
साधना सिंह बहुत बदहवास नजर आ रही थी. 3 बार उस ने अपने बैडरूम में रखी अलमारी का लौकर और ड्राअर का सामान उलटपलट कर के अच्छे से चैक कर डाला था. रात को ही उस ने 10 हजार रुपए अलमारी में रखे थे, वे गायब थे.
‘कहां गए 10 हजार रुपए?’ वह बड़बड़ाई, ‘सारा दिन तो वह घर में ही थी, कोई आयागया भी नहीं. फिर रुपए कहां चले गए? कहीं दक्ष ने वे रुपए चुरा कर पबजी गेम में तो नहीं उड़ा दिए?’
‘यकीनन रुपए दक्ष ने ही चुराए हैं.’ साधना सिंह के मन में दृढ़ विचार कौंधा.
गुस्से में तनी साधना सिंह बेटे दक्ष को ढूंढती हुई उस के स्टडी रूम आई तो वहां दक्ष कुरसी पर बैठा दिखाई दे गया. उस के सामने की टेबल पर एक किताब उलटी पड़ी थी. दक्ष के हाथ में मोबाइल फोन था, उस का पूरा ध्यान मोबाइल की स्क्रीन पर था.
साधना सिंह के तनबदन में आग लग गई. गुस्से में तो वह पहले ही थी. उस ने दक्ष के हाथ से मोबाइल छीन कर टेबल पर पटक दिया और दक्ष को बालों से पकड़ कर चीखी, ‘‘ठहर, मैं खिलवाती हूं तुझे पबजी गेम.’’
साधना सिंह बेरहमी से उसे पीटने लगी. दक्ष रोने लगा, रोते हुए ही बोला, ‘‘मैं गेम नहीं खेल रहा था मौम, मैं औनलाइन पढ़ाई कर रहा था.’’
‘‘झूठ बोलता है नालायक,’’ साधना सिंह उस के गाल पर जोर से थप्पड़ मारते हुए चीखी, ‘‘मेरी अलमारी से 10 हजार रुपए गायब हैं. बता वे रुपए तूने क्या किए हैं?’’
‘‘मैं ने आप के रुपए नहीं लिए हैं मौम, डैड की कसम ले लो…’’
‘‘डैड के बच्चे… तू मोबाइल में गेम्स खेल खेल कर चोर और निकम्मा बन गया है. रुपए चोरी कर के गेम्स में उड़ाने लगा है.’’ साधना सिंह गुस्से से उस के बाल पकड़ कर हिलाने लगी.
‘‘नहीं मौम, मैं चोरी नहीं करता… मैं अब गेम भी नहीं खेलता हूं,’’ दर्द से तड़पते हुए दक्ष बोला, ‘‘आप प्लीज, मेरे बाल छोड़ दो. मुझे मत मारो.’’
‘‘मेरे 10 हजार रुपए चोरी गए हैं, जब तक तू उन रुपयों के बारे में नहीं बताएगा, मैं तुझे पीटना बंद नहीं करूंगी.’’
दक्ष को साधना सिंह पीटती रही. दक्ष रोता गिड़गिड़ाता मार खाता रहा, लेकिन साधना सिंह के हाथ नहीं रुके. दक्ष मार से जब बेहाल हो गया तो वह उसे घसीटती हुई स्टोर रूम में ले आई और उस में बंद करती हुई गुस्से से चीखी, ‘‘तू अब इसी में बंद रहेगा, तुझे खाना भी नहीं मिलेगा. यदि तूने 10 हजार रुपए के बारे में नहीं बताया तो मैं कल तुझ पर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा दूंगी.’’
मार से दक्ष बेहोश सा हो गया था. होश खोने के बाद भी उस के होंठों से मद्धिम स्वर निकल रहे थे, ‘‘मैं ने रुपए नहीं चुराए हैं मौम. मैं.. निर्दोष हूं.’’
उत्तर प्रदेश के महानगर लखनऊ की यमुनापुरम कालोनी में 7 जून, 2023 की सुबह असहनीय बदबू से लोग परेशान हो उठे. यह बदबू नवीन कुमार सिंह के घर से आ रही थी. लग रहा था इस घर में कोई चीज सड़ रही है.
नवीन कुमार सिंह सेना में जूनियर कमीशंड अधिकारी के पद पर तैनात थे, उन की पोस्टिंग बंगाल के आसनसोल में थी. घर में उन की पत्नी साधना सिंह 50 वर्ष, बेटी प्रियांशी 10 वर्ष और बेटा दक्ष 16 वर्ष रहते थे. उन के सामने वाले घर में शर्मा दंपति रहते थे. उन्हें कल ही आसनसोल से नवीन कुमार सिंह का फोन आया. उन्होंने शर्माजी से कहा था कि वह उन के घर जा कर देखें. उन की पत्नी साधना उन का फोन नहीं उठा रही है, वह साधना से उन की बात करवा दें.
शर्माजी ने अपनी पत्नी को नवीन कुमार सिंह के घर भेजा था. वह घर के दरवाजे तक पहुंची थी तो उन्हें वहां तेज स्मैल महसूस हुई. दरवाजे पर ही उन्हें नवीन कुमार का बेटा दक्ष मिल गया था. साधना के विषय में पूछने पर उस ने बताया था कि मौम बिजली का बिल जमा करवाने गई हैं. शर्माजी की पत्नी वापस लौट आई थी. यह बात नवीन सिंह को शर्माजी ने बता दी थी.
आज नवीन कुमार सिंह के घर से आ रही बदबू बढ़ती जा रही थी. इस से शर्माजी का माथा ठनका. वह अपनी पत्नी से बोले,
‘‘मुझे लग रहा है, नवीनजी के घर में कुछ गड़बड़ हुई है. इस असहनीय बदबू से सांस लेना दूभर हो रहा है. मैं पुलिस कंट्रोल रूम में सूचना दे देता हूं. पुलिस आ कर देख लेगी कि माजरा क्या है.’’
‘‘असहनीय बदबू है जी. आप पुलिस कंट्रोल रूम में फोन लगाइए.’’ पत्नी ने भी कह दिया.
शर्माजी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के नवीन कुमार सिंह के घर से आ रही असहनीय बदबू के विषय में बता दिया.
यमुनापुरम क्षेत्र का थाना कोतवाली पीजीआई पड़ता था. आधा घंटा में ही कंट्रोल रूम से सूचना पा कर कोतवाली पीजीआई थाना पुलिस यमुनापुरम आ गई. एसएचओ धर्मपाल नवीन कुमार सिंह के घर के सामने पहुंचे तो घर से आ रही बदबू के कारण उन्हें रुमाल निकाल कर नाक पर रखना पड़ा. साथ में आए पुलिस वालों ने भी ऐसा ही किया.
इंसपेक्टर धर्मपाल ने घर के दरवाजे की कालबेल बजाई. दरवाजा दक्ष ने खोला. पुलिस को देख कर वह एक क्षण को विचलित हुआ, फिर तुरंत संभल गया.
‘‘आप को किस से मिलना है?’’ उस ने सामान्य तौर पर पूछा.
‘‘तुम्हारे पापा हैं घर में?’’
‘‘नहीं सर. वह आसनसोल में ड्यूटी पर हैं. मेरे पापा सेना में हैं.’’
‘‘ओह.’’ इंसपेक्टर ने होंठ सिकोड़े, ‘‘इस घर से बहुत तेज बदबू आ रही है. मुझे अंदर तलाशी लेनी है.’’
दक्ष एक तरफ हट गया. इंसपेक्टर धर्मपाल ने अंदर बैठक में कदम रखा. वहां सोफे पर 10 साल की प्रियांशी बैठी अपने स्कूल का काम कर रही थी. पुलिस को देख कर वह सहम गई और उठ कर अपने भाई दक्ष के पीछे आ कर खड़ी हो गई.
चंबल में पहली बार ऐसा हुआ, जब बदले की आग में किसी परिवार की महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया. उन्हें भी बिना किसी हिचकिचाहट के गोलियों से भून दिया गया. बदले की आग में खून का प्यासा इंसान कितना हैवान हो सकता है, वह पीडि़त परिवार से ले कर गांव वालों ने अपनी आंखों से देखा.
दहशत का आलम यह था कि सारा गांव इस बर्बरता को मूकदर्शक बना देखता रहा, किसी ने भी लाइसेंसी हथियार होने के बाबजूद इस परिवार के बचाव में गोली नहीं चलाई. वैसे भी चंबल में कहावत है इंसान बूढ़ा हो सकता है, मगर दुश्मनी नहीं.
ग्वालियर से तकरीबन 80 किलोमीटर दूर आसन नदी के पास बसे मुरैना जिले के सिहोनिया थानांतर्गत आने वाला लेपा गांव बहुचर्चित दस्यु पान सिंह तोमर के भिडौसा गांव से सटा हुआ है. इसी गांव के रहने वाले गजेंद्र सिंह अपने परिवार के साथ 10 साल बाद अपने घर लौटे थे, तभी विरोधी पक्ष के भूपेंद्र सिंह और उस के परिवार के लोगों ने इन पर जानलेवा हमला कर दिया, जिस में 6 लोगों की मौत हो गई और कई गंभीर रूप से घायल हो गए.
जब लेखक लेपा गांव में पहुंचा तो वहां मातमी पसरी हुई थी. लोग सहमे सहमे से और दहशतजदा नजर आ रहे थे. लगता था कि वे अभी भी ठीक बुद्ध पूर्णिमा के दिन गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के साथ घटी सामूहिक नरसंहार की घटना को भुला नहीं पाए हैं.
हालांकि आपसी प्रतिशोध के जुनून में परिजनों के साथ घटी रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना की चश्मदीद गवाह 16 वर्षीय रंजन तोमर मिली. इस खूनखराबे के दौरान उस के सीने पर गोलियों के छर्रे लगे, लेकिन इस के बावजूद भी वह हत्यारों के खिलाफ पुख्ता सबूत के लिए बेझिझक वीडियो बनाती रही.
अधिकारियों, नेताओं और पत्रकारों के सवालों से आहत हो चुकी रंजना तोमर कहने लगी कि किस तरह मैं सब को बताऊं कि शुक्रवार की सुबह 10 साल बाद अहमदाबाद, मुरैना और ग्वालियर से अपने पैतृक गांव लौटे मेरे घर वालों के साथ क्याक्या घटा था, बारबार मुझे उन्हीं बातों को दोहराना पड़ता है.
काफी दबाव डालने पर तमतमा कर रंजना ने बताया कि हमारा परिवार लेपा का संपन्न परिवार था. परिवार में किसी चीज की कमी नहीं थी. सब कुछ अच्छा चल रहा था. रंजना तोमर ने बताया कि 5 मई की घटना में अपने पति, 2 बेटों सहित 3 बहुओं को हमेशा के लिए खो देने वाली मेरी दादी कुसुम तोमर हम लोगों को बताया करती है कि हमारे परिवार और गांव वालों द्वारा स्कूल के लिए दान में दी गई 16 बिस्वा जमीन पर सरकारी स्कूल बन रहा था, लेकिन स्कूल की जमीन के दाहिने भाग पर गांव के ही मुंशी सिंह के परिवार की महिलाओं ने गोबर का कचरा डालना शुरू कर दिया था.
स्कूल की भूमि पर कब्जा करने के मकसद से गोबर का कचरा डालने का तब मुन्नी सिंह के बेटे रंजीत सिंह ने खुल कर विरोध किया था. दुर्भाग्यवश मुंशी सिंह तोमर और मुन्नी सिंह तोमर के परिवार की महिलाओं में कचरा डालने को ले कर आपस में कहासुनी से शुरू हुई नोंकझोंक हाथापाई से होते हुए इतनी बढ़ गई कि मुंशी सिंह के बेटों ने गुस्से में आ कर मुन्नी सिंह तोमर के परिवार की महिलाओं के साथ मारपीट कर दी.
10 साल पहले शुरू हुई थी दुश्मनी
इस घटना ने माहौल में गरमाहट पैदा कर दी. 20 अक्टूबर, 2013 को मुंशी सिंह के परिवार के लोग लाठी, बंदूक ले कर गजेंद्र सिंह तोमर के दरवाजे पर चढ़ आए. इस विवाद में हुए खूनी संघर्ष में सोबरन सिंह और उस के बेटे वीरभान सिंह को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. वहीं सोबरन सिंह का बेटा राधे और भिडौसा गांव का गुही नाई घायल हो गए थे.
मुंशी सिंह के 2 बेटों को ललकारते हुए गुस्से में रंजीत सिंह ने उन के हाथ से बंदूक छीन कर गजेंद्र सिंह तोमर की हवेली के घर के सामने ही गोली चला दी थी. हालांकि इस दोहरी हत्या के बाद गोली चलने की आवाज सुन कर भूपेंद्र और अजीत सिंह अपने घर से बाहर निकल कर आए.
जिस वक्त अजीत सिंह के पिता की गोली मार कर हत्या की गई. उस वक्त अजीत सिंह की उम्र महज 12 साल थी. रंजीत ने उसे भी दौड़ा लिया था. अजीत अपनी जान बचाने के लिए भागा. अजीत ने अपनी आंखों से अपने पिता को रंजीत सिंह द्वारा गोली मारते देखा था, हालांकि अजीत सिंह के चाचा शिवचरण ने हिम्मत कर के रंजीत को समझाने का भरसक प्रयास किया तो रंजीत सिंह तोमर गुट के बड़े लला उर्फ हिम्मत ने उन के कंधे पर डंडे से वार कर दिया.
इतना ही नहीं, घटनास्थल से भागने से पहले मुंशी सिंह के परिवार वालों ने अपने बचाव के लिए मुन्नी सिंह तोमर के दाहिने पैर पर गोली मार दी थी. इस घटना के बाद मुन्नी सिंह तोमर का बेटा रंजीत अपने परिवार को ले कर लेपा गांव से भिंड भाग गया था. रंजीत सिंह के भागते ही मुंशी सिंह के बेटों ने रंजीत के घर में जम कर लूटपाट करने के साथ ही उस की 100 बीघा जमीन पर कब्जा कर लिया था.
उधर मुंशी के दोनों बेटों सोबरन और वीरभान की हत्या के जुर्म में सुनील सिंह तोमर के बड़े भाई वीरेंद्र तोमर और चाचा मुन्नी सिंह का बेटा रंजीत सिंह तोमर, अविनाश बड़े लाला उर्फ हिम्मत को सलाखों के पीछे जाना पड़ गया था. वहीं शाति रदिमाग मुंशी सिंह ने अपने नाती श्याम सिंह तोमर से (गजेंद्र सिंह) के बड़े बेटे वीरेंद्र तोमर का नाम भी अपने दोनों बेटों की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाते हुए रिपोर्ट में लिखवा दिया था. जबकि हकीकत में वीरेंद्र बेकसूर थे.
ग्रामीणों के मुताबिक घटना वाले दिन वीरेंद्र घटनास्थल पर मौजूद नहीं था. 5 मई, 2023 को जिन आधा दरजन लोगों की गोलियों से भून कर हत्या की गई, वो सभी गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के सदस्य थे. दरअसल, 5 मई 2023 को लेपा में हुए खूनखराबे की नींव 20 अक्टूबर, 2013 में ही मुंशी सिंह के बेटों की हत्या के दिन ही पड़ गई थी.
5 मई को हुए खूनखराबे की असल वजह एक दशक पुरानी रंजिश थी. आरोपी पक्ष ने अपने परिवार के 2 सदस्यों की हत्या का बदला 10 साल बाद गजेंद्र सिंह तोमर के परिवार के 6 सदस्यों को बड़े ही सुनियोजित ढंग से मौत के घाट उतार कर ले लिया.
‘‘कमबख्त, कमीनी किसे फोन कर रही थी? हिंदुस्तान कर रही थी ना? अगर तुझे उन पिल्लों से इतनी ही मोहब्बत थी तो यहां मरने क्यों चली आई? अगर तेरी हरकतें ऐसी ही रहीं तो तू एक न एक दिन मुझे जेल भिजवा कर रहेगी.’’ कह कर असलम ने मेरे हाथ से रिसीवर ले कर पटक दिया और मुझे ऐसा धक्का दिया कि मैं सिर के बल गिर पड़ी.
इस के बाद मुझे गंदीगंदी गालियां देते हुए बाहर से ताला लगाया और सीढि़यां उतर गया. असलम जितना चालाक था, उतना ही फुर्तीला और ताकतवर भी था. वह गले तक काले धंधों में डूबा था. अमेरिका की पुलिस सरगर्मी से उस की तलाश कर रही थी. मेरी बदकिस्मती यह थी कि उस के हर जुर्म में मैं बराबर की हिस्सेदार थी. यही एक वजह थी कि चाह कर भी मैं उस के घर से निकल नहीं पा रही थी.
मेरे पास अब आंसू बहाने के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं था? इस के लिए मैं किसी और को दोष भी नहीं दे सकती थी. मैं ने जो किया था, उसर की सजा मुझे मिल रही थी.
असलम जिसे मैं ने जीजान से चाहा था, जिस के लिए मैं ने अपना घर, पति और तीन प्यारेप्यारे मासूम बच्चों को भुला दिया था, आज वही असलम मुझ से इस तरह बदसलूकी करेगा, मैं ने सपने में भी नही सोचा था. जब से मैं अमेरिका आई हूं, तब से मेरा यही हाल है. ताले में बंद रहना और उस के हर नाजायज धंधे में शामिल होना. मेरी खूबसूरती का इस से अच्छा इस्तेमाल और क्या हो सकता था. हर वह काम, जो असलम वर्षों में नहीं कर सका था, उसे मैं ने चुटकी बजा कर अपनी खूबसूरत अदाओं से कर दिया था.
मैं जब भी भागने की कोशिश करती, वह बेरहमी से मेरी पिटाई करता. उस की गिरफ्त से निकलना मेरे लिए नामुमकिन था. लेकिन मैं हिम्मत हारने वालों में नहीं हूं, मैं एक बार, सिर्फ एक बार अपने उन मासूम बच्चों को सीने से लगा कर प्यार करना चाहती हूं, जिन्हें 10 साल पहले मैं असलम के प्यार में पागल हो कर हिंदुस्तान छोड़ आई थी.
बच्चों की याद त्रिशूल बन कर मुझे सालती रहती थी. मैं जब भी तनहा होती थी, तीनों बच्चों के चेहरे मेरी आंखों के सामने तैरने लगते थे. जब मैं उन्हें छोड़ कर आई थी, सृष्टि 9 साल की थी, बबलू 4 साल का और दीपू 2 साल का. तीनों बच्चे मेरे सीने से चिपट कर सोते थे. कितनी मशगूल जिंदगी थी वह मेरी. एकएक बातें किताब के पन्नों की तरह खुलने लगी थीं.
सृष्टि और बबलू सुबह 7 बजे ही स्कूल चले जाते थे. उन के लिए टिफिन बनाना, उन्हें तैयार करना, बच्चों को स्कूल भेज कर घर की साफसफाई करना और दोनों समय के खाने में दिन कैसे बीत जाता, पता ही नहीं चलता था. और आज मैं विदेश में अकेली बैठी हूं. चारों ओर कुहासा और बर्फ से ढकी चोटियां हैं. मैं ऐसे दलदल में फंसी हूं, जहां से चाहूं तो भी नहीं उबर सकती.
शुरू से ही आशावादी व भरपूर जीवन जीने की मैं आदी थी. एक मस्त हिरनी की तरह कुलांचे भरना मेरी फितरत थी. 3 बच्चों की मां होने के बावजूद मुझ में चंचलता पहले जैसी ही थी. घर का काम निपटा कर मैं पूरे मन से अपना शृंगार करती और 5 बजते ही मैं लौन में चहलकदमी करने लगती. आतेजाते मर्द जब मुझ पर चाहतभरी निगाह डालते तो मैं उसे अपनी तारीफ और उपलब्धि समझ कर फूली न समाती. मेरे गालों पर मोगरे के फूल दहकने लगते.
इसी चंचल स्वभाव की वजह से 16 साल की उम्र में ही मैं सागर से प्यार कर बैठी थी. कैंब्रिज स्कूल में हम दोनों साथ पढ़ते थे. रोजरोज मिलने से हमारी दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई. मैं उसे बेपनाह मोहब्बत करने लगी. हर पल मेरी जुबान पर उसी का नाम होता. हम जब भी मिलते, अपने आशियाने के सपने संजोते. वह भी शिद्दत से मेरा दीवाना था.
उस की दीवानगी को देखते हुए एक दिन मैं ने अपनी मां को सब कुछ बता कर कहा कि ‘मैं सागर से ही शादी करूंगी और जल्दी ही करूंगी.’ मां ने बहुत समझाया. पापा ने भी कहा कि पहले पढ़ाई पूरी कर लूं, उस के बाद मैं जो कहूंगी, वह वही करेंगे. मैं ने घर से भाग जाने की धमकी दी. मेरे उद्दंड स्वभाव के आगे किसी की न चली और लाख पहरों के बावजूद मैं ने घर से भाग कर सागर से शादी कर ली. शायद आज यही मेरे जीवन की सब से बड़ी भूल साबित हुई.
मैं ने मांबाप की मरजी के खिलाफ जो कदम उठाए, उस से फिर कभी मैं उन की दहलीज पर लौट नहीं सकी. सागर का जुनून और दिलफरेब मोहब्बत नकली हीरे से कम नहीं थी. बीवी और महबूबा में एक बुनियादी फर्क होता है. इसी बुनियादी फर्क के तहत मेरी हदें निश्चित कर दी गईं.
शादी के बाद सागर पूरी तरह से मेरा हो गया था, इसलिए तनमन से मैं उस की सेवा करने लगी. दिनरात मैं उस के प्यार में डूबी रहने लगी. अपनी किस्मत पर मुझे रश्क आने लगा था कि इतनी बड़ी कोठी का एकलौता वारिस मुझ पर सौ जान से फिदा है. ईश्वर ने मुझे रूप भी ऐसा दिया था कि जो भी देखता, ठगा सा देखता रह जाता. दूध में केसर डाल कर जो रंग आता है, उस रंग की काया पर कमर तक झूलते काले स्याह बाल, लंबा कद. लेकिन जल्दी ही हमारी मोहब्बत का सुरूर बुलबुले की तरह खत्म हो गया.
परदा उठते ही जो हालात सामने आए, वे मेरी जिद और नासमझी के अंजाम थे. अपने मांबाप के जिंदगी भर के तजुर्बे को ठुकरा कर मैं ने जो प्रेमविवाह किया था, उस में सीरत वाला पहलू पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया था. शायद प्रेमविवाह में ऐसा ही होता है. सूरत इस में अहम होती है. सागर की शानदार पर्सनैल्टी की मैं दीवानी सी हो गई थी. मेरे मांबाप, भाई जब कभी उस के खिलाफ कुछ कहते, मैं नाराज हो कर घंटों रोती रहती और भूख हड़ताल कर बैठती. प्यार में अंधी हो कर मैं सच सुनना नहीं चाहती थी.
सागर एक 5 स्टार होटल के डिस्कोथैक का मैनेजर था, जहां रातें शराबशबाब में डूबी रहती थीं. उस की ड्यूटी रात की होती थी. वह सुबह घर आता तो बेहद थका और टूटा हुआ होता. आते ही बिस्तर पर ढेर हो जाता. पूरे दिन सोता. शाम को उठता और फ्रैश हो कर होटल चला जाता.
इस तरह महीनों हमारे बीच कोई बातचीत न होती. अगर कभी मैं कुछ कह देती तो उस के मुंह में ऊलजुलूल जो आता, कहने लगता. उस की इन बातों से हम दोनों के बीच एक ऐसी खाईं बनती चली गई, जिसे पाटना नामुमकिन सा हो गया. मैं समझ गई कि यह बड़े बाप की वह बिगड़ी हुई औलाद है. मैं घुटघुट कर जीने लगी.
उसी घुटन में एक दिन मैं सो रही थी कि अचानक मेरे फोन की घंटी बजी. फोन करने वाले ने कहा, ‘‘आप मुझे नहीं जानतीं, लेकिन मैं आप को अच्छी तरह जानता हूं. मैं आप का शुभचिंतक हूं, इसलिए आप को चेता रहा हूं कि आप अपने पति पर नजर रखिए. आजकल वह रेशमा नाम की खूबसूरत लड़की के साथ अकसर नाचतेगाते, खातेपीते नजर आते हैं.’’
मैं सागर से वैसे ही परेशान थी, इस गद्दारी से मैं बिफर उठी. उस दिन हम दोनों के बीच काफी कहासुनी हुई. सागर ने सारे आरोपों को गलत बताया. लेकिन शक का जहर मेरी नसनस में फैल चुका था. वह अजनबी न जाने मेरा हमदर्द था या खैरख्वाह या दुश्मन, जो मेरा अच्छा सोच रहा था. इस के बाद उस ने मुझे न जाने कितने फोन किए. हर फोन में सिर्फ सागर की बुराई होती. सागर सुबह आता तो शराब की बू से कमरा भर जाता. मेरे नाम से उसे चिढ़ सी हो गई थी.
मेरा हर मशवरा उसे नागवार गुजरता. सागर की रात की ड्यूटी से मेरा और बच्चों का जीवन घर की चारदीवारी में कैद हो कर रह गया था. पति, 3 बच्चे और सासससुर की जिम्मेदारी उठातेउठाते मैं चिड़चिड़ी और बेरहम होती गई. जिस तरह बिना पानी के धरती सूखती जाती है, प्यार के बिना कुछ वैसी ही हालत मेरी हो गई थी. मैं प्यार के 2 बोल सुनने के लिए तरसती रहती थी.
कई सालों तक तो मेजर को सुभाषिनी के बारे में कोई जानकारी ही नहीं मिली. लेकिन यह भी जिद्दी स्वभाव के थे. जैसेतैसे इन्होंने सुभाषिनी की नई ससुराल का पता लगा ही लिया. तब तक वह मयंक की मां बन चुकी थी. वह काफी बड़ा हो गया था.
मेजर चौहान बदला लेने के लिए सालों तक सुभाषिनी और तोमर परिवार पर नजर रखे रहे. लंबी अवधि गुजर जाने के बाद भी इन के बदले की आग ठंडी नहीं हुई. इस की वजह यह भी थी कि सुभाषिनी की वजह से इन का बेटा किसी और का हो गया था और ये चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे. बेटे की वजह से ही इन्होंने शादी तक नहीं की. इन्हें बदले का मौका तब मिला, जब तोमर परिवार ने शिकार का प्रोग्राम बनाया.’’
‘‘अंधेरा होने पर झाडि़यों में छिपे मेजर ने अपने रिवाल्वर से गोली चला दी, लेकिन गोली सुभाषिनी को नहीं मयंक को लगी और वह नीचे गिर गए.’’ नीरव बोल उठा.
‘‘मेजर चौहान ने भी यही समझा था, क्योंकि इन के गोली चलाने के तुरंत बाद सुरबाला की चीखपुकार गूंज उठी थी. उसी वक्त मेजर ने दूसरा फायर किया, वह हवाई फायर था, जो इन्होंने मयंक को तेंदुए से बचाने के लिए किया था. दूसरे लोगों ने भी कुछ हवाई फायर किए थे.’’
‘‘इस का मतलब यह हुआ डैड कि मेजर चौहान ने मयंक की हत्या नहीं की थी, बल्कि वह नींद के झोंके में मचान से गिर कर तेंदुए का शिकार हो गए थे.’’ नीरव बोला.
‘‘सच्चाई का खुलासा तो रजत ही कर सकता है.’’ त्रिलोचन ने रजत पर निगाह डाली तो माता पिता के बीच में बैठा रजत मुसकराने लगा.
‘‘एक्जैक्टली डैड,’’ विप्लव ने कुर्सी के हत्थे पर हाथ मारा, ‘‘आखिर रजत, मयंक का ही तो पुनर्जन्म है, इसे तो पूरी सच्चाई मालूम होगी.’’
‘‘अपराधी इसी बात से तो डर गया था, उसे लगा कि रजत ने सुरबाला को सच्चाई बता दी है, तभी उस ने सुरबाला की जान लेने की कोशिश की थी. जब वह कामयाब नहीं हुआ तो उस ने मौका पा कर रजत की हत्या करनी चाही. हालांकि हम ने रजत की सुरक्षा का पूरा इंतजाम किया था, लेकिन हमलावर तोमर परिवार के पुश्तैनी मकान के चप्पे चप्पे से वाकिफ था.
‘‘वह गुप्त रास्ते से उस कमरे में दाखिल हुआ और अपनी समझ के हिसाब से रजत को चाकू मार कर उसी रास्ते से गायब भी हो गया. इसे नियति का खेल ही कहेंगे कि रजत और सुकुमार ने सोने के पहले अपने बिस्तर बदल लिए थे. जिस की वजह से हमलावर ने सुकुमार को रजत समझा.’’
‘‘मतलब, कोई घर का ही आदमी है जो पहले मयंक का दुश्मन था और अब रजत का दुश्मन बन बैठा.’’ वहां मौजूद रजत के पिता मनोहर अग्रवाल ने पहली बार मुंह खोला.
‘‘चाचाजी, मेरी तफ्तीश कहती है कि सुरबालाजी के ऊपर हमला करने की कोशिश सुखदेवी ने की थी, आई मीन मिसेज धुरंधर तोमर.’’ इंसपेक्टर अनिल ने पासा फेंका.
‘‘यह आप क्या कह रहे हैं, दरोगाजी…?’’ सुखदेवी उछल कर उठ खड़ी हो गई, ‘‘मैं बहू के ऊपर हमला क्यों करूंगी, इस से मुझे क्या मिलेगा…?’’
‘‘जिस तरह से सुरबाला ने रजत को अपनाया, उस से आप के मन में डर बैठ गया था कि अब तक जिस जायदाद का वारिस आप का बेटा था, अब उस का आधा हिस्सा कहीं रजत को न मिल जाए.’’
‘‘इंसपेक्टर साहब,’’ अभी तक चुप बैठे धुरंधर का धैर्य जाता रहा, ‘‘मेरी पत्नी के खिलाफ आप के पास क्या सबूत हैं?’’
‘‘आप की पत्नी ‘संदली एहसास’ नामक टैल्कम पाउडर का इस्तेमाल करती हैं. सुरबालाजी के शयन कक्ष में जो तलवार पाई गई थी. उस पर उस पाउडर के कण मिले हैं.’’
‘‘प्लीज, अब यह मत कहिएगा कि अपने बेटे को छुरा भी हम ने ही मारा है…’’ धुरंधर आजिज आ कर बोले.
‘‘इंस्पेक्टर साहब, आप सुखदेवी जी के ऊपर नाहक आरोप लगा रहे हैं.’’ त्रिलोचन ने दखल दिया, ‘‘हमारा ध्यान भटकाने के लिए अपराधी द्वारा चली गई नायाब चाल थी यह.’’
‘‘तो फिर अपराधी कौन है डैड?’’ नीरव बोला, ‘‘आप ने रजत से तो पूछा ही नहीं कि पिछले जन्म में उस की मृत्यु कैसे हुई थी?’’
प्रत्युत्तर में त्रिलोचन ने अपने बैग से पालिथीन की एक थैली निकाली, जिस में एक नरमुंड रखा था. पारदर्शी थैली में दिख रहे नरमुंड के माथे की ओर इशारा करते हुए त्रिलोचन बोले, ‘‘यह छेद देख रहे हैं आप लोग, यह मयंक की खोपड़ी है और इस के माथे में यह गोली का निशान. मयंक की मौत गोली लगने से हुई थी.’’ कहते हुए त्रिलोचन ने अपनी जेब से कोई चीज निकाली, ‘‘और यह रही वह गोली.’’
‘‘यह तो राइफल की गोली है…’’ मेजर चौहान के मुंह से अनायास निकल गया.
‘‘हां मेजर, अब आप उस अपराधबोध से मुक्त हो गए होंगे, जिसे आप पिछले कई सालों से ढोते आ रहे थे?’’
‘‘जी’’ मेजर का गला भर्रा गया, ‘‘मैं अपने आप को मयंक का हत्यारा समझता था और मुझे इतनी ग्लानि हुई थी कि अपना रिवाल्वर उसी जंगल में फेंक आया था.’’
‘‘चाचाजी, घटनास्थल पर उस वक्त 2 राइफलें थीं.’’ अनिल बोला.
‘‘जी हां, और फोरेंसिक रिपोर्ट से साफ हो गया है कि यह गोली जिस राइफल से चली थी. वह थी मैनलिकर सूनर.’’
‘‘लेकिन… मैं ने तो तेंदुए को भगाने के लिए हवाई फायर किए थे, ताकि वह नीचे गिरे मयंक को नुकसान न पहुंचाए.’’ बलराम तोमर त्रिलोचन को लक्ष्य करते हुए बोले.
‘‘हवाई फायर हवा में किए जाते हैं तोमर साहब, नाक की सीध में नहीं.’’ त्रिलोचन का स्वर सख्त हो उठा.
‘‘आप कहना क्या चाहते हैं कि मयंक का हत्यारा मैं हूं?’’ तोमर साहब क्षुब्ध हो कर कांपने लगे.
‘‘जी हां.’’ त्रिलोचन का स्वर दृढ़ था.
‘‘त्रिलोचन तुम सठिया गए हो, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है…’’ बलराम तोमर दहाड़ उठे, उन के गुस्से का ठिकाना न रहा, ‘‘मैं अपने बेटे की हत्या क्यों करूंगा?’’
‘‘क्योंकि मयंक आप का बेटा नहीं था.’’
बलराम तोमर अवाक रह गए.
‘‘मैं ने तो पहले ही कहा था डैड कि धुरंधर और सुभाषिनी…’’
‘‘शटअप विप्लव.’’ त्रिलोचन आंखें तरेरते हुए बोले, ‘‘मयंक, मेजर चौहान का बेटा था.’’
‘‘डैड, आप इस नतीजे पर कैसे पहुंचे?’’ विप्लव पूछे बिना न रह सका.
‘‘बर्नेट अस्पताल के रजिस्टर में मयंक की जन्मतिथि लिखी हुई है, जिस के हिसाब से बलराम और सुभाषिनी की शादी के सात महीने बाद ही मयंक का जन्म हो गया था. रजिस्टर में इसे नार्मल डिलीवरी के तौर पर दर्ज किया गया था, जिसे बाद में सुभाषिनी ने रिश्वत दे कर ‘प्रीमैच्योर डिलीवरी’ करवा दिया था.’’
‘‘मतलब, सुभाषिनी बलराम तोमर के साथ शादी होने के पहले से गर्भवती थीं?’’ मनोहर अग्रवाल का सवाल था.
त्रिलोचन ने आगे कहा, ‘‘इस की सूचना सुभाषिनी ने अपने पूर्व पति मेजर चौहान को पत्र द्वारा भेजी भी थी. उसी दौरान मेजर चौहान लापता हो गए थे और वह पत्र भेजने वाले के पते पर लौट आया था.’’ त्रिलोचन ने बैग में हाथ डाल कर एक अंतर्देशीय पत्र निकाला, जो पीला पड़ चुका था.
हरिद्वार में बेलवाला पुलिस चौकी के फोन की घंटी कुछकुछ देर बाद बज रही थी. 3 बार पहले भी लंबी रिंग के बाद बंद हो चुकी थी. तभी चौकी इंचार्ज प्रवीण रावत वहां पहुंच गए. पास खड़े सिपाही ने उन्हें सैल्यूट मारा. अपनी कुरसी पर बैठने से पहले रावत नाराज होते हुए बोले, “इतनी देर से फोन की घंटी बज रही है, उठाते क्यों नहीं हो?
“उसी का फोन है साहब जी…! सिपाही तुरंत खीजता हुआ बोला.
“किसका? रावत ने पूछा.
“जी साहब जी, उसी लेडी रेखा का! जिस का बच्चा 9 दिनों से लापता है! सिपाही बोला.
“रेखा का है, तो क्या हुआ? उसे जवाब नहीं देना है क्या? तब तक फोन की घंटी बंद हो चुकी थी.
“साहब जी, वह सुबह से दरजनों बार फोन कर चुकी है…मैं उसे जवाब देतेदेते तंग आ गया हूं…बारबार वही रट लगाए रहती है-मेरा बाबू कब मिलेगा… भूखा होगा…मेरा दूध कब पिएगा बाबू!
“अरे, वह मेरे मोबाइल पर भी कई बार कौल कर चुकी है….मैं ने उसे बात कर समझा दिया है. बोल दिया है कि उस का बच्चा जल्द उसे मिल जाएगा.’’ यह कहते हुए रावत अपनी कुरसी पर बैठ गए. वह अपने बगल में रखी फाइल के पन्ने पलटने लगे. तभी फिर फोन पर रिंग होने लगा. इस बार रावत ने ही फोन का रिसीवर उठाया.
“हैलो! बोलो…तुम्हें तो मैं ने आधा घंटा पहले ही बता दिया था न!… तुम्हारे बच्चे की तलाशी के लिए हम ने पुलिस की 4 टीमें लगा दी हैं…अभी मैं उन की ही रिपोर्ट देख रहा हूं. मैं मानता हूं कि बच्चे के बिना आप बेचैन हैं लेकिन बारबार फोन करने से बच्चा तो मिलेगा नहीं. तुम परेशान मत हो, जल्द तुम्हारा बच्चा मिल जाएगा…पुलिस पर भरोसा रखो और अपना भी ख्याल रखो…रोना-बिलखना बंद करो….!’’ यह कहते हुए रावत ने फोन कट कर दिया.
फोन पर रेखा को आश्वसन देने के बाद चौकी इंचार्ज ने पास रखे गिलास का पानी पी लिया और सिपाही से चाय मंगवाने के लिए कहा. सिपाही ने तुरंत औफिस अटेंडेंट को चाय के लिए आवाज लगा दी और रावत फाइल देखने लगे. कुछ समय में चाय भी आ गई. चाय पर नजर डालते हुए रावत बोले,”अरे, बिस्कुट नहीं मंगवाया’’
“जी सर’’ कह कर सिपाही चुपचाप वहीं खड़ा रहा. रावत बोले “एक पैकेट कोई बिस्कुट ले आओ, और हां, दरोगाजी को यहां आने के लिए बोलते जाना.’’
“जी सर!’’ कहता हुआ सिपाही चला गया.
थोड़ी देर में रावत अपने सामने बैठे एसआई को फाइल के पन्ने पलटते हुए कुछ समझाने लगे. दरअसल, वह फाइल फोन करने वाली लेडी रेखा के बच्चे के लापता होने से संबंधित थी.
हर की पौड़ी से हुआ बच्चा चोरी
रेखा का बच्चा 17 जून, 2023 की आधी रात से ही गायब था. इस की जानकारी उसे 18 जून की सुबह 5 बजे तब हुई, जब वह सो कर उठी. गरमी का मौसम होने के कारण 38 वर्षीया रेखा अपने 6 माह के बेटे अभिजीत के साथ घर के बाहर सोई हुई थी. सुबह उस की नींद खुली तब उस ने पाया कि बेटा पास में नहीं था.
बच्चे को नहीं पा कर उस ने बगल में ही सो रहे अपने पति शिव सिंह को जगाया. रेखा का देवर भोटानी भी उस से कुछ दूरी पर ही सोया हुआ था. बच्चे अभिजीत के लापता होने के कारण तीनों घबरा गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि बच्चा आखिर गया कहां?
वह घुटने और हाथ के बल ही चल पाता था. उसे रेखा ने अपने और पति के बीच में सुलाया था. बिछावन भी जमीन से ऊंचाई पर था. वहां से वह खुद नहीं उतर सकता था. उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि उन का बच्चा किसी ने चुरा लिया है.
यह घटना उत्तराखंड में हरिद्वार स्थित हर की पौडी के निकट ऊर्जा निगम कार्यालय के परिसर की है. धार्मिक स्थान होने के कारण उस समय स्थानीय लोग हर की पौड़ी के निकट पूजाअर्चना और गंगा आरती देखने में व्यस्त थे. चारों ओर लाउडस्पीकरों से भजन और मंदिरों से घंटे घड़ियाल की तेज आवाज आ रही थी. यह स्थान हरिद्वार नगर कोतवाली की रोडी बेलवाला पुलिस चौकी के अंतर्गत आता है.
रेखा अपने पति शिव सिंह और देवर भोटानी के साथ आसपास के क्षेत्र में बच्चे की तलाश करने लगी. वे एकदम बदहवास से हो गए थे. रेखा काफी बदहवास थी. बारबार दुपट्टे से आंखों से आंसू पोछे जा रही थी. जब भी उन्हें आसपास कोई छोटा बच्चा दिखता उसे गौर से देखने लगती.
हर की पौड़ी के निकट वे एक घाट से दूसरे घाट पर घूमघूम कर बच्चे को तलाश करते रहे, मगर उन्हें उन का बच्चा नहीं मिला. उस बारे में कोई जानकारी भी नहीं मिली. जबकि वह सैकड़ों रहागीरों से अपने बच्चे के बारे में पूछ चुकी थी.
इसी प्रकार 3 घंटे बीत चुके थे. अंत में वे तीनों थक हार कर रोडी बेलवाला पुलिस चौकी गए. वहां पर चौकी प्रभारी प्रवीण रावत से मिल कर अपनी परेशानी बताई. उन्होंने प्रवीण रावत को बच्चा चोरी होने की शिकायत दर्ज कर उस की तलाशी की गुहार लगाई.
अपने इलाके से बच्चा चोरी होने की बात सुन कर प्रवीण रावत चौंक पड़े. उन से बच्चे के बारे में पूरी जानकारी लेने के बाद रावत ने उस स्थान पर जा कर मुआयना किया जहां तीनों रात में सोए थे. इस के बाद रावत ने वहां पर आसपास रहने वाले लोगों से बच्चे के बारे में पूछताछ की. रावत ने रेखा के मोबाइल से बच्चे की कई तस्वीरें अपने मोबाइल में वाट्सएप करवा लीं.
बच्चे को तलाशने में जुटी पूरे जिले की पुलिस
जब प्रवीण रावत को लापता बच्चे के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली, तब उन्होंने इस मामले की जानकारी कोतवाल हरिद्वार भावना कैंथोला को भी दी. भावना कैंथोला ने सब से पहले बच्चे अभिजीत के चोरी होने की जानकारी सीओ (सिटी) जूही मनराल, एसपी सिटी स्वतन्त्र कुमार तथा एसएसपी अजय सिंह को भी दे दी. रावत ने इस मामले में उन का काररवाई से संबंधित आदेश और दिशानिर्देश भी मांगा.
अजय सिंह के निर्देश पर भावना कैंथोला ने बच्चा चोरी की घटना का बच्चे के हुलिए सहित प्रसारण हरिद्वार पुलिस कंट्रोल के वायरलैस द्वारा करवा दिया. इस के बाद कैंथोला ने कुछ पुलिसकर्मियों को बच्चे की तलाश में रेलवे स्टेशन तथा स्थानीय बस अड्डों पर भी भेज दिया.
बच्चे के परिजन तथा पुलिस वाले शाम तक बच्चे की तलाश करते रहे, मगर शाम तक पूरा हरिद्वार छान लेने के बाद भी पुलिस को लापता बच्चे के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई. हालांकि हरिद्वार पुलिस पिछले 6 माह में लापता 3 बच्चों को सकुशल बरामद कर उन के परिजनों को सौंप चुकी थी. रेखा का लापता बेटे की उम्र मात्र 6 माह ही थी. इसे देखते हुए एसएसपी अजय सिंह ने उस की सकुशल बरामदगी करने के लिए मेला नियंत्रण कक्ष में अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की एक मीटिंग बुलाई.
इस मीटिंग में एसपी (सिटी) स्वतंत्र कुमार, सीओ जूही मनराल, कोतवाल नगर भावना कैंथोला, एसपी (क्राइम) रेखा यादव, सीआईयू प्रभारी रणजीत तोमर तथा एसएसपी के जन संपर्क अधिकारी विपिन चंद पाठक शामिल हुए थे. बैठक में ही गहन विचार विमर्श हुआ कि बच्चे की तलाशी किस प्रकार से की जाय. इसी के साथ एकमत से एक निर्णय लिया गया.
साथ ही अजय सिंह ने सीआईयू प्रभारी को सब से पहले ऊर्जा निगम की कालोनी से ले कर रेलवे स्टेशन व बस अड्डे जाने वाले मार्ग पर लगे सीसीटीवी कैमरे चेक करने का निर्देश दिया. इस के बाद उन्हें वहां पर बच्चे के लापता होने वाले स्थान का साइट से डाटा जुटाने के निर्देश दिए.
कोतवाल भावना कैंथोला ने रेखा के देवर भोटानी पुत्र धर्म सिंह निवासी अंबेडकर नगर, थाना विजय नगर गाजियाबाद उत्तर प्रदेश की तहरीर पर बालक अभिजीत के चोरी होने का मुकदमा भादंवि धारा 363 के अंतर्गत अज्ञात चोरों के खिलाफ दर्ज कर लिया.
इस प्रकरण की विवेचना थानेदार सुनील रावत को सौंपी गई थी. भोटानी ने पुलिस को बताया कि वह अपने भाई शिव सिंह, भाभी रेखा तथा अपने 6 माह के भतीजे अभिजीत के साथ गत 15 जून, 2023 को हरिद्वार घूमने के लिए आया था. इसी दौरान 17 व 18 जून 2023 की मध्य रात्रि में उस का भतीजा चोरी हो गया.
तकनीकी जांच के सहारे आगे बढ़ती रही जांच इस तरह तमाम जानकारी के बाद सीआईयू प्रभारी रणजीत तोमर, सीआईयू के सिपाहियों सतीश नौटियाल और निर्मल बच्चा चोरी वाली जगह पर इस्तेमाल किए गए मोबाइल नंबरों की जानकारी जुटाने में लग गए.
इस के साथ ही भावना कैंथोला ने घटनास्थल से ले कर रेलवे स्टेशन व रोडवेज बस स्टैंड तक लगे लगभग डेढ़ सौ सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को चेक किया. हरिद्वार में चूंकि बस स्टैंड व रेलवे स्टेशन आमनेसामने ही हैं. अत: वहां पर लगे कैमरों की फुटेज को पुलिस चेक करने में जुट गई.
इस तरह से की गई गहन छानबीन के तहत तोमर ने संदिग्ध मोबाइल नंबरों को चेक किया. उन्होंने पाया कि कुछ मोबाइल नंबर ऐसे भी थे, जो घटनास्थल के पास भी चले थे और हरिद्वार रोडवेज बस स्टैंड के पास भी उन नंबरों से बातचीत हुई थी. इस के अलावा हर की पौड़ी के निकट कुछ लोग बाद में रेलवे स्टेशन से व बसों द्वारा वापस जाते दिखाई दिए.
वापस जा रहे इन लोगों की छानबीन करने के लिए पुलिस की 4 टीमों का गठन किया था. इन टीमों को संदिग्ध लोगों के मोबाइल की जानकारी करने के लिए लगाया गया था. इस के अलावा पुलिस ने कुछ मुखबिरों को भी लगा दिया था. हरिद्वार जिले की आधी से ज्यादा पुलिस फोर्स बच्चे की तलाश में जीजान से जुट गई थी. फिर भी एक सप्ताह बीत जाने पर भी कोई सुराग नहीं मिल पाया था.
इधर बच्चे के लापता होने के गम में रेखा का रोरो कर बुरा हाल हो गया था. वह बारबार पुलिस को फोन कर बच्चे के बारे में पूछती रहती थी. उस की स्थिति विक्षिप्तों जैसी हो गई थी. पति और देवर भी बारबार थाने का के चक्कर लगा रहे थे. वे अपने स्तर से भी बच्चे की तलाशी के लिए हर की पौड़ी, रेलवे स्टेशन, बाजार, बस स्टैंड आदि जगहों पर दिन में कई बार चक्कर काट चुके थे. यहां तक कि लक्ष्मण झूला तक जा चुके थे.
जांचपड़ताल से मिली जानकारियों के आधार पर तैयार हो चुकी मोटी फाइल का अध्ययन करते हुए रावत को कुछ मोबाइल नंबरों पर संदेह हुआ. वे नंबर शक के दायरे में इसलिए आ गए थे, क्योंकि घटना के दिन कुछ समय बाद ही वह स्विच्ड औफ हो गए थे. पुलिस की 2 टीमें उन मोबाइल नंबरों की जानकारी जुटाने में लगी हुई थी.
वह 29 जून, 2023 का दिन था. सीआईयू प्रभारी रणजीत तोमर और कोतवाल भावना कैंथोला को भी बच्चा चोरी के मामले में एक मोबाइल नंबर पर शक हो रहा था. उन्होंने उस मोबाइल नंबर के बारे में पूरी जानकारी जुटाने की योजना बनाई.
वह मोबाइल नंबर दिल्ली के थाना छावला निवासी प्रसून कुमार पुत्र प्रमोद कुमार का निकला. उन के बारे में आगे की जानकारी लेने के लिए पुलिस की 2 टीमें दिल्ली जा पहुंचीं. जल्द ही उन का पता मालूम हो गया.
स्थानीय लोगों ने हरिद्वार पुलिस को बताया कि प्रसून कुमार दिल्ली में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करता है. उस की बीवी प्रीति काफी अरसे से दिल्ली के कुतुब विहार क्षेत्र में एक ब्यूटी पार्लर चलाती है. इस के अलावा हरिद्वार पुलिस को यह भी जानकारी मिली थी कि कुछ दिन पहले प्रीति ने एक पुत्र को जन्म दिया था.
हरिद्वार पुलिस पहुंची दिल्ली
यह जानकारी मिलते ही हरिद्वार पुलिस दिल्ली के दंपति प्रसून और प्रीति के घर जा धमकी. इस से पहले उन्होंने उन के मोबाइल नंबर की लोकेशन का विश्लेषण किया. उस से पता चला कि वे बच्चा गायब होने वाले दिन हरिद्वार में थे.
इस बारे में हरिद्वार पुलिस टीम ने एसएसपी अजय सिंह से विचार विमर्श किया. इस के बाद अजय सिंह ने उन्हें आगे की छानबीन के निर्देश दिए. हरिद्वार पुलिस प्रसून के मोबाइल नंबर की लोकेशन के आधार पर दिल्ली के मकान नं. 422, कुतुब विहार, गोयल डेरी जा धमकी और उसे गिरफ्तार कर लिया.
प्रसून से जब पुलिस ने बच्चा चुराने की बाबत सख्ती से पूछताछ की, तब उस ने जल्द ही अपना अपराध स्वीकार लिया. साथ ही इस में अपनी पत्नी का हाथ होना बताया.
इस के बाद हरिद्वार पुलिस ने प्रसून की निशानदेही पर उस के घर में सोए बच्चे अभिजीत को बरामद कर लिया. साथ ही दूसरी आरोपी प्रसून की पत्नी प्रीति को महिला सिपाही गुरप्रीत ने हिरासत में ले लिया. बच्चा समेत बच्चा चोर दंपति को जांच टीम हरिद्वार ले आई.
इस तरह से हरिद्वार पुलिस ने बच्चा चोरी की गुत्थी को सुलझा लिया था. बच्चे के लापता होने के 14वें दिन रेखा व शिव सिंह को उन का बच्चा सौंप दिया.
हरिद्वार में आने के बाद प्रसून व प्रीति से एसएसपी अजय सिंह ने बच्चा चुराने की सिलसिलेवार जानकारी ली. इस पूछताछ में प्रीति ने पुलिस से कुछ भी नहीं छिपाया और बच्चा चुराने की घटना को पुलिस के सामने सचसच ब्यान कर दिया. प्रीति ने हरिद्वार पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार है-
सास के तानों से परेशान हो कर चुराया बच्चा
प्रीति चौडा गांव, जिला संभल, उत्तर प्रदेश की रहने वाली है. प्रसून उस का दूसरा पति है. इस से 16 साल पहले उस की शादी दिल्ली निवासी प्रवीण कुमार से हो चुकी थी. प्रवीण से उस के 2 बच्चे हुए. कुछ दिन बाद प्रवीण से प्रीति का मनमुटाव हो गया और उन के बीच तलाक हो गया. पहले पति से तलाक होने के बाद प्रीति ने भविष्य में संतान नहीं होने के लिए औपरेशन भी करा लिया था.
जब प्रसून से उस की दूसरी शादी हुई तब 2 साल बाद उसे ससुराल में ताने मिलने लगे. सास ने उस की नाक में दम कर दिया. प्रीति ने सास को अपने औपरेशन के बारे में जानकारी नहीं दी थी. परिवार के वारिस न होने के कारण सास के ताने दिनप्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे. एक दिन तो सास ने बच्चा नहीं होने के कारण उसे घर से ही निकाल दिया.
बच्चे की लालसा में प्रीति अकसर परेशान रहने लगी थी. उस का 12 जून, 2023 को अपने पति प्रसून के साथ दिल्ली से हरिद्वार जाना हुआ. उस ने हरिद्वार में रह कर कोई छोटा बच्चा चुराने की योजना बना रखी थी.
17 जून, 2023 की आधी रात को उसे तब मौका मिल गया जब उस ने ऊर्जा निगम परिसर में एक महिला को अपने बच्चे के साथ बेसुध अवस्था में सोते हुए देखा. मौका मिलते ही प्रीति ने चुपचाप बच्चे को गोद में उठा लिया और अपने पति के साथ बस द्वारा दिल्ली चली गई.
इतनी बात बताते बताते प्रीति भावुक हो गई. इस के बाद इस घटना के विवेचक सुनील रावत ने प्रीति के यह बयान रिकौर्ड कर लिए. बाद में पुलिस ने प्रीति के कब्जे से वह मोबाइल फोन जिस में बच्चा चोरी से संबंधित बातचीत रिकौर्ड हुई थी, बरामद कर लिया.
एसएसपी अजय सिंह ने मेला नियंत्रण कक्ष में एक प्रैसवार्ता आयोजित कर बच्चे अभिजीत की चोरी की घटना के खुलासे की जानकारी सार्वजनिक कर दी. अगले दिन पहली जुलाई, 2023 को पुलिस ने प्रसून व प्रीति को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया.
-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
रात आधी से ज्यादा गुजर गई थी. इंस्पेक्टर अनिल कार्तिकेय आरामकुर्सी पर जरूर बैठे थे, किंतु उन की आंखों में नींद नहीं थी. त्रिलोचन की हिदायत के अनुसार उन्होंने रजत के कमरे के बाहर 2 सिपाहियों को पहरे पर लगा दिया था और स्वयं भी उस कमरे के दरवाजे पर निगाहें जमाए हुए थे. कमरे के अंदर जीरो पावर के बल्ब की रोशनी थी. कमरे में लेटे रजत और सुकुमार सो चुके थे.
अचानक ही कमरे के अंदर से किसी की चीख उभरी. अनिल उछल कर कमरे की ओर भागे. दोनों सिपाही भी हड़बड़ा कर अंदर की ओर दौड़े. एक सिपाही ने लाइट जला दी. अंदर लोमहर्षक दृश्य था. रजत सफेद चादर ओढ़े करवट के बल लेटा था, उस की पीठ में चाकू घुसा हुआ था.
‘‘रजत…’’ इंसपेक्टर की लगभग चीत्कार सी निकल गई.
‘‘मैं यहां हूं अंकल…’’ दूसरे पलंग से दबीदबी सी आवाज सुनाई दी. अनिल ने देखा चादर के नीचे दुबका रजत सहमी हुई आंखों से उन की ओर ही ताक रहा था.
‘‘माइ गौड, तो क्या यह सुकुमार है?’’ अनिल के मुंह से निकला.
तभी बाहर गोली चलने के साथ ही 2 आदमियों के दौड़ने की पदचाप सुनाई दी. त्रिलोचन हांफते हुए अंदर दाखिल हुए.
‘‘गजब हो गया चाचाजी,’’ अनिल की असहज आवाज उभरी, ‘‘किसी ने सुकुमार को…’’
‘‘सुकुमार को?’’ त्रिलोचन के मुंह से हैरत से निकला. वह सुकुमार की नब्ज टटोलते हुए बोले, ‘‘इंस्पेक्टर, जल्दी करो. इसे तुरंत अस्पताल पहुंचाना होगा.’’
आननफानन में सुकुमार को अस्पताल पहुंचा दिया गया. सुखनई के जंगल में भीड़ जमा थी. त्रिलोचन के साथ कुछ पुलिस वाले और एक क्रेन थी.
‘‘इंस्पेक्टर साहब,’’ त्रिलोचन ने अनिल को संबोधित किया, ‘‘आप की ड्यूटी क्रेन ड्राइवर के बगल में रहेगी. जैसे ही आप का मोबाइल बजे, आप क्रेन को ऊपर खींचने का इशारा कर दीजिएगा.’’
‘‘आप खतरा क्यों मोल ले रहे हैं चाचाजी? आप कहें तो किसी सिपाही को खाई में उतार देता हूं.’’
‘‘धन्यवाद, मैं यह काम खुद करना चाहता हूं. और नीरव, जब तुम्हारा मोबाइल बजे तो समझना कि क्रेन को रोकना है, विप्लव के मोबाइल के बजने का मतलब होगा कि क्रेन को नीचे जाना है.’’ त्रिलोचन ने दोनों बेटों के ऊपर गहरी नजर डाली. इस के बाद उन्होंने मास्क पहना और क्रेन की रस्सी के सहारे सुखनई नदी के कगार पर उगे घने जंगल के अंदर झूल गए.
कगार की दीवार पर लंबवत उगे पेड़ पतले लेकिन काफी घने थे. त्रिलोचन कुछ ही देर में उस अबूझ खाई में अदृश्य हो गए. अनिल का मोबाइल बजा और त्रिलोचन को धीरेधीरे ऊपर खींचा गया. लोगों की नजर उन पर पड़ी तो रोंगटे खड़े हो गए. त्रिलोचन के हाथों में एक कंकाल था.
कंकाल पर चिथड़ा चिथड़ा कपड़े झूल रहे थे. आंखों की जगह 2 गड्ढे नजर आ रहे थे. बड़ा ही भयावह दृश्य था.
दूसरे दिन सारे लोग हाल में जमा थे, त्रिलोचन अंदर आए तो सब की नजरें उन की ओर उठ गईं, उन्होंने बड़ा सा एक काला बैग थाम रखा था. त्रिलोचन ने वहां मौजूद लोगों के सामने अपना स्थान ग्रहण किया ही था कि उन्हें धुरंधर और उन की पत्नी सुखदेवी ने आ घेरा, ‘‘त्रिलोचनजी, हमारा बेटा कैसा है? कहां है वह उसे किस अस्पताल में रखा गया है?’’
त्रिलोचन ने एक पर्ची पर कुछ लिख कर सुखदेवी को थमा दी. पतिपत्नी ने पर्ची पर नजर डाली, फिर नासमझों की तरह अपनी जगह पर जा बैठे.
‘‘लेडीज ऐंड जेटलमेन,’’ त्रिलोचन उठ कर खड़े होते हुए बोले, ‘‘आज सच्चाई सब के सामने आ जाएगी. मयंक की हत्या हुई थी या उस की मौत एक हादसा थी, इस रहस्य पर से परदा उठने वाला है,’’ तभी एक व्यक्ति हाल में दाखिल हुआ.
‘‘मेजर चौहान, आप आगे आ जाइए.’’ त्रिलोचन का इशारा पा कर मेजर चौहान अगली पंक्ति में जा बैठे. वह वहां मौजूद ज्यादातर लोगों के लिए अपरिचित थे, पर उन्हें देख कर सुभाषिनी के चेहरे का रंग उड़ गया था.
‘‘जस दिन मयंक की मौत हुई, उस शाम को एक शिकार पार्टी सुखनई के जंगल में आदमखोर तेंदुए को मारने के लिए पहुंची थी.’’ त्रिलोचन ने कहना शुरू किया, ‘‘जहां मचान बनाए गए थे, वहां पर ज्यादातर पतले पेड़ थे, अत: एक पेड़ पर एक आदमी के बैठने के लिए मचान बनाया गया था. बलराम तोमर और उन की पत्नी सुभाषिनी के मचान पासपास के पेड़ों पर थे, उन से कुछ दूरी पर लगभग उसी स्थिति में मयंक और सुरबाला के मचान थे. धुरंधर तोमर का मचान मयंक के बाईं ओर वहां से लगभग 20 फुट दूर था.’’
उन्होंने आगे कहा, ‘‘बलराम तोमर के पास मैनलिकर सूनर राइफल थी, धुरंधरजी चेक राइफल से लैस थे, मयंक डी.बी. गन लिए था और सुभाषिनीजी के पास माउजर व सुरबाला के पास प्वाइंट 32 बोर का रिवाल्वर था. ये इन लोगों के पारिवारिक हथियार थे.’’
त्रिलोचन ने सामने बैठे बलराम तोमर से पूछा, ‘‘मैं ने ठीक कहा न तोमर साहब?’’
‘‘बिलकुल ठीक.’’ तोमर साहब ने सहमति व्यक्त की.
‘‘शिकारियों की इस टोली के अलावा वहां एक और शिकारी मौजूद था.’’ यह कहते हुए त्रिलोचन की नजर मेजर चौहान के ऊपर जा ठहरी, ‘‘एम आई राइट मेजर?’’
मेजर की निगाहें झुक गईं. त्रिलोचन आगे बोले, ‘‘मेजर ने अपनी जीप जंगल में काफी पीछे छोड़ दी थी और वहां से पैदल चलते हुए घटनास्थल पर पहुंच गए थे. इस के बाद यह मचानों से कुछ दूरी पर मौजूद एक झुरमुट में छिप कर अंधेरा होने का इंतजार करने लगे.’’
‘‘आप ने काफी हिम्मत दिखाई थी मेजर, आप झाडि़यों में छिप कर आदमखोर का इंतजार कर रहे थे?’’ अनिल के स्वर में तारीफ थी.
‘‘नहीं इंसपेक्टर साहब,’’ उस ने अनिल की ओर गर्दन घुमाई, ‘‘मेजर वहां तेंदुए का नहीं, एक इंसान का शिकार करने पहुंचे थे.’’
त्रिलोचन की बात सुन कर हाल में मौजूद हर शख्स चौंक गया.
‘‘यह किस की हत्या करना चाहते थे डैड?’’ विप्लव ने पूछा.
‘‘अपनी पूर्व पत्नी सुभाषिनी की.’’
लोग हैरान थे. सुरबाला की समझ में कुछ नहीं आया. वह बुदबुदाई, ‘‘अम्मा और इन की पूर्व पत्नी…?’’
‘‘मैं स्पष्ट करता हूं.’’ त्रिलोचन ने कहा, ‘‘सुभाषिनी की पहली शादी मेजर चौहान से हुई थी. शादी के कुछ दिनों बाद मेजर को कश्मीर जाने का अर्जेंट आदेश मिला. फलस्वरूप इन्हें कश्मीर में अपनी नई तैनाती पर जाना पड़ा. वहां शत्रु सेना बारबार घुसपैठ करने की कोशिश कर रही थी. इन्हें वहां गए कुछ ही दिन हुए थे कि एक दिन अचानक इन की चौकी पर हमला हुआ. मेजर के कई साथी शहीद हो गए. दुश्मन मेजर को जबरन बंधक बना कर अपने साथ ले गए.’’
हाल में एकदम सन्नाटा छा गया. त्रिलोचन पलभर रुक कर आगे बोले, ‘‘मेजर के लापता होने की खबर पा कर सुभाषिनी बेहाल हो गईं. सब से बड़ा झटका इन के मांबाप को लगा. मेजर के जिंदा होने की संभावना न के बराबर थी. इधर एक दूसरी समस्या उठ खड़ी हुई थी, अत: सुभाषिनी के मातापिता को उन के पुनर्विवाह का निर्णय लेना पड़ा.’’
त्रिलोचन सुभाषिनी पर एक नजर डाल कर आगे बोले, ‘‘फिर सुभाषिनी की बलराम तोमर से शादी कर दी गई, तोमर साहब विधुर थे. शादी के 2-3 हफ्ते बाद तोमर साहब को दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा, वहां इन के चाचाजी गुजर गए थे और उन्हें उन की जमीन जायदाद का प्रबंध करना था.’’ तोमर साहब एकटक उन्हीं की ओर देख रहे थे.
त्रिलोचन ने पूछा. ‘‘आप कुछ कहना चाहते हैं?’’
‘‘आप की जानकारी जबरदस्त है.’’
‘‘धन्यवाद, हां तो, मैं बता रहा था कि तोमर साहब को विदेश में कई महीने गुजारने पड़े. जब मयंक का जन्म हुआ और सुभाषिनी जी ने फोन पर उन्हें खबर दी तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा. वह लौट आए.’’
त्रिलोचन ने बैग से एक पुरानी पत्रिका निकाली. उन्होंने देखा, विप्लव आतुरता से उन की ओर देख रहा था. उन्होंने पूछा, ‘‘हां, बोलो विप्लव.’’
‘‘डैड, मेरी पड़ताल से साबित हुआ है कि धुरंधर और सुभाषिनी कालेज में सहपाठी थे और दोनों के बीच रोमानी रिश्ते थे और बाद में भी…’’ वह कुछ कहतेकहते रुक गया.
सुभाषिनी का चेहरा रंगहीन हो गया और धुरंधर तोमर दांत पीसते हुए उठ खड़े हुए.
‘‘विप्लव, डोंट जंप टू द कन्क्लूजन. मेरी नजर में ये दोनों पाक दामन हैं.’’ त्रिलोचन के इस कथन का धुरंधर पर खासा असर हुआ और वह शांत हो कर अपनी कुर्सी पर बैठ गए.
‘‘मेरी बात अधूरी रह गई थी, मैं आप को बताना चाहता हूं कि कुछ समय बाद मेजर चौहान दुश्मन की गिरफ्त से छूट आए थे. लेकिन जब तक वह आए तब तक सुभाषिनी और तोमर साहब की शादी हो चुकी थी. इस का नतीजा यह निकला कि मेजर चौहान ने सुभाषिनी को बेवफा समझा, क्योंकि इन्होंने मेजर का इंतजार नहीं किया था और गर्भवती होने की वजह से दूसरी शादी के लिए राजी हो गई थीं. हालांकि ऐसा इन्होंने मजबूरी में किया था, लेकिन मेजर की नजरों में यह कुसूरवार थीं. इसलिए इन्होंने अपनी पूर्व पत्नी से बदला लेने का फैसला कर लिया.
उस हादसे को कई साल बीत गए थे. लेकिन आज अचानक रजत के रूप में मयंक सुरबाला के सामने आ गया था. सुरबाला अभी पुरानी यादों से उबर भी नहीं पाई थी कि उस का मोबाइल बज उठा. उस ने उठने की कोशिश करते हुए मोबाइल कान से लगाया.
‘‘सुरबालाजी,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘त्रिलोचन बोल रहा हूं, आप सुन रही हैं न?’’
‘‘जी, जी हां.’’
‘‘आप की जान को खतरा है. अपने कमरे के दरवाजे और खिड़कियां ठीक से बंद कर लीजिए और बाहर मत निकलिएगा.’’ इस के साथ ही संपर्क टूट गया. सुरबाला चेतावनी को ठीक से समझ भी नहीं पाई थी कि उस ने किसी को अंदर आते देखा. उस काली छाया के हाथ में हथियार जैसी कोई चीज मौजूद थी. सुरबाला भयभीत हो कर जोर से चीखी और गिरती पड़ती दूसरे दरवाजे से निकल कर सीढि़यों की ओर भागी. छाया हथियार ताने हुए उस के पीछे झपटी. लेकिन सास के कमरे में चली जाने की वजह से वह बच गई.
त्रिलोचन के 2 बेटे थे, नीरव और विप्लव. उन्होंने उन दोनों को अपने जासूसी के पेशे से जोड़ रखा था. विप्लव और नीरव अपनेअपने तरीके से पिता की मदद करते थे.
नीरव ने अपने सामने बैठे व्यक्ति का गौर से मुआयना किया और अपने शब्दों पर जोर देते हुए बोला, ‘‘मेजर चौहान, आप उस रात कहां थे जिस समय मयंक की हत्या हुई थी?’’
‘‘अपने घर पर, और कहां?’’
‘‘लेकिन हमारी तफ्तीश बताती है कि आप उस रात सुखनई के जंगल में मौजूद थे…’’ नीरव ने देखा, चौहान चौंक गए थे. नीरव ने बिना मौका दिए अगला सवाल दाग दिया, ‘‘क्या करने गए थे वहां?’’
‘‘शिकार…’’
‘‘जानवर का या इंसान का?’’
‘‘व्हाट डू यू मीन?’’ मेजर तैश में आ कर चिल्ला पड़े, ‘‘ठीक है, आप जासूस हैं. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि आप मेरे ऊपर कोई भी आरोप लगा दें.’’
नीरव पर उन के चिल्लाने का कोई असर नहीं पड़ा. उस ने अपने बैग में हाथ डाल कर एक रिवाल्वर निकाली और सामने पड़ी मेज पर रख दी. रिवाल्वर बुरी तरह जंग लगी हुई थी. उसे देख मेजर के चेहरे पर विचित्र भाव उभर आए.
‘‘यह हथियार हमें उसी जंगल में मिला है और मुझे यकीन है कि यह आप का वही लाइसेंसी रिवाल्वर है, जिस की गुमशुदगी की रिपोर्ट आप ने जीतपुर थाने में दर्ज कराई थी. इस के चैंबर में अभी भी 2 खाली कारतूस मौजूद हैं. निस्संदेह आप को इस बात की जानकारी होगी कि उस रात उस जंगल में एक इंसान की जान चली गई थी.’’
मेजर के चेहरे का रंग उड़ गया, वह कुर्सी पर गिर से पड़े. नीरव ने उन से पूछताछ जारी रखी.
बरामदे में बैठे चाय पी रहे त्रिलोचन सामने बैठी पत्नी से पूछा, ‘‘विप्लव कहां है?’’
‘‘साहबजादे सो रहे हैं.’’
‘‘आप उसे बिगाड़ रही हैं, यह कोई सोने का वक्त है?’’ त्रिलोचन को गुस्सा आ गया. वह चाय का प्याला थामे विप्लव के कमरे में जा पहुंचे. उन्होंने झटके से बेटे के ऊपर से चादर खींच ली. उसी वक्त गर्म चाय की कुछ बूंदें छलक कर विप्लव की पीठ पर गिर गईं.
‘‘आ…’’ विप्लव बौखला कर उठ बैठा और अपनी पीठ सहलाने लगा.
‘‘मैं ने तुम्हें एक काम दिया था?’’
‘‘डैड, आज आप का काम हो जाएगा. लेकिन रिमाइंड करवाने का आप का यह तरीका कुछकुछ पुलिसवालों की थर्ड डिग्री जैसा है. प्लीज, आगे से ऐसा मत करिएगा.’’
त्रिलोचन मुसकुराते हुए बाहर निकल गए. चाय का प्याला उन्होंने मेज पर रखा और अपना बैग ले कर चले गए. उन का रुख बर्नेट अस्पताल की ओर था. अस्पताल में त्रिलोचन को अपने टारगेट तक पहुंचने में देर नहीं लगी.
‘‘बड़े मियां, मैं ने सुना है कि आप शायरी बहुत अच्छी करते हैं.’’ त्रिलोचन ने बर्नेट अस्पताल के उस बूढ़े क्लर्क की तारीफ की. साथ ही वह बारीकी से उस रजिस्टर के पन्ने भी निहार रहे थे, जिस के आधे से ज्यादा पृष्ठ जर्जर हो गए थे.
‘‘अमां लानत भेजिए हुजूर.’’ वह रद्दी की टोकरी में पीक थूकता हुआ बोला, ‘‘कम्बख्त यह भी कोई करने लायक काम है.’’
त्रिलोचन समझ गए कि जश्न अली बहुत काइयां है और उन के ऊपर निगाह जमाए हुए है. उस के रहते कुछ संभव नहीं होगा.
‘‘मुआफ करिएगा, एक जरूरी फोन आ रहा है.’’ त्रिलोचन मोबाइल कान से लगाते हुए बाहर निकल गए. बाहर आ कर उन्होंने अपने घर का नंबर डायल किया. मिनट भर बाद शैलजा ने फोन उठाया तो वह धीरे से बोले, ‘‘एक लैंडलाइन नंबर लिख लो और इस नंबर पर फोन कर के फोन उठाने वाले को कुछ देर उलझाए रखो.’’
पलभर बाद ही अंदर के कमरे में रखा टेलीफोन बज उठा. घंटी की आवाज सुन कर जश्न अली बुदबुदाया, ‘‘लीजिए, यह कम्बख्त भी घनघनाने लगा.’’
त्रिलोचन इसी मौके की ताक में थे, उन्होंने साथ लाए कैमरे से उस खास पेज का फोटो ले लिया.
विप्लव धुरंधर के सामने बैठा था. धुरंधर के चेहरे पर नागवारी के भाव थे. उन्होंने विप्लव को घूर कर देखा और नाराजगी भरे स्वर में बोले, ‘‘आप का पूरा परिवार ही हमारे पीछे पड़ गया है. पहले आप के पिताजी ने अच्छीखासी नौटंकी की, अब आप आ गए.’’
‘‘नौटंकी कौन कर रहा है, यह जल्दी ही पता चल जाएगा. फिलहाल तो यह बताइए कि आप अपनी भाभी सुभाषिनीजी को कब से जानते हैं?’’
‘‘जब से बड़े भैया से उन की शादी हुई.’’ धुरंधर ने बेलाग जवाब दिया.
‘‘पक्का?’’
‘‘आप कहना क्या चाहते हैं?’’
‘‘मैं कहना यह चाहता हूं…’’ विप्लव ने धुरंधर के चेहरे पर नजर जमा दी, ‘‘कि आप दोनों उस से भी काफी पहले से एकदूसरे को जानते हैं.’’
‘‘यह आप के दिमाग की उपज है?’’
‘‘नहीं जी, मेरा दिमाग इतना उपजाऊ कहां है. यह तो लखनऊ के उस कालेज की पत्रिका की उपज है, जहां आप दोनों साथसाथ पढ़ते थे.’’ विप्लव ने हाथ में थामी हुई पत्रिका खोल कर धुरंधर के आगे रख दी. बीच के पन्ने पर एक समूह फोटो छपी थी, जिस में सुभाषिनी और धुरंधर पासपास खड़े थे. फोटो देख कर धुरंधर की निगाह झुक गई. विप्लव ने धुरंधर से कई बातें पूछीं और लौट आया.
हफ्ता भर बाद बलराम तोमर ने अपने हवेलीनुमा घर में शानदार दावत का आयोजन किया. जिस बड़े हाल में आयोजन था, उस के बीचोबीच एक बड़ा सा बैनर लगा था, जिस में लिखा था, ‘मयंक तुम्हारे आने की खुशी में आज पूरा घर खुश है.’
रजत अपने मातापिता के साथ बैठा मुसकरा रहा था. उस ने धुरंधर के बेटे सुकुमार से दोस्ती कर ली थी और उस से बतिया रहा था. सुरबाला की नजर त्रिलोचन पर पड़ी तो वह तुरंत उन के पास आ पहुंची. उस के हाथ में प्लास्टर बंधा हुआ था.
‘‘उस दिन आप की मेहरबानी से बच गई, सीढि़यों से गिरने पर हाथ जरूर टूटा गया, लेकिन जान…’’
‘‘खतरा अभी टला नहीं है.’’ त्रिलोचन के स्वर में उस के लिए चेतावनी थी.
‘‘मैं उस दिन से सासू मां के साथ ही सोती हूं.’’
रात के 10 बजतेबजते खानापीना खत्म हो गया.
‘‘आज सब को यहीं विश्राम करना है.’’ बलराम तोमर ने मेहमानों से कहा तो त्रिलोचन बोले, ‘‘हम आप से माफी चाहते हैं, एक जरूरी काम है, जिसे रात में खत्म करना है, वरना हम ठहर जाते.’’
त्रिलोचन ने तोमर साहब से अनुमति ली तो नीरव और विप्लव भी उठ खड़े हुए.
‘‘और हां, आप सब के लिए एक आवश्यक सूचना है.’’ त्रिलोचन ने पलटते हुए घोषणा की, ‘‘रजत को अपने पिछले जन्म की वे तमाम बातें भी याद आ गई हैं, जिन पर अभी तक परदा पड़ा हुआ था. इस सब पर हम कल चर्चा करेंगे. मेहरबानी कर के इस बारे में रजत को अभी तंग न करें.’’
त्रिलोचन अपने दोनों बेटों विप्लव और नीरव के साथ चले गए.
आगे वाली गाड़ी से रजत, उस के मातापिता तथा त्रिलोचन के उतरते ही पत्रकारों और टीवी चैनलों के रिपोर्टरों ने घेर लिया. रजत को देखने वालों की भीड़ पत्रकारों से ज्यादा बेताब थी तभी पुलिस की जीप आ पहुंची. जीप के रुकते ही कई सिपाही फुर्ती से उतरे और लोगों को धकियाते हुए रास्ता बनाने लगे.
‘‘चाचाजी, मुझे माफ करिएगा.’’ इंसपेक्टर अनिल ने आगे बढ़ कर त्रिलोचन का रास्ता लगभग रोकते हुए कहा, ‘‘मैं आप को यह सब नहीं करने दूंगा.’’
‘‘क्या नहीं करने देंगे इंस्पेक्टर साहब?’’ त्रिलोचन ने हैरानी से पूछा.
‘‘इस तरह से किसी के घर में घुसना गलत है, अतिक्रमण है यह…’’
‘‘इन लोगों को गिरफ्तार कर लीजिए दरोगाजी, ये हमारे खिलाफ साजिश करने आए हैं…’’ अचानक एक तेज आवाज गूंज उठी. त्रिलोचन ने मुड़ कर देखा, सफेद कुर्ता धोती पहने ऊंचातगड़ा एक आदमी भीड़ को चीर कर उन के सामने आ खड़ा हुआ. उस ने कंधे पर दोनाली बंदूक टांग रखी थी. त्रिलोचन और अनिल कुछ कहने ही वाले थे कि रजत अपनी मां से हाथ छुड़ा कर दौड़ा और उस व्यक्ति से जा कर लिपट गया.
‘‘चाचा, मैं आ गया…’’ रजत की आवाज में खुशी उमड़ी पड़ रही थी. वह व्यक्ति कुछ कहता या पूछता, इस के पहले ही रजत अपने मातापिता से मुखातिब हुआ, ‘‘मम्मी… पापा… ये मेरे चाचा हैं. धुरंधर चाचा.’’
धुरंधर तोमर के चेहरे पर हैरानगी उभर आई. वह चाह कर भी बच्चे को झिड़क नहीं सके.
‘‘आप ने इस बच्चे को आज से पहले कभी देखा है?’’ इंसपेक्टर अनिल ने पूछा.
‘‘नहीं, कभी नहीं.’’ धुरंधर के मुंह से निकला.
‘‘इस के मांबाप को जानते हैं?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘तो फिर यह आप को कैसे जानता है?’’ धुरंधर कुछ कह पाते, इस के पहले ही एक महिला टीवी रिपोर्टर की आवाज गूंज उठी, ‘‘देखा आप ने, रजत यानी मयंक ने अपने पिछले जन्म के चाचा को पहचान लिया है.’’
‘‘जाहिर है, आप मुझे भी नहीं जानते?’’ त्रिलोचन धुरंधर की ओर उन्मुख हुए.
‘‘बिलकुल नहीं.’’
‘‘तो फिर आप किस आधार पर कह रहे हैं तोमर साहब कि आप के खिलाफ ये लोग साजिश कर रहे हैं?’’ इंसपेक्टर अनिल ने कहा.
‘‘यह तमाशा साजिश नहीं तो और क्या है?’’ धुरंधर को गुस्सा आ गया.
‘‘तो फिर आप इस का पर्दाफाश क्यों नहीं कर देते?’’ त्रिलोचन के स्वर में चुनौती थी.
‘‘मैं ने पुलिस को इसीलिए यहां बुलाया है.’’
‘‘तो ठीक है, पुलिस के सामने सारी जांचपड़ताल हो जाने दीजिए, सच्चाई सामने आ जाएगी.’’ कहते हुए त्रिलोचन अनिल की ओर मुड़े, ‘‘अगर यह सचमुच पूर्वजन्म का मयंक है तो यह इस अंजान गांव में हम सब को अपने पिछले जन्म के घर जरूर ले चलेगा.’’
अनिल ने मौन सहमति दी.
‘‘मयंक, अपने घर चलो.’’ त्रिलोचन का इशारा पाते ही रजत बेधड़क एक ओर बढ़ गया. उस के पीछे विशाल जनसमुदाय था.
सचमुच कमाल हो गया. रजत बेखौफ अपने पूर्व जन्म के घर में जा घुसा. उस ने अपने मातापिता यानी बलराम तोमर और सुभाषिनी को न केवल पहचाना, बल्कि उन से लिपट कर खूब रोया भी. उस ने अपनी चाची यानी धुरंधर तोमर की पत्नी सुखदेवी और दूसरे परिजनों को भी आसानी से पहचान लिया.
हद तो तब हो गई, जब उस ने सैकड़ों लोगों के बीच बैठी अपनी पत्नी सुरबाला को जा पहचाना. फिर भी सुरबाला को यकीन नहीं हुआ, धुरंधर तोमर की तरह उस के भी मन में अविश्वास के बादल घुमड़ रहे थे.
‘‘मुझे ऐसे विश्वास नहीं होगा. मुझे ऐसी कोई बात बताओ, जिसे मेरे अलावा सिर्फ मेरे पति जानते थे.’’ उस की अविश्वास भरी नजरें रजत के मासूम चेहरे पर ठहर गईं.
वह कई पलों तक कुछ सोचता रहा, फिर अचानक बोला, ‘‘तुम्हारी पीठ पर नीचे की ओर दाहिनी तरफ एक तिल है.’’
सुन कर सुरबाला भौंचक्की सी रह गई. यह सुन कर वहां मौजूद तमाशबीनों के मुंह भी खुले रह गए. फिर न जाने क्या हुआ कि सुरबाला रजत को गोद में उठा कर रो पड़ी.
‘‘तुम मुझे छोड़ कर क्यों चले गए थे…?’’ उस के आंसू उमड़उमड़ कर बहने लगे.
सब से मिलनेमिलाने के बाद रजत उसी शाम अपने मातापिता के साथ शहर लौट गया. वह सुरबाला से वादा कर गया था कि अगले हफ्ते फिर आएगा. उस रात बलराम तोमर के घर में कोई नहीं सो पाया. रजत अनेक झंझावात छोड़ गया था, जिन्होंने तोमर परिवार को सारी रात जगाए रखा.
बलराम तोमर खानदानी रईस थे. दोनों भाइयों का संयुक्त परिवार था. तीन सौ एकड़ जमीन के अलावा एक चीनी मिल भी थी. दोनों भाइयों के बीच सिर्फ एक चश्मओचिराग था, धुरंधर तोमर का 6-7 वर्षीय पुत्र सुकुमार. रजत उसे इसलिए नहीं पहचान पाया था, क्योंकि उस का जन्म मयंक की मौत के कई सालों बाद हुआ था.
मयंक की मौत की वह रात सुरबाला को आज भी ज्यों की त्यों याद थी.
तोमर परिवार ने एक एडवेंचर प्रोग्राम बनाया था, जिस में महिलाओं को भी शामिल किया गया था. उसी के तहत सुरबाला अपने पति, सासससुर व चचिया ससुर धुरंधर के साथ शिकार पर गई थी. यह उस के लिए पहला और आखिरी एडवेंचर था. सुखनई के जंगल में उन दिनों एक आदमखोर तेंदुए ने आतंक मचा रखा था. वह 20 किलोमीटर के दायरे में कई इंसानी जिंदगियां लील चुका था. इसी वजह से सरकार ने तोमर परिवार को उसे मारने की इजाजत दे दी थी.
तेंदुए को मारने के लिए तोमर परिवार ने जंगल में तीन मचान बनाए थे. अंधेरा घिरतेघिरते सभी लोग मचानों पर चढ़ कर बैठ गए. नीचे चारे के तौर पर एक बकरा बांध दिया गया था.
जिस मचान पर सुरबाला और मयंक बैठे थे, उस के ठीक सामने वाले मचान पर उस के सासससुर यानी बलराम तोमर और सुभाषिनी बैठे थे. धुरंधर तोमर का मचान उन से लगभग 20 फुट दूर बाईं ओर था. तीनों मचानों के नीचे बंधा बकरा साफ नजर आ रहा था, लेकिन जैसेजैसे अंधेरा घिरता गया, बकरे का अक्स धूमिल होता गया.
रात गहराने लगी थी, सुरबाला की पलकें नींद से बोझिल हो गई थीं. वह अपने आप को जगाए रखने की भरसक कोशिश कर रही थी. बकरा पता नहीं क्यों खामोश हो गया था. तभी अचानक गोली चलने, तेंदुए के गरजने और मयंक के नीचे गिरने की घटनाएं एक साथ घटीं.
तेंदुआ मयंक को बुरी तरह झंझोड़ने में लगा था. इतना दिल दहलाने वाला दृश्य था कि सुरबाला के हाथ से टार्च छूट कर नीचे गिर गई. इस के बाद किसी ने गोली नहीं चलाई. तेंदुआ मयंक को खींचता हुआ जंगल में गायब हो गया. जब उन लोगों को होश आया तो ताबड़तोड़ हवाई फायरिंग की गई. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. रात भर उन लोगों की नीचे उतरने की भी हिम्मत नहीं हुई.
सुबह उन लोगों ने मयंक की तलाश में वन विभाग और पुलिस वालों के साथ पूरा जंगल छान मारा, लेकिन नाकामी ही हाथ लगी. सुरबाला का रोरो कर बुरा हाल था. बाद में भी काफी खोजबीन की गई, पर मयंक की लाश नहीं मिली.