
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर का यूसुफपुर इलाका, जहां मुख्तार अंसारी की शुरुआती पढ़ाई हुई. इस के बाद वह ग्रैजुएशन करने शहर पहुंच गया. गाजीपुर के पीजी कालेज में उन्होंने एडमिशन लिया. शाम को अकसर वह समय निकाल कर टाउन हाल के मैदान में क्रिकेट खेलने जाया करता था. उस की जैसी लंबी कदकाठी थी, वैसा ही उस का खेलने का स्टाइल था. लंबी कदकाठी होने के नाते मुख्तार छक्के लगाने में माहिर था.
मुख्तार जिस टाउन हाल के मैदान में क्रिकेट खेलता था, उसी मैदान के पास ही अफशां का घर था. आतेजाते वह मुख्तार को क्रिकेट खेलते देखती थी. लेकिन कभी उस की उस से बात नहीं हुई. मुख्तार की आकर्षक और रौबदार कदकाठी से उस की अलग ही शख्सियत देखने में आती थी.
प्यार बदला अरेंज मैरिज में
गाजीपुर में अफशां एक गर्ल्स कालेज में पढ़ती थी, जो ठीक मुख्तार अंसारी के पीजी कालेज के पास था. यहीं से दोनों के रिश्ते की शुरुआत हुई. एक दिन मुख्तार ने हिम्मत दिखाई और अफशां से बात की. इस के बाद दोनों में बातें भी होने लगीं और मुलाकातें भी. इस तरह मुलाकातों का सिलसिला चल पड़ा. पहले दोनों में दोस्ती हुई और फिर प्यार हो गया. इस के बाद 1989 में दोनों ने घर वालों की मरजी से निकाह कर लिया.
निकाह के बाद दोनों के 2 बेटे हुए, जिन के नाम अब्बास अंसारी और उमर अंसारी हैं. मुख्तार से निकाह कर के अफशां के दिन फिर गए. क्योंकि निकाह के बाद मुख्तार मऊ से विधायक चुन लिया गया और माननीय बन गया. पर अपराध करना उस ने नहीं छोड़ा. उस की माफियागिरी भी बढ़ती गई और उसी के साथ अपराधों की लिस्ट भी बढ़ती गई.
साल 2005 में मुख्तार अंसारी को जेल जाना पड़ा. इसी के बाद अफशां मैदान में उतरी. मुख्तार के जेल जाने के बाद उस के गैंग को संभालने की जिम्मेदारी अफशां ने ले ली. आज अफशां मनी लांड्रिंग, जमीन हड़पने समेत 9 मुकदमों में वांछित है. इस तरह 5 बार विधायक रहे मुख्तार पर ही नहीं, उस की पत्नी अफशां, दोनों बेटे और बहू पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए. इन में से मुख्तार अंसारी, एक बेटा अब्बास और बहू निकहत जेल में है. जबकि एक बेटा और पत्नी फरार है.
इन के अपराधों की बात करें तो अफशां पर 9 मुकदमे दर्ज हैं तो उस के पति मुख्तार पर 60 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं. बड़े बेटे एमएलए अब्बास पर 7 और बहू निकहत अंसारी पर अपने पति अब्बास को जेल से भगाने की साजिश रचने का आरोप है. अफशां का छोटा बेटा उमर जालसाजी और अवैध कब्जे में आरोपी है, जो मां की ही तरह फरार है.
जेल अधिकारी भी आया चपेटे में
अफशां की बहू निकहत अपने एमएलए पति अब्बास, जो चित्रकूट की जेल में बंद है, उस से मिलने 11 बजे पहुंच जाती थी तो 3-4 घंटे पति के साथ रह कर वापस आ जाती थी. डीएम और एसपी ने छापा मारा था तो वह जेलर के कमरे में मिली थी, जबकि उस का पति अब्बास बैरक में जा चुका था.
इस के बाद निकहत को गिरफ्तार कर लिया गया था. पता चला कि जेलर के कमरे में उस की मुलाकात पति से कराई जाती थी. तलाशी में उस के पास से मोबाइल, कैश के अलावा और भी अवैध चीजें मिली थीं. इस के बाद इस मामले में अब्बास, निकहत, जेल अधीक्षक सहित जेल के कुछ अन्य कर्मचारियों के खिलाफ कर्वी कोतवाली में मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.
कहा जाता है कि अब्बास चित्रकूट जेल में रह कर निकहत के फोन से मुकदमे के गवाहों, अभियोजन से जुड़े अधिकारियों को डराताधमकाता था और पैसों की मांग करता था. इस के बाद उस के गुर्गे पैसे वसूल कर उस तक पहुंचाते थे.
31 जनवरी, 2022 को पुलिस ने अफशां पर गैंगस्टर ऐक्ट लगाया था. दरअसल, उस ने एक फर्म बनाई थी विकास कंस्ट्रक्शन, जिस में अफशां के 4 सगे भाई आतिफ रजा, अनवर शहजाद और अन्य लोग शामिल थे. इस में जो जमीन ली गई थी, वह गलत तरीके से ली गई थी. उस के अगलबगल गरीबों की कुछ जमीन को इन लोगों ने दबंगई दिखा कर जबरदस्ती घेर लिया था.
जब यह बात प्रशासन तक पहुंची तो इस की जांच हुई. बात सच निकली तो थाना दक्षिण कोंडा में मुकदमा दर्ज हुआ. इस के बाद इन सब के खिलाफ गैंगस्टर ऐक्ट लगा दिया गया, जिस के बाद से ये सभी फरार हैं. पुलिस को संदेह है कि मुख्तार के जेल जाने के बाद उस के गैंग को अफशां ही देख रही थी.
पुलिस रिकौर्ड के अनुसार अफशां पर कई गंभीर आरोप हैं. उस ने कंपनी बना कर भाइयों की मदद से जमीनों पर अवैध कब्जे किए हैं. मई, 2020 में ईडी ने मुख्तार पर मनी लांड्रिंग का केस दर्ज किया था. ईडी ने जब मुख्तार और अफजाल से इस मामले में पूछताछ की थी तो अफशां के भी शामिल होने के सबूत मिले थे.
इस के बाद ईडी ने अफशां के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज कर लिया था. मनी लांड्रिंग के इस मामले में भी अफशां वांछित है. ईडी ने जो डोजियर तैयार किया है, उस के अनुसार अफशां अंसारी गाजीपुर की 3 फर्मों के माध्यम से मुख्तार के काले धन को सफेद करने में शामिल थी.
अफशां ने संभाला पति का गैंग
इन में 2 फर्में विकास कंस्ट्रक्शन और अंसारी कंस्ट्रक्शन इंटरप्राइज गाजीपुर की हैं और तीसरी फर्म ग्लोराइज लैंड डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड लखनऊ की है. इन तीनों फर्मों में अफशां पार्टनर है. ईडी की जांच के बाद केंद्रीय एजेंसियों ने भी उस के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी कर रखा है. मुख्तार के जेल जाने के बाद उस का सारा साम्राज्य अफशां के ही कंट्रोल में था. इस तरह मुख्तार अंसारी के 191 गैंग पर अफशां काबिज हो गई थी. पुलिस रिकौर्ड के अनुसार अफशां आईएस-191 गैंग के रूप में चिह्नित है.
अफशां की गाजीपुर और मऊ में 2 फर्में हैं. अंसारी कंस्ट्रक्शन के जरिए करोड़ों रुपए का काम कई जगहों पर किया गया. अफशां ने फरजीवाड़ा कर के मऊ में जमीन ली थी, गजल होटल लैंड डील के साथसाथ उस पर सरकारी जमीन पर कब्जा करने के भी आरोप हैं. इस के बाद अफशां और उस के 2 भाइयों पर गैंगस्टर ऐक्ट का मुकदमा दर्ज किया गया था.
इस तरह मुख्तार के जेल जाने के बाद उस के अधूरे काम वह पूरे कर रही थी. मुख्तार ने अवैध रूप से जो पैसे कमाया था, उसे अब वही इनवैस्ट कर रही थी. पुलिस के पास इस के दस्तावेजी सबूत हैं. इसलिए पुलिस उस की तलाश कर रही है.
अफशां ने गिरफ्तारी से बचने के लिए हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. इस के बाद लोअर हाईकोर्ट से अफशां के खिलाफ एक वारंट जारी किया गया था. तब पुलिस की एक टीम उसे गिरफ्तार करने पहुंची थी. लेकिन अफशां फरार हो गई थी. तब से फरार अफशां को गिरफ्तार करने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस उस के पीछे पड़ी है.
दुर्लभ के स्टाइल में उतरी सोनिया
अक्तूबर, 2022 में वाराणसी के सिगरा में भाजपा नेता पशुपतिनाथ सिंह की हत्या के आरोप में पुलिस ने जिन लडक़ों को गिरफ्तार किया था, उन में से अधिकतर दुर्लभ कश्यप के फैन निकले थे. मुठभेड़ में गिरफ्तार 307 गैंग के सरगना राहुल सरोज के मोबाइल में दुर्लभ कश्यप पर बने कई वीडियो भी मिले थे.
यही नहीं, राहुल के इंस्टाग्राम पर रील और फेसबुक पर वीडियो भी दुर्लभ कश्यप से हूबहू मेल खाती है. माथे पर तिलक, आंखों में काजल, कंधे पर गमछा, हलकी दाढ़ी और गले में रुद्राक्ष की माला पहनने वाला राहुल भी दुर्लभ की स्टाइल में रहता था. उस के 307 गैंग में जयप्रकाश नगर, चंदुआ, छित्तूपुर, शिवपुरवा, माधोपुर के 40 से 45 नौजवान शामिल हैं. सभी वाट्सऐप ग्रुप 307 के सदस्य हैं, जिस का एडमिन राहुल सरोज, विकास राजभर और पवन हैं.
क्राइम ब्रांच ने राहुल और पवन के मोबाइल खंगाले तो कई वीडियो और फोटो निकल कर सामने आए. राहुल के इंस्टाग्राम और फेसबुक पर पोस्ट भी खतरनाक और चेतावनी वाले थे. दुर्लभ कश्यप का तो अंत हो गया, लेकिन आज भी कई युवा उसे अपना रोल मौडल मानते हैं.
ऐसी ही एक युवती को उज्जैन पुलिस ने जनवरी 2023 में गिरफ्तार किया. युवती ने सोशल मीडिया पर रिवौल्वर और चाकू के साथ अपने कुछ फोटो और वीडियो अपलोड किए थे. उस ने दुर्लभ की तरह ही माथे पर टीका लगा कर और गले में गमछा डाले हुए कुछ फोटो भी अपलोड किए तो पुलिस ने उस के खिलाफ आम्र्स ऐक्ट के तहत केस दर्ज कर लिया.
उज्जैन के पंवासा मल्टी के पास से एक युवती को रास्ते में धारदार चाकू लहराते हुए आतेजाते लोगों को धमकाते हुए देखा गया था. सूचना मिलने पर पुलिस ने घेराबंदी कर युवती को गिरफ्तार कर उस के पास से चाकू बरामद किया. युवती का नाम सोनिया उर्फ नेपु थापा था. वह 19 साल की थी और नानाखेड़ा के आनंद नगर इलाके में रहती थी.
छोटी उम्र में ही उस के पिता का देहांत हो गया था, तब से मां के साथ अकेली रहती थी. सोशल मीडिया पर सोनिया काफी ऐक्टिव है, जब पुलिस ने उस का इंस्टाग्राम अकाउंट देखा तो पिस्टल के साथ और नशा करते हुए कई फोटो दिखाई दिए. उस ने कुछ फोटो के कैप्शन में 307 और 302 भी लिख रखा था. इस के अलावा हुक्का पीते, डांस करते, सिगरेट के छल्ले उड़ाते और शराब पीते हुए वह अन्य कई फोटो व वीडियो में नजर आ रही थी.
दुर्लभ कश्यप सोशल मीडिया पर काफी पापुलर था और सोनिया उस से काफी प्रभावित है. वह उस की तरह दिखना चाहती है और उसे अपना रोल मौडल समझती है. उस ने पुलिस को बताया था कि दुर्लभ कश्यप की वीडियो वह सोशल मीडिया पर देखा करती थी और उस ने कुछ फोटो और वीडियो डाले हैं, जिस में खुद को दुर्लभ जैसा लुक देने की कोशिश की है.
दुर्लभ की मौत की कहानी
18 साल की उम्र में दुर्लभ कश्यप के खिलाफ 9 केस दर्ज हो गए थे. वह जेल से भी गैंग चलाता रहा. 2 साल जेल में बंद रहने के बाद कोरोना काल के दौरान साल 2020 में उस की रिहाई हो गई. वह कुछ दिन इंदौर में रह कर मां के पास उज्जैन लौट आया.
कहा जाता है कि बुराई का अंजाम बुरा ही होता है. ठीक वैसे ही दुर्लभ का बढ़ता कद अपराध की दुनिया के दूसरे बादशाहों को खटकने लगा था. उस की दुश्मनी दिनरात बढ़ती जा रही थी. ऐसे में उज्जैन के ही शाहनवाज गैंग ने दुर्लभ को खत्म करने का प्लान बनाया था.
6 सितंबर, 2020 को दुर्लभ अपने घर में कुछ दोस्तों के साथ मां के हाथ की बनाई दाल बाटी खाने के बाद रात को अपने साथियों के साथ घर से निकला था.
देर रात सडक़ों पर घूमते हुए दुर्लभ अपने साथियों से बोला, “यार, चाय पीने का मन हो रहा है, लेकिन आसपास की दुकानें तो बंद नजर आ रही हैं.”
“भाई, उधर हेलावाड़ी इलाके की एक दुकान देर रात तक खुली रहती है, वहां पर चल कर चाय की चुस्कियां लेंगे.” गैंग का एक साथी राजदीप बोला.
इस के बाद बाइक से दुर्लभ अपने साथियों के साथ हेलावाड़ी इलाके की चाय की दुकान पर पहुंच गया. इस दौरान पहले से शाहनवाज गैंग के लोग वहां मौजूद थे. जब दुर्लभ का शाहनवाज से आमनासामना हुआ तो दुर्लभ ने शाहनवाज पर गोली चला दी. गोली उस की गरदन के पास से हो कर निकली थी.
बदले में शाहनवाज के साथियों ने दुर्लभ को घेर कर चाकू से उस के पेट, पीठ, चेहरे, गरदन पर ताबड़तोड़ 34 वार किए. दुर्लभ के दोस्त इस दौरान उसे छोड़ कर भाग गए थे. दोनों के बीच जबरदस्त गैंगवार हुई, जिस में दुर्लभ की चाकुओं से गोदगोद कर हत्या कर दी गई.
घटना के बाद सुबह 4 बजे जीवाजीगंज थाने की पुलिस व उज्जैन के तत्कालीन सीएसपी ए.आर. नेगी मौके पर पहुंचे थे. एफएसएल अधिकारी डा. प्रीति गायकवाड़ ने घटनास्थल से 3 चप्पलें भी जब्त कराई थीं. पुलिस ने दुर्लभ की मां पद्मा को घटनास्थल पर ले जा कर दुर्लभ की शिनाख्त कराई. दुर्लभ के पिता भी सुबह अस्पताल पहुंचे.
चाय की दुकान चलाने वाला अमन उर्फ भूरा घटना का मुख्य चश्मदीद था, जिसे पुलिस ने फरियादी बनाया. उस की रिपोर्ट पर दुर्लभ, राजदीप, अमित सोनी, अभिषेक शर्मा समेत एक अन्य के खिलाफ हत्या के प्रयास समेत अन्य धारा में केस दर्ज किया.
दुकानदार ने बताया, “दुर्लभ ने कहासुनी के बाद जैसे ही गोली चलाई, शाहनवाज घायल हो कर सडक़ पर बैठ गया. इस के बाद भगदड़ मच गई. इरफान व अमन उस्ताद उसे अस्पताल ले कर भागे. मैं भी घबरा कर भाग गया था.”
दूसरे पक्ष से दुर्लभ के खास साथी अभिषेक शर्मा की रिपोर्ट पर जीवाजीगंज पुलिस ने घायल शाहनवाज, शादाब, हिस्ट्रीशीटर रमीज, राजा व भूरा के खिलाफ हत्या की धाराओं में केस दर्ज किया.
अभिषेक ने बताया, “दुर्लभ के घर दाल बाटी खाने के बाद रात करीब डेढ़ बजे सिगरेट व चाय पीने दुकान पर गए थे. वहां शाहनवाज व शादाब से किसी बात पर दुर्लभ का झगड़ा हो गया और दुर्लभ को चाकू मारने लगे. चायवाला अमन उर्फ भूरा चिल्ला कर कह रहा था कि शादाब भाई इसे जान से खत्म कर दो, जिंदा मत छोडऩा.”
दुर्लभ की मां इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर सकी थीं. उज्जैन में वह एकदम अकेले पड़ गई थीं, यही वजह रही कि उन्होंने भी बेटे के गम में 7 महीने बाद दम तोड़ दिया था.
दुर्लभ के जीवन पर बनी फिल्में
छोटी उम्र में अपराध की दुनिया का एक ऐसा बेताज बादशाह जिस की दहशत से न सिर्फ धार्मिक नगरी उज्जैन कांपती थी, बल्कि मालवा के इलाकों में उस के अपराध की तूती बोलने लगी थी. एक ऐसा गैंगस्टर जो औनलाइन गैंग चलाता था और कई वारदातों को अंजाम दे कर उज्जैन में बड़े गैंगस्टरों की लिस्ट में शामिल हो गया था.
उज्जैन का दुर्लभ कश्यप एक ऐसा ही गैंगस्टर था, जिस ने नाबालिग अवस्था में ही जुर्म की दुनिया में अपना नाम बनाया. उसी समय उज्जैन के एसपी सचिन अतुलकर हुआ करते थे.
एक बार जेल विजिट के दौरान उन्होंने दुर्लभ को देख कर कहा था, “तू जेल में ही सेफ है, उम्र से ज्यादा दुश्मनी पाल ली है, बाहर निकलेगा तो कोई मार देगा.”
दुर्लभ कश्यप अपने आसपास के युवाओं के बीच इतना प्रसिद्ध था कि लोग उसे लायन औफ उज्जैन कहते थे. आज भी उस के नाम पर उज्जैन में गैंग चल रहे हैं. इतना ही नहीं, दुर्लभ कश्यप के जीवन पर फिल्में भी बन चुकी हैं. ‘शूटर’ फिल्म में शानदार अभिनय करने वाले पंजाबी फिल्मों के अभिनेता जय रंधावा ने इस फिल्म में दुर्लभ की भूमिका निभाई है.
गैंगस्टर दुर्लभ पर फिल्म निर्माता मोहित मनाल, निर्देशक रोहित कुमार आर्यन ने ‘गैंगस्टर दुर्लभ कश्यप’ नाम की फिल्म बनाई है. यूट्यूब चैनल और ओटीटी प्लेटफार्म पर भी दुर्लभ के जीवन से जुड़ी फिल्में आसानी से देखी जा सकती हैं. कुछ भी हो, अपराध की दुनिया के युवाओं के लिए दुर्लभ कश्यप एक रोल मौडल है.
—कथा मीडिया रिपोर्ट पर आधारित
अमेरिका में बढ़ रही है ड्रग्स की मांग
मैक्सिकन गिरोह कोलंबियाई आपराधिक संगठनों के लिए संदेशवाहक और मालवाहक के तौर पर थोक व्यापारी बनने के लिए स्थानांतरित हो गए. उन में कुख्यात कैली और मेडेलिन कार्टेल शामिल हैं. मैक्सिकन कार्टेल ने 2007 तक अमेरिका में प्रवेश करने वाले कोकीन के अनुमानित 90 प्रतिशत को नियंत्रित कर लिया. अमेरिकी सरकार द्वारा ‘ड्रग्स पर युद्ध’ छेडऩे और विदेशों में अन्य मादक द्रव्यों के खिलाफ अभियानों के प्रयास के बावजूद ड्रग्स की मांग में कमी नहीं आई.
साल 2017 में अमेरिकियों ने कोकीन, हेरोइन, मारिजुआना और मेथामफेटामाइन सहित अवैध दवाओं पर 153 बिलियन डालर खर्च किए. फेंटेनाइल सहित सिंथेटिक ओपिओइड के बढ़ते उपयोग से सार्वजनिक स्वास्थ्य के बिगडऩे जैसा संकट भी बढ़ गया. अमेरिका में आने वाली अधिकांश अवैध दवाएं, जो अधिकारियों द्वारा जब्त की जाती हैं, उन्हें 300 से अधिक बंदरगाहों पर अमेरिकी प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा खोजी जाती हैं.
समुद्री और स्थल की सीमा पर अमेरिकी अधिकारियों द्वारा पता लगाने से बचने के लिए तस्कर विभिन्न हथकंडे अपनाते हैं. इन में वाहनों या समुद्री जहाजों में ड्रग्स को छिपाना है. इस के लिए भूमिगत सुरंगों का इस्तेमाल करते हुए अमेरिका में तस्करी करते हैं. नए तरीकों में सीमा पर ड्रोन या अन्य विमानों का उपयोग भी शामिल हो गया है. तस्करों द्वारा अमेरिका में नशीली दवाओं के थोक शिपमेंट की तस्करी के बाद इसे स्थानीय समूह और स्ट्रीट गैंग चप्पेचप्पे में फैलाने का प्रबंधन करते हैं.
ऐसा भी नहीं है कि मैक्सिको ने कार्टेल के खिलाफ कुछ नहीं किया. फेलिप काल्डेरोन (2006-2012) ने राष्ट्रपति पद संभालने के तुरंत बाद कार्टेल पर युद्ध की घोषणा कर दी थी. अपने 6 साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने कार्टेल की गतिविधियों पर नकेल लगाने के लिए हजारों सैन्यकर्मियों को तैनात कर दिया था.
कई मामलों में वैसे स्थानीय पुलिस बलों को बदल दिया था, जिन्हें भ्रष्ट माना गया था. अमेरिकी सहायता से मैक्सिकन सेना ने मैक्सिको में शीर्ष 37 ड्रग किंगपिनों में से 25 को पकड़ कर मार डाला था. सैन्य काररवाई काल्डेरोन के कार्यकाल का केंद्रबिंदु थी.
कारोबार रोकने में सरकार भी नाकाम
इस अभियान पर काल्डेरोन आलोचनाओं से घिर गए थे. आलोचकों का कहना था कि काल्डेरोन की सिर काटने की रणनीति ने दरजनों छोटे और अधिक हिंसक ड्रग गिरोह बना लिए हैं. कई लोग यह भी तर्क देते हैं कि मैक्सिको की सेना पुलिस कार्यों को करने के लिए तैयार नहीं थी. सरकार ने काल्डेरोन के कार्यकाल के दौरान 1,20,000 से अधिक हत्याओं की जानकारी दी, जो उन के पहले की सरकारों के कार्यकाल के दौरान हुई हत्याओं की लगभग दोगुनी थी. इस बारे में विशेषज्ञों का अनुमान है कि मैक्सिको में एकतिहाई से डेढ़ गुना हत्याएं कार्टेल से जुड़ी हुई थीं.
काल्डेरोन के उत्तराधिकारी एनरिक पेना नीटो ने कार्टेल के नेताओं को हटाने की तुलना में नागरिकों और व्यवसायियों के खिलाफ हिंसा को कम करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की बात कही. फिर भी राष्ट्रपति पेना नीटो ने कार्टेल से लडऩे के लिए संघीय पुलिस के साथ मिल कर काम करने लिए सेना पर भरोसा किया. उन्होंने कई हजार अधिकारियों का एक खास तरह का नया राष्ट्रीय पुलिस बल भी बनाया.
इस का प्रभाव दिखा और नीटो के राष्ट्रपति पद के पहले वर्षों में हत्याओं में कमी आई, लेकिन 2015 में फिर तेजी देखी गई. उन के कार्यकाल के अंत तक आधुनिक मैक्सिकन इतिहास में हत्याओं की संख्या शिखर पर जा पहुंची थी. विशेषज्ञ इस का श्रेय सरगना रणनीति, क्षेत्रीय झगड़ों और कार्टेल टूटने में आई लगातार गिरावट को देते हैं.
उस के बाद साल 2018 में एंड्रेस मैनुअल लोपेज ओब्रेडोर ने राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के कुछ समय बाद ही घोषणा की कि उन की सरकार कार्टेल नेताओं को पकडऩे के सैन्य प्रयासों से दूर हो जाएगी और इस के बजाय क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग में सुधार और हत्या की दरों को कम करने पर ध्यान केंद्रित करेगी. राष्ट्रपति मैनुअल को एएमएलओ के नाम से भी जाना जाता है.
वह चाहते हैं कि ‘हग्स नौट बुलेट्स’ दृष्टिकोण अपनाते हुए रोजगार के अवसर पैदा कर संगठित अपराधियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जाए. इस के लिए साल 2018 से उन के प्रशासन ने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान शुरू किया है और कार्टेल की आमदनी को बाधा पहुंचाने की हरसंभव कोशिश की है. इस ने सभी अवैध दवाओं को अपराध से मुक्त करने और निम्नस्तरीय कार्टेल सदस्यों को माफी की पेशकश करने का भी प्रस्ताव दिया है.
हालांकि एएमएलओ ने अपनी रणनीति को एक नए दृष्टिकोण के रूप में तैयार किया है, जिस पर कुछ विशेषज्ञों ने नकारात्मक टिप्पणी की है. उन का कहना है कि सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक नए सैन्य नेतृत्व वाले राष्ट्रीय गार्ड को तैनात करने सहित उस के कार्य पहले जैसी ही रणनीति हैं, जो असफल होते रहे हैं. यह भी सच है कि हत्या की दर में कोई कमी नहीं आई है.
नागरिक स्वतंत्रता समूहों, पत्रकारों और विदेशी अधिकारियों ने वर्षों से कार्टेल के साथ मैक्सिकन सरकार के युद्ध की आलोचना की है, जिस में सेना, पुलिस और कार्टेल पर व्यापक मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है. उन का कहना है कि इस युद्ध में यातनाएं, न्यायिक अधिकार एवं मुकदमे से हट कर की गई हत्याएं और जबरन गायब होने जैसी वारदातें शामिल हैं.
मानवाधिकारों का हो रहा है उल्लंघन
साल 2006 के बाद से 79 हजार से अधिक लोग गायब हो गए हैं. वे मुख्यरूप से कार्टेल जैसे आपराधिक संगठनों के कारण गायब हुए हैं, लेकिन उन में सरकारी बल भी एक भूमिका निभाते हैं. लापता लोगों को खोजने और उन पर मुकदमा चलाने के लिए स्थानीय तलाशी के प्रयासों को कार्टेल से संबंधित हिंसा,
सरकारी अक्षमता और भ्रष्टाचार जैसी वजहों से बाधा पहुंचती है.
इस का एक बड़ा उदाहरण 2014 में दक्षिणी राज्य ग्युरेरो में तब देखने को मिला था, जब 43 छात्र प्रदर्शनकारियों का अपहरण कर लिया गया था और उन के मारे जाने की आशंका जताई गई थी. हालांकि बाद में केवल 3 छात्रों के अवशेषों की निश्चित रूप से पहचान की गई थी.
इस घटना के बाद बड़े पैमाने पर प्रदर्शनों का दौर चला था. प्रदर्शनकारियों ने अपहरण के बारे में जवाब मांगते हुए मैक्सिको के स्थानिक भ्रष्टाचार, हिंसा और अन्य अपराध पर अंकुश लगाने की मांग की थी. छात्रों के लापता होने की जांच में कथित तौर पर जो सबूत मिले, उस में पुलिस और सेना सहित अधिकारियों द्वारा अपराधों में कार्टेल सदस्यों के साथ साजिश रचने की बात आई.
छात्रों के परिवारों, मानवाधिकार समूहों और स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा पिछली जांच के संचालन पर सवाल उठाने के बाद सरकार ने एक नई जांच शुरू की है. इसे ले कर अगस्त 2022 में एक न्यायाधीश ने पूर्व अटार्नी जनरल को आदेश दिया है कि मूल जांच की देखरेख के लिए जबरन गायब होने, यातना की रिपोर्ट करने में विफलता और कदाचार के आरोपों पर मुकदमा चलाया जाए.
दुर्लभ और उस के साथी उज्जैन के दानी गेट इलाके में उस जगह बैठा करते थे, जहां मुर्दों का दाह संस्कार किया जाता था. दाह संस्कार करने वाले कुछ लोग काला पंछा यानी गमछा कंधे पर डाला करते थे. अपने आप को वजनी दिखाने के लिए इस गैंग के लोगों ने भी गमछा डालना शुरू कर किया. बाद में कंधों पर पंछा और खड़ा लाल टीका दुर्लभ गैंग की पहचान बन गए.
सोशल मीडिया के जरिए दिखाई ताकत
दुर्लभ कश्यप का फेसबुक अकाउंट था, जिस के जरिए वह अपराध फैलाता था. दुर्लभ सोशल मीडिया पर हमेशा सक्रिय रहता था. वह खुद को और अपने गैंग को प्रमोट करने के लिए फेसबुक का सहारा लेता था. दुर्लभ ने अपने एक सोशल मीडिया प्रोफाइल पर अपने आप को कुख्यात बदमाश और नामी अपराधी लिख रखा था.
दुर्लभ कश्यप का फेसबुक पर स्टेटस था कि वह कुख्यात बदमाश, हत्यारा और अपराधी है. कोई सा भी विवाद हो, कैसा भी विवाद हो तो उस से संपर्क करें. टीनएज में ही उसे अपराध करने का शौक चढ़ गया था. सोशल मीडिया पर उस के स्टाइल और पर्सनैलिटी से प्रभावित हो कर टीनएजर और युवा उस से जुडऩे लगे थे.
दुर्लभ कश्यप की फैन फालोइंग हर उगते सूरज के साथ बढऩे लगी. लोगों का साथ पा कर वह और मजबूत होने लगा. इस से वह शहर में छोटीमोटी वारदातें करने लगा. जुर्म करने के लिए अपने पेज पर विज्ञापन भी लिखता था. इस के अलावा सोशल मीडिया पर ही लोगों को धमकियां भी देता था. उस के अपराध का मुख्य जरिया सोशल मीडिया था. वह फेसबुक और वाट्सऐप के जरिए आपराधिक कामों को अंजाम देता था. वह हर रोज फेसबुक पोस्ट के जरिए रंगदारी, हफ्ता वसूली, लूटपाट और सुपारी लेता था.
दुर्लभ कश्यप चर्चा में उस वक्त आया, जब उस ने खुलेआम फेसबुक पर यह कहना शुरू कर दिया कि वह किसी से भी किसी के लिए विवाद कर सकता है, एवज में बस उसे पैसा चाहिए. दुर्लभ का सब से बड़ा हथियार था सोशल मीडिया. दुर्लभ गैंग के लोगों की प्रोफाइल पर हथियारों के साथ धमकाने और दहशत फैलाने वाली पोस्ट भी डाली जाती थी.
गैंग के लोगों की फेसबुक आईडी का संचालन करने के लिए भी उस ने एक टीम बना रखी थी, जो दहशत फैलने वाली पोस्ट करते थे. इस आईडी से जेल में बंद लोगों की भी फोटो पोस्ट की गई थी. उज्जैन में कम उम्र के लडक़ों के बीच दुर्लभ की लोकप्रियता बढऩे लगी थी. उस के गैंग में धीरेधीरे 100 से भी ज्यादा लड़के जुड़ चुके थे, जिन का उज्जैन में आतंक फैल चुका था. उस के नाम से चाय वाले से ले कर बड़ेबड़े बिजनैसमैन तक थरथर कांपते थे.
इस से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि एक 16 साल की लड़के ने किस तरह का आतंक मचा रखा था.
दुर्लभ कश्यप गैंग किसी कारपोरेट कंपनी की तरह काम करता था. गैंग का अपना स्टाइल और ड्रेस कोड था. बड़े बाल, माथे पर लाल टीका, आंखों में सुरमा, काला गमछा दुर्लभ गैंग की पहचान थी. गैंग के इसी स्टाइल के युवा और टीनएजर फैन हुए जा रहे थे.
सोशल मीडिया पर लोकप्रियता के चलते देखते ही देखते यह ग्रुप गैंग में बदल गया. दुर्लभ कश्यप का गैंग फेसबुक से चल रहा था. दुर्लभ कश्यप ने 17 साल की उम्र में फेसबुक पर एक पोस्ट डाल कर दहशत फैला दी थी. 18 साल की उम्र में कई सारे अपराध कर के वह बहुत ही कम उम्र में गैंगस्टरों की लिस्ट में शामिल हो गया.
वह गैंग के सदस्यों से रंगदारी, हफ्ता वसूली, लूटपाट जैसे अपराध करवाता था. जब सोशल मीडिया पर उस ने अपने इन्हीं कामों के लिए सुपारी लेने की पोस्ट शेयर की तो पुलिस ने इन्हें उठाना शुरू किया. तत्कालीन एसपी सचिन अतुलकर ने 2018 में दुर्लभ कश्यप के गैंग का परदाफाश कर दिया और 2 दरजन से अधिक लडक़ों को गिरफ्तार कर लिया.
दुर्लभ कश्यप बना युवा अपराधियों का रोल मौडल
कच्ची उम्र में ही दुर्लभ के इरादे जुर्म की दुनिया का बादशाह बनने के थे. उस के रहनसहन और कपड़े पहनने का अंदाज इस कदर युवाओं में पापुलर हो गया था कि कई लोग उस के इस अंदाज को फालो करने लगे थे. उसे बिल्लियों से बहुत प्यार था. वह अपने साथ कई बार बिल्ली भी रखता था.
पिछले साल 2022 में मध्य प्रदेश के सागर शहर में 60 साल के शिवकुमार दुबे, 57 साल के कल्याण लोधी, मंगल अहिरवार की सिर कुचल कर हत्या की गई. अगले दिन सोनू वर्मा नाम के युवक का भी मर्डर हो गया. इन सब में एक बात कौमन थी कि ये सभी चौकीदार थे.
कत्ल में एक नाम खुला 19 साल के शिवप्रसाद धुर्वे का. उसे भोपाल के कोहएफिजा इलाके के बसस्टैंड से पकड़ा गया. शिव प्रसाद धुर्वे ने जो नाम लिया, उसे सुन कर पुलिस चौंक गई. उस ने बताया, “वह भी दुर्लभ कश्यप की तरह मशहूर होना चाहता था.”
गिरफ्तारी के दौरान शिवकुमार धुर्वे पुलिस से हंसते हुए बोला, “एक और को निपटा दिया. काम के वक्त सोने वाले लोग मुझे पसंद नहीं. जितने भी चौकीदारों की हत्या की गई, वे सब काम के वक्त सो रहे थे. “
दुर्लभ गैंग का एक और सदस्य चयन बोहरा 14 जुलाई, 2022 को इंस्टाग्राम पर लाइव देखा गया. चयन और उस के साथी पार्टी कर रहे थे. इस पार्टी से 2 दिन पहले ही चयन और उस के एक साथी ने इंदौर में अनिल दीक्षित नाम के एक हिस्ट्रीशीटर पर गोलियां दागी थीं. जिस रोज चयन इंस्टाग्राम पर लाइव था, उसी दिन अनिल की मौत हुई. चयन ने इस वारदात को अंजाम देने से पहले इंस्टाग्राम पर ऐलान तक किया था. पुलिस ने इन पर 30 हजार रुपए का ईनाम घोषित किया. दोनों को 10 दिनों के भीतर अरेस्ट किया गया.
उज्जैन से 500 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र का औरंगाबाद शहर. फरवरी, 2022 में एक दिन पुलिस को शिकायत मिली कि शुभम नाम के युवक पर हमला किया गया है. शुभम के पिता मनगटे अपने घर से कुछ ही दूरी पर किराने की दुकान चलाते हैं.
6 फरवरी, 2022 की रात का वक्त. कुछ लडक़ों ने मनगटे से सिगरेट देने को कहा. मनगटे बोले कि आधी रात का वक्त हो गया है और अब दुकान बंद कर रहे हैं. यह सुन सिगरेट मांग रहे युवकों ने लोहे की रौड और धारदार हथियार से मनगटे और उन के 22 साल के बेटे शुभम पर हमला कर दिया.
शुभम पर हमला करने वाले लडक़ों ने खुद को दुर्लभ कश्यप गैंग का बताया. जानकारी इस बात की भी मिली कि इस गैंग के लोग दुकानदारों से मुफ्त सामान लेते हैं और आनेजाने वाले लोगों को परेशान करते हैं. दिलचस्प बात यह है कि दुर्लभ अपनी जिंदगी में कभी औरंगाबाद नहीं आया. फिर इस गैंग ने खुद को दुर्लभ के साथ कैसे जोड़ा?
सुरंग बना कर जेल से भाग गया था अल चापो
साल 1985 में अल बेदरीनो का नाम एक अधिकारी की हत्या में आने के बाद उसे 1989 में गिरफ्तार कर लिया गया. उस के बाद गुआदलहारा ड्रग कार्टेल बिखर गया, जिसे फिर से बना कर अल चापो ने सिनालोआ कार्टेल का नाम दिया. इस तस्करी में उस ने नया तरीका ईजाद किया, जिस में सुरंगों का इस्तेमाल किया गया.
इस तरीके को अपनाने के लिए उस ने 1992-93 के दौर में पूरे सिनालोआ में अनगिनत इमारतें और सुरंगे बनवाईं, लेकिन 1993 में चर्च के एक कार्डिनल की मौत हो गई. इस मामले में अल चापो को हत्या, ड्रग्स सहित कई आरोपों में ग्वाटेमाला से गिरफ्तार कर 20 साल की सजा सुना कर प्यूएंते ग्रांद जेल में भेज दिया गया.
कई साल जेल में रहने के बाद साल 2001 में अल चापो जेल से फरार हो गया. फिर वह 13 साल पुलिस की पकड़ में नहीं आया और इस दौरान उस ने दुनिया के हर कोने में सिनालोआ कार्टेल के जरिए तसकरी की. साल 2009 में अल चापो का नाम फोब्र्स के सब से अमीर लोगों की लिस्ट में शामिल हुआ, जोकि 2013 तक बना रहा.
फिर 2014 में अल चापो को गिरफ्तार कर आल्टपीनो की जेल में रखा गया. लेकिन डेढ़ साल ही बीता था कि जुलाई 2015 में अल चापो जेल में सुरंग बना कर मोटरसाइकिल के जरिए फिर फरार हो गया. इस प्लान में अल चापो की मदद उस की बीवी एमा कोरोनेल आइसपूरो ने की थी. पहले एमा ने जेल के बगल में जमीन खरीदी फिर बिल्डिंग बनवाई और उसी के रास्ते अल चापो की बैरक तक एक सुरंग बनाई.
एमा ने इस काम के लिए कुछ जेल अधिकारियों को घूस भी दी थी. हालांकि 8 जनवरी, 2016 के दिन अल चापो को एक मुठभेड़ के बाद लास मोचिस, सिनालोआ में पकड़ लिया गया था. फिर 2017 में उसे अमेरिका में प्रत्यर्पित कर दिया गया, जहां न्यूयार्क की अदालत में उस पर मुकदमा शुरू हुआ. साल 2019 में अदालत ने अल चापो को आजीवन कारावास के अलावा 30 साल की सजा सुनाई.
कौन कितना कुख्यात कार्टेल
मैक्सिको के ड्रग कार्टेल दशकों से लगातार बने हुए हैं. कई बार बिखरने की स्थिति में आने के बावजूद नए गठबंधन बनते रहे. अपना वजूद बनाए रखने के लिए एकदूसरे से लड़ते रहे हैं. ड्रग एन्फोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन (डीईए) के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए सब से महत्त्वपूर्ण मादक पदार्थों की
तस्करी के खतरे पैदा करने वाले कार्टेल ही हैं.
मैक्सिको के सब से बड़े कार्टेल सिनालाओ के अलावा दूसरे कार्टेल भी सक्रिय हैं. इन में गल्फ कार्टेल, लास जीटास, जुआरेज, जेलिस्को, बर्तेन लेव्लया के नाम मुख्य हैं. जेलिस्को न्यू जनरेशन कार्टेल (सीजेएनजी) 2010 में सिनालोआ से अलग हो कर बना था. देश के दोतिहाई से अधिक हिस्से में इस का वर्चस्व है तथा मैक्सिको के सब से तेजी से बढ़ते कार्टेल में से एक है. डीईए के अनुसार, यह मादक पदार्थों की
तसकरी गतिविधियों का तेजी से विस्तार करने और हिंसक वारदातों में शामिल रहा है.
यह अमेरिकी दवा बाजार के एक तिहाई से अधिक की आपूर्ति करती है. जेलिस्को कार्टेल लास जीटास कार्टेल के 35 लोगों का मर्डर कर शवों को राजधानी में फेंकने के बाद चर्चा में आया था. इन में गल्फ कार्टेल सिनालोआ का सब से धुर प्रतिद्वंदी कार्टेल है. इस का मैक्सिको के खाड़ी वाले क्षेत्रों में कब्जा है. गल्फ
कार्टेल की क्षमता का आधार पूर्वोत्तर मैक्सिको में है. इस का प्रभाव विशेष रूप से तमाउलिपास और जकाटेकास राज्यों में है. माना जाता है कि यह उन क्षेत्रों में जेलिस्को के सदस्यों के साथ काम कर रहा है.
इसी तरह लास जीटास पुलिस और सेना के भगोड़ों द्वारा बनाया गया कार्टेल है. यह कार्टेल मर्डर करने में माहिर है और हत्या के बाद शवों पर जेड-40 का निशान बना देता है. जेटास को 2007 में डीईए द्वारा देश के सब से तकनीकी रूप से उन्नत, परिष्कृत और हिंसक समूह के रूप में चुना गया था. यह 2010 में गल्फ कार्टेल से अलग हो गया और पूर्वी, मध्य और दक्षिणी मैक्सिको के क्षेत्रों पर हावी हो गया था. हालांकि,
हाल के वर्षों में इस ने सत्ता खो दी है.
साढ़े 3 लाख से ज्यादा हत्याएं हुईं मैक्सिको में
जुआरेज कार्टेल का दबदबा अमेरिका से जुड़ी सीमा पर बना हुआ है. एक तरह से इस का उसी सीमा पर कब्जा है, जिसे रोकने के लिए अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दीवार बनाने की घोषणा की थी. इसे चुनावी मुद्दा बना कर चुनाव तो जीत गए थे, लेकिन इस वादे को पूरा नहीं कर पाए. खैर, जुआरेज के पास सब से प्रभावकारी शार्पशूटर स्पाइनरों की प्राइवेट आर्मी है.
सिनालोआ के एक लंबे समय से प्रतिद्वंदी जुआरेज का उत्तरमध्य राज्य चिहुआहुआ में न्यू मैक्सिको और टेक्सास से सीमा के पार अपना गढ़ है. हाल के सालों में यह गिरोह कई गुटों में बंट गया है. जबकि बर्तेन लेव्लया कार्टेल 4 भाइयों ने बनाया था. चापो से गैंगवार के कारण 2 भाई मारे गए. 2 इंजीनियर इस के सरगना हैं.
ला फमिलिया मिचोआकाना (एलएफएम) नाम का कार्टेल पश्चिमी मैक्सिको के मिचोआकेन राज्य में सक्रिय है. साल 2009 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस गिरोह के सदस्यों को महत्त्वपूर्ण विदेशी नशीले पदार्थों के तस्कर बताते हुए विदेशी नारकोटिक्स किंगपिन कहा था. उस पर आर्थिक पाबंदियां भी लगाई गई थीं. वैसे हाल के वर्षों में यह कमजोर हुआ है.
फलफूल रहा है सिंथेटिक ड्रग का कारोबार
मैक्सिकन ड्रग कार्टेल यूएसए को कोकीन, हेरोइन, मेथामफेटामाइन और अन्य अवैध नशीले पदार्थों के प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं. कार्टेल और नशीली दवाओं के व्यापार ने मैक्सिको में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और हिंसा को बढ़ावा दिया. हालांकि मैक्सिको ने 2006 में कार्टेल के खिलाफ काररवाई एक युद्ध शुरू में किया, जिस के लिए अमेरिका ने उसे सुरक्षा और मादक द्रव्यों के खिलाफ सहायता के रूप में अरबों डालर दिए थे.
कहने को तो मैक्सिकन अधिकारी एक दशक से अधिक समय से ड्रग कार्टेल के खिलाफ घातक लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन उन्हें बहुत ही कम सफलता मिल पाई है. राजनेताओं, छात्रों और पत्रकारों सहित हजारों मैक्सिकन हर साल संघर्ष में मारे जाते हैं.
साल 2006 के बाद से, जब सरकार ने कार्टेल पर युद्ध की घोषणा की, मैक्सिको में 3,60,000 से अधिक हत्याएं हुई हैं. अमेरिका ने अपने दक्षिणी पड़ोसी मैक्सिको की मदद के लिए उस की सुरक्षा बलों को आधुनिक बनाने, अपनी न्यायिक प्रणाली में सुधार करने और उस की दक्षिणी सीमा पर प्रवास को रोकने के उद्देश्य से विकास परियोजनाओं पर अरबों डालर खर्च किए हैं.
वाशिंगटन ने मैक्सिको के साथ अपनी सीमा पर सुरक्षा और निगरानी संचालन को मजबूत कर के अमेरिका में अवैध दवाओं के प्रवाह को रोकने की भी मांग की है. मैक्सिकन ड्रग ट्रैफिकिंग संगठन (डीटीओ), जो अंतरराष्ट्रीय आपराधिक संगठन भी कहा जाता है, अमेरिका में कोकेन, फेंटेनाइल, हेरोइन, मारिजुआना और मेथामफेटामाइन के आयात और वितरण का काम करता है.
मैक्सिकन आपूर्तिकर्ता अधिकांश हेरोइन और मेथामफेटामाइन उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं, जबकि कोकीन का उत्पादन बड़े पैमाने पर कोलंबिया में किया जाता है. उसे मैक्सिकन आपराधिक संगठनों द्वारा अमेरिका में ले जाया जाता है. मैक्सिको चीन के साथ फेंटेनिल का भी एक प्रमुख स्रोत है, जो हेरोइन की तुलना में 50 गुना अधिक शक्तिशाली सिंथेटिक ड्रग है.
ड्रग कार्टेल अब नए जमाने के ड्रग का कारोबार करने लगे हैं, उन में चीन से आयातित कैमिकल से बना सिंथेटिक ड्रग है. चीन से सिंथेटिक कैमिकल इलेक्ट्रौनिक सामान में छिपा कर मैक्सिको के विभिन्न बंदरगाहों पर पहुंचता है. यहां से कैमिकल कारखानों में जाता है. मैक्सिको का ड्रग कार्टेल सिंथेटिक ड्रग फेंटेनिल बनाता रहा है. इस ड्रग को बनाने की कीमत हेरोइन, मारिजुआना या अफीम से बहुत कम होती है. वह चीन से सिंथेटिक कैमिकल का आयात कर लेता है.
ड्रग कार्टेल ने मैक्सिको के जंगलों में फेंटेनिल को बनाने के लिए देसी कारखाने बना रखे हैं. पाउडर में कैमिकल को मिला कर इन्हें फेंटेनिल टैबलेट में बदल दिया जाता है. यह कितना खतरनाक और जानलेवा है, इस का अंदाज अमेरिका में ड्रग से हुई मौतों से लगाया जा सकता है. 2021 में फेंटेनिल ओवरडोज से अमेरिका में 2 लाख लोगों की मौत हो गई थी. फेंटेनिल को दर्द निवारक के रूप में मैडिकल स्टोर्स में बेचा जाता है.
कैसे बढ़ते चले गए ड्रग कार्टेल
ड्रग कार्टेल के बढऩे और बने रहने के कारणों के बारे में विशेषज्ञ घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों ताकतों की ओर इशारा करते हैं. मैक्सिको में कार्टेल अपने काफी बड़े मुनाफे के एक हिस्से का उपयोग न्यायाधीशों, अधिकारियों और राजनेताओं के ऊपर करते हैं.
वे अधिकारियों को सहयोग करने के लिए भी बाध्य करते हैं. यही कारण है कि उन के द्वारा पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं की हत्याएं भी खूब होती हैं. बीते साल 2021 में देश के मध्यावधि चुनाव से पहले दरजनों राजनेता मारे गए, जिन में से कई मौतों के लिए कार्टेल को जिम्मेदार ठहराया गया.
मैक्सिको में लगातार एक ही राजनीतिक पार्टी इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी (पीआरआई) का शासन होने का भी कार्टेल ने खूब फायदा उठाया और 7 दशकों के दौरान कार्टेल फलेफूले. वहां के राजनीतिक ढांचे के भीतर घुस कर कार्टेल के सदस्यों ने भ्रष्ट अधिकारियों का एक व्यापक नेटवर्क तैयार कर लिया, जिस के माध्यम से वे वितरण अधिकार, बाजार तक पहुंच और सुरक्षा हासिल करने में सक्षम होते चले गए.
साल 2000 में पीआरआई का अटूट शासन कंजर्वेटिव नैशनल एक्शन पार्टी (पैन) के अध्यक्ष विसेंट फौक्स के चुनाव के साथ समाप्त हो गया. सत्ता में नए राजनेता आए और कार्टेल पर जब अंकुश लगाने की बारी आई, तब कार्टेल ने उन के साथ संबंध बनाने एवं राज्यों पर अपनी पकड़ को फिर से स्थापित करने की कोशिश में सरकार के खिलाफ हिंसा तेज कर दी.
मैक्सिकन कार्टेल ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 1980 के दशक के अंतिम सालों में ड्रग तस्करी के नेटवर्क को मजबूत करने के लिए तब बहुत बड़ी भूमिका निभानी शुरू कर दी थी, जब अमेरिकी सरकारी एजेंसियों ने कोकीन की तस्करी के लिए कोलंबियाई कार्टेल द्वारा उपयोग किए जाने वाले कैरेबियन नेटवर्क को तोड़ दिया था.
साल 2018 के अक्तूबर महीने की बात है. 2 महीने बाद मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने थे. विधानसभा चुनाव में सुरक्षा के मद्देनजर अपराधियों की धरपकड़ में उज्जैन पुलिस लगी हुई थी. उस समय महाकाल की नगरी उज्जैन शहर में कम उम्र के लड़कों के एक गैंग का तहलका मचा हुआ था. यह गैंग आए दिन शहर में बलवा कर शहर की शांति व्यवस्था को भंग कर रहा था.
इस गैंग का सरगना एक नाबालिग उम्र का मासूम सी सूरत वाला लड़का दुर्लभ कश्यप था, जिसे पुलिस ने शांति भंग करने के अपराध में गिरफ्तार किया था. उज्जैन के तत्कालीन एसपी सचिन अतुलकर एक प्रैस कौन्फ्रैंस कर रहे थे. दुर्लभ कश्यप और उस के 23 साथियों की मीडिया के सामने परेड कराई गई. सचिन अतुलकर की कोशिश थी कि चुनाव से पहले पेशेवर अपराधियों को नियंत्रण में कर लिया
जाए.
उस वक्त दुर्लभ 18 साल का भी नहीं था और मीडिया वाले उस के चेहरे से भी अनजान थे. प्रैस कौन्फ्रैंस चल ही रही थी कि एक पत्रकार ने सवाल किया, “इन लड़कों में से दुर्लभ कौन है?”
“आप देखिए, वो खुद ही हाथ उठा कर बताएगा,” एसपी ने जबाव दिया.
फिर पुलिस अधिकारियों के पीछे खड़े लड़कों की टोली में से एक फटी शर्ट वाले लड़के ने बहुत अलग अंदाज में अपना हाथ ऊपर उठाया. दुर्लभ के इस अनोखे अंदाज में उठाए हाथ का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. यह वही वक्त था, जिस के साथ दुर्लभ सोशल मीडिया पर लोगों के बीच पहचान हासिल करने में सफल हो गया. दुर्लभ कश्यप ने अपने आप को गैंगस्टर साबित करने के लिए सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर बाकायदा इश्तहार दे रखा था.
दुर्लभ कश्यप का जन्म 8 नवंबर, 2000 को उज्जैन में जीवाजीगंज के अब्दालपुरा में हुआ था. वह पिता मनोज कश्यप तथा माता पद्मा का इकलौता बेटा था. दुर्लभ की मां पद्मा कश्यप उज्जैन के क्षीरसागर स्कूल में शिक्षिका थीं. दुर्लभ के पिता मुंबई में नौकरी करने के बाद इंदौर शिफ्ट हो गए.
दुर्लभ का कुछ समय इंदौर में भी बीता. एक संभ्रांत व संपन्न परिवार के मनोज कश्यप ने बाद में अपना व्यवसाय शुरू किया. तब से ही इन का परिवार उज्जैन में रहने लगा था. मनोज कश्यप व पद्मा ने अपने बेटे का नाम ‘दुर्लभ’ भी इसलिए रखा था कि वह बड़ा हो कर कुछ अलग और अच्छा करेगा.
उन की उम्मीद थी कि वह सब से हट कर कुछ बड़ा काम करेगा, जिस से उन का नाम रोशन हो. दुर्लभ पढ़लिख कर डाक्टर या इंजीनियर बने, इस के लिए दुर्लभ की मां पद्मा ने उसे शहर के नामी स्कूल में दाखिला कराया था.
एक दिन दुर्लभ को स्कूल भेजते वक्त मां ने दुर्लभ से कहा, “बेटा, अच्छे से पढ़ाई करना और एक दिन हमारा नाम रोशन करना.”
“मां तुम ने मेरा नाम दुर्लभ रखा है, देखना एक दिन मेरा नाम इस शहर की गलीगली में गूंजेगा.” दुर्लभ ने मां को जबाब देते हुए कहा. दुर्लभ का नाम रोशन हुआ भी, पर अपराध की दुनिया में.
दुर्लभ के मातापिता कुछ निजी समस्याओं के कारण एकदूसरे से अलग रहने लगे थे. दुर्लभ भी कभी अपनी मां के साथ तो कभी अपने पिता के साथ रहता था. मातापिता दोनों ही उसे अपनी जान से ज्यादा प्यार करते थे. घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी. दुर्लभ की हर ख्वाहिश मांबाप पूरी करते थे, जिस का नतीजा यह हुआ कि लाड़प्यार में वह बिगड़ गया.
दुर्लभ सिगरेट पीने का आदी हो गया. काली शर्ट पहने हुए लड़के , आंखों में काजल, माथे पर अलग तरह का खड़ा लाल टीका, कंधे पर काला पंछा या कहें गमछा और एक नाम दुर्लभ कश्यप. फेसबुक पर तलाशेंगे तो इस नाम के कई अकाउंट्स, पेज और ग्रुप सामने आ जाएंगे. युवाओं में दुर्लभ खासा प्रचलित था.
वह अपने गैंग में अकसर कम उम्र के लड़कों को शामिल किया करता था. दुर्लभ वैसे तो बहुत ही शांत स्वभाव का था, लेकिन बचपन में ही बुरी संगत में पड़ गया था. वह कुछ गैंगस्टरों की दबंगई और
ठाठबाट से बहुत प्रभावित हुआ, इसलिए उस ने कच्ची उम्र में ही बड़ा गैंगस्टर बनने का ख्वाब देख लिया और उसी राह पर निकल पड़ा.
आवारा किस्म के लड़के स्कूल में पढ़ते वक्त ही दुर्लभ के फैन बन चुके थे. वे उसे कोहिनूर के नाम से बुलाते थे. महज 15 साल की उम्र में उस ने फेसबुक पर हथियारों के साथ फोटो डालने शुरू कर दिए और अपनी बदमाशी का प्रचार करना शुरू कर दिया. दुर्लभ का मकसद था कि वह अपना खुद का एक गैंग बनाए, जिस में वह कामयाब भी हुआ. कई नाबालिग लड़के उस के साथ जुड़ते चले गए.
दुर्लभ कश्यप कैसे बना गैंगस्टर
दुर्लभ कश्यप ने 15 साल की उम्र में 10वीं क्लास का इम्तिहान दिया, लेकिन 10वीं में फेल होते ही उस की संगति आवारा किस्म के लड़कों के साथ बढऩे लगी. जिस तरह पूत के पांव पालने में दिखाई दे जाते हैं, ठीक उसी तरह दुर्लभ के तौरतरीकों ने स्कूल में पढ़ते समय ही यह साबित कर दिया था कि वह एक दिन अपराधी ही बनेगा.
देखते ही देखते वह उज्जैन का मशहूर हिस्ट्रीशीटर बन गया था. दुर्लभ कश्यप जब 16 साल का हुआ तो पढ़ाई छोड़ उसे गैंगस्टर बनने की धुन सवार हो गई. वह निकल पड़ा ऐसे रास्ते पर जहां जाना तो बड़ा आसान था, लेकिन वहां से वापसी करना बहुत ही मुश्किल था.
उज्जैन में कार्तिक मेले में उठने वाले पार्किंग के ठेके से दुर्लभ के गैंगस्टर बनने की कहानी शुरू होती है. हेमंत बोखला के जरिए दुर्लभ डागर परिवार के करीबी राहुल किलोसिया के कौन्टैक्ट में आया था. किलोसिया को अपना कारोबार चलाने के लिए कुछ लड़कों की जरूरत थी. यहीं से दुर्लभ और उस के साथियों को पनाह दी जाने लगी.
राहुल किलोसिया ने उज्जैन के बाहरी इलाके में मौजूद एक फार्महाउस को दुर्लभ और उस के साथियों के लिए खोल दिया था. गैंग के लड़के यहां आते और शराबगांजे के नशे में डूब कर खूब मौजमस्ती करते. बदले में ये लड़के किसी भी वारदात को अंजाम देने के लिए तैयार रहते थे.
दुर्लभ कश्यप पर जनवरी, 2018 में पहली बार हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ था. 11-12 जनवरी, 2018 की दरमियानी रात दुर्लभ और उस के साथियों का सामना टाक परिवार से जुड़े कुछ लड़कों से हुआ. इस गैंगवार में कई लड़के घायल हुए. दोनों गुट अपनेअपने साथियों को ले कर उज्जैन के सिविल अस्पताल पहुंचे तो यहां फिर से दोनों गैंग आपस में टकरा गए.
दुर्लभ गैंग के लड़कों ने अर्पित उर्फ कान्हा पर चाकू से हमला किया. 13 जनवरी, 2018 को उस की मौत हो गई. इस मामले में दुर्लभ और उस के साथियों को आरोपी बनाया गया. दुर्लभ और उस का साथी राजदीप उस वक्त नाबालिग थे, जिस की वजह से उन्हें उज्जैन के बाल सुधार गृह भेज दिया गया. 4 महीने काटने के बाद दोनों को इस केस में जमानत मिल गई. दुर्लभ को फोटो खिंचवाने का बहुत शौक था. वह उज्जैन के अलगअलग पेशेवर फोटोग्राफर्स से अपनी फोटो खिंचवाता था.
आप को यह जान कर हैरानी होगी कि दुनिया में एक ऐसा भी देश है, जहां सरकार से अधिक सेना वहां के आतंकी माफियाओं के पास हैं. उन की संख्या 75 हजार से अधिक है. करीब 20 लाख किलोमीटर क्षेत्र वाले इस देश में प्राइवेट सैनिकों की बड़ी फौज है तो 600 से अधिक विमान उन्हीं माफियाओं के पास हैं. जबकि हैरानी भरी बात यह है कि वहां की सरकार के पास केवल 120 विमान ही हैं.
अब आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में विमानों का रखरखाव, उड़ान भरने के लिए निजी सुविधाएं, प्राइवेट हवाई अड्डे, रनवे और ईंधन की खपत सरकार की तुलना में कितनी अधिक होगी. इसी तरह से प्राइवेट सेनाओं के पास निश्चित तौर पर गोलाबारूद से ले कर अत्याधुनिक हथियारों का जखीरा भी होगा. ऐसे में इन के इस्तेमाल से पैदा हुए हिंसक आतंक की कल्पना से ही किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं.
सच तो यह भी है कि इस देश में रोजाना 120 से अधिक हत्याएं होती हैं. जानते हैं कि वह देश कौन सा है? वह देश है मैक्सिको. मक्का, टमाटर और मटर उगाने वाले अमेरिका से सटे इस देश में दुनिया का सब से बड़ा ड्रग्स का धड़ल्ले से कारोबार होता है. लगभग 13 करोड़ की आबादी वाला मैक्सिको 40 साल से ड्रग कार्टेल के चंगुल में है. कार्टेल यानी संगठित गिरोह. ये गिरोह यहां अफीम, हेरोइन और मारिजुआना की तस्करी में लिप्त रहते हुए समानांतर सरकार चला रहे हैं.
अनुमान है कि करीब 150 से ज्यादा कार्टेल सालाना लगभग ढाई लाख करोड़ रुपए की ड्रग्स तस्करी अमेरिका को करते हैं. इन संगठित गिरोहों के गुर्गों की प्राइवेट आर्मी होने के कारण इन के बीच आए दिन खूनी संघर्ष भी होता रहता है.
घूमनेफिरने के लिए मशहूर दुनिया के खूबसूरत देश मैक्सिको में स्वादिष्ट भोजन, सभी तरह के मनोरम ऐतिहासिक और प्राचीन खंडहरों और ग्लैमर से भरे महानगरों का उत्तम रहनसहन के अलावा जलवायु, वनस्पतियों बेशुमार धनसंपदा हर किसी को अपनी तरफ खींचते हैं. इस के विपरीत यहां फैली ड्रग्स तस्करी, जुआ और अपराध डराता भी है.
ड्रग माफियाओं का आतंक
ड्रग तस्करों के गिरोहों के बीच होने वाले गैंगवार के चलते मैक्सिको में आए दिन हत्याएं होती रहती हैं. जब सरकार उन पर अंकुश लगाती है, तब वे उस पर भी हमला बोलने से नहीं चूकते हैं. पिछले साल 6 अक्तूबर को पश्चिमी मैक्सिको के टाउन हाल में जबरदस्त नरसंहार हुआ. जिस में पश्चिमी मैक्सिको के मेयर कोनार्डो मेंडोजा की हत्या हो गई. बंदूकधारियों के हमले से मेयर और 17 अन्य लोगों की मौत हो गई थी.
सभी गोलियों से छलनी कर दिए गए थे. मरने वालों में एक व्यक्ति मेयर का करीबी रिश्तेदार भी था. हमले की वारदात के मुताबिक बंदूकधारियों ने दिन में ही सैन मिगुएल तोतोलापन टाउन हाल पर धावा बोल दिया था. इस हमले में मेंडोजा के पिता अल्मेडा मेंडोजा, पूर्व महापौर जुआन मेंडोजा अकोस्टा भी मारे गए थे.
मैक्सिको में स्थानीय अधिकारियों की हत्याएं अकसर होती रहती हैं. कुछ साल पहले ही 2018 में कम से कम 3 दरजन महापौर, पूर्व महापौर और महापौर उम्मीदवार मारे गए थे. किंतु इस बार 6 अक्तूबर को आपस में लड़ रहे प्रतिद्वंदी ड्रग गिरोह के गैंगवार में हमले से कुछ समय पहले ही लास टकीलेरोस के कथित सदस्यों ने सोशल नेटवर्क पर एक वीडियो जारी कर इस क्षेत्र में अपनी वापसी की घोषणा की थी.
गिरोहों ने इस आतंक के बारे में 6 महीने पहले ही लोगों को तभी अहसास करवा दिया था, जब मैक्सिको में काली पौलीथिन में कटे हुए सिर और धड़ अलग मिले थे. पुलिस ने 13 मई, 2022 को 2 कटे हुए सिर बरामद किए थे, जबकि अगले रोज उन के धड़ संदिग्ध बैग और कंबल में लिपटे मिले थे. शरीर के अंगों पर काले मार्कर पेन से लिखा हुआ था, ‘असली आतंक अब शुरू होने वाला है.’
पुलिस जांच में पाया गया कि यह करतूत जलिस्को न्यू जेनरेशन कार्टेल की थी, जिस ने जाकाटेकस शहर में 5 दिनों तक आतंक मचाया था. बौर्डरलैंड बीट के अनुसार रात करीब 10 बजे कौलिनस डेल पाड्रे के पास काले प्लास्टिक बैग में 2 कटे हुए शव मिले थे. जिन के साथ एक नारको मैसेज भी था. इस के अलावा पुलिस को एक धड़ कंबल में लिपटा मिला था, जबकि दूसरा पानी में डूबा मिला था.
इस तरह से 3 दिनों में हुई संदिग्ध मौतों ने मैक्सिको में दहशत पैदा कर दी थी. सडक़ों पर सन्नाटा पसर गया था और लोग खौफ के मारे अपने घरों में कैद हो गए थे. कारण शाम को जाकाटेकस में 2 गैंग जलिस्को न्यू जेनरेशन कार्टेल और सिनालोआ कार्टेल के बीच जबरदस्त गोलीबारी हुई थी. इस खूनखराबे के बाद 2 काले पौलीथिन बैग बरामद किए गए थे, जिस में एक पुरुष और एक स्त्री के धड़ और अंग थे.
हत्यारे ने पुलिस के लिए धमकी भरे मैसेज में लिखा था, ‘जाकाटेकस का मालिक सिर्फ एक है. तैयार हो जाओ. आतंक शुरू होने वाला है.’
600 विमान हैं सिनालोआ कार्टेल के पास
इन कार्टेल में ही सब से बड़ा सिनालोआ कार्टेल है, जिस का साम्राज्य मैक्सिको की सरकार से भी बड़ा है. उस ने 600 विमान अमेरिका से खरीदे हैं और वह युवाओं को आसानी से पैसे कमाने का लालच दे कर अपने गिरोह में शामिल कर लेता है. हथियारों के जखीरे में उस के पास एके-47, एम-80 जैसी राइफलों के अलावा राकेट लौंचर भी हैं. मैक्सिको गृह मंत्रालय द्वारा जारी की गई 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार की सुरक्षा एजेंसियां हर साल ड्रग कार्टेल के कब्जे से 20 हजार से अधिक एके-47 और एम-80 जैसी असाल्ट राइफलों की बरामदगी करती हैं.
मैक्सिको सरकार कार्टेल से बरामद किए जाने वाले हथियारों को नष्ट कर देती है, ताकि उन का फिर से इस्तेमाल नहीं किया जा सके. इस नुकसान का असर कार्टेल पर नहीं होता है. वे अमेरिकी माफिया से ड्रग्स की सप्लाई के बदले में फिर से हथियार हासिल कर लेते हैं. बीते 5 साल के दौरान कार्टेल ने राकेट लौंचर्स भी हासिल कर लिए हैं. वे इन का इस्तेमाल सरकारी टोही विमानों पर हमले के लिए करते हैं.
गृह मंत्रालय की रिपोर्ट यह भी बताती है कि गैंगवार के कारण देश में रोज औसतन 120 हत्याएं होती हैं. कोरोना काल के दौरान यह संख्या 118 थी. यानी कोरोना काल के दौरान दुनिया भर में लौकडाउन के बावजूद मैक्सिको में ड्रग्स का धंधा बेलगाम था.
अब तक मैक्सिको में ड्रग्स कार्टेल के बीच खूनी संघर्ष में लगभग 2 लाख मौतें हो चुकी हैं. 50 हजार लोग लापता हैं, जबकि इतने मृतकों की पहचान नहीं हो पाई है. ड्रग कार्टेल सरकार पर दबदबा बनाने के लिए मैक्सिको की राजनीतिक पार्टियों को साल में 25 हजार करोड़ का चंदा देते हैं. लोगों के बीच खौफ पैदा करने के लिए वे काफी बर्बर हो जाते हैं. मर्डर का वीडियो बनाते हैं और शवों को चौराहों पर टांग
देते हैं.
कार्टेल के तमाम हथकंडे बेहद खौफनाक होते हैं. यहां तस्करी के साथसाथ किडनैपिंग कर वसूली का खेल भी चलता है. फिरौती नहीं देने वालों को गोलियों से भून देते हैं. मर्डर का वीडियो बना कर वायरल करते हैं. जिस से लोगों में दहशत का माहौल बने. आए दिन कार्टेल द्वारा विरोधियों के शवों को चौराहों पर टांगने के मामले आते रहते हैं. पिछले दिनों ही राजधानी मैक्सिको सिटी के मुख्य चौराहों पर गैंगवार के बाद 11 शव टंगे पाए गए थे.
कार्टेल किडनैप किए लोगों और प्रतिद्वंदी कार्टेल के गुर्गों को टार्चर रूम यानी गेटो में रखते हैं. इन गेटो के खिडक़ी दरवाजों की बुलेटप्रूफ लेयरिंग की जाती है. हर गेट के बाहर 20 से 25 हथियारबंद गुर्गे हमेशा तैनात रहते हैं. कार्टेल का साम्राज्य मैक्सिको के 32 में से 29 प्रांतों में बना हुआ है.
कार्टेल सिनालोआ का सरगना अल चापो
कहने को तो मैक्सिको में कई कार्टेल सक्रिय हैं और ड्रग के धंधे में लिप्त हैं. उन में सब से बड़ा कार्टेल सिनालोआ है. इस का सरगना अल चापो अभी जेल में है, जबकि वह 2 बार फरार हो चुका है. उस का 50 फीसदी ड्रग्स कारोबार पर कब्जा है.
मैक्सिकन ड्रग सरगना अल चापो की कहानी भी कुछ कम दिलचस्प नहीं है, जिसे सुरंगों का बेताज बादशाह कहा गया है. वह इन दिनों अपनी आजीवन कैद की सजा अमेरिका के कोलोराडो की एडीएक्स जेल में काट रहा है. जबकि उस की पत्नी एमा कोरोनेल को भी 3 साल की सजा मिली हुई है. वह भी जेल में है.
दुनिया के कई ड्रग्स माफिया पाब्लो एस्कोबार, मिगेल अनेल फालिक्स गयार्दो आदि में से अल चापो का नाम आता है, जिसे मैक्सिकन ड्रग लौर्ड के नाम से भी जाना जाता है. अल चापो का जन्म 1957 में मैक्सिको के सिनालोआ के ला टूना गांव में हुआ था. उस का असली नाम अकीन गुजमैन लोएरा था. उस ने 15 साल की उम्र में पहली बार भांग की खेती की और जब पैसे आए तब इसी काम को करने का मन बना लिया.
कुछ सालों बाद अकीन गुजमैन ने घर छोड़ दिया और घर से करीब 750 किलोमीटर दूर गुआदलहारा चला गया. सिनालोआ के ला टूना गांव से निकला अकीन गुजमैन गुआदलहारा तो पहुंच गया, लेकिन वहां वह कौन्ट्रैक्ट किलिंग का काम करने लगा. वहां उसे नया नाम अल चापो मिल गया और इसी नाम से कुख्यात हो गया.
साल 1980 के दौर में वह ड्रग्स के धंधे में आया और फिर कुछ दिनों बाद उस की मुलाकात अपने बौस मिगेल अनेल फीलिक्स गयार्दो उर्फ अल बेदरीनो से हुई. गयार्दो के बारे में कहा जाता है कि मैक्सिको के इतिहास में उस से बड़ा ड्रग्स तस्कर कोई नहीं हुआ.