Murder Story : बेइज्‍जती का बदला लेने के लिए गर्लफ्रैंड के भाई को नदी में डुबो कर मार डाला

Murder Story : अजमल आलम ने कल्लू का अपहरण कर के उसे मार डाला था. उस की लाश अजमल ने सतलुज नदी में बहा दी थी निस्संदेह यह बड़ा अपराध था, लेकिन यह भी सच है कि अजमल को ऐसा जघन्य अपराध करने का मौका लल्लू के मातापिता ने ही दिया था, अगर वे समय रहते…

काफी हताश होने के बाद आखिर कन्नू लाल ने तय कर लिया कि अब वह अपने बेटे लल्लू को तलाश करने में समय बरबाद नहीं करेगा और इस के लिए पुलिस की मदद भी लेगा. यह बात उस ने अपनी पत्नी और रिश्तेदारों को भी बताई. फिर उसी शाम वह अपने पड़ोसी भानु को ले कर लुधियाना के थाना डिवीजन नंबर-2 की पुलिस चौकी जनकपुरी जा पहुंचा. कन्नू लाल मूलरूप से गांव मछली, जिला गोंडा, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. कई साल पहले वह काम की तलाश में अपने किसी रिश्तेदार के साथ लुधियाना आया था और काम मिल जाने के बाद यहीं का हो कर रह गया था. काम जम गया तो कन्नू लाल ने गांव से अपनी पत्नी कंचन और बच्चों को भी लुधियाना बुला लिया था.

लुधियाना में वह इंडस्ट्रियल एरिया में लक्ष्मी धर्मकांटा के पास अजीत अरोड़ा के बेहड़े में किराए का कमरा ले कर रहने लगा था. कन्नू लाल के 4 बच्चे थे, 2 बेटे और 2 बेटियां. बड़ी बेटी कुसुम 20 साल की थी और शादी के लायक थी. कन्नू लाल का सब से छोटा बेटा वरिंदर उर्फ लल्लू 11 साल का था, जो कक्षा-4 में पढ़ता था. 27 जुलाई, 2017 को लल्लू दोपहर को अपने स्कूल से लौटा और खाना खाने के बाद गली में बच्चों के साथ खेलने लगा. यह उस का रोज का नियम था. कन्नू की पत्नी कंचन और बाकी बच्चे घर में सो रहे थे. शाम करीब 4 बजे कंचन ने चाय बना कर लल्लू को बुलाने के लिए आवाज दी.

लेकिन लल्लू गली में नहीं था. लल्लू हमेशा अपने घर के आगे ही खेलता था, दूर नहीं जाता था. कंचन ने गली में खेल रहे बच्चों से पूछा तो सभी ने बताया कि लल्लू थोड़ी देर पहले तक उन के साथ खेल रहा था, पता नहीं बिना बताए कहां चला गया. चाय पीनी छोड़ कर सब लल्लू की तलाश में जुट गए. शाम को जब लल्लू को पिता कन्नू लाल काम से लौट कर घर पहुंचा तो वह भी बेटे की तलाश में जुट गया. पूरी रात तलाशने के बाद भी लल्लू का कहीं पता नहीं चला. सभी यह सोच कर हैरान थे कि आखिर 11 साल का बच्चा अकेला कहां जा सकता है. इस के पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था.

अगला दिन भी लल्लू की तलाश में गुजरा. शाम को कन्नू लाल ने लल्लू की गुमशुदगी पुलिस चौकी में दर्ज करा दी. ड्यूटी अफसर हवलदार भूपिंदर सिंह ने धारा 146 के तहत कन्नू की गुमशुदगी दर्ज कर के यह सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही लल्लू का हुलिया और उस का फोटो आसपास के सभी थानों में भेज दिया गया. लल्लू की तलाश में न तो पुलिस ने कोई कसर छोड़ी और न उस के मातापिता और रिश्तेदारों ने. पर लल्लू का कहीं से कोई सुराग नहीं मिला. कन्नू लाल गरीब मजदूर था, जो दिनरात मेहनत कर के अपने बच्चों का पालनपोषण करता था, इसलिए फिरौती का तो सवाल ही नहीं था. हां, दुश्मनी की बात सोची जा सकती थी.

दुश्मनी के चक्कर में कोई लल्लू को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर सकता था, इसीलिए पुलिस बारबार कन्नू से यह पूछ रही थी कि उस का किसी से लड़ाईझगड़ा तो नहीं है. लल्लू को गुम हुए एक सप्ताह गुजर चुका था पर कहीं से भी उस का कोई सुराग नहीं मिला. घटना के 9 दिन बाद अचानक कन्नू लाल के मोबाइल फोन पर एक शख्स का फोन आया. फोन करने वाले का कहना था कि लल्लू उस के कब्जे में है. अगर बेटा सहीसलामत और जिंदा चाहिए तो 2 लाख रुपया बैंक एकाउंट नंबर 0003333 में डलवा दो. लल्लू मिल जाएगा. कन्नू लाल ने तुरंत इस फोन की सूचना पुलिस को दे दी. अब मामला केवल लल्लू की गुमशुदगी का नहीं रह गया था. उस का अपहरण फिरौती के लिए किया गया था सो पुलिस हरकत में आ गई.

एडीसीपी गुरप्रीत सिंह के सुपरविजन में एक टीम का गठन किया गया, जिस का इंचार्ज एसीपी वरियाम सिंह को बनाया गया. पुलिस ने पहले दर्ज मामले में धारा 365 और 384 भी जोड़ दीं. अपहरण के 9 दिन बाद 4 अगस्त को लल्लू के पिता कन्नू लाल के मोबाइल पर फोन कर के 2 लाख रुपए फिरौती मांगने के बाद फोनकर्ता ने नंबर स्विच्ड औफ कर दिया था. जांच आगे बढ़ाते हुए कन्नू लाल के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई गई. साथ ही उस के फोन को सर्विलांस पर भी लगा दिया गया. काल डिटेल्स से पता चला कि कन्नू लाल को स्थानीय बसअड्डे से फोन किया गया था. यह सोच कर तुरंत एक पुलिस टीम वहां भेजी गई कि हो न हो कोई संदिग्ध मिल जाए, क्योंकि बसअड्डा क्षेत्र काफी बड़ा और भीड़भाड़ वाला इलाका था. पास में ही रेलवे स्टेशन भी था. लेकिन वहां पुलिस को कुछ नहीं मिला.

पुलिस यह मान कर चल रही थी कि लल्लू का अपहरणकर्ता जो भी रहा हो, वह कन्नू लाल का कोई नजदीकी या फिर रिश्तेदार ही होगा. क्योंकि अपहरणकर्ता ने जो 2 लाख रुपए की फिरौती मांगी थी, वह कन्नू लाल की हैसियत देख कर ही मांगी थी. भले ही कन्नू लाल गरीब था, पर अपने बच्चे के लिए 2 लाख का इंतजाम तो कर ही सकता था. इस के लिए उसे गांव की जमीन भी बेचनी पड़ती तो वह भी बेच देता. अपहर्त्ता जो भी था, कन्नू के परिवार को गांव तक जानता था. इस सोच के बाद पुलिस ने कन्नू लाल और उस के परिवार के हर छोटेबड़े सदस्य से पूछताछ की. कुछ खबरें पड़ोसियों से भी ली गईं. मुखबिरों का भी सहारा लिया गया. आखिर अंदर की बात पता चल ही गई. इस से पुलिस को लगने लगा कि अब वह जल्द ही अपरहणकर्ता तक पहुंच कर लल्लू को सकुशल बचा लेगी.

कन्नू लाल के परिवार से पता चला कि कुछ दिन पहले उन का अजमल आलम से झगड़ा हुआ था. 30 वर्षीय अजमल आलम उन के पड़ोस में ही रहता था और कपड़े पर कढ़ाई का बहुत अच्छा कारीगर था. उस की कमाई भी अच्छी थी और उस का कन्नू के घर काफी आनाजाना था. वह उस के परिवार के काफी करीब था और सभी बच्चों से घुलामिला हुआ था. खासकर कन्नू की बड़ी बेटी कुसुम से. 7 साल पहले जब अजमल आलम की उम्र करीब 22-23 साल थी और कुसुम की 14 साल तभी दोनों एकदूसरे के करीब आ गए थे.  अजमल मूलरूप से गांव भयंकर दोबारी, जिला किशनगंज, बिहार का रहने वाला था. 7 साल पहले उस ने खुद को अविवाहित बता कर कुसुम को अपने प्रेमजाल में फांस लिया था.

इस के 2 साल बाद उस ने कुसुम से शादी करने का झांसा दे कर उस से शारीरिक संबंध भी बना लिए थे. यह सिलसिला अभी तक चलता रहा था. कह सकते हैं कि उस ने 7 वर्ष तक कुसुम का इस्तेमाल अपनी पत्नी की तरह किया था. अजमल से कुसुम के संबंध कितने गहरे हैं, यह बात कन्नू और उस की पत्नी कंचन को भी पता थी. उन की नजरों में अजमल अविवाहित था और अच्छा कमाता था. वह कुसुम से बहुत प्यार करता था और शादी करना चाहता था. कन्नू लाल और उस की पत्नी कंचन को इस पर कोई ऐतराज नहीं था. फलस्वरूप जैसा चल रहा था, उन्होंने वैसा चलने दिया. उन लोगों ने न कभी बेटी पर कोई अंकुश लगाया और न अजमल को अपने घर आने से रोका.

जून 2018 में अचानक किसी के माध्यम से कंचन और कुसुम को पता चला कि अजमल पहले से ही शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था. इतनी बड़ी बात छिपा कर वह कुसुम के साथ लगातार 7 सालों तक दुष्कर्म करता रहा था. हकीकत जान कर मांबेटी के होश उड़ गए. उस समय अजमल अपने कमरे पर ही था. कुसुम और कंचन ने जा कर उस के साथ झगड़ा किया और उस की खूब पिटाई की. यह बात मोहल्ले की पंचायत तक भी पहुंची. पंचायत के कहने पर कंचन ने अजमल को धक्के मार कर मोहल्ले से बाहर निकाल दिया. अजमल ने भी वहां से चुपचाप चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. क्योंकि मोहल्ले वालों के सामने हुई जबरदस्त बेइज्जती के बाद वह वहां नहीं रह सकता था, इसलिए वह अपना सामान लिए बिना मोहल्ले से चला गया था.

यह कहानी जान लेने के बाद पुलिस को लगा कि लल्लू के अपहरण के पीछे अजमल का ही हाथ हो सकता है. कुसुम वाले मामले में उस की काफी बेइज्जती हुई थी. यहां तक कि उसे अपना घर भी छोड़ कर भागना पड़ा था. बदला लेने के लिए वह कुछ भी कर सकता था. कन्नू के परिवार के पास अजमल का फोन नंबर था. पुलिस ने वह नंबर सर्विलांस पर लगवा दिया और उस की लोकेशन ट्रेस करने की कोशिश करने लगी. कन्नू को किए गए पहले फोन के 2 दिन बाद फोन कर के उस से दोबारा पैसों की मांग की गई. इस बार फोन कैथल, हरियाणा से आया था. पुलिस टीम फोन की लोकेशन ट्रेस करते हुए जब कैथल पहुंची तो कन्नू को दिल्ली से फोन किया गया.

इस बार फोन करने वाले ने रुपयों की मांग के साथ कुसुम से बात करने की भी इच्छा जताई तो साफ हो गया कि लल्लू के अपरहण में अजमल का ही हाथ है. इस के बाद वह कन्नू को बारबार मैसेज करता रहा. अजमल को पकड़ने के लिए पुलिस की टीमों ने कैथल व दिल्ली में एक साथ 15 जगह रेड डाली लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. अब तक की जांच में सामने आया कि जो बैंक खाता नंबर उस ने फिरौती के पैसे डलवाने के लिए दिया था, वह लुधियाना के एक युवक का था. खास बात यह कि उस युवक से अजमल की दूरदूर तक कोई जानपहचान नहीं थी. फिर भी पुलिस ने उसे शक के दायरे में ही रखा. आखिर लंबे चले इस चोरसिपाही के खेल के बाद पुलिस ने अजमल की फोन लोकेशन का पीछा करते हुए उसे 8 अगस्त को दिल्ली से धर दबोचा.

अगले दिन 9 अगस्त को पुलिस ने अजमल को अदालत में पेश कर के लल्लू की बरामदगी और आगामी पूछताछ के लिए उसे 5 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. पूछताछ के दौरान अजमल ने बताया कि लल्लू की हत्या उस ने उसी दिन यानी 27 जुलाई को ही कर दी थी और उस की लाश को सतलुज नदी में बहा दिया था. उस ने बताया कि मोहल्ले से बेइज्जत होने के बाद वह अपनी बहन के पास कैथल चला गया था. लेकिन कुसुम के बिना उस का मन नहीं लग रहा था. उस ने कुसुम से प्यार किया था और वह भी उसे प्यार करती थी, लेकिन अब उस ने बेवफाई की थी. उस का मन बारबार कहता था कि कुसुम और उस की मां से बेइज्जती का हिसाब लिया जाए.

इस के लिए वह लुधियाना छोड़ कर जाने के डेढ़ महीने बाद 27 जुलाई को ट्रेन से लुधियाना आया. दोपहर को जब लल्लू स्कूल से वापस घर जा रहा था तो उस ने उसे रोक कर साथ चलने को कहा, लेकिन उस ने मना कर दिया और घर जा कर अपनी बहन को उस के आने की सूचना दी. बाद में जब लल्लू खेलने के लिए घर से बाहर निकला तो उस ने लल्लू को घुमाने का लालच दिया और आटो में बिठा कर सतलुज नदी पर ले गया. नदी पर पहुंच कर अजमल ने लल्लू को नदी में नहाने और तैरना सिखाने के लिए उकसाया. जब लल्लू नहाने के लिए कपड़े उतार कर अजमल के साथ दरिया में घुसा तो अजमल ने नहाते समय लल्लू की गरदन पकड़ कर उसे पानी में डुबो कर मार दिया और उस की लाश पानी में बहा कर बस द्वारा वापस कैथल चला गया. बाद में वह दिल्ली पहुंच गया था. वहीं से वह कन्नू को फोन पर एसएमएस भेजता था.

अजमल की निशानदेही पर पुलिस ने सतलुज में गोताखोरों की टीम को उतारा. पर लल्लू की लाश नहीं मिली. बरसात के दिन होने के कारण नदी में पानी का तेज बहाव था. ऐसे में संभव था कि लाश पानी में तैरती हुई कहीं दूर निकल गई हो. पुलिस लल्लू की लाश को कई दिनों तक नदी में दूरदूर तक तलाशती रही लेकिन लाश नहीं मिली. रिमांड की अवधि खत्म होने के बाद 13 अगस्त, 2018 को अजमल को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया. खेलखेल में लल्लू की गुमशुदगी से शुरू हुआ यह ड्रामा अंत में इतने भयानक अंजाम तक पहुंचेगा, इस बात की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कुसुम परिवर्तित नाम है.

 

Extramarital Affair : बहू के अवैध संबंध के चक्कर में मारा गया ससुर

Extramarital Affair : बालेश्वर जो कर रहा था, वह गलत था. लेकिन हकीकत जानने के बाद सोमेश उर्फ सोनू ने जो कदम उठाया, वह भी सही नहीं था. लेकिन सवाल यह है कि वह करता भी तो क्या… 

बा 9 अक्तूबर, 2018 की है. उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के थाना बेला के एसओ विष्णु गौतम अपने औफिस में बैठे थे. तभी सुबह करीब 10 बजे एक युवक उन से मिलने आया. वह बेहद घबराया हुआ था. गौतम ने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा किया. बैठ जाने के बाद उन्होंने उस से पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम कुछ परेशान लग रहे हो? जो भी बात है, बताओ.’’

एसओ की बात सुन कर युवक बोला, ‘‘सर, मेरा नाम सोमेश है. मैं धरमंगदपुर गांव में रहता हूं. रात को किसी ने मेरे पिता और मेरी 4 साल की भांजी की हत्या कर दी है. आप जल्दी मेरे साथ चलें.’’

मामला 2-2 हत्याओं का था, इसलिए एसओ विष्णु गौतम तुरंत पुलिस फोर्स के साथ चल दिए. इस की सूचना उन्होंने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी. धरमंगदपुर गांव थाने से कोई 5 किलोमीटर दूर था. पुलिस को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगाउस समय घटनास्थल पर गांव वालों की भीड़ जुटी थी. घर में महिलाओं के रोने से कोहराम मचा था. एसओ मकान की दूसरी मंजिल पर स्थित कमरे में पहुंचे. कमरे का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. कमरे के अंदर 2 लाशें पड़ी थीं. एक लाश घर के मुखिया बालेश्वर पांडेय की थी और दूसरी मासूम पलक कीदेख कर लग रहा था कि बालेश्वर के सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार किया गया था. जिस से उन का सिर फट गया था और  ज्यादा खून बहने से उन की मौत हो गई थी.

जबकि पलक के शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं था. शायद उस का गला घोंटा गया था. कमरे के अंदर खून फैला था और खून से सनी एक फुंकनी पड़ी थी. बालेश्वर की उम्र 60 साल के आसपास थी जबकि पलक 4 साल की थी. एसओ विष्णु गौतम मौके का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी त्रिवेणी सिंह, एएसपी नेपाल सिंह तथा सीओ भास्कर वर्मा भी वहां गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था. फोरैंसिक टीम ने वहां से सबूत इकट्ठे किए. वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना करने के बाद बालेश्वर पांडेय के बेटे सोमेश से बात की. एसपी के निर्देश पर एसओ ने मौके की काररवाई निपटा कर दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं.

इस के बाद एसओ विष्णु गौतम ने मृतक की पत्नी मंजू पांडेय से पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘बीती रात 8 बजे हम सब ने मिल कर खाना खाया. इस के बाद पति बालेश्वर तथा नातिन पलक दूसरी मंजिल पर बने कमरे में सोने चले गए. बड़ा बेटा सोमेश उर्फ सोनू भी छत पर जा कर सो गया. वह, मैं और बेटी पूनम नीचे पर बने कमरे में जा कर सो गए. सुबह होने पर पति नहीं जागे तो मैं पूनम के साथ उन्हें जगाने पहुंची. जैसे ही मैं उन के कमरे में दाखिल हुई, चीख निकल गई. दोनों की वहां लाशें पड़ी थीं.’’

‘‘क्या तुम बता सकती हो कि तुम्हारे पति और नातिन की हत्या किस ने की है. तुम्हें किसी पर शक है?’’ एसओ ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, मुझे किसी पर शक नहीं है. उन की तो किसी से दुश्मनी थी और ही किसी से लेनदेन का झगड़ा था.’’ मंजू ने जवाब दिया.

पूनम ने बताया, ‘‘साहब, मैं कई महीने से मायके में अपनी बेटी पलक के साथ रह रही हूं. पलक वैसे तो मेरे पास सोती थी, लेकिन कल रात वह नाना के साथ सोने की जिद करने लगी थी. जिद पकड़ने पर पिताजी उसे अपने साथ ले गए थे.’’

‘‘तुम्हारे पिता बेटी का कातिल कौन हो सकता है? तुम्हें किसी पर संदेह है?’’ एसओ ने पूनम से पूछा.

‘‘नहीं साहब, मुझे किसी पर कोई शक नहीं है. मैं नहीं जानती कि इन दोनों को किस ने और क्यों मारा है?’’ पूनम सुबकते हुए बोली.

एसओ ने इस के बाद सोमेश से पूछताछ की तो उस ने भी वही बताया जो उस की मां और बहन ने बताया था. इस के बाद विष्णु गौतम ने पड़ोसियों से बात की तो पता चला कि बालेश्वर पांडेय रिटायर्ड फौजी था. वह शराब का आदी था. उस का अपनी बहू यानी सोमेश की पत्नी से कोई चक्कर चल रहा था. इस बात को ले कर सोमेश का अपने पिता से अकसर झगड़ा होता रहता था. बीती रात भी उस का अपने बाप से झगड़ा हुआ था. एसओ विष्णु गौतम के लिए यह जानकारी बेहद महत्त्वपूर्ण थी. सोमेश उर्फ सोनू शक के घेरे में आया तो पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया और थाने ले जा कर उस से इस दोहरे मर्डर के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया

जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह उन के सवालों के जाल में उलझ गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि दोनों हत्याएं उस ने ही की थीं. हालात ऐसे बन गए कि उसे ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस के बाद उस ने इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह पारिवारिक रिश्तों को तारतार कर देने वाली निकली

औरैया जिले की विधूना तहसील के अंतर्गत एक गांव है धरमंगदपुर. यह गांव बेला विधून मार्ग पर बेला से 4 किलोमीटर दूर बसा हुआ है. पहले यह गांव उजाड़ था लेकिन जब से बिजली, सड़क, पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया हुईं, तब से गांव संपन्नता की ओर बढ़ने लगा. इस गांव के ज्यादातर लोग किसान हैं. कुछ लोग गल्ले का व्यापार करते हैं तो कुछ दूध के व्यवसाय से भी जुडे़ हैं. इसी धरमंगदपुर गांव में बालेश्वर पांडेय अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी मंजू के अलावा 3 बेटे सोमेश उर्फ सोनू, उमेश उर्फ मोनू, नीरज उर्फ छोटू तथा 2 बेटियां नीलम पूनम थीं. बालेश्वर पांडेय मूलरूप से इटावा जिले के सहसों थाना क्षेत्र के गांव बल्लो गाढि़या का रहने वाला था. वह सेना में नौकरी करता था.

फौज से रिटायर होने के बाद उस ने अपने गांव में एक आलीशान मकान बनवाया था. इस के अलावा कुछ खेती की जमीन भी खरीद ली थी. कुल मिला कर वह साधनसंपन्न था. गांव में उस की तूती बोलती थी. बालेश्वर पांडेय अपनी दोनों बेटियों की शादी कर चुका था. बेटों में सोमेश उर्फ सोनू बड़ा था. वह बचपन से ही गांव छोड़ कर चला गया था. कई सालों तक वह एक शहर से दूसरे शहर की खाक छानता रहा. उस के बाद गांव कर रहने लगाउस ने गांव के आवारा नशेबाज लड़कों से दोस्ती कर ली थी. फौजी बालेश्वर इन आवारों लड़कों से नफरत करता था. वह सोनू के साथसाथ उन्हें भी फटकारता रहता था. जिस से सोमेश की अपने पिता से अकसर तकरार होती रहती थी. उस का छोटा बेटा नीरज उर्फ छोटू इटारसी में रह कर पढ़ाई कर रहा था.

उमेश उर्फ मोनू भाइयों में मंझला था. उस का मन तो पढ़ाई में लगता था और ही किसानी में. बालेश्वर ने सोचा कहीं मोनू गलत रास्ते पर चला जाए, इसलिए उन्होंने उस का ब्याह सीमा से करा दिया था. सीमा और मोनू ने बडे़ प्यार से जिंदगी का सफर शुरू किया. धीरेधीरे 5 साल कब बीत गए, पता ही नहीं चला. पर 5 वर्ष बीतने के बावजूद सीमा मां नहीं बन सकी. इस का मलाल सीमा को भी था और उस की सास मंजू को भी. सीमा को ससुराल में किसी प्रकार की कमी नहीं थी. पर उसे अब 2 चिंताएं सताने लगी थीं. एक तो उस की गोद सूनी थी, दूसरी उस का पति निठल्ला था. वह कोई कामकाज नहीं करता था. सीमा अपने खर्च के लिए सासससुर पर ही निर्भर थी. सीमा ने पहले प्यार से फिर सख्त लहजे में पति को समझाया कि वह शहर जा कर कोई नौकरी करे.

पत्नी के सख्त रुख से मोनू परेशान रहने लगा. अब दोनों के बीच दूरियां बनने लगी थीं. धीरेधीरे उमेश की हालत पागलों जैसी हो गई. वह कभी घर आता तो कभी मंदिर के चबूतरे पर ही रात बिता देता था. बालेश्वर और उस की पत्नी मंजू बेटे की इस हालत पर गंभीर थे. वह उस का इलाज भी करा रहे थे और झाडफूंक भी. उन्हें शक था कि उमेश को कोई शैतानी ताकत परेशान कर रही है. इसी के चलते एक रोज उमेश गुम हो गया. बालेश्वर ने उस की हर संभावित जगह पर तलाश की, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. उमेश उर्फ मोनू को गुम हुए कई साल बीत गए. घर वाले भी उसे भूलने लगे. सीमा को भी पति के जाने का कोई खास दुख था, क्योंकि उस के रहते भी उसे कोई सुख नहीं था. पहले भी वह सासससुर पर निर्भर थी, वही हाल अब भी था. अत: वह पूरी तरह सासससुर की सेवा में जुट गई.

मंजू अकसर बीमार रहती थी. घर की सारी जिम्मेदारी सीमा के कंधों पर गई थी. सीमा ने अब ससुर के सामने लंबा घूंघट करना भी छोड़ दिया था. अब वह सिर्फ हलका परदा करती थी. बेटे के घर से गायब हो जाने के बाद बालेश्वर की नजर बहू सीमा पर पड़ने लगी थी. बालेश्वर पांडेय फौजी था. वह शराब का भी शौकीन था. एक शाम बालेश्वर मल्हौसी बाजार गया, वहां उस ने शराब के ठेके पर जम कर शराब पी. फिर मस्ती के आलम में झूमता हुआ देर रात घर पहुंचा. मंजू बीमार होने के कारण जल्दी सो गई थी. बालेश्वर ने घर पहुंच कर दरवाजा खटखटाया तो सीमा ने ही दरवाजा खोला. फिर कच्ची नींद से उठी सीमा अपने कमरे में सोने चली गई. इधर बालेश्वर कमरे के बाहर पड़ी चारपाई पर जा कर बैठ गया.

लालटेन की रोशनी में वहां से सीमा के कमरे के अंदर का नजारा साफ दिख रहा था. बालेश्वर की नीयत में खोट गया. वह धीरे से उठा, पत्नी मंजू के कमरे में झांक कर देखा तो वह चादर ताने गहरी नींद में थी. वहां से मुड़ कर बालेश्वर सीमा के पलंग के पास खड़ा हुआ. कुछ देर तक वह सीमा का चेहरा ताकता रहा. फिर उस का गाल सहलाने लगा. किसी के स्पर्श का अहसास हुआ तो सीमा जाग गई. बालेश्वर ने तुरंत अपना हाथ खींच लिया और फुसफुसा कर बोला, ‘‘बहू, जरा उठ कर मेरे लिए खाना तो परोस दे.’’

सीमा की आंखें नींद से बोझिल थीं, इसलिए वह ससुर की हरकत की गंभीरता समझ नहीं पाई. वह उठी और रसोई में चली गई. बालेश्वर भी पीछेपीछे वहां जा पहुंचा. एकाएक वह सीमा का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘मैं तुम्हें जगाना नहीं चाहता था लेकिन क्या करूं, जगाना ही पड़ा. जब तक खाने पर तेरा हाथ नहीं लगता, स्वाद नहीं आता.’’ बालेश्वर बेहयाई से हंसा.

सीमा ससुर की इस हरकत पर दूर जा कर खड़ी हो गई. उस ने चुपचाप ससुर को खाना परोसा और उस से बचती हुई रसोई के बाहर निकलने लगी. तभी बालेश्वर ने फिर से अश्लील हरकत कर दी और बोला, ‘‘एक लोटा पानी भी तो देती जा बहू.’’

ससुर की बदनीयती देख कर सीमा को गुस्सा तो बहुत आया पर वह चुपचाप गुस्सा पी गई और पानी का लोटा रख कर अपने कमरे में कर पलंग पर लेट गई. काफी देर तक पड़ीपड़ी वह सोचती रही कि आज ससुर को अचानक क्या हो गया, जो इस तरह की हरकत कर रहे हैं. बालेश्वर ने उस के साथ उस रात दोबारा छेड़छाड़ नहीं की तो सीमा ने सोचा कि शायद नशे में होने की वजह से वह ऐसी हरकत कर बैठे होंगे. पर ऐसा सोचना उस की भूल थी. अब बालेश्वर जब भी उसे अकेली पाता, कहीं कहीं उस के बदन पर हाथ फेर देता था. एक शाम बालेश्वर फिर शराब पी कर आया. रात गहराने लगी तो उस ने एक नजर बीवी पर डाली. वह खर्राटे भर रही थी. यह देख उस की बांछें खिल उठीं. उस ने अपने कपड़े उतार कर खूंटी पर टांग दिए और सिर्फ कच्छा बनियान पहने सीमा के पलंग पर जा पहुंचा.

सीमा उस के इरादों से अनजान नींद में बेसुध पड़ी थी. बालेश्वर उस की बगल में लेट गया और उस के कामुक अंगों को सहलाने लगा. सीमा नींद से जागी और उठ कर बैठने को हुई तो बालेश्वर ने उसे दबोच लिया और कुटिल हंसी हंसते हुए बोला, ‘‘ताकत दिखाने से कोई फायदा नहीं मेरी रानी. अच्छा यही होगा कि चुपचाप ऐसे ही पड़ी रहो. तुम मुझे खुश कर दोगी तो मैं भी जिंदगी भर तुम्हें खुश रखूंगा. रानी बन कर रहना है तो मेरी बात मान लो.’’

सीमा ससुर की बांहों से छूटने का प्रयास करते हुए बोली, ‘‘मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं पिताजी, मुझे छोड़ दो.’’

सीमा गिड़गिड़ाती रही. इज्जत की दुहाई देती रही, पर बालेश्वर पर तो हवस का शैतान सवार था. उस ने अपनी कोशिश जारी रखी. उस की हरकतों से सीमा की सीमाएं भी पिघलने लगीं. वह भी कई सालों से पुरुष सुख से वंचित थी. अंतत: उस ने विरोध करना बंद कर दिया. इस के बाद ससुरबहू के बीच एक नापाक रिश्ता बन गया. उस रात अनीति का पहला अध्याय लिखा गया, तो यह सिलसिला ही बन गया. बालेश्वर बीवी को नींद की गोलियां खिला देता. जब मंजू गहरी नींद में सो जाती तो वह बहू की सेज सजाने पहुंच जाता. सीमा भी उस का भरपूर सहयोग करती थी.

ऐसे काम ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. ससुरबहू की गतिविधियों से पड़ोसियों को शक हुआ तो धीरेधीरे उन की यह बात फैलने लगी. मंजू के कानों में बात पड़ी तो उसे यकीन नहीं हुआ. फिर भी उस ने बहू सीमा से इस बाबत सवालजवाब किया तो सीमा बोली, ‘‘अम्मा, तुम सठिया गई हो जो सुनीसुनाई बातों पर यकीन करती हो. पड़ोसी तुम्हारे कान इसलिए भर रहे हैं ताकि घर में कलह हो.’’

बालेश्वर का बड़ा बेटा सोमेश उर्फ सोनू कई साल बाद घर लौट आया. घर में रह कर वह खेती के काम देखने लगा. जब सोमेश को पता चला कि उस के छोटे भाई की पत्नी सीमा के अपने ससुर से नाजायज संबंध हैं तो उस का माथा ठनका. लेकिन वह सुनीसुनाई बातों पर यकीन नहीं करना चाहता था. वह पिता छोटे भाई की पत्नी सीमा पर नजर रखने लगा. इस का परिणाम यह हुआ कि एक रात सोमेश ने सीमा को आधी रात के बाद पिता के कमरे से बाहर निकलते देख लिया. अब उस का शक यकीन में बदल गया. सोमेश ने जब इन नाजायज रिश्तों के बारे में सीमा से जवाब तलब किया तो उस ने सीधे शब्दों में कह दिया, ‘‘जो पूछना है अपने बाप से पूछो. घर उस का है, मुझे तो उस ने घर की दासी समझ रखा है.’’

सोमेश ने बाप से जब मर्यादा में रहने को कहा तो बालेश्वर भड़क गया, ‘‘तू मुझे नसीहत दे रहा है? यह मेरा घर है, जायदाद मेरी है. ज्यादा बोला तो घर से बेदखल कर दूंगा. एक फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा. अपनी औकात में रह.’’

सोमेश उस समय खामोश हो गया. लेकिन नफरत की आग उस के सीने में दहकने लगी. सोमेश की छोटी बहन पूनम अपने पति नीरज दीक्षित से लड़झगड़ कर अपनी बेटी पलक के साथ मायके गई थी. पूनम के जाने से ससुरबहू के संबंधों में खलल पड़ने लगा था. नाजायज रिश्तों को ले कर बापबेटे में ठन गई थी. जब घर में कलह बढ़ी तो सीमा तुनक कर अपने मायके चली गई. बालेश्वर सीमा को समझाबुझा कर वापस लाना चाहता था, लेकिन सोमेश इस का विरोध कर रहा था. सीमा को ले कर सोमेश बालेश्वर में अकसर झगड़ा होने लगा था. गुस्से में बालेश्वर बेटे सोमेश को पीट भी देता था.

8 अक्तूबर, 2018 की देर शाम भी बालेश्वर सोनू में सीमा को ले कर तूतू मैंमैं हुई. फिर बात इतनी बढ़ी कि बालेश्वर ने सोमेश की पिटाई कर दी. इस पिटाई ने आग में घी का काम किया. सोमेश ने सोचा आज यह पापी बहू को हवस का शिकार बना रहा है, कल को बेटी को भी हवस का शिकार बना सकता है. अत: उस का जिंदा रहना उचित नहीं है. ज्योंज्यों रात गहराती जा रही थी, त्योंत्यों सोमेश का गुस्सा बढ़ता जा रहा था. वह छत पर लेटा था लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. आधी रात के बाद वह उठा. पहले वह रसोई में गया. वहां से लोहे की फुंकनी ले कर बाप के कमरे में जा पहुंचा

बालेश्वर गहरी नींद में सो रहा था. उसी के बगल में बहन पूनम की मासूम बेटी पलक सो रही थी. कमरे में पहुंचते ही सोमेश ने बाप के सिर पर फुंकनी से कई प्रहार किए. बालेश्वर चीखा और सदा के लिए शांत हो गया. नाना की चीख से पलक की नींद खुल गई. उस ने मामा का रौद्र रूप देखा तो चीखने लगी. सोमेश ने सोचा कि पलक ने उसे हत्या करते देख लिया है, वह बता देगी तो वह पकड़ा जाएगा. विवेक खो बैठे सोमेश के हाथ पलक की गरदन पर पहुंच गए और उस ने गला घोंट कर उसे भी मार डाला. डबल मर्डर करने के बाद सोमेश खून सनी फुंकनी कमरे में ही छोड़ कर घर से बाहर गया. घर से कुछ दूरी पर तालाब था. वहां जा कर उस ने खून सने हाथपैर धोए, फिर वापस कर छत पर सो गया. सुबह होने पर मंजू पूनम कमरे में पहुंचीं तो उन्हें डबल मर्डर की जानकारी हुई.

फिर सोमेश भी कुछ देर रोनेधोने का नाटक करता रहा और बाद में उस ने थाना बेला जा कर पुलिस को सूचना दे दी. सोमेश उर्फ सोनू से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे 10 अक्तूबर, 2018 को औरैया की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Family Crime : मौसी बनी बच्चों की कातिल

Family Crime : राधा ने बहन के पति संजय से आशिकी ही नहीं की बल्कि उस से शादी भी कर ली. लेकिन उस की इस विषैली आशिकी ने उसी की जिंदगी में जहर घोल दिया. उस के साथ जो हुआ वह…

राधा हसीन सपने देखने वाली युवती थी. 2 भाइयों की एकलौती बहन. उसे मांबाप और भाइयों के प्यार की कभी कमी नहीं रही. लेकिन राधा की जिंदगी ही नहीं, बल्कि मौत भी एक कहानी बन कर रह गई, एक दुखद कहानी. राधा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की आशिकी इतनी दुखद साबित होगी कि ससुराल और मायके दोनों जगह नफरत के ऐसे बीज बो जाएगी, जिस के पौधों को काटना तो दूर वह उस की गंध से ही तड़प उठेगी. इस कहानी की भूमिका बनी जिला कासगंज, उत्तर प्रदेश के गांव सैलई से. विजय पाल सिंह अपने 3 बेटों मुकेश, सुखदेव और संजय के साथ इसी गांव में खुशहाल जीवन बिता रहा था. विजय पाल के पास खेती की जमीन थी. साथ ही गांव के अलावा कासगंज में पक्का मकान भी था.

मुकेश और सुखदेव की शादियां हो गई थीं. मुकेश गांव में ही परचून की दुकान चलाता था, जबकि सुखदेव कोचिंग सेंटर में बतौर अध्यापक नौकरी करता था. विजय का तीसरे नंबर का छोटा बेटा संजय ट्रक ड्राइवर था. विजय पाल का पड़ोसी केसरी लाल अपने 2 बेटों प्रेम सिंह, भरत सिंह और जवान बेटी तुलसी के साथ सैलई में ही रहता था. पड़ोसी होने के नाते विजय पाल और केसरी लाल के पारिवारिक संबंध थे. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि केसरी लाल की जवान बेटी तुलसी पड़ोस में रहने वाले संजय को इतना चाहने लगेगी कि अपनी अलग दुनिया बसाने के लिए परिवार तक से बगावत कर बैठेगी.

जब केसरी लाल को पता चला कि बेटी बेलगाम होने लगी है तो उस ने तुलसी पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया. लेकिन तुलसी को तो ट्रक ड्राइवर भा गया था, इसलिए वह बागी हो गई. संजय और तुलसी के मिलनेजुलने की चर्चा ने जब गांव में तूल पकड़ा तो केसरी लाल ने विजय पाल से संजय की इस गुस्ताखी के बारे में बताया. विजय पाल ने केसरी लाल से कहा कि वह निश्चिंत रहे, संजय ऐसा कोई काम नहीं करेगा कि उस की बदनामी हो. लेकिन इस से पहले कि विजय पाल कुछ करता, संजय तुलसी को ले कर गांव से भाग गया. घर वालों को ऐसी उम्मीद नहीं थी, पर संजय और तुलसी ने कोर्ट में शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसा ली. केसरी लाल को बागी बेटी की यह हरकत पसंद नहीं आई. उस ने तय कर लिया कि परिवार पर बदनामी का दाग लगाने वाली बेटी से कोई संबंध नहीं रखेगा. कई साल तक तुलसी का अपने मायके से कोई संबंध नहीं रहा.

कालांतर में तुलसी ने शिवम को जन्म दिया तो मांबाप का दिल भी पिघलने लगा. तुलसी संजय के साथ खुश थी, इसलिए मांबाप उसे पूरी तरह गलत नहीं कह सकते थे.  इसी के चलते उन्होंने बेटीदामाद को माफ कर के घर बुला लिया. सब कुछ ठीक हो गया था, तुलसी खुश थी. 4 साल बाद वह 2 बच्चों की मां भी बन गई थी. उस ने सासससुर और परिवार वालों के दिलों में अपने लिए जगह बना ली. सैलई में तुलसी के चाचा अयोध्या प्रसाद भी रहते थे, जिन्हें लोग अयुद्धी भी कहते थे. अयुद्धी के 2 बेटे थे दीप और विपिन. साथ ही एक बेटी भी थी राधा. राधा और तुलसी दोनों की उम्र में थोड़ा सा अंतर था. हमउम्र होने की वजह से दोनों एकदूसरे के काफी करीब थीं.

जब तुलसी संजय के साथ भाग गई थी तो राधा खुद को अकेला महसूस करने लगी थी. तुलसी संजय के साथ कासगंज में रहती थी. राधा को उन दोनों के गांव आने का इंतजार रहता था. बहन और जीजा जब भी गांव आते थे, राधा ताऊ के घर पहुंच जाती थी. जीजासाली के हंसीमजाक को बुरा नहीं माना जाता, इसलिए संजय और राधा के बीच हंसीमजाक चलता रहता था. मजाक से हुई शुरुआत धीरेधीरे रंग लाने लगी. संजय स्वभाव से चंचल तो था ही, धीरेधीरे तुलसी से आशिकी का बुखार भी हलका पड़ने लगा था. एक दिन मौका पा कर संजय ने राधा का हाथ पकड़ लिया.

राधा ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा, ‘‘जीजा, तुम ने इसी तरह तुलसी दीदी का हाथ पकड़ा था न?’’

‘‘हां, ठीक ऐसे ही.’’ संजय बोला.

‘‘तो क्या इस हाथ को हमेशा पकड़े रहोगे?’’ राधा ने पूछा.

संजय ने हड़बड़ा कर राधा का हाथ छोड़ दिया. राधा ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘बड़े डरपोक हो जीजा. अगर लुकछिप कर तुम कुछ पाना चाहते हो तो मिलने वाला नहीं है. हां, बात अगर गंभीर हो तो सोचा जा सकता है. ’’

राधा संजय के दिलोदिमाग में बस चुकी थी. जबकि तुलसी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि उस की चचेरी बहन ने किस तरह संबंधों में सेंध लगा दी है. राधा उस के जीवन में अचानक घुस आएगी, ऐसा तुलसी ने सोचा तक नहीं था. संजय पर विश्वास कर उस ने अपने मांबाप से बगावत की थी, लेकिन उसे लग रहा था कि संजय के दिल में कुछ है, जो वह समझ नहीं पा रही. दूसरी तरफ राधा सोच रही थी कि क्या सचमुच संजय उस के प्रति गंभीर है या फिर सिर्फ मस्ती कर रहा है. संजय का स्पर्श उस की रगों में बिजली के करंट की तरह दौड़ रहा था. उस ने सोचा कि यह सब गलत है. अब वह अकेले मेें संजय के करीब नहीं जाएगी. उस ने खुद को संभालने की भरपूर कोशिश की लेकिन संजय हर घड़ी, हर पल उस के दिलोदिमाग में मंडराता रहता था.

अगले कुछ दिन तक संजय गांव नहीं आया तो एक दिन राधा ने संजय को फोन कर के पूछा, ‘‘क्या बात है जीजा, दीदी गांव क्यों नहीं आती?’’

‘‘ओह राधा तुम हो, जीजी से बात कर लो, मुझ से क्या पूछती हो? अगर ज्यादा दिल कर रहा है तो हमारे घर आ जाओ. कल ही लंबे टूर से वापस आया हूं.’’

राधा का दिल धड़कने लगा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह अपनी बहन के पति की ओर खिंची चली जा रही है. हालांकि वह जानती थी कि यह गलत है. अगर उस ने संजय से संबंध बनाए तो पता नहीं संबंधों में कितनी मजबूती होगी. संजय मजबूत भी हुआ तो समाज और परिवार के लोग कितनी लानतमलामत करेंगे. ये संबंध कितने सही होंगे, वह नहीं जानती थी. पर आशिकी हिलोरें ले रही थी. लग रहा था जैसे कोई तूफान आने वाला हो. फिर एक दिन राधा अपनी बहन के घर कासगंज आ गई. शाम को जब संजय ने राधा को अपने घर देखा तो हैरानी से पूछा, ‘‘राधा, तुम यहां?’’

‘‘हां, और अब शाम हो रही है. मैं जाऊंगी भी नहीं.’’ राधा ने संजय को गहरी नजर से देखते हुए कहा.

‘‘अरे वाह, तुम्हें देखते ही इस ने रंग बदल लिया. मैं इसे रुकने को कह रही थी तो मान ही नहीं रही थी.’’ तुलसी ने कहा. वह राधा और संजय के मनोभावों से बिलकुल बेखबर थी.

संजय ने चाचा के घर फोन कर के कह दिया कि उन लोगों ने राधा को रोक लिया है, सुबह वह खुद छोड़ आएगा. उस दिन राधा वहीं रुक गई, लेकिन तुलसी के दांपत्य के लिए वह रात कयामत की रात थी. इंटर पास राधा से तुलसी को ऐसी नासमझी की उम्मीद नहीं थी. लेकिन राधा के दिलोदिमाग पर तो जीजा छाया हुआ था. रात का खाना खाने के बाद तुलसी ने राधा का बिस्तर अलग कमरे में लगा दिया और निश्चिंत हो कर सो गई. लेकिन राधा और संजय की आंखों में नींद नहीं थी. देर रात संजय राधा के कमरे में पहुंचा तो राधा जाग रही थी. जानते हुए भी संजय ने पूछा, ‘‘तुम सोई नहीं?’’

‘‘मुझे नींद नहीं आ रही. मुझे यह बताओ जीजा, तुम ने मुझे क्यों रोका है?’’

‘‘क्योंकि मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं.’’

‘‘सोच लो जीजा, साली से प्यार करना महंगा भी पड़ सकता है.’’ राधा ने कहा.

‘‘वह सब छोड़ो, बस यह जान लो कि मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’ कह कर संजय ने राधा को गले लगा लिया. इस के बाद दोनों के बीच की सारी दूरियां मिट गईं. जो संबंध संजय के लिए शायद मजाक थे, उन्हें ले कर राधा गंभीर थी. इसीलिए दोनों के बीच 2 साल तक लुकाछिपी चलती रही. फिर एक दिन राधा ने पूछा, ‘‘अब क्या इरादा है? लगता है, मां को शक हो गया है. जल्दी ही मेरे लिए रिश्ता तलाशा जाएगा. मुझे यह बताओ कि तुम दीदी को तलाक दोगे या नहीं?’’

‘‘यह क्या कह रही हो तुम? मैं तुलसी को कैसे तलाक दे सकता हूं? बड़ी मुश्किल से तुलसी को घर वालों ने स्वीकार किया है.’’ संजय बोला.

‘‘तो क्या तुम साली को मौजमस्ती के लिए इस्तेमाल कर रहे हो, यह सब महंगा भी पड़ सकता है जीजा, मुझे बताओ कि अब क्या करना है?’’

‘‘राधा, मैं तुम से प्यार करता हूं. हम दोनों कासगंज छोड़ कर कहीं और रहेंगे और कोर्ट में शादी कर लेंगे. मजबूर हो कर तुलसी तुम्हें स्वीकार कर ही लेगी.’’

‘‘लेकिन तुम ने तो कहा था कि तुम तुलसी को छोड़ दोगे?’’

‘‘पागल मत बनो, वह मेरे 2 बेटों की मां है. लेकिन मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि तुम्हें वे सारे अधिकार मिलेंगे, जो पत्नी को मिलते हैं.’’ संजय ने राधा को समझाने की कोशिश की. आखिर राधा जीजा की बात मान गई और एक दिन संजय के साथ भाग गई. दोनों ने बदायूं कोर्ट में शादी कर ली. अगले दिन राधा के घर में तूफान आ गया. उस की मां को तो पहले से ही शक था. पिता अयुद्धी इतने गुस्से में था कि उस ने उसी वक्त फैसला सुना दिया, ‘‘समझ लो, राधा हम सब के लिए मर गई. आज के बाद इस घर में कोई भी उस का नाम नहीं लेगा.’’

उधर संजय परेशान था कि अब राधा को ले कर कहां जाए. उस ने तुलसी को फोन कर के बता दिया कि उस ने राधा से कोर्टमैरिज कर ली है. अब तुम बताओ, मैं राधा को घर लाऊं या नहीं. तुलसी हैरान रह गई. पति की बेवफाई से क्षुब्ध तुलसी की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उस ने सासससुर को सारी बात बता दी. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. इसी बीच इश्क का मारा घर का छोटा बेटा अपनी नई बीवी को ले कर घर आ गया. तुलसी क्या करती, उसे तो न मायके वालों का सहयोग मिलता और न ससुराल वालों का. अगर वह अपने पति के खिलाफ जाती तो 2-2 बच्चों की मां क्या करती. आखिर तुलसी ने हथियार डाल दिए और सौतन बहन को कबूल कर लिया.

राधा ससुराल आ तो गई, पर उसे ससुराल में वह सम्मान नहीं मिला जो एक बहू को मिलना चाहिए था. साल भर के बाद भी राधा को कोई संतान नहीं हुई तो उस के दिल में एक भय सा बैठ गया कि अगर उसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो वह क्या करेगी. इसी के मद्देनजर वह तुलसी और उस के बच्चों के दिल में जगह बनाने की भरसक कोशिश कर रही थी. इसी बीच संजय ने कुछ सोच कर एटा के अवंतीबाई नगर में रिटायर्ड फौजी नेकपाल के मकान में 2 कमरे किराए पर ले लिए और परिवार के साथ वहीं रहने लगा. तुलसी जबतब कासगंज आतीजाती रहती थी.

संजय ने दोनों बच्चों नितिन और शिवम को स्कूल में दाखिल कर दिया गया था. राधा से बच्चे काफी हिलमिल गए थे. तुलसी ने सौतन को अपनी किस्मत समझ लिया था, लेकिन अभी जीवन में बहुत कुछ होना बाकी था. कोई नहीं जानता था कि कब कौन सा तूफान आ जाए. सतही तौर पर सब ठीक था, पर अंदर ही अंदर लावा उबल रहा था. राधा को अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था. उस के लिए मायके का दरवाजा बंद हो चुका था. ससुराल वालों से भी अपनेपन की कोई उम्मीद नहीं थी. उसे यह अपराधबोध भी परेशान कर रहा था कि उस ने अपनी ही बहन के दांपत्य में सेंध लगा दी है.

परिवार की बड़ी बहू तो तुलसी ही थी. राधा को जबतब तुलसी के ताने भी सहने पड़ते थे. जिंदगी में सुखचैन नहीं था. आगे देखती तो भी अंधेरा ही नजर आता था. एक संजय का प्यार ही था, जिस के सहारे वह सौतन की भूमिका निभा रही थी. 23 मई, 2016 को संजय को उस के किसी दुश्मन ने गोली मार दी. जख्मी हालत में उसे अलीगढ़ मैडिकल ले जाया गया. उस की हालत गंभीर थी. राधा डर गई कि अगर संजय मर गया तो वह कहां जाएगी. संजय की देखरेख कभी तुलसी करती तो कभी राधा. तभी तुलसी ने राधा से कहा, ‘‘संजय की हालत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई है, तुम जा कर बच्चों को देखो, मैं यहां संभालती हूं.’’

जुलाई महीने में संजय की हालत कुछ सुधरी तो घर वाले उसे कासगंज वाले घर में ले आए. तुलसी अपने पति के साथ थी, जबकि राधा बच्चों के साथ पति से दूर थी. अस्पताल में संजय ने एक बार राधा से कहा, ‘‘मेरी हालत ठीक नहीं है. अगर तुम किसी और से शादी करना चाहो तो कर लो.’’

सुन कर राधा सन्न रह गई, ‘‘यह क्या कह रहे हो संजय, मैं सिर्फ तुम्हारी हूं. तुम्हारे लिए कितना कुछ सह रही हूं. मेरे जैसी औरत से कौन शादी करेगा और कौन मुझे मानसम्मान देगा.’’

उस दिन के बाद से राधा डिप्रेशन में रहने लगी. पति और बच्चा दोनों ही उस की ख्वाहिश थीं. अगर पूरी नहीं होती तो वह कुछ भी नहीं थी. नितिन और शिवम इस बात से अनभिज्ञ थे कि मौसी क्यों परेशान है और उस की परेशानी कौन सा तूफान लाने वाली थी. 19 अगस्त, 2016 को बच्चे स्कूल से आए तो राधा ने उन्हें खाना दिया. फिर दोनों पढ़ने बैठ गए. राधा ने रात के खाने की तैयारी शुरू कर दी. रात का खाना खा कर सब टीवी देखने बैठ गए. किसी को पता ही नहीं चला कि मौत ने कब दस्तक दे दी थी. कुछ देर बाद  राधा ने कहा, ‘‘तुम लोग सो जाओ,सुबह उठ कर स्कूल भी जाना है.’’

कुछ देर बाद बच्चे सो गए. राधा ने संजय को फोन किया, लेकिन घंटी बजती रही. फोन नहीं उठा. यह सोच कर राधा का गुस्सा बढ़ने लगा कि क्या मैं सिर्फ सौतन के बच्चों की नौकरानी हूं. मेरे बच्चे नहीं होंगे तो क्या मुझे घर की बहू का सम्मान नहीं मिलेगा. संजय ने तो परिवार में सम्मान दिलाने का वादा किया था, पर वह मर गया तो?

ऐसे ही विचार उसे आहत कर रहे थे, गुस्सा दिला रहे थे. उस ने देखा शिवम निश्चिंत हो कर सो रहा था. यंत्रचालित से उस के हाथ शिवम की गरदन तक पहुंच गए और जरा सी देर में 4 वर्ष का के शिवम का सिर एक ओर लुढ़क गया. बच्चे की मौत से राधा घबरा गई. उस ने सोचा सुबह होते ही शिवम की मौत की खबर नितिन के जरिए सब को मिल जाएगी. इस के बाद तो पुलिस, थाना, कचहरी और जेल. संजय भी उसे माफ नहीं करेगा, ऐसे में क्या करे? उसे लगा, शिवम के भाई नितिन को भी मार देने में ही भलाई है. उस ने नितिन के गले पर भी दबाव बनाना शुरू कर दिया. नितिन कुछ देर छटपटाया, फिर बेहोश हो गया. राधा ने जल्दी से एक बैग में कपड़े, कुछ गहने, पैसे और सर्टिफिकेट भरे और कमरे में ताला लगा कर बस अड्डे पहुंच गई, जहां मथुरा वाली बस खड़ी थी. वह बस में बैठ गई. मथुरा पहुंच कर वह स्टेशन पर गई, वहां जो भी ट्रेन खड़ी मिली, वह उसी में सवार हो गई.

इधर सुबह जब नितिन को होश आया तो उस ने खिड़की में से शोर मचाया. जरा सी देर में लोग इकट्ठा हो गए. उन्होंने देखा कमरे के दरवाजे पर ताला लगा हुआ था. ताला तोड़ कर जब लोग अंदर पहुंचे तो शिवम मरा पड़ा था. नितिन ने बताया, ‘‘इसे राधा मौसी ने मारा है और मुझे भी जान से मारने की कोशिश की, लेकिन मैं बेहोश हो गया था.’’

लोगों ने कोतवाली में फोन किया, कुछ ही देर में थानाप्रभारी सुधीर कुमार पुलिस टीम के साथ वहां आ गए. पुलिस जांच में जुट गई. शिवम को अस्पताल भेजा गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. नितिन ठीक था, उस का मैडिकल परीक्षण नहीं किया गया. बच्चे के पोस्टमार्टम में मौत का कारण दम घुटना बताया गया. इस मामले की सूचना कासगंज में विजय पाल को दे दी गई थी. विजय पाल ने 28 जुलाई, 2016 को थाना एटा में राधा के खिलाफ भादंवि की धारा 307, 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. राधा के इस कृत्य से सभी हैरान थे. राधा कहां गई, किसी को कुछ पता नहीं था. पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. पुलिस को राधा की लोकेशन मथुरा में मिली थी लेकिन आगे की कोई जानकारी नहीं थी.

23 अगस्त, 2016 को लुधियाना के एक गुरुद्वारे के ग्रंथी ने फोन कर के एटा पुलिस को बताया कि लुधियाना में एक लावारिस महिला मिली है जो खुद को कासगंज की बता रही है. यह खबर मिलते ही पुलिस राधा की गिरफ्तारी के लिए रवाना हो गई. लुधियाना पहुंच कर एटा पुलिस ने राधा को हिरासत में ले लिया और एटा लौट आई. एटा में उच्चाधिकारियों की मौजूदगी में राधा से पूछताछ की गई. उस ने बताया कि वह सौतन के तानों से परेशान थी, जिस के चलते उसे अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था. अकेले हो जाने के तनाव में उस से यह गलती हो गई. राधा ने यह बात पुलिस के सामने दिए गए बयान में तो कही. लेकिन बाद में अदालत में अपना गुनाह स्वीकार नहीं किया.

केस संख्या 572/2016 के अंतर्गत दायर इस मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट द्वारा 5 दिसंबर, 2016 को भादंवि की धारा 307, 302 का चार्ज लगा कर केस सत्र न्यायालय के सुपुर्द कर दिया गया. घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था, राधा ने अपने बचाव में कहा कि उस के खिलाफ रंजिशन मुकदमा चलाया जा रहा है, वह निर्दोष है. उस ने किसी को नहीं मारा. तुलसी ने गवाही में कहा कि उस का राधा के साथ कोई विवाद नहीं है. उसे नहीं मालूम कि शिवम को किस ने मारा. घटना के गवाह मुकेश ने कहा कि उसे जानकारी नहीं है कि राधा ने किस वजह से शिवम की हत्या कर दी और नितिन को भी मार डालने की कोशिश की. मुकेश विजय पाल का मंझला बेटा था.

संजय ने अपनी गवाही में दूसरी पत्नी राधा को बचाने का भरसक प्रयास करते हुए कहा कि उस ने अपनी पहली पत्नी तुलसी की सहमति से राधा से शादी की थी. राधा बच्चों से प्यार करती थी. जब दुश्मनी के चलते किसी ने उसे गोली मार दी तो वह अस्पताल में था. तुलसी भी उस के साथ अलीगढ़ के अस्पताल में थी. घटना वाले दिन राधा घर पर नहीं थी, जिस से सब को लगा कि राधा ही शिवम की हत्या कर के कहीं भाग गई होगी. इसी आधार पर मेरे पिता ने उस के खिलाफ कोतवाली एटा में रिपोर्ट दर्ज कराई थी, पर सच्चाई यह है कि घटना वाले दिन रात में 2 बदमाश घर में घुस आए, जिन्होंने शिवम को मार डाला और नितिन को भी मरा समझ राधा को अपने साथ ले गए. बाद में उन्होंने राधा को कुछ न बताने की धमकी दे कर छोड़ दिया था.

राधा कोतवाली एटा पहुंची और पुलिस  को घटना के बारे में बताना चाहा, लेकिन पुलिस ने उस की बात नहीं सुनी. राधा के अनुसार बदमाशों से डर कर शिवम रोने लगा और उन्होंने शिवम की हत्या कर दी और जेवर लूट लिए. लेकिन अदालत ने कहा कि राधा ने अदालत को यह बात कभी नहीं बताई. पुलिस के अनुसार राधा ने कभी भी अपने साथ लूट और बदमाशों द्वारा शिवम की हत्या की कभी कोई रिपोर्ट नहीं लिखाई, न ही अपने 164 के बयानों में इस बात का जिक्र किया. 8 वर्षीय नितिन ने अपनी गवाही में कहा, ‘‘मां ने बताया कि मुझे अपनी गवाही में कहना है कि राधा ने मेरा गला दबाया था. लेकिन उस ने राधा द्वारा शिवम की हत्या किए जाने के बारे में कुछ नहीं बताया, जबकि वह राधा के साथ ही सो रहा था.’’

सत्र न्यायाधीश रेणु अग्रवाल ने 21 जनवरी, 2019 के अपने फैसले में लिखा कि नितिन की हत्या की कोशिश के कोई साक्ष्य नहीं मिले और न ही नितिन का कोई चिकित्सकीय परीक्षण कराया गया. अत: आईपीसी की धारा 307 से उसे बरी किया जाता है. परिस्थितिजन्य साक्ष्य राधा द्वारा शिवम की हत्या करना बताते हैं. अत: अभियुक्ता राधा जो जेल में है, को आईपीसी की धारा 302 का दोषी माना जाता है. अभियुक्त राधा को भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास और 20 हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया जाता है. अर्थदंड अदा न करने की स्थिति में अभियुक्ता को 2 माह की साधारण कारावास की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी.

अर्थदंड की वसूली होने पर 10 हजार रुपए मृतक शिवम की मां तुलसी देवी को देय होंगे. अभियुक्ता की सजा का वारंट बना कर जिला कारागार एटा में अविलंब भेजा जाए. दोषी को फैसले की प्रति नि:शुल्क दी जाए. आजीवन कारावास यानी बाकी का जीवन जेल में गुजरेगा, फैसला सुनते ही राधा का चेहरा पीला पड़ गया. संजय की मोहब्बत और उस के साथ जीने, उस के बच्चों की मां बनने की उम्मीद राधा के लिए सिर्फ एक मृगतृष्णा बन गई थी. जीनेमरने की स्थिति में राधा ने इधरउधर देखा, वहां आसपास कोई नहीं था. संजय उस से कहता था कि वह बेदाग छूट कर बाहर आएगी और वह उसे दुनिया की सारी खुशियां देगा.

बेजान सी राधा ने जेल में अपनी बैरक में पहुंचने के बाद इधरउधर देखा. चलचित्र की तरह सारी घटनाएं उस की आंखों के सामने गुजर गईं. कुछ ही देर में अचानक महिला बैरक में हंगामा मच गया. किसी ने जेलर को बताया कि राधा उल्टियां कर रही है, उस की तबीयत बिगड़ गई है. जेल के अधिकारी महिला बैरक में पहुंच गए. उन के हाथपैर फूल गए. राधा की हालत बता रही थी कि उस ने जहर खाया है, पर उसे जहर किस ने दिया, कहां से आया, यह बड़ा सवाल था. राधा को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. राधा का मामला काफी संदिग्ध था. उस का विसरा सुरक्षित कर लिया गया और जांच के लिए अनुसंधान शाखा में भेज दिया गया.

राधा के ससुराल और मायके में उस की मौत की खबर दी गई, लेकिन दोनों परिवारों ने शव लेने से इनकार कर दिया. राधा की विषैली आशिकी ने उस के जीवन में ही विष घोल दिया. राधा के शव का सरकारी खर्च पर अंतिम संस्कार कर दिया गया.

 

Extramarital Affair : गहरी खाई में डाल कर पति को जलाया

Extramarital Affair : रिजोश कुरियन और उस की पत्नी लिजी कुरियन की जिंदगी मौज मजे से कट रही थी. लिजी के नौकरी करने के बाद बेटी के भविष्य की चिंता भी खत्म हो गई थी. लेकिन जब लिजी की जिंदगी में वसीम अब्दुल कादिर आया तो पतिपत्नी के संबंधों में ऐसी सेंध लगी कि…

9 नवंबर, 2019 की बात है. दोपहर के यही कोई ढाई बजे थे. नवी मुंबई के उपनगर पनवेल के सीटी पुलिस थाने के थानाप्रभारी अजय कुमार लांडगे को एक अहम खबर मिली. खबर यह थी कि पनवेल के होटल समीर लाजिंग एंड बोर्डिंग के कमरा नंबर 101 में कोई बड़ा हादसा हो गया है. कमरे के अंदर ठहरे एक दंपति और उन की 2 वर्षीय बच्ची की स्थिति कुछ ठीक नहीं है. यह जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी अजय कुमार लांडगे अपने सहायक इंसपेक्टर शत्रुघ्न माली, महिला एएसआई सरिता मुसले और कांस्टेबल योगेश मेढ़ को अपने साथ ले कर होटल लाजिंग एंड बोर्डिंग की तरफ रवाना हो गए.

यह होटल नवी मुंबई पनवेल का एक जानामाना होटल था. उस होटल में इस प्रकार की यह पहली घटना थी. इसलिए होटल का पूरा स्टाफ परेशान था. जब यह खबर लोगों के बीच फैली तो होटल में ठहरे लोगों में हलचल मच गई. वे लोग होटल के कमरा नंबर 101 के सामने आ कर जमा हो गए. कमरा नंबर 101 होटल की पहली मंजिल पर था. पुलिस जब उस कमरे में गई तो डबल बेड पर एक महिला और एक पुरुष के अलावा एक बच्ची चित अवस्था में पड़े थे. निरीक्षण में पता चला कि महिला और पुरुष की सांसें तो धीमी गति से चल रही थीं, लेकिन बच्ची की सांस थम चुकी थी. उस के मुंह से झाग निकल रहे थे और पूरा बदन नीला पड़ गया था.

कमरे से उठती कीटनाशक दवा की गंध से पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि आखिर मामला क्या था. थानाप्रभारी ने बिना देरी किए एंबुलेंस बुला कर तीनों को स्थानीय अस्पताल भेज दिया. अस्पताल के डाक्टरों ने बच्ची को मृत घोषित कर दिया, जबकि बेहोश महिला और पुरुष का प्राथमिक उपचार करने के बाद उन्हें मुंबई के जेजे अस्पताल रेफर कर दिया. उन की हालत काफी चिंताजनक थी. मामला गंभीर था. थानाप्रभारी किसी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहते थे, इसलिए उन्होंने मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी और घटना स्थल के निरीक्षण में जुट गए. उन्होंने होटल मैनेजर और वहां के कर्मचारियों से पूछा तो मालूम पड़ा कि वे लोग उस होटल में 2 दिन पहले आ कर ठहरे थे.

होटल के रजिस्टर में उन्होंने अपने आप को दंपति के रूप में दर्ज करवाया था. वे लोग कौन थे, कहां से आए थे. यह जानकारी पुलिस को उस होटल के रजिस्टर और उन के कमरे की तलाशी के दौरान मिल गई. ये लोग मूल रूप से केरला के रहने वाले थे. थानाप्रभारी अजय कुमार लांडगे अभी घटना स्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी वहां आ गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी थी. फोरैंसिक टीम ने मौके से सबूत जुटाए. इस के बाद थानाप्रभारी ने होटल का कमरा सील कर मृतक बच्ची के शव को पोस्टमार्टम के लिए जेजे अस्पताल भेज दिया. फिर होटल मैनेजर की शिकायत पर केस दर्ज कर जांचपड़ताल शुरू कर दी. जब उन्होंने होटल के कमरे में मिले डोक्यूमेंट्स के आधार पर उन के परिवार वालों से संपर्क किया तो उन के सामने चौंका देने वाला सच सामने आया.

पता चला कि आत्महत्या की कोशिश करने वाले लोग पतिपत्नी न हो कर प्रेमी और प्रेमिका थे. उन का नाम लिजी कुरियन और वसीम अब्दुल कादिर था और मृतक बच्ची जोहना थी. ये लोग हत्या के आरोपी थे. उन के ऊपर रिजोश कुरियन की हत्या का आरोप था. यह पता चलते ही पुलिस ने लिजी कुरियन और वसीम अब्दुल कादिर को हिरसात में ले लिया. ये लोग केरल के जिला इडुक्की के थाना संथनपारा के रहने वाले थे, इसलिए पनवेल पुलिस ने यह जानकारी संथनपारा पुलिस को दे दी. आपराधिक जानकारी पाते ही केरल के थाना संथनपारा के एसआई विनोद कुमार अपनी टीम के साथ पनवेल पहुंच गए. उन के साथ मुंबई पुलिस की कस्टडी में अभियुक्तों के परिवार वाले भी थे, पनवेल नवी मुंबई की पुलिस और केरल पुलिस टीम ने जब संयुक्त रूप से मामले की तफ्तीश की तो कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

36 वर्षीय रिजोश कुरियन केरल के जनपद इडुक्की के थाना संथनपारा के एक छोटे से गांव में रहता था. वह उसी इलाके के एक बड़े रिजोर्ट में काम करता था. परिवार में उस की पत्नी लिजी कुरियन के अलावा एक बेटी थी जोहना. लिजी काम के दौरान ही रिजोश की जिंदगी में आई थी. पहले दोनों में दोस्ती हुई. 4 साल पहले परिवार वालों की सहमति से दोनों ने लव मैरिज कर ली थी. शादी के बाद लिजी और रिजोश कुरियन का दांपत्य जीवन सुचारू रूप से चलने लगा. रिजोश जिस रिसोर्ट में काम करता था, वहां उस का वेतन बहुत ज्यादा नहीं था, लेकिन इतना जरूर था कि किसी तरह घर का खर्च चल जाता था. घर में कभी आर्थिक परेशानी होती तब भी लिजी किसी तरह एडजस्ट कर लेती थी. लेकिन जब लिजी ने एक बेटी को जन्म दिया तो घर के खर्चे कुछ बढ़ गए.

मैनेजर ने लगाई संबंधों में सेंध लिजी कुरियन यह नहीं चाहती थी कि जिन अभावों में वह अपनी जिंदगी गुजार रही थी, उस अभाव का असर उस की बेटी जोहना पर पड़े. यही सोच कर उस ने खुद भी नौकरी करने का मन बनाया. इस के लिए उस ने पति रिजोश से बात की तो उसे पत्नी का यह प्रस्ताव अच्छा नहीं लगा. तब लिजी ने तर्क दिया कि जब हम दोनों कमाएंगे तो हमारी बेटी की पढ़ाई के साथ परवरिश भी अच्छी होगी. रिजोश को पत्नी की बात ठीक तो लगी लेकिन समस्या यह थी कि लिजी के नौकरी पर जाने के बाद जोहना की देखभाल कौन करेगा.

लिजी ने पति को यह कह कर राजी कर लिया कि यहां ऐसे कई पालन घर हैं जो बच्चों को न सिर्फ संभालते हैं बल्कि उन की अच्छी तरह से देखभाल भी करते हैं. आखिरकार न चाहते हुए भी रिजोश को पत्नी की जिद के आगे झुकना पड़ा. तब रिजोश ने अपने ही रिसोर्ट के मशरूम फार्म में लिजी को नौकरी दिलवा दी. लिजी को नौकरी मिल जाने के बाद दोनों साथसाथ घर से निकलते थे. पहले वह अपनी बेटी जोहना को पालन घर छोड़ते, फिर रिसोर्ट जाते. ड्यूटी से लौटते समय ये लोग पालन घर से अपनी बेटी को घर ले आते थे. एक साथ काम करने से पतिपत्नी काफी खुश थे. दोनों के वेतन से धीरेधीरे घर की स्थिति भी सुधर गई. बेटी जोहना के भविष्य के लिए भी वह पैसों की बचत कर रहे थे.

सब कुछ ठीक से चल रहा था, लेकिन उन की खुशी को रिसोर्ट के मैनेजर वसीम अब्दुब्ल कादिर की नजर लग गई. मैनेजर वसीम अब्दुल ने जिस दिन से लिजा को देखा था, उस के दिल में उतर गई थी. वह लिजा को चाहने लगा था. 27 वर्षीय वसीम अब्दुल कादिर भी उसी इलाके में रहता था, जहां रिजोश कुरियन रहता था. वह अविवाहित था. रिसोर्ट में वसीम अब्दुल कादिर की छवि कर्तव्यनिष्ठ और कड़क स्वभाव वाले व्यक्ति की थी लेकिन वह रिजोश और लिजी के प्रति नरम दिल और उदार बन गया. लिजी से नजदीकियां बढ़ाने के लिए वसीम उस के आगेपीछे घूमने लगा. वह लिजी को प्रभावित करने के लिए बनठन कर रिसोर्ट आता और उस के करीब रहने की कोशिश करता था.

जब इस सब का लिजी पर कोई असर नहीं पड़ा तो उस ने एक दूसरा रास्ता अपनाया. उस ने लिजी के पति रिजोश से दोस्ती कर ली. इस के बाद वह उस के घर आनेजाने लगा. कभीकभी पार्टी देने के बहाने वह रिजोश को होटलों में ले जाता, जहां वह उसे जम कर शराब पिलाता. जब रिजोश शराब के नशे में धुत हो जाता था, तो वसीम उसे छोड़ने के बहाने उस के घर आ जाता. घर पहुंच कर वह लिजी से सहानुभुति बटोरने के लिए कहता कि रिजोश नशे में धुत सड़क पर पड़ा था, मैं ने देखा तो उठा कर ले आया. रिजोश को उस के कमरे तक पहुंचाने के लिए वह लिजी की मदद लेता और उसी दौरान लिजी के बदन को स्पर्श कर लेता था. लिजी चाह कर भी उस का विरोध नहीं कर पाती थी.

लिजी जब नशे में चूर रिजोश को आड़े हाथों लेती, तो वह बीचबचाव करने लगता. जब कई बार ऐसा हुआ तो मौका देख कर एक दिन वसीम ने हिम्मत कर के लिजी का हाथ पकड़ लिया. लिजी ने जब हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो वसीम ने उस का हाथ नहीं छोड़ा और कहा, ‘‘लिजी मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता.’’

इस पर लिजी ने नाराजगी जताते हुए कहा, ‘‘आप को पता है कि मैं एक बेटी की मां हूं. इसलिए अच्छा यही होगा कि मुझे भूल जाओ.’’

लेकिन वसीम ने हार नहीं मानी. वह लिजी के दिल में अपनी छवि बनाने की कोशिश करता रहा. उस की हमदर्दी और सहानुभूति के चलते लिजी के मन में भी उस के प्रति प्यार का अंकुर फूटने लगा. धीरेधीरे उस का झुकाव भी वसीम अब्दुल कादिर की तरफ हो गया. इस के 2 कारण थे, एक यह कि रिजोश अब पूरी तरह शराब का आदी हो गया था और दूसरा यह कि वह लिजी के तनमन की प्यास बुझाने में नाकाम साबित हो रहा था.

पति की नाक के नीचे पत्नी की अय्याशी यही कारण था कि लिजी ने वसीम के लिए अपने दिल का दरवाजा खोल दिया. इस के बाद तो वसीम बागबाग हो गया. दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं और फिर एक दिन उन्होंने मौका पा कर अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं. एक बार जब मर्यादा की जंजीर टूटी तो फिर जुड़ी ही नहीं. जब भी उन्हें मौका मिलता, तनमन की प्यास बुझा लेते थे. 2 सालों तक रिजोश की नाक के नीचे उन दोनों के अवैध संबंधों का वृक्ष फलताफूलता रहा, लेकिन उसे भनक तक नहीं लगी. रिजोश को इस का पता नहीं चलता यदि रिसोर्ट के कर्मचारियों के बीच उन के संबंधों की बात न फैलती.

रिजोश को जब पत्नी के बहके कदमों की जानकारी मिली तब तक काफी देर हो चुकी थी. रिजोश विरोध कर नहीं सकता था. इसलिए उस ने पत्नी की ही नौकरी छुड़वा कर उसे घर में बैठने को कहा. लिजी को पति की बात माननी पड़ी. इतना ही नहीं रिजोश ने लिजी को यह भी हिदायत दी कि वह अपने प्रेमी वसीम से न मिले. मुलाकात बंद होने पर वसीम और लिजी परेशान हो गए. किसी तरह एक दिन मौका मिलने पर लिजी ने वसीम से मुलाकात की, उसे बताया कि पति के होते हुए हम लोगों की मुलाकात संभव नहीं हो पाएगी. इसलिए रास्ते का पत्थर बने रिजोश को रास्ते से हटा दो. वसीम भी यही चाहता था. इसलिए दोनों ने रिजोश को ठिकाने लगाने की एक खतरनाक योजना तैयार कर ली.

31 अक्तूबर, 2019 को योजना के अनुसार वसीम अब्दुल कादिर ने लिजी के पति रिजोश को कुछ काम के लिए रिसोर्ट पर बुलाया और वहां उस के साथ दारू पी. उस ने रिजोश को काफी मात्रा में शराब पिलाई. जब रिजोश को ज्यादा नशा हो गया तो वसीम ने उस का गला दबा कर हत्या कर दी. फिर उस के शव को रिसोर्ट के अंदर ही एक गहरी खाई में डाल कर जला दिया. यह जानकारी उस ने लिजी को भी दे दी. जब 3 दिनों तक रिजोश घर नहीं आया तो घर वालों को उस की चिंता हुई. रिजोश के भाई उस की तलाश में जुट गए. काफी तलाश करने के बाद भी जब उस का कहीं पता नहीं चला तो 4 नवंबर, 2019 को रिजोश के भाई और साले थाना संथनपरा पहुंचे. वहां पर उन्होंने रिजोश की गुमशुदगी दर्ज करवा दी.

मामला गंभीर था. केरल के पुलिस आयुक्त महेश कुमार ने मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी प्रदीप कुमार को सौंप दी. थानाप्रभारी प्रदीप कुमार ने एसआई विनोद कुमार के साथ अपनी जांच शुरू की. पुलिस तफ्तीश की पहली सीढ़ी भी नहीं चढ़ पाई थी कि 5 नवंबर, 2019 की सुबह लिजी कुरियन भी अपनी बेटी जोहना के साथ रहस्यमय तरीके से गायब हो गई. मौत ने भी स्वीकारा नहीं पुलिस ने तफ्तीश शुरू की तो पता चला कि लिजी के साथसाथ रिसोर्ट का मैनेजर वसीम अब्दुल कादिर भी गायब है. अब पुलिस के लिए मामला संदिग्ध हो गया था. पुलिस ने जब लिजी और वसीम अब्दुल कादिर का बैकग्राउंड खंगाला तो सब सच सामने आ गया.

इस से पुलिस को यकीन हो गया कि रिजोश कुरियन किसी रहस्यमय साजिश का शिकार हो गया है, जिस की तह में जाना जरूरी था. इस के लिए उन्होंने जब रिसोर्ट कर्मचारियों के साथ कई एकड़ में फैले रिसोर्ट का बारीकी से निरीक्षण किया. फलस्वरूप एक मजदूर की मदद से रिसोर्ट की एक गहरी खाई से रिजोश का अधजला शव बरामद हो गया. 7 नवंबर, 2019 को बरामद हुए रिजोश के शव की शिनाख्त कर उसे पोस्टमार्टम के लिए केरल के मैडिकल कालेज भेज दिया गया. अब यह बात पूरी तरह से साफ हो गई थी कि रिजोश की हत्या में वसीम का सीधा हाथ था. पुलिस ने इस मामले में वसीम अब्दुल कादिर के परिवार वालों पर अपना शिकंजा कस दिया और वसीम अब्दुल कादिर के भाई को हिरासत में ले कर मामले की तह तक पहुंचने की कोशिश में लग गई.

8 नवंबर, 2019 को जब यह खबर पत्रकारों को मिली तो अखबारों और टीवी न्यूज चैनलों में सुर्खियों में छा गई. लिजी और वसीम ने यह खबर देखी तो उन के चेहरों का रंग उड़ गया. भाई की कस्टडी और मीडिया की सुर्खियों से वसीम को एहसास हो गया था कि अब उन का बच पाना संभव नहीं है. इस के पहले कि पुलिस उन दोनों तक पहुंचती उन्हें अपने किए पर पछतावा हुआ. फलस्वरूप दोनों ने अपना जीवन खत्म करने का फैसला कर लिया. रात को घूमने के बहाने दोनों होटल समीर लाजिंग एंड बोर्डिंग से बाहर आए. बाजार से उन्होंने कीटनाशक दवा खरीदी. इस मामले को ले कर रातभर दोनों परेशान रहे. सुबह 10 बजे उन्होंने उस दवा का स्वयं सेवन किया और उस मासूम बच्ची को भी करा दिया.

बच्ची उस दवा के असर से बच नहीं पाई और उस की मृत्यु हो गई. जबकि वे दोनों बेहोश हो गए. उन्हें उपचार के लिए अस्पताल भेज दिया गया, बाद में वे ठीक हो गए. उधर केरल के संथनपारा थाना पुलिस के थानाप्रभारी वसीम अब्दुल कादिर के भाई का मुंह खुलवाने में कामयाब हो पाते, इस के पहले ही मुंबई पुलिस ने संथनपारा पुलिस से संपर्क कर इस मामले की जानकारी दे दी. नवी मुंबई पुलिस और केरल पुलिस ने संयुक्त रूप से मामले की तफ्तीश कर लिजी कुरियन और वसीम कादिर को मीडिया के समक्ष पेश कर केस का खुलासा कर दिया. रिजोश कुरियन की हत्या के मामले में केरल पुलिस विस्तार से पूछताछ के लिए दोनों को ट्रांजिट रिमांड पर अपने साथ ले गई.

 

Extramarital affair : प्रेमिका के पति को मार कर कुएं में दफनाया

Extramarital affair : नरेंद्र की अच्छीभली गृहस्थी थी. सरकारी नौकरी कर रही बीवी और 2 बच्चे. लेकिन वह रूबी के हुस्न में ऐसा अंधा हुआ कि घरपरिवार छोड़ कर उस के साथ किराए के मकान में रहने लगा. लेकिन जब वही रूबी सिपाही योगेश के इश्क में अंधी हुई तो…

जिला अमरोहा के थाना रजबपुर के गांव शकरपुर निवासी नरेंद्र कुमार 27 सितंबर, 2019 को अपनी पत्नी वालेश देवी की दवा लाने के लिए नजीबाबाद के लिए निकला. दरअसल, उस की पत्नी वालेश को एलर्जी की शिकायत रहती थी, जिस का इलाज वह नजीबाबाद के एक डाक्टर से करा रहा था. नरेंद्र घर से दोपहर 12 बजे निकला था. हर बार की तरह उसे शाम तक घर आ जाना चाहिए था. लेकिन उस दिन जब वह शाम तक घर नहीं लौटा तो पत्नी वालेश को चिंता हुई. उस ने पति को फोन किया तो फोन नहीं लगा. यह कोशिश उस ने कई बार की लेकिन असफलता ही हाथ लगी. रात करीब 12 बजे वालेश ने फिर से पति को फोन लगाया. इस बार भी उस का फोन स्विच्ड औफ आया.

वालेश ने सोचा कि संभव है, पति के फोन की बैटरी डिस्चार्ज हो गई हो. इसलिए वह सो गई. अगले दिन वालेश ने फिर से पति का नंबर मिलाया. इस बार भी उस का फोन स्विच्ड औफ मिला. नरेंद्र को अगर कहीं रुकना होता तो वह बता कर जाता, लेकिन वह ऐसा कुछ भी बता कर नहीं गया था. वालेश ने पति की जानपहचान वालों को फोन कर के पति नरेंद्र के बारे में पूछताछ की. लेकिन उस के बारे कहीं भी कुछ पता नहीं लगा. इस के बाद वालेश ने अपने ससुर समरपाल सिंह को यह जानकारी दे दी. समरपाल सिंह ने अपने सभी रिश्तेदारों, परिचितों में नरेंद्र को ढुंढवाया लेकिन उस का कहीं पर भी पता नहीं लग पाया. देखतेदेखते 8 दिन गुजर गए तो गांव वालों और रिश्तेदारों ने उन्हें थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराने की सलाह दी.

6 अक्तूबर, 2019 को वालेश ससुर समरपाल सिंह के साथ थाना रजबपुर पहुंची और थानाप्रभारी सत्येंद्र सिंह को अपने पति नरेंद्र कुमार (30) के गायब होने की बात विस्तार से बता दी. थानाप्रभारी ने उस की गुमशुदगी दर्ज कर ली. कई दिन बीत जाने के बाद भी जब पुलिस ने नरेंद्र का पता नहीं लगाया तो वालेश ने फिर से थानाप्रभारी से संपर्क किया. तब थानाप्रभारी सत्येंद्र सिंह ने उस से कहा कि पुलिस अपने स्तर से आप के पति को तलाश रही है, इस के अलावा अगर आप को किसी पर शक हो तो बताओ.

‘‘साहब, मुझे अपने पति की रखैल रूबी पर शक है.’’ वालेश ने बताया.

‘‘रूबी रहती कहां है?’’ सत्येंद्र सिंह ने पूछा.

‘‘साहब, वह मुरादाबाद के कांशीराम नगर में रहती है. उस का मकान मालिक योगेश है, जो यूपी पुलिस में सिपाही है. इस समय वह मुरादाबाद के थाना बिलारी में तैनात है. रूबी के चक्कर में कई बार योगेश से उस का झगड़ा भी हुआ था. मुझे पता चला है कि अब रूबी योगेश के साथ खुलेआम घूमती है.’’ वालेश ने बताया. वालेश ने थानाप्रभारी को रूबी का मोबाइल नंबर भी दे दिया. यह जानकारी मिलने के बाद थानाप्रभारी को इस मामले में किसी अप्रिय घटना की आशंका नजर आने लगी. उन्होंने उसी दिन 19 अक्तूबर को नरेंद्र के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर सूचना अमरोहा के एसपी डा. विपिन टाडा को दे दी.

थानाप्रभारी ने सब से पहले नरेंद्र के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, तो उस के फोन पर अंतिम काल रूबी ने की थी, जिस की लोकेशन कांशीराम नगर, मुरादाबाद की मिली. पुलिस ने रूबी के फोन को सर्विलांस पर लगवा दिया. पता चला कि रूबी के फोन से एक अन्य फोन नंबर पर भी कई बार बात की गई थी. सिपाही योगेश आया संदेह के घेरे में पुलिस ने उक्त नंबर को ट्रैस किया, तो पता चला, वह नंबर सिपाही योगेश का है. थानाप्रभारी ले उस नंबर पर बात की और योगेश को थाना रजबपुर आने को कहा. योगेश ने थानाप्रभारी से कहा, ‘‘मैं बिलारी थाने में तैनात हूं, बताइए क्या बात करनी है?’’

‘‘कुछ पूछताछ करनी है, जो फोन पर नहीं हो सकती?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

इस के बाद योगेश थाना रजबपुर पहुंच गया. थानाप्रभारी सत्येंद्र सिंह ने उस से पूछा, ‘‘योगेश, क्या तुम नरेंद्र कुमार को जानते हो?’’

‘‘हां सर, वह तो मेरा किराएदार है. वह अपनी पत्नी रूबी के साथ मेरे यहां रहता है. लेकिन पिछले कुछ समय से वह नहीं आ रहा है. उस के कमरे में ताला लगा हुआ है.’’ उस ने बताया.

‘‘पता है, वह कहां है?’’

‘‘सर, मैं तो अपनी ड्यूटी पर बिलारी चला जाता हूं, मुझे कुछ नहीं मालूम.’’

‘‘देखो योगेश, तुम पुलिस में हो. यह तो जानते ही होगे कि पुलिस के हाथ कितने लंबे होते हैं. हमें तुम्हारे और रूबी के फोन की काल डिटेल्स से पता चल चुका है कि रूबी से तुम्हारी लंबीलंबी बातें होती रहती हैं. तुम उसे अपने साथ घुमानेफिराने भी ले जाते थे. इसलिए अपने आप ही बता दो कि नरेंद्र कहां है?’’

‘‘सर, आजकल वह मुझे दिखाई नहीं दे रहा है. दिखाई दिया तो जरूर आप को बताऊंगा.’’ बातचीत के दौरान योगेश के होश उडे़ हुए थे. थानाप्रभारी ने योगेश से फिर कहा, ‘‘योगेश, अब तुम पुलिस की गिरफ्त में हो. अगर सच बता दोगे तो हम तुम्हारे बचाव का रास्ता भी ढूंढ लेंगे.’’

थानाप्रभारी सत्येंद्र सिंह को उसी समय एक मामले में दबिश में जाना था, इसलिए उन्होंने पहरेदार (संतरी) को बुला कर कहा कि ये पुलिस हिरासत में है. इसे हवालात में डाल दो. मैं इस से बाद में बात करूंगा. इतना कह कर वह थाने से बाहर चले गए. थाने में एसएसआई ओमपाल सिंह मौजूद थे. योगेश ने उन्हें बताया कि साहब मैं स्टाफ का आदमी हूं. इंचार्ज साहब को मेरे बारे में कुछ गलतफहमी हो गई है. इस पर एसएसआई ओमपाल सिंह ने कहा, ‘‘देखो योगेश, साहब बहुत सुलझे हुए अफसर हैं. जो भी बात है, उन्हें सचसच बता दो, इसी में तुम्हारी भलाई है. उन्हें तुम्हारे व नरेंद्र की कथित रखैल रूबी के बारे में सब मालूम है.’’

इस पर भी योगेश कुछ नहीं बोला, वह उस समय घबराया हुआ था. थानाप्रभारी आधे घंटे बाद थाने लौटे तो उन्होंने योगेश से पूछताछ की. अंतत: वह टूट गया. उस ने जो कुछ उन्हें बताया, उसे सुन कर थानाप्रभारी सत्येंद्र सिंह के भी होश उड़ गए. योगेश ने उन्हें बताया कि नरेंद्र कुमार अब इस दुनिया में नहीं है. मैं ने रूबी व अपने 2 साथियों के साथ मिल कर उस की हत्या कर दी. हम ने उस की लाश थाना बिलारी के गांव अमरपुर काशी के एक कुएं में मिट्टी डाल कर दफन कर दी थी. इतना सुनते ही थानाप्रभारी सत्येंद्र सिंह ने सब से पहले इस की सूचना एसपी डा. विपिन टाडा को दी. चूंकि हत्यारों ने लाश दूसरे जिले (मुरादाबाद) में ठिकाने लगाई थी, इसलिए एसपी डा. विपिन टाडा ने फोन पर मुरादाबाद के एसएसपी अमित पाठक से बात कर नरेंद्र की लाश थाना बिलारी क्षेत्र के कुएं से बरामद कराने के लिए सहयोग मांगा.

मुरादाबाद के एसएसपी अमित पाठक ने सीओ (बिलारी) महेंद्र कुमार शुक्ला को केस के बारे में समझा कर अमरोहा पुलिस का सहयोग करने को कहा. नरेंद्र सिंह की लाश बरामद करने के लिए थाना रजबपुर (अमरोहा) की पुलिस आरोपी सिपाही योगेश को उसी बिलारी थाने में ले कर पहुंची, जहां उस की तैनाती थी. योगेश को पुलिस कस्टडी में देख कर वहां सभी चौंके. इस के बाद सीओ महेंद्र कुमार शुक्ला, थानाप्रभारी (बिलारी) गजेंद्र त्यागी और एसआई उमेश कुमार यादव को ले कर अमरपुर काशी में उस सूखे कुएं पर पहुंचे, जहां नरेंद्र कुमार की लाश फेंक कर ऊपर से मिट्टी डाली गई थी.

कई घंटों की मशक्कत के बाद पुलिस ने रात में ही 25 फीट गहरे कुएं से नरेंद्र का शव निकलवा लिया. शव की शिनाख्त मृतक की पत्नी वालेश व उस के पिता समरपाल सिंह ने कर दी. योगेश ने बताए 2 साथियों के नाम थाना रजबपुर पुलिस को योगेश ने हत्या में शामिल अपने 2 दोस्तों के नाम पहले ही बता दिए थे. लिहाजा पुलिस ने योगेश की निशानदेही पर अमरपुर काशी गांव के ही 2 युवकों वीरपाल और विशेष सैनी को हिरासत में ले लिया. इस हत्याकांड में नरेंद्र कुमार की प्रेमिका रूबी अग्रवाल भी शामिल थी. पुलिस ने उसे भी हिरासत में ले लिया. चारों आरोपियों से रजबपुर थाना पुलिस ने विस्तार से पूछताछ की तो उन्होंने नरेंद्र कुमार की हत्या की जो कहानी बताई, वह प्रेम प्रसंग की बुनियाद पर गढ़ी हुई निकली—

नरेंद्र कुमार मूलत: अमरोहा (ज्योतिबा फुले नगर) के थाना रजबपुर के पास स्थित गांव शकरपुर का रहने वाला था. उस के पिता समरपाल सिंह किसान थे. पिता ने सन 2003 में नरेंद्र की शादी अमरोहा जिले के ही कस्बा धनौरा के निकटवर्ती गांव नेकपुर की वालेश के साथ कर दी थी. वालेश स्वास्थ्य विभाग में आशा वर्कर थी. नरेंद्र की घरगृहस्थी ठीक चल रही थी. समय के साथ पर वह एक बेटी व 2 बेटों का पिता बन गया था. उस की सब से बड़ी बेटी 13 साल की थी. नरेंद्र दबंग युवक था. उस की अमरोहा के पूर्व सांसद देवेंद्र नागपाल से घनिष्ठता थी. वह एक तरह से उन का बौडीगार्ड बन कर रहता था. पूर्व सांसद देवेंद्र नागपाल का गजरौला में ‘मेला रेस्टोरेंट’ है, जहां कुछ समय के लिए दिल्ली आनेजाने वाली रोडवेज की बसें रुकती हैं.

इसी रेस्टोरेंट पर नरेंद्र ने जनरल स्टोर खोल ली थी. अपनी दुकान चलाने के अलावा वह पूरे दिन रेस्टोरेंट की देखभाल करता था. उस का धंधा अच्छा चल रहा था. इस रेस्टोरेंट में बने उड़द और खीर बहुत प्रसिद्ध थे. इसी दौरान नरेंद्र का संपर्क रूबी अग्रवाल से हुआ था. रूबी अग्रवाल अकसर उस रेस्टोरेंट पर खाना खाने आती थी. वह मूलत: मुजफ्फरनगर निवासी सुरेश अग्रवाल की बेटी थी. उस के 2 भाई थे. उस के बड़े भाई की शादी गजरौला में हुई थी. शादी के बाद वह गजरौला के बस्ती मोहल्ले में रहने लगा था, जबकि दूसरा भाई पानीपत में रहता था.

रूबी अग्रवाल की शादी हसनपुर निवासी उमेश कुमार अग्रवाल के बेटे संजीव अग्रवाल से हुई थी. रूबी अग्रवाल शुरू से ही खुले विचारों वाली पढ़ीलिखी युवती थी. उसे घर में रहने के बजाय बाहर घूमनाफिरना पसंद था. जबकि पति ऐसा नहीं चाहता था, इसलिए रूबी पति को पसंद नहीं करती थी. वह गजरौला में रहने वाले अपने भाई के पास गई तो उसे पता चला कि मेला रेस्टोरेंट की उड़द और खीर बहुत स्वादिष्ट होती है. जब वह उस रेस्टोरेंट पर गई तो उस की मुलाकात नरेंद्र कुमार से हुई. पहली मुलाकात में ही वह नरेंद्र के मन को भा गई. उस की ससुराल से गजरौला 14 किलोमीटर दूर था, इसलिए वह अकसर रेस्टोरेंट पर जा कर नरेंद्र से मिलने लगी.

रूबी को उस के ससुराल वालों ने कई बार समझाया, लेकिन उस ने अपनी आदत नहीं छोड़ी. उधर नरेंद्र से दोस्ती हो जाने के बाद रूबी की उस से नजदीकियां भी बढ़ गईं. एक तरह से रूबी नरेंद्र पर पूरी तरह फिदा हो गई थी. नरेंद्र के लिए उस ने अपने पति तक को छोड़ने का फैसला कर लिया था. कई बार वह नरेंद्र के साथ रेस्टोरेंट पर ही रुक जाती थी. इस बात को ले कर नरेंद्र व रूबी के ससुराल वालों के बीच कई बार झगड़ा भी हुआ. बात थाने तक पहुंची तो रूबी ने साफ कह दिया कि उस का पति नरेंद्र है. वह उसी के साथ रहेगी. समाज के लोगों ने पंचायत कर दोनों को काफी समझाया लेकिन दोनों में से कोई भी नहीं माना.

घरपरिवार तक छोड़ दिया था रूबी के लिए नरेंद्र और रूबी के संबंधों की जानकारी नरेंद्र के पिता और उस की पत्नी वालेश को भी हो गई थी. दोनों ने उसे बहुत समझाया लेकिन नरेंद्र रूबी का साथ छोड़ने को राजी नहीं हुआ. इस पर उन्होंने लड़झगड़ कर रेस्टोरेंट पर चल रही उस की दुकान भी बंद करवा दी. तब नरेंद्र घर रहने लगा तो रूबी उस के घर पहुंच गई. तब भी घर वालों ने काफी हंगामा किया. इतना ही नहीं नरेंद्र के पिता समरपाल रूबी को थाना रजबपुर ले गए. रूबी ने थाने में भी कह दिया कि वह नरेंद्र को हरगिज नहीं छोड़ेगी. पुलिस ने भी समझाबुझा कर उसे भेज दिया तो वह फिर नरेंद्र के घर ही चली गई.

इस के बाद नरेंद्र रूबी को ले कर गजरौला में किराए का कमरा ले कर रहने लगा. तब रूबी की ससुराल वाले वहां पहुंच गए. उन्होंने रूबी और नरेंद्र से झगड़ा किया. चूंकि रूबी ने अपने पति संजीव अग्रवाल से कानूनन तलाक नहीं लिया था, लिहाजा रूबी की ससुराल वाले थाने पहुंच गए. संजीव अग्रवाल की शिकायत पर गजरौला पुलिस ने नरेंद्र के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के उसे जेल भेज दिया. करीब 3 महीने बाद उसे जमानत मिली. यह बात करीब 11 साल पहले की है. जेल से बाहर आने के बाद नरेंद्र फिर से रूबी के साथ रहने लगा. उस की खातिर उस ने अपना घरबार बीवीबच्चों तक को छोड़ दिया था. उस की पत्नी वालेश बहुत परेशान रहने लगी. वह बारबार पति के पास आ कर झगड़ती थी, पर नतीजा कुछ नहीं निकला.

आए दिन के झगड़ों से तंग आ कर नरेंद्र ने मुरादाबाद के थाना मझोला क्षेत्र में स्थित कांशीराम नगर में किराए पर एक कमरा ले लिया. यह मकान उत्तर प्रदेश पुलिस के सिपाही योगेश कुमार का था. नरेंद्र अकसर अपने गांव शकरपुर आताजाता रहता था. नरेंद्र शराब पीने का शौकीन था. कुछ ही दिनों में नरेंद्र और योगेश के बीच दोस्ती हो गई. इस के बाद दोनों की घर में ही शराब की महफिल जमने लगी. रूबी खूबसूरत थी. वह योगेश से भी बातें कर लेती थी. योगेश उसे भाभी कहता था और उस से कभीकभी मजाक भी कर लेता था. रूबी उस की बातों का बुरा नहीं मानती थी. इस से योगेश का हौसला बढ़ता गया. वह उसे चाहने लगा.

एक बार बातचीत के दौरान योगेश कुमार ने रूबी को झूठ बोलते हुए बताया, ‘‘भाभी, मैं कुंवारा हूं और मुझे तो बस तुम्हारी जैसी हसीन बीवी चाहिए.’’

जबकि हकीकत यह थी कि वह शादीशुदा था. उस की पत्नी मेरठ के गांव में स्थित ससुराल में एक बच्चे के साथ रहती थी. अपनी तारीफ सुन कर रूबी खुश हुई. धीरेधीरे योगेश ने रूबी को अपनी लच्छेदार बातों में फांस लिया. फिर एक दिन ऐसा भी आया कि योगेश और रूबी के बीच शारीरिक  संबंध बन गए. एक बार शुरुआत हुई तो यह सिलसिला शुरू हो गया. मौका मिलते ही दोनों हसरतें पूरी कर लेते थे. किसी तरह नरेंद्र को योगेश व रूबी के संबंधों का पता चला तो उस ने रूबी से बात की. रूबी ने साफ कह दिया कि अब तुम्हारा मेरा कोई साथ नहीं है. मेरा पीछा छोड़ कर तुम अपनी घरगृहस्थी देखो. मैं ने योगेश से शादी का मन बना लिया है, क्योंकि वह भी कुंवारा है और अपना घर भी बसाना चाहता है. यह बात घटना से एक साल पहले की थी.

नरेंद्र ने योगेश से इस संबंध में बात की. योगेश ने कहा, ‘‘देखो नरेंद्र, अब तुम रूबी का साथ छोड़ कर अपने घर चले जाओ, क्योंकि रूबी अब मेरी है.’’

इस बातचीत के बाद नरेंद्र ने योगेश को दबंगई दिखाते हुए कहा, ‘‘योगेश, तुम मुझे नहीं जानते. मेरे ऊपर पूर्व सांसद देवेंद्र नागपाल का हाथ है. तुम्हें 2 मिनट में उठवा लूंगा.’’

इस के बाद दोनों में झगड़ा इतना बढ़ गया कि मारपीट तक हो गई. उसी दौरान नरेंद्र ने योगेश से कह दिया था कि मैं ने रूबी के चक्कर में अपना घरबार सब कुछ छोड़ा है. तुम मेरे और रूबी के बीच से नहीं हटे तो अंजाम बुरा होगा. योगेश ने उस की धमकी को गंभीरता से नहीं लिया. क्योंकि उसे इस बात का घमंड था कि वह पुलिस में है और नरेंद्र उस का कुछ नहीं कर सकता.  बहरहाल, अब योगेश रूबी को ले कर खुलेआम घूमने लगा. रूबी योगेश के प्यार में पागल थी, क्योंकि वह एक तो सरकारी नौकर था और दूसरे वह उस की हर जरूरत को पूरा कर रहा था.

नरेंद्र की धमकी से डर गया था योगेश एक दिन नरेंद्र ने योगेश से कहा, ‘‘योगेश, तुम मान जाओ, वरना मैं तुम्हारी शिकायत पुलिस के आला अफसरों से कर दूंगा.’’

अधिकारियों से शिकायत की बात सुन कर योगेश सहम गया. यह बात योगेश ने रूबी को बता दी. तब योगेश ने रूबी से अपने घर में बात करनी बंद कर दी. अब उन्होंने बाहर मिलने की प्लानिंग कर ली. रूबी ब्यूटीपार्लर का काम भी जानती थी. वह मोहल्ले की औरतों से यह कह कर घर से निकल जाती थी कि वह ब्यूटीपार्लर के काम के सिलसिले में बाहर जा रही है. नरेंद्र आए तो बता देना. इस के बाद रूबी अपने कथित प्रेमी योगेश के साथ होटलों में रात गुजारती थी. नरेंद्र जब कमरे पर लौटता तो रूबी को न देख कर वह खून का घूंट पी कर रह जाता था. उधर रूबी ने योगेश को बता दिया था कि नरेंद्र दबंग है. वह किसी से डरता नहीं है. रूबी ने नरेंद्र की दबंगई के तमाम किस्से योगेश को बताते हुए कहा कि नरेंद्र नाम के इस कांटे को तुम जल्दी से निकाल फेंको वरना यह बारबार चुभ कर नासूर बना देगा. यह सलाह योगेश को सही लगी. वैसे भी नरेंद्र सिपाही योगेश पर भारी पड़ रहा था.

रूबी व योगेश ने एक योजना बना ली. घटना से 2 महीने पहले योगेश से नरेंद्र की मुलाकात हुई थी. योगेश ने नरेंद्र से कहा कि देखो नरेंद्र भाई, मेरा ट्रांसफर बाहर किसी दूसरे जिले में होने वाला है. मैं अब यहां से चला जाऊंगा. तुम लोग आराम से रहना. इस के बाद उस ने नरेंद्र से मिलनाजुलना छोड़ दिया. रूबी ने भी नरेंद्र से मीठीमीठी बातें करनी शुरू कर दीं. नरेंद्र को दोनों के प्लान का जरा सा भी आभास नहीं हुआ. वैसे भी रूबी का योगेश के साथ रहने पर नरेंद्र अपने गांव अपनी पत्नी के पास चला गया था. रूबी उस से कभीकभी फोन पर बात कर लेती थी.

27 सितंबर, 2019 को नरेंद्र के पास रूबी का फोन आया. उस ने कहा कि तुम मुरादाबाद आ जाओ तो नरेंद्र ने कहा कि मुझे वालेश की दवा के लिए नजीबाबाद (बिजनौर) जाना है. तुम जोया आ जाओ तो साथ चलेंगे. रूबी जोया पहुंच गई. वहां नरेंद्र उस का इंतजार कर रहा था. दोनों जोया में बिजनौर जाने वाली बस का इंतजार कर रहे थे. ठीक उसी समय सिपाही योगेश योजनानुसार कार ले कर वहां आ गया. उस ने पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’

नरेंद्र ने कहा कि मुझे दवा लेने नजीबाबाद जाना है. बस का इंतजार कर रहे हैं तो योगेश बोला, ‘‘आओ, तुम दोनों गाड़ी में बैठो. मैं तुम्हें नजीबाबाद छोड़ दूंगा. क्योंकि मुझे भी कोटद्वार जाना है.’’

नरेंद्र से रूबी बोली, ‘‘चलो, बैठो. पता नहीं बस कब तक आएगी.’’

रूबी और नरेंद्र कार में बैठ गए. रास्ते में योगेश बोला, ‘‘नरेंद्र, अब तो मुझ से आप को कोई शिकायत नहीं है?’’

नरेंद्र ने कोई जवाब नहीं दिया. योजना के मुताबिक रास्ते में वीरपाल और विशेष सैनी भी मिल गए, जो योगेश के दोस्त थे. योगेश ने उन्हें भी कार में बैठा लिया. फिर उस ने नरेंद्र से पूछा, ‘‘थोड़ीथोड़ी ले लें क्या?’’

नरेंद्र ने तबीयत ठीक न होने की बात कह कर इनकार कर दिया. पर बारबार कहने पर वह पीने को तैयार हो गया. कार में ही मार डाला नरेंद्र को नरेंद्र और योगेश नूरपुर-मुरादाबाद मार्ग के एक ढाबे पर बैठ कर शराब पीने लगे. योगेश ने योजनानुसार कम पी, नरेंद्र को ज्यादा पिलाई. इस के बाद सभी ने ढाबे पर खाना खाया. नशा चढ़ने पर नरेंद्र कार में सो गया. मौका पा कर रूबी ने नरेंद्र के पैर पकडे़ और योगेश व उस के साथियों ने उस की गला दबा कर हत्या कर दी. इस के बाद वह गाड़ी ले कर मुरादाबाद की तरफ चलते हुए लाश ठिकाने लगाने की जगह देखने लगे. पर उन्हें कहीं मौका नहीं मिला. कई जगह लाश फेंकने की कोशिश भी की गई, लेकिन उसी समय कोई न कोई व्यक्ति दिखाई दे जाता था.

सिपाही की गाड़ी में वीरपाल और विशेष सैनी भी बैठे हुए थे. इन दोनों ने कहा, ‘‘दीवानजी, ऐसे लाश कहीं फेंकेंगे तो पकड़े जाएंगे, क्योंकि दिन का समय है. यह रात में ही ठिकाने लग सकती है.’’

इस के बाद चारों रात होने का इंतजार करने लगे. वे फिर अमरोहा लौटे. शाम हो चुकी थी. वीरपाल और विशेष थाना बिलारी के गांव अमरपुर काशी के रहने वाले थे. उन के कहने पर योगेश लाश सहित कार को अमरपुर काशी ले गया. विशेष ने योगेश से कहा कि नरेंद्र की लाश को इधरउधर डालेंगे तो पकड़े जा सकते हैं. मेरे निजी नलकूप का 25 फीट गहरा कुआं है. नरेंद्र की लाश उसी में डाल देते हैं. ऊपर से मिट्टी डाल देंगे तो किसी को पता भी नहीं चलेगा. इस के बाद योगेश, वीरपाल और विशेष ने मिल कर नरेंद्र की लाश कुएं में डाल दी. ऊपर से कुएं में कूड़ाकरकट डाल दिया. फिर दूसरे दिन एक ट्रौली मिट्टी भी डलवा दी. इस तरह लाश ठिकाने लगा कर सभी निश्चिंत हो गए थे.

योजना को अंजाम देने के बाद योगेश अपनी ड्यूटी पर थाना बिलारी चला गया. रूबी अपने घर चली गई थी. पुलिस ने आरोपी योगेश कुमार, रूबी, वीरपाल और विशेष सैनी से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

 

 

Crime Story : मिट्टी का तेल डालकर प्रेमिका को जलाया

Crime Story : नंदिनी के साथ जो हुआ, वह बहुत दुखदायी था. इस मामले में पुलिस और प्रशासन दोनों ने नंदिनी के दर्द को नहीं समझा. काश! समय रहते उस की बात सुन कर आरोपियों पर सख्ती की गई होती तो…

देश भर में विकास हो रहा है, रेल की पटरियों पर इंजन की तरह दौड़ता विकास गांव, कस्बों, शहरों और महानगरों का विकास कागजों पर खड़ी इमारतों, सड़कों और कारखानों का विकास शहरों, महानगरों और कस्बों में भले ही दिख जाए, लेकिन गांवों में कम ही जगहों पर विकास के चरण कमल पड़े नजर   आएंगे. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 60 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले का गांव हिंदूपुर ऐसा ही गांव है जहां अभी तक विकास नाम की योजना की हवा नहीं गई है. हिंदूपुर में गरीबों की बस्ती दूर से ही नजर आती है. गांव में प्रवेश के 2 रास्ते हैं. सड़क भी गांव से कुछ दूर है. गांव के एक ओर 20 साल की नंदिनी (बदला हुआ नाम) का घर है. वह 5 बहनों और 2 भाइयों में सब से छोटी थी.

विश्वकर्मा बिरादरी की नंदिनी का घर गांव के गरीब परिवारों में आता था. कच्ची दीवारें और धान के पुआल से बने छप्पर वाला घर. नंदिनी पढ़ाई में तेज थी. उत्तर प्रदेश में जब सपा का शासन था और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव थे तब उसे मेधावी छात्रा के रूप में कक्षा 12 पास करने के बाद लैपटौप उपहार में दिया गया था. नंदिनी के घर के सामने ही एक मंदिर बना था, यहीं पर शिवम त्रिवेदी का अकसर उठनाबैठना होता था. शिवम गांव के प्रभावशाली ब्राह्मण परिवार का था. वह घंटों तक यहीं अपना समय गुजारता रहता था. शिवम नंदिनी के घरपरिवार की मदद भी करता रहता था. इस मदद की एक बड़ी वजह नंदिनी थी, जिसे वह मन ही मन पसंद करने लगा था. यह बात शिवम के परिवार के लोगों को पसंद नहीं थी. जैसेजैसे गांव में शिवम और नंदिनी की दोस्ती आगे बढ़ रही थी, शिवम के परिजन उस का विरोध करने लगे थे.

एक दिन की बात है शिवम और नंदिनी मंदिर पर बैठ कर बातें कर रहे थे. यह बात शिवम की मां को पता चली तो वह अपने छोटे बेटे शुभम के साथ वहां आई और लड़की को बुराभला कहना शुरू कर दिया. शिवम के घर वालों ने जब नंदिनी को भलाबुरा कहना शुरू किया तो नंदिनी ने भी उन्हें इसी तरह जवाब दिया. यह बात शिवम के भाई शुभम को बुरी लगी. उस ने नंदिनी के साथ झगड़ा शुरू कर दिया. झगड़े के दौरान शिवम पूरी तरह चुप रहा. झगड़े के बाद शिवम के घर वालों ने उसे नंदिनी से दूर रहने की सलाह दी. शिवम ने भी घर वालों की बात मानते हुए नंदिनी से बात करनी बंद कर दी. कुछ दिन शिवम नंदिनी से दूर रहा भी, लेकिन यह दूरी ज्यादा समय तक बनी नहीं रह पाई. नंदिनी शिवम से शादी करना चाहती थी, इसलिए वह शिवम पर शादी करने का दबाव बनाने लगी.

शिवम घर वालों और नंदिनी के बीच फंसा रहा. आखिर नंदिनी के दबाव में 19 जनवरी, 2018 को नोटरी शपथपत्र के जरिए शिवम त्रिवेदी ने नंदिनी से शादी कर ली. दोनों ने शादी तो कर ली लेकिन अब उन के सामने समस्या यह थी कि गांव और घर के लोगों को अपनी शादी की बात कैसे बताएं. शादी के बाद दोनों अपने गांव से दूर रायबरेली शहर के साकेतनगर में रहने लगे. जब घर वालों को पता चला तो रायबरेली पहुंच कर उन्होंने शिवम को समझाया. शिवम घर वालों के दबाव में आ गया. इस के बाद वह शादी से मुकरने लगा. बस यहीं से नंदिनी और शिवम के बीच रिश्ते बिगड़ने लगे. मामला थाना, कोर्टकचहरी तक पहुंच गया.

पुलिस और प्रशासन ने नहीं सुनी फरियाद शिवम पर कानूनी शिकंजा कसा जाने लगा तो वह परेशान हो गया. नंदिनी ने शिवम पर जो आरोप लगाए उस के अनुसार झगड़े के बाद शिवम सुलह और शादी कराने के लिए उसे एक मंदिर में ले गया. लेकिन मंदिर में पहले से कई लड़के मौजूद थे. शिवम और उस के साथियों ने वहीं पर नंदिनी के साथ गैंगरेप किया. इतना ही नहीं, उन्होंने उसे चुप रहने की धमकी भी दी. अपने साथ हुए इस धोखे पर नंदिनी ने भी सोच लिया कि वह अब चुप नहीं बैठेगी. उस ने मामला पुलिस में ले जाने और शिवम को सजा दिलाने की ठान ली.

12 दिसंबर, 2018 को नंदिनी रायबरेली जिले की लालगंज कोतवाली पहुंची और आपबीती सुना कर शिवम व उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की दरख्वास्त की, लेकिन पुलिस ने केस दर्ज नहीं किया. तब 8 दिन बाद 20 दिसंबर को नंदिनी ने एसपी रायबरेली को रजिस्टर्ड डाक से अपना शिकायती पत्र भेजा. इस की भी कोई सुनवाई नहीं हुई. पुलिस उस की शिकायत पर काररवाई क्यों नहीं कर रही थी, यह बात वह नहीं समझ सकी. पुलिस से निराश हो कर पीडि़त नंदिनी ने रायबरेली में अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट की कोर्ट में मुकदमा दर्ज कराने के लिए पत्र दिया. 10 जनवरी, 2019 को मजिस्ट्रैट ने एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया. कोर्ट के आदेश के बाद भी पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया.

26 फरवरी, 2019 को पुलिस को कोर्ट की अवमानना का नोटिस दिया गया. तब पुलिस ने दबाव में आ कर मजबूरी में 5 मार्च, 2019 को मुकदमा दर्ज किया. फिर भी कोई काररवाई नहीं हुई तो नंदिनी ने मुख्यमंत्री से शिकायत की. फलस्वरूप 22 सितंबर को शिवम ने कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस के देर से मुकदमा दर्ज करने और धीमी गति से जांच के चलते शिवम को जल्दी जमानत मिल गई. जमानत देने के पहले कोर्ट ने नंदिनी से कोई संपर्क नहीं किया. 30 नवंबर, 2019 को जब शिवम जेल से छूट कर गांव पहुंचा तो उस के जेल से आने की खुशी में मिठाइयां बंटने लगीं. नंदिनी को हैरानी हुई कि शिवम इतनी जल्दी जमानत पर जेल से बाहर कैसे आ गया.

उस ने अपने परिवार से यह बात बताई और कहा कि कल वह रायबरेली जा कर अपने वकील से मिल कर पता करेगी कि यह कैसे हो गया है? रायबरेली जाने के लिए नंदिनी को सुबह 5 बजे कानपुर से रायबरेली जाने वाली टे्रन पकड़नी थी. नंदिनी नहीं पहुंच पाई स्टेशन 3 दिसंबर, 2019 की सुबह नंदिनी ट्रेन पकड़ने के लिए अपने घर से निकली. घर से स्टेशन करीब 2 किलोमीटर दूर था. नंदिनी सुबह 4 बजे जब अपने घर से निकली. तब जाड़े का समय था. रास्ते में अंधेरा भी था. नंदिनी के पिता ने उसे स्टेशन छोड़ने के लिए कहा तो उस ने बूढ़े पिता की परेशानी को देखते हुए मना कर दिया. वह अकेली ही घर से निकल गई.

गांव से स्टेशन के रास्ते में कुछ रास्ता ऐसा था, जो सुनसान रहता था. इसी जगह पर नंदिनी पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी गई. नंदिनी खुद को बचाने के लिए मदद के लिए दौड़ रही थी. जली हालत में खुद को बचाने के लिए नंदिनी दौड़ी तो आग और भड़क गई. उस के कपड़े जल कर उस के जिस्म से चिपक गए थे. रास्ते में एक जगह कुछ लोग दिखे तो नंदिनी वहीं गिर पड़ी. नंदिनी के कहने पर रास्ते में मिले लोगों ने डायल 112 को फोन कर के जानकारी दी. बुरी तरह जली नंदिनी ने वहां पहुंची पुलिस को और बाद में प्रशासन को बताया कि उस के ऊपर मिट्टी का तेल डाल कर जलाने वाले शिवम और उस के साथी थे.

90 फीसदी जली हालत में नंदिनी को पहले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ ले जाया गया. लेकिन उस की गंभीर हालत को देखते हुए उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया. 3 दिन जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करने के बाद आखिर नंदिनी ने दम तोड़ दिया. पूरे इलाज के दौरान नंदिनी की बहन और मां लखनऊ से ले कर दिल्ली तक साथ रहीं. उन्होंने उसे तिलतिल कर मरते देखा. नंदिनी के पिता को दुख है कि घटना के दिन वह उसे स्टेशन तक छोड़ने नहीं गए. नंदिनी खुद अपनी लड़ाई लड़ रही थी. इसलिए वह बेटी के साथ नहीं गए थे. इस के पहले वह उसे स्टेशन तक छोड़ने जाते थे. शिवम द्विवेदी और दूसरे आरोपियों के परिवार के लोग इस घटना के संबंध में तर्क देते हुए कहते हैं कि गुनाह उन के घर वालों ने नहीं किया. उन्हें साजिश के तहत फंसाया जा रहा है.

परिवार के लोग कहते हैं कि नंदिनी को जलाने की घटना जिस समय की है, उस समय उन के लड़के घरों में सो रहे थे. पुलिस ने उन को सोते समय घर से पकड़ा है. अगर उन्होंने अपराध किया होता तो आराम से घर में नहीं सो रहे होते. शिवम के घर वालों का कहना है कि जब नंदिनी को शिवम से मिलने पर रोक लगा दी गई थी तो उस ने रेप का मुकदमा लिखा कर शिवम और उस के करीबियों को जेल भिजवाने की धमकी दी थी. उन्होंने नंदिनी और शिवम के रायबरेली में रहने की बात से खुद को अनजान बताया. इन के समर्थक बताते हैं कि जेल से शिवम के छूटने के बाद लड़की ने उसे फिर से जेल भिजवाने की धमकी दी. इस के बाद खुद ही मिट्टी का तेल डाल कर खुद को जलाया. ये लोग सोशल मीडिया पर  इस बात का प्रचार भी कर रहे हैं कि शिवम को फंसाने और जेल भिजवाने के नाम पर लड़की 15 लाख रुपए मांग रही थी. इस में से 7 लाख रुपए शिवम के परिवार वाले दे भी चुके थे.

लड़की के भाई का कहना है कि उस की बहन पढ़लिख कर परिवार की मदद करना चाहती थी. शिवम के संपर्क में आ कर उसे इस स्थिति का सामना करना पड़ा. कानून मानता है कि मरते समय दिया बयान सत्य माना जाता है. सवाल यह उठता है कि नंदिनी जली अवस्था में निर्दोषों को क्यों फंसाएगी? उस समय तक नंदिनी यह समझ चुकी थी कि उस की मौत तय है. वह सब से पहले अपने साथ हुई घटना की गवाही देना चाहती थी, जिस की वजह से उस ने पुलिस और प्रशासन को बयान दिया. नंदिनी और शिवम के बीच विवाह का नोटरी शपथपत्र हर बात को साफ करता है. नंदिनी के परिजन पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि पुलिस ने किसी हालत में उन की मदद नहीं की.

रेप के मामलों में उन्नाव आया चर्चा में उत्तर प्रदेश उन्नाव रेप को ले कर पहले भी चर्चा में रहा है. भाजपा के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के समय मामला राजनीतिक था. अब दूसरी घटना में लड़की को जलाने के बाद मामला राजनीतिक कम सामाजिक ज्यादा बन गया है. एक तरफ समाज के लोग लड़की और उसे दिए गए संस्कारों को जिम्मेदार मान रहे हैं. उन्नाव में रेप की दूसरी घटना के चर्चा में आने के बाद विपक्ष को सत्तापक्ष को घेरने का पूरा मौका मिल गया. लोकसभा में बहस और हंगामा कर मांग की गई कि महिला सुरक्षा दिवस मनाया जाए. उत्तर प्रदेश की विधानसभा के बाहर प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव धरने पर बैठ गए. उन की पार्टी ने सड़क पर उतर कर प्रदर्शन किया और प्रदेश सरकार को घेरने का काम किया.

कांग्रेस की महासचिव प्रियंका वाड्रा लखनऊ के 2 दिन के दौरे से वक्त निकाल कर उन्नाव में नंदिनी के घर वालों से मिलने गईं. इस से एक बार फिर रेप की घटना चर्चा में आ गई. प्रदेश सरकार ने मामले को हलका करने के लिए लड़की के घर वालों को मुआवजा देने का काम किया. योगी सरकार ने नंदिनी के घर वालों को 25 लाख रुपए की आर्थिक मदद, गांव में 2 मकान और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया. उन्नाव के मामले के बाद तमाम ऐसी घटनाएं प्रकाश में आने लगीं. इन घटनाओं से समाज की हकीकत का पता चलता है. इस बार रेप कांड सामाजिक है. समाज उन्नाव जिले की घटना को प्रेम प्रसंग मान कर दरकिनार कर रहा है. नंदिनी की मौत के बाद गांव का माहौल गमगीन है. पूरा गांव 2 पक्षों में बंट चुका है. दोनों पक्षों की अलगअलग राय भी है.

नंदिनी के मरने के बाद उस के घर वालों ने नंदिनी का दाह संस्कार या उसे नदी में प्रवाहित करने से इनकार कर दिया. उन्होंने प्रशासन से कहा कि एक बार जल चुकी नंदिनी का दोबारा दाहसंस्कार नहीं करेंगे. इस की जगह उसे दफनाया जाएगा. ऐसा ही हुआ. सरकार ने पूरे मामले में लापरवाही बरतने

वाले दोषी पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया.

—नंदिनी और उस से जुड़े नाम बदले हुए हैं

 

Agra Crime : रस्सी से गला घोंट कर पत्नी की हत्या की, फिर तिरपाल में लपेट कर जला डाला

Agra Crime : रशादी के कुछ सालों के बाद पतिपत्नी के रिश्तों में ठंडापन आने लगता है. समझदार लोग उस समय को अपनी बातों से गरमा कर बोरियत से निजात पा लेते हैं. लेकिन पुष्कर और शिवानी जैसे लोगों की कमी नहीं है, जो अपने ही जीवनसाथी की कमतरी ढूंढने लगते हैं. फलस्वरूप…

विश्वप्रसिद्ध ताज नगरी आगरा के थाना शाहगंज क्षेत्र के मोहल्ला पथौली निवासी पुष्कर बघेल की शादी अप्रैल, 2016 में आगरा के सिकंदरा की सुंदरवन कालोनी निवासी गंगासिंह की 21 वर्षीय बेटी शिवानी के साथ हुई थी. पुष्कर दिल्ली के एक प्रसिद्ध मंदिर के सामने बैठ कर मेहंदी लगाने का काम कर के परिवार की गुजरबसर करता था. बीचबीच में उस का आगरा स्थित अपने घर भी आनाजाना लगा रहता था. पुष्कर के परिवार में कुल 3 ही सदस्य थे. खुद पुष्कर उस की पत्नी शिवानी और मां गायत्री. 20 नवंबर, 2018 की बात है. सुबह जब पुष्कर और उस की मां सो कर उठे तो शिवानी घर में दिखाई नहीं दी. उन्होंने सोचा पड़ोस में कहीं गई होगी.

लेकिन इंतजार करने के बाद भी जब शिवानी वापस नहीं आई तब उस की तलाश शुरू हुई. जब वह कहीं नहीं मिली तो पुष्कर ने अपने ससुर गंगासिंह को फोन कर के शिवानी के बारे में पूछा. यह सुन कर गंगासिंह चौंके. क्योंकि वह मायके नहीं आई थी. उन्होंने पुष्कर से पूछा, ‘‘क्या तुम्हारा उस के साथ कोई झगड़ा हुआ था?’’

इस पर पुष्कर ने कहा, ‘‘शिवानी के साथ कोई झगड़ा नहीं हुआ. सुबह जब हम लोग जागे, शिवानी घर में नहीं थी. इधरउधर तलाश किया, जब वह कहीं नहीं मिली तब फोन कर आप से पूछा.’’

बाद में पुष्कर को पता चला कि शिवानी घर से 25 हजार की नकदी व आभूषण ले कर लापता हुई है. ससुर गंगासिंह ने जब कहा कि शिवानी मायके नहीं आई है तो पुष्कर परेशान हो गया. कुछ ही देर में मोहल्ले भर में शिवानी के गायब होने की खबर फैल गई तो पासपड़ोस के लोग पुष्कर के घर के सामने जमा हो गए.  उस ने पड़ोसियों को शिवानी द्वारा घर से नकदी व आभूषण ले जाने की बात बताई. इस पर सभी ने पुष्कर को थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी. जब शिवानी का कहीं कोई सुराग नहीं मिला, तब पुष्कर ने 23 नवंबर को थाना शाहगंज में शिवानी की गुमशुदगी दर्ज कराई. पुष्कर ने पुलिस को बताया कि शिवानी अपने किसी प्रेमी से मोबाइल पर बात करती रहती थी.

दूसरी तरफ शिवानी के पिता गंगासिंह भी थाना पंथौली पहुंचे. उन्होंने थाने में अपनी बेटी शिवानी के साथ ससुराल वालों द्वारा मारपीट व दहेज उत्पीड़न की तहरीर दी. गंगासिंह ने आरोप लगाया कि ससुराल वाले दहेज में 2 लाख रुपए की मांग करते थे. कई बार शिवानी के साथ मारपीट भी कर चुके थे. उन्होंने ही उन की बेटी शिवानी को गायब किया है. साथ ही तहरीर में शिवानी के साथ किसी अनहोनी की आशंका भी जताई गई. गंगासिंह ने पुष्कर और उस के घर वालों के खिलाफ थाने में दहेज उत्पीड़न व मारपीट का केस दर्ज करा दिया. जबकि पुष्कर इस बात का शक जता रहा था कि शिवानी जेवर, नकदी ले कर किसी के साथ भाग गई है.

पुलिस ने शिवानी के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जांच शुरू कर दी. थाना शाहगंज और महिला थाने की 2 टीमें शिवानी को आगरा के अछनेरा, कागारौल, मथुरा, राजस्थान के भरतपुर, मध्य प्रदेश के मुरैना, ग्वालियर में तलाशने लगीं. लेकिन शिवानी का कहीं कोई पता नहीं चल सका. काफी मशक्कत के बाद भी शिवानी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. कई महीनों तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही फिर भी उसे कुछ हासिल नहीं हुआ. शिवानी का लापता होना पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया था. लेकिन पुलिस के अधिकारी इसे एक बड़ा चैलेंज मान रहे थे. पुलिस अधिकारी हर नजरिए से शिवानी की तलाश में जुटे थे, लेकिन शिवानी का कोई पता नहीं चल पा रहा था.

यहां तक कि सर्विलांस की टीम भी पूरी तरह से नाकाम साबित हुई. कई पुलिसकर्मी मान चुके थे कि अब शिवानी का पता नहीं लग पाएगा. सभी का अनुमान था कि शिवानी अपने किसी प्रेमी के साथ भाग गई है और उसी के साथ कहीं रह रही होगी. उधर गंगासिंह को इंतजार करतेकरते 6 महीने बीत चुके थे, पर अभी तक न तो बेटी लौट कर आई थी और न ही उस का कोई सुराग मिला था. ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा रहा था, त्योंत्यों गंगासिंह की चिंता बढ़ रही थी. शिवानी के साथ कोई अप्रिय घटना तो नहीं हो गई, इस तरह के विचार गंगासिंह के मस्तिष्क में घूमने लगे थे.

उन्होंने बेटी की खोज में रातदिन एक कर दिया था. रिश्तेनाते में भी जहां भी संभव हो सकता था, फोन कर के उन सभी से पूछा. उधर पुलिस ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था. लेकिन गंगासिंह ने हिम्मत नहीं हारी. इस घटना ने गंगासिंह को अंदर तक तोड़ दिया था. वह गहरे मानसिक तनाव से गुजर रहे थे. न्याय न मिलता देख गंगासिंह ने प्रयागराज हाईकोर्ट की शरण ली. जिस के फलस्वरूप जुलाई 2019 में हाईकोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया. माननीय हाईकोर्ट ने आगरा के एसएसपी को कोर्ट में तलब कर के उन्हें शिवानी का पता लगाने के आदेश दिए. कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस हरकत में आई.

एसएसपी बबलू कुमार ने इस मामले को खुद देखने का निर्णय लेते हुए शिवानी के पिता गंगासिंह को अपने औफिस में बुला कर उन से शिवानी के बारे में पूरी जानकारी हासिल की. इस के बाद बबलू कुमार ने एक टीम का गठन किया. इस टीम में सर्विलांस टीम के प्रभारी इंसपेक्टर नरेंद्र कुमार, इंसपेक्टर (सदर) कमलेश कुमार, इंसपेक्टर (ताजगंज) अनुज कुमार के साथ क्राइम ब्रांच को भी शामिल किया गया था. पुलिस टीम ने अपनी जांच तेज कर दी. लापता शिवानी की तलाश में पुलिस की 2 टीमें उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान के जिलों में भेजी गईं. पुलिस ने शिवानी के मायके से ले कर ससुराल पक्ष के लोगों से जानकारियां जुटाईं. फिर कई अहम साक्ष्यों की कडि़यों को जोड़ना शुरू किया. शिवानी के पति पुष्कर के मोबाइल फोन की घटना वाले दिन की लोकेशन भी चैक की.

करीब एक साल तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही. जांच टीम ने शिवानी के लापता होने से पहले जिनजिन लोगों से उस की बात हुई थी, उन से गहनता से पूछताछ की. इस से शक की सुई शिवानी के पति पर जा कर रुकने लगी थी.

जांच के दौरान पुष्कर शक के दायरे में आया तो पुलिस ने उसे थाने बुला लिया और उस से हर दृष्टिकोण से पूछताछ की. लेकिन ऐसा कोई क्लू नहीं मिला, जिस से लगे कि शिवानी के गायब होने में उस का कोई हाथ था. पुष्कर पर शक होने के बाद जब पुलिस ने उस से पूछताछ की तो वह कुछ नहीं बोला. तब पुलिस ने उस का नार्को टेस्ट कराने की तैयारी कर ली थी. नार्को टेस्ट कराने के डर से पुष्कर टूट गया और उस ने 2 नवंबर, 2019 को अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

पुष्कर दिल्ली में रहता था, जबकि उस की पत्नी शिवानी आगरा के शाहगंज स्थित अपनी ससुराल में रहती थी. वह कभीकभी अपने गांव जाता रहता था. उस की गृहस्थी ठीक चल रही थी. लेकिन शादी के 2 साल बाद भी शिवानी मां नहीं बनी तो इस दंपति की चिंता बढ़ने लगी.  पुष्कर ने पत्नी का इलाज भी कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इस के बाद बच्चा न होने पर दोनों एकदूसरे को दोषी ठहराने लगे. लिहाजा उन के बीच कलह शुरू हो गई. अब शिवानी अपना अधिकतर समय वाट्सऐप, फेसबुक पर बिताने लगी.  पुष्कर जब दिल्ली से घर आता तब भी वह उस का ध्यान नहीं रखती. वह पत्नी के बदले व्यवहार को वह महसूस कर रहा था. वह शिवानी से मोबाइल पर ज्यादा बात करने को मना करता था. लेकिन वह उस की बात को गंभीरता से नहीं लेती थी. इस बात को ले कर दोनों में अकसर झगड़ा भी होता था.

पुष्कर को शक था कि शिवानी के किसी और से नाजायज संबंध हैं. घर में कलह करने के अलावा शिवानी ने पुष्कर को तवज्जो देनी बंद कर दी तो पुष्कर ने परेशान हो कर शिवानी को ठिकाने लगाने का फैसला ले लिया. इस बारे में उस ने अपनी मां गायत्री और वृंदावन निवासी अपने ममेरे भाई वीरेंद्र के साथ योजना बनाई. योजनानुसार 20 नवंबर, 2018 को उन दोनों ने योजना को अंजाम दे दिया. उस रात जब शिवानी सो रही थी. तभी पुष्कर शिवानी की छाती पर बैठ गया. मां गायत्री ने शिवानी के हाथ पकड़ लिए और पुष्कर ने वीरेंद्र के साथ मिल कर रस्सी से शिवानी का गला घोंट दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद शिवानी की मौत हो गई.

हत्या के बाद पुष्कर की आंखों के सामने फांसी का फंदा झूलता नजर आने लगा. पुष्कर और वीरेंद्र सोचने लगे कि शिवानी की लाश से कैसे छुटकारा पाया जाए. काफी देर सोचने के बाद पुष्कर के दिमाग में एक योजना ने जन्म लिया. पकड़े जाने से बचने के लिए रात में ही पुष्कर ने शिवानी की लाश एक तिरपाल में लपेटी. फिर लाश को अपनी मोटरसाइकिल पर रख कर घर से 10 किलोमीटर दूर ले गया. वीरेंद्र ने लाश पकड़ रखी थी. वीरेंद्र और पुष्कर शिवानी की लाश को मलपुरा थाना क्षेत्र की पुलिया के पास लेदर पार्क के जंगल में ले गए, जहां दोनों ने प्लास्टिक के तिरपाल में लिपटी लाश पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी. प्लास्टिक के तिरपाल के कारण शव काफी जल गया था.

इस घटना के 17 दिन बाद मलपुरा थाना पुलिस को 7 दिसंबर, 2018 को लेदर पार्क में एक महिला का अधजला शव पड़ा होने की सूचना मिली. पुलिस भी वहां पहुंच गई थी. पुलिस ने लाश बरामद कर उस की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन शिनाख्त नहीं हो सकी. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर वह पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. साथ ही उस की डीएनए जांच भी कराई.  पुष्कर द्वारा अपराध स्वीकार करने के बाद मलपुरा थाना पुलिस को भी बुलाया गया. पुष्कर पुलिस को उसी जगह ले कर गया, जहां उस ने शिवानी की लाश जलाई थी.

इस से पुलिस को यकीन हो गया कि हत्या उसी ने की है. मलपुरा थाना पुलिस ने 7 दिसंबर, 2018 को यह बात मान ली कि महिला की जो लाश बरामद की गई थी, वह शिवानी की ही थी. उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटनास्थल से हत्या के सुबूत के रूप में पुलिया के नीचे कीचड़ में दबे प्लास्टिक के तिरपाल के अधजले टुकड़े, जूड़े में लगाने वाली पिन, जले और अधजले अवशेष व पुष्कर के घर से वह मोटरसाइकिल बरामद कर ली, जिस पर लाश ले गए थे. डीएनए जांच के लिए पुलिस ने शिवानी के पिता का खून भी अस्पताल में सुरक्षित रखवा लिया.

पुलिस ने पुष्कर से पूछताछ के बाद उस की मां गायत्री को भी गिरफ्तार कर लिया लेकिन वीरेंद्र फरार हो चुका था. दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. जबकि हत्या में शामिल तीसरे आरोपी वीरेंद्र की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी. पति और पत्नी के रिश्ते की नींव एकदूसरे के विश्वास पर टिकी होती है, कई बार यह नींव शक की वजह से कमजोर पड़ जाती है. इस के चलते मजबूत से मजबूत रिश्ता भी टूटने की कगार पर पहुंच जाता है या टूट कर बिखर जाता है. शिवानी के मामले में भी यही हुआ. काश! पुष्कर पत्नी पर शक न करता तो शायद उस का परिवार बरबाद न होता.

 

Hyderabad Crime : प्रेमी के साथ मिलकर मां का चुन्नी से घोंटा गला

Hyderabad Crime : बेटियां मांबाप का मानसम्मान होती हैं, लेकिन वही बेटियां अगर गलत राह पर उतर जाएं तो न केवल परिवार की इज्जत के लिए खतरा बन जाती हैं, बल्कि कई बार तो…

श्री निवास रेड्डी अपनी पत्नी और एकलौती बेटी कीर्ति रेड्डी के साथ हैदराबाद (Hyderabad Crime) के ब्लौक हयातनगर स्थित मुनागानुरु गांव में रहते थे. वह एक ट्रक चालक थे. एक बार जब वह अपना ट्रक ले कर कामधंधे के लिए बाहर निकलते थे, तो हफ्तों तक घर नहीं लौट पाते थे. उन की ख्वाहिश थी कि वह अपनी बेटी को उच्चशिक्षा दिलाएं ताकि पढ़लिख कर वह किसी अच्छी सरकारी नौकरी में चली जाए. इसलिए वह अपने काम पर ज्यादा ध्यान देते थे. बेटी कीर्ति रेड्डी से वह बेटे की तरह व्यवहार करते थे. उन्होंने बेटी को पूरी आजादी दे रखी थी. लेकिन उस की यही आजादी एक दिन उन के परिवार को बिखेर देगी, ऐसा उन्होंने कभी नहीं सोचा था.

19 अक्तूबर, 2019 की दोपहर के करीब 2 बजे कीर्ति रेड्डी अपने एक मित्र कोथा शशिकुमार के साथ थाना हयातनगर पहुंची. उस ने थाने में अपनी मां पल्लेरला रंजीता की गुमशुदगी दर्ज करवाई. शिकायत में कीर्ति रेड्डी ने अपनी मां की गुमशुदगी का जिम्मेदार अपने पिता श्रीनिवास रेड्डी को ठहराया. कीर्ति ने ड्यूटी पर तैनात अधिकारी को बताया कि मां के प्रति उस के पिता का व्यवहार ठीक नहीं था. वह शराब पी कर जब घर लौटते थे तो मां के साथ लड़ाईझगड़ा और मारपीट करते थे. पिता के इसी व्यवहार से मां परेशान रहती थीं, जिस की वजह से 2 दिन पहले वह घर छोड़ कर चली गई. उस ने मां को काफी खोजा, लेकिन कहीं पता नहीं लग सका.

पुलिस ने कीर्ति की शिकायत पर गुमशुदगी दर्ज कर के काररवाई शुरू कर दी. इस घटना के 4-5 दिन बाद जब श्रीनिवास रेड्डी अपना ट्रक ले कर घर लौटे तो घर के दरवाजे पर ताला लटका मिला. ताला बंद देख वह समझ गए कि घर पर कोई नहीं है. पहले तो उन्होंने सोचा कि पत्नी और बेटी कहीं आसपास गई होंगी. वह वहीं पर उन के लौटने का इंतजार करने लगे. लेकिन जब वे काफी देर बाद भी नहीं लौटीं तो उन्हें चिंता हुई. उन्होंने आसपड़ोस के लोगों से अपने परिवार के बारे में पूछा तो पता चला कि उन के घर पर कई दिनों से ताला लटक रहा है. यह जान कर उन्हें झटका लगा. ऐसा कभी नहीं हुआ था कि उन की पत्नी और बेटी उन्हें बिना बताए कहीं गई हों. क्योंकि उन्हें यह बात अच्छी तरह मालूम थी कि वह कभी भी घर आ सकते थे. अगर वे कहीं जाती भी थीं तो उन्हें फोन कर जानकारी अवश्य देती थीं.

इस बीच उन की बेटी और पत्नी में से किसी का भी फोन उन के पास नहीं आया था. जब उन्होंने पत्नी का फोन मिलाया तो वह स्विच्ड औफ था. कई बार कोशिश करने के बाद जब बेटी कीर्ति रेड्डी से उन का संपर्क हुआ तो उस ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर उन के होश उड़ गए. कीर्ति ने बताया कि मां कई दिन पहले पता नहीं कहां चली गईं और वह कुछ काम से विशाखापट्टनम आई हुई है. 2 दिन बाद वह घर आएगी. कीर्ति ने यह भी बताया कि उस ने मां को तमाम संभावित जगहों पर तलाश किया, जब वह नहीं मिली तो थाने में गुमशुदगी दर्ज करा दी. बेटी की यह बात सुन कर श्रीनिवास रेड्डी के होश उड़ गए. वह समझ नहीं पा रहे थे कि पत्नी बिना बताए कहां और क्यों चली गई.

लिहाजा वह भी पत्नी को इधरउधर खोजने लगे. श्रीनिवास रेड्डी की समझ में यह भी नहीं आ रहा था कि जब मां लापता थी तो बेटी को उस की तलाश करनी चाहिए थी. आखिर ऐसा कौन सा जरूरी काम आ गया, जो वह विशाखापट्टनम चली गई. उस के विशाखापट्टनम जाने की बात उन के गले नहीं उतर रही थी. बहरहाल, 2 दिनों बाद कीर्ति रेड्डी जब घर वापस आई तो वह अपनी मां की गुमशुदगी को ले कर पिता से ही उलझ पड़ी. उस का कहना था कि उन के व्यवहार की वजह से मां घर छोड़ गई है. बेटी के इस आरोप से भी श्रीनिवास रेड्डी स्तब्ध रह गए. वह पत्नी की तलाश के लिए थाने के चक्कर लगाते रहे. पत्नी को गायब हुए 8 दिन बीत चुके थे, लेकिन उस का पता नहीं लग पा रहा था. इस से श्रीनिवास रेड्डी की चिंता बढ़ती जा रही थी. वह थाने के चक्कर लगालगा कर परेशान हो चुके थे. थाना पुलिस से आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिल पा रहा था.

हार कर श्रीनिवास रेड्डी ने पुलिस कमिश्नर महेश भागवत से मुलाकात की. पुलिस कमिश्नर ने इस मामले को गंभीरता से लिया. उन के निर्देश पर एसीपी शंकर व हयाननगर क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर सतीश इस केस की जांच में जुट गए.  इंसपेक्टर सतीश ने श्रीनिवास रेड्डी के पड़ोसियों और जानपहचान वालों से पूछताछ करते हुए जब उन के परिवार को खंगाला तो कीर्ति रेड्डी शक के दायरे में आ गई. वह बारबार अपने बयान बदल रही थी. इसी दौरान जांच में यह बात भी पता चली कि वह अपनी मां के गायब होने के बाद विशाखापट्टनम गई ही नहीं थी. वह अपने प्रेमी और मंगेतर चिमूला बाल रेड्डी के घर में थी. यह बात श्रीनिवास रेड्डी को तब पता चली, जब चिमूला बाल रेड्डी के पिता कृष्णा रेड्डी श्रीनिवास रेड्डी को सहानुभूति देने उन के पास आए.

रहीसही कमी पल्लेरला रंजीता के मोबाइल फोन की लोकेशन ने पूरी कर दी. 23 अक्तूबर, 2019 तक कीर्ति रेड्डी और उस की मां रंजीता रेड्डी के फोन नंबरों की काल डिटेल्स खंगाली गई तो 19 अक्तूबर को दोनों के फोन की लोकेशन साथसाथ पाई गई. फिर 4 दिन बाद मां पल्लेरला रंजीता का मोबाइल फोन बंद हो गया था. अब सवाल यह था कि रंजीता के गायब होने के 4 दिनों बाद उन का मोबाइल कैसे चालू हुआ और वह किस ने चालू किया. इस शक के आधार पर क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर सतीश ने कीर्ति रेड्डी को पूछताछ के लिए अपने औफिस बुलाया. कीर्ति जब वहां पहुंची तो उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुई थीं. फिर भी वह पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करती रही. खुद को वह मां की गुमशुदगी से अनभिज्ञ और निर्दोष

बताती रही. लेकिन इंसपेक्टर सतीश ने जब उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो वह प्रश्नों के जाल में उलझ गई और उसे सच बोलने के लिए मजबूर होना पड़ा. उस ने अपनी मां की गुमशुदगी के ऊपर पड़ा रहस्यमयी परदा उठा दिया. कीर्ति रेड्डी के बयान और पुलिस जांच के अनुसार मल्लेरला रंजीता की गुमशुदगी की जो कहानी सामने आई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार से थी. 19 वर्षीय कीर्ति शोख और चंचल स्वभाव की थी. वह आधुनिक विचारों वाली फैशनपरस्त युवती थी. वह माइक्रोबायलौजी से बीएससी कर रही थी. कालेज में पढ़ाई के दौरान कई लड़के उसे चाहते थे. लेकिन वह जिस की तरफ आकर्षित थी, वह था उस का बचपन का साथी चिमूला बाल रेड्डी.

बाल रेड्डी उसी इलाके का रहने वाला था, जहां कीर्ति रहती थी. बाल रेड्डी के पिता कृष्णा रेड्डी सरकारी नौकरी में थे. उन का भरापूरा परिवार था. बाल रेड्डी बी.टेक. कर चुका था. बाल रेड्डी के पिता कृष्णा और कीर्ति के पिता श्रीनिवास दोनों दूर के रिश्तेदार भी थे. एक ही इलाके में रहने के कारण एकदूसरे के घरों में अकसर आनाजाना होता रहता था. कीर्ति से सीनियर होने के कारण बाल रेड्डी कभीकभी कीर्ति की पढ़ाई में उस की मदद कर दिया करता था. यही कारण था कि जब भी वह कीर्ति के घर आता था, कीर्ति उस के साथ हिलमिल जाती थी. इसी में कब बचपना गया और जवानी ने अपना रंगरूप बदला, यह दोनों को मालूम नहीं पड़ा. उन का दोस्ती जैसा रिश्ता खत्म हो गया, उस की जगह प्यार ने ले ली.

बाल रेड्डी खातेपीते परिवार का लड़का था. उस के पास मोटरसाइकिल थी, जिस पर वह अकसर कीर्ति रेड्डी को कालेज छोड़ देता था. यही कारण था कि कीर्ति उस के प्यार में कुछ इस तरह डूब गई कि वह अपनी सीमा और मर्यादा को भी भूल गई. किशोरावस्था में ही वह गर्भवती हो गई थी. यह भूल दोनों ने एक शादी समारोह के दौरान की थी. वे अपने एक रिश्तेदार की शादी में गए थे. उन्होंने जब शादी के पंडाल में दूल्हादुलहन को देखा तो उन के मन में एक हूक सी उठी. वे भी अपने आप को दूल्हा और दुलहन समझने लगे और सुहागरात की कल्पना कर दोनों एकांत में चले गए. उस रात एक तरफ दूल्हादुलहन जहां शादी के फेरों की रस्में पूरी कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ कीर्ति और बाल रेड्डी एक अलग ही दुनिया में विचरण कर रहे थे. वे जिंदगी के खुमार और उन्माद में डूबे हुए थे.

इस उन्माद का नतीजा जब सामने आया तो उन के होश उड़ गए, जो उन के परिवार और समाज के लिए ठीक नहीं था. कीर्ति को गर्भ ठहर गया था. जब यह बात कीर्ति ने बाल रेड्डी को बताई तो वह भी घबराया. उन के सामने अब एक ही रास्ता था कि किसी भी तरह गर्भपात कराया जाए. बाल रेड्डी का एक दोस्त था काथा शशिकुमार. बाल रेड्डी ने कीर्ति का गर्भपात कराने के संबंध में उस से बात की. शशिकुमार ने अपनी पहचान वाले डाक्टर से कीर्ति का गर्भपात करा दिया. गर्भपात हो जाने के बाद कीर्ति रेड्डी ने अपनी इस मुसीबत से तो छुट्टी पा ली लेकिन अब वह एक दूसरी मुसीबत में फंस गई. काथा शशिकुमार उसी कालोनी में रहता था, जिस में कीर्ति रहती थी. कीर्ति के घर और शशिकुमार के घर के बीच की दूरी यही कोई 100 फुट थी. शशिकुमार एक खातेपीते परिवार का था. उस के पिता हैदराबाद के एक पौलिटेक्निक इंस्टीट्यूट में नौकरी करते थे.

बाल रेड्डी और शशिकुमार दोनों बचपन के मित्र थे. दोनों ने एक ही कालेज से ग्रैजुएशन की थी. बाल रेड्डी ने बी.टेक तो शशिकुमार ने एमबीए किया था. अच्छे दोस्त होने के नाते बाल रेड्डी ने कीर्ति के मामले में शशिकुमार की मदद ली थी. पड़ोसी होने के कारण शशिकुमार भी उतना ही कीर्ति के परिवार के करीब था, जितना बाल रेड्डी था. उस के दिल के एक कोने में भी कीर्ति की तसवीर थी. वह भी कीर्ति के करीब आना चाहता था. लेकिन कीर्ति ने उसे अपने पास आने का मौका नहीं दिया था, जिस की कसक उस के दिल में बनी हुई थी. गर्भपात कराने के दौरान उसे कीर्ति के पास आने का मौका मिल गया था. कीर्ति भी उस के अहसानों के नीचे दब गई थी. शशिकुमार ने कीर्ति से कहा कि वह उस के लिए भी अपने दिल के दरवाजे खोल दे अन्यथा वह गर्भपात वाली बात जगजाहिर कर देगा.

कीर्ति ने बदनामी के डर से शशिकुमार को भी अपने दिल में जगह दे दी. अब वह शशिकुमार के साथ भी मौजमस्ती करने लगी. समय अपनी गति से चल रहा था. कीर्ति अब कई परवानों की शमां बन चुकी थी. इन के बीच 3 साल का समय कैसे निकल गया, उन्हें इस का पता ही नहीं चला. कीर्ति रेड्डी अब उन्नीसवां बसंत पार कर चुकी थी. कीर्ति को ले कर उस की मां पल्लेरला रंजीता और पिता श्रीनिवास रेड्डी को उस की शादी की चिंता थी, वे उस के लिए एक वर की तलाश में जुटे थे. इस से पहले कि उन्हें कोई वर मिलता, उन्हें चिमूला बाल रेड्डी और कीर्ति के प्यार की बात पता चल गई. तब कीर्ति रेड्डी के पिता श्रीनिवास ने बाल रेड्डी के घर वालों से मिल कर उन की शादी तय कर दी.

शादी तय होने के बाद जब कीर्ति की मां को यह बात मालूम पड़ी कि कीर्ति के नाजायज संबंध बाल रेड्डी के अलावा कालेज और इलाके के कई और युवकों से भी हैं तो उन्हें बड़ा दुख हुआ. कीर्ति का सब से गहरा रिश्ता उन के पड़ोस में रहने वाले शशिकुमार से था. शशिकुमार अकसर उन के घर आताजाता था. वह घंटों कीर्ति के साथ रहता था. उसे महंगे गिफ्ट दिया करता था. यह जान कर कीर्ति की मां के पैरों तले से जमीन खिसक गई, उन्होंने इस के लिए कीर्ति को आड़े हाथों लिया और काफी खरीखोटी सुनाई. इतना ही नहीं, उन्होंने इस के लिए कीर्ति की पिटाई भी कर दी थी. यह बात कीर्ति और उस के प्रेमी शशिकुमार दोनों को चुभ गई. शशिकुमार की सहानुभूति पा कर कीर्ति ने अपनी आजादी और मां के बंधनों से मुक्त होने के लिए शशिकुमार के साथ मिल कर एक खतरनाक योजना बना ली.

इतना ही नहीं, पिता के बाहर जाने के बाद कीर्ति और शशिकुमार ने इस योजना को साकार भी कर दिया. घटना की रात जब शशिकुमार कीर्ति रेड्डी के घर आया तो उसे देख कीर्ति की मां पल्लेरला रंजीता ने काफी डांटाफटकारा और अपने घर से धक्का मार कर बाहर निकाल दिया. उन्होंने शशिकुमार को चेतावनी भी दी कि अगर उस ने उन के घर आने और कीर्ति से मिलने की कोशिश की तो उस से बुरा कोई नहीं होगा.  घर का माहौल गरम देख कर उस समय तो वह वहां से चला गया था, लेकिन जातेजाते शशिकुमार कीर्ति को इशारोंइशारों में समझा गया. आधी रात के बाद वह लौटा तो कीर्ति की मां पल्लेरला रंजीता अपने कमरे में जा कर सोने की कोशिश कर रही थी.

आहट सुन कर रंजीता ने करवट बदली तो शशिकुमार को देख चौंक गईं. इस के पहले कि वह अपने बिस्तर से उठ पातीं, उन की बेटी कीर्ति अपने हाथों में मिर्च का पाउडर ले आई और मां की आंखों में झोंक कर उन की छाती पर सवार हो गई. इस के बाद उस ने अपनी चुन्नी मां के गले में डाल दी. तभी शशिकुमार भी वहां आ गया. दोनों ने मिल कर उन का गला घोंट दिया. मां की हत्या करते समय कीर्ति मुसकराती रही. पल्लेरला रंजीता की हत्या के बाद दोनों ने चैन की सांस ली, क्योंकि अब उन्हें रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. उन्होंने लाश चादर में लपेट कर घर के एक कोने में छिपा दी. दोनों ने पहले जम कर तनमन की प्यास बुझाई और फिर पुलिस थाने में जा कर शिकायत दर्ज करवा दी.

3 दिनों तक लाश घर में ही रही. जब उस से सड़ने की गंध फैलने लगी, तब उन्हें शव को ठिकाने लगाने की चिंता सताने लगी. सब से पहले उन्होंने आत्महत्या का रूप देने के लिए लाश के गले में रस्सी बांध कर उसे पंखे से लटकाने की कोशिश की, लेकिन तब तक लाश काफी डैमेज हो चुकी थी. इसलिए वह ऐसा नहीं कर सके. इस के बाद उन्होंने उसे बाहर ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. 22 अक्तूबर, 2019 को शशिकुमार ने रात 12 बजे के करीब अपनी कार में पल्लेरला रंजीता की लाश रखी और कीर्ति के साथ उसे रमन्नापेट के नजदीक टुम्मालागूडेम के रेलवे ट्रैक पर ले गया. वहां दोनों ने कार से उतार कर लाश ट्रैक पर डाल दी ताकि ट्रेन हादसा लगे. जिस चादर में लाश लपेटी गई थी, वह चादर और रस्सी रास्ते में फेंक दी मां का मोबाइल फोन कीर्ति ने स्विच्ड औफ कर के अपने पास रख लिया था.

हत्या जैसे जघन्य अपराध के सारे सबूत मिटाने के बाद कीर्ति ने 23 अक्तूबर, 2019 को अपनी मां रंजीता रेड्डी के मोबाइल से अपनी होने वाली ससुराल में बाला के पिता कृष्णा से बात कर कहा, ‘‘समधीजी, मैं अपनी बीमारी का इलाज कराने के लिए नालकोंडा अस्पताल जा रही हूं, तब तक हमारी बेटी कीर्ति आप के यहां रहे तो आप को कोई परेशानी तो नहीं होगी.’’

कृष्णा रेड्डी ने समझा कि फोन नंबर उन की समधिन पल्लेरला रंजीता का है, इसलिए उन्होंने कह दिया कि बिटिया को आप बिना किसी चिंता के यहां भेज दो. इस के बाद 24-25 अक्तूबर को कीर्ति बाला रेड्डी के यहां रही. वहां जाने से पहले उस ने अपने पड़ोसियों व नातेरिश्तेदारों में यह अफवाह फैला दी थी कि उसे विशाखापट्टनम में कुछ काम के लिए जाना पड़ रहा है. कीर्ति और उस के दोस्त शशिकुमार ने पल्लेरला रंजीता की हत्या का जो फूलप्रूफ प्लान तैयार किया था, वह पुलिस जांचपड़ताल में खुल कर सामने आ गया. उधर रमन्नापेट रेलवे स्टेशन के नजदीक शशिकुमार ने पल्लेरला रंजीता की जो लाश फेंकी थी, वह जीआरपी ने बरामद की थी. लेकिन शिनाख्त न होने के कारण लाश का पोस्टमार्टम कराने के बाद पुलिस ने अंतिम संस्कार कर दिया था.

कीर्ति रेड्डी से विस्तृत पूछताछ के बाद क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर सतीश ने 28 अक्तूबर, 2019 की सुबह कोथा शशिकुमार को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने नाबालिग उम्र में कीर्ति को गर्भवती करने वाले चिमूला बाल रेड्डी को रेप करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. तीनों अभियुक्तों से पूछताछ के बाद उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 376 (2), 312 और 383एन के अंतर्गत केस दर्ज कर लिया गया था. साथ ही पोक्सो एक्ट के अंतर्गत भी मामला दर्ज किया गया. तीनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

 

Love Crime : ब्लैकमेल से परेशान प्रेमी ने शादीशुदा प्रेमिका का किया कत्ल

Love Crime : कंचन शादीशुदा थी. उस के मायके वालों और ससुराल पक्ष, खासकर पति ने उसे हौस्टल में रह कर एएनएम का कोर्स करने की इजाजत दी तो उसे उन लोगों का मान रखना चाहिए था. लेकिन कंचन ने जब पूर्वप्रेमी आनंद किशोर के साथ रंगरलियां मनानी शुरू कीं तो…

सैफई थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव अपने कक्ष में बैठे थे, तभी 30-32 साल का एक युवक उन के पास आया. वह घबराया हुआ था. उस के माथे पर भय और चिंता की लकीरें थीं. थानाप्रभारी के पूछने पर उस ने बताया, ‘‘सर, मेरा नाम अनुपम है. मैं मूलरूप से मैनपुरी जिले के किशनी थानांतर्गत गांव खड़ेपुर का रहने वाला हूं. मेरी पत्नी कंचन सैफई के चिकित्सा विश्वविद्यालय के पैरा मैडिकल कालेज में हौस्टल में रह कर नर्सिंग की

पढ़ाई कर रही थी. 2 दिनों से वह लापता है. उस का कहीं भी पता नहीं चल

रहा है.’’

‘‘तुम ने पता करने की कोशिश की कि वह अचानक कहां लापता हो गई?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, मैं गुरुग्राम (हरियाणा) में प्राइवेट नौकरी करता हूं. कंचन से मेरी हर रोज बात होती थी. 24 सितंबर, 2019 को भी दोपहर करीब पौने 2 बजे मेरी उस से बात हुई थी. लेकिन उस के बाद बात नहीं हुई. मैं शाम से ले कर देर रात तक उस से बात करने की कोशिश करता रहा, पर उस का फोन बंद था.

‘‘आशंका हुई तो मैं सैफई आ कर हौस्टल गया तो पता चला कि कंचन 24 सितंबर को 2 बजे हौस्टल से यह कह कर निकली थी कि वह अस्पताल जा रही है. उस के बाद वह हौस्टल नहीं लौटी. इस के बाद मैं ने कंचन की हर संभावित जगह पर खोज की लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. सर, आप मेरी रिपोर्ट दर्ज कर मेरी पत्नी को खोजने में मदद करें.’’ अनुपम ने कहा. सैफई मैडिकल कालेज के हौस्टल से नर्सिंग छात्रा का अचानक गायब हो जाना वास्तव में एक गंभीर मामला था. थानाप्रभारी चंद्रदेव ने आननफानन में कंचन की गुमशुदगी दर्ज कर सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी. यह 26 सितंबर, 2019 की बात है.

इस के बाद थानाप्रभारी ने अनुपम से पूछा, ‘‘अनुपम, तुम्हारी पत्नी का चरित्र कैसा था? कहीं उस का किसी से कोई चक्कर तो नहीं चल रहा था?’’

‘‘नहीं सर, उस का चरित्र ठीकठाक था. वैसे भी वह अपना कैरियर दांव पर लगा कर किसी के साथ नहीं जा सकती.’’ अनुपम बोला, ‘‘सर, मुझे लगता है कि गलत इरादे से किसी ने उस का अपरहण कर लिया है.’’

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’ यादव ने अनुपम से पूछा.

‘‘नहीं सर, मेरा किसी से झगड़ा नहीं है. इसलिए किसी पर शक भी नहीं है.’’ अनुपम ने बताया.

अनुपम से पूछताछ के बाद चंद्रदेव यादव सैफई मैडिकल कालेज पहुंचे. वहां जा कर उन्होंने हौस्टल की वार्डन भारती से पूछताछ की. भारती ने बताया कि कंचन का व्यवहार बहुत अच्छा था. वह अपनी साथी छात्राओं के साथ मिलजुल कर रहती थी. 24 सितंबर को दोपहर 2 बजे वह हौस्टल से अस्पताल गई थी, लेकिन अस्पताल नहीं पहुंची. हौस्टल और अस्पताल के बीच उस के साथ कुछ हुआ है. उस का मोबाइल फोन भी बंद है. अस्पताल प्रशासन भी अपने स्तर से कंचन की खोज में जुटा है. पर उस का पता नहीं चल पा रहा है.

थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव ने मैडिकल कालेज में जांचपड़ताल की तो पता चला कालेज में कंचन ने वर्ष 2017-18 सत्र में एएनएम प्रशिक्षण हेतु नर्सिंग छात्रा के रूप में प्रवेश लिया था. वह इस साल अंतिम वर्ष की छात्रा थी. वह व्यवहारकुशल थी. यादव ने कंचन के साथ प्रशिक्षण प्राप्त कर रही कई छात्राओं से पूछताछ की तो उन्होंने उसे बेहद शालीन और मृदुभाषी बताया. साथी छात्राओं ने इस बात को भी नकारा कि उस का किसी से विशेष मेलजोल था.

थानाप्रभारी ने हौस्टल वार्डन भारती के सहयोग से कंचन के हौस्टल रूम की तलाशी ली, लेकिन रूम में कोई संदिग्ध चीज नहीं मिली. न ही कोई ऐसा प्रेमपत्र मिला, जिस से पता चलता कि उस का किसी से प्रेम संबंध था. हौस्टल व कालेज के बाहर कई दुकानदारों से भी यादव ने पूछताछ की लेकिन उन्हें कंचन के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर कंचन कहां चली गई. थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव ने कंचन की ससुराल खड़ेपुर जा कर उस के ससुराल वालों से पूछताछ की, लेकिन उन्होंने पुलिस का सहयोग नहीं किया. उन्होंने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि कंचन ससुराल में बहुत कम रही है. वह या तो मायके में रही या फिर हौस्टल में. इसलिए उस के बारे में कुछ भी नहीं बता सकते.

कंचन का मायका इटावा जिले के थाना जसवंत नगर के गांव जगसौरा में था. यादव जगसौरा पहुंचे और कंचन के पिता शिवपूजन तथा मां उमादेवी से पूछताछ की. कंचन के मातापिता के लापता होने से दुखी तो थे, लेकिन उस के संबंध में जानकारी देने में संकोच कर रहे थे. जब वहां से भी कंचन के बारे में कोई काम की बात पता नहीं चली तो वह थाने लौट आए. अनुपम, पत्नी के लापता होने से बेहद परेशान था. जसवंत नगर, सैफई, इटावा जहां से भी अखबार के माध्यम से उसे अज्ञात महिला की लाश मिलने की खबर मिलती, वह वहां पहुंच जाता. धीरेधीरे 10 दिन बीत गए. लेकिन पुलिस कंचन का पता लगाने में नाकाम रही. अनुपम हर दूसरेतीसरे दिन थाना सैफई पहुंच जाता और पत्नी के संबंध में थानाप्रभारी से सवालजवाब करता. चंद्रदेव उसे सांत्वना दे कर भेज देते थे.

जब अनुपम के सब्र का बांध टूट गया तो वह एसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह के औफिस पहुंचा. उस ने उन्हें अपनी पत्नी के गायब होने की बात बता दी. नर्सिंग छात्रा कंचन के लापता होने की जानकारी ओमवीर सिंह को पहले से ही थी. वह इस मामले की मौनिटरिंग भी कर रहे थे, ओमवीर सिंह ने अनुपम को आश्वासन दिया कि पुलिस जल्द ही उस की लापता पत्नी की खोज करेगी. आश्वासन पा कर अनुपम वापस लौट आया. एसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह ने लापता कंचन को खोजने के लिए एक विशेष टीम का गठन किया. इस टीम में उन्होंने सैफई थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव, एसआई राजवीर सिंह, वासुदेव सिंह, विपिन कुमार, महिला एसआई अंजलि तिवारी, सर्विलांस प्रभारी सत्येंद्र सिंह, कांस्टेबल अभिनव यादव तथा सर्वेश कुमार को शामिल किया. टीम की कमान खुद एसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह ने संभाली.

विशेष टीम ने सब से पहले कंचन के पति अनुपम तथा उस के मातापिता से पूछताछ की. इस के बाद टीम ने कंचन के मातापिता तथा पड़ोस के लोगों से जानकारी हासिल की. टीम को आशंका थी कि कंचन का अपहरण दुष्कर्म करने के लिए किया जा सकता है. अत: टीम ने क्षेत्र के इस प्रवृत्ति के कुछ अपराधियों को पकड़ कर उन से पूछताछ की, लेकिन कंचन के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. सर्विलांस प्रभारी सत्येंद्र सिंह ने कंचन का मोबाइल फोन नंबर सर्विलांस पर लगा दिया, ताकि कोई जानकारी मिल सके पर मोबाइल फोन बंद होने से कोई जानकारी नहीं मिल सकी. इधर थानाप्रभारी, एसआई अंजलि तिवारी व टीम के अन्य सदस्यों के साथ मैडिकल कालेज पहुंचे और कंचन के हौस्टल रूम की एक बार फिर छानबीन की. गहन छानबीन के दौरान उन्हें वहां मोबाइल फोन के 2 खाली डिब्बे मिले. दोनों डिब्बे उन्होंने सुरक्षित रख लिए.

टीम ने सैफई मैडिकल यूनिवर्सिटी के कुलसचिव सुरेशचंद्र शर्मा से भी बात की. साथ ही अन्य कई लोगों से भी कंचन के संबंध में जानकारी जुटाई. कुलसचिव कहा कि वह स्वयं भी कंचन के लापता होने से चिंतित हैं, क्योंकि यह उन की प्रतिष्ठा का सवाल है. महिला एसआई अंजलि तिवारी ने कंचन के हौस्टल रूम से बरामद दोनों डिब्बों पर अंकित आईएमईआई नंबरों की जांच की तो पता चला कि इन आईएमईआई नंबरों के दोनों फोनों में 2 सिम नंबर काम कर रहे थे. एक फोन का सिम कंचन के नाम से खरीदा गया था, जबकि दूसरा आनंद किशोर पुत्र हाकिम सिंह, निवासी नगला महाजीत सिविल लाइंस इटावा के नाम से खरीदा गया था.

पुलिस टीम 12 अक्तूबर, 2019 की रात को आनंद किशोर के घर पहुंच गई. वह घर पर ही मिल गया तो पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. थाना सैफई ला कर आनंद किशोर से पूछताछ शुरू की गई. तब आनंद किशोर ने बताया, ‘‘सर, मैं किसी कंचन नाम की लड़की को नहीं जानता.’’

‘‘तुम सरासर झूठ बोल रहे हो. तुम कंचन को अच्छी तरह जानते हो. तुम्हारे द्वारा दिया गया मोबाइल फोन का डिब्बा उस के हौस्टल रूम से बरामद हुआ है. अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि सारी सच्चाई बता दो वरना…’’

थानाप्रभारी चंद्रदेव का कड़ा रुख देख कर आनंद किशोर डर गया. वह बोला, ‘‘सर, यह सच है कि मैं ने ही बात करने के लिए उसे मोबाइल फोन खरीद कर दिया था.’’

‘‘तो बताओ कंचन कहां है? उसे तुम ने कहां छिपा कर रखा है?’’ यादव ने पूछा.

‘‘सर, कंचन अब इस दुनिया में नहीं है. मैं ने उस की हत्या कर दी है.’’ आनंद ने बताया.

‘‘क्याऽऽ कंचन को मार डाला?’’ वह चौंके.

‘‘हां सर, मैं ने कचंन की हत्या कर दी है. मैं जुर्म कबूल करता हूं.’’

‘‘उस की लाश कहां है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, लाश मैं ने भितौरा नहर में फेंक दी थी. फिर उस के दोनों मोबाइल तोड़ कर जगसौरा बंबा के पास फेंक दिए थे. खून से सने अपने कपड़े, शर्ट, पैंट तथा तौलिया भी वहीं जला दिए थे, चाकू भी वहीं फेंक दिया था.’’

इस के बाद पुलिस टीम ने आनंद किशोर की निशानदेही पर जगसौरा बंबा के पास से 2 टूटे मोबाइल तथा आलाकत्ल चाकू बरामद कर लिया. इस के बाद पुलिस टीम आनंद किशोर को साथ ले कर जसवंत नगर क्षेत्र की भितौरा नहर पहुंची. वहां आनंद किशोर ने नहर किनारे जलाए गए अधजले कपड़े बरामद करा दिए. हत्या में इस्तेमाल आनंद किशोर की ओमनी कार भी पुलिस ने उस के घर से बरामद कर ली. आनंद किशोर की निशानदेही पर पुलिस ने अब तक मोबाइल फोन, चाकू, अधजले कपडे़ तथा हत्या में प्रयुक्त कार तो बरामद कर ली थी, लेकिन कंचन की लाश बरामद नहीं हो पाई थी.

अत: लाश बरामद करने के लिए पुलिस आनंद को एक बार फिर भितौरा नहर ले गई, जहां उस ने लाश फेंकने की बात कही थी, वहां तलाश कराई. लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी कंचन की लाश बरामद नहीं हो सकी. चूंकि आनंद किशोर ने कंचन की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था और हत्या में इस्तेमाल कार तथा चाकू भी बरामद करा दिया था, इसलिए थानाप्रभारी चंद्रदेव यादव ने गुमशुदगी के इस मामले को हत्या में तरमीम कर दिया और भादंवि की धारा 302, 201 के तहत आनंद किशोर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

थानाप्रभारी ने कंचन की हत्या का परदाफाश करने तथा उस के कातिल को पकड़ने की जानकारी एसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह को दे दी. उन्होंने पुलिस लाइंस सभागार में प्रैसवार्ता की और हत्यारोपी को मीडिया के सामने पेश कर नर्सिंग छात्रा कंचन की हत्या का खुलासा कर दिया. उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के थाना जसवंतनगर क्षेत्र में एक गांव है जगसौरा. इसी गांव में शिवपूजन अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी उमा देवी के अलावा 2 बेटियां कंचन, सुमन तथा एक बेटा राहुल था. शिवपूजन खेतीकिसानी करते थे. उन की आर्थिक स्थिति सामान्य थी. शिवपूजन के तीनों बच्चों में कंचन सब से बड़ी थी. वह खूबसूरत तो थी ही, पढ़नेलिखने में भी तेज थी. उस ने गवर्नमेंट गर्ल्स इंटर कालेज जसवंतनगर से इंटरमीडिएट साइंस विषय से प्रथम श्रेणी में पास किया था.

कंचन पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी, जबकि उस की मां उमा देवी उस की पढ़ाई बंद कर के कामकाज में लगाना चाहती थी. उमा देवी का मानना था कि ज्यादा पढ़ीलिखी लड़की के लिए घरवर तलाशने में परेशानी होती है. लेकिन बेटी की जिद के आगे उसे झुकना पड़ा. कंचन ने इटावा के महिला महाविद्यालय में बीएससी में दाखिला ले लिया. बीएससी की पढ़ाई के दौरान ही एक रोज कंचन की निगाह अखबार में छपे विज्ञापन पर पड़ी. विज्ञापन द्रोपदी देवी इंटर कालेज नगला महाजीत सिविल लाइंस, इटावा से संबंधित था. कालेज को जूनियर सेक्शन में विज्ञान शिक्षिका की आवश्यकता थी.

विज्ञापन पढ़ने के बाद कंचन ने शिक्षिका पद के लिए आवेदन करने का निश्चय किया. उस ने सोचा कि पढ़ाने से एक तो उस का ज्ञानवर्द्धन होगा, दूसरे उस के खर्चे लायक पैसे भी मिल जाएंगे. कंचन ने अपने मातापिता से इस नौकरी के लिए अनुमति मांगी तो उन्होंने उसे अनुमति दे दी. कंचन ने द्रोपदी देवी इंटर कालेज में शिक्षिका पद हेतु आवेदन किया तो प्रबंधक हाकिम सिंह ने उस का चयन कर लिया. हाकिम सिंह इटावा शहर के सिविल लाइंस थानांतर्गत नगला महाजीत में रहते थे. यह उन का ही कालेज था. कंचन इस कालेज में कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों को विज्ञान पढ़ाने लगी. कंचन पढ़नेपढ़ाने में लगनशील थी, इसलिए कुछ महीने बाद वह बच्चों की प्रिय टीचर बन गई.

इसी स्कूल में एक रोज आनंद किशोर की निगाह खूबसूरत कंचन पर पड़ी. आनंद किशोर कालेज प्रबंधक हाकिम सिंह का बेटा था. हाकिम सिंह कालेज के प्रबंधक जरूर थे, लेकिन कालेज की देखरेख आनंद किशोर ही करता था. कंचन हुस्न और शबाब की बेमिसाल मूरत थी. उसे देख कर आनंद किशोर उस पर मोहित हो गया. वह उसे दिलोजान से चाहने लगा. कंचन यह जानती थी कि आनंद किशोर कालेज मालिक का बेटा है, इसलिए उस ने भी उस की तरफ कदम बढ़ाने में अपनी भलाई समझी. उसे लगा कि आनंद ही उस के सपनों का राजकुमार है. जब चाहतें दोनों की पैदा हुईं तो प्यार का बीज अंकुरित हो गया.

कंचन आनंद के साथ घूमनेफिरने लगी. इस दौरान उन के बीच अवैध संबंध भी बन गए. आनंद के प्यार में कंचन ऐसी दीवानी हुई कि घर भी देरसवेर पहुंचने लगी. मां उसे टोकती तो कोई न कोई बहाना बना देती. उमा देवी उस की बात पर सहज ही विश्वास कर लेती थी. लेकिन विश्वास की भी कोई सीमा होती है. कंचन जब आए दिन देरी से घर पहुंचने लगी तो उमा देवी का माथा ठनका. उस ने पति शिवपूजन को कंचन पर नजर रखने को कहा. शिवपूजन ने कंचन की निगरानी की तो जल्द ही सच्चाई सामने आ गई. उन्हें पता चला कि कंचन कालेज प्रबंधक के बेटे आनंद किशोर के प्रेम जाल में फंस गई है और उसी के साथ गुलछर्रे उड़ाती है.

शिवपूजन ने इस सच्चाई से पत्नी को अवगत कराया तो उमा देवी ने माथा पीट लिया. पतिपत्नी ने इस मुद्दे पर विचारविमर्श किया और बदनामी से बचने के लिए कंचन का विवाह जल्दी करने का निश्चय किया. तब तक कंचन बीएससी पास कर चुकी थी, इसलिए मां ने एक दिन उस से कहा, ‘‘कंचन, अब तेरा बीएससी पूरा हो चुका है. अब स्कूल में पढ़ाना छोड़ दे. प्राइवेट नौकरी से तेरा भला होने वाला नहीं है.’’

कंचन ने कुछ कहना चाहा तो मां ने बात साफ कर दी, ‘‘क्या यह सच नहीं है कि तेरे और आनंद के बीच गलत रिश्ता है. तुम दोनों के प्यार के चर्चे पूरे स्कूल में हो रहे हैं, इसलिए अब तू उस स्कूल में पढ़ाने नहीं जाएगी.’’

उमा देवी ने जो कहा था, वह सच था. स्कूल प्रबंधक हाकिम सिंह भी उसे सावधान कर चुके थे. पर अपने बेटे आनंद के कारण वह उसे स्कूल से निकाल नहीं पा रहे थे. चूंकि सच्चाई सामने आ गई थी. इसलिए कंचन ने भी स्कूल छोड़ने का मन बना लिया. उस ने इस बात से आनंद किशोर को भी अवगत करा दिया. चूंकि बेटी के बहकते कदमों से शिवपूजन परेशान थे, इसलिए उन्होंने कंचन के लिए घरवर की तलाश शुरू कर दी. कुछ महीने की भागदौड़ के बाद उन्हें एक लड़का पसंद आ गया. लड़के का नाम था अनुपम कुमार.

अनुपम कुमार के पिता रामशरण मैनपुरी जिले के किशनी थानांतर्गत गांव खड़ेपुर के रहने वाले थे. 3 भाईबहनों में अनुपम कुमार सब से बड़ा था. रामशरण के पास 5 बीघा जमीन थी. उसी की उपज से परिवार का भरणपोषण होता था. अनुपम गुरुग्राम (हरियाणा) में प्राइवेट नौकरी करता था. दोनों तरफ से बातचीत हो जाने के बाद 7 फरवरी, 2014 को धूमधाम से कंचन का विवाह अनुपम के साथ हो गया. शादी के एक महीने बाद जब अनुपम नौकरी पर चला गया तो कंचन मायके आ गई. कंचन कुछ दिन बाद आनंद से मिली तो उस ने शादी करने को ले कर शिकवाशिकायत की. कंचन ने उसे धीरज बंधाया कि जिस तरह वह उसे शादी के पहले प्यार करती थी, वैसा ही करती रहेगी.

कंचन जब भी मायके आती, आनंद के साथ खूब मौजमस्ती करती. आनंद किशोर के माध्यम से कंचन अपना भविष्य भी बनाना चाहती थी, वह मैडिकल लाइन में जाने के लिए प्रयासरत थी. दरअसल, वह एएनएम बनना चाहती थी. इधर पिता के दबाव में आनंद किशोर ने भी ऊषा नाम की खूबसूरत युवती से शादी कर ली. लेकिन खूबसूरत पत्नी पा कर भी आनंद किशोर कंचन को नहीं भुला पाया. वह उस से संपर्क बनाए रहा. आनंद किशोर के पास ओमनी कार थी. इसी कार से वह कंचन को कभी आगरा तो कभी बटेश्वर घुमाने ले जाता था. आनंद की पत्नी ऊषा को उस के और कंचन के नाजायज रिश्तों की जानकारी नहीं थी. वह तो पति को दूध का धुला समझती थी.

सन 2017-18 में कंचन का चयन बीएससी नर्सिंग के 2 वर्षीय एएनएम प्रशिक्षण के लिए हो गया. सैफई मैडिकल कालेज में कंचन एएनएम की ट्रैनिंग करने लगी. वह वहीं के हौस्टल में रहने भी लगी. कंचन का जब कहीं बाहर घूमने का मन करता तो वह प्रेमी आनंद को फोन कर बुला लेती थी. आनंद अपनी कार ले कर कंचन के मैडिकल कालेज पहुंच जाता, फिर दोनों दिन भर मस्ती करते. आनंद कंचन की भरपूर आर्थिक भी मदद करता था और उस की सभी डिमांड भी पूरी करता था. आनंद ने कंचन को एक महंगा मोबाइल भी खरीद कर दिया था. इसी मोबाइल से वह आनंद से बात करती थी.

कंचन आनंद किशोर से प्यार जरूर करती थी, लेकिन उस का अपने पति अनुपम कुमार से भी खूब लगाव था. वह हर रोज पति से बतियाती थी. अनुपम भी उस से मिलने उस के कालेज आताजाता रहता था. इस तरह कंचन ने एएनएम प्रथम वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त कर द्वितीय वर्ष में प्रवेश ले लिया. कंचन और उस के प्रेमी आनंद किशोर के रिश्तों में दरार तब पड़ी, जब आनंद ने शहरी क्षेत्र में 5-6 लाख की जमीन अपनी पत्नी ऊषा के नाम खरीदी. यह जमीन खरीदने की जानकारी जब कंचन को हुई तो उस ने विरोध जताया, ‘‘आनंद, ऊषा तुम्हारी घरवाली है तो मैं भी तो बाहरवाली हूं. मुझे भी 3 लाख रुपए चाहिए.’’

धीरेधीरे कंचन आनंद को ब्लैकमेल करने पर उतर आई. अब जब भी दोनों मिलते, कंचन रुपयों की डिमांड करती. असमर्थता जताने पर कंचन दोनों के रिश्तों को सार्वजनिक करने तथा ऊषा को सब कुछ बताने की धमकी देती. कंचन की ब्लैकमेलिंग और धमकी से आनंद घबरा गया. आखिर उस ने इस समस्या से निजात पाने के लिए कंचन की हत्या करने की योजना बना ली. 24 सितंबर, 2019 की दोपहर आनंद किशोर ने कंचन को घूमने के लिए राजी किया. फिर पौने 2 बजे वह अपनी कार ले कर सैफई मैडिकल कालेज पहुंच गया. कंचन हौस्टल से यह कह कर निकली कि वह हौस्पिटल जा रही है. लेकिन वह आनंद किशोर की कार में बैठ कर घूमने निकल गई. आनंद उसे बटेश्वर ले कर गया और कई घंटे सैरसपाटा कराता रहा.

वापस लौटते समय कंचन ने उस से पैसों की डिमांड की. इस बात को ले कर दोनों में कहासुनी भी हुई. तब तक शाम के 7 बज चुके थे और अंधेरा छाने लगा था. आनंद किशोर ने अपनी कार जसवंतनगर क्षेत्र के भितौरा नहर पर रोकी और फिर सीट पर बैठी कंचन को दबोच कर उसे चाकू से गोद डाला. हत्या करने के बाद उस ने कंचन के शव को नहर में फेंक दिया. फिर वहीं नहर की पटरी किनारे खून से सने कपडे़ जला दिए. वहां से चल कर आनंद ने जगसौरा बंबा पर कार रोकी. वहां उस ने कंचन के दोनों मोबाइल फोन तोड़ कर झाड़ी में फेंक दिए. साथ ही खून सना चाकू भी झाड़ी में फेंक दिया. इस के बाद वह वापस घर आ गया. किसी को कानोंकान खबर नहीं लगी कि उस ने हत्या जैसी वारदात को अंजाम दिया है.

24 सितंबर को करीब पौने 2 बजे अनुपम कुमार की कंचन से बात हुई थी. उस के बाद जब बात नहीं हुई तो वह सैफई आ गया और कंचन की गुमशुदगी दर्ज कराई. सैफई पुलिस 18 दिनों तक लापता कंचन का पता लगाने में जुटी रही. उस के बाद हत्या का खुलासा हुआ. लेकिन कंचन की लाश फिर भी बरामद नहीं हुई. 14 अक्तूबर, 2019 को थाना सैफई पुलिस ने हत्यारोपी आनंद किशोर को इटावा कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट ए.के. सिंह की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. सैफई पुलिस कंचन की लाश बरामद करने के प्रयास में जुटी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 Facebook पर रिक्वेस्ट भेज पाकिस्तानी जासूस लड़कियां भारत के अधिकारियों को फंसाती

फेसबुक  (Facebook) और वाट्सऐप सोशल मीडिया के ऐसे आसान और सर्वसुलभ साधन हैं, जो परिचितों, मित्रों से निरंतर संपर्क बनाए रखने का जरिया तो हैं ही, लेकिन अब इन माध्यमों का उपयोग जासूसी के लिए भी होने लगा है. उत्तर प्रदेश एटीएस ने ऐसे ही मामले का भंडाफोड़ किया…   

दे के लिए रक्षा उपकरण बनाने वाली कंपनी में काम करने वाले विकास को इस बात का पता तक नहीं था कि वह एक विदेशी युवती के चक्कर में फंस कर हनीट्रैप का शिकार हो रहा है. सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले तमाम भारतीयों की तरह विकास भी खाली समय में फेसबुक पर एक्टिव हो जाता था. एक दिन फेसबुक पर उसे एक पाकिस्तानी युवती सना और एक कश्मीरी युवती की फ्रैंड रिक्वेस्ट मिली. अधिकांश युवक लड़कियों से दोस्ती करना पसंद करते हैं. विकास को भी लड़कियों से दोस्ती करना अच्छा लगता था, इसलिए उस ने दोनों की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली.

उन युवतियों के विकास के अलावा भारत में अन्य दोस्त भी थे. दोनों लड़कियां अपने उन दोस्तों के बारे में भी विकास से बातें किया करती थीं. धीरेधीरे उन के बीच आपस में निजी बातें होने लगीं. दोस्ती, लाइफस्टाइल और एकदूसरे की हौबीज से शुरू हुई बातचीत में कभीकभी काम के बारे में ज्यादा बात हो जाती थी. विदेशी युवतियां बातचीत में इतनी माहिर थीं कि उन की हकीकत का पता ही नहीं चला. वह अकसर रात में ही बात करती थीं. ज्यादातर बातें आपसी पसंदनापसंद की होती थीं. विकास को यह पता भी नहीं था कि इस के पीछे कोई वजह हो सकती है. कुछ दिन की बातचीत से विकास को यह अनुभव हो रहा था कि उस की महिला दोस्त उस के कामकाज के बारे में ज्यादा बात करती हैं. एक बार पाकिस्तानी महिला दोस्त सना ने उस से पूछा, ‘‘विकास, तुम अपने औफिस में क्याक्या करते हो?’’

‘‘मैं औफिस में डिजाइन वर्क देखता हूं. यह बहुत महत्त्वपूर्ण होता है. इस में मैं कई लोगों को सहयोग भी करता हूं.’’ विकास ने उसे बताया.

‘‘अच्छा, कभी हमें भी अपने डिजाइन दिखाओ. हम भी देखें कि तुम कैसे डिजाइन करते हो?’’ सना ने कहा.

‘‘नहीं भाई, यह बहुत ही कौन्फीडेंशियल होता है. हर किसी को नहीं दिखाया जा सकता.’’ कह कर विकास ने बात टाल दी.

कुछ दिन शांत रह कर सना ने इधरउधर की बातें कीं और फिर एक दिन वह घूमफिर कर डिजाइन और उस के काम की चर्चा करने लगी. विकास यह तो समझ रहा था कि इस तरह की जानकारी किसी को नहीं देनी चाहिए, पर वह सना की बातों में फंस जाता था. सना को वह इतना पसंद करता था कि वह उस से बातचीत किए बिना अधूराअधूरा महसूस करता था. उन के बीच वीडियो कौलिंग भी होने लगी थी. सना की अंगरेजी भाषा पर अच्छी पकड़ थी. वह फर्राटेदार अंगरेजी बोलती थी. इस के अलावा जब वह विकास से बात करती तो उस की बातों में अपनत्व झलकता था. वह उसे अपने फोटो भी भेजती थी. अलगअलग रोमांटिक अंदाज में खींचे गए उस के फोटो विकास के दिल में हलचल पैदा कर देते थे.

विकास को उस पर किसी तरह की शंका हो, इस के लिए सना अपने घरपरिवार के बारे में भी विकास को बताती थी. उस ने खुद को अविवाहित बताया था. विकास से वह भारत की बहुत तारीफ करती थी. कई बार वह विकास को यह भी बता चुकी थी कि इस बार वह ईद के मौके पर भारत घूमने आएगी. तब दोनों खूब घूमेंगे और मस्ती करेंगे. सना की यह बात सुन कर विकास मानो आसमान में उड़ने लगा था. उस ने उसी समय तय कर लिया था कि वह सना को घुमाने कहांकहां ले कर जाएगा.

विकास ने उस से कहा, ‘‘सना, वैसे तो हमें लंबी छुट्टी नहीं मिलती, क्योंकि आजकल हम लोग बहुत ही खास मिशन पर काम कर रहे हैं. लेकिन जब तुम भारत आओगी तो हम तुम्हारे साथ घूमने जरूर चलेंगे. मेरे लिए तुम्हारे साथ घूमना सपने जैसा है.’’

‘‘विकास, तुम चिंता मत करो, मैं जब भारत आऊंगी तो दोनों खूब ऐश करेंगे. तुम्हें तो पता ही है कि भारत पाकिस्तान में रहने वालों की बात छोड़ दी जाए तो बाकी देशों के लोग कितना घूमते हैं. केवल हम लोगों के ही पास घूमने और मजे करने का समय नहीं होता

‘‘तुम चिंता मत करो, बस अपनी बातें मुझ से शेयर करते रहो. इस तरह बातचीत करते रहने से हमारी दोस्ती मजबूत होती रहेगी.’’ सना ने विकास को समझाने की पूरी कोशिश की. विकास को अब सना की बातों में सच्चाई नजर आने लगी थी. वह उस के और करीब जाने लगा. अब वह अपने औफिस की बातें भी सना से शेयर करने लगा. बीचबीच में वह अपने काम के फोटो भी सना से शेयर करता थासना भी विकास की पर्सनल बातों से अधिक औफिस के कामों में रुचि लेने लगी थी. सना के साथ ही साथ एक और लड़की से भी उस की दोस्ती हो गई, जिस का नाम निक्की था. निक्की खुद को कश्मीरी बताती थी.

निक्की की बातों का फोकस कश्मीर को ले कर चल रही भारत की गतिविधियों पर था. वह उसे अपने बहुत ही ग्लैमरस फोटो भेजा करती थी. कई बार तो विकास अपनी तरफ से डिमांड कर देता था कि इस तरह की फोटो भेजो. निक्की उसे उसी तरह के फोटो भेज देती थीनिक्की हर दिन नए अंदाज में फोटो भेजने में माहिर थी. ऐसे में विकास जल्दी ही उस के जाल में फंस गया. वह यह पूछा करती थी कि कश्मीर में युद्ध कैसे होता है. वहां के लिए कैसी तैयारी होती है. इन सवालों से विकास को यह समझ गया कि वह किसी जाल में फंसता जा रहा है, इसलिए उस ने निक्की से दूरी बनानी शुरू कर दी.

खुफिया विभाग को इस बात की जानकारी मिल रही थी कि कुछ विदेशी ताकतें भारत की महत्त्वपूर्ण जानकारियां हासिल करने के लिए हनीट्रैप का सहारा ले रही हैं. इस के बाद खुफिया विभाग ने डेढ़ सौ से अधिक फेसबुक खातों को निशाने पर लिया. इस से कई ऐसे खाते मिले जो संदिग्ध लग रहे थे. उत्तर प्रदेश एटीएस और मिलिट्री इंटेलीजेंस ने जासूसी के आरोप में 8 अक्तूबर, 2018 को डीआरडीओ के सीनियर इंजीनियर निशांत को गिरफ्तार किया. आरोप है कि उस ने ब्रह्मोस मिसाइल यूनिट से अहम तकनीकी जानकारियां चोरी कर के अमेरिका और पाकिस्तान में हैंडलर्स तक पहुंचाईं. यह इंजीनियर अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की एक महिला एजेंट के जाल में फंसा था

आरोपी के लैपटौप को चैक किया गया तो उस के लैपटौप में कई संवेदनशील जानकारियां मौजूद थीं. जांच में इस बात की भी पुष्टि हुई कि वह पाकिस्तान के किसी व्यक्ति के साथ फेसबुक पर चैटिंग करता था. आरोपी निशांत अग्रवाल डीआरडीओ के ब्रह्मोस एयरोस्पेस में 4 साल से सीनियर सिस्टम इंजीनियर के पद पर कार्यरत था. वह हाइड्रोलिक न्यूमेटिक्स और वारहेड इंटीग्रेशन प्रोडक्शन डिपार्टमेंट के 40 लोगों की टीम को लीड करता थानिशांत ब्रह्मोस की सीएसआर और आर ऐंड डी ग्रुप का सदस्य भी था. फिलहाल वह ब्रह्मोस के नागपुर और पिलानी साइट्स के प्रोजेक्ट का कामकाज देख रहा था

पिछले साल यूनिट की ओर से उसे युवा वैज्ञानिक का पुरस्कार मिला था. वह बहुत प्रतिभाशाली था. निशांत पर आरोप लगा कि वह सोशल मीडिया से खुफिया एजेंसियों को जानकारी भेजता था. निशांत दिल्ली में मौजूद अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की एजेंट के करीब था. उस की बातचीत पाकिस्तान के हैंडलर से भी होती थी. वह मिसाइल तकनीक की जानकारियां भेजने के लिए सोशल मीडिया के एनक्रिप्टेड कोडवर्ड और गेम के चैट जोन का इस्तेमाल कर रहा था. मामला प्रकाश में आने पर सेना के वरिष्ठ अधिकारी भी इस मामले पर नजर बनाए हुए हैं. जांच एजेंसी यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि आरोपी ने मिसाइल से जुड़ी कौनकौन सी सूचनाएं लीक की हैं. इस से पहले पुलिस ने कानपुर से एक महिला को भी गिरफ्तार किया था.

आईजी (एटीएस) असीम अरुण की अगुआई में कुछ समय पहले एटीएस ने बीएसएफ की एक महिला सिपाही को गिरफ्तार किया था, जिसे फेसबुक से फंसाया गया था. जांच के दौरान 2 फेसबुक की आईडी मिली थीं, जिन के आधार पर एटीएस ने जांच करते हुए गुजरात में निशांत की डिटेल चैक की तो उस के लैपटौप में कई संवेदनशील जानकारियां मिलीं. निशांत रुढ़की का रहने वाला है. उस के पास अतिगोपनीय दस्तावेज थे. उस ने कितने दस्तावेज किसी और को दिए, इस पर जांच चल रही है. उस से फेसबुक के द्वारा संपर्क साधा गया था. वहां से जौब औफर करने के बाद उसे फंसाया गया

उस के पास 2 लड़कियों की फेसबुक आईडी थीं, जो फरजी पाई गईं. इन का आईपी एड्रेस पाकिस्तान का पाया गया. लड़कियों की आईडी के जरिए वह लोगों को अपने जाल में फांसता था. लड़कियों की इन आईडी से किनकिन लोगों से संपर्क किया गया था, पुलिस जांच करने लगी. सेना के जंगी बेड़े में शामिल ब्रह्मोस मिसाइल परमाणु हथियारों के साथ हमला करने में सक्षम है. यह 3700 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से 290 किलोमीटर तक मार करने की क्षमता रखती है. कम ऊंचाई पर उड़ान भरने के कारण यह राडार की पकड़ में भी नहीं आती. इसे डीआरडीओ ने विकसित किया है

ब्रह्मोस मिसाइल को ले कर विदेशियों में एक डर बना हुआ है. ऐसे में वह इस बात की फिराक में रहते हैं कि भारत की रक्षा संबंधी ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल हो सके. आज के दौर में जासूसी करना सरल हो गया है. क्योंकि अब सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए जासूसी होने लगी है. फेसबुक और वाट्सऐप के जरिए लोगों को हनीट्रैप में फंसाना सरल हो गया है. ऐसे में जरूरी है कि कुछ ऐसे उपाय हों, जिस से हमारे खास लोगों को फंसाया जा सके.

   —कहानी में कुछ पात्रों के नाम परिवर्तित हैं