रौंग नंबर करके शादीशुदा को फांसा – भाग 4

अस्पताल पहुंच कर वह सुरेश को इमरजेंसी में ले आई. सुरेश की स्थिति देख कर डाक्टर्स और नर्स उस का चैकअप करने लगे. डाक्टर ने सुरेश की नब्ज टटोली. फिर दिल पर स्टेथेस्कोप लगा कर जांच करने के बाद उस ने सुरश्े की बौडी को हिलाडुला कर देखा. फिर गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘यह तो मर चुका है.’’

‘‘नहींऽऽ’’ हेमा चीखी और पछाड़ खा कर सुरेश के ऊपर गिर पड़ी. वह जोरजोर से रोने लगी. सुधा और मीना उसे संभालने लगीं.

‘‘यह कैसे मरा है?’’ डाक्टर ने सुधा

से पूछा.

‘‘हेमा का कहना है कि इस ने आज ज्यादा शराब पी ली थी,’’ सुधा ने भरे कंठ से कहा.

डाक्टर ने हेमा की ओर देखा. वह सुरेश की लाश से लिपट कर रो रही थी. डाक्टर सहानुभूति दिखाते हुए बोला, ‘‘अपने आप को संभालिए, यह अस्पताल है. यहां जोर से रोएंगी तो और मरीजों को परेशानी होगी. आप रोना बंद कर के मुझे बताइए कि इस की मौत कैसे हुई?’’

हेमा ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘आज यह सुबह से ही पी रहे थे. पीने के बाद ये सो गए. मैं ने 2-3 घंटे बाद इन्हें खाना खाने के लिए उठाना चाहा तो यह नहीं उठे. मैं ने बहुत कोशिश की उठाने की, जब यह हिलेडुले भी नहीं तो मैं घबरा गई. मैं अपनी पड़ोसन के घर गई और इन्हें बुला लाई. सुधा दीदी ने भी इन्हें उठानेजगाने की बहुत कोशिश की. फिर कहा कि इन्हें अस्पताल ले चलो. मैं इन्हें पड़ोसिनों की मदद से यहां ले कर आ गई.’’

डाक्टर को हुआ शक तो बुलाई पुलिस

डाक्टर ने सुरेश की बौडी को गहरी नजरों से देखा. उसे सुरेश के शरीर पर लाललाल निशान दिखाई दिए. ऐसा लग रहा था, जैसे उसे पीटा गया हो. शक होने पर उन्होंने एक वार्डबौय को बुला कर पुलिस को सूचना देने की हिदायत दी.

थोड़ी सी देर में ही अस्पताल में ड्यूटी पर तैनात एसआई वहां आ गए. उन्होंने सुरेश का सरसरी तौर पर निरीक्षण करते ही अपनी राय रख दी, ‘‘मामला संदिग्ध है, लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजना होगा.’’

हेमा रोने लगी. उसे जैसेतैसे शांत करवा कर आवश्यक काररवाई पूरी की. फिर लाश को सफेद कपड़े में लपेट कर अस्पताल की मोर्चरी में पहुंचा दिया गया. हेमा अपनी पड़ोसनों के साथ अस्पताल से बाहर निकली और आटो पकड़ कर घर आ गई.

सुरेश के मरने की खबर आसपास रहने वालों को पता लगी तो वह वहां सहानुभूति दिखाने के लिए आ गए. हेमा अपने दोनों बेटों को गले से लगा कर जोरजोर से रो रही थी. औरतें उसे संभालने, सांत्वना देने में लग गईं.

चूंकि अस्पताल की मोर्चरी में डा. ए.के. लाल मौजूद नहीं थे, इसलिए उस दिन सुरेश का पोस्टमार्टम नहीं हो सका. दूसरे दिन सुरेश की लाश का पोस्टमार्टम हुआ. पुलिस को रिपोर्ट मिल गई, जिस में स्पष्ट लिखा गया था कि सुरेश की बौडी पर गहरे चोट के निशान मिले हैं. रिपोर्ट में यह भी बताया कि उस की मौत दम घुटने से हुई है.

मंडावली थाने में यह प्रकरण दर्ज कर लिया गया. एसएचओ कश्मीरी लाल ने इस हत्याकांड की सूचना जिले के डीसीपी अमृता गुगुलोथ और एसीपी सुभाष वत्स को दे दी. उन्होंने कश्मीरी लाल के नेतृत्व में एक जांच टीम गठित कर दी. इस में जांच अधिकारी इंसपेक्टर केतन सिंह, एएसआई उमेश कुमार, कांस्टेबल चेतन, बंसीलाल को शामिल किया गया.

इंसपेक्टर केतन सिंह, एएसआई उमेश कुमार, कांस्टेबल चेतन और बंसीलाल मृतक सुरेश के घर पहुंच गए. सुरेश के घर वाले वहां पर थे. हेमा का रोरो कर बुरा हाल था. आईओ ने उसे अपने सामने बुला कर पूछताछ शुरू की, ‘‘सुरेश तुम्हारा पति था?’’

‘‘जी हां,’’ हेमा ने सिसकते हुए बताया.

‘‘उस की बौडी पर गहरी चोट के निशान हैं.’’ आईओ ने हेमा के चेहरे पर पैनी नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘उसे यह चोट कैसे आई, बताओगी?’’

‘‘वो कल बाहर से खूब पी कर आए थे, आ कर चुपचाप सो गए…’’ हेमा ने बताया तो आईओ ने उसे घूरा, ‘‘कल अस्पताल में तो तुम कह रही थी कि सुरेश ने घर में बैठ कर खूब शराब पी थी. अब कह रही हो कि वह बाहर से पी कर आया था.’’

‘‘जी, बाहर से भी पी कर आए थे और घर में भी बैठ कर पी.’’ हेमा का स्वर कांपने लगा, ‘‘पीने के बाद यह सो गए.’’

‘‘अभी तो तुम ने बताया कि पी कर आने के बाद सुरेश सो गया. अगर यह पी कर आने के बाद सो गया तो फिर शराब घर में

कब पी?’’

‘‘जी, बीच में उठे थे पीने के लिए,’’ हेमा घबरा कर बोली, ‘‘मैं ने मना किया था ज्यादा मत पियो, तब बोतल रख कर सो गए थे.’’

इंसपेक्टर केतन सिंह हेमा के विरोधाभासी बयान से ही समझ गए कि सुरेश की हत्या में वह शामिल है. उन्होंने कुछ न कह कर उस कमरे का निरीक्षण किया, जिस में सुरेश शराब पीने के बाद सोया था और मर गया था.

झूठी कहानी से उठ गया परदा

कमरे के एक कोने में उन्हें शराब की 2 बोतलें पड़ी नजर आईं. उन्होंने सावधानी से दस्ताने पहन कर उन बोतलों को कब्जे में ले लिया. इस के बाद वह हेमा को साथ ले कर थाने लौट आए. शराब की दोनों बोतलें फोरैंसिक जांच के लिए भिजवा दी गईं. हेमा काफी डरी हुई थी. उस के माथे पर पसीना छलका हुआ था.

पहले उस के फिंगरप्रिंट्स ले कर जांच के लिए भिजवाए गए. फिर हेमा को इंक्वायरी रूम में अपने सामने बिठा कर एसएचओ कश्मीरी लाल की मौजूदगी में आईओ केतन सिंह ने बड़ी चतुराई से कहा, ‘‘देखो हेमा, मैं जो शराब की बोतलें तुम्हारे घर से लाया हूं, उस पर तुम्हारी अंगुलियों के निशान मिल गए हैं. अब बताओ, क्या तुम ने अपने पति को जाम बना कर दिए थे या खुद बोतल से शराब पी थी?’’

‘‘म…मैं क्यों पिऊंगी?’’ हेमा घबराई आवाज में बोली, ‘‘मैं तो शराब को हाथ भी नहीं लगाती हूं.’’

‘‘तो फिर तुम्हारी अंगुलियों के निशान बोतलों पर क्यों हैं?’’

‘‘म…मैं क्या जानूं?’’ हेमा घबरा गई. वह रोने लगी.

‘‘रोने का नाटक बंद करो. यह बताओ, तुम ने सुरेश की हत्या क्यों की?’’ इंसपेक्टर केतन सिंह ने सख्त लहजे में पूछा.

‘‘मैं क्यों हत्या करूंगी अपने पति की?’’

‘‘तो किस से हत्या करवाई, सुरेश की बौडी पर तो चोट के काफी निशान हैं.’’

‘‘वह बाहर मार खा कर आया था,’’ हेमा हड़बड़ा कर बोली.

‘‘किस से मार कर खा कर आया था, बताया होगा सुरेश ने?’’ आईओ केतन सिंह ने उसे बातों के जाल में उलझाया.

हेमा से कोई जवाब देते नहीं बना. वह काफी डरी हुई लग रही थी.

प्यार में कुलांचें भरने की फितरत – भाग 3

सरोजनी ने त्रियाचरित्र दिखा कर स्वयं को सतीसावित्री तो साबित कर दिया था, लेकिन वह मन ही मन डर गई थी. उस ने अवैध रिश्तों का शक होने की जानकारी अंकुर को दी और बेहद सतर्क रहने को कहा. इस के बाद मिलन में दोनों बेहद सावधानी बरतने लगे. अब अंकुर तभी मिलने जाता, जब सरोजनी मोबाइल फोन पर सूचना दे कर उसे बुलाती थी.

सरोजनी की लाइफ में आया दूसरा प्रेमी

सरोजनी और अंकुर का प्रेम प्रसंग चल ही रहा था कि सरोजनी एक अन्य युवक की ओर आकर्षित होने लगी. उस युवक का नाम राजू था. वह मोटर मैकेनिक था. उस की दुकान मेन रोड पर थी. एक रोज वह पान मसाला लेने के लिए ललित की दुकान पर रुका, तभी उस की नजर सरोजनी पर पड़ी. दोनों के बीच कुछ पल आंखमिचौली का खेल चला, फिर बातचीत भी हुई.

इस के बाद राजू अकसर किसी न किसी बहाने आने लगा. कभी वह घर का सामान लेने के बहाने आता तो कभी पान मसाला खाने के बहाने. दोनों के बीच खूब हंसीठिठोली होती. मजाकमजाक में राजू ऐसी बात कह देता, जिस से सरोजनी के शरीर में सिहरन दौड़ जाती और वह रोमांचित हो उठती.

दरअसल, राजू 25 वर्षीय हृष्टपुष्ट युवक था. उस की लच्छेदार बातें व हंसीमजाक सरोजनी को अच्छी लगने लगी थीं. इसलिए वह उस की ओर आकर्षित हो रही थी. दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल फोन नंबर भी दे दिए थे. अत: सरोजनी को जब भी मौका मिलता था, वह राजू से रस भरी बातें कर लेती थी.

सरोजनी और राजू के बीच प्रेम पनप रहा है, इस की जानकारी न सरोजनी के पति को थी और न ही प्रेमी अंकुर को. सरोजनी फोन पर बात करती और फिर उस का नंबर डिलीट कर देती थी.

हां, सौतेली बेटी अनन्या ने उसे जरूर एक बार राजू से हंसतेखिलखिलाते देख लिया था, तब उस ने कहा था, ‘‘मम्मी, राजू लफंगा है. उसे दुकान पर ज्यादा देर टिकने मत दिया करो. उस से हंसनाखिलखिलाना ठीक नहीं है.’’

लेकिन अनन्या की नसीहत के बावजूद सरोजनी राजू के आकर्षण में बंधी रही. कहा जाता है कि एक बार राजू ने उस के साथ भाग जाने और रंगीली जिंदगी जीने तक का प्रस्ताव रखा था, लेकिन इस प्रस्ताव को सरोजनी ने ठुकरा दिया था. इस तरह समय बीतता रहा और सरोजनी 2 प्रेमियों के साथ प्यार की पींगें बढ़ाती रही.

29 अक्तूबर, 2022 को अनन्या की नानी के घर पासी खेड़ा में बुद्धादेवी की पूजा थी. नानी ने अनन्या व दामाद को भी पूजा में शामिल होने के लिए बुलाया था. ललित ने दुकान की जिम्मेदारी सरोजनी को सौंपी फिर शाम 4 बजे बेटी अनन्या को साथ ले कर अपनी पहली पत्नी गीता के मायके पासी खेड़ा चला गया. वहां वह पूजा में शामिल हुआ और रात को वहीं रुका.

दूसरे दिन दोपहर बाद वह बेटी अनन्या के साथ अपने घर वापस आ गया. घर से कुछ दूरी पर वह गुटखा खाने के लिए रमेश की दुकान पर रुक गया और अनन्या को घर भेज दिया. अनन्या घर पहुंची तो दुकान बंद थी. मुख्य दरवाजे को धक्का दिया तो वह खुल गया.

अनन्या घर के अंदर गई और मम्मीमम्मी की पुकारने लगी. लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. आंगन से सटा एक कमरा था. अनन्या वहां पहुंची तो कमरे की कुंडी बाहर से बंद थी. कुंडी खोल कर वह कमरे में गई तो उस के मुंह से चीख निकल गई. चारपाई के नीचे उस की सौतेली मां सरोजनी की खून से सनी लाश पड़ी थी.

लाश देख कर अनन्या घबरा गई. वह सिर पर पैर रख कर भागी और पिता के पास दुकान पर आई. फिर बोली, ‘‘पापा… पापा, जल्दी घर चलो मम्मी…’’

‘‘क्या हुआ मम्मी को?’’ ललित ने अनन्या से पूछा.

अनन्या थूक गटक कर बोली, ‘‘पापा, मम्मी को किसी ने मार दिया है.’’

अनन्या की बात सुन कर ललित भी घबरा गया. उस समय दुकान पर कुछ और लोग भी बैठे थे, उन के साथ ललित घर आया और पत्नी का शव देख कर फफक पड़ा. अनन्या भी चीखचीख कर रोने लगी.

उस के बाद तो पूरे मोहल्ले में सरोजनी की हत्या की खबर फैल गई और लोग ललित के घर जुटने लगे. ललित पासवान ने सब से पहले मोबाइल फोन द्वारा अपने ससुर कालीचरन व सास जयदेवी को उन की बेटी सरोजनी की हत्या की सूचना दी, फिर थाना विधनू जा पहुंचा. थाने पर उस समय एसएचओ योगेश कुमार सिंह मौजूद थे. ललित ने उन्हें अपनी पत्नी सरोजनी की हत्या की खबर दी और जल्द से जल्द चलने का अनुरोध किया.

चूंकि मामला एक महिला की हत्या का था. अत: एसएचओ योगेश कुमार सिंह ने आवश्यक पुलिस टीम साथ ले कर ललित के साथ घटनास्थल को रवाना हो लिए.

रवाना होने से पहले उन्होंने महिला की हत्या की सूचना पुलिस अधिकारियों को भी दे दी. ललित का घर विधनू कस्बे में ही तुलसियापुर मोहल्ले में था, अत: पुलिस को उस के घर पहुंचने में लगभग 30 मिनट का समय लगा.

खून में लथपथ मिली लाश

उस समय ललित के घर के बाहर भीड़ जुटी थी. भीड़ को परे हटाते एसएचओ योगेश कुमार सिंह उस कमरे में पहुंचे, जहां ललित की पत्नी सरोजनी की लाश पड़ी थी.

योगेश कुमार सिंह ने बड़ी बारीकी से घटनास्थल का निरीक्षण शुरू किया. मृतक सरोजनी की लाश चारपाई के नीचे पड़ी थी. उस की हत्या किसी तेज धार वाले हथियार से गला रेत कर की गई थी. चारपाई पर पड़ा बिस्तर खून से तरबतर था. चारपाई के नीचे फर्श पर भी खून फैला था.

देखने से ऐसा लग रहा था कि हत्यारों ने चारपाई पर ही गला रेता होगा, फिर शव को चारपाई के नीचे डाल दिया होगा. मृतका की उम्र 35 वर्ष के आसपास थी. उस का रंग गोरा और शरीर स्वस्थ था. मृतका का मोबाइल फोन भी गायब था.

एसएचओ योगेश कुमार सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर डीसीपी (साउथ) प्रमोद कुमार, एसपी (आउटर) तेजस्वरूप सिंह तथा एसीपी विकास पांडेय भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक तथा डौग स्क्वायड टीम को भी बुलवा लिया.

पुलिस अधिकारियों ने मौकाएवारदात का निरीक्षण किया तथा मृतका के पति ललित पासवान से घटना के संबंध में पूछताछ की. जांच टीम को बाथरूम से एक चाकू मिला.

हत्या के बाद कातिल ने खून से सने हाथ भी बाथरूम में धोए थे. जूते के निशान भी मिले. आलाकत्ल चाकू को टीम ने सबूत के तौर पर सुरक्षित कर लिया. कमरे तथा बाथरूम से कई फिंगरप्रिंट भी लिए.

अवैध संबंधों ने उजाड़ दिया परिवार

विश्वप्रसिद्ध पर्यटनस्थल मांडू के नजदीक के एक गांव तारापुर में पैदा हुई पिंकी को देख कर कोई सहसा विश्वास नहीं कर सकता था कि वह एक आदिवासी युवती है. इस की वजह यह थी कि पिंकी के नैननक्श और रहनसहन सब कुछ शहरियों जैसे थे. इतना ही नहीं, उस की इच्छाएं और महत्वाकांक्षाए भी शहरियों जैसी ही थीं, जिन्हें पूरा करने के लिए वह कोई भी जोखिम उठाने से कतराती नहीं थी.

बाज बहादुर और रानी रूपमती की प्रेमगाथा कहने वाले मांडू के आसपास सैकड़ों छोटेछोटे गांव हैं, जहां की खूबसूरत छटा और ऐतिहासिक इमारतें देखने के लिए दुनिया भर से प्रकृतिप्रेमी और शांतिप्रिय लोग वहां आते हैं. वहां आने वाले महसूस भी करते हैं कि यहां वाकई प्रकृति और प्रेम का आपस में गहरा संबंध है.

यहां की युवतियों की अल्हड़ता, परंपरागत और आनुवांशिक खूबसूरती देख कर यह धारणा और प्रबल होती है कि प्रेम वाकई प्रेम है, इस का कोई विकल्प नहीं सिवाय प्रेम के. नन्ही पिंकी जब मांडू आने वाले पर्यटकों को देखती और उन की बातें सुनती तो उसे लगता कि जैसी जिंदगी उसे चाहिए, वैसी उस की किस्मत में नहीं है, क्योंकि दुनिया में काफी कुछ पैसों से मिलता है, जो उस के पास नहीं थे.

मामूली खातेपीते परिवार की पिंकी जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे यौवन के साथसाथ उस की इच्छाएं भी परवान चढ़ती गईं. जवान होतेहोते पिंकी को इतना तो समझ में आने लगा था कि यह सब कुछ यानी बड़ा बंगला, मोटरगाड़ी, गहने और फैशन की सभी चीजें उस की किस्मत में नहीं हैं. लिहाजा जो है, उसे उसी में संतोष कर लेना चाहिए.

लेकिन इस के बाद भी पिंकी अपने शौक नहीं दबा सकी. घूमनेफिरने और मौजमस्ती करने के उस के सपने दिल में दफन हो कर रह गए थे. घर वालों ने समय पर उस की शादी धरमपुरी कस्बे के नजदीक के गांव रामपुर के विजय चौहान से कर दी थी. शादी के बाद वह पति के साथ धार के जुलानिया में जा कर रहने लगी थी.

पेशे से ड्राइवर विजय अपनी पत्नी की इस कमजोरी को जल्दी ही समझ गया था कि पिंकी के सपने बहुत बड़े हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए बहुत दौलत चाहिए. उन्हें कमा कर पूरे कर पाना कम से कम इस जन्म में तो उस के वश की बात नहीं है. इस के बाद भी उस की हर मुमकिन कोशिश यही रहती थी कि वह हर खुशी ला कर पत्नी के कदमों में डाल दे.

इस के लिए वह हाड़तोड़ मेहनत करता भी था, लेकिन ड्राइवरी से इतनी आमदनी नहीं हो पाती थी कि वह सब कुछ खरीदा और हासिल किया जा सके, जो पिंकी चाहती थी. इच्छा है, पर जरूरत नहीं, यह बात विजय पिंकी को तरहतरह से समयसमय पर समझाता भी रहता था.

लेकिन अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने की आदी होती जा रही पिंकी को पति की मजबूरी तो समझ में आती थी, लेकिन उस की बातों का असर उस पर से बहुत जल्द खत्म हो जाता था. शादी के बाद कुछ दिन तो प्यारमोहब्बत और अभिसार में ठीकठाक गुजरे. इस बीच पिंकी ने 2 बेटों को जन्म दिया, जिन के नाम हिमांशु और अनुज रखे गए.

विजय को जिंदगी में सब कुछ मिल चुका था, इसलिए वह संतुष्ट था. लेकिन पिंकी की बेचैनी और छटपटाहट बरकरार थी. बेटों के कुछ बड़ा होते ही उस की हसरतें फिर सिर उठाने लगीं. बच्चों के हो जाने के बाद घर के खर्चे बढ़ गए थे, लेकिन विजय की आमदनी में कोई खास इजाफा नहीं हुआ था.

crime

अकसर अपनी नौकरी के सिलसिले में विजय को लंबेलंबे टूर करने पड़ते थे. इस बीच पिंकी की हालत और भी खस्ता हो जाती थी. पति इस से ज्यादा न कुछ कर सकता है और न कर पाएगा, यह बात अच्छी तरह उस की समझ में आ गई थी. अब तक शादी हुए 17 साल हो गए थे, इसलिए अब उसे विजय से ऐसी कोई उम्मीद अपनी ख्वाहिशों के पूरी होने की नहीं दिखाई दे रही थी.

लेकिन जल्दी ही पिंकी की जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आ गया, जो अंधा भी था और खतरनाक भी. यह एक ऐसा मोड़ था, जिस का सफर तो सुहाना था, परंतु मंजिल मिलने की कोई गारंटी नहीं थी. इस के बाद भी पिंकी उस रास्ते पर चल पड़ी. उस ने न अंजाम की परवाह की न ही पति और बच्चों की. इस से सहज ही समझा जा सकता है कि इच्छाओं और गैरजरूरी जरूरतों के सामने जिम्मेदारियों ने दम तोड़ दिया था. पिंकी को संभल कर चलने के बजाय फिसलने में ज्यादा फायदा नजर आया.

विजय का एक दोस्त था दिलीप चौहान. वह बेरोजगार था और काम की तलाश में इधरउधर भटक रहा था. काफी दिनों बाद दोनों मिले तो विजय को उस की हालत पर तरस आ गया. उस ने धीरेधीरे दिलीप को ड्राइविंग सिखा दी. धार, मांडू और इंदौर में ड्राइवरों की काफी मांग है, इसलिए ड्राइविंग सीखने के बाद वह गाड़ी चलाने लगा. दोस्त होने के साथसाथ विजय अब उस का उस्ताद भी हो गया था.

ड्राइविंग सीखने के दौरान दिलीप का विजय के घर आनाजाना काफी बढ़ गया था. एक तरह से वह घर के सदस्य जैसा हो गया था. जब विजय दिलीप को ड्राइविंग सिखा रहा था, तभी पिंकी दिलीप को जिस्म की जुबान समझाने लगी थी. उस के हुस्न और अदाओं का दीवाना हो कर दिलीप दोस्तीयारी ही नहीं, गुरुशिष्य परंपरा को भी भूल कर पिंकी के प्यार में कुछ इस तरह डूबा कि उसे भी अच्छेबुरे का होश नहीं रहा.

ऐसे मामलों में अकसर औरत ही पहल करती है, जिस से मर्द को फिसलते देर नहीं लगती. दिलीप अकेला था, उस के खर्चे कम थे, इसलिए वह अपनी कमाई पिंकी के शौक और ख्वाहिशों को पूरे करने में खर्च करने लगा. इस के बदले पिंकी उस की जिस्मानी जरूरतें पूरी करने लगी. जब भी विजय घर पर नहीं होता या गाड़ी ले कर बाहर गया होता, तब दिलीप उस के घर पर होता.

पति की गैरहाजिरी में पिंकी उस के साथ आनंद के सागर में गोते लगा रही होती. विजय इस रिश्ते से अनजान था, क्योंकि उसे पत्नी और दोस्त दोनों पर भरोसा था. यह भरोसा तब टूटा, जब उसे पत्नी और दोस्त के संबंधों का अहसास हुआ.

शक होते ही वह दोनों की चोरीछिपे निगरानी करने लगा. फिर जल्दी ही उस के सामने स्पष्ट हो गया कि बीवी बेवफा और यार दगाबाज निकला. शक के यकीन में बदलने पर विजय तिलमिला उठा. पर यह पिंकी के प्रति उस की दीवानगी ही थी कि उस ने कोई सख्त कदम न उठाते हुए उसे समझाया. लेकिन अब तक पानी सिर के ऊपर से गुजर चुका था.

चूंकि पति का लिहाज और डर था, इसलिए पिंकी खुलेआम अपने आशिक देवर के साथ रंगरलियां नहीं मना रही थी. फिर एक दिन पिंकी कोई परवाह किए बगैर दिलीप के साथ चली गई. चली जाने का मतलब यह नहीं था कि वह आधी रात को कुछ जरूरी सामान ले कर प्रेमी के साथ चली गई थी, बल्कि उस ने विजय को बाकायदा तलाक दे दिया था और उस की गृहस्थी के बंधन से खुद को मुक्त कर लिया था.

कोई रुकावट या अड़ंगा पेश न आए, इस के लिए वह और दिलीप धार आ कर रहने लगे थे. पहले प्रेमिका और अब पत्नी बन गई पिंकी के लिए दिलीप ने धार की सिल्वर हिल कालोनी में मकान ले लिया था. मकान और कालोनी का माहौल ठीक वैसा ही था, जैसा पिंकी सोचा करती थी.

यह पिंकी के दूसरे दांपत्य की शुरुआत थी, जिस में दिलीप उस का उसी तरह दीवाना था, जैसा पहली शादी के बाद विजय हुआ करता था. पति इर्दगिर्द मंडराता रहे, घुमाताफिराता रहे, होटलों में खाना खिलाए और सिनेमा भी ले जाए, यही पिंकी चाहती थी, जो दिलीप कर रहा था. खरीदारी कराने में भी वह विजय जैसी कंजूसी नहीं करता था.

यहां भी कुछ दिन तो मजे से गुजरे, लेकिन जल्दी ही दिलीप की जेब जवाब देने लगी. पिंकी के हुस्न को वह अब तक जी भर कर भोग चुका था, इसलिए उस की खुमारी उतरने लगी थी. लेकिन पत्नी बना कर लाया था, इसलिए पिंकी से वह कुछ कह भी नहीं सकता था. प्यार के दिनों के दौरान किए गए वादों का उस का हलफनामा पिंकी खोल कर बैठ जाती तो उसे कोई जवाब या सफाई नहीं सूझती थी.

जल्दी ही पिंकी की समझ में आ गया कि दिलीप भी अब उस की इच्छाएं पूरी नहीं कर सकता तो वह उस से भी उकताने लगी. पर अब वह सिवाय किलपने के कुछ कर नहीं सकती थी. दिलीप की चादर में भी अब पिंकी के पांव नहीं समा रहे थे. गृहस्थी के खर्चे बढ़ रहे थे, इसलिए पिंकी ने भी पीथमपुर की एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली. क्योंकि अपनी स्थिति से न तो वह खुश थी और न ही संतुष्ट.

इस उम्र और हालात में तीसरी शादी वह कर नहीं सकती थी, लेकिन विजय को वह भूल नहीं पाई थी, जो अभी भी जुलानिया में रह रहा था. पिंकी को लगा कि क्यों न पहले पति को टटोल कर दोबारा उसे निचोड़ा जाए. यही सोच कर उस ने एक दिन विजय को फोन किया तो शुरुआती शिकवेशिकायतों के बाद बात बनती नजर आई.

ऐसा अपने देश में अपवादस्वरूप ही होता है कि तलाक के बाद पतिपत्नी में दोबारा प्यार जाग उठे. हां, यूरोप जहां शादीविवाह मतलब से किए जाते हैं, यह आम बात है. विजय ने दोबारा उस में दिलचस्पी दिखाई तो पिंकी की बांछें खिलने लगीं. पहला पति अब भी उसे चाहता है और उस की याद में उस ने दोबारा शादी नहीं की, यह पिंकी जैसी औरत के लिए कम इतराने वाली बात नहीं थी.

crime

वह 28 जुलाई की रात थी, जब दिलीप रोजाना की तरह अपनी ड्यूटी कर के घर लौटा. उसे यह देख हैरानी हुई कि उस के घर में धुआं निकल रहा है यानी घर जल रहा है. उस ने शोर मचाना शुरू किया तो देखते ही देखते सारे पड़ोसी इकट्ठा हो गए और घर का दरवाजा तोड़ दिया, जो अंदर से बंद था.

अंदर का नजारा देख कर दिलीप और पड़ोसी सकते में आ गए. पिंकी किचन में मृत पड़ी थी, जबकि विजय बैडरूम में. जाहिर है, कुछ गड़बड़ हुई थी. हुआ क्या था, यह जानने के लिए सभी पुलिस के आने का इंतजार करने लगे. मौजूद लोगों का यह अंदाजा गलत नहीं था कि दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं.

हैरानी की एक बात यह थी कि आखिर दोनों मरे कैसे थे? पुलिस आई तो छानबीन और पूछताछ शुरू हुई. दिलीप के यह बताने पर कि मृतक विजय उस की पत्नी पिंकी का पहला पति और उस का दोस्त है, पहले तो कहानी उलझती नजर आई, लेकिन जल्दी ही सुलझ भी गई.

दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. पुलिस वालों ने दिलीप से पूछताछ की तो उस की बातों से लगा कि वह झूठ नहीं बोल रहा है. उस ने पुलिस को बताया था कि वह काम से लौटा तो घर के अंदर से धुआं निकलते देख घबरा गया. उस ने मदद के लिए गुहार लगाई. इस के बाद जो हुआ, उस की पुष्टि के लिए वहां दरजनों लोग मौजूद थे.

दरवाजा सचमुच अंदर से बंद था, जिसे उन लोगों ने मिल कर तोड़ा था. सभी ने बताया कि पिंकी की लाश जली हालत में किचन में पड़ी थी और विजय की ड्राइंगरूम में. उस के गले में साड़ी का फंदा लिपटा था. पिंकी के चेहरे पर चोट के निशान साफ दिखाई दे रहे थे.

जल्दी ही इस दोहरे हत्याकांड या खुदकुशी की खबर आग की तरह धार से होते हुए समूचे निमाड़ और मालवांचल में फैल गई, जिस के बारे में सभी के अपनेअपने अनुमान थे. लेकिन सभी को इस बात का इंतजार था कि आखिर पुलिस कहती क्या है.

धार के एसपी वीरेंद्र सिंह भी सूचना पा कर घटनास्थल पर आ गए थे. उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से जायजा लिया. पुलिस को दिए गए बयान में पिंकी की मां मुन्नीबाई ने बताया था कि पिंकी और विजय का वैवाहिक जीवन ठीकठाक चल रहा था, लेकिन दिलीप ने आ कर न जाने कैसे पिंकी को फंसा लिया.

जबकि दिलीप का कहना था कि उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि उस की गैरमौजूदगी में पिंकी पहले पति विजय से मिलतीजुलती थी या फोन पर बातें करती थी. पिंकी के भाई कान्हा सुवे ने जरूर यह माना कि उस ने पिंकी को बहुत समझाया था, पर वह नहीं मानी. पिंकी कब विजय को तलाक दे कर दिलीप के साथ रहने लगी थी, यह उसे नहीं मालूम था.

तलाक के बाद दोनों बेटे विजय के पास ही रह रहे थे. विजय के भाई अजय के मुताबिक हादसे के दिन विजय राजस्थान के प्रसिद्ध धार्मिकस्थल सांवरिया सेठ जाने को कह कर घर से निकला था.

वह छोटे बेटे अनुज को अपने साथ ले गया था. अनुज को उस ने एक परिचित की कार में बिठा कर अपनी साली के पास छोड़ दिया था, जो शिक्षिका है.

अब पुलिस के पास सिवाय अनुमान के कुछ नहीं बचा था. इस से आखिरी अंदाजा यह लगाया गया कि विजय पिंकी के बुलाने पर उस के घर आया था और किसी बात पर विवाद हो जाने की वजह से उस ने पिंकी की हत्या कर के घर में आग लगा दी थी. उस के बाद खुद भी साड़ी का फंदा बना कर लटक गया. फंदा उस का वजन सह नहीं पाया, इसलिए वह गिर कर बेहोश हो गया. उसी हालत में दम घुटने से उस की भी मौत हो गई होगी.

बाद में यह बात भी निकल कर आई कि विजय पिंकी से दोबारा प्यार नहीं करने लगा था, बल्कि उस की बेवफाई से वह खार खाए बैठा था. उस दिन मौका मिलते ही उस ने पिंकी को उस की बेवफाई की सजा दे दी. लेकिन बदकिस्मती से खुद भी मारा गया.

सच क्या था, यह बताने के लिए न पिंकी है और न विजय. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक दोनों की मौत दम घुटने से हुई थी, लेकिन पिंकी के पेट पर एक धारदार हथियार का निशान भी था, जो संभवत: तवे का था. विजय के सिर पर लगी चोट से अंदाजा लगाया गया कि खुद को फांसी लगाते वक्त वह गिर गया था, इसलिए उस के सिर में चोट लग गई थी.

यही बात सच के ज्यादा नजदीक लगती है कि विजय ने पहले पिंकी को मारा, उस के बाद खुद भी फांसी लगा ली. लेकिन क्यों? इस का जवाब किसी के पास नहीं है. क्योंकि वह वाकई में पत्नी को बहुत चाहता था, पर उस की बेवफाई की सजा भी देना चाहता था. जबकि पिंकी की मंशा उस से दोबारा पैसे ऐंठने की थी. शायद इसी से वह और तिलमिला उठा था.

पिंकी समझदारी से काम लेती तो विजय की कम आमदनी में करोड़ों पत्नियों की तरह अपना घर चला सकती थी. पर अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने की जिद और ख्वाहिशें उसे महंगी पड़ीं, जिस से उस के बच्चे अनाथ हो गए. अब उन की चिंता करने वाला कोई नहीं रहा.

दिलीप कहीं से शक के दायरे में नहीं था. उस का हादसे के समय पहुंचना भी एक इत्तफाक था. परेशान तो वह भी पिंकी की बढ़ती मांगों से था, जिन से इस तरह छुटकारा मिलेगा, इस की उम्मीद उसे बिलकुल नहीं रही होगी.

जेठ के चक्कर में पति की हत्या – भाग 3

उत्तम के पास से मोबाइल फोन, पर्स व अन्य दस्तावेज आरोपियों ने ले लिए थे, ताकि उस की शिनाख्त न हो सके. इस के बाद राकेश और उस के साथियों ने गला घोंट कर उत्तम को मार कर लाश बोरे में भर कर उदयसागर झील में फेंक दी. उत्तम का काम तमाम कर तपन असम गया और रूपा को उत्तम के मर्डर की बधाई दी.

रूपा बहुत खुश हुई. उस ने बधाई में जेठ को अपने साथ सुलाया. वे मौज करने लगे और फिर घर वालों से कह दिया कि कोरोना से उत्तम की मौत राजस्थान में हो गई. अस्पताल वालों ने उस की लाश नहीं सौंपी तो वहीं पर उस का अंतिम संस्कार कर दिया. घर वालों को उत्तम की मौत का बड़ा दुख हुआ और उन्होंने विधिविधान से सारे संस्कार किए.

रूपा दिखावे के लिए आंसू बहाती रही ताकि परिजनों को लगे कि वह अपने पति के जाने से बहुत दुखी है. वहीं रूपा रात होने पर जेठ के साथ कमरे में बंद हो जाती. सारी रात पति की मौत की खुशी शारीरिक संबंध बना कर व्यक्त करती.

रूपा के बूढ़े सासससुर दिन अस्त होते ही घर में कैद हो जाते थे. रूपा और तपन जी भर कर मौज कर रहे थे. मार्च 2021 का आधा महीना बीत गया था. मगर उत्तम की मृत्यु का प्रमाणपत्र नहीं मिलने पर रूपा को अपने पति के एलआईसी इंश्योरेंस एवं अन्य बीमा कंपनियों से रकम नहीं मिल पा रही थी. साथ ही पति के नाम पैतृक संपत्ति भी रूपा के नाम नहीं हो रही थी.

तब रूपा ने अपने जेठ प्रेमी से कहा, ‘‘उत्तम का मृत्यु प्रमाणपत्र कोरोना बीमारी की वजह से बनवाओ. मृत्यु प्रमाणपत्र के बिना एक रुपया भी नहीं मिलेगा. मेरे पास साढ़े 12 लाख रुपए थे वो मैं ने तुम्हें दे दिए हैं. जल्द से जल्द किसी तरह प्रमाणपत्र बनवाओ.’’

सुन कर तपन बोला, ‘‘अभी मैं राकेश को बोलता हूं. तुम चिंता मत करो. राकेश मृत्यु प्रमाणपत्र बनवा देगा.’’

कह कर तपन ने राकेश को फोन कर उत्तम दास का कोरोना से मौत होने का मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने को कहा. राकेश को तपन ने कहा कि जो पैसा लगेगा वह दे देगा. इस के बाद राकेश ने सुरेंद्र को साथ लिया और दोनों लोग पंचायतों के चक्कर काटने लगे.

राकेश वगैरह के पास उत्तम के नाम की कोई मैडिकल रिपोर्ट और अन्य कोई प्रमाण नहीं थे. इस कारण मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं बन रहा था. तब वे लोग पैसे दे कर प्रमाणपत्र बनवाने का जुगाड़ भी लगाने लगे थे. ऐसे में ये लोग स्पैशल टीम के कांस्टेबल प्रह्लाद पाटीदार की निगाह में चढ़ गए. प्रह्लाद ने टीम प्रभारी डीएसपी हनुमंत सिंह भाटी को इस बारे में जानकारी दी और फिर निगाह रख कर इन्हें धर दबोचा.

इस की जानकारी एक मुखबिर ने स्पैशल टीम के कांस्टेबल प्रह्लाद को दी और फिर सब पकड़ लिए गए. पूछताछ होने पर सातों आरोपियों रूपा, उस के जेठ तपन दास, राकेश लोहार, सुरेंद्र, संजय, अजय और जयवर्द्धन को प्रतापनगर थाना पुलिस ने उदयपुर कोर्ट में 10 अपै्रल, 2021 को पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

यारों की बाहों में सुख की तलाश – भाग 3

एसएचओ रविंद्र वर्मा काररवाई निपटाने में लग गए. लाश का पंचनामा तैयार कर के और संदिग्ध चीजों को सीलमुहर करने के बाद एसएचओ ने लाश को दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल की मोर्चरी में पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. फिर वह थाने वापस आ गए, उन की टीम उन के साथ थी.

उत्तम मंडल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट 5 नवंबर को राजौरी गार्डन थाने की टेबल पर पहुंची तो उसे पढ़ कर एसएचओ हैरत से उछल पड़े. पास में ही एसआई मुकेश यादव बैठे एक फाइल देख रहे थे.

अपने साहब को यूं कुरसी से उछल कर खड़ा होते देख उन्होंने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या बात है सर, आप उत्तम की पोस्टमार्टम रिपोर्ट देख कर हैरत में क्यों आ गए हैं?’’

‘‘मुकेश, डीसीपी साहब का तजुर्बा कमाल का निकला. उन्होंने उत्तम की बीवी काजल की कहानी का परसों बखिया उधेड़ कर कहा था कि कोई आदमी इतनी छोटी वजह पर फांसी लगा लेगा, यह संभव नहीं है.’’

‘‘लेकिन सर, उत्तम ने फांसी तो लगाई ही है. उस की लाश देखी है मैं ने, उस के गले पर फंदे के निशान दिखाई दे रहे थे.’’

‘‘मुकेश बाबू, अब उस की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी देख लो. उत्तम मंडल ने फांसी नहीं लगाई, उसे गला घोट कर मारा गया था और मारने के बाद फिर उस की लाश को फंदे पर लटकाया गया था.’’

‘‘क्या… यह क्या कह रहे हैं सर?’’ मुकेश ने हैरानी से कहा, ‘‘लाइए, मुझे दिखाइए पोस्टमार्टम रिपोर्ट.’’

एसएचओ ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट एसआई मुकेश की ओर बढ़ा दी. एसआई मुकेश यादव ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखी तो उन की आंखें भी आश्चर्य से चौड़ी हो गईं.

‘‘कमाल है सर, उत्तम मंडल तो गला घोटे जाने से मरा है, उसे बाद में फांसी पर लटकाया गया.’’ मुकेश यादव हैरानी से बोले.

‘‘क्या लगता है मुकेश, यह काम किस का हो सकता है?’’ एसएचओ ने पूछा.

‘‘काजल पर शक जा रहा है सर, कोई बाहर का आदमी काजल द्वारा कपड़े उतारने छत पर जाने के दौरान घर में घुस कर मंडल का गला नहीं दबा सकता और यदि दबाएगा तो इतने कम समय में चुन्नी का फंदा बना कर उत्तम की लाश को पंखे से लटका नहीं सकेगा.’’

‘‘हां, लाश को उठा कर पंखे से लटकाने में आधे घंटे की मेहनत लग सकती है. बाहर का व्यक्ति इतने इत्मीनान से यह काम करने की हिम्मत एक ही सूरत में करेगा.’’

‘‘किस सूरत में?’’

‘‘अगर उस का काजल से कोई घनिष्ठ रिश्ता रहेगा, मतलब मृतक की पत्नी काजल से वह मिला होगा.’’

‘‘गुड.’’ श्री वर्मा मुसकरा पड़े, ‘‘मैं भी यही सोच रहा हूं. उत्तम की लाश छत के पंखे से लटकाने में काजल का सहयोग किसी ने जरूर किया है. और ऐसा

सहयोग वही करेगा, जिसे काजल से लगाव होगा.’’

‘‘सर, यह भी हो सकता है कि खुद काजल ने अपने पति की हत्या की हो और फिर अपने जानकार को बुला कर लाश पंखे से लटका कर इसे आत्महत्या का रूप दिया हो.’’

‘‘बात एक ही है मुकेश. बाहर का व्यक्ति हत्या करे या काजल खुद हत्या करे, मकसद आपसी सहयोग से लाश को फंदे पर लटकाने का है. देखना है, वह बाहर का व्यक्ति काजल का हितैषी रहा है या प्रेमी?’’

‘‘प्रेमी ही होगा सर, मुझे यह मामला प्रेम संबंधों का लग रहा है. अगर काजल को यहां ला कर पूछताछ की जाए तो वह बता देगी कि उस का साथ किस ने दिया है.’’

‘‘मुकेश, सब से पहले तो यह सच्चाई उच्चाधिकारियों को बता कर उन की राय लेना आवश्यक है.’’ श्री वर्मा ने कहा तो एसआई मुकेश ने सहमति में सिर हिला दिया.

एसएचओ रविंद्र वर्मा ने डीसीपी घनश्याम बंसल को फोन कर के उत्तम मंडल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट की जानकारी देते हुए काजल पर अपना संदेह व्यक्त किया तो उन्होंने उन्हें अपने तरीके से कार्य करने की परमिशन देते हुए उन्हीं के सुपरविजन में एक टीम का गठन कर दिया.

इस टीम में एसएचओ रविंद्र वर्मा के अलावा इंसपेक्टर सुदेश नैन, एसआई मुकेश यादव, महिला हैडकांस्टेबल जया, मनजीत, संदीप और कांस्टेबल मनजीत को शामिल किया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से उत्तम मंडल का गला दबा कर हत्या करने की बात सामने आ गई थी, इसलिए एसआई मुकेश यादव को वादी बन कर यह मामला भादंवि की धारा 302 के तहत दर्ज किया गया.

अब तक सूचना पा कर उत्तम मंडल के परिजन भी पूर्णिया (बिहार) से दिल्ली आ गए थे. उत्तम मंडल की पत्नी काजल, पिता गुलाय मंडल और उस के अन्य परिजनों को दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल की मोर्चरी में बुलवा कर उत्तम की लाश को उन के सुपुर्द कर के क्रियाकर्म की मंजूरी दे दी गई.

अभी तक एसएचओ वर्मा ने काजल या उस के घर वालों पर यह जाहिर नहीं होने दिया था कि उत्तम मंडल ने आत्महत्या नहीं की, उसे गला घोट कर मारा गया है. उसी शाम उत्तम मंडल का उस के घर वालों ने अंतिम संस्कार कर दिया.

एसएचओ वर्मा ने एक बात पर गौर किया कि खुद को उत्तम मंडल का पड़ोसी और गांव के रिश्ते से उत्तम मंडल का भाई बताने वाला राजेश हर मामले में आगे रहा था. उस की काजल के साथ खुसरफुसर होने की बात भी उन्होंने नोट कर ली थी.

उन्हें महसूस हुआ कि काजल और राजेश में कोई गहरा रिश्ता है, ऐसा रिश्ता तो उत्तम मंडल की हत्या की साजिश तक रच सकने में संकोच नहीं करेगा.

एसएचओ ने एसआई मुकेश यादव को मोहन सिंह के मकान पर भेज कर काजल और राजेश के गहरे रिश्ते की छानबीन करने का निर्देश दिया.

एसआई मुकेश यादव ने मोहन सिंह और आसपड़ोस से पूछताछ कर के जो मालूमात हासिल की, उस के अनुसार राजेश का काजल के घर में बहुत उठनाबैठना था. उत्तम मंडल की गैरमौजूदगी में भी वह कईकई घंटे उस के घर में घुसा रहता था. उस की यह घुसपैठ शक का कारण बनी.

श्री वर्मा ने 5 नवंबर, 2022 की शाम को काजल को थाने बुलवा लिया. काजल उस वक्त उत्तम की मौत में गमजदा होने का जबरदस्त नाटक कर रही थी. थाने में वह सुबक रही थी और उस की आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे.

श्री वर्मा ने उसे सामने बिठा कर सख्ती से पूछताछ की तो वह कुछ ही देर में टूट गई और उस ने स्वीकार कर लिया कि राजेश के साथ मिल कर अपने पति की गला दबा कर हत्या की थी और उसे राजेश की सहायता से फंदे से लटकाया था.

‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया काजल?’’ एसएचओ वर्मा ने गंभीर स्वर में प्रश्न किया.

‘‘सर, राजेश को ले कर उत्तम मुझ पर शक करता था. लेकिन खामोश रहता था. उत्तम ने मुझे परसों शाम राजेश के साथ आपत्तिजनक हालत में देख लिया था.

‘‘उस ने राजेश को और मुझे जलील करते हुए मेरी पिटाई की तो मैं ने गुस्से में राजेश को ललकारा कि वह मुझे प्यार करता है तो इसे रास्ते से हटा दे. राजेश ने तब उत्तम को नीचे गिरा दिया. मैं ने उस की छाती पर बैठ कर उस का गला दबा दिया तो वह थोड़ी देर छटपटाया, फिर उस की मौत हो गई.

‘‘हम ने सर गुस्से में ऐसा अपराध किया था. उत्तम की मौत हो जाने पर हम घबरा गए. राजेश ने मुझे सलाह दी कि अगर उत्तम को फंदे से लटका कर आत्महत्या करने की बात कही जाएगी तो पुलिस इसे सच मान लेगी. मैं ने राजेश की मदद की और मेरी चुन्नी और परदे को आपस में जोड़ कर उत्तम के गले में फंदा डाल कर पंखे से लटका दिया.

‘‘राजेश यह काम कर के वहां से चला गया तो मैं ने अपने मकान मालिक को जा कर बताया कि उत्तम ने फांसी लगा ली है. थोड़ी देर में मेरे रोने की आवाजें सुन कर राजेश दौड़ा आया और उस ने उत्तम की लाश को नीचे उतार लिया.’’

‘‘राजेश ने लाश क्यों उतारी, क्या तुम लोग नहीं जानते थे कि ऐसी अवस्था में यह पुलिस के काम में हस्तक्षेप करने जैसा अपराध होता है?’’

‘‘सर, राजेश ने मुझे बता दिया था कि वह लाश खुद नीचे उतार देगा, क्योंकि पुलिस लटकी हुई लाश की बहुत बारीकी से छानबीन करती है. लाश पंखे से लटकी रहती तो हम लोग फंस सकते थे.’’

‘‘राजेश के साथ तुम्हारे संबंध कब से हैं?’’ वर्मा ने गंभीर स्वर में पूछा.

‘‘6-7 महीने से.’’ काजल ने बताया, ‘‘राजेश ने मेरे पति को मोहन सिंह के मकान में कमरा दिलवाया था. उसी ने मेरे पति को फैक्ट्री में काम पर लगवाया था. मेरे पति उसे छोटा भाई मानते थे. राजेश शादीशुदा और 3 बेटियों और एक बेटे का बाप है, लेकिन उस की तभी से मुझ पर नजर थी, जब मैं ब्याह कर गांव में अपाहिज उत्तम के घर आई थी.

‘‘जब मैं पति के साथ दिल्ली आ गई तो राजेश अकसर मेरे घर आने लगा. मैं ने उस की आंखों में अपने लिए चाहत देखी तो मैं भी उस की ओर आकर्षित हो गई. हमारे बीच जल्दी ही संबंध बन गए. पति जब काम पर होता था, हम अपने जिस्म की प्यास बुझा लेते थे. उत्तम ने अगर उस दिन हमें आपत्तिजनक हालत में नहीं पकड़ा होता तो उस की हत्या भी नहीं होती.’’

काजल द्वारा उत्तम मंडल की गला दबा कर हत्या करने की बात स्वीकार कर लेने के बाद उसी रात राजेश को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया.

थाने में काजल को गरदन झुका कर बैठा देख वह समझ गया कि हत्या की बात वह कुबूल कर चुकी है, इसलिए उस ने चुपचाप इस हत्या में शामिल होने की बात स्वीकार कर ली.

पुलिस ने उन्हें दूसरे दिन अदालत में पेश कर के जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. उत्तम मंडल की हत्या का मामला पुलिस ने 24 घंटे में हल कर दिया था. इस के लिए डीसीपी घनश्याम बंसल ने पूरी टीम को शाबाशी दी.

पति द्वारा सुख मिलने के बाद भी काजल ने परपुरुष से अवैध संबंध बनाए, जिस के कारण काजल को पति की हत्या करने जैसा संगीन अपराध करना पड़ा. उस ने यह भी नहीं सोचा कि उस के जेल चले जाने के बाद उस के बेटे का क्या होगा. फिलहाल उत्तम का बेटा अपने दादादादी के साथ पूर्णिया (बिहार) चला गया था.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फरजाना के प्यार का समंदर – भाग 3

एक दिन दोपहर को फरजाना के बच्चे स्कूल गए थे. रईस सुबह ही काम पर चला गया था. गरमी के दिन थे. गली में सन्नाटा था. अमर सिंह ऐसे ही मौके की तलाश में था. वह धीरे से फरजाना के घर पहुंच गया. इधरउधर की बातों और हंसीमजाक के बीच अमर सिंह ने फरजाना का हाथ अपने हाथ में ले लिया.

फरजाना ने इस का विरोध नहीं किया. मजबूत कदकाठी वाले अमर सिंह के हाथों का स्पर्श ही कुछ अलग था. फरजाना का हाथ अपने हाथ में ले कर अमर सुधबुध खो बैठा. अचानक फरजाना अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘छोड़ो मेरा हाथ, अगर किसी ने देख लिया तो जानते हो कितनी बड़ी बदनामी होगी.’’

फरजाना की बात सुन कर अमर सिंह ने कहा, ‘‘यहां देख लेने का खतरा है तो अंदर कमरे में चलें.’’

‘‘नहींनहीं, आज नहीं, बच्चों के आने का टाइम हो गया है. वे किसी भी समय आ सकते हैं. फिर कभी अंदर चलेंगे.’’ फरजाना ने कहा तो अमर सिंह ने उस का हाथ छोड़ दिया. लेकिन वह मन ही मन खुश था, क्योंकि उसे फरजाना की तरफ से हरी झंडी मिल गई थी. इस के बाद मौका मिलते ही दोनों ने मर्यादा की दीवार तोड़ डाली.

दरअसल, रईस शराब का लती था. शराब पीपी कर उस का शरीर खोखला हो गया था. उस के शरीर में वह बात नहीं रह गई थी, जो उसे अमर सिंह से मिली. इसलिए वह अमर की दीवानी बन गई और उस की बांहों का हार बन गई.

तन से तन का रिश्ता कायम होने के बाद फरजाना और अमर सिंह उसे बारबार दोहराने लगे. शौहर की आंखों में धूल झोंक कर फरजाना अमर सिंह के साथ मौजमस्ती करने लगी. अवैध संबंधों का यह सिलसिला फिर बढ़ता ही गया.

अवैध रिश्तों को कोई लाख छिपाने की कोशिश क्यों न करे, लेकिन वह छिप नहीं पाते. किसी तरह पड़ोसियों को फरजाना और अमर सिंह के अवैध रिश्तों की भनक लग गई. उन्होंने यह बात रईस को बताई. लेकिन वह इतना सीधासादा था कि उस ने पड़ोसियों की बातों पर ध्यान ही नहीं दिया. क्योंकि उसे बीवी पर पूरा भरोसा था. जबकि सच्चाई यह थी कि वह उस के साथ लगातार विश्वासघात कर रही थी. सही बात तो यह थी कि फरजाना शौहर को कुछ समझती ही नहीं थी.

रईस के भाई वाहिद को भी फरजाना और अमर सिंह के नाजायज संबंधों की जानकारी हो चुकी थी. उस ने फरजाना को समझाने की पूरी कोशिश की और खानदान की इज्जत की दुहाई भी दी. लेकिन मुंहफट फरजाना ने उसे ही नसीहत दे डाली कि वह अपने घर को संभाले, दूसरे के घर में ताकझांक न करे. कहीं ऐसा न हो कि बदनामी के दाग उस पर ही पड़ जाएं.

वाहिद फरजाना का इशारा समझ गया, इसलिए उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. फरजाना जानती थी कि उस का शौहर रईस सुबह घर से निकलने के बाद देर शाम ही घर लौटता है. और बच्चे स्कूल चले जाते हैं.

सूना घर पा कर ही वह अपने प्रेमी अमर सिंह को फोन कर घर बुला लेती, फिर दोनों रंगरलियां मनाते.

लेकिन सतर्कता बरतने के बावजूद एक दिन रईस ने अपनी बीवी को दोस्त अमर सिंह के साथ आपत्तिजनक स्थिति में अपने ही घर में रंगेहाथ पकड़ लिया. अमर सिंह ने जब रईस को देखा तो वह फुरती से वहां से भाग गया. रईस ने भी उस से कुछ नहीं कहा. लेकिन उस ने फरजाना को खूब खरीखोटी सुनाई और दोबारा ऐसी हरकत न करने की हिदायत दे कर छोड़ दिया.

उस दिन के बाद से कुछ दिनों तक अमर सिंह का फरजाना के घर आनाजाना लगभग बंद रहा. पर यह पाबंदी ज्यादा समय तक कायम नहीं रह सकी. मौका मिलने पर दोनों फिर से रईस की आंखों में धूल झोंक कर रंगरलियां मनाने लगे. रईस ज्यादा ताकझांक न करे, इस के लिए अमर सिंह उसे शराब और मीट का लालच देने लगा.

फरजाना ने अपने दोनो बेटों को भी पूरी तरह से अपने पक्ष में कर लिया था. अमर सिंह भी बच्चों को पैसे और खानेपीने की चीजें ला कर देता रहता था, जिस से बच्चे अमर सिंह के घर में आने की बात अपने अब्बू को नहीं बताते थे.

एक रोज रईस अपने औजार थैले में डाल कर ठठिया कस्बा जाने की बात कह कर घर से निकला तो फरजाना ने अमर को फोन कर घर बुला लिया. उस ने आते ही फरजाना के गले में अपनी बांहों का हार डाल दिया, तभी फरजाना इठलाते हुए बोली, ‘‘अरे, यह क्या कर रहे हो, थोड़ा सब्र तो करो.’’

‘‘कुआं जब सामने हो तो प्यासे को सब्र थोड़े ही होता है,’’ कहते हुए अमर सिंह ने उस का मुंह चूम लिया.

‘‘तुम्हारी इन नशीली बातों ने ही मुझे तुम्हारा दीवाना बना रखा है. न दिन को चैन मिलता है और न रातों का पता चलता है. जब मैं रईस के साथ होती हूं तो केवल तुम्हारा ही चेहरा मेरे सामने होता है,’’ फरजाना ने इतना कह कर अमर का गाल चूम लिया.

अमर सिंह से भी रहा नहीं गया. उस ने फरजाना को बांहों में ले लिया और बिस्तर पर पहुंच गया. इस से पहले कि वे खेल शुरू कर पाते, दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. इस आवाज को सुनते ही उन के दिमाग से वासना का भूत उतर गया.

फरजाना ने जल्दी से अपने अस्तव्यस्त कपड़ों को ठीक किया और दरवाजा खोलने भागी. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने शौहर को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’ फरजाना हकलाते हुए बोली.

‘‘ठेकेदार ने काम शुरू ही नहीं कराया, इसलिए वापस आ गया.’’ कहते हुए रईस ने फरजाना को एक ओर किया और अंदर घुसा तो सामने अमर सिंह को देख कर उस का माथा ठनका. उस ने पूछा, ‘‘तुम घर के अंदर क्यों आए?’’

‘‘भाईजान, तुम से मिलने आया था. आज शाम घर में शराब पार्टी है. तुम्हें भी आना है.’’ अमर सिंह ने बहाना बनाया.

लेकिन रईस सब समझ गया. उस ने बीवी की तरफ देखा, वह घबरा रही थी. उस के बाल बिखरे थे और आंखें झुकी हुई थीं. अमर सिंह भी उस से नजरें नहीं मिला पा रहा था.

रईस उस से कुछ और पूछता, उस के पहले ही वह वहां से भाग गया. रईस ने दोनों की चोरी दोबारा पकड़ी थी. इसलिए इस बार उस ने बीवी को माफ नहीं किया और फरजाना की जम कर धुनाई की. अब वह फरजाना पर और ज्यादा निगाह रखने लगा था.

मगर फरजाना पर इस का विपरीत असर हुआ. वैसे भी वह पहले ही शौहर की परवाह नहीं करती थी, अब उस का डर बिल्कुल मन से निकल गया था. वह पूरी तरह बेशरमी पर उतर आई थी. शौहर की मौजूदगी में ही वह प्रेमी अमर सिंह से खुलेआम मिलने लगी.

रईस घर के बाहर बैठा रहता तो अमर सिंह उस के सामने ही घर के अंदर उस की बीवी के पास चला जाता. वह जानता था कि अमर सिंह और फरजाना उस से ज्यादा ताकतवर हैं, इसलिए वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता था. लाचार सा वह घर के बाहर ही बैठा रहता था.

फरजाना कभी उसे खानेपीने को पूछ लेती तो कभी उसे भूखा ही रखती. बीवी पर अब उस का कोई वश नहीं रह गया था. वह बेटों की दुहाई देते हुए बीवी को समझाता, पर फरजाना पर उस के समझाने का कोई फर्क नहीं पड़ता था, बल्कि वह और भी ज्यादा मनमानी करने लगी थी.

अपनी आंखों के सामने अपनी इज्जत का जनाजा उठते देख रईस का धैर्य जवाब देने लगा था. अब उस से बीवी की बेवफाई और बेहयाई बिलकुल बरदाश्त नहीं हो रही थी. इस का परिणाम यह हुआ कि रईस पहले से अधिक शराब पीने लगा. वह जो कमाता, सब शराब पीने में ही उड़ा देता. शराब के नशे में वह फरजाना व अमर को गाली बकता.

फरजाना को शौहर की गाली बरदाश्त नहीं होती थी. वैसे भी फरजाना को प्रेमी से चोरीछिपे मिलना अच्छा नहीं लगता था. उधर अमर सिंह भी चाहता था कि फरजाना जीवन भर उस के साथ रहे. अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए दोनों रईस को ठिकाने लगाने की सोचने लगे.

21 दिसंबर, 2022 की रात 8 बजे रईस नशे में धुत हो कर घर आया तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने कुंडी खटखटाई, लेकिन फरजाना ने दरवाजा नहीं खोला. तब रईस फरजाना को भद्दीभद्दी गालियां बकने लगा.

शौहर की गालियां फरजाना को बरदाश्त नहीं हुईं. अमर सिंह उस समय फरजाना के घर पर ही था. उस ने गुस्से में अमर सिंह से कहा, ‘‘बाहर मेरा शौहर मुझे गालियां बक रहा है और तुम घर के अंदर दुम दबाए बैठे हो. कैसे आशिक हो तुम?’’

‘‘मैं कर ही क्या सकता हूं फरजाना?’’

‘‘तुम उस का मुंह हमेशा के लिए बंद क्यों नहीं कर देते. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.’’

‘‘ठीक है. मैं तैयार हूूं. लेकिन तुम्हें भी मेरा साथ देना होगा.’’

‘‘तुम्हारे लिए मैं साथ तो क्या कुरबान होने को भी तैयार हूं.’’

इसी समय लाइट गुल हो गई और गांव में घुप अंधेरा छा गया. उचित मौका देख कर अमर सिंह हाथ में कुल्हाड़ी तथा फरजाना हाथ में डंडा ले कर मुंह ढंक कर घर के बाहर आए. झोपड़ी के पास रईस आग ताप रहा था.

तभी पीछे से अमर सिंह ने कुल्हाड़ी का भरपूर वार रईस के सिर पर किया. कुल्हाड़ी के वार से रईस का सिर फट गया और वह वहीं ढेर हो गया. नफरत की आग में जल रही फरजाना ने भी डंडे से कई वार शौहर के सिर पर किए. इस के बाद फरजाना घर के अंदर चली गई और अमर सिंह कुल्हाड़ी के साथ फरार हो गया.

कुछ देर बाद फरजाना ने त्रियाचरित्र कर खून से लथपथ रईस के पास चीखने लगी. दिखावे के तौर पर वह उसे अस्पताल भी ले गई, लेकिन उस की सांसें तो पहले ही थम चुकी थीं.

24 दिसंबर, 2022 को पुलिस ने आरोपी अमर सिंह कुशवाहा तथा अदीबा बानो उर्फ फरजाना को पूछताछ के बाद कन्नौज की जिला अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. द्य

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मां-बाप के हत्यारे संदीप जैन को सजा-ए-मौत – भाग 3

संदीप खुश था कि उसे युवती से बात करने के लिए कुछ समय मिल गया था. उस की मां को संदीप घर की टायलेट में छोड़ कर जल्दी से दुकान में आ गया. संदीप के सामने खुद को अकेला पा कर वह लड़की सकुचाई हुई अपनी जगह पर सिमट कर बैठ गई.

‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’ संदीप ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘सुधा!’’ वह हौले से बोली.

‘‘मुझे तुम पहली नजर में ही पसंद आ गई हो, क्या मुझ से दोस्ती करोगी?’’

‘‘जी.’’ वह घबरा कर बोली, ‘‘मैं सोच कर बताऊंगी.’’

‘‘मुझे अपना नंबर दे कर जाओ. अपनी स्वीकृति शाम तक बता देना.’’ संदीप ने कहने के बाद अपना मोबाइल उठा कर उस की तरफ बढ़ा दिया.

युवती ने उस के मोबाइल में अपना नंबर अपने नाम के साथ सेव कर दिया.

सुधा की मां वापस आ गई तो दोनों को छोड़ने संदीप दरवाजे तक आया.

‘‘आप बहुत अच्छे हैं.’’ सुधा धीरे से फुसफुसा कर बोली और तेजी से मां के पीछे बाहर निकल गई.

यह सुधा से संदीप की पहली मुलाकात थी. वह बहुत खुश था और मन में यह सोच भी लिया था कि यदि सुधा ने उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो वह उसे अन्य लड़कियों की तरह इस्तेमाल कर के छोड़ेगा नहीं, बल्कि उसे अपनी जीवनसंगिनी बना लेगा.

शाम होने तक संदीप बहुत उतावला और बेचैन रहा. उस की नजरें बारबार अपने मोबाइल की स्क्रीन पर चली जाती थीं. उसे सुधा के फोन का इंतजार था.

प्यार हुआ इकरार हुआ

रात के 8 बजे सुधा का नंबर स्क्रीन पर चमका तो संदीप ने धड़कते दिल से काल रिसीव करते हुए कहा, ‘‘हैलो सुधा, मैं तुम्हारे ही फोन का इंतजार कर रहा था. बोलो, क्या सोचा है तुम ने, क्या मुझे अपना दोस्त बनाओगी या…’’

‘‘अरे बाबा, सांस तो ले लो, इतनी बेसब्री क्यों दिखा रहे हो?’’ सुधा हंस पड़ी थी.

‘‘मेरे कान तुम्हारी ‘हां’ सुनने को तरस रहे हैं. बोलो, क्या कहती हो?’’ संदीप ने उतावले पन से पूछा.

‘‘संदीप, मैं तुम्हारी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा तो दूं लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘संदीप, मैं दूसरी जाति से हूं. हम माली हैं. पिताजी एग्रीकल्चर शौप पर 10 हजार की नौकरी करते हैं. तुम्हारे दुकान के बोर्ड पर मैं ने जैन वस्त्रालय का बोर्ड देखा था. जैनी और माली चल पाएगा, यही सोच कर मन में झिझक है.’’

‘‘आजकल जातपात को कौन देखता है सुधा… प्यार में अमीरगरीब का भेद भी नहीं चलता. तुम बेझिझक मेरी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाओ, मेरी ओर से तुम्हें धोखा नहीं मिलेगा.’’

‘‘बात तुम्हारी नहीं, तुम्हारे मम्मीपापा की है संदीप…’’

‘‘उन की तुम चिंता मत करो.’’ संदीप जल्दी से बोला, ‘‘उन्हें मैं मना लूंगा.’’

संदीप ने आश्वासन दिया तो सुधा ने दोस्ती की हामी भर ली. उसी दिन से उन की दोस्ती शुरू हो गई. दोनों रेस्टोरेंट, पार्क और पिकनिक स्पौट पर मिलने लगे. यह दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदल गई. संदीप दिल खोल कर सुधा पर रुपए खर्च करने लगा.

उनके बीच की दूरियां भी एक दिन खत्म हो गईं. सुधा ने यह सोच कर अपने आप को संदीप के हवाले कर दिया कि वह उसे जरूर अपना लेगा. वह आश्वस्त थी, किंतु संदीप अपनी शादी की बात पिता से कहने में हिचक रहा था, वह यह बात अच्छी तरह जानता था कि उस के पिता पुराने खयालों के दकियानूसी इंसान हैं. दूसरी जाति और वह भी गरीब लड़की से शादी करने की वह उसे इजाजत नहीं देंगे.

मांबाप ने सुधा से शादी करने का किया विरोध

संदीप ने यह बात अपनी मां के सामने रखने का मन बना लिया. उस ने सोचा कि यदि मां मान गईं तो पिता को अवश्य मना लेंगी.

एक दिन मौका देख कर संदीप ने मां सूरजी देवी के सामने अपनी बात रख दी, ‘‘मां मैं आप से एक बात करना चाहता हूं.’’

‘‘कौन सी बात बेटा?’’

‘‘मां, मुझे एक लड़की से प्यार हो गया है.’’ झिझकते हुए संदीप ने कहा.

सुनते ही सूरजी देवी भड़क गई, ‘‘खबरदार, जो इस घर में प्यारव्यार का नाम लिया तो, हमारे खानदान में यह सब नहीं चलता है.’’

‘‘आप पुराने खयालात की हैं मां, अब जमाना बदल गया है.’’ संदीप गंभीर हो कर बोला, ‘‘आप को मेरी खुशी का खयाल रखना चाहिए.’’

‘‘तेरी खुशियों का हम लोग पूरा खयाल रख रहे हैं संदीप. जो तू कहता है तेरे पिता वह करते हैं. लेकिन तेरी जायज मांग ही पूरी की जाएगी, यह प्यारप्यार की बातें इस घर में नहीं चलेगी.’’ सूरजी देवी गंभीर हो गईं, ‘‘मैं यह जानती हूं कि तू जवान हो गया है, मैं ने तेरे पिता से कह दिया है, वह तेरे लिए रिश्ता तलाश कर रहे हैं.’’

‘‘नहीं. मैं आप क ी पसंद से नहीं, अपनी पसंद से शादी करूंगा. इस घर में वह लड़की आएगी, जिसे मैं प्यार करता हूं.’’ संदीप भड़क कर बोला.

‘‘यह मेरे जीते जी नहीं होगा.’’ सूरजी देवी गुस्से में आ गईं.

‘‘देखता हूं कैसे नहीं होता.’’ संदीप चिल्ला कर बोला और पांव पटकता हुआ कमरे से निकल गया.

यह बात पत्नी द्वारा रावतमल को पता लगी तो वह गुस्से से आगबबूला हो गए. घर में महाभारत शुरू हो गई. कितने ही दिनों तक संदीप और उस के पिता में कहासुनी होती रही. रावतमल जैन ने उसे चेतावनी दी, ‘‘यदि संदीप अपनी मरजी से शादी करेगा तो उसे जमीनजायदाद से बेदखल कर दिया जाएगा.’’

संदीप को अपनी मौजमस्ती के लिए पिता से पैसे चाहिए थे. पिता के बाद वह उन की चलअचल संपत्ति का मालिक बनने के ख्वाब देखता आ रहा था, कहीं पिता उसे संपत्ति से बेदखल न कर दें, इसलिए उस ने प्रेमिका सुधा से मुंह मोड़ लिया.

रावतमल ने उस के लिए लड़की तलाश कर के उस की शादी कर दी. संदीप ने मन मार कर अपनी पत्नी संतोष कुमारी में रुचि ले कर सुधा की यादों पर मिट्टी डालनी शुरू कर दी. संतोष की जवान देह में वह कुछ ही समय तक डूबा रहा. जब संतोष एक बच्चे की मां बन गई तो संदीप ने फिर से दूसरी जवान युवतियों की ओर अपने पांव बढ़ा दिए. वह पिता की दौलत फिर से मौजमस्ती में उड़ाने लगा.

रावतमल जैन 80 वर्ष के हो गए थे. वह बेटे संदीप की ओर से दुखी रहते थे. संदीप 42 साल का होने को आया था, लेकिन उस ने अपनी जिम्मेदारियों को अभी तक नहीं समझा था. हर बार संदीप उन के आगे हाथ पसारता रहता था.

बीवी ने मरवाया अमीर पति को – भाग 3

घर की कलह जब बढ़ने लगी तो पूनम को अपने तथा अपने बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी. उस ने अमित से कहा कि बच्चे अब बड़े होने लगे हैं. उन्हें स्थाई रूप से अच्छे स्कूल में पढ़ाने की जरूरत है. उसे भी अपने भविष्य की चिंता है, इसलिए घर और जमीन में उसे आधा हिस्सा दे दो. मुंबई के 3 फ्लैटों में से एक उस के नाम तथा एक उस के बेटे अर्पित के नाम कर दो.

अमित खिलखिला कर हंसा फिर बोला, ‘‘प्रौपर्टी तुम्हारे नाम कर दूं ताकि तुम उसे बेच कर बच्चों को अनाथ बना कर अपने प्रेमी के साथ फुर्र हो जाओ. जब तक बच्चे सयाने और समझदार नहीं हो जाते, तब तक किसी के नाम कुछ नहीं करूंगा. एक बात कान खोल कर और सुन लो. अब मेरा मन मुंबई से ऊब गया है. कारखाना बंद कर और फ्लैट बेच कर मैं ने बिंदकी में ही रहने का मन बना लिया है.’’

 

अमित गुप्ता चलते व्यापार को बंद नहीं करना चाहता था. उस ने फ्लैट बेचने की बात पूनम को डराने के लिए कही थी. लेकिन पूनम ने पति की बात को सच मान लिया और वह चिंतित हो उठी. उसे लगा अमित फ्लैट बेच कर सारा पैसा अपनी मां, विधवा बहन व अपनी प्रेमिका पर खर्च कर देगा. उसे और उस के बच्चों को कुछ हासिल नहीं होगा. अमित उसे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक देगा और खुद प्रेमिका से शादी रचा लेगा.

वह ऐसा तानाबाना बुनेगी, जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

जनवरी 2023 के दूसरे सप्ताह में एक रोज पूनम ने मुंबई से अपने प्रेमी अविनाश उर्फ उमेंद्र को फोन किया. मोबाइल फोन की स्क्रीन पर प्रेमिका पूनम का नंबर देख कर वह खुशी से झूम उठा. उस ने तुरंत काल रिसीव की और पूछा, ‘‘कैसी हो पूनम, सब ठीक तो है?’’

‘‘कुछ भी ठीक नहीं है अविनाश. मैं बहुत परेशान हूं. मेरी रातों की नींद हराम हो गई है और दिन का चैन छिन गया है. तुम मेरे पति अमित को मार दो, तभी मुझे तसल्ली मिलेगी.’’

‘‘पूनम, अमित धनाढ्य व्यापारी है. उस की हत्या करना उतना आसान नहीं, जितना तुम समझती हो. उस की हत्या के लिए किसी हिस्ट्रीशीटर को सुपारी देनी होगी.’’

‘‘तो दो न सुपारी. मैं ने कब मना किया. जितना पैसा मांगोगे, मैं दूंगी. अविनाश तुम अपना बैंक का एकाउंट नंबर मुझे भेज दो. मैं कुछ पैसा तुम्हारे एकाउंट में ट्रांसफर कर दूंगी. यह पैसा निकाल कर तुम सुपारी किलर को दे देना.’’

7 लाख रुपए में बात तय हो गई तो 2 दिन बाद ही पूनम ने अविनाश के खाते में 85 हजार रुपए ट्रांसफर कर दिए. खाते में पैसे आ जाने के बाद अविनाश उर्फ उमेंद्र पूनम के जीजा रामखेलावन से मिला. फिर दोनों सुपारी किलर की तलाश में जुट गए. अविनाश ने हिस्ट्रीशीटर की तलाश शुरू की तो उसे अंकित सिंह उर्फ शेरा के बारे में पता चला. 22 वर्षीय अंकित उर्फ शेरा फतेहपुर जिले के औंग थाना के गांव वसावनपुर का रहने वाला था. फतेहपुर का वह हिस्ट्रीशीटर था.

अंकित उर्फ शेरा के गैंग में हरदेव नगर (कानपुर) बर्रा निवासी केशव गुप्ता, फतेहपुर जनपद के गांव चमनगंज निवासी मोहित और शीलू (दोनों सगे भाई), दुर्गागंज निवासी अंशुल पासवान शामिल थे. इन के साथ मिल कर शेरा वारदात को अंजाम देता था. अंकित सिंह उर्फ शेरा हत्या जैसे जघन्य अपराध की सुपारी भी लेता था.

अविनाश और रामखेलावन ने एक रोज शेरा से मुलाकात की और बिंदकी कस्बे के चर्चित उद्योगपति अमित गुप्ता की हत्या की सुपारी 7 लाख में दे दी. बयाना के तौर पर अविनाश ने उसे 80 हजार रुपए भी थमा दिए.

26 जनवरी, 2023 को अमित के चचेरे भाई अमन की शादी होनी तय थी. अमित ने पूनम से शादी समारोह में चलने को कहा तो वह तुनक कर बोली, ‘‘तुम्हीं जाओ और खूब खुशियां मनाओ. मैं बच्चों के साथ बाद में आ जाऊंगी. वैसे भी वहां तुम्हारी ही पूछ है. मुझ से तो सब नफरत ही करते हैं.’’

योजनाबद्ध तरीके से करा दी पति की हत्या

शादी में न जाने को ले कर अमित और पूनम में जम कर तकरार हुई और नौबत मारपीट तक पहुंच गई. अमित रेलवे के 3 टिकट बुक करा कर लाया था. गुस्से में उस ने 2 टिकट फाड़ दिए. फिर वह ट्रेन से बिंदकी के लिए निकल गया.

20 जनवरी, 2023 की सुबह 10 बजे अमित अपने घर बिंदकी आ गया. उसे देख कर मांबहन की खुशी का ठिकाना न रहा. चचेरे भाई भी उस से गले लग कर मिले. पूनम व बच्चों के विषय में मां ने पूछा तो अमित ने बता दिया कि वह बाद में आएगी.

इधर अमित की पिटाई से पूनम के मन में अमित के प्रति नफरत और भड़क गई थी. उस ने अपने प्रेमी अविनाश व जीजा रामखेलावन से मोबाइल फोन पर बात की और बताया कि अमित बिंदकी पहुंच चुका है. 29 जनवरी की सुबह वह भी बच्चों के साथ बिंदकी आ जाएगी. 29 जनवरी की रात ही अमित का काम तमाम करना है. तुम सुपारी किलर को सब बता देना.

सिंदूर मिटाने का जुनून : अवैद्य संबंधों के चलते पति की हत्या – भाग 3

एक दिन सुलभ घर में अकेली थी. वह आंगन में खड़ी अपने बाल सुखा रही थी, तभी दीपक आ गया. उस दिन वह दीपक को कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लगी. उस की निगाहें सुलभ के चेहरे पर जम गईं. यही हाल सुलभ का भी था. अपनी स्थिति को भांप कर सुलभ ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘तुम तो मुझे ऐसे देख रहे हो, जैसे पहली बार देखा है.’’

‘‘इस तरह अकेली तो पहली बार देख रहा हूं. इस के पहले तो चोरीचोरी देखना पड़ता था. आज खुल कर देखने का मौका मिला है. अब पता चला कि तुम कितनी खूबसूरत हो.’’

‘‘ऐसा क्या है मुझ में, जो मैं तुम्हें इतनी खूबसूरत लग रही हूं?’’ सुलभ ने दीपक की आंखों में आंखें डाल कर पूछा.

‘‘हीरे की परख जौहरी ही कर सकता है. मैं बड़ा नसीब वाला हूं, जिसे तुम्हारी खूबसूरती देखने का मौका मिला है.’’

‘‘वैसे आप हैं बहुत बातें बनाने वाले. बातों में उलझा कर आप मुझे फंसाना चाहते हैं. किसी की बीवी को फंसाने में तुम्हें डर नहीं लगता, ऐसा करते शरम नहीं आती?’’

‘‘कैसी शरम, खूबसूरत चीज को कौन नहीं पाना चाहता. अगर मैं तुम्हें पाना चाहता हूं तो इस में मेरा क्या दोष है?’’ कह कर दीपक ने सुलभ को अपनी बांहों में भर लिया.

सुलभ कसमसाई भी और बनावटी विरोध भी जताया, लेकिन उस के बाद खुद को समर्पित कर दिया. दीपक ने उस दिन सुलभ को जो सुख दिया, उस से वह भावविभोर हो उठी. दीपक से असीम सुख पा कर सुलभ उस की दीवानी बन गई. वह यह भी भूल गई कि वह 2 जवान बच्चों की मां है.

अवैध संबंधों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो वक्त के साथ बढ़ता ही गया. ऐसे रिश्ते छिपे भी नहीं रहते. सत्येंद्र को भी इस की जानकारी हो गई. फिर तो वह सुलभ पर बरस पड़ा, ‘‘मैं तुम्हारे बारे में क्या अनापशनाप सुन रहा हूं, मेरा नहीं तो कम से कम बच्चों का तो खयाल किया होता?’’

‘‘तुम्हें तो लड़ने का बहाना चाहिए. मैं ने ऐसा क्या गलत कर डाला, जो लोग मेरे बारे में अनापशनाप बक रहे हैं?’’ सुलभ ने कहा.

‘‘मुझे पता चला है कि दीपक वक्तबेवक्त घर आता है. तुम उस से हंसहंस कर बातें करती हो. तुम्हारे दीपक के साथ नाजायज संबंध हैं. आखिर मेरी जिंदगी को नरक क्यों बना रही हो?’’

‘‘नरक तो तुम ने मेरी और बच्चों की जिंदगी बना रखी है. पत्नी और बच्चों को जो सुखसुविधा चाहिए, वह तुम ने कभी नहीं दी. तुम जो कमाते हो, शराब में उड़ा देते हो. दीपक हमारी मदद करता है तो उस पर इलजाम लगाते हो.’’

सुलभ अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि सुरेंद्र का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. वह सुलभ को बेरहमी से पीटने लगा. पीटते हुए उस ने कहा, ‘‘मेरा खाती है और मुझ से ही जुबान लड़ाती है.’’

इस के बाद यह रोज का नियम बन गया. देर रात सुरेंद्र नशे में धुत हो कर आता और बातबेबात सुलभ से मारपीट करता. दोनों बच्चे जय और पारस मां को बचाने आते तो वह उन्हें भी गालियां तो देता ही, उन की पिटाई भी कर देता. अब वह रातदिन नशे में डूबा रहने लगा था. कभी काम पर जाता, कभी नहीं जाता. वेतन कम मिलता तो वह ठेकेदार और मुंशी से भी लड़ने लगता.

रोजरोज की मारपीट से सुलभ और उस का बेटा जय आजिज आ चुका था. आखिर उन्होंने सत्येंद्र से छुटकारा पाने की योजना बना डाली. उस योजना में सुलभ ने अपने प्रेमी दीपक कठेरिया को भी शामिल कर लिया.

दीपक इसलिए योजना में शामिल हो गया था, क्योंकि सत्येंद्र उस के संबंधों में बाधक बन रहा था. सुलभ की पिटाई उसे भी चुभती थी. योजना के तहत दीपक मसवानपुर स्थित पवन औटो से एक लोहे की रौड खरीद लाया और मैडिकल स्टोर से एक पत्ता नशीली गोलियों को.

12 मई, 2017 को योजना के तहत सुलभ अपने मायके विशधन चली गई. अगले दिन रात 8 बजे सत्येंद्र घर आया तो उस की तबीयत ठीक नहीं थी. वह चारपाई पर लेट गया. तभी जय ने दीपक को बुला लिया. योजना के तहत जय ने जूस में नशीली गोलियां घोल कर पिता को पिता दीं.

कुछ देर बाद वह बेहोश हो गया तो दीपक और जय उसे उसी की मोटरसाइकिल पर बैठा कर अरमापुर स्टेट स्थित कैलाशनगर पुलिया पर ले गए.

वहां सन्नाटा पसरा था. दोनों ने सत्येंद्र को मोटरसाइकिल से उतारा और सड़क किनारे पुलिया के पास लिटा कर लोहे की रौड से उस के सिर पर कई वार किए, जिस से उस का सिर फट गया और वह तड़प कर मर गया. जय को पिता से इतनी नफरत थी कि उस ने सड़क के किनारे पड़ी सीमेंट की ईंट उठाई और उस के चेहरे को कुचल दिया. हत्या करने के बाद जय और दीपक पैदल ही घर आ गए.

18 मई, 2017 को पूछताछ के बाद थाना अरमापुर पुलिस ने अभियुक्त दीपक, जय और सुलभ को कानपुर की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानतें नहीं हुई थीं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चाहत का संग्राम : प्रेम के आगे हारा पति – भाग 3

कहावत है कि अविवेक हमेशा अनर्थ की ओर ले जाता है. प्रतीक्षा व संग्राम सिंह की घनिष्ठता और यशवंत सिंह के पीछे उस के घर आनेजाने को ले कर यशवंत सिंह की मां कमला के मन में संदेह के बीज उगने लगे. कमला ने इस की शिकायत बेटे से की.

पहले तो यशवंत सिंह ने इस ओर ध्यान नहीं दिया परंतु जब मोहल्ले के लोग संग्राम और प्रतीक्षा के अवैध रिश्तों की चर्चा करने लगे तो यशवंत सिंह ने इस बाबत प्रतीक्षा से जवाब तलब किया.

लेकिन वह साफ मुकर गई, ‘‘संग्राम से मैं हंसबोल क्या लेती हूं, मोहल्ले वालों ने उसे मेरी बदचलनी समझ लिया. हम से जलने वाले फिजूल की बातें फैला रहे हैं. रही बात मांजी की तो वह सुनीसुनाई बातों पर विश्वास कर लेती हैं.’’

यशवंत सिंह प्रतीक्षा पर जरूरत से ज्यादा विश्वास करता था, सो उस ने बात बढ़ाना उचित नहीं समझा और मान लिया कि प्रतीक्षा बदचलन नहीं है. पर मां की बात और मोहल्ले में फैली अफवाह को वह सिरे से नहीं नकार सकता था. शक के आधार पर उस ने संग्राम सिंह को सख्ती से मना कर दिया कि वह उस की गैरहाजिरी में उस के घर न आया करे.

प्रेम के पंछी जब मिलने को आतुर हों तो वे जमाने की परवाह नहीं करते. मना करने के बाद भी प्रतीक्षा और संग्राम सिंह चोरीछिपे मिलते रहे. जिस दिन मौका मिलता, प्रतीक्षा फोन कर संग्राम सिंह को बुला लेती थी. लेकिन बेहद सतर्कता के बावजूद एक दिन प्रतीक्षा और संग्राम सिंह रंगेहाथ पकड़े गए.

हुआ यह कि उस दिन यशवंत सिंह खाद की बोरी लेने हुसैनगंज बाजार जाने को कह कर घर से निकला. साइकिल से आधा सफर तय करने के बाद उसे याद आया कि वह किसान बही तो लाया ही नहीं. जिस में खाद की मात्रा और रुपयों की एंट्री होनी थी. इस भूल के चलते वह वापस घर जा पहुंचा.

घर का मुख्य दरवाजा बंद था. कुछ देर दरवाजा पीटने पर प्रतीक्षा ने दरवाजा खोला तो उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. अस्तव्यस्त कपड़े और बिखरे बाल चुगली कर रहे थे कि वह किसी के साथ हमबिस्तर थी.

प्रतीक्षा को धकेल कर यशवंत घर के अंदर पहुंचा तो वहां संग्राम सिंह मौजूद था. वह जल्दीजल्दी कपडे़ पहन रहा था. चारपाई पर तुड़ामुड़ा बिस्तर कुछ देर पहले गुजरे तूफान की चुगली कर रहा था. यह सब देख कर यशवंत सिंह का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. वह संग्राम सिंह को पकड़ने दौड़ा तो वह भाग गया.

संग्राम सिंह तो भाग गया, पर प्रतीक्षा कहां जाती. यशवंत सिंह बीवी की बेवफाई से इतना आहत हुआ कि उस ने उसे मारमार कर अधमरा कर दिया. कुछ देर बाद जब उस का गुस्सा शांत हुआ तो वह बड़े भाई रवींद्र के घर चला गया.

वहां उस का सामना मां से हुआ तो वह समझ गई कि जरूर कोई बात है. कमला ने उसे कुरेदा तो यशवंत पहले तो टाल गया लेकिन ज्यादा कुरेदने पर उस ने मां को सब कुछ बता दिया. कमला को बहू के चरित्र पर शक तो था, लेकिन बात यहां तक पहुंच गई होगी, उसे उम्मीद नहीं थी.

यशवंत सिंह के बड़े भाई रवींद्र सिंह गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. इज्जत पर आंच आते देख कर वह संग्राम सिंह के मामा फूल सिंह से मिले और उन्हें संग्राम की हरकतों की जानकारी दी. फूल सिंह ने संग्राम की तरफ से माफी मांगते हुए उसे समझाने का भरोसा दिया. इस के बाद फूल सिंह ने संग्राम सिंह को फटकारा और समझाया. संग्राम सिंह ने मामा से वादा किया कि आइंदा वह प्रतीक्षा से नहीं मिलेगा.

लेकिन मामा से किया वादा संग्राम सिंह ज्यादा दिन निभा नहीं पाया. एक शाम जब वह प्रतीक्षा के घर के सामने से गुजर रहा था तो प्रतीक्षा दरवाजे पर दिख गई.

उस ने जब मुसकरा कर इशारे से उसे बुलाया तो संग्राम अपने कदमों को रोक नहीं पाया.

उस समय प्रतीक्षा घर में अकेली थी. पति खेत पर था और बच्चे ननिहाल में. प्रतीक्षा ने यार को उलाहना दिया, ‘‘तुम तो मुझे बिलकुल ही भुला बैठे. अपना सिम भी बदल दिया. मैं ने कितनी बार बात करने की कोशिश की, लेकिन नंबर नहीं लगा. क्या यही था तुम्हारा प्यार?’’

‘‘ऐसा न कहो भाभी, भला मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूं. अगर निष्ठुर जमाना बीच में न आया होता तो मैं हमेशा के लिए तुम्हें अपनी बना लेता. रही बात सिम बदलने की तो मैं खुद परेशान हूं. मामा ने मेरा फोन तोड़ दिया था. अब मैं ने दूसरा फोन खरीद लिया है.’’

बातोंबातों में संग्राम और प्रतीक्षा मानव तन की कंदराओं तक पहुंच गए. बदकिस्मती से तभी यशवंत सिंह घर आ गया. उसे घर के अंदर किसी पुरुष के हंसने की आवाज सुनाई दी. गुस्से में दरवाजा धकेल कर वह अंदर घुस गया.

कमरे में संग्राम सिंह को देख कर वह उस पर टूट पड़ा. प्रतीक्षा ने रोकने की कोशिश की तो उस ने संग्राम को छोड़ कर प्रतीक्षा को पीटना शुरू कर दिया. मौका पाते ही संग्राम भाग निकला. उस रोज यशवंत सिंह ने प्रतीक्षा की इतनी पिटाई की कि उस के बदन पर स्याह निशान उभर आए. उस का चलनाफिरना भी दूभर हो गया.

रोजरोज की टोकाटाकी और पति की बेरहम पिटाई से प्रतीक्षा यशवंत सिंह से नफरत करने लगी. उस ने घर का कामकाज भी छोड़ दिया. पतिपत्नी के बीच बढ़ते तनाव को कम करने के लिए कमला ने बहूबेटे को समझाया, लेकिन वह दोनों के बीच का तनाव कम करने में नाकाम रही.

जब कई दिनों तक प्रतीक्षा घर से बाहर नहीं निकली तो एक रोज दोपहर के वक्त संग्राम सिंह प्रतीक्षा से मिलने उस के घर पहुंच गया.

उसे देखते ही प्रतीक्षा उस पर बरस पड़ी, ‘‘अब क्यों आए हो यहां? उस दिन मुझे पिटता देख नामर्दों की तरह भाग गए. क्या यही था तुम्हारा प्यार?’’

‘‘भाभी, मैं क्या करता, तुम्हीं बताओ?’’

‘‘जो तुम्हारी चाहत को पीट रहा था, उस का टेंटुआ दबा देते.’’ प्रतीक्षा सिसक पड़ी, ‘‘जानते हो उस कमीने ने मेरे जिस्म पर कितने निशान बना दिए हैं. ये देखो.’’ कहते हुए प्रतीक्षा ने अपनी पीठ और जांघ उघाड़ दी. शरीर पर पिटाई के लाललाल निशान साफ दिख रहे थे.

प्रतीक्षा संग्राम से लिपट गई, ‘‘संग्राम, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. तुम्हारी खातिर मुझे बहुत कुछ सुनना भी पड़ता है और पिटना भी पड़ता है. वह तुम्हें ठिकाने लगाने की सोच रहा है. इस से पहले कि दुश्मन वार करे, तुम उस पर वार कर दो. दिखा दो कि तुम असली मर्द हो.’’

प्रतीक्षा के आंसुओं ने संग्राम सिंह का दिल दहला दिया. उस ने आव देखा न ताव, प्रतीक्षा से वादा कर दिया कि वह उस की मांग से सिंदूर मिटा कर रहेगा. संग्राम के इस वादे से प्रतीक्षा उस के सीने से लग गई.

इस के बाद उसी रोज दोनों ने एक खतरनाक योजना बना ली. योजना के तहत संग्राम सिंह हुसैनगंज गया और बाजार से कीटनाशक पाउडर (जहरीला पदार्थ) खरीद लाया और प्रतीक्षा को थमा दिया.

21 मार्च, 2020 की रात 8 बजे प्रतीक्षा ने खाना बनाया. यशवंत सिंह खाना खाने बैठा तो प्रतीक्षा ने उस की दाल में जहरीला पाउडर मिला दिया. खाना खाने के कुछ देर बाद यशवंत सिंह मूर्छित हो कर चारपाई पर पसर गया. उस के बाद प्रतीक्षा ने फोन कर संग्राम सिंह को घर बुला लिया. योजना के तहत वह अपने साथ तेज धार वाली कुल्हाड़ी लाया था.

प्रतीक्षा और संग्राम सिंह उस कमरे में पहुंचे, जहां यशवंत सिंह बेसुध पड़ा था. संग्राम सिंह ने एक नजर यशवंत पर डाली और फिर उस की गरदन पर कुल्हाड़ी का भरपूर प्रहार कर दिया. पहले ही वार से उस की आधी गरदन कट गई. खून की धार बह निकली और वह छटपटाने लगा.

उसी समय प्रतीक्षा ने उस के पैर दबोच लिए और संग्राम ने उस के शरीर पर कुल्हाड़ी से वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया. हत्या करने के बाद वह मय कुल्हाड़ी वहां से फरार हो गया. अपना सुहाग मिटाने के बाद प्रतीक्षा ने रात 10 बजे शोर मचाया तो उस के जेठजेठानी, सास और पड़ोसी आ गए.

प्रतीक्षा ने सब को बताया कि बदमाश घर में घुस आए और उन्होंने उस के पति यशवंत सिंह की हत्या कर दी. उस के बाद प्रतीक्षा ने अपने मोबाइल से डायल 112 को सूचना दी.

सूचना पाते ही पुलिस आ गई. चूंकि मामला हत्या का था तो डायल 112 पुलिस ने सूचना थाना हुसैनगंज पुलिस को दे दी.

थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने शव को कब्जे में ले कर जांचपड़ताल शुरू की तो अवैध रिश्तों में हुई हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए.

23 मार्च, 2020 को थाना हुसैनगंज पुलिस ने अभियुक्ता प्रतीक्षा सिंह और अभियुक्त संग्राम सिंह को फतेहपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित