वेब सीरीज रिव्यू : रंगबाज सीजन 1 – भाग 1

लेखक : सिद्धार्थ मिश्रा

निर्देशक : भाव धूलिया

निर्माता : अजय जी राय

कलाकार: साकिब सलीम, अहाना कुमरा, तिग्मांशु धूलिया, रवि किशन, रणवीर शौरी, भारत चावला और सौरभ गोय.

रंगबाज 1990 के दशक की गोरखपुर की देहाती पृष्ठभूमि पर आधारित एक भारतीय वेब सीरीज है. इसे 22 दिसंबर, 2018 को जी-5 ओरिजनल के रूप में रिलीज किया गया था.

रंगबाज गोरखपुर के नौजवान शिव प्रकाश शुक्ला (साकिब सलीम) की कहानी है. शिव प्रकाश शुक्ला की बहन को एक मवाली सरेआम बाजार में छेड़ता है और यह बात जब उसे पता चलती है तो गुस्से से बेकाबू हो कर देसी कट्टा ले कर उस मवाली के पास पहुंच जाता है, लेकिन वहां गलती से गोली चल जाती है और शिव प्रकाश शुक्ला से उस मवाली का कत्ल हो जाता है. उस के बाद एक नेता शिव प्रकाश शुक्ला को बचाता है और फिर वह उस नेता के लिए काम करने लग जाता है.

इस तरह उत्तर प्रदेश के गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला की कहानी को इस वेब सीरीज में उकेरा गया है. सीरीज में कुल मिला कर 9 एपिसोड हैं, जिस में 9 कहानियों को अलगअलग दिखाया गया है. रंगबाज वेब सीरीज की स्पीड कहींकहीं पर थोड़ी स्लो दिखाई पड़ती है.

रंगबाज के पहले एपिसोड की कहानी का नाम ‘गैंगस्टर का मोबाइल फोन’ है. इस पहले एपिसोड की शुरुआत एक गाड़ी से होती है, जिस में कुछ गुंडे बैठे हुए होते हैं. वे सब गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला की प्रेमिका के घर पहुंच जाते हैं. शिव प्रकाश का दोस्त प्रेमिका को शिव प्रकाश शुक्ला का दिया हुआ गिफ्ट दे देता है.

उस के बाद प्रेमी और प्रेमिका के बीच मोबाइल से बातचीत होती है. उसी दौरान गैंगस्टर के फोन पर कुछ आवाजें आती हैं. वह प्रेमिका से कहता है, ”लगता है कुछ गड़बड़ है.’’

तभी पुलिस की गाडिय़ों के सायरनों की आवाज जोरजोर से सुनाई पड़ती है. इस वेब सीरीज में भी गंदीगंदी गालियों का भरपूर प्रयोग किया गया है, जो डायरेक्टर की फूहड़ मानसिकता को दर्शाता है.

पुलिस गैंगस्टर के ऊपर फायरिंग शुरू कर देती है तो गैंगस्टर खुद गाड़ी के आगे से अपनी स्वचालित एके-47 से पुलिस के ऊपर फायर झोंक देता है. तभी गैंगस्टर मंत्रीजी को फोन करता है और वह मंत्रीजी को धमकाते हुए कहता है, ”पुलिस मेरे पीछे लगी हुई है, अब तो लगता है कि मुझे पुलिस को यह बताना ही पड़ेगा कि गुडग़ांव वाले एमएलए का मर्डर आप ने करवाया था.’’

वह मंत्री को धमकी देते हुए कहता है, ”व्यवस्था कीजिए वरना कर देंगे हम तुम्हें फेमस.’’

पुलिस और गैंगस्टर के बीच में अब आंखमिचौली का खेल चलने लगता है और पुलिस का सिपाही गैंगस्टर को निकलने का इशारा कर देता है और गैंगस्टर शिव प्रकाश की गाड़ी आसानी से निकल जाती है.

अगले सीन में कहानी एक बार फिर फ्लैशबैक में चली जाती है. यहां पर गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला के परिवार को दिखाया गया है.

शिव प्रकाश कैसे आया अपराध की दुनिया में

शिव प्रकाश की बहन बाजार से जा रही होती है, तभी एक शोहदा उस के कंधे पर हाथ रख कर उस के साथ छेड़छाड़ शुरू कर देता है, जिस की खबर सारी जगह से फैलतेफैलते उन के घर तक पहुंच जाती है.

शिव प्रकाश के मातापिता अपनी बेटी की इस बदनामी से शर्मसार हो जाते हैं. जब यह बात शिव प्रकाश शुक्ला को पता चलती है तो वह अपनी बहन से बात करता है और बहन से शोहदे के बारे में पूछताछ करता है. गैंगस्टर के पिता उसे समझाते हैं कि वह गुस्सा न करे, वह पुलिस में जा कर शिकायत लिखा देंगे.

मगर शिव प्रकाश शुक्ला यह सब बरदाश्त नहीं कर पाता और उस शोहदे के पास पहुंच जाता है और फिर दोनों में गुत्थमगुत्था होने लगती है. तभी गुस्से से गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला से गोली चल जाती है और शोहदे की गोली लगने से मौत हो जाती है. शिव प्रकाश शुक्ला उस के बाद घबरा जाता है और अपनी बाइक से घर लौट आता है.

शिव प्रकाश शुक्ला के पिता उस की पिटाई करने लगते हैं कि उस ने उस युवक को जान से क्यों मार दी. अब आगे उस का भविष्य क्या होगा?

शिव प्रकाश शुक्ला रोते हुए पिता को बताता है कि पापा गोली गलती से चल गई. मुझे माफ कर दो पापा, मुझे बचा लो पापा. उस के पिता कहते हैं कि चौबेजी का बेटा वकालत करता है. वह कह रहा था कि आज सरेंडर कर दे.

तभी शिव प्रकाश शुक्ला के घर पर मंत्रीजी की गाडिय़ों का काफिला आ जाता है. मंत्री शिव प्रकाश शुक्ला के पिता से कहता है, ”आप ने तो हमें पराया ही बना दिया. बाहर वालों से कांड का पता चला हमें.’’

उस के बाद मंत्रीजी शिव प्रकाश शुक्ला से कहते हैं कि तुम ने जो कुछ किया ठीक किया. घबराओ मत मैं तुम्हारे साथ हूं. और फिर मंत्रीजी के आदमी शिव प्रकाश शुक्ला को वहां से ले जाते हैं. बाद में वह शुक्ला को बैंकाक में पहुंचा देते हैं.

एपिसोड में उस के बाद फिर पुराना सीन आ जाता है, जिस में पुलिस टीम गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर ट्रैक करती दिखाई देती है.

इस कहानी को एक बड़े लेवल पर दिखाया जा सकता था, लेकिन यहां पर इसे काफी साधारण तरीके से प्रस्तुत किया गया है. इसलिए इस में मनोरंजन की डोज दर्शक को नहीं मिल पाई है.

इस एपिसोड में कई बार यहां तक कि बारबार कई सीनों को एकदम से रोक कर दूसरा सीन चालू हो जाता है. कुछ समय तक तो कोई भी इसे बरदाश्त कर सकता है, लेकिन जब बारबार यही क्रम दोहराया जाता है तो एक समय ऐसा आ जाता है कि दर्शक बोरियत सी महसूस करने लग जाता है. गैंगस्टर के तौर पर साकिब सलीम और पौलिटीशियन के तौर पर तिग्मांशु धूलिया का काम भी कोई खास नहीं है.

रवि किशन और अहाना कुमरा का काम इस में काफी साधारण सा दिखाई देता है, क्योंकि उन के लिए इस में करने के लिए कुछ विशेष था ही नहीं. कहानी में भी इस में कुछ विशेष दम नहीं है. यूपी का रंगबाज क्या होता है, ये समझने के लिए साकिब सलीम को कुछ दिन यूपी के गोरखपुर, इलाहाबाद या लखनऊ में गुजारने चाहिए थे.

इस सीरीज के दूसरे एपिसोड का नामकरण ‘जवान होना’ के नाम से किया गया है. इस दूसरे एपिसोड में डीएसपी चौबे शिव प्रकाश शुक्ला के पिता प्रमोद शुक्ला की हिम्मत बढ़ाते हुए दिखता है. इस सीन में कानून की धज्जियां उड़ती दिखती हैं. बाद में पता चलता है कि मंत्रीजी ने ही डीएसपी चौबे को शुक्ला के घर भेजा था.

उधर बैंकाक में बैठे शिव प्रकाश शुक्ला को अपने घर वालों और प्रेमिका की चिंता होती है. वह एक दिन अपने घर फोन करने की कोशिश करता है, लेकिन उस का साथी उसे फोन करने से रोक लेता है. तब उस का साथी उसे एक क्लब में ले जाता है, जहां तमाम खूबसूरत लड़कियां उसे रिझाने में लग जाती हैं. शिव प्रकाश वहां कोई भी एंजौय नहीं करता क्योंकि उसे तो अपनी प्रेमिका की याद आती है.

मंत्रीजी ने क्यों दिया शिव प्रकाश को संरक्षण

अगला दृश्य मंत्रीजी शिवप्रकाश के पिता को फोन कर के समझाते हैं कि वह बेटे की चिंता न करें, सही समय पर वह आ जाएगा.

दूसरे सीन में शिव प्रकाश का साथी उसे बैंकाक में एक मर्डर करने को कहता है और उसे एक पिस्टल देते हुए कहता है कि ये आदमी जो सामने लाल कमीज में बैठा है, तुम्हें इसे मारना है. यह मंत्रीजी का पैसा ले कर भागा है. गोरखपुरिया है. यह मंत्रीजी का हुक्म है.

शिव प्रकाश उस का पीछा करते हुए गोली चलाता है, मगर गोली नहीं चलती और गोरखपुरिया और उस का साथी शिव प्रकाश को पीटने लगते हैं. तभी वहां पर शिव प्रकाश का साथी आ कर उन्हें कहता है बस करो. शिव प्रकाश से उस का साथी कहता है, चलो तुम इस परीक्षा में अब पास हो गए हो. चलो, अब वापस चलो. तुम्हारा गोरखपुर लौटने का समय हो गया है. उस के बाद उस क ा साथी प्लेन में बिठा कर हिंदुस्तान ले आता है.

शिव प्रकाश प्लेन से उतर कर टैक्सी में अपने साथी के साथ बैठ जाता है और वह अपने साथी से पूछता है हम कहां जा रहे हैं? उस का साथी कहता है, गुरुजी तुम से मिलना चाहते हैं और उसे मंत्रीजी पास ले कर आ जाता है.

मंत्रीजी शिवप्रकाश से कहते हैं, आजादी मुबारक हो, अब बड़ा काम करने का वक्त आ गया है. फिर मंत्रीजी उसे अपने एक पुराने दुश्मन विधायक को मारने का आदेश देते हैं. उस के बाद दूसरा एपिसोड समाप्त हो जाता है.

दूसरे एपिसोड में भी सभी कलाकारों का काम औसत दरजे का रहा है. एक एसपी रैंक के अधिकारी का गैंगस्टर के पिता के घर पर जाना और उन्हें संरक्षण देना, भारतीय समाज पर नेताओं और प्रशासन की भूमिका को दर्शाता है कि आज नेता तो भ्रष्ट हैं ही, पुलिस प्रशासन भी अब नेताओं की जूती बन कर रह गया है.

रंगबाज सीजन वन के तीसरे एपिसोड की कहानी भिक्षा, शिक्षा और दीक्षा पर आधारित है. एपिसोड की शुरुआत में 1974 में गोरखपुर विश्वविद्यालय को दिखाया गया है, जहां पर कुछ गुंडे विश्वविद्यालय की एक कक्षा में घुस कर मारपीट करने लगते हैं.

मारमीट करने से पहले वे सब लड़कियों को क्लास से बाहर जाने को कहते हैं और पढ़ाने वाले प्रोफेसर को भी वहां से बाहर निकाल देते हैं. गुंडों को फिर शिव प्रकाश और उस के साथी पीट देते हैं. उस के बाद वेब सीरीज की कास्टिंग शुरू हो जाती है.

पहले दृश्य में पुलिस अधिकारी सिद्धार्थ पांडेय (रणवीर शौरी) के पास एक विशेष मुखबिर आ कर बताता है कि शिवप्रकाश का दिल्ली से गोरखपुर जाने का प्लान है. पुलिस अधिकारी फिर अपने मातहतों को कुछ आदेश देता है. तभी दूसरे दृश्य में शिव प्रकाश शुक्ला अपनी प्रेमिका से बातें करता दिखाई देता है.

अहाना कुमरा, शिव प्रकाश को उस के मातापिता की याद दिलाती है तो गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला सीधे अपने घर पहुंच जाता है. शिव प्रकाश की बहन और मां उस से खुशी से लिपट जाते हैं.

अगले दृश्य दृश्य में शिव प्रकाश के साथी उसे किसी को मारने के लिए कहते हैं. शिव प्रकाश अपनी प्रेमिका से बातें करता दिखाया गया है. अगले सीन में पुलिस टीम प्रेमीप्रेमिका की बातों को रिकौर्ड करती दिखाई देती है. फिर शिव प्रकाश शुक्ला परशुराम होस्टल में तनुज को मिलने के लिए बुलाता है और अपने गिरोह में शामिल कर लेता है.

वेब सीरीज रिव्यू : इंस्पेक्टर अविनाश – भाग 3

नंदिनी की कातिल निगाहेंक्यों जमी थीं जेठ पर

सातवें एपीसोड में बबलू को तलाशने की बात होती है. वह अपनी टीम के साथ दुख व्यक्त करते हैं कि वह एक बच्चा नहीं बचा पाए. आगे की कहानी में बबलू भागाभागा फिर रहा होता है. देवी से बात करना चाहता है, पर वह फोन काट देती है. तब वह शेख के पास जाता है. पर वह भी दुत्कार कर भगा देता है.

तब बबलू अपनी प्रेमिका और हर अपराध में सहयोगी पिंकी को अविनाश के पास भेज कर आत्मसमर्पण की बात करता है. पर वह आत्मसमर्पण कर पाता, उस के पहले ही देवी अपने सहयोगियों के साथ जा कर बबलू के गैंग की हत्या कर देती है. इसी के साथ शेख बबलू को जिंदा दफन करवा देता है. देवी की भूमिका अभिमन्यु सिंह ने की है तो अजीमुद्दीन गुलाम शेख की भूमिका अमित सियाल ने की है.

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इस की जानकारी इंस्पेक्टर अविनाश को हो जाती है. उन्हें यह भी पता चल जाता है कि राकेश अग्रवाल के बेटे का अपहरण शेख ने ही करवाया था और उसी के कहने पर बबलू ने बच्चे की हत्या कर दी थी. यह सब वोटों के लिए किया गया था.

शेख रफीक गाजी के भाई इमरान गाजी को देवी मां से मिलवाता है, जो उसे पिस्टल देती है. इस के बाद इमरान गाजी कालेज का चुनाव लड़ता है और गुंडई के बल पर जीत भी जाता है.  इमरान गाजी का रोल जोहैब फारुकी ने किया है. यह अपनी भूमिका में बिलकुल नहीं जमता.

आठवें और अंतिम एपीसोड में इंस्पेक्टर अविनाश शेख के घर मिलने जाते हैं, जहां शेख और अविनाश की कहासुनी होती है, जिस में दोनों ही एकदूसरे को धमकाते हैं. इस के बाद गृहमंत्री का भाई नशा कर रहा होता है तो उस की पत्नी नंदिनी उसे फोन करती है.

वह फोन नहीं उठाता तो वह अपने जेठ यानी गृहमंत्री के पास चली जाती है और सैक्स करने का औफर देती है. मंत्रीजी मजबूर हो कर उस का यह औफर स्वीकार करते हैं, क्योंकि उन का भाई पत्नी को संतुष्ट नहीं कर पा रहा था. घर की इज्जत बचाने के लिए वह उस की इच्छा पूरी करते हैं.

शेख ने क्यों की अपने अम्मीअब्बू की हत्या

दूसरी ओर इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा देवी मां यानी देवीकांत चतुर्वेदी को अपने औफिस बुलाते हैं. दोनों ही एकदूसरे को देख लेने की धमकी देते हैं. अविनाश उस से बबलू पांडेय के गैंग के मारे जाने के बारे में पूछते हैं. पर वह सबूत की बात करता है.

दोनों के ही पास पौलिटिकल पावर है. इसलिए देवी उल्टीसीधी बातें कर के चला जाता है. इस के बाद उस स्कूल में एक बच्चे की हत्या हो जाती है, जिस स्कूल में अविनाश का बेटा पढ़ता है. लेकिन इस का खुलासा अभी नहीं होता, शायद इस के बारे में आने वाले सीजन में दिखाया जाए.

इसी एपीसोड में शेख के बारे में फ्लैशबैक में दिखाया जाता है कि उस की बहन रुखसाना, जिस का रोल जिया सिद्दीकी ने किया है, को उस के अम्मीअब्बू बेच देते हैं तो शेख अपने अम्मीअब्बू की हत्या कर के घर में आग लगा देता है और अपनी बहन को बचाने जाता है, जहां बहन की रीढ़ में गोली लग जाती है, जिस की वजह से वह हमेशा के लिए अपाहिज हो जाती है.

गृहमंत्री राकेश अग्रवाल से मिलने उन के घर जाते हैं और उन से बताते हैं उन के बेटे की हत्या अजीमुद्दीन गुलाम शेख ने करवाई है. तब अग्रवाल इंस्पेक्टर अविनाश से मिलते हैं और कहते हैं कि पैसा चाहे जितना लगे, पर वह शेख को गिड़गिड़ाते हुए, चीखते हुए, जान की भीख मांगते हुए सुनना और मरते हुआ देखना चाहते हैं.

इलेक्शन के लिए देवी और शेख हथियार मंगाते हैं, जो राज्य में सभी जगह बाहुबलियों के पास भिजवा दिए जाते हैं. इसी बीच छात्र नेता इमरान गाजी अविनाश के पिता की पिटाई कर देता है.

आगे क्या हुआ, श्रीप्रकाश शुक्ला को कैसे मारा गया, शेख और देवी का क्या हुआ, यह देखने के लिए अगले सीजन का इंतजार करना होगा.

रणदीप हुड्डा

रणदीप हुड्डा का जन्म 20 अगस्त, 1976 को हरियाणा के रोहतक में डा. रणबीर हुड्डा और आशा हुड्डा के घर हुआ था. रणदीप के पिता डा. रणबीर हुड्डा सर्जन हैं तो मां सामाजिक कार्यकर्ता.

रणदीप का ज्यादातर समय अपनी दादी के साथ रोहतक में ही बीता, क्योंकि उस के मातापिता का अधिकतर समय यात्रा में ही बीतता था. वे ज्यादातर मध्यपूर्व में ही रहते थे. उन की बड़ी बहन अंजलि सांगवान एमबीबीएस डाक्टर हैं और छोटा भाई संदीप हुड्डा एक सौफ्टवेयर इंजीनियर है.

रणदीप की पढ़ाई मोतीलाल नेहरू स्कूल औफ स्पोट्र्स हरियाणा के एक बोर्डिंग स्कूल से हुई, जहां उस ने तैराकी और घुड़सवारी में राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते. इस के बाद उसे थिएटर में रुचि पैदा हुई तो वह स्कूल के नाटकों में हिस्सा लेने लगा. घर वाले चाहते थे कि वह डाक्टर बने, इसलिए उस का दाखिला दिल्ली पब्लिक स्कूल आर.के. पुरम में करा दिया गया.

स्कूली पढ़ाई पूरी कर के रणदीप आस्ट्रेलिया चला गया, जहां उस ने व्यवसाय प्रबंधन और मानव संसाधन प्रबंधन में मास्टर डिग्री ली और इस बीच उस ने चीनी रेस्त्रां, कार धोने, वेटर के रूप में और 2 साल तक टैक्सी ड्राइवर के रूप में काम किया. फिर वह दिल्ली आ गया, जहां एक एयरलाइन के विपणन विभाग में काम करने के साथ मौडलिंग और शौकिया थिएटर में काम करना शुरू किया.

नाटक ‘टू टीच हिज ओन’ के अभ्यास के दौरान निर्देशक मीरा नायर ने अपनी आगामी फिल्म में एक भूमिका  के लिए औडिशन देने को हुड्डा से संपर्क किया.

फिल्मों के अलावा रणदीप हुड्डा सुष्मिता सेन के साथ अपने संबंधों को ले कर सुर्खियों में आया, लेकिन बाद में उस का यह संबंध टूट गया. हुड्डा की फिल्मों के अलावा सामाजिक कार्यों में भी रुचि है.

उर्वशी रौतेला

उर्वशी रौतेला 25 फरवरी, 1994 को हरिद्वार में एक गढ़वाली राजपूत मीरा रौतेला और मनवर सिंह रौतेला परिवार में पैदा हुई थी. उस का परिवार कोटद्वार में रहता था, इसलिए उर्वशी की पढ़ाई कोटद्वार के सेंट जोसेफ कौन्वेंट स्कूल में हुई. कालेज की पढ़ाई उस ने दिल्ली के गार्गी कालेज से की.

उर्वशी 15 साल की थी, तभी उसे विल्स लाइफस्टाइल फैशन इंडिया फैशन वीक में ब्रेक मिला. उस ने मिस टीन इंडिया 2009 का खिताब भी जीता. एक युवा मौडल के रूप में उस ने लक्मे फैशन वीक, अमेजन फैशन वीक, बौंबे फैशन वीक और दुबई फैशन वीक के लिए शो स्टौपर के रूप में रैंप वाक किया.

रौतेला ने इंडियन प्रिंसेज 2011 और मिस एशियन सुपर मौडल 2011 का खिताब भी जीता. उस ने मिस टूरिज्म क्वीन औफ द ईयर 2011 का खिताब भी जीता है, जो चीन में हुआ था. वह यह खिताब जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी.

इसी बीच उसे फिल्म ‘इश्कजादे’ का औफर मिला था, पर उस ने इस औफर को ठुकरा दिया था. क्योंकि उस का ध्यान मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता पर था. उस ने भारत की ओर से इस प्रतियोगिता का प्रतिनिधित्व जरूर किया, पर उसे स्थान नहीं मिला.

रौतेला ने अपने हिंदी फिल्म करिअर की शुरुआत ‘सिंह साब द ग्रेट’ से की, जिस में उस ने सनी देओल के साथ मुख्य भूमिका निभाई थी. फिर तो धीरेधीरे उसे फिल्मों में काम मिलने लगा और वह व्यस्त होती गई.

वेब सीरीज रिव्यू : इंस्पेक्टर अविनाश – भाग 2

मंत्रीजी के बेडरूम में क्यों गई थी नंदिनी

इस के बाद शुरू होता है फिल्मी ड्रामा. इंस्पेक्टर अविनाश के पास एक महिला का फोन आता है, जो उन्हें बताती है कि बिट्टू चौबे ऋषिकेश में छिपा है. बाद में पता चला कि यह सूचना बिट्टू चौबे की पत्नी ने ही दी थी. इंस्पेक्टर अविनाश अपनी टीम के साथ ऋषिकेश पहुंच जाते हैं और फिल्मी स्टाइल में बिट्टू चौबे को मार गिराते हैं.

यहां एक नौटंकी यह होती है कि पति के एनकाउंटर के बाद अचानक उस की पत्नी घटनास्थल पर पहुंच जाती है और पति की लाश देख कर फूटफूट कर रोने लगती है. तब इंस्पेक्टर अविनाश उस के हाथों में कुछ रुपए थमाते हैं. यहां पता चलता है कि किरण कौशिक की हत्या शूटर बिट्टू चौबे ने ही की थी.

इस के बाद राज्य के डीजीपी समर प्रताप सिंह एसटीएफ टीम के साथ खुशी सेलिब्रेट कर रहे होते हैं तो अचानक उन्हें याद आता है कि इस बात को राज्य के गृहमंत्री को भी बताना चाहिए. वह गृहमंत्री को फोन करते हैं तो फोन उन के छोटे भाई की पत्नी नंदिनी उठाती है.

डीजीपी मंत्रीजी से बात कराने को कहते हैं तो नंदिनी फोन ले कर मंत्रीजी के कमरे के सामने जाती है. उस समय मंत्रीजी पूरे जोश के साथ सैक्स कर रह होते हैं, जिस का अहसास नंदिनी को हो जाता है. वह उदास हो जाती है, क्योंकि उस का नशेड़ी पति कभी उस के साथ सैक्स नहीं करता था. इस की वजह यह थी कि नशे की लत की वजह से वह सैक्स करने लायक ही नहीं रह गया था.

नंदिनी मंत्रीजी का दरवाजा खटखटाती है तो मंत्रीजी बेमन से गाउन पहन कर दरवाजा खोलते है. वह उन्हें फोन थमाती है तो वह फोन ले कर अंदर चले जाते हैं. पर उस समय नंदिनी का मन सैक्स के लिए बेचैन हो उठा था, इसलिए वह मंत्रीजी के कमरे के बाहर ही खड़ी रहती है. नंदिनी की भूमिका में आयशा एस. मेमन है, जो खूबसूरत भी है और सैक्सी भी.

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सेलिब्रेशन के दौरान ही इंस्पेक्टर अविनाश की टीम के सदस्य बलजीत सिंह को अपनी पत्नी की याद आती है, जिस से उन की अधिक शराब पीने की वजह से लड़ाई हो गई थी. बलजीत की पत्नी सुमन डाक्टर है. बलजीत का रोल शालीन भनोट ने किया है, जो एक युवा कलाकार है. वह उसे फोन करता है, पर वह फोन नहीं उठाती, जिस से वह दुखी हो जाता है. अविनाश उसे समझाते हैं.

भाटी को किस ने लगाया जहर का इंजेक्शन

अगले दृश्य में गुड्डू अंसारी का जिक्र आता है, जो अवैध हथियार सप्लाई करता था. एसटीएफ यानी इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा की टीम गुड्डू अंसारी की शुगर मिल पर पहुंचती है, जहां हथियारों से भरा ट्रक पकड़ा जाता है.

मुठभेड़ में गुड्डू अंसारी और उस के गैंग के सारे सदस्य मारे जाते हैं. लेकिन गुड्डू के यहां हथियार खरीदने आया भाटी फिल्मी स्टाइल में भाग निकलता है तो अविनाश मिश्रा उसे फिल्मी स्टाइल में ही पकड़ते हैं और ला कर उसे इंट्रोगेशन रूम में बंद कर देते हैं.

भाटी से पूछताछ चल रही होती है कि स्पैशल सेल का अधिकारी दासगुप्ता अपनी टीम के साथ एसटीएफ के औफिस पहुंच जाता है और बवाल कर देता है. उसी बीच पूछताछ के दौरान भाटी की मौत हो जाती है, जिस से इंस्पेक्टर अविनाश सकते में आ जाते हैं. अपनी टीम पर वह चिल्लाते हैं.

इस की बड़ी वजह यह थी कि उन्हें जो जानना था, वह जान नहीं पाए थे. दूसरी वजह इस से एसटीएफ की बड़ी बदनामी हुई, क्योंकि उस की मौत एसटीएफ की हिरासत में हुई थी. इसी वजह से रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में इनक्वायरी के आदेश हो गए. पूरी टीम को जांच का सामना करना पड़ता है.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि भाटी की मौत जहर से हुई थी, जिस में भाटी को चाय पिलाने वाले कांस्टेबल लक्ष्मीकांत को सस्पेंड कर दिया जाता है. पर बाद में पता चलता है कि भाटी को जहर इंजेक्शन से दिया गया था, इसलिए लक्ष्मीकांत का सस्पेंशन खत्म हो जाता है. लक्ष्मीकांत की भूमिका में वी. शांतनु है.

बीचबीच में पारिवारिक ड्रामा भी चलता रहता है. अंत में दिखाया जाता है कि अजीमुद्दीन गुलाम शेख किसी डाक्टर को फोन कर के कहता है कि आप ने काम को बहुत अच्छी तरह अंजाम दिया है, जिस के लिए मैं आप को नजराना भिजवा रहा हूं और फिर एक बैग में रुपए भर कर वह अपने आदमी से भिजवाता है.

एसटीएफ क्यों बनी थी बाराती

चौथे एपीसोड की शुरुआत बड़े ही भयानक दृश्य से होती है. एक आदमी को बांध कर रखा जाता है, जिस का पूरा शरीर खून से लथपथ है. शेख यानी अजीमुद्दीन गुलाम शेख उस के शरीर में ड्रिल मशीन चला कर उसे टौर्चर करता है और अंत में उस की हत्या कर देता है. पर यहां यह नहीं बताया गया कि शेख उस के साथ ऐसा क्यों करता है?

इस के बाद इंस्पेक्टर अविनाश एक नाचने वाली यानी मीटू पंजाबन के यहां जाते हैं, जहां उन्हें मुजफ्फरनगर के नामी बदमाश रफीक गाजी के बारे में पता चलता है. यहां पर मीटू पंजाबन का रोल आकांक्षा पुरी ने किया है. पर साथ ही यह भी पता चलता है कि पूरा गांव उस की मदद के लिए खड़ा रहता है. तब इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा अपनी टीम को बाराती बना कर रफीक के गांव जाते हैं और उसे पकड़ कर जंगल में लाते हैं, जहां उस का एनकाउंटर कर देते हैं.

रफीक गाजी के अंतिम संस्कार में शेख पहुंचता है और मुसलिमों को भड़काता है, खासकर रफीक के छोटे भाई को बदला लेने के लिए उकसाता है. रफीक से मुठभेड़ में बलजीत को गोली लग जाती है.

इस के बाद शेख गृहमंत्री वीरभूषण से मिलता है और उन्हें धमकी देता है कि वह एसटीएफ को थोड़ा काबू में रखें, क्योंकि ज्यादातर उसी के सपोर्टर मारे जा रहे हैं. जब वह बाहर निकलने लगता है तो व्यवसायी राकेश अग्रवाल मिल जाता है, जिन से पैसों के लेनदेन की बात होती है.

दूसरी ओर अविनाश की टीम श्रीप्रकाश शुक्ला को ठिकाने लगाने की बात करती है. तभी पता चलता है कि भाटी ने एसटीएफ औफिस से जो फोन किया था, वह कोई देवी है.

चौथे एपीसोड में ही लक्ष्मीकांत ड्यूटी पर वापस आता है. इस के बाद इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा देवी यानी देवीकांत चतुर्वेदी से मिलने उस के घर यानी विशाल मठ जाते हैं, जहां कस्टडी में मारे गए भाटी को ले कर चर्चा होती है, साथ ही इंस्पेक्टर अविनाश भाटी को ले कर देवी को धमकी भी देते हैं.

40 बच्चों का क्यों किया था अपहरण

पांचवें एपीसोड की शुरुआत डीजीपी समर प्रताप सिंह के घर से पारिवारिक ड्रामे से होती है. इस के बाद गृहमंत्री के घर का पारिवारिक ड्रामा दिखाया जाता है, जिस में वह अपने छोटे भाई शशि की पत्नी नंदिनी को पिस्टल देते हुए राजनीति में आने को कहते हैं.

दूसरी ओर देवी शेख के घर जाता है और राजनीति की बातें करते हुए इंस्पेक्टर अविनाश के बारे में कहता है कि गृहमंत्री ने उसे उन के पीछे लगा रखा है. शेख और गृहमंत्री अपनीअपनी बिसात बिछाने में लगे हैं.

इसी एपीसोड में अग्रवाल के बेटे गट्टू का अपहरण हो जाता है, जिस की जांच एसटीएफ को सौंप दी जाती है. इस में इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा जेल में बंद एक अपराधी की मदद लेते हैं. पर इस मामले में इंस्पेक्टर अविनाश फेल हो जाते हैं.

बबलू पांडेय नाम का अपराधी फिरौती भी ले जाता है और बच्चे की हत्या भी कर देता है, जिस का इंस्पेक्टर अविनाश को काफी मलाल होता है. शेख अग्रवाल के यहां उन के बेटे के अंतिम संस्कार में आता है और लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काता है.

छठें एपीसोड में इंस्पेक्टर अविनाश का बेटा स्कूल से घर नहीं आता. इस के बाद पूरा पुलिस बल अविनाश के बेटे की तलाश में लग जाता है. तभी पता चलता है कि 40 बच्चों को ट्रक में भर कर तस्करी के लिए ले जाया जा रहा है.

अविनाश मिश्रा की टीम उन बच्चों को आजाद कराती है. अविनाश मिश्रा ड्राइवर को मार देते हैं. घर लौट कर आते हैं तो थोड़ी देर में उन का बच्चा आ जाता है. इस के बाद वह बबलू पांडेय के पीछे पड़ जाते हैं. बबलू इस से घबरा कर अपने आका शेख से मदद मांगता है. पर वह मदद करने के बजाय उसे दुत्कार कर भगा देता है.

बीचबीच में पारिवारिक ड्रामा चलता है. अस्पताल में भरती बलजीत का इलाज उस की पत्नी सुमन कर रही होती है. वह उस से संबंध सुधारने की कोशिश करता है.

दूसरी ओर बेटे की पुलिस की नौकरी से नफरत करने वाले अविनाश के पिता उसे धिक्कारते हैं कि राकेश अग्रवाल के बेटे की जगह उन का पोता वरुण भी हो सकता था. इसी के साथ फ्लैशबैक में इंस्पेक्टर अविनाश का बचपन दिखाया जाता है.

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कहानी आगे बढ़ती है तो कानपुर में एक बहुत ही दुखद घटना घट जाती है, जिस में एक 3 बदमाश घर में घुस कर लूटपाट तो करते ही हैं, साथ ही घर की 3 महिलाओं के साथ दुष्कर्म भी करते हैं. इस घटना से पूरा प्रदेश सिहर उठता है.

मामला एसटीएफ को सौंपा जाता है तो इंस्पेक्टर अविनाश अपनी टीम के साथ बदमाशों की खोज में लग जाते हैं. एक बदमाश का स्केच बनवा कर आखिर वह बदमाशों तक पहुंच ही जाते हैं और तीनों बदमाशों को मार गिराते हैं.

वेब सीरीज रिव्यू : इंस्पेक्टर अविनाश – भाग 1

लेखक: राहुल शुक्ला, समीर अरोड़ा, उत्कर्ष खुराना, संजय मासूम

निर्देशक: नीरज पाठक

कलाकार: रणदीप हुड्डा, अभिमन्यु सिंह, उर्वशी रौतेला, अमित सियाल, फ्रेडी दारूवाला, गोविंद नामदेव, जाकिर हुसैन, किरण कुमार, राहुल मित्रा, वरुण मिश्रा, वी शांतनु, प्रवीण सिंह सिसोदिया, आयशा एस. मेमन, संदीप चटर्जी, आकांक्षा पुरी आदि.

यह वेब सीरीज एक एंटरटेनिंग थ्रिलर है. उत्तर प्रदेश के सुपरकौप कहे जाने वाले अविनाश मिश्रा के किरदार में रणदीप हुड्डा ने खुद को बहुत ही शानदार तरीके से ढालने की कोशिश की है. उत्तर प्रदेश की भाषा भी वह अच्छी तरह बोल लेता है.

जियो सिनेमा पर 8 एपीसोड में रिलीज हुई वेब सीरीज ‘इंस्पेक्टर अविनाश’ के साथ उत्तर प्रदेश के एनकाउंटर स्पैशलिस्ट अविनाश मिश्रा एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं. उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में पैदा हुए अविनाश मिश्रा साल 1982 में पुलिस में भरती हुए थे.

एसटीएफ का गठन होने से ले कर साल 2009 तक वह एसटीएफ में रहे. डिप्टी एसपी के पद से वह रिटायर हुए थे. उन के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे. वह बिलकुल नहीं चाहते थे कि बेटा पुलिस की नौकरी में जाए. लेकिन अविनाश मिश्रा की जिद थी पुलिस में जाने की. उन में अपराधियों के सफाए का जुनून था.

उत्तर प्रदेश के अपराधों से परिचय कराने वाली इस सीरीज के लेखकों ने सच्ची घटनाओं पर कहानी लिखने की कोशिश तो की है, पर देखा जाए तो वह बढिय़ा कहानी लिख नहीं पाए. जबकि इस के एक लेखक संजय मासूम ने मनोहर कहानियां के संपादकीय विभाग में कई सालों तक काम भी किया है और उन्होंने कई हिट फिल्मों के डायलौग भी लिखे हैं.

अगर किसी के जीवन पर कहानी लिखी जा रही है तो उस के जीवन की एकएक घटना को बारीकी से देखना और लिखना चाहिए. यह कोई फिल्म तो थी नहीं कि समय का बंधन था, इसलिए इसे और विस्तार से लिखा जा सकता था, जिस से सीरीज और ज्यादा रोमांचक और दर्शनीय बना जाती.

सीरीज में ऐसी तमाम कमियां हैं, जो दर्शकों को सीरीज में अधूरी सी लगती हैं और उस के रोमांच को भी कम करती हैं. साथ ही उसे सोचने पर मजबूर करती हैं कि उस का क्या हुआ होगा?

इंस्पेक्टर अविनाश जब बिट्टू चौबे का एनकाउंटर करते हैं तो अविनाश उस की पत्नी के हाथों में कुछ रुपए थमाते हैं, वह भी भीड़ के सामने. यह सीन तो बिलकुल हजम नहीं होता. डायरेक्टर को यहां पर ध्यान देना चाहिए था. वह उस की मदद अलग तरह से भी करवा सकते थे.

इस के अलावा जब भाटी की मौत होती है और यह पता चलता है कि उसे इंजेक्शन से जहर दिया गया था तो इस बात को बीच में छोड़ देना एक तेजतर्रार पुलिस वाले के लिए अच्छा नहीं लगता.

बबलू पांडेय की प्रेमिका पिंकी को लापता कर देना भी सोचने को मजबूर करता है, जबकि अग्रवाल के बेटे के अपहरण की वह एक मजबूत गवाह और कड़ी थी. उसी ने इंस्पेक्टर अविनाश की बबलू पांडेय से बात भी कराई थी. इसी तरह इंस्पेक्टर अविनाश का बेटा लापता होता है और फिर अचानक घर वापस आ जाता है, पर यहां यह नहीं बताया जाता कि वह कहां था.

इसी तरह की सीरीज में और भी तमाम कमियां हैं, जो एक सत्यकथा को झूठा साबित करने की कोशिश करती हैं.

इस ओर न तो डायरेक्टर ने ध्यान दिया, न लेखकों ने. इस सीरीज ने दर्शकों को अपनी ओर खींचा जरूर है, लेकिन लेखकों और डायरेक्टर ने बारीकी से एकएक बात पर ध्यान दिया होता तो शायद यह सीरीज और ज्यादा लोकप्रिय होती और मील का पत्थर भी साबित होती, साथ ही एक जीवित चरित्र को और लोकप्रियता दिलाती. इस में ऐसे तमाम दृश्य हैं, जो सत्य लगने के बजाय सिनेमाई लगते हैं, जो एक सत्यकथा को झूठा साबित करते हैं.

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पहले एपीसोड की शुरुआत में ही यानी प्रस्तावना में इंस्पेक्टर अविनाश का आतंक दिखाया गया है. एक थाने में अचानक एक माफिया सरगना महाकाल सिंह उपस्थित होता है, जिसे देख कर सारे पुलिस वाले घबरा जाते हैं. लेकिन पता चलता है कि वह माफिया थाने पर अटैक करने नहीं, बल्कि आत्मसमर्पण करने आया था. उस का कहना था कि जेल में रह कर वह जिंदा तो रहेगा, क्योंकि बाहर अविनाश मिश्रा उसे जीने नहीं देगा.

महाकाल सिंह की भूमिका किसी छोटेमोटे कलाकार ने की है. इस के बाद इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा ने एक माफिया नेता का एनकाउंटर गंगा में डुबकी लगा कर किया.

क्यों बनानी पड़ी एसटीएफ

कहानी में आगे न्यायालय परिसर में इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा को दिखाया जाता है, जहां उन के जिंदाबाद के नारे लग रहे होते हैं. न्यायालय में वह इसलिए आए हैं, क्योंकि उन पर 3 लड़कों के फरजी एनकाउंटर का आरोप था. उन्होंने न्यायालय में जज के सामने स्वीकार भी किया कि उन्होंने ही ये एनकाउंटर किए थे और मौकाएवारदात पर वह शराब पी कर गए थे.

इसी के बाद फ्लैशबैक में सीरीज शुरू होती है. इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा की भूमिका रणदीप हुड्डा ने की है. जैसा कि रणदीप के बारे में कहा जाता है कि वह एक अच्छा कलाकार है, उसी तरह उस ने इंस्पेक्टर अविनाश की भूमिका बखूबी निभाई भी है.

उस समय उत्तर प्रदेश में गुंडों का आतंक था. हालात यह थे कि एक माफिया (श्रीप्रकाश शुक्ला) ने तो मुख्यमंत्री की हत्या की सुपारी ले ली थी. ऐसे में राज्य के मुख्यमंत्री गृहमंत्री की उपस्थिति में पुलिस अधिकारियों की मीटिंग करते हैं.

मुख्यमंत्री की भूमिका में जहां किरण कुमार है, वहीं गृहमंत्री की भूमिका फ्रेडी दारूवाला ने की है. ये दोनों कलाकार भले ही मंझे हुए हैं, पर मुख्यमंत्री की भूमिका में न तो किरण कुमार ही जमता है और न ही गृहमंत्री की भूमिका में फ्रेडी दारूवाला. ये दोनों ही कलाकार नौटंकी करते लगते हैं.

मीटिंग में प्रदेश के डीजीपी समर प्रताप सिंह एक ऐसी पुलिस फोर्स गठित करने की बात करते हैं, जो प्रदेश के अपराधियों को काबू कर सके और उन्हें उन के किए की सजा दे सके.

डीजीपी समर प्रताप सिंह की भूमिका में जाकिर हुसैन है. वह सीरीज में दिखाई तो कम दिया है. इस के बाद स्पैशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन होता है, जिस में इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा को प्रभारी बनाया जाता है. इसी के बाद अपराधियों को काबू करने का मिशन शुरू होता है.

पहले एपीसोड में अयोध्या में आरडीएक्स पहुंचाने और एक मंदिर में बम रखने की घटना दिखाई जाती है. इंस्पेक्टर अविनाश की टीम पहले तो उन आतंकियों को चलती ट्रेन से पकड़ती है, उस के बाद मंदिर परिसर में रखे बमों को निष्क्रिय करती है. वैसे यह सब फिल्मी अंदाज में दिखाया जाता है.

इसी बीच धर्म को बढ़ावा देने वाली एक घटना दिखाई जाती है कि एक आतंकी, जो मंदिर में छिपा था, पुलिस के बीच से भागता है. पर जब इंस्पेक्टर अविनाश उसे फिल्मी अंदाज में पकड़ते हैं तो वह कहता है कि बस एक मिनट बाकी है. पूरी पुलिस फोर्स बम की तलाश में लग जाती है.

जब सभी ऊपरी मंजिल पर पहुंचते हैं तो देखते हैं कि बिजली के बौक्स के पास एक बंदर एक तार को पकड़ कर दांत से काट रहा है. उसे केला फेंक कर भगाया जाता है तो बम निष्क्रिय करने वाला एक्सपर्ट बताता है कि बंदर ने तो पहले ही तार काट कर बम निष्क्रिय कर दिया है. सभी श्रद्धा से बंदर की ओर देखते हैं.

यहां यह दृश्य फिल्मी लगता है, पर इस दृश्य को डाल कर जहां आस्था को भुनाने की कोशिश की गई लगती है. वहीं लोगों को आस्तिक बनाने की भी कोशिश की गई है.

दूसरे एपीसोड में शुरुआत में अविनाश मिश्रा को एक मुखबिर बरकत से मिलते दिखाया जाता है. तब इंस्पेक्टर अविनाश कहते हैं कि यही मुखबिर हमारी ताकत हैं, तंत्र हैं और मायाजाल हैं. इस के बाद एक दृश्य दिखाया जाता है, जिस में एक आदमी अपनी ही पत्नी के साथ जबरदस्ती सैक्स करता है. बाद में पता चलता है कि उस का नाम बिट्टू चौबे है, जो एक शूटर है. बिट्टू चौबे की भूमिका में रेश लांबा है, जो सचमुच में एक शूटर लगता है.

इस के बाद विपक्ष के एक कद्दावर नेता की बेटी किरन कौशिक की हत्या हो जाती है. इस मामले की जांच जो इंस्पेक्टर देवी कर रहा है, उस के साथ डीजीपी अविनाश मिश्रा को भी इस मामले की जांच करने के लिए कहते हैं. इंस्पेक्टर अविनाश को काल डिटेल्स से पता चलता है कि किरण का संबंध विधायक जगजीवन यादव से था. जगजीवन यादव की भूमिका में राहुल मित्रा है. यह कोई बहुत चर्चित कलाकार नहीं है.

जगजीवन यादव पर शक करने की वजह यह थी कि किरण और उस के बीच रात को लंबीलंबी बातें होती थीं. अविनाश जगजीवन यादव के पास पहुंच जाते हैं. उसे उस की असलियत बता कर धमकाते हैं. बदले में विधायक भी धमकी देता है. तब विधायक का एक आदमी इंस्पेक्टर को अलग ले जा कर फाइल दबाने की बात करता है. इस के बदले इंस्पेक्टर अविनाश अपने मुखबिर बरकत की मदद करने को कहते हैं.

वर्चस्व की होड़ में मारवाड़ के गैंगस्टर्स

वर्चस्व की होड़ में मारवाड़ के गैंगस्टर्स – भाग 4

कैलाश मांजू का कहना है कि जब लारेंस को पता चला कि वह भरतपुर की जेल में बंद है तो उस ने उस से पुरानी दुश्मनी का बदला लेने के लिए उसी जेल में बंद गणेश मांजू के साथ मिल कर हमला करने का प्लान बनाया. इस मामले को ले कर वह सब से पहले आनंदपाल के भाई मंजीत से मिला. लेकिन उस ने मुझ पर हमला करने से साफ मना कर दिया.

उस के बाद उस ने इस बारे में मांगीलाल नोखड़ा से बात की तो उस ने भी उस का साथ देने से साफ मना कर दिया. उस के बाद उस ने दीपक गुर्जर को हमले की जिम्मेदारी दी, लेकिन इस से पहले कि वह उस पर हमला कर पाता, उस से पहले ही बोरानाड़ा की पुलिस ने उसे अरेस्ट कर लिया.

वर्ष 2018 में कैलाश मांजू पैरोल पर जेल से बाहर आ गया. उस के बाद लारेंस फिर से उस से बदला लेने का मौका तलाशने लगा. वर्ष 2022 में कैलाश ने जैसलमेर घूमने का प्लान बनाया. उसी दौरान लारेंस विश्नोई ने फिर से उस की हत्या कराने के लिए गोल्डी बराड़ से मदद मांगी. इस बार गोल्डी बराड़ के शूटरों मलकीत सिंह और हरदीप सिंह को उसे मारने की सुपारी दी गई.

सुपारी मिलते ही मलकीत सिंह और हरदीप सिंह दोनों जोधपुर पहुंच गए. जोधपुर पहुंचते ही दोनों गणेश मांजू से मिले. वहीं से दोनों कैलाश की हत्या करने के इरादे से जैसलमेर आए, लेकिन वहां पर भी उन्हें उस पर हमला करने का मौका नहीं मिला.

उस के बाद दोनों वहां से पंजाब के भटिंडा चले गए. 22 जुलाई, 2022 को भटिंडा पुलिस ने दोनों को दबोच लिया. उन के पास से 7 पिस्टल बरामद हुई थीं. पुलिस पूछताछ में उन्होंने बताया था कि वह कैलाश मांजू की हत्या करने का प्लान बना कर आए थे.

कैलाश मांजू है सरेंडर के मूड में

मलकीत सिंह और हरदीप सिंह के गिरफ्तार होते ही लारेंस को बड़ा धक्का लगा. उस के बाद भी उस ने हार नहीं मानी. इस काम को अंजाम देने के लिए उस ने कैलाश मांजू के चचेरे भाई गणेश मांजू को अपने गैंग में शामिल कर लिया. जिस के बाद से हथियार सप्लाई का पूरा काम वही देख रहा है.

कैलाश मांजू ने बताया कि हथियार जैसलमेर से हो कर जोधपुर आते हैं. पंजाब भी हथियार यहीं से आए थे. पाकिस्तान से आने वाले हथियार भी जैसलमेर से लगते बौर्डर से हो कर आते हैं. गणेश मांजू के भाई ने जैसलमेर में जुतासे की जमीन ले रखी है. जिस के कारण उस का यहां पर आनाजाना लगा रहता है.

कैलाश मांजू ने बताया कि सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद हथियार सप्लाई के शक में एनआईए ने गणेश मांजू के निवास पर छापे मारे. उस के साथ मेरे निवास पर भी छापे मारे गए. उसी समय एनआईए की टीम ने 21 फरवरी, 2023 को लारेंस गैंग से जुड़े बदमाशों के 23 ठिकानों पर दबिश दी थी.

कैलाश मांजू ने बताया कि इस वक्त जोधपुर में गैंग 007 को गणेश मांजू ही चला रहा है. उस गैंग में कई ऐसे बदमाश हैं जो सरनेम मांजू लगाते हैं. यहां पर जो भी केस होते हैं, पुलिस मांजू का नाम सुनते ही वह केस मेरे नाम पर डाल देती है. जिस के कारण उस पर अनेक ऐसे मामले दर्ज हो चुके हैं, जिन से उस का कोई लेनादेना नहीं. कैलाश मांजू ने बताया कि जब कभी भी जोधपुर में कोई ईमानदार बड़ा अधिकारी आएगा तो वह उस के सामने सरेंडर कर देगा.

कैलाश मांजू ने बताया कि इस वक्त जोधपुर पुलिस ने उस पर राजपासा ऐक्ट लगा रखी है, जिस के कारण उसे अतिशीघ्र पकडऩे की कोशिश की जा रही है. पुलिस रिकौर्ड के अनुसार, उस ने लारेंस के सहयोगी के तौर पर कई घटनाओं को अंजाम दिया था. लेकिन उस का कहना है कि यह उस पर सरासर इलजाम है. लारेंस विश्नोई के साथ उस के संबंध ज्यादा दिन नहीं चले. कुछ समय बाद ही उस की उस से दुश्मनी हो गई थी.

भले ही राजस्थान में इस वक्त कई ऐसे गैंग मौजूद हैं, जिन्होंने जनमानस में दहशत फैला रखी है, वहीं पुलिस की नाक में दम कर रखा है. लेकिन यह तो तय है कि जिस ने भी अपराध की दुनिया में कदम रखा, उस का वक्त ज्यादा दिन नहीं चलता. आखिरकार, गैंगस्टर की दुर्गति बुरी ही होती है. गैंगस्टर या तो गैंगवार का शिकार होता है या फिर पुलिस की गोली का शिकार बनता है या फिर जेल की सलाखों के पीछे आंसू बहाने पड़ते हैं.

जोधपुर के मारवाड़ के शांत इलाके में तमाम गैंगस्टर पनपने लगे हैं. अपराधी किस्म के युवक अपराध की राह पर अपने कदम बढ़ा रहे हैं. जिस के कारण राजस्थान में अपहरण और फिरौती की घटनाएं लगातार बढ़ती ही जा रही हैं. राजस्थान में आए दिन बढ़ते अपराधों को देख कर राजस्थान प्रशासन इन के प्रति ऐक्शन के मूड में है. अपराधियों से निपटने के लिए राजस्थान कंट्रोल औफ आर्गेनाइज्ड क्राइम कानून लाया जा रहा है. प्रदेश सरकार यह कानून महाराष्ट्र के मकोका यानी महाराष्ट्र कंट्रोल औफ आर्गेनाइज्ड क्राइम की तर्ज पर ला रही है.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की बैठक में राजस्थान कंट्रोल औफ आर्गेनाइज्ड क्राइम बिल 2023 को मंजूरी दे दी गई है. राकोका बिल पारित होने के बाद अपराधियों और उन को शरण देेने वालों के खिलाफ कड़ी काररवाई कर नकेल कसी जाएगी. ताकि हर इंसान अपराध की राह पकडऩे से पहले हजार बार सोचे.

वर्चस्व की होड़ में मारवाड़ के गैंगस्टर्स – भाग 3

लारेंस विश्नोई का दायां हाथ है मांगीलाल

जोधपुर में लारेंस विश्नोई के जितने मजबूत तार हैं, उन्हीं तारों में से एक का नाम है मांगीलाल नोखड़ा. मांगीलाल नोखड़ा लारेंस का राइट हैंड माना जाता है. मांगीलाल नोखड़ा जोधपुर के गांव भाटियान का रहने वाला है.

मांगीलाल नोखड़ा ने अपने अपराध की शुरुआत नशीले पदार्थ की तस्करी से शुरू की थी. तस्करी करते हुए एक दिन वह जोधपुर पुलिस के हत्थे चढ़ गया और पुलिस ने उसे सीधे जेल में डाल दिया. वहीं पर उस की मुलाकात गैंगस्टर लारेंस विश्नोई से हुई. कुछ ही समय में जेल में रह कर दोनों में दोस्ती भी हो गई.

कुछ समय की जेल काटने के बाद मांगीलाल नोखड़ा रिहा हो कर जेल से बाहर आ गया. मांगीलाल जेल में तो रहा, लेकिन जब वह बाहर आया तो कुम्हार के बरतनों की तरह आवे से बाहर पका हुआ निकल कर आया था. लारेंस के संपर्क में आने के बाद वह और भी पक्का अपराधी बन गया था.

जेल से बाहर आते ही उस ने लारेंस विश्नोई के गैंग को जौइन कर लिया था. फिर वह लारेंस के इशारे पर ही काम करने लगा था. मांगीलाल नोखड़ा की एक तारीफ हर तरफ होती थी कि वह किसी भी गरीब इंसान को नाजायज नहीं सताता, बल्कि समाजसेवा के क्षेत्र में उस का नाम था.

मांगीलाल एक शादी को ले कर क्षेत्र में चर्चित हुआ. उसी के गांव का जसाराम पंचारिया था. जसाराम पंचारिया की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, जिस के कारण वह अपनी बेटी की शादी नहीं कर पा रहा था. जसाराम की हालत देखते हुए उस ने उस की बेटी की शादी स्वयं ही करने का प्रण लिया. उस शादी में होने वाला खर्च तो उस ने उठाया ही, साथ ही लोगों को निमंत्रण भी स्वयं ने ही दिए थे.

मांगीलाल ने अपनी गैंग के साथ सभी बारातियों का शाही अंदाज में स्वागत भी किया था. हालांकि पुलिस मांगीलाल को ढूंढ रही थी. लेकिन मांगीलाल शादी की सारी रस्में पूरी करने के बाद वहां से फरार हो गया था. लेकिन एक दिन वह पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया.

पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर बीकानेर की जेल में डाल दिया था. मांगीलाल को कुछ दिन बीकानेर में रखने के बाद जोधपुर जेल में शिफ्ट किया जा रहा था. उसी दौरान वह पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गया. लेकिन पुलिस ने दिनरात एक करते हुए उसे फिर से गिरफ्तार कर लिया था.

फरवरी, 2022 को मांगीलाल को जमानत मिली. तब मांगीलाल की जमानत की खुशी में पूरे गांव में जश्न भी मनाया गया था. उसी जश्न के दौरान मांगीलाल नोखड़ा और पुलिस के बीच हवाई फायरिंग भी हुई थी, जिस के कारण पुलिस ने उसे फिर से गिरफ्तार कर लिया था.

मांगीलाल नोखड़ा जोधपुर थाने का हार्डकोर हिस्ट्रीशीटर माना जाता है, जिस पर अपहरण, हत्या, जानलेवा हमला, मादक पदार्थों की तस्करी और पुलिस पर फायरिंग सहित कई दरजन केस दर्ज हैं.

कैलाश और लारेंस के बीच हुई खटपट

लारेंस विश्नोई का एक और करीबी माना जाता है कैलाश मांजू को. कैलाश मांजू पर राजस्थान में मर्डर, सुपारी, फिरौती और अवैध वसूली के 42 मुकदमे दर्ज हैं. वह पिछले 20 सालों से पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ है. इन 20 वर्षों के दौरान पुलिस उसे 2 बार गिरफ्तार कर पाई है. 2018 में वह पैरोल से फरार हो गया था. उस के बाद से वह आज तक पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका.

कैलाश मांजू के पिता रामचंद्र भी पहले सरपंच थे. बाद में कैलाश मांजू भी सरपंच बन गया. सरपंच रहने के दौरान ही वह लारेंस के संपर्क में आया. वर्ष 2017 में लारेंस के साथ मिल कर उस ने जोधपुर में रंगदारी और फिरौती का नेटवर्क बनाना शुरू किया.

उसी समय कैलाश मांजू ने जोधपुर के टौप बिजनैसमैन और रसूखदारों की लिस्ट लारेंस को भेजी. फिर लारेंस के सहारे ही फिरौती की डिमांड करने से ले कर फायरिंग तक की प्लानिंग भी वही करने लगा था. लेकिन कुछ समय बाद दोनों के रास्ते अलगअलग हो गए. उस के आगे की कहानी स्वयं कैलाश मांजू ने जो लेखक को बताई, वह इस प्रकार थी.

उसी दौरान लारेंस ने राजस्थान में डायरेक्ट एंट्री करने की योजना बनाई. इस के लिए उस ने राजस्थान के लोकल गैंग के संचालक विष्णु कावां से संपर्क किया. विष्णु कावां से संपर्क करते ही लारेंस ने जोधपुर के बड़े बिजनैसमैन की लिस्ट बनाने को कहा. विष्णु कावां ने जैन ट्रैवल्स के मालिक मनीष जैन और जोधपुर के श्रीराम अस्पताल के डायरेक्टर सुनील चांडक की पूरी प्रोफाइल और फोन नंबर लारेंस विश्नोई को दे दिए.

उस के बाद लारेंस के गुर्गों ने फोन कर के दोनों से लाखों की फिरौती मांगी. फिरौती न देने पर 17 मार्च, 2017 को जोधपुर के बदमाशों ने मनीष जैन और सुनील चांडक के घरों पर धावा बोल दिया. दोनों के घरों पर दहशत फैलाते हुए फायरिंग की और वहां पर खड़ी कारों में आग लगा दी. उस के बाद भी कई बार फोन कर के दोनों को धमकाया गया.

लारेंस ने दी कैलाश मांजू को धमकी

ओम बागेरसा मनीष जैन के पार्टनर थे. यह बात जब बागेरसा को पता चली तो उन्होंने कैलाश मांजू से फोन पर संपर्क किया. यह जानकारी मिलते ही कैलाश मांजू ने मनीष जैन से लारेंस को एक पैसा देने से मना कर दिया. उसी समय मैं ने लारेंस को फोन पर बात की, जिस की डिटेल्स इस प्रकार है—

लारेंस- मैं ने सुना है कि सुनील चांडक और मनीष जैन बहुत पैसे वाले हैं. ये लोग कितना पैसा दे देंगे?

कैलाश- यह जोधपुर है, मुझे इतने साल हो गए इस लाइन में आए हुए. आज तक किसी ने मुझे कोई पैसा नहीं दिया. यहां पर कहावत है कि चमड़ी चली जाए, लेकिन दमड़ी न जाए. यहां के लोग पैसे नहीं देंगे, चाहे तुम कितनी भी धमकी दे दो.

लारेंस- यहां की पुलिस कैसी है?

कैलास- यहां की पुलिस गोली और डंडों से नहीं मारती, दिमाग से मारती है. वो लोग पेन से इतने केस और धाराएं लगाएंगे कि तुम कभी जेल से बाहर नहीं आ पाओगे. मैं कई सालों से इन के पैन की मार ही झेल रहा हूं.

लारेंस- पेन से तो हम नहीं मर सकते.

उस के बाद फोन कट गया.

कैलाश से बात करने के दौरान लारेंस समझ गया कि मनीष जैन उसी के कहने पर पैसे नहीं दे रहा. थोड़ी देर बाद ही उस ने फिर से कैलाश मंजू को फोन लगा दिया.

लारेंस- तो तुम ने ही मनीष जैन को पैसे देने के लिए मना कर दिया. तुम ने ऐसा क्यों किया?

कैलाश- मनीष जैन मेरे भाई हैं वो पैसे नही देंगे.

लारेंस- तेरी हिम्मत कैसे हुई मना करने की?

कैलाश मांजू- तू गलत नंबर डायल कर रहा है, यह तेरा पंजाब नहीं, राजस्थान है.

लारेंस- मैं तुझे ऐसा फंसाऊंगा कि तू सारी जिंदगी याद रखेगा.

कैलाश- किसी गलतफहमी में मत रहना. मैं तेरी सारी हेकड़ी निकाल दूंगा. यहां आ कर तू सिर्फ व्यापारियों को ही मरवा सकता है. किसी और से पंगा मत लेना.

इस बार कैलाश मांजू ने लारेंस को फोन पर बुरी तरह से धमका दिया था.

उसी समय एक प्रौपर्टी के मामले में जोधपुर पुलिस कैलाश मांजू के पीछे पड़ गई, जिस से बचने के लिए वह सीधा नेपाल भाग गया. इस बार वह अपने परिवार को भी साथ ले गया था. वहां पर उस ने अपने एक नेता रिश्तेदार के यहां पर शरण ली. वह कई साल तक वहीं पर रहा.

जोधपुर पुलिस उस की तलाश करती रही. उसी दौरान कैलाश मांजू की अनुपस्थिति का लाभ उठाते हुए विक्रम सिंह नादिया गैंग के आदमियों ने उस के भतीजे राकेश मांजू पर जानलेवा हमला कर दिया. उस हमले के होने के बाद पुलिस को पता चला कि कैलाश मांजू भी इसी फ्लैट में रहता है. बाद में पुलिस ने कैलाश को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. उस वक्त वह अजमेर और लारेंस विश्नोई भरतपुर की जेल में बंद था.

वर्चस्व की होड़ में मारवाड़ के गैंगस्टर्स – भाग 2

मारवाड़ में उस वक्त खौफ का दूसरा नाम बिशनाराम जालोड़ा था. बिशनाराम जोधपुर जिले के लोहावट के पास जालोड़ा गांव का रहने वाला था. बिशनाराम शुरू से ही शरारती किस्म का युवक था. स्कूल टाइम में भी वह गुट बना कर रहता था. समय के साथसाथ जैसेजैसे वह बड़ा होता गया, अपराध की दुनिया में कदम रखना शुरू कर दिया था.

उस ने अफीम और हथियारों की तस्करी करनी शुरू की तो फिर उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. उस ने उसी समय अपना अलग गैंग बनाया, जिस का नाम रखा 0029. जल्दी ही पूरे मारवाड़ में उस के गैंग का आतंक छा गया. यही नहीं, अन्य गैंगों के लीडर भी उस को सलाम ठोंकते थे. इसी दबंगई के कारण कई नेता भी उस के संपर्क में आए. उसी दौरान उस की मुलाकात जोधपुर के बड़े नेता परसाराम मदेरणा से हुई. कुछ ही दिनों में वह परसाराम के चहेतों में शामिल हो गया था.

काफी समय बाद भंवरी देवी अपहरण का पता चला कि भंवरी देवी की हत्या कर उस के शव को जला कर उस की राख को राजीव गांधी लिफ्ट नहर में फेंक दिया गया था. इस आरोप के लगते ही बिशनाराम को जेल की हवा खानी पड़ी. इस केस के आरोप में बिशनाराम को पूरे 10 साल जेल में रहना पड़ा. इन 10 सालों में बिशनाराम के गैंग का पूरी तरह से सफाया हो गया था.

वर्ष 2021 में बिशनाराम की सजा पूरी हुई तो वह जेल से बाहर आ गया. जेल से बाहर आते ही उस ने फिर से पुराने रास्ते पर चलना चालू कर किया. उस ने अपने टूटे गैग को फिर से खड़ा करने की कोशिश की. उस ने अपने कुछ आदमियों के साथ मिल कर फिर से दहशत फैलानी शुरू की.

शादी के कार्यक्रम में ही भिड़ गए गैंगस्टर

अब से कुछ समय पहले बिशनाराम जोधपुर जिले के देचू थाना क्षेत्र के गिलाकोर गांव में एक शादी में शामिल होने गया हुआ था. उसी शादी में गैंगस्टर राजू मांजू भी शामिल था. राजू मांजू को देखते ही बिशनाराम उस से भिड़ गया. 2 गैंगस्टर आमनेसामने आए तो शादी के रंग में भंग पड़ गया. दोनों गैग आपस में भिड़े तो काफी खूनखराबा हुआ. इस मुठभेड़ में राजू मांजू को काफी नुकसान हुआ, साथ ही उस के काफी चोट भी आई थी.

राजू मांजू और बिशनाराम जालोड़ा में काफी पुरानी दुश्मनी थी. बिशनाराम के जेल जाने के दौरान राजू मांजू ने उस के आदमियों को खूब परेशान किया था, जिस से बिशनाराम उस से बुरी तरह से खार खाए हुए था. बिशनाराम पर 57 से भी ज्यादा, हत्या, लूट, अफीम तस्करी, हथियार तस्करी, डकैती जैसे संगीन मामले दर्ज हैं.

गैंगस्टर अनिल मांजू की कहानी भी कुछ कम नहीं. जोधपुर जिले में एक गांव पड़ता है मोरिया मुंजासर. बिश्नोई समाज से ताल्लुक रखने वाला अनिल मांजू इसी गांव का रहने वाला था. अनिल मांजू सीधासादा युवक था. सरकार की तरफ से सरकारी ठेकों की नीलामी में उसे एक शराब की दुकान का ठेका मिल गया. फिर वह उसी दुकान के सहारे अपने परिवार का पालनपोषण करने लगा.

अनिल मांजू ने शराब के ठेके को हलके में लिया था. लेकिन उसे पता नहीं था कि शराब के ठेके चलाने के लिए किन किन रास्तों से गुजरना पड़ता है. ठेकों पर आए दिन कहासुनी होना आम बात है. ठेका चलाने के दौरान एक दिन अनिल मांजू की कहासुनी गैंग 007 के मुख्य सरगना श्याम पूनिया से हो गई.

श्याम पूनिया से पहले पूरे राजस्थान में आनंदपाल के नाम का खौफ था. लेकिन 2017 में आनंदपाल का एनकाउंटर हुआ तो उस का गैंग कमजोर पड़ गया. उसी का फायदा श्याम पूनिया ने उठाया और पूरे राजस्थान में अपना वर्चस्व कायम कर लिया.

श्याम पूनिया सोशल मीडिया पर हर रोज महंगे और खतरनाक हथियारों के साथ अपने फोटो डालता था. साथ ही वह पुलिस को चेतावनी देते हुए तरहतरह के वीडियो शेयर करता था. उन्हीं वीडियों से लोगों के मन में उस के प्रति डर बैठ गया था, जिस के कुछ समय बाद ही यह गैंग पुलिस की नजरों में चढ़ गया. तब पुलिस ने उसे जनवरी, 2020 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर से गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की.

अनिल मांजू ने उस बात को हलके में लिया, लेकिन श्याम पूनिया के लिए वह कहासुनी अहम मायने रखती थी. श्याम पुनिया चाहता तो उसी वक्त अनिल मांजू के साथ कुछ भी कर सकता था. लेकिन उस समय तो वह चुप रहा. बाद में मौका पाते ही उस ने अनिल मांजू की शराब की दुकान में आग लगा दी, जिस से उस की दुकान की सारी शराब जल कर नष्ट हो गई.

शराब की दुकान में आग लगने के बाद अनिल मांजू पूरी तरह से बरबाद हो गया था. इस मामले में अनिल मांजू ने कानूनी काररवाई भी की. लेकिन श्याम पूनिया के खिलाफ पुलिस ने कोई ऐक्शन नहीं लिया. जिस के कारण अनिल मांजू बुरी तरह से टूट गया. उस के मन मे श्याम पूनिया के खिलाफ बदले की भावना की आग धधक उठी. उसी बदले की भावना के कारण अनिल मांजू ने एक बहुत ही बड़ा कदम उठाने का प्रण लिया. उसी प्रण के तहत उस ने श्याम पूनिया के घर में आग लगा दी.

एक घटना ने बना दिया अनिल के गैंगस्टर

अनिल मांजू जानता था कि उस ने शेर की मांद में हाथ डाला है, जिस का भविष्य में खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है. उसी का मुकाबला करने के लिए उस ने उसी समय मांजू गैंग की नींव रख दी. धीरेधीरे उस ने भी अपने गैंग का विस्तार कर लिया. तभी से पूनिया और मांजू गैंग में आए दिन लड़ाईझगड़े होते रहते हैं.

फिलहाल गैंग 0029 की बागडोर भी अनिल मांजू ने ही थाम रखी है. अनिल मांजू लोहावट थाने का हिस्ट्रीशीटर है, जिस पर अपहरण डकैती, अवैध रूप से जमीनों पर कब्जा, पुलिस पर फायरिंग, साथ ही जानलेवा हमला करने के अनेक अपराधों के मुकदमे दर्ज हैं.

अपराध की दुनिया में एक और नाम आता है, गैंगस्टर लारेंस विश्नोई का. राजस्थान से लारेंस विश्नोई का पुराना नाता रहा है. जिस का नेटवर्क पूरे राजस्थान में फैला है. लारेंस विश्नोई पंजाब प्रांत के फाजिल्का अबोहर का रहने वाला है. लारेंस के पिता पंजाब पुलिस में एक कांस्टेबल थे.

देखने में स्मार्ट होने के साथसाथ लारेंस की रुचि स्पोर्ट में थी. अच्छी पढ़ाई के लिए वह चंडीगढ़ आया और वहां पर डीएवी कालेज में दाखिला लिया. उस की अच्छी पर्सनालिटी और पैसे वाला होने के कारण उस के दोस्तों ने उसे कालेज चुनाव लडऩे के लिए प्रेरित किया. उस ने छात्र संघ का चुनाव लड़ा, लेकिन वह उस में कामयाब नहीं हुआ. उस से हार सहन नहीं हुई तो उस ने जीतने वालों से बदला लेने के लिए एक अलग ही रास्ता चुना.

उस ने अपमान का बदला लेने के लिए एक रिवौल्वर खरीदी. फिर उस ने दंबगई दिखाते हुए अन्य गुटों से भिड़ंत शुरू कर दी. उसी दौरान उस पर पहला मामला दर्ज हुआ. उस के बाद उस ने विरोधी गुटों को सबक सिखाने के लिए एक बड़े गैंगस्टर जग्गू भगवानपुरिया से हाथ मिला लिया, जिस ने उसे जुर्म की दुनिया के सारे पैंतरे सिखाए.

हालांकि लारेंस विश्नोई इस वक्त जेल में है. लेकिन जेल में रहने के बाद भी उस के अपराधों में कमी नहीं आई. इस वक्त लारेंस विश्नोई पर अलगअलग अपराधों के मुकदमे दर्ज हैं.

वर्चस्व की होड़ में मारवाड़ के गैंगस्टर्स – भाग 1

राजस्थान, मारवाड़ में अफीम तस्करी से होती मोटी कमाई के चलते कई गैंगों में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो चुकी है. जिस के कारण क्षेत्र में अफीम, डोडा पोस्त की तस्करी के वर्चस्व को ले कर सक्रिय गैंगों के बीच लड़ाईझगड़े विकराल रूप लेते जा रहे हैं. जिस के कारण क्षेत्र में आए दिन लड़ाईझगड़े व हत्याएं होना आम बात हो चुकी है.

मारवाड़ में इस वक्त राजू मांजू के गैंग के अलावा दूसरे नंबर पर श्याम पूनिया, तीसरे नंबर पर कैलाश मांजू, चौथे नंबर पर अनिल मांजू और पांचवें नंबर पर मांगीलाल नोखड़ा का गैंग सक्रिय है.

ये पांचों ही गैंग राजस्थान की सूर्यनगरी जोधपुर के माने जाते हैं, जिन का सिक्का राजस्थान ही नहीं, बल्कि देश के कई हिस्सों में भी चलता है. इन गैंग संचालकों का अफीम तस्करी से ले कर राजनीति के साथ ही अपराध की दुनिया से भी बहुत ही नजदीकी का रिश्ता रहा है. जिन की दहशत पूरे राजस्थान में गंूजती है.

राजू मांजू जोधपुर जिले के लोहावट तहसील के जंबहेश्वर गांव का निवासी है. राजू मांजू का नाम भले ही अपराध से जुड़ा हुआ है, लेकिन उस के प्रति लोगों का नजरिया कुछ अलग हट कर है. राजू मांजू का नाम एक समाजसेवी के रूप में भी सामने आता है. राजू मांजू ने प्रण लिया कि वर्ष 2025 तक कोई भी आवारा गाय सडक़ पर नहीं दिखेगी.

गैंगस्टर्स की दूसरी लिस्ट में नाम आता है, श्याम पूनिया का. श्याम पूनिया जोधपुर जिले के भिंयासर गांव का निवासी है. श्याम पुनिया ने ही गैंग 077 की नींव रखी थी. जिस के अपराध की दुनिया में कदम रखते ही उस का वर्चस्व पूरे मारवाड़ में फैल गया था.

श्याम पूनिया राजस्थान के टौप- 6 मोस्टवांटेड के रूप में जाना जाता था. जोधपुर, चुरू, बीकानेर के कई थानों में उस के खिलाफ अनेक मामले दर्ज हैं. श्याम पूनिया को महाराष्ट्र के कोल्हापुर से गिरफ्तार किया गया था. वह तभी से जेल में बंद है. कभीकभार जेल से जमानत पर आ भी जाता है. जेल में रहने के बावजूद भी वह वहीं से वारदातों को अंजाम देता रहता है.

गैंगस्टर्स के तीसरे नंबर पर आता है नाम कैलाश मांजू का नाम. कैलाश मांजू जोधपुर जिले के भाटेलाई पुरोहितान गांव का रहने वाला वहां का पूर्व सरपंच है. कैलाश मांजू पर कई थानों में रंगदारी, लूट व फायरिंग के मामले दर्ज हैं. इस गैंगस्टर को मारने के लिए राजू फौजी ने 80 लाख की सुपारी दी थी, लेकिन कैलाश मांजू के पास पहुंचने से पहले ही सुपारी किलर पुलिस के हत्थे चढ़ गए थे.

चौथे नंबर का गैंग सरगना अनिल मांजू जोधपुर जिले के मुंजासर गांव का रहने वाला है. यह शराब की एक दुकान चलाता था. कुछ लेनदेन को ले कर उस की श्याम पूनिया से दुश्मनी हो गई. जिस के बाद श्याम पूनिया ने उस की दुकान में आग लगा दी. अपने को बरबाद होते देख उस ने भी जुर्म की दुनिया में कदम रख दिया. अनिल मांजू ने अपना बदला लेते हुए श्याम पूनिया के घर को आग के हवाले कर दिया. उस के बाद वह गैंग 0029 में शामिल हो गया.

मांगीलाल नोखड़ा का गैंग पांचवें नंबर पर आता है. मांगीलाल नोखड़ा लारेंस बिश्नोई गैंगस्टर का करीबी माना जाता है. मांगीलाल नोखड़ा पर कोई 25 से भी ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं. कई बार वह पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर फरार हो चुका था. लेकिन कुछ ही दिनों बाद मध्य प्रदेश में एक मुठभेेड़ के दौरान उसे गिरफ्तार कर लिया गया था. हालांकि वह इस वक्त जेल में बंद है, फिर भी वह अपने गुर्गों के सहारे जेल से ही नशीले पदार्थों की तस्करी करता हैै.  जोधपुर के इन टौप-5 गैंगस्टर्स की दहशत पूरे राजस्थान में है.

शुरू हुई वर्चस्व की लड़ाई

इन गैंगस्टर्स के वर्चस्व की कहानी की शुरूआत होती है पहली सितंबर, 2011 से. इस दिन दोपहर को जोधपुर के जलीवाड़ा निवासी भंवरी देवी अचानक गायब हो गई. भंवरी देवी एक साधारण परिवार से थी और वह गांव के एक उपकेंद्र में सहायक नर्स के पद पर तैनात थी.

भंवरी देवी देखनेभालने में खूबसूरत थी. बनठन कर रहना उस का सब से बड़ा शौक था. यही कारण रहा कि नौकरी करने के बावजूद भी फिल्मों में नाम कमाने की उस के अंदर महत्त्वाकांक्षा जागी. उसी महत्त्वाकांक्षा के चलते वह कभीकभी बीच में ही नौकरी छोड़ कर राजस्थानी फिल्मों की शूटिंग पर चली जाती थी. जिस के कारण ड्यूटी से गायब रहने के कारण उसे सस्पेंड कर दिया गया.

भंवरी देवी की राजनीति में भी अच्छी पहुंच थी. उसी पहुंच की बदौलत उस ने नेता मलखान सिंह और मंत्री महीपाल मदेरणा की मदद से अपने निलंबन को रद्द करवा लिया था. दोनों नेताओं से नजदीकियों के चलते भंवरी देवी पर ग्लैमर से ज्यादा राजनीति का नशा चढऩे लगा था.

भंवरी देवी के अचानक गायब होते ही उस के परिवार में भूचाल आ गया. गुप्त सूत्रों से पता चला कि भंवरी देवी का अपहरण हुआ था. भंवरी देवी के पति अमरचंद ने उस की हर जगह खोज की, लेकिन उस का कहीं भी अतापता नहीं चला. अमरचंद सिंह जानता था कि उस के मलखान सिंह और महीपाल मदेरणा के साथ अच्छे संबंध थे, इसलिए अमरचंद पत्नी के गायब होने के बाद दोनों से मिले, लेकिन दोनों नेताओं ने उस की इस मामले में कोई सहायता करने से साफ इंकार कर दिया.

भंवरी देवी के अपहरण मामले ने उस वक्त राजस्थान में खूब तूल पकड़ा. इस मामले में मलखान सिंह और महीपाल मदेरणा भी लपेटे में आ गए थे. भंवरी देवी के पति अमरचंद ने आरोप लगाया कि उस की पत्नी का अपहरण जलदाय मंत्री परसराम मदरेणा के पुत्र महिपाल मदरेणा ने ही कराया था.

इस आरोप के लगते ही पूरे मारवाड़ में तहलका मच गया. इस मामले ने तूल पकड़ा तो इस की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी. सीबीआई ने इस केस की कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए जांचपड़ताल की तो कहानी महीपाल मदेरणा से शुरू हो कर बिशनाराम विश्नोई उर्फ बिशना जांगू जालोड़ा पर जा कर खत्म हुई.

खूबसूरत पायल माहेश्वरी कैसे बनी गैंगस्टर?

7 जून, 2023 दिन बुधवार को लखनऊ की अदालत में संजीव जीवा की हत्या के बारे में एकदम से एक नाम और चर्चा में आया, वह नाम था संजीव जीवा की पत्नी पायल माहेश्वरी का. क्योंकि पुलिस रिकौर्ड के अनुसार वह भी गैंगस्टर है. इस की वजह यह है कि पति के जेल जाने के बाद पति के जुर्म का कारोबार पायल ने ही संभाल रखा है.

धमका कर रंगदारी वसूलना, अपहरण कर फिरौती वसूलना और जमीनों पर कब्जा करने जैसे काम पायल खुद ही देखती है, शायद इसीलिए पुलिस ने उस पर गैंगस्टर ऐक्ट लगाया है और अब वह गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार है. माफिया डौन अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन और मुख्तार अंसारी की पत्नी अफशां अंसारी के बाद गैंगस्टर संजीव जीवा की पत्नी पायल माहेश्वरी का नाम लेडी गैंगस्टरों में ऊपर आ गया है.

पायल जाति से शर्मा थी, जबकि संजीव माहेश्वरी जाति का था. आखिर इन दोनों की मुलाकात कैसे हुई? कौन है यह पायल शर्मा माहेश्वरी, जिस पर संजीव का दिल आ गया? दोनों का विवाह कैसे हुआ, विवाह के बाद पति के जेल जाने पर उस ने कैसे संभाला पति के जुर्म का कारोबार? उस ने ऐसा क्या किया था कि आज उसे फरार होना पड़ा? पुलिस के डर से वह पति के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पाई थी.

शादी समारोह में हुई मुलाकात

पायल शर्मा माहेश्वरी गाजियाबाद के मोदीनगर के रहने वाले शर्मा परिवार से आती है. वह बेहद साधारण परिवार से थी. उस की पढ़ाईलिखाई गाजियाबाद में हुई थी. वह एक सीधीसादी, सरल स्वभाव की लडक़ी थी.

कहा जाता है कि पायल की जीवा से तब मुलाकात हुई थी, जब वह जुर्म की दुनिया में अपने कदम पूरी तरह जमा चुका था. 2 हत्याओं में उस का नाम आ चुका था. जबकि एक मामले में तो उसे उम्रकैद की सजा भी हो चुकी थी, लेकिन मुख्तार अंसारी का करीबी होने के कारण अकसर वह जमानत या पैरोल पर जेल से बाहर आ जाया करता था.

अब तक संजीव जीवा का अपराध का यह कारोबार मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद से ले कर दिल्ली, मेरठ और उत्तराखंड तक फैल चुका था. लोग उस के नाम से घबराते थे. उस की पकड़ भी अच्छी बन चुकी थी. इलाके के बड़ेबड़े लोग अपना रुतबा दिखाने के लिए जीवा को अपने यहां बुलाने लगे थे.

सन 2004 की बात है. गाजियाबाद के किसी शादी समारोह में संजीव जीवा गया था. उस शादी समारोह में पायल भी आई हुई थी. संजीव ने उसे देखा तो देखता ही रह गया. उस की सुंदरता में वह खो गया. इस तरह उस का दिल पायल पर आ गया.

बस फिर क्या था, इतना बड़ा अपराधी आशिक बन गया. दुनियाजहान भूल कर वह पायल के पीछे लग गया. लेकिन उस शादी समारोह में वह पायल से बात नहीं कर पाया. पर उस ने पायल के बारे में सारी जानकारी पता कर ली थी. अब संजीव जीवा का ज्यादा से ज्यादा समय गाजियाबाद की मोदीनगर तहसील में बीतने लगा. सुबहशाम वह पायल के घर वाली गली के सामने उस की एक झलक पाने के लिए बैठा दिखाई देता.

इसी तरह वह 2-3 महीने तक चलता रहा. पायल समझ गई थी कि यह आदमी उसी के लिए यहां बैठा रहता है, क्योंकि महिलाओं को किसी की नजर पहचानने देर नहीं लगती. सब कुछ जानतेसमझते हुए भी पायल की कुछ कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी. हालांकि इस बीच संजीव ने अपने दिल की बात पायल से कही भी थी और उस की बात न मानने पर अंजाम भुगतने की धमकी भी दी थी.

पायल ने 15 साल बड़े जीवा से की शादी

आखिर संजीव जीवा की मेहनत रंग लाई और पायल उस से मिलने लगी. पायल और संजीव जीवा की मुलाकातों की जानकारी घर वालों को हुई तो घर वाले डर गए. पायल के घर वाले इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं थे. क्योंकि कोई भी मातापिता अपनी बेटी की शादी किसी सजायाफ्ता मुजरिम के साथ नहीं करना चाहेगा. पायल को घर वालों ने रोकना चाहा, पर वे उसे रोक नहीं पाए और साल 2006 में हरिद्वार में पायल ने खुद से 15 साल बड़े संजीव जीवा से शादी कर ली.

शादी के बाद संजीव फिर जेल चला गया. कहा जाता है कि जेल में तो वह सिर्फ नाम के लिए था. वह हमेशा जेल के अस्पताल के वीआईपी कमरे में रहता था. वहीं वह लोगों से तथा अपनी गैंग वालों से मुलाकात करता था. उस से मिलने वालों में सब से टौप पर पायल का नाम था. पायल को 3 बेटे और एक बेटी है. संजीव भले जेल में था, पर बाहर के सारे काम उस की पत्नी पायल ने संभाल लिए थे. वह जैसा निर्देश देता था, पायल वैसा ही करती थी.

उत्तर प्रदेश से ले कर दिल्ली तक फैले जीवा के सारे शोरूम, ट्रेडिंग, प्रौपर्टी और विवादों को पायल ही देखती थी. इतना ही नहीं, जीवा के पूरे गैंग को भी पायल ही संभालती थी. पायल मुजफ्फरनगर छोड़ कर भले परिवार के साथ दिल्ली में रहने लगी थी, लेकिन वह अकसर मुजफ्फरनगर में ही दिखाई देती थी. वहीं से वह शामली के गांव वाले घर पर भी नजर रखती थी.

मुजफ्फरनगर में पायल की करीब 50 करोड़ की संपत्ति है. इस के अलावा उस का कारोबार दिल्ली, गाजियाबाद और मेरठ तक फैला था. पतिपत्नी की मिला कर लगभग 100 करोड़ की संपत्ति है. धीरेधीरे पायल संजीव के रंग में रंग गई थी. संजीव के गैंग के लोग पायल के एक इशारे पर किसी भी घटना को अंजाम देने के लिए तैयार रहते थे.

पति जीवा की तरह पायल भी बन गई गैंगस्टर

जैसेजैसे संजीव की संपत्ति बढ़ रही थी, वैसेवैसे उस के अपराधों की संख्या भी बढ़ती जा रही थी. इसी के साथ उस पर पुलिस का शिकंजा भी कसता जा रहा था. संजीव के कई भरोसेमंदों को पुलिस जेल का रास्ता दिखा चुकी थी. तब अपने रुतबे और कारोबार को बचाने के लिए संजीव ने राजनीति का सहारा लिया. वह अजीत सिंह के बेटे की पार्टी रालोद में शामिल हो गया.

इसी वजह से साल 2017 के विधानसभा चुनाव में पायल को मुजफ्फरनगर की सदर सीट से पायल माहेश्वरी को राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) से टिकट मिल गया. पर वह चुनाव हार गई. लेकिन क्षेत्र में और राजनीति में उस की पकड़ बन गई. चुनाव हार जाने के बाद भी क्षेत्र के लोगों से वह मिलती रही और उन की समस्याएं सुन कर हल करवाती रही. क्योंकि उसे उम्मीद थी कि साल 2022 में रालोद से उसे फिर टिकट मिलेगा. पर पार्टी ने उस पर दोबारा दांव नहीं खेला.

पायल माहेश्वरी सहित 9 लोगों पर साल 2021 में पहली बार मुजफ्फरनगर में धमकी देने और फिरौती वसूलने का मुकदमा दर्ज हुआ. उस पर आरोप लगा कि जमीन नाम न करने पर उस ने जान से मारने की धमकी दी थी. इस मामले में पायल ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत की अरजी लगाई, पर वह अदालत से खारिज हो गई.

जमानत की अरजी खारिज होने के बाद भी पुलिस उसे काफी समय तक गिरफ्तार नहीं कर पाई. जबकि पुलिस ने उस की गिरफ्तारी के लिए दिल्ली, मुजफ्फरनगर और शामली में न जाने कितनी बार छापे मारे. दूसरी ओर पायल के गुर्गे केस करने वाली पार्टी पर केस वापस लेने के लिए लगातार दबाव बनाते रहे.

इस के बाद तो जीवा के साथ धमकाने और फिरौती वसूलने में पायल का नाम लगातार आता रहा. इन्हीं मामलों को आधार बना कर साल 2022 में पुलिस ने पायल पर भी गैंगस्टर ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर गैंगस्टर घोषित कर दिया. पहला केस दर्ज होने के बाद से फरार हुई पायल माहेश्वरी आज भी फरार है.

फरार होने की ही वजह से शाइस्ता और जैनब की तरह पायल भी पति के अंतिम संस्कार में नहीं पहुंच पाई. पति के अंतिम संस्कार में शामिल होने और गिरफ्तार न किए जाने के लिए उस ने हाईकोर्ट में अपील भी की थी. पर कोर्ट ने उस की इस अपील को खारिज कर दिया था. अब देखना यह है कि वह कब तक पुलिस के चंगुल से बची रहती है. जबकि पुलिस उस के पीछे अब हाथ धो कर पड़ी है.