’

 ‘‘जल्दी करो.’’ आजम ने कठोर स्वर में कहा. बूढे एकाउंटेंट ने डर के मारे नोटों से भरा थैला आजम की ओर बढ़ा दिया. आजम ने झपट कर थैला ले लिया. थैला बहुत भारी था. उसे पहली बार महसूस हुआ कि नोटों में भी काफी वजन होता है. वह सोचने लगा कि थैला ले कर दौड़ लगाने में उसे जरूर परेशानी होगी. लेकिन फिर भी वह 500 फुट का फासला 15-16 सेकेंड में तय कर सकता था

आजम दरवाजे की ओर कदम बढ़ाते हुए बोला, ‘‘शोर मचाने की जरूरत नहीं है. अगर किसी ने शोर मचाया या मेरा पीछा करने की कोशिश की तो मैं गोली चला दूंगा.’’ फिर शीघ्र ही वह कमरे से बाहर निकला और दरवाजे की कुंडी लगा कर दौड़ना शुरू कर दिया.

7 साल पहले का जमाना लौट आया, जब आजम दर्शकों के सामने दौड़ लगाता था. आज भी वह अपनी योग्यता का भरपूर प्रदर्शन कर रहा था. उस के कानों में तेज हवाओं की सीटियां गूंज रही थीं. आजम को अपने पीछे दौड़ते कदमों का एहसास हो रहा था. ऐसे में उस के पैरों में मानो पंख लग गए थे

वह जीजान से तेज दौड़ रहा था. उस की नजरों के सामने छोटा दरवाजा तेजी से पास आता जा रहा था. उस दरवाजे के बाहर रऊफ और हैदर गाड़ी में बैठे उस का इंतजार कर रहे थे. तभी उसे एहसास हुआ कि वह जिंदगी में कभी पहले इस से ज्यादा तेज नहीं दौड़ा था.

अचानक उसे किसी ने पीछे से पकड़ने का प्रयास किया. खतरे का एहसास होते ही क्षण भर के लिए उस का बदन टेढ़ा हो गया. आजम का कंधा पूरी ताकत के साथ सीमेंट के पक्के फर्श से टकराया लेकिन रुपयों का थैला उस के हाथ से फिर भी नहीं छूटा. ऐसे में उस के चेहरे के अंग सुरक्षित रहे. अगर वह सीधा गिरता तो शायद काफी समय तक कोई उसे पहचान न पाता.

जमीन से टकराते ही आजम के फेफड़ों में भरी हुई हवा निकल गई. उस ने एक गहरी सांस ले कर जल्दी से उठने की कोशिश की. लेकिन किसी ने उस की टांगें बड़ी मजबूती से पकड़ रखी थीं. उस के गले से एक तेज चीख निकल गई.

यह कैसे संभव हो सकता था. वह तो अपनी जिंदगी में कभी इतना तेज नहीं दौड़ा था. आखिर कोई आदमी उसे किस तरह पकड़ने में सफल हो गया. उस ने सिर घुमा कर पीछे देखा-एक युवक उस के टखने पकडे़ हुए था. वह युवक बोला, ‘‘माफ करना मित्र, इस थैले में मेरी तनख्वाह है. इसलिए मैं तुम्हें यह थैला ले कर भागने की इजाजत नहीं दे सकता.’

पहले तो आजम को अपनी आंखों पर यकीन नहीं आया. फिर धीरेधीरे उस ने उस युवक को पहचान लिया. उस ने छोटी सी दाढ़ी बढ़ा रखी थी. उसे पकड़ने वाला युवक शकील था, जिस ने 7 साल पहले कालेज में उसे दौड़ प्रतियोगिता में हराया था.

‘‘शकील!’’ आजम के हलक से एक दर्दभरी कराह निकली, ‘‘तुमतुम यहां क्या कर रहे हो?’’

‘‘मैं इस टूल फैक्ट्री का कर्मचारी हूं.’’ शकील ने कठोर स्वर में जवाब दिया, ‘‘एक विभाग का मैनेजर.’’

फिर पलक झपकते ही वहां फैक्ट्री के बहुत से कर्मचारी इकट्ठा हो गए. उन्होंने पहले रुपयों का थैला उठाया, फिर आजम को उस के पैरों पर खड़ा किया. वे आपस में जोरजोर से बातें कर रहे थे. रऊफ और हैदर को भी पकड़ लिया गया था.

आजम को उन दोनों की कोई परवाह नहीं थी. उसे रुपए हाथ से निकल जाने का भी कोई दुख नहीं हुआ. आजम को बस एक ही बात का अफसोस था कि इस बार भी वह दौड़ में शकील के मुकाबले दूसरे नंबर पर रहा.

गर्लफ्रेंड के लिए करनी पड़ी ढाई करोड़ की चोरी

रविंद्र, विकास और आशीष ने सोना लूटने के लिए योजना तो अच्छी बनाई थी, जिस में वे कामयाब भी रहे. लेकिन अपराधी कितना भी सतर्क क्यों हो, कोई कोई भूल कर ही जाता है. रविंद्र और उस के साथियों से भी ऐसी भूल हुई और पकड़े गए.    

र्जुन लाल मीणा ने दीवार घड़ी पर नजर डाली, सुबह के 5 बजे थे. मोबाइल की रिंगटोन सुन कर गहरी नींद से जागे अर्जुन लाल मीणा ने दीवार घड़ी की ओर देखने के बाद करवट बदल कर तकिए में मुंह गड़ा लिया. रविवार 22 अप्रैल को सार्वजनिक अवकाश की वजह से मीणा लंबी तान कर सोए हुए थे. नींद में खलल डालने वाली मोबाइल रिंगटोन के प्रति मीणा ने भले ही लापरवाही बरती, लेकिन जब रुकरुक कर बजने वाली रिंगटोन का सिलसिला थमता नजर नहीं आया तो उन का माथा ठनके बिना नहीं रहा

तमाम अंदेशों से घिरे मीणा ने कौर्नर स्टैंड पर रखा मोबाइल उठा लिया. स्क्रीन पर उन के अधीनस्थ इंसपेक्टर रामजीलाल बैरवा का नंबर था. हैरानी और परेशानी में डूबते उतराते मीणा ने फोन कानों से सटा लिया, ‘‘हैलो.’’

दूसरी ओर की आवाज सुन कर उन का अलसाया चेहरा तन गया. हाथ से छूटते मोबाइल सैट को बमुश्किल थामते हुए उन के मुंह से अनायास निकल गया, ‘‘क्या कह रहे हो?’’ एकाएक उन की भौंहें सिकुड़ गईं. उन्होंने अटकते हुए कहा, ‘‘तुम होश में तो हो?’’

जवाब में मीणा ने दूसरी तरफ से जो कुछ सुना, वह उन के कानों में पिघला शीशा उडे़लने जैसा था. रामजीलाल कह रहे थे, ‘‘सर, आप के चैंबर के लौकर में रखे ढाई करोड़ के जेवर गायब हैं. वारदात बीती रात को हुई.’’ 

मीणा में कुछ और सुनने की ताकत नहीं बची थी. उन का चेहरा बर्फ की तरह सफेद हो चुका था. वह बोले, ‘‘मैं फौरन पहुंच रहा हूं.’’

अर्जुन लाल मीणा कोटा स्थित आयकर महकमे के डिप्टी डायरेक्टर (इनवैस्टीगेशन) पद पर थे. बीते 3 दिन के दौरान महकमे के खोजी दल ने कोटा के 3 सर्राफा व्यवसायियों के ठिकानों पर छापे डाल कर सर्वे की काररवाई की थी और 2 करोड़ 94 लाख रुपए के जेवर और 90 लाख की नकदी जब्त की थी

शनिवार 21 अप्रैल को सरकारी छुट्टी होने के कारण नकदी तो बैंक में जमा करा दी गई थी, लेकिन जेवरात सरकारी खजाने में जमा नहीं कराए जा सके थे. ये जेवरात मीणा के चैंबर की अलमारी में ही रखे हुए थे. मीणा लगभग 5 मिनट में ही सीएडी सर्किल स्थित आयकर भवन पहुंच गए. उन का चैंबर इमारत की दूसरी मंजिल पर था. उन के मातहत पहले ही वहां पहुंचे हुए थे. मीणा को फोन से खबर करने वाले इंसपेक्टर रामजीलाल बैरवा के अलावा चौकीदार बनवारीलाल, कर्मचारी नीरज कुमार, प्रवीण सिन्हा, राजेश भाटी और सिक्योरिटी गार्ड दुर्गेश मीणा ऊपरी तल के टूटे हुए मेन गेट पर ही खड़े थे

इंसपेक्टर रामजीलाल ने चौकीदार बनवारीलाल सुमन की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘मुझे वारदात की खबर सुमन ने ही दी थी.’’  मीणा अपने चैंबर की तरफ बढ़े तो एंट्री डोर टूटा हुआ नजर आया. इस से पहले कि वे भीतर दाखिल होते, उन की नजर दूसरी मंजिल पर लगे सीसीटीवी कैमरों की तरफ गई, जो लगभग उखड़े हुए थे. कमरे में रखी गोदरेज की अलमारी का गेट खुला हुआ था और लौकर खाली था. 

निस्संदेह अलमारी से चाबी बरामद करने के बाद लौकर को खोला गया था. उस में रखे जेवरात के दोनों डिब्बे गायब थे. अलमारी में रखी फाइलें फर्श पर बिखरी पड़ी थीं और उन के पास ही फैले हुए थे बीते दिनों किए गए सर्वे के दस्तावेज. सभी दस्तावेज फटे हुए थे.

मीणा अनुभवी अधिकारी थे, जेवरात के वही डिब्बे गायब थे, जिन्हें पिछले 3 दिनों में जब्त किया गया था. जबकि दूसरे लौकर में रखा बौक्स यथावत मौजूद था. इस बौक्स में 69 लाख के जेवरात सुरक्षित थे. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि बिना घर के भेदी के यह वारदात हो ही नहीं सकती. 

उन्होंने तत्काल मोबाइल पर जोधपुर स्थित मुख्यालय पर अपने उच्चाधिकारियों को वारदात की जानकारी दे दी तो उन्हें कहा गया कि फौरन पुलिस को इत्तला करें और अपने स्तर पर अधिकारियों को साथ ले कर पूरी छानबीन करें. मीणा ने एक पल चौकीदार बनवारीलाल सुमन की तरफ देखा तो वो बुरी तरह सकपका गया

‘‘साबसाब…’’ कह कर उस ने हांफते हुए सफाई देने की कोशिश की, ‘‘मैं ने  तो पूरी मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी पूरी की, लेकिन पता नहीं कैसे और कब चोरों को वारदात करने का मौका मिल गया.’’ एक पल रुकते हुए उस ने कहा, ‘‘मुझे तो सिक्योरिटी गार्ड दुर्गेश मीणा के बताने पर पता चला. इमारत के भीतर की जिम्मेदारी तो सिक्योरिटी गार्ड की ही है.’’ 

मीणा ने असहाय भाव से सुमन की तरफ देखा. फिर निरीक्षक बैरवा को जरूरी निर्देश दे कर मोबाइल पर आईजी विशाल बंसल से संपर्क किया.

पिछले कुछ दिनों से कोटा में आपराधिक वारदातों का ग्राफ बढ़ने से पुलिस की मुस्तैदी में तेजी आई तो आईजी विशाल बंसल ने भी अपना रूटीन बदल दिया था. वह सुबह को जल्दी औफिस में बैठने लगे थेरविवार 22 अप्रैल छुट्टी का दिन था तो भी उन की दिनचर्या में कोई खास फर्क नहीं आया था. जब आयकर विभाग के डिप्टी डायरेक्टर अर्जुनलाल मीणा ने उन्हें फोन किया, उस समय बंसल औफिस में ही मौजूद थे. मीणा ने अपना परिचय देने के साथ सारा माजरा बताया तो बंसल हैरान रह गए. उन्होंने पलट कर सवाल किया, ‘‘कब हुई वारदात? और आप कहां से बोल रहे हैं?’’

मीणा ने घटना का संक्षिप्त सा ब्यौरा देते हुए कहा, ‘‘सर, संभावना है कि वारदात रात को एक और 3 बजे के बीच हुई होगी. सर्वे की काररवाई के कुछ दस्तावेजी काम निपटा कर हम रात करीब 12 बजे फारिग हुए थे. दिन भर की थकान के बाद रात को करीब एक बजे मैं घर जा कर सो गया था. अगले दिन रविवार के अवकाश की वजह से मैं निश्चिंत हो कर सो गया था.’’ 

एक पल रुकने के बाद मीणा ने कहना शुरू किया, ‘‘मुझे मेरे अधीनस्थ इंसपेक्टर बनवारी लाल बैरवा ने तड़के 5 बजे फोन कर के वारदात की इत्तला दी. उन्हें भी वारदात की बाबत चौकीदार के बताने पर पता चला. उस के बाद से ही मैं औफिस में हूं.’’

‘‘लेकिन मीणा साहब, इस वक्त तो सवा 6 बजने वाले हैं,’’ बंसल ने उलाहना देते हुए कहा, ‘‘आप वारदात की खबर सवा घंटे बाद दे रहे हैं.’’ 

थोड़ा हिचकते हुए मीणा ने सफाई देने की कोशिश की, ‘‘सर, मुझे इस के लिए हायर अथौरिटीज की इजाजत और निर्देश लेने थे. मुझे अपने स्तर पर भी छानबीन करनी थी कि आखिर क्या कुछ हुआ था और कैसे हुआ था?’’ बंसल की पेशानी पर मीणा की इस लेटलतीफी पर सलवटें पड़े बिना नहीं रहीं. लेकिन उन्होंने मौके की नजाकत को तवज्जो देना ज्यादा जरूरी समझा. अगले ही पल उन्होंने एडीशनल एसपी समीर कुमार को तलब कर पुलिस टीम के साथ तुरंत मौके पर पहुंचने के लिए निर्देश दिए. आईजी विशाल बंसल के सक्रिय होते ही कोटा पुलिस हरकत में गई

वारदात का क्षेत्र जवाहर नगर था, इसलिए थानाप्रभारी नीरज गुप्ता जब अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे उस वक्त सुबह के 7 बज कर 20 मिनट हो चुके थे. नीरज गुप्ता ने घटनास्थल का जायजा लेना शुरू किया. तब तक फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और डौग स्क्वायड टीम भी वहां पहुंच चुकी थी. कोटा में जहां आयकर औफिस की इमारत है, उसे सीएडी रोड कहा जाता है. दरअसल, नए कोटा की सरहद यहीं से शुरू होती है. इस मार्ग पर कमांड एरिया डवलपमेंट का परियोजना भवन होने के कारण इस का नाम सीएडी रोड पड़ गया है. आयकर भवन की इमारत इसी लाइन में तीसरी है. इस से पहले कोटा नगर विकास न्यास का कार्यालय भवन है

आयकर भवन के पिछवाड़े निचली बस्ती है, जिसे दुर्गा बस्ती के नाम से जाना जाता है. आयकर कार्यालय पुलिस कंट्रोल रूम और अभय कमांड सेंटर से महज चंद कदमों की दूरी पर है. आयकर भवन वाली कतार में चंद कदमों के फासले पर ही अभय कमांड सेंटर आमनेसामने हैं

आयकर महकमे की टोली ने डिप्टी डायरेक्टर (इनवैस्टीगेशन) अर्जुनलाल मीणा के निर्देशन में पिछले 3 दिनों में क्रमश: 18, 19 और 20 अप्रैल को सर्राफा व्यवसाइयों के 3 ठिकानों पर सर्वे के दौरान रेड डाल कर 2 करोड़ 94 लाख के जेवरात और 90 लाख की नकदी जब्त की थी. शीर्ष अधिकारियों के निर्देशानुसार पुलिस के पहुंचने तक अर्जुनलाल मीणा ने अपने सहयोगियों के साथ घटनास्थल की छानबीन करनी शुरू की. उन्होंने आयकर भवन के दूसरे तल के समूचे ब्लौक की जांच की. इस ब्लौक में 14 कमरे थे, लेकिन वारदात उसी कमरे में हुई, जिस में मीणा बैठते थे. 

मीणा ने एक बार पीछे लौट कर दूसरे तल में दाखिल होने वाले गेट का मुआयना किया. उन्होंने ध्यान से देखा. जिस तरह दरवाजे की कुंडी टूटी नजर आई, उस से उन के लिए समझना मुश्किल नहीं था कि कुंडी को तोड़ने के लिए किसी नुकीले औजार का इस्तेमाल किया गया था

इस के बाद ही चोर ब्लौक में दाखिल हुए थे. मीणा को अचानक कुछ याद आया तो वह अपने चैंबर में दाखिल हो कर नए सिरे से अलमारी की जांच करने लगे. उन्होंने अलमारी को ध्यान से देखा तो पता चला कि अलमारी को चाबी से खोला गया था. उन की समझ में नहीं रहा था कि जब अलमारी चाबी से खुल गई थी तो उसे डैमेज क्यों किया गया? काफी सोचविचार के बावजूद मीणा समझ नहीं पाए कि आखिर ऐसा क्यों हुआ?

ब्लौक में टूट कर लटके हुए सीसीटीवी कैमरों को देख कर निराश हो चुके मीणा ने बेनतीजा कोशिश के बावजूद एक बार उन की फुटेज पर सरसरी निगाह डाल लेना जरूरी समझा. अपनी टीम के साथ जैसे ही मीणा ने सीसीटीवी फुटेज खंगालने शुरू किए. उन की आंखें चमकने लगीं. उस में नकाब पहने 3 बदमाश नजर आए. अब तक लगभग निढाल से मीणा एकाएक जोश में गए

उन्होंने अपने सहयोगियों को झिंझोड़ दिया, ‘‘देखो, यह शख्स क्या तुम्हें हमारे संविदा कर्मचारी रविंद्र सिंह की तरह नहीं लगता?’’ मीणा ने उस शख्स की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘जरा इस की चालढाल पर गौर करो, मुझे तो यह रविंद्र ही लग रहा है?’’

सहयोगियों के सिर सहमति में हिले, इस से पहले मीणा ने अपनी बात की तस्दीक में सवाल उछाला, ‘‘सर्वे में जब्त किए गए जेवरातों के बारे में जिन 5-7 लोगों को पता था, उस में रविंद्र सिंह भी एक था?’’

‘‘सर, चोर तो घर का भेदी निकला.’’ इंसपेक्टर बनवारीलाल ने मीणा के तर्क पर सहमति जताते हुए हैरानी जताई, ‘‘लेकिन अब क्या किया जाए?’’

मीणा का चेहरा खुशी से दमक रहा था. उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण सबूत हासिल कर लिया था. लेकिन जटिल प्रश्न यह था कि अब क्या किया जाए.‘‘ऐसा करो…’’ एकाएक जैसे मीणा को उपाय सूझ गया. उन्होंने बैरवा को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘रविंद्र समेत स्टाफ के सभी लोगों को फोन कर के यहां आने को कहो?’’

 ‘‘लेकिन सर,’’ झिझकते हुए बैरवा की बात काटते हुए मीणा ने समझाया, ‘‘सब को सिर्फ इतना कहना कि साब को अर्जेंट काम से अभी जोधपुर जाना है, इसलिए फौरन औफिस पहुंचो.’’

अब मीणा को बेताबी से इंतजार था, तो कारस्तानी करने वाले का और पुलिस का भी. अब उन के लिए जयपुर स्थित प्रादेशिक मुख्यालय को भी इत्तला देनी जरूरी थी. वे तुरंत इस काम में जुट गए. रविवार 22 अप्रैल की सुबह 10 बजे तक आईजी विशाल बंसल समेत उच्च अधिकारी भी मौके पर पहुंच चुके थे. एडीशनल एसपी समीर कुमार पहले ही अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे हुए थे

आईजी बंसल की अनुमति से उन्होंने डीएसपी बने सिंह, राजेश मेश्राम, सर्किल इंसपेक्टर नीरज गुप्ता, लोकेंद्र पालीवाल आदि को अपनी टीम में शामिल किया था.अर्जुनलाल मीणा ने अपनी अब तक की पड़ताल और शकशुबहा को ले कर रविंद्र सिंह की बाबत बताया, ‘‘मुझे इस आदमी पर संदेह हो रहा है. यह हमारे यहां संविदा पर तैनात कंप्यूटर औपरेटर है.’’

पुलिस अधिकारियों ने सीसीटीवी कैमरे खंगाले तो मीणा की शंका की तस्दीक होती नजर आई. मीणा के शक पर मुहर लगाई सीसीटीवी कैमरे के उस दृश्य ने जिस में पिछले शनिवार 21 अप्रैल की रात के 8 बजे रविंद्र दफ्तर में पहुंचा तो जरूर, लेकिन भीतर दाखिल होने के बजाए ताकझांक कर के वापस लौट गया

समीर कुमार ने जब मीणा से पूछा कि क्या इसे आप ने बुलाया था, मीणा के इनकार पर समीर कुमार ने उन पर पैनी निगाहें गड़ाते हुए कहा, ‘‘मीणा साहब, मैं दावे से कह सकता हूं कि यही हमारा शिकार है, कल यह रैकी करने आया था, और आप लोगों की मौजूदगी देख कर उलटे पांव वापस लौट गया. आखिर बिना बुलाए रात 8 बजे औफिस आने का क्या मतलब?’’

समीर कुमार सारा माजरा समझ चुके थे. उन्होंने रविंद्र सिंह की तसवीर की तरफ इशारा करते हुए सर्किल इंसपेक्टर नीरज गुप्ता से कहा, ‘‘इसे उठा कर लाओ, यही है मुलजिम?’’ नीरज गुप्ता ने एक पल की भी देर नहीं लगाई. समीर गुप्ता ने मीणा के आगे सवालों की झड़ी लगाते हुए पूछा, ‘‘आप के यहां कितने संविदा कर्मचारी हैं? और क्या उन का पुलिस वेरिफिकेशन हो चुका है.’’ 

मीणा ने बताया कि औफिस में रविंद्र सिंह ही एकलौता संविदा कर्मचारी था और पिछले 2 सालों से कंप्यूटर औपरेटर का काम कर रहा था. उन्होंने यह भी बताया सुकेत का रहने वाला रविंद्र सिंह दुर्गा बस्ती में रहता है.

‘‘मीणा साहब.’’ समीर कुमार ने उन की तरफ गहरी नजर से देखते हुए कहा, ‘‘सीसीटीवी कैमरे खंगालते समय आप ने एक बात नोट नहीं की, वरना उसी वक्त समझ जाते कि करतूत तो घर के भेदी की ही है.’’

‘‘जी, मैं समझा नहीं?’’ अर्जुन लाल मीणा ने हैरानी जताते हुए कहा.

समीर मुसकराते हुए बोले, ‘‘फुटेज में बदमाश सीधा आप के कमरे में ही पहुंच रहा था, जाहिर है, उसे पता था कि उस का टारगेट क्या है? वारदात करने वाला यहीं का आदमी था, तभी तो उसे मालूम था कि उसे कहां पहुंचना है. फाइलें फाड़ने का काम तो उस ने पुलिस को गुमराह करने के लिए किया?’’

लगभग एक घंटे बाद ही रविंद्र सिंह एडीशनल एसपी के सामने खड़ा था. एडीशनल एसपी समीर कुमार कुछ क्षण अपने सामने खड़े रविंद्र सिंह को पैनी निगाह से देखते रहे. समीर कुमार उस के बदन पर टीशर्ट और पैरों के जूतों पर सरसरी निगाह दौड़ाते हुए चौंके. लेकिन संयम बरतते हुए उन्होंने उस के कंधों पर हाथ रखा, ‘‘देखो, जो कुछ हुआ सो हुआ, लेकिन सच बोलने से तुम्हारी सजा कम हो सकती है.’’

रविंद्र लगभग 23-24 वर्षीय युवक था. उस ने हाथ झटकते हुए कहा, ‘‘साब, मैं ने कुछ किया हो तो बताऊं? मैं तो पिछले 2 सालों से यहां कंप्यूटर औपरेटर हूं. मैं अपनी नौकरी खतरे में क्यों डालूंगा?’’

‘‘हां, तुम्हारी बात तो ठीक है. कोई अपनी नौकरी कैसे खतरे में डाल सकता है. चलो, तुम इतना तो बता सकते हो कि कल शाम को 8 बजे तुम दफ्तर क्यों आए थे? और आए थे तो बिना किसी से मिले बाहर से ही क्यों लौट गए?’’

‘‘साब, जिस दफ्तर में नौकरी करता हूं, वहां आना कोई गुनाह तो नहीं. मुझे तो यहां अपनी स्कूटी खड़ी करनी थी. ऐसे में किसी से मिलने ना मिलने का कोई औचित्य नहीं था.’’

समीर कुमार ने तुरंत कहा, ‘‘बिलकुल ठीक कहते हो तुम, खैर यह बताओ कि कल रात को तुम कहां थे?’’

‘‘साब, कल रात को मैं कहां था, इस से क्या फर्क पड़ता है? अपने यारदोस्तों के साथ था और कहां था?’’

  ‘‘यारदोस्त कौन थे और क्या कर रहे थे? यह सब बताए बिना तुम्हारा पीछा छूटने वाला नहीं है?’’ एडीशनल एसपी ने डपटते हुए कहा.

अब तक हौसला दिखाने की कोशिश कर रहे रविंद्र की पेशानी पर पसीना छलक आया था. थोड़ा अटकते हुए उस ने कहा, ‘‘साब, विकास के घर पर हम 3-4 दोस्त उस की बर्थडे पार्टी मना रहे थे.’’

‘‘लगे हाथ उन दोस्तों के नाम और ठौरठिकाने भी बता दो?’’

‘‘लेकिन साब, मेरे दोस्तों से क्या मतलब?’’ अब रविंद्र पर घबराहट तारी होने लगी. वह एडीशनल एसपी की घूरती निगाहों का ज्यादा देर सामना नहीं कर पाया और जल्दी ही बोल पड़ा, ‘‘विकास नर्सिंग का कोर्स कर रहा है और मेरे गांव का ही रहने वाला है. कोटा में महावीर नगर विस्तार योजना में रहता है.’’

‘‘औरऔर…’’ समीर कुमार की आवाज में सख्ती का पुट था. ‘‘और कौन था?’’

‘‘और आशीष था, वह फ्लिपकार्ट कंपनी में डिलीवरी बौय की नौकरी करता है, वो भी सुकेत का ही रहने वाला है. मेरा हमउम्र ही है.’’ उस ने हड़बड़ाते हुए बात पूरी की, ‘‘2-3 लड़के और थे, उन्हें मैं नहीं जानता… वे आशीष और विकास के मिलने वाले थे. उन्हें ही पता होगा?’’

‘‘रविंद्र, तुम शायद अपनी मुक्ति नहीं चाहते. लेकिन याद रखो पुलिस तो गूंगे को भी बुलवा लेती है. खैर, तुम्हारी मरजी?’’ समीर कुमार ने रविंद्र सिंह को काफी कुरेदा, पर वह इस बात से बराबर इनकार करता रहा कि उस का इस वारदात में कोई हाथ है. अचानक समीर कुमार के दिमाग में युक्ति आई उन्होंने रविंद्र से कहा, ‘‘ठीक है, तुम आराम से बैठो और ठीक से सोच लो. आधे घंटे बाद तुम से फिर पूछताछ होगी.’’ 

रविंद्र के जातेजाते समीर कुमार ने पूछा, ‘‘तुम कौन से शूज पहनते हो?’’

रविंद्र इत्मीनान से बोला, ‘‘स्पोर्ट्स शूज साब, लेकिन आप क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘तुम्हारी पसंद पूछ रहा हूं?’’ रविंद्र का जवाब सुनते ही एडीशनल एसपी के चेहरे पर मुस्कराहट दौड़ गई.

अब तक दोपहर के 2 बज चुके थे. रविंद्र को सिपाहियों के हवाले करते ही एडीशनल एसपी समीर कुमार ने सर्किल इंसपेक्टर लोकेंद्र पालीवाल की तरफ मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘रविंद्र के जूतों के निशान ले कर बस्ती की दीवार के पीछे बने जूतों के निशान से उन का मिलान करो?’’

रविंद्र जिस तरह भटकाने की कोशिश कर रहा था, समीर कुमार का गुस्सा खौलने लगा था. लेकिन संयम बरतते हुए वह सीओ राजेश मेश्राम और बने सिंह की तरफ मुखातिब हुए, ‘‘विकास और आशीष बोलेंगे तो यह भी बोलने लगेगा. क्रौस इंटेरोगेशन में तीनों बोलेंगे.’’

इस बीच सर्किल इंसपेक्टर मुनींद्र सिंह, महावीर यादव, आनंद यादव, घनश्याम मीणा और रामकिशन की अगुवाई में अलगअलग हिस्सों में तहकीकात के लिए बंटी पुलिस टीमों ने आयकर महकमे की सर्च टीम में पहले शामिल रहे अधिकारियों, कर्मचारियों और सुरक्षा कर्मचारियों तथा इमारत के आसपास रहने वालों से भी पूछताछ कर ली.

पुलिस ने मामले की तह तक पहुंचने के लिए चालानशुदा अपराधियों को भी टटोला, 50 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरों को भी खंगाला गया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. इस बीच पुलिस रविंद्र के दोस्तों विकास और आशीष को उठा लाई थी.

जूतों के निशान के मामले में एडीशनल एसपी समीर कुमार का अंदेशा सही निकला, सर्किल इंसपेक्टर पालीवाल ने लौट कर जो बताया उसे सुन कर समीर कुमार की बांछें खिल गईं. दुर्गा बस्ती की दीवार के पीछे की नमी वाली जमीन पर बने स्पोर्ट्स शूज के निशान रविंद्र के जूतों से मिल रहे थे. 

पूछताछ में रविंद्र ने शनिवार की रात अपनी मौजूदगी बर्थडे पार्टी में बताई थी, लेकिन पुलिस ने जब उस के घर वालों से उस के कथन की तसदीक की तो उन का कहना था कि वह घर से खाना खा कर गया था. एडीशनल एसपी ने जब उसे उस के घर वालों के कथन का हवाला दे कर दोबारा बर्थडे पार्टी पर सवाल किया तो वह हड़बड़ा गया. उस के चेहरे का रंग उड़ गया और टांगें कांपने लगीं. वह समझ गया था कि उस के शूज का नाप क्यों लिया गया था और उस से शूज के ब्रांड के बारे में क्यों पूछा गया था

इस बार रविंद्र एडीशनल एसपी समीर कुमार की आंखों में झलकते क्रोध को सहने की हिम्मत नहीं जुटा सका और नजरें चुराने लगा. रविंद्र फिर भी खामोश रहा तो समीर कुमार ने उस के चेहरे पर नजरें जमाते हुए कहा, ‘‘अभी वक्त है, तुम चाहो तो सच्चाई उगल सकते हो, तुम चालू दोस्तों के बहकावे में गए? हम तुम्हें बचाने की पूरी कोशिश करेंगे.’’ 

आखिर रविंद्र टूट गया. उस ने जो कुछ बताया वो मौजमस्ती और हालात से निजात पाने की गुनहगार कोशिश थी…’’ गुनाह में पिरोई गई सारी योजना रविंद्र सिंह ने तैयार की थी, लेकन इस के पीछे थे उन के अपने छोटेमोटे स्वार्थ. रविंद्र सिंह आयकर महकमे में ठेकेदार के जरिए 2 साल के लिए लगा हुआ संविदाकर्मी था

यह अवधि पूरी होने जा रही थी और ठेकेदार अब अपना कोई नया आदमी लगने का मंसूबा पाले हुए था. नौकरी जाने के डर से रविंद्र वारदात कर के बड़ी रकम जुटाने की कोशिश में था. विकास और आशीष भी उसी के गांव सुकेत के रहने वाले थे, तीनों में गहरा दोस्ताना था. विकास नर्सिंग कोर्स की पढ़ाई कर रहा था. लेकिन 2 वजह से उसे बड़ी रकम की जरूरत थी. उस की एक जरूरत तो कालेज की फीस भरने की थी और दूसरे गर्लफ्रैंड के तकाजे उस पर ज्यादा भारी पड़ रहे थे. 

प्यार और फीस में उलझा विकास हालात से उबरने के लिए रविंद्र की योजना में शामिल हो गया. आशीष उर्फ आशु हालांकि फ्लिपकार्ट कंपनी में डिलीवरी बौय की नौकरी करता था, लेकिन महंगे शौक मामूली नौकरी से पूरे नहीं हो पा रहे थे. इसलिए वारदात में शामिल हुआ. पुलिस ने विकास और आशीष से क्रौस इंट्रोगेशन की तो दोनों टूट गए. उस के बाद तो वारदात की कडि़यां जुड़ती चली गईं.

एसपी (सिटी) अंशुमान भोमिया के सामने एडीशनल एसपी समीर कुमार द्वारा की गई पूछताछ में रविंद्र कुमार ने बताया कि एक दिन पहले भी उन्होंने वारदात करने की योजना बनाई थी. लेकिन गार्ड दुर्गेश के चौकन्ना रहने के कारण अंजाम नहीं दे सके. सीसीटीवी कैमरों की जानकारी लेने के लिए उस ने शनिवार की दोपहर को कार्यालय के चारों तरफ चक्कर लगाया

इमारत के पीछे सब से कम कैमरे थे, इसलिए दुर्गा बस्ती के पीछे से दीवार लांघ कर वे आयकर महकमे की बिल्डिंग में घुसे थे. रविंद्र ने बताया कि ऐहतियात बरतने के लिए वे नकाब पहन कर औफिस में दाखिल हुए थे. ज्वैलर के यहां से जब्त की गई फाइलें फाड़ने की वजह क्या थी, पूछने पर रविंद्र का कहना था, ‘‘हम पुलिस को भटकाना चाहते थे ताकि शक सर्राफा फर्मों की तरफ जाए.’’

तीनों को इस बात पर हैरानी थी कि जब उन्होंने कैमरों की जद में आने से बचने के लिए दूसरे तल पर लगे सीसीटीवी कैमरों को तोड़ दिया था तो सीसीटीवी की फुटेज में उन की तसवीर कैसे गई? असल में वापस लौटते समय उन्होंने ऐहतियात नहीं बरती और कैमरों में कैद हो गएपुलिस ने 12 घंटों में ही वारदात का खुलासा करते हुए चोरों को गिरफ्तार कर के सारा सोना बरामद कर लिया

वारदात के बाद सोना तीनों ने आपस में बांट लिया था. पुलिस ने विकास के घर की पानी की टंकी में से सोना बरामद किया. जबकि रविंद्र ने अपने दुर्गा बस्ती स्थित घर में सोना छिपा कर रखा था, पुलिस ने उसे भी जब्त कर लिया

आशीष से उस के वीर सावरकर नगर स्थित घर से जेवर बरामद किए गए. कथा लिखे जाने तक आरोपी न्यायिक अभिरक्षा में थे.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

रेप कर जंगल में फेंका मंजुला को निर्वस्त्र

शीला को इस बात का शक हो गया था कि उस के पति रामनिवास की हत्या पड़ोसन मंजुला ने सुनियोजित तरीके से की थी. पति की मौत का बदला लेने के लिए शीला और उस की बेटी पूजा ने एक ऐसी खौफनाक साजिश रची कि…    

17 वर्षीय मंजुला अपने परिवार के साथ मोहाली के गांव मटौर में रहती थी. सेक्टर-69 के एक वकील के यहां वह बेबीसिटर की नौकरी करते हुए उन के छोटे बच्चे  को संभालती थी. दिन के 9 बजे उस की ड्यूटी शुरू होती थी और प्राय: शाम 4 बजे छुट्टी कर के वह पैदल ही घर के लिए निकल पड़ती थी.

9 नवंबर, 2017 की सुबह भी वह नौकरी पर जाने के लिए रोजाना की तरह घर से निकली थी. मगर उस शाम घर नहीं लौटी. पैदल चल कर भी वह अकसर 5 बजे तक घर पहुंच जाया करती थी. उस रोज 6 बज गए और वह नहीं लौटी तो उस के भाई ने वकील के यहां फोन कर के दरियाफ्त की. वकील साहब ने बताया कि मंजुला तो हमेशा की तरह शाम के 4 बजे छुट्टी कर के चली गई थी.

इस जानकारी से घर में सब को लड़की की फिक्र हो गई. पहले तो उस की तलाश में काफी भागदौड़ की गई. फिर उस के भाई ने इस संबंध में पुलिस से गुहार लगाई तो फेज-8 के थाने में मंजुला की गुशुदगी लिखा दी गई. नाबालिग लड़की का मामला होने की वजह से पुलिस ने भी मंजुला की तलाश के लिए हाथपैर चलाए. लेकिन उस के संबंध में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली.

इस के बाद लगातार मंजुला की तलाश की जाती रही. उस का मिल पाना तो दूर की बात, उस के बारे में कहीं से कोई छोटीमोटी खबर तक नहीं मिल पाई थी. देखतेदेखते मंजुला को गायब हुए 5 दिन गुजर गए. 14 नवंबर को बालदिवस की वजह से कुछ बच्चे एक समारोह अटैंड कर के अपने घर लौट रहे थे. पैदल चलते हुए वे सेक्टर-69 स्थित निजी अस्पताल मायो के पास से हो कर आगे निकले तो 2 बच्चों को पेशाब की हाजत हुई. इस से फारिग होने को वे पास की झाडि़यों में चले गए. वहां पीछे एक छोटामोटा जंगल था.

झाडि़यों से निकलते वक्त इन की निगाह जंगल की तरफ चली गई. वहां इन्हें लेडीज कपड़ों के टुकड़े पड़े दिखाई दिए. जिज्ञासावश ये थोड़ा आगे बढ़ गए. आगे का दृश्य देख इन के मुंह से चीख निकल गई, जिसे सुन कर उन के साथी भी दौड़ते हुए वहां पहुंचे. फिर तो जो कुछ इन लड़कों ने वहां देखा, उस से उन के पैरों तले की जमीन खिसक गई.

इन से जरा ही फासले पर एक लड़की की गलीसड़ी नग्न हालत में लाश पड़ी थी. ऐसा भयानक दृश्य देख, सभी लड़के भागते हुए सड़क पर आ गए. वहां उन्हें एक नौजवान खड़ा दिखाई दिया. उसे उन्होंने इस बाबत बता दिया. उस नौजवान ने अपने मोबाइल से तुरंत इस की सूचना पुलिस को दे दी. जरा सी देर में पुलिस कंट्रोल रूम की जिप्सी वहां पहुंची. पीसीआर कर्मियों ने मौकामुलाहजा कर के मामला फ्लैश कर दिया.

जिस वक्त यह सूचना फेज-8 के थाने में पहुंची, थानाप्रभारी राजीव कुमार अपने दफ्तर ही में थे. सबइंसपेक्टर जागीर सिंह कुछ सिपाहियों को साथ ले कर वह घटनास्थल पर पहुंचे. नाबालिग मंजुला की गुमशुदगी की सूचना उन्हीं के थाने में दर्ज थी, जिस के साथ गुमशुदा लड़की का फोटो भी लगा था. राजीव कुमार को लाश की सूरत मंजुला से मेल खाती लगी. उन्होंने तुरंत थाने से संबंधित फाइल मंगवा कर शव और फोटो में लड़की के हुलिए से मिलान करने का प्रयास किया. रिजल्ट पौजीटिव आते देख उन्होंने मंजुला के भाई को बुलवा भेजा. आते ही वह शव को देख फूटफूट कर रो पड़ा. उस ने इस की शिनाख्त अपनी बहन मंजुला के रूप में कर दी.

पहली ही नजर में साफ था कि लड़की के साथ गैंगरेप करने के बाद चाकुओं से गोदगोद कर उसे मौत के घाट उतारा गया था. पुलिस ने अपनी आगे की काररवाई शुरू की. थानाप्रभारी ने मंजुला के भाई की तरफ से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धाराओं 363, 366, 302, 376-डी एवं 120-बी के अलावा पौक्सो एक्ट की धारा 4, 5 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस दौरान मौके की दीगर काररवाइयों को अंजाम देते हुए पुलिस ने मंजुला के शव को पोस्टमार्टम के लिए मोहाली के सिविल अस्पताल भिजवा दिया.

अस्पताल में डाक्टरों के विशेष पैनल ने मंजुला के शव का पोस्टमार्टम कर के अपनी रिपोर्ट में उस के जिस्म पर तेजधार हथियार के 13 घावों का उल्लेख करने के अलावा इस बात की भी पुष्टि की कि उस के साथ एक से ज्यादा पुरुषों ने बलात्कार किया था. डाक्टरों ने अपनी रिपोर्ट में मौत का कारण अत्यधिक रक्तस्राव बताया था. मंजुला का बिसरा भी रासायनिक परीक्षण के लिए फोरेंसिक लैबोरेट्री भेज दिया.

 पोस्टमार्टम के बाद मंजुला का शव उस के परिजनों के हवाले कर दिया गया, जिन्होंने रोतेबिलखते उस का अंतिम संस्कार कर दिया. यह एक ब्लाइंड मर्डर केस था जो थाना पुलिस हल कर पाने में सफल नहीं हो पा रही थी. मोहाली के एसएसपी कुलदीप चहल ने इसे चुनौती के रूप में लेते हुए इस की जांच का जिम्मा जिला पुलिस की सीआईए ब्रांच को सौंप दिया.

सीआईए इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने केस की फाइल हाथ में आते ही केवल इस का गहराई से अध्ययन किया बल्कि घटनास्थल पर जा कर बारीकी से जांच भी की. हालांकि  घटना को हुए काफी दिन गुजर चुके थे, ऐसे में उन्हें घटनास्थल से कत्ल संबंधी कोई क्लू मिलने की उम्मीद नहीं थी. क्लू उन्हें चाहिए भी नहीं था. उन्होंने अपनी पुलिस की नौकरी में जाने कितने ब्लाइंड मर्डर केस सौल्व किए थे.

उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से अध्ययन कर के एकएक नुक्ते को जोड़ कर अपराधी तक पहुंचने का प्रयास किया था. उन्होंने घटनास्थल की फिर से फोटोग्राफी भी कराई फिर फाइल का ठीक से अध्ययन किया.

नक्शा फोटो सामने रख कर इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने उन का घटनास्थल से मिलान करते हुए एकाग्रचित्त हो कर अपनी अलग तरह की जांच शुरू की. उन्होंने लाश बरामद होने के समय खींचे गए फोटो को भी बड़े ध्यान से देखा.

एक फोटो में जमीन की मिट्टी पर एक ऐसे हाथ की छाप उभर रही थी जो किसी युवती का लग रहा था. यह हाथ मृतका का भी हो सकता था. मगर इस मुद्दे को यहीं पर खत्म कर के तरलोचन सिंह ने चित्र के आधार पर उस जगह की तलाश की, जहां का यह फोटो था.

अनुमान और प्रयासों के आधार पर वह जगह मिल गई. लेकिन हाथ की छाप अब वहां नहीं थी. अब तक उस में शायद धूल वगैरह भर गई थी. तरलोचन सिंह ने इस जगह को आसपास से खुदवाया तो वहां से हरे रंग के कांच की चूड़ी का एक टुकड़ा उन के हाथ लग गया. उन्होंने उसे अपने पास संभाल कर रख लिया. टुकड़े को ले कर वह एसएसपी चहल के पास पहुंचे. फिर सीधेसपाट लहजे में बोले, ‘‘सर, इस ब्लाइंड मर्डर केस में कोई कोई लड़की इन्वौल्व है.’’

 ‘‘लेकिन तरलोचन सिंह आप यह क्यों भूल रहे हो कि मर्डर के साथ यह गैंगरेप का मामला भी है.’’

 ‘‘लेकिन वो सब बदला लेने के नीयत से भी तो करवाया जा सकता है, सर.’’

‘‘मतलब यह कि किसी लड़की ने इस लड़की से बदला लेने के लिए पहले इस का गैंगरेप करवाया और फिर इस का मर्डर करवा दिया.’’

‘‘गैंगरेप जरूर करवाया गया सर, लेकिन मर्डर इस लड़की ने खुद अपने हाथों किया है. हां, ऐसा करते वक्त दूसरों की मदद जरूर ली गई होगी, यह सोचा जा सकता है.’’

‘‘तरलोचन सिंह, मेरी समझ में फिलहाल आप की बात नहीं रही है. आखिर ऐसा कौन सा क्लू आप के हाथ लग गया जो आप इतने उत्साहित हैं.’’ एसएसपी की बात पर हरे रंग की चूड़ी का टुकड़ा निकाल कर दिखाते हुए तरलोचन सिंह ने पहले घटनास्थल पर किए गए अपने प्रयास की बात बताई. फिर बताया कि रिकौर्ड में दर्शाया गया है कि मृतका ने लाल रंग की चूडि़यां पहन रखी थीं.

इस मामले में अभी तक पुलिस अपनी जो काररवाई करती आई थी वो यही थी कि पिछले कुछ अरसे में पकडे़ गए गैंग रेप आरोपियों को बुड़ैल जेल से ट्रांजिट रिमांड पर ला कर उन से इस केस के बारे में गहन पूछताछ करती रही थी. 

मुखबिरों को लगा कर उन के कहने पर कुछ संदिग्ध लोगों पर भी शिकंजा कसा गया था. मगर पुलिस की पूछताछ में उन्हें बेकसूर पा कर हरी झंडी दे दी गई थी. आगे छानबीन का सारा कार्यक्रम ही बदल दिया गया. अपने अन्य प्रयासों के अलावा सीआईए इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने इस काम पर अपने खास मुखबिरों को लगाया.

10 जनवरी, 2018 को इंसपेक्टर तरलोचन सिंह के एक खास मुखबिर ने कर उन्हें इस केस के बारे में अहम सूचना दी. इस सूचना के अनुसार मृतका के मटौर स्थित निवास के पास एक औरत शीला अपनी जवान लड़की पूजा के साथ रहती थी. उन्हीं दोनों ने पहले अपने साथियों से मंजुला का रेप करवाया, फिर उसे मौत के घाट उतार दिया.

‘‘लेकिन इस के पीछे कोई वजह भी तो रही होगी? इतने बड़े कांड को अंजाम देने का कोई कारण तो होगा?’’ तरलोचन सिंह ने मुखबिर से पूछा.

‘‘इस सब की जानकारी मुझे नहीं हो पाई है. लेकिन इस केस के असली कसूरवार यही लोग हैं. इन्होंने एक जगह बैठ कर आपस में मीटिंग की है. मैं ने छिप कर इन की सारी बातें सुनी हैं. आज ये लोग यहां से निकल भागने वाले हैं. मैं आप को वहां ले चलता हूं, जहां इन्होंने शरण ले रखी है. आप अभी उन्हें काबू कर लें, वरना पछतावे वाली बात हो जाएगी.’’ मुखबिर ने कहा.

ज्यादा सोचनेसमझने का वक्त नहीं था. इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने उसी वक्त अपनी पुलिस पार्टी तैयार कर के मुखबिर को साथ लिया और उस की बताई जगह पर छापा मारा. वहां एक औरत व एक युवती के अलावा एक अन्य शख्स पुलिस के हत्थे चढ़ गया. मालूम पड़ा इन के साथ एक और भी आदमी था जो किसी तरह फरार होने में सफल हो गया था.

काबू में आए तीनों लोगों को सीआईए के पूछताछ केंद्र में अभी लाया ही गया था  कि तीनों ने मंजुला को कत्ल किए जाने का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस आधार पर उन्हें अदालत में पेश कर के कस्टडी रिमांड ले लिया गया. मांड की अवधि में हुई गहन पूछताछ के दौरान इन तीनों ने जो कुछ पुलिस को बताया, उस से अपराध की एक अलग ही कहानी सामने आई.

पकड़ी गई औरत का नाम शीला और युवती थी उस की बेटी पूजा. इन के साथ पकड़े गए शख्स का नाम मक्खन था, जो शख्स भागने में सफल हो गया था, उस का नाम था रहूण. शीला उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया की रहने वाली थी. इस के पति रामनिवास का काम अच्छा नहीं चल रहा था, मगर वह अपना मूल प्रदेश छोड़ कर किसी अन्य प्रदेश में जाना भी नहीं चाहता था. घर की गुजरबसर के लिए शीला और उस की बेटी पूजा छोटीमोटी नौकरी करती थीं. शीला जवान हो रही थी, घर वालों को उस की शादी की चिंता स्वाभाविक ही थी.

उत्तर प्रदेश के कामगार यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि पंजाब में उन के लिए हमेशा रोजगार के अवसर रहते हैं. इसी वजह से शीला कुछ साल पहले पति से अनुमति ले कर बेटी पूजा के साथ मोहाली गई. मोहाली की एक फैक्ट्री में दोनों को काम मिल गया. रहने के लिए मोहाली के गांव मटौर में किराए का मकान भी ले लिया.

यहीं पर पड़ोस में मंजुला अपने परिवार के साथ रहती थी. शीला ने पुलिस को बताया कि एक बार उस का पति उन लोगों से मिलने मटौर आयाएक दिन मंजुला ने उस पर छेड़खानी का आरोप लगाते हुए हंगामा खड़ा कर दिया. जैसेतैसे बात संभल तो गई लेकिन मंजुला ने धमकी देते हुए कहा कि वह रामनिवास को छोड़ेगी नहीं. उसे उस की करतूत की सजा दे कर रहेगी.

कुछ दिनों बाद रामनिवास वापस उत्तर प्रदेश चला गया, जहां सड़क दुर्घटना में उस की मृत्यु हो गई. उसे टक्कर मारने वाला चालक अपना वाहन भगा ले गया था. बाद में उसे पकड़ा नहीं जा सका. पूजा और शीला के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि उस की मौत के पीछे मंजुला का हाथ था. उसी ने योजना बना कर रामनिवास को मरवाया था. इसीलिए मांबेटी ने तय कर लिया कि वे मंजुला को भी दर्दनाक मौत दे कर रहेंगी. योजना बनी तो इन लोगों ने पैसों का लालच दे कर मटौर में रहने वाले अपने परिचित मक्खन रहूण को भी तैयार कर लिया. ये दोनों मूलरूप से बिहार के रहने वाले थे.

दोनों ने मांबेटी से एक ही बात कही कि उन्हें इस काम के लिए पैसा नहीं चाहिए. बस वे मंजुला को मारने से पहले उस के साथ शारीरिक संबंध बनाएंगे. योजना बन गई. इस के लिए लंबे फल वाला एक चाकू भी खरीद लिया गया. मंजुला का पीछा कर के उस के आनेजाने के रास्तों के बारे में पता लगा कर उसे 9 नवंबर, 2017 की शाम को उस वक्त झाडि़यों में खींच लिया गया जब वह वकील के यहां से छुट्टी कर के पैदल वहां से गुजर रही थी.

जंगल में ले जा कर मक्खन और रहूण ने उसे निर्वस्त्र कर के बारीबारी से उस के साथ बलात्कार किया. फिर मक्खन और रहूण के अलावा पूजा ने मंजुला के हाथपैर पकड़े. तभी शीला ने चाकुओं से लगातार वार कर के मंजुला की हत्या कर दी. पूछताछ के दौरान ही शीला की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया गया था. कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर तीनों अभियुक्तों को फिर से अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. रहूण कथा लिखे जाने तक फरार था.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, मंजुला परिवर्तित नाम है

महिला इंस्पेक्टर का खूनी इश्क

सरकारी विभाग में बड़े बाबू विनोद कुमार की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी. इसी बीच एक पुलिस इंसपेक्टर मंजू ठाकुर से उस के अवैध संबंध हो गए. इन अवैध संबंधों ने विनोद के घर में ऐसा जलजला खड़ा कर दिया कि…

30 जनवरी, 2018 की बात है. झारखंड के जिला हजारीबाग के थाना बड़ा बाजार के थानाप्रभारी नथुनी प्रसाद शाम के समय अपने औफिस में बैठे थे तभी एक व्यक्ति उन के पास आया. थानाप्रभारी ने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए आने का कारण पूछा तो उस ने बताया, ‘‘सर, मेरा नाम विनोद पाठक है.’’ मैं जयप्रभा नगर कालोनी में किराए के मकान में बीवीबच्चों के साथ रहता हूं. आज मेरी बीवी अन्नू पाठक सुबह किसी काम से बाहर गई थी. वह अभी तक नहीं लौटी है. मैं ने अपने स्तर पर उसे सब जगह तलाशा लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. मैं बहुत परेशान हूं, प्लीज मेरी मदद कीजिए.’’

‘‘क्या? बीवी कहीं चली गई?’’ नथुनी प्रसाद आश्चर्य से बोले, ‘‘पर कहां चली गई?’’ ‘‘नहीं जानता सर, कहां चली गई.’’ विनोद बोला. ‘‘कहीं पत्नी से झगड़ा वगैरह तो नहीं हुआ था. जिस से वह नाराज हो कर कहीं चली गई.’’ थानाप्रभारी ने पूछा. ‘‘नहीं सर, ऐसी कोई बात नहीं है. मेरे और पत्नी के बीच कोई झगड़ा नहीं हुआ था.’’ विनोद ने बताया.

‘‘एक काम करिए. पत्नी की गुमशुदगी की एक तहरीर लिख कर दे दीजिए. मैं दिखवाता हूं कि मामला क्या है?’’ थानाप्रभारी ने कहा. ‘‘मैं एक दरख्वास्त लिख कर लाया हूं सर.’’ थानाप्रभारी की ओर एक पेपर बढ़ाते हुए वह बोला. थानाप्रभारी ने उस की दी हुई दरख्वास्त पर एक नजर डाली और वह मुंशी को गुमशुदगी दर्ज कराने के लिए दे दी. इस के बाद उन्होंने विनोद को आश्वस्त कर घर जाने के लिए कह दिया

पत्नी की गुमशुदगी की सूचना दे कर विनोद पाठक जैसे ही थाने से निकल कर कुछ दूर गया होगा. तभी एक गोरीचिट्ठी, बेहद खूबसूरत लड़की जिस की उम्र यही कोई 16-17 साल के करीब रही होगी. थानाप्रभारी के पास पहुंची. उस के साथ मोहल्ले के कई संभ्रांत लोग भी थे.

उस लड़की ने अपना नाम कीर्ति पाठक पुत्री विनोद पाठक निवासी जयप्रभा नगर बताया. उस ने थानाप्रभारी नथुनी प्रसाद को बताया कि उस की मां अन्नू पाठक आज सुबह से घर से गायब है. उन का अब तक कहीं पता नहीं चला है. उसे आशंका है कि कहीं उस के पापा विनोद पाठक ने ही मां के साथ कोई अनहोनी न कर दी हो.

कीर्ति के मुंह से इतना सुनते ही थानाप्रभारी उस लड़की की तरफ गौर से देखने लगे. क्योंकि अभी कुछ देर पहले ही उस के पिता भी पत्नी की गुमशुदगी लिखाने आए थे. अब बेटी ही पिता पर मां को गायब करने का शक कर रही है. इस से यह मामला तो बड़ा गंभीर और पेचीदा लगने लगा. थानाप्रभारी ने कीर्ति से पिता पर लगाए जाने वाले आरोप की वजह पूछी तो उस ने विस्तार से मां और पिता के बीच के संबंधों के बारे में और उन के बीच सालों से चले आ रहे झगड़े के बारे में बता दिया. कीर्ति की बात सुन कर थानाप्रभारी चौंक गए कि एक महिला पुलिस इंसपेक्टर के साथ बने अवैध संबंधों की वजह से विनोद पाठक अपनी पत्नी को मारतापीटता था.

थानाप्रभारी ने एसआई श्याम कुमार को विनोद पाठक के घर मामले की जांच के लिए भेज दिया. एसआई श्याम कुमार जांच के लिए विनोद पाठक के यहां पहुंच गए. उन्होंने विनोद के बच्चों के अलावा पड़ोसियों से भी पूछताछ की. प्रारंभिक जांच कर के एसआई श्याम कुमार ने थानाप्रभारी को बता दिया कि विनोद पाठक की पत्नी अन्नू पाठक वास्तव में गायब है. इस के अलावा विनोद पाठक भी थाने में सूचना देने के बाद से लापता है. उस का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है.

अगले दिन 31 जनवरी की सुबह 10-11 बजे के करीब थानाप्रभारी नथुनी प्रसाद विनोद पाठक के घर पहुंच गए. पुलिस को देख कर मोहल्ले के लोग वहां जमा हो गए. अन्नू के साथसाथ विनोद पाठक घर पर नहीं था. घर में उन के तीनों बच्चे कीर्ति, वाणी और वंश ही थे. पूछने पर बच्चों ने पुलिस को बताया कि पापा बीती रात से ही घर नहीं लौटे हैं.

यह जान कर थानाप्रभारी को विनोद पर ही शक हो गया कि जरूर पत्नी के गायब होने में उस का हाथ रहा होगा. तभी वह फरार है. जैसे ही वह उस के घर में घुसे तभी हल्कीहल्की बदबू आती हुई महसूस हुई. पुलिस ने घर का कोनाकोना छान मारा लेकिन बदबू कहां से आ रही थी पता नहीं चला. एक कमरे में दरवाएजे पर ताला लटका मिला. पुलिस ने कीर्ति से तालाबंद होने की वजह पूछी तो उस ने बताया कि वह कमरा मां का है. उस में मां रहती हैं. जब से वह गायब हैं तब से उस कमरे पर नया ताला लगा है. पापा ने उसे बताया था कि अन्नू मायके जाते समय कमरे में ताला लगा कर चाबी अपने साथ ले गई है.

कीर्ति की यह बात थानाप्रभारी के गले नहीं उतरी क्योंकि जब घर में पहले से सभी कमरों के ताले और उस की 2-2 चाबियां थीं तो मां ने नया ताला क्यों खरीदा. शंका होने पर उन्होंने उस कमरे का ताला तोड़ने के निर्देश साथ आए पुलिसकर्मियों को दिए.

ताला टूटने के बाद पुलिस जैसे ही कमरे में घुसी तो महसूस हुआ कि बदबू इसी कमरे से आ रही है. पुलिस कमरे में वह चीज ढूंढने लगी जहां से वह बदबू आ रही थी. ढूंढतेढूढते पुलिस जैसे ही दीवान के करीब पहुंची तो बदबू और तेज हो गई. मतलब साफ था कि बदबू दीवान के भीतर से आ रही थी. पुलिस ने दीवान को खोला तो भीतर का नजारा देख कर आंखें फटी की फटी रह गईं.

दीवान में काफी खून फैला था जो सूख चुका था. वहां एक काले रंग की पौलीथिन थैली और एक प्लास्टिक का बोरा रखा था. उन पर भी खून लगा था जो सूख चुका था. थानाप्रभारी को समझते देर न लगी कि विनोद ने पत्नी की हत्या कर के उस की लाश दीवान में छिपा दी है.

उन्होंने प्लास्टिक का बोरा खुलवाया तो खोलते ही सब के होश उड़ गए. काली पौलीथिन में अन्नू का कटा हुआ सिर और बोरे में धड़ था. उस के हाथों को पीछे की ओर कर के प्लास्टिक की रस्सी से बांध दिया गया था. उस के पैर घुटनों से मोड़ कर पेट से बांध दिए थे. पिछले 2 दिनों से रहस्यमय तरीके से गायब अन्नू पाठक की उस के ही बेडरूम में लाश पाए जाने के बाद रहस्य से परदा उठ गया. मां की लाश मिलते ही तीनों बच्चे दहाड़ें मार कर रोने लगे. उन के रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए, बच्चों को ढांढ़स बंधाने लगे. विनोद का अभी कुछ पता नहीं था कि वह कहां है.

अन्नू पाठक की लाश बरामद किए जाने की सूचना थानाप्रभारी ने डीएसपी चंदनवत्स और एसपी अनीश गुप्ता को दे दी. कुछ ही देर बाद एसपी और डीएसपी भी मौके पर पहुंच गए थे. तलाशी के दौरान पुलिस को रसोई घर में रखी डस्टबिन से एक चाकू बरामद हुआ. चाकू के ऊपर खून लगा हुआ था, जो सूख चुका था. लग रहा था कि शायद इसी चाकू से अन्नू की हत्या की गई होगी. पुलिस ने चाकू अपने कब्जे में लिया. अन्नू की हत्या की सूचना उस के मायके वालों को भी दे दी गई थी. फिर जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी.

अगले दिन यानी पहली फरवरी, 2018 को थानाप्रभारी ने अन्नू के घर पहुंच कर उस की बड़ी बेटी कीर्ति से विस्तार से पूछताछ की. कीर्ति ने कहा कि उस के पापा उसे और मम्मी को पिछले 5 सालों से प्रताडि़त करते चले आ रहे हैं. जिस मंजू ठाकुर नाम की महिला से उन के गलत संबंध हैं वह इसी शहर में पुलिस इंसपेक्टर है. थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी अनीश गुप्ता को दे दी.

कीर्ति ने जिस हौसले के साथ अपने पिता के चरित्र पर आरोप लगाया था. वह ऐसे ही नहीं लगाया था. उस के पास प्रत्यक्ष तौर पर कई प्रमाण भी थे. इंसपेक्टर मंजू ठाकुर के उस के पापा विनोद पाठक से वर्ष 2013 से संबंध थे. वह उस के पापा से मिलने अकसर घर आती रहती थी.

यही नहीं कई बार तो अन्नू के रहते हुए मंजू ठाकुर विनोद के साथ उस के बिस्तर पर एक साथ सोए भी थे. इस से नाराज हो कर अन्नू अपने मायके रांची चली जाती थी और महीनों वहीं रुक जाती थी. बच्चों के विरोध करने पर विनोद उन्हें निर्दयतापूर्वक पीटता था. केस में महिला पुलिस इंसपेक्टर मंजू ठाकुर का नाम सामने आने की जानकारी मीडिया वालों को हुई तो मीडिया ने इस मामले को खूब उछाला. इंसपेक्टर मंजू ठाकुर के खिलाफ पुलिस को ठोस सबूत नहीं मिले थे. इसलिए एसपी अनीश गुप्ता ने डीएसपी चंदन वत्स को उस पर नजर रखने के निर्देश दिए.

उधर पुलिस विनोद पाठक को भी सरगर्मी से तलाश रही थी.  6 दिन बीत जाने के बाद भी विनोद पाठक की गिरफ्तारी नहीं हुई और न ही मंजू ठाकुर के खिलाफ पुलिस ने कोई एक्शन लिया था. इस कारण लोग पुलिस का विरोध करने पर उतर आए थे. 4 फरवरी, 2018 की रात हजारीबाग स्टेडियम से झंडा चौक तक एंजेल्स हाईस्कूल, डीपीएस, होली क्रौस वीटीआई, डीएवी पब्लिक स्कूल,संत रोबर्ट बालिका विद्यालय सहित अन्य कई स्कूलों के सैकड़ों छात्रछात्राओं, शिक्षकों ने कैंडल जुलूस निकाला. सदर विधायक मनीष जायसवाल, उपमहापौर आनंद देव, ब्रजकिशोर जायसवाल सहित कई गणमान्य लोग भी जुलूस में शामिल रहे.

6 फरवरी को जदयू के वरिष्ठ नेता बटेश्वर प्रसाद मेहता न्याय दिलाने के लिए एसपी अनीश गुप्ता से मिले. उन्होंने हत्या के आरोपी को गिरफ्तार करने की मांग की. एसपी से मिले प्रतिनिधिमंडल में जिला सचिव कृष्णा सिंह, नगर महासचिव सतीश कुमार सिन्हा, दीपक कुमार मेहता आदि शामिल थे. घटना के विरोध में स्कूलों के अलावा विभिन्न सामाजिक संगठन भी उतर आए. उन्होंने कैंडल मार्च निकाल कर मृतका को श्रद्धांजलि दी और दोषी को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग की.

इस बीच डीएसपी चंदनवत्स और थानाप्रभारी नथुनी प्रसाद घटना की जांच में जुटे रहे. उधर पुलिस ने मंजू ठाकुर और विनोद ठाकुर के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स की जांच करने पर पता चला कि घटना वाले दिन दोनों के बीच 32 बार बातचीत हुई थी. पुलिस के लिए विनोद या मंजू ठाकुर से पूछताछ करने का यह अच्छा आधार था.

इसी साक्ष्य के आधार पर डीएसपी ने 6 फरवरी को पीटीसी इंसपेक्टर मंजू ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ के लिए उसे थाने लाया गया. पूछताछ में पहले तो वह अन्नू की बेटी कीर्ति  द्वारा उस पर लगाए गए सभी आरोपों को सिरे से नकारती रही. चूंकि मंजू खुद कानून की मंजी हुई खिलाड़ी थी. वह कानून की एकएक बारीकी को अच्छी तरह जानती थी. इसलिए अपने बचाव में वह सभी हथकंडों को इस्तेमाल करती रही.

लेकिन डीएसपी चंदन वत्स भी उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ करते रहे. आखिर वह उन के सवालों के घेरे में फंसती चली गई. अंत में उस ने कानून के आगे घुटने टेक दिए और अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. फिर उस ने अपने प्रेमसंबंधों से ले कर अन्नू पाठक की हत्या तक की जो कहानी बताई वह बड़ी दिलचस्प निकली. 45 वर्षीय विनोद पाठक मूलरूप से झारखंड राज्य के हजारीबाग का रहने वाला था. वह हजारीबाग के थाना बड़ा बाजार स्थित पौश कलोनी जयप्रभा नगर में एक किराए के मकान में परिवार के साथ रहता था. उस का परिवार खुशहाल था.

परिवार खुशहाल क्यों न हो, विनोद पाठक भारतीय खनन विभाग-कोल विभाग के सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्ट्ीयूट (सीएमपीडीआई) की हजारीबाग जिले की बड़कागांव शाखा में हेड क्लर्क के पद पर नौकरी करता था. वहां उस की अच्छीखासी तनख्वाह थी. खानेपीने और अन्य खर्च के बावजूद वह अपनी तनख्वाह में से प्रति माह अच्छी रकम बचा लेता था. नौकरी करने के साथसाथ वह एक योग संस्था का जिलाध्यक्ष भी था. विनोद जीवन की नैया बड़े मजे से खे रहा था.

बात सन 2013 की है. विनोद पाठक पतंजलि योग पीठ, हरिद्वार गया था. वहीं पर उस की मुलाकात हजारीबाग जिले के पीटीसी की इंसपेक्टर मंजू ठाकुर से हुई. मंजू ठाकुर पतंजलि योग पीठ के काम से वहां गई हुई थी. दरअसल, इंसपेक्टर मंजू ठाकुर बाबा रामदेव के प्रोडक्ट से इतनी प्रभावित थी कि उस ने उस की एजेंसी ले ली थी.

बातचीत के दौरान जब यह पता चला कि दोनों एक ही प्रांत के ही नहीं बल्कि एक ही जिले के रहने वाले हैं तो उन की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. वैसे भी दूर परदेश में अपने इलाके का कोई मिल जाए तो अपनेपन सा लगता है. इतना ही नहीं उस से दिल का रिश्ता जुड़ जाता है. ऐसा ही कुछ उन के साथ भी हुआ था. एक ही मुलाकात और एक ही बातचीत में वे एकदूसरे से घुलमिल गए. उन्होंने अपनेअपने पेशे के बारे में भी बता दिया था. उस के बाद काफी देर तक एकदूसरे से बातचीत करते रहे. पतंजलि योग पीठ से वापस लौटते समय दोनों ने अपने फोन नंबर एकदूसरे को दे दिए थे.

मंजू और विनोद दोनों ही सरकारी पेशे से जुड़े हुए थे और हमउम्र थे. मंजू बात करने में काफी चतुर और मृदुभाषी किस्म की औरत थी. विनोद जब से मंजू से मिला था. उस की ओर आकर्षित हुए जा रहा था. इस बात को वह खुद भी नहीं समझ पा रहा था. जब तक दिन में एक-दो बार उस से बात नहीं कर लेता या उस से मिल नहीं लेता था उस के दिल को चैन नहीं मिलता था.

जबकि विनोद जानता था कि उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बच्चे भी हैं. इतना ही नहीं बेटी भी सयानी हो चुकी है. पत्नी को जब ये बात पता चलेगी तो घर मे वह कितना कोहराम मचाएगी. फिर बच्चे भी उस के बारे में क्या सोचेंगे. यह सोच कर कुछ पल के लिए उस के कदम जड़ गए थे लेकिन दिल की पुकार के आगे वह नतमस्तक हो गया और मंजू को पाने की हसरत में वह अपने बीवीबच्चों को भूल गया.

मंजू का सान्निध्य पाने के लिए विनोद उस का व्यवसाय पार्टनर बन गया और मटवारी में औफिस और दुकान खोल ली. विनोद ने सोचा कि अब उस पर न तो किसी को शक होगा और न ही कोई उंगली उठा पाएगा. मंजू भी विनोद पर मर मिटी थी. जबकि वह भी शादीशुदा थी. उस ने भी विनोद से अपने प्यार का इजहार कर दिया था. उस के बाद दोनों भारत स्वाभिमान ट्रस्ट से जुड़ कर काम करते रहे. मंजू कंपनी की ओर से राजस्थान टूर पर गई थी. तब विनोद भी उस के साथ था.

मंजू का विनोद के दिल के साथसाथ उस के परिवार पर भी दबदबा बन गया था. वह जब चाहे तब बिजनैस के बहाने विनोद के घर आ धमकती थी. उस के साथ घंटों बैठे गप्पें लड़ाती और ठहाके मारती. अन्नू कोई दूध पीती बच्ची तो थी नहीं जो  पति की इन हरकतों को न समझती. बात 1-2 दिन की या फिर कभीकभार की होती तो चल सकती थी लेकिन यहां तो लगभग रोज ही वह विनोद के पास चली आती थी.

अन्नू को मंजू का रोजरोज उस के घर आना बरदाश्त से बाहर हो गया था. अब पानी सिर के ऊपर से बह रहा था. जब सब्र का बांध टूट गया तो एक दिन अन्नू पति विनोद से पूछ ही बैठी, ‘‘मैं तुम से एक बात पूछना चाहती हूं पूछ सकती हूं क्या?’’ ‘‘हां…हां… क्यों नहीं, बिलकुल पूछ सकती हो. तुम्हारा तो अधिकार है.’’ विनोद संजीदगी के साथ बोला. ‘‘तो ठीक है ये बताइए कि ये पुलिस वाली मंजू यहां रोजरोज क्यों आती है?’’

‘‘बिजनेस के सिलसिले में और क्या?’’ पति ने बताया. ‘‘लेकिन उस का यहां रोजरोज का आना, मुझे पसंद नहीं है. बड़ी बेटी कीर्ति भी नाराज होती है.’’ अन्नू बोली. ‘‘ये कैसी बेतुकी बातें कर रही हो. तुम?’’ विनोद पत्नी के ऊपर नाराज हुआ, ‘‘वो यहां आती हैं तो बिजनैस के बारे में बात करने के लिए ही आती हैं. कोई गप्पें लड़ाने के लिए नहीं और तुम क्या समझती हो कि मैं उन के साथ बैठे क्या कोई गुलछर्रे उड़ाता हूं. समझी तुम ने उन के बारे में आज तो कह दिया आइंदा फिर ऐसा मत कहना. नहीं तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. मैं उन की बेइज्जती बरदाश्त नहीं कर सकता.’’

झल्लाता हुआ विनोद पत्नी से नजरें चुराते कमरे से बाहर निकल गया. जैसे उस की चोरी पत्नी ने पकड़ ली हो. बाहर निकल कर विनोद ने एक लंबी सांस ली. वह समझ गया कि मंजू को ले कर पत्नी को शक हो गया है. जिस दिन से अन्नू ने मंजू ठाकुर को ले कर पति विनोद को टोका था उस दिन से पतिपत्नी के रिश्तों में थोड़ी खटास आ गई. विनोद को पत्नी की यह बात बुरी लगी थी कि उस ने मंजू के बारे में उस से पूछ ने की हिम्मत कैसे की. यह पूछ कर उस ने बहुत बड़ी भूल की है. इस भूल का उसे दंड जरूर मिलेगा.

उस दिन के बाद विनोद ने रोजाना ही मंजू को घर बुलाना शुरू कर दिया. इतना ही नहीं अब वह मंजू को अलग कमरे में बुला कर एकांत में बात करता. यह देख कर अन्नू को गुस्सा आता. यह सब उस की बरदाश्त से बाहर होता जा रहा था. अन्नू ने इस का पुरजोर विरोध शुरू कर दिया. नतीजा विनोद पत्नी की पिटाई करने लगा. अपने सिंदूर का बंटवारा होते हुए अन्नू नहीं देख सकती थी इसलिए वह बच्चों को ले कर मायके रांची चली जाती थी.

जब गुस्सा शांत होता तो लौट कर घर आ जाती. इस तरह अन्नू कई बार मायके जा चुकी थी. लेकिन विनोद पर इस का कोई असर नहीं पड़ा था बल्कि पत्नी के आने के बाद उसे और ज्यादा आजादी मिल जाती थी. वह मंजू के साथ बिना किसी डर के गुलछर्रे उड़ाता. धीरेधीरे विनोद और मंजू के अनैतिक संबंधों की जानकारी अन्नू के पूरे नातेरिश्तेदारों तक फैल गई थी. विनोद की चारों ओर बदनामी हो रही थी. उसे शक हो गया था कि अन्नू ही उस की बदनामी करा रही है. इसलिए अब वह उस पर पहले से ज्यादा सितम ढाने लगा.

पत्नी के साथसाथ वह बच्चों की भी पिटाई करने लगा. वह अपनी बड़ी बेटी कीर्ति को ज्यादा मारता था. क्योंकि कीर्ति भी मंजू का विरोध करती थी. वह अपनी मां का पक्ष लेती थी. बच्चों को बेदर्दी से पिटता देख अन्नू की जैसे जान ही निकल जाती थी. अन्नू ने एक दिन दुखी हो कर मंजू को फोन कर के कहा, ‘‘तुम दोनों अगर शादी करना चाहते हो तो कर लो. मैं कुछ नहीं बोलूंगी. तुम्हारे रास्ते से मैं हमेशा के लिए हट जाऊंगी. लेकिन मेरे बच्चों को मत सताओ.’’

अन्नू की याचना इतनी दर्दभरी थी कि उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. लेकिन मंजू पर उस की याचना का रत्ती भर भी असर नहीं हुआ था. बल्कि वह भी तो यही चाहती थी कि अन्नू उस के रास्ते से हमेशाहमेशा के लिए हट जाए. उसी समय मंजू की दिमाग में एक विचार आया कि क्यों न अन्नू को रास्ते से हटा दिया जाए. एक दिन मंजू ने विनोद को विश्वास में ले कर उकसाया कि अन्नू को रास्ते से हटा दो. ताकि हमें फिर किसी का डर नहीं रहे. प्रेम में अंधे विनोद को प्रेमिका मंजू की बातें जंच गईं. पत्नी को रास्ते से हटाने के लिए वह उपाय सोचने लगा. तब मंजू ने उसे टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले सच्ची घटनाओं पर आधारित क्राइम सीरियल देखने की सलाह दी और कहा कि वहां से नएनए आइडिया मिल जाएंगे.

उस दिन के बाद से विनोद ड्यूटी से जब भी घर आता, नाश्ता वगैरह कर के टीवी पर क्राइम स्टोरी पर आधारित सीरियल देखने बैठ जाता. सीरियल से वह अपराध की उन बारीकियों को समझने की कोशिश करता था कि कैसे अपराधी अपराध कर के पुलिस के चंगुल से बच निकलने की कोशिश करते हैं. योजना के अनुसार उस ने 20 जनवरी, 2018 को ही अन्नू पाठक को मार कर लाश को ठिकाने लगाने का मन बना लिया था. इस के लिए उस ने 16 जनवरी को पूरी योजना तैयार कर ली.

विनोद ने हत्या के लिए एक चाकू खरीदा और फुटपाथ से काले रंग की एक पोलीथिन थैली व रस्सी. यहां तक कि उस के घर के सभी तालों की 2-2 चाबियां थीं. इस के बावजूद भी उस ने एक नया ताला भी खरीदा. ताकि लाश को कमरे में बंद कर के यह अफवाह उड़ा देगा कि अन्नू नाराज हो कर घर पर ताला बंद करके मायके चली गई.

योजना के अनुसार, विनोद ने अपने तीनों मोबाइल फोन 20 जनवरी को स्विच्ड औफ कर दिए थे. वह नए नंबर से मंजू से बात करता था. ताकि किसी को शक न हो. मंजू से विनोद की आखिरी बात पीसीओ से 2 दिन पहले यानी 27 जनवरी को हुई थी. 28 जनवरी, 2018 को मंजू ठाकुर को ले कर अन्नू और विनोद में जम कर विवाद हुआ. योजनानुसार 29 को विनोद सवा 10 बजे सुबह अपने औफिस में हाजिरी लगा कर वापस घर आ गया. यह उस ने इसलिए किया ताकि 29 जनवरी को उस का औफिस में रहने का सबूत बन जाए.

जब वह घर आया तो उस समय तीनों बच्चे स्कूल गए हुए थे. तब बिना किसी गलती के उस ने पत्नी को पीटना शुरू कर दिया. पति की बेरहमी पिटाई से अन्नू टूट चुकी थी. वह जान रही थी कि इस समय पति के सिर पर इश्क का ऐसा भूत सवार है कि उन्हें फिलहाल अच्छेबुरे का ज्ञान नहीं रह गया है. पराई औरत के चलते वह अपने ही हाथों घर में आग लगाने पर लगे हैं. ऐसे में उन से कुछ भी कहना बेअसर होगा. लिहाजा वह कुछ नहीं बोली.

पत्नी की पिटाई करने के बाद विनोद कहीं चला गया. करीब सवा 12 बजे वह लौट कर घर आया. उस समय अन्नू मंजू से बात कर रही थी. पति के लौटने का अन्नू को पता नहीं चला. विनोद कान लगा कर पत्नी द्वारा फोन पर की जा रही बातचीत को सुनता रहा. उस बातचीत से वह यह बात समझ गया कि अन्नू इस समय मंजू से बात कर रही है. उस समय अन्नू मंजू से पति की शिकायत कर रही थी. अपनी शिकायत सुन कर विनोद अपना आपा खो बैठा. फिर क्या था उस ने अन्नू के पीछे जा कर एक हाथ से उस का मुंह बंद किया और दूसरे हाथ से तेज धार वाले चाकू से गला रेत दिया.

खून का फव्वारा फूट पड़ा और अन्नू फर्श पर गिर कर तड़पने लगी. कुछ ही देर में वह शांत हो गई. इस के बाद प्रेमिका मंजू ठाकुर को फोन कर विनोद ने पत्नी की हत्या करने की जानकारी दे दी. यह सुन कर मंजू पहले तो घबरा गई फिर बाद में खुश भी हुई कि अब हमारे बीच का अन्नू नाम का कांटा सदा के लिए निकल गया.

मंजू ने उसे सलाह दी कि वह वहां पर कोई भी सबूत न छोड़े. उस का सिर धड़ से काट कर अलग कर दे. सिर और धड़ दोनों को 2 अलगअलग पौलीथिन की थैलियों में भर कर उसे दीवान में छिपा दे. मति के मारे विनोद ने वैसा ही किया. जैसा उस की प्रेमिका इंसपेक्टर मंजू ने करने को कहा. कमरा बंद कर के वह सबूत मिटाने में जुट गया. उसे डर था कि जल्दी से लाश ठिकाने नहीं लगाई और सबूत नहीं मिटाए तो बच्चों के स्कूल से घर आने पर सारा भेद खुल जाएगा.

सबूत मिटाने और लाश ठिकाने लगाने में उसे ढाई घंटे से ज्यादा लगे. सिर और धड़ को अलगअलग कर के पौलीथिन थैली और प्लास्टिक बैग में पैक कर दीवान के बौक्स में डाल दिया. फिर कमरे में नया ताला लगा कर चाबी अपनी जेब में रख कर दोबारा औफिस चला गया. शाम 4 बजे तीनों बच्चे स्कूल से घर लौटे तो कमरे पर ताला बंद देख हैरान रह गए. कीर्ति पड़ोस में आंटी के यहां मां के बारे में पता लगाने गई. लेकिन वहां से कुछ पता नहीं चला.

बच्चे जब स्कूल गए थे तो उन की मां अन्नू घर में ही थी. अचानक कहां चली गई ये सोच कर वे परेशान हो गए. शाम करीब 5 बजे विनोद जब ड्यूटी से घर लौटा तो कीर्ति ने उससे मां के बारे में पूछा, इधरउधर का बहाना बनाते हुए विनोद ने कहा कि बेटा तुम्हारी मां नाराज हो कर अपने मायके चली गई है.

तब कीर्ति ने अपनी ननिहाल फोन किया तो पता चला कि उस की मां वहां आई ही नहीं है. ये सुन कर कीर्ति का माठा ठनक गया. उसे लगने लगा कि कहीं पापा ने मां के साथ कोई अनहोनी घटना तो न कर दी. कीर्ति बारबार पिता से मां के बारे में पूछ ने लगी तो विनोद घबरा गया. उसे लगा कि कहीं भेद न खुल जाए, तभी उस के दिमाग में आया कि क्यों न इसे भी मार दे न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.

ये सोच कर विनोद उसे पकड़ने के लिए उस की ओर लपका. लेकिन पिता की बुरी मंशा भांप कर कीर्ति तेजी से भाग कर पड़ोस वाली आंटी के घर चली गई. जबकि उस के छोटे भाईबहन घर में भीगी बिल्ली बने दुबके रहे. कीर्ति रात को भी अपने घर नहीं आई. विनोद रात में उसी दीवान पर सोया जिस में अन्नू की लाश छिपा रखी थी. बहरहाल, 18 फरवरी, 2018 को पुलिस ने फरार विनोद पाठक को कोडरमा के रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया. विनोद ने अपने औफिस के सिक्योरिटी सुपरवाइजर को फोन कर के कहा था कि वह अपनी कार से उस के पास आ जाए. उसे अभी डोभी जाना है. तब सुपरवाइजर अपनी इंडिगो कार ले कर विनोद के घर पहुंच गया था.

आरोपी विनोद ने पुलिस को बताया कि हत्या करने के बाद वह अपने ही औफिस के सिक्योरिटी सुपरवाइजर की इंडिगो कार से डोभी तक गया था. इस मामले में सिक्योरिटी सुपरवाइजर और उस की पत्नी से भी पुलिस ने पूछताछ की. विनोद पाठक ने यह भी कबूल किया कि पत्नी की हत्या करने के बाद वह सीधा प्रेमिका मंजू ठाकुर के पास खून से लथपथ पहुंचा था और हत्या के बारे में पूरी जानकारी दी. पुलिसिया पूछताछ में मंजू ने यह भी बताया था कि अन्नू का सिर से धड़ अलग करने का आइडिया उस ने ही दिया था.

मंजू ने विनोद पाठक को हत्या करने के बाद अलगअलग जगहों पर लाश छिपाने का तरीका भी बताया था. घटना के बाद मंजू ठाकुर और विनोद पाठक के बीच 32 बार फोन पर बातचीत हुई थी. मंजू विनोद के कौन्टेक्ट में लगातार रही. वह नए नंबर से मंजू से बात करता था ताकि किसी को शक न हो. मंजू से विनोद की आखिरी बात पीसीओ से 27 जनवरी को हुई थी. पुलिस इस बात की जांच भी कर रही है कि विनोद जिस वक्त अपनी पत्नी की गला रेत कर हत्या कर रहा था, तब किस शख्स ने उस की मदद की.

पुलिस ने आरोपी इंसपेक्टर मंजू ठाकुर और विनोद कुमार को सीजेएम की अदालत में पेश किया. अदालत ने दोनों को जेपी केंद्रीय कारागार भेज दिया. कथा लिखे जाने तक आरोपी विनोद पाठक और मंजू ठाकुर जेल सलाखों के पीछे कैद थे. पुलिस सनसनीखेज तरीके से की गई हत्या के दोनों आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी कर रही थी. मंजू ठाकुर की ओर से जमानत के लिए अदालत में अर्जी दाखिल की गई थी, जो न्यायाधीश सत्येंद्र सिंह ने खारिज कर दी थी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

10 साल छोटे लड़के के प्यार में दीवानी हो गई कमलप्रीत

कुछ औरतें दिखती सीधी हैं लेकिन शराफत का चोला ओढ़ कर वह अंदर ही अंदर गुल खिलाती रहती हैं. एक बेटे की मां कमलप्रीत भी ऐसी ही थी पर जब तभी उस की सच्चाई सामने आई तो तब तक उस का घर उजड़ चुका था

19मार्च, 2018 की सुबह कमलप्रीत कौर अपने पति हरजिंदर सिंह से यह कहते हुए घर से निकली थी कि उस के मायके में किसी की तबीयत खराब है, इसलिए वह राहुल को ले कर वहां जा रही है. पत्नी की यह बात सुन कर हरजिंदर ने कहा, ‘‘ठीक है, हो आओ. ज्यादा परेशानी वाली बात हो तो तुम मुझे फोन कर देना. मैं भी पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘हां, तुम्हारी जरूरत हुई तो फोन कर दूंगी और कोई ज्यादा चिंता वाली बात नहीं हुई तो 2 दिन में वापस लौट आऊंगी.’’ कमलप्रीत बोली. मूलरूप से पंजाब के जिला पटियाला के गांव बल्लोपुर की रहने वाली थी कमलप्रीत. करीब 12 साल पहले जब वह 19 बरस की थी, तब उस की शादी हरियाणा के गांव गणौली के रहने वाले हरजिंदर सिंह से हुई थी. यह गांव जिला अंबाला की तहसील नारायणगढ़ के तहत आता है.

शादी के ठीक एक साल बाद कमलप्रीत ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम राहुल रखा गया. इन दिनों वह गांव के सरकारी स्कूल में 5वीं कक्षा में पढ़ रहा था. हरजिंदर का अपना खेतीबाड़ी का काम था, जिस में वह काफी व्यस्त रहता था. कमलप्रीत घर पर रहते हुए चौकेचूल्हे से ले कर सब काम संभाले हुए थी. जो भी था, सब बड़े अच्छे से चल रहा था. पतिपत्नी में खूब प्यार था. दोनों में अच्छी अंडरस्टैंडिंग भी थी. दोनों अपने बच्चों का भी सलीके से ध्यान रखे हुए थे. काफी दिनों से राहुल पिता से कहीं घुमा लाने की जिद कर रहा था तो पिता ने उस से पक्का वादा किया था कि वह उस के इम्तिहान खत्म होने के बाद उसे 2 दिन के लिए घुमाने शिमला ले चलेगा.

मगर पेपर खत्म होने के अगले रोज ही उसे अपनी मां के साथ नानी के यहां जाना पड़ गया. पत्नी के मायके जाने वाली बात पर हरजिंदर को कोई परेशानी वाली बात नहीं थी. पति की निगाह में कमलप्रीत एक सुलझी हुई मेहनती औरत थी, जो ससुराल के साथसाथ अपने मायके वालों का भी पूरा ध्यान रखती थी. 

सुखदुख में वह अपने अन्य रिश्तेदारों के यहां भी अकेली आयाजाया करती थी. कुल मिला कर बात यह थी कि हरजिंदर को पत्नी की तरफ से कोई चिंता नहीं थी. इसलिए जब वह 19 मार्च को बेटे के साथ मायके के लिए घर से अकेली निकली तो हरजिंदर ने कोई चिंता नहीं की. उसी रोज शाम के समय हरजिंदर ने पत्नी को यूं ही रूटीन में फोन कर के पूछा, ‘‘हां कमल, पहुंचने में कोई परेशानी तो नहीं हुई? बल्लोपुर पहुंच कर तुम ने फोन भी नहीं किया?’’

‘‘हांहांवो ऐसा है कि अभी मैं बल्लोपुर नहीं पहुंच पाई.’’ कमलप्रीत बोली तो उस की आवाज में हकलाहट थी. पत्नी की ऐसी आवाज सुन कर हरजिंदर को थोड़ी घबराहट होने लगी. उस ने पूछा, ‘‘बल्लोपुर नहीं पहुंची तो फिर कहां हो?’’

‘‘अभी मैं शहजादपुर में हूं. किसी जरूरी काम से मुझे यहां रुकना पड़ गया.’’ कमलप्रीत ने पहले वाले लहजे में ही जवाब दिया. ‘‘शहजादपुर में ऐसा क्या काम पड़ गया तुम्हें? वहां तुम किस के यहां रुकी हो? सब ठीक तो है ? बताओ, कोई परेशानी हो तो मैं भी जाऊं क्या?’’

‘‘सब ठीक है, घबराने वाली कोई बात नहीं है. अच्छा, मैं फ्री हो कर अभी कुछ देर बाद फोन करती हूं. तब सब कुछ विस्तार से भी बता दूंगी.’’ कहने के साथ ही कमलप्रीत की ओर काल डिसकनेक्ट कर दी गई. लेकिन हरजिंदर की घबराहट बढ़ गई थी. उस ने कमलप्रीत का नंबर फिर से मिला दिया. पर अब उस का फोन स्विच्ड औफ हो चुका था.

अचानक यह सब होने पर हरजिंदर का फिक्रमंद हो जाना लाजिमी था. कुछ नहीं सूझा तो उस ने उसी समय अपनी ससुराल के लैंडलाइन नंबर पर फोन किया. यहां से उसे जो जानकारी मिली, उस से उस के पैरों तले की जमीन सरक गई. ससुराल से उसे बताया गया कि यहां तो घर में कोई बीमार नहीं है और न ही कमलप्रीत के वहां आने की किसी को कोई जानकारी थी.

अब हरजिंदर के लिए एक मिनट भी रुके रहना संभव नहीं था. उस ने अपनी मोटरसाइकिल उठाई और शहजादपुर की ओर रवाना हो गया. रास्ते भर वह कमलप्रीत को फोन भी मिलाता रहा था, पर हर बार उसे फोन के स्विच्ड औफ होने की ही जानकारी मिलती रही. आखिर वह शहजादपुर जा पहुंचा. पत्नी और बच्चे की तलाश में उस ने उस गांव का चप्पाचप्पा छान मारा मगर पत्नी और बेटे राहुल के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. वहां से वह मोटरसाइकिल से ही अपनी ससुराल बल्लोपुर चला गया. कमलप्रीत को ले कर वहां भी सब परेशान हो रहे थे.

इस के बाद तो हरजिंदर सिंह और उस की ससुराल वालों ने कमलप्रीत राहुल की जैसे युद्धस्तर पर तलाश शुरू कर दी. मगर कहीं भी दोनों मांबेटे के बारे में जानकारी हाथ नहीं लगी

19 मार्च, 2018 का दिन तो गुजर ही गया था, पूरी रात भी निकल गई. 20 मार्च को भी दोपहर तक तलाश करते रहने के बाद सभी निराश हो गए तो हरजिंदर शहजादपुर थाने पहुंच गया. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह को उस ने पत्नी और बेटे के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जानकारी दे दी. थानाप्रभारी ने कमलप्रीत और उस के बेटे राहुल की गुमशुदगी दर्ज कर ली. पुलिस ने अपने स्तर से दोनों मांबेटे को ढूंढने की काररवाई शुरू कर दी.

देखतेदेखते इस बात को एक सप्ताह गुजर गया, मगर पुलिस भी इस मामले में कुछ कर पाने में असफल रहीबात 26 मार्च, 2018 की थी. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह उस वक्त अपने औफिस में थे. तभी एक अधेड़ उम्र के शख्स ने उन के सामने कर दोनों हाथ जोड़ते हुए दयनीय भाव से कहा, ‘‘सर, मेरा नाम ओमप्रकाश है और मैं यमुनानगर में रहता हूं.’’

 ‘‘जी हां, कहिए.’’ शैलेंद्र सिंह बोले. ‘‘अब क्या कहूं सर, एक भारी मुसीबत आन पड़ी है हमारे परिवार पर.’’  ‘‘हांहां बताइए, क्या परेशानी है?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

‘‘सर, मेरा एक भांजा है नीटू. उम्र उस की करीब 21 साल है. किसी बात पर उस का एक औरत से झगड़ा हुआ और हाथापाई में वह औरत मर गई. उस ने उस की लाश को कहीं ले जा कर दफन कर दिया. जब इस की जानकारी मुझे हुई तो हम ने उसे समझाया कि गलती हो जाने पर कानून से आंखमिचौली खेलने के बजाय पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना ही बेहतर होगा.’’ ओमप्रकाश ने बताया.

इस पर एकबारगी तो शैलेंद्र सिंह चौंके. फिर खुद को संभालने का प्रयास करते हुए बोले, ‘‘मतलब यह कि आप के भांजे ने किसी की जान ली, फिर उस की लाश भी ठिकाने लगा दी. अब सरेंडर का प्रस्ताव लेकर आए हो. तो यह भी बता दो कि किन शर्तों पर सरेंडर करवाओगे?’’

‘‘कोई शर्त नहीं सर. लड़का आप के सामने तो अपना अपराध कबूलेगा ही, अदालत में भी ठीक ऐसा ही बयान देगा. भले उसे कितनी भी सजा क्यों हो जाए. बस आप से हमें सिर्फ इतना सहयोग चाहिए कि थाने में उस पर ज्यादा सख्ती हो.’’ ओमप्रकाश ने कहा.

‘‘देखो, अगर वह हमें सहयोग करते हुए सच्चाई बयान करता रहेगा तो हमें क्या जरूरत पड़ी है उस से सख्ती से पेश आने की. जाओ, लड़के को ला कर पेश कर दो. यदि वह सच्चा है तो यहां उस से किसी तरह की ज्यादती नहीं होगी.’’

 ‘‘ठीक है सर, मैं समझ गया. लड़का थाने के बाहर ही खड़ा है. मैं अभी उसे ला कर आप के सामने पेश करता हूं.’’ कहने के साथ ही ओमप्रकाश बाहर गया और थोड़ी ही देर में एक लड़के को ले कर थाने में गया.

 ‘‘यही है मेरा भांजा नीटू, सर.’’ उस ने बताया. जिस वक्त ओमप्रकाश नीटू को ले कर थानाप्रभारी के औफिस में पहुंचा था, पुलिस वाले बगल वाले कमरे में एक अभियुक्त से गहन पूछताछ कर रहे थे. जरा सी देर में वहां से चीखचिल्लाहट की भयावह आवाजें आने लगी थीं

ये आवाजें सुन कर नीटू थरथर कांपने लगा. फिर वह दबी सी आवाज में ओमप्रकाश से बोला, ‘‘मामा, ये लोग मेरा भी क्या ऐसा ही हाल करेंगे?’’

‘‘नहीं करेंगे बेटा, मैं ने एसएचओ साहब से सारी बात कर ली है. फिर जब तुम एकदम सच्चाई बयान कर ही रहे हो तो फिर डर कैसा?’’ ओमप्रकाश ने समझाया. ‘‘यही तो डर है मामा, मैं ने आप को भी पूरी सच्चाई नहीं बताई. दरअसल, मैं ने औरत के साथसाथ उस के बेटे का भी मर्डर कर दिया है और दोनों की लाशें एक साथ दफनाई हैं.’’

नीटू की यह बात थानाप्रभारी के कानों तक भी पहुंच गई थी. उन्होंने नीटू को खा जाने वाली नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘मुझे पहले ही से शक था कि तुम्हारे अपराध का संबंध गणौली की कमलप्रीत और उस के बच्चे की गुमशुदगी से हैअब तुम्हारे लिए बेहतर यही है कि तुम अपने घिनौने अपराध की सच्ची दास्तान अपने मामा को बता दो, वरना दूसरे तरीके से सच्चाई उगलवानी भी आती है.’’

थानाप्रभारी के इतना कहते ही ओमप्रकाश नीटू को ले कर एक दूसरे कमरे में ले गया. इस के बाद नीटू ने अपने अपराध की पूरी कहानी मामा को बता दी. नीटू के बताने के बाद ओमप्रकाश ने सारी कहानी थानाप्रभारी को बता दी. थानाप्रभारी ने ओमप्रकाश के बयान दर्ज करने के बाद उसे घर भेज दिया फिर नीटू को गिरफ्तार कर उसे अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस से व्यापक पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने जो कुछ पुलिस को बताया, उस से अपराध की एक सनसनीखेज कहानी कुछ इस तरह सामने आई

करीब एक साल पहले की बात है. अपनी रिश्तेदारी के एक शादी समारोह में शामिल होने के लिए कमलप्रीत अकेली नारायणगढ़ के बड़ागांव गई थी. वहां जब वह नाचने लगी तो एक लड़के ने भी उस का खूब साथ दिया. उस ने बहुत अच्छा डांस किया था

इस डांस के बाद भी दोनों एक साथ बैठ कर बतियाते रहे. लड़के ने अपना नाम सुमित उर्फ नीटू कहते हुए बताया कि यों तो वह शहजादपुर का रहने वाला है, मगर बड़ागांव में किराए का कमरा ले कर एक कंप्टीशन की तैयारी कर रहा है.

कमलप्रीत उस की बातों से तो प्रभावित हो ही रही थी, उस का सेवाभाव भी उसे खूब पसंद आया. कमलप्रीत तो थकहार कर एक जगह बैठ गई थी, पार्टी में खाने की जिस चीज का भी उस ने जिक्र किया, वह ला कर उसे वहीं बैठी को खिलाता रहाइसी तरह काफी रात गुजर जाने पर कमलप्रीत को नींद सताने लगी. नीटू ने सुझाव दिया कि वह उसे अपने कमरे पर छोड़ आता है, जहां वह बिना किसी शोरशराबे के आराम से सो सकती है. थोड़ी झिझक के बाद वह मान गई. अब तक नीटू को भी नींद आने लगी थी. अत: कमरे में चारपाई पर कमलप्रीत को सुलाने के बाद वह खुद भी जमीन पर दरी बिछा कर सो गया.

आगे का सिलसिला शायद इन के वश में नहीं था. रात के जाने किस पहर में दोनों की एक साथ आंखें खुलीं और बिना आगेपीछे की सोचे, दोनों एकदूसरे में समा गए. कमलप्रीत से नीटू 10 साल छोटा था, अत: उस मिलन के बाद कमलप्रीत उस की दीवानी हो गई. इस के बाद यही सिलसिला चल निकला. दोनों किसी न किसी तरीके से, कहीं न कहीं मौजमस्ती करने का तरीका निकाल लेते.

देखतेदेखते एक बरस गुजर गया. अब कमलप्रीत ने नीटू से यह कहना शुरू कर दिया था कि वह अपने पति को तलाक दे कर उस से शादी कर लेगी. मौजमस्ती तक तो ठीक था, कमलप्रीत की इस बात ने उसे नीटू को परेशान कर डाला. नीटू ने इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए आखिर मन ही मन यह निर्णय लिया कि वह कमलप्रीत को अच्छी तरह से समझाएगा. फिर भी न मानी तो वह उस का खून कर देगा. इस के लिए उस ने एक चाकू भी खरीद कर रख लिया था.

19 मार्च, 2018 की सुबह कमलप्रीत उस के यहां आ धमकी. उस के साथ एक लड़का था, जिसे उस ने अपना बेटा बताया. आते ही उस ने कहा कि वह अपने पति को हमेशा के लिए छोड़ आई है. आगे वह उस से शादी कर के अपने लड़के सहित उसी के साथ रहेगी. नीटू ने उसे समझाने की कोशिश की. लगातार समझातेसमझाते पूरा दिन और सारी रात भी निकल गई. मगर वह अपनी जिद पर अड़ी रही तो 20 मार्च को नीटू ने चाकू से कमलप्रीत की हत्या कर दी

यह देख कर उस का लड़का राहुल सहम गया. मगर वह इस मर्डर का चश्मदीद गवाह बन सकता था. इसलिए नीटू ने चाकू से उस का भी गला रेत दिया. दोनों लाशों को कमरे में छिपा कर नीटू अमृतसर चला गया. वहां गोल्डन टेंपल में उस ने वाहेगुरु से अपने इस गुनाह की माफी मांगी. रात में वापस कर बड़ागांव के पास से गुजर रही बेगना नदी की तलहटी में दोनों लाशों को दफन कर आया. इस के बाद वह अपने मामा के पास यमुनानगर चला गया, जिन्होंने उसे पुलिस के सामने सरेंडर करने का सुझाव दिया था.

पुलिस ने उस की निशानदेही पर केवल चाकू बरामद किया बल्कि दोनों लाशें भी खोज लीं, जो जरूरी काररवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर नीटू को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में अंबाला की केंद्रीय जेल भेज दिया गया था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित