फंदे पर लटका मिला खूंखार बाघ

कुछ साल पहले लगता था कि जल्दी ही बाघ लुप्तप्राय वन्य पशुओं में शामिल हो जाएगा. लेकिन सरकार और वन्यजीव प्रेमियों के प्रयासों से ऐसा तो नहीं हुआ, पर बाघों की लगातार होती मौतों को देख कर लगता है कि यह संकट अभी कम नहीं हुआ है… 

सी मार्च महीने के तीसरे सप्ताह में लगे 2 बड़े झटकों ने वन्यजीव प्रेमियों को हिला कर रख दिया. दोनों झटके राजस्थान में केवल 24 घंटे के अंतराल पर लगे. विश्वप्रसिद्ध सरिस्का अभयारण्य में एक बाघ की फंदे में फंसने से मौत हो गई. इस के अगले ही दिन रणथंभौर अभयारण्य का एक बाघ पास के एक गांव में घुस गया. ग्रामीणों की सूचना पर पहुंचे वन  विभाग के कर्मचारियों ने उसे बेहोश कर पकड़ने के लिए ट्रैंकुलाइज किया,

लेकिन बाघ बेहोशी की दवा का असर नहीं झेल सका और उस की मौत हो गई. सरिस्का में फरवरी के चौथे सप्ताह से बाघिन एसटी-5 लापता चल रही थी. इस बाघिन की तलाश में वन विभाग के कर्मचारी दिनरात ट्रैकिंग कर रहे थे. इसी दौरान 19 मार्च, 2018 की रात करीब 9 बजे सरिस्का अभयारण्य की सदर रेंज के इंदौक इलाके में कालामेढ़ा गांव के एक खेत में बाघ का शव पड़ा होने की सूचना मिली.

इस सूचना पर सरिस्का मुख्यालय के अफसर मौके पर पहुंचे और बाघ केशव के शव को कब्जे में ले लिया. उस की गरदन क्लच वायर द्वारा बनाए गए फंदे में फंसी हुई थी. वह 4 साल के जवान नर बाघ एसटी-11 का शव था. इस बाघ की मौत कुछ घंटों पहले ही हुई थी. जिस खेत में उस की लाश मिली थी, वह खेत भगवान सहाय प्रजापति का था. वन अधिकारियों ने खेत मालिक को हिरासत में ले लिया. भगवान सहाय ने वन अधिकारियों को बताया कि फसलों को नीलगायों और दूसरे जंगली जानवरों से बचाने के लिए उस ने खेत में ब्रेक वायर जैसा तार लगा रखा था. खेत की तरफ आने पर बाघ फंदे में उलझ गया होगा और फंदे से निकलने की जद्दोजहद में तार से उस का गला घुट गया होगा, जिस से उस की मौत हो गई.

जिस जगह बाघ एसटी-11 का शव मिला, वह इलाका बाघिन एसटी-3 के लापता होने वाली जगह से कुछ ही दूर है. कुछ दिनों पहले बाघिन एसटी-5 और बाघ एसटी-11 सरिस्का की अकबरपुर रेंज में साथसाथ देखे गए थे. इन के पगमार्क और लोकेशन साथ मिले थे

उस के बाद से बाघिन एसटी-5 लापता हो गई थी, लेकिन बाघ एसटी-11 के रेडियो कौलर के सिगनल लगातार मिल रहे थे. बाघ एसटी-11 सरिस्का अभयारण्य का पहला शावक था. उस का जन्म रणथंभौर से लाई गई बाघिन एसटी-2 से करीब 4 साल पहले हुआ थाबाघ का शव मिलने के दूसरे दिन 20 मार्च को जयपुर से वन विभाग के आला अफसर और देहरादून से भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिक सरिस्का पहुंच गए.

सरिस्का प्रशासन और देहरादून से आए वैज्ञानिकों ने कालामेढ़ा पहुंच कर बाघ की मौत से जुड़े साक्ष्य जुटाए. हिरासत में लिए गए खेत मालिक की निशानदेही पर तार का फंदा और बाघ के बाल आदि बरामद किए गए. बाद में सरिस्का मुख्यालय पर बाघ के शव का पोस्टमार्टम कराया गया. इसी दिन अधिकारियों और वन्यजीव प्रेमियों की मौजूदगी में बाघ के शव को जला दिया गया. वन विभाग ने बाघ की मौत के मामले में खेत के मालिक भगवान सहाय प्रजापति को विधिवत गिरफ्तार कर लिया.

हैरानी की बात यह रही कि राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डा. जी.वी. रेड्डी ने पूरे मामले की जांच से पहले ही आरोपी किसान को बेकसूर बताते हुए कहा कि उस ने खेत में फसल बचाने के लिए फंदा लगाया था, जिस में फंस कर बाघ मारा गया. किसान ने खुद वन विभाग को बाघ के मरने की सूचना दी थी. फिर भी हम इस बात की जांच करेंगे कि क्या वह आदतन फंदा लगाता रहा है.

यह दुखद रहा कि जिस समय सरिस्का में बाघ एसटी-11 के अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी, उसी समय सरिस्का से करीब 250 किलोमीटर दूर रणथंभौर अभयारण्य में 6 साल के नर बाघ टी-28 की मौत हो गई. वह करीब 13 साल का था. मारा गया जंगल का राजा करीब 6 साल तक इस बाघ का रणथंभौर अभयारण्य के जोन-3 में एकछत्र राज था. जंगल के इस राजा ने साढ़े 4 साल की उम्र में बूढ़े बाघ टी-2 को भिडं़त में हरा कर इस इलाके पर कब्जा जमाया था. उस दौरान दूसरे जवान बाघों ने इस इलाके पर अपना कब्जा करने के लिए टी-28 को चुनौती दी थी लेकिन वह किसी बाघ से नहीं डरा. करीब डेढ़दो साल पहले जवान बाघ टी-57 ने उसे जोन-3 से खदेड़ दिया था. इस के कुछ दिन बाद बाघ टी-86 ने उसे जंगल से बाहर का ही रास्ता दिखा दिया था.

करीब 13 साल से ज्यादा उम्र का होने के कारण बाघ टी-28 अभयारण्य में जवान बाघों का मुकाबला नहीं कर सका. वह इधरउधर भटकने लगा था. कभी जंगल तो कभी खेतों तो कभी नालों में रह कर वह अपनी जिंदगी के दिन काट रहा था. उम्र ज्यादा होने की वजह से अब उस के लिए जंगल में शिकार करना भी मुश्किल हो गया था.

उस दिन यानी 20 मार्च, 2018 को सुबह करीब 9 साढ़े 9 बजे बाघ टी-28 भोजन की तलाश में खंडार रेंज से निकल कर छाण गांव के पास खेतों में गया. बाघ को देख कर आसपास के ग्रामीणों की भीड़ वहां जमा हो गई. लोगों ने उसे घेरने के बाद वन विभाग को सूचना दे दी. इस बीच लगातार भागदौड़ कर रहे इस बाघ के हमले से जैतपुर गांव का अहसर और छाण गांव का लईक जख्मी हो गए. इलाज के लिए उन्हें अस्पताल भेज दिया गया.

लोगों की सूचना पर वन विभाग के अफसर और कर्मचारी छाण गांव में मौके पर पहुंच गए. वन अधिकारियों ने पहचान लिया कि खेत में घुसा हुआ बाघ टी-28 है. अफसरों ने ग्रामीणों को समझाया कि बाघ खुद ही जंगल में चला जाएगा, लेकिन ग्रामीण अधिकारियों पर उस बाघ को पकड़ने का दबाव डाल रहे थे. हालात ऐसे थे कि बाघ चारों ओर से घिरा हुआ था. ऐसे में वह आतंकित होने के साथ खुद के बचाव का रास्ता भी ढूंढ रहा था. इस स्थिति में आक्रामक हो कर वह ग्रामीणों पर हमला भी कर सकता था.

ग्रामीणों के दबाव में वन अफसरों ने बाघ को ट्रैंकुलाइज कर बेहोश करने के लिए सवाई माधोपुर से टीम बुलाई. दोपहर करीब 12 बजे मौके पर पहुंची टीम ने अपनी काररवाई शुरू की. दोपहर करीब पौने एक बजे टीम ने निशाना साध कर एक बार में ही बाघ को ट्रैंकुलाइज कर बेहोश कर दिया.

कुछ देर इंतजार करने के बाद वन अफसरों की टीम बाघ के पास पहुंची तो वह बेहोश मिला. वन विभाग की टीम ने बेहोश बाघ को पिंजरे में डाला. इस के बाद टीम वापस जाने लगी तो ग्रामीणों ने वन विभाग की गाड़ी रोक ली. ग्रामीणों ने बाघ के कारण खेत में हुए नुकसान की भरपाई करने के बाद ही बाघ को वहां से ले जाने देने की बात कही.

इस बात पर विवाद हो गया. वन कर्मचारियों ने पैसा देने में अपनी मजबूरी बताई तो गुस्से में ग्रामीणों ने वन विभाग की टीम पर पथराव शुरू कर दिया. इस बीच वन विभाग के अफसरों ने फोन कर के किसी से उधार पैसे मंगाए और 2 खेत मालिकों को उन की फसल के नुकसान की भरपाई के रूप में 30-30 हजार रुपए नकद दे दिए.

इस के बाद ग्रामीणों ने वन विभाग की टीम को जाने की इजाजत दी. वन कर्मचारियों ने गांव से निकलते समय पिंजरे में बंद बाघ टी-28 की जांच की तो पता चला कि उस की सांसें थम चुकी थीं. बाद में उसी दिन बाघ के शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

बाघों की मौत पर सवाल 2 दिन में 2 बाघों की मौत से राजस्थान में बाघों की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो गए. पूरा वन विभाग हिल गया. राज्य के वन एवं पर्यावरण मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने इन बाघों की मौत पर दुख जताते हुए कहा कि देश में बढ़ती आबादी और जंगलों में अतिक्रमण के कारण बाघों की मौत हो रही है. जंगलों से गांव स्थानांतरित नहीं हो पा रहे हैं.

सरिस्का में बाघ एसटी-11 से कुछ दिन पहले ही देश भर में टाइगर रिजर्व पर नजर रखने वाली बौडी नैशनल टाइगर कंजरवेशन अथौरिटी यानी एनटीसीए के चीफ डा. देवब्रत ने सरिस्का का दौरा करने के बाद राज्य सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी थी. इस रिपोर्ट में कहा गया कि जब तक सरिस्का टाइगर रिजर्व में अतिक्रमण और अन्य गैरकानूनी गतिविधियां होती रहेंगी तथा पर्याप्त स्टाफ नहीं होगा, तब तक बाघ खतरे में रहेंगे.

रणथंभौर के बाघ टी-28 की मौत के सिलसिले में 21 मार्च को सवाई माधोपुर जिले के खंडार पुलिस थाने में फलौदी रेंजर तुलसीराम ने एक रिपोर्ट दर्ज कराई. 21 लोगों के नामजद और लगभग 100 अन्य लोगों के खिलाफ दर्ज कराई रिपोर्ट में बाघ को टैं्कुलाइज कर लाते समय सरकारी वाहन पर पथराव कर तोड़फोड़ करने और राजकीय कार्य में बाधा डालने का आरोप लगाया गया. उन्होंने रिपोर्ट में कहा कि यदि टैं्रकुलाइज किए बाघ को इतनी देर तक नहीं रोका जाता तो उस की जान बचाई जा सकती थी.

21 मार्च को ही सवाई माधोपुर में पथिक लोक सेवा समिति और कंज्यूमर रिलीफ सोसायटी के कार्यकर्ताओं ने कलेक्टरेट पर प्रदर्शन कर कलेक्टर को प्रधानमंत्री के नाम एक ज्ञापन दिया. उन्होंने बाघ की मौत की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की. ज्ञापन में वन विभाग पर ट्रैंकुलाइज करने में लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा गया कि वन विभाग के पास बाघों को ट्रैंकुलाइज करने के लिए विशेषज्ञ नहीं हैं. ऐसे में अयोग्य वनकर्मियों से बाघों को ट्रैंकुलाइज कराया जा रहा है.

नैशनल टाइगर कंजरवेशन अथौरिटी यानी एनटीसीए ने घटना के 2 दिन बाद ही टी-28 की मौत के संबंध में राज्य के वन विभाग से रिपोर्ट मांग ली. इस में बाघ की उम्र, उस की मौत के कारण, पोस्टमार्टम रिपोर्ट आदि सभी तथ्यात्मक जानकारियां मांगी गईं.

दूसरी तरफ सरिस्का में बाघ एसटी-11 की मौत के सिलसिले में की गई जांच में संगठित गिरोह के शामिल होने की आशंका जताई जा रही है. इस में सरिस्का अभयारण्य  में पर्यटकों को घुमाने वाले जिप्सी चालकों के शामिल होने का भी संदेह है. वन विभाग ने गिरफ्तार भगवान सहाय प्रजापति से पूछताछ के आधार पर लीलूंडा गांव में एक मकान से बंदूक, तलवार व सांभर आदि के सींग भी बरामद किए. 

इस के अलावा अन्य जगहों से भी टोपीदार बंदूकें बरामद की गईं. इन आरोपियों के खिलाफ वन विभाग ने वन्यजीव अधिनियम की धाराओं के तहत काररवाई कर के मालाखेड़ा पुलिस थाने में आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज कराया. पुलिस ने आर्म्स एक्ट में इंदौक गांव के बिल्लूराम मीणा, हरिकिशन मीणा त्रिलोक मीणा और लीलूंडा गांव के रतनलाल गुर्जर को गिरफ्तार किया. हालांकि इन की गिरफ्तारी भगवान सहाय प्रजापति से पूछताछ में मिली जानकारी के आधार पर की गई थी. वन विभाग अभी बाघ एसटी-11 की मौत के मामले की जांच कर रहा है

फरवरी के चौथे सप्ताह से लापताबाघिन एसटी-5 के शिकार की भी आशंका जताई जा रही है. बाघिन का कोई सुराग नहीं मिलने पर एनटीसीए ने प्रोटोकोल के अनुसार सरिस्का प्रशासन को आदेश दिए हैं कि इस बाघिन के जीवित या मरने की पुष्टि की जाए. दरअसल, बाघ कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं. चाहे राजस्थान का रणथंभौर हो या सरिस्का अभयारण्य हो अथवा देश का कोई अन्य अभयारण्य. सभी अभयारण्यों की अपनी समस्या है.

असुरक्षित हैं शरणस्थली राजस्थान में बाघों की शरणस्थली के रूप में मुख्यरूप से 2 अभयारण्य हैं, रणथंभौर और सरिस्का. इन दोनों बाघ परियोजनाओं को स्थापित हुए करीब 4 दशक बीत चुके हैं. सरिस्का सन 2000 तक कार्बेट नेशनल पार्क के बाद बाघों का सब से सुरक्षित अभयारण्य माना जाता था

इस के बावजूद वन विभाग के अफसरों की लापरवाही से सक्रिय हुए शिकारियों ने सरिस्का अभयारण्य से बाघों का सफाया कर दिया. सन 2005 में सरिस्का के बाघ विहीन होने की बात सामने आई. तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के निर्देश पर इस मामले की सीबीआई ने भी जांच की थी.

जिला अलवर और जयपुर जिले के कुछ हिस्से तक करीब 1200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले सरिस्का टाइगर रिजर्व को तत्कालीन मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक और बाद में राजस्थान के हैड औफ फोरेस्ट फोर्स बने आर.एन. मेहरोत्रा के प्रयासों से फिर बाघों से आबाद करने की कार्ययोजना बनाई गई

मेहरोत्रा ने इस काम में वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट औफ इंडिया का सहयोग लिया. डब्ल्यूआईआई और मेहरोत्रा के प्रयासों से 28 जून, 2008 को भारत में बाघ का पहला ट्रांसलोकेशन किया गयाइस में रणथंभौर अभयारण्य से बाघ को ट्रैंकुलाइज कर भारतीय वायुसेना के हेलीकौप्टर से सरिस्का अभयारण्य ला कर छोड़ा गया था. इस के बाद समयसमय पर रणथंभौर से 2 नर और 2 मादा बाघों को ला कर सरिस्का में छोड़ा गया.

इस तरह सरिस्का अभयारण्य में बाघों का पुनर्वास कर वंशवृद्धि की कवायद शुरू की गई. हालांकि भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी रहे आर.एन. मेहरोत्रा के प्रयास फलीभूत होने लग गए थे, लेकिन सब से पहले लाए गए नर बाघ की नवंबर 2010 में पायजनिंग से मौत हो गई. अब बाघ एसटी-11 की संदिग्ध तरीके से मौत हो गई

बाघिन एसटी-5 फरवरी के तीसरे सप्ताह से लापता चल रही थी. फिलहाल सरिस्का में 11 बाघबाघिन हैं. इन में भी 2 किशोर उम्र के शावक हैं. इन के अलावा 7 शावक हैं. सरिस्का अभयारण्य का क्षेत्रफल काफी लंबाचौड़ा होने से यहां बाघ के दर्शन बड़ी मुश्किल से हो पाते हैं. राजकुमार के नाम से जाने जाने वाले सरिस्का के बाघ एसटी-11 की मौत के बाद बाघों की वंशवृद्धि पर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है. 

सरिस्का में फिलहाल बाघिनों के मुकाबले बाघों की संख्या कम है. नर बाघों में जवान बाघ 2 ही हैं. अब इन्हीं पर सरिस्का में बाघों की वंशवृद्धि की उम्मीद टिकी हुई है. सरिस्का में पिछले ढाई साल से नया शावक नजर नहीं आया है. सरिस्का में बाघों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है. बाघबाघिनों की नई खेप अब अपने लिए नए ठिकाने तलाश रही है. इस के लिए वे आसपास के जंगलों में चले जाते हैं

दूसरी ओर रणथंभौर से निकल कर जवान होते बाघ अपनी विचरणस्थली करौली और दौसा जिले में भी बना रहे हैं. कुछ बाघबाघिन सवाई माधोपुर जिले की सीमाएं पार कर बूंदी और कोटा होते हुए जंगल के कारीडोर से हो कर पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश तक पहुंच गए हैं. रणथंभौर से 2-2 बाघबाघिनों को अब सरिस्का और नए बनाए गए मुकंदरा अभयारण्य में स्थानांतरित करने के प्रयास भी चल रहे हैं.

संरक्षण के प्रयासों के बावजूद खतरा ही खतरा राज्य के हैड औफ फोरेस्ट फोर्स से सेवानिवृत्त अधिकारी आर.एन. मेहरोत्रा का कहना है कि रणथंभौर में बाघ की मौत मैनेजमेंट की काररवाई की वजह से हुई. रणथंभौर में 5 साल में सब से ज्यादा व्यवहारिक गतिविधियां बढ़ी हैं. वहां कानून व्यवस्था बिगाड़ने का काम हुआ है. वन कानूनों की खुली धज्जियां उड़ाई जा रही हैं

दूसरी तरफ सरिस्का में विभागीय अधिकारी वन्यजीवों के संरक्षण में जुटे हैं, लेकिन किसान अपनी फसलों को वन्यजीवों से बचाने के लिए कानून के विपरीत फंदे लगा कर जानवरों को फांसने का काम कर रहे हैं. इसे कठोरता से रोकना जरूरी है. सरिस्का में भी अवैध कब्जे बढ़ाने की कोशिशें हो रही हैं, इन्हें सख्ती से नहीं रोका गया तो भविष्य में रणथंभौर जैसी स्थिति हो सकती है.

वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट औफ इंडिया के मुताबिक सन 2004 में हुई गणना में देश भर में 1411 बाघ थे. सरकार के प्रयासों से सन 2011 में बाघों की तादाद बढ़ कर 1706 हो गई. सन 2014 में फोटोग्राफिक डाटा बेस के आधार पर देश भर में 2226 बाघ गिने गए. यह संख्या दुनिया भर के बाघों की संख्या का करीब 70 फीसदी थी. दुनिया भर में बाघों की फिलहाल कुल संख्या लगभग 3890 है.

सन 2017 देश में बाघों के लिए संकट का साल रहा. इस दौरान देश भर में 115 बाघों की मौत हई. नैशनल टाइगर कंजरवेशन अथौरिटी की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल देश में 98 बाघों के शव और 17 बाघों के अवशेष बरामद किए गए. इन में से 32 मादा और 28 नर बाघों की पहचान हो सकी. 

बाकी मृत बाघों की पहचान नहीं हो सकी. बाघों की मौत के मामले में मध्य प्रदेश का नाम पहले नंबर पर आता है. वहां 29 बाघों की मौत हुईइस के अलावा महाराष्ट्र में 21, कर्नाटक में 16, उत्तराखंड में 16 और असम में 16 बाघों की मौत दर्ज की गई. बाघों की मौत के पीछे करंट लगना, शिकार, जहर, आपसी संघर्ष, प्राकृतिक मौत, ट्रेन या सड़क हादसों को कारण बताया गया. पिछले 5 सालों में 414 बाघों की मौत के मामले सामने आए हैं. इन में सन 2013 में 63, सन 2014 में 66, सन 2015 में 70, सन 2016 में 100 और 2017 में 115 मामले शामिल हैं.

बाघों के संरक्षण के लिए सरकार ने सन 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया था. तब से ले कर अब तक देश में 50 टाइगर रिजर्व बनाए गए हैं, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.12 प्रतिशत है. सन 2014 के बाद इस साल फिर देश भर में बाघों की गणना की जाएगीइस बार गणना में परंपरागत तरीकों के अलावा हाईटेक तरीके का भी इस्तेमाल किया जाएगा. इस के लिए वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट औफ इंडिया ने एक ऐप डेवलप किया है. इसे मौनिटरिंग सिस्टम फौर टाइगर इंटेंसिव प्रोटेक्शन ऐंड इकोलौजिकल स्टेटस या एम स्ट्राइप्स नाम दिया गया है.

बहरहाल, जंगलों में बढ़ते मानवीय दखल, कटाई, चराई, स्वच्छंद विचरण का दायरा घटने से बाघों पर संकट मंडरा रहा है. इन के अलावा सब से बड़ा संकट शिकारियों का है. बेशकीमती खाल और अवशेषों से यौन उत्तेजक दवाएं बनाने वालों की निगाहें हमेशा बाघों पर टिकी रहती हैं. इसी कारण बाघ बेमौत मारे जा रहे हैं.

 

पिकनिक प्वाइंट पर बिस्तर में लिपटी लाश पर सस्पेंस

जयलक्ष्मी ने प्रेमी के साथ मिलकर जिस तरह पति की हत्या कर के लाश को ठिकाने लगाया था, उस से उसे पूरा विश्वास था कि किसी को सच्चाई का पता नहीं चल पाएगा, लेकिन सड़क पर पड़े खून के दाग ने उस की पोल खोल ही दी…    

भीकभी कोई रात आदमी के लिए इतनी भारी हो जाती है कि उसे काटना मुश्किल हो जाता है. जयलक्ष्मी गुरव के लिए भी वह रात ऐसी ही थी. उस पूरी रात वह पलभर के लिए भी नहीं सो सकी थी. कभी वह बिस्तर पर करवटें बदलती तो कभी उठ कर कमरे में टहलने लगती. उस के मन में बेचैनी थी तो आंखों में भय था.

ए कएक पल उसे एकएक साल के बराबर लग रहा था. किसी अनहोनी की आशंका से उस का दिल कांप उठता था. सवेरा होते ही जयलक्ष्मी बेटे के पास पहुंची और उसे झकझोर कर उठाते हुए बोली, ‘‘तुम यहां आराम से सो रहे हो और तुम्हारे पापा रात से गायब हैं. वह रात में गए तो अभी तक लौट कर नहीं आए हैं. वह जब घर से गए थे तो उन के पास काफी पैसे थे, इसलिए मुझे डर लग रहा है कि कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई?’’

जयलक्ष्मी बेटे को जगा कर यह सब कह रही थी तो उस की बातें सुन कर उस की ननद भी जाग गई, जो बेटे के पास ही सोई थी. वह भी घबरा कर उठ गई. आंखें मलते हुए उस ने पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभी, भैया कहां गए थे, जो अभी तक नहीं आए. लगता है, तुम रात में सोई भी नहीं हो?’’

‘‘मैं सोती कैसे, उन की चिंता में नींद ही नहीं आई. उन्हीं के इंतजार में जागती रही. मेरा दिल बहुत घबरा रहा है.’’ कह कर जयलक्ष्मी रोने लगी. बेटा उठा और पिता की तलाश में जगहजगह फोन करने लगा. लेकिन उन का कहीं पता नहीं चला. उस के पिता विजय कुमार गुरव के बारे में भले पता नहीं चला, लेकिन उन के गायब होने की जानकारी उन के सभी नातेरिश्तेदारों को हो गई. इसका नतीजा यह निकला कि ज्यादातर लोग उन के घर गए और सभी उन की तलाश में लग गए.

विजय कुमार गुरव के गायब होने की खबर मोहल्ले में भी फैल गई थी. मोहल्ले वाले भी मदद के लिए गए थे. हर कोई इस बात को लेकर परेशान था कि आखिर विजय कुमार कहां चले गए? इसी के साथ इस बात की भी चिंता सता रही थी कि कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई. क्योंकि वह घर से गए थे तो उन के पास कुछ पैसे भी थे. किसी ने उन पैसों के लिए उनके साथ कुछ गलत कर दिया हो.

38 साल के विजय कुमार महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले की तहसील सावंतवाड़ी के गांव भड़गांव के रहने वाले थे. उन का भरापूरा शिक्षित और संपन्न परिवार था. सीधेसादे और मिलनसार स्वभाव के विजय कुमार गडहिंग्लज के एक कालेज में अध्यापक थे. अध्यापक होने के नाते समाज में उन का काफी मानसम्मान था

गांव में उन का बहुत बड़ा मकान और काफी खेती की जमीन थी. लेकिन नौकरी की वजह से उन्होंने गडहिंग्लज में जमीन खरीद कर काफी बड़ा मकान बनवा कर उसी में परिवार के साथ रहने लगे थे.

विजय कुमार के परिवार में पत्नी जयलक्ष्मी के अलावा एक बेटा था. पत्नी और बेटे के अलावा उन की एक मंदबुद्धि बहन भी उन्हीं के साथ रहती थी. मंदबुद्धि होने की वजह से उस की शादी नहीं हुई थी. बाकी का परिवार गांव में रहता था. विजय कुमार को सामाजिक कार्यों में तो रुचि थी ही, वह तबला और हारमोनियम बहुत अच्छी बजाते थे. इसी वजह से उन की भजनकीर्तन की अपनी एक मंडली थी. उन की यह मंडली गानेबजाने भी जाती रहती थी.

दिन कालेज और रात गानेबजाने के कार्यक्रम में कटने की वजह से वह घरपरिवार को बहुत कम समय दे पाते थे. उन की कमाई ठीकठाक थी, इसलिए घर में सुखसुविधा का हर साधन मौजूद था. आनेजाने के लिए मोटरसाइकिलों के अलावा उनके पास एक मारुति ओमनी वैन भी थी. इस तरह के आदमी के अचानक गायब होने से घर वाले तो परेशान थे ही, नातेरिश्तेदारों के अलावा उन की जानपहचान वाले भी परेशान थे. सभी उन की तलाश में लगे थे. काफी प्रयास के बाद भी जब उन के बारे में कुछ पता नहीं चला तो सभी ने एकराय हो कर कहा कि अब इस मामले में पुलिस की मदद लेनी चाहिए

इस के बाद विजय कुमार का बेटा कुछ लोगों के साथ थाना गडहिंग्लज पहुंचा और थानाप्रभारी को पिता के गायब होने की जानकारी दे कर उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी. यह 7 नवंबर, 2017 की बात है. पुलिस ने भी अपने हिसाब से विजय कुमार की तलाश शुरू कर दी. लेकिन पुलिस की इस कोशिश का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला. पुलिस ने लापता अध्यापक विजय कुमार की पत्नी जयलक्ष्मी से भी विस्तार से पूछताछ की.

जयलक्ष्मी ने पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार रोज की तरह उस दिन कालेज बंद होने के बाद 7 बजे के आसपास वह घर आए तो नाश्तापानी कर के कमरे में बैठ कर पैसे गिनने लगे. वे पैसे शायद फीस के थे, जिन्हें अगले दिन कालेज में जमा कराने थे. पैसे गिन कर उन्होंने पैंट की जेब में वापस रख दिए और लेट कर टीवी देखने लगे

रात का खाना खा कर साढ़े 11 बजे के करीब विजय कुमार पत्नी के साथ सोने की तैयारी कर रहे थे, तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी. जयलक्ष्मी ने सवालिया निगाहों से पति की ओर देखा तो उन्होंने कहा, ‘‘देखता हूं, कौन है?’’ विजय कुमार ने दरवाजा खोला तो शायद दस्तक देने वाला विजय कुमार का कोई परिचित था, इसलिए वह बाहर निकल गए. थोड़ी देर बाद अंदर आए और कपड़े पहनने लगे तो जयलक्ष्मी ने पूछा, ‘‘कहीं जा रहे हो क्या?’’

‘‘हां, थोड़ा काम है. जल्दी ही लौट आऊंगा.’’ कह कर वह बाहर जाने लगे तो जयलक्ष्मी ने हा, ‘‘गाड़ी की चाबी तो ले लो?’’ ‘‘चाबी की जरूरत नहीं है. उन्हीं की गाड़ी से जा रहा हूं.’’ कह कर विजय कुमार चले गए. वह वही कपड़े पहन कर गए थे, जिस में पैसे रखे थे. इस तरह थोड़ी देर के लिए कह कर गए विजय कुमार गुरव लौट कर नहीं आए.

पुलिस ने विजय कुमार के बारे में पता करने के लिए अपने सारे हथकंडे अपना लिए, पर उन की कोई जानकारी नहीं मिली. 3 दिन बीत जाने के बाद भी थाना पुलिस कुछ नहीं कर पाई तो घर वाले कुछ प्रतिष्ठित लोगों को साथ ले कर एसएसपी दयानंद गवस और एसपी दीक्षित कुमार गेडाम से मिलेइसका नतीजा यह निकला कि थाना पुलिस पर दबाव तो पड़ा ही, इस मामले की जांच में सीआईडी के इंसपेक्टर सुनील धनावड़े को भी लगा दिया गया.

सुनील धनावड़े जांच की भूमिका बना रहे थे कि 11 नवंबर, 2017 को सावंतवाड़ी अंबोली स्थित सावलेसाद पिकनिक पौइंट पर एक लाश मिलने की सूचना मिली. सूचना मिलते ही एसपी दीक्षित कुमार गेडाम, एसएसपी दयानंद गवस इंसपेक्टर सुनील धनावड़े पुलिस बल के साथ उस जगह पहुंच गए, जहां लाश पड़ी होने की सूचना मिली थी. 

यह पिकनिक पौइंट बहुत अच्छी जगह है, इसलिए यहां घूमने वालों की भीड़ लगी रहती है. यहां ऊंचीऊंची पहाडि़यां और हजारों फुट गहरी खाइयां हैं. किसी तरह की अनहोनी हो, इस के लिए पहाडि़यों पर सुरक्षा के लिए लोहे की रेलिंग लगाई गई हैदरअसल, यहां घूमने आए किसी आदमी ने रेलिंग के पास खून के धब्बे देखे तो उस ने यह बात एक दुकानदार को बताई. दुकानदार ने यह बात चौकीदार दशरथ कदम को बताई. उस ने उस जगह का निरीक्षण किया और मामले की जानकारी थाना पुलिस को दे दी.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल के निरीक्षण में सैकड़ों फुट गहरी खाई में एक शव को पड़ा देखा. शव बिस्तर में लिपटा था. वहीं से थोड़ी दूरी पर एक लोहे की रौड पड़ी थी, जिस में खून लगा था. इस से पुलिस को लगा कि हत्या उसी रौड से की गई है. पुलिस ने ध्यान से घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वहां से कुछ दूरी पर कार के टायर के निशान दिखाई दिए. 

इससे साफ हो गया कि लाश को कहीं बाहर से लाकर यहां फेंका गया था. पुलिस ने रौड और बिस्तर को कब्जे में ले कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. सीआईडी इंसपेक्टर सुनील धनावड़े विजय कुमार गुरव की गुमशुदगी की जांच कर रहे थे, इसलिए उन्होंने लाश की शिनाख्त के लिए जयलक्ष्मी को सूचना दे कर अस्पताल बुला लिया

लाश की स्थिति ऐसी थी कि उस की शिनाख्त आसान नहीं थी. फिर भी कदकाठी से अंदाजा लगाया गया कि वह लाश विजय कुमार गुरव की हो सकती है. चूंकि उन के घर वालों ने संदेह व्यक्त किया था, इसलिए पुलिस ने लाश की पुख्ता शिनाख्त के लिए डीएनए का सहारा लिया. जिस बिस्तर में शव लिपटा था, उसे जयलक्ष्मी को दिखाया गया तो उस ने उसे अपना मानने से इनकार कर दिया.

भले ही लाश की पुख्ता शिनाख्त नहीं हुई थी, लेकिन पुलिस उसे विजय कुमार की ही लाश मान कर जांच में जुट गईजिस तरह मृतक की हत्या हुई थी, उस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि यह हत्या प्रेमसंबंधों में हुई है. पुलिस ने विजय कुमार और उन की पत्नी जयलक्ष्मी के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि विजय कुमार और जयलक्ष्मी के बीच संबंध सामान्य नहीं थे

इस की वजह यह थी कि जयलक्ष्मी का चरित्र संदिग्ध था, जिसे लेकर अकसर पतिपत्नी में झगड़ा हुआ करता था. जयलक्ष्मी का सामने वाले मकान में रहने वाले सुरेश चोथे से प्रेमसंबंध था, इसलिए घर वालों का मानना था कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे इन्हीं दोनों का हाथ हो सकता है.

यह जानकारी मिलने के बाद सुनील धनावड़े समझ गए कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे उन की पत्नी जयलक्ष्मी और उस के प्रेमी सुरेश का हाथ है. उन्होंने जयलक्ष्मी से एक बार फिर पूछताछ की

वह उस की बातों से संतुष्ट नहीं थे, लेकिन कोई ठोस सबूत होने की वजह से वह उसे गिरफ्तार नहीं कर सके. उन्होंने सुरेश चोथे को भी थाने बुला कर पूछताछ की. उस ने भी खुद को निर्दोष बताया. उस के भी जवाब से वह संतुष्ट नहीं थे, इस के बावजूद उन्होंने उसे जाने दिया.

उन्हें डीएनए रिपोर्ट का इंतजार था, क्योंकि उस से निश्चित हो जाता कि वह लाश विजय कुमार की ही थी. पुलिस डीएनए रिपोर्ट का इंतजार कर ही रही थी कि पुलिस की सरगर्मी देख कर जयलक्ष्मी अपने सारे गहने और घर में रखी नकदी ले कर सुरेश चोथे के साथ भाग गई. दोनों के इस तरह घर छोड़ कर भाग जाने से पुलिस को शक ही नहीं, बल्कि पूरा यकीन हो गया कि विजय कुमार के गायब होने के पीछे इन्हीं दोनों का हाथ है.

पुलिस सुरेश चोथे और जयलक्ष्मी की तलाश में जुट गई. पुलिस उन की तलाश में जगहजगह छापे तो मार ही रही थी, उन के फोन भी सर्विलांस पर लगा दिए थे. इस से कभी उन के दिल्ली में होने का पता चलता तो कभी कोलकाता में. गुजरात और महाराष्ट्र के शहरों की भी उन की लोकेशन मिली थी. इस तरह लोकेशन मिलने की वजह से पुलिस कई टीमों में बंट कर उन का पीछा करती रही थी

आखिर पुलिस ने मोबाइल फोन के लोकेशन के आधार पर जयलक्ष्मी और सुरेश को मुंबई के लोअर परेल लोकल रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया. उन्हें थाना गडहिंग्लज लाया गया, जहां एसएसपी दयानंद गवस की उपस्थिति में पूछताछ शुरू हुई

अबडीएनए रिपोर्ट भी आ गई थी, जिस से साफ हो गया था कि सावलेसाद पिकनिक पौइंट पर खाई में मिली लाश विजय कुमार की ही थी. पुलिस के पास सारे सबूत थे, इसलिए जयलक्ष्मी और सुरेश ने तुरंत अपना अपराध स्वीकार कर लिया. दोनों के बताए अनुसार, विजय कुमार की हत्या की कहानी इस प्र    कार थी— 34 साल का सुरेश चोथे विजय कुमार गुरव के घर के ठीक सामने रहता था. उस के परिवार में पत्नी और 2 बच्चों के अलावा मातापिता, एक बड़ा भाई और भाभी थी. वह गांव की पंचसंस्था में मैनेजर के रूप में काम करता था. घर में पत्नी होने के बावजूद वह जब भी जयलक्ष्मी को देखता, उस के मन में उसे पाने की चाहत जाग उठती.

37 साल की जयलक्ष्मी थी ही ऐसी. वह जितनी सुंदर थी, उतनी ही वाचाल और मिलनसार भी थी. उस से बातचीत कर के हर कोई खुश हो जाता था, इस की वजह यह थी कि वह खुल कर बातें करती थी. ऐसे में हर कोई उस की ओर आकर्षित हो जाता था. पड़ोसी होने के नाते सुरेश से उस की अकसर बातचीत होती रहती थी. बातचीत करतेकरते ही वह उस का दीवाना बन गया था. जयलक्ष्मी का बेटा 18 साल का था, लेकिन उस के रूपयौवन में जरा भी कमी नहीं आई थी. 

शरीर का कसाव और चेहरे के निखार से वह 25 साल से ज्यादा की नहीं लगती थी. उस के इसी यौवन और नशीली आंखों के जादू में सुरेश कुछ इस तरह खोया कि अपनी पत्नी और बच्चों को भूल गया. कहा जाता है कि जहां चाह होती है, वहां राह मिल ही जाती है. जयलक्ष्मी तक पहुंचने की राह आखिर सुरेश ने खोज ही ली. विजय कुमार से दोस्ती कर के वह उस के घर के अंदर तक पहुंच गया था. इस के बाद धीरेधीरे उस ने जयलक्ष्मी से करीबी बना ली

भाभी का रिश्ता बना कर वह उस से हंसीमजाक करने लगा. हंसीमजाक में जयलक्ष्मी के रूपसौंदर्य की तारीफ करतेकरते उस ने उसे अपनी ओर इस तरह आकर्षित किया कि उस ने उसे अपना सब कुछ सौंप दिया. विजय कुमार गुरव दिन भर नौकरी पर रहते और रात में गानेबजाने की वजह से अकसर बाहर ही रहते थे. इसी का फायदा जयलक्ष्मी और सुरेश उठा रहे थे. जयलक्ष्मी को अपनी बांहों में पाकर जहां सुरेश के मन की मुराद पूरी हो गई थी, वहीं जयलक्ष्मी भी खुश थी. दोनों विजय कुमार की अनुपस्थिति में मिलते थे, इसलिए उन्हें पता नहीं चल पाता था

लेकिन आसपास वालों ने विजय कुमार के घर में रहने पर सुरेश को अकसर उस के घर आतेजाते देखा तो उन्हें शंका हुई. उन्होंने विजय कुमार को यह बात बता कर शंका जाहिर की तो विजय कुमार हैरान रह गए. उन्हें तो पड़ोसी होने के नाते सुरेश पर पूरा भरोसा था

इस तरह दोनों विजय कुमार के भरोसे का खून कर रहे थे. उन्होंने पत्नी और सुरेश से इस विषय पर बात की तो दोनों कसमें खाने लगे. उन का कहना था कि उन के आपस में संबंध खराब करने के लिए लोग ऐसा कह रहे हैं. भले ही जयलक्ष्मी और सुरेश ने कसमें खा कर सफाई दी थी, लेकिन विजय कुमार जानते थे कि बिना आग के धुआं नहीं उठ सकता. लोग उन से झूठ क्यों बोलेंगे

सच्चाई का पता लगाने के लिए वह पत्नी और सुरेश पर नजर रखने लगे. इस से जयलक्ष्मी और सुरेश को मिलने में परेशानी होने लगी, जिस से दोनों बौखला उठे. इस के अलावा सुरेश को लेकर विजय कुमार अकसर जयलक्ष्मी की पिटाई भी करने लगे थे

इससे जयलक्ष्मी तो परेशान थी ही, प्रेमिका की पिटाई से सुरेश भी दुखी था. वह प्रेमिका की पिटाई सहन नहीं कर पा रहा था. जयलक्ष्मी की पिटाई की बात सुन कर उस का खून खौल उठता था. प्रेमी के इस व्यवहार से जयलक्ष्मी ने एक खतरनाक योजना बना डाली. उस में सुरेश ने उस का हर तरह से साथ देने का वादा किया

योजना के अनुसार, घटना वाले दिन जयलक्ष्मी ने खाने में नींद की गोलियां मिला कर पति, ननद और बेटे को खिला दीं, जिस से सभी गहरी नींद सो गए. रात एक बजे के करीब सुरेश ने धीरे से दरवाजा खटखटाया तो जयलक्ष्मी ने दरवाजा खोल दिया. सुरेश लोहे की रौड लेकर आया था. उसी रौड से उस ने पूरी ताकत से विजय कुमार के सिर पर वार किया. उसी एक वार में उस का सिर फट गया और उस की मौत हो गई.

विजय कुमार की हत्या कर के लाश को दोनों ने बिस्तर में लपेट दिया. इस के बाद जयलक्ष्मी ने लाश को अपनी मारुति वैन में रख कर उसे सुरेश से सावंतवाड़ी के अंबोली सावलेसाद पिकनिक पौइंट की गहरी खाइयों में फेंक आने को कहा.

सुरेश लाश को ठिकाने लगाने चला गया तो जयलक्ष्मी कमरे की सफाई में लग गई. उस के बाद सुरेश लौटा तो जयलक्ष्मी ने वैन की भी ठीक से सफाई कर दी. इस के बाद उस ने विजय कुमार की गुमशुदगी की झूठी कहानी गढ़ डाली. लेकिन उस की झूठी कहानी जल्दी ही सब के सामने गई

पूछताछ के बाद पुलिस ने जयलक्ष्मी के कमरे का बारीकी से निरीक्षण किया तो दीवारों पर भी खून के दाग नजर आए. पुलिस ने उन के नमूने उठवा लिए. इस तरह साक्ष्य एकत्र कर के पुलिस ने दोनों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.        

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शाहनवाज की खूबसूरती देख हुस्ना का बदन क्यों तिलमिला गया

रशीद हुस्ना को दिलोजान से चाहता था, लेकिन साधारण परिवार की हुस्ना ने उसे तवज्जो नहीं दी. उसने अमीर शाहनवाज से इसलिए शादी की ताकि ऐशोआराम की जिंदगी जी सके. पर शाहनवाज ने उसे ऐसा क्या दिया कि हुस्ना पश्चाताप के आंसू बहाती रह गई…  

शीद वैसे तो हमारे घर अकसर आताजाता रहता था, पर जब से मैं बड़ी हुई थी, उस का आनाजाना बढ़ गया था. मैं स्कूल  से आती तो वह गली में टहलता मिलता था. घर पर इंतजार कर रहा होता. अजीब इंसान था, न कभी बात करता न मेरी तारीफ करता. न नजर भर कर देखता पर उस के अंदाज बताते थे कि वह मुझ से मोहब्बत करता है. मेरे करीब रहने के लिए वह हर जतन करता, कभी बाजार जाकर अम्मा की दवाई लेकर आता, कभी अब्बा का कोई काम करता. कभी मेरी छोटी बहन को घुमा कर लाता, उसे किसी काम से इनकार नहीं था.

रशीद हमारे घर के करीब ही रहता था. उस की मोटर मैकेनिक की दुकान थी, जिस में उस के अलावा 2 कारीगर काम करते थे. आमदनी अच्छी थी. घर में किसी को उस के आनेजाने पर ऐतराज नहीं था. सभी उसे पसंद करते थे. वह बचपन से हमारे घर आता था. देखने में भी अच्छाखासा था. मैं 10वीं में 2 बार फेल हो चुकी थी, उम्र भी 18 हो गई थी. पर देखने में मैं खूबसूरत थी.

मेरे अब्बा एक औफिस में चपरासी थे. आमदनी कम थी, खर्चे ज्यादा थे. मैं एक अच्छे स्कूल में पढ़ती थी लेकिन छोटे भाईबहन सरकारी स्कूल में पढ़ते थे. मेरे स्कूल में बड़े घरों की लड़कियां पढ़ती थीं. उन के बीच रह कर मैं अपने घर की गरीबी भूल जाती और उन की तरह ही रहने की कोशिश करती. उन के घरों में जाती, उन के घरों में ऐशोआराम के सामान देख कर दंग रह जाती और सोचती कि पढ़लिख कर मैं भी किसी अमीर लड़के से शादी करूंगी.

गरीबी आखिर ख्वाब देखने से तो नहीं रोक सकती. मैं ने सोच लिया था कि किसी गरीब या मामूली इंसान से हरगिज शादी नहीं करूंगी. अगर गरीबी में ही दिन काटने हैं तो अपना घर क्या बुरा है. बड़े घर की लड़कियों के बीच रह कर दिमाग भी ऊंचा सोचने लगा था. ऐसे में भला मुझे रशीद कैसे अच्छा लग सकता था.

वह ठीकठाक पैसे कमाता था, पर था अनपढ़. एक सब्जी बेचने वाले का बेटा. काम भी गाड़ी मैकेनिक का करता था. मुझे उस से नफरत तो नहीं थी, पर जिस चाहत से वह देखता था, मुझे बुरा लगता था. लेकिन वह भी अजीब मिट्टी का बना था. कोई शिकायत कोई शिकवा.

मेरी सहेली महताब की शादी थी. वह अकसर अपने मंगेतर की बातें मुझे बताती रहती थी. उस की बातें सुन कर मैं भी ख्वाबों की दुनिया में खो जाती थी. महताब ने बड़े इसरार से हल्दी से लेकर रिसैप्शन तक 4 दिन की दावत दी. मैंने कहा, ‘‘अम्मी से इजाजत मिलना मुश्किल है और फिर मुझे लाएगा कौन?’’

वह रोते हुए बोली, ‘‘देख हुस्ना, शादी के बाद मैं अमेरिका चली जाऊंगी, फिर पता नहीं कब आना हो. अब मैं कल से स्कूल भी नहीं आऊंगी. तुम्हें आना ही पड़ेगा.’’ वह मेरे कंधे पर सिर रख कर रो पड़ी. उस का लगाव देख कर मुझे आने का वादा करना पड़ा. अब मेरे सामने 2 मसले थे, एक तो घर वालों की इजाजत और दूसरे किस के साथ जाऊंगी

घर कर मैंने अम्मी को बताया, ‘‘अम्मी, मेरी खास सहेली की शादी है. उस की शादी मुझे हर हाल में अटेंड करनी है, फिर वह अमेरिका चली जाएगी.’ ‘‘कहां पर है शादी?’’  ‘‘क्लिफ्टन में कोठी है उस की.’’

 ‘‘बेटा, इतनी दूर कैसे जाओगी? कहीं पास होती तो मैं साथ चली चलती. कोई जरूरत नहीं है जाने की.’’ ‘‘अब्बा से कहें वो साथ चलें.’’  ‘‘नहीं, वो भी नहीं जाएंगे.’’

मेरी आंखों से आंसू टपकने लगे. उसी वक्त अब्बा और रशीद भी आ गए. पूरी बात सुन कर अब्बा भी यही बोले, ‘‘बेटा, भेजने में कोई हर्ज नहीं है, पर जाओगी कैसे?’’ रशीद के चेहरे पर मुसकान आ गई, वह जल्दी से बोला, ‘‘छोटी सी बात है, मैं छोड़ आऊंगा.’’ अब्बा राजी हो गए पर अम्मा को ऐतराज था. लेकिन उन के ऐतराज ने मेरी जिद के आगे दम तोड़ दिया. दूसरे दिन शाम को रशीद किसी की नई मोटरसाइकिल लेकर आ गया. मैं खूब तैयार हुई थी. ऊपर से एक चादर ओढ़ कर मैं उस के साथ बैठ गई.

महताब के घर जैसे रंग नूर की बारिश हो रही थी. कोठी के आगे बड़ा सा शामियाना लगा था, जहां उबटन का फंक्शन होना था. रशीद मुझे कोठी के बाहर उतार कर चला गया. मैंने उसे 10 बजे आने को कहा. सारी मेहमान लड़कियां अच्छे कपड़ों और जेवरों से सजीधजी थीं. उन्हें देख कर मुझे कौंप्लेक्स हो रहा था 

मैं महताब के पास पहुंची, वह लड़कियों से घिरी बैठी थी. उस ने पीले रंग का हल्दी का जोड़ा पहन रखा था. उसी वक्त फाकिरा गई, जो मेरी दूसरी अच्छी सहेली थी. वह मुझ से लिपट गई. उस ने पूछा, ‘‘हुस्ना, किस के साथ आई हो?’’

 मैंने कहा, ‘‘अपने कजिन के साथ आई थी, उसे वापस भेज दिया.’’ ‘‘अरे, उसे वापस क्यों भेज दिया, इतने मर्द हैं, वह भी शामिल हो जाता.’’ ‘‘10 बजे लेने जाएगा.’’

लड़कियां ढोलक लेकर बैठ गईं. गीत और डांस होने लगा. फाकिरा ने कहा, ‘‘चल नीचे की रौनक देख कर आते हैं.’’ शामियाने में स्टेज सज रहा था. फाकिरा ने एक स्मार्ट से नौजवान से मिलाते हुए कहा, ‘‘ये मेरे कजिन शाहनवाज हैं. और ये मेरी प्यारी दोस्त हुस्ना है.’’ शाहनवाज खूबसूरत लड़का था, उस ने खासे महंगे कपड़े पहन रखे थे. उस ने हाथ मिलाने को हाथ बढ़ाया तो मैं झिझक गई. उस ने आगे बढ़ कर मेरा हाथ थाम लिया और गर्मजोशी से कहा, ‘‘अरे फाकिरा, तुम्हारी दोस्त इतनी खूबसूरत है. इसे कहां छिपा कर रखा था? मोहतरमा आप से मिल कर दिल खुश हो गया.’’

 मैं क्या कहती. वह फिर बोला, ‘‘गरमी लग रही है, आओ चलो आइसक्रीम खा कर आते हैं.’’ मैं इनकार करती रही. दोनों मुझे हाथ पकड़ कर कार में ले गए. हम ने साथ बैठ कर आइसक्रीम खाई, वह भरपूर नजरों से मुझे देखता रहा. उस की बेतकल्लुफी देख कर मैं हैरान थी. फिर मैं ने सोचा बड़े लोगों में ऐसा ही होता होगा.

हम वहां से लौट कर आए तो मैं ने दूर से रशीद को खड़े देखा. पर मैं उसे नजरअंदाज कर के आगे बढ़ गई. शाहनवाज ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा, ‘‘तुम वापस कैसे जाओगी?’’ मैंने कहा, ‘‘मेरा कजिन लेने आएगा.’’ ‘‘अगर वह न आता तो मैं तुम्हें छोड़ आता. कल जरूर आना, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’ उस ने शोखी से कहा. उस लड़के ने मुझ में ऐसा क्या देख लिया कि मुझ पर फिदा हो गया. मेरा दिल भी उस की तरफ खिंच रहा था. उबटन शुरू हो चुका था. हम ने एक रस्म निभाई और खाने की तरफ बढ़ गए. मैं ने फाकिरा से पूछा, ‘‘ये तुम्हारा कजिन कुछ काम करता है या पढ़ता है.’’

‘‘इसे कुछ करने की जरूरत नहीं है. शानदार बंगले में अकेला रहता है. फैमिली अमेरिका में है. इस के खर्चे के लिए इतना भेजते हैं कि दोनों हाथों से लुटाता है, कुछ बिजनैस सेट करने का भी इरादा है.’’ करीब 11 बजे फंक्शन से फारिग हो कर बाहर पहुंची तो रशीद बेचैनी से मेरा इंतजार कर रहा था. मैं ने कहा, ‘‘आप जल्दी गए थे, इसलिए इतना इंतजार करना पड़ा.’’

 ‘‘कोई बात नहीं, आप की राह देखना तो मेरा नसीब है.’’ रास्ते भर वह चुप रहा. मुझे डर था कहीं शाहनवाज के बारे में पूछ बैठे. उतरते वक्त मैं ने शुक्रिया कहा तो उस ने पूछा, ‘‘अब कब जाना है?’’ मैं शाहनवाज के जादू में डूबी हुई थी. फौरन बोली, ‘‘अब रोज ही जाना होगा.’’

 ‘‘अच्छा, कल मैं किसी की कार मांग लाऊंगा.’’ उस के जाने के बाद मैं खयालों में डूब गई. एक तरफ पूरी चमकदमक के साथ शाहनवाज खड़ा था, दूसरी तरफ एक मामूली मैकेनिक. दिल कह रहा था कि मैं रशीद के साथ अन्याय कर रही हूं, मुझे उस के साथ नहीं जाना चाहिए.

दूसरे दिन रशीद कार लेकर गया. मुझे उस के साथ जाना पड़ा. जैसे ही मैं कार से उतरी, शाहनवाज गया. उस ने रशीद को देख कर कहा, ‘‘अच्छा, ये हैं तुम्हारे भाईसाहब.’’ रशीद का चेहरा पीला पड़ गया. मैं ने बात बदली, ‘‘फाकिरा गई?’’

 ‘‘वह आज देर से आएगी.’’ रशीद मुझे वहां छोड़ कर चला गया. मैं महताब के पास चली गई. शाहनवाज मेरे हवासों पर ऐसा छाया था कि मेरा दिल महताब के पास नहीं लगा. मैं उठ कर नीचे गई. शाहनवाज मेरा मुंतजर था. वह मुझे ले कर समंदर किनारे आ गया. उस ने मेरा हाथ थाम कर कहा, ‘‘हुस्ना, ये शादी 2 दिन में खत्म हो जाएगी. फिर हम कैसे मिलेंगे.’’

मैंने उसे छेड़ा, ‘‘मिलना कोई जरूरी नहीं है.’’

उस ने बेताबी से कहा, ‘‘तुम्हें अंदाजा नहीं, तुम ने 2 मुलाकातों में मुझे दीवाना बना दिया है. अब तुम्हारे बिना रहना मुश्किल है.’’ ‘‘आप को मालूम नहीं, मेरी फैमिली कैसी है. मेरा घर से निकलना कितना मुश्किल होता है.’’

‘‘कुछ दिनों की परेशानी है फिर मैं तुम्हें हमेशा के लिए अपना बना लूंगा.’’ ‘‘आप जानते नहीं, मैं एक गरीब घर की लड़की हूं.’’ ‘‘मैं गरीबअमीर के फर्क को नहीं मानता. मैं शुरू से अपने फैसले खुद करता हूं. तुम से शादी के लिए मेरे मांबाप को भी कोई ऐतराज नहीं होगा.’’ काफी देर तक हम वहां घूमते रहे, फिर लौट कर महताब के घर गए. कुछ देर तक महताब के पास बैठ कर मैं नीचे आई, रशीद चुका था. आज वह ज्यादा ही खामोश था, खफा भी लग रहा था. मैं ने कहा, ‘‘रशीद भाई, आप को 2 दिन आना पड़ा, तकलीफ हुई. अब कल मत आना. मुझे महताब बुलवा लेगी, अपने कजिन को भेज कर.’’

 ‘‘उस का कजिन वही है जो आज वहां मिला था?’’ रशीद ने बड़ी मायूसी से कहा. ‘‘हां, वही है शाहनवाज नाम है.’’ ‘‘वह लड़का मुझे कुछ ठीक नहीं लगता, किस बदतमीजी से उस ने तुम्हारे कंधे पर हाथ रखा था.’’  

‘‘बड़े लोगों में ये फैशन है, इसे बुरा नहीं समझा जाता.’’ ‘‘मैं तुम्हें समझाने का हक तो नहीं रखता, पर इतना जरूर कहूंगा कि इस आदमी पर भरोसा मत करना वरना धोखा खाओगी.’’

  ‘‘मुझे मालूम है किस पर भरोसा करना है, किस पर नहीं. मुझे समझाने की कोशिश करें.’’  ‘‘पर मैं तुम्हारा नुकसान बरदाश्त नहीं कर सकता.’’ ‘‘तुम होते कौन हो, मेरा भलाबुरा सोचने वाले?’’

 मुझ पर शाहनवाज का जादू चढ़ गया था. मैं गुस्से में बकती चली गई. उस ने सड़क के किनारे गाड़ी रोकी और मेरे हाथ पर हाथ रख कर कहा, ‘‘हुस्ना, क्या तुम्हें अंदाजा नहीं है कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं. अब तक की सारी जिंदगी तुम्हें सपनों में बसा कर बसर की है. मैं कैसे तुम्हें किसी और का बनता देख सकता हूं और खास कर बरबाद होते कैसे देख सकता हूं्?’’

‘‘मुंह देखा है कभी आईने में? तुम्हारा शाहनवाज का क्या मुकाबला? अब बकवास बंद करते हो या मैं नीचे उतर जाऊं? कल मुझे लेने के लिए आने की जरूरत नहीं है.’’ ‘‘अब मैं तुम से कुछ नहीं कहूंगा. अपनी मोहब्बत से मजबूर हो कर कह गया, पर तुम मुझ से ऐसा सलूक करो.’’

 मैं खामोशी से उतर कर अपने घर चली गई. कपड़े बदल कर अम्मा के पास आई और उन से कहा, ‘‘अम्मा, मैं कल से रशीद के साथ नहीं जाऊंगी, मेरी सहेली का भाई लेने आएगा.’’ दूसरे दिन शाम को चमचमाती कार मेरे दरवाजे पर खड़ी थी. मैं ने शाहनवाज को फोन कर के घर आने को कह दिया था. मैं ने अम्मा से कहा, ‘‘अम्मा, मेरी सहेली का भाई मुझे लेने गया है, मैं जा रही हूं लौटने में मुझे देर हो सकती है.’’ अम्मा बड़बड़ाती रह गई. मैं बाहर निकल गई. जैसे ही हमारी कार बाहर निकली, मैं ने रशीद को एक खंभे के सहारे उदास खड़े देखा.

हम महताब के घर जा कर सीधे समंदर किनारे चले गए. वहां उस की शानदार हट थी. ये मेरे लिए एकदम नई दुनिया थी. रात 12 बजे तक हम वहीं रुके और भविष्य के सपने बुनते रहे. वहां से मैं सीधी घर गई. दूसरे दिन भी यही सिलसिला रहा. मैं महताब की शादी में भी नहीं गई. मेरी बेरुखी के बावजूद रशीद चुपचाप हमारी खिदमत करता रहा. पता नहीं उस ने अब्बा से क्या कहा कि वह अम्मा से कहने लगे, ‘‘रशीद अच्छा लड़का है, देखाभाला. अच्छाखासा कमाता भी है. मैं ने तय किया है कि हुस्ना की शादी रशीद से कर दी जाए. वह सुखी रहेगी और हमारी आंखों के सामने भी.’’

अम्मा ने ऐतराज करना चाहा तो अब्बा बोले, ‘‘इस से अच्छा रिश्ता नहीं मिलेगा. रशीद हुस्ना को पसंद भी करता है. गरीब चपरासी की लड़की के लिए किसी शहजादे का रिश्ता तो आएगा नहीं.’’ मैं ने अब्बा से कहा, ‘‘अब्बा, मैं रशीद से शादी नहीं करना चाहती और वह भी नहीं चाहता.’’ मुझ पर शाहनवाज के इश्क का ऐसा नशा चढ़ा था कि जो दिल में आया, कह दिया. अब्बा उस वक्त खामोश हो गए. दूसरे दिन स्कूल से वापस लौटते हुए मैं रशीद की दुकान पर रुक गई. मैंने उस से रूखेपन से कहा, ‘‘तुम ने अब्बा से यह क्यों कहा कि मुझ से शादी करना चाहते हो?’’

‘‘क्योंकि मैं तुम से मोहब्बत करता हूं और तुम अपनी सहेली के कजिन से शादी करना चाहती हो पर याद रखना वह फ्रौड है, तुम्हें धोखा देगा.’’

‘‘मैं तुम्हारी नसीहत सुनने नहीं आई हूं. मैं शाहनवाज से मोहब्बत करती हूं और शादी भी उसी से करूंगी. बेहतर यही है कि तुम बीच में से हट जाओ. तुम शादी वाली बात के लिए अब्बा से इनकार कर दो.’’

‘‘मैं तुम से सच्ची मोहब्बत करता हूं, तुम्हारी खुशी के लिए हर कुरबानी दूंगा. अगर तुम यही चाहती हो तो मैं शादी से इनकार कर दूंगा.’’

मुझे इस से कोई सरोकार नहीं था कि उस के दिल पर क्या गुजर रही है. मैं यह सोच कर खुश थी कि वह इनकार कर देगा. दूसरे दिन अब्बा ने रशीद को घर बुला कर मुझ से शादी के बारे में पूछा. उस ने उदासी से कहा, ‘‘चाचा, मैं आप की बड़ी इज्जत करता हूं. ये मेरी खुशनसीबी है कि आप ने मुझे अपना बेटा बनाने की सोची, पर मैं ने हुस्ना को अपनी बहन समझा है. मैं उस से शादी कैसे कर सकता हूं? आप हुस्ना की शादी किसी बड़े घर में करिएगा, जहां पर वह खुश रहे. यह भाई उस की शादी का खर्च उठाने को भी तैयार है.’’

मैं छिप कर सब सुन रही थी. उस ने कहा था, कर दिखाया. पहली बार अहसास हुआ कि उस की मोहब्बत सच्ची है. उन दिनों मैं स्कूल जाती थी, पर रास्ते में शाहनवाज मुझे पिक कर लेता था और हम घूमनेफिरने निकल जाते थे. वह अभी तक मुझे अपने घर ले कर नहीं गया था. इम्तिहान के बाद शाहनवाज के शादी के तकाजे बढ़ गए.

एक दिन वह 2 औरतों के साथ हमारे घर गया. उस ने बताया कि वे दोनों उस की खाला हैं. मैंने अम्मी को बता दिया था कि फाकिरा का कजिन रिश्ता लेकर आएगा. मुझे भी हैरानी हो रही थी कि फाकिरा क्यों नहीं आई, पर मैं चुप रही. मगर अम्मा ने खाला से पूछ ही लिया, ‘‘फाकिरा को साथ आना चाहिए था. वह बीच में है, फिर क्यों नहीं आई?’’

‘‘बहन, क्या बताएं खानदान की बात है, फाकिरा ये समझ रही थी कि शाहनवाज उस से शादी करेगा, पर जब उस ने शादी के लिए हुस्ना का नाम लिया तो वह चिढ़ गई. उस के घर वाले हम से नाराज हैं.’’

अम्मा बोली, ‘‘ कोई बहन मांबाप, हम किस की जिम्मेदारी पर हां कह दें, कोई तो बीच में होता.’’

‘‘बहन, आप फिक्र करें, शाहनवाज के मांबाप ने हमें पूरा अख्तियार दे रखा है. ये लीजिए, आप ये खत पढ़ लें जो उस के मांबाप ने हमें भेजा है. आप समझ जाएंगी.’’ इन औरतों ने एक खत अम्मा को पकड़ा दिया‘‘आप लोग ये खत छोड़ जाएं, मैं हुस्ना के अब्बा को दिखा कर पूछूंगी फिर कुछ जवाब दूंगी.’’

दोनों औरतों ने शाहनवाज के खानदान और उस की दौलत का ऐसा नक्शा खींचा कि अम्मा काफी हद तक राजी हो गईं. शाम को उन्होंने अब्बा को वह खत दिखाया और जोर दिया कि रिश्ता अच्छा है, हां कह दें. अब्बा ने दुनिया देखी थी. इस बात ने उन्हें जरा भी प्रभावित नहीं किया. अब्बा ने बहुत ऐतराज उठाए पर अम्मा और मेरी जिद के आगे उन की एक नहीं चली. अम्मा ने रिश्ता मंजूर कर लिया. 2 दिन बाद फिर वही दोनों खाला आईं, अम्मा ने उन्हें मंजूरी की इत्तिला दी तो उन्होंने मेरे हाथों में 10 हजार रुपए दिए और हीरे की अंगूठी पहनाई. इस तरह से मेरी मंगनी हो गई.

अम्मा को शादी और दहेज की फिक्र सताने लगी. लेकिन शाहनवाज की खालाओं ने कर यह चिंता भी दूर कर दी. उन्होंने कहा कि लड़के के पास सब कुछ है. दहेज के नाम पर कुछ नहीं लिया जाएगा. मेरे मांबाप ने मुझे कुछ चांदी के जेवर और एक सोने की चेन दी. मेरी शादी सादगी से संपन्न हो गई. मैं शाहनवाज के घर आ गई. इतना बड़ा और शानदार घर मैं ने पहले कभी नहीं देखा था. घर में मैं थी और एक बूढ़ी नौकरानी थी. मैं सुहाग सेज पर बैठी शाहनवाज का इंतजार कर रही थी कि नौकरानी ने आ कर कहा, ‘‘बीबीजी, आप सो जाएं, शाहनवाज मियां जब आएंगे, मैं आप को जगा दूंगी.’’

मुझे शाहनवाज पर बहुत गुस्सा रहा था कि सुहाग सेज पर मैं अकेली उस का इंतजार कर रही हूं और वह गायब है. ‘‘बीबीजी, साहब गए.’’ थोड़ी देर बाद नौकरानी ने कर बताया. मैं संभल कर बैठ गई. शाहनवाज अंदर दाखिल हुआ. उस के बैठते ही मुझे अंदाजा हो गया कि वह शराब पी कर आया है.

  ‘‘आप ने शराब पी है?’’ ‘‘हां, पी है तो क्या हुआ? हमारी क्लास में इसे बुरा नहीं समझा जाता. आइंदा इस बारे में कुछ नहीं कहना, पूछताछ करना.’’ मुझे उस से ऐसे जवाब लहजे की उम्मीद नहीं थी, पर मैं चुप रही. दूसरे दिन सुबह मेरा भाई, मेरी बहन और मोहल्ले की एक लड़की मेरे लिए नाश्ता ले कर आए. बहनभाई घर देख कर दंग रह गए. हम सब ने मिल कर नाश्ता किया. फिर मेरी बहन ने पूछा, ‘‘शाहनवाज भाई, अगर आप इजाजत दें तो बाजी को हम साथ ले जाएं?’’

शाहनवाज ने खुशी से इजाजत दे दी. मैं घर पहुंची तो औरतों की भीड़ लग गई. कोई कपड़े देखती तो कोई जेवर देखती. सब तारीफ करती रहीं, अम्मा खुश होती रही. शाम को शाहनवाज को लेने आना था. अम्मा ने रात के खाने का अच्छा इंतजाम किया. रशीद ने सामान लाने का जिम्मा खुद उठा लिया. वह 3-4 आइटम खुद ही बाजार से लेकर गया. उस ने मुझ से कोई बात नहीं की, नजरें झुका कर देखता रहा.

जब शाहनवाज आया तो मोहल्ले के बच्चे उस की गाड़ी घेर कर शोर मचाने लगे. उन के लिए यह बड़ी चीज थी. यह देख कर शाहनवाज को गुस्सा आ गया. वह चीख कर बोला, ‘‘अब कभी इस चिडि़याखाने में नहीं आऊंगा. बडे़ बेहूदा बच्चे हैं, इस मोहल्ले के.’’

उसी वक्त रशीद भी आ गया. उस ने रशीद से हाथ मिलाने के बजाय उस का हाथ झटक दिया. शाहनवाज ने अब्बा से पूछा, ‘‘ये साहब कौन हैं?’’ अब्बा ने कहा, ‘‘बेटा ही समझो, बचपन से घर आताजाता है.’’

‘‘अच्छा, तुम वही हो जो महताब की शादी में हुस्ना को छोड़ने आए थे. उस दिन किस की गाड़ी चुरा कर लाए थे?’’ ‘‘साहब, हम गरीब जरूर हैं पर शरीफ हैं. चोरी नहीं करते. आप बेवजह मुझ पर इलजाम लगा रहे हैं. चोर वो होते हैं जो गरीबों की दौलत समेट कर अमीर बनते हैं.’’

वह तन कर खड़ा हो गया और गुस्से में बोला, ‘‘अब मैं यहां एक मिनट नहीं रुक सकता, जहां बाहर के लोग मेरी बेइज्जती करें, चलो.’’ ऐसा लग रहा था जैसे वह पहले से ही यह सब सोच कर आया था. सब रोकते रह गए. शाहनवाज मेरा हाथ पकड़ कर मुझे घर ले कर गया. घर पहुंच कर मैं ने कहा, ‘‘ये आप को क्या हो गया था? आप ने सब की बेइज्जती कर दी.’’

‘‘बेइज्जती होती है इज्जत वालों की. तुम तो कह रही थीं, रशीद तुम्हारा भाई है.’’ ‘‘हां, हम उसे अपना भाई ही समझते हैं.’’ ‘‘खैर, आज के बाद तुम घर वालों से और रशीद से कोई ताल्लुक नहीं रखोगी. तुम वहां जाओगी, वहां से यहां कोई आएगा.’’ यह छोटी बात नहीं थी. मैं शाहनवाज से खूब लड़ी. बड़ी मुश्किल से वह इस बात पर राजी हुआ कि कभीकभी वह खुद मुझे मां से मिला कर ले आएगा. लेकिन अकेले नहीं जाने देगा.

शाहनवाज मुझे प्यार दे रहा था. इतने नाज उठा रहा था कि मैंने उस की यह शर्त भी मंजूर कर ली. 2 महीने बड़े आराम से गुजरे. वह मुझे एक बार अम्मा से मिला कर ले आया. फिर एक दिन बोला, ‘‘हमें ये कोठी छोड़ कर फ्लैट में जाना है.’’

मुझे पहली बार मालूम हुआ कि ये कोठी किराए की थी. मुझे इतना अच्छा घर छोड़ने का दुख तो हुआ पर फ्लैट भी बहुत शानदार था. वह भी किराए का था. फ्लैट में आकर मुझे शाहनवाज ज्यादा मुतमइन दिख रहा था. वह सारा दिन बाहर मसरूफ रहता था. मैंने एक दिन पूछ लिया, ‘‘आप तो कहते थे, आप कोई काम नहीं करते. फिर सारा दिन कहां गायब रहते हो?’’

वह गुस्से से बोला, ‘‘ये सब बातें तुम्हें जानने की जरूरत नहीं है कि मैं क्या करता हूं?’’ ‘‘मैं तो सिर्फ पूछ रही हूं, रोक नहीं रही.’’ ‘‘मैं तुम पर बहुत पैसे खर्च कर चुका हूं. उसे वसूल करने के जुगाड़ में लगा हूं.’’

उस की बात मेरी समझ में नहीं आई पर मैं चुप रही, ज्यादा पूछो तो चिढ़ जाता था. एक दिन उस ने मुझे तैयार होने को कहा और एक शानदार पार्टी में लेकर गया. शादी के बाद वह मुझे पहली बार कहीं ले कर निकला था. इस पार्टी में बड़ी बेशर्मी बेहूदगी थी. सब शराब पी रहे थे. डांस कर रहे थे. मुझे कुछ ठीक नहीं लगा. मैंने शाहनवाज से कहा, ‘‘यहां से चलिए, मेरा दिल घबरा रहा है.’’

‘‘थोड़ी देर में सब ठीक लगेगा. मेरे साथ रहना है तो ऐसी पार्टियों की आदत डाल लो.’’ मैं डर कर चुप हो गई. मैं रशीद को मनमाना सुना सकती थी, शाहनवाज को नहीं. मैं ने पहले कभी शराब नहीं पी थी, पर उस रात शाहनवाज ने मुझे जिद कर के शराब पिला दी. मेरी हालत खराब हो गई. जब मुझे होश आया तो एक अजनबी मेरे साथ था. घर खाली पड़ा था, मैं घबरा कर उठी और उस से पूछा, ‘‘शाहनवाज कहां है?’’ ‘‘अभी आता ही होगा. पहले तुम फ्रैश हो लो.’’ अजनबी ने बेफिक्री से जवाब दिया.

मैं अपनी तकदीर पर आंसू बहाने लगी. मेरा मुहाफिज ही मेरा लुटेरा बन गया. शाहनवाज आया तो मैं दौड़ कर उस से लिपट गई. ये मेरा भोलापन था, मैं अभी भी उसे अपना मुहाफिज समझ रही थी. ‘‘शाबाश, वेलडन. आओ, चलो घर चलें.’ अपने फ्लैट पर पहुंच कर मैं अपनी बेबसी पर फूटफूट कर रो पड़ी. वह मेरे पास कर बोला, ‘‘रोती क्यों हो, इसे हमारी क्लास में बुरा नहीं समझते.’’ ‘‘ये गलत है.’’

‘‘इस से ताल्लुकात बनते हैं और काम निकाले जाते हैं.’’ मैंने गुस्से से कहा, ‘‘मैं अपने घर जा रही हूं.’’ ‘‘उस घर में जहां रशीद होता है. बेकरार क्यों होती हो, मैं यहीं तुम्हें कई रशीद ला दूंगा.’’ ‘‘मैं देखती हूं, तुम मुझे जाने से कैसे रोकते हो?’’ उस ने मुझे चंद तसवीरें दिखाईं, जिन में मैं उस अजनबी के साथ गंदी हालत में थी. ‘‘अगर तुम ने कदम बाहर निकाला तो सब तसवीरें अखबारों में आ जाएंगी. फिर तुम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगी और तुम्हारे मांबाप बेमौत मर जाएंगे. बहन घर बैठी रह जाएगी.’’

 ‘‘बस करो शाहनवाज, रहम करो मुझ पर.’’ ‘‘ठीक है, मैं जो कहता हूं, चुपचाप करती रहो.’’ बदनामी के डर ने मुझे खामोश कर दिया. इस का कारोबार अब मेरी समझ में आया वह गरीब लड़कियों से शादी करता था और उन से दौलत कमाता था. वह अकेला नहीं था, पूरा एक गिरोह था. शाहनवाज उस का एक मेंबर था. ये सब मुझे उस वक्त पता चला, जब वह मुझे इस फ्लैट से दूसरे फ्लैट ले कर गया. वहां मेरे जैसी खूबसूरत 4 लड़कियां और थीं. 

यहां पहुंच कर मालूम हुआ कि उस का ये धंधा बड़े पैमाने पर चलता है. कितने ही बड़े नामवर लोग उस के यहां आते थे. लड़कियां उन के पास जातीं, इन बड़े सरकारी लोगों की उस पर मेहरबानी थी, जिन की वजह से उस का कुछ नहीं होता था.

लड़कियां इस गोरखधंधे में मकड़ी के जाले में मक्खी की तरह फंसी हुई थीं. हम लोगों के कुछ खास फोन नंबर थे, जो हर एक को नहीं बताए जाते थे. कोई कस्टमर फोन करता, किसी खास नाम का हवाला देता, जो शाहनवाज तय करता था. फिर दूसरे फोन से काल कन्फर्म की जाती थी. इस बारे में इलाके के थानेदार को बताया जाता कि लड़की कहां भेजी जा रही है. बहुत ही सावधानी से सारा इंतजाम किया जाता था

इस काम के लिए पुलिस वालों की रकम तय थी. मैंने ऐसेऐसे लोगों को वहां देखा कि नाम ले देती तो जिंदा भी नहीं बचती. इतने असरदार लोगों के पास से भाग निकलना मेरे पूरे घर को मौत की दावत देना था. मैंने इस जिंदगी को नसीब समझ कर कबूल कर लिया. कभीकभी घर चली जाती. मेरे गरीब मांबाप मेरे कपड़े गाड़ी देख कर खूब खुश थे. दिल चाहता पैसों से उन की मदद करूं, मगर ये हराम की कमाई देने को दिल नहीं मानता था

रशीद को देख कर अफसोस होता. वह उदास अकेला उसी तरह मेरे मांबाप की मदद करता रहा. काश! मैं ने रशीद से शादी कर ली होती तो आज कितनी सुखी होती. वह सच कहता था कि हर चमकती चीज सोना नहीं होती

अब तो अपने आप से शर्म आने लगी थी. मुझे मांबाप को आने की वजह बताने में मुश्किल होने लगी थी. कभीकभी लगता कि सच कह दूं लेकिन हिम्मत नहीं होती. आखिरकार मैं ने घर में मशहूर कर दिया कि मैं अमेरिका जा रही हूं. इस तरह अपने घर वालों की नजरों में हमेशा के लिए अमेरिका चली गई.

कुछ दिनों से शाहनवाज बहुत परेशान नजर रहा था. कई बार फोन पर उसे धमकियां मिलती थीं. गिरोह के लोगों का आनाजाना और मीटिंग बहुत बढ़ गई थी. बड़े लोगों से अकेले में खूब बहस होती. इन बातों से मुझे मालूम हो गया कि मामला बहुत गंभीर है

आखिर एक दिन सच्चाई सामने गई. पता चला कि दूसरे शहर से एक असरदार आदमी ने उस इलाके में कर यही धंधा शुरू कर दिया था. जिन्हें शाहनवाज पैसे भरता था, उन से यह मुहायदा था कि यहां कोई दूसरा यह कारोबार नहीं करेगा. अब जब उस रसूखदार ने धंधा शुरू कर दिया, पैसे खाने वालों ने हाथ खड़े कर दिए, क्योंकि उस आदमी का दबदबा और दहशत बहुत ज्यादा थी. उस का गिरोह भी शातिर था.

मैं 4 सालों से शाहनवाज के साथ थी. इतना तो जानती थी कि गैंगवार के नतीजे क्या हो सकते हैं. एक दिन विरोधी गुट ने हमारे फ्लैट पर हमला कर दिया. यहां भी सब तैयार बैठे थे. दोनों तरफ से खूब गोलियां चलीं. शुक्र है कोई मरा नहीं. केवल 1-2 लोग घायल हुए ‘‘ये तो केवल एक ट्रेलर था, असल जंग तो बाद में शुरू होगी.’’ शाहनवाज के एक साथी ने कहा.

शाहनवाज ने चिंता से कहा, ‘‘फैसला हमारे हक में नहीं होगा. क्योंकि पुलिस और बड़े लोग अब हमारे साथ नहीं हैं.’’ ‘‘तो क्या हम मैदान छोड़ देंगे बौस?’’ ‘‘अक्लमंदी इसी में है, कोई दूसरा मजबूत सहारा मिलने के बाद फिर नए जोश से खड़े होंगे.’’

शाहनवाज का इरादा वह जगह छोड़ देने का था, पर उसी रात को पुलिस का छापा पड़ गया. शाहनवाज और उस के साथी भाग निकले. हम 4 लड़कियां पुलिस के हत्थे चढ़ गईं. अखबार मीडिया को एक रंगीन कहानी मिल गई. हमारी तसवीरें अखबार टीवी का मसाला बन गईं.

हमें थाने ले जाया गया. फिर जेल में डाल दिया गया. वहां भी वही अफसर थे, जो हमारे यहां आते थे. हमें ठीक से रखा गया था. मैं रोरो कर बेहाल थी. ये खबर मेरे घर तक पहुंच गई थी. उन का क्या हाल होगा

मैं यहां से निकल कर कैसे मुंह दिखाऊंगी. खुदकुशी कर लूं तो रुसवाई कम नहीं होगी. हम जैसी लड़कियों से मिलने कौन आता है? लेकिन मुझे हैरत हुई, रशीद मुझ से मिलने आया. मैं ने कहा, ‘‘तुम यहां क्यों आए हो? मैं तुम्हें मुंह दिखाने के काबिल नहीं रही.’’

 ‘‘नहीं, ऐसा कहो, यह तो एक हादसा है जो किसी के भी साथ हो सकता है. तुम परेशान हो.’’ ‘‘सब घर वाले क्या कहते हैं, मेरे बारे में?’’ ‘‘कुछ नहीं, बस तुम जल्दी से घर जाओ.’’

  ‘‘मैं यहां से निकल कर घर नहीं सकती.’’ ‘‘पागल मत बनो, जब मैं हूं तो फिक्र करो.’’  ‘‘तुम नहीं जानते, ये लोग कितने खतरनाक हैं. शाहनवाज मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगा.’’  ‘‘वह सब बाद में देखा जाएगा. अगर यह मुकदमा अदालत में गया तो अच्छा वकील कर के मैं तुम्हारा केस लड़ूंगा.’’

वकील करने की नौबत नहीं आई. एक महीने बाद हमें बिना कोई मुकदमा चलाए छोड़ दिया गया. उन लोगों में कुछ सांठगांठ हुई थी. मैं जेल से बाहर निकली तो शाहनवाज किसी बहुत इज्जतदार शहरी की तरह हमें लेने आया. मालूम हुआ इस की कोशिशों से रिहा हुई थी.

मैं सोचती रही कि कब शाहनवाज जैसे मुलजिम सजा पाएंगे. वह एक दिन भी जेल में नहीं रहा. उस के आकाओं ने उसे बचा लिया था. हम चारों को वह फिर अपने फ्लैट की तरफ ले जा रहा था. अभी हम ने क्लिफ्टन का पुल पार किया ही था कि चारों तरफ से गाड़ी पर गोलियों की बौछार होने लगी.

मैं होश में आई तो अस्पताल में एडमिट थी. वहां मालूम पड़ा शाहनवाज और 2 लड़कियों ने अस्पताल पहुंचने से पहले दम तोड़ दिया था. एक गोली मेरे बाजू में लगी थी पर हड्डी सलामत थी. एक बार खबरों टीवी पर हमारी तसवीरें आने लगीं. दुनिया का कानून तो मुझे रिहाई दिला सका, पर कुदरत ने मुझे आजादी दे दी.

रशीद मुझे अस्पताल में देखने आया. एक बार फिर पुलिस मेरा बयान लेने गई. मेरा बयान फोटो फिर चर्चा का विषय बन गया. मैं काफी ठीक थी फिर भी पुलिस डिस्चार्ज करवाने में देर कर रही थी. रशीद की कोशिशों से मैं डिस्चार्ज हो गई. यह मेरी खुशकिस्मती थी कि मेरे घर वालों ने मुझे धिक्कारा नहीं, बल्कि मुझे कबूल कर लिया. नहीं तो मेरे पास खुदकुशी के अलावा कोई रास्ता नहीं था. मैं ने अपनी इद्दत के दिन मांबाप के प्यार के साए में गुजारे. उस के बाद फिर मेरे घर में रशीद से मेरी शादी का जिक्र छिड़ गया.

मेरे मांबाप की मजबूरी मेरी हालत और अपनी मोहब्बत की खातिर रशीद मुझे सहारा देने को तैयार हो गया. लेकिन अब मैं अपने आप को उस महान आदमी के लायक नहीं समझती थी. कहां वह सीधासच्चा इंसान और कहां मैं गुनाहों के कीचड़ में लिथड़ी हुई एक बदनाम औरत

मैंने इनकार कर दिया. उस के सामने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘रशीद तुम मुझे अपनी ही नजरों में मत गिराओ. मैं कीचड़ में पड़ा मुरझाया, नोचाखसोटा हुआ फूल हूं. मुझे हाथ लगाओगे तो तुम खुद गंदे हो जाओगे. मैं तुम्हारे काबिल नहीं हूं. मैं तुम्हारी नौकरानी बनने के लायक भी नहीं, तुम शायद मेरे नसीब में थे, तभी तो मैं ने हीरा ठुकरा कर पत्थर चुना था. अब मैं ठुकराए जाने के लायक हूं.’’

आज भी रशीद मेरे घर की चौखट पकड़े बैठा है. वह जब भी आता है, मैं उस की नौकरानी की तरह खिदमत करती हूं. उस के आगेपीछे घूमती हूं. दुआ करिए, मैं जिंदगी में उसे वह खुशी दे सकूं, जो उस की दिली तमन्ना है.द्य

 

आग बुझने के बाद पुलिस कोठी में गई तो पैरों के तले जमीन खिसक गई

पंकज शर्मा और नीरज हृष्टपुष्ट युवक थे. वह चाहते तो कोई कामधंधा कर के अपनी जिंदगी चैन से काट सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया. एक दिन दोनों ने कनाडा में रहने वाले अपने दोस्त के घर वालों को आस्तीन का सांप बनकर ऐसा डंसा कि…   

मृतसर के जीटी रोड से सटे व्यस्तम इलाके दशमेश एवेन्यू की कोठी नंबर 157 से 4-5 फरवरी की आधी रात के बाद अचानक धुआं उठने लगा. वह कोठी गगनदीप वर्मा की थी. फरवरी का महीना होने के कारण अधिक ठंड भी नहीं थी फिर भी लोग अपनेअपने घरों में घुसे हुए थेकोई राहगीर सड़क से गुजरा भी तो उस ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया. कुछ ही देर में कोठी से आग की ऊंची लपटें उठने लगीं, जिन्होंने कोठी को चारों तरफ से घेर लिया था

आग बढ़ने पर मोहल्ले के तमाम लोग अपने घरों से निकल कर गगनदीप वर्मा की कोठी की तरफ दौड़ पड़े. सभी अपनेअपने तरीके से कोठी में लगी आग को बुझाने की कोशिश करने लगे. इस बीच किसी ने फायर ब्रिग्रेड और थाना सुलतानविंड पुलिस को सूचना दे दी थी. घटना की सूचना मिलते ही फायर ब्रिगे्रड के साथ थाना सुलतानविंड के थानाप्रभारी नीरज कुमार, एसआई राजवंत कौर, एएसआई अर्जुन सिंह, दर्शन कुमार, हवलदार लखविंदर कुमार, गुरनाम सिंह, बलविंदर सिंह, गुरमेज सिंह, हरजिंदर सिंह, कांस्टेबल सुनीता के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

आग की लपटें लगातार बढ़ती जा रही थीं. सुरक्षा के लिहाज से थानाप्रभारी ने आसपास के घरों को भी खाली करवा लिया था. फायर ब्रिग्रेड के कर्मचारी लगातार आग बुझाने की कोशिश में लगे रहे, तब कहीं सुबह साढ़े 6 बजे तक आग पर काबू पाया गया. आग बुझने के बाद पड़ोसी पुलिस के साथ जब कोठी के भीतर गए तो सब के पैरों तले से जमीन खिसक गई. भीतर का नजारा डरावना और दिल दहला देने वाला था. कोठी में मालकिन गगनदीप वर्मा और उन की बेटी शिवनैनी की झुलसी हुई लाशें पड़ी थीं. 

थानाप्रभारी ने यह जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी. जिस के बाद अमृतसर के सीपी एस.एस. श्रीवास्तव, एडीसीपी जे.एस. वालिया, एडीसीपी हरजीत सिंह धारीवाल और एसीपी मंजीत सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी ने क्राइम इन्वैस्टीगेशन टीम को भी मौके पर बुलवा लिया.

 पुलिस जांच कर रही थी तभी वहां एक 48 वर्षीय संजीव वर्मा नाम का शख्स आया. वह खुद को गगनदीप वर्मा का भाई बता रहा था. उस ने बताया कि वह 2 भाईबहन थे. उस के पिता रामदेव और मां जीवन रानी की मृत्यु हो चुकी है. वह अपनी पत्नी गीता और बेटे चंदन के साथ जंडियाला गुरु स्थित मकान नंबर 1334 में रहता है. पेशे से वह डाक्टर है और घर के पास ही उस का क्लीनिक है.

पड़ोसियों से पूछताछ करने पर पता चला कि दोनों मांबेटी किसी से कोई संबंध नहीं रखती थीं. यहां तक कि पड़ोसियों के घर भी उन का कम आनाजाना था. शिवनैनी का शव जिस आपत्तिजनक हालत में मिला उस से रेप की आशंका जताई जा रही थी. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी थानाप्रभारी को दिशा निर्देश दे कर चले गए. इसके बाद थानाप्रभारी नीरज कुमार ने जरूरी कार्रवाई कर के दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दिया.

पुलिस कमिश्नर ने थानाप्रभारी नीरज कुमार के साथ क्राइम ब्रांच के जिला इंचार्ज इंसपेक्टर वविंदर महाराज को भी लगा दिया था. वे सब पुलिस अधिकारी इस दोहरे हत्याकांड की जड़ें खोदने में जुट गए. हत्या की वजह अभी तक सामने नहीं आई थी. लेकिन यह अनुमान लगाया गया कि हत्या में किसी करीबी का हाथ रहा होगा. गगनदीप वर्मा का बेटा रिधम कनाडा में रह रहा था. उसे भी मां और बहन की हत्या की सूचना दे दी गई. ताकि वह जल्द से जल्द इंडिया कर अपनी मां बहन की लाशें देख सके. थानाप्रभारी को इस बात की भी उम्मीद थी कि रिधम के आने के बाद शायद कोई ऐसी बात पता चल सके जिस से हत्यारों तक पहुंचने में मदद मिले.

बहरहाल पुलिस को इसी बात की आशंका थी कि वारदात में ऐसे शख्स का हाथ रहा होगा जिस का उस कोठी में आनाजाना रहा हो. यानी कोई नजदीकी व्यक्ति ही वारदात में शामिल रहा होगा. पुलिस ने मृतका गगनदीप के भाई डा. संजीव वर्मा से एक बार फिर पूछताछ की. उस ने बताया कि 25 साल पहले उस के मांबाप ने अपने जीतेजी गगनदीप वर्मा की शादी नवजोत सिंह के साथ कर दी थी. शादी के बाद एक बेटा रिधम और बेटी शिवनैनी पैदा हुई. दोनों बच्चों की अच्छी परवरिश होने लगी

इसके बाद नवजोत सिंह स्टडी करने कनाडा चला गया. इस के बाद वह वापस नहीं लौटा. मजबूरी में गगनदीप ने जंडियाला के सरकारी सीनियर सैकेंडरी स्कूल में क्लर्क की नौकरी कर ली. इसी से उन्होंने दोनों बच्चों को पढ़ाया लिखाया. गगनदीप ने बेटे रिधम को भी अपने एक रिश्तेदार के माध्यम से कनाडा भेज दिया

घर पर केवल मांबेटी ही रह गए थे. ग्रैजुएशन के बाद शिवनैनी इन दिनों बीएड की तैयारी कर रही थी. जिस कोठी में यह दोनों रह रही थीं, वह उन्होंने 4 साल पहले ही बनवाई थी. कोठी क्या यह एक प्रकार का किला था. चारों तरफ से बंद, जहां उन की मरजी के बिना कोई परिंदा भी पर न मार सके. जब उन की कोठी इतनी सुरक्षित थी तो ऐसा कौन आ गया, जिस ने दोनों की हत्या कर दी, पुलिस यह बात नहीं समझ पा रही थी.

पुलिस की जांच की सुई गगनदीप के रिश्तेदारों और पहचान वालों पर कर अटक गई. पुलिस ने मृतका गगनदीप और उन की बेटी के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स खंगालनी शुरू कीं. साथ ही यह भी जांच की कि घटना वाली रात को दशमेश एवेन्यू एरिया में स्थित फोन टावर के संपर्क में कितने फोन नंबर आए थेउन फोन नंबरों की भी पुलिस ने जांच शुरू कर दी. अगले दिन दोनों लाशों का पोस्टमार्टम कराया गया. पोस्टमार्टम के समय पुलिस ने वीडियोग्राफी भी करवाई. कनाडा से मृतका का बेटा भी पंजाब नहीं लौट सका. उस की गैरमौजूदगी में दोनों लाशों का अंतिम संस्कार किया गया.

साइबर क्राइम सेल फोन नंबरों की जांच में जुटी हुई थी. साइबर सैल ने शिवनैनी की फेसबुक आईडी को भी अच्छी तरह खंगालना शुरू किया. पुलिस ने शक के आधार पर एक दरजन से ज्यादा हिस्ट्रीशीटरों अन्य लोगों को भी पूछताछ के लिए उठाया. लेकिन उन से कोई सफलता नहीं मिली. पुलिस टीम हत्या के इस मामले को कहीं नहीं कहीं अवैध सबंधों से जोड़ कर भी देख रही थी. रिधम ने फोन पर हुई बात में इस हत्याकांड के पीछे अपने किसी रिश्तेदार का हाथ होने की शंका जताई.

पुलिस ने जब तफ्तीश की तो इस मामले में शहर के 2 बडे़ नेताओं के नाम सामने आए. यह नाम मांबेटी के फोन नंबरों की काल डिटेल्स खंगालने के बाद सामने आए थे. इस दोहरे हत्याकांड के 48 घंटे बीत जाने के बाद भी पुलिस के हाथ खाली रहे. उधर रिधम भी कनाडा से नहीं लौट पाया था. गगनदीप और एक पार्षद के बीच फोन पर जो बातचीत होने के सबूत मिले थे, उस ने उन दोनों के संबंधों को भी शक के दायरे में ला कर खड़ा कर दिया था.

थानाप्रभारी नीरज और इंसपेक्टर वविंदर महाराज पूरे मामले की कड़ी से कड़ी जोड़ कर विचारविमर्श कर रहे थे कि अचानक थानाप्रभारी का ध्यान रिधम के खास दोस्तों 21 वर्षीय पंकज शर्मा और 18 वर्षीय नीरज निवासी गुरु गोविंदसिंह नगर की ओर गया. हालांकि यह एक संभावना थी. इस का कोई ठोस सबूत या वजह नहीं थी, फिर भी वह पंकज शर्मा और नीरज से पूछताछ के लिए उन के घर पहुंच गए. वहां पता चला कि पंकज और नीरज दोनों ही गरीब परिवारों से हैं. पंकज के पिता सोफा मरम्मत का काम करते हैं जबकि नीरज ओपन स्कूल से पढ़ाई करता है. दोनों ही दोस्त आवारा किस्म के थे. मौजमस्ती और अपने खर्चे के लिए वह छोटीमोटी चोरी और ठगी भी करते थे. 

पुलिस टीम जब पंकज के घर पहुंची तो पंकज के पिता ने बताया कि पंकज और नीरज 5 फरवरी की रात से गायब हैं. इस के बाद उन दोनों पर पुलिस का शक बढ़ गया. पुलिस उन की तलाश में जुट गईएक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया. थाने लाकर जब उन से गगनदीप और उन की बेटी की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो उन्होंने आसानी से स्वीकार कर लिया कि उन्होंने ही गगनदीप और उन की बेटी की हत्या कर के कोठी में आग लगाई थी. उन्होंने उन की हत्या की जो कहानी बताई वह आस्तीन का सांप बन कर डंसने वाली निकली.

दरअसल पंकज और नीरज की गगनदीप के बेटे रिधम से अच्छी दोस्ती थी. दोस्ती के नाते उन का गगनदीप के यहां आनाजाना था. कुछ दिनों पहले रिधम कनाडा चला गया तो पंकज और नीरज का उन के यहां आनाजाना  बंद हो गया. ये दोनों दोस्त कोई कामधंधा करने के बजाए दिन भर नशा कर के खाली घूमते थे. साथ ही उन्हें अय्याशी का भी शौक लग गया था.

अपने शौक पूरे करने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत पड़ती थी, लिहाजा उन्होंने छोटीमोटी चोरियां करनी शुरू कर दीं. साथ ही कोई लालच दे कर लोगों को ठग लेते. लेकिन अभी तक दोनों कभी पुलिस के हत्थे नहीं चढ़़े थे.

दोनों कोई ऐसा काम करने की सोच रहे थे जिस से उन के हाथ मोटा पैसा लग सके और रोजरोज की छोटीमोटी चोरी करनी पड़े. 4 फरवरी, 2018 को दोनों इसी विषय पर चर्चा कर रहे थे, तभी पंकज बोला, ‘‘यार मेरे पास एक बिना रिस्क का आसान तरीका है. इस में इतना पैसा मिलेगा कि हम रात दिन ऐश कर सकते हैं और मजे की बात यह है कि हम पर किसी को रत्ती भर भी शक भी नहीं होगा.’’ पंकज ने बताया.

 नीरज ने खुश होते हुए कहा, ‘‘जल्दी भौंक, देर क्यों कर रहा है. और यह भी कि करना क्या है?’’ ‘‘रिधम के घर डकैती.’’ पंकज बोला. ‘अबे तेरा दिमाग तो खराब नहीं है.  जानता नहीं वह हमारा बचपन का दोस्त है. हम साथ खेले और साथ खातेपीते रहे हैं. नहीं, यह गलत काम है.’’ नीरज ने साफ मना कर दिया.

‘‘अबे गधे उन के पास करोड़ों रुपया है और फिर रिधम भी आजकल कनाडा में है. हम पर कौन शक करेगा?’’ पंकज ने समझाया. बाद में पंकज की बात उस की समझ में गई. पंकज नीरज को पता था कि इस समय दोनों मांबेटी घर में अकेली रहती हैं. इसलिए वहां काम को अंजाम देना आसान हो जाएगा. योजना के अनुसार पंकज शर्मा नीरज कुमार ने बाजार से क्लोरोफार्म की शीशी खरीद ली और 4-5 फरवरी की रात सवा 8 बजे गगनदीप वर्मा के घर चले गए. गगनदीप दोनों को अच्छी तरह जानती ही थीं. इसलिए उन्होंने दरवाजा खोल दिया. दोनों हत्यारोपी अंदर जा कर बैठ गए

चाय पीने के बाद पंकज शर्मा ने गगनदीप को क्लोरोफार्म सुंघाई, जिस से वह बेहोश हो कर बिस्तर पर गिर गईं. इस के बाद दोनों ऊपर की मंजिल पर बैठी शिवनैनी के कमरे में दाखिल हुए और उसे भी क्लोरोफार्म सुंघा कर बेहोश कर दिया. दोनों आरोपियों ने घर की तलाशी ली और कुछ ज्वैलरी के साथसाथ नकदी भी चुरा ली. नीयत खराब होने पर दोनों ने बेहोशी की हालत में पड़ी शिवनैनी से अश्लील हरकतें भी कीं. 

गगनदीप और उन की बेटी के होश में आने पर उन का भेद खुलना लाजिमी था. इसलिए उन्होंने सुबूत मिटाने के लिए गगनदीप उन की बेटी शिवनैनी की हत्या करने की योजना बनाई. उन्होंने कोठी में आग लगा दी और मौके से फरार हो गए.

पुलिस ने पंकज और नीरज से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें अदालत पर पेश कर के 5 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान दोनों अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने 85 ग्राम सोने, चांदी की ज्वैलरी, एक टेबलेट, कैमरा, लैपटौप अन्य कीमती सामान बरामद कर लिया.

 पुलिस ने रिमांड अवधि समाप्त होने पर अभियुक्त पंकज और नीरज को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.  

   — कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

  

   

आम के बागान में दफनाई गई लाश किसकी निकली

इदरीस घरपरिवार वाला था, उस की कमाई भी अच्छी थी. लेकिन शादीशुदा फरीदा के मोह में उस ने ऐसी राह चुनी जो उसे कब्र तक ले गई. मुरादाबाद से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित कस्बा कांठ के मोहल्ला पट्टीवाला के रहने वाले कारोबारी इदरीस 11 जनवरी, 2018 को गायब  हो गए. दरअसल, इदरीस की कांठ में ही कपड़ों की सिलाई की फैक्ट्री है. उन की फैक्ट्री में सिले कपड़े कई शहरों के कारोबारियों को थोक में सप्लाई होते हैं

11 जनवरी को वह प्रतापगढ़ और सुलतानपुर के कारोबारियों से पेमेंट लेने के लिए घर से निकले थे. जब भी वह पेमेंट के टूर पर जाते तो फोन द्वारा अपने परिवार वालों के संपर्क में रहते थे. घर से निकलने के 2 दिन बाद भी जब उन का कोई फोन नहीं आया तो उन की पत्नी कनीजा ने बड़े बेटे शहनाज से पति को फोन कराया तो इदरीस का फोन स्विच्ड औफ मिला. शहनाज ने अब्बू को कई बार फोन मिलाया, लेकिन हर बार फोन बंद ही मिला. इस पर कनीजा भी परेशान हो गई.

इदरीस की फैक्ट्री के रिकौर्ड में उन सारे कारोबारियों के नामपते फोन नंबर दर्ज थे, जिन के यहां फैक्ट्री से तैयार माल जाता था. चूंकि इदरीस प्रतापगढ़ और सुलतानपुर के लिए निकले थे, इसलिए शहनाज ने प्रतापगढ़ और सुलतानपुर के कारोबारियों को फोन कर के अपने अब्बू के बारे में पूछा. कारोबारियों ने शहनाज को बता दिया कि इदरीस उन के पास आए तो थे लेकिन वह 11 जनवरी को ही पेमेंट लेकर चले गए थे. पता चला कि दोनों कारोबारियों ने इदरीस को 5 लाख रुपए दिए थे. यह जानकारी मिलने के बाद इदरीस के घर वाले परेशान हो गए. सभी को चिंता होने लगी

इदरीस ने जानपहचान वाले सभी लोगों को फोन कर के अपने अब्बू के बारे में पूछा लेकिन उसे उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. तभी कनीजा शहनाज के साथ प्रतापगढ़ पहुंच गईं. वहां के एसपी से मुलाकात कर उन्होंने पति के गायब होने की बात बताई. एसपी ने इदरीस का फोन सर्विलांस पर लगवा दिया. इस से उस की अंतिम लोकेशन अमरोहा जिले के गांव रायपुर कलां की पाई गई. यह गांव अमरोहा देहात थाने के अंतर्गत आता है. प्रतापगढ़ पुलिस ने उन्हें अमरोहा देहात थाने में संपर्क करने की सलाह दी

30 जनवरी, 2018 को शहजाद और कनीजा थाना अमरोहा देहात पहुंचे. उन्होंने इदरीस के गुम होने की जानकारी थानाप्रभारी धर्मेंद्र सिंह को दी. थानाप्रभारी ने शहनाज की तरफ से उस के पिता की गुमशुदगी दर्ज कर ली. शहनाज ने शक जताया कि उस के घर के सामने रहने वाली फरीदा और उस के पति आरिफ ने ही उस के पिता को कहीं गायब किया होगा. रहस्य से उठा परदा मामला एक कारोबारी के गायब होने का था, इसलिए थानाप्रभारी ने सूचना एसपी सुधीर यादव को दे दी. एसपी सुधीर यादव ने सीओ मोनिका यादव के नेतृत्व में एक जांच टीम गठित की. टीम में थानाप्रभारी धर्मेंद्र सिंह, एसआई सुनील मलिक, डी.पी. सिंह, महिला एसआई संदीपा चौधरी, कांस्टेबल सुखविंदर, ब्रजपाल सिंह आदि को शामिल किया गया.

पुलिस ने सब से पहले इदरीस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि इदरीस के घर के सामने रहने वाली फरीदा ने 13 जनवरी को इदरीस के मोबाइल पर 50 बार काल की थी. शहनाज ने भी फरीदा और उस के पति पर शक जताया था, इसलिए पुलिस को भी फरीदा पर शक हो गया. पुलिस ने फरीदा और उस के पति आरिफ को पूछताछ के लिए उठा लिया. उन दोनों से पुलिस ने इदरीस के बारे में सख्ती से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती के आगे फरीदा और उस के पति ने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने शहजाद की हत्या कर उस की लाश बशीरा के आम के बाग में दफन कर दी है.

थानाप्रभारी धर्मेंद्र सिंह ने इदरीस का कत्ल हो जाने वाली बात एसपी को बता दी. यह जानकारी पा कर एसपी सुधीर कुमार थाना अमरोहा देहात पहुंच गए. उन की मौजूदगी में थानाप्रभारी ने अभियुक्तों को रायपुर कलां निवासी बशीरा के आम के बाग में लेजा कर खुदाई कराई तो इदरीस की लाश करीब 5 फीट नीचे दबी मिलीपुलिस ने वह लाश अपने कब्जे में ले ली. जरूरी कार्रवाई कर के पुलिस ने इदरीस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. फरीदा और आरिफ ने पूछताछ के दौरान इदरीस की हत्या की जो कहानी बताई, वह अवैध संबंधों पर आधारित निकली

इदरीस की कांठ में ही कपड़ों की सिलाई करने की फैक्ट्री थी. उस की फैक्ट्री में फरीदा नाम की महिला भी सिलाई करती थी. वह इदरीस के घर के सामने ही रहती थी. उस का पति साइकिल मरम्मत करता था. अन्य कारीगरों के मुकाबले इदरीस फातिमा का बहुत खयाल रखता था. इतना ही नहीं, वह अन्य कारीगरों से उसे ज्यादा पेमेंट करता था. इस मेहरबानी की वजह यह थी कि इदरीस फरीदा को चाहने लगा था. इदरीस की कोशिश रंग लाई और उस के फरीदा से प्रेम संबंध बन गए.

इदरीस और फरीदा दोनों ही बालबच्चेदार थे, जहां इदरीस के 5 बच्चे थे, वहीं फरीदा भी 2 बच्चों की मां थी. करीब डेढ़ साल से दोनों के नाजायज संबंध चले रहे थे. इसी दौरान फरीदा एक और बेटे की मां बन गई. इदरीस फरीदा के छोटे बेटे को अपना बेटा बताता था, इसलिए वह उस का कुछ खास ही खयाल रखता था. इदरीस फरीदा को बहुत चाहता था. वह चाहता था कि फरीदा जिंदगी भर के लिए उस के साथ रहे, इसलिए वह फरीदा पर निकाह करने का दबाव बना रहा था.

समझाने पर भी नहीं माने फरीदा और इदरीस उधर इदरीस और फरीदा के प्रेमसंबंधों की जानकारी पूरे मोहल्ले को थी. फरीदा के पति आरिफ ने भी फरीदा को बहुत समझाया कि उस की वजह से परिवार की मोहल्ले में बदनामी हो रही है. वह इदरीस से मिलना बंद कर दे. उधर इदरीस के पिता बाबू ने भी इदरीस को समझाया कि वह क्यों अपनी घरगृहस्थी और कारोबार को बरबाद करने पर तुला है. फरीदा को भूल कर वह अपने परिवार पर ध्यान दे.

लेकिन इदरीस फरीदा के प्रेमजाल में ऐसा फंसा था कि उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं था. उस के सिर पर एक ही धुन सवार थी कि फरीदा अपने पति को तलाक दे कर उस के साथ निकाह कर ले. वह यही दबाव फरीदा पर लगातार बना रहा था, पर फरीदा ऐसा करने को मना कर रही थी. वह कह रही थी कि जैसा चला आ रहा है, वैसा ही चलता रहने दे.

घटना के करीब 15 दिन पहले जब रात में फरीदा के पास इदरीस का फोन आया तो फोन की घंटी बजने से आरिफ की नींद खुल गई. फरीदा लिहाफ के अंदर ही इदरीस से बातें करने लगी. किसीकिसी फोन के स्पीकर की आवाज इतनी तेज होती है कि पास का आदमी भी बातचीत सुन सकता है. फरीदा के पास भी ऐसा ही फोन था. वह अपने प्रेमी इदरीस से जो भी बात कर रही थी, वह आरिफ भी सुन रहा था. इदरीस उस से कह रहा था कि वह अपने पति आरिफ को ठिकाने लगवा दे. इस काम में वह उस की पूरी मदद करेगा. उस के बाद हम दोनों निकाह कर लेंगे.

अपनी हत्या की बात सुन कर आरिफ के होश उड़ गए. उस ने उस समय पत्नी से कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा. सुबह होते ही आरिफ ने इस बारे में पत्नी से बात की. वह झूठ बोलने लगी. इस बात पर दोनों के बीच नोकझोंक भी हुई. इस के बाद आरिफ ने फरीदा को विश्वास में लिया और घरगृहस्थी का वास्ता दे कर कहा, ‘‘देखो फरीदा, इदरीस कितना गिरा हुआ आदमी है, वह मेरी हत्या कराने पर तुला है. अपने स्वार्थ में वह तुम्हारी भी हत्या करवा सकता है. तुम खुद सोच लो कि अब क्या चाहती हो. यहां रहोगी या उस के साथ?’’

फरीदा ने अपने बच्चों का वास्ता देकर आरिफ से कहा, ‘‘मैं इसी घर में तुम्हारे और बच्चों के साथ रहूंगी. उस के साथ नहीं जाऊंगी.’’ बन गई कत्ल की भूमिका आरिफ ने सोचा कि आज नहीं तो कल इदरीस उस के लिए नुकसानदायक साबित होगा, इसलिए उस ने तय कर लिया कि वह इदरीस को सबक सिखाएगा. इस काम में उस ने पत्नी फरीदा को भी मिला लिया. फरीदा ने पति को यह भी बता दिया कि इदरीस पार्टियों से पेमेंट लेने के लिए प्रतापगढ़ और सुलतानपुर गया हुआ है. इस पर आरिफ ने उस से कहा कि किसी बहाने से उसे बुला लो तो बाकी का काम वह कर देगा

आरिफ के साले फरियाद को यह पता था कि इदरीस की वजह से उस की बहन के घर में तनाव रहता है, इसलिए आरिफ के कहने पर फरियाद भी इदरीस की हत्या के षडयंत्र में शामिल हो गया. उधर प्रतापगढ़ और सुलतानपुर के कारोबारियों से करीब 5 लाख रुपए का कलेक्शन कर के इदरीस 13 जनवरी को कांठ लौट रहा था. सफर में उस ने अपना फोन साइलेंट मोड पर लगा लिया था. फरीदा ने इदरीस से बात करने के लिए फोन किया पर इदरीस को इस का पता नहीं चला. फरीदा उसे लगातार फोन कर रही थी

कांठ पहुंचने पर इदरीस ने जैसे ही अपना फोन देखा तो प्रेमिका की 50 मिस्ड काल देख कर चौंक गया. उसे लगा कि पता नहीं क्या बात है जो उस ने इतनी बार फोन मिलाया. इदरीस ने फरीदा को फोन कर के कहा, ‘‘फरीदा, मेरा फोन साइलेंट मोड पर था, इसलिए तुम्हारी काल के बारे में पता नहीं लगा. बताओ, क्या बात है?’’ ‘‘मैं ने तय कर लिया है कि मैं आरिफ को तलाक देकर तुम से निकाह करूंगी. इसी बारे में तुम से बात करना चाह रही थी.’’ फरीदा बोली, ‘‘मैं चाहती हूं कि तुम अभी कांठ बसअड्डे पर आ जाओ, वहीं पर हम बात कर लेंगे.’’

प्रेमिका के मुंह से अपने मन की बात सुन कर इदरीस खुश हो गया. उस ने कहा, ‘‘फरीदा, मैं कुछ देर में ही वहां पहुंच रहा हूं. तुम भी जल्द पहुंच जाना.’’ ‘‘ठीक है, तुम जाओ, मैं वहीं मिलूंगी.’’ फरीदा बोली. इदरीस थोड़ी देर में बसअड्डे पर पहुंच गया. फरीदा अपने पति के साथ वहां पहले से ही मौजूद थी. औपचारिक बातचीत के बाद फरीदा ने कहा, ‘‘रायपुर खास गांव में मेरे भाई के यहां खाने का इंतजाम है. वहां चलते हैं, वहीं बातचीत हो जाएगी.’’

इदरीस खानेपीने का शौकीन था. उस समय भी वह शराब पिए हुए था, इसलिए फरीदा के साथ रायपुर खास गांव जाने के लिए तैयार हो गया. जब वह वहां पहुंचा तो फरीदा के भाई फरियाद ने इदरीस का गर्मजोशी से स्वागत किया. उस ने चिकन बना रखा थाकुछ देर बातचीत के बाद फरियाद ने उस से खाना खाने को कहा तो शराब के शौकीन इदरीस ने शराब पीने की इच्छा जताई. इस पर फरियाद ने कहा कि यह सब घर पर संभव नहीं है. पीनी है तो कांठ बसअड्डे पर ठेका है, वहीं पर पी लेंगे.

इदरीस को मिली मौत की दावत इदरीस बसअड्डे पर जाने के लिए तैयार हो गया. इदरीस और आरिफ फरियाद की मोटरसाइकिल पर बैठ कर कांठ बसअड्डे पहुंच गए. इदरीस ने पैसे देकर एक बोतल रम मंगा ली. फरियाद एक बोतल रम और पकौड़े ले आया तो आरिफ बोला, ‘‘चलो, बाग में बैठ कर पिएंगे. उस के बाद खाना खाएंगे. वहीं बात भी हो जाएगी.’’

शराब की बोतल और पकौड़े लेकर तीनों मोटरसाइकिल से आम के बाग में पहुंच गए. बाग में बैठ कर तीनों ने शराब पी. योजना के अनुसार आरिफ फरियाद ने कम पी और इदरीस को कुछ ज्यादा ही पिला दी थी. इदरीस जब ज्यादा नशे में हो गया तो आरिफ इदरीस से बोला, ‘‘देखो इदरीस भाई, तुम पैसे वाले हो. मैं छोटा सा एक साइकिल मैकेनिक हूं. मेरी तुम्हारी क्या बराबरी. तुम यह बताओ कि मेरा घर क्यों बरबाद कर रहे हो. तुम्हारी वजह से वैसे भी मोहल्ले में मेरी बहुत बदनामी हो गई है. अब तो पीछा छोड़ दो.’’

देखो आरिफ, तुम एक बात ध्यान से सुन लो. मैं फरीदा से बहुत प्यार करता हूं. अब फरीदा मेरी है. उसे मुझ से कोई भी अलग नहीं कर सकता. तुम्हें यह भी बताए देता हूं कि उस का जो 5 महीने का बच्चा है, वह मेरा ही है.’’ आरिफ भी नशे में था. यह सुनते ही उस का और फरियाद का खून खौल उठा. दोनों ने उस से कहा कि लगता है तू ऐसे नहीं मानेगा. इस के बाद दोनों ने इदरीस के गले में पड़े मफलर से उस का गला घोंट दिया, जिस से उस की मौत हो गई. 

इदरीस की हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश मोटरसाइकिल से बाग के बीचोबीच लेजा कर डाल दी. तलाशी लेने पर इदरीस की जेब से 5 लाख रुपए और एक मोबाइल फोन मिला. दोनों ही चीजें उन्होंने निकाल लीं. उस के बाद फरियाद घर से फावड़ा ले आया. आरिफ और फरियाद ने करीब 5 फुट गहरा गड्ढा खोद कर इदरीस की लाश दफन कर दी. लाश ठिकाने लगा कर वे अपने घर लौट गए. इदरीस की जेब से मिले पैसे दोनों ने आपस में बांट लिए.

पुलिस ने फरीदा, उस के पति आरिफ के बाद फरियाद को भी गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने 70 हजार रुपए, इदरीस का मोबाइल फोन और फावड़ा बरामद कर लिया. पुलिस ने 11 फरवरी, 2018 को तीनों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक तीनों अभियुक्त जेल में बंद थे.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कांस्टेबल सीताराम ने करीब 1000 करोड़ की डकैती होते हुए बचाई

एक कांस्टेबल सीताराम की समझबूझ से 926 करोड़ रुपए की डकैती होने से बच गई. चूंकि डकैती हो नहीं पाई, इसलिए यह मामला ज्यादा बड़ा नहीं लगता, लेकिन डकैती हो गई होती तो…  

पुलिस कांस्टेबल सीताराम की जयपुर की सी स्कीम के रमेश मार्ग स्थित ऐक्सिस बैंक की चेस्ट ब्रांच में ड्यूटी थी. 5 फरवरी की रात करीब 2 बजे वह बैंक की चेस्ट ब्रांच पर पहुंच गया. सीताराम जब पहुंचा तो बैंक का निजी सुरक्षा गार्ड प्रमोद मेनगेट पर तैनात था. सीताराम को आया देख कर प्रमोद ने उसे नमस्कार किया. सीताराम ने भी उस के अभिवादन का जवाब देते हुए पूछा, ‘‘प्रमोदजी, बैंक के अंदर आज ड्यूटी पर कौनकौन हैं?’’

कड़ाके की ठंड में रात में बैंक के बाहर ड्यूटी दे रहे प्रमोद ने जवाब में कहा, ‘‘साहब, रतिराम और मानसिंह ड्यूटी पर हैं.’’ ‘‘ठीक है प्रमोदजी, उन दोनों से मेरी अच्छी पटरी बैठती है.’’ सीताराम ने अपनी टोपी सिर पर लगाते हुए कहा, ‘‘दोनों से बात करते हुए पता ही नहीं लगता कि कब रात गुजर गई.’’ कह कर कांस्टेबल सीताराम बैंक के अंदर जाने लगा, तभी जैसे उसे कुछ याद आया. उस ने पलट कर प्रमोद से कहा, ‘‘भैयाजी, ठंड ज्यादा पड़ रही है. रात का समय है. संभल कर होशियारी से ड्यूटी करना.’’

सीताराम की इस बात पर प्रमोद ने हंसते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, आप देखते ही हो कि मैं अपनी ड्यूटी पर किस तरह मुस्तैद रहता हूं.’’ प्रमोद की बात सुन सीताराम हंसते हुए अंदर बैंक में चला गया. सीताराम ने बैंक के अंदर पहुंच कर देखा तो उस के साथी पुलिसकर्मी रतिराम और मानसिंह रेस्टहाउस में थे. सीताराम ने अपनी बंदूक संभाली और ड्यूटी पर खड़ा हो गया. सीताराम को बैंक के अंदर आए हुए करीब आधा घंटा ही हुआ होगा कि उस ने बैंक के बाहर मेनगेट से किसी के कूद कर आने और कुछ टूटने जैसी आवाज सुनी. सीताराम चौंकन्ना हो गया. वह बैंक के अंदर बनी खिड़की से मुंह बाहर निकाल कर चिल्लाया, ‘‘कौन है?’’

सीताराम के चिल्लाने पर जवाब में कोई आवाज नहीं आई तो उस ने बाहर झांक कर देखा. उसे 4-5 लोग नजर आए. रात करीब ढाई बजे बैंक के अंदर लोगों को देख कर सीताराम एक बार तो घबरा गया, लेकिन तुरंत ही उस ने खुद को संभाला और हिम्मत से काम लेते हुए बंदूक लेकर थोड़ा बाहर तक आया

बाहर देखा तो उसे 10 से भी ज्यादा लोग नजर आए. उन के हाथों में हथियार थे. किसी ने रूमाल से तो किसी ने मंकी कैप से और किसी ने मफलर से चेहरे ढंक रखे थे. इन में से 4-5 लोग बैंक का मेनगेट फांद कर अंदर गए थे. इन्होंने बैंक की बिल्डिंग का चैनल गेट भी खोल लिया था

इतने सारे हथियारबंद लोगों को देख कर सीताराम समझ गया कि उन लोगों के इरादे ठीक नहीं हैं. वे बदमाश हैं और बैंक लूटने आए हैं. सीताराम ने इधरउधर देखा कि बैंक का गार्ड प्रमोद कहीं नजर जाए, लेकिन उसे वह कहीं नजर नहीं आया. सीताराम को लगा कि इन बदमाशों को नहीं रोका गया तो ये लोग बैंक लूट ले जाएंगे और हो सकता है किसी को मार भी डालें.

सीताराम ने एक पल सोचा कि अंदर रेस्टहाउस से अपने साथी पुलिसकर्मियों रतिराम मानसिंह को बुलाने जाए या नहीं. इतना समय नहीं था. अगर वह साथी पुलिसकर्मियों को बुलाने जाता तो हो सकता था तब तक बदमाश बैंक के अंदर चेस्टरूम तक पहुंच जाते. सीताराम ने तुरंत फैसला लिया. उस ने बदमाशों को ललकारा और अपनी बंदूक से हवाई फायर कर दिया.

फायर होते ही बदमाश हड़बड़ा गए और तेजी से मेनगेट फांद कर वापस भागने लगे. उन के साथी जो बैंक के बाहर खड़े थे, वे भी फटाफट वहां खड़ी गाड़ी में बैठ गए. इस के बाद सभी बदमाश गाड़ी से भाग गए बदमाशों के भागने पर सीताराम बैंक की बिल्डिंग से बाहर निकला तो देखा बाहर ड्यूटी पर तैनात बैंक के गार्ड प्रमोद के हाथपैर बंधे हुए थे. सीताराम ने उस के हाथपैर खोले. प्रमोद  बेहद घबराया हुआ था. वह सीताराम से लिपट कर बोला, ‘‘भाईसाहब, आज तो आप ने हमारी जान बचा ली वरना वे बदमाश हमें मार सकते थे.’’

सीताराम ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा कि चिंता मत करो, जो बदमाश आए थे, वे भाग गए हैं. तब तक हवाई फायर की आवाज सुनकर बैंक के रेस्टहाउस से पुलिसकर्मी रतिराम मानसिंह भी वहां गए. यह सारा घटनाक्रम मुश्किल से 3 मिनट में हो गया था. कांस्टेबल सीताराम ने सब से पहले फोन कर के पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी. सूचना देने के 5-7 मिनट में ही पुलिस गश्ती दल बैंक के बाहर पहुंच गया. पुलिस के गश्ती दल ने बैंक के निजी सुरक्षा गार्ड प्रमोद कुमार से पूछताछ की. करौली के रहने वाले प्रमोद ने बताया कि ऐक्सिस बैंक प्रशासन ने उसे बाहरी हिस्से में सुरक्षा की जिम्मेदारी दे रखी है

प्रमोद ने पुलिस को बताया कि रात करीब ढाई बजे वह बैंक के बाहरी हिस्से में राउंड ले रहा था. जब वह पीछे की ओर चैकिंग करने गया था, तभी बैंक के आगे वाले हिस्से के गेट से किसी के कूदने की आवाज आई. इस पर वह मेनगेट की तरफ आया तो देखा कि 2 युवकों ने मुंह पर नकाब पहना हुआ था और उन के हाथों में पिस्तौलें थीं

मैं उन्हें रोक ही रहा था कि 3 और युवक मेनगेट से बैंक के अंदर गए. उन लोगों ने पिस्तौल कनपटी पर लगा कर मुझे पकड़ कर नीचे गिरा दिया. मुझ से चाबी छीन ली, उसी चाबी से एक युवक ने चेस्ट ब्रांच के गेट से पहले वाले चैनल गेट का ताला खोल लिया. एक युवक ने मेरा मुंह बंद कर दिया और 2 युवक मेरे ऊपर बैठ गए. बाकी बचे एक युवक ने मेरे हाथ बांध दिए.

वे मेरे पैर बांध रहे थे, तभी बैंक के अंदर से सीताराम के चिल्लाने की आवाज आई. इस पर बदमाश घबरा गए. इस के कुछ सैकेंड बाद ही गोली चलने की आवाज सुनाई दी. गोली चलने की आवाज सुन कर सभी बदमाश बैंक के गेट को फांद कर बाहर भाग गए.  प्रमोद ने बताया कि जो बदमाश बैंक के अंदर घुसे थे, उन्होंने आपस में कोई बात नहीं की थी. फायरिंग की आवाज सुन कर सिर्फ इतना कहा कि भागो यहां से. इस के बाद सीताराम ने आ कर मुझे संभाला और पुलिस को सूचना दी.

रात को ही ऐक्सिस बैंक के अफसरों को मौके पर बुलाया गया. राजधानी जयपुर में बैंक लूटने के प्रयास की सूचना मिलने पर जयपुर पुलिस कमिश्नरेट के आला अफसर रात को ही मौके पर पहुंच गए. बैंक के अफसरों ने बताया कि राजस्थान में ऐक्सिस बैंक की सभी शाखाओं में इसी चेस्ट ब्रांच से पैसा जाता है. पूरे राज्य से जमा हो कर पैसा भी इसी चेस्ट ब्रांच में आता है. बैंक अफसरों से पुलिस अधिकारियों को पता चला कि इस चेस्ट ब्रांच में वारदात के समय 926 करोड़ रुपए रखे हुए थे. इतनी बड़ी रकम की बात सुन कर पुलिस अफसर हैरान रह गए.

अगर पुलिस कांस्टेबल सीताराम हिम्मत दिखा कर गोली नहीं चलाता तो शायद बदमाश बैंक लूटने में कामयाब हो जाते. अगर यह बैंक लुट जाती तो यह भारत की अब तक की सब से बड़ी बैंक डकैती होती. सीताराम के गोली चलाने से यह बैंक डकैती होने से बच गई थी. कांस्टेबल सीताराम की ओर से बदमाशों को ललकारने के लिए चलाई गई गोली बैंक के सामने बाईं ओर एक मकान की खिड़की में जा कर लगी. गोली लगने से खिड़की का कांच टूटा तो मकान मालिक और उन के परिवार की नींद खुल गई. उन्होंने बाहर कर पता किया तो बैंक में डकैती के प्रयास का पता चला. तब तक पुलिस भी मौके पर पहुंच गई थी. पुलिस ने रात को जयपुर से बाहर निकलने वाले सभी रास्तों पर कड़ी नाकेबंदी करवा दी. 6 फरवरी को कांस्टेबल सीताराम की रिपोर्ट के आधार पर जयपुर के अशोक नगर थाने में मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

6 फरवरी को सुबह से पुलिस और ऐक्सिस बैंक के आला अफसरों का मौके पर जमावड़ा लगा रहा. जयपुर के पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने भी मौके पर पहुंच कर बैंक के सुरक्षा इंतजामों के बारे में जानकारी ली. पुलिस को जांचपड़ताल के दौरान 4 बड़े खाली कट्टे (बोरी) मिले. ये कट्टे बदमाश अपने साथ लाए थे, लेकिन गोली की आवाज सुन कर भागते समय छोड़ गए.

बदमाशों का पता लगाने के लिए पुलिस ने बैंक के अंदरबाहर और आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी तो पता चला कि बदमाश 7 सीटर इनोवा गाड़ी से आए थे. इस गाड़ी से 11 बदमाश बाहर निकले और 2 बदमाश अंदर ही बैठे रहे. बाहर निकले सभी बदमाशों के चेहरे ढंके हुए थे. इन में से 4-5 बदमाशों के हाथ में पिस्तौल और बाकी के हाथों में डंडे और सरिए थे. इस इनोवा का नंबर तो साफ दिखाई नहीं दे रहा था, लेकिन राजस्थान के नागौर जिले की नंबर सीरीज जरूर नजर आ रही थी.

लिस की जांच में पता चला कि बैंक की इस चेस्ट ब्रांच में लिमिट से करीब 3 सौ करोड़ रुपए ज्यादा रखे हुए थे. नियमानुसार बैंक को यह राशि रिजर्व बैंक में जमा करानी चाहिए थी. यह बात सामने आने पर करेंसी चेस्ट में सुरक्षा मापदंडों को ले कर चूक और लिमिट से ज्यादा कैश रखने के मामले में रिजर्व बैंक के महाप्रबंधक करेंसी पी.के. जैन ने ऐक्सिस बैंक से रिपोर्ट मांगी.

बहरहाल, ऐक्सिस बैंक में देश की सब से बड़ी डकैती टल गई थी. कांस्टेबल सीताराम की सूझबूझ से बदमाशों को भागना पड़ा. सीताराम जयपुर का हीरो बन गया था. सीताराम की सतर्कता और बहादुरी से 926 करोड़ रुपए की बैंक डकैती टल जाने पर जयपुर पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने राजस्थान के पुलिस महानिदेशक .पी. गल्होत्रा से बात की और दिलेरी दिखाने वाले कांस्टेबल सीताराम को पुरस्कृत करने की सिफारिश की. डकैती तो टल गई थी, लेकिन जयपुर पुलिस के लिए बैंक में घुसने वाले बदमाशों का पता लगाना सब से पहली चुनौती थी. इस के लिए पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने अपने मातहत अधिकारियों की मीटिंग कर के वारदात के लिए आए बदमाशों का पता लगाने को कहा.

विचारविमर्श में यह बात सामने आई कि 7 सीटर इनोवा में 13 लोगों का बैठना आसान नहीं है. इस का मतलब बदमाशों के पास कोई दूसरा वाहन भी रहा होगा, लेकिन सीसीटीवी फुटेज में दूसरा वाहन नजर नहीं आ रहा था. इनोवा गाड़ी भी चोरी की होने या उस पर फरजी नंबर प्लेट होने की आशंका थी. इस बात पर भी विचार किया गया कि बैंक में वारदात करने से पहले बदमाशों ने रैकी जरूर की होगी. अगर उन्होंने रैकी की थी तो उन्हें इस बात का पता रहा होगा कि बैंक की इस चेस्ट ब्रांच में 3-4 पुलिसकर्मी हमेशा मौजूद रहते हैं.

एक सवाल यह भी उठा कि बदमाशों की संख्या करीब 13 थी और उन में 4-5 के पास पिस्तौल भी थीं तो वे केवल एक गोली चलने से घबरा क्यों गए? बैंक में डकैती डालने की हिम्मत करने वाले बदमाश डर कर भागने के बजाय मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं. इस से संदेह हुआ कि बदमाश कहीं नौसिखिया तो नहीं थे. इस के अलावा बदमाशों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि बैंक में 926 करोड़ रुपए होंगे. पुलिस ने वारदात की जानकारी मिलने के तुरंत बाद जयपुर से बाहर निकलने वाले रास्तों पर नाकेबंदी कर दी थी. फिर भी बदमाशों का कोई सुराग नहीं मिला था. इस से यह बात भी उठी कि बदमाश जयपुर शहर के ही रहने वाले तो नहीं हैं.

पचासों तरह के सवालों का हल खोजने के लिए पुलिस कमिश्नर ने 4 आईपीएस अधिकारियों के सुपरविजन में एक दरजन टीमें गठित कीं. इन टीमों में सौ से ज्यादा पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया. अलगअलग टीमों को अलग जिम्मेदारियां सौंपी गईंपुलिस टीमों ने मुख्य रूप से बैंक कर्मचारियों और वहां तैनात गार्डों से पूछताछ, बैंक से रुपए लाने ले जाने वाली 3 निजी सिक्योरिटी एजेंसियों के मौजूदा और पुराने कर्मचारियों से पूछताछ, जयपुर से निकलने वाले रास्तों पर स्थित टोल नाकों पर सीसीटीवी फुटेज, जयपुर के आसपास हाइवे और कस्बों में स्थित होटल, ढाबों पर हुलिए के आधार पर बदमाशों की जानकारी हासिल करने, इस तरह की वारदात करने वाले गिरोहों की जानकारी जुटाने आदि बिंदुओं पर अपनी जांचपड़ताल शुरू की.  

दूसरी ओर, पुलिस कमिश्नर ने रिजर्व बैंक में जयपुर के सभी पब्लिक सैक्टर और निजी सैक्टर के बैंक अधिकारियों, रिजर्व बैंक के अधिकारियों और गोल्ड लोन देने वाली कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की. इस मीटिंग में पुलिस कमिश्नर ने कहा कि सभी बैंक सुरक्षा व्यवस्था के बारे में रिजर्व बैंक की गाइडलाइन का पूरी तरह पालन करें

इस के अलावा उन्होंने सुरक्षा के खास प्रबंधों के साथसाथ अलार्म और हौटलाइन की आवश्यक व्यवस्था करने को भी कहा. कैश लाने ले जाने से पहले मौकड्रिल करने की भी बात की. उन्होंने राय दी कि बैंक के सीसीटीवी कैमरे अपग्रेड किए जाएं, जिन में कम से कम 90 दिन का बैकअप होना चाहिए. अलार्म सिस्टम भी जरूर लगाए जाएं.

वारदात के दूसरे दिन पुलिस के अधिकारी और जवान सभी बिंदुओं पर विचार कर जांचपड़ताल करते रहे, लेकिन यह भी पता नहीं चल सका कि बदमाश किस रास्ते से वापस गए. दूसरे और तीसरे दिन भी पुलिस को बदमाशों के बारे में कोई महत्त्वपूर्ण सुराग हाथ नहीं लगा. इस बीच जयपुर से पुलिस की टीमें नागौर, पाली, अजमेर, भीलवाड़ा, सीकर झुंझुनूं आदि जिलों में गईं और संदिग्ध बदमाशों की तलाश की

9 फरवरी को जयपुर पुलिस को इस मामले में उम्मीद की कुछ किरणें नजर आईं. कई जगह फुटेज में नजर आया कि बदमाशों की इनोवा गाड़ी के पीछे वाली बाईं ओर की लाइट टूटी हुई थी. इसी वजह से गाड़ी चलने पर यह लाइट नहीं जलती थी. इसी आधार पर पुलिस जयपुर से अजमेर की ओर टोल नाकों पर ऐसी इनोवा कार की तलाश में जुटी रही.

इसी दिशा में पुलिस आगे बढ़ी तो पता चला कि दूदू के पास एक बार के बाहर इनोवा कार रुकी थी. वहां लगे सीसीटीवी कैमरों में कुछ लोगों की तसवीर गई थी. इन लोगों ने कानों में सोने की मुर्की पहन रखी थीं. चेहरे भी ढंके हुए नहीं थे. इस से यह अंदाजा लगाया गया कि बदमाश जोधपुरपाली की तरफ के हो सकते हैं. दूदू में होटल पर रुकने के बाद यह गाड़ी ब्यावर की ओर चली गई थी.

इसी बीच जांचपड़ताल में पता चला कि ऐक्सिस बैंक में बदमाश जो कट्टे छोड़ गए थे, वे पाली जिले की रायपुर तहसील के बर गांव में एक दुकान से खरीदे गए थे. इन कट्टों पर बर गांव की परचून की दुकान का नाम लिखा था. पुलिस उस दुकानदार तक पहुंची. हालांकि दुकानदार से बदमाशों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली, लेकिन इस से यह अंदाजा जरूर लग गया कि बदमाशों का पाली जिले से कोई कोई संबंध जरूर था.

पुलिस को बदमाशों की इनोवा कार की लोकेशन ब्यावर तक मिल गई थी. इस बीच महाराष्ट्र के नंबरों का पता चलने पर एक पुलिस टीम महाराष्ट्र भेजी गई. ब्यावर से पुलिस टीम सीसीटीवी फुटेज के आधार पर इनोवा कार का पीछा करते हुए जोधपुर तक पहुंच गई.

10 फरवरी को पाली जिले की पुलिस को कुछ जानकारियां मिलीं. इस के अगले  दिन 11 फरवरी को जोधपुर पुलिस कमिश्नरेट के महामंदिर थानाप्रभारी सीताराम को सूचना मिली कि जोधपुर के कुछ बदमाश कहीं बाहर कोई बड़ी वारदात कर के आए हैं

इस पर जोधपुर पुलिस की एक टीम बदमाशों की तलाश में जुटी और शाम तक 6 बदमाशों प्रकाश जटिया, पवन जटिया, धर्मेंद्र जटिया, जयप्रकाश जटिया, दिनेश लुहार और प्रमोद बिश्नोई को पकड़ लिया. ये छहों लोग जोधपुर के रहने वाले थे. जोधपुर पुलिस कमिश्नर अशोक कुमार राठौड़ ने इस की सूचना जयपुर पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल को दी. इस पर जयपुर से एक टीम रवाना हो कर रात को ही जोधपुर पहुंच गई

पकड़े गए 6 बदमाशों से बाकी लुटेरों का भी पता चल गया. जयपुर जोधपुर पुलिस उन की तलाश में जुट गई. 12 फरवरी को पुलिस ने 2 और बदमाशों को पकड़ लिया. इन में अनूप बिश्नोई को जोधपुर के बनाड इलाके से पकड़ा गया, जबकि झुंझुनूं के बदमाश विकास चौधरी को जैसलमेर से गिरफ्तार किया गया. विकास चौधरी आजकल जैसलमेर के शिकारगढ़ इलाके में रह रहा था.

इन बदमाशों से की गई पूछताछ में सामने आया कि लूट की योजना जोधपुर के ओसियां  के सिरमंडी निवासी हनुमान बिश्नोई उर्फ लादेन ने बनाई थी. लादेन ही इस गिरोह का सरगना है. लादेन ने जयपुर में ऐक्सिस बैंक की चेस्ट ब्रांच की रैकी कर रखी थी. तिजोरी के ताले तोड़ने के लिए उस ने प्रमोद बिश्नोई के सहयोग से जोधपुर की जटिया कालोनी के रहने वाले प्रकाश, पवन, धर्मेंद्र जयप्रकाश को तैयार किया था

तिजोरी तोड़ने के लिए ये बदमाश जोधपुर से ही औजार ले कर चले थे. हनुमान उर्फ लादेन इस योजना में प्रकाश बिश्नोई से बराबर का हिस्सा मांग कर पार्टनर बना था. बाकी बदमाशों को 20 हजार से 10 लाख रुपए तक का लालच दिया गया था. लादेन और प्रकाश ने अपने भाड़े के साथियों को यह नहीं बताया था कि जयपुर में बैंक लूटने जाना है. उन्हें बताया गया था कि जयपुर में हवाला की रकम लूटनी है.

5 फरवरी को लादेन के नेतृत्व में 15 बदमाश जोधपुर से 2 गाडि़यों में सवार हो कर जयपुर के लिए चले. उन्होंने रास्ते में जयपुर-अजमेर के बीच दूदू के पास एक गाड़ी छोड़ दी. इनोवा गाड़ी से सभी बदमाश उसी रात जयपुर पहुंचे और ऐक्सिस बैंक की चेस्ट ब्रांच पर धावा बोल दिया. बैंक में तैनात पुलिस कांस्टेबल के गोली चलाने से सभी बदमाश डर कर भाग निकले थे.

प्रकाश बिश्नोई जनवरी 2014 में राइकाबाग में रोडवेज बस स्टैंड पर रात्रि गश्त कर रहे पुलिस के एक एएसआई राजेश मीणा की हत्या का भी अभियुक्त था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. घटना के समय वह जमानत पर छूटा हुआ था. इस गिरोह के सरगना जोधपुर निवासी हनुमान उर्फ लादेन को 20 फरवरी को जयपुर से गिरफ्तार कर लिया गया. जोधपुर के ही रहने वाले राजकुमार, किशोर नायक, लखन शर्मा और संदीप विश्नोई को पंजाब के मोहाली से पकड़ा गया. रविंद्र के पास से एक करोड़ 5 लाख की पुरानी करेंसी मिली

ये लोग रिजर्व बैंक से नोट बदलवाने के चक्कर में थे, क्योंकि एनआरआई कोटे के तहत अभी भी नोट बदले जा रहे थे. पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया. गिरफ्तार किए गए आठों बदमाशों को पुलिस जोधपुर से जयपुर ले आई. बदमाशों से उन के साथियों और आपराधिक वारदातों के बारे में पूछताछ की गई. ऐक्सिस बैंक में लूट के प्रयास के दौरान उपयोग किए गए हथियारों के बारे में भी पता लगाया गया. गिरफ्तार फरार बदमाशों का आपराधिक रिकौर्ड भी खंगाला गया. यह भी पता लगाया गया कि इस वारदात में बैंक के किसी नएपुराने कर्मचारी का सहयोग तो नहीं था. देश की सब से बड़ी बैंक लूट की वारदात को विफल करने का हीरो कांस्टेबल सीताराम ही रहा. हालांकि जयपुर पुलिस ने वैज्ञानिक तरीकों से जांचपड़ताल के जरिए बदमाशों को पकड़ कर अपनी साख जरूर बचा ली.

यह भी दिलचस्प रहा कि 11 फरवरी को जोधपुर में जब 6 बदमाश पकड़े जा रहे थे, उसी समय जयपुर में राजस्थान के पुलिस महानिदेशक .पी. गल्होत्रा ने कांस्टेबल सीताराम को हैडकांस्टेबल के पद पर विशेष पदोन्नति दी. जयपुर पुलिस कमिश्नरेट में आयोजित समारोह में पुलिस महानिदेशक ने कहा कि ड्यूटी के दौरान उत्कृष्ट कार्य कर के सीताराम ने राजस्थान पुलिस की शान बढ़ाई है.

राजस्थान के सीकर जिले के पूनियाणा गांव के रहने वाले सीताराम के मातापिता पढ़लिख नहीं सके थे. वे मेहनतमजदूरी करते थे. पिता टोडाराम मां प्रेम ने अपने एकलौते बेटे सीताराम को अपना पेट काट कर पढ़ाया लिखाया. सीताराम ने सीनियर सेकैंडरी तक की पढ़ाई सीकर में दांतारामगढ़ से की. 12वीं में वह क्लास टौपर रहा. कालेज की पढ़ाई रेनवाल से की. मातापिता की ख्वाहिश थी कि सीताराम शिक्षक बन जाए. सीताराम ने बीएड करने के साथ शिक्षक बनने की तैयारी शुरू भी की थी, लेकिन तभी वह कांस्टेबल के पद पर भरती हो गया

उस ने साल 2015 में नौकरी जौइन की. प्रोबेशन पीरियड पूरा होने के बाद उसे बैंक की चेस्ट ब्रांच में सुरक्षा के लिए तैनात कर दिया गया था. डेढ़ साल पहले ही उस की शादी हुई थी. सीताराम के मातापिता और गांव के लोगों को ही नहीं, आज राजस्थान पुलिस के कांस्टेबल से ले कर पुलिस महानिदेशक तक सभी को उस पर गर्व है.

 

खेत में बुलाया फिर उस्तरे से काटा गला

प्यार में कभीकभी जिद खतरनाक साबित होती है. महेंद्र सावित्री पर भाग कर शादी करने का दबाव डाल रहा था. पर वह ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हुई. तब गुस्से में तमतमाए महेंद्र ने ऐसा कदम उठाया कि…   

त्तर प्रदेश के जिला सीतापुर के थाना महमूदाबाद का एक गांव है बेहटी मानशाह. इसी गांव का रामकुमार 19 फरवरी, 2018 को बड़ी बेचैनी से घर के आंगन में इधर से उधर चक्कर लगा रहा था. बारबार उस की निगाहें एक उम्मीद से दरवाजे की तरफ उठतीं और फिर अगले ही पल निराश हो कर दूसरी ओर देखने घूम जातींरामकुमार की बेचैनी की वजह थी, उस की 19 वर्षीय बेटी सावित्री, जो शाम 5 बजे सिरौली में लगने वाले बाजार के लिए निकली थी, लेकिन रात में काफी देर होने के बाद भी वह घर नहीं लौटी थी. एकलौती बेटी के साथ कोई अनहोनी हो गई हो, इस आशंका से उस का दिल घबरा रहा था.

सावित्री गांव की ही शांति नाम की एक महिला के साथ बाजार गई थी. रामकुमार शांति के घर पता लगाने के लिए गया. शांति का घर गांव की सीमा पर एकांत में था. वह शांति के घर पहुंचा तो वह घर पर ही मिल गईरामकुमार ने उस से बेटी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि सावित्री उस के साथ बाजार गई तो थी, लेकिन बीच रास्ते में ही उसे कोई काम याद गया था तो वह वापस लौट आई थी.

शांति की बात सुन कर रामकुमार के दिमाग में विचार आया कि अगर वह बीच रास्ते से लौट आई थी तो अभी तक घर क्यों नहीं पहुंची. आखिर क्या हुआ उस के साथ. वह शांति के घर से वापस लौट आया. चूंकि उस समय काफी रात हो गई थी. मोहल्ले के लोग भी अपनेअपने घरों में सो गए थे, पर बेटी की चिंता में वह पूरी रात नहीं सो पाया.

अगले दिन सुबह होते ही वह अपने दोनों बेटों मुकेश और सुरेश के साथ सावित्री की खोज में लग गया. तीनों इधरउधर सावित्री को ढूंढ ही रहे थे कि गांव के कुछ लोगों ने रामकुमार को बताया कि सावित्री की लाश सुरेश के गन्ने के खेत में लगे यूकेलिप्टस के पेड़ से बंधी हुई है. यह खबर मिलते ही रामकुमार दोनों बेटों के साथ मौके पर पहुंच गया. वहां पेड़ से उस की बेटी की लाश बंधी मिली. बेटी की लाश देख कर वह फूटफूट कर रोने लगा. गांव के तमाम लोग भी वहां पहुंच चुके थे. किसी ने फोन द्वारा इस की सूचना थाना महमूदाबाद को भी दे दी.

सूचना पाकर थानाप्रभारी रंजना सचान पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गईं. जाने से पहले उन्होंने मामले की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी. पुलिस ने घटनास्थल का मुआयना किया. सावित्री की लाश यूकेलिप्टस के पेड़ से बंधी थी. उस के गले पर किसी तेज धारदार हथियार से काटने के निशान थे.घटनास्थल का निरीक्षण करने पर वहां हत्या से संबंधित कोई सबूत नहीं मिल सका. इसी बीच एसपी आनंद कुलकर्णी, एएसपी मार्तंड प्रताप सिंह, सीओ  (महमूदाबाद) जावेद खान भी वहां पहुंच गए.

उच्चाधिकारियों ने भी लाश और घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने मृतका के पिता रामकुमार वहां मौजूद अन्य लोगों से भी पूछताछ की. इस के बाद एसपी आनंद कुलकर्णी थानाप्रभारी रंजना सचान को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए. थानाप्रभारी ने मौके की जरूरी काररवाई करने के बाद सावित्री की लाश पोस्टमार्टम के लिए सीतापुर के जिला अस्पताल भेज दी.

थानाप्रभारी ने रामकुमार की तहरीर के आधार पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302/201 और एससी/एसटी एक्ट 3 (2) 5 के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया. पुलिस ने जांच की तो यह बात सामने आई कि शांति ही सावित्री को बाजार के बहाने अपने साथ ले गई थी. लिहाजा शांति पुलिस के शक के दायरे में गई.

21 फरवरी, 2018 को शाम करीब साढ़े 7 बजे थानाप्रभारी रंजना सचान शांति के घर पहुंचीं. वह घर पर ही मिल गई. पूछताछ के लिए वह उसे थाने ले आईं. उन्होंने शांति से जब सख्ती से पूछताछ की तो घटना का राजफाश हो गयाउस से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी रात करीब 10 बजे सावित्री के गांव के ही रहने वाले उस के प्रेमी महेंद्र यादव उर्फ सगुनी को सिरौली तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. शांति और महेंद्र यादव से पूछताछ के बाद सावित्री की हत्या की जो कहानी सामने आई,

वह इस प्रकार निकली

महेंद्र यादव बेहटी मानशाह गांव के रहने वाले राजबहादुर यादव का बेटा था. महेंद्र के अलावा राजबहादुर यादव के एक बेटी 3 बेटे और थे. राजबहादुर खेतीकिसानी से परिवार का ठीक से पालनपोषण कर रहा थावह अपनी बेटी और 3 बेटों की शादी कर चुका था. केवल महेंद्र ही शादी के लिए रह गया था. वह सब से छोटा था, जिस से उस पर कोई जिम्मेदारी भी नहीं थी. इसलिए वह दिन भर दोस्तों के साथ इधरउधर घूमताफिरता रहता था.

राजबहादुर के मकान से कुछ ही दूरी पर रामकुमार अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में 2 बेटों मुकेश और सुरेश के अलावा एक बेटी सावित्री थी. करीब 14 साल पहले रामकुमार की पत्नी जयदेवी गांव के ही एक व्यक्ति के साथ भाग गई थी, जिस के बाद वह आज तक नहीं लौटी. रामकुमार ने बिन मां के बच्चों को बड़े प्यार से पाला. उन्हें किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होने दी. उस ने पिता के साथसाथ मां का भी फर्ज अदा किया. उस की एकलौती बेटी सावित्री ने घर की जिम्मेदारी बखूबी संभाल ली थी.

एक दिन सावित्री घर का खाना बना कर निपटी तो उस ने देखा कि घर में पीने का पानी नहीं है. वह बाल्टी लेकर अपने घर से कुछ दूरी पर स्थित सार्वजनिक हैंडपंप पर पहुंची. वहां कुछ औरतें पहले से पानी भर रही थीं. वहीं पास में ही एक मकान के चबूतरे पर महेंद्र अपने 2 दोस्तों के साथ बैठा बातें कर रहा था. उन सब से अंजान सावित्री झुक कर हैंडपंप चला रही थी. हैंडपंप के हत्थे के साथसाथ उस का शरीर भी ऊपरनीचे हो रहा था. अचानक महेंद्र की नजर सावित्री पर पड़ी तो महेंद्र के दिल की घंटी बज उठी. सावित्री को लेकर महेंद्र के मन में चाहत पैदा हो गई. 

हालांकि महेंद्र ने इस से पहले भी सावित्री को देखा था, पर उस के दिल में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. महेंद्र जिद्दी स्वभाव का था. उस ने उसी समय तय कर लिया था कि वह सावित्री को हर हाल में पा कर रहेगा. उस दिन महमूदाबाद कस्बे में महाशिवरात्रि का मेला था, जिस से उस दिन वहां ज्यादा चहलपहल शोरगुल था. बच्चों बड़ों में उत्साह बना हुआ था. महेंद्र भी मेले में घूमने गया. अचानक उस की निगाह सावित्री पर चली गई

वह अपनी एक सहेली के साथ आई थी. सावित्री एक दुकान पर खड़ी अपने लिए कंगन देख रही थी. वह काफी बनसंवर कर मेले में आई थी. सचमुच उस दिन वह बेहद खूबसूरत दिख रही थी. दूर खड़ा महेंद्र उस की खूबसूरती को निहार रहा था और मन ही मन हसीन कल्पना कर रहा था. वह यह भी सोच रहा था कि कैसे सावित्री से बात शुरू कर के नजदीकियां बढ़ाए. तभी सावित्री की सहेली एक दूसरी दुकान पर कुछ सामान खरीदने चली गई तो महेंद्र खुश हो उठा और वह सावित्री के पास पहुंच गया. सावित्री उस समय कंगन पसंद कर रही थी, तभी महेंद्र ने कहा, ‘‘सावित्री, तुम पर यह लाल वाला कंगन ज्यादा अच्छा लगेगा.’’

अपना नाम सुन कर पहले तो सावित्री चौंकी. जब उस ने नजरें उठा कर देखा तो महेंद्र को देखते ही वह बोली, ‘‘अरे महेंद्र तुम, तुम इस बिसाती की दुकान से क्या खरीद रहे हो?’’

 ‘‘मैं तो कुछ नहीं खरीद रहा लेकिन इधर घूमते समय मैं ने तुम्हें यहां देखा तो चला आया. वैसे आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो.’’ महेंद्र ने तारीफ की.

अपनी तारीफ सुन कर सावित्री खुश होते हुए बोली, ‘‘तुम भी कोई कम हैंडसम नहीं हो.’’

‘‘सचतुम्हारे मुंह से यह सुन कर मुझे अच्छा लगा. तो ठीक है, तुम वही लाल कंगन ले लो. मुझे अच्छे लग रहे हैं.’’ मुसकराते हुए महेंद्र ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं लाल कंगन ही ले लेती हूं.’’ सावित्री ने दुकानदार की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘भैया, ये लाल कंगन पैक कर देना.’’

सावित्री ने मुसकराते हुए उस की बात मान ली तो महेंद्र का दिल तेजी से धड़क उठा. महेंद्र ने झट से दुकानदार को कंगन के पैसे दे दिए. यह देख कर सावित्री मना करने लगी. तब महेंद्र ने कहा, ‘‘कम से कम नई दोस्ती के नाम पर पैसे देने दो. वैसे भी मैं कोई अजनबी तो हूं नहीं, तुम्हारा पड़ोसी ही हूं. इसलिए इतना तो हक बनता है मेरा.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारी बात मान लेती हूं. लेकिन अब तुम मेरे लिए पैसे खर्च नहीं करोगे.’’ मुसकराते हुए सावित्री ने कहा.

‘‘करूंगा…लेकिन सिर्फ एक जगह. मेरा मतलब है कि मेले में तुम्हारा मुंह मीठा जरूर कराऊंगा.’’ महेंद्र ने कहा तो सावित्री मुसकरा पड़ी. बात को आगे बढ़ाते हुए महेंद्र ने कहा, ‘‘सावित्री, चलो न. सामने की मिठाई की दुकान पर दोनों चलते हैं. वहीं बैठ कर कुछ खाएंगे.’’

‘‘हम दोनों नहीं, बल्कि हम तीनों खाएंगे. मेरी सहेली भी मेरे साथ मेले में आई है.’’ सावित्री अभी बता ही रही थी कि उस की सहेली वहां गई

सावित्री को महेंद्र के साथ बातें करते देख वह चहक उठी, ‘‘अरे तुम महेंद्र भैया के साथ? लगता है जानपहचान आगे बढ़ाई जा रही है.’’

‘‘अरे, हम दोनों पड़ोसी हैं तो क्या बात भी नहीं कर सकते. अब चलो मिठाई खाने दुकान पर.’’ महेंद्र ने कहा तो वे दोनों महेंद्र के साथ मिठाई की दुकान पर पहुंच गईं. वहां तीनों ने मिठाई और समोसे का स्वाद लिया. इस के बाद तीनों एक साथ मेला भी घूमे.

उस दिन के बाद से महेंद्र और सावित्री अकसर एकदूसरे से मिलने लगे और अपने दिल की बात करने लगे. महेंद्र स्मार्ट तो था ही, व्यवहार में भी मिलनसार था, इसलिए सावित्री बरबस उस की ओर आकर्षित होती चली गई. उस के दिल में भी महेंद्र के प्रति चाहत पैदा हो गई. एक दिन दोनों ने एकदूसरे से अपने प्रेम का इजहार भी कर दिया. इतना ही नहीं, उन्होंने जीवन भर साथ निभाने का वादा भी किया.

एक दिन मौसम सुहाना था और बारिश होने की पूरी संभावना थी. ऐसे में दोनों एकांत में बैठे प्रेमालाप कर रहे थे. वे एकदूसरे का हाथ थामे हुए थे, तभी रिमझिम फुहारें पड़ने लगीं. तब दोनों बारिश से बचने के लिए सुरक्षित जगह की ओर भागे. वे एक टूटेफूटे घर में घुस गए, जिस में कोई नहीं रहता था. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा रहे थे. पानी की फुहारों से भीग कर सावित्री के कपड़े उस के तन से चिपक गए थे. सुनसान जगह के साथ मौसम का भी साथ मिला तो उन के दिल के साथ उन के तन भी एक हो गए. 

तनमन से एक होने के बाद मुलाकातों का सिलसिला भी बढ़ गया. गांव में कोई जोड़ा प्यार की पींगें बढ़ाए और गांव वालों को पता चले, यह तो संभव नहीं होता. जल्द ही उन दोनों के रंगढंग से गांव के लोग वाकिफ हो गए कि उन के बीच क्या खिचड़ी पक रही है. सावित्री के पिता रामकुमार को जब बेटी के इश्क की बात पता चली तो उस के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. रामकुमार काफी समझदार था. वह जानता था कि ऐसे मामलों में बेटी के साथ मारपीट या बंदिश लगाने से कुछ नहीं होगा, बल्कि बैठ कर उसे प्यार से समझाना ही ठीक रहेगा.

उसी दिन रामकुमार ने सावित्री से बात की. उस समय रामकुमार के अलावा उस के घर में और कोई नहीं था. रामकुमार ने बेटी को समझाया कि उस की और महेंद्र की बिरादरी अलगअलग है, इसलिए उन के बीच कोई रिश्ता नहीं हो सकता. और फिर यदि कल को कहीं महेंद्र ही बदल गया तो उस की तो जिंदगी बदतर हो जाएगी. इसलिए ऐसे में जिंदगी को जानबूझ कर परेशानियों में डालना अक्लमंदी का काम नहीं है. पिता के मुंह से निकला एकएक शब्द सावित्री के दिमाग में बैठता चला गया. उसे अपने पिता के बातों में अपनी भलाई दिखी. इसलिए उस ने फैसला कर लिया कि अब वह महेंद्र से कोई रिश्ता नहीं रखेगी. अपने इस फैसले से उस ने पिता को भी अवगत करा दिया. बेटी की समझदारी पर रामकुमार भी खुश हो गया.

इस के बाद महेंद्र ने कई बार सावित्री से मिलने की कोशिश की लेकिन सावित्री उस से नहीं मिली. सावित्री में अचानक आए इस परिवर्तन से महेंद्र हैरत में पड़ गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि जो सावित्री पहले उस के साथ विवाह करने को तैयार थी, वह अचानक बदल कैसे गई? सावित्री के एकदम पलट जाने से महेंद्र बौखला गया. वह कई बार सावित्री से मिला और उसे समझाने की लाख कोशिश की लेकिन सावित्री नहीं मानी.

महेंद्र और सावित्री का मिलन कराने में गांव की शांति उर्फ संगीता नाम की महिला की खास भूमिका थी. महेंद्र की उस से पहले से ही दोस्ती थी. वह शांति को भाभी बुलाता था. शांति का पति गोपी एक ईंट भट्ठे पर मजदूर था. शांति के 2 बेटे एक बेटी थी. इस के बावजूद वह गांव की उन कथित भाभियों में से थी, जो गांव के जवान बच्चों का भविष्य बिगाड़ने में लगी रहती हैं. जब सावित्री और महेंद्र खेतों में मिलते थे तो शांति उन की चौकीदारी का काम करती थी. किसी के आने पर वह उन को आगाह कर देती थी. जब महेंद्र ने सावित्री से भाग कर विवाह कर लेने की बात कही तो सावित्री तैयार नहीं हुई

महेंद्र ने इस काम में शांति को लगाया. शांति ने भी सावित्री को समझाने की भरपूर कोशिश की लेकिन सावित्री नहीं मान रही थी. इसके बाद महेंद्र ने गांव के ही अपने दोस्त दयानंद मिश्रा, पिंटू यादव और शांति के साथ एक योजना बनाई. योजना के अनुसार 19 फरवरी, 2018 को महेंद्र दयानंद मिश्रा उर्फ पप्पू और पिंटू यादव को ले कर सुरेश के गन्ने के खेत में पहुंचा. फिर शांति से कह कर सावित्री को बाजार जाने के बहाने वहां बुला लिया. सावित्री के वहां पहुंचते ही महेंद्र ने अपने साथियों के साथ मिल कर सावित्री को पकड़ कर खेत में ही खड़े यूकेलिप्टस के पेड़ से बांध दिया.

महेंद्र ने सावित्री से एक बार फिर भाग कर विवाह करने के बारे में पूछा तो सावित्री ने साफ मना कर दिया. बेवफा माशूका के मुंह से ‘न’ सुन कर महेंद्र आगबबूला हो उठा. उस ने सावित्री की नाक पर एक जोरदार घूंसा मारा, जिस से सावित्री बिलख कर रोने लगी और बेहोश हो गई. महेंद्र ने अपने साथियों के साथ मिल कर सावित्री के गले में पड़े दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया. 

सावित्री जीवित न रह जाए, इसलिए जेब से उस्तरा निकाल कर महेंद्र ने उस का गला भी रेत दिया. ऐसा उस ने एक बार नहीं कई बार किया. गला कटने से सावित्री की मौत हो गई. हत्या करने के बाद वे सभी वहां से फरार हो गए.

लेकिन उन का गुनाह पुलिस के सामने ही गया. थानाप्रभारी रंजना सचान ने शांति और महेंद्र की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त उस्तरा और खून से सने कपड़े घटनास्थल से मात्र 100 मीटर की दूरी पर एक गेहूं के खेत से बरामद कर लिए. आवश्यक लिखापढ़ी करने के बाद दोनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक पुलिस ने पिंटू यादव को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था, जबकि दयानंद मिश्रा फरार था. मामले की विवेचना सीओ (महमूदाबाद) जावेद खान कर रहे थे.द्य

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

वो ऐसा साइबर क्राइम जिसने भाजपा और कांग्रेस दोनों को हिला दिया

 फेसबुक डाटा के आधार पर क्या कोई कंपनी मतदाताओं की सोच और मन बदल सकती है? इस मामूली से सवाल का जवाब अगरहांहै तो यह लोकतंत्र के लिए भी घातक है और देश के लिए भी. अमेरिका में चूंकि ऐसा हो चुका है, इसलिए अगले साल होने वाले चुनाव के मद्देनजर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही डरी हुई हैं. आखिर क्यों?    

प्राइवेट कंपनी में एकाउंटेंट सचिन अरोड़ा की उस दिन छुट्टी थी, इसलिए उस ने सोचा क्यों कुछ देर फेसबुक में ही समय गुजारा जाए. अभी उस ने  फेसबुक खोला ही था कि सामने एक खूबसूरत तसवीर के साथ एक आकर्षक इबारत चमकी, ‘जानिए आप की शक्ल देशविदेश के किस महान एक्टर से मिलती है.’

सचिन को हमेशा यह खुशफहमी रही थी कि उस की शक्ल विनोद खन्ना से मिलती है, इसलिए उस ने यह पढ़ते ही सोचा क्यों आजमा कर देख लिया जाए कि उस का अनुमान सही भी है या नहीं. अत: उस ने तुरंत उस पौइंट पर क्लिक कर दिया, जहां से यह जानने के लिए कदम दर कदम आगे बढ़ना था.

पहली क्लिक के बाद ही बारीक अक्षरों में लिखी यह बात सामने आई कि अगर आप इस मनोरंजक क्विज में भाग लेते हैं तो इस ऐप को, जिस ने यह क्विज डेवलप की है, क्या मिलेगा? साथ ही जवाब में लिखा था, आप की सार्वजनिक प्रोफाइल, तसवीरें और आप के कमेंट.

सचिन ने सोचा ऐसी कौन सी खास चीजें हो सकती हैं. इसलिए वह नेक्स्ट के बाद नेक्स्ट बटन क्लिक करता गया. हालांकि उसे बाद में निराशा हुई, क्योंकि ऐप ने उसे हौलीवुड के एक्टर टौम हैंक जैसा बताया था, जिसे वह जानता तक नहीं था.

बहरहाल, इस पहेली में टाइम पास कर के सचिन यह सब भूल गया था, लेकिन कुछ महीनों बाद उसे तब आश्चर्य हुआ जब एक असहिष्णुता संबंधी औनलाइन वोटिंग में उस ने अपने आप को उन लोगों के विरुद्ध मोर्चाबंदी करते हुए पाया, जो सरकार की सांस्कृतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप कर रहे थे

सचिन को तो शायद यह पूरा मामला पता ही नहीं चलता, अगर उस के एक दोस्त ने व्यंग्य करते हुए यह कहा होता कि आजकल कलाकारों का बहुत विरोध कर रहे हो. सचिन को इस से ही पता चला कि उस के नाम और तसवीरों का किसी ने दुरुपयोग किया है.

दरअसल, हाल के सालों में हम ने भले ही ध्यान दिया हो, लेकिन फेसबुक में इस तरह के खेलों की बाढ़ गई है, जिस में कहा जाता है कि जानिए आप किस हीरो की तरह लग रहे हैं? पिछले जन्म में क्या थे? या आप उद्योगपति होते तो किस के जैसे होते? या फिर आप खिलाड़ी के रूप में किस खेल के लिए ज्यादा उपयुक्त हैं?

ऐसी तमाम पहेलियों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करने वाले कार्यक्रमों की इंटरनेट में बाढ़ गई है. इन में लोग रुचि से भाग भी लेते हैं. सब से पहले इस तरह के सवाल आने शुरू हुए थेआप 60 साल बाद कैसे दिखेंगे? आप की जोड़ी किस हीरोइन या हीरो के साथ जमती है? मनोवैज्ञानिक रूप से आकर्षित करने वाले टाइमपास खेलों की यह शृंखला लगातार बढ़ती गई तो ऐसा यूं ही नहीं हुआ, बल्कि इस के पीछे एक पूरी साजिश थी.

दरअसल, आम लोग भले ही न जानते हों लेकिन इन खेलों के जरिए पर्सनल डाटा चुराने का बहुत ही सोचासमझा खेल चल रहा था. इस डाटा चोरी की बात शायद इतनी डरावनी नहीं लगती, अगर पिछले दिनों इस बात का खुलासा न होता कि इसी तरह डाटा चुरा कर कुछ कंपनियों ने डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका का राष्ट्रपति बनवा दिया है.

जी हां, ये सब उन साइको प्रोफाइल विकसित करने वाली कंपनियों का खेल है, जिस को लेकर आज पूरी दुनिया में हंगामा है. वास्तव में ये कंपनियां आम लोगों को सोशल मीडिया में विशेषकर फेसबुक जैसे लोकमंच में मनोवैज्ञानिक रूप से फांसती हैं

अपने सहज मानवीय आकर्षण वाले सवालों के जरिए ये कंपनियां लोगों को अपने जाल में फांस कर उन का प्रकट रूप में तो मनोरंजन करती हैं, लेकिन इस मनोरंजन के पीछे उन का असली मकसद इन लोगों की मेल आईडी, तसवीरें और तमाम पर्सनल जानकारियां हासिल करना होता है

बाद में एकत्र की गई इन प्रोफाइल जानकारियों को ये कंपनियां कारपोरेट सेक्टर से ले कर विभिन्न मार्केटिंग एजेंसियों तक को बेच देती हैं. अब यह खुलासा इसलिए खौफनाक लगने लगा है, क्योंकि पता चला है कि ये अपना डाटा राजनीतिक पार्टियों को भी बेचती हैं और वे इस डाटा के जरिए मतदाताओं का ब्रेनवाश कर के मनपसंद नतीजे हासिल करने की कोशिश करती हैं.

2 बड़े अखबारों के स्टिंग से  घबराई भाजपा, कांग्रेस गत 17 मार्च, 2018 को अमेरिका और ब्रिटेन के 2 अखबारों ने जब इस बात का खुलासा किया कि अमेरिकी चुनावों में मौजूदा राष्ट्रपति ट्रंप के पक्ष में इस तरह के खेल का किस तरह से इस्तेमाल किया गया तो पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया. इस खुलासे के बाद भारत में भी हंगामा मचा हुआ है. 

देश की दोनों मुख्य राजनीतिक पार्टियां भाजपा और कांग्रेस डर रही हैं कि कहीं अमेरिका की तरह यहां भी अगले साल होने वाले चुनाव में राजनीतिक फायदे के लिए इस तरह के तथ्यों का इस्तेमाल किया जाए. इसीलिए दोनों पार्टियां एकदूसरे पर आरोप लगा रही हैं कि वे देश के आम मतदाताओं का निजी डाटा हासिल कर के उन का राजनीतिक ब्रेनवाश कर रही हैं. हालांकि चुनाव आयुक्त .के. रावत ने साफतौर पर इनकार करते हुए कहा है कि ऐसा कुछ नहीं हो रहा, हो सकता है

लेकिन अमेरिका में घटी घटना ने साबित कर दिया है कि जब अमेरिकी मतदाताओं का ब्रेनवाश हो सकता है तो हिंदुस्तानी मतदाताओं का क्यों नहीं?  कांग्रेस ने तो भाजपा पर आरोप भी लगा दिया है कि भाजपा ने 2014 का चुनाव फेसबुक के जरिए इसी तरह से मतदाताओं का ब्रेनवाश कर के जीता था. हालांकि इस के लिए डाटा चोरी का आरोप नहीं लगाया गया. बहरहाल, डर की यह पूरी कहानी कहां और कैसे सामने आई, इस पर हम आगे बात करेंगे. फिलहाल अमेरिका में डाटा लीक के दुरुपयोग के जरिए जो डर पूरी दुनिया के सामने आया है, वह यह है कि इस साल और अगले साल दुनिया के 2 दरजन देशों में होने जा रहे आम चुनावों में इंटरनेट कंपनियां हारजीत का फैसला कर सकती हैं.

कुल मिला कर यह डर वैसा ही है, जैसा 1970 के दशक में हुआ करता था. तब राजनीतिक पार्टियों को लगता था कि उन के धाकड़ विरोधी जीतने के लिए बूथ कैप्चरिंग कर लेंगे. यह भी एक किस्म से कैप्चरिंग की ही आशंका हैफर्क बस यह होगा कि तब भौतिक रूप से लठैतों और हथियारों की बदौलत यह काम होता था और अब आशंका है कि सोशल मीडिया के मनोवैज्ञानिक कब्जे के जरिए यह खेल खेला जाएगा. बहरहाल, यह आशंका कहां से पैदा हुई और कैसे कदम दर कदम आगे बढ़ी, इस का सिलसिला कुछ यूं शुरू होता है.

वाट्सऐप के कोफाउंडर ब्रायन एक्टन ने फैलाई सनसनी 21 मार्च, 2018 को शाम 5 बज कर 18 मिनट पर किए गए अपने एक ट्वीट से मैसेजिंग ऐप वाट्सऐप के कोफाउंडर ब्रायन एक्टन ने तब हड़कंप मचा दिया, जब उन्होंने सभी से अपना फेसबुक एकाउंट डिलीट करने को कहा. एक्टन ने ट्वीट किया, ‘यह प्तडिलीट फेसबुक का वक्त है.’एक्टन का यह ट्वीट ऐसे समय में आया, जब पौलिटिकल डाटा एनालिस्ट कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका पर अमेरिका के 5 करोड़ फेसबुक यूजर्स का डाटा चुरा कर, उस का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगा था. 

अमेरिकी अखबार न्यूयार्क टाइम्स और ब्रिटेन के अखबार औब्जर्वर के एक संयुक्त स्टिंग से यह खुलासा हुआ है कि ब्रिटेन की कैंब्रिज एनालिटिका नामक कंपनी ने फेसबुक के 5 करोड़ यूजर्स के बारे में विस्तृत जानकारियां एकत्र कर के उन की अनुमति के बिना उन का दुरुपयोग किया.

यह सब 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के समय हुआ और माना जाता है कि डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति बनवाने के लिए किया गया. स्टिंग के मुताबिक कंपनी ने एक ऐप बनाया और उस के जरिए इन जानकारियों का कई किस्म से दुरुपयोग किया. मालूम हो कि इस कंपनी ने ऐप के जरिए वोटरों के व्यवहार की भविष्यवाणी की थी, जिस में डोनाल्ड ट्रंप को जीतता हुआ बताया गया था.इस खुलासे के बाद से माना जा रहा है कि फेसबुक मुश्किल में है. चूंकि कैंब्रिज एनालिटिका ने यह डाटा फेसबुक से हासिल किया था, इस वजह से यह आशंका जताई जा रही है कि फेसबुक में किसी का भी डाटा सुरक्षित नहीं है.

इस आशंका का एक कारण यह भी है कि स्टिंग से यह भी पता चलता है कि कंपनी के पास 5 और देशों के फेसबुक यूजर्स का डाटा है, जिस में से एक देश भारत भी है. इस असुरक्षा के बाद अब बड़ा सवाल यह पैदा हो गया है कि क्या फेसबुक जिंदा भी रहेगा या बंद हो जाएगा?

लेकिन सवाल यह भी है कि अगर फेसबुक बंद हो गया तो इस प्लेटफार्म में मौजूद असंख्य अनंत डाटा का क्या होगा? लोगों के एकाउंट में मौजूद अपार जानकारियों, तसवीरों और वीडियोज का क्या होगा? क्या फेसबुक का हश्र भी सोशल मीडिया वेबसाइट माईस्पेस डौटकौम जैसा होगा

गौरतलब है कि माईस्पेस डौटकौम पर भी साल 2011 में इसी तरह डाटा बेचने का आरोप लगा था. माना गया था कि उस ने भी अपने यूजर्स के डाटा को चोरीछिपे एक एजेंसी को बेच दिया थाक्या होगा फेसबुक का और उस के यूजर्स के डाटा का इस आरोप के बाद जिस माईस्पेस डौटकौम को साल 2005 में रूपर्ट मर्डोक ने 58 करोड़ डालर में खरीदा था, उसे साल 2011 में महज 3.5 करोड़ डालर में बेचना पड़ा. क्योंकि इस खुलासे के बाद साइट की विश्वसनीयता बिलकुल खत्म हो गई थी. नतीजतन उस की सदस्य संख्या नहीं बढ़ रही थी. यही कारण था कि रूपर्ट की कंपनी न्यूज कारपोरेशन को मजबूरी में अपनी इस कंपनी को औनलाइन विज्ञापन कंपनी स्पेसिफिक मीडिया को बेचना पड़ा था.

लेकिन माईस्पेस डौटकौम को तो फिर भी ग्राहक मिल गया था, मगर क्या फेसबुक को भी कोई ग्राहक मिल पाएगा? यह इसलिए भी संभव नहीं है, क्योंकि दोनों के आकार में जमीनआसमान का फर्क हैजब माईस्पेस डौटकौम को बेचना पड़ा था, उस समय उस की सदस्य संख्या महज 3 करोड़ के आसपास थी, जबकि फेसबुक के सदस्यों की संख्या इस समय करीब 2.1 अरब है. इस में इस के सक्रिय उपभोक्ताओं की संख्या 1 अरब 40 करोड़ है. ये फेसबुक के वे सदस्य हैं, जो हर दिन फेसबुक का चक्कर काटते हैं.

यही वजह है कि दुनिया की कोई भी कारपोरेट कंपनी फिलहाल फेसबुक के अधिग्रहण की नहीं सोच पा रही. लेकिन स्टिंग औपरेशन से हुए खुलासे ने फेसबुक की नींव हिला कर रख दी है. इस खुलासे के  बाद फेसबुक के शेयरों में भारी गिरावट आई है. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक यह गिरावट 8 फीसदी से ज्यादा हो चुकी थी, जिस के कारण मार्क जकरबर्ग को 350 अरब रुपए से ज्यादा का नुकसान हो चुका है, जबकि कंपनी को अब तक इस से 600 फीसदी से ज्यादा का नुकसान हो चुका है. इस वजह से भी कारपोरेट दुनिया में फेसबुक के भविष्य को ले कर हड़कंप मचा हुआ है.

बहरहाल, फेसबुक के अस्तित्व की आशंकाओं और अनुमानों वाले सवालों के जवाब हम बाद में जानेंगे, पहले हम इस विषय पर बात करते हैं कि आखिर हम इस सब पर बात ही क्यों कर रहे हैंअमेरिका और ब्रिटेन के इन 2 अखबारों के इस साझा स्टिंग से आखिर हमारा क्या लेनादेना? लेनादेना है, जैसा कि पहले ही लिखा जा चुका है कि इस स्टिंग से पता चलता है कि कैंब्रिज एनालिटिका ने सिर्फ अमेरिका के फेसबुक यूजर्स का ही डाटा नहीं चुराया है, बल्कि उस ने ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया और भारत सहित 5 देशों के फेसबुक यूजर्स के डाटा की चोरी की है.

हकीकत पर परदा डालने की कोशिश हालांकि कैंब्रिज एनालिटिका ने इस का खंडन किया है, लेकिन इस स्टिंग के प्रकाश में आने के बाद भारत के कानून और सूचना मंत्री रविशंकर प्रसाद ने साफसाफ कहा है कि यदि फेसबुक डाटा का दुरुपयोग भारतीय चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश में किया गया तो यह कतई सहन नहीं किया जाएगा. उन्होंने 17 मार्च, 2018 को इस खुलासे के बाद फेसबुक को कड़ी चेतावनी दी, जिस में यहां तक कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो भारत सरकार फेसबुक के विरुद्ध कड़े से कड़ा कदम उठाएगी.

हालांकि कैंब्रिज एनालिटिका ने कहा है कि उस ने फेसबुक के भारतीय उपभोक्ताओं का कोई डाटा नहीं चुराया है और ही उस का चुनाव को प्रभावित करने का कोई इरादा है. फेसबुक के मालिक जकरबर्ग ने तो इस संबंध में भारत से स्पष्ट तौर पर माफी भी मांगी है और फेसबुक में डाटा संबंधी सुरक्षा को और मजबूत करने की बात भी कही हैफिर भी अगर इस सब से भारत के राजनीतिक गलियारों में एकदूसरे के विरुद्ध आरोपप्रत्यारोप का सिलसिला थम नहीं रहा तो इस के पीछे बड़ी वजह यही है कि सभी राजनीतिक पार्टियां डरी हुई हैं कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के मतों का अपहरण करने की कोशिश की जा सकती है.

इस आशंका की वजह से देश की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियोंकांग्रेस और भाजपा का एकदूसरे पर यह आरोप लगाना है कि उस का कैंब्रिज एनालिटिका से संबंध है. भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सवाल उठाया है कि आखिर कांग्रेस का कैंब्रिज एनालिटिका से इस कदर प्रेम क्यों हैभाजपा की तरफ से कांग्रेस पर यह भी आरोप लगाया गया है कि राहुल गांधी की सोशल मीडिया प्रोफाइल में कैंब्रिज एनालिटिका की क्या भूमिका है? क्या कांग्रेस अब चुनाव जीतने के लिए डाटा चोरी का इस्तेमाल करेगी, जैसा कि इस कंपनी ने अमेरिका में किया. चूंकि हाल ही में राहुल गांधी के ट्विटर पर फालोअर्स की संख्या काफी बढ़ी है तो भाजपा का आरोप यह भी है कि ये फरजी फालोअर्स हैं, जिन्हें ऐसे ही डाटा जगलरी के जरिए हासिल किया गया है.

कांग्रेस की सफाई और आरोप में दम है इस पर कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भाजपा की खबर ली है. उन्होंने भाजपा को इन आरोपों के बदले खूब खरीखोटी सुनाई है. सुरजेवाला के मुताबिक भाजपा फेक न्यूज की फैक्ट्री है, वही इस तरह की कंपनियों का सहारा लेती है. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने या कांग्रेस के अध्यक्ष ने कभी भी इस कंपनी की किसी भी तरह की कोई मदद नहीं ली है. अगर स्वतंत्र रूप से कैंब्रिज एनालिटिका के दावों की बात करें तो उस का कहना है कि साल 2010 में बिहार विधानसभा चुनाव में उस ने काम किया था.

कैंब्रिज एनालिटिका की वेबसाइट में मौजूद विवरण में एक जगह यह दावा किया गया है कि हमारे प्रयासों से हमारे ग्राहक की बड़ी जीत हुई. हम ने जितना टारगेट किया, उस की 90 फीसदी सीटें हमारे क्लाइंट को मिलीं. अगर इतिहास में पीछे मुड़ कर जाने की कोशिश करें कि साल 2010 में बिहार विधानसभा में किस को जीत मिली थी तो निश्चित रूप से वह भाजपा और जेडीयू का गठबंधन था, जिसे भारी बहुमत मिला था

जनता दल यूनाइटेड ने तब 141 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 115 सीटें जीती थी जबकि भारतीय जनता पार्टी जिस ने सिर्फ 102 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उस ने 91 सीटें जीती थीं. इस तरह देखा जाए तो तथ्यात्मक रूप से यह भारतीय जनता पार्टी है, जिस ने 2010 के विधानसभा चुनाव में 90 फीसदी सीटें जीती थीं. इस तरह कैंब्रिज एनालिटिका के दावे में वही फिट हो रही है.

यही नहीं, रणदीप सुरजेवाला का यह भी कहना है कि साल 2010 में कैंब्रिज एनालिटिका की इंडियन पार्टनर ओवलेनो बिजनैस नाम की कंपनी वास्तव में भाजपा की साथी पार्टी के सांसद के बेटे की थी और तब ओबीआई की सेवाओं का राजनाथ सिंह ने अपने लिए इस्तेमाल किया था

रणदीप सुरजेवाला भाजपा पर आरोप लगाते हैं कि भाजपा फेक स्टेटमेंट, फेक कौन्फ्रैंस के साथसाथ फेक डाटा का सहारा लेने वाली पार्टी है. इसी क्रम में कांग्रेस आईटी सेल की प्रभारी दिव्या स्पंदना का कहना है कि कैंब्रिज एनालिटिका राइट विंग पार्टियों के साथ मिल कर काम करती है, लिबरल्स के साथ नहीं और सब को पता है कि राइट विंग कौन है.

कुल मिला कर अब यह डाटा लीक इतना डरावना क्यों है, इसे समझ लेते हैं. दरअसल, भारत में फेसबुक के करीब 20 करोड़ सक्रिय उपभोक्ता हैं, जिस में ज्यादातर की उम्र 18 से 35 साल के बीच हैसमाजशास्त्रियों और मनोविदों का मानना है कि ये लोग राजनीतिक दलों द्वारा फैलाई गई अफवाहों को सच मान लेते हैं और उसी के मुताबिक उन के बारे में अपनी राय बना लेते हैंकहने का मतलब यह है कि ये लोग तात्कालिक माहौल के प्रभाव में कर अपना मतदान करते हैं. ऐसे में आशंका है कि परदे के पीछे रहने वाली ये डाटा विश्लेषक कंपनियां चोरी से हासिल किए गए डाटा के जरिए आगामी चुनावों में अपनी सेवा लेने वाली राजनीतिक पार्टियों को कृत्रिम माहौल बना कर जिताने की कोशिश करेंगी, जैसा कि आरोप है कि 2 साल पहले अमेरिका में ट्रंप के लिए ऐसा माहौल बनाया गया.

क्या भारतीय वोटरों को भ्रमित कर के मतदान कराया जाएगा? चूंकि भारत में 20 करोड़ से ज्यादा फेसबुक के सक्रिय उपभोक्ता हैं और उन में से 90 फीसदी 35 साल से कम उम्र के हैं. ये उपभोक्ता आमतौर पर हमेशा अपने जैसे तमाम दूसरे लोगों के साथ जुड़े रहते हैं और इस तरह एकदूसरे की बातों से प्रभावित होते हैं. इसलिए आशंका है कि ऐसी जानकारियों को व्यक्तिगत स्तर पर प्रसारित किया जाएगा, जिस से कि इन लोगों का दिमाग बदल जाए

चूंकि लोगों का वास्तविक इंटरैक्शन बहुत कम हो गया है, जबकि आभासी मेलमिलाप बहुत बढ़ गया है, इसलिए यह माना जा रहा है कि उपभोक्ता एकदूसरे को प्रभावित करेंगे. लब्बोलुआब यह है कि साल 2019 में राजनीतिक पार्टियां मतदाताओं के बीच अपने लोकप्रिय समर्थन के बजाय आंकड़ों के जोड़तोड़ और भ्रामक माहौल से उपजी भावनात्मक स्थितियों के जरिए चुनाव जीतने की कोशिश करेंगी

यह भी माना जा रहा है कि साल 2016 में अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप ऐसे ही चुनाव जीते थे. यही वजह है कि कैंब्रिज एनालिटिका के डाटा चोरी संबंधी खबर के खुलासे से भारत में हड़कंप मच गया है. इंटरनेट के जानकारों का मानना है कि यह आशंका पूरी तरह से हवाहवाई नहीं है. कैंब्रिज एनालिटिका या कोई भी कंपनी जिस के पास किसी समुदाय विशेष का बड़े पैमाने पर व्यक्तिगत डाटा हो, वह ऐसा माहौल रच सकती है, जिस के मनोविज्ञान में उलझ कर मतदाता वैसा ही निर्णय ले जैसा कि कोई शातिर कंपनी उन से निर्णय लिवाने की कोशिश करे

स्टिंग औपरेशन के दौरान यह बात सामने आई है कि कैंब्रिज एनालिटिका लोगों के डाटा से उन की साइकोलौजिकल प्रोफाइलिंग करती है और उसी प्रोफाइलिंग के आधार पर किसी उम्मीदवार के समर्थन में या उस के विरोधी के खिलाफ सूचनाएं प्लांट की जाती हैं. कुल मिला कर नतीजा यह होता है कि मत देने वाले मतदाता का मन बदल जाता है और वह अपना वोट उसे दे देता है, जिसे वह इस तरह के प्रभाव में आने के पहले अपना वोट नहीं देना चाहता हो.

मतदाता का मन बदलने का षडयंत्र यह पूरा किस्सा शायद महज एक अनुमान ही होता, अगर ब्रिटेन के चैनल-4 ने कैंब्रिज एनालिटिका कंपनी के बड़े अधिकारियों का स्टिंग औपरेशन प्रसारित किया होता. इस प्रसारण के बाद ही पूरी दुनिया को पता चला कि यह कंपनी दुनिया के तमाम राजनीतिक दलों के लिए सोशल मीडिया में कैंपेन चलाती है और अपने क्लाइंट या ग्राहकों को जितवाने के लिए हर वह हथकंडा अपनाती है, जिस से कि मतदाता का मूड बदला जा सके.

फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया पर जो लोग ज्यादा से ज्यादा समय बिताते हैं और अपने दिलदिमाग की तमाम बातों को यहां दर्ज करते हैं. ये कंपनियां इन्हीं बातों से इन के मनोविज्ञान का अध्ययन करती हैं. फिर उसी अध्ययन के आधार पर इन्हें भावनात्मक बाहुपाश में कैद करने के लिए चक्रव्यूह रचती हैं. देश की 2 सब से बड़ी राजनीतिक पार्टियां अगर इस डाटा लीक से डरी हुई हैं और एकदूसरे पर गंभीर से गंभीरतम आरोप लगा रही हैं तो इस के पीछे बहुत बड़ा कारण लोगों की साइकोलौजिक प्रोफाइलिंग करने वाली कैंब्रिज एनालिटिका जैसी कंपनियों के कामकाज का तौरतरीका भी है

इस तरह की कंपनियां सोशल मीडिया प्लेटफार्म से डाटा चुरा कर मनोवैज्ञानिक कैंपेन विकसित करती हैं. यही नहीं, ये कंपनियां नेताओं के भाषण, राजनीतिक पार्टियों के घोषणापत्रों तक को अपने इन्हीं सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विश्लेषणों के आधार पर तैयार करवाती हैं

कहने का मतलब यह है कि अगर भाजपा यह घोषणा करे कि वह अगले साल, इस महीने, इस तारीख तक अयोध्या में मंदिर बनवा देगी तो हो सकता है यह भाजपा के नेताओं के बजाए मतदाताओं का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने वाली कंपनी का निष्कर्ष हो और जो किसी पार्टी के नेता विशेष के मुंह से जारी हुआ हो. द्य

                               

लड़की ने लड़के को दी निर्वस्त्र फोटो वायरल करने की धमकी

दिन पर दिन साइबर क्राइम बढ़ता जा रहा है. ज्योंज्यों टेक्नोलौजी आगे बढ़ती जाएगी, साइबर क्राइम और भी बढ़ेगा. यह एक ऐसा अपराध है जो हजारों किलोमीटर दूर बैठा आदमी किसी को भी शारीरिक, मानसिक और आर्थिक हानि पहुंचा सकता है. पढि़ए और जानिए साइबर क्राइम के बारे में…

पु घटना -1

कपड़ों के शोरूम के मालिक प्रशांत कुमार दोपहर में ग्राहक न होने की वजह से शोरूम के सेल्समैनों से बात कर रहे थे कि उन के मोबाइल की घंटी बजी. अनजान नंबर था, इसलिए उन्होंने लापरवाही से फोन रिसीव कर जैसे ही कान से लगाया, दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘जी, मैं स्टेट बैंक से बोल रहा हूं.’’

प्रशांत कुमार का सारा लेनदेन भारतीय स्टेट बैंक से ही होता था इसलिए उन्हें लगा कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है. इसलिए सचेत होते हुए उन्होंने कहा, ‘‘जी कहिए, क्या बात है.’’

‘‘दरअसल आप के डेबिट कार्ड का पिन ब्लौक हो गया है इसलिए आप उस का नंबर, एक्सपायरी डेट और सीवीवी नंबर बता देते तो उस का नया पिन नंबर जेनरेट कर देते.’’ दूसरी ओर से कहा गया. प्रशांत कुमार को पता था कि बैंक की ओर से अकसर इस तरह के मैसेज आते रहते हैं कि ‘आप किसी को अपने डेबिट/के्रडिट कार्ड का नंबर, एक्सपायरी डेट और सीवीवी नंबर न बताएं, क्योंकि बैंक किसी से यह सब नहीं पूछता.’ प्रशांत कुमार तुरंत जान गए कि फोन करने वाला कोई ठग है. उन्होंने तुरंत कहा, ‘‘भाई साहब, बेवकूफ समझते हो क्या?’’

उनका इतना कहना था कि दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. दरअसल, फोन करने वाला ठग था. अगर प्रशांत कुमार उस के द्वारा मांगी गई जानकारी बता देते तो वह ठग समझ जाता कि यह आदमी बेवकूफ है. इसके बाद वह ओटीपी नंबर पूछ कर उन के खाते से पैसे निकाल लेता.

प्रशांत कुमार समझदार आदमी थे, इसलिए बच गए. लेकिन ये ठग इसी तरह न जाने कितने लोगों से कार्ड नंबर, एक्सपायरी डेट, सीवीवी नंबर, पूछ कर रोजाना ठगते हैं. लोगों को ठगी से बचने के लिए ही बैंक अब मैसेज भेजने लगे हैं कि आप किसी को अपने डेबिट/क्रेडिट कार्ड का नंबर, एक्सपायरी डेट और सीवीवी नंबर न बताएं. इस के बावजूद लोग ठगी का शिकार बन रहे हैं.

घटना-2

प्रशासनिक नौकरी की तैयारी करने वाले राजेश शर्मा को सोशल मीडिया इसलिए पसंद था, क्योंकि इस से उसे थोड़ीबहुत जानकारी तो मिलती ही थी, पढ़ाई करतेकरते थक जाने पर फेसबुक या चैट साइट खोल कर दोस्तों से थोड़ीबहुत चैट कर के मूड फ्रैश हो जाता था. राजेश युवा तो था ही कुंवारा भी था, दूसरे घर वालों से दूर अकेला रह रहा था. राजेश के ऐसे दोस्त भी थे, जिन से वह हर तरह की चैट कर लेता था. इस में अश्लील चैट भी शामिल था. इस तरह की चैट करने वालों में ज्यादातर अधेड़ उम्र के लोग थे.

अधेड़ लोगों से अश्लील चैट कर के राजेश अपना मूड जरूर फ्रैश कर लेता था. लेकिन इसमें उसे वह आनंद नहीं आता था, जो वह चाहता था. उस का मन करता था कि कोई लड़की हो, जिस से वह इस तरह का चैट करे. इस के लिए उस ने चैट साइट ऐप टिंडर डाउनलोड किया और लड़कियों को मैसेज भेजने लगा. मैसेज का किसी ने जवाब दिया तो किसी ने टाल दिया. किसी का जवाब आता तो उसे खुशी होती कि शायद अब बात बन जाएगी. क्योंकि ज्यादातर लड़कियों के जवाब नकारात्मक होते थे.

राजेश भी हिम्मत हारने वालों में नहीं था. उस की कोशिश जारी थी. जो लड़कियां जवाब देतीं थीं, वे भी 2-4 दिन जवाब दे कर शांत हो जाती थीं. किसी ने बात आगे बढ़ाई भी तो बाद में कहने लगती थी कि अब बात तभी होगी, जब उस का फोन रिचार्ज कराओगे. चैट करने के लालच में राजेश ने एक बार एक लड़की का फोन रिचार्ज कराया भी. लेकिन फोन रिचार्ज होते ही उस लड़की ने राजेश को ब्लौक कर दिया. इस से राजेश को निराशा तो हुई लेकिन एक सीख यह मिल गई कि दुनिया बहुत चालाक है.

इस घटना के बाद कुछ दिनों तक तो राजेश शांत रहा, लेकिन उस का मन नहीं माना और वह फिर पहले की ही तरह लड़कियों को मैसेज भेजने लगा. आखिर उस की कोशिश रंग लाई और उसे एक लड़की मिल गई, जो उस के मैसेज के वैसे ही जवाब देने लगी, जैसा वह चाहता था. राजेश रोज रात में उस लड़की से चैटिंग करने लगा. दोनों के मैसेज ऐसे होते थे, जिन्हें पतिपत्नी या प्रेमीप्रेमिका ही भेज सकते थे. कुछ ही दिनों में मैसेज के आदानप्रदान के साथ एकदूसरे को फोटो भी भेजे जाने लगे. फिर एक दिन लड़की ने राजेश से अपने निर्वस्त्र यानी नग्न फोटो भेजने को कहा. राजेश को उस लड़की पर इतना भरोसा हो चुका था कि उस ने बिना कुछ सोचे लड़की को अपने नग्न फोटो भेज दिए. राजेश ने जब लड़की से उसी तरह के अपने फोटो भेजने को कहा तो उस ने बहाना बना कर फोटो भेजने से मना कर दिया. राजेश ने उस की बात पर विश्वास कर के उस पर दबाव भी नहीं डाला.

लड़की ने राजेश को अपनी बातों के जाल में फंसा कर उस के कई नग्न फोटो मांग लिए. इस के बाद एक दिन लड़की ने जो रंग दिखाया, उसे देख राजेश परेशान हो उठा. लड़की ने राजेश के फोटो सोशल मीडिया पर डालने की धमकी दे कर उस से पैसे मांगे. राजेश को अपनी इज्जत बचानी थी, सो किसी तरह रुपयों का इंतजाम किया. जब वह लड़की को रुपए देने पहुंचा तो पता चला वह लड़की नहीं, 45-46 साल का आदमी था. राजेश ने अपने वे फोटो डिलीट कराने के लिए अपनी हैसियत के हिसाब से रुपए तो दिए ही उसे उस की मनमानी भी सहनी पड़ी.

अच्छा यह हुआ कि वह आदमी एक बार में ही मान गया, वरना पता नहीं राजेश को कब तक उस की दुर्भावना का शिकार होना पड़ता. हो सकता है, उस ब्लैकमेलर ने सोचा हो कि जो मिलता है, लेकर किनारे हो जाओ. क्योंकि उसे यह डर भी था कि ज्यादा लालच करने पर राजेश पुलिस के पास भी जा सकता है. मजे लेने के चक्कर में राजेश ने इधरउधर से इंतजाम कर के पैसे तो दिए ही, उस आदमी की मनमानी भी झेली. उस के साथ जो हुआ शायद ही वह जीवन में इसे भूल पाए. अब वह मोबाइल देख कर डर जाता है. राजेश ही नहीं सोशल मीडिया के नाम से सुष्मिता भी घबराने लगी है क्योंकि उस के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है. लेकिन उस का मामला राजेश के मामले से कुछ अलग है.

घटना-3

सुष्मिता भी सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय थी. लेकिन फेसबुक हो या चैटसाइट टिंडर, उस की फ्रैंडलिस्ट में जो भी लोग थे, सभी उस की जानपहचान वाले थे. इन में ज्यादातर उस के कालेज के मित्र थे. फालतू लोगों को न तो वह फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजती थी और न ही रिक्वेस्ट आने पर स्वीकार करती थी. चैटिंग भी वह कुछ ही दोस्तों से करती थी, जिस में पढ़ाई से संबंधित बातें ज्यादा होती थीं. किसी वजह से वह 15-20 दिन सोशल मीडिया से दूर रही. एक दिन उस ने अपनी चैट साइट खोली तो उस में एक दोस्त का मैसेज पढ़ कर दंग रह गई. उस ने दोस्त को लताड़ना चाहा तो उस ने कहा कि उसी ने तो इस तरह की फूहड़ चैटिंग की थी. उस ने तो केवल उस के मैसेज के जवाब भर दिए थे.

इस से सुष्मिता की हैरानी और बढ़ गई, क्योंकि 15-20 दिनों से उस ने किसी से चैटिंग की ही नहीं थी. उस ने दोस्त को झूठा साबित करना चाहा तो उस ने चैटिंग के स्क्रीन शौट ले कर भेज दिए. चैटिंग के फोटो देख कर सुष्मिता परेशान ही नहीं हुई बल्कि डिप्रेस हो गई. क्योंकि वह चैटिंग इतनी अश्लील थी कि उस तरह की चैटिंग करने की कौन कहे, सुष्मिता सोच भी नहीं सकती थी. इस डिप्रेशन से उबरने में उसे काफी समय लगा. सुष्मिता ने सचमुच वह चैटिंग नहीं की थी. उस के चैटरूम में घुस कर किसी ने उस के दोस्त से उस की ओर से चैटिंग की थी. पहले तो सुष्मिता के उस दोस्त को भी हैरानी हुई थी कि सुष्मिता को यह क्या हो गया है?

लेकिन उस ने सोचा कि जब वह ही इस तरह की फूहड़ चैटिंग कर रही है तो उसे क्यों परेशानी होगी. मजे लेने के लिए उस ने भी उसी तरह के जवाब देने शुरू कर दिए थे. लेकिन जब असलियत खुली कि वह चैटिंग सुष्मिता ने नहीं, बल्कि उस की ओर से किसी और ने की थी तो वह काफी शर्मिंदा हुआ था.

घटना-4

ऐसा ही कुछ हुआ प्रदीप के साथ. 15 साल का प्रदीप भी सोशल मीडिया पर खूब सक्रिय था. मौका मिलते ही वह फेसबुक खोल कर बैठ जाता और यह देखता कि उस के फोटो और पोस्ट को कितने लोगों ने लाइक किया और उस पर किस ने क्या कमेंटस लिखे. उसकी अपने कुछ दोस्तों से चैटिंग भी होती थी. प्रदीप सोशल मीडिया पर सक्रिय जरूर था. लेकिन अपनी उम्र को देखते हुए वह सावधानी भी बरतता था. उस की फ्रैंडलिस्ट में ज्यादा लोग नहीं थे, जो थे वे पढे़लिखे और समझदार लोग थे.

इतनी सावधानी बरतने के बावजूद प्रदीप के साथ गड़बड़ हो गई. एक दिन उस के साथ पढ़ने वाली एक लड़की अपनी मम्मी के साथ उस के घर आई और अपने फोन पर मैसेंजर में उस का मैसेज दिखाते हुए बोली, ‘‘प्रदीप, मैं तो तुम्हें बहुत अच्छा लड़का समझती थी, पर तुम ने मुझे यह कैसा मैसेज भेजा है?’’  प्रदीप उस मैसेज को देख कर हैरान रह गया, क्योंकि उस ने वैसा मैसेज भेजा ही नहीं था. उस ने लाख सफाई दी, लेकिन न तो लड़की ने उस की बात पर विश्वास किया न ही उस की मां ने. दरअसल वह मैसेज था, ‘आई लव यू’. लड़की और उस की मां इसी मैसेज से खफा थीं.

उन से जो बना, वह तो उन्होंने कहा है, जातेजाते धमकी भी दे गईं कि फिर कभी ऐसा मैसेज भेजा तो प्रिंसिपल से उस की शिकायत कर देंगी. इस बार वे उसे इसलिए छोड़ रही हैं, क्योंकि उस की मां ने उन से हाथ जोड़ कर उस की गलती के लिए माफी मांगी है.

इस मामले में भी कुछ वैसा ही हुआ था, जैसे ऊपर की घटनाओं में हुआ था. प्रदीप ही नहीं उस की मां को भी इस गलती के लिए शर्मिंदा ही नहीं होना पड़ा था, बल्कि हाथ जोड़ कर माफी भी मांगनी पड़ी. दरअसल किसी और ने प्रदीप की ओर से वह मैसेज उस के साथ पढ़ने वाली उस लड़की को भेज दिया था.

इस बात को न वह लड़की समझ पाई थी, न ही उस की मां. उन्हें ही नहीं, इस बात का पता तो प्रदीप और उस की मां को भी नहीं चला था. प्रदीप सिर्फ इतना जानता था कि उस ने यह मैसेज नहीं भेजा था. यह सब कैसे हुआ, उसे पता भी नहीं था.

दरअसल, यह सब एक तरह का साइबर अपराध है, जो धीरेधीरे आम होता जा रहा है. लेकिन इस के बारे में बहुत कम लोगों को पता है. इंटरनेट के तेजी से हो रहे प्रचारप्रसार के साथ अब साइबर अपराध भी उसी तेजी से बढ़ रहा है. युवा और महिलाएं ही नहीं, बच्चे भी औनलाइन चैटिंग, डेटिंग ऐप के चक्कर में फंस कर प्रभावित हो रहे हैं. बैंकिंग, इनफोर्मेशन, बीमा कंपनियां और शेयर मार्केट ही नहीं, सरकारें तक इस अपराध से खासा प्रभावित हैं.

 

एक लिंक से ठगी किसी की निजी जानकारी प्राप्त कर के धोखाधड़ी, डेबिट/के्रडिट कार्ड का ब्यौरा पता कर के चूना लगाना तो आम हो गया. लगभग रोज ही अखबारों में इस तरह की ठगी की खबरें आती रहती हैं. इस साइबर क्राइम से आम लोगों के साथसाथ कारपोरेट जगत और सरकारें भी परेशान हैं. क्योंकि इस की वजह से अन्य लोग ही नहीं, बड़ीबड़ी कंपनियों के साथ सरकारें भी लुट रही हैं.

अभी पिछले दिनों आम लोगों के लुटने की बड़ी खबर आई थी, जिस में क्लिक से पैसा कमाने की ललक ने लाखों लोगों को चूना लगा दिया. ऐसा करने वाली ‘सोशलट्रेड डौट बिज’ अकेली कंपनी नहीं थी. इसी तरह की एक कंपनी और थी ऐडकैश. दोनों ही कंपनियों के कारोबार का पैटर्न एक जैसा था. पहले इन्होंने विज्ञापन दिया कि ‘घर बैठे लाइक करें और पैसे कमाएं.’ इस तरह का विज्ञापन देख कर फटाफट पैसा कमाने की होड़ में लाखों लोग इन कंपनियों के झांसे में आ गए.

 

दरअसल, सोशल मीडिया के बढ़ते क्रेज में सभी चाहते हैं कि उन के फालोअर्स की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़े. इसी बात को ध्यान में रखकर पहले इन कंपनियों ने नेताओं और सेलिब्रेटी को जोड़ा यानी ग्राहक बनाया. उनके साथ ईमानदारी से डील हुई. इस तरह कंपनियों ने फालोअर्स बढ़ाए और बदले में फीस ली. लेकिन असली खेल तो आम लोगों के साथ शुरू हुआ.

सेलिब्रिटी को जोड़ने के बाद कंपनियों ने लिंक्स को अपना मार्केटिंग हथियार बनाया. आम लोगों को नेता और सेलिब्रिटी के लिंक दिखा कर कंपनियों ने उन्हें जोड़ा. इस स्कीम के तहत लोगों को मेंबर बनाया गया. यहीं से शुरू हुआ असली खेल. 10 हजार रुपए फीस ले कर उन्हें मेंबर बनाया गया और बिजनैस मौडल के अनुसार, उस के लिंक को बूस्ट किया गया. मेंबरशिप के लिए ग्राहक को अपना पैन नंबर देना पड़ता था.

जबकि परदे के पीछे दूसरी डील हो रही थी, जिस के तहत कंपनियां मेंबरशिप लेने वाले ग्राहक से 5 लिंक क्लिक करवाती थीं और एक क्लिक का 5 रुपए देती थीं. अगर कोई मेंबर 2 नए मेंबर जोड़ता था तो उस के लिंक डबल हो जाते थे. लिंक डबल होने का मतलब मिलने वाला पैसा भी डबल. इस तरह मेंबर जितने मेंबर जोड़ता था, उस के लिंक बढ़ते जाते थे.

ये कंपनियां खुद को कानूनी रूप से सही साबित करने के लिए 10 प्रतिशत टीडीएस काट कर पैसे देती थीं. शुरूशुरू में ये कंपनियां रोज के हिसाब से पैसे देती थीं. कंपनी के सदस्यों की संख्या लाखों में होने की वजह से बैंक सवाल उठाने लगे कि आखिर इन्हें इतने अधिक पैसे क्यों दिए जा रहे हैं. इस के बाद कंपनियां हफ्ते में, फिर महीने में पैसे देने लगीं. बैंकों ने फिर सवाल उठाया तो कंपनियां रुपए के बदले प्वाइंट देने लगीं. मेंबर जब चाहे प्वाइंट के बदले पैसे ले सकता था.

घर बैठे कमाई का मौका देख कर लोगों ने एक पैन कार्ड पर कईकई आईडी बना लीं. इस के लिए उन्हें सालाना 11 हजार रुपए की फीस देनी पड़ती थी. लेकिन बदले में उन्हें ज्यादा लिंक्स मिल रहे थे. बाद में कपंनियां सख्ती बरतते हुए एक पैन कार्ड पर एक ही मेंबर बनाने लगीं. इस पर लोगों ने अपने घर के अन्य लोगों के नाम आईडी बना डालीं. अगर ऐडकैश कंपनी की बात की जाए तो उस से करीब 6-7 लाख लोग जुड़ चुके थे. एडकैश का विज्ञापन तो व्हाट्सऐप पर भी धड़ल्ले से चल रहा था.

शुरूशुरू में वे कंपनियां वादे के अनुसार लाइक करने के लिए लिंक्स और बदले में नियमित पैसे देती रहीं. शनिवार और रविवार छुट्टी होती थी. इन दोनों दिन लिंक्स नहीं मिलते थे. धीरेधीरे सर्वर खराब होने का बहाना बना कर लिंक्स देना कम कर दिया गया, जिस से लोग नाराज हुए. जबकि नए मेंबर बनाने का काम उसी तरह चलता रहा. कंपनी फीस तो जमा कर लेती थी, लेकिन आईडी बनाने में आनाकानी करने लगी थी. बात यहीं तक सीमित नहीं रही, आगे चल कर कंपनियां पौइंट पर पैसे देने से आनाकानी करने लगीं. इस के बाद लोगों ने पुलिस में शिकायत की तो पता चला कि यह एक तरह की साइबर ठगी थी, जिस में इन कंपनियों ने लोगों को खरबों का चूना लगाया था. यह तो रही आम लोगों की ठगी की बात, जो यह नहीं जानते कि ऐसा भी हो सकता है.

डेबिट कार्ड के पिन की चोरी इसका सब से बड़ा उदाहरण है 4 महीने पहले हुई आम आदमी के डेबिट कार्ड के पिन की चोरी. बैंक को इस बात की जानकारी हो गई थी, इस के बावजूद बैंकों ने यह बात ग्राहकों को नहीं बताई. एक तरह से देखा जाए तो साइबर क्राइम से बड़ा अपराध वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक और बैंकिंग प्रबंधन ने किया. डेबिट कार्ड की ही बात क्यों की जाए, आम आदमी के तमाम तथ्य आधार नंबर से चुराए जा चुके हैं. देश भर में करीब 65 लाख डेबिट कार्डों का डाटा चुराए जाने की आशंका है. लेकिन संबंधित बैंकों ने अपना कारोबार बचाने की गरज से इस का खुलासा नहीं किया.

भारतीय स्टेट बैंक तो अब किसी तरह खुलासा कर रहा है. जबकि निजी बैंकों में उस से कहीं बड़ा संकट होने के बावजूद वे अपने व्यावसायिक हितों को देखते हुए जब तक संभव है, कोई जानकारी देने से बचेंगे. फिलहाल बैंकों ने अपने ग्राहकों से पिन बदलवाने या फिर पुराना कार्ड ब्लौक कर नया कार्ड देना शुरू कर दिया है. ताज्जुब की बात तो यह है कि अभी तक किसी बैंक ने इस मामले में एफआईआर तक दर्ज नहीं कराई है. यही नहीं, इस मामले में सरकार को भी कोई सूचना नहीं दी गई है. जबकि महाराष्ट्र पुलिस की साइबर सेल ने बैंकों को पत्र लिखा है.

4 महीने से आम आदमी के डेबिट कार्ड के पिन चोरी हो रहे थे, बैंकों को इस बात की जानकारी भी थी, लेकिन वे चुप्पी साधे थे. एक तरह से देखा जाए तो यह साइबर अपराध से बड़ा अपराध हमारे वित्त मंत्रालय रिजर्व बैंक और बैंकिंग प्रबंधन का है. जबकि बैंकिंग के नियमों और आरबीआई के ड्राफ्ट के अनुसार, खाताधारकों द्वारा धोखाधड़ी की सूचना दिए जाने पर बैंक को 10 कार्य दिवसों के अंदर ग्राहक के खाते से गायब हुआ पैसा वापस करना होता है. इस के लिए ग्राहक को 3 दिन के अंदर धोखाधड़ी की सूचना देनी होगी और उसे यह दिखाना होगा कि उस की तरफ से कोई लेनदेन नहीं किया गया और बिना उस की जानकारी के पैसा गलत तरह से गायब हुआ है.

संकट सिर्फ यही नहीं है कि 32 लाख डेबिट कार्ड साइबर अपराधियों के कब्जे में हैं, बल्कि वीसा, मास्टर कार्ड समेत विदेश से संचालित एटीएम और डिजिटल लेनदेन में वायरस संक्रमण से जमापूंजी भी खतरे में है. भारतीय स्टेट बैंक ने लाखों डेबिट कार्ड बदल दिए हैं. अन्य बैंकों ने सुरक्षित लेनदेन के लिए ग्राहकों को निर्देश जारी कर दिए हैं, लेकिन क्या एटीएम या नेट बैंकिंग से पिन बदल देने से आप की जमापूंजी की सुरक्षा की गारंटी है. क्योंकि पुराना पिन लीक हो सकता है तो नया पिन भी तो लीक हो सकता है.

इंटरनेट औफ थिंग्स और साइबर क्राइम इंटरनेट नित नई तरक्की कर रहा है, जिस से यह जिंदगी का एक जरूरी अंग बन गया है. इस से न सिर्फ संचार जगत में क्रांतिकारी बदलाव हुए हैं, बल्कि जीवनशैली ही बदल गई है. शिक्षा, मैडिकल, हेल्थ, मनोरंजन, सभी क्षेत्रों में इंटरनेट अपने कारनामे दिखा रहा है. इंटरनेट औफ थिंग्स के जरिए ऐसे कारनामे करने को तैयार हैं, जिस के बारे में हम सोच भी नहीं सकते. वैसे यह कंप्यूटर आधारित तकनीक रही है, लेकिन स्मार्ट फोन के आने से यह धारणा खत्म हो गई है.

स्मार्ट फोन के आने से इंटरनेट के वे सारे काम अब फोन पर किए जा सकते हैं, जो पहले कंप्यूटर पर किए जाते थे. स्मार्ट फोन से कई मूलभूत बदलाव आए हैं. अब फोन ही नहीं, घर गाड़ी और किचन भी स्मार्ट होंगे. मसलन घर के बाहर रहते हुए भी घर की देखभाल की जा सकेगी. आप घर पहुंचने से पहले ही एसी चला सकते हैं. यानी जो काम पहले हम मैनुअली करते थे, अब वही काम औटो मोड पर होंगे. इस के लिए वहां किसी के मौजूद रहने की जरूरत नहीं होगी और यह सब होगा इंटरनेट औफ थिंग्स के जरिए. लेकिन जिस तरह हर मांबाप को बच्चों की अच्छाईबुराई का डर होता है, उसी तरह फादर आफ इंटरनेट कहे जाने वाले विंट सर्फ भी इंटरनेट औफ थिंग्स (आईओटी) को ले कर थोड़ा डरे हुए हैं. चूंकि आईओटी अप्लायंसेज और साफ्टवेयर से मिल कर बना है, इसलिए साफ्टवेयर को ले कर उन्हें डर है, क्योंकि साफ्टवेयर को हैक किया जा सकता है. यही एक तरह का साइबर अपराध होगा.

साइबर क्राइम आज एक बढ़ती हुई वैश्विक समस्या है. इस में किसी व्यक्ति की निजी जानकारी पता कर के धोखाधड़ी करना, क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के बारे में पता कर के चूना लगाना, अहम सूचनाओं की चोरी करना, ब्लैकमेलिंग, कौपीराइट और ट्रेडमार्क फ्रौड, पोर्नोग्राफी डिटेल या अन्य एकाउंट हैक करना, वायरस भेज कर धमकी भरे मैसेज भेजना शामिल है. इस तरह के अपराध कोई अकेले नहीं, बल्कि संगठित गिरोह बना कर किए जाते हैं. पिछले साल साइबर क्राइम से लगभग एक खरब डौलर का चूना लगाया गया है. जबकि इस के शिकार हुए लोगों को पता नहीं कि वे खुद को कैसे सुरक्षित बनाएं. पुलिस के पास भी कोई ऐसी आधारभूत सुविधाएं नहीं हैं कि वह कुछ मदद कर सकें. जबकि दिनोंदिन साइबर अपराध बढ़ता ही जा रहा है.

साइबर आतंकवाद और साइबर युद्ध साइबर आतंकवाद का मतलब आतंकवादी गतिविधियों में इंटरनेट आधारित हमले यानी कंप्यूटर वायरस जैसे साधनों के माध्यम से कंप्यूटर नेटवर्क में जानबूझ कर बडे़ पैमाने पर किया गया व्यवधान, विशेष रूप से इंटरनेट से जुड़े निजी कंप्यूटर पर. इसी तरह साइबर युद्ध भी इंटरनेट और कंप्यूटर के माध्यम से लड़ा जाता है. अनेक विकासशील देश लगातार साइबर आतंकवाद या युद्ध चलाते हैं, यही नहीं वे किसी संभावित साइबर हमले के लिए तैयार भी रहते हैं. लगातार तकनीक पर बढ़ती जा रही निर्भरता के कारण अब लगभग सभी देशों को साइबर हमले की चिंता सताने लगी है. ऐसे हमलों में वायरस की मदद से वेबसाइटें ठप कर दी जाती हैं और सरकार एवं उद्योग जगत को पंगु बना दिया जाता है.

साइबर युद्ध में तकनीकी उपकरणों एवं अवसंरचना को भारी नुकसान होता है. कुशल साइबर योद्धा किसी भी देश की विद्युत ग्रिडों में हैकिंग द्वारा घुस कर अत्यधिक गोपनीय सैन्य और अन्य जानकारियां प्राप्त कर सकता है. यही नहीं, हैकर किसी कंपनी के कंप्यूटरों पर वायरस द्वारा कब्जा कर के तमाम डाटा एनक्रिप्ट (कूटरचित) कर देते हैं. बाद में डाटा को वापस काम लायक बनाने यानी डीक्रिप्ट करने के लिए ये कंपनी की हैसियत के हिसाब से फिरौती वसूलते हैं. कंपनियां अपनी साख बचाने के लिए चुपचाप फिरौती दे भी देती हैं. यह फिरौती हैकर डालर में नहीं, बल्कि बिटकौइन में लेते हैं. बिटकौइन साइबर जगत की पसंदीदा डिजिटल क्रिप्टोकरेंसी है. इंटरनेट पर लेनदेन के लिए पूरी तरह सुरिक्षत, गुप्त और अनामी रूप से रह कर लेनदेन हेतु ही इस

करेंसी को डिजाइन किया गया है. इस का कोई भौतिक रूप नहीं है, इसलिए इसे डिजिटल करेंसी कहा जाता है. इस करेंसी की कीमत मांग और सप्लाई के आधार पर रोज निर्धारित होती है. इस पर किसी का अधिकार नहीं है. एक बार साइबर संसार में आ जाने के बाद जिस के पास जितनी बिटकौइन होती है, वही उस का मालिक होता है. संक्षेप में यह समझ लें कि बिटकाइन के जरिए किया गया इंटरनेटी व्यापार, खरीदबिक्री, भुगतान का किसी को पता नहीं चलता. इसीलिए हैकर बिटकौइन में भुगतान मांगते हैं, ताकि उन तक पहुंचना किसी भी सूरत में संभव न हो. हैकर पूरी दुनिया को अपना शिकार मानते हैं. इसलिए पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय होते हुए भी विविध क्षेत्रों में क्षेत्रीय भाषाओं में बातचीत करते हैं. इस के लिए ये स्वचालित गूगल अनुवादक का उपयोग करते हैं.

दुनिया में बढ़ते साइबर खतरे इंटरनेट की व्यापकता और आम लोगों तक इस की आसान पहुंच के कारण औनलाइन कारोबार या कामकाज का दायरा दुनिया भर में तेजी से बढ़ा है. लेकिन इस सुगमता के साथ साइबर अपराध में आई नई चुनौती भी लगातार विकराल हो रही है. अन्य अपराधों की तरह साइबर अपराधों में अपराधी अपराध स्थल पर खुद मौजूद नहीं होता.

इस में मुख्य रूप से तकनीक का इस्तेमाल होता है. भारत में जहां ज्यादातर इंटरनेट उपयोगकर्ता नए हैं, उन्हें आसानी से शिकार बनाया जा सकता है. कभी लुभावने विज्ञापनों से तो कभी आकर्षक उपहारों और इनामी योजनाओं के ईमेल या वेबसाइट पर भड़कीले विज्ञापन डाल कर. चूंकि इस्तेमाल करने वाला इन की बारीकियों को ज्यादा नहीं जानता, इसलिए आसानी से शिकार बन जाता है.

छोटीछोटी कंपनियां व्यवसाय बढ़ाने के लिए औनलाइन गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं, पर लागत खर्च को कम करने के लिए औनलाइन सुरक्षा पर ध्यान नहीं देतीं. ऐसे में उन के लिए हमेशा खतरा बना रहता है. साइबर अपराध अब सोशल नेटवर्किंग हैकिंग तक ही नहीं रह गया है, इस ने भी अपना बिजनैस बढ़ा लिया है. अब यह बिजनैस सिर्फ बैडरूम और एक सिस्टम तक नहीं रहा, इस का भी दायरा काफी बड़ा है.

सरकारें भी शामिल हैं इस अपराध में क्योंकि इस अपराध में अब कई देशों की सरकारें, औनलाइन गैंग और बड़े अपराधी शामिल हैं, जिन का साथ दे रहे हैं औनलाइन फोरम. दरअसल, औनलाइन फोरम एक तरह का बाजार है, जहां पर अपराधी चोरी किया हुआ डेटा खरीद या बेच सकते हैं.

भारत के किसी भी शहर से लेकर विदेशों तक साइबर क्राइम करवाने में एक कम्युनिटी मदद कर रही है. बस एक क्लिक में कहीं का भी डेटा आप के पास हाजिर हो जाएगा. इतना ही नहीं, कई ऐसी भी साइट्स हैं, जो ऐसे कामों को अंजाम देने की ट्रेनिंग देती हैं. माना जा रहा है कि देश में चलने वाले काल सेंटर भी भीतरी धोखाधड़ी में लगे हैं. भारत समेत चीन, रूस और ब्राजील जैसे देश इस साइबर अपराध से परेशान हैं.

हालांकि भारत में इस मामले में जागरूकता बढ़ी है और सरकार ने सन 2000 में आईटी एक्ट बनाया और सन 2008 में उसे संशोधित भी किया, लेकिन साइबर अपराध पर इस से कुछ खास फर्क नहीं पड़ा. देश में साइबर अपराध से निपटने के लिए जो आईटी एक्ट बना है, उस में वेबसाइट ब्लौक करने तक का प्रावधान है, लेकिन यह एक्ट देश के अंदर भी पूरी तरह से लागू नहीं हो पा रहा है.

कानूनी प्रावधानों के बावजूद अकसर लोग किसी के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट कर देते हैं. लगातार डेबिट/क्रेडिट कार्डों से धोखाधड़ी हो रही है. नियमानुसार पुलिस आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले से पोस्ट हटाने को कहती है, अगर वह हटा लेता है तो ठीक, नहीं तो उसे 3 साल तक की सजा हो सकती है. कंप्यूटर द्वारा किया गया कोई भी अपराध साइबर क्राइम में आता है. जिस में 7 साल की जेल हो सकती है. लेकिन इंटरनेट से धोखा देने और रकम उड़ाने की खबरें रोज आ रही हैं. क्योंकि यहां डेबिट/क्रेडिट कार्ड की डिटेल्स को हैक करना आसान है.

भारत में साइबर क्राइम से निपटने के लिए कानून तो बने हैं, लेकिन साइबर अपराध से जुड़े कानून ज्यादा कारगर नहीं हैं. क्योंकि एक तो जल्दी लोग शिकायत नहीं करते, अगर करते भी हैं, तो सबूत नहीं दे पाते. फिर कड़ी सजा न होने की वजह से अपराधी डरते भी नहीं हैं. इस की एक वजह यह भी है कि इस में तुरंत जमानत मिल जाती है. इसलिए साइबर अपराध से बचने के लिए खुद ही ऐहतियात बरतें तो ज्यादा ठीक रहेगा.

इस की एक वजह यह भी है कि पुलिस वालों को खुद ही पता नहीं कि जिस अपराध की शिकायत उन से की जा रही है, वह किस धारा के अंतर्गत आता है. इस के अलावा उन के पास साइबर अपराध करने वाले तक पहुंचने का कोई उपाय भी नहीं है. इस के लिए उन्हें दूसरों का ही सहारा लेना पड़ता है.

माया को 26 साल बाद पता चला क्यों थी बीमार

महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी ऐसी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिन के बारे में वे किसी से चर्चा तक नहीं कर पातीं. पैडवूमन के नाम से मशहूर हो चुकी माया विश्वकर्मा ऐसी ही महिलाओं को इस तरह से जागरूक कर
रही हैं कि…

अभिनेता अक्षयकुमार की फिल्म ‘पैडमैन’ ने उन्हें पैडमैन के रूप में ख्याति दिलाई है तो देश में अब एक एनआरआई माया विश्वकर्मा पैडवूमन के किरदार में तेजी से उभर कर सामने आई हैं. उन्होंने मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाके में न केवल सैनिटरी पैड बनाने की यूनिट लगाई है, बल्कि वह इस बारे में गांवगांव जा कर महिलाओं को जागरूक भी कर रही हैं. दूरदराज के सरकारी स्कूल कालेजों में माया छात्राओं की क्लास लगा कर उन से माहवारी में उपयोग किए जाने वाले सैनिटरी पैड के इस्तेमाल पर खुलेआम चर्चा करती हैं.

ऐसे में छात्राएं भी बेहिचक उन से सवाल पूछ कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान खोजती हैं. जागरूकता फैलाने के लिए फरवरी माह में माया ने ग्रामीण इलाकों की सैकड़ों महिलाओं एवं किशोरियों को नरसिंहपुर के सिनेमा हाल में पैडमैन फिल्म दिखाई. उन के प्रयास का ही नतीजा है कि महिलाएं जिस समस्या पर पहले खुल कर बात नहीं करती थीं अब खुलेआम बेहिचक बातचीत करती नजर आने लगी हैं. माया ने 45 दिनों में 22 आदिवासी जिलों में जनजागरूकता यात्रा निकालकर एक साहसिक काम किया है.

देश के ग्रामीण इलाकों की करीब 80 फीसदी महिलाएं आज भी अपनी माहवारी के कठिन दिनों में होने वाली परेशानियों को किसी से साझा नहीं कर पातीं. हालात ये हैं कि बेटी अपनी मां, पत्नी अपने पति से भी इस विषय पर बात करने से कतराती है. पिछले 2 वर्ष से मासिक धर्म के दौरान साफसफाई पर कार्य कर रही अप्रवासी भारतीय माया विश्वकर्मा ने महिलाओं की इसी झिझक को दूर करने एवं सैनिटरी नैपकिन के उपयोग के प्रति महिलाओं को जागरूक करने का एक अभियान चलाया है. यही कारण है कि अब माया को पैडवूमन के नाम से जाना जाता है.

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के मेहरा गांव में जन्मी माया विश्वकर्मा की कहानी महिलाओं के लिए प्रेरणादायक है. साईंखेड़ा कस्बे के सरकारी स्कूल से हायर सेकेंडरी स्कूल की पढ़ाई करने के बाद माया के घर के हालात ऐसे नहीं थे कि वह आगे की पढ़ाई कर सकें. ऐसे में उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपनी कालेज की पढ़ाई पूरी की. ऐसे हालात में पोस्टग्रैजुएट कर के माया ने आर्थिक रूप से कमजोर उन छात्राओं के लिए एक उदाहरण पेश किया जो किसी वजह से कालेज तक नहीं पहुंच पातीं. माया एक डाक्टर बनना चाहती थीं. उन्होंने मैडिकल की प्रवेश परीक्षा पास की और दिल्ली के एम्स अस्पताल में उन्हें मैडिकल की पढ़ाई पूरी करने का मौका मिला. एमबीबीएस करने के बाद माया ब्लड कैंसर पर रिसर्च के लिए अमेरिका के कैलिफोर्निया पहुंच गईं. इस के साथसाथ वह समाजसेवा से भी जुड़ी रहीं.

माया अरविंद केजरीवाल से परिचित थीं. राजनीतिक पार्टी बनाने के बाद सन 2014 में अरविंद केजरीवाल ने उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने का औफर दिया तो माया ने होशंगाबाद संसदीय क्षेत्र से आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. वह यह चुनाव तो नहीं जीत सकीं, लेकिन इस चुनाव ने माया का कार्यक्षेत्र ही नहीं, बल्कि सोच जरूर बदल दी.

चुनाव प्रचार के दौरान माया को गांव में भी ठहरना पड़ता था. इसी दौरान औरतों से मुलाकात के दरम्यान उन्होंने यह बात महसूस की कि पीरिएड्स को लेकर उन्हें काफी परेशानियों से गुजरना पड़ता है. बस उसी समय उन्होंने ठान लिया कि वह इस दिशा में कुछ ठोस काम करेंगी.

माया ने राजनीति से तौबा कर लिया और वह गांवों में जा कर महिलाओं के समूह से मिल कर पीरियड्स और दूसरी समस्याओं पर बात करने लगीं. तब उन्होंने महसूस किया कि जिस तरह से पीरियड्स संबंधी समस्याएं आ रही हैं उन के मूल में साफसफाई और जागरूकता की कमी है. इसलिए ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं को जागरूक करने की दिशा में माया ने कदम उठाया.
माया अपनी आपबीती बताते हुए कहती हैं कि ‘26 साल की उम्र तक मैंने भी कभी सैनिटरी पैड का इस्तेमाल नहीं किया. न तो इस के लिए मेरे पास पैसे थे और ना ही मुझे इस की जानकारी थी. उन दिनों में अनुपयोगी कपड़ों के इस्तेमाल से सेहत संबंधी परेशानियों का भी सामना किया.’

 

उन्हें पहली बार उन की मामी ने कपड़े के इस्तेमाल के बारे में बताया था. लेकिन कपड़े के उपयोग से उन्हें कई प्रकार के इंफेक्शन से शारीरिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ा था. दिल्ली के एम्स में पढ़ाई के दौरान माया को पता चला कि उन के इंफेक्शन की वजह यही कपड़े थे.

मध्य प्रदेश के स्कूलकालेजों में जा कर माया सेमिनार कर छात्राओं के बीच सैनिटरी पैड की चर्चा ही नहीं करतीं बल्कि पैड के इस्तेमाल करने के तरीके भी सिखाती हैं. नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक 15 से 24 साल की लड़कियों में केवल 42 फीसदी ही सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं. इस वजह से माया का यह अभियान प्रदेश के 22 आदिवासी विकासखंडों को फोकस कर के चलाया जा रहा है.

पैडवूमन के नाम से मशहूर हो चुकीं माया का लंबे समय से यह सपना था कि वह सैनिटरी पैड बनाने की मशीन लगा कर अपने अभियान को आगे बढ़ाएं. इस के लिए वह बाकायदा भारत में पैडमैन के नाम से मशहूर अरुणाचलम मुरुगनंथम से मुलाकात करने तमिलनाडु गईं तो पता चला कि जिस मशीन से पैड बनाने का कार्य किया जाता है, उस में हाथ का काम ज्यादा होता है. माया को इस से बेहतर मशीन की दरकार थी. माया ने पैडमैन के अनुभवों का लाभ लिया.

माया ने अपने दोस्तों से पैसे उधार लेकर और सुकर्मा फाउंडेशन के जरिए नरसिंहपुर के झिरना रोड पर छोटे से गांव में 2 कमरों के मकान में सैनिटरी पैड बनाने की मशीनें लगा लीं. मशीनों पर काम करने के लिए उन्होंने 10 महिलाओं को इस में रोजगार दिया.

उन के यहां रोजाना करीब एक हजार पैड बनाए जाते हैं. पैड के बारे में जानकारी देते  हुए माया कहती हैं, ‘हम 2 तरह के पैड बनाते हैं एक तो वुड पल्प जिस में काटन का इस्तेमाल होता है और दूसरा पालीमर शीट के साथ बनाया जाता है. इस दौरान काम करने वाली महिलाओं और दूसरों की हाइजीन संबंधी जरूरतों का भी ध्यान रखा जाता है.’

फिल्म पैडमैन के संबंध में पूछे जाने वाले सवाल पर माया कहती हैं कि इस तरह की फिल्में पीरिएड्स जैसे विषयों पर जागरूकता पैदा करती हैं, लेकिन मैं उन इलाकों में काम करती हूं जहां न तो थिएटर हैं और न ही इंटरनेट. ऐसे इलाकों में काम करने के लिए पैडवूमन की जरूरत है और इसे मैं ने पूरा करने का संकल्प लिया है. उन का कहना है कि लोग मुझे किसी भी नाम से बुलाएं इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. परंतु मैं चाहती हूं कि महिलाएं पीरिएड्स और पैड के बारे में जानें और समझें.
बहरहाल यह कदम माया को पैडवूमन के तौर पर लोकप्रिय तो बना ही रहा है साथ ही ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य सुधार में उपयोगी सिद्ध हो रहा है.
— लेख माया विश्वकर्मा से हुई
बातचीत पर आधारित