चाची का इश्किया भतीजा – भाग 2

कुछ देर तक दोनों खामोश बैठे एकदूसरे को देखते रहे. जब खामोशी घुटन का रूप लेने लगी तो प्रीत महेंद्र ने कहा, ‘‘मैं ने तो सोचा था कि चाचा घर पर ही होंगे, ऐसे में कोई बात नहीं हो पाएगी.’’

‘‘वह तो आज शंभू बौर्डर गए हैं. कोयले की गाड़ी आने वाली है. अब तो वह देर रात को ही आएंगे.’’ कुछ सोचते हुए जसमीत ने कहा, ‘‘तुम्हें उन से कोई बात करनी थी क्या?’’

प्रीत ने जब सुना कि चाचा रात से पहले नहीं आएंगे तो उस के दिल में चाची को ले उथलपुथल मचने लगी. उसे लगा कि आज उस के मन की मुराद पूरी हो सकती है. जसमीत की बात का जवाब देने के बजाय वह खयालों में डूब गया तो जसमीत ने फिर कहा, ‘‘तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया प्रीत?’’

‘‘जवाब क्या दूं. आप को तो मेरे मन की बात पता ही है.’’ प्रीत महेंद्र ने कहा.

‘‘बिना बताए मुझे कैसे पता चलेगा कि तुम्हारे दिल में क्या है या तुम किस से कौन सी बात कहने आए हो?’’ जसमीत ने कहा.

जसमीत कम चालाक नहीं थी. वह प्रीत के मन की बात जानती थी, फिर भी उस के मुंह से उस के मन की बात कहलवाना चाहती थी. इसलिए गंभीरता का नाटक करते हुए बोली, ‘‘पहेलियां मत बुझाओ प्रीत, साफसाफ बताओ, क्या बात है?’’

‘‘बात बस इतनी सी है,’’ प्रीत आगे खिसक कर जसमीत का हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘मुझे तुम से प्यार हो गया है.’’

प्रीत महेंद्र के ये शब्द सुन कर जसमीत की आत्मा को अजीब सी शांति मिली. उस के मुंह से ये शब्द कहलवाने के लिए उस का दिल कब से बेचैन था. इस के बावजूद वह बनावटी नाराजगी जताते हुए बोली, ‘‘अरे बदमाश, तुझे पता नहीं, मैं तेरी चाची हूं.’’

‘‘और मैं भतीजा,’’ प्रीत ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हें पता है कि मैं तुम्हारे पति का भतीजा हूं, फिर भी तुम मुझे देख कर उसी तरह मुसकराती हो जैसे कोई लड़की अपने प्रेमी को देख कर मुसकराती है.’’

जसमीत ने प्रीत महेंद्र का हाथ दबाते हुए कहा, ‘‘तुम तो बहुत होशियार हो भाई. मन की बात जानते थे, फिर भी अपने मन की बात कहने में इतनी देर कर दी. लेकिन एक बात और, तुम यह प्यार कहां तक निभाओगे?’’

‘‘जिंदगी की आखिरी सांस तक मैं यह प्यार निभाऊंगा.’’ प्रीत महेंद्र जसमीत का हाथ छोड़ कर अपने दोनों हाथ उस के कंधों पर रख कर बोला, ‘‘यह मत समझना कि मैं ने तुम्हारा शरीर पाने के लिए तुम से प्यार किया है. यह प्यार पूरी जिंदगी निभाने के लिए किया है और हर तरह से निभाऊंगा भी.’’

‘‘सोच लो प्रीत, मुझे धोखे में रख केवल मेरे शरीर से खेलना हो तो अभी साफसाफ बता दो. हम दोनों शादीशुदा ही नहीं, 2-2 बच्चों के मातापिता हैं.’’

‘‘तुम मुझ पर भरोसा करो चाची.’’

‘‘आज के बाद फिर कभी चाची मत कहना.’’ जसमीत ने हंसते हुए प्यार से प्रीत के गाल को थपथपाते हुए कहा. इस के बाद वह उस की बाहों में समा गई. इस तरह प्यार के इजहार के साथसाथ इकरार ही नहीं हो गया, बल्कि दोनों के तन भी एक हो गए.

पल भर में रिश्तों की परिभाषा बदल गई. मन के मिलन के साथ अगर तन का मिलन हो जाए तो मिलन की चाह और अधिक भड़क उठती है. मन हमेशा महबूब से मिलने के लिए बेचैन रहता है. और अगर घर में मिलने की सहूलियत हो तो बात सोने पर सुहागा जैसी हो जाती है.

प्रीत महेंद्र सुबह 10-11 बजे जसमीत के घर आ जाता था. क्योंकि उस समय बच्चे स्कूल गए होते थे, तो परमजीत सिंह डिपो. दोनों का मिलन निर्बाध गति से चलने लगा था. लेकिन नजर रखने वालों की भी कमी नहीं है. ऐसे लोग उड़ती चिडि़या को पर से पहचान लेते हैं.

सीधेसादे परमजीत को भले ही पत्नी और भतीजे की करतूतों का भान नहीं था, लेकिन गलीमोहल्ले में चाचीभतीजे के संबंधों को ले कर खूब चर्चा होने लगी थी. यही नहीं, उड़तेउड़ते यह खबर यूएसए में रह रही परमजीत की बहनों तक तक पहुंच गई थी. उन्होंने पटियाला आ कर जसमीत और प्रीत महेंद्र को समझाया भी, लेकिन गले तक पाप के दलदल में डूबे जसमीत और प्रीत ने किसी की नहीं सुनी.

परमजीत की बहनों ने अपने चचेरे भाई यानी प्रीत महेंद्र के बाप हरदर्शन सिंह से मिल कर उस की शिकायत की कि वह अपने बेटे को समझाएं. लेकिन समझाने की कौन कहे, हरदर्शन ने ढिठाई से कहा, ‘‘तुम लोग अपनी भाभी को ही क्यों नहीं समझातीं कि वह इधरउधर मुंह न मारे.’’

परमजीत की बहनों ने किसी भी तरह पाप के इस खेल को बंद कराने के लिए किसकिस के हाथ नहीं जोड़े. लेकिन कहीं से कुछ नहीं हुआ. इतना सब करने के बावजूद उन्होंने अपने भाई को यह पता नहीं चलने दिया कि भाभी क्या कर रही है. क्योंकि उन्हें पता था कि भाभी की बेवफाई का पता भाई को चल गया तो वह आत्महत्या कर लेगा.

बहरहाल, प्रीत महेंद्र सिंह और जसमीत कौर का यह घिनौना खेल बेरोकटोक चलता रहा. परमजीत सिंह सुबह नाश्ता कर के घर से निकल जाते तो देर रात को ही लौटते थे. इस बीच घर में क्या होता है. उन्हें पता नहीं होता था.

22 मार्च, 2014 को शाम को करीब 5 बजे परमजीत सिंह जसमीत कौर को यह कह कर अपने स्कूटर से घर से निकले कि वह किसी पार्टी के पास जा रहे हैं, डेढ़-2 घंटे में लौट आएंगे. लेकिन जब वह देर रात तक घर नहीं लौटे तो जसमीत कौर को चिंता हुई. वह अपने दोनों बेटों गुरतीरथ, जसदीप और कुछ पड़ोसियों को ले कर परमजीत की तलाश में निकल पड़ी. लेकिन रात भर इधरउधर भटकने के बाद भी परमजीत का कुछ पता नहीं चला.

रात 10 बजे के आसपास परमजीत ने फोन कर के जसमीत को बताया था कि वह अपने किसी दोस्त के घर बैठा है. इस के बाद न उस का कोई फोन आया था और न ही उस के बारे में कुछ पता चला था, क्योंकि उस का फोन बंद हो गया था.

अगले दिन सुबह यानी 23 मार्च को 8 बजे प्रीत महेंद्र ने फोन द्वारा जसमीत को सूचना दी कि सीआईए रोड के सनौली अड्डे पर चाचा की लाश पड़ी है. इसी सूचना पर जसमीत दोनों बेटों और कुछ पड़ोसियों को साथ ले कर सनौली अड्डे पर जा पहुंची थी. वहां पड़ी लाश परमजीत की ही थी. किसी ने गोलियां मार कर उस की हत्या कर दी थी. जसमीत पति की लाश देख कर रोने लगी थी.

दरअसल, प्रीत महेंद्र किसी काम से सनौली अड्डे की ओर जा रहा था तो रास्ते में भीड़ देख कर रुक गया. जब उसे पता चला कि यहां कोई लाश पड़ी है तो उत्सुकतावश वह भी उसे देखने चला गया. वहां जाने पर पता चला कि वह तो उस के चाचा परमजीत की लाश है. उसे पता था कि चाचा कल शाम से लापता हैं. लेकिन इस तरह उन की लाश मिलेगी, यह उम्मीद उसे नहीं थी. उस ने तुरंत फोन द्वारा इस बात की जानकारी चाची को दे दी थी.

जसमीत तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गई थी. वह पुलिस को सूचना देने कोतवाली जा रही थी कि रात की गश्त से लौट रहे कोतवाली प्रभारी इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा खलिया चौक पर ही मिल गए. जसमीत ने जब उन्हें पति की हत्या के बारे में बताया तो वह कोतवाली जाने के बजाय घटनास्थल की ओर चल पड़े.

परमजीत सिंह की लाश सड़क के किनारे पड़ी थी. लाश मिलने की सूचना इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा ने डीएसपी (सिटी) केसर सिंह को दी तो थोड़ी देर में क्राइम टीम के साथ वह भी घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश के निरीक्षण में उन्होंने देखा कि मृतक परमजीत सिंह को 4 गोलियां मारी गई थीं, 2 सीने में, एक पेट में दांईं ओर किडनी के पास और एक बाईं ओर पेट में. इन चारों गोलियों के खोखे भी घटनास्थल से बरामद हो गए थे.

उजड़ गया आशियाना : बाप बना कातिल

गांवों में आज भी ज्यादातर घरों में दिन ढलते ही रात का खाना बन जाता है. शाम के यही कोई साढ़े 6 बजे खाना खा कर सुरेंद्र सोने के लिए जानवरों के बाड़े में चला गया था. उस के जाने के बाद सुरेंद्र की पत्नी ममता, बेटा कुलदीप, दीपक, रतन और बहू प्रभा खाना खाने की तैयारी करने लगी थी. सभी खाने के लिए बैठने जा रहे थे कि तभी प्रभा के पिता फूल सिंह पाल, चाचा रामप्रसाद, भाई लाल सिंह उस के मौसेरे भाई टुंडा के साथ उन के यहां आ पहुंचे.

किसी के हाथ में कुल्हाड़ी थी तो कोई चापड़ लिए था तो कोई डंडा. उन्हें इस तरह आया देख कर घर के सभी लोग समझ गए कि इन के इरादे नेक नहीं हैं. वे कुछ कर पाते, उस से पहले ही उन्होंने प्रभा को पकड़ा और कुल्हाड़ी से उस की हत्या कर दी. प्रभा की सास ममता बहू को बचाने के लिए दौड़ी तो हमलावरों ने उसे भी कुल्हाड़ी से काट डाला.

ममता प्रभा की 9 महीने की बेटी को लिए थी, हत्यारों ने उसे छीन कर एक ओर फेंक दिया था. 2 लोगों को मौत के घाट उतारने के बाद हमलावरों ने कुलदीप को पकड़ कर जमीन पर गिरा दिया. कुलदीप जान की भीख मांगने लगा तो फूल सिंह ने कहा, ‘‘कुलदीप, तुझे हम जान से नहीं मारेंगे, तुझे तो अपाहिज बना कर छोड़ देंगे, ताकि तू उम्र भर चलने को तरसे और अपनी बरबादी पर रोता रहे.’’

इतना कह कर फूल सिंह ने कुलदीप के दोनों पैर कुल्हाड़ी से काट दिए. सुरेंद्र की बुआ श्यामा और छोटेछोटे बच्चे चीखतेचिल्लाते रहे और गांव वालों से मदद की गुहार लगाते रहे, लेकिन गांव का कोई भी उन की मदद को नहीं आया. लोग अपनीअपनी छतों पर खड़े हो कर इस वीभत्स नजारे को देखते रहे.

कुछ ही देर में इतनी बड़ी वारदात को अंजाम दे कर जिस तरह हमलावर आए थे, उसी तरह फरार हो गए. सुरेंद्र का घर खून से डूब गया था. 2 महिलाओं की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं, जबकि कुलदीप दर्द से तड़प रहा था. हमलावरों के जाने के बाद गांव वाले जुटने शुरू हुए. खबर सुन कर सुरेंद्र और उस के मातापिता, भाई, चाचा आदि आ गए. लोमहर्षक नजारा देख कर वे सन्न रह गए.

सुरेंद्र ने पुलिस चौकी साढ़ को फोन कर के इस घटना की सूचना दी. सूचना मिलते ही चौकीप्रभारी वीरेंद्र प्रताप यादव घटना की सूचना कोतवाली घाटमपुर को दे कर हेडकांस्टेबल अरविंद तिवारी, कांस्टेबल रईस अहमद, भीम प्रकाश, प्रवेश मिश्रा, संजय कुमार के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

घटना की सूचना पा कर कोतवाली घाटमपुर के प्रभारी गोपाल यादव और सीओ जे.पी. सिंह गांव ढुकुआपुर के लिए चल पड़े थे. ढुकुआपुर से पुलिस चौकी 8 किलोमीटर दूर थी इसलिए पुलिस टीम को वहां पहुंचने में पौन घंटा लग गया. 3 लोगों को खून में लथपथ देख कर पुलिस हैरान रह गई. देख कर ही लग रहा था कि कि यह सब दुश्मनी की वजह से हुआ है.

2 महिलाओं की मौत हो चुकी थी. कुलदीप दर्द से तड़प रहा था. पुलिस ने कुलदीप को स्वरूपनगर के एसएनआर अस्पताल भिजवाया. सूचना मिलने पर एसपी (देहात) अनिल मिश्रा भी वहां आ गए थे. पुलिस अधिकारियों ने आसपास के लोगों से घटना के बारे में जानना चाहा, लेकिन पुलिस के सामने किसी ने मुंह नहीं खोला. लोग अलगअलग बहाने बना कर वहां से खिसकने लगे. पुलिस समझ गई कि डर या किसी अन्य वजह से लोग कुछ भी बताने से कतरा रहे हैं.

हमलावरों ने सुरेंद्र की पत्नी ममता और बहू प्रभा की हत्या कर दी थी, जबकि बेटे कुलदीप के दोनों पैर काट दिए थे. पुलिस ने जब सुरेंद्र से पूछताछ की तो उस ने बताया कि यह सब कुलदीप की ससुराल वालों ने किया है. पुलिस ने सुरेंद्र पाल की ओर से फूल सिंह, उस के बेटे, भाई रामप्रसाद पाल, लाल सिंह, टुंडा उर्फ मामा और रामप्रसाद उर्फ छोटे के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 307, 452, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए कानपुर भिजवा दिया था.

इस लोमहर्षक कांड के बाद गांव में दहशत फैल गई थी. गांव वाले दबी जुबान से तरहतरह की बातें कर रहे थे. एसएसपी यशस्वी यादव ने सीओ जे.पी. सिंह को निर्देश दिए कि वह जल्द से जल्द हमलावरों को गिरफ्तार करें. सीओ ने तुरंत ही प्रभारी निरीक्षक गोपाल यादव और चौकीप्रभारी वीरेंद्र प्रताप यादव के नेतृत्व में 2 टीमें गठित कीं.

पहली टीम में एसआई अखिलेश मिश्रा, कांस्टेबल धर्मेंद्र सिंह, प्रवेश बाबू और इरशाद अहमद को शामिल किया गया, जबकि दूसरी टीम में हेडकांस्टेबल अरविंद तिवारी, कांस्टेबल रईस अहमद, अजय कुमार यादव और भीम प्रकाश को भी शामिल किया गया. चूंकि आरोपी अपने घरों से फरार थे, इसलिए पुलिस टीमें उन की तलाश में संभावित जगहों पर छापे मारने लगीं. आखिर सुबह होतेहोते पुलिस को सफलता मिल ही गई. पुलिस ने फूल सिंह, लाल सिंह और रामप्रसाद उर्फ छोटे को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की गई तो इस खूनी तांडव की जो कहानी सामने आई, वह प्यार की प्रस्तावना पर लिखी हुई थी.

उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर की एक तहसील है घाटमपुर. यहां से लगभग 50 किलोमीटर दूर बसा है एक गांव ढुकुआपुर. इस गांव में वैसे तो सभी जाति के लोग रहते हैं, लेकिन गड़रियों की संख्या कुछ ज्यादा है. इसी गांव में सुरेंद्र सिंह पाल भी अपने परिवार के साथ रहता था. वैसे सुरेंद्र पाल का पुश्तैनी मकान गांव के बीचोंबीच था, लेकिन भाइयों में जब बंटवारा हुआ तो वह गांव के बाहर खाली पड़ी जमीन पर मकान बना कर रहने लगा.

सुरेंद्र के परिवार में पत्नी ममता के अलावा 3 बेटे, कुलदीप, दीपक और करण थे. कुलदीप पढ़ाई के साथ पिता के काम में भी हाथ बंटाता था.  सुरेंद्र के पड़ोस में ही फूल सिंह पाल का परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे और 1 बेटी प्रभा थी. प्रभा और कुलदीप एक ही स्कूल में पढ़ते थे. दोनों आसपास ही रहते थे, इसलिए स्कूल भी साथसाथ आतेजाते थे. दोनों साथसाथ खेलते और पढ़ते हुए जवान हुए तो उन की दोस्ती प्यार में कब बदल गई, उन्हें पता ही नहीं चला.

कुलदीप और प्रभा का प्यार कुछ दिनों तक तो चोरीछिपे चलता रहा, लेकिन वह इसे ज्यादा दिनों तक लोगों की नजरों से छिपा न सके. वैसे भी प्यार कहां छिप पाता है. दोनों के प्रेमसंबंधों की बात गांव के लोगों तक पहुंची तो लोग उन के बारे में चटखारे ले ले कर बातें करने लगे.

गांव वालों से होते हुए यह बात किसी तरह प्रभा और कुलदीप के घर वालों के कानों तक पहुंची तो फूल सिंह ने पत्नी रानी से बात कर के प्रभा पर पाबंदी लगा दी कि वह घर के बाहर अकेली नहीं जाएगी. कहते हैं, बंदिशें लगाने से मोहब्बत और बढ़ती है. प्रभा की कुलदीप से मुलाकात भले ही नहीं हो पा रही थी, लेकिन फोन के जरिए बात होती रहती थी.

चूंकि उन्होंने पहले से ही तय कर लिया था कि वे प्यार में आने वाली हर रुकावट का विरोध करेंगे, इसलिए वे बगावत पर उतर आए. जमाने की परवाह किए बगैर अपने प्यार को मंजिल तक पहुंचाने के लिए वे जनवरी, 2012 में अपनेअपने घरों को छोड़ कर हरियाणा के गुड़गांव शहर चले गए. गुड़गांव में कुलदीप का एक दोस्त रहता था. कुलदीप ने उसी की मदद से आर्यसमाज रीति से प्रभा के साथ विवाह भी कर लिया. दोस्त की मदद से उसे दिल्ली की एक फैक्ट्री में नौकरी भी मिल गई. इस के बाद कुलदीप दिल्ली में किराए पर कमरा ले कर प्रभा के साथ रहने लगा.

प्रभा के इस तरह भाग जाने से फूल सिंह की बहुत बदनामी हुई. उस ने 16 जनवरी, 2012 को थाना घाटमपुर में कुलदीप के खिलाफ प्रभा को बरगला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. रिपोर्ट में उस ने प्रभा को नाबालिग बताया था. मामला नाबालिग लड़की का था, इसलिए पुलिस ने सुरेंद्र पाल और उस के परिवार वालों पर शिकंजा कसा. मजबूरन कुलदीप को वापस जाना पड़ा.

चूंकि कुलदीप के खिलाफ पहले से रिपोर्ट दर्ज थी, इसलिए पुलिस ने कुलदीप को गिरफ्तार कर के पूछताछ की. प्रभा का मैडिकल परीक्षण कराया. मैडिकल में प्रभा की उम्र 18 साल से ऊपर निकली. वह संभोग की अभ्यस्त पाई गई.  प्रभा ने कुलदीप की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए कहा था कि उस ने कुलदीप के साथ अपनी मरजी से जा कर शादी की थी. प्रभा ने सुबूत के तौर पर अपने और कुलदीप के शादी के फोटो भी दिखाए. लेकिन पुलिस ने उस की एक न सुनी और कुलदीप को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया.

मजिस्ट्रेट के सामने प्रभा के बयान कराए गए तो प्रभा ने वही सब कहा जो उस ने पुलिस के सामने चीखचीख कर कहा था. प्रभा के बयान और उस के बालिग होने की रिपोर्ट के मद्देनजर मजिस्ट्रेट ने प्रभा को उस की मरजी के अनुसार जहां और जिस के साथ जाने व रहने की इजाजत दे दी.

अदालत के फैसले के बाद प्रभा ने अपने घर के बजाय सासससुर के साथ जाने की इच्छा जताई तो पुलिस ने उसे कुलदीप के घर पहुंचा दिया. बेटी के इस फैसले से फूल सिंह और उस के धर वालों ने बड़ी बेइज्जती महसूस की. कुछ दिनों बाद कुलदीप भी छूट कर घर आ गया. माहौल खराब न हो, इसलिए कुलदीप प्रभा को ले कर फिर से दिल्ली चला गया. जनवरी, 2013 में प्रभा ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने शिवानी रखा.

समय का पहिया अपनी गति से चलता रहा. शिवानी भी 9 महीने की हो गई. अपने मातापिता से भी कुलदीप के संबंध ठीक हो गए थे. वह अकसर घर वालों से फोन पर बातचीत करता रहता था. लेकिन फूल सिंह ने बेटी से हमेशा के लिए संबंध खत्म कर लिए थे. कुलदीप बेटी का मुंडन संस्कार कराना चाहता था, इसलिए घर वालों से बात कर के वह पत्नी और बेटी को ले कर 9 अक्तूबर, 2013 को अपने गांव ढुकुआपुर आ गया.

सुरेंद्र पाल ने मुंडन संस्कार की सारी तैयारियां पहले से ही कर रखी थीं. 10 अक्तूबर को बड़ी धूमधाम से शिवानी का मुंडन संस्कार हुआ. प्रभा के मातापिता ने कुलदीप को अपना दामाद स्वीकार नहीं किया था. वह कुलदीप से खुंदक खाए बैठा था. इसलिए सुरेंद्र ने मुंडन कार्यक्रम में फूल सिंह और उस के परिवार वालों को नहीं बुलाया था.

गांव वाले मुंडन की दावत खा कर जब लौट रहे थे तो तरहतरह की बातें कर रहे थे. वे बातें फूल सिंह ने सुनीं तो उस का खून खौल उठा. उस ने उसी समय कुलदीप और उस के घर वालों को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. इस बारे में उस ने मोहद्दीपुर थाना बकेवर में रहने वाले अपने भाई रामप्रसाद से सलाह- मशविरा कर के उसे भी शामिल कर लिया. अब इंतजार था, सुरेंद्र के मेहमानों के चले जाने का. 13 अक्तूबर को उस के यहां से सभी मेहमान चले गए. केवल सुरेंद्र की बुआ श्यामा रह गई थीं.

14 अक्तूबर, 2013 की शाम सुरेंद्र खाना खा कर घर से करीब 50 मीटर दूर जानवरों के बाड़े में सोने चला गया. उस की पत्नी ममता बच्चों को खाना खिलाने की तैयारी कर रही थी तभी फूल सिंह, लाल सिंह, रामप्रसाद आदि कुल्हाड़ी, चापड़ और डंडे ले कर सुरेंद्र के घर में दाखिल हुए.

घर वाले कुछ समझ पाते उस से पहले उन्होंने प्रभा की हत्या की, क्योंकि उसी की वजह से समाज में उन की नाक कटी थी. ममता बहू को बचाने आई तो उन्होंने उसे भी काट डाला. उस के बाद कुलदीप के दोनों पैर काट दिए. इतना सब कर के वे फरार हो गए. पुलिस ने फूल सिंह, लाल सिंह, रामप्रसाद उर्फ छोटे पाल से पूछताछ कर के सभी को जेल भेज दिया.

पुलिस ने टुंडा उर्फ मामा से पूछताछ करने के बाद उसे छोड़ दिया. पुलिस का कहना था कि उस का एक हाथ कटा था. एक हाथ से वह किसी पर हमला नहीं कर सकता. दूसरे पुलिस जब उस के घर फरीदपुर पहुंची तो वह घर पर ही सोता मिला था. अगर वह हत्या जैसे जघन्य अपराध में शामिल होता तो अन्य हमलावरों की तरह वह भी घर से फरार होता. वह आराम से अपने घर में नहीं सो रहा होता.

उधर सुरेंद्र का कहना है कि टुंडा घटना में शामिल था. पुलिस ने जानबूझ कर उसे छोड़ दिया. सच्चाई जो भी हो, इस लोमहर्षक कांड ने यह तो साबित कर दिया है कि लोग खुद को कितना भी आधुनिक कहें, लेकिन अभी उन की सोच नहीं बदली है. अगर फूल सिंह बेटी की पसंद को स्वीकार कर लेता तो उसे इस जघन्य अपराध के आरोप में जेल न जाना पड़ता. कथा लिखे जाने तक कुलदीप अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था.

—कथा पुलिस सूत्र और जनचर्चा पर आधारित

आंसुओं का कोई रंग नहीं होता 

शहर से दूर एक छोटे कस्बे को जाने वाली एकलौती टे्रन आधी दूरी तय करने के बाद पिछले 2 घंटे से इंजन में खराबी की वजह से रुकी हुई थी. खून जमा देने वाली सर्दी पड़ रही थी. टे्रन के डिब्बे में मौजूद एकमात्र यात्री को बंद खिड़की के शीशे से नाक टिकाए नीचे बेचैनी से टहलते कुछ यात्रियों को देखते देख रश्मि ने मन ही मन सोचा कि अमित भी घर में इसी तरह बेचैनी से टहलते हुए उस का इंतजार कर रहा होगा.

इंसपेक्टर अमित रश्मि का पति था. दोनों का विवाह 5 साल पहले हुआ था. शादी के 3 साल बाद मीना का जन्म हुआ था, जो अब 2 साल की थी और कंबल में लिपटी इस वक्त रश्मि की गोद में बड़े आराम से सो रही थी. एक महीने शहर में अपनी मां के पास रहने के बाद रश्मि आज दोपहर ही कस्बे के लिए रवाना हुई थी. उस ने फोन से अपने आने की सूचना अमित को दे दी थी.

रश्मि का खयाल था कि वह सूरज डूबने से पहले घर पहुंच जाएगी और शाम की चाय अमित के साथ पिएगी. लेकिन टे्रन के इंजन में आई खराबी की वजह से रास्ते में ही शाम हो गई थी. अब कड़ाके की इस ठंड में इंजन के ठीक होने या फिर शहर से दूसरा इंजन आने का इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था.

रश्मि को मालूम था कि अमित उस से और अपनी बेटी मीना से जुनून की हद तक प्यार करता है. यह उस की मोहब्बत ही थी कि रश्मि उस की बीवी बन गई. बावजूद इस के कि स्वयं उस ने अमित से मोहब्बत नहीं की थी. अमित ने उसे एक होली मिलन समारोह में देखा था और उस की मां से मिल कर उसे अपनी पत्नी बनाने का प्रस्ताव रख दिया था. मम्मी ने न जाने अमित में ऐसा क्या देखा था कि उन्होंने उस से पूछना भी जरूरी नहीं समझा और हां कर दी. रश्मि ने भी अपनी इच्छाओं के विपरीत मम्मी की हां को अपनी पसंद बना लिया, क्योंकि वह मम्मी को हमेशा खुश देखना चाहती थी.

अमित की पत्नी बनने से पहले रश्मि के दिमाग में पल भर के लिए मोहित का विचार आया था. साधारण घर का मोहित भले ही एक छोटे से जनरल स्टोर पर सेल्समैन की नौकरी करता था, लेकिन उस के कदमों में सारे संसार की खुशियां डाल देना चाहता था. रश्मि भले ही मोहित से प्रेम करती थी, लेकिन मां की वजह से उस ने मोहित का मोह छोड़ दिया था. यहां तक कि उसे अपने विवाह की खबर तक भी नहीं दी थी.

शादी के बहुत दिनों बाद तक रश्मि को अमित के चेहरे में मोहित नजर आता रहा. लेकिन फिर समय के साथ धीरेधीरे अमित जैसे उस का वजूद बन गया. अब उस के सामने मोहित की नहीं बल्कि टूट कर प्यार करने वाले पति की तसवीर थी.

रश्मि ने अमित को दिल से कुबूल करना शुरू कर दिया था. और फिर उस की जिंदगी में बसंत के आगमन की तरह मीना का प्रवेश हुआ तो जैसे सब कुछ ही बदल गया. कस्बे में मौजूद एक मकान उन का घर बन गया और उस घर के आंगन में अमित, रश्मि और मीना के प्यार का गुलशन खिल गया.

शहर से कस्बे में जाने की वजह इंसपेक्टर अमित का तबादला था. कस्बे में उस का तबादला वहां बढ़ते हुए अपराधों और इंसपेक्टर अमित के अच्छे रिकौर्ड की वजह से हुआ था. रश्मि ने पिछला जो एक महीना शहर में अपनी मां के पास गुजारा था, काफी हद तक उस की वजह भी कस्बे में होने वाली आपराधिक गतिविधियां और इंसपेक्टर अमित की बढ़ी हुई जिम्मेदारी थी.

रश्मि हर हालत में अमित के साथ रहने की इच्छुक थी, लेकिन उस के मजबूर करने पर उसे शहर में मां के पास रहना पड़ा था. अब भी अमित ने उसे तब आने की इजाजत दी थी, जब उस ने आने के लिए फोन पर फोन किए.

गाड़ी अभी भी अपनी जगह जमी खड़ी थी. अचानक मीना नींद से जाग कर रोने लगी. तमाम कोशिशों के बावजूद वह रोए जा रही थी. रश्मि की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. दरअसल वह दूरी को ध्यान में रख कर मीना के लिए जो दूध लाई थी, वह खत्म हो चुका था. उसे क्या पता था कि गाड़ी खराब हो कर 2 घंटे तक रास्ते में खड़ी रहेगी.

मीना को चुप कराने की कोशिश करते हुए रश्मि ने बेचैनी से ट्रेन के खाली डिब्बे में नजर दौड़ाई. पूरे डिब्बे में या तो खाली सीटें नजर आ रही थीं या फिर बंद खिड़कियों के शीशों के पार गर्म कपड़ों में लिपटे बेचैनी से टहलते कुछ यात्री.

मीना को चुप कराने की सारी कोशिशों में नाकाम होने के बाद रश्मि ने कुछ सोच कर उसे अच्छी तरह कंबल में लपेटते हुए खिड़की का शीशा उठा दिया. इस के साथ ही डिब्बे में सर्दी की एक लहर दाखिल हुई. रश्मि ने दूर खड़े एक आदमी को बुलाने के लिए हाथ से इशारा किया.

वह आदमी काफी देर तक रश्मि के इशारे का मतलब नहीं समझ पाया और अपनी जगह खड़ा रहा. फिर ओवर कोट का कालर ठीक कर के दोनों हाथों को आपस में रगड़ते हुए छोटेछोटे कदमों से रश्मि की ओर बढ़ा. वह पास आया तो अचानक ठंडे वातावरण में गरमी आ गई. वह मोहित था. उसे देख रश्मि जहां हक्कीबक्की सी रह गई थी, वहीं मोहित की हालत भी किसी गूंगे जैसी हो गई.

जब शहर से आया हुआ दूसरा इंजन टे्रन को ले कर रवाना हुआ तो रश्मि के डिब्बे में बिलकुल खामोशी छाई थी. इस खामोशी में चार आंखें लगातार एकदूसरे को घूरे जा रही थीं. ये आंखें थीं रश्मि और मोहित की. दूध पीने के बाद मीना सो गई थी. उस के लिए दूध का इंतजाम मोहित ने किया था. वह टे्रन के दूसरे डिब्बे से मीना के लिए केवल दूध ही नहीं, बल्कि रश्मि के लिए भी खानेपीने की कुछ चीजें ले आया था.

‘‘रश्मि कैसी हो तुम?’’ मोहित ने पूछा तो रश्मि ने जवाब में उसे पिछले 5 सालों की पूरी कहानी सुना दी. उस की कहानी सुनते वक्त मोहित सिर झुकाए बैठा रहा.

रश्मि खामोश हुई तो मोहित ने उदास और भीगी आंखें उठाते हुए कहा, ‘‘मैं ने बहुत इंतजार किया, बहुत तलाश किया. लेकिन तुम ने कभी अपने घर का पता बताने की जरूरत ही नहीं समझी. ऐसे में मैं कितने घरों के दरवाजे खटखटाता? मैं ने तो बस तुम्हारे इंतजार को ही अपनी जिंदगी बना लिया.’’

मोहित थोड़ी देर चुप बैठा कुछ सोचता रहा. फिर अचानक उस ने रश्मि से पूछा, ‘‘अमित कैसा पति है? क्या वह तुम से उतना ही प्रेम करता है, जितना मैं ने किया था?’’

‘‘अमित बहुत अच्छा और प्यारा इंसान है, एक आइडियल पति. शायद वह मुझे तुम से भी ज्यादा मोहब्बत करता है. इसीलिए मैं तुम्हें भूलने में कामयाब रही.’’ रश्मि ने मोहित से नजरें चुराते हुए जवाब दिया तो दोनों के बीच एक बार फिर पूरी तरह खामोशी छा गई. ऐसा लगा जैसे दोनों बात करना भूल गए हों.

‘‘मोहित, तुम ने शादी कर ली?’’ काफी देर बाद रश्मि ने मीना के माथे को चूमते हुए सवाल किया.

‘‘नहीं, मैं शादी तो तब करता जब मुझे वह लड़की मिलती जो मेरे दिलोदिमाग में बसी थी, जिस से मुझे मोहब्बत थी. आज तक उसी लड़की को तलाश कर रहा था. उस की निशानी के तौर पर मेरे पास एक फोटो के अलावा कुछ नहीं था. मोहित ने सिर झुकाएझुकाए टूटे शब्दों में अपनी बात खत्म की और जेब से पर्स निकाल कर रश्मि के सामने खोल दिया.

पर्स के अंदर दाईं ओर लगे प्लास्टिक कवर के नीचे रश्मि की 5 साल पुरानी मुसकराती हुई फोटो लगी थी. उस की यह फोटो मोहित ने एक पार्क में खींची थी. तब जब रश्मि उस से मोहब्बत करती थी. लेकिन अब रश्मि उस वक्त की रश्मि चौहान नहीं, बल्कि अमित की पत्नी थी, एक बेटी की मां. एक घर की मालकिन.’’

‘‘यह फोटो तुम ने अब तक संभाल कर रख रखी है?’’ रश्मि ने प्रश्न किया तो मोहित ने भरे मन से जवाब में कहा, ‘‘सिर्फ फोटो ही नहीं, मैं ने अपनी मोहब्बत को भी बचा कर रखा है. लेकिन अब दिल टूटने का वक्त आ गया है.’’

मोहित ने आंखों में उतर आए आंसुओं को छिपाते हुए खिड़की का शीशा उठा दिया. ठंडी हवा का एक तेज झोंका डिब्बे में दाखिल हुआ, जिस से रश्मि कंपकंपा कर रह गई.

‘‘इसे बंद कर दो, प्लीज. ठंड बहुत है, मेरी बेटी बीमार हो जाएगी.’’ रश्मि ने कहा तो मोहित का हाथ हिला और झटके के साथ शीशा दोबारा खिड़की पर आ गिरा. तभी रश्मि ने देखा कि मोहित की अंगुली से खून बह रहा है. उस की अंगुली फे्रम के नीचे आ गई थी.

‘‘लो इसे जख्म पर बांध लो.’’ रश्मि ने अपना रूमाल मोहित की ओर बढ़ाते हुए कहा. मोहित ने रूमाल जख्म पर बांधने के बजाय अपनी जेब में रख लिया और फिर अपने लाल और गर्म खून से डिब्बे की दीवार पर जगहजगह रश्मि लिखते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम्हारे साथ जिंदगी गुजारने के बहुत से ख्वाब देखे थे, लेकिन इन ख्वाबों की ताबीर के बीच मेरी हैसियत आड़े आ रही थी. मैं ने यह सोच कर बहुत कुछ हासिल किया कि तुम मुझे मिलोगी. लेकिन तुम नहीं मिलीं. तुम्हारे बिना सब कुछ बेकार है, रश्मि.’’

‘‘जब जिंदगी ने तुम्हें सब कुछ दे ही दिया है तो फिर खुशियों से मुंह क्यों मोड़ रहे हो? तुम्हें मुझ से अच्छी हजारों लड़कियां मिल जाएंगी. शादी कर लो मोहित और खुश रहो.’’ रश्मि ने मोहित की बात काटते हुए सलाह दी. डिब्बे में एक बार फिर खामोशी छा गई. इस खामोशी को मीना की आवाज ने तोड़ा. वह एक बार फिर जाग गई थी. मीना को गोद में उठा कर मोहित बहुत देर तक प्यार करता रहा.

फिर रश्मि को उस की बेटी वापस करते हुए बोला, ‘‘मुझे तुम से मोहब्बत थी, है और रहेगी. मैं तुम्हारी बेटी से भी मोहब्बत करने लगा हूं और शायद अमित से भी. मेरा खयाल है, हमें जिस से मोहब्बत हो उस से जुड़ी हर चीज, हर व्यक्ति से मोहब्बत करनी चाहिए. क्या तुम एक बार मुझे अपने माथे पर चुंबन लेने की इजाजत दोगी?’’

रश्मि ने आंखें बंद कर के गरदन झुका दी तो मोहित माथे का चुंबन ले कर मीना को प्यार करने लगा. जबकि रश्मि अपनी आंखों में उतर आए आंसुओं को पीने की कोशिश कर रही थी. ट्रेन धीमी होने लगी थी, स्टेशन आने वाला था, तभी मोहित झटके से डिब्बे के बाहर चला गया.

स्टेशन पर इंसपेक्टर अमित बेचैनी से रश्मि का इंतजार कर रहा था. वह जैसे ही ट्रेन से उतरी, अमित ने आगे बढ़ कर उस का हाथ थाम लिया. वह बेटी के सिर पर हाथ फिराते हुए बोला, ‘‘जानेमन, मैं तुम्हारे और मीना के लिए बहुत चिंतित था. बताओ, यात्रा कैसी रही?’’

अमित के सवाल पर रश्मि अचानक सिसकियां ले कर रोने लगी. अमित ने उसे बड़े प्यार से चुप कराया. वह यही समझ रहा था कि उस की आंखों में महीने भर विछोह का गम सिमटा हुआ है, जो आंसू बन कर बह रहा है. वह पत्नी और बेटी को घर ले आया.

अमित सुबह से इमरजेंसी ड्यूटी पर गया हुआ था और रात के 12 बजे तक नहीं लौटा था. उस की गैरमौजूदगी में रश्मि पूरे समय मोहित के बारे में सोचती रही, जो उस के साथ ही कस्बे तक आया था. उसे यह डर सता रहा था कि अगर अमित को मोहित के बारे में पता चल गया तो कहीं कोई ऊंचनीच वाली बात न हो जाए.

हालांकि मोहित ने घर आने या आइंदा मुलाकात के बारे में कुछ नहीं कहा था. वह तो रश्मि का माथा चूमने के बाद देर तक खामोशी से बैठा मीना को प्यार करता रहा था. रश्मि ने कई बार उस से बात करनी चाही थी, लेकिन उस की खामोशी नहीं टूटी थी.

जब ट्रेन कस्बे के स्टेशन वाले प्लेटफार्म में दाखिल हुई थी तो उस ने ट्रेन के रुकने से पहले ही हमेशा खुश रहने की दुआ देते हुए छलांग लगा दी थी. हालांकि बात वहीं खत्म हो गई थी, लेकिन रश्मि तरहतरह के अंदेशों से घिरी अमित का इंतजार कर रही थी.

कालबेल की आवाज सुन कर रश्मि हड़बड़ा कर उठ बैठी. लाइट जला कर देखा तो घड़ी रात के डेढ़ बजा रही थी. वह दरवाजे पर पहुंची, आने वाला अमित ही था. अमित ने अंदर दाखिल होते ही रश्मि को हाथों में उठा लिया और फिर सारे कमरे में ठहाकों के साथ चक्कर लगाने के बाद उसे जमीन पर उतारते हुए बोला, ‘‘आज मैं बहुत खुश हूं रश्मि.’’

‘‘प्रमोशन हो गया क्या?’’ रश्मि ने मुसकराते हुए पूछा. वह जानती थी, अमित को काफी दिनों से प्रमोशन का इंतजार था.

‘‘प्रमोशन हुआ नहीं, आज एक बहुत पुराना दुश्मन हाथ आ गया. बहुत खतरनाक बदमाश था. इस से पहले भी उसे मैं ने ही गिरफ्तार किया था, लेकिन वह पुलिस की हिरासत से फरार हो गया था. बड़ेबड़े औफिसर उस से डरते थे.

‘‘फरार होने के बाद उस ने मुझे एक खत लिखा था, जिस में उस ने धमकी दी थी कि वह मेरे पूरे परिवार की हत्या कर देगा. इसीलिए मैं ने तुम्हें तुम्हारी मां के पास शहर भेज दिया था. तुम वापस आ गईं तो मैं बहुत परेशान था. मुझे अपनी जान की परवाह नहीं थी. चिंता सिर्फ तुम्हारी और मीना की थी. तुम दोनों मुझे अपनी जिंदगी से ज्यादा अजीज हो.’’ अमित मीना को प्यार से चूमने के बाद शरारत वाले अंदाज में रश्मि की ओर बढ़ा, लेकिन वह हंसते हुए दूर हो गई.

‘‘मेरा नाइट सूट लाओ, मैं सोने से पहले नहाना चाहता हूं. बहुत थक गया हूं.’’ अमित ने अंगड़ाई लेते हुए गरदन को झटका दे कर कहा.

‘‘ओ.के. अभी लाई.’’ रश्मि मुसकराती हुई अंदर अलमारी की तरफ जाने लगी.

‘‘सुनो.’’ अमित की आवाज पर रश्मि के उठे हुए कदम रुक गए.

‘‘पहले पूरी बात तो सुन लो. आज उस खतरनाक बदमाश से सामना हो गया. मेरा खयाल था पहले की तरह एक बार फिर उस से सख्त मुकाबला होगा. पहले भी मैं ने उसे अपनी जान खतरे में डाल कर कई साथियों की मदद से पकड़ा था. लेकिन आज वह मेरी गोली का निशाना बन कर गिरा और मर गया.

‘‘अगर न मरता तो शायद हम तीनों को मार देता या फिर मुझे सारी जिंदगी तड़पने के लिए छोड़ कर तुम्हें और मीना को मार डालता. कमाल का निशानेबाज था, आवाज पर गोली चलाना जानता था. लेकिन आज उस की मौत आ गई थी, इसलिए पिस्तौल भी इस्तेमाल नहीं कर सका. गोलियों से भरी पिस्तौल उस की जेब में ही रह गई.’’

‘‘अगर उस से मुकाबले में तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं भी मर जाती.’’ रश्मि ने रोते हुए कहा.

‘‘अरे पागल मुझे क्या होना था, अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं क्या करता? वह तो तुम्हें मारना चाहता था. हमारे पुलिस रिकौर्ड के हिसाब से वह खतरनाक अपराधी था. हर काम पूरी योजना बना कर करता था. तुम्हारी हत्या की योजना भी ले कर आया तो सारी जानकारी के साथ.

‘‘हैरत तो यह है कि उस बदमाश ने तुम्हारी एक पुरानी फोटो भी कहीं से प्राप्त कर ली थी. उस की कमीज की जेब से खून से सने एक लेडीज रूमाल में लिपटी यह फोटो मिली है, यह देखो.’’

खून से सनी उस फोटो में रश्मि एक पार्क के किसी कोने में खड़ी मुसकरा रही थी. फोटो देख कर रश्मि एक बार फिर सिसकियों के साथ रोने लगी. उस की वह फोटो उसी रूमाल में लिपटी थी, जो उस ने मोहित को ट्रेन में हाथ पर बांधने के लिए दी थी.

अमित समझ नहीं सका कि रश्मि की आंखों में खुशी की वजह से आंसू आए हैं या किसी और वजह से. पति की जिंदगी के लिए या अपनी जिंदगी के लिए. क्योंकि आंसूओं का न तो कोई रंग होता है और न फितरत.

आशिक पति ने ली जान

चाची का इश्किया भतीजा – भाग 1

सन 2003-04 में केंद्र और राज्य सरकारों के आपसी मतभेदों के कारण कोयले के दाम आसमान छूने लगे थे. उन दिनों कोयला  सामान्य मूल्य से दोगुने से भी अधिक दाम में बिक रहा था. उस स्थिति में सरदार परमजीत सिंह को कोयला खरीदना मुश्किल हो  गया था. पटियाला के अरनाबरना चौक पर उन का कोल डिपो था. उन का यह काफी पुराना व्यवसाय था. लेकिन कोयले की आसमान छूती कीमतों से उन के इस व्यवसाय को गहरा झटका लगा था.

कोयले के दाम तो बढ़ ही गए थे, इस के साथ एक समस्या यह भी थी कि कोयले का सौदा भी 4-6 गाडि़यों से कम का नहीं हो रहा था. धंधा करने वालों को धंधा करना ही था, इसलिए कोयला महंगा हो या सस्ता, कोयला तो मंगाना ही था. जिस भाव में माल आएगा, उसी भाव में बिकेगा भी.

कुछ अपने पास से तो कुछ ब्याज पर उधार ले कर जैसेतैसे परमजीत सिंह उर्फ सिंपल ने 6 गाड़ी कोयला मंगा लिया. संयोग देखो, परमजीत का माल आते ही केंद्र सरकार ने कोयला कंपनियों को अपने नियंत्रण में ले लिया, जिस से तुरंत कोयले की आसमान छूती कीमतें घट कर सामान्य हो गईं.

परमजीत सिंह का तो दीवाला निकल गया. महंगे भाव पर खरीदा गया कोयला उन्हें मिट्टी के भाव बेचना पड़ा. जिस की वजह से उन्हें मोटा घाटा हुआ. इस घाटे से उन्हें गहरा सदमा लगा और वह बीमार रहने लगे. घाटा हो या मुनाफा, परमजीत ने जिस के पैसे लिए थे, उस के पैसे तो देने ही थे.

इस तरह परमजीत सिंह की हालत काफी खराब हो गई. मिलनेजुलने वाले, यारदोस्त, नातेरिश्तेदार आते और सांत्वना दे कर चले जाते. कोई मदद की बात न करता. उस समय उन की इस परेशानी में उन का भतीजा प्रीत महेंद्र सिंह काम आया. उस ने चाचा की मदद ही नहीं की, हर तरह से साथ दिया. बीमारी का इलाज तो कराया ही, व्यवसाय को फिर से जमाने के लिए मोटी रकम भी दी.

जब तक सब ठीक नहीं हो गया, प्रीत महेंद्र दोनों समय परमजीत सिंह के घर आताजाता रहा. दवा आदि की ही नहीं, घर की जरूरत की अन्य चीजों का भी उस ने खयाल रखा. इसी का नतीजा था कि परमजीत सिंह ने जल्दी स्वस्थ हो कर अपना व्यवसाय फिर से संभाल लिया. परमजीत के ठीक होने के बाद भी प्रीत महेंद्र का उन के घर आनेजाने का सिलसिला उसी तरह जारी रहा.

अब इस की वजह चाचा की बीमारी नहीं, खूबसूरत चाची जसमीत कौर उर्फ गुडि़या थी. दरअसल जब से प्रीत महेंद्र ने चाची जसमीत कौर को देखा था, तभी से उस के मन में एक अजीब सी उथलपुथल मची हुई थी. चाचा से शादी के समय ही वह चाची की सुंदरता पर मर मिटा था.

इस में उस का दोष भी नहीं था. जसमीत थी ही इतनी खूबसूरत. कश्मीर के सेब की तरह गोल और गुलाबी रंग का उस का चेहरा ताजे खिले गुलाब की तरह दमकता था. उस का शरीर भी सांचे में ढला बहुत ही आकर्षक था. 2 बच्चों की मां होने के बाद भी उस की खूबसूरती में कोई कमी नहीं आई थी.

प्रीत महेंद्र ने चाचा के साथ जो किया था, वह छोटीमोटी बात नहीं थी. इसलिए परमजीत सिंह उस का बहुत एहसान मानते थे. चाची जसमीत भी उस की बहुत इज्जत करती थी. चाचीभतीजे में पटती भी खूब थी. इस की वजह यह थी कि भतीजा ही नहीं, चाची भी अभी जवान थी. जबकि परमजीत अधेड़ हो चुका था. चाचीभतीजे ने क्या गुल खिलाया, यह जानने से पहले आइए थोड़ा इन के घरपरिवार के बारे में जान लेते हैं.

सरदार सुरेंद्र सिंह पटियाला के ही रहने वाले थे. उन का कोयले का छोटामोटा व्यवसाय था. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे परमजीत सिंह, हरमीत सिंह और 2 बेटियां थीं. हरमीत की शादी के पहले ही मौत हो गई थी. दोनों बेटियों की शादी कर दी तो वे अपनेअपने पतियों के साथ यूएसए चली गई थीं.

सुरेंद्र सिंह ने परमजीत सिंह की शादी सन 1995 में जसमीत कौर के साथ की थी. जसमीत कौर छोटी थी, तभी उस के पिता की मौत हो गई थी. जसमीत की 2 बहनें और थीं, भाई कोई नहीं था. विधवा मां ने किसी तरह तीनों बेटियों को पालापोसा. शादी लायक होने पर दोनों बड़ी बेटियों की शादी उन्होंने लखनऊ में कर दी थी. जसमीत की शादी परमजीत से कर के वह बेटियों के पास रहने लखनऊ चली गईं थीं.

जिस समय जसमीत कौर की शादी परमजीत सिंह से हुई थी, वह मात्र 16 साल की थी, जबकि परमजीत उस से 20 साल बड़ा यानी 36 साल का था. समय के साथ वह 2 बच्चों की मां बनी. लेकिन वह जवान हुई तो उस का पति बुढ़ापे की ओर बढ़ चला. जसमीत से हुए उस के दोनों बेटों के नाम थे गुरतीरथ और जसदीप.

शादी और बच्चे होने से परमजीत की जिम्मेदारियां बढ़ गई थीं. उस के खर्च के लिए पिता सुरेंद्र सिंह ने एक ईंट भट्टा खोलवा दिया था. लेकिन उस का वह भट्ठा चला नहीं. इस के बाद उस ने अपना कोयले का व्यवसाय संभाल लिया. उसी बीच सरदार सुरेंद्र सिंह की मौत हो गई तो घरपरिवार से ले कर कारोबार तक की जिम्मेदारी उसी पर आ गई.

सब कुछ लगभग ठीकठाक ही चल रहा था. लेकिन 2004 में हुए जबरदस्त घाटे ने परमजीत की कमर तोड़ दी थी. संयोग से मदद के लिए भतीजा प्रीत महेंद्र आगे आ गया था. इसी मदद के बहाने प्रीत महेंद्र का चाचा के घर आनाजाना हुआ तो उसे चाची से दिल लगाने का मौका मिल गया. परमजीत सुबह ही डिपो पर चले जाते थे.  उस के बाद भतीजा प्रीत महेंद्र उन के घर पहुंच जाता था. परमजीत ने पत्नी से कह रखा था कि वह प्रीत महेंद्र का हर तरह से खयाल रखे, क्योंकि उस ने उन्हें बहुत बड़े संकट से उबारा था.

एक दिन दोपहर को प्रीत महेंद्र चाचा के घर पहुंचा तो घर में जसमीत अकेली थी. उस ने डोरबेल बजाई तो जसमीत कौर ने दरवाजा खोला. एकदूसरे को देख कर दोनों मुसकराए. जसमीत बगल हट कर बोली, ‘‘आओ, अंदर आओ.’’

अंदर आ कर प्रीत महेंद्र सोफे पर बैठ गया. दरवाजा बंद कर के जसमीत कौर भी आ कर उस के बगल बैठ गई. जसमीत और प्रीत महेंद्र भले ही चाचीभतीजे थे, लेकिन दोनों हमउम्र थे. इसलिए कभीकभार हलकाफुलका मजाक भी कर लेते थे. लेकिन जब से उस की नीयत में खोट आई थी तब से वह खामोश रहने लगा था. ऐसा ही कुछ हाल जसमीत का भी था. शायद दोनों को ही इस बात का इंतजार था कि पहल कौन करे.

नई नवेली दीपा ने सौतेले बेटे संग रची साजिश – भाग 3

दीपा को पता चल गया था कि बच्चे जयदेव सिंह से नफरत करते हैं, जबकि वह बच्चों पर अपना प्रेम लुटाती है. इस कारण ही वह उस के साथ भी गलत व्यवहार करता है. फिर भी उस ने बच्चों का खयाल रखने में कोई कमी नहीं आने दी. उन के लिए मनपसंद खाना बनाना, स्कूल को तैयार करना, उन के कपड़े धोना, घर की साफसफाई करना, उस की दिनचर्या में शामिल हो गया था. बच्चे भी दीपा से बहुत प्यार करने लगे थे.

दीपा के साथ दूसरी समस्या यह थी कि जयदेव उसे ले कर गलत धारणा रखता है. वह पत्नी पर शक करता था. वह उस पर बड़े बेटे के साथ अवैध संबंध होने का आरोप लगा चुका था. इस आरोप से दीपा और हरनाम सिंह दोनों दुखी हो गए थे. जयदेव उन की बातें सुनने को राजी नहीं था. इस कारण ही दीपा की पिटाई कर देता था. उस के दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाता रहता था कि दीपा के उस के बड़े बेटे के साथ अवैध संबंध हैं.

शक होने पर लगवाए सीसीटीवी कैमरे

इस कारण ही जयदेव ने अपने घर पर सीसीटीवी कैमरे लगवा लिए थे और उन्हें अपने मोबाइल फोन से जोड़ लिया था. जब वह ड्यूटी पर होता था, तब वह बीचबीच में अपने घर की गतिविधियों पर एक नजर मार लेता था. इस की खबर दीपा के बड़े भाई नीशू सिंह को मिली, तब वह अपने बहनोई के प्रति काफी आगबबूला हो गया. उस के बाद ही उस ने बहन के बचाव के लिए कुछ करने कसम खाई.

बात इसी साल अप्रैल महीने के पहले सप्ताह की है. जयदेव अपनी कीमती जमीन बेचने की योजना बना रहा था, दीपा उस का विरोध कर रही थी. यहां तक कि बच्चे भी नहीं चाहते थे कि जमीन बिके. बच्चों को पता था कि वह सब खेती की जमीन थी. वहीं से साल भर का अनाज आता था. बाजार से चावल, गेहूं और दाल का एक दाना नहीं खरीदा जाता था. अगर जमीन बिक गई तो वह सब नहीं आएगा.

हरनाम सिंह को यह मालूम था कि उस का बाप जमीन बेच कर सारे पैसे शराब में उड़ा देगा. दीपा के भाई नीशू ने जयदेव को ऐसा करने से रोकने के लिए मिल कर एक योजना बनाई. इस में दीपा और दोनों बेटों हरनाम व हरमिंदर सिंह को भी शामिल कर लिया.

घटना से 14 दिन पहले घर के सभी लोग एकदम शांत हो कर रहने लगे. जयदेव को पता चल गया कि जब वह ड्यूटी पर होता था, तब कुछ समय के लिए कैमरे बंद रहते हैं. उसे बच्चों और दीपा ने एहसास करवा दिया कि वह नाहक ही अपने बेटे और पत्नी पर शक कर रहा है.

दीपा ने हरनाम से कहा कि क्यों न जयदेव को ही खत्म कर दिया जाए. आज नहीं तो कल यह जमीनजायदाद बेच डालेगा और वे गरीब हो जाएंगे. जयदेव के मरने के बाद उस के बदले में बेटे या दीपा को जयदेव की जगह कोई नौकरी मिल जाएगी. उस के मरने पर जो पैसा मिलेगा, वह बाकी बच्चों के भविष्य के लिए काम आएगा. छोटी बेटी जासमीन की शादी के लिए भी फिक्स्ड डिपाजिट करवा दिया जाएगा.

सौतेले बेटे के साथ की पति की हत्या

योजना के अनुसार 5 मई, 2023 की शाम 6 बजे कांठ तहसील से जयदेव सिंह रोजाना की भांति अपने घर शराब पी कर आया था. घर आते ही उस ने फिर शराब पी. दीपा को जल्द खाना लगाने के लिए बोला. दीपा ने खाना लगा दिया. खाना खा कर जयदेव सो गया, तब दीपा का भाई नीशू सिंह, हरनाम सिंह रात होने का इंतजार करने लगे.  नीशू सिंह अपने साथ एक देशी तमंचा भी ले कर आया था. हालांकि उस के कारतूस नहीं होने के कारण उस का इस्तेमाल नहीं हो सका था. चारों ने मिल कर एक मोटे डंडे का इंतजाम किया.

5 मई की रात लगभग डेढ़ बजे वे नीचे आ गए. नीशू के हाथ में डंडा था. जयदेव ग्राउंड फ्लोर पर गहरी नींद में सो रहा था. दीपा का इशारा मिलते ही नीशू सिंह ने जयदेव सिर पर डंडे से हमला कर दिया. जयदेव करवट लिए सो रहा था. डंडे के हमले से जयदेव का सिर फट गया, लेकिन वह मरा नहीं था. यह देख कर दीपा और छोटे बेटे ने जयदेव के पैर पकड़ लिए. दूसरी तरफ नीशू और हरनाम ने डंडे को गरदन पर रख कर पूरी ताकत से दबा दिया.

थोड़ी देर में ही जयदेव के प्राणपखेरू उड़ गए. पति की हत्या के बाद ही दीपा ने योजना के अनुसार बाहर आ कर शोर मचाना शुरू कर दिया था.

आरोपी दीपा कौर के बयान के आधार पर पुलिस ने दीपा के साथ भाई नीशू, दोनों बेटों हरनाम सिंह व हरमिंदर सिंह से विस्तार से पूछताछ कर दीपा व उस के भाई नीशू को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया. उन्हें 7 मई को मुरादाबाद की जिला कारागार भेज दिया गया. नाबालिग हरनाम व हरमिंदर को बाल सुरक्षा गृह भेज दिया गया.

अपनों के खून से रंगे हाथ : ताइक्वांडो कोच को मिली सजा – भाग 3

हनुमान और उस के दोनों साथी कपिल और दीपक कमरे से बाहर निकल कर बरामदे में आए. तभी वहां सो रहे संतोष शर्मा के छोटे बेटे हैप्पी के हाथ पर हनी का पैर पड़ गया. बच्चों के जग जाने पर पकड़े जाने के डर से वे उन पर भी टूट पड़े. संतोष के बाकी दोनों छोटे बेटों हैप्पी (15 वर्ष) और अज्जू (12 वर्ष) के साथ ही उस के भतीजे निक्की (10 वर्ष) की भी गला रेत कर हत्या कर दी. हत्यारों ने उन्हें भी चाकुओं से निर्ममतापूर्वक गोद डाला.

संतोष के पति और बच्चों की हत्या करने के बाद हनुमान ने संतोष शर्मा से उस की स्कूटी की चाबी मांगी, तब संतोष शर्मा ने चाभी और 3000 हजार रुपए दिए. तीनों हत्यारे स्कूटी से ही फरार हो गए. उन्होंने अलवर रेलवे स्टेशन के पास मंडी मोड़ के निकट सुनसान जगह पर संतोष शर्मा की स्कूटी खड़ी कर दी.

रात ज्यादा हो जाने के कारण उन्हें ट्रेन नहीं मिली. वे आटो में बैठ कर राजगढ़ चले गए. जहां से बाद में हत्याकांड में शामिल उस के दोनों साथी वापस अलवर लौट गए, जबकि संतोष शर्मा का प्रेमी वहां से बांदीकुई होते हुए जयपुर चला गया. वह जयपुर से उदयपुर भाग गया.

यह हत्याकांड किसी फिल्म की तरह था. इतने भयानक हत्याकांड के बारे में जिस ने भी सुना, दांतों तले अंगुली दबा ली. 5-5 गला कटे परिवार के सदस्यों की लाशों के बीच खून भरे कमरे में संतोष शर्मा कई घंटों तक अकेले बैठी रही. तयशुदा योजना के अनुसार सुबह होने से पहले छोटी बहन के पास जा कर सो गई.

वारदात के बाद फैली सनसनी

सुबह होने पर वह भी रोनेचिल्लाने का नाटक करने लगी. मोहल्ले वाले भी आ गए. रोती हुई संतोष शर्मा ने मोहल्ले वालों पर ससुराल वालों के साथ जमीन विवाद के कारण पूरे परिवार को मार देने का आरोप लगा दिया और थोड़ी देर में बीमार बन कर अस्पताल में भरती हो गई. उस के संदिग्ध आचरण को देख कर पुलिस के शक की सुई उस पर जा कर ठहर गई.

एक ही रात में शिवाजी कालोनी के मकान में एक साथ परिवार के 5 लोगों की हत्या की खबर जंगल की आग की तरह चारों तरफ फैल गई. घटनास्थल पर शिवाजी पार्क थाने के एसएचओ विनोद कुमार सांवरिया, एसपी राहुल प्रकाश सहित अन्य आला अफसर पहुंच गए.

घटनास्थल पर पुलिस डौग्स और एफएसएल टीम के साथ फोटोग्राफर ने आ कर अलगअलग एंगल्स से मृतकों की फोटो खींचे.  मीडियाकर्मियों सहित क्षेत्रवासियों की भारी भीड़ एकत्रित हो गई. जितने मुंह उतनी बातें होने लगीं. लोग यकीन नहीं कर पा रहे थे कि क्या कोई औरत ऐसी भी हो सकती है, जो बहन, पत्नी और मां कुछ भी न बन सकी.

अलवर में गांधी जयंती की रात को घटित इस हत्याकांड से पूरा राजस्थान हिल गया था. पुलिस प्रशासन को जवाब देना भारी पड़ रहा था. इस ब्लाइंड मर्डर केस को ले कर विपक्ष ने खूब हायतौबा मचाई, वहीं मीडिया ने भी राज्य में कानूनव्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो जाने की खबरें प्रचारितप्रसारित कर पुलिस की नींद उड़ा दी.

तत्कालीन एसपी राहुल प्रकाश ने आला अफसरों की बैठक में दिशानिर्देश देने के साथ ही इस ब्लाइंड मर्डर केस की जांच की जिम्मदारी शिवाजी पार्क थाने के एसएचओ विनोद कुमार सांवरिया को सौंप दी. मामला पेंचीदा था. इसे सुलझाने के लिए टीम गठित की. मौकाएवारदात पर पहुंच कर जांचपड़ताल की. सभी लाशों को पोस्टमार्टम के लिए अलवर के सरकारी अस्पताल भेज दिया गया.

काल डिटेल्स से पुलिस पहुंची आरोपियों तक

पूछताछ के लिए संतोष शर्मा को हिरासत में ले लिया गया. उस का मोबाइल कब्जे में ले कर उस की काल डिटेल्स निकाली गई. जल्द ही सुराग मिलने शुरू हो गए. संतोष शर्मा के फोन की काल डिटेल्स में वारदात से पहले उस की हनुमान प्रसाद से कई बार बात हुई थी. सब से ज्यादा फोन पर बातचीत करने के संकेत मिलने से पुलिस को कुछ और सुराग मिले.

पुलिस ने उदयपुर पहुंच कर हनुमान प्रसाद के कमरे पर दबिश दी. उस के कमरे की तलाशी ली गई. वहां से 7 मोबाइल फोन और बैग से खून सने कपड़े बरामद हुए. हनुमान को गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस अहम सबूत के साथ अलवर पहुंची. उच्च अधिकारियों से आवश्यक निर्देश ले कर एसएचओ सांवरिया ने मुलजिम हनुमान से गहन पूछताछ शुरू की.

उस ने अपना जुर्म कुबूल लिया, जिस के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर तथा रिमांड पर ले कर हनुमान की निशानदेही पर अलवर की तहसील राजगढ़ के रेलवे स्टेशन के पास स्थित नाले से हत्या में प्रयुक्त हथियार बरामद कर लिए. अलवर रेलवे स्टेशन के पास खड़ी संतोष शर्मा की स्कूटी भी बरामद कर ली गई. हनुमान की मदद करने वाले साथी कपिल और दीपक को भी अलवर के मालाखेड़ा गुजुकी के किराए के मकान से पकड़ लिया गया.

पुलिस की सख्त पूछताछ से अय्याशी की गर्त में डूबे हनुमान और संतोष शर्मा की कहानी का खुलासा हो गया. उस ने अपना अपराध कुबूल कर सब कुछ विस्तारपूर्वक बता दिया. यह भी बता दिया कि अलवर के मंडी मोड़ पर स्थित पानी की टंकी पर हत्याकांड को अंजाम देने के बाद तीनों ने रक्तरंजित छुरा और अपने हाथ पैर धोए थे. ट्रेन नहीं मिलने पर अलवर रेलवे स्टेशन के आगे आटो से राजगढ़ के लिए फरार हो गए थे.

हनुमान के नाबालिग साथी दीपक और कपिल वापस अलवर चले गए, जबकि खुद राजगढ़ से बांदीकुई जंक्शन चला गया. वहां से ट्रेन पर बैठ कर उदयपुर चला गया. अलवर से उदयपुर तक की लंबी यात्रा की थकान के कारण वह अपने कमरे पर जा कर सो गया था. इस कारण मोबाइल और खून से सने कपड़े को ठिकाने लगाने का उसे वक्त ही नहीं मिल पाया.

दूसरी तरफ संतोष शर्मा को बताया गया कि उस के प्रेमी हनुमान ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया है. उस के बाद संतोष शर्मा ने भी हत्याकांड में शामिल होने की बात मान ली. पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. हत्याकांड में शामिल हनुमान के दोनों साथी नाबालिग ही थे. इस कारण उन्हें बाल न्यायालय में पेश कर बाल सुधार गृह भेज दिया गया.

हत्याकांड का फैसला आ जाने पर एक बार फिर हालात का जायजा लेने के लिए लेखक ने महिला ताइक्वांडो कोच के पति बनवारी लाल के गांव गारू पहुंच कर गांव वालों से बातचीत की.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, कथा में वंदना परिवर्तित नाम हैं

नई नवेली दीपा ने सौतेले बेटे संग रची साजिश – भाग 2

पत्नी दीपा कौर पर हुआ शक

जांच करने वाली टीम को यह बात गले नहीं उतर रही थी कि 5-6 मई की रात को जयदेव की हत्या हुई थी, उस दौरान घर में लगे सीसीटीवी कैमरे क्यों बंद थे? टीम इस जांच में लग गई कि कैमरे किस ने बंद किए? उन्हें सुबह 6 बजे किस ने खोला? इस बारे में भदौरिया ने दीपा से भी सवाल किया. उस से सख्ती से पूछा कि कहीं उसी ने कैमरे तो बंद नहीं किए, इस के पीछे उस की क्या मंशा थी?

पुलिस की सख्ती के सामने दीपा कौर सकपका गई. उस का चेहरा सफेद पड़ गया. वह घबरा गई थी. उस की घबराहट को भांपते हुए भदौरिया ने सीधे लहजे में सवाल किया कि वह सब कुछ सचसच बताए, वरना उस की खैर नहीं. उस पर ही जयदेव सिंह की हत्या का आरोप लग सकता है. उसे जेल हो सकती है. कड़ी सजा मिल सकती है. इस के बाद उस से आगे की पूछताछ के लिए महिला कांस्टेबल के हवाले कर दिया.

जैसे ही महिला सिपाही ने दीपा से दोगुनी उम्र के जयदेव से शादी करने का सवाल किया तो वह और भी परेशान हो गई. शादी के सवाल के जवाब में उस ने जयदेव का सरकारी कर्मचारी होना कारण बताया. जब उस के पतिपत्नी के संबंध और बच्चों वाले परिवार में एडजस्ट करने के बारे में पूछा गया, तब वह बिफर गई. पूछताछ के क्रम में उस ने बोल दिया कि जयदेव शराब के नशे में उस की बातबात पर पिटाई करता था.

पति द्वारा दीपा को पीटे जाने की जानकारी मिलते ही एसपी (सिटी) भदौरिया दीपा से पूछताछ करने लगे. आखिरकार दीपा हत्याकांड से संबंधित पूरा मामला बताने के लिए तैयार हो गई. उस ने पति की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस के बाद उस ने शराबी पति की हत्या की जो कहानी सुनाई, उस में उस का भाई और सौतेले बेटों का भी नाम शामिल हो गया. उस की पूरी कहानी इस प्रकार निकली-

जयदेव सिंह मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला संभल के गांव मडावली रसूलपुर का रहने वाला था. करिअर बनाने की शुरुआत उस ने मुरादाबाद के टैक्सी स्टैंड से की थी. वह साल 2006 में खन्ना ट्रेवल्स की टैक्सी चलाता था. इस के लिए उस ने एक एंबेसडर कार यूपी-21-9494 किराए पर ले रखी थी. बाद में उस की नौकरी संविदा ड्राइवर के तौर पर मुरादाबाद नगर निगम में लग गई.

बाद में वह यूपी के मुरादाबाद के जिलाधिकारी के यहां काम पर लग गया. वहां उस के आचरण को देखते हुए नौकरी स्थाई हो गई. हत्या के समय उस की पोस्टिंग मुरादाबाद की कांठ तहसील के एसडीएम प्रशासन जगमोहन गुप्ता के ड्राइवर के तौर पर थी.

जयदेव ने 23 साल छोटी दीपा कौर से की दूसरी शादी

उस की शादी 18 साल पहले पुष्पा कौर से हुई थी. उस से वह 3 बच्चों का पिता बन गया था. बड़े बेटे का नाम हरनाम सिंह 17 साल, उस से छोटा हरमिंदर सिंह 14 साल और सब से छोटी बेटी जासमीन 10 साल की है. पिछले साल पुष्पा का निधन हो गया था. दरअसल, वह बीते कुछ सालों से दिल की बीमारी से ग्रसित थी. इस के चलते हार्ट अटैक के कारण 25 जुलाई, 2022 को उस की मृत्यु हो गई थी.

अपनी मां की मौत का बच्चों पर काफी गहरा असर हुआ था. बेटा तो इस कारण अपने पिता से ही नाराज हो गया था. उस की शिकायत थी कि पिता ने मां के इलाज में अनदेखी की और वह उन की वजह से ही मर गई. पुष्पा के निधन के कुछ समय बाद ही जयदेव सिंह ने दूसरी शादी की तैयारी शुरू कर दी थी. उस ने दीपा को पसंद किया था, जिस की उम्र मात्र 22 साल थी, जबकि जयदेव सिंह 45 साल का अधेड़ था.

दीपा और उस के परिवार वाले यह जानते थे कि जयदेव सिंह अधेड़ उम्र का बालबच्चे वाला है, इस के बावजूद भी उन्होंने उस से शादी के लिए हामी भर दी. कारण उस की सरकारी नौकरी का होना था. शादी के कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीकठाक चला, उस के बाद दीपा को उस का असली रूप नजर आने लगा. वह एक नंबर का शराबी था और नईनवेली दुलहन को किसी गैरमर्द से बात करना उसे जरा भी पसंद नहीं था. यहां तक कि उस का जवान बेटे से बात करना भी पसंद नहीं था.

इसे ले कर वह उस से काफी नाराज हो जाता था. डांट दिया करता था. यहां तक कि जब वह शराब के नशे में होता था, तब उस की जम कर पिटाई भी कर देता था. एक दिन उस ने बच्चों के सामने ही उस की बेरहमी से पिटाई कर दी थी. वह अपने कमरे में बैठी आंसू बहा रही थी, तभी बच्चों ने आ कर उसे ढांढस बंधाया. उन से उसे हिम्मत मिली और फिर बच्चों के प्रति उस का प्रेम उमड़ आया. वह उन का विशेष खयाल रखने लगी. उन की पसंद का नाश्ता और उन की पसंद का खाना पका कर खिलाने लगी.

बच्चों से दीपा की बढ़ती नजदीकी भी जयदेव को अच्छी नहीं लगती थी. वह चाहता था कि वह जब तक घर में रहे, दीपा उस की बांहों में पड़ी रहे. जबकि दीपा बच्चों के घर में रहने और उन की जरूरतों को पूरा करने को ले कर ऐसा नहीं कर पाती थी.

सौतेले बेटे से हो गया लगाव

एक दिन किसी बात को ले कर जयदेव दीपा की पिटाई कर रहा था, तब बड़े बेटे हरनाम ने उसे आ कर बचाया और पिता को ही डांटते हुए बोला, “अब इसे भी मार डालोगे क्या, एक को तो मार ही चुके हो.”

वह दीपा को अपने पिता से छुड़ा कर कमरे में ले गया. उस के जख्मों का खून साफ कर उस पर दवाई लगाने लगा. दीपा हरनाम के इस व्यवहार से काफी प्रभावित हो गई. सौतेले बेटे से लिपट कर रोने लगी. निहाल भी मां से गले मिल कर रोने लगा.

तभी जयदेव वहां आ गया. उस ने बेटे को दीपा से गले मिलते देखा तो वह और भी आगबबूला हो गया. जयदेव ने उस की भी पिटाई कर दी. पिटने के बाद हरनाम सिंह गुस्से में रुद्रपुर चला गया. उस के जाने के बाद दीपा को दूसरे बच्चों से मालूम हुआ कि जयदीप उस की मां के साथ भी ऐसा ही बर्ताव करता था.

हरनाम सिंह के रुद्रपुर जाने के बाद दीपा ने फोन पर बात की. उस ने पुष्पा की मौत के बारे में पूछा. उस ने बताया कि घर पर ग्लूकोज चढ़ाए जाने के समय उस ने ग्लूकोज की बोतल में शराब का इंजेक्शन दे दिया था. उस के बाद उस की मां की हालत और भी खराब हो गई थी.

                                                                                                                                         क्रमशः

ज्योति ने बुझाई पति की जीवन ज्योति – भाग 4

सीसीटीवी कैमरे लग जाने से ज्योति और संजय डर गए. संजय और ज्योति का मिलन भी बंद हो गया, लेकिन ज्योति शातिरदिमाग की थी. उस ने प्रेमी से मिलन का दूसरा रास्ता निकाल लिया. वह सामान खरीदने के बहाने घर से निकलती और कस्बा के होटल में रूम बुक करा कर संजय को बुला लेती, फिर मिलन कर वापस आ जाती.

घर के बाहर जाने को ले कर ज्योति और प्रदीप में खूब बहस होती और मारपीट भी हो जाती. ज्योति कहती तुम मेरे पांव में बेडिय़ां डालना चाहते हो, लेकिन मैं स्वतंत्र जीना चाहती हूं. मैं तुम्हारा जुल्म बरदाश्त नहीं करूंगी.

घर में कलह के कारण प्रदीप परेशान रहने लगा. वह शराब भी अधिक पीने लगा. संपत्ति को ले कर वह अपने छोटे भाई संदीप चौरिहा से भी भिड़ जाता और मारपीट करता. मां को भी खरीखोटी सुनाता. जमीन के एक टुुकड़े को ले कर उस का विवाद चल रहा था. मां उस टुकड़े को संदीप को देना चाहती थी, जबकि प्रदीप उस पर अपना अधिकार जमा रहा था.

ज्योति अब तक पति की शराबखोरी, मारपीट व शक से ऊब चुकी थी. वह पति से छुटकारा पा कर प्रेमी संजय सिंह के साथ खुशहाल जीवन बिताने के सपने संजोने लगी थी. यही नहीं, वह पति को हलाल कर उस की सरकारी नौकरी तथा संपत्ति पर भी कब्जा करना चाहती थी. इस के लिए वह हर रोज तानेबाने बुनने लगी थी.

इधर ज्योति और प्रदीप में इतनी ज्यादा दरार पड़ गई थी कि उन का झगड़ा हर रोज किसी न किसी बात को ले कर होने लगा था. प्रदीप घर में खाना भी नहीं खाता था और बाजार से खाना ले कर घर आता था. वह पहले शराब पीता, ज्योति को गालियां बकता फिर खाना खाता था.

पति के मर्डर की रची साजिश

17 अप्रैल, 2023 की सुबह अवैध संबंधों को ले कर ज्योति और प्रदीप में खूब झगड़ा हुआ. मारपीट कर जब प्रदीप कालेज चला गया तो ज्योति ने संजय को फोन कर घर बुला लिया. उस ने संजय से स्पष्ट कहा कि वह यदि उसे अपनी बनाना चाहता है तो उसे उस के पति को ठिकाने लगाना होगा. उस की मौत के बाद उसे सरकारी नौकरी तथा संपत्ति मिल जाएगी. फिर वह उस से शादी कर जीवन भर ऐश करेगी.

चूंकि संजय सिंह ज्योति का दीवाना था, इसलिए वह ज्योति के पति प्रदीप चौरिहा की हत्या करने को राजी हो गया. इस के बाद दोनों ने मिल कर हत्या की योजना बनाई. संजय सिंह ने हत्या की इस योजना में अपने दोस्त राघवेंद्र सिंह को भी शामिल कर लिया. वह बांदा जिले के थाना मैलानी के रसड़ा गांव का रहने वाला था. दोस्ती और पैसों के लालच में वह उस का साथ देने को राजी हो गया.

योजना के तहत संजय सिंह ने फोन कर राघवेंद्र सिंह को अतर्रा बुला लिया. फिर दोनों ने मिल कर एक तेजधार वाला चाकू अतर्रा बाजार से खरीदा और उसे सुरक्षित रख लिया. रात 10 बजे दोनों ने शराब पी और होटल में खाना खाया. फिर वह नरैनी रोड आए और ज्योति के फोन का इंतजार करने लगे.

इधर गुस्से में आगबबूला प्रदीप चौरिहा देर शाम खाना व शराब की बोतल ले कर घर आया. कमरे में बैठ कर उस ने शराब पी और ज्योति को खूब गालियां बकीं. उस के बाद वह आधाअधूरा खाना खा कर पलंग पर पसर गया. प्रदीप जब नशे में खर्राटे भरने लगा तो ज्योति ने योजना के तहत सीसीटीवी कैमरे बंद कर दिए और डीवीआर गायब कर दिया.

इस के बाद वह दूसरे कमरे में आ कर लेट गई. उस ने दोनों बेटियों को भी सुला दिया. रात 12 बजे जब सन्नाटा पसर गया, तब ज्योति ने संजय सिंह को फोन कर घर बुलाया. संजय अपने दोस्त राघवेंद्र के साथ घर आया तो ज्योति ने चुपके से पीछे वाला दरवाजा खोल कर उन दोनों को घर के अंदर कर लिया.

रात 2 बजे के लगभग ज्योति चौरिहा, संजय सिंह और राघवेंद्र सिंह प्रदीप के कमरे में पहुंचे. ज्योति और राघवेंद्र सिंह ने गहरी नींद सो रहे प्रदीप के पैर दबोच लिए तथा संजय सिंह ने उस का गला रेत दिया. चूंकि लाश ठिकाने लगाना नामुमकिन था, अत: उन तीनों ने प्लान बी तैयार किया. इस प्लान के तहत संजय सिंह ने ज्योति को दूसरे कमरे में बंद कर दिया, फिर दोनों फरार हो गए.

प्लान के तहत ज्योति ने सुबह दरवाजा पीटना शुरू किया तथा प्रदीप को आवाज दी. उस के बाद ज्योति ने किराएदार राखी राठी को फोन कर बुलाया और बाहर से बंद दरवाजा खुलवाया. राखी के साथ ज्योति जब पति के कमरे में गई तो पलंग पर पति की लाश देख कर वह रोनेधोने का नाटक करने लगी.

21 अप्रैल, 2023 को पुलिस ने हत्यारोपी ज्योति चौरिहा, संजय सिंह तथा राघवेंद्र सिंह को बांदा कोर्ट में पेश किया, जहां से उन को जिला जेल भेज दिया गया. पिता की हत्या व मां के जेल जाने से मासूम दोनों बेटियां सहम गईं. वे दोनों दादी निर्मला देवी के संरक्षण में रह रही हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अपनों के खून से रंगे हाथ : ताइक्वांडो कोच को मिली सजा – भाग 2

अय्याशी के चक्कर में परिजनों से बेरुखी

उसे हनुमान काफी पसंद आता था. उसे उस ने अपने रूपजाल में फांस लिया था. वह उस के इशारे पर कुछ भी कर गुजरने को हरदम तैयार रहता था. इस के एवज में संतोष शर्मा उस पर दिल खोल कर प्रेम सुख लुटा रही थी. वह किसी न किसी स्पोट्र्स टूर्नामेंट के बहाने जबतब घूमने जाने लगी और अपनी यात्राओं को भागवत कथा या धार्मिक आयोजन बता कर घर वालों से झूठ बोल कर चली जाती थी. जबकि वह अपने आशिक के पास उदयपुर में होती थी. वहां दोनों लिवइन में रहने लगे थे. वहां वह जम कर रंगरलियां मनाने लगी थी.

उस के आचरण में एक तरह से मक्कारी और शातिरानापन आ गया था. वह एक मतलबी और अपने सुख की चाहत में रहने वाली महिला बन चुकी थी. साथ ही परिवार पर अपनी दबंगई दिखाती रहती थी. उस के गुस्सैल स्वभाव से छोटी बहन वंदना, जो उस की सगी देवरानी भी थी, डरती थी. संतोष शर्मा डांटफटकार कर उस से घर के काम करवाती रहती थी. यही नहीं, अपने बच्चों के साथ भी काफी तल्खी से पेश आती थी.

जरा सी गलती हो जाने पर उन को बेल्ट से पीट डालती थी. इसलिए बच्चे भी उस से हमेशा खौफजदा रहते थे. उस के घर से बाहर रहने पर बच्चे ज्यादा खुश रहते थे. वह ससुराल वालों को बेवकूफ बनाने में माहिर हो चुकी थी. भागवत कथा वाचक बन कर कथा सुनाने और रामलीला के किरदार निभाने का दिखावा करती थी. इसलिए घर वालों की निगाह में वह धार्मिक महिला थी. यह कहें कि संतोष शर्मा अपने घर वालों की आंख में धूल झोंक कर ऐशमौज कर रही थी.

कहते हैं न कि हर किसी की कोई न कोई कमजोरी रहती है. संतोष शर्मा की भी एक कमजोरी सोशल साइटों पर फोटो पोस्ट करने और उसे शेयर करने की थी. यही शौक उस के लिए एक दिन मुसीबत बन गया. एक बार उस के बच्चों ने सोशल मीडिया पर संतोष शर्मा की बिंदास अदाओं की तसवीरें देख लीं. वे चौंक गए.

उन्हें भरोसा ही नहीं हुआ कि उस की मां की इस तरह की अश्लील तसवीरें भी हो सकती हैं. उन्होंने पापा को भी वे तसवीरें दिखाईं. वह भी उसे देख कर सन्न रह गया. फोटो देख कर उस के 17 साल के बड़े बेटे अमन और पति बनवारी ने घर में हंगामा खड़ा कर दिया. अमन ताइक्वांडो का उभरता खिलाड़ी भी था. समझदार होने लगा था.

पति ने लगा दी पाबंदी

संतोष शर्मा उस पर पाबंदी लगाने लगी, जिस कारण उस ने नारजागी दिखाई. उस की नाराजगी हनुमान को ले कर भी हुई, जो घर भी आने लगा था. उस के साथ संतोष शर्मा के बढ़ता मेलजोल की जानकारी बापबेटों को हो गई थी. हनुमान जब भी अलवर के गुजुकी क्षेत्र में अपने दोस्त कपिल के कमरे पर आता था, तब संतोष शर्मा उस से मिलने पहुंच जाती थी.

इस तरह ढाई साल का समय कब गुजर गया, पता ही नहीं चला. इस बीच संतोष शर्मा पर पति और बेटे ने घर से बाहर जाने पर रोक लगा दी. एक दिन पति से उस की तकरार हो गई. गुस्से में आ कर बनवारी ने संतोष शर्मा की पिटाई कर दी. पति से पिटने के बाद संतोष शर्मा चोट खाई नागिन बन गई. गुस्से में फुंफकार उठी.

उस घटना के बाद प्रेमी युगल का मेलमिलाप बंद हो गया था. संतोष शर्मा मिलन को तड़प उठी थी. एक दिन मौका पा कर संतोष शर्मा हनुमान से मिली और अपनी परेशानी बताने के साथ ही पति और बेटे को रास्ते से हटाने की साजिश भी रच डाली.

दोनों ने योजना बना कर फरजी आईडी पर 2 सिम खरीद लिए. एक सिम संतोष शर्मा को दे कर दूसरी सिम अपने पास रख लिया. इसी सिम से वे साजिश के बारे में बातचीत करने लगे. एक दिन पक्की योजना बन गई. कब और कैसे वारदात को अंजाम देना है, इस का प्रारूप तैयार हो गया. यहां तक कि सबूत कैसे नष्ट करने हैं, फरार कैसे होना है, कहां रहना है, वारदात के बाद फरारी कहां काटनी है और वारदात के सबूत कैसे नष्ट करने हैं? वगैरह वगैरह…!

इसी के साथ संतोष शर्मा के प्रेमी ने 30 सितंबर, 2017 को औनलाइन शौपिंग वेबसाइट से 1,260 रुपए में जानवरों को काटने का एक बड़ा चापड़ (चाकू) भी मंगवा लिया. चापड़ 31 सेंटीमीटर लंबा और 4 सेंटीमीटर चौड़ा था. वह एक तरफ से धारदार तथा दूसरी तरफ से कांटेदार था. इस के अलावा शरीर को छलनी करने के लिए अलवर के केडलगंज से 2 और बड़े चाकू खरीद लिए थे. उन की योजना बापबेटे की एक साथ हत्या करने की थी.

वारदात की रच ली पूरी साजिश

हत्या के बाद पुलिस को कोई निशान और सुराग नहीं मिले, इस के लिए दस्ताने (ग्लव्ज) ला कर भी रख लिए थे. वारदात को अंजाम देने के लिए उन्होंने गांधी जयंती 2 अक्तूबर, 2017 की तारीख तय की थी. उस से 2 दिन पहले ही हनुमान उर्फ हनी उदयपुर से अलवर आ गया था.

संतोष शर्मा अपने प्रेमी से अकसर फरजी कागजात पर लिए गए सिम का ही इस्तेमाल करती थी. जरूरत के अनुसार उसे अपने मोबाइल में लगा लेती थी. तय योजना के मुताबिक संतोष शर्मा का आशिक अपने सीकर वाले दोस्त से नींद की गोलियां भी ले आया था. गोलियां संतोष शर्मा को सौंपते हुए शाम का खाना बनाते समय सिलबट्ïटे पर चटनी बनाते समय उस में पीस देने और रायते में डाल देने के लिए कहा था.

सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा था. पहले संतोष शर्मा ने प्रेम से बड़े बेटे को खाना खिलाया. इसी दौरान संतोष शर्मा की बहन वंदना ने उस से कुछ पूछा तो उस ने उसे डांट कर भगा दिया. रात को पौने 10 बजे चुके थे. संतोष शर्मा का प्रेमी उस के घर पहुंच गया था. संतोष शर्मा मुसकराती हुई बोली, ‘‘क्या हनी, इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’

हनुमान ने आशिकाना अंदाज में जवाब दिया, ‘‘तुम से दूरी बरदाश्त नहीं हो रही थी.’’

जबाव में हंसती हुई संतोष शर्मा बोली, ‘‘सब्र करो वरना जल्दबाजी में सारा खेल बिगड़ जाएगा. रास्ते के कांटे हटाने के बाद तो मैं हमेशा के लिए तुम्हारी हो जाऊंगी.’’

इसी के साथ संतोष शर्मा ने उसे रात को एक बजे वापस आने को कहा. वह फ्लाइंग किस दे कर वापस चला गया. रात को एक बजे अपने 2 साथियों कपिल और दीपक के साथ संतोष शर्मा के घर जा पहुंचा. संतोष शर्मा छत पर टहल रही थी. उस ने हनी को इशारा किया और नीचे आ कर चुपचाप घर का मेनगेट खोल कर तीनों को घर में बुला लिया. संजना ने इशारे से बता दिया कि उस का पति और बड़ा बेटा कहां सो रहे हैं. हनुमान और उस के दोनों साथी अपनेअपने हाथों में दस्ताने पहन कर उस कमरे में गए, जहां जीरो वाट के बल्ब की हल्की रौशनी थी.

प्यार में 5 जनों का कत्ल

सब से पहले हनुमान ने संतोष शर्मा के पति बनवारी लाल (42 वर्ष) के गले को धारदार बड़े चाकू से काट दिया. जबकि उस के दोनों साथियों ने बनवारी के जिस्म को चाकुओं से गोद डाला. उस की मौत हो जाने के बाद संतोष शर्मा अमन के पास गई. उस दिन उस की तबीयत खराब थी, इसलिए उस ने रायता नहीं पीया था.

आहट पा कर उस की नींद खुल गई और उस ने उठने की कोशिश की, लेकिन तभी हनी और उस के साथियों ने उसे भी दबोच लिया और हनी ने उस का गला रेत दिया. उस के दोनों साथियों ने अमन को भी चाकुओं से गोदगोद कर ठिकाने लगा दिया.