छिप न सका देवरभाभी का प्यार
रेनू को खानेपीने की कोई कमी न थी. बदन चमकता रहता. चलती तो ऐसा लगता जैसे अभी जवानी छलक पड़ेगी. गांव गली की कई औरतें उस का गदराया बदन देख कर जलती थीं और कुछ मनचले और शोहदे उसे पाने के लिए हमेशा ही लालायित रहते. उन्हीं में एक मोहित भी था. वह बृजेश के चाचा रामेश्वर का बेटा था और रिश्ते में उस का चचेरा भाई था.
मोहित के घरवालों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. बृजेश ने उसे अपने खेतों पर काम करने के लिए रख लिया था. बदले में मजदूरी के रूप में पैसे देता था. मोहित का कसरती बदन था. वह कदकाठी से भी आकर्षक लगता था. रेनू उसे बहुत मानती थी. वह जब भी घर आता था, रेनू उसे चायनाश्ता कराती और उस से खूब बतियाती थी.
लेकिन मोहित के मन में तो कुछ और ही चल रहा था. आजकल वह जब भी रेनू को देखता, उस का गदराया जिस्म देखते ही उस के मुंह में पानी आ जाता. उधर रेनू भी मोहित की कदकाठी देख कर मचल उठती. सोचती, काश! उस का भी मर्द इसी तरह का होता तो कितना अच्छा होता. क्या मर्दानगी है मोहित की, लेकिन नारी सुलभ लज्जा के कारण कभी वह दिल की बात जुबां पर न ला पाती.
लेकिन यह सच था कि रेनू के मन में मोहित को ले कर हलचल शुरू हो गई थी. इसलिए वह उस का अतिरिक्त खयाल रखती थी. सोचती थी कि आज नहीं तो कल जरूर वह उस की भावनाओं को समझेगा. हुआ भी यही, मोहित धीरेधीरे उस के नजदीक आता गया. उस के आगे रेनू को अब अपना पति बेकार लगता था. रातरात भर वह उसी के साथ हमबिस्तर होने की कल्पनाओं में डूबती उतराती थी.
रेनू की बेचैनी अब दिनरात बढ़ती जा रही थी. कभीकभी तो मोहित को देखते ही वह अपना आंचल इस तरह छाती से ढुलका देती, जैसे वह उसे खुला आमंत्रण दे रही हो. आखिर मोहित कब तक चाहत की आग में सुलगता रहता. एक दिन सारे नातेरिश्तों को भूल कर उस ने भाभी को अपने आगोश में भींच ही लिया और दोनों आंधीतूफान की तरह एकदूसरे में समा गए थे.
रेनू अपने मकसद में कामयाब हो गई. कुंवारे देवर से उसे जो परम आनंद मिला, उस के आगे पति बृजेश कहीं नहीं टिकता था. मोहित ने उसे पहली बार में ही पीस कर रख दिया था. उस की मर्दानगी पर रेनू निछावर थी. तन और धन सब कुछ उस ने उसे अर्पित कर दिया. दिल की लगी अपने उफान पर थी. रेनू को जैसे ही मौका मिलता, वह मोहित को इशारे से बुला लेती थी और फिर दोनों एकदूसरे में समा जाते थे. 7-8 महीने तक देवरभाभी का प्यार चोरीछिपे चलता रहा. किसी को कानोंकान खबर नहीं लगी.
उस के बाद अड़ोसपड़ोस की औरतों को उन पर शक होने लगा. बृजेश को भी भनक लगी, तब तो उस के कान खड़े हो गए. उस ने सपने में भी ऐसा नहीं सोचा था. बृजेश पाल अब पत्नी और मोहित पर पूरी तरह से नजर रखने लगा था. रेनू को पति की निगरानी का पता न था. वह मोहित के साथ पहले की ही तरह मिलती रही. आखिर एक दिन बृजेश ने उन दोनों को रंगेहाथ पकड़ लिया. उस का खून खौल उठा. रेनू का चेहरा पीला पड़ गया. मोहित तो ऐसे भागा था, जैसे गधे के सिर से सींग.
बृजेश ने कर दी मोहित की पिटाई
बृजेश पाल का सारा गुस्सा पत्नी पर ही फूटा था. उस ने खूब उसे मारापीटा था. बाद में जब रात में दोनों बिस्तर पर गए थे तो बृजेश ने रेनू को समझाया भी था, “लोग कहते हैं कि औरत को अगर नाक न हो तो वह मैला भी खा ले, लेकिन मैं नहीं मानता. सच तो यह है कि मर्द ही मनचले होते हैं. मुझे अच्छी तरह से पता है कि जरूर तुम्हारे साथ मोहित ने मनमानी की होगी, वरना तुम कभी न बहकती. तुम 2 बच्चों की मां हो, भला ऐसा कैसे कर सकती हो?”
बृजेश पाल की बातें सुन कर रेनू की जान में जान आई. वह हफ्ता-10 दिन ठीक रही, उस के बाद फिर दोनों तनमन की आग बुझाने लगे. साथ ही पूरी सावधानी भी बरतते थे. इस के बावजूद एक रोज फिर दोनों को रंगरेलियां मनाते हुए बृजेश ने पकड़ लिया. रेनू के पास अब कोई जवाब न था. उस ने उस की जम कर पिटाई की.
इस बार बृजेश ने रेनू के साथसाथ मोहित की भी जम कर पिटाई की और उसे हिदायत दी, “तू मेरा चचेरा भाई नहीं दुश्मन है. भाई हो कर तूने मेरी इज्जत पर डाका डाला. आस्तीन के सांप, तू कान खोल कर सुन ले. आज के बाद अगर तू मेरे घर में दिखाई दे गया तो तेरा काम तमाम कर दूंगा.”
उस समय तो मोहित और रेनू ने उस से माफी मांग ली थी, लेकिन बाद में वे फिर अपने पुराने ढर्रे पर चलने लगे. बृजेश की धमकी से मोहित और रेनू डर तो गए थे, लेकिन मन ही मन दोनों बृजेश से खुन्नस रखने लगे थे. बृजेश पत्नी की इस बेवफाई से इतना टूट गया था कि वह शराब में डूबा रहने लगा. वह गुस्से में अकसर रेनू की पिटाई करता रहता था.
शराबखोरी से बृजेश का शरीर तो खोखला हो ही गया, उस की आर्थिक स्थिति भी खराब हो गई. वह कर्जदार हो गया. कर्ज उतारने के लिए बृजेश नोएडा चला गया. वहां उस का एक रिश्तेदार रहता था. वह किसी फैक्ट्री में काम करता था. बृजेश ने उसे कर्ज वाली बात बताई तो उस ने उसे अपनी ही फैक्ट्री में नौकरी दिलवा दी. यह बात अगस्त, 2022 की है.


