विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 5

इतनी पूछताछ के बाद बेचैन हुए आनंद ने प्रकाश राय से पूछा, “आप रोहिणी के बारे में इतनी पूछताछ क्यों कर रहे है?”

गंभीर स्वर में प्रकाश राय ने कहा, “लोग हम से सत्य को छिपाते हैं, लेकिन हमारा काम ही है लोगों को सच बताना. परसों सवेरे 6 से 7 बजे के बीच किसी ने छुरा घोंप कर रोहिणी की हत्या कर दी है.”

“नहीं..,” आनंदी चीख पड़ी. लगभग 10 मिनट तक आनंदी हिचकियां लेले कर रोती रही. उस के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. आनंदी के शांत होने पर प्रकाश राय ने पूरी घटना सुनाई और अफसोस जाहिर करते हुए कहा, “अभी तक हमें कोई भी सूत्र नहीं मिला है. हमारी जांच जारी है, इसलिए रोहिणी के सभी परिचितों से मिल कर हम पूछताछ कर रहे हैं. कल उस का अंतिम संस्कार भी हो गया है.”

“लेकिन सर, किसी ने भी हमें इस घटना की सूचना क्यों नहीं दी?” आनंद ने पूछा.

“मैं भी यही सोच रहा हूं मिस्टर आनंद, तुम्हारी पत्नी और रोहिणी में बहुत अच्छी मित्रता थी. फिर भी धनंजय ने तुम्हें खबर क्यों नहीं दी, जबकि उस ने कर्नल सक्सेना को तमाम लोगों के फोन नंबर दे कर इस घटना की खबर देने को कहा था. है न आश्चर्य की बात?”

“मैं क्या कह सकता हूं?”

“मैं भी कुछ नहीं कह सकता मिस्टर आनंद. कारण मैं धनंजय से पूछ नहीं सकता. पूछने से लाभ भी नहीं, क्योंकि धनंजय कह देगा, मैं तो गम का मारा था, मुझे यह होश ही कहां था? अच्छा आनंदी, मैं तुम से एक सवाल का उत्तर चाहता हूं. रोहिणी ने कभी अपने पति के बारे में कोई ऐसीवैसी बात या शिकायत की थी तुम से?”

“नहीं, कभी नहीं. वह तो अपने वैवाहिक जीवन में बहुत खुश थी.”

प्रकाश राय का प्रश्न और आनंदी का उत्तर सुन कर आनंद ने जरा घबराते हुए पूछा, “आप धनंजय पर ही तो शक नहीं कर रहे हैं?”

“नहीं, उस पर मैं शक कैसे कर सकता हूं, अच्छा, अब हम चलते हैं. जरूरत पडऩे पर मैं फिर मिलूंगा.”

प्रकाश राय सोच रहे थे कि पूरे सफर के दौरान आनंद और धनंजय ने एकदूसरे से ज्यादा बात क्यों नहीं की? यहां भी वे एकदूसरे से क्यों नहीं मिलते थे?

मंगलवार, 5 मई. रोहिणी कांड की गुत्थी ज्यों की त्यों बरकरार थी. प्रकाश राय को कई लोगों पर शक था, पर प्रमाण नही थे. सिर्फ शक के आधार पर किसी को पकड़ कर बंद करना प्रकाश राय का तरीका नहीं था. दोपहर बाद प्रकाश राय के औफिस पहुंचने से पहले ही उन की मेज पर फिंगरप्रिंट्स ब्यूरो की रिपोर्ट रखी थी. रिपोर्ट देखतेदेखते उन के मुंह से निकला, “अरे यह…तो.” घंटी बजा कर इन्होंने राजेंद्र सिंह को बुलाया.

“राजेंद्र सिंह, रोहिणी मर्डर केस का अपराधी नजर आ गया है.” कह कर प्रकाश राय ने उन्हें एक नहीं, अनेक हिदायतें दीं.

राजेंद्र सिंह और उन के स्टाफ को महत्पूर्ण जिम्मेदारी सौंप कर योजनाबद्ध तरीके से समझा कर बोले, “जांच को अब नया मोड़ मिल गया है. भाग्य ने साथ दिया तो 2-3 दिनों में ही अपराधी पूरे सबूत सहित अपने शिकंजे में होगा. समझ लो, इस केस की गुत्थी सुलझ गई है. बाकी काम तुम देखो. मैं अब जरा अपने दूसरे केस देखता हूं.”

उत्साहित हो कर राजेंद्र सिंह निकल पड़े उन के आदेशों का पालन करने. 7 मई की सुबह 9 बजे दयाशंकर अपने स्टाफ के साथ औफिस पहुंचे. पिछली रात प्रकाश राय के निर्देश के अनुसार राजेंद्र सिंह पूरी तरह मुस्तैद थे. थोड़ी देर बाद प्रकाश राय के गाड़ी में बैठते ही गाड़ी सेक्टर-15 की ओर चल पड़ी.

करीब साढ़े 9 बजे प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह अलकनंदा स्थित धनंजय के घर पहुंचे. प्रकाश राय को देख कर धनंजय जरा अचरज में पड़ गया. उस के पिता भी हौल में ही बैठे थे. उस की मां और बहन अंदर कुछ काम में व्यस्त थीं. ज्यादा समय गंवाए बगैर प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, “विश्वास, तुम जरा मेरे साथ बाहर चलो. रोहिणी के केस में हमें कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं. हम तुम्हें दूर से ही एक व्यक्ति को दिखाएंगे. तुम ने अगर उसे पहचान लिया तो समझो इस हत्या में उस का जरूर हाथ है. उस के पास से तुम्हारी संपत्ति भी मिल जाएगी. अब उसे पहचानने के लिए हमे तुम्हारी मदद की जरूरत है.”

“ठीक है, आप बैठिए. मैं 10 मिनट में तैयार हो कर आता हूं.” कह कर धनंजय अंदर चला गया और प्रकाश राय उस के पिता के साथ गप्पें मारने लगे. गप्पें मारतेमारते उन्होंने बड़े ही सहज ढंग से पास रखी टेलिफोन डायरी उठाई, उस के कुछ पन्ने पलटे और यथास्थान रख दिया. फिर वह टहलते हुए शो केस के पास गए. उस में रखा चाबी का गुच्छा उन्हें दिखाई दिया. शो केस में रखी कुछ चीजों को देख कर वह फिर सोफे पर आ बैठे.

15-20 मिनट में धनंजय तैयार हो गया. प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह के साथ निकलने से पहले उस ने शो केस में से सिगरेट का पैकेट, लाइटर, पर्स, चाबी और रूमाल लिया. अब प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह धनंजय को साथ ले कर निरुला होटल की ओर चल पड़े. लगभग 10 मिनट बाद उन की गाड़ी होटल के निकट स्थित बैंक के सामने जा कर रुकी.

गाड़ी रुकते ही प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, “विश्वास, हम ने तुम्हारी सोसायटी के वाचमैन नारायण को गिरफ्तार कर लिया है. इस समय वह हमारे कब्जे में है. इस बैंक के सेफ डिपौजिट लौकर डिपार्टमेंट में 2 चौकीदार काम करते हैं. इन में से हमें एक पर शक है. मुझे विश्वास है कि उस ने नारायण के साथ मिल कर चोरी और हत्या की है. हम उसे दरवाजे पर ला कर तुम्हें दिखाएंगे. देखना है कि तुम उसे पहचानते हो या नहीं?”

धनंजय को ले कर प्रकाश राय बैंक में दखिल हुए और बैंक के लौकर डिपार्टमेंट में पहुंचे. वहां मौजूद 2-4 लोगों में से प्रकाश राय ने एक व्यक्ति से पूछा, “आप…?”

“मैं बैंक मैनेजर हूं.”

“आप इन्हें जानते हैं?”

“हां, यह धनंजय विश्वास हैं.”

“इन का खाता है आप के बैंक में?”

“खाता तो नहीं है, लेकिन कल दोपहर 3 बजे इन्होंने लौकर नंबर 106 किराए पर लिया है.”

“आप जरा वह लौकर खोलने का कष्ट करेंगे?”

बैंक मैनेजर सुरेशचंद्र वर्मा ने लौकर के छेद में चाबी डाल कर 2 बार घुमाई, पर लौकर एक चाबी से खुलने वाला नहीं था, क्योंकि दूसरी चाबी धनंजय के पास थी. प्रकाश राय धनंजय से बोले, “मिस्टर विश्वास, तुम्हारी जेब में चाबी का जो गुच्छा है, उस में लौकर नंबर 106 की दूसरी चाबी है. उस से इस लौकर को खोलो.”

धनंजय घबरा गया. उस ने चाबी निकाल कर कांपते हाथों से लौकर खोल दिया. प्रकाश राय ने लौकर में झांक कर देखा और फिर धनंजय से पूछा, “यह क्या है मिस्टर विश्वास?”

धनंजय ने गरदन झुका ली. प्रकाश राय ने लौकर से कपड़े की एक थैली बाहर निकाली. उस थैली में धनंजय के फ्लैट से चोरी हुए सारे जेवरात और 5 सौ रुपए के नोटों का एक बंडल भी था, जिस पर रोहिणी के पंजाब नेशनल बैंक की मोहर लगी थी. इस के अलावा एक और चीज थी उस में, एक रामपुरी छुरा.

“मिस्टर विश्वास, यह सब क्या है?” प्रकाश राय ने दांत भींच कर पूछा.

एक शब्द कहे बिना धनंजय ने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक कर रोते हुए कहा, “साहब, मैं अपना गुनाह कबूल करता हूं. रोहिणी का खून मैं ने ही किया था.”

दरअसल, हुआ यह था कि मंगलवार को औफिस में आते ही प्रकाश राय को जो फिंगरप्रिंट्स रिपोर्ट मिली थी, उस के अनुसार फ्लैट में केवल रोहिणी और धनंजय के ही फिंगरप्रिंट्स मिले थे. किसी तीसरे व्यक्ति की अंगुलियों के निशान थे ही नहीं. इसलिए प्रकाश राय की नजरें धनंजय पर जम गई थीं.

विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 4

प्रकाश राय स्वयं राजेंद्र सिंह को ले कर चल पड़े. रास्ते में प्रकाश राय ने राजेंद्र सिंह को आनंदी के बारे में जो कुछ सुना था, बता दिया. रोहिणी के बैंक के मैनेजर रोहित बिष्ट से मिल कर प्रकाश राय ने अपना परिचय दिया और वहां आने का कारण बताते हुए कहा, “जो कुछ हुआ, बहुत बुरा हुआ. हमें तो दुख इस बात का है कि हत्यारे का हमें कोई सुराग तक नहीं मिल रहा है.”

“हम तो आसमान से गिर पड़े. सवेरे 10 बजे आते ही फोन पर रोहिणी की हत्या की खबर मिली.”

“तुम्हें फोन किस ने किया था?”

“सक्सेना नाम के किसी व्यक्ति ने. पर एकाएक हमें विश्वास ही नहीं हुआ. हम ने मिसेज विश्वास के घर फोन किया. तब पता चला कि रोहिणी वाकई अब इस दुनिया में नहीं रही. हम कुछ लोग अलकनंदा गए थे. मैं दाह संस्कार में जा नहीं पाया. हां, मेरे कुछ साथी जरूर गए थे.”

“आप जरा बुलाएंगे उन्हें?”

कुछ क्षणों बाद ही 5-6 बैंक कर्मचारी मैनेजर के कमरे में आ गए. उन्होंने प्रकाश राय से उन का परिचय कराया. बातचीत के दौरान प्रकाश राय ने वहां उपस्थित हेड कैशियर सोलंकी से पूछा, “शनिवार को मिसेज विश्वास ने कुछ रुपए निकाले थे क्या?”

“हां, 40 हजार…”

“खाता किस के नाम था?”

“मिस्टर और मिमेज विश्वास का जौइंट एकाउंट है.”

“आप ने मिसेज विश्वास को जो रकम दी थी, वह किस रूप में थी?”

“5 सौ के नए कोरे नोटों के रूप में दिया था. उन नोटों के नंबर भी हैं मेरे पास.”

प्रकाश राय ने राजेंद्र सिंह से नोटों के नंबर लेने और उस चेक को कब्जे में लेने को कहा.

कुछ क्षण रुक कर उन्होंने अपना अंदाज बदलते हुए कहा, “अरे क्या खूब याद आया बिष्ïट साहब, विश्वास के यहां हमें बारबार ‘बैंक, आनंदी, कल फोन किया था’- ऐसा सुनाई पड़ रहा था. आप के यहां कोई आनंदी काम..?”

“नहीं,” वहां मौजूद एक अधिकारी ने कहा, “वह आनंदी गौड़ है. रोहिणी की फास्टफ्रैंड. वह यहां काम नहीं करती.”

“अच्छा, यह बात है. बारबार आनंदी का नाम सुनने पर मुझे लगा कि वह यहीं काम करती होगी. आप को मालूम है, यह आनंदी कहां रहती है?”

“निश्चित रूप से तो मालूम नहीं, पर वह दिल्ली में कहीं रहती है. 2-3 बार वह बैंक में भी आई थी. शनिवार को उस का फोन भी आया था. शायद एक, डेढ़ महीना पहले ही उन की जानपहचान हुई थी. मिसेज विश्वास ने ही मुझे बताया था.”

“एक विवाह में शामिल होने के लिए अप्रैल महीने के अंत में गई थीं और 3 मई को ड्यूटी पर आ गई थीं.”

“यहां किसी ने मिसेज आनंदी को रोहिणी की हत्या के बारे में बताया तो नहीं है. अगर नहीं तो अब कोई नहीं बताएगा. क्या किसी के पास उस का नंबर है. अगर नहीं है तो रोहिणी के काल डिटेल्स से तलाशना पड़ेगा.”

मैनेजर ने बैंक की औपरेटर से इंटरकौम पर बात की तो प्रकाश राय को आनंदी का फोन नंबर मिल गया. इस के बाद उन्होंने उस नंबर से आनंदी के घर का पता मालूम कर लिया.

“पता कहां का है?” मैनेजर से पूछे बिना नहीं रहा गया.

“साउथ एक्स का. अच्छा मिसेज गौड़ ने किसलिए फोन किया था?”

“औपरेटर ने बताया है कि किसी वजह से मोबाइल पर फोन नहीं मिला तो मिसेज गौड़ ने लैंडलाइन पर फोन किया था. वह रविवार को मिसेज विश्वास को शौपिंग के लिए साथ ले जाना चाहती थीं. पर रोहिणी ने कहा था कि उस के यहां कुछ मेहमान खाना खाने आ रहे हैं, इसलिए वह नहीं आ सकेगी.”

इतने में ही राजेंद्र सिंह और मिश्रा वहां आ पहुंचे. राजेंद्र सिंह अपना काम पूरा कर चुके थे. प्रकाश राय ने रोहिणी का बियरर चेक ले कर उसे देखा और बड़े ही सहज ढंग से पूछा, “मिस्टर बिष्ट, आप के बैंक में सेफ डिपौजिट वाल्ट की सुविधा है?”

“हां, है. आप को कुछ…?”

“नहीं, नहीं, मैं ने यों ही पूछा. अब हम चलते हैं.”

प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह बैंक से निकल कर साउथ एक्स में जहां आनंदी रहती थी, वहां पहुंचे. प्रकाश राय ने ऊपर पहुंच कर एक फ्लैट के दरवाजे की घंटी बजाई. फ्लैट के दरवाजे पर लिखा ‘आनंद गौड़’ नाम वह पहले ही पढ़ चुके थे. कुछ क्षणों बाद दरवाजा खुला. प्रकाश राय को समझते देर नहीं लगी कि उन के सामने आनंदी और उस के पति आनंद गौड़ खड़े हैं और दोनों बाहर जाने की तैयारी में हैं.

मिस्टर गौड़ ने आश्चर्य से प्रकाश राय को देखा. प्रकाश राय ने शांत भाव से कहा, “मुझे आनंद गौड़ से मिलना है.”

आनंद ने आनंदी को और आनंदी ने आनंद को देखा. 2 अपरिचितों को देख कर वे हड़बड़ा गए थे.

“मैं ही आनंद गौड़ हूं, आप…?”

“हम दोनों नोएडा पुलिस से हैं. एक जरूरी काम से आप के पास आए हैं. घबराने की कोई बात नहीं है. मुझे आप से थोड़ी जानकारी चाहिए.”

“आइए, अंदर आइए.”

प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह ने घर में प्रवेश किया. ड्राइंगरूम में बैठते हुए प्रकाश राय बोले, “मिस्टर आनंद, जिन लोगों का पुलिस से कभी सामना नहीं होता, उन का आप की तरह घबरा जाना स्वाभाविक है. मैं आप से एक बार फिर कहता हूं, आप घबराइए मत. बस, आप मेरी मदद कीजिए.”

बातचीत के दौरान आनंद से प्रकाश राय को मालूम हुआ कि आनंद के परिवार में मातापिता, भाईबहन और पत्नी, सभी थे. 2 साल पहले आनंद और आनंदी का विवाह हुआ था. करोलबाग में आनंद के पिता की करोलबाग शौङ्क्षपग सेंटर नामक एक शानदार दुकान थी . टीवी, डीवीडी प्लेयर, फ्रिज, पंखा आदि कीमती सामानों की यह दुकान काफी प्रसिद्ध थी. मंगलवार को दुकान बंद रहती थी. इसलिए मिस्टर आनंद घर पर मिल गए थे. पतिपत्नी अपने किसी रिश्तेदार के यहां पूजा में जा रहे थे कि वे वहां पहुंच गए थे.

आनंद ने अपने निजी जीवन के बारे में सब कुछ बता दिया तो आनंदी ने प्रकाश राय से कहा, “अब तो बताइए कि आप हमारे घर कौन सी जानकारी हासिल करने आए हैं?”

“मिसेज आनंदी, आप यह बताइए कि आप मिसेज रोहिणी विश्वास को जानती हैं?” प्रकाश राय के मुंह से रोहिणी का नाम सुन कर आनंद और आनंदी भौचक्के रह गए.

“हां, वह मेरी सहेली है. क्यों, क्या हुआ उसे?”

“आप की और रोहिणी की मुलाकात कब और कहां हुई थी?”

“हमारी जानपहचान हुए लगभग एक महीना हुआ होगा. अप्रैल के अंतिम सप्ताह में हम दोनों घूमने आगरा गए थे. 3 मई को आगरा से दिल्ली आते समय शताब्दी एक्सप्रेस में हमारी मुलाकात हुई थी.”

“लेकिन जानपहचान कैसे हुई?”

“हम आगरा स्टेशन से गाड़ी में बैठे थे. रोहिणी और उस के पति भी वहीं से गाड़ी में बैठे थे. उन की सीट हमारे सामने थी. बांतचीत के दौरान हमारी जानपहचान हुई. हम दोनों के पति गाड़ी चलते ही सो गए थे. हम एकदूसरे से बातें करने लगी थीं. फिर हम बचपन की सहेलियों की तरह घुलमिल गईं.”

“सारे रास्ते तुम दोनों के पति सोते ही रहे?”

“अरे नहीं, दोनों जाग गए थे. फिर हम ने एकदूसरे का परिचय कराया. रोहिणी को हजरत निजामुद्ïदीन उतरना था, हमें नई दिल्ली. उतरने से पहले हम दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने घर का पता और फोन तथा मोबाइल नंबर दे दिया था.”

“तुम अपने पति के साथ रोहिणी के घर जाती थी?”

“नहीं.”

“रोहिणी के पति तुम्हारे घर आया करते थे?”

“नहीं.”

“इस का कारण?” प्रकाश राय ने आनंद की ओर देखते हुए पूछा.

“कारण…?” आनंद गड़बड़ा गया, “एक तो दुकान के कारण मुझे समय नहीं मिलता था, दूसरे न जाने क्यों मुझे मिस्टर विश्वास से मिलने की इच्छा नहीं होती थी.”

“रोहिणी से आखिरी बार तुम कब मिली थीं?” प्रकाश राय ने आनंदी से पूछा.

“पिछले हफ्ते मैं रोहिणी के बैंक गई थी.”

“अच्छा रोहिणी को तुम ने आखिरी बार फोन कब किया था और क्यों?”

“पिछले शनिवार को. लाजपतनगर में शौपिंग के लिए मैं ने उसे बुलाया था. पर उस ने मुझे बताया कि रविवार को उस के यहां कुछ लोग खाने पर आने वाले थे.”

अब तक आनंद दंपति ने जो कुछ बताया था, वह सब सही था. प्रकाश राय थोड़ा सा घबराए हुए थे. एक प्रश्न का उत्तर उन्हें नहीं मिल रहा था.

ट्रंक की चोरी : ईमानदार चोर ने किया साजिश का पर्दाफाश – भाग 4

निक ने फोन रखा और वहां से निकलने के लिए मुड़ा तभी अचानक किचन की लाइट जल गई. दरवाजे पर विक्टर हाथ में रिवौल्वर लिए खड़ा था.

वह गुस्से में बोला, ‘‘तुम ने बेवकूफी की मिस्टर निक, मैं ने कहा था 5 हजार डालर ले कर सब कुछ भूल जाओ, पर तुम्हारी समझ में नहीं आया. तुम अपने आप को मुसीबत में डालना चाहते हो.’’

‘‘पहली बात तो यह है कि मैं कभी कातिलों से समझौता नहीं करता, तुम ने 3 बेगुनाह लोगों को चोरी और कत्ल के इलजाम में गिरफ्तार करवा दिया, ये बात मुझे बिलकुल पसंद नहीं.’’ निक ने कहा.

‘‘कई बातें लोगों को पसंद नहीं आतीं पर बरदाश्त करनी पड़ती हैं. यह बताओ कि तुम फोन पर किस से बातें कर रहे थे?’’

यह सुन निक को तसल्ली हुई कि उस ने उसे पुलिस से बातें करते नहीं सुना है. निक ने उसे बातों में उलझाते हुए कहा, ‘‘मैं न्यूयार्क में अपनी दोस्त ग्लोरिया से बात कर रहा था,’’ वह फौरन टापिक बदल कर बोला, ‘‘तुम्हें यह जान कर खुशी होगी कि आज सुबह मैं तुम्हारी सौतेली बहन ऐना से मिला था. उस का कहना है कि उस ने तुम्हारी डायरी नहीं पढ़ी थी. बल्कि तुम्हारे पिता ने उसे जेवरात के बारे में बताया था और वसीयत के अनुसार वह तीसरे हिस्से की हकदार है. इस के अलावा मैं न्यूपालिट की पुलिस के चीफ से भी मिला था.

‘‘मैं जब उस से मिला, तो उस ने बताया कि आलविन नाम के एक नामी बदमाश से तुम्हारे गहरे संबंध हैं. जिस रोज मैं यहां ट्रंक चोरी करने आया था तुम ने उसे और उस के साथियों को यहां बुलाया था और खुद न्यूयार्क चले गए थे. ऐना को यहां बुलाना तुम्हारी ही साजिश का एक प्लान था. उस दिन ऊपरी मंजिल पर मुझे भी कदमों की आहट सुनाई दी थी. मैं ने उसे अपना भ्रम समझा था. लेकिन मुझे अब पता चला है कि वह भ्रम नहीं था. उस ने ही चौकीदार की हत्या की होगी. जरूर ही आलविन ऊपरी मंजिल पर था.’’

निक के मुंह से यह सचाई सुन कर विक्टर गुस्से से बोला, ‘‘बके जाओ जो तुम्हारे दिल में है. आखिरी मौका तुम्हें भी मिलना चाहिए. निक, तुम इन सब बातों को साबित नहीं कर सकते.’’

‘‘हां, यह तो तुम ठीक कहते हो. सुबूत नहीं है?’’ निक ने चालाकी से हां में हां मिलाई. उस के कान पुलिस के सायरन पर लगे हुए थे.

‘‘अब मैं चाहता हूं कि तुम्हारा मुंह हमेशा के लिए ही बंद कर दिया जाए. तुम्हें किसी मुनासिब जगह पर गोली मारना चाहता हूं. इसलिए अपने हाथ ऊपर कर के यहां से बाहर चलो. तुम्हारे मरने के बाद जब पुलिस यहां आएगी तो कह दूंगा कि तुम चोरी के मकसद से यहां घुसे थे और अपनी हिफाजत में गोली चला दी.’’

निक ने हाथ ऊपर उठाए और उस के आगे चल पड़ा. उसी वक्त पुलिस साइरन की आवाज गूंजी. विक्टर चौंक उठा. फिर भारी कदमों की गूंज अपार्टमेंट में होने लगी. 2 पुलिस अफसर तेज कदमों से किचन की तरफ आ गए. इस से पहले कि पुलिस वाले कुछ कहते विक्टर बोल पड़ा, ‘‘यह आदमी चोरी करने की नीयत से मेरे घर में घुसा था. इसे जल्दी पकड़ लीजिए.’’

‘‘रिचर्ड निक्सन किस का नाम है?’’ एक पुलिस अफसर ने पूछा.

‘‘सर, ये मेरा नाम है. आप को फोन मैं ने ही किया था.’’ निक जल्दी से बोला.

‘‘फोन किया था?’’ सुन कर विक्टर एलियानोफ के चेहरे पर घबराहट आ गई.

‘‘रिवौल्वर नीचे करो,’’ पुलिस अफसर ने डपट कर विक्टर से कहा. फिर निक से बोला, ‘‘तुम ने फोन पर जिन जेवरातों का जिक्र किया था वह कहां हैं?’’

निक ने पीछे मुड़ कर फ्रिज की तरफ इशारा किया, ‘‘इस पुराने फ्रिज में हैं.’’

उसी दौरान फुरती से विक्टर ने पुलिस वालों पर रिवौल्वर तानते हुए कहा, ‘‘खबरदार, कोई भी किचन में कदम न रखे.’’

‘‘रिवौल्वर फेंक दो.’’ एक अफसर ने हुक्म दिया.

‘‘मैं कहता हूं कि मेरे घर से बाहर निकल जाओ तुम लोग बिना सर्च वारंट के किसी चीज को हाथ नहीं लगा सकते.’’ थोड़ा पीछे हट कर उस ने तीनों को रिवौल्वर से कवर कर लिया.

‘‘रिवौल्वर नीचे फेंक दो.’’ दूसरा अफसर गरजा. उस के साथ ही एक फायर हुआ और विक्टर का रिवौल्वर हाथ से छूट कर नीचे गिर गया.

पुलिस अफसर ने उस के हाथ पर गोली चलाई थी. पहले अफसर ने फुरती से रिवौल्वर उठा लिया और रूमाल निकाल कर विक्टर एलियानोफ के हाथ पर बांध दिया. विक्टर को हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने जब फ्रिज खोल कर देखा तो उस में रखे जेवरात देख कर वह हैरान रह गए. जेवरात बरामद कर के विक्टर को कत्ल और धोखा देने के इलजाम में गिरफ्तार कर लिया. निक ने अपना बयान नोट कराया और न्यूयार्क के लिए निकल गया.

पुलिस ने विक्टर से जब पूछताछ की तो उस ने अपनी सारी साजिश पुलिस के सामने उगल दी.

इस के बाद पुलिस को पुष्टि हो गई कि ऐना और उस के साथी बेकुसूर हैं. उन के बेकुसूर होने की रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी. जिस के बाद उन्हें रिहा कर दिया. ऐना ने निक को धन्यवाद दिया और वायदा किया कि जायदाद मिलते ही सब से पहले उस के 15 हजार डालर देगी.

उधार का चिराग – भाग 4

अगले दिन मैं औफिस जाने के बजाय कोर्ट की ओर चल पड़ा. औफिस तो वैसे भी नहीं जा सकता था. मैं रिक्शे के इंतजार में खड़ा था कि अचानक 2 आदमी आ कर मेरे दाएंबाएं खड़े हो गए. एक ने तीखे लहजे में कहा, ‘‘मिस्टर सामने जो गाड़ी खड़ी है, चुपचाप चल कर उस में बैठ जाओ.’’

‘‘क्यों?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सवाल करने की जरूरत नहीं है. जो कह रहा हूं, वही करो, वरना गोली मार दूंगा. चलो मेरे साथ, 2-4 बातें कर के छोड़ देंगे.’’ उस ने कहा.

मैं समझ गया कि कहानी क्या है? वे अजहर के भेजे गुंडे थे. वह एक दौलतमंद आदमी था. उस के पास पैसा भी था और ताकत भी. मैं बेचारा गरीब अकेला उस का कैसे सामना कर सकता था. लेकिन मुझे यह उम्मीद नहीं थी. वे लोग किराए के कातिल थे, मुझे मारने के लिए कहीं ले जा रहे थे. इन्हें न मुझ में कोई दिलचस्पी थी, न अजहर में. इन्हें इन के पैसे चाहिए थे.

रास्ते में मै ने उन से बात करनी चाही तो उन्होंने मेरी बातों का कोई जवाब नहीं दिया. गाड़ी काफी तेज चल रही थी. मैं काफी डरा हुआ था. इस के बावजूद दिमाग में एक बात थी कि कुछ न कुछ कर गुजरना है. एक सुनसान जगह पर गाड़ी रोक कर उन्होंने मुझ से उतरने को कहा. वे कुल 3 आदमी थे. एक गाड़ी चला रहा था. 2 मेरे अगलबगल बैठे थे. दोनों के पास हथियार थे. मैं गाड़ी से उतरा. मैं पूरी तरह सजग था. मुझे कुछ तो करना ही था.

वे कुछ समझ पाते, मैं ने दोनों में से एक को जोर से धक्का दिया. वह एकदम से गाड़ी पर गिर पड़ा. बस मैं बेतहाशा भागा. वे ‘रुको… रुको…’ चिल्लाते रहे, पर मैं क्यों रुकता. पागलों की तरह भागता रहा. तभी गोली चली, जो मेरे सिर के ऊपर से गुजर गई.

अचानक एक करिश्मा सा हुआ. उस सुनसान जगह पर न जाने कहां से पुलिस की गाड़ी आ गई. मैं गाड़ी के पास जा कर निढाल सा गिर पड़ा. गाड़ी से 2 पुलिस वाले उतरे और मुझे सहारा दे कर खड़ा किया. मेरी टांगें कांप रही थीं, सांस फूल रही थी. उन्होंने मुझे गाड़ी में बैठाया और पानी पिलाया. पानी पी कर मेरी हालत कुछ ठीक हुई तो उन्होंने पूछा, ‘‘अब बताओ, तुम्हारे साथ क्या हुआ?’’

‘‘जनाब, मैं अपने औफिस जा रहा था तो अचानक एक गाड़ी मेरे पास आ कर रुकी. मुझे जबरदस्ती गाड़ी में बिठा कर यहां ले आया गया. उन के पास हथियार थे. वे मुझे मारना चाहते थे, लेकिन मैं उन्हें धोखा दे कर भाग निकला. आप की गाड़ी देख कर वे भाग गए.’’

‘‘हां, एक गाड़ी तो तेजी से गई थी, लेकिन हमारा ध्यान तुम्हारे ऊपर था. कौन थे वे लोग?’’ सिपाहियों ने पूछा.

‘‘मैं नहीं जानता वे लोग कौन थे?’’

‘‘बिना किसी दुश्मनी के उठा लाए?’’

मेरा मन हुआ कि उन्हें अजहर अली की पूरी कहानी सुना दूं, लेकिन यह सोच कर चुप रह गया कि मेरे पास इस का कोई सुबूत नहीं था. वह एक अमीर और ताकत वाला आदमी था. मैं उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था.

‘‘जी जनाब, बिना किसी वजह के उठा लाए थे.’’

‘‘तुम बहुत अमीर आदमी हो क्या?’’

‘‘नहीं जी, मैं एक मामूली आदमी हूं. एक औफिस में नौकरी करता हूं.’’ मैं ने धीरे से कहा.

‘‘तब वे तुम्हें क्यों उठा लाए?’’

‘‘छोडि़ए इस बात को.’’ दूसरे पुलिस वाले ने कहा, ‘‘आजकल इस तरह की न जाने कितनी घटनाएं घटती रहती हैं. गलतफहमी भी हो सकती है. यह तो अब रोज का चक्कर हो गया है.’’

‘‘क्या तुम उन लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराना चाहते हो?’’ पुलिस वाले ने पूछा.

‘‘जनाब किस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराऊं? मैं तो किसी को पहचानता भी नहीं. रिपोर्ट किस के नाम लिखवाऊं?’’ मैं ने कहा.

‘‘तुम ठीक ही कहते हो. चलो तुम्हें तुम्हारे औफिस छोड़ दूं.’’ उस ने कहा.

मैं अपनी मौत के पास कैसे जा सकता था. इस हमले की नाकामी से अजहर अली गुस्से में होगा. वह दोबारा कोशिश करेगा. उस के पास पैसे हैं. उसे किराए के लोगों की क्या कमी है. संबंध भी ऊंचे लोगों से हैं. मैं एक गरीब, बेहैसियत आदमी उस के सामने कहां टिक सकता था. मैं अपने फ्लैट के करीब उतर गया. अब सवाल जिंदगी बचाने का था. मेरी समझ में यही आया कि मैं यह घर खाली कर के कहीं भीड़ में गुम हो जाऊं.

मैं ने वही किया. मैं एक बुजदिल, कमजोर इंसान था, इसलिए इस के अलावा और कुछ नहीं कर सका. इस के बाद अजहर भी शांत हो गया. किसी ने मुझ से मिलने की कोशिश नहीं की. कोई फोन भी नहीं आया.

बरसों गुजर गए. इस बीच मैं नहीं जान पाया कि अजहर और नाजनीन के क्या हाल थे. पिछले दिनों बस इतना पता चला कि अजहर बहुत बीमार है. अब उस की कंपनी उस का बेटा संभाल रहा है. वह बेटा कौन हो सकता है, शायद यह बताने की जरूरत नहीं है.

बेरुखी : बनी उम्र भर की सजा – भाग 4

फिर उस के कदमों की और मोटरसाइकिल स्टार्ट होने की आवाज आई. मैं खुद को शिकारियों के घेरे में घिरी हुई हिरनी महसूस कर रही थी. यह बात अच्छी तरह मेरी समझ में आ गई थी कि वह अब तक मुझे बेवकूफ बना रहा था. वह मुनासिब मौके की तलाश में था, जो बेवकूफी में मैं ने उसे बख्श दिया था.

जिंदगी में पहली बार मुझे अपनी किसी तमन्ना पर पछतावा महसूस हुआ था. मेरा दिल चाह रहा था कि जमीन फटे और मैं उस में समा जाऊं या मौत का फरिश्ता मुझे आ दबोचे, ताकि आने वाले हालात का सामना न करना पड़े. मगर दोनों बातें मुमकिन नहीं थीं.

अपनी इज्जत खतरे में देख कर मेरे अंदर की औरत जाग उठी. मैं ने फैसला कर लिया कि अपनी इज्जत पर आंच नहीं आने दूंगी, चाहे मुझे अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े. उस समय मुझे खुदा की याद आई. मैं जानती थी कि उस के सिवा अब मुझे कोई नहीं बचा सकता था. मैं ने दिल की गहराइयों से गिड़गिड़ा कर अपनी हिफाजत की दुआ मांगी और उस कैद से रिहाई की सोचने लगी.

बाथरूम खासा बड़ा था. उस में बाथटब भी था. एक तरफ वाशबेसिन था, जिस में आगे शीशा लगा हुआ था. उस के बराबर में एक रैक था, जिस पर शैम्पू और साबुन आदि रखे थे, मगर शेविंग का सामान नहीं था, वरना मैं ब्लेड से शायद अपना गला काट कर खुदकुशी कर लेती. इस बात का मुझे कैद करने वालों को भी अंदाजा था. इसलिए उन्होंने बाथरूम से हर वह चीज हटा दी थी, जिसे मैं रिहाई या खुदकुशी के लिए इस्तेमाल कर सकूं. रैक स्टील का बना हुआ था, मगर दीवार में इस तरह जुड़ा हुआ था कि उसे वहां से निकालना मेरे लिए मुमकिन नहीं था.

बाथरूम का दरवाजा ठोस लकड़ी का था और मेरे लिए उसे तोड़ना नामुमकिन था. तब मेरी निगाह रोशनदान पर गई. फर्श से लगभग 8 फुट ऊंचा वह रोशनदान इतना चौड़ा था कि उस में से आसानी से बाहर निकल सकती थी. उस में शीशे के 2 पट थे, जो सिटकिनी के सहारे बंद थे, मगर असल मसला उस तक पहुंचना था.

यह मुमकिन नहीं था कि मैं उछल कर वहां तक पहुंच सकूं. कोई ऐसी चीज मुहैया नहीं थी, जिस के सहारे मैं ऊपर चढ़ सकती. वाशबेसिन और बाथटब, सब अपनी जगह पर फिट थे. फिर भी मैं ने उछल कर रोशनदान की मुंडेर पकड़ने की कोशिश की, मगर कुछ नाकाम कोशिशों के बाद मेरा हौसला जवाब दे गया और मैं फूटफूट कर रोने लगी. मुझे महसूस हुआ कि मैं खुद कुछ भी करूं, उस कैदखाने से नहीं निकल सकूंगी.

कुछ देर रोने के बाद मुझे अक्ल आ गई कि इस तरह आने वाली मुसीबत टल नहीं सकेगी. फिर मुझ पर जैसे जुनून छा गया. मैं ने रैक से साबुन और शैम्पू की बोतल आदि उठा कर फर्श पर दे मारी. रैक को कुछ जोरदार झटके दिए, मगर वह अपनी जगह जमा रहा. फिर बेसिन को झिंझोड़ा, मगर वह भी टस से मस नहीं हुआ.

आखिर मैं ने टब को जोरदार ठोकर मारी और यह देख कर चौंक गई कि वह अपनी जगह से हिल कर रह गया. मैं ने उसे पकड़ कर झटके दिए. तब पता चला कि वह फर्श के साथ महज पाइप की मदद से जुड़ा हुआ था. पाइप शायद ढीला पड़ गया था. उस समय जाने कहां से मुझ में इतनी ताकत आ गई थी कि मैं ने उसे झटके दे कर आखिर फर्श से अलग कर दिया.

सेरामिक्स का बना हुआ वह टब 3 फुट चौड़ा और 5 फुट लंबा था. बनावट में गोलाकार था. मैं उसे उस की जगह से सरकाने लगी. अब मैं टब को लंबाई के रुख से दीवार के साथ लगाती तो खुद टब पर चढ़ना मेरे लिए मुमकिन न रहता और चौड़ाई के रुख से खड़ा करने की हालत में उस के स्लिप हो जाने का खतरा था. बहरहाल मैं ने टब दीवार से लगा कर खड़ा किया. सैंडिल उतारी और ऊपर चढ़ने लगी, मगर पहली ही कोशिश में टब स्लिप हो गया और मेरा घुटना दीवार से जा टकराया.

वक्त रोने का नहीं था. अगर मौके के चंद लमहे मेरे हाथ से निकल जाते, तो दरिंदों से छुटकारा पाना नामुमकिन था. इस बार टब को कम तिरछा कर के दीवार से टिकाया और बड़ी सावधानी से धीरेधीरे कदम जमा कर ऊपर चढने लगी. बड़ी मुश्किल से अपने जख्मी घुटने के कंपन पर काबू पाया. खुदाखुदा कर के मेरा हाथ रोशनदान तक जा पहुंचा और उस की मुंडेर पर हाथ जमा कर मैं ने उस के पट खोले.

मेरी खुशकिस्मती थी कि रोशनदान की दूसरी तरफ खासा चौड़ा छज्जा था. मैं ने बाहर की मुंडेर पर अभी हाथ जमाया ही था कि ऐन उसी लमहे टब फिर स्लिप हो कर एक धमाके से गिरा. मुझे शदीद झटका लगा. एक लम्हे के लिए ऐसा महसूस हुआ, जैसे मेरी बांहें कंधों से उखड़ जाएंगी. मेरी पूरी कोशिश थी कि मुंडेर मेरे हाथ से न छूटने पाए. मुझे नहीं पता कि मैं कैसे रोशनदान से गुजर कर छज्जे तक पहुंची.

छज्जे का हिस्सा कौटेज के अंदर ही था. इसलिए मैं उस पर से होती हुई पिछले हिस्से में आ गई. यह कौटेज से बाहर था. जमीन वहां से 10-11 फुट नीचे थी, मगर मैं ने हिम्मत की. पहले पांव नीचे लटकाए, फिर बाहों के बल पर छज्जे से लटक गई. मैं ने आंख बंद कर के छलांग लगा दी. खुशकिस्मती से और किसी चोट से महफूज रही.

अंधेरा पूरी तरह फैल चुका था और दूर कहींकहीं मकानों की रोशनियां झिलमिला रही थीं. मैं ने उठ कर कपड़े झाड़े. सैंडिल तो अंदर ही रह गई थी, मगर दुपट्टा मेरे पास था, जिसे मैं ने अच्छी तरह अपने गिर्द लपेटा और अंधाधुंध साहिल से कुछ दूर स्थित सड़क की तरफ भागी. मैं जल्दी से जल्दी उस कैदखाने से दूर निकल जाना चाहती थी. सड़क तक आतेआते कितने ही नुकीले कंकड़ों ने मेरे पांव छलनी कर दिए. कितनी ही बार मैं ठोकर खा कर गिरी. मुझे कुछ पता नहीं चला.

                                                                                                                                       क्रमशः

बीवी की आशनाई लायी बर्बादी – भाग 3

रमाकांती ने भले ही पति के शक को झूठा करार दिया था, लेकिन उस के मन में यह बात हमेशा घूमती रहती थी. एक दिन रामचंद्र थोड़ा जल्दी घर आ गया. उसे बच्चे रास्ते में खेलते मिले तो उस ने सोचा कि रमाकांती बाजार गई होगी. उस ने बच्चों से पूछा, ‘‘मम्मी कहीं गई है क्या?’’

‘‘नहीं, घर में हैं.’’ बेटे ने जवाब दिया.

रामचंद्र कमरे पर पहुंचा. उसे यह देख कर ताज्जुब हुआ कि उस के कमरे का दरवाजा अंदर से बंद है. उसने दस्तक दी तो कुछ देर बाद दरवाजा सूरज ने खोला. उस समय वह सिर्फ लुंगी पहने था. अचानक रामचंद्र को देख कर उस की घिग्घी बंध गई. रामंचद्र फुर्ती से कमरे में घुसा तो रमाकांती को जिस हालत में देखा, उस का खून खौल उठा.

रमाकांती बिस्तर पर चादर लपेटे पड़ी थी. रामचंद्र ने आगे बढ़ कर चादर खींची तो उस के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था. रामचंद्र उसे खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए बोला, ‘‘बदजात औरत, मुझे धोखा दे कर तू यह गुल खिला रही है?’’

रंगेहाथों से पकड़े जाने पर रमाकांती और सूरज का चेहरा सफेद पड़ गया. रमाकांती ने फटाफट कपड़े पहने और अपने किए की माफी मांगने लगी, जबकि सूरज मौका देख कर भाग गया. रामचंद्र ने उसे माफ करने के बजाय उस की जम कर पिटाई की. इस के बाद

रमाकांती और सूरज कुछ दिन तो शांत रहे लेकिन जब उन से दूरियां बर्दाश्त नहीं हुई तो वे पहले की ही तरह फिर चोरीछिपे मिलने लगे. अब रामचंद्र को पत्नी पर भरोसा नहीं रह गया था, इसलिए आए दिन दोनों में लड़ाईझगड़ा होने लगा.

रामचंद्र ने चुपचाप अंबाला के बल्लूपुर में दूसरा कमरा किराए पर ले लिया और परिवार के साथ उसी में रहने चला गया. लेकिन रमाकांती ने अपने आशिक सूरज को अपना वह ठिकाना भी बता दिया था, इसलिए सूरज वहां भी उस से मिलने जाने पहुंचने लगा.

रमाकांती पूरी तरह सूरज के रंग में रंग चुकी थी. वह उसी के साथ जिंदगी बिताने के सपने देखने लगी थी. उसे इस की भी फिक्र नहीं थी कि उस के जाने के बाद उस के बच्चों का क्या होगा? वह अपने इस नाजायज संबंध में डूब कर इस कदर अंधी हो चुकी थी कि उस के अलावा उसे कुछ और दिखाई ही नहीं दे रहा था.

वह सूरज के साथ भागने के चक्कर में रहने लगी. उस के व्यवहार और हरकतों से रामचंद्र को उस के मन की बात का पता चल गया, इसलिए उस ने फैक्ट्री जाना बंद कर दिया. वह हर समय रमाकांती को अपनी नजरों के सामने रखने लगा. जब कई दिन बीत गए और रामचंद्र फैक्ट्री नहीं गया तो एक दिन रमाकांती ने कहा, ‘‘तुम फैक्ट्री जाओ, मैं कहीं नहीं जाऊंगी. क्यों मेरी वजह से अपनी रोज की दिहाड़ी को लात मार रहे हो?’’

रामचंद्र किसी भी हाल में फैक्ट्री जाने को तैयार नहीं था. रमाकांती भी कम नहीं थी, इसलिए उस ने किसी तरह रामचंद्र को विश्वास में ले कर फैक्ट्री जाने को राजी कर लिया. रामचंद्र फैक्ट्री चला गया तो रमाकांती ने सूरज को उस के जाने की खबर दे दी.

थोड़ी देर में सूरज किसी की मोटरसाइकिल ले कर रमाकांती के कमरे पर पहुंच गया. रमाकांती अपने सामान का बैग ले कर उस की मोटरसाइकिल पर बैठने लगी तो उस के बच्चे उसे घेर कर शोर मचाने लगे, ‘‘सूरज अंकल, हमारी मम्मी को भगा कर ले जा रहे हैं.’’

बच्चों का शोर सुन कर आसपास के लोग इकट्ठा हो गए. सूरज और रमाकांती को देख कर ही वे सारा माजरा समझ गए. उन्होंने रमाकांती को मोटरसाइकिल से उतार कर कमरे के अंदर भेज दिया और सूरज को भगा दिया. इस के बाद रामचंद्र को इस बात की सूचना दे दी.

कुछ देर में रामचंद्र आ गया. पड़ोसियों ने उसे समझाया कि वह अपनी पत्नी को ले कर यहां से चला जाए अन्यथा किसी दिन बेमौत मारा जाएगा. इस के बाद रामचंद्र ने सारा सामान पैक किया और रमाकांती तथा बच्चों को ले कर रेलवे स्टेशन पर आ गया. वहां से वह ट्रेन से चंडीगढ़ गया, जहां से वह चंडीगढ़लखनऊ सुपरफास्ट ट्रेन से हरदोई आ गया.

22 अगस्त की सुबह 7 बजे वह हरदोई स्टेशन पर उतरा. वहां से उस ने आटो किया और परिवार के साथ बिलग्राम चुंगी पर पहुंचा. वहां उस ने एक कबाड़ी की दुकान से डेढ़ सौ रुपए का बांका खरीदा, जिसे उस ने अपनी पीठ पर बनियान के नीचे छिपा लिया. उस के ऊपर उस ने अपना बैग टांग लिया, जिस से वह किसी को नजर नहीं आया. वहीं से एक दुकान से उस ने मीठी गटियां खरीदी और बस से अपने गांव हैबतपुर आ गया.

मकान का दरवाजा खोल कर सब अंदर पहुंचे. कुछ देर बाद बच्चे बाहर खेलने चले गए तो रमाकांती घर की साफसफाई करने लगी. उस समय लगभग 12 बज रहे थे. रामचंद्र ने रमाकांती को बुलाया और चारपाई पर बगल में बैठा कर गटियां खाने को दीं. इसी के साथ वह उस से हंसहंस कर बातें करने लगा.

रात भर जागने की वजह से रमाकांती को नींद आ गई. वह चारपाई पर लेट कर सो गई. उस के सोते ही रामचंद्र ने पीठ पर छिपा कर रखा बांका आहिस्ता से निकाला और पूरी ताकत से रमाकांती की गर्दन पर वार कर दिया. एक ही वार में उस का सिर धड़ से अलग हो गया.

रमाकांती को मौत के घाट उतार कर रामचंद्र एक हाथ में रमाकांती का सिर और दूसरे हाथ में रक्तरंजित बांका ले कर थाना बिलग्राम की ओर पैदल ही चल पड़ा. उस के घर से निकलते वक्त गांव वालों की नजर उस पर पड़ी तो पूरे गांव में हड़कंप मच गया. गांव वालों ने यह बात चौकीदार कमलेश को बताई तो उस ने इस की सूचना फोन द्वारा थानाकोतवाली बिलग्राम को दे दी.

रामचंद्र 2 किलोमीटर दूर पुंसेड़ा गांव तक ही पहुंचा था कि सीओ बिलग्राम विजय त्रिपाठी वहां पहुंच गए. उन्होंने रामचंद्र से सिर और बांका देने को कहा तो उस ने कहा कि वह दोनों चीजें सिर्फ कोतवाल को ही देगा.

कुछ देर में इंसपेक्टर श्याम बहादुर सिंह भी वहां पहुंच गए. रामचंद्र ने रमाकांती का सिर और हत्या में प्रयुक्त रक्तरंजित बांका उन के हवाले कर दिया. इस के बाद रामचंद्र को हिरासत में ले लिया गया.  कोतवाली ला कर रामचंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने रमाकांती की हत्या की पूरी कहानी सुना दी. इस के बाद चौकीदार कमलेश की ओर से रामचंद्र के खिलाफ उस की पत्नी की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

23 अगस्त को रामचंद्र को सीजेएम की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. 30 अगस्त को रामचंद्र ने दोपहर 12 बजे के करीब जिला कारागार की अपनी बैरक के बाहर अंगौछे से फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली.

इस तरह एक औरत की चरित्रहीनता की वजह से एक भरापूरा परिवार बरबाद हो गया. उसी की वजह से बच्चे अनाथों की तरह जिंदगी बिताने को मजबूर हैं.

विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 3

निरीक्षण का काम लगभग पूरा हो गया था. प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, “धनंजय, हमारे एक्सपर्ट को अंगुलियों के कुछ निशान मिले हैं. वे निशान तुम्हारे और तुम्हारी पत्नी के भी हो सकते हैं. तुम दोनों के निशान छोड़ कर अन्य निशानों की जांच एक्सपर्ट को करनी पड़ेगी. तुम्हारी अंगुलियों के निशान हमें अभी नहीं चाहिए. हमारे सिपाही के आने पर तुम अपनी अंगुलियों के निशान दे देना. रोहिणी के निशान हम पोस्टमार्टम के समय ले लेंगे.”

अधिकारियों ने आपस में सलाहमशविरा किया और अन्य सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद एसएसपी और एसपी तो चले गए, लेकिन सीओ और इंसपेक्टर प्रकाश राय सहयोगियों के साथ कोतवाली आ गए. सभी चाय पीतेपीते रोहिणी मर्डर केस के बारे में विचारविमर्श करने लगे.

प्रकाश राय अपने ही विचारों में खोए थे. ठीक से वह कुछ कह नहीं सकते थे, इसलिए वह चुपचाप सभी की बातें सुन रहे थे. बातचीत के दौरान सहज ही सबइंसपेक्टर दयाशंकर बोले, “एक साल पहले ऐसी ही एक घटना दिल्ली में घटी थी. पर अपराधी को उसी समय पकड़ लिया गया था.”

“जी,” एएसआई राजेंद्र सिंह ने कहा, “उस घटना में एक इमारत में अपराधी घुसा था. डुप्लीकेट चाबी से वह फ्लैट का दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा था कि पड़ोसी ने उसे देख लिया और वह पकड़ा गया. वह बंगलादेश का रहने वाला था. रफीक नाम था उस का.”

“घर में कौनकौन था?”

“घर की मालकिन और उस के 2 बच्चे.”

“और उस का पति कहां गया था?”

“वह सुबह सब्जी लाने मंडी गया था.”

“सब्जी लाने?” प्रकाश राय आश्चर्य से थोड़ा तेज आवाज में बोले, “और वह रविवार का दिन था क्या?”

“जी सर, रविवार ही था.”

“दयाशंकर, वह आदमी अंदर है या बाहर, पता करो.”

दिल्ली पुलिस से पता चला कि वह बाहर है. उसे 4 महीने की सजा हुई थी. इस समय वह नोएडा में ही रह रहा है और सेक्टर-62 की किसी फैक्ट्री में नौकरी करता है.

प्रकाश राय उत्साहित हो कर बोले, “अरे उसे पकड़ कर लाओ यहां, इस केस में उस का हाथ हो सकता है.”

फिर दयाशंकर की ओर देख कर बोले, “मुझे पूरा विश्वास है कि इस केस में किसी न किसी ने अपराधी को इनफौर्मेशन दी होगी. रविवार को धनंजय सेक्टर-2 की मार्केट मीटमछली लाने जाता है और रोहिणी घर में अकेली होती है, यह बात जरूर किसी न किसी ने उसे बताई होगी. इन में उस इमारत का नारायण, भास्कर रणधीर, उस की औरत देविका, पेपरवाला, दूधवाला, कोई भी हो सकता है. कोई न कोई उस जैसे लोगों को खबर देता होगा, उस के बारे में पता करो.”

“ठीक है सर, हम पता करते हैं.”

“दयाशंकर, तुम अभी उस की तलाश में लग जाओ. इस केस में अगर उस का हाथ हुआ तो उस के पास बहुत माल है. तुम अपना स्टाफ ले कर निकल पड़ो. उस के हाथ लगते ही मुझे सूचित करो.”

दयाशंकर उसी वक्त सहयोगियों के साथ निकल पड़े. सीओ साहब भी चले गए. इस के बाद प्रकाश राय ने राजेंद्र सिंह से कहा, “अगर वह आदमी इस मामले में शामिल हुआ तो कोई बात नहीं. पर वह इस मामले में शायद ही शामिल हो.”

“सर,” राजेंद्र सिंह ने कहा, “आप यह किस उम्मीद पर कह रहे हैं?”

“मान लो, वह सस्पेक्ट है और उस ने ही यह जुर्म किया है तो सवाल यह उठता है कि वह अंदर घुसा कैसे? गेट पर नारायण था. मान लो, नारायण थोड़ी देर को इधरउधर हो गया और वह अंदर हो गया तो भी पांचवें माले पर जा कर लौक खोल कर हत्या करने, अलमारी खोल कर सारा सामान समेटने और नीचे आने में उसे कम से कम आधा घंटा तो लगा ही होगा. इतनी देर उस का वहां ठहरना संभव ही नहीं था.

दूसरी दृष्टि से विचार करो तो धनंजय जब नीचे आया, तब नारायण मौजूद था. धनंजय सवा 6 बजे नीचे आया था. उस के जाने के तुरंत बाद वह अंदर घुस नहीं सकता था, क्योंकि नारायण वहीं था. मान लो, वह 5-10 मिनट बाद अंदर घुसा और अपना काम किया तो धनंजय और उस का आमनासामना अवश्य होता, क्योंकि धनंजय 7 बजे के लगभग वापस आ गया था. उस वक्त भी नारायण नीचे ही मौजूद था. मगर न उस ने और न सीढ़ी साफ करने गए रणधीर ने उसे देखा. हत्यारा नया है, शातिर होता तो डीवीडी प्लेयर और रोहिणी का कीमती मोबाइल और लैपटौप न छोड़ता.”

इतने में फोन की घंटी बज उठी. प्रकाश राय ने फोन रिसीव किया, “हैलो, हां मैं प्रकाश राय. बोलो, शाबाश. किधर टकरा गया वह तुम से? कुछ मिला? ठीक है, तुम उसे सस्पेक्ट मान कर बंद कर दो. मैं तुम्हें फोन करता हूं बाद में.” प्रकाश राय ने फोन काट दिया. राजेंद्र सिंह ने अंदाजा लगाते हुए कहा, “रफीक को पकड़ लिया शायद?”

“हां,” प्रकाश राय ने शांत स्वर में कहा, “पुलिस ने उसे उस की फैक्ट्री के बाहर से पकड़ लिया है. सोचने वाली बात यह है कि जिस के पास इतने रुपए होंगे, वह नौकरी पर क्यों जाएगा?”

“लेकिन सर,” राजेंद्र सिंह ने अक्ल लगाई, “हत्यारा जो भी हो, वह नारायण के रहते अंदर गया कैसे?”

“2 ही बातें हो सकती हैं. अपराधी पाइप के सहारे छत पर चढ़ कर छिपा रहा हो या फिर अंदर का ही कोई व्यक्ति हो.”

प्रकाश राय ने कुछ सोचते हुए कहा, “कुछ भी हो, हमें नारायण और रणधीर पर नजर रखनी है. ये मुजरिम हो सकते हैं या खबर देने वाले. यह भी एक संभावना है कि हत्या का उद्देश्य चोरी न रहा हो, यानी जेवरात और नकदी उड़ा कर एक बहाना बनाया गया हो. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि रोहिणी के गले में सोने का मंगलसूत्र, हाथ में 4 सोने की चूडिय़ां, कानों में झुमके और डे्रसिंग टेबल पर उस की कीमती कलाई घड़ी, कीमती मोबाइल फोन और लैपटौप अपराधी ज्यों का त्यों छोड़ गया था. नारायण या रणधीर ने किसी की मदद से यह कृत्य किया होता तो रोहिणी के शरीर के गहने और घर का सारा सामान चला गया होता. इतनी बड़ी इमारत में रहने वाला भी तो कोई हत्या कर सकता है.”

प्रकाश राय के मुंह से यह सुन कर राजेंद्र सिंह गंभीर हो गए, क्योंकि ऐसी स्थिति में हत्यारे को अंदरबाहर आनेजाने की जरूरत ही नहीं थी. अभी यह बातचीत चल ही रही थी कि सिपाही नरेश शर्मा प्रकाश राय के कमरे में घुसा. उसे देख कर प्रकाश राय ने पूछा,

“क्यों नरेश, कोई खास खबर?”

नरेश को प्रकाश राय ने धनंजय के घर में ही रणधीर पर नजर रखने की हिदायत दे दी थी. उसी क्षण से नरेश उस के पीछे लग गया था. दूसरे सिपाही देवनाथ को नारायण के पीछे प्रकाश राय पहले ही लगा चुके थे.

“साहब, खास कुछ भी नहीं है. आप के चले आने के बाद हाथ में एक बर्तन लिए वह बाहर निकला. मैकडोनाल्ड की गली से पीछे जा कर देशी दारू के ठेके पर उस ने एक गिलास चढ़ाई और फिर अपने घर आ कर सोया पड़ा है.”

“तुम खुद ठेके में गए थे?”

“नहीं साहब, मेरी जानपहचान का एक फेरीवाला अंदर गया था. अब भी वह रणधीर के घर पर नजर रखे हुए है. मैं आप को यही खबर देने आया था.”

“नरेश, तुम रणधीर पर कड़ी नजर रखो. मुझे उस पर पूरा शक है. मेरा अनुमान है कि रणधीर और नारायण आज शाम को किसी स्थान पर जरूर मिलेंगे.”

“ठीक है साहब.” कह कर नरेश चला गया. राजेंद्र सिंह को संबोधित करते हुए प्रकाश राय बोले, “आज रात उस बिल्डिंग पर कड़ी नजर रखनी है. अपने 4-5 सिपाही तैयार रखना. नारायण और रणधीर, दोनों साथी हुए तो रणधीर आज रात को सामान ठिकाने लगाने की कोशिश…”

प्रकाश राय अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि फोन की घंटी बज उठी. उन्होंने रिसीवर उठाया. दूसरी ओर से आवाज आई, “सर, मैं मिश्रा बोल रहा हूं.”

“हां, बोलो मिश्रा, क्या खबर है?”

“साहब, वह व्यापारी अभी तक घर में ही है और उस का औफिस नीचे ही है. उसे जो बिल्डिंग बेचनी है, उस के ग्राउंड फ्लोर पर ही उस का औफिस है.”

मिश्रा ने जिन सांकेतिक शब्दों का प्रयोग किया था, उन्हें प्रकाश राय समझ गए. व्यापारी का मतलब था नारायण, औफिस यानी घर और ग्राउंड फ्लोर औफिस का मतलब था नारायण ग्राउंड फ्लोर पर ही रहता था. मिश्रा की भाषा से ही प्रकाश राय समझ गए कि मिश्रा कई लोगों के सामने से बोल रहा था.

उन्होंने मिश्रा से कहा, “तुम वहीं ठहरो और अपने आदमियों केवहां पहुंचने तक रोके रहो. संभव हुआ तो मैं भी आऊंगा. कोई विशेष बात होने पर मुझे फोन करना.”

इस के बाद वह राजेंद्र सिंह से बोले, “तुम पोस्टमार्टम के बाद रोहिणी का शव विश्वास को जल्दी से जल्दी दिलाने की कोशिश करो.”

“यस सर.” कह कर राजेंद्र सिंह अपने स्टाफ के साथ निकल पड़े. अब प्रकाश राय अकेले थे और नए सिरे से रोहिणी मर्डर केस के बारे में सोचने लगे. एक सूत्र से दूसरा सूत्र जोड़ कर वह अपना जाल बिछाना चाहते थे. उन्होंने अपनी डायरी निकाली. उन्हें अपने कुछ महत्त्वपूर्ण आदमियों को फोन करने थे. वे समाज के जिम्मेदार लोग थे और इन से प्रकाश राय की अच्छी जानपहचान थी.

इन्हें प्रकाश राय ने विशेष मतलब से बुलाया था और एक जरूरी काम सौप दिया था.  इन्हें रोहिणी के दाहसंस्कार के समय शोकसंतप्त चेहरा बना कर लोगों की बातों को चुपचाप सुन कर उस की रिपोर्ट प्रकाश राय को देनी थी. मजे की बात यह थी कि ये लोग एकदूसरे को नहीं जानते थे.

अंतिम निवास विद्युत शवदाहगृह में 2 व्यक्तियों की बातचीत सुन कर आशीष तनेजा के कान खड़े हो गए, “कमाल की बात है. आनंदी दिखाई नहीं दी?”

“सचमुच हैरानी की बात है भई, वह तो रोहिणी की बहुत पक्की सहेली थी. लगता है, उसे किसी ने खबर नहीं दी. रोहिणी के पास तो उस का फोन नंबर भी था.”

“आनंदी दिखाई देती तो मिस्टर आनंद के भी दर्शन हो जाते.”

“शनिवार को तो बैंक में आनंदी का फोन भी आया था?”

आनंदी को ले कर कुछ ऐसी ही बातें देवेश तिवारी से भी सुनीं. उधर मेहता ने जो कुछ सुना, वह इस प्रकार था.

“विवाह आगरा में था, इसीलिए दोनों आगरा गए थे.”

“आगरा तो वे हमेशा आतेजाते रहते थे.”

“वैसे विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ.”

ऐसा ही कुछ नागर ने भी सुना था. इन लोगों ने अपने कानों सुनी बातें फोन पर प्रकाश राय को बता दीं. यह पता नहीं चल रहा था कि आगरा में किस का विवाह था. प्रकाश राय के लिए यह जानना जरूरी भी नहीं था. एक विचार जो जरूर उन्हें सता रहा था, वह यह कि रोहिणी की पक्की सहेली होने के बावजूद आनंदी उस के अंतिम दर्शन करने भी नहीं आई थी. और तो और आनंदी का पति भी दाहसंस्कार में शामिल नहीं हुआ था. इन दोनों का न होना लोगों को हैरान क्यों कर रहा था? अब इस आनंदी को कहां ढूंढ़ा जाए?

कंजूस पिता की ज़िद का नतीजा – भाग 3

बताया जाता है कि बाद में पारसराम ने अपनी दुकान बेच दी और दिन भर घर पर ही रहने लगे. वह घर में तनाव वाला माहौल रखते थे. इस से घर वाले और ज्यादा परेशान हो गए. पिता की आदतों को देखते हुए लाल कमल पत्नी को ले कर परेशान रहने लगा. घर में रोजाना होने वाली कलह से परेशान हो कर लाल कमल अपने भाई और पत्नी को ले कर पानीपत चला गया और इधरउधर से पैसों का इंतजाम कर के उस ने वहीं पर इनवेर्टर, बैटरी बेचने और मोबाइल रिजार्च करने की दुकान खोल ली. अब पारसराम के साथ पत्नी अनीता और बेटी निष्ठा ही रह गई थी.

पारसराम के पास करीब 2 करोड़ रुपए की संपत्ति थी. इस के बावजूद वह बेटों को फूटी कौड़ी देने को तैयार नहीं थे. घर में अकसर तनाव का माहौल रहने की वजह से निष्ठा को भी माइग्रेन का दर्द रहने लगा था. पारसराम ने बेटी का इलाज भी नहीं कराया. जब भी वह दर्द से कराहती तो वह उसे मेडिकल स्टोर से दर्द निवारक दवा ला कर दे देते थे.

दिल्ली के पंजाबी बाग इलाके में एक संत का आश्रम है. अनीता उस आश्रम में जाती थी. वहां उसे मानसिक शांति मिलती थी. आश्रम में ही वह सेवा करती, वहीं चलने वाले भंडारे में बखाना खाती और शाम को घर जाते समय पति और बेटी के लिए भी आश्रम से खाना ले जाती थी. पूरे दिन आश्रम में रहने के बाद वह शाम को करीब 9 बजे घर लौटती थी. पारसराम ने उस से कह दिया था कि शाम का खाना वह आश्रम से ही लाया करे. इसलिए वह वहां से बेटी और पति के लिए खाना लाती थी.

उधर लाल कमल चाहता था कि पिता उसे कोई अच्छी सी दुकान खुलवा दें, लेकिन उन के जीते जी ऐसा संभव नहीं था. जब वह बेटी का इलाज तक नहीं करा रहे थे तो उनसे बिजनैस के लिए पैसे देने की उम्मीद कैसे की जा सकती थी. लाल कमल की दुकान के पास ही पानीपत की नागपाल कालोनी में दिनेश मणिक उर्फ दीपू की मोबिल आयल और स्पेयर पार्टस की दुकान थी. लाल कमल की उस से दोस्ती थी. वह उस से हमेशा पिता की बुराई करता रहता था.

लाल कमल कभीकभी दिल्ली जा कर निष्ठा और आश्रम में मां से मिलता रहता था. निष्ठा उसे अपनी माइग्रेन बीमारी के बारे में बताया करती थी. निष्ठा का इलाज न कराने पर लाल कमल को पिता पर गुस्सा आता था. लाल कमल को लगता था कि उसे पिता की मौत के बाद ही उन की प्रौपर्टी मिल सकती है इसलिए उस ने पिता को ठिकाने लगाने की ठान ली. यह काम वह अकेला नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने अपने दोस्त दिनेश मणिक उर्फ दीपू से बात की. लाल कमल ने दिनेश से कहा कि अगर वह उस के पिता की हत्या कर देगा तो वह उसे उन की प्रौपर्टी का 25 प्रतिशत दे देगा.

यह बात उस ने पहले ही बता दी थी कि प्रौपर्टी की कीमत करीब 2 करोड़ रुपए है. इसी लालच में दिनेश उस का साथ देने को तैयार हो गया.

इस के बाद वह दोनों पारसराम को ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगे. इस बीच लाल कमल ने निष्ठा से फोन कर के जानकारी ले ली कि मां आश्रम के लिए कितने बजे घर से निकलती है और कितने बजे घर लौटती है. दिनेश ने लाल कमल के साथ जा कर कई बार उस के घर और इलाके की रेकी भी की. हत्यारे के लिए उन्होंने पानीपत से एक चाकू भी खरीद लिया था.

पूरी योजना बनाने के बाद लाल कमल  21 अक्तूबर, 2013 को अपनी पैशन मोटरसाइकिल नंबर एचआर 60 डी 7511 से दिनेश को साथ ले कर दिल्ली के लिए रवाना हुआ. वह जानता था कि अगर वह फोन अपने साथ दिल्ली ले जाएगा तो फोन की लोकेशन के आधार पर पुलिस उस तक पहुंच सकती है. इसलिए उस ने अपना ही नहीं, बल्कि दिनेश का फोन भी पानीपत दिल्ली रोड से चांदनी बाग की तरफ जाने वाली सड़क पर एक जगह छिपा दिया. ये दोनों शाम 8 बजे के करीब मोतीनगर के सुदर्शन पार्क की मार्केट में पहुंच गए.

दोनों ने तय कर लिया था कि वारदात को घर में ही अंजाम देंगे. इत्तफाक से लाल कमल ने बाजार में खरीदारी करते हुए अपने पिता को देख लिया. वह उस समय पत्नी के करवा चौथ व्रत का सामान खरीद रहे थे. उन्हें क्या पता था कि पत्नी के व्रत रखने से पहले ही मौत उन्हें आगोश में ले लेगी. लाल कमल एक ओर छिप कर उन पर निगाहें रखने लगा.

सामान ले कर जैसे ही पारसराम घर की तरफ चले, लालकमल भी बाइक से धीरेधीरे उन के पीछे चल दिया. उस ने हेलमेट लगा रखा था. उस के पीछे वाली सीट पर दिनेश बैठा था. लाल कमल ने दिनेश को शिकार दिखा दिया था. जैसे ही पारसराम अपने घर के दरवाजे पर पहुंचे तो दिनेश ने बाइक से उतर कर पारसराम पर चाकू से कई वार किए.

लाल कमल ने कुछ आगे जा कर बाइक खड़ी कर ली थी. अचानक हमला होने से वह घबरा गए. वह चिल्लाए तो दिनेश तेजी से भाग कर मोटरसाइकिल पर बैठ गया और वे वहां से नौदो ग्यारह हो गए.

हत्या करने के बाद वे सीधे पानीपत गए. सब से पहले उन्होंने चांदनी बाग रोड पर छिपाए गए अपने मोबाइल फोन उठाए. फिर गोहाना रोड से पहले गऊशाला की प्याऊ पर दिनेश ने खून से सने हाथ धोए. फिर देवी माता रोड पर नाले के पास वह चाकू फेंक दिया, जिस से मर्डर किया था.

पुलिस ने लाल कमल और दिनेश मणिक उर्फ दीपू से पूछताछ करने के बाद उन्हें 9 नवंबर, 2013 को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर उन्हें उसी दिन तीस हजारी कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी सुनील कुमार शर्मा के समक्ष पेश कर के उन का 2 दिन का पुलिस रिमांड लिया.

रिमांड अवधि में लाल कमल और दिनेश की निशानदेही पर पुलिस ने नाले के पास से चाकू खून से सने कपड़े, मोटरसाइकिल, हेलमेट आदि बरामद कर लिए. रिमांड अवधि में पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 11 नवंबर, 2013 को लाल कमल पुंज उर्फ सोनू और निदेश मणिक उर्फ दीपू को पुन: न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक दोनों अभियुक्त जेल में बंद थे.

कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

ट्रंक की चोरी : ईमानदार चोर ने किया साजिश का पर्दाफाश – भाग 3

निक अब जेल में बंद ऐना से मुलाकात करना चाहता था. वह उस से मिलने जेल में पहुंच गया. जेल में ऐना को देख कर वह पहचान गया कि यह वही लड़की है जिसे उस ने विक्टर के घर के फाटक पर देखा था जब वह ट्रंक चुराने गया था.

‘‘मेरा नाम निकोलस वेल्वेट है.’’ निक ने अपना परिचय दिया.

‘‘हमें किसी वकील की जरूरत नहीं है. हमारे पास वकील है.’’ उस की बात सुनते ही ऐना बोली.

‘‘देखिए, हम ने कोई चोरी नहीं की, हमें इस केस में फंसाया गया है.’’ उस का साथी थामस बोल उठा.

तभी ऐना ने निक से पूछा, ‘‘क्या मैं जान सकती हूं कि तुम कौन हो? तुम्हारा इस मामले से क्या ताल्लुक है?’’

‘‘फिलहाल इतना जान लो कि मैं आप लोगों का दोस्त हूं और जानता हूं तुम्हें किस ने फंसाया है?’’ निक ने समझाते हुए कहा, ‘‘दरअसल, बात यह है कि मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूं. विक्टर का कहना है कि तुम लोगों ने टं्रक से कीमती जेवर चुराए हैं और तुम्हारे अपार्टमेंट से कुछ सामान भी मिला है. अगर यह इलजाम सही है तो तुम तीनों चोरी के साथ कत्ल के भी गुनहगार बन सकते हो.’’

हत्या की बात सुनते ही ऐना बोली, ‘‘कत्ल, किस का कत्ल?’’

‘‘विक्टर के चौकीदार का कत्ल. मिस ऐना, परसों रात तुम न्यूपालिट में अपने पुश्तैनी मकान में देखी गई थीं. चौकीदार का कत्ल भी परसों ही हुआ, इस तरह तुम शक के घेरे में हो.’’

‘‘परसों मैं विक्टर के बुलाने पर वहां गई थी. उस ने कहा था कि जायदाद के बारे में कुछ बात करनी है. मैं जब न्यूपालिट गई तो गेट पर चौकीदार ने बताया कि वह घर पर नहीं है, इसलिए गेट से ही लौट आई थी.’’

निक समझ रहा था कि वह सच बोल रही है क्योंकि उस ने खुद उन लोगों को वापस जाते देखा था. उस ने उस से पूछा, ‘‘तुम्हारे विक्टर से कैसे संबंध हैं?’’

‘‘ठीकठाक हैं.’’ वह बोली, ‘‘मेरा खयाल था कि मुझे पापा अपनी जायदाद में से हिस्सा नहीं देंगे, पर उन की वसीयत के अनुसार मैं कुल जायदाद के तीसरे हिस्से की मालिक हूं.’’

निक चौंक उठा, उसे साजिश की वजह समझ में आने लगी. उस ने पूछा, ‘‘मिस ऐना क्या तुम ने विक्टर को अपने अपार्टमेंट की चाबी दे रखी है?’’

‘‘मैं ने चाबी तो नहीं दी पर कुछ दिन पहले मेरी चाबी का दूसरा सेट गुम हो गया था.’’ ऐना बोली.

‘‘क्या तुम्हें जेवर के बारे में पता था कि वह ट्रंक में बंद हैं?’’

‘‘ये बात मुझे पापा ने अपनी मौत से 2 हफ्ते पहले बताई थी.’’ उस ने कहा.

‘‘विक्टर का कहना है कि तुम लोगों ने जेवर चुराए और चौकीदार का कत्ल कर दिया. अगर इस इलजाम में तुम्हें सजा हो गई तो तुम जायदाद से वंचित हो जाओगी और विक्टर सारी जायदाद पर हक जमा लेगा. मैं उस की साजिश को बेनकाब कर सकता हूं, मगर तुम लोगों को मेरी मदद करनी होगी.’’

‘‘कैसी मदद?’’

‘‘मेरी मदद फीस दे कर, अगर मैं तुम लोगों को इस मुसीबत से बचा लूं तो तुम मुझे 15 हजार डालर दोगी. वैसे मेरी फीस 25 हजार डालर है, पर तुम्हें मैं 10 हजार डालर की छूट दे रहा हूं. ये फीस मैं उस वक्त लूंगा जब तुम बाइज्जत छूट जाओगे.’’ निक ने अपनी बात कही.

‘‘मुझे मंजूर है, वरी होने पर मैं आप की फीस अदा कर दूंगी.’’ ऐना बोली.

‘‘अच्छी बात है, ऐना मुझे तुम से अकेले में कुछ बात करनी है.’’ वह अलग हट कर एक तरफ आ गई. निक धीरेधीरे उस से बात करने लगा. इस बीच जेल में मुलाकात का वक्त कब खत्म हो गया पता ही न चला. वक्त खत्म होने पर निक जाने लगा तो उन तीनों के चेहरों पर उम्मीद और खुशी थी.

निक ने विक्टर से बात करने के लिए बर्कशायर होटल का नंबर मिलाया तो पता चला कि वह होटल छोड़ चुका है. इस के बाद उस ने विक्टर के न्यूपालिट स्थित घर का नंबर मिलाया. फोन विक्टर ने ही उठाया था. निक की आवाज सुनते ही विक्टर बोला, ‘‘अच्छा हुआ कि निक तुम ने फोन कर लिया. शायद तुम 5 हजार डालर का चेक ले कर सबकुछ भूलने के लिए राजी हो गए हो?’’

‘‘हां, मैं सोच रहा हूं कि सौदा बुरा नहीं है. तुम्हारे साथ मुलाकात कहां हो सकती है?’’ निक ने बुझीबुझी आवाज में कहा.

‘‘यहां न्यूपालिट आ जाओ. तुम ने घर तो देख रखा है.’’

‘‘हां, वो तो देखा है, पर क्या तुम न्यूयार्क नहीं आ सकते? यहां आ जाते तो ठीक रहता.’’

‘‘ठीक है, रात 8 बजे बर्कशायर होटल में मिलूंगा.’’ कहने के बाद विक्टर ने फोन काट दिया.

रात 8 बजे निक न्यूपालिट में विक्टर के फाटक से दूर गाड़ी से उतरा. उस ने गाड़ी की बत्तियां बंद कर दी थीं. चुपचाप घने अंधेरे में दीवार फांद कर वह अंदर पहुंच गया. वहां सन्नाटा था. निक सावधानी से अपार्टमेंट में दाखिल हो गया. पेंसिल टौर्च की रोशनी के सहारे वह महल नुमा मकान के एकएक कमरे को चेक करने लगा. उम्मीद थी कि जो वह चाहता है, यहीं कहीं मिल जाए.

उस ने सोचा था कि विक्टर बर्कशायर होटल में उस का इंतजार कर रहा होगा. अगर उसे शक हो गया तो वह तुरंत यहां के लिए रवाना हो जाएगा. इस बीच करीब डेढ़दो घंटे में उसे अपना काम खत्म करना होगा. उस ने नीचे के सारे कमरे खोलखोल कर बारीकी से देखे, लेकिन कहीं कुछ न मिला.

वह किचन में पहुंच गया. उस की नजर फ्रिज पर पड़ी. उस ने फ्रिज खोल कर देखा. डिब्बों में खाने की चीजें भरी हुई थीं. उस ने फ्रिज का दूसरा डोर खोला तो उस की आंखें हैरत से फैल गईं. पूरा खाना कीमती जवाहरात और जेवरों से भरा हुआ था.

यकीनन ये वही खजाना था, जो पुश्तैनी ट्रंक से चोरी हुआ था. इस खजाने की चोरी के इलजाम में ऐना और उस के 2 साथी जेल में थे. निक ने उसी समय किचन में रखे फोन से पुलिस का नंबर मिला दिया. फोन सार्जेंट ब्रुल्स नाम के पुलिस अधिकारी ने उठाया.

निक ने उस से कहा, ‘‘मैं एक महत्त्वपूर्ण केस के बारे में इत्तला देना चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारा नाम क्या है और कहां से बोल रहे हो?’’

‘‘मेरा नाम रिचर्ड निक्सन है. मैं न्यूपालिट में विक्टर के घर से बोल रहा हूं, विक्टर एलियानोफ के यहां हीरेजवाहरातों की चोरी और चौकीदार की हत्या की जो वारदात हुई थी, उसी के बारे में बताना चाहता हूं.’’

‘‘तुम इस बारे में क्या कहना चाहते हो? 3 अभियुक्त इस केस में पकड़े जा चुके हैं?’’ पुलिस अधिकारी बोला.

‘‘आप ने जिन 3 जनों को गिरफ्तार किया था वे निर्दोष हैं. बाकी हकीकत यह है कि इस मामले का अभियुक्त कोई और ही है. जो गहने चोरी हुए थे वह सब विक्टर के यहां फ्रिज में रखे हुए हैं.’’

पुलिस ने 3 जनों को गिरफ्तार तो कर लिया था, लेकिन उन से चोरी गया सामान बरामद नहीं हो पाया था. इसलिए यह खबर पाते ही पुलिस अधिकारी खुश हो गया. वह बोला, ‘‘मिस्टर निक्सन, तुम वहीं रुको, मैं वहीं तुम्हारे पास पहुंच रहा हूं.’’

                                                                                                                                             क्रमशः

उधार का चिराग – भाग 3

नाजनीन ने कोई खास तैयारी नहीं की थी, इस के बावजूद वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. मैं अपने बदनसीब बौस के बारे में सोच रहा था कि वह कितना बेबस था. क्या नहीं था उस के पास, लेकिन वह कितना मजबूर था. उस के दिल पर क्या गुजर रही होगी? नाजनीन की आवाज से मेरा ध्यान टूटा, ‘‘शहबाज, तुम ने कितना सही रास्ता निकाल लिया, वरना मैं गलत रास्ते पर जा रही थी.’’

‘‘मैडम, मैं अपनी इस शादी के बारे में सोच रहा था, जो एक तरह की डील है. कुछ दिनों या कुछ हफ्तों के लिए. उस के बाद सब खतम हो जाएगा.’’ मैं ने जल्दी से कहा.

‘‘कोई जरूरी नहीं है. तुम चाहो तो मना भी कर सकते हो. कोई जबरदस्ती थोड़े ही है.’’ नाजनीन ने हंस कर कहा.

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ मैं चौंका.

‘‘क्या नहीं हो सकता. देखो शहबाज, औरत को सिर्फ दौलत की ही नहीं, एक भरपूर मर्द के साथ की भी जरूरत होती है. बदकिस्मती से अजहर ऐसा मर्द नहीं है. दौलत मेरे पास भी है, हम आराम से जिंदगी गुजार सकते हैं.’’

‘‘मैडम, इस में तो हंगामा हो जाएगा. अजहर अली कभी इस बात को बरदाश्त नहीं करेंगे.’’

‘‘यह मुझे भी पता है कि वह बरदाश्त नहीं करेंगे. क्योंकि वह मुझ से बहुत प्यार करते हैं. लेकिन ऐसे प्यार का क्या फायदा, जो सिर्फ आग लगाता हो, प्यास न बुझा सकता हो. अब जब तुम मेरी जिंदगी में आ गए हो तो हमें इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए. तुम अपने भविष्य की चिंता मत करो. मेरे पास इतनी दौलत है कि मैं तुम्हें कोई कारोबार करवा दूंगी.’’ नाजनीन ने कहा.

‘‘तुम ने तो मुझे मुश्किल में डाल दिया.’’ मैं ने कहा.

‘‘कोई मुश्किल नहीं है, तुम्हें हिम्मत करने की जरूरत है, सब ठीक हो जाएगा. मकसद पूरा होने के बाद कह देना कि तुम तलाक नहीं देना चाहते. उस के बाद वह कुछ नहीं कर पाएंगे, क्योंकि कानूनी और शरअई तौर पर मैं तुम्हारी बीवी हूं.’’

‘‘यह तो बहुत बड़ा धोखा होगा. डील के भी खिलाफ होगा.’’

‘‘कोई धोखा नहीं है. उन्होंने मुझ से शादी कर के मुझे धोखा नहीं दिया है? क्या उन्हें मालूम नहीं था कि वह शादी लायक नहीं हैं. इस के बावजूद अपनी नाक ऊंची रखने के लिए उन्होंने मुझ से शादी की. ऐसा कर के उन्होंने मुझे धोखा नहीं दिया?’’

‘‘तुम्हारी बात भी सच है.’’ मैं ने कहा.

‘‘बाकी सब भूल कर सिर्फ यह याद रखो कि उन्होंने मुझे धोखा दिया है. इस की उन्हें सजा मिलनी ही चाहिए. अगर उन का खानदान उन्हें बच्चे का बाप देखना चाहता है तो मेरा क्या दोष, उन के घर वालों की खुशी के लिए मैं क्यों कष्ट झेलूं? तुम खुद ही बताओ, इस में मेरा क्या दोष है? मैं ही क्यों दुनिया भर के कष्ट उठाऊं? उन का जब मन हुआ शादी कर ली, जब मन हुआ दूसरे को सौंप दिया. आखिर यह क्या तमाशा है?’’

नाजनीन की बातों ने मुझे चौंका दिया. अपनी जगह वह भी ठीक थी. आखिर औरत के साथ वह भी तो आदमी थी. जवान और खूबसूरत भी थी. उस की भी अपनी उमंगें और इच्छाएं थीं.

रूटीन के अनुसार अगले दिन मैं औफिस पहुंचा तो कुछ देर बाद अजहर अली ने मुझे बुलाया. उम्मीद के साथ मुझे देखते हुए उन्होंने कुछ कागजात मेरी ओर बढ़ाए. डील के अनुसार वे तलाक के पेपर थे. मैं ने कहा, ‘‘सर, कुछ दिन रुक जाइए. जिस मकसद के लिए यह काम हुआ है, पहले उसे तो पूरा हो जाने दीजिए.’’

अजहर अली ने कागजात दराज में रख लिए. इस के बाद मेरा काम शुरू हो गया. दिन भर मैं औफिस में रहता, शाम को अपने फ्लैट पर जाता.  देर रात मैं अजहर अली के घर पहुंच जाता, जहां नाजनीन मेरा इंतजार कर रही होती. रोज रात को वह ऐसी बातें छेड़ देती, जो मेरी डील के खिलाफ होतीं. धीरेधीरे मुझे भी लगने लगा कि वह ठीक ही कहती हैं.

लेकिन मुझ में इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं डील के खिलाफ जा सकता. वह मुझे रोज उकसाती.  इस के बावजूद मैं ने फैसला किया कि मैं नाजनीन को तलाक दे दूंगा. उन्होंने मुझ पर जो विश्वास किया है, उसे नहीं तोड़ूंगा. उन्होंने मुझे एक खुशहाल जिंदगी दी है, इसलिए मैं उन्हें धोखा नहीं दूंगा.

2 महीने तक इसी तरह चलता रहा. मैं बड़ी दुविधा में था. नाजनीन रोजाना तलाक न देने की मिन्नतें करती. जबकि मैं अपने वायदे पर अडिग था.

लेकिन जब नाजनीन ने बताया कि वह मां बनने वाली है तो मैं डगमगा गया. अजहर को इसी बात का इंतजार था. क्योंकि जब मैं ने तलाक देने की बात की तो नाजनीन ने कहा, ‘‘मैं चाहती हूं कि मेरा बच्चा अपने बाप की छाया में पले.’’

मैं ने वायदे की बात की तो उस ने ढेर सारी दलीलें दे कर मुझे चुप करा दिया.

अगले दिन अजहर अली ने मुझे बुलाया. वह बहुत खुश था. शायद नाजनीन ने उसे खुशखबरी सुना दी थी. मैं उसे देख कर हैरान था. उधार की खुशियों में वह कितना खुश था. उस ने कहा, ‘‘शहबाज, तुम ने अपना फर्ज पूरा कर दिया. अब तुम नाजनीन को तलाक दे कर उस से अलग हो जाओ. हमारी डील खत्म हुई.’’

उस समय अचानक न जाने कैसे मेरे दिल में प्यार जाग उठा. शायद बच्चे से प्यार हो गया था. एक बाप होने का अहसास हो उठा था या नाजनीन की बातों का असर था.

मुझे लगा, मैं बच्चे को नहीं छोड़ सकता.  मैं ने कहा, ‘‘सौरी सर, मैं नाजनीन को तलाक नहीं दे पाऊंगा.’’

‘‘क्या… यह क्या बकवास है?’’ अजहर अली चीखा.

‘‘सर, नाजनीन मां बनने वाली है और मैं बाप, इसलिए प्लीज सर, आप हमारे हाल पर रहम करें और उसे मेरे पास ही रहने दें.’’ मैं ने बेबसी से कहा.

‘‘बेवकूफ आदमी, तुम्हारे पास ऐसा क्या है, जो तुम नाजनीन जैसी औरत को दे सकते हो? नाजनीन ने मजबूरी में तुम से शादी की थी, वरना वह तुम्हारी ओर देखती भी न.’’ अजहर अली गुस्से में गरजा.

मैं ने धीरे से कहा, ‘‘सर, ऐसी बात नहीं है. नाजनीन भी यही चाहती है. अब वह आप के साथ नहीं, मेरे साथ रहना चाहती है, क्योंकि औरत सिर्फ दौलत से ही नहीं खुश रह सकती.’’

अजहर अली चिल्लाया, ‘‘अपनी बकवास बंद करो, नाजनीन कभी ऐसा सोच भी नहीं सकती.’’

‘‘आप खुद फोन कर के पता कर लीजिए. अगर वह भी यही चाहती है तो क्या आप हमें हमारी मरजी की जिंदगी गुजारने देंगे?’’

‘‘अभी पता चल जाएगा,’’ कह कर अजहर अली ने फोन लगाया.  दूसरी ओर से फोन उठा लिया गया तो उन्होंने कहा, ‘‘नाजनीन, यह शहबाज क्या कह रहा है? क्या तुम उसी के साथ रहना चाहती हो? ठीक है, मैं उसे तुम्हारे पास भेज रहा हूं, तुम्हीं उस का दिमाग ठीक कर सकती हो.’’

इस के बाद मुझ से कहा, ‘‘जाओ, नाजनीन से बात कर लो. तुम्हें तुम्हारी औकात का पता चल जाएगा?’’

मैं ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘आप भी मेरे साथ चलिए. आप को भी आप की हैसियत मालूम हो जाएगी?’’

नाजनीन ने मेरी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. उस ने मेरे साथ रहने से साफ मना कर दिया. मुझे लगा कि मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई है. उस ने जो मिन्नतें मुझ से की थीं, वे सब झूठी थीं. उस ने मुझे सीधेसीधे उल्लू बनाया था. उस ने कहा था, ‘‘काफी सोचविचार कर मैं इस नतीजे पर पहुंची हूं कि तुम्हारे साथ मैं नहीं रह सकती. क्योंकि तुम मेरे बच्चे को वह जिंदगी नहीं दे सकते, जो अजहर अली दे सकते हैं. बेहतर यही है कि तुम मुझे तलाक दे कर हमारी जिंदगी से दूर हो जाओ.’’

‘‘तुम ठीक कह रही हो मैडम. तुम भले ही मुझ जैसे 10 आदमी खरीद सकती हो, लेकिन बच्चे का बाप और उस के प्यार को नहीं खरीद सकती. जो प्यार उस का असली बाप दे सकता है, वह अजहर अली कभी नहीं दे सकता. इसलिए तुम ठीक नहीं कर रही हो.’’

‘‘तुम्हें फिकर करने की जरूरत नहीं है. तुम तलाक दे दो और सब भूल जाओ.’’

‘‘मैं कैसे भूल जाऊं, तुम मेरी कानूनी बीवी हो. तुम पर मेरा पूरा हक है. औलाद भी मेरी है. तुम मुझे तलाक के लिए मजबूर नहीं कर सकती.’’

वह फौरन बोल पड़ी, ‘‘तुम डील के खिलाफ जा रहे हो शहबाज.’’

‘‘मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं, पर औलाद नहीं छोड़ सकता.’’

‘‘तुम पागल हो गए हो. औलाद के लिए ही तो मैं ने यह सब किया है.’’

‘‘कुछ भी हो, मैं तलाक नहीं दूंगा. यह मेरा अंतिम फैसला है.’’ कह कर मैं पैर पटकता हुआ चला आया.

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं? अजहर अली की कंपनी के दरवाजे मेरे लिए बंद हो चुके थे. सब कुछ होते हुए भी अब मेरे पास कुछ नहीं था. मेरे लिए कोई फैसला करना मुश्किल था. मेरे अंदर का मर्द और बाप जाग उठा था. वह बच्चा मेरा खून था, इसलिए उस पर मेरा कानूनी हक था.

मेरे लिए यही बेहतर था कि मैं किसी अच्छे वकील से मिलूं. मेरा केस वाजिब था, मेरे पास सारे सुबूत भी थे. निकाहनामा मेरे पास था, इसलिए फैसला मेरे ही हक में होना था. वकील के लिए भी यह केस काफी दिलचस्प होता. औलाद होने के बाद डीएनए टेस्ट के जरिए मैं खुद को बच्चे का बाप साबित कर सकता था. मेडिकल साइंस के इस दौर में ऐसी बातें छिपी नहीं रह सकतीं. इस केस में अजहर की पोजीशन बहुत कमजोर थी, इसलिए बच्चा मुझे मिल सकता था.