मौज मजे में पति की हत्या

मानने वाले प्रेमीप्रेमिका और पतिपत्नी का रिश्ता सब से अजीम मानते हैं. लेकिन  जबजब ये रिश्ते आंतरिक संबंधों की महीन रेखा को पार करते हैं, तबतब कोई न कोई संगीन जुर्म सामने आता है.

हरिओम तोमर मेहनतकश इंसान था. उस की शादी थाना सैंया के शाहपुरा निवासी निहाल सिंह की बेटी बबली से हुई थी. हरिओम के परिवार में उस की पत्नी बबली के अलावा 4 बच्चे थे. हरिओम अपनी पत्नी बबली और बच्चों से बेपनाह मोहब्बत करता था.

बेटी ज्योति और बेटा नमन बाबा राजवीर के पास एत्मादपुर थानांतर्गत गांव अगवार में रहते थे, जबकि 2 बेटियां राशि और गुड्डो हरिओम के पास थीं. राजवीर के 2 बेटों में बड़ा बेटा राजू बीमारी की वजह से काम नहीं कर पाता था. बस हरिओम ही घर का सहारा था, वह चांदी का कारीगर था.

हरिओम और बबली की शादी को 15 साल हो चुके थे. हंसताखेलता परिवार था, घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. दिन हंसीखुशी से बीत रहे थे. लेकिन अचानक एक ऐसी घटना घटी, जिस से पूरे परिवार में मातम छा गया.

3 नवंबर, 2019 की रात में हरिओम अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ घर से लापता हो गया. पिछले 12 साल से वह आगरा में रह रहा था. 36 वर्षीय हरिओम आगरा स्थित चांदी के एक कारखाने में चेन का कारीगर था.

पहले वह बोदला में किराए पर रहता था. लापता होने से 20 दिन पहले ही वह पत्नी बबली व दोनों बच्चियों राशि व गुड्डो के साथ आगरा के थानांतर्गत सिकंदरा के राधानगर इलाके में किराए के मकान में रहने लगा था.

आगरा में ही रहने वाली हरिओम की साली चित्रा सिंह 5 नवंबर को अपनी बहन बबली से मिलने उस के घर गई. वहां ताला लगा देख उस ने फोन से संपर्क किया, लेकिन दोनों के फोन स्विच्ड औफ थे.

चित्रा ने पता करने के लिए जीजा हरिओम के पिता राजबीर को फोन कर पूछा, ‘‘दीदी और जीजाजी गांव में हैं क्या?’’

इस पर हरिओम के पिता ने कहा कि कई दिन से हरिओम का फोन नहीं मिल रहा है. उस की कोई खबर भी नहीं मिल पा रही. चित्रा ने बताया कि मकान पर ताला लगा है. आसपास के लोगों को भी नहीं पता कि वे लोग कहां गए हैं.

किसी अनहोनी की आशंका की सोच कर राजबीर गांव से राधानगर आ गए. उन्होंने बेटे और बहू की तलाश की, लेकिन उन की कोई जानकारी नहीं मिली. इस पर पिता राजबीर ने 6 नवंबर, 2019 को थाना सिकंदरा में हरिओम, उस की पत्नी और बच्चों की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

जांच के दौरान हरिओम के पिता राजबीर ने थाना सिकंदरा के इंसपेक्टर अरविंद कुमार को बताया कि उस की बहू बबली का चालचलन ठीक नहीं था. उस के संबंध कमल नाम के एक व्यक्ति के साथ थे, जिस के चलते हरिओम और बबली के बीच आए दिन विवाद होता था. पुलिस ने कमल की तलाश की तो पता चला कि वह भी उसी दिन से लापता है, जब से हरिओम का परिवार लापता है.

पुलिस सरगरमी से तीनों की तलाश में लग गई. इस कवायद में पुलिस को पता चला कि बबली सिकंदरा थानांतर्गत दहतोरा निवासी कमल के साथ दिल्ली गई है. उन्हें ढूंढने के लिए पुलिस की एक टीम दिल्ली के लिए रवाना हो गई.

शनिवार 16 नवंबर, 2019 को बबली और उस के प्रेमी कमल को पुलिस ने दिल्ली में पकड़ लिया. दोनों बच्चियां भी उन के साथ थीं, पुलिस सब को ले कर आगरा आ गई. आगरा ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो मामला खुलता चला गया.

पता चला कि 3 नवंबर की रात हरिओम रहस्यमय ढंग से लापता हो गया था. पत्नी और दोनों बच्चे भी गायब थे. कमल उर्फ करन के साथ बबली के अवैध संबंध थे. वह प्रेमी कमल के साथ रहना चाहती थी. इस की जानकारी हरिओम को भी थी. वह उन दोनों के प्रेम संबंधों का विरोध करता था. इसी के चलते दोनों ने हरिओम का गला दबा कर हत्या कर दी थी.

बबली की बेहयाई यहीं खत्म नहीं हुई. उस ने कमल के साथ मिल कर पति की गला दबा कर हत्या दी थी. बाद में दोनों ने शव एक संदूक में बंद कर यमुना नदी में फेंक दिया था.

  पूछताछ और जांच के बाद जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

फरवरी, 2019 में बबली के संबंध दहतोरा निवासी कमल उर्फ करन से हो गए थे. कमल बोदला के एक साड़ी शोरूम में सेल्समैन का काम करता था. बबली वहां साड़ी खरीदने जाया करती थी. सेल्समैन कमल बबली को बड़े प्यार से तरहतरह के डिजाइन और रंगों की साडि़यां दिखाता था. वह उस की सुंदरता की तारीफ किया करता था.

उसे बताता था कि उस पर कौन सा रंग अच्छा लगेगा. कमल बबली की चंचलता पर रीझ गया. बबली भी उस से इतनी प्रभावित हुई कि उस की कोई बात नहीं टालती थी. इसी के चलते दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए थे.

अब जब भी बबली उस दुकान पर जाती, तो कमल अन्य ग्राहकों को छोड़ कर बबली के पास आ जाता. वह मुसकराते हुए उस का स्वागत करता फिर इधरउधर की बातें करते हुए उसे साड़ी दिखाता. कमल आशिकमिजाज था, उस ने पहली मुलाकात में ही बबली को अपने दिल में बसा लिया था. नजदीकियां बढ़ाने के लिए उस ने बबली से फोन पर बात करनी शुरू कर दी.

जब दोनों तरफ से बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो नजदीकियां बढ़ती गईं. फोन पर दोनों हंसीमजाक भी करने लगे. फिर उन की चाहत एकदूसरे से गले मिलने लगी. बातोंबातों में बबली ने कमल को बताया कि वह बोदला में ही रहती है.

इस के बाद कमल बबली के घर आनेजाने लगा. जब एक बार दोनों के बीच मर्यादा की दीवार टूटी तो फिर यह सिलसिला सा बन गया. जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में मिल लेते थे.

हरिओम की अनुपस्थिति में बबली और कमल के बीच यह खेल काफी दिनों तक चलता रहा. लेकिन ऐसी बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रहतीं, एक दिन हरिओम को भी भनक लग गई. उस ने बबली को कमल से दूर रहने और फोन पर बात न करने की चेतावनी दे दी.

दूसरी ओर बबली कमल के साथ रहना चाहती थी. उस के न मानने पर वह घटना से 20 दिन पहले बोदला वाला घर छोड़ कर सपरिवार सिकंदरा के राधानगर में रहने लगा. 3 नवंबर, 2019 को हरिओम शराब पी कर घर आया. उस समय बबली मोबाइल पर कमल से बातें कर रही थी. यह देख कर हरिओम के तनबदन में आग लग गई. इसी को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ तो हरिओम ने बबली की पिटाई कर दी.

बबली ने इस की जानकारी कमल को दे दी. कमल ने यह बात 100 नंबर पर पुलिस को बता दी. पुलिस आई और रात में ही पतिपत्नी को समझाबुझा कर चली गई. पुलिस के जाने के बाद भी दोनों का गुस्सा शांत नहीं हुआ, दोनों झगड़ा करते रहे.

रात साढे़ 11 बजे बबली ने कमल को दोबारा फोन कर के घर आने को कहा. जब वह उस के घर पहुंचा तो हरिओम उस से भिड़ गया. इसी दौरान कमल ने गुस्से में हरिओम का सिर दीवार पर दे मारा. नशे के चलते वह कमल का विरोध नहीं कर सका.

उस के गिरते ही बबली उस के पैरों पर बैठ गई और कमल ने उस का गला दबा दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद हरिओम की मौत हो गई. उस समय दोनों बच्चियां सो रही थीं. कमल और बबली ने शव को ठिकाने लगाने के लिए योजना तैयार कर ली. दोनों ने शव को एक संदूक में बंद कर उसे फेंकने का फैसला कर लिया, ताकि हत्या के सारे सबूत नष्ट हो जाएं.

योजना के तहत दोनों ने हरिओम की लाश एक संदूक में बंद कर दी. रात ढाई बजे कमल टूंडला स्टेशन जाने की बात कह कर आटो ले आया.

आटो से दोनों यमुना के जवाहर पुल पर पहुंचे. लाश वाला संदूक उन के साथ था. इन लोगों ने आटो को वहीं छोड़ दिया. सड़क पर सन्नाटा था, कमल और बबली यू टर्न ले कर कानपुर से आगरा की तरफ आने वाले पुल पर पहुंचे और संदूक उठा कर यमुना में फेंक दिया. इस के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. दूसरे दिन 4 नवंबर को सुबह कमल बबली और उस की दोनों बच्चियों को साथ ले कर दिल्ली भाग गया.

बबली की बेवफाई ने हंसतेखेलते घर को उजाड़ दिया था. उस ने पति के रहते गैरमर्द के साथ रिश्ते बनाए. यह नाजायज रिश्ता उस के लिए इतना अजीज हो गया कि उस ने अपने पति की मौत की साजिश रच डाली.

पुलिस 16 नवंबर को ही कमल व बबली को ले कर यमुना किनारे पहुंची. उन की निशानदेही पर पीएसी के गोताखोरों को बुला कर कई घंटे तक यमुना में लाश की तलाश कराई गई, लेकिन लाश नहीं मिली. अंधेरा होने के कारण लाश ढूंढने का कार्य रोकना पड़ा.

रविवार की सुबह पुलिस ने गोताखोरों और स्टीमर की मदद से लाश को तलाशने की कोशिश की. लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला.

बहरहाल, पुलिस हरिओम का शव बरामद नहीं कर सकी. शायद बह कर आगे निकल गया होगा. पुलिस ने बबली और उस के प्रेमी कमल को न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

मर्यादा की हद से आगे – भाग 2

मृतक पवन पाल के दोस्त कल्लू के संबंध में क्लू मिला तो अजय प्रताप सिंह ने रमाशंकर उर्फ कल्लू की तलाश शुरू कर दी. उन्होंने कच्ची बस्ती जा कर कल्लू पल्लेदार के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह नहर किनारे अपनी मां और बहन के साथ रहता है. अजय प्रताप सिंह उस के घर पहुंचे तो पता चला कि कल्लू एक हफ्ते से घर में ताला लगा कर कहीं चला गया है.

दोस्त की हत्या के बाद रमाशंकर उर्फ कल्लू का घर में ताला लगा कर गायब हो जाना, संदेह पैदा कर रहा था. अजय प्रताप सिंह समझ गए कि पवन की हत्या का राज उस के दोस्त कल्लू के पेट में ही छिपा है.

कल्लू शक के घेरे में आया तो उन्होंने उस की तलाश में कई संभावित स्थानों पर छापे मारे, लेकिन वह उन की पकड़ में नहीं आया. हताश हो कर उन्होंने उस की टोह में अपने खास मुखबिर लगा दिए.

10 जुलाई को शाम 4 बजे एक मुखबिर ने थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह को बताया कि मृतक पवन पाल का दोस्त कल्लू पल्लेदार इस समय पनकी इंडस्ट्रियल एरिया के नहर पुल पर मौजूद है.

मुखबिर की सूचना महत्त्वपूर्ण थी. थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने एसआई दयाशंकर त्रिपाठी, उमेश कुमार, हैडकांस्टेबल रामकुमार और सिपाही गंगाराम को साथ लिया और जीप से नहर पुल पर जा पहुंचे.

जीप रुकते ही एक व्यक्ति तेजी से रेलवे लाइन की तरफ भागा. लेकिन पुलिस टीम ने उसे कुछ ही दूरी पर दबोच लिया. पकड़े गए व्यक्ति ने अपना नाम रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद बताया. पुलिस उसे थाना पनकी ले आई.

थाने पर जब रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद से पवन पाल की हत्या के बारे में पूछा गया तो उस ने कहा, ‘‘पवन पाल मेरा जिगरी दोस्त था. दोनों साथ काम करते थे और खातेपीते थे. भला मैं अपने दोस्त की हत्या क्यों करूंगा? मुझे झूठा फंसाया जा रहा है.’’

लेकिन पुलिस ने उस की बात पर यकीन नहीं किया और उस से सख्ती से पूछताछ की. कल्लू पुलिस की सख्ती ज्यादा देर बरदाश्त नहीं कर सका. उस ने अपने दोस्त पवन पाल की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

यही नहीं, कल्लू ने हत्या में इस्तेमाल लोहे का वह हुक (बोरा उठाने वाला) भी बरामद करा दिया, जिसे उस ने घर के अंदर छिपा दिया था. मृतक के मोबाइल को कल्लू ने कूंच कर नहर में फेंक दिया था, जिसे पुलिस बरामद नहीं कर सकी.

थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने ब्लाइंड मर्डर का रहस्य उजागर करने तथा कातिल को पकड़ने की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर में एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (कल्याणपुर) अजीत कुमार सिंह थाना पनकी आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने भी रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद से पूछताछ की. उस ने बताया कि पवन ने उस की इज्जत पर हाथ डाला था. उस ने उसे बहुत समझाया, हाथ तक जोड़े लेकिन जब वह नहीं माना तो उसे मौत की नींद सुला दिया.

रमाशंकर उर्फ कल्लू ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. थानाप्रभारी अजय प्रताप सिंह ने मृतक पवन के बड़े भाई जगत पाल को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत रमाशंकर उर्फ कल्लू निषाद के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया. उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस जांच तथा अभियुक्त के बयानों के आधार पर दोस्त द्वारा दोस्त की हत्या करने की सनसनीखेज घटना इस तरह सामने आई.

फैजाबाद शहर के थाना कैंट के अंतर्गत एक मोहल्ला है रतिया निहावा. रामप्रसाद निषाद इसी मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी लक्ष्मी के अलावा 2 बेटे दयाशंकर, रमाशंकर उर्फ कल्लू तथा 2 बेटियां रजनी व मानसी थीं. रामप्रसाद निषाद सरयू नदी में नाव चला कर अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

रामप्रसाद का बड़ा बेटा दयाशंकर पढ़ालिखा था. वह बिजली विभाग में नौकरी करता था. उस की शादी जगदीशपुर निवासी झुनकू की बेटी वंदना से हुई थी. वंदना तेजतर्रार युवती थी.

ससुराल में वह कुछ साल तक सासससुर के साथ ठीक से रही, उस के बाद वह कलह करने लगी. कलह की सब से बड़ी वजह थी वंदना का देवर रमाशंकर उर्फ कल्लू.

कल्लू का मन न पढ़नेलिखने में लगता था और न ही किसी काम में. वह मोहल्ले के कुछ आवारा लड़कों के साथ घूमने लगा, जिस की वजह से वह नशे का आदी हो गया. शराब पी कर लोगों से गालीगलौज और मारपीट करना उस की दिनचर्या बन गई. आए दिन घर में कल्लू की शिकायतें आने लगीं.

वंदना भी कल्लू की हरकतों से परेशान थी. उसे यह कतई बरदाश्त नहीं था कि उस का पति कमा कर लाए और देवर मुफ्त की रोटी खाए. कलह का दूसरा कारण था, संयुक्त परिवार में रहना.

वंदना को दिन भर काम में व्यस्त रहना पड़ता था. इस सब से वह ऊब गई थी और संयुक्त परिवार में नहीं रहना चाहती थी. वह कलह तो करती ही थी साथ ही पति दयाशंकर पर अलग रहने का दबाव  भी बनाती थी.

रामप्रसाद भी छोटे बेटे कल्लू की नशाखोरी से परेशान था. वह उसे समझाने की कोशिश करता तो वह बाप से ही भिड़ जाता था. घर की कलह और बेटे की नशाखोरी की वजह से रामप्रसाद बीमार पड़ गया. बड़े बेटे दयाशंकर ने रामप्रसाद का इलाज कराया. लेकिन वह उसे नहीं सका.

पिता की मौत पर कल्लू ने खूब ड्रामा किया. शराब पी कर उस ने भैयाभाभी को खूब खरीखोटी सुनाई. साथ ही ठीक से इलाज न कराने का इलजाम भी लगाया.

पिता की मौत के बाद मां व बहन का बोझ दयाशंकर के कंधों पर आ गया. उस की आमदनी सीमित थी और खर्चे बढ़ते जा रहे थे. ससुर की मौत के बाद वंदना ने भी कलह तेज कर दी थी. वह पति का तो खयाल रखती थी, लेकिन अन्य लोगों के खानेपीने में भेदभाव बरतती थी. सास लक्ष्मी कुछ कहती तो वंदना गुस्से से भर उठती, ‘‘मांजी, गनीमत है जो तुम्हारा बेटा तुम्हें रोटी दे रहा है. वरना तुम सब को मंदिर के बाहर भीख मांग कर पेट भरना पड़ता.’’

बहू की जलीकटी बातें सुन कर लक्ष्मी खून का घूंट पी कर रह जाती, क्योंकि वह मजबूर थी. छोटी बेटी मानसी भी जवानी की दहलीज पर खड़ी थी. उसे ले कर वह कहां जाती.

लक्ष्मी ने छोटे बेटे रमाशंकर उर्फ कल्लू को समझाया कि अब तो सुधर जाए. कुछ काम करे और चार पैसे कमा कर लाए. किसी दिन वंदना ने खानापानी बंद कर दिया तो हम सब भूखे मरेंगे. लेकिन कल्लू पर मां की बात का कोई असर नहीं हुआ. वह अपनी ही मस्ती में मस्त रहा.

उन्हीं दिनों एक रोज रमाशंकर देर शाम शराब पी कर घर आया. आते ही उस ने खाना मांगा. इस पर वंदना गुस्से से बोली, ‘‘कमा कर रख गए थे, जो खाना लगाने का हुक्म दे रहे हो. आज तुम्हें खाना नहीं मिलेगा. एक बात कान खोल कर सुन लो. इस घर में अब तुम्हें खाना तभी मिलेगा, जब कमा कर लाओगे.’’

मोहब्बत रास न आई – भाग 2

धीरेधीरे समय गुजरता गया. गीता अपने सौतेले बाप और भाई के जुल्म सहन करतीकरती जवानी की दहलीज पर आ खड़ी हुई थी. लेकिन दोनों बापबेटों ने उसे व उस के घर वालों को बंधुआ मजदूर बना कर रख दिया था.

जब यह सब भावना देवी से सहन नहीं हुआ तो उस ने एक दिन गीता को प्यार से समझाया, ‘‘बेटी, तू अब समझदार हो गई है. तू इन लोगों के जुल्म कब तक सहती रहेगी. अब तू मेरी चिंता छोड़. तू किसी अच्छे सीधेसादे लड़के को देख कर उस के साथ शादी कर अपना घर बसा ले.’’

मां की तरफ से शादी की छूट मिलते ही गीता का हौसला बढ़ा. गीता ने उसी दिन अपनी मां की बात दिमाग में बैठा ली.

फिर वह एक ऐसे ही लड़के की तलाश में लग गई. लेकिन काफी प्रयास करने के बाद भी उसे कोई ऐसा लड़का नहीं मिल रहा था, जो उसे अपनी जीवनसंगिनी बना कर उसे खुश रख सके.

एक साल पहले की बात है. गीता किसी काम से भिकियासैंण गई हुई थी. भिकियासैंण के बाजार में ही उस की मुलाकात जगदीश चंद्र से हुई. जगदीश ग्राम पनुवाधोखन निवासी केसराम का बेटा था. वह अनुसूचित जाति का था. उसे देखते ही वह पास आया और गीता के बारे में जानकारी ली.

उसे देखते ही गीता को लगा कि जगदीश एक सीधासादा युवक है. उस दिन दोनों में जानपहचान हुई. बातों ही बातों में एकदूसरे के परिवार की जानकारी ली.

जगदीश ने उसी मुलाकात में बताया था कि वह ठेकेदार कविता मनराल के ठेके में ‘हर घर नल, हर घर जल’ मिशन के अंतर्गत घरघर नल लगवाने का काम करता है. जगदीश चंद्र ने उसे यह भी बता दिया था कि अभी उस की शादी नहीं हुई है. उस के घर वाले उस के लिए लड़की तलाश रहे हैं.

जगदीश को दिल में बसा लिया

जगदीश चंद्र की बात सुनते ही गीता को लगा कि जिस सपनों के राजकुमार की उसे तलाश थी, वह उसे मिल गया. उस के स्वभाव को देख कर लगा कि वही एक ऐसा शख्स है, जिस के साथ शादी कर के वह अपनी जिंदगी हंसीखुशी के साथ काट सकती है.

उस छोटी सी मुलाकात के दौरान गीता ने जगदीश का मोबाइल नंबर भी ले लिया था. उस के बाद वह अपने घर चली आई.

घर आने के बाद हर वक्त जगदीश का चेहरा उस की आंखों के सामने घूमने लगा था. लेकिन गीता की एक मजबूरी थी कि उस के पास उस वक्त मोबाइल फोन नहीं था. जिस से वह उस से संपर्क साधने में असमर्थ थी.

कुछ समय के बाद ही जगदीश चंद्र एक दिन हर घर नल, हर घर जल अभियान के तहत काम करने भिकियासैंण के बोली न्याय पंचायत क्षेत्र में पहुंचा. जगदीश चंद्र को देखते ही गीता ने उसे पहचान लिया. उसे देखते ही गीता का चेहरा खिल उठा. उस दिन दोनों की दूसरी मुलाकात थी. उस वक्त जोगा सिंह और उस का लड़का गोविंद सिंह खेतों पर गए हुए थे.

गीता को जगदीश से बात करने का पूरा मौका मिला तो उस ने उसे अपनी मां भावना का मोबाइल नंबर भी दे दिया था. जिस के माध्यम से दोनों आपस में बातचीत करने लगे थे. वही मुलाकात धीरेधीरे प्यार में तब्दील हो गई थी.

कुछ ही दिनों में गीता ने भी एक मोबाइल खरीद लिया था. उस के बाद दोनों के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया था. दोनों के बीच प्रेम प्रसंग होते ही बात शादी तक जा पहुंची थी. गीता तो पहले ही जगदीश के साथ शादी करने के लिए तैयार बैठी थी. लेकिन जगदीश को उस से शादी करने के लिए अपने घर वालों को समझाना पड़ा.

जगदीश के हठ के सामने उस के घर वाले भी मना नहीं कर सके. इस के बाद दोनों ने शादी करने की तैयारी भी शुरू कर दी थी. वैसे तो दोनों ही शादी के लिए बालिग थे. लेकिन दोनों की शादी के लिए कुछ प्रमाणपत्र अधूरे थे.

उसी शादी के प्लान के अनुसार 26 मई, 2022 को गीता जगदीश के साथ अल्मोड़ा आ गई. उस दिन दोनों को शादी के लिए कुछ कपड़े और सामान खरीदना था. बाजार में खरीदारी करते वक्त जोगा सिंह के एक परिचित ने दोनों को एक साथ देख लिया तो उस ने तुरंत ही गोविंद सिंह को फोन से यह जानकारी दे दी.

यह जानकारी मिलते ही गोविंद सिंह तुरंत ही बाजार पहुंच गया. उस के बाद उस ने गीता और जगदीश चंद्र दोनों को भलाबुरा कहा. जगदीश को आगे न मिलने की चेतावनी देते हुए गीता को वह अपने साथ ले गया.

घर पहुंचते ही गोविंद सिंह ने गीता को बहुत मारापीटा और उसे चेतावनी दी कि अगर उस ने दोबारा उस से मिलने की कोशिश की तो वह उस की जान ले लेगा. उस दिन के बाद वह पहले के मुकाबले गीता पर और अधिक ध्यान देने लगा. साथ ही बातबात पर वह उस के साथ मारपीट भी करने लगा था.

लेकिन उस की मां भावना भी गोविंद सिंह के आगे मजबूर हो गई थी. फिर भी वह गीता को घर से निकालने का मौका देती रहती थी.

7 अगस्त, 2022 को गीता को थोड़ा सा मौका मिला तो वह घर से निकल गई. घर से निकलते ही वह जगदीश के पास पहुंची. जगदीश चंद्र जानता था कि गोविंद सिंह कभी भी उसे ढूंढता हुआ उस के पास आ सकता है. यही सोच कर अगले ही दिन दोनों अल्मोड़ा पहुंच गए.

एडवोकेट नारायण राम ने दी पनाह

अल्मोड़ा पहुंचते ही जगदीश चंद्र ने अधिवक्ता नारायण राम से संपर्क किया. जगदीश चंद्र और गीता ने उन के सामने अपनी परेशानी रखी तो उन्होंने हर तरह से सहायता करने का आश्वासन दिया. उस के साथ ही दोनों की सहायता करने के लिए उन्हें अपने घर में भी शरण दी.

8 अगस्त, 2022 को जब गीता के घर से भागने की सूचना जोगा सिंह को पता चली तो वह बौखला गया. उसे पता था कि वह भाग कर सीधे जगदीश चंद्र के पास गई होगी. जोगा सिंह अपने बेटे गोविंद सिंह और पत्नी भावना देवी को साथ ले कर गीता की तलाश में जगदीश के घर पहुंचा.

उन्होंने जगदीश के घर जा कर उस के घर वालों को भी भलाबुरा कहा. उस के बाद जगदीश को जान से मारने की धमकी देते हुए वहां से चले आए. वहां से आने के बाद वे गीता और जगदीश को इधरउधर तलाशने लगे.

जगदीश चंद्र के घर वालों ने यह बात उसे फोन कर के बता दी थी. जिस के बाद गीता को लगने लगा था कि उस के परिवार वाले जगदीश चंद्र के साथ कुछ भी कर सकते हैं. यह जानकारी मिलते ही 22 अगस्त, 2022 को दोनों ने शादी करने का निर्णय लिया. फिर उसी दिन जिला अल्मोड़ा के गैराड़ गोलज्यू मंदिर में हिंदू रीतिरिवाज से शादी कर ली. फिर वे पतिपत्नी के रूप में रहने लगे.

मां और सौतेले पिता हो गए खून के प्यासे

उन की शादी करने वाली बात जल्दी ही जोगा सिंह को पता चल गई थी. गीता की एक दलित युवक के साथ शादी की जानकारी मिलते ही जोगा सिंह और उस का परिवार भड़क उठा. तभी से जोगा सिंह का परिवार जगदीश चंद्र के खून का प्यासा हो गया था.

गीता ने अपनी और अपने पति की जान को खतरे में देखते हुए 27 अगस्त, 2022 को अल्मोड़ा में पुलिस और प्रशासन को अपने मायके वालों के खिलाफ तहरीर दी.

गीता ने तहरीर में बाकायदा सौतेले पिता जोगा और सौतेले भाई गोविंद से जगदीश चंद्र और स्वयं की जान का खतरा होने का अंदेशा जताया था. लेकिन पुलिस प्रशासन की तरफ से उन की शिकायत पर कोई भी काररवाई नहीं की गई.

आखिर क्या था बेलगाम ख्वाहिश का अंजाम – भाग 2

दोहरे हत्याकांड से पूरे शहर में सनसनी फैल चुकी थी. राजेश की बहन गीता की तहरीर के आधार पर पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने मृतक राजेश व उस की पत्नी दीपिका के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो राजेश के मोबाइल की आखिरी लोकेशन 4 मार्च, 2017 की तड़के लाडपुर क्षेत्र में मिली जोकि कुंआवाला के नजदीक था. इस से पुलिस चौंकी, क्योंकि दीपिका ने उन के जाने का समय सुबह करीब 9 बजे बताया था.

काल डिटेल्स से यह स्पष्ट हो गया कि दीपिका ने पुलिस से झूठ बोला था. इस से वह शक के दायरे में आ गई. पुलिस ने दीपिका से पूछताछ की तो वह अपने बयान पर अडिग रही. इतना ही नहीं, उस ने अपने 8 साल के बेटे नोनू को भी आगे कर दिया. उस ने भी पुलिस को बताया कि पापा को जाते समय उस ने बाय किया था.

पुलिस ने नोनू से अकेले में घुमाफिरा कर चौकलेट का लालच दे कर पूछताछ की तब भी वह अपनी बात दोहराता रहा. ऐसा लगता था कि जैसे उसे बयान रटाया गया हो. शक की बिनाह पर पुलिस ने दीपिका के घर की गहराई से जांचपड़ताल की लेकिन वहां भी कोई ऐसा सबूत या असामान्य बात नहीं मिली जिस से यह पता चलता कि हत्याएं वहां की गई हों. लेकिन पुलिस इतना समझ गई थी कि दीपिका शातिर अंदाज वाली महिला थी.

पुलिस ने दीपिका के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स की फिर से जांच की तो उस में एक नंबर ऐसा मिला जिस पर उस की अकसर बातें होती थीं. 3 मार्च की रात व 4 को तड़के साढ़े 5 बजे भी उस ने इसी नंबर पर बात की थी. पुलिस ने उस फोन नंबर की जांच की तो वह योगेश का निकला. योगेश शहर के ही गांधी रोड पर एक रेस्टोरेंट चलाता था.

योगेश के फोन की काल डिटेल्स जांची तो उस की लोकेशन भी उसी स्थान पर पाई गई, जहां शव बरामद हुए थे. माथापच्ची के बाद पुलिस ने कडि़यों को जोड़ लिया. इस बीच पुलिस को यह भी पता चला कि दीपिका और योगेश के बीच प्रेमिल रिश्ते थे जिस को ले कर घर में अकसर झगड़ा होता था.

इतने सबूत मिलने के बाद पुलिस अधिकारियों ने एक बार फिर से पूछताछ की तो वह सवालों के आगे ज्यादा नहीं टिक सकी. वह वारदात की ऐसी षडयंत्रकारी निकली, जिस की किसी को उम्मीद नहीं थी. अपने अवैध प्यार को परवान चढ़ाने और प्रेमी के साथ दुनिया बसाने की ख्वाहिश में उस ने पूरा जाल बुना था. इस के बाद पुलिस ने उस के प्रेमी योगेश को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों से पूछताछ की गई तो चौंकाने वाली कहानी निकल कर सामने आई.

दरअसल, राजेश से शादी के बाद दीपिका की जिंदगी आराम से बीत रही थी. दोनों के बीच प्यार भरे विश्वास का मजबूत रिश्ता था. राजेश सीधासादा युवक था जबकि दीपिका ठीक इस के उलट तेजतर्रार व फैशनपरस्त युवती थी. 2 साल पहले योगेश ने रायपुर स्थित स्पोर्ट्स स्टेडियम में ठेके पर कुछ काम किया था. इस दौरान वह एक गेस्टहाउस में रहा. वह गेस्टहाउस राजेश के घर के ठीक पीछे था.

योगेश मूलरूप से हरियाणा के करनाल शहर का रहने वाला था और देहरादून में छोटेमोटे ठेकेदारी के काम करता था. वह राजेश की दुकान पर भी आता था. इस नाते दोनों के बीच जानपहचान हो गई थी. दीपिका जब भी छत पर कपड़े सुखाने जाती तो योगेश उसे अपलक निहारा करता था. पहली ही नजर में उस ने दीपिका को हासिल करने की ठान ली थी. दीपिका को पाने की चाहत में योगेश ने धीरेधीरे राजेश से दोस्ती गांठ ली. दोस्ती मजबूत होने पर वह उस के घर भी जाने लगा.

इस दौरान उस की मुलाकात दीपिका से भी हुई. कुछ दिनों में ही दीपिका ने योगेश की आंखों में अपने लिए चाहत देख ली. दोनों के बीच दोस्ती हो गई और वे मोबाइल पर बातें करने लगे. राजेश को पता नहीं था कि जिस दोस्त पर वह आंख मूंद कर विश्वास करता है, वह आस्तीन का सांप बन कर उस के घर की इज्जत तारतार करने की शुरुआत कर रहा है.

जब दीपिका योगेश के आकर्षण में बंध गई तो दोनों ने अपने रिश्ते को प्यार का नाम दे दिया. अब दीपिका बहाने से घर से बाहर जाती और योगेश के साथ घूमती. इस बीच योगेश ने तहसील चौक के पास अपना रेस्टोरेंट खोल लिया और खुद गोविंदगढ़ में रहने लगा.

दीपिका पति को धोखा दे कर योगेश के सपने देखने लगी. एक वक्त ऐसा भी आया जब उन के बीच मर्यादा की दीवार गिर गई. इस के बाद तो जब कभी राजेश व प्रेम सिंह बाहर होते तो वह योगेश के साथ अपना समय बिताती. राजेश को पता ही नहीं था कि उस की पत्नी उस से बेवफाई कर के क्या गुल खिला रही है.

अपने नाजायज रिश्ते को प्यार का नाम दे कर योगेश व दीपिका साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. दोनों के रिश्ते भला कब तक छिपते. आखिर एक दिन राजेश के सामने यह राज उजागर हो ही गया. उस ने अपने ही घर में दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया.

पत्नी की बेवफाई पर राजेश को गुस्सा आ गया. उस ने दीपिका की पिटाई कर दी और योगेश को भी खरीखोटी सुना कर अपनी पत्नी से दूर रहने की हिदायत दी.

कुछ दिन तो सब ठीक रहा लेकिन बाद में दोनों ने फिर से गुपचुप ढंग से मिलना शुरू कर दिया. पर राजेश से कोई बात छिपी नहीं रही. नतीजतन इन बातों को ले कर घर में आए दिन झगड़ा होने लगा.

दीपिका चाहती थी कि उस पर किसी तरह की बंदिश न हो और वह प्रेमी के साथ खुल कर जिंदगी जिए. वह ढीठ हो चुकी थी. अपनी गलती मानने के बजाए वह पति से बहस करती. राजेश अपना घर बरबाद होते नहीं देखना चाहता था. लिहाजा वह समयसमय पर परिवार और बच्चे का वास्ता दे कर दीपिका को समझाने की कोशिश करता. पर उस के दिमाग में पति की बात नहीं धंसती बल्कि एक दिन तो बेशरमी दिखाते हुए उस ने पति से कह दिया, ‘‘मेरे पास एक रास्ता है कि तुम मुझे तलाक दे कर आजाद कर दो. फिर तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी.’’

राजेश को पत्नी से ऐसी उम्मीद नहीं थी. वह सारी हदों को लांघ गई थी. उस की बात सुन कर उसे गुस्सा आ गया तो उस ने दीपिका की पिटाई कर दी. दीपिका राह से इतना भटक चुकी थी कि वह राजेश को भूल कर योगेश से जुनून की हद तक प्यार करती थी. कई दौर ऐसे आए जब उस ने योगेश को नकद रुपए भी दिए. यह रकम ढाई लाख तक पहुंच चुकी थी.

28 साल बाद मिला न्याय : बलात्कार से पैदा बेटे का ‘मिशन मदर’ – भाग 2

मां की बातों से विकास हो गया भावुक

यह कहती हुई क्षमा ने विकास को गले से लगा लिया था. बिलखती हुई बोलने लगी, ‘‘बेटा, अब मैं किसी भी कीमत पर तुम्हें खोना नहीं चाहती हूं.’’

विकास भी मां की बातें सुन कर भावुक हो गया था. उस ने मां की आंखों के आंसू पोंछे. वादा किया कि वह उसे छोड़ कर अब कहीं नहीं जाने वाला है. साथ ही उस ने यह सौगंध  खाई कि वह उन दुष्कर्मियों को भी चैन से नहीं रहने देगा, जो आजाद जिंदगी जी रहे हैं. यह साल 2007 की बात है.

एक तरफ विकास की नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत हो गई थी, दूसरी तरफ महत्त्वाकांक्षी क्षमा सिंह ने भी करिअर बनाने की दिशा में कदम उठा लिया था. उस ने भी आगे की पढ़ाई करने का मन बना लिया था. उसी शहर में रहने वाली बहनों ने उस का साथ दिया था.

साल 2013 में उस ने रुहेलखंड यूनिवर्सिटी, बरेली से बीए कर लिया था. इस के साथ ही वह बहनों के सहयोग से बिल्डिंग निर्माण के कारोबार में उतर आई थी. अपनी कंपनी बना कर बिल्डिंग बनाने का काम करने लगी थी. इस में उसे काफी सफलता मिली और वह देखते ही देखते आर्थिक रूप से मजबूत हो गई.

उस की जीवनशैली और रहनसहन उच्चस्तरीय हो गया, लेकिन दशकों पहले शरीर और मन में लगी खरोंच रहरह कर कचोटने लगती थी. उस का बेटा विकास भी ग्रैजुएशन कर सरकारी नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया था, लेकिन मां के सीने में दबी पीड़ा को दूर करने के प्रति भी चिंतित था.

अपनी मां के काम में हाथ बंटाते हुए एक दिन फिर उस ने अपनी मां से पुरानी बात छेड़ दी और उस पर दुष्कर्म के लिए थाने में रिपोर्ट लिखवाने के लिए दबाव बनाया. मां तैयार हो गई. वह भी बदले की आग में भीतर ही भीतर सुलग रही थी. अब उसे इस में बेटा भी भागदौड़ और तमाम तरह के  कागजात जुटाने में सहयोगी बन गया था.

क्षमा सिंह थोड़ाबहुत सबूत जुटा कर अपने साथ हुए दुष्कर्म की रिपोर्ट लिखवाने के लिए शाहजहांपुर के थाना सदर बाजार गई. वहां थानाप्रभारी ने काफी पुराना मामला बता कर रिपोर्ट लिखने से इनकार कर दिया.

वकील ने बढ़ाया हौसला

उस ने हिम्मत नहीं हारी और शाहजहांपुर के ही एक बड़े वकील मोहम्मद मुतहर खां से मिली. उन्होंने जब क्षमा सिंह की पूरी बात सुनी, तब उन्हें काफी हैरानी हुई कि कैसे इतनी गहरी बात उस ने इतने लंबे समय तक दिल में दबाए रखी.

उन्होंने तसल्ली के साथ शुरुआत से पूरे घटनाक्रम के दास्तान को रिकौर्ड किया. कुछ पौइंट्स नोट किए. तथ्यों को भी लिखा. सब कुछ क्षमा सिंह ने बगैर किसी झिझक और दुरावछिपाव के बलात्कार और परिवार समेत उसे मार डालने की धमकियों की घटनाओं का ब्यौरा सुना दिया. वह इस प्रकार है—

बरेली मंडल मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर शाहजहांपुर शहर में एक मोहल्ला है बीबीजई हद्दफ. वह सदर बाजार थाने के अंतर्गत आता है.

थाने से ठीक 2 किलोमीटर की दूरी पर घासीराम के मकान में किराए पर क्षमा सिंह की बड़ी बहन सुशीला अपने पति कैलाश कुमार के साथ रहती थी. कैलाश कुमार वन विभाग में नौकरी करते थे तो सुशीला एक प्राइवेट स्कूल में टीचर थी. यह बात 1993 की है. क्षमा सिंह उस समय 11-12 साल की थी.

सुशीला ने अपने साथ छोटी बहन क्षमा सिंह को रख लिया था. वह वहीं रह कर पढ़ाई करने के साथसाथ घरेलू कामकाज में मदद करती थी.

क्षमा सिंह अपने मांबाप की 5 संतानों में तीसरे नंबर की थी. मां घरेलू महिला थीं, जबकि पिता नायब सूबेदार थे. उन के घर से कुछ दूरी पर प्रोफेसर कालोनी के पीछे कब्रिस्तान के निकट 2 भाई नकी हसन उर्फ ब्लेडी और रजी हसन उर्फ गुड्डू रहते थे. एक बार उन की निगाह जब क्षमा पर पड़ी, तब वे उसे देखते ही रह गए.

क्षमा उन दिनों जवानी की दहलीज पर थी. देखने में काफी सुंदर और आकर्षक लगती थी. दूसरी तरफ दोनों भाई आवारा किस्म के थे. राह चलती लड़कियों को ललचाई नजरों से देखना और मौका मिलते ही उन से बातें करना या उन्हें छेड़ देने जैसी आदतें थीं. वे झगड़ा और मारपीट करने से भी पीछे नहीं हटते थे.

नकी 25, जबकि रजी 22 साल का था. उन्होंने जब से क्षमा को देखा था, तभी से उस की हर गतिविधि पर नजर रखने लगे थे. कब उस के जीजा नौकरी के लिए घर से निकलते थे, कब लौटते थे और कब उस की दीदी स्कूल जातीआती थी, इन जानकारियों के साथ उन्हें क्षमा की दिनचर्या का भी अंदाजा लग गया था. उन्हें क्षमा के घर में अकेली रहने के समय की पूरी जानकारी मिल गई थी.

रजी हसन ने बनाया हवस का शिकार

एक दिन क्षमा घर के किसी काम के लिए दुकान पर गई थी. घर लौटने पर जैसे ही ताला खोल कर कमरे में घुसी, पीछे से घात लगाए एक युवक ने उसे दबोच लिया. वह कोई और नहीं रजी हसन था. वह हाथ में तमंचा लिए था.

रजी हसन ने तमंचे की नोक पर क्षमा के साथ बलात्कार किया. जाते हुए वह क्षमा को धमका गया कि इस बारे में जरा भी चूंचपड़ की तो वह उस के जीजा और दीदी को मार डालेगा. अगले रोज उसी वक्त रजी के भाई नकी ने आ कर क्षमा के साथ बलात्कार किया और उसे धमका कर चला गया.

क्षमा चाह कर भी बलात्कार का विरोध नहीं कर पाई. करीब सालभर तक रजी हसन और नकी हसन नाम के दोनों भाई बारीबारी से उस के साथ बलात्कार करते रहे. एक दिन क्षमा बीमार पड़ गई. उस की बहन सुशीला उसे डाक्टर के पास ले कर गई. डाक्टर ने उसे गर्भ से बताया. यह सुन कर सुशीला सन्न रह गई. उस ने क्षमा से इस बारे में पूछा, तब उस ने लगातार हुए बलात्कार की बात बहन को बताई.

पत्नी की खूनी साजिश : प्यार में पागल लड़की ने प्रेमी से करवाई पति की हत्या – भाग 2

इस की वजह यह थी कि डब्लू को रमेश सिंह से भाई की मौत का बदला लेना था. इस के लिए उस ने रमेश सिंह से दोस्ती गांठ ली. फिर एक दिन गांव के पास ही वह रमेश सिंह के साथ शराब पीने बैठा. उस ने जानबूझ कर रमेश सिंह को खूब शराब पिलाई.

जब रमेश सिंह नशे में बेकाबू हो गया तो डब्लू ने हंसिए से उस का गला धड़ से अलग कर दिया. इस के बाद रमेश सिंह का कटा सिर लिए वह मां के पास पहुंचा और सिर उन के सामने कर के बोला, ‘‘देखो मां, यही भैया का हत्यारा था. आज मैं ने इस के किए की सजा दे दी. इसे वहां भेज दिया, जहां इसे बहुत पहले पहुंच जाना चाहिए था.’’

यह सन 2011 की बात है.   इस के बाद रमेश सिंह का कटा सिर लिए डब्लू पूरे गांव में घूमा. डब्लू के दुस्साहस को देख कर गांव में दहशत फैल गई. पुलिस उस तक पहुंच पाती, उस से पहले ही वह रमेश सिंह का सिर फेंक कर फरार हो गया. लेकिन पुलिस के चंगुल से वह ज्यादा समय तक नहीं बच पाया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद डब्लू को लगा कि गांव के ही रहने वाले रमेश सिंह के करीबी पूर्व ग्रामप्रधान शातिर बदमाश अरुण सिंह उस की हत्या करवा सकते हैं. फिर क्या था, वह उन्हें ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगा.

25 अप्रैल, 2013 को किसी काम से अरुण सिंह अपनी मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे, तभी मचिया चौराहे पर घात लगा कर बैठे डब्लू ने गोलियों से भून डाला. घटनास्थल पर ही उन की मौत हो गई. उस समय तो वह फरार हो गया था, लेकिन बाद में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.

बात उस समय की है, जब सुषमा कालेज में पढ़ती थी. संयोग से उसी कालेज में डब्लू भी पढ़ता था. चूंकि दोनों एक ही गांव के रहने वाले थे, इसलिए कालेज आतेजाते अकसर दोनों की मुलाकात हो जाती थी. सुषमा खूबसूरत तो थी ही, डब्लू भी कम स्मार्ट नहीं था. साथ आनेजाने में ही दोनों में प्यार हो गया. सुषमा डब्लू के आपराधिक कारनामों के बारे में जानती थी, इस के बावजूद उस से प्यार करने लगी.

सुषमा और डब्लू की प्रेमकहानी जल्दी ही गांव वालों के कानों तक पहुंच गई. फिर तो इस की जानकारी सुरेंद्र बहादुर सिंह को भी हो गई. बेटी की इस करतूत से पिता का सिर शरम से झुक गया. उन्होंने सुषमा को डब्लू से मिलने के लिए मना तो किया ही, उस के घर से निकलने पर भी पाबंदी लगा दी. इस का नतीजा यह निकला कि एक दिन वह मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर डब्लू के साथ भाग गई. इस के बाद दोनों ने मंदिर में शादी कर ली. यह 7-8 साल पहले की बात है.

crime story

सुषमा के भाग जाने से सुरेंद्र बहादुर सिंह की काफी बदनामी हुई. डब्लू आपराधिक प्रवृत्ति का था, इसलिए वह उस का कुछ कर भी नहीं सकते थे. फिर भी उन्होंने पुलिस के साथसाथ बिरादरी की मदद ली. पुलिस और बिरादरी के दबाव में डब्लू ने सुषमा को उस के घर वापस भेज दिया. सुषमा के घर वापस आने के बाद सुरेंद्र बहादुर सिंह ने उस के घर से बाहर जाने पर सख्त पाबंदी लगा दी.

संयोग से उसी बीच रमेश सिंह की हत्या के आरोप में डब्लू जेल चला गया तो सुरेंद्र बहादुर सिंह ने राहत की सांस ली. डब्लू की जो छवि बन चुकी थी, उस से वह काफी डरे हुए थे. वह जेल चला गया तो उन्होंने इस मौके का फायदा उठाया और आननफानन में सुषमा की शादी गोरखपुर के रहने वाले संपन्न और सभ्य देवेंद्र प्रताप सिंह के बेटे विवेक प्रताप सिंह उर्फ विक्की से कर दी.

यह शादी इतनी जल्दी में हुई थी कि देवेंद्र प्रताप सिंह बहू के बारे में कुछ पता नहीं कर सके. जेल में बंद डब्लू को जब सुषमा की शादी के बारे में पता चला तो वह सुरेंद्र बहादुर सिंह पर बहुत नाराज हुआ. लेकिन वह सुषमा के पिता थे, इसलिए वह उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता था. पर उस ने यह जरूर तय कर लिया था कि वह सुषमा को खुद से अलग नहीं होने देगा. इस के लिए उसे कुछ भी करना पड़े, वह करेगा.

सुषमा ने भले ही विवेक से शादी कर ली थी, लेकिन उस का तन और मन डब्लू को ही समर्पित था. हर घड़ी वह उसी के बारे में सोचती रहती थी. जल्दी ही वह विवेक के बेटे आयुष की मां बन गई. जनवरी, 2013 में जब डब्लू जमानत पर जेल से बाहर आया तो सुषमा से मिलने गोरखपुर स्थित उस की ससुराल पहुंच गया.

डब्लू को देख कर सुषमा बहुत खुश हुई. उस का प्यार उस के लिए फिर जाग उठा. इस के बाद वे किसी न किसी बहाने एकदूसरे से मिलने लगे. फोन पर तो बातें होती ही रहती थीं. उसी बीच 25 अप्रैल, 2013 को डब्लू ने पूर्वप्रधान अरुण सिंह की हत्या कर दी तो वह एक बार फिर जेल चला गया. इस बार वह 5 सालों बाद 18 मार्च, 2017 को जेल से बाहर आया तो एक बार फिर उस का सुषमा से मिलनाजुलना शुरू हो गया.

डब्लू बारबार सुषमा से मिलने आने लगा तो विवेक प्रताप सिंह को पत्नी के चरित्र पर संदेह हो गया. इस के बाद पतिपत्नी में अकसर झगड़ा होने लगा. वह डब्लू को अपने यहां आने से मना करने लगा. लेकिन सुषमा उस की एक नहीं सुनती थी. पत्नी के इस व्यवहार से विवेक काफी परेशान रहने लगा. रोजरोज के झगड़े से बेटा भी परेशान रहता था. डब्लू को ले कर पतिपत्नी में संबंध काफी बिगड़ गए. दोनों के बीच मारपीट भी होने लगी.

सुषमा विवेक की कोई बात नहीं मानती थी. रोजरोज के झगड़े से परेशान विवेक अपने दुख को किसी से न कह कर फेसबुक पर पोस्ट किया करता था. दूसरी ओर सुषमा भी पति से ऊब चुकी थी. अब वह उस से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगी. जब उस ने यह बात डब्लू से कही तो उस ने आश्वासन दिया कि उसे चिंता करने की जरूरत नहीं है. वह जब चाहेगा, उसे विवेक से छुटकारा दिलवा देगा. उस के बाद दोनों एक साथ रहेंगे.

टुकड़ों में बंटी औरत – भाग 2

एसपी राममूर्ति जोशी पहले भी अलवर में विभिन्न पदों पर रह चुके थे. इसलिए उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर भिवाड़ी और आसपास के इलाकों से पिछले दिनों लापता हुई महिलाओं का रिकौर्ड मंगवाया. इन महिलाओं की गुमशुदगी के बारे में जांचपड़ताल की गई, लेकिन ऐसा कोई सुराग नहीं मिला, जिस से पुलिस को शव के टुकड़ों की शिनाख्त में मदद मिलती.

इलाके की सोसायटियों में पिछले दिनों मकान खाली कर जाने वाले किराएदारों का भी पता लगाया गया. इस के अलावा घटनास्थल के निकटवर्ती सांथलका गांव में पिछले दिनों मकान खाली करने
वाले किराएदारों और कंपनियों से अचानक नौकरी छोड़ने वाले महिलापुरुषों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए डोर टू डोर सर्वे किया गया.

यह काम भूसे के ढेर में सूई खोजने जैसा था. पचासों पुलिस वाले इस काम में सुबह से शाम तक जुटे रहते. एसपी साहब इस काम में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते थे. वह हर संभव प्रयास से मृतका की शिनाख्त और कातिलों तक पहुंचना चाहते थे. इसलिए रोजाना शाम को एडिशनल एसपी और डीएसपी से रिपोर्ट लेते और उन्हें जरूरी निर्देश देते.

पुलिस को मिली जांच की राह

2 सप्ताह से भी ज्यादा समय तक चली इस भागदौड़ में पुलिस को पता चला कि गांव सांथलका की विनोद कालोनी में रहने वाले अमित गुप्ता और उस की पत्नी कोमल पिछले कुछ दिनों से बिना किसी को बताए अचानक कमरा खाली कर चले गए.पुलिस ने कालोनी के दूसरे लोगों से पूछताछ की, तो जानकारी मिली कि अमित और कोमल में आपस में झगड़ा होता रहता था. दोनों अलगअलग फैक्ट्रियों में काम करते थे. पुलिस को अमित का पता तो नहीं मिला. अलबत्ता यह जरूर पता लगा कि वह भरतपुर का रहने वाला है.

यह सुराग मिलने पर पुलिस को उम्मीद की कुछ किरण नजर आई. अब पुलिस अमित और कोमल को तलाशने में जुट गई. इसी दौरान 3 सितंबर को यूआईटी फेज थर्ड पुलिस थाने पर डाक से एक पत्र आया. पत्र में अमित गुप्ता ने अपनी पत्नी कोमल के गाय होने की बात लिखी थी.

पत्र में अमित का मोबाइल नंबर और कोमल का कानपुर का पता लिखा था.पुलिस ने मामले की पड़ताल करने के लिए अमित के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन वह स्विच्ड औफ मिला. चूंकि अमित और उस की पत्नी अचानक मकान खाली कर के गए थे और अब अमित ने खुद थाने आने के बजाय पत्र लिख कर अपनी पत्नी की गुमशुदगी की बात कही थी. इस से पुलिस को संदेह हुआ.

थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार ने एसपी राममूर्ति जोशी को पूरी बात बताई. जोशी को भी मामले में संदेह नजर आया. उन्होंने भी अमित के मोबाइल नंबर पर कई बार काल की. लेकिन उस का फोन हर बार स्विच्ड औफ मिला.मोबाइल स्विच्ड औफ होने से उस की लोकेशन का भी पता नहीं चल पा रहा था. सच्चाई का पता लगाने के लिए एसपी ने थानाप्रभारी को पत्र में लिखे कोमल के कानपुर के पते पर पुलिस टीम भेजने के निर्देश दिए.

भिवाड़ी से पुलिस टीम कानपुर में मीरपुर कैंट स्थित कोमल के घर पहुंची. वहां पूछताछ में पता चला कि कोमल की अपने परिजनों से 11 अगस्त के बाद से कोई बात नहीं हुई थी. उन्हें न तो कोमल का कुछ पता था और न ही अमित काकोमल के परिजनों ने पुलिस को बताया कि दोनों मियांबीवी में आए दिन झगड़ा होता था. यह भी बताया कि अमित ने कोमल से धोखे से शादी की थी. उन से यह जानकारी भी मिली कि अमित ने अपनी किसी महिला दोस्त की हत्या भी की थी. उन्हें शंका थी वह कोमल की भी हत्या कर सकता है.

कानपुर में कोमल के घर वालों से मिली जानकारी के बाद अमित पर पुलिस का शक पक्का हो गया. साथ ही यह अनुमान भी लग गया कि 14 अगस्त को खिदरपुर स्कूल के पास मिले शव के टुकड़े कोमल के ही हो सकते हैं. अब अमित को तलाशना जरूरी था, क्योंकि उसी से सारी सच्चाई का पता लग सकता था.

एसपी राममूर्ति जोशी ने भिवाड़ी पुलिस की साइबर सेल को अमित गुप्ता के मोबाइल नंबर का तकनीकी अनुसंधान करने का निर्देश दिया. साइबर सेल के हैड कांस्टेबल मोहनलाल, कांस्टेबल संदीप और नीरज ने अमित का मोबाइल लगातार स्विच्ड औफ मिलने पर उस की पुरानी काल डिटेल्स निकलवा कर उन का विश्लेषण किया. पुलिस ने इन काल डिटेल्स के आधार पर पहले से अमित के संपर्क में रहे लोगों से उस की पूरी जन्मकुंडली हासिल की.

तमाम प्रयासों के बाद पुलिस ने 7 सितंबर को अमित गुप्ता को भिवाड़ी के ही सांथलका इलाके से गिरफ्तार कर लिया. उसे पुलिस थाने ला कर पूछताछ की गई. पहले तो वह पुलिस को यह कह कर गुमराह करता रहा कि कोमल लापता है. मैं उस की तलाश कर रहा हूं. लेकिन कड़ाई से पूछताछ में उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.पुलिस पूछताछ में कोमल की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

अमित गुप्ता राजस्थान के भरतपुर शहर का रहने वाला था. उस की शादी 13 दिसंबर, 2019 को कानपुर निवासी हरिप्रसाद गुप्ता की बड़ी बेटी कोमल से भरतपुर में हुई थी. कोमल की यह दूसरी शादी थी. उस की पहली शादी 2004 में कानपुर के संजय से हुई थी, लेकिन टीबी की बीमारी के कारण उस के पति संजय की 4 साल बाद 2008 में मौत हो गई थी.