घुटन : मीतू ने क्यों अपनी खुशियों का दरवाजा बंद किया था

“आशा है कि आप और आप का परिवार स्वस्थ होगा, और आप के सभी प्रियजन सुरक्षित और स्वस्थ होंगे, उम्मीद करते हैं कि हम सभी मौजूदा स्थिति से मजबूती से और अच्छे स्वास्थ्य के साथ उभरें, कृपया अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें.” घर पर रहें और सुरक्षित रहें

मीतू ने व्हाट्सऐप पर नीलिमा का भेजा यह मैसेज पढ़ा और एक ठंडी सांस भरी क्या सुरक्षित रहे. पता नहीं कैसी मुसीबत आ गई है. कितनी अच्छीखासी लाइफ चल रही थी. कहां से यह कोरोना आ गया. दुनिया भर में त्राहित्राहि मच गई है. खुद मेरी जिंदगी क्या कम उलझ कर रह गई है. सोचते हुए दोनों हाथों से सिर को पकड़ते हुए वह धप से सोफे पर बैठ गई.

मीतू का ध्यान दीवार पर लगी घड़ी पर गया. 2 बज रहे थे दोपहर के खाने का वक्त हो गया था. रिषभ को अभी भी हलका बुखार था. खांसी तो रहरह कर आ ही रही है.

रिषभ उस का पति. बहुत प्यार करती है वह उस से लव मैरिज हुई थी दोनों की. कालेज टाइम में ही दोनों का अफेयर हो गया था. रिषभ तो जैसे मर मिटा था उस पर. एकदूसरे के प्यार में डूबे कालेज के तीन साल कैसे गुजर गए थे, पता ही नहीं चला दोनों को. बीबीए करने के बाद एमबीए कर के रिषभ एक अच्छी जौब चाहता था ताकि लाइफ ऐशोआराम से गुजरे. मीतू से शादी कर के वह एक रोमांटिक मैरिड लाइफ गुजारना चाहता था.

रिषभ ने जैसा सोचा था बिलकुल वैसा ही हुआ. वह उन में से था जो, जो सोचते हैं वहीं पाते हैं. अभी उस की एमबीए कंपलीट भी नहीं हुई थी उस का सलेक्शन टौप मोस्ट कंपनी में हो गया. सीधे ही उसे अपनी काबिलियत के बूते पर बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर की पोस्ट मिल गई.

दिल्ली एनसीआर नोएड़ा में कंपनी थी उस की. मीतू को अच्छी तरह याद है वह दिन जब पहले दिन रिषभ ने कंपनी ज्वाइन की थी. जमीन पर पैर नहीं पड़ रहे थे उस के. लंच ब्रेक में जब उसे मोबाइल मिलाया था तब उस की आवाज में खुशी, जोश को अच्छी तरह महसूस किया था उस ने.

‘मीतू तुम सीधा मैट्रो पकड़ कर नोएडा सेक्टर 132 पहुंच जाना शाम को. मैं वहीं तुम्हारा इंतजार करूंगा. आज तुम्हें मेरी तरफ से बढ़िया सा डिनर, तुम्हारी पसंद का.’

कितना इंजौय किया था दोनों ने वह दिन. सब कितना अच्छा. भविष्य के कितने सुनहरे सपने दोनों ने एकदूसरे का हाथ थाम कर बुने थे.

रिषभ की खुशी, उस का उज्जवल भविष्य देख बहुत खुश थी वह. मन ही मन उस ने अपनेआप से वादा किया था कि रिषभ को वह हर खुशी देने की कोशिश करेंगी. बचपन में ही अपने मातापिता को एक हादसे में खो दिया था उस ने. लेकिन बूआ ने खूब प्यार लेकिन अनुशासन से पाला था रिषभ को, क्योंकि उन की खुद की कोई औलाद न थी. मीतू रिषभ की जिंदगी में प्यार की जो कमी रह गई थी, वह पूरी करना चाहती थी.

क्या हुआ उस वादे का, कहां गया वह प्यार. ‘ओफ रिषभ मैं यह सब नहीं करना चाहती तुम्हारे साथ.’ सोचते हुए मीतू को वह दिन फिर से आंखों के आगे तैर गया, जिस दिन रिषभ देर रात गए औफिस से घर वापस आया था. 4 दिन बाद होली आने वाली थी.

साहिर मीतू और रिषभ की आंखों का तारा. 5 साल का हो गया था. शाम से होली खेलने के लिए पिचकाारी और गुब्बारे लेने की जिद कर रहा था.

‘नहीं बेटा कोई पिचकारी और गुब्बारे नहीं लेने. कोई बच्चा नहीं ले रहा. देखो टीवी में यह अंकल क्या बोल रहे हैं. इस बार होली नहीं खेलनी है.’

मीतू ने साहिर को मना तो लिया लेकिन उस का दिल भीतर से कहीं डर गया. टीवी के हर चैनल पर कोरोना वायरस की खबरेें आ रही थी. मानव से मानव में फैलने वाला यह वायरस चीन से फैलता हुआ पूरे विश्व में तेजी से फैल रहा है. लोगों की हालत खराब है.

रिषभ रोज मैट्रो से आताजाता है.  कितनी भीड़ होती है. राजीव चैक मेट्रो स्टेशन पर तो कई बार इतना बुरा हाल होता है कि लोग एकदूसरे पर चढ़ रहे होते हैं. टेलीविजन पर लोगों को एतियात बरतने के लिए बोला जा रहा है.

मीतू उठी और रिमोट से टेलीविजन की वैल्यूम कम की और झट रिषभ का मोबाइल मिलाया. ‘कितने बजे घर आओगे, रिषभ.’

‘यार मीतू, बौस एक जरूरी असाइनमैंट आ गया है. रात 10 बजे से पहले तो क्या ही घर पहुंचुगा.’

‘सुनो भीड़भाड़ से जरा दूर ही रहना. इंटरनेट पर देख रहे हो न. क्या मुसीबत सब के सिर पर मंडरा रही है,‘ मीतू के जेहन में चिंता की लकीरें बढ़ती जा रही थीं.

‘डोंट वरी डियर, मुझे कुछ नहीं होने वाला. बहुत मोटी चमड़ी का हूं. तुम्हे तो पता ही है क्यों…’ रिषभ ने बात को दूसरी तरफ मोड़ना चाहा.

‘बसबस, ज्यादा मत बोलो, जल्दी घर आने की कोशिश करो, कह कर मीतू ने मोबाइल काट दिया लेकिन पता नहीं क्यों मन बैचेन सा था.

उस रात रिषभ देर से घर आया. काफी थका सा था. खाना खा कर सीधा बैडरूम में सोने चला गया.

अगले दिन मीतू ने सुबह दो कप चाय बनाई और रिषभ को नींद से जगाया.

‘मीतू इतनी देर से चाय क्यों लाई. औफिस को लेट हो जाऊंगा,‘ रिषभ जल्दीजल्दी चाय पीने लगा.

‘अरेअरे… आराम से ऐसा भी क्या है. मैं ने सोचा रात देर से आए हो तो जरा सोने दूं. कोई बात नहीं थोड़ा लेट चले जाना औफिस,‘ मीतू ने बोलते हुए रिषभ के गाल को हाथ लगाया, ‘रिषभ तुम गरम लग रहे हो. तबीयत तो ठीक है,‘ मीतू ने रिषभ का माथा छूते हुए कहा.

‘यार, बिलकुल ठीक हूं. बस थोड़ा गले में खराश सी महसूस हो रही है. चाय पी है थोड़ा बैटर लगा है,‘ और बोलता हुआ वाशरूम चला गया.

लेकिन मीतू गहरी चिंता में डूब गई. कल ही तो व्हाट्सऐप पर उस ने कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के लक्षण के बारे में पढ़ा है. खांसी, बुखार, गले में खराश, सांस लेने में दिक्कत…

‘ओह…नो… रिषभ को कहीं… नहींनहीं, यह मैं क्या सोच रही हूं. लेकिन अगर सच में कहीं…’

मीतू के सोचते हुए ही पसीने छूट गए.

तब तक रिषभ वौशरूम से बाहर आ गया. मीतू को बैठा देख बोला, ‘किस सोच में डूबी हो,’ फिर उस का हाथ अपने हाथ से लेता हुआ अपना चेहरा उस के चेहरे के करीब ले आया और एक प्यार भरी किस उस के होंठो पर करना ही चाहता था कि मीतू एकदम पीछे हट गई.

‘अब औफिस के लिए देर नहीं हो रही,’ और झट से चाय के कप उठा कर कमरे से चली गई.

रिषभ मीतू के इस व्यवहार से हैरान हो गया. ऐसा तो मीतू कभी नहीं करती. उलटा उसे तो इंतजार रहता है कि रिषभ पहले प्यार की शुरूआत करे फिर मीतू अपनी तरफ से कमी नहीं छोड़ती थी लेकिन आज मीतू का पीछे हटना, कुछ अजीब लगा रिषभ को.

खैर ज्यादा सोचने का टाइम नहीं था रिषभ के पास. औफिस जाना था. झटपट से तैयार हो गया. नाश्ता करने के लिए डाइनिंग टेबल पर बैठ गया.

मीतू ने नाश्ता रिषभ के आगे रखा और जाने लगी तो वह बोला, ‘अरे, तुम्हारा नाश्ता कहां है. रोज तो साथ ही कर लेती हो मेरे साथ. आज क्या हुआ?’

‘कुछ नहीं तुम कर लो. मैं बाद में करूंगी. कुछ मन नहीं कर रहा.’ मीतू दूर से ही खड़े हो कर बोली.

‘क्या बात है तुम्हारी तबीयत तो ठीक है.’

‘हां सब ठीक है.‘ मीतू साहिर के खिलौने समेटते हुए बोली.

‘साहिर के स्कूल बंद हो गए हैं कोराना वायरस के चलते. चलो अब तुम्हें उसे सुबहसुबह स्कूल के लिए तैयार नहीं करना पड़ेगा. चलो कुछ दिन का आराम हो गया,‘ रिषभ ने मीतू को हंसाने की कोशिश की.

‘खाक आराम हो गया. यह आराम भी क्या आराम है. चारों तरफ खतरा मंडरा रहा है और तुम्हे मजाक सूझ रहा है,‘ मीतू नाराज होते हुए बोली.

‘अरे…अरे, मुझ पर क्यों गुस्सा निकाल रही हो. मेरा क्या कसूर है. मैं फैला रहा हूं क्या वायरस,‘ रिषभ ने बात खत्म करने की कोशिश की, ‘देखो ज्यादा पेनिक होने की जरूरत नहीं.’

‘मैं पेनिक नहीं हो रही बल्कि तुम ज्यादा लाइटली ले रहे हो सब.’

‘ओह, तो यह बात है. कहीं तुम्हें यह तो नहीं लग रहा कि मुझे कोरोना हो गया है. तुम ही दूरदूर रह रही हो. बेबी, आए एम फिट एंड फाइन. ओके शाम को मिलते हैं. औफिस चलता हूं. बाय डियर, ‘बोलता हुआ रिषभ घर से निकल गया.

मीतू के दिमाग में अब रातदिन कोरोना का भय व्याप्त हो गया था. होली आई और चली गई, उन की सोसाइटी में पहले ही नोटिस लग गया था कि कोई इस बार होली नहीं खेलेगा.

मीतू अब जैसे ही रिषभ औफिस से आता उसे सीधे बाथरूम जाने के लिए कहती और कपड़े वही रखी बाल्टी में रख्ने को कहती. फिर शौवर ले कर, कपड़े चेज करने के बाद ही कमरे में जाने देती.

हालात दिन पर दिन बिगड़ ही रहे थे. टेलीविजन पर लगातार आ रही खबरें, व्हाट्सऐप पर एकएक बाद एक मैसेज, कोरोना पर हो रही चर्चाएं मीतू के दिमाग को गड़बड़ा रही थीं.

दूसरी तरफ रिषभ मीतू के बदलते व्यवहार से परेशान हो रहा था. न जाने कहां चला गया था उस का प्यार. बहाने बनाबना कर उस से दूर रहती. साहिर का बहाना बना कर उस के कमरे में सोने लगी थी. साहिर को भी उस से दूर रखती थी. अपने ही घर में वह अछूत बन गया था.

रिषभ का पता है और मीतू भी इस बात से अनजान नहीं थी कि बदलते मौसम में अकसर उसे सर्दीजुकाम, खांसी, बुखार हो जाता है.

लेकिन कोरोना के लक्षण भी तो कुछ इसी तरह के हैं. मीतू पता नहीं क्यों टेलीविजन, व्हाट्सऐप के मैसेज पढ़पढ़ कर उन में इतनी उलझ गई है कि रिषभ को शक की निगाहों से देखने लगी है.

आज तो हद ही हो गई. सरकार ने जनता कफ्यू का ऐलान कर दिया था. रिषभ को रह रह कर  खांसी उठ रही थी. हलका बुखार भी था. रिषभ का मन कर रहा था कि मीतू पहले ही तरह उस के सिरहाने बैठे. उस के बालों में अपनी उंगलियां फेरे. दिल से, प्यार से उस की देखभाल करे. आधी तबीयत तो उस की मीतू की प्यारी मुसकान देख कर ही दूर हो जाती थी. लेकिन अचानक जैसे सब बदल गया था.­

मीतू न तो उस का टैस्ट करवाना चाहती है. रिषभ अच्छी तरह समझ रहा था कि मीतू नहीं चाहती कि आसपड़ोस में किसी को पता चले कि वह रिषभ को कोरोना टैस्ट के लिए ले गई है और लोगों को यह बात पता चले और उन से दूर रहे. खुद को सोशली बायकोट होते वह नहीं देख सकती थी.

मीतू का अपेक्षित व्यवहार रिषभ को और बीमार बना रहा था. उधर मीतू ने आज जब रिषभ सो गया तो उस के कमरे का दरवाजा बंद कर बाहर ताला लगा दिया.

रिषभ दवाई खा कर सो गया था. दोपहर हो गई थी और खाने का वक्त हो रहा था. मीतू अपनी सोच से बाहर निकल चुकी थी.

रिषभ की नींद खुली. थोड़ी गरमी महसूस हुई. दवा खाई थी इसलिए शायद पसीना आ गया था. सोचा, थोड़ी देर बाहर लिविंग रूप में बैठा जाए. पैरों में चप्पल पहनी और चल कर दरवाजे तक पहुंच कर हैंडल घुमाया. लेकिन यह क्या दरवाजा खुला ही नहीं. दरवाजा लौक्ड था

“मीतूमीतू, दरवाजा लौक्ड है. देखो तो जरा कैसे हो गया यह.” रिषभ दरवाजा पीटते हुए बोला.

“मैं ने लौक लगाया है,” मीतू ने सपाट सा जवाब दिया.

“दिमाग तो सही है तुम्हारा. चुपचाप दरवाजा खोला.”

‘नहीं तुम 14 दिन तक इस कमरे में ही रहोगे. खानेपीने की चिंता मत करो, वो तुम्हें टाइम से मिल जाएगा,‘ मीतू ने जवाब दिया.

‘मीतू तुम यह सब बहुत गलत कर रही हो.‘

‘कुछ गलत नहीं कर रही. मुझे अपने बच्चे की फिक्र है.‘

‘तो क्या मुझे साहिर की फिक्र नहीं है,‘ रिषभ लगभग रो पड़ा था बोलते हुए.

लेकिन मीतू तो जैसे पत्थर की बन गई थी. आज रिषभ का रोना सुन कर भी उस का दिल पिघला नहीं. कहां रिषभ की हलकी सी एक खरोंच भी उस का दिल दुखा देती थी.

रिषभ दरवाजा पीटतेपीटते थक गया तो वापस पलंग पर आ कर बैठ गया. यह क्या डाला था मीतू ने. बीमारी का भय, मौत के डर ने पतिपत्नी के रिश्ते खत्म कर दिया था.

14 दिन कैसे बीते यह रिषभ ही जानता है. मीतू की उपेक्षा को झेलना किसी दंश से कम न था उस के लिए. मीतू उस के साथ ऐसा व्यवहार करेगी, वह सोच भी नहीं सकता था. मौत का डर इंसान को क्या ऐसा बना देता है. जबकि अभी तो यह भी नहीं पूरी तौर से पता नहीं कि वह कोरोना वायरस से संक्रमित है भी या नहीं.

मीतू चाहे बेशक सब एहतियात के तौर पर कर रही हो लेकिन पतिपत्नी के बीच विश्वास, प्यार को एक तरफ रख कर उपेक्षा का जो रवैया अपनाया था, उस ने पतिपत्नी के प्यार को खत्म कर दिया था.

रिषभ कोरोना नेगेटिव निकला पर उन के रिश्ते पर जो नेगेटिविटी आ गई थी उस का क्या.

मीतू दोबारा से रिषभ के करीब आने की कोशिश करती लेकिन रिषभ उस से दूर ही रहता. कोरोना ने उन की जिंदगी को अचानक क्या से क्या बना दिया था. मीतू ने उस दिन दरवाजा लौक नहीं किया था, जिंदगीभर की दोनों की खुशियों को लौक कर दिया था.

रिश्ता दोस्ती का : श्वेता और इंद्रनील की दोस्ती का क्या था अंजाम

औफिस में लंच के समय श्वेता ने व्हाट्सऐप संदेश देखा ‘‘आज शाम 6 बजे,’’ श्वेता ने तुरंत उत्तर दे दिया. ‘‘ठीक है,’’ औफिस से 6 बजे श्वेता नीचे उतरी, इंद्रनील उस का इंतजार कर रहा था. दोनों पैदल समीप के मौल की ओर बातें करते हुए चल दिए जहां कौफीहाउस में एक कोने की सीट पर बैठ कर कौफी पीने लगे. इंद्रनील आज चुप था, वह श्वेता की ओर न देख कर विपरीत दिशा में देख रहा था.

‘‘क्या बात है इंद्रनील, उधर क्या देख रहे हो?’’

‘‘कुछ नहीं, बस यों ही.’’

‘‘चुप भी हो?’’

श्वेता के पूछने पर इंद्रनील चुप रहा.

‘‘कौफी भी नहीं पी रहे हो. टकटकी लगा कर उधर देखे जा रहे हो. कौन है वहां?’’

इंद्रनील ने अब श्वेता की ओर देखा और धीरे से कहा ‘‘श्वेता अब विदा होने का समय आ गया है.’’

‘‘समझी नहीं?’’

‘‘मैं दिल्ली छोड़ कर वापस कोलकाता जा रहा हूं,’’ इंद्रनील ने श्वेता की ओर पहली बार देखते हुए कहा.

‘‘क्या सदा के लिए?’’ श्वेता कुछ उदास हो गई.

‘‘हां तभी तुम से कह रहा हूं. शायद आज अंतिम बार मिलना हो, मैं कुल सुबह कोलकाता रवाना हो रहा हूं.’’

‘‘इतनी जल्दी?’’

‘‘हां सब अचानक से हो गया और निर्णय भी तुरंत ही लेना पड़ा.’’

‘‘श्वेता मैं ने नौकरी छोड़ दी है. आज मेरा अंतिम दिन था. सब को अलविदा कहा. बिना तुम से मिले कैसे जा सकता हूं. एक तुम ही तो हो जिस के साथ हर सुख और दुख सांझा किया है.’’

‘‘पहले बता देते?’’ श्वेता के इस प्रश्न पर इंद्रनील भावुक हो गया.

‘‘बस 10-12 दिनों में घटनाक्रम इतनी तेजी से घूमा कि तुम से बात नहीं कर सका.’’

‘‘कुछ बताओ, दिल पर पड़ा बोझ हलका हो जाएगा,’’ श्वेत ने इंद्रनील से कहा.

‘‘श्वेता पिछले महीने श्यामली की मृत्यु हो गई.’’

‘‘तुम ने बताया ही नहीं?’’

‘‘मुझे भी नहीं मालूम था. कोई 12 दिन पहले श्यामली की चाची ने अस्पताल में दोनों बच्चों सुब्रता और सांवली को मेरी मां के हवाले कर दिया. बच्चों की खातिर ही दिल्ली छोड़ कोलकाता जा रहा हूं,’’ कह कर इंद्रनील चुप हो गया.

इंद्रनील और श्वेता कौफी के घूंट पीते हुए अतीत में चले गए… श्वेता और इंद्रनील पिछले लगभग 10 वर्षों से मित्र हैं. दोनों की उम्र लगभग 40 के आसपास है. श्वेता 10 वर्ष पहले जब औफिस में काम करने पहली बार आईर् थी तब इंद्रनील के साथ वाली सीट पर बैठ कर काम करना आरंभ किया. साथसाथ बैठ कर काम करतेकरते दोनों घनिष्ठ मित्र बन गए. दोनों में एक बात समान थी कि दोनों उस समय तलाकशुदा थे.

श्वेता का एक 4 वर्ष का पुत्र जिस का नाम शौर्य था और अपने मातापिता के संग रह रही थी. इंद्रनील कोलकाता का रहने वाला था और वह भी तलाकशुदा था उस के 2 बच्चे थे 4 वर्षीय पुत्र सुब्रता और 2 वर्षीय पुत्री सांवली. तलाक के समय छोटे बच्चों की परवरिश मां को मिली. इंद्रनील कोलकाता से दिल्ली आ गया.

कभीकभी जब कोलकाता जाता तब बच्चों से मिलता. शुरूशुरू में बच्चों से मिलना लगा रहा फिर बच्चे भी कभीकभी मिलने वाले पिता से घुलमिल नहीं सके और इंद्रनील ने बच्चों से मिलना छोड़ दिया.

कुछ यही हाल श्वेता का भी था. वह शौर्य को अपने पिता के साए से दूर रखना चाहती थी और 2 वर्ष बाद दूर हो ही गया. श्वेता की समस्या उस का पुत्र था जिस कारण उस का दूसरा विवाह नहीं हुआ. उस के मातापिता तो दूसरा विवाह चाहते थे, लेकिन सामाजिक बेडि़यों ने एक बच्चे वाली मां का दूसरा विवाह नहीं होने दिया. इंद्रनील ने एक बार दूसरा विवाह करने की सोची, लेकिन पुराने कटु अनुभव ने उसे रोक लिया.

10 मिनट बाद पुरानी यादों के चलते नम आंखों के साथ वर्तमान में आ गए और  कौफीहाउस से बाहर मौल में चहलकदमी करने लगे. एक दुकान के अंदर श्वेता इंद्रनील के लिए शर्ट पसंद करने लगी और इंद्रनील श्वेता के लिए साड़ी पसंद करने लगा. एकदूसरे के लिए शायद अंतिम उपहार उन दोनों ने खरीदा था. आज कोई बात नहीं हो रही थी सिर्फ एकदूसरे की आंखों में आंखें डाल कर दिल की बात कह और सुन रहे थे. मौल से बाहर आने पर श्वेता ने शर्ट का पैकेट इंद्रनील को दिया, ‘‘इंद्र फिर कब मिलना होगा?’’

इंद्रनील ने साड़ी का पैकेट श्वेता को देते हुए जवाब दिया, ‘‘मुझे स्वयं नहीं मालूम… फोन करूंगा.’’

बाय कह कर इंद्रनील और श्वेता अपनेअपने घर की ओर चल दिए. इंद्रनील ने सुबह की गाड़ी पकड़नी थी, इसलिए उस ने सारा सामान पैक कर रखा था, लेकिन उस की आंखों से नींद नदारद थी… 10 वर्ष से उस की श्वेता से पहचान है. श्वेता से वह औफिस में ही मिलता था और औफिस से बाहर सिनेमा भी देखते थे, मौल भी घूमते थे और अकसर इंडिया गेट के लौन या पुराना किला के अंदर दीवार के साथ बैठ कर बातें करते थे.

इंद्रनील किराए के कमरे में रहता था और कभी भी श्वेता को अपने कमरे में ले कर नहीं गया. वह श्वेता पर किसी भी तरह का लांछन नहीं लगने देना चाहता था उस का मकान मालिक या पड़ोसी श्वेता और उस के रिश्ते पर कोई उंगली उठाए. ठीक उसी तरह वह कभी भी श्वेता के घर नहीं गया कि कहीं श्वेता का परिवार, रिश्तेदार, पड़ोसी उन की मित्रता को गलत समझें.

इन 10 वर्षों में उन दोनों का रिश्ता सिर्फ भावनात्मक ही रहा. वे दोनों कभी भी नहीं बहके और लक्ष्मण रेखा को नहीं लांघे. औफिस में उन की नजदीकियों पर सहकर्मी उपहास करते थे, लेकिन यह अधिक समय नहीं रहा क्योंकि 1 वर्र्ष बाद इंद्रनील ने नौकरी बदल ली और औफिस के बाद या अवकाश के समय ही मिलते थे. 10 वर्षों में इंद्रनील और श्वेता ने कई नौकरियां बदलीं, लेकिन एक अनोखा भावनात्मक रिश्ता मजबूत होता गया.

श्वेता की भी नींद नदारद थी. वह इंद्रनील के बारे में सोचती रही कि दोनों एकदूसरे के नजदीक होते हुए भी दूर रहे. एक खयालात, एक सोच लेकिन एक नहीं हुए. पिछले 10 वर्षों से वे दोनों कहें तो दोहरी जिंदगी जी रहे थे.

इंद्रनील कोलकाता चला गया और श्वेता औफिस के बाद उदास रहने  लगी. पुत्र शौर्य अब 14 वर्ष का हो गया है और पढ़ाई के साथ खेल में व्यस्त रहने लगा है. श्वेता रात को इंद्रनील के बारे में ही सोचती रहती और इंद्रनील श्वेता के बारे में सोचता रहता. इंद्रनील का पुत्र सुब्रता भी अब 14 वर्ष और पुत्री सांवली 12 की हो गई. इंद्रनील कई वर्षों से बच्चों से नहीं मिला था. तलाक के बाद श्यामली अपने मातापिता के संग रह रही थी, लेकिन वे श्यामली से पहले ही दुनिया से कूच कर चुके थे.

श्मामली की मृत्यु पर दोनों बच्चे अकेले रह गए. सड़क दुर्घटना के बाद अस्पताल में श्यामली ने अपने सासससुर को संदेश भिजवाया और बच्चों को अस्पताल में दादादादी को सुपुर्द कर के दुनिया छोड़ गई. मातापिता से सूचना मिलने पर इंद्रनील कोलकाता चला गया. अंतिम समय में श्यामली की आर्थिक स्थिति दयनीय थी और बहुत मुश्किल से गुजरबसर हो रहा था. स्कूल की फीस भी नहीं भरी थी.

इंद्रनील सोचने लगा कि  10 वर्ष पूर्व श्यामली ने तलाक पर एक मुश्त 10 लाख रुपए की रकम ली थी, यदि वह उस रकम को बैंक में फिक्स्ड डिपौजिट पर रखती तब आज इतनी दयनीय स्थिति नहीं होती.

इंद्रनील की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. बच्चे उस के पास थे, लेकिन सहमे हुए क्योंकि वर्षों बाद अपने पिता से मिल रहे थे जिस की उन के मानसपटल पर कोई स्मृति शेष नहीं थी. इंद्रनील ने सब से पहले बच्चों की स्कूल फीस भरी और उन को स्कूल भेजना शुरू किया. श्यामली ने सड़क दुर्घटना के पश्चात अस्पताल में बच्चों को उन के पिता के बारे में बताया और दादादादी के सुपुर्द किया.

कोलकाता आए इंद्रनील को  1 महीना हो  गया. इस 1 महीने में श्वेता और इंद्रनील के बीच कोई बात नहीं हुई. श्वेता ने फोन करने की सोची, लेकिन संयम रखते हुए अपने हाथ खींच लिए. अब उस ने अपना समय पुत्र शौर्य के संग बिताना आरंभ किया. इंद्रनील अपने जीवन में तालमेल नहीं बैठा सका और एक दिन श्वेता को फोन कर ही दिया.

‘‘श्वेता कैसी हो?’’

‘‘तुम बताओ?’’

‘‘चलो एकदूसरे को अपना हाल बता देते हैं.’’

‘‘यह ठीक है इंद्रनील, जीवन का नया पड़ाव कैसा लग रहा है?’’

‘‘श्वेता इन परिस्थितियों के बारे में कभी सोचा नहीं था इसलिए हालात से समन्वय नहीं बन पा रहा है.’’

‘‘इंद्रनील जीवन अनिश्चिता से भरपूर है. भविष्य एक रहस्य है कि कल क्या होगा. हम ने विवाह किया तब यह नहीं सोचा था कि हमारा तलाक होगा लेकिन हुआ. जब हम ने उन परिस्थितियों को जीया तब अब भी जी सकते हैं. थोड़ा समय दिक्कत होती है फिर हम सब नई परिस्थितियों के आदी हो जाते हैं.’’

‘‘श्वेता तुम्हारी दार्शनिक बातें सुन कर मन का बोझ हलका हुआ कि हालात से समझौता करना ही पड़ता है.’’

‘‘इंद्रनील जीवन अपनेआप में ही समझौता है. हर पल समझौता करना होता है. अगर हम यह बात पहले समझ जाते तब हो सकता है कि तलाक ही नहीं होता लेकिन हुआ क्योंकि कहीं न कहीं हमारा अहम टकरा गया और हम पीछे नहीं हटे. जीवन के अनुभवों से ही हम सीखते हैं.’’

‘‘श्वेता मेरी समस्या बच्चों के साथ तालमेल की है. आज वर्षों बाद बच्चे साथ हैं, समझ नहीं आ रहा कि मैं उन के साथ कैसा व्यवहार करूं.’’

‘‘इंद्रनील बच्चे तो तुम्हारे अपने हैं बस अंतर सिर्फ इतना है कि तुम वर्षों बाद बच्चों से मिल रहे हो. समझ लो कि विदेश में रहते थे. अब वापस अपने घर आए हो.’’

‘‘श्वेता तुम तो उदाहरण भी ऐसे देती हो कि मेरे पास कोई उत्तर ही नहीं सिवा इस के कि तुम्हारे सुझाव पर अमल करूं.’’

‘‘इंद्रनील यह महिला दिमाग का कमाल है जो पुरुष दिमाग से सदा आगे रहता है.’’

फोन पर बात समाप्त होने पर शौर्य ने मां श्वेता से पूछा, ‘‘मम्मी किस के साथ बात कर रही थीं? बहुत लंबी बात हो गई?’’

‘‘शौर्य में इंद्रनील से बात कर रही थी. मेरे साथ औफिस में काम करते थे आजकल कोलकाता में रहते हैं. कई बार बात होती रहती है. इन का लड़का भी तुम्हारे जितना बड़ा है 14 वर्ष का.’’

‘‘इंद्रनील अंकल कभी घर नहीं आए… कभी देखा नहीं?’’

पुत्र के इस प्रश्न पर श्वेता को आश्चर्य हुआ कि आज  पहली बार शौर्य उस से ऐसा प्रश्न कर रहा है. अब वह बड़ा हो गया है और दुनिया की ऊंचनीच भी समझने लगा है. फिर चुटकी में अपने भावों को नियंत्रित करते हुए श्वेता ने शौर्य को समझाया कि हमारे औफिस में बहुत कर्मचारी हैं और मैं ने 4 कंपनियों में काम किया, वहां अनेक के साथ मेरी मित्रता रही, लेकिन मैं किसी के घर नहीं जाती थी क्योंकि तुम छोटे थे और औफिस के बाद तुम्हारे साथ समय बिताना मेरी प्राथमिकता रही है इसी कारण मैं किसी को अपने घर भी नहीं बुलाती थी क्योंकि तुम्हें मालूम है कि मेरा और तुम्हारे पापा का 10 वर्ष पूर्व तलाक हुआ था.

‘‘मैं ने तुम्हारी परवरिश को सब से बेहतर रखने की कोशिश की ताकि तुम्हें पिता की कमी महसूस न हो. अब तुम बड़े हो गए हो तुम चाहोगे तब मैं अपने मित्रों को भी घर बुलाऊंगी.’’

‘‘मम्मी मैं तो सिर्फ इसलिए पूछ रहा था क मेरे मित्र घर आते हैं तब आप के क्यों नहीं आते हैं?’’

‘‘वह इसलिए कि तुम मित्रों के संग पढ़ते हो, मेरे मित्र आएंगे तब सिर्फ गपशप होगी और तुम्हारी पढ़ाई में खलल होगा.’’

‘‘कभीकभी तो बुला सकती हो?’’

‘‘अब तुम चाहते हो तब इसी रविवार को अपने मित्रों के संग महफिल सजा दूंगी,’’ श्वेता ने मुसकराते हुए शौर्य से कहा तो शौर्य भी मुसकरा दिया.

खैर शौर्य की मंशा श्वेता समझ गई कि बच्चा अब स्याना हो गया है और रिश्तों के साथ मित्रता की भी अहमियत समझने लगा है. श्वेता ने अपनी तरफ से इंद्रनील को फोन नहीं किया. उसे शायद डर था कि शौर्य उस के इंद्रनील के साथ पवित्र रिश्ते को कहीं गलत न समझ ले कि उस की मां दोहरी जिंदगी जी रही है. उस ने रिश्ते पर पूर्णविराम लगा दिया. इंद्रनील कभीकभी श्वेता से फोन पर बात कर लिया करता था, वह सिर्फ अपने बच्चों से जुड़ने पर ही विमर्श करता था.

इंद्रनील ने कोलकाता में नौकरी कर ली और छुट्टी वाले दिन बच्चों के साथ रहता और उन के साथ घूमने जाता. श्वेता ने इंद्रनील को सलाह दी कि वह बच्चों को आर्थिक संरक्षण प्रदान करने के साथसाथ उन से भावनात्मक रूप से भी जुड़े. इंद्रनील छुट्टी वाले दिन बच्चों के साथ घूमने जाता. धीरेधीरे बच्चे इंद्रनील से जुड़ने लगे. इंद्रनील के बच्चों से जुड़ाव के बाद श्वेता ने इंद्रनील से फोन पर बात भी बंद कर दी.

1 वर्ष बाद सर्दियों की ठंड में श्वेता बालकनी में बैठ कर धूप सेंक रही थी. शौर्य की 10वीं की बोर्ड परीक्षा नजदीक थी. वह भी धूप में श्वेता के नजदीक बैठ कर पढ़ रहा था तभी डोरबैल बजी.

‘‘शौर्य जरा दरवाजा खोलना.’’

‘‘मम्मी मैं पढ़ रहा हूं, आप खोलिए.’’

श्वेता ने दरवाजा खोला, दरवाजे पर इंद्रनील अपने बच्चों सुब्रता और सांवली के संग खड़ा था. वह इंद्रनील को अचानक घर पर बिना किसी सूचना के अपने सामने देख कर अचंभित हो गई. उस का मुख खुला का खुला रह गया.

इंद्रनील ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘श्वेता इन से मिलो, सुब्रता और सांवली.’’

‘‘आओ इंद्रनील,’’ श्वेता ने सब को बैठक में बैठा कर शौर्य को आवाज दी, ‘‘शौर्य देखो कौन आया है.’’

‘‘कौन है मम्मी?’’ शौर्य ने बालकनी से ही श्वेता से पूछा.

‘‘इंद्रनील अंकल.’’

इंद्रनील सुनते ही शौर्य बैठक में आ कर बड़ी आत्मीयता से सब से मिला.

सुब्रता और सांवली के एक प्रश्न पर श्वेता चुप रह गई, ‘‘आंटी आप ने पापा से फोन पर बात करना क्यों छोड़ दिया है?’’

श्वेता को इस प्रश्न का उत्तर मालूम था, लेकिन बच्चों को किस तरह से अपने मन की बात समझाए, उस की जबान पर शब्द नहीं आ रहे थे.

‘‘हां मम्मी आप इंद्रनील अंकल को अपने विचारों से अवगत कराती थीं और सुझावों से अंकल को बच्चों से एक कराया फिर क्या हुआ जो आप ने अंकल से बात करनी बंद कर दी?’’

शौर्य की बात का समर्थन करते हुए सुब्रता और सांवली ने भी श्वेता से प्रश्न पूछा, ‘‘आंटी आप के सुझाव और मार्गदर्शन से हम पापा से जुड़ सके और आप ही पापा से जुदा हो गईं. पापा हमारे सामने आप से फोन पर बात करते थे, इसलिए हमारे अनुरोध पर पापा हमें आप से मिलवाने दिल्ली आए हैं.’’

श्वेता ने बात बदलते हुए इंद्रनील से पूछा ‘‘कहां रुके हो?’’

‘‘कंपनी के गैस्टहाउस में रुका हूं. थोड़ा कंपनी का काम भी कर लूंगा और बच्चों के साथ दिल्ली भी घूम लूंगा.’’

बात को दूसरी तरफ घूमता देख सुब्रता और सांवली ने श्वेता को टोका, ‘‘आंटी आप

ने हमारे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया.’’

‘‘हां मम्मी मैं भी इस प्रश्न का उत्तर चाहता हूं,’’ शौर्य ने भी मां से पूछा.

‘‘श्वेता मैं भी उत्तर चाहता हूं,’’ इंद्रनील ने भी श्वेता से पूछा.

2 मिनट तक श्वेता चुप रही फिर बोली, ‘‘इंद्रनील तुम तो उत्तर जानते हो. हम और तुम सिर्फ मित्र रहे, एक अच्छे मित्र की भांति हम ने आपस में सुख और दुख साझा किए. हमारी मित्रता इसलिए मजबूत रही क्योंकि हम दोनों तलाकशुदा थे और हमारे बच्चों की उम्र भी एकजैसी थी. जब मैं पहली बार औफिस में इंद्रनील से मिली तब इंद्रनील सुब्रता और सांवली से मिलते रहते थे और उसी तरह शौर्य अपने पिता से. छोटे बच्चों की अच्छी परवरिश हो और उन के मानसपटल पर हमारे तलाक का धब्बा न लगे यही हम दोनों का मुख्य उद्देश्य था.

‘‘श्यामली की मृत्यु के पश्चात जब सुब्रता और सांवली इंद्रनील के जीवन में वापस आए तब तुम किशोरावस्था में पदार्पण कर चुके थे और दुनिया की ऊंचनीच को समझने लगे थे. इस से पहले कि शौर्य मुझे गलत समझे मैं ने दूरी बनानी उचित समझी.’’

श्वेता का उत्तर इंद्रनील को मालूम था कि यही होगा, लेकिन तीनों बच्चे एकसाथ बोले, ‘‘आप मित्र बन कर रहो. मित्रता क्यों तोड़ते हो?’’

‘‘हमने कभी लक्ष्मणरेखा नहीं लांघी है.’’

‘‘हम लक्ष्मण रेख लांघने को नहीं कह रहे हैं. पुरानी मित्रता को कायम रखो.’’

शौर्य ने श्वेता का हाथ पकड़ कर इंद्रनील की ओर बढ़ाया तो सुब्रता ने इंद्रनील का हाथ श्वेता की ओर बढ़ाया.

‘‘सच्ची मित्रता कभी नहीं टूटती है,’’ सांवली ने श्वेता और इंद्रनील का हाथ एक करते हुए कहा.

अकाउंटेंट पर फेंका प्यार का जाल

मध्य प्रदेश के धार जिले में एक औद्योगिक इलाका है पीथमपुर. वहां हजारों की संख्या में छोटीबड़ी कंपनियां और फैक्ट्रियां हैं. उन में एमएसएमई की 1100 इकाइयों में करीब 40 हजार लोग काम करते हैं. इस कारण इलाके में काफी गहमागहमी बनी रहती है.

रोजगार के लिए दूसरे जिलों से आए हुए लोग भी वहां काम करते हैं. फाइनैंस कंपनियां भी हैं. यहीं पर स्थित एक बड़ी फाइनैंस कंपनी में काम करने वाला युवक रूपेश बिरला भी था. वह खरगोन के सेलदा गांव का निवासी था, लेकिन पीथमपुर में अपने परिवार के साथ रह रहा था.

उस के 11 अक्तूबर, 2022 को शाम तक वापस घर नहीं लौटने पर घर वाले चिंतित हो गए थे. जब वह देर रात तक नहीं आया, तब उस के पिता पीथमपुर के सेक्टर-1 थाने गए.

उन्होंने उस वक्त थाने में मौजूद टीआई लोकेंद्र सिंह भदौरिया से बेटे के गायब होने की शिकायत की. टीआई भदौरिया ने उन से सुबह तक इंतजार करने को कहा, जबकि रूपेश के पिता ने अगवा कर उस की हत्या की आशंका जताई.

भदौरिया ने उस वक्त रूपेश के पिता की शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि इस तरह की शिकायतें वहां के लिए कोई नई नहीं थीं. उन्होंने किसी दोस्त के यहां उस के रात में ठहर जाने की बात कह कर पिता को थाने से भेज दिया.

उन के थाने से जाने के बाद भदौरिया सोच में पड़ गए कि आखिर उस के पिता ने रूपेश की हत्या की बात क्यों कही? उस के अपहरण के बारे में जिक्र क्यों किया? रूपेश एक बड़ी फाइनैंस कंपनी में वसूली का काम करता था, उस सिलसिले में कहीं उसे पहले से कोई धमकी वगैरह तो नहीं मिली.

इन्हीं सवालों में उलझते हुए उस बारे में उन्होंने सुबह काररवाई करने का मन बना लिया. 12 अक्तूबर की सुबह कोई साढ़े 6 बजे का समय था.

भदौरिया अपने सहकर्मी को रात की शिकायत के बारे में कुछ आवश्यक निर्देश दे रहे थे, तभी एक युवती वहां आई. उसे देखते ही भदौरिया पहचान गए बोले,‘‘तुम तो वही हो न! क्या नाम बताया था?’’

‘‘जी राजी,’’ युवती बोली.

‘‘हां, तुम 2 दिन पहले भी आई थी. तुम्हारा केस तो दर्ज हो गया है. उस पर जल्द काररवाई भी शुरू होने वाली है. अब देखो, जिस के खिलाफ तुम ने छेड़छाड़ की शिकायत की है, वह कांग्रेस पार्टी का एक स्थानीय नेता है. इलाके का दबंग है. …और तुम उसी की कंपनी में अकाउंटेंट भी हो.’’ भदौरिया बोले.

‘‘हां सर, लेकिन आज मैं उस बारे में नहीं, बल्कि अपने प्रेमी को लापता किए जाने की शिकायत ले कर आई हूं.’’ राजी बोली.

‘‘प्रेमी? कभी तुम छेड़छाड़ की बात करती हो और अब तुम्हारा प्रेमी निकल आया?’’ भदौरिया ने सवाल किया.

‘‘जी सर, उसी प्रेमी के चलते तो मैं छेड़छाड़ की शिकार हुई. मुझे परेशान करने वाले मालिक आशिक पटेल को मालूम हो गया था कि मैं रूपेश बिरला से प्रेम करती हूं. तब उस ने मुझे नौकरी से भी निकाल दिया है. अब कहां वह मुझ से दुगनी से भी अधिक उम्र का शादीशुदा आदमी और कहां मेरा 25-26 साल का रूपेश,’’ राजी बोली.

‘‘क्या नाम बताया तुम ने, रूपेश बिरला?’’ भदौरिया ने पूछा.

‘‘हां, रूपेश बिरला. क्यों कोई बात है क्या?’’ राजी ने भी आश्चर्य से पूछा.

‘‘इस के लापता होने की शिकायत ले कर बीती रात उस के पिता आए थे. बताया कि वह एक फाइनैंस कंपनी में काम करता है?’’ भदौरिया बोले.

‘‘हांहां, वह फाइनैंस कंपनी में काम करता है. हम दोनों 3 साल से प्यार करते हैं. इसी साल शादी भी करने वाले हैं. लेकिन सर!’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘रूपेश को मेरे मालिक आशिक ने अगवा कर उस की हत्या करवा दी है.’’ राजी दावे के साथ बोली.

‘‘यह तुम इतने दावे के साथ कैसे कह सकती हो?’’ टीआई भदौरिया ने सवाल किया.

‘‘उस का मेरे पास यह सबूत है. देखिए मेरे मोबाइल में औडियो रिकौर्ड है, आप भी सुनिए.’’ यह कहती हुई राजी ने अपने मोबाइल की गैलरी से कुछ सेकेंड का औडियो प्ले कर दिया.

औडियो सुन कर भदौरिया दंग रह गए. उस में आशिक पटेल की आवाज थी. वह राजी को धमकी देता हुआ बोल रहा था कि रूपेश से संबंध तोड़ ले, वरना वह उस के साथसाथ परिवार को भी खत्म कर देगा.’’

यह सुनने के बाद उन्होंने तुरंत आशिक के खिलाफ काररवाई करने की तैयारी शुरू कर दी. वह इतना तो समझ ही गए थे कि एक काररवाई से ही रात की शिकायत का भी समाधान निकल आएगा.

उन्होंने राजी को किए गए काल की रिकौर्डिंग के हवाले से मामले को गंभीरता से लिया. उन्होंने इस की पूरी जानकारी धार के एसपी आदित्य प्रताप सिंह, एएसपी देवेंद्र पाटीदार एवं सीएसपी तरुणेंद्र बघेल को देने के बाद आरोपी आशिक पटेल को पूछताछ के लिए थाने बुलवाया.

वास्तव में आशिक पटेल पर पुलिस के लिए हाथ डालना आसान नहीं था, लेकिन भदौरिया के पास पूछताछ के लिए एक छोटा सा सबूत मिल चुका था.

आशिक पटेल कांग्रेस का नेता था. उस के पिता अल्लानूर पटेल पूर्व में धन्नड़ के सरपंच भी रह चुके हैं. खुद आशिक भी मध्य प्रदेश असंगठित कामगार एवं कर्मचारी संघ का उपाध्यक्ष था. आशिक ने अपनी राजनीतिक पहचान का फायदा उठा कर सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण कर रखा था.

उस पर तिमंजिला इमारत बना रखी थी, जिस में 250 कमरे थे, जो उस ने किराए पर दे रखे थे. अधिकतर किराएदार मजदूर वर्ग और कंपनियों में काम करने वाले छोटे कर्मचारी ही थे. उन पर वह अपना दबदबा बनाए रखता था.

किराए से उस की लाखों की कमाई होती थी और वहां रहने वालों को वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल कर राजनीतिक रुतबा बना रखा था.

इन किराएदारों के दम पर नगर पालिका चुनावों में पार्षद की जीतहार तय करना उस के लिए आसान काम था. उस ने करीब 35 हजार वर्गफीट सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा था.

आशिक पटेल की कंपनी में राजी नाम की एक युवती अकाउंटेंट का काम करती थी. वह बहुत सुंदर और होशियार थी. आशिक उस से प्यार करने लगा. हालांकि यह उस का एकतरफा प्यार ही था. कारण, राजी उस के बेटे की उम्र की थी और वह रूपेश बिरला से प्यार करती थी.

जब इस की जानकारी आशिक पटेल को हुई तब वह गुस्से से भर गया. भीतर ही भीतर जलभुन गया. रूपेश को तो कुछ कह नहीं सकता था, लेकिन राजी पर उस से संबंध खत्म करने के लिए दबाव जरूर बना सकता था. उस ने ऐसा ही किया.

पहले उस ने राजी को बातों से समझाया, उस का वेतन दोगुना करने तक का लालच दिया. फिर भी राजी जब नहीं मानी, तब उस ने उसे धमकियां देनी शुरू कर दीं.

ऊब कर राजी ने नौकरी छोड़ दी. उस के बाद तो आशिक और भी बौखला गया. एक दिन उस ने राजी को फोन किया. पहले तो उस ने राजी को प्यार से समझाने की कोशिश की. राजी ने सिरे से इंकार कर दिया. उस ने दोटूक जवाब दे दिया कि वह किसी भी सूरत में अपने प्रेमी को धोखा नहीं दे सकती.

यह सुनते ही आशिक गुस्से में आ गया और अपनी ताकत का हवाला देते हुए रूपेश को मरवा देने की धमकी दे डाली. संयोग से राजी ने मोबाइल में इस काल की रिकौर्डिंग कर ली थी.

उसी काल के आधार पर पुलिस ने आशिक पटेल से सख्ती से पूछताछ की. जब पुलिस ने उसे रिकौर्डिंग सुनाई, तब उस ने रूपेश की हत्या करवाने की बात कुबूल कर ली. उस ने हत्याकांड को कैसे अंजाम दिया, इस की भी जानकारी दी. आशिक ने बताया कि रूपेश की हत्या में उस के 5 दोस्त भी शामिल थे.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने उन पांचों आरोपियों को थाने ला कर पूछताछ की. आरोपियों ने बताया कि उन्होंने रूपेश के शव को कालोनी में नाले के किनारे दफना दिया था. शव जल्दी गल कर नष्ट हो जाए, इस के लिए लाश के ऊपर 15 किलोग्राम नमक डाला, मिट्टी और घासफूस डाल कर उस जगह को सीमेंट कंक्रीट से पक्का कर दिया था.

मामले की तहकीकात पूरी होने के बाद एसपी आदित्य प्रताप सिंह ने सभी 6 आरोपियों अखिलेश मिश्रा, अंकुश दुबे, सुरेंद्र सिंह ठाकुर, कालू उर्फ दीपक मंडल, रवि मंडल, आशिक पटेल को गिरफ्तार कर उन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

जैसे ही पुलिस और प्रशासन को मालूम हुआ कि आशिक पटेल रूपेश बिरला हत्याकांड का मास्टरमाइंड है, वैसे ही उस के ठिकाने पर प्रशासनिक काररवाई शुरू कर दी गई. इस सिलसिले में अवैध कब्जे की जमीन पर बनी बिल्डिंग पर बुलडोजर चला दिया गया. कुल 250 कमरे वाले 3 मंजिला इमारत को जमींदोज करने में 2 दिन लगे.

प्रशासन ने नगर निगम से 10 जेसीबी और बड़ी पोकलेन मशीनें मंगवा कर अतिक्रमण तोड़ा. आशिक द्वारा कब्जाई जमीन की कीमत लगभग 10 करोड़ रुपए आंकी गई. बिल्डिंग तोड़े जाने से पहले सभी परिवारों को शिफ्ट किया गया. यह जिले की सब से बड़ी काररवाई थी.

मुख्य आरोपी आशिक पटेल के साम्राज्य को ध्वस्त करने के दरम्यान एक अन्य आरोपी अखिलेश मिश्रा की गुमटी को भी हटा दिया गया. पुलिस रिकौर्ड में आशिक पटेल के खिलाफ पहले भी एक हत्या समेत 5 अन्य मामले दर्ज थे.

इस मामले की 2 दिनों के भीतर ही जांच पूरी होने पर एसपी आदित्य प्रताप सिंह ने सीएसपी तरुणेंद्र सिंह बघेल और टीआई लोकेश सिंह भदौरिया सहित पूरी टीम के काम की तारीफ की.    द्य

नर्स का दगाबाज प्रेमी

नर्स विनीता को बाजार गए हुए काफी समय हो गया था. लेकिन अब तक वह वापस घर नहीं आई थी. पति विजय यादव को विनीता की चिंता होने लगी थी. उस ने फोन लगाया, लेकिन विनीता का मोबाइल स्विच्ड औफ आने पर उस की चिंता और बढ़ गई. उस ने सोचा कि वह शायद किसी सहेली या परिचित के घर चली गई होगी या उस के मोबाइल की चार्जिंग खत्म हो गई होगी. इसलिए फोन स्विच्ड औफ हो गया होगा.

धीरेधीरे समय बीतता गया और अब शाम का अंधेरा भी घिरने लगा था. यदि वह किसी जानने वाले के यहां गई होती तो उस के मोबाइल से अपने बारे में जानकारी तो दे ही सकती थी. यह सोचसोच कर विजय अब परेशान हो गया. उस ने कई जानकार लोगों के यहां फोन मिलाया लेकिन हर जगह से यही जवाब मिला कि विनीता उन के यहां नहीं आई है.

तब विजय ने आसपास स्थित बाजार जा कर भी पत्नी को तलाशा, लेकिन उसे निराशा ही मिली. सब तरफ से निराश होने के बाद विजय बिना देर किए आगरा के थाना एत्माद्दौला जा पहुंचा. यह बात 26 सितंबर, 2022 की है.

थाने पहुंच कर विजय ने एसएचओ विनोद कुमार से पत्नी विनीता यादव के गायब होने की बात बताई. विजय की शिकायत पर एसएचओ ने विनीता की गुमशुदगी दर्ज करा ली.

अगले दिन 27 सितंबर, 2022 को विजय के पास थाना एत्माद्दौला से फोन आया. विजय को तुरंत थाने आने के लिए कहा गया. विजय बिना देर किए थाने पहुंच गया.

वहां पहुंचने पर विजय को बताया गया कि बीती रात यमुनापार स्थित मंडी समिति ट्रांस यमुना कालोनी की सर्विस रोड पर एक घायल युवती मिली थी. उसे इलाज के लिए अस्पताल में भरती कराया गया, जहां उस की मौत हो गई. उस की लाश अस्पताल में है. उस युवती की शिनाख्त अभी नहीं हो पाई है. आप भी उसे एक बार जा कर देख लो.

यह सुन कर विजय घबरा गया और अस्पताल जा पहुंचा. उस ने जैसे ही शव को देखा तो वह फूटफूट कर रोने लगा.

उस ने पुलिस को बताया कि वह शव उस की पत्नी विनीता का है. शव की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई निपटाई और शव का पोस्टमार्टम कराया. मृतका के शरीर पर चोटें एक्सीडेंट की निकलीं.

पोस्टमार्टम के बाद विनीता के शव को पति विजय ने अपनी सुपुर्दगी में ले कर उसी दिन उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

कई दिनों से घर वालों की विनीता से बात नहीं हो पा रही थी, क्योंकि उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ जा रहा था.

बात न होने पर उन्होंने उस के नर्सिंग होम में साथ काम करने वाले साथियों से बात की. तब उन्हें पता चला कि विनीता की सड़क दुघर्टना में मौत हो गई है. पति विजय ने उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया है.

जब विनीता की मौत की जानकारी उस के घर वालों को हुई तो वे सन्न रह गए. पिता नवीन चंद्र घर के कुछ लोगों को ले कर पहली अक्तूबर को सिरसागंज से आगरा आ गए.

उन्होंने थाना एत्माद्दौला के एसएचओ विनोद कुमार से मुलाकात कर बताया कि उन की बेटी विनीता एक नर्सिंग होम में नर्स थी और नुनिहाई में किराए पर रहती थी. फिरोजाबाद जिले के नगला मोहन गांव के रहने वाले विजय यादव ने उसे अपने प्रेम जाल में फंसा लिया था. विनीता अविवाहित थी. वह विजय से शादी करना चाहती थी. उन्हें शक है कि विजय ने ही साजिश के तहत उन की बेटी की हत्या की है.

पुलिस इसे एक हादसा मान रही थी लेकिन घर वालों की शिकायत पर पुलिस को भी दाल में कुछ काला दिखाई दिया. सीओ (छत्ता) सुकन्या शर्मा के निर्देश पर एसएचओ विनोद कुमार ने शक के आधार पर घटना की जांच शुरू कर दी.

पुलिस ने विजय की काल डिटेल्स चैक की तो पाया कि वह जिस समय विनीता के गायब होने की बात कर रहा था, उस समय उस की मोबाइल पर विनीता से बात हुई थी. दोनों की फोन लोकेशन भी एक ही मिली.

यही नहीं, पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे खंगाले. घटनास्थल के पास कोई कैमरा नहीं था. उस से पहले और बाद में लगे कैमरों में एक बोलेरो दिखाई दी. नंबर प्लेट से बोलेरो के मालिक का पता चला. मालिक का मोबाइल नंबर निकाला गया. उस नंबर की काल डिटेल्स चैक की गई तो उस में विजय यादव का नंबर मिला.

विजय ने जांच के दौरान जो बयान पुलिस को दिए थे, वे गलत निकले. गाड़ी और विजय की लोकेशन एक ही दिशा में थी, जिस से पुलिस को अहम सुराग मिला. छानबीन की गई तो विनीता के घर वालों के आरोप में सच्चाई नजर आई.

बोलेरो के नंबर और मालिक का पता चलने के बाद पुलिस को सारी सच्चाई का पता चल गया. पुलिस ने नर्स विनीता की हत्या का सनसनीखेज परदाफाश कर उस के शादीशुदा प्रेमी 28 वर्षीय विजय को 3 अक्तूबर को झरना नाला क्षेत्र से गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने आरोपी विजय से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने विनीता यादव की हत्या करने का जुर्म कुबूल करते हुए सारा राज उगल दिया. उस ने बताया कि इस वारदात में उस का दोस्त अंशुल भी शामिल था. उसी की बोलेरो से घटना को अंजाम दिया गया.

25 वर्षीय विनीता यादव मूलरूप से उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के सिरसागंज क्षेत्र की रहने वाली थी. वह आगरा के थाना हरिपर्वत स्थित दिल्ली गेट के एक नर्सिंग होम में नर्स थी. वह नुनिहाई में किराए पर रहती थी. वहीं फिरोजाबाद जिले के नगला मोहन क्षेत्र का रहने वाला 28 वर्षीय विजय यादव भी एक दूसरे अस्पताल में नर्सिंग स्टाफ था.

चूंकि विनीता और विजय एक ही कार्यक्षेत्र में जुड़े थे, एक दिन काम के दौरान दोनों की जानपहचान हो गई. साथसाथ काम करते रहने से दोनों में दोस्ती हो गई, जो प्यार में बदल गई. इस के बाद दोनों एकदूसरे से खुल कर मिलने लगे. मगर इस बात की खबर दोनों के घर वालों को नहीं लग सकी.

पिछले डेढ़ साल से विजय और विनीता लिवइन रिलेशन में रह रहे थे. विनीता ने अपने मकान मालिक को बता रखा था कि विजय उस का पति है. इस तरह विजय का जब मन होता, वह विनीता से मिलने उस के कमरे पर पहुंच जाता और 1-2 दिन रुक कर चला जाता था.

पहले विनीता का व्यवहार ठीक था. मगर कुछ महीनों से वह किसी और से फोन पर काफी लंबी बातें करने लगी. इस बात पर विजय को आपत्ति थी. मना करने पर वह झगड़ा करती थी और उसे जेल भिजवाने की धमकी देती थी.

विनीता शादी करने का उस पर लगातार दबाव भी बना रही थी. जबकि विजय पहले से ही शादीशुदा था. यह बात उस ने विनीता से छिपाई थी. उसे शक था कि विनीता उस से दूरी बना रही है. किसी और को पसंद करने लगी है. इसलिए उस ने विनीता को रास्ते से हटाने की साजिश दोस्त अंशुल के साथ रची.

विजय ने 26 सितंबर, 2022 को योजना को अमलीजामा देने के लिए अपने दोस्त अंशुल को फोन कर अपनी बोलेरो ले कर आने को कहा. इस के बाद विनीता को फोन कर मंडी समिति ट्रांस यमुना कालोनी की सर्विस रोड पर मिलने के बहाने से बुलाया.

विनीता पैदल वहां पहुंची थी. उस समय अंधेरा हो गया था. विजय और अंशुल बोलेरो में बैठे थे. विनीता को देखते ही वह पहचान गया.

उस के सड़क पर आते ही विजय ने अंशुल को इशारा किया. इशारा मिलते ही अंशुल ने बोलेरो से उसे तेज टक्कर मार दी ताकि किसी को शक न हो और लोगों को यह हादसा लगे. विनीता को कुचल कर विजय और उस का दोस्त अंशुल तेजी से बोलेरो को घटनास्थल से भगा ले गए.

लिवइन रिलेशन में रहने वाली नर्स प्रेमिका विनीता की हत्या के बाद विजय थाना एत्माद्दौला में उस की गुमशुदगी भी दर्ज कराने पहुंच गया था. इतना ही नहीं, अगले दिन शव की शिनाख्त अपनी पत्नी विनीता के रूप में कर उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया.

26 सितंबर, 2022 की देर रात किसी राहगीर ने पुलिस को सर्विस रोड पर लहूलुहान हालत में एक युवती के पड़े होने की सूचना दी. पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंचने के बाद उसे अस्पताल में भरती कराया. कुछ देर बाद ही युवती की मौत हो गई. पुलिस ने इसे सड़क हादसा माना था.

शातिर विजय यादव ने चालाकी दिखाते हुए 26 सितंबर को ही थाना एत्माद्दौला में विनीता की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. उस ने नर्स प्रेमिका की मौत को हादसा दर्शाने की भरपूर कोशिश की और किसी हद तक वह अपने मंसूबे में सफल भी हो गया था.

गुमशुदगी में विजय ने विनीता को अपनी पत्नी बताया था. दूसरी ओर पुलिस मृतका की शिनाख्त कराने का प्रयास कर रही थी. तभी पुलिस को पता चला कि विजय यादव नाम के युवक ने अपनी पत्नी की गुमशुदगी दर्ज कराई है.

तब पुलिस ने विजय को मृतक युवती की शिनाख्त करने के लिए थाने बुलाया. विजय का गुमशुदगी दर्ज कराना, विनीता को अपनी पत्नी बताना ही उस के गले की फांस बन गया और उस की सारी चालाकी धरी की धरी रह गई.

वहीं विनीता के घर वालों का आरोप था कि विजय अब भी झूठ बोल रहा है. विजय शादीशुदा है, उस ने झूठ बोल कर विनीता को अपने प्रेम जाल में फंसा लिया था. वह उसे शादी का झांसा दे कर उस की तनख्वाह भी रख लेता था. विनीता ने जब शादी के लिए विजय पर दबाव बनाया तो उस ने उस की हत्या कर दी.

कहानी लिखे जाने तक अंशुल की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी. पुलिस उस की सरगर्मी से तलाश कर रही है. विनीता की जिस बोलेरो से कुचल कर हत्या की गई थी, पुलिस ने उसे बरामद कर लिया.

पुलिस ने हत्यारे प्रेमी विजय यादव को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. अपने इश्क को खूनी अंजाम तक पहुंचाने वाला विजय अब सलाखों के पीछे कैद है.

नर्स विनीता की सनसनीखेज हत्या का पुलिस ने परदाफाश करने के बाद एसपी (सिटी) विकास कुमार ने एक प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर पूरी घटना की जानकारी दी.

विजय और अंशुल का जुर्म की दुनिया से कोई वास्ता नहीं था, लेकिन दोनों ने पेशेवर हत्यारों को भी मात दे दी थी. दोनों ने फूलप्रूफ मर्डर की प्लानिंग बड़ी होशियारी से की थी.

विजय यादव ने शातिरदिमाग से पुलिस को चकमा दे दिया था. लेकिन मृतका के घर वालों के शक जताने पर पुलिस ने मामले की छानबीन कर हत्यारे को दबोच लिया. इस तरह हत्या का राजफाश हो गया.     द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित