सिंदूर मिटाने का जुनून : अवैद्य संबंधों के चलते पति की हत्या – भाग 2

इस कंपनी की ओर से मजदूरों का ठेका दिनेश खंडेलवाल और उन का मुंशी अमन लेता था. लगभग 5 महीने पहले उस के पति सत्येंद्र का पैसे के लेनदेन को ले कर ठेकेदार दिनेश और मुंशी अमन से झगड़ा हुआ था, जिस में मारपीट भी हुई थी.

इस के बाद से वह काफी परेशान रहते थे. वह शराब भी बहुत ज्यादा पीने लगे थे. कहीं ठेकेदार दिनेश और उस के मुंशी अमन ने ही तो उन की हत्या नहीं कर दी है. पूछताछ के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए लालालाजपत राय अस्पताल भिजवा दिया.

इस के बाद थाने आ कर थानाप्रभारी आशीष मिश्र ने सत्येंद्र तिवारी की हत्या का मुकदमा दर्ज करा कर ठेकेदार दिनेश और उस के मुंशी अमन को हिरासत में ले लिया गया. थाने में दोनों से सत्येंद्र की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो दोनों ने साफ मना कर दिया.

अमन का कहना था कि पैसों को ले कर उस का सत्येंद्र से झगड़ा जरूर हुआ था, लेकिन वह झगड़ा ऐसा नहीं था कि बात हत्या तक पहुंच जाती. सत्येंद्र की पत्नी उसे गलत फंसा रही है. ऐसा ही दिनेश ने भी कहा था. उन की बातों से पुलिस को लगा कि दोनों निर्दोष हैं तो उन्हें छोड़ दिया गया था.

आशीष मिश्र को इस मामले में कोई सुराग नहीं मिल रहा था. जबकि अधिकारियों का उन पर काफी दबाव था. अंत में उन्होंने मुखबिरों का सहारा लिया. आखिर उन्हें मुखबिरों से मदद मिल गई. किसी मुखबिर से उन्हें पता चला कि सत्येंद्र की हत्या उस के बेटे जय ने ही की है. इस में उस की मां सुलभ और उस के प्रेमी दीपक कठेरिया का भी हाथ हो सकता है.

बात थोड़ा हैरान करने वाली थी, लेकिन अवैध संबंधों में कुछ भी हो सकता है. यह सोच कर आशीष मिश्र ने मसवानपुर स्थित मृतक सत्येंद्र तिवारी के घर छापा मार कर जय और उस की मां सुलभ को गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर सुलभ और जय से सत्येंद्र की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो दोनों कसमें खाने लगे. लेकिन पुलिस के पास जो सबूत थे, उस से पुलिस ने उन की बातों पर विश्वास नहीं किया और उन से सख्ती से पूछताछ की. फिर तो मांबेटे ने सत्येंद्र की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पता चला कि जय ने पड़ोस में रहने वाले दीपक कठेरिया की मदद से पिता की हत्या की थी. क्योंकि सुलभ के दीपक कठेरिया से अवैध संबंध थे. सत्येंद्र इस बात का विरोध करता था. शराब के नशे में वह अकसर पत्नी और बेटे की पिटाई करता था. उस की इसी हरकत से तंग आ कर बेटे और प्रेमी की मदद से सुलभ ने पति की हत्या करवा दी थी.

सत्येंद्र की हत्या में दीपक का नाम आया तो पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. थाने में दीपक ने जय और सुलभ को देखा तो उस ने भी सत्येंद्र की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद दीपक और जय ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड और खून सने अपने कपड़े बरामद करा दिए थे, जो जय ने अपने घर में छिपा रखे थे. सभी से पूछताछ में सत्येंद्र तिवारी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

कानपुर शहर से 40 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा बसा है बिल्हौर. इसी कस्बे से कुछ दूरी पर एक गांव है विशधन. ब्राह्मणबाहुल्य इस गांव में रमेशचंद्र दुबे अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटियां शुभि और सुलभ तथा एक बेटा अरुण था. रमेशचंद्र दुबे अध्यापक थे. उन के पास खेती की थोड़ी जमीन थी. इस तरह उन का गुजरबसर आराम से हो रहा था. बड़ी बेटी शुभि की शादी उन्होंने कन्नौज में की थी.

इस के बाद सुलभ शादी लायक हुई तो कानपुर शहर में मसवानपुर बस्ती में रहने वाले नीरज तिवारी के बेटे सत्येंद्र से उस की शादी कर दी. सत्येंद्र प्राइवेट नौकरी करता था. उस का रंग थोड़ा सांवला था और वह सुलभ से उम्र में भी बड़ा था. सुलभ काफी खूबसूरत थी. इस के बावजूद उस ने कभी कोई ऐतराज नहीं किया.

देखतेदेखते 5 साल कब बीत गए, पता ही नहीं चला. इस बीच सुलभ 2 बच्चों जय और पारस की मां बन गई. बच्चों के जन्म के बाद सत्येंद्र की नौकरी आर्डिनैंस फैक्ट्री में संविदा कर्मचारी के रूप में लग गई. लेबर कौंट्रैक्ट कंपनी वृंदावन एसोसिएट्स के तहत उसे काम पर रखा गया. यह कंपनी रक्षा प्रतिष्ठानों में मजदूर सप्लाई करने का ठेका लेती है. सत्येंद्र को वहां से ठीकठाक पैसे मिल रहे थे, इसलिए घर में किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी.

बच्चे बड़े हुए तो घर में रहने की परेशानी होने लगी. सत्येंद्र बच्चों के साथ अलग मकान ले कर रहने लगा. सुलभ यही चाहती भी थी. बच्चे बड़े हुए तो खर्च बढ़ा, जिस से घर में पैसों को ले कर तंगी रहने लगी. उसी बीच सत्येंद्र शराब पीने लगा. उस की कमाई का एक हिस्सा शराब पर खर्च होने लगा तो घर खर्च को ले कर सुलभ परेशान रहने लगी. वह पति को शराब पीने को मना करती तो सत्येंद्र उस से लड़ाईझगड़ा ही नहीं करता, बल्कि मारपीट भी करता. इस का असर बच्चों की पढ़ाई पर भी पड़ने लगा.

एक दिन सत्येंद्र के साथ एक युवक आया, जिस के बारे में उस ने सुलभ को बताया कि यह उस का दोस्त दीपक कठेरिया है. वह भी मसवानपुर में ही रहता था. दोनों साथसाथ खातेपीते थे. दीपक ने खूबसूरत सुलभ को देखा तो पहली ही नजर में उस पर मर मिटा. दीपक शरीर से हृष्टपुष्ट और सुलभ से कमउम्र का था, इसलिए सुलभ भी उस की ओर आकर्षित हो गई. दीपक उस दिन करीब एक घंटे तक घर में रहा. इस बीच दोनों एकदूसरे को ताकते रहे.

एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि एक दिन सत्येंद्र फिर दीपक को घर ले आया. उस का आना सुलभ को अच्छा लगा. बातोंबातों में दीपक ने सुलभ का फोन नंबर ले लिया. इस के बाद दीपक ने बहाने से सुलभ को फोन किया तो उस ने बातचीत में दिलचस्पी दिखाई. फिर तो दोनों में बातें होने लगीं.

चाहत का संग्राम : प्रेम के आगे हारा पति – भाग 2

शादी के बाद प्रतीक्षा यशवंत सिंह की दुलहन बन कर ससुराल आ गई. आते ही उस ने घर संभाल लिया. यशवंत सिंह जहां सुंदर पत्नी पा कर खुश था, वहीं उस के मांबाप इस बात से खुश थे कि बेटे का घर बस गया. प्रतीक्षा और यशवंत सिंह का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से बीतने लगा. बीतते समय के साथ प्रतीक्षा 2 बेटों अजस और तेजस की मां बन गई.

प्रतीक्षा बचपन से ही चंचल स्वभाव की थी. विवाह के बाद उस के स्वभाव में कामुकता भी शामिल हो गई थी. जब तक यशवंत सिंह में जोश रहा, वह प्रतीक्षा की कामनाओं को दुलारता रहा. लेकिन जब बढ़ती उम्र के साथ जिम्मेदारियां भी बढ़ती गईं तो उस के जोश में भी कमी आ गई. जबकि प्रतीक्षा की कामुकता बेलगाम होने लगी थी.

अब यशवंत सिंह की भोगविलास में कोई खास रुचि नहीं रह गई थी. लिहाजा प्रतीक्षा ने भी हालात से समझौता कर लिया. बच्चों को संभालना, उन की देखभाल करना और घरगृहस्थी के कामों में जुटे रहना उस की दिनचर्या में शामिल हो गए.

पिछले कुछ समय से प्रतीक्षा महसूस कर रही थी कि उसे किसी चीज की कमी नहीं है, उस का जीवन भी ठीक से बीत रहा है. लेकिन अंदर से वह उत्साहहीन हो गई है. मन में न कोई उमंग है न कोई तरंग. मस्ती नाम की चीज तो उस के जीवन में मानो बची ही नहीं थी.

दूसरी ओर प्रतीक्षा जब मायके जाती और अपनी सहेली माया को देखती तो सोचती कि माया भी 2 बच्चों की मां है. घर के सारे काम भी उसे ही करने पड़ते हैं. फिर भी हर वक्त उस के होंठों पर मुसकान सजी रहती है. बढ़ती उम्र के साथ माया की खूबसूरती घटने के बजाए बढ़ती जा रही थी.

प्रतीक्षा ने एकाध बार माया से दिनोंदिन निखरती उस की खूबसूरती, सेहत और जवानी के बारे में पूछा भी, लेकिन वह हंस कर टाल जाती. लेकिन अगली बार जब वह मायके गई और माया से मिली तो उस ने अपनी चुस्तीफुरती का राज बता दिया.

बातचीत के दौरान माया ने बताया कि जिस औरत की जिस्म की भूख शांत नहीं होती, वह कांतिहीन हो जाती है. शायद तुम्हारी भी यही समस्या है. तुम्हारा पति तुम्हारा साथ नहीं देता क्या? मेरा पति भी तुम्हारे जैसा था, पर मैं उस के सहारे नहीं रही. मैं ने खुद ही अपना इंतजाम कर लिया, जिस से आज मैं बेहद खुश हूं.

माया प्रतीक्षा के गाल पर चिकोटी काटते हुए बोली, ‘‘प्रतीक्षा, मेरी सलाह है कि जिंदगी को अगर मस्ती से भरना है तो खुद ही कुछ करना होगा.

तुम्हारी ससुराल में मोहल्ले पड़ोस में कोई न कोई तो ऐसा होगा, जिस की नजर तुम पर, मेरा मतलब तुम्हारी कोमल काया पर हो. उसे देखो, परखो और उसी से दिल के तार जोड़ लो. तुम भी मस्त हो जाओगी.’’

माया की सलाह प्रतीक्षा को मन भाई. मायके से ससुराल लौट कर माया की बातें उस के दिलोदिमाग को मथती रहीं. रात को सोने के लिए प्रतीक्षा बिस्तर पर लेटती उस की आंखों में नींद उतरती थी. वह सोचने लगी, माया ठीक कहती है सेहत, जवानी और खूबसूरती का फार्मूला उसे भी अपने जीवन में अपनाना चाहिए, अन्यथा समय से पहले ही बूढ़ी हो जाएगी.

जीवन में उमंग भरने के लिए प्रतीक्षा का मन पतन की ओर अग्रसर हुआ तो उसे माया की यह बात भी याद आई कि मोहल्ले पड़ोस में कोई तो होगा, जो तुम पर दिल रखता होगा. प्रतीक्षा का मन इसी दिशा में सोचने लगा. इस के बाद उसे पहला व आखिरी नाम याद आया, वह संग्राम सिंह का था.

संग्राम सिंह मूलरूप से फतेहपुर जिले के थाना मलवां में आने वाले गांव नसीरपुर बेलवारा का रहने वाला था. बचपन से ही वह चांदपुर में अपने मामा के घर रहता था. मामा की कोई संतान नहीं थी.

संग्राम सिंह 25-26 साल का गबरू जवान था, उस की शादी नहीं हुई थी. उस का घर प्रतीक्षा के घर से कुछ ही दूरी पर था. संग्राम सिंह किसान तो था ही, ट्यूबवेल का मैकेनिक भी था.

जब कभी यशवंत सिंह का ट्यूबवेल खराब हो जाता था तब ठीक करने के लिए उसे ही बुलाया जाता था. मोहल्ले के नाते संग्राम सिंह यशवंत सिंह को भैया और प्रतीक्षा को भाभी कहता था.

संग्राम सिंह का प्रतीक्षा के घर आनाजाना था. वह आता तो था यशवंत सिंह से मिलने, लेकिन उस की नजरें प्रतीक्षा के इर्दगिर्द ही घूमती रहती थीं. चायपानी देने के दौरान प्रतीक्षा की नजर संग्राम सिंह से टकराती तो वह मुसकरा देता था.

इस के अलावा वह प्रतीक्षा के घर के आसपास चक्कर भी लगाया करता था. प्रतीक्षा से आमनासामना होता तो वह कहता, ‘‘भाभी, कोई काम हो तो मुझे बताना.’’ पुरुष की नीयत को औरत बहुत जल्दी पढ़ लेती है. प्रतीक्षा ने भी संग्राम सिंह की आंखों में अजीब सी प्यास देखी थी. उस ने उस की हरकतों पर गौर किया तो उसे लगा कि संग्राम मन ही मन उसे चाहता है. संग्राम सिंह की अनकही चाहत से प्रतीक्षा को अजीब से सुख की अनुभूति हुई.

उसे लगा कि संग्राम कुंवारा है, मिल जाए तो उस के जीवन में बहार ला सकता है. अपने जीवन में बहार लाने के लिए प्रतीक्षा ने संग्राम को अपने प्रेम जाल में फंसाने का फैसला कर लिया.

संग्राम सिंह अकसर दोपहर के समय प्रतीक्षा के घर वाली गली का चक्कर लगाता था. दूसरे दिन प्रतीक्षा घर का कामकाज निपटा कर दरवाजे पर जा कर खड़ी हो गई. थोड़ी देर में संग्राम आता दिखाई दिया.

प्रतीक्षा को देख कर संग्राम के होंठ हिले तो प्रतीक्षा के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. संग्राम पास आया तो उस ने रोज की तरह पूछा, ‘‘भाभी, कोई काम तो नहीं है?’’

‘‘है न,’’ प्रतीक्षा मुसकराई, ‘‘भीतर आओ तो बताऊं.’’

संग्राम प्रतीक्षा के पीछेपीछे भीतर आ कर चारपाई पर बैठ गया. प्रतीक्षा ने उस की आंखों में देखते हुए सवाल किया, ‘‘संग्राम, तुम मुझे देख कर मुसकराते रहते हो, क्यों?’’

संग्राम सिंह सकपका गया, मानो चोरी पकड़ी गई हो. खुद को संभालने की कोशिश करते हुए वह बोला, ‘‘नहीं भाभी, ऐसा तो कुछ नहीं है. आप को भ्रम हुआ होगा.’’

प्रतीक्षा चेहरे पर मुसकान बिखेरते हुए बोली, ‘‘प्यार करते हो और झूठ भी बोलते हो. अगर तुम यों ही झूठ बोलते रहे तो प्यार का सफर कैसे पूरा करोगे?’’

संग्राम की आंखें आश्चर्य से फैल गईं, ‘‘भाभी, क्या तुम भी मुझ से प्यार करती हो?’’

प्रतीक्षा मुसकराई, ‘‘करती तो नहीं थी, पर अचानक ही प्यार हो गया.’’

‘‘ओह भाभी, आप कितनी अच्छी हो.’’ संग्राम ने चारपाई से उठ कर प्रतीक्षा को गले से लगा लिया.

संग्राम सिंह इतनी जल्दी मुट्ठी में आ जाएगा, प्रतीक्षा ने कल्पना तक नहीं की थी. वह जान गई कि संग्राम के मन में नारी तन की चाह है. प्रतीक्षा संग्राम से जिस्म की भूख मिटाना चाहती थी. उस से जिंदगी भर नाता जोड़े रखने का उस का कोई इरादा नहीं था.

मन की मुराद पूरी होते देख प्रतीक्षा मन ही मन खुश हुई. लेकिन उसे अपने से अलग करते हुए बोली, ‘‘संग्राम, यह क्या गजब कर रहे हो, दरवाजा खुला है. कोई आ गया तो मैं बदनाम हो जाऊंगी. छोड़ो मुझे.’’

‘‘छोड़ दूंगा भाभी, लेकिन पहले वादा करो कि मेरी मुराद पूरी करोगी.’’

‘‘रात को आ जाना, खेतों पर सिंचाई का काम चल रहा है. तुम्हारे भैया रात को ट्यूबवेल पर होंगे. अभी छोड़ो.’’

खुले दरवाजे से सचमुच कोई कभी भी आ सकता था. फिर प्रतीक्षा उसे रात को आने का निमंत्रण दे ही रही थी, इसलिए संग्राम ने उसे छोड़ दिया और मुसकराते हुए चला गया.

रात 10 बजे यशवंत सिंह सिंचाई के लिए खेतों पर चला गया. उस के जाने के बाद संग्राम सिंह आ गया. प्रतीक्षा उस का ही इंतजार कर रही थी. यशवंत सिंह था नहीं और बच्चे सो चुके थे. इसलिए प्रतीक्षा निश्चिंत थी. दरवाजे पर दस्तक सुनते ही उस ने दबे पांव उठ कर दरवाजा खोल दिया. संग्राम अंदर आ गया तो वह उसे दूसरे कमरे में ले गई.

देह मिलन के लिए दोनों ही बेताब थे. कमरे में पहुंचते ही दोनों एकदूसरे से लिपट गए. संग्राम सिंह ने प्रतीक्षा के नाजुक अंगों से छेड़छाड़ शुरू की तो प्रतीक्षा की प्यासी देह कामनाओं की आंच से तप कर पिघलने लगी. उस के उत्साहवर्धन ने खेल को और भी रोमांचक बना दिया. बरसों बाद प्रतीक्षा का तनमन जम कर भीगा था. उस ने तय कर लिया कि अब संग्राम का दामन कभी नहीं छोड़ेगी.

उस रात के बाद संग्राम और प्रतीक्षा एकदूसरे के पूरक बन गए. पहले तो प्रतीक्षा संग्राम को रात में ही बुलाती थी, लेकिन फिर वह दिन में भी आने लगा. जिस दिन यशवंत सिंह को बाजार से सामान लेने जाना होता, उस दिन प्रतीक्षा फोन कर संग्राम को घर बुला लेती. मिलन कर संग्राम चला जाता. बाजार से वह प्रतीक्षा का सामान भी ले आता था.

सगे बेटे ने की साजिश – भाग 2

पुलिस जांच के दौरान सर्राफा व्यवसायी के घर वाली गली में लगे सीसीटीवी फुटेज में नीले सलवार सूट में ईयरफोन लगाए घूमती एक महिला और बाइक सवार 2 संदिग्ध युवक नजर आए. पुलिस इसी दिशा में जांच में जुट गई.

घटना की खबर पर आईजी पीयूष मोर्डिया भी घटनास्थल का निरीक्षण करने पहुंचे. उन्होंने अधिकारियों से बातचीत की और परिवार के सदस्यों से भी. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को जल्दी खुलासे के आदेश दिए.

हत्या व लूट की घटना का परदाफाश करने के लिए एसएसपी मुनिराज जी. ने एसपी (सिटी) कुलदीप सिंह गुनावत, एसपी (क्राइम) डा. अरविंद के नेतृत्व में 2 टीमों का गठन किया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि कंचन की मृत्यु गला घोटने के कारण हुई थी.

दूसरे दिन शनिवार की सुबह पोस्टमार्टम के बाद कंचन वर्मा का अंतिम संस्कार किया गया. शव को मुखाग्नि इकलौते बेटे राजा ने दी.

सर्राफा व्यवसाई कुलदीप के साथ लूट की यह तीसरी वारदात थी. इस से पहले सन 2017 में बदमाशों ने उन की दुकान को निशाना बनाया था. बदमाशों ने दिनदहाड़े फायरिंग कर गहने लूटे थे. फायरिंग में कुलदीप को गोली भी लगी थी. उस घटना के समय कुलदीप अपने बेटे राजा व नौकर के साथ दुकान पर थे.

हालांकि कुछ दिन बाद घटना का मुख्य आरोपी बुलदंशहर के सिकंदराबाद में एक मुठभेड़ में मारा गया था. उस के कुछ साथी पकड़े गए थे उन्होंने कुलदीप के यहां लूट की बात स्वीकारी थी. खास बात यह है कि तब बुलदंशहर के एसएसपी मुनिराज ही थे. पिछले साल भी कुलदीप की आंखों में मिर्च झोंक कर लूट की घटना को अंजाम दिया गया था. उस घटना के बारे में पुलिस को बताने के बजाए परदा डाल दिया था.

पुलिस ने इस हत्याकांड के खुलासे के लिए सिलसिलेवार जांच शुरू की. पुलिस के सामने 5 मुख्य बिंदु थे, जिन पर वह जांच कर रही थी. मृतका के घर वालों ने पुलिस को बताया कि दिन भर घर में बंद रहने वाली कंचन अपने परिचितों के लिए ही दरवाजा खोलती थीं.

सगेसंबंधियों व नौकरानी से पूछताछ

दोपहर में 12 से एक बजे के बीच कामवाली के आने पर ही कंचन बाथरूम में नहाने जातीं थीं. तिजोरी तोड़ने को घर में रखे औजार किसी अपने ने ही उठाए होंगे. ऐसा भी अनुमान लगाया गया कि मृतका जब बाथरूम में नहाने गई हों, उसी समय घटना को अंजाम दिया गया हो. इस से नौकरानी अंजू पर भी शक की सुई घूम रही थी.

पुलिस ने उस का मोबाइल भी कब्जे में ले लिया था. उस की काल डिटेल्स भी खंगाली गई. पुलिस के रडार पर अंजू  व उस के परिवार का कोई सदस्य था, क्योंकि अंजू का पेशेवर लुटेरा पति इस समय गैंगस्टर केस में जेल में है.

अंजू घटना से 20 दिन पहले ही आई थी. हालांकि 2 साल पहले वह कुलदीप के घर में काम कर चुकी थी, लेकिन एक साल पहले काम छोड़ कर चली गई थी. दुकान का नौकर या उस के परिवार के किसी सदस्य के अलावा कंचन के बेटे राजा के कुछ दोस्तों, जो राजा की गैरमौजूदगी में उस की मां के पास आया करते थे, उन के लिए भी दरवाजा खोल देती थीं.

अब पुलिस यह पता लगाने में जुट गई कि मृतका ने अपने दामाद का फोन काट कर दरवाजा किस के लिए खोला था? दूसरे कंचन के दरवाजे से गली के मुहाने पर वह ईयरफोन वाली महिला चक्कर क्यों लगा रही थी?

उस महिला ने बाइक सवार युवकों को बैग में कुछ सामान भी दिया था.  इस के बाद युवक गली से बाहर चले गए थे. महिला भी पैदल चली गई. पुलिस युवकयुवती व बाइक की शिनाख्त के प्रयास में लग गई.

इस हत्याकांड व लूट की वारदात ने क्वार्सी के पुलिस महकमे को हिला दिया था. घटना के दूसरे दिन भी खुलासा न होने से मृतका के सगेसंबंधी, सर्राफा व्यवसायी आक्रोशित थे. जिस से धरनेप्रदर्शनों का डर था. इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में भी घटना सुर्खियों में थी, जिस से पुलिस पर दबाव बढ़ता जा रहा था.

यह केस पुलिस के लिए चुनौती बन गया था, लेकिन पुलिस अपने काम में गोपनीय तरीके से जुटी रही. जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही थी. पुलिस के उच्चाधिकारी इस मामले पर नजर रखे थे.

पुलिस अब तक मिले साक्ष्यों पर काम कर ही रही थी. इसी बीच 20 फरवरी, 2021 को शाम 7 बजे पुलिस को राजा के मोबाइल पर एक काल उस की पत्नी की मिली.

उस काल को ट्रैक किया गया तो पूरा भेद खुल गया. उस में राजा अपनी पत्नी को बेबी नाम से संबोधित करते हुए कह रहा था कि सब ठीक चल रहा है. पुलिस दूसरी दिशा में काम कर रही है. तुम अब अपना अच्छे से इलाज कराना.

बेटा राजा ही निकला मां का हत्यारा

इस पर पुलिस का माथा ठनक गया और राजा को हिरासत में ले कर पुलिस थाने लाया गया. पुलिस पूछताछ में राजा ने सिर्फ इतना ही कहा कि मैं अलग रहता हूं. कुछ समझ में नहीं आ रहा है, ये क्या हुआ? जब पुलिस ने उसे सीसीटीवी के वे फुटेज दिखाए, जिस में एक युवक व एक युवती बाइक पर आते व जाते दिखाई दे रहे थे.

फुटेज देखते ही उस के चेहरे की रंगत उड़ गई. घटना के दिन एक बजे तक की गतिविधियों को तो उस ने सही बताया. लेकिन एक बजे के बाद की गतिविधियों पर वह चुप्पी साध गया. जबकि उस के मोबाइल की लोकेशन दोपहर डेढ़ बजे से घटनास्थल पर ही थी.

वहां से निकल कर वह अपने किराए वाले घर तक गया और पिता के काल करने पर वहां से लौट कर आया. फुटेज में दिखे उस के साथियों के मोबाइल पर भी उस की बातचीत होने की पुष्टि हुई. इस के बाद राजा तोते की तरह बोलने लगा. उस ने खुद ही वारदात करने व इस में अपनी पत्नी, दोस्त व उस की प्रेमिका के शामिल होने की बात कबूली.

पुलिस ने रात में ही ताबड़तोड़ दबिशें देनी शुरू कर दीं. पुलिस ने इस वारदात में शामिल चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ करने पर आरोपियों ने अवना अपराध कबूल कर लिया. इस प्रकार 30 घंटे में ही पुलिस ने घटना का परदाफाश कर दिया.

21 फरवरी, 2021 रविवार को एसएसपी मुनिराज ने दोपहर को पुलिस लाइन सभागार में प्रैसवार्ता आयोजित कर घटना का खुलासा किया. उन्होंने बताया कि प्रथमदृष्टया मिले संकेतों के आधार पर पुलिस ने अपनी जांच कुलदीप वर्मा के परिचितों के साथ ही काम वाली की ओर मोड़ दी थी.

फरजाना के प्यार का समंदर – भाग 2

अवैध रिश्तों में हुई हत्या का पता चलते ही एसपी कुंवर अनुपम सिंह ने एसएचओ कमल भाटी को आदेश दिया कि वह शव को पोस्टमार्टम हाउस भेजें तथा मृतक के भाई की तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज कर हत्यारोपियों को गिरफ्तार करें.

एसपी का आदेश पाते ही कमल भाटी ने रईस के शव को पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज जिला अस्पताल भेज दिया. उस के बाद वाहिद की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 के तहत अदीबा बानो उर्फ फरजाना और उस के आशिक अमर सिंह कुशवाहा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गए.

22 दिसंबर, 2022 की रात 10 बजे पुलिस ने आरोपी अमर सिंह को ठठिया स्थित शराब ठेके से गिरफ्तार कर लिया. उसे थाने लाया गया. उस समय वह शराब के नशे में था.

उस से जब रईस की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही बता दिया कि उस ने फरजाना के उकसाने पर ही रईस की हत्या की थी. रईस उन दोनों के रिश्तों में बाधक बन रहा था. जुर्म कुबूलने के बाद अमर सिंह ने हत्या में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी भी बरामद करा दी, जो उस ने गांव के बाहर अपने गेहूं के खेत में छिपा दी थी.

अगले दिन पुलिस ने फरजाना को भी हिरासत में ले लिया.

थाने में बंद अमर सिंह कुशवाहा पर जब उस की नजर पड़ी तो उसे समझते देर नहीं लगी कि शौहर की हत्या का राज खुल गया है. अत: उस ने सहज ही शौहर की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. पुलिस पूछताछ में इस हत्याकांड के पीछे एक दगाबाज दोस्त और एक गुनहगार बीवी का सच सामने आ गया.

गंगा नदी के पावन तट पर बसा उत्तर प्रदेश का कन्नौज शहर इतिहास के कई पन्नों में दर्ज है. यह शहर सुगंध की नगरी के नाम से भी जाना जाता है. यहां का इत्रफुलेल पूरी दुनिया में अपनी खुशबू बिखेरता है. कन्नौज पहले फर्रुखाबाद जिले का एक बड़ा कस्बा था, लेकिन अब कन्नौज को जिले का दरजा हासिल है.

इसी जिले के ठठिया थाना अंतर्गत एक गांव है-भदोसी. यहीं पर पेशकार अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में बीवी फातिमा के अलावा 2 बेटे रईस व वाहिद थे. पेशकार के पास उपजाऊ जमीन नाममात्र की थी, जिस से परिवार का गुजरबसर नहीं हो पाता था. इसलिए वह जूते का कारोबार कर के घर का भरणपोषण करता था. पेशकार ने अपने जीतेजी ही दोनों बेटों के बीच घर व जमीन का बंटवारा कर दिया था. दोनों भाई अपनेअपने परिवार के साथ अलगअलग रहते थे.

रईस का विवाह अदीबा बानो उर्फ फरजाना के साथ हुआ था. वह बेहद खूबसूरत थी. कालांतर में वह 2 बेटों अनस व अंसार की मां बनी.

रईस का मन किसानी में नहीं लगता था, इसलिए वह राजमिस्त्री के साथ मेहनतमजदूरी करने लगा था. चूंकि रईस सीधासादा व मिलनसार इंसान था, इसलिए एक मिस्त्री ने उस पर तरस खा कर उसे राजमिस्त्री का काम सिखा दिया था. शुरू में तो उस का काम धीमा चला, लेकिन बाद में उस का काम चलने लगा और वह एक कुशल राजमिस्त्री बन गया.

रईस पैसे कमाने लगा तो उसे शराब पीने की लत लग गई. अदीबा बानो ने उसे कई बार समझाया भी, लेकिन उस ने पत्नी की बात नहीं मानी. 1-2 बार शराब पीने को ले कर रईस व फरजाना में झगड़ा भी हुआ. तब उस ने बीवी से साफ कह दिया कि वह शराब अपने पैसों से खरीद कर पीता है, उस के बाप के पैसों से नहीं. इस के अलावा वह बीवीबच्चों की जरूरतों को अनदेखा भी करने लगा था.

रईस के घर के बगल में अमर सिंह कुशवाहा का घर था. उस के पिता परशुराम कुशवाहा किसान थे. उन के पास 10 बीघा खेती की जमीन थी. अमर सिंह भी पिता के काम में हाथ बंटाता था. पड़ोसी होने के नाते दोनों में खानेपीने की दोस्ती थी.

हालांकि रईस उम्र में अमर सिंह से काफी बड़ा था. अमर सिंह शराबी तो था ही अय्याश भी था. इसी वजह से उस की पत्नी उसे छोड़ कर मायके चली गई थी. न अमर सिंह उसे लेने गया और न ही वह अपने मन से वापस ससुराल आई.

एक रोज अमर सिंह रईस के घर गया तो उस की बीवी अदीबा बानो को देख कर उस की नीयत बदल गई. चाहत की नजरें फरजाना के जिस्म पर टिक गईं. उसी पल फरजाना भी उस की नजरों को भांप गई थी. वह जान गई थी कि अमर के मन में क्या चल रहा है.

अमर सिंह शरीर से हट्टाकट्टा था. अदीबा बानो पहली ही नजर में उस की आंखों के रास्ते से दिल में उतर गई. रईस से बातचीत करते समय उस की नजरें बारबार फरजाना पर ही टिक जाती थीं. फरजाना को भी अमर सिंह अच्छा लगा. अमर सिंह की भूखी नजरों की चुभन जैसे उस की देह को सुकून पहुंचा रही थी.

अमर सिंह का मन फरजाना में उलझा तो वह उस के घर अकसर जाने लगा. उसे रिझाने की कोशिश भी करता था. एक दिन उस ने कहा, ‘‘भाभी, तुम्हें देख कर कोई कह नहीं सकता कि तुम 2 बच्चों की मां हो. तुम तो अभी भी जवान दिखती हो.’’

अपनी तारीफ सुन कर फरजाना गदगद हो गई थी. इस के बाद एक दिन उस ने कहा, ‘‘भाभी, तुम में गजब का आकर्षण है. कहां तुम और कहां रईस भाईजान, दोनों की कदकाठी, रंगरूप और उम्र में जमीनआसमान का अंतर है. तुम्हारे सामने रईस भाईजान कहीं नहीं ठहरते. तुम हूर की परी हो, जबकि भाईजान कुछ भी नहीं.’’

अपनी तारीफ सुन कर फरजाना जहां एक ओर फूली नहीं समाई, वहीं दिखावे के लिए उस ने मंदमंद मुसकराते हुए अमर सिंह की ओर देखते हुए कहा, ‘‘झूठे कहीं के, तुम जरूरत से ज्यादा तारीफ कर रहे हो. मुझे तुम्हारी इस तारीफ में दाल में कुछ काला नजर आ रहा है. आने दो उन्हें बताती हूं उन से.’’

इतना कह कर फरजाना जोरजोर से हंसने लगी. हकीकत यह थी कि फरजाना अमर सिंह को मन ही मन चाहने लगी थी. उस ने केवल दिखावे के तौर पर यह बात कही थी. अमर सिंह हर हाल में उसे पाना चाहता था. फरजाना के हावभाव से वह समझ चुका था कि फरजाना भी उसे पसंद करती है.

अमर सिंह को पता था कि रईस को शराब पीने की लत है. इसी का फायदा उठाने के लिए उस ने शाम को रईस के साथ ही शराब पीनी शुरू कर दी. फरजाना से नजदीकी बनाने के लिए वह रईस को ज्यादा शराब पिला कर धुत कर देता था.

खून में डूबी ‘हिना’ : नफरत की अनूठी दास्तान – भाग 2

पुलिस ने अदनान खान और खालिद के बारे में पता किया तो पता चला कि हिना ने फरवरी, 2015 में अदनान खान से लवमैरिज की थी. सबूत के तौर पर मैरिज सर्टिफिकेट भी पुलिस को मिल गया था. दोनों ने न सिर्फ शादी की थी, बल्कि रजिस्टर्ड भी कराया था. इस शादी से न हिना की मां खुश थीं और न अदनान के घर वाले. खालिद अदनान का दोस्त था.

पुलिस ने अदनान और खालिद के बारे में मुखबिरों से पता कराया तो पता चला कि वे मुंबई में हैं. पुलिस की एक टीम उन्हें पकड़ने के लिए मुंबई गई तो वे दोनों वहां नहीं मिले. पुलिस के पहुंचने से पहले ही वे वहां से भाग चुके थे. इसलिए पुलिस की टीम को खाली वापस आना पड़ा.

29 जुलाई, 2017 की सुबह थानाप्रभारी बृजेश द्विवेदी को अपने किसी मुखबिर से पता चला कि अदनान और खालिद रंगीलेछबीले मजार के पास घूमते देखे गए हैं. थानाप्रभारी पुलिस बल के साथ मजार पर पहुंच गए और उसे घेर लिया.

पुलिस से घिरा देख कर 3 युवक इधरउधर भागने लगे. उन में से 2 तो भाग गए, लेकिन एक पकड़ा गया. पता चला कि हट्टेकट्टे बदन वाला वह युवक अदनान खान है. उसे थाना कोखराज लाया गया, जहां पूछताछ में बड़ी आसानी से उस ने हिना की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

अदनान के बताए अनुसार, उसी ने अपने 2 दोस्तों खालिद और विक्की के साथ मिल कर हिना की हत्या की थी. उस का कहना था कि उस के पास उस की हत्या के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं बचा था. ब्लैकमेल करकर के उस ने उस का जीना हराम कर दिया था. तंग आ कर उस ने गोली मार कर उस की हत्या कर दी थी. उस ने हिना तलरेजा की हत्या की जो कहानी सुनाई थी, वह इस प्रकार थी—

society

23 साल की हिना तलरेजा इलाहाबाद के मोहल्ला मीरापुर की रहने वाली थी. रतन कुमार तलरेजा और नीलिमा तलरेजा की एकलौती संतान होने की वजह से वह लाड़प्यार में पलीबढ़ी थी. मांबाप के लाड़प्यार ने उसे काफी जिद्दी बना दिया था. वह जो मांगती थी, उसे मिल जाता था. वह जो चाहती थी, वही करती थी. मांबाप ने उसे कभी रोकाटोका नहीं.

हिना खूबसूरत भी थी और महत्त्वाकांक्षी भी. वह इतनी दौलत कमाना चाहती थी कि दुनिया की हर चीज उस के कदमों में हो. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी. पढ़ाईलिखाई के साथसाथ उसे अच्छे फैशनेबल कपड़े पहनने और बनठन कर रहने का भी शौक था.

उस ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स भी किया था. उसी बीच उस की दोस्ती कुछ अमीर लड़कों से हो गई तो वह उन्हीं के बीच ज्यादा समय बिताने लगी. धीरेधीरे यह उस का शौक बन गया. अमीरजादों के साथ रह कर उसे बीयर की ऐसी लत लगी कि बीयर के बिना वह रह ही नहीं सकती थी.

हिना पूरी तरह स्वच्छंद हो चुकी थी. वह किसी भी तरह की शर्म भी नहीं करती थी. खुलापन उसे अच्छा लगता था. विचार भी उस के वैसे ही थे. वह कुछ कर पाती, उस के पहले ही अचानक उस के पिता की मौत हो गई. पिता की मौत के बाद उसे रोकनेटोकने वाला कोई नहीं रहा. मां थी सीधीसादी, उस के कहने का उस पर कोई असर नहीं पड़ता था. वह वही करती थी, जो उस का मन करता था.

पिता की मौत के बाद हिना ने अपना खर्चा चलाने के लिए सिविल लाइंस स्थित एक हुक्का बार में नौकरी कर ली. पुलिस के अनुसार, हिना जिस हुक्का बार में नौकरी करती थी, वह वहां अन्य काम करने वालों की तरह नहीं रहती थी. कहते हैं, हुक्का बार में उस का जलवा मालिक से भी बढ़ कर था.

उस का फैशन, बातचीत का लहजा वहां आने वाले बड़े से बड़े रईसजादों को भी मात देता था. उस की अदाएं और ग्लैमर लोगों को न सिर्फ लुभाता था, बल्कि उस की ओर आकर्षित कर के उस का नजदीकी भी बना देता था. यही वजह थी कि हिना की फ्रैंड सर्किल में शहर के बड़े से बड़े रईसजादे शामिल थे.

31 साल का अदनान खान रईस मांबाप की बिगड़ी औलाद था. पुलिस के अनुसार, अदनान के पिता अहमद खान शहर के बड़े कारोबारियों में हैं. अदनान पिता की कमाई दोस्तों पर उड़ाता था. खालिद और विक्की उस के खास दोस्त थे. दोनों परछाई की तरह उस के साथ लगे रहते थे. उस के अच्छेबुरे हर काम में उस का साथ देते थे.

अदनान फेसबुक पर काफी सक्रिय रहता था. फेसबुक पर उस ने हिना का फोटो देखा तो वह उसे भा गई. फेसबुक पर हिना का परिचय देखा तो उसे यह जान कर बड़ी खुशी हुई कि वह इलाहाबाद की ही रहने वाली है. उस में हिना का मोबाइल नंबर भी था. उस ने हिना से बात की तो उस ने बता दिया कि वह सिविल लाइंस स्थित हुक्का बार में काम करती है. फिर क्या था, अदनान उस से मिलने वहां पहुंच गया.

वह अपने दोस्तों के साथ सिविल लाइंस स्थित हुक्का बार में हिना से मिला तो उसे देख कर उस पर मर मिटा. इस के बाद वह हर दिन वहां जाने लगा. उस ने पहले हिना से जानपहचान बनाई, उस के बाद दोस्ती कर ली. अदनान आकर्षक पर्सनैलिटी वाला युवक तो था ही, पैसे वाले बाप की बिगड़ी औलाद भी था. इसलिए हिना को भी उस में रुचि पैदा हो गई. दोनों ने एकदूसरे में रुचि दिखाई तो उन्हें प्यार हो गया. फिर तो हिना अकसर अदनान के साथ दिखाई देने लगी. यह सन 2015 की बात है.

अदनान और हिना का प्यार गहराया तो दोनों ने शादी का फैसला कर लिया. हिना हिंदू थी, जबकि अदनान मुसलिम. हिना की मां नीलिमा ने इस शादी से मना कर दिया. अदनान के घर वाले भी इस शादी के लिए राजी नहीं थे. ऐसे में हिना और अदनान ने घर वालों से बगावत कर के मसजिद में निकाह कर लिया.

बेटी की इस हरकत से नाराज हो कर नीलिमा ने उस से बात करना बंद कर दिया. हिना पहले से ही आजाद थी, अब और आजाद हो गई. क्योंकि अब कोई रोकनेटोकने वाला नहीं रहा. एक साल तक तो अदनान और हिना में खूब पटी, लेकिन उस के बाद संबंध बिगड़ने लगे. इस की वजह यह थी कि हिना खुले हाथों खर्च करने वालों में थी. अब अदनान को उस का खर्चा उठाना भारी पड़ने लगा था.

प्रेमिका और अपने ही बच्चों की हत्या – भाग 2

गड्ढा खुदवाने के बाद सोनू ने अपने जिगरी दोस्त बंटी को फोन कर के घर बुला लिया.  बंटी जैसे ही सोनू के घर पहुंचा तो सोनू उस के दोनों पैर पकड़ कर रोने लगा.

रोतेरोते उस ने बंटी को बताया, ‘‘मेरी बीवी मुझे बहुत तंग कर रही थी, इस वजह से मैं ने उसे हमेशा के लिए अपने रास्ते से हटा दिया. दोस्त मेरी मदद करो, इन लाशों को ठिकाने लगाना है.’’

बंटी बुरी तरह घबरा गया, उसे कुछ नहीं सूझ रहा था. मगर सोनू ने उसे दोस्ती का वास्ता दे कर उस की मदद करने की गुहार लगाई तो उस ने तीनों लाशों को कमरे से निकाल कर आंगन में बने गड्ढे में डलवा दिया.

दोनों ने तीनों के शव गड्ढे में लिटा कर मिट्टी डाल कर दफना दिए. ऊपर से सीमेंट का प्लास्टर कर दिया. बड़ी बात यह कि 3 हत्याएं कर शव बरामदे में दफन करने के बाद भी सोनू उसी मकान में बेखौफ रह रहा था.

सोनू के पिता राजेश तलवाड़ी रेलवे में नौकरी करते थे. उसी दौरान पीएंडटी कालोनी में रहने वाली सुलताना बेगम से उन्हें प्रेम हो गया तो राजेश ने उस से शादी कर ली. शादी के बाद सोनू का जन्म हुआ.

सोनू जैसेजैसे जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था, उस के कदम भी बहकने लगे थे. उस का ध्यान पढ़ाईलिखाई पर कम, लड़कियों के चक्कर काटने में ज्यादा लगता था.

उस की सोहबत ठीक न होने के कारण वह 20 साल की उम्र में ही शराब और कबाब का आदी हो चुका था. गलीमोहल्ले में लड़कियों से इश्क के उस के किस्से मशहूर होने लगे तो मातापिता उसे समझाते, मगर उस पर कोई असर नहीं होता था.

जब कभी पिता राजेश तलवाड़ी उस की इन हरकतों पर टोकते तो वह उन्हें ही खरा जबाब दे कर कहता, ‘‘आप ने भी तो इश्कबाजी कर लव मैरिज की थी, फिर मुझे क्यों रोकते हो.’’

सोनू का जबाब सुन कर पिता राजेश चुप हो जाते. परेशान हो कर सोनू की मां सुलताना ने सुझाव दिया कि जल्द ही कोई लड़की देख कर इस का निकाह कर देते हैं, शायद शादी के बाद वह सुधर जाए.

राजेश को अपनी बीवी की यह सलाह पसंद आई और उन्होंने लड़की की तलाश शुरू कर दी. 2011 में सुलताना के दूर के रिश्ते की खाला की लड़की नगमा से सोनू उर्फ सलमान का निकाह हो गया.

शादी के बाद भी सोनू की शराबखोरी और अय्याशी की आदतों में कोई सुधार नहीं हुआ, उल्टा सोनू शराब पी कर नगमा के साथ बदसलूकी करने लगा. कुछ दिनों तक तो नगमा चुपचाप सहती रही, मगर शादी के करीब साल भर बाद वह अपने पीहर चली गई. सोनू ने अदालत में तलाक की अरजी लगा दी.

सोनू को निशा से हुआ प्रेम

इधर सोनू दूसरी लड़कियों पर डोरे डालने लगा. सोनू के घर से कुछ ही दूरी पर निशा बौरासी रहती थी. गोरे रंग, तीखे नाकनक्श वाली निशा खूबसूरत लड़की थी, जिस के पीछे कालोनी के लड़के उस की एक झलक पाने को लालायित रहते थे. निशा कालोनी के सिलाई सेंटर पर सिलाई सीखने जाती थी.

रास्ते में आतेजाते सोनू से उस की जानपहचान हो गई. एक दिन शाम के समय सोनू निशा का पीछा करते हुए गली के एकांत में उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘आई लव यू निशा.’’

निशा सोनू की इस हरकत पर पहले तो सकपका गई और हाथ छुड़ा कर बोली, ‘‘सोनू ये क्या कर रहे हो, किसी ने देख लिया तो?’’

‘‘जब प्यार किया तो डरना क्या. मैं तुम से बेपनाह मोहब्बत करता हूं निशा. तुम्हें देखे बिना मुझे चैन नहीं मिलता.’’ सोनू तलवाड़ी निशा का हाथ अपने हाथों में लेते हुए बोला.

‘‘सोनू, प्यार तो मैं भी तुम्हें करती हूं, मगर मुझे पता है कि घर वाले हमारे प्यार को परवान नहीं चढ़ने देंगे. इसलिए मन मसोस कर रह जाती हूं.’’ निशा भी अपने प्यार का इजहार करते हुए बोली.

इस तरह सोनू और निशा की प्रेम कहानी का आगाज हुआ तो उन के प्यार की गाड़ी पटरी पर दौड़ने लगी. जब कभी दोनों को एकांत मिलता, वे घंटों मीठीमीठी बातें करते.

कहते हैं कि प्यार को चाहे लाख छिपाने की कोशिश की जाए, मगर ये छिपता कहां है. ऐसा इन के साथ भी हुआ. आखिरकार, दोनों के प्रेम संबंधों की जानकारी निशा बौरासी के घर वालों तक पहुंच गई.

पत्नी के रहते हुए रहने लगा निशा के साथ

निशा के पिता छोटेलाल बौरासी भी रेलवे में नौकरी करते थे. उन्होंने सोनू के घर जा कर उस के पिता राजेश से इस संबंध में बात की तो राजेश ने हाथ खड़े करते हुए कहा, ‘‘देखो भाई छोटेलाल, हम दोनों साथसाथ नौकरी करते हैं, इसलिए मेरी हमदर्दी तुम्हारे साथ है. मगर हम लाचार हैं क्योंकि सोनू हमारी एक नहीं सुनता.’’

‘‘लेकिन भाईसाहब, हमारी तो पूरी कालोनी में बदनामी हो रही है. हम तो निशा की शादी सोनू के साथ कर दें, मगर पूरी कालोनी जानती है कि सोनू कुछ कामधंधा तो करता नहीं, आखिर क्या खिलाएगा निशा को? मैं अपनी बेटी की जिंदगी इस तरह बरबाद नहीं होने दूंगा.’’ छोटेलाल रुआंसा हो कर बोला.

‘‘मैं भी नहीं चाहता कि सोनू जैसा मेरा नालायक बेटा तुम्हारी बेटी का हाथ थामे. नशे की लत ने उसे किसी काम का नहीं छोड़ा है. तुम तो किसी तरह अच्छा सा लड़का देख कर निशा के साथ पीले कर दो.’’ राजेश ने छोटेलाल को मशविरा दिया.

वक्त गुजरने के साथ 2014 में छोटेलाल ने निशा की शादी उत्तर प्रदेश के अपने पुश्तैनी गांव में पक्की कर दी. छोटेलाल शादी के लिए अपनी बेटी को ले कर ट्रेन से गांव जा रहे थे, उसी दौरान रात के समय छोटेलाल और उस के घर वालों को नींद आ गई और निशा ट्रेन से उतर कर वापस रतलाम आ गई.

रतलाम आ कर निशा अपने प्रेमी सोनू के साथ रहने लगी. सोनू निशा को  ले कर परिवार से अलग रहने लगा. इसी दौरान सोनू के मातापिता की मौत हो गई और सोनू को रेलवे में पिता की जगह अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिल गई.

रेलवे में नौकरी लगते ही सोनू को अपनी पत्नी निशा से एक बेटा और एक बेटी भी हुई. समय के साथ सोनू ने कनेर रोड पर बन रही विंध्यवासिनी कालोनी में प्लौट खरीद कर मकान बना लिया.

एहसान फरामोश : भांजे ने की मामा की हत्या – भाग 1

7 मई, 2017 की शाम 5 बजे गुड़गांव में नौकरी करने वाले देवेंद्र के फोन पर उस के भाई संदीप का मैसेज आया कि उस के मोबाइल फोन का स्पीकर खराब हो गया है, इसलिए वह बात नहीं कर सकता. वह रात को बस से निकलेगा, जिस से सुबह तक गुड़गांव पहुंच जाएगा. देवेंद्र खाना खा कर लेटा था कि संदीप का जो मैसेज रात 11 बजे उस के फोन पर आया, उस ने उस के होश उड़ा दिए.

मैसेज में संदीप ने लिखा था कि वह कोसी के एक रेस्टोरेंट में खाना खा रहा था, तभी उस की तबीयत खराब हो गई. वह कुछ कर पाता, तभी कुछ लोगों ने उस का अपहरण कर लिया. इस समय वह एक वैन में कैद है. वैन में एक लाश भी रखी है. किसी तरह वह उसे छुड़ाने की कोशिश करे.

मैसेज पढ़ कर देवेंद्र के हाथपैर फूल गए थे. उस ने तुरंत गुड़गांव में ही रह रहे अपने करीबी धर्मेंद्र प्रताप सिंह को फोन कर के सारी बात बताई और किसी भी तरह भाई को मुक्त कराने के लिए कहा. देवेंद्र से बात होने के बाद धर्मेंद्र प्रताप सिंह उसे बाद में आने को कह कर खुद कोसी के लिए चल पड़े. रात में ही वह कोसी पहुंचे और थानाकोतवाली कोसी पुलिस को संदीप के अपहरण की सूचना दी.

कोतवाली प्रभारी ने तुरंत नाकाबंदी करा दी. सुबह 5 बजे देवेंद्र भी कोसी पहुंच गया. उस ने अपराध संख्या 129/2017 पर धारा 364 के तहत संदीप के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी. कोसी कोतवाली ने रिपोर्ट तो दर्ज कर ली, लेकिन जब देवेंद्र ने बताया कि संदीप आगरा आया था और वहीं से वह कोसी जा रहा था, तभी उस का अपहरण हुआ है.

इस पर कोतवाली प्रभारी ने कहा कि उन्हें आगरा जा कर भी पता करना चाहिए, जहां वह ठहरा था. शायद वहीं से कोई सुराग मिल जाए. देवेंद्र धर्मेंद्र प्रताप सिंह के साथ आगरा के लिए चल पड़ा. संदीप आगरा के थाना सिकंदरा के अंतर्गत आने वाले मोहल्ला नीरव निकुंज में ठहरा था. देवेंद्र और धर्मेंद्र ने थाना सिकंदरा जा कर थानाप्रभारी राजेश कुमार को सारी बात बताई तो उन्होंने कहा, ‘‘आज सुबह ही बोदला रेलवे ट्रैक के पास तालाब में एक सिरकटी लाश मिली है. आप लोग जा कर उसे देख लें, कहीं वह आप के भाई की तो नहीं है?’’

लेकिन देवेंद्र ने कहा, ‘‘रात में 11 बजे तो भाई ने मुझे मैसेज किया था. उन के साथ ऐसी अनहोनी कैसे हो सकती है? फिर उन की हत्या कोई क्यों करेगा?’’

इस बीच देवेंद्र की सूचना पर घर के अन्य लोग भी रिश्तेदारों के साथ आगरा पहुंच गए थे. सभी लोग इस बात को ले कर परेशान थे कि कहीं संदीप के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई? सभी को शिवम ने अपने कमरे पर ठहराया था. शिवम संदीप और देवेंद्र का भांजा था. पूछताछ में संदीप के घर वालों ने थाना सिकंदरा पुलिस को बताया था कि संदीप जिस लड़की उमा (बदला हुआ नाम) से प्यार करता था, वह आगरा में ही रहती है. दोनों विवाह करना चाहते थे, लेकिन लड़की के घर वाले इस संबंध से खुश नहीं थे.

घर वालों की इस बात से पुलिस को उमा के घर वालों पर शक हुआ. लेकिन जब उमा को बुला कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि उस दिन दोपहर दोनों ने एक रेस्टोरेंट में साथसाथ खाना खाया था. उस समय संदीप की तबीयत काफी खराब थी.

उमा जिस तरह बातें कर रही थी, उस से किसी को भी नहीं लगा कि संदीप के साथ किसी भी तरह के हादसे में वह शामिल हो सकती थी. सभी शिवम के कमरे पर बैठे बातें कर रहे थे, तभी शिवम संदीप के बड़े भाई प्रदीप के साले कैलाश का फोन ले कर बाहर चला गया. वह काफी देर तक न जाने किस से बातें करता रहा. अंदर आ कर उस ने कैलाश का फोन वापस कर दिया. सुबह कैलाश ने अपना फोन देखा तो संयोग से उस में शिवम की बातें रिकौर्ड हो गई थीं. जब वह रिकौर्डिंग सुनी गई तो सभी अपनाअपना सिर थाम कर बैठ गए.

रिकौर्डिंग में शिवम अपने दोस्त आशीष से कह रहा था, ‘‘तुम अभी जा कर अपने मोबाइल फोन के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज करा दो. उस के बाद किसी दूसरे सिम से संदीप मामा के भाई देवेंद्र को फोन कर के कहो कि संदीप मामा लड़की के चक्कर में मारे गए हैं. अब वे उन्हें ढूंढना बंद कर दें.’’

फिर क्या था, अब संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी. सभी शिवम को ले कर कोसी के लिए चल पड़े. रास्ते भर शिवम यही कहता रहा कि उस ने कुछ नहीं किया है. क्योंकि उसे पता नहीं था कि उस ने कैलाश के फोन से जो बातें की थीं, वे रिकौर्ड हो गई थीं और उन्हें सब ने सुन लिया था.

शिवम को थाना कोसी पुलिस के हवाले करने के साथ वह रिकौर्डिंग भी सुना दी गई, जो उस ने आशीष से कहा था. शिवम ने भी वह रिकौर्डिंग सुन ली तो फिर मना करने का सवाल ही नहीं रहा. उस ने अपने सगे मामा संदीप की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद की गई पूछताछ में उस ने संदीप की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला कासगंज के थाना सहावर से कोई 7 किलोमीटर दूर बसा है गांव म्यासुर. इसी गांव में विजय अपने 3 भाइयों प्रदीप, संदीप और देवेंद्र के साथ रहता था. उस की 2 बहनें थीं, मंजू और शशिप्रभा. मंजू की शादी फिरोजाबाद में संजय के साथ हुई थी. वह सरस्वती विद्या मंदिर में अध्यापक था. उस ने अपनी एक न्यू एवन बैंड पार्टी भी बना रखी थी. मंजू से छोटी शशिप्रभा की शादी एटा में हुई थी.

हत्यारी पत्नी सपना : कानपुर में मारा पति और ससुर को – भाग 1

कानपुर से घाटमपुर जाने वाले मार्ग पर एक कस्बा है-पतारा. इसी कस्बे के जगदीशपुर में राम औतार पांडेय का परिवार रहता था. उन के परिवार में पत्नी सुधा के अलावा एक बेटा गौरव तथा बेटी सपना थी.

प्राइवेट नौकरी कर गुजरबसर करने वाले राम औतार एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे. उन की आर्थिक स्थिति भले ही सामान्य थी, लेकिन वह अपने उसूलों से समझौता कभी नहीं करते थे. इसी कारण वह जिद्दी पांडेय के नाम से भी जाने जाते थे.

राम औतार की बेटी सपना बेहद खूबसूरत थी. उस की इस खूबसूरती में चार चांद लगाता था उस का स्वभाव. वह अत्यंत चंचल व चपल स्वभाव की थी. जवानी की दहलीज पर उस ने कदम रखा तो उस की खूबसूरती और बढ़ गई. देखने वालों की निगाहें जब उस पर पड़तीं तो ठहर कर रह जातीं. लेकिन वह किसी को भाव नहीं देती थी.

वह पतारा के शक्तिपीठ कालेज से बीए की पढ़ाई कर रही थी. राम औतार पांडेय सपना को उच्च शिक्षा दिलाना चाहते थे, ताकि उसे अच्छी नौकरी मिल सके.

सपना जिस कालेज में पढ़ती थी, उसी में रायपुर (नर्वल) का रहने वाला राजकपूर भी बीए कर रहा था. कालेज में अकसर मुलाकात होने से सपना की राजकपूर से दोस्ती हो गई.

सपना और राजकपूर जब भी मिलते, देर तक बातचीत करते थे. राजकपूर अपना करिअर बनाने के लिए संघर्ष कर रहा था, लेकिन लगातार मिलने से उन के बीच प्यार की कोपलें फूटने लगीं. उन्हें महसूस होने लगा कि वे एकदूसरे को चाहने लगे हैं. वे एकदूसरे के लिए ही बने हैं.

लेकिन राजकपूर के दिल में एक बात खटकती थी कि वह दूसरी जाति का है. जब सपना को हकीकत पता चलेगी तो कहीं वह मुंह न मोड़ ले.

आगे कुछ गड़बड़ न हो, यह जानने के लिए एक दिन राजकपूर ने सपना से कहा, ‘‘सपना, हम दोनों एकदूसरे को कितना प्यार करते हैं, यह हम ही जानते हैं, पर मैं आज तुम्हें अपनी हकीकत बताना चाहता हूं. सपना, मेरी जाति तुम से अलग है. मैं गुप्ता हूं और तुम ब्राह्मण. इस जाति भेद के कारण कहीं तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगी? कहीं तुम्हारे घर वाले मुझे तुम से दूर तो नहीं कर देंगे?’’

राजकपूर की बात सुन कर सपना ने हंसते हुए कहा, ‘‘राज, तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं ने तुम से प्यार किया है, न कि तुम्हारी जाति से. तुम किस जाति के हो, किस धर्म के हो, मुझे कोई मतलब नहीं है. मैं सिर्फ तुम से प्यार करती हूं.’’

सपना की बात सुन कर राजकपूर ने उसे सीने से लगाते हुए कहा, ‘‘सपना, अब हमारे प्यार में कितनी बाधाएं आएं, मैं तुम्हारा साथ नहीं छोड़ूंगा. हमेशा मैं तुम्हारा साथ दूंगा.’’

‘‘देखो राज, हमारे प्यार की राह में समाज, परिवार या कोई भी आए, मैं इस प्यार की खातिर सब को छोड़ दूंगी. पर तुम्हें नहीं छोड़ूंगी.’’ सपना बोली.

सहपाठी राजकपूर से हो गया प्यार

उस समय सपना की उम्र 19-20 साल रही होगी. राजकपूर की उम्र भी लगभग उतनी ही थी. राजकपूर गबरू जवान तो था ही, खातेपीते घर का होने के साथसाथ खूबसूरत भी था. शायद उस की खूबसूरती पर ही सपना मर मिटी थी. प्यार हुआ तो दोनोें के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए.

कालेज के साथियों को राजकपूर के प्यार की भनक लगी तो किसी ने यह खबर सपना के पिता को दे दी. राम औतार पांडेय को बेटी के प्यार का पता चला तो वह परेशान हो उठे. क्योंकि बेटी से उन्हें इस तरह की कतई उम्मीद नहीं थी. उन्होंने यह बात पत्नी को बताई तो उन्होंने चिंता में कहा, ‘‘लड़की कुछ ऐसावैसा कर बैठी तो हम समाज, बिरादरी में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.’’

पतिपत्नी काफी परेशान थे, जबकि सपना अपनी ही दुनिया में खोई थी. उसे इस बात की भनक तक नहीं लग पाई कि मांबाप को उस के प्यार की खबर लग गई है. उसे पता तब लगा, जब राम औतार पांडेय ने अचानक उस के कालेज जाने पर रोक लगा दी. इस से सपना को समझते देर नहीं लगी कि पापा को उस के प्यार वाली बात का पता चल गया है.

सपना ने पिता के इस निर्णय के बारे में मां से बात की तो उन्होंने कहा, ‘‘सपना, तुम ने जो किया है, उस की हम लोगों को जरा भी उम्मीद नहीं थी.’’

‘‘मां, मैं ने ऐसा क्या कर डाला कि मेरी पढ़ाई बंद करा दी गई?’’

‘‘तुम ने जो किया है बेटी, उस का तुम्हारे पापा को सब पता चल गया है. तुम्हें घर से पढ़ने के लिए भेजा जाता था, न कि किसी लड़के से प्यार करने के लिए. तुम ने क्या सोचा था कि तुम बताओगी नहीं, तो हमें पता ही नहीं चलेगा.’’

‘‘तो यह बात है, आप लोगों को मेरे और राजकपूर के बारे में पता चल गया है,’’ सपना ने बेशरमी से कहा, ‘‘मां, राज बहुत अच्छा लड़का है. हम दोनों ही एकदूसरे को बहुत प्यार करते हैं.’’

‘‘मां के सामने यह कहते तुझे शर्म नहीं आई. क्या हम ने तुझे यही संस्कार दिए थे? आज भी हमारे यहां बेटियों के भाग्य का फैसला मांबाप करते हैं. इतनी बेशरमी ठीक नहीं. अगर तेरी इन बातों को तेरे पापा ने सुन लिया तो तुझे जिंदा गाड़ देंगे.’’

मां की बात सुन कर सपना की बोलती बंद हो गई. मां सुधा ने सपना को काफी देर तक समझाया, लेकिन प्यार में अंधे प्रेमियों पर किसी के समझाने का असर कहां होता है. सपना पर भी नहीं हुआ. मौका मिलते ही उस ने राज को फोन कर के बता दिया कि उस के मांबाप को उन के प्यार का पता चल गया है. सपना की बात सुन कर राजकपूर को जैसे सांप सूंघ गया. वह बुरी तरह घबरा गया.

मातापिता ने सपना का कालेज जाना व घर से बाहर निकलना तो बंद करा दिया था, लेकिन वह उस के भविष्य के बारे में चिंतित रहते थे. जबकि सपना पिंजरे में कैद चिडि़या की तरह उड़ने के लिए व्याकुल थी.

वह चोरीछिपे राजकपूर से फोन पर बातें कर लेती थी.

राम औतार पांडेय सपना के लिए बेहद चिंतित रहने लगे थे. क्योंकि उन्हें पता था कि सपना ने यदि घर से भाग कर शादी रचा ली तो उन की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी और वह कहीं मुंह दिखाने लायक नही बचेंगे. इसलिए उन्होंने तय कर लिया कि कुछ भी हो, वह जल्दी ही कहीं सपना की शादी तय कर देंगे.

इस के बाद उन्होंने सपना के लिए लड़का ढूंढना शुरू कर दिया. काफी प्रयास के बाद एक खास रिश्तेदार के माध्यम से उन्होंने ऋषभ नाम के युवक को पसंद कर लिया.

इंजीनियर ने किये ताई के 10 टुकड़े – भाग 1

युवा इंजीनियर अनुज शर्मा 11 दिसंबर, 2022 की शाम को जयपुर (नार्थ) में विद्याधर नगर के सेक्टर 2 स्थित लालपुरिया अपार्टमेंट के बाहर आया. इधरउधर नजर दौड़ाई. अपार्टमेंट की पार्किंग में गाड़ी पार्क कर उस की डिक्की खोली और उस में से मिट्टी सनी बाल्टी और एक बड़ा सूटकेस निकाला.

उन्हें ले कर वह अपार्टमेंट की लिफ्ट में घुस गया. सेकेंड फ्लोर पर पहुंच कर उस ने जेब से चाबी निकाली और फ्लैट में दाखिल हो गया. उस फ्लैट से कुछ समय बाद वह फिर नीचे आया और पड़ोस की बिल्डिंग के बाहर एक वृद्ध महिला से बोला, ‘‘आंटी, ताई आप के पास आई हैं क्या?’’

‘‘नहीं बेटा, नहीं तो. उन्हें तो मैं ने सुबह से ही नहीं देखा.’’ वृद्धा आश्चर्य से बोली.

‘‘सुबह से नहीं देखा? तो फिर कहां गई होंगी?’’ अनुज चिंता जताते हुए बोला.

‘‘तुम उन को फोन कर लो. कालोनी के अपने रिश्तेदारों से फोन कर पूछ लो.’’ वृद्धा बोली और अपने मकान की तरफ जाने लगी.

‘‘आंटी, फोन तो घर पर ही चार्जिंग में लगा है. वह दिन में 2-3 बजे मंदिर जाने को बोली थीं. मैं तो सुबह का निकला हूं अभी लौटा हूं..’’ अनुज बोला.

‘‘बेटा, एक बार मंदिर के पुजारी से पूछ लो.’’ वह वृद्धा जातेजाते बोल गई.

उस के कहे अनुसार अनुज भी पहले पास के मंदिर में जाने की सोच कर मंदिर की ओर बढ़ गया. रास्ते में जो कोई जानपहचान का मिला, उन से अपनी ताई के बारे में पूछ बैठता. उस की ताई सरोज शर्मा करीब 65 साल की थी. बीमार चल रही थीं. करीब डेढ़ साल पहले ही अपने घर अजमेर से आ कर देवर यानी अनुज के पिता बद्रीप्रसाद के यहां रहने लगी थीं. वह दिन में अकसर मंदिर चली जाती थीं, लेकिन घंटा 2 घंटा गुजार कर वापस लौट आती थीं.

अनुज को ताई सरोज शर्मा की तलाश करतेकरते शाम के 7 बजे से रात के 9 बज गए थे. घर में वह उस समय अकेला ही था. उस के पिता बद्रीप्रसाद शर्मा और 30 वर्षीया अविविहित छोटी बहन शिवी भी घर पर नहीं थे. वे एक दिन पहले ही रिश्तेदारी के सिलसिले में जोधपुर गए थे. मां अनुराधा देवी की डेढ़ साल पहले कोरोना से मौत हो गई थी.

ताई अजमेर में रहती थीं. उन के पति राधेश्याम 3 बच्चों को छोड़ कर 1995 में ही गुजर गए थे. उन में 2 बेटियां और एक बेटा है, लेकिन उन की जिंदगी एकदम से तन्हा हो गई थी.

दोनों बेटियां मोनिका (40) और पूजा (38) अपनीअपनी ससुराल में ही खुश थीं, जबकि बेटा अमित शर्मा कनाडा में एक सौफ्टवेयर कंपनी में इंजीनियर था. वह वहीं रह रहा था.

सरोज अपने घर में अकेली ही रहती थीं. हां, मोनिका की ससुराल अजमेर में ही थी, सो बीचबीच में हफ्ते-2 हफ्ते में वह उस से मिलनेजुलने और हालसमाचार लेने आ जाया करती थी.

बद्रीप्रसाद पंजाब नैशनल बैंक से रिटायर हुए थे. उन का बड़ा बेटा अनुज (32) और बेटी शिवी है. पत्नी की मृत्यु हो जाने के बाद वह अपनी अकेली रह रही विधवा भाभी सरोज शर्मा को अपने घर ले आए थे. इस तरह से परिवार में सभी की जिंदगी मजे में गुजर रही थी.

सरोज बच्चों को अपने बच्चों की तरह ही लाड़प्यार देती थीं. कुछ घरेलू कामकाज में हाथ भी बंटा देती थीं और ऊंचनीच होने की स्थिति में बच्चों को डांटती रहती थीं. उन की छोटीबड़ी समस्या को सुलझाने में सहयोग करती थीं.

देवर और उन के बच्चे भी उन्हें काफी प्यार करते थे और उन्हें अपनी मां की तरह ही मानसम्मान देते थे. बद्रीप्रसाद बेटे और बेटी की शादी को ले कर चिंतित रहते थे. उन की शादी की उम्र निकली जा रही थी.

वह पहले बेटी की शादी करना चाहते थे. इस सिलसिले में अकसर बाहर जाया करते थे. बेटी शिवी के लिए इंदौर से एक रिश्ता आया था. लड़के वालों ने इंदौर में लड़की दिखाने के लिए बुलाया था. इस कारण वह शिवी को ले कर 10 दिसंबर, 2022 को इंदौर चले गए थे.

घर में अनुज और ताई थे. अनुज थोड़ा अलग मिजाज का था. कहने को तो इंजीनियर था, लेकिन अच्छी जौब नहीं मिलने के कारण तनाव में रहता था. कभी वह एकदम गुमसुम बना रहता था या फिर जब किसी बात की जिद पकड़ लेता था, तब उसे पूरा करने पर ही दम लेता था.

ऐसे में कई बार उस के तेवर आक्रामक भी हो जाते थे. तब वह पागलों जैसी हरकतें करने लगता था. उस की इस आदत से घर में सभी परिचित थे.

लेकिन ताई की उसे काफी परवाह थी और धार्मिक विचारों का भी था. 11 दिसंबर, 2022 को ताई घर से कहां चली गई होंगी, इस का अंदाजा पासपड़ोस में किसी को नहीं था. अनुज भी कोई ठोस जानकारी नहीं दे रहा था कि वह घर से कब निकलीं? क्यों निकलीं? कहां जाने वाली थीं? किस से मिलने जाना था? आदिआदि.

पड़ोसियों को सिर्फ यही बता रहा था कि वह खुद घर से दिन में निकल गया था. ताई के घर पर नहीं होने पर अनुज व्याकुल हो गया था.

आखिर पड़ोसियों के बीच यही निर्णय लिया गया कि पुलिस में सरोज शर्मा के गुमशुदा होने की शिकायत दर्ज करवा दी जाए. रात के 10 बजे के करीब विद्याधर नगर थाने में सरोज देवी की गुमशुदगी की सूचना लिखवा दी गई.

उसी वक्त उन की बेटियां पूजा और मोनिका को भी इस की सूचना दे दी गई. मां के लापता होने की सूचना पाते ही दोनों बेटियां 12 दिसंबर को जयपुर आ गईं. तब तक अनुज के पिता और बहन भी इंदौर से वापस लौट आए थे.

घर का माहौल उदासी और चिंता का बन गया था. जबतब पासपड़ोस के लोग आ कर सरोज शर्मा के मिलने के किसी सुराग के बारे में पूछ जाते थे. लेकिन पुलिस की तरफ से उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. इस तरह 2 दिन निकल गए. सभी काफी चिंतित हो गए. घर के लोग किसी अनहोनी की आशंका से भी घिर गए.