फरेब के जाल में फंसी नीतू – भाग 1

लाश की हालत देख कर पुलिस वाले तो दूर की बात कोई भी आम आदमी बता देता कि हत्यारा या हत्यारे मृतका से किस हद तक नफरत करते होंगे. साफ लग रहा था कि हत्या प्रतिशोध के चलते पूरी नृशंसता से की गई थी और युवती के साथ बेरहमी से बलात्कार भी किया गया था.

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को जोड़ते जिला शहडोल के ब्यौहारी थाने के इंचार्ज इंसपेक्टर सुदीप सोनी को भांपते देर नहीं लगी कि मामला उम्मीद से ज्यादा गंभीर है. 25 मार्च की सुबहसुबह ही उन्हें नजदीक के गांव खामडांड में एक युवती की लाश पड़ी होने की खबर मिली थी. वक्त न गंवा कर सुदीप सोनी ने तुरंत इस वारदात की खबर शहडोल से एसपी सुशांत सक्सेना को दी और पुलिस टीम ले कर खामडांड घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

गांव वाले जैसे उन के आने का ही इंतजार कर रहे थे. पुलिस टीम के आते ही मारे उत्तेजना और रोमांच के उन्होंने सुदीप को बताया कि लाश गांव से थोड़ी दूर आम के बगीचे में पड़ी है. पुलिस टीम जब आम के बाग में पहुंची तो लाश देखते ही दहल उठी. ऐसा बहुत कम होता है कि लाश देख कर पुलिस वाले ही अचकचा जाएं.

लाश लगभग 24 वर्षीय युवती की थी, जिस की गरदन कटी पड़ी थी. अर्धनग्न सी युवती के शरीर पर केवल ब्लाउज और पेटीकोट थे. ब्लाउज इतना ज्यादा फटा हुआ था कि उस के होने न होने के कोई माने नहीं थे. दोनों स्तनों पर नाखूनों की खरोंच के निशान साफसाफ दिखाई दे रहे थे.

पेटीकोट देख कर भी लगता था कि हत्यारे चूंकि उसे साथ नहीं ले जा सकते थे इसलिए मृतका की कमर पर फेंक गए थे. युवती के गुप्तांग पर जलाए जाने के निशान भी साफसाफ नजर आ रहे थे. गाल पर दांतों से काटे जाने के निशान देख कर शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी कि मामला बलात्कार और हत्या का था.

खामडांड छोटा सा गांव है जिस में अधिकतर पिछडे़ और आदिवासी रहते हैं इसलिए पुलिस को लाश की शिनाख्त में दिक्कत पेश नहीं आई. लाश के मुआयने के बाद जैसे ही सुदीप सोनी गांव वालों से मुखातिब हुए तो पता चला कि मृतका का नाम नीतू राठौर है और वह इसी गांव के किसान बाबूलाल राठौर की बहू और रामजी राठौर की पत्नी है.

सुदीप ने तुरंत उपलब्ध तमाम जानकारियां सुशांत सक्सेना को दीं और उन के निर्देशानुसार जांच की जिम्मेदारी एसआई अभयराज सिंह को सौंप दी. चूंकि लाश की शिनाख्त हो चुकी थी इसलिए पुलिस के पास करने को एक ही काम रह गया था कि जल्द से जल्द कातिल का पता लगाए.

कागजी काररवाई पूरी कर  के नीतू की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. नीतू की हत्या की खबर उस के मायके वालों को भी दे दी गई थी जो मऊ गांव में रहते थे. मौके पर अभयराज सिंह को कोई सुराग नहीं लग रहा था. अलबत्ता यह बात जरूर उन की समझ में आ गई थी कि कातिल उन की पहुंच से ज्यादा दूर नहीं है. छोटे से गांव में मामूली पूछताछ में यह उजागर हुआ कि नीतू के घर में उस के ससुर बाबूलाल और पति रामजी के अलावा और कोई नहीं है.

नीतू और रामजी की शादी अब से कोई 4 साल पहले हुई थी. बाबूलाल का अधिकांश वक्त खेत में ही बीतता था और इन दिनों तो फसल पकने को थी इसलिए दूसरे किसानों की तरह वह खाना खाने ही घर आता था. फसल की रखवाली के लिए वह रात में सोता भी खेत पर ही था.

इसी पूछताछ में जो अहम जानकारियां पुलिस के हाथ लगीं उन में से पहली यह थी कि रामजी एक कम बुद्धि वाला आदमी है और आए दिन नीतू से उस की खटपट होती रहती थी. दूसरी जानकारी भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं थी कि 2 साल पहले 2016 में इन पतिपत्नी के बीच जम कर झगड़ा हुआ था. झगड़े के बाद नीतू मायके चली गई थी और उस ने ससुर व पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज कराया था, पर बाद में सुलह हो जाने पर नीतू वापस ससुराल आ गई थी.

ब्यौहारी थाने में पुलिस ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया और नीतू का शव उस के ससुराल वालों को सौंप दिया. दूसरे दिन ही उस का अंतिम संस्कार भी हो गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उस की हत्या धारदार हथियार से गला काट कर की गई थी.

ये जानकारियां अहम तो थीं लेकिन हत्यारों तक पहुंचने में कोई मदद नहीं कर पा रही थीं. गांव वाले भी कोई ऐसी जानकारी नहीं दे पा रहे थे जिस से कातिल तक पहुंचने में कोई मदद मिलती.

नीतू के अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने उस के मायके वालों से पूछताछ की तो उन्होंने सीधेसीधे हत्या का आरोप बाबूलाल और रामजीलाल पर लगाया. उन का कहना था कि शादी के बाद से ही बापबेटे दोनों नीतू को दहेज के लिए मारतेपीटते रहते थे. लेकिन नीतू की हत्या जिस तरह हुई थी उस से साफ उजागर हो रहा था कि हत्या बलात्कार के बाद इसलिए की गई थी कि हत्यारा अपनी पहचान छिपा सके. वैसे भी आमतौर पर दहेज के लिए हत्याएं इस तरह नहीं की जातीं.

रामजी राठौर के बयानों से पुलिस वालों को कुछ खास हासिल नहीं हुआ, क्योंकि बातचीत करने पर ही समझ आ गया था कि यह मंदबुद्धि आदमी कुछ भी बोल रहा है. पत्नी की मौत का उस पर कोई खास असर नहीं हुआ था. अभयराज सिंह को वह कहीं से झूठ बोलता नहीं लगा. मंदबुद्धि लोगों को गुस्सा आ जाए तो वे हिंसक भी हो उठते हैं पर इतने योजनाबद्ध तरीके से हत्या करने की बुद्धि उन में होती तो वे मंदबुद्धि क्यों कहलाते.

बाबूलाल से पूछताछ की गई तो उस ने अपने खेत पर व्यस्त होने की बात कही. लेकिन हत्या का शक बेटे रामजी पर ही जताया. इशारों में उस ने पुलिस को बताया कि रामजी चूंकि पागल है इसलिए गुस्से में आ कर पत्नी की हत्या कर सकता है.

बाबूलाल ने अपनी बात में दम लाते हुए यह भी कहा कि मुमकिन है कि नीतू रामजी के साथ सोने से इनकार कर रही हो, इसलिए रामजी को उसे मारने की हद तक गुस्सा आ गया हो और इसी पागलपन में उस ने नीतू की हत्या कर डाली हो.

रेपिस्ट बाप ठहराया गुनहगार

17 जुलाई, 2023 को मुरादाबाद पोक्सो कोर्ट प्रथम की अदालत में कुछ ज्यादा ही गहमागहमी थी. उस दिन अब से 5 साल पहले गांव रतनपुर कलां निवासी रीना नाम की महिला ने थाना मझोला, मुरादाबाद में 19 जून, 2018 को अपने पति बलवीर उर्फ राजेश के खिलाफ उस की 11 साल की बेटी के साथ लगातार बलात्कार करने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

17 जून, 2023 को उक्त केस का फैसला विशेष न्यायाधीश (पोक्सो ऐक्ट) कोर्ट नंबर (1) डा. केशव गोयल की अदालत में इस बहुचर्चित केस का फैसला आना था. उस दिन अदालत खचाखच भरी हुई थी. अदालत परिसर में वकीलों, पुलिस वालों व मीडिया का जमावड़ा था. न्यायाधीश डा. केशव गोयल ने जैसे ही कोर्ट रूम में प्रवेश किया तो वहां उपस्थित लोगों, वकीलों, पुलिस वालों ने उन्हें खड़े हो कर सम्मान दिया. न्यायाधीश ने लोगों को बैठने का इशारा करते हुए कुरसी पर बैठते ही आदेश दिया कि अदालत की काररवाई शुरू की जाए.

न्यायाधीश का आदेश मिलते ही सरकारी वकील मनोज वर्मा व अभिषेक भटनागर ने दलील देते हुए एक स्वर में कहा, “मी लार्ड, हम अदालत में 6 गवाहों को प्रस्तुत कर चुके हैं, जिन के बयानों से साफ जाहिर है कि अदालत के कटघरे में खड़ा व्यक्ति बलवीर उर्फ राजेश ने ही अपनी सगी बेटी नीलम, जिस की उम्र घटना के समय 11 साल थी, के साथ बलात्कार किया व लगातार करता रहा. इस घिनौने कृत्य वाले व्यक्ति को कठोरतम सजा दी जाए. ऐसा व्यक्ति समाज में रहने लायक नहीं है, इस को कितनी भी बड़ी सजा दी जाए वह कम है.”

बचाव पक्ष के वकील शमशाद अहमद ने कहा, “मी लार्ड, मेरे मुवक्किल को झूठा फंसाया जा रहा है. मामला 2 करोड़ रुपए से संबंधित है. मेरे मुवक्किल ने अपना पुश्तैनी मकान व खेती की जमीन बेच कर 2 करोड़ रुपए अर्जित किए थे. पत्नी रीना उन्हें हड़पना चाहती थी. रीना को जब पैसा नहीं दिया गया तो उस ने झूठा केस करा दिया.”

वकील शमशाद अहमद ने अदालत को भरोसा दिलाते हुए कहा, “वह निर्दोष है व शादीशुदा है. उस के परिवार के पालनपोषण का पूरा दायित्व उस पर है. उसे कम से कम सजा दी जाए.”

इस का विरोध करते हुए सरकारी वकील मनोज वर्मा व अभिषेक भटनागर ने अदालत को बताया, “मी लार्ड, अभियुक्त बलवीर उर्फ राजेश की बड़ी बेटी नीलम का बयान ही अहम है, जिस ने अपने साथ हुई दङ्क्षरदगी के विषय में बयान दर्ज करवाया है कि उस के साथ क्या हुआ है.

“धारा 164 के तहत पीडि़ता के बयान, पीडि़ता की मां रीना का शपथ पत्र, मौखिक बयान थाना मझोला की कांस्टेबल नीतू चौधरी का मौखिक बयान शपथ पत्र, मुरादाबाद जिला चिकित्सालय की मुख्य चिकित्सा अधीक्षिका (सीएमएस) डा. सुनीता द्वारा मौखिक बयान का शपथ पत्र, एएचएम इंटर कालेज रतनपुर के टीचर जावेद खान का बयान व शपथ पत्र कि पीडि़ता लडक़ी कक्षा- 6 तक स्कूल में पढ़ी थी, उस की जन्म तिथि 5 जनवरी, 2009 है.

“मी लार्ड, ये सारे सबूत आरोपी को सजा दिलाने के लिए अहम हैं. इसलिए आरोपी बलवीर उर्फ राजेश को कठोरतम सजा दी जाए.”

जज ने बलवीर को सुनाई सजा

वकीलों की बहस सुनने के बाद विशेष न्यायाधीश डा. केशव गोयल ने कहा कि अदालत में पेश किए गए तमाम सबूतों, गवाहों के बयानों और दोनों पक्षों के वकीलों की जिरह के बाद अदालत आरोपी बलवीर उर्फ राजेश को दोषी ठहराती है.

उन्होंने भादंसं की धारा-6 पोक्सो ऐक्ट के तहत उसे 20 वर्ष कैद की सजा के अलावा 80 हजार रुपए का जुरमाना भी लगाया. उन्होंने कहा कि अर्थदंड अदा न किए जाने की स्थिति में मुजरिम को 1 माह का अतिरिक्त साधारण कारावास भुगतना होगा. धारा 376 (भादंसं) का आरोप उक्त दंडादेश में समाहित माना जाएगा.

भादंवि की धारा 323 में उसे 6 माह की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी. अर्थदंड की 80 हजार की धनराशि में से 60 हजार रुपए पीडि़ता को दिए जाएंगे. सभी सजाएं साथसाथ चलेंगी. उन्होंने यह भी कहा कि पूर्व में जिला कारागार में बिताई गई अवधि उपरोक्त दंड में समायोजित की जाएगी.

मुलजिम बलवीर उर्फ राजेश मूलत: उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद के थाना पाकबड़ा के अंतर्गत रतनपुर कलां कस्बे का निवासी है. उस का विवाह गांव हजरत नगर गढ़ी की रीना से हुआ था. शादी के बाद बलवीर उर्फ राजेश 4 बच्चों का पिता बना, जिन में 2 बेटियां तथा 2 बेटे हैं. बलवीर शुरू से ही आपराधिक प्रवृत्ति का था.

घटना से 5 साल पहले बलवीर की छोटी बेटी सीमा का जब जन्म हुआ था, तब रीना ने बलवीर की बुआ की बेटी कमलेश को घरेलू कामकाज के लिए बुला लिया था. बलवीर ने नाबालिग कमलेश के साथ बलात्कार किया, जिस कारण रतनपुर कलां कस्बे में रोष व्याप्त हो गया. समाज ने बलवीर का हुक्कापानी बंद कर दिया था.

शर्मिंदगी के कारण रीना अपनी छोटी बेटी को ले कर अपने मायके हजरत नगर गढ़ी आ गई थी. बलवीर को कस्बे के लोगों ने लानतें देनी शुरू कीं. बलवीर जब बदनाम होने लगा तो उस ने रतनपुर कलां कस्बे से अपना मकान व खेती की जमीन जिस का मूल्य करीब 2 करोड़ रुपए था, बेच कर 2 बेटों व बड़ी बेटी नीलम को ले कर मुरादाबाद के थाना मझोला के अंतर्गत कांशीराम कालोनी में आ कर रहने लगा था. उस समय नीलम की उम्र 11 साल थी.

बड़ी बेटी से किया रेप

एक दिन बलवीर खूब शराब पी कर घर आया था. उस ने अपनी बड़ी बेटी नीलम को अपनी हवस का शिकार बना डाला. नीलम के दोनों भाई छोटे नासमझ थे. पिता के डर की वजह से नीलम ने यह बात किसी को नहीं बताई. इस के बाद तो बलवीर नीलम के साथ रोजाना ही बलात्कार करता रहा. जब कभी नीलम ने विरोध करती तो वह उस के साथ मारपीट करता था. नीलम जब रोतीचिल्लाती कहती कि मुझे मेरी मां के पास ले चलो तो वह अकसर उस के साथ मारपीट करता था.

अब बलवीर को यह एहसास हो गया कि मामला अगर खुल गया तो क्या होगा. बेटी नीलम ने यदि मोहल्ले वालों को बता दिया तो उसे जेल जाना पड़ सकता है. बलवीर अपने 2 बेटोंव बेटी नीलम के अलावा सगी बुआ की बेटी कमलेश के साथ रहता था. कमलेश उस के साथ पत्नी की तरह रहती थी. उस के कुकर्मों का भेद न खुले, इस के लिए उस ने गजरौला जिला अमरोहा के पास कांकाठेर में एक मकान खरीद लिया और उस में जा कर शिफ्ट हो गया था. वहां पर भी वह अपनी बेटी नीलम को अपनी हवस का शिकार बनाता रहा.

पिता के दुष्कर्म से नीलम जब ज्यादा ही परेशान हो गई तो एक दिन वह अपने पिता से भिड़ गई. जोरजोर से चिल्लाने लगी तो बलवीर की कथित पत्नी कमलेश ने उसे खाने में चूहेमार दवा मिला कर खिला दी. इस के बाद उस की हालत बिगड़ गई तो उसे उल्टी दस्त होने लगे.

जहर उल्टी दस्तों में निकल गया. जब नीलम नौरमल हुई तो भेद खुलने के डर से बलवीर ने उस से कहा कि ठीक है, हम तुम्हें तुम्हारी मम्मी के पास ले चलेंगे. लेकिन तू इस बात का ध्यान रखना कि बलात्कार की बात अगर किसी को बताई तो मैं तेरे दोनों भाइयों की हत्या कर दूंगा.

नीलम ने वादा कर लिया कि वह किसी को नहीं बताएगी. फिर फरवरी 2018 में बलवीर अपनी बेटी नीलम को थाना पाकबड़ा के आगे गांव गुमसानी के पास छोड़ कर चला गया. गांव गुमसानी में नीलम की बुआ पनवेश्वरी का घर था, वह वहां पर चली गई थी. इस की सूचना पनवेश्वरी ने नीलम की मां रीना को दी. सूचना मिलते ही वह अपनी बेटी नीलम को ले कर अपने मायके हजरत नगर गढ़ी चली आई.

गांव में रीना का खर्च उस के भाई उठा रहे थे. बेटी नीलम ने मां को बताया कि पहले पापा बलवीर मुरादाबाद की कांशीराम नगर कालोनी में रहते थे, अब वह गजरौला के गांव कांकाठेर में रह रहे हैं.

रीना ने बेटी से कहा कि देखो, तुम लोग अब बड़े हो रहे हो. अब अपनी जरूरत का सामान जब बांधो और चलो, तुम्हारे पापा बलवीर के पास चलते हैं. वहीं पर हम सभी रहेंगे.

इतना सुनते ही नीलम फफकफफक कर रोने लगी और बोली, “मम्मी, मैं वहां पर अब कभी नहीं जाऊंगी.”

बेटी को इस तरह रोता देख मां रीना बोली, “बेटी, क्या बात है?”

तब नीलम ने रोते हुए बताया कि पापा उस के साथ गंदा काम करते हैं. रोजाना शराब पी कर आना व मेरे साथ रोजाना गंदा काम करना उन की आदत में शुमार था.

इतना सुनते ही रीना गश खा कर जमीन पर गिर गई और बेहोश हो गई. जब उसे होश आया तो उस ने सीने पर पत्थर रख कर बेटी नीलम से कहा, “मैं अब उसे कभी माफ नहीं करूंगी.”

रीना अपनी बेटी को ले कर मुरादाबाद मोहल्ला खुशहालपुर अपने रिश्तेदार करतार सिंह के पास पहुंची. करतार सिंह एक जानेमाने वकील थे. रीना और ऊषा ने सारी बातें उन्हें बताईं. बात सुन कर उन का भी सिर शर्म से झुक गया. उन्होंने एसएसपी के नाम रीना की तरफ से एक प्रार्थना पत्र दिया.

पत्र पढ़ कर तत्कालीन एसएसपी हेमराज मीणा भी स्तब्ध रह गए. बोले समाज में यह क्या हो रहा है इंसान भी अब जानवर बन चुका है. उन्होंने रीना के प्रार्थना पत्र पर लिखा कि तुरंत इन की रिपोर्ट दर्ज कर इस व्यक्ति को गिरफ्तार कर जेल की सलाखों में पहुंचाया जाए.

मशक्कत के बाद बलवीर चढ़ा पुलिस के हत्थे

उस समय थाना मझोला के एसएचओ विकास सक्सेना थे. उन्होंने तुरंत ही बलवीर के खिलाफ मुकदमा लिख कर पहले मुरादाबाद के कांशीराम कालोनी में दबिश दी. पता चला कि वह वहां से मकान खाली कर गजरौला के कांकाठेर में मकान खरीद कर रह रहा है. पुलिस ने कांकाठेर गांव में दबिश दी तो वह पहले ही मकान में ताला डाल कर कथित पत्नी कमलेश व दोनों बेटों के साथ फरार हो गया था.

कांकाठेर गांव में वह अपना नाम बदल कर रह रहा था. उस ने अपना नाम राजेश बता रखा था. पता चला कि बलवीर उर्फ राजेश ने कुछ समय पहले वैगनआर गाड़ी खरीदी थी. वह अपने परिवार के साथ उस गाड़ी से फरार हो गया था.

पुलिस ने उस का फोन नंबर सर्विलांस पर लगा रखा था. पुलिस को उस की लोकेशन राजस्थान में मिली थी. पुलिस ने राजस्थान में छापा मारा तो वहां से भी फरार हो चुका था. अब उस की लोकेशन पंजाब व हरियाणा की आ रही थी.

वकील करतार सिंह भी पुलिस के साथ उसे पकड़वाने में मदद कर रहे थे. पुलिस को गाड़ी की जरूरत थी, लेकिन रीना के पास इतना पैसा नहीं था कि वह कोई गाड़ी किराए पर ले कर पंजाब हरियाणा जा सके. तब एसएचओ विकास सक्सेना ने अपने पास से 5 हजार रुपए दिए, 5 हजार रुपए रीना के वकील करतार सिंह ने दिए. 10 हजार रुपए में इन्होंने टैक्सी स्टैंड से गाड़ी बुक कर पंजाब व हरियाणा की खाक छानते रहे.

बलवीर उर्फ राजेश अपनी लोकेशन लगातार बदल रहा था. पता चला कि वह पंजाब हरियाणा से भाग कर अमरोहा आ गया था. पुलिस ने उस की लोकेशन ट्रेस कर गजरौला जिला अमरोहा से उसे गिरफ्तार कर लिया था. पूछताछ करने पर उस ने आसानी से अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. बेटी नीलम ने अदालत को अपनी आपबीती 164 के बयान में बताई. कोर्ट में यही बयान अहम माना गया.

20 जून, 2018 को जिला अस्पताल की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डा. सुनीता पांडेय ने पीडि़ता नीलम का मैडिकल परीक्षण किया. डा. सुनीता पांडेय ने अपने शपथ में कहा कि उस दिन थाना मझोला की कांस्टेबल वंदना, उस की मां रीना नीलम को ले कर अस्पताल आई थीं. पीडि़ता पूरे होशोहवास में थी.

पीडि़ता शादीशुदा नहीं थी, उस की माहवारी 10 दिन पहले हुई थी. पीडि़ता के सैक्स आर्गन्स पूरी तरह से विकसित थे. डा. सुनीता पांडेय द्वारा पीडि़ता की योनि के द्रव की स्लाइड बनाई गई थी. उस को पैथोलौजिस्ट के पास जीवित शुक्राणु के लिए भेजा था.

आयु के लिए रेडियोलौजिस्ट के पास एक्सरे के लिए रेफर किया. पीडि़ता के आंतरिक प्राइवेट पाट्र्स पर भी कोई चोट के निशान नहीं थे. हाइमन पुराना फटा जुड़ा हुआ था, यह रिपोर्ट डा. सुनीता पांडे के द्वारा तैयार की गई थी. साक्ष्य के रूप में अदालत ने इसे माना जो अभियुक्त को सजा सुनाने में अहम रहा.

इस मामले में सजा दिलवाने में कोर्ट के 2 कोर्ट मोहर्रिर महेश व पूनम का अहम रोल रहा. इन्होंने गवाहों की समय से कोर्ट में गवाही करवाई, जिस में अभियुक्त को 20 साल का कारावास हो सका.

सजा सुनाए जाने के बाद पुलिस ने मुजरिम बलवीर उर्फ राजेश को हिरासत में लेने के बाद मुरादाबाद की जिला जेल पहुंचा दिया.

—कथा में कमलेश व नीलम परिवर्तित नाम है.

प्रेमी के लिए सिंदूर मिटाया

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब पंद्रह किलोमीटर दूर सुखी सेवनिया थाने के टीआई वी.बी.एस. सेंगर थाना परिसर में ही मौजूद विश्राम कक्ष में आराम के लिए गए थे. वे नींद की आगोश में जाते उस से पहले थाने में एक बदहवास हालत में महिला आई. उस ने अपना नाम अनीता कुशवाह बताया. वह थाना क्षेत्र की एकता नगर कालोनी में रहती थी.

उस ने बताया कि वह महाशिवरात्रि पर्व मनाने के लिए रायसेन में स्थित अपने मायके गई थी. वहां से लौट कर आई तो घर पर पति बबलू कुशवाह नहीं मिला.

यह सुनकर टीआई भी विचलित हुए. क्योंकि वे बबलू कुशवाह को जानते थे. वह ग्राम सचिव था और अकसर कालोनी की समस्याओं या परेशानियों को ले कर थाने आताजाता था. उन्हें भी खटका और अनहोनी की आशंका को सोचते हुए बिना देरी उस की पत्नी अनीता कुशवाह की शिकायत पर 21 फरवरी, 2023 की दोपहर लगभग डेढ़ बजे गुमशुदगी दर्ज कर ली.

इस के अलावा लापता व्यक्ति के संबंध में तहरीर को ले कर की जाने वाली काररवाई शुरू कर दी गई. टीआई ने तुरंत ही इलाका भ्रमण में निकले एसआई टिंकू जाटव को फोन कर के एकता नगर में जा कर पड़ताल करने के आदेश दिए. वह अपने हमराह हवलदार रामेश्वर और मनोहर राय के साथ मौके पर पहुंच गए. वहां वे मामले की तफ्तीश करते तब तक पीछे से अनीता कुशवाह भी रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद घर आ चुकी थी.

सुराग ऐसा मिला कि पुलिस को परेशान करने वाली कडिय़ां जुड़ती चली गईं

अनीता कुशवाह से एसआई टिंकू यादव ने उस के पति बबलू कुशवाह के बारे में कुछ जानकारी लेनी चाही, जैसे उस के करीबी दोस्त, दुश्मन, उठनेबैठने वाले लोगों के नाम आदि. पत्नी ने बताया कि बबलू कुशवाह भोपाल शहर के कबाडख़ाने में रेलवे बर्थ के फरनीचर को बनाने का काम करता था. कई अन्य सवालों पर अनीता कुशवाह ने कोई ठोस मदद पुलिस को नहीं की.

इस के बाद पुलिस ने एकता नगर कालोनी की गलियों में ही पड़ताल का दायरा बढ़ाया. यह कालोनी भोपाल शहर से विस्थापित कर के बसाए गए परिवारों की थी. इस में एक घर उस के 2 छोटे भाइयों सोनू कुशवाह और मोनू कुशवाह का भी था. इस के अलावा एक अन्य गली में उस की मां कमला बाई का भी मकान था. सभी मकानों में एक विशेष बात यह थी कि केवल बबलू कुशवाह का मकान पूरी तरह से बना था, बाकी मकान अर्ध निर्मित थे.

पता चला कि नजदीक ही सेना का सामरिक महत्त्व वाला संस्थान है, जिस कारण एकता नगर में किसी भी मकान को पक्का बनाने की अनुमति नहीं दी जाती थी. बबलू कुशवाह पहले आ गया था, इस कारण ही उस का मकान ठीक तरह से बना था.

इन्हीं छोटीछोटी बातों के बीच पुलिस को पता चला कि बबलू कुशवाह की एकता नगर में रहने वाले असलम खान से नहीं बनती थी. पुलिस संदेह के आधार पर असलम खान को तलाशते हुए उस के पास पहुंची. वह मिल गया और पुलिस उसे पूछताछ के लिए तुरंत थाने ले आई.

लाश तक पहुंचने में पुलिस को आया पसीना

सुखी सेवनिया भोपाल देहात क्षेत्र में आने वाला थाना है. इस के बाद दूसरा जिला लग जाता है. कई गांव और बस्तियां दूरदूर बनी हैं. शुरुआती जांच और असलम खान को थाने में ले कर आतेआते रात हो चली थी. असलम खान पहले तो पुलिस के सामने नहीं टूटा. इसी बीच हवलदार मनोज राय ने मामले की जांच कर रहे एसआई टिंकू जाटव के कान में आ कर एक चौंका देने वाली जानकारी दी.

उस ने बताया कि असलम खान के लापता हुए बबलू कुशवाह की पत्नी अनीता के साथ अवैध संबंध हैं. इन्हीं कारणों से एक साल पहले दोनों के बीच जम कर विवाद भी हुआ था. यह बात हवलदार मनोज राय को बबलू कुशवाह के आसपास रहने वाले लोगों से पता चली थी. यह पता चलते ही टिंकू जाटव सख्त हुए और मनोवैज्ञानिक तरीके से असलम खान से पूछताछ की तो उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया.

उस ने स्वीकार कर लिया कि बबलू कुशवाह की उस ने हत्या कर दी है. उस की लाश पुलपातरा नाले के पास छिपा दी है. हत्या की बात सुनते ही पूरे थाने में हडक़ंप मच गया. टीआई ने यह जानकारी एसडीओपी मंजु चौहान और एसपी (देहात) किरणलता केरकेट्टा को भी दी. मामला संवेदनशील भी था, क्योंकि मारने वाला दूसरे धर्म का असलम खान था. मामला सांप्रदायिक रंग न ले, उस से पहले ही पुलिस असलम खान को ले कर उस जगह पर पहुंची, जहां उस ने लाश को ठिकाने लगाया था.

लाश पुलपातरा नाले के पास सफेद पौलीथिन में लिपटी हुई थी. उस पर हरी घास कुछ इस तरह से बिछा दी थी ताकि शक न हो. घटनास्थल के नजदीक से काफी बदबू भी आ रही थी.

लाश बरामद होने के बाद पुलिस ने मौके पर बबलू कुशवाह के छोटे भाई सोनू कुशवाह को भी बुला लिया था. उस ने उस लाश की शिनाख्त अपने भाई बबलू कुशवाह के रूप में की. उस समय रात काफी हो चली थी इसलिए सुबह होते ही पुलिस ने फोरैंसिक टीम बुला ली थी.

पत्नी ने मिटाए थे घर में फैले सबूत

बबलू कुशवाह की लाश मिलने की खबर स्थानीय लोगों के अलावा मीडिया वालों को मिल चुकी थी. डा. सुनील गुप्ता की अगुवाई में फोरैंसिक टीम सबूत जुटाने में लगी थी. मृतक के सिर पर चोट, गले में धारदार हथियार के जख्म पाए गए. इस बारे में टीआई ने असलम खान से पूछा कि उस ने हत्या कहां की थी तो असलम ने कहा कि उस के ही घर पर.

इस के बाद एफएसएल की टीम सबूत जुटाने के लिए बबलू कुशवाह के घर पर गई. यहां फोरैंसिक टीम ने सबूत जुटाने का प्रयास किया तो वह हैरान हो गई. एफएसएल अधिकारियों को भी अहसास हो गया था कि यह सामान्य हत्याकांड नहीं है. क्योंकि जहां केमिकल डाल कर सबूत जुटाने का प्रयास किया जाता वहां भारी मात्रा में फिनायल से पोछा लगा मिलना पाया जाता. यह पोछा भी कुछ दिन पहले कई बार लगाया गया था.

हालांकि घर में ही रखी सिलाई मशीन पर खून के छींटे मिले. इस के अलावा दीवार पर खून के नमूने मिले. अब पुलिस का यहां से एक बार फिर माथा ठनका और यकीन हो गया कि असलम खान ने अब तक पूरी कहानी नहीं बताई है. उसे थाने ले जा कर पुलिस ने सख्ती बरती. वह बोला तो पुलिस के पैरों तले से जमीन खिसकती चली गई.

उस ने बताया कि कत्ल में एकदो नहीं बल्कि कई लोग शामिल थे. असलम खान ने रहस्य उजागर करते हुए बताया कि हत्याकांड को बबलू कुशवाह की पत्नी अनीता कुशवाह के इशारों पर अंजाम दिया गया. दिन, तारीख और समय का चुनाव भी उस ने ही तय कर के दिया था.

नाबालिग चाकू नहीं मार सका तो छीन कर असलम ने गले में घोंपा

असलम खान ने बताया कि अनीता कुशवाह के साथ उस का प्रेम प्रसंग पिछले 2 साल से था. यह बात बबलू कुशवाह को पता चल गई थी. लेकिन एकता नगर में उस की राजनीतिक पहुंच थी. उस ने एक साल पहले ही पत्नी को उस से मोबाइल पर बातचीत करते हुए रंगेहाथों पकड़ लिया था. जिस के बाद उस ने कहा था कि वह उस की 3 बेटियों को छोड़ कर असलम खान के साथ रहने चली जाए.

पति को यह बात पता चलने के बाद घर में अकसर छोटीछोटी बातों में कलह हुआ करती थी. जिस की जानकारी अनीता कुशवाह असलम को भी देती थी क्योंकि वह उस से बेहद प्यार करती थी और पति की रोज की कलह से निजात चाहती थी.

फिर उस ने पति की हत्या की योजना बनाई कि वह महाशिवरात्रि वाले दिन मायके रायसेन में पूजा का बहाना बना कर चली जाएगी. वह अपने साथ तीनों बेटियों को भी ले जाएगी. लेकिन जाने से पहले वह घर के पिछले दरवाजे का गेट खोल देगी. अनीता कुशवाह ने ही पति के घर आने का समय भी बता दिया था.

जिस के बाद असलम खान अपने साथ 14 साल के एक नाबालिग को ले कर गया. वह नाबालिग भी बबलू कुशवाह से रंजिश रखता था. दरअसल, एक बार उस का बबलू के बच्चों के साथ विवाद हो गया था. उस वक्त बबलू कुशवाह ने उस को चांटा मार दिया था. इसलिए वह भी उस को चाकू का एक वार अंधेरे में मारना चाहता था.

असलम खान ने पूछताछ में बताया कि बबलू कुशवाह जैसे ही घर में घुसा तो उस ने लोहे की रौड से जोरदार प्रहार किया. अचानक हुए हमले से वह शोर मचाने या विरोध करने की सोच ही नहीं सका. तभी उस को पेट पर कुछ चुभने जैसा अहसास हुआ. सामने वह नाबालिग था, जिस को उस ने तमाचा मारा था.

असलम खान ने देखा कि बबलू नाबालिग को देख चुका है. इस के बाद उस ने यह बोल कर उस से चाकू छीन लिया कि ऐसे नहीं मारते. फिर उस ने उस से चाकू ले कर चाकू का जोरदार प्रहार बबलू कुशवाह की गरदन पर कर दिया. इस के बाद एकएक कर के कई वार उस पर किए. खून के फव्वारे फूटते ही बबलू कुशवाह मौके पर ढेर हो गया.

नईम खान ने निभाई असलम से दोस्ती

बबलू कुशवाह की हत्या करने के बाद असलम खान ने इस की जानकारी रायसेन जिले में बैठी अनीता कुशवाह को फोन पर दी. प्रेमी द्वारा पति की हत्या कराने पर अनीता बहुत खुश हुई. इस के बाद असलम एकता नगर में ही रहने वाले दोस्त नईम खान के पास पहुंचा. दोनों अकसर साथ बैठ कर शराब पीते थे. वह भी अनीता कुशवाह के संबंधों की जानकारी रखता था.

असलम खान ने बताया कि उस ने बबलू कुशवाह को मार दिया है. लाश को ठिकाने लगाना है, जिस के लिए वह मदद चाहता है. नईम खान कबाड़े का काम करता था. जिस कारण वह घर पर कबाड़ा एक जगह रखने के लिए भक्कू जो प्लास्टिक का बड़ा बोरा होता है उस को दिया.

इस के बाद नईम खान की बाइक से असलम खान दोबारा पिछले दरवाजे के रास्ते बबलू के घर में घुसा. लाश को प्लास्टिक के बोरे में भरने के बाद पुलपातरा नाले पर ले गया. यहां वह अकसर मछलियां पकडऩे आता था. इस जगह पर कोई आताजाता नहीं है, यह उसे पता था.

नाले में लाश फेंकने के बाद असलम खान ने उस को हरी घास से ढंक दिया. ताकि किसी व्यक्ति को वहां कुछ पड़े होने का अहसास न हो. फिर दोनों घर आ कर चैन की नींद यह सोच कर सो गए कि अब उस की प्रेमिका और उस के बीच दीवार बनने वाला पति नहीं आएगा.

सबूत मिटाने के बाद गुमशुदगी दर्ज कराने पहुंची पत्नी

जिस दिन बबलू कुशवाह की हत्या हुई उस दिन महाशिवरात्रि थी. इस कारण जगहजगह शिव बारात निकल रही थी. जिस में प्रसाद के रूप में कई जगह भांग का वितरण किया जाता है. इसी कारण लोगों को ज्यादा हलचल होने पर भी आभास नहीं होगा, यह सोच कर अनीता कुशवाह ने योजना बनाई थी.

अनीता की शादी नाबालिग अवस्था में हुई थी. वह कभी भी मायके नहीं जाती थी. लेकिन योजना के तहत उस दिन उसे मायके जाना पड़ा था. लाश को ठिकाने लगाने के बाद अनीता कुशवाह को फिर फोन पहुंचा था. इस बार असलम खान ने उस को योजना बताई. उस ने कहा कि घर जा कर वह सबूत मिटाए और एक दिन बाद थाने पहुंच कर पति की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराए.

अनीता कुशवाह ने पूरे घर को अच्छी तरह से फिनायल से साफ किया. हालांकि वह सारे सबूत नहीं मिटा सकी और सीखचों के पीछे जा पहुंची. पुलिस ने बबलू कुशवाह मर्डर केस के आरोपियों असलम खान, नईम खान और अनीता कुशवाह को गिरफ्तार कर लिया. असलम खान और नाबालिग के खिलाफ हत्या, नईम खान के खिलाफ सबूत मिटाने में सहयोग और अनीता कुशवाह के खिलाफ साजिश रचने का मामला 22 फरवरी, 2023 को दर्ज कर लिया.

पूरी परतें खंगालने के बाद 23 फरवरी को आरोपियों को अदालत में पेश किया गया. जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया, जबकि नाबालिग को बाल न्यायालय में पेश कर बाल सुधार गृह भेजा गया.

बबलू कुशवाह की 3 बेटियां थीं, जिस में बड़ी बेटी 14 तो दूसरी 12 और तीसरी 9 साल की थी. उन्हें बाल कल्याण समिति के सामने पेश किया गया. क्योंकि पिता की हत्या के आरोप में मां जेल चली गई थी. अब उन की परवरिश कौन करेगा, यह बाल कल्याण समिति तय करेगी.

17 साल बाद खुला मर्डर मिस्ट्री का राज

खुशी के माहौल में 4 हत्याएं

बात 3 अप्रैल, 2023 की है. राजस्थान के नागौर जिले के दिलढाणी गांव के रहने वाले मनाराम गुर्जर के घर में खुशी का माहौल था. उस की 20 वर्षीय छोटी बेटी रेखा का अगले दिन 4 अप्रैल को गौना या कहें दुरगमन होना था.

यह बात तय थी कि अगले रोज सुबह में ही उस का पति उसे विदा करवाने कुछ लोगों के साथ आएगा. दुरागमन की रस्म दिन में ही पूरी कर ली जाएगी. फिर दोपहर के भोजन के बाद रेखा अपने पति के साथ विदा हो जाएगी. रेखा की मां केसर बहुत खुश थी कि उस की छोटी बेटी भी बड़ी बेटी मीरा की तरह अपनी ससुराल में जा कर बस जाएगी.

इस मौके पर बड़ी बहन मीरा भी अपने परिवार के साथ आई हुई थी. उस का पति और 7 साल का बेटा प्रिंस भी आया हुआ था. रात का खाना खाने के बाद मीरा छोटी बहन रेखा के हाथों पर मेहंदी लगा रही थी. पास में बैठा प्रिंस उबासी लेने लगा था.

“नींद आ रही है तो जा कर सो जाओ,” मीरा बेटे से बोली.

“कहां सोऊं?” प्रिंस ने पूछा.

“नानी के कमरे में चले जाओ, हम लोग भी वहीं आ रहे हैं.” मीरा अपनी मां के कमरे की ओर इशारा कर बोली.

“वहां नाना भी होंगे?” प्रिंस पूछा.

“नहीं, अगर होंगे भी तो तुम्हें क्या? तुम को नानी के साथ बिछावन पर सोना है.” मीरा बोली.

“नाना से डर लगता है,” प्रिंस बोला.

“चलो, अब जाओ यहां से, बड़ा डर लगता है, वह भी नाना से.” मीरा डांटने के अंदाज में बोली.

तभी उस के पिता की आवाज आई, “मैं मार दूंगा…सब को मार दूंगा…कोई मत अइयो मेरे पास…अरे! मैं कब से पानी मांग रहा हूं. कहां मर गए सब के सब.” यह आवाज घर के मुखिया 57 वर्षीय मनाराम गुर्जर की थी.

“आ रही हूं…आ रही हूं, जरा भी सब्र नहीं है. घर में कामकाज बढ़ा हुआ है. जानते हुए भी बातबात पर चिल्लाते रहते हो,”

केसर अपने कमरे से बोलती हुई निकली और सीधी रसोई में घुस गई. मीरा उसे हैरानी से देखने लगी.

“दीदी, तू मेहंदी लगा न. यह तो पापा का रोज का ड्रामा है.” रेखा बहन का हाथ पकड़ती हुई बोली.

“रेखा, मुझे लगता है पापा की तबीयत पहले से ज्यादा खराब हो गई है, दवाइयां तो चल रही हैं न. डाक्टर क्या बोलते हैं?” मीरा चिंता से बोली.

“डाक्टर क्या बोलेंगे दीदी, उन की बीमारी तो ठीक होने से रही. लेकिन हां, गुस्सा पहले से अधिक करने लगे हैं. वह तो मैं बचपन से देख रही हूं. तुम्हें भी तो पता है, उन का गुस्सा मुझ पर ही ज्यादा उतरता है. मैं जानती हूं, वह मुझे ले कर ही गुस्सा हो रहे होंगे. हमेशा अपनी आंखों के सामने देखना चाहते हैं.” रेखा रुकरुक कर बोलने लगी.

“हम लोग कर भी क्या सकते हैं, बीमारी ही ऐसी है. लाओ, दूसरा हाथ दो, उस में भी मेहंदी लगा दूं.” इधर मीरा सांसें खींचती हुई बोली, उधर मनाराम के कमरे से जमीन पर गिलास फेंके जाने की आवाज आई, “चल भाग हरामजादी, तै काहे पानी लाइयो. रेखा मर गई सै…जा भेज ओहके…म्हारे को तैरे हाथ का पाणी न पीनो सै.”

मनोरोगी हो गया मनाराम

रेखा और मीरा ने भी पिता की गुस्से से भरी आवाज सुनी. मनाराम गुर्जर के परिवार में पत्नी केसर के अलावा 3 बेटे गोपाल, हजारी, भगवान राम और 3 बेटियां देवी, मीरा और रेखा थी. परिवार का पालनपोषण खेतीबाड़ी, पशुपालन और मजदूरी करता था.

जैसेतैसे उस के परिवार का गुजारा चल रहा था. एक दशक पहले तक जैसेतैसे गुजारा हो रहा था. मनाराम हाड़तोड़ मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटता था. मजदूरी करने के लिए वह पत्थरों के खदानों में भी चला जाता था. मजदूरी के काम के दौरान पत्थरों की ढुलाई करते हुए उस के साथ हुई एक दुर्घटना से उस की जिंदगी ही बदल गई.

दरअसल, वह एक बड़े पत्थर पर ही सिर के बल गिर पड़ा था. सिर में गहरी चोट लगने से वह बेहोश हो गया था. जब उसे अस्पताल में होश आया तो डाक्टर ने पाया कि वह काफी बेचैन हो चुका है. वह अजीबोगरीब हरकतें करने लगा था. डाक्टर ने उस के घर वालों को बताया कि मनाराम की मानसिक स्थिति बिगड़ चुकी है. उस की अच्छी तरह से देखभाल करनी होगी, फिर उस का इलाज मनोचिकित्सक के यहां शुरू हो गया.

उसे रेग्युलर खाने को कुछ दवाइयां दे दी गईं और वह परिवार के लिए एक रोगी बन गया. परिवार के सदस्यों का मनाराम के प्रति व्यवहार प्रेम के साथ देखभाल का बना रहा, लेकिन उस की स्थिति पागलों जैसी बन गई. बातबात पर नाराज हो जाना, गुस्से में आ जाना, अकेले में बैठेबैठे बुदबुदाने लगना, संदेह करना, बातबात पर पास रखा सामान फेंक देना आदि.

उस की इन हरकतों के बावजूद घर वालों का उस के प्रति हमदर्दी और प्रेमभाव बना रहता था. वह बेटियों के प्रति थोड़ा नर्म रहता था, लेकिन जब उन से नाराज होता था तो गर्म चाय की प्याली भी उन पर फेंकने से नहीं चूकता था.

समय गुजरने के साथसाथ बड़ी बेटियों देवी और मीरा की शादी हो गई. रेखा सब से छोटी थी. उस का अपने पिता के प्रति लगाव कुछ अधिक ही बना हुआ था. मनाराम एक किस्म का सनकी बन चुका था. हर छोटीछोटी बात पर घर वालों को मारने की धमकी देता था. जब भी गुस्से में आता तो सीधे जान से मार डालने की धमकी देता था. कई बार तो गांव वालों के सामने भी परिवार को कह चुका था कि एक दिन सभी को मार डालेगा. लोग उस की बात पर ध्यान नहीं देते थे.

कुल्हाड़ी से काटा अपनों को

4 अप्रैल, 2023 को रेखा ससुराल जाने वाली थी. उस की शादी बड़ू में हुई थी. मनाराम की बड़ी बेटी मीरा (26 साल) भी अपने 7 साल के बेटे प्रिंस के साथ पीहर आई हुई थी. छोटी बेटी के ससुराल भेजने को लेकर घर में तैयारियां चल रही थीं.

3 अप्रैल की देर रात तक बहनें हंसीमजाक कर रही थीं. घर के अधिकतर सदस्य सो गए थे. केसर भी उसी कमरे में सो गई थी. पास में ही प्रिंस भी सो गया था. रेखा अपनी मेहंदी का थोड़ा सूखने का इंतजार कर रही थी. हालांकि उस की आंखों में नींद भर आई थी और मीरा भी जम्हाई लेने लगी थी.

वे दोनों भी कब सो गए, उन्हें नहीं पता चला. रात के 2 बज गए थे. अचानक घर में चीखपुकार मच गई. गांव वाले भी चीखने की आवाजें सुन कर मनाराम के घर की ओर दौड़ पड़े. घर से आ रही रोनेधोने और चीखने की आवाजों के अलावा ‘मैं मार दूंगा…सब को मार दूंगा’ की आवाज भी शामिल थी. गांव वाले कुछ समझ पाते, इस से पहले ही उन्होंने मनाराम को कुल्हाड़ी ले कर घर से निकलते देखा.

वह बाहर आया और वहीं लडख़ड़ाता हुआ धड़ाम से गिर पड़ा. उस के हाथ की कुल्हाड़ी छिटक कर दूर गिर गई. उस पर खून लगा हुआ था. जमीन पर गिरा हुआ मनाराम अब भी बड़बड़ा रहा था, ‘मार डालूंगा…सब को मार डालूंगा…मुझे भी मार दो!’

लोगों को समझते देर नहीं लगी कि मनाराम ने घर में जरूर किसी पर कुल्हाड़ी से हमला किया है. कुछ लोग घर के भीतर दाखिल हुए.

जो कहता था वही कर बैठा मनाराम

घर में एक कमरे का दृश्य भयावह बना हुआ था. मनाराम की दोनों बेटियां रेखा (20 वर्ष) और मीरा (26 वर्ष) खून से लथपथ थीं. उस की मां केसर (57 साल) भी दूसरे बैड पर मरी पड़ी थी. पास में मासूम प्रिंस (7 साल) भी खून से लथपथ हो चुका था. उस ने सभी को कुल्हाड़ी से काटा था. लग रहा था कि शायद सभी की मौत हो चुकी है.

घर में खून ही खून बिखरा था. सूचना पर थाना परवतसर पुलिस भी पहुंची, घटनास्थल का मुआयना किया. पुलिस आरोपी मनाराम से हत्या के कारणों का पता लगाने की कोशिश में जुट गई.

सनकी बाप मनाराम ने वही किया, जो हमेशा बकता रहता था. उस ने अपने घर के ही 4 सदस्यों को कुल्हाड़ी से मौत के घाट उतार दिया था. घर में लोग मृतकों की स्थिति का पता लगाने में लगे थे, उधर मनाराम मौका देख कर घटनास्थल से फरार हो गया. तब तक सुबह हो चुकी थी. पुलिस टीम मनाराम की तलाश में फिर से जुट गई. साथ ही रक्तरंजित चारों लाशों को अस्पताल भेजा गया. वहां डाक्टर ने सभी को मृत घोषित कर दिया.

शाम होतेहोते हैवान बाप मनाराम को पुलिस ने पहाडिय़ों के पीछे से गिरफ्तार कर लिया. थाने में भी वह ‘मार डालूंगा’ की ही रट लगाए हुए था. थाने में आए परिवार वालों ने पुलिस को मनाराम की मानसिक स्थिति के बारे बताया. परिजनों ने बताया कि वह बीते 10 साल से मानसिक बीमार है. पुलिस जांच में यह पता लगाना मुश्किल था. सभी यही अनुमान लगा रहे थे कि मनाराम ने सनकपन में वहां मौजूद सभी को कुल्हाड़ी से काट डाला.

पुलिस ने 6 अप्रैल, 2023 को आरोपी मनाराम गुर्जर का मैडिकल परीक्षण कराने के बाद नागौर की एसडीजेएम कोर्ट में पेश जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

प्यार के लिए मां की हत्या की हाइटेक साजिश

सीधे-साधे पति की शातिर पत्नी

सौतेले बेटे की क्रूरता : छीन लीं पांच जिंदगियां

प्यार का ऐसा भयानक अंजाम

नींद न आने की वजह से सुशीला बेचैनी से करवट बदल रही थी. जिंदगी ने उसे एक ऐसे मुकाम पर ला खड़ा किया था, जहां वह पति प्रदीप से जुदा हो सकती थी. चाहत हर किसी की कमजोरी होती है और जब कोई इंसान किसी की कमजोरी बन जाता है तो वह उस से बिछुड़ने के खयाल से ही बेचैन हो उठता है. सुशीला और प्रदीप का भी यही हाल था.

प्रदीप उसे कई बार समझा चुका था, फिर भी सुशीला उस के खयालों में डूबी रातरात भर बेचैनी से करवट बदलती रहती थी. उस रात भी कुछ वैसा ही था. रात में नींद न आने की वजह से सुबह भी सुशीला के चेहरे पर बेचैनी और चिंता साफ झलक रही थी. उसे परेशान देख कर प्रदीप ने उसे पास बैठाया तो उस ने उसे हसरत भरी निगाहों से देखा. उस की आंखों में उसे बेपनाह प्यार का सागर लहराता नजर आया.

कुछ कहने के लिए सुशीला के होंठ हिले जरूर, लेकिन जुबान ने साथ नहीं दिया तो उस की आंखों में आंसू उमड़ आए. प्रदीप ने गालों पर आए आंसुओं को हथेली से पोंछते हुए कहा, ‘‘सुशीला, तुम इतनी कमजोर नहीं हो, जो इस तरह आंसू बहाओ. हम ने कसम खाई थी कि हर पल खुशी से बिताएंगे और एकदूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे.’’

‘‘साथ ही छूटने का तो डर लग रहा है मुझे.’’ सुशीला ने झिझकते हुए कहा.

‘‘सच्चा प्यार करने वालों की खुशियां कभी अधूरी नहीं होतीं सुशीला.’’

‘‘मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकती प्रदीप. तुम मेरी जिंदगी हो. यह जिस्म मेरा है, दिल मेरा है, लेकिन मेरे दिल की हर धड़कन तुम्हारी नजदीकियों की मोहताज है.’’

सुशीला के इतना कहते ही प्रदीप तड़प उठा. अपनी हथेली उस के होंठों पर रख कर उस ने कहा, ‘‘मुझे कुछ नहीं होगा सुशीला. मैं तुम्हें सारे जहां की खुशियां दूंगा. तुम्हारे चेहरे पर उदासी नहीं, सिर्फ खुशी अच्छी लगती है, इसलिए तुम खुश रहा करो. इस फूल से खिलते चेहरे ने मुझे हमेशा हिम्मत दी है, वरना हम कब के हार चुके होते.’’

‘‘मैं ने सुना है कि मेरे घर वालों ने धमकी दी है कि वे हमें जिंदा नहीं छोड़ेंगे?’’ सुशीला ने चिंतित हो कर पूछा.

‘‘अब तक कुछ नहीं हुआ तो आगे भी कुछ नहीं होगा, इसलिए तुम बेफिक्र रहो. अब तो हमारे प्यार की एक और निशानी जल्द ही दुनिया में आ जाएगी. हम हमेशा इसी तरह खुशी से रहेंगे.’’ प्रदीप ने कहा.

पति के कहने पर सुशीला ने बुरे खयालों को दिल से निकाल दिया. नवंबर के पहले सप्ताह की बात थी यह. अगर सुशीला ने प्रदीप से प्यार न किया होता तो उसे यह डर कभी न सताता. प्यार के शिखर पर पहुंच कर दोनों खुश थे. यह बात अलग थी कि इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने काफी विरोध का सामना किया था.

उन्होंने ऐसी जगह प्यार का तराना गुनगुनाया था, जहां कभी सामाजिक व्यवस्था तो कभी गोत्र तो कभी झूठी शान के लिए प्यार को गुनाह मान कर अपने ही खून के प्यासे बन जाते हैं.

प्रदीप हरियाणा के सोनीपत जिले के खरखौदा कस्बे के बरोणा मार्ग निवासी धानक समाज के सुरेश का बेटा था. वह मूलरूप से झज्जर जिले के जसौर खेड़ी के रहने वाले थे, लेकिन करीब 17 साल पहले आ कर यहां बस गए थे. उन के परिवार में पत्नी सुनीता के अलावा 2 बेटे एवं एक बेटी थी. बच्चों में प्रदीप बड़ा था. सुरेश खेती से अपने इस परिवार को पाल रहे थे.

3 साल पहले की बात है. प्रदीप जिस कालेज में पढ़ता था, वहीं उस की मुलाकात नजदीक के गांव बिरधाना की रहने वाली सुशीला से हुई. सुशीला जाट बिरादरी के किसान ओमप्रकाश की बेटी थी. दोनों की नजरें चार हुईं तो वे एकदूसरे को देखते रह गए. इस के बाद जब भी सुशीला राह चलती मिल जाती, प्रदीप उसे हसरत भरी निगाहों से देखता रह जाता.

सुशीला खूबसूरत थी. उम्र के नाजुक पायदान पर कदम रख कर उस का दिल कब धड़कना सीख गया था, इस का उसे खुद भी पता नहीं चल पाया था. वह हसीन ख्वाबों की दुनिया में जीने लगी थी. प्रदीप उस के दिल में दस्तक दे चुका था.

सुशीला समझ गई थी कि खुद उसी के दिल की तरह प्रदीप के दिल में भी कुछ पनप रहा है. दोनों के बीच थोड़ी बातचीत से जानपहचान भी हो गई थी. यह अलग बात थी कि प्रदीप ने कभी उस पर कुछ जाहिर नहीं किया था. वक्त के साथ आंखों से शुरू हुआ प्यार उन के दिलों में चाहत के फूल खिलाने लगा था.

एक दिन सुशीला बाजार गई थी. वह पैदल ही चली जा रही थी, तभी उसे अपने पीछे प्रदीप आता दिखाई दिया. उसे आता देख कर उस का दिल तेजी से धड़कने लगा. वह थोड़ा तेज चलने लगी. प्रदीप के आने का मकसद चाहे जो भी रहा हो, लेकिन सामाजिक लिहाज से यह ठीक नहीं था.

प्रदीप ने जब सुशीला का पीछा करना काफी दूरी तक नहीं छोड़ा तो वह रुक गई. उसे रुकता देख कर प्रदीप हिचकिचाया जरूर, लेकिन वह उस के निकट पहुंच गया. सुशीला ने नजरें झुका कर शोखी से पूछा, ‘‘मेरा पीछा क्यों कर रहे हो?’’

‘‘तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है?’’ प्रदीप ने सवाल के जवाब में सवाल ही कर दिया.

‘‘इतनी देर से पीछा कर रहे हो, इस में लगने जैसा क्या है.’’

‘‘तुम से बातें करने का दिल हो रहा था मेरा.’’ प्रदीप ने कहा.

‘‘इस तरह मेरे पीछे मत आओ, किसी ने देख लिया तो…’’ सुशीला ने कहा.

प्रदीप उस दिन जैसे ठान कर आया था, इसलिए इधरउधर नजरें दौड़ा कर उस ने कहा, ‘‘अगर किसी से 2 बातें करने की तड़प दिल में हो तो रहा नहीं जाता सुशीला. तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. तुम पहली लड़की हो, जिसे मैं प्यार करने लगा हूं.’’

सुशीला ने उस की बातों का जवाब नहीं दिया और मुसकरा कर आगे बढ़ गई. हालांकि प्रदीप की बातों से वह मन ही मन खुश हुई थी. वह भी प्रदीप को चाहने लगी थी. उस रात दोनों की ही आंखों से नींद गायब हो गई थी.

इस के बाद उन की मुलाकात हुई तो सुशीला प्रदीप को देख कर नजरों में ही इस तरह मुसकराई, जैसे दिल का हाल कह दिया हो. इस तरह प्यार का इजहार होते ही उन के बीच बातों और मुलाकातों का सिलसिला चल निकला. प्यार के पौधे को रोपने में भले ही वक्त लगता है, लेकिन वह बढ़ता बहुत तेजी से है.

यह जानते हुए भी कि दोनों की जाति अलगअलग हैं, वे प्यार के डगर पर चल निकले. सुशीला प्रदीप के साथ घूमनेफिरने लगी. प्यार अगर दिल की गहराइयों से किया जाए तो वह कोई बड़ा गुला खिलाता है. दोनों का यह प्यार वक्ती नहीं था, इसलिए उन्होंने साथ जीनेमरने की कसमें भी खाईं.

समाज प्यार करने वालों के खिलाफ होता है, यह सोच कर उन के दिलों में निराशा जरूर काबिज हो जाती थी. यही सोच कर एक दिन मुलाकात के क्षणों में सुशीला प्रदीप से कहने लगी, ‘‘मैं हमेशा के लिए तुम्हारी होना चाहती हूं प्रदीप, लेकिन शायद ऐसा न हो पाए.’’

‘‘क्यों?’’ कड़वी हकीकत को जानते हुए भी प्रदीप ने अंजान बन कर पूछा.

‘‘मेरे घर वाले शायद कभी तैयार नहीं होंगे.’’

‘‘बस, तुम कभी मेरा साथ मत छोड़ना, मैं तुम्हारे लिए हर मुश्किल पार करने को तैयार हूं.’’

‘‘यह साथ तो अब मरने के बाद ही छूटेगा.’’ सुशीला ने प्रदीप से वादा किया.

प्यार उस शय का नाम है, जो कभी छिपाए नहीं छिपता. सुशीला के घर वालों को जब बेटी के प्यार के बारे में पता चला तो घर में भूचाल आ गया. ओमप्रकाश के पैरों तले से यह सुन कर जमीन खिसक गई कि उन की बेटी किसी अन्य जाति के लड़के से प्यार करती है. उन्होंने सुशीला को आड़े हाथों लिया और डांटाफटकारा, साथ ही उस की पिटाई भी की. उन्होंने जमाना देखा था, इसलिए उस पर पहरा लगा दिया.

शायद उन्हें पता नहीं था कि सुशीला का प्यार हद से गुजर चुका है. इस से पहले कि कोई ऊंचनीच हो, ओमप्रकाश ने उस के लिए लड़के की तलाश शुरू कर दी. सुशीला ने दबी जुबान से मना किया कि वह शादी नहीं करना चाहती, लेकिन उस की किसी ने नहीं सुनी.

प्यार करने वालों पर जितने अधिक पहरे लगाए जाते हैं, उन की चाहत का सागर उतना ही उफनता है. सुशीला के साथ भी ऐसा ही हुआ. एक दिन किसी तरह मौका मिला तो उस ने प्रदीप को फोन किया. उस से संपर्क न हो पाने के कारण वह भी परेशान था.

फोन मिलने पर सुशीला ने डूबे दिल से कहा, ‘‘मेरे घर वालों को हमारे प्यार का पता चल गया है प्रदीप. अब शायद मैं तुम से कभी न मिल पाऊं. वे मेरे लिए रिश्ता तलाश रहे हैं.’’

यह सुन कर प्रदीप सकते में आ गया. उस ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता सुशीला. तुम सिर्फ मेरा प्यार हो. तुम जानती हो, अगर ऐसा हुआ तो मैं जिंदा नहीं रहूंगा.’’

‘‘उस से पहले मैं खुद भी मर जाना चाहती हूं. प्रदीप जल्दी कुछ करो, वरना…’’ सुशीला ने कहा और रोने लगी.

प्रदीप ने उसे हौसला बंधाते हुए कहा, ‘‘मुझे सोचने का थोड़ा वक्त दो सुशीला. पहले मैं अपने घर वालों को मना लूं.’’

दोनों के कई दिन चिंता में बीते. प्रदीप ने अपने घर वालों को दिल का राज बता कर उन्हें सुशीला से विवाह के लिए मना लिया. जबकि सुशीला का परिवार इस रिश्ते के सख्त खिलाफ था. उन्होंने उस पर पहरा लगा दिया था. मारपीट के साथ उसे समझाने की भी कोशिश की गई थी, लेकिन वह प्रदीप से विवाह की जिद पर अड़ी थी.

सुशीला बगावत पर उतर आई थी, क्योंकि प्रदीप के बिना उसे जिंदगी अधूरी लग रही थी. कई दिनों की कलह के बाद भी जब वह नहीं मानी तो उसे घर वालों ने अपनी जिंदगी से बेदखल कर के उस के हाल पर छोड़ दिया.

प्रदीप ने भी सुशीला को समझाया, ‘‘प्यार करने वालों की राह आसान नहीं होती सुशीला. हम दोनों शादी कर लेंगे तो बाद में तुम्हारे घर वाले मान जाएंगे.’’

एक दिन सुशीला ने चुपके से अपना घर छोड़ दिया. पहले दोनों ने कोर्ट में, उस के बाद सादे समारोह में शादी कर के एकदूसरे को जीवनसाथी चुन लिया. इसी के साथ परिवार से सुशीला के रिश्ते खत्म हो गए.

सुशीला और प्रदीप ने प्यार की मंजिल पा ली थी. इस बीच प्रदीप ने एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली. एक साल बाद प्यार की निशानी के रूप में सुशीला ने बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने प्रिया रखा. वह 3 साल की हो चुकी थी. अब एक और खुशी उन के आंगन में आने वाली थी.

इतने दिन हो गए थे, फिर भी एक अंजाना सा डर सुशीला के दिल में समाया रहता था. इस की वजह थी उस के परिवार वाले. उन से उसे धमकियां मिलती रहती थीं. उस दिन भी सुशीला इसीलिए परेशान थी. सुशीला के घर वालों की नाराजगी बरकरार थी.

अपने रिश्ते को उन्होंने सुशीला से पूरी तरह खत्म कर लिया था. एक बार प्रदीप की होने के बाद सुशीला भी कभी अपने मायके नहीं गई थी. उसे मायके की याद तो आती थी, लेकिन मजबूरन अपने जज्बातों को दफन कर लेती थी. उस ने सोच लिया था कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा.

प्रदीप और सुशीला अपने घर में नए मेहमान के आने की खुशी से खुश थे, लेकिन जिंदगी में खुशियों का स्थाई ठिकाना हो, यह जरूरी नहीं है. कई बार खुशियां रूठ जाती हैं और वक्त ऐसे दर्दनाक जख्म दे जाता है, जिन का कोई मरहम नहीं होता. सुशीला और प्रदीप की भी खुशियां कितने दिनों की मेहमान थीं, इस बात को कोई नहीं जानता था.

18 नवंबर की रात की बात है. प्रदीप के घर के सभी लोग सो रहे थे. प्रदीप और सुशीला बेटी के साथ अपने कमरे में सो रहे थे, जबकि उस के मातापिता सुरेश और सुनीता, भाई सूरज अलग कमरे में सो रहे थे. बहन ललिता अपने ताऊ के घर गई थी. समूचे इलाके में खामोशी और सन्नाटा पसरा था. तभी किसी ने प्रदीप के दरवाजे पर दस्तक दी. प्रदीप ने दरवाजा खोला तो सामने कुछ हथियारबंद लोग खड़े थे.

प्रदीप कुछ समझ पाता, उस से पहले ही उन्होंने उस पर गोलियां चला दीं. गोलियां लगते ही प्रदीप जमीन पर गिर पड़ा. सुशीला बाहर आई तो उसे भी गोली मार दी गई. प्रदीप के पिता सुरेश और मां सुनीता के बाहर आते ही हमलावरों ने उन पर भी गोलियां चला दीं. सूरज की भी आंखें खुल गई थीं. खूनखराबा देख कर उस के होश उड़ गए. हमलावरों ने उसे भी नहीं बख्शा.

गोलियों की तड़तड़ाहट से वातावरण गूंज उठा था. आसपास के लोग इकट्ठा होते, उस के पहले ही हमलावर भाग गए थे. घटना की सूचना स्थानीय थाना खरखौदा को दी गई. थानाप्रभारी कर्मबीर सिंह पुलिस बल के साथ मौके पर आ पहुंचे. पुलिस आननफानन घायलों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गई. तीनों की हालत गंभीर थी, लिहाजा प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें रोहतक के पीजीआई अस्पताल रेफर कर दिया गया.

उपचार के दौरान सुरेश, सुनीता और प्रदीप की मौत हो गई, जबकि डाक्टर सुशीला और सूरज की जान बचाने में जुट गए. सूरज के कंधे में गोली लगी थी और सुशीला की पीठ में. डाक्टरों ने औपरेशन कर के गोलियां निकालीं. सुरक्षा के लिहाज से अस्पताल में पुलिस तैनात कर दी गई थी. सुशीला गर्भ से थी. उस के शिशु की जान को भी खतरा हो सकता था.

डाक्टरों ने उस की सीजेरियन डिलीवरी की. उस ने स्वस्थ बेटे को जन्म दिया. डाक्टरों ने दोनों को खतरे से निकाल लिया था. पति और सासससुर की मौत ने उसे तोड़ कर रख दिया था. सुशीला बहुत दुखी थी. अचानक हुई घटना ने उस के जीवन में अंधेरा ला दिया था. वह दर्द और आंसुओं की लकीरों के बीच उलझ चुकी थी.

घायल सूरज ने पुलिस को जो बताया था, उसी के आधार पर अज्ञात हमलावरों के खिलाफ हत्या और हत्या के प्रयास का मुकदजा दर्ज किया गया. एसपी अश्विन शैणवी ने अविलंब आरोपियों की गिरफ्तारी के निर्देश दिए. 3 लोगों की हत्या से क्षेत्र में दहशत फैल गई थी.

अगले दिन एसपी अश्विन शैणवी और डीएसपी प्रदीप ने भी घटनास्थल का दौरा किया. उन के निर्देश पर पुलिस टीमों का गठन किया गया. एसआईटी इंचार्ज राज सिंह को भी टीम में शामिल किया गया. पुलिस ने जांच शुरू की तो सुशीला और प्रदीप के प्रेम विवाह की बात सामने आई.

पुलिस ने सुशीला से पूछताछ की, लेकिन वह सही से बात करने की स्थिति में नहीं थी. फिर भी उस ने हमले का शक मायके वालों पर जताया. मामला औनर किलिंग का लगा. पुलिस ने सुशीला के पिता के घर दबिश दी तो वह और उन के बेटे सोनू एवं मोनू फरार मिले.

इस से पुलिस को विश्वास हो गया कि हत्याकांड को इन्हीं लोगों के इशारे पर अंजाम दिया गया था. पुलिस के हाथ सुराग लग गया कि खूनी खेल खेलने वाले कोई और नहीं, बल्कि सुशीला के घर वाले ही थे. पुलिस सुशीला के पिता और उस के बेटों की तलाश में जुट गई.

उन की तलाश में झज्जर, बेरी, दादरी, रिवाड़ी और बहादुरगढ़ में दबिशें दी गईं. पुलिस ने उन के मोबाइल नंबर हासिल कर के जांच शुरू कर दी. 22 नवंबर को पुलिस ने सुशीला के एक भाई सोनू को गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ की गई तो नफरत की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

दरअसल, सुशीला के अपनी मरजी से अंतरजातीय विवाह करने से पूरा परिवार खून का घूंट पी कर रह गया था. सोनू और मोनू को बहन के बारे में सोच कर लगता था कि उस ने उन की शान के खिलाफ कदम उठाया है. उन्हें सब से ज्यादा इस बात की तकलीफ थी कि सुशीला ने एक पिछड़ी जाति के लड़के से शादी की थी.

उन के दिलों में आग सुलग रही थी. मोनू आपराधिक प्रवृत्ति का था. उस की बुआ का बेटा हरीश भी आपराधिक प्रवृत्ति का था. हरीश पर हत्या का मुकदमा चल रहा था और वह जेल में था. समय अपनी गति से बीत रहा था. समाज में भी उन्हें समयसमय पर ताने सुनने को मिल रहे थे. जब भी सुशीला का जिक्र आता, उन का खून खौल उठता था.

मोनू ने मन ही मन ठान लिया था कि वह अपनी बहन को उस के किए की सजा दे कर रहेगा. उस के इरादों से परिवार वाले भी अंजान नहीं थे. जुलाई में मोनू की बुआ का बेटा हरीश पैरोल पर जेल से बाहर आया तो वह मोनू का साथ देने को तैयार हो गया. मोनू लोगों के सामने धमकियां देता रहता था कि वह बहन को तो सजा देगा ही, प्रदीप से भी अपनी इज्जत का बदला ले कर रहेगा.

मोनू शातिर दिमाग था. वह योजनाबद्ध तरीके से वारदात को अंजाम देना चाहता था. उस ने छोटे भाई सोनू को सुशीला के घर भेजना शुरू कर दिया. इस के पीछे उस का मकसद यह जानना था कि वे लोग कहांकहां सोते हैं, कोई हथियार आदि तो नहीं रखते. इस बीच जबजब सुशीला को पता चलता कि मोनू प्रदीप और उस के घर वालों को मारने की धमकी दे रहा है, वह परेशान हो उठती थी.

मोनू का भाई सोनू और पिता भी इस खतरनाक योजना में शामिल थे. जब मोनू पहली प्लानिंग में कामयाब हो गया तो उस ने वारदात को अंजाम देने की ठान ली. हरीश के साथ मिल कर उस ने देशी हथियारों के साथ एक कार का इंतजाम किया. इस के बाद वह कार से अपने साथियों के साथ रात में सुशीला के घर जा पहुंचा और वारदात को अंजाम दे कर फरार हो गया.

एक दिन बाद पुलिस ने सुशीला के षडयंत्रकारी पिता ओमप्रकाश को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद दोनों आरोपियों को पुलिस ने अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. इस बीच खरखौदा थाने का चार्ज इंसपेक्टर प्रदीप के सुपुर्द कर दिया गया. वह मुख्य आरोपी मोनू की तलाश में जुटे हैं.

सुशीला ने सोचा भी नहीं था कि उसे प्यार करने की इतनी बड़ी सजा मिलेगी. ओमप्रकाश और उस के बेटे ने सुशीला के विवाह को अपनी झूठी शान से न जोड़ा होता तो शायद ऐसी नौबत न आती. सुशीला का सुहाग उजाड़ कर वे सलाखों के पीछे पहुंच गए हैं. कथा लिखे जाने तक आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी और पुलिस मोनू और उस के अन्य साथियों की सरगर्मी से तलाश कर रही थी.

जिस के लिए घर छोड़ा उसी ने दिल तोड़ा