
पढ़ीलिखी गुलशन की शादी मसजिद के मुअज्जिन हबीब अली के बेटे परवेज अली से धूमधाम से हुई. लड़का कपड़े का कारोबार करता था. घर में जमीनजायदाद सबकुछ था.
गुलशन ब्याह कर आई तो पहली रात ही उसे अपने मर्द की असलियत का पता चल गया. बादल गरजे जरूर, पर ठीक से बरस नहीं पाए और जमीन पानी की बूंदों के लिए तरसती रह गई. वलीमा के बाद गुलशन ससुराल दिल में मायूसी का दर्द ले कर लौटी.
खानदानी घर की पढ़ीलिखी लड़की होने के बावजूद सीधीसादी गुलशन को एक ऐसे आदमी को सौंप दिया गया, जो सिर्फ चारापानी का इंतजाम तो करता, पर उस का इस्तेमाल नहीं कर पाता था.
गुलशन को एक हफ्ते बाद हबीब अली ससुराल ले कर आए. उस ने सोचा कि अब शायद जिंदगी में बहार आए, पर उस के अरमान अब भी अधूरे ही रहे.
मौका पा कर एक रात को गुलशन ने अपने शौहर परवेज को छेड़ा, ‘‘आप अपना इलाज किसी अच्छे डाक्टर से क्यों नहीं कराते?’’
‘‘तुम चुपचाप सो जाओ. बहस न करो. समझी?’’ परवेज ने कहा.
गुलशन चुपचाप दूसरी तरफ मुंह कर के अपने अरमानों को दबा कर सो गई. समय बीतता गया. ससुराल से मायके आनेजाने का काम चलता रहा. इस बात को दोनों समझ रहे थे, पर कहते किसी से कुछ नहीं थे. दोनों परिवार उन्हें देखदेख कर खुश होते कि उन के बीच आज तक तूतूमैंमैं नहीं हुई है.
इसी बीच एक ऐसी घटना घटी, जिस ने गुलशन की जिंदगी बदल दी. मसजिद में एक मौलाना आ कर रुके. उन की बातचीत से मुअज्जिन हबीब अली को ऐसा नशा छाया कि वे उन के मुरीद हो गए. झाड़फूंक व गंडेतावीज दे कर मौलाना ने तमाम लोगों का मन जीत लिया था. वे हबीब अली के घर के एक कमरे में रहने लगे.
‘‘बेटी, तुम्हारी शादी के 2 साल हो गए, पर मुझे दादा बनने का सुख नहीं मिला. कहो तो मौलाना से तावीज डलवा दूं, ताकि इस घर को एक औलाद मिल जाए?’’ हबीब अली ने अपनी बहू गुलशन से कहा.
गुलशन समझदार थी. वह ससुर से उन के बेटे की कमी बताने में हिचक रही थी. चूंकि घर में ससुर, बेटे, बहू के सिवा कोई नहीं रहता था, इसलिए वह बोली, ‘‘बाद में देखेंगे अब्बूजी, अभी मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’
हबीब अली ने कुछ नहीं कहा.
मुअज्जिन हबीब अली के घर में रहते मौलाना को 2 महीने बीत गए, पर उन्होंने गुलशन को देखा तक नहीं था. उन के लिए सुबहशाम का खाना खुद हबीब अली लाते थे.
दिनभर मौलाना मसजिद में इबादत करते. झाड़फूंक के लिए आने वालों को ले कर वे घर आते, जो मसजिद के करीब था. हबीब अली अपने बेटे परवेज के साथ दुकान में रहते थे. वे सिर्फ नमाज के वक्त घर या मसजिद आते थे.
मौलाना की कमाई खूब हो रही थी. इसी बहाने हबीब अली के कपड़ों की बिक्री भी बढ़ गई थी. वे जीजान से मौलाना को चाहते थे और उन की बात नहीं टालते थे.
एक दिन दोपहर के वक्त मौलाना घर आए और दरवाजे पर दस्तक दी.
‘‘जी, कौन है?’’ गुलशन ने अंदर से ही पूछा.
‘‘मैं मौलाना… पानी चाहिए.’’
‘‘जी, अभी लाई.’’
गुलशन पानी ले कर जैसे ही दरवाजा खोल कर बाहर निकली, गुलशन के जवां हुस्न को देख कर मौलाना के होश उड़ गए. लाजवाब हुस्न, हिरनी सी आंखें, सफेद संगमरमर सा जिस्म…
मौलाना गुलशन को एकटक देखते रहे. वे पानी लेना भूल गए.
‘‘जी पानी,’’ गुलशन ने कहा.
‘‘लाइए,’’ मौलाना ने मुसकराते हुए कहा.
पानी ले कर मौलाना अपने कमरे में लौट आए, पर दिल गुलशन के कदमों में दे कर. इधर गुलशन के दिल में पहली बार किसी पराए मर्द ने दस्तक दी थी. मौलाना अब कोई न कोई बहाना बना कर गुलशन को आवाज दे कर बुलाने लगे. इधर गुलशन भी राह ताकती कि कब मौलाना उसे आवाज दें.
एक दिन पानी देने के बहाने गुलशन का हाथ मौलाना के हाथ से टकरा गया, उस के बाद जिस्म में सनसनी सी फैल गई. मुहब्बत ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया था.
ऊपरी मन से मौलाना ने कहा, ‘‘सुनो मियां हबीब, मैं कब तक तुम्हारा खाना मुफ्त में खाऊंगा. कल से मेरी जिम्मेदारी सब्जी लाने की. आखिर जैसा वह तुम्हारा बेटा, वैसा मेरा भी बेटा हुआ. उस की बहू मेरी बहू हुई. सोच कर कल तक बताओ, नहीं तो मैं दूसरी जगह जा कर रहूंगा.’’
मुअज्जिन हबीब अली ने सोचा कि अगर मौलाना चले गए, तो इस का असर उन की कमाई पर होगा. जो ग्राहक दुकान पर आ रहे हैं, वे नहीं आएंगे. उन को जो इज्जत मौलाना की वजह से मिल रही है, वह नहीं मिलेगी.
इस समय पूरा गांव मौलाना के अंधविश्वास की गिरफ्त में था और वे जबरदस्ती तावीज, गंडे, अंगरेजी दवाओं को पीस कर उस में राख मिला कर इलाज कर रहे थे. हड्डियों को चुपचाप हाथों में रख कर भूतप्रेत निकालने का काम कर रहे थे.
बापबेटे दोनों ने मौलाना से घर छोड़ कर न जाने की गुजारिश की. अब मौलाना दिखाऊ ‘बेटाबेटी’ कह कर मुअज्जिन हबीब अली का दिल जीतने की कोशिश करने लगे.
नमाज के बाद घर लौटते हुए हबीब अली ने मौलाना से कहा, ‘‘जनाब, आप इसे अपना ही घर समझिए. आप की जैसी मरजी हो वैसे रहें. आज से आप घर पर ही खाना खाएंगे, मुझे गैर न समझें.’’
मौलाना के दिल की मुराद पूरी हो गई. अब वे ज्यादा वक्त घर पर गुजारने लगे. बाहर के मरीजों को जल्दी से तावीज दे कर भेज देते. इस काम में अब गुलशन भी चुपकेचुपके हाथ बंटाने लगी थी. तकरीबन 6 महीने का समय बीत चुका था. गुलशन और मौलाना के बीच मुहब्बत ने जड़ें जमा ली थीं.
एक दिन मौलाना ने सोचा कि आज अच्छा मौका है, गुलशन की चाहत का इम्तिहान ले लिया जाए और वे बिस्तर पर पेट दर्द का बहाना बना कर लेट गए.
‘‘मेरा आज पेट दर्द कर रहा है. बहुत तकलीफ हो रही है. तुम जरा सा गरम पानी से सेंक दो,’’ गुलशन के सामने कराहते हुए मौलाना ने कहा.
‘‘जी,’’ कह कर वह पानी गरम करने चली गई. थोड़ी देर बाद वह नजदीक बैठ कर मौलाना का पेट सेंकने लगी. मौलाना कभीकभी उस का हाथ पकड़ कर अपने पेट पर घुमाने लगे.
थोड़ा सा झिझक कर गुलशन मौलाना के पेट पर हाथ फिराने लगी. तभी मौलाना ने जोश में गुलशन का चुंबन ले कर अपने पास लिटा लिया. मौलाना के हाथ अब उस के नाजुक जिस्म के उस हिस्से को सहला रहे थे, जहां पर इनसान अपना सबकुछ भूल जाता है.
आज बरसों बाद गुलशन को जवानी का वह मजा मिल रहा था, जिस के सपने उस ने संजो रखे थे. सांसों के तूफान से 2 जिस्म भड़की आग को शांत करने में लगे थे. जब तूफान शांत हुआ, तो गुलशन उठ कर अपने कमरे में पहुंच गई.
‘‘अब्बू, मुझे यकीन है कि मौलाना के तावीज से जरूर कामयाबी मिलेगी,’’ गुलशन ने अपने ससुर हबीब अली से कहा.
‘‘हां बेटी, मुझे भी यकीन है.’’
अब हबीब अली काफी मालदार हो गए थे. दिन काफी हंसीखुशी से गुजर रहे थे. तभी वक्त ने ऐसी करवट बदली कि मुअज्जिन हबीब अली की जिंदगी में अंधेरा छा गया.
एक दिन हबीब अली अचानक किसी जरूरी काम से घर आए. दरवाजे पर दस्तक देने के काफी देर बाद गुलशन ने आ कर दरवाजा खोला और पीछे हट गई. उस का चेहरा घबराहट से लाल हो गया था. बदन में कंपकंपी आ गई थी.
हबीब अली ने अंदर जा कर देखा, तो गुलशन के बिस्तर पर मौलाना सोने का बहाना बना कर चुपचाप मुंह ढक कर लेटे थे.
यह देख कर हबीब अली के हाथपैर फूल गए, पर वे चुपचाप दुकान लौट आए.
‘‘अब क्या होगा? मुझे डर लग रहा है,’’ कहते हुए गुलशन मौलाना के सीने से लिपट गई.
‘‘कुछ नहीं होगा. हम आज ही रात में घर छोड़ कर नई दुनिया बसाने निकल जाएंगे. मैं शहर से गाड़ी का इंतजाम कर के आता हूं. तुम तैयार हो न?’’
‘‘मैं तैयार हूं. जैसा आप मुनासिब समझें.’’
मौलाना चुपचाप शहर चले गए. मौलाना को न पा कर हबीब अली ने समझा कि उन के डर की वजह से वह भाग गया है.
सुबह हबीब अली के बेटे परवेज ने बताया, ‘‘अब्बू, गुलशन भी घर पर नहीं है. मैं ने तमाम जगह खोज लिया, पर कहीं उस का पता नहीं है. वह बक्सा भी नहीं है, जिस में गहने रखे हैं.’’
हबीब अली घबरा कर अपनी जिंदगी की कमाई और बहू गुलशन को खोजने में लग गए. पर गुलशन उन की पहुंच से काफी दूर जा चुकी थी, मौलाना के साथ अपना नया घर बसाने.
कामिनी दरवाजे के बाहर खड़ी थी. खूब सजधज कर. सामने उसे एक अधेड़ उम्र का आदमी आता दिखाई दिया. उसे लगा कि वह उस की ओर चला आ रहा है. पर यह क्या? वह उस के बगल में खड़ी लड़की के पास चला गया और उस से बातें करने लगा. कामिनी सोचने लगी, ‘अब मेरी जवानी ढलने लगी है, शायद इसीलिए लड़के तो दूर अधेड़ भी मेरे पास आने से कतराने लगे हैं. आज भी मैं कुछ कमा नहीं पाई. अब मैं दीदी को क्या जवाब दूंगी? यही हाल रहा तो एक दिन वे मुझे यहां से निकाल बाहर करेंगी.’
इस के बाद कामिनी पुरानी यादों में खो गई. कामिनी के मातापिता गरीब थे. उस की मां लोगों के बरतन साफ कर के घर का खर्चा चलाती थी.
मातापिता ने कामिनी को अपना पेट काट कर पढ़ाना चाहा और उसे शहर के एक स्कूल में भरती किया. उन का सपना था कि कामिनी भी पढ़लिख कर समाज में नाम कमाए.
एक दिन स्कूल से छुट्टी होने के बाद कामिनी घर आने के लिए आटोरिकशा का इंतजार करने लगी. तभी उस के सामने एक कार आ कर रुकी. उस कार से एक अधेड़ आदमी बाहर आया. वह कामिनी से बोला, ‘बेटी, यहां क्यों खड़ी हो?’
‘मुझे घर जाना है. मैं आटोरिकशा का इंतजार कर रही हूं.’
‘बेटी, तुम्हारा घर कहां है?’ वह आदमी बोला.
‘देवनगर,’ कामिनी बोली.
‘मुझे भी देवनगर जाना है. हमारे साथ कार में बैठ जाओ.’
उस आदमी की बात सुन कर कामिनी उस की कार में बैठ गई. कार में 2 आदमी और भी बैठे थे.
कार को दूसरी तरफ अनजानी जगह पर जाते देख कामिनी हैरानी से बोली, ‘अंकल, आप कह रहे थे कि आप को देवनगर जाना है, पर आप तो…’
‘बेटी, मुझे जरूरी काम याद आ गया. मैं किसी दोस्त से मिलने जा रहा हूं. तुम्हें ये लोग तुम्हारे घर छोड़ देंगे,’ कामिनी की बात पूरी होने से पहले ही वह आदमी बोला.
कार आगे दौड़ने लगी. कार को दूसरी दिशा में जाते देख कामिनी बोली, ‘अंकल, यह तो देवनगर जाने का रास्ता नहीं है. आप मुझे कहां ले जा रहे हैं?’
‘बेटी, हम तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देंगे. उस से पहले हम तुम से एक बात करना चाहते हैं. हम कोई गैर नहीं हैं. हम तुम्हें और तुम्हारे मातापिता को अच्छी तरह से जानते हैं.
‘एक दिन हम ने तुम्हें अपनी सहेली से कहते सुना था कि तुम हीरोइन बनना चाहती हो. तुम चाहो तो हम तुम्हें किसी फिल्म में हीरोइन का रोल दिला देंगे. तब दुनियाभर में तुम्हारा नाम होगा. तुम्हारे पास इतनी दौलत हो जाएगी कि तुम अपने मांबाप के सारे सपने पूरे कर सकोगी.
‘हीरोइन बनने के बाद तुम अपने मातापिता से मिलने जाओगी, तो सोचो कि वे कितने खुश होंगे? कुछ दिनों के बाद तुम्हें फिल्म में रोल मिल जाएगा, तब तक तुम्हें अपने मातापिता से दूर रहना होगा.’
कामिनी की आंखों में हीरोइन बनने का सपना तैरने लगा. वह ख्वाब देखने लगी कि उसे बड़े बैनर की फिल्म मिल गई है. पत्रपत्रिकाओं और टैलीविजन के खबरिया चैनलों में उस के नाम की चर्चा हो रही है. समाज में उस के मातापिता की इज्जत बढ़ गई है. उस के पुराने मकान की जगह पर अब आलीशान कोठी है. सब उसी में रह रहे हैं.
‘बेटी, क्या सोच रही हो?’ उस आदमी के सवाल ने कामिनी का ध्यान भंग किया.
‘अंकल, मैं फिल्म में हीरोइन बनने को तैयार हूं,’ कामिनी ने कहा.
2-3 घंटे के सफर के बाद वह कार शहर से दूर एक इलाके में पहुंच गई. कामिनी को इस जगह के बारे में पता नहीं था. कार से उतर कर वे दोनों आदमी कामिनी को ले कर एक मकान में गए.
दरवाजे पर खटखट करने पर एक मोटी औरत बाहर आई. वहां आसपास खड़ी लड़कियां उसे ‘दीदी’ कह कर पुकार रही थीं.
उन आदमियों को देख कर वह औरत बोली, ‘ले आए तुम नई को?’
‘बेटी, तुम्हें कुछ दिन यहीं रहना है. उस के बाद हम तुम्हें फिल्म बनाने वाले के पास ले चलेंगे,’ एक आदमीने कहा और वे दोनों वहां से चले गए.
दीदी ने कामिनी के रहने का इंतजाम एक अलग कमरे में कर दिया. वहां सुखसुविधाएं तो सभी थीं, पर कामिनी को वहां का माहौल घुटन भरा लगा.
3 दिन के बाद दीदी कामिनी से बोली, ‘आज हम तुम्हें एक फिल्म बनाने वाले के पास ले चलेंगे. वे जो भी कहें, सबकुछ करने को तैयार रहना.’
कुछ देर बाद एक कार आई. उस में 2 आदमी बैठे थे. दीदी के कहने पर कामिनी उस कार में बैठ गई. एक घंटे के सफर के बाद वह एक आलीशान कोठी में पहुंच गई. वहां वे आदमी उसे एक कमरे में ले गए.
उस कमरे में एक आदमी बैठा था. उसे वहां के लोग सेठजी कह रहे थे. कामिनी को उस कमरे में छोड़ वे दोनों आदमी बाहर निकले.
जाते समय उन में से एक ने कामिनी से कहा, ‘ये सेठजी ही तुम्हारे लिए फिल्म बनाने वाले हैं.’
सेठजी ने कामिनी को कुरसी पर बिठाया. इंटरव्यू लेने का दिखावा करते हुए वे कामिनी से कुछ सवालपूछने लगे. इसी बीच एक आदमी शरबत के 2 गिलास ले कर वहां आया. एक गिलास सेठजी ने पीया और दूसरा गिलास कामिनी को पीने को दिया.
शरबत पीने के बाद कामिनी पर बेहोशी छा गई. उसे जब होश आया, तो उस ने अपने सामने सेठजी को मुसकराते हुए देखा. वह दर्द से कराह रही थी.
‘मेरे साथ धोखा हुआ है. मैं तुम सब को देख लूंगी. मैं तुम्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दूंगी,’ कामिनी चिल्लाई.
‘तुम्हारे साथ कोई धोखा नहीं हुआ है. तुम फिल्म में हीरोइन बनना चाहती थीं. लो, देख लो अपनी फिल्म,’ कह कर सेठजी ने कंप्यूटर में सीडी डाल कर उसे दिखा दी.
सीडी को देख कर कामिनी सन्न रह गई. उस फिल्म में सेठजी उस की इज्जत के साथ खेलते दिखाई दिए. ‘वैसे तो यह फिल्म हम किसी को नहीं दिखाएंगे. अगर तुम ने हमारी शिकायत पुलिस से की, तो हम इसे सारी दुनिया में पहुंचा देंगे,’ कंप्यूटर बंद करते हुए सेठजी बोले.
कमिनी को इस घटना से सदमा पहुंच गया. वह बेहोश हो गई. कुछ देर बाद वे दोनों आदमी कामिनी को कार में बैठा कर दीदी के पास ले गए.
कामिनी गुमसुम रहने लगी. वह न कुछ खाती थी, न किसी से बातें करती थी.
एक दिन दीदी कामिनी के कमरे में आ कर बोली, ‘देखो, यहां जो भी लड़की आती है, वह अपनी इच्छा से नहीं आती. वह कुछ दिनों तक तेरी तरह गुमसुम रहती है, बाद में खुद को संभाल लेती है. इस दलदल में जो एक बार पहुंच गई, वह चाह कर भी वापस नहीं जा सकती.
‘अगर तुम यहां से चली भी गई, तो तुम्हारा समाज तुम्हें फिर से नहीं अपनाएगा, इसलिए तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम अब यहीं के समाज में रहने का मन बनाओ. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’
दूसरे दिन दीदी ने कामिनी को कार में बिठा कर दूसरे आदमी के पास भेजा. अब वह इसी तरह कामिनी को इधरउधर भेजने लगी. एक दिन दीदी ने कामिनी से कहा, ‘तुझे इधरउधर जाते हुए काफी समय हो गया है. अब मैं तुझे एक नया काम सिखाऊंगी.’
‘नया काम… मतलब?’ कामिनी चौंकते हुए बोली. ‘मतलब यह है कि अब तुझे किसी सेठ के पास नहीं जाना है. तुझे यहीं दुकान में रह कर ग्राहकों को अपनी ओर खींचना है.’
‘किस दुकान में?’
‘यहीं.’
‘लेकिन यह तो मकान है, दुकान कहां है?’
‘यही मकान तुम्हारे धंधे की दुकान है. जैसे शोरूम में अलगअलग डिजाइन के कपड़े सजा कर रखे रहते हैं, वैसे ही तुम्हें यहां सजधज कर आधे कपड़ों में रहना है. तुम्हें कुछ नहीं करना है. बस, यहां से गुजरने वाले मर्दों को ललचाई नजरों से देखना है.’
दीदी के समझाने पर कामिनी सोचने लगी, ‘यहां रहने वाली सभी लड़कियां इस शोरूम की चीजें हैं. शोरूम में रखी चीजों को ग्राहक देख कर पसंद करता है. खरीदने के बाद वे चीजें उसी की हो जाती हैं. ग्राहक उस चीज की इज्जत करता है. हम जिस्म के सौदे की वे चीजें हैं, जिन्हें ग्राहक कुछ देर के लिए खरीद कर मजा ले कर चला जाता है.
‘वासना के भूखे दरिंदे हमारे पास आ कर अपनी भूख मिटाते हैं. हम भी चाहते हैं कि हमारा दिल किसी के लिए धड़के. वह एक हो. वह हम पर मरमिटने को तैयार हो. हम भी समाज के रिश्तों की डोर से बंधें.’पिंजरे में बंद पंछी की तरह कामिनी का मन फड़फड़ा रहा था.
एक दिन कामिनी ने सोच लिया कि वह इस दुनिया से बाहर आ कर रहेगी. ज्यादा से ज्यादा इस कोशिश में उस की जान चली जाएगी. जिस्म के शोरूम की चीज बने रहने से अच्छा है कि वह मौत को गले लगा ले. अगर वह बच गई, तो समाज का हिस्सा बन जाएगी.
कामिनी ने दीदी को भरोसे में ले लिया. अपने बरताव और काम से उस ने दीदी पर असर जमा लिया. दीदी को यकीन हो गया था कि कामिनी ने खुद को यहां की दुनिया में ढाल लिया है.
एक दिन मौका देख कर कामिनी वहां से भाग गई और ट्रेन में बैठ कर अपने घर चली गई. इतने सालों के बाद कामिनी को देख कर उस के भाई खुश हो गए. उन्होंने कामिनी को बताया कि मातापिता की मौत हो चुकी है. वह अपने भाई विनोद और सोहन के साथ रहने लगी.
भाइयों को दुख न पहुंचे, यह सोच कर उस ने अपने बीते दिनों के बारे में कुछ नहीं बताया. कामिनी का भाई विनोद एक कंपनी में काम करता था. उस कंपनी का मालिक रवींद्र नौजवान था. एक दिन वह विनोद के जन्मदिन की पार्टी में उस के घर आया. विनोद ने उस से कामिनी का परिचय कराया. उसे कामिनी पसंद आ गई. धीरेधीरे रवींद्र और कामिनी के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं.
एक दिन दोनों ने प्रेमविवाह कर लिया. रवींद्र और कामिनी एकदूसरे को बहुत प्यार करते थे. शादी के बाद कामिनी रवींद्र के साथ शहर में किराए के मकान में रहने लगी.
एक दिन रवींद्र की कंपनी में बैठक चल रही थी. रवींद्र को याद आया कि उस की जरूरी फाइल तो घर पर ही रह गई है. रवींद्र ने सुपरवाइजर प्रदीप को वह फाइल लेने अपने घर भेज दिया.
रवींद्र के घर पहुंच कर प्रदीप ने दरवाजे पर खटखट की. थोड़ी देर बाद कामिनी बाहर आ गई. ‘कामिनी, तू यहां? तू ने मुझे पहचाना?’ कामिनी को देख कर प्रदीप बोला.
‘नहीं तो,’ कामिनी बोली.
‘वहां मैं तुम्हारे पास कई बार आया करता था. क्या तुझे यहां साहब किराए पर लाए हैं?’
प्रदीप की बात सुन कर कामिनी चुप रही. प्रदीप कामिनी को बांहों में भरने लगा. वह उसे चूमने की कोशिश करने लगा.
‘परे हट जाओ मेरे सामने से,’ कामिनी चिल्लाई.
‘जानम, मैं ने तुम्हें कई बार प्यार किया है. आज यहां तू और मैं ही तो हैं. मेरी इच्छा पूरी नहीं करोगी?’
‘नहीं, तुम्हें मुझ से तमीज से बात करनी चाहिए. मैं तुम्हारे साहब की बीवी हूं,’ कामिनी चिल्लाई.
‘तमीज से?’ प्रदीप हंस कर बोला.
‘मैं साहब को तुम्हारे बारे में सबकुछ बता दूंगा,’ प्रदीप बोला.
‘नहीं, तुम ऐसा नहीं करोगे. मेरी जिंदगी बरबाद हो जाएगी.’
‘ठीक है. अगर तुम अपनी जिंदगी बरबाद होने से बचाना चाहती हो, तो मैं जब चाहूं तुम्हें मेरी इच्छा पूरी करनी होगी. तुम्हें यह काम आज और अभी से करना होगा. जिस दिन तुम ने मेरा कहा नहीं माना, मैं तुम्हारी पूरी कहानी साहब को बता दूंगा,’ जातेजाते प्रदीप कामिनी से बोला. अब प्रदीप रवींद्र की गैरहाजिरी में समयसमय पर कामिनी से मिलने आने लगा.
एक दिन किसी काम से रवींद्र अपने घर समय से पहले आ गया. उस ने प्रदीप और कामिनी को एकसाथ देख लिया. उस ने प्रदीप और कामिनी को बुरी तरह डांटा. उस ने प्रदीप को नौकरी से हटाने की धमकी दी. प्रदीप ने रवींद्र को कामिनी के बारे में सबकुछ बता दिया. रवींद्र ने कामिनी का साथ छोड़ दिया. कामिनी के बारे में जब उस के भाइयों को पता चला, तो उन्होंने भी उसे अपने साथ रखने से मना कर दिया.
कामिनी के पास फिर उसी दुनिया में लौटने के सिवा कोई रास्ता नहीं रह गया था. ‘‘कामिनी, आज भी कुछ कमाया या नहीं?’’ दीदी की बात सुन कर कामिनी यादों से बाहर आ गई.
सारिका का दिल धड़क सा उठा. उस ने एकदम से स्वीटी को आवाज दी, तो मोहित ने अचकचा कर उसे एकदम छोड़ दिया. उस 12 साल की कमसिन लड़की को समझ ही नहीं आया कि उस के अंकल को अचानक क्या हुआ.
‘‘तुम्हें दीदी बुला रही हैं,’’ कह कर सारिका ने एक नजर मोहित पर डाली. वे कुछ घबराए से थे, जैसे चोरी करते पकड़े गए हों.
पर खाने के समय सारिका ने ध्यान दिया कि मोहित सामान्य ढंग से ही बात कर रहे थे, जबकि स्वीटी अंकलअंकल कहती उन के आगेपीछे घूम रही थी. मोहित के चेहरे पर कोई भाव नहीं था. सारिका को अपनी सोच पर शर्मिंदगी सी होने लगी थी.
धीरेधीरे मोहित की बातों का जादू सारिका के पूरे परिवार पर चल गया. शब्दों की मिठास और अपनेपन से हर कोई उन से प्रभावित हो उठता. मां तो मोहित पर निछावर थीं. उन्हें लगता था कि उन का दामाद नखरों और अकड़ से दूर बेटे जैसा है और सारिका की बहन निहारिका तो उन के आगेपीछे ही घूमती रहती. मोहित निहारिका के लिए आइसक्रीम, चौकलेट, बर्गर जैसी ढेरों चीजें ले जाते तो वह खिल उठती. दोनों जीजासाली की खूब छेड़छाड़ चलती. सारिका खुश थी कि मोहित उस के परिवार को अपना मानते हैं और खूब घुलमिल गए हैं.
पर कुछ ही समय बीता था कि मोहित की सचाई सारिका के सामने खुलने लगी. वे जबान से जितने मीठे थे, उन की सोच उतनी ही जहरीली थी. औरत उन के लिए ऐसा खिलौना थी, जो मर्दों के खेलने के लिए बनाई गई थी. उन के दिल में रिश्तों की कोई इज्जत नहीं थी. उन की मां की लापरवाही के कारण उन के पिता के मुंह से निकले अपशब्दों ने इस रिश्ते की इज्जत भी खत्म कर दी थी. फिर उन की कोई बहन भी नहीं थी. नौकरों की संगत और आजाद माहौल ने उन की सोच को गलत दिशा दे दी थी.
एक बार किसी गर्भवती स्त्री को देख उन्होंने इतना भद्दा मजाक किया कि सारिका शर्म से गड़ गई. पर उस के बाद तो जैसे मोहित की सारी झिझक खत्म हो गई. वे राह चलती लड़कियों व फिल्मी हीरोइनों पर ऐसीऐसी बातें कहते कि सारिका का खून खौल उठता, उस की नाराजगी देख कर वे बात को मजाक में टाल देते. मोहित को देख कर कोई भी यह अंदाजा नहीं लगा सकता था कि ऊपर से इतना शानदार व्यक्तित्व रखने वाला इंसान अंदर से इतनी घटिया सोच रखने वाला है. लेकिन सारिका जानती थी कि औरतों से बाहरी तौर पर बहुत सलीके से बात करने वाला यह इंसान जब सारिका से बात करने वाली महिलाओं को छिपछिप कर घूरता है, तो उस की निगाहों में क्या होता है.
वह नहीं चाहती कि ऐसी अप्रिय स्थिति कभी भूले से भी किसी के सामने आए. इसीलिए वह महल्लेपड़ोस की औरतों से ज्यादा मतलब नहीं रखना चाहती थी. न खुद किसी के घर जाती थी, न किसी का आना पसंद करती थी और लोग उसे शक्की, घमंडी व बदमिजाज कहने लगे थे.
सारिका मन से तो उदास रहती ही पर कुछ दिनों से उस का तन भी शिथिल सा होने लगा था. आखिर एक दिन चक्कर खा कर गिर ही गई, तो मोहित उसे डाक्टर के पास ले गए. चैकअप के बाद डाक्टर ने खुशखबरी होने की बधाई दी तो मोहित खुश हो गए और उस के नाजनखरे उठाने लगे. यह मत करो, वह मत करना, वजन मत उठाना जैसी ढेरों बातें. कभीकभी सारिका झुंझला भी जाती पर मोहित उस का जरूरत से ज्यादा ही खयाल रखते. लेकिन सारिका के मन में मोहित के लिए जहर भरता जा रहा था, क्योंकि मोहित ने उसे अपने दोस्तों के सामने आने से मना कर रखा था. उन के हिसाब से उन के दोस्त ऐसी स्त्रियों का मजाक बनाते हैं. दूसरों की पत्नियों को ऐसी गंदी नजर से देखने वाले को अब अपनी पत्नी की चिंता सताने लगी थी. पतिपत्नी के रिश्ते का कितना घिनौना रूप था उन के मन में. सारिका का मन कसैला हो उठता था.
पर धीरेधीरे सारिका की तबीयत ज्यादा खराब रहने लगी, तो मोहित ने निहारिका को घर के कामों में मदद के लिए बुला लिया. निहारिका चंचल लड़की थी. घर आते ही उस ने सारे काम संभाल लिए.
सारिका और मोहित दोनों के काम वह पूरे मन से करती थी. उस के आने से सारिका कुछ निश्चिंत सी हो गई थी. निहारिका अकेले में डरती थी इसलिए वह सारिका के पास ही सोती थी. काम कर के थक कर वह ऐसी बेसुध हो कर सोती कि उसे अपना ही होश नहीं रहता था कि उस के कपड़े कैसे अस्तव्यस्त हो रहे हैं. सारिका ही उस की चादर ठीक करती रहती.
मोहित बराबर वाले कमरे में सोते थे पर बाहर निकलने का रास्ता सारिका के कमरे में से ही था, इसलिए सारिका निहारिका का विशेष ध्यान रखती थी.
एक दिन मोहित किसी दोस्त के साथ घर आए और सारिका से बोले, ‘‘निहारिका से कहो चायनाश्ता ले आए. मेरा दोस्त आया है और हां, तुम मत आना.’’
सारिका निहारिका को बुलाने गई, तो देखा वह गहरी नींद में सो रही थी. उसे देख सारिका का स्नेह उमड़ आया. उस ने निहारिका को उठाने का इरादा छोड़ दिया और उसे धीरे से चूम कर रसोई में आ कर चाय बनाने लगी. चाय की ट्रे ले कर वह ड्राइंगरूम का दरवाजा खटखटाने जा ही रही थी कि अंदर से आती आवाज को सुन कर उस के हाथ थम गए.
‘‘हां, साली आई हुई है. इतनी खूबसूरत है कि मैं तो मदहोश होने लगता हूं. कभीकभी इतने करीब होती है कि सांसें रुकने लगती हैं. कयामत है यार वह भी.’’
सारिका के हाथ कांप गए, उस के कानों में धमाके होने लगे. यह आवाज तो वह लाखों में पहचान सकती थी. यह आवाज निहारिका के प्यारे जीजू की थी, जो उन्हें अपने बड़े भाई की तरह मानती थी और मोहित भी उसे बच्ची, गुडि़या कह कर बात करते थे. मोहित की स्त्रीजाति के प्रति घटिया सोच को सारिका समझती थी, लेकिन उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि अपनों के प्रति भी वे ऐसी ही सोच रखते हैं. यह उन की घटिया सोच का हद से गुजरना था.
‘‘क्या वह सच में बहुत हसीन है?’’ दोस्त पूछ रहा था.
‘‘हां, कच्ची कली है,’’ मोहित आह भर रहा था.
‘‘वाह यार, सामने अप्सरा है और तू तरस रहा है,’’ दोस्त बेहूदगी से हंस रहा था.
‘‘नहीं यार, मैं ऐसा कुछ नहीं कर सकता. वैसे भी वह अभी बहुत छोटी है,’’ मोहित जैसे अपनी मजबूरी पर दुखी था.
सारिका के तनमन में जैसे अंगारे सुलग उठे थे. भ्रम के सारे शीशे चूरचूर हो गए थे. वह अपने बैडरूम में आ कर पलंग पर ढह गई. उस की नजर सोती हुई मासूम बहन पर पड़ी, जो शायद सपने में भी रिश्तों के सुनहरे फ्रेम में कैद उस शैतान की असली सूरत कभी नहीं देख सकती थी. सारिका की आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे. शर्मिंदगी से सिर झुका था और वे सारी शर्मनाक बातें उस के दिमाग पर हथौड़े की तरह चोट कर रही थीं. उसे अपना होश नहीं रहा.
‘‘क्या हुआ, क्या हुआ? आंखें खोलो,’’ मोहित उस का कंधा पकड़े हुए थे. सारिका ने आंखें खोलीं तो मोहित को देख कर उसे लगा जैसे उस के सामने भेडि़या अपनी लाल जबान बाहर निकाले लार टपकाते हुए खड़ा है. उस के मुंह से जोर की चीख निकली और फिर वह बेहोश हो गई. न जाने कितनी देर में उसे होश आया. निहारिका उस के पास ही बैठी थी. उस की आंखों में आंसू भरे थे. सारिका ने मुश्किल से खुद को संभाला. उस का सिर अभी भी दर्द से फटा जा रहा था.
आगे पढ़ें- सारिका ने प्यार से उस का हाथ थाम लिया. उस की…
सफेद कपड़े पहने होने के बावजूद उस का सांवला रंग छिपाए नहीं छिप रहा था. करीब जा कर देखने से ही पता चलता था कि उस के गौगल्स किसी फुटपाथी दुकान से खरीदे गए थे. बालों पर कई बार कंघी फिरा चुका वह करीब 20-22 साल की उम्र का युवक पिछले एक घंटे से बाइक पर बैठा कई बार उठकबैठक लगा चुका था यानी कभी बाइक पर बैठता तो कभी खड़ा हो जाता. काफी बेचैन सा लग रहा था.
इस दौरान वह गुटके के कितने पाउच निगल चुका, उसे शायद खुद भी न पता होगा. गहरे भूरे रंग के गौगल्स में छिपी उस की निगाहों को ताड़ना आसान नहीं था. अलबत्ता जब भी उस ने उन्हें उतारने की कोशिश की, तो साफ जाहिर था कि उस की निगाहें गर्ल्स स्कूल की इमारत के दरवाजे से टकरा कर लौट रही थीं. तभी उस दरवाजे से एक भीड़ का रेला निकलता नजर आया. अब तक बेपरवाह वह युवक बाइक को सीधा कर तन कर खड़ा हो गया.
इंतजार के कुछ ही पल बेचैनी में गुजरे, तभी पसीनापसीना हुए उस लड़के के चेहरे पर मुसकराहट खिल उठी. उस ने एक बार फिर बालों पर कंघी फिराई और गौगल्स ठीक से आंखों पर चढ़ाए. मुंह की आखिरी पीक पिच्च से थूकते हुए होंठों को ढक्कन की तरह बंद कर लिया.
तेजी से अपनी तरफ आती लड़की को पहचान लिया था, वह प्रिया ही थी. प्रिया खूबसूरत थी और उस के चेहरे पर कुलीनता की छाप थी. खूबसूरत टौप ने उस में गजब की कशिश पैदा कर दी थी. बाइक घुमाते हुए उस ने पीछे मुड़ कर देखने की कोशिश नहीं की, लेकिन उसे एहसास हो गया था कि प्रिया बाइक की पिछली सीट पर बैठ चुकी है. तभी उसे अपनी पीठ पर पैने नाखून चुभने का एहसास हुआ और हड़बड़ाया स्वर सुनाई दिया, ‘‘प्लीज, जल्दी करो, मेरी सहेलियों ने देख लिया तो गजब हो जाएगा?’’
‘‘बाइक पर किक मारते ही लड़के ने पूछा, ‘‘कहां चलना है, सिटी मौल या…’’
फर्राटा भरती बाइक के शोर में लड़के को सुनाई दे गया था, ‘‘कहीं भी…जहां तुम ठीक समझो?’’
‘‘कहीं भी?’’ प्रिया की आवाज में घुली बेचैनी को वह समझ गया था. फिर भी मजाकिया लहजे में बोला. ‘‘तो चलें वहीं, जहां पहली बार…’’ बाकी शब्द पीठ पर चुभते नाखूनों की पीड़ा में दब गए. लेकिन इस बार उस के कथन में मजाक का पुट नहीं था… ‘‘तो फिर सिटी मौल चलते हैं?’’
‘‘नहीं, वहां नहीं,’’ प्रिया जैसे तड़प कर बोली, ‘‘तुम समझते क्यों नहीं दीपक, मुझे तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’
तभी दीपक ने अपना एक हाथ पीछे बढ़ा कर लड़की की कलाई थामने की कोशिश की तो उस ने अपना गोरा नाजुक हाथ उस के हाथ में दे दिया और उस की पीठ से चिपक गई? दीपक को बड़ी सुखद अनुभूति हुई, तभी बाइक जोर से डगमगाई. उस ने फौरन लड़की का हाथ छोड़ दिया और बाइक को काबू करने की कोशिश करने लगा.
‘‘क्या हुआ?’’ लड़की घबरा कर बोली. अब वह दीपक की पीठ से परे सरक गई.
‘‘बाइक का पहिया बैठ गया मालूम होता है,’’ दीपक बोला, ‘‘शायद पंचर है,’’ उस ने बाइक को सड़क के किनारे लगाते हुए खड़ी कर दी. अब तक वे शहर से काफी दूर आ चुके थे. यह जंगली इलाका था और आसपास घास के घने झुरमुट थे.
तब तक प्रिया उस के करीब आ गई थी. उस ने आसपास नजर डालते हुए कहा, ‘‘अब वापस कैसे चलेंगे?’’ उस के स्वर में घबराहट घुली थी. लड़के ने एक पल चारों तरफ नजरें घुमा कर देखा, चारों तरफ सन्नाटा पसरा था. दीपक ने प्रिया की कलाई थाम कर उसे अपनी तरफ खींचा. प्रिया ने इस पर कोई एतराज नहीं जताया, लेकिन अगले ही पल अर्थपूर्ण स्वर से बोली, ‘‘क्या कर रहे हो?’’
‘‘तनहाई हो, लड़कालड़की दोनों साथ हों और मिलन का अच्छा मौका हो तो लड़का क्या करेगा?’’ उस ने हाथ नचाते हुए कहा.
प्रिया छिटक कर दूर खड़ी हो गई. ‘‘ये सब गलत है, यह सबकुछ शादी के बाद, अभी कोई गड़बड़ नहीं. अभी तो वापसी की जुगत करो,’’ प्रिया ने बेचैनी जताई, ‘‘कितनी देर हो गई? घर वाले पूछेंगे तो उन्हें क्या जवाब दूंगी?’’
दीपक ने बेशर्मी से कहा, ‘‘यह तुम सोचो,’’ इस के साथ ही वह ठठा कर हंस पड़ा और लपक कर प्रिया को बांहों में भर लिया, ‘‘ऐसा मौका बारबार नहीं मिलता, इसे यों ही नहीं गंवाया जा सकता?’’
‘‘लेकिन जानते हो, अभी मेरी उम्र शादी की नहीं है. अभी मैं सिर्फ 15 साल की हूं, इस के लिए तुम्हें 3 साल तक इंतजार करना होगा,’’ प्रिया ने उस की गिरफ्त से मुक्त होने की कोशिश की.
‘‘लेकिन प्यार करने की तो है,’’ और उस की गिरफ्त प्रिया के गिर्द कसती चली गई. प्रिया का शरीर एक बार विरोध से तना, फिर ढीला पड़ गया. घास के झुरमुटों में जैसे भूचाल आ गया. करीब के दरख्तों पर बसेरा लिए पखेरू फड़फड़ कर उड़ गए.
करीब एक घंटे बाद दोनों चौपाटी पहुंचे और वहां बेतरतीब कतार में खड़े एक कुल्फी वाले से फालूदा खरीदा. गिलास से भरे फालूदा का हर चम्मच निगलने के बाद प्रिया दीपक की बातों पर बेसाख्ता खिलखिला रही थी. उन के बीच हवा गुजरने की भी जगह नहीं थी, क्योंकि दोनों एकदूसरे से पूरी तरह से सटे बैठे थे.
सलमान खान बनने की कोशिश में दीपक आवारागर्दी पर उतर आया था और उस ने प्रिया के गले में अपनी बांह पिरो दी थी. लेकिन इस पर प्रिया को कोई एतराज नहीं था. उस ने फालूदा खा कर गिलास ठेले वाले की तरफ बढ़ा दिया. प्रिया के पर्स निकालने और भुगतान करने तक दीपक कर्जदार की तरह बगलें झांकता रहा. उस ने ऐसे मौकों पर मर्दों वाली तहजीब दिखाने की कोई जहमत नहीं उठाई.
3 युवक एक मोटरसाइकिल पर आए और प्रिया के पास आ कर रुके. शायद ये दीपक के यारदोस्त थे. उन्होंने हाथ तो उस की तरफ हिलाया, लेकिन असल में सब प्रिया की तरफ देख रहे थे. प्रिया ने उड़ती सी नजर उन पर डाली और दूसरी तरफ देखने लगी.
उन्होंने दीपक का हालचाल पूछा तो वह उन की तरफ बढ़ा और दांत निपोरने के साथ ही मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे लड़के की पीठ पर धौल जमाया, ऐसे ही मूड बन गया था यार, आइसक्रीम खाने का..’’
‘‘बढि़या है…बढि़या है यार…’’ इस बार वह लड़का बोला जो बाइक चला रहा था. वह प्रिया से मुखातिब हो कर बोला, ‘‘मैं, आप के फ्रैंड का जिगरी दोस्त.’’
यह सुन प्रिया मुसकराई. उस के चेहरे पर आए उलझन के भाव खत्म हो गए. लड़के ने उस की तरफ बढ़ने के लिए कदम बढ़ाए, लेकिन एकाएक ठिठक कर रह गया. प्रिया कंधे पर रखा बैग झुलाती हुई सामने पार्किंग में खड़ी अपनी स्कूटी की तरफ बढ़ी. उस लड़के ने खास अदा के साथ हाथ हिलाया. प्रिया एक बार फिर मुसकराई और स्कूटी से फर्राटे से आगे बढ़ गई.
यह देख चंदू निहाल हो गया. उस ने हकबकाए से खड़े दीपक पर फब्ती कसी. ‘‘अबे, क्यों बुझे हुए हुक्के की तरह मुंह बना रहा है? लड़की तू ने फंसाई तो क्या हुआ? दावत तो मिलबैठ कर करेंगे न?’’ तब तक दीपक भी कसमसा कर उन के बीच में सैंडविच की तरह ठुंस गया. बाइक फौरन वहां से भाग निकली. चंदू के ठहाके बाइक के शोर में गुम हो चुके थे.
2 महीने बाद… पुलिस स्टेशन के उस कमरे में गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था. पैनी धार जैसी नीरवता पुलिस औफिसर के सामने बैठी एक कमसिन लड़की की सिसकियों से भंग हो रही थी. उस का चेहरा आंसुओं से तरबतर था. वह कहीं शून्य में ताक रही थी. शायद कुरसी पर बैठे उस के मातापिता थे, उन के चेहरे सफेद पड़ चुके थे. शर्म और ग्लानि के भाव उन पर साफ दिखाई दे रहे थे. पुलिस औफिसर शायद प्रिया की आपबीती सुन चुका था. उस का चेहरा गंभीर बना हुआ था. उन्होंने सवालिया निगाहों से प्रिया की तरफ देखा, ‘‘तुम्हारी उस लड़के से जानपहचान कैसे हुई?’’
प्रिया का मौन नहीं टूटा. इस बार औफिसर की आवाज में सख्ती का पुट था, ‘‘जो कुछ हुआ तुम्हारी नादानी से हुआ, लेकिन अब मामला पुलिस के पास है तो तुम्हें सबकुछ बताना होगा कि तुम्हारी उस से मुलाकात कैसे हुई?’’
प्रिया ने शायद पुलिस औफिसर की सख्ती भांप ली थी. एक पल वह उलझन में नजर आई, फिर मरियल सी आवाज में बोली, ‘‘एक बार मैं शौप पर कुछ खरीद रही थी, लेकिन जब पैसे देने लगी तो हैरान रह गई, मेरा पर्स मेरी जेब में नहीं था. उधर, दुकानदार बारबार तकाजा कर कह रहा था, ‘कैसी लड़की हो? जब पैसे नहीं थे तो क्यों खरीदा यह सब.’ मुझे याद नहीं रहा कि पर्स कहां गिर गया था, लेकिन दुकानदार के तकाजे से मैं शर्म से गड़ी जा रही थी. तभी एक लड़का, मेरा मतलब, दीपक अचानक वहां आया और दुकानदार को डांटते हुए बोला, ‘कैसे आदमी हो तुम?’ लड़की का पर्स गिर गया तो इस का मतलब यह नहीं हुआ कि तुम उसे इस तरह बेइज्जत करो? अगले ही पल उस ने जेब से पैसे निकाल कर दुकानदार को थमाते हुए कहा, ‘यह लो तुम्हारे पैसे.’ इस के साथ ही वह मुझे हाथ पकड़ कर बाहर ले आया.’’
प्रिया ने डबडबाई आंखों से पुलिस औफिसर की तरफ देखा और बात को आगे बढ़ाया, ‘‘यह सबकुछ इतनी अफरातफरी में हुआ कि मैं उसे न तो पैसे देने से रोक सकी और न ही उस से अधिकारपूर्वक हाथ पकड़ कर खुद को शौप से बाहर लाने का कारण पूछ सकी.’’
‘‘फिर क्या हुआ?’’ पुलिस औफिसर ने सांत्वना देते हुए पूछा, ‘‘फिर अगली मुलाकात कब हुई और यह मुलाकातों का सिलसिला कैसे चल निकला.’’
इस बार वहां बैठे दंपती एकटक बेटी की ओर देख रहे थे. उन की तरफ से आंखें चुराते हुए प्रिया ने बातों का सूत्र जोड़ा, ‘‘फिर यह अकसर स्कूल की छुट्टी के बाद मुझ से मिलने लगा. हम कभी आइसक्रीम शौप जाते, कभी मूवी या फिर घंटों गार्डन में बैठे बतियाते रहते.’’
‘‘मतलब वह लड़का पूरी तरह तुम्हारे दिलोदिमाग पर छा गया था?’’
प्रिया ने एक पल अपने मातापिता की तरफ देखा. उन का हैरत का भाव प्रिया से बरदाश्त नहीं हुआ, लेकिन पुलिस औफिसर की बातों का जवाब देते हुए उस ने कहा, ‘‘हां, मुझे यह अच्छा लगने लगा था. वह जब भी मिलता, मुझे गिफ्ट देता और कहता, ‘बड़ी हैसियत वाला हूं मैं, शादी तुम्हीं से करूंगा.’’
‘‘अभी शादी की उम्र है तुम्हारी?’’ पुलिस औफिसर के स्वर में भारीपन था. प्रिया चाह कर भी बहस नहीं कर सकी. उस ने सिर झुकाए रखा, ‘‘दरअसल, सहेलियां कहती थीं कि जिस का कोई बौयफ्रैंड नहीं उस की कोई लाइफ नहीं. बस, मुझे दीपक को पा कर लगा था कि मेरी लाइफ बन गई है.’’
‘‘क्योंकि तुम्हें बौयफ्रैंड मिल गया था, इसलिए,’’ पुलिस औफिसर ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘क्या उस से फ्रैंडशिप का तुम्हारे मातापिता को पता था? जब तुम देरसवेर घर आती थी तो क्या बहाने बनाती थी?’’ पुलिस औफिसर ने तीखी निगाहों से दंपती की तरफ भी देखा, लेकिन वे उन से आंख नहीं मिला सके.
उस की मम्मा ने अपना बचाव करते हुए कहा, ‘‘हम से तो इतना भर कहा जाता था कि आज सहेली की बर्थडे पार्टी थी या ऐक्स्ट्रा क्लास में लेट हो गई या फिर…’’ लेकिन पति को घूरते देख उस ने अपने होंठ सी लिए.
पुलिस औफिसर ने बात काटते हुए कहा, ‘‘कैसे गैरजिम्मेदार मांबाप हैं आप? लड़की जवानी की दहलीज पर कदम रख रही है, उस के आनेजाने का कोई समय नहीं है, और आप को उस की कतई फिक्र नहीं है, लड़की की बरबादी के असली जिम्मेदार तो आप हैं. मेरी नजरों में तो सजा के असली हकदार आप लोग हैं.’’
लड़की को घूरते हुए पुलिस औफिसर ने बोला, ‘‘बौयफ्रैंड का मतलब भी समझती हो तुम? बौयफ्रैंड वह है जो हिफाजत करे, भलाई सोचे. तुम पेरैंट्स को बेवकूफ बना रही थी और लड़का तुम को इमोशनली बेवकूफ बना रहा था.’’
पुलिस औफिसर के स्वर में हैरानी का गहरा पुट था, ‘‘कैसा बौयफ्रैंड था तुम्हारा कि उस ने तुम्हारे साथ इतना बड़ा फरेब किया? तुम्हें बिलकुल भी पता नहीं लगा. विश्वास कैसे कर लिया तुम ने उस का कि उस ने तुम्हारी आपत्तिजनक वीडियो क्लिपिंग बना ली और तुम्हें जरा भी भनक नहीं लगी?’’
‘‘वह कहता था कि मेरा फिगर मौडलिंग लायक है, मुझे विज्ञापन फिल्मों में मौका मिल सकता है, लेकिन इस के लिए मुझे बस थोड़ी झिझक छोड़नी पड़ेगी. काफी नर्वस थी मैं, लेकिन कोल्डड्रिंक पीने के बाद कौन्फिडैंस आ गया था.’’
झल्लाते हुए पुलिस औफिसर ने कहा, ‘‘नशा था कोल्डड्रिंक में क्या, और उस कौन्फिडैंस में तुम ने क्या कुछ गंवा दिया, पता नहीं है तुम्हें?’’ क्रोध से बिफरते हुए पुलिस औफिसर ने लड़की को खा जाने वाली नजरों से देखा.
खुश्क होते गले में प्रिया ने जोर से थूक निगला. उस ने बेबसी से गरदन हिलाई और चेहरा हथेली से ढांप कर फफक पड़ी. उस की सिसकियां तेज होती चली गईं. अपनी ही बेवकूफी के कारण उसे यह दिन देखना पड़ा था. दीपक पर उस ने आंख मूंद कर भरोसा कर लिया था, इसलिए उस के इरादे क्या हैं, यह नहीं समझ सकी. काश, उस ने समझदारी से काम लिया होता. पर अब क्या हो सकता था.
वहीं दूसरी ओर काव्या गोरीचिट्टी, छरहरे बदन की गुडि़या सी दिखने वाली एक भोलीभाली, मासूम सी लड़की थी. मुश्किल से अभी उस ने 20वां वसंत पार किया होगा. कुछ महीने पहले दुख क्या होता है, तकलीफ कैसी होती है, वह जानती तक न थी.
मांबाप के प्यार और स्नेह की शीतल छाया में काव्या बढि़या जिंदगी गुजार रही थी, पर दुख की एक तेज आंधी आई और उस के परिवार के सिर से प्यार, स्नेह और सुरक्षा की वह पिता रूपी शीतल छाया छिन गई.
अभी काव्या दुखों की इस आंधी से अपने और अपने परिवार को निकालने के लिए जद्दोजेहद कर ही रही थी कि एक नई समस्या उस के सामने आ खड़ी हुई.
उस दिन काव्या अपनी नईनई लगी नौकरी पर पहुंचने के लिए घर से थोड़ी दूर ही आई थी कि उस आदमी ने उस का रास्ता रोक लिया था.
एकबारगी तो काव्या घबरा उठी थी, फिर संभलते हुए बोली थी, ‘‘क्या है?’’
वह उसे भूखी नजरों से घूर रहा था, फिर बोला था, ‘‘तू बहुत ही खूबसूरत है.’’
‘‘क्या मतलब…?’’ उस की आंखों से झांकती भूख से डरी काव्या कांपती आवाज में बोली.
‘‘रंजन नाम है मेरा और खूबसूरत चीजें मेरी कमजोरी हैं…’’ उस की हवस भरी नजरें काव्या के खूबसूरत चेहरे और भरे जिस्म पर फिसल रही थीं, ‘‘खासकर खूबसूरत लड़कियां… मैं जब भी उन्हें देखता हूं, मेरा दिल उन्हें पाने को मचल उठता है.’’
‘‘क्या बकवास कर रहे हो…’’ अपने अंदर के डर से लड़ती काव्या कठोर आवाज में बोली, ‘‘मेरे सामने से हटो. मुझे अपने काम पर जाना है.’’
‘‘चली जाना, पर मेरे दिल की प्यास तो बुझा दो.’’
काव्या ने अपने चारों ओर निगाह डाली. इक्कादुक्का लोग आजा रहे थे. लोगों को देख कर उस के डरे हुए दिल को थोड़ी राहत मिली. उस ने हिम्मत कर के अपना रास्ता बदला और रंजन से बच कर आगे निकल गई.
आगे बढ़ते हुए भी उस का दिल बुरी तरह धड़क रहा था. ऐसा लगता था जैसे रंजन आगे बढ़ कर उसे पकड़ लेगा.
पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. उस ने कुछ दूरी तय करने के बाद पीछे मुड़ कर देखा. रंजन को अपने पीछे न पा कर उस ने राहत की सांस ली.
काव्या लोकल ट्रेन पकड़ कर अपने काम पर पहुंची, पर उस दिन उस का मन पूरे दिन अपने काम में नहीं लगा. वह दिनभर रंजन के बारे में ही सोचती रही. जिस अंदाज से उस ने उस का रास्ता रोका था, उस से बातें की थीं, उस से इस बात का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता था कि रंजन की नीयत ठीक नहीं थी.
शाम को घर पहुंचने के बाद भी काव्या थोड़ी डरी हुई थी, लेकिन फिर उस ने यह सोच कर अपने दिल को हिम्मत बंधाई कि रंजन कोई सड़कछाप बदमाश था और वक्ती तौर पर उस ने उस का रास्ता रोक लिया था.
आगे से ऐसा कुछ नहीं होने वाला. लेकिन काव्या की यह सोच गलत साबित हुई. रंजन ने आगे भी उस का रास्ता बारबार रोका. कई बार उस की इस हरकत से काव्या इतनी परेशान हुई कि उस का जी चाहा कि वह सबकुछ अपनी मां को बता दे, लेकिन यह सोच कर खामोश रही कि इस से पहले से ही दुखी उस की मां और ज्यादा परेशान हो जाएंगी. काश, आज उस के पापा जिंदा होते तो उसे इतना न सोचना पड़ता.
पापा की याद आते ही काव्या की आंखें नम हो उठीं. उन के रहते उस का परिवार कितना खुश था. मम्मीपापा और उस का एक छोटा भाई. कुल 4 सदस्यों का परिवार था उस का.
उस के पापा एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करते थे और उन्हें जो पैसे मिलते थे, उस से उन का परिवार मजे में चल रहा था. जहां काव्या अपने पापा की दुलारी थी, वहीं उस की मां उस से बेहद प्यार करती थीं.
उस दिन काव्या के पापा अपनी कंपनी के काम के चलते मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे कि पीछे से एक कार वाले ने उन की मोटरसाइकिल को तेज टक्कर मार दी.
वे मोटरसाइकिल से उछले, फिर सिर के बल सड़क पर जा गिरे. उस से उन के सिर के पिछले हिस्से में बेहद गंभीर चोट लगी थी.
टक्कर लगने के बाद लोगों की भीड़ जमा हो गई. भीड़ के दबाव के चलते कार वाले ने उस के घायल पापा को उठा कर नजदीक के एक निजी अस्पताल में भरती कराया, फिर फरार हो गया.
पापा की जेब से मिले आईकार्ड पर लिखे मोबाइल से अस्पताल वालों ने जब उन्हें फोन किया तो वे बदहवास अस्पताल पहुंचे, पर वहां पहुंच कर उन्होंने जिस हालत में उन्हें पाया, उसे देख कर उन का कलेजा मुंह को आ गया.
उस के पापा कोमा में जा चुके थे. उन की आंखें तो खुली थीं, पर वे किसी को पहचान नहीं पा रहे थे.
फिर शुरू हुआ मुश्किलों का न थमने वाला एक सिलसिला. डाक्टरों ने बताया कि पापा के सिर का आपरेशन करना होगा. इस का खर्च उन्होंने ढाई लाख रुपए बताया.
किसी तरह रुपयों का इंतजाम किया गया. पापा का आपरेशन हुआ, पर इस से कोई खास फायदा न हुआ. उन्हें विभिन्न यंत्रों के सहारे एसी वार्ड में रखा गया था, जिस की एक दिन की फीस 10,000 रुपए थी.
धीरेधीरे घर का सारा पैसा खत्म होने लगा. काव्या की मां के गहने तक बिक गए, फिर नौबत यहां तक आई कि उन के पास के सारे पैसे खत्म हो गए.
बुरी तरह टूट चुकी काव्या की मां जब अपने बच्चों को यों बिलखते देखतीं तो उन का कलेजा मुंह को आ जाता, पर अपने बच्चों के लिए वे अपनेआप को किसी तरह संभाले हुए थीं. कभीकभी उन्हें लगता कि पापा की हालत में सुधार हो रहा है तो उन के दिल में उम्मीद की किरण जागती, पर अगले ही दिन उन की हालत बिगड़ने लगती तो यह आस टूट जाती.
डेढ़ महीना बीत गया और अब ऐसी हालत हो गई कि वे अस्पताल के एकएक दिन की फीस चुकाने में नाकाम होने लगे. आपस में रायमशवरा कर उन्होंने पापा को सरकारी अस्पताल में भरती कराने का फैसला किया.
पापा को ले कर सरकारी अस्पताल गए, पर वहां बैड न होने के चलते उन्हें एक रात बरामदे में गुजारनी पड़ी. वही रात पापा के लिए कयामत की रात साबित हुई. काव्या के पापा की सांसों की डोर टूट गई और उस के साथ ही उम्मीद की किरण हमेशा के लिए बुझ गई.
फिर तो उन की जिंदगी दुख, पीड़ा और निराशा के अंधकार में डूबती चली गई. तब तक काव्या एमबीए का फाइनल इम्तिहान दे चुकी थी.
बुरे हालात को देखते हुए और अपने परिवार को दुख के इस भंवर से निकालने के लिए काव्या नौकरी की तलाश में निकल पड़ी. उसे एक प्राइवेट बैंक में 20,000 रुपए की नौकरी मिल गई और उस के परिवार की गाड़ी खिसकने लगी. तब उस के छोटे भाई की पढ़ाई का आखिरी साल था. उस ने कहा कि वह भी कोई छोटीमोटी नौकरी पकड़ लेगा, पर काव्या ने उसे सख्ती से मना कर दिया और उस से अपनी पढ़ाई पूरी करने को कहा.
20 साल की उम्र में काव्या ने अपने नाजुक कंधों पर परिवार की सारी जिम्मेदारी ले ली थी, पर इसे संभालते हुए कभीकभी वह बुरी तरह परेशान हो उठती और तब वह रोते हुए अपनी मां से कहती, ‘‘मम्मी, आखिर पापा हमें छोड़ कर इतनी दूर क्यों चले गए जहां से कोई वापस नहीं लौटता,’’ और तब उस की मां उसे बांहों में समेटते हुए खुद रो पड़तीं.
धीरेधीरे दुख का आवेग कम हुआ और फिर काव्या का परिवार जिंदगी की जद्दोजेहद में जुट गया.
समय बीतने लगा और बीतते समय के साथ सबकुछ एक ढर्रे पर चलने लगा तभी यह एक नई समस्या काव्या के सामने आ खड़ी हुई.
काव्या जानती थी कि बड़ी मुश्किल से उस की मां और छोटे भाई ने उस के पापा की मौत का गम सहा है. अगर उस के साथ कुछ हो गया तो वे यह सदमा सहन नहीं कर पाएंगे और उस का परिवार, जिसे संभालने की वह भरपूर कोशिश कर रही है, टूट कर बिखर जाएगा.
काव्या ने इस बारे में काफी सोचा, फिर इस निश्चय पर पहुंची कि उसे एक बार रंजन से गंभीरता से बात करनी होगी. उसे अपनी जिंदगी की परेशानियां बता कर उस से गुजारिश करनी होगी
कि वह उसे बख्श दे. उम्मीद तो कम थी कि वह उस की बात समझेगा, पर फिर भी उस ने एक कोशिश करने का मन बना लिया.
अगली बार जब रंजन ने काव्या का रास्ता रोका तो वह बोली, ‘‘आखिर तुम मुझ से चाहते क्या हो? क्यों बारबार मेरा रास्ता रोकते हो?’’
‘‘मैं तुम्हें चाहता हूं,’’ रंजन उस के खूबसूरत चेहरे को देखता हुआ बोला, ‘‘मेरा यकीन करो. मैं ने जब से तुम्हें देखा है, मेरी रातों की नींद उड़ गई है. आंखें बंद करता हूं तो तुम्हारा खूबसूरत चेहरा सामने आ जाता है.’’
‘‘सड़क पर बात करने से क्या यह बेहतर नहीं होगा कि हम किसी रैस्टोरैंट में चल कर बात करें.’’
काव्या के इस प्रस्ताव पर पहले तो रंजन चौंका, फिर उस की आंखों में एक अनोखी चमक जाग उठी. वह जल्दी से बोला, ‘‘हांहां, क्यों नहीं.’’
रंजन काव्या को ले कर सड़क के किनारे बने एक रैस्टोरैंट में पहुंचा, फिर बोला, ‘‘क्या लोगी?’’
‘‘कुछ नहीं.’’
‘‘कुछ तो लेना होगा.’’
‘‘तुम्हारी जो मरजी मंगवा लो.’’
रंजन ने काव्या और अपने लिए कौफी मंगवाईं और जब वे कौफी पी चुके तो वह बोला, ‘‘हां, अब कहो, तुम क्या कहना चाहती हो?’’
‘‘देखो, मैं उस तरह की लड़की नहीं हूं जैसा तुम समझते हो,’’ काव्या ने गंभीर लहजे में कहना शुरू किया, ‘‘मैं एक मध्यम और इज्जतदार परिवार से हूं, जहां लड़की की इज्जत को काफी अहमियत दी जाती है. अगर उस की इज्जत पर कोई आंच आई तो उस का और उस के परिवार का जीना मुश्किल हो जाता है.
‘‘वैसे भी आजकल मेरा परिवार जिस मुश्किल दौर से गुजर रहा है, उस में ऐसी कोई बात मेरे परिवार की बरबादी का कारण बन सकती है.’’
‘‘कैसी मुश्किलों का दौर?’’ रंजन ने जोर दे कर पूछा.
काव्या ने उसे सबकुछ बताया, फिर अपनी बात खत्म करते हुए बोली, ‘‘मेरी मां और भाई बड़ी मुश्किल से पापा की मौत के गम को बरदाश्त कर पाए हैं, ऐसे में अगर मेरे साथ कुछ हुआ तो मेरा परिवार टूट कर बिखर जाएगा…’’ कहतेकहते काव्या की आंखों में आंसू आ गए और उस ने उस के आगे हाथ जोड़ दिए, ‘‘इसलिए मेरी तुम से विनती है कि तुम मेरा पीछा करना छोड़ दो.’’
पलभर के लिए रंजन की आंखों में दया और हमदर्दी के भाव उभरे, फिर उस के होंठों पर एक मक्कारी भरी मुसकान फैल गई.
रंजन काव्या के जुड़े हाथ थामता हुआ बोला, ‘‘मेरी बात मान लो, तुम्हारी सारी परेशानियों का खात्मा हो जाएगा. मैं तुम्हें पैसे भी दूंगा और प्यार भी. तू रानी बन कर राज करेगी.’’
काव्या को समझते देर न लगी कि उस के सामने बैठा आदमी इनसान नहीं, बल्कि भेडि़या है. उस के सामने रोने, गिड़गिड़ाने और दया की भीख मांगने का कोई फायदा नहीं. उसे तो उसी की भाषा में समझाना होगा. वह मजबूरी भरी भाषा में बोली, ‘‘अगर मैं ने तुम्हारी बात मान ली तो क्या तुम मुझे बख्श दोगे?’’
‘‘बिलकुल,’’ रंजन की आंखों में तेज चमक जागी, ‘‘बस, एक बार मुझे अपने हुस्न के दरिया में उतरने का मौका दे दो.’’
‘‘बस, एक बार?’’
‘‘हां.’’
‘‘ठीक है,’’ काव्या ने धीरे से अपना हाथ उस के हाथ से छुड़ाया, ‘‘मैं तुम्हें यह मौका दूंगी.’’
‘‘कब?’’
‘‘बहुत जल्द…’’ काव्या बोली, ‘‘पर, याद रखो सिर्फ एक बार,’’ कहने के बाद काव्या उठी, फिर रैस्टोरैंट के दरवाजे की ओर चल पड़ी.
‘तुम एक बार मेरे जाल में फंसो तो सही, फिर तुम्हारे पंख ऐसे काटूंगा कि तुम उड़ने लायक ही न रहोगी,’ रंजन बुदबुदाया.
रात के 12 बजे थे. काव्या महानगर से तकरीबन 3 किलोमीटर दूर एक सुनसान जगह पर एक नई बन रही इमारत की 10वीं मंजिल की छत पर खड़ी थी. छत के चारों तरफ अभी रेलिंग नहीं बनी थी और थोड़ी सी लापरवाही बरतने के चलते छत पर खड़ा कोई शख्स छत से नीचे गिर सकता था.
काव्या ने इस समय बहुत ही भड़कीले कपड़े पहन रखे थे जिस से उस की जवानी छलक रही थी. इस समय उस की आंखों में एक हिंसक चमक उभरी हुई थी और वह जंगल में शिकार के लिए निकले किसी चीते की तरह चौकन्नी थी.
अचानक काव्या को किसी के सीढि़यों पर चढ़ने की आवाज सुनाई पड़ी. उस की आंखें सीढि़यों की ओर लग गईं.
आने वाला रंजन ही था. उस की नजर जब कयामत बनी काव्या पर पड़ी, तो उस की आंखों में हवस की तेज चमक उभरी. वह तेजी से काव्या की ओर लपका. पर उस के पहले कि वह काव्या के करीब पहुंचे, काव्या के होंठों पर एक कातिलाना मुसकान उभरी और वह उस से दूर भागी.
‘‘काव्या, मेरी बांहों में आओ,’’ रंजन उस के पीछे भागता हुआ बोला.
‘‘दम है तो पकड़ लो,’’ काव्या हंसते हुए बोली.
काव्या की इस कातिल हंसी ने रंजन की पहले से ही भड़की हुई हवस को और भड़का दिया. उस ने अपनी रफ्तार तेज की, पर काव्या की रफ्तार उस से कहीं तेज थी.
थोड़ी देर बाद हालात ये थे कि काव्या छत के किनारेकिनारे तेजी से भाग रही थी और रंजन उस का पीछा कर रहा था. पर हिरनी की तरह चंचल काव्या को रंजन पकड़ नहीं पा रहा था.
रंजन की सांसें उखड़ने लगी थीं और फिर वह एक जगह रुक कर हांफने लगा.
इस समय रंजन छत के बिलकुल किनारे खड़ा था, जबकि काव्या ठीक उस के सामने खड़ी हिंसक नजरों से उसे घूर रही थी.
अचानक काव्या तेजी से रंजन की ओर दौड़ी. इस से पहले कि रंजन कुछ समझ सके, उछल कर अपने दोनों पैरों की ठोकर रंजन की छाती पर मारी.
ठोकर लगते ही रंजन के पैर उखड़े और वह छत से नीचे जा गिरा. उस की लहराती हुई चीख उस सुनसान इलाके में गूंजी, फिर ‘धड़ाम’ की एक तेज आवाज हुई. दूसरी ओर काव्या विपरीत दिशा में छत पर गिरी थी.
काव्या कई पलों तक यों ही पड़ी रही, फिर उठ कर सीढि़यों की ओर दौड़ी. जब वह नीचे पहुंची तो रंजन को अपने ही खून में नहाया जमीन पर पड़ा पाया. उस की आंखें खुली हुई थीं और उस में खौफ और हैरानी के भाव ठहर कर रह गए थे. शायद उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की मौत इतनी भयानक होगी.
काव्या ने नफरत भरी एक नजर रंजन की लाश पर डाली, फिर अंधेरे में गुम होती चली गई.
जब प्रोग्राम खत्म होने को होता, तो उसे फूलों का एक खूबसूरत गुलदस्ता भेंट कर चुपचाप लौट जाता.
शुरूशुरू में तो मुसकान ने उस की ओर ध्यान नहीं दिया, पर जब वह उस के हर प्रोग्राम में आने लगा, तो उस के मन में उस नौजवान के लिए एक जिज्ञासा जाग उठी कि आखिर वह कौन है? वह उस के हर प्रोग्राम में क्यों होता है? उसे उस के हर अगले प्रोग्राम की तारीख और जगह की जानकारी कैसे हो जाती है? वगैरह.
नट जाति से ताल्लुक रखने वाली मुसकान एक कुशल नाचने वाली थी. अपने बौस के आरकैस्ट्रा ग्रुप के साथ वह आएदिन नएनए शहरों में अपना प्रोग्राम देने जाती रहती थी.
लंबा कद, गोरा रंग और खूबसूरत चेहरे वाली मुसकान जब स्टेज पर नाचती थी, तो लोग दिल थाम लेते थे. उस के बदन की लोच, कातिल अदाएं और होंठों पर छाई रहने वाली मुसकान ने हजारों लोगों को अपना दीवाना बना रखा था, पर उस की दीवानगी में आहें भरने वालों में शायद ही कोई यह जानता था कि उस की मुसकान के पीछे उस के दिल में कितना दर्द छिपा हुआ है.
मुसकान महज 15 साल की थी, तब उस के मांबाप ने उसे इसी आरकैस्ट्रा ग्रुप के मालिक के हाथों बेच दिया था. तब उस का नाच में माहिर होना ही उस का शाप बन गया था. वैसे भी उन दलित परिवारों में बेटियों का बिकना आम था. बहुत सी तो खुद ही भाग जाती थीं.
मुसकान से कहा गया था कि गु्रप का मालिक उस के नाच से प्रभावित हो कर उसे अपने ग्रुप में शामिल कर रहा है और इस के लिए उस ने उस के मांबाप को एक मोटी रकम दी है. तब उसे उस की यह शर्त थोड़ी अटपटी जरूर लगी थी कि उसे उस के साथ ही रहना होगा.
जब मुसकान ने इस बात पर एतराज जताया था, तो ग्रुप के मालिक महेश ने उसे यह कह कर भरोसा दिलाया था कि वह जब चाहे अपने मांबाप से मिलने जा सकती है.
मुसकान को आरकैस्ट्रा ग्रुप में शामिल हुए सालभर बीतने को आया था. इस बीच वह कई जगह अपने प्रोग्राम दे चुकी थी. उसे इज्जत के साथ पैसे भी मिलते थे.
इस के बाद तो मुसकान को बारबार बेचा गया. कभी उस की भावनाओं का सौदा हुआ, तो कभी उस के जिस्म का. बीतते दिनों के साथ यह हकीकत उस के सामने आई कि महेश न सिर्फ अपने ग्रुप में शामिल लड़कियों की देह बेचता है, बल्कि उन के जिस्म का भी सौदा करता है. अगर कोई लड़की उस की इस बात की खिलाफत करती है, तो उसे बुरी तरह सताया जाता है. पर मुसकान इस की शिकायत किस से करती. वह भी उन हालात में, जब उस के मांबाप ने ही उसे इस जलालतभरी जिंदगी में धकेल दिया था. उसे कुछ दिनों में ग्राहकों से भी शिकायत नहीं रही.
मुसकान दलदल में फंसी एक बेबस और बेजान जिंदगी जी रही थी कि वह नौजवान उस की जिंदगी में आया. उस ने मुसकान की जिंदगी में एक हलचल सी मचा दी थी.
मुसकान ने तय किया था कि वह उस से अकेले में मिलेगी. वह पूछेगी कि आखिर वह उस के पीछे क्यों पड़ा है?
कल फिर मुसकान का प्रोग्राम था. उसे इस बात का पक्का यकीन था कि वह नौजवान कल भी आएगा.
देखा जाए, तो मुसकान अकसर लोगों से मिलती रहती थी. इन में अच्छे लोग भी होते थे और बुरे लोग भी. पर सच कहा जाए, तो बुरे लोगों की तादाद ज्यादा होती थी. वे लोग उस के रंगरूप और जवानी के दीवाने होते थे. उन के लिए वह एक खूबसूरत जिस्म थी, जिस वे भोगना चाहते थे.
मुसकान ने एक आदमी भेज कर उसे बुला लिया था. वह उस के सामने चुपचाप बैठा था.
मुसकान कुछ देर तक उस के बोलने का इंतजार करती रही, फिर बोली, ‘‘मैं देख रही हूं कि पिछले तकरीबन एक साल से तुम मेरे हर प्रोग्राम में रहते हो, मुझे गुलदस्ता भेंट करते हो और लौट जाते हो. मैं जान सकती हूं कि क्यों?’’
‘‘क्योंकि मुझे आप पसंद हैं…’’ वह गंभीर आवाज में बोला, ‘‘मैं आप को चाहने लगा हूं.’’
‘‘ऐसा ही होता है. कई बार लोग हमारी जैसी नाचने वाली किसी लड़की की किसी खास अदा पर फिदा हो कर उसे चाहने लगते हैं. पर उन की यह चाहत थोड़ी देर की होती है, जो बीतते समय के साथ खत्म हो जाती है.’’
‘‘परंतु, मेरी चाहत ऐसी नहीं है. सच तो यह है कि आप को अपनी जिंदगी में शामिल करना चाहता हूं.’’
‘‘यह मुमकिन नहीं है.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘क्योंकि जिन लोगों के साथ मैं काम करती हूं, वे यह हरगिज पसंद नहीं करेंगे कि मैं उन का साथ छोड़ कर जाऊं.’’
‘‘सवाल यह नहीं कि लोग क्या चाहते हैं. सवाल यह है कि आप क्या चाहती हैं?’’
‘‘मतलब?’’
‘‘बतलाऊंगा, पर इस के पहले आप यह बताइए कि क्या आप अपनी इस मौजूदा जिंदगी से खुश हैं?’’
मुसकान उस के इस सवाल का जवाब न दे सकी. वह कुछ देर तक चुपचाप उसे देखती रही, फिर बोली, ‘‘अगर मैं कहूं कि नहीं तो…?’’
‘‘तो मैं कहूंगा कि आप इस जिंदगी को ठोकर मार दीजिए.’’
‘‘और…?’’
‘‘और मेरी चाहत को कबूल कर मेरी जिंदगी में शामिल हो जाइए.’’
‘‘मैं फिर कहूंगी कि तुम्हारा यह प्रस्ताव भावुकता में दिया गया प्रस्ताव है, जिसे मैं स्वीकार नहीं कर सकती.’’
‘‘ऐसा नहीं है…’’ वह बोला, ‘‘और मैं समीर इसे आप के सामने साबित कर के रहूंगा,’’ कहने के बाद वह उठ खड़ा हुआ और चला गया.
इस के बाद भी समीर मुसकान से मिलता रहा. वह जब भी उस से मिलता, अपना प्रस्ताव उस के सामने जरूर दोहराता.
सच तो यह था कि मुसकान भी उस के प्रस्ताव को स्वीकार कर अपनी इस जलालत भरी जिंदगी से आजाद होना चाहती थी, पर यह बात भी वह अच्छी तरह जानती थी कि महेश इतनी आसानी से उसे अपने चंगुल से आजाद नहीं होने देगा. वह उस के लिए सोने का अंडा देने वाली मुरगी जो थी. पर समीर की चाहत और लगाव देख कर मुसकान ने फैसला कर लिया कि वह समीर का प्रस्ताव स्वीकार करेगी.
जब मुसकान ने अपने इस फैसले की जानकारी समीर को दी, तो खुशी से उस की आंखें चमक उठीं. मुसकान पलभर तक खुशी से चमकते उस के चेहरे को देखती रही, फिर गंभीर आवाज में बोली, ‘‘पर समीर, महेश इतनी आसानी से मुझे छोड़ने वाला नहीं.’’
‘‘मैं उसे मुंहमांगी कीमत दूंगा और तुम्हें उस से खरीद लूंगा.’’
‘‘ठीक है, बात कर के देखो. शायद वह तुम्हारी बात मान जाए.’’
समीर ने मुसकान को साथ ले कर महेश से बात की और उसे बताया कि वह हर कीमत पर मुसकान को हासिल करना चाहता है.
‘‘हर कीमत पर…’’ महेश ‘कीमत’ शब्द पर जोर देता हुआ बोला.
‘‘हां…’’ समीर बोला, ‘‘तुम कीमत बोलो?’’
‘‘10 लाख…’’ महेश ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा.
‘‘मंजूर है,’’ समीर बिना एक पल गंवाए बोला.
समीर महेश को मुंहमांगी कीमत दे कर मुसकान को अपने आलीशान घर में ले आया. घर की सजावट देख मुसकान हैरान हो कर बोली, ‘‘यह घर तुम्हारा है?’’
‘‘हां…’’ समीर उस के खूबसूरत चेहरे को प्यार से देखता हुआ बोला, ‘‘और अब तुम्हारा भी.’’
‘‘मेरा कैसे?’’
‘‘वह ऐसे कि तुम मेरी पत्नी बनने वाली हो.’’
‘‘सच?’’
‘‘बिलकुल सच…’’ समीर उसे अपनी बांहों में भरता हुआ बोला, ‘‘हम कल ही शादी कर लेंगे.’’
समीर ने मुसकान से शादी कर ली. मुसकान को लगा था कि समीर को पा कर उस ने दुनियाजहान की खुशियां पा ली हों. वह दिलोजान से उस पर न्योछावर हो गई थी. समीर भी उसे दिल की गहराइयों से चाहता था.
कुछ दिनों तक तो मुसकान को अपनी यह दुनिया बेहद भली और खुशगवार लगी थी, परंतु फिर वह इस से ऊबने लगी थी. उसे ऐसा लगने लगा था, जैसे उस की जिंदगी एक ढर्रे में बंध गई हो. ऐसे में उसे अपनी स्टेज की दुनिया याद आने लगी थी. उस की उस दुनिया में कितना रोमांच, कितना ग्लैमर था.
एक दिन अचानक मुसकान के आरकैस्ट्रा ग्रुप के मालिक महेश ने उस के सामने अपने ग्रुप की ओर से एक जगह प्रोग्राम देने का प्रस्ताव रखा और उस के बदले उसे एक मोटी रकम देने का वादा किया, तो वह इनकार न कर सकी.
‘‘प्रोग्राम कब है?’’ मुसकान ने पूछा.
‘‘कल.’’
‘‘कल…?’’ मुसकान के चेहरे पर निराशा के भाव फैले, ‘‘पर, समीर तो यहां नहीं हैं. वे कारोबार के सिलसिले में 4 दिनों के लिए शहर से बाहर गए हुए हैं. मुझे इस प्रोग्राम के लिए उन से इजाजत लेनी होगी.’’
‘‘अरे, डांस का प्रोग्राम ही तो देना है…’’ महेश बोला, ‘‘किसी अमीरजादे का बिस्तर तो नहीं गरम करना. भला इस में समीर को क्या एतराज हो सकता है?’’
‘‘फिर भी…’’
‘‘मान भी जाओ मुसकान.’’
‘‘ठीक है,’’ मुसकान ने हामी भर दी.
मुसकान ने डरे हुए मन से यह प्रोग्राम कर लिया. उसे उम्मीद थी कि वह समीर को इस के लिए मना लेगी, परंतु उस का ऐसा सोचना, उस की कितनी बड़ी भूल थी. इस का अहसास उसे समीर के लौटने पर छुआ.
‘‘यह मैं क्या सुन रहा हूं,’’ समीर मुसकान को गुस्से से घूरता हुआ बोला.
‘‘क्या…?’’
‘‘तुम ने फिर से डांस का प्रोग्राम किया.’’
‘‘आप को किस ने बताया?’’
‘‘मेरे एक दोस्त ने, जो तुम्हें अच्छी तरह से जानता है.’’
मुसकान को जिस बात का डर था, वही हुआ.
‘‘इस में खराबी क्या है…’’ मुसकान समीर का गुस्सा कम करने की कोशिश करते हुए बोली, ‘‘आजकल तो अच्छे घरानों की लड़कियां भी ऐसे प्रोग्राम करती हैं. फिर महेश ने इस के लिए मुझे एक मोटी रकम भी दी है.’’
‘‘मतलब, तुम ने पैसों के लिए प्रोग्राम किया है?’’
‘‘हां समीर…’’
‘‘आखिर तुम ने अपनी औकात दिखा ही दी और तुम ने यह भी साबित कर दिया कि तुम निचली जाति से ताल्लुक रखती हो.’’
‘‘समीर, अब तुम मेरी बेइज्जती कर रहे हो…’’ मुसकान तल्ख आवाज में बोली, ‘‘मैं नहीं समझती कि मैं ने यह प्रोग्राम दे कर कोई गलती की है. सच तो यह है कि डांस मेरा जुनून है और इस जुनून से मैं अपनेआप को ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रख सकती.’’
समीर पलभर तक उसे गुस्से में घूरता रहा, फिर पैर पटकता हुआ कमरे से बाहर चला गया.
‘‘समीर, आखिर तुम मेरी इस छोटी सी गलती के लिए मुझ से कब तक नाराज रहोगे?’’ तीसरे दिन रात की तनहाई में मुसकान समीर की ओर करवट लेते हुए बोली.
‘‘तुम्हारे लिए यह छोटी सी गलती है, पर तुम्हारी यही छोटी सी गलती मेरी बदनामी का सबब बन गई है. लोग
यह कह कर मेरा मजाक उड़ाते हैं कि देखो समीर की पत्नी स्टेज पर नाचती फिरती है.’’
‘‘लोगों का क्या है, उन का तो काम ही कुछ न कुछ कहना है. अगर हम उन के कहे मुताबिक चलने लगे, तो हमारी जिंदगी मुश्किल हो जाएगी.’’
‘‘इस का मतलब यह कि तुम दिल से चाहती हो कि तुम डांस प्रोग्राम करती रहो.’’
‘‘हां, बशर्ते तुम इस की इजाजत दो,’’ मुसकान बोली.
समीर कुछ देर तक चुपचाप मुसकान के खूबसूरत चेहरे और भरेभरे बदन को देखता रहा, फिर बोला, ‘‘ठीक है, मैं तुम्हें इस की इजाजत दूंगा, पर इस के लिए मेरे काम भी कर देना.’’
‘‘कैसे काम?’’
‘‘तुम कभीकभी मेरे कारोबार से संबंधित अमीर लोगों से मिल लेना.’’
‘‘क्या कह रहे हो तुम?’’ यह सुन कर मुसकान हैरान रह गई.
‘‘तुम मेरी पत्नी हो, तभी तो मैं तुम से ऐसी बातें कह रहा हूं…’’ समीर अपनी आवाज में मिठास घोलता हुआ बोला, ‘‘देखो मुसकान, अगर तुम ऐसा करती हो, तो हमें उन लोगों से अपनी कंपनी के लिए बड़े और्डर मिलेंगे, जिस से हमारा लाखों का मुनाफा होगा.
‘‘एक पत्नी होने के नाते क्या तुम्हारा यह फर्ज नहीं कि तुम अपने पति का कारोबार बढ़ाने में उस की मदद करो और फिर तुम ऐसा पहली बार तो नहीं कर रही हो?
‘‘तुम्हारी जाति में तो ऐसा होता ही रहता है. तुम ही तो कह रही थीं कि कितनी ही लड़कियों को ऊंची जाति वाले उठा कर ले जाते थे और सुबह पटक जाते थे.’’
समीर ने मुसकान की दुखती नस पर हाथ रख दिया था और ऐसे में वह चाह भी इस से इनकार नहीं कर सकी.
‘‘ठीक है,’’ मुसकान बुझे मन से बोली.
समीर एक दबदबे वाले शख्स को अपने घर लाया और न चाहते हुए भी मुसकान को उस की बात माननी पड़ी. फिर तो यह सिलसिला चल पड़ा. समीर हर दिन किसी अमीर शख्स को अपने साथ लाता और मुसकान को उसे खुश करना पड़ता.
यह बात तो मुसकान को बाद में मालूम हुई कि असल में समीर, जिन्हें अपने कारोबार से संबंधित लोग बतलाता था, वे उस के हुस्न और जवानी के खरीदार थे और समीर उन को अपनी पत्नी का खूबसूरत जिस्म सौंपने के लिए उन से एक मोटी रकम वसूलता था.
मुसकान ने जिसे भी अपना समझा, उसी ने उसे बेचा. पहले उस के मांबाप ने उसे बेचा और अब उस का पति उसे बेच रहा था. लेकिन दोनों अब पैसे में जो खेल रहे थे.
‘‘प्रमोदजी, मैं यह क्या सुन रही हूं…’’ गीता मैडम पार्टी के इलाकाई प्रभारी प्रमोदजी के दफ्तर में कदम रखते हुए बोली.
‘‘क्या हुआ मैडमजी… इतना गुस्सा क्यों हो?’’ प्रमोदजी के चेहरे से साफ पता चल रहा था कि वे मैडमजी के गुस्से की वजह जानते हैं.
‘‘प्रमोदजी, बताएं कि पार्टी ने आने वाले इलैक्शन में मेरी जगह उस कल की आई लड़की सारिका को टिकट देने का फैसला किया है. कल की आई वह लड़की आज आप के लिए इतनी खास हो गई है कि उस को मेरी जगह दी जा रही है?’’
‘‘अरे मैडमजी, आप कहां सब की बातों में आ रही हैं. आप तो पार्टी की पुरानी कार्यकर्ता हैं. आप ने तो पार्टी के लिए बहुतकुछ किया है. हम भी आप के बारे में सोचते, पर नेताजी के निर्वाचन समिति को आदेश हैं कि इस बार सब नए लोगों को ही आगे करना है…
‘‘दूसरी पार्टियां रोज नएनए चेहरों के साथ अखबारों में बने रहना चाहती हैं. बस, जनता को दिखाने के लिए हमारी पार्टी भी खूबसूरत चेहरों को आगे लाना चाहती है. ये कल के आए बच्चे हमारी और आप की जगह थोड़े ही ले सकते हैं,’’ बात करतेकरते प्रमोदजी ने अपना हाथ मैडमजी के हाथ पर रख दिया, ‘‘मैडमजी, हमारी नजर से देखो, तो उस सारिका से लाख गुना खूबसूरत हैं आप. पर नेताजी को कौन समझाए.’’
प्रमोदजी के चेहरे की मुसकान उन के इरादे साफ बता रही थी, पर छोटू की चाय ने उन को अपना हाथ मैडमजी के हाथ से हटाने पर मजबूर कर दिया.
छोटू चाय रख कर चला गया, तो मैडमजी ने फिर अपनी नाराजगी जताई, ‘‘प्रमोदजी, आप इन बातों से मुझे बहलाने की कोशिश मत कीजिए. आप के कहने पर मैं ने पिछली बार भी परचा नहीं भरा, क्योंकि आप चाहते थे कि आप की भाभी इलैक्शन लड़े. तब मैं भी नई थी और आप की बात मान गई थी.
‘‘पर अब क्या? सारिका 2 साल पहले पार्टी से जुड़ी है और उस को टिकट मिल रहा है. यह गलत है.
‘‘आप एक बार मेरी मुलाकात नेताजी से तो कराइए.
‘‘प्रमोदजी, मैं ने हमेशा वही किया है, जो आप ने कहा. कितनी बार आप के कहने पर झूठ भी बोला…यहां तक कि आप के कहने पर उस मनोहर पर गलत आरोप भी लगाए, ताकि आप इस कुरसी पर बने रहें. पर मुझे क्या मिला?
‘‘प्रमोदजी, आप जो कहेंगे, मैं करूंगी. बस, एक बार टिकट दिलवा दीजिए, फिर देखिए जीत तो मेरी पक्की है. आप समझ रहे हैं न,’’ इस बार मैडमजी ने प्रमोदजी का हाथ पकड़ लिया.
जब मैडमजी ने खुद प्रमोदजी का हाथ पकड़ लिया, तो उन की तो मानो मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई. उन्होंने मैडमजी को भरोसा दिया कि वे आज ही नेताजी से उन के लिए बात करेंगे.
मैडमजी अपना धूप का चश्मा सिर से वापस आंखों पर लगा कर दफ्तर से घर चली आईं.
‘‘क्या बात है गीता, आज जल्दी घर आ गईं? कोई पार्टी या मीटिंगविटिंग नहीं थी आज?’’
घर में आते ही मैडमजी सिर्फ गीता बन जाती थीं, जो मैडमजी को बिलकुल पसंद नहीं था.
अपने पति की यह बात सुन कर वे एकदम चिढ़ गईं और बिना जवाब दिए अपने कमरे में चली गईं.
मैडमजी को पैसों की कोई कमी नहीं थी. उन को कमी थी तो एक पहचान की. मैडमजी सुनने की आदत हो गई थी उन को. उन का यही सपना था कि लोग सलाम करें, हाथ जोड़ कर आगेपीछे घूमें. वे सत्ता का नशा चखना चाहती थीं और इस के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थीं.
‘‘क्या बात है गीता, बहुत परेशान दिख रही हो?’’ कहते हुए समीर ने कमरे की बत्ती जलाई, तो मैडमजी को एहसास हुआ कि रात हो गई है.
‘‘नहीं, कुछ नहीं. बस, सिरदर्द कर रहा है. दवा ली है. ठीक हो जाऊंगी. आप कहीं जा रहे हैं क्या?’’
‘‘हां… तुम को कल रात को बताया तो था कि मैं आज रात को 3 दिन के लिए बाहर जा रहा हूं. अगर ज्यादा तबीयत खराब हो, तो डाक्टर बुला लेना,’’ समीर इतना कह कर कमरे से बाहर चला गया.
समीर के जाते ही गीता ने फोन उठा कर प्रमोदजी को मिला दिया, ‘‘हैलो प्रमोदजी, मैं बोल रही हूं. क्या आप ने नेताजी से बात की?’’
‘‘अरे मैडमजी, मैं आप के बारे में ही सोच रहा था. आज आप गजब की लग रही थीं. क्या मदहोश खुशबू आती है…अभी तो घर पर हूं, कल दफ्तर जा कर आप से बात करता हूं,’’ प्रमोदजी के पास से शायद उन की पत्नी की आवाज आ रही थी, इसलिए उन्होंने फोन जल्दी रख दिया.
मैडमजी भी कच्ची खिलाड़ी नहीं थी. सारी रात जाग कर उन्होंने सोच लिया था कि आगे क्या करना है, जिस से सारिका को टिकट न मिले और प्रमोद को भी सबक मिल जाए.
अगले दिन अपनी अलमारी से नोटों की 3 गड्डियां पर्स में डाल कर मैडमजी जल्दी ही घर से निकल गईं. सीधे कौफी हाउस पहुुंच कर वे पत्रकारों से मिलीं. उन्हें कुछ समझाया और एक नोट की गड्डी उन्हें दी.
फिर वे एक सुनसान जगह पर 6-7 लड़कों से मिलीं. नोटों की बाकी गड्डी और एक फोटो उन को दी. थोड़ी देर बात की और तेजी से निकल गईं. वहां से वे सीधे प्रमोदजी के दफ्तर पहुंच गईं.
वहां अभी कोई नहीं आया था. बस, छोटू सफाई कर रहा था. वे चुपचाप छोटू के पास गईं, उसे कुछ समझाया. उस के हाथ में सौ रुपए का एक नोट रख दिया.
अब इंतजार था प्रमोदजी का. बाथरूम में जा कर मैडमजी ने पर्स से लिपस्टिक निकाल कर दोबारा लगाई और प्रमोदजी का इंतजार करने लगीं.
दफ्तर में मैडमजी को देख कर प्रमोदजी पहले थोड़ा हैरान हुए, पर वे मुसकराते हुए बोले, ‘‘मैडमजी, आप इतनी सुबहसुबह?’’
‘‘बस, क्या बताऊं प्रमोदजी, सारी रात सो नहीं पाई,’’ इतना कह कर मैडमजी ने साड़ी का पल्लू सरका दिया और बोलीं, ‘‘अरे, यह पल्लू भी न… माफ कीजिए,’’ फिर उन्होंने अदा से अलग पल्लू ठीक कर लिया.
‘‘मैडमजी, आज तो आप कहर बरपा रही हैं. यह रंग बहुत जंचता है आप पर,’’ प्रमोदजी मैडमजी के पास आ कर बोले.
‘‘आप भी न प्रमोदजी, बस कुछ भी…’’ मैडमजी ने अपना सिर प्रमोदजी के कंधे पर रख दिया.
उन्होंने मैडमजी की कमर पर हाथ रखना चाहा, पर उसी वक्त छोटू चाय ले कर आ गया और वे सकपका कर मैडमजी से दूर हो गए और बोले, ‘‘मैं ने तो चाय नहीं मंगवाई. चल, भाग यहां से.’’
‘‘प्रमोदजी, चाय मैं ने मंगवाई थी. रख दे यहां. चल, तू जा,’’ मैडमजी ने फिर अदा से प्रमोदजी की ओर देखा, पर प्रमोदजी को एहसास हो गया था कि वे पार्टी दफ्तर में हैं, इसलिए अपनी कुरसी पर जा कर बैठ गए.
मैडमजी खुश थीं कि छोटू एकदम सही वक्त पर आया.
‘‘प्रमोदजी, बातें तो होती ही रहेंगी. आप यह बताओ कि नेताजी से बात कब करोगे?’’
‘‘मैडमजी, बस आज ही… रैली के बारे में बात करने मैं आज ही पार्टी दफ्तर जा रहा हूं. आप के बारे में भी बात कर लूंगा.’’
‘‘पर आप को लगता है कि वे मानेंगे?’’ मैडमजी ने चिंता जताई.
‘‘अरे, वह सब आप मुझ पर छोड़ दो,’’ प्रमोदजी ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘नहीं, आप ही कह रहे थे न कल कि नए चहरे… बस, इसलिए पूछा… और नेताजी अपना फैसला बदलेंगे,’’ मैडमजी फिर अदा से बोलीं.
‘‘इतने सालों में आप हमें ठीक से जान नहीं पाई हैं. पार्टी में अच्छी पकड़ है हमारी. हाईकमान के फैसले को बदलना मेरे लिए कोई मुश्किल बात नहीं,’’ प्रमोदजी अपने मुंह मियां मिट्ठू बन रहे थे और मैडमजी कुरसी पर टेक लगा कर उन की बातें अपने फोन पर रिकौर्ड कर रही थीं.
प्रमोदजी आगे बोले, ‘‘मैडमजी, इतने साल तक पार्टी में झक नहीं मारी है मैं ने. हर किसी की कमजोरी जानता हूं. हर किसी को बोतल में उतार कर ही यहां तक पहुंचा हूं. आप ने तो देखा ही है कि जो मेरी बात नहीं मानता, उस का हाल उस मनोहर जैसा होता है.
‘‘बेचारा कुछ किए बिना ही जेल की हवा खा रहा है. और नेताजी के भी कई किस्से इस दिल में कैद हैं,’’ मैडमजी के सामने अपनी शान दिखाने के चक्कर में प्रमोदजी न जाने क्याक्या बोल गए.
मैडमजी का काम हो चुका था. वे किसी काम का बहाना कर के वहां से निकल गईं. अब उन्हें अगले काम के पूरा होने का इंतजार था. घर जाने का उन का मन नहीं था, इसलिए वे पास की कौफी शौप में जा कर बैठ गईं. समय देखा… अब तक तो खबर आ जानी चाहिए थी.
मैडमजी कौफी पी कर पैसे देने ही वाली थीं कि उन की नजर टैलीविजन पर गई. चेहरे पर हलकी मुसकान आ गई. पर्स उठा कर वापस प्रमोदजी के दफ्तर आ गईं.
प्रमोदजी फोन पर थे. वे काफी परेशान थे, ‘‘नहीं नेताजी, मुझे तो कुछ भी नहीं पता. यह खबर सच्ची है या नहीं… आप यकीन कीजिए, मुझे नहीं पता था कि सारिका कालेज में दाखिले के नाम पर छात्रों से पैसे लेती है…
‘‘पर नेताजी, आप मेरी बात तो सुनो. आप मुझे… ठीक है, जैसा आप कहो,’’ प्रमोदजी ने पलट कर के देखा, ‘‘अरे मैडमजी, अच्छा हुआ आप आ गईं.’’
‘‘क्या हुआ प्रमोदजी?’’ मैडमजी ने झूठी चिंता जताई.
‘‘हां मैडमजी, पार्टी दफ्तर से फोन था. कुछ लड़कों ने किसी टैलीविजन रिपोर्टर को इंटरव्यू दिया है कि कालेज में दाखिला करवाने के नाम पर सारिका ने उन से मोटी रकम ली है. अब देखो, इतना बड़ा कांड कर दिया और हमें कानोंकान खबर तक नहीं…’’
प्रमोदजी कुरसी पर बैठते हुए बोले, ‘‘नेताजी ने फिर हमें जिम्मेदारी दे दी है. उन का मानना है कि इस बार किसी भी बदनाम आदमी को टिकट तो क्या, पार्टी में भी जगह न दी जाए,’’ कहते हुए प्रमोदजी के चेहरे से एकदम चिंता के भाव गायब हो गए, जैसे उन के शैतानी दिमाग में कुछ आया हो.
‘‘मैडमजी, इस से पहले कि फिर कोई नया चेहरा सामने आए, मैं आप का नाम आगे कर देता हूं… कल नेताजी से मिलने जा रहा हूं, तो आज शाम को पहले आप से एक छोटी सी मुलाकात हो जाए… दफ्तर के पीछे वाले मेरे फ्लैट पर.’’
प्रमोदजी की बात सुन कर मैडमजी फिर मुसकारा दीं और बोलीं, ‘‘प्रमोदजी, नाम तो आप को मेरा ही लेना होगा और कान खोल कर सुन लो, अगर मेरे बारे में कोई गलत खयाल मन में भी लाए, तो आप भी इस पार्टी में नजर नहीं आएंगे.
‘‘…अब ध्यान से मेरी बात सुनो. जिन लड़कों ने सारिका पर इलजाम लगाया है, वे सारिका के साथसाथ आप का नाम भी ले सकते थे, पर मुझे इस पार्टी में लाने वाले आप थे, मैं ने हमेशा आप को अपने पिता जैसा माना, इसलिए अपनी परेशानी ले कर मैं आप के पास आई और आप मुझ पर ही गंदी नजर रखे हुए हैं. शर्म नहीं आई आप को…’’
इतना कह कर मैडमजी ने अपने मोबाइल फोन से अपनी और प्रमोदजी के बीच हुई सारी बातों की रिकौर्डिंग उन्हें सुना दी. प्रमोदजी को पसीने आ गए.
‘‘अब आप के लिए बेहतर होगा कि नेताजी को अभी फोन कर के मेरे नाम पर मुहर लगवा दीजिए, वरना कल आप की यह आवाज हर टैलीविजन चैनल पर सुनने को मिलेगी,’’ मैडमजी पर्स संभालते हुए तेज कदमों से कमरे से बाहर निकल गईं.
शाम होतेहोते मैडमजी के खास कार्यकर्ताओं के उन्हें टिकट मिलने की बधाई देने के फोन आने भी शुरू हो गए थे.
शीला की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और क्या न करे. पिछले एक महीने से वह परेशान थी. कालेज बंद होने वाले थे. प्रदीप सैमेस्टर का इम्तिहान देने के बाद यह कह कर गया था, ‘मैं तुम्हें पैसों का इंतजाम कर के 1-2 दिन बाद दे दूंगा. तुम निश्चिंत रहो. घबराने की कोई बात नहीं.’
‘पर है कहां वह?’ यह सवाल शीला को परेशान कर रहा था. उस की और प्रदीप की पहचान को अभी सालभर भी नहीं हुआ था कि उस ने उस से शादी का वादा कर उस के साथ…
‘शीला, तुम आज भी मेरी हो, कल भी मेरी रहोगी. मुझ से डरने की क्या जरूरत है? क्या मुझ पर तुम्हें भरोसा नहीं है?’ प्रदीप ने ऐसा कहा था. ‘तुम पर तो मुझे पूरा भरोसा है प्रदीप,’ शीला ने जवाब दिया था. शीला गांव से आ कर शहर के कालेज में एमए की पढ़ाई कर रही थी. यह उस का दूसरा साल था. प्रदीप इसी शहर के एक वकील का बेटा था. वह भी शीला के साथ कालेज में पढ़ाई कर रहा था. ऐयाश प्रदीप ने गांव से आई सीधीसादी शीला को अपने जाल में फंसा लिया था. शीला उसे अपना दोस्त मान कर चल रही थी. उन की दोस्ती अब गहरी हो गई थी. इसी दोस्ती का फायदा उठा कर एक दिन प्रदीप उसे घुमाने के बहाने पिकनिक पर ले गया. फिर वे मिलते, पर सुनसान जगह पर. इस का नतीजा, शीला पेट से हो गई थी. जब शीला को पता चला कि उस के पेट में प्रदीप का बच्चा पल रहा है, तो वह घबरा गई.
बमुश्किल एक क्लिनिक की लेडी डाक्टर 10 हजार रुपए में बच्चा गिराने को तैयार हुई. डाक्टर ने कहा कि रुपयों का इंतजाम 2 दिन में ही करना होगा. इधर प्रदीप को ढूंढ़तेढूंढ़ते शीला को एक हफ्ते का समय बीत गया, पर वह नहीं मिला. शीला ने उस का घर भी नहीं देखा था. प्रदीप के दोस्तों से पता करने पर ‘मालूम नहीं’ सुनतेसुनते वह परेशान हो गई थी. शीला ने सोचा कि क्यों न घर जा कर कालेज में पैसे जमा करने के नाम पर पिता से रुपए मांगे जाएं. सोच कर वह घर आ गई. उस की बातचीत के ढंग से पिता ने अपनी जमीन गिरवी रख कर शीला को 10 हजार रुपए ला कर दे दिए. वह रुपए ले कर ट्रेन से शहर लौट आई. टे्रन के प्लेटफार्म पर रुकते ही शीला ने जब अपने सूटकेस को सीट के नीचे नहीं पाया, तो वह घबरा गई. काफी खोजबीन की गई, पर सूटकेस गायब था. वह चीख मार कर रो पड़ी.
शीला गायब बैग की शिकायत करने रेलवे पुलिस के पास गई, पर पुलिस का रवैया ढीलाढाला रहा. अचानक पीछे से किसी ने शीला को आवाज दी. वह उस के बचपन की सहेली सुधा थी.
‘‘अरे शीला, पहचाना मुझे? मैं सुधा, तेरी बचपन की सहेली.’’
वे दोनों गले लग गईं.
‘‘कहां से आ रही है?’’ सुधा ने पूछा.
‘‘घर से,’’ शीला बोली.
‘‘तू कुछ परेशान सी नजर आ रही है. क्या बात है?’’ सुधा ने पूछा.
शीला ने उस पर जो गुजरी थी, सारी बात बता दी. ‘‘बस, इतनी सी बात है. चल मेरे साथ. घर से तुझे 10 हजार रुपए देती हूं. बाद में मुझे वापस कर देना.’’ सुधा उसी आटोरिकशा से शीला को अपने घर ले कर पहुंची. शीला ने जब सुधा का शानदार घर देखा, तो हैरान रह गई.
‘‘सुधा, तुम्हारा झोंपड़पट्टी वाला घर? तुम्हारी मां अब कहां हैं?’’ शीला ने सवाल थोड़ा घबरा कर किया. ‘‘वह सब भूल जा. मां नहीं रहीं. मैं अकेली हूं. एक दफ्तर में काम करती हूं. और कुछ पूछना है तुझे?’’ सुधा ने कहा, ‘‘ले नाश्ता कर ले. मुझे जरूरी काम है. तू रुपए ले कर जा. अपना काम कर, फिर लौटा देना… समझी?’’ कह कर सुधा मुसकरा दी. शीला रुपए ले कर घर लौट आई. अगले दिन जैसे ही शीला आटोरिकशा से डाक्टर के क्लिनिक पर पहुंची, तो वहां ताला लगा था. पूछने पर पता चला कि डाक्टर बाहर गई हैं और 2 महीने बाद आएंगी. शीला निराश हो कर घर आ गई. उस ने एक हफ्ते तक शहर के क्लिनिकों पर कोशिश की, पर कोई इस काम के लिए तैयार नहीं हुआ. हार कर शीला सुधा के घर रुपए वापस करने पहुंची.
‘‘मैं पैसे वापस कर रही हूं. मेरा काम नहीं हुआ,’’ कह कर शीला रो पड़ी.
‘‘अरे, ऐसा कौन सा काम है, जो नहीं हुआ? मुझे बता, मैं करवा दूंगी. मैं तेरी आंख में आंसू नहीं देख सकती,’’ सुधा ने कहा.
शीला ने सबकुछ सचसच बता दिया. ‘‘तू चिंता मत कर. मैं सारा काम कर दूंगी. मुझ पर यकीन कर,’’ सुधा ने कहा. और फिर सुधा ने शीला का बच्चा गिरवा दिया. डाक्टर ने उसे 15 दिन आराम करने की सलाह दी.
शीला बारबार कहती, ‘‘सुधा, तुम ने मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया है. यह एहसान मैं कैसे चुका पाऊंगी?’’
‘‘तुम मेरे पास ही रहो. मैं अकेली हूं. मेरे रहते तुम्हें कौन सी चिंता?’’ शीला अपना मकान छोड़ कर सुधा के घर आ गई. शीला को सुधा के पास रहते हुए तकरीबन 6 महीने बीत गए. पिता की बीमारी की खबर पा कर वह गांव चली आई. पिता ने गिरवी रखी जमीन की बात शीला से की. शीला ने जमीन वापस लेने का भरोसा दिलाया. जब शीला सुधा के पास आई, तो उस ने सुधा से कहा, ‘‘मुझे कहीं नौकरी पर लगवा दो. मैं कब तक तुम्हारा बोझ बनी रहूंगी? मुझे भी खाली बैठना अच्छा नहीं लगता.’’
‘‘ठीक है. मैं कोशिश करती हूं,’’ सुधा ने कहाएक दिन सुधा ने शीला से कहा, ‘‘सुनो शीला, मैं ने तुम्हारी नौकरी की बात की थी, पर…’’ कह कर सुधा चुप हो गई.
‘‘पर क्या? कहो सुधा, क्या बात है बताओ मुझे? मैं नौकरी पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं.’’ सुधा मन ही मन खुश हो गई. उस ने कहा, ‘‘ऐसा है शीला, तुम्हें अपना जिस्म मेरे बौस को सौंपना होगा, सिर्फ एक रात के लिए. फिर तुम मेरी तरह राज करोगी.’’ शीला ने सोचा कि प्रदीप से बदला लेने का अच्छा मौका है. इस से सुधा का एहसान भी पूरा होगा और उस का मकसद भी. शीला ने अपनी रजामंदी दे दी. फिर सुधा के कहे मुताबिक शीला सजसंवर कर बौस के पास पहुंच गई. बौस के साथ रात बिता कर वह घर आ गई. साथ में सौसौ के 20 नोट भी लाई थी. और फिर यह खेल चल पड़ा. दिन में थोड़ाबहुत दफ्तर का काम और रात में ऐयाशी. अब शीला भी आंखों पर रंगीन चश्मा, जींसशर्ट, महंगे जूते, मुंह पर कपड़ा लपेटे गुनाहों की दुनिया की बेताज बादशाह बन गई थी.
कालेज के बिगड़ैल लड़के, अमीर कारोबारी, सफेदपोश नेता सभी शीला के कब्जे में थे. एक दिन शीला ने सुधा से कहा, ‘‘दीदी, मुझे लगता है कि अमीरों ने फरेब की दुकान सजा रखी है…’’ इतने में सुधा के पास फोन आया.
‘‘कौन?’’ सुधा ने पूछा.
‘‘मैडम, मैं प्रदीप… मुझे शाम को…’’
‘‘ठीक है. 10 हजार रुपए लगेंगे. एक रात के… बोलो?’’
‘‘ठीक है,’’ प्रदीप ने कहा.
‘‘कौन है?’’ शीला ने पूछा.
‘‘कोई प्रदीप है. उसे एक रात के लिए लड़की चाहिए.’’ शीला ने दिमाग पर जोर डाला. कहीं यह वही प्रदीप तो नहीं, जिस ने उस की जिंदगी को बरबाद किया था.
‘‘दीदी, मैं जाऊंगी उस के पास,’’ शीला ने कहा.
‘‘ठीक है, चली जाना,’’ सुधा बोली.
शीला ने ऐसा मेकअप किया कि उसे कोई पहचान न सके. दुपट्टे से मुंह ढक कर चश्मा लगाया और होटल पहुंच गई. शीला ने एक कमरा पहले से ही बुक करा रखा था, ताकि वही प्रदीप हो, तो वह देह धंधे के बदले अपना बदला चुका सके. प्रदीप नशे में झूमता हुआ होटल पहुंच गया. ‘‘मेरे कमरे में कौन है?’’ प्रदीप ने मैनेजर से पूछा. ‘‘वहां एक मेम साहब बैठी हैं. कह रही हैं कि साहब के आने पर कमरा खाली कर दूंगी. वैसे, यह उन्हीं का कमरा है. होटल के सभी कमरे भरे हैं,’’ कह कर मैनेजर चला गया. प्रदीप ने दरवाजा खोल कर देखा, तो खूबसूरती में लिपटी एक मौडर्न बाला को देख कर हैरान रह गया.
‘‘कमाल का हुस्न है,’’ प्रदीप ने सोफे पर बैठते हुए कहा.
‘‘यह आप का कमरा है?’’
‘‘जी,’’ शीला ने कहा.
‘‘मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’ प्रदीप ने पूछा.
‘‘मोना.’’
‘‘आप कपड़े उतारिए और अपना शौक पूरा करें. समय बरबाद न करें. इसे अपना कमरा ही समझिए.’’ इस के बाद शीला ने प्रदीप को अपना जिस्म सौंप दिया. वे दोनों अभी ऐयाशी में डूबे ही थे कि किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी. प्रदीप मुंह ढक कर सोने का बहाना कर के सो गया. शीला ने दरवाजा खोला, तो पुलिस को देख कर वह जोर से चिल्लाई, ‘‘पुलिस…’’ ‘‘प्रदीप साहब, आप के खिलाफ शिकायत मिली है कि आप ने मोना मैडम के कमरे पर जबरदस्ती कब्जा जमा कर उन से बलात्कार किया है. आप को गिरफ्तार किया जाता है,’’ पुलिस ने कहा.
‘‘जी, मैं…’’ यह सुन कर प्रदीप की घिग्घी बंध गई. पुलिस ने जब प्रदीप को गिरफ्तार किया, तो मोना उर्फ शीला जोर से खिलखिला कर हंस उठी और बोली, ‘‘प्रदीपजी, इसे कहते हैं हुस्न का बदला…’’
सारिका ने कभी सोचा भी न था कि शादी के बाद उस की जिंदगी इतनी बदल जाएगी. शादी से पहले वह कितनी हंसमुख व मिलनसार थी. उस की न जाने कितनी सहेलियां थीं. किसी भी उत्सव, पार्टी वगैरह में उस के जाते ही जैसे जान आ जाती थी. उस के गीत, चुटकुले, कहकहे और खूबसूरती हरेक को उस के आसपास रहने को मजबूर कर देती थी.
लेकिन अब तो वह ऐसी पार्टियों में जाने से कतराती थी. पर समाज से कट कर भी तो नहीं रहा जा सकता, इसलिए जब कभी मजबूरी में जाती भी तो ऐसी कुछ बातें उस के कानों से टकरा ही जातीं, जो उसे विचलित कर देतीं. जैसे, ‘‘मोहितजी कितने अच्छे और हंसमुख हैं और उन की बीवी… नाक पर मक्खी तक नहीं बैठने देती, हर समय उस के तेवर चढ़े रहते हैं.’’
‘‘भई, खूबसूरत भी तो बहुत है. इसी का घमंड होगा,’’ कोई कहती.
‘‘अरे मोहितजी भी किसी से कम हैं क्या? जरा भी घमंड नहीं करते,’’ तुरंत कोई उन की तरफदारी के लिए खड़ा हो जाता.
‘‘मोहितजी किसी से भी हंसतेबोलते नजर आ जाएं तो ऐसे देखती है, जैसे अभी निगाहों से ही भस्म कर देगी और सामने वाले की भी ऐसी बेइज्जती कर देती है कि वह उसे देखता ही रह जाता है,’’ एक और आवाज सारिका की बुराई में उभरी.
‘‘सुना है मोहितजी ने कालेज के किसी मेले में उसे देखा था और फिर ऐसे फिदा हुए कि उस की तलाश में जमीनआसमान एक कर दिए और फिर उसे अपनी दुलहन बना कर ही माने. फिर उस की खूबसूरती के आगे ऐसे झुके कि आज तक सिर झुकाए हुए हैं. वे कहीं फिर से किसी की खूबसूरती के आगे न झुक जाएं, यही सोच कर सारिका सैलाब आने से पहले ही उसे रोक देती है,’’ ऐसी शोख बात पर हर कोई मुसकरा उठता और सारिका मन ही मन कट कर रह जाती.
‘‘बेचारे मोहितजी, कितने शरीफ हैं. हलकी सी मुसकराहट के साथ कितनी शराफत से बात करते हैं. कभी गलत निगाह से नहीं देखते और उन की बीवी… काश, वे मुझे पहले मिल जाते तो इतने शानदार इंसान को मैं अपना बना लेती.’’
‘‘अच्छा, तो अब कोशिश कर लो. तुम भी कम खूबसूरत नहीं हो.’’
‘‘अच्छा… उन की बीवी को देखा है? जान से ही मार डालेगी मुझ को…’’
‘‘हां भई, यह तो ठीक कहती हो तुम. फिर तो हम यही शुभकामनाएं दे सकते हैं कि तुम्हें भी ऐसा ही कोई इंसान मिल जाए.’’
‘‘हां भई, हमारी भी यही कामना है,’’ शरारत भरी आवाज आती.
सारिका धीरे से गरदन मोड़ कर उन की तरफ देखती. फिर मन ही मन उन से कहती, ‘उफ यह कैसी शुभकामनाएं दे रही हो नादान लड़कियों. तुम्हारा भला तो इसी में है कि तुम्हें मोहित जैसा इंसान न मिले.’
मोहित की तारीफ सुन कर सारिका का मुंह कड़वा हो जाता. दोस्त, पड़ोसियों व रिश्तेदारों सभी की यही राय थी कि मोहित अपने नाम के अनुसार हैं. सब को अपने हंसमुख, सरल स्वभाव से आकर्षित करने वाले और सारिका हद से ज्यादा घमंडी, शक्की और बुरा व्यवहार करने वाली महिला है. इस तरह की बातें सारिका के लिए नई नहीं थीं. उसे अकसर इसी तरह की बातें किसी न किसी रूप में सुनने को मिल ही जाती थीं. सब का यही सोचना था कि मोहित एक शरीफ, जिंदादिल इंसान हैं और अपने प्यार के हाथों मजबूर हो कर पत्नी से रिश्ता निभा रहे हैं, वरना सारिका जैसी पत्नी को तो तलाक दे देना चाहिए था. हरेक की हमदर्दी मोहित के साथ थी.
मोहित का बाहरी रूप सारी दुनिया के सामने बहुत प्रभावशाली था पर पत्नी होने के नाते सारिका अच्छी तरह जानती थी कि वे किस तरह के इंसान हैं. अगर बुराई, धोखा, मन के छल और हवस का इंसानी रूप दिया जा सकता तो उस की सूरत मोहित से अलग न होती. हां, यही सोच थी सारिका की अपने पति के बारे में. वह मोहित से नफरत करती थी फिर भी अपनी बेटी के कारण ही उस के साथ रहती थी, क्योंकि वह जानती थी कि मांबाप का अलगाव बच्चों के लिए बहुत दुखदायी होता है. इस से उन का सही विकास नहीं हो पाता. वह अपनी बेटी को सशक्त और सफल इंसान के रूप में देखना चाहती थी.
सारिका के मन में, बातों में कड़वाहट का कारण मोहित ही थे. पहले सारिका उन्हें बहुत अच्छा इंसान मानती थी. उसे याद था कि जब मोहित की तरफ से उस के लिए रिश्ता आया था, तो वह हैरान रह गई थी. उन के दोस्त की बीवी ने जब उस के प्रति मोहित की दीवानगी का बखान किया था तब सारिका ने हैरानी से आईने से पूछा था कि क्या मैं सच में इतनी सुंदर हूं?
मोहित अकेले रहते थे. अपना घर, शानदार नौकरी, कंपनी से मिली गाड़ी. उन के बारे में सारिका के पापा ने अच्छी तरह जानकारी लेने के बाद संतुष्ट हो कर रिश्ते के लिए हां कर दी थी.
और जब बरात सारिका के दरवाजे पर आई तो देखने वाले ‘वाह’ कर उठे. कामदार शेरवानी में मोहित चांद की तरह चमक रहे थे. महिलाओं और लड़कियों में मोहित की स्मार्टनैस के ही चर्चे थे. खूबसूरती में तो सारिका भी कम नहीं थी. इस लुभावनी जोड़ी पर से लोगों की आंखें नहीं हट रही थीं.
शादी के बाद सारिका ने जाना कि वाकई मोहित कमाल के इंसान हैं. वे देखने में तो खूबसूरत थे ही, उन की बातें भी बहुत खूबसूरत होती थीं. यों भी मोहित से पहले सारिका के मन में किसी और का खयाल नहीं आया था, इसलिए जल्दी ही मोहित के प्यार में रचबस कर वह खुद को दुनिया की सब से सुखी पत्नी समझने लगी थी.
घर में ज्यादा काम तो था नहीं. सफाई, बरतन, कपड़ों का काम नौकरानी ही कर जाती थी. मोहित ने तो कहा था कि खाना बनाने वाली भी रख लो, तुम्हें कोई काम करने की जरूरत नहीं, पर सारिका ने रसोई का काम खुद ही संभाल लिया था. मोहित का ध्यान रखना उसे अच्छा लगता था. इस से उस का समय भी आसानी से गुजर जाता, वरना घर में और था ही कौन?
मोहित के मातापिता में जल्दी ही अलगाव हो गया था. उस की मां उसे बचपन में ही पिता के हवाले कर कर किसी पूर्व प्रेमी के साथ चली गई थीं. फिर मोहित की देखभाल नौकरों के हवाले कर दी गई. पत्नी की बेवफाई के दुख ने उस के पिता को नशे का आदी बना दिया, जिस के चलते वे बहुत ही कम समय में दुनिया से चल बसे थे. पर सारिका जानती थी कि मोहित की परवरिश सही तरीके से न होने का प्रभाव उस की जिंदगी में उथलपुथल मचा देगा.
एक बार मोहित के रिश्ते की बहन मिलने आईं, तो सारिका को बहुत अच्छा लगा था. उस ने जोर डाल कर उन्हें रात के खाने तक रोक लिया था. दीदी की 12 साल की बेटी बहुत चुलबुली थी. सारे घर में चहकती फिर रही थी. घर में रौनक सी हो गई थी. मोहित भी दीदी से बातों में व्यस्त थे. फिर दीदी सारिका के पास रसोई में आ गईं और बेटी स्वीटी के कहने पर मोहित उसे छत पर ले गए. उन की हंसी की आवाजें रसोई तक आ रही थीं. कुछ देर बाद सारिका उन्हें बुलाने सीढि़यों पर चढ़ी तो देखा मोहित स्वीटी की कमर में हाथ डाले उस से सट कर खड़े थे. स्वीटी इधरउधर हाथ से इशारा कर के अपनी बात कहने में लगी थी, पर मोहित की आंखें भूखे भेडि़ए की तरह उसे देख रही थीं.
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