अंकिता भंडारी मर्डर : बाप की सियासत के बूते बेटे का अपराध – भाग 3

अंकिता ने मजबूरी में की थी रिजौर्ट में नौकरी

परिवार आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा था. इस कारण उस ने उस के फील्ड की जो नौकरी पहले मिली, उसे ही चुन लिया था और रिसैप्शनिस्ट का काम करने लगी थी.

यह किसी को नहीं पता था कि उस की पहली नौकरी ही ऐसी आखिरी  होगी, जिस में उसे पहले माह का वेतन भी नहीं मिल पाएगा. वह अपने मातापिता की सब से छोटी संतान थी. उस का बड़ा भाई दिल्ली में काम करता है और परिवार की जरूरतों को किसी तरह से पूरा कर पाता है.

उस के घर वाले बताते हैं कि एक अच्छे करिअर का सपना देखने के बावजूद इस 19 वर्षीय लड़की ने घर की आर्थिक स्थिति के कारण रिसैप्शनिस्ट की नौकरी का विकल्प चुना था. मृतका की बुआ के अुनसार अंकिता के पिता बेहद मामूली किसान हैं. परिवार की आर्थिक परेशानी के चलते वह नौकरी करने को मजबूर हो गई थी.

इस मामले में 6 लोगों को हिरासत में लेते हुए पुलिस ने रिजौर्ट में ताला जड़ दिया था. साथ ही लक्ष्मण झूला पुलिस ने रिजौर्ट के मालिक पुलकित आर्य, प्रबंधक सौरभ भास्कर और सहायक प्रबंधक अंकित गुप्ता को हिरासत में लिया था. तब तक पुलिस और दूसरे सूत्रों से अंकिता गुमशुदगी को ले कर कई विरोधाभासी बातें सामने आ चुकी थीं.

इसे ले कर पुलिस भी अस्पष्ट जानकारी दे रही थी. साथ ही रिजौर्ट का मालिक पुलकित कार्य भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राज्यमंत्री विनोद आर्य का बेटा था. इस कारण इस वारदात की कई बातें सोशल मीडिया पर भी अंकिता की मौत की सूचना के साथ वायरल हो गई थीं. फिर तो पूरे देश में इस पर कोहराम मच गया.

गुस्साई भीड़ ने आरोपियों की पिटाई कर फाड़े कपड़े

23 सितंबर, 2022 की सुबह एसएचओ संतोष कुंवर ने पुलकित, सौरभ और अंकित का मैडिकल करवाने और अदालत में पेश करने की योजना बनाई थी. दिन में 11 बजे जैसे ही लक्ष्मण झूला पुलिस तीनों आरोपियों को मैडिकल करवाने के लिए थाने से निकली, वैसे ही बाहर आक्रोशित बेकाबू भीड़ पुलिस की गाड़ी पर ही टूट पड़ी.

उन में गुस्से से भरी महिलाएं बड़ी संख्या में थीं. वे पुलिस की गाड़ी के सामने अचानक आ गईं और उन के खिलाफ नारे लगाने लगीं. भीड़ ने पुलिस की गाड़ी पर पथराव भी कर दिया.

इस हंगामे में भीड़ ने कब और कैसे पुलिस की गाड़ी से तीनों आरोपियों को बाहर खींच लिया, पता ही नहीं चला. आक्रोशित लोगों ने उन के कपड़े फाड़ डाले और उन की जम कर धुनाई कर दी.

बड़ी मुश्किल से उन्हें बेकाबू भीड़ के चुंगल से छुड़ाया गया. किसी तरह उन्हें चीला मार्ग होते हुए कोटद्वार अदालत में पेश किया गया. कोर्ट ने तीनों आरोपियों को तुरंत हिरासत में ले कर पौड़ी जेल भेज दिया.

जब अंकिता को नहर में फेंकने की सूचना अंकिता की मां सोना देवी को मिली, तब वह भी गहरे सदमे में डूब गई. परिवार में चाची और बुआ ने किसी तरह उन्हें संभाला.

सभी अंकिता की एक झलक पाने को बेचैन थे. दूसरी ओर एसडीआरएफ की टीम और जल पुलिस द्वारा चीला की शक्ति नहर में अंकिता को तलाश करने का काम तेजी से चल रहा था. इस काम में 2 दिन निकल गए, लेकिन अंकिता के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई थी.

24 सितंबर, 2022 को एसडीआरएफ ने नहर से अंकिता का शव बरामद कर लिया था. इस की सूचना मिलते ही  पुलिस के आला अधिकारी मौके पर पहुंच गए और शव का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए कड़ी सुरक्षा में एम्स अस्पताल ऋषिकेश भेज दिया गया.

मीडिया में अंकिता का शव मिलने की खबर आते ही गढ़वाल मंडल में उबाल आ गया. गुस्साए लोगों की भीड़ ने भाजपा नेता पुलकित आर्य की फैक्ट्री व रिजौर्ट में तोड़फोड़ कर दी. रिजौर्ट के कई कमरे तहसनहस कर डाले. उत्तराखंड के कई शहरों की कई संस्थाओं ने अंकिता की मौत पर दुख प्रकट किया और कैंडल मार्च भी निकाला.

यमकेश्वर की भाजपा विधायक रेणु बिष्ट भी अंकिता की मौत पर दुख प्रकट करने के लिए एम्स जा पहुंची थी. किंतु वहां मौजूद आक्रोशित भीड़ ने उन की गाड़ी में तोड़फोड़ कर दी. रेणु बिष्ट किसी तरह खुद को बचाती हुई चली गईं.

गुस्साई भीड़ की शिकार राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष कुसुम कंडवाल भी हुईं. उन्हें भी बैरंग लौटा दिया गया. यहां तक कि विनोद आर्य, जो भाजपा नेता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी पदाधिकारी हैं, की फैक्ट्री स्वदेशी फार्मेसी में भी आग लगा दी.

4 डाक्टरों के पैनल ने किया पोस्टमार्टम

अंकिता कांड ने पूरे शहर में तूल पकड़ लिया था. शहर में प्रदर्शन का जोर था. यहां तक कि एम्स के बाहर भी हजारों प्रदर्शनकारी पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक करने और आरेपियों को फांसी देने की मांग जोरशोर से कर रहे थे.

शव का पोस्टमार्टम 4 डाक्टरों के पैनल द्वारा किया गया, जिस की  वीडियोग्राफी भी की गई. भीड़ को शांत करने के लिए  उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार ने अंकिता भंडारी मामले की निष्पक्ष जांच का आश्वासन देते हुए डीआईजी की मौनिटरिंग वाली एसआईटी (स्पैशल इन्वैस्टीगेशन टीम) गठन करने की बात कही.

पोस्टमार्टम के बाद अंकिता का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया. वहां मौजूद भीड़ अंकिता के शव को गांव ले जाने नहीं दे रही थी. परिजनों की भी मांग थी कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए. सभी उत्तराखंड की भाजपा सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे. बड़ी मुश्किल से पुलिस प्रशासन ने अंकिता के परिजनों और भीड़ को समझाया. तब तक पूरा दिन निकल गया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक होने पर ही देर रात अंकिता का अंतिम संस्कार हो पाया, जो अलकनंदा घाट पर संपन्न हुआ.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अंकिता की मौत का कारण पानी में डूबना बताया गया था. साथ ही उस के शरीर पर पिटाई से बनी कई चोटें थीं. यानी रिपोर्ट के मुताबिक उसे नहर में फेंकने से पहले बुरी तरह पीटा गया था.

यह रिपोर्ट 27 सितंबर को पुलिस को सौंप दी गई.

एक तरफ अंकिता भंडारी की गुमशुदगी से ले कर मर्डर, लाश मिलने, मामले का खुलासा होने के बाद पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार तक लोग सड़कों पर उतरे हुए थे, दूसरी तरफ आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद आधी रात के समय रिजौर्ट पर बुलडोजर चलाने के आदेश जारी कर दिए गए थे.

इसे ले कर भी लोगों के मन में कई सवाल खड़े हो गए थे. इस मामले पर स्थानीय विधायक और प्रशासन आमनेसामने आ गए थे. अंकिता के पिता ने बुलडोजर ऐक्शन की आड़ में सबूतों को मिटाने के आरोप लगाए.

हैरानी की बात यह थी कि डीएम डा. विजय कुमार जोगदंडे को इस की कोई जानकारी ही नहीं थी. उन्होंने कहा कि बुलडोजर चलाने के निर्देश संबंधी उन को कोई जानकारी ही नहीं, लेकिन वह इस की जांच करवाएंगे.

मुख्यमंत्री धामी ने दिया न्याय का भरोसा

स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार यमकेश्वर सीट से बीजेपी विधायक रेणु बिष्ट बुलडोजर वाली रात करीब डेढ़ बजे रिजौर्ट पर पहुंची थीं. तब तक काफी हिस्सा तोड़ा जा चुका था. बुलडोजर ड्राइवर ने बताया कि प्रशासन की तरफ से आदेश मिला था.

प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस की सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में कराने की घोषणा की. साथ ही राज्य पुलिस ने डीआईजी पी. रेणुका देवी के नेतृत्व में एसआईटी का गठन कर दिया, जिस का जिम्मा साइबर सेल के इंचार्ज इंसपेक्टर राजेंद्र सिंह खोलिया को बनाया गया.

एक मौका और दीजिए : बहकने लगे सुलेखा के कदम – भाग 2

उधर मनीष, नीलेश के प्रति अपने व्यवहार के लिए स्वयं को धिक्कार रहा था. पहली बार ऐसा हुआ था कि कोई प्रोग्राम बनने से पूर्व ही अधर में लटक गया था पर वह करता भी तो क्या करता. नीलेश की बातें सुन कर उस के दिल में  शक का कीड़ा कुलबुला कर नागफनी की तरह डंक मारते हुए उसे दंशित करने लगा था.

वह जानता था कि उसे महीने में 10-12 दिन घर से बाहर रहना पड़ता है. ऐसे में हो सकता है सुलेखा की किसी के साथ घनिष्ठता हो गई हो. इस में  कुछ बुरा भी नहीं है पर उसे यही विचार परेशान कर रहा था कि सुलेखा ने उस सुयश नामक व्यक्ति से उसे क्यों नहीं मिलवाया, जबकि नीलेश के अनुसार वह उस से मिलती रहती है. और तो और उस ने उस का नीलेश से अपना ममेरा भाई बता कर परिचय भी करवाया…जबकि उस की जानकारी में उस का कोई ममेरा भाई है ही नहीं…उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे पर सिर्फ अनुमान के आधार पर किसी पर दोषारोपण करना उचित भी तो नहीं है.

एक दिन जब सुलेखा बाथरूम में थी तो वह उस का सैलफोन सर्च करने लगा. एक नंबर  उसे संशय में डालने लगा क्योंकि उसे बारबार डायल किया गया था. नाम था सुश…सुश. नीलेश की जानकारी में सुलेखा का कोई दोस्त नहीं है फिर उस से बारबार बातें क्यों किया करती है और अगर उस का कोई दोस्त है तो उस ने उसे बताया क्यों नहीं. मन ही मन मनीष ने सोचा तो उस के अंतर्मन ने कहा कि यह तो कोई बात नहीं कि वह हर बात तुम्हें बताए या अपने हर मित्र से तुम्हें मिलवाए.

पर जीवन में पारदर्शिता होना, सफल वैवाहिक जीवन का मूलमंत्र है. अपने अंदर उठे सवाल का वह खुद जवाब देता है कि वह तुम्हारा हर तरह से तो खयाल रखती है, फिर मन में शंका क्यों?

‘शायद जिसे हम हद से ज्यादा प्यार करते हैं, उसे खो देने का विचार ही मन में असुरक्षा  पैदा कर देता है.’

‘अगर ऐसा है तो पता लगा सकते हो, पर कैसे?’

मन तर्कवितर्क में उलझा हुआ था. अचानक सुश और सुयश में उसे कुछ संबंध नजर आने लगा और उस ने वही नंबर डायल कर दिया.

‘‘बोलो सुलेखा,’’ उधर से किसी पुरुष की आवाज आई.

पुरुष स्वर सुन कर उसे लगा कि कहीं गलत नंबर तो नहीं लग गया अत: आफ कर के पुन: लगाया, पुन: वही आवाज आई…

‘‘बोलो सुलेखा…पहले फोन क्यों काट दिया, कुछ गड़बड़ है क्या?’’

उसे लगा नीलेश ठीक ही कह रहा था. सुलेखा उस से जरूर कुछ छिपा रही है… पर क्यों, कहीं सच में तो उस के पीछे उन दोनों में… अभी वह यह सोच ही रहा था कि सुलेखा नहा कर आ गई. उस के हाथ में अपना मोबाइल देख कर बोली, ‘‘कितनी बार कहा है, मेरा मोबाइल मत छूआ करो.’’

‘‘मेरे मोबाइल से कुछ नंबर डिलीट हो गए थे, उन्हीं को तुम्हारे मोबाइल से अपने में फीड कर रहा था,’’ न जाने कैसे ये शब्द उस की जबान से फिसल गए.

अपनी बात को सिद्ध करने के लिए वह ऐसा ही करने लगा जैसा उस ने कहा था. इसी बीच उस ने 2 आउटगोइंग काल, जो सुश को करे थे उन्हें भी डिलीट कर दिया, जिस से अगर वह सर्च करे तो उसे पता न चले.

अब संदेह बढ़ गया था पर जब तक सचाई की तह में नहीं पहुंच जाए तब तक वह उस से कुछ भी कह कर संबंध बिगाड़ना नहीं चाहता था. उस की पत्नी का किसी के साथ गलत संबंध है तथा वह उस से चोरीछिपे मिला करती है, यह बात भी वह सह नहीं पा रहा था. न जाने उसे ऐसा क्यों लगने लगा कि वह नामर्द तो नहीं, तभी उस की पत्नी को उस के अलावा भी किसी अन्य के साथ की आवश्यकता पड़ने लगी है.

‘तुम इतने दिन बाहर टूर पर रहते हो, अपने एकाकीपन को भरने के लिए सुलेखा किसी के साथ की चाह करने लगे तो इस में क्या बुराई है?’ अंतर्मन ने पुन: प्रश्न किया.

‘बुराई, संबंध बनाने में नहीं बल्कि छिपाने में है, अगर संबंध पाकसाफ है तो छिपाना क्यों और किस लिए?’

‘शायद इसलिए कि तुम ऐसे संबंध को स्वीकार न कर पाओ…सदा संदेह से देखते रहो.’

‘क्या मैं तुम्हें ऐसा लगता हूं…नए जमाने का हूं…स्वस्थ दोस्ती में कोई बुराई नहीं है.’

‘सब कहने की बात है, अगर ऐसा होता तो तुम इतने परेशान न होते… सीधेसीधे उस से पूछ नहीं लेते?’

‘पूछने पर मन का शक सच निकल गया तो सह नहीं पाऊंगा और अगर गलत निकला तो क्या मैं उस की नजरों में गिर नहीं जाऊंगा.’

‘जल्दबाजी क्यों करते हो, शायद समय के साथ कोई रास्ता निकल ही आए.’

‘हां, यही ठीक रहेगा.’

इस सोच ने तर्कवितर्क में डूबे मन को ढाढ़स बंधाया…उन के विवाह को 10 महीने हो चले थे. वह अपने पी.एफ. में उसे नामिनी बनाना चाहता था, उस के लिए सारी औपचारिकता पूरी कर ली थी. बस, सुलेखा के साइन करवाने बाकी थे. एक एल.आई.सी. भी खुलवाने वाला था, पर इस एपीसोड ने उसे बुरी तरह हिला कर रख दिया. अब उस ने सोचसमझ कर कदम उठाने का फैसला कर लिया.

यद्यपि सुलेखा पहले की तरह सहज, सरल थी पर मनीष के मन में पिछली घटनाओं के कारण हलचल मची हुई थी. एक बार सोचा कि किसी प्राइवेट डिटेक्टर को तैनात कर सुलेखा की जासूसी करवाए, जिस से पता चल सके कि वह कहां, कब और किस से मिलती है पर जितना वह इस के बारे में सोचता, बारबार उसे यही लगता कि ऐसा कर के वह अपनी निजी जिंदगी को सार्वजनिक कर देगा…आखिर ऐसी संदेहास्पद जिंदगी कोई कब तक बिता सकता है. अत: पता तो लगाना ही पड़ेगा, पर कैसे, समझ नहीं पा रहा था.

हफ्ते भर में ही ऐसा लगने लगा कि वह न जाने कितने दिनों से बीमार है. सुलेखा पूछती तो कह देता कि काम की अधिकता के कारण तबीयत ढीली हो रही है…वैसे भी सुलेखा का उस की चिंता करना दिखावा लगने लगा था. आखिर, जो स्त्री उस से छिप कर अपने मित्र से मिलती रही है वह भला उस के लिए चिंता क्यों करेगी?

उस दिन मनीष का मन बेहद अशांत था. आफिस से छुट्टी ले ली थी. सुलेखा ने पूछा तो कह दिया, ‘‘तबीयत ठीक नहीं लग रही है, अत: छुट्टी ले ली.’’

सुलेखा ने डाक्टर को दिखाने की बात कही तो वह टाल गया. आखिर बीमारी मन की थी, तन की नहीं, डाक्टर भी भला क्या कर पाएगा. रात का खाना भी नहीं खाया. सुलेखा के पूछने पर कह दिया कि बस, एक गिलास दूध दे दो, खाने का मन नहीं है. सुलेखा दूध लेने चली गई. उस के कदमों की आहट सुन कर उसे न जाने क्या सूझा कि अचानक अपनी छाती को कस कर दबा लिया तथा दर्द से कराहने लगा.

शक की पराकाष्ठा : परिवार में कैसे आया भूचाल – भाग 2

तांत्रिक की बात सामने आते ही पुलिस के सामने थाना डिलारी की घटना सामने आ गई. अब से लगभग 15 साल पहले थाना डिलारी के गांव कुरी में तांत्रिक के कहने पर एक आदमी ने अपने परिवार के 5 सदस्यों को गड़ा खजाना पाने की लालसा में इसी तरह से मौत की नींद सुला दिया था.

अब पुलिस टीम उस तांत्रिक को खोजने लगी, जिस के पास रोहताश जाता था. पर काफी प्रयास करने के बाद भी तांत्रिक का पता नहीं चला. इस के साथ पुलिस ने आरोपी रोहताश की तलाश में आसपास के गांवों में छापे मारे लेकिन कहीं भी उस के बारे में जानकारी नहीं मिली. इस के बाद पुलिस ने उस की गिरफ्तारी के लिए उस के फोटो लगे पोस्टर छपवा कर अलगअलग गांव और जिले के कई थानों में लगवा दिए थे, जिस में ईनाम की भी घोषणा की थी.

पुलिस की टीमें अपने काम में जुटी थीं. उधर अस्पताल में भरती रोहताश के दूसरे बेटे आकाश ने भी दम तोड़ दिया. इस सूचना से सारे गांव में मातम सा छा गया. कलावती पर तो जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा था. उस के 4 बच्चों में 2 लड़के थे, जिन की इलाज के दौरान मौत हो गई थी जबकि एक बेटी की हालत अभी भी नाजुक बनी हुई थी.

उसी दिन शुक्रवार की देर शाम पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि रोहताश निर्मलपुर के जंगलों में छिपा है. इस सूचना पर कोतवाली प्रभारी मनोज कुमार पुलिस टीम के साथ जंगलों में पहुंचे और घेराबंदी कर रोहताश को जंगल से अपनी हिरासत में ले लिया. पुलिस ने रोहताश से पूछताछ की तो उस ने इस वारदात के पीछे की जो कहानी बताई, वह बड़ी ही अजीबोगरीब निकली.

जिला मुरादाबाद के कस्बा ठाकुरद्वारा से लगभग 8 किलोमीटर दूर गांव निर्मलपुर में रोहताश अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी कलावती के अलावा 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. रोहताश टेलरिंग का काम करता था. उस के पास खेती की ढाई बीघा जमीन भी थी. बच्चों को पढ़ाने की खातिर उसे ज्यादा पैसे कमाने की इतनी धुन थी कि टेलरिंग के काम के साथसाथ वह गांव में चौथाई पर जमीन ले कर उस में भी खेती कर लेता था.

कई साल पहले की बात है रोहताश का अपने घर वालों से जमीन को ले कर विवाद हो गया था, जिस में कलावती ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. लेकिन कुछ दिनों बाद ही रोहताश ने अपने घर वालों से बोलना शुरू कर दिया. यह बात कलावती को बहुत बुरी लगी. कलावती ने पति की इस बात का विरोध किया लेकिन रोहताश ने पत्नी की बात को तवज्जो नहीं दी. फिर क्या था, इसी बात पर रोहताश और कलावती के बीच झगड़ा होने लगा. उन दोनों के पारिवारिक जीवन में खटास पैदा हो गई.

रोहताश पहले कभीकभार शराब पीता था, लेकिन पत्नी से कलह होने के बाद वह शराब का आदी हो गया. उस ने शुरू में टेलरिंग का काम सुरजननगर कस्बे में शुरू किया था, लेकिन शराब का आदी हो जाने के बाद उस ने अपने गांव के पास स्थित कालेवाला में अपना काम शुरू कर लिया. रोहताश के चारों बच्चे स्कूल जाने लगे थे, जिस के बाद उन की पढ़ाई और खानपान व अन्य खर्च बढ़े तो रोहताश को आर्थिक तंगी हो गई.

कालेवाला में उस ने काम शुरू किया तो वहां काम जमने में भी काफी वक्त लग गया, जिस के कारण वह परेशान रहने लगा. उन्हीं बढ़ते खर्चों के कारण उसे बीवीबच्चे भार लगने लगे थे. जब कभी भी कलावती या बच्चे उस से पैसों की डिमांड करते तो वह झुंझला उठता और गुस्से में उन्हें अपशब्द भी कह देता था. कलावती उसे शराब पीने को मना करती थी लेकिन वह पत्नी की नहीं सुनता था.

इस बात से दुखी हो कर कलावती ने यह बात अपने भाई लक्खू को बताई. एक दिन लक्खू कल्याणपुर निवासी अपने बड़े बहनोई को ले कर गांव निर्मलपुर पहुंचा. उन दोनों ने रोहताश को समझाने की कोशिश की तो रोहताश ने कलावती में ही तमाम खामियां गिना दीं. उस वक्त भी उस ने कहीं भी अपनी गलती नहीं मानी थी.

उन के जाने के बाद रोहताश ने पत्नी को आड़े हाथों लिया. उस के बाद तो रोहताश ने शराब पीने की अति ही कर दी थी. वह सुबह ही घर से काम पर जाने की बात कह कर घर से निकल जाता और देर रात नशे में धुत हो कर घर पहुंचता. ज्यादा शराब पीने से उस का शरीर भी काफी कमजोर हो गया था. जिस के कारण उस के मन में हीनभावना पैदा हो गई थी.

एक बात और वह खुद को नामर्द भी समझने लगा. अपने इलाज के लिए वह कई नीमहकीमों से भी मिला. लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. जब हकीमों से दवा लाने वाली बात कलावती को पता चली तो उस ने उसे दवा लाने से मना कर दिया. इस के बाद तो उसे अपनी पत्नी पर पूरा शक हो गया था कि उस के संबंध उस के जीजा के साथ हैं, इसी कारण वह उसे सेक्स की दवा लाने से मना करती है.

रोहताश की बेटियां काफी समझदार हो चुकी थीं, लेकिन उन्हें पढ़ाई करने की इतनी धुन थी कि उन्हें मोबाइल वगैरह से कोई लगाव नहीं था. 6 सदस्यों वाले इस घर में एक ही मोबाइल था, जो रोहताश के पास ही रहता था. जिस के कारण कलावती के किसी भी रिश्तेदार का फोन उसी के मोबाइल पर आता था.

कलावती की सब से बड़ी मजबूरी यही थी कि उसे जब किसी भी रिश्तेदार से बात करनी होती तो वह या तो सुबह ही कर सकती थी या फिर शाम को. और रोहताश में सब से बड़ी कमी थी कि वह घर आ कर किसी के फोन आने की बात अपनी बीवी को नहीं बताता था.

कई बार कल्याणपुर निवासी उस के साढ़ू ने उस की बीवी और बच्चों से बात करने की इच्छा जाहिर की, लेकिन रोहताश हमेशा ही कह देता कि अभी वह बाहर है. घर जा कर बात करा देगा. घर जाने के बाद भी वह कोई न कोई बहाना करते हुए साढ़ू की बात नहीं कराता था. रोहताश अपने साढ़ू को गलत मान कर उस से चिढ़ने लगा था. फिर साढ़ू का बारबार फोन आने से उसे शक हो गया कि उस की बीवी के उस के साथ अवैध संबंध हैं, तभी तो वह बारबार उस से बात करना चाहता है.

मौज मजे की ममता : गजेंद्र और ममता ने मिल कर कैसी साजिश रची

4 अप्रैल, 2018 की बात है. मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के मुरार थाना क्षेत्र में कर्फ्यू लगा होने की वजह से चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था. कर्फ्यू की वजह यह थी कि 2 अप्रैल को एससी/एसटी एक्ट के संशोधन के विरोध में दलित आंदोलन के दौरान 2 लोगों की मौत हो गई थी. हालात बिगड़ने पर प्रशासन ने इलाके में कर्फ्यू लगा रखा था.

इसी दौरान घटी एक अन्य घटना ने माहौल में अचानक ही गरमाहट पैदा कर दी. घटना भी ऐसी कि पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया. खबर यह फैली कि बुधवार की सुबह भारत बंद के दौरान उपद्रव करने वाले लोगों ने तिकोनिया इलाके में एक युवक की हत्या और कर दी है. मरने वाला युवक तिकोनिया पार्क का उमेश कुशवाह है.

यह खबर जंगल की आग की तरह इतनी तेजी से फैली कि थोड़ी ही देर में मृतक उमेश कुशवाह के घर के बाहर भीड़ लग गई. भीड़ में राजनैतिक दलों के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं से ले कर सामाजिक संगठनों के लोग भी शामिल थे. सभी में इस घटना को ले कर काफी आक्रोश था. लोग हत्यारों के तत्काल पकड़े जाने की मांग कर होहल्ला मचा रहे थे.

सूचना मिलने पर घटनास्थल पर पहुंचे सीएसपी रत्नेश तोमर ने मामले की गंभीरता को समझते हुए विभाग के आला अधिकारियों को अवगत करा दिया. संवेदनशील इलाके में हत्या की एक और घटना घटने की सूचना पर आईजी अंशुमान यादव, डीआईजी मनोहर वर्मा, एसपी डा. आशीष भी मौका ए वारदात पर जल्द पहुंच गए.

भीड़ ने उन सभी पुलिस अधिकारियों को घेर लिया. इस से तिकोनिया इलाके का माहौल बेहद तनावपूर्ण हो गया. ऐसी हालत में किसी भी अनहोनी से बचने के लिए रैपिड एक्शन फोर्स को भी बुला लिया.

पुलिस अधिकारियों ने वहां मौजूद प्रदर्शनकारियों को भरोसा दिया कि इस केस का जल्द परदाफाश कर के हत्यारों को गिरफ्तार कर लेंगे. उन के आश्वासन के बाद भीड़ किसी तरह शांत हुई. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने मौका ए वारदात का अवलोकन किया.

पुलिस जानती थी कि अफवाहें चिंगारी बन कर आग लगाने का काम करती हैं और उन्हें रोकना कठिन होता है. वे इतनी तेजी से फैलती हैं कि माहौल बहुत जल्द बिगड़ जाता है, इसलिए पुलिस ने सुरक्षा के मद्देनजर सख्त कदम उठाते हुए इंटरनेट प्रसारण पर रोक लगा दी.

पुलिस अफसरों के रवाना होते ही डौग स्क्वायड और फोरैंसिक एक्सपर्ट्स की टीमें भी घटनास्थल पर पहुंच गईं. सीएसपी रत्नेश तोमर और थानाप्रभारी अजय पवार ने घटनास्थल का मुआयना किया तो देखा कि खून से लथपथ उमेश कुशवाह की लाश मकान के बाहरी हिस्से में बने कमरे में फर्श पर पड़ी थी.

देख कर लग रहा था, जैसे किसी धारदार चीज से उस के सिर पर प्रहार किया गया था. उस का सिर फटा हुआ था. मौके पर इधरउधर खून फैला हुआ था. लाश बिस्तर पर नहीं थी, इस से लगता था कि मरने से पहले उमेश ने शायद हत्यारे से संघर्ष किया होगा. जिस कमरे में उमेश कुशवाह की लाश पड़ी थी, वहीं पर उस का मोबाइल फोन भी पड़ा हुआ था.

घटनास्थल से सारे सबूत इकट्ठे करने के बाद पुलिस ने अलगअलग कोणों से लाश की फोटोग्राफी कराई. घटनास्थल से कुछ दूरी पर पुलिस टीम को एक हंसिया पड़ा मिला. उस हंसिए पर खून लगा हुआ था. इस से पुलिस को आशंका हुई कि हो न हो इस हंसिया से ही हत्यारों ने इस वारदात को अंजाम दिया हो. फोरैंसिक टीम ने हंसिए से फिंगरप्रिंट उठा लिए. फिर जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

पुलिस ने वहां मौजूद उमेश की पत्नी ममता से प्रारंभिक पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘मेरे पति सूरत में नौकरी करते हैं. वह 30 मार्च को ही सूरत से लौट कर घर आए थे. शहर में 2 अप्रैल को भारत बंद के दौरान उपद्रव हो जाने के बाद समूचे मुरार क्षेत्र में कर्फ्यू और धारा 144 लग जाने की वजह से वह सूरत नहीं लौट सके.

‘‘रोजाना की तरह वह खाना खा कर अपने कमरे में सो रहे थे. आज तड़के 4 बजे के करीब मैं बाथरूम गई. जब वहां से लौट कर आई तो पति को खून से लथपथ फर्श पर पड़ा देख कर भौचक्की रह गई. मैं रोती हुई अपने फुफेरे देवर गजेंद्र के पास गई और उसे जगा कर यह बात बताई. मेरी बात सुन कर गजेंद्र तुरंत मेरे घर आया. लाश देख कर वह समझ नहीं सका कि यह सब कैसे हो गया. इस के बाद मैं ने साहस बटोर कर मोबाइल से अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों को जानकारी दे दी. पड़ोसी महेश ने इस की सूचना पुलिस को दी.’’

पुलिस ने ममता से कमरे में उमेश के अकेले सोने की वजह मालूम की तो उस ने बताया कि हमारे दोनों बेटे 2 दिन पहले सिकंदर कंपू स्थित अपने मामा के घर एक कार्यक्रम में गए थे. वे रात को लौटने वाले थे, इसलिए वह दरवाजा खुला छोड़ कर सो रहे थे. उमेश के चीखने की आवाज न तो ममता ने सुनी थी और न ही गजेंद्र ने.

पुलिस अधिकारियों ने क्राइम सीन को पुन: समझा. जांच में 3 बातें स्पष्ट हुईं, एक तो यह कि सिर पर किसी धारदार चीज से प्रहार किया गया था. दूसरा यह कि मामला साफतौर पर हत्या का था न कि लूटपाट में हुई हत्या का.

तीसरी बात यह थी कि वारदात में किसी ऐसे नजदीकी व्यक्ति का हाथ होने की संभावना लग रही थी, जो घर की स्थिति को भलीभांति जानता था. वह व्यक्ति यह भी जानता था कि उमेश के दोनों बेटे आज घर पर नहीं हैं. घर पर सिर्फ पत्नी ममता ही है.

बहरहाल, कातिल जो भी था उस ने गुनाह को छिपाने की हरसंभव कोशिश की थी. पुलिस ने पड़ताल के दौरान जो हंसिया बरामद किया था, ममता ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. घटनास्थल की जांच के बाद एसपी डा. आशीष ने इस मामले के खुलासे के लिए सीएसपी रत्नेश तोमर के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर दिया. टीम का निर्देशन एसपी साहब स्वयं कर रहे थे.

अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह सिर पर धारदार चीज का प्रहार बताया गया था. जबकि मौत का समय रात 1 बजे से 3 बजे के बीच बताया गया, इसलिए पुलिस ने तिकोनिया इलाके में लगे सीसीटीवी कैमरों की रात 12 बजे से ले कर 3 बजे तक की फुटेज देखी. लेकिन इस से इस घटना का कोई सुराग नहीं मिला.

इलाके में कर्फ्यू लगा होने की वजह से फुटेज में पुलिस के अलावा कोई भी शख्स आताजाता दिखाई नहीं दिया. पुलिस ने ममता से उमेश की हत्या के बारे में पूछताछ की तो वह पुलिस पर हावी होते हुए बोली, ‘‘साहब, मेरे ही पति की हत्या हुई और आप मुझ से ही इस तरह पूछ रहे हैं जैसे मैं ने ही उन्हें मारा हो. जिस ने उन्हें मारा उसे तो आप पकड़ नहीं पा रहे. आप ही बताइए, भला मैं अपने पति को क्यों मारूंगी. आप मुझे ज्यादा परेशान करेंगे तो मैं एसपी साहब से आप की शिकायत कर दूंगी.’’

‘‘देखो ममता, तुम जिस से चाहो मेरी शिकायत कर देना. मुझे तो इस केस की जांच करनी है.’’ सीएसपी रत्नेश तोमर ने कहा, ‘‘अब तुम यह बताओ कि तुम्हारी गजेंद्र से मोबाइल पर इतनी बातें क्यों होती हैं, इस से तुम्हारा क्या नाता है?’’

‘‘साहब, गजेंद्र मेरा फुफेरा देवर है. मैं जिस किराए के मकान में रहती हूं, उसी मकान में वह भी रहता है. अगर मैं गजेंद्र से बात कर लेती हूं तो कोई गुनाह करती हूं क्या?’’ ममता बोली.

‘‘तुम्हारा गजेंद्र से बात करना कोई गुनाह नहीं है. लेकिन तुम्हें यह तो बताना ही पड़ेगा कि पति की हत्या से पहले और बाद में उस से क्या बातें हुई थीं?’’

हत्या का सच जानने के लिए पुलिस को काफी प्रयास करने पड़े. ऐसा होता भी क्यों न, चालाक ममता और गजेंद्र सीएसपी रत्नेश तोमर को गुमराह करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे. सीएसपी ने ममता से कहा, ‘‘ममता, तुम झूठ मत बोलो. तुम ने ही अपने प्रेमी के साथ मिल कर प्रेम प्रसंग में रोड़ा बन रहे पति को रास्ते से हटाने का षडयंत्र रचा था.’’

इतना सुनते ही ममता के चेहरे का रंग उड़ गया, वह खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘नहीं, मेरी गजेंद्र से कोई बात नहीं हुई थी. किसी ने आप को गलत जानकारी दी है.’’

‘‘ममता, हमें गलत जानकारी नहीं दी. यह देखो तुम ने कबकब और कितनी देर तक गजेंद्र से बातें की थीं. इस कागज में पूरी डिटेल्स है.’’ सीएसपी ने काल डिटेल्स उस के हाथ में थमाते हुए कहा.

ममता अब झूठ नहीं बोल सकती थी, क्योंकि काल डिटेल्स का कड़वा सच उस के हाथ में था. ममता की चुप्पी से सीएसपी तोमर समझ गए कि उन की पड़ताल सही दिशा में जा रही है. इस के बाद उन्होंने उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और पति की हत्या की पूरी कहानी सुना दी.

उमेश कुशवाह मूलरूप से बिजौली के रशीदपुर गांव का रहने वाला था. 15 साल पहले रोजीरोटी की तलाश में वह गांव छोड़ कर सूरत चला गया था. उमेश जवान हुआ तो उस के बड़े भाई मान सिंह ने सिकंदर कंपू इलाके की रहने वाली ममता से शादी कर दी.

शादी के कुछ साल बाद ही ममता 2 बच्चों की मां बन गई. बच्चे पढ़ने लायक हुए तो उमेश ने दोनों बच्चों को ग्वालियर शिफ्ट कर दिया. यहां वह मुरार के तिकोनिया इलाके में किराए का मकान ले कर रहने लगे. इसी मकान के दूसरे कमरे में उमेश का फुफेरा भाई गजेंद्र भी रहता था.

कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. ममता के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ. बच्चों का हालचाल पूछने के बहाने गजेंद्र ममता के पास आने लगा. ममता बच्ची नहीं थी, वह गजेंद्र के मन की बात को अच्छी तरह से समझ रही थी. गजेंद्र को अपनी ओर आकर्षित होते देख वह भी उस की ओर खिंचती चली गई.

दोनों के दिलों में प्यार का अंकुर फूटा तो जल्द ही वह समय आ गया, जब दोनों का एकदूसरे के बिना रहना मुश्किल हो गया. धीरेधीरे स्थिति यह हो गई कि ममता को उमेश की बांहों की अपेक्षा गजेंद्र की बांहें ज्यादा अच्छी लगने लगीं. जो सुख उसे गजेंद्र की बांहों में मिलता था, वह उमेश की बांहों में नहीं था. यही वजह थी कि उन दोनों को लगने लगा था कि अब वे एकदूसरे के बिना नहीं रह सकते.

ममता ने तो कुछ नहीं कहा, लेकिन एक दिन गजेंद्र ने कहा, ‘‘ममता, अब मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता. मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

इस पर ममता ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता गजेंद्र, मैं शादीशुदा ही नहीं 2 बच्चों की मां हूं.’’

‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं है. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं.’’

गजेंद्र बोला, ‘‘तुम्हारे लिए मुझे यदि उमेश की हत्या भी करनी पड़े तो मैं कर दूंगा.’’

‘‘तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगे.’’ ममता ने कहा, ‘‘उमेश, मुझ से और बच्चों से बहुत प्यार करता है. हम दोनों को जो चाहिए, वह मिल ही रहा है फिर हम कोई गलत काम क्यों करें.’’ ममता ने गजेंद्र को समझाया.

लेकिन ममता के समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि वह ममता को हमेशा के लिए पाना चाहता था. गजेंद्र ने ममता पर ज्यादा दबाव डाला तो वह परेशान हो कर बोली, ‘‘तुम्हें जो करना है करो. इस मामले में मैं कुछ नहीं जानती.’’

ममता के प्यार में पागल गजेंद्र ने ममता की इस बात को सहमति मान कर उमेश की हत्या करने की योजना बना डाली और हत्या करने के लिए मौके की ताक में रहने लगा. फिर योजना में ममता को भी शामिल कर लिया.

4 अप्रैल, 2018 को उसे वह मौका तब मिल गया, जब उसे पता चला कि उमेश के दोनों बेटे मामा के घर से नहीं लौट पाए हैं. घर पर सिर्फ ममता और उमेश ही हैं. ममता ने बातोंबातों में फोन पर गजेंद्र को बता दिया कि उमेश खाना खाने के बाद गहरी नींद में सो गया है.

इस पर गजेंद्र उमेश को ठिकाने लगाने के इरादे से उमेश के कमरे पर पहुंच गया. उस ने ममता के साथ बैठ कर योजना बनाई कि तुम सब से पहले मौका देख कर उमेश के सिर पर हंसिए का वार करना. ममता ने ऐसा ही किया. इस के बाद गजेंद्र ने ममता के हाथ से हंसिया ले कर उमेश के सिर को बड़ी बेरहमी से वार कर के फाड़ दिया. थोड़ी देर छटपटाने के बाद उमेश शांत हो गया.

इश्क की राह में बने रोड़े को मौत के घाट उतारने के बाद घर आ कर गजेंद्र ने इत्मीनान के साथ हाथपैर धोए और फिर कपड़े बदल कर सो गया. ममता और गजेंद्र को उम्मीद थी कि उमेश की हत्या पहेली बन कर रह जाएगी और वे कभी नहीं पकड़े जाएंगे.

उधर सुबह घटनास्थल पर पुलिस के आने के बाद ममता और गजेंद्र पूरी तरह से अंजान बने रहने का नाटक करते रहे. पुलिस के सवालों का भी उन दोनों ने बड़ी चालाकी के साथ सामना किया. इन दोनों ने अपने जुर्म को छिपाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन पुलिस ने आखिरकार सच उगलवा ही लिया.

ममता और गजेंद्र ने जब अपना गुनाह स्वीकार कर लिया तो पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर के अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

मौज मजे में पति की हत्या

मानने वाले प्रेमीप्रेमिका और पतिपत्नी का रिश्ता सब से अजीम मानते हैं. लेकिन  जबजब ये रिश्ते आंतरिक संबंधों की महीन रेखा को पार करते हैं, तबतब कोई न कोई संगीन जुर्म सामने आता है.

हरिओम तोमर मेहनतकश इंसान था. उस की शादी थाना सैंया के शाहपुरा निवासी निहाल सिंह की बेटी बबली से हुई थी. हरिओम के परिवार में उस की पत्नी बबली के अलावा 4 बच्चे थे. हरिओम अपनी पत्नी बबली और बच्चों से बेपनाह मोहब्बत करता था.

बेटी ज्योति और बेटा नमन बाबा राजवीर के पास एत्मादपुर थानांतर्गत गांव अगवार में रहते थे, जबकि 2 बेटियां राशि और गुड्डो हरिओम के पास थीं. राजवीर के 2 बेटों में बड़ा बेटा राजू बीमारी की वजह से काम नहीं कर पाता था. बस हरिओम ही घर का सहारा था, वह चांदी का कारीगर था.

हरिओम और बबली की शादी को 15 साल हो चुके थे. हंसताखेलता परिवार था, घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. दिन हंसीखुशी से बीत रहे थे. लेकिन अचानक एक ऐसी घटना घटी, जिस से पूरे परिवार में मातम छा गया.

3 नवंबर, 2019 की रात में हरिओम अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ घर से लापता हो गया. पिछले 12 साल से वह आगरा में रह रहा था. 36 वर्षीय हरिओम आगरा स्थित चांदी के एक कारखाने में चेन का कारीगर था.

पहले वह बोदला में किराए पर रहता था. लापता होने से 20 दिन पहले ही वह पत्नी बबली व दोनों बच्चियों राशि व गुड्डो के साथ आगरा के थानांतर्गत सिकंदरा के राधानगर इलाके में किराए के मकान में रहने लगा था.

आगरा में ही रहने वाली हरिओम की साली चित्रा सिंह 5 नवंबर को अपनी बहन बबली से मिलने उस के घर गई. वहां ताला लगा देख उस ने फोन से संपर्क किया, लेकिन दोनों के फोन स्विच्ड औफ थे.

चित्रा ने पता करने के लिए जीजा हरिओम के पिता राजबीर को फोन कर पूछा, ‘‘दीदी और जीजाजी गांव में हैं क्या?’’

इस पर हरिओम के पिता ने कहा कि कई दिन से हरिओम का फोन नहीं मिल रहा है. उस की कोई खबर भी नहीं मिल पा रही. चित्रा ने बताया कि मकान पर ताला लगा है. आसपास के लोगों को भी नहीं पता कि वे लोग कहां गए हैं.

किसी अनहोनी की आशंका की सोच कर राजबीर गांव से राधानगर आ गए. उन्होंने बेटे और बहू की तलाश की, लेकिन उन की कोई जानकारी नहीं मिली. इस पर पिता राजबीर ने 6 नवंबर, 2019 को थाना सिकंदरा में हरिओम, उस की पत्नी और बच्चों की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

जांच के दौरान हरिओम के पिता राजबीर ने थाना सिकंदरा के इंसपेक्टर अरविंद कुमार को बताया कि उस की बहू बबली का चालचलन ठीक नहीं था. उस के संबंध कमल नाम के एक व्यक्ति के साथ थे, जिस के चलते हरिओम और बबली के बीच आए दिन विवाद होता था. पुलिस ने कमल की तलाश की तो पता चला कि वह भी उसी दिन से लापता है, जब से हरिओम का परिवार लापता है.

पुलिस सरगरमी से तीनों की तलाश में लग गई. इस कवायद में पुलिस को पता चला कि बबली सिकंदरा थानांतर्गत दहतोरा निवासी कमल के साथ दिल्ली गई है. उन्हें ढूंढने के लिए पुलिस की एक टीम दिल्ली के लिए रवाना हो गई.

शनिवार 16 नवंबर, 2019 को बबली और उस के प्रेमी कमल को पुलिस ने दिल्ली में पकड़ लिया. दोनों बच्चियां भी उन के साथ थीं, पुलिस सब को ले कर आगरा आ गई. आगरा ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो मामला खुलता चला गया.

पता चला कि 3 नवंबर की रात हरिओम रहस्यमय ढंग से लापता हो गया था. पत्नी और दोनों बच्चे भी गायब थे. कमल उर्फ करन के साथ बबली के अवैध संबंध थे. वह प्रेमी कमल के साथ रहना चाहती थी. इस की जानकारी हरिओम को भी थी. वह उन दोनों के प्रेम संबंधों का विरोध करता था. इसी के चलते दोनों ने हरिओम का गला दबा कर हत्या कर दी थी.

बबली की बेहयाई यहीं खत्म नहीं हुई. उस ने कमल के साथ मिल कर पति की गला दबा कर हत्या दी थी. बाद में दोनों ने शव एक संदूक में बंद कर यमुना नदी में फेंक दिया था.

  पूछताछ और जांच के बाद जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

फरवरी, 2019 में बबली के संबंध दहतोरा निवासी कमल उर्फ करन से हो गए थे. कमल बोदला के एक साड़ी शोरूम में सेल्समैन का काम करता था. बबली वहां साड़ी खरीदने जाया करती थी. सेल्समैन कमल बबली को बड़े प्यार से तरहतरह के डिजाइन और रंगों की साडि़यां दिखाता था. वह उस की सुंदरता की तारीफ किया करता था.

उसे बताता था कि उस पर कौन सा रंग अच्छा लगेगा. कमल बबली की चंचलता पर रीझ गया. बबली भी उस से इतनी प्रभावित हुई कि उस की कोई बात नहीं टालती थी. इसी के चलते दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए थे.

अब जब भी बबली उस दुकान पर जाती, तो कमल अन्य ग्राहकों को छोड़ कर बबली के पास आ जाता. वह मुसकराते हुए उस का स्वागत करता फिर इधरउधर की बातें करते हुए उसे साड़ी दिखाता. कमल आशिकमिजाज था, उस ने पहली मुलाकात में ही बबली को अपने दिल में बसा लिया था. नजदीकियां बढ़ाने के लिए उस ने बबली से फोन पर बात करनी शुरू कर दी.

जब दोनों तरफ से बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो नजदीकियां बढ़ती गईं. फोन पर दोनों हंसीमजाक भी करने लगे. फिर उन की चाहत एकदूसरे से गले मिलने लगी. बातोंबातों में बबली ने कमल को बताया कि वह बोदला में ही रहती है.

इस के बाद कमल बबली के घर आनेजाने लगा. जब एक बार दोनों के बीच मर्यादा की दीवार टूटी तो फिर यह सिलसिला सा बन गया. जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में मिल लेते थे.

हरिओम की अनुपस्थिति में बबली और कमल के बीच यह खेल काफी दिनों तक चलता रहा. लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं, एक दिन हरिओम को भी भनक लग गई. उस ने बबली को कमल से दूर रहने और फोन पर बात न करने की चेतावनी दे दी.

दूसरी ओर बबली कमल के साथ रहना चाहती थी. उस के न मानने पर वह घटना से 20 दिन पहले बोदला वाला घर छोड़ कर सपरिवार सिकंदरा के राधानगर में रहने लगा. 3 नवंबर, 2019 को हरिओम शराब पी कर घर आया. उस समय बबली मोबाइल पर कमल से बातें कर रही थी. यह देख कर हरिओम के तनबदन में आग लग गई. इसी को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ तो हरिओम ने बबली की पिटाई कर दी.

बबली ने इस की जानकारी कमल को दे दी. कमल ने यह बात 100 नंबर पर पुलिस को बता दी. पुलिस आई और रात में ही पतिपत्नी को समझाबुझा कर चली गई. पुलिस के जाने के बाद भी दोनों का गुस्सा शांत नहीं हुआ, दोनों झगड़ा करते रहे.

रात साढे़ 11 बजे बबली ने कमल को दोबारा फोन कर के घर आने को कहा. जब वह उस के घर पहुंचा तो हरिओम उस से भिड़ गया. इसी दौरान कमल ने गुस्से में हरिओम का सिर दीवार पर दे मारा. नशे के चलते वह कमल का विरोध नहीं कर सका.

उस के गिरते ही बबली उस के पैरों पर बैठ गई और कमल ने उस का गला दबा दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद हरिओम की मौत हो गई. उस समय दोनों बच्चियां सो रही थीं. कमल और बबली ने शव को ठिकाने लगाने के लिए योजना तैयार कर ली. दोनों ने शव को एक संदूक में बंद कर उसे फेंकने का फैसला कर लिया, ताकि हत्या के सारे सबूत नष्ट हो जाएं.

योजना के तहत दोनों ने हरिओम की लाश एक संदूक में बंद कर दी. रात ढाई बजे कमल टूंडला स्टेशन जाने की बात कह कर आटो ले आया.

आटो से दोनों यमुना के जवाहर पुल पर पहुंचे. लाश वाला संदूक उन के साथ था. इन लोगों ने आटो को वहीं छोड़ दिया. सड़क पर सन्नाटा था, कमल और बबली यू टर्न ले कर कानपुर से आगरा की तरफ आने वाले पुल पर पहुंचे और संदूक उठा कर यमुना में फेंक दिया. इस के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. दूसरे दिन 4 नवंबर को सुबह कमल बबली और उस की दोनों बच्चियों को साथ ले कर दिल्ली भाग गया.

बबली की बेवफाई ने हंसतेखेलते घर को उजाड़ दिया था. उस ने पति के रहते गैरमर्द के साथ रिश्ते बनाए. यह नाजायज रिश्ता उस के लिए इतना अजीज हो गया कि उस ने अपने पति की मौत की साजिश रच डाली.

पुलिस 16 नवंबर को ही कमल व बबली को ले कर यमुना किनारे पहुंची. उन की निशानदेही पर पीएसी के गोताखोरों को बुला कर कई घंटे तक यमुना में लाश की तलाश कराई गई, लेकिन लाश नहीं मिली. अंधेरा होने के कारण लाश ढूंढने का कार्य रोकना पड़ा.

रविवार की सुबह पुलिस ने गोताखोरों और स्टीमर की मदद से लाश को तलाशने की कोशिश की. लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला.

बहरहाल, पुलिस हरिओम का शव बरामद नहीं कर सकी. शायद बह कर आगे निकल गया होगा. पुलिस ने बबली और उस के प्रेमी कमल को न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

मर्यादा की हद से आगे – भाग 2

मृतक पवन पाल के दोस्त कल्लू के संबंध में क्लू मिला तो अजय प्रताप सिंह ने रमाशंकर उर्फ कल्लू की तलाश शुरू कर दी. उन्होंने कच्ची बस्ती जा कर कल्लू पल्लेदार के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह नहर किनारे अपनी मां और बहन के साथ रहता है. अजय प्रताप सिंह उस के घर पहुंचे तो पता चला कि कल्लू एक हफ्ते से घर में ताला लगा कर कहीं चला गया है.

दोस्त की हत्या के बाद रमाशंकर उर्फ कल्लू का घर में ताला लगा कर गायब हो जाना, संदेह पैदा कर रहा था. अजय प्रताप सिंह समझ गए कि पवन की हत्या का राज उस के दोस्त कल्लू के पेट में ही छिपा है.

कल्लू शक के घेरे में आया तो उन्होंने उस की तलाश में कई संभावित स्थानों पर छापे मारे, लेकिन वह उन की पकड़ में नहीं आया. हताश हो कर उन्होंने उस की टोह में अपने खास मुखबिर लगा दिए.

10 जुलाई को शाम 4 बजे एक मुखबिर ने थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह को बताया कि मृतक पवन पाल का दोस्त कल्लू पल्लेदार इस समय पनकी इंडस्ट्रियल एरिया के नहर पुल पर मौजूद है.

मुखबिर की सूचना महत्त्वपूर्ण थी. थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने एसआई दयाशंकर त्रिपाठी, उमेश कुमार, हैडकांस्टेबल रामकुमार और सिपाही गंगाराम को साथ लिया और जीप से नहर पुल पर जा पहुंचे.

जीप रुकते ही एक व्यक्ति तेजी से रेलवे लाइन की तरफ भागा. लेकिन पुलिस टीम ने उसे कुछ ही दूरी पर दबोच लिया. पकड़े गए व्यक्ति ने अपना नाम रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद बताया. पुलिस उसे थाना पनकी ले आई.

थाने पर जब रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद से पवन पाल की हत्या के बारे में पूछा गया तो उस ने कहा, ‘‘पवन पाल मेरा जिगरी दोस्त था. दोनों साथ काम करते थे और खातेपीते थे. भला मैं अपने दोस्त की हत्या क्यों करूंगा? मुझे झूठा फंसाया जा रहा है.’’

लेकिन पुलिस ने उस की बात पर यकीन नहीं किया और उस से सख्ती से पूछताछ की. कल्लू पुलिस की सख्ती ज्यादा देर बरदाश्त नहीं कर सका. उस ने अपने दोस्त पवन पाल की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

यही नहीं, कल्लू ने हत्या में इस्तेमाल लोहे का वह हुक (बोरा उठाने वाला) भी बरामद करा दिया, जिसे उस ने घर के अंदर छिपा दिया था. मृतक के मोबाइल को कल्लू ने कूंच कर नहर में फेंक दिया था, जिसे पुलिस बरामद नहीं कर सकी.

थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने ब्लाइंड मर्डर का रहस्य उजागर करने तथा कातिल को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर में एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (कल्याणपुर) अजीत कुमार सिंह थाना पनकी आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने भी रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद से पूछताछ की. उस ने बताया कि पवन ने उस की इज्जत पर हाथ डाला था. उस ने उसे बहुत समझाया, हाथ तक जोड़े लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे मौत की नींद सुला दिया.

रमाशंकर उर्फ कल्लू ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने मृतक पवन के बड़े भाई जगत पाल को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया. उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस जांच तथा अभियुक्त के बयानों के आधार पर दोस्त द्वारा दोस्त की हत्या करने की सनसनीखेज घटना इस तरह सामने आई.

फैजाबाद शहर के थाना कैंट के अंतर्गत एक मोहल्ला है रतिया निहावा. रामप्रसाद निषाद इसी मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी लक्ष्मी के अलावा 2 बेटे दयाशंकर, रमाशंकर उर्फ कल्लू तथा 2 बेटियां रजनी व मानसी थीं. रामप्रसाद निषाद सरयू नदी में नाव चला कर अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

रामप्रसाद का बड़ा बेटा दयाशंकर पढ़ालिखा था. वह बिजली विभाग में नौकरी करता था. उस की शादी जगदीशपुर निवासी झुनकू की बेटी वंदना से हुई थी. वंदना तेजतर्रार युवती थी.

ससुराल में वह कुछ साल तक सासससुर के साथ ठीक से रही, उस के बाद वह कलह करने लगी. कलह की सब से बड़ी वजह थी वंदना का देवर रमाशंकर उर्फ कल्लू.

कल्लू का मन न पढ़नेलिखने में लगता था और न ही किसी काम में. वह मोहल्ले के कुछ आवारा लड़कों के साथ घूमने लगा, जिस की वजह से वह नशे का आदी हो गया. शराब पी कर लोगों से गालीगलौज और मारपीट करना उस की दिनचर्या बन गई. आए दिन घर में कल्लू की शिकायतें आने लगीं.

वंदना भी कल्लू की हरकतों से परेशान थी. उसे यह कतई बरदाश्त नहीं था कि उस का पति कमा कर लाए और देवर मुफ्त की रोटी खाए. कलह का दूसरा कारण था, संयुक्त परिवार में रहना.

वंदना को दिन भर काम में व्यस्त रहना पड़ता था. इस सब से वह ऊब गई थी और संयुक्त परिवार में नहीं रहना चाहती थी. वह कलह तो करती ही थी साथ ही पति दयाशंकर पर अलग रहने का दबाव  भी बनाती थी.

रामप्रसाद भी छोटे बेटे कल्लू की नशाखोरी से परेशान था. वह उसे समझाने की कोशिश करता तो वह बाप से ही भिड़ जाता था. घर की कलह और बेटे की नशाखोरी की वजह से रामप्रसाद बीमार पड़ गया. बड़े बेटे दयाशंकर ने रामप्रसाद का इलाज कराया. लेकिन वह उसे नहीं सका.

पिता की मौत पर कल्लू ने खूब ड्रामा किया. शराब पी कर उस ने भैयाभाभी को खूब खरीखोटी सुनाई. साथ ही ठीक से इलाज न कराने का इलजाम भी लगाया.

पिता की मौत के बाद मां व बहन का बोझ दयाशंकर के कंधों पर आ गया. उस की आमदनी सीमित थी और खर्चे बढ़ते जा रहे थे. ससुर की मौत के बाद वंदना ने भी कलह तेज कर दी थी. वह पति का तो खयाल रखती थी, लेकिन अन्य लोगों के खानेपीने में भेदभाव बरतती थी. सास लक्ष्मी कुछ कहती तो वंदना गुस्से से भर उठती, ‘‘मांजी, गनीमत है जो तुम्हारा बेटा तुम्हें रोटी दे रहा है. वरना तुम सब को मंदिर के बाहर भीख मांग कर पेट भरना पड़ता.’’

बहू की जलीकटी बातें सुन कर लक्ष्मी खून का घूंट पी कर रह जाती, क्योंकि वह मजबूर थी. छोटी बेटी मानसी भी जवानी की दहलीज पर खड़ी थी. उसे ले कर वह कहां जाती.

लक्ष्मी ने छोटे बेटे रमाशंकर उर्फ कल्लू को समझाया कि अब तो सुधर जाए. कुछ काम करे और चार पैसे कमा कर लाए. किसी दिन वंदना ने खानापानी बंद कर दिया तो हम सब भूखे मरेंगे. लेकिन कल्लू पर मां की बात का कोई असर नहीं हुआ. वह अपनी ही मस्ती में मस्त रहा.

उन्हीं दिनों एक रोज रमाशंकर देर शाम शराब पी कर घर आया. आते ही उस ने खाना मांगा. इस पर वंदना गुस्से से बोली, ‘‘कमा कर रख गए थे, जो खाना लगाने का हुक्म दे रहे हो. आज तुम्हें खाना नहीं मिलेगा. एक बात कान खोल कर सुन लो. इस घर में अब तुम्हें खाना तभी मिलेगा, जब कमा कर लाओगे.’’

मोहब्बत रास न आई – भाग 2

धीरेधीरे समय गुजरता गया. गीता अपने सौतेले बाप और भाई के जुल्म सहन करतीकरती जवानी की दहलीज पर आ खड़ी हुई थी. लेकिन दोनों बापबेटों ने उसे व उस के घर वालों को बंधुआ मजदूर बना कर रख दिया था.

जब यह सब भावना देवी से सहन नहीं हुआ तो उस ने एक दिन गीता को प्यार से समझाया, ‘‘बेटी, तू अब समझदार हो गई है. तू इन लोगों के जुल्म कब तक सहती रहेगी. अब तू मेरी चिंता छोड़. तू किसी अच्छे सीधेसादे लड़के को देख कर उस के साथ शादी कर अपना घर बसा ले.’’

मां की तरफ से शादी की छूट मिलते ही गीता का हौसला बढ़ा. गीता ने उसी दिन अपनी मां की बात दिमाग में बैठा ली.

फिर वह एक ऐसे ही लड़के की तलाश में लग गई. लेकिन काफी प्रयास करने के बाद भी उसे कोई ऐसा लड़का नहीं मिल रहा था, जो उसे अपनी जीवनसंगिनी बना कर उसे खुश रख सके.

एक साल पहले की बात है. गीता किसी काम से भिकियासैंण गई हुई थी. भिकियासैंण के बाजार में ही उस की मुलाकात जगदीश चंद्र से हुई. जगदीश ग्राम पनुवाधोखन निवासी केसराम का बेटा था. वह अनुसूचित जाति का था. उसे देखते ही वह पास आया और गीता के बारे में जानकारी ली.

उसे देखते ही गीता को लगा कि जगदीश एक सीधासादा युवक है. उस दिन दोनों में जानपहचान हुई. बातों ही बातों में एकदूसरे के परिवार की जानकारी ली.

जगदीश ने उसी मुलाकात में बताया था कि वह ठेकेदार कविता मनराल के ठेके में ‘हर घर नल, हर घर जल’ मिशन के अंतर्गत घरघर नल लगवाने का काम करता है. जगदीश चंद्र ने उसे यह भी बता दिया था कि अभी उस की शादी नहीं हुई है. उस के घर वाले उस के लिए लड़की तलाश रहे हैं.

जगदीश को दिल में बसा लिया

जगदीश चंद्र की बात सुनते ही गीता को लगा कि जिस सपनों के राजकुमार की उसे तलाश थी, वह उसे मिल गया. उस के स्वभाव को देख कर लगा कि वही एक ऐसा शख्स है, जिस के साथ शादी कर के वह अपनी जिंदगी हंसीखुशी के साथ काट सकती है.

उस छोटी सी मुलाकात के दौरान गीता ने जगदीश का मोबाइल नंबर भी ले लिया था. उस के बाद वह अपने घर चली आई.

घर आने के बाद हर वक्त जगदीश का चेहरा उस की आंखों के सामने घूमने लगा था. लेकिन गीता की एक मजबूरी थी कि उस के पास उस वक्त मोबाइल फोन नहीं था. जिस से वह उस से संपर्क साधने में असमर्थ थी.

कुछ समय के बाद ही जगदीश चंद्र एक दिन हर घर नल, हर घर जल अभियान के तहत काम करने भिकियासैंण के बोली न्याय पंचायत क्षेत्र में पहुंचा. जगदीश चंद्र को देखते ही गीता ने उसे पहचान लिया. उसे देखते ही गीता का चेहरा खिल उठा. उस दिन दोनों की दूसरी मुलाकात थी. उस वक्त जोगा सिंह और उस का लड़का गोविंद सिंह खेतों पर गए हुए थे.

गीता को जगदीश से बात करने का पूरा मौका मिला तो उस ने उसे अपनी मां भावना का मोबाइल नंबर भी दे दिया था. जिस के माध्यम से दोनों आपस में बातचीत करने लगे थे. वही मुलाकात धीरेधीरे प्यार में तब्दील हो गई थी.

कुछ ही दिनों में गीता ने भी एक मोबाइल खरीद लिया था. उस के बाद दोनों के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया था. दोनों के बीच प्रेम प्रसंग होते ही बात शादी तक जा पहुंची थी. गीता तो पहले ही जगदीश के साथ शादी करने के लिए तैयार बैठी थी. लेकिन जगदीश को उस से शादी करने के लिए अपने घर वालों को समझाना पड़ा.

जगदीश के हठ के सामने उस के घर वाले भी मना नहीं कर सके. इस के बाद दोनों ने शादी करने की तैयारी भी शुरू कर दी थी. वैसे तो दोनों ही शादी के लिए बालिग थे. लेकिन दोनों की शादी के लिए कुछ प्रमाणपत्र अधूरे थे.

उसी शादी के प्लान के अनुसार 26 मई, 2022 को गीता जगदीश के साथ अल्मोड़ा आ गई. उस दिन दोनों को शादी के लिए कुछ कपड़े और सामान खरीदना था. बाजार में खरीदारी करते वक्त जोगा सिंह के एक परिचित ने दोनों को एक साथ देख लिया तो उस ने तुरंत ही गोविंद सिंह को फोन से यह जानकारी दे दी.

यह जानकारी मिलते ही गोविंद सिंह तुरंत ही बाजार पहुंच गया. उस के बाद उस ने गीता और जगदीश चंद्र दोनों को भलाबुरा कहा. जगदीश को आगे न मिलने की चेतावनी देते हुए गीता को वह अपने साथ ले गया.

घर पहुंचते ही गोविंद सिंह ने गीता को बहुत मारापीटा और उसे चेतावनी दी कि अगर उस ने दोबारा उस से मिलने की कोशिश की तो वह उस की जान ले लेगा. उस दिन के बाद वह पहले के मुकाबले गीता पर और अधिक ध्यान देने लगा. साथ ही बातबात पर वह उस के साथ मारपीट भी करने लगा था.

लेकिन उस की मां भावना भी गोविंद सिंह के आगे मजबूर हो गई थी. फिर भी वह गीता को घर से निकालने का मौका देती रहती थी.

7 अगस्त, 2022 को गीता को थोड़ा सा मौका मिला तो वह घर से निकल गई. घर से निकलते ही वह जगदीश के पास पहुंची. जगदीश चंद्र जानता था कि गोविंद सिंह कभी भी उसे ढूंढता हुआ उस के पास आ सकता है. यही सोच कर अगले ही दिन दोनों अल्मोड़ा पहुंच गए.

एडवोकेट नारायण राम ने दी पनाह

अल्मोड़ा पहुंचते ही जगदीश चंद्र ने अधिवक्ता नारायण राम से संपर्क किया. जगदीश चंद्र और गीता ने उन के सामने अपनी परेशानी रखी तो उन्होंने हर तरह से सहायता करने का आश्वासन दिया. उस के साथ ही दोनों की सहायता करने के लिए उन्हें अपने घर में भी शरण दी.

8 अगस्त, 2022 को जब गीता के घर से भागने की सूचना जोगा सिंह को पता चली तो वह बौखला गया. उसे पता था कि वह भाग कर सीधे जगदीश चंद्र के पास गई होगी. जोगा सिंह अपने बेटे गोविंद सिंह और पत्नी भावना देवी को साथ ले कर गीता की तलाश में जगदीश के घर पहुंचा.

उन्होंने जगदीश के घर जा कर उस के घर वालों को भी भलाबुरा कहा. उस के बाद जगदीश को जान से मारने की धमकी देते हुए वहां से चले आए. वहां से आने के बाद वे गीता और जगदीश को इधरउधर तलाशने लगे.

जगदीश चंद्र के घर वालों ने यह बात उसे फोन कर के बता दी थी. जिस के बाद गीता को लगने लगा था कि उस के परिवार वाले जगदीश चंद्र के साथ कुछ भी कर सकते हैं. यह जानकारी मिलते ही 22 अगस्त, 2022 को दोनों ने शादी करने का निर्णय लिया. फिर उसी दिन जिला अल्मोड़ा के गैराड़ गोलज्यू मंदिर में हिंदू रीतिरिवाज से शादी कर ली. फिर वे पतिपत्नी के रूप में रहने लगे.

मां और सौतेले पिता हो गए खून के प्यासे

उन की शादी करने वाली बात जल्दी ही जोगा सिंह को पता चल गई थी. गीता की एक दलित युवक के साथ शादी की जानकारी मिलते ही जोगा सिंह और उस का परिवार भड़क उठा. तभी से जोगा सिंह का परिवार जगदीश चंद्र के खून का प्यासा हो गया था.

गीता ने अपनी और अपने पति की जान को खतरे में देखते हुए 27 अगस्त, 2022 को अल्मोड़ा में पुलिस और प्रशासन को अपने मायके वालों के खिलाफ तहरीर दी.

गीता ने तहरीर में बाकायदा सौतेले पिता जोगा और सौतेले भाई गोविंद से जगदीश चंद्र और स्वयं की जान का खतरा होने का अंदेशा जताया था. लेकिन पुलिस प्रशासन की तरफ से उन की शिकायत पर कोई भी काररवाई नहीं की गई.

आखिर क्या था बेलगाम ख्वाहिश का अंजाम – भाग 2

दोहरे हत्याकांड से पूरे शहर में सनसनी फैल चुकी थी. राजेश की बहन गीता की तहरीर के आधार पर पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने मृतक राजेश व उस की पत्नी दीपिका के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो राजेश के मोबाइल की आखिरी लोकेशन 4 मार्च, 2017 की तड़के लाडपुर क्षेत्र में मिली जोकि कुंआवाला के नजदीक था. इस से पुलिस चौंकी, क्योंकि दीपिका ने उन के जाने का समय सुबह करीब 9 बजे बताया था.

काल डिटेल्स से यह स्पष्ट हो गया कि दीपिका ने पुलिस से झूठ बोला था. इस से वह शक के दायरे में आ गई. पुलिस ने दीपिका से पूछताछ की तो वह अपने बयान पर अडिग रही. इतना ही नहीं, उस ने अपने 8 साल के बेटे नोनू को भी आगे कर दिया. उस ने भी पुलिस को बताया कि पापा को जाते समय उस ने बाय किया था.

पुलिस ने नोनू से अकेले में घुमाफिरा कर चौकलेट का लालच दे कर पूछताछ की तब भी वह अपनी बात दोहराता रहा. ऐसा लगता था कि जैसे उसे बयान रटाया गया हो. शक की बिनाह पर पुलिस ने दीपिका के घर की गहराई से जांचपड़ताल की लेकिन वहां भी कोई ऐसा सबूत या असामान्य बात नहीं मिली जिस से यह पता चलता कि हत्याएं वहां की गई हों. लेकिन पुलिस इतना समझ गई थी कि दीपिका शातिर अंदाज वाली महिला थी.

पुलिस ने दीपिका के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स की फिर से जांच की तो उस में एक नंबर ऐसा मिला जिस पर उस की अकसर बातें होती थीं. 3 मार्च की रात व 4 को तड़के साढ़े 5 बजे भी उस ने इसी नंबर पर बात की थी. पुलिस ने उस फोन नंबर की जांच की तो वह योगेश का निकला. योगेश शहर के ही गांधी रोड पर एक रेस्टोरेंट चलाता था.

योगेश के फोन की काल डिटेल्स जांची तो उस की लोकेशन भी उसी स्थान पर पाई गई, जहां शव बरामद हुए थे. माथापच्ची के बाद पुलिस ने कडि़यों को जोड़ लिया. इस बीच पुलिस को यह भी पता चला कि दीपिका और योगेश के बीच प्रेमिल रिश्ते थे जिस को ले कर घर में अकसर झगड़ा होता था.

इतने सबूत मिलने के बाद पुलिस अधिकारियों ने एक बार फिर से पूछताछ की तो वह सवालों के आगे ज्यादा नहीं टिक सकी. वह वारदात की ऐसी षडयंत्रकारी निकली, जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. अपने अवैध प्यार को परवान चढ़ाने और प्रेमी के साथ दुनिया बसाने की ख्वाहिश में उस ने पूरा जाल बुना था. इस के बाद पुलिस ने उस के प्रेमी योगेश को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों से पूछताछ की गई तो चौंकाने वाली कहानी निकल कर सामने आई.

दरअसल, राजेश से शादी के बाद दीपिका की जिंदगी आराम से बीत रही थी. दोनों के बीच प्यार भरे विश्वास का मजबूत रिश्ता था. राजेश सीधासादा युवक था जबकि दीपिका ठीक इस के उलट तेजतर्रार व फैशनपरस्त युवती थी. 2 साल पहले योगेश ने रायपुर स्थित स्पोर्ट्स स्टेडियम में ठेके पर कुछ काम किया था. इस दौरान वह एक गेस्टहाउस में रहा. वह गेस्टहाउस राजेश के घर के ठीक पीछे था.

योगेश मूलरूप से हरियाणा के करनाल शहर का रहने वाला था और देहरादून में छोटेमोटे ठेकेदारी के काम करता था. वह राजेश की दुकान पर भी आता था. इस नाते दोनों के बीच जानपहचान हो गई थी. दीपिका जब भी छत पर कपड़े सुखाने जाती तो योगेश उसे अपलक निहारा करता था. पहली ही नजर में उस ने दीपिका को हासिल करने की ठान ली थी. दीपिका को पाने की चाहत में योगेश ने धीरेधीरे राजेश से दोस्ती गांठ ली. दोस्ती मजबूत होने पर वह उस के घर भी जाने लगा.

इस दौरान उस की मुलाकात दीपिका से भी हुई. कुछ दिनों में ही दीपिका ने योगेश की आंखों में अपने लिए चाहत देख ली. दोनों के बीच दोस्ती हो गई और वे मोबाइल पर बातें करने लगे. राजेश को पता नहीं था कि जिस दोस्त पर वह आंख मूंद कर विश्वास करता है, वह आस्तीन का सांप बन कर उस के घर की इज्जत तारतार करने की शुरुआत कर रहा है.

जब दीपिका योगेश के आकर्षण में बंध गई तो दोनों ने अपने रिश्ते को प्यार का नाम दे दिया. अब दीपिका बहाने से घर से बाहर जाती और योगेश के साथ घूमती. इस बीच योगेश ने तहसील चौक के पास अपना रेस्टोरेंट खोल लिया और खुद गोविंदगढ़ में रहने लगा.

दीपिका पति को धोखा दे कर योगेश के सपने देखने लगी. एक वक्त ऐसा भी आया जब उन के बीच मर्यादा की दीवार गिर गई. इस के बाद तो जब कभी राजेश व प्रेम सिंह बाहर होते तो वह योगेश के साथ अपना समय बिताती. राजेश को पता ही नहीं था कि उस की पत्नी उस से बेवफाई कर के क्या गुल खिला रही है.

अपने नाजायज रिश्ते को प्यार का नाम दे कर योगेश व दीपिका साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. दोनों के रिश्ते भला कब तक छिपते. आखिर एक दिन राजेश के सामने यह राज उजागर हो ही गया. उस ने अपने ही घर में दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया.

पत्नी की बेवफाई पर राजेश को गुस्सा आ गया. उस ने दीपिका की पिटाई कर दी और योगेश को भी खरीखोटी सुना कर अपनी पत्नी से दूर रहने की हिदायत दी.

कुछ दिन तो सब ठीक रहा लेकिन बाद में दोनों ने फिर से गुपचुप ढंग से मिलना शुरू कर दिया. पर राजेश से कोई बात छिपी नहीं रही. नतीजतन इन बातों को ले कर घर में आए दिन झगड़ा होने लगा.

दीपिका चाहती थी कि उस पर किसी तरह की बंदिश न हो और वह प्रेमी के साथ खुल कर जिंदगी जिए. वह ढीठ हो चुकी थी. अपनी गलती मानने के बजाए वह पति से बहस करती. राजेश अपना घर बरबाद होते नहीं देखना चाहता था. लिहाजा वह समयसमय पर परिवार और बच्चे का वास्ता दे कर दीपिका को समझाने की कोशिश करता. पर उस के दिमाग में पति की बात नहीं धंसती बल्कि एक दिन तो बेशरमी दिखाते हुए उस ने पति से कह दिया, ‘‘मेरे पास एक रास्ता है कि तुम मुझे तलाक दे कर आजाद कर दो. फिर तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी.’’

राजेश को पत्नी से ऐसी उम्मीद नहीं थी. वह सारी हदों को लांघ गई थी. उस की बात सुन कर उसे गुस्सा आ गया तो उस ने दीपिका की पिटाई कर दी. दीपिका राह से इतना भटक चुकी थी कि वह राजेश को भूल कर योगेश से जुनून की हद तक प्यार करती थी. कई दौर ऐसे आए जब उस ने योगेश को नकद रुपए भी दिए. यह रकम ढाई लाख तक पहुंच चुकी थी.