झोपड़ी में रह कर महलों के ख्वाब – भाग 2

जब मल्लिका की बातों ने उसे प्यार में पागल कर दिया तो कामधाम छोड़ कर प्रवीण 24 परगना जा पहुंचा. मल्लिका को उस ने अपने आने की सूचना दे दी थी, इसलिए घर पहुंचते ही उस ने मल्लिका से मिलने का स्थान और समय तय कर लिया.

मल्लिका ने उसे अगले दिन 24 परगना के बसस्टाप पर दोपहर को बुलाया था. प्रवीण तय जगह पर खड़ा इधरउधर देख रहा था. थोड़ी देर में उसे एक खूबसूरत औरत आती दिखाई दी. वह मन ही मन सोचने लगा कि अगर यही मल्लिका होती तो कितना अच्छा होता.

प्रवीण उस औरत को एकटक ताकते हुए मल्लिका के बारे में सोच रहा था कि तभी वह औरत फोन निकाल कर किसी को फोन करने लगी. प्रवीण के फोन की घंटी बजी तो उस का दिल धड़क उठा. उस ने जल्दी से फोन रिसीव किया तो दूसरी ओर से पूछा गया, ‘‘कहां हो तुम?’’

‘‘तुम्हारे सामने ही तो खड़ा हूं.’’ प्रवीण के मुंह से यह वाक्य अपने आप निकल गया.

कान से फोन लगाए हुए ही उस औरत ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तो तुम हो प्रवीण?’’

‘‘हां, मैं ही प्रवीण हूं, जिसे तुम इतने दिनों से तड़पा रही हो.’’

‘‘अब तड़पने की जरूरत नहीं है. क्योंकि मैं तुम्हारे सामने खड़ी हूं.’’

मल्लिका को देख कर प्रवीण फूला नहीं समाया, क्योंकि उस ने अपने ख्वाबों में मल्लिका की जो तसवीर बनाई थी, वह उस से कहीं ज्यादा खूबसूरत थी. वह लग भी ठीकठाक परिवार की रही थी.

‘‘यहीं खड़े रहोगे या चल कर कहीं एकांत में बैठोगे.’’ मल्लिका ने कहा तो प्रवीण को होश आया.

प्रवीण उसे एक रेस्टोरैंट में ले गया. चायनाश्ते के साथ बातचीत शुरू हुई तो मल्लिका ने गंभीरता से कहा, ‘‘प्रवीण, तुम सचसच बताना, मुझे कितना प्यार करते हो और मेरे लिए क्या कर सकते हो?’’

‘‘अगर प्यार करने की कोई नापतौल होती तो नापतौल कर बता देता. बस इतना समझ लो कि मैं तुम्हें जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं. अब इस से ज्यादा क्या कह सकता हूं.’’ प्रवीण ने मल्लिका के हाथ पर अपना हाथ रख कर कहा.

‘‘जब तुम मुझे इतना प्यार करते हो तो मुझे भी अब तुम्हें अपने बारे में सब कुछ बता देना चाहिए, क्योंकि मैं ने अभी तक तुम्हें अपने बारे में कुछ नहीं बताया है. प्रवीण मैं शादीशुदा ही नहीं, मेरा 10 साल का एक बेटा भी है. मेरा पति कुवैत में रहता है, जिस की वजह से हमारी मुलाकातें 2 साल में सिर्फ कुछ दिनों के लिए हो पाती हैं. मैं यहां सासससुर के साथ रहती हूं. पति के उतनी दूर रहने की वजह से प्यार के लिए तड़पती रहती हूं.’’

मल्लिका की सच्चाई जानसुन कर प्रवीण सन्न रह गया. जैसे किसी ने उसे आसमान से जमीन पर पटक दिया हो. जिसे वह जान से ज्यादा प्यार करता था, वह किसी और की अमानत थी, यह जान कर उस के मुंह से शब्द नहीं निकले. उस की हालत देख कर मल्लिका ने कहा, ‘‘तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं प्रवीण. मैं भी तुम्हें उतना ही प्यार करती हूं, जितना तुम. मैं तुम्हारे लिए पति और बेटा तो क्या, यह दुनिया तक छोड़ सकती हूं.’’

प्रवीण ने होश में आ कर कहा, ‘‘सच, तुम मेरे लिए सब को छोड़ सकती हो?’’

‘‘हां, तुम्हारे लिए मैं सब को छोड़ ही नहीं सकती, जान तक दे सकती हूं, लेकिन तुम मुझे मंझधार में मत छोड़ना. तुम डाक्टर हो, इसलिए मेरे दिल का दर्द अच्छी तरह समझ सकते हो. बोलो, धोखा तो नहीं दोगे?’’ मल्लिका गिड़गिड़ाई.

मल्लिका की इस बात से प्रवीण ने थोड़ी राहत महसूस की. इस के बाद कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘अच्छा, यह बताओ. अब तुम सिर्फ मेरी बन कर रहोगी न?’’

‘‘हां, अब मैं सिर्फ तुम्हारी ही हो कर रहना चाहती हूं, सिर्फ तुम्हारी,’’ मल्लिका ने कहा, ‘‘चलो, अब यहां से कहीं और चलते हैं.’’

प्रवीण मल्लिका को पूरी तरह अपनी बनाना चाहता था, इसलिए उस ने एक मध्यमवर्गीय होटल में कमरा बुक कराया और मल्लिका को उसी में ले गया. एकांत में होने वाली बातचीत में प्रवीण जान गया कि मल्लिका के मायके और ससुराल वाले काफी संपन्न लोग हैं. उस का पति कुवैत में नौकरी करता था. उस समय भी वह लगभग 4-5 तोले सोने के गहने पहने थी.

होटल के उस कमरे में एकांत का लाभ उठा कर प्रवीण ने मल्लिका को अपनी बना लिया. उस ने मल्लिका के बारे में तो सब कुछ जान लिया, लेकिन अपने बारे में उस ने सिर्फ इतना ही बताया था कि वह डाक्टर है और अभी उस की शादी नहीं हुई है.

प्रवीण के डाक्टर होने का मतलब मल्लिका ने यह लगाया था कि वह पढ़ालिखा होगा, इसलिए अन्य डाक्टरों की तरह यह भी खूब पैसे कमा रहा होगा. यही सोच कर वह उस के साथ रहने के बारे में सोच रही थी.

जबकि स्थिति इस के विपरीत थी. प्रवीण झोला छाप डाक्टर था. उस ने क्लिनिक जरूर खोल ली थी, लेकिन उस की कमाई से किसी तरह उस का खर्च पूरा होता था. मल्लिका के बारे में जान कर अब वह उस की बदौलत अपना भाग्य बदलने के बारे में सोच रहा था.

मल्लिका की शादी 24 परगना के थाना गोपालपुर के कस्बा चलमंडल के रहने वाले कृष्णा से हुई थी. 24 परगना शहर में उस की विशाल कोठी थी. ससुराल में मल्लिका को किसी चीज की कमी नहीं थी. कमी सिर्फ यही थी कि पति कुवैत में रहता था और वह यहां सासससुर के साथ रहती थी. वह पति के साथ रहना चाहती थी, जबकि कृष्णा उसे कुवैत ले जाने को तैयार नहीं था. उस का कहना था कि अगर दोनों कुवैत चले गए तो मांबाप यहां अकेले पड़ जाएंगे.

मल्लिका बेटे अपूर्ण में मन लगाने की कोशिश करती थी, लेकिन बेटा बड़ा हो गया तो उसे पति की कमी खलने लगी थी. उस की जवान उमंगे तनहाई में दम तोड़ने लगी थीं. उस के जिस्म की भूख उसे बेचैन करने लगी थी. ऐसे में ही उस का फोन गलती से प्रवीण के मोबाइल पर लग गया तो दोनों की दोस्ती ही नहीं हुई, अब मेलमिलाप भी हो गया था. उस के बाद उस की जैसे दुनिया ही बदल गई थी.

मुलाकात के बाद जिस्म की भूख भी बढ़ गई और प्यार भी. कुछ दिन गांव में रह कर प्रवीण वापस आ गया. अब दोनों के बीच लंबीलंबी बातें होने लगीं. मल्लिका उस के सहारे आगे की जिंदगी गुजारने के सपने देखने लगी थी. क्योंकि उसे पता था कि कृष्णा में कोई बदलाव आने वाला नहीं है, इसलिए उस की परवाह किए बगैर एक दिन उस ने प्रवीण से कहा, ‘‘भई, इस तरह कब तक चलेगा. आखिर हमें कोई न कोई फैसला तो लेना ही होगा.’’

‘‘इस विषय पर फोन पर बात नहीं हो सकती. दुर्गा पूजा पर मैं घर आऊंगा तो बैठ कर बातें करेंगे.’’ प्रवीण ने कहा और घर जाने की तैयारी करने लगा.

दुर्गा पूजा के दौरान दोनों की मुलाकात हुई तो तय हुआ कि इस बार प्रवीण आगरा जाएगा तो मल्लिका भी उस के साथ चलेगी. वहां दोनों शादी कर के आराम से रहेंगे. उस समय मल्लिका ने यह भी नहीं सोचा कि कृष्णा घरपरिवार से उतनी दूर उस के और बच्चे के सुख के लिए ही पड़ा है. अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए उस ने अपने 10 साल के बेटे की चिंता भी नहीं की.

झोपड़ी में रह कर महलों के ख्वाब – भाग 1

पश्चिम बंगाल के जिला 24 परगना के थाना गोपालनगर के गांव पावन के रहने वाले प्रभात विश्वास गांव में रह कर खेती करते थे. पत्नी, 2 बेटों  और एक बेटी के उन के परिवार का गुजरबसर इसी खेती की कमाई से होता था. उसी की कमाई से वह बच्चों को पढ़ालिखा भी रहे थे और सयानी होने पर बेटी की शादी भी कर दी थी.

प्रभात ने बेटी प्रीति की शादी अपने ही जिले के गांव चलमंडल के रहने वाले श्रवण विश्वास के साथ की थी. श्रवण विश्वास झोला छाप डाक्टर था, जो चांदसी दवाखाना के नाम से उत्तर प्रदेश के जिला आगरा के थाना वाह के कस्बा जरार में अपनी क्लिनिक चलाता था.

श्रवण की क्लिनिक बढि़या चल रही थी, इसलिए उस से प्रेरणा ले कर प्रभात विश्वास का बड़ा बेटा प्रवीण भी बहनोई की तरह झोला छाप डाक्टर बनने के लिए पढ़ाई के साथसाथ किसी डाक्टर के यहां कंपाउंडरी करने लगा था. ग्रेजुएशन करतेकरते वह डाक्टरी के काफी गुण सीख गया तो बहनोई की तरह अपनी क्लिनिक खोलने के बारे में सोचने लगा.

क्लिनिक खोलने की पूरी तैयारी कर के प्रवीण आगरा के कस्बा जरार में क्लिनिक चला रहे अपने बहनोई श्रवण के पास आ गया. कुछ दिनों तक बहनोई के साथ काम करने के बाद जब उसे लगा कि अब वह खुद क्लिनिक चला सकता है तो वह अपनी क्लिनिक खोलने के लिए स्थान खोजने लगा.

प्रवीण के एक परिचित पी.के. राय आगरा के ही कस्बा रुनकता में क्लिनिक चलाते थे. उन्हीं की मदद से उस ने रुनकता में एक दुकान ले कर बंगाली दवाखाना के नाम से क्लिनिक खोल ली. रहने के लिए हाजी मुस्तकीम के मकान में 8 सौ रुपए महीने किराए पर एक कमरा ले लिया. मुस्तकीम का अपना परिवार सामने वाले मकान में रहता था. उस मकान में केवल किराएदार ही रहते थे. डा. प्रवीण का कमरा अन्य किराएदारों से एकदम अलग था.

प्रवीण विश्वास दिन भर अपनी क्लिनिक पर रहता था और रात को कमरे पर आ जाता. अकेला होने की वजह से उसे अपने सारे काम खुद ही करने पड़ते थे. वह जिस हिसाब से मेहनत कर रहा था, उस हिसाब से उस की कमाई नहीं हो रही थी. इसलिए अपने हालात से वह खुश नहीं था. लेकिन उस का व्यवहार ऐसा था कि उस से हर कोई खुश रहता था.

इस के बावजूद प्रवीण की किसी से दोस्ती नहीं हो पाई थी. इस की वजह शायद यह भी थी कि वह एक ऐसे प्रांत का रहने वाला था, जहां का खानपान, रहनसहन और बात व्यवहार सब कुछ वहां के रहने वालों से अलग था.

इस स्थिति में प्रवीण थोड़ा परेशान सा रहता था. एक दिन वह किसी सोच में डूबा था कि उस के फोन की घंटी बजी. उस का फोन डुअल सिम वाला था. एक सिम उस ने आगरा के नंबर का डाल रखा तो दूसरा सिम 24 परगना के नंबर का था. वैसे यहां 24 परगना वाले नंबर की कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन उस ने अपना पुराना नंबर इसलिए बंद नहीं किया था कि घर जाने पर शायद इस की जरूरत पड़े.

घंटी बजी तो प्रवीण की नजर मोबाइल के स्क्रीन पर गई. फोन 24 परगना वाले सिम के नंबर पर आया था. स्क्रीन पर जो नंबर उभरा था, वह भी 24 परगना का ही लग रहा था. प्रवीण ने जल्दी से फोन रिसीव कर लिया, ‘‘हैलो, कौन…?’’

उस के हैलो कहते ही दूसरी ओर से किसी लड़की ने मधुर आवाज में कहा, ‘‘सौरी, गलती से आप का नंबर लग गया.’’

प्रवीण कुछ कहता, उस के पहले ही फोन कट गया. लड़की की आवाज ऐसी थी, जैसे किसी ने कान में शहद घोल दिया है. प्रवीण का मन एक बार फिर उस की आवाज सुनने के लिए होने लगा. आवाज पलट कर फोन कर के ही सुनी जा सकती थी. लेकिन यह ठीक नहीं था. इसलिए वह सोचने लगा कि फोन करने पर लड़की बुरा मान सकती है. लेकिन मन नहीं माना तो डरतेडरते उस ने पलट कर फोन कर ही दिया.

दूसरी ओर से फोन रिसीव कर के लड़की ने कहा, ‘‘अपनी गलती के लिए मैं ने सौरी तो कह दिया. अब कितनी बार माफी मांगूं?’’

‘‘आप गलत सोच रही हैं. मैं ने आप को फोन इसलिए नहीं किया कि आप दोबारा माफी मांगें. आप की आवाज मुझे बहुत प्यारी लगी, उसे सुनने के लिए मैं ने फोन किया है. मैं आप की आवाज सुनना चाहता हूं. इसलिए आप कुछ अपनी कहें और कुछ मेरी सुनें.’’

प्रवीण का इतना कहना था कि उस के कानों में खिलखिला कर हंसने की आवाज पड़ी. प्रवीण खुश हो गया कि लड़की ने उस की इस हरकत का बुरा नहीं माना. हंसी रोक कर उस ने कहा, ‘‘तो यह क्यों नहीं कहते कि आप मुझ से दोस्ती करना चाहते हैं.’’

‘‘यही समझ लीजिए,’’ प्रवीण ने कहा, ‘‘आप को मेरा प्रस्ताव मंजूर है?’’

‘‘क्यों नहीं, बातचीत से तो आप अच्छेखासे पढे़लिखे लगते हैं?’’

‘‘जी, मैं डाक्टर हूं.’’

‘‘कहां नौकरी करते हैं?’’ लड़की ने पूछा.

‘‘नौकरी नहीं करता, मेरी अपनी क्लिनिक है.’’

‘‘तब तो मैं आप को अपना दोस्त बनाने को तैयार हूं.’’

इस तरह दोनों में दोस्ती हो गई तो बातचीत का सिलसिला चल पड़ा. प्रवीण 24 परगना का रहने वाला था तो वह लड़की भी वहीं की रहने वाली थी. लड़की ने अपना नाम मल्लिका बताया था. लेकिन सब उसे मोनिका कह कर बुलाते थे. प्रवीण ने भी उसे अपना नाम बता दिया था.

दोनों की ही भाषा बंगाली थी, इसलिए दोनों अपनी भाषा में बात करते थे. प्रवीण ने मल्लिका को यह भी बता दिया था कि वह रहने वाला तो 24 परगना का है, लेकिन उस की क्लिनिक उत्तर प्रदेश के आगरा के एक कस्बे में है.

धीरेधीरे दोनों में लंबीलंबी बातें होने लगीं. इसी तरह 6 महीने बीत गए. प्रवीण ने मल्लिका को अपने बारे में काफी कुछ बता दिया था, लेकिन मल्लिका ने अपने बारे में कभी कुछ नहीं बताया था. वह प्रवीण के लिए रहस्य बनी रही.

प्रवीण ने जब उस पर दबाव डाला तो एक दिन उस ने कहा, ‘‘यही क्या कम है कि मैं तुम से प्यार करती हूं. बस तुम मुझे अपनी प्रेमिका के रूप में जानो.’’

मल्लिका ने जब कहा कि वह उस से प्यार करती है तो प्रवीण ने कहा, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है. मैं भी तुम से मिलना चाहती हूं. तुम्हारी जब इच्छा हो, आ जाओ. समझ लो मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’ मल्लिका ने कहा.

मल्लिका का इस तरह आमंत्रण पा कर प्रवीण फूला नहीं समाया. वह इस बात पर विचार करने लगा कि मल्लिका को अपनी जिंदगी में आने के लिए तैयार कैसे करे. अब वह सपनों में जीने लगा था. इस तरह के सपनों की दुनिया बहुत ही रंगीन और हसीन होती है. उस ने अपने प्यार को कल्पनाओं का रंग दे कर एक खूबसूरत चेहरे का अक्स बना लिया था. हर वक्त वह उसी में खोया रहता था. वह 24 परगना जा कर मल्लिका से मिलना चाहता था, लेकिन मौका नहीं मिल रहा था.

किरण की कहानी : प्यार दे या मार दे

रखने को तो घर वालों ने उस का नाम किरण रख दिया था, लेकिन मिडिल स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही उस की समझ में आ गया था कि उस की जिंदगी में उम्मीद की कोई किरण नहीं है. इस की वजह यह थी कि प्रकृति ने उस के साथ घोर अन्याय किया, जो उसे एक आंख से दिव्यांग बनाया था.

किरण न बहुत ज्यादा खूबसूरत थी और न ही किसी रईस घराने से ताल्लुक रखती थी. एक मामूली खातेपीते परिवार की यह साधारण सी युवती न तो अपनी उम्र की लड़कियों की तरह रोमांटिक सपने बुनती थी और न ही ज्यादा सजनेसंवरने की कोशिश करती थी. घर में पसरे अभाव भी उसे दिखाई देते थे तो खुद को ले कर पिता का चिंतित चेहरा भी उस की परेशानी का सबब बना रहता था.

उस के पिता डालचंद कौरव अब से कई साल पहले नरसिंहपुर जिले की तहसील गाडरवारा के गांव सूरजा से भोपाल आ कर बस गए थे. उन का मकसद बच्चों की बेहतर परवरिश और शहर में मेहनत कर के ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना था, जिस से घरपरिवार का जीवनस्तर सुधरे और धीरेधीरे ही सही, बच्चों का भविष्य बन सके. इस के लिए वह खूब मेहनत करते थे. लेकिन आमदनी अगर चवन्नी होती थी तो पता चलता था कि महंगाई की वजह से खर्चा एक रुपए का है.

वह भोपाल में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे, जहां से मिलने वाले वेतन से खींचतान कर किसी तरह खर्च चल जाता था. 3 बेटियों के पिता डालचंद बड़ी बेटी की शादी ठीकठाक और खातेपीते परिवार में कर चुके थे. उस के बाद किरण को ले कर उन की चिंता स्वाभाविक थी, क्योंकि आजकल हर कोई उस लड़की से शादी करने से कतराता है, जिस के शरीर में कोई कमी हो.

सयानी होती किरण की भी समझ में यह बात आ गई थी कि एक आंख कमजोर होने की वजह से सपनों का कोई राजकुमार उसे ब्याहने नहीं आएगा. शादी होगी भी तो वह बेमेल ही होगी, इसलिए उस ने काफी सोचविचार के बाद तय कर लिया कि जो भी होगा, देखा जाएगा. हालफिलहाल तो पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान दिया जाए. अपने एकलौते भाई राजू को वह बहुत चाहती थी, जो बाहर की भागादौड़ी के सारे काम तेजी और संयम से निपटाता था. यही नहीं, वह पढ़ाई में भी ठीकठाक था.

छोटी बहन आरती भोपाल के प्रतिष्ठित सैम कालेज में पढ़ रही थी. किरण भी वहीं से बीकौम की पढ़ाई कर रही थी. वह स्वाभिमानी भी थी और समझदार भी, लिहाजा उस ने मीनाल रेजीडेंसी स्थित एजिस नाम के कालसैंटर में पार्टटाइम नौकरी कर ली थी. वहां से मिलने वाली तनख्वाह से वह अपनी पढ़ाई का और अन्य खर्च उठा लेती थी.

21 अक्तूबर, 2016 को किरण अपने घर ई-34 सिद्धार्थ लेकसिटी, आनंदनगर से रोज की तरह कालेज जाने को तैयार हुई तो घर का माहौल रोज की तरह ही था. चायनाश्ते का दौर खत्म हो चुका था और सभी अपनेअपने औफिस, स्कूल और कालेज जाने के लिए तैयार हो रहे थे.

किरण भी तैयार थी. वह कालेज के लिए घर से निकलने लगी तो चाचा संबल कौरव से खर्चे के लिए कुछ पैसे मांगे. उन्होंने उसे 20 रुपए दे दिए. किरण का भाई राजू भी तैयार था, इसलिए किरण उस के साथ चली गई. ऐसा लगभग रोज ही होता था कि जब किरण जाने लगती थी तो राजू उस के साथ हो लेता था और उसे सैम कालेज के गेट पर छोड़ देता था. उस दिन भी उस ने किरण को कालेज के गेट पर छोड़ा तो वह चुपचाप अंदर दाखिल हो गई. उन दिनों सैम कालेज में निर्माण कार्य चल रहा था.

राजू को कतई अहसास नहीं था कि बहन के दिलोदिमाग में एक ऐसा तूफान उमड़ रहा है, जो उस की जिंदगी लील लेगा. वह दीदी को बाय कह कर वापस चला गया तो किरण सीधे कालेज की निर्माणाधीन बिल्डिंग ब्लौक की छत पर जा पहुंची और चौथी मंजिल पर जा कर खड़ी हो गई. उस के दिल में उमड़ता तूफान अब शबाब पर था, जिस का मुकाबला करने की हिम्मत अब उस में नहीं रह गई थी. लिहाजा वह चौथी मंजिल से सीधे नीचे कूद गई.

इस के बाद सैम कालेज में हल्ला मच गया. इतनी ऊंचाई से नीचे कूदने के बाद किरण के जिंदा बचने का कोई सवाल ही नहीं था. जरा सी देर में छात्रों की भीड़ इकट्ठा हो गई. इस बात की खबर कालेज प्रबंधन तक भी पहुंच गई. फलस्वरूप उसे तुरंत नजदीकी नर्मदा अस्पताल पहुंचाया गया. अस्पताल से पुलिस को खबर कर दी गई. किरण को देखने के बाद डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

कालेज प्रबंधन ने किरण की बहन आरती को इस हादसे की सूचना दी तो उस ने घर वालों को बताया. घर वाले भागेभागे नर्मदा अस्पताल पहुंचे, लेकिन तब तक किरण दुनिया को अलविदा कह चुकी थी. उस के पास से कोई सुसाइड नोट भी नहीं मिला था, जबकि आमतौर पर ऐसा नहीं होता कि कोई पढ़ीलिखी समझदार युवती खुदकुशी करे और सुसाइड नोट न छोड़े. पर इस मामले में ऐसा ही हुआ था. कौरव परिवार में रोनाधोना मच गया था. किरण के सहपाठी भी दुखी थे कि आखिर जिंदादिल किरण ने ऐसा आत्मघाती कदम क्यों उठाया.

पुलिस ने जांच को आगे बढ़ाते हुए छानबीन और पूछताछ शुरू की. जिस खुदकुशी को गुत्थी समझा जा रहा था, वह चंद घंटों में सुलझ गई, जो प्यार में धोखा खाई हीनभावना से ग्रस्त एक लड़की की दर्दभरी छोटी सी कहानी निकली.

किरण ने सुसाइड नोट छोड़ने की जरूरत शायद इसलिए नहीं समझी थी, क्योंकि उसे जो कहना था, उसे वह अपने फेसबुक एकाउंट में लिख चुकी थी. किरण के घर और कालेज वाले यह जान कर हैरान हो उठे थे कि किरण किसी से प्यार करती थी और वह भी इतना अधिक कि अपने प्रेमी की बेरुखी से घबरा गई थी और उसे कई दिनों से मनाने की कोशिश कर रही थी.

सैम कालेज से बीई कर रहा रोहित किरण का बौयफ्रैंड था, जो बीते कुछ दिनों से उसे भाव नहीं दे रहा था. रोहित की दोस्ती और प्यार ने किरण के मन में जीने की उम्मीद जगा दी थी, उस की नींद में कई रोमांटिक ख्वाब पिरो दिए थे. इस से उसे लगने लगा था कि अभी भी दुनिया में ऐसे तमाम लड़के हैं, जो प्यार के सही मतलब समझते हैं. जातिपांत, ऊंचनीच और शारीरिक कमियों पर ध्यान नहीं देते. उन के लिए सूरत से ज्यादा सीरत अहम होती है.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, पर कुछ दिनों से रोहित का मूड उखड़ाउखड़ा रहता था. वह किरण से बात भी नहीं कर रहा था. उस का यह रवैया किरण की समझ में नहीं आ रहा था. अगर रोहित उसे वजह बताता तो तय था कि वह किसी न किसी तरह उसे मना लेती, कोई गलतफहमी होती तो वह उसे दूर कर देती. लेकिन रोहित की इस बेरुखी से किरण को अपने ख्वाब उजड़ते नजर आए और वह खुद को ठगा सा महसूस करने लगी.

जब प्रेमी बात ही नहीं कर रहा था तो वह क्या करती  लिहाजा किरण ने फेसबुक पर कशिश कौरव नाम से बनाए अपने एकाउंट पर मन की व्यथा साझा करनी शुरू कर दी. अपने पोस्टों में उस ने बौयफ्रैंड के छोड़े जाने यानी ब्रेकअप की बात कही और भावुकता में अपने सुसाइड की बात भी कह डाली थी. शायद ही नहीं, निश्चित रूप से वह अपने प्रेमी को अपने दिल का दर्द बताना चाह रही थी, जो उस की सांसों में बस चुका था.

एक जगह उस ने शायराना अंदाज में लिखा था, ‘ऐ इश्क तुझे खुदा की कसम या तो मुझे मेरा प्यार दे या फिर मुझे मार दे.’

प्यार नहीं मिला तो किरण ने खुद के लिए मौत चुनने की नादानी कर डाली, वह भी इस तरह कि कोई रोहित पर सीधे अंगुली न उठा सके. लेकिन फेसबुक एकाउंट में अपने प्यार और प्रेमी की बेरुखी की चर्चा कर के उस ने उसे शक के दायरे में तो ला ही दिया था. दूसरे दिन पुलिस ने साईंखेड़ा स्थित रोहित के घर में दबिश दी, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. जाहिर है, किरण की खुदकुशी के बाद वह गिरफ्तारी के डर से फरार हो गया था.

पुलिस ने कालेज में पूछताछ की तो एक बात यह भी सामने आई कि रोहित और किरण में दोस्ती तो थी, पर प्यार जैसी कोई बात उन के बीच नहीं थी. किरण की कुछ सहेलियों ने दबी जुबान से स्वीकार किया था कि वह रोहित से एकतरफा प्यार करती थी. इस का मतलब तो यही हुआ कि किरण दोस्ती को प्यार मानते हुए जबरदस्ती रोहित के गले पड़ना चाहती थी. इस बात का खुलासा अब रोहित ही कर सकता है, जो कथा लिखे जाने तक पुलिस की पकड़ में नहीं आया था.

किरण भावुक थी और रोहित को ले कर शायद वह जरूरत से ज्यादा जज्बाती हो गई थी. इस की एक वजह उस की आंख की विकृति से उपजी हीनभावना भी हो सकती है. रोहित से दोस्ती के बाद निस्संदेह उस की यह सोच और भी गहरा गई होगी. फेसबुक पर उस ने तरहतरह से रोहित को मनाने की कोशिश की थी, लेकिन असफल रही थी.

जब उसे लगा कि यार और प्यार नहीं तो जिंदगी क्यों, जो अब किसी के काम की नहीं. यही सोच कर उस ने यह खतरनाक फैसला ले डाला होगा.

कौरव परिवार ने इस गम में दिवाली नहीं मनाई. उन्हें अपनी लाडली किरण की मौत के बारे में यकीन ही नहीं हो रहा है. उन्हें लगता ही नहीं कि अब वह इस दुनिया में नहीं है. डालचंद के चेहरे पर विषाद है, पर इसलिए नहीं कि किरण ने उन की चिंता हमेशा के लिए दूर कर दी है, बल्कि इसलिए कि उन की बेटी ने जल्दबाजी में आत्मघाती फैसला ले लिया और खुद ही हमेशा के लिए उन से दूर चली गई.

रोहित का कुछ खास बिगड़ेगा, ऐसा नहीं लग रहा. क्योंकि उस ने अगर किरण से कुछ वादे किए भी होंगे तो उन के प्रमाण नहीं हैं और न ही किरण ने उसे सीधे तौर पर अपनी खुदकुशी का जिम्मेदार ठहराया है.

संभव है कि वह दोस्ती को प्यार समझते हुए मन ही मन रोहित को चाहने लगी हो और ठुकराए जाने पर व्यथित हो कर टूट गई हो. लेकिन वह हौसला और सब्र रख कर जिंदा रहती तो शायद बात बन जाती.

मेडिकल छात्रा का प्यार बना गुनाहगार

शुभांगी जोगदंड नांदेड़ के राजकीय आयुर्वेदिक मैडिकल कालेज से बीएचएमएस (बैचलर औफ होमियोपैथिक मैडिसिन ऐंड सर्जरी) कर रही थी. वह तृतीय वर्ष की छात्रा थी. जनवरी 2023 का महीना था. इन दिनों वह अपने गांव पिंपरी महीपाल में थी. उस का गांव मुंबई से लगभग 600 किलोमीटर दूर नांदेड़ जिले में स्थित है.

गांव में आने पर भी शिवांगी अपने दोस्तों से बातें जरूर किया करती थी. पिछले 2-3 दिनों से उस के दोस्तों का शुभांगी से संपर्क नहीं हो पा रहा था. उस का मोबाइल भी लगातार स्विच्ड औफ चल रहा था. उन्होंने सोशल मीडिया के द्वारा शुभांगी से संपर्क साधने की बहुत कोशिश की, मगर फिर भी उन का संपर्क नहीं हुआ तो सभी परेशान हो गए.

इसी बीच 26 जनवरी, 2023 को किसी व्यक्ति ने शुभांगी के लापता होने की जानकारी नांदेड़ के लिंबगांव थाने में दे दी तो वहां मौजूद एसआई चंद्रकांत इस सूचना की तसदीक करने के लिए शिवांगी के गांव पिंपरी महीपाल निकल गए.

एसआई चंद्रकांत जब शुभांगी के घर पहुंचे तो वहां उस के पिता जनार्दन जोगदंड मौजूद थे. उन्होंने जब उन से शुभांगी के बारे में पूछताछ की तो वह गोलमोल जवाब देने लगे.

एसआई पूछताछ के लिए उसे थाने ले आए. थाने में जनार्दन जोगदंड से शुभांगी के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने बड़ी ही आसानी से उस की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली.

उस के मुंह से बेटी की हत्या की बात सुन कर एसआई चंद्रकांत भी चौंक गए. उन्होंने पूछा, ‘‘उस की लाश कहां है?’’

‘‘सर, लाश खेत में जलाने के बाद उस की राख और अस्थियां नदी में बहा दीं. इस काम में उस के बेटे, भतीजे और साले ने सहायता की थी.’’ जनार्दन ने बताया.

मामला गंभीर था, इसलिए एसआई चंद्रकांत ने इस की सूचना विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. फिर एसपी के निर्देश पर पुलिस टीम ने जनार्दन जोगदंड को साथ ले कर अन्य आरोपियों के यहां दबिश दे कर कृष्णा (19 वर्ष), गिरधारी (30 वर्ष), गोविंद (32 वर्ष) व केशव शिवाजी (37 वर्ष) को उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया.

जनार्दन जोगदंड की निशानदेही पर पुलिस टीम उस के प्याज के खेत में पहुंची, जहां उस ने 22 जनवरी, 2023 की रात शिवांगी की लाश का दाह संस्कार किया था. बाद में उस नदी तक भी पहुंची, जहां उस की राख फेंकी गई थी.

पुलिस को बारीकी से तलाश करने पर वहां कुछ मानव अस्थियां बरामद हुईं, जिसे पुलिस ने अपने कब्जे में लिया. दोनों जगहों पर फोरैंसिक टीम ने कुछ नमूने भी एकत्रित किए. आरोपियों से पूछताछ करने के बाद शुभांगी के औनर किलिंग की जो कहानी सामने आई, वह प्यार में सराबोर निकली—

महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले के पिंपरी महीपाल गांव में जनार्दन जोगदंड अपने परिवार के साथ रहता था. यह जगह नांदेड़ के प्रसिद्ध तीर्थस्थल से लगभग एक घंटे की ड्राइव पर है. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था. वह खेतीकिसानी कर परिवार का पालनपोषण कर रहा था.

उस ने अपनी बड़ी बेटी की शादी गांव में ही कर दी थी. बेटा कृष्णा जोगदंड और बेटी शुभांगी अभी पढ़ रहे थे. शुभांगी जोगदंड पढ़ाई में शुरू से ही तेज थी. वह डाक्टर बनना चाहती थी. उस की मेहनत की वजह से उसे नांदेड के राजकीय आयुर्वेदिक मैडिकल कालेज में दाखिला मिल गया और वह वहां से बीएचएमएस की पढ़ाई कर रही थी. इस साल उस का 5वां सेमेस्टर था.

22 वर्षीय शुभांगी देखने में काफी खूबसूरत और हंसमुख स्वभाव की थी. घर में सभी उसे बहुत प्यार करते थे. वह मैडिकल की पढ़ाई कर रही थी, इसलिए घर वालों को उम्मीद थी कि डाक्टर बन कर वह घर का नाम रोशन करने के साथ घर की आमदनी बढ़ाने का जरिया भी बनेगी.

उधर शुभांगी जोगदंड अपने ही गांव के देव नाम के एक युवक को बहुत चाहती थी. देव भी उसे अपनी जान से बढ़ कर प्यार करता था. उन का प्यार धीरेधीरे परवान चढ़ने लगा. वह उस मुकाम पर पहुंच गया कि उन्होंने साथ में जीने और मरने की कसमें खाईं.

फिलहाल देव और शुभांगी के बीच सब कुछ ठीक चल रहा था. दोनों अपने भावी जीवन के सपने संजोने में मस्त थे. लेकिन ऐसी बातें अधिक दिनों तक कहां छिपती हैं. शुभांगी के घर वालों को भी इन के प्यार के बारे में पता चल गया. वे भड़क उठे.

यह सच था कि जनार्दन जोगदंड शुभांगी को बहुत प्यार करता था. मगर गांव के एक युवक के साथ प्यार की पींगें बढ़ाना उन्हें बहुत नागवार लगा.

शुभांगी के मातापिता ने खानदान की इज्जत और अपनी ममता की दुहाई दे कर बहुत समझाया तो शुभांगी घर की इज्जत की खातिर अपने प्रेमी को भूल पिता की पसंद के किसी लड़के से शादी करने के लिए तैयार हो गई. इस से जनार्दन जोगदंड बहुत खुश हुआ.

जल्द ही उस ने बेटी के लिए उचित लड़का तलाश कर लिया. उस युवक को भी शुभांगी पसंद आ गई तो जल्द ही उन की सगाई तय कर दी. उधर शुभांगी के सगाई हो जाने की भनक जब उस के प्रेमी देव को मिली तो उस के पैरों की जमीन जैसे खिसकती महसूस हुई.

सालों तक उस ने जिस शुभांगी के साथ अपनी पूरी जिंदगी गुजारने का सपना संजोया था, वह किसी और की होने वाली थी. देव शुभांगी के बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकता था, इसलिए वह शिवांगी की सगाई तोड़ने की योजना में जुट गया.

वह चाहता था कि किसी भी तरह शुभांगी की सगाई टूट जाए और फिर वह और शुभांगी एक साथ जीवन गुजार सकें. उस के मोबाइल में शुभांगी के साथ बिताए हुए निजी पलों के बहुत सारे फोटो थे. अचानक उस के मन में विचार आया कि अगर वह इन फोटो को किसी तरह शुभांगी के होने वाले पति तक पहुंचा दे तो शुभांगी की सगाई टूट सकती है.

देव ने जो बात मन में सोची थी, उसे शिवांगी की सगाई की तारीख आने से कुछ दिन पहले अंजाम देने का निश्चय किया. उस ने शुभांगी के होने वाले पति को शुभांगी के साथ बिताए हुए अपने निजी पलों के फोटो सौंप दिए.

अपनी होने वाली पत्नी शुभांगी के अंतरंग पलों वाले फोटो किसी युवक के साथ देखते ही वह भड़क गया. इस का नतीजा यह हुआ कि होने वाले दामाद ने जनार्दन जोगदंड को उस की बेटी की काली करतूत बताते हुए बहुत बुराभला कहा और सगाई तोड़ दी. यानी शुभांगी की शादी उस के प्रेमी की वजह से टूट गई.

जनार्दन जोगदंड ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस बेटी की शादी को ले कर वह और उस का परिवार बड़ेबड़े सपने देख रहा था, उसी बेटी के कारण समाज में अपना मुंह छिपाना पड़ेगा.

दरअसल, जैसे ही गांव में शुभांगी की सगाई टूटने की बात फैली तो गांव के लोग उन से मिलने से भी दूर भागने लगे. गांव में उस की खूब बेइज्जती हुई.

यह सब देख कर जनार्दन जोगदंड को शिवांगी पर बहुत गुस्सा आया. पत्नी को बताए बगैर उस ने अपने बेटे कृष्णा जोगदंड, भतीजे गिरधारी, चचेरे भाई गोविंद और साले केशव शिवाजी कदम के साथ मिल कर शिवांगी की हत्या की योजना तैयार की.

22 जनवरी, 2023 को जनार्दन जोगदंड ने किसी बहाने से अपनी पत्नी को मायके भेज दिया. शाम होने पर जब शिवांगी खाना खा कर सो गई तो जनार्दन जोगदंड और साजिश में शामिल अन्य लोग दबेपांव उस के बैड के पास पहुंचे और गहरी नींद में सो रही शुभांगी का गला घोट कर उसे मौत की नींद सुला दिया.

आधी रात को जब हर तरफ सन्नाटा था, पांचों आरोपी घर से खाद के बोरे में लाश ले कर कुछ दूरी पर स्थित अपने प्याज के खेत में पहुंचे. शिवांगी की लाश को खेत में रख कर ननिहाल से उस की मां को वहां बुला लिया गया.

जनार्दन ने अपनी पत्नी से झूठ बोलते हुए कहा कि शिवांगी की करंट लगने से मौत हो गई है. उन्होंने उसे शिवांगी की लाश का केवल चेहरा भर दिखाने के बाद लाश को आननफानन में जला दिया. वहां पर जो राख और अस्थियां बची थीं, वह समेट कर कुछ दूरी पर बह रही नदी में डाल आए.

जिस जगह पर शिवांगी की लाश जलाई गई थी, सबूत मिटाने के लिए अगले दिन वहां पर हल चलवा कर पानी से अच्छी तरह पटाया ताकि लोगों को वहां जलने या राख आदि के कोई अवशेष दिखाई न पड़े.

अगले दिन से जनार्दन जोगदंड के परिवार के लोग घर में ऐसे रहने लगे जैसे मानो कुछ हुआ ही न हो.

लेकिन नांदेड़ में शिवांगी के साथ पढ़ने वाले स्टूडेंट बारबार उस के मोबाइल पर फोन कर संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे. जब 2-3 दिनों तक उन का शिवांगी से संपर्क नहीं हुआ तो उन्होंने 26 जनवरी, 2023 को पुलिस को इस बात की सूचना दे दी.

पांचों आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें स्थानीय अदालत में पेश किया, जहां से सभी को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.  द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जान से प्यारी की ली जान

वैलेंटाइन डे यानी 14 फरवरी, 2023 का दिन था. नालासोपारा इलाके में भी इस समय अच्छीखासी चहलपहल थी. लोग रोजमर्रा के कामों में व्यस्त थे. शाम के समय वहां के निवासियों को सीता सदन बिल्डिंग से बदबू आती हुई महसूस हुई तो किसी अनहोनी की आशंका से उन्होंने इस की सूचना इलाके के तुलिंज थाने में फोन कर के दे दी.

यह सूचना सुन कर पुलिस सीता सदन बिल्डिंग की तरफ निकलने की तैयारी करने लगी. इसी दौरान कर्नाटक से एक महिला ने इसी थाने में फोन कर के सूचना दी कि सीता सदन में रहने वाली उस की भतीजी मेघा का कत्ल हो गया है. उसे यह बात स्वयं कातिल हार्दिक ने वाट्सऐप पर मैसेज कर के बताई है.

कुछ देर पहले पुलिस को सीता सदन में ही बदबू आने की काल मिली थी, अब उसी बिल्डिंग में हत्या किए जाने की काल मिलने पर इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर समझ गए कि दोनों ही काल एक ही घटना की हो सकती हैं. इसलिए वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की तरफ निकल गए. जब वह वहां पहुंचे तो देखा कि मुख्य दरवाजे पर ताला लगा था. उन्होंने ताला तुड़वा कर कमरे में प्रवेश किया तो कमरे में एक बैड पड़ा था, जिस के अंदर से भयंकर बदबू आ रही थी. बैड का बौक्स खोला गया तो उस के अंदर सड़ीगली हालत में एक महिला की लाश मिली.

लाश की खराब हालत को देख कर ऐसा लगता था जैसे उस की हत्या लगभग 2 से 3 दिन पहले की गई होगी, क्योंकि शव सड़ने लगा था और उस से तेज बदबू बाहर निकल रही थी.

घर के अन्य कमरों की तलाशी लेने पर वहां घरगृहस्थी का कोई अन्य सामान नहीं मिला. लाश की सभी एंगल से फोटोग्राफी करवाने और फिंगरप्रिंट लेने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया गया.

इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर ने पड़ोसियों से घटना के बारे में पूछताछ कर मालूम करने की कोशिश की तो पता चला कि कोई एकाध महीने पहले एक दंपति यहां किराए पर रहने के लिए आया था. पड़ोसियों को इस मकान के अंदर से अकसर उन के लड़ने की भी आवाजें आती थीं, जिस से लगता था उन के आपसी संबंध ठीक नहीं रहे होंगे.

चूंकि पड़ोसियों को उन के व्यक्तिगत मामले से कुछ लेनादेना नहीं था, शायद इसलिए किसी ने उन के पर्सनल मामले में हस्तक्षेप करना ठीक नहीं समझा था. मृतक मेघा के साथ रहने वाला युवक हार्दिक गायब था. यह देख कर पुलिस ने अनुमान लगाया कि इस की हत्या उस के पति हार्दिक ने ही की होगी. क्योंकि उसी ने मेघा की चाची को वाट्सऐप पर मैसेज भेज कर मेघा का कत्ल करने की बात कही थी.

अब पुलिस को पूछताछ के लिए उस युवक की तलाश थी, लेकिन पड़ोसियों में से किसी ने भी उसे फरार होते हुए नहीं देखा था. आखिरकार, मकान मालिक और रियल स्टेट एजेंट को बुला कर इस में रहने वाले युवक के बारे में पूछताछ की गई.

इस जांच में केवल इतना पता लगा कि युवक का नाम हार्दिक शाह और महिला का नाम मेघा धन सिंह थोरवी था. लेकिन पूछताछ में सब से अच्छी बात यह हुई कि पुलिस को मकान मालिक से हार्दिक का मोबाइल नंबर मिल गया.

सीता सदन को सील कर इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर की टीम वापस थाने लौट गई. उसी रात यानी 14 फरवरी, 2023 को मेघा की हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया.

मोबाइल फोन से मिला सुराग

मामला दर्ज करने के बाद पुलिस आरोपी हार्दिक की तलाश में जीजान से लग गई. इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर ने अपनी टीम को घर के आसपास लगे सीसीटीवी की फुटेज खंगालने का आदेश दिया. साथ ही आरोपी हार्दिक के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा कर उस की लोकेशन को ट्रेस करना शुरू किया तो 12 फरवरी को उस के ट्रेन द्वारा मुंबई से राजस्थान के लिए रवाना होने का पता चला. इस वक्त वह ट्रेन में सवार था.

इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर ने मुंबई के मीरा भायंदर वसई विरार की अपराध शाखा और मध्य प्रदेश के नागदा स्थित आरपीएफ पुलिस को आरोपी के बारे में सूचित कर दिया. आरपीएफ की मदद से हार्दिक को यात्रा के दौरान ही मध्य प्रदेश के नागदा रेलवे स्टेशन से उस समय गिरफ्तार कर लिया गया, जब वह ट्रेन की बोगी में यात्रा कर रहा था.

अपराध शाखा की टीम ने आरोपी हार्दिक को नागदा से ला कर तुलिंज थाने के इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर को सौंप दिया.

इंसपेक्टर शैलेंद्र नगरकर ने हार्दिक से पूछताछ शुरू की तो हार्दिक ने मेघा की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. अपने इकबालिया बयान में आरोपी हार्दिक ने जो कुछ बताया, वह इस प्रकार है—

हार्दिक शाह एक मौडर्न खयाल का युवक था. वह मुंबई में मलाड के एक नामचीन हीरा  व्यापारी संपत भाई का बेटा था. घर में दौलत की कमी नहीं थी, इसलिए उस का सारा दिन सैरसपाटे और मौजमस्ती में गुजर जाता था. जैसा कि आमतौर पर देखा गया है कि आजकल लड़के की कोई न कोई गर्लफ्रैंड जरूर होती है. हार्दिक शाह को भी सोशल मीडिया पर चलने वाले विभिन्न ऐप पर नई लड़कियों से दोस्ती कर उन के साथ चैटिंग करने में बड़ा मजा आता था.

बात सन 2018 की है. एक डेटिंग ऐप पर हार्दिक शाह की मुलाकात मेघा धन सिंह तोरवी से हुई. 34 वर्षीया मेघा तोरवी मूलरूप से केरल की निवासी थी, लेकिन इन दिनों नालासोपारा के एक अस्पताल में नर्स की नौकरी करती थी. इन दिनों लड़के हों या लड़कियां, अपने से बड़ी उम्र के पार्टनर के साथ इश्क करने से गुरेज नहीं करते.

हार्दिक और मेघा तोरवी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. हार्दिक शाह की उम्र 24 साल थी, जबकि मेघा तोरवी 34 की थी. वह हार्दिक से लगभग 10 साल बड़ी थी. लेकिन प्रेमिका के बड़ी उम्र के होने से हार्दिक को कोई परेशानी नहीं थी.

कुछ दिनों तक आपस में चैटिंग करने के बाद उन का मिलनाजुलना शुरू हो गया. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि उन्हें अब एकदुसरे से दूर रह पाना मुश्किल लगने लगा. आखिरकार उन्होंने लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फैसला कर लिया.

हार्दिक मलाड स्थित अपने पैतृक घर से दूर आ कर विजय नगर में एक मकान ले कर मेघा के साथ रहने लगा. हार्दिक जैसे मालदार प्रेमी का साथ पा कर मेघा अपने जीवन को धन्य समझने लगी. हार्दिक ने मेघा के सामने अपने पिता की दौलत को ले कर ढेर सारे कसीदे पड़े थे, जिसे सुन कर मेघा सपनों की सतरंगी दुनिया में विचरने लगी थी. उसे लगता था कि हार्दिक के साथ उस की बाकी की जिंदगी बड़े आराम से गुजरेगी.

हार्दिक को खुश रखने के लिए वह अपनी सारी कमाई उस पर लुटाने लगी. उसे खुश रखने में मेघा कभी कोई कोरकसर बाकी नहीं छोड़ती थी.

मेघा के साथ लिवइन में रहने लगा हार्दिक

हालांकि हार्दिक भी मेघा को दिलोजान से चाहता था. वह मेघा के लिए नएनए तोहफे लाया करता और उस की हर सुखसुविधा का बहुत खयाल रखता था. मेघा जब नौकरी के लिए जाती तो वह उसे छोड़ने और छुट्टी के समय उसे लेने जाता था. हार्दिक के पिता उसे जेब खर्च के लिए हरेक महीने 20 हजार रुपए देते थे. दोनों की जिंदगी मजे में गुजर रही थी.

तभी 2019 के मार्च महीने में कोरोना फैलने के डर से पूरे देश में लौकडाउन लगा दिया गया. इस लौकडाउन से लोगों के कामधंधे छूट गए. हार्दिक और मेघा भी इस से बच नहीं सके और उन की भी जिंदगी परेशानी में घिर गई.

कुछ दिनों के बाद हार्दिक ने फिर भी डेटा कलेक्शन का काम कर के घर की स्थिति को संभाल लिया. 2022 में जब देश में लौकडाउन हटाने की घोषणा हुई तो मुंबई का जनजीवन सामान्य होने लगा. इस के बाद जब हालात ठीक हो गए तो मेघा ने फिर से अपनी नौकरी पर जाना शुरू कर दिया. उन के घर में खुशियां पहले की बहाल हो गईं.

सब कुछ ठीक ही चल रहा था. हार्दिक बीचबीच में मलाड स्थित अपने पिता के घर भी चला जाता था. अभी तक हार्दिक ने अपने घर में मेघा के साथ रहने की बात नहीं बताई थी. उसे मालूम था कि उस के पिता मेघा को अपने घर की बहू के रूप में कभी स्वीकार नहीं करेंगे.

एक बार किसी काम में हार्दिक ने पिता के 40 लाख रुपए गंवा दिए. इस से उस के पिता बहुत नाराज हुए थे. करीब 8 महीने बाद अगस्त में हार्दिक ने मेघा से शादी कर ली और विजय नगर से नालासोपारा के सीता सदन में रहने चला आया. यहां हार्दिक

और मेघा ने लोगों को यही बताया कि वे पतिपत्नी हैं.

अभी दोनों को यहां रहते हुए कुछ ही समय गुजरा था कि हार्दिक के पिता को बेटे के मेघा के साथ रहने की जानकारी हुई तो वह उस से इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने हार्दिक को अपनी पूरी जायदाद से हमेशा के लिए बेदखल कर दिया. इस के साथ उन्होंने हार्दिक को महीने का मिलने वाला 20 हजार रुपए देना बंद कर दिया.

मेघा की कमाई पर करने लगा ऐश

पिता द्वारा उठाए इस सख्त कदम से हार्दिक की आर्थिक हालत खस्ता हो गई. दरअसल, अभी तक वह पिता की दौलत पर ही ऐश कर रहा था. लेकिन अब जब पिता ने उस की हरकतों से तंग आ कर उसे बेदखल किया तो अपने पैर पर खड़े होने की बजाय वह मेघा की कमाई पर ऐश करने लगा. उसे लगता था कि मेघा उस के बेरोजगार पड़े रहने पर कुछ नहीं कहेगी.

पहले तो मेघा ने उसे समझाबुझा कर अपने योग्य कोई ढंग का काम या कोई नौकरी तलाशने का सुझाव दिया. पर मेघा की बात पर हार्दिक ने रत्ती भर भी ध्यान नहीं दिया.

वह मेघा की कमाई पर ऐश करने लगा, जिस से मेघा को घर का खर्च पूरा करने में परेशानी होने लगी. हार्दिक के हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहने से घर चलाने की पूरी जिम्मेदारी मेघा के नाजुक कंधों पर आ गई. रुपएपैसे की किल्लत के कारण उन के घर में क्लेश रहने लगा. हार्दिक मामले की नजाकत को नहीं समझा और मेघा के पैसों पर ऐश करना जारी रखा.

आखिर में 11 और 12 फरवरी, 2023 की रात हार्दिक के बेरोजगार रहने को ले कर बात बढ़ जाने पर हार्दिक अपना आपा खो बैठा और तौलिए से मेघा का गला घोट कर मार डाला. मेघा की लाश को छिपाने के लिए उस ने उस की लाश बिस्तर में लपेट कर बैड के बौक्स में रख दी.

पुलिस द्वारा पकड़े जाने से बचने के लिए वह यहां से बहुत दूर चला जाना चाहता था. लेकिन उस के पास पैसे नहीं थे, इसलिए अगले दिन उस ने घर के सभी महंगे सामान कम कीमत पर बेच कर कुछ रुपए इकट्ठा किए.

12 फरवरी को फरार होने से पहले हार्दिक ने कनार्टक में रहने वाली मेघा की चाची को फोन कर बता दिया कि रोजरोज के झगड़े तंग आ कर उस ने मेघा की हत्या कर दी है और उस की लाश बैड के बौक्स में छिपा दी है. अब वह आत्महत्या करने हरिद्वार जा रहा है.

इस के बाद वह घर के दरवाजे पर ताला लगा कर रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया. वहां से उस ने राजस्थान जाने के लिए ट्रेन पकड़ी मगर पुलिस ने 15 फरवरी, 2023 को बीच रास्ते से ही उसे गिरफ्तार कर लिया.

उसे मुंबई के वसई की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे 21 फरवरी, 2023 तक के लिए पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया है.  द्य

प्रेमी ही था मां बेटी का हत्यारा

इसी साल 15 मार्च को रोजाना की तरह कुछ चरवाहे जब अपने पशुओं के साथ गोमती नदी के राजघाट से सटे देवगांव के जंगल में पहुंचे तो एक चरवाहे कि नजर जंगली झाडि़यों के बीच लहूलुहान पड़ी एक महिला और एक बच्ची पर चली गई. देखने से ही लग रहा था कि वे मर चुकी हैं. लाश देखते ही चरवाहा चीख पड़ा. उस ने आवाज दे कर अपने साथियों को बुलाया और उन्हें भी लाशें दिखाईं. लाशें देख कर सभी चरवाहे जंगल से बाहर आ गए और यह बात अन्य लोगों को बताई. उन्हीं में से किसी ने थाना कुमारगंज पुलिस को फोन कर के जंगल में लाशें पड़ी होने की सूचना दे दी.

उधर झाडि़यों में 2 लाशें पड़ी होने की खबर पा कर गांव के भी तमाम लोग पहुंच गए. जंगल में 2 लाशें पड़ी होने की सूचना मिलते ही थाना कुमारगंज के थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. लाशों के निरीक्षण में उन्होंने देखा कि महिला और बच्ची को चाकुओं से बुरी तरह गोद कर मारा गया था. जिस की वजह से दोनों लाशें बुरी तरह से लहूलुहान थीं. लाशों के आसपास भी काफी खून फैला था. महिला की उम्र 35 साल के आसपास थी, जबकि बच्ची करीब 5 साल की थी.

मौके के निरीक्षण में सुनील कुमार सिंह के हाथ ऐसा कुछ लहीं लगा, जिस से यह पता चलता कि मृतका और बच्ची कौन थीं, उन की हत्या किस ने और क्यों की?

उन्होंने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी थी, साथ ही दोनों लाशों के फोटोग्राफ कराने के बाद उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने की तैयारी शुरू कर दी. अब तक मौके पर एसएसपी अनंतदेव सहित अन्य पुलिस अधिकारी भी आ गए थे. उन्होंने मौके का निरीक्षण कर के इस मामले का जल्दी खुलासा करने का निर्देश दिया.

उच्चाधिकारियों के जाने के बाद लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर सुनील कुमार सिंह भी थाने लौट आए. उन के लिए सब से बड़ी चुनौती थी दोनों लाशों की पहचान कराना. इस के लिए उन्होंने अपने खास मुखबिरों को मदद ली, साथ ही खुद भी अपने स्तर से जानकारी जुटाने लगे. उन का ध्यान बारबार बच्ची पर जा रहा था. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उस मासूम से हत्यारे की क्या दुश्मनी थी, जिस ने उसे भी नहीं छोड़ा.

सुनील कुमार सिंह दोनों लाशों की शिनाख्त को ले कर उलझे थे कि तभी एक बुजुर्ग थाने आया. उस ने अपना नाम मूसा खां बताते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं ही वह अभागा हूं, जिस की बेटी इशरत जहां की लाश देवगांव के जंगल में पड़ी मिली थी.’’

इतना कह कर वह फफकफफक कर रोने लगा. थानाप्रभारी ने उसे ढांढस बंधाया तो उस ने सिसकते हुए कहा, ‘‘साहब, मेरी बेटी इशरत और उस की मासूम बच्ची को मुन्ना ने मारा है, उस ने उस की जिंदगी खराब कर दी थी. अल्लाह उसे कभी माफ नहीं करेगा…’’

सुनील कुमार सिंह ने उसे ढांढस बंधाते हुए कुर्सी पर बैठने का इशारा किया. इस के बाद पानी मंगा कर पिलाया. फिर उस की पूरी बात सुनने के बाद साफ हो गया कि देवगांव के जंगल में महिला और बच्ची की जो लाशें मिली थीं, वे मूसा खां की बेटी और नातिन की थीं, साथ यह भी कि उन्हें मारने वाला इशरत जहां का प्रेमी मुन्ना था.

दोनों लाशों की शिनाख्त हो जाने के बाद सुनील कुमार सिंह ने मूसा खां से विस्तार से पूछताछ की. इस के बाद मूसा खां से तहरीर ले कर मुन्ना के खिलाफ मांबेटी की हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच की जिम्मेदारी खुद संभाल ली.

सुनील कुमार सिंह ने इस मामले की जांच शुरू की तो पता चला कि इशरत की हत्या प्रेमसंबंधों के चलते हुई थी. जिस मुन्ना से वह प्रेम करती थी, वह उसी के पड़ोस में रहता था. लेकिन घटना के बाद से वह नजर नहीं आ रहा था. सुनील कुमार सिंह का सारा ध्यान मुन्ना पर था, क्योंकि उसी के पकड़े जाने पर इस अपराध से परदा उठ सकता था.

16 अप्रैल, 2017 को मुन्ना पुलिस के हाथ लग गया. मुखबिर ने थानाप्रभारी को सूचना दी थी कि इशरत और उस की बेटी का हत्यारा मुन्ना भेलसर में मौजूद है. यह जानकारी मिलते ही सुनील कुमार सिंह बिना देर किए अपनी टीम के साथ भेलसर पहुंच गए और मुन्ना को गिरफ्तार कर लिया.

भेलसर इलाका फैजाबाद जिले के रुदौली कोतवाली के अंतर्गत आता था. पुलिस टीम मुन्ना को गिरफ्तार कर थाना कुमारगंज ले आई. पूछताछ में पहले तो मुन्ना खुद को पाकसाफ बताता रहा. उस ने इशरत की हत्या पर दुखी होने का नाटक भी किया. लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे उस का यह नाटक ज्यादा देर तक नहीं चल सका.

कुछ ही देर में सवालोंजवाबों में वह इस कदर उलझ गया कि उस के पास इशरत की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करने के अलावा कोई चारा ही नहीं बचा. अपना अपराध स्वीकार कर के उस ने इशरत जहां और उस की मासूम बेटी की हत्या की जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर सभी का कलेजा दहल उठा.

उत्तर प्रदेश के जनपद अमेठी के थाना शुक्ला बाजार का एक गांव है किशनी. सभी जातियों की मिश्रित आबादी वाले इस गांव में मुसलिमों की आबादी कुछ ज्यादा है. इसी गांव के रहने वाले मूसा खां के परिवार में पत्नी सहित 5 लोग थे. जैसेतैसे उन्होंने सभी बच्चों का घर बसा दिया था. केवल इशरत जहां ही बची थी, जिस के लिए वह रिश्ता ढूंढ रहा था.

मूसा खां के पड़ोस में ही मुन्ना का घर था. पड़ोसी होने के नाते दोनों परिवारों का एकदूसरे के घरों में आनाजाना था. मुन्ना दरी बुनाई का काम करता था. इशरत भी दरी बुनाई करने जाती थी. इसी के चलते दोनों के बीच प्रेम का बीज अंकुरित हुआ.

पहले दोनों एकदूसरे को देख कर केवल हंस कर रह जाया करते थे. लेकिन धीरेधीरे यही हंसी प्यार में बदलने लगी. संयोग से एक दिन मुन्ना काम से घर लौट रहा था तो पीछेपीछे इशरत भी आ रही थी.

सुनसान जगह देख कर मुन्ना ने अपने कदमों की रफ्तार कम कर दी. फिर जैसे ही इशरत उस के करीब आई, उस ने इधरउधर देख कर इशरत का हाथ पकड़ लिया और बिना कुछ सोचेसमझे कहा, ‘‘इशरत, मैं तुम से प्यार करता हूं. अगर तुम मुझे नहीं मिली तो मैं अपनी जान दे दूंगा. बोलो, क्या तुम भी मुझ से प्यार करती हो?’’

मुन्ना के मुंह से ये बातें सुन कर इशरत कुछ कहने के बजाय अपना हाथ छुड़ा कर ‘हां’ में सिर हिला कर तेजी से अपने घर की ओर चली गई. मुन्ना इतने से ही उस के मन की बात समझ गया. वह समझ गया कि इशरत भी उसे चाहती है. लेकिन जुबान नहीं खोलना चाह रही.

उस दिन शाम ढले मुन्ना किसी बहाने से इशरत के घर पहुंच गया और मौका देख कर उस ने इशरत को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया. मुन्ना के अचानक इस व्यवहार से इशरत सहमी तो जरूर, मगर हिली नहीं. वह बस इतना ही बोली, ‘‘धत, कोई देख लेगा तो कयामत आ जाएगी.’’

यह सुन कर मुन्ना ने इशरत को बांहों से आजाद कर दिया और अपने घर चला गया. उस दिन दोनों की आंखों से नींद कोसों दूर थी. किसी तरह रात कटी और सुबह हुई तो मुन्ना उस दिन काम पर रोज से पहले ही पहुंच गया. उस की नजरें इशरत को ही ढूंढ रही थीं. इशरत आई तो वह खुशी से झूम उठा. उस दिन दोनों का ही मन काम में नहीं लग रहा था.

जल्दीजल्दी काम निपटा कर जब इशरत घर जाने को तैयार हुई तो मुन्ना भी उस के पीछेपीछे चल पड़ा. कुछ दूर जाने के बाद एकांत मिलने पर मुन्ना ने इशरत का हाथ पकड़ कर बैठा लिया. वहां बैठ कर दोनों काफी देर तक बातें करते रहे. मुन्ना बारबार अपने प्रेम की दुहाई देते हुए एक साथ जीनेमरने की कसमें खाता रहा.

मुन्ना की बातें सुन कर इशरत खुद को रोक नहीं पाई. उस ने कहा, ‘‘मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. अब तुम्हारे बगैर एक भी पल काटना मुश्किल होने लगा है. तुम जल्दी से अपने घर वालों से बात कर के उन्हें मेरे अब्बू के पास मेरा हाथ मांगने के लिए भेजो, ताकि जल्दी से हमारा निकाह हो सके.’’

उस दिन के बाद दोनों का मिलनाजुलना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया. शादी की बात आने पर मुन्ना आजकल कह कर टाल जाता. इशरत मुन्ना के फरेब को भांप नहीं पा रही थी और अपने भावी खुशनुमा जीवन के तानाबाना बुनने में लगी थी. दोनों में प्रेम बढ़ा तो शारीरिक संबंध भी बन गए.

यह इस घटना से 6-7 साल पहले की बात है. पहले तो प्यार समझ कर इशरत मुन्ना को अपना तन समर्पित करती रही. लेकिन धीरेधीरे उसे लगने लगा कि मुन्ना उस से नहीं, बल्कि उस के शरीर से प्यार करता है, वह उस से निकाह नहीं करना चाहता. वह मुन्ना पर निकाह के लिए जोर देने लगी.

लेकिन मुन्ना का तो इशरत से मन भर चुका था. उस ने चुपके से संजीदा खातून से निकाह कर लिया और रुदौली में जा कर रहने लगा. संयोग से सन 2012 में इशरत गर्भवती हो गई. उस के घर वालों को इस बात का पता चला तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

बहरहाल, कोई चारा न देख इशरत के घर वालों ने मुन्ना पर शादी के लिए दबाव बनाना शुरू किया. लेकिन वह अपने और इशरत के संबंधों से साफ मुकर गया. ऐसे में कोई चारा न देख इशरत के अब्बा मूसा खां ने मुन्ना के खिलाफ 3 सितंबर, 2012 को भादंवि की धारा 376, 504, 506 के तहत थाना शुक्ला बाजार में मुकदमा दर्ज करा दिया, जिस में मुन्ना को जेल हो गई.

इधर मुन्ना जेल गया, उधर इशरत जहां ने एक बच्ची को जन्म दिया. मुन्ना जमानत पर जेल से बाहर आ गया. उस का मुकदमा चल रहा था. उस की अगली तारीख 23 मार्च, 2017 को थी. फिर से जेल जाने के डर से पहले तो मुन्ना ने इशरत के अब्बा के सामने पैसा ले कर सुलह कर लेने का प्रस्ताव रखा. लेकिन मूसा खां ने उस के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज करते हुए कहा, ‘‘तुम इशरत और अपने बीच के संबंधों को स्वीकार करते हुए बच्ची महलका को अपनी औलाद के रूप में स्वीकार करो, तभी हम मुकदमे में सुलह करने पर विचार कर सकते हैं.’

लेकिन मुन्ना संजीदा खातून से शादी कर चुका था, इसलिए उस ने मूसा की शर्त को स्वीकार तो नहीं किया, विचार करने की बात कह कर टाल गया और इशरत को झांसे में ले कर उस से पुन: संबंध बना लिए. इशरत मुन्ना के इस फरेब को समझ नहीं पाई और उसे विश्वास था कि मुन्ना उसे अपना लेगा.

इधर मुकदमे की तारीख करीब आती जा रही थी. उसी दिन फैसला होना था. ऐसे में एक सोचीसमझी साजिश के तहत 15 मार्च को मुन्ना इशरत को यह कह कर अपने साथ ले गया कि चलो हम सुलह कर लेते हैं और दिल्ली चल कर निकाह कर वहीं कमरा ले कर रहते हैं. मुन्ना के मुंह से सुलह की बात सुन कर इशरत खुशी से झूम उठी और तपाक से बोली, ‘‘चलो, कहां चलें?’’

इशरत की हां से खुश हो कर मुन्ना बोला, ‘‘पहले हम दोनों किसी सुनसान स्थान पर चल कर बैठ कर बातें करेंगे, उस के बाद आगे की सोचेेंगे.’’

मुन्ना इशरत को साथ ले कर गोमती नदी के राजघाट होते हुए देवगांव की ओर चल पड़ा. थोड़ी दूर चलने के बाद उस ने इशरत से कहा, ‘‘इशरत, तुम इस जंगल के रास्ते चलो, मैं गाड़ी ले कर रोड के रास्ते से आ रहा हूं.’’

इशरत अपनी 5 साल की बेटी महलका को साथ ले कर पूरी तरह से बेपरवाह हो कर जंगल के रास्ते से चल पड़ी. वह तेजी से कदम बढ़ाते हुए चली जा रही थी कि तभी कुछ दूरी पर मुन्ना बाइक खड़ी कर के हाथ में चाकू लिए इशरत जहां के करीब आया और पीछे से उस की गर्दन पर धड़ाधड़ वार करने शुरू कर दिए.

चाकू के वार से इशरत निढाल हो कर गिर पड़ी. अचानक हुए हमले से उसे कुछ सोचनेसमझने का समय तक नहीं मिल पाया. उस की मासूम बेटी महलका ने मां को जमीन पर गिरते देखा तो मुन्ना के पैर पकड़ कर रोने लगी.

इंसान से हैवान बन चुके मुन्ना को उस मासूम पर भी रहम नहीं आया. उस ने सोचा कि इसे ले कर कहां जाऊंगा. उस ने उस मासूम का भी गला काट कर उसे मौत की नींद सुला दिया. फिर दोनों लाशों को वहीं झाडि़यों में छिपा कर खून से सनी अपनी शर्ट और चाकू को भी वहीं छिपा दिया.

इस के बाद अपनी मोटरसाइकिल यूपी 44 एस 9123 से वहां से भाग निकला. यह तो संयोग था कि घटना के कुछ ही देर बाद चरवाहों की नजर मांबेटी की लाशों पर पड़ गई और उन्होंने पुलिस को सूचना दे दी अन्यथा वे दोनों जंगली जानवरों का निवाला बन जातीं तो शायद यह राज ही दफन हो कर रह जाता.

पुलिस के अनुसार, घटना के एक दिन पहले ही मुन्ना की बीवी संजीदा खातून ने एक बच्ची को जन्म दिया था. इधर इस मामले में जब उस का नाम प्रकाश में आया तो पुलिस उस के पीछे पड़ गई. यह देख कर वह अपने घर से फरार हो गया. पुलिस ने उस के घर सहित अन्य संभावित स्थानों पर कई बार दबिश दी, लेकिन वह पुलिस को चमका देता रहा.

16 अप्रैल को मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने उसे रुदौली कोतवाली के भेलसर स्थित एक प्राइवेट नर्सिंगहोम के पास की एक चाय की दुकान से गिरफ्तार कर लिया था, जहां उस की बीवी संजीदा खातून भरती थी. पुलिस को देख कर मुन्ना भागने लगा था, लेकिन पुलिस टीम ने उसे घेराबंदी कर के पकड़ लिया था.

उस की तलाशी ली गई तो उस के पास से आधार कार्ड और 250 रुपए नकद मिले थे. बाद में पुलिस ने उस की निशानदेही पर घटनास्थल के पास से खून से सनी उस की शर्ट और चाकू बरामद कर लिया था. उसे मीडिया के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जहां उस ने मांबेटी की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करते हुए पूरी कहानी सुनाई थी. इस के बाद उसे सक्षम न्यायालय में पेश किया गया,जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

तुम सिर्फ मेरी हो : प्यार और तकरार की कहानी

14 मई, 2017 की रात देवरिया जिले के थाना तलकुलहवा के गांव बघड़ा महुआरी का रहने वाला 42 साल का शरीफ अंसारी खाना खा कर लेटा था कि उस के मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. उस ने मोबाइल उठा कर देखा तो नंबर जानापहचाना था. उस ने फोन रिसीव कर के बात की. उस के बाद उठ कर पत्नी से कहा, ‘‘मैं थोड़ी देर में आता हूं.’’

इतना कह कर शरीफ जिन कपड़ों में था, उन्हीं में घर से बाहर निकल गया. उस के जाने के बाद पीछेपीछे पत्नी जसीमा भी निकल गई. घर से निकलते समय जसीमा ने छोटे बेटे अजहरुद्दीन से वही कहा था, जो शरीफ ने घर से निकलते समय कहा था.

थोड़ी देर में लौट कर आने को कह कर गए पतिपत्नी पूरी रात लौट कर नहीं आए तो अब्बू की चिंता में अजहरुद्दीन और उस की पत्नी हसीना ने किसी तरह रात बिताई. सवेरा होते ही अजहरुद्दीन अब्बू की तलाश में निकल पड़ा. 8 बजे के करीब गांव से एक किलोमीटर दूर शाहपुर पुरैना नहर के पास शरीफ अंसारी की सिरकटी लाश मिली. इस के बाद बघड़ा गांव के दक्षिणी गंडक नदी के पास जसीमा की सिरकटी लाश मिली.

खबर पा कर अजहरुद्दीन शाहपुर पुरैना नहर पर पहुंचा तो वहां काफी भीड़ जमा थी. हत्यारों ने बड़ी बेरहमी से शरीफ की हत्या की थी. सिर काटने के साथ उस के दोनों हाथ भी काट कर अलग कर दिए थे. शरीफ की लाश से करीब 1 किलोमीटर दूर जसीमा की लाश पड़ी थी.

हत्यारे ने उस का भी सिर धड़ से अलग करने के साथ, उस का बायां हाथ, बायां वक्षस्थल और स्त्री अंग पर धारदार हथियार से वार किए थे. थोड़ी ही देर में इस हत्याकांड की खबर जंगल की आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई थी.

जिस तरह से पतिपत्नी की हत्याएं की गई थीं, उस से साफ लग रहा था कि हत्यारे को मृतकों से काफी नफरत थी. सूचना पा कर शरीफ के सासससुर भी आ गए थे. दिल दहला देने वाली इस घटना की सूचना थाना तरकुलहवा के थानाप्रभारी राजाराम यादव को भी मिल चुकी थी.

सूचना मिलते ही वह भी सहयोगियों एसआई शैलेंद्र कुमार, भूपेंद्र सिंह, गुफरान अंसारी, वीरबहादुर सिंह, सिपाही राहुल सिंह, मनीष दुबे, प्रद्युम्न जायसवाल, रविशंकर श्रीवास्तव, कैलाशचंद्र यादव, दुर्गेश चौरसिया, श्यामनारायण पांडेय, देवव्रत यादव और अनुराग यादव के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे थे.

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चलने से पहले उन्होंने इस घटना की सूचना एसपी का कार्यभार देख रहे एडीशनल एसपी चिरंजीवनाथ सिन्हा और सीओ (नगर) अजय सिंह को दे दी थी, इसलिए थोड़ी ही देर में ये अधिकारी भी घटनास्थल पर आ गए थे. जब इस बात की जानकारी गोरखपुर जोन के आईजी मोहित अग्रवाल और डीआईजी नीलाब्जा चौधरी को हुई तो ये अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल के निरीक्षण के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि घटना को कम से कम 3 लोगों ने मिल कर अंजाम दिया होगा. लेकिन अहम सवाल यह था कि हत्यारों ने इस तरह जघन्य तरीके से ये हत्याएं क्यों की थीं? आखिर हत्यारों से मृतकों की ऐसी क्या दुश्मनी थी?

पुलिस ने मृतकों के बेटे अजहरुद्दीन से उस की किसी से दुश्मनी के बारे में पूछा तो उस ने किसी से दुश्मनी होने से साफ मना कर दिया. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई कर दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

इस के बाद थाने लौट कर राजाराम यादव ने मृतकों के छोटे बेटे अजहरुद्दीन की ओर से अपराध संख्या 106/2017 पर भादंवि की धरा 302 एवं 4/32 आर्म्स एक्ट के तहत अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर आगे की जांच शुरू कर दी.

हत्यारों को पकड़ने के लिए चिरंजीवनाथ सिन्हा ने पुलिस की 3 टीमें गठित कीं. एक टीम की कमान उन्होंने खुद संभाली तो दूसरी टीम की कमान राजाराम यादव को सौंपी. तीसरी टीम क्राइम ब्रांच की थी. उसी शाम देवरिया के एसपी के रूप में राजीव मल्होत्रा को भेजा गया.

पूछताछ में अजहरुद्दीन ने बताया था कि रात 12 बजे के करीब किसी का फोन आया था. फोन पर बात करने के बाद अब्बू थोड़ी देर में लौट आने की बात कह कर घर से निकल गए थे. अम्मी भी अब्बू के पीछेपीछे चली गई थीं. वह पूरी रात दोनों का इंतजार करता रहा, पर वे लौट कर नहीं आए. सुबह वह अम्मीअब्बू की तलाश में निकला तो उन की लाशें मिलीं.

फोन आने की जानकारी पा कर पुलिस ने मृतक शरीफ के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. घटना वाली रात 12 बजे के करीब उस के मोबाइल पर जो आखिरी फोन आया था, उस पर शरीफ की फोन करने वाले से करीब 1 मिनट बात हुई थी. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर उसी गांव के रहने वाले अरविंद प्रसाद का निकला.

पूछताछ में पता चला कि अरविंद और शरीफ दोनों गहरे मित्र थे. जंगल में लकड़ी काटने दोनों एक साथ जाया करते थे. इस के अलावा अरविंद गांव के बाहर अंडे की दुकान लगाता था. अरविंद और उस के छोटे भाई का शरीफ के घर काफी आनाजाना था. इस का मतलब था, दोनों परिवारों में संबंध काफी मधुर थे.

पुलिस को अरविंद पर शक हुआ तो संदेह के आधार पर पुलिस उसे और उस के छोटे भाई को हिरासत में ले कर पूछताछ के लिए थाना तरकुलहवा ले आई. राजाराम यादव ने दोनों भाइयों से अलगअलग सख्ती से पूछताछ की. इस पूछताछ में अरविंद के भाई ने बताया कि अरविंद रात से ही काफी परेशान और बेचैन था. शायद उसी ने शरीफ और उस की पत्नी जसीमा की हत्या की है.

इस के बाद पुलिस और सख्त हो गई. इस के बावजूद अरविंद पुलिस को दाएंबाएं घुमाता रहा. लेकिन जब अरविंद को लगा कि पुलिस उसे छोड़ने वाली नहीं है तो उस ने शरीफ और उस की पत्नी जसीमा खातून की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने पुलिस को दोनों हत्याओं की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

करीब 35 साल का अरविंद प्रसाद जिला देवरिया के थाना तरकुलहवा के गांव बघड़ा महुआरी में रहता था. उस के पिता रामदास प्रसाद उर्फ गेंदा प्राइवेट नौकरी करते थे. भाईबहनों में अरविंद सब से बड़ा था. उसे कोई नौकरी नहीं मिली तो उस ने गांव के बाहर अंडे की दुकान खोल ली. इस से उस का खर्च आसानी से निकल जाता था.

अरविंद की गांव के ही रहने वाले शरीफ अंसारी से खूब पटती थी. शरीफ मेहनतमजदूरी कर के परिवार को पाल रहा था. शरीफ और अरविंद रात में जंगल से चोरी से लकडि़यां काट कर भी बेचते थे. अरविंद की यारी शरीफ से हुई तो यह यारी घर की दहलीज लांघ कर कमरे के अंदर तक पहुंच गई.

अरविंद शरीफ के घर बेरोकटोक आताजाता था. इसी आनेजाने में अरविंद का दिल शरीफ की पत्नी जसीमा खातून पर आ गया. शरीफ के कहीं चल जाने पर अरविंद घंटों उस के घर बैठ कर जसीमा से बातें करने के साथ हंसीमजाक भी किया करता था. जसीमा को यह सब बहुत अच्छा लगता था. इसी का नतीजा था कि 4 बच्चों की मां होने के बावजूद जसीमा उस के प्यार में कैद हो गई.

इस के बाद अरविंद अपनी कमाई जसीमा पर लुटाने लगा. दोनों अपने इस संबंध से खुश थे, लेकिन उन के इस अवैध संबंधों की खुशबू गांव में फैली तो बात शरीफ अंसारी तक पहुंच गई. शरीफ को यह बात बड़ी बुरी लगी. अरविंद उस का दोस्त था. लेकिन उस ने दोस्ती में दगा की थी. उस ने पत्नी को ही नहीं, अरविंद को भी आड़े हाथों लिया. इतना ही नहीं, गुस्से में उस ने अरविंद को कई थप्पड़ जड़ कर पत्नी से दूर रहने को कहा.

इस के बाद अरविंद शरीफ के घर जाने की कौन कहे, उधर देखना भी बंद कर दिया. इसी तरह 6-7 महीने बीत गए. इस बीच अरविंद न शरीफ से मिला और न ही उस के घर गया. लेकिन परपुरुष की आदी हो चुकी जसीमा के गांव के अन्य पुरुषों से नाजायज संबंध बन गए. अरविंद से यह बात छिपी नहीं रही. जसीमा की इस बेवफाई से अरविंद चिढ़ गया.

एक दिन अरविंद शरीफ की नजरें बचा कर जसीमा से उस के घर जा कर मिला. उस ने उसे समझाया कि वह जो कर रही है, ठीक नहीं कर रही है. वह सिर्फ उस की है. उसे कोई देखे या छुए, उसे अच्छा नहीं लगता. पर जसीमा ने उस की एक नहीं सुनी और उसे खुद से दूर रहने को कहा. यही नहीं, उस ने कहा कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह उस की पति से शिकायत कर देगी.

फिर क्या था, अरविंद और चिढ़ गया. उस ने जसीमा से बदला लेने का निश्चय कर लिया. इस के लिए उस ने उस के पति शरीफ को विश्वास में लिया और अपनी गलती के लिए माफी मांग ली. शरीफ ने सारे गिलेशिकवे भुला दिए और उसे माफ कर दिया.

इस के बाद दोनों पहले जैसे दोस्त बन गए. अरविंद के मन में क्या चल रहा है, शरीफ को पता नहीं था. एक तीर से 2 निशाने साधने वाली बात सोच कर अरविंद ने शरीफ से उस की पत्नी के गैरमर्दों से संबंध वाली बात बता दी.

पहले तो शरीफ ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जल्दी ही जसीमा की सच्चाई उस के सामने आ गई. फिर तो उस ने जसीमा की जम कर खबर ली. लेकिन इस के बाद भी अरविंद अपने मकसद में कामयाब नहीं हुआ. उस ने दिल की बात जसीमा से कही तो उस ने उसे झिड़क कर भगा दिया.

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जसीमा का जवाब सुन कर अरविंद ठगा सा रह गया. उस के मना करने से अरविंद का दिल टूट गया. अब वह ईर्ष्या की आग में जलने लगा. इसी ईर्ष्या ने उस के दिल में नफरत के बीज बो दिए. इस का नतीजा यह निकला कि उस ने शरीफ और उस की पत्नी को सजा देने का मन बना लिया.

इस की वजह यह थी कि शरीफ द्वारा की गई बेइज्जती वह अभी तक भुला नहीं पाया था. जसीमा से तो वह नाराज था ही. नफरत की आग में जल रहे अरविंद ने दोनों को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

अरविंद ने दोनों को सबक सिखाने की जो योजना बनाई, उस के अनुसार उस ने 14 मई, 2017 की रात 12 बजे शरीफ को फोन कर के शाहपुर पुरैना के जंगल में लकड़ी काटने के लिए बुलाया. शरीफ अजहरुद्दीन से थोड़ी देर में लौटने को कह कर घर से निकल गया.

अरविंद पूरी तैयारी के साथ आया था. उस के पास लकड़ी काटने वाला तेज धार वाला दाब था. थोड़ी देर में शरीफ उस के पास पहुंचा तो अरविंद ने उसे लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़ने को कहा. शरीफ जैसे ही पेड़ पर चढ़ने के लिए आगे बढ़ा, पीछे से अरविंद ने पूरी ताकत से उस की गरदन पर दाब का वार कर दिया.

वार इतना जोरदार था कि उसी एक वार में शरीफ का सिर धड़ से कट कर अलग हो गया. बेइज्जती का बदला लेने के लिए अरविंद ने उस के दोनों हाथ और पैर काट कर अलग कर दिए. संयोग से तभी पति के पीछेपीछे जसीमा भी वहां पहुंच गई.

उसे देख कर अरविंद घबरा गया. पकड़े जाने के डर से उस ने उसी दाब से उसे भी मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद पहचान छिपाने के लिए उस ने उस का भी सिर धड़ से काट कर 1 किलोमीटर दूर गंडक नदी में ले जा कर फेंक दिया. साक्ष्य मिटाने के लिए जसीमा की लाश को उस ने ले जा कर पुरैना नहर के पास फेंका. इस के बाद गंडक नदी में खून साफ कर के घर लौट आया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने अरविंद को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. प्रेम और क्रोध में अंधे अरविंद ने जो किया, वह गलत था. अब उसे अपने किए पर पश्चाताप हो रहा है. लेकिन अब पछताने से क्या होगा? उस ने 2 लोगों की जान तो ले ही ली. अब उसे इस की सजा अवश्य मिलेगी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

क्या कुसूर था वैशाली का

हरियाणा से निकला नारा ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ भले ही राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान  बनाने में कामयाब रहा हो, लेकिन कुछ सिरफिरे इस नारे के मूलतत्त्व की ऐसी धज्जियां उड़ा रहे हैं कि इंसानियत ही नहीं हैवानियत भी शर्म से सिर झुका ले. बेटी के लिए सब कुछ करने वाले मांबाप तक नहीं समझ पाते कि उन्होंने बेटी को बचा कर,उसे पढ़ा कर गुनाह किया या बेटी होना ही उस का गुनाह था. बेटी के मांबाप को जिंदगी भर दर्द और गुस्से का घूंट पीने को मजबूर करने वाले ऐसे दरिंदों को जितनी सजा दी जाए, कम है.

यौवन सब को आता है, लड़कों को भी लड़कियों को भी. यौवन आता है तो निखार भी आता है और सुंदरता भी बढ़ती है. लड़कों को तो इस सब से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन कई बार लड़कियों के लिए यह सब बहुत भारी पड़ता है. उन्हें इस सब की ऐसी कीमत चुकानी पड़ती है, जिस के बारे में स्वयं लड़की ने तो क्या, किसी ने भी सोचा तक नहीं होता. बांसवाड़ा, राजस्थान की 18 वर्षीया वैशाली के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ. न तो वैशाली को खुद पता था और न उस के मातापिता को कि उस की खूबसूरती पर एक रक्तपिपासु की नजर जमी है.

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बांसवाड़ा की अगरपुरा कालोनी में रहने वाली वैशाली फर्स्ट ईयर की छात्रा थी और अपने परिवार के साथ रहती थी. उस के पिता पिंकेश शर्मा विकलांग हैं. वैशाली के घर के सामने ही जगदीश बंजारा का घर था. कुछ समय तक जगदीश वैशाली का सहपाठी भी रहा था.

जब से वैशाली यौवन द्वार पर आ कर खड़ी हुई थी, तभी से जगदीश की नजरें उस पर जम गई थीं. जगदीश और उस का भाई रमेश उसे आतेजाते छेड़ते थे. वैशाली ने इस बात की शिकायत अपने मातापिता से भी की थी. इतना ही नहीं, कालोनी वालों ने भी जगदीश की आए दिन उधमबाजी करने की पुलिस से शिकायत की थी.

जगदीश संभवत: किसी गलतफहमी का शिकार था, यही वजह थी कि वह वैशाली से एकतरफा प्यार करने लगा था. जबकि वैशाली उस से बात तक करने को तैयार नहीं थी.

बुधवार 2 अगस्त, 2017 की दोपहर 12 बजे वैशाली फर्स्ट फ्लोर की बालकनी में बाई के साथ कपड़े सुखा रही थी. उस के पिता पिंकेश शर्मा ऊपर की मंजिल पर थे. तभी सामने के घर में रहने वाला जगदीश दीवार फांद कर आया और उस ने अनायास वैशाली को दबोच लिया.

उस ने साथ लाए चाकू से वैशाली की गर्दन पर इतने वार किए कि वह लहूलुहान हो कर गिर पड़ी. जगदीश जैसे आया था, वैसे ही भाग गया. बाई ने शोर मचाया तो पासपड़ोस के लोग भी आ गए और वैशाली के परिवार वाले भी. वैशाली को आननफानन में अस्पताल ले जाया गया, लेकिन तब तक वह दम तोड़ चुकी थी.

इस बीच किसी ने फोन कर के इस मामले की सूचना थाना कोतवाली को दे दी थी. कोतवाली पुलिस भी मौकाएवारदात पर पहुंच गई और महिला थाने की पुलिस भी. पूरी जानकारी ले कर पुलिस ने वैशाली के पिता पिंकेश शर्मा की तहरीर पर जगदीश बंजारा के खिलाफ भादंवि की धारा 450 (हथियार ले कर जबरन घर में घुसने), 376, 511 (बलात्कार की कोशिश), हत्या के लिए 302 और 34 के अंतर्गत केस दर्ज कर लिया. इस के साथ ही पुलिस ने जगदीश बंजारा की खोज शुरू कर दी, लेकिन तब तक पूरा बंजारा परिवार फरार हो चुका था.

वैशाली की हत्या को ले कर पूरी अगरपुरा कालोनी में रोष था. इतना रोष कि लोग बंजारा परिवार के घर को आग लगा देना चाहते थे. गंभीर स्थिति को देखसमझ कर एसपी के आदेश पर बंजारा परिवार के घर पर 7 सशस्त्र सिपाहियों का पहरा बैठा दिया गया था. इस के बावजूद कुछ युवक उस घर को क्षति पहुंचाने के लिए आए तो पुलिस ने उन्हें समझा कर वापस लौटा दिया.

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काफी भागदौड़ के बाद सिपाही इंद्रजीत सिंह और लोकेंद्र सिंह ने जैसेतैसे 3 अगस्त को जगदीश बंजारा को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से काफी पूछताछ की गई, लेकिन उस ने मुंह नहीं खोला.

आखिर इतना बड़ा अपराध कर के वह कब तक चुप रह सकता था. 4 अगस्त को उसे मुंह खोलना ही पड़ा. पुलिस से उस ने केवल इतना ही कहा, ‘‘मैं वैशाली से प्यार करता था. वह मेरी बनने को तैयार नहीं थी, फिर मैं उसे किसी और की कैसे होने दे सकता था? इसलिए मैं ने उसे मार डाला.’’

मृतका वैशाली के पिता पिंकेश शर्मा चाहते थे कि इस ममले की जांच महिला थाने के सीआई देवीलाल करें. इस के लिए वह एसपी से मिले.

एसपी ने केस की जांच सीआई देवीलाल को सौंप दी. पुलिस जगदीश बंजारा को जेल भेज चुकी है. केस की जांच सीआई देवीलाल कर रहे हैं, जगदीश बंजारा को पकड़ने वाले सिपाही इंद्रजीत सिंह और लोकेंद्र सिंह को पुलिस विभाग ने सम्मानित किया है.