लौरेंस विश्नोई : आखिर क्यों कनाडा ने लगाए भारत सरकार पर गंभीर आरोप

भारत और कनाडा के बीच काफी समय से टकराव चल ही रहा था कि इस बार दोनों देशों के बीच एक नया कूटनीतिक टकराव ने मोड़ ले लिया है. इस टकराव के बाद भारत ने अपने राजनयिकों को सोमवार तक वापस बुलाने का फैसला लिया और कनाडा के राजनयिकों को साफसाफ कह दिया है कि वह 19 अक्तूबर, 2024 तक भारत छोड़ दे.

कनाडा का आरोप

कनाडा ने आरोप लगाया है कि भारत अपने ऐजैंट्स के माध्यम से कनाडा में रहने वाले खालिस्तानी समर्थकों को निशाना बना रहा है, जिस में लौरेंस विश्नोई गैंग की सहायता ली जा रही है. कनाडा की रौयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (RCMP) ने एक प्रैस कान्फ्रैंस का आयोजन किया. इस प्रेस कान्फ्रैंस में आरसीएमपी ने आरोप लगाया कि भारत सरकार के ऐजैंट्स कनाडा में सिख समुदाय और खालिस्तान समर्थक तत्त्वों को अपना निशाना बना रहे हैं.

सच क्या झूठ क्या

इस प्रैस कान्फ्रैंस के दौरान दावा किया गया है कि कनाडा में खालिस्तानी नेता निज्जर की हत्या पिछले साल हुई थी, जिसे भारत सरकार के ऐजैंट ने करवाई. आरसीएमपी ने यह भी कहा कि भारत सरकार विभिन्न संस्थाओं और व्यक्तियों का उपयोग कर जानकारी जुटा रहा है और दक्षिण एशियाई समुदाय के सदस्यों को निशाना बनाया जा रहा है. इन आरोपों को इसलिए देखा जा रहा है कि गुजरात के साबरमती जेल में विश्नोई बंद है.

बाबा सिद्दीकी

मुंबई में एनसीपी के नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद इस मामले ने अब तुल पकड़ लिया है. भारत सरकार की विश्नोई गैंग की गतिविधियों को ले कर चिंता बढ़ती जा रही है क्योंकि विश्नोई गैंग उत्तर भारत के सभी हिस्सों में सक्रिय हो गया है. हालांकि भारत सरकार ने कनाडा के इन सभी आरोपों का विरोध किया और इन सभी आरोपों को बेबुनियाद बताया है.

वोट बैंक की राजनीति

भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने कनाडा सरकार को कई बार साफसाफ दोटूक में कहा है कि खालिस्तानी आतंकवादी निज्जर की हत्या में भारत सरकार का हाथ है तो कोई सुबूत पेश करें, लेकिन कनाडा सरकार अभी तक कोई ठोस सुबूत पेश नहीं कर पाई है.

भारत सरकार ने कहा है कि यह सब कनाडा में होने वाले चुनाव के कारण राजनीतिक मुद्दा फैलाया जा रहा है क्योंकि जस्टिन ट्रूडो इस मुद्दे का फायदा उठा कर सिक्खों को अपनी और कर अपनी जीत हासिल करना चाहते हैं. कनाडा सरकार सिर्फ वोट पाने के लिए वोट बैंक की राजनीति कर रही है.

कुख्यात गैंग्स्टर लौरेंस बिश्नोई की कहानी

मैं हूं डौन…
पहले जहां अपराधी किसी भी क्राइम या घटना को अंजाम देने के बाद छिपतेफिरते थे और चाहते थे कि उन के इस क्राइम के बारे में किसी को पता न चले, वहीं आज एक ऐसा दौर आ चुका है जहां अपराधी क्राइम करने के बाद खुद सोशल मीडिया पर उस क्राइम की जिम्मेदारी लेता है और सरेआम ऐलान करता है कि यह क्राइम हम ने किया है.

यहां बात चल रही है एक ऐसे कुख्यात गैंग्स्टर की जो पिछले कुछ समय से लगातार सुर्खियों में बना हुआ है और जिस ने सोशल मीडिया के जरीए अपनी ऐसी धाक जमा रखी है कि सरकार भी उस का कुछ नहीं कर पा रही. सिद्धू मूसेवाला की हत्या

लौरेंस बिश्नोई (Lawrence Bishnoi) ने अपनी छवि किसी हीरो से कम नहीं बना रखी. यह तब चर्चा में आया जब 29 मई, 2022 को इस के गैंग के शूटरों ने मशहूर पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला (Siddhu Moose wala) की सरेआल गोलियां मार कर हत्या कर दी थीं. इतना ही नहीं, बल्कि इस घटना को अंजाम देने के बाद लौरेंस की गैंग ने खुद सोशल मीडिया पर इस बात की जानकारी दी थी कि सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या उन्होंने ही की है.

खुद को भगत सिंह का फैन मानता है लौरेंस बिश्नोई

लौरेंस बिश्नोई खुद को भगत सिंह (Bhagat Singh) का सब से बड़ा फैन मानता है और अकसर उसे भगत सिंह की टीशर्ट पहने देखा गया है. लौरेंस बिश्नोई जिम का बहुत शौकीन है और जेल के अंदर रह कर भी वह खुद को बहुत फिट रखता है. आमतौर पर लौरेंस बिश्नोई जेल के अंदर रहते हुए ही अपना गैंग चलाता है और इतना ही नहीं बल्कि हाल ही में इस ने जेल के अंदर से ही एक मीडिया चैनल को इंटरव्यू तक दिया था. ऐसे में, जेल प्रशासन पर सब से बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर लौरेंस बिश्नोई जेल के अंदर बैठेबैठे सबकुछ कैसे कर लेता है और आखिरकार उस के पास अपने गैंग के लोगों से बात करने के लिए फोन कैसे आता है.

सलमान खान को सरेआम धमकी

लौरेंस बिश्नोई ने कुछ समय पहले सरेआम मीडिया से बात करते हुए बौलीवुड सुपरस्टार सलमान खान (Salman Khan) को धमकी दी थी कि वे उसे मारना चाहता है. दरअसल, बिश्नोई समाज में हिरण की पूजा की जाती है और हिरण को काफी सम्मान दिया जाता है और ऐसे में सलमान खान के खिलाफ हिरण का शिकार करने का आरोप भी है जिस के चलते लौरेंस बिश्नोई चाहता है कि सलमान खान उस के समाज से माफी मांगे वर्ना वह उसे भी मार डालेगा.

इस के बाद से ऐक्टर सलमान खान की सिक्योरिटी भी बढ़ा दी गई थी लेकिन फिर भी कुछ समय पहले सलमान खान को डराने के लिए लौरेंस बिश्नोई के कुछ लोगों ने सलमान के मुंबई स्थित घर के बाहर गोलियां भी चलाई थीं. बाबा सिद्दिकी की हत्या के पीछे लौरेंस बिश्नोई हाल ही में लौरेंस बिश्नोई के लोगों ने महाराष्ट्र के मशहूर पौलिटिशिन बाबा सिद्दिकी (Baba Siddique) की 12 अक्तूबर, 2024 को गोली मार कर हत्या कर दी और इस का खुलासा भी लौरेंस की गैंग ने खुद सोशल मीडिया पर किया. बाबा सिद्दिकी के बौलीवुड के लोगों के साथ काफी अच्छे रिश्ते थे. इस घटना के बाद से सलमान खान की सिक्योरिटी को और भी ज्यादा बढ़ा दिया गया.

लौरेंस को जेल में नहीं है कोई भी कमी

लौरेंस बिश्नोई का कहना है कि वह या उन की गैंग में से कोई भी कभी पहल नहीं करते और अगर उन के या उन के किसी अपनों के साथ कुछ गलत होगा तो वे बदला जरूर लेंगे और लौरेंस यह बात सरेआल बोलता है. लौरेंस बिश्नोई को देख कर या उस की बातें सुन कर यह कहना काफी मुश्किल है कि उसे जेल में किसी बात की कोई दिक्कत आ रही है, बल्कि ऐसा लगता है कि जेल ही उस का घर बन चुका है और उसे जेल में हर वह सुविधा मिल रही है जो वह चाहता है, तो फिर इस का जिम्मेदार कौन है?

लौरेंस बिश्नोई को देख जेल प्रशासन और सरकार पर काफी सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर एक गैंगस्टर की मनमानी कब तक ऐसे ही चलती रहेगी और क्या वह खुद को डौन मानने लगा है?

संतोष झा और ओमप्रकाश की गैंग वार

संतोष झा और ओमप्रकाश की गैंग वार – भाग 3

जेल से चल रहा था रंगदारी का धंधा

रंगदारी वसूलने का काम तो सालों से जेल में बैठेबैठे चल रहा था. गैंग के 40 से अधिक खूंखार वेतनभोगी साथी बाहर ही थे. इसलिए गैंग का रुतबा अभी भी वैसा ही था. संतोष झा की हत्या के बारे में विचार करने के बाद मुकेश सोचने लगा कि यह काम किसे सौंपा जाए? तभी उसे ओमप्रकाश सिंह उर्फ बाबूसाहब की याद आई.

जेल में ओमप्रकाश सिंह की मुकेश पाठक और संतोष झा से दोस्ती हो गई. इस में मुकेश पाठक से उस की कुछ ज्यादा ही करीबी हो गई थी. उस समय वह बाहर था, इसलिए मुकेश ने अपनी तरह से योजना बनाई और वह पूरा करने की जिम्मेदारी डेविड उर्फ आशीष रंजन और ओमप्रकाश सिंह को सौंपी.

संतोष का एक भरोसेमंद साथी अभिषेक झा भी जेल में था. 16 जुलाई को उस की कोर्ट में पेशी थी. तभी मोतिहारी-ढाका कोर्ट कंपाउंड में मुकेश ने उस की हत्या करा दी. इस सफलता के बाद मुकेश ने संतोष के लिए उसी तरह की योजना बनाई. 28 अगस्त, 2018 को सीतामढ़ी की अदालत में मुकेश पाठक और संतोष झा को हाजिर करना था.

इस के 15 दिन पहले से सीतामढ़ी के एक मकान में तैयारी चल रही थी. मुकेश को पता था कि संतोष और विकास को जब अदालत में ले जाया जाएगा तो उन के चारों ओर सशस्त्र पुलिस की सुरक्षा रहेगी. इसलिए उस की हत्या के लिए सियार और नेवले जैसी फुरती रखने वाले शूटर चाहिए.

इस तरह का एक हीरो मुकेश की नजर में था. नौवीं कक्षा में पढऩे वाला विकास महतो मात्र 15 साल का था, फिर भी उस में हिम्मत और जुनून था. फेसबुक पर एके 47 के साथ फोटो डालने वाला यमराज सिंह शूटर- मोतिहारी का यमराज इस तरह की पहचान बताने वाला विकास झा उर्फ कालिया संतोष का वफादार था.

विकास और शकील को दी संतोष की हत्या की सुपारी

विकास महतो बाल सुधार गृह से कुछ दिनों पहले ही बाहर आया था. उसी ने एक और नाम बताया. वह था शकील अख्तर. साल 2015 में थाना चकिया के एसएचओ ने उसे रिवौल्वर के साथ पकड़ा था. उसे बच्चा समझ कर पुलिस ने उस के प्रति लापरवाही बरती और वह थाने से भाग गया था.

20 अगस्त, 2018 में पुलिस ने उसे खोज निकाला और जुवेनाइल कोर्ट ने उसे बाल सुधार गृह रिमांड होम में भेज दिया. मुकेश के खास साथी डेविल उर्फ सौरभ कुमार ने यह मोर्चा संभाल रखा था.

उस की देखभाल में 5 दिनों तक रिमांड होम में रहने के बाद 26 अगस्त, 2018 को शकील अख्तर ने प्रार्थना पत्र दिया कि पटना के अस्पताल में उस का भाई सीरियस है, इसलिए उसे छुट्टी दी जाए. बाल सुधार गृह के अधिकारियों ने उसे 27 से 30 अगस्त यानी 4 दिन की छुट्टी दी. इस के बाद वह सीधे सीतामढ़ी आ गया.

विकास महतो और शकील अख्तर को अगले दिन काम समझा कर कहा गया कि संतोष झा जीवित नहीं बचना चाहिए. इस के लिए वह जितनी रकम मांगेंगे, उस से 10 हजार रुपए उन्हें अधिक मिलेंगे. मानव चौबे और संजीत इस पूरी टीम को संभाल रहे थे. इस औपरेशन की सफलता के लिए आसपास के 5 जिलों के तमाम सरकारी ठेकेदारों को मुकेश ने व्यक्तिगत रूप से खबर भिजवा दी थी कि उन्हें लूटने वाले संतोष का सफाया करवाना है.

जेल अधिकारियों को पता था कि एक समय जिगरी दोस्त रहे दोनों अब एकदूसरे के खून के प्यासे हैं. इसलिए दोनों को एक वैन में ले जाने का उन्होंने खतरा नहीं उठाया. पहली वैन में मुकेश को सीतामढ़ी लाया गया तो उस के बाद 11 पुलिस वालों के काफिले के साथ संतोष झा को लाया गया.

संतोष झा की हत्या के लिए पूरी व्यवस्था हो चुकी थी. विकास महतो और शकील अख्तर को हथियारों के साथ बाइक पर पीछे बैठना था. कुछ उल्टासीधा हो जाए तो उस परिस्थिति को संभालने के लिए राजा उर्फ सौरभ कुमार कार्बाइन ले कर कोर्ट परिसर में कोने में जम गया.

लेकिन विकास और शकील ने कोई गलती नहीं की. 11 पुलिस वालों के साथ जैसे ही संतोष कोर्ट से बाहर आया, चीते की गति से दौड़ कर उन्होंने संतोष के सिर और छाती को गोलियों से छलनी कर दिया. पुलिस वाले कुछ समझ पाते, उस के पहले ही संतोष गिर पड़ा.

हत्यारे अपना काम कर के भागे. उन में बाइक पर चढ़ते समय विकास लडख़ड़ाया और हथियार सहित पुलिस की पकड़ में आ गया. जबकि शकील भाग निकला. संतोष की घटनास्थल पर ही मौत हो गई. इस घटना के लिए लापरवाही के आरोप में 25 पुलिस वालों को सस्पेंड कर दिया गया.

संतोष की हत्या के बाद मुकेश ने संभाली गैंग

मुकेश का नाम हत्या के इस मामले में सामने न आए, इस के लिए 15 साल के विकास महतो ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि संतोष झा ने उस के पिता की हत्या की थी, उसी का बदला लेने के लिए उस ने उस की हत्या की है. बाद में पुलिस जांच में उस का यह झूठ पकड़ा गया था.

अपने गुरु गौरीशंकर झा की हत्या संतोष ने की थी, उसी तरह संतोष के चेले मुकेश ने उसे खत्म कर दिया था. साल 2020 में पुलिस ने शकील अख्तर को भी पकड़ लिया था. विकास महतो भी जेल में है.

संतोष की हत्या के बाद कुछ दिनों के लिए उस की गैंग बिखर गई थी, लेकिन फिर से मैदान में आ कर विकास झा उर्फ कालिया ने गैंग को फिर से संभाल लिया और रंगदारी वसूलने का कारोबार शुरू कर दिया. अपने गुरु संतोष झा की बेटी के साथ उस ने विवाह कर लिया. वह गजब का हिम्मती था.

उसी के इशारे पर मुकेश के साथी राजा उर्फ सौरभ कुमार की हत्या नेपाल में कर दी गई. इस के बाद 6 मई, 2023 को ओमप्रकाश सिंह उर्फ बाबूसाहब को 19 गोलियों से छलनी कर के खुलेआम धमकी दे दी गई कि मुकेश पाठक का भी ऐसा ही हाल किया जाएगा.

मुकेश पाठक इस समय कड़ी सुरक्षा के बीच भागलपुर की जेल में सजा काट रहा है. सूत्रों से पता चला है कि मुकेश ने अवैध कमाई से करीब 7 सौ करोड़ की संपत्ति बनाई है.

गैंगवार की इस परंपरा को देखते हुए सवाल यह है कि जेल से आने के बाद इस 7 सौ करोड़ की संपत्ति का सुख कितने दिन भोग सकेगा.

संतोष झा और ओमप्रकाश की गैंग वार – भाग 2

गुंडा टैक्स में मांगे थे 75 करोड़ रुपए

स्टेट हाईवे नंबर 88 का काम चल रहा था, तभी कंस्ट्रक्शन कंपनी से संतोष झा ने हफ्ता मांगा. उस समय यानी 2015 में संतोष ने कंपनी से 75 करोड़ रुपए गुंडा टैक्स मांगा था. पैसे न देने पर उस ने कंपनी के 2 मुख्य इंजीनियरों मुकेश कुमार और बृजेश कुमार को मार दिया.

दिनदहाड़े इस घटना को अंजाम दिया गया था, इसलिए चश्मदीद भी थे और कंपनी पर सरकार का हाथ भी था. इसलिए इस घटना की चार्जशीट तैयार करने में पुलिस ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

75 करोड़ की रंगदारी मांगने वाले संतोष झा का नाम पूरे भारत में चमक उठा. संतोष झा और मुकेश पाठक पकड़े गए. मुकदमा चला और गुरुचेला और इन के अन्य 7 साथियों को आजीवन कारावास की सजा हुई. सभी को जेल में डाल दिया गया.

मुकेश पाठक इस गैंग में कैसे शामिल हुआ, आइए अब यह जानते हैं. मुकेश अपनी पत्नी सलोनी से बहुत प्यार करता था. 3 साल की बेटी श्वेता और पतिपत्नी तीनों शांति से रह रहे थे. पारिवारिक जमीन का विवाद चल रहा था. जब यह विवाद बढ़ा तो उस के चाचा के बेटे प्रेमनाथ पाठक और बुआ के बेटे सुशील तिवारी ने मिल कर मुकेश नाम के इस कांटे को निकाल फेंकने की योजना बनाई.

एक दिन दोनों रात को उस के घर आए और गोलियां चलाने लगे. इस में मुकेश तो बच गया, पर गर्भवती सलोनी की गोली लगने से मौत हो गई. प्रेमनाथ और सुशील ने पुलिस और मायके वालों के साथ मिल कर ऐसी साजिश रची कि दहेज उत्पीडऩ में पत्नी की हत्या के आरोप में मुकेश को ही फंसा दिया.

मुकदमा चला तो 3 साल की बेटी श्वेता ने प्रेमनाथ और सुशील की ओर इशारा करते हुए कोर्ट में बयान दिया कि उस की मम्मी को पापा ने नहीं, इन दोनों अंकल ने मारा है.

बेटी के बयान के बाद मुकेश निर्दोष छूट गया. श्वेता के बयान पर प्रेमनाथ और सुशील फंस गए. कुछ दिनों बाद प्रेमनाथ जमानत पर बाहर आया तो बदले की आग में जल रहे मुकेश ने 8 मई, 2003 को प्रेमनाथ की हत्या कर के जुर्म की दुनिया में कदम रख दिया.

2004 में पुलिस ने उसे पकड़ा. जमानत पर बाहर आने के बाद वह संतोष झा से जा मिला. अपने गैंग को मजबूत करने के लिए संतोष को ऐसे ही साथियों की जरूरत थी. उस ने संतोष की गैंग में दूसरे नंबर की जगह पा ली.

पुलिस को उस की दरजनों मामलों में तलाश थी. 17 जनवरी, 2012 को स्पैशल टास्क फोर्स ने उसे रांची से पकड़ कर मोतिहारी जेल भेज दिया. इस के बाद उसे शिवहर की जेल भेज दिया गया. इस से वह काफी नाराज था. पर तब उसे शायद यह पता नहीं था कि वहां उसे एक सुखद सरप्राइज मिलने वाला है.

अपराध की दुनिया में आने के बाद मुकेश के दिल में दिवंगत पत्नी सलोनी की यादें कुछ धुंधली होने लगी थीं. यहां जेल में आने के बाद एक बार फिर उस के दिल में प्यार का अंकुर फूटा.

पूजा और मुकेश की जेल में हुई थी शादी

बिहार में किडनैपिंग के कारोबार में केवल पुरुष ही नहीं जुड़े थे, यह साबित करने के लिए पूजा नाम की एक सुंदर युवती भी अपनी हिम्मत से इस धंधे में आ कर बहुत कम समय में किडनैपिंग क्वीन के रूप में नाम कमा चुकी थी. पौलिटेक्निक की पढ़ाई के साथ उस ने अपना यह कारोबार शुरू किया था. पर 4 सफल औपरेशन के बाद वह पुलिस के हत्थे चढ़ गई थी. वह भी इसी जेल में थी.

जेल की ऊंचीऊंची दीवारों के बीच मुकेश और पूजा की मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा और दोनों में प्यार हो गया. बिहार की इस जेल में ढोल और शहनाई बजी. 14 अक्तूबर, 2013 को दोनों का विवाह हो गया. सभी कैदियों और पुलिस के आशीर्वाद के बीच जिले के एसपी ने पूजा का कन्यादान किया.

20 जुलाई, 2015 को तबीयत खराब होने का बहाना बना कर मुकेश अस्पताल में भरती हुआ. वहां पुलिस को प्रसाद के रूप में नशे वाली मिठाई खिला कर सुला दिया और खुद अस्पताल से फरार हो गया.

उस ने पुलिस को सांसत में डाल दिया. एक तो खुद फरार हो गया, दूसरी ओर पता चला कि पूजा गर्भवती है. जेल में कोई प्रेगनेंट महिला कैदी कैसे रह सकती है? जेल में मुकेश और पूजा की प्रेमलीला के चक्कर में 4 पुलिस अधिकारी भी सस्पेंड हुए.

संतोष झा के गैंग में मुकेश का दूसरे नंबर पर स्थान था. रंगदारी की जो मोटी रकम आ रही थी, उस से बिहार और नेपाल में रिश्तेदारों के नाम जमीनें और मकान खरीदे जा रहे थे. उस समय मुकेश के मन में एक बात खटकती थी कि उस की चालाकी और मेहनत का जो लाभ उसे मिलना चाहिए, वह उसे नहीं मिल रहा है.

दोनों के बीच दुश्मनी कैसे हुई, इस की सही वजह आज तक सामने नहीं आई. पर एक पत्रकार द्वारा जो एक कारण सामने आया, संतोष के स्वभाव के बारे में जानने वाले उसे सच मानते हैं. संतोष की गैंग की एक शरणस्थली नेपाल में भी थी. नेपाल का कारोबार राजा उर्फ सौरभ कुमार संभालता था.

जेल में आने के बाद मुकेश पाठक को पता चला कि गैंग के किसी भी सदस्य को बताए बगैर संतोष ने कंस्ट्रक्शन कंपनी से 35 करोड़ रुपए ले लिए थे. दगाबाजी के इस मुद्दे पर मुकेश का अपने गुरु संतोष से झगड़ा हुआ और उसी समय मुकेश ने तय कर लिया कि अब ऐसे गुरु को रास्ते से हटाना ही पड़ेगा.

संतोष झा और ओमप्रकाश की गैंग वार – भाग 1

संतोष को लगा कि जिन के पास पैसा अधिक है, उन से आसानी से पैसा लिया जा सकता है. उस ने परशु सेना के नाम से अपनी गैंग बनाई, जिस में ब्राह्मण लड़कों को शामिल किया. मुकेश पाठक शुरू से उस के साथ जुड़ गया था. बिहार में संतोष झा का अपहरण और वसूली का बहुत बड़ा कारोबार था, पर नैशनल लेवल पर उसे कोई नहीं जानता था. 27 दिसंबर, 2015 को जब संतोष ने दरभंगा हत्याकांड किया. तब उसे सब जानने लगे.

स्टेट हाईवे नंबर 88 का काम चल रहा था, तभी हाईवे बनाने वाली कंस्ट्रक्शन कंपनी से संतोष झा ने हफ्ता मांगा. उस समय यानी 2015 में संतोष ने उस कंपनी से 75 करोड़ रुपए का गुंडा टैक्स मांगा था. मालिकों ने उस से रकम कम करने की विनती की तो भरी दोपहर को संतोष झा और मुकेश पाठक एके 47 ले कर साइट पर पहुंच गए और कंपनी के 2 मुख्य इंजीनियरों मुकेश कुमार और बृजेश कुमार को मार दिया. इस मामले में इन्हें जेल भी जाना पड़ा.

अपराध की दुनिया में आने के बाद मुकेश के दिल में मर चुकी पत्नी सलोनी की यादें कुछ धुंधली होने लगी थीं. यहां जेल में आने के बाद एक बार फिर उस के दिल में प्यार का अंकुर फूटा. जेल में उस की मुलाकात पूजा नाम की एक सुंदर युवती से हुई. वह किडनैपिंग क्वीन के नाम से जानी जाती थी.

जेल की ऊंचीऊंची दीवारों के बीच मुकेश और पूजा की मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा और दोनों में प्यार हो गया. बिहार के इस जेल में ढोल और शहनाई बजी. 14 अक्तूबर, 2013 को दोनों का विवाह हो गया. सभी कैदियों और पुलिस के आशीर्वाद के बीच जिले के एसपी ने पूजा का कन्यादान किया.

जेल में मुकेश और संतोष साथ ही थे, एक थाली में एक साथ खाने का संबंध था, फिर इन दोनों के बीच खटास कैसे पैदा हुई? दोनों के बीच दुश्मनी कैसे हुई, इस की सही वजह आज तक सामने नहीं आई.

नेपाल के बौर्डर से जुड़े बिहार के चंपारण जिला को बहुत बड़ा होने की वजह से इसे 2 हिस्सों में बांट दिया गया है. पश्चिम चंपारण और पूर्वी चंपारण. जिले का मुख्यालय मोतिहारी है.

6 मई, 2023 शनिवार की सुबह पूर्वी चंपारण ऐसी ही एक घटना से हिल उठा था. क्योंकि शिवनगर के पास लक्ष्मीनिया गांव के रहने वाला ओमप्रकाश सिंह उर्फ बाबूसाहब की बड़ी ही क्रूरता से हत्या कर दी गई थी.

ओमप्रकाश की मां को घुटने में तकलीफ थी, इसलिए मुजफ्फरपुर में उन के घुटने का औपरेशन कराया गया था. उस दिन ओमप्रकाश सिंह अपनी मां का हालचाल लेने के लिए बोलेरो जीप से मुजफ्फरपुर जा रहा था. उस के साथ उस के 2 रिश्तेदार भी थे और उस का वर्षों पुराना भरोसेमंद ड्राइवर मुकेश जीप चला रहा था. ओमप्रकाश सिंह जीप की आगे वाली सीट पर ड्राइवर के बगल में बैठा था.

फेनहारा थाने के अंतर्गत आने वाले गांव इजोबारा को पार कर के जीप जैसे ही आगे बढ़ी, एक टाटा सूमो इतनी तेजी से आ कर सामने खड़ी हुई कि मुकेश को अपनी बोलेरो रोकनी पड़ी. जरा भी समय गंवाए बगैर टाटा सूमो से 3 लोग फुरती से नीचे उतरे और आटोमैटिक रायफलों से धड़ाधड़ फायरिंग शुरू कर दी. गिनती के 3 मिनट में अपना खेल खत्म कर के तीनों सूमो में सवार हो कर भाग निकले.

इस अंधाधुंध फायरिंग में ड्राइवर मुकेश और पीछे बैठे दोनों रिश्तेदारों को खरोंच तक नहीं आई, इस चालाकी से शिकारियों ने अपने शिकार ओमप्रकाश सिंह की देह को छलनी कर दिया था.

जीप पर 28 गोलियों के निशान थे. गोलियों की आवाज सुन कर गांव वाले भाग कर आ गए थे. मुकेश ने फोन कर के कांपती आवाज में यह जानकारी ओमप्रकाश सिंह के परिवार को दी. सूचना पा कर घर वाले दौड़े आए और लाश कब्जे में ले ली. किसी की सूचना पर पुलिस भी आ गई थी.

पुलिस अपनी जांच में आगे बढ़ती, उस के पहले ही हत्यारों ने खुद ही ओमप्रकाश सिंह की हत्या का अपराध स्वीकार कर के अपना नाम जाहिर करते हुए बिहार के लगभग सभी मीडिया संस्थानों को पत्र भेजा.

हत्यारों ने जो पत्र मीडिया को भेजा था, वह कुछ इस प्रकार था, ‘मैं राज झा, संतोष झा गैंग का मुख्य प्रवक्ता. तमाम मीडिया को बताना चाहता हूं कि 6 मई, 2023 की सुबह बाबूसाहब उर्फ ओमप्रकाश सिंह की हत्या करने की जिम्मेदारी मेरी है. मैं ने ही उसे खत्म किया है. ओमप्रकाश सिंह ठेकेदार नहीं, एक नामचीन गुंडा था. गुंडागिरी और दादागिरी से सरकारी ठेके लेता था. बिहार के कुख्यात गुंडा मुकेश पाठक का वह दाहिना हाथ था. मुकेश पाठक के हर अपराध में वह सहभागी था.

’28 अगस्त, 2018 को जब सीतामढ़ी कोर्ट में संतोष झा की हत्या हुई थी तो वह उस में शामिल था. संतोष झा को मारने वाले सभी शूटर ओमप्रकाश सिंह के घर पर ही रुके थे और उन्हें हथियार भी ओमप्रकाश सिंह ने ही मुहैया कराए थे. उसे खत्म कर के हम ने संतोष झा की हत्या का बदला लिया है. मुकेश पाठक तो अभी जेल में है, पर हम उस की भी यही हालत करने वाले हैं.

-राज झा.’

इस पत्र के बाद जेल में बंद मुकेश पाठक की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी. अब अगर मुकेश पाठक की बात करते हैं तो पहले संतोष झा के बारे में बताना जरूरी है.

सामान्य परिवार का युवक था संतोष झा

गुंडागिरी के इतिहास में बिहार के सब से बड़े गैंगस्टर के रूप में संतोष झा का नाम लिया जा सकता है. उत्तर बिहार में इस का बेरोकटोक शासन चलता था. प्राइवेट कंपनियों की तरह हिसाबकिताब रखने वाले संतोष झा के पास 40 से भी अधिक वेतनभोगी गुंडों की फौज थी. हर किसी को हर महीने वेतन के अलावा अन्य सुविधाएं वह देता था.

बिहार का जिला चंपारण और नेपाल के बौर्डर से लगा जिला शिवहर है. इसी जिले के दोस्तियां गांव के एक सामान्य परिवार में संतोष का जन्म हुआ था. संतोष के पिता गांव के ही संपन्न किसान नवलकिशोर राय के यहां ड्राइवर की नौकरी करते थे.

संतोष को पढ़ाई में बिलकुल रुचि नहीं थी. परिवार की आर्थिक स्थिति उसे पता ही थी, इसलिए 15 साल की उम्र में ही वह कामधंधे की तलाश में हरियाणा चला गया. वह वहां गया कि 8 महीने बाद गांव में एक ऐसी घटना घटी जिस से उस का जीवन ही बदल गया.

नवलकिशोर राय से संतोष के पिता की कुछ बकझक हो गई तो पैसे के घमंड में उन्होंने संतोष के पिता को गालियां देते हुए धमकाने के साथसाथ एक थप्पड़ भी जड़ दिया. इसी के साथ नौकरी से भी निकाल दिया.

यह समाचार मिलने के बाद संतोष गांव लौट आया. साल 2001 में 16 साल की उम्र में वह क्या कर सकता था? धनी लोगों के प्रति मन में नफरत तो थी ही. उस समय उस इलाके में नक्सली कमांडर गौरीशंकर झा का रुतबा था. संतोष उस के पास पहुंच गया और उस की टीम में शामिल हो गया.

संतोष ने परशु सेना के नाम से अपनी गैंग बनाई, जिस में ब्राह्मण लड़कों को शामिल किया. मुकेश पाठक शुरू से उस के साथ जुड़ गया था. उस की गैंग ने धूमधड़ाके के साथ रंगदारी वसूली का कारोबार शुरू कर दिया. इस से आने वाली आमदनी को देख कर संतोष ने अपने गैंग को बढ़ाया और अपनी धाक जमा ली. उस के इस कारनामे को देख कर नक्सली कमांडर गौरीशंकर काफी नाराज हुआ.

अब तक संतोष के पास एक बड़े गैंग की ताकत थी और अपहरण और वसूली से मोटी कमाई हो रही थी. इसलिए उस ने गुरु की सलाह नहीं मानी और दलील की, जिस से दोनों में झगड़ा बढ़ गया. आवाज सुन कर गौरीशंकर की पत्नी भी बाहर आ गई. उस ने भी संतोष को ताना मारा.

चिढ़ कर संतोष ने जेब से रिवौल्वर निकाला और गोली चला दी. गौरीशंकर और उस की पत्नी की हत्या कर संतोष चुपचाप उन के घर से चला गया. पुलिस को भले ही इस दोहरे हत्याकांड में कोई गवाह या साक्ष्य नहीं मिला, पर लोगों को तो पता चल ही गया था कि ये हत्याएं किस ने की हैं. इस से इलाके में संतोष की धाक के साथ दबदबा भी बढ़ गया.

पिता को थप्पड़ मारने वाले नवलकिशोर राय के प्रति उस के दिल में नफरत अभी भी भरी थी. 15 जनवरी, 2010 को उस ने पिता के अपमान का बदला ले लिया. नवलकिशोर राय की खोपड़ी के परखच्चे उड़ाने के साथ उस के हवेली जैसे मकान को डायनामाइट से उड़ा दिया. उसे पकडऩे के लिए बिहार पुलिस की टास्क फोर्स रातदिन लगी थी, पर पकड़ नहीं पा रही थी.

आखिर साल 2014 में स्पैशल टास्क फोर्स ने कोलकाता से संतोष झा को गिरफ्तार कर लिया. वह जेल चला गया, पर वसूली का उस का कारोबार जेल से ही चलता रहा.

मई, 2015 में वह जेल से बाहर आ गया. उस की गैरहाजिरी में मुकेश पाठक जेल में रह कर मुखिया की तरह गैंग संभालता रहा.

वेब सीरीज रिव्यू : रंगबाज सीजन 1

वेब सीरीज रिव्यू : इंस्पेक्टर अविनाश

वेब सीरीज रिव्यू : रंगबाज सीजन 1 – भाग 3

शिव प्रकाश से क्यों चिढ़ गए थे मंत्रीजी

रंगबाज के छठे एपिसोड में गालियों की भरमार है और साथ ही बौलीवुड का भद्दा चेहरा इस वेब सीरीज से भी अछूता नहीं रहा है. इस सीरीज के सातवें एपिसोड का नाम ‘अपहरण’ रखा गया है. एपिसोड की शुरुआत में पटना की जेल को दिखाया गया है, जहां पर मंत्रीजी रमाशंकर तिवारी का खास आदमी वहां पर बंद चंद्रभान सिंह से मिलने जाता है.

तिवारीजी का आदमी कहता है कि शिव प्रकाश के ऊपर आप का हाथ है इसलिए तिवारीजी कुछ नहीं कर रहे हैं. चंद्रभान सिंह उस से कहता है कि तुम लोग अपना विवाद आपस में ही निपटा लो. इस के बाद सीरियल की कास्टिंग शुरू हो जाती है.

अगले सीन में रमाशंकर तिवारी (मंत्रीजी) पुलिस अधिकारी से शिव प्रकाश के ऊपर लगे केसों की प्रगति के बारे में पूछते हैं. अधिकारी कहता कि काम शुरू हो गया है.

शिव प्रकाश की प्रेमिका बबीता शर्मा उस से फोन पर बात करती है और कहती है कि तुम्हारे कहने पर हम ने लखनऊ छोड़ दिया और यहां पर आ गए. यहां भी तुम से नहीं मिल पा रहे हैं. तब शिव प्रकाश उसे समझाता है कि तुम चिंता मत करो, हम जल्द ही मिलेंगे. फिर शिवप्रकाश कहता है कि क्या तुम चलोगी हमारे साथ नेपाल या बैंकाक हमेशा के लिए?

सर्विलांस टीम उन दोनों की बातचीत सुन लेती है. अगले सीन में रमाशंकर के खास आदमी रंजन और शिवप्रकाश शुक्ला की मुलाकात दिखाई गई है. रंजन कहता है, बहुत बड़ा फौज बना लिए हो तुम?

शिव प्रकाश कहता है, ताज्जुब कर रहे हो तुम. फिर दोनों में बहस होने लगती है, रमाशंकर का आदमी कहता है मुझे पता है किस के बलबूते पर बोल रहे हो तुम. हमें पता है.

शिव प्रकाश कहता है, रंजन भैया यह तो वक्तवक्त की बात है. रंजन कहता है कि कुबेर को छोड़ दो और गोरखपुर से दूर रहो. शिव प्रकाश उस से दोटूक कहता है एक करोड़ दे दो, छोड़ देंगे. दोनों में फिर बहस होने लगती है.

शिव प्रकाश कहता है कि रंजन भैया अपने बाप तिवारी से कह दो कि कुबेर की जिम्मेदारी उन की है. और एक बात और सुनो, गोरखपुर तुम्हारे बाप का नहीं है, जब जी होगा, हम आएंगे. यह कह कर दोनों पार्टियां चली जाती हैं.

इस पार्ट में रंजन के आदमी शिव प्रकाश शुक्ला के आदमियों पर कुबेर चंद्र के छोडऩे के बाद फायरिंग शुरू कर देते हैं और फिर शिव प्रकाश के आदमी रंजन के सभी आदमियों को ढेर कर रंजन को पकड़ लेते हैं. रंजन उन से कहता है कि उस की आखिरी ख्वाहिश यह है कि वह एक ब्राह्मण है और ब्राह्मण के हाथ से ही मरना चाहता है. उस के बाद शिव प्रकाश के आदमी रंजन को मार देते हैं.

तभी अगला दृश्य शिव प्रकाश शुक्ला की बहन के मंगनी का दिखाया जाता है, जहां पर एकाएक पुलिस आ धमकती है, पुलिस अधिकारी प्रमोद शुक्ला से कहता है, 5 केस दर्ज हैं आप के बेटे के ऊपर, पहले हत्या अब फिरौती. पुलिस अधिकारी घर में पुलिस वालों को चारों ओर तलाशी लेने का हुक्म देता है और प्रमोद शुक्ला को गाली देते हुए कहता है कि तुम ने ऐसी… औलाद पैदा की है तो दंड भी भुगतोगे ही.

प्रमोद शुक्ला गिड़गिड़ाते दिखते हैं और बहन चिंतित हो जाती है. उस के बाद वहां सन्नाटा छा जाता है. तभी शिव प्रकाश शुक्ला अपनी बहन श्वेता को फोन कर के उस की परेशानी पूछता है.

बहन ने रोते हुए बता दिया कि उस की मंगनी रुकवा दी, पुलिस वाले घर आए थे, वे आप को खोज रहे थे. उन्होंने पापा को भी गालियां दीं. यह सुन कर शिव प्रकाश शुक्ला उस आदमी को गोली मार देता है, जिस से वह अभी तक बातें कर रहा था और अपने गैंग में शामिल होने का औफर दे रहा था.

छठे एपिसोड में भी जगहजगह गालियों के डायलौग भरपूर दिखाए गए हैं. ठाकुरब्राह्मण की आपस में लड़ाई और ब्राह्मणब्राहमण के बीच में प्रतिद्वंदिता और लड़ाई को इस में अधिक से अधिक प्रदर्शित किया गया है. हकीकत में श्रीप्रकाश शुक्ला की असली कहानी इस से एकदम भिन्न है जो लेखक, निर्देशक ने दिखाने के बजाय घृणा की भावना को अधिक से अधिक प्रदर्शित करने का प्रयास किया है, जो वास्तव में एकदम निंदनीय है.

वेब सीरीज के आठवें एपिसोड का नाम ‘राष्ट्रीय स्तर का आतंकवादी’ रखा गया है, जिस की शुरुआत एक टीवी शो इंडियाज मोस्ट वांटेड से शुरू होती है.

एसटीएफ की कैसे हुई प्लानिंग

एपिसोड के अगले सीन में एसटीएफ के कार्यालय में पुलिस अधिकारी सिद्धार्थ पांडे बबीता शर्मा के बारे में कुछ सूचना देता है. सिद्धार्थ पांडे पुलिस कमिश्नर से शिव प्रकाश शुक्ला की स्टोरी इंडियाज मोस्ट वांटेड के कार्यक्रम में प्रसारित होने की बात करता है कि आज रात को चैनल में उस की कहानी प्रदर्शित की जा रही है.

अगले दृश्य में पुलिस कमिश्नर और एसटीएफ अधिकारी सिद्धार्थ पांडे शिव प्रकाश शुक्ला के बारे में बातचीत कर रहे हैं. मुख्यमंत्री वहां पर आते हैं और पुलिस कमिश्नर का परिचय कराते हैं.

रमाशंकर तिवारी और मुख्यमंत्री वहां एक नया एसटीएफ बनाने की घोषणा करते हैं, जिसे डीजीपी शर्मा के निर्देशन पर सिद्धार्थ पांडे लीड करेंगे और शिव प्रकाश शुक्ला के गैंग का सफाया करेंगे. सिद्धार्थ पांडे स्वचालित हथियार और अच्छी सर्विलांस सुविधा की मांग करते हैं, पुलिस अधिकारियों को निर्देशित किया जाता है कि शिव प्रकाश किसी भी हालत में बचना नहीं चाहिए.

उस के अगले दृश्य में शिव प्रकाश अपने साथी से कहता है कि अभी यहां से निकलना होगा, पहले नेपाल फिर गोरखपुर, मेरी बहन श्वेता की शादी है. उस का साथी कहता है कि यूपी सरकार ने एक स्पैशल टास्क फोर्स आप को पकडऩे के लिए बनाई है.

शिव प्रकाश शुक्ला कहता है कि वह किसी से नहीं डरता. साथी समझाता है कि एसटीएफ सीधे गोली मारती है, इसलिए कानपुर के बजाय पटना चलते हैं वहां मेरी चंद्रभान सिंह से बात हो गई है. कानपुर गए तो आप के साथसाथ आप के परिवार वाले भी मुसीबत में पड़ जाएंगे. साथी कहता है कि रोड से जाने में चैकिंग का खतरा है, इसलिए ट्रेन से चलेंगे.

दूसरे सीन में पुलिस अधिकारी सिद्धार्थ पांडे रोड पर सघन चैकिंग का हुक्म अपनी टीम को देते हैं. पुलिस चैकिंग के अभियान में जी तोड़ से दिनरात जुटी हुई है. अगले सीन में शिव प्रकाश शुक्ला अपने साथियों के साथ ट्रेन में बैठा दिखाई दे रहा है.

सभी साथी कह रहे हैं कि शिव प्रकाश शुक्ला को अब मंत्री तिवारी के विरुद्ध विधायक का चुनाव लडऩा चाहिए. तभी टीटी आ कर उन से टिकट मांगता है तो शिव प्रकाश शुक्ला सीधे टीटी पर रिवौल्वर तान देता है. उस के साथी टीटी की बुरी तरह से पिटाई कर देते हैं.

तभी शिव प्रकाश शुक्ला को चंद्रभान फोन पर कहता है, पटना मत आओ, यहां पर गड़बड़ हो सकता है, तुम ऐसा करो मोकामा निकल जाओ. वह अपना क्षेत्र है, चिंता की कोई बात नहीं है. हमारा लड़का लोग वहां पर खड़ा तुम्हारा इंतजार कर रहा है.

अगले सीन में शिव प्रकाश शुक्ला एक शांत सी जगह से अपनी प्रेमिका बबीता से बात करता हुआ दिखाई देता है. शुक्ला पूछता है नया घर कैसा लगा? बबीता कहती है, घर अच्छा है बस सामान आना है और तुम्हारा इंतजार है. तुम आओ जल्दी, शिव प्रकाश कहता है, भैया कहते हैं रुको अभी. कुछ और इंतजार करना पड़ेगा.

तभी एक बच्चा मिलता है. शिव प्रकाश उस से बातें करने लगता है उस के बाद शिव प्रकाश को अपना बचपन याद आ जाता है. उस के पिता, उस की बहन उसे सारा बचपन दिखाई देने लगता है. आगे शिव प्रकाश अपने साथियों के साथ बिहार के एक सुनसान क्षेत्र में शराब पीते हुए बातचीत कर रहा है.

इस बीच पुलिस की एसटीएफ टीम को बबीता का सही लोकेशन पता चल जाती है. टीम का सदस्य कंप्यूटर में लोकेशन को ट्रैक करने वाले साथी से टीम के साथ चलने के लिए कहता है तो वह कोई बहाना बना कर टीम के साथ चलने से मना कर देता है. वह कंप्यूटर एक्सपर्ट अब टीवी में शिव प्रकाश शुक्ला की कहानी देखने लगता है और फिर वह बबीता के घर पर जा कर पूछताछ करता दिखाई देता है. उधर टीवी में ऐंकर शिव प्रकाश शुक्ला की हत्याओं की एकएक कर के वारदातें दिखाता रहता है.

तभी वह बबीता शर्मा से टकरा जाता है यानी कि वह बबीता शर्मा को पहचान जाता है और उस का घर भी देख लेता है और इसी के साथ आठवें एपिसोड का समापन भी हो जाता है.

आठवें एपिसोड में भी कलाकारों का अभिनय औसत दरजे का रहा है. एपिसोड में एक टीवी होस्ट एक स्पैशल टास्क से अधिकारी से इस तरह व्यवहार कर रहा है जैसे पुलिस अधिकारी एक फालतू चीज हो. ऐसा भला वास्तविक जीवन में कैसे संभव हो सकता है, जिस से साफसाफ दिखता है कि इस सीन की कल्पना लेखक की शायद अपनी खोपड़ी की उपज है.

एक इतना बड़ा गैंगस्टर ट्रेन में बिना टिकट, बिना रिजर्वेशन अपने साथियों के साथ यात्रा करता हुआ दिखाया गया है. उस के बाद उस के साथी टीटी के साथ बुरी तरह से मारपीट करते हैं, कोई यात्री प्रतिरोध करता हुआ या उस सीन को देखता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है. न ही टीटी द्वारा किसी को कंप्लेंट कराते दिखाया गया है, जबकि ट्रेन में हमेशा सुरक्षा गार्ड रहते हैं. कहानी को जगहजगह काल्पनिक बना दिया गया है, हकीकत से एकदम परे.

शिव प्रकाश को किस ने दी थी मुख्यमंत्री की सुपारी

एपिसोड के अंतिम भाग का नाम क्लाइमेक्स अर्थात ‘चरमोत्कर्ष’ के नाम पर रखा गया है, एपिसोड की शुरुआत में प्रमोद शुक्ला अपने बेटे शिव प्रकाश को आवाज देते दिखाई दे रहे हैं. बचपन में वह शिव प्रकाश को स्कूल जाने के बहाने सिनेमा जाने से पीटते हुए दिखाई दे रहे हैं.

फिर अगले सीन में प्रमोद शुक्ला अखबार पढ़ते हुए दिख रहे हैं कि शिव प्रकाश ने ली मुख्यमंत्री की सुपारी 8 करोड़ रुपए. यह देख कर वह चिंतित हो जाते हैं. मंत्री रमाशंकर तिवारी भी समाचार पत्र देख रहे हैं. इस के बाद एपिसोड की कास्टिंग शुरू हो जाती है.

अगले सीन में दिल्ली में शिव प्रकाश का साथी लैंडलाइन फोन से अपने घर पर बात करता दिखाई दे रहा है. फोन करने के बाद वह वापस लौट कर इधरउधर देखते हुए उस कमरे में आ जाता है, जहां पर गैंगस्टर शिव प्रकाश छिपा हुआ है.

उधर दूसरे सीन में टीवी शो का एंकर अपना मोस्टवांटेड एपिसोड समाप्त करता है. तभी दूसरे दिन शिव प्रकाश शुक्ला टीवी शो के एंकर को गाली देते हुए कहता है यदि तुम ने दोबारा मेरा शो दिखाया तो अच्छा नहीं होगा. एंकर गिड़गिड़ाते हुए कहता है, ”सर, सर वो लोग हमें जो लिख कर देते हैं, हम वही करते हैं. हम तो एक एक्टर भर हैं.’’

शिव प्रकाश शुक्ला अपनी प्रेमिका बबीता से बात करता है. सर्विलांस टीम एकदम अलर्ट हो कर उन की बातों को गौर से सुनने लगती है. बबीता कहती है कि अखबार में कुछ आ रहा है, टीवी में कुछ आ रहा है. हम तुम्हारे लिए परेशान हो गए.

शिव प्रकाश कहता है कि तुम घबराओ मत.

उन दोनों की बातचीत को सुन कर एसटीएफ अधिकारी सिद्धार्थ पांडे और उन की टीम अलगअलग तरीके से प्लान बनाने लग जाती है.

दूसरे दृश्य में शिव प्रकाश शुक्ला अपनी टीम के सहयोगी तनुज को कहीं चलने के लिए कहता है. फिर अगले दृश्य में शिव प्रकाश की बहन तैयार होती दिखती है, तभी उस का मोबाइल बजने लगता है. शिव प्रकाश शुक्ला बारबार बहन को फोन कर रहा है, मगर कोई फोन नहीं उठाता है.

फिर शिव प्रकाश साथियों के साथ गाड़ी में जाता दिखाई दे रहा है. उस के साथी पूछते हैं कि अब कहां चलें गोरखपुर या गाजियाबाद?

उधर एसटीएफ ने योजना के अनुसार सारी दुकानें बंद करा दीं.

अगले सीन में शिव प्रकाश की बहन की शादी की तैयारियां हो रही हैं, लड्डू बनाए जा रहे हैं, नाचगाना हो रहा है. तभी गाजियाबाद में 2 लोग बाइक पर दिखाई देते हैं. एसटीएफ टीम का सदस्य महादेव पिस्टल निकाल लेता है, तभी वहां पर एक बड़ी गाड़ी आती दिखाई ती है, जिस में शिव प्रकाश शुक्ला अपनी पिस्टल ले कर उतरता है और साथियों से कहता है, ”आते हैं अभी थोड़ी देर में, फिर गोरखपुर निकलेंगे. ‘

महादेव एसटीएफ अधिकारी सिद्धार्थ पांडे को वायरलेस पर सिगनल कर देता है, तभी गाड़ी में बैठे शिव प्रकाश के साथियों को कुछ शक सा होता है. अगले सीन में शिव प्रकाश अपने घर पर फोन करता है.

अगले दृश्य में शिव प्रकाश का एक साथी अपने साथियों से कहता है कि मुझे आज सुबह से ही कुछ ऐसा लग रहा है, जैसे कोई हमें देख रहा है. साथी कहते हैं, वहम है तुम्हारा.

पुलिस को किस ने दी थी शिव प्रकाश की सूचना

अगले दृश्य में शिव प्रकाश का एक साथी गाड़ी से बाहर आता है उसे शक हो जाता है तो वह ‘गाड़ी निकाल’ कह कर चिल्लाता है, तभी एसटीएफ का सदस्य महादेव उसे गोली मार कर ढेर कर देता है. गोली की आवाज बबीता को भी सुनाई देती है, तभी वहां पर पुलिस की टीम शिव प्रकाश के सभी साथियों को ढेर कर देती है.

शिव प्रकाश के ऊपर भी फायरिंग शुरू हो जाती है. शिव प्रकाश शुक्ला अपनी पोजीशन बारबार बदलता है. तभी बबीता ‘शिव.. शिव’ चिल्लाते हुए अपने फ्लैट से बाहर निकल आती है. सिद्धार्थ पांडे और शिव प्रकाश शुक्ला एकदूसरे पर गोलियां बरसाना शुरू कर देते हैं. पुलिस की टीम शिव प्रकाश को चारों ओर से घेर लेती है.

तभी शिव प्रकाश अपनी पिस्तौल में गोली भर कर सीना तान कर कर पूरी पुलिस टीम का मुकाबला करने सामने बेझिझक, बिना डरे निकल कर आ जाता है और गोलियां बरसानी शुरू कर देता है. वह कुछ पुलिसकर्मियों को मार भी डालता है, तभी शिव प्रकाश के पेट में गोली लगती है और वह जमीन पर गिर जाता है.

उस का मोबाइल छिटक कर कुछ दूरी पर गिर जाता है. तभी बबीता शिव प्रकाश को फोन करती है. शिव प्रकाश अपना पेट पकड़े अपनी सारी मैगजीन खाली कर देता है. उसी समय उस की नजर अपने मोबाइल पर पड़ती है, जो बज रहा था. बबीता दिखाई पड़ती है जो फोन करते दिखाई दे रही है. तभी सिद्धार्थ पांडे कहते हैं, शिव प्रकाश शुक्ला. वह उस की ओर पिस्टल तान देते हैं. वहां पर अब बबीता, कंप्यूटर औपरेटर, शिव प्रकाश शुक्ला और सिद्धार्थ पांडे सभी एकदूसरे को देखते हुए दिखाई देते हैं.

फ्लैट से तभी बबीता जोर से चिल्लाती है, ‘शिव…शिव…शिव…’ और फिर एसटीएफ अधिकारी सिद्धार्थ पांडे शिव प्रकाश शुक्ला को गोलियों से छलनी कर देता है. बबीता शर्मा यह दृश्य देख कर जोरजोर से रोने लगती है. उस का प्रेमी जमीन पर पड़ा अपनी आखिरी सांसें ले रहा होता है तो दूसरी तरफ वह जोरजोर से रो रही है.

उधर अगले सीन में शिव प्रकाश शुक्ला की बहन की शादी में उस के मातापिता नाच रहे हैं, बहन श्वेता हंस रही है. उस की बहन श्वेता, मां और पिता प्रमोद शुक्ला को शिव प्रकाश अपने साथ नाचता हुआ दिखाई दे रहा है. रमाशंकर तिवारी खुश हो कर पार्टी करता दिखाई दे रहा है और चंद्रभान सिंह उदास चेहरा लिए खड़ा दिखाई दे रहा है.

शिव प्रकाश शुक्ला की खून भरी गोलियों से छलनी लाश जमीन पर पड़ी है और इस तरह यह नवां एपिसोड भी समाप्त हो जाता है.

इस में जबरदस्ती कंप्यूटर औपरेटर पात्र को ठूंस दिया गया लगता है. वह न तो पुलिस वाला है, न उस ने प्राइवेट जासूसी की कहां पर ट्रेनिंग ली है, न उस की कदकाठी ही ऐसी है कि वह निजी तौर पर इतना बड़ा जोखिम ले कर इतने बड़े गैंगस्टर शिव प्रकाश की प्रेमिका की जासूसी केवल अपने स्तर पर वह भी बिना आदेश लिए कर सके.

वह कलाकार नौसिखिया सा दिखाई दे रहा है. लगता है जासूसी उपन्यास पढ़पढ़ कर उस ने इतना बड़ा जोखिम ले कर यह कारनामा कर दिखाया है. इस नवें एपिसोड की यह सब से बड़ी कमजोरी साफसाफ नजर भी आ रही है.

यदि पूरे वेब सीरीज रंगबाज सीजन 1 का आकलन करें तो इस में गिनती के 2-4 सीन हैं, जिन में एक्शन और खूनखराबा देखने को मिलता है, वरना इस पूरी वेब सीरीज में शिव प्रकाश शुक्ला जो भागतेबचते दिखाई पड़ता है या फिर अपनी गर्लफ्रेंड से बातें करते हुए दिखाई देता है.

वेब सीरीज 9 एपिसोड की है और हर एपिसोड 30 से 35 मिनट का है. लेकिन फिर भी यह वेब सीरीज हमें बोर करती है.

वेब सीरीज रिव्यू : रंगबाज सीजन 1 – भाग 2

शिव प्रकाश ने क्यों की विधायक की हत्या

अगला दृश्य इमरजेंसी का दिखाया जाता है, जब देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी थी. जेपी आंदोलन को उस में दिखाया गया है.

दूसरी ओर, गोरखपुर के छात्र जाति के हिसाब से अपनाअपना वर्चस्व स्थापित कर रहे थे, ब्राह्मण और ठाकुरों का राजनीतिक वर्चस्व स्थापित हो रहा था. पूरे गोरखपुर में उस समय चारों ओर हिंसा का तांडव फैलता जा रहा था. रामशंकर तिवारी और साही के बीच हिंसा की राजनीति बढ़ती जा रही थी.

रामशंकर तिवारी एक सभा को संबोधित करते हुए कहते हैं ब्राह्मïण के बस 3 काम हैं भिक्षा, शिक्षा और दीक्षा. जरूरत पडऩे पर हम सभी वो कार्य करने में सक्षम हैं जो एक समय में क्षत्रियों ने किया था. ब्राह्मण सर्वोच्च था सर्वोच्च रहेगा.

दूसरी तरफ राजनीतिक प्रतिद्वंदी नरेंद्र साही की सभा दिखाई गई है, जहां पर वह अपना भाषण देना शुरू कर देते हैं. तभी उस भीड़ के बीच में से शिव प्रकाश शुक्ला आ कर सीधे मंच तक पहुंच जाता है और खुलेआम हजारों की संख्या में लोगों से घिरे विधायक नरेंद्र साही की गोली मार कर हत्या कर देता है. वहां पर भगदड़ मच जाती है.

दूसरे दृश्य में रामशंकर तिवारी को उस के आदमी द्वारा खबर मिलती है कि काम हो गया. उस के बाद रामशंकर तिवारी ब्राह्मण एकता जिंदाबाद के नारे लगाता है. तभी वहां पर शिव प्रकाश शुक्ला के पिता प्रमोद शुक्ला दिखाई देते हैं. रामशंकर तिवारी उन से कहता है, तुम्हारा बिटवा पढ़ाईलिखाई से काफी आगे बढ़ गया है.

नरेंद्र साही की दिनदहाड़े हत्या की खबर चारों ओर फैल जाती है. उस के बाद शिव प्रकाश एक और हत्या कर देता है. फिर एक के बाद एक कर के शिव प्रकाश शुक्ला हत्या कर देता है.

सीरीज के इसी भाग में एक दरोगा शिव प्रकाश शुक्ला को बिहार आने का निमंत्रण देता है. वह शिव प्रकाश शुक्ला की बात बिहार के सरगना रवि किशन से कराता है. रवि किशन शिव प्रकाश को बिहार बुलाता है. एपिसोड समाप्त हो जाता है.

तीसरे एपिसोड में जैसा कि नाम दिया गया है भिक्षा, शिक्षा और दीक्षा. मगर इस के अनुरूप इस का नहीं दिखाई दिया है. इस एपिसोड में निर्देशक पात्रों के साथ न्याय करते हुए बिलकुल भी नहीं दिखा. एक गुंडा खुलेआम किसी का भी मर्डर पुलिस कर देता है. पुलिस, प्रशासन यहां तक कि जनता को भी यह इतना बड़ा खूनी बिलकुल ही दिखाई नहीं देता. पुलिस में भूमिका कर रहा दरोगा जो गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला को बिहार आने का निमंत्रण देने आता है, वह किसी भी एंगल से पुलिस का एक सिपाही तक नहीं लगता. एक नौसखिया सा दिखाई देता है.

चौथा एपिसोड वेव सीरीज रंगबाज सीजन वन का नाम ‘नाम है शंकर तिवारी’ है, जिस में एक विशाल भीड़ दिखाई देती है, जिस में लालू प्रसाद यादव एक सभा में भाषण देते दिखाई दे रहे हैं. उस के बाद दिवंगत नेता रामविलास पासवान भी भाषण दे रहे हैं. तभी गुंडे दिनदहाड़े लोगों को गोलियों से भून रहे हैं.

एपिसोड के पहले सीन में 2 लोग बातचीत कर रहे हैं. इस के बाद बिहार से आया दरोगा शिव प्रकाश शुक्ला के साथ ट्रेन में बैठा हुआ दिखता है, जहां पर वह एक महिला से बातचीत करने लगता है.

किस शर्त पर दिलाया था रेलवे का ठेका

अगले दृश्य में रामशंकर तिवारी विधायक साही के अंतिम संस्कार में जाने की तैयारी करता है. रामशंकर तिवारी को उस का आदमी बताता है कि शिव प्रकाश शुक्ला मर्डर कर के बिहार चला गया है. अगले दृश्य में रवि किशन और साकिब सलीम की मुलाकात को दिखाया गया है. दोनों आपस में बातचीत करते हैं.

रवि किशन उस समय जेल में है. वह साकिब सलीम यानी शिव प्रकाश शुक्ला को समझाता है कि वह उसे इसलिए पसंद करता है क्योंकि उस का काम करने का तरीका भी पहले ऐसा ही था. वह शिव प्रकाश शुक्ला को समझाता है कि वह कोई ऐसा काम करे, जिस से उस का नाम हो और पैसा भी जम कर बरसे. वह उसे कहता है कि उस के पास रेलवे का ठेका है. वह उसे इस बार रेलवे का ठेका दिला देगा. बदले में उसे उस का एक काम करना होगा.

उस के बाद शिव प्रकाश शुक्ला अपने आदमियों से बात करता दिखाई देता है. अगले दृश्य में पुलिस टीम शिव प्रकाश शुक्ला की दिनचर्या के बारे में बात करते दिखाई देेते हैं. वे आपस में गुफ्तगू करने लगते हैं, तभी सर्विलांस में शिव प्रकाश शुक्ला और उस की प्रेमिका के बीच बातचीत शुरू हो जाती है.

पुलिस की विशेष टीम उन की आवाज को रिकौर्ड करना शुरू कर दे रही होती है. शिव प्रकाश शुक्ला और प्रेमिका दोनों बहुत ही सैक्सी अंदाज में बातें करने लगते हैं.

शिव प्रकाश शुक्ला को उस की प्रेमिका के साथ सैक्स सीन करते हुए दिखाया गया है. प्रेमिका बताती है कि घर के बारे में कुछ खोजखबर है या नहीं, तुम्हारी बहन की शादी फिक्स कर दी गई है. उस के बाद सीधे मंत्रीजी का सीन आ जाता है, जिस में उन का सहयोगी कहता है कि शिव प्रकाश घूमने नहीं बल्कि चंद्रभान सिंह से मिलने के लिए गया था.

फिर एकदम दूसरा सीन आ जाता है जिस में शिवप्रकाश शुक्ला अपने घर पर अपनी बहन से कहता है, ”श्वेता, तुम्हारी शादी फिक्स हो गई, हमें बताया तक नहीं गया.’’

मां कहती है तुम्हें क्या बताना, तुम घर पर रहते भी हो. उस के पिता उसे डांटते हैं और वह फिर एक बड़ी रकम अपनी बहन के हाथ में दे कर वहां से चला जाता है.

फिर अगले सीन में चंद्रभान सिंह (रवि किशन) को जेल में एक्सरसाइज करते हुए दिखाया गया है. फिर चंद्रभान सिंह का एक सहयोगी उसे फोन देते हुए कहता है कि मंत्रीजी (तिवारीजी) का फोन है. फोन पर तिवारी चंद्रभान सिंह को कहता है कि फसल जो बोएगा, वही काटेगा. मतलब शिव प्रकाश शुक्ला मेरा आदमी है उस से दूर रहिए आप.

अगले सीन में शिव प्रकाश शुक्ला अपनी प्रेमिका अहाना कुमरा से बातचीत करता हुआ दिखाई पड़ता है. तभी रणवीर शौरी के नेतृत्व में टीम वहां पर जा पहुंचती है, जहां पर शिव प्रकाश शुक्ला ठहरा हुआ है. लेकिन शिव प्रकाश शुक्ला वहां की रसोई से भाग निकलता है.

अगले दृश्य में पुलिस की सहायता कर रहे प्रोफेसर शिव प्रकाश शुक्ला की ओर पिस्तौल तान कर उसे रुकने के लिए कहते हैं तो शिव प्रकाश शुक्ला उन की हत्या कर देता है.

चौथे एपिसोड में निर्देशक ने बेशर्मी की सारी सीमाएं लांघ डाली हैं. प्रेमी और प्रेमिका के बीच ऐसी बातचीत किसी पोर्न फिल्म से कम नहीं है, निर्मातानिर्देशक ने सोचा होगा ऐसी बातचीत कर के शायद टीआरपी बढ़ जाएगी, बल्कि असल में यह बेहद ही बेशर्मी से गढ़ा गया दृश्य है.

रंगबाज वेब सीरीज के 5वें एपिसोड को ‘शिव प्रकाश किस के साथ है’ नाम दिया गया है. इस के पहले दृश्य में मंत्री रमाशंकर तिवारी का फोन शिव प्रकाश के लिए आता है, जिस में वह शिव प्रकाश को लखनऊ वाला काम करने को कहते हैं और कहते हैं कि सब्र करो हम पर भरोसा रखो.

उस के बाद कोर्ट परिसर का दृश्य आता है, जिस में कुछ लोग मंत्री रमाशंकर तिवारी के पास रेलवे के ठेके के लिए अपनी फरियाद ले कर आते हैं. वे कहते हैं कि रेलवे का ठेका लखनऊ वाले रविंदर सिंह को मिल गया है. मंत्रीजी कहते हैं कि अब तुम्हारा काम हो जाएगा. शिव प्रकाश शुक्ला तुम्हारा काम कर देगा.

शिव प्रकाश को मंत्री रमाशंकर तिवारी के आदमी का फोन आता है, जिस में वह कहता है कि एक मंत्री को आज ही निपटाना है. वह शिव प्रकाश को मंत्री की पूरी जानकारी देता है. शिव प्रकाश अपने मोबाइल में एक नया सिम डालता है.

दूसरी तरफ शिव प्रकाश के मातापिता और बहन एक साड़ी की दुकान में खरीदारी करते दिखाई देते हैं. दुकानदार शिव प्रकाश के मातापिता से साडिय़ों के पैसे लेने से मना कर देता है कि आप से हम भला पैसे कैसे ले सकते हैं, आप हमारे ऊपर बस अपना आशीर्वाद बनाए रखें. उसी समय श्वेता (शिव प्रकाश की बहन) की एक सहेली उसे वहां से ले जा कर उस की बात शिव प्रकाश से कराती है. बहन उस से कहती है कि यदि वह नहीं आया तो वह अपनी न शादी करेगी न मंगनी. शिव प्रकाश बहन से आने का वायदा करता है. वह कहता है यदि मंगनी में नहीं आ पाया तो शादी में जरूर आएगा.

शिव प्रकाश मंत्री को गोली मार देता है. तभी शिव प्रकाश के साथी उस से कहते हैं कि अब तो वह राष्ट्रीय स्तर पर फेमस हो रहे हैं.

अगले सीन में चंद्रभान सिंह जेल में वौलीबाल का मैच कैदियों के बीच में जो खेला जा रहा है, उसे कुरसी पर बैठ कर देख रहा है, तभी वह फोन से शिव प्रकाश से बात करते हुए कहता है कि अब गोरखपुर में कुछ नहीं रखा है. तुम अब लखनऊ ही जाओ. शिव प्रकाश गोरखपुर न जा कर लखनऊ की ओर निकल पड़ता है.

किस ने कराई बिहार के मंत्री की हत्या

अगले दृश्य में समाचार में आता है बिहार में मंत्री की हत्या हो गई है, जिसे गोरखपुर के शिव प्रकाश शुक्ला गैंग ने अंजाम दिया है. इस खबर को मंत्री रमाशंकर तिवारी अपने विशेष चेले के साथ टीवी में देखते नजर आ रहे हैं, जहां पर रमाशंकर तिवारी अपने चेले से कहते हैं कि लखनऊ वाला काम किसी और को दे दो. देखते हैं यह अब कब तक गोरखपुर नहीं आता है. बहन की सगाई में तो आएगा ही.

पांचवें एपिसोड में भी कुछ नयापन सा बिलकुल भी नहीं दिया गया है. सभी कलाकारों का काम केवल औसत दरजे का रहा है. एक गैंगस्टर बिहार की जेल में बैठ कर फाइवस्टार होटल जैसे आनंद में अपना जीवन गुजार रहा है. जेल में ही बैठ कर हत्याओं की सुपारी ले रहा है.

जेल में रह कर ही रेलवे के बड़ेबड़े ठेके ले रहा है, यह बात बिलकुल भी गले से नहीं उतरती. एपिसोड का नाम ‘शिव प्रकाश किस के साथ है’ का अर्थ इस एपिसोड से बच्चा भी निकाल सकता है कि शिव प्रकाश अब रमाशंकर तिवारी के साथ नहीं बल्कि गैंगस्टर चंद्रभान सिंह के साथ है.

इस वेब सीरीज के एपिसोड नंबर 6 की कहानी ‘माता का जागरण’ के नाम से दी गई है. इस में एसटीएफ चीफ सिद्धार्थ पांडे शिव प्रकाश शुक्ला की प्रेमिका के बारे में अपनी टीम के सदस्यों से बातचीत कर रहे होते हैं कि ये आखिर उस की प्रेमिका बबीता कौन हो सकती है.

रमाशंकर तिवारी अपने भतीजे रमेश के साथ शिव प्रकाश की प्रेमिका रश्मि की मंगनी तय कर देता है.

शिव प्रकाश अपना अड्ïडा लखनऊ में जमा लेता है. वहां हो रहे एक जागरण से वह अपने गैंग के द्वारा कुबेरचंद्र अरोड़ाका एक करोड़ रुपए की फिरौती के लिए अपहरण कर लेता है. अरोड़ा तिवारी का आदमी था. अपने वफादार के अपहरण पर रमाशंकर तिवारी तिलमिला जाता है.

तिवारी अपने खास आदमी को पटना चंद्रभान सिंह के पास जाने को कहता है और कहता है कि चंद्रमान सिंह को टटोलो. शागिर्द चंद्रभान सिंह के पास जाने की हामी भर लेता है और इसी के साथ यह छठां एपिसोड समाप्त हो जाता है.