Love Crime : प्यार के खेल में उजड़ा अंशिका का सुहाग

Love Crime : मेवाराम यादव 8 जून, 2018 को अपनी बेटी ममता की ससुराल थाना सिरसागंज के गांव इंदरगढ़ गए थे. वहां के किसी वैद्य से उन्हें अपनी दवा लेनी थी. दवा ले कर उन्हें अगले दिन ही दोपहर तक घर लौटना था. लेकिन इस से पहले ही 9 जून की सुबह करीब 5 बजे उन के मोबाइल पर उन के बेटे सुनील की बहू अंशिका का फोन आया.

उस समय वह बहुत घबराई हुई थी. उस ने कहा, ‘‘पापा आप जल्दी से घर आ जाओ, सूर्यांश के पापा सुबह 3 बजे घर से दिशा मैदान के लिए गए थे, लेकिन 2 घंटे हो गए अब तक नहीं लौटे हैं. वह अपना मोबाइल भी घर पर छोड़ गए थे.’’

बहू की बात सुन कर मेवाराम घबरा गए. उन्होंने बहू से कहा कि वह चिंता न करे, वे अभी गांव आ रहे हैं. बात बेटे के लापता होने की थी, इसलिए उन्होंने बेटी के ससुर यानी अपने समधी दिगंबर सिंह को यह बात बताई और अपनी बाइक उठा कर वापस अपने गांव नगला जलुआ के लिए चल दिए. इंद्रगढ़ से उन के गांव की दूरी बाइक से मात्र 30 मिनट की थी. रास्ते भर उन के दिमाग में यही बात घूम रही थी कि आखिर उन का बेटा सुनील चला कहां गया.

घर पहुंच कर उन्होंने अपनी बहू अंशिका से पूरी जानकारी ली. अंशिका ने बताया कि वह सुबह 3 बजे के करीब दिशा मैदान गए थे. उस समय वह केवल अंडरवियर और बनियान पहने हुए थे. जब वह काफी देर बाद भी वापस नहीं आए तब मुझे चिंता हुई और मैं ने घर से बाहर जा कर उन्हें खेतों की ओर तलाशा, लेकिन वह कहीं भी दिखाई नहीं दिए.

सुनील मेवाराम का 28 साल का बेटा था. उन्होंने करीब 5 साल पहले उस की शादी अंशिका से की थी. वह भी सुनील को खोजने के लिए जंगल की तरफ चल दिए. उन के साथ गांव के कुछ लोग भी थे. उन्होंने बेटे को संभावित जगहों पर ढूंढा लेकिन पता नहीं लगा.जब वह वापस घर की तरफ आ रहे थे तभी रास्ते में मिले कुछ लोगों ने उन्हें बताया कि रेलवे लाइन के किनारे झाडि़यों में एक बोरी पड़ी है. देखने से लग रहा है कि उस में कोई लाश है. खून भी रिस रहा है.

इतना सुनते ही मेवाराम गांव वालों के साथ रेलवे लाइन की तरफ चल दिए. लाइन गांव से लगभग 200 मीटर दूर दक्षिण दिशा में थी. सभी लोग वहां पहुंचे तो लाइन के पास की झाडि़यों में एक बोरा पड़ा था, बोरे से जो खून रिस रहा था उस पर मक्खियां भिनभिना रही थीं. लोगों ने जब गौर से देखा तो खून की बूंदें थीं. ऐसा लग रहा था कि बोरी को कुछ समय पहले ही ला कर फेंका गया है.

वैसे तो वह बोरी पुलिस की मौजूदगी में ही खोली जानी चाहिए थी. लेकिन बोरी देख कर मेवाराम की धड़कनें बढ़ गई थीं. बोरी के अंदर क्या है, यह देखने की उन की उत्सुकता बढ़ गई थी. इसलिए उन्होंने गांव वालों के सामने जब बोरी खुलवाई तो उस में उन के बेटे सुनील की ही लाश निकली. बेटे की लाश देखते ही मेवाराम गश खा कर जमीन पर बैठ गए और रोने लगे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि उन के बेटे की हत्या किस ने और क्यों की. इस के बाद तो यह खबर जल्द ही आसपास के गांवों में भी फैल गई. जिस से वहां तमाम लोग इकट्ठा हो गए. सभी आपस में तरहतरह के कयास लगा रहे थे.

गांव के ही किसी व्यक्ति ने पुलिस को घटना की सूचना दे दी. सूचना मिलने के कुछ देर बाद ही थानाप्रभारी विजय कुमार गौतम पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. पुलिस ने जब लाश का निरीक्षण किया तो उस के सिर और शरीर पर तेज धारदार हथियार के घाव थे. इस के अलावा उस की नाक भी कटी हुई थी. सारे घावों से जो खून निकला था, उसे देख कर लग रहा था कि उस की हत्या कुछ घंटों पहले ही की गई थी. रास्ते में जो खून के निशान थे उन का पीछा किया गया तो वह भी गांव के पास तक मिले. उस के बाद उन का पता नहीं चला. इन सब बातों से पुलिस को इतना तो विश्वास हो गया कि सुनील की हत्या गांव में ही करने के बाद उस की लाश यहां डाली गई थी.

थानाप्रभारी ने मृतक के पिता मेवाराम से बात की तो उन्होंने किसी व्यक्ति पर कोई शक नहीं जताया. तब थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. मेवाराम उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के गांव नगला जलुआ में रहते थे. वह गांव में ही टेलरिंग का काम करते थे. उन के 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. उन के पास खेती की 3 बीघा जमीन थी जो बंटाई पर दे रखी थी. टेलरिंग की कमाई से ही वह अपने 4 बच्चों का विवाह कर चुके थे. केवल छोटा बेटा सनी ही शादी के लिए बचा था.

मेवाराम की पत्नी मुन्नी देवी की 3 साल पहले मौत हो चुकी थी. सब से बड़ा सुनील पिछले 4 साल से दक्षिणी दिल्ली के फतेहपुर बेरी स्थित एक फैक्ट्री में सिलाई का काम करता था. यह फैक्ट्री रेडीमेड कपड़े एक्सपोर्ट करती थी. सुनील के दोनों छोटे भाई संजय व सनी भी उसी के साथ रह कर ड्राइवरी करते थे. फतेहपुर बेरी में ही सुनील की बहन पिंकी की सुसराल थी. वहीं पास में ही उन्होंने किराए पर मकान ले लिया था.

मेवाराम ने सुनील की शादी 5 साल पहले फिरोजाबाद के गांव ढोलपुरा निवासी वीरेंद्र यादव की बेटी अंशिका उर्फ अनुष्का के साथ की थी. सुनील का डेढ़ साल का बेटा सूर्यांश था. जबकि संजय का अभी कोई बच्चा नहीं था. सुनील और संजय कुछ दिनों के लिए बारीबारी से अपनी पत्नी को गांव से दिल्ली लाते थे. अंशिका जब दिल्ली से अपनी ससुराल नगला जलुआ लौटती थी तो वहां से जल्द ही अपने मायके ढोलपुरा चली जाती थी. मई 2018 के शुरू में सुनील अंशिका के साथ दिल्ली से अपने गांव आया, कुछ दिन गांव में रहने के बाद वह पत्नी व बेटे सूर्यांश को ढोलपुरा छोड़ कर वापस दिल्ली चला गया.

उस के बाद 28 मई को दिल्ली से सुनील पत्नी को लेने आया. वह अपनी ससुराल से पत्नी व बेटे को अपने गांव नगला जलुआ ले आया. उस ने अंशिका से कह दिया था कि 10 जून को दिल्ली चलेंगे. लेकिन दिल्ली लौटने से पहले ही सुनील की हत्या हो गई. थानाप्रभारी विजय कुमार गौतम मेवाराम से बात करने के लिए उन के घर पहुंच गए. पूछताछ में मेवाराम ने बताया कि सुनील सुबह 3 बजे दिशा मैदान के लिए कभी नहीं गया, और न ही वह केवल अंडरवीयर में जाता था. उन्होंने बताया कि उन्हें शक है कि सुनील की पत्नी अंशिका उस से कुछ छिपा रही है. इस के बाद थानाप्रभारी ने सुनील के कमरे का निरीक्षण किया तो उन्हें सड़क की ओर के दरवाजे पर खून लगा दिखाई दिया.

खून देख कर थानाप्रभारी समझ गए कि सुनील की हत्या इसी घर में करने के बाद उस के शव को रेलवे लाइन के पास फेंका गया था. पुलिस ने अंशिका से सुनील की हत्या के बारे में पूछताछ की तो अंशिका ने रट्टू तोते की तरह ससुर को सुनाई कहानी दोहरा दी. थानाप्रभारी ने उस से पूछा कि सुनील नंगे पैर गया था या चप्पलें पहन कर. इस पर वह कोई जवाब नहीं दे सकी. पुलिस ने घर में छानबीन की तो अंदर के कमरे के फर्श पर खून के निशान दिखाई दिए, जिसे साफ किया गया था. इस के साथ ही उस कमरे के दवाजे पर भी खून के छींटे साफ दिखाई दे रहे थे. जो सुनील की हत्या उसी कमरे में होने की गवाही दे रहे थे. पुलिस को घर में ही अंशिका की साड़ी व पेटीकोट सूखता मिला, जिसे धोने के बाद भी उस पर खून के धब्बे दिख रहे थे.

पुलिस ने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट टीम को भी मौके पर बुला लिया. जिस ने जमीन तथा दरवाजे से खून के नमूने एकत्र किए. अधिकारियों को घटना की जानकारी देने पर एसपी (ग्रामीण) महेंद्र सिंह क्षेत्राधिकारी अभिषेक कुमार राहुल तथा महिला कांस्टेबल बीना यादव को साथ ले कर गांव पहुंच गए. सबूतों के आधार पर पुलिस ने अंशिका को हिरासत में ले लिया. इस के बाद पुलिस घटनास्थल की काररवाई निपटा कर अंशिका और उस के ससुर मेवाराम को थाने ले आई.

थाने ले जा कर महिला पुलिस ने जब अंशिका से उस के पति सुनील की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई और फूटफूट कर रोने लगी. उस ने अपने पति की हत्या की जो कहानी पुलिस को सुनाई वह इस प्रकार थी—

अंशिका ने पुलिस को बताया कि उस ने अपने दिल्ली के प्रेमी राजा और उस के साथी रोहित के साथ मिल कर पति की हत्या की थी. उस ने आगे बताया कि करीब ढाई साल पहले वह दिल्ली के फतेहपुर बेरी में अपने पति व देवरों के साथ रहती थी. वहीं सामने के कमरे में उत्तर प्रदेश के बरेली शहर निवासी राजा रहता था. राजा हलवाई का काम करता था. उसी समय राजा की दोस्ती सुनील व उस के देवरों से हो गई थी.

राजा का उन के घर भी आनाजाना था. उसी दौरान उस के व राजा के प्रेम संबंध हो गए. इस की किसी को कोई भनक तक नहीं लगी. अंशिका शादी के बाद से ही अपने पति सुनील को पसंद नहीं करती थी. उस ने दिल्ली से अपने प्रेमी राजा को 8 जून की रात को ही गांव बुला लिया था. राजा अपने दोस्त रोहित के साथ गांव पहुंचा था. उस ने मकान के सड़क की ओर वाले दरवाजे से दोनों को अंदर बुला कर कमरे में छिपा दिया था. उस समय सुनील मकान के मुख्य दरवाजे पर बैठ कर गांव के लोगों से बात कर रहा था.

रात 12 बजे सुनील खाना खा कर जब बीच वाले कमरे में पलंग पर गहरी नींद में सो गया, तभी उस ने करीब 2 बजे प्रेमी व उस के दोस्त के साथ मिल कर सुनील को सोते समय दबोच लिया और उस का मुंह बंद कर के अंदर वाली कोठरी में ले गए, जहां कैंची व डंडों से उस की हत्या कर दी गई. इस बीच अंशिका सुनील के हाथ पकडे़ रही. सुनील की हत्या के बाद उस की लाश को एक बोरे में भर कर राजा व उस का दोस्त रेलवे ट्रैक के पास झाडि़यों में फेंक कर दिल्ली वापस चले गए. अंशिका ने बताया कि इस के बाद उस ने बरामदे में पडे़ खून को पानी से धो दिया.

उस के कपड़ों पर भी खून लग गया था, इसलिए उस ने कपड़े धो कर डाल दिए. अंशिका से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के और उस के दिल्ली निवासी प्रेमी राजा तथा उस के साथी रोहित के खिलाफ हत्या व साक्ष्य छिपाने का मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस ने मुकदमा दर्ज होते ही अपनी काररवाई शुरू कर दी. दिल्ली में रह रहे सुनील के भाई संजय और सनी व बहन को जब सुनील की हत्या की जानकारी मिली तो वह भी दिल्ली से अपने गांव आ गए. संजय और सनी को जब पता चला कि अंशिका सुनील के कत्ल में राजा और रोहित के शामिल होने की बात कह रही है तो वे चौंके, क्योंकि 8 जून, 2018 की रात 11 बजे राजा उन के साथ था.

9 जून की सुबह 6 बजे भी उन्होंने राजा को दिल्ली में देखा था. मेवाराम ने यह बात थाने जा कर थानाप्रभारी विजय कुमार गौतम को बता दी. इस पर पुलिस ने एक बार फिर अंशिका से सख्ती से पूछताछ की. इस के बाद उस ने पुलिस को वास्तविक कहानी बताई, जो इस प्रकार थी—

अंशिका की एक बुआ गांव कटौरा बुजुर्ग में रहती थी. शादी से पहले अंशिका का अपनी बुआ के यहां आनाजाना लगा रहता था. बुआ के मकान के पास ही शमी उर्फ शिम्मी नाम का युवक रहता था. इसी दौरान शमी और अंशिका के बीच प्यार का चक्कर चल पड़ा. दोनों एकदूसरे को बेहद पसंद करने लगे. बाद में दोनों ने शादी की इच्छा जताई. लेकिन अंशिका की नानी को यह रिश्ता पसंद नहीं आया, क्योंकि शमी कुछ कमाता नहीं था. इस के अलावा उस के पास खेती की जमीन भी नहीं थी.

करीब 5 साल पहले अंशिका की शादी सुनील से हो जरूर गई थी, लेकिन वह सुनील को पसंद नहीं करती थी. शादी के बाद भी उस के और शमी के संबंध जारी रहे, वह चाह कर भी उसे भुला नहीं सकी. सुनील शादी के बाद जब भी अंशिका को दिल्ली ले जाता तो कुछ दिन रहने के बाद वह गांव जाने की जिद करने लगती थी, गांव आने के बाद वह वहां से अपने मायके चली जाती थी.

मायके से वह अपनी बुआ के गांव जा कर प्रेमी शमी से मिलती थी. सुनील को अंशिका की गतिविधियों पर शक होने लगा था. दोनों में इसी बात को ले कर झगड़ा भी होता था. शमी और अंशिका ने अपने प्यार के बीच कांटा बने सुनील को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. शमी ने अंशिका को एक मोबाइल दे रखा था, जिसे वह अपने संदूक में कपड़ों के बीच छिपा कर रखती थी. मौका मिलते ही वह शमी से बात कर लेती थी.

8 जून की शाम को जब अंशिका के ससुर इंदरगढ़ में रहने वाली अपनी बेटी के यहां चले गए तो घर पर अंशिका और सुनील ही रह गए थे. अच्छा मौका देख कर शमी द्वारा दिए गए मोबाइल, जिसे वह सायलेंट मोड पर रखती थी, से शमी को फोन कर के गांव बुला लिया. शमी अपने दोस्त के साथ आया था. अंशिका की मोबाइल पर उस से रात साढ़े 8 बजे, 9 बजे व रात 12 बजे बातचीत हुई.

शमी ने गांव पहुंच कर अंशिका को अपने आने की जानकारी दे दी. रात 12 बजे के बाद अंशिका सुनील से कह कर शौच के बहाने घर से निकली. उस ने खेत में छिपे अपने प्रेमी शमी से कहा कि वह सड़क की तरफ वाले दरवाजे की कुंडी नहीं लगाएगी. जब फोन करूं तभी चुपके से उसी दरवाजे से आ जाना. रात को सुनील खाना खा कर गहरी नींद सो गया. अंशिका ने प्रेमी व उस के साथी को घर में बुला कर अंदर के कमरे में छिपा दिया. रात 12 बजे शमी व उस के साथी ने सोते समय सुनील को दबोच लिया और उस का मुंह बंद कर के अंदर के कमरे में ले गए, जहां कैंची व डंडों से उस की हत्या कर दी. हत्यारों ने कैंची से सुनील की नाक भी काट दी.

सुनील की हत्या होने की भनक गांव वालों को नहीं लगी. हत्या के बाद शव को बोरे में बंद कर रेलवे ट्रैक पर डालने की योजना थी ताकि सुबह 4 बजे फर्रुखाबाद की ओर से आने वाली कालिंदी एक्सप्रेस से शव के परखच्चे उड़ जाएं और मामला दुर्घटना जैसा लगे, लेकिन बोरा वहां लगे तारों में उलझने की वजह से रेलवे लाइन तक नहीं पहुंच सका. वे लोग बोरे को झाडि़यों में फेंक कर भाग गए.

इस के बाद मेवाराम ने थाने में नई तहरीर दे कर सुनील की हत्या के लिए अंशिका उस के प्रेमी शमी तथा उस के अज्ञात साथी को दोषी बताया. दूसरे दिन पुलिस ने अंशिका को पति की हत्या, साक्ष्य मिटाने के आरोप में जेल भेज दिया. पुलिस ने हत्या के बाद उस के प्रेमी शमी की गिरफ्तारी के लिए उस के गांव व अन्य ठिकानों पर दबिश दी, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला.

अंतत: 18 जून, 2018 को शमी ने न्यायालय में सरेंडर कर दिया. न्यायालय द्वारा उसे जेल भेज दिया गया. दूसरे दिन थानाप्रभारी ने जिला जेल पहुंच कर शमी से सुनील की हत्या के बारे में पूछताछ की. शमी पुलिस को गुमराह करता रहा, इस के बाद 24 जून को पुलिस ने शमी को न्यायालय से 4 घंटे के रिमांड पर ले लिया. शमी की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल कैंची गांव के बाहर झाडि़यों से बरामद कर ली.

पुलिस के अनुसार हत्या के पीछे शमी और अंशिका के अवैध संबंध थे. कथा लिखे जाने तक शमी के साथी की पुलिस तलाश कर रही थी. बेटे की हत्या से व्यथित पिता मेवाराम ने कहा कि अगर बहू को मेरा बेटा पसंद नहीं था तो उसे छोड़ देती, उस की हत्या करने की क्या जरूरत थी. अंशिका के जेल जाने के बाद उस का अबोध बेटा दिल्ली में अपने चाचाओं के साथ रह रहा था. Love Crime

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Emotional Story : घुटन – मीतू ने क्यों अपनी खुशियों का दरवाजा बंद किया था

Emotional Story : “आशा है कि आप और आप का परिवार स्वस्थ होगा, और आप के सभी प्रियजन सुरक्षित और स्वस्थ होंगे, उम्मीद करते हैं कि हम सभी मौजूदा स्थिति से मजबूती से और अच्छे स्वास्थ्य के साथ उभरें, कृपया अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें.” घर पर रहें और सुरक्षित रहें मीतू ने व्हाट्सऐप पर नीलिमा का भेजा यह मैसेज पढ़ा और एक ठंडी सांस भरी क्या सुरक्षित रहे. पता नहीं कैसी मुसीबत आ गई है. कितनी अच्छीखासी लाइफ चल रही थी. कहां से यह कोरोना आ गया. दुनिया भर में त्राहित्राहि मच गई है. खुद मेरी जिंदगी क्या कम उलझ कर रह गई है. सोचते हुए दोनों हाथों से सिर को पकड़ते हुए वह धप से सोफे पर बैठ गई.

मीतू का ध्यान दीवार पर लगी घड़ी पर गया. 2 बज रहे थे दोपहर के खाने का वक्त हो गया था. रिषभ को अभी भी हलका बुखार था. खांसी तो रहरह कर आ ही रही है. रिषभ उस का पति. बहुत प्यार करती है वह उस से लव मैरिज हुई थी दोनों की. कालेज टाइम में ही दोनों का अफेयर हो गया था. रिषभ तो जैसे मर मिटा था उस पर. एकदूसरे के प्यार में डूबे कालेज के तीन साल कैसे गुजर गए थे, पता ही नहीं चला दोनों को. बीबीए करने के बाद एमबीए कर के रिषभ एक अच्छी जौब चाहता था ताकि लाइफ ऐशोआराम से गुजरे. मीतू से शादी कर के वह एक रोमांटिक मैरिड लाइफ गुजारना चाहता था. रिषभ ने जैसा सोचा था बिलकुल वैसा ही हुआ.

वह उन में से था जो, जो सोचते हैं वहीं पाते हैं. अभी उस की एमबीए कंपलीट भी नहीं हुई थी उस का सलेक्शन टौप मोस्ट कंपनी में हो गया. सीधे ही उसे अपनी काबिलियत के बूते पर बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर की पोस्ट मिल गई. दिल्ली एनसीआर नोएड़ा में कंपनी थी उस की. मीतू को अच्छी तरह याद है वह दिन जब पहले दिन रिषभ ने कंपनी ज्वाइन की थी. जमीन पर पैर नहीं पड़ रहे थे उस के. लंच ब्रेक में जब उसे मोबाइल मिलाया था तब उस की आवाज में खुशी, जोश को अच्छी तरह महसूस किया था उस ने.

‘मीतू तुम सीधा मैट्रो पकड़ कर नोएडा सेक्टर 132 पहुंच जाना शाम को. मैं वहीं तुम्हारा इंतजार करूंगा. आज तुम्हें मेरी तरफ से बढ़िया सा डिनर, तुम्हारी पसंद का.’ कितना इंजौय किया था दोनों ने वह दिन. सब कितना अच्छा. भविष्य के कितने सुनहरे सपने दोनों ने एकदूसरे का हाथ थाम कर बुने थे. रिषभ की खुशी, उस का उज्जवल भविष्य देख बहुत खुश थी वह. मन ही मन उस ने अपनेआप से वादा किया था कि रिषभ को वह हर खुशी देने की कोशिश करेंगी. बचपन में ही अपने मातापिता को एक हादसे में खो दिया था उस ने. लेकिन बूआ ने खूब प्यार लेकिन अनुशासन से पाला था रिषभ को, क्योंकि उन की खुद की कोई औलाद न थी. मीतू रिषभ की जिंदगी में प्यार की जो कमी रह गई थी, वह पूरी करना चाहती थी.

क्या हुआ उस वादे का, कहां गया वह प्यार. ‘ओफ रिषभ मैं यह सब नहीं करना चाहती तुम्हारे साथ.’ सोचते हुए मीतू को वह दिन फिर से आंखों के आगे तैर गया, जिस दिन रिषभ देर रात गए औफिस से घर वापस आया था. 4 दिन बाद होली आने वाली थी. साहिर मीतू और रिषभ की आंखों का तारा. 5 साल का हो गया था. शाम से होली खेलने के लिए पिचकाारी और गुब्बारे लेने की जिद कर रहा था. ‘नहीं बेटा कोई पिचकारी और गुब्बारे नहीं लेने. कोई बच्चा नहीं ले रहा. देखो टीवी में यह अंकल क्या बोल रहे हैं. इस बार होली नहीं खेलनी है.’

मीतू ने साहिर को मना तो लिया लेकिन उस का दिल भीतर से कहीं डर गया. टीवी के हर चैनल पर कोरोना वायरस की खबरेें आ रही थी. मानव से मानव में फैलने वाला यह वायरस चीन से फैलता हुआ पूरे विश्व में तेजी से फैल रहा है. लोगों की हालत खराब है. रिषभ रोज मैट्रो से आताजाता है.  कितनी भीड़ होती है. राजीव चैक मेट्रो स्टेशन पर तो कई बार इतना बुरा हाल होता है कि लोग एकदूसरे पर चढ़ रहे होते हैं. टेलीविजन पर लोगों को एतियात बरतने के लिए बोला जा रहा है. मीतू उठी और रिमोट से टेलीविजन की वैल्यूम कम की और झट रिषभ का मोबाइल मिलाया. ‘कितने बजे घर आओगे, रिषभ.’

‘यार मीतू, बौस एक जरूरी असाइनमैंट आ गया है. रात 10 बजे से पहले तो क्या ही घर पहुंचुगा.’

‘सुनो भीड़भाड़ से जरा दूर ही रहना. इंटरनेट पर देख रहे हो न. क्या मुसीबत सब के सिर पर मंडरा रही है,‘ मीतू के जेहन में चिंता की लकीरें बढ़ती जा रही थीं.

‘डोंट वरी डियर, मुझे कुछ नहीं होने वाला. बहुत मोटी चमड़ी का हूं. तुम्हे तो पता ही है क्यों…’ रिषभ ने बात को दूसरी तरफ मोड़ना चाहा.

‘बसबस, ज्यादा मत बोलो, जल्दी घर आने की कोशिश करो, कह कर मीतू ने मोबाइल काट दिया लेकिन पता नहीं क्यों मन बैचेन सा था.

उस रात रिषभ देर से घर आया. काफी थका सा था. खाना खा कर सीधा बैडरूम में सोने चला गया.

अगले दिन मीतू ने सुबह दो कप चाय बनाई और रिषभ को नींद से जगाया.

‘मीतू इतनी देर से चाय क्यों लाई. औफिस को लेट हो जाऊंगा,‘ रिषभ जल्दीजल्दी चाय पीने लगा.

‘अरेअरे… आराम से ऐसा भी क्या है. मैं ने सोचा रात देर से आए हो तो जरा सोने दूं. कोई बात नहीं थोड़ा लेट चले जाना औफिस,‘ मीतू ने बोलते हुए रिषभ के गाल को हाथ लगाया, ‘रिषभ तुम गरम लग रहे हो. तबीयत तो ठीक है,‘ मीतू ने रिषभ का माथा छूते हुए कहा.

‘यार, बिलकुल ठीक हूं. बस थोड़ा गले में खराश सी महसूस हो रही है. चाय पी है थोड़ा बैटर लगा है,‘ और बोलता हुआ वाशरूम चला गया.

लेकिन मीतू गहरी चिंता में डूब गई. कल ही तो व्हाट्सऐप पर उस ने कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के लक्षण के बारे में पढ़ा है. खांसी, बुखार, गले में खराश, सांस लेने में दिक्कत…

‘ओह…नो… रिषभ को कहीं… नहींनहीं, यह मैं क्या सोच रही हूं. लेकिन अगर सच में कहीं…’

मीतू के सोचते हुए ही पसीने छूट गए.

तब तक रिषभ वौशरूम से बाहर आ गया. मीतू को बैठा देख बोला, ‘किस सोच में डूबी हो,’ फिर उस का हाथ अपने हाथ से लेता हुआ अपना चेहरा उस के चेहरे के करीब ले आया और एक प्यार भरी किस उस के होंठो पर करना ही चाहता था कि मीतू एकदम पीछे हट गई.

‘अब औफिस के लिए देर नहीं हो रही,’ और झट से चाय के कप उठा कर कमरे से चली गई.

रिषभ मीतू के इस व्यवहार से हैरान हो गया. ऐसा तो मीतू कभी नहीं करती. उलटा उसे तो इंतजार रहता है कि रिषभ पहले प्यार की शुरूआत करे फिर मीतू अपनी तरफ से कमी नहीं छोड़ती थी लेकिन आज मीतू का पीछे हटना, कुछ अजीब लगा रिषभ को. खैर ज्यादा सोचने का टाइम नहीं था रिषभ के पास. औफिस जाना था. झटपट से तैयार हो गया. नाश्ता करने के लिए डाइनिंग टेबल पर बैठ गया. मीतू ने नाश्ता रिषभ के आगे रखा और जाने लगी तो वह बोला, ‘अरे, तुम्हारा नाश्ता कहां है. रोज तो साथ ही कर लेती हो मेरे साथ. आज क्या हुआ?’

‘कुछ नहीं तुम कर लो. मैं बाद में करूंगी. कुछ मन नहीं कर रहा.’ मीतू दूर से ही खड़े हो कर बोली.

‘क्या बात है तुम्हारी तबीयत तो ठीक है.’

‘हां सब ठीक है.‘ मीतू साहिर के खिलौने समेटते हुए बोली.

‘साहिर के स्कूल बंद हो गए हैं कोराना वायरस के चलते. चलो अब तुम्हें उसे सुबहसुबह स्कूल के लिए तैयार नहीं करना पड़ेगा. चलो कुछ दिन का आराम हो गया,‘ रिषभ ने मीतू को हंसाने की कोशिश की.

‘खाक आराम हो गया. यह आराम भी क्या आराम है. चारों तरफ खतरा मंडरा रहा है और तुम्हे मजाक सूझ रहा है,‘ मीतू नाराज होते हुए बोली.

‘अरे…अरे, मुझ पर क्यों गुस्सा निकाल रही हो. मेरा क्या कसूर है. मैं फैला रहा हूं क्या वायरस,‘ रिषभ ने बात खत्म करने की कोशिश की, ‘देखो ज्यादा पेनिक होने की जरूरत नहीं.’

‘मैं पेनिक नहीं हो रही बल्कि तुम ज्यादा लाइटली ले रहे हो सब.’

‘ओह, तो यह बात है. कहीं तुम्हें यह तो नहीं लग रहा कि मुझे कोरोना हो गया है. तुम ही दूरदूर रह रही हो. बेबी, आए एम फिट एंड फाइन. ओके शाम को मिलते हैं. औफिस चलता हूं. बाय डियर, ‘बोलता हुआ रिषभ घर से निकल गया. मीतू के दिमाग में अब रातदिन कोरोना का भय व्याप्त हो गया था. होली आई और चली गई, उन की सोसाइटी में पहले ही नोटिस लग गया था कि कोई इस बार होली नहीं खेलेगा. मीतू अब जैसे ही रिषभ औफिस से आता उसे सीधे बाथरूम जाने के लिए कहती और कपड़े वही रखी बाल्टी में रख्ने को कहती. फिर शौवर ले कर, कपड़े चेज करने के बाद ही कमरे में जाने देती.

हालात दिन पर दिन बिगड़ ही रहे थे. टेलीविजन पर लगातार आ रही खबरें, व्हाट्सऐप पर एकएक बाद एक मैसेज, कोरोना पर हो रही चर्चाएं मीतू के दिमाग को गड़बड़ा रही थीं. दूसरी तरफ रिषभ मीतू के बदलते व्यवहार से परेशान हो रहा था. न जाने कहां चला गया था उस का प्यार. बहाने बनाबना कर उस से दूर रहती. साहिर का बहाना बना कर उस के कमरे में सोने लगी थी. साहिर को भी उस से दूर रखती थी. अपने ही घर में वह अछूत बन गया था.

रिषभ का पता है और मीतू भी इस बात से अनजान नहीं थी कि बदलते मौसम में अकसर उसे सर्दीजुकाम, खांसी, बुखार हो जाता है. लेकिन कोरोना के लक्षण भी तो कुछ इसी तरह के हैं. मीतू पता नहीं क्यों टेलीविजन, व्हाट्सऐप के मैसेज पढ़पढ़ कर उन में इतनी उलझ गई है कि रिषभ को शक की निगाहों से देखने लगी है. आज तो हद ही हो गई. सरकार ने जनता कफ्यू का ऐलान कर दिया था. रिषभ को रह रह कर  खांसी उठ रही थी. हलका बुखार भी था. रिषभ का मन कर रहा था कि मीतू पहले ही तरह उस के सिरहाने बैठे. उस के बालों में अपनी उंगलियां फेरे.

दिल से, प्यार से उस की देखभाल करे. आधी तबीयत तो उस की मीतू की प्यारी मुसकान देख कर ही दूर हो जाती थी. लेकिन अचानक जैसे सब बदल गया था.­ मीतू न तो उस का टैस्ट करवाना चाहती है. रिषभ अच्छी तरह समझ रहा था कि मीतू नहीं चाहती कि आसपड़ोस में किसी को पता चले कि वह रिषभ को कोरोना टैस्ट के लिए ले गई है और लोगों को यह बात पता चले और उन से दूर रहे. खुद को सोशली बायकोट होते वह नहीं देख सकती थी. मीतू का अपेक्षित व्यवहार रिषभ को और बीमार बना रहा था. उधर मीतू ने आज जब रिषभ सो गया तो उस के कमरे का दरवाजा बंद कर बाहर ताला लगा दिया.

रिषभ दवाई खा कर सो गया था. दोपहर हो गई थी और खाने का वक्त हो रहा था. मीतू अपनी सोच से बाहर निकल चुकी थी. रिषभ की नींद खुली. थोड़ी गरमी महसूस हुई. दवा खाई थी इसलिए शायद पसीना आ गया था. सोचा, थोड़ी देर बाहर लिविंग रूप में बैठा जाए. पैरों में चप्पल पहनी और चल कर दरवाजे तक पहुंच कर हैंडल घुमाया. लेकिन यह क्या दरवाजा खुला ही नहीं. दरवाजा लौक्ड था

“मीतूमीतू, दरवाजा लौक्ड है. देखो तो जरा कैसे हो गया यह.” रिषभ दरवाजा पीटते हुए बोला.

“मैं ने लौक लगाया है,” मीतू ने सपाट सा जवाब दिया.

“दिमाग तो सही है तुम्हारा. चुपचाप दरवाजा खोला.”

‘नहीं तुम 14 दिन तक इस कमरे में ही रहोगे. खानेपीने की चिंता मत करो, वो तुम्हें टाइम से मिल जाएगा,‘ मीतू ने जवाब दिया.

‘मीतू तुम यह सब बहुत गलत कर रही हो.‘

‘कुछ गलत नहीं कर रही. मुझे अपने बच्चे की फिक्र है.‘

‘तो क्या मुझे साहिर की फिक्र नहीं है,‘ रिषभ लगभग रो पड़ा था बोलते हुए.

लेकिन मीतू तो जैसे पत्थर की बन गई थी. आज रिषभ का रोना सुन कर भी उस का दिल पिघला नहीं. कहां रिषभ की हलकी सी एक खरोंच भी उस का दिल दुखा देती थी. रिषभ दरवाजा पीटतेपीटते थक गया तो वापस पलंग पर आ कर बैठ गया. यह क्या डाला था मीतू ने. बीमारी का भय, मौत के डर ने पतिपत्नी के रिश्ते खत्म कर दिया था. 14 दिन कैसे बीते यह रिषभ ही जानता है. मीतू की उपेक्षा को झेलना किसी दंश से कम न था उस के लिए. मीतू उस के साथ ऐसा व्यवहार करेगी, वह सोच भी नहीं सकता था. मौत का डर इंसान को क्या ऐसा बना देता है. जबकि अभी तो यह भी नहीं पूरी तौर से पता नहीं कि वह कोरोना वायरस से संक्रमित है भी या नहीं.

मीतू चाहे बेशक सब एहतियात के तौर पर कर रही हो लेकिन पतिपत्नी के बीच विश्वास, प्यार को एक तरफ रख कर उपेक्षा का जो रवैया अपनाया था, उस ने पतिपत्नी के प्यार को खत्म कर दिया था. रिषभ कोरोना नेगेटिव निकला पर उन के रिश्ते पर जो नेगेटिविटी आ गई थी उस का क्या. मीतू दोबारा से रिषभ के करीब आने की कोशिश करती लेकिन रिषभ उस से दूर ही रहता. कोरोना ने उन की जिंदगी को अचानक क्या से क्या बना दिया था. मीतू ने उस दिन दरवाजा लौक नहीं किया था, जिंदगीभर की दोनों की खुशियों को लौक कर दिया था. Emotional Story

Family Dispute : पहचान मिटाने की खौफनाक साज़िश – पेट्रोल से जलाया पति का चेहरा

Family Dispute : लाभनी साहू ने हाथ जोड़ कर बाल कल्याण समिति न्यायालय में कहा, ‘‘सर, मेरे बच्चे को मुझे सौंप दिया जाए,  मैं उस का लालनपालन करूंगी. मैं मां हूं, मुझे मेरा बच्चा सौंप दिया जाए. इस के बिना मैं जी नहीं पाऊंगी.’’

यह कहते हुए लाभनी की आंखों में आंसू आ गए थे. लाभनी साहू और उस के पति गोविंद साहू का पारिवारिक प्रकरण बाल कल्याण समिति, राजनांदगांव में चल रहा था, जहां अन्य सदस्यों के साथ चंद्रभूषण ठाकुर न्यायकर्ता सदस्य के रूप में बैठा हुआ था. उन्हें यह फैसला करना था कि आखिर 5 साल के राजू को मां को सौंपा जाए या पिता गोविंद साहू को. हर दृष्टि से लाभनी साहू का दावा मजबूत था, क्योंकि कानून और प्राकृतिक न्याय की दृष्टि से वह मां होने के कारण अपने बेटे राजू को अपने पास रख कर परवरिश कर सकती थी.

मगर उस के पति गोविंद साहू ने बच्चे को अपने पास जबरदस्ती रख कर के उसे सौंपने से इंकार कर दिया था. वह बाल कल्याण समिति पर प्रभाव डालने का प्रयास कर रहा था कि जिस तरह पुलिस थाने में उस का पक्ष मजबूत रहा है, यहां भी वह अपने बेटे का संरक्षण प्राप्त कर ले. लाभनी साहू की भोली सूरत और आंखों में आंसुओं को देख कर चंद्रभूषण ठाकुर ने अन्य सदस्यों से चर्चा कर कहा, ‘‘देखो मिस्टर साहू, कानून को अपने घर की जागीर मत समझो. मां तो मां होती है और आज हम सभी सदस्य यह फैसला करते हैं कि राजू जब तक नाबालिग है, वह अपनी मां के पास ही रहेगा. और तुम्हें राजू की परवरिश का खर्च भी उठाना होगा.’’

यह सुनना था कि लाभनी साहू की आंखों से और मोटेमोटे आंसू टपकने लगे और दौड़ कर के वह बेटे राजू को अपने गले से लगा कर बिलखने लगी. गोविंद साहू को आखिरकार बाल कल्याण समिति में मुंह की खानी पड़ी और बाल कल्याण समिति के फैसले के बाद लाभनी को उस का बेटा राजू सौंप दिया गया. जब मामला समाप्त हो गया तो बाहर शहर के गुप्ता होटल में चंद्रभूषण ठाकुर और लाभनी व उस के बेटे राजू की मुलाकात हुई. चंद्रभूषण ने लाभनी से कहा, ‘‘देखो, तुम्हें राजू तो मिल गया है मगर अब तुम्हारे सामने लंबी जिंदगी पड़ी है,राजू का अच्छे से लालन-पालन और शिक्षा की व्यवस्था करनी है.’’

‘‘सर, मैं तो गरीब हूं. मगर जैसे भी हो, इसे पालूंगी और बड़ा आदमी बनाऊंगी.’’ लाभनी बोली.

चंद्रभूषण ठाकुर ने कहा, ‘‘तुम्हारे जज्बे को सलाम है. मैं बाल कल्याण समिति में साल भर से हूं. कितने ही मामले आते हैं मगर आज तुम्हारे जैसा मामला मैं ने पहले कभी नहीं देखा था. तुम सच्ची मां हो और सुनो कभी मेरे लायक कोई भी मदद हो तो मुझे निस्संकोच याद करना.’’

चंद्रभूषण ठाकुर ने लाभनी को अपना मोबाइल नंबर दे कर उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया. इसी दिन चंद्रभूषण ठाकुर की नीयत लाभनी  पर आ गई थी. उस के रूप और यौवन पर चंद्रभूषण लट्टू हो गया. इस के बाद धीरेधीरे दोनों की मुलाकात होने लगी और बहुत जल्द चंद्रभूषण ठाकुर और लाभनी साहू एकदूसरे से प्रेम करने लगे और दोनों के संबंध प्रगाढ़ हो गए. छत्तीसगढ़ का जिला राजनांदगांव प्रदेश की संस्कारधानी के रूप में देश भर में जाना जाता है. यह अपने साहित्य और संस्कृति की धरोहर के कारण प्रसिद्ध है. रियासत काल में राजनांदगांव एक राज्य के रूप में विकसित था. यहां पर कभी सोमवंशी, कलचुरी और मराठों का शासन रहा.

पहले यह नंदग्राम के नाम से जाना जाता था. यहां रियासतकालीन महल, हवेलियां राजमंदिर इत्यादि अभी भी आकर्षण का केंद्र हैं. राजनांदगांव छत्तीसगढ़ राज्य के मध्य भाग में स्थित है. जिला मुख्यालय दक्षिण पूर्व रेलवे मार्ग पर स्थित है. राजधानी रायपुर से यहां की दूरी करीब 80 किलोमीटर है. राजनांदगांव के कोतवाली थानाक्षेत्र के चंद्रभूषण ठाकुर कांग्रेस की राजनीति में एक जानापहचाना नाम बन चुका था. प्रदेश में भूपेश बघेल सरकार द्वारा बाल कल्याण समिति में चंद्रभूषण ठाकुर की सदस्य के रूप में नियुक्ति की गई तो उस का रुतबा शहर में और भी बढ़ गया था.

चंद्रभूषण ठाकुर और लाभनी की अब रोजाना ही मुलाकात होती थी. एक दिन चंद्रभूषण ने मौका देख कर के घर में लाभनी का हाथ पकड़ लिया. जब वह हाथ छुड़ाने लगी तो उस ने उसे आगोश में ले कर अपने प्रेम का इजहार किया. लाभनी भी उस का विरोध नहीं कर सकी. उसी दिन चंद्रभूषण ने प्रसन्न हो कर कहा, ‘‘मैं तुम्हें एक दुकान खुलवा देता हूं ताकि तुम अपने खर्चे खुद उठा सको और बच्चे का लालनपालन भी कर सको.’’

‘‘मैं भला कैसे दुकान चला पाऊंगी.’’ लाभनी बोली.

चंद्रभूषण ठाकुर ने उस का हौसला बढ़ाते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें डेढ़दो लाख रुपए की व्यवस्था करवा दूंगा. उस पैसे से तुम आराम से 4 पैसे कमा लोगी और जब कभी कमाई हो जाए तो मेरे पैसे लौटा देना.’’ यह कह कर के चंद्रभूषण ने उस का चेहरा अपने हाथों में ले लिया.

लाभनी ने हंस कर कहा, ‘‘ऐसा होगा तो अच्छा है, मैं भी किसी की मोहताज नहीं रहना चाहती.’’

इस के बाद चंद्रभूषण ठाकुर और लाभनी के संबंध और भी गहरे हो गए. चंद्रभूषण जब भी समय मिलता, लाभनी के घर जाता और दोनों प्रेम में डूब जाते. लाभनी ने एकदो दफा जब उसे दुकान की याद दिलाई तो चंद्रभूषण ने कहा, ‘‘मैं ने दुकान तय कर ली है बस कुछ ही दिनों में पैसे आ जाएंगे तो मैं तुम्हें दुकान खुलवा दूंगा.’’

और एक दिन चंद्रभूषण ने जो कहा था, वह कर के भी दिखा दिया. फास्टफूड की एक दुकान किराए पर  लाभनी को दिलवा दी. चंद्रभूषण ठाकुर और लाभनी कुछ समय तक तो हंसीखुशी दिन बिताते रहे. एक दिन चंद्रभूषण को यह जानकारी मिली कि लाभनी के यहां नूतन साहू (25 वर्ष) नामक नवयुवक आजकल कुछ ज्यादा ही आजा रहा है. इसे जानने के लिए चंद्रभूषण ने निगाह रखनी शुरू कर दी और एक दिन दोनों को रंगेहाथ पकड़ भी लिया और लाभनी को फटकार लगाई तो लाभनी ने पलट कर जवाब दिया, ‘‘तुम कौन होते हो मुझे रोकने वाले? मुझे तो मेरा बाप भी कुछ नहीं बोल पाता है.’’

यह सुन कर के चंद्रभूषण मानो आसमान से जमीन पर गिर पड़ा. चंद्रभूषण ने जिस तरह लाभनी की 2 लाख रुपए से अधिक की मदद की थी, उस से वह समझता था कि लाभनी अब उस की संपत्ति है और उस पर उस का अधिकार है. लेकिन उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि लाभनी इस तरह उस का विरोध कर सकती है. चंद्रभूषण को बहुत गुस्सा आया. उस ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें क्या समझा था और तुम क्या निकली. आज जब मैं ने तुम्हारी सच्चाई अपनी आंखों से देख ली है तो अब तुम्हारे और हमारे संबंध खत्म. और सुनो, मेरा पैसा एक सप्ताह के अंदर मुझे लौटा दो.’’

‘‘पैसा, कैसा पैसा, किस का पैसा?’’ लाभनी चीखने लगी.

‘‘देखो, तुम मुझे नहीं जानती हो, मैं कौन हूं. पूरे 2 लाख रुपए मैं ने तुम्हें दुकान खुलवाने के लिए दिया है. एकएक पैसा तुम्हें लौटाना होगा…’’

इस पर लाभनी नरम हो गई और धीरे से कहा, ‘‘तुम ने मेरी मदद तो क्या सिर्फ मेरे शरीर के लिए की है, मैं तुम्हें धीरेधीरे रुपए लौटा दूंगी.’’

‘‘नहीं, एक सप्ताह के भीतर मुझे मेरा पूरा पैसा चाहिए, यह मेरी  चेतावनी है.’’ कह कर चंद्रभूषण फुंफकारने लगा.

तभी नूतन साहू सामने आ गया और बोला, ‘‘तुम यहां से चले जाओ, नहीं तो ठीक नहीं होगा.’’

जैसेतैसे लाभनी ने दोनों को अलग किया और हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘ठीक है, तुम्हारे पैसे हम लौटा देंगे.’’

चंद्रभूषण ठाकुर अपने से आधी उम्र (27 साल) की लाभनी को बहुत चाहता था. उस के रूपलावण्य पर एक तरह से फिदा था. उस के हाथ से लाभनी के निकलने से बड़ा दुख हो रहा था. यही कारण है कि उस ने सीधे अपने रुपए मांग लिए थे और सोच रहा था कि पैसे मांगने पर वह आत्मसमर्पण कर देगी. मगर जब पलट कर लाभनी ने रुपए लौटाने की बात कही तो वह मन ही मन टूट गया. एक हफ्ता गुजर गया, चंद्रभूषण ठाकुर ने अपने रुपए के लिए तकादा नहीं किया. करीब 15 दिन बाद यह सोच कर कि लाभनी शायद उस के दबाव में आ जाएगी, उस के पास पहुंचा और बड़े ही हंसमुख तरीके से उस से बात करने लगा. लाभनी ने भी उस के सवालों का जवाब दिया.

चंद्रभूषण ठाकुर को बातचीत से समझ आ गया कि उस का काम अब बिगड़ चुका है. अत: उस ने खुल कर कहा, ‘‘मेरे रुपए का क्या हुआ?’’

लाभनी ने तल्ख लहजे में जवाब दिया, ‘‘मै जल्दी लौटा दूंगी.’’

चंद्रभूषण ने बहुत कोशिश की कि लाभनी उस के दबाव में आ कर नूतन साहू को भूल जाए. मगर ऐसा नहीं हो पा रहा था. उस ने रुपए के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया. इधर जब लाभनी और नूतन साहू की मुलाकात हुई और पैसे की बात सामने आई तो नूतन ने कहा, ‘‘क्यों न एक दिन हम इस का काम ही तमाम कर दें.’’

लाभनी को नूतन की बात अच्छी लगी क्योंकि इस के अलावा और कोई दूसरा चारा उसे दिखाई नहीं दे रहा था. दोनों ने मिल कर एक योजना बनाई और उस को अंजाम देने के लिए आगे बढ़े.

राजनांदगांव कोतवाली में कोतवाल नरेश पटेल जब शाम के समय पहुंचे तो देखा सामने 2-3 लोग उन से मिलने के लिए खड़े हैं. एक महिला ने आगे आ कर उन से कहा, ‘‘सर, मेरे पति चंद्रभूषण ठाकुर कल से घर नहीं आए हैं.’’ महिला ने अपना नाम हेमलता ठाकुर बताया. हेमलता ने जब बताया कि पति चंद्रभूषण ठाकुर बाल कल्याण समिति के छत्तीसगढ़ शासन सदस्य हैं तो उन्होंने महिला को अपने कक्ष में बैठा कर के पूरी जानकारी ली और गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. हेमलता ठाकुर ने उन्हें बताया कि लाभनी साहू का फोन आया था वह बता रही थी कि उन की स्कूटी उस के घर के बाहर ही खड़ी है. बातोंबातों में टीआई नरेश पटेल को हेमलता ने यह भी बताया कि कुछ समय से उस के पति का लाभनी के यहां कुछ ज्यादा ही आनाजाना था.

पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू की, मगर कोई भी सूत्र नहीं मिल पा रहा था जिस से कि पुलिस आगे बढ़ सके. इस बीच 16 दिसंबर, 2022, दिन शुक्रवार को राजनांदगांव जिले से 60 किलोमीटर की दूरी पर डोंगरगढ़ स्थित बोरा तालाब के पास कोटना पानी जंगल में लोगों ने एक लाश देखी और स्थानीय चौकीदार दूधराम भैंसारे बोरा तालाब थाने में इंसपेक्टर ओमप्रकाश धु्रव को यह सूचना दे दी. पुलिस घटनास्थल पर पहुंची तो पाया कि लाश पूरी तरह नग्न थी और जली हुई थी. पुलिस ने मौके की काररवाई कर शव को डोंगरगढ़ की मोर्चरी भेज दिया और अज्ञात शव मिलने की जानकारी स्थानीय अखबारों और वाट्सऐप ग्रुप में शेयर कर दी गई.

जब इस लाश को हेमलता और चंद्रभूषण ठाकुर के अन्य परिजनों दिखाया गया तो लाश देखते ही हेमलता बिलखने लगी. हेमलता ने उस की शिनाख्त अपने पति चंद्रभूषण ठाकुर के रूप में कर दी. पुलिस के सामने अब यह स्थिति स्पष्ट थी कि किसी ने चंद्रभूषण को मार कर उस के शव को जलाने की कोशिश की है. इस के बाद पुलिस ने इस मामले की जांचपड़ताल तेज कर दी. चंद्रभूषण ठाकुर के घर वालों से बातचीत करने के बाद पुलिस का शक लाभनी साहू पर ही हुआ. पुलिस ने उसे हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी. पहले तो लाभनी ने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया. लेकिन जब पुलिस ने उस के सामने अनेक तथ्य रखे और एक ड्रम को ले जाते हुए सीसीटीवी फुटेज दिखा कर उस से पूछताछ की, तब अंतत: वह टूट गई.

उस ने बताया कि अपने प्रेमी नूतन साहू के साथ मिल कर उस की हत्या की थी. 14 दिसंबर, 2022 को हत्या की मंशा से उस ने चंद्रभूषण ठाकुर को फोन किया. जब चंद्रभूषण ने काल रिसीव की तो उस ने कहा, ‘‘हैलो, मैं तुम से मिलना चाहती हूं.’’

लाभनी की आवाज सुन कर चंद्रभूषण ठाकुर ने कहा, ‘‘क्या बात है, आज कुछ ज्यादा ही मीठी हो गई हो. क्या तुम ने मेरा औफर स्वीकार कर लिया है?’’

‘‘हां, मैं आप की बात समझ गई हूं. मैं ही गलत थी.’’

‘‘लाभनी, तुम कैसे उस के चक्कर में आ गई? क्या है उस के पास? मैं ने तुम्हारे लिए दुकान खुलवा दी, पैसे दिए आगे भी दूंगा, यह सब तुम भूल गई और मेरे साथ दगा किया. मुझे कितना दुख हुआ है. मैं तुम्हें कितना चाहता हूं, प्रेम करता हूं तुम शायद नहीं समझती. मैं सच कह रहा हूं कि उस वक्त मुझे बहुत दुख हुआ था.’’

‘‘चलो ठीक है, आज शाम को आओ घर पर, सारे गिलेशिकवे दूर कर दूंगी. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’ लाभनी बोली.

शाम को सजसंवर कर चंद्रभूषण ठाकुर यह सोच कर के लाभनी के घर पहुंचा कि वहां उस का स्वागत लाभनी अपनी बाहों में ले कर करेगी. लाभनी ने चंद्रभूषण को बड़े प्रेम से बैठाया और दोनों में बातें होने लगीं. धीरेधीरे चंद्रभूषण को यह महसूस होने लगा कि लाभनी में कोई सुधार नहीं आया है. तभी अचानक वहां पीछे से नूतन साहू ने आ कर के कपड़े का एक फंदा चंद्रभूषण ठाकुर के गले में डाल दिया और दोनों ने मिल कर चंद्रभूषण की गला घोट कर हत्या कर दी. फिर लाश को ठिकाने लगाने के लिए एक ड्रम में उसे डाल दिया. स्कूटी पर उस ड्रम को रख कर के डोंगरगढ़ की ओर निकल गए और कोटना पानी जंगल के पास गढ़ माता डोंगरी पहाड़ी जंगल में लाश के सारे कपड़े उतार दिए, ताकि कोई उसे पहचान ना सके.

लेकिन जब उन्हें लगा कि कोई न कोई लाश को पहचान लेगा तो नूतन ने स्कूटी से पैट्रोल निकाल कर के उस के चेहरे को भी जला दिया और यह सोच कर कि कि अब उन्हें कोई छू भी नहीं सकेगा, दोनों खुशीखुशी घर आ गए. इस केस के जांच अधिकारी ओमप्रकाश धु्रव ने बताया कि केस के खुलासे में महत्त्वपूर्ण भूमिका सीसीटीवी फुटेज की थी, जो पुलिस को बड़ी मशक्कत के बाद मिली. जिस में लाभनी साहू और नूतन साहू स्कूटी पर एक ड्रम को ले कर जा रहे थे. उसी ड्रम में चंद्रभूषण की लाश थी.

पुलिस ने आरोपी नूतन साहू और लाभनी को घटनास्थल पर ले जा कर मामले की जांच की और उन की निशानदेही पर मृतक चंद्रभूषण ठाकुर का मोबाइल भनपुरी नदी से और कपड़े भी बरामद किए. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड विधान की धारा 302, 201, 34 के तहत गिरफ्तार कर न्यायिक दंडाधिकारी, डोंगरगढ़ के समक्ष पेश  किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. Family Dispute

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित हैa

UP Crime News : ज्योति के प्यार में छिपा मौत का खेल

UP Crime News : उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के गांव दिखतौली के पास प्रतापपुर रोड के किनारे खेतों में ग्रामीण अपने पशुओं को चरा रहे थे. दोपहर एक बजे का समय था. तभी एक ग्रामीण की नजर सड़क किनारे खंदी में पेड़ के नीचे पड़ी बोरी पर गई. पास जा कर देखा तो बोरी से खून रिस रहा था. उस ने आवाज दे कर अन्य साथियों को वहां बुला लिया. ग्रामीणों को यह समझते देर नहीं लगी कि बोरे में लाश है. इसी बीच किसी ने थाना शिकोहाबाद में फोन कर के पुलिस को सूचना दे दी.

सूचना पा कर कुछ ही देर में एसएचओ प्रदीप कुमार कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. शव को 2 बोरियों में भर कर यहां डाला गया था. एक बोरी सिर की ओर तथा दूसरी पैरों की ओर से पहनाई गई थी, जबकि शरीर का बीच का हिस्सा एक बैडशीट में लपेटा गया था. पुलिस ने दोनों बोरियों को हटा कर लाश को बाहर निकाला. वह लाश 32-33 साल के किसी हट्टेकट्टे युवक की थी. मृतक काले रंग की शर्ट व सफेद पैंट पहने हुए था. पहनावे से युवक किसी अच्छे परिवार का लग रहा था. उस के सिर पर गहरी चोट थी, जिस से खून रिस रहा था. ऐसा लग रहा था कि युवक की हत्या कुछ घंटे पहले ही की गई थी.

इस के अलावा भी शरीर पर चोटों के निशान दिखाई दे रहे थे. शव की बाईं कलाई में घड़ी बंधी थी, वहीं कलाई पर अंगरेजी में बबलू सिंह गुदा हुआ था. जबकि दाएं हाथ पर ‘ॐ’ गुदा था. साथ ही मौली व काला धागा बंधा हुआ था. मृतक के गले में काले मोतियों की माला थी. सूचना मिलते ही सीओ देवेंद्र सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए. बोरी में लाश मिलने की खबर सुन कर वहां हड़कंप मच गया. बड़ी संख्या में ग्रामीण जमा हो गए. पुलिस ने उन से लाश की शिनाख्त कराने का प्रयास किया, लेकिन वहां मौजूद कोई भी व्यक्ति लाश को पहचान नहीं सका.

इस से पुलिस ने यही अनुमान लगाया कि युवक शायद कहीं बाहर का रहने वाला है और उस की हत्या कहीं और कर लाश किसी वाहन से रात के समय यहां ला कर फेंक दी गई है. अब सवाल यह था कि कत्ल का क्या मकसद हो सकता है? पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को मोर्चरी भेज दिया. यह घटना 14 नवंबर, 2022 की है.

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इस के बाद पुलिस ने यह पता करना शुरू कर दिया कि आसपास के थानों में इस उम्र का कोई युवक गायब तो नहीं है. लेकिन हाल के दिनों में इस तरह का कोई युवक लापता नहीं हुआ था. न ही जिले के किसी थाने में ऐसी कोई गुमशुदगी ही दर्ज थी.

हत्या के इस मामले की जांच का जिम्मा खुद एसएचओ प्रदीप कुमार ने अपने हाथ में लिया. युवक की हत्या की जानकारी मिलने पर एसएसपी आशीष तिवारी व एसपी (ग्रामीण) कुंवर रणविजय सिंह ने पूरे घटनाक्रम का ब्यौरा लिया. सीओ देवेंद्र सिंह के निर्देशन में मृतक के फोटो को सोशल मीडिया पर शिनाख्त के लिए शेयर किया गया. मृतक की फोटो को दूसरे जिले के थानों में भी भेजा गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में युवक की मौत का कारण सिर पर गंभीर चोटें आना व घावों से अत्यधिक खून बहना बताया गया. 72 घंटे बाद भी शव की शिनाख्त न होने पर शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया. एसपी (ग्रामीण) कुंवर रणविजय सिंह ने युवक की शिनाख्त व हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस की एक टीम तैयार की. इसी बीच 19 नवंबर को थाना शिकोहाबाद में कुछ लोग पहुंचे और बताया कि सोशल मीडिया से उन्हें जानकारी मिली है कि 14 नवंबर को एक युवक का बोरी में बंद शव मिला है, जिस की कलाई पर बबलू सिंह गुदा हुआ था.

पुलिस ने वहां आए हुए लोगों को बरामद अज्ञात लाश के कपड़े, घड़ी आदि सामान दिखाया तो अभय सिंह नाम के युवक ने बताया कि यह सब तो उस के भाई बबलू के हैं. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद एसएचओ ने अभय सिंह निवासी मरैहिया, थाना लोरिया, जिला पश्चिमी चंपारण (बिहार) की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एसएसपी आशीष तिवारी ने एसएचओ प्रदीप कुमार को शीघ्र ही घटना के खुलासे का निर्देश दिया. इस के बाद पुलिस ने मृतक के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि बबलू का मोबाइल 13 नवंबर को शिकोहाबाद के मैनपुरी चौराहा स्थित मोहल्ला ओमनगर में आ कर बंद हुआ था.

मृतक के घर वालों से पूछताछ में पता चला कि बबलू वेल्डिंग का काम करता था. काम के सिलसिले में कभी शिकोहाबाद तो कभी इटावा भी आताजाता रहता था. यहां रहने वाली एक युवती से भी फोन पर बात करता था. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि बबलू की उस युवती से अकसर काफी देर तक बातें होती थीं. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि घटना  के पीछे इस युवती का ही हाथ हो सकता है. इसी आधार पर 19 नवंबर, 2022 को ही पुलिस टीम ने ओमनगर निवासी ज्योति नाम की उस युवती के यहां दबिश दी.

पुलिस टीम में एसएचओ प्रदीप कुमार, एसआई पुष्पेंद्र कुमार, अंकित मलिक, विक्रांत तोमर आदि शामिल थे. घर पर पता चला कि उस की शादी शिकोहाबाद के ही मोहल्ला कटरा मीरा निवासी बौबी के साथ 6 महीने पहले हुई थी. वह इस समय अपनी ससुराल में है. तब पुलिस ने ज्योति के भाई शेखर उर्फ बृजेश को हिरासत में ले लिया. पुलिस ने उस से बबलू और ज्योति के संबंधों के बारे में पूछताछ की तो वह अनभिज्ञता जाहिर करता रहा. तब पुलिस ने 25 वर्षीय ज्योति को उस की ससुराल से हिरासत में ले लिया.

पूछताछ करने पर ज्योति ने शुरू में नानुकुर की, लेकिन जब पुलिस ने काल डिटेल दिखाई तो वह टूट गई और बबलू की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. इस हत्याकांड में ज्योति, पति बौबी व देवर राजकुमार के शामिल होने की बात भी बताई. इस पर पुलिस ने आननफानन में मोहल्ला कटरा मीरा में दबिश दे कर ज्योति, बौबी व राजकुमार को भी गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की सरिया, पाइप, लाश को फेंकने के लिए प्रयोग में लाया गया टाटा मैजिक लोडर वाहन, बबलू का आधार कार्ड, मोबाइल फोन आदि बरामद किया.

एसपी (ग्रामीण) कुंवर रणविजय सिंह ने प्रैस कौन्फ्रैंस में बबलू की हत्या का परदाफाश करते हुए बताया कि मृतक बबलू का अपनी प्रेमिका ज्योति से पिछले 2 साल से प्रेम प्रसंग चल रहा था. बबलू शादी करने पर अड़ गया था. जबकि ज्योति की शादी 6 माह पहले ही हो चुकी थी. ज्योति ने अपने परिजनों के साथ षडयंत्र रच कर अपने प्यार की हत्या कर दी. बबलू की हत्या के पीछे जो कहानी निकली, वह चौंकाने वाली थी. फिरोजाबाद जिले के कस्बा शिकोहाबाद के मोहल्ला ओमनगर निवासी 25 वर्षीय ज्योति का कासगंज में मोहन (परिवर्तित नाम) नाम का रिश्तेदार रहता है. यह रिश्तेदार भिवाड़ी (राजस्थान) में पश्चिमी चंपारण निवासी बबलू के साथ काम करता था. हमउम्र मोहन ने बबलू को ज्योति का नंबर दे दिया. ज्योति का नंबर मिलने के बाद एक दिन बबलू ने उस नंबर को मिलाया.

दूसरी ओर से किसी युवती की आवाज आई. बबलू ने पूछा, ‘‘क्या आप ज्योति बोल रही हैं?’’

एक अनजान नंबर से आए फोन पर अपना नाम सुन कर ज्योति ने पूछा, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं? आप को मेरा नंबर किस ने दिया?’’

इस पर बबलू ने कहा, ‘‘आप के रिश्तेदार मोहन ने ये नंबर दिया है. मोहन मेरे साथ ही काम करता है.’’

इस के बाद ज्योति और बबलू की बातें  होने लगीं. बातचीत के दौरान ज्योति ने बबलू को बताया कि वह फेसबुक पर भी है. मोबाइल पर होने वाली लंबी बातचीत धीरेधीरे दोस्ती और फिर प्यार में बदल गई. ज्योति फोन कर के बबलू को शिकोहाबाद बुला लेती. फिर दोनों की मुलाकातें भी होने लगीं. ये मुलाकातें नगर के एक गेस्टहाउस में होतीं. प्रेम प्रसंग के बीच अवैध संबंध भी बन गए. बबलू ने ज्योति की कुछ अश्लील वीडियो भी बना ली थीं. बबलू तो ज्योति की सुंदरता पर रीझ गया था. ऊपर से ज्योति की प्यार भरी मीठीमीठी बातें उसे बहुत अच्छी लगती थीं. ज्योति ने अपने रूप जाल में बबलू को इस तरह उलझाया कि वह पूरी तरह उस का दीवाना हो गया था. बबलू उस की हर फरमाइश पूरी करता.

बबलू हर हाल में ज्योति को पाना चाहता था. वह उस से जब भी शादी करने को कहता, ज्योति कोई न कोई बहाना बना कर टाल देती. क्योंकि उसे तो बबलू के रूप में एटीएम मिल गया था. ज्योति बबलू से रुपए भी ऐंठती रहती थी. उस ने अपने प्यार के जाल में बबलू को जिस तरह फंसाया था, वह चौंकाने वाला था. अपने प्रेमी को अपने मोहपाश में फंसाने के बाद उस की फरमाइशें पूरी हो रही थीं. बबलू शिकोहाबाद आता और ज्योति पर जम कर खर्च करता, उस के साथ मौजमस्ती कर 1-2 दिन में वापस चला जाता.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. इसी बीच ज्योति के घरवालों ने उस की शादी शिकोहाबाद के कटरा मीरा में रहने वाले बौबी के साथ कर दी. शादी हो जाने के बाद भी बबलू और ज्योति के बीच प्रेम प्रसंग चलता रहा. ज्योति ने अपनी शादीशुदा जिंदगी को बबलू से छिपाए रखा. बबलू ज्योति से शादी करने को ले कर उस के पीछे हाथ धो कर पड़ गया था. जब ज्योति ने शादी से मना किया तो बबलू ने उसे ब्लैकमेल की धमकी दी. उस ने कहा, उस के साथ जो फोटो हैं उन्हें सोशल मीडिया पर डाल कर उसे बदनाम कर देगा.

बबलू को ज्योति के शादीशुदा होने के बारे में नहीं पता था. इसलिए वह ज्योति पर शादी का दबाव बनाने लगा था.  इस पर ज्योति ने बबलू से फोन पर बात करनी भी कम कर दी थी. शादी के लिए दबाव बनाने से प्रेमिका ज्योति परेशान हो गई. अब वह अपने किए पर पछता रही थी. उस के सामने अब प्रेमी बबलू से छुटकारा पाने का कोई रास्ता ही नहीं था. एक तरफ कुंआ तो दूसरी ओर खाई थी.

पोल खुलने के डर से ज्योति बुरी तरह डर गई थी. अंत में हिम्मत कर के ज्योति ने अपने पति बौबी को सच्चाई बताने का फैसला लिया. उस ने पति को बताया कि शादी से पहले उस की दोस्ती भिवाड़ी के एक युवक बबलू से हो गई थी. वह अब उस पर शादी के लिए दबाव बना रहा है. उस के पास उस के कुछ फोटो व वीडियो भी हैं, जिन्हें वह सोशल मीडिया पर डालने की धमकी दे रहा है. इस पर बौबी गुस्से से उबल पड़ा.

फिर एक षडयंत्र रचा गया. 13 नवंबर, 2022 को बबलू को ज्योति ने फोन किया और  झांसा दे कर शिकोहाबाद स्थित अपने घर पर बुला लिया. शाम तक बबलू ज्योति के घर ओमनगर आ गया. रात में उस की जम कर खातिरदारी की गई. खाना खाने के बाद डबलबैड पर ज्योति और बबलू बैठ कर प्यार भरी बातें करने लगे. ज्योति के आगोश में प्यार की बातों के दौरान ही थके हुए बबलू को नींद आ गई. रात गहराने लगी थी. ज्योति का पति और देवर ज्योति के सिगनल यानी फोन का इंतजार कर रहे थे. सिगनल मिलते ही वे आ गए. उस समय डबलबैड पर बबलू गहरी नींद में सो रहा था.

बबलू के सोते ही ज्योति, उस के पति बौबी, भाई शेखर उर्फ ब्रजेश ने बबलू के सिर पर लोहे के पाइप व सरिए से प्रहार करने शुरू कर दिए. अचानक हुए हमले से बबलू चीख भी नहीं सका. सिर पर हुए ताबड़तोड़ प्रहार से वह वहीं ढेर हो गया. खून से बैड की चादर लाल हो गई थी. हत्यारों ने बबलू की हत्या  करने के बाद उस की लाश को डबलबैड की चादर में ही लपेट दी. इस के बाद सिर और पैर की ओर से एकएक बोरी पहना दी गई.

देवर राजकुमार लाश को ठिकाने लगाने के लिए अपनी टाटा मैजिक लोडर गाड़ी लिए घर के बाहर तैयार खड़ा था. शव को लोडर में डाल कर बौबी, शेखर व राजकुमार दिखतौली रोड पहुंचे. उस समय रात के 2 बज रहे थे. पूरी सड़क सुनसान पड़ी थी. लोडर को सड़क किनारे एक स्थान पर रोक कर तीनों ने लाश को लोडर से उतारा और सड़क किनारे खंदी में फेंक दी. शव को ठिकाने लगाने के बाद तीनों वापस आ गए. ज्योति ने इस बीच घर में शव से टपका खून साफ कर दिया था. ज्योति अपने पति और देवर के साथ कटरा मीरा स्थित अपनी ससुराल चली गई. बबलू को ठिकाने लगाने के बाद सभी ने राहत की सांस ली. ज्योति को लगा कि अब रास्ते का कांटा निकल गया है. लेकिन यह उस की भूल थी. पुलिस ने चारों हत्यारोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

दो नावों में पैर रख कर सवारी करना कितना खतरनाक होता है, यदि ज्योति ने शादी हो जाने के बाद इस बात को जान लिया होता तो उस की जिंदगी की नाव नहीं डगमगाती. लेकिन उस ने प्रेमी से सच्चाई छिपा कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी. ज्योति की जिंदगी के जब खुशहाली के दिन शुरू हुए ही थे, तब अफेयर और फरेब के चलते अपने साथ 3 अन्य को भी जेल की सलाखों के पीछे भिजवा दिया. UP Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love Crime : शराब में जहर मिलाकर बेटी के आशिक का किया कत्ल

Love Crime :  उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद के औरास थाना क्षेत्र के टिकरा सामद गांव के रहने वाले परमेश्वर कनौजिया का नाम खुशहाल लोगों में गिना जाता था. इस के साथ ही उन की गांव में अच्छी धाक भी थी. इस का एक कारण यह भी था कि उन की पत्नी उर्मिला देवी टिकरा सामद गांव की पूर्व प्रधान रह चुकी थी.

जब तक परमेश्वर कनौजिया के परिवार में ग्राम प्रधानी रही, तब तक वह गांव वालों के हर सुखदुख में शुमार होते रहे लेकिन अगले चुनाव में हाथ से ग्राम प्रधानी चली जाने के बाद वह अपने 3 बेटों जिस में बड़े रिंकू, मझले जितेंद्र व 18 वर्षीय छोटे बेटे धर्मेंद्र के साथ मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन के पास रेलवे कालोनी में लौंड्री का काम करने लगे थे. यहां रहते हुए उन का छोटा बेटा धर्मेंद्र काम के साथ पढ़ाई भी करता रहा और साल 2020 में उस ने 12वीं की परीक्षा भी दी थी.

लेकिन साल 2020 लगते ही कोरोना के चलते देश के हालात खराब होने लगे तो सरकार ने देश भर में लौकडाउन लगाने का फैसला कर लिया तो लोग शहरों से वापस अपने गांव में पलायन करने लगे. चूंकि मुंबई में लौकडाउन होने से सारे कामधंधे बंद होने लगे थे, ऐसे में परमेश्वर कनौजिया को भी लौंड्री का बिजनैस अस्थाई रूप से बंद करना पड़ा. शुरू में परमेश्वर कनौजिया को लगा कि सरकार कुछ दिनों बाद लौकडाउन खोल देगी. लेकिन बाद में जब उन्हें लौकडाउन में ढील के कोई आसार नहीं दिखे तो उन्होंने अप्रैल 2020 में अपने तीनों बेटों के साथ गांव वापस आने का फैसला कर लिया और किसी तरह लौकडाउन के समय में ही मुंबई से गांव लौट आए.

मुंबई से गांव वापस आने के बाद लौकडाउन के चलते कोई कामधंधा करना संभव नहीं था. इसलिए परमेश्वर कनौजिया अपनी पत्नी और बच्चों के साथ पूरा दिन घर पर ही बिता रहे थे. लेकिन उन का छोटा बेटा धर्मेंद्र कनौजिया अकसर ही गांव में टहलने निकल जाता था. उधर जैसेजैसे देश में कोरोना के केस कम हुए तो सरकार ने भी लौकडाउन में छूट देनी शुरू कर दी थी, जिस से धीरेधीरे कामकाज भी पटरी पर आना शुरू हो चुका था. साल 2020 का जुलाई आतेआते तमाम लोग जो मुंबई, दिल्ली जैसे शहरों से वापस गांव आ गए थे, वे फिर से कामकाज की तलाश में वापस जाना शुरू कर चुके थे.

लेकिन परमेश्वर कनौजिया अभी भी गांव से वापस मुंबई नहीं गए थे. ऐसे में वह अपने बेटों के साथ घर के कामकाज निबटाते रहे.

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रोज की तरह परमेश्वर कनौजिया का छोटा बेटा धर्मेंद्र कनौजिया दोपहर का खाना खा कर 19 अगस्त, 2020 को भी घर से टहलने निकला था, लेकिन हर रोज की तरह वह जब शाम तक वापस न लौटा तो परिजन धर्मेंद्र के मोबाइल पर काल लगाने लगे. लेकिन उस का फोन भी स्विच्ड औफ बताया जा रहा था.

ऐसे में परमेश्वर कनौजिया अपने परिजनों के साथ धर्मेंद्र की तलाश में घर से निकल कर आसपास पता करने लगे, लेकिन धर्मेंद्र के बारे में किसी से कुछ भी पता नहीं चला. परमेश्वर कनौजिया को धर्मेंद्र के गायब होने का कोई कारण भी समझ नहीं आ रहा था, क्योंकि वह और उन के परिवार के सभी सदस्य धर्मेंद्र से बेहद प्यार करते थे, इसलिए कभी उसे डांटफटकार भी नहीं पड़ती थी.

वह ज्यादा परेशान हो उठे थे. वहीं उन की किसी से दुश्मनी भी नहीं थी जिस से लगे कि किसी ने दुश्मनी निकालने के लिए उन के बेटे को गायब कर दिया हो. रही बात कहीं जाने की तो वह हाल में ही लौकडाउन के चलते मुंबई से आया था. वह अपने घर के लोगों के साथ धर्मेंद्र के दोस्तों और परिचितों के यहां जब देर रात तक उसे खोजते रहे और उस का कोई पता नहीं चला तो उन्होंने पुलिस को बेटे की गुमशुदगी की सूचना देने का निर्णय लिया और 20 अगस्त की सुबह थाना औरास पहुंचे.

थानाप्रभारी राजबहादुर को घटना की जानकारी दे कर उस की गुमशुदगी दर्ज करने की मांग की. लेकिन थानाप्रभारी ने जांच की बात कह कर उन्हें लौटा दिया. थाने से पुलिस से अपेक्षित सहयोग न मिलने से निराश हो कर धर्मेंद्र के पिता गांव वापस लौट आए और फिर से आसपास तलाश करने लगे. परमेश्वर कनौजिया अपने दोनों बेटों के साथ धर्मेंद्र की तलाश कर ही रहे थे कि उन्हें अपने घर से करीब 300 मीटर दूर धर्मेंद्र की चप्पलें पड़ी हुई मिल गईं. धर्मेंद्र के चप्पल मिलने के बाद उस के घर वालों के मन में तमाम तरह की आशंकाएं जन्म लेने लगी थीं. घर वाले किसी अनहोनी के अंदेशे के साथ चप्पल मिलने वाली जगह से आगे बढ़े तो 200 मीटर दूर गिरिजाशंकर द्विवेदी के आम के बाग के पास से निकले सकरैला नाले में धर्मेंद्र का औंधे मुंह शव पड़ा देखा, जहां धर्मेंद्र का पूरा शरीर पानी में और सिर बाहर था. इसे देख कर सभी बदहवास हो रोने लगे.

इस के बाद रोतेबिलखते धर्मेंद्र  के पिता परमेश्वर कनौजिया ने औरास थानाप्रभारी राजबहादुर को घटना की सूचना दी. धर्मेंद्र की हत्या की सूचना पा कर थानाप्रभारी राजबहादुर ने इस की  सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दी और वह अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल पर पहुंचने के बाद थानाप्रभारी ने ग्रामीणों की मदद से धर्मेंद्र कनौजिया के शव को बाहर निकलवाया. उधर घटना की सूचना पा कर बांगरमऊ सीओ गौरव त्रिपाठी भी मौके पर पहुंच चुके थे. नाले से धर्मेंद्र की लाश बाहर निकालने के बाद पिता परमेश्वर व मां उर्मिला देवी का कहना था कि उन के बेटे की हत्या की गई है और शरीर में मारपीट जैसे चोट के निशान भी हैं क्योंकि धर्मेंद्र के चेहरे पर सूजन, पैंट की जेब में मिले मोबाइल में खून के निशान थे. जिस के आधार पर वे बारबार बेटे की हत्या किए जाने की बात दोहरा रहे थे.

वहीं दूसरी ओर पुलिस का कहना था कि मृतक धर्मेंद्र की लाश पर किसी तरह के चोट का निशान नहीं दिखाई पड़ रहा था. लिहाजा पोस्टमार्टम से पहले कहना मुश्किल था कि उस की हत्या की गई है. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने तक पुलिस ने जांच शुरू कर दी थी और मृतक के पिता परमेश्वर कनौजिया से किसी से दुश्मनी होने की बात पूछी तो उन्होंने बताया कि उन का या उन के परिवार के किसी भी सदस्य का किसी से भी झगड़ा या दुश्मनी नहीं थी.

इधर पुलिस धर्मेंद्र की मौत के कारणों को ले कर छानबीन कर ही रही थी कि अगले दिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट पुलिस को मिल गई. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में धर्मेंद्र की मौत का कारण स्पष्ट नहीं था. इस वजह से धर्मेंद्र का विसरा सुरक्षित कर जांच के लिए भेज दिया गया. जिस के कुछ दिनों बाद ही विसरा की जांच रिपोर्ट भी आ गई. विसरा रिपोर्ट में धर्मेंद्र की मौत जहर से होनी बताई गई थी. विसरा रिपोर्ट मिलने के बाद यह तो साफ हो गया था कि धर्मेंद्र की हत्या की गई है. लेकिन पुलिस को हत्या का कोई कारण नजर नहीं आ रहा था जिस के आधार पर हत्यारों तक पहुंचा जा सके. इसलिए पुलिस के सामने हत्या के कारण और हत्यारों तक पहुंचना चुनौती बना हुआ था.

ऐसे में पुलिस ने सर्विलांस की मदद से धर्मेंद्र के हत्यारों तक पहुचने का प्रयास शुरू कर दिया और मृतक के मोबाइल नंबर की पिछले एक सप्ताह की काल डिटेल्स खंगालनी शुरू कर दी. धर्मेंद्र की हत्या के लगभग एक महीना बीतने को था, लेकिन पुलिस अभी भी हत्या के कारणों का पता लगाने व हत्यारों तक पहुंचने में नाकाम रही थी. धर्मेंद्र की काल डिटेल्स के आधार पर भी हत्यारों तक पहुंचना पुलिस को कठिन लग रहा था.

इधर पुलिस धर्मेंद्र की हत्या के मामले की जांच कर ही रही थी, इसी दौरान परमेश्वर कनौजिया को पता चला कि धर्मेंद्र के गायब होने वाले दिन आखिरी बार उसे गांव के ही रहने वाले लक्ष्मण, राहुल कनौजिया, संजीत कुमार, उस के भाई रंजीत कनौजिया के साथ देखा गया था. यह जानकारी मिलते ही परमेश्वर कनौजिया ने 17 सितंबर, 2020 को औरास थाने पहुंच कर संजीत व रंजीत, राहुल और लक्ष्मण के खिलाफ बेटे की हत्या में शामिल होने की नामजद रिपोर्ट दर्ज करा दी. जब पुलिस आरोपियों के घर पहुंची तो सभी हत्यारोपी घर से फरार मिले. इस के आधार पर आरोपियों पर पुलिस का शक और भी पुख्ता हो गया. पुलिस ने आरोपियों की धरपकड़ के लिए काफी प्रयास किए, लेकिन आरोपी हाथ नहीं आए.

धर्मेंद्र की हत्या के कई माह बीत चुके थे और पुलिस लगातार आरोपियों के घर और संभावित ठिकानों पर दबिश दे रही थी लेकिन इस मामले में पुलिस के हाथ अब भी खाली थे. इसे ले कर मृतक के घर वाले आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए कई बार एसपी सुरेशराव आनंद कुलकर्णी के साथसाथ उच्चाधिकारियों से गुहार भी लगा चुके थे. इसी बीच थानाप्रभारी राजबहादुर की जगह औरास थाने की कमान तेजतर्रार हरिप्रसाद अहिरवार को सौंप दी गई थी. चूंकि इस मामले का परदाफाश न होना पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ था. ऐसे में एसपी सुरेशराव आनंद कुलकर्णी और एएसपी शशिशेखर ने खुद इस मामले पर नजर रखते हुए थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार को केस का जल्द से जल्द खुलासा करने का निर्देश दिया.

अब नए थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार  ने नए सिरे से आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए जाल बिछाना शुरू किया. इसी बीच उन्हें 20 मई, 2021 को मुखबिरों से खबर मिली कि लक्ष्मण, राहुल, संजीत रंजीत उन्नाव की मड़ैचा तिराहे के पास हैं और कहीं भागने की फिराक में हैं. इस सूचना के बाद थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार ने हैडकांस्टेबल दिलीप सिंह, कांस्टेबल प्रशांत, हर्षदीप व आशीष के साथ जाल बिछा कर मड़ैचा तिराहे से चारों को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस आरोपियों को पकड़ कर थाने ले आई और धर्मेंद्र कनौजिया की हत्या के बारे में पूछताछ करने लगी. लेकिन चारों ही धर्मेंद्र की हत्या में शामिल होने की बात से नकारते रहे.

जब पुलिस को लगा कि आरोपी आसानी से हत्या की बात कुबूलने वाले नहीं हैं तो कड़ाई से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में चारों टूट गए और उन्होंने धर्मेंद्र की हत्या की बात कुबूल ली. आरोपी लक्ष्मण ने बताया कि उन लोगों ने वारदात वाले दिन राहुल, संजीत व रंजीत की मदद से धर्मेंद्र को गांव के बगीचे में बुला कर मछली के साथ शराब पार्टी रखी थी. जहां पहले से ही धर्मेंद्र की हत्या करने के लिए जहर खरीद कर रख लिया था. आरोपियों ने धर्मेंद्र को जम कर शराब पिलाई और जब वह नशे में धुत हो गया तो मौका देख राहुल ने उस के शराब के गिलास में जहर मिला दिया. जहर मिली शराब पीने के बाद धर्मेंद्र अचेत हो कर गिर पड़ा. इस के बाद धर्मेंद्र की मौत का इंतजार करते रहे और जब उस की मौत हो गई तो धर्मेंद्र की लाश सकरैला नाले में फेंक दी.

पुलिस ने जब आरोपियों से हत्या का कारण पूछा तो आरोपी लक्ष्मण ने बताया कि धर्मेंद्र कनौजिया उस की बेटी से प्रेम करता था और वह अकसर उस के घर उस की बेटी से मिलने आया करता था. लक्ष्मण ने बताया कि वह अकसर दोनों को समझाता रहता था. लेकिन धर्मेंद्र के सिर पर प्रेम का मानो भूत सवार था. धर्मेंद्र लगातार उस की बेटी के साथ नजदीकियां बढ़ाता जा रहा था. इसी बीच लक्ष्मण के घर पर गांव के ही राहुल का आनाजाना शुरू हो गया, उस ने भी जब पहली बार लक्ष्मण की बेटी को देखा तो उस की खूबसूरती और चढ़ती जवानी को देख उस पर लट्टू हो गया.

अब राहुल लक्ष्मण के बेटी को देखने अकसर बहाने से उस के घर आने लगा था. वह जब भी आता तो लक्ष्मण की बेटी को देख अपनी सुधबुध खो बैठता था. उस के मन में लक्ष्मण की बेटी को ले कर कब प्यार की कोपलें पनपने लगीं, उसे पता ही नहीं चला. लेकिन उस के सामने एक बड़ी समस्या धर्मेंद्र था. क्योंकि वह भी उसी के चक्कर में अकसर लक्ष्मण के घर आया करता था. इधर लगातार राहुल के घर आने से लक्ष्मण की बेटी का प्यार धर्मेंद्र से कम होता गया और वह राहुल की तरफ आकर्षित होने लगी. अब वह धर्मेंद्र की जगह राहुल से प्यार करने लगी और दोनों में काफी नजदीकियां भी बढ़ चुकी थीं. इस वजह से अब वह धर्मेंद्र से दूरी बनाने लगी थी. लेकिन धर्मेंद्र दूरी नहीं बनाना चाहता था क्योंकि वह उस से हद से ज्यादा प्यार करने लगा था.

लक्ष्मण ने बताया कि उस की बेटी राहुल से प्यार के चलते धर्मेंद्र से पीछा छुड़ाना चाहती थी, लेकिन धर्मेंद्र उस से दूर जाने के बजाय और करीब आने की कोशिश करने लगा था. कई बार मना करने के बावजूद भी धर्मेंद्र का रोजाना घर आना उसे बरदाश्त नहीं था. इसलिए उस ने धर्मेंद्र को रास्ते से हटाने का खौफनाक निर्णय ले लिया. इस के लिए लक्ष्मण ने बेटी के दूसरे प्रेमी राहुल के साथ ही संजीत कुमार, उस के भाई रंजीत को भी धर्मेंद्र की हत्या की साजिश में शामिल कर लिया. फिर तय प्लान के अनुसार धर्मेंद्र को विश्वास में ले कर उसे शराब और मछली की पार्टी के लिए गांव से सटे बगीचे में बुलाया, जहां 19 अगस्त, 2020 को पार्टी के दौरान उस के शराब के पैग में जहर मिला कर उस की हत्या कर दी और लाश पास के नाले में फेंक दी.

पुलिस ने धर्मेंद्र की हत्या के नौवें महीने में साजिश का परदाफाश कर दिया और आरोपियों के बयान दर्ज कर धारा 302, 201, 34 भादंवि के तहत न्यायलय में पेश कर जेल भेज दिया है. कथा लिखे जाने तक आरोपी जेल में ही थे. Love Crime

Crime News : डाक्टर ने की हैवानियत की हद पार

Crime News : गोरखपुर पुलिस लाइंस स्थित मनोरंजन कक्ष खबर नवीसों से खचाखच भरा हुआ था. सामने कुरसी पर स्पैशल  टास्क फोर्स (एसटीएफ) के आईजी अमिताभ यश और एसएसपी डा. सुनील गुप्ता बैठे हुए थे. चूंकि पत्रकार वार्ता का आयोजन आईजी यश ने किया था, इसलिए ये वार्ता और भी खास लग रही थी. पत्रकारों के मन में एक अजीब सा कौतूहल था. ऐसा लग रहा था जैसे एसटीएफ के हाथ कोई बड़ा मामला लगा है और उसी के खुलासे के लिए लखनऊ से आए अमिताभ यश ने प्रैस वार्ता आयोजित की हो.

थोड़ी देर बाद पत्रकारों के मन से कौतूहल के बादल छंट गए, जब उन के सामने 3 आरोपियों को कतारबद्ध खड़ा किया गया. उन में से एक आरोपी गोरखपुर शहर का जाना माना डाक्टर और आर्यन हौस्पिटल का संचालक डा. डी.पी. सिंह उर्फ धीरेंद्र प्रताप सिंह था.

वार्ता शुरू करते हुए एसटीएफ आईजी अमिताभ यश ने सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा, ‘‘यह पत्रकारवार्ता 6 महीने पहले 2 जून, 2018 को नेपाल के पोखरा से रहस्यमय तरीके से गायब हुई गोरखपुर की सरस्वतीपुरम कालोनी निवासी राजेश्वरी उर्फ राखी श्रीवास्तव केस से जुड़ी हुई है, जिस की लाश 4 जून, 2018 को पोखरा की एक गहरी खाई से बरामद की गई थी.’’

नेपाल पुलिस ने मृतका का पोस्टमार्टम करवाया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस का पेट फटने के कारण मौत की पुष्टि हुई थी. इधर 4 जून, 2018 को राखी के भाई अमर प्रकाश श्रीवास्तव ने बिहार के गया निवासी अपने बहनोई मनीष सिन्हा पर गोरखपुर के शाहपुर थाने में राखी के अपहरण और जान से मारने की धमकी का मुकदमा दर्ज करवाया था. मनीष सिन्हा ने खुद को बेगुनाह बताते हुए मामले की जांच एसटीएफ से कराए जाने की मांग की थी.

मुकदमे से संबंधित विवेचना की फाइल एसटीएफ के पास आई तो जांच शुरू की गई. नेपाल पुलिस ने भारतीय पुलिस से मृतका के फोटो साझा करते हुए केस का खुलासा करने में मदद मांगी थी. फोटो को एसटीएफ के तेजतर्रार सिपाही शुक्ला ने पहचान लिया. वह राखी श्रीवास्तव की तसवीर थी.

जांचपड़ताल में पता चला कि राखी श्रीवास्तव आर्यन हौस्पिटल के संचालक डा. डी.पी. सिंह की दूसरी पत्नी थी. 7 साल पहले दोनों ने आर्यसमाज मंदिर में शादी की थी. शादी के बारे में डाक्टर की पहली पत्नी ऊषा सिंह को जानकारी नहीं थी. जब जानकारी हुई तो परिवार में हड़कंप मच गया.

आगे चल कर डा. डी.पी. सिंह और राखी के बीच संबंधों को ले कर टकराव पैदा हो गया. राखी की उम्मीदें और डिमांड लगातार बढ़ती जा रही थीं. इस सब के चलते डाक्टर राखी से पीछा छुड़ाना चाह रहा था.

आईजी ने आगे बताया, ‘‘राखी ने शहर के कैंट थाने में डी.पी. सिंह के खिलाफ रेप और धमकी देने का मुकदमा भी दर्ज कराया था. हालांकि बाद में दोनों ने सुलह कर लिया था. फरवरी 2018 में राखी ने मनीष सिन्हा से दूसरी शादी कर ली थी, लेकिन इस के बावजूद डा. डी.पी. सिंह और राखी श्रीवास्तव के बीच रिश्ता बना रहा. इस के बावजूद राखी की डिमांड बढ़ती जा रही थी.

‘‘राखी की डिमांड से तंग आ कर डा. डी.पी. सिंह ने राखी की हत्या की साजिश रच डाली. बीते 4 जून, 2018 को राखी नेपाल के पोखरा घूमने गई थी. इस की जानकारी मिलने पर डा. डी.पी. सिंह अपने 2 कर्मचारियों देशदीपक निषाद और प्रमोद सिंह के साथ किराए की स्कौर्पियो से नेपाल गया. जहां उस ने राखी से मुलाकात कर उसे अपने झांसे में ले लिया.

‘‘डा. डी.पी. सिंह ने राखी को शराब पिलाई और नशे की गोली दे कर बेहोश कर दिया. बेहोशी की हालत में डी.पी. सिंह ने राखी को अपने दोनों कर्मचारियों के साथ पहाड़ी से नीचे खाई में फेंक दिया, जहां सिर और पेट में चोट आने से उस की मौत हो गई. बाद में डी.पी. सिंह अपने दोनों साथियों के साथ फरार हो गया. इस हाईप्रोफाइल मामले की जांच में स्थानीय पुलिस के साथ एसटीएफ भी लगी थी. ऐसे में गहराई से मामले की जांच किए जाने पर डा. डी.पी. सिंह और राखी के पहले के संबंधों की तह तक जाने पर हत्याकांड का खुलासा हो पाया.’’

पत्रकारों के पूछे जाने पर डा. डी.पी. सिंह और दोनों कर्मचारियों देशदीपक निषाद तथा प्रमोद सिंह ने अपना अपना जुर्म कबूल करते हुए राखी श्रीवास्तव हत्या में संलिप्तता स्वीकार ली. पत्रकारवार्ता के बाद पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया. अदालत ने तीनों आरोपियों को जेल भेजने का आदेश दिया. तब पुलिस ने तीनों को गोरखपुर जिला जेल भेज दिया. यह 21 दिसंबर, 2018 की बात है.

आरोपियों के इकबालिया बयान और पुलिस जांचपड़ताल के बाद इस केस की हाईप्रोफाइल प्रेम कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

गोरखपुर के कैंट थाना क्षेत्र की पौश कालोनी बिलंदपुर में विद्युत विभाग से सेवानिवृत्त इंजीनियर हरेराम श्रीवास्तव अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में कुल जमा 6 सदस्य थे, जिन में 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. उन के चारों बच्चों में राजेश्वरी सब से छोटी थी. सब उसे प्यार से राखी कहते थे.

चारों भाईबहनों में राखी सब से अलग थी. उस के काम करने का तरीका, उठनेबैठने और पढ़नेलिखने का सलीका, बातचीत करने का अंदाज सब कुछ अलग था. परिवार में सब से छोटी होने की वजह से घर वाले उसे प्यार भी बहुत करते थे.

राखी मांबाप की दुलारी तो थी ही, बड़ा भाई अमर प्रकाश भी उसे बहुत चाहता था. बहन में जान बसती थी बड़े भाई अमर की. जिद्दी स्वभाव की राखी लाड़प्यार में भाई से जो मांगती थी, अमर कभी इनकार नहीं करता था.

राखी पर मोहित हो गया था डा. डी.पी. सिंह

सन 2006 की बात है. राखी के पिता हरेराम श्रीवास्तव बीमार थे. उन्हें इलाज के लिए आर्यन हौस्पिटल में इलाज के लिए भरती कराया गया था. यह हौस्पिटल घर के पास तो था ही, पूर्वांचल का जानामाना भी था. बेहतर इलाज और नजदीक समझते हुए अमर प्रकाश ने पिता को डा. डी.पी. सिंह के हौस्पिटल में भरती करा दिया. पिता की तीमारदारी के लिए घर वाले अस्पताल आतेजाते रहते थे. राखी भी आतीजाती थी.

करीब साढ़े 5 फीट लंबी राखी छरहरी तो थी ही ऊपर से गठीला बदन, गोरा रंग, गोलमटोल चेहरा, नागिन सी लहराती चोटी, झील सी गहरी आंखों से वह बला की खूबसूरत दिखती थी. डा. डी.पी. सिंह उर्फ डा. धीरेंद्र प्रताप सिंह की नजर जब राखी पर पड़ी तो उस का मन राखी में ही उलझ कर रह गया. एक तरह से वह उस के दिल में समा गई.

राखी प्राय: रोज ही पिता को देखने जाती थी. जब भी वह अस्पताल में होती तो डा. डी.पी. सिंह ज्यादा से ज्यादा समय उस के पिता के बैड के आसपास चक्कर लगाता रहता. राखी को यह देख कर खुशी होती कि डाक्टर उस के पिता के इलाज को ले कर गंभीर हैं. वह उन का कितना ध्यान रख रहा है.

2-3 दिन में ही राखी समझ गई कि डा. डी.पी. सिंह जब भी चैकअप के लिए पिता के बैड के आता है तो उस की नजरें पिता पर कम, उस पर ज्यादा टिकती हैं. उस की नजरों में आशिकी झलकती थी. डी.पी. सिंह भी गबरू जवान था. साथ ही स्मार्ट भी. पिता की तीमारदारी में डी.पी. सिंह की सहानुभूति देख कर राखी भी उस के आकर्षक व्यक्तित्व पर फिदा हो गई. वह भी डी.पी. सिंह को कनखियों से देखा करती थी. जब दोनों की नजरें आपस में टकरातीं तो दोनों ही मुसकरा देते.

राखी ने भी खोल दिया दिल का दरवाजा

कह सकते हैं कि राखी और डी.पी. सिंह दोनों के दिल एकदूसरे की चाहत में धड़कने लगे. अंतत: मौका देख कर एक दिन दोनों ने अपने अपने प्यार का इजहार कर दिया. बाली उमर की कमसिन राखी डी.पी. सिंह को दिल से मोहब्बत करने लगी जबकि डी.पी. सिंह राखी को दिल से नहीं, बल्कि उस की खूबसूरती से प्यार करता था.

कई दिनों के इलाज से हरेराम श्रीवास्तव स्वस्थ हो कर अपने घर लौट गए. पिता के हौस्पिटल से डिस्चार्ज होने के बाद राखी किसी न किसी बहाने हौस्पिटल आ कर डी.पी. सिंह से मिलने लगी. सालों तक दोनों एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले प्यार के झूले पर पेंग बढ़ाते रहे. आलम यह हो गया कि एकदूसरे को देखे बिना दोनों को चैन नहीं मिलता था.

डा. डी.पी. सिंह के दिल के पिंजरे में कैद हुई राखी ने उस के अतीत में झांका तो उसे ऐसा लगा जैसे उस के पैरों तले जमीन खिसक गई हो. राखी के सपनों का महल रेत की दीवार की तरह भरभरा कर ढह गया. क्योंकि डी.पी. सिंह पहले से शादीशुदा था. उस ने यह बात छिपा कर रखी थी. राखी को जब यह सच्चाई दूसरों से पता चली तो उसे गहरा धक्का लगा. वह डाक्टर से नाराज हो कर गोंडा चली गई. वहां वह बीएड की पढ़ाई करने लगी.

डा. डी.पी. सिंह राखी के अचानक मुंह मोड़ लेने से तड़प कर रह गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि अचानक राखी उस से रूठ क्यों गई. डी.पी. सिंह से जब राखी की जुदाई बरदाश्त नहीं हुई तो उस ने राखी से बात की, ‘‘क्या बात है राखी, तुम अचानक रूठ कर क्यों गईं? जाने अनजाने में मुझ से कोई भूल हो गई हो तो मुझे माफ कर दो.’’

‘‘मैं माफी देने वाली कौन होती हूं,’’ राखी तुनक कर बोली.

‘‘अरे बाप रे बाप, इतना गुस्सा!’’ मुसकराते हुए डी.पी. सिंह ने कहा.

‘‘ये गुस्सा नहीं दिल की टीस है, जो आप ने दी है डाक्टर साहब.’’ राखी के चेहरे पर दिल का दर्द छलक आया.

आश्चर्य से डा. डी.पी. सिंह ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हारे दिल को ऐसी कौन सी टीस दे दी कि तुम मुझ से रूठ गईं और शहर छोड़ कर चली गईं. तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैं तुम से कितना प्यार करता हूं.’’

‘‘डाक्टर साहब, आप इतनी बड़ी बड़ी बातें कर रहे हो. ये बताओ, आप ने अपनी जिंदगी की इतनी बड़ी सच्चाई मुझ से क्यों छिपाई? आप ने मुझे यह क्यों नहीं बताया कि आप शादीशुदा हो.’’

‘‘हां, यह सच है कि मैं शादीशुदा हूं. यह भी सच है कि मुझे तुम्हें यह सच्चाई पहले बता देनी चाहिए थी लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’ बीच में बात काटते हुए राखी बोली.

‘‘बताने का मौका ही नहीं मिला,’’ डा. सिंह ने सफाई दी, ‘‘मैं तुम्हें अपने जीवन की यह सच्चाई बताने वाला था, लेकिन बताने का मौका नहीं मिला. इस बात का मुझे दुख है.’’

‘‘तो फिर अब यहां क्या लेने आए हैं?’’

‘‘अपने प्यार की भीख. मैं तुम से अपने प्यार की भीख मांगता हूं राखी. तुम मेरा प्यार मुझे लौटा दो. मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता. फिर मैं यहां से चला जाऊंगा.’’

‘‘ठीक है, लेकिन मेरी भी एक शर्त है.’’ राखी बोली.

‘‘क्या शर्त है तुम्हारी?’’

‘‘यही कि आप को मुझ से शादी करनी होगी. मेरी यह शर्त मंजूर है तो बताओ?’’

‘‘मुझे तुम्हारी यह शर्त मंजूर है. मैं तुम से शादी करने के लिए तैयार हूं. शादी के बाद तुम्हें पत्नी की नजरों से बचा कर ऐसी जगह रखूंगा, जहां तुम पर किसी की नजर न पड़ सके.’’

राखी ने सभी गिलेशिकवे भुला दिए.

राखी बन गई डाक्टर की दूसरी पत्नी

सन 2011 के फरवरी में राखी और डा. डी.पी. सिंह ने परिवार वालों से छिप कर गोंडा जिले के आर्यसमाज मंदिर में प्रेम विवाह कर लिया. प्रेमी प्रेमिका दोनों पतिपत्नी बन गए. लेकिन यह बात राखी के परिवार वालों से ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रही.

राखी के पिता हरेराम श्रीवास्तव को बेटी द्वारा एक शादीशुदा आदमी से शादी करने की बात पता चली तो उन्हें गहरा सदमा पहुंचा. वह इस सदमे को सहन नहीं कर सके और उन की मौत हो गई. उस के बाद राखी के परिवार वालों ने उस से हमेशा हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया.

शादी के बाद डी.पी. सिंह ने दूसरी पत्नी राखी के रहने के लिए गोरखपुर के शाहपुर क्षेत्र की पौश कालोनी सरस्वतीपुरम में एक आलीशान मकान खरीद दिया. राखी इसी मकान में रहती थी. हौस्पिटल से खाली होने के बाद डी.पी. सिंह राखी से मिलने उस के पास आता था. घंटों साथ बिता कर वह पहली पत्नी ऊषा सिंह के पास चला जाता था. उस के साथ कुछ समय बिता कर रात में राखी के पास आ जाता.

पहली पत्नी को पता चल गई डाक्टर की हकीकत 

डी.पी. सिंह की पहली पत्नी ऊषा सिंह देख समझ रही थी कि उस के पति के स्वभाव और रहनसहन में काफी तब्दीलियां आ गई हैं. वह उस में पहले की अपेक्षा कम दिलचस्पी ले रहा था. रात रात भर घर से गायब रहता था. वह रात में कहां जाता था, उसे कुछ भी नहीं बताता था. वह बताता भी तो क्या.

हालांकि वह जानता था कि जिस दिन यह सच पहली पत्नी ऊषा को पता चलेगा तो उस की खैर नहीं. आखिरकार डी.पी. सिंह का अंदेशा सच साबित हुआ. ऊषा को पति पर शक हो गया और उस ने पति की दिनचर्या की खोजबीन शुरू कर दी.

ऊषा से पति की सच्चाई ज्यादा दिनों नहीं छिप पाई. आखिर पूरा सच उस के सामने खुल कर आ गया. उस ने भी तय कर लिया कि अपने जीते जी वह अपने सिंदूर का बंटवारा हरगिज नहीं करेगी. या तो सौतन को मार देगी या खुद मर जाएगी.

इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच विवाद खड़ा हो गया. दूसरी औरत राखी को  ले कर ऊषा ने पति को आड़े हाथों लिया तो डी.पी. सिंह की बोलती बंद हो गई. वह हैरान था कि उस की सच्चाई पत्नी तक कैसे पहुंची, जबकि उस ने इस राज को काफी गहराई तक छिपा रखा था.

पत्नी के सामने सच्चाई आने के बाद डी.पी. सिंह की स्थिति बड़ी विचित्र हो गई. वह न तो पत्नी को छोड़ सकता था और न प्रेमिका से पत्नी बनी राखी के बिना रह सकता था. उस की हालत 2 नावों के सवार जैसी थी. इस के बावजूद वह दोनों नावों को डूबने नहीं देना चाहता था. डी.पी. सिंह किसी निष्कर्ष पर पहुंचता, इस से पहले ही पहली पत्नी ऊषा ने डी.पी. सिंह के खिलाफ कैंट थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया.

भले ही ऊषा ने उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया था, डी.पी. सिंह ने इस की कोई परवाह नहीं की. वजह यह थी कि राखी मां बनने वाली थी. राखी और डी.पी. सिंह दोनों इसे ले कर काफी खुश थे. आने वाले बच्चे के भविष्य को ले कर संजीदा थे. समय आने पर राखी ने हौस्पिटल में बेटी को जन्म दिया. लेकिन वह मां की गोद तक जाने से पहले ही दुनिया छोड़ गई. बेटी की मौत ने राखी को झकझोर कर रख दिया. नवजात शिशु की मौत का असर डी.पी. सिंह पर भी पड़ा.

डाक्टर को होने लगा गलती का पछतावा

डी.पी. सिंह को अपने किए का पश्चाताप होने लगा था. वक्त के साथ स्थितियां बदल गईं. उसे लगने लगा कि राखी की खूबसूरती महज एक छलावा था. असल जीवनसाथी तो ऊषा है. अब डा. डी.पी. सिंह अपनी भूल सुधारने के लिए पत्नी की ओर आकर्षित होने लगा. उस ने अपनी भूल सुधारने के लिए ऊषा से एक मौका मांगा, साथ ही वादा किया कि अब ऐसा कभी नहीं होगा.

पति के वादे पर ऊषा को भरोसा नहीं था. सालों तक वह उस की पीठ पीछे रंगरलियां मनाता रहा था. यहां तक कि उसे भनक तक नहीं लगने दी थी. यही सब सोच कर ऊषा ने उसे माफ नहीं किया बल्कि फैसला पति पर छोड़ दिया.

दूसरी ओर डी.पी. सिंह ने राखी से बिलकुल ही मुंह मोड़ लिया. डी.पी. सिंह में पहले से काफी बदलाव आ गया था. लेकिन राखी को यह मंजूर नहीं था कि उस का पति उसे छोड़ कर पहली पत्नी के पास जाए.

राखी ने डी.पी. सिंह को चेतावनी दे दी कि अगर वह उसे छोड़ कर पहली पत्नी के पास गया तो इस का परिणाम भुगतने को तैयार रहे. जब उस ने प्यार के लिए अपना घरबार सब छोड़ दिया तो वह रिश्ता तोड़ने से पहले अच्छी तरह सोच ले.

राखी की चेतावनी ने डा. डी.पी. सिंह के संपूर्ण अस्तित्व को हिला कर रख दिया. वह जानता था कि राखी जिद्दी स्वभाव की है, जो ठान लेती है, कर के रहती है. घरगृहस्थी को बचाने के लिए डी.पी. सिंह धीरेधीरे राखी से किनारा करने लगा.

राखी समझ गई थी कि डी.पी. सिंह उस से बचने के लिए किनारा कर रहा है. डी.पी. सिंह ने भले ही राखी से दूरी बनानी शुरू कर दी थी, लेकिन उस के खर्चे में कमी नहीं की थी. उसे वह उस की मुंहमांगी रकम देता था.

राखी मांगने लगी अपना हक

यह अलग बात है कि राखी रुपए नहीं, अपना पूरा हक चाहती थी. उसे दूसरी औरत बन कर रहना मंजूर नहीं था. वह पत्नी का पूरा अधिकार चाहती थी. जबकि डी.पी. सिंह पहली पत्नी ऊषा को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था. राखी उस पर दबाव बनाने लगी थी कि वह ऊषा को हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर उस के पास आ जाए. लेकिन डी.पी. सिंह ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया था.

राखी ने सोच लिया था कि वह तो बरबाद हो गई है, पर उसे भी इतनी आसानी से मुक्ति नहीं देगी. डाक्टर को सबक सिखाने के लिए साल 2017 के शुरुआती महीने में राखी ने राजधानी लखनऊ के चिनहट थाने में डा. डी.पी. सिंह के खिलाफ अपहरण और गैंगरेप का मुकदमा दर्ज करा दिया.

यही नहीं उस ने गोरखपुर के महिला थाने में भी डा. सिंह के खिलाफ महिला उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज कराया. एक साथ 2-2 मुकदमे दर्ज होते ही डा. सिंह के होश उड़ गए. गैंगरेप का मुकदमा दर्ज होते ही डी.पी. सिंह की शहर ही नहीं, पूर्वांचल भर में थूथू होने लगी. इस के चलते हौस्पिटल बुरी तरह प्रभावित हो गया. मरीज उस के क्लीनिक पर आने से कतराने लगे.

गैंगरेप केस ने डी.पी. सिंह की इज्जत पर बदनुमा दाग लगा दिया था. लोग उसे हिकारत भरी नजरों से देखने लगे और उस पर अंगुलियां उठने लगीं. इस से उस की सामाजिक प्रतिष्ठा की खूब छिछालेदर हुई. अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए डी.पी. सिंह ने राखी से केस वापस लेने को कहा और उसे मुंहमांगी रकम देने का औफर दिया.

राखी ने उस के सामने सरस्वतीपुरम कालोनी की उस आलीशान कोठी की रजिस्ट्री अपने नाम कराने की शर्त रखी, जिस में वह रह रही थी. वह कोठी करोड़ों की थी. इस के लिए डी.पी. सिंह तैयार नहीं हुआ. उस ने बात टाल दी.

धी रेधीरे डा. डी.पी. सिंह का राखी से मोह खत्म हो गया. दोनों के बीच का प्यार टकराव में बदल गया. कल तक जिस राखी की गंध डी.पी. सिंह की रगों में खून के साथ बहती थी, अब वह दुर्गंध बन गई थी. टकराव की स्थिति में डी.पी. सिंह का जीना मुश्किल हो गया था. उस की पलपल की खुशियां छिन गई थीं. राखी द्वारा पैदा की गई दुश्वारियों से डी.पी. सिंह बौखला गया और उसे रास्ते से हटाने की योजना बनाने लगा.

राखी को हो गया फौजी मनीष से प्यार

इस बीच राखी के जीवन में एक नई कहानी की कड़ी जुड़ गई थी. सरस्वतीपुरम कालोनी में जहां राखी रहती थी, उसी के पड़ोस में मनीष कुमार श्रीवास्तव नाम का एक खूबसूरत और स्मार्ट युवक रहता था. वह आर्मी का जवान था और अपने एक रिश्तेदार के घर अकसर जाताआता था. वह मूलरूप से बिहार के गया जिले का रहने वाला था.

डी.पी. सिंह से रिश्ते खराब होने के बाद राखी अकेलापन दूर करने के लिए मनीष से नजदीकियां बढ़ाने लगी. मनीष भी राखी की खूबसूरती पर फिदा हो गया. थोड़ी मुलाकातों के बाद दोनों एकदूसरे के करीब आ गए. अंतत: फरवरी 2018 में राखी और मनीष ने कोर्टमैरिज कर ली.

शादी के बाद राखी मनीष के साथ गया चली गई. उस ने मनीष से अपने अतीत की सारी बातें बता दीं. मनीष समझदार और सुलझा हुआ इंसान था. वह राखी को समझाता रहता था. मनीष को पत्नी की अतीत की कहानी सुन कर उस के साथ सहानुभूति हो गई. उस ने राखी को समझाया कि जो बीत गया, उसे याद करने से कोई फायदा नहीं है. उसे बुरा सपना समझ कर भुला दो.

राखी ने भले ही मनीष से शादी कर ली थी, लेकिन अपने पहले प्यार डी.पी. सिंह को अपने दिल से निकाल नहीं पाई थी. डा. डी.पी. सिंह जान चुका था कि राखी ने दूसरी शादी कर ली है. डी.पी. सिंह ही नहीं वरन राखी का बड़ा भाई अमर प्रकाश भी इस बात को जान चुका था कि राखी ने दूसरी शादी कर ली है. राखी के इस कृत्य पर उस ने बहन को काफी डांटाफटकारा भी था और समझाया भी था.

दरअसल परिवार वालों ने राखी से संबंध तोड़ लिए थे. एक अमर ही था जिसे राखी की परवाह थी. वह उसे अकसर फोन कर के उस का हालचाल पूछ लेता था. राखी के इस बार के कृत्य से वह दुखी था और उस ने राखी से बात करनी बंद कर दी थी.

इधर राखी डी.पी. सिंह को बारबार फोन कर के मकान की रजिस्ट्री अपने नाम कराने का दबाव बना रही थी. राखी के दबाव बनाने से डी.पी. सिंह परेशान हो गया था. उस का दिन का चैन और रात की नींद उड़ चुकी थी. इस मुसीबत से निजात पाने के लिए वह राखी को रास्ते से हटाने की योजना बनाने लगा.

इस के लिए उस ने 5 बार योजना बनाई, लेकिन पांचों बार अपने मकसद में असफल रहा. अब आगे वह अपने मकसद में असफल नहीं होना चाहता था, इसलिए इस बार उस ने अपने हौस्पिटल के 2 कर्मचारियों देशदीपक निषाद और प्रमोद कुमार सिंह को पैसों का लालच दे कर साथ मिला लिया.

सब कुछ डा. डी.पी. सिंह की योजना के अनुसार चल रहा था. डी.पी. सिंह ने भले ही राखी से कन्नी काट ली थी, लेकिन राखी से फोन पर बात करनी बंद नहीं की थी. ऐसा वह राखी को विश्वास में लेने के लिए कर रहा था. राखी समझ रही थी कि डी.पी. सिंह अभी भी उस से प्यार करता है. राखी डी.पी. सिंह की इस योजना को समझ नहीं पाई. वह उस पर पहले जैसा ही यकीन करती रही.

31 मई, 2018 की बात है. राखी पति मनीष के साथ नेपाल के भैरहवा घूमने गई थी. 2 जून की सुबह पति से नजरें बचा कर उस ने डी.पी. सिंह को फोन कर के बता दिया कि वह भैरहवा घूमने आई है.

यह जान कर डी.पी. सिंह को लगा जैसे खुदबखुद उस की मुराद पूरी हो गई हो. वह जो चाह रहा था, वैसी स्थिति खुदबखुद बन गई. उस ने राखी से कहा कि वह भैरहवा में रुकी रहे. वह भी उस से मिलने आ रहा है. दूसरी ओर भैरहवा घूमने के बाद मनीष ने राखी से घर वापस चलने को कहा तो उस ने कुछ जरूरी काम होने की बात कह कर मनीष को अकेले ही घर वापस भेज दिया. मनीष अकेला ही गोरखपुर वापस लौट आया. वह कुछ दिनों की छुट्टी पर आया हुआ था.

डाक्टर ने रच ली थी खूनी साजिश

2 जून, 2018 को डा. डी.पी. सिंह, देशदीपक निषाद और प्रमोद कुमार सिंह के साथ स्कौर्पियो से नेपाल गया. नेपाल जाते हुए प्रमोद कुमार गाड़ी चला रहा था, जबकि देशदीपक निषाद ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठा था और डा. सिंह पिछली सीट पर.

दोपहर के समय ये लोग सोनौली (भारत-नेपाल सीमा) होते हुए नेपाल पहुंचे. प्रमोद कुमार ने सोनौली बौर्डर पार करते हुए भंसार बनवाया था. भंसार बनवाने के लिए प्रमोद के ड्राइविंग लाइसेंस की कौपी लगाई गई थी. भंसार नेपाल द्वारा लगाया जाने वाला एक टैक्स होता है जो भारत से नेपाल सीमा में आने वाले वाहनों पर लगता है.

नेपाल के भैरहवा में राखी सड़क पर बैग लिए खड़ी इंतजार करती मिली. राखी से डी.पी. सिंह की बात नेपाल के नंबर से हुई थी. डी.पी. सिंह ने अपना मोबाइल जानबूझ कर घर पर छोड़ दिया था, ताकि जांचपड़ताल के दौरान पुलिस उस पर शक न कर सके.

राखी ने बताया कि वह भैरहवा में सड़क किनारे अकेली खड़ी है. राखी डी.पी. सिंह के पास गाड़ी में बैठ गई. वहां से चारों लोग पोखरा के लिए निकले. इन लोगों ने बुटवल से थोड़ा आगे और पालपा से पहले नाश्ता किया.

सभी लोग बुटवल से लगभग 100 किलोमीटर आगे मुलंग में एक छोटे होटल में रुके. इन लोगों ने होटल में 2 रूम बुक किए थे. डी.पी. सिंह और राखी एक कमरे में ठहरे थे. इस के बाद सुबह लगभग 11 बजे ये लोग खाना खा कर पोखरा के लिए निकले.

शाम को लगभग 4-5 बजे सभी पोखरा पहुंचे और डेविस फाल घूमे. इस के बाद राखी ने शौपिंग की, फिर सभी ने पोखरा में ही नाश्ता किया. इस के बाद ये लोग पहाड़ के ऊपर सारंगकोट नामक जगह पर होटल में रुके. इस होटल में सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे थे. डा. डी.पी. सिंह ने खुद इस होटल का चुनाव किया था. होटल में इन लोगों ने पहले चाय पी और बाद में शराब. राखी की चाय में डी.पी. सिंह ने एल्प्रैक्स का पाउडर मिला दिया था.

रात के लगभग 11 बजे दवा ने अपना असर दिखाया तो राखी की तबीयत खराब होने लगी. यह देख डा. डी.पी. सिंह ने इंसानियत की सारी हदें पार कर दीं. उस ने राखी को लातघूंसों से जम कर मारापीटा. मारपिटाई में एक लात राखी के पेट में ऐसी लगी कि वह अर्द्धचेतना में चली गई. थोड़ी देर में उस की सांसें भी बंद हो गईं.

उस की मौत के बाद तीनों राखी की लाश को ले कर उसी रात पोखरा के लिए निकल गए. लाश की शिनाख्त न हो सके, तीनों शातिरों ने राखी का मतदाता पहचानपत्र, मोबाइल फोन, नेपाल रिचार्ज कार्ड कीमत 100 रुपए, सहित कई सामान अपने पास रख लिए थे.

इस के बाद इन लोगों ने राखी को गाड़ी से निकाला और पहाड़ से नीचे धक्का दे दिया और फिर नेपाल से वापस घर लौट आए.

3 जून, 2018 को झाड़ी से नेपाल पुलिस ने राखी की लाश बरामद की. लेकिन उस की शिनाख्त नहीं हुई. नेपाल पुलिस ने लाश का पोस्टमार्टम कराया तो राखी की मौत का कारण पेट फटना सामने आया. पोखरा पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के जांच शुरू कर दी.

इधर मनीष पत्नी को ले कर परेशान था कि उस ने काम निपटा कर शाम तक घर वापस लौटने को कहा था, लेकिन न तो वह घर आई और न ही उस का फोन काम कर रहा था.

मनीष पर ही किया गया शक

मनीष फिर नेपाल के भैरहवा पहुंचा, जहां वह पत्नी के साथ रुका था. वहां जाने पर उसे पता चला कि राखी 2 जून को यहां से चली गई थी. इस के बाद वह कहां गई, किसी को पता नहीं था. 2 दिनों तक मनीष राखी को भैरहवा में खोजता रहा. जब वह नहीं मिली तो 4 जून को मनीष ने फोन कर के इस की सूचना राखी के बड़े भाई अमर प्रकाश श्रीवास्तव को दे दी.

अमर प्रकाश श्रीवास्तव ने राखी के पति मनीष कुमार श्रीवास्तव पर शक जताते हुए गोरखपुर के शाहपुर थाने में मनीष के खिलाफ बहन के अपहरण और जान से मारने की धमकी का मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने काररवाई करते हुए मनीष को गिरफ्तार कर लिया.

जांचपड़ताल में वह कहीं भी दोषी नहीं पाया गया. अंतत: पुलिस ने उसे हिदायत दे कर छोड़ दिया. उधर नेपाल पुलिस ने लाश की शिनाख्त के लिए लाश की कुछ तसवीरें गोरखपुर आईजी जोन जयप्रकाश सिंह के कार्यालय भिजवा दीं. आईजी जोन ने इस की जिम्मेदारी आईजी एसटीएफ अमिताभ यश को सौंप दी. अमिताभ यश ने एसएसपी एसटीएफ अभिषेक सिंह को जांच सौंप दी.

मनीष ने खुद किया जांच में सहयोग

इस बीच मनीष ने आईजी से मिल कर राखी के लापता होने की जांच की मांग की और खुद को निर्दोष बताते हुए मुकदमे से बरी करने की गुहार लगाई. मनीष के आवेदन पर एसटीएफ ने अपने विभाग के तेजतर्रार सिपाहियों यशवंत सिंह, अनूप राय, धनंजय सिंह, संतोष सिंह, महेंद्र सिंह आदि को लगाया.

एसटीएफ की जांचपड़ताल में राखी के मोबाइल की लोकेशन गुवाहाटी में मिली. फिर एक दिन अचानक राखी की डेडबौडी की फोटो सिपाही राजीव शुक्ला के सामने आई तो वह पहचान गया. इस क्लू ने डा. डी.पी. सिंह की साजिश का परदाफाश कर दिया. पुलिस ने जब डा. डी.पी. सिंह को गिरफ्तार कर के पूछताछ की तो सारी सच्चाई सामने आ गई.

डी.पी. सिंह के बयान के बाद उस के दोनों कर्मचारी देशदीपक निषाद और प्रमोद कुमार सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों ने राखी की हत्या करने और डी.पी. सिंह का साथ देने का अपना जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस को गुमराह करने के लिए डी.पी. सिंह ने राखी के मोबाइल को गुवाहाटी भिजवा दिया था, ताकि पुलिस को लगे कि राखी जिंदा है और वह गुवाहाटी में है. लेकिन पुलिस ने उस के गुनाहों को बेपरदा कर दिया.

घटना के बाद डी.पी. सिंह ने राखी के दूसरे प्रेमी को फंसाने की योजना बनाई थी. लेकिन उस की यह योजना धरी का धरी रह गई. एसटीएफ ने डी.पी. सिंह और उस के साथियों के पास से राखी का मतदाता पहचान पत्र, मोबाइल फोन, 100 रुपए का नेपाल रिचार्ज कार्ड व अन्य सामान बरामद कर लिया. नेपाल पुलिस ने अपने यहां हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया था. डी.पी. सिंह और उस के दोनों साथियों पर दोनों देशों में एक साथ मुकदमा चलाया जाएगा. Crime News

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Love Story : रहस्यमयी प्यार की अनोखी दास्तान

Love Story : सुबह के ठीक 9 बजे थे. तारीख थी 7 मई, 2022. मध्य प्रदेश के जिला मुरैना थाना सिहोनिया के थानाप्रभारी पवन सिंह भदौरिया अपने कक्ष में आ कर बैठे ही थे कि तभी एक अधेड़ महिला उन की टेबल के सामने आ कर खड़ी हो गई. उस के साथ एक छोटी लड़की भी थी, वह उस का हाथ पकड़े  थी.

महिला परेशान और कमजोर दिख रही थी. उसे भदौरिया ने कुरसी पर बैठने का इशारा किया. एक कुरसी पर वह बैठ गई और बगल की दूसरी कुरसी पर साथ आई लड़की को बैठा दिया. उस ने जो बात बताई उसे सुन कर भदौरिया चौंक गए. परिचय देते हुए उस ने अपना नाम मीराबाई बताया. उस ने कहा कि वह स्व. रामजी लाल सखवार की विधवा है और पास के ही गांव छत्त का पुरा में रहती है.

उस ने चौंकाने वाली बात यह बताई कि उस का बेटा विश्वनाथ 23 नवंबर, 2020 से ही घर नहीं आया है, जबकि वह खेतों में काम करने को कह कर गया था. वह गायब करवा दिया गया है. उस की पत्नी राजकुमारी का कहना है कि वह काम के सिलसिले में गुजरात में रह रहा है, लेकिन मुझे पूरा शक है कि उस की हत्या की जा चुकी है. भदौरिया ने मीराबाई से उस के बेटे के बारे में कुछ और जानकारी मांगते हुए पूछा कि वह कैसे कह सकती है कि उस के बेटे की किसी ने हत्या कर दी होगी. या फिर वह इस का सिर्फ अंदेशा जता रही है?

इतना सुनते ही मीराबाई बिलखने लगी. भदौरिया ने उसे एक गिलास पानी पिलवाया और शांति से बेटे के बारे में बताने को कहा कि उस के बेटे से किस की दुश्मनी थी? वह कहां आताजाता था? पत्नी से उस के कैसे संबंध थे? उस के गायब करने के पीछे किस का हाथ हो सकता है? इत्यादि. मीराबाई 2-3 मिनटों तक शांत बैठी रही, फिर उस ने बताना शुरू किया कि आखिर उसे क्यों अपने बेटे की मौत हो जाने की आशंका है? इस के पीछे कौन हो सकता है? उसे किस तरह से 22 महीनों तक धोखे में रखा गया? उसे अपनी बहू पर क्यों संदेह है? मीराबाई ने भदौरिया को जो कुछ बताया वह इस प्रकार है—

साहबजी, मेरे बेटे का नाम विश्वनाथ संखवार है. वह खेतीकिसानी के पुश्तैनी काम से जुड़ा रहा है. इस काम से कई बार गांव से दूसरे शहरों में भी जाता रहा है. उसे मैं ने अखिरी बार 2 साल पहले नवंबर महीने में तब देखा था, जब कोरोना फैला हुआ था. तारीख अच्छी तरह से याद है. उस रोज की 23 नवंबर, 2020 थी. वह रोज की तरह उस दिन अपने खेत पर गया था, रात गहराने पर भी जब खेत से लौट कर नहीं आया, तब मैं ने अपनी बहू राजकुमारी से उस के बारे में पूछताछ की. बहू ने मुझे बताया कि गुजरात से उन के किसी दोस्त का फोन आया था, इसलिए उन्हें अचानक गुजरात जाना पड़ गया था. वह 4-5 दिनों में लौट आएंगे.

किंतु जब बेटा 5 दिन बाद भी लौट कर नहीं आया, तब मुझे चिंता हुई. मैं ने अपनी बहू से फिर उस के बारे में पूछताछ की. उस ने अपने मोबाइल से मेरे बेटे के स्थान पर किसी और को बेटा बता कर मेरी बात करा दी. मुझे आवाज सुन कर थोड़ा संदेह हुआ, लेकिन बहू ने दबाव डाल कर कहा कि उस की बात उस के बेटे से ही हुई है. उस की थोड़ी तबीयत ठीक नहीं होने से आवाज बदली हुई लगी होगी.

मुझे लगा कि हो सकता है सुनने में ऐसा हुआ हो. उस की बेटे से ही बात हुई होगी. उम्र अधिक होने और सुनने और देखने की समस्या है. जबकि सच तो यह था कि बहू मेरी इस कमजोरी का फायदा उठा कर बेटे की जगह किसी और से बात करवाती रही है. एक ही आवाज सुनसुन कर मैं ने उसे ही अपना बेटा समझ लिया.

यह तो भला हो बेटी वंदना का, जिस ने बहू के इस झांसे को पकड़ लिया. वह अपने मायके आई हुई थी. घर में अपने बड़े भाई को नहीं पा कर उस ने भी भाभी राजकुमारी से पूछताछ की. बहू ने अपनी ननद को भी बताया कि उस के भैया इन दिनों गुजरात में रह रहे हैं. किसी और को भाई बता कर मोबाइल फोन पर उस की बात करवाने लगी. बात शुरू करते ही वंदना ने कहा कि उस की बात विश्वनाथ भैया से नहीं हो रही है. कोई और आदमी उस के भाई की आवाज बना कर बात कर रहा है.

इस तरह वंदना ने भाभी के झूठ और जालसाजी को पकड़ लिया था. उस ने भाभी से पूछा कि वह भैया के बारे में सचसच बताए. इस समय वह कहां हैं? भाभी इस का सही तरह से जवाब नहीं दे पाई. इस के बाद ही बेटी वंदना ने मुझे थाने में भाई की गुमशुदगी की सूचना लिखवाने की सलाह दी. थानाप्रभारी पवन सिंह भदौरिया ने मीराबाई की जानकारी के आधार पर विश्वनाथ की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. साथ ही उन्होंने इस पर काररवाई की शुरुआत करते हुए सब से पहले मुरैना के सभी थानों में विश्वनाथ के हुलिए आदि की जानकारी उपलब्ध करवा दी.

विश्वनाथ के गायब होने की सूचना भी प्रसारित करवा दी गई. मामला एक वैसे वयस्क पुरुष के 22 माह से गुमशुदा होने से संबंधित था, जो परिवार का मुखिया था. इसलिए सिहोनिया थानाप्रभारी ने इसे गंभीरता से ले कर अपने कुछ खास मुखबिर भी लगा दिए. मुखबिरों को सौंपे गए कार्यों में एक कार्य विश्वनाथ की पत्नी के चालचलन के बारे जानकारी जुटाने का भी था. जल्द ही उन से राजकुमारी के अरविंद सखवार नाम के व्यक्ति के साथ अवैध संबंध होने के एक राज का पता चल गया.

मुखबिर ने बताया कि वह विश्वनाथ की गैरमौजूदगी में राजकुमारी से मिलने घर पर आता रहता था. विश्वनाथ के बच्चे उसे चाचा कह कर बुलाते थे. इन दिनों भी उस का आनाजाना लगा हुआ है. भदौरिया के लिए यह बेहद महत्त्वपूर्ण जानकारी थी. उन की जांच की सुई राजकुमारी और अरविंद की ओर घूम गई. इस में उन्होंने अवैध संबंध होने के तार जोड़ लिए. अब उन्हें किसी तरह राजकुमारी और अरविंद के बीच अवैध संबंध के ठोस सबूत की जरूरत थी, ताकि उन की गतिविधियों में विश्वनाथ के शामिल होने का पता चल सके.

इस की तहकीकात में तेजी लाने के लिए उन्होंने अपने मातहतों को साइबर सेल की मदद लेने का निर्देश दिया. विश्वनाथ, राजकुमारी और अरविंद के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर जब उस का अध्ययन किया गया, तब पता चला कि बीते 22 महीनों में राजकुमारी और अरविंद सखवार के बीच सैकड़ों बार बातचीत हुई है. कई बार तो उन के बीच घंटों तक बातचीत हुई थी. इसी के साथ महत्त्वपूर्ण जानकारी 23 नवंबर, 2020 के शाम की थी. उसी दिन अचानक गायब हुए विश्वनाथ, राजकुमारी और अरविंद के मोबाइल फोन नंबरों की लोकेशन सिकरोदा नहर के किनारे की पाई गई.

यहां तक कि गुमशुदा विश्वनाथ और उस की पत्नी राजकुमारी एवं अरविंद सखवार का नंबर जिस मोबाइल फोन में चलाया जा रहा था, उस का आईएमईआई नंबर एक ही था. यह जानकारी थानाप्रभारी को एक महत्त्वपूर्ण कड़ी लगी. उन्होंने तुरंत सादे कपड़ों में महिला कांस्टेबल को राजकुमारी के घर उस वक्त भेजा, जिस वक्त वह घर पर नहीं थी. कांस्टेबल ने राजकुमारी के बेटे और बेटी से पूछताछ की.

उन से चौंकाने वाली जानकारी हाथ लगी. राजकुमारी के बेटे ने तो यहां तक बताया कि 23 नवंबर की शाम को उन के घर अरविंद चाचा आए थे. मम्मी ने पापा को बाजरे का लड्डू खिलाया था. उस के बाद वह सामान खरीदने की बात कह कर उन्हें अरविंद चाचा की बाइक पर बैठा कर ले गई थी. उस दिन के बाद से पापा वापस घर नहीं लौटे हैं.

इस जानकारी से विश्वनाथ के बारे में पुलिस को एक ठोस सबूत मिल गया था. उस के बाद ही थानाप्रभारी ने 10 अगस्त, 2022 को राजकुमारी और अरविंद को थाने बुलाया. उन से अलगअलग घंटों तक पूछताछ की गई. उन से पूछताछ में सामान्य सवाल पूछे गए, जिस में इधरउधर की बातचीत ही अधिक शामिल थी. इस तरह उन पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया गया.

धीरेधीरे राजकुमारी पर पुलिस की सख्ती बढ़ती चली गई. आखिरकार पुलिस की सख्ती के आगे राजकुमारी टूट गई. उस ने अपना जुर्म कुबूल करते हुए जो कुछ बताया, उस से विश्वनाथ की हत्या की पूरी कहानी साफ हो गई. राजकुमारी ने बताया कि 23 नवंबर, 2020 को ही योजनाबद्ध तरीके से उस ने पति को बाजरे के आटे से बने लड्डू में नींद की गोलियां मिला दी थीं. उस के बाद बाजार से सामान खरीदने के बहाने साथ ले कर चली गई थी.

नींद की गोलियों के असर से पति को गहरी नींद आ जाने पर राजकुमारी ने अपने प्रेमी अरविंद से मिल कर उस के कपड़े उतार दिए थे. उस की जेब से मोबाइल फोन और पर्स निकालने के बाद उसी अवस्था में सिकरोदा की नहर में फेंक दिया. तब उन्होंने सोच लिया कि उसे ठिकाने लगा दिया गया है और उन के रास्ते का कांटा निकल गया है.

अगले दिन यानी 24 नवंबर, 2020 को थाना सरायछोला पुलिस द्बारा नहर में बह कर आए अज्ञात व्यक्ति के शव के बरामद किए जाने की जानकारी राजकुमारी को मिली. इस की पुष्टि के लिए उस ने अरविंद को खासतौर से थाने भेजा. अरविंद ने बताया कि उस शव की शिनाख्त किसी ने नहीं की. उसे अज्ञात समझ कर पुलिस ने अंतिम संस्कार करा दिया. विश्वनाथ को रास्ते से हटाने के बारे में राजकुमारी ने उस के अरविंद के साथ प्रेम संबंध का होना बताया, जिस के बारे में उसे जानकारी हो गई थी. राजकुमारी ने बताया कि उसे ले कर विश्वनाथ के साथ झगड़े होते रहते थे. उन के दांपत्य जीवन में कड़वाहट आ गई थी.

राजकुमारी ने बताया कि उस का पति विश्वनाथ खेतीकिसानी के काम के चलते घर काफी देर से लौटता था. फिर हाथपैर धो कर खाना खाने के बाद गांव की चौपाल पर ताश खेलने निकल जाता था. ताश खेलने के बाद वह आधी रात को ही घर लौटता था. घर आते ही गहरी नींद में सो जाता था. ऐसी स्थिति में वह देहसुख से वंचित रहती थी. अरविंद विश्वनाथ के ट्रैक्टर का ड्राइवर था. वह 3 साल पहले ही राजकुमारी के संपर्क में आया था. विश्वनाथ के घर पर नहीं होने पर भी वह बेधड़क घर आताजाता रहता था. बच्चों से भी काफी घुलमिल गया था.

राजकुमारी को पहले तो मालकिन कहता था, लेकिन उस के कहने पर ही उसे भाभी कहने लगा था. कभीकभार राजकुमारी से मजाक भी कर लिया करता था. उस की गदराई देह को वह तिरछी नजरों से देखता रहता था. राजकुमारी को भी अरविंद की चिकनीचुपड़ी बातें सुनने में मजा आता था और उस के मजाक का जवाब मजाक में देने लगी थी. बहुत जल्द ही वह उस के प्रभाव में आ गई थी. राजकुमारी ने बताया कि अरविंद ने उसे इतना प्रभावित कर दिया था कि जब तक दिन भर में एक बार उस का दीदार नहीं कर लेती थी, उसे चैन नहीं मिलता था.

बस फिर क्या था, अरविंद भी उसे चाहत भरी नजरों से ताकने लगा था. एक दिन उस ने मौका पा कर राजकुमारी को अपनी बाहों में जकड़ लिया था. वह पुरुष सुख से वंचित थी, इसलिए उसे अरविंद का रोमांस अच्छा लगा और फिर खुद को नहीं रोक पाई. राजकुमारी के अनुसार, अरविंद से उस रोज जो संतुष्टि मिली थी, वह पति के साथ कई सालों में नहीं मिली थी. वह गबरू जवान बलिष्ठ मर्द था. फिर तो दोनों ओर से जब भी चाहत जागती वे सैक्स करने का मौका निकाल लेते.

वह अकसर उस वक्त घर पर ट्रैक्टर लेने और पहुंचाने आता था, जब विश्वनाथ घर पर नहीं होता था. बूढ़ी सास को काफी कम सुनाई देता था. उस की आंखों की रोशनी भी धुंधली थी. राजकुमारी ने बताया कि एक दिन रात को अरविंद घर पर आया हुआ था. उस दौरान पति दोनों बच्चों को ले कर शादी में जयपुर गया हुआ था. घर में उस के अलावा सिर्फ सास ही थी. घर में सन्नाटा पा कर अरविंद वहीं रुक गया. उन की वह रात मौजमस्ती में गुजरी, लेकिन अलसुबह विश्वनाथ बच्चों समेत घर आ गया. उस रोज अरविंद और राजकुमारी रंगेहाथ पकड़े गए.

उस वक्त अरविंद तो विश्वनाथ की डांटडपट सुन कर चला गया, लेकिन राजकुमारी की नजर पर विश्वनाथ चढ़ गया था. उस घटना के बाद से विश्वनाथ दोनों पर नजर रखने लगा था. हालांकि उस के बाद उस ने अरविंद को नौकरी से निकाल दिया था. राजकुमारी को यह बात और बुरी लगी. उस ने अरविंद को अपनी एक योजना बताई. अरविंद साथ देने के लिए तैयार हो गया. अरविंद की वासना में अंधी राजकुमारी ने अपने सुहाग को ही दांव पर लगा दिया था.

इस तरह से विश्वनाथ की हत्या के बाद वह अपने बच्चों को गांव में बूढ़ी सास के सहारे छोड़ कर मुरैना में कमरा ले कर रहने लगी थी. हालांकि वह बीचबीच में बच्चों और सास से मिलने गांव आ जाती थी. सास को झांसा दिए रहती थी कि उस ने विश्वनाथ के गुजरात जाने के बाद घर की पूरी जिम्मेदारी अपने सिर पर उठा ली है. विश्वनाथ की गुमशुदगी के मामले में थाना सिहोनिया पुलिस ने राजकुमारी और उस के प्रेमी अरविंद को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर दिया, जहां दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद विश्वनाथ की पत्नी और उस के प्रेमी को जेल भेज दिया गया.

राजकुमारी ने जो सोचा था, वह पूरा नहीं हुआ. वह अपने पति की हत्या की अपराधी भी बन गई और उस के साथ उस का प्रेमी फंस गया. जो सोच कर उस ने पति की हत्या की, वह अब शायद ही पूरा हो. Love Story

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

Love Crime : गर्लफ्रेड ने ली बॉयफ़्रेंड की जान

Love Crime :  एसचओ ने ग्रामीणों की मदद से शव को तालाब से बाहर निकलवाया. शव पूरी तरह नग्न अवस्था में था. शव का बारीकी से निरीक्षण किया तो पाया कि मृतक की उम्र लगभग 30 साल थी और उस के शरीर पर धारदार हथियार से गोदे जाने के कई निशान थे.

उसी दौरान एक युवक ने लाश की शिनाख्त पिडरुआ निवासी तुलसीराम प्रजापति के रूप में की. उस की हत्या किस ने और क्यों की, यह बात कोई भी व्यक्ति नहीं समझ पा रहा था. 26 वर्षीय सविता और 28 वर्षीय तुलसीराम पहली मुलाकात में ही एकदूसरे को दिल दे बैठे थे, सविता को पाने की अभिलाषा तुलसीराम के दिल में हिलोरें मारने लगी थी, इसलिए वह किसी न किसी बहाने से सविता से मिलने उस के खेत पर बनी टपरिया में अकसर आने लगा था.

तुलसीराम प्रजापति के टपरिया में आने पर सविता गर्मजोशी से उस की खातिरदारी करती, चायपानी के दौरान तुलसीराम जानबूझ कर बड़ी होशियारी के साथ सविता के गठीले जिस्म का स्पर्श कर लेता तो वह नानुकुर करने के बजाय मुसकरा देती. इस से तुलसीराम की हिम्मत बढ़ती चली गई और वह सविता के खूबसूरत जिस्म को जल्द से जल्द पाने की जुगत में लग गया. एक दिन दोपहर के समय तुलसीराम सविता की टपरिया में आया तो इत्तफाक से सविता उस वक्त अकेली चक्की से दलिया बनाने में मशगूल थी. उस का पति पुन्नूलाल कहीं गया हुआ था. इसी दौरान तुलसीराम को देखा तो उस ने साड़ी के पल्लू से अपने आंचल को करीने से ढंका.

तुलसीराम ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ”सविता, तुम यह आंचल क्यों ढंक रही हो? ऊपर वाले ने तुम्हारी देह देखने के लिए बनाई है. मेरा बस चले तो तुम को कभी आंचल साड़ी के पल्लू से ढंकने ही न दूं.’’

”तुम्हें तो हमेशा शरारत सूझती रहती है, किसी दिन तुम्हें मेरे टपरिया में किसी ने देख लिया तो मेरी बदनामी हो जाएगी.’’

”ठीक है, आगे से जब भी तेरे से मिलने तेरी टपरिया में आऊंगा तो इस बात का खासतौर पर ध्यान रखूंगा.’’

सविता मुसकराते हुए बोली, ”अच्छा एक बात बताओ, कहीं तुम चिकनीचुपड़ी बातें कर के मुझ पर डोरे डालने की कोशिश तो नहीं कर रहे?’’

”लगता है, तुम ने मेरे दिल की बात जान ली. मैं तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं, अब तो जानेमन मेरी हालत ऐसी हो गई है कि जब तक दिन में एक बार तुम्हें देख नहीं लेता, तब तक चैन नहीं मिलता है. बेचैनी महसूस होती रहती है, इसलिए किसी न किसी बहाने से यहां चला आता हूं. तुम्हारी चाहत कहीं मुझे पागल न कर दे…’’

तुलसीराम प्रजापति की बात अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि सविता बोली, ”पागल तो तुम हो चुके हो, तुम ने कभी मेरी आंखों में झांक कर देखा है कि उन में तुम्हारे लिए कितनी चाहत है. मुझे तो ऐसा लगता है कि दिल की भाषा को आंखों से पढऩे में भी तुम अनाड़ी हो.’’

”सच कहा तुम ने, लेकिन आज यह अनाड़ी तुम से बहुत कुछ सीखना चाहता है. क्या तुम मुझे सिखाना चाहोगी?’’ इतना कह कर तुलसीराम ने सविता के चेहरे को अपनी हथेलियों में भर लिया.

सविता ने भी अपनी आंखें बंद कर के अपना सिर तुलसीराम के सीने से टिका दिया. दोनों के जिस्म एकदूसरे से चिपके तो सर्दी के मौसम में भी उन के शरीर दहकने लगे. जब उन के जिस्म मिले तो हाथों ने भी हरकतें करनी शुरू कर दीं और कुछ ही देर में उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

सविता के पति पुन्नूलाल के शरीर में वह बात नहीं थी, जो उसे तुलसीराम से मिली. इसलिए उस के कदम तुलसीराम की तरफ बढ़ते चले गए. इस तरह उन का अनैतिकता का खेल चलता रहा.

सविता के क्यों बहके कदम

मध्य प्रदेश के सागर जिले में एक गांव है पिडरुआ. इसी गांव में 26 वर्षीय सविता आदिवासी अपने पति पुन्नूलाल के साथ रहती थी. पुन्नूलाल किसी विश्वकर्मा नाम के व्यक्ति की 10 बीघा जमीन बंटाई पर ले कर खेत पर ही टपरिया बना कर अपनी पत्नी सविता के साथ रहता था. उसी खेत पर खेती कर के वह अपने परिवार की गुजरबसर करता था. उस की गृहस्थी ठीकठाक चल रही थी.

उस के पड़ोस में ही तुलसीराम प्रजापति का भी खेत था, इस वजह से कभीकभार वह सविता के पति से खेतीबाड़ी के गुर सीखने आ जाया करता था. करीब डेढ़ साल पहले तुलसीराम ने ओडिशा की एक युवती से शादी की थी, लेकिन वह उस के साथ कुछ समय तक साथ रहने के बाद अचानक उसे छोड़ कर चली गई थी.

सविता को देख कर तुलसीराम की नीयत डोल गई. उस की चाहतभरी नजरें सविता के गदराए जिस्म पर टिक गईं.  उसी क्षण सविता भी उस की नजरों को भांप गई थी. तुलसीराम हट्टाकट्टा नौजवान था. सविता पहली नजर में ही उस की आंखों के रास्ते दिल में उतर गई. सविता के पति से बातचीत करते वक्त उस की नजरें अकसर सविता के जिस्म पर टिक जाती थीं.

सविता को भी तुलसीराम अच्छा लगा. उस की प्यासी नजरों की चुभन उस की देह को सुकून पहुंचाती थी. उधर अपनी लच्छेदार बातों से तुलसीराम ने सविता के पति से दोस्ती कर ली. तुलसीराम को जब भी मौका मिलता, वह सविता के सौंदर्य की तारीफ करने में लग जाता. सविता को भी तुलसीराम के मुंह से अपनी तारीफ सुनना अच्छा लगता था. वह पति की मौजूदगी में जब कभी भी उसे चायपानी देने आती, मौका देख कर वह उस के हाथों को छू लेता. इस का सविता ने जब विरोध नहीं किया तो तुलसीराम की हिम्मत बढ़ती चली गई.

धीरेधीरे उस की सविता से होने वाली बातों का दायरा भी बढऩे लगा. सविता का भी तुलसीराम की तरफ झुकाव होने लगा था. तुलसीराम को पता था कि सविता अपने पति से संतुष्ट नहीं है. कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. आखिर एक दिन तुलसीराम को सविता के सामने अपने दिल की बात कहने का मौका मिल गया और उस के बाद दोनों के बीच वह रिश्ता बन गया, जो दुनिया की नजरों में अनैतिक कहलाता है. दोनों ने इस रास्ते पर कदम बढ़ा तो दिए, लेकिन सविता ने इस बात पर गौर नहीं किया कि वह अपने पति के साथ कितना बड़ा विश्वासघात कर रही है.

जिस्म से जिस्म का रिश्ता कायम हो जाने के बाद सविता और तुलसीराम उसे बारबार बिना किसी हिचकिचाहट के दोहराने लगे. सविता का पति जब भी गांव से बाहर जाने के लिए निकलता, तभी सविता तुलसीराम को काल कर अपने पास बुला लेती थी. अनैतिक संबंधों को कोई लाख छिपाने की कोशिश करे, एक न एक दिन उस की असलियत सब के सामने आ ही जाती है. एक दिन ऐसा ही हुआ. सविता का पति पुन्नूलाल शहर जाने के लिए घर से जैसे ही निकला, वैसे ही सविता ने अपने प्रेमी तुलसीराम को फोन कर दिया.

अवैध संबंधों का सच आया सामने

सविता जानती थी कि शहर से घर का सामान लेने के लिए गया पति शाम तक ही लौटेगा, इस दौरान वह गबरू जवान प्रेमी के साथ मौजमस्ती कर लेगी. सविता की काल आते ही तुलसीराम बाइक से सविता के टपरेनुमा घर पर पहुंच गया. उस ने आते ही सविता के गले में अपनी बाहों का हार डाल दिया, तभी सविता इठलाते हुए बोली, ”अरे, यह क्या कर रहे हो, थोड़ी तसल्ली तो रखो.’’

”कुआं जब सामने हो तो प्यासे व्यक्ति को कतई धैर्य नहीं होता है,’’ इतना कहते हुए तुलसीराम ने सविता का गाल चूम लिया.

”तुम्हारी इन नशीली बातों ने ही तो मुझे दीवाना बना रखा है. न दिन को चैन मिलता है और न रात को. सच कहूं जब मैं अपने पति के साथ होती हूं तो सिर्फ तुम्हारा ही चेहरा मेरे सामने होता है,’’ सविता ने भी इतना कह कर तुलसी के गालों को चूम लिया.

तुलसीराम से भी रहा नहीं गया. वह सविता को बाहों में उठा कर चारपाई पर ले गया. इस से पहले कि वे दोनों कुछ कर पाते, दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. इस आवाज को सुनते ही दोनों के दिमाग से वासना का बुखार उतर गया. सविता ने जल्दी से अपने अस्तव्यस्त कपड़ों को ठीक किया और दरवाजा खोलने भागी. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने पति को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया, ”तुम तो घर से शहर से सौदा लाने के लिए निकले थे, फिर इतनी जल्दी कैसे लौट आए?’’ सविता हकलाते हुए बोली.

”क्यों? क्या मुझे अब अपने घर आने के लिए भी तुम से परमिशन लेनी पड़ेगी? तुम दरवाजे पर ही खड़ी रहोगी या मुझे भीतर भी आने दोगी,’’ कहते हुए पुन्नूलाल ने सविता को एक तरफ किया और जैसे ही वह भीतर घुसा तो सामने तुलसीराम को देख कर उस का माथा ठनका.

”अरे, आप कब आए?’’ तुलसीराम ने पूछा तो पुन्नूलाल ने कहा, ”बस, अभीअभी आया हूं.’’

सविता के हावभाव पुन्नूलाल को कुछ अजीब से लगे, उस ने सविता की तरफ देखा, वह बुरी तरह से घबरा रही थी. उस के बाल बिखरे हुए थे. माथे की बिंदिया उस के हाथ पर चिपकी हुई थी.

यह सब देख कर पुन्नूलाल को शक होना लाजिमी था. डर के मारे तुलसीराम भी उस से ठीक से नजरें नहीं मिला पा रहा था. ठंड के मौसम में भी उस के माथे पर पसीना छलक रहा था. पुन्नूलाल तुलसीराम से कुछ कहता, उस से पहले ही वह अपनी बाइक पर सवार हो कर वहां से भाग गया.

उस के जाते ही पुन्नूलाल ने सविता से पूछा, ”तुलसीराम तुम्हारे पास क्यों आया था और तुम दोनों दरवाजा बंद कर क्या गुल खिला रहे थे?’’

”वह तो तुम से मिलने आया था और कुंडी इसलिए लगाई थी कि आज पड़ोसी की बिल्ली बहुत परेशान कर रही थी.’’ असहज होते हुए सविता बोली.

”लेकिन मेरे अचानक आ जाने से तुम दोनों की घबराहट क्यों बढ़ गई थी?’’

”अब मैं क्या जानूं, यह तो तुम्हें ही पता होगा.’’ सविता ने कहा तो पुन्नूलाल तिलमिला कर रह गया. उस के मन में पत्नी को ले कर संदेह पैदा हो गया था.

पुन्नूलाल ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए पति पर निगाह रखनी शुरू कर दी और हिदायत दे दी कि तुलसीराम से वह आइंदा से मेलमिलाप न करे. पति की सख्ती के बावजूद सविता मौका मिलते ही तुलसीराम से मिलती रहती थी.

सविता और उस के प्रेमी को चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता था. उधर तुलसीराम चाहता था कि सविता जीवन भर उस के साथ रहे, लेकिन सविता के लिए यह संभव नहीं था.

सविता क्यों बनी प्रेमी की कातिल

वैसे भी जब से पुन्नूलाल और गांव वालों को सविता और तुलसीराम प्रजापति के अवैध संबंधों का पता लगा था, तब से सविता घर टूटने के डर से तुलसीराम से छुटकारा पाना चाह रही थी, लेकिन समझाने के बावजूद तुलसीराम उस का पीछा नहीं छोड़ रहा था. तब अंत में सविता ने अपने छोटे भाई हल्के आदिवासी के साथ मिल कर अपने प्रेमी तुलसीराम को मौत के घाट उतारने की योजना बना डाली.

अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए 8 जनवरी, 2024 को सविता अपने मायके साईंखेडा चली गई, जिस से किसी को उस पर शक न हो. वहां से वह 11 जनवरी की दोपहर अपनी ससुराल पिडरुआ वापस लौट आई. उसी दिन शाम के वक्त उस ने तुलसीराम को फोन करके मिलने के लिए मोतियाहार के जंगल में बुला लिया.

अपनी प्रेमिका के बुलावे पर उस की योजना से अनजान तुलसीराम खुशी खुशी मोतियाहार के जंगल में पहुंचा. तभी मौका मिलते ही सविता ने अपने मायके से साथ लाए चाकू का पूरी ताकत के साथ तुलसीराम के गले पर वार कर दिया. अपनी जान बचाने के लिए खून से लथपथ तुलसीराम ने वहां से बच कर भाग निकलने की कोशिश की तो सविता ने चाकू उस के पेट में घोंप दिया. पेट में चाकू घोंपे जाने से उस की आंतें तक बाहर निकल आईं. कुछ देर छटपटाने के बाद ही उस के शरीर में हलचल बंद हो गई.

इस के बाद सविता के भाई हल्के आदिवासी ने तुलसीराम की पहचान मिटाने के लिए उस के सिर को पत्थर से बुरी तरह से कुचल दिया. फिर सविता ने अपने प्रेमी की नाक के पास अपनी हथेली ले जा कर चैक किया कि कहीं वह जिंदा तो नहीं है. दोनों को पूरी तरह तसल्ली हो गई कि तुलसीराम मर चुका है, तब उन्होंने तुलसीराम के सारे कपड़े उतार कर उस के कपड़े, जूते एक थैले में रख कर तालाब में फेंक दिए. लाश को ठिकाने लगाने के लिए सविता और उस का भाई हल्के तुलसी की लाश को कंधे पर रख कर हरा वाले तालाब के करीब ले गए. वहां बोरी में पत्थर भर कर रस्सी को उस की कमर में बांध कर शव को तालाब में फेंक दिया.

नग्नावस्था में मिली थी तुलसी की लाश

12 जनवरी, 2024 की सुबह उजाला फैला तो पिडरुआ गांव के लोगों ने तालाब में युवक की लाश तैरती देखी. थोड़ी देर में वहां लोगों की भीड़ जुट गई. भीड़ में से किसी ने तालाब में लाश पड़ी होने की सूचना बहरोल थाने के एसएचओ सेवनराज पिल्लई को दी.

सूचना मिलते ही एसएचओ कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर मौके पर पहुंच गए. लाश तालाब से बाहर निकलवाने के बाद उन्होंने उस की जांच की. उस की शिनाख्त पिडरुआ निवासी तुलसीराम प्रजापति के रूप में की. वहीं पर पुलिस को यह भी पता चला कि तुलसीराम के पिछले डेढ़ साल से गांव की शादीशुदा महिला सविता आदिवासी से अवैध संबंध थे. इसी बात को ले कर पतिपत्नी में तकरार होती रहती थी.

लेकिन तुलसीराम की हत्या इस तरह गोद कर क्यों की गई, यह बात पुलिस और लोगों को अचंभे में डाल रही थी. मामला गंभीर था. एसएचओ ने घटना की सूचना एसडीओपी (बंडा) शिखा सोनी को भी दे दी थी. वह भी मौके पर आ गईं. इस के बाद उन्होंने भी लाश का निरीक्षण कर एसएचओ को सारी काररवाई कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के निर्देश दिए. एसएचओ पिल्लई ने सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. फिर थाने लौट कर हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

एसडीओपी शिखा सोनी ने इस केस को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम गठित की. टीम में बहरोल थाने के एसएचओ सेवनराज पिल्लई, बरायथा थाने के एसएचओ मकसूद खान, एएसआई नाथूराम दोहरे, हैडकांस्टेबल जयपाल सिंह, तूफान सिंह, वीरेंद्र कुर्मी, कांस्टेबल देवेंद्र रैकवार, नीरज पटेल, अमित शुक्ला, सौरभ रैकवार, महिला कांस्टेबल प्राची त्रिपाठी आदि को शामिल किया गया.

चूंकि पुलिस को सविता आदिवासी और मृतक की लव स्टोरी की जानकारी पहले ही मिल चुकी थी, इसलिए पुलिस टीम ने गांव के अन्य लोगों से जानकारी जुटाने के बाद सविता आदिवासी को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

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सविता से तुलसीराम की हत्या के बारे में जब सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने पुलिस को गुमराह करने की भरसक कोशिश की, लेकिन एसएचओ सेवनराज पिल्लई के आगे उस की एक न चली और उसे सच बताना ही पड़ा. सविता के खुलासे के बाद पुलिस ने सविता के भाई हल्के आदिवासी को भी साईंखेड़ा गांव से गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया सविता और उस के भाई हल्के आदिवसी से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

सविता और उस के भाई हल्के ने सोचा था कि तुलसीराम को मौत के घाट उतार देने से बदनामी से छुटकारा और बसा बसाया घर टूटने से बच जाएगा, लेकिन पुलिस ने उन के मंसूबों पर पानी फेर कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. तुलसीराम की हत्या कर के सविता और उस का भाई हल्के आदिवासी जेल चले गए. सविता ने अपनी आपराधिक योजना में भाई को भी शामिल कर के अपने साथ भाई का भी घर बरबाद कर दिया. Love Crime

Crime Story Hindi : गर्लफ्रेंड के प्यार ठुकराने पर बॉयफ्रेंड ने तीन लोगों की ली जान

Crime Story Hindi : 30 अक्तूबर, 2016 को दिवाली का त्यौहार था, इसलिए सारे शहर की सड़कों पर ही नहीं, गलीगली में चहलपहल थी. हर कोई खुश नजर आ रहा था. सिर्फ हेमंत ही एक ऐसा आदमी था, जो ऊपर से भले ही खुश नजर आ रहा था, लेकिन अंदर ही अंदर वह सुलग रहा था. दोपहर बाद वह अपने दोस्त मनोज के मैडिकल स्टोर पर पहुंचा और उस से घूमने चलने को कहा. इस के बाद दोनों ने घूमने की योजना बनाई और एक अन्य दोस्त सलीम को बुला कर मोटरसाइकिल से घूमने निकल पड़े. तीनों दोस्त काफी देर तक बाजार में घूमते रहे. शाम हो गई तो हेमंत ने दोनों दोस्तों से कहा, ‘‘मोटरसाइकिल छप्परी गली की ओर ले चलो, मैं तुम लोगों को वहां एक तमाशा दिखाता हूं.’’

‘‘कौन सा तमाशा दिखाएगा भाई?’’ सलीम ने पूछा तो हेमंत ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘पहले वहां चलो तो, खुद ही देख लेना वह तमाशा.’’

सलीम ने मोटरसाइकिल छप्परी गली की ओर मोड़ दी. गली के बाहर ही मोटरसाइकिल रुकवा कर हेमंत उतर गया तो सलीम भी उतर कर खड़ा हो गया. शाम का समय था. दिवाली का त्यौहार होने की वजह से लोग दीए जला रहे थे. गली में बच्चे पटाखे फोड़ रहे थे. हेमंत ने मनोज से उस की पिस्टल मांगी और गली में घुस गया. वह जिस घर के सामने जा कर रुका, वह भारती माहेश्वरी का था. उन की मौत हो चुकी थी. घर में पत्नी सुनीता, बेटा तुषार, बेटी प्रेरिका और छोटे भाई की पत्नी पूजा और बहन का बेटा रानू था.

प्रेरिका उस समय घर के बाहर दीए जला रही थी. हेमंत उसी के पास जा कर खड़ा हो गया. उसे देख कर प्रेरिका हड़बड़ा सी गई. उस ने हेमंत को घूरते हुए पूछा, ‘‘तुम यहां कैसे?’’

‘‘क्यों, मैं यहां नहीं आ सकता क्या?’’ कह कर हेमंत ने उस का हाथ पकड़ कर खींचा तो उस ने शोर मचा दिया. उस की चीखपुकार सुन कर उस की बुआ का बेटा रानू और छोटा भाई तुषार बाहर आ गया. उन्होंने प्रेरिका को छुड़ा कर हेमंत को घेर लिया.

खुद को घिरा पा कर हेमंत घबरा गया और उस ने मनोज की पिस्टल सीधी कर के प्रेरिका पर गोली चला दी, जो उस के पेट में लगी. गोली लगते ही वह गिर गई. इस के बाद उस ने रानू पर गोली चला दी, तो उस के भी पेट में गोली लगी. उस ने तीसरी गोली तुषार पर चलाई, जो उसे छूती हुई निकल गई.

अब तक चीखपुकार मच गई थी. गोलियों की आवाज सुन कर गली वाले इकट्ठा हो गए थे. हेमंत ने भागना चाहा, लेकिन तभी उसे अजीत ने घेर लिया. अजीत हेमंत पर भारी पड़ा तो पकड़े जाने के डर से उस ने अजीत पर भी गोली चला दी, जो सीधे उस के सीने में लगी. उस की तुरंत मौत हो गई. अजीत तातारपुर निवासी प्रेरिका के भाई राहुल की दुकान पर नौकरी करता था. वह शादीशुदा ही नहीं, एक बेटी का बाप भी था.

अजीत के गिरते ही गली में अफरातफरी मच गई, जिस का फायदा उठा कर हेमंत दोस्तों के साथ भाग निकला. किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को इस घटना की सूचना दे दी तो वहां से मिली सूचना के आधार पर एसपी सुनील कुमार, एडीएम सुरेंद्र कुमार, सीओ शबीह अहमद और थानाप्रभारी पदम सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे.

पुलिस ने घायलों को तुरंत अस्पताल भिजवाया और मृतक अजीत के घर वालों को सूचना दी. सूचना मिलते ही कुछ ही देर में अजीत के मांबाप और पत्नी गीता रोतीबिलखती आ पहुंची. औपचारिक पूछताछ के बाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर अजीत की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और थाने लौट कर घायल प्रेमिका के घर वालों की ओर से गोली चलाने वाले हेमंत और उस के दोस्तों मनोज तथा सलीम के खिलाफ हत्या तथा हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज कर लिया.

इस के बाद पुलिस हेमंत को गिरफ्तार करने उस के घर पहुंची तो वही नहीं, उस के दोनों साथी भी अपनेअपने घरों से फरार मिले. पुलिस ने तीनों की गिरफ्तारी के लिए जगहजगह छापे मारने शुरू किए. इस का नतीजा यह निकला कि घटना के तीसरे दिन यानी 2 नवंबर, 2016 को हेमंत पुलिस के हाथ लग गया.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में हेमंत ने कहा कि वह वहां घूमने गया था. लोगों ने उसे घेर लिया तो गोलियां उस ने अपने बचाव में चलाई थीं. इस के बाद गोलियां चलाने की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला कासगंज की छप्परी गली में रहते थे भारती माहेश्वरी. उन की मौत हो चुकी थी. उन के बाद घर में उन की पत्नी सुनीता के अलावा उन के भाई की पत्नी पूजा, बेटा तुषार, बेटी प्रेरिका और बहन का बेटा रानू रहता था. पिता की मौत के बाद तुषार ने उन की गहनों की दुकान संभाल ली थी. 12वीं पास करने के बाद प्रेरिका कोई प्रोफैशनल कोर्स करना चाहती थी. उस ने यह बात घर वालों से कही तो उन्होंने उस का दाखिला दिल्ली में एनआईआईटी में कंप्यूटर सीखने के लिए करा दिया.

घर में शायद किसी को मालूम नहीं था कि प्रेरिका के नजदीकी संबंध कासगंज की ही दुर्गा कालोनी के रहने वाले रूप सिंह यादव के बेटे हेमंत यादव से हैं. वह यूपी टैक्निकल यूनिवर्सिटी लखनऊ से एमसीए कर रहा था. कासगंज में पढ़ाई के दौरान हेमंत की मुलाकात प्रेरिका से हुई थी. कालेज में पढ़ते समय दोनों मिले तो कुछ ऐसी बातें हुईं कि एकदूसरे की ओर आकर्षित हो उठे.

इस का नतीजा यह निकला कि दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे. 12वीं करने के बाद हेमंत आगे की पढ़ाई के लिए जहां लखनऊ चला गया, वहीं प्रेरिका दिल्ली. दोनों भले ही दूरदूर हो गए थे, लेकिन मोबाइल के जरिए उन का संपर्क बना हुआ था. कंप्यूटर का कोर्स पूरा हो गया तो प्रेरिका ने बीकौम में दाखिला लेने के साथ बैंकिंग की कोचिंग में भी दाखिला ले लिया था. अब तक हेमंत की पढ़ाई पूरी हो गई थी. उसे दिल्ली की रिलैक्सो कंपनी में नौकरी मिल गई तो वह भी दिल्ली आ कर रहने लगा था.

दिल्ली में न प्रेरिका पर कोई नजर रखने वाला था और न हेमंत पर. दोनों खुलेआम मिलनेजुलने के साथसाथ घूमनेटहलने लगे. प्रेरिका भले ही हेमंत से मिलजुल रही थी और घूमफिर रही थी, लेकिन अपने इस प्रेम संबंध को वह वैवाहिक संबंध में तब्दील नहीं कर सकती थी. इस की वजह यह थी कि उस की और हेमंत की जाति अलगअलग थी. दोनों के ही घर वाले उन की शादी के लिए कतई तैयार न होते. हेमंत और प्रेरिका ने अपने प्रेम संबंधों को बहुत छिपाया, पर उन के घर वालों को उन के प्रेम संबंधों का पता चल ही गया. फिर तो दोनों के ही घर वाले परेशान हो उठे. न हेमंत के घर वाले दूसरी जाति की लड़की से शादी करने को तैयार थे और न प्रेरिका के घर वाले दूसरी जाति के लड़के से शादी करना चाहते थे. दोनों के ही घर वालों ने उन्हें समझाने का काफी प्रयास किया, लेकिन दोनों ने कोई उचित जवाब नहीं दिया.

कोई ऊंचनीच न हो जाए, यह सोच कर हेमंत के घर वाले उस के लिए लड़की ढूंढने लगे. यह जान कर हेमंत परेशान हो उठा. दूसरी ओर प्रेरिका भी कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी, इसलिए हेमंत भ्रम में था. वैसे वह अपने पैरों पर खड़ा था, जिस से चाहता, उस से शादी कर सकता था.

आखिर रूप सिंह ने हेमंत के लिए अलीगढ़ की एक लड़की पसंद कर ली. जब इस बात की जानकारी हेमंत को हुई तो वह चिंतित हो उठा. उस ने प्रेरिका से कहा कि अब उसे जल्दी ही फैसला कर लेना चाहिए कि वह उस से शादी कर रही है या नहीं? इस पर प्रेरिका ने कहा कि वह किसी तरह इस शादी को कुछ समय के लिए टाल दे. उसे जैसे ही नौकरी मिल जाएगी, वह उस से शादी के बारे में विचार करेगी.

प्रेरिका का यह व्यवहार हेमंत की समझ में नहीं आ रहा था. वह तनाव में रहने लगा. प्रेरिका के कहने पर उस ने घर में शादी के लिए मना कर दिया. उस ने घर में कहा था कि अभी उस की नईनई नौकरी है, ऐसे में अभी शादीब्याह का झंझट ठीक नहीं है. लड़का बड़ा हो गया था, इसलिए मांबाप को उस की बात माननी पड़ी. उन्होंने विवाह के लिए मना कर दिया.

लेकिन जब समय बीतने के साथ प्रेरिका ने कोई निर्णय नहीं लिया तो हेमंत को लगने लगा कि प्रेरिका शादी को ले कर गंभीर नहीं है. उसे लगा कि शायद वह उस के साथ खेल खेल रही है.

यह बात उसे परेशान करने लगी थी, क्योंकि अब प्रेरिका उस से कटने लगी थी. वह जब भी उस से मिलने को कहता, वह कोई न कोई बहाना बना देती. उस का फोन भी रिसीव करना कम कर दिया था. कभीकभी तो बात करतेकरते ही फोन काट कर स्विच्ड औफ कर देती.

प्रेरिका की ये हरकतें हेमंत को अखरने लगी थीं. परेशान हो कर आखिर एक दिन उस ने पूछ ही लिया, ‘‘प्रेरिका, आखिर तुम चाहती क्या हो, साफसाफ क्यों नहीं बता देतीं?’’

प्रेरिका ने तुनक कर कहा, ‘‘मेरी मम्मी को हमारे प्यार के बारे में पता चल गया है. उन्होंने कसम दिलाई है कि मैं तुम से बिलकुल न मिलूं.’’

हेमंत अवाक रह गया. प्रेरिका यह क्या कह रही है. उसे तो वैसे भी लग रहा था कि प्रेरिका की जिंदगी में कोई और आ गया है, इसीलिए वह उस से दूर भाग रही है. उस ने यह बात प्रेरिका से कही तो उस ने कहा, ‘‘यह तुम क्या कह रहे हो हेमंत?’’

‘‘मैं तो वही कह रहा हूं, जो तुम्हारे बातव्यवहार से मुझे लग रहा है. लेकिन तुम्हारे लिए यह ठीक नहीं होगा प्रेरिका.’’

‘‘तो तुम मुझे धमकी दे रहे हो?’’

‘‘धमकी ही समझ लो. प्रेरिका अगर तुम ने खुद को सुधारा नहीं तो मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूं.’’ कह कर हेमंत चला गया.

प्रेरिका प्रेमी की इन बातों से बुरी तरह डर गई. दूसरी ओर हेमंत का भी दिल टूट चुका था. प्रेरिका की दूरी उसे परेशान कर रही थी, इसलिए उसे उस पर गुस्सा आ रहा था. इसी गुस्से में उस ने प्रेरिका के साथ का अपना एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया. प्रेरिका ने जब उस वीडियो को देखा तो परेशान हो उठी. हेमंत उसे इस तरह बदनाम करेगा, उस ने कभी सोचा भी नहीं था. जब इस बात की जानकारी प्रेरिका के घर वालों को हुई तो सब की नींद उड़ गई.

उन्होंने समाज के कुछ प्रतिष्ठित लोगों को अपनी परेशानी बताई तो उन्होंने हेमंत के घर वालों से बात की. इस के बाद दोनों ओर के कुछ प्रतिष्ठित लोग इकट्ठा हुए. सब ने हेमंत तथा प्रेरिका को बुला कर समझाया और अपनीअपनी जिंदगी जीने की सलाह दी. प्रेरिका ने जब कहा कि अब वह हेमंत से कोई संबंध नहीं रखना चाहती तो बड़ेबुजुर्गों ने हेमंत को सख्त हिदायत दी कि अब वह प्रेरिका से बिलकुल नहीं मिलेगा. हेमंत ने सब के सामने वादा कर लिया कि अब वह प्रेरिका से बिलकुल नहीं मिलेगा. वह उसे फोन भी नहीं करेगा.

बड़ेबुजुर्गों के सामने दबाव में हेमंत ने वादा तो कर लिया कि वह प्रेरिका से बिलकुल नहीं मिलेगा और उसे फोन भी नहीं करेगा. लेकिन शायद वह प्रेमिका के बिना रह नहीं सकता था. घर वालों को लग रहा था कि हेमंत सुधर गया है, इसलिए उन्होंने उस की शादी मैनपुरी में तय कर दी. लड़की सेवानिवृत्त फौजी की बेटी थी. रूप सिंह और उस की पत्नी को लगता था कि शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा. बेटा प्रेरिका को भूल कर अपनी गृहस्थी को संभाल लेगा. अब तक प्रेरिका की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी, इसलिए वह कासगंज आ कर रहने लगी थी. उसे भी पता चल गया था कि हेमंत की शादी हो रही है. उसे भी लगा कि शादी के बाद हेमंत उसे परेशान नहीं करेगा.

सन 2016 के अप्रैल महीने में हेमंत की शादी हो गई. घर वाले चाहते थे कि वह पत्नी को अपने साथ दिल्ली ले जाए, लेकिन हेमंत पत्नी को साथ नहीं ले गया. भले ही हेमंत की शादी हो गई थी, लेकिन वह प्रेरिका को भूल नहीं पा रहा था. उस के साथ गुजारे गए पल उसे बारबार याद आ रहे थे, जिस से उसे यह सोचसोच कर गुस्सा आ रहा था कि प्रेरिका ने उस के प्यार को मजाक बना कर रख दिया. हेमंत से रहा नहीं गया तो उस ने प्रेरिका को फोन कर के कहा कि वह उस से मिलना चाहता है. लेकिन प्रेरिका ने मिलने से मना कर दिया. उस ने कहा कि अब तो उस की शादी हो चुकी है, इसलिए अब वह उस से मिल कर क्या करेगा. उसे अपनी पत्नी में दिल लगाना चाहिए.

हेमंत गुस्से में उबल पड़ा. बस उस ने उसी समय तय कर लिया कि अब वह प्रेरिका के इस व्यवहार का बदला ले कर रहेगा. दूसरी ओर घबरा कर प्रेरिका ने अपना मोबाइल नंबर बदल दिया था, जिस से हेमंत की उस से बात नहीं हो पा रही थी. इस से उस का गुस्सा बढ़ता ही गया. बात न होने की वजह से उस का मन बेचैन रहता था. उस की पत्नी को भी उस का व्यवहार अजीब लगता था. उसे सच्चाई का पता नहीं था, फिर भी उसे लगता था कि कुछ गड़बड़ जरूर है.

दिवाली का त्यौहार आया तो हेमंत घर आया. लेकिन त्यौहार को ले कर उस के दिल में कोई उत्साह नहीं था. दिवाली के दिन वह अपने दोस्त मनोज की दुकान पर गया. उस की कमर पर लगी उस की लाइसैंसी पिस्टल देख कर एकदम से उसे प्रेरिका से बदला लेने की बात याद आ गई. इस के बाद बदला लेने के लिए उस ने उसे गोली जरूर मारी, पर वह बच गई. उस के बदले मारा गया निर्दोष अजीत.

पूछताछ के बाद पुलिस ने हेमंत को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. बाद में मनोज और सलीम ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था, जहां से उन्हें भी जेल भेज दिया गया था. इस मामले में निर्दोष मारे गए अजीत का परिवार अनाथ हो गया. जिलाधिकारी ने सहानुभूति जताते हुए प्रधानमंत्री फंड से सहायता दिलाने का वादा किया था. लेकिन उस के घर वालों को तो कभी न भुलाने वाला गम मिल ही गया है. Crime Story Hind

Love Stories in Hindi : प्रेमी जोड़े ने एक ही दुपट्टे से पेड़ पर लटककर दी जान

Love Stories in Hindi : उत्तर प्रदेश का एक शहर एवं जिला मुख्यालय है फिरोजाबाद. यह शहर कांच की चूडि़यों के लिए प्रसिद्ध है. इसी जिले के थाना बसई मोहम्मदपुर के गांव आलमपुर कनैटा में राजवीर सिंह लोधी अपने परिवार के साथ रहता था. उस की पत्नी की करीब 3 साल पहले मौत हो गई थी. राजवीर की गांव में आटा चक्की थी. उस के 2 बेटे बलजीत व जितेंद्र के अलावा 2 बेटियां राधा, ललिता उर्फ लता थीं. वह एक बेटे और एक बेटी की शादी कर चुका था. छोटा बेटा जितेंद्र पिता के साथ चक्की के काम में हाथ बंटाता था जबकि ललिता उर्फ लता गांव के ही स्कूल में पढ़ रही थी.

इसी गांव में रामवीर सिंह लोधी भी अपने परिवार के साथ रहता था. वह निजी तौर पर पशुओं का इलाज करने का काम करता था. उस के 4 बेटों में अनिल कुमार सब से छोटा था. वह बीएससी कर चुका था और नौकरी की तलाश में था. अनिल का बड़ा भाई जितेंद्र दिल्ली के एक होटल में नौकरी करता था. ललिता 11वीं कक्षा में पढ़ती थी. जब वह स्कूल जाती, तो रास्ते में अकसर उसे गांव का युवक अनिल मिल जाता था. वह उसे चाहत भरी नजरों से देखता था. उस की उम्र करीब 20 साल थी. लता ने भी उन्हीं दिनों जवानी की दहलीज पर कदम रखा था. अनिल लता की जाति का ही था. लता को भी अनिल अच्छा लगता था. उस का झुकाव भी अनिल की तरफ होने लगा. दोनों ही एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे.

दोनों के बीच यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा. दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार करने में सकुचा रहे थे, क्योंकि उन का यह पहलापहला प्यार था. आखिर एक दिन अनिल ने हिम्मत कर के लता से पूछ ही लिया, ‘‘लता, तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?’’

लता को तो जैसे इसी पल का ही इंतजार था. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मेरी पढ़ाई तो ठीक चल रही है, पर तुम कैसे हो?’’

‘‘मैं अच्छा हूं,’’ अनिल ने जवाब दिया.

इस औपचारिक बातचीत के बाद दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने फोन नंबर भी दे दिए थे, जिस से उन के बीच फोन पर भी बातचीत होने लगी. रही बात मिलने की तो लता के स्कूल जातेआते समय अनिल पहुंच जाता था, जिस से वे एकदूसरे से मिल लेते थे. धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. कभीकभी लता सहेली के पास जाने की बात कह कर घर से निकल जाती और अनिल से एक निश्चित जगह पर मिल लेती थी. उन के प्रेम संबंध यहां तक पहुंच गए थे कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया था.

उस समय अनिल बेरोजगार था. उस ने लता से वादा किया कि शादी के लिए हम तब तक इंतजार करेेंगे, जब तक वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता. नौकरी लगने के बाद वह उसे अपने साथ ले जाएगा. यह बात सुन कर ललिता बहुत खुश हुई. दोनों एक ही जाति के थे, इसलिए उन्हें पूरा विश्वास था कि दोनों के घर वालों को उन की शादी पर कोई ऐतराज नहीं होगा. पिछले डेढ़ साल से दोनों का प्रेम प्रसंग बिना किसी बाधा के चल रहा था.

मिलने और मोबाइल पर बात करने में दोनों पूरी सावधानी बरतते थे. लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं. किसी तरह लता के परिजनों को उन के प्रेम संबंधों की भनक लग गई. लिहाजा उन्होंने लता को समझाया कि वह अनिल से मिलना बंद कर दे. इस से परिवार की बदनामी ही हो रही है. लता ने उस समय तो उन से वादा कर दिया कि वह घर की मानमर्यादा का ध्यान रखेगी. उस के वादे से घर वाले निश्चिंत हो गए. 2-4 दिनों तक तो लता ने अनिल से बात नहीं की. लेकिन इस के बाद प्रेमी की यादें उसे विचलित करने लगीं. उधर अनिल भी परेशान रहने लगा. दोनों की यह बेचैनी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी.

दिल की लगी नहीं छूटी

घर वालों की बातों को दरकिनार कर के लता ने अनिल से फोन पर बतियाना शुरू कर दिया. लेकिन अब वह सावधानी बरतने लगी ताकि घर वालों को पता न चले. लेकिन एक बार लता की मां ने रात में उसे मोबाइल पर बात करते देख लिया. उस ने यह बात पति राजवीर को बताई. उस ने जब लता का मोबाइल चैक किया तो पता चला कि वह अनिल से ही बात कर रही थी. यह जान कर राजवीर का खून खौल उठा. उस ने लता को बहुत लताड़ा और उस पर पहरा लगा दिया. इतना ही नहीं, राजवीर ने इसकी शिकायत अनिल के पिता रामवीर सिंह से भी कर दी. रामवीर ने भी अनिल को बहुत डांटा.

अब दोनों पर ही पाबंदियां लग गई थीं, जिस से वे बेचैन रहने लगे. लता का फोन भी उस के घर वालों ने अपने पास रख लिया था. लता किसी भी तरह अनिल से बात करना चाहती थी. एक दिन लता को यह मौका मिल गया. घर पर उस की सहेली मिलने आई थी. लता ने उस के मोबाइल फोन से अनिल से बात की और कहा कि यह दूरियां अब उस से सही नहीं जा रही हैं. तब अनिल ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘लता, कुछ दिनों के लिए मैं भाई के पास दिल्ली जा रहा हूं. जब मामला ठंडा पड़ जाएगा तो मैं गांव आ जाऊंगा.’’

लता को भी अनिल की बात सही लगी और उस ने न चाहते हुए भी दिल पर पत्थर रख कर उसे दिल्ली जाने की इजाजत दे दी. अनिल अपने भाई जितेंद्र के पास दिल्ली पहुंच गया. जितेंद्र ने अनिल की नौकरी एक निजी अस्पताल में लगवा दी. दिल्ली जा कर अनिल के नौकरी करने की जानकारी लता के पिता राजवीर को हुई तो उस ने राहत की सांस ली. उस ने निर्णय लिया कि मौका अच्छा है, क्यों न लता के हाथ पीले कर दिए जाएं. लिहाजा आननफानन में उस ने लता के लिए लड़का तलाशना शुरू कर दिया गया.

यह तलाश जल्द ही पूरी हो गई. एटा जिले के जलेसर नगर में सुनील नाम का लड़का पसंद कर लिया गया. शादी की बात भी पक्की कर दी गई. दोनों पक्षों ने इसी साल नवंबर महीने में देवउठान के पर्व पर शादी करने की बात तय कर ली. लता को जब अपनी शादी तय होने की बात पता चली, तो उस की नींद उड़ गई. क्योंकि वह तो अनिल की दुलहन बनने का सपना संजोए बैठी थी. लता ने अपनी शादी का विरोध किया लेकिन घर वालों के आगे उस की एक नहीं चली.

अनिल भी उस समय दिल्ली में था. लता ने उसे फोन कर के अपनी शादी तय होने की बात बता दी. यह बात सुन कर वह भी परेशान हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में क्या करे. जुलाई के पहले सप्ताह में गोदभराई की रस्म संपन्न हो गई. लता गोदभराई के दिन चाह कर भी किसी से कुछ नहीं कह सकी. वह उदास थी. उस का दिल रो रहा था. वह अनिल से मिलने के लिए तड़प रही थी.

15 अगस्त को रक्षाबंधन था. लता को पता था कि रक्षाबंधन पर अनिल गांव जरूर आएगा. उस ने सोचा तभी अनिल से मिल कर अपने मन की बात कहेगी. इतना ही नहीं, लता ने निर्णय ले लिया था कि अनिल के गांव आने पर वह अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ अनिल के साथ शादी कर लेगी, चाहे इस के लिए उसे अपना घर छोड़ कर भागना ही क्यों न पड़े.

प्रेमी के लिए तड़प रही थी लता

लेकिन लता के अरमानों पर उस समय बिजली गिर गई, जब रक्षाबंधन के दिन भी अनिल गांव नहीं आया, इस से वह बहुत निराश हुई. घर वालों ने लता को उस का मोबाइल फोन लौटा दिया था. लता ने अनिल को फोन किया तो उस ने बताया कि छुट्टी नहीं मिलने की वजह से वह इस बार घर नहीं आ सका. लेकिन अगले महीने गांव जरूर आएगा. लता को अब तसल्ली नहीं हो रही थी. उस के घर वालों ने शादी की खरीदारी शुरू कर दी थी. उसे अपने ही घर में एकएक दिन काटना बड़ा मुश्किल हो रहा था. सारीसारी रात वह बिस्तर पर करवटें बदलती रहती. उस ने एक दिन रात में ही निर्णय लिया, जिस की भनक उस ने अपने परिजनों को नहीं लगने दी.

16-17 अगस्त, 2019 की रात को जब लता के घर वाले सोए हुए थे, सुबह 4 बजे वह घर से गायब हो गई. परिजन जब सो कर उठे तो ललिता घर में दिखाई नहीं दी. उन्होंने सोचा कि वह मंदिर गई होगी. जब काफी देर तक वह वापस नहीं आई तो उस की तलाश की गई. उस का मोबाइल भी बंद था. बदनामी के डर से इस की सूचना पुलिस को भी नहीं दी गई. सुबह के समय गांव के कुछ लोगों ने ललिता को बाइक पर किसी युवक के साथ जाते देखा था. यह जानकारी राजवीर सिंह को मिली तो उस ने बदनामी की वजह से यह बात भी पुलिस तक को बताना ठीक नहीं समझा.

राजवीर व उस के परिवार वालों को शक था कि ललिता अनिल के पास दिल्ली चली गई होगी. राजवीर ने रामवीर से दिल्ली में रह रहे उस के बेटे अनिल का मोबाइल नंबर ले कर उस से बात की. अनिल ने बताया कि लता उस के पास नहीं आई है. इस के बाद घर वाले लगातार लता के मोबाइल पर फोन करते रहे, लेकिन उस का फोन बंद मिला. 17 अगस्त की दोपहर में राजवीर ने जब लता को फोन मिलाया तो उस से बात हो गई.

19 अगस्त, 2019 की सुबह थाना मटसेना के आकलपुर गांव की कुछ महिलाएं जंगल की तरफ गईं तो उन्होंने गांव के बाहर बेर की बगिया में एक पेड़ से फंदों पर 2 शव लटके देखे. इन में एक शव युवक का था और दूसरा युवती का. यह देख कर महिलाएं भाग कर घर आईं और यह बात लोगों को बता दी. इस के बाद तो आकलपुर गांव में कोहराम मच गया. जिस ने सुना, वही बगिया की ओर दौड़ पड़ा. सूरज की पौ फटतेफटते वहां सैकड़ों की भीड़ जुट गई. गांव के लोगों ने पेड़ पर शव लटके देख पुलिस को सूचना दे दी. सूचना मिलते ही थानप्रभारी मोहम्मद उमर फारुक पुलिस टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

पुलिस ने फोटो खींचने के बाद दोनों शव नीचे उतरवाए. उन की तलाशी ली तो दोनों के पास आधार कार्ड मिले. पुलिस को पता चला कि मृतक युवक आलमपुर कनैटा निवासी रामवीर का 20 वर्षीय बेटा अनिल कुमार था, जबकि मृतका उसी गांव के रहने वाले राजवीर की बेटी ललिता उर्फ लता थी.

थानाप्रभारी ने घटना की जानकारी अपने आला अधिकारियों के साथ ही युवकयुवती के घर वालों को भी दे दी. सूचना मिलते ही दोनों परिवारों में कोहराम मच गया. आकलपुर गांव आलमपुर गांव की सीमा से सटा हुआ था, इसलिए घर वाले रोतेबिलखते वहां पहुंच गए. इसी दौरान सीओ (सदर) बलदेव सिंह खनेड़ा व एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए. अपने बच्चों की लाशें देख कर दोनों के परिजनों का रोरो कर बुरा हाल था.

पुलिस को दोनों के पास से सुसाइड नोट भी मिले. अनिल का सुसाइड नोट उस की पैंट की जेब से जबकि ललिता ने सुसाइड नोट अपनी कलाई में बंधे कलावे से बांध रखा था. आधार कार्ड, सुसाइड नोट के अलावा दोनों के मोबाइल फोन पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिए. जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने दोनों शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिए. पुलिस ने जब केस की जांच शुरू की तो पता चला कि अनिल और ललिता ने गांव लौटने का फैसला कर लिया था और यह बात घर वालों को बता दी थी. ऐसे में दोनों के शव पेड़ से लटके मिलने पर सवाल उठने लगे.

मिलन नहीं तो मौत ही सही

इस प्रेमी युगल की प्रेम कहानी की इबारत सुसाइड नोट में लिखी मिली. दोनों ने एक साथ जीनेमरने की कसम खाई और सुसाइड नोट लिखे. ललिता ने अपने सुसाइड नोट में अनिल के अलावा किसी और से शादी न करने की बात लिखी थी. एक पेज के सुसाइड नोट में उस ने लिखा था कि मैं अनिल के पास दिल्ली चली गई थी. मेरे घर वालों ने मेरी शादी तय कर दी थी, जबकि मैं किसी दूसरे से शादी नहीं कर सकती थी. अनिल मुझ से घर वापस जाने के लिए कह रहा था, लेकिन मैं घर नहीं जाना चाहती थी. मैं अनिल के बिना नहीं रह सकती. इसलिए अपनी मरजी से आत्महत्या कर रही हूं. इस के लिए किसी को परेशान न किया जाए.

वहीं अनिल ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि ललिता मेरे पास दिल्ली आ गई थी. 18 अगस्त को वह उसे गांव छोड़ने आया था, लेकिन लता ने अपने घर जाने से इनकार कर दिया. उस ने लिखा कि मम्मीपापा मुझे माफ कर देना. मैं लता के बिना नहीं रह सकता. मैं अपनी मरजी से आत्महत्या कर रहा हूं. पुलिस ने अनिल के घर मिले एक रजिस्टर से उस के सुसाइड नोट की राइटिंग का मिलान भी किया. प्रेम विवाह को ले कर परिवार के लोगों ने दोनों के बीच में दीवारें खड़ी कर दीं तो प्रेमी युगल ने मरने का फैसला ले लिया. प्रेमी जोड़े ने इतना बड़ा कदम उठा लिया कि एक पेड़ पर एक ही दुपट्टे से एक ही फंदे पर लटक कर मौत को गले लगा लिया.

इस प्रेम कहानी का अंत लता के घर वालों की जिद के कारण हुआ. 16 अगस्त को जब लता अचानक गांव से गायब हो गई थी, तब वह सीधे दिल्ली में रह रहे अपने प्रेमी अनिल के पास पहुंची थी. 17 अगस्त को लता के पिता की उस से मोबाइल पर बात भी हुई. लता ने परिजनों को सारी बात बताई और कहा कि उस ने अनिल के साथ शादी करने का फैसला कर लिया है. घर वालों ने इस रिश्ते को मानने से इनकार कर दिया और उसे ऊंचनीच समझाते हुए घर लौटने को कहा. इस के बाद प्रेमी युगल ने घर वालों से 18 अगस्त को गांव आने की बात कही थी. लेकिन 19 अगस्त को दोनों ने आत्महत्या कर ली.

चूंकि मृतकों के परिजनों ने पुलिस को कानूनी काररवाई करने की कोई तहरीर नहीं दी, इसलिए पुलिस ने कोई मामला दर्ज नहीं किया. इस के अलावा पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गया कि अनिल और लता ने आत्महत्या की थी. अत: पुलिस ने इस मामले की फाइल बंद कर दी. Love Stories in Hindi

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित