
तनहाई, 2 जवां दिल और किसी के आने का कोई डर न हो तो बहकने में देर नहीं लगती. कभीकभी रिशा और साहेब के भी दिल बहकने लगते, लेकिन रिशा जल्द ही संभल जाती. इस के बाद वह साहेब को भी बहकने से रोक लेती.
लेकिन संभलते संभलते भी उस रोज ठंड में न चाहते हुए भी रिशा बहक गई थी. इस के बाद तो रिशा को इस आनंद का चस्का सा लग गया था. उस आनंद को पाने के लिए वह हर वक्त उतावली रहने लगी थी. साहेब भी यही चाहता था.
जब दोनों तनहाई का ज्यादा ही फायदा उठाने लगे तो उन के इस मिलन की खुशबू फैलने लगी. पहले यह खुशबू पड़ोस वालों तक पहुंची. इस के बाद उन्होंने ही इसे मुंशी रावत तक पहुंचा दिया. वह तो सन्न रह गए.
मुंशी रावत दोनों पर नजर रखने लगे तो एक दिन उन्हें प्यार भरी बातें करते हुए रंगेहाथों पकड़ लिया. उन्हें देख कर साहेब तो चुपचाप खिसक गया, लेकिन रिशा की जम कर पिटाई हुई. मारपीट कर मुंशी ने उसे सख्त हिदायत दी, ‘‘आज के बाद साहेब अगर इस घर में आया या तू ने उस से कोई वास्ता रखा तो मैं तेरी जान ले लूंगा.’’
मुंशी की क्रोध से जलती आंखों को देख कर रिशा कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा सकी थी. डर के मारे उस ने अपनी आंखें मूंद ली थीं. मुंशी पैर पटकता हुआ चला गया था. बाप के जाने के बाद ही रिशा की जान में जान आई थी. अब उस पर कड़ी नजर रखी जाने लगी थी. जिस की वजह से रिशा और साहेब का मिलना असंभव हो गया था.
मुंशी रिशा की शादी साहेब से बिलकुल नहीं करना चाहता, इसलिए उस के लिए लड़के की तलाश में लग गया. क्योंकि अब इस के अलावा उस के पास कोई दूसरा उपाय नहीं था.
बाराबंकी के ही थाना रामसनेही घाट के गांव मुरारपुर के रहने वाला बालकराम रावत लखनऊ के थाना गाजीपुर के इंदिरानगर के बी ब्लाक में सपरिवार रहता था. वह लखनऊ विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय पर्यावरण केंद्र में चपरासी था. उस के परिवार में पत्नी, 3 बेटियां और 2 बेटे किशोर कुमार तथा सुमित कुमार थे.
किशोर विद्यांत कालेज से बीकौम की पढ़ाई कर रहा था. किशोर भले ही अभी पढ़ रहा था, लेकिन बालकराम उस की शादी कर देना चाहते थे. उस के लिए रिश्ते भी आ रहे थे. जब उस के बारे में मुंशी रावत को पता चला तो रिशा की शादी के लिए वह भी बालकराम के यहां जा पहुंचा. रिशा सुंदर तो थी ही, बालकराम को पसंद आ गई. उस ने शादी के लिए हामी भर दी.
4 फरवरी, 2014 को रिशा और किशोर कुमार का विवाह धूमधाम से हो गया. कुछ दिन ससुराल में रह कर रिशा मायके आ गई. अब उस की विदाई अप्रैल में नवरात्र में होनी थी. पिता के डर से रिशा शादी का विरोध नहीं कर पाई थी, और किशोर से शादी कर ली थी. लेकिन अभी भी उस के मन में साहेब ही था.
वैसे भी वह मात्र 3 दिन ही ससुराल में रही थी. इतने दिनों में वह पति को जितना समझ पाई थी, उस से उस ने यही अंदाजा लगाया था कि वह बहुत ही सीधासादा है. इसलिए रिशा को लगा कि पति से उसे कोई परेशानी नहीं होगी.
18 मार्च की शाम साढ़े 5 बजे के करीब बालकराम रावत के मोबाइल पर किसी अनजान ने फोन कर के कहा, ‘‘तुम अपने बेटे किशोर को ढूंढ रहे हो न? तुम्हारे बेटे की लाश चिनहट में मल्हौर रेलवे क्रासिंग के पास एक खाली प्लौट में पड़ी है, जा कर उसे ले आओ.’’
इतना कह कर उस आदमी ने फोन काट दिया था.
उस ने बालकराम को कुछ कहने का मौका नहीं दिया था, इसलिए उस ने कई बार वह नंबर मिलाया. लेकिन फोन बंद होने की वजह से फोन नहीं मिला.
किशोर के बारे में बालकराम को कुछ पता नहीं था, इसलिए उस ने तुरंत बेटे को फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद था. फोन बंद होने से वह घबरा गया. उस ने पत्नी से पूछा कि किशोर कहां है तो पत्नी ने कहा, ‘‘किशोर एक बजे के करीब अपने किसी दोस्त घनश्याम से मिलने की बात कह कर घर से निकला था. उस के बाद से उस का कुछ पता नहीं है.’’
किसी अनहोनी की आशंका से बालकराम का दिल धड़क उठा. किशोर का फोन भी नहीं मिल रहा था कि वह उस से संपर्क करता. कोई रास्ता न देख वह तुरंत थाना कोतवाली चिनहट जा पहुंचा. इंसपेक्टर विजयमल सिंह यादव को पूरी बात बताई तो वह एसएसआई राजेश दीक्षित और कुछ सिपाहियों को साथ ले कर किशोर की तलाश में निकल पड़े.
मल्हौर क्रासिंग के पास एक खाली प्लौट में सचमुच किशोर की लाश पड़ी थी. किशोर का चेहरा बुरी तरह कुचला हुआ था. पास ही खून से सना एक भारी पत्थर पड़ा था. हत्यारे ने उसी पत्थर से उस के चेहरे पर प्रहार कर के उस की हत्या की थी. लाश के पास ही शराब और बीयर की बोतलें एवं प्लास्टिक के 2 गिलास पड़े थे. इस का मतलब था कि हत्यारे ने पहले किशोर को शराब पिलाई थी, साथ में खुद बीयर पी थी.
किशोर नशे में बेसुध हो गया होगा तो हत्यारे ने उसी भारी पत्थर से किशोर की हत्या कर दी थी. जवान बेटे की लाश देख कर बालकराम का बुरा हाल था. पुलिस वालों ने किसी तरह उन्हें संभाला और अपनी काररवाई आगे बढ़ाई.
निरीक्षण के बाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए लखनऊ मैडिकल कालेज भिजवा दिया. रंक्तरंजित पत्थर ही नहीं, वहां पड़ी सारी सामग्री पुलिस ने कब्जे में ले ली थी. इस के बाद कोतवाली चिनहट में बालकराम की ओर से अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.
इंसपेक्टर विजयमल सिंह यादव ने उस नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया, जिस से बालकराम को फोन कर के किशोर की लाश पड़ी होने की सूचना दी गई थी. इस के साथ ही उस की काल डिटेल्स और लोकेशन भी निकलवाई गई. उस फोन की आईडी निकलवाई गई तो पता चला कि वह फोन बाराबंकी के थाना असंद्रा के गांव देवीगंज सूरजपुर के रहने वाले एक नाई का था.
पुलिस ने वहां जा कर नाई से पूछताछ की तो उस ने बताया कि जिस दिन की घटना है, उसी दिन उस का मोबाइल चोरी हो गया था. पुलिस ने आसपास वालों से पूछताछ की तो उन लोगों ने बताया कि नाई सच बोल रहा है. मोबाइल चोरी होने के बाद उस ने तमाम लोगों से यह बात बताई थी. फिर वह दुकान छोड़ कर कहीं गया भी नहीं था.
अब तक यह साफ हो चुका था कि किशोर की हत्या उसी आदमी ने की थी, जिस ने नाई का मोबाइल फोन चुराया था. यह निश्चित था कि नाई का मोबाइल वहीं के किसी आदमी ने चुराया होगा. पुलिस ने नाई से पूछताछ की तो उस ने कई नामों पर शक व्यक्त किया. उन्हीं में एक नाम घनश्याम उर्फ साहेब का भी था.
12 दिसंबर, 2013 की सुबह के 4 बजे का समय था. लखनऊ की सब से पौश कालोनी आशियाना स्थित थाना आशियाना में सन्नाटा पसरा हुआ था. थाने में पहरे पर तैनात सिपाही और अंदर बैठे दीवान के अलावा कोई नजर नहीं आ रहा था. तभी साधारण सी एक जैकेट पहने 25 साल का एक युवक थाने में आया.
पहरे पर तैनात सिपाही से इजाजत ले कर वह ड्यूटी पर तैनात दीवान के सामने जा खड़ा हुआ. पूछने पर उस ने बताया, ‘‘दीवान साहब, मैं यहां से 2 किलोमीटर दूर किला चौराहे के पास आशियाना कालोनी में किराए के मकान में रहता हूं. मेरी बीवी मर गई है, थानेदार साहब से मिलने आया हूं.’’
सुबहसुबह ऐसी खबरें किसी भी पुलिस वाले को अच्छी नहीं लगतीं. दीवान को भी अच्छा नहीं लगा. वह उस युवक से ज्यादा पूछताछ करने के बजाए उसे बैठा कर यह बात थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह को बताने चला गया. सुधीर कुमार सिंह को कच्ची नींद में ही उठ कर आना पड़ा. उन्होंने थाने में आते ही युवक से पूछा, ‘‘हां भाई, बता क्या बात है?’’
बुरी तरह घबराए युवक ने कहा, ‘‘साहब, मेरा नाम सचिन है और मैं रुचिखंड के मकान नंबर ईडब्ल्यूएस 2/341 में किराए के कमरे में रहता हूं. यह मकान पीडब्ल्यूडी कर्मचारी गुलाबचंद सिंह का है. उन का बेटा अजय मेरा दोस्त है. जिस कमरे में मैं रहता हूं, वह मकान के ऊपर बना हुआ है. मेरी पत्नी ने मुझे दवा लेने के लिए भेजा था, जब मैं दवा ले कर वापस आया तो देखा, मेरी पत्नी छत के कुंडे से लटकी हुई थी. मैं ने घबरा कर उसे हाथ लगाया तो वह नीचे गिर गई. वह मर चुकी है.’’
‘‘घटना कब घटी?’’ सुधीर कुमार सिंह ने पूछा तो सचिन ने बताया, ‘‘रात 10 बजे.’’
‘‘तब से अब तक क्या कर रहे थे?’’ यह पूछने पर सचिन बोला, ‘‘रात भर उस की लाश के पास बैठा रोता रहा. सुबह हुई तो आप के पास चला आया.’’
सचिन ने आगे बताया कि वह यासीनगंज के मोअज्जमनगर का रहने वाला है और एक निजी कंपनी में नौकरी करता है. उस के पिता का नाम रमेश कुमार है. सचिन की बातों में एसओ सुधीर कुमार सिंह को सच्चाई नजर आ रही थी.
मामला चूंकि संदिग्ध लग रहा था, इसलिए उन्होंने इस मामले की सूचना क्षेत्राधिकारी कैंट बबीता सिंह को दी और सचिन को ले कर पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने जब उस के कमरे का दरवाजा खोला तो फर्श पर एक कमउम्र लड़की की लाश पड़ी थी. उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह शादीशुदा रही होगी.
इसी बीच सीओ कैंट बबीता सिंह भी वहां पहुंच गई थीं. सचिन की पूरी बात सुनने के बाद उन्होंने लड़की की लाश को गौर से देखा. उन्हें यह आत्महत्या का मामला नहीं लगा. बहरहाल, घटनास्थल की प्राथमिक काररवाई निपटा कर पुलिस ने मृतका की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और सचिन को थाने ले आई. कुछ पुलिस वालों का कहना था कि सचिन की बात सच है. लेकिन बबीता सिंह यह मानने को तैयार नहीं थीं. उन्होंने मृतका के गले पर निशान देखे थे और उन का कहना था कि संभवत: उस का गला घोंटा गया है.
कुछ पुलिस वालों का कहना था कि अगर सचिन ने ऐसा किया होता तो वह खुद थाने क्यों आता? अगर उस ने हत्या की होती तो वह भाग जाता. इस तर्क का सीओ बबीता सिंह के पास कोई जवाब नहीं था. बहरहाल, हकीकत पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल सकती थी.
सावधानी के तौर पर पुलिस ने सचिन को थाने में ही बिठाए रखा. इस बीच सचिन पुलिस को बारबार अलगअलग कहानी सुनाता रहा. देर शाम जब पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो इस मामले से परदा उठा. पता चला, मृतका की मौत दम घुटने से हुई थी और उसे गला घोंट कर मारा गया था.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखने के बाद पुलिस ने सचिन से थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो उस ने मुंह खोल दिया. सचिन ने जो कुछ बताया, वह एक किशोरी द्वारा अविवेक में उठाए कदम और वासना के रंग में रंगे एक युवक की ऐसी कहानी थी, जो प्यार के नाम पर दुखद परिणति तक पहुंच गई थी. मृतका सोफिया थी.
मिसकाल से शुरू हुई सचिन और सोफिया की प्रेमकहानी काफी आगे बढ़ चुकी थी. फोन पर होने वाली बातचीत के बाद दोनों के मन में एकदूसरे से मिलने की इच्छा बलवती होने लगी थी. तभी एक दिन सचिन ने कहा, ‘‘सोफिया, हमें आपस में बात करते 2 महीने बीत चुके हैं. अब तुम से मिलने का मन हो रहा है.’’
‘‘सचिन, चाहती तो मैं भी यही हूं. लेकिन कैसे मिलूं, समझ में नहीं आता. मैं अभी तक कभी अजगैन से बाहर नहीं गई हूं. ऐसे में लखनऊ कैसे आ पाऊंगी?’’ सोफिया ने कहा तो सचिन सोफिया की नादानी और भावुकता का लाभ उठाते हुए बोला, ‘‘इस का मतलब तुम मुझ से प्यार नहीं करतीं. अगर प्यार करतीं तो ऐसा नहीं कहतीं. प्यार इंसान को कहीं से कहीं ले जाता है.’’
‘‘ऐसा मत सोचो सचिन. तुम कहो तो मैं अपना सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे पास चली आऊं?’’ सोफिया ने भावुकता में कहा.
‘‘ठीक है, तुम 1-2 दिन इंतजार करो, तब तक मैं कुछ करता हूं.’’ कह कर सचिन ने बात खत्म कर दी.
दरअसल वह किसी भी कीमत पर सोफिया को हासिल करना चाहता था. इस के लिए वह मन ही मन आगे की योजना बनाने लगा. सचिन का एक दोस्त था सुवेश. सचिन ने उस से कोई कमरा किराए पर दिलाने को कहा.
सुवेश को कोई शक न हो, इसलिए सचिन ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘दरअसल मैं एक लड़की से प्यार करता हूं और मैं ने उस से शादी करने का फैसला कर लिया है. चूंकि मेरे घर वाले अभी उसे घर में नहीं रखेंगे, इसलिए तुम किसी का मकान किराए पर दिला दो तो बड़ी मेहरबानी होगी. बाद में जब घर के लोग राजी हो जाएंगे तो मैं उसे ले कर अपने घर चला जाऊंगा.’’
अगले अंक में पढ़िए कैसे पहुंचाया सचिन ने सोफ़िया को मौत की कगार पर?
कड़ाके की ठंड में अगर रिमझिम बारिश हो रही हो तो ठंड को अपना विकराल रूप दिखाने का बढि़या मौका मिल जाता है. रोज की तरह ठंड की उस बारिश में दोपहर को साहेब रिशा के घर पहुंचा तो वह रजाई में दुबकी बैठी थी. एकदूसरे को देख कर दोनों मुसकराए. इस के बाद हथेलियों को आपस में रगड़ते हुए साहेब बोला, ‘‘भई, आज तो गजब की ठंड है.’’
‘‘इसीलिए तो रजाई में दुबकी बैठी हूं.’’ रिशा बोली, ‘‘रजाई छोड़ने का मन ही नहीं हो रहा है. लेकिन इस ठंड में तुम यहां कहां घूम रहे हो?’’
‘‘घूम नहीं रहा हूं. सुबह से तुम्हें देखा नहीं था. इसलिए इस ठंड में नहीं रहा गया तो तुम्हें देखने चला आया,’’ साहेब ने रिशा को लगभग घूरते हुए कहा, ‘‘सोचा था, तुम आग जलाए हाथ सेंक रही होओगी तो थोड़ी देर मैं भी उसी में हाथ सेंक लूंगा. लेकिन यहां तो हाल कुछ और ही है. लगता है, मुझ से ज्यादा तुम्हें गरमी की जरूरत है. अब तुम्हारी ठंड कुछ दूसरी ही तरह से दूर करनी पड़ेगी.’’
इतना कह कर साहेब ने रिशा के चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों के बीच ले लिया.
रिशा ने झटके से उस के हाथों को अलग किया और ठंडे हो गए गालों को हथेलियों से मलते हुए बोली, ‘‘तुम्हारे हाथ कितने ठंडे हैं, एकदम बर्फ हो रहे हैं.’’
‘‘रिशा, कुछ चीजें ऊपर से भले ही ठंडी लग रही हों, लेकिन अंदर से बहुत गरम होती हैं.’’ साहेब ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अगर मेरी बात पर विश्वास न हो तो कर के दिखाऊं. अभी मेरे ये ठंडे हाथ तुम्हें पलभर में गरम लगने लगेंगे.’’
साहेब की इस बात से रिशा के गाल शरम से लाल हो गए. उस ने आंखें मटका कर उसे प्यार से डांटते हुए कहा, ‘‘कितनी बार कहा कि इस तरह की बातें मुझ से मत किया करो. तुम्हें तो शरम आती नहीं. अपनी ही तरह दूसरे को भी बेशरम समझते हो.’’
‘‘तो फिर कैसी बातें किया करूं?’’ साहेब ने अपना चेहरा रिशा के चेहरे के एकदम पास ला कर उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा.
‘‘उस तरह की अच्छीअच्छी बातें, जैसी दूसरे लोग किया करते हैं.’’
‘‘भई प्रेम करने वालों की बातें कहीं से भी शुरू हों, अंत में वह वहीं पहुंच जाती हैं.’’
‘‘साहेब, अभी हम सिर्फ प्रेम करते हैं, हमारी शादी नहीं हुई है.’’
‘‘प्रेम हो गया है तो शादी भी हो जाएगी.’’
‘‘जब शादी हो जाएगी तब जो मन में आए, वह कर लेना.’’
‘‘जब प्रेम ही करना है तो चाहे शादी के पहले करो या बाद में, क्या फर्क पड़ता है.’’
रिशा को साहेब की इन बातों में मजा आने लगा था. इसलिए उस ने मुसकरा कर पूछा, ‘‘शादी के बाद कोई दूसरी तरह का प्यार किया जाता है क्या?’’
‘‘वह तो शादी के बाद ही पता चलेगा. लेकिन अगर तुम चाहो तो वह मैं प्यार शादी के पहले भी कर सकता हूं.’’ साहेब ने कहा.
‘‘फिर वही बात करने लगे.’’ रिशा ने आंखें तरेर कर नाराजगी व्यक्त की.
‘‘तुम भी तो उसी तरह की बातें कर रही हो.’’
रिशा साहेब की इस बात का जवाब देने ही जा रही थी कि हवा का तेज झोंका कमरे में घुसा तो ठंड से रिशा और साहेब, दोनों ही कांप उठे. रिशा ने रजाई को लपेटते हुए कहा, ‘‘लगता है, आज की ठंड जान ले कर ही मानेगी.’’
‘‘किसी की जान भले ही न जाए, लेकिन मेरी जरूर चली जाएगी.’’
‘‘वह कैसे?’’
‘‘तुम तो रजाई ओढ़ कर बैठी हो, जबकि में खुले दरवाजे के सामने खड़ा ठंड से कांप रहा हूं.’’ साहेब ने कहा.
‘‘दरवाजा बंद कर के तुम भी रजाई में घुस जाओ.’’ रिशा ने जल्दी से कहा.
साहेब को इसी का तो इंतजार था. रिशा ने दरवाजा बंद करने को कहा था, इसलिए उस ने जल्दी से दरवाजा बंद कर के सिटकनी लगा दी. इस के बाद फुरती से रजाई में घुस गया और रिशा के हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘रिशा, तुम और तुम्हारी रजाई कितनी गरम है. अपनी तरह मुझे भी गरम कर दो न.’’
‘‘मेरी रजाई में तुम क्यों घुस आए?’’ रिशा हड़बड़ा कर बोली, ‘‘कोई आ गया तो बेकार में बात का बतंगड़ बनेगा.’’
‘‘रिशा, शायद तुम्हें पता नहीं कि प्यार में उन्हीं का नाम होता है, जो बदनाम होते हैं.’’
‘‘समझने की कोशिश करो साहेब,’’ रिशा ने कहा, ‘‘तुम लड़के हो, तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा. लेकिन मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाऊंगी.’’
‘‘मैं चाहता भी यहीं हूं कि मेरे अलावा तुम्हारा मुंह कोई दूसरा न देखे. तुम्हारा यह मुंह सिर्फ मैं देखूं.’’ साहेब ने रजाई के अंदर ही रिशा को बांहों में भर कर कहा.
साहेब की इस हरकत से रिशा के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई. साहेब के इस स्पर्श ने उसे इस तरह रोमांचित किया कि वह भी उस से लिपट गई. उस की पलकें लगभग मुंद सी गई थीं. साहेब ने इस का भरपूर लाभ उठाया और फिर वही हुआ, जो रिशा शादी के बाद करना चाहती थी.
उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी के थाना रामसनेही घाट के गांव अंगदपुर बुढ़ेला में रहते थे मुंशी रावत. उस का भैंसों का कारोबार था. उस के परिवार में पत्नी राधा के अलावा 2 बेटियां और 2 बेटे थे. बड़ी बेटी आयशा का विवाह हो चुका था. रिशा हाईस्कूल में पढ़ रही थी. जबकि दोनों बेटे कैलाश और विमलेश अभी छोटे थे. वे भी पढ़ रहे थे.
बात उस समय की है, जब रिशा दसवीं में पढ़ रही थी. उस समय उस की उम्र 16 साल थी. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही रिशा की खूबसूरती में एकदम से निखार आ गया था. उसे चाहने वालों की कमी नहीं थी. लेकिन उसे तो घनश्याम उर्फ साहेब भा गया था.
मुंशी रावत के मकान के बराबर वाले मकान में परशुराम रावत उर्फ परशू रहते थे. अगलबगल घर होने की वजह से दोनों परिवारों में खूब मेलजोल था. दोनों ही घरों के लोग एकदूसरे के घर बेरोकटोक आतेजाते थे. परशुराम की पत्नी का भतीजा था घनश्याम उर्फ साहेब. वह बाराबंकी के थाना असंद्रा के गांव देवीगंज का रहने वाला था. उस के पिता शंकरलाल रावत खेतीकिसानी करते थे. साहेब अकसर अपनी बुआ के यहां गांव अंगदपुर बुढ़ेला आताजाता रहता था.
इसी आनेजाने में उस की नजर खूबसूरत रिशा पर पड़ी तो पहली ही नजर में वह उसे दिल दे बैठा. जैसी लड़की की चाहत उस के दिल में थी, रिशा ठीक वैसी थी. रिशा का हसीन चेहरा उस की आंखों के रास्ते दिल में उतर गया.
साहेब को रिशा से मिलनेजुलने में वैसे भी कोई दिक्कत नहीं थी, क्योंकि उस की बुआ के घर वाले उस के यहां खूब आतेजाते थे. उन्हीं की वजह से वह भी रिशा के घर आनेजाने लगा. फिर जल्दी ही उस ने रिशा से दोस्ती गांठ ली. दोनों में खूब पटने लगी. वजह यह थी कि रिशा भी साहेब को पसंद करती थी. दोनों ही एकदूसरे को चाहते थे. इसलिए उन्हें इजहार करने में देर नहीं लगी.
दोनों घरों की छतें मिली थीं, इसलिए साहेब छत के रास्ते रिशा के पास पहुंच जाता था. इस के बाद छत पर बने कमरे में बैठ कर दोनों घंटों प्यार की बातें करते रहते. प्रेम के भंवर में डूबतीउतराती रिशा कहती, ‘‘साहेब, मैं ने तुम से प्यार ही नहीं किया, बल्कि तुम्हें अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया है. इस की लाज रखना. कभी मेरा दिल मत तोड़ना.’’
‘‘कैसी बात करती हो रिशा, तुम्हारा दिल अब मेरी जिंदगी है. हर कोई अपनी जिंदगी को संभाल कर रखता है.’’
‘‘इसी भरोसे पर तो मैं ने तुम से प्यार किया है. मन और आत्मा से वरण कर के सात जन्मों के लिए मैं तुम्हारी हो चुकी हूं. अब देखना है कि तुम किस हद तक अपना यह प्यार और वादा निभाते हो.’’
‘‘प्यार निभाने की कोई हद नहीं होती रिशा. प्यार और किया गया वादा निभाने के लिए मैं किसी भी हद तक जा सकता हूं.’’ साहेब ने रिशा को आश्वस्त किया.
‘‘पता नहीं, वह दिन कब आएगा, जब मैं पूरी तरह से तुम्हारी हो जाऊंगी.’’
‘‘विश्वास रखो रिशा, वह दिन जल्दी ही आएगा.’’ रिशा का हाथ अपने हाथों में ले कर साहेब ने कहा, ‘‘क्योंकि हमारी शादी में कोई अड़चन नहीं है. हम एक ही धर्मजाति के हैं. हमारा सामाजिक और आर्थिक स्तर भी एक जैसा है. सब से बड़ी बात तो यह कि हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं.’’
साहेब की बातें रिशा को यकीन दिलाती ही थीं, उसे खुद भी पूरा यकीन था कि उस की शादी में कोई अड़चन नहीं आएगी. इसलिए उसे अपने प्यार और भविष्य के प्रति कभी नकारात्मक विचार नहीं आते थे. उसे हर पल साहेब का इंतजार रहता था. उस के आते ही वह खुली आंखों से भविष्य के सपने देखने लगती थी.
उन्नाव जिले के गांव हरचंदपुर के रहने वाले रफीक के परिवार में पत्नी रेहाना के अलावा 2 बेटे थे और 2 बेटियां. खेतीकिसानी के काम में ज्यादा आय न होने के बावजूद रफीक चाहते थे कि उन के बच्चे पढ़लिख कर किसी लायक बन जाएं. इसीलिए उन्होंने अपनी बड़ी बेटी सोफिया को पढ़ाने में कोई कोताही नहीं की थी. सोफिया हाईस्कूल कर के आगे की पढ़ाई कर रही थी. उसे चूंकि स्कूल जाना होता था, इसलिए रफीक ने उसे मोबाइल फोन ले कर दे दिया था, ताकि वक्तजरूरत पर घर से संपर्क कर सके. नातेरिश्तेदारों के फोन भी उसी फोन पर आते थे.
जैसा कि आजकल के बच्चे करते हैं, फोन मिलने के बाद सोफिया का ज्यादातर वक्त फोन पर ही गुजरने लगा. सहेलियों को एसएमएस भेजना, उन से लंबीलंबी बातें करना उस की आदत में शुमार हो गया. यहां तक कि उस के मोबाइल पर कोई मिसकाल भी आती तो वह उस नंबर पर फोन कर के जरूर पूछती कि मिसकाल किस ने दी.
एक दिन सोफिया के फोन पर एक मिसकाल आई तो उस ने फोन कर के पूछा कि वह किस का नंबर है. वह नंबर लखनऊ के यासीनगंज स्थित मोअज्जम नगर के रहने वाले सचिन का था. उस ने सोफिया को बताया कि किसी और का नंबर लगाते वक्त धोखे से उस का नंबर मिल गया होगा और काल चली गई होगी.
बातचीत हुई तो सचिन ने सोफिया को अपना नाम ही नहीं, बल्कि यह भी बता दिया कि वह लखनऊ के मोअज्जमनगर का रहने वाला है. बात हालांकि वहीं खत्म हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सोफिया को सचिन की बातें इतनी अच्छी लगीं कि उस ने उस का नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया.
सचिन को भी सोफिया से बात करना अच्छा लगा था. इसलिए उस ने भी बिना नाम के ही उस का नंबर अपने मोबाइल फोन में सेव कर लिया था. करीब एक हफ्ते बाद अचानक सचिन का फोन आया तो मोबाइल स्क्रीन पर उस का नाम देख कर सोफिया खुशी से उछल पड़ी. उस ने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से कहा गया, ‘‘मैं सचिन बोल रहा हूं. पहचाना मुझे?’’
‘‘तुम्हारा नंबर मेरे मोबाइल में सेव है.’’ सोफिया ने खुश हो कर कहा, ‘‘तुम्हारी आवाज सुनने से पहले ही पता चल गया था कि तुम हो. कहो, कैसे हो सचिन?’’
‘‘अरे वाह, तुम ने मेरा नंबर सेव कर रखा है. मैं तो डर रहा था कि कहीं बुरा न मान जाओ. इसलिए फोन भी नहीं किया.’’ सचिन ने कहा तो सोफिया बोली, ‘‘बुरा क्यों मानूंगी, तुम ने ऐसा कुछ तो कहा नहीं था, जो बुरा मानने लायक हो.’’
सोफिया की खुशी से खनकती आवाज सुन कर सचिन को लगा कि लड़की उस से बातचीत करने में रुचि ले रही है. इसलिए उस ने इस सिलसिले को आगे बढ़ाने के लिए कहा, ‘‘मैं खुशनसीब हूं, जो तुम ने मेरे दोबारा फोन करने का बुरा नहीं माना. पर हो सकता है, अब बुरा मान जाओ.’’
‘‘क्यों, मैं भला बुरा क्यों मानूंगी?’’
‘‘इसलिए कि मैं यह जानना चाहता हूं कि मैं जिस से बात कर रहा हूं, उस का नाम क्या है. बोलो, बताओगी?’’
‘‘इस में बुरा मानने की क्या बात है. मेरा नाम सोफिया है और मैं उन्नाव के गांव हरचंदपुर की रहने वाली हूं.’’
‘‘जब इतना बता दिया है तो फिर यह भी बता दो कि करती क्या हो, दिखती कैसी हो? और भी कुछ बताना चाहो तो वह भी.’’ सचिन ने सोफिया को बातों के जाल में उलझाने के लिए कहा तो सोफिया हलकी सी हंसी के साथ बोली, ‘‘मैं हाईस्कूल कर चुकी हूं, आगे पढ़ रही हूं. मुझे फोन पर बात करना बहुत अच्छा लगता है. रही बात दिखने की तो मेरी आवाज से खुद ही अंदाजा लगा लो कि मैं कैसी दिखती हूं.’’
‘‘तुम्हारी आवाज और मेरा दिल, दोनों ही एक बात कह रहे हैं कि तुम बहुत खूबसूरत होगी. खूबसूरत आंखें, गोरा रंग, छरहरा बदन.’’ सचिन ने कहा तो सोफिया हंसते हुए बोली, ‘‘तुम ज्योतिषी हो क्या? बिना देखे ही मेरे बारे में सारी बातें पता चल गईं.’’
सोफिया की इस बात से सचिन को उस में और भी दिलचस्पी बढ़ गई. वह उस से लंबी बात करना चाहता था. लेकिन सोफिया को स्कूल जाना था. इसलिए उस ने सचिन से कहा, ‘‘अभी नहीं, पढ़ाई भी जरूरी है. फोन करना हो तो रात में करना. तब आराम से बात हो जाएगी.’’
रात को फोन करने की बात सुन कर सचिन मन ही मन खिल उठा. उस का वह दिन बड़ी बेचैनी से गुजरा. रात हुई तो उस ने सोफिया को फोन किया. सोफिया सचिन के ही फोन का इंतजार कर रही थी. उसे पूरा यकीन था कि वह फोन जरूर करेगा. उस ने सचिन से बड़े प्यार से बात की. प्यार की सही परिभाषा को न समझने वाला उस का किशोर मन समझ रहा था कि सचिन उसे प्यार करने लगा है. इसलिए वह प्यार की ही बातें करना चाहती थी.
उस रात बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर आगे बढ़ता ही गया. अब सोफिया रात को रोजाना उस के फोन का इंतजार करती थी. इस के लिए दोनों के बीच समय तय था.
कामकाज से निपट कर रात में जैसे ही वह अपने कमरे में जाती, सचिन का फोन आ जाता. वह कानों में ईयरफोन लगा कर उस से देर तक बातें करती रहती. अब रात में वह अपना फोन साइलेंट मोड पर रखने लगी थी. उधर सचिन जो भी कमाता था, उस में से उस का ज्यादातर पैसा फोन पर ही खर्च होने लगा था.
एक दिन बातों ही बातों में सचिन ने कहा, ‘‘सोफिया, मुझे तुम से प्यार हो गया है. अब मैं तुम्हारे बिना रह नहीं पाऊंगा.’’
दरअसल इस बीच सोफिया की बातों से सचिन ने अंदाजा लगा लिया था कि जब तक वह सोफिया से प्यार की बात नहीं करेगा, वह उस के चंगुल में नहीं फंसेगी. इसीलिए उस ने यह चाल चली थी.
सोफिया तो कब से उस के मुंह से यही सुनने को तरस रही थी. वह बोली, ‘‘सचिन, जो हाल तुम्हारा है, वही मेरा भी है. मैं भी तुम से यही बात कहना चाहती थी. पर समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे कहूं. मैं गांव की रहने वाली सीधीसादी लड़की हूं. जबकि तुम शहर में रहते हो. सोचती थी कि मेरे बारे में पता नहीं क्या समझ बैठोगे, इसलिए कह नहीं पा रही थी. मैं भी तुम से उतना ही प्यार करती हूं, जितना तुम मुझ से करते हो.’’
सोफिया और सचिन भले ही दूरदूर रहते थे, पर दोनों अपने को एकदूसरे के बहुत करीब महसूस करते थे. बातों ने उन के बीच की सारी दूरियां मिटा दी थीं. सोफिया और सचिन को लगने लगा था कि अब वे एकदूसरे के बिना नहीं रह पाएंगे.
नादान सोफ़िया कैसे फंसी शातिर सचिन के जाल में? पढ़िए कहानी के अगले भाग में.
पुलिस ने राहुल और उस के भाइयों को गिरफ्तार करने के प्रयास किए तो राहुल ने वकील के माध्यम से ममता को अदालत में पेश कर के धारा 164 के तहत अपने पक्ष में बयान दिला दिया. ममता बालिग थी ही, अदालत ने ममता को राहुल के साथ रहने की इजाजत दे दी. राहुल बंगाली बाबू के सामने ही उन की बेटी को ले कर अपने घर में रहने लगा. राहुल उन्हें जलील करने के लिए छत पर खुलेआम ममता के गले में बांहें डाल कर अश्लील हरकतें करता.
बंगाली बाबू ने टोंका तो राहुल ही नहीं, प्रवीण, प्रमोद, दीपू और सुनील उन्हें गंदीगंदी गालियां देते हुए धमकी देने लगे कि वे उन की छोटी बेटी को भी ममता की तरह भगा ले जाएंगे. हद तो तब हो गई, जब एक दिन राहुल ने अपने भाइयों के साथ बंगाली बाबू के घर में घुस कर उन से मारपीट कर के उन से कहने लगा कि वह अपना मकान उन के नाम करा दें.
नेहा का प्रेमी प्रवीण भी अपने भाई राहुल की हर बुरे काम में पूरा सहयोग कर रहा था. यह सब देख कर वह डर गई कि एक दिन ये लोग यही सब उस की मां के साथ भी कर सकते हैं. यही सोच कर उस ने दृढ़ निश्चय कर लिया कि अब वह प्रवीण से अपना हर तरह का संबंध खत्म कर लेगी. प्रवीण की हरकतों को देख कर उसे उस से जितना प्यार था, उस से कहीं ज्यादा नफरत हो गई.
नेहा को प्रवीण और उस के भाइयों से डर भी लगने लगा, क्योंकि उन्होंने बंगाली बाबू और उन की पत्नी के साथ मारपीट भी की थी. यह देख कर उसे लगा कि ये लोग उस की मां पर भी हाथ उठा सकते हैं. उस के भाई के साथ भी कुछ उलटासीधा कर सकते हैं.
इस के बाद नेहा ने प्रवीण से मिलनाजुलना ही नहीं, फोन पर बात करना भी बंद कर दिया. प्रवीण उसे मिलने के लिए बुलाता तो वह इग्नोर कर देती. अब वह घर से भी नहीं निकलती थी. वह घर में रह कर अपनी पढ़ाई में लगी रहती. यही सब करते 10-12 दिन हो गए. इस बीच उस ने अपनी मां से भी कह दिया था कि उस से एक गलती हो गई है, जिसे वह सुधारने की कोशिश कर रही है.
कुसुमवती को पता था कि उन की बेटी से कौन सी गलती हुई है. वह चाहती थीं कि वह स्वयं ही तय करे कि प्रवीण उस के लायक है या नहीं. शायद नेहा समझ गई थी कि प्रवीण उस के लायक नहीं है. इसीलिए वह उसे इग्नोर कर रही थी.
प्रवीण को इस बात का अहसास हुआ तो नेहा का यह व्यवहार उसे पसंद नहीं आया. वह उस से मिल कर उस के बदले व्यवहार की वजह पूछना चाहता था. जबकि वह उसे मिलने का मौका नहीं दे रही थी, इसलिए एक दिन प्रवीण उस के पीछेपीछे उस की कोचिंग पहुंच गया. नेहा ने उस से बात नहीं की तो घर आ कर उस ने उसे फोन किया.
नेहा को पता था कि प्रवीण सीधे उस का पीछा छोड़ने वाला नहीं है. इसलिए उस ने फोन रिसीव कर के कहा, ‘‘आज के बाद तुम कभी मुझे फोन मत करना, क्योंकि अब मैं तुम से कोई संबंध नहीं रखना चाहती. यह हमारी अंतिम बातचीत है.’’
इतना कह कर नेहा ने फोन काट दिया.
नेहा की इस बात से प्रवीण भन्ना उठा. उसे लगा कि नेहा ने उसे इस तरह जवाब दे कर उस की दबंगई और मर्दानगी को थप्पड़ मारा है. गुस्से में सीधे वह नेहा के घर जा पहुंचा. नेहा उस समय अपने कमरे में पोछा लगा रही थी, साथ ही वाशिंग मशीन में कपड़े भी धुल रही थी. पानी की मोटर भी चल रही थी. पोछा की ही वजह से उस ने मकान के सभी दरवाजे खोल रखे थे. उसे क्या पता था कि उस के मना करने के बावजूद प्रवीण जबरदस्ती उस के घर आ जाएगा.
प्रवीण ने कमरे में जा कर नेहा के गाल पर एक थप्पड़ मार कर कहा, ‘‘मैं मिलने के लिए बुला रहा हूं तो कह रही है कि मैं नहीं आऊंगी, तेरी यह मजाल. मैं चाहूं तो तुझे अभी उठा ले जाऊं और किसी वेश्या बाजार में बेच दूं, मेरा कोई कुछ नहीं कर पाएगा. पुलिस भी हमारे ऊपर हाथ नहीं डाल सकती. देख तो रही है, ममता मेरे घर में है. उस का बाप ही नहीं, पुलिस भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाई.’’
प्रवीण की इस हरकत पर नेहा को भी गुस्सा आ गया. वह उस से भिड़ गई. इस पर प्रवीण बौखला उठा और उस ने नेहा की ऐसी धुनाई की कि उस का एक दांत टूट गया और होठ भी फट गया. इस तरह नेहा पर अपना गुस्सा उतार कर प्रवीण जिस तरह आया था, उसी तरह चला गया.
प्रवीण के जाने के बाद नेहा ने अपनी हालत पर गौर किया तो उसे लगा कि जब इस सब की जानकारी मां को होगी तो वह जीते जी मर जाएंगी. वह यह सब कैसे बरदाश्त करेंगी? जिस बेटी पर उन्होंने ईश्वर से भी ज्यादा विश्वास किया, उस ने उन्हें इतना बड़ा धोखा दिया.
वह जानती थी कि प्रवीण अपने भाइयों के साथ मिल कर कुछ भी कर सकता है. जब चाहे उसे उठा ले जा सकता है. उस की मां की भी बेइज्जती कर सकता है. उस के भाई के साथ भी कुछ उलटासीधा कर सकता है. यह सब सोच कर वह डर गई. उसे लगा कि अगर कुछ ऐसा होता है तो यह सब उसी की वजह से होगा. तब उसे लगा कि अगर वह नहीं रहेगी तो यह सब होने से बच जाएगा. यही सोच कर उस ने तय किया कि अब वह नहीं रहेगी. फिर उस ने गले में दुपट्टा बांध कर आत्महत्या कर ली.
प्रवीण के इस बयान के बाद पुलिस ने उस पर आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का मुकदमा दर्ज कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. उस के बाकी भाइयों के नाम निकाल दिए गए. नेहा की मां ने इन पांचों कौरवों के डर से वह मोहल्ला छोड़ दिया है. उन्हें लगता है कि पुलिस ने उन के साथ न्याय नहीं किया है, वह इस मामले की जांच सीबीसीआईडी से कराना चाहती हैं.
— कथा पुलिस सूत्रों एवं प्रवीण के बयान पर आधारित
कुसुमवती के घर के ठीक सामने मकान नंबर 153 में ओमप्रकाश कुशवाह अपने भाई चंद्रभान कुशवाह के साथ रहते थे. ओमप्रकाश विद्युत विभाग में नौकरी करते थे. उन के परिवार में पत्नी राजो के अलावा 3 बेटे प्रमोद, प्रवीन और राहुल तथा एक बेटी कृष्णा थी. नौकरी के दौरान ही ओमप्रकाश की मृत्यु हो गई तो उन की जगह पत्नी राजो को नौकरी मिल गई थी.
नौकरी मिलने से राजो का गुजरबसर तो आराम से होता रहा, लेकिन उस के तीनों बेटे उस के नियंत्रण से बाहर हो गए थे. मन होता था तो कोई कामधाम कर लेते, अन्यथा मां की तनख्वाह तो मिलती ही थी, उसी से मौज करते थे.
उसी मकान के आधे हिस्से में ओमप्रकाश के भाई चंद्रभान कुशवाह का परिवार रहता था. उस की भी मौत हो चुकी थी. उस का चाटपकौड़ी का काम था. असमय मौत के बाद उस का यह जमाजमाया व्यवसाय बंद हो गया था, क्योंकि उस के दोनों बेटों दीपू और सुनील ने इसे संभाला ही नहीं. मरने से पहले चंद्रभान बेटी बीना का ब्याह कर गया था. घर में पत्नी राजवती दोनों बेटों के साथ रहती थी.
ओमप्रकाश और चंद्रभान के पांचों बेटों में से कोई भी ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. राजो और राजवती ने अपने अपने बेटों को संभालने की भरसक कोशिश की थी, लेकिन जवान हो चुके पांचों लड़के उन के काबू में नहीं आए. वह हर रोज कोई न कोई ऐसा कारनामा कर आते कि राजो और राजवती का सिर नीचा हो जाता. इन पांचों भाइयों की ऐसी करतूते हैं कि पूरा मोहल्ला इन्हें 5 कौरव कहता था.
नौकरी की वजह से राजो को अपना घरपरिवार चलाने में कोई परेशानी नहीं होती थी, लेकिन कमाई का कोई साधन न होने की वजह से राजवती को परेशानी हो रही थी. काफी कहने सुनने के बाद सुनील एक गारमेंट कंपनी में ठेकेदारी करने लगा, जहां से उसे ठीकठाक कमाई होने लगी थी. पास में पैसा आया तो उस के ऐब और बढ़ गए थे. भाई की कमाई पर दीपू भी ऐश कर रहा था. उस के पास कोई कामधाम तो था नहीं, इसलिए वह मोहल्ले में दबंगई करने लगा. कुछ दिनों बाद सुनील का चचेरा भाई प्रमोद भी उसी के साथ ठेकेदारी करने लगा था. उस के पास भी पैसा आया तो वह भी घमंडी हो गया.
भाइयों की देखादेखी प्रवीण का मन भी कुछ करने को हुआ. वह भी चाहता था कि हर समय उस की जेब में हजार, 2 हजार रुपए पड़े रहें. इस के लिए उस ने एक मोबाइल कंपनी की एजेंसी में नौकरी कर ली. उसी बीच उस की नजर घर के सामने रहने वाली कुसुमवती की जवान हो रही बेटी नेहा पर पड़ी तो उस के लिए उस का दिल मचल उठा.
प्रवीण उम्र में उस से 3-4 साल बड़ा था, लेकिन चाहत उम्र कहां देखती है. उम्र के अंतर के बावजूद प्रवीण नेहा को चाहने लगा तो उस तक अपनी चाहत का पैगाम भेजने की कोशिश करने लगा. शुरूशुरू में उस ने आंखों से इशारा किया. इस पर नेहा ने उस की ओर ध्यान नहीं दिया. तब उस ने उसे रास्ते में रोकना शुरू किया.
शुरूशुरू में तो नेहा प्रवीण को इग्नोर करती रही, क्योंकि वह प्रेम वे्रम के पचड़े में नहीं पड़ना चाहती थी. लेकिन जब प्रवीण उस के पीछे हाथ धो कर पड़ गया तो धीरेधीरे वह भी उसे पसंद करने लगी. लेकिन उस की यह पसंद शादी वाली नहीं थी. वह सिर्फ उस से दोस्ती करना चाहती थी. यह बात मन में आते ही उस ने प्रवीण को नजरअंदाज करना बंद कर दिया. इस के बाद वह अपने कुछ कीमती पल उस के साथ शेयर करने लगी.
मिलनेजुलने में ही उन की यह दोस्ती प्यार में बदल गई, जिस का आभास नेहा को काफी देर से हुआ. फिर तो जब तक वह दिन में 1-2 बार प्रवीण को देख न लेती, उसे चैन ही न मिलता. नेहा पूरे दिन घर में अकेली ही रहती थी, इसलिए दिन में जब उस का मन होता, वह प्रवीण से बातें कर लेती. नेहा जिस प्यार को कभी बेकार की चीज समझती थी, अब वही उसे अच्छा लगने लगा था.
नेहा को अपने प्रेमी प्रवीण से मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी. मां औफिस चली जाती थी और भाई स्कूल, इस के बाद नेहा जब, जहां चाहती, फोन कर के प्रवीण को बुला लेती. फिर दोनों घंटों प्यार में डूबे रहते. प्रवीण का कुसुमवती की अनुपस्थिति में उस के घर ज्यादा आनाजाना हुआ तो आसपड़ोस वालों को अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि मामला क्या है.
फिर इस बात की जानकारी कुसुमवती को भी हो गई. लेकिन उन्होंने कभी नेहा पर यह नहीं जाहिर होने दिया कि उन्हें उस के और प्रवीण के संबंधों का पता चल गया है. हां, वह बेटी को घुमाफिरा कर जरूर समझाती रहती थीं कि प्यारव्यार सब बेकार की चीजें हैं. लड़कियों को इन सब पचड़ों में नहीं पड़ना चाहिए.
नेहा मां के इशारों को समझती थी, लेकिन अब तक वह प्रवीण के प्रेम में इस कदर डूब चुकी थी कि चाह कर भी वह उस से अलग नहीं हो पा रही थी, क्योंकि अब तक उस के प्रवीण से शारीरिक संबंध भी बन चुके थे. मां के ड्यूटी पर और भाई गौरव के स्कूल जाने के बाद नेहा घर में अकेली रह जाती थी. फिर क्या था, वह जब चाहती, प्रवीण को बुला लेती और जैसा आनंद चाहती, निश्चिंत हो कर उठाती थी. कभी प्रवीण से दूर भागने वाली नेहा अब उस के साथ विवाह कर के पूरी जिंदगी बिताना चाहती थी.
लेकिन अचानक एक ऐसी घटना घट गई, जिसे देख कर नेहा का विचार एकदम से बदल गया. प्रवीण के साथ पूरी जिंदगी बिताने का सपना देखने वाली नेहा उस से दूर भागने लगी.
दरअसल, हुआ यह कि 14 सितंबर, 2013 को नगला भवानी सिंह के ही मकान नंबर 163 में रहने वाले बंगाली बाबू की बेटी ममता अचानक घर से गायब हो गई.
बंगाली बाबू ममता की शादी तय कर चुके थे और पूरे जोरशोर से शादी की तैयारी कर रहे थे. ऐसे में बेटी का गायब हो जाना उन के लिए किसी आघात से कम नहीं था. उन्होंने थाना सदर बाजार में ममता की गुमशुदगी दर्ज करा दी. थाना सदर बाजार पुलिस ने जब इस मामले में जांच की तो पता चला कि ममता को मोहल्ले का ही राहुल भगा ले गया है.
राहुल प्रवीण का छोटा भाई था. ममता को भगाने में प्रवीण और उस के अन्य भाइयों, प्रमोद, सुनील और दीपू ने भी उस की मदद की थी. पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार करना चाहा तो सभी घर से फरार हो गए.
दोपहर के सवा 2 बजे के आसपास गौरव घर पहुंचा तो उसे दरवाज खुलवाने की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि दरवाजा पहले से ही खुला था. बरामदे में साइकिल खड़ी कर के वह सीधे अपने स्टडी रूम में घुस गया. बैग रख कर कपड़े बदले और किचन की ओर जाते हुए बहन को आवाज दी.
बहन ने कोई जवाब नहीं दिया तो उसे लगा कि नेहा कान में इयरफोन लगा कर गाने सुनते हुए घर के काम कर रही होगी, क्योंकि पानी की मोटर भी चल रही थी और वाशिंग मशीन में कपड़े भी धुले जा रहे थे. उस ने बहन की ओर ध्यान न दे कर प्लेट में दालचावल निकाला और अपने कमरे में जा कर खाने लगा.
गौरव खाना खा कर हाथ धो रहा था, तभी एक गंदा कुत्ता घर में घुस आया. उस के शरीर पर तमाम घाव थे, जिन से खून रिस रहा था. उसे भगाने के लिए गौरव ने डंडा उठाया तो वह भाग कर नेहा के कमरे में घुस गया. उस के पीछेपीछे गौरव कमरे में घुसा तो उस ने वहां जो देखा, उसे कुत्ते का होश ही नहीं रहा. वह बाहर आ कर चीखनेचिल्लाने लगा. उस की चीखपुकार सुन कर मोहल्ले वाले इकट्ठा हो गए.
उन लोगों ने कमरे में जा कर देखा तो पता चला कि उस की बड़ी बहन नेहा छत में लगे कुंडे में दुपट्टा बांध कर लटकी हुई थी. गौरव ने रोते हुए यह बात फोन कर के अपनी मां कुसुमवती को बताई तो वह औफिस में ही बिलखबिलख कर रोने लगीं. किसी तरह औफिस के सहयोगियों ने उन्हें घर पहुंचाया.
नेहा द्वारा कुंडे में दुपट्टा बांध कर लटकने की सूचना पुलिस को भी दे दी गई थी. सूचना मिलते ही थाना सदर बाजार के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सत्यप्रकाश त्यागी बुंदू कटरा पुलिस चौकी के प्रभारी मनोज मिश्रा के साथ कुसुमवती के घर आ पहुंचे.
कमरे और लाश की स्थिति से प्रथमदृष्टया यही लग रहा था कि नेहा के साथ दुष्कर्म कर के हत्या कर दी गई थी. उस के बाद लाश के गले में दुपट्टा बांध कर छत में लगे कुंडे से लटका दिया गया था, जिस से लगे कि इस ने आत्महत्या की थी. इस की वजह यह थी कि उस के पैर बेड पर घुटनों के बल टिके थे.
थानाप्रभारी सत्यप्रकाश त्यागी ने घटना की जानकारी अधिकारियों को भी दे दी थी. फोरेंसिक टीम को बुला कर लाश के फोटो कराए गए और फिंगरप्रिंट उठवाए गए. इस के बाद शव को नीचे उतरवा कर कमरे को सील करवा दिया. शव को पोस्टमार्टन के लिए भेज कर थानाप्रभारी पूछताछ करना चाहते थे, लेकिन कुसुमवती होश में नहीं थी, इसलिए बिना पूछताछ किए ही वह थाने आ गए.
थाने आ कर उन्होंने अपराध संख्या 697/2013 पर भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया और विवेचना की जिम्मेदारी खुद संभाल ली. यह 8 अक्टूबर, 2013 की बात थी.
अगले दिन यानी 9 अक्टूबर को पोस्टमार्टम के बाद नेहा का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया तो घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार कर दिया. 10 अक्टूबर, 2013 की दोपहर को यही कोई डेढ़ बजे कुसुमवती थाने पहुंची और थानाप्रभारी सत्यप्रकाश त्यागी को एक तहरीर दी, जिस में उन्होंने नेहा की हत्या का आरोप अपने घर के सामने ही रहने वाले स्व. ओमप्रकाश के 3 बेटों, प्रवीण, प्रमोद उर्फ कलुआ और राहुल के साथ इन के चचेरे भाइयों सुनील तथा दीपू पर लगाया था.
थानाप्रभारी सत्यप्रकाश त्यागी ने उन लोगों को नामजद करने की वजह पूछी तो कुसुमवती ने कहा, ‘‘सर, आप इन लोगों को गिरफ्तार तो कीजिए, वे खुद ही नेहा की हत्या की वजह बता देंगे.’’
कुसुमवती ने अपनी यह बात जिस दृढ़ता और विश्वास के साथ कही थी, उस से थानाप्रभारी को उन के आरोप में दम नजर आया. उन्होंने नामजद लोगों को गिरफ्तार करने के लिए उन के घरों पर छापा मारा तो सभी के सभी फरार मिले. इस बात से थानाप्रभारी का संदेह और बढ़ गया. उन्हें लगा कि नेहा की हत्या में इन लोगों की कोई न कोई भूमिका जरूर है.
लेकिन इंसपेक्टर सत्यप्रकाश त्यागी को नेहा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो उसे पढ़ कर उन्हें झटका सा लगा, क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नेहा की मौत लटकने से ही हुई थी. वह शारीरिक संबंधों की भी आदी बताई गई थी.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट से सारा मामला ही उलट गया था. क्योंकि जिस स्थिति में नेहा की लाश मिली थी, ऐसे में कोई कैसे आत्महत्या कर सकता था? इस तरह के काम छिपछिपा कर किए जाते हैं, जबकि नेहा के घर के सारे दरवाजे खुले थे. पानी की मोटर भी चल रही थी और वाशिंग मशीन में कपड़े भी धुले जा रहे थे. नेहा को ऐसी क्या जल्दी थी कि वह पानी की मोटर और वाशिंग मशीन का स्विच भी नहीं औफ कर सकी?
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद नेहा की मौत रहस्यों में घिर गई थी. अब उस की मौत का रहस्य तभी खुल सकता था, जब नेहा की मां कुसुमवती द्वारा नामजद लोगों को गिरफ्तार कर के उन से सचाई उगलवाई जाती. धीरेधीरे पूरा महीना गुजर गया और पुलिस नेहा के संभावित हत्यारों तक पहुंच नहीं सकी. पुलिस पर आरोप लगने लगा तो एक बार फिर पुलिस ने तेजी दिखाई. फलस्वरूप 14 नवंबर, 2013 को थाना सदर बाजार पुलिस ने नामजद लोगों में से मुख्य अभियुक्त प्रवीण को गिरफ्तार कर लिया.
इस के बाद एकएक कर के अन्य अभियुक्त भी गिरफ्तार कर लिए गए. थानाप्रभारी सत्यप्रकाश ने इन लोगों से नेहा की मौत के बारे में पूछताछ शुरू की तो पहले ये सभी उन्हें गुमराह करते रहे. लेकिन जब पुलिस ने उन्हें घेरा तो मजबूर हो कर उन्होंने सच्चाई उगल दी. प्रवीण ने नेहा की मौत की जो कहानी सुनाई, उस में प्यार तो था ही, उस से भी ज्यादा डर था, जिस की वजह से इस प्रेम कहानी का दुखद अंत हुआ था.
उत्तर प्रदेश के जिला अंबेडकरनगर के रहने वाले मनोज कुमार की नौकरी आगरा सीओडी में लगी तो वह आगरा आ गए थे. बच्चे छोटेछोटे थे, इसलिए वह पत्नी कुसुमवती और बच्चों को अंबेडकरनगर में ही मां के पास छोड़ आए थे. मनोज कुमार पूरे तीन साल अकेले ही रहे. 3 सालों में बच्चे कुछ बड़े हो गए तो मां ने कहा कि अब वह अपनी बीवी और बच्चों को ले जाए.
मनोज कुमार अपने परिवार को आगरा लाने की तैयारी कर ही रहे थे कि मात्र 30 साल की उम्र में ही अचानक उन की असमय मौत हो गई. तब उन के बच्चों में बेटी नेहा 6 साल की थी तो बेटा गौरव 3 साल का.
कुसुमवती की मांग ही नहीं, जिंदगी भी सूनी हो चुकी थी. वह अपना दुख ले कर बैठी रहतीं तो उन के बच्चों का क्या होता? वह अपना दुख भूल कर बच्चों की परवरिश में लग गईं. 6 महीने बाद उन्हें पति की जगह सीओडी में नौकरी मिल गई तो वह बच्चों को ले कर आगरा आ गईं. वह आगरा आ कर उसी मकान में रहने लगी थीं, जिस में मनोज कुमार रहते थे.
कुसुमवती की सास भी साथ आई थीं. बहू जब पूरी तरह व्यवस्थित हो गई तो वह अंबेडकरनगर वापस लौट गईं. सास के जाने के बाद बच्चों को ले कर घर से इतनी दूर अकेले जीवन गुजारना कुसुमवती के लिए एक बड़ी चुनौती थी. लेकिन कुसुमवती ने इस चुनौती को स्वीकार किया. एकएक कर के 16-17 साल बीत गए. इस बीच उन्होंने अपनी कमाई से नगला भवानी सिंह में अपना मकान खरीद लिया था. अपना घर हो गया तो कुसुमवती का यह शहर अपना हो गया.
जिन दिनों कुसुमवती ने नगला भवानी का अपना नया मकान खरीदा था, उन दिनों नेहा पास के ही केंद्रीय विद्यालय में 9वीं में पढ़ती थी तो उस का भाई गौरव 6 ठवीं में. भाईबहन मां के संघर्ष को देख रहे थे, इसलिए मेहनत से पढ़ाई करने के साथसाथ हर काम में मां की मदद भी करते थे.
अनुराधा ने प्रेमी से मांगी उधार की रकम
साल 2020 में कोरोना महामारी अपने पांव पसार चुकी थी, जिस के चलते जनजीवन अस्तव्यक्त हो चुका था, कितनों के व्यापार बंद हो गए थे. कितने भूख से तड़पतड़प कर मर गए थे. ऐसे में लगे सूद पर पैसे पूरी तरह डूब गए थे. जिस जिस ने उस से सूद पर पैसे लिए थे, उस में से किसी ने उस के पैसे नहीं लौटाए थे. अनुराधा पूरी तरह से बरबाद हो गई थी.
उस के बाद अनुराधा रेड्डी ने चंद्रमोहन से अपने पैसे वापस लौटाने की बात कही तो उस ने कुछ दिनों की मोहलत मांगी और कहा कि वह उस की पाईपाई लौटा देगा, जबकि हकीकत यह थी कि उस के पास लौटाने के लिए पैसे नहीं थे, जो पैसे उस ने प्रेमिका से लिए थे, वो सारे पैसे खर्च ही गए थे. कोरोना की वजह से बिजनैस भी चौपट हो गया था. वह समझ नहीं पा रहा था कि उस के पैसे कैसे और कहां से लौटाए.
पैसों को ले कर अनुराधा रेड्डी और चंद्रमोहन के रिश्तों में खटास आ गई थी. उस पर अनुराधा पैसा लौटाने के लिए अब दबाव बनाने लगी थी. प्रेमिका के दबाव से वह परेशान रहने लगा था. उस के चलते अब दोनों के बीच झगड़े होने लगे थे.
अनुराधा की हत्या कर लाश के किए टुकड़े
12 मई, 2023 को सुबह इन्हीं पैसों को ले कर अनुराधा रेड्डी और चंद्रमोहन के बीच झगड़ा हुआ था. इस झगड़े ने हाथापाई का रूप ले लिया था. गुस्से से चंद्रमोहन का चेहरा लाल हो गया था. उस ने आव देखा न ताव, किचन में रखा सब्जी काटने वाला फलदार चाकू उठाया और अनुराधा के पेट में ताबड़तोड़ वार कर दिए. वो तब तक चाकू से वार करता रहा, जब तक अनुराधा की मौत न हो गई. ये सारा खेल बरामदे में होता रहा.
अनुराधा की मौत के बाद जब चंद्रमोहन के गुस्से की आग ठंडी हुई तो वह बुरी तरह कांप गया. अब उस के सामने सब से बड़ा प्रश्न लाश को ठिकाने लगाने का था. तभी उसे दिल्ली का श्रद्धा हत्याकांड याद आ गया कि हत्यारे आफताब ने कैसे प्रेमिका के शरीर को टुकड़ेटुकड़े कर के जंगलों में फेंक दिया था, चंद्रमोहन ने भी वैसा ही करने का फैसला किया.
इस के बाद वह बरामदे से लाश को खींच कर कमरे में ले आया. फिर खून से सने चाकू और अपने हाथों को वाशरूम में जा कर अच्छी तरह धोया. यही नहीं, उस ने हत्या के साक्ष्य मिटाने के लिए फर्श पर पोंछा लगा कर साफ कर दिया था. फिर शाम को चंद्रमोहन बाजार से पत्थर काटने वाला कटर, एक बड़ा ट्रंक (संदूक), परफ्यूम की 2 शीशियां और तेज महक वाली दरजनभर अगरबत्तियों के पैकेट खरीद कर ले आया और अनुराधा के कमरे में ले जा कर रख दिए.
यह सब करने से पहले और हत्या करने के बाद उस ने अनुराधा का मोबाइल फोन अपने कब्जे में कर लिया था और उसे औन ही रखा था. ताकि लोगों को पता रहे कि वह जिंदा है. जब भी किसी की काल आती थी तो वह काल रिसीव नहीं करता था, उस का जवाब ‘मैं अभी बिजी हूं, फ्री होते ही काल करूंगी’ मैसेज के रूप में देता था.
खैर, घटना वाली रात में सब के सो जाने के बाद कटर मशीन से अनुराधा के शरीर को टुकड़ों में बांट दिया था. सिर को धड़ से, फिर दोनों बाजू, दोनों टांगें और धड़ अलगअलग कर दिया था. हृदयहीन और शातिर चंद्रमोहन के ऐसा करते हुए हाथ तक नहीं कांपे थे, जबकि उस ने उस के साथ पति के रूप में 15 सालों का समय बिताया था.
बहरहाल, चंद्रमोहन ने कटे सिर, दोनों बाजुओं और दोनों टांगों को दोहरा करते हुए फ्रिज में रख दिया था ताकि उस में से बदबू न उठे और धड़ को संदूक के भीतर रख कर उस में परफ्यूम छिडक़ दिया और अगरबत्तियां जला दी थीं, ताकि कहीं से किसी को कोई शक न हो सके.
कटे सिर को फेंकना चाहता था नदी में
इस के 3 दिनों बाद 15 मई की दोपहर में कटे सिर को काले कपड़े में अच्छी तरह लपेट कर फिर उसे काली पौलीथिन में रख कर सिर पर टोपी और मुंह पर मास्क लगा कर वह घर से निकला ताकि उसे कोई पहचान न सके और टैंपो पर सवार हो कर मुसी नदी के किनारे थीगालगुडा रोड के डंपिंग ग्राउंड पहुंचा और टैंपो से नीचे उतरा.
फिर वहां से उल्टी दिशा जा कर एक रेस्टोरेंट में पहुंचा, वहां उस ने पीने के लिए एक लीटर वाली पानी की बोतल खरीदी, और मास्क उतार कर बोतल का पानी पीया. उसी दौरान उस का चेहरा सीसीटीवी फुटेज में आ गया था. और तो और उस ने यूपीआई से पेमेंट दिया. ये भी एक साक्ष्य पुलिस वालों को मिल गया था.
पानी पीने के बाद फिर चंद्रमोहन डंपिंग ग्राउंड की ओर वापस लौटा और सुनसान देख मुसी नदी को लक्ष्य बना कर सिर वाली पौलीथिन फेंकी ताकि सिर नदी में बह जाए और इसी के साथ अनुराधा रेड्डी की मौत एक राज बन कर रह जाए. लेकिन वह पौलीथिन नदी में गिरने के बजाए डंपिंग ग्राउंड पर ही गिर गई. इस के बाद वह तेज कदमों से वहां से निकल गया था.
17 मई, 2023 को जब कटा सिर मिला तो पूरे हैदराबाद में सनसनी फैल गई थी. उस के बाद पुलिस की मेहनत, वैज्ञानिक साक्ष्य और सीसीटीवी फुटेज ने पुलिस को अनुराधा के गुनहगार तक पहुंचा दिया था.
कथा लिखे जाने तक पुलिस ने मृतका के शरीर के सभी भागों, कटर, परफ्यूम की शीशियां, अगरबत्तियों के पैकेट सभी कुछ बरामद कर लिया था. कथा संकलन तक पुलिस ने आरोपी बी. चंद्रमोहन के खिलाफ आरोप पत्र न्यायालय में पेश कर दिया था.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित