25 लाख के लिए प्रेमी से पति का कराया मर्डर

जब प्रेमी के चक्कर में फंसी पत्नी पति की दुश्मन बन जाए तो उसे कौन बचा सकता है? प्रतिभा ने प्रेमी ऋषि के साथ मिल कर पति के साथ यही किया, लेकिन…   

कृष्णा आगरा के थाना सदर के अंतर्गत आने वाले मधुनगर इलाके में अपने मांबाप और भाई अवनीत के साथ रहता था. इटौरा में उस की स्टील रेलिंग की दुकान थी जो काफी अच्छी चल रही थी. कृष्णा की अभी शादी नहीं हुई थी. उस की शादी के लिए जिला मैनपुरी के कस्बा बेवर की युवती प्रतिभा से बात चल रही थी. कृष्णा ने अपने परिवार के साथ जा कर लड़की देखी तो सब को लड़की पसंद गई. देखभाल के बाद शादी की तारीख भी नियत कर दी गई. फिर हंसीखुशी से शादी हो गई. नई दुलहन को सब ने हाथोंहाथ लिया, लेकिन कृष्णा की मां ने महसूस किया कि दुलहन के चेहरे पर जो खुशी होनी चाहिए थी, वह नहीं है. जबकि कृष्णा बहुत खुश था. मां ने सोचा कि प्रतिभा जब घर में सब से घुलमिल जाएगी तो ठीक हो जाएगी.

हफ्ते भर बाद जब सारे रिश्तेदार अपनेअपने घर चले गए तो प्रतिभा का भाई उसे लेने के लिए गया. किसी ने भी इस बात पर ज्यादा गौर नहीं किया कि प्रतिभा आम लड़कियों की तरह खुश क्यों नहीं है. वह भाई के साथ पगफेरे के लिए चली गई और 4-6 दिन बाद कृष्णा उसे फिर ले आया. इस के बाद कृष्णा की पुरानी दिनचर्या शुरू हो गई. इसी बीच आगरा की आवासविकास कालोनी का रहने वाला ऋषि कठेरिया उस की दुकान पर आनेजाने लगा. ऋषि ठेके पर मकान बना कर देता था. धीरेधीरे कृष्णा का ऋषि के साथ व्यापारिक संबंध जुड़ने लगा. ऋषि कृष्णा को स्टील रेलिंग के ठेके दिलवाने लगा

दूसरी ओर प्रतिभा का व्यवहार परिवार वालों की समझ में नहीं रहा था. वह जबतब मायके जाने की जिद करने लगती तो सास उसे समझाती कि शादी के बाद बारबार मायके जाना ठीक नहीं है, ससुराल की जिम्मेदारियां भी संभालनी होती हैं. एक दिन प्रतिभा ने कृष्णा से कहा कि उसे अपने मांबाप की याद रही है, वह अपने मायके जाना चाहती है. इस पर कृष्णा ने कहा कि जब उसे फुरसत मिलेगी, वह उसे छोड़ आएगाठीक उसी समय प्रतिभा के मोबाइल पर किसी का फोन आया तो प्रतिभा ने फोन यह कह कर काट दिया कि वह फिर बात करेगी. लेकिन मायके जाने की बात पर वह अड़ी रही. आखिर कृष्णा ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम तैयारी कर लो, मैं तुम्हें कल तुम्हारे मायके छोड़ आऊंगा.’’

अगले दिन घर वालों की इच्छा के खिलाफ कृष्णा उसे ससुराल ले गया. बस में बैठते ही प्रतिभा का मूड एकदम बदल गया. अब वह काफी खुश थी. शादी के 4 महीने बाद भी कृष्णा अपनी पत्नी के मूड को समझ नहीं पाया था. पर कृष्णा की मां की समझ में यह बात अच्छी तरह आ गई थी कि बहू कुछ तो उन से छिपा रही है. प्रतिभा ने मायके जाने से पहले फोन द्वारा किसी को खबर तक नहीं दी थी. अत: जब वह मायके पहुंची तो उसे देख कर उस की मां हैरान हो कर बोली, ‘‘अरे दामादजी, आप अचानक ही… फोन कर के खबर तो कर दी होती.’’ इस से पहले कि कृष्णा कुछ कहता प्रतिभा बोली, ‘‘मम्मी, हमारा फोन खराब था, इसलिए खबर नहीं कर पाई.’’

कृष्णा पत्नी की इस बात पर हैरान था कि प्रतिभा मां से झूठ क्यों बोली. उस ने महसूस किया कि उस की सास लक्ष्मी के माथे पर बल पड़े हुए थे. पत्नी को मायके छोड़ने के बाद कृष्णा जैसे ही आगरा वापस जाने के लिए घर से निकला तो उसे ऋषि दिख गया. उस ने पूछा, ‘‘अरे ऋषि, तुम यहां कैसे?’’ ‘‘मैं गुप्ताजी से मिलने आया हूं.’’ उस ने एक घर की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘वह रहा गुप्ताजी का घर.’’

‘‘अरे वो तो प्रतिभा के चाचा का घर है.’’ कृष्णा बोला.

‘‘हां, वही गुप्ताजी. मेरे पुराने जानकार हैं.’’ ऋषि ने कहा. कृष्णा हैरान था. तभी उस ने पूछा, ‘‘तब तो तुम यह भी जानते होगे कि गुप्ताजी के बड़े भाई मेरे ससुर हैं?’’

‘‘हांहां जानता हूं, प्रतिभा उन की ही तो बेटी है.’’ ऋषि ने लापरवाही से कहा.

‘‘लेकिन तुम ने यह बात मुझे पहले कभी नहीं बताई.’’ ऋषि ने पूछा.

‘‘कभी जरूरत ही नहीं पड़ी.’’ ऋषि ने  कहा तो कृष्णा ने मुड़ कर प्रतिभा को देखा. शक का एक कीड़ा उस के दिमाग में घुस चुका था. उस ने सामने से जाते हुए ईरिक्शा को रोका और बसअड्डे पहुंच गया. रास्ते भर वह यही सोचता रहा कि यदि ऋषि का प्रतिभा के चाचा के घर आनाजाना था तो यह बात उस ने या प्रतिभा ने उसे क्यों नहीं बताई. उस के जेहन में यह बात भी खटकने लगी कि मां ने उसे एकदो बार बताया था कि ऋषि उस की गैरमौजूदगी में भी कई बार उस के घर आया था. यह बातें सोच कर वह काफी तनाव में आ गया. 

अभी तक तो वह यह समझ रहा था कि नईनई शादी होने की वजह से प्रतिभा को मायके वालों की याद आती होगी, इसलिए उस का मन नहीं लग रहा होगा, लेकिन अब उसे लगने लगा कि उस का जल्दीजल्दी मायके आने का कोई और ही मकसद है. इसी तनाव में वह घर पहुंचा तो मां ने छूटते ही कहा, ‘‘बेटा, तेरी बीवी के रंगढंग हमें समझ नहीं रहे. उस का रोजरोज मायके जाना ठीक नहीं है.’’ उस समय कृष्णा ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि अभी उसे केवल शक ही था, जब तक वह मामले की तह तक नहीं पहुंचता तब तक घर में बता कर बेकार का फसाद फैलाना ठीक नहीं था.

हफ्ते भर बाद वह पत्नी को मायके से लिवा लाया. कुछ दिन बाद पता चला कि प्रतिभा गर्भवती है. पिता बनने की चाह में कृष्णा के मन की कड़वाहट पिघलने लगी. लेकिन उस ने अब ऋषि से घुलमिल कर बातें करनी बंद कर दीं. इधर ऋषि भी समझ गया था कि कृष्णा के तेवर कुछ बदले हुए से हैं, इसलिए वह भी सतर्क हो गया. शक का कीड़ा जो कृष्णा के दिमाग में रेंग रहा था, वह उसे चैन से नहीं रहने दे रहा था. वह अपनी परेशानी किसी को बता भी नहीं सकता था. एक दिन कृष्णा के बहनबहनोई घर आए तो बहनोई ने बातों ही बातों में कृष्णा से पूछा, ‘‘आजकल लगता है दुकान पर तुम्हारा मन नहीं लगता. क्या कोई परेशानी है?’’

‘‘नहीं जीजाजी, ऐसी कोई बात नहीं है. दरअसल तबीयत कुछ ठीक नहीं है.’’ कृष्णा ने जवाब दिया.

‘‘लगता है, प्रतिभा तुम्हारा ठीक से खयाल नहीं रखती.’’ बहनोई ने पूछा तो कृष्णा की मां ने कह दिया, ‘‘अरे दामादजी, खयाल तो वो तब रखे जब उसे मायके आनेजाने से फुरसत मिले.’’ सास की बात प्रतिभा को अच्छी नहीं लगी. उस ने छूटते ही कहा, ‘‘इस घर में किसी को मेरी खुशी भी नहीं सुहाती.’’ कह कर वह दनदनाती हुई अपने कमरे में चली गई. इस से कृष्णा के बहनबइनोई समझ गए कि पतिपत्नी के संबंध सामान्य नहीं हैं. कृष्णा को पत्नी का यह व्यवहार बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा. बहनबहनोई तो चले गए, लेकिन कमरे में आने के बाद उस ने प्रतिभा को दो  तमाचे जड़ते हुए कहा, ‘‘अपना व्यवहार सुधारो वरना अच्छा नहीं होगा.’’

‘‘अब इस से ज्यादा बुरा क्या होगा कि तुम्हारे जैसे आदमी के साथ मेरी शादी हो गई.’’ कह कर प्रतिभा बैड पर जा कर बैठ गई. उस दिन के बाद उन दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. दूसरी ओर प्रतिभा रात में देरदेर तक ऋषि के साथ मोबाइल पर बातें करती. एक दिन कृष्णा की नींद खुल गई तो उस ने देखा कि प्रतिभा किसी से बातें कर रही थी. वह समझ गया कि ऋषि से ही बातें कर रही होगी. कृष्णा समझ गया कि प्रतिभा अब आपे से बाहर होती जा रही है. पर करे तो क्या करे, यह उस की समझ में नहीं आ रहा था. इसी बीच प्रतिभा ने एक बेटी को जन्म दिया. पूरे घर में जैसे खुशी छा गई. बच्ची का नाम राधिका रखा गया. कृष्णा को उम्मीद थी कि मां बन जाने के बाद शायद प्रतिभा के व्यवहार में कोई फर्क आ जाए, पर ऐसा हुआ नहीं. कृष्णा को इस बात की पुष्टि हो गई थी कि ऋषि के साथ प्रतिभा के नाजायज संबंध शादी से पहले से थे. चूंकि ऋषि शादीशुदा था, इसलिए उस के साथ शादी करना प्रतिभा की मजबूरी थी.

प्रतिभा के मांबाप को सब कुछ मालूम था, इसीलिए उन्होंने बेटी को कृष्णा के गले बांध दिया और सोचा कि शादी के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा. लेकिन प्रतिभा का रवैया नहीं बदला. कृष्णा अपनी बेटी को बहुत प्यार करता था. वह प्रतिभा को भी खुश रखने का भरसक प्रयास करता था लेकिन अपनी परेशानी घर में किसी को बता नहीं पा रहा था. जबकि प्रतिभा के व्यवहार से कोई भी खुश नहीं था. धीरेधीरे समय गुजर रहा था. मौका मिलते ही प्रतिभा चोरीछिपे ऋषि से यहांवहां मिल लेती पर वह जानती थी कि कृष्णा जैसे व्यक्ति के साथ वह पूरा जीवन नहीं गुजार सकती. दूसरी ओर ऋषि भी शादीशुदा था, उसे लगता था कि उस का जीवन कटी पतंग की तरह है. प्रेमी ने कभी उसे इस बात के लिए आश्वस्त नहीं किया कि वह उसे अपने साथ रख सकता है.

संभवत: इसी कशमकश में प्रतिभा भी समझ नहीं पा रही थी कि वह करे तो क्या करे. कृष्णा से छुटकारा पाने के बारे में वह सोचने लगी पर वह जानती थी कि मायके वाले भी ऋषि के कारण उस के खिलाफ थेइसी बीच कृष्णा ने 25 लाख रुपए में अपनी एक जमीन बेच दी. वह रकम उस ने घर में ही रख दी थी. यह बात प्रतिभा को पता चल गई थी और अचानक उसे लगा कि पति के इस पैसे से वह प्रेमी को बाध्य कर देगी कि वह उस के साथ अपनी दुनिया बसा ले. प्रेमी को पाने की धुन में वह गुनहगार बनने को भी तैयार हो गई. एक दिन उस ने ऋषि को फोन कर के कहा कि वह उसे बड़ा फायदा करा सकती है.

ऋषि हंसने लगा, ‘‘अरे तुम तो हमेशा ही मुझे खुशियां देती हो.’’ ‘‘लेकिन तुम तो मुझे केवल सपने ही दिखाते हो जो आंखें खुलते ही टूट जाते हैं.’’ प्रतिभा ने तल्ख स्वर में कहा. ‘‘प्रतिभा, यह बात तुम अच्छी तरह जानती हो कि मेरी मजबूरियां क्या हैं. मेरी पत्नी है, बच्चे हैं. मैं उन्हें किस के सहारे छोड़ सकता हूं.’’ ऋषि ने कहा. प्रतिभा गुस्से में भर उठी, ‘‘तो मुझ से प्यार क्यों किया? क्यों मुझे झूठे सपने दिखाए? तुम ने तो सिर्फ अपना मतलब पूरा किया है. तुम्हें तो कभी मुझ से प्यार था ही नहीं.’’ प्रतिभा ने उस दिन ऋषि को साफसाफ कह दिया, ‘‘या तो तुम मुझे अपने साथ रखो अन्यथा मैं तुम्हारी जिंदगी से दूर चली जाऊंगी. समझ लो मैं आत्महत्या भी कर सकती हूं, जिस का दोष तुम्हारे ऊपर आएगा.’’

ऋषि ऐसे किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था. अत: उस ने उस दिन प्रतिभा को किसी तरह समझाबुझा दिया कि वह कुछ सोचेगा. तभी प्रतिभा ने धीरे से कहा, ‘‘कृष्णा ने अपनी जमीन बेची है. 25 लाख की बिकी है.’’ ऋषि के कान खड़े हो गए. प्रतिभा ने आगे कहा, ‘‘इन 25 लाख के सहारे हम कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसा सकते हैं.’’ ‘‘तुम पागल हो गई हो क्या, चोरी के इलजाम में जेल भिजवाओगी हमें.’’ ऋषि ने कहा. लेकिन वह जानता था कि प्रतिभा उस के प्यार में अंधी है और थोड़ाबहुत लाभ उसे हो सकता है. ऋषि ने उसे 2 दिन बाद किसी होटल में मिलने को कहा.

इस के बाद ऋषि को भी लालच गया. उस ने प्रतिभा से फोन पर बात की. प्रतिभा ने उस से साफ कह दिया, ‘‘मैं तो सिर्फ तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं. लेकिन कृष्णा हमारी खुशियों की राह में रोड़ा बना हुआ है.’’ फिर एक दिन बेटी को डाक्टर को दिखाने का बहाना कर प्रतिभा घर से निकली और एक कौफीहाउस में ऋषि से मिली. दोनों ने मिल कर एक षडयंत्र रचा, जिस में कृष्णा को रास्ते से हटाने की बात तय कर ली गई. नादान प्रतिभा प्रेमी की आशिकी में अंधी हो चुकी थी. उसे भलाबुरा नहीं सूझ रहा था. उस ने यह भी नहीं सोचा कि उस की 9 माह की बेटी का क्या होगा. इधर प्रतिभा के बदले हुए तेवर देख कर एक दिन सास ने कहा, ‘‘बहू, क्या बात है आजकल तू हर वक्त घर से निकलने के बहाने ढूंढती रहती है?’’

‘‘नहीं तो मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं है. राधिका की तबीयत ठीक नहीं रहती, इसलिए परेशान रहती हूं.’’ प्रतिभा ने बहाना बनाया.

‘‘देख बहू, हमारे परिवार का समाज में सम्मान है. हमारे परिवार में बहुएं सिर्फ घर के बच्चों और पति के लिए ही जीतीमरती हैं.’’ कह कर सास अपने कमरे में चली गई. कृष्णा को रास्ते से हटाने की योजना बन चुकी थी और 25 लाख रुपए में से 5 लाख रुपए देने का वादा कर ऋषि ने इस साजिश में अपने दोस्त पवन निवासी रायमा, जिला मथुरा को भी शामिल कर लिया था. 13 फरवरी, 2018 को कृष्णा के पास ऋषि का फोन आया. उस ने बताया कि उसे एक बहुत बड़ा ठेका मिला है. उस बिल्डिंग में स्टील ग्रिल भी लगनी है. अगर तुम यह काम करना चाहते हो तो बात करने के लिए रायमा जाओ. कृष्णा ने पहले तो सोचा कि वह उस से कोई संबंध नहीं रखना चाहता, क्योंकि वह विश्वास के काबिल नहीं है. पर फिर उसे लगा कि पारिवारिक बातों को व्यापार से अलग ही रखना चाहिए. अत: उस ने कह दिया कि वह शाम तक रायमा पहुंच जाएगा.

कृष्णा ने घर से निकलते वक्त अपनी मां को बता दिया कि एक सौदा करने के लिए वह रायमा जा रहा है. पति के घर से निकलने के बाद प्रतिभा ने अपने प्रेमी ऋषि को फोन कर के बता दिया कि कृष्णा घर से चल दिया है. घर में किसी को भी नहीं मालूम था कि कौन सा कहर टूटने वाला था. कृष्णा रायमा पहुंचा तो वहां ऋषि, पवन और रायमा निवासी टिल्लू बातों में उलझा कर कृष्णा को खेतों की ओर ले गए. लेकिन तभी वहां कुछ लोग गए और वे अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके. जब रात में कृष्णा घर पहुंचा तो उसे देख कर प्रतिभा हैरान रह गई. देर रात को प्रतिभा ने ऋषि को फोन किया तो उस ने प्रेमिका को सारी बात बता दी. अगले दिन ऋषि ने कृष्णा के फोन पर बता दिया कि उस की पवन से बात हो गई है. वह अब अपने घर में रेलिंग लगाने का ठेका देने को तैयार हो गया है, तुम जाओ.

सीधासादा कृष्णा बिना कुछ सोचेसमझे 14 फरवरी, 2018 को अपनी मां से रायमा जाने की बात कह कर घर से निकल गया, जहां स्टेशन पर ही उसे ऋषि मिल गया. ऋषि उसे बातों में लगा कर इधरउधर घुमाता रहा. तब तक शाम हो गई. तभी पवन का फोन गया. उस के कहे मुताबिक, ऋषि कृष्णा को खेतों की तरफ ले गया. तब तक अंधेरा होने लगा था. तभी वहां उसे पवन दिखाई दिया, जिस ने इशारा कर के उन्हें सड़क पार कर खेत में आने को कहा. कृष्णा को जब तक कुछ समझ में आता तब तक काफी देर हो चुकी थी. वहीं टिल्लू भी आ गया तो कृष्णा ने कहा, ‘‘अगर तुम्हें सौदा मंजूर है तो अब जल्दी से कुछ एडवांस दे दो. रात भी हो रही है, मुझे घर पहुंचना है. प्रतिभा इंतजार कर रही होगी.’’

यह सुनते ही पवन हंसने लगा, ‘‘ओह क्या सचमुच तेरी बीवी तेरा इंतजार करती है. हमें तो यह पता है कि वह ऋषि का इंतजार करती है.’’ कृष्णा की समझ में अब कुछकुछ आने लगा था. उस ने कहा, ‘‘यह क्या बदतमीजी है, जल्दी करो मुझे जाना है.’’ यह कहते हुए वह अपनी बाइक की तरफ बढ़ा लेकिन तीनों झपट कर उसे खेत के अंदर ले गए और डंडों से उस की पिटाई शुरू कर दी. डंडों से पीटपीट कर उन्होंने उस की हत्या कर लाश वहीं छोड़ दी और चले गए.

इधर कृष्णा घर नहीं पहुंचा था. घर से जाने के बाद उस ने कोई फोन भी नहीं किया था. उस का फोन भी स्विच्ड औफ रहा था. सभी रिश्तेदारों को फोन कर पूछ लिया गया, पर वह कहीं नहीं था. अंतत: आगरा के थाना सदर में उस की गुमशुदगी लिखवा दी गई. प्रतिभा के मायके वालों को फोन किया गया तो प्रतिभा के भाई ने कहा कि ऋषि से पूछताछ करें. थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह ने सभी थानों को वायरलैस द्वारा कृष्णा की गुमशुदगी की सूचना दे दी

16 फरवरी को पुलिस को रायमा के खेत में एक लाश मिलने की सूचना मिली, जिसे कृष्णा के भाई अवनीश ने पहचान कर शिनाख्त कर दी. घर वालों से पूछताछ की गई तो कृष्णा की मां ने कहा कि कृष्णा ने उसे बताया था कि रेलिंग का ठेका लेने के लिए वह रायमा जा रहा है. पर वह कहां जा रहा था, उसे पता नहीं था. 13 और 14 फरवरी को भी वह रायमा गया था. 13 को वह देर रात घर लौटा था. वह नहीं बता पाई कि कृष्णा रायमा में किस के पास गया था. पुलिस टीम हत्यारे की खोजबीन में लग गई. पुलिस की एक टीम बेवर भेजी गई तो प्रतिभा के भाई ने कहा कि उन्हें इस बारे में कुछ भी नहीं पता, लेकिन यदि कृष्णा के दोस्त ऋषि से पूछताछ की जाए तो कुछ पता चल सकता है. जांच अधिकारी ने महसूस किया कि प्रतिभा के मायके वाले कुछ छिपा रहे हैं.

इस के बाद थानाप्रभारी ने कृष्णा के घर जा कर प्रतिभा से पूछताछ की तो महसूस किया कि उसे पति की मौत का जैसे कोई दुख नहीं था. इसी बीच पुलिस को एक मुखबिर ने बताया कि ऋषि की दोस्ती रायमा निवासी पवन के साथ है. अगर उसे हिरासत में लिया जाए तो केस खुल सकता है. पुलिस ने रायमा में पवन को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ की गई तो पता चला कि मृतक की पत्नी प्रतिभा के साथ ऋषि के नाजायज संबंध थे. मृतक की पत्नी प्रतिभा ने ऋषि को बता दिया था कि कृष्णा ने जो 25 लाख रुपए की जमीन बेची है, उन पैसों से वे एक अच्छी जिंदगी की बुनियाद रख सकते हैं. इस के बाद पवन ने कृष्णा की हत्या की सारी कहानी बता दी.

पुलिस ने 18 फरवरी को प्रतिभा को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस बीच पुलिस को यह जानकारी भी मिली कि ऋषि ने बाह थाने में अपने अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिस में उस ने बताया था कि वह किसी तरह अपहर्त्ताओं के चंगुल से छूट कर भागा है. मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने ऋषि और टिल्लू को भी गिरफ्तार कर लिया. प्रतिभा ने योजना बना कर अपने हाथों अपना सुहाग तो उजाड़ दिया, लेकिन उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि जिन 25 लाख रुपयों के लालच में उस ने यह सब किया, वह रकम कृष्णा ने अपने कमरे में न रख कर अपनी मां के पास रख दी थी.

पुलिस ने ऋषि, प्रतिभा, पवन और टिल्लू से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. 9 माह की राधिका अनाथ हो चुकी है. मां जेल में है और पिता की हत्या कर दी गई है. बूढ़ी दादी अब कैसे उसे पाल पाएगी, यह बड़ा सवाल है.

इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

चौथी बहू ने अपनी मां के साथ मिलकर तीसरी बहू को केरोसीन से जलाया

3 शादियां कर के सलीम खान 11 बच्चों का बाप बन चुका था.इस के बावजूद उस ने आयशा से चौथी शादी कर ली. आयशा ने तलाक का ऐसा राग अलापा कि…

भोपाल शहर के निशातपुरा इलाके में 4 जनवरी, 2018 को एक अधेड़ उम्र की औरत शबनमआग से बुरी तरह झुलस गई थी. पहले तो यह केस खुदकुशी की कोशिश का लगा. लेकिन निशातपुरा थाने की पुलिस ने जांच की तो जो हकीकत सामने आई सभी चौंक गए. पता चला कि वह 52 साल के सलीम खान की तीसरी पत्नी थी और उसे एक सोचीसमझी साजिश के तहत जलाया गया था.

दरअसल शबनम का पति सलीम खान सिक्योरिटी गार्ड था. 11 बच्चे होने के बाद भी वह चौथी शादी करने की कोशिश कर रहा था. उस का बड़ा बेटा 18 साल का हो चुका था. इस के बावजूद उस ने चौथी शादी थी. पुलिस को इस मामले की खबर एक दिन बाद यानी 5 जनवरी को लगी तो थाना निशातपुरा के टीआई चैनसिंह रघुवंशी ने एसआई संतराम खन्ना को हमीदिया अस्पताल भेज दिया क्योंकि आग से झुलस जाने के बाद शबनम उसी अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी.

एसआई संतराम खन्ना बिना वक्त गंवाए हमीदिया अस्पताल पहुंच गए. वहां शबनम की हालत चिंताजनक बनी हुई थी. अस्पताल में सलीम खान के परिवार के और लोग भी मौजूद थे. संतराम खन्ना ने जब शबनम और अन्य लोगों से बात की तो इस वारदात के पीछे की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार निकली—

सलीम एक मामूली नौकरीपेशा इंसान था. उस की पहली शादी शहनाज नाम की एक लड़की से हुई थी. लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद कुछ ऐसे हालात पैदा हो गए कि बहुत जल्द शहनाज से उस का तलाक हो गया. सलीम एक मामूली आदमी था. जैसेतैसे कर के उस की शादी शहनाज से हुई थी. उस से तलाक के बाद सलीम इस फिक्र में लग गया कि अब उस की दूसरी शादी कैसे होगी. पर इस मामले में सलीम की किस्मत औरों से काफी जुदा निकली. तभी तो कुछ ही दिनों में उस की दूसरी शादी हो गई. दूसरी बीवी से सलीम के 7 बच्चे हुए. सलीम फकीर बिरादरी से था. उस की बिरादरी के अधिकांश लोग भीख मांगा करते थे. इसलिए परिवार बढ़ने की उसे कोई चिंता नहीं हुई.

उस का खर्च समाज से पूरा हो रहा था. बच्चे जब थोड़े बडे़ हो गए तो वह भीख मांगने लगे. वहीं दूसरी ओर सलीम की पत्नी भी आसपड़ोस के घरों में साफसफाई करने और खाना बनाने का काम करने लगी. कुल मिला कर सारा घर अपने खानेपीने का इंतजाम खुद ही कर लेता था. भीख मांग कर शौक तो पूरे नहीं किए जा सकते. लेकिन उस की जिंदगी बदस्तूर चल रही थी. इसी बीच सलीम की दूसरी पत्नी भी उसे छोड़ कर चली गई तो सलीम ने 35 वर्षीय शबनम नाम की एक महिला से शादी कर ली. शबनम भी तलाकशुदा थी. उस के पास 2 बच्चे पहले से थे. सलीम से शादी के बाद वह 2 बच्चों की मां और बन गई.

अब उस के परिवार में 11 बच्चे हो गए थे. शबनम समझदार और सुलझी हुई महिला थी. वही अपने और सलीम के सारे बच्चों की परवरिश कर रही थी. बाद में सलीम शांति अपार्टमेंट में गार्ड की नौकरी करने लगा. 11 बच्चे होने के बावजूद सलीम ने शबनम के होते हुए आयशा से चौथी शादी कर ली. लेकिन उस ने यह बात काफी दिनों तक शबनम से छिपाए रखी. उस ने अपनी चौथी बीवी को अपने घर में न रख कर कुछ दूरी पर भानपुर में एक किराए के मकान में रखा था. वह आयशा को हर महीने खर्च के लिए लगातार पैसे भेजता और वहीं पर उस से मिलने जाता रहता था.

पर आयशा से शादी वाली बात वह शबनम से ज्यादा दिनों तक नहीं छिपा सका. शबनम को जब यह जानकारी मिली तो उसे बहुत गुस्सा आया. शबनम ने सलीम से शिकायत की, ‘‘मैं तुम्हें इतना प्यार करती हूं, बच्चों की देखभाल कर रही हूं. तो ऐसी क्या मजबूरी आ गई जो तुम ने आयशा से शादी कर ली. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.’’ ‘‘तुम्हें मेरी शादी से कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए. क्योंकि जिस तरह पहले से चलता आ रहा है, ठीक वैसे ही अब भी चलता रहेगा. आयशा भी एक तलाकशुदा औरत है. वो परेशान थी तो मैं ने उसे अपने यहां एक तरह से आश्रय दिया है.’’ सलीम ने सफाई दी.

‘‘शहर में और भी तमाम तलाकशुदा महिलाएं हैं. उन्हें भी आश्रय दे दो. वो भी बेचारी न जाने कहांकहां धक्के खा रही होंगी.’’ शबनम ने कटाक्ष किया. ‘‘तुम तो बेवजह पेरशान हो रही हो. उस के आने पर तुम्हारे प्यार में कमी नहीं आने दूंगा. इसलिए तुम कोई चिंता मत करो.’’ सलीम ने उसे फिर समझाने की कोशिश की. लेकिन इतनी बड़ी बात को शबनम भला कैसे स्वीकार कर सकती थी, लिहाजा वह पति से खूब झगड़ी. कुछ ही दिनों बाद इस बात को ले कर अकसर ही घर पर झगड़ा होने लगा.

आयशा अपने पहले शौहर को तलाक दे कर अपनी मां के साथ एक छोटे से घर में रहती थी. पर अब तो सलीम ने उसे एक किराए का कमरा दिला दिया था. सलीम हर महीने उसे खर्च के पैसे देता रहता था. पर आयशा ने अब एक जिद यह पकड़ रखी थी कि वह शबनम से तलाक दे कर उसे अपने घर पर रखे.
सलीम शबनम को तलाक देने के लिए राजी नहीं था. इसी बात को ले कर दोनों में पहले तो सिर्फ बहस होती. लेकिन जल्दी ही इस मुद्दे के तूल पकड़ते देर न लगी. सलीम के दिए पैसों से मांबेटी का खर्च चलता था.

दिसंबर 2017 में इत्तफाक से सलीम को अपने तय वक्त पर तनख्वाह नहीं मिली तो वह आयशा को समय पर खर्च के लिए पैसे नहीं भेज पाया. जब भी सलीम उसे समय से पैसे नहीं भेज पाता तो आयशा अपनी मां के साथ सलीम के घर आ धमकती थी. इस के लिए मांबेटी शबनम को दोषी मानती थीं. वह दोनों आते ही शबनम पर हावी हो जाती थीं. आयशा शबनम पर इस बात का दबाव बनाती कि वह सलीम से जल्द तलाक ले कर वहां से चली जाए ताकि वह इस घर में आ कर रह सके. पर शबनम आयशा की बातों को अनसुना कर देती. दिसंबर के महीने में भी वह दोनों घर आ कर शबनम से झगड़ने लगीं. आयशा की मां वसीमा बी आग बबूला हो गई. होहल्ला सुन कर आसपास के लोग भी अपने घरों से बाहर निकल कर दोनों को समझाने लगे. इतने में किसी ने सलीम को फोन कर के इस की जानकारी दे दी.

सलीम उस समय शांति अपार्टमेंट में अपनी ड्यूटी पर था. वह दूसरे गार्ड को थोड़ी देर में लौट आने की बात बोल कर जल्दी से घर आ गया. उस समय घर पर महाभारत छिड़ी हुई थी. सलीम ने आते ही आयशा को समझाया कि यहां पर मत लड़ो, सब लोग देख रहे हैं. आयशा ने सलीम से गुस्से में कहा, ‘‘सब से पहले तो तुम शबनम को तलाक दो. तभी मैं तुम्हारे साथ रहूंगी.’’ सलीम ने उसे समझाने की पूरी कोशिश की, लेकिन आयशा इसी बात पर अड़ी रही. सलीम के साथ पड़ोस के लोगों के समझाने के बाद आयशा थोड़ी ठंडी पड़ी और झगड़ा खत्म कर लिया. झगड़ा खत्म होने पर सलीम ने राहत की सांस ली.

दोबारा ड्यूटी पर जाने से पहले सलीम ने शबनम और आयशा को समझाया, ‘‘मैं जा रहा हूं, इसलिए अब लड़ना नहीं.’’ कह कर सलीम वहां से चला गया. उसे लगा कि उस के समझाने के बाद दोनों नहीं लड़ेंगी. वह दोनों बीवियों की तरफ से बेफिक्र हो गया. अभी सलीम अपार्टमेंट में इत्मीनान से खड़ा भी नहीं हुआ था कि एक पड़ोसी का फोन आ गया. अचानक फोन आने से सलीम को शंका हुई कि दोनों के बीच फिर से लड़ाई शुरू हो गई होगी? जैसे ही उधर से रूहकंपा देने वाली आवाज आई, वैसे ही सलीम ने बिना किसी को बताए घर की तरफ दौड़ लगा दी.

जब वह घर पर पहुंचा तो उस के घर के चारों तरफ मजमा सा लगा था. भीड़ देख कर सलीम को पूरा यकीन हो गया था कि कोई बड़ी बात हो गई है. करीब पहुंच कर देखा तो उस की तीसरी बीवी शबनम पूरी तरह आग में जली एक तरफ पड़ी थी और चारों ओर देखने वालों की भीड़ लगी थी, मामले की गंभीरता की गवाही दे रही थी. जैसेतैसे शबनम को हमीदिया अस्पताल में भरती कराया गया. डाक्टरों ने देखते ही हाथ खडे़ कर लिए. क्योंकि उन्हें मालूम था कि शबनम इस दुनिया में बमुश्किल एकदो दिनों की मेहमान है. सलीम ने डाक्टर के सामने अपनी बीवी को बचाने की गुहार लगाई. वह किसी भी कीमत पर शबनम को खोना नहीं चाहता था. डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद शबनम ने दम तोड़ दिया. पता चला कि 4 जनवरी, 2018 को जब आयशा अपनी मां के साथ सलीम के पहले घर पर आ धमकी तो

उस की बीवी शबनम से बहस होने लगी थी. जिसे बाद में सलीम ने आ कर शांत करा दिया था. उस के बाद हुआ ये कि एक बार फिर से दोनों सौतनों में तलाक को ले कर बहस शुरू हो गई थी. उस समय शबनम की बेटी चूल्हे पर खाना बना रही थी. बात अचानक से इतनी बढ़ गई कि आयशा और उस की मां ने मिल कर शबनम को धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया, जिस वजह से उस के सिर और हाथ में चोट लग गई. शबनम इस के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थी कि वह अपने शौहर को तलाक दे. उस ने आयशा से साफ कह दिया था कि जब मैं ने अभी तक सलीम की पहली बीवी के बच्चों को एक मां की तरह पालापोसा है, तो अब तलाक ले कर कहां जाऊंगी.

इस बात को सुन कर आयशा को तैश आ गया. उस ने कहा कि तुम जहन्नुम में जाओ या कहीं और, मुझे इस से मतलब नहीं है. लेकिन तुम्हें सलीम से तलाक लेना ही पड़ेगा. उन्होंने जब देखा कि शबनम अपने इरादे पर अटल है तो आयशा झगड़ा करने पर उतारू हो गई. इसी दौरान वसीमा बी ने अपनी बेटी आयशा से कहा कि देखती क्या है इस करमजली के ऊपर केरोसीन डाल कर आग लगा दे. यह सुन कर आयशा ने पास ही रखा केरोसीन का गैलन उठाया और जमीन पर गिरी पड़ी शबनम पर उस की बेटी के सामने ही डाल कर जलती हुई माचिस की तीली उस की तरफ उछाल दी.

एक छोटी सी चिंगारी शबनम पर पड़ते ही आग का गोला बन गई. गुस्से में आयशा ने इतना बड़ा कदम तो उठा लिया, लेकिन बाद में पुलिस केस होने की बात सोच कर वह डर गई. आयशा और उस की मां ने सलीम के साथ मिल कर शबनम को हमीदिया अस्पताल में भरती कराया और शबनम से बोलीं कि तुम पुलिस को इस की गवाही मत देना. हम लोग तुम्हारा इलाज करा देंगे. जिस से तुम पहले की तरह ठीक हो जाओगी.पहले तो शबनम को उन की बातों पर भरोसा हो गया. लेकिन जब अपनी हालात देखी तो उसे अपने मासूम बच्चों की फिक्र सताने लगी. जिस से वह परेशान हो गई. उस ने बाद में एसआई संतराम खन्ना को पूरी सच्चाई बता दी. इस के साथ शबनम ने मजिस्ट्रैट के सामने भी मौत से जद्दोजहद करते हुए पूरी घटना के बारे में जानकारी दे दी.

निशातपुरा पुलिस ने मौके का मुआयना कर के आग लगाने के सबूत इकट्ठे कर लिए. आयशा और उस की मां पर भादंवि की धारा 307 और 34 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. शबनम की सौतन आयशा जल्दी ही पुलिस के हत्थे चढ़ गई. उस की शातिर मां वसीमा बी पुलिस को चकमा देने में कामयाब रही. पुलिस ने वसीमा बी की धरपकड़ के लिए उस के घर पर दबिश दी. लेकिन पुलिस टीम को खाली हाथ लौटना पड़ा. वसीमा बी की तलाश में पुलिस ने कई जगह छापेमारी की, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चल सका.

इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

गोलियां खिलाकर किया बलात्कार, फिर निर्वस्त्र कर फेंका शव

बैंक औफिसर नव्या के साथ बलात्कार के बाद उस की हत्या की गई थी. हत्यारे तक पहुंचना पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ था. लेकिन इंसपेक्टर राघव अपने प्रयासों से उस तक पहुंच ही गए.

हाईवे किनारे की अकसर सुनसान रहने वाली वह जगह आज सुबह लोगों और मीडियाकर्मियों से भरी थी.  पेड़ों के बीच झाडि़यों से एक लड़की का निर्वस्त्र शव बरामद हुआ था, जो खरोंचों से भरा था. आशंका थी कि बलात्कार के बाद उस की हत्या की होगी. मृतका के पास मिले कागजातों से पता चला कि वह शव असिस्टेंट बैंक मैनेजर नव्या का था. उस की कार भी वहां से कुछ दूर खड़ी मिली. पुलिस वाले मुस्तैदी से अपने काम में जुटे थे. तभी जीप रुकी और एसआई राघव उतरे.

‘‘लाश को सब से पहले किस ने देखा था?’’ राघव ने कांस्टेबल से पूछा. ‘‘इस आदिवासी लड़की ने सर.’’ कांस्टेबल एक दुबलीपतली लड़की की ओर इशारा कर के बोला, ‘‘ये खाना बनाने के लिए यहां से सूखी लकडि़यां ले जाती है.’’

‘‘हुम्म.’’ राघव ने उस लड़की पर नजर डालते हुए अगला सवाल किया, ‘‘और मृतका के घर वाले…’’
‘‘ये हैं सर.’’ कांस्टेबल की उंगली घटनास्थल से थोड़ा हट के खड़े कुछ लोगों की ओर घूम गई. राघव उन के पास गए. एक से पूछा, ‘‘आप का मरने वाली से रिश्ता?’’
‘‘पति हूं उस का.’’ उस ने शून्य में देखते हुए जवाब दिया. ‘‘नाम?’’ ‘‘मुकुल.’’

‘‘और ये लोग…’’ राघव ने उस के साथ खड़े लोगों के बारे में जानना चाहा.
‘‘यह मेरा छोटा भाई प्रताप और ये मेरे पापा.’’ मुकुल ने वहां खडे़ नौजवान और बुजुर्ग से राघव का परिचय कराया. राघव गौर से मुकुल का चेहरा देख रहे थे. उस के चेहरे पर अपनी बीवी की मौत का कोई दुख दिखाई नहीं दे रहा था. उसी समय कुछ पुरुष और महिलाएं रोते हुए वहां पहुंचे. पुलिस उन को घेरे के अंदर जाने से रोकने लगी.

‘‘साहब, मैं इस का पिता हूं.’’ उन में से एक ने किसी तरह कहा.
‘‘हम यहां कुछ जरूरी काम कर रहे हैं.’’ एक कांस्टेबल ने उसे समझाने की गरज से कहा, ‘‘थोड़ी देर में लाश आप को हैंडओवर कर देंगे.’’ एक औरत की स्थिति देख राघव ने अंदाजा लगा लिया कि वह मृतका की मां होगी. लाश का पंचनामा कर उन्होंने उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. भीड़ छंटने लगी थी. शाम को राघव मुकुल के घर पूछताछ के लिए पहुंचे, वो घर पर अकेला मिला. उन्होंने उस से सवाल किया, ‘‘आप को अपनी पत्नी की मौत के बारे में किस से पता चला और आप उस समय कहां थे?’’

‘‘मुझे किसी सिपाही ने फोन किया था लाश मिलने के बारे में…’’ वह सिर झुकाएझुकाए बोला, ‘‘मैं यहीं पर था.’’ ‘‘आप ने उसे आखिरी बार कब देखा?’’ उन्होंने अगला प्रश्न किया.
‘‘जब कल सुबह वो औफिस के लिए निकली थी.’’
‘‘उस के बाद बात नहीं हुई?’’
‘‘नहीं, उस को कौन सा मुझ से बात करना पसंद था.’’ मुकुल ने लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘वो औफिसर हो गई थी,

अपने बड़ेबड़े ओहदे वाले परिचितों से उस का ज्यादा संपर्क रहता था.’’ राघव समझ गए कि अहं के टकराव ने रिश्तों को तोड़ दिया है. अपनी बात कहतेकहते मुकुल रो पड़ा. उस ने अपनी जो पारिवारिक कहानी बताई, उस के अनुसार वह किराना स्टोर चलाता था. ज्यादा पढ़ालिखा न होने के कारण खुद तो
कभी नौकरी की तैयारी नहीं कर सका, लेकिन अपनी जिंदगी में ग्र्रैजुएट नव्या के आने के बाद उस को परीक्षाएं देने के लिए प्रेरित जरूर किया.

पति की कोशिश रंग लाई पर नव्या ने अपना अलग रंग दिखाया नव्या भी पढ़ना चाहती थी लेकिन घर की खराब आर्थिक स्थिति ने उस के सपने चुरा लिए थे. वह खुशीखुशी मुकुल की बात मान गई. मुकुल ने उस की पढ़ाई का सारा खर्च उठाने से ले कर हर तरह का सहयोग किया, जिस का सुखद परिणाम भी सामने आया. नव्या ने कुछ ही प्रयासों में बैंक पीओ का इम्तिहान पास कर लिया.

मुकुल की खुशी का ठिकाना नहीं था लेकिन उस के अरमानों को किसी की नजर लग गई. नव्या का अफेयर अपने एक युवा अधिकारी विमल से चलने लगा. पति अब उसे गंवार और बेकार लगने लगा था. घर में झगड़े शुरू हो गए लेकिन मुकुल उसे तलाक देने में अपनी हार देख रहा था. इसलिए वह उसे तरहतरह से समझाने में लगा रहा. नव्या के घर वाले भी पशोपेश में पड़ गए थे. एक तरफ मुकुल जैसा मध्यवर्गीय लेकिन सुलझा हुआ दामाद, दूसरी ओर विमल की शानोशौकत.

राघव वहां से चल पड़े. अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद नव्या का शव उस के मायके वालों को सौंप दिया गया. मुकेश ने उस पर कोई दावा नहीं जताया था और न ही दाहसंस्कार में उस के परिवार से कोई शामिल हुआ. नव्या के मांबाप लगातार मुकुल को खूनी बता रहे थे. लेकिन राघव इस केस में आगे कुछ करने से पहले पोस्टमार्टम रिपोर्ट देख लेना चाहते थे. उन्होंने केस से जुड़े सभी लोगों को शहर छोड़ कर कहीं नहीं जाने को कहा और पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार करने लगे. जल्द ही वह भी आ गई. नव्या के साथ मौत से पहले सामूहिक बलात्कार की पुष्टि हुई. लेकिन आश्चर्य की बात ये थी कि मौत का कारण ज्यादा नींद की गोलियां लेना बताया गया था.

राघव का दिमाग चकराने लगा कि भला ये कौन से नए अपराधी आ गए जो जंगल में में जा कर बलात्कार करें और फिर नींद की गोली दे कर हत्या. मारना ही था तो गला दबा सकते थे, चाकू का इस्तेमाल कर सकते थे. वैसे भी लाश की हालत से स्पष्ट था कि दोषियों ने हैवानियत की सभी सीमाएं पार कर डाली थीं और अगर नव्या ने बलात्कार के कारण दुखी हो कर आत्महत्या की थी तो उस सुनसान इलाके में उस के पास नींद की गोलियां आईं कैसे?

उस का तो बैग तक उस की कार में ही रह गया था. इस के अलावा किसी दवा का कोई खाली रैपर आदि भी वहां से नहीं मिला था. इसी उधेड़बुन में वे नव्या के मायके पहुंचे. नव्या के मांबाप फिर मुकुल का नाम ले कर शोर मचाने लगे. राघव ने उन को समझाया. ‘‘देखिए हम मुलजिम को जरूर पकड़ेंगे लेकिन जल्दबाजी किसी निर्दोष को फंसा सकती है, इसलिए हमारा सहयोग कीजिए.’’ नव्या के पिता ये सुन कर शांत हुए. उन्होंने हर तरह से सहयोग देने की बात कही. राघव ने पूछा, ‘‘नव्या का मुकुल के अलावा किसी से कोई विवाद था?’’

‘‘नहीं इंसपेक्टर साहब.’’ नव्या के पिता बोले, ‘‘उस की तो सब से दोस्ती थी, बैंक में भी सब उस से खुश रहते थे.’’ ‘‘और विमल से उस का क्या रिश्ता था?’’ राघव ने उन के चेहरे पर गौर से देखते हुए सवाल किया. वे इस पर थोड़ा अचकचा गए.
‘‘व…वो…वो…दोस्ती थी उस से भी… मुकुल बेकार में शक किया करता था उन के संबंध पर.’’ राघव ने इस समय इस से ज्यादा कुछ पूछना ठीक नहीं समझा. वो वहां से निकल गए. अगले कुछ दिन इधरउधर
हाथपैर मारते बीते. उन्होंने नव्या के बैंक जा कर उस के बारे में जानकारियां जुटाईं. सब ने साधारण बातें ही बताई.

कोई नव्या और विमल के रिश्तों के बारे में कुछ कहने को तैयार नहीं था. राघव ने नव्या के उस शाम बैंक से निकलते समय की सीसीटीवी फुटेज निकलवा कर देखी. वह अकेली ही अपनी कार में बैठती दिख रही थी. राघव की अन्य कर्मचारियों से तो बात हुई, लेकिन विमल से मुलाकात नहीं हो सकी, क्योंकि वह नव्या की मौत के बाद से ही छुट्टी पर चला गया था. उन्होंने उस का पता निकलवाया और अपनी टीम के साथ उस के घर जा धमके. वह उन को देख कहने लगा,

‘‘इंसपेक्टर साहब, मैं खुद बहुत दुखी हूं नव्या के जाने से, पागल जैसा मन हो रहा मेरा, मुझे परेशान मत करिए.’’ विमल की हकीकत क्या थी? ‘‘हम भी आप के दुख का ही निवारण करने की कोशिश में हैं विमल बाबू.’’ राघव ने अपना काला चश्मा उतारते हुए कहा, ‘‘आप भी मदद करिए, हम दोषियों को जल्द से जल्द सलाखों के पीछे डालना चाहते हैं.’’

‘‘पूछिए, क्या जानना चाहते हैं आप.’’ वो सोफे पर निढाल होता बोला. सवालजवाब का दौर चलने लगा. विमल ने बताया कि उस ने उस दिन नव्या को औफिस के बाद अपने घर बुलाया था. लेकिन उस ने मना कर दिया कि पति से झगड़ा और बढ़ जाएगा. वह अपनी कार से निकल गई थी. उस ने अगले दिन किसी पारिवारिक कारण से औफिस न आने की बात की थी. हां, विमल ने भी ये नहीं स्वीकारा कि नव्या से उस की बहुत अच्छी दोस्ती से ज्यादा कोई नाता था.

‘‘ठीक है, विमल बाबू.’’ राघव ने उठते हुए कहा, ‘‘आप का धन्यवाद. फिर जरूरत होगी तो याद करेंगे… बस आप ये शहर छोड़ कर कहीं मत जाइएगा.’’
‘‘जी जरूर.’’राघव की जीप वहां से चल दी. अब तक इस केस में कुछ भी ऐसा हाथ नहीं लग पाया था जिस से तसवीर साफ हो. उन्होंने अपने मुखबिरों के माध्यम से भी पता लगाना चाहा कि नव्या की हत्या के लिए क्या किसी लोकल गुंडे ने सुपारी ली थी. लेकिन ऐसा भी कुछ मालूम नहीं हो सका. किसी गैंग की भी ऐसी कोई सुपारी लेने की बात सामने नहीं आ पा रही थी. शाम को राघव घर जाने के लिए निकलने ही वाले थे कि सिपाही ने एक लिफाफा ला कर दिया और बोला, ‘‘साब, ये

अभी आया डाक से… लेकिन भेजने वाले का कोई नाम, पता नहीं लिखा.’’ राघव ने लिफाफे को खोला. उस में एक सीडी और चिट्ठी थी. उन्होंने उसे पढ़ना शुरू किया. उस में लिखा था, ‘इंसपेक्टर साहब, आप को नव्या के बैंक में जो सीसीटीवी फुटेज दिखाई गई, वो पूरी नहीं थी. विमल ने उस में पहले ही एडिटिंग करा दी थी. नव्या की मौत वाली शाम विमल उस के साथ उस की ही कार में निकला था. आप को इस बात
का सबूत इस सीडी में मिल जाएगा.’’

चिट्ठी पढ़ते ही राघव की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने जल्दी से उसे अपने लेपटौप पर लगाया. वाकई वीडियो में विमल उस शाम नव्या की कार में अंदर बैठता दिख रहा था. राघव को अपना काम काफी हद बनता लगा. वे सिपाहियों के साथ सीधे विमल के घर पहुंचे. देखा कि वह कहीं जाने के लिए पैकिंग कर रहा था. राघव पुलिसिया अंदाज में उस से बोले, ‘‘कहां चले विमल बाबू? आप को शहर से बाहर जाने को मना किया था न?’’ वो उन्हें वहां पा कर घबरा गया और हकलाने लगा.

‘‘म…मैं क…कहीं नहीं जा रहा. बस सामान सही कर रहा था.’’ ‘‘इस की जरूरत अब नहीं पड़ेगी.’’ राघव ने फिर कहा, ‘‘चल थाने, वहीं सब सामान मिलेगा तुझे.’’ विमल कसमसाता रहा, खुद को निर्दोष बताता रहा लेकिन सिपाहियों ने उसे जीप में डाल लिया. लौकअप में राघव के थप्पड़ विमल को चीखने पर मजबूर कर रहे थे. वह किसी तरह बोला, ‘‘सर, मैं ने कुछ नहीं किया, हां मैं उस के साथ निकला जरूर था लेकिन रास्ते में उतर गया था, वो आगे चली गई थी.’’

‘‘तो हम से ये बात छिपाई क्यों?’’ राघव ने उसे कड़कदार 2 थप्पड़ और लगाते हुए पूछा. ‘‘म्म्म मैं घब…घबरा गया था साहब कि कहीं मेरा नाम शक के दायरे में न आ जाए.’’ राघव ने उस के सैंपल लैब में भिजवा दिए जिस से नव्या के गुप्तांगों और कपड़ों पर मिले वीर्य से उस का मिलान करा के जांच की जा सके. रिपोर्ट तीसरे दिन ही आ गई. सचमुच नव्या के जिस्म से जितने लोगों के वीर्य मिले थे, उन में एक विमल से मैच कर गया. राघव ने मारमार के विमल की देह तोड़ दी. उन्होंने उस से पूछा, ‘‘बोल, बोल तूने नव्या को क्यों मारा?’’

विमल ने खोला भेद, लेकिन अधूरा ‘‘साब मैं ने कुछ नहीं किया.’’ वो जोरजोर से रोते हुए बोला, ‘‘हां मैं ने कार में उस के साथ जिस्मानी संबंध जरूर बनाए थे लेकिन उस को मारा नहीं… मैं सैक्स कर के उतर गया था उस की गाड़ी से.’’ ‘‘स्साला.’’ राघव का गुस्सा बढ़ता जा रह था. वे उस पर गरजे, ‘‘रुकरुक के बातें बता रहा है. जैसेजैसे भेद खुलता जा रहा है वैसेवैसे रंग बदल रहा है. तू मुझ से करेगा होशियारी?’’
उन्होंने फिर से मुक्का ताना लेकिन विमल बेहोश होने लगा था. वे उसे वहीं छोड़ कर बाहर निकले.
‘‘इस को तब तक कुरसी से मत खोलना जब तक ये पूरी बात न बता दे.’’ शर्ट पहनतेपहनते उन्होंने सिपाही को आदेश दिया. वहां नव्या के मायके वाले भी आए हुए थे. विमल के बारे में जान कर उन्हें मुकुल पर लगाए अपने आरोपों पर बहुत पछतावा हो रहा था.

‘‘इस ने अपना जुर्म कबूल किया क्या इंसपेक्टर साहब?’’ नव्या के पिता ने जानना चाहा. ‘‘नहीं, अभी तक अपनी बेगुनाही का रोना रो रहा है. चालू चीज लगता है ये.’’ राघव ने लौकअप की ओर देख के उत्तर
दिया. नव्या के मांबाप सीधे मुकुल के घर पहुंचे. ‘‘बेटा, हम को माफ कर देना, हम ने आप पर शक किया.’’ नव्या की मां उस से बोली. मुकुल ने धीरे से मुसकरा के सिर हिलाया. तब तक उस की मां चायपानी ले आई थी. कुछ दिन बीत गए. राघव ने विमल से सच जानने के लिए पूरा जोर लगा रखा था लेकिन वह यही दोहराता रहता कि वो निर्दोष है. उस के वकील के आ जाने से अब उस पर सख्ती करना भी मुश्किल लग रहा था.

एक रोज राघव थाने में बैठे मोबाइल पर यों ही दोस्तों की पोस्ट्स देख रहे थे कि तभी उन की साली का फोन आया. ‘‘जीजू, मैं ने जिस लड़के के बारे में बताया था आप को, उस के साथ मेरी वीडियो सेल्फी देखी आप ने? आज ही अपलोड की मैं ने.’’ राघव झल्लाए, लेकिन उस से जान छुड़ाने के लिए उस का प्रोफाइल पेज खोला. जैसे ही उन्होंने उस की सेल्फी देखी. उस की बैकग्राउंड पर नजर जाते ही मानो वे उछल पड़े.
यहां मुकुल के घर नए रिश्ते वाले आए थे. लड़की का पिता बोल रहा था.

‘‘चलिए, जो हुआ सो हुआ आप के साथ. अब एक नई जिंदगी शुरू कीजिए.’’ तभी एक मजबूत आवाज गूंजी ‘जिंदगी भी क्याक्या दिखा देती है भाईसाहब.’ सब ने आवाज की दिशा में देखा. इंसपेक्टर राघव मुसकराते हुए खडे़ थे. अचानक उन्हें यहां पा कर सभी चौंक उठे. मुकुल ने पूछा. ‘‘विमल ने अपना जुर्म कबूल लिया क्या सर?’’

‘‘उसी सिलसिले में बात करने आया हूं.’’ राघव ने मुसकराते हुए कहा. मुकुल के पिता ने एक प्लेट उन की ओर बढ़ाई, ‘‘जी जरूर, लीजिए मुंह मीठा कीजिए आप भी.’’ ‘‘धन्यवाद,’’ राघव ने विनम्रता से मना कर दिया और बोले. ‘‘देखिए मुकुलजी, मैं ने बहुत कोशिश की लेकिन विमल ने अपना जुर्म कबूल नहीं किया.’’
‘‘तो अब क्या होगा?’’ मुकुल के चेहरे पर दुविधा के भाव साफ दिखने लगे. राघव आगे बोले, ‘‘होगा वही जो होना है.

मैं ने अभीअभी अपनी साली की भेजी हुई एक वीडियो सेल्फी देखी, संयोगवश ये उसी दिन की है, जिस दिन नव्या का खून हुआ था.’’ ‘‘तो? उस से इस केस का क्या लेना?’’ इस बार मुकुल की मां बोल पड़ी.
‘‘जी वही बता रहा हूं.’’ राघव ने कहा, ‘‘वो सेल्फी उस ने अपने पुरुष दोस्त के साथ मल्लिका स्टोर के सामने खड़ी हो कर बनाई थी और मजे की बात ये कि पीछे का एक बेहद जरूरी दृश्य उस में अनायास ही कैद हो गया.’’

‘‘कैसा दृश्य?’’ मुकुल ने पूछा. ‘‘सुनिए तो…’’ राघव ने फिर कहा, ‘‘मेरी तब तक की पूरी जांच के अनुसार ये समय वही था जब नव्या औफिस से घर लौट रही थी और विमल उस की गाड़ी से उतर चुका था. एक आदमी ने मल्लिका स्टोर के सामने नव्या की कार रुकवाई और उस में बैठ गया. कहने की जरूरत नहीं कि उसी आदमी का संग नव्या के लिए कातिल साबित हुआ.’’

‘‘कौन था वो आदमी?’’ मुकुल को देखने आए लड़की के पिता ने उत्सुकता से पूछा. मिल गया हत्यारा,
जिस ने बलात्कार भी कराया ‘‘वो आदमी…’’ राघव के इतना कहतेकहते मुकुल बिजली की तेजी से उठा और दरवाजे की ओर भागा. राघव चिल्लाए, ‘‘पकड़ो इस को जल्दी.’’ सिपाहियों ने मुकुल को दबोच लिया. वो छटपटाने लगा. सब लोग हैरान थे. मुकुल खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था लेकिन राघव के जोरदार पुलिसिया थप्पड़ ने उसे दिन में तारे दिखा दिए. वह सोफे पर गिर पड़ा और सिसकते हुए कहने लगा, ‘‘हां, मैं ने उस शाम मोटरसाइकिल से नव्या का पीछा किया क्योंकि वो अगले दिन वकील को बुलाकर मुझ पर तलाक के लिए दबाव डलवाने वाली थी. इसी कारण उस ने औफिस से भी छुट्टी ले ली थी.’’

सभी हैरानी से उस की बातें सुन रहे थे. वो कहता गया, ‘‘हालांकि मैं ने सोचा था कि एक बार फिर प्यार से उसे समझाऊंगा, लेकिन जब मैं ने उसे विमल के साथ संबंध बनाते देख लिया तो मेरा शक यकीन में बदल गया. मैं ने उस से पहले ही मल्लिका स्टोर के सामने पहुंच उस की कार रुकवाई और कहा कि मेरी बाइक खराब हो गई है. उस ने अनमने भाव से मुझे अंदर बिठाया. जब वो कुछ सामान लेने उतरी तो इसी बीच मैं ने अपने साथ लाई नींद की गोलियां उस की कोल्डड्रिंक की बोतल में मिला दीं, जो उस ने विमल के साथ आधी ही पी थी.’’

‘‘लेकिन उस के साथ सामूहिक बलात्कार किन से कराया तुम ने?’’ राघव को अभी तक इस सवाल का उत्तर नहीं मिल सका था. मुकुल बोला, ‘‘मैं अपने घरेलू तनाव में डूबा एक दिन उसी जंगल में बैठा था. मैं ने देखा कि कुछ नशेड़ी वहां गप्पें मारते हैं, वे रोज वहां उसी जगह आते. मैं ने उस शाम नव्या के बेहोश जिस्म को वहीं रख दिया और उन का इंतजार करने लगा. जब वे वहां आए तो मैं ने पत्थर मार के उन का ध्यान नव्या की ओर दिला दिया, वे नशे की हालत में उस पर टूट पडे़…’’

‘‘और तुम ने सोचा कि ये मामला बलात्कार और हत्या का मान लिया जाएगा.’’ राघव ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा, ‘‘तभी मैं कहूं कि ऐसा हत्या का केस मैं ने पहले कभी कैसे नहीं देखा. वे नशेड़ी बलात्कार कर वहां से भाग गए और दुबारा नहीं लौटे. वैसे हम उन को भी ढूंढ निकालेंगे. मानता हूं कि नव्या ने तुम्हारे साथ गलत किया लेकिन हत्या तो हत्या है. तुम्हें सजा मिलेगी ही.’’ राघव के चेहरे पर विश्वास साफ झलक रहा था. वे मुकुल को गिरफ्तार कर वहां से चल पड़े.

इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

पहली पत्नी ने क्यों काट डाला पति का प्राइवेट पार्ट

सच्चाई क्या थी, कोई नहीं जानता. जो जानता था वह दुनिया में रहा नहीं. हां, इतना जरूर कहा जा सकता है कि सुखवंत कौर ने जो किया, जिन स्थितियों में भी किया, वह गलत था. उस ने अपना घरसंसार अपने हाथों ऐसा उजाड़ा कि… 

सुखवंत कौर पिछले कई दिनों से इस पशोपेश में थी कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि उस का पति आजाद सिंह परेशान सा रहता है. उस के चेहरे की मुसकराहट भी जैसे कहीं उड़ गई थी. बातबात पर खीझ उठना, किसी बात का ठीक से जवाब देना जैसे अब आजाद सिंह की आदत बन गई थी. पहले औफिस से लौटने के बाद वह घर में हंसीमजाक किया करता था और बच्चों के साथ घंटों खेला करता था. बच्चों से उन के स्कूल और पढ़ाई के बारे में भी बात करता था. लेकिन अब ऐसा लग रहा था, जैसे उसे किसी से कोई वास्ता ही नहीं रह गया हो. औफिस से लौटने के बाद बिना किसी से कोई बात किए अपने कमरे में चले जाना और घंटों फोन पर किसी से बातें करना, बस यही उस की आदत बन गई थी.

सुखवंत कौर ने कई बार पूछा भी था कि ऐसी क्या बात हो गई है, जिस वजह से तुम हर समय परेशान और उखड़े से रहते हो? इस पर आजाद ने बड़े रूखेपन से जवाब दिया, ‘‘कुछ नहीं हुआ है, तुम अपने काम से काम रखो और इन फालतू बातों को छोड़ कर घरगृहस्थी पर ध्यान दो.’’ ‘‘क्यों जी, क्या हम इस घर के मेंबर नहीं हैं. मैं तो आप की पत्नी हूं, आप की परेशानी को जानना मेरा फर्ज है. अगर कोई ऐसीवैसी बात या कोई समस्या है तो मुझे बताओ, हम सब मिल कर उस का समाधान निकालेंगे.’’ सुखवंत कौर बोली.

 ‘‘मैं ने कहा न, कोई बात नहीं है. बस तुम मुझे अकेला छोड़ दो.’’ आजाद ने पत्नी को डांटते हुए कहा तो सुखवंत कौर खामोश हो कर घर के कामों में जुट गई. लेकिन वह रोजरोज आजाद से इस विषय में जरूर पूछ लिया करती थी. यह अलग बात है कि आजाद ने उसे कभी कोई बात नहीं बताई, हमेशा वह उसे डांट कर चुप करा देता था. आजाद के स्वभाव में आए इस बदलाव के कारण पतिपत्नी के बीच जैसे दीवार सी खड़ी होने लगी थी. नौबत यहां तक आ पहुंची कि पिछले एक महीने से आजाद ने पत्नी और बच्चों से बात तक करनी बंद कर दी थी. पति के इस रवैए से सुखवंत कौर तनाव में रहने लगी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है.

इस हालात में कुलवंत कौर का स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो गया था. जिस घर में पहले सुखशांति थी, अब वहां क्लेश ने डेरा डाल लिया. जो सुखवंत कौर पहले पति की हर बात मानती थी, अब वही पति से जबान लड़ाने लगी. उस के मन में अब पति के लिए पहले जैसा प्यार नहीं रहा था. बल्कि धीरेधीरे अब वह आजाद सिंह पर हावी होने लगी. आजाद सिंह जालंधर के एक बैंक में काम करता था. वह एक दिन जब घर से ड्यूटी के लिए निकलने लगा तो सुखवंत कौर ने चिल्लाते हुए कहा, ‘‘शाम को टाइम से घर जाना, मैं कोई बहाना नहीं सुनूंगी. याद रखना कि अगर शाम को टाइम से नहीं लौटे तो तुम्हारा वो हाल करूंगी कि जिंदगी भर याद करोगे.’’

सुखवंत कौर का पारा जैसे सातवें आसमान पर था. वह बिना कुछ सोचे बोलती जा रही थी. हालांकि उस समय उस का 12 वर्षीय देवर करन तथा एक पड़ोसन भी वहीं बैठी हुई थी. लेकिन सुखवंत को किसी की परवाह नहीं थी. वह अपनी ही धुन में बोलती जा रही थी. किसी के सामने क्या बात कहनी है क्या नहीं, उसे इस से कोई मतलब नहीं था. वह कह रही थी, ‘‘आखिर मैं पत्नी हूं तुम्हारी. लेकिन तुम मेरी तरफ कोई ध्यान नहीं देते. तुम्हें तो बस अपने काम की ही पड़ी रहती है. अब मैं यह उपेक्षा बरदाश्त नहीं करूंगी. तुम्हें मेरे लिए भी टाइम निकालना पड़ेगा.’’

पत्नी की बातें सुन कर आजाद को भी गुस्सा आ गया. उस ने डांटते हुए कहा, ‘‘तुम जिस प्यारप्यार का गीत चौबीसों घंटे अलापती रहती हो, वह प्यार नहीं तुम्हारी हवस है. तुम 40 साल की हो चुकी हो, 2 बच्चे भी. तुम चाहती हो कि ऐसे में मैं बच्चों के भविष्य को भूल कर हर समय तुम्हारे साथ बिस्तर में घुसा रहूं? अरे कुछ तो शरम करो, बच्चे और पड़ोसी तुम्हारी हरकतें सुनेंगे तो क्या सोचेंगे.’’ ‘‘कोई कुछ भी सोचे, मुझे किसी से कोई मतलब नहीं है और फिर तुम मेरे पति हो कोई गैर नहीं.’’ वह बोली.

‘‘देखो सुखवंत, हर काम का एक समय होता है. तुम अपने आप को घर के कामों और बच्चों के भविष्य के बारे में लगाओ. यह बेकार की बातें सोचना बंद कर दो. मुझे बैंक के लिए देर हो रही है, मैं चला.’’ कह कर आजाद घर से निकल गया. पति के जाने पर सुखवंत गुस्से से पांव पटकती रह गई. आजाद सिंह जालंधर के बाहरी इलाके रामामंडी के रहने वाले कृपाल सिंह का बेटा था. उस के पिता भारतीय रेलवे में नौकरी करते थे. उसी दौरान उन्होंने रामामंडी के ही जोगिंदर नगर में एक प्लौट खरीद कर बड़ा सा मकान बना लिया था. सन 2011 में वह सरकारी नौकरी से रिटायर हो गए थे

कृपाल सिंह के परिवार में 3 बेटे और 3 बेटियां थीं. जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए, उन्होंने उन की शादी कर दी. आजाद की शादी उन्होंने जनवरी, 2005 में सुखवंत कौर के साथ कर दी थी. वह प्राइवेट यूनिकोड बैंक की जालंधर शाखा में नौकरी करता था. पिछले 12 सालों से आजाद अपनी पत्नी के साथ न्यू दशमेशनगर में रहता था. क्योंकि सुखवंत की अपने सासससुर से नहीं बनती थी, इसलिए वह उन से अलग रहती थी. सब कुछ ठीक था, उन के 2 बच्चे भी हो गए थे जो अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं. आजाद सिंह का एक ही सपना था कि बच्चों को उच्चशिक्षा दिलाए ताकि उन्हें अच्छी सरकारी नौकरी मिल जाए. इस के लिए वह अधिक से अधिक पैसे कमाना चाहता था और इस के लिए वह 2-3 घंटे ओवरटाइम करता था

 बस यहीं से झगड़े की शुरुआत हो गई. सुखवंत चाहती थी कि उस का पति समय से घर कर उस के साथ रहे. इसी बात को ले कर वह पति से झगड़ती रहती थी. बड़ेबुजुर्गों और रिश्तेदारों ने भी सुखवंत को कई बार समझाया पर उस ने किसी की बातों पर ध्यान नहीं दिया. बैंक में आजाद के साथ महिलाएं भी काम करती थीं. काम के सिलसिले में आजाद के साथ काम करने वाली महिलाओं से भी बातचीत होती रहती थी. वैसे भी औफिस में महिलाएं हों या पुरुष, काम के लिए एकदूसरे से बातचीत करते ही हैं. एक दिन अचानक सुखवंत कौर आजाद के बैंक पहुंच गई. उस समय आजाद किसी महिला सहकर्मी के साथ किसी फाइल के बारे में विचारविमर्श कर रहा था.

पति को उस महिला के साथ देख कर सुखवंत के तनबदन में आग लग गई. उस ने बिना किसी से कुछ पूछे बैंक में ऐसा हंगामा खड़ा कर दिया कि कर्मचारी देखते ही रह गए. किसी तरह बैंक मैनेजर अन्य कर्मचारियों ने उसे समझाया तो वह घर लौट गई. बात यहीं समाप्त नहीं हुई. आजाद जब घर लौटा तो सुखवंत ने चिल्लाते हुए पूरा गांव ही इकट्ठा कर लिया. इस से आजाद और उस के परिवार की बड़ी जगहंसाई हुई थी. सुखवंत के दिमाग में इस बात का शक पैदा हो गया था कि पति उसे टाइम देने के बजाय बाहर की महिलाओं के साथ गुलछर्रे उड़ाता है. इस के बाद यह रोज का ही सिलसिला बन गया था. आजाद सिंह बैंक जाने के लिए जैसे ही घर से निकलने को होता, सुखवंत की बकबक शुरू हो जाती थी.

4-5 फरवरी, 2018 की बात है. उस दिन किसी वजह से आजाद सिंह समय पर बैंक नहीं पहुंचा था. वह घर पर ही था. उधर बैंक में किसी जरूरी फाइल की जरूरत पड़ गई. वह फाइल मिल नहीं रही थी. एक महिला सहकर्मी ने आजाद के वाट्सऐप नंबर पर फोन कर के फाइल के विषय में जानना चाहा तो अचानक कमरे में सुखवंत गईउस ने फोन पर महिला का फोटो देखा तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. जैसे ही आजाद कमरे में आया तो पत्नी ने हंगामा शुरू कर दिया. आजाद ने पत्नी को समझाने की कोशिश की, पर वह यही कहती रही कि जिस महिला ने यह फोन किया, उस से तुम्हारा जरूर चक्कर है

आज मैं ने देख लिया है तो पता चल गया. अब मैं समझी कि ओवरटाइम के बहाने तुम इसी औरत के साथ गुलछर्रे उड़ाते हो, पर अब मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. एक दिन आजाद सिंह ने एक बहुत बड़ी गलती यह कर दी कि पत्नी की गलतफहमी दूर करने और अपना पक्ष रखने के लिए वह उस महिला सहकर्मी को अपने साथ घर ले आया, जिस ने वाट्सऐप पर काल की थी. वह महिला सुखवंत को यह समझाने आई थी कि फोन करने की वजह बता सके. परंतु सुखवंत कौर ने उस महिला को बोलने तक का मौका नहीं दिया. वह बोली कि देखो अब तो यह औरतों को भी घर लाने लगा है. यह उसी के चक्कर में मुझ से प्यार नहीं करता. गांव के लोग यह तमाशा देख सोच में पड़ गए. वास्तविकता क्या थी, इस से किसी को कोई मतलब नहीं था. बहरहाल, कई घंटों के वाकयुद्ध के बाद बात खत्म हुई.

20 फरवरी, 2018 को सुबह 9 बजे की बात है. कृपाल सिंह को आजाद के एक पड़ोसी ने फोन पर सूचना दी कि खून से लथपथ आजाद सिंह जोहल अस्पताल जालंधर में भरती है. असमंजस की हालत में कृपाल सिंह ने यह सूचना तुरंत अपने दोनों बेटों और परिवार के अन्य सदस्यों को दे दी और खुद जोहल अस्पताल पहुंच गए. तब तक थाना रामामंडी की पुलिस चौकी के इंचार्ज एसआई रविंदर कुमार, एएसआई परमजीत सिंह, हवलदार दलजिंदर लाल, सुखप्रीत सिंह, कांस्टेबल अमनदीप सिंह और संदीप कुमार वहां पहुंच चुके थे. आजाद सिंह गंभीर रूप से घायल था और उस समय आईसीयू में वेंटीलेटर पर था. पुलिस द्वारा पड़ोसियों से की गई पूछताछ में पता चला कि बीती रात से ही आजाद के घर से पतिपत्नी के झगड़े की आवाजें रही थीं, फिर सुबह करीब 3 बजे आजाद के जोरजोर से चीखने की आवाज आई और उस के बाद खामोशी छा गई.

बह जब वे आजाद के घर की तरफ गए तो उस के घर के बाहर ताला लगा था. सुखवंत का भी कहीं कुछ पता नहीं था. इस के बाद मोहल्ले वालों ने मिल कर ताला तोड़ा. जब अंदर गए तो आजाद खून से लथपथ हालत में पड़ा था. वहां से उसे जोहल अस्पताल ले आए. इस के बाद उस के पिता कृपाल को भी खबर कर दी. पुलिस ने कृपाल सिंह से भी पूछताछ की. क्टरों के अनुसार, आजाद का गुप्तांग काट दिया गया था, जिस से उस के शरीर से भारी मात्रा में खून निकला था. आजाद की हालत इतनी गंभीर थी कि वह बयान तक देने की हालत में नहीं था. उस की पत्नी गायब थी, इसलिए सभी का शक उस की पत्नी पर ही जा रहा था. एएसआई परमजीत सिंह को अस्पताल में छोड़ कर थानाप्रभारी खुद पुलिस टीम के साथ सुखवंत की तलाश में निकल पड़े. वह जालंधर के बसअड्डे की तरफ जाती मिल गई. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

पुलिस चौकी में सुखवंत कौर से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने पति का यह हाल किया है. चौकीइंचार्ज रविंदर कुमार ने सुखवंत कौर को अदालत में पेश कर 2 दिन का रिमांड लिया. पुलिस को आशंका थी कि सुखवंत कौर के साथ इस वारदात में कोई और भी शामिल रहा होगा. सुखवंत कौर ने कबूला कि उस का पति आजाद उसे समय नहीं देता था. वह पति के साथ सिर्फ पर्सनल समय चाहती थी, मगर पति ने उसे इतनी भी छूट नहीं दी कि वह उस पर अपना अधिकार जता सके. क्योंकि पति ने अपना वक्त उस दूसरी महिला को देना शुरू कर दिया था जो महज 4 महीने पहले उस की जिंदगी में आई थी.

सुखवंत कौर के अनुसार उस का पति घर पर भी उस महिला से पूरापूरा दिन और रात को फोन पर बात वाट्सऐप चैट करता रहता था. इस के बाद तो उस ने हद ही कर दी. वह रात को भी बाहर रहने लगाएक दिन उस ने वाट्सऐप चैटिंग पढ़ी तो हैरान रह गई. जब नौबत हर चीज शेयर करने तक गई तो उस से रहा नहीं गया. पति से जब इस विषय पर बात करना चाहती तो वह मना कर के अलग सो जाता था. बच्चों के साथ भी कोई बातचीत नहीं करता था. एक दिन जब वह उसी महिला को घर साथ ले आया तो उसे बहुत गुस्सा आया. सुखवंत ने बताया कि इस के बाद वह डिप्रैशन में रहने लगी. जब 2 दिन पहले पति घर लेट आया तो बिना खाना खाए सोने लगा. उस ने 2 मिनट बात करने को कहा तो बोला कि दूसरे कमरे में जा कर सो जाओ. तब वह रात भर खूब रोई

इस के बाद उस ने ठान लिया कि जब पति उस का नहीं है तो वह उसे किसी और के लायक भी नहीं छोड़ेगी. वह घर में रखा सब्बल उठा लाई और सीधे सो रहे पति के सिर पर मार दिया. इस के बाद चापर से उन का गुप्तांग काट कर उसे फ्लश में बहा दिया. फिर वह घर का ताला बंद कर के चली गई. वह अपने मायके जा रही थी कि पुलिस के हत्थे चढ़ गई. अंत में जिंदगी और मौत से लड़ते हुए आजाद सिंह ने 25 फरवरी को दम तोड़ दिया. इस बारे में सिविल अस्पताल के मनोचिकित्सक डा. संजय ने बताया कि यह एक पर्शियल होमिसाइड का मामला है. आदमी को जिंदा भी रखो और सारी उम्र के लिए मार भी दो. इस केस को देखा जाए तो आरोपी काफी दिनों से डिप्रैशन में थी, क्योंकि इतना बड़ा कदम उठाना काफी हैरत की बात है. 

ऐसा काम कोई तभी कर सकता है, जब या तो वह उस व्यक्ति से बेहद नफरत करे या फिर उस से बेहद लगाव हो. यह घटना बिलकुल सुसाइड करने जैसी है, क्योंकि सुसाइड करते वक्त भी व्यक्ति को एक तरीके का इंपल्स आता है, जिस में व्यक्ति अपनी सुधबुध खो बैठता है और आपा खो कर जिंदगी खत्म कर लेता है.

पुलिस ने सुखवंत कौर की निशानदेही पर लोहे की रौड और चापड़ भी बरामद कर लिया. कागजी कदाररवाई पूरी होने और रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद सुखवंत को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

ढाई करोड़ के लिए भाई बना कातिल

सरदार अमरजीत की करोड़ों की दौलत हथियाने के लिए रोहित चोपड़ा और स्वर्ण सिंह ने ऐसा षडयंत्र रचा था कि अगर वे अपनी योजना में सफल हो जाते तो आज उन की जगह अमरजीत (मृतक) के बेटे सलाखों के पीछे होते.  

सुबह के नाश्ते पर आने की कोई बात ही नहीं थी. लेकिन दोपहर का खाना खाने से पहले ज्ञान कौर काफी देर तक अपने पति अमरजीत सिंह की राह देखती रहीं. धीरेधीरे 3 बज गया और अमरजीत सिंह घर नहीं आए तो उन्हें थोड़ी चिंता हुई. यह स्वभाविक भी था. वह सोचने लगीं, सरदारजी ने रात में आने की बात की थी, सुबह भी नहीं आए तो कोई बात नहीं थी. अब वह खाना खाने भी नहीं आए, जबकि वह खाना समय पर ही खाते थे. आज वह बिना बताए कहां चले गए? कहीं कोई जमीन तो देखने नहीं चले गए या फिर किसी जमीन के कागज बनवाने तो नहीं चले गए? काम में फंसे होने की वजह से बता नहीं पाए होंगे.

ज्ञान कौर ने 3-4 बार अमरजीत सिंह के मोबाइल पर फोन किया था, लेकिन संपर्क नहीं हो सका था. तरहतरह की बातें सोचते हुए ज्ञान कौर ने खाना खाया और आराम करने के लिए लेट गईं. सरदारजी के बारे में ही सोचते हुए वह सो गईं तो शाम को उठीं. उस समय भी सरदार अमरजीत सिंह घर नहीं लौटे थे. शाम को ही नहीं, रात बीत गई और सरदारजी लौट कर नहीं आएकई बार ज्ञान कौर के मन में आया कि सरदारजी के घर आने की बात वह अपने बड़े बेटे गुरचरण सिंह को बता दें. लेकिन उन के मन में आता कि बच्चे बेवजह ही परेशान होंगे. सरदारजी कोई बच्चे तो हैं नहीं कि गायब हो जाएंगे. 70 साल के स्वस्थ और समझदार आदमी हैं. वह ऐसे हैं कि खुद ही दूसरों को गायब कर दें, उन्हें कौन गायब करेगा?

इसी उहापोह और असमंजस की स्थिति में ज्ञान कौर का वह दिन भी बीत गया. जब दूसरी रात भी सरदार अमरजीत सिंह घर नहीं लौटे तो ज्ञान कौर ने परेशान हो कर अगली सुबह यानी 27 अगस्त, 2013 को गांव में रह रहे अपने बड़े बेटे गुरचरण सिंह के पास खबर भेजने के साथ बाघा बार्डर पर ड्यूटी कर रहे छोटे बेटे गुरदीप सिंह को भी फोन द्वारा सरदार अमरजीत सिंह के 2 दिनों से घर आने की सूचना दे दीगुरदीप सिंह भारतीय सेना की 69 आर्म्स बटालियन में सिपाही था. इन दिनों वह बाघा बार्डर पर तैनात था. मां से पिता के 2 दिनों से घर आने की जानकारी मिलते ही गुरदीप सिंह छुट्टी ले कर गांव आया और सब से पहले भाई को साथ ले कर थाना सदर जा कर अपने पिता के गायब होने की सूचना दे कर गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस के बाद दोनों भाई पिता की तलाश में जुट गए.

सरदार अमरजीत सिंह लुधियाना के थाना सदर के अंतर्गत आने वाले गांव झांदे में रहते थे. काफी और उपजाऊ जमीन होने की वजह से गांव में उन की गिनती बड़े जमीनदारों में होती थी. गांव के बीचोबीच उन की महलनुमा शानदार कोठी थी, जिस में वह पत्नी ज्ञान कौर और 2 बेटों गुरचरण सिंह और गुरदीप सिंह के साथ रहते थे. दोनों बेटे पढ़ाई के साथसाथ खेती में भी बाप का हाथ बंटाते थे. बड़ा बेटा गुरचरण सिंह पढ़ाई पूरी कर के जमीनों की देखभाल करने लगा तो छोटा गुरदीप सिंह भारतीय सेना में भर्ती हो गया. गुरचरण सिंह और गुरदीप सिंह कामधाम से लग गए तो सरदार अमरजीत सिंह ने उन की शादियां कर दीं. उन की भी अपनी संतानें हो गई थीं. इस तरह उन का भरापूरा खुशहाल परिवार हो गया था.

वैसे भी धनदौलत की उन के पास कोई कमी नहीं थी, लेकिन जब देहातों का शहरीकरण होने लगा तो उन्होंने अपनी काफी जमीनें करोड़ो रुपए में बेच कर इस के बदले बरनाला में उन्होंने दोगुनी जमीन खरीद कर बटाई पर दे दी. बाकी पैसों से उन्होंने प्रौपर्टी डीलर का काम शुरू कर दिया. अमरजीत की जमीनों, मंडियों और आढ़त आदि का सारा काम बड़ा बेटा गुरचरण सिंह देखता था. जबकि अमरजीत सिंह अपने प्रौपर्टी डीलर वाले काम में व्यस्त रहते थे. इस के लिए उन्होंने गांव के बाहर लगभग 5 सौ वर्गगज में एक आलीशान औफिस और कोठी बनवा रखी थी. वह अपनी पत्नी ज्ञान कौर के साथ उसी में रहते थे, जबकि परिवार के अन्य लोग गांव वाली कोठी में रहते थे.

अमरजीत सिंह का इधर ढाई, 3 सालों से बगल के गांव थरीके के रहने वाले स्वर्ण सिंह के साथ कुछ ज्यादा ही उठनाबैठना था. वैसे तो स्वर्ण सिंह मोगा का रहने वाला था, लेकिन उस ने और उस के भाई गुरचरन सिंह ने मोगा की सारी जमीन बेच कर उत्तर प्रदेश के पृथ्वीपुर में काफी जमीन खरीद ली थी. जिस की देखभाल गुरचरन सिंह भाई स्वर्ण सिंह के साले कुलविंदर सिंह के साथ करता था. जबकि स्वर्ण सिंह थरीके में रहते हुए प्रौपर्टी का काम करता था. ऐसे में जब उसे पता चला कि झांदे गांव के रहने वाले अमरजीत सिंह का प्रौपर्टी का बड़ा काम है तो वह उन के पास भी आनेजाने लगा. उस ने उन से 3-4 प्लाटों के सौदे भी करवाए, जिन से उन्हें अच्छाखासा लाभ मिला.

उन्होंने स्वर्ण सिंह का पूरा कमीशन तो दिया ही, लेकिन इस के बाद से उन्हें उस पर पूरा भरोसा हो गया था. साथसाथ खानापीना होने लगा तो दोनों में मित्रता भी हो गई. इस के बाद अमरजीत सिंह का कोर्टकचहरी जा कर कागजात बनवाने और प्लाट वगैरह दिखाने का ज्यादातर काम स्वर्ण सिंह ही करने लगा. उसी बीच स्वर्ण सिंह ने अमरजीत सिंह की मुलाकात अमित कुमार से करवाई. अमित ने उन्हें बताया था कि वह गोल्ड मैडलिस्ट वकील है. लेकिन वह वकालत कर के प्रौपर्टी का बड़ा काम करता था. वह छोटेमोटे नहीं, बड़े सौदे करता और करवाता था.अमित कुमार ने अमरजीत सिंह से इस तरह बातें की थीं कि वह उस से काफी प्रभावित हुए थे. इस के बाद अमित कुमार ने अमरजीत सिंह को 2-3 प्लाट भी खरीदवाए थे, जिन्हें बेच कर अमरजीत सिंह ने अच्छाखासा लाभ कमाया था.

स्वर्ण सिंह की ही तरह अमरजीत सिंह अमित कुमार पर भी विश्वास करने लगे थे. इस के बाद अमित कुमार ने अमरजीत सिंह के साथ मिल कर करीब ढाई करोड़ रुपए का एक सौदा किया, जिस के लिए उन्होंने 50-50 लाख रुपए का 2 बार में भुगतान किया था. इस सौदे में स्वर्ण सिंह गवाह था. लेकिन इतने बड़े सौदे की अमरजीत सिंह के घर के किसी भी सदस्य को कोई जानकारी नहीं थी. बहरहाल, अमरजीत सिंह के गायब होने के बाद उन के दोनों बेटे, गुरदीप सिंह और गुरचरण सिंह हर संभावित जगह पर उन की तलाश करते रहे. लेकिन उन का कहीं पता नहीं चल रहा था. ऐसे में ही किसी दिन उन की मुलाकात गांव के ही कृपाल सिंह से हुई तो उस ने उन्हें बताया कि जिस दिन से सरदार जी गायब हैं, उस दिन सुबह वह खेतों पर जा रहा था तो उस ने उन्हें स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर के साथ देखा था.

उस समय वह काफी नशे में लग रहे थे. उस के पूछने पर सुखमीत कौर ने बताया था कि वे सरदारजी को अपने भाई की जमीन दिखाने यूपी ले जा रहे हैं. उस समय वे लोग ब्रह्मकुमारी सदन के मोड़ पर खड़े थे. कुछ देर बाद एक इंडिका कार आई तो सभी उस में सवार हो कर चले गए थे. कृपाल सिंह से मिली जानकारी चौंकाने वाली थी, क्योंकि पिता के स्वर्ण सिंह के साथ जाने की बात उन्हें बिलकुल पता नहीं थी. स्वर्ण सिंह ने भी यह बात नहीं बताई थी. इस के अलावा अमरजीत सिंह के औफिस से ढाई करोड़ रुपए की जमीन के सौदे के कागजात भी मिल गए थे, जिन्हें देख कर दोनों भाइयों ने अंदाजा लगाया कि कहीं इसी ढाई करोड़ रुपए की जमीन के लिए तो उन के पिता का अपहरण नहीं किया गया.

 इस के बाद गुरचरण सिंह और गुरदीप सिंह को लगा कि अब समय बेकार करना ठीक नहीं है. दोनों भाई थाना सदर के थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ से मिले और उन्हें पूरी बात बताई. चूंकि अमरजीत सिंह ग्रेवाल बड़े और जानेमाने आदमी थे, सो अमनदीप सिंह बराड़ ने गुरदीप सिंह के बयान के आधार पर ही अमरजीत सिंह के मामले को अपराध संख्या 124/2013 पर भादंवि की धारा 364-120बी के तहत दर्ज कर मामले की सूचना उच्चाधिकारियों को दे कर खुद ही इस की जांच शुरू कर दी. थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ ने स्वर्ण सिंह और उस की तलाश के लिए एक टीम बनाई, जिस में एएसआई रामपाल सिंह, दविंदर सिंह, मुख्तियार सिंह, हेडकांस्टेबल कुलवंत सिंह, हरपाल सिंह, सुखविंदर सिंह और तलविंदर सिंह को शामिल किया.

अगले ही दिन इस पुलिस टीम ने मुखबिरों की सूचना पर लुधियाना के बाहरी क्षेत्र से स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर को कार सहित गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर इन से पूछताछ की जाने लगी तो इन्होेंने अमरजीत सिंह के साथ यूपी जाने की बात से साफ मना कर दिया. उन का कहना था कि उन्होंने अमरजीत सिंह को जगराओं के निकट एक जमीन दिखा कर उन के घर छोड़ दिया था. पुलिस टीम ने लाख कोशिश की, लेकिन वे अपने बयान पर अड़े रहे. इधर थाना पुलिस पूछताछ में लगी थी तो दूसरी ओर गुरदीप सिंह जीटी रोड स्थित शंभू बार्डर के टोल टैक्स नाका से सीसीटीवी की फुटेज ले आया. थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ ने वह फुटेज देखी तो उस में स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि 25 अगस्त की सुबह 9 बजे के आसपास इंडिका कार, जिस का नंबर पीबी19-2277 था.

उस की अगली सीट पर नशे की हालत में अमरजीत सिंह बैठे थे. ड्राइवर की सीट पर स्वर्ण सिंह बैठा था और पीछे की सीट पर सुखमीत कौर बैठी थी. अगले दिन यानी 26 अगस्त की शाम को वही गाड़ी लौटी थी, लेकिन उस में अमरजीत सिंह नहीं थे.फुटेज देख कर स्वर्ण सिंह कुछ कहने लायक नहीं रह गया था. फिर भी उस ने बात को घुमाने की कोशिश की. उस ने कहा कि कुछ जमीन अंबाला के पास थी. सरदारजी ने कहा था कि जब यहां तक आए हैं तो लगे हाथ उसे भी देख लेते हैं. उसे देखने के लिए वे अंबाला चले गए थे. लेकिन स्वर्ण सिंह का यह बहाना भी नहीं चला और अंत में उसे अपना अपराध स्वीकार करना पड़ा

स्वर्ण सिंह ने बताया था कि अमरजीत की हत्या कर के उन की लाश को उन लोगों ने नहर में फेंक दी थी. स्वर्ण सिंह के बताए अनुसार, इस हत्याकांड में 5 लोग शामिल थे, एक तो वह स्वयं था, दूसरा उस का भाई गुरचरन सिंह, तीसरा साला कुलविंदर सिंह, चौथा पत्नी सुखमीत कौर और पांचवां था अमित कुमार उर्फ रोहित कुमार.स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर पुलिस गिरफ्त में थे. उन के बयान के बाद पुलिस ने इस मुकदमे में धारा 364-120बी के साथ 302-201बी, 25-54-59 आर्म्स एक्ट जोड़ कर स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर को ड्यूटी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें विस्तृत पूछताछ के लिए 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान ही उन की निशानदेही पर उत्तर प्रदेश के पृथ्वीपुर से उस के भाई गुरचरन सिंह और साले कुलविंदर सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर के साथ गुरचरन सिंह एवं कुलविंदर सिंह को अदालत में पेश कर के लाश एवं सुबूत जुटाने के लिए 9 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान ही अभियुक्तों की निशानदेही पर पंजाब पुलिस ने यूपी पुलिस की मदद से उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद के निकट रामगंगा नदी में जाल डाल कर मृतक अमरजीत सिंह की लाश की तलाश के लिए मीरजापुर से जलालाबाद तक जाल डाला. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी लाश बरामद नहीं हो सकी. पुलिस ने गिरफ्तार अभियुक्तों की निशानदेही पर इस हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त अमित कुमार उर्फ विजय उर्फ रोहित चोपड़ा की तलाश में कई जगह छापे मारे, लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लगा. इस बीच पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त कार, डंडा, 32 और 315 बोर के 2 रिवाल्वर के साथ 10 लाख रुपए नकद बरामद कर लिए थे.

रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने चारों अभियुक्तों स्वर्ण सिंह, उस की पत्नी सुखमीत कौर, उस के भाई गुरचरन सिंह और साले कुलविंदर सिंह को एक बार फिर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जिला जेल भेज दिया गया. गिरफ्तार चारों अभियुक्तों से की गई पूछताछ में अमरजीत सिंह की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह ठगी, बेईमानी, ईर्ष्या और उच्च महत्त्वाकांक्षा की पृष्ठभूमि पर तैयार की गई थी. सही बात तो यह थी कि इस हत्याकांड की पृष्ठभूमि काफी पहले ही तैयार कर ली गई थी. अगर हत्यारे अपनी योजनानुसार अपने इरादों में सफल हो जाते तो उन की जगह मृतक के दोनों बेटे पिता की हत्या के आरोप में जेल की हवा खा रहे होते और अभियुक्त उन की प्रौपर्टी पर ऐश कर रहे होते.

अभियुक्त स्वर्ण सिंह और उस का साला कुलविंदर सिंह शुरू से जमीनजायदाद के फर्जी काम करते आ रहे थे. पर ज्यादा पढ़ेलिखे न होने की वजह से वे छोटीमोटी ठगी तक ही सीमित थे. लेकिन रोहित कुमार यानी अमित कुमार से मिलने के बाद उन के पर निकल आए थे. उसी के कहने पर वे किसी बड़े काम की तलाश में लग गए थे. इसी तलाश में अमरजीत सिंह पर उन की नजर जम गई थी. इस पूरे खेल का मास्टरमाइंड अमित कुमार उर्फ विजय कुमार उर्फ रोहित कुमार था, जिस का असली नाम रोहित चोपड़ा था. वह लुधियाना के घुमार मंडी के सिविल लाइन के रहने वाले दर्शन चोपड़ा के तीन बेटों में सब से छोटा था. लगभग 7 साल पहले उस की शादी इंदू से हुई थी, जिस से उसे 5 साल की एक बेटी थी.

रोहित बचपन से ही अति महत्त्वाकांक्षी, शातिर दिमाग था. एलएलबी करने के बाद तो उस का दिमाग शैतानी करामातों का घर बन गया था. वह रातदिन अपराध करने और उस से बचने के उपाय सोचता रहता था. स्वर्ण सिंह से मिलने के बाद जब उसे अमरजीत सिंह की दौलत, जमीनजायदाद और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में पता चला तो वह स्वर्ण सिंह के साथ मिल कर उन की प्रौपर्टी और रुपए हथियाने के मंसूबे बनाने लगा. एक तरह से स्वर्ण सिंह रोहित चोपड़ा के लिए मुखबिर का काम करता था. रोहित को जब स्वर्ण से पता चला कि अमरजीत सिंह बेटों से ज्यादा वास्ता नहीं रखता तो उसे अपना काम आसान होता नजर आया. स्वर्ण सिंह ने उसे बताया था कि एक बेटा भारतीय सेना में है तो दूसरा जमीनों की देखभाल करता है.

इस के बाद रोहित कुमार ने अमरजीत सिंह का माल हथियाने की जो योजना बनाई, उस के अनुसार सब से पहले उन की ओर से डिप्टी कलेक्टर को एक पत्र लिखवाया गया. जिस में उस ने लिखवाया था किमेरे दोनों बेटे गुरदीप सिंह और गुरचरण सिंह मेरे कहने में नहीं हैं. वे मेरी जमीनजायदाद हड़पने के चक्कर में मेरी हत्या करना चाहते हैं.’ अमरजीत सिंह शराब पीने के आदी थे और अभियुक्तों पर पूरा विश्वास करते थे. यही वजह थी कि शराब पीने के बाद वह उन के कहने पर किसी भी कागज पर हस्ताक्षर कर देते थे. डिप्टी कलेक्टर के नाम पत्र लिखवाने के बाद उन्होंने अमरजीत सिंह की हत्या की योजना बना डाली थी. लेकिन समस्या यह थी कि अमरजीत सिंह के पास अपना लाइसेंसी हथियार था. जरा भी संदेह या चूक होने पर उन लोगों की जान जा सकती थी. इसलिए वे मौके की तलाश में रहने लगे.

मई के अंतिम सप्ताह में उन्हें मौका मिला. अमरजीत सिंह अपने किसी मिलने वाले की जमीन के झगड़े का फैसला कराने सिंधवा वेट, जगराओं गए हुए थे. घर में भी उन्होंने यही बताया था. रोहित कुमार ने सोचा कि अगर बाहर से ही अमरजीत सिंह को कहीं ले जा कर हत्या कर दी जाए तो किसी को उस पर संदेह नहीं होगा. उस ने स्वर्ण सिंह से सलाह कर के अमरजीत सिंह को फोन किया, ‘‘जमीन का एक बढि़या टुकड़ा बिक रहा है. अगर आप देखना चाहें तो मैं आप के पास आऊं.’’  लेकिन अमरजीत सिंह ने जाने से मना कर दिया. इस तरह रोहित कुमार और स्वर्ण सिंह की यह योजना फेल हो गई. वे एक बार फिर मौका ढूंढने लगे. इसी बीच उन्होंने अमरजीत को ढाई करोड़ रुपए में एक जमीन खरीदवा दी. इस की फर्जी रजिस्ट्री भी उन्होंने करा दी. इस में भी गवाह स्वर्ण सिंह था. पार्टी को पैसे देने के नाम पर उन्होंने उन से 50-50 लाख कर के 1 करोड़ रुपए भी ले लिए.

 किसी भी जमीन की रजिस्ट्री करवाने के बाद उस का दाखिलखारिज कराना जरूरी होता है. उसी के बाद खरीदार निश्चिंत हो जाता है कि उस जमीन पर किसी तरह का विवाद नहीं है. अमरजीत सिंह द्वारा खरीदी गई जमीन के दाखिलखारिज का समय आया तो स्वर्ण सिंह और रोहित कुमार को चिंता हुई, क्योंकि उस जमीन के सारे कागजात फर्जी थे. जब जमीन ही नहीं थी तो कैसी रजिस्ट्री और कैसा दाखिलखारिज. पोल खुलने के डर से रोहित कुमार और स्वर्ण सिंह परेशान थे. ऐसे में अमरजीत सिंह की हत्या करना और जरूरी हो गया था. क्योंकि सच्चाई का पता चलने पर अमरजीत सिंह उन्हें छोड़ने वाला नहीं था.

दाखिलखारिज के लिए 10-12 दिन बाकी रह गए तो वे अमरजीत सिंह को सस्ते में जमीन दिलाने की बात कह कर खरीदने के लिए उकसाने लगे. स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर ने अमरजीत सिंह को बताया कि उस के भाई कुलविंदर सिंह की पृथ्वीपुर में काफी जमीन है, जिसे वह बेचना चाहता है. उसे पैसों की सख्त जरूरत है, इसलिए वह कुछ सस्ते में दे देगा. उसी जमीन के बारे में बातचीत करने के लिए 24 अगस्त की रात स्वर्ण सिंह अमरजीत सिंह के औफिस में ही रुक गया. देर रात तक वे शराब पीते रहे. स्वर्ण सिंह अमरजीत सिंह को अधिक शराब पिला कर पृथ्वीपुर चल कर जमीन देखने के लिए राजी करता रहा. जब अमरजीत सिंह चलने के लिए तैयार हो गए तो सुबह के लगभग साढ़े 5 बजे अपने घर थरीके जा कर वह अपनी सफेद रंग की इंडिका कार ले आया, जिस का नंबर पीबी 19 -2277 था. उस के साथ उस की पत्नी सुखमीत कौर भी थी.

स्वर्ण सिंह ने कार ब्रह्मकुमारी शांति सदन के मोड़ पर खड़ी कर दी और अमरजीत सिंह के औफिस जा कर बोला, ‘‘भाईजी चलो, गाड़ी गई है.’’ नशे में धुत अमरजीत सिंह सोचनेसमझने की स्थिति में नहीं थे. वह उठे और जा कर कार में बैठ गए. उसी समय गांव के कृपाल सिंह ने उन्हें इंडिका कार में स्वर्ण सिंह के साथ जाते देख लिया था. अंबालादिल्ली होते हुए वे पृथ्वीपुर पहुंचे. वहां स्वर्ण सिंह के भाई गुरचरण सिंह और साले कुलविंदर सिंह ने अमरजीत सिंह का स्वागत बोतल खोल कर किया. शराब पीतेपीते ही शाम हो गई. अब तक अमरजीत सिंह खूब नशे में हो चुके थे. उन से उठा तक नहीं जा रहा था. उसी स्थिति में उन्होंने उन्हें वहीं कमरे में गिरा दिया और सब मिल कर पीटने लगे. वहीं लकड़ी का एक मोटा डंडा पड़ा था. स्वर्ण सिंह उसे उठा कर अमरजीत सिंह की गरदन और सिर पर वार करने लगा. उसी की मार से अमरजीत की गरदन टूट कर एक ओर लुढ़क गई और उन के प्राणपखेरू उड़ गए. 

जब उन लोगों ने देखा कि अमरजीत का खेल खत्म हो गया है तो उन्होंने लाश को कार में डाला और उसे ठिकाने लगाने के लिए चल पड़े. रामगंगा नदी के पुल पर जा कर उन्होंने अमरजीत सिंह की लाश को नदी में फेंक दिया. इस के बाद गुरचरन और कुलविंदर पृथ्वीपुर लौट गए तो स्वर्ण सिंह पत्नी सुखमीत कौर के साथ लुधियाना गया.

  पुलिस ने स्वर्ण सिंह, सुखमीत कौर, गुरचरन सिंह और कुलविंदर सिंह को तो जेल भेज दिया, लेकिन अमित कुमार उर्फ रोहित कुमार पुलिस के हाथ नहीं लगा था. 15 दिसंबर, 2013 को इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई थी. कथा लिखे जाने तक अमरजीत सिंह की लाश बरामद नहीं हो सकी थी.

इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

मृत पति को मिस कर रही महिला सिपाही ने बेटी संग किया सुसाइड

सीमा और उस का पति हरकेश दोनों ही पुलिस में थे. पति की आकस्मिक मौत के बाद सीमा इस तरह हताश हो गई कि… 

राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल सीमा अपनी 4 वर्षीय बेटी वंशिका के साथ बीछवाल थाना प्रांगण में बने स्टाफ क्वार्टर में रहती थी. उस के साथ उस का भाई सुमित भी रहता था. सुमित भी राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल था. सीमा की ड्यूटी बीकानेर पुलिस लाइन में थी. करीब डेढ़ महीना पहले ही वह पाली जिले से ट्रांसफर करा कर बीकानेर आई थी. पहले उस की पोस्टिंग पाली के औद्यौगिक थाने में थी25 मार्च, 2018 की शाम को सीमा बेटी के साथ थी. उस का भाई सुमित किसी काम से बाजार गया हुआ था. जब वह बाजार से घर लौटा तो घर में कमरे का दरवाजा अंदर से बंद मिला. सुमित ने दरवाजा खटखटा कर बहन को आवाज दी पर दरवाजा नहीं खुला.

कई बार आवाज देने के बावजूद भी जब अंदर से कोई हलचल नहीं हुई तो सुमित ने खिड़की से अंदर झांक कर देखा तो उसे बहन सीमा व वंशिका फंदे पर झूलती दिखाई दीं. यह देख कर सुमित की चीख निकल गई. उस के चीखने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए. सुमित ने लोगों की सहायता से खिड़की तोड़ी. उस ने सब से पहले अपनी बहन और भांजी को फंदे से उतारा. तब तक बीछवाल के थानाप्रभारी धीरेंद्र सिंह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच चुके थे. दोनों को तुरंत पीबीएम अस्पताल ले जाया गया. जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

मृतका सीमा के कमरे से पुलिस को एक सुसाइड नोट भी बरामद हुआ. उस में कांस्टेबल सीमा ने सासससुर से माफी मांगते हुए लिखा कि सभी ने उस का और बेटी वंशिका का खयाल रखा, लेकिन पति हरकेश की मौत के बाद से मैं बहुत तनाव में हूं. इसलिए बेटी के साथ फांसी लगा कर आत्महत्या कर रही हूं. सीमा ने पत्र में इच्छा जताई कि मेरा अंतिम संस्कार भी वहीं हो, जहां पति का किया गया था और उस की और बेटी की आंखें दान कर दी जाएं. ताकि किसी को रोशनी मिल सके. चूंकि मामला एक पुलिसकर्मी से संबंधित था, इसलिए थानाप्रभारी की सूचना पर एसपी दीपक भार्गव भी वहां पहुंच गए. उन्होंने भी मौका मुआयना किया. थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए पीबीएम अस्पताल भेज दिया.

सीमा सरकारी मुलाजिम थी, उसे कोई आर्थिक परेशानी नहीं थी. ससुराल में सभी लोग उस का बहुत खयाल रखते थे. इन सब बातों के बावजूद आखिर ऐसी क्या वजह रही जो उस ने अपने साथ बेटी को भी फंदे पर लटका दिया. जांच करने के बाद पुलिस को इस के पीछे की जो बात पता चली, वह हृदयविदारक थी. सीमा सन 2006 में राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल के पद पर भरती हुई थी. उसी के बैच में हरकेश मान नाम का युवक भी भरती हुआ था. हरकेश झुंझनू जिले के भीरी गांव का मूल निवासी था. पर बाद में उस का परिवार चिढ़ावा कस्बे में रहने लगा था. साथसाथ पुलिस ट्रेनिंग करने के दौरान सीमा और हरकेश की अच्छी जानपहचान हो गई थी. बाद में घर वालों की मरजी से दोनों की शादी हो गई. सीमा का भाई सुमित भी राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल के पद पर भरती हो गया था

सीमा पति के साथ बहुत खुश थी. हरकेश भी उस का बहुत ध्यान रखता था. दोनों की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी. इस दौरान सीमा एक बेटी की मां भी बन गई थी जिस का नाम वंशिका रखा गया. सीमा का पति हरकेश एक जांबाज होशियार सिपाही था. अपनी मेहनत के बूते पर उस ने अनेक बडे़ केसों को खोलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उस की तैनाती पाली की कोतवाली में थी. अपने प्रयासों के बल पर उस ने दीपक हत्याकांड को खोलने में विशेष भूमिका निभाई थी. इस के अलावा उस ने कंजर गैंग, नायडू शेट्टी गैंग तथा गत दिनों पाली में मोबाइल शोरूम से लाखों रुपए के मोबाइल चुराने वाले गैंग का पता लगा कर उन्हें गिरफ्तार कराने में विशेष भूमिका निभाई थी. इन केसों में मिली सफलता के बाद हरकेश को एसपी के अलावा डीआईजी और आईजी ने भी सम्मानित किया था.

पति की इस उपलब्धि पर सीमा का सीना भी गर्व से चौड़ा हो गया था. चूंकि वह भी पति के साथ उसी थाने में तैनात थी, इसलिए पति से उसे काफी प्रेरणा मिली थी. अपने छोटे से परिवार में सीमा बहुत खुश थी. लेकिन 31 अक्तूबर, 2017 को इन के परिवार में अचानक एक ऐसी घटना घटी जिस से उन की हंसतीखेलती गृहस्थी उजड़ गई. दरअसल हरकेश मान के साले की शादी थी. 31 अक्तूबर, 2017 को हरकेश ड्यूटी से चिड़ावा में स्थित अपने क्वार्टर पर पहुंच कर शादी में जाने की तैयारी करने लगा. सीमा भी भाई की शादी में जाने की तैयारी में जुटी थी. हरकेश ने अपने बालों में मेंहदी लगाई हुई थी. वह बालों की मेंहदी को धो रहा था तभी अचानक आगे की तरफ गिर गया. सामने कोई एक पाइप था जो सीधे हरकेश के सिर में घुस गया.

हरकेश के चीखने पर सीमा बाथरूम में गई तो वहां खून देख कर वह भी घबरा गई. उस ने पड़ोसियों को बुलाया, जिन की मदद से हरकेश को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया. लेकिन डाक्टर उसे बचा नहीं सके. उस की मौत हो गई. पति की मौत पर सीमा का तो घरसंसार ही उजड़ गया था. शादी में जाने की खुशी रंज में बदल गई थी. एक तेजतर्रार सिपाही की मौत की खबर पा कर जिले के पुलिस अधिकारी भी वहां पहुंच गए. सभी इस आकस्मित मौत पर आश्चर्यचकित थे. घर वालों का तो रोरो कर बुरा हाल था. घर वालों के अलावा विभाग के लोगों ने भी सीमा को बहुत समझाया. पर वह अपने प्रियतम को भला कैसे भुला सकती थी. लोगों के समझाने पर सीमा ने खुद को संभालने की कोशिश की. वह अपने काम में व्यस्त रह कर दुख को भुलाने की कोशिश करती रही लेकिन रहरह कर उसे पति की यादें बेचैन किए रहती थीं

पहले सीमा की पोस्टिंग पाली थाने में थी जबकि उस का भाई सुमित बीकानेर के महिला थाने में था. अरजी दे कर उस ने करीब डेढ़ महीने पहले ही अपना ट्रांसफर बीकानेर करा लिया था. ताकि भाई के साथ रहने पर वह खुद अकेला महसूस समझे. वह भाई के साथ ही बीछवाल थानापरिसर में बने आईएसी क्वार्टरों में रहती थी. हालांकि ससुराल पक्ष के लोगों की तरफ से भी सीमा का हर तरह से खयाल रखा जा रहा था. इस के बावजूद भी सीमा को रहरह कर पति की यादें रही थी. पति के बिना वह खुद को अकेला महसूस कर रही थी. उसे लगने लगा था कि अब पति के बिना उस का जीना ही बेकार है. वह खोईखोई सी रहने लगी.

फिर एक दिन सीमा ने फैसला कर लिया कि जब उस का पति ही न रहा हो तो अब उस का जीना ही बेकार है. उस ने तय कर लिया था कि वह भी अपनी जीवनलीला खत्म कर पति के पास जाएगी. तभी उसे अपनी बेटी वंशिका का ध्यान आया कि उस के जीवित न रहने पर बिन मांबाप के पता नहीं उस की जिंदगी कैसे कटेगी. लिहाजा उस ने अपने साथ बेटी वंशिका की भी जीवनलीला खत्म करने का निर्णय ले लिया. 25 मार्च की शाम को उसे यह मौका मिल ही गया. उस दिन सीमा का भाई सुमित भी अपनी ड्यूटी से आ गया था. वह शाम के समय बाजार गया. तभी सीमा ने सब से पहले अपनी बेटी को फंदे पर लटकाया इस के बाद वह खुद भी लटक गई. इस से पहले उस ने एक सुसाइड नोट लिख दिया था, जिस में किसी को भी दोषी न ठहराते हुए अपनी और बेटी की आंखें दान करने की बात लिख दी थी.

सीमा ने भले ही अपनी समझ से अपनी और बेटी की सांसें रोक दीं पर ऐसा कर के उस ने कोई समझदारी का काम नहीं किया. बेटी के सहारे वह जिंदगी काट सकती थी. उसे उस समय काउंसलिंग की जरूरत थी. यदि उस की उस समय काउंसलिंग हो जाती तो शायद वह यह कदम नहीं उठाती.

दीवार की नींव खोदी तो मिला तीन किलो सोने का घंटा

नजीर और सुगरा बेहद गरीब थे. बरसात में घर की दीवार गिर जाने के बाद जब उन्होंने नींव खोदी तो 3 सेर का एक घंटा मिला. नजीर ने वह घंटा 50 रुपए में रंजन को बेच दिया. पता चला वह सोने का घंटा था, उसी को ले कर 2 कत्ल हुए लेकिन घंटा…   

ला बिलकुल सीधी पड़ी थी. सीने पर दो जख्म थे. एक गरदन के करीब, दूसरा ठीक दिल पर. नीचे नीली दरी बिछी थी, जिस पर खून जमा था. वहीं मृतक के सिर के कुछ बाल भी पडे़ थे. वारदात अमृतसर के करीबी कस्बे ढाब में हुई थी. मरने वाले का नाम रंजन सिंह था, उम्र करीब 45 साल. उस की किराने की दुकान थी. फिर अचानक ही उस के पास कहीं से काफी पैसा गया था. उस ने एक छोटी हवेली खरीद ली थी. 3 महीने पहले उस ने उसी पैसे से बड़ी धूमधाम से अपनी बेटी की शादी की थी. रंजन का कत्ल उस की नई हवेली में हुआ था. उस के 2 बेटे थे, दोनों अलग रहते थे. बाप से उन का मिलनाजुलना नहीं था. बीवी 3 साल पहले मर चुकी थी. घर पर वह अकेला रहता था. नौकरानी सुगरा दोपहर में रंजन के घर तब आती थी, जब वह अपने काम पर होता था. सुगरा घर का काम और खाना वगैरह बना कर चली जाती थी

रंजन ने घर के ताले की एक चाबी उसे दे रखी थी. कत्ल के रोज भी सुगरा खाना बना कर चली गई थी. रात को रंजन आया और खाना खा कर सो गया. सुबह कोई उस से मिलने आया. खटखटाने पर भी दरवाजा नहीं खुला तो वह पड़ोसी की छत से रंजन के घर में घुसा, जहां खून में लथपथ उस की लाश पड़ी मिली. मैं ने बहुत बारीकी से जांच की. कमरे में संघर्ष के आसार साफ नजर रहे थे. चीजे बिखरी हुई थीं. सबूत इकट्ठा कर के मैं ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. उस के बाद मैं गवाहों के बयान लेने लग गया. सब से पहले पड़ोसी गफूर का बयान लिया गया

उस ने दावे से कहा कि रात को रंजन की हवेली से लड़ाईझगडे़ की कोई आवाज नहीं आई थी. उस ने बताया कि रंजन सिंह बेटी की शादी के बाद से खुद शादी करना चाहता था. उस ने एक दो लोगों से रिश्ता ढूंढने को कहा था. बेटों और बहुओं से उस की कतई नहीं बनती थी. मैं ने गफूर से पूछा, ‘‘तुम पड़ोसी हो तुम्हें तो पता होगा उस के पास 6-7 महीने पहले इतना पैसा कहां से आया था?’’ गफूर ने सोच कर जवाब दिया, ‘‘साहब, यह तो मुझे नहीं मालूम, पर सब कहते हैं कि उसे कहीं से गड़ा हुआ खजाना मिल गया. पर रंजन कहता था उस का अनाज का व्यापार बहुत अच्छा चल रहा है.’’

जरूरी काररवाई कर के मैं थाने लौट आया. शाम को मैं ने बिलाल शाह को भेज कर सुगरा और उस के शौहर को बुलवाया. सुगरा 22-23 साल की खूबसूरत औरत थी. उस की गोद में डेढ़ साल का प्यारा सा बच्चा था. गरीबी और भूख ने उस की हालत खराब कर रखी थी. उस के कपड़े पुराने और फटे हुए थे. यही हाल उस के शौहर का था. उस के हाथ पर पट्टी बंधी हुई थी. मैं ने नजीर से पूछा, ‘‘तुम्हारे हाथ पर चोट कैसे लगी?’’

‘‘साहब, खराद मशीन में हाथ गया था. 2 जगह से हड्डी टूट गई थी. 2-3 औपरेशन हो चुके हैं पर फायदा नहीं है.’’

‘‘क्या खराद मशीन तुम्हारी अपनी है?’’

‘‘नहीं जनाब, मैं दूसरे के यहां 50 रुपए महीने पर नौकरी करता था. हाथ टूटने के बाद उस ने निकाल दिया.’’

दोनों मियां बीवी सिसकसिसक कर रो रहे थे. पर मैं अपने फर्ज से बंधा हुआ था. मैं ने नजीर को बाहर भेज दिया और सुगरा से पूछा, ‘‘सुना है तुम्हारा शौहर पसंद नहीं करता था कि तुम किसी और के घर काम करो. इस बात पर वह तुम से झगड़ता भी था. क्या यह सच है?’’ ‘‘जी हां साहब, उसे पसंद नहीं था पर मेरी मजबूरी थी. मेरे तीनों बच्चे भूखे मर रहे थे. काम कर के मैं उन्हें खाना तो खिला सकती थी. मैं ने गुड्डू के अब्बा से हाथ जोड़ कर रंजन चाचा के घर काम करने की इजाजत मागी थी और वह मान भी गया था.’’

‘‘पर गांव वाले तुम्हारे और रंजन के बारे में बेहूदा बातें करते थे. यह बातें तुम्हें और तुम्हारे शौहर को भी पता चलती होंगी?’’ ‘‘साहब, जिन के दिल काले हैं, वही गंदी बातें सोचते हैं. रंजन चाचा मेरे साथ बहुत अच्छा सलूक करते थे. जब मैं काम करती थी, तब वह घर पर होते ही नहीं थे. लोगों की जुबान बंद करने के लिए मैं अपने बच्चों को भूखा नहीं मार सकती थी.’’

‘‘सुगरा, ऐसा भी तो हो सकता है कि गुस्से में कर नजीर ने रंजन सिंह को मार डाला हो?’’

‘‘नहीं साहब, वह कभी किसी का खून नहीं कर सकता. वैसे भी वह हाथ से मजबूर है, सीधा हाथ हिला भी नहीं सकता.’’

इस बारे में मैं ने नजीर से भी पूछताछ की. उस ने बताया कि उस रात 11 बजे तक वह अपने दोस्त अशरफ के यहां था. मैं ने नजीर से कहा, ‘‘लोग तुम्हारी बीवी के बारे में जो बेहूदा बातें करते थे, उस पर तुम्हें गुस्सा नहीं आता था, कहीं इसी गुस्से में तो तुम ने रंजन को नहीं मार डाला?’’ ‘‘तौबा करें साहब, हम गरीब मजबूर इंसान हैं. ऐसा सोच भी नहीं सकते. हमारी भूख और मजबूरी के आगे गैरत हार जाती है.’’ मैं ने उन दोनों को घर जाने दिया, क्योंकि वे लोग बेकसूर नजर आ रहे थे.

मैं ने एक बार फिर रंजन के घर की अच्छे से तलाशी ली. दरी के ऊपर एक घड़ी पड़ी थी. अलमारियां खुली हुई थीं, पर यह पता लगाना मुश्किल था कि क्याक्या सामान गया है? बेटों को भी कुछ पता नहीं था, क्योंकि वह बाप की दूसरी शादी के सख्त खिलाफ थे, इसलिए आनाजाना बंद था. पोस्टमार्टम के बाद रंजन सिंह का अंतिम संस्कार कर दिया गया. इस मौके पर सभी रिश्तेदार मौजूद थे. उस के दोनों बेटे रूप सिंह और शेर सिंह भी थे. बाद में मैं ने रूप सिंह को बुलाया. वह आते ही फट पड़ा, ‘‘थानेदार साहब, हमारे बापू को किसी और ने नहीं नजीर ने ही मारा है. दोनों मियांबीवी बापू के पीछे हाथ धो कर पड़े थे. सुगरा को पता होगा जेवर और पैसे कहां हैं. उसी के लिए मेरा बापू मारा गया.’’

मैं ने उसे समझाया, ‘‘हमारी नजर सब पर है. तुम उस की फिक्र मत करो. तुम यह बताओ कि हादसे की रात तुम कहां थे और बाप से क्यों झगड़ा चल रहा था?’’

‘‘मैं अपने घर में था. मेरी घर वाली को बेटा हुआ था. दोस्त और रिश्तेदार मिल कर जश्न माना रहे थे.’’

‘‘तुम्हारे यहां बेटा हुआ, जश्न मना, पर बाप को खबर देने की जरूरत नहीं समझी, क्यों? तुम काम क्या करते हो.’’ 

‘‘बापू की दूसरी शादी की वजह से झगड़ा चल रहा था. इसलिए उसे नहीं बताया. मैं मोमबत्ती और अगरबत्ती बनाने का काम करता हूं.’’

दोनों बेटों से पूछताछ करने से भी कोई नतीजा नहीं निकला. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट गई, जिस से पता चला रंजन नींद की गोलियों के नशे में था. इस रिपोर्ट से मेरा शक सुगरा की तरफ बढ़ गया. पर मेरे पास कोई सबूत नहीं था. रिपोर्ट मिलने के बाद मैं रंजन सिंह के घर पहुंचा. वहां देनों बेटे और बेटी भी मौजूद थे. बेटी रोरो कर बेहाल थी. मैं ने नींद की गोलियों की तलाश में अलमारी छान मारी पर कहीं कुछ नहीं मिला. उस की बेटी का कहना था कि उस का बापू नींद की गोलियां नहीं खाता था. 2 दिन बाद डीएसपी बारा सिंह खुद ढाब पहुंचा. वह बहुत गुस्से में था. कहने लगा, ‘‘सारी कहानी और सबूत सुगरा और नजीर की तरफ इशारा कर रहे हैं कि कत्ल उन्होंने ही किया है. फौरन उन्हें गिरफ्तार कर के पूछताछ करो.’’

मैं ने उन दोनों को गिरफ्तार कर के जेल में डाल दिया और सख्ती भी की, पर दोनों रोते रहे, कसमें खाते रहे कि उन्होंने कुछ नहीं किया है. मैं डीएसपी के हुक्म के आगे मजबूर था. डीएसपी के जाने के बाद मैं ने सुगरा को छोड़ दिया, क्योंकि उस की हालत बहुत बुरी थी. वह बच्चों के लिए तड़प रही थी. मेरी हमदर्दी सुगरा के साथ थी. क्योंकि वह बेकसूर लग रही थी, पर नींद की गोलियां का मामला साफ होने के बाद ही यकीन से कुछ कहा जा सकता था. मुझे यह पता करना था कि गोलियां कहां से खरीदी गई थीं. कस्बे में एक ही बड़ी दुकान थी. उस के मालिक गनपत लाल को मैं जानता था

उस ने पूछताछ के बाद बताया कि करीब एक महीने पहले रंजन सिंह उस की दुकान से कुछ दवाइयां ले कर गया था, जिस में नींद की गोलियां भी शामिल थीं. यह एक पक्का सबूत था. मैं ने उस से बयान लिखवा कर साइन करवा लिया. मैं वापस थाने पहुंचा तो सुगरा नजीर से मिलने आई थी. वही बुरे हाल, फटे कपड़े, रोता बच्चा, अखबार में लिपटी 2 रोटियां और प्याज. उसे देख कर बड़ा तरस आया. काश, मैं उस के लिए कुछ कर सकता. दूसरे दिन गांव में एक झगड़ा हो गया. दोनों पार्टियां मेरे पास गईं. मैं उन दोनों की रिपोर्ट लिखवा रहा था. तभी मुझे खबर मिली कि ढाब का नंबरदार लहना सिंह मुझ से मिलने आया है. उस ने अंदर कर कहा, ‘‘नवाज साहब, मुझे आप से बहुत जरूरी बात करनी है. कुछ वक्त दे दें.’’ 

मुझे लगा कि वह इसी लड़ाई के बारे में कुछ कहना चाहता होगा. मैं ने उसे बाहर बैठ कर कुछ देर इंतजार करने को कहा. वह अनमना सा बाहर चला गया. इस झगड़े में एक आदमी बहुत जख्मी हुआ था, जो अस्पताल में भरती था. काम निपटाते निपटाते 2 घंटे लग गए. फिर मैं ने लहना सिंह को बुलवाया तो पता चला वह चला गया है. मैं ने शाम को एक सिपाही को यह कह कर लहना सिंह के घर भेजा कि उसे बुला लाएपता चला कि वह अभी तक घर ही नहीं पहुंचा है. मुझे कुछ गड़बड़ नजर रही थी. 11 बजे के करीब लहना सिंह का छोटा भाई बलराज आया. कहने लगा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, लहना सिंह का कहीं पता नहीं चल रहा है. हम सब जगह देख चुके हैं.’’

मैं परेशान हो गया, क्योंकि लहना सिंह का इस तरह से गायब होना किसी हादसे की तरफ इशारा कर रहा था. मैं ने बलराज से पूछा, ‘‘लहना सिंह की किसी से लड़ाई तो नहीं थी?’’

‘‘साहब, एक दो महीने पहले उन की चौधरी श्याम सिंह से जम कर लड़ाई हुई थी. दोनों एकदूसरे को मरने मारने पर उतारू थे. मेरा पूरा शक श्याम सिंह पर है.’’ मुझे मालूम था कि श्याम सिंह रसूखदार आदमी है. उसी वक्त लहना सिंह का बेटा और एक दो लोग भागते हुए थाने आए और कहने लगे, ‘‘साहब, जल्दी चलिए. श्याम सिंह ने लहना सिंह को कत्ल कर दिया है या फिर जख्मी कर के अगवा कर लिया है. हवेली के पीछे मैदान में खून के धब्बे मिले हैं.’’

मैं फौरन मौका वारदात के लिए रवाना हो गया. उन दोनों की लड़ाई के बारे में मैं ने भी सुना था. श्याम सिंह शहर से एक तवायफ ले आया था, जिसे उस ने अपने डेरे पर रख रखा था. एक दिन मौका पा कर नशे में धुत लहना सिंह वहां पहुंच गया और उस ने दो साथियों के साथ उस तवायफ से ज्यादती कर डाली. इस बात को ले कर दोनों में बहुत झगड़ा हुआ था. यह बात गांव में सब को पता थी. लहना सिंह की हवेली के पीछे एक सुनसान मैदान था. वहां शौर्टकट के लिए एक पगडंड़ी थी. वहीं पर कच्ची जमीन पर 3-4 जगह खून के धब्बे थे. वहीं पर लहना सिंह की एक जूती भी पड़ी थी. संघर्ष के भी निशान थे. कुछ दूर तक जख्मी को घसीट कर ले जाया गया था. उस के बाद उसे उठा कर ले गए थे. मैं ने मौके की जगह की अच्छी तरह जांच की. कुछ बयान लिए. लेकिन हादसे का चश्मदीद गवाह एक भी नहीं मिला.

 मैं थाने पहुंचा तो देखा चौधरी श्याम सिंह शान से बैठा हुआ था. मैं ने उस से अकेले में बात करना बेहतर समझा. मैं ने कहा, ‘‘देखो चौधरी, लंबे चक्कर में पड़ना ठीक नहीं है. अगर लहना सिंह तुम्हारे पास है तो उसे बरामद करा दो. मैं कोई केस नहीं बनाऊंगा.’’ वह मुस्कुरा कर बोला, ‘‘नवाज साहब, हम केस से या कोर्ट कचहरी से नहीं डरते, पर सच्ची बात यह है कि मैं ने एक हफ्ते से लहना सिंह को नहीं देखा. हमारी लड़ाई जरूर हुई थी पर मुझे उसे उठा कर छुपाने की क्या जरूरत है?’’

 छुपाने की बात कहते हुए वह कुछ घबरा सा गया था, इसलिए बात बदलते हुए फिर बोला, ‘‘मुझे पता नहीं है जी उस ने आप के क्या कान भर दिए और वह चंदर तो…’’ फिर वह एकदम चुप हो गया. मैं ने पूछा, ‘‘चंदर कौन?’’

‘‘जीजीवह कोई नहीं आप चाहे तो मेरा पर्चा कटवा दें.’’

मैं समझ गया कि कोई राज की बात थी, जो उस ने भूल से कह दी और अब छुपा रहा है. मुझे यकीन हो गया कि लहना सिंह के अगवा करने में उसी का हाथ है. 2-4 सवाल कर के मैं ने उसे जाने दिया. फिर लहना सिंह के बेटों को बुला कर समझाया कि कोई लड़ाईझगड़ा ना करे, हम शांति से उसे बरामद करेंगे. मैं ने बिलाल शाह को भेजा कि मालूम करे कि चंदर किस का नाम है. दूसरे दिन बिलाल शाह खबर ले कर आया कि चंदर रंजन सिंह का ही दूसरा नाम हैजवानी में वह पहलवानी करता था. लोग उसे चंदर कह कर पुकारते थे. मैं चौंका. इस का मतलब रंजन सिंह के कत्ल और लहना सिंह के गायब होने में कोई संबंध जरूर था. अब मुझे अफसोस हुआ कि काश मैं ने लहना सिंह की बात सुन ली होती.

मैं ने चौधरी श्याम सिंह की निगरानी शुरू करवा दी. इस काम के लिए मेरी नजर शांदा पर अटक गई. वह दाई थी. उस का चौधरियों के यहां खूब आनाजाना था. उन के घर के सभी बच्चे उसी के हाथों पैदा हुए थे. वह लालची या डरने वाली औरत नहीं थी. पर उस की एक कमजोरी मेरे हाथ गई थी. उसी कमजोरी का फायदा उठाते हुए मैं ने उसे चौधरी  के खिलाफ मुखबिरी करने के लिए राजी कर लिया. शांदा से खबर लाने का काम बिलाल शाह के जिम्मे था. तीसरे दिन बिलाल शाह ने आ कर बताया कि शांदा के मुताबिक हवेली का एक कारिंदा जोरा सिंह हवेली से बाहर हैं. पांचवे दिन एक खास खबर मिली कि नंबरदार लहना सिंह चौधरी श्याम सिंह के कारिंदे जोरा सिंह की कुएं वाली कोठरी में जख्मी हालत में बंद है.

पिछली रात जब जोरा सिंह चौधरी से मिलने आया था तो शांदा ने अपने बेटे को उस के पीछे लगा दिया था. उस ने देखा लहना सिंह कुएं के पास बने एक कमरे में बंद था. एक रायफल धारी उस का पहरा दे रहा था. शांदा के बेटे ने अपनी जान जोखिम में डाल कर बहुत बड़ी जानकारी प्राप्त की थी. मैं फौरन मुहिम पर रवाना हो गया. मैं ने अपनी टीम के साथ जोरा सिंह की कोठरी पर धावा बोल दिया. उस वक्त सुबह के 9 बजे थे. खेतखलिहान सुनसान थे. किस्मत से श्याम सिंह बाहर गया हुआ था. हमें देखते ही जोरा सिंह ने छलांग लगाई और खेतों की तरफ भागा. मेरे हाथ में भरा हुआ रिवाल्वर था. मैं चिल्लाया, ‘‘रुक जाओ, नहीं तो गोली चला दूंगा.’’ लेकिन जोरा सिंह नहीं रुका. मैं ने उस की पिंडली का निशाना ले कर गोली दाग दी. वह औंधे मुंह गिरा. 

उसे काबू कर के और उस के 2 आदमियों के हाथ से बंदूक छीन कर हम कमरा खुलवा कर अंदर पहुंचे. लहना सिंह एक कोने में खाट पर सुकड़ासिमटा पड़ा था. वह मुश्किल से पहचाना जा रहा था. उस के कपड़ों पर खून के धब्बे थे. सिर पर जख्म था. 2 दांत टूटे हुए थे. एक कलाई टूट कर लटकी हुई थी. जिस्म पर कुल्हाड़ी के कई जख्म थे. वह बेहोश पड़ा था. हम उसे संभाल कर बाहर ले कर आए. फायरिंग की आवाज से लोग जमा हो गए थे. लहना सिंह को इतनी बुरी हालत में देख कर सब हैरान रह गए. उस की एक जूती भी कमरे से बरामद हुई. मैं ने फौरन गाड़ी का इंतजाम कर के उसे अमृतसर के अस्पताल रवाना किया. उस के जख्म बहुत खराब हो चुके थे. अस्पताल पहुंचने के पांचवे दिन उस की तबीयत जरा संभली और वह बयान देने के काबिल हुआ.

उस से पहले ही मैं चौधरी श्याम सिंह और उस के भाई को गिरफ्तार कर चुका था. क्योंकि मुझे खतरा था कि लहना सिंह के बयान के बाद वह फरार हो जाएगा. चौधरी ने अपना जुर्म कबूल नहीं किया और मुझे धमकियां दे रहा था. लहना सिंह के बयान के बाद चौधरी श्याम सिंह के खिलाफ केस मजबूत हो गया. अस्पताल के सर्जिकल वार्ड के बिस्तर पर लेटेलेटे लहना सिंह ने बहुत कमजोर आवाज में अपना बयान कलमबंद करवाया.

‘‘साहब, रंजन सिंह का कातिल चौधरी श्याम सिंह ही है. उस ने अपने बदमाश जोरा सिंह के जरिए उसे कत्ल करवाया है. मैं उस रोज थाने में यही खबर देने के लिए आप के पास आया था, पर बदकिस्मती से आप से बात नहीं हो सकी. आप अपने काम में बहुत मसरूफ थे

‘‘मैं बैठेबैठे थक गया था. सोचा घर का एक चक्कर लगा लूं. मैं घर के पीछे पहुंचा ही था कि श्याम सिंह के बंदों ने मुझ पर कुल्हाड़ी से हमला कर दिया. फिर उठा कर ले गए और कुएं वाले कमरे में बंद कर दिया. बाकी जो कुछ हुआ वह आप के सामने है.’’

मैं ने पूछा, ‘‘रंजन सिंह को कत्ल करने की कोई ना कोई वजह होगी. उस ने कत्ल क्यों किया? तुम निडर हो कर बोलो. तुम्हारा एकएक शब्द श्याम सिंह के खिलाफ गवाही बनेगा.’’

‘‘बड़ी खास वजह थी जनाब, रंजन सिंह के पास सोने का एक घंटा था. इस घंटे का वजन करीब 3 सेर था. जिस के पास 3 सेर खालिस सोना हो उसे कोई भी जान से मार सकता है. चौधरी श्याम सिंह को इस सोने का पता चल गया था. उस ने रंजन का कत्ल करवा कर सोना हड़प लिया. यह सोना चौधरी के पास ही है. उसे जूते पड़ेंगे तो सब सच बक देगा.’’

लहना सिंह की खबर बहुत सनसनीखेज थी. 3 सेर सोना उस वक्त भी लाखों रुपयों का था. मैं ने लहना सिंह से फिर पूछा, ‘‘यह घंटा रंजन को मिला कहां से था?’’

लहना सिंह ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘यह तो पक्का पता नहीं, पर रंजन अपनी दुकान पर पुराना सामान ले कर भी पैसे दिया करता था. सोने का वह घंटा भी किसी को जमीन में से मिला था. टूटाफूटा, मिट्टी में सना हुआ. उस का रंग भी काला थाकोई देहाती बंदा उसे पीतल का समझ कर रंजन को कुछ सौ रुपए में बेच गया था. घंटे के साथ आधा किलो की एक जंजीर भी थी. रंजन बहुत चालाक आदमी था. उस ने लाहौर जा कर पता किया तो वह असली सोना निकला. उस ने जंजीर बेच दी और यह हवेली खरीदी. साथ ही शहर में अनाज की आढ़त का काम शुरू कर दिया. धूमधाम से बेटी की शादी की. फिर अपने लिए रिश्ता ढूंढने लगा.’’

मैं ने लहना सिंह से पूछा, ‘‘तुम्हें इन सारी बातों का कैसे पता चला?’’

उस ने एक लंबी कराह लेते हुए कहा, ‘‘उन दिनों मेरी और श्याम सिंह की अच्छी दोस्ती थी. वह सब बातें मुझे बताता था. उसे अपने किसी मुखबिर के जरिए पता लग चुका था कि रंजन के पास सोने का घंटा है. 3 सेर सोना कोई छोटी बात नहीं थी. उसने सोच लिया था कि रंजन का कत्ल कर के सोने पर कब्जा कर लेगा. यह बात उस ने मुझे खुद बताई थी. 

‘‘उस वक्त वह शराब के नशे में था. जब 2 हफ्ते पहले रंजन का कत्ल हुआ तो मेरा ध्यान फौरन श्याम सिंह की तरफ गया. मुझे पूरा यकीन था रंजन को मार कर घंटा उसी ने गायब किया है. थानेदार साहब, मैं ने आप से वादा किया था झूठ नहीं बोलूंगा. मैं ने सारा सच बता दिया है, अब श्याम सिंह को फांसी के तख्ते पर पहुंचाना आप का काम है.’’

मैं ने ध्यान से उस का बयान सुना फिर पूछा, ‘‘उस ने तुम्हें मारने की कोशिश क्यों की?’’

वह सिसकी ले कर बोला, ‘‘साहब, मैं ने श्याम सिंह से कहा था कि सोने के घंटे में से मुझे भी हिस्सा दे, नहीं तो मैं यह बात पुलिस को बता दूंगा. पहले तो वह मुझे टालता रहा. जब मैं ने धमकी दी तो उस ने मेरा यह हाल कर दिया. उस दिन मैं आप को यही बात बताने आया था.’’

  मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हारे खयाल में अब वह घंटा कहां है?’’

‘‘साहब, उस ने उस घंटे को हवेली में ही कहीं छुपा कर रखा है. हो सकता है कहीं गायब भी कर दिया हो.’’

मैं ने लहना सिंह को तसल्ली दी और अमृतसर से फौरन ढाब के लिए रवाना हो गया. ढाब पहुंचते ही हम ने चौधरी श्याम सिंह की हवेली पर धावा बोल दिया. चौधरी श्याम सिंह और उस का एक भाई गिरफ्तार थे. इसलिए खास विरोध नहीं हुआ. सारी हवेली की बारीकी से तलाशी ली गई. काफी मेहनत के बाद चावल के ड्रम में से सोने का घंटा बरामद हो गया. घंटे को देख कर लगता था कि वह काफी दिन तक जमीन में गड़ा रहा था. निस्संदेह वह या तो किसी मंदिर का घंटा था या फिर किसी राजा महाराजा के हाथी के गले में सजता होगा. घंटे को जब्त कर के थाने में हिफाजत से रखवा दिया गया. उस जमाने में भी उस की कीमत करीब छह लाख होगी.

कोई बदनसीब उस घंटे को रंजन को 2-3 सौ में बेच गया था. इतना कीमती घंटा देख कर कई लोगों के ईमान डोलने लगे, पर मैं इमान का पक्का था. घंटे की बरामदगी बाकायदा दर्ज की गईफिर उसे हिफाजत से कस्बे के चौराहे पर नुमाइश के लिए रख दिया गया. इस का नतीजा बहुत अच्छा निकला. एक घंटे के बाद एक आदमी ने मेरे पास कर कहा, ‘‘थानेदार साहब, मैं इस घंटे को पहचानता हूं. यह मैं ने सुगरा के आदमी नजीर के पास देखा था.’’

मैं भौंचक्का रह गया. फौरन पूछा, ‘‘तुम ने इसे उस के पास कब देखा था?’’

वह दिमाग पर जोर देते हुए बोला, ‘‘करीब 6-7 महीने पहले की बात है. मैं रंजन की दुकान पर खड़ा था. तभी नजीर वहां यह घंटा ले कर आया था. उस का रंग उस वक्त काला था और मिट्टी में लिथड़ा हुआ था. मेरे सामने ही रंजन ने उसे तराजू में डाला और तौल कर कुछ रुपए नजीर के हाथ पर रख दिए. उस के बाद मैं वहां से चला गया. पता नहीं फिर उन दोनों के बीच क्या बात हुई.’’

यह एक सनसनीखेज खबर थी कि लाखों का घंटा कौडि़यों में बिक गया और बेचने वाला दानेदाने को मोहताज था. गरीब नजीर जेल में बंद था. मैं फौरन सुगरा के घर पहुंचा, लेकिन घर बंद था. लोगों का खयाल था कि भूख और गरीबी से तंग आ कर रोजी की तलाश में वह किसी और कस्बे में चली गई होगी. मुझे बेहद अफसोस हो रहा था. उस के मासूम बच्चे याद आ रहे थे. उसे तलाश करने का हुक्म दे कर मैं थाने आ गया. वहां से घंटा ले कर अमृतसर के लिए रवाना हो गए. क्योंकि नजीर अमृतसर में ज्यूडीशियल रिमांड पर जेल में था. मैं ने उसे कपड़े में लिपटा हुआ घंटा दिखा कर पूछा, ‘‘क्या यह घंटा कुछ महीने पहले तुम ने रंजन को बेचा था. इसे लाए कहां से थे?’’

‘‘हां बेचा था. मैं अपने घर से लाया था. बैसाखी के पहले की बात है साहब, एक दिन तेज बारिश हुई. मेरे घर की दीवार गिर गई. जब दोबारा दीवार उठाने के लिए बुनियाद रखी तो यह घंटा मिलाबच्चे मचलने लगे मिठाई खाएंगे. मैं इसे ले कर रंजन के पास गया. उस ने इसे 50 रुपए में मुझ से खरीद लिया. मैं बच्चों के लिए मिठाई ले कर गया. कुछ घर का सामान खरीदा. पर साहब, आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं?’’ मैं ने उसे टाल दिया और सिपाही से कह दिया कि सुगरा आए तो मुझ से जरूर मिलाए. दूसरी दिन सुबह मैं अस्पताल पहुंचा. दरवाजे के करीब ही मुझे स्टै्रचर पर लहना सिंह की लाश मिल गई. बेचारा बेवजह मारा गया. चौधरी श्याम सिंह अब दोहरे कत्ल का दोषी था

लहना सिंह के आखिरी बयान और हवेली से घंटा मिलने से वह पूरी तरह फंस गया था. अब यह बात भी समझ में गई थी कि रंजन सिंह सुगरा के खानदान पर मेहरबान क्यों था? क्यों उन की मदद करता था. क्योंकि वह उन्हीं के पैसे पर ऐश कर रहा था. लोगों ने उस की बिना बात के बदनामी फैला दी थी. मैं ने सुगरा की तलाश में 2 लोग लगा दिए, पर उस का कोई पता नहीं चला. लहना सिंह के बयान के बाद सुगरा और नजीर बेकसूर साबित हो गएरंजन के पेट से मिलने वाली नींद की गोली का मसला भी हल हो गया था. वह उस ने खुद खरीद कर खाई थी. पहले बेटी के सामने वह नींद की गोली नहीं लाता था, पर बाद में लेने लगा. इसलिए उस की बेटी ने नहीं कहा था.

श्याम सिंह ने जोरा सिंह से रंजन का कत्ल  इसलिए करवाया था कि वह उस का सोने का घंटा हासिल कर सके. जब जोरा सिंह रंजन के घर घंटे को ढूंढ रहा था तो रंजन की आंख खुल गई. वह हिम्मत कर के जोरा सिंह पर टूट पड़ा. एक जमाने में वह पहलवानी करता था और चंदर के नाम से जानाजाता थाउस ने अपने बाजूओं में उसे बुरी तरह से जकड़ लिया था. जरा सी छूट मिलते ही जोरा सिंह ने अपनी कृपाण से उस के सीने पर वार कर दिया. जब वह गिर गया तो छाती पर चढ़ कर उसे खत्म कर दिया. उसे मारने के बाद उस ने हवेली से घंटा ढूंढ लिया. इस सारे मामले में सुगरा और नजीर शुरू से आखिर तक बेकसूर थे. उस वक्त के कानून के मुताबिक बरामद होने वाली चीज की हैसियत एंटीक ना हो और किसी का मालिकाना हक ना साबित हो पाए तो यह चीज उस शख्स की मानी जाती थी, जिस के घर से वह बरामद हुई हो

वह घंटा नजीर के घर की टूटी दीवार से बरामद हुआ था. अगर सरकार मामले को हमदर्दी से देखती तो यह घंटा नजीर और सुगरा का था, भले ही वह उस की कीमत समझ सके थे. नजीर के जमानत पर रिहा होने के बाद सुगरा की तलाश और जोर पकड़ गई. मुझे कहीं से खबर मिली कि मरनवाल नाम के गांव में जो ढाब से करीब 20 किलोमीटर दूर था, वहां सुगरा के हुलिए की एक औरत दिखाई दी थीहम लोग वहां पहुंचे तो पता चला वह एक रिटायर्ड हवलदार के यहां काम कर रही थी. उस के घर पूछताछ करने पर उस ने बताया कि एक औरत 3 बच्चों के साथ उस के यहां पनाह लेने आई थी. उस ने उसे रख भी लिया था. फिर एक दिन चोरी करते पकड़ी गई तो मैं ने उसे निकाल दिया.

आसपास के लोगों से पता चला कि वह झूठ बोल रहा था. हवलदार की नीयत सुगरा पर खराब हो गई थी. सुगरा ने शोर मचा दिया. लोगों के पहुंचने पर उस ने सुगरा को मारपीट कर निकाल दिया. किसी ने बताया वह रामपुर की तरफ गई थी. उस बेगुनाह मजबूर औरत की तलाश में हम रामपुर पहुंचे और जगहजगह उस की तलाश करते रहे. रामपुर के छोटे से अस्पताल में हमें सुगरा मिल गई, लेकिन वह जिंदा नहीं लाश की सूरत में मिली. उस के बच्चे वहीं बैठे रो रहे थे. उस की मौत दिमाग की नस फटने से हुई थी. इतने दुख और गरीबी की मार सह कर उस का बच पाना मुश्किल ही था. सुगरा की लाश ढाब पहुंची. पूरा कसबा जमा हो गया. सभी की आंखों में आंसू थे. नजीर रोरो कर पागल हो रहा था. अब लोग सुगरा की तारीफें कर रहे थे.

चौधरी श्याम सिंह और जोरा सिंह पर दोहरे कत्ल का इलजाम साबित हुआ. एक सुबह वह दोनों और उन के 2 साथियों की डिस्ट्रिक्ट जेल के अहाते में फांसी दे दी गईनजीर अपने तीनों बच्चों के साथ ढाब छोड़ कर चला गया. अब उस के पास इतनी रकम थी कि सारी उम्र बैठ कर खा सकता था. 3 सेर सोने के घंटे में से सरकार ने अपना तयशुदा सरकारी हिस्सा काटने के बाद बाकी नकद रकम नजीर के हवाले कर दी थी. इस के बाद 2-3 बार नजीर के घर की खुदाई की गई पर एक खोटा सिक्का नहीं मिला.

इस घटना के सालों बाद भी मैं उस मासूम और मरहूम सुगरा को नहीं भूल सका.

प्रेमी ने शादीशुदा महिला से पीछा छुड़ाने के लिए गोली मारी

अपनी महत्त्वाकांक्षाओं मां रूपम नौजवान रोहित के साथ प्यार की पींगें बढ़ाने लगी और उस के साथ शादी करने का सपना देखने लगी, लेकिन रोहित उसे एंजौय का साधन समझता था. रूपम ने जब उस से जिद की तो…   

9मई की रात तकरीबन साढ़े 8 बजे का वक्त था. उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद के थाना इंदिरापुरम में किसी ने फोन कर के सूचना दी कि न्याय खंड-3 में एक महिला को किसी ने गोली मार दी है.इस संवदेनशील सूचना के मिलते ही थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह मय पुलिस बल के सूचना में बताए स्थान पर पहुंच ग ए. उस इलाके में सैकड़ों की तादाद में जनता फ्लैट बने हुए हैं. जिस जगह यह वारदात हुई, वह गली एकदम सुनसान थी. गली फ्लैटों के पीछे की साइड में होने की वजह से लोग उस का इस्तेमाल कम ही किया करते थे.

थानाप्रभारी ने मौकामुआयना किया तो वहां करीब 28-30 साल की महिला खून से लथपथ पड़ी थी. गोली उस की कनपटी पर मारी गई थी. मौके पर मोबाइल फोन और एक थैला भी पड़ा था, जिस में सब्जियां थीं. महिला शायद जिंदा बच जाए इसलिए आननफानन में पुलिस उसे नजदीक के एक निजी अस्पताल ले गई. लेकिन डाक्टरों ने उस महिला को देख कर मृत घोषित कर दिया. महिला के पास से ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी जिस से तुरंत उस की शिनाख्त हो सके. लिहाजा घटनास्थल के आसपास के फ्लैटों में रहने वाले लोगों से पुलिस उस महिला के बारे में पूछताछ करने लगी

उसी समय अजय झा नाम का एक युवक पुलिस के पास पहुंचा. उस ने बताया कि उस की पत्नी रूपम काफी देर पहले सब्जी लेने गई थी, वह अभी तक नहीं लौटी है. पुलिस ने अजय को लाश दिखाई तो उस ने तुरंत लाश को पहचान लिया और उस की पुष्टि अपनी पत्नी रूपम के रूप में कर दी. मामला हत्या का था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना आला अधिकारियों को भी दे दी. सूचना मिलने पर एसपी सिटी शिवहरि मीणा और सीओ सिटी रणविजय सिंह भी अस्पताल पहुंच गएमृतका का पति बुरी तरह बिलख रहा था. पुलिस ने उसे ढांढस बंधा कर शुरुआती पूछताछ की. उस ने बताया कि शाम करीब 7 बजे रूपम बाजार से सब्जी लेने के लिए घर से निकली थी. पुलिस ने उस समय उस से ज्यादा पूछताछ करना जरूरी नहीं समझा और पंचनामा भर कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी

अजय झा की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी ने केस की छानबीन शुरू कर दी. वह इतना तो समझ गए थे कि हमलावर का मकसद केवल रूपम की हत्या करना था और उस के सिर में गोली इसलिए मारी गई थी ताकि वह जिंदा बच सके. चूंकि रूपम का पर्स, पहने हुए आभूषण और मोबाइल फोन सलामत था, इसलिए लूट की वजह से हत्या करने की संभावना बिलकुल नहीं थी. एसएसपी शुचि घिल्डियाल ने अगले दिन मृतका के पति को अपने औफिस में बुला कर पूछताछ की. उस ने बताया कि वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता है. किसी के साथ अपनी रंजिश या झगड़ा होने से भी उस ने इनकार कर दिया.

उस से पूछताछ में यह पता जरूर चला कि कुछ समय पहले उस ने अंतरिक्ष सोसायटी के पास एक प्रौपर्टी खरीदी थी. सीओ रणविजय सिंह ने एसएसपी के आदेश पर जब प्रौपर्टी वाले बिंदु पर जांच की तो आशंका खारिज हो गई. आगे बढ़ने का कोई और रास्ता देख पुलिस ने रूपम के मोबाइल फोन की जांच की. उस में अंतिम काल उस के पति की थी. इस बारे में पुलिस ने अजय से पूछा तो उस ने बताया, ‘‘मेरे पास रूपम का फोन करीब 8 बजे आया था. उस ने बताया था कि उस की सहेली मिल गई है इसलिए थोड़ा लेट हो जाएगी.’’  जांच के दौरान यह भी पता लगा कि रूपम एक दूसरा मोबाइल भी इस्तेमाल करती थी. पुलिस ने उस का दूसरा नंबर भी हासिल कर लिया. अगले दिन यानी 11 मई, 2014 को उस के नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई गई.

 काल डिटेल्स की जांच में एक ऐसा नंबर पुलिस को मिल गया, जिस पर रूपम अकसर बातें किया करती थी. हत्या वाली शाम भी उस की उस नंबर पर बात हुई थी, लेकिन बात करने के बाद उस ने वह नंबर डिलीट कर दिया था. फोन की डायल सूची से रूपम ने वह नंबर डिलीट क्यों किया, इस बात को पुलिस नहीं समझ पा रही थी. पुलिस ने उस नंबर की पड़ताल की तो वह न्याय खंड-3 के ही फ्लैट नंबर-553जी निवासी रोहित राणा का निकला. एक और चौंकाने वाली बात यह भी थी कि रूपम का जो दूसरा नंबर था, उस का सिम भी रोहित के नाम पर खरीदा गया था.

इन दोनों बातों से रोहित अब पुलिस के शक के दायरे में गया. पुलिस ने उस के घर दबिश दी लेकिन वह लापता था. इस से उस पर पुलिस का शक और भी पुख्ता हो गयासीओ रणविजय सिंह ने यह पूरी जानकारी एसएसपी को दी तो एसएसपी ने रोहित राणा की तलाश करने के लिए एक पुलिस टीम बनाई जिस में थानाप्रभारी वीरेंद्र सिंह, एसएसआई विशाल, एसआई सुभाष गौतम, अंजनी कुमार, कांस्टेबल विपिन चावला आदि को शामिल किया गया. सीओ रणविजय सिंह के निर्देशन में पुलिस रोहित की तलाश में संभावित जगहों पर दबिश डालने लगी. इस की भनक शायद रोहित को लग चुकी थी जिस से वह पुलिस से बचने के लिए इधरउधर भागता रहा. अंतत: एक मुखबिर की सूचना पर उसे रात 8 बजे के करीब एक शौपिंग मौल के पास से गिरफ्तार कर लिया गया.

तलाशी में उस के पास से एक .32 बोर की पिस्टल और एक कारतूस भी बरामद हुआ. थाने ला कर उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने रूपम की हत्या से परदा उठा दिया. वही उस का हत्यारा था. हत्या की जो वजह उस ने बताई. उसे सुन कर सभी चौंक गए. 30 वर्षीया रूपम का पति अजय झा मूलरूप से बिहार के दरभंगा जिले के न्यू बलभद्रपुर, भदेरिया सराय के रहने वाले श्यामधर का बेटा था. सालों पहले अजय भी अन्य युवकों की तरह कामधंधे की तलाश में दिल्ली चला आया था. उस ने कई छोटेमोटे काम कर के किसी तरह अपने पैर जमाए. 8 साल पहले उस का विवाह रूपम झा से हुआ.

रूपम खूबसूरत युवती थी. चूंकि अजय भी दिल्ली में काम करता था इसलिए शादी के बाद वह पत्नी को भी अपने साथ दिल्ली ले आया. रूपम वक्त के साथ 2 बच्चों की मां बन गई थी. वह बनसंवर कर रहती थी. 3 साल पहले अजय ने गाजियाबाद में प्रौपर्टी डीलिंग का मामूली सा काम शुरू किया. बाद में वह दिल्ली से गाजियाबाद शिफ्ट हो गया. अपने काम की उलझनों में अजय पत्नी पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाता था. इस के विपरीत रूपम की हसरतें जवान थीं. उसे देख कर नहीं लगता था कि वह 2 बच्चों की मां है. पति सुबह ही घर से निकल जाता था इसलिए घरेलू कामों के लिए रूपम को ही बाजार जाना पड़ता था. इसी दौरान उस की नजरें रोहित से चार हो गईं.

रोहित मूलत: उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के अग्रवाल मंडी, टटीरी कस्बे का रहने वाला था. फिलहाल वह न्याय खंड-3 में ही रहता था. वहीं वह ज्वैलरी की छोटी सी दुकान चलाता था. रोहित नवयुवक थाएक बार रूपम उस के यहां से बिछुए खरीद कर लाई थी. उस छोटी सी मुलाकात में ही वह रोहित को भा गई. यह करीब 5 महीने पहले की बात है. रोहित थोड़ा बातूनी स्वभाव का था. उस ने उस समय रूपम की सुंदरता की थोड़ी तारीफ क्या कर दी कि वह गदगद हो गई. इस के कुछ दिनों बाद रूपम की एक सहेली को भी अपने गले की चेन के लिए एक लौकेट खरीदना था, तब रूपम सहेली को रोहित की दुकान पर ले गई. रूपम को अपनी दुकान पर फिर आया देख रोहित बहुत खुश हुआ. उस के हावभाव और आंखों की भाषा से रूपम उस के मन की बात समझ गई थी.

 शादी के कई साल बाद भी अजय उस की महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सका था. रोहित की चाहत को देख कर रूपम के दिल की घंटी सी बज उठी. उसे लगा कि रोहित उस के ख्वाबों को हकीकत में बदल सकता है इसलिए मुसकरा कर उस ने रोहित के प्यार को हरी झंडी दे दी. उस दिन रोहित ने रूपम का फोन नंबर ले लिया. बातों ही बातों में रूपम ने उसे बता दिया कि उस का पति प्रौपर्टी डीलर है जो देर रात को ही घर लौटता है. इसलिए रूपम उस की दुकान से जाने के थोड़ी देर बाद ही रोहित ने उसे फोन कर दिया. इधरउधर की बातें करने के बाद रोहित ने उस से अपने मन की बात खुल कर कह दी. रूपम ने भी बिना कोई देर किए उस के प्यार को स्वीकार कर लिया. प्यार का इजहार कर के दोनों ही खुश थे.

 इस के बाद दोनों एकदूसरे से मोबाइल पर अकसर बातें करने लगे. रूपम अपने घर से किसी किसी बहाने निकलती और रोहित के साथ रेस्टोरेंट पार्कों में चली जाती. एकांत में होने वाली बातों के जरिए दोनों एकदूसरे के बेहद करीब गए. दिल तो कब के मिल चुके थे. फिर एक दिन एक होटल में उन्होंने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं. जब पति अपने काम पर निकल जाता और बच्चे स्कूल तभी रूपम रोहित को फोन कर देती. मौका देख कर रोहित उस के घर जाता था. इस तरह वे दोनों खूब मौजमस्ती करते रहे

पति को शक हो, इस से बचने के लिए रूपम मोबाइल पर बातें कर के प्रेमी रोहित का नंबर डिलीट कर देती थी. बाद में रोहित ने उसे एक मोबाइल और सिमकार्ड भी खरीद कर दे दिया. रोहित से बात करने के लिए वह ज्यादातर उसी नए नंबर का उपयोग करती थी. प्यार की दीवानगी हदों को लांघने लगी थी. वह पति और बच्चों को छोड़ कर प्रेमी के साथ ही घर बसाने की सोचने लगी. एक दिन उस ने रोहित से अपने मन की बात कह भी दी, ‘‘रोहित, क्यों हम कहीं जा कर शादी कर लें और फिर एक हो कर रहें.’’

रूपम की बात सुन कर रोहित सकते में आ गया. एकाएक उस से कोई जवाब नहीं बना क्योंकि उस ने कभी सोचा ही नहीं था कि ऐसी नौबत भी आ सकती है. वह रूपम को प्यार तो करता था लेकिन उस से शादी जैसी बात कभी नहीं सोची थी. उसे खामोश देख कर रूपम ने टोका, ‘‘क्या सोच रहे हो, क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं?’’ ‘‘ऐसी बात नहीं है रूपम. तुम ने जो बात कही है उस पर मुझे सोचने का मौका दो.’’ उस रात रोहित को ठीक से नींद नहीं आई. रूपम उस से उम्र में बड़ी थी. वह उसे इस्तेमाल तो करना चाहता था लेकिन उस के साथ बंध कर रहना नहीं चाहता था. काफी सोचनेसमझने के बाद उस ने रूपम से पीछा छुड़ाने का फैसला ले लिया और उस से पीछा छुड़ाने की सोचने लगा.

इस के बाद रोहित ने रूपम से दूरियां बनानी शुरू कर दीं. रूपम को जब लगा कि प्रेमी ने उस से मिलना कम कर दिया है तो एक दिन वह बोली, ‘‘रोहित, तुम आजकल कुछ बदलेबदले लगते हो. कहीं तुम मुझे धोखा तो नहीं दे रहे?’’ ‘‘ऐसी कोई बात नहीं है रूपम.’’ रोहित ने कहा.

‘‘तो फिर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम मुझ से दूर होते जा रहे हो. वैसे शादी के बारे में तुम ने क्या सोचा?’’

‘‘मैं हर पल तुम्हारे साथ हूं रूपम. मैं तुम से प्यार भी बहुत करता हूं. मेरा कहना यह है कि शादी के लिए अभी रुक जाओ. वैसे भी शादी की तुम इतनी जल्दी क्यों कर रही हो? हम मिलते तो रहते हैं.’’

‘‘रोहित, तुम्हारी बातों से मुझे यह लग रहा है कि तुम मुझे शादी के लिए टाल रहे हो. लेकिन मैं भी तुम्हें एक बात बताना चाहती हूं.’’

‘‘क्या?’’

‘‘अगर तुम ने मुझ से शादी नहीं की और धोखा दिया तो मैं आत्महत्या कर लूंगी और सुसाइड नोट में तुम्हारा नाम लिख दूंगी.’’ 

रूपम की इस धमकी से रोहित के पसीने छूट गए. वह बोला, ‘‘मुझे थोड़ा समय तो दो.’’

‘‘बस अब और नहीं. मुझे जल्दी जवाब चाहिए.’’ रूपम के तेवर देख कर रोहित डर गया. उस ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रही.

रोहित समझ गया था कि रूपम किसी भी सूरत में उस का पीछा छोड़ने वाली नहीं हैउस से पीछा छुड़ाने के लिए उस ने एक खतरनाक योजना बना ली. रोहित का एक दोस्त था गौरव त्यागी. गौरव को रोहित ने अपनी परेशानी बताई और उस से किसी हथियार का इंतजाम करने को कहा. गौरव ने बहुत जल्द एक पिस्टल का इंतजाम कर के उसे दे दिया. रोहित ने सोच लिया था कि वह आखिरी बार रूपम को समझाने की कोशिश करेगा. अगर वह फिर भी नहीं मानी तो उसे रास्ते से हटा देगा. योजना बना कर उस ने 9 मई, 2014 की शाम को रूपम को फोन किया, ‘‘रूपम, मुझे आज तुम से मिलना है. एक जरूरी बात करनी है.’’

रूपम खुश हुई कि रोहित ने शायद उस की बात मान ली है. वह बोली, ‘‘ठीक है, मैं तुम से 8 बजे के बाद घर के पीछे वाली उसी गली में मिलूंगी, जहां हम पहले मिलते थे.’’ उस गली का चुनाव रूपम ने इसलिए किया था क्योंकि वह सुनसान रहती थी. उस शाम रूपम बाजार के लिए घर से निकली. उस ने घर के लिए सब्जियां खरीदीं. इसी बीच उस ने अपने पति को फोन भी कर दिया कि वह सहेली के पास जाएगी इसलिए घर थोड़ी देरी से आएगी. वह तय समय पर रोहित से मिलने गली में पहुंच गई. रोहित भी वहां पहुंच गया था. वह रोहित के खतरनाक इरादों से पूरी तरह अनजान थी.

 उसे देखते ही रूपम ने पूछा, ‘‘क्या सोचा तुम ने?’’ ‘‘रूपम, तुम मेरी मजबूरी समझो. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता.’’ यह सुनते ही रूपम के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे उम्मीद नहीं थी कि रोहित उसे ऐसा जवाब देगा. ‘‘मैं अब तुम्हें छोड़ूंगी नहीं. तुम ने मेरे साथ अच्छा नहीं किया.’’ कहने के साथ ही रूपम ने गुस्से में रोहित के साथ हाथापाई शुरू कर दी. उसे नहीं पता था कि रोहित उस की मौत बनने जा रहा है.

‘‘पीछा तो तुम्हें छोड़ना ही पड़ेगा रूपम.’’ रोहित गुस्से में बोला और पलक झपकते ही पिस्टल निकाल ली. यह देख कर रूपम के होश उड़ गए. वह कुछ कर पाती, उस से पहले ही रोहित ने उस के सिर से पिस्टल सटा कर गोली चला दी. गोली लगते ही रूपम गिर पड़ी. उसे तड़पता छोड़ रोहित वहां से भाग गया. पुलिस उस तक न पहुंच सके, इसलिए वह घर से भी फरार हो गया. लेकिन पुलिस के जाल में वह फंस ही गया. उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या के समय पहनी गई टीशर्ट जिस पर खून के छींटे लगे थे, बरामद कर ली. उस का मोबाइल भी पुलिस ने जब्त कर लिया. 

अगले दिन पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया जहां से उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हो सकी थी. पुलिस उसे पिस्टल मुहैया कराने वाले उस के दोस्त गौरव त्यागी की तलाश कर रही थी.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इस फोटो का इस घटना से कोई संबंध नहीं है, यह एक काल्पनिक फोटो है

सच : कोलकाता रेप हत्याकांड की उस रात आखिर हुआ क्या

कोलकाता की ट्रेनी डाक्टर के साथ रेपमर्डर की वारदात का हंगामा सड़क से ले कर संसद तक में गूंज उठा. पूरा देश गुस्से में आ गया. सुप्रीम कोर्ट की सख्ती और सीबीआई की जांच रिपोर्ट के बाद एक साइको दरिंदे संजय राय की हैवानियत का खुलासा हुआ. लेकिन एक बार फिर वही सवाल उठ गया है कि लड़कियों और महिलाओं की सुरक्षा को ले कर सरकार के पास आखिर क्या उपाय है?

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता शहर में आर.जी. कर मैडिकल अस्पताल (राधा गोविंद कर मैडिकल कालेज ऐंड हौस्पिटल) 10 अगस्त की सुबहसुबह सुर्खियों में आ गया था. कुछ घंटे पहले की शांति भंग हो चुकी थी. पूरे शहर में कोहराम मचा हुआ था. गलीनुक्कड़ की चाय की दुकानों पर सुबह के चाय की चुस्कियां लेते लोगों के होंठ और जीभ जलने लगे थे. उन की जुबान अनहोनी घटना की चर्चाओं से छिलने लगी थी. 

दरिंदों ने लड़की को रौंद डाला! गैंग रेप! मर्डर! और शासनप्रशासन, सरकार… कानून को लात मारता वहशीपन…हैवानियत…बेखौफ दरिंदगी… आदि से असुरक्षित बेटियों की सुरक्षा को ले कर चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई थीं. अस्पतालों में सुबह की पहली पाली की ड्यूटी पर जाने को निकले स्वास्थ्यकर्मियों का मन बेचैन था. दिमाग में खलबली मची हुई थी. फूट पडऩे वाले गुस्से का उबाल उठने लगा था. आसमान में सूरज के चढ़ते ही अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं ठप हो गई थीं.

इंडियन मैडिकल एसोसिएशन ने अहम बैठक कर देशव्यापी हड़ताल की घोषणा कर दी थी…और फिर इस वारदात ने तेजी से पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लिया. क्या प्रिंट और क्या इलैक्ट्रौनिक मीडिया, इंटरनेट की वेब और सोशल मीडिया में डाक्टरों का गुस्सा उबाल पर आ गया था. मामला अस्पताल की एक 31 वर्षीया ट्रेनी महिला डाक्टर के साथ ड्यूटी के दरम्यान रेप व मर्डर का था. फिर इस पर जो कुछ लगातार होने लगा, उस की तारीखें इस तरह से आम लोगों को अपनी चपेट में लेती चली गईं. इस केस को ले कर पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार पर सवाल उठे. देशभर में लोगों का आक्रोश दिखा.

रेप और मर्डर केस में कब क्या हुआ?

कोलकाता के व्यस्त इलाके में बंगाल सरकार द्वारा संचालित आर.जी. कर मैडिकल कालेज और अस्पताल के इतिहास में 9 अगस्त, 2024 काला दिन साबित हुआ. सुबह साढ़े 9 बजे आर.जी. कर अस्पताल में स्नातकोत्तर प्रथम वर्ष की प्रशिक्षु ने एक डैडबौडी को दूर से देखा. इस की जानकारी उस ने तुरंत अपने सहकर्मियों और सीनियर डाक्टरों को दी. फिर सीनियर डाक्टर्स ने अस्पताल प्रशासन को सूचित कर दिया. प्रशासन अलर्ट हो गया.

सुबह 10 बज कर 10 मिनट पर इस की जानकारी आर.जी. कर अस्पताल के प्रशासन की पुलिस चौकी ने टाला पुलिस थाने को दे दी. आननफानन में पुलिस दल वहां पहुंच गया. शुरुआती जांच में उस ने पाया कि आपातकालीन भवन की तीसरी मंजिल पर स्थित सेमिनार कक्ष में एक महिला अचेत अवस्था में लकड़ी के मंच पर पड़ी है. महिला अर्धनग्नावस्था में है. सूचना मिलने पर मानव की हत्या संबंधित जांच करने वाली होमिसाइड टीम मौके पर पहुंच गई. टीम ने घटनास्थल से सबूत जुटाए. उसी वक्त कोलकाता पुलिस के कई वरिष्ठ अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए और उन्होंने फोरैंसिक टीम को बुलाया.

 

अपराह्नï एक बजे पीडि़ता के मम्मीपापा अस्पताल पहुंच गए. वे पुलिस और अस्पताल के अधिकारियों से मिले. न्यायिक मजिस्ट्रैट की मौजूदगी में शाम सवा 6 बजे डाक्टरों के बोर्ड द्वारा पीडि़ता के शव का पोस्टमार्टम किया गया. उस वक्त भी पीडि़ता के परिवार के सदस्य और सहकर्मी मौजूद रहे और पोस्टमार्टम प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की गई. उसी दिन रात को 8 बजे डौग स्क्वायड को मौके पर ले जाया गया. घटनास्थल की 3डी मैपिंग की गई. इस दौरान फोरैंसिक टीम ने 40 से अधिक वस्तुओं के जांच के नमूने सुरक्षित रख लिए. उसी वक्त पोस्टमार्टम के बाद शव घर वालों को सौंप दिया गया.

पीडि़ता के पापा की शिकायत पर पुलिस ने रेप और मर्डर की रिपोर्ट दर्ज कर ली. ट्रेनी डाक्टर के शव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट बेहद डरावनी है. उसे जान कर किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं. रिपोर्ट के अनुसार उस के प्राइवेट पार्ट समेत 14 जगहों पर गंभीर चोटें चीखचीख कर बताती हैं कि पीडि़ता के साथ कई बार बर्बरता की गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में क्रूरता का खुलासा मृतका के शरीर पर दरजन भर से अधिक चोटों के निशान से होता है. रिपोर्ट के अनुसार मृतका के सिर, गाल, होंठ, नाक, दाहिना जबड़ा, ठोड़ी, गरदन, बायां हाथ, बायां कंधा, बायां घुटना, टखना और प्राइवेट पार्ट पर चोट के निशान मिले. वहीं, शरीर के अंदरूनी हिस्सों में भी चोटें आईं. शरीर के कई हिस्सों में खून के थक्के जमने के साथ फेफड़ों में रक्तस्राव पाया गया. जननांग के अंदर भी सफेद गाढ़ा चिपचिपा तरल पदार्थ मिला. रिपोर्ट बताती है कि दोनों हाथों से गला घोंटने के कारण पीडि़ता की मृत्यु हुई. रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा हुआ कि आरोपी ने कई बार पीडि़ता के साथ जबरदस्ती यौनशोषण किया था.

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लिया स्वत:संज्ञान

कोलकाता डाक्टर रेपमर्डर के इस मामले से न केवल दिल्ली निर्भया कांड की यादें ताजा हो गईं, बल्कि डाक्टरों की सुरक्षा को ले कर भी सवाल खड़े हो गए. डाक्टरों के संगठनों ने देशव्यापी हड़ताल कर दी. दिल्ली के एम्स तक में स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई. सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को गंभीरता से लिया और इस में खुद दखल देेते हुए इस मामले को ट्रेनी डाक्टर के रेप एंड मर्डर केसके नाम से लिस्ट किया. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने इस मामले में 20 अगस्त, 2024 को सुनवाई की.

यानी किसी याचिका के बिना ही सुप्रीम कोर्ट ने ऐक्शन लिया. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का दखल बहुत महत्त्वपूर्ण बन गया. सुप्रीम कोर्ट ने दोहरी भूमिका निभाई. क्योंकि इस घटना का सीधा असर देशभर के डाक्टरों पर पड़ा. देश के अलगअलग शहरों में डाक्टरों का प्रदर्शन होने और अस्पतालों में इलाज में रुकावट आने से ले कर रेपमर्डर के मामले की निष्पक्ष जांच पर नजर भी रखी गई. उधर पुलिस ने जांच के बाद सिविक वालंटियर संजय राय को गिरफ्तार कर लिया. रेप या गैंगरेप का सही जवाब तलाशने के क्रम में अब बारी थी गिरफ्तार आरोपी सिविक वालंटियर संजय राय के साइको टेस्ट की. सीबीआई ने उसे अपनी कस्टडी में ले कर उस की मनोदशा की जांच के लिए मनोविश्लेषणात्मक प्रोफाइल यानी साइको एनालिटिक प्रोफाइल जांच कराने का फैसला किया था.

बेहद गोपनीय रिपोर्ट से हट कर जो बातें सामने आईं, वह बेहद रोंगटे खड़े करने वाली थीं. साइको रिपोर्ट से आरोपी की न केवल रेप जैसी हरकत का पता चला, बल्कि इस से उस के वहशीपन, दरिंदगी और जानवरों जैसी सोच का भी खुलासा हुआ. सीबीआई के साइको टेस्ट में संजय राय ने लगातार अपने बयान बदले. उस ने कभी खुद को फांसी पर लटकाने की बात कही तो अगले ही पल उस ने अपनेआप को निर्दोष बताया. हालांकि पुलिस की जांच और सीबीआई की रिपोर्ट के अनुसार संजय राय ने अपना अपराध कुबूल कर लिया है. सीबीआई संजय को ले कर आर.जी. कर अस्पताल गई थी और वारदात को रिक्रिएट करवाया था. उस से घंटों पूछताछ की गई थी.

दरअसल, सेमिनार हाल की तरफ जाने वाले सीसीटीवी फुटेज में सिर्फ एक संदिग्ध नजर आया था, वह संजय राय ही था. इस के अलावा कुछ लोग कैमरे में वहां से गुजरते दिखाई देने वाले 3 से 5 मिनट के दरम्यान अपनेअपने वार्ड में जाते या अपनेअपने काम में लगे नजर आए थे, जबकि एकमात्र संजय  40 मिनट से अधिक समय तक सेमिनार हाल में नजर आया था.

ब्लूटूथ ने दिया ठोस सबूत

सेमिनार हाल से बरामद एक नेकबैंड ब्लूटूथ भी एक अहम सबूत बन गया था, क्योंकि उस का कनेक्शन संजय के मोबाइल से पाया गया था. उल्लेखनीय है कि इसी आधार पर वह वारदात के 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार कर लिया गया था. इस पूरे मामले का वह इकलौता आरोपी था, जिसे पूछताछ के लिए 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में ले कर प्रेसिडेंसी जेल भेज दिया गया था. उसे सीबीआई ने 14 अगस्त को जब से अपनी हिरासत में लिया था, तब से जांच में संजय ने खुद को सीबीआई के हाथों से बचाने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन आखिरकार सीबीआई के उलझा देने वाले सवालों का जवाब देते हुए उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. और तो और, उस ने रात और सुबह की पूरी कहानी बयां कर दी.

जांच में यह भी पता चला कि पीडि़ता के साथ रेप हुआ था, गैंगरेप नहीं. यानी रेप के मामले में अकेला आरोपी संजय राय ही शामिल था. इसी रेप के दौरान आरोपी ने ही जूनियर डाक्टर का कत्ल किया. इस बाबत सीबीआई ने आर.जी. कर अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष से भी पूछताछ की. वारदात के बाद की तमाम लापरवाहियों की कडिय़ों को जोडऩे के लिए ये पूछताछ महत्त्वपूर्ण बताई गई. जांच और पूछताछ रेप के साथसाथ मर्डर की भी थी, जो हैवानियत को दर्शाने वाली थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक, इस केस ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. आरोपी की दरिंदगी की चौतरफा निंदा हुई. 

जांच में पता चला कि आरोपी एक साइको था, जिस ने वारदात से पहले उस रात शराब पी थी, सैक्सवर्कर के बहुचर्चित इलाके सोनागाछी गया था और मोबाइल पर पोर्न वीडियो देखी थी. सीबीआई जांच और पूछताछ के दरम्यान आरोपी संजय के चेहरे पर न डर, न चेहरे पर शिकन दिखाई दी. उस के भीतर छिपे जानवरको देख सीबीआई के अधिकारी हैरान रह गए. क्रिएट किए गए क्राइम सीन पर जो कुछ भी हुआ, उसे बताते समय वह बिलकुल भावशून्य दिख रहा था. उस के बारे में तैयार की गई साइकोएनालिटिक प्रोफाइल के अनुसार उस की तसवीर पशुओं जैसी प्रवृत्ति वाली ही दिख रही थी. रेप और मर्डर का आरोपी संजय को सैक्स एडिक्ट बताया गया है. साइको- एनालिस्ट्स की टीम जब उस से पूछताछ कर रही थी, तब उस के माथे पर कोई शिकन तक नहीं थी. जैसे उसे कोई पछतावा नहीं है. वह बेशरमी से अपना पक्ष रख रहा था, जिसे देख कर सीबीआई भी हैरान रह गई.   

कोलकाता पुलिस की जांच में पाया गया कि आरोपी घटना वाली रात (8 अगस्त) को रेडलाइट एरिया गया था. वहां वह 2 वेश्यालयों में गया और जम कर शराब पी. जब वहां से निकला तो नशे में धुत था. वेश्यालयों में जाने के बाद आरोपी आधी रात के बाद अस्पताल गया, जहां वह काम करता था. उसी दरम्यान वह सीसीटीवी फुटेज में आ गया था. उसी के आधार पर उसे गिरफ्तार किया गया, जिस में वह सेमिनार हाल में घुसता और निकलता हुआ दिखाई दे रहा था. वहीं पीडि़ता जूनियर डाक्टर सोने के लिए गई थी. अस्पताल से इकट्ठा किए गए सीसीटीवी फुटेज में संजय राय को 8 अगस्त को सुबह 11 बजे के आसपास चेस्ट डिपार्टमेंट के वार्ड के पास देखा गया था. उस समय पीडि़ता 4 अन्य जूनियर डाक्टरों के साथ वार्ड में ही थी. जाने से पहले राय कुछ देर तक उसे घूर भी रहा था.

आरोपी के बारे में सीबीआई ने शहर पुलिस कल्याण बोर्ड के सदस्य और सहायक उपनिरीक्षक अनूप दत्ता से पूछताछ में पता चला कि आरोपी की उन से निकटता थी, जिस से पुलिस बैरक में जाने और आर.जी. कर अस्पताल जैसी संस्था में वह दिन या रात के किसी भी समय स्वतंत्र रूप से घूम सकता था. बताते हैं कि सीबीआई को कथित तौर पर अनूप दत्ता और संजीव राय को साथ में दिखाने वाली कई तसवीरें मिल चुकी हैं. मृतका ट्रेनी डाक्टर के नाम की नेमप्लेट कई दिनों तक उन की चैंबर के बाहर लगी रही. वहां के कर्मचारी उन्हें डाक्टर दीदी कह कर बुलाते थे. उन के बारे में अस्पताल के डाक्टरों ने बताया कि वह खुले विचारों वाली थीं. बहुत अच्छी डाक्टर थीं और इत्मीनान से मरीज की समस्याओं को सुनती थी.

बताते हैं कि कि आर.जी. कर अस्पताल की यह डाक्टर जिस इलाके में रहती थी, वहां भी सप्ताह में 2 से 3 दिन मरीजों का इलाज करती थी. सीबीआई के हाथ लगी पीडि़ता की डायरी के मुताबिक उस ने कई सपने देखे थे, जिसे वह पूरा करना चाहती थी. डायरी के पन्ने पर उस की जिंदगी की दास्तान लिखी हुई है. इस डायरी में उस ने वैसी बातें लिखी हुई थीं, जिन्हें वो जिंदगी में करना चाहती थी. सीबीआई ने डायरी के हैंडराइटिंग की जांच के लिए डायरी एक्सपर्ट को भेज दी. उस की हैंडराइटिंग मिलाने के घर से कुछ नोट्स भी हासिल कर लिए थे, ताकि उस की जांच हो सके.

सुप्रीम कोर्ट ने खड़े किए सवाल

इस केस को ले कर सुप्रीम कोर्ट काफी सख्त थी. उस ने वारदात को ले कर कई सवाल पूछे. कोर्ट ने मामले की लगातार सुनवाई के दौरान दूसरे दिन 22 अगस्त को बचाव पक्ष के वकील कपिल सिब्बल से कई सवाल किए, जिस पर वह हक्काबक्का रह गए. चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने वकील कपिल सिब्बल से कड़े सवाल करते हुए पूछे. इन में एक सवाल अप्राकृतिक मौत का मामला (यूडी केस) दर्ज करवाने के समयको ले कर भी था. 

दरअसल, सुनवाई शुरू ही हुई थी कि जस्टिस मनोज मिश्रा ने यूडी केस दर्ज कराने की टाइमिंगपर सवाल किया. उन्होंने पूछा कि आटोप्सी रिपोर्ट के मुताबिक आटोप्सी 9 अगस्त की रात के 9 बजे की गई थी, फिर अप्राकृतिक मौत का मुकदमा रात को 23.30 यानी 11.30  बजे दर्ज किया गया. ऐसा क्योंइस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि नहीं, 23.30 बजे तो एफआईआर दर्ज करवाई गई थी. थोड़ी देर जस्टिस मिश्रा और सिब्बल के बीच बातचीत हुई, फिर जस्टिस जे.बी. पारदीवाला सिब्बल से पूछताछ करने लगे. उन्होंने कहा कि आप अपने रिकौर्ड के मुताबिक बताइए कि पोस्टमार्टम कब हुआ

इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि पोस्टमार्टम शाम 6.10 से 7.10 बजे शाम के बीच हुआ. तब जस्टिस पारदीवाला ने पूछा कि जब मामला अप्राकृतिक मौत का नहीं था तो फिर पोस्टमार्टम करवाने की नौबत क्यों आई? दरअसल, जस्टिस पारदीवाला ये कह रहे थे कि बिना अप्राकृतिक मौत के तो पोस्टमार्टम करवाया नहीं जाता? इस का मतलब है कि आप मान रहे थे कि मौत अप्राकृतिक है, तभी तो आप बौडी को पोस्टमार्टम के लिए ले गए. तब सिब्बल कुछ बोलने लगे तो जस्टिस पारदीवाला ने उन्हें टोका. तब सिब्बल सौरी, सौरीकरने लगे. जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि जब शाम 6.10 से 7.10 बजे के बीच पोस्टमार्टम हो गया तो फिर अप्राकृतिक मौत का केस (यूडी केस) दर्ज करवाने में इतनी देर क्यों हुई? आप ने रात साढ़े 11 बजे यूडी केस क्यों दर्ज करवाया?

इस पर कपिल सिब्बल बोले कि साढ़े 11 बजे तो एफआईआर दर्ज करवाई गई है, यूडी केस नहीं. तब जस्टिस पारदीवाला ने पूछा कि आप के रिकौर्ड के मुताबिक यूडी केस कब दर्ज करवाया गयाइस पर सिब्बल ने कहा कि यूडी केस अपराह्न पौने 2 बजे दर्ज करवाया गया था. तब जस्टिस पारदीवाला ने हैरानी जताई कि आखिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने से पहले यूडी केस कैसे दर्ज करवा दिया गया? जब पता ही नहीं कि मामला अप्राकृतिक मौत का है या नहीं तो पहले ही केस कैसे दर्ज हो गयाइस पर कपिल सिब्बल हक्काबक्का रह गए. उन्हें कोई जवाब नहीं सूझा तो यह बोल कर बच निकले कि ऐसा उन्हें बताया गया है.

जस्टिस पारदीवाला ने सिब्बल का पीछा नहीं छोड़ा. उन्होंने कहा कि अगर आप के आफिसर यहां हैं तो उन से पूछ कर बताइए कि सच्चाई क्या है? अगर यही बात है जो आप बता रहे हैं, तब तो यह बहुत खतरनाक है. तब सिब्बल को मजबूरी में सहमति जतानी पड़ी. वो जस्टिस पारदीवाला के इस तहकीकात पर कहने लगे, ‘जी, मैं आप से सहमत हूं.उस के बाद औफिसर ने माइक पर आ कर बोलना शुरू किया, ‘मी लार्ड, मैं बताना चाहता हूं…तभी न्यायाधीशों ने उन्हें थोड़ी देर रुकने को कहा. जस्टिस पारदीवाला ने सिब्बल से कहा कि वह अपने औफिसर को समझा दें कि सीधासीधा जवाब दें, घुमाफिरा कर नहीं. फिर जस्टिस पारदीवाला ने पूछा, ‘यूडी केस नंबर 861 किस वक्त दर्ज कराया गया?’

इस पर लंबे वक्त तक कोई जवाब नहीं आया तो जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि अगर कुछ गड़बड़ है तो आप सुधार लें, फिर बताएं. इस बीच सौलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हमारी रिपोर्ट उसी केस डायरी पर आधारित है, जो उन्होंने हमें दी है. इस पर जस्टिस पारदीवाला ने रोकते हुए कहा कि आप थोड़ा रुकिए, उन्हें हमारे सवालों का जवाब देने दीजिए. फिर देर तक सिब्बल की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि आखिर आप इतना वक्त क्यों ले रहे हैं? डाक्यूमेंट पर जो वक्त लिखा है, वह देख कर बस बता दें. देर तक सिब्बल कुछ नहीं बोल पाए तो जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि अगली सुनवाई में आप किसी जिम्मेदार पुलिस वाले को यहां मौजूद रखिएगा.

यानी कि 9 अगस्त को अस्पताल प्रशासन की तरफ से हुई देरी और लापरवाही को ले कर सुप्रीम कोर्ट ने भी तमाम सवाल उठाते हुए बारबार पूछते रहे कि घटना वाले दिन कब डीडी एंट्री हुई? कब केस डायरी दर्ज हुई? कब एफआईआर लिखी गई? पोस्टमार्टम कितने बजे हुआ? लाश घर वालों को कब सौंपी गई? अंतिम संस्कार कब हुआ? पंचनामा कितने बजे किया गया? पश्चिम बंगाल सरकार और खासकर पुलिस के रवैए से कोर्ट बेहद नाराज नजर आया. चीफ जस्टिस ने कहा, ”आप अपने दस्तावेज में देखें. पुलिस डायरी में एंट्री सुबह 5 बज कर 20 मिनट की है. अस्पताल से पुलिस को सुबह 10 बज कर 10 मिनट पर सूचना दी गई कि एक महिला अर्धनग्न हालत में पड़ी हुई है. मैडिकल बोर्ड ने राय दी कि उस के साथ रेप हुआ और पुलिस की जीडी एंट्री ये पता चलता है कि मौकाएवारदात की घेराबंदी पोस्टमार्टम के बाद की गई.’’

पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष भी शिकंजे में

आखिरकार मैडिकल कालेज के पूर्व प्राचार्य संदीप घोष भी सीबीआई के शिकंजे में आ गए. उन के घर और ठिकानों समेत 14 जगहों पर छापेमारी के बाद 25 अगस्त, 2024 को गिरफ्तारी हो पाई. सीबीआई ने उन पर वित्तीय अनियमितता के साथसाथ पीडि़ता को ही दोषी ठहराने का आरोप लगाया है. पीडि़ता के घर वालों ने घोष पर आरोप लगाया कि अस्पताल के प्रिसिंपल (जो उस वक्त संदीप घोष थे) और दूसरे प्रशासनिक अधिकारियों ने उन्हें फोन पर बताया कि उन की बेटी ने आत्महत्या कर ली है. उन के खिलाफ एक दिन पहले एफआईआर दर्ज की थी. उस के बाद ताबड़तोड़ छापेमारी शुरू की गई थी.

इस मामले में पहले कोलकाता में बनाई गई एसआईटी जांच कर रही थी. इस दल को तय सीमा के अंदर अपनी जांच रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपनी थी. इस का नेतृत्व राज्य के पुलिस महानिरीक्षक प्रणव कुमार के जिम्मे थे. जांच से जुड़े एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि कई बार नोटिस भेजे जाने के बाद भी संदीप घोष जांच दल के सामने पेश नहीं हो रहे थे. जबकि उन पर लगे आरोपों की जांच के लिए दल में शामिल सीबीआई के अधिकारी और दूसरे अधिकारी अस्पताल के रिकौर्ड खंगालने लगे थे. 

एसआईटी ने 24 अगस्त की सुबह कोलकाता के सीबीआई औफिस जा कर इस केस से संबंधित तमाम दस्तावेज सीबीआई को सौंप दिए. इस से पहले 23 अगस्त को कलकत्ता हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति राजश्री भारद्वाज की एकल खंडपीठ ने डा. संदीप घोष पर लगे आरोपों की जांच का जिम्मा भी सीबीआई को सौंप दिया था. उस के बाद सीबीआई ने अलग से एक विशेष टीम बनाई. डा. संदीप घोष और अस्पताल प्रशासन की कड़ी आलोचना कलकत्ता हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में हुई. उन से सीबीआई भी लंबी पूछताछ कर चुकी थी. इस घटना के तुरंत बाद उन्होंने कालेज से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि कुछ घंटे बाद ही उन की नियुक्ति कलकत्ता नैशनल मैडिकल कालेज और अस्पताल में प्रिंसिपल के पद पर हो गई. 

संदीप घोष ने अपनी स्कूली शिक्षा कोलकाता के पास बोंगांव हाईस्कूल से पूरी की थी. मैडिकल और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा में सफलता हासिल करने के बाद उन्होंने आर.जी. कर मैडिकल कालेज में पढ़ाई की. साल 1994 में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की और एक आर्थोपेडिक सर्जन बने. फिर वह 2021 में आर.जी. कर मैडिकल कालेज के प्रिंसिपल बन गए. 

इस से पहले उन्होंने कलकत्ता नैशनल मैडिकल कालेज में वाइस प्रिंसिपल के रूप में कार्य किया था. बताते हैं कि वह अपने छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय रहे. एक प्रशासक के तौर पर भी उन का बेहद सम्मान रहा. आर.जी. कर कालेज में प्रिंसिपल के तौर पर कार्यभार संभालने के बमुश्किल 2 साल बाद ही उस कालेज के पूर्व उपाधीक्षक अख्तर अली ने राज्य सतर्कता आयोग में उन के खिलाफ एक शिकायत दर्ज करवा दी थी, जिस में संदीप घोष के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए थे. 

इस के बावजूद पिछले एक साल में डा. घोष के खिलाफ कोई ठोस काररवाई नहीं की गई और वह आर.जी. कर मैडिकल कालेज के प्रिंसिपल बने रहे. डाक्टर के मृत पाए जाने के बाद संदीप घोष और अस्पताल प्रशासन की प्रतिक्रिया को ले कर कोलकाता हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा कड़ी आलोचना हुई. हाईकोर्ट ने कहा कि जब मृतक पीडि़ता अस्पताल में कार्यरत एक डाक्टर थी तो यह आश्चर्यजनक है कि प्रिंसिपल/अस्पताल ने औपचारिक शिकायत क्यों नहीं दर्ज की? यह हमारे विचार में एक गंभीर चूक थी, जिस ने संदेह को जगह दी.

हाईकोर्ट ने उन के इस्तीफे के कुछ घंटों बाद डा. घोष को दूसरे कालेज का प्रिंसिपल नामित करने की राज्य की ममता बनर्जी सरकार की अत्यावश्यकतापर भी सवाल उठाया. उन से अब सीबीआई ने लगातार 6 बार पूछताछ की. उन से 5 दिनों में ही 60 घंटे से अधिक समय तक पूछताछ की गई. राज्य सरकार द्वारा भ्रष्टाचार और बलात्कार हत्या पीडि़ता की पहचान को कथित तौर पर उजागर करने के मामले में भी उन की जांच की गई.

पौलीग्राफ टेस्ट में उलझे आरोपी

सीबीआई ने सच जानने के लिए पौलीग्राफ टेस्ट का सहारा लिया. इस के लिए सीबीआई  अधिकारियों द्वारा 24 अगस्त को संजय राय के पौलीग्राफ टेस्ट की सभी प्रक्रियाएं पूरी करने के लिए करीब डेढ़ घंटे तक प्रेसीडेंसी जेल में तैयारी की गई. यह टेस्ट आरोपी समेत 7 लोगों के किए जाने हैं, जिस में एक कालेज के पूर्व प्राचार्य संदीप घोष भी हैं. कारण घटना की रात 4 डाक्टर और एक सिविल वालंटियर शामिल था. पौलीग्राफ टेस्ट के दौरान व्यक्ति की ओर से सवालों के जवाब दिए जाने के समय एक मशीन की मदद से उस की शारीरिक प्रतिक्रियाओं की माप की जाती है. इस दौरान आरोपी झूठ बोलता है तो आमतौर पर उस की हृदयगति बढ़ जाती है, रक्तचाप बढ़ जाता है, काफी पसीना आता है, सांस लेने में कठिनाई होती है, त्वचा में कई तरह के बदलाव देखे जाते हैं. इस आधार पर यह पता लगाया जाता है कि वह कितना सच और कितना झूठ बोल रहा है.

हर सवाल को 3 बार पूछा जाता है. आरोपी को हां और न में जवाब देना होता है. यदि जवाब 3 बार का एक ही होता है तो इस का मतलब होता है कि वह झूठ नहीं बोल रहा है और यदि जवाब में अंतर आता है, तब आरोपी के विभिन्न शारीरिक परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं.  इस जांच की जिम्मेदारी दिल्ली के केंद्रीय फोरैंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) में तैनात पौलीग्राफविशेषज्ञों के एक दल को सौंपी गई है. कथा लिखे जाने तक वे कोलकाता के लिए रवाना हो चुके थे. इस जांच की जरूरत के बारे में सीबीआई का कहना था कि इसे सुप्रीम कोर्ट के कहे जाने के बाद जरूरी समझा गया.

सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त को कहा था कि स्थानीय पुलिस ने ट्रेनी डाक्टर से बलात्कार और उस की हत्या के मामले को दबाने का प्रयास किया था और जब तक इस की जांच सीबीआई हाथ में आई, तब तक घटनास्थल पर छेड़छाड़ की जा चुकी थी और इस वारदात के खिलाफ देश भर में व्यापक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. पौलीग्राफ जांच में संदीप घोष से सीबीआई के 12 सवाल पूछे, वे सवाल थे जब ट्रेनी डाक्टर का रेप और हत्या हुई उस रात को आप कहां थे? आप को घटना के बारे में किस ने सूचित किया और आप की पहली प्रतिक्रिया क्या थी? आप ने परिवार को सूचित करने का निर्देश किसे दिया था और कैसे? किस ने पुलिस से संपर्क किया?

मम्मीपापा को शव देखने के लिए करीब 3 घंटे तक इंतजार क्यों कराया? चेस्ट मैडिसिन विभाग का साप्ताहिक रोस्टर क्या था? पीडि़त डाक्टर को लगातार 48 घंटे तक काम करने के लिए क्यों कहा गया था? शव मिलने के 2 दिन बाद आप ने इस्तीफा दे दिया? आप ने ऐसा क्यों किया? सेमिनार रूम का बगल वाला हिस्सा क्यों टूटा हुआ है? आप खुद एक डाक्टर हैं? क्या आप को नहीं लगता है कि क्राइम सीन को सुरक्षित रखना जरूरी है, फिर क्यों और किस के कहने पर रिनोवेशन करवाया? आप ने कलकत्ता हाईकोर्ट से सुरक्षा मुहैया कराने को कहा? आप को किस से अपनी जान का खतरा है? क्या रात से गायब ट्रेनी डाक्टर की सुबह 10 बजे तक किसी को जरूरत नहीं पड़ी?

डाक्टर की डेथ की सूचना मिलने पर आप ने इसे आत्महत्या क्यों बताया? डाक्टर के मम्मीपापा से झूठ क्यों बोला गया और देर से एफआईआर क्यों दर्ज कराई? कैसे संजय राय पुलिस की बाइक ले कर जाता था रेड लाइट एरिया? बहरहाल, इस मामले में अभी दूध का दूध और पानी का पानी होना बाकी है. साथ ही पीडि़ता के मम्मीपापा न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं.

डैम में मिली दोनों लाशें किसकी थीं, जिनके सिर और हाथपैर गायब थे

डैम से बरामद लाशें और काररवाई करती पुलिस आशीष धस्माना चाहता था कि उस के अस्पताल में जो भी हो, उस की मरजी से हो. नर्स निशा भी उस की चाहत में शामिल थी. जबकि निशा का प्रेमिल संबंध डा. एच.पी. सिंह से था. जब कई कारण एक साथ जुड़ गए तो आशीष ने एच.पी. सिंह को मारने की योजना बनाईएच.पी. सिंह तो बच गए, लेकिन निशा और विजय बेमौत मारे गए.   

उत्तराखंड स्थित सिखों का ऐतिहासिक गुरुद्वारा नानकमत्ता किसी बड़े तीर्थस्थल से कम नहीं है. यहीं पर नानकसागर डैम भी है, जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. यहां लोगों की आवाजाही लगी रहती है. 8 सितंबर, 2014 सोमवार की शाम को नानकसागर बिजली कालोनी के कुछ युवक बनबसा में होने वाली सेना की भरती की तैयारी करने के लिए नानकसागर डैम के किनारे दौड़ लगा रहे थे. उसी दौरान उन की नजर झाड़ी में पड़े 2 मानव धड़ों पर पड़ी. इन में एक धड़ युवती का था और दूसरा युवक का. दोनों के ही सिर और हाथपांव गायब थे. मानव धड़ों को देख कर लड़के घबरा गए. उन्होंने लौट कर यह बात कालोनी वालों को बताई. इस बात को ले कर कालोनी में तहलका मच गया, लेकिन तब तक रात हो चुकी थी. 

सुबह को कालोनी के लोगों ने यह बात प्रतापपुर के प्रधान को बताई. ग्रामप्रधान उन लड़कों को ले कर घटनास्थल पर पहुंचे. वहां वाकई 2 धड़ पड़े थे. ग्रामप्रधान ने यह सूचना प्रतापपुर पुलिस चौकीइंचार्ज डी.एस. बिष्ट और थाना नानकमत्ता को दी. खबर मिलते ही डी.एस. बिष्ट और थानाप्रभारी अरुण कुमार पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने इस घटना की सूचना डीआईजी अनंतराम चौहान, एसएसपी रिद्विम अग्रवाल, सीओ रामेश्वर डिमरी और सितारगंज के कोतवाल राजनलाल आर्य को भी दे दी थी. मामला गंभीर था, सूचना मिलने पर सारे पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर जा पहुंचे

घटनास्थल पर झाड़ी में नग्नावस्था में पड़े युवती के धड़ के हाथपांव और सिर गायब थे. उस धड़ के पास ही 2 बोरे और पड़े थे, जिन में से एक बोरे में एक युवक का धड़ था, जबकि दूसरे में युवक और युवती के कटे हुए हाथपैर थे. सिर दोनों के ही गायब थे. धड़ और कटे अंगों को देख कर लग रहा था कि हत्यारों ने उन दोनो को मारने में कू्ररता की सारी हदें पार कर दी थीं. जिस झाड़ी में धड़ पड़े थे. वहीं पास में युवक का लोअर (पाजामा) टीशर्ट और युवती के कपड़े और चप्पलें भी पड़ी मिलीं. मृतकों के कपड़ों की तलाशी ली गई तो युवती के कपड़ों से एक चाबी के अलावा कुछ नहीं मिला.

पुलिस ने लाशों की शिनाख्त के लिए काफी कोशिश की, लेकिन लाशें चूंकि सिरविहीन थीं, इसलिए कोई भी उन्हें नहीं पहचान पाया. स्थानीय लोगों से पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए जिला मुख्यालय उधमसिंह नगर भिजवा दिया. इस के साथ ही थाना नानकमत्ता में दोहरी हत्या का केस दर्ज कर लिया गया. लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद पुलिस ने आसपास के सभी थानाक्षेत्रों से उन के इलाके से गुमशुदा लोगों की जानकारी ली. लेकिन कहीं से भी किसी के लापता होने की सूचना नहीं मिली. इस के बाद पुलिस ने आसपास के गांवों में भी मृतकों के बारे में पता लगाने की कोशिश की, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ.

जिन बोरों में लाशें मिली थीं, वह शंकर ब्रांड चोकर के थे. पशुओं के लिए सप्लाई किए जाने वाला यह चोकर इलाके के ही एक फ्लोर मिल द्वारा तैयार किया जाता था. पुलिस ने फ्लोर मिल मालिक से बात की तो पता चला कि उन का यह प्रोडक्ट खटीमा, बनबसा, टनकपुर, सितारगंज और नानकमत्ता के अलावा बरेली, पीलीभीत और रामपुर में भी सप्लाई होता है. चूंकि इस बात की पूरी संभावना थी कि जहांजहां शंकर ब्रांड चोकर सप्लाई होता है, वहीं कहीं युवक और युवती की हत्या की गई होगी. पुलिस ने उत्तराखंड से सटे उत्तर प्रदेश के जिला बरेली, पीलीभीत और रामपुर जिलों में भी अपनी टीमें भेज कर मृतकों के बारे में पता लगाने का प्रयास किया, पर नतीजा कोई नहीं निकला. कहीं से किसी युवकयुवती के गायब होने की जानकारी नहीं मिली.

पोस्टमार्टम हो जाने के बाद पुलिस ने लाशों के टुकड़ों को 72 घंटे के लिए मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया. अगले दिन यानी 9 सितंबर को पुलिस ने नानकसागर डैम में नाव से मृतकों के सिरों की खोज की, लेकिन एक भी सिर नहीं मिल सकापुलिस अभी मृतकों के सिरों की तलाश कर ही रही थी कि मंगलवार को शाम 5 बजे विडौरा मझौला गांव के चरवाहे जागीर सिंह ने खकरा नदी के किनारे एक कुत्ते को नदी से काली पौलीथिन खींचते हुए देखा, जिस में से तेज दुर्गंध आ रही थी. जागीर सिंह ने यह बात गांव के प्रधान बलवंत सिंह को बताई. 

प्रधान बलवंत की सूचना पर सीओ जे.आर. जोशी और थानाप्रभारी अरुण कुमार पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने खकरा पुल से 5 सौ मीटर की दूरी पर काले रंग की पौलीथिन में पड़ा युवती का सिर बरामद किया. थोड़ी कोशिश के बाद युवक का सिर भी उसी नदी में मिल गया. उस के चेहरे पर चोट के निशान थे. हत्यारों ने निस्संदेह लाशों की पहचान छिपाने के लिए दोनों के सिरों को नानकसागर डैम से 4 किलोमीटर दूर विडौरा मंझोला के पास खकरा नदी के पास फेंका था

पुलिस ने बरामद सिरों की पड़ताल की तो युवक के चेहरे पर मुर्गे के पंख चिपके मिले. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि युवक और युवती की हत्या किसी ऐसे स्थान पर की गई होगी, जहां पर या तो मुर्गी पालन होता होगा या फिर उस जगह मुर्गे काटे जाते होंगे. पुलिस को जिस बोरे में बाकी अंग मिले थे, प्लास्टिक का वह बोरा भी मुर्गियों के दाने का ही था. पुलिस ने उसी दिन खकरा नाले में मिले दोनों सिरों का पोस्टमार्टम कराया और उन्हें भी 72 घंटे के लिए मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया. न्यायालय के आदेश पर पुलिस द्वारा सिरों को डीएनए जांच के लिए फोरेंसिक लैब भेज दिया गया, ताकि फोरेंसिक जांच से ये पता चल सके कि वे सिर नानकसागर डैम क्षेत्र से बरामद लाशों के ही हैं या नहीं

दोनों लाशों की शिनाख्त हो पाना पुलिस के लिए परेशानी का सबब बना हुआ था. उन की शिनाख्त के बिना जांच आगे बढ़ना संभव नहीं लग रहा था, क्योंकि लाशों के पास से ऐसी कोई भी चीज बरामद नहीं हुई थी, जिस के सहारे उन की पहचान हो पाती. कोई रास्ता देख पुलिस ने खकरा नाले से बरामद युवक के सिर का स्कैच बनवाया. युवती का चेहरा चूंकि क्षतविक्षत था, इसलिए उस के चेहरे का स्कैच बनना संभव नहीं थास्कैच बनवाने के बाद पुलिस ने युवक की पहचान हेतु उस के चेहरे के पोस्टर छपवा कर ऊधमसिंहनगर और चंपावत जिले के साथसाथ नेपाल बार्डर पर कई जगहों पर लगवा दिए. साथ ही इस स्कैच को सोशल नेटवर्किंग साइट पर भी डाल दिया गया

पुलिस ने लापता लोगों की जानकारी जुटाने के लिए दिनरात एक कर रखा था. लापता लोगों का डाटा कलेक्ट करने के लिए एसओजी समेत 4 पुलिस टीमें उत्तर प्रदेश के बरेली, रामपुर और पीलीभीत जिले की खाक छान रही थीं. लेकिन कहीं कोई सफलता हाथ नहीं लगी. पुलिस अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रही थी. कई जगह पुलिस टीमें भेजी गई थीं, पर नतीजा शून्य ही था. इसी बीच 15 सितंबर 2014 को बालकराम नाम के एक व्यक्ति ने बरेली के थाना प्रेमनगर में अपने बेटे विजय के गायब होने की लिखित तहरीर दी. 

बरेली के न्यू सिद्धार्थनगर, सैदपुर निवासी बालकराम ने अपनी तहरीर में लिखा था कि उन का बेटा विजय गंगवार बरेली के आशीर्वाद अस्पताल में काम करता था. उसी अस्पताल में उस के साथ हरचुईया, जहानाबाद निवासी नर्स निशा भी काम करती थी. आशीर्वाद अस्पताल के बंद होने के कारण करीब 2 माह पहले एक डाक्टर विजय और निशा को बनबसा के अस्पताल में काम दिलाने की बात कह कर साथ ले गया था. बालकराम ने बताया कि विजय से उन की 5 सितंबर को मोबाइल पर आखिरी बार बात हुई थी. उस वक्त विजय ने बताया था कि वह बनबसा के धस्माना अस्पताल में काम कर रहा है. उस दिन के बाद विजय से घर वालों की कोई बात नहीं हो पाई तो वह बनबसा जा कर धस्माना अस्पताल के प्रबंधक से मिले. पता चला कि विजय और निशा 5 सितंबर की शाम को वहां से काम छोड़ कर चले गए थे

बरेली पुसिल को नानकमत्ता में 2 शव मिलने की बात पता थी. बालकराम की इस तहरीर से पुलिस को शक हुआ तो उस ने उन्हें नानकमत्ता में 2 लाशें मिलने वाली बात बता कर शवों को देखने की बात कही. इस पर बालकराम अपने परिवार के साथ थाना नानकमत्ता जा कर थानाप्रभारी से मिले. थानाप्रभारी अरुण कुमार ने बालकराम और उन के घर वालों को युवक के कटे अंग दिखाए तो उन्होंने पहचान कर बताया कि मृतक उन का बेटा विजयपाल ही था. बालकराम से निशा का पता भी मिल गया. युवक की शिनाख्त विजयपाल के रूप में हो जाने के बाद पुलिस ने युवती की शिनाख्त के लिए निशा के घर वालों से संपर्क किया, तो पता चला कि निशा भी गायब थी. उस के मातापिता की काफी समय से उस से बात नहीं हो पाई थी.

उस की संभावित हत्या की जानकारी मिलते ही उस के पिता पोशाकी लाल शर्मा और मां कलावती ने भी नानकमत्ता पहुंच कर कपड़ों और अन्य सामान के आधार पर युवती की लाश की शिनाख्त अपनी बेटी निशा शर्मा के रूप में कर दी. युवती की शिनाख्त निशा के रूप में हो गई थी. यह भी पता चल गया था कि वह बनबसा के धस्माना अस्पताल में केवल काम करती थी, बल्कि रहती भी वहीं थी. पुलिस ने बनबसा के धस्माना अस्पताल जा कर पूछताछ की तो इस बात की पुष्टि हो गई. पुलिस ने उस के कपड़ों से मिली ताले की चाबी से उस कमरे का ताला खोला, जिस में वह रहती थी तो वह आसानी से खुल गया

इस से पुलिस को भरोसा हो गया कि मृतक विजयपाल और मृतका निशा ही थे. इसी बीच निशा के मातापिता ने पुलिस को कुछ ऐसी बातें बताईं, जिन से लगता था कि निशा को कुछ ऐसे राज पता थे, जिन के खुलने के डर से उस की हत्या की गई थी. दरअसल, 6 सितंबर के बाद से बेटी से संपर्क होने के बाद निशा के आशंकित मातापिता ने उस की 4 वर्षीय बेटी रिया के साथ बनबसा स्थित धस्माना अस्पताल जा कर उस के बारे में पूछताछ की थी. लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया था कि वह नौकरी छोड़ कर जा चुकी है और उन्हें उस के बारे में कोई जानकारी नहीं है. पोशाकीलाल द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर पुलिस ने अस्पताल के प्रबंधक आशीष धस्माना से पूछताछ की, लेकिन उस से काम की कोई जानकारी नहीं मिली.

विजय और निशा के घर वाले धस्माना अस्पताल पर तरहतरह के आरोप लगा रहे थे. साथ ही वे उन दोनों की हत्या के लिए डा. एच.पी. सिंह को दोषी भी ठहरा रहे थे. क्योंकि डा. एच.पी. सिंह ही निशा और विजय को बरेली से धस्माना अस्पताल लाया था. 10 सितंबर की रात ऊधमसिंह नगर जिले की एएसपी टी.डी. वेला पुलिस टीम के साथ मृतक विजय गंगवार और निशा शर्मा के घर वालों के साथ धस्माना अस्पताल पहुंचीं. उन्होंने अस्पताल के कमरों की जांचपड़ताल की, साथ ही वहां के दस्तावेज भी देखे. लेकिन कोई भी काम की जानकारी नहीं मिली

मृतकों के मांबाप धस्माना अस्पताल के डा. एच.पी. सिंह को मुख्य हत्यारोपी बता रहे थे. लेकिन उन दोनों की हत्या किस ने और कहां की, इसे ले कर पुलिस कोई पुख्ता सुबूत नहीं जुटा पाई थी. ऐसी स्थिति में पुलिस जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहती थी. क्योंकि ऐसा करने से केस कमजोर होने की संभावना थी. हालांकि इस डबल मर्डर केस के सूत्र धस्माना अस्पताल के इर्दगिर्द घूम रहे थे. जिस से इस बात को बल मिल रहा था कि विजय और निशा की हत्या की कोई कोई कड़ी धस्माना अस्पताल से ही जुड़ी है. पूरे मामले में डा. एच.पी. सिंह का नाम विशेष रूप से उभर कर रहा था. लेकिन पुलिस के सामने मजबूरी यह थी कि बिना किसी सुबूत के वह सफेदपोश लोगों पर हाथ नहीं डाल सकती थी

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रिद्धिमा अग्रवाल इस दोहरे हत्याकांड के शीघ्र खुलासे को ले कर बेहद गंभीर थीं. इसलिए उन्होंने इस केस की कमान खुद ही संभाल रखी थी. उन के साथ अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक टी.डी. वेला के निर्देशन में नानकमत्ता पुलिस, एसटीएफ और एसओजी की टीमें जांच में जुटी थीं. 8 बेड और 22 कमरों वाले धस्माना अस्पताल के बारे में पता चला कि राजमार्ग पर बना यह अस्पताल 4 महीने पहले ही शुरू हुआ था. अस्पताल का इंचार्ज बरेली के डा. एच.पी. सिंह को बनाया गया था. निशा और विजय को भी डा. एच.पी. सिंह ही लाए थे. यह भी पता चला कि आशीश धस्माना, डा. एच.पी. सिंह, विजय और निशा अस्पताल में ही रहते थे.

पुलिस जांच के दौरान जानकारी मिली कि 6 सितंबर को विजय और निशा अस्पताल के मेडिकल स्टोर में मौजूद कर्मचारी से अपना हिसाब ले कर चले गए थे. यह भी पता चला कि इस के बाद अस्पताल परिसर में ही निशा की डा. एच.पी. सिंह से बात भी हुई थी. अपनी जांच में पुलिस धस्माना अस्पताल के संचालक डा. आशीश धस्माना और डा. एच.पी. सिंह सहित एक दर्जन से अधिक लोगों से पूछताछ कर चुकी थी. इस पूछताछ से पता चला कि डा. एच.पी. सिंह और निशा के बीच केवल अकसर बातचीत होती थी, बल्कि तथाकथित रूप से दोनों के बीच अवैध संबंध भी थे

इस जानकारी के बाद पुलिस को लगा कि यह प्रेमत्रिकोण में हुई हत्या का मामला हो सकता है. दरअसल पुलिस को शक था कि निशा और विजय के बीच अवैधसंबंध रहे होंगे और डा. एच.पी. सिंह के बीच में जाने की वजह से यह मामला इस अंजाम तक पहुंच गया होगालेकिन निशा के घर वालों ने बताया कि विजय निशा का प्रेमी नहीं, बल्कि भाई था. उन के अनुसार निशा की विजय से 3 साल पहले मुलाकात हुई थी. उस का चूंकि कोई भाई नहीं था, इसलिए विजय ने तभी उसे अपनी बहन बना लिया था. निशा उसे न केवल अपना भाई मानती थी, बल्कि पिछले 3 सालों से उसे राखी भी बांध रही थी. इस बार भी रक्षाबंधन पर विजय घर आया था और निशा ने उसे राखी बांधी थी. पुलिस को विजय के कटे हाथ की कलाई पर भी राखी बंधी मिली थी.

इस जानकारी के बाद शक की सुई घूम कर एक बार फिर से डा. एच.पी. सिंह और अस्पताल के संचालक आशीष धस्माना पर टिक गई. हकीकत जानने के लिए पुलिस ने अस्पताल से जुड़े कई लोगों के साथसाथ डा. एच.पी. सिंह से भी कड़ी पूछताछ की. लेकिन कोई खास जानकारी मिलने के कारण उन्हें छोड़ दिया गया. इस के बाद पुलिस ने लोहाघाट के एक फार्मासिस्ट को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. दरअसल धस्माना अस्पताल में जो मेडिकल स्टोर था, वह लोहाघाट के इसी फार्मासिस्ट के लाइसेंस पर चल रहा था. लेकिन उस से पूछताछ से भी कोई नतीजा नहीं निकला

आखिर एएसपी और एसओजी प्रभारी ने एक बार फिर डा. एच.पी. सिंह और आशीष धस्माना को हिरासत में ले कर दोनों से करीब 5 घंटे तक गहन पूछताछ की. लेकिन दोनों से कोई खास जानकारी नहीं मिल पाई. जब कहीं कोई सूत्र हाथ नहीं लगा तो पुलिस का ध्यान निशा के पति विनोद की तरफ गया. दरअसल, निशा काफी दिनों से अपने पति विनोद से अलग रह रही थी. उस ने अपने ससुराल वालों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मुकदमा दर्ज करा रखा था. कहीं परेशान हो कर विनोद ने ही तो निशा और विजय की हत्या नहीं कर दी हो, यह सोच कर पुलिस ने पूछताछ के लिए विनोद को हिरासत में ले लिया.

पूछताछ में विनोद ने बताया कि वह स्वास्थ्य विभाग की एंबुलेंस का कर्मचारी था और तीन दिन की छुट्टी ले कर पुलिस के डर से इधरउधर छिपता फिर रहा था. दरअसल, निशा ने उस के खिलाफ बरेली में मुकदमा दर्ज कराया था. जिस की तारीख पर हाजिर होने पर कोर्ट ने उस के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया था. गिरफ्तारी से बचने के लिए वह गांव रिछोला, थाना नबाबगंज में अपने फुफेरे भाई सोमपाल के घर रह रहा था. निशा की हत्या की बात उसे 16 सितंबर के बाद पता चली थी. विनोद शर्मा ने बताया कि वह निशा को अपने साथ रखना चाहता था, लेकिन निशा ने उस से शपथ पत्र पर तलाक ले लिया था. विनोद से पूछताछ में भी पुलिस के हाथ निराशा ही लगी. इस के बावजूद पुलिस ने केस खुलने तक उसे हिरासत में रखने का निर्णय लिया.

इस मामले की जांच 2 राज्यों में चल रही थी. पुलिस ने इस केस की तह तक जाने के लिए दिनरात एक कर दिया था, लेकिन उसे कहीं भी आशा की कोई किरण नजर नहीं रही थी. तहकीकात के दौरान पुलिस को बनबसा नानकमत्ता रोड पर लगे सीसीटीवी कैमरे में 6 सितंबर की रात एक अर्टिगा कार के आनेजाने की फुटेज भी मिली थीपुलिस ने पता किया तो जानकारी मिली कि धस्माना अस्पताल के संचालक आशीष धस्माना के पास अर्टिगा कार है. यह जानकारी मिलने पर पुलिस ने यह भी पता लगा लिया कि आशीष धस्माना के फार्महाउस में पोल्ट्री फार्म भी है. इस जानकारी के बाद पुलिस के शक की सुई आशीष धस्माना और उस के फार्महाउस की ओर घूम गई. अब पुलिस ने अपना ध्यान पूरी तरह उसी पर केंद्रित कर के आगे की जांच बढ़ाने का फैसला किया.

जांच के दौरान पुलिस ने गुप्त रूप से धस्माना अस्पताल जा कर छानबीन की. इस छानबीन में पुलिस को अस्पताल में एक ऐसा कमरा मिला, जो हर वक्त बंद रहता था. पुलिस ने उस कमरे में जा कर जांचपड़ताल की तो वहां से काफी मात्रा में बीयर की खाली बोतलें और केन मिलीं. अनुमान लगाया गया कि वहां पर कोई कोई आए दिन बीयर पीता था. लेकिन वहां ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला, जिस के तार इस केस से जुड़ पाते. अलबत्ता पुलिस को पूरी तरह यकीन जरूर हो गया कि इस जघन्य अपराध को अंजाम देने वाला धस्माना अस्पताल का मालिक ही हो सकता है. इसी के मद्देनजर पुलिस ने धस्माना को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू की.

धस्माना ने पुलिस को चकमा देने की काफी कोशिश की, लेकिन जब उसे लगने लगा कि वह पुलिस के जाल में बुरी तरह से फंस चुका है, तो उस ने सब कुछ उगल दिया. उस ने पुलिस को बताया कि डा. एच.पी. सिंह की वजह से उस का अस्पताल बंद होने के कगार पर पहुंच चुका था. उस ने यह भी स्वीकार किया कि विजय और निशा की हत्या उस ने अपने ड्राइवर इदरीस अहमद के साथ मिल कर की थी. पुलिस ने आशीष धस्माना के ड्राइवर इदरीस अहमद को अस्पताल से ही गिरफ्तार कर लिया. इदरीस कानुपर का रहने वाला था. पुलिस ने उन दोनों की निशानदेही पर विजय और निशा की हत्या से पहले उन्हें बेहोश करने के लिए इस्तेमाल की गई सिरिंज और इंजेक्शन के अलावा वह छुरा और चापड़ भी बरामद कर लिए, जिन से उन के शरीर के टुकड़े किए गए थे.

आशीष धस्माना ने पुलिस को बताया कि डा. एच.पी. सिंह, विजय और निशा की वजह से उस की और उस के अस्पताल की बहुत बदनामी हुई थी. उस का अस्पताल बंद होने के कगार पर पहुंच गया था. इसलिए उस ने उन तीनों को मौत के घाट उतारने का फैसला किया था. सब से पहले वह डा. एच.पी. सिंह को मारना चाहता था, लेकिन घटना वाले दिन वह थोड़ी देर पहले अस्पताल से निकल गया थाइसी बीच निशा और विजय उस के सामने गए. निशा और विजय अधिकांशत: डा. एच.पी. सिंह के संपर्क में रहते थे और उसी की बात मानते थे. इसलिए धस्माना को इन दोनों पर भी गुस्सा था. इसी लिए उस ने पहले इन्हीं दोनों को अपना शिकार बना दिया

आशीष धस्माना का परिवार मूलरूप से पौड़ी गढ़वाल का रहने वाला था. वर्षों पहले उस के दादा पौड़ी गढ़वाल छोड़ कर बनबसा चले आए थे. वह आस्ट्रेलिया में ईएनटी सर्जन रह चुके थेउन्होंने 2002 में बनबसा से करीब 5 किलोमीटर दूर देवीपुरा (गढ़ीगोठ) में जमीन खरीद कर हरिराम धस्माना बरुश मैकुली मेमोरियल हास्पिटल के नाम से अस्पताल की स्थापना की थी. इस अस्पताल को आस्ट्रेलिया के एक ट्रस्ट द्वारा स्थापित किया गया था. आस्ट्रेलिया के उस ट्रस्ट के माध्यम से अस्पताल के नाम पर काफी पैसा आने लगा था. उस अस्पताल को भी आशीष धस्माना ही चलाता था. आशीष धस्माना के पिता शैलेंद्र धस्माना कानपुर में सरकारी नौकरी में थे. उन्होंने कानपुर के किदवईनगर में अपना मकान बनवा रखा था. वहीं पर आशीष और इदरीस की मुलाकात हुई थी और उस ने इदरीस को अपना ड्राइवर रख लिया था.

कुछ समय बाद आशीष धस्माना ने पुराने अस्पताल की जगह पर होटल मैनेजमेंट का कोर्स कराने वाला इंस्टीट्यूट खोल दिया था. उसी समय आशीष ने सूखीढांग के धूरा पाताल में काफी जमीन खरीद ली थी. ट्रस्ट के नाम पर आस्ट्रेलिया से आए पैसे का उस ने भरपूर लाभ उठाया और उसी पैसे से उस ने एक शानदार कोठी भी बनवाईलेकिन कोठी बनवाने के बावजूद वह ज्यादातर बनबसा में ही रहता था. कोठी पर वह कभीकभार दोस्तों के साथ मौजमस्ती करने जाया करता था. आशीष धस्माना ने लखनऊ में भी एक मकान खरीद लिया था. फिलहाल उस के पिता शैलेंद्र धस्माना और उस की पत्नी बच्चे लखनऊ के उसी मकान में रह रहे थे.

साल भर पहले आशीष ने स्ट्रांग फार्म गेट के पास राजमार्ग पर अपना नया अस्पताल बनाया, जो 4 महीने पहले ही शुरू हुआ था. आशीष धस्माना शुरू से ही पैसे में खेलता आया था. पैसे के बल पर उस ने क्षेत्र के कई नेताओं से अच्छे संबंध बना लिए थे. उन्हीं नेताओं की बदौलत आशीष ने अपना करोबार बढ़ाया और लकड़ी की कालाबाजारी शुरू कर दीकुछ समय पहले उस के अस्पताल से बेशकीमती लकड़ी भी पकड़ी गई थी. आशीष आए दिन अस्पताल में बनबसा के पुलिस अफसरों और नेताओं को पार्टी दिया करता था. यह सब अस्पताल के स्टाफ के सामने ही होता था और पार्टी में डा. एच.पी. सिंह भी शामिल होते थे. वहीं से उन्होंने आशीष धस्माना की कमजोरी पकड़ ली थी

जांच में यह बात भी सामने आई कि धस्माना के अस्पताल में मरीजों का उपचार कम और अय्याशी ज्यादा होती थी. इस की तसदीक अस्पताल के आसपास रहने वाले लोगों ने भी की. पुलिस संरक्षण प्राप्त होने के कारण धस्माना को किसी बात का डर नहीं थाआशीष धस्माना शराब और शबाब का शौकीन था. वह अपने अस्पताल में आई सुंदर नर्सों को पैसे के बल पर फंसा कर उन के साथ अय्याशी करने लगा था. जिस की वजह से उस के अस्पताल का कामकाज ठप होने लगा था.

डा. एच.पी. सिंह ने धस्माना अस्पताल में कामकाज संभालते ही अपना पूरा ध्यान अस्पताल के मरीजों की देखरेख पर केंद्रित कर दिया था. उन के काम को देख कर आशीष धस्माना भी काफी खुश था. इसलिए उस ने अस्पताल की पूरी देखरेख का जिम्मा उन्हीं को सौंप दिया थाइसी बीच डा. एच.पी. सिंह ने अपनी कार का लोन चुकाने के लिए धस्माना से साढ़े 12 लाख रुपए उधार लिए और साथ ही अस्पताल के लिए स्टाफ बढ़ाने की बात की. डा. एच.पी. सिंह बरेली के आशीर्वाद अस्पताल में काम कर चुके थे और निशा विजय को पहले से ही जानते थे. निशा देखनेभालने में जितनी खूबसूरत थी, उस से कहीं ज्यादा तेजतर्रार और मिलनसार स्वभाव की थी. वह डा. एच.पी. सिंह की नजरों में पहले से ही चढ़ी हुई थी.

निशा ग्राम हरचुईया, थाना जहानाबाद, पीलीभीत निवासी पोशाकीलाल की बेटी थी. उन की 2 ही बेटिया थीं. उन के पास गांव में जुतासे की मात्र 4 बीघा जमीन थी. उसी के सहारे उन्होंने अपनी बेटियों का पालनपोषण किया था. पोशाकीलाल की बड़ी बेटी राजेश्वरी विकलांग थी. उन की छोटी बेटी निशा ने जैसेतैसे हाईस्कूल पास कर लिया था. निशा देखनेभालने में खूबसूरत भी थी और महत्वाकांक्षी भी. वह घर के बाहर लोगों से अपने पिता को बैंक मैनेजर बताती थी. जबकि हकीकत में उस के पिता पोशाकीलाल बरेली के एक बैंक में चौकीदार की नौकरी करते थे.

3 साल पहले निशा की मुलाकात विजय से हो गई थी. विजय तब बरेली के आशीर्वाद अस्पताल में वार्डबौय की नौकरी करता था. विजय से पहली मुलाकात के बाद निशा काम की तलाश में उस के पास जाने लगी थी. विजय से जानपहचान बढ़ने के बाद निशा ने उसी के साथ अस्पताल में नौकरी कर ली और गांव से ही अस्पताल जाने लगी. उसी दौरान उस ने विजय को अपने मातापिता से भी मिलवाया. विजय न्यू सिद्धार्थनगर, सैदपुर, बरेली निवासी बालकराम का बेटा था. हंसमुख और मिलनसार विजय ने बरेली के आदर्श निकेतन इंटर कालेज से 10वीं तक पढ़ाई की थी. वह शादीशुदा और 3 बेटियों का बाप था

इसी दौरान निशा की शादी जिला पीलीभीत, थाना गजरौला के गांव प्रेमशंकर नवदीप निवासी तुलसीराम के बेटे विनोद से हो गई. निशा से शादी के बाद विनोद खुश था. क्योंकि निशा देखनेभालने में काफी सुंदर थी. लेकिन शादी के बाद निशा केवल 15 दिन ही अपनी ससुराल में रही. इस के बाद वह न तो दोबारा अपनी ससुराल गई और न ही उस ने विनोद को अपने यहां बुलाया. इसी बात को ले कर दोनों परिवारों के बीच मनमुटाव बढ़ा और मामला तलाक तक पहुंच गया. निशा भले ही विनोद के साथ 15 दिन ही रही थी, इस के बावजूद वह एक लड़की की मां बन गई थी. उस के मां बनने से विनोद हैरत में था. उसे लगता था कि शादी से पहले ही निशा का किसी युवक के साथ चक्कर चल रहा था, जिस से वह गर्भवती हो गई थी. अपनी बेटी के इसी पाप को छिपाने के लिए पोशाकी लाल ने आननफानन में निशा की शादी उस के साथ कर दी थी, ताकि समाज में किरकिरी न हो. 

बहरहाल, जब निशा ससुराल नहीं गई तो उस के पिता पोशाकीलाल ने शिवपुरिया, जहानाबाद, जिला पीलीभीत का घर और जुतासे की 4 बीघा जमीन बेच दी और वह बरेली में किराए का मकान ले कर सपरिवार रहने लगे थे. पुलिस पूछताछ में धस्माना अस्पताल के मालिक आशीष धस्माना ने बताया कि डा. एच.पी. सिंह निशा और विजय को जब पहली बार अस्पताल में नौकरी के लिए लाया था तो उस ने दोनों को पतिपत्नी बताया था. निशा को शादीशुदा जान कर अस्पताल स्टाफ के लोग निशा की तरफ आंख उठा कर नहीं देखते थे. इसी वजह से अस्पताल के किसी भी कर्मचारी को डा. एच.पी. सिंह और निशा के बीच संबंधों का पता नहीं चल सका था.

धस्माना ने बताया कि उसी की तरह डा. एच.पी. सिंह भी शराब और शबाब का शौकीन था. इस बात की जानकारी उसे तब हुई, जब उसे पता चला कि डा. एच.पी. सिंह के अस्पताल की एक पूर्व नर्स और निशा के साथ अवैधसंबंध थे. उस की हकीकत जानने के लिए वह चोरीछिपे डा. एच.पी. सिंह के पीछे लग गया था. उसी दौरान उसे निशा और विजय की हकीकत भी पता चली. उन दोनों के बीच पत्नीपति का रिश्ता नहीं था, बल्कि डा. एच.पी. सिंह के काफी समय से निशा के साथ अवैधसंबंध थे. इसी सच्चाई को उजागर करने के लिए धस्माना इन दोनों के पीछे पड़ गया था, ताकि निशा और एच.पी. सिंह को रंगेहाथों पकड़ कर उन की सच्चाई को उजागर कर सके.

धस्माना के अनुसार डा. एच.पी. सिंह ने अस्पताल को केवल अय्याशी का अड्डा बना दिया था, बल्कि शराब और शबाब के चक्कर में उस ने कई केस भी बिगाड़ दिए थे. जिस की वजह से अस्पताल की छवि धूमिल होती जा रही थी. निशा चूंकि देखनेभालने में खूबसूरत थी, इसलिए वह उसे डा. एच.पी. सिंह से अलग कर के अपने चंगुल में फंसाना चाहता था. इस के लिए आशीष धस्माना ने निशा के साथ नजदीकियां बढ़ाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह उस के पास तक नहीं फटकती थी. जिस की वजह से वह उस से चिढ़ने लगा था. इसी दौरान आशीष ने डा. एच.पी. सिंह को औपरेशन थिएटर में निशा के साथ रंगरलियां मनाते हुए रंगेहाथों पकड़ लिया था

रंगहाथों पकड़े जाने के बाद डा. एच.पी. सिंह ने आशीष से माफी मांगी और भविष्य में ऐसा काम करने की कसम भी खाई थी. लेकिन डा. एच.पी. सिंह धस्माना से कहीं ज्यादा तेजतर्रार थे. वह आशीष की हकीकत से पहले से ही वाकिफ थे. उन्होंने अस्पताल के पूर्व स्टाफ से मिल कर उस की पूरी जन्मकुंडली पता कर ली थी. आशीष धस्माना को अपने इशारों पर चलाने के लिए डा. एच.पी. सिंह ने एक गहरी चाल चली. उन्होंने निशा और विजय के सहयोग से एक दिन धस्माना की अय्याशी की मोबाइल क्लिपिंग बनवा ली, ताकि उसे ब्लैकमेल किया जा सके. इस बात की जानकारी आशीष धस्माना को हो भी गई थी. आशीष की क्लिपिंग बनाने के बाद तो डा. एच.पी. सिंह पूरी तरह से लापरवाह हो गए थे. वह सुबह को ही शराब पी लेते और मरीजों की ओर से लापरवाह हो कर मौजमस्ती में डूब जाते. कार लोन चुकाने का बहाना कर के वह आशीष धस्माना के साढ़े 12 लाख रुपए पहले ही हड़प चुके थे.

पुलिस पूछताछ के दौरान धस्माना ने बताया कि उस ने डा. एच.पी. सिंह को विजय और निशा से यह कहते हुए सुन लिया था कि हमें यहां की नौकरी छोड़ देनी चाहिए, क्योंकि यह अस्पताल जल्दी ही बंद होने वाला है. इस बात से धस्माना को जबरदस्त झटका लगा. केवल इतना ही नहीं, डा. एच.पी. सिंह ने धस्माना को उस की बीवी की नजरों में गिराने के लिए उस की अय्याशी की मोबाइल क्लिपिंग उस की पत्नी तक पहुंचा दी थीजिस के बाद धस्माना और उस की पत्नी के बीच मनमुटाव हो गया था. इस के बाद धस्माना दिन में कईकई बोतल बीयर पीने लगा था. उसे लगने लगा था कि उस की बरबादी का कारण डा. एच.पी. सिंह ही है. उस ने फैसला कर लिया था कि वह डा. एच.पी. सिंह को मार डालेगा. इस के साथ ही उसे निशा और विजय पर भी गुस्सा आता था, क्योंकि वे दोनों डा. एच.पी. सिंह का साथ दे रहे थे.

धस्माना और उस के ड्राइवर इदरीस के बीच काफी घनिष्ठ संबंध थे. दोनों साथसाथ बैठ कर शराब पीते थे. इदरीस को अपना खास मान कर धस्माना ने उसे डा. एच.पी. सिंह की सारी काली करतूत बताई और साथ ही उस की हत्या की भी बात की. धस्माना की वजह से इदरीस को किसी बात की कमी नहीं थी. अच्छा खानापीना, पहनना, रहना, सब कुछ आशीष की जिम्मेदारी थी. इसी वजह से इदरीस उस का मुरीद था. धस्माना ने इदरीस के साथ मिल कर डा. एच.पी. सिंह को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. डा. एच.पी. सिंह धस्माना से किए वादे के अनुसार तो कोई नया डाक्टर लाए थे और ही उन्होंने उधार के साढ़े 12 लाख रुपए वापस किए थे. साथ ही वह निशा और विजय को भी नौकरी छोड़ने के लिए कह रहे थे. इन बातों ने आशीष के गुस्से को और भी बढ़ा दिया.

पुलिस पूछताछ में आशीष धस्माना ने बताया कि डा. एच.पी. सिंह की वजह से उस के अस्पताल की साख खराब हो रही थी. वह मरीजों का इलाज गंभीरता से नहीं करते थे, जिस से उसे अपना पैसा खर्च कर के बिगड़े हुए केस वाले मरीजों को दूसरे अस्पतालों में भेजना पड़ता था. इन सब बातों ने उसे मानसिक रूप से परेशान कर दिया थाडा. एच.पी. सिंह को मारे की योजना 6 सितंबर की थी, लेकिन उन्हें कुछ शक हो गया और वह बरेली चले गए. धस्माना और इदरीस हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं कर सके. डा. एच.पी. सिंह के बरेली जाने के बाद निशा और विजय ने भी छुट्टी पर जाने की बात कह कर पैसे मांगे. इस पर धस्माना ने दोनों को 5 सौ और 3 सौ रुपए दिलवा दिए.

धस्माना ने बताया कि वह डा. एच.पी. सिंह को मारना चाहता था, लेकिन शक होने की वजह से वह निकल गया था. जब निशा और विजय भी जाने लगे तो उसे झटका लगा. वे दोनों अपने कमरों से बैग ले कर निकले तो आशीष ड्राइवर इदरीस की मदद से बहाना कर के निशा और विजय को अपने साथ अस्पताल से डेढ़ किलोमीटर दूर अपने पेंटर फार्म पर ले गया. वहां जा कर दोनों ने पहले शराब पीनशे में डूब कर आशीष और इदरीस ने निशा से पूछताछ की तो पता चला कि डा. एच.पी. सिंह का इरादा आशीष धस्माना के अस्पताल को नुकसान पहुंचाने का था. यही नहीं, वह उस के साढ़े 12 लाख रुपए भी हड़प लेना चाहता था. उन्होंने बताया कि डा. एच.पी. सिंह जानबूझ कर मरीजों के इलाज में लापरवाही कर रहे हैं, जिस में निशा उन की प्रेमिका होने के नाते और विजय पैसे के लालच में उन का साथ दे रहे थे.

धस्माना निशा के पीछे पड़ा था, लेकिन वह डा. एच.पी. सिंह के प्यार में पागल थी. नशे की हालत में धस्माना के गुस्से का बांध टूट गया. गुस्से के आवेग में उस ने पास पड़ा डंडा उठा कर निशा के सिर पर मार दिया. जिस से वह गिर कर बेहोश हो गई. निशा के बेहोश होते ही धस्माना ने अपना बाकी गुस्सा विजय पर उतारते हुए उसे खूब मारापीटा, जिस से वह भी अधमरा हो गयाइस के बाद आशीष धस्माना ने इदरीस के साथ मिल कर पहले निशा और फिर विजय को जबरन फिनार्गन और फोर्टविन के इंजेक्शन लगाए. कुछ देर बाद दोनों पूरी तरह बेहोश हो गए. उन के बेहोश होते ही धस्माना ने इदरीस के सहयोग से दोनों की गला दबा कर हत्या कर दी. पुलिस पूछताछ में धस्माना ने बताया कि पहले उस ने और इदरीस ने दोनों को बोरों में भर कर ले जाने की कोशिश की, लेकिन दोनों की लाशें बोरों में नहीं आईं.

इस के बाद दोनों बाजार जा कर चिकन और बीयर की बोतलें खरीद कर लाए. बाजार से आने के बाद दोनों ने साथसाथ बैठ कर बीयर पी. जब दिमाग पर नशे का सुरूर चढ़ने लगा तो दोनों ने एक बड़े छुरे और चापड़ से पहले दोनों की गर्दन काट दी. बाद में इदरीस ने शवों को ठिकाने लगाने के लिए उन के हाथपैर काट कर टुकड़े कर दिए. पलभर में आशीष धस्माना और इदरीस कसाई बन बैठे थे. दोनों शवों के टुकड़ेटुकड़े कर बोरों में भर कर बोरे धस्माना की कार में रखे और उन्हें ठिकाने लगाने के लिए बरेली की तरफ चल दिए. दरअसल आशीष धस्माना ने अब इस हत्याकांड का रुख मोड़ कर डा. एच.पी. सिंह को फंसाने के लिए फूलप्रूफ योजना बना ली थी. इसी योजना के तहत उन दोनों की लाशें बरेली क्षेत्र में फेंकने की थी, ताकि पुलिस उन की हत्याओं का शक डा. एच.पी. सिंह पर करे और उसे गिरफ्तार कर ले

लेकिन डा. एच.पी. सिंह की किस्मत अच्छी थी. जैसे ही आशीष और इदरीस दोनों लाशों को गाड़ी में डाल कर बरेली जाने के लिए निकले. रास्ते में पता चला कि सत्रहमील पुलिस चौकी पर पुलिस की चैकिंग चल रही है. धस्माना किसी भी कीमत पर रिस्क नहीं लेना चाहता था. इसलिए उस ने इदरीस से गाड़ी को सितारगंज मार्ग पर ले चलने को कहा. जब दोनों गाड़ी ले कर नानकसागर डैम पर पहुंचे तो वहां ड्यूटी कर रहे पुलिसकर्मियों ने उन की कार पर टार्च की लाइट मारी. इस से धस्माना और इदरीस बुरी तरह घबरा गए. उन्होंने तुरंत लाश वाले बोरों को वहीं पर रास्ते के किनारे झाड़ी में फेंक दिए और आगे बढ़ गए. वहां से 4 किलोमीटर आगे जा कर उन्होंने सितारगंज रोड पर खकरा नदी के पुल से पहले विजय और निशा के बैग फेंक दिए

पुल पर जा कर उन्होंने दोनों काली पौलीथिन भी नीचे फेंक दी, जिन में निशा और विजय के सिर थे. बाद में पुलिस ने उन की निशानदेही पर जगपुड़ा पुल के नीचे से हत्या में प्रयुक्त खून से सना चापड़ और चाकू भी बरामद कर लिया था. धस्माना अस्पताल से वह अर्टिगा कार, जिस में दोनों लाशों को डाल कर ले जाया गया था, पुलिस ने कब्जे में ले ली थी. कार की डिग्गी में खून के दाग भी मिले. यही नहीं, पेंटर फार्म जहां पर दोनों हत्याएं की गईं, की तलाशी लेने पर घटनास्थल के नीचे के कमरे से फिनार्गन और फोर्टविन के 2 इंजेक्शन, एक प्रयोग की गई सीरिंज और फोर्टविन और फिनार्गन के टूटे हुए2 एंपुल भी मिले. इस के अलावा, शंकर ब्रांड चोकर का एक प्लास्टिक का बैग और चार काले पौलीथिन भी बरामद हुए.

आशीष धस्माना को विजय और निशा की हत्या करने का कोई अफसोस नहीं था. उस ने पुलिस के सामने ही कहा, ‘‘अगर मैं छूट कर आया तो 3 दिन के अंदर डा. एच.पी. सिंह को भी मार दूंगा.’’ 

पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ धारा 302 और 201 के तहत दर्ज किए गए मुकदमे को आशीष धस्माना और इदरीस के खिलाफ नामजद कर दिया था. दोनों आरोपियों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. इस तरह यह ब्लाइंड डबल मर्डर 15 दिनों में जा कर खुला.

   —पुलिस सूत्रों पर आधारित