पूरी न हुई ख्वाहिश

उत्तर प्रदेश के लखनऊ के रहने वाले रीतेश का अपना छोटा सा टेंट का कारोबार था. जिस के  लिए उस ने अपने 3 मंजिला मकान के नीचे वाले हिस्से में गोदाम बना रखा था. पहली मंजिल पर पत्नी स्मिता और 6 साल के बेटे यथार्थ के साथ वह खुद रहता था तो दूसरी मंजिल उस ने किराए पर उठा रखी थी, जिस में मझोले अपनी पत्नी शारदा के साथ रहता था. वह भी छोटामोटा काम कर के गुजरबसर कर रहा था.

रीतेश की पत्नी स्मिता कानपुर के मूलगंज स्थित नौगढ़ खोयामंडी की रहने वाली थी. उस ने कानपुर विश्वविद्यालय से बीए किया था. उस के अलावा उस की 2 बहने और 2 भाई थे. सभी की शादियां हो चुकी थीं. स्मिता सब से छोटी थी, इसलिए वह बहुत लाड़प्यार से पली थी. सयानी होने पर घर वालों ने उस की शादी लखनऊ के रहने वाले टेंट कारोबारी रीतेश से कर दी थी.

रीतेश का पूरा परिवार कारोबारी था, इसलिए पढ़लिख कर उस ने भी अपना अलग कारोबार कर लिया था. लखनऊ में उस का अपना 3 मंजिला मकान था. यही सब देख कर स्मिता के घर वालों को लगा था कि रीतेश से शादी होने पर उस का जीवन हंसीखुशी से गुजर जाएगा. स्मिता पढ़ीलिखी भी थी और सुंदर भी, इसलिए पहली ही नजर में रीतेश और उस के घर वालों ने उसे पसंद कर लिया था.

रीतेश से शादी कर के स्मिता लखनऊ आ गई. शादी के बाद कुछ दिन तो दोनों के बढि़या गुजरे. लेकिन उस के बाद दोनों के संबंध बिगड़ने लगे. जहां पहले बातबात में प्यार बरसता था, अब बातबात में झगड़ा होने लगा. इस की सब से बड़ी वजह थी रीतेश की नशे की लत. वह किसी एक चीज का आदी नहीं था. वह नशे के लिए गांजा और शराब तो पीता ही था, कुछ न मिलने पर भांग भी खा लेता था.

पति की नशे की लत से जहां स्मिता असहज रहने लगी थी, वहीं रीतेश चिड़चिड़ा हो गया था. बिना नशा के वह रह नहीं सकता था, जबकि स्मिता उसे इन सब चीजों से दूर रहने को कहती थी. यही वजह थी कि रीतेश शाम को नशे में झूमता घर लौटता तो स्मिता टोंक देती. उस के बाद दोनों में झगड़ा होने लगता. स्मिता ने पति को सुधारने की बहुत कोशिश की, लेकिन उस पर कोई असर नहीं पड़ा.

शादी के 3 सालों बाद रीतेश के यहां एक बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम उस ने यथार्थ रखा. बेटा पैदा होने के बाद उस का ध्यान पत्नी की ओर से बिलकुल हट गया. अब वह सिर्फ बेटे को ही प्यार करता था.

रीतेश और स्मिता के स्वभाव में काफी अंतर था. जहां स्मिता खुशदिल और जीवन में आगे बढ़ने के सपने देखने वाली थी, वहीं रीतेश की सोच सिर्फ नशे तक सीमित थी. उसे जितनी चिंता नशे की होती थी, उतनी काम की भी नहीं होती थी. यही वजह थी कि शाम होते ही दोस्तों के साथ उस की महफिल जम जाती थी.

अब वह स्मिता से ठीक से बात भी नहीं करता था. शायद इसीलिए स्मिता कुछ कहती तो वह अनसुना कर देता था. अगर सुन भी लेता तो उसे पूरा नहीं करता था. पति की यह लापरवाही स्मिता को बहुत बुरी लगती थी. इस पर स्मिता को भी गुस्सा आ जाता था और पतिपत्नी के बीच लड़ाईझगड़ा होने लगता था.

इधर वह दोस्तों के साथ कुछ ज्यादा ही महफिल जमाने लगा था. इन महफिलों का असर उस के कारोबार पर ही नहीं, घरगृहस्थी पर भी पड़ रहा था. क्योंकि नशे के चक्कर में उस का ध्यान दोनों चीजों से हट गया था. स्मिता की बातों पर तो ध्यान देना उस ने पहले ही बंद कर दिया था. अब लड़ाईझगड़े की भी चिंता नहीं रहती थी, इसलिए वह मन का मालिक हो गया था.

इन बातों को ले कर उस की किराएदार शारदा भी हंसती थी. स्मिता देख रही थी कि उस के किराएदार कितने प्यार और समझदारी से रहते थे, जबकि वे हमेशा लड़तेझगड़ते रहते थे.

एक दिन स्मिता ने रीतेश से बासमती चावल लाने को कहा तो शाम को रीतेश नशे में लड़खड़ाता खाली हाथ घर आ गया. उस की इस हरकत से उसे गुस्सा आ गया. उस ने गुस्से में पैर पटकते हुए कहा, ‘‘कितना कहा था कि यथार्थ बिना चावल के खाना नहीं खा रहा है, फिर भी तुम हाथ झुलाते चले आए. 2 दिनों से बेटा चावल नहीं खा रहा है. लेकिन तुम्हें क्या, तुम ने तो अपना नशा कर ही लिया.’’

‘‘भई, काम के चक्कर में चावल के बारे में भूल गया. कल ला दूंगा. अब रात में तो चावल बनाना नहीं है.’’ रीतेश ने कहा.

‘‘काम के चक्कर में नहीं, यह क्यों नहीं कहते कि नशे के चक्कर में भूल गया. काम भूल जाते हो, जबकि नशा करना नहीं भूलते.’’

‘‘आखिर मेरे नशे से तुम्हें इतनी परेशानी क्यों है?’’ रीतेश ने झुंझला कर पूछा.

‘‘क्योंकि तुम नशे के चक्कर में काम भूल जाते हो. यही हाल रहा तो एक दिन तुम यह भी भूल जाओगे कि तुम्हारी बीवी और बच्चे भी हैं. नशे के चक्कर में तुम ने कारोबार तो बरबाद कर ही दिया है, धीरेधीरे घरगृहस्थी भी बरबाद कर दोगे. अपने साथ के लोगों को देखो, सभी ने कितनी तरक्की कर ली है. एक तुम हो, आगे जाने के बजाय पीछे चले गए हो.’’

‘‘मैं जैसा भी हूं, अब वैसा ही रहूंगा. अगर तुम्हें मुझ से परेशानी है तो तुम अपना रास्ता बदल सकती हो.’’ कह कर रीतेश दूसरे कमरे में चला गया.

‘‘आज तो तुम चावल लाए नहीं, अगर कल भी नहीं लाए तो खाना नहीं बनेगा.’’ कह कर स्मिता बिना कुछ खाए सोने वाले कमरे में चली गई. रीतेश से भी उस ने खाने के लिए नहीं कहा. उस ने कपड़े बदले और सोने के लिए लेट गई. यह 22 अप्रैल की बात है.

यथार्थ पहले ही सो चुका था. स्मिता भी सोने के लिए लेट गई थी. रीतेश आगे वाले कमरे में लेटा था. पत्नी की किचकिच से परेशान रीतेश को नींद नहीं आ रही थी. जब काफी प्रयास के बाद भी उसे नींद नहीं आई तो उस ने उठ कर एक बार फिर शराब पी कि शायद नशे की वजह से नींद आ जाए. लेकिन शराब पीने के बाद भी उसे नींद नहीं आई.

करवट बदलतेबदलते रीतेश परेशान हो गया तो उस का पत्नी के करीब जाने का मन होने लगा. वह नशे में तो था ही, इसलिए शायद वह यह भूल गया कि अभी थोड़ी देर पहले ही तो पत्नी से लड़ाईझगड़ा हुआ है. वह उसे अपने करीब कैसे जाने देगी. वह उठा और लड़खड़ाते हुए स्मिता के कमरे में पहुंच गया.

खाली पेट स्मिता को भी नींद नहीं आ रही थी. इसलिए जैसे ही रीतेश ने उसे जगाने की गरज से उस के ऊपर हाथ रखा, वह गुस्से में चीखी, ‘‘खाने तो दिया नहीं, अब सोने भी नहीं दोगे.’’

पत्नी के इस तरह चीखने से रीतेश समझ गया कि यहां रुकने से कोई फायदा नहीं है. यहां समझौता के बजाय लड़ाईझगड़ा ही होगा. उसे भी क्रोध आ गया, लेकिन वह बिना कुछ कहे ही बाहर आ गया. बाहर खड़े हो कर वह सोचने लगा कि उस की औकात इतनी भी नहीं रही कि वह पत्नी के पास सो सके. पत्नी उसे पति नहीं, उठल्लू का चूल्हा समझने लगी है. यह अपने आप को समझती क्या है. इसे लाइन पर लाना ही होगा.

रीतेश स्मिता को सबक सिखाने के बारे में सोच रहा था कि तभी उस की नजर सामने रखे हथौड़े पर चली गई. हथौड़े पर नजर पड़ते ही उस का इरादा खतरनाक हो उठा. उस ने हथौड़ा उठाया और कमरे में वापस आ गया. स्मिता आंख बंद किए लेटी थी. उसे क्या पता कि यहां क्या होने जा रहा है, इसलिए वह उसी तरह चुपचाप लेटी रही. रीतेश ने उस की इस लापरवाही का फायदा उठाया और उस पर हथौड़े से वार कर के इस तरह उसे खत्म कर दिया कि वह चीख भी नहीं पाई.

कमरे में खून ही खून फैल गया था. बिस्तर भी खून से तर हो गया था. उस के भी कपड़े खराब हो गए थे. उस ने पहले तो अपने ही नहीं, स्मिता के भी कपड़े बदले. बिस्तर बदला. उस के बाद कमरा साफ किया. स्मिता की लाश उस ने चादर से ढक दी. उस ने सोचा कि सुबह जल्दी उठ कर वह लाश को ठिकाने लगा देगा. लेकिन पत्नी की हत्या करने के बाद उसे यह चिंता होने लगी कि अब वह बचे कैसे? यही सोचते-सोचते वह सो गया तो सुबह देर से आंखें खुलीं.

23 अप्रैल की सुबह रीतेश जागा तो रात का पूरा दृश्य उस की आंखों के आगे घूमने लगा. वह उठ कर बैठ गया और सोचने लगा कि अब स्मिता की लाश का क्या करे. तभी किराएदार मझोले की पत्नी शारदा किसी काम से ऊपर आई. रीतेश को बाहर वाले कमरे में परेशान बैठा देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है भाईसाहब, आप कुछ परेशान लग रहे हैं? यथार्थ की मम्मी अभी नहीं उठीं क्या?’’

‘‘उन की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए वह अभी सो रही हैं.’’ कह कर रीतेश ने शारदा को टाल दिया.

शारदा और उस के पति मझोले ने रात में रीतेश और स्मिता के बीच जो झगड़ा हुआ था, सुना था. उन का यह रोज का मसला था, इसलिए वे बीच में नहीं बोलते थे. लेकिन जब उन्होंने रीतेश को परेशान देखा और स्मिता उन्हें दिखाई नहीं दी तो उन्हें संदेह हुआ. लेकिन उन्होंने कुछ कहा नहीं.

कुछ देर बाद रीतेश का 6 साल का बेटा यथार्थ उठा तो उस ने भी मां के बारे में पूछा. तब रीतेश ने कहा, ‘‘बेटा, उन की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए वह सो रही हैं. अभी तुम उन्हें जगाना मत.’’

उस ने यथार्थ को खाने के लिए बिस्कुट और साथ में चाय दी. बेटे को चायबिस्कुट दे कर वह नीचे गोदाम में चला गया. उस का वहां भी मन नहीं लगा. वह स्मिता की लाश को ले कर काफी परेशान था. वह सोच रहा था कि किसी तरह से रात हो जाए तो वह उसे ठिकाने लगा दे. लेकिन रात होने से पहले ही उस की पोल खुल गई.

यथार्थ अकेला ही इधरउधर खेल कर टाइम पास कर रहा था. कुछ देर के बाद शारदा फिर ऊपर आई. उस ने यथार्थ को अकेला खेलते देख कर पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारी मम्मी कहां है?’’

‘‘मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए वह सो रही हैं. पापा ने कहा है कि उन्हें जगाना मत.’’ यथार्थ ने कहा.

शारदा को संदेह तो पहले ही था कि कुछ गड़बड़ है. यथार्थ की बात सुन कर उस का संदेह गहराया तो वह अंदर आ गई, जहां स्मिता सो रही थी. उस ने स्मिता को तो नहीं देखा, लेकिन इधरउधर देखा तो वहां उसे खून के छींटे दिखाई दिए. वह भाग कर नीचे आई और उस ने सारी बात पति को बता दी.

इस के बाद मझोले ने इस बात की सूचना सआदतगंज कोतवाली को दे दी. सूचना मिलते ही कोतवाली प्रभारी समर बहादुर यादव ने 2 सिपाहियों को मामले का पता लगाने के लिए भेज दिया. दोनों सिपाही रीतेश के घर पहुंचे तो उन्हें देख कर उस का चेहरा सफेद पड़ गया. लेकिन उस ने खुद को जल्दी से संभाल कर पूछा, ‘‘आप लोग यहां, कोई खास काम है क्या?’’

‘‘क्या तुम हमें बताओगे कि तुम्हारी पत्नी कहां है?’’ एक सिपाही ने पूछा.

‘‘मेरी पत्नी की तबीयत खराब है, वह सो रही है. आप लोगों को उस से क्या काम पड़ गया, जो आप लोग उस के बारे में पूछ रहे हैं?’’ रीतेश ने कहा.

पुलिस वाले उस की बात का जवाब देने के बजाय किराएदारों के इशारा करने पर स्मिता के कमरे की ओर चल पड़े. इस पर रीतेश सिपाहियों के आगे खड़ा हो गया और उन्हें ऊपर जाने से रोकने लगा.  लेकिन सिपाही उसे धकिया कर ऊपर चले गए. स्मिता चारपाई पर लेटी थी. उसे चादर ओढ़ाई हुई थी. उस के शरीर से किसी तरह की हरकत नहीं हो रही थी. ऐसे में सिपाहियों को भी शक हुआ तो उन्होंने ऊपर पड़ी चादर हटा दी.

स्मिता की खून से सनी लगभग अर्धनग्न लाश सामने आ गई. सिपाहियों ने रीतेश को दबोच लिया. इस के बाद सिपाहियों ने हत्या की सूचना थानाप्रभारी को दे दी. थानाप्रभारी समर बहादुर यादव ने इस बात की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी. थोड़ी ही देर में रीतेश के घर थानाप्रभारी समर बहादुर यादव के साथ क्षेत्राधिकारी राजकुमार अग्रवाल पहुंच गए.

यथार्थ मां की खून से लथपथ लाश देख कर रोने लगा. वह पुलिस को कुछ बताने लायक नहीं था, इसलिए पुलिस ने उसे बाहर भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस ने रीतेश से पूछताछ शुरू की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने घटना की सूचना स्मिता के भाई राजू द्विवेदी को दी तो वह कानपुर से लखनऊ आ गया. उस के पहुंचने पर पुलिस ने उस की ओर से स्मिता की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने रीतेश की निशानदेही पर वह हथौड़ा और ड्रम में छिपाए गए खून से सने कपड़े बरामद कर लिए. यथार्थ को पुलिस ने उस के मामा के हवाले कर दिया. इस के बाद रीतेश को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. अब उसे अपने किए पर पश्चाताप हो रहा है, लेकिन अब उस के इस पश्चाताप से क्या हो सकता है.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रेशमा की हंसी ने बुलाई मौत

उत्तर प्रदेश के महानगर मुरादाबाद के डीआईजी निवास के नजदीक गौतम नगर की गली नंबर-9 में नन्हे अपनी पत्नी रेशमा और ढाई साल के बेटे व मां के साथ 2 कमरों के मकान में रहता था. 8 मई, 2023 की रात 11 बजे की बात है. नन्हे के पड़ोस में रहने वाली नाजमा की रसोई के शेड पर रात के करीब 11 बजे कुछ गिरने की आवाज आई, जिस से रसोई के ऊपर की सीमेंट की चादरें तक टूट गईं. नाजमा समझी कि घर में चोर आ गए, उस ने अपने परिवार के लोगों को उठाया और जोर से ‘चोर…चोर’ कहते हुए शोर मचा दिया.

शोर सुन कर आसपास के घरों से लोग निकल आए. उन्होंने तभी देखा कि नन्हे अपनी पत्नी रेशमा के बाल पकड़ कर खींचता हुआ अपने घर में ले गया था. उधर नाजमा व अन्य लोगों ने देखा कि रसोई का शेड टूटा हुआ नीचे पड़ा है, वहां पर खून भी पड़ा था. इस के अलावा जिधर से नन्हे अपनी पत्नी रेशमा को घसीट कर ले गया था, वहां पर खून की बूंदें दिखाई दे रही थीं. इकट्ठा हुए लोग यह जानने के लिए नन्हे के घर पहुंच गए थे कि आखिर हुआ क्या है.

खून देख कर लोगों को हुआ शक

नन्हे के घर का गेट अंदर से बंद था. लोगों ने नन्हे को आवाज लगाई और गेट खोलने को कहा. नन्हे बोला कुछ नहीं हुआ मेरी पत्नी रेशमा ने गुस्से में अपनी कलाई की नस काट ली है, वह अस्पताल गई है. पड़ोसी नाजमा ने आवाज दी, ‘‘नन्हे गेट तो खोल, तूने मेरी रसोई का शेड तोड़ दिया है, उसे अब कौन बनवाएगा.’’

इस के बाद नन्हे ने अपने घर का गेट खोल दिया. गेट खुलते ही वहां मौजूद लोग अंदर घर में दाखिल हो गए. उन्होंने नन्हे की पत्नी रेशमा को पूरे घर में तलाशा, वह नहीं मिली. लोगों ने इतना जरूर देखा कि मकान के सेप्टिक टैंक (गटर) के पास खून की बूंदें व खून साफ करने के निशान थे. लोगों को मामला गंभीर दिखा तो उसी समय किसी ने थाना सिविल लाइंस को फोन कर दिया.

उस समय एसएचओ गजेंद्र सिंह रात्रि गश्त की तैयारी कर रहे थे ड्राइवर गाड़ी में बैठा उन के आने का इंतजार कर रहा था. एसएचओ कमरे से बाहर आए. तभी ड्ïयूटी औफिसर ने उन्हें डीआईजी साहब के बंगले के पास गौतम नगर गली नंबर 9 में लोगों की भीड़ जमा होने की सूचना दी.

यह सुन कर एसएचओ सीधे गौतम नगर चले गए. पुलिस को देखते ही लोग अपनेअपने घरों में चले गए. कुछ लोग छतों पर खड़े हुए थे. एसएचओ गजेंद्र सिंह ने पूछा कि नन्हे का घर कौन सा है? लोगों ने इशारे से बताया, ‘‘साहब वो है.’’

नन्हे के मकान का गेट खुला था. पुलिस जब उस के घर में पहुंची तो घर में जगहजगह खून बिखरा पड़ा था. एक छोटा दोढाई साल का बच्चा सोता मिला. पूरा घर खाली था. पुलिस को देख नन्हे के घर में कुछ बुजुर्ग लोग भी आ गए थे. उन्होंने बताया, ‘‘साहब, नन्हे व उस की पत्नी रेशमा में झगड़ा हुआ था, सेप्टिक टैंक के पास ज्यादा खून पड़ा है.’’

एसएचओ गजेंद्र सिंह ने एक सिपाही से कह कर गटर का ढक्कन उठवाया तो उस में कंबल व अंदर कपड़े पड़े थे. उन्हें हटा कर देखा तो वहां मौजूद पुलिस व लोग सन्न रह गए. गटर के अंदर रेशमा की खून से लथपथ लाश पड़ी हुई थी. पुलिस ने शव को गटर से बाहर निकाला. रेशमा का गला काटा गया था.

नन्हे आया पुलिस हिरासत में

इस हत्याकांड की सूचना एसएचओ गजेंद्र सिंह ने अपने उच्च अधिकारियों को दी. सूचना मिलते ही मुरादाबाद के एसएसपी हेमराज मीणा, एसपी (सिटी) अखिलेश भदौरिया, सीओ अर्पित कपूर भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने भी घटनास्थल की जांच की.

पुलिस के आने से पहले हत्यारा नन्हे घर से भाग गया था. एसएसपी हेमराज मीणा ने सीओ अर्पित कपूर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन किया. पुलिस टीम आरोपी नन्हे की तलाश में जुट गई. पुलिस को 9 मई, 2023 को सफलता मिल गई.

मुखबिर की सूचना पर टीम ने भीमराव अंबेडकर पुलिस अकादमी के केंद्रीय पुलिस अस्पताल के सामने से नन्हे को उस समय धर दबोचा, जब वह बाहर भागने की फिराक में था. थाना सिविल लाइंस में उच्च अधिकारियों के सामने नन्हे से पूछताछ की गई तो उस ने पत्नी की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने पत्नी रेशमा के मर्डर की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

रेशमा नन्हे की थी दूसरी बीवी

मुरादाबाद शहर के गौतम नगर निवासी नन्हे की पहली शादी काशीपुर निवासी नाजनीन से हुई थी. नन्हे ईरिक्शा चलाता था. पहली पत्नी नाजनीन से 2 बेटियां पैदा हुईं. किसी वजह से दोनों के बीच अकसर झगड़ा होने लगा तो एक दिन गुस्से में नाजनीन अपनी छोटी बेटी को ले कर अपने मायके काशीपुर चली गई. उस ने नन्हे के साथ रहने को मना कर दिया. बड़ी बेटी नन्हे की बड़ी बहिन के पास है.

पत्नी के वापस न आने की शिकायत नन्हे ने थाना सिविल लाइंस में भी की. पुलिस ने नाजनीन को काशीपुर से थाने बुलाया. थाने में ही नाजनीन ने पति के साथ न रहने की बात दोहरा दी. तब नन्हे ने उसे तलाक दे दिया. यह बात करीब ढाई साल पहले की है.

पत्नी से तलाक के बाद नन्हे अकेला हो गया. फिर करीब 2 साल पहले जिला बिजनौर के कस्बा नेहटौर के कासमपुर लेखराज बाग निवासी रेशमा से निकाह कर लिया था. रेशमा भी पहले से शादीशुदा थी. उस के भी 2 बच्चे थे.

रेशमा की पहले लव मैरिज हुई थी. बदायूं निवासी कन्हैया नाम के युवक के पिता नेहटौर, बिजनौर में लेखराज बाग में आम के बाग की रखवाली करते थे. आम के बाग में कन्हैया भी अपने पापा के साथ ही रहता था.

कन्हैया गठे शरीर का गबरू इंसान था. वह गांव में स्थित दुकान से अकसर घरेलू खानेपीने का सामान लेने जाता था. वहीं पर खूबसूरत रेशमा से उस की आखें चार हुईं. दोनों ही एकदूसरे को चाहने लगे. बाग का एकांत क्षेत्र दोनों के मिलने के लिए काफी मुफीद था. नैन मटक्का होतेहोते दोनों में शारीरिक संबंध बन गए थे.

अवैध संबंध हो जाने के बाद एक दिन कन्हैया व रेशमा दोनों गायब हो गए थे. उस के बाद दोनों ने लव मैरिज कर ली थी. रेशमा उस के साथ हंसीखुशी रह रही थी. वह 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. बाद में रेशमा अकसर अपने मायके में रहने लगी थी. यह बात कन्हैया को पसंद नहीं थी. जिस कारण कन्हैया व रेशमा में झगड़ा रहने लगा था. रेशमा का बड़ा बेटा अपने पिता कन्हैया से बहुत लगाव रखता था.

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रेशमा ने भी छोड़ रखा था पहला पति

रेशमा के अब्बू मेहंदी हसन का पहले ही इंतकाल हो चुका था. रेशमा का छोटा बेटा उस समय गोद में था. उस के बाद से रेशमा अपनी ससुराल नहीं गई थी. कन्हैया व रेशमा के बीच संबंध बिलकुल खत्म हो गए थे.

उधर रेशमा की अम्मी नसीमा ने अपने एक परिचित की मदद से नन्हे की मां छोटी से संपर्क साधा कि तुम्हारा बेटा भी अपनी पहली पत्नी नाजनीन को तलाक दे चुका है, मेरी बेटी रेशमा भी अपने पहले पति से अलग हो गई. इसलिए क्यों न नन्हे और रेशमा का निकाह कर दिया जाए.

करीब 2 साल पहले नन्हे ने नेहटौर जिला बिजनौर की रेशमा से निकाह कर लिया. नन्हे रेशमा को पा कर बहुत खुश था, क्योंकि रेशमा बला की खूबसूरत थी. नन्हे रेशमा से बहुत प्यार करता था. नन्हे ईरिक्शा चला कर ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने में लगा रहता था. थकाहारा नन्हे घर आ कर खाना खा कर सो जाता था.

रेशमा कहीं अपने घर या रिश्तेदारों में हंसहंस कर फोन पर बात करती तो नन्हे को शक पैदा होता था कि उस का किसी गैरमर्द से जरूर कोई चक्कर चल रहा है. इसी बात को ले कर अकसर नन्हे और रेशमा में झगड़ा होता रहता था. शक आदमी को पागल बना देता है, ऐसा ही नन्हे के साथ हुआ था. नन्हे द्वारा पत्नी के चरित्र पर शक करने के बाद रेशमा ने भी नन्हे से दूरी बनानी शुरू कर दी. नन्हे रेशमा की बेवफाई से परेशान था. सुंदर होना भी उस के लिए एक अभिशाप बन गया था.

आदमी की फितरत ही कुछ ऐसी होती है कि सुंदर पत्नी यदि किसी से हंस कर बात कर ले या फोन पर ज्यादा परिवार वालों से बात कर ले तो वह शक करने लगता है. नन्हे के मन में शक ज्यादा गहराने लगा था. घर में आए दिन झगड़े होने लगे थे.

पति को होने लगा रेशमा पर शक

8 मई, 2023 की रात करीब 11 बजे से पहले भी रेशमा के चरित्र को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ था. नन्हे का शक इतना बढ़ गया था कि वह कुछ भी करने को तैयार था. उस दिन नन्हे की मां अपनी छोटी लडक़ी शहनाज की ससुराल काशीपुर, उत्तराखंड गई हुई थी. घर में रेशमा के पहले पति कन्हैया से पैदा ढाई साल का बेटा ही मौजूद था.

उस दिन नन्हे खाना खा कर सोने चला गया था. उस की पत्नी रेशमा भी अपने बच्चे के साथ दूसरे कमरे में सोने चली गई थी. उधर नन्हे की नींद जैसे कोसों दूर हो चुकी थी. उसे नींद नहीं आ रही थी. मन में तरहतरह के विचार आ रहे थे.

वह उठा व घर में रखा छुरा उठा कर दूसरे कमरे में सो रही रेशमा के पास पहुंच गया. उस ने उस की गरदन जैसे ही छुरा से रेतनी शुरू की रेशमा की नींद खुल गई. पूरा जोर लगा कर रेशमा ने नन्हे को पलंग से नीचे गिरा दिया और वह कमरे से बाहर आ गई थी.

घायल अवस्था में छत से कूद गई थी रेशमा

जान बचाने का रास्ता नहीं था. घायल रेशमा भाग कर मकान की सीढिय़ों पर चढ़ गई. वहां से उस ने बराबर में रहने वाली नाजमा के घर में छलांग लगा दी. वह घर में न गिर कर गली में गिर गई. ठीक उसी समय नन्हे भी पीछा करते हुए वहां पहुंचा. उस ने भी पड़ोसी के घर में छलांग लगा दी. वह नाजमा की रसोई, जिस की छत सीमेंट के चादरों की थी, पर जा कर गिरा. उस के कूदते ही रसोई का शेड धड़ाम से टूट कर नीचे गिरा. बहुत जोर की आवाज हुई.

शोर सुन कर नाजमा ने समझा कि घर में चोर आ गए हैं, उस ने शोर मचा दिया. चोरचोर सुनते ही पड़ोसी लोग अपनेअपने घरों से निकल आए. नाजमा और पड़ोसियों ने देखा नन्हे रेशमा के बाल पकड़ कर खींचते हुए अपने घर में ले गया. वहां घायल रेशमा नन्हे के पैरों पर पड़ कर अपनी जान की भीख मांगने लगी. नन्हे पर भूत सवार था. उस ने एक झटके में रेशमा का गला रेत कर मौत के घाट उतार दिया.

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आननफानन में नन्हे ने अपने सेप्टिक टैंक (गटर) का ढक्कन उठा कर रेशमा के शव को उस में डाल कर ऊपर से कंबल व अन्य कपड़े डाल दिए. जो खून घर में पड़ा था जो उसे दिखाई दिया, उसे उस ने साफ कर दिया था.

मोहल्ले वाले जब पुलिस बुलाने की कोशिश कर रहे थे तो पुलिस के आने से पहले ही नन्हे फरार हो गया था. पुलिस ने रेशमा की हत्या की सूचना उस के मायके वालों को दी. रेशमा की अम्मी नसीमा सूचना मिलते ही अपने बड़े बेटे नाजिम व छोटी बेटी व बहनोई को ले कर मुरादाबाद आ गई. रेशमा की लाश देख कर घर के लोगों का रोरो कर बुरा हाल था.

रेशमा की अम्मी नसीमा ने थाना सिविल लाइंस में नन्हे के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई. पोस्टमार्टम के बाद रेशमा का शव अपने घर नेहटौर ले कर चली गई थी. साथ में रेशमा का ढाई साल का बेटा भी अपने साथ ले गई थी. वहां जा कर उन्होंने रेशमा को दफन कर दिया था. नन्हे से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे 9 मई, 2023 को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

सपना का अधूरा सपना

जलन में जल गया पूरा परिवार

रांची में एक जगह है कोकर. वैसे तो यह इंडस्ट्रियल एरिया है, लेकिन इसी से लगा कुछ रिहाइशी इलाका भी है. रांचीझारखंड की राजधानी है, इसलिए इस शहर का विकास तेजी से हो रहा है. कोकर चौक से कांटा टोली की ओर जाने वाली सडक़ पर एक हाउसिंग सोसायटी है, जिसे लोग रिवर्सा अपार्टमेंट के नाम से जानते हैं. यह काफी ऊंची और शानदार बिल्डिंग है. जब इमारत बड़ी और सुंदर होगी तो उस में रहने वाले भी बड़े लोग ही होंगे.

इसी रिवर्सा अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 1002 में डा. सुकांत सरकार अपने परिवार के साथ रहते थे. डा. सुकांत सरकार डाक्टर तो थे ही, आर्मी से रिटायर भी थे, इसलिए लोग उन की काफी इज्जत करते थे. समाज में उन की अच्छी प्रतिष्ठा थी. इस की एक वजह यह भी थी कि वह सामाजिक आदमी थे और हर छोटेबड़े का सम्मान करते थे. मिलनसार स्वभाव वाले होने की वजह से हर किसी से मिलतेजुलते और बातचीत करते रहते थे. इसीलिए लोग उन्हें काफी मानसम्मान देते थे.

उन का बेटा था सुमित सरकार, जो नोएडा की एक बड़ी कंपनी में ऊंचे पर पर नौकरी करता था. सुमित ने नोएडा में अपना मकान ले रखा था. नोएडा में अपना मकान होने की वजह से डा. सुकांत सरकार पत्नी के साथ कभी रांची में रहते थे तो कभी बेटे के पास नोएडा जा कर रहते थे. इस तरह इस परिवार का नोएडा और रांची आनाजाना लगा रहता था. सब से बड़ी बात तो यह थी उन के यहां किसी चीज की कमी नहीं थी.

साल 2006 में डा. सुकांत सरकार ने खूब धूमधाम से बेटे सुमित का विवाह कोलकाता की मधुमिता के साथ किया. मधुमिता पढ़ीलिखी संस्कारी लडक़ी थी, इसलिए ससुराल आ कर उस ने घर को संभाल लिया. फिर परिवार ही कौन बड़ा था. कुल 4 लोगों का ही तो परिवार था. सब पढ़ेलिखे व्यवस्थित थे.

मधुमिता एक अच्छी, कुशल और संस्कारी बहू साबित हुई थी, इसलिए पति ही नहीं, सासससुर भी उसे प्यार तो करते ही थे, उस का सम्मान भी करते थे. उसे वे बेटी की तरह रखते थे. अब घर में वही सब होता था, जो वह चाहती थी. वह भी इस बात का खयाल रखती थी कि उस से ऐसा कोई काम न हो, जिस से घर के किसी सदस्य को किसी तरह की ठेस पहुंचे. वह कभी सासससुर के साथ रांची में रहती तो कभी पति के साथ नोएडा में. कुछ सालों बाद उसे एक बेटी पैदा हुई, जिस का नाम रखा गया शमिता.

इस परिवार में सब बढिय़ा चल रहा था. छोटा परिवार था, इसलिए सभी हंसीखुशी से रहते थे. ऐसे में ही 9 अक्तूबर, 2016 को इसी रिवर्सा अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 1002 से यानी सुकांत सरकार के फ्लैट से एक भयानक खबर निकल कर बाहर आई और वह खबर यह थी कि सुकांत सरकार के फ्लैट में एक साथ 5 लोगों की मौत हो गई है और सुकांत सरकार बुरी तरह घायल हैं.

रांची शहर में फैल गई थी सनसनी

जिन लोगों की मौत हुई थी, उन में सुकांत सरकार की 60 साल की पत्नी अंजना सरकार, उन का 35 साल का बेटा सुमित सरकार, सुकांत सरकार के भतीजे पार्थिव की पत्नी मोमिता सरकार और बेटे की बेटी शमिता तथा भतीजे की बेटी सुमिता शामिल थी.

इस तरह अचानक 5 लोगों की मौत और घर के मुखिया के बुरी तरह से घायल होने की खबर से अपार्टमेंट में ही नहीं, पूरे रांची शहर में सनसनी फैल गई थी. इस घटना के बारे में जिस ने भी सुना था, वह हक्काबक्का रह गया था. एक तरह से यह बहुत ही दुखद और दिल दहलाने वाली घटना थी.

इस की जानकारी लोगों को तब हुई, जब पुलिस अपार्टमेंट पर पहुंची थी और पुलिस को सूचना सुकांत सरकार के इसी शहर में रहने वाले भांजे ने दी थी. हुआ यह था कि भांजे ने पहले मामा सुकांत सरकार को फोन किया. जब उन का फोन नहीं उठा तो उस ने परिवार के अन्य लोगों को फोन किया. जब अन्य किसी का भी फोन नहीं उठा तो उसे चिंता हुई.

किसी एक का फोन न उठे तो सोचा जा सकता है कि वह कहीं व्यस्त होगा, इसलिए फोन नहीं उठा रहा है. लेकिन जब घर में कई लोग हों और किसी का भी फोन न उठे तो चिंता होगी ही. उस से रहा नहीं गया और वह मामा सुकांत सरकार के घर जा पहुंचा. घर का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने घंटी बजाई, दरवाजा नहीं खुला तो उस ने दरवाजा खटखटाया. जब दरवाजा खटखटाने पर भी नहीं खुला तो उस ने पुलिस को सूचना दी.

सूचना मिलते ही थाना सदर पुलिस रिवर्सा अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 1002 पर पहुंच गई. पुलिस ने किसी तरह दरवाजा खोला. दरवाजा खुलने पर जब सभी अंदर गए तो अंदर का दृश्य भयानक था. घर के अंदर एक कमरे में 5 लाशें पड़ी थीं, जिन में सुकांतो के बेटे, पत्नी, भतीजे की पत्नी और 2 बच्चियों की लाशें थीं. पर इन के शरीर पर किसी भी तरह की चोट वगैरह का कोई निशान नहीं था.

दूसरे कमरे में अकेले सुकांत सरकार ऐसे थे, जिन की सांसें अभी चल रही थीं. पर वह बुरी तरह घायल थे. उन का पूरा शरीर खून से लथपथ था. उन के पास एक बड़ा सा चाकू पड़ा था. चाकू पर भी खून लगा था. साफ लग रहा था उसी चाकू से उन पर वार हुए थे.

पुलिस ने तुरंत सुकांत सरकार को अस्पताल भिजवाया कि शायद समय पर इलाज मिलने से उन की जान बच जाए, पर अस्पताल पहुंचने के कुछ समय बाद जीवन और मौत के बीच संघर्ष करते हुए आखिर उन की भी सांसें थम गईं यानी उन की भी मौत हो गई थी. इस तरह एक ही परिवार के 6 लोगों की एकाएक मौत हो गई थी.

पुलिस को मिले बहू द्वारा प्रताडि़त करने के सबूत

पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. फोरैंसिक टीम को बुला कर सारे साक्ष्य एकत्र कराए. इस के बाद बाकी की पांचों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया. अब पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. क्योंकि उसी से पता चलता कि इन लोगों की मौत कैसे हुई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने पर पता चला कि जिन 5 लोगों की पहले मौत हुई थी, उन्हें एनेस्थेसिया की ओवरडोज तो दी ही गई थी, साथ ही उन्हें इंजेक्शन से कोई जहर भी दिया गया था. अकेले सुकांत सरकार ऐसे थे, जिन के पेट पर चाकू के 14 घाव थे और इसी वजह से उन की मौत सब से बाद में अस्पताल जा कर हुई थी.

पुलिस ने परिवार वालों से पूछताछ शुरू की. इस पूछताछ में पता चला कि जिस समय यह घटना घटी थी, सुकांत सरकार की बड़ी बहू यानी सुमित सरकार की पत्नी मधुमिता सरकार नोएडा में थी. इसलिए वह बच गई थी. जबकि उस के पति की रांची में होने की वजह से मौत हो गई थी.

फ्लैट की तलाशी में पुलिस को कुछ ऐसे कागजात मिले थे, जिस से साफ पता चल रहा था कि यह पूरा परिवार बहू की प्रताडऩा से परेशान था. परिवार वालों से पूछताछ में भी यह बात सामने आई थी. आगे की जांच और पूछताछ में जो कहानी निकल कर सामने आई थी, वह बहुत ही अजीबोगरीब थी.

जैसा कि शुरू में बताया गया है कि जब मधुमिता इस घर में ब्याह कर आई थी तो इस घर में वह ढेरों खुशियां ले कर आई थी. क्योंकि मधुमिता एक बहुत अच्छी बहू साबित हुई थी. हर किसी का खयाल रखने वाली, हर किसी की हर बात सुनने वाली. जिस तरह वह हर किसी का खयाल रखती थी, उसी तरह घर का हर सदस्य उस का भी खयाल रखता था. उस के बातव्यवहार से सरकार परिवार उस पर अपनी जान छिडक़ता था.

छोटी बहन के देवरानी बनने पर हुई कलह शुरू

मधुमिता की एक छोटी बहन थी मोमिता, जो कोलकाता के एक आश्रम में रहती थी. क्योंकि घर में उन की मां नहीं थी. मधुमिता ने जब यह बात अपनी ससुराल वालों को बता कर उसे अपने साथ अपने घर लाने को कहा तो चूंकि मधुमिता ने खुद को अच्छी बहू साबित कर दिखाया था, इसलिए उस की ससुराल वाले उसे बहन को अपने घर लाने से मना नहीं कर सके. उन्होंने कहा था कि वह अपनी बहन को बिलकुल ले आए. वह भी उन के घर एक बेटी की तरह रहेगी.

ससुराल वालों से परमिशन मिलने के बाद मधुमिता अपनी छोटी बहन मोमिता को अपने घर ले आई थी. मोमिता भी कभी रांची तो कभी नोएडा में बहनबहनोई के साथ रहने लगी थी. धीरेधीरे मोमिता ने भी अपनी बड़ी बहन की ही तरह अपने बातव्यवहार और कामों से सरकार परिवार का दिल जीत लिया.

उस ने सरकार परिवार का ऐसा दिल जीता कि सरकार परिवार ने उसे भी अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया. इस के बाद सुकांत सरकार ने मोमिता का विवाह अपने भतीजे पार्थिव सरकार के साथ करा दिया. इस तरह मधुमिता की छोटी बहन मोमिता सुकांत सरकार के घर की दूसरी बहू बन गई. मोमिता का विवाह भले ही सुकांत सरकार के भतीजे पार्थिव के साथ हुआ था, पर वह रहती थी सुकांत सरकार के परिवार के साथ ही.

पार्थिव अलग रहता था, इसलिए कभी वह अपने चाचा के घर आ जाता था तो कभी मोमिता अपने पति के साथ उस के घर रहने चली जाती थी. उस का आनाजाना लगा रहता था, लेकिन वह ज्यादातर सुकांत सरकार के परिवार के साथ ही रहती थी  इस तरह सुकांत सरकार के परिवार में अब 7 लोग हो गए थे. वह खुद, उन की पत्नी अंजना, बेटा सुमित, दोनों बहुएं और दोनों बहुओं की एकएक बेटियां.

धीरेधीरे एक समय ऐसा आ गया, जब सरकार परिवार छोटी बहू यानी मधुमिता की छोटी बहन मोमिता पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहने लगा. यानी लोग उस से ज्यादा प्यार करने लगे, उस का ज्यादा खयाल रखने लगे. अब घर में चलती भी उसी की ज्यादा थी. घर में मधुमिता से उस की तुलना होने लगी.

घर में जब उस का मानसम्मान ज्यादा होने लगा तो मधुमिता को इस से जलन होने लगी. इस की वजह यह थी कि मोमिता ने अपने कामों और बातव्यवहार से सब का दिल जीत लिया था. सभी के लिए वह हर वक्त एक पैर पर खड़ी रहती थी. कहा भी जाता है कि काम प्यारा होता है शरीर नहीं. यह बात सच साबित हुई थी.

मधुमिता छोटी बहन को समझने लगी दुश्मन

बस, यहीं से दोनों बहनों, जो अब जेठानी और देवरानी बन चुकी थीं, के बीच नफरत ने जन्म ले लिया. जिस की लपेट में धीरेधीरे पूरा परिवार आ गया. मधुमिता यानी सुमित की पत्नी इस जलन की लपटों में कुछ इस तरह झुलसी कि उस ने अपने पति और अपनी ही सगी बहन पर यह इलजाम लगा दिया कि उस के पति के अपने छोटे भाई की पत्नी मोमिता के बीच अवैध संबंध हैं.

इस नाजायज संबंधों की बात यहीं तक सीमित नहीं रही, आगे चल कर मधुमिता यह भी कहने लगी कि मोमिता के नाजायज संबंध अपने ससुर यानी उस के ससुर सुकांत सरकार से भी हैं. जब इस तरह के झूठे इलजाम एक प्रतिष्ठित परिवार के लोगों पर लगाया जाएगा तो सोचिए उस परिवार पर क्या बीतेगी, परिवार वालों का क्या हाल होगा? बहू द्वारा लगाए गए इस इल्जाम से पूरा सरकार परिवार हिल गया था.

इतना ही नहीं, मधुमिता बारबार दहेज उत्पीडऩ का केस दर्ज कराने की भी धमकी देने लगी थी. वह खुद तो धमकी देती ही थी, कई एनजीओ यानी स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से भी सरकार परिवार को चेतावनियां या यह कहिए कि धमकियां दी जाने लगी थीं कि वे लोग मधुमिता को परेशान न करें.

इस तरह की बातें कर के एक तरह से सरकार परिवार को डराया जाने लगा था. अकसर उन के घर पुलिस भी आने लगी थी, जो कभी समझाती तो कभी कहती कि आप लोग पढ़ेलिखे प्रतिष्ठित लोग हैं, फिर भी बहू को परेशान करने जैसी ओछी हरकत करते हैं.

कभीकभी उन लोगों को थाने भी जाना पड़ता था, जहां उन्हें जलील किया जाता, बेइज्जती की जाती. मधुमिता ने पति, सासससुर पर कई मुकदमे दर्ज करवा दिए थे, जिन में दहेज उत्पीडऩ और प्रताडि़त करने वाले थे.

बहू की प्रताडऩा से परेशान हुआ परिवार

सुकांत सरकार ही नहीं, उन का पूरा परिवार इस तरह की बातों से शर्मिंदगी महसूस करता. क्योंकि वह जो सफाई देते, उन की बातों पर कोई विश्वास नहीं करता. इस से पूरा परिवार दिमागी रूप से इतना परेशान रहने लगा था. उन की कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि वे क्या करें.

कभी वे सभी मधुमिता से पूछते भी कि वह ऐसा क्यों कर रही है तो वह कोई जवाब भी नहीं देती थी. इस तरह कभी घर की अच्छी कही जाने वाली बहू ने ही पूरे परिवार की जिंदगी में उथलपुथल मचा दी थी. एक तरह से सभी का जीना हराम कर दिया था.

और इसी सब का परिणाम आया था 9 अक्तूबर, 2016 को, जब घर के 6 लोगों ने एक साथ मौत को गले लगा लिया था. एक दिन पहले सुकांतो सरकार ने संकेत भी दिया था कि अगर घर के हालात ऐसे ही रहे तो वह कुछ ऐसा कर गुजरेंगे कि कोई सोच भी नहीं सकता.

लेकिन किसी को न तो पता था और न ही विश्वास था कि इस घर से एक साथ 6 लाशें उठेंगी यानी और 6 लोगों की जान चली जाएगी. लेकिन 9 अक्तूबर को कुछ ऐसा ही हुआ. इस तरह 6 लोगों का मौत को गले लगाना दिल दहलाने वाली घटना थी.

पुलिस जांच में घर में जो कागजात मिले थे, उन से मौतों की वजह का पता चल गया था. इन मौतों का सारा इलजाम घर की बड़ी बहू मधुमिता पर लगाया गया था. उसी की ओर इशारा किया गया था कि यह जो कुछ भी हुआ है, उसी की वजह से हुआ है.

जांच में पता चला था कि सभी की रजामंदी के बाद डा. सुकांत सरकार ने ही सभी को पहले एनेस्थेसिया की ओवरडोज का इंजेक्शन लगाया था. बच्चियां किस के सहारे रहेंगी, इसलिए उन्हें भी एनेस्थेसिया का इंजेक्शन लगा दिया गया था. एनेस्थेसिया का इंजेक्शन लगाने के बाद जहर का भी इंजेक्शन लगाया गया था, जिस से कोई न बचे. इस के बाद डा. सुकांत सरकार ने खुद पर चाकू से 14 वार किए थे.

7 साल बाद पुलिस के हत्थे चढ़ी बड़ी बहू

इस मामले की जांच में लगी पुलिस ने कागजों में जो लिखा था, रिश्तेदारों तथा परिचितों से इस बारे में पूछताछ की तो पता चला कि इन मौतों के लिए मधुमिता ही जिम्मेदार है. पुलिस के हाथ जो सबूत लगे थे, उस से साफ हो गया था कि मधुमिता की ही वजह से पूरे परिवार की मौत हुई थी. उसी की प्रताडऩा से तंग आ कर परिवार ने मौत को गले लगाने का निर्णय लिया था.

इस के बाद पुलिस ने मधुमिता पर आत्महत्या के लिए मजबूर करने का मुकदमा दर्ज किया और उसे गिरफ्तार करने नोएडा जा पहुंची. क्योंकि पुलिस के पास नोएडा का ही पता था. पर वह वहां से फरार हो चुकी थी. पुलिस मामले की जांच करते हुए सबूत भी जुटाती रही, साथ ही मधुमिता को गिरफ्तार करने की कोशिश भी करती रही.

कभी इस मामले की फाइल धूल खाती रहती तो कभी कोई अधिकारी मधुमिता को गिरफ्तार करने की कोशिश में नोएडा में छापा मार देता, क्योंकि पुलिस के पास उस का केवल वहीं का पता था. लेकिन इधर पुलिस को पता चला कि मधुमिता कोलकाता में रह रही है. पुलिस ने जब उस की तलाश कोलकाता में शुरू की तो उस का सही पता ही नहीं मिल रहा था. कभी पता मिल भी जाता तो पुलिस के पहुंचने से पहले वह ठिकाना बदल चुकी होती.

लेकिन जून, 2023 में पुलिस को उस का कोलकाता का सही पता मिल गया तो रांची पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. पहले उसे कोलकाता की अदालत में पेश किया गया, जहां से ट्रांजिट रिमांड पर उसे रांची लाया गया है. रांची में उसे सिविल कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया है.

पुलिस अब एक एनजीओ की संचालिका गिताली चंद्रा के बारे में जांच कर रही है कि इस मामले में उन की तो कोई भूमिका नहीं थी.

कलयुगी बेटा : मां के बुढ़ापे का सहारा बना हत्यारा

मेनगेट का ताला खुला देख कर राधा समझ गई कि मनीष आ गया है, क्योंकि घर की चाबियां मनीष के पास भी होती थीं. उतने बड़े घर में मांबेटा ही रहते थे, इसलिए दोनों अलगअलग चाबियां रखते थे कि किस को कब जरूरत पड़ जाए.

राधा ने अंदर आ कर बाजार से लाया सामान किचन में रखा और हाथमुंह धोने के लिए बाथरूम की ओर बढ़ी. वह मनीष के कमरे के सामने से गुजरी तो अंदर से मनीष के साथ लड़की के हंसने की आवाज उसे सुनाई दी. उस के कदम वहीं रुक गए और माथे पर बल पड़ गए.

वह होंठों ही होंठों में बड़बड़ाई, ‘‘मनीष आज फिर नेहा को ले आया है. इस का मतलब यह हुआ कि वह मानने वाला नहीं है.’’

बेटे की इस मनमानी से नाराज राधा उस के कमरे में घुस गई. अंदर उस ने जो देखा, उस से एक बार उसे पलट कर बाहर आना पड़ा. अंदर पड़े बैड पर नेहा अपनी दोनों बांहें मनीष के गले में डाले गोद में बैठी थी.

राधा को देख कर दोनों भले ही अलग हो गए थे, लेकिन उन के चेहरों पर शरम की परछाई तक नहीं थी. वे कमरे से बाहर आए तो राधा ने कहा, ‘‘तू आज फिर इस लड़की को घर ले आया. मैं ने कहा था न कि मुझे यह लड़की बिलकुल पसंद नहीं है, इसलिए इसे घर मत ले आना.’’

‘‘मम्मी, नेहा आप को भले नहीं पसंद, पर मुझे तो पसंद है. आप तो जानती हैं कि मैं इसे बहुत प्यार करता हूं, इसलिए शादी भी इसी से करूंगा.’’ मनीष ने राधा के नजदीक जा कर कहा.

‘‘अगर तुम्हें अपने मन की करना है तो करो. लेकिन जिस दिन तुम ने इस लड़की से शादी की, उसी दिन तुम से मेरा संबंध खत्म.’’ राधा ने गुस्से में कहा.

मांबेटे के इस झगड़े से नेहा खुद को काफी असहज महसूस कर रही थी. इसलिए वह मनीष के पास जा कर बोली, ‘‘मनीष, अभी मैं जा रही हूं. कल कहीं बाहर मिलना, वहीं बाकी बातें करेंगे.’’

नेहा की इस बात से राधा को तो गुस्सा आया ही, मां ने प्रेमिका का अपमान किया था, इसलिए मनीष को भी गुस्सा आ गया था. उस ने चीखते हुए कहा, ‘‘मम्मी, नेहा से शादी करने में तुम्हें परेशानी क्या है, क्या तुम मेरी खुशी के लिए इतना भी नहीं कर सकती?’’

‘‘मैं ने तो तुम्हारी खुशी के लिए न जाने क्याक्या किया है, क्या तुम मेरी खुशी के लिए उस लड़की को नहीं छोड़ सकते?’’ राधा ने व्यंग्य से कहा.

‘‘नेहा को छोड़ना मेरे लिए आसान नहीं है. अगर आसान होता तो मैं कब का छोड़ देता.’’

‘‘इस का मतलब तुम मुझे छोड़ सकते हो, उसे नहीं. सोच लो, तुम्हें दोनों में से एक का ही साथ मिलेगा. चाहे मां के साथ रह लो या उस लड़की के साथ. अगर तुम ने उस लड़की से शादी की तो मेरा तुम से कोई संबंध नहीं रहेगा. मैं तुम्हें अपने इस घर में भी नहीं रहने दूंगी. यही नहीं, मेरे पास जो कुछ भी है, उस में से भी तुम्हें एक कौड़ी नहीं दूंगी.’’ इस तरह राधा ने अपना निर्णय सुना दिया.

मां की इन बातों से मनीष परेशान हो उठा. क्योंकि पिता की मौत के बाद सारी संपत्ति की मालकिन उस की मां ही थी. उस के लिए इस से भी बड़ी चिंता की बात यह थी कि वह पूरी तरह मां पर ही निर्भर था. अगर मां हाथ खींच लेती तो वह पाईपाई के लिए मोहताज हो जाता. जबकि बिना शराब के उसे नींद नहीं आती थी. सिगरेट तो वह पलपल में पीता था.

मनीष ही नहीं, राधा भी कम परेशान नहीं थी. वह उस का एकलौता बेटा था. 5 बेटियों के बाद वह न जाने कितनी मन्नतें मांगने के बाद पैदा हुआ था. बेटा पैदा होने पर राधा और उन के पति लालाराम की खुशी का ठिकाना नहीं रहा था.   लेकिन बेटे से उन्होंने जो उम्मीदें पाल रखी थीं, अधिक लाडप्यार ने उन उम्मीदों पर पानी फेर दिया था. बेटे की ही चिंता में राधा को नींद नहीं आ रही थी. देर रात तक करवट बदलते हुए किसी तरह वह सोई तो फिर सुबह उठ नहीं पाई.

सुबह मनीष उठा तो मां नहीं उठी थी. जबकि हमेशा वह उस से पहले उठ जाती थी. उस ने मां के कमरे में जा कर देखा, वहां की स्थिति देख कर वह सन्न रह गया. राधा की खून में डूबी लाश पड़ी थी. मां को उस हालत में देख कर वह घबरा गया.

उस ने तुरंत थाना जगदीशपुरा पुलिस को मां की हत्या की सूचना दी. इस के बाद उस ने पड़ोस में रहने वाले डा. प्रदीप श्रीवास्तव को मां की हत्या के बारे में बताया. इस के बाद तो यह खबर पूरी कालोनी में फैल गई.

मनीष की एक बहन स्नेहलता उसी कालोनी में रहती थी. मनीष ने उसे भी मां के कत्ल की सूचना दे दी थी. आते ही वह मनीष से लिपट कर रोने लगी. वह उसे झिंझोड़ कर पूछने लगी, ‘‘भैया, किस ने किया मम्मी का कत्ल, उस ने किसी का क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘दीदी, मैं तो खाना खा कर सो गया था. सुबह उठा तो मम्मी को इस हालत में पाया?’’ रोते हुए मनीष ने कहा.

लोग बहनभाई को सांत्वना दे रहे थे. राधा के अन्य रिश्तेदारों को भी उस के कत्ल की सूचना दे दी गई थी. नजदीक रहने वाले रिश्तेदार आ भी गए थे.

थाना जगदीशपुरा के थानाप्रभारी आदित्य कुमार भी पुलिसबल के साथ आ गए थे. उन की सूचना पर एएसपी शैलेश कुमार पांडेय भी आ गए थे. राधा की लाश जमीन पर पड़ी थी. उस के सिर, गरदन और चेहरे पर किसी धारदार हथियार से वार किए गए थे. गले पर अंगुलियों के भी निशान थे.

राधा की उम्र 65 साल के आसपास थी. शरीर पर सारे गहने मौजूद थे. कमरे का भी सारा सामान अपनी जगह था. यह देख कर सभी एक ही बात कह रहे थे कि आखिर इस बुढि़या ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो इस की हत्या कर दी गई. जबकि उस का जवान बेटा घर में ही दूसरे कमरे में सो रहा था. पूछने पर मनीष ने पुलिस को बताया था कि मम्मी शायद चीख भी नहीं पाई थी, क्योंकि अगर वह चीखी होतीं तो उस की आंख जरूर खुल जाती.

हत्या लूट के इरादे से नहीं हुई थी, यह अब तक की जांच में साफ हो चुका था. मेनगेट पर ताला राधा ही बंद करती थी. पूछताछ में मनीष ने कहा था कि हो सकता है रात में वह ताला लगाना भूल गई हों.

घटनास्थल के निरीक्षण के दौरान थानाप्रभारी आदित्य कुमार ने देखा था कि वाशबेसिन में खून लगा है. इस का मतलब हत्यारे ने हत्या करने के बाद अपने हाथ वाशबेसिन में धोए थे. इस के अलावा पुलिस को वहां से ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला था, जिस से हत्यारे तक पहुंचा जा सकता.

मां की हत्या पर मनीष जिस तरह रो रहा था, वह लोगों को एक तरह का नाटक लग रहा था. ऐसा लग रहा था, जैसे वह यह साबित करना चाहता है कि मां की हत्या का उसे बहुत दुख है. पुलिस को भी कुछ ऐसा ही अहसास हुआ था. क्योंकि परिस्थितियां मनीष को ही शक के दायरे में ला रही थीं. पूछताछ में पुलिस को कुछ ऐसी बातें पता चलीं थीं, जिस से वही शक के दायरे में आ रहा था.

बहरहाल, पुलिस ने काररवाई को आगे बढ़ाते हुए लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद थाने लौट कर थानाप्रभारी आदित्य कुमार ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.

आदित्य कुमार को पूरी संभावना थी कि हत्या के इस मामले में कहीं न कहीं से मृतका का बेटा जरूर जुड़ा है, फिर भी उन्होंने उसे हिरासत में नहीं लिया था. वह सुबूत जुटा कर ही उसे गिरफ्तार करना चाहते थे. आगे क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा मनीष के बारे में जान लें.

आगरा के थाना जगदीशपुरा की विजय विहार कालोनी की कोठी नंबर 27 में रहने वाले लालाराम का बेटा था मनीष. लालाराम ने यह कोठी आगरा में तहसीलदार रहते हुए बनवाई थी. उन के परिवार में पत्नी राधा, 5 बेटियां स्नेहलता, अनीता, प्रेमलता, हेमलता और सुनीता थी.

बेटे के चक्कर में ही उन्हें ये 5 बेटियां हो गई थीं. इसीलिए लालाराम इतने पर भी नहीं रुके थे. आखिरकार छठवीं संतान के रूप में उन के यहां बेटा मनीष पैदा हुआ था. मनीष के पैदा होतेहोते लालाराम और राधा काफी उम्रदराज हो गए थे. उम्र के तीसरे पन में बेटा पा कर पतिपत्नी फूले नहीं समाए थे. एक तो मनीष बुढ़ापे में पैदा हुआ था, दूसरे 5 बेटियों के बाद, इसलिए वह मांबाप का बहुत लाडला था. इसी लाडप्यार में वह बिगड़ता चला गया.

जैसेजैसे बेटियां सयानी होती गईं, लालाराम उन की शादियां करते गए. अच्छी नौकरी में थे, इसलिए उन्होंने सारी बटियों की शादी ठीकठाक घरों में की थीं. उन के 3 दामाद रेलवे में थे, एक बैंक में तो एक प्राइवेट नौकरी में था. बेटे को भी वह पढ़ालिखा कर किसी काबिल बनाना चाहते थे, लेकिन बेटे का मन पढ़ने में कम, आवारागर्दी में ज्यादा लगता था. खर्च के लिए पैसे मिल ही रहे थे, इसलिए उस के दोस्त भी तमाम हो गए थे.

मनीष पढ़ ही रहा था, तभी लालाराम नौकरी से रिटायर हो गए थे. दुर्भाग्य से रिटायर होने के कुछ ही दिनों बाद वह एक ऐसी दुर्घटना का शिकार हुए, जिस की वजह से कोमा में चले गए. यह सन 2005 की बात है. राधा ने पति का बहुत इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

पिता के कोमा में चले जाने के बाद मनीष और ज्यादा आजाद हो गया. राधा के लिए परेशानी यह थी कि वह बेटे को संभाले या पति की देखभाल करे. पति की देखभाल के चक्कर में मनीष उस के हाथ से पूरी तरह निकल गया. आखिर कोमा में रहते हुए सन 2010 में लालाराम की मौत हो गई. पति की मौत के बाद राधा को लगा कि बेटा तो है ही, उसी के सहारे बाकी का जीवन काट लेगी.

लेकिन मनीष मां का सहारा नहीं बन सका. क्योंकि पति की मौत के बाद जब राधा का ध्यान बेटे पर गया तो उसे उस की असलियत का पता चला. उसे पता चला कि बेटा सिगरेट का ही नहीं, शराब का भी आदी हो चुका है. यही नहीं, नेहा नाम की लड़की से उस का प्रेमसंबंध हो गया है, जिस से वह शादी करना चाहता है.

जबकि राधा इस शादी के लिए कतई तैयार नहीं थी. इस की वजह यह थी कि वह लड़की उस की जाति की नहीं थी. बेटे की हरकतों से से राधा बहुत परेशान रहती थी. ऐसे में बेटियां ही उसे थोड़ा सुकून पहुंचा रही थीं. जबकि मनीष को बहनों का आनाजाना भी अच्छा नहीं लगता था. क्योंकि बहनें उसे रोकती टोकती तो थीं ही, मां को भी उसे पैसे देने से रोकती थीं.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार राधा पर धारदार हथियार से तो हमला किया ही गया था, उस का गला भी दबाया गया था. स्थितियों से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि कातिल कोई नजदीकी ही था. शायद वह गला दबा कर पूरी तरह निश्चित हो जाना चाहता था कि उस में जान नहीं रह गई है.

मनीष ने पुलिस को बताया था कि वह रात में शराब पी कर सोया था, इसलिए न तो उसे चीख सुनाई दी थी, न खटरपटर की आवाज. उस ने सफाई तो बहुत दी थी, लेकिन पुलिस को उसी पर संदेह था. इसलिए पुलिस ने अपने मुखबिरों से उस के बारे में पता लगाने को कह दिया था.

मुखबिरों ने थानाप्रभारी आदित्य कुमार को बताया था कि मां-बेटे में अकसर झगड़ा होता रहता था. इस की वजह मनीष की आवारागर्दी थी. लालाराम अपनी सारी संपत्ति राधा के नाम कर गए थे. शायद उन्हें बेटे पर पहले से ही संदेह था.

पुलिस ने अब तक जो सुबूत जुटाए थे, वे मनीष को ही दोषी ठहरा रहे थे. थानाप्रभारी आदित्य कुमार पुलिस बल के साथ उस के घर जा पहुंचे. पुलिस को देख कर मनीष का चेहरा उतर गया. जब सिपाहियों ने उस का हाथ पकड़ कर साथ चलने को कहा तो वह बोला, ‘‘मुझे कहां चलना है?’’

‘‘थाने और कहां, साहब तुम से कुछ पूछताछ करना चाहते हैं.’’ सिपाहियों ने कहा.

‘‘लेकिन मैं ने तो सब कुछ पहले ही बता दिया है,’’ मनीष ने कहा, ‘‘अब क्या पूछना है?’’

‘‘अभी तो तुम से और भी बहुत कुछ पूछना है.’’ कह कर सिपाहियों ने उसे गाड़ी में बैठा दिया.

मनीष को थाने ला कर पूछताछ शुरू हुई. पहले तो वह वही बातें बताता रहा, जो शुरू में बता चुका था. जबकि आदित्य कुमार उस से वह पूछना चाहते थे, जो उस ने सचमुच में किया था. लेकिन यह इतना आसान नही था. उन्होंने जब उसे जुटाए सुबूतों के आधार पर घेरना शुरू किया तो वह फंसने लगा.

जब वह आदित्य कुमार के सवालों में पूरी तरह से फंस गया तो फूटफूट कर रोने लगा. फिर उस ने अपनी मां की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने पुलिस को मां की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

मनीष बिगड़ तो चुका ही था, उस के दोस्त भी वैसे ही थे. राधा का सोचना था कि वह उस की शादी कर दे तो शायद उस में सुधार आ जाए. उस के पास किसी चीज की कमी तो थी नहीं, इसलिए उसे अच्छा रिश्ता मिल सकता था. लेकिन तभी राधा को पता चला कि मनीष का शाहगंज की रहने वाली किसी लड़की से चक्कर चल रहा है. वह लड़की दूसरी जाति की थी, इसलिए राधा किसी भी स्थिति में उस से मनीष की शादी नहीं करना चाहती थी.

इस की एक वजह यह भी थी कि उस लड़की यानी नेहा के घर वालों को मनीष और उस के संबंधों का पता नहीं था. ऐसे में अगर शादी हो जाती तो हंगामा भी हो सकता था. इसलिए राधा इस झंझट में नहीं पड़ना चाहती थी. जबकि मनीष अपनी जिद पर अड़ा था. यही वजह थी कि एक दिन वह नेहा को ले कर घर आ गया.

तब राधा ने दोनों को डांटा ही नहीं था, बल्कि नेहा को चेतावनी भी दी थी कि अगर वह नहीं मानी तो वह उस की शिकायत उस के पिता से कर देगी. इस के बाद उस ने यह बात अपनी बड़ी बेटी और दामाद को बताई तो उन्होंने कहा कि वे मनीष को समझा देंगे.

26 फरवरी को राधा की अनुपस्थिति में मनीष फिर नेहा को घर ले आया. संयोग से राधा घर आ गई और नेहा को मनीष की बांहों में देख लिया तो वह भड़क उठी. उस ने दोनों को डांटाफटकारा ही नहीं, नेहा को अपमानित कर के भगा दिया और मनीष को अपनी संपत्ति से बेदखल करने की धमकी दे दी.

मनीष न तो नेहा को छोड़ना चाहता था और न ही मां की संपत्ति को. उसे यह भी पता था कि मां वसीयत बनवाने के लिए वकील से सलाह ले रही है. इसलिए उसे लगा कि अगर मां ने सचमुच उसे संपत्ति से बेदखल कर दिया तो वह कहीं का नहीं रहेगा. वह यह भी जानता था कि मां जो ठान लेती है, कर के मानती है.

अगर राधा सारी संपत्ति बेटियों के नाम कर देती तो मनीष का भविष्य अंधेरे में फंस जाता. अपने भविष्य को बचाने के लिए उस ने गहराई से विचार किया तो उसे लगा कि अगर मां न रहे तो उस की संपत्ति भी उसे मिल जाएगी और वह नेहा से शादी भी कर सकेगा.

इस के बाद उस ने तय कर लिया कि वह मां की हत्या कर के अपना रास्ता साफ कर लेगा. रात का खाना खा कर मनीष लेट गया. उसे मां की हत्या करनी थी, इसलिए उसे नींद नहीं आ रही थी. दूसरी ओर बेटे की चिंता की वजह से राधा को भी नींद नहीं आ रही थी.

करवट बदलते बदलते राधा को नींद आ गई तो मनीष को मौका मिल गया. राधा के सोते ही मनीष ने पहले से छिपा कर रखा हंसिया उठाया और राधा के कमरे में जा पहुंचा. सो रही राधा के चेहरे पर उस ने वार किया तो राधा चीखी. मनीष ने झट उस का मुंह दबा दिया तो वह बेहोश हो गई. इस के बाद उस ने 2-3 वार और किए.

मनीष ने देखा कि मां अभी मरी नहीं है तो उस ने गला दबा दिया. राधा का खेल खत्म हो गया. उस ने रास्ते का कांटा तो निकाल फेंका, लेकिन अब उसे पुलिस का डर सताने लगा. वह पुलिस से बचने का उपाय सोचने लगा.

काफी सोचविचार कर मनीष ने खून लगे कपड़े उतार कर छिपा दिए. इस के बाद मोटरसाइकिल निकाली और देर तक आगरा की सड़कों पर बेमतलब घूमता रहा. सड़क पर घूमते हुए ही उस ने खुद को बचाने के लिए एक कहानी गढ़ डाली.

सुबह सब से पहले उस ने मां की हत्या की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दी. इस के बाद अपना पक्ष मजबूत करने के लिए उस ने पड़ोसी डा. प्रदीप श्रीवास्तव को घटना के बारे में बताया. इस के बाद कालोनी में ही रहने वाली बहन स्नेहलता को सूचना दी.

पुलिस ने मनीष की निशानदेही पर उस के घर से वह हंसिया बरामद कर लिया, जिस से उस ने मां की हत्या की थी. उस के वे कपड़े भी मिल गए थे, जिन्हें वह हत्या के समय पहने था. पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे आगरा की अदालत में उसे पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक मनीष जेल में था. अब दुविधा उस की बहनों के सामने है कि वे एकलौते भाई को बचाएं या मां के हत्यारे को सजा दिलाएं.

सपना का अधूरा सपना – भाग 3

अभिनय ने आर्यसमाज मंदिर में विधिविधान से सपना से शादी कर के सभी को मिठाई खिलाई. इस के बाद प्रार्थना को उस के घर भेज दिया और सपना को साथ ले कर लोहियानगर स्थित अपने घर आ गया. अभिनय के घर वालों ने सपना को बहू के रूप में स्वीकार कर के उस का भव्य स्वागत किया.

प्रार्थना घर पर पहुंची तो उसे अकेली देख कर घर वालों ने सपना के बारे में पूछा. जब उस ने कहा कि बाजार में सपना उसे चकमा दे कर भाग गई है तो घर वाले बौखला उठे. उन्होंने तुरंत सपना को फोन किया. जब सपना ने बताया कि उस ने अभिनय से शादी कर ली है और अब वह उसी के यहां रहेगी तो कुंवरपाल सपना को समझाने लगा कि उस के इस कदम से उस की कालोनी और समाज में बड़ी बदनामी होगी, इसलिए वह वापस आ जाए.

लेकिन जब सपना ने साफसाफ कह दिया कि अब वह किसी भी सूरत में अभिनय को छोड़ कर नहीं आ सकती तो खीझ कर कुंवरपाल ने फोन काट दिया. इस के बाद पतिपत्नी ने प्रार्थना की जम कर पिटाई की. इस तरह सपना की करनी की सजा प्रार्थना को भोगनी पड़ी.

अगले ही दिन कुंवरपाल ने अपने दोनों सालों नंदकिशोर तथा राधाकिशन को बुलाया और उन से पूछा कि अब क्या किया जाए? एक बार उन के मन में आया कि क्यों न वे अभिनय को मार दें. लेकिन जब इस बात पर उन्होंने गहराई से विचार किया तो उन्हें लगा कि इस मामले में अभिनय की क्या गलती है, भाग कर शादी तो सपना ने की है, इसलिए जो सजा दी जाए, उसे दी जाए. इस तरह सपना घर वालों की आंखों का कांटा बन गई.

कुंवरपाल अकसर फोन कर के सपना को समझाता और धमकी देता रहता था कि उस ने जो किया है, वह ठीक नहीं किया है, वह वापस आ जाए, इसी में उस की भलाई है. अगर उस ने उस का कहना नहीं माना तो वह उसे छोड़ेगा नहीं, भले ही उसे पूरी उम्र जेल में बितानी पड़े. इस तरह सिर नीचा कर के जीने से तो अच्छा है, वह पूरी जिंदगी जेल में ही काट दे.

अभिनय के घर वालों ने सपना को बहू के रूप में स्वीकार तो कर लिया था, लेकिन अभिनय के पिता शिशुपाल सिंह जादौन के मन में एक कसक थी कि वह अपने बेटे की शादी धूमधाम से नहीं कर सके. इसलिए वह चाहते थे कि सपना के घर वाले उस की शादी धूमधाम से कर दें. सपना जानती थी कि उस का बाप ऐसा कतई नहीं करेगा, इसलिए उस ने ससुर से कह दिया कि ऐसा होना नामुमकिन है.

शिशुपाल सिंह को लगा कि बेटे की शादी धूमधाम से नहीं हो सकती तो वह अपने घर इस शादी की दावत कर के अपने परिचितों और रिश्तेदारों को बता दें कि उन के बेटे ने प्रेम विवाह कर लिया है. वह दावत की तैयारी कर रहे थे कि एक दिन कुंवरपाल पत्नी उर्मिला और साली के साथ उन के घर आ पहुंचा.

कुंवरपाल और उस की पत्नी ने सपना और उस की ससुराल वालों से कहा कि जो हो गया, सो हो गया. अब वे अपनी बेटी की शादी सामाजिक रीतिरिवाज के अनुसार धूमधाम से करना चाहते हैं. इसलिए शादी की तारीख तय कर के वे सपना को अपने साथ ले जाना चाहते हैं.

सपना मांबाप के साथ घर जाना तो नहीं चाहती थी. लेकिन अभिनय और उस के ससुर शिशुपाल सिंह ने समझाबुझा कर उसे कुंवरपाल के साथ भेज दिया.

आखिर वही हुआ, जिस बात का सपना को डर था. घर आने के बाद कुंवरपाल सपना को इस बात के लिए राजी करने लगा कि उस ने एटा के जिस लड़के के साथ उस की शादी तय की है, वह उस के साथ शादी कर ले. सपना इस के लिए तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि एक बार उस ने अभिनय से शादी कर ली है तो वह अब किसी दूसरे से शादी क्यों करे.

25 जुलाई की शाम को भी कुंवरपाल ने सपना से एटा वाले लड़के से शादी करने की बात कही. लेकिन सपना ने साफ मना कर दिया. इस के बाद रात का खाना खा कर जब घर के सभी लोग सो गए तो कुंवरपाल दबे पांव सपना के कमरे में पहुंचा. अंदर से सिटकनी बंद कर के उस ने एक बार फिर सपना को शादी के लिए मनाना चाहा. लेकिन सपना नहीं मानी तो वह उसे मनाने के लिए करंट लगाने लगा. इसी करंट लगाने में सपना बेहोश हो गई.

सपना का इस तरह बेहोश हो जाना कुंवरपाल को खतरे की घंटी लगा. उस ने सोचा कि अब इस का जिंदा रहना ठीक नहीं है, इसलिए उस ने उस की गर्दन और हाथ पर तार लपेट कर प्लग में लगा दिया, जिस से सपना तड़पतड़प कर मर गई.

सपना को मौत के घाट उतार कर कुंवरपाल ने यह बात पत्नी उर्मिला को बताई तो वह सन्न रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस का पति इतना घिनौना काम भी कर सकता है. कुंवरपाल ने गुस्से में सपना को मार तो डाला, लेकिन अब उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था. अब उसे जेल जाने का भी डर सताने लगा था. उस समय रात के 2 बज रहे थे.

पुलिस से बचने के लिए उस ने अन्य बच्चों को जगाया और उन्हें घर से बाहर कर के सपना के मोबाइल फोन का स्विच औफ कर दिया. उन्होंने बच्चों को इस बात की जानकारी नहीं होने दी कि सपना के साथ क्या हुआ है. घर में बाहर से ताला लगा कर कुंवरपाल पत्नी और अन्य बच्चों के साथ फरार हो गया.

पूछताछ के बाद उत्तर कोतवाली पुलिस ने अपनी ही बेटी की हत्या के आरोप में कुंवरपाल सिंह यादव को जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक बाकी कोई गिरफ्तार नहीं हुआ था. पुलिस उन की तलाश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फरेब के जाल में फंसी नीतू – भाग 3

एक समझदार ससुर की तरह बाबूलाल मऊ नीतू के मायके पहुंचा और दुनिया की ऊंच नीच और इज्जत दुहाई देते उसे मना कर वापस ले आया. यह पिछले साल नवरात्रि की बात है. नीतू दोबारा ससुराल आ गई. पत्नी क्यों मायके चली गई थी और फिर वापस क्यों आ गई और सेक्स से अंजान रामजी को इन बातों से कोई सरोकार नहीं था.

हालात देख बाबूलाल के मन में पाप पनपा और उस ने नीतू से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दीं. किसी नएनवेले आशिक की तरह बाबूलाल नीतू की हर पसंदनापसंद का खयाल रखने लगा तो नीतू भी उस की तरफ झुकने लगी. आखिर उसे भी पुरुष सुख की जरूरत थी, जिसे वह कहीं बाहर से हासिल करती तो बदनामी भी होती और गलत भी वही ठहराई जाती.

देहसुख का अघोषित अनुबंध तो बाबूलाल और नीतू के बीच हो गया लेकिन पहल कौन और कैसे करे, यह दोनों को समझ नहीं आ रहा था. मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी वाली बात इन दोनों पर इसलिए लागू नहीं हो रही थी कि दोनों के बीच कोई काजी था ही नहीं. दोनों भीतर ही भीतर सुलगने लगे थे पर शायद लोकलाज का झीना सा परदा अभी बाकी था.

यह परदा भी एक दिन टूट गया जब आंगन में नहाती नीतू को बाबूलाल ने देखा. उस के दुधिया और भरे मांसल बदन को देखते ही बाबूलाल के जिस्म में चीटियां सी रेंगी तो सब्र ने जवाब दे दिया. एकाएक उस ने नीतू को जकड़ लिया.

नीतू ने कोई एतराज नहीं जताया. वह तो खुद पुरुष संसर्ग के लिए बेचैन थी. उस दिन जो हुआ नीतू के लिए किसी मनोकामना के पूरी होने से कम नहीं था. बाबूलाल को भी सालों बाद स्त्री सुख मिला था, सो वह भी निहाल हो गया.

अब यह रोजरोज का काम हो गया था. दोनों को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. रामजी जैसे ही बिस्तर पर आ कर सोता था, नीतू सीधे बाबूलाल के कमरे में जा पहुंचती थी.

उम्र और रिश्तों का लिहाज नाजायज संबंधों में नहीं होता और आमतौर पर उन का अंत में किसी तीसरे का रोल जरूर रहता है. पर इन दोनों पर यह बात लागू नहीं थी. ससुर की मर्दानगी पर निहाल हो चली नीतू ने एक दिन बाबूलाल से साफ कह दिया कि अब मुझ से शादी करो नहीं तो…

इस ‘नहीं तो’ में छिपी धमकी बाबूलाल को समझ आ रही थी और मजबूरी भी, लेकिन जो जिद नीतू कर रही थी उसे वह पूरी नहीं कर सकता था. अब जा कर बाबूलाल को समाज और रिश्तों के मायने समझ आए. समझाने और मना करने पर नीतू झल्लाने लगी थी, जिस से बाबूलाल घबराया हुआ रहने लगा था. नीतू की लत तो उसे भी लग गई थी पर उस पर लदी शर्त उस से पूरी करते नहीं बन रही थी.

साफ है बाबूलाल बहू के जिस्म को तो भोगना चाहता था लेकिन समाज को ठेंगा बता कर उसे पत्नी बनाने की बात सोचते ही उस के पैरों तले से जमीन खिसकने लगती थी. जितना वह समझाता था नीतू उसी तादाद में एक बेतुकी जिद पर अड़ती जा रही थी.

अब बाबूलाल नीतू से बचने के बहाने ढूंढने लगा था, जिन में से एक उसे मिल भी गया था कि फसल पक रही है, इसलिए उसे चौकीदारी के लिए खेत पर सोना पड़ेगा. इस के लिए उस ने खेत में झोपड़ी भी डाल ली थी.

नीतू जब शहर से मजदूरी कर लौटती थी तब तक बाबूलाल खेत पर जा चुका होता था. कुछ दिन ऐसे ही बिना मिले गुजरे तो नीतू का सब्र जवाब देने लगा. वैसे भी वह महसूस रह रही थी कि बाबूलाल अब उस में पहले जैसी दिलचस्पी नहीं लेता. 25 मार्च को नीतू जब सहेलियों के साथ लौटी तो उसे याद आया कि अगले दिन उसे मायके जाना है.

मायके जाने से पहले वह अपनी प्यास बुझा लेना चाहती थी. इसलिए सीधे खेत पर पहुंच गई और बाबूलाल को इशारा किया कि आज रात वह यहीं रुकेगी तो बाबूलाल के हाथ के तोते उड़ गए, क्योंकि रात में दूसरे किसान तंबाकू और बीड़ी के लिए उस के पास आते रहते थे.

समझाने की कोशिश बेकार थी फिर भी बाबूलाल ने दूसरे किसानों के आनेजाने की बात बताई तो नीतू ने खुद अपने हाथों से अपने कपड़े उतार लिए और धमकी देते हुए बोली, ‘‘खुले तौर पर मुझ से बीवी की तरह पेश आओ नहीं तो पुलिस में रिपोर्ट लिखा दूंगी.’’ उस दिन सुबह वह बाबूलाल से कह भी रही थी कि रात में घर पर ही मिलना.

रोजरोज की धमकियों और परेशानियों से तंग आ गए बाबूलाल को कुछ नहीं सूझा तो उस ने बेरहमी से नीतू की हत्या कर दी और स्तनों को खरोंचा, जिस से मामला सामूहिक बलात्कार का लगे. नीतू का गुप्तांग भी उस ने इसी वजह के चलते जलाया था.

नीतू की हत्या पर वह उस की लाश को कंधे पर उठा कर ले गया और आम के बाग में फेंक आया. पुलिस को दिए शुरुआती बयान में वह रामजी को फंसा देना चाहता था जिस से खुद साफ बच निकले. पर ऐसा नहीं हो पाया.

ससुर बहू के अवैध संबंधों का यह मामला अजीब इस लिहाज से है कि इसे और ज्यादा ढोने की हिम्मत नीतू में नहीं बची थी और वह अधेड़ ससुर को ही पति बनाने पर उतारू हो आई थी यानी राजकुमार, हेमामालिनी, कमल हासन और पद्मिनी कोल्हापुरे अभिनीत फिल्म ‘एक नई पहेली’ की तर्ज पर वह अपने ही पति की मां बनने तैयार थी.

बड़ी गलती बाबूलाल की है जिस की सजा भी वह भुगत रहा है. उस ने पहले पागल बेटे की शादी करा दी और जब बेटा बहू की शारीरिक जरूरतें पूरी नहीं कर पाया तो खुद पाप की दलदल में उतर गया.

नीतू रखैल की तरह नहीं रहना चाह रही थी. साथ ही वह दुनियादारी की परवाह भी नहीं कर रही थी, इसलिए उस से छुटकारा पाने के लिए बाबूलाल को उस की हत्या ही आसान रास्ता लगा पर कानून के हाथों से वह भी नहीं बच पाया.

सपना का अधूरा सपना – भाग 2

सपना के परिवार में पिता कुंवरपाल सिंह यादव, मां उर्मिला यादव, 3 बहनें प्रार्थना, मधु और भावना के अलावा 1 छोटा भाई आशीष था. कुंवरपाल का दूध का अच्छाखासा व्यवसाय था. फिरोजाबाद के ही थाना सिरसागंज के गांव सिकरामऊ में उस की खेती की काफी जमीन भी थी. फिरोजाबाद के सुदामानगर की जिस नवनिर्मित कालोनी में कुंवरपाल रहता था, उस में उस की गिनती संपन्न लोगों में होती थी. उस का काफी बड़ा मकान भी था.

कुंवरपाल को राजनीति से लगाव था, इसलिए उस ने तमाम नेताओं से संबंध बना रखे थे. संबंध की ही वजह से उस के यहां तमाम नेताओं का आनाजाना लगा रहता था. सिरसागंज के विधायक से तो कुंवरपाल की दांत काटी दोस्ती थी. कुंवरपाल के 2 साले थे. दोनों ही एक राजनीतिक दल में पदाधिकारी थे. उन का अपने क्षेत्र में खासा रुतबा था. इस का असर उन की बहन यानी कुंवरपाल की पत्नी उर्मिला पर भी था. रौबरुतबे की ही वजह से पतिपत्नी कालोनी में किसी को कुछ नहीं समझते थे. वे जल्दी से किसी से बात भी नहीं करते थे.

सपना ने घर के नजदीक ही स्थित लिटिल ऐंजल्स कान्वेंट स्कूल से इंटर करने के बाद एम.जी. कालेज से ग्रैजुएशन किया. इस के बाद वह कोई प्रोफेशनल कोर्स करना चाहती थी. थोड़ी कोशिश के बाद उस का बीएड में हो गया, जिस के लिए उस ने दाऊदयाल महिला महाविद्यालय में दाखिला ले लिया.

सपना जिन दिनों हाईस्कूल में पढ़ रही थी, उन्हीं दिनों उस की मुलाकात अभिनय राणा से हुई थी. अभिनय सुदामानगर से 2 किलोमीटर दूर स्थित लोहियानगर में रहता था. उस के परिवार में पिता शिशुपाल सिंह जादौन, मां प्रेमा देवी जादौन और एक बड़ा भाई अभिषेक जादौन था. पिता उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही थे. जादौन परिवार के पास काफी पुश्तैनी प्रौपर्टी थी, इसलिए इस परिवार का रहनसहन रईसों जैसा  था. उन दिनों वह बारहवीं में पढ़ रहा था.

एक दिन सपना स्कूटी से कोचिंग से घर जा रही थी, तभी एक बाइक सवार की टक्कर से गिर पड़ी. बाइक सवार तो भाग गया, लेकिन डिवाइडर से टकराने की वजह से सपना के पैर से खून बहने लगा. पीछे से आ रहे अभिनय ने उसे उठाया और मरहमपट्टी करा कर उसे उस के घर पहुंचाया. अभिनय का यह सेवाभाव सपना के दिल को छू गया. उस की छवि उस के दिल में एक अच्छे युवक की बन गई.

सपना जिस कोचिंग में पढ़ती थी, उसी में अभिनय भी पढ़ता था. अभिनय की गिनती कोचिंग इंस्टीट्यूट में अच्छे लड़कों में होती थी. ऐसी ही बातों से वह सपना के दिल की धड़कन बन गया. आमनेसामने पड़ने पर दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे. कभीकभार बातचीत भी हो जाती थी. किसी दिन दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए तो दोनों के बीच लंबीलंबी बातें होतेहोते प्यार का भी सिलसिला शुरू हो गया.

दोनों में प्यार गहराया तो वे एकदूसरे की पसंद का खयाल रखने लगे. इस तरह प्यार की नाव पर सवार हुए उन्हें एकएक कर के 5 साल बीत गए. इस बीच सपना ने ग्रैजुएशन कर लिया तो अभिनय बीएसपी कर के ठेकेदारी करने लगा. इस समय वह फिरोजाबाद का एक बड़ा शराब व्यवसाई माना जाता है. शहर और कस्बों में उस की अंग्रेजी शराब और देशी शराब की तमाम दुकानें हैं. उस के कई बार भी हैं. अभिनय भले ही शराब का बड़ा कारोबारी बन चुका था, लेकिन सपना के प्रति उस का प्यार वैसा ही था.

सपना ने ग्रैजुएशन कर के बीएड में दाखिला ले लिया था. 5 सालों से उस का जो प्यार चोरीछिपे चल रहा था, अब तक कई लोगों की नजरों में आ चुका था. वे कुंवरपाल के परिचित थे, इसलिए यह बात उस तक पहुंच गई. जानकारी होने पर कुंवरपाल ने सपना को बुला कर अभिनय और उस से प्यार के बारे में पूछा तो उस ने इस बात को इसलिए नहीं छिपाया, क्योंकि अभिनय हर तरह से कुंवरपाल का दामाद बनने लायक था.

लेकिन जब कुंवरपाल को पता चला कि सपना का प्रेमी ठाकुर है तो वह बौखला उठा. उस ने चीखते हुए कहा, ‘‘यादवों ने चूड़ी पहन रखी है क्या, जो ठाकुर का लौंडा उन की लड़कियों के साथ गुलछर्रे उड़ाएगा.’’

बाप के गुस्से को देख कर सपना की समझ में आ गया कि उस का बाप ऊंची जाति से भी उतनी ही नफरत करता है, जितनी नीची जाति वालों से. कुंवरपाल ने उस से साफसाफ कह दिया कि आज से ही वह उस लड़के से सारे संबंध खत्म कर ले. अगर उस के साथ कहीं दिखाई दे गई तो वह उसे काट कर रख देगा.

कुंवरपाल ने भले ही अपना आदेश सुना दिया था, लेकिन सपना को अभिनय के बिना अपनी दुनिया अंधकारमय नजर आ रही थी. इसलिए उस ने भी तय कर लिया कि कुछ भी हो जाए, वह अभिनय का साथ किसी भी हालत में नहीं छोड़ेगी. इसलिए उस ने तुरंत फोन कर के सारी बातें अभिनय को बता दीं. अभिनय ने उस का हौसला बढ़ाते हुए कहा, ‘‘चिंता करने की कोई बात नहीं है. हम दोनों ही बालिग हैं, इसलिए अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने में सक्षम हैं.’’

प्रेमी की इस बात से सपना को काफी सुकून मिला. लेकिन अब उस के घर से अकेली निकलने पर पाबंदी लगा दी गई. इसी के साथ कुंवरपाल ने उस की शादी के लिए लड़के की तलाश भी जोरशोर से शुरू कर दी. वह बीएड की पढ़ाई पूरी होते ही सपना की शादी कर देना चाहता था.

इधर कुंवरपाल सपना की शादी के लिए लड़का ढूंढ रहा था, उधर उस ने अभिनय से शादी करने का फैसला कर लिया था. यह अप्रैल, 2014 की बात है.

दरअसल, सपना मौका निकाल कर अभिनय से बातें तो कर ही लेती थी, कभीकभार घर वालों की चोरी से मिल भी लेती थी. कुंवरपाल को संदेह था कि बेटी कोई भी उल्टासीधा कदम उठा सकती है, इसलिए उस ने रजिस्ट्रार औफिस के कर्मचारियों से सांठगांठ कर ली थी कि अगर सपना वहां विवाह के लिए आवेदन करती है तो तुरंत उसे इस बात की जानकारी दे दी जाए.

सपना के घर से निकलने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई, जिस से उस का बीएड भी पूरा नहीं हो सका. उस का फोन भी छीन लिया गया था. ऐसे में सपना का साथ उस की छोटी बहन प्रार्थना ने दिया. बहन की भावनाओं का खयाल रखते हुए वह कभीकभार अपने फोन से उस की बात अभिनय से करा देती थी.

29 मई, 2014 को प्रार्थना की मदद से सपना घर से बाहर निकली और वहां पहुंच गई, जहां अभिनय 2-3 महिलाओं और 4-5 पुरुषों के साथ उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस ने फिरोजाबाद के ही उलाऊखेड़ा प्रांगण में बने आर्यसमाज मंदिर में विधिविधान से विवाह करने की व्यवस्था पहले से ही कर रखी थी, इसलिए सपना को साथ ले कर वह सीधे वहीं पहुंच गया.

फरेब के जाल में फंसी नीतू – भाग 2

यह एक अजीब सी बात इस लिहाज से थी कि हत्या के मामले में किसी भी पिता की कोशिश बेटे को बचाने की रहती है. लेकिन बाबूलाल इस का अपवाद था. हालांकि संभावना इस बात की भी थी कि वह वाकई सच बोल रहा हो क्योंकि रामजी घोषित तौर पर मंदबुद्धि वाला था और गुस्सा आ जाने पर ऐसा कर भी सकता था. लेकिन इस थ्यौरी में आड़े यही बात आ रही थी कि कोई मंदबुद्धि इतनी प्लानिंग से हत्या नहीं कर सकता.

अभयराज सिंह ने नीतू के बारे में जानकारियां इकट्ठी करने के लिए एक लेडी कांस्टेबल को काम पर लगा दिया था. अलबत्ता अभी तक की जांच में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई थी जिस से यह लगे कि नीतू के चालचलन में कोई खोट थी. ये सब बातें अभयराज ने जब आला अफसरों से साझा कीं तो उन्होंने बाबूलाल को टारगेट करने की सलाह दी.

महिला कांस्टेबल की दी जानकारियों ने मामला सुलझाने में बड़ी मदद की. पता यह चला कि नीतू दूसरी महिलाओं के साथ मजदूरी करने ब्यौहारी जाती थी और शाम तक लौट आती थी. 25 मार्च को यानी हादसे के दिन भी वह मजदूरी करने गई थी. लेकिन लौटते वक्त वह गांव के बाहर से ही अपने ससुर बाबूलाल से मिलने खेत की तरफ चली गई थी.

बाबूलाल शक के दायरे में तो पहले से ही था पर इस खुलासे से उस पर शक और गहरा गया था. चूंकि उसे धर दबोचने के लिए कोई पुख्ता सबूत या गवाह नहीं था. इसलिए पुलिस ने बारबार पूछताछ करने का अपना परंपरागत तरीका आजमाया.

इस पूछताछ में उस के साथ कोई जोर जबरदस्ती नहीं की गई और न ही कोई यातना दी गई. पुलिस ने तरहतरह से उसे धर्मग्रंथों का हवाला दिया कि जो जैसे कर्म करता है उसे वैसा ही फल भुगतना पड़ता है. फिर चाहे वह नीचे धरती पर मिले या ऊपर कहीं मिले.

धर्मगुरुओं  की तरह प्रवचन दे कर जुर्म कबूलवाने का शायद यह पहला मामला था. कर्म फल और पाप पुण्य की पौराणिक कहानियों का बाबूलाल पर वाजिब असर पड़ा और उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया.

यह डर था या ग्लानि थी यह तो शायद बाबूलाल भी न बता पाए, लेकिन नीतू की हत्या की जो वजह उस ने बताई वह वाकई अनूठी थी. कहानी सुनने से पहले पुलिस ने उस की निशानदेही पर खेत में छिपाई गई चप्पलें व साड़ी बरामद करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई.

बहू नीतू की हत्या की वजह बताते हुए बाबूलाल का चेहरा सपाट था. बाबूलाल तब किशोरावस्था में था जब उस के पिता संतोषी राठौर की मौत हो गई थी. शादी के बाद पत्नी भी ज्यादा साथ नहीं निभा पाई, लेकिन इन तकलीफों से बड़ी उस की तकलीफ मंदबुद्धि बेटा रामजी था.

जवान होते रामजी को देख बाबूलाल का कलेजा मुंह को आता था कि उस के बाद यह लड़का किस के भरोसे रहेगा. कम अक्ल रामजी को पालतेपोसते बाबूलाल ने कई जगह उस की शादी की बात चलाई लेकिन जिस ने भी रामजी की मंदबुद्धि के चर्चे सुने उस ने बाबूलाल के सामने हाथ जोड़ लिए. खेतीकिसानी बहुत ज्यादा भी नहीं थी, इसलिए बाबूलाल ज्यादा पैसों के लिए खेतों में हाड़तोड़ मेहनत करता था, जिस के चलते 54 साल की उम्र भी उस पर हावी नहीं हो पाई थी.

फिर एक दिन पागल कहे जाने वाले रामजी की तब मानो लाटरी लग गई, जब बात चलाने पर नीतू के घर वाले रामजी से उस की शादी करने तैयार हो गए. नीतू गठीले बदन की चंचल लड़की थी, जिसे पत्नी बनाने का सपना आसपास के गांवों के कई युवक देख रहे थे.

गोरीचिट्टी नीतू की खूबसूरती के चर्चे हर कहीं थे पर लोग यह जानकर हैरान रह गए कि उस की शादी रामजी से हो रही है, जिसे गांव की भाषा में पागल, सभ्य लोगों की भाषा में मंदबुद्धि और आजकल सरकारी जुबां में मानसिक रूप से दिव्यांग कहा जाता है.

जब नीतू के घर वालों ने रिश्ते के बाबत हां भर दी तो बाबूलाल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. घर में बहू के पांव पड़ेंगे, अरसे बाद छमछम पायल बजेगी और जल्द ही पोता उस की गोद में होगा जैसी बातें सोच कर वह अपनी गुजरी और मौजूदा जिंदगी के दुख भूलता जा रहा था.

उधर रामजी पर इस का कोई असर नहीं पड़ा था, वह तो अपनी दुनिया में मस्त था, जैसे कुछ हो ही नहीं रहा हो. शादी के नए कपड़े, धूमधड़ाका, बैंडबाजा बारात वगैरह उस के लिए बच्चों के खेल जैसी बातें थीं. पर बाबूलाल का मन कह रह था कि बहू के आते ही वह सुधर भी सकता है.

खुशी से फूले नहीं समा रहे बाबूलाल को आने वाली परेशानियों और दुश्वारियों का अहसास तक नहीं था. नीतू बहू बन कर आई तो वाकई घर में रौनक आ गई. पर यह रौनक चार दिन की चांदनी सरीखी साबित हुई.

सुहागरात के वक्त नीतू शर्माती लजाती कमरे में बैठी पति का इंतजार कर रही थी कि वह आएगा, रोमांटिक और प्यार भरी बातें करेगा, फिर मन की बातों के बाद धीरे से तन की बात करेगा और फिर… फिल्मों और टीवी सीरियलों में देखे सुहागरात के दृश्य नीतू की जवानी और सपनों को पर लगा रहे थे जिन्हें सोच कर ही वह रोमांचित हुई जा रही थी.

रामजी कमरे में आया और बगैर कुछ कहे सुने बिस्तर पर गया तो नीतू एकदम से कुछ समझ नहीं पाई. उस रात रामजी ने कुछ नहीं किया तो यह सोच कर नीतू ने खुद के मन को तसल्ली दी कि होगी कोई वजह और आजकल के मर्द भी शर्माने में औरतों से कम नहीं हैं.

यह सिलसिला लगातार चला तो शर्म छोड़ते खुद नीतू ने पहल की लेकिन यह जानसमझ कर वह सन्न रह गई कि रामजी मानसिक ही नहीं बल्कि शारीरिक तौर पर भी अक्षम है. एक झटके में आसमान से जमीन पर गिरी नीतू की हालत काटो तो खून नहीं जैसी हो गई थी.

घर के कामकाज करती नीतू को लगने लगा था कि उस की हैसियत एक नौकरानी से ज्यादा कुछ नहीं है और बाबूलाल व रामजी ने उसे धोखा दिया है. यह सोच कर वह चोट खाई नागिन की तरह फुंफकारने लगी. इस पर रामजी ने उसे मारना पीटना शुरू कर दिया तो वह मायके चली गई और दहेज की रिपोर्ट भी लिखा दी. बेटेबहू के बीच अनबन की असल वजह जब बाबूलाल को पता चली तो वह अवाक रह गया.

अब उसे समझ आया कि क्यों बातबात पर नीतू गुस्सा होती रहती है. इधर दहेज की रिपोर्ट तलवार बन कर उस के सिर पर लटक रही थी. रामजी को तो कोई फर्क नहीं पड़ता था लेकिन पुलिस काररवाई से उस का नप जाना तय था.

सपना का अधूरा सपना – भाग 1

फिरोजाबाद की नवनिर्मित कालोनी सुदामानगर के रहने वाले कुंवरपाल सिंह यादव के जानवरों के लगातार रंभाने  से पड़ोसियों का ध्यान उन की ओर गया. इस की वजह यह थी कि वे इस तरह रंभा रहे थे, जैसे उन्हें कई दिनों से चारापानी न मिला हो. उन के रंभाने से परेशान हो कर पड़ोसी कुंवरपाल के घर गए तो पता चला कि घर में बाहर से ताला बंद है.

कुंवरपाल का इस तरह ताला बंद कर के घर छोड़ कर जाना हैरान करने वाला था. क्योंकि उन्होंने तमाम गाएं और भैंसें पाल रखी थीं, इसलिए उन्हें छोड़ कर वह पूरे परिवार के साथ कहीं नहीं जा सकते थे. लोगों को किसी अनहोनी की आशंका हुई तो कालोनी के 2 लड़के कुंवरपाल के बगल वाले घर की सीढि़यों से चढ़ कर छत के रास्ते उन के घर जा पहुंचे.

नीचे कमरे में उन्होंने जो देखा, उन की चीख निकल गई. एक कमरे में पड़े तखत पर एक लाश पड़ी थी. लड़कों ने उसे पहचान लिया, वह कुंवरपाल की बड़ी बेटी सपना की लाश थी. उस के दोनों हाथों में नंगा तार बंधा था, जिस का दूसरा छोर स्विच बोर्ड के पास नीचे फर्श पर पड़ा था. देखने से ही लग रहा था कि उसे करंट लगा कर मारा गया था.

उन लड़कों के चीखने से बाहर खड़े लोग समझ गए कि अंदर कोई अनहोनी घटी है. जब लड़कों ने बाहर आ कर पूरी बात बताई तो उन्हें थोड़ा राहत महसूस हुई कि घर के बाकी लोग जहां भी हैं, सुरक्षित हैं. फिर भी लोगों के मन में आशंका तो थी ही, इसलिए तरहतरह की बातें होने लगीं.

जिस ने भी कुंवरपाल की बेटी सपना की हत्या के बारे में सुना, उस के घर की ओर भागा. यह इलाका फिरोजाबाद की उत्तर कोतवाली के अंतर्गत आता था, इसलिए सूचना पा कर कोतवाली प्रभारी शशिकांत शर्मा एसएसआई के.पी. सिंह, एसआई अर्जुनलाल वर्मा, सिपाही धर्मेंद्र सिंह, श्यामसुंदर और उमेशचंद को साथ ले कर कुंवरपाल के घर आ पहुचे.

कोतवाली प्रभारी शशिकांत शर्मा ताला तोड़वा कर कुछ लोगों के साथ घर के अंदर पहुंचे तो तखत पर पड़ी लाश देख कर हैरान रह गए. क्योंकि लाश देख कर ही लग रहा था कि लड़की की हत्या करंट लगा कर बड़ी बेरहमी से की गई थी. उन्होंने फोटोग्राफर बुला कर घटनास्थल की और लाश की फोटोग्राफी कराई. इस के बाद लाश का बारीकी से निरीक्षण शुरू किया. मृतका की गर्दन पर करंट लगाने के निशान साफ नजर आ रहे थे. दाएं हाथ की अंगुली में तो करंट लगाने से छेद हो गया था.

मामला हत्या का था, इसलिए कोतवाली प्रभारी शशिकांत शर्मा ने घटना की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. घर के अन्य लोग गायब थे, इसलिए पुलिस को संदेह हो रहा था कि कहीं इस हत्या में घर वालों का ही हाथ तो नहीं है. क्योंकि ऐसा कहीं से नहीं लग रहा था कि मृतका के घर में अकेली होने पर बाहर के लोगों ने आ कर उस की हत्या की हो. क्योंकि वहां न तो लूटपाट का कोई निशान था, न दुष्कर्म का. पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर कुंवरपाल के मकान को सील कर दिया. यह 26 जुलाई, 2014 की घटना थी.

उसी दिन शाम 5 बजे के आसपास फिरोजाबाद के ही लोहियानगर का रहने वाला अभिनय राणा जिलाधिकारी विजय करन आनंद के आवास पर अपने कुछ साथियों के साथ पहुंचा. जिलाधिकारी से मिल कर उस ने बताया कि सुदामानगर में जिस लड़की की हत्या हुई है, वह उस की पत्नी सपना थी. उस की हत्या उस के पिता कुंवरपाल यादव ने पत्नी उर्मिला यादव तथा 2 सालों नंदकिशोर और राधाकिशन के साथ मिल कर की थी.

अभिनय राणा ने सपना को पत्नी बताया ही नहीं था, बल्कि पत्नी होने के तमाम सुबूत भी जिलाधिकारी को दिए थे. सुबूत देख कर जिलाधिकारी को समझते देर नहीं लगी कि यह औनर किलिंग का मामला है. उन्होंने तुरंत अभिनय राणा की तहरीर पर कोतवाली प्रभारी शशिकांत शर्मा को सपना की हत्या का मुकदमा दर्ज करने का आदेश कर दिया था.

अभिनय राणा जिलाधिकारी आवास से सीधे उत्तर कोतवाली पहुंचा और जिलाधिकारी के आदेश वाली तहरीर तथा सारे सुबूत कोतवाली प्रभारी शशिकांत शर्मा के सामने रख दिए तो उस तहरीर और सुबूतों के आधार पर उन्होंने अभिनय राणा की पत्नी सपना की हत्या का मुकदमा उस के पिता कुंवरपाल सिंह यादव, मां उर्मिला यादव तथा दोनों मामाओं, नंदकिशोर और राधाकिशन के नाम दर्ज करा कर मामले की जांच की जिम्मेदारी खुद संभाल ली.

नामजद मुकदमा दर्ज होते ही अभियुक्तों की तलाश में कोतवाली प्रभारी शशिकांत शर्मा ने अपनी टीम के साथ लगभग दर्जन भर जगहों पर छापे मारे, लेकिन एक भी अभियुक्त उन के हाथ नहीं लगा. वह मुखबिरों के साथसाथ सर्विलांस की भी मदद ले रहे थे. लेकिन सभी अभियुक्तों के मोबाइल बंद थे, इसलिए उन्हें सर्विलांस का कोई फायदा नहीं मिल रहा था.

घटना से पूरे 15 दिनों बाद रक्षाबंधन के अगले दिन यानी 11 अगस्त को किसी मुखबिर से शशिकांत शर्मा को कुंवरपाल के बारे में पता चल गया कि वह कहां छिपा है. फिर क्या था, शशिकांत शर्मा ने अपने सहयोगियों एसएसआई के.पी. सिंह, एसआई अर्जुनलाल वर्मा, सिपाही धर्मेंद्र सिंह, उमेशचंद और श्यामसुंदर के साथ रात 2 बजे छापा मार कर कुंवरपाल सिंह यादव को गिरफ्तार कर लिया.

कुंवरपाल राजनीतिक पहुंच वाला आदमी था. उस ने अपनी इस पहुंच के बल पर पुलिस पर दबाव बनाने की कोशिश भी की, लेकिन उस की एक नहीं चली. उस ने जिसे भी फोन किया, उस ने उस समय किसी भी तरह की मदद करने से मना कर दिया. इस तरह उस की गिरफ्तारी के बाद उस की जानपहचान का कोई भी नेता उस के काम नहीं आया.

थाने ला कर कुंवरपाल से पूछताछ शुरू हुई. जाहिर सी बात है, कोई भी जल्दी से यह नहीं स्वीकार करता कि उस ने अपराध किया है. कुंवरपाल भी झूठ बोलता रहा. लेकिन पुलिस के पास उस के हत्यारे होने के तमाम सुबूत थे. इसलिए उन्हीं सुबूतों के बल पर पुलिस ने उस से स्वीकार करा लिया कि सपना की हत्या उसी ने की थी.

इस के बाद कुंवरपाल ने सपना की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कंपा देने वाली थी. उस के द्वारा सुनाई गई कहानी और अभिनय राणा द्वारा सुनाई गई कहानी को मिला कर सपना की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी.

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद की नवनिर्मित कालोनी सुदामानगर के रहने वाले कुंवरपाल सिंह यादव की बड़ी बेटी सपना के जवानी में कदम रखते ही वह नौजवानों का सपना बन गई थी. उस की उम्र का वह हर नौजवान उस का सपना देखने लगा था, जिस ने उसे एक बार देख लिया था.

लेकिन हर किसी का सपना कहां पूरा होता है. पूरा होता भी कैसे, सपना अकेली थी, जबकि उस का सपना देखने वाले तमाम नौजवान थे. जवान और खूबसूरत सपना यादव जल्दी ही सहपाठियों की ही नहीं, कालेज के तमाम नौजवानों के दिल की धड़कन बन चुकी थी.

यही नहीं, कालोनी और जिस रास्ते से वह आतीजाती थी, उस रास्ते के भी तमाम नौजवान उसे हसरतभरी नजरों से ताकते थे. उसे देखने वाला हर नौजवान उस की नजदीकी के लिए बेताब रहने लगा था. सपना का सपना देखने वाले भले ही तमाम लोग थे, लेकिन उन में से कोई भी सपना का सपना नहीं था. उस का सपना तो कोई और ही था.