रास्ते का कांटा नहीं था वो

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे जनपद बाराबंकी के थाना सुबेहा क्षेत्र में एक गांव है ताला रुकनुद्दीनपुर. पवन सिंह इसी गांव में रहता था. 14 सितंबर, 2020 की शाम पवन सिंह अचानक गायब हो गया. उस के घर वाले परेशान होने लगे कि बिना बताए अचानक कहां चला गया.

किसी अनहोनी की आशंका से उन के दिल धड़कने लगे. समय के साथ धड़कनें और बढ़ने लगीं. पवन का कोई पता नहीं चल पा रहा था. पवन की तलाश अगले दिन 15 सितंबर को भी की गई. लेकिन पूरा दिन निकल गया, पवन का कोई पता नहीं लगा.

16 सितंबर को पवन के भाई लवलेश बहादुर को उस के मोबाइल पर सोशल मीडिया के माध्यम से एक लाश की फोटो मिली. फोटो लवलेश के एक परिचित युवक ने भेजी थी. लाश की फोटो देखी तो लवलेश फफक कर रो पड़ा. फोटो पवन की लाश की थी.

दरअसल, पवन की लाश पीपा पुल के पास बेहटा घाट पर मिली थी. लवलेश के उस परिचित ने लाश देखी तो उस की फोटो खींच कर लवलेश को भेज दी. जानकारी होते ही लवलेश घर वालों और गांव के कुछ लोगों के साथ बेहटा घाट पहुंच गया.

लाश पवन की ही थी. पीपा पुल गोमती नदी पर बना था. गोमती के एक किनारे पर गांव ताला रुकनुद्दीनपुर था तो दूसरे किनारे पर बेहटा घाट. लेकिन बेहटा घाट थाना सुबेहा में नहीं थाना असंद्रा में आता था.

लवलेश ने 112 नंबर पर काल कर के घटना की सूचना पुलिस को दे दी. कुछ ही देर में एसपी यमुना प्रसाद और 3 थानों असंद्रा, हैदरगढ़ और सुबेहा की पुलिस टीमें मौके पर पहुंच गईं.

पवन के शरीर पर किसी प्रकार के निशान नहीं थे और लाश फूली हुई थी. एसपी यमुना प्रसाद ने लवलेश से आवश्यक पूछताछ की तो पता चला कि वह अपनी हीरो पैशन बाइक से घर से निकला था. बाइक पुल व आसपास कहीं नहीं मिली. पवन वहां खुद आता तो बाइक भी वहीं होती, इस का मतलब था कि वह खुद अपनी मरजी से नहीं आया था. जाहिर था कि उस की हत्या कर के लाश वहां फेंकी गई थी.

पवन की बाइक की तलाश की गई तो बाइक कुछ दूरी पर टीकाराम बाबा घाट पर खड़ी मिली. यह क्षेत्र हैदरगढ़ थाना क्षेत्र में आता था. वारदात की पहल वहीं से हुई थी, इसलिए एसपी यमुना प्रसाद ने घटना की जांच का जिम्मा हैदरगढ़ पुलिस को दे दिया.

हैदरगढ़ थाने के इंसपेक्टर धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. फिर लवलेश को साथ ले कर थाने आ गए. इंसपेक्टर रघुवंशी ने लवलेश की लिखित तहरीर पर अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत्यु की सही वजह पता नहीं चल पाई.

इंसपेक्टर रघुवंशी के सामने एक बड़ी चुनौती थी. क्योंकि कोई भी सुराग हाथ नहीं लगा था. उन्होंने पवन की पत्नी शिम्मी उर्फ निशा और भाई लवलेश से कई बार पूछताछ की, लेकिन कोई भी अहम जानकारी नहीं मिल पाई. पवन के विवाह के बाद ही उस की मां ने घर का बंटवारा कर दिया था. पवन अपनी पत्नी निशा के साथ अलग रहता था. इसलिए घर के अन्य लोगों को ज्यादा कुछ जानकारी नहीं थी.

स्वार्थ की शादी

समय गुजरता जा रहा था, लेकिन केस का खुलासा नहीं हो पा रहा था. जब कहीं से कुछ हाथ नहीं लगा तो इंसपेक्टर रघुवंशी ने अपनी जांच पवन की पत्नी पर टिका दी. वह उस की गतिविधियों की निगरानी कराने लगे.

घर आनेजाने वालों पर नजर रखी जाने लगी तो एक युवक उन की नजरों में चढ़ गया. वह पवन के गांव का ही अजय सिंह उर्फ बबलू था. अजय का पवन के घर काफी आनाजाना था. वह घर में काफी देर तक रुकता था.

अजय के बारे में और पता किया गया तो पता चला कि अजय ने ही पवन से निशा की शादी कराई थी. निशा अजय की बहन की जेठानी की लड़की थी. यानी रिश्ते में वह अजय की भांजी लगती थी. पहले तो उन को यही लगा कि अजय अपना फर्ज निभा रहा है लेकिन जैसेजैसे जांच आगे बढ़ी तो उन्हें दोनों के संबंधों पर संदेह होने लगा.

इंसपेक्टर रघुवंशी ने उन दोनों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला, दोनों के बीच हर रोज काफी देर तक बातें होती थीं. दोनों के बीच जो रिश्ता था, उस में इतनी ज्यादा बात होना दाल में काला होना नहीं, पूरी दाल ही काली होना साबित हो रही थी.

7 फरवरी, 2021 को इंसपेक्टर धर्मेंद्र रघुवंशी ने अजय को टीकाराम मंदिर के पास से और निशा को गांव अलमापुर में उस की मौसी के घर से गिरफ्तार कर लिया.

जिला बाराबंकी के सुबेहा थाना क्षेत्र के गांव ताला रुकनुद्दीनपुर में अजय सिंह उर्फ बबलू रहता था. अजय के पिता का नाम मान सिंह था और वह पेशे से किसान थे. अजय 3 बहनों में सब से छोटा था. इंटर तक पढ़ाई करने के बाद अजय अपनी पुश्तैनी जमीन पर खेती करने लगा था.

निशा उर्फ शिम्मी अजय की बड़ी बहन अनीता (परिवर्तित नाम) की जेठानी की लड़की थी. शिम्मी के पिता चंद्रशेखर सिंह कोतवाली नगर क्षेत्र के भिखरा गांव में रहते थे, वह दिव्यांग थे, किसी तरह खेती कर के अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. निशा की एक बड़ी बहन और 2 बड़े भाई बबलू और मोनू थे. बबलू पंजाब में फल की दुकान लगाता था. मोनू सऊदी अरब काम करने चला गया था.

निशा अलमापुर में रहने वाली अपनी मौसी के यहां रहती थी. हमउम्र अजय और निशा रिश्ते में मामाभांजी लगते थे. जहां निशा हसीन थी, वहीं अजय भी खूबसूरत नौजवान था. निशा ने 11वीं तक तो अजय ने इंटर तक पढ़ाई की थी.

दोनों जब भी मिलते, एकदूसरे के मोहपाश में बंध जाते. दोनों मन ही मन एकदूसरे को चाहने लगे थे. लेकिन रिश्ता ऐसा था कि वे अपनी चाहत को जता भी नहीं सकते थे. लेकिन चाहत किसी भी उम्र और रिश्ते को कहां मानती है, वह तो सिर्फ अपना ही एक नया रिश्ता बनाती है, जिस में सिर्फ प्यार होता है. ऐसा प्यार जिस में वह कोई भी बंधन तोड़ सकती है.

दोनों बैठ कर खूब बातें करते. बातें जुबां पर कुछ और होतीं लेकिन दिल में कुछ और. आंखों के जरिए दिल का हाल दोनों ही जान रहे थे लेकिन पहल दोनों में से कोई नहीं कर रहा था. दोनों की चाहत उन्हें बेचैन किए रहती थीं. दोनों एकदूसरे के इतना करीब आ गए थे कि एकदूसरे के बिना नहीं रह सकते थे. लेकिन प्यार के इजहार की नौबत अभी तक नहीं आई थी.

आखिरकार अजय ने सोच लिया कि वह अपने दिल की बात निशा से कर के रहेगा. संभव है, निशा किसी वजह से कह न पा रही हो. अगली मुलाकात में जब दोनों बैठे तो अजय निशा के काफी नजदीक बैठा. निशा के दाहिने हाथ को वह अपने दोनों हाथों के बीच रख कर बोला, ‘‘निशा, काफी दिनों की तड़प और बेचैनी का दर्द सहने के बाद आज मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’ कह कर अजय चुप हो गया.

निशा अजय के अंदाज से ही जान गई कि वह आज तय कर के आया है कि अपने दिल की बात जुबां पर ला कर रहेगा. इसलिए निशा ने उस के सामने अंजान बनते हुए पूछ लिया, ‘‘ऐसी कौन सी बात है जो तुम बेचैन रहे और तड़पते रहे, मुझ से कहने में हिचकते रहे.’’

अजय ने एक गहरी सांस ली और हिम्मत कर के बोला, ‘‘मेरा दिल तुम्हारे प्यार का मारा है. तुम्हें बेहद चाहता है, दिनरात मुझे चैन नहीं लेने देता. इस के चक्कर में मेरी आंखें भी पथरा गई हैं, आंखों में नींद कभी अपना बसेरा नहीं बना पाती. अजीब सा हाल हो गया है मेरा. मेरी इस हालत को तुम ही ठीक कर सकती हो मेरा प्यार स्वीकार कर के… बोलो, करोगी मेरा प्यार स्वीकार?’’

‘‘मेरे दिल की जमीन पर तुम्हारे प्यार के फूल तो कब के खिल चुके थे, लेकिन रिश्ते की वजह से और नारी सुलभ लज्जा के कारण मैं तुम से कह नहीं पा रही थी. इसलिए सोच रही थी कि तुम ही प्यार का इजहार कर दो तो बात बन जाए. तुम भी शायद रिश्ते की वजह से हिचक रहे थे, तभी इजहार करने में इतना समय लगा दिया.’’

‘‘निशा, यह जान कर मुझे बेहद खुशी हुई कि तुम भी मुझे चाहती हो और तुम ने मेरा प्यार स्वीकार कर लिया. नाम का यह रिश्ता तो दुनिया का बनाया हुआ है, उसे हम ने तो नहीं बनाया. हमारी जिंदगी है और हम अपनी जिंदगी का फैसला खुद करेंगे न कि दूसरे लोग. रिश्ता हम दोनों के बीच वही रहेगा जो हम दोनों बना रहे हैं, प्यार का रिश्ता.’’

निशा अजय के सीने से लग गई, अजय ने भी उसे अपनी बांहों के घेरे में ले लिया. दोनों ने एकदूसरे का साथ पा लिया था, इसलिए उन के चेहरे खिले हुए थे. कुछ ही दिनों में दोनों के बीच शारीरिक रिश्ता भी कायम हो गया.

समय के साथ दोनों का रिश्ता और प्रगाढ़ होता चला गया. दोनों जानते थे कि वे विवाह के बंधन में नहीं बंध पाएंगे, फिर भी अपने रिश्ते को बनाए रखे थे. निशा का विवाह उस के घर वाले कहीं और करें और निशा उस से दूर हो जाए, उस से पहले अजय ने निशा का विवाह अपने ही गांव में किसी युवक से कराने की ठान ली. जिस से निशा हमेशा उस के पास रह सके.

पवन सिंह अजय के गांव ताला रुकनुद्दीनपुर में ही रहता था. पवन के पिता दानवीर सिंह चौहान की 2008 में मत्यु हो चुकी थी. परिवार में मां शांति देवी उर्फ कमला और 3 बड़ी बहनें और 3 बड़े भाई थे.

मनमर्जी की शादी

अजय ने निशा का विवाह पवन से कराने का निश्चय कर लिया. अजय ने इस के लिए अपनी ओर से कोशिशें करनी शुरू कर दीं. इस में उसे सफलता भी मिल गई. 2012 में दोनों परिवारों की आपसी सहमति के बाद निशा का विवाह पवन से हो गया. निशा मौसी के घर से अपने पति पवन के घर आ गई.

विवाह के बाद पवन की मां ने बंटवारा कर दिया. पवन निशा के साथ अलग रहने लगा. इस के बाद पवन की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई. पवन पिकअप चलाने लगा. लेकिन अधिक आमदनी हो नहीं पाती थी. जो होती थी, वह उसे दारू की भेंट चढ़ा देता था. कालांतर में निशा ने एक बेटी शिवांशी (7 वर्ष) और एक बेटे अंश (5 वर्ष) को जन्म दिया.

अजय ने भी निशा के विवाह के एक साल बाद फैजाबाद की एक युवती जया से विवाह कर लिया था. जया से उसे एक बेटा था. लेकिन निशा और अजय के संबंध बदस्तूर जारी थे.

पवन शराब का इतना लती था कि उस के लिए कुछ भी कर सकता था. एक बार शराब पीने के लिए पैसे नहीं थे तो पवन निशा के जेवरात गिरवी रख आया. मिले पैसों से वह शराब पी गया. वह जेवरात निशा को अजय ने दिए थे.

पवन की हरकतों से निशा और अजय बहुत परेशान थे. अपनी परेशानी दूर करने का तरीका भी उन्होंने खोज लिया. दोनों ने पवन को दुबई भेजने की योजना बना ली. इस से पवन से आसानी से छुटकारा मिल जाता. उस के चले जाने से उस की हरकतों से तो छुटकारा मिलता ही, साथ ही दोनों बेरोकटोक आसानी से मिलते भी रहते.

निशा और अजय ने मिल कर अयोध्या जिले के भेलसर निवासी कलीम को 70 हजार रुपए दे कर पवन को दुबई भेजने की तैयारी की. लेकिन दोनों की किस्मत दगा दे गई. लौकडाउन लगने के कारण पवन का पासपोर्ट और वीजा नहीं बन पाया.

पवन को दुबई भेजने में असफल रहने पर उस से छुटकारा पाने का दोनों ने दूसरा तरीका जो निकाला, वह था पवन की मौत. अजय ने निशा के साथ मिल कर पवन की हत्या की योजना बनाई.

13 सितंबर को अजय ने पवन से कहा कि वह बहुत अच्छी शराब लाया है, उसे कल पिलाएगा. अच्छी शराब मिलने के नाम से पवन की लार टपकने लगी.

अगले दिन 14 सितंबर की रात 9 बजे पवन अपनी बाइक से अजय के घर पहुंच गया. वहां से अजय उसे टीकाराम बाबा के पास वाले तिराहे पर ले गया. अजय ने वहां उसे 2 बोतल देशी शराब पिलाई.

पिलाने के बाद वह उसे पीपा पुल पर ले गया. वहां पहुंचतेपहुंचते पवन बिलकुल अचेत हो गया. अजय ने उसे उठा कर गोमती नदी में फेंक दिया. उस के बाद वह घर लौट गया.

लेकिन अजय और निशा की होशियारी धरी की धरी रह गई और दोनों पकड़े गए. आवश्यक कागजी खानापूर्ति करने के बाद इंसपेक्टर धर्मेंद्र रघुवंशी ने दोनों को न्यायालय में पेश कर दिया, वहां से दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधार

हत्या से खुला ढाई करोड़ की चोरी का राज

कुछ इंसानों की फितरत ही धोखे और फरेब की होती है. वह अपने साथ अच्छा करने वालों के साथ भी बुरा करने से नहीं चूकते. ऐसे लोगों को अपनी करनी का फल तो जरूर भुगतना पड़ता है. लेकिन अपनी फितरत से वे दूसरों के लिए भी खतरा बन जाते हैं.

फिरोजाबाद का रहने वाला ब्रजमोहन भी इसी तरह का व्यक्ति था. उस ने रेलवे में 5 साल नौकरी की. जिस इंजीनियर पुनीत कुमार के घर पर वह काम करता था, जिन के कहने पर उस की नौकरी स्थाई हुई. उस ने उसी के घर चोरी करने की योजना बना ली.

ब्रजमोहन लालची स्वभाव का था. उस ने पुनीत कुमार की मदद करने की नहीं सोची, बल्कि उस की नजर उन के घर में आ रहे रुपयों पर थी. यह लालच ब्रजमोहन के लिए जानलेवा साबित हुआ. जिन लोगों को उस ने चोरी के लिए बुलाया. वे ही उस की जान के दुश्मन बन बैठे.

26 मार्च, 2021 को लखनऊ के कैंट थानाक्षेत्र के बंदरियाबाग में रहने वाले इंजीनियर पुनीत कुमार के सरकारी आवास पर सरकारी नौकर ब्रजमोहन की हत्या कर दी गई.

पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंच कर जांच की तो पता चला कि बिजली के तार से पहले उस के गले को कसा गया, बाद में चाकू से रेत दिया गया था. उस के हाथ और पांव बंधे थे. पुनीत के घर का सामान बिखरा हुआ था. पता चला कि पुनीत कुमार के बैडरूम से 15-20 लाख रुपए कैश और कुछ जेवरात गायब थे.

पहली नजर में मामला चोरी के लिए हत्या का लग रहा था. पुनीत ने अपने नौकर की हत्या का मुकदमा कैंट थाने में लिखाया.

इंजीनियर का सरकारी आवास लखनऊ के बहुत ही सुरक्षित बंदरियाबाग इलाके में था. इसलिए इस केस को सुलझाना पुलिस के लिए ज्यादा चुनौती भरा काम था. लखनऊ पुलिस कमिश्नर डी.के. ठाकुर ने जौइंट पुलिस कमिश्नर (अपराध) निलब्जा चौधरी की अगुवाई में एक टीम का गठन किया.

इस टीम में डीसीपी (पूर्वी) और एडीशनल डीसीपी (पूर्वी) को भी अहम जिम्मेदारी दी गई. इस के साथ ही कैंट थाने की इंसपेक्टर नीलम राणा, एसआई जनीश वर्मा को मामले के परदाफाश की जिम्मेदारी सौंपी गई.

इंजीनियर पुनीत के घर नौकर की हत्या के समय पुनीत के फूफा चंद्रभान घर के दूसरे कमरे में टीवी देख रहे थे. उन को किसी बात का पता नहीं था. ऐसे में पुलिस को लग रहा था कि हो न हो नौकर ब्रजमोहन इस चोरी में हिस्सेदार रहा हो.

पुलिस को यह समझ नहीं आ रहा था कि अगर नौकर चोरी में शामिल था तो उस की हत्या क्यों हो गई? इस गुत्थी को सुलझाने के लिए पुलिस ने ब्रजमोहन के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स चैक करनी शुरू की. साथ ही पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज भी देखे. पता चला कुछ लोग एक टैक्सी से आए थे.

पुलिस ने छानबीन शुरू की. पुनीत कुमार 2008 बैच के भारतीय रेलवे इंजीनियरिंग सर्विस (आईआरएसई) के अधिकारी हैं. उत्तर रेलवे की चारबाग स्थित निर्माण इकाई में उन का दबदबा है.

उन के पास इस समय 800 करोड़ रुपए से अधिक के रेलवे के प्रोजेक्ट्स हैं. पहले वह इसी कार्यालय में अधीक्षण अभियंता थे, बाद में प्रमोशन पा कर यहीं पर उप मुख्य निर्माण अभियंता के रूप में काम करने लगे. नौकर ब्रजमोहन उन के घर के कामकाज देखता था.

फिरोजाबाद के कोलामऊ महरौना का रहने वाला ब्रजमोहन करीब 5 साल से पुनीत के यहां काम कर रहा था. एक साल पहले पुनीत ने ही ब्रजमोहन की नौकरी स्थाई की थी. वह पुनीत के ही आवास में बने सर्वेंट क्वार्टर में रहता था.

उस का अपने गांव से बराबर संपर्क बना हुआ था. वह अपने साहब के घर रुपयोंपैसों की आवाजाही होते देखा करता था. उसे यह भी पता होता था कि वहां कितना पैसा रखा रहता है. यह पैसा देख कर उस के मन में लालच आ गया.

ब्रजमोहन की डोली नीयत

इंजीनियर पुनीत के घर नकद रुपए देख कर नौकर ब्रजमोहन की नीयत डोलने लगी. एक दिन उसने अपने भांजे बहादुर को इस बारे में जानकारी दी और कहा कि यदि उस के मालिक पुनीत के यहां चोरी की जाए तो भारी मात्रा में नकदी के अलावा अन्य कीमती सामान मिल सकता है.

बहादुर भी फिरोजाबाद के कोलमाई मटसैना का रहने वाला था. उसे अपने मामा की सलाह अच्छी लगी. लिहाजा बहादुर ने अपने साथ मैनपुरी जिले के भोजपुरा के रहने वाले अजय उर्फ रिंकू, ऊंची कोठी निवासी मंजीत और एक अन्य दोस्त अनिकेत के साथ मिल कर चोरी की योजना तैयार की.

योजना के अनुसार, ये लोग किराए की गाड़ी ले कर 25 मार्च को इंजीनियर पुनीत के घर पहुंच गए. नौकर ब्रजमोहन की मिलीभगत से इन को चोरी के लिए घर में घुसने में कोई दिक्कत नहीं हुई. मंजीत घर के बाहर सीढि़यों पर खड़ा हो कर बाहर से आने वालों की निगरानी करने लगा.

ब्रजमोहन, बहादुर और अजय घर के अंदर चले गए. इन लोगों ने जेवर और सारे पैसे एक जगह रख लिए. वहां पर नकदी और ज्वैलरी उम्मीद से ज्यादा मिली तो ब्रजमोहन ने अपने भांजे बहादुर से कहा, ‘‘देखो जितना हम ने बताया था, उस से अधिक पैसा मिल गया है. इसलिए जो ज्यादा पैसा मिला है, इस में कोई बंटवारा नहीं होगा. यह सब मेरा होगा. बाकी तुम सब बांट लेना.’’

‘‘जी मामाजी, जैसा आप कह रहे हो वैसा ही होगा. अब हम लोग जा रहे हैं. आप भी पुलिस को कुछ नहीं बताना,’’ बहादुर बोला.

‘‘हां ठीक है. पुलिस सब से पहले हम पर ही शक करेगी. इस से बचने के लिए तुम लोग मुझे कुरसी से बांध कर बेहोश कर दो. जिस से लगे कि चोरों ने नौकर को बांध कर चोरी की और बेहोश कर के भाग गए.’’ ब्रजमोहन ने सलाह दी.

बहादुर और अजय ने ब्रजमोहन को कुरसी से बांध कर बेहोश कर दिया. इस के बाद दोनों जब रुपया रख रहे थे, तभी अजय बोला, ‘‘बहादुर, तू तो जानता है कि तेरे मामा डरपोक किस्म के हैं. कहीं ऐसा न हो कि पुलिस के आगे सब बक दे.’’

‘‘बात तो सही है, पर क्या किया जाए?’’ बहादुर ने कहा.

‘‘समय की मांग है कि हम अपने को बचाने के लिए मामा को ही रास्ते से हटा दें. इस से मामा को पैसा भी नहीं देना होगा और पुलिस हम तक भी नहीं पहुंच पाएगी.’’ अजय ने सलाह दी.

दोनों ने मिल कर सब से पहले ब्रजमोहन का गला कस दिया. वह पहले से ही बेहोश था तो कोई विरोध नहीं कर पाया. न ही कोई आवाज हुई. दोनों को लगा कि कहीं वह जिंदा न बच जाए. इसलिए चाकू से उस का गला भी रेत दिया.

ब्रजमोहन को मारने के बाद तीनों वापस मैनपुरी चले गए. मैनपुरी में ये लोग बहादुर के जानने वाले उदयराज की दुकान पर पहुंचे. उदयराज की कपडे़ की दुकान थी. यहां सभी ने अपने कपडे़ बदले. वहीं पर इन लोगों से मोहन नाम का आदमी मिला, जिसे इन लोगों ने सारे रुपए दे दिए. वह रुपए ले कर अपने घर चला गया.

इस के बाद चारों मोहन के घर गए और वहां पर रुपयों का बंटवारा हुआ. मंजीत रुपए ले कर अपने घर चला गया. उस ने रुपए अपनी पत्नी निशा को दिए और उसे इस बारे में बताया. निशा ने रुपए गमले और जमीन में दबा दिए, जिस से किसी को पता न चल सके.

पुलिस गंभीरता से केस की जांच में जुटी थी. सीसीटीवी फुटेज में जो टैक्सी दिखी थी, उसी के नंबर के सहारे वह टैक्सी चालक तक पहुंच गई. उस ने पुलिस को पूरी बात बताई. टैक्सी चालक से पूछताछ कर के पुलिस सब से पहले मंजीत के घर पहुंची. पुलिस ने मंजीत के पास से 40 लाख, उस की पत्नी निशा के पास से 16 लाख, उदयराज और मोहन के पास से 7-7 लाख रुपए बरामद किए.

कहानी लिखे जाने तक मुख्य आरोपी बहादुर फरार था. पुलिस के लिए चौंकाने वाली बात यह थी कि इंजीनियर पुनीत कुमार ने अपने घर में चोरी के मामले में 15 से 20 लाख नकद और जेवर चोरी होने का जिक्र किया था. जबकि पुलिस आरोपियों के पास से 70 लाख बरामद कर चुकी थी. मुख्य आरोपी के पास अलग से पैसा बरामद होना था.

आरोपियों ने पुलिस को बताया कि उन्हें इंजीनियर पुनीत के यहां करीब ढाई करोड़ रुपए मिले थे. पुलिस इस बारे में छानबीन कर रही है. पुलिस अजय, बहादुर और उस के लंबे बाल वाले साथी को तलाश रही है.

पूरे मामले में जिस पुलिस टीम ने सब से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, उस में इंसपेक्टर नीलम राणा. एसआई अजीत कुमार पांडेय, रजनीश वर्मा, संजीव कुमार, हैडकांस्टेबल संदीप शर्मा, रामनिवास शुक्ला, आनंदमणि सिंह, ब्रजेश बहादुर सिंह, अमित लखेड़ा, विनय कुमार, पूनम पांडेय, सोनिका देवी और चालक घनश्याम यादव प्रमुख थे.

पुलिस ने इंजीनियर पुनीत कुमार के घर ढाई करोड़ रुपयों की चोरी की सूचना रेलवे विभाग और आयकर विभाग को भी दे दी. पुलिस का कहना है कि घर में ढाई करोड़ नकद रखने के मामले की जांच होगी.

इस बात का अंदेशा है कि यह रकम रिश्वत की रही होगी. इसीलिए हत्या की रिपोर्ट लिखाते समय इंजीनियर पुनीत कुमार ने चोरी की रकम को कम कर के लिखाया था. शुरुआत में पुनीत कुमार ने कहा था कि 15 से 20 लाख की चोरी हुई है.

पुलिस ने जब चोरों से 70 लाख नकद बरामद कर लिया तो पता चला कि कुल रकम ढाई करोड़ थी.

ब्रजमोहन को भी यही पता था कि चोरी की बात पूरी तरह से पुलिस को बताई नहीं जाएगी. ऐसे में यह लोग पुलिस के घेरे में नहीं आएंगे. लेकिन ब्रजमोहन से भी ज्यादा लालची उस के साथी निकले जिन्होंने ब्रजमोहन की हत्या कर दी. हत्या की विवेचना में चोरी दब नहीं सकी और अपराध करने वाले पकडे़ गए.

मर्यादा तोड़ने का नतीजा: जब सीमाएं टूटी

पतिपत्नी का रिश्ता आपसी विश्वास पर टिका होता है. कोई आदमी किसी पर सब से अधिक विश्वास करता है तोअपनी पत्नी पर. पत्नी ही तो उस की सब से अच्छी दोस्त और जीवनसाथी होती है. ऐसे में पति उस पर अगाध विश्वास न करे तो भला किस पर करे.

सतीश को भी अपनी पत्नी मधु पर अंधविश्वास की सीमा तक विश्वास था. उस का यह यकीन तब दरका, जब एक दिन अचानक तबीयत खराब होने से शाम को वह जल्दी घर लौट आया. दरअसल सतीश मैडिकल रिप्रजेंटेटिव था. वह सुबह 10 बजे घर से निकलता था, फिर रात 9 बजे के आसपास ही उस की वापसी होती थी. लेकिन उस दिन वह जल्दी घर आ गया था.

सतीश कुमार श्रीवास्तव जैसे ही घर के दरवाजे पर पहुंचा, अंदर से मधु की खिलखिलाहट सुनाई दी. सतीश के पांव जहां के तहां ठहर गए. सोचने लगा, ‘जब मैं घर में रहता हूं, तब मधु की त्यौरियां चढ़ी होती हैं. कुछ कहता हूं तो चिढ़ जाती है, बोलो मत, मूड खराब है. लेकिन अब वह किस के साथ खिलखिला रही है.’

सतीश ने दिमाग पर जोर दिया, पर उसे याद नहीं आया कि मधु कब उस के सामने इस तरह दिल से खिलखिलाई थी.

सतीश के दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा, ‘आखिर इस समय घर के अंदर कौन है जिस के साथ वह इस तरह खिलखिला कर बातें कर रही है.’

सतीश ने कदम आगे बढ़ाया, लेकिन फिर खींच लिया. मधु कह रही थी, ‘‘तुम्हारे जोश की तो मैं दीवानी हूं. अरे छोड़ो यार, तुम किस माटी के माधव की बात कर रहे हो. अगर वही रसीला होता तो भला मैं तुम से क्यों दिल लगाती. मैं तो तुम्हारे जोश और तुम्हारी रसीली बातों की दीवानी हूं.’’

एकतरफा संवादों से सतीश ने अनुमान लगा लिया कि कमरे में मधु के अलावा कोई नहीं है. वह फोन पर किसी से रसीली बातें कर रही है. मधु जोश में थी. इसलिए उस की आवाज बुलंद थी.

कमरे में की जाने वाली बातें बाहर तक साफ सुनाई दे रही थीं. बातें सुन कर सतीश की खोपड़ी घूम गई, ‘मधु बीवी मेरी और जोश का गुणगान कर रही है किसी दूसरे का.’

सतीश ने गुस्से में दरवाजे पर लात मारी. भीतर से बंद न होने के कारण वह फटाक से खुल गया. सामने ही मधु मोबाइल फोन कान से लगाए टहलटहल कर बातें कर रही थी. पति को देखते ही उस ने हड़बड़ा कर फोन पर चल रही बात डिसकनेक्ट कर दी. इस के बाद वह चेहरे पर मुसकान सजाने की जबरन कोशिश करते हुए बोली, ‘‘अरे तुम, आज इतनी जल्दी घर कैसे आ गए?’’

सतीश ने मधु को खा जाने वाली नजरों से देखा फिर बोला, ‘‘तू किस के जोश की दीवानी है?’’

गुस्से में की पत्नी की पिटाई

सतीश ने लपक कर मधु का हाथ पकड़ लिया और उस का मोबाइल छीनने लगा. लपटा झपटी के बीच मधु ने उस नंबर को डिलीट कर दिया, जिस नंबर पर वह रसीली बातें कर रही थी.

सतीश का दिमाग पहले से गरम था, नंबर डिलीट करने से और गरम हो गया. उस ने मधु को लातघूंसों और थप्पड़ों पर रख लिया. हर प्रहार के साथ उस का प्रश्न होता था, ‘‘बता, तू किस के जोश की दीवानी है और यह सब कब से चल रहा है?’’

लेकिन पिटाई के बावजूद मधु ने जुबान बंद रखी. मधु को पीटतेपीटते जब सतीश पस्त पड़ गया तो घर के बाहर चला गया. मधु कमरे में सिसकती रही और अपने भाग्य को कोसती रही.

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में बर्रा थाना अंतर्गत एक मोहल्ला जरौली पड़ता है. इसी मोहल्ले के फेस-2 में सतीश कुमार श्रीवास्तव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी मधु के अलावा 2 बेटे आयुष व पीयूष थे. वह मूलरूप से औरैया जिले के दिबियापुर कस्बे का रहने वाला था.

सालों पहले वह रोजीरोटी की तलाश में कानपुर शहर आया था. वह पढ़ालिखा था. हिंदी और अंगरेजी भाषा पर उस की पकड़ थी. अत: उसे बिरहाना रोड स्थित एक आयुर्वेदिक दवा कंपनी में नौकरी मिल गई थी. बाद में वह मैडिकल रिप्रजेंटेटिव (एमआर) बन गया और उसी कंपनी की दवा आयुर्वेदिक डाक्टरों के यहां सप्लाई करने लगा था.

मधु सतीश की दूसरी पत्नी थी. उस की पहली पत्नी श्वेता की मौत हो गई थी. उस की एक बेटी शिवांगी थी, जो अपनी ननिहाल में पलबढ़ रही थी. पहली पत्नी की मौत के बाद सतीश ने मधु से शादी कर ली थी. मधु पढ़ीलिखी व तेजतर्रार थी. सुंदर भी थी, अत: सतीश उसे बहुत चाहता था और उस पर भरोसा करता था. वह उस की हर खुशी का खयाल रखता था.

समय बीतता रहा. समय के साथ मधु के बच्चे आयुष व पीयूष बड़े हुए तो उस का खर्च बढ़ गया. इस खर्चे को पूरा करने के लिए उस ने पति के साथ काम करने का निश्चय किया. मधु ने इस बाबत सतीश से बात की. पहले तो सतीश ने साफ मना कर दिया. लेकिन पत्नी के समझाने पर बाद में मान गया.

सतीश अब विजिट के लिए घर से निकलता तो मधु को भी साथ ले जाता. उस ने कानपुर शहर तथा आसपास के कस्बे के दरजनों वैद्यों व डाक्टरों से मधु का परिचय कराया और दवा बेचने के सारे गुर बताए. उस के बाद मधु सतीश के दवा कारोबार में हाथ बटाने लगी. पत्नी के सहयोग से सतीश अच्छी कमाई करने लगा.

मधु का बड़ा बेटा आयुष पढ़ने में कमजोर था. उस का मन पढ़ाई में नहीं लगा तो मधु ने उसे गोविंदनगर स्थित फार्मा मैडिकल स्टोर में काम पर लगा दिया. लेकिन छोटा बेटा पीयूष तेज दिमाग का था. मधु उसे पढ़ालिखा कर डाक्टर बनाना चाहती थी. अत: वह उस की पढ़ाई पर पूरा ध्यान देती थी. पढ़ाई के साथ वह कोचिंग भी जाता था.

मधु ने कुछ समय तक ही पति के साथ काम किया. उस के बाद वह डाक्टरों के यहां अलग विजिट पर जाने लगी. मधु का मानना था कि अलगअलग जाने से दवा का और्डर ज्यादा मिलता है. यद्यपि मधु का अलग जाना सतीश को पसंद न था. लेकिन मधु के आगे उस की एक न चली.

2 डाक्टरों को फंसा लिया

मधु 2 बेटों की मां जरूर थी. लेकिन उस के बनावशृंगार से कोई भांप नहीं पाता था कि वह 2 जवान बेटों की मां है. सतीश का मन भोगविलास से उचट चुका था. वह दिन भर की भाग दौड़ से इतना थक जाता था कि खाना खाने के बाद चादर तान कर सो जाता था. इस के विपरीत मधु हर रात पति का साथ चाहती थी. लेकिन वह वंचित रहती थी.

मधु को जब पति का साथ नहीं मिला तो उस ने घर के बाहर ताकझांक शुरू की. उस के संपर्क में कई डाक्टर ऐसे थे, जो मनचले थे और जिन्हें औरत सुख की चाहत थी.

मधु ने ऐसे ही शहर के 2 डाक्टरों को अपने हुस्न के जाल में फंसाया और उन के साथ मौजमस्ती करने लगी. ये दोनों डाक्टर निजी प्रैक्टिस करते थे. मधु को जब भी मौका मिलता था, वह उन से खूब रसीली बातें करती थी.

सतीश पत्नी पर भरोसा करता था. उस ने कभी किसी तरह का उस पर शक नहीं किया. लेकिन उस दिन तबीयत खराब होने पर जब वह समय से पहले घर आया और मधु को मोबाइल फोन पर अश्लील और रसीली बातें करते पाया तो उस का विश्वास डगमगा गया. शक होने पर उस ने मधु की जम कर धुनाई भी की लेकिन उस ने आशिक का नाम नहीं बताया. बल्कि आशिक का मोबाइल नंबर भी डिलीट कर दिया.

शक का बीज बहुत जल्दी पनपता है. सतीश के मन में भी शक था. अत: वह पत्नी पर नजर रखता था. जिस दिन वह मधु को एकांत में बात करते देख लेता, उस दिन पहले तो तूतू मैंमैं होती फिर नौबत मारपीट तक आ जाती. अब एक छत के नीचे रहते हुए भी दोनों को एकदूसरे से ज्यादा मतलब नहीं रहता था. बड़ा बेटा आयुष पिता के पक्ष में रहता था, जबकि छोटा बेटा पीयूष मां के पक्ष में बोलता था.

युवक से अश्लील बातें करते देखा

19 मार्च, 2021 को आयुर्वेदिक दवा निर्माता कंपनी की दिल्ली में मीटिंग थी, जिस में कानपुर शहर के डीलर व एमआर को मीटिंग में शामिल होने के लिए बुलाया गया था. सतीश कुमार श्रीवास्तव भी अपनी पत्नी मधु श्रीवास्तव के साथ शामिल होने दिल्ली गया था. मीटिंग समाप्त होने के बाद मधु ने कुछ खरीदारी की फिर शताब्दी बस से दोनों कानपुर को रवाना हो लिए.

21 मार्च, 2021 की सुबह 8 बजे मधु और सतीश अपने जरौली स्थित घर पहुंचे. उस समय घर पर कोई अन्य न था. दोनों बेटे आयुष और पीयूष गीता मौसी के घर पर थे, जो जरौली में ही रहती थी.

सतीश को किसी जरूरी काम से अपने पिता के घर दिबियापुर जाना था. उस ने मधु से जल्दी खाना बनाने को कहा. लेकिन मधु ने उस की बात को अनसुना कर दिया और मोबाइल फोन पर वीडियो काल कर बतियाने लगी. वह किसी युवक से अश्लील बातें कर रही थी.

सतीश ने उसे बातें करने से मना किया तो मधु झगड़ने लगी और उसे गाली बकने लगी. इस पर सतीश को गुस्सा आ गया. उस ने फोन छीन कर फेंक दिया और उसे धक्का दे दिया. धक्का लगने से उस का सिर दीवार से टकरा गया. जिस से सिर फट गया और खून बहने लगा.

अपने हाथों से घोंटा गला

खून देख कर मधु को गुस्सा आ गया और उस ने सतीश के मुंह पर जूता फेंक कर मारा. मुंह पर जूता लगा तो सतीश आपा खो बैठा. उस ने मधु को फर्श पर पटक दिया और बोला, ‘‘हरामजादी, बदचलन, आज तुझे किसी कीमत पर नहीं छोड़ूंगा. तुझे तेरे पापों की सजा दे कर ही दम लूंगा.’’ कहते हुए सतीश ने मधु की साड़ी से उस का गला घोंट दिया.

मधु की हत्या करने के बाद उस ने शव को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. दिन का वक्त था. सो वह लाश को बाहर कैसे ले जाता. उस ने बड़े बक्से को खाली किया और मधु के शव को बक्से में बंद कर दिया. मोबाइल फोन को भी उस ने बंद कर दिया.

शाम को दोनों बेटे घर आए तो सतीश ने बताया कि मधु किसी का फोन आने पर घर से निकली थी. तब से नहीं आई. इस के बाद वह आयुष और पीयूष के साथ मधु की खोज करता रहा.

अगली सुबह सतीश ने बड़े बेटे आयुष को गुमशुदगी दर्ज कराने थाना बर्रा भेजा. वहां पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज कर मधु की तलाश शुरू कर दी. पुलिस को गुमराह करने के लिए सतीश ने मधु का मोबाइल चालू कर सड़क से गुजर रहे एक लोडर में फेंक दिया.

रात में सतीश ने शव को बक्से से निकाला. लेकिन गरमी की वजह से शव फूल चुका था और उस से दुर्गंध आने लगी थी. पीयूष ने बदबू की बात की तो भेद खुलने के भय से सतीश ने उसे गीता मौसी के घर भेज दिया.

आधी रात के बाद सतीश ने एक बार फिर शव को ठिकाने लगाने की सोची. वह शव कमरे से घसीट कर गेट तक लाया. लेकिन उस की हिम्मत दगा दे गई. शव उठाते समय बाल व खाल उस के हाथ में आ गए. शव सड़ने लगा था. सवेरा होने से पहले सतीश ने गेट पर ताला लगाया और फरार हो गया.

पड़ोसियों ने की पुलिस से शिकायत

23 मार्च, 2021 की सुबह सतीश के पड़ोसियों ने सतीश के घर से भीषण दुर्गंध महसूस की तो उन्होंने थाना बर्रा पुलिस को सूचना दे दी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी हरमीत सिंह टीम के साथ सतीश के घर पहुंचे. ताला तोड़ कर वह घर के अंदर घुसे तो गेट के पास ही उन्हें सड़ीगली महिला की लाश मिली. पड़ोसियों ने तुरंत लाश को पहचाना, उन्होंने बताया कि लाश सतीश की पत्नी मधु श्रीवास्तव की है.

थानाप्रभारी की सूचना पर एसपी (साउथ) दीपक भूकर तथा डीएसपी विकास पांडेय भी आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 40 वर्ष के आसपास थी. संभवत: उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. इस के बाद शव को पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया गया.

इसी बीच पता चला कि सतीश अपने दोनों बेटों और स्थानीय नेताओं के साथ थाना बर्रा पहुंचा है और पुलिस की नाकामी को ले कर हंगामा कर रहा है. यह सूचना प्राप्त होते ही थानाप्रभारी हरमीत सिंह थाने पहुंचे और सतीश को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने सख्ती से उस से पूछताछ की तो उस ने पत्नी की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि मधु बदचलन थी. वह आशिक से मोबाइल पर बात कर रही थी. मना किया तो जूता फेंक कर मुंह पर मारा. गुस्से में मैं ने उस का गला घोंट दिया. उस के बेटे निर्दोष हैं. उन्हें हत्या की जानकारी नहीं थी.

चूंकि सतीश ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, अत: थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने भादंवि की धारा 302/201 के तहत सतीश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उसे न्यायसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

24 मार्च, 2021 को बर्रा पुलिस ने अभियुक्त सतीश कुमार श्रीवास्तव को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मौत की अनोखी साजिश: जिसे देख पुलिस भी चकरा गई

बात 31 जनवरी, 2021 की है. वरुण अरोड़ा ने अपनी पत्नी दिव्या को फोन किया, ‘‘दिव्या, आज तुम सब्जी मत बनाना, मैं शाम को आऊंगा तो होटल से तुम सब की पसंद की मछली करी ले कर आऊंगा.’’

रियल एस्टेट कारोबारी वरुण दक्षिणी दिल्ली के ग्रेटर कैलाश पार्ट-1 में रहता था. उस की ससुराल पश्चिमी दिल्ली के इंद्रपुरी  इलाके में थी. उस समय उस की पत्नी दिव्या अपने मायके इंद्रपुरी में थी. इसलिए वरुण ने दिव्या को फोन कर के मछली करी ले कर आने को कहा था.

मछली करी दिव्या और उस के मायके वालों को बहुत पसंद थी, इसलिए पति से बात करने के बाद दिव्या ने अपनी मम्मी अनीता से कह दिया कि आज वरुण इधर ही आ रहे हैं. वह होटल से मछली करी ले कर आएंगे. इसलिए आज सब्जी नहीं बनानी. नौकरानी से कह देना कि वह आज केवल रोटी बना दे.

शाम को वरुण अपनी ससुराल के लिए चला तो उस ने एक होटल से सब के लिए मछली करी पैक करा ली. उस की ससुराल में पत्नी के अलावा ससुर देवेंद्र मोहन शर्मा, सास अनीता शर्मा, साली प्रियंका और एक नौकरानी थी. उन सभी के हिसाब से वह काफी मछली करी ले कर आया था.

शाम को जब खाना खाने की बारी आई तब अरुण ने कहा कि उस का पेट खराब है, इसलिए वह खाना नहीं खाएगा. दिव्या ने उस से कहा भी कि वह उस के लिए खिचड़ी या और कोई चीज बनवा देगी, लेकिन वरुण ने मना कर दिया. उस ने केवल नींबू पानी पिया.

वरुण की लाई मछली करी घर के लोगों को बहुत स्वादिष्ट लगी. इसलिए सभी ने जी भर कर खाना खाया. वरुण के दोनों बच्चे उस समय तक सो गए थे. रात को वरुण ससुराल में ही सो गया और अगले दिन अपने घर चला गया.

इस के 2 दिन बाद दिव्या की मां अनीता को उल्टीदस्त की शिकायत हुई. उन्हें चक्कर भी आने लगे.

तबीयत जब ज्यादा खराब होने लगी तब अनीता शर्मा को सर गंगाराम अस्पताल ले जाया गया. वहां भी उन की तबीयत दिनप्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी. डाक्टर समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर उन्हें हुआ क्या है. हालत गंभीर होती देख उन्हें आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया.

इसी बीच अनीता की छोटी बेटी प्रियंका की भी हालत बिगड़ने लगी. उस का भी पेट खराब हो गया और उल्टियां होने लगीं. साथ ही उस का सिर भी घूम रहा था. प्रियंका को राजेंद्र प्लेस के पास स्थित बी.एल. कपूर अस्पताल में एडमिट करा दिया गया.

उधर ससुराल वालों की तबीयत खराब होने से वरुण मन ही मन खुश था, क्योंकि उस ने जो प्लान बनाया था वह सफल हो रहा था. 4-5 दिन बाद उस की पत्नी दिव्या को भी वही शिकायत होने लगी, जो उस की मां और बहन को हुई थी. दिव्या को भी सर गंगाराम अस्पताल में भरती करा दिया गया.

वरुण द्वारा लाई गई मछली करी उस की ससुराल के जिन लोगों ने खाई थी, उन सब की हालत बिगड़ने लगी. ससुर देवेंद्र मोहन शर्मा की भी अचानक तबीयत खराब हो गई. इस के अलावा घर की नौकरानी का भी यही हाल हुआ तो उसे भी डा. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भरती करा दिया गया. परिवार के सभी लोगों का अलगअलग अस्पतालों में इलाज चल रहा था.

इसी बीच बी.एल. कपूर अस्पताल में भरती वरुण की साली प्रियंका की 15 फरवरी, 2021 को इलाज के दौरान मौत हो गई. रिश्तेदार इसे फूड पौइजनिंग का मामला मान रहे थे. इसलिए उन्होंने इस की शिकायत पुलिस में न कर के उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

हालांकि वरुण अस्पताल में ससुराल के सभी लोगों की देखरेख कर रहा था, लेकिन अंदर ही अंदर वह खुश था क्योंकि उस का प्लान पूरी तरह सफल हो गया था.

उधर सर गंगाराम अस्पताल में लाई गई अनीता की भी 22 मार्च, 2021 को मृत्यु हो गई. डाक्टरों ने जब उन के यूरिन और ब्लड की जांच की तो उस में थैलियम नाम का एक जहरीला रसायन पाया गया.

डाक्टर समझ गए कि किसी ने उन्हें थैलियम जहर दे कर मारा है. अस्पताल द्वारा इस की सूचना पुलिस को दे दी गई. पुलिस  ने डाक्टरों से बात की तो उन्हें भी यह मामला संदिग्ध लगा. अनीता इंद्रपुरी में रहती थी, इसलिए इस की सूचना इंद्रपुरी थाने के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार को दी गई थी. वह तुरंत अस्पताल पहुंच गए.

थानाप्रभारी ने जब डाक्टर से बात की तो पता चला कि थैलियम एक अलग तरह का जहरीला रसायन होता है, जिस का असर बहुत धीरेधीरे होता है. इस के अलावा इस रसायन की एक खास बात यह है कि इस में किसी तरह की गंध और स्वाद नहीं होता. यह रंगहीन और गंधहीन होता है.

यह जानकारी मिलने के बाद थानाप्रभारी समझ गए कि जरूर इस मामले में कोई गहरी साजिश है. उन्होंने छानबीन की तो पता चला कि 15 फरवरी को अनीता की छोटी बेटी प्रियंका की भी बी.एल. कपूर अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु हो गई थी.

पुलिस ने बी.एल. कपूर अस्पताल के डाक्टरों से मुलाकात की तो उन्होंने बताया कि प्रियंका के शरीर में भी थैलियम के लक्षण पाए गए थे. इस के अलावा इस परिवार के अन्य सदस्य यानी अनीता की बड़ी बेटी दिव्या और अनीता के पति देवेंद्र मोहन शर्मा और नौकरानी भी अस्पताल में भरती थे.

इस से पुलिस समझ गई कि किसी ने गहरी साजिश के तहत पूरे परिवार को अपना शिकार बनाने की कोशिश की थी. थानाप्रभारी ने इस की सूचना एसीपी विजय सिंह को दी.

अब यह मामला जिले के पुलिस अधिकारियों तक पहुंच चुका था. डीसीपी के निर्देश पर एसीपी विजय सिंह ने इंद्रपुरी के थानाप्रभारी सुरेंद्र सिंह और मायापुरी के इंसपेक्टर प्रमोद कुमार को इस मामले की जांच में लगा दिया.

पुलिस ने देवेंद्र मोहन शर्मा और उन की बेटी दिव्या का इलाज कर रहे डाक्टरों से  फिर से बात की. इस के अलावा उन्होंने डा. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भरती उन की नौकरानी का इलाज कर रहे डाक्टरों से भी मुलाकात की. पुलिस को पता चला कि उपचाराधीन इन मरीजों के अंदर भी थैलियम रसायन पाया गया है.

अनीता के शव का डा. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में पोस्टमार्टम कराया गया. पुलिस ने वहां के डाक्टरों से इस की डिटेल्ड एटौप्सी रिपोर्ट ली. उस में बताया गया कि अनीता के शरीर में थैलियम था. अब तक की जांच से पुलिस को यह पता लग चुका था कि परिवार के सभी लोगों को कोई ऐसी चीज खिलाई गई थी, जिस में थैलियम रसायन मिला हुआ था. वह चीज क्या थी और किस ने खिलाई, यह जांच का विषय था.

इस परिवार का दामाद वरुण ही अस्पताल में उन सब की देखभाल कर रहा था. वरुण के चेहरे से सास और साली की मौत का गम साफ झलक रहा था. इस के अलावा वह डाक्टरों से लगातार अपनी पत्नी दिव्या और ससुर को बचाने की गुहार भी कर रहा था.

पुलिस को अपनी जांच आगे बढ़ानी थी, इसलिए पुलिस ने वरुण से इस बारे में पूछताछ की. वरुण ने पुलिस को बताया कि वह तो अपने घर ग्रेटर कैलाश में रहता है. ससुराल के सभी लोगों को अचानक क्या हो गया, इस की उसे कोई जानकारी नहीं है.

पुलिस को केस की तह तक जाना था, इसलिए वह वरुण को ग्रेटर कैलाश पार्ट-1 में स्थित उस के घर पर ले गई.

निशाने पर वरुण

पुलिस ने उस के घर की तलाशी ली तो एक गिलास में कुछ संदिग्ध चीज  दिखी. पुलिस ने वह गिलास अपने कब्जे में ले लिया और गिलास में क्या है, यह जानने के लिए उसे फोरैंसिक जांच के लिए भेज दिया. उस गिलास के अलावा पुलिस को वरुण के घर से अन्य कोई संदिग्ध चीज नहीं मिली.

पुलिस यह तो अच्छी तरह जान चुकी थी कि जिस ने भी इस परिवार को जहरीला पदार्थ दिया है, वह विश्वस्त होगा और उस का इन के घर आनाजाना भी रहा होगा. लिहाजा पुलिस ने देवेंद्र मोहन शर्मा के घर पर जो लोग आतेजाते थे, उन से एकएक कर पूछताछ शुरू कर दी. पुलिस बहुत तेजी के साथ जांच कर रही थी.

उधर फोरैंसिक जांच से पता चला कि वरुण के यहां से गिलास में जो चीज बरामद की गई थी, वह थैलियम नाम का जहरीला पदार्थ ही था. यह जानकारी मिलने के बाद वरुण पुलिस के शक के दायरे में आ गया. लिहाजा पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की.

आखिर वरुण ने सच उगल ही दिया. उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही अपनी ससुराल के लोगों को थैलियम जहर दिया था. उन सभी का नामोनिशान मिटाने की वरुण ने जो कहानी बताई, वह हैरतअंगेज थी.

रियल एस्टेट कारोबारी वरुण ने करीब 12 साल पहले दिव्या से शादी की थी. दिव्या उस के साथ बहुत खुश थी. वरुण का कारोबार अच्छा चल रहा था, इसलिए दिव्या को कोई परेशानी नहीं थी. जीवन हंशीखुशी से चल रहा था. लेकिन बाद में उन के जीवन में एक समस्या खड़ी हो गई. समस्या यह कि शादी के कई साल बाद भी दिव्या मां नहीं बन पाई.

वरुण ने डाक्टरों से उस का इलाज भी कराया, लेकिन उस के घर में किलकारी नहीं गूंजी. जब पतिपत्नी हर तरफ से हताश हो गए, तब उन्होंने शादी के करीब 7 साल बाद आईवीएफ प्रोसेस का सहारा लिया. इस का सही परिणाम निकला और दिव्या ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया. जिस में एक बेटी थी और एक बेटा.

अब उन के घर में एक नहीं, बल्कि 2-2 बच्चों की किलकारियां गूंजने लगीं. उन की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. जुड़वां बच्चे होने के बाद दिव्या के मायके वाले भी बहुत खुश थे. दिव्या दोनों बच्चों की सही देखभाल कर रही थी. वक्त के साथ बच्चे करीब 4 साल के हो गए.

लगभग एक साल पहले वरुण के पिता की अचानक मौत हो गई. पिता की मौत के बाद वरुण की गृहस्थी में एक ऐसी समस्या ने जन्म ले लिया, जिस ने न सिर्फ वरुण के बल्कि वरुण की ससुराल वालों के जीवन को उजाड़ दिया.

बेटे के रूप में बाप की वापसी की चाहत

हुआ यह कि पिता की मौत के बाद दिव्या फिर से प्रैगनेंट हो गई. इस से वरुण बहुत खुश था. वह सोच रहा था कि उस की पत्नी की कोख में उस के पिता ही आए हैं. वह पत्नी की अच्छी तरह से देखभाल करने लगा.

उधर जिस महिला डाक्टर के पास  दिव्या अपना चैकअप कराने जाती थी, उस ने दिव्या से कहा कि इस बार उस का प्रैग्नेंट होना उस के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है. किसी तरह उस ने बच्चे को जन्म दे भी दिया तो उस का बच पाना मुश्किल होगा.

दिव्या ने यह बात वरुण को बताई तो उस ने उस की बात पर विश्वास नहीं किया. वरुण ने कहा कि डाक्टर झूठ बोल रही है. ऐसा कुछ नहीं होगा. वह उसे और होने वाले बच्चे को कुछ नहीं होने देगा. वरुण ने अबौर्शन कराने से साफ मना कर दिया. उस ने कहा कि बच्चे के रूप में उस के पिता आ रहे हैं, इसलिए वह किसी भी सूरत में उस का गर्भपात नहीं कराएगा.

दिव्या ने डाक्टर वाली बात अपने मायके में बताई तो उस की मां अनीता ने कहा कि यदि उस का गर्भपात नहीं कराएगा तो वह खुद उस के साथ जा कर उस का गर्भपात करा देगी . क्योंकि बेटी की जिंदगी का सवाल है. बेटी जीवित रहेगी तो बच्चा कभी भी हो जाएगा.

एक दिन वरुण की सास ने वरुण को अपने घर बुला कर समझाया कि जब डाक्टर बच्चा पैदा करने के लिए मना कर रही है तो ऐसे में उस का गर्भपात कराना ही बेहतर है. लेकिन वरुण अपनी जिद पर अड़ा था.

उस ने कहा कि वह किसी भी सूरत में उस का गर्भपात नहीं होने देगा. इस बात पर उन की आपस में खटपट भी हो गई. इतना ही नहीं, उस दिन ससुराल में वरुण की काफी बेइज्जती भी हुई.

वरुण की सास अनीता भी अपनी जिद पर अड़ी थी. उस ने वरुण की इच्छा के खिलाफ दिव्या का गर्भपात करा दिया. यह बात वरुण को बहुत बुरी लगी. उस ने सोचा कि उस की सास ने बच्चे का नहीं, बल्कि गर्भ में पल रहे उस के पिता को मारा है.

उसी समय वरुण ने तय कर लिया कि वह अपनी बेइज्जती करने वालों और गर्भपात कराने वाले अपने ससुरालियों को सबक सिखा कर रहेगा.

इस के बाद वरुण ससुराल वालों को सबक सिखाने के उपाय खोजने लगा. वह ऐसी तरकीब खोज रहा था, जिस से काम भी हो जाए और उस पर कोई शक भी न करे. इस बारे में वह इंटरनेट और यूट्यूब पर भी सर्च करता था.

खतरनाक रसायन थैलियम

इसी दौरान उसे थैलियम नामक जहरीले रसायन के बारे में जानकारी मिली. थैलियम एक ऐसा जहर होता है कि यह जिस व्यक्ति को दिया जाता है उसे शुरुआत में उल्टीदस्त, जी मिचलाने की शिकायत होती है और जल्दी ही उस की मृत्यु हो जाती है.

क्योंकि मृत व्यक्ति के शरीर पर जहर जैसे कोई भी लक्षण नहीं मिलते, इसलिए लोग यही समझते हैं कि उस की मौत फूड पौइजनिंग की वजह से हुई है.

यह जानकारी मिलने के बाद वरुण ने थैलियम रसायन पाने की कोशिश शुरू कर दी. आदमी कोशिश करे तो बेहतर रिजल्ट निकल ही आता है. यही वरुण के साथ भी हुआ. इस खोजबीन में उसे पंचकूला की एक लैबोरेटरी का पता चला. उस ने वहां औनलाइन संपर्क कर रिसर्च के नाम पर थैलियम मंगा लिया. अब उस का मकसद किसी तरह इसे अपने ससुराल वालों को खिलाना था.

इस के लिए उस ने सब से पहले अपने ससुराल वालों से संबंध सामान्य करने शुरू किए क्योंकि पत्नी का गर्भपात कराने के बाद उन से उस के संबंध बिगड़ गए थे.

इस साल जनवरी के अंतिम सप्ताह में वरुण की पत्नी दिव्या अपने दोनों बच्चों के साथ मायके गई हुई थी. अब तक ससुराल वालों से वरुण के संबंध नौर्मल हो चुके थे. वह फिर से ससुराल आनेजाने लगा था.

वरुण को पता था कि उस की ससुराल के लोगों को मछली करी बहुत पसंद है. योजना के अनुसार वरुण ने 31 जनवरी, 2021 को पत्नी दिव्या को फोन कर के कह दिया कि वह आज होटल से मछली करी ले कर आएगा, इसलिए घर पर सब्जी न बनवाए. दिव्या ने यह बात अपनी मम्मी अनीता को बता दी. जिस से उस दिन उन लोगों ने अपनी नौकरानी से केवल रोटियां ही बनवाई थीं.

योजना के अनुसार, वरुण ने एक होटल से मछली करी खरीदी और उस में थैलियम मिला दिया. फिर मछली करी ले कर ससुराल पहुंच गया. अपनी तबीयत खराब होने का बहाना बना कर उस ने उस दिन ससुराल में खाना नहीं खाया.

घर की नौकरानी सहित ससुराल के सभी लोगों ने मछली करी खाई, जिस से जहरीला रसायन थैलियम उन सब के शरीर में पहुंच गया और उस ने धीरेधीरे अपना असर दिखाना शुरू कर दिया.

इस के बाद उन लोगों की तबीयत खराब होने लगी तो उन सभी को अस्पताल में भरती कराया गया. वरुण के दोनों बच्चे उस के पहुंचने से पहले ही खाना खा कर सो गए थे, जिस से वे बच गए.

वरुण अस्पताल में देखभाल करने का नाटक इसलिए कर रहा था ताकि उस पर कोई शक न करे, लेकिन पुलिस जांच में उस की साजिश उजागर हो गई.

वरुण अरोड़ा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक वरुण के ससुर देवेंद्र मोहन शर्मा और नौकरानी की हालत गंभीर बनी हुई थी. जबकि दिव्या की 8 अप्रैल को मौत हो गई.

पुलिस जांच में पता चला कि दिल्ली में थैलियम रसायन दे कर किसी को मारने का यह पहला मामला है.

धीमी मौत देने वाला रसायन है थैलियम

थैलियम एक ऐसा जहरीला रसायन है, जिस से किसी व्यक्ति की तुरंत नहीं बल्कि धीमी मौत होती है. यह एक ऐसा कैमिकल एलिमेंट है, जो प्रकृति में मुक्त रूप में नहीं मिलता. यह बेहद  जहरीला होता है. आइसोलेट करने पर यह ग्रे रंग का दिखता है, मगर हवा के संपर्क में रंगहीन हो जाता है. इस में कोई गंध और कोई स्वाद नहीं होता.

पहले यह जहर चूहे और कीड़मकोड़े मारने में प्रयोग किया जाता था, लेकिन लोगों ने इस का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया तो कई देशों में इस के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी गई.

थैलियम नाम का यह जहर जैसे ही किसी व्यक्ति के अंदर पहुंचता है तो धीरेधीरे अपना असर दिखाता है. शुरुआती 48 घंटों में उल्टी, डायरिया, सिर घूमना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. कुछ दिन में यह नरवस सिस्टम को डैमेज करना शुरू कर देता है. फिर धीरेधीरे मांसपेशियां बेकार हो जाती हैं और याद्दाश्त चली जाती है. आखिर में व्यक्ति कोमा में चला जाता है. इस तरह धीरेधीरे उस की मौत हो जाती है.

जर्नल औफ क्लिनिकल ऐंड डायग्नोस्टिक रिसर्च में छपे शोध के अनुसार, 6 घंटे में यदि उस व्यक्ति का इलाज शुरू हो जाए तो उस की जान बच सकती है. थैलियम का एंटीडोट प्रशियन ब्लू है. इस के अलावा डायलिसिस भी इस का एक विकल्प है. कुछ ऐसी दवाएं भी दी जाती हैं, जिन से किडनी से थैलियम बाहर निकालने की क्षमता बढ़ जाए. डाक्टर ऐसी ही दवाएं पीडि़त व्यक्ति को देते हैं. जो लोग इस जहर से बच जाते हैं उन के बाल पूरी तरह से झड़ सकते हैं.

इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन की सीक्रेट पुलिस (मुखबरात) ने थैलियम का इस्तेमाल अपने दुश्मनों पर जम कर कराया. सलवा बहरानी, अब्दुल्ला अली, मजीदी जेहाद आदि कई ऐसे नाम हैं, जिन की हत्या इसी जहर से कराई गई थी.

वरुण को यह जानकारी इंटरनेट से मिली थी कि इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन ने इस जहर से अपने तमाम विरोधियों का खात्मा किया था. उस ने अपनी ससुराल वालों को सबक सिखाने के लिए थैलियम का उपयोग किया और उसे मछली करी में मिला कर सब को खिला दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भटकाव की राह पर : क्यों फिसल गई सुमन

महेंद्र सिंह को पिछले कुछ दिनों से अजय का अपने घर में आनाजाना ठीक नहीं लग रहा था. वह आता था तो उस की पत्नी सुमन उस से कुछ ज्यादा ही घुलमिल कर बातें करती थी. वैसे तो अजय उस के भाई का ही बेटा था, लेकिन महेंद्र सिंह को उस के लक्षण कुछ ठीक नहीं लग रहे थे.

अजय जब महेंद्र सिंह की मानसिक परेशानी का कारण बनने लगा तो एक दिन उस ने सुमन से पूछा कि अजय क्यों बारबार घर के चक्कर लगाता है. इस पर सुमन ने तुनकते हुए कहा, ‘‘अजय तुम्हारे भाई का बेटा है. वह आता है, तो क्या मैं इसे घर से निकाल दूं?’’

महेंद्र सिंह को सुमन की बात कांटे की तरह चुभी तो लेकिन उस के पास सुमन की बात का जवाब नहीं था. वह चुप रह गया.

महेंद्र सिंह कानपुर शहर के बर्रा भाग 6 में रहता था. वह मूलरूप से औरैया जिले के कस्बा सहायल का रहने वाला था. वह अपने भाइयों में सब से छोटा था. उस से बड़े उस के 2 भाई थे— मानसिंह और जयसिंह. सब से बड़े भाई मानसिंह के 2 बेटे थे अजय सिंह और ज्ञान सिंह. ज्ञान सिंह की शादी हो गई थी. अजय सिंह अविवाहित था.

महेंद्र सिंह की शादी जिला कन्नौज के कस्बा तिर्वा निवासी नरेंद्र सिंह की बेटी सुमन के साथ हुई थी. नरेंद्र के 2 बच्चे थे सुमन और गौरव. लाडली और बड़ी होने की वजह से सुमन शुरू से ही जिद्दी स्वभाव की थी. वह जो ठान लेती, वही करती.

शादी हो कर सुमन जब ससुराल आई, तो उसे ससुराल रास नहीं आई. चंद महीने बाद ही वह पति के साथ कानपुर आ कर रहने लगी. सुमन का पति महेंद्र सिंह दादानगर स्थित एक फैक्ट्री में सुरक्षागार्ड की नौकरी करता था. उस की आमदनी सीमित थी. इस के बावजूद सुमन फैशनपरस्त थी. वह अपने बनावशृंगार पर खूब खर्च करती थी.

लेकिन शुरूशुरू में जवानी का जुनून था, इसलिए महेंद्र सिंह ने इन सब पर ध्यान नहीं दिया था. उसे तो बस उस की अदाएं पसंद थीं. समय के साथ सुमन ने पूजा और विभा 2 बेटियों को जन्म दिया. शादी के कुछ समय बाद ही महेंद्र सिंह महसूस करने लगा था कि उस की पत्नी उस के साथ संतुष्ट नहीं है.

दरअसल, सुमन नरेंद्र सिंह की एकलौती बेटी थी और अपनी शादी के बारे में बड़ेबड़े ख्वाब देखा करती थी. लेकिन उस के पिता ने उस की शादी एक साधारण सुरक्षा गार्ड से कर दी थी, जिस से उस के सारे अरमान चूरचूर हो गए थे. और वह बच्चों और चौकेचूल्हे में उलझ कर रह गई थी. फिर भी जिंदगी की गाड़ी जैसेतैसे चलती रही. कहानी ने मान सिंह के बड़े बेटे ज्ञान सिंह की शादी के बाद एक नया मोड़ लिया.

ज्ञान सिंह की शादी के मौके पर सुमन ने महसूस किया कि अजय उस का कुछ ज्यादा ही खयाल रख रहा है. वह खाने की थाली ले कर सुमन के पास आया और उस के सामने टेबल पर रखते हुए बोला, ‘‘यहां बैठ कर खाओ चाची.’’

सुमन मुसकरा कर थाली अपनी ओर खिसकाने लगी, तो अजय भी उस की ओर देख कर मुसकराते हुए चला गया. थोड़ी देर बाद वह वापस लौटा तो उस के हाथों में दूसरी थाली थी. वह सुमन के पास ही बैठ कर खाना खाने लगा.

खाना खातेखाते दोनों के बीच बातों का सिलसिला जुड़ा, तो अजय बोला, ‘‘चाची तुम सुंदर भी हो और स्मार्ट भी. लेकिन चाचा ने तुम्हारी कद्र नहीं की.’’

अजय सिंह ने यह कह कर सुमन की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. ज्ञान सिंह की बारात करीब के ही गांव में जानी थी. शाम को रिश्तेदार व परिवार के लोग बारात में चले गए. लेकिन अजय बारात में नहीं गया.

उसी रात जब दरवाजे पर दस्तक हुई, तो सुमन ने दरवाजा खोला. दरवाजे पर अजय खड़ा था. सुमन ने हैरानी से पूछा, ‘‘तुम… बारात में नहीं गए. यहां कैसे?’’

दरवाजा खुला था, अजय सिंह अंदर आ गया तो सुमन ने दरवाजा बंद कर दिया. सुमन की आंखें तेज थीं. उस ने अजय की आंखों की भाषा पढ़ ली.

‘‘चाची, मुझे तुम से कुछ कहना है. बहुत दिनों से सोच रहा हूं, पर मौका ही नहीं मिल पा रहा था. आज अच्छा मौका मिला, इसलिए मैं बारात में नहीं गया.’’ अजय ने कमरे में पड़े पलंग पर बैठते हुए कहा.

‘‘ऐसी क्या बात है, जिस के लिए तुम्हें मौके की तलाश थी?’’ सुमन ने पूछा, तो अजय तपाक से बोला, ‘‘चाची आया हूं तो मन की बात कहूंगा जरूर. तुम्हें बुरा लगे या अच्छा. दरअसल बात यह है कि तुम मेरे मन को भा गई हो और मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

‘‘प्यार…’’ सुमन ने अजय को गौर से देखा.

आज वह पहले वाला अजय नहीं था, जिसे वह बच्चा समझती थी. अजय जवान हो चुका था. पलभर के लिए सुमन डर गई. उस ने कभी नहीं सोचा था कि वह उस से ऐसा भी कुछ कह सकता है.

‘‘अजय, तुम यहां से जाओ, अभी इसी वक्त.’’ सुमन ने सख्ती से कहा, तो अजय ने पूछा, ‘‘चाची क्या तुम मेरी बात का बुरा मान गईं. मैं ने तो मजाक में कहा था.’’

‘‘अजय, मैं ने कहा न जाओ यहां से.’’ डांटते हुए सुमन ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया, तो उस के तेवर देख अजय डर कर वहां से चला गया.

अजय तो चला गया लेकिन सुमन रात भर सोच में डूबी अपने मन को टटोलती रही. वह सचमुच महेंद्र सिंह से संतुष्ट नहीं थी. उस की जिंदगी फीकी दाल और सूखी रोटी की तरह थी.

पिछले कुछ समय से महेंद्र सिंह की तबियत भी ढीली चल रही थी. ड्यूटी से आने के बाद वह खाना खाते ही सो जाता था. वह पति से क्या चाहती है, यह महेंद्र सिंह ने न तो कभी सोचा और न जानने की कोशिश की. यही वजह थी कि सुमन का मन विद्रोह कर उठा. उस ने मन को काफी समझाने की कोशिश की, लेकिन न चाहते हुए भी उस की सोच नएनए जवान हुए अजय के आस पास ही घूमती रही. उस का मन पूरी तरह बेइमान हो चुका था.

आखिरकार उस ने निर्णय ले लिया कि अब वह असंतुष्ट नहीं रहेगी. चाहे इस के लिए रिश्तों को तारतार क्यों न करना पड़े.

कोई भी औरत जब बरबादी के रास्ते पर कदम रखती है तो उसे रोक पाना मुश्किल होता है. यही सुमन के मामले में हुआ. दूसरी ओर अजय यह सोच कर डरा हुआ था कि चाची ने चाचा को सब कुछ बता दिया तो तूफान आ जाएगा. इसी डर से वह सुमन से नहीं मिला.

इधर सुमन फैसला करने के बाद तैयार बैठी अजय का इंतजार कर रही थी. उस ने मिलने की कोशिश नहीं की, तो सुमन ने उसे स्वयं ही बुला लिया.

अजय आया तो सुमन ने उसे देखते ही उलाहने वाले लहजे में कहा, ‘‘मुझे राह बता कर खुद दूसरी राह चले गए. क्या हुआ, आए क्यों नहीं?’’

‘‘मैं ने सोचा, शायद तुम्हें मेरी बात बुरी लगी. इसीलिए…’’ अजय ने कहा तो सुमन बोली, ‘‘रात में आना, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’

अजय सिंह समझ गया कि उस का तीर निशाने पर भले ही देर से लगा हो, पर लग गया है. वह मन ही मन खुश हो कर लौट गया. सुमन का पति महेंद्र सिंह दूसरे दिन ही बारात से लौटने के बाद वापस कानपुर आ गया था. लेकिन पत्नी व बच्चों को गांव में ही छोड़ गया था. इसी बीच सुमन और अजय नजदीक आने का प्रयास करने लगे थे.

सुमन ने अजय को मिलन का खुला आमंत्रण दिया था. अत: वह बनसंवर कर देर शाम सुमन के कमरे पर पहुंच गया. उस ने दरवाजे पर दस्तक दी तो सुमन ने दरवाजा खोल कर उसे तुरंत अंदर बुला लिया. उस के अंदर आते ही सुमन ने दरवाजा बंद कर लिया.

अजय पलंग पर बैठ गया, तो सुमन उस के करीब बैठ कर उस का हाथ सहलाने लगी. अजय के शरीर में हलचल मचने लगी. वह समझ गया कि चाची ने उस की मोहब्बत स्वीकार कर ली. इसी छेड़छाड़ के बीच कब संकोच की सारी दीवारें टूट गईं, दोनों को पता हीं नहीं चला.

बिस्तर पर रिश्ते की मर्यादा भले ही टूट गई, लेकिन सुमन और अजय के बीच स्वार्थ का पक्का रिश्ता जरूर जुड़ गया. अपने इस रिश्ते से दोनों ही खुश थे.

सुमन अपनी मौजमस्ती के लिए पाप की दलदल में घुस तो गई, पर उसे यह पता नहीं था कि इस का अंजाम कितना भयंकर हो सकता है.

उस दिन के बाद अजय और सुमन बिस्तर पर जम कर सामाजिक रिश्तों और मानमर्यादाओं की धज्जियां उड़ाने लगे. अजय सुमन के लिए बेटे जैसा था और अजय के लिए वह मां जैसी. लेकिन वासना की आग ने उन के इन रिश्तों को जला कर खाक कर दिया था.

सुमन लगभग एक माह तक गांव में रही और गबरू जवान अजय के साथ मौजमस्ती करती रही. उस के बाद वह वापस कानपुर आ गई और पति के साथ रहने लगी. अजय और सुमन के बीच अब मिलन तो नहीं हो पाता था, लेकिन मोबाइल फोन पर दोनों की बात होती रहती थी. सुमन के बिना न अजय को चैन था और न अजय के बिना सुमन को.

आखिर जब अजय से न रहा गया तो वह सुमन के बर्रा भाग 6 स्थित घर पर किसी न किसी बहाने से आने लगा. उस ने सुमन के साथ फिर से संबंध बना लिए. कुछ दिनों तक तो सब गुपचुप चलता रहा. लेकिन फिर अजय का इस तरह सुमन के पास आनाजाना पड़ोसियों को खटकने लगा. लोगों को पक्का यकीन हो गया कि चाचीभतीजे के बीच नाजायज रिश्ता है.

नाजायज रिश्तों को ले कर पड़ोसियों ने टोकाटाकी की तो महेंद्र सिंह के होश उड़ गए. उस की पत्नी उसी के सगे भतीजे के साथ मौजमस्ती कर रही थी, यह बात भला वह कैसे बरदाश्त कर सकता था. वह गुस्से में तमतमाता घर पहुंचा. सुमन उस समय घर के कामकाज निपटा रही थी. उसे देखते ही वह गुस्से में बोला, ‘‘तेरे और अजय के बीच क्या चल रहा है?’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ सुमन ने धड़कते दिल से पूछा.

‘‘मतलब छोड़ो. यह बताओ कि अजय यहां क्या करने आता है?’’ महेंद्र सिंह ने पूछा तो सुमन बोली, ‘‘कैसी बातें कर रहे हो तुम? अजय तुम्हारा भतीजा है. बात क्या है. उखड़े हुए से क्यों लग रहे हो?’’

‘‘तू मेरी पीठ पीछे क्या करती है, मुझे सब पता है. तेरी पाप लीला पूरे मोहल्ले के सामने आ चुकी है. तूने मुझे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.’’

‘‘अपनी पत्नी पर गलत इलजाम लगा रहे हो. तुम्हें शर्म आनी चाहिए.’’ सुमन ने रोते हुए कहा, तो महेंद्र सिंह बोला, ‘‘देखो, अब भी वक्त है. संभल जा, नहीं तो अंजाम अच्छा न होगा.’’

महेंद्र सिंह ने भतीजे अजय सिंह को भी फटकार लगाई और बिना मतलब घर न आने की हिदायत दी. महेंद्र सिंह की सख्ती से सुमन और अजय डर गए. अजय का आनाजाना भी कम हो गया. अब वह तभी आता जब उसे कोई जरूरी काम होता. वह भी चाचा महेंद्र सिंह की मौजूदगी में.

महेंद्र सिंह अपने बड़े भाई मान सिंह का बहुत सम्मान करता था. इसलिए उस ने अजय की शिकायत भाई से नहीं की थी. लौकडाउन के दौरान मान सिंह ने महेंद्र सिंह से 5 हजार रुपए उधार लिए थे और फसल तैयार होने के बाद रुपया वापस करने का वादा किया था.

अजय का आनाजाना कम हुआ तो महेंद्र सिंह ने राहत की सांस ली. उसे भी लगने लगा था कि अब सुमन और अजय का अवैध रिश्ता खत्म हो गया है. लिहाजा उस ने सुमन पर निगाह रखनी भी बंद कर दी थी.

20 जनवरी, 2021 की दोपहर 12 बजे महेंद्र सिंह ने पड़ोसियों को बताया कि उस की पत्नी सुमन ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. उस की बात सुन कर पड़ोसी सन्न रह गए. कुछ ही देर बाद उस के दरवाजे पर भीड़ बढ़ने लगी. इसी बीच महेंद्र सिंह ने पत्नी के मायके वालों तथा थाना बर्रा पुलिस को सूचना दे दी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह घटनास्थल पर आ गए. उस समय महेंद्र सिंह के घर पर भीड़ जुटी थी. मृतका सुमन की लाश कमरे में पलंग पर पड़ी थी. उस के गले में फांसी का फंदा था, किंतु गले में रगड़ के निशान नहीं थे. फांसी के अन्य लक्षण भी नजर नहीं आ रहे थे.

संदेह होने पर थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह ने पुलिस अधिकारियों को सूचित किया तो कुछ देर बाद एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (साउथ) दीपक भूकर तथा डीएसपी विकास पांडेय आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो उन्हें भी महिला की मौत संदिग्ध लगी. फोरैंसिक टीम को भी आत्महत्या जैसा कोई सबूत नहीं मिला.

पुलिस अधिकारी मौकाएवारदात पर अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि मृतका सुमन के मायके पक्ष के दरजनों लोग आ गए. आते ही उन्होंने हंगामा शुरू कर दिया और महेंद्र पर सुमन की हत्या का आरोप लगाया तथा उसे गिरफ्तार करने की मांग की.

चूंकि पुलिस अधिकारी वैसे भी मामले को संदिग्ध मान रहे थे, अत: पुलिस ने मृतका के पति महेंद्र सिंह को हिरासत में ले लिया तथा शव पोस्टमार्टम हेतु भेज दिया.

दूसरे रोज शाम 5 बजे मृतका सुमन की पोस्टमार्टम रिपोर्ट थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह को प्राप्त हुई. उन्होंने रिपोर्ट पढ़ी तो उन की शंका सच साबित हुई. रिपोर्ट में बताया गया कि सुमन ने आत्महत्या नहीं की थी, बल्कि गला दबा कर उस की हत्या की गई थी.

रिपोर्ट के आधार पर उन्होंने मृतका के पति महेंद्र सिंह से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया और उस ने पत्नी सुमन की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

महेंद्र सिंह ने बताया कि उस की पत्नी सुमन के भतीजे अजय सिंह से नाजायज संबंध पहले से थे.

उस ने कल शाम 4 बजे सुमन और अजय को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस समय अजय तो सिर पर पैर रख कर भाग गया. लेकिन सुमन की उस ने जम कर पिटाई की. देर रात अजय को ले कर उस का फिर सुमन से झगड़ा हुआ. गुस्से में उस ने सुमन का गला कस दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

पुलिस और पड़ोसियों को गुमराह करने के लिए उस ने सुमन के शव को उसी की साड़ी का फंदा बना कर कुंडे से लटका दिया. सुबह वह बड़ी बेटी पूजा को ले कर डाक्टर के पास चला गया. उसे हल्का बुखार था. वहां से दोपहर 12 बजे वापस आया तो उस ने पत्नी द्वारा आत्महत्या कर लेने का शोर मचाया. उस के बाद पड़ोसी आ गए.

चूंकि महेंद्र सिंह ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, अत: थानाप्रभारी सतीश कुमार सिंह ने मृतका के भाई गौरव को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत महेंद्र सिंह के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा उसे गिरफ्तार कर लिया.

22 जनवरी, 2021 को पुलिस ने अभियुक्त महेंद्र सिंह को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. सुमन की मासूम बेटियां पूजा और विभा ननिहाल में नानानानी के पास रह रही थीं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नीली साड़ी का राज : प्रेमी ही बना कातिल

राजस्थान के टोंक जिले की देवली तहसील के थाना घाड़ के अंतर्गत एक गांव बड़ोली आता है. इसी गांव के रहने वाले गोकुल के खेत पर सरसों की फसल की कटाई का काम मजदूरों द्वारा किया जा रहा था. यह बात 10 फरवरी, 2021 की है.

सरसों काटते हुए मजदूरों की निगाह एक मानव कंकाल पर पड़ी. इस कंकाल के पास महिला की शृंगार सामग्री यानी चूडि़यां, बिछिया, नीली साड़ी वगैरह पड़ी थी. कंकाल साड़ी में लिपटा था. देखने पर लग रहा था कि कंकाल किसी महिला का है.

यह बात मजदूरों ने खेत के मालिक गोकुल को बताई. गोकुल ने भी मौके पर आ कर देखा. बात सही थी. गोकुल ने फोन कर के गांव के सरपंच धनपत माली को खेत में कंकाल मिलने की बात बताई. कुछ ही देर में सरपंच भी खेत पर पहुंच गए. फिर उन्होंने फोन कर के धाड़ थाने में इस की सूचना दी.

सूचना पा कर धाड़ थानाप्रभारी इंसपेक्टर रामेश्वर प्रसाद पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. घटनास्थल का मुआयना किया. वहां पर नीले रंग की साड़ी में लिपटा कंकाल मिला. थानाप्रभारी रामेश्वर प्रसाद ने इस घटना की सूचना सीओ (देवली) दीपक कुमार, एएसपी राकेश कुमार और एसपी ओमप्रकाश को दे दी.

सूचना मिलने पर सीओ दीपक कुमार एवं एफएसएल टीम मौके पर पहुंच गई. एफएसएल टीम द्वारा साक्ष्य उठाए गए, साथ ही 11 फरवरी को महिला के कंकाल को पोस्टमार्टम एवं डीएनए जांच के लिए अजमेर मैडिकल कालेज भेजा गया.

मामले की गंभीरता को देखते हुए एसपी (टोंक) ने अपने निर्देशन में एक टीम का गठन किया. इस टीम को जल्द से जल्द अज्ञात महिला कंकाल के बारे में पता लगाने की जिम्मेदारी दी गई.

इस टीम में एएसपी (मालपुरा) राकेश कुमार, सीओ दीपक कुमार, थानाप्रभारी (धाड़) रामेश्वर प्रसाद, हैडकांस्टेबल हरफूल, भैरूलाल, कांस्टेबल भागचंद, बजरंग, मेघराज, रामराज, कन्हैयालाल, महिला कांस्टेबल ज्योति और साइबर सेल के हैडकांस्टेबल सुरेशचंद शामिल थे.

पुलिस टीम ने सब से पहले महिला कंकाल से लिपटी हुई नीली साड़ी के पल्लू से बंधी मिली एक परची पर लिखे मोबाइल नंबर  की काल डिटेल्स निकाली. यह मोबाइल नंबर हरिराम मीणा पुत्र रामलाल मीणा, निवासी गांव भरनी का था. इस नंबर से सब से आखिर में महावीर मीणा से बात हुई थी.

महावीर और हरिराम मीणा काल डिटेल्स में संदिग्ध लगे तो पुलिस टीम ने 13 फरवरी को हरिराम को उठा लिया और उस से पूछताछ की. थोड़ी देर तक तो वह आनाकानी करता रहा. मगर फिर जब पुलिसिया तेवर दिखाए तो वह तोते की तरह बोलने लगा. उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. पता चला कि वह लाश टोंक जिले के गांव जगनतन ढिकला निवासी कमला मोग्या की थी. वह राजू मोग्या की बेटी थी. इस के बाद दूसरे आरोपी महावीर मीणा को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया. उस से पूछताछ की गई तो उस ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

तब पुलिस ने महिला कंकाल के पास मिले सामान को देखने के लिए राजू मोग्या, उस की पत्नी रतनीबाई और मृतका कमला मोग्या की छोटी बहन को धाड़ थाने पर बुलाया. इन्होंने महिला कंकाल के पास मिले सामान को देख कर अपनी बेटी कमला मोग्या पत्नी कालूलाल मोग्या के रूप में शिनाख्त कर ली.

लाश की शिनाख्त हो जाने और आरोपियों के गिरफ्तार होने पर पुलिस ने चैन की सांस ली. कमला की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

मैडिकल कालेज में कंकाल की जांच हो जाने के बाद वह मृतका के पिता राजू मोग्या को सौंप दिया. उन्होंने कंकाल का अंतिम संस्कार कर दिया.

पुलिस ने मृतका के मातापिता राजू एवं रतनीबाई का डीएनए टेस्ट भी कराया ताकि सच सामने आ सके. पुलिस अधिकारियों ने कमला के खून से हाथ रंगने वाले आरोपी महावीर मीणा और हरिराम मीणा से कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में जो कहानी प्रकाश में आई, वह कुछ इस प्रकार से है—

कमला मोग्या की शादी आज से करीब 10 साल पहले कालूलाल मोग्या से हुई थी. कमला के मातापिता ने गरीबी में जीवन गुजारा था. मगर अपनी बेटी कमला की हर ख्वाहिश पूरी की थी. कमला सांवले रंग की आकर्षक नैननक्श की नवयौवना थी. शादी के बाद उसे कालूलाल जैसा मेहनतकश इंसान पति के रूप में मिला था. वक्त के साथ कमला 3 बच्चों की मां बनी. ये तीनों बेटे हैं. इस समय इन की उम्र 7 साल, 5 और 3 साल है.

कालूलाल मेहनतमजदूरी में दिनरात खटता था. इस कारण वह थकामांदा रात को घर लौट कर खाना खा कर बिस्तर पर पड़ता और सो जाता था. कालू की पत्नी कमला की हसरतें अभी जवान थीं. वह चाहती थी कि उस का पति उसे बांहों में ले कर आनंदलोक की सैर कराए. मगर कालू की हाड़तोड़ मेहनत ने उसे थका दिया था.

अगर इंसान के तन की ज्वाला ठंडी नहीं हो तो वह बहकने लगता है. अपने सुख के लिए उस के कदम बहकने लगते हैं. कालू तो अपनी बीवी और बच्चों के भरणपोषण के लिए रातदिन मेहनतमजदूरी कर रहा था. वहीं कमला अपने देहसुख के लिए अपने जुगाड़ में लगी थी.

आज से करीब 10 महीने पहले कालू ने ढिकला निवासी दिव्यांग युवक महावीर मीणा का खेत बटाई (हिस्सेदारी) पर ले लिया. इस के बाद कालू अपनी पत्नी कमला एवं तीनों बेटों के साथ जंगलतन से ढिकला स्थित महावीर के खेत में झोपड़ी बना कर रहने लगा. खेत में रहते हुए कुछ दिन ही हुए थे कि एक रोज महावीर खेत देखने आया. उस समय कालू खेत में काम कर रहा था. कालू की बीवी कमला झोपड़ी में बैठी खाना बना रही थी.

महावीर सीधे झोपड़ी में चला गया. उस समय कमला घुटनों तक साड़ी उठा कर बैठी थी. महावीर की नजर कमला की गोरी पिंडलियों पर पड़ी. उस की कामवासना जाग उठी. महावीर ने कहा, ‘‘क्या पका रही है कालू भाई के लिए?’’

सुन कर कमला चौंकी.

उस ने आगंतुक पर नजर डाली. वह उस की गोरी पिंडलियों की तरफ ताक रहा था. कमला ने झट से साड़ी नीचे की. इसी हड़बड़ाहट में उस के उभारों पर से साड़ी हट गई. उन्नत उभार देख कर तो महावीर बावला ही हो गया.

कमला ने साड़ी को ठीक किया और बोली, ‘‘आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘मैं महावीर हूं. यह खेत मेरा ही है.’’ सुन कर कमला बोली, ‘‘अच्छा, तो आप महावीरजी हैं. आइए, बैठिए. मैं चाय बनाती हूं.’’

महावीर खटिया पर बैठ गया. कमला चाय बनाने लगी. तभी कालू भी आ गया. महावीर और कालू बातें करने लगे. कमला चाय बना लाई. सभी ने चाय पी. इस के बाद महावीर ने कहा कि कोई चीज चाहिए तो बोल देना. परेशान मत होना. मुझे अपना ही समझना. इस के बाद महावीर खेत में फसल देख कर गांव चला गया.

महावीर की आंखों में 3 बच्चों की मां कमला का मादक बदन बस गया. वह सारी रात उसे पाने का षडयंत्र मन ही मन करता रहा. महावीर 2 दिन बाद फिर खेत जा पहुंचा. खेत तो बहाना था. उसे तो कमला को रिझाना था. इस कारण वह दुकान से बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें भी लाया था.

कमला से महावीर हंसीठिठोली करने लगा. वह उस की सुंदरता की तारीफ भी करता था. कमला द्वारा बनी चाय का बखान भी करता था. महावीर इस के बाद अकसर 2-4 दिन बाद खेत जाने लगा. वह कमला को ललचाई नजर से देखता.

उस रोज कालू काम से कहीं गया हुआ था. महावीर आ गया खेत पर. कमला से पता चला कि कालू शाम तक घर लौटेगा. बस उस रोज महावीर ने बिसकुट, भुजिया दे कर बच्चों को झोपड़ी से बाहर खेलने भेज दिया. उस के बाद महावीर ने कमला से पूछा, ‘‘लगता है, मेरा आना तुम्हें अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं. मुझे तो तुम बहुत अच्छे लगते हो.’’ कमला ने कहा.

सुन कर महावीर ने आव देखा न ताव, कमला को बांहों में भर लिया. थोड़ी सी नानुकुर के बाद कमला ने अपना तन महावीर के हवाले कर दिया.

महावीर और कमला वासना के दरिया में गोते लगाने लगे. कमला को महावीर ने ऐसा शारीरिक सुख दिया कि वह उस की दीवानी हो गई. कमला भूल गई कि वह शादीशुदा और 3 बेटों की मां है. उस के ये बहके कदम उसे कहीं का नहीं छोडें़गे.

अवैध संबंधों का परिणाम बहुत खतरनाक होता है. कमला को जो शारीरिक सुख महावीर ने कई बरसों बाद दिया था, उस सुख की खातिर वह अपने पति और बच्चों तक को ताक पर रख कर महावीर के साथ भाग जाने को तैयार हो गई थी.

कालू शरीफ था. उसे पता नहीं था कि उस की गैरमौजूदगी में उस की बीवी गैरमर्द के साथ रंगरलियां मनाती है. वह तो सोचता था कि महावीर अपनी खेती देखने आता है. जबकि महावीर तो कमला से मिलने आता था.

कालू वहीं खेत पर रहता था. इस कारण कमला और महावीर का मिलन नहीं हो पाता था. ऐसे में वासना की आग में जल रहे महावीर और कमला ने योजना बनाई कि वे दोनों चुपके से भाग जाएंगे.

महावीर ने कमला से कहा, ‘‘मैं ने देवली में कमरा किराए पर ले लिया है. तुम वहीं रहना. मैं भी आताजाता रहूंगा. बाद में जब सब कुछ ठीक हो जाएगा, तब मैं तुम से शादी कर लूंगा और बच्चों को भी अपना लूंगा.’’

सुन कर कमला बहुत खुश हुई. करीब 7 महीने पहले एक रोज कमला बिना कुछ बताए कहीं चली गई. महावीर योजनानुसार कमला को ले कर देवली कस्बे पहुंचा और किराए के कमरे में कमला को छोड़ कर वापस गांव ढिकला आ गया ताकि उस पर कोई शक न करे.

उधर पत्नी के अचानक गायब हो जाने पर कालू को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि उस की पत्नी गई तो गई कहां. कालू ने उस की बहुत खोजबीन की. रिश्तेदारी में ढूंढा. मगर कमला का कोई पता नहीं चल सका.

उसे जमीन खा गई थी या आसमान निगल गया था. थकहार कर कालू ने थाना दूनी में कमला की गुमशुदगी दर्ज करा दी. पुलिस ने उस की कोई खोजबीन नहीं की. पुलिस वालों ने कहा कि कहीं गई होगी. अपने आप आ जाएगी.

गरीब की भला कौन सुनता है. कालू बीवी की खोजबीन कर के थक गया. वह अपने तीनों बच्चों की परवरिश करने लगा. कालूलाल अब बच्चों की देखभाल करने लगा.

उस का कामधंधा छूट गया था. कालू काम पर जाए तो बच्चों की देखरेख कौन करे. इस कारण कालू अपनी बीवी के वियोग में मासूम बच्चों को जैसेतैसे पालने लगा.

उधर महावीर का जब मन होता तो वह देवली जाता और कमला के साथ रंगरलियां मनाता. वह कभी गांव तो कभी देवली में प्रेमिका कमला के साथ रातें रंगीन कर रहा था. कुछ समय बाद महावीर ने कमला को देवली से निवाई कस्बे में किराए के कमरे में शिफ्ट कर दिया.

महावीर अब निवाई में कमला के साथ मौजमस्ती करने लगा. कमरे का किराया और कमला के खानेपीने का सारा खर्च महावीर मीणा उठाता था. महावीर निवाई में 2 दिन रहता. फिर गांव ढिकलाआ जाता. गांव में 2-3 दिन रहता फिर निवाई कमला के पास चला जाता. महावीर के निवाई से वापस गांव जाने के बाद कमला अकेली रह जाती थी.

वह बमुश्किल समय अकेले काटती थी. ऐसे में कमला ने तय कर लिया कि वह अब महावीर के साथ ढिकला जा कर रहेगी. उसे अपने बच्चों की भी याद सता रही थी.

महावीर जब जनवरी के दूसरे हफ्ते में निवाई कमला से मिलने आया तब कमला ने उस से कहा कि अब वह यहां अकेली नहीं रहेगी. कमला ने दबाव बनाया कि वह अपने साथ उसे गांव ढिकला में रखे और बच्चों को भी अपनाए.

सुन कर महावीर मीणा के हाथों के तोते उड़ गए. महावीर और कमला के अवैध संबंधों की खबर उस के गांव ढिकला में भी पता चल चुकी थी. महावीर के अकसर देवली और बाद में निवाई जा कर रहने का राज गांव में उजागर हो गया था. अब कमला उस के साथ ढिकला चलने की जिद करने लगी थी. ऐसे में अब तक महावीर गांव के लोगों से कहता रहा था कि कमला के बारे में जो बातें कही जा रही हैं, वह गलत हैं. उसे तो पता तक नहीं कि कमला है कहां.

ऐसे में जब उस के साथ कमला को लोग देखेंगे तो उस की समाज और गांव में बदनामी होगी. तब महावीर ने बदनामी के डर से कमला को ही रास्ते से हटाने का निर्णय ले लिया. महावीर ने कमला को झूठा विश्वास दिलाया कि वह एकदो दिन में उसे गांव ढिकला ले जाएगा. उस की बात सुन कर कमला खुश हो गई.

महावीर ने भरनी निवासी अपने ममेरे भाई हरिराम मीणा से इस बारे में बात की और अपने पास बुलाया. इस के बाद योजनानुसार 11 जनवरी, 2021 को महावीर और हरिराम मीणा बाइक द्वारा निवाई कमला के पास पहुंचे. रात वहीं कमला के पास रुके.

अगले दिन कमरे का हिसाब वगैरह कर के कमला के साथ मोटरसाइकिल पर टोंक पहुंचे. टोंक घूमने के बाद 12 जनवरी, 2021 को चौथ का बरवाड़ा घुमाते रहे. फिर शाम हो जाने के बाद केरली कुंड आए. वहां महावीर और हरिराम ने शराब पी. इस के बाद बड़ोली के जंगल में पहुंचे और वहां एक नीम के पेड़ के नीचे बैठ गए.

वहीं पर उन्होंने मौका पा कर कमला को गला दबा कर मार डाला और उस के शव को सरसों के खेत में डाल कर ढिकला में अपने घर आधी रात को आ कर सो गए. कमला ने हरिराम के मोबाइल नंबर की परची अपनी साड़ी के पल्लू में बांध रखी थी ताकि कभी उस से बात करेगी. इसी परची ने पुलिस को हत्यारों तक पहुंचा दिया.

सरसों के खेत में कमला की लाश पड़ी रही. 12 जनवरी, 2021 की रात 11 बजे कमला की हत्या कर शव गोकुल जाट के खेत में सरसों की फसल के बीच फेंका गया था. लाश सरसों के बीच खेत में पड़ी रही. करीब एक महीने तक पड़ी यह लाश सड़गल कर कंकाल बन गई.

जब 10 फरवरी, 2021 को हत्याकांड से करीब महीने भर बाद सरसों की कटाई मजदूरों द्वारा की जा रही थी, तब उन की नजर कंकाल पर पड़ी. इस के बाद खेत मालिक गोकुल जाट ने सरपंच धनपत माली को कंकाल मिलने की खबर दी. सरपंच ने धाड़ थाने के थानाप्रभारी रामेश्वर प्रसाद को सूचना दी.

पुलिस ने पूछताछ पूरी होने पर दोनों आरोपियों महावीर मीणा और हरिराम मीणा को कोर्ट में पेश कर न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेटी ने दी बाप के कत्ल की सुपारी : भाग 1

अप्रैल के महीने में यूं तो इतनी गरमी नहीं पड़ती, लेकिन 2018 का अप्रैल महीना इस बार शुरू से ही कुछ ज्यादा गरमाने लगा था. इसीलिए जल्दी बंद होने वाले बाजार भी देर तक खुलने लगे थे. दिल्ली से मात्र 60 किलोमीटर दूर बसे उत्तर प्रदेश के शामली जिले में एक मोहल्ला है दयानंद नगर, जो शहर के सब से बड़े नाले के किनारे तंग गलियों वाला मोहल्ला है. इसी मोहल्ले में राकेश रूहेला अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी कृष्णा के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था.

राकेश दिल्ली के शाहदरा के भोलानाथ नगर स्थित बाबूराम टैक्नीकल इंस्टीट्यूट में लैब टेक्नीशियन की नौकरी करते थे. वह सुबह 7 बजे अपने घर से निकल कर करीब डेढ़ किलोमीटर दूर रेलवे स्टेशन तक पैदल जाते थे. वहां से दिल्ली जाने वाली ट्रेन में सवार हो कर वह शाहदरा रेलवे स्टेशन पर उतरते और अपने इंस्टीट्यूट पहुंचते थे. शाम को भी वह इसी तरह ड्यूटी पूरी कर घर पहुंचते थे. ये उन का लगभग रोज का रूटीन था.

7 अप्रैल, 2018 की रात भी राकेश रूहेला रोजमर्रा की तरह करीब साढ़े 9 बजे दिल्ली से अपनी ड्यूटी खत्म कर के ट्रेन से शामली पहुंचे और वहां से नाला पट्टी रोड से पैदल घर की तरफ जा रहे थे.

रात करीब पौने 10 बजे वह अपने घर की गली के मोड़ के करीब पहुंचे ही थे कि उन के पास अचानक 2 युवक तेजी से आए, उन में से एक ने उन के पास जा कर गोली चला दी.

फायर की आवाज सुन कर आसपास खुली इक्कादुक्का दुकानों पर खड़े लोगों ने जब तक पलट कर देखा तब तक राकेश लहरा कर जमीन पर गिर चुके थे और उन्हें गोली मारने वाले दोनों युवक तेजी से विपरीत दिशा की तरफ भाग रहे थे.

लोगों ने देखते ही पहचान लिया कि गोली लगने के बाद जमीन पर खून से लथपथ पड़ा व्यक्ति राकेश रूहेला है. गली के नुक्कड़ पर ही किराने की दुकान चलाने वाला शैलेंद्र कुछ लोगों की मदद से जख्मी राकेश को एक टैंपो में लाद कर जिला अस्पताल ले गया. कुछ लोगों ने तब तक राकेश के घर जा कर इस बात की सूचना दे दी कि किसी ने राकेश पर गोली चलाई है.

मौत पर पत्नी और बेटी का नाटक

इस के बाद उन के घर में कोहराम मच गया. राकेश की पत्नी कृष्णा और बेटा तत्काल आसपड़ोस के लोगों को साथ ले कर सरकारी अस्पताल पहुंच गए. कृष्णा ने 3 नंबर गली में रहने वाले अपने देवर मुकेश को फोन कर के सारी बात बताई और जल्दी से सरकारी अस्पताल पहुंचने के लिए कहा. सरकारी अस्पताल पहुंचने के बाद घर वालों को डाक्टरों ने बताया कि राकेश की रास्ते में ही मौत हो चुकी थी.

पति की मौत की खबर सुनते ही कृष्णा का विलाप शुरू हो गया. मुकेश कुछ लोगों को साथ ले कर शामली कोतवाली पहुंचा, उस वक्त तक रात के करीब 11 बज चुके थे. थाने में मौजूद एसएसआई रफी परवेज को उस ने भाई की हत्या की जानकारी दी.

उस वक्त थानाप्रभारी अवनीश गौतम क्षेत्र की गश्त पर निकले हुए थे. जैसे ही थानाप्रभारी को इस घटना की खबर मिली तो उन्होंने एसएसआई को शिकायत की तहरीर ले कर मुकदमा दर्ज कराने और पुलिस दल के साथ सरकारी अस्पताल पहुंचने के निर्देश दिए.

राकेश का शव अस्पताल में ही रखा हुआ था. एसएसआई रफी परवेज ने मुकेश से ली गई तहरीर के आधार पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

इस के बाद वह एसआई सत्यनारायण दहिया, महिला एसआई नीमा गौतम, कांस्टेबल प्रताप व अन्य स्टाफ को साथ ले कर सरकारी अस्पताल पहुंच गए. तब तक थानाप्रभारी अवनीश गौतम भी वहां पहुंच गए.

घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को भी दे दी गई थी. इसलिए सूचना मिलने के बाद सीओ (सिटी) अशोक कुमार सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस के सभी अधिकारियों ने मृतक के परिवार वालों के अलावा राकेश को अस्पताल लाने वाले शैलेंद्र से राकेश पर हमला करने वालों और घटनाक्रम के बारे में पूछताछ की. लेकिन न तो किसी ने ये बताया कि वे हमलावरों को पहचानते हैं, न ही परिजनों ने किसी पर हत्या का शक जताया.

हां, इतना जरूर पता चला कि मृतक अपने औफिस के लोगों और जानपहचान वालों के साथ मिल कर महीने की कमेटी डालने का काम करता था. अकसर उस के पास कमेटी की रकम होती थी.

परिजनों ने आशंका जताई कि कहीं राकेश को किसी ने लूटपाट के उद्देश्य से तो गोली नहीं मार दी. मगर घटनास्थल पर बतौर चश्मदीद शैलेंद्र व अन्य लोगों से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि गोली चलने के तुरंत बाद हमलावर तेजी से भाग गए थे. उन्होंने राकेश से किसी तरह की छीनाझपटी होते नहीं देखी.

पुलिस को भी चश्मदीदों की बात में सच्चाई दिखी, क्योंकि राकेश की जेब में रुपयों से भरा पर्स, अंगुली में सोने की अंगूठी, कलाई में घड़ी और हाथ में लिया बैग एकदम सहीसलामत थे. रात बहुत अधिक हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

अगले दिन सीओ (सिटी) और थानाप्रभारी ने जांच अधिकारी रफी परवेज के साथ बैठ कर जब पूरे घटनाक्रम पर विचार करना शुरू किया तो उन्हें लगा कि मामला उतना सीधा नहीं है, जितना दिखाई पड़ रहा है.

क्योंकि अगर बदमाशों को लूटपाट या छीनाझपटी करने के लिए राकेश को गोली मारनी होती तो वे किसी सुनसान जगह को चुनते न कि उस के घर के पास ऐसी जगह को, जहां लोगों की काफी आवाजाही थी.

पुलिस को बेलने पड़े पापड़

पुलिस को लगा कि या तो हत्या किसी रंजिश के कारण की गई है या फिर किसी ऐसे कारण से जो फिलहाल पुलिस की नजरों से छिपा है. थानाप्रभारी एक बार फिर राकेश रूहेला के घर पहुंचे. उन्होंने राकेश की पत्नी, उन की दोनों बेटियों, बेटे और भाई मुकेश से पूछताछ की.

किसी ने भी राकेश की हत्या के लिए न तो किसी पर शक जाहिर किया और न ही किसी से रंजिश की बात बताई. सीओ (सिटी) अशोक कुमार सिंह ने क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर धर्मेंद्र पंवार को भी बुला कर अपराध की इस गुत्थी को सुलझाने के काम पर लगा दिया.

राकेश की हत्या के अगले दिन पुलिस का सारा वक्त घर वालों और जानपहचान वालों से पूछताछ में लग गया. दोपहर बाद पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद राकेश का शव घर वालों को सौंप दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि राकेश की मौत सिर में गोली लगने से हुई थी और गोली करीब डेढ़ फुट की दूरी से मारी गई थी, जिस का मतलब था कि हत्यारे राकेश की हत्या करना चाहते थे.

हसबैंड बनाम बौयफ्रैंड : सबक सिखाने के लिए रची साजिश – भाग 1

35 वर्षीया संगीता ने कभी सपने में भी यह सब नहीं सोचा था, जो अब उसे हासिल था. मांसल सौंदर्य की मालकिन संगीता मामूली खातेपीते परिवार की युवती थी. शादी से पहले वह जबलपुर के एक अस्पताल में रिसैप्शनिस्ट थी. सपने देखना गुनाह नहीं होता, इसलिए वह धनाढ्य ससुराल और रईस पति के ख्वाब देख लेने में कोई संकोच नहीं करती थी. एक दिन करिश्माई तरीके से उस की यह हसरत पूरी हो गई थी. उसे लगा कि कहने वाले गलत नहीं कहते कि जिंदगी में कभीकभी चमत्कार भी होते हैं. अब से कोई 13 साल पहले अस्पताल में एक खूबसूरत नौजवान मरीज इलाज के लिए आया था, ज स का नाम था रंजन ग्रोवर. वह 8 दिनों तक अस्पताल में भरती रहा. इस दौरान उस की तन की बीमारी तो ठीक हो गई, लेकिन मन का रोग प्यार लग गया.रंजन को संगीता से प्यार हो गया था. संगीता भी उसे चाहने लगी थी. पहले प्यार, उस के बाद इजहार हुआ तो शादी होने में देर नहीं लगी. रंजन ने संगीता को पाने के लिए किसी की भी परवाह नहीं की और इस बात को साबित कर दिखाया कि प्यार जातिपांत, ऊंचनीच कुछ नहीं देखता. संगीता के लिए रंजन का प्यार और शादी किसी सपने से कम नहीं थी.

कटनी के खानदानी कारोबारी करोड़पति रंजन ग्रोवर ने जब संगीता को जीवनसंगिनी के रूप में चुना तो उस की तो मानो जिंदगी ही बदल गई. उस का नाम भी बदल कर संगीता ग्रोवर हो गया. जबलपुर के प्रेमनगर के साधारण मकान में रहने वाली संगीता कटनी स्थित अपनी ससुराल के महल जैसे मकान में आई तो मैडम और मालकिन कहने वाले नौकरों की कतार लगी थी.

महाकौशल इलाके के तमाम पैसे वाले लोग इस शानदार शादी में शरीक हुए थे, जिन के लाए महंगे तोहफे देख कर ही संगीता की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. जिस जिंदगी और दुनिया के बारे में उस ने फिल्मों और टीवी सीरियलों में देखा था, उस का हिस्सा बन कर वह अपनी किस्मत पर इतरा रही थी.

मध्यवर्गीय युवती खूबसूरत होने के साथसाथ महत्वाकांक्षी भी हो तो सोने पे सुहागा वाली कहावत को चरितार्थ करने वाली बात होती है. लेकिन कई बार यह बात नीम चढ़े करेले वाली भी साबित होती है. अभावों की जिंदगी से भाव की जिंदगी और दुनिया में आ कर उस से तालमेल बैठा पाना एकदम से आसान काम नहीं होता.

तमाम ऐशोआराम हों, लेकिन पति का प्यार और साथ धीरेधीरे छूटने लगे तो हालत पानी में रहने वाली प्यासी मछली की तरह हो जाती है. यही बीते 10 सालों से संगीता के साथ हो रहा था. जिस ने एकएक कर के 2 बेटों को जन्म दिया था, पर जाने कब और कैसे पति बेगाना होता गया, इस का उसे पता ही नहीं चला.

रंजन की रहनसहन की अपनी एक अलग स्टाइल थी. वह वर्जनाओं में जीने वाला युवक नहीं था. चूने की खदानों के लिए मशहूर महाकौशल इलाके के कटनी जिले के करोड़पति कारोबारियों की अपनी एक अलग दुनिया है, जिस में वे खुल कर जाम छलकाते हैं और देश की नीतियोंरीतियों पर बहस करते हैं.

वे अपने कारोबार की समीक्षा करते हैं और परेशान करने वाले अधिकारियों और नेताओं को सबक सिखाने के तौरतरीकों पर विचार करते हैं और फिर रात होतेहोते नशे में लड़खड़ाते लुढ़कने लगते हैं. पत्नी और नौकरों के सहारे वे कब घर पहुंच कर बिस्तर में घुस जाते हैं, इस का अहसास या अंदाजा उन्हें नहीं होता.

धनाढ्य वर्ग की जिंदगी के इस रंगीन पहलू का अपना एक अलग सच और वजह है, जो अलगअलग शहरों और इलाकों में अलगअलग तरीके से देखने में आता है. संगीता को शुरूशुरू में यह अच्छा लगा था, क्योंकि वह ऐसी ही किसी जिंदगी के ख्वाब देखती थी, जिस में सब कुछ हो.

सब कुछ हो, पर शर्त यह थी कि पति ऐसा न हो. संगीता ने कभी ऐसा नहीं सोचा था. मध्यमवर्गीय सपने और संस्कार ऐसी 2 समानांतर रेखाएं होती हैं, जो कभी कहीं जा कर नहीं मिलतीं. जिंदगी की यह ज्योमेट्री जब हकीकत में बदलने लगी तो संगीता घबरा उठी. दोनों बेटे अब बडे़ हो गए थे. लेकिन इतने बड़े भी नहीं कि बगैर मां के रह पाएं. रुद्राक्ष अभी 12 साल का था तो शिवांग 10 साल का.

बीते 3-4 सालों से संगीता को लग रहा था कि रंजन उस से दूर होने लगा है और पहले सा प्यार नहीं करता. अगर कारोबार के सिरदर्द इस की वजह होते तो पहले भी थे, पर तब तो रंजन बड़े रोमांटिक तरीके से पेश आता था. वजहें कुछ और थीं, जिस से संबंधों में पहले सी गर्माहट नहीं रह गई थी और दांपत्य दरकने लगा था.

अब संगीता को रहरह कर नौसिखिया आशिक रंजन याद आता था, जो अस्पताल में भरती रह कर उस की नजदीकियां पाने के मौके ढूंढा करता था. उसे इंप्रेस करने के लिए नएनए तरीके इस्तेमाल किया करता था. बड़ा और आलीशान मकान अब संगीता को सोने का पिंजरा लगने लगा था. अपने भीतर आते खालीपन से लड़ने में खुद को वह असमर्थ पा रही थी.

पति था, लेकिन कहने भर को था. भावनात्मक रूप से तो वह कब का उस से दूर हो चुका था. दिल में उमड़तीघुमड़ती बातें, जिन्हें भड़ास कहना बेहतर होगा को संगीता किसी के साथ शेयर करना चाहती थी, पर अब सुनने वाला कोई नहीं था. और जो सहेलियां थीं, उन में से अधिकांश इसी हालत का शिकार थीं और उन्होंने हालातों से समझौता कर लिया था.

संगीता को शक ही नहीं, बल्कि यकीन हो चला था कि रंजन भी दूसरे रईसजादों की तरह जिंदगी की राह भटक चुका है. शराब को एक बार सोसाइटी ड्रिंक मान भी लिया जाए, पर वह तो कालगर्ल्स के पास जाने लगा था. यह सोचते ही संगीता के तनबदन में आग लग जाती थी. शायद यह उस की खूबसूरती की अनदेखी और बेइज्जती थी कि पति इतनी सुंदर पत्नी के होते यहांवहां मुंह मारता फिरे.

दरोगा की कातिल पत्नी : मां-बेटी बने पिता के कातिल – भाग 1

रविवार 24 जून, 2018 की सुबह करीब 9 बजे का वक्त था. उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के रहने वाले शरीफुद्दीन और बाबू मियां जलालनगर मोहल्ले के बगल से गुजरने वाले नाले के किनारे होते हुए पैदल ही बस अड्डे की तरफ जा रहे थे. अचानक शरीफुद्दीन की नजर नाले में गिरी पड़ी एक मोटरसाइकिल पर पड़ी, जिस का कुछ हिस्सा नाले के पानी के ऊपर था. यह देखते ही शरीफुद्दीन बोला, ‘‘अरे बाबू भाई, लगता है कोई आदमी नाले में गिर गया है. उस की बाइक यहीं से दिख रही है.’’

शरीफुद्दीन की बात पर बाबू ने जब नाले की तरफ देखा तो वह चौंकते हुए बोला, ‘‘हां शरीफ भाई, लग तो रहा है… चलो चल कर देखते हैं.’’

इस के बाद वह दोनों तेजी से कदम बढ़ाते हुए उधर ही पहुंच गए जहां मोटरसाइकिल पड़ी थी. उन्होंने देखा कि वहां न सिर्फ मोटरसाइकिल थी बल्कि चंद कदम की दूरी पर एक आदमी भी औंधे मुंह पड़ा हुआ था.

ऐसा लग रहा था कि या तो वह शराब के नशे में बाइक समेत नाले में जा गिरा या किसी चीज से टकरा कर वह बाइक समेत नाले में गिर गया है. वह दोनों उस व्यक्ति के करीब पहुंच गए, उस व्यक्ति के शरीर के ऊपर का कुछ भाग नाले के किनारे पर था. उस के सिर से खून बह कर जम गया था. वह व्यक्ति कौन है जानने के लिए दोनों ने जैसे ही उसे पलट कर देखा तो बाबू के मुंह से चीख निकल गई, ‘‘अरे बाप रे, ये तो अपने दरोगाजी भौंदे खान हैं.’’

दरोगा भौंदे खान उर्फ मेहरबान अली उन्हीं के मोहल्ले में रहते थे.

‘‘चल, इन के घर जा कर खबर करते हैं.’’ बाबू ने अपने साथी से कहा और उल्टे पांव अपने मोहल्ले की तरफ चल दिए.

वहां से बमुश्किल 400 मीटर की दूरी पर एमनजई जलालनगर मोहल्ला था. उस मोहल्ले में घुसते ही 20 कदम की दूरी पर दरोगा मेहरबान अली उर्फ भौंदे खान का घर था. चेहरे पर उड़ती हवाइयों के बीच दरोगाजी के घर पहुंचे तो घर के बाहर ही उन्हें दरोगाजी का दामाद अनीस मिल गया. दरोगाजी अपने दामाद के साथ ही रहते थे. शरीफुद्दीन और बाबू मियां ने एक ही सांस में अनीस को बता दिया कि उस के ससुर दरोगाजी अपनी मोटरसाइकिल के साथ नाले में गिरे पड़े हैं.

यह सुनते ही अनीस ने दौड़ कर अपने घर में अपनी सास जाहिदा, पत्नी और सालियों को ये बात बताई. जैसे ही परिवार वालों को भौंदे खान के नाले में गिरने की बात पता चली तो पूरे घर में जैसे कोहराम मच गया. उन की पत्नी जाहिदा और घर में मौजूद तीनों बेटियां अनीस के साथ नाले के उसी हिस्से की तरफ दौड़ पड़ीं, जहां उन के गिरे होने की जानकारी मिली थी. मोहल्ले के अनेक लोग भी उन के साथ हो लिए.

मरने वाला निकला दरोगा भौंदे खान

जाहिदा ने अपने पति को काफी हिलायाडुलाया लेकिन खून से लथपथ पति के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई तो कुछ लोगों ने उन की नब्ज टटोली तब पता चला कि उन की मौत हो चुकी है. इस के बाद तो जाहिदा और उन की बेटियां छाती पीटपीट कर रोने लगीं. थोड़ी ही देर में घटनास्थल पर लोगों का हुजूम लग गया. अनीस ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के दरोगा मेहरबान अली का शव नाले में मिलने की सूचना दे दी.

यह इलाका सदर कोतवाली क्षेत्र में पड़ता था. मामला चूंकि विभाग के ही एक सबइंसपेक्टर की मौत से संबंधित था, इसलिए सूचना मिलते ही सदर कोतवाली थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा तथा एसएसआई रामनरेश यादव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी ने जब मेहरबान अली के शव को नाले से बाहर निकलवा कर बारीकी से उस की पड़ताल की तो पहली ही नजर में मामला दुर्घटना का नजर आया.

ऐसा लग रहा था कि नाले में गिरने पर सिर में लगी चोट के कारण शायद उन की मौत हो गई है. सूचना मिलने पर एसपी का प्रभार देख रहे एसपी (ग्रामीण) सुभाष चंद्र शाक्य, एसपी (सिटी) दिनेश त्रिपाठी और सीओ (सदर) सुमित शुक्ला भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया. फोरैंसिक टीम ने भी वहां पहुंच कर सबूत जुटाए. घटना की सूचना आईजी और डीआईजी तक पहुंच गई थी लिहाजा अगले 2 घंटे में पुलिस के ये आला अफसर भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. अगले दिन दरोगा मेहरबान अली के शव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उसे पढ़ कर पुलिस भी हैरान रह गई. क्योंकि उस में बताया गया कि उन की मौत दुर्घटना के कारण नहीं हुई थी बल्कि उन की हत्या की गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि सिर में दाहिनी तरफ चोट लगने के अलावा इस तरह की चोट थी, जैसे किसी ने कई बार भारीभरकम चीज से सिर पर चोट पहुंचाई हो. साथ ही गला भी दबाया गया था. उन की गरदन पर बाकायदा कुछ लोगों की अंगुलियों के निशान थे, मानो उन का गला दबाने की कोशिश भी की गई हो.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट सीधे तौर पर उन की हत्या की ओर इशारा कर रही थी. मृतक दरोगाजी के परिवार वालों से जब पूछा कि उन्हें किसी पर हत्या करने का शक है तो उन्होंने किसी पर शक नहीं जताया. लेकिन उन के दामाद अनीस ने सदर कोतवाली में तहरीर दे कर अज्ञात लोगों के खिलाफ उन की हत्या करने की शिकायत दर्ज करा दी.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा ने जांच अपने हाथ में ले ली. अनीस ने थानाप्रभारी को बताया कि एक दिन पहले शनिवार को भौंदे खान दोपहर करीब साढ़े 11 बजे खाना खा कर मोटसाइकिल ले कर ड्यूटी के लिए गए थे.

पुलिस ने की दरोगा के घर वालों से पूछताछ

वह ड्यूटी से रात 8 बजे तक घर लौटने वाले थे. लेकिन 11 बजे तक भी वह नहीं लौटे तो घर वालों को चिंता होने लगी तब साजिदा ने वायरलैस कंट्रोल रूम में फोन कर के पूछा तो पता चला कि मेहरबान अली तो उस दिन ड्यटी पर पहुंचे ही नहीं थे.

जाहिदा जानती थी कि उस के पति कभीकभी दोस्तों के साथ शराब की पार्टी में बैठ जाते हैं. ऐसे में वह कभीकभी ड्यटी पर भी नहीं जाते थे और देर रात तक घर लौटते थे. उस ने सोचा कि हो सकता है आज भी वह कहीं ऐसी ही किसी पार्टी में शामिल हो गए होंगे और सुबह तक आ जाएंगे. यह सोच कर जाहिदा सो गई.

इज्जत के कबाड़ की गोली : क्यों पड़ी कामिनी के परिवार पर भारी

11सितंबर, 2020 की बात है. प्रशांत के घर उस के ससुर विनोद गौतम, उन का छोटा भाई महावीर सिंह और

बेटा रविकांत गौतम आए हुए थे. प्रशांत और उस के घर वालों ने उन की खूब खातिरदारी की. दरअसल, प्रशांत कुमार ने हाल ही में विनोद गौतम की बेटी कामिनी के साथ शादी की थी.

रात का खाना खाने के बाद प्रशांत के पिता रामऔतार अपने इन नए रिश्तेदारों के साथ बातचीत कर रहे थे. तभी विनोद गौतम के कहने पर रामऔतार ने बेटे प्रशांत और बहू कामिनी को बुलाया. उन दोनों को देख विनोद गौतम आपे से बाहर हो गया और उस ने दोनों को गोली मार दी. कामिनी लहूलुहान हो कर फर्श पर गिर गए. गोलियां चलते ही घर में अफरातफरी का माहौल हो गया. घर के लोगों ने रोनापीटना शुरू कर दिया.

रात 10 बजे गोलियों की आवाज गूंजी तो आसपास के लोगों ने सुनी. गांव वाले रामऔतार सिंह के घर की तरफ दौड़े. कोई समझ नहीं पा रहा था कि अचानक ऐसा क्या हो गया, जो गोली चल गई.  लोग जब घर में पहुंचे तो वहां की स्थिति दिमाग को सुन्न कर देने वाली थी.

लोगों के आने से पहले ही विनोद गौतम, उस का छोटा भाई महावीर सिंह और बेटा रविकांत गौतम वहां से भाग चुके थे. घर में खून ही खून फैला था. रामऔतार के बेटे प्रशांत और बहू कामिनी फर्श पर पड़े तड़प रहे थे. उन दोनों को देख यह बात सहज ही समझ आ रही थी कि उन दोनों को गोलियां लगी हैं.

इस की सूचना थाना टांडा को दे दी गई. थानाप्रभारी माधव सिंह बिष्ट पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. सब से पहले उन्होंने घायल कामिनी और प्रशांत को अपनी गाड़ी में डाला और इलाज के लिए रामपुर के जिला अस्पताल ले गए.

इस दौरान रामऔतार ने थानाप्रभारी को बता दिया था कि दोनों को गोली कामिनी के पिता विनोद गौतम ने मारी थी. वजह यह कि कुछ दिन पहले कामिनी ने अपने घर वालों को बिना बताए उन के बेटे प्रशांत से कोर्टमैरिज की थी.

थानाप्रभारी माधव सिंह बिष्ट विनोद गौतम को अच्छी तरह जानते थे, क्योंकि वह बहुजन समाज पार्टी का ऊधमसिंह नगर जिले का जिला अध्यक्ष था. नेता होने की वजह से आए दिन अखबारों में उस का नाम आता रहता था. विनोद कुमार गौतम मामूली इंसान नहीं था. राजनीति में उस की ऊंची पहुंच थी.

थानाप्रभारी ने यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना मिलने के कुछ देर बाद ही रामपुर के एसपी शगुन गौतम जिला अस्पताल पहुंच गए. एसपी साहब ने दोनों घायलों का इलाज करने वाले डाक्टरों से बातचीत की. डाक्टरों ने बताया कि दोनों की हालत गंभीर है.

मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए एसपी गौतम ने इस की सूचना आईजी रमित शर्मा को दे दी. उन्होंने एसपी गौतम को स्पष्ट निर्देश दिए कि हमलावर चाहे कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, उस के खिलाफ तुरंत कड़ी काररवाई की जाए.

उधर प्रशांत कुमार और कामिनी की गंभीर हालत को देखते हुए डाक्टरों ने दोनों को मुरादाबाद के कौसमौस अस्पताल रेफर कर दिया. कौसमौस अस्पताल के डा. अनुराग अग्रवाल के नेतृत्व में डाक्टरों की एक टीम ने दोनों घायलों का इलाज शुरू कर दिया. प्रशांत को 2 गोलियां लगी थीं, जो उस के शरीर में फंसी हुई थीं. डाक्टरों की टीम ने उस के शरीर से दोनों गोलियां सफलतापूर्वक निकाल दीं.

एसपी शगुन कुमार गौतम ने आईजी साहब के निर्देश पर इस मामले को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी माधव सिंह बिष्ट और अजीमनगर के थानाप्रभारी सुभाष मावी को शामिल किया.

पुलिस टीम ने आरोपियों की तलाश शुरू कर दी. सभी आरोपी काशीपुर के निकटवर्ती गांव पैगा के रहने वाले थे. पुलिस टीम ने 13 सितंबर, 2020 को उन के घर दबिश दे कर तीनों अभियुक्तों विनोद गौतम, उस के छोटे भाई महावीर सिंह और बेटे रविकांत गौतम को गिरफ्तार कर लिया.पुलिस ने विनोद गौतम की निशानदेही पर उस की लाइसैंसी पिस्टल भी बरामद कर ली, जिस से जानलेवा हमला किया था.

तीनों से व्यापक पूछताछ की गई. पुलिस पूछताछ के बाद इस मामले की जो कहानी सामने आई, वह प्यार की बुनियाद पर टिकी थी.

रामपुर जिले का एक गांव है सैदनगर. रामऔतार सिंह अपने 5 बच्चों के साथ इसी गांव में रहते थे. उन के 2 बेटे और 3 बेटियां थीं. प्रशांत कुमार उन का सब से बड़ा बेटा था. उस के चाचा कुंवरपाल सिंह की ससुराल काशीपुर में थी.

प्रशांत काशीपुर में रह कर पढ़ाई कर रहा था. काशीपुर में ही एक शादी समारोह में प्रशांत की मुलाकात कामिनी से हुई. कामिनी काशीपुर के गांव पैगा के रहने वाले विनोद गौतम की बेटी थी.

विनोद गौतम के 4 बेटियां और एक बेटा था, जिस में कामिनी सब से बड़ी थी. कामिनी भी काशीपुर के एक कालेज से पढ़ाई कर रही थी. कामिनी और प्रशांत दूर के रिश्तेदार थे. शादी समारोह में दोनों एकदूसरे को देख कर बहुत प्रभावित हुए. दोनों में आपस में काफी बातें हुईं. दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर भी  दे दिए. यह करीब 2 साल पहले की बात है.

इस के बाद दोनों फोन पर बातचीत करने लगे. जब भी खाली होते, दोनों के बीच खूब बातें होतीं. धीरेधीरे बातों का दायरा बढ़ता चला गया और उन के दिलों में प्यार के अंकुर फूट निकले. चाहतों की उड़ान में दोनों यह भी भूल गए कि वे आपस में रिश्तेदार हैं.

प्रशांत चाहता था कि वह आईएएस  अफसर बने, इसलिए उस ने ठाकुरद्वारा कस्बे की नालंदा आईएएस अकैडमी में कोचिंग करनी शुरू कर दी. उधर कामिनी काशीपुर के एक कालेज से बीए कर रही थी.

इसी दौरान प्रशांत का चयन उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल के पद पर हो गया. प्रशांत ने सोचा कि नौकरी करते हुए अपनी सिविल सर्विस की तैयारी जारी रखेगा. पुलिस में चयन हो जाने के बाद उसे ट्रेनिंग के लिए मेरठ भेज दिया गया.

प्रशांत की नौकरी लग जाने के बाद कामिनी बहुत खुश हुई. दोनों के बीच पहले की तरह ही बातचीत चलती रही. इस बातचीत में तय हुआ कि प्रशांत की पुलिस ट्रेनिंग पूरी हो जाने के बाद दोनों शादी कर लेंगे.

कामिनी ने प्रशांत को बताया कि उस के पिता दबंग प्रवृत्ति के हैं, इसलिए यह शादी हरगिज नहीं होने देंगे. इस पर दोनों तय किया कि घर वालों को बिना बताए कोर्टमैरिज कर लेंगे.

ट्रेनिंग पूरी हो जाने के बाद प्रशांत की पहली पोस्टिंग बरेली स्थित पीएसी की 8वीं बटालियन में हो गई. 28 अगस्त, 2020 को प्रशांत छुट्टी ले कर अपने घर आया. इसी दौरान प्रशांत और कामिनी ने रामपुर की कोर्ट में शादी कर ली.

घटना से 4 दिन पहले की बात है, कामिनी अपने घर वालों को बिना बताए प्रशांत के घर यानी अपनी ससुराल पहुंच गई. घर से कामिनी के अचानक गायब हो जाने के बाद घर वाले परेशान हो गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि कामिनी अचानक कहां गायब हो गई. उन्होंने उसे अपने स्तर पर ढूंढना शुरू कर दिया, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

जवान बेटी के घर से गायब हो जाने पर जो उस के मातापिता पर गुजरती है, उसे भुक्तभोगी ही समझ सकता है. विनोद गौतम का भी बुरा हाल था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि बेटी को कहां ढूंढे.

विनोद गौतम के एक रिश्तेदार सैदनगर में रहते थे. विनोद गौतम ने अपने रिश्तेदार से कामिनी के गायब होने के बारे में बात की. इस पर रिश्तेदार ने बताया कि कामिनी तो यहां प्रशांत के घर आई हुई है. साथ ही यह भी बता दिया कि शायद कामिनी और प्रशांत ने शादी कर ली है.

यह सुन कर विनोद गौतम के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. वह दबंग किस्म का व्यक्ति था. राजनीति में भी उस का काफी प्रभाव था. जब लोगों को यह बात पता चलेगी तो उस की समाज में क्या इज्जत रह जाएगी, यह सोचसोच कर वह परेशान था.

काफी सोचविचार के बाद विनोद गौतम ने 9 सितंबर को प्रशांत कुमार के पिता रामऔतार सिंह को फोन किया. उस ने रामऔतार से अपनी बेटी कामिनी के बारे में पूछा. उन्होंने बता दिया कि प्रशांत और कामिनी ने कोर्ट में शादी कर ली है. इस की खबर उन्हें भी शादी के बाद ही मिली.

यह सुन कर गौतम कुछ ज्यादा ही परेशान हो गया. उस ने गंभीर लहजे में रामऔतार से कहा कि तुम्हारे लड़के ने अच्छा नहीं किया. उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था. कम से कम रिश्तेदारी का तो लिहाज रखता. इस पर रामऔतार ने कहा कि यह जानकारी उन्हें बाद में मिली. अगर पहले पता होता तो वह उसे समझाते भी. वैसे भी दोनों बालिग हैं, इस में हम क्या कर सकते हैं. विनोद कुमार गौतम खून का घूंट पी कर रह गया.

उधर ससुराल में कामिनी खुश थी. ऐसे में विनोद गौतम की समझ में नहीं आ रहा कि क्या करे, क्योंकि बात उस की इज्जत से जुड़ी थी. काफी सोचविचार के बाद 9 सितंबर, 2020 को गौतम ने प्रशांत के पिता रामऔतार को फोन कर के कहा कि जो हो गया उसे छोड़ो.

हम चाहते हैं कि दोनों की शादी सामाजिक रीतिरिवाज से कर दी जाए. इस सिलसिले में बात करने के लिए हम सैदनगर आ रहे हैं. अपने साथ गांव के कुछ लोगों को भी लाएंगे, आप भी गांव के कुछ संभ्रांत लोगों को इकट्ठा कर लेना,  फिर इस बारे में बातचीत कर ली जाएगी.

विनोद गौतम अपने कई परिचितों और कुछ करीबियों को साथ ले कर तय समय पर सैदनगर पहुंच गया. उधर रामऔतार ने भी गांव के कुछ लोगों को इकट्ठा कर लिया था. सब लोग साथ बैठे और पंचायत शुरू हो गई.

पंचायत में विनोद गौतम ने अपनी इज्जत का वास्ता देते हुए कहा कि देखो गांव और समाज में हमारी बहुत बदनामी हो रही है. आप से अनुरोध है कि आप मेरी बेटी कामिनी को मेरे साथ घर भेज दें. इस पर रामऔतार सिंह ने साफ मना करते हुए कहा कि वह अपनी बहू को अभी नहीं भेजेंगे. फलस्वरूप विनोद गौतम मुंह लटका कर लौट गया.

10 सितंबर, 2020 को भी विनोद गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर फिर सैदनगर पहुंचा. इस बार भी उस ने कामिनी को साथ भेजने की बात कही, लेकिन कामिनी ने पिता से मना कर दिया कि वह अभी उन के साथ नहीं जाएगी.

विनोद गौतम को यह उम्मीद नहीं थी कि बेटी इतनी बदल जाएगी. वह उसे जबरदस्ती तो घर ले जा नहीं सकता था, इसलिए उस ने कामिनी को समझाने की काफी कोशिश की, पर कामिनी नहीं मानी. रामऔतार सिंह ने भी कह दिया कि जब बेटी जाने से मना कर रही है तो आप उसे फिर कभी ले जाना. इस बार भी विनोद गौतम को खाली हाथ लौटना पड़ा.

लेकिन वह हार मानने वालों में से नहीं था. वह चाहता था कि किसी भी तरह एक बार कामिनी उस के साथ घर पहुंच जाए, इस के बाद क्या करना है, वह तय करेगा. लिहाजा वह बेटी को घर लाने के उपाय सोचने लगा.

11 सितंबर, 2020 को भी विनोद गौतम अपने भाई महावीर सिंह और बेटे रविकांत के साथ फिर सैदनगर पहुंचा. चूंकि विनोद गौतम रामऔतार का नजदीकी रिश्तेदार बन चुका था, लिहाजा उन्होंने उन सब की खातिरदारी की.

रात का खाना खाने के बाद गौतम ने उन से कहा कि मेरी बात पर विश्वास करो. मैं कामिनी को घर ले जाना चाहता हूं और इस के बाद दोनों की शादी धूमधाम से करूंगा. अगर कामिनी घर चली जाएगी तो कम से कम समाज में मेरी इज्जत तो बनी रहेगी.

इस बार रामऔतार ने कहा कि हमारी तरफ से कोई रोक नहीं है. हम अपनी बहू को भेजने से मना नहीं कर रहे, पर आप सीधे उस से बात कर लें तो ज्यादा अच्छा है. अगर वह जाना चाहती है तो हमें कोई एतराज नहीं होगा. रामऔतार ने बात करने के लिए बहू कामिनी को कमरे में बुलाया.

कामिनी पति प्रशांत के साथ कमरे में आई तो वहां पहुंचते ही सब से पहले उस ने वहां बैठे अपने ससुर रामऔतार के पैर छुए. प्रशांत का चेहरा देखते ही गौतम का खून खौल उठा, लेकिन उस समय उस ने खुद पर कंट्रोल रखा.

विनोद कुमार गौतम ने कामिनी से बात की और उस से घर चलने को कहा. उस समय रात के करीब 10 बज रहे थे. पिता की बातों पर कामिनी का दिल पसीज भी गया. लेकिन उस ने कहा कि पापा अब तो रात ज्यादा हो गई है, सुबह मैं आप के साथ चलूंगी.

लेकिन गौतम अपनी जिद पर अड़ा हुआ था. वह कामिनी पर उसी समय साथ चलने के लिए दबाव डाल रहा था, पर कामिनी पिता के साथ रात में जाने को तैयार नहीं थी. वह बारबार कह रही थी कि अभी नहीं, सुबह चलेंगे.

प्रशांत और कामिनी विनोद गौतम के सामने खड़े थे. प्रशांत का चेहरा देख कर गौतम का धैर्य जवाब दे गया. उस के दिमाग में एक ही बात घूम रही थी कि यह सब प्रशांत की वजह से ही हो रहा है, इसी के कारण समाज में उस की नाक कटी है, बदनामी हो रही है.

लिहाजा गुस्से में आगबबूला हुए विनोद गौतम ने अपनी अंटी से लाइसैंसी पिस्तौल निकाली और प्रशांत पर निशाना साधते हुए कई फायर किए. इन में से 2 गोलियां प्रशांत के लगीं और एक गोली कामिनी को. गोली लगते ही प्रशांत और कामिनी फर्श पर गिर पड़े.

कुछ ही पलों में फर्श पर खून फैल गया. अचानक मची अफरातफरी में मौके का फायदा उठा कर विनोद गौतम, उस का छोटा भाई महावीर सिंह और बेटा रविकांत गौतम वहां से भाग गए. जाते वक्त वे अपनी वैगनआर कार नंबर यूके06 पी7349 वहीं छोड़ गए.

बेटा और बहू को लहूलुहान हालत में देख कर रामऔतार के घर में चीखपुकार मचनी शुरू हो गई. उधर गोलियां चलने की आवाज सुन कर मोहल्ले वाले भी रामऔतार के घर पहुंच गए. उसी दौरान रामऔतार ने इस की सूचना थाना टांडा में दे दी.

सूचना पा कर थानाप्रभारी माधोसिंह बिष्ट कुछ ही देर में घटनास्थल पर पहुंच गए और काररवाई शुरू की.

तीनों आरोपियों विनोद कुमार गौतम, महावीर सिंह और रविकांत से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

विनोद कुमार गौतम के जेल जाने के बाद बसपा हाईकमान ने उसे पार्टी से निष्कासित कर दिया. इस के अलावा जिला प्रशासन ने  उस के लाइसैंसी पिस्टल का लाइसैंस निरस्त करने की काररवाई शुरू कर दी.

कथा लिखने तक गंभीर रूप से घायल प्रशांत कुमार और उस की पत्नी कामिनी का मुरादाबाद के कौसमौस अस्पताल में इलाज चल रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित