आखिर क्या था बेलगाम ख्वाहिश का अंजाम – भाग 2

दोहरे हत्याकांड से पूरे शहर में सनसनी फैल चुकी थी. राजेश की बहन गीता की तहरीर के आधार पर पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने मृतक राजेश व उस की पत्नी दीपिका के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो राजेश के मोबाइल की आखिरी लोकेशन 4 मार्च, 2017 की तड़के लाडपुर क्षेत्र में मिली जोकि कुंआवाला के नजदीक था. इस से पुलिस चौंकी, क्योंकि दीपिका ने उन के जाने का समय सुबह करीब 9 बजे बताया था.

काल डिटेल्स से यह स्पष्ट हो गया कि दीपिका ने पुलिस से झूठ बोला था. इस से वह शक के दायरे में आ गई. पुलिस ने दीपिका से पूछताछ की तो वह अपने बयान पर अडिग रही. इतना ही नहीं, उस ने अपने 8 साल के बेटे नोनू को भी आगे कर दिया. उस ने भी पुलिस को बताया कि पापा को जाते समय उस ने बाय किया था.

पुलिस ने नोनू से अकेले में घुमाफिरा कर चौकलेट का लालच दे कर पूछताछ की तब भी वह अपनी बात दोहराता रहा. ऐसा लगता था कि जैसे उसे बयान रटाया गया हो. शक की बिनाह पर पुलिस ने दीपिका के घर की गहराई से जांचपड़ताल की लेकिन वहां भी कोई ऐसा सबूत या असामान्य बात नहीं मिली जिस से यह पता चलता कि हत्याएं वहां की गई हों. लेकिन पुलिस इतना समझ गई थी कि दीपिका शातिर अंदाज वाली महिला थी.

पुलिस ने दीपिका के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स की फिर से जांच की तो उस में एक नंबर ऐसा मिला जिस पर उस की अकसर बातें होती थीं. 3 मार्च की रात व 4 को तड़के साढ़े 5 बजे भी उस ने इसी नंबर पर बात की थी. पुलिस ने उस फोन नंबर की जांच की तो वह योगेश का निकला. योगेश शहर के ही गांधी रोड पर एक रेस्टोरेंट चलाता था.

योगेश के फोन की काल डिटेल्स जांची तो उस की लोकेशन भी उसी स्थान पर पाई गई, जहां शव बरामद हुए थे. माथापच्ची के बाद पुलिस ने कडि़यों को जोड़ लिया. इस बीच पुलिस को यह भी पता चला कि दीपिका और योगेश के बीच प्रेमिल रिश्ते थे जिस को ले कर घर में अकसर झगड़ा होता था.

इतने सबूत मिलने के बाद पुलिस अधिकारियों ने एक बार फिर से पूछताछ की तो वह सवालों के आगे ज्यादा नहीं टिक सकी. वह वारदात की ऐसी षडयंत्रकारी निकली, जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. अपने अवैध प्यार को परवान चढ़ाने और प्रेमी के साथ दुनिया बसाने की ख्वाहिश में उस ने पूरा जाल बुना था. इस के बाद पुलिस ने उस के प्रेमी योगेश को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों से पूछताछ की गई तो चौंकाने वाली कहानी निकल कर सामने आई.

दरअसल, राजेश से शादी के बाद दीपिका की जिंदगी आराम से बीत रही थी. दोनों के बीच प्यार भरे विश्वास का मजबूत रिश्ता था. राजेश सीधासादा युवक था जबकि दीपिका ठीक इस के उलट तेजतर्रार व फैशनपरस्त युवती थी. 2 साल पहले योगेश ने रायपुर स्थित स्पोर्ट्स स्टेडियम में ठेके पर कुछ काम किया था. इस दौरान वह एक गेस्टहाउस में रहा. वह गेस्टहाउस राजेश के घर के ठीक पीछे था.

योगेश मूलरूप से हरियाणा के करनाल शहर का रहने वाला था और देहरादून में छोटेमोटे ठेकेदारी के काम करता था. वह राजेश की दुकान पर भी आता था. इस नाते दोनों के बीच जानपहचान हो गई थी. दीपिका जब भी छत पर कपड़े सुखाने जाती तो योगेश उसे अपलक निहारा करता था. पहली ही नजर में उस ने दीपिका को हासिल करने की ठान ली थी. दीपिका को पाने की चाहत में योगेश ने धीरेधीरे राजेश से दोस्ती गांठ ली. दोस्ती मजबूत होने पर वह उस के घर भी जाने लगा.

इस दौरान उस की मुलाकात दीपिका से भी हुई. कुछ दिनों में ही दीपिका ने योगेश की आंखों में अपने लिए चाहत देख ली. दोनों के बीच दोस्ती हो गई और वे मोबाइल पर बातें करने लगे. राजेश को पता नहीं था कि जिस दोस्त पर वह आंख मूंद कर विश्वास करता है, वह आस्तीन का सांप बन कर उस के घर की इज्जत तारतार करने की शुरुआत कर रहा है.

जब दीपिका योगेश के आकर्षण में बंध गई तो दोनों ने अपने रिश्ते को प्यार का नाम दे दिया. अब दीपिका बहाने से घर से बाहर जाती और योगेश के साथ घूमती. इस बीच योगेश ने तहसील चौक के पास अपना रेस्टोरेंट खोल लिया और खुद गोविंदगढ़ में रहने लगा.

दीपिका पति को धोखा दे कर योगेश के सपने देखने लगी. एक वक्त ऐसा भी आया जब उन के बीच मर्यादा की दीवार गिर गई. इस के बाद तो जब कभी राजेश व प्रेम सिंह बाहर होते तो वह योगेश के साथ अपना समय बिताती. राजेश को पता ही नहीं था कि उस की पत्नी उस से बेवफाई कर के क्या गुल खिला रही है.

अपने नाजायज रिश्ते को प्यार का नाम दे कर योगेश व दीपिका साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. दोनों के रिश्ते भला कब तक छिपते. आखिर एक दिन राजेश के सामने यह राज उजागर हो ही गया. उस ने अपने ही घर में दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया.

पत्नी की बेवफाई पर राजेश को गुस्सा आ गया. उस ने दीपिका की पिटाई कर दी और योगेश को भी खरीखोटी सुना कर अपनी पत्नी से दूर रहने की हिदायत दी.

कुछ दिन तो सब ठीक रहा लेकिन बाद में दोनों ने फिर से गुपचुप ढंग से मिलना शुरू कर दिया. पर राजेश से कोई बात छिपी नहीं रही. नतीजतन इन बातों को ले कर घर में आए दिन झगड़ा होने लगा.

दीपिका चाहती थी कि उस पर किसी तरह की बंदिश न हो और वह प्रेमी के साथ खुल कर जिंदगी जिए. वह ढीठ हो चुकी थी. अपनी गलती मानने के बजाए वह पति से बहस करती. राजेश अपना घर बरबाद होते नहीं देखना चाहता था. लिहाजा वह समयसमय पर परिवार और बच्चे का वास्ता दे कर दीपिका को समझाने की कोशिश करता. पर उस के दिमाग में पति की बात नहीं धंसती बल्कि एक दिन तो बेशरमी दिखाते हुए उस ने पति से कह दिया, ‘‘मेरे पास एक रास्ता है कि तुम मुझे तलाक दे कर आजाद कर दो. फिर तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी.’’

राजेश को पत्नी से ऐसी उम्मीद नहीं थी. वह सारी हदों को लांघ गई थी. उस की बात सुन कर उसे गुस्सा आ गया तो उस ने दीपिका की पिटाई कर दी. दीपिका राह से इतना भटक चुकी थी कि वह राजेश को भूल कर योगेश से जुनून की हद तक प्यार करती थी. कई दौर ऐसे आए जब उस ने योगेश को नकद रुपए भी दिए. यह रकम ढाई लाख तक पहुंच चुकी थी.

28 साल बाद मिला न्याय : बलात्कार से पैदा बेटे का ‘मिशन मदर’ – भाग 2

मां की बातों से विकास हो गया भावुक

यह कहती हुई क्षमा ने विकास को गले से लगा लिया था. बिलखती हुई बोलने लगी, ‘‘बेटा, अब मैं किसी भी कीमत पर तुम्हें खोना नहीं चाहती हूं.’’

विकास भी मां की बातें सुन कर भावुक हो गया था. उस ने मां की आंखों के आंसू पोंछे. वादा किया कि वह उसे छोड़ कर अब कहीं नहीं जाने वाला है. साथ ही उस ने यह सौगंध  खाई कि वह उन दुष्कर्मियों को भी चैन से नहीं रहने देगा, जो आजाद जिंदगी जी रहे हैं. यह साल 2007 की बात है.

एक तरफ विकास की नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत हो गई थी, दूसरी तरफ महत्त्वाकांक्षी क्षमा सिंह ने भी करिअर बनाने की दिशा में कदम उठा लिया था. उस ने भी आगे की पढ़ाई करने का मन बना लिया था. उसी शहर में रहने वाली बहनों ने उस का साथ दिया था.

साल 2013 में उस ने रुहेलखंड यूनिवर्सिटी, बरेली से बीए कर लिया था. इस के साथ ही वह बहनों के सहयोग से बिल्डिंग निर्माण के कारोबार में उतर आई थी. अपनी कंपनी बना कर बिल्डिंग बनाने का काम करने लगी थी. इस में उसे काफी सफलता मिली और वह देखते ही देखते आर्थिक रूप से मजबूत हो गई.

उस की जीवनशैली और रहनसहन उच्चस्तरीय हो गया, लेकिन दशकों पहले शरीर और मन में लगी खरोंच रहरह कर कचोटने लगती थी. उस का बेटा विकास भी ग्रैजुएशन कर सरकारी नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया था, लेकिन मां के सीने में दबी पीड़ा को दूर करने के प्रति भी चिंतित था.

अपनी मां के काम में हाथ बंटाते हुए एक दिन फिर उस ने अपनी मां से पुरानी बात छेड़ दी और उस पर दुष्कर्म के लिए थाने में रिपोर्ट लिखवाने के लिए दबाव बनाया. मां तैयार हो गई. वह भी बदले की आग में भीतर ही भीतर सुलग रही थी. अब उसे इस में बेटा भी भागदौड़ और तमाम तरह के  कागजात जुटाने में सहयोगी बन गया था.

क्षमा सिंह थोड़ाबहुत सबूत जुटा कर अपने साथ हुए दुष्कर्म की रिपोर्ट लिखवाने के लिए शाहजहांपुर के थाना सदर बाजार गई. वहां थानाप्रभारी ने काफी पुराना मामला बता कर रिपोर्ट लिखने से इनकार कर दिया.

वकील ने बढ़ाया हौसला

उस ने हिम्मत नहीं हारी और शाहजहांपुर के ही एक बड़े वकील मोहम्मद मुतहर खां से मिली. उन्होंने जब क्षमा सिंह की पूरी बात सुनी, तब उन्हें काफी हैरानी हुई कि कैसे इतनी गहरी बात उस ने इतने लंबे समय तक दिल में दबाए रखी.

उन्होंने तसल्ली के साथ शुरुआत से पूरे घटनाक्रम के दास्तान को रिकौर्ड किया. कुछ पौइंट्स नोट किए. तथ्यों को भी लिखा. सब कुछ क्षमा सिंह ने बगैर किसी झिझक और दुरावछिपाव के बलात्कार और परिवार समेत उसे मार डालने की धमकियों की घटनाओं का ब्यौरा सुना दिया. वह इस प्रकार है—

बरेली मंडल मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर शाहजहांपुर शहर में एक मोहल्ला है बीबीजई हद्दफ. वह सदर बाजार थाने के अंतर्गत आता है.

थाने से ठीक 2 किलोमीटर की दूरी पर घासीराम के मकान में किराए पर क्षमा सिंह की बड़ी बहन सुशीला अपने पति कैलाश कुमार के साथ रहती थी. कैलाश कुमार वन विभाग में नौकरी करते थे तो सुशीला एक प्राइवेट स्कूल में टीचर थी. यह बात 1993 की है. क्षमा सिंह उस समय 11-12 साल की थी.

सुशीला ने अपने साथ छोटी बहन क्षमा सिंह को रख लिया था. वह वहीं रह कर पढ़ाई करने के साथसाथ घरेलू कामकाज में मदद करती थी.

क्षमा सिंह अपने मांबाप की 5 संतानों में तीसरे नंबर की थी. मां घरेलू महिला थीं, जबकि पिता नायब सूबेदार थे. उन के घर से कुछ दूरी पर प्रोफेसर कालोनी के पीछे कब्रिस्तान के निकट 2 भाई नकी हसन उर्फ ब्लेडी और रजी हसन उर्फ गुड्डू रहते थे. एक बार उन की निगाह जब क्षमा पर पड़ी, तब वे उसे देखते ही रह गए.

क्षमा उन दिनों जवानी की दहलीज पर थी. देखने में काफी सुंदर और आकर्षक लगती थी. दूसरी तरफ दोनों भाई आवारा किस्म के थे. राह चलती लड़कियों को ललचाई नजरों से देखना और मौका मिलते ही उन से बातें करना या उन्हें छेड़ देने जैसी आदतें थीं. वे झगड़ा और मारपीट करने से भी पीछे नहीं हटते थे.

नकी 25, जबकि रजी 22 साल का था. उन्होंने जब से क्षमा को देखा था, तभी से उस की हर गतिविधि पर नजर रखने लगे थे. कब उस के जीजा नौकरी के लिए घर से निकलते थे, कब लौटते थे और कब उस की दीदी स्कूल जातीआती थी, इन जानकारियों के साथ उन्हें क्षमा की दिनचर्या का भी अंदाजा लग गया था. उन्हें क्षमा के घर में अकेली रहने के समय की पूरी जानकारी मिल गई थी.

रजी हसन ने बनाया हवस का शिकार

एक दिन क्षमा घर के किसी काम के लिए दुकान पर गई थी. घर लौटने पर जैसे ही ताला खोल कर कमरे में घुसी, पीछे से घात लगाए एक युवक ने उसे दबोच लिया. वह कोई और नहीं रजी हसन था. वह हाथ में तमंचा लिए था.

रजी हसन ने तमंचे की नोक पर क्षमा के साथ बलात्कार किया. जाते हुए वह क्षमा को धमका गया कि इस बारे में जरा भी चूंचपड़ की तो वह उस के जीजा और दीदी को मार डालेगा. अगले रोज उसी वक्त रजी के भाई नकी ने आ कर क्षमा के साथ बलात्कार किया और उसे धमका कर चला गया.

क्षमा चाह कर भी बलात्कार का विरोध नहीं कर पाई. करीब सालभर तक रजी हसन और नकी हसन नाम के दोनों भाई बारीबारी से उस के साथ बलात्कार करते रहे. एक दिन क्षमा बीमार पड़ गई. उस की बहन सुशीला उसे डाक्टर के पास ले कर गई. डाक्टर ने उसे गर्भ से बताया. यह सुन कर सुशीला सन्न रह गई. उस ने क्षमा से इस बारे में पूछा, तब उस ने लगातार हुए बलात्कार की बात बहन को बताई.

पत्नी की खूनी साजिश : प्यार में पागल लड़की ने प्रेमी से करवाई पति की हत्या – भाग 2

इस की वजह यह थी कि डब्लू को रमेश सिंह से भाई की मौत का बदला लेना था. इस के लिए उस ने रमेश सिंह से दोस्ती गांठ ली. फिर एक दिन गांव के पास ही वह रमेश सिंह के साथ शराब पीने बैठा. उस ने जानबूझ कर रमेश सिंह को खूब शराब पिलाई.

जब रमेश सिंह नशे में बेकाबू हो गया तो डब्लू ने हंसिए से उस का गला धड़ से अलग कर दिया. इस के बाद रमेश सिंह का कटा सिर लिए वह मां के पास पहुंचा और सिर उन के सामने कर के बोला, ‘‘देखो मां, यही भैया का हत्यारा था. आज मैं ने इस के किए की सजा दे दी. इसे वहां भेज दिया, जहां इसे बहुत पहले पहुंच जाना चाहिए था.’’

यह सन 2011 की बात है.   इस के बाद रमेश सिंह का कटा सिर लिए डब्लू पूरे गांव में घूमा. डब्लू के दुस्साहस को देख कर गांव में दहशत फैल गई. पुलिस उस तक पहुंच पाती, उस से पहले ही वह रमेश सिंह का सिर फेंक कर फरार हो गया. लेकिन पुलिस के चंगुल से वह ज्यादा समय तक नहीं बच पाया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद डब्लू को लगा कि गांव के ही रहने वाले रमेश सिंह के करीबी पूर्व ग्रामप्रधान शातिर बदमाश अरुण सिंह उस की हत्या करवा सकते हैं. फिर क्या था, वह उन्हें ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगा.

25 अप्रैल, 2013 को किसी काम से अरुण सिंह अपनी मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे, तभी मचिया चौराहे पर घात लगा कर बैठे डब्लू ने गोलियों से भून डाला. घटनास्थल पर ही उन की मौत हो गई. उस समय तो वह फरार हो गया था, लेकिन बाद में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.

बात उस समय की है, जब सुषमा कालेज में पढ़ती थी. संयोग से उसी कालेज में डब्लू भी पढ़ता था. चूंकि दोनों एक ही गांव के रहने वाले थे, इसलिए कालेज आतेजाते अकसर दोनों की मुलाकात हो जाती थी. सुषमा खूबसूरत तो थी ही, डब्लू भी कम स्मार्ट नहीं था. साथ आनेजाने में ही दोनों में प्यार हो गया. सुषमा डब्लू के आपराधिक कारनामों के बारे में जानती थी, इस के बावजूद उस से प्यार करने लगी.

सुषमा और डब्लू की प्रेमकहानी जल्दी ही गांव वालों के कानों तक पहुंच गई. फिर तो इस की जानकारी सुरेंद्र बहादुर सिंह को भी हो गई. बेटी की इस करतूत से पिता का सिर शरम से झुक गया. उन्होंने सुषमा को डब्लू से मिलने के लिए मना तो किया ही, उस के घर से निकलने पर भी पाबंदी लगा दी. इस का नतीजा यह निकला कि एक दिन वह मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर डब्लू के साथ भाग गई. इस के बाद दोनों ने मंदिर में शादी कर ली. यह 7-8 साल पहले की बात है.

crime story

सुषमा के भाग जाने से सुरेंद्र बहादुर सिंह की काफी बदनामी हुई. डब्लू आपराधिक प्रवृत्ति का था, इसलिए वह उस का कुछ कर भी नहीं सकते थे. फिर भी उन्होंने पुलिस के साथसाथ बिरादरी की मदद ली. पुलिस और बिरादरी के दबाव में डब्लू ने सुषमा को उस के घर वापस भेज दिया. सुषमा के घर वापस आने के बाद सुरेंद्र बहादुर सिंह ने उस के घर से बाहर जाने पर सख्त पाबंदी लगा दी.

संयोग से उसी बीच रमेश सिंह की हत्या के आरोप में डब्लू जेल चला गया तो सुरेंद्र बहादुर सिंह ने राहत की सांस ली. डब्लू की जो छवि बन चुकी थी, उस से वह काफी डरे हुए थे. वह जेल चला गया तो उन्होंने इस मौके का फायदा उठाया और आननफानन में सुषमा की शादी गोरखपुर के रहने वाले संपन्न और सभ्य देवेंद्र प्रताप सिंह के बेटे विवेक प्रताप सिंह उर्फ विक्की से कर दी.

यह शादी इतनी जल्दी में हुई थी कि देवेंद्र प्रताप सिंह बहू के बारे में कुछ पता नहीं कर सके. जेल में बंद डब्लू को जब सुषमा की शादी के बारे में पता चला तो वह सुरेंद्र बहादुर सिंह पर बहुत नाराज हुआ. लेकिन वह सुषमा के पिता थे, इसलिए वह उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता था. पर उस ने यह जरूर तय कर लिया था कि वह सुषमा को खुद से अलग नहीं होने देगा. इस के लिए उसे कुछ भी करना पड़े, वह करेगा.

सुषमा ने भले ही विवेक से शादी कर ली थी, लेकिन उस का तन और मन डब्लू को ही समर्पित था. हर घड़ी वह उसी के बारे में सोचती रहती थी. जल्दी ही वह विवेक के बेटे आयुष की मां बन गई. जनवरी, 2013 में जब डब्लू जमानत पर जेल से बाहर आया तो सुषमा से मिलने गोरखपुर स्थित उस की ससुराल पहुंच गया.

डब्लू को देख कर सुषमा बहुत खुश हुई. उस का प्यार उस के लिए फिर जाग उठा. इस के बाद वे किसी न किसी बहाने एकदूसरे से मिलने लगे. फोन पर तो बातें होती ही रहती थीं. उसी बीच 25 अप्रैल, 2013 को डब्लू ने पूर्वप्रधान अरुण सिंह की हत्या कर दी तो वह एक बार फिर जेल चला गया. इस बार वह 5 सालों बाद 18 मार्च, 2017 को जेल से बाहर आया तो एक बार फिर उस का सुषमा से मिलनाजुलना शुरू हो गया.

डब्लू बारबार सुषमा से मिलने आने लगा तो विवेक प्रताप सिंह को पत्नी के चरित्र पर संदेह हो गया. इस के बाद पतिपत्नी में अकसर झगड़ा होने लगा. वह डब्लू को अपने यहां आने से मना करने लगा. लेकिन सुषमा उस की एक नहीं सुनती थी. पत्नी के इस व्यवहार से विवेक काफी परेशान रहने लगा. रोजरोज के झगड़े से बेटा भी परेशान रहता था. डब्लू को ले कर पतिपत्नी में संबंध काफी बिगड़ गए. दोनों के बीच मारपीट भी होने लगी.

सुषमा विवेक की कोई बात नहीं मानती थी. रोजरोज के झगड़े से परेशान विवेक अपने दुख को किसी से न कह कर फेसबुक पर पोस्ट किया करता था. दूसरी ओर सुषमा भी पति से ऊब चुकी थी. अब वह उस से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगी. जब उस ने यह बात डब्लू से कही तो उस ने आश्वासन दिया कि उसे चिंता करने की जरूरत नहीं है. वह जब चाहेगा, उसे विवेक से छुटकारा दिलवा देगा. उस के बाद दोनों एक साथ रहेंगे.

टुकड़ों में बंटी औरत – भाग 2

एसपी राममूर्ति जोशी पहले भी अलवर में विभिन्न पदों पर रह चुके थे. इसलिए उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर भिवाड़ी और आसपास के इलाकों से पिछले दिनों लापता हुई महिलाओं का रिकौर्ड मंगवाया. इन महिलाओं की गुमशुदगी के बारे में जांचपड़ताल की गई, लेकिन ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस से पुलिस को शव के टुकड़ों की शिनाख्त में मदद मिलती.

इलाके की सोसायटियों में पिछले दिनों मकान खाली कर जाने वाले किराएदारों का भी पता लगाया गया. इस के अलावा घटनास्थल के निकटवर्ती सांथलका गांव में पिछले दिनों मकान खाली करने
वाले किराएदारों और कंपनियों से अचानक नौकरी छोड़ने वाले महिलापुरुषों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए डोर टू डोर सर्वे किया गया.

यह काम भूसे के ढेर में सूई खोजने जैसा था. पचासों पुलिस वाले इस काम में सुबह से शाम तक जुटे रहते. एसपी साहब इस काम में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते थे. वह हर संभव प्रयास से मृतका की शिनाख्त और कातिलों तक पहुंचना चाहते थे. इसलिए रोजाना शाम को एडिशनल एसपी और डीएसपी से रिपोर्ट लेते और उन्हें जरूरी निर्देश देते.

पुलिस को मिली जांच की राह

2 सप्ताह से भी ज्यादा समय तक चली इस भागदौड़ में पुलिस को पता चला कि गांव सांथलका की विनोद कालोनी में रहने वाले अमित गुप्ता और उस की पत्नी कोमल पिछले कुछ दिनों से बिना किसी को बताए अचानक कमरा खाली कर चले गए.पुलिस ने कालोनी के दूसरे लोगों से पूछताछ की, तो जानकारी मिली कि अमित और कोमल में आपस में झगड़ा होता रहता था. दोनों अलगअलग फैक्ट्रियों में काम करते थे. पुलिस को अमित का पता तो नहीं मिला. अलबत्ता यह जरूर पता लगा कि वह भरतपुर का रहने वाला है.

यह सुराग मिलने पर पुलिस को उम्मीद की कुछ किरण नजर आई. अब पुलिस अमित और कोमल को तलाशने में जुट गई. इसी दौरान 3 सितंबर को यूआईटी फेज थर्ड पुलिस थाने पर डाक से एक पत्र आया. पत्र में अमित गुप्ता ने अपनी पत्नी कोमल के गाय होने की बात लिखी थी.

पत्र में अमित का मोबाइल नंबर और कोमल का कानपुर का पता लिखा था.पुलिस ने मामले की पड़ताल करने के लिए अमित के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन वह स्विच्ड औफ मिला. चूंकि अमित और उस की पत्नी अचानक मकान खाली कर के गए थे और अब अमित ने खुद थाने आने के बजाय पत्र लिख कर अपनी पत्नी की गुमशुदगी की बात कही थी. इस से पुलिस को संदेह हुआ.

थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार ने एसपी राममूर्ति जोशी को पूरी बात बताई. जोशी को भी मामले में संदेह नजर आया. उन्होंने भी अमित के मोबाइल नंबर पर कई बार काल की. लेकिन उस का फोन हर बार स्विच्ड औफ मिला.मोबाइल स्विच्ड औफ होने से उस की लोकेशन का भी पता नहीं चल पा रहा था. सच्चाई का पता लगाने के लिए एसपी ने थानाप्रभारी को पत्र में लिखे कोमल के कानपुर के पते पर पुलिस टीम भेजने के निर्देश दिए.

भिवाड़ी से पुलिस टीम कानपुर में मीरपुर कैंट स्थित कोमल के घर पहुंची. वहां पूछताछ में पता चला कि कोमल की अपने परिजनों से 11 अगस्त के बाद से कोई बात नहीं हुई थी. उन्हें न तो कोमल का कुछ पता था और न ही अमित काकोमल के परिजनों ने पुलिस को बताया कि दोनों मियांबीवी में आए दिन झगड़ा होता था. यह भी बताया कि अमित ने कोमल से धोखे से शादी की थी. उन से यह जानकारी भी मिली कि अमित ने अपनी किसी महिला दोस्त की हत्या भी की थी. उन्हें शंका थी वह कोमल की भी हत्या कर सकता है.

कानपुर में कोमल के घर वालों से मिली जानकारी के बाद अमित पर पुलिस का शक पक्का हो गया. साथ ही यह अनुमान भी लग गया कि 14 अगस्त को खिदरपुर स्कूल के पास मिले शव के टुकड़े कोमल के ही हो सकते हैं. अब अमित को तलाशना जरूरी था, क्योंकि उसी से सारी सच्चाई का पता लग सकता था.

एसपी राममूर्ति जोशी ने भिवाड़ी पुलिस की साइबर सेल को अमित गुप्ता के मोबाइल नंबर का तकनीकी अनुसंधान करने का निर्देश दिया. साइबर सेल के हैड कांस्टेबल मोहनलाल, कांस्टेबल संदीप और नीरज ने अमित का मोबाइल लगातार स्विच्ड औफ मिलने पर उस की पुरानी काल डिटेल्स निकलवा कर उन का विश्लेषण किया. पुलिस ने इन काल डिटेल्स के आधार पर पहले से अमित के संपर्क में रहे लोगों से उस की पूरी जन्मकुंडली हासिल की.

तमाम प्रयासों के बाद पुलिस ने 7 सितंबर को अमित गुप्ता को भिवाड़ी के ही सांथलका इलाके से गिरफ्तार कर लिया. उसे पुलिस थाने ला कर पूछताछ की गई. पहले तो वह पुलिस को यह कह कर गुमराह करता रहा कि कोमल लापता है. मैं उस की तलाश कर रहा हूं. लेकिन कड़ाई से पूछताछ में उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.पुलिस पूछताछ में कोमल की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

अमित गुप्ता राजस्थान के भरतपुर शहर का रहने वाला था. उस की शादी 13 दिसंबर, 2019 को कानपुर निवासी हरिप्रसाद गुप्ता की बड़ी बेटी कोमल से भरतपुर में हुई थी. कोमल की यह दूसरी शादी थी. उस की पहली शादी 2004 में कानपुर के संजय से हुई थी, लेकिन टीबी की बीमारी के कारण उस के पति संजय की 4 साल बाद 2008 में मौत हो गई थी.

औनर किलिंग के जरिए प्यार की बलि – भाग 2

जब दोनों पुलिस अधिकारियों ने उस के कोतवाली में आने का कारण पूछा, तब उस ने हिम्मत कर रीना के घर से लापता होने की आशंका जताई.

‘‘तुम कौन हो? रीना कौन है?’’ कोतवाल बिष्ट ने पूछा.

‘‘जी, मेरा नाम मोनू चौधरी है और रीना मेरी प्रेमिका अपने घर से लापता हो गई है,’’ मोनू बोला.

‘‘प्रेमिका? तुम को कैसे पता कि वह लापता है? …और वैसे भी तुम होते कौन हो उस के बारे में पता करने वाले?’’ एसएसआई अंकुर शर्मा बोले.

‘‘जी, वह मेरी प्रेमिका है. हम लोग शादी करने वाले हैं, लेकिन उस के घर वाले राजी नहीं हैं. हम एक ही बिरादरी के हैं और हमारा गोत्र एक ही है. इस कारण वे मान नहीं रहे हैं. मुझे डर है कि मेरी प्रेमिका को घर वालों ने कहीं गायब कर दिया है. उस का फोन 3 दिनों से बंद मिल रहा है. लीजिए आप भी इस नंबर पर मिला कर देख लीजिए.’’ मोनू ने मिन्नत की और मोबाइल नंबर लिखी परची कोतवाल साहब के सामने बढ़ा दी.

कोतवाली पुलिस के सामने यह अनोखा मामला था कि एक प्रेमी अपनी प्रेमिका के लापता होने की शिकायत लिखवाने आया था, जबकि जिस के बारे में वह बता रहा था, उस के मातापिता या दूसरे घर वालों की तरफ से कोई शिकायत नहीं मिली थी.

कौन सही और कौन गलत होता है, इस की तहकीकात के लिए पहले रीना के फोन नंबर पर कोतवाल यशपाल सिंह बिष्ट ने काल की. फोन स्विच्ड औफ मिला. उस के बाद मोनू ने रीना के भाई रवि का फोन नंबर दिया. साथ ही बताया कि वही उस की और रीना की शादी का सब से अधिक विरोध करता था.

पुलिस ने उस नंबर पर भी काल की. बात होने लगी. कोतवाल ने पूछा कि क्या उस के परिवार की सदस्य रीना घर में है? वह उस से बात करना चाहता है.

दूसरी तरफ से गुस्से से भरी आवाज आई, ‘‘तुम कौन बोल रहे हो? रीना किसी से बात नहीं करना चाहती है.’’

‘‘मैं मोनू का दोस्त बोल रहा हूं. बहुत अर्जेंट है रीना से बात करना.’’ कोतवाल साहब ने अपनी पहचान छिपा कर कहा.

‘‘बहुत अर्जेंट है तो बोल दे मोनू को भी कि वह दोबारा फोन न करे, नहीं तो उसे भी वहीं भेज दूंगा जहां…’’ रीना का भाई पहले से और अधिक तीखी आवाज में बोलने लगा.

लेकिन कोतवाल यशपाल सिंह बिष्ट बीच में ही बोल पड़े, ‘‘भेज दूंगा… मतलब! रीना कहीं गई है क्या? बता दो न प्लीज, कहां गई है. मेरा दोस्त उसे याद कर बेहाल हो चुका है. ठीक से खाना भी नहीं खा रहा है.’’

‘‘खाना नहीं खा रहा है तब मैं क्या करूं? चल फोन रख.’’ इसी के साथ उस ने फोन कट कर दिया.

उस के बाद मोनू ने कोतवाल साहब का फोन ले कर दोबारा काल की, लेकिन इस बार उस ने स्पीकर औन कर रिकौर्डिंग का स्विच भी औन कर दिया. काल रिसीव करते ही रीना का भाई गालियां बकते हुए बोलने लगा, ‘‘हरामजादे, सुअर की औलाद! अबे चूतिया है क्या, जो मुझे सुबहसुबह तंग कर रहा है!’’

‘‘अरे रवि, मैं मोनू बोल रहा हूं.’’

‘‘अबे हरामजादे! तेरी बहन की… तू फोन बदलबदल कर काल करता है. लगता है तुझे भी वहीं भेजना पड़ेगा, जहां रीना को भेजा है.’’ गुस्से में रवि बोला.

‘‘कहां भेजा है उसे, बताओ तो मैं खुद चला जाता हूं.’’ मोनू ने विनती की.

‘‘तू वहां अकेले नहीं जा सकता. …और मेरे सिवाय और कोई भेज भी नहीं सकता.’’ रवि और भी गुस्से के तेवर के साथ बोला.

‘‘अबे तू नहीं जानता तेरी किस से बात हो रही है. तुम ने जो भी बका है, वह रिकौर्ड भी हो गया है. मैं लक्सर कोतवाली से बात कर रहा हूं. तूने अपनी बहन को कहां गायब कर दिया है, सचसच बता दे, वरना पुलिस को तलाश करना अच्छी तरह आता है.’’ मोनू भी उसी के लहजे में डांटते हुए बोला.

उस के बाद तुरंत कोतवाल बिष्ट ने भी रवि को डांट दिया और रीना के बारे में सहीसही जानकारी मांगी.

पुलिस और लक्सर कोतवाली सुनते ही रवि डर गया. हकलाता हुआ बोलने लगा, ‘‘जी, जी वह मोनू के साथ ही घर से 4-5 दिन पहले भाग गई थी, उस का पता नहीं है.’’

‘‘तो तुम ने अभी तक थाने में उस के लापता होने की शिकायत क्यों नहीं दर्ज करवाई?’’

इस का उस ने कोई जवाब नहीं दिया और फोन कट कर दिया. लक्सर पुलिस के सामने यह मामला कुछ अलग तरह का था. पुलिस रवि से बातें कर के यह समझ गई थी रीना खतरे में हो सकती है. इसलिए उस का पता लगाया जाना चाहिए.

मोनू से बात कर कोतवाल यशपाल सिंह बिष्ट ने रीना और रवि के बारे में कुछ और जानकारी जुटाई. मोनू रीना से कोर्टमैरिज करने के इंतजार में था. उस ने लक्सर पुलिस से रीना के बारे में पता लगाने की विनती की.

मोनू की बातें गौर से सुनने के बाद कोतवाल बिष्ट ने रीना की घर में मौजूदगी के बारे में मालूम करने के लिए चेतक पुलिस को तत्काल रीना के घर भेजा. जब पुलिस ने रीना के घर जा कर रीना के बारे में जानकारी की. रीना घर पर नहीं मिली. पुलिस ने रीना के घर वालों से उस के बारे में पूछताछ की तो उन से रीना के बारे में संतोषजनक जवाब नहीं मिला.

चेतक पुलिस ने वापस कोतवाली पहुंच कर यह जानकारी कोतवाल यशपाल सिंह बिष्ट को दी. मामला चूंकि नाबालिग लड़की के लापता होने का था, इसलिए बिष्ट ने इस मामले में एसपी (देहात) प्रमेंद्र डोवाल को सूचित कर दिया. उन के कहने पर बिष्ट ने रीना के लापता होने की शिकायत दर्ज कर ली.

शिकायत मोनू चौहान की ओर से भादंवि की धारा 365 के अंतर्गत 9 अगस्त, 2022 को दर्ज की गई. इस की जांच एसएसआई अंकुर शर्मा को सौंप दी गई.

खुल गया हत्या का रहस्य

रात लगभग 2 बजे का समय था. घर के दरवाजे की कुंडी बजी. दरवाजा राजरानी ने खोला राजरानी ने देखा कि उस के पति मूलचंद प्रजापति को 2 लोग बाइक से घायल व अचेत अवस्था में ले कर आए थे. पति की हालत देख कर राजरानी घबरा गई.

इस से पहले कि वह उन दोनों से पति की हालत के बारे में पूछती, वे दोनों मूलचंद को बेहोशी की हालत में दरवाजे पर ही छोड़ यह कह कर चले गए कि इन्होंने ज्यादा शराब पी रखी है. दोनों व्यक्तियों के चेहरे कपड़े से ढके थे.

वह अपने पति को किसी तरह घर के अंदर लाई और होश में लाने के लिए उस के चेहरे पर पानी के छींटे मारती रही, लेकिन होश नहीं आया. पति के गले और सिर पर चोट के निशान दिख रहे थे. उस ने बच्चों को जगाने की कोशिश की, लेकिन बच्चे गहरी नींद में सोए थे.

सुबह लगभग 6 बजे मूलचंद की मौत हो गई. यह घटना 7 अक्तूबर, 2020 की है. फिरोजाबाद शहर के थाना उत्तर क्षेत्र स्थित श्रीराम कालोनी निवासी 39 वर्षीय मूलचंद शटरिंग मिस्त्री था. पत्नी राजरानी घर पर ही चूडि़यों पर नग लगाने का काम करती थी.

पति की मौत पर राजरानी व बच्चों की चीखपुकार सुन कर मोहल्ले में जगार हो गई थी. पड़ोसियों ने उस के घर आ कर देखा, मूलचंद की मौत हो चुकी थी. मूलचंद के बेटे राहुल ने पिता की मौत की जानकारी द्वारिकापुरी में रहने वाले अपने ताऊ रामदास को दी.

कुछ ही देर में रामदास भी वहां पहुंच गया. जैसेजैसे लोगों को इस घटना की जानकारी मिलती गई. वैसेवैसे वहां पर लोगों का जमघट लगता गया. तब तक सुबह के लगभग 7 बज गए थे.

इसी बीच किसी ने थाना उत्तर में सूचना दे दी. थानाप्रभारी अनूप कुमार भारतीय सूचना मिलते ही पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. सूचना मिलने पर सीओ (सिटी) हरिमोहन सिंह भी मौके पर पहुंच गए.घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस ने जांचपड़ताल की. मृतक मूलचंद के सिर से खून बह कर जम चुका था तथा गले पर भी चोट के निशान थे. मिस्त्री की मौत होने से उस के बच्चों व पत्नी का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था.

पुलिस ने समझाबुझा कर राजरानी को शांत कराया. पूछताछ में मृतक की पत्नी राजरानी ने पुलिस को बताया कि उस के पति शटरिंग का काम करते थे. बुधवार की शाम 5 बजे बाजार से सामान लेने के लिए निकले थे.

इस के बाद देर रात तक नहीं लौटे. उन के लौटने का इंतजार करतेकरते घर में सभी जने सो गए. रात 2 बजे किसी ने दरवाजा खटखटाया तो उस ने दरवाजा खोला. देखा 2 युवक बाइक से पति को बेहोशी की हालत में ले कर आए थे. वह कुछ समझ पाती, उस से पहले ही उन्होंने अधिक शराब पीने से तबीयत खराब होने की बात कह कर दरवाजे पर डाल कर भाग गए.

राजरानी ने उन युवकों पर पति की हत्या करने का आरोप लगाते हुए कहा कि दोनों के चेहरे ढके हुए थे. इसलिए वह उन्हें पहचान नहीं पाई. पुलिस ने कहा कि घायल पति को उपचार के लिए अस्पताल क्यों नहीं ले गई? इस पर राजरानी ने बताया कि पति रोज ही शराब पी कर गिरतेपड़ते घर आते थे. उस ने सोचा थोड़ी देर में उन्हें होश आ जाएगा. इसलिए वह उन्हें अस्पताल नहीं ले गई. सुबह जब वह सो कर उठी तो देखा, उन की मौत हो गई थी. पड़ोसियों से भी पुलिस ने पूछताछ की.

उन्होंने बताया कि सुबह राजरानी व बच्चों की चीख सुन कर उन्हें घटना की जानकारी हुई थी. मृतक के भाई रामदास ने पुलिस को बताया कि सुबह भतीजे राहुल का फोन आने पर उन्हें घटना की जानकारी मिली थी. जब वे घर पर पहुंचे, उन्हें भाई मृत अवस्था में मिला था.पुलिस ने शटरिंग मिस्त्री के मकान के आसपास भी पड़ताल की. उन्हें खाली पड़े प्लौट में खून के निशान मिले. पुलिस का मानना था कि मिस्त्री के साथ घर के आसपास ही मारपीट की गई थी. पुलिस ने मृतक मूलचंद के मोबाइल को कब्जे में ले लिया ताकि काल डिटेल्स के माध्यम से हत्यारों तक पहुंचा जा सके.

इंसपेक्टर भारतीय ने मौके की आवश्यक काररवाई निपटाने के साथ ही लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया और थाने लौट आए.भाई रामदास ने मृतक भाई की पत्नी राजरानी के बताए अनुसार 2 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट में मूलचंद की गला दबा कर व सिर पर चोट पहुंचा कर हत्या किए जाने की बात कही गई थी. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने केस की जांच शुरू करते हुए मूलचंद के बारे में पता किया कि उस की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी. जानकारी मिली कि मूलचंद सीधासादा व्यक्ति था. शटरिंग के काम से जो आमदनी होती थी, उसी से अपने परिवार को पालता था.

हत्याकांड के खुलासे के लिए एसएसपी सचिंद्र पटेल ने जिम्मेदारी एसपी (सिटी) मुकेशचंद्र मिश्र को सौंपी. साथ ही उन्होंने उन की मदद के लिए सीओ (सिटी) हरिमोहन सिंह और थानाप्रभारी अनूप कुमार भारतीय को ले कर एक पुलिस टीम का गठन कर दिया. पुलिस ने जांच के दौरान मृतक मूलचंद और राजरानी के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स खंगाली.

राजरानी के फोन की काल डिटेल्स में घटना वाली रात आखिरी काल गौरव चौहान को की गई थी. शक गहराने के बाद पुलिस ने गौरव के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह 26 साल का अविवाहित युवक है और मृतक के घर के पास ही रहता है.

गौरव भी चूड़ी पर मोती लगाने का काम करता था. जांच के दौरान पूछताछ में यह भी पता चला कि गौरव का राजरानी के घर काफी आनाजाना था.इस के बाद राजरानी से पूछताछ की गई. पुलिस ने उस से गौरव के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि हमारे व गौरव के यहां चूड़ी का काम होता है. घर भी पासपास हैं इसलिए हमारा परिवार उस से परिचित है. पुलिस ने उस से पूछा कि जब पति घायल और बेहोशी की हालत में था तो अपने जेठ रामदास को फोन कर जानकारी क्यों नहीं दी? रात में तुम ने गौरव को फोन क्यों किया था? इस प्रश्न पर राजरानी ने चुप्पी साध ली.

राजरानी बारबार बयान बदलने लगी. इस से पुलिस का शक मजबूत हो गया. जब पुलिस ने सख्ती दिखाई तो उस ने प्रेमी गौरव के साथ मिल कर पति की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस ने 8 अक्तूबर को घर से राजरानी को तथा कोटला से गौरव को गिरफ्तार कर लिया.

एसपी (सिटी) मुकेशचंद्र मिश्र ने अपने औफिस में आयोजित प्रैस कौन्फ्रैंस में शटरिंग मिस्त्री मूलचंद की हत्या का 24 घंटे में ही खुलासा करने तथा 2 हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी. इस हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.28 वर्षीय गौरव चौहान फिरोजाबाद की श्रीराम कालोनी में मृतक मूलचंद के घर के पास रहता था. मूलचंद शराब पीने का आदी था. वह अपनी आमदनी का बड़ा हिस्सा शराब पर खर्च कर देता था. पत्नी विरोध करती तो वह नशे में उस के साथ मारपीट करता था.

लौकडाउन के दौरान मूलचंद का शटरिंग का काम बंद हो जाने से उस की माली हालत बिगड़ गई. उस के सामने 8 लोगों का पेट पालने की समस्या खड़ी हो गई.गौरव और राजरानी चूड़ी का काम अपनेअपने घरों पर ही करते थे. इस से वे एकदूसरे को जानते थे. आर्थिक संकट आने पर गौरव ने राजरानी की काफी मदद की. वह गौरव के एहसानों के तले दब गई थी. धीरेधीरे दोनों का एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता गया.

6 बच्चों की मां बनने के बाद भी भरेपूरे बदन की 30 साल की राजरानी का जादू अविवाहित गौरव पर पूरी तरह छाने लगा था. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे थे. इस बीच दोनों के अवैध संबंध भी बन गए थे.पति के काम पर जाने के बाद दोनों चोरीछिपे मिलते थे. दोनों का यह रिश्ता बिना रोकटोक के चल रहा था. एक बार मूलचंद ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. इस पर उस का पत्नी से विवाद हो गया. गुस्से में उस ने पत्नी की पिटाई कर दी.

इस की जानकारी प्रेमी गौरव को हुई. प्रेमिका के साथ हुई मारपीट पर गौरव को बहुत गुस्सा आया. उस ने राजरानी के साथ मिल कर अपने प्यार की राह के रोड़े को हटाने की योजना बनाई.मूलचंद बुधवार 7 अक्तूबर, 2020 की शाम 5 बजे सामान लेने बाजार गया था. रात साढ़े 11 बजे मूलचंद शराब के नशे में गिरतापड़ता घर लौटा. तब तक सभी बच्चे सो चुके थे. पत्नी राजरानी पति को नशे में पकड़ कर घर की छत पर बने कमरे में ले गई थी. इस के बाद उस ने अपने प्रेमी गौरव को फोन कर घर पर बुला लिया. उस ने फोन पर कहा कि तुम यहां इस तरह चोरीछिपे आना कि कोई तुम्हें देख न सके.

गौरव दबे पांव राजरानी के घर पहुंच गया. गौरव ने देखा मूलचंद शराब के नशे में बेसुध पड़ा था.राजरानी और गौरव के लिए यह एक अच्छा मौका था. राजरानी ने पति के पैर पकड़े और गौरव ने चुनरी से मूलचंद का गला घोंट दिया. राजरानी ने तसल्ली के लिए उस के सिर पर ईंट से प्रहार भी किया.

हत्या के बाद उस के शव को दोनों ने बरामदे में बिछी चारपाई पर ला कर डाल दिया. खून से सनी ईंट मकान के बगल में खाली पड़े प्लौट में फेंक दी. इस के बाद गौरव अपने घर चला गया था.प्रेमी के साथ पति की हत्या करने के बाद राजरानी ने 2 युवकों द्वारा पति को बेहोश व घायल अवस्था में बाइक से घर ला कर छोड़े जाने की कहानी बना दी. इस के साथ ही राजरानी के बताने पर जेठ रामदास ने 2 अज्ञात युवकों के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी थी. जबकि सच्चाई कुछ और ही थी.

पुलिस ने दोनों आरोपियों की निशानदेही पर वारदात में प्रयुक्त चुनरी (दुपट्टा) व खून सनी ईंट बरामद कर ली.इस हत्याकांड का खुलासा करने वाली पुलिस टीम में थानाप्रभारी अनूप कुमार भारतीय, एसएसआई नरेंद्र कुमार शर्मा, कांस्टेबल विनीत कुमार, तेजवीर सिंह, अजय कुमार, आशीष कुमार, मोहनश्याम, नेत्रपाल, प्रवीन कुमार, लव प्रकाश, महिला कांस्टेबल उपासना शामिल थे.

आवश्यक काररवाई करने के बाद पुलिस ने दोनों दोषियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. एक बेवफा पत्नी ने अपने पति से बेवफाई कर दूसरे मर्द से अवैध संबंध बना कर अपने हंसतेखेलते घर को हमेशाहमेशा के लिए उजाड़ दिया.

77 पेज के सुसाइट नोट की दिल दहलाने वाली कहानी – भाग 2

रजिस्टर के 77 पेज में जो लिखा गया, वह हत्या और आत्महत्या की खतरनाक कहानी है. यह सुसाइड नोट दिल दहला देने वाला है. यह बताता है कि युवाओं में बढ़ते डिप्रेशन यानी अवसाद और हताशा के लक्षणों को नजरंदाज करने का अंजाम कितना खतरनाक हो सकता है.

क्षितिज की मां मिथिलेश उत्तर प्रदेश के झांसी जिले की रहने वाली थीं. उन की शादी दिल्ली के श्रीनिवास पाल से हुई, जो बिजली विभाग में कार्यरत थे. शादी के बाद मिथिलेश अपने पति के पास दिल्ली आ गईं. उन की एक बहन भी हैं, जो झांसी में अपने पति और बच्चों के साथ रहती हैं.

शादी के 14 साल बाद जब मिथिलेश की गोद भरी तो उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. बेटे क्षितिज को पा कर पतिपत्नी बहुत खुश थे. वे प्यार से उसे सोनू कह कर पुकारते थे. श्रीनिवास ने बेटे की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी.

बहुत प्यार दिया. अच्छे नामचीन स्कूल में पढ़ाया और उस से बहुत सारी उम्मीदें बांधी. मगर अफसोस कि वे अपनी उम्मीदों को पूरा होते नहीं देख सके. 10 साल पहले बीमारी के चलते उन की मौत हो गई.

पति का यूं अचानक चले जाना मिथिलेश पर गाज बन कर टूटा. वह बुरी तरह टूट गईं. हताशा और अकेलेपन ने उन्हें घेरा तो वह सत्संग और मंदिरों में सहारा तलाशने लगीं. वहीं श्रीनिवास का लाडला बेटा क्षितिज उर्फ सोनू पिता की अचानक मौत से सहम सा गया. 15 साल की नाजुक उम्र में जब उसे पिता के प्यार और मार्गदर्शन की सब से ज्यादा जरूरत थी, वह उसे छोड़ कर चले गए.

इस घटना ने क्षितिज को डरा दिया. वह सब से कटाकटा सा रहने लगा. स्कूल में भी वह अकेला और अन्य बच्चों से अलग रहता. उस का कोई दोस्त नहीं था. इस अकेलेपन ने उसे मानसिक रूप से तोड़ दिया, उसे दब्बू और डरपोक बना दिया.

वह टीचर के सवालों से डरने लगा. वह दोस्तों के हंसीमजाक से डरने लगा. यहां तक कि अपनी स्कूल बस में चढ़नेउतरने में भी उस के पांव कांपने लगे. वह न तो खेलों में हिस्सा लेता और न ही किसी एक्स्ट्रा एक्टिविटी में. बस अपने आप में ही गुमसुम रहता. धीरेधीरे सब उस से कटने लगे. उसे उस के हाल पर छोड़ दिया. इस बात का जिक्र क्षितिज ने अपने सुसाइड नोट में किया है.

दरअसल, क्षितिज साइकोलौजिकल डिसऔर्डर का शिकार हो चुका था. अपने हालात की वजह से डिप्रेशन में जा रहा था, मगर उस के इन लक्षणों को न उस के स्कूल के टीचर भांप सके और न घर में उस की मां.

उस ने लिखा, ‘मेरी मां मेरी उम्मीद थीं. पापा के जाने के बाद मां और मैं अकेले पड़ गए. मेरे पापा हम सब को ऐसे समय में छोड़ कर चले गए जब हमें सब से ज्यादा जरूरत थी. 10वीं कक्षा में था मैं उस समय, जब पापा की मौत हो गई.

‘बाद में दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसओएल में एडमिशन लिया. लेकिन किस्मत धोखा दे गई. 2 बार फिसल गया. डिप्रेशन रहता है. एक रात, 2 रात, 3 रात, 5 रात तक जगा रहता हूं. कई बार बेहोश सा पड़ा रहता हूं. बीमारियां मेरे अंदर भरती जा रही हैं. मां कई बार टोकती थीं. मां भी हाई ब्लडप्रेशर से परेशान रहती थीं.’

क्षितिज पढ़ाई में पिछड़ने लगा. लगातार फेल होता रहा और अंत में उस ने पढ़ाई छोड़ दी. वह ज्यादा समय घर पर अपने कमरे में बंद रहने लगा. उस की मां उस से बारबार कोई काम करने या पढ़ाई करने को कहतीं, लेकिन अवसाद का शिकार क्षितिज मां की कोई बात पूरी नहीं कर पा रहा था.

सुसाइड नोट में उस ने लिखा है, ‘मेरी अच्छी परवरिश के लिए मां ने सिलाई भी की. मां कहती थी कुछ ट्यूशन कर लो. छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दो. सुन कर मैं डर गया था.’

क्षितिज अपने पापा को अपना हीरो समझता था. उन के जाने का घाव उस के दिल पर गहरा हुआ था. मां का अकेलापन और पिता के लिए उन का रोना उस से देखा नहीं जाता था. वह मां से भी बहुत प्यार करता था. पिता की पेंशन से दोनों का गुजारा किसी तरह चल रहा था, लेकिन उस की मां चिंताओं के कारण बीमार सी रहने लगी थीं.

उन की आंखों से कम दिखने लगा था. कभीकभी वह क्षितिज पर झुंझलाने लगतीं तो कभी बहुत प्यार लुटाती थीं. मगर एकदूसरे के दिलदिमाग में क्या चल रहा था, इस से दोनों ही अनभिज्ञ थे. दोनों अपनेअपने दुख के साथ अकेले थे.

क्षितिज ने तय कर लिया कि अब जीना नहीं है. वह मां को इस दुनिया में अकेला नहीं छोड़ना चाहता था. इसलिए उस ने उन की भी हत्या करने का प्रण कर लिया. पहली सितंबर को उस ने बाइक बांधने वाली डोरी निकाली और पलंग पर बैठी मां के पीछे से आ कर उन के गले में डोरी लपेट कर कस दी.

मिथिलेश छटपटाईं मगर अपना गला नहीं छुड़ा पाईं. कुछ ही देर में वह बेसुध हो कर एक ओर लुढ़क गईं. क्षितिज ने तुरंत मां का सिर अपनी गोद में रख कर उन का मुंह दबा लिया. चंद सेकेंड में मिथिलेश के प्राणपखेरू उड़ गए.

मां को मारने के बाद क्षितिज ने भागने या बचने की कोई कोशिश नहीं की, बल्कि वह आत्महत्या के उपाय सोचने लगा. मां के सिवा उस का कोई भी नहीं था. दरअसल, वह खुद मरना चाहता था मगर मां को दुनिया में अकेला छोड़ कर नहीं जाना चाहता था.

अपने 77 पेज के सुसाइड नोट में क्षितिज ने लिखा, ‘2 साल से मरना चाह रहा था. मैं मरने से पहले अपनी मां को उस दुख से आजाद करना चाहता हूं. हर इतवार को मां सत्संग में जाती थीं. इस बार भी (पिछले हफ्ते) मां जब आईं, थोड़ी हंसी भी हुई थी. मां की आंखों में जाला आ गया है, लगता है मोतियाबिंद है. अब तो मैं मर जाना चाहता हूं. गुरुवार है आज. बाइक की डोरी से मां का गला इसलिए घोटा ताकि मां को मरने से पीड़ा न हो.’

मां का गला घोटने के बाद क्षितिज ने रजिस्टर उठा लिया और लिखा, ‘जैसे ही मैं ने मां के गले में डोरी कसी, मां 4 से 5 सेकेंड में निढाल हो कर गिर गईं. मुझे पता था दिमाग में औक्सीजन नहीं पहुंचने पर मौत हो जाती है.

मां के गिरते ही मैं ने उन का सिर गोद में रख लिया. 8-10 मिनट तक गला दबा कर रखा. मैं मुंह दबा कर रोए जा रहा था. गुरुवार दिन भर और पूरी रात रोता रहा हूं. मुझे पापा की बहुत याद आ रही है. मरने के बाद भी मां की आंखें खुली थीं. मैं ने बंद करने की कोशिश की, मगर हो न सकीं.

‘शुक्रवार है आज. मां के शव को देखा नहीं जा रहा. मैं ने अपनी मां के चेहरे को गंगाजल से नहलाया है. उन के पास बैठ कर भगवत गीता का 18वां अध्याय पढ़ा. पूरी भगवत गीता नहीं पढ़ सका. मैं ने फिर गीता मां के सीने पर रख दी.’

शराबी की विनाश लीला – भाग 2

एसपी प्रशांत वर्मा ने सीओ (सिटी) कपिलदेव मिश्रा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिसे रामभरोसे की खोज में लगा दिया गया. पुलिस टीम ने कई शराब ठेकों पर उस की खोज की लेकिन उस का पता नहीं चला. पुलिस टीम रामभरोसे की खोज करते हुए जब जीटी रोड स्थित एक ढाबे पर पहुंची तो वह वहां बरतन साफ करते मिल गया. रामभरोसे को हिरासत में ले कर पुलिस टीम सदर कोतवाली लौट आई.

थानाप्रभारी रवींद्र कुमार श्रीवास्तव ने श्यामा के नशेड़ी पति रामभरोसे के पकड़े जाने की खबर पुलिस अधिकारियों को दी तो एसपी प्रशांत वर्मा और एएसपी राजेश कुमार कोतवाली आ गए. पुलिस अधिकारियों ने रामभरोसे को जब उस की पत्नी और 4 बेटियों द्वारा आत्महत्या करने की बात बताई तो उस के चेहरे पर पत्नी और बेटियों के खोने का कोई गम नहीं था.

पूछताछ में उस ने बताया कि उस की नशे की लत को ले कर घर में अकसर झगड़ा होता था. 3 दिन पहले उसका पत्नी से झगड़ा और मारपीट हुई थी. श्यामा ने जहर खा कर जान देने की धमकी भी दी थी, लेकिन उस ने नहीं सोचा था कि श्यामा सचमुच बेटियों के साथ जान दे देगी. वह ठंडी सांस ले कर बोला, ‘‘साहब, पूरा परिवार खत्म हो गया है, अगर कोई मुझे जहर ला कर दे दे तो मैं भी जहर खा कर मर जाऊंगा.’’

एएसपी राजेश कुमार ने रामभरोसे पर नफरत भरी निगाह डाली, फिर बोले, ‘‘रामभरोसे, तेरी क्रूरता और नशेबाजी की वजह से तेरी पत्नी व बेटियों ने अपनी जान दे दी. वह तो मर गई, लेकिन तुझे तिलतिल मरने को छोड़ गई. अब पश्चाताप के आंसू बहाने से कोई फायदा नहीं. तुझे तेरे कर्मों की सजा कानून देगा.’’

पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने थानाप्रभारी रवींद्र कुमार श्रीवास्तव को आदेश दिया कि रामभरोसे के विरुद्ध आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करने का मुकदमा दर्ज करें और उसे जेल भेज दें. रवींद्र कुमार श्रीवास्तव ने मृतका श्यामा के ससुर रामसागर को वादी बना कर रामभरोसे के खिलाफ भादंवि की धारा 309 के तहत मुकदमा दर्ज कर के उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के दौरान श्यामा की हताश जिंदगी के दुखद अंत की मार्मिक घटना प्रकाश में आई.

फतेहपुर जिले में एक गांव है नौगांव. इसी गांव के निवासी जयराम की बेटी थी श्यामा. बेटी सयानी हो गई तो 1996 में उस ने श्यामा की शादी रामभरोसे से कर दी.

रामभरोसे का परिवार फतेहपुर शहर के शांतिनगर मोहल्ले में रहता था. परिवार में उस के पिता रामसागर, मां गौरा के अलावा एक भाई दिनेश था.

रामसागर ट्रक ट्रैक्टर की कमानी की मरम्मत करने वाली दुकान पर काम करता था. उस ने रामभरोसे को भी उसी दुकान पर काम में लगा दिया था.

शादी के बाद अन्य औरतों की तरह श्यामा को भी पहले बेटे की चाहत थी. लेकिन उस की यह चाहत तो पूरी नहीं हुई. हां, उस की गोद में एक के बाद एक 4 बेटियां आ गईं. श्यामा की चारों बेटियां पिंकी, प्रियंका, वर्षा और रूबी भले ही किसी को न सुहाती हों, लेकिन उसे तो बेटों जैसी ही लगती थीं. बेटा न हो पाने से श्यामा की सास उस से नाराज रहने लगी थीं.

4-4 बच्चों का पालनपोषण कोई साधारण बात नहीं होती. श्यामा जब बच्चों के पालनपोषण में व्यस्त रहने लगी तो घरेलू कामों में उस का योगदान कम हो गया. काम न करने को ले कर श्यामा और उस की जेठानी सुषमा में झगड़ा होने लगा. वह श्यामा के रूपसौंदर्य से तो जलती ही थी, उस की बेटियों से भी नफरत करती थी. साथ ही सास के कान भी भरती रहती थी. सास सुषमा का पक्ष ले कर श्यामा को भलाबुरा कहती थी.

देवरानीजेठानी का झगड़ा बढ़ा तो घर में कलह ने पांव पसार लिए. रामभरोसे जब मां, भाभी और पत्नी के बीच पिसने लगा तो वह शराब पीने लगा. जिस दिन घर में कलह होती, उस दिन वह कुछ ज्यादा ही पी कर आता. श्यामा उसे टोकती तो वह उसे मारनेपीटने लगता.

नशे में वह मांबाप और भाईभौजाई को भी खूब खरीखोटी सुनाता. इतना ही नहीं, वह घर में तोड़फोड़ भी करता था. उस के उत्पात से पूरा घर सहम जाता था. धीरेधीरे पत्नीबच्चों को भूल कर रामभरोसे अपनी पूरी कमाई नशाखोरी में उड़ाने लगा था.

रोजरोज की कलह से आजिज आ कर रामसागर ने रामभरोसे को घर से अलग कर दिया. रहने के लिए उसे पड़ोस में ही एक कमरे बरामदे वाला मकान दे दिया. रामभरोसे अपनी पत्नी श्यामा और 4 बेटियों के साथ उसी एक कमरे वाले घर में रहने लगा.

लड़ाईझगड़े से निजात मिली तो श्यामा ने राहत की सांस ली. उस ने अपने विनम्र स्वभाव से पति को भी समझाया कि वह शराब पीना छोड़ दे और बेटियों की पढ़ाईलिखाई, पालनपोषण पर ध्यान दे. उस ने यह भी कहा कि वह कमाई का कोई दूसरा रास्ता खोजे, जिस से घरगृहस्थी ठीक से चल सके.

रामभरोसे शराबी जरूर था, लेकिन पत्नीबच्चों से उसे प्यार था. उस ने पत्नी की बात मान कर शराब पीनी छोड़ी तो नहीं, लेकिन कम जरूर कर दी. तब तक रामभरोसे कमानी मरम्मत का हुनर सीख चुका था. उस ने पिता के साथ काम करना छोड़ दिया और शांतिनगर स्थित एक गैराज में कमानी मरम्मत का काम करने लगा. गैराज से उसे अच्छी कमाई होने लगी.

पति कमाने लगा तो श्यामा की घरगृहस्थी सुचारू रूप से चलने लगी. वह पति की कमाई से पूर्णरूप से संतुष्ट न सही, पर असंतुष्ट भी नहीं थी. उस की बड़ी बेटी पिंकी शांतिनगर स्थित निरंकारी बालिका इंटर कालेज में पहले से पढ़ रही थी. अब उस ने प्रियंका, वर्षा और रूबी को भी इसी बालिका विद्यालय में दाखिल करा दिया.

श्यामा अपनी बेटियों का जीवन संवारना चाहती थी, इसलिए वह उन के पालनपोषण तथा पढ़ाईलिखाई पर खास ध्यान देने लगी. बेटियों की पढ़ाई का खर्च पूरा करने के लिए वह पड़ोस के एक धनाढ्य परिवार में खाना बनाने का काम करने लगी.

2 साल बाद : प्यार कैसे बना सजा – भाग 2

रोहित के भाई मोहित ने रिपोर्ट में आरोप लगाया कि करीब 2 साल पहले ज्योति मिश्रा ने उस के भाई रोहित यादव के साथ अंतरजातीय प्रेम विवाह किया था, जिस से ज्योति के घर वाले उस के भाई रोहित व भाभी ज्योति से बहुत नफरत करते थे, उन्होंने कई बार धमकियां भी दी थीं. इसी के चलते उन लोगों ने घटना को अंजाम दिया.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए उन के गांव में दबिश दी. लेकिन कोई भी आरोपी घर पर नहीं मिला. पुलिस ने बृजेश मिश्रा के परिवार के कुछ लोगों के साथ ही कई संदिग्धों को हिरासत में ले लिया. उन्हें कोतवाली ला कर पूछताछ की गई.

2 गांवों के बीच प्रेम विवाह को ले कर हुई इस खूनी घटना के बाद खुफिया विभाग भी सतर्क हो गया था. पुलिस दोनों गांव की स्थिति पर नजर बनाए हुए थी. जहां रोहित के घर पर मातम पसरा हुआ था, वहीं अंगौथा में आरोपी के घरों पर कोई नहीं था. दोनों गांवों में इस घटना के बाद से सन्नाटा पसरा हुआ था.

इस सनसनीखेज हत्याकांड के एक हफ्ते बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे. पुलिस अब तक नामजद आरोपियों में से एक भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी.

हत्यारों द्वारा ज्योति पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर मार देने की खबर इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में प्रमुखता से छाने लगी, जिस से पुलिस पर दबाव बढ़ता जा रहा था, लेकिन पुलिस अपने काम में जुटी रही. उस की जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही थी.

पुलिस के अलावा सर्विलांस टीम, स्वाट टीम को भी आरोपियों की गिरफ्तारी के काम में लगाया गया. पुलिस की मेहनत रंग लाई और हत्याकांड के 3 नामजद आरोपियों को पुलिस ने दबिश के बाद उन के गांव के पास से गिरफ्तार कर लिया गया.

16 जुलाई, 2020 को पुलिस ने ज्योति हत्याकांड का परदाफाश कर दिया. एसपी अजय कुमार पांडेय ने प्रैसवार्ता आयोजित कर इस हत्याकांड का खुलासा किया. पता चला कि इस हत्याकांड को सम्मान की खातिर सगे भाई और 2 चचेरे भाइयों ने अंजाम दिया था.

घटना में नामजद 5 आरोपियों में से पुलिस ने ज्योति के सगे भाई गुलशन मिश्रा तथा 2 चचेरे भाइयों राघवेंद्र मिश्रा व रघुराई मिश्रा को गिरफ्तार कर उन के कब्जे से 2 तमंचे व 5 कारतूस बरामद किए. तीनों हत्यारोपियों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. इस हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह थी—

थाना मैनपुरी के बृजपुरा और अंगौथा गांव अगलबगल हैं. बृजपुरा निवासी महेश सिंह के 2 बेटे व एक बेटी थी. बड़ा बेटा 25 वर्षीय रोहित यादव पशु पालन विभाग में नौकरी करता था. जबकि छोटा बेटा मोहित अभी बीएससी फर्स्ट ईयर में पढ़ रहा था.

वहीं अंगौथा निवासी बृजेश मिश्रा खेतीकिसानी करता था. गांव में उस की आटा चक्की भी थी. उस के 4 बेटे बेटियों में गुलशन व हिमांशु के अलावा ज्योति तीसरे नंबर की थी. गुलशन पिता के साथ आटा चक्की के काम में हाथ बंटाता था जबकि दूसरे नंबर का बेटा हिमांशु पुणे में नौकरी करता था.

रोहित यादव पशुपालन विभाग में अंगौथा मझरा स्थित पशु चिकित्सालय व कृत्रिम गर्भाधान केंद्र में कार्य करता था. इसी सिलसिले में उस का आसपास के गांवों में आनाजाना लगा रहता था. वह पशुओं के इलाज के सिलसिले में पड़ोसी गांव अंगौथा भी जाता था. एक दिन जिस घर के पशुओं के इलाज के लिए रोहित आया था, उसी घर में पड़ोस में रहने वाली ज्योति आई हुई थी.

रोहित की नजर उस पर पड़ी. ज्योति सुंदर लड़की थी. वह उस का अनगढ़ सौंदर्य देख ठगा सा रह गया. उस ने पहली नजर में ही उसे दिल में बसा लिया.

ज्योति को भी अहसास हो गया कि रोहित उसे चाहत की नजरों से देख रहा है. रोहित कसी हुई कदकाठी का जवान युवक था. उसे देख कर 22 वर्षीय ज्योति का दिल भी तेजी से धड़कने लगा था. रोहित जब भी ज्योति के गांव जाता उस की मुलाकात ज्योति से हो जाती. दोनों ही एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे. जब दो युवा मिलते हैं तो जिंदगी में नया रंग घुलने लगता है.

दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार करना चाहते थे. आखिर एक दिन ज्योति को मौका मिल ही गया. भाई और पिता आटा चक्की पर थे, मां घर के कामों में व्यस्त थी.

ज्योति ने जैसे ही रोहित को देखा वह उस के पास से निकली और चुपचाप उस के पास एक पर्ची गिरा दी. रोहित ने वह पर्ची उठा कर अपने पास रख ली. काम निपटाने के बाद रोहित ने रास्ते में पर्ची खोली तो उस में एक मोबाइल नंबर लिखा था. बिना देर किए रोहित ने वह नंबर डायल किया.

दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘मैं ज्योति मिश्रा बोल रही हूं, आप कौन?’’इस पर उस ने जवाब दिया, ‘‘मैं रोहित यादव बोल रहा हूं. आप के गांव के मवेशियों के इलाज के लिए ताजाता रहता हूं.’’

‘‘जनाब, आप इलाज जानवरों का करते हैं और घायल इंसानों को कर देते हैं,’’ कह कर ज्योति खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘आप चिंता न करें, अब मुझे आप का फोन नंबर मिल गया है. अब आप बिलकुल ठीक हो जाओगी.’’ रोहित ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया.