Real Crime Stories: आईपीएस शिवदीप लांडे – रियल हीरो

Real Crime Stories: आप ने दबंग छवि वाले कई पुलिस अफसरों को बड़े परदे पर देख कर तालियां बजाई होंगी. लेकिन, सही मायने में हमारे असल हीरो वो अफसर हैं, जो समाज में फैली गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार तथा अराजकता को जड़ से खत्म करने का काम करते हैं. वर्दी पहनने का मौका तो बहुतों को मिलता है. लेकिन इस वर्दी का दम बहुत कम लोग ही दिखा पाते हैं. शिवदीप वामनराव लांडे एक ऐसे आईपीएस हैं जो बस एक पुलिस अफसर ही नहीं, बल्कि अनगिनत कहानियों के पात्र हैं. वैसे अफसर जिन के बारे में लोग बस कल्पना करते हैं, हकीकत में ऐसा इंसान सामने देखना अजूबा लगता है.

शिवदीप वामनराव लांडे एक समय बिहार के गुंडेबदमाशों के लिए खौफ बन गए थे. इन से छुटकारा पाने का सिर्फ एक ही रास्ता था और वो था इन का ट्रांसफर. इस बेखौफ आईपीएस अफसर ने फिल्मी स्टाइल में बिहार के ला ऐंड और्डर को कायम किया था. वैसे कहने को तो शिवदीप लांडे पुलिस अधिकारी हैं, लेकिन उन की भूमिका किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं रही. बात चाहे उन के आईपीएस बनने की हो, उन के काम करने के तरीके की हो, लोगों के दिलों में उन के प्रति प्यार और सम्मान की हो या फिर उन की प्रेम कहानी की. हर तरह से उन की कहानी किसी ब्लौकबस्टर फिल्म की कहानी जैसी लगती है.

शिवदीप वामनराव लांडे का जन्म 29  अगस्त, 1976 को महाराष्ट्र के अकोला जिले के परसा गांव में एक किसान परिवार में हुआ था. शिवदीप के पिता ने तीन बार 10वीं की परीक्षा दी. लेकिन पास न हो सके. वहीं उन की मां भी केवल 7वीं तक पढ़ पाईं थीं. ऐसे में शायद शिवदीप भी एक किसान बन कर रह जाते. मगर ऐसा नहीं हुआ. क्योेंकि उन के सपने बडे़ थे. उन्होंने कड़ी मेहनत से पढ़ाई की और निष्ठा व लगन से वह सपना पूरा कर दिखाया, जिसे उन के पिता पूरा नहीं कर पाए थे. दरअसल, बचपन से ही उन में कुछ अलग हट कर करने का जुनून था. घरपरिवार में कई तरह के अभाव थे. घर की तमाम मजबूरियां और कमियों के बावजूद बाधाएं उन के पैरों की बेडि़यां नहीं बन सकीं.

2 बडे़ भाइयों से छोटे शिवदीप ने स्कौलरशिप प्राप्त कर इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. इस के बाद उन्होंने मुंबई में रह कर यूपीएससी की तैयारी की.

hindi-manohar-social-police-crime-story

शिवदीप लांडे की परवरिश एक सामान्य परिवार में हुई थी. चूंकि मातापिता अधिक पढ़ेलिखे नहीं थे, इसलिए परिवार की तरफ से पढ़ाई के प्रति कोई दबाव या प्रेरणा नहीं मिलती थी. भले ही उन का जन्म साधारण परिवार में हुआ था. लेकिन शिवदीप के सपने बहुत ऊंचे थे. बचपन से हिंदी फिल्में देखने का शौक रहा था. जिस में अक्सर फिल्म के नायक को पुलिस अफसर के किरदार में बदमाश खलनायक का अंत करते देख वे रोमांचित हो उठते थे. वह अकसर नायक में खुद की छवि देख कर कल्पना लोक में विचरण करने लगते.

बस इन्हीं कल्पनाओं के बीच मन में एक विचार जन्मा कि क्यों न बड़े हो कर ऐसा ही दंबग पुलिस अफसर बना जाए और गुंडों का खात्मा किया जाए. इसीलिए कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपनी ऊंची शिक्षा पूरी की. महाराष्ट्र के श्री संत गजानन महाराज इंजीनियरिंग कालेज, शेगांव से इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मुंबई में रह कर संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी की.

अच्छी सर्विस छोड़ बने आईपीएस

हालांकि शिवदीप एक प्रतिष्ठित कालेज के प्रोफेसर तथा उस के बाद राजस्व विभाग में आईआरएस के पद पर भी कार्यरत रहे. लेकिन इसी बीच 2006 में उन का संघ लोक सेवा आयोग में चयन हो गया. उन का चयन आईपीएस के लिए हुआ और उन्हें बिहार कैडर मिला. 2 साल प्रशिक्षण का काम पूरा किया. शिवदीप लांडे की पहली नियुक्ति 2010 में मुंगेर जिले के नक्सल प्रभावित जमालपुर इलाके में हुई थी. अपनी पहली पोस्टिंग से ही वे मीडिया की सुर्खियों में रहे थे. लेकिन पटना में तैनाती के दौरान अनोखी कार्यशैली के कारण उन का यह कार्यकाल आज तक अविस्मरणीय है, जिस के कारण शिवदीप पूरे देश में प्रसिद्ध हो गए थे.

पुलिस महकमे में शिवदीप किसी बौलीवुड फिल्मों की कहानी के पात्र की तरह सामने आए थे. जब शिवदीप पटना आए थे, तब शहर गुंडों से त्रस्त था. तमंचे वाले तो थे ही. शरीफ गुंडे भी थे. दवाई वाले गुंडे जो बंदूक नहीं रखते थे, पर दवाओं का अकाल पैदा कर देते थे. शहर में ब्लैक मार्केटिंग कर के शराब की दुकानें जरूरत से ज्यादा खुल गई थीं, लेकिन बिना लाइसेंस के.

10 महीनों में शिवदीप ने शहर को रास्ते पर ला दिया और यह सब कुछ फिल्मी स्टाइल में होता था. यह नहीं कि पुलिस गई और गिरफ्तार कर के ले लाई. नए तरीके आजमाए जाते थे. कभी शिवदीप बहुरुपिया बन के जाते तो कभी लुंगीगमछा पहन के पहुंच जाते. कभी चलती मोटरसाइकिल से जंप मार देते तो कभी किसी की चलती मोटरसाइकिल के सामने खड़े हो जाते. शिवदीप ने पटना को 9 महीने सेवा दी और इन 9 महीनों में उन्होंने यहां के लोगों, खासकर लड़कियों के दिल में एक खास तरह का प्रेम और सम्मान बना लिया.

दरअसल, ये वह दौर था जब पटना में आवारा लफंगों के कारण स्कूली लड़कियों व महिलाओं का सड़कों पर निकलना बेहद मुश्किल था. आवारा गुंडे लड़कियों को न सिर्फ छेड़ते और भद्दे कमेंट करते थे, बल्कि कई बार तो जहांतहां छू भी देते. ऐसे समय में हुई शिवदीप लांडे की एंट्री. वह पटना के नए एसपी बन कर पहुंचे थे. लड़कियों की यह परेशानी जब उन तक पहुंची, तो वे खुद कालेज की लड़कियों से मिलने जाने लगे. लांडे ने सब को अपना नंबर दिया और एक ही बात कही कि जब कोई तंग करे तो उन्हें काल करें या एसएमएस करें. लड़कियों ने यही किया.

उन्होंने सड़कछाप रोमियो को सबक सिखाने के लिए पुरुष व महिला पुलिसकर्मियों के सादा लिबास दस्ते तैयार किए. इस के साथ ही शिवदीप भी कालेजों तथा सार्वजनिक स्थलों पर राउंड मारने लगे. वह शायद पहले आईपीएस थे जो मोटरसाइकिल पर गश्त लगाते थे. एक फोन पर शिवदीप अपनी बाइक उठा कर अकेले ही निकल जाते और अगले ही पल वे लड़कियों की मदद के लिए वहां मौजूद होते. कितने मनचले धरे गए, कई मौके पर सीधे भी किए गए. देखते ही देखते लड़कियों में हिम्मत आने लगी, उन का डर खत्म होने लगा. यही वजह थी लड़कियों के मन में शिवदीप के प्रति स्नेह और सम्मान की. लांडे ने यहां मनचलों को खूब सबक सिखाया.

कुछ ही महीनों में उन्होंने पटना शहर की सड़कों को मजनुओं की टोलियों से मुक्त करा दिया. लड़कियां खुद को सुरक्षित महसूस करने लगी थीं. शहर की हर छात्रा के मोबाइल में उन का नंबर होता था, किसी को जरा भी परेशानी होती तो नंबर मिलाते ही शिवदीप लांडे अपनी टीम के साथ पीडि़त छात्रा के सामने हाजिर हो जाते. पटना में शिवदीप लांडे की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि राजनीतिक दबाव में सरकार ने पटना से जब उन का अररिया तबादला कर दिया तो लोगों ने कैंडल मार्च निकाल कर सरकार के इस फैसले का विरोध किया था. पटना के इतिहास में किसी पुलिस अधिकारी के लिए ऐसा पहली बार हुआ था.

स्थानांतरण के बावजूद पटना के लोगों में उन के प्रति दीवानगी आज तक कायम है. उन्हें आज भी पटना की स्कूली छात्राओं के फोन और एसएमएस आते रहते हैं. लांडे के नएनए आइडियाज की वजह से उन के कार्यकाल में पटना का क्राइम रेट कम हो गया था.

जहां भी रहे, गलत कामों पर रही नजर

पटना की तरह ही रोहतास जिले में भी शिवदीप लांडे ने अपने कार्यकाल के दौरान खनन माफियाओं की नींद उड़ा दी थी.  दरअसल रोहतास, औरंगाबाद, कैमूर में खनन और रोड माफिया का छत्ता बड़ा पुराना है. इस छत्ते में सभी दलों के लोग शामिल हैं. कभी राजद का हल्ला होता, तो कभी भाजपा का शोर मचता था. संदीप लांडे जब रोहतास के एसपी बने, तो उन्होंने भी इस खेल को उजाड़ने में कसर नहीं छोड़ी. हांलाकि कुछ समय बाद रोहतास एसपी के पद से 2015 में लांडे की विदाई कैसे हुई, पुलिस महकमे में यह बात सब को पता है. क्योेंकि बिहार में राजनीतिक दबाव इतना हावी रहता है कि कोई भी पुलिस अधिकारी स्वतंत्र तरीके से काम कर ही नहीं सकता.

बहरहाल, अपनी दबंगई के कारण शिवदीप को रोहतास में भी कई बार अपनी जान तक जोखिम में डालनी पड़ी. उन दिनों शिवदीप रोहतास के एसपी थे. इन्होंने खनन माफिया की नाक में दम कर रखा था. उधर दुश्मन भी घात लगाए रहते थे. एक रोज शिवदीप अवैध खनन रोकने निकले. लेकिन वे इस बात से अनजान थे कि दुश्मन उन की जान लेने के लिए घात लगाए बैठे हैं. शिवदीप जैसे ही वहां पहुंचे, उन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी गई.

30 से ज्यादा राउंड फायर हुए. पूरा फिल्मी सीन बन गया था. फर्क बस इतना था कि यहां कोई कट बोल कर फायरिंग रोकने वाला नहीं था. न ही बहने वाला खून नकली था. जो भी हो रहा था सब असली था. शिवदीप हटे नहीं, डटे रहे. अंत में शिवदीप के आगे गुंडे पस्त हो गए. इस के बाद शिवदीप ने खुद जेसीबी मशीन चला कर अवैध खनन की सारी मशीनें उखाड़ फेंकी, साथ ही 500 लोगों को गिरफ्तार करवाया. पश्चिम बिहार के रोहतास जिले के एसपी के तौर पर 6 महीने में ही लांडे ने अपने कारनामों से लोगों को अपना दीवाना बना लिया था. खनन माफिया से टकराव के बाद शिवदीप लावारिस छोड़ी गई नवजात बच्चियों के पालनहार के रूप में भी सुर्खियों में रहे.

hindi-manohar-social-police-crime-story

दरअसल, अपनी तैनाती के कुछ दिन बाद ही रोहतास के सासाराम स्थित जिला मुख्यालय से 2 किलोमीटर दूर गोटपा गांव के पास रेलवे ट्रैक के निकट भैरव पासवान को एक बच्ची लावारिस हालत में शाल में लिपटी मिली थी. 45 साल के पासवान और उन की पत्नी कलावती के कोई बच्चा नहीं था, इसलिए वह इस नवजात को अपनाना चाहते थे. लेकिन बच्ची की बीमारी के चलते उन्हें डर था कि वह इसे खो देंगे. जब भैरव और उन की पत्नी को कुछ समझ नहीं आया कि क्या करें, कहां जाएं तो उन्होंने जिला पुलिस के मुखिया लांडे से संपर्क किया.

पासवान को मुसीबत में देख लांडे ने चंद मिनटों के अंदर मुफस्सिल पुलिस स्टेशन के इंचार्ज विवेक कुमार को पासवान के घर भेजा जो बीमार बच्ची को पुलिस की गाड़ी में ले कर तुरंत जिला अस्पताल पहुंचे. इस के बाद लांडे खुद अपनी डाक्टर पत्नी के साथ अस्पताल पहुंचे. बच्ची को स्पैशल न्यू बोर्न केयर यूनिट में भरती कराया गया. इस के बाद एसपी लांडे ने डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के चेयरमैन को बुला कर बच्ची को दिए जाने वाले जरूरी इलाज पर बातचीत की. लांडे की इस नेकदिली के कारण बच्ची पूरी तरह सुरक्षित रही. बच्ची को लाने वाला पासवान इस बात पर हैरान था कि वह एक गरीब आदमी है, अगर लांडे साहब और उन की पत्नी ने उस की मदद न की होती तो कोई उम्मीद नहीं थी कि बच्ची जीवित रह पाती.

बच्ची के पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद शिवदीप लांडे के हस्तक्षेप से पासवान ने बच्ची को गोद लेने की प्रक्रिया पूरी करवाई. लावारिस नवजात बच्चियों के प्रति शिवदीप लांडे के भावनात्मक प्रेम को इसी बात से समझा जा सकता है कि साल 2012 में जब वह अररिया में एसपी थे, तब भी उन्होंने एक नवजात बच्ची की जान बचाई थी. जिसे उस की मां ने कड़कती ठंड में उन के सरकारी आवास के गेट के बाहर छोड़ दिया था. मासूम का रोना सुन कर लांडे घर से बाहर आए और उसे अपने सीने से लगा कर अंदर ले गए. बच्ची को गरमी का एहसास कराने और उस की सांसें सामान्य होने के बाद उन्होंने उसे सीडब्ल्यूसी की अध्यक्ष रीता घोष के पास पहुंचा दिया, जहां उस का जरूरी उपचार हो सका.

इस के अलावा जब वह पटना के एसपी सिटी थे, तब भी उन्होंने एक नवजात बच्ची को उस समय बचाया था जब एक प्राइवेट अस्पताल द्वारा ढाई लाख रुपए का बिल बनाने के कारण उस का पिता उसे अस्पताल में ही छोड़ गया था. एसपी सिटी रहते जब इस बात की जानकारी शिवदीप लांडे को हुई तो वह बच्ची की मां का पता लगाने के लिए इस हद तक गए कि पूर्वी बिहार के कटिहार जिले में उस के घर तक जा पहुंचे. वहां पहुंचने पर पता चला कि अस्पताल के पैसे न चुकाने के कारण बच्ची के पिता ने अपनी पत्नी से बता रखा था कि जन्म के दौरान ही उस की मौत हो गई और वहीं उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

लांडे ने बच्ची को ही उस के घर तक नहीं पहुंचाया बल्कि उस के इलाज का भी इंतजाम किया, जिस से वह जिंदा रह सकी. खनन माफिया से टकराव के कारण भले ही लांडे का तबादला कर दिया गया. लेकिन वह जहां भी रहे, अपराध और अपराधियों से कभी समझौता नहीं किया.

अनोखी है शिवदीप की प्रेम कहानी

अब जब सब कुछ फिल्म जैसा था, तो भला शिवदीप की शादी आम कैसे होती. शिवदीप द्वारा महिला सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम तथा उन की छवि के कारण लड़कियां उन पर मरती थीं. उन के फोन का मैसेज बौक्स हमेशा भरा रहता था. लेकिन इसे शिवदीप ने स्नेह से बढ़ कर और कुछ नहीं माना. क्योंकि उन की प्रेम कहानी तो कहीं और ही लिखी जानी थी. शिवदीप जो उस वक्त बिहार में कर रहे थे, उस की हवा उन के गृहराज्य महाराष्ट्र में भी बह रही थी. उन के कारनामों तथा लुक के कारण वहां भी शिवदीप की खूब चर्चा थी. शिवदीप मुंबई में रह कर पढ़े थे. इस कारण यहां उन का अच्छाखासा फ्रैंड सर्कल था. बिहार में होने के बावजूद वह दोस्तों से मिलने मुंबई जाया करते थे.

ऐसे ही शिवदीप एक दोस्त के किसी समारोह में उपस्थिति दर्ज कराने मुंबई गए थे. इसी पार्टी में उन की मुलाकात एक लड़की से हुई. लड़की का नाम था ममता शिवतारे. शिवदीप एसपी थे, तो ममता भी कम नहीं थी. ममता शिवतारे महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और पुणे के पुरंदर से एमएलए विजय शिवतारे की बेटी थीं. यहीं दोनों की मुलाकात हुई. इस एक मुलाकात के बाद मुलाकातों का सिलसिला बढ़ने लगा. जिस का नतीजा यह निकला कि दोनों प्यार में पड़ गए. यह प्यार आगे चल कर शादी में बदल गया. बस ममता और शिवदीप ने 2 फरवरी, 2014 को शादी कर ली और एकदूसरे को जन्मजन्मांतर के लिए अपना मान लिया.

दिल तो कई लड़कियों के टूटे मगर शिवदीप का घर बस गया. परिवार में पत्नी ममता और उस के बाद दोनों के प्यार की निशानी के रूप में जन्म लेने वाली बेटी अरहा अब उन के जीवन की प्रेरणा बन चुकी है. शिवदीप लांडे जहां भी रहे,  जिस तरह अपराधियों की कमर तोड़ी, मीडिया ने उस से उन की ‘दबंग’ पुलिस अधिकारी की छवि बना दी. लेकिन वास्तव में वह अपनी ड्यूटी पर जितना सख्त नजर आते थे, निजी जीवन में उतने ही विनम्र.

यह न समझा जाए कि शिवदीप केवल गुंडे बदमाशों को सबक सिखाने भर के ही हीरो रहे हैं. इस दबंग अफसर के पीछे एक कोमल दिल वाला नायक छिपा बैठा है. एक तरफ जहां शिवदीप अपराधियों के लिए काल का रूप साबित हुए, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने जरूरतमंदों की दिल खोल कर मदद की. विवाह से पहले वे अपने वेतन का 60 प्रतिशत एनजीओ को दान कर देते थे. हालांकि शादी और एक बेटी के जन्म  के बाद दान में कमी जरूर आई है परंतु बंद नहीं हुआ है. वेतन का 25 से 30 प्रतिशत भाग वे आज भी दान में दे देते हैं. इस के अलावा कई सामाजिक कार्यों में भी वह सहयोग करते हैं. उन्होंने कई गरीब लड़कियों का सामूहिक विवाह भी करवाया.

छोटेमोटे चोरउचक्कों से ले कर बड़ेबड़े माफिया तक में शिवदीप का खौफ था. उन्होंने लैंड माफिया से ले कर मैडीसिन माफिया तक की कमर तोड़ी. हालांकि, इन सब की वजह से उन्हें बारबार ट्रांसफर की तकलीफ झेलनी पड़ी. लेकिन उन का जहां से भी ट्रांसफर हुआ, वहां की आम जनता ने उन के जाने का दुख मनाया.

अब तैनाती महाराष्ट्र में

वर्तमान में शिवदीप लांडे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर महाराष्ट्र के पुलिस विभाग में मुंबई पुलिस क्राइम ब्रांच के एंटी नारकोटिक्स सेल में एडीशनल कमिश्नर औफ पुलिस के रूप में सेवारत हैं और मादक पदार्थ तस्करों की कमर तोड़ रहे हैं. जब आप लीक से हट कर कुछ करते हैं तो आप का नाम सुर्खियों में आना स्वभाविक है. वैसे तो शिवदीप लांडे ने अपनी पुलिस की नौकरी के सारे फैसले लीक से हट कर ही लिए. लेकिन कई मौकों पर उन के नाम की खूब धूम मची. ऐसा एक मौका तब भी आया, जब शिवदीप ने एक लड़की को 3 शराबियों के गिरोह से मुक्त कराया था.

इसी तरह मुरादाबाद के एक इंस्पेक्टर को भेष बदल कर उन्होंने रिश्वत लेते रंगेहाथ पकड़ा था. यह जनवरी, 2015 की घटना है. शिवदीप को जानकारी मिली कि मुरादाबाद के इंस्पेक्टर सर्वचंद 2 व्यापारी भाइयों से उन का पुराना केस खत्म करने के बदले में पैसे की मांग कर रहे हैं. इस बात को साबित करने के लिए शिवदीप तुरंत सिर पर दुपट्टा लपेट कर पटना के डाक बंगला चौराहे पर पहुंच गए. उन की जानकारी के अनुसार इंसपेक्टर पैसे लेने के लिए यहीं आने वाला था. इंसपेक्टर जैसे ही वह पैसे लेने वहां पहुंचा, वैसे ही भेष बदल कर वहां इंतजार कर रहे शिवदीप ने उसे गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद मीडिया में शिवदीप का नाम खूब उछला था.

अच्छा काम करने के बावजूद बारबार तबादला किए जाने से परेशान शिवदीप लांडे ने बाद में बिहार छोड़ने का मन बना लिया. उन्होंने केंद्रसरकार से अपने गृह राज्य महाराष्ट्र लौटने की इच्छा जताई. शिवदीप लांडे के ससुर और महाराष्ट्र सरकार में तत्कालीन जल संसाधन मंत्री विजय शिवतारे ने खुद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से जब उन की पैरवी की तो यह काम और भी आसान हो गया. हालांकि अब शिवदीप भले ही बिहार से जा चुके हैं. लेकिन उन का एक्शन मूड अभी भी जारी है. शिवदीप इन दिनों मुंबई एंटी नारकोटिक्स सेल क्राइम ब्रांच में डीआईजी के पद पर हैं. डांस बार में छापेमारी के साथसाथ कई बार नशीले पदार्थों की धरपकड़ के कारण उन का नाम यहां भी सुर्खियों में बना रहता है.

इसी साल जनवरी में शिवदीप फिर से चर्चा में तब आए, जब उन्होंने हेरोइन तस्करों को पकड़ने के लिए आटो ड्राइवर का भेष बनाया था. इस छापेमारी में मुंबई पुलिस ने 12 करोड़ की हेरोइन बरामद की थी. एक तरह से शिवदीप ने साबित कर दिया है कि चाहे जगह जो भी हो, उन का लक्ष्य एक ही रहेगा, और वो है अपने दबंग स्टाइल में अपराध और अपराधियों का खात्मा करना. इसे एक अधिकारी की लोकप्रियता ही कहेंगे कि जब मुंगेर से शिवदीप का तबादला हुआ तो 6 किलोमीटर तक फूलों की बारिश करते हुए लोगों ने उन्हें विदा किया था. भीषण ठंड में जब पटना से उन का तबादला हुआ तो लोगों ने कई दिनों तक भूख हड़ताल और प्रर्दशन किए.

अररिया जिले से तबादला हुआ तो लोगों ने 48 घंटों तक उन्हें जिले से बाहर ही नहीं जाने दिया. रोहतास में खनन माफियाओं के खिलाफ उन की मुहिम में हमेशा लोगों का साथ मिला. लांडे की पुलिस विभाग में जहां भी नियुक्ति रही, वह लोगों की आंख का तारा बन कर रहे. लोगों ने उन्हें अपनाया. मीडिया ने उन्हें ‘दबंग’, ‘सिंघम’, ‘रौबिनहुड’ और न जाने कितने उपनाम दिए, लेकिन उन के अपने उन्हें  ‘शिवदीप’ नाम से बुलाते हैं. दंबग फिल्म में सलमान खान ने चुलबुल पांडे नाम के जिस पुलिस अफसर का किरदार निभाया है, उन में से अधिकांश किस्से आईपीएस शिवदीप लांडे की रीयल जिंदगी से जुडे़ है. ऐसा कहा जाता है कि सलमान खान ने यह फिल्म आईपीएस अफसर लांडे को केंद्र में रख कर ही बनाई थी, बस इस में कुछ बदलाव कर दिए गए थे. Real Crime Stories

Crime News: आशिक बन गया ब्लैकमेलर – दोस्त की दगाबाजी

Crime News: कभी दोस्ती तो कभी तथाकथित प्यार के झांसे में आ कर कई लड़कियां ब्लैकमेलरों के चक्कर में फंस जाती हैं. मतलब शरीर ही नहीं, उन से पैसे भी मांगे जाते हैं.

‘‘तुझे क्या लगता है कि आत्महत्या कर लेने से तेरी समस्या दूर हो जाएगी?’’

‘‘समस्या दूर हो या न हो, लेकिन मैं हमेशा के लिए इस दुनिया से दूर हो जाऊंगी. तू नहीं जानती नेहा मेरा खानापीना, सोना यहां तक कि पढ़ना भी दूभर हो गया है. हर वक्त डर लगा रहता है कि न जाने कब उस का फोन आ जाए और वह मुझे फिर अपने कमरे में बुला कर…’’ कहते हुए रंजना (बदला नाम) सुबक उठी तो उस की रूममेट नेहा का कलेजा मुंह को आने लगा. उसे लगा कि वह अभी ही खुद जा कर उस कमबख्त कलमुंहे मयंक साहू का टेंटुआ दबा कर उस की कहानी हमेशा के लिए खत्म कर दे, जिस ने उस की सहेली की जिंदगी नर्क से बदतर कर दी है.

अभीअभी नेहा ने जो देखा था, वह अकल्पनीय था. रंजना खुदकुशी करने पर आमादा हो आई थी, जिसे उस ने जैसेतैसे रोका था लेकिन साथ ही वह खुद भी घबरा गई थी. उसे इतना जरूर समझ आ गया था कि अगर थोड़ा वक्त रंजना से बातचीत कर गुजार दिया जाए तो उस के सिर से अपनी जिंदगी खत्म कर लेने का खयाल उतर जाएगा. लेकिन उस की इस सोच को कब तक रोका जा सकता है. आज नहीं तो कल रंजना परेशान हो कर फिर यह कदम उठाएगी. वह हर वक्त तो रूम पर रह नहीं सकती.

रंजना को समझाने के लिए वह बड़ेबूढ़ों की तरह बोली, ‘‘इस में तेरी तो कोई गलती नहीं है, फिर क्यों किसी दूसरे के गुनाह की सजा खुद को दे रही है. यह मत सोच कि इस से उस का कुछ बिगड़ेगा, उलटे तेरी इस बुजदिली से उसे शह और छूट ही मिलेगी. फिर वह बेखौफ हो कर न जाने कितनी लड़कियों की जिंदगी बरबाद करेगा, इसलिए हिम्मत कर के उसे सबक सिखा. यह बुजदिली तो कभी भी दिखाई जा सकती है. जरा अंकलआंटी के बारे में सोच, जिन्होंने बड़ी उम्मीदों और ख्वाहिशों से तुझे यहां पढ़ने भेजा है.’’

रंजना पर नेहा की बातों का वाजिब असर हुआ. उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘फिर क्या रास्ता है, वह कहने भर से मानने वाला होता तो 3 महीने पहले ही मान गया होता. जिस दिन वह तसवीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा, उस दिन मेरी जिंदगी तो खुद ही खत्म हो जाएगी. जिन मम्मीपापा की तू बात कर रही है, उन पर क्या गुजरेगी? वे तो सिर उठा कर चलने लायक तो क्या, कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेंगे.’’

‘‘एक रास्ता है’’ नेहा ने मुद्दे की बात पर आते हुए कहा, ‘‘बशर्ते तू थोड़ी सी हिम्मत और सब्र से काम ले तो यह परेशानी चुटकियों में हल हो जाएगी.’’ माहौल को हलका बनाने की गरज से नेहा ने सचमुच चुटकी बजा डाली.

‘‘क्या, मुझे तो कुछ नहीं सूझता?’’

‘‘कोड रेड पुलिस. वह तुझे इस चक्रव्यूह से ऐसे निकाल सकती है कि सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.’’

कोड रेड पुलिस के बारे में रंजना ने सुन रखा था कि पुलिस की एक यूनिट है जो खासतौर से लड़कियों की सुरक्षा के लिए बनाई गई है और एक काल पर आ जाती है. ऐसे कई समाचार उस ने पढ़े और सुने थे कि कोड रेड ने मनचलों को सबक सिखाया या फिर मुसीबत में पड़ी लड़की की तुरंत मदद की.

रंजना को नेहा की बातों से आशा की एक किरण दिखी, लेकिन संदेह का धुंधलका अभी भी बरकरार था कि पुलिस वालों पर कितना भरोसा किया जा सकता है और बात ढकीमुंदी रह पाएगी या नहीं. इस से भी ज्यादा अहम बात यह थी कि वे तसवीरें और वीडियो वायरल नहीं होंगे, इस की क्या गारंटी है.

इन सब सवालों का जवाब नेहा ने यह कह कर दिया कि एक बार भरोसा तो करना पड़ेगा, क्योंकि इस के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. मयंक दरअसल उस की बेबसी, लाचारगी और डर का फायदा उठा रहा है. एक बार पुलिस के लपेटे में आएगा तो सारी धमाचौकड़ी भूल जाएगा और शराफत से फोटो और वीडियो डिलीट कर देगा, जिन की धौंस दिखा कर वह न केवल रंजना की जवानी से मनमाना खिलवाड़ कर रहा था, बल्कि उस से पैसे भी ऐंठ रहा था.

कलंक बना मयंक

20 वर्षीय रंजना और नेहा के बीच यह बातचीत बीती अप्रैल के तीसरे सप्ताह में हो रही थी. दोनों जबलपुर के मदनमहल इलाके के एक हौस्टल में एक साथ रहती थीं और अच्छी फ्रैंड्स होने के अलावा आपस में कजिंस भी थीं. रंजना यहां जबलपुर के नजदीक के एक छोटे से शहर से आई थी और प्रतिष्ठित परिवार से थी. आते वक्त खासतौर से मम्मी ने उसे तरहतरह से समझाया था कि लड़कों से दोस्ती करना हर्ज की बात नहीं है, लेकिन उन से तयशुदा दूरी बनाए रखना जरूरी है.

बात केवल दुनिया की ऊंचनीच समझाने की नहीं, बल्कि अपनी बड़ी हो गई नन्हीं परी को आंखों से दूर करते वक्त ढेरों दूसरी नसीहतें देने की भी थी कि अपना खयाल रखना. खूब खानापीना, मन लगा कर पढ़ाई करना और रोज सुबहशाम फोन जरूर करना, जिस से हम लोग बेफिक्र रहें.

यह अच्छी बात थी कि रंजना को बतौर रूममेट नेहा मिली थी, जो उन की रिश्तेदार भी थी. जबलपुर आकर रंजना ने हौस्टल में अपना बोरियाबिस्तर जमाया और पढ़ाईलिखाई और कालेज में व्यस्त हो गई. मम्मीपापा से रोज बात हो जाने से वह होम सिकनेस का शिकार होने से बची रही. जबलपुर में उस की जैसी हजारों लड़कियां थीं, जो आसपास के इलाकों से पढ़ने आई थीं, उन्हें देख कर भी उसे हिम्मत मिलती थी. मम्मी की दी सारी नसीहतें तो उसे याद रहीं लेकिन लड़कों वाली बात वह भूल गई. खाली वक्त में वह भी सोशल मीडिया पर वक्त गुजारने लगी तो देखते ही देखते फेसबुक पर उस के ढेरों फ्रैंड्स बन गए. वाट्सऐप और फेसबुक से भी उसे बोरियत होने लगी तो उस ने इंस्टाग्राम पर भी एकाउंट खोल लिया.

इंस्टाग्राम पर वह कभीकभार अपनी तसवीरें शेयर करती थी, लेकिन जब भी करती थी तब उसे मयंक साहू नाम के युवक से जरूर लाइक और कमेंट मिलता था. इस से रंजना की उत्सुकता उस के प्रति बढ़ी और जल्द ही दोनों में हायहैलो होने लगी. यही हालहैलो होतेहोते दोनों में दोस्ती भी हो गई. बातचीत में मयंक उसे शरीफ घर का महसूस हुआ तो शिष्टाचार और सम्मान का पूरा ध्यान रखता था. दूसरे लड़कों की तरह उस ने उसे प्रपोज नहीं किया था.

मयंक बुनने लगा जाल

20 साल की हो जाने के बाद भी रंजना ने कोई बौयफ्रैंड नहीं बनाया था, लेकिन जाने क्यों मयंक की दोस्ती की पेशकश वह कुबूल कर बैठी, जो हौस्टल के रूम से बाहर जा कर भी विस्तार लेने लगी. मेलमुलाकातों और बातचीत में रंजना को मयंक में किसीतरह का हलकापन नजर नहीं आया. नतीजतन उस के प्रति उस का विश्वास बढ़ता गया और यह धारणा भी खंडित होने लगी कि सभी लड़के छिछोरे टाइप के होते हैं. मयंक भी जबलपुर के नजदीक गाडरवारा कस्बे से आया था. यह इलाका अरहर की पैदावार के लिए देश भर में मशहूर है. बातों ही बातों में मयंक ने उसे बताया था कि पढ़ाई के साथसाथ वह एक कंपनी में पार्टटाइम जौब भी करता है, जिस से अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठा सके.

अपने इस बौयफ्रैंड का यह स्वाभिमान भी रंजना को रिझा गया था. कैंट इलाके में किराए के कमरे में रहने वाला मयंक कैसे रंजना के इर्दगिर्द जाल बुन रहा था, इस की उसे भनक तक नहीं लगी. दोस्ती की राह में फूंकफूंक कर कदम रखने वाली रंजना को यह बताने वाला कोई नहीं था कि कभीकभी यूं ही चलतेचलते भी कदम लड़खड़ा जाते हैं. इसी साल होली के दिनों में मयंक ने रंजना को अपने कमरे पर बुलाया तो वह मना नहीं कर पाई. उस दिन को रंजना शायद ही कभी भूल पाए, जब वह आगेपीछे का बिना कुछ सोचे मयंक के रूम पर चली गई थी. मयंक ने उस का हार्दिक स्वागत किया और दोनों इधरउधर की बातों में मशगूल हो गए. थोड़ी देर बाद मयंक ने उसे कोल्डड्रिंक औफर किया तो रंजना ने सहजता से पी ली.

रंजना को यह पता नहीं चला कि कोल्डड्रिंक में कोई नशीली चीज मिली हुई है, लिहाजा धीरेधीरे वह होश खोती गई और थोड़ी देर बाद बेसुध हो कर बिस्तर पर लुढ़क गई. मयंक हिंदी फिल्मों के विलेन की तरह इसी क्षण का इंतजार कर रहा था. शातिर शिकारी की तरह उस ने रंजना के कपड़े एकएक कर उतारे और फिर उस के संगमरमरी जिस्म पर छा गया.

कुछ देर बाद जब रंजना को होश आया तो उसे महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ हुई है. पर क्या हुई है, यह उसे तब समझ में नहीं आया. मयंक ने ऐसा कुछ जाहिर नहीं किया, जिस से उसे लगे कि थोड़ी देर पहले ही उस का दोस्त उसे कली से फूल और लड़की से औरत बना चुका है. दर्द को दबाते हुए लड़खड़ाती रंजना वापस हौस्टल आ कर सो गई. कुछ दिन ठीकठाक गुजरे, लेकिन जल्द ही मयंक ने अपनी असलियत उजागर कर दी. उस ने एक दिन जब ‘उस दिन’ का वीडियो और तसवीरें रंजना को दिखाईं तो उसे अपने पैरों के नीचे से जमीन खिसकती नजर आई. खुद की ऐसी वीडियो और फोटो देख कर शरीफ और इज्जतदार घर की कोई लड़की शर्म से जमीन में धंस जाने की दुआ मांगने लगती. ऐसा ही कुछ रंजना के साथ हुआ.

दोस्त नहीं, वह निकला ब्लैकमेलर

वह रोई, गिड़गिड़ाई, मयंक के पैरों में लिपट गई कि वह यह सब वीडियो और फोटो डिलीट कर दे. लेकिन मयंक पर उस के रोनेगिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं हुआ. तुम आखिर चाहते क्या हो, थकहार कर उस ने सवाल किया तो जवाब में ऐसा लगा मानो सैकड़ों प्राण, अजीत, रंजीत, प्रेम चोपड़ा और शक्ति कपूर धूर्तता से मुसकरा कर कह रहे हों कि हर चीज की एक कीमत होती है जानेमन. यह कीमत थी मयंक के साथ फिर वही सब अपनी मरजी से करना जो उस दिन हुआ था. इस के अलावा उसे पैसे भी देने थे. अब रंजना को समझ आया कि उस का दोस्त या आशिक जो भी था, ब्लैकमेलिंग पर उतारू हो आया है और उस की बात न मानने का खामियाजा क्याक्या हो सकता है, इस का अंदाजा भी वह लगा चुकी थी.

मरती क्या न करती की तर्ज पर रंजना ने उस की शर्तें मानते हुए उसे शरीर के साथसाथ 10 हजार रुपए भी दे दिए. लेकिन उस ने उस की तसवीरें और वीडियो डिलीट नहीं किए. उलटे अब वह रंजना को कभी भी अपने कमरे पर बुला कर मनमानी करने लगा था. साथ ही वह उस से पैसे भी झटकने लगा था. रंजना चूंकि जरूरत से ज्यादा झूठ बोल कर मम्मीपापा से पैसे नहीं मांग सकती थी, इसलिए एक बार तो उस ने मम्मी की सोने की चेन चुरा कर ही मयंक को दे दी. रंजना 3 महीने तक तो चुपचाप मयंक की हवस पूरी कर के उसे पैसे भी देती रही, लेकिन अब उसे लगने लगा था कि वह एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस गई है, जिस से निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. ऐसे में उस ने अपनी जिंदगी खत्म करने का फैसला ले लिया.

नेहा अगर वक्त रहते न बचाती तो वह अपने फैसले पर अमल भी कर चुकी होती. लेकिन नेहा ने उसे न केवल बचा लिया, बल्कि मयंक को भी उस के किए का सबक सिखा डाला. नेहा ने कोड रेड पुलिस टीम को इस ब्लैकमेलिंग के बारे में जब विस्तार से बताया तो टीम ने रंजना को कुछ इस तरह समझाया कि वह आश्वस्त हो गई कि उस की पहचान भी उजागर नहीं होगी और वे फोटो व वीडियो भी हमेशा के लिए डिलीट हो जाएंगे. साथ ही मयंक को उस के जुर्म की सजा भी मिलेगी. कोड रेड की इंचार्ज एसआई माधुरी वासनिक ने रंजना को पूरी योजना बताई, जिस से मय सबूतों के उसे रंगेहाथों धरा जा सके. इतनी बातचीत के बाद रंजना का खोया आत्मविश्वास भी लौटने लगा था.

योजना के मुताबिक फुल ऐंड फाइनल सेटलमेंट के लिए 26 अप्रैल को रंजना ने मयंक को भंवरताल इलाके में बुलाया. सौदा 20 हजार रुपए में तय हुआ. उस वक्त सुबह के कोई 6 बजे थे, जब मयंक पैसे लेने आया. कोड रेड के अधिकारी पहले ही सादे कपड़ों में चारों तरफ फैल गए थे. माधुरी वासनिक फोन पर रंजना के संपर्क में थीं. जैसे ही मयंक रंजना के पास पहुंचा तो पुलिस वालों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया. शुरू में तो वह माजरा समझ ही नहीं पाया और दादागिरी दिखाने लगा. लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि सादा लिबास में ये लोग पुलिस वाले हैं तो उस के होश फाख्ता हो गए. जल्द ही वह सच सामने आ गया जो मयंक के कैमरे में कैद था.

मयंक का मोबाइल देखने के बाद जब इस बात की पुष्टि हो गई कि रंजना वाकई ब्लैकमेल हो रही थी तो बहुत देर से उस का इंतजार कर रहे पुलिस वालों ने उस की सड़क पर ही तबीयत से धुनाई कर डाली. पुलिस ने उसे कई तमाचे रंजना से भी पड़वाए, जिन्हें मारते वक्त उस के चेहरे पर प्रतिशोध के भाव साफसाफ दिख रहे थे. तमाशा देख कर भीड़ इकट्ठी होने लगी तो पुलिस वाले मयंक को जीप में बैठा कर थाने ले गए और उस पर बलात्कार और ब्लैकमेलिंग का मामला दर्ज कर के उसे हवालात भेज दिया.

फिल्म अभी बाकी है

ब्लैकमेलिंग की एक कहानी का यह सुखद अंत हर उस लड़की के नसीब में नहीं होता जो किसी मयंक के जाल में फंसी छटपटा रही होती है और थकहार कर खुदकुशी करने के अलावा उसे कोई रास्ता नजर नहीं आता. इस मामले से यह तो सबक मिलता है कि लड़कियां अगर हिम्मत से काम लें और पुलिस वालों के साथसाथ घर वालों को भी सच बता दें, तो बड़ी मुसीबत से बच सकती हैं. नेहा की दिलेरी और समझ रंजना के काम आई, इस से लगता है कि सहेलियों को भी भरोसे में ले कर ब्लैकमेलरों को सबक सिखाया जा सकता है.

ऐसी हालत में आत्महत्या करना समस्या का समाधान नहीं है. समाधान है ब्लैकमेलर्स को उन की मंजिल हवालात और अदालत का रास्ता दिखाना. मगर इस के पहले यह भी जरूरी है कि अकेले रह रहे लड़कों पर भरोसा कर के उन से अकेले में न मिला जाए. Crime News

Crime Stories: औरतों के साथ घिनौनी वारदात जारी

Crime Stories: इस वारदात को अंजाम देने में गांव के वार्ड सदस्य और सरपंच भी शामिल थे. मां बेटी ने स्थानीय थाने में मामला दर्ज कराया जहां वार्ड पार्षद मोहम्मद खुर्शीद, सरपंच मोहम्मद अंसारी, मोहम्मद शकील, मोहम्मद इश्तेखार, मोहम्मद शमशुल हक, मोहम्मद कलीम के साथसाथ दशरथ ठाकुर को मुलजिम बनाया गया.

वैसे, पुलिस सुपरिंटैंडैंट मानवजीत सिंह ढिल्लों के मुताबिक मोहम्मद शकील और दशरथ ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया गया था.

महिला आयोग की अध्यक्ष दिलमणि मिश्रा ने उस इलाके का दौरा किया और वे पीडि़ता से मिल कर उस की हरमुमकिन मदद करने और इंसाफ दिलाने की कोशिश कर रही हैं. केंद्रीय महिला आयोग को भी इस मामले की जानकारी दी गई है.

डीएम राजीव रोशन ने इस वारदात की निंदा करते हुए कहा है कि यह घिनौना अपराध है. कुसूरवारों को बख्शा नहीं जाएगा. हर हाल में कड़ी कार्यवाही होगी.

पत्थरदिल होते लोग

इस तरह की वारदातें जब कहीं होती हैं तो अच्छेखासे जागरूक लोग भी चुप्पी साध लेते हैं. अगर लोकल लोग इस का विरोध करते तो शायद इस तरह की वारदात नहीं घटती. अगर दबंगों का मनोबल इसी तरह बढ़ता गया तो वह दिन दूर नहीं जब निहायत कमजोर लोगों की जिंदगी हमआप जैसों की चुप्पी की वजह से दूभर हो जाएगी.

आज हमारे समाज में इतनी गिरावट आती जा रही है कि किसी औरत को नंगा कर के घुमाना, उस के साथ छेड़छाड़ करना और रेप तक करते हुए उस का वीडियो वायरल करना आम बात हो गई है.

समाज को धार्मिक और संस्कारी बनाने का ठेका लेने वाले साधुसंन्यासी और मौलाना इन वारदातों पर चुप्पी साधे रहते हैं. अभी हाल के दिनों में वैशाली, आरा, रोहतास, जहानाबाद, कैमूर, मधुबनी, गया और नालंदा में औरतों को नंगा कर के सरेआम सड़कोंगलियों में घुमाए, पीटे और सताए जाने की कई वारदातें हो चुकी हैं और यह सिलसिला जारी है.

अगर हम हाल के कुछ सालों की वारदातें देखें तो वर्तमान समाज की नंगी तसवीरें हमारे सामने दिखाई पड़ती हैं:

* 20 अगस्त, 2018. बिहार के आरा जिले के बिहियां इलाके में एक नौजवान की हत्या में शामिल होने के शक में उग्र भीड़ ने एक औरत को नंगा कर के उसे पीटते हुए सरेआम पूरे बाजार में घुमाया.

* 17 अगस्त, 2017. उत्तर प्रदेश के इटावा में दबंगों ने औरतों को पीटते हुए नंगा किया.

* 9 अगस्त, 2017. महाराष्ट्र में एक औरत को नंगा कर के घुमाया गया. उस औरत की गलती यह थी कि उस ने एक प्रेमी जोड़े को आपस में मिलाने का काम किया था.

* 22 अप्रैल, 2017. एक पिता ने प्रेम करने के एवज में अपनी ही बेटी को नंगा कर के घुमाया.

* 1 मई, 2014. बैतूल के चुनाहजुरि गांव में एक औरत के बाल मूंड़ कर उसे नंगा कर के पीटते हुए पूरे गांव में घुमाया. उस औरत का गुनाह यह था कि उस की छोटी बहन ने दूसरी जाति के लड़के के साथ शादी कर ली थी.

* 19 दिसंबर, 2010. पश्चिम बंगाल में एक औरत को पंचायत के फैसले के मुताबिक उस की पिटाई करते हुए नंगा कर के घुमाया गया. उस औरत पर आरोप था कि उस का किसी के साथ नाजायज रिश्ता था.

* खड़गपुर के पास मथकथ गांव में एक औरत को नाजायज रिश्ता बनाने के आरोप में उस की नंगा कर के पिटाई की गई.

इन वारदातों में ज्यादातर नौजवान शामिल रहते हैं जो औरतों के साथ बदतमीजी करने से ले कर उन के बेहूदा वीडियो बनाने तक में शामिल होते हैं. हमारे समाज के इन नौजवानों को क्या हो गया है जो ये अपने गुरु और अपने मातापिता की इज्जत तक का थोड़ा सा भी खयाल नहीं रखते हैं? मातापिता भी इस में बराबर के कुसूरवार हैं जो लड़कियों को तो बातबात पर तमीज सिखाते रहते हैं, लेकिन लड़कों को नहीं.

क्या यह सब बढ़ती धार्मिक  पाखंडीबाजी का नतीजा नहीं है जिस के मुताबिक औरतों को पैर की जूती माना गया है? राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2012 से 2015 तक औरतों के विरुद्ध अपराधों की तादाद में 34 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. दुष्कर्म के मामले में मध्य प्रदेश 4,391, महाराष्ट्र 4,144, राजस्थान 3,644, उत्तर प्रदेश 3,025, ओडिशा 2,251, दिल्ली 2,199, असम 1,733, छत्तीसगढ़ 1,560, केरल 1,256, पश्चिम बंगाल 1,129 के आंकड़े चौंकाते हैं. निश्चित रूप से यह एक सभ्य समाज की तसवीर तो नहीं हो सकती.

सवाल यह है कि धर्म, नैतिकता और शर्मिंदगी क्या सिर्फ लड़कियों के लिए है? जन्म से ले कर मरने तक किसी औरत के अपने मातापिता, पति और बेटे के अधीन ही जिंदगी बिताने की परंपरा आज भी सदियों से चली आ रही है.

यह ठीक है कि अब लड़कियों की जिंदगी में बदलाव आया है. आज वे भी हर क्षेत्र में परचम लहरा रही हैं, लेकिन आज भी उन के साथ दोयम दर्जे का ही बरताव होता है. जब एक लड़की के साथ बलात्कार की वारदात होती है तो परिवार और समाज द्वारा इज्जत के नाम पर उस की चर्चा और मुकदमा तक नहीं किया जाता है, जिस की वजह से बलात्कारी का मनोबल बढ़ जाता है.

इस से दुनियाभर में हमारे देश की कैसी इमेज बन रही है, क्या हमारे नेताओं को इस पर चिंता करने की जरूरत महसूस नहीं होती है?

भारत विश्व गुरु बनने की बात करता है और ऐसा होना भी चाहिए, लेकिन क्या हम 8 साल की मासूम बच्ची के साथ रेप कर के विश्व गुरु बन जाएंगे या रेप के बाद विचारधारा और धर्म पर राजनीति कर के?

जिस देश में स्कूलों और कालेजों में टीचरों की घोर कमी हो, अस्पतालों के हालात देख कर ही लोग बीमार दिखने लगते हों, बेरोजगारों की एक लंबी भीड़ हो और क्वालिटी ऐजुकेशन के नाम पर खिचड़ी खिला कर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जाता हो, क्या हम ऐसे माहौल में विश्व गुरु बनने के हकदार हैं?

जिस देश में वोट पाने के लिए नेता हेट स्पीच देने में वर्ल्ड रिकौर्ड बना चुके हों, जिस देश के नेता धर्म के नाम पर अपनी राजनीति चमकाते हों और जरूरत पड़ने पर धर्म के नाम पर नौजवानों की बलि चढ़ा देते हों, क्या ऐसी करतूतों से भारत की छवि विश्व जगत में खराब नहीं हुई है?

भारत में हो रही बलात्कार की वारदातें, चौकचौराहे पर गुस्साई भीड़ द्वारा लगातार की जा रही हत्याएं व सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों द्वारा प्रैस कौंफ्रैंस कर के लोकतंत्र को बचाने की गुहार लगाना, क्या संचार क्रांति के इस दौर में हमारे देश के लिए इस सब पर सोचविचार करने का यह सही समय नहीं है? कई देशों ने अपने नागरिकों को अकेले भारत आने के बारे में चेतावनी देना शुरू कर दिया है.

भीड़ आखिर इतनी अराजक क्यों हो रही है? कानून को हाथ में लेने के लिए उसे कौन बोल या उकसा रहा है? शक के आधार पर या पंचायत के फैसले पर किसी औरत को नंगा कर के उस को पीटा जाना किसी लिहाज से जायज नहीं है, क्योंकि सरकार के तथाकथित समर्थकों को सोशल मीडिया पर मांबहन की गालियां देने का जो लाइसैंस दिया गया है वह अब सड़कों पर अपना असली रंग दिखाने लगा है.

यह सब इस देश के लिए बहुत बड़ा खतरा है. ऐसी वारदातों में कभीकभार ऐसी औरतें भी निशाने पर ले ली जाती हैं, जिन का कोई कुसूर नहीं होता है. वे ऐसे लोगों के गुस्से की भेंट चढ़ जाती हैं, जो उन्हें जानते तक नहीं हैं. औरत को देवी का रूप बताने और उस की पूजा का ढोंग करने वाले इस देश के लोगों का यही चरित्र है. Crime Stories

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)

Crime Story in Hindi: जिस्म की भूख – दोस्त ही बना दुश्मन

Crime Story in Hindi: मीना अपने 3 भाईबहनों में सब से बड़ी ही नहीं, खूबसूरत भी थी. उस का परिवार औरैया जिले के कस्बा दिबियापुर में रहता था. उस के पिता अमर सिंह रेलवे में पथ निरीक्षक थे. उस ने इंटर पास कर लिया तो मांबाप उस के विवाह के बारे में सोचने लगे. उन्होंने उस के लिए घरवर की तलाश शुरू की तो उन्हें कंचौसी कस्बा के रहने वाले राम सिंह का बेटा अनिल पसंद आ गया. जून, 2008 में मीना की शादी अनिल से हो गई. मीना सुंदर तो थी ही, दुल्हन बनने पर उस की सुंदरता में और ज्यादा निखार आ गया था. ससुराल में जिस ने भी उसे देखा, उस की खूबसूरती की खूब तारीफ की. अपनी प्रशंसा पर मीना भी खुश थी. मीना जैसी सुंदर पत्नी पा कर अनिल भी खुश था.

दोनों के दांपत्य की गाड़ी खुशहाली के साथ चल पड़ी थी. लेकिन कुछ समय बाद आर्थिक परेशानियों ने उन की खुशी को ग्रहण लगा दिया. शादी के पहले अनिल छोटेमोटे काम कर के गुजारा कर लेता था. लेकिन शादी के बाद मीना के आने से जहां अन्य खर्चे बढ़ ही गए थे, वहीं मीना की महत्त्वाकांक्षी ख्वाहिशों ने उस के इस खर्च को और बढ़ा दिया था. आर्थिक परेशानियों को दूर करने के लिए वह कस्बे की एक आढ़त पर काम करने लगा था.

आढ़त पर काम करने की वजह से अनिल को कईकई दिनों घर से बाहर रहना पड़ता था, जबकि मीना को यह कतई पसंद नहीं था. पति की गैरमौजूदगी में वह आसपड़ोस के लड़कों से बातें ही नहीं करने लगी थी, बल्कि हंसीमजाक भी करने लगी थी. शुरूशुरू में तो किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब उस की हरकतें हद पार करने लगीं तो अनिल के मातापिता से यह देखा नहीं गया और वे यह कह कर गांव चले गए कि अब वे गांव में रह कर खेती कराएंगे.

सासससुर के जाने के बाद मीना को पूरी आजादी मिल गई थी. अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए उस ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं तो उसे राजेंद्र जंच गया. फिर तो वह उसे मन का मीत बनाने की कोशिश में लग गई. राजेंद्र मूलरूप से औरैया का रहने वाला था. उस के पिता गांव में खेती कराते थे. वह 3 भाईबहनों में सब से छोटा था. बीकौम करने के बाद वह कंचौसी कस्बे में रामबाबू की अनाज की आढ़त पर मुनीम की नौकरी करने लगा था.

राजेंद्र और अनिल एक ही आढ़त पर काम करते थे, इसलिए दोनों में गहरी दोस्ती थी. अनिल ने ही राजेंद्र को अपने घर के सामने किराए पर कमरा दिलाया था. दोस्त होने की वजह से राजेंद्र अनिल के घर आताजाता रहता था. जब कभी आढ़त बंद रहती, राजेंद्र अनिल के घर आ जाता और फिर वहीं पार्टी होती. पार्टी का खर्चा राजेंद्र ही उठाता था.

राजेंद्र पर दिल आया तो मीना उसे फंसाने के लिए अपने रूप का जलवा बिखेरने लगी. मीना के मन में क्या है, यह राजेंद्र की समझ में जल्दी ही आ गया. क्योंकि उस की निगाहों में जो प्यास झलक रही थी, उसे उस ने ताड़ लिया था. इस के बाद तो मीना उसे हूर की परी नजर आने लगी थी. वह उस के मोहपाश में बंधता चला गया था.

एक दिन जब राजेंद्र को पता चला कि अनिल 2 दिनों के लिए बाहर गया है तो उस दिन उस का मन काम में नहीं लगा. पूरे दिन उसे मीना की ही याद आती रही. घर आने पर वह मीना की एक झलक पाने को बेचैन था. उस की यह ख्वाहिश पूरी हुई शाम को. मीना सजधज कर दरवाजे पर आई तो उस समय वह उसे आसमान से उतरी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी. उसे देख कर उस का दिल बेकाबू हो उठा.

राजेंद्र को पता ही था कि अनिल घर पर नहीं है, इसलिए वह उस के घर जा पहुंचा. राजेंद्र को देख कर मीना ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज तुम आढ़त से बड़ी जल्दी आ गए, वहां कोई काम नहीं था क्या?’’

‘‘काम तो था भाभी, लेकिन मन नहीं लगा.’’

‘‘क्यों?’’ मीना ने पूछा.

‘‘सच बता दूं भाभी.’’

‘‘हां, बताओ.’’

‘‘भाभी, तुम्हारी सुंदरता ने मुझे विचलित कर दिया है, तुम सचमुच बहुत सुंदर हो.’’

‘‘ऐसी सुंदरता किस काम की, जिस की कोई कद्र न हो.’’ मीना ने लंबी सांस ले कर कहा.

‘‘क्या अनिल भाई, तुम्हारी कद्र नहीं करते?’’

‘‘जानबूझ कर अनजान मत बनो. तुम जानते हो कि तुम्हारे भाई साहब महीने में 10 दिन तो बाहर ही रहते हैं. ऐसे में मेरी रातें करवटों में बीतती हैं.’’

‘‘भाभी जो दुख तुम्हारा है, वही मेरा भी है. मैं भी तुम्हारी यादों में रातरात भर करवट बदलता रहता हूं. अगर तुम मेरा साथ दो तो हमारी समस्या खत्म हो सकती है.’’ कह कर राजेंद्र ने मीना को अपनी बांहों में भर लिया.

मीना चाहती तो यही थी, लेकिन उस ने मुखमुद्रा बदल कर बनावटी गुस्से में कहा, ‘‘यह क्या कर रहे हो, छोड़ो मुझे.’’

‘‘प्लीज भाभी शोर मत मचाओ, तुम ने मेरा सुखचैन सब छीन लिया है.’’ राजेंद्र ने कहा.

‘‘नहीं राजेंद्र, छोड़ो मुझे. मैं बदनाम हो जाऊंगी, कहीं की नहीं रहूंगी मैं.’’

‘‘नहीं भाभी, अब यह मुमकिन नहीं है. कोई पागल ही होगा, जो रूपयौवन के इस प्याले के इतने करीब पहुंच कर पीछे हटेगा.’’ कह कर राजेंद्र ने बांहों का कसाव बढ़ा दिया.

दिखावे के लिए मीना न…न…न… करती रही, जबकि वह खुद राजेंद्र के शरीर से लिपटी जा रही थी. राजेंद्र कोई नासमझ बच्चा नहीं था, जो मीना की हरकतों को न समझ पाता. इस के बाद वह क्षण भी आ गया, जब दोनों ने मर्यादा भंग कर दी. एक बार मर्यादा भंग हुई तो राजेंद्र को हरी झंडी मिल गई. उसे जब भी मौका मिलता, वह मीना के घर पहुंच जाता और इच्छा पूरी कर के वापस आ जाता. मीना अब खुश रहने लगी थी, क्योंकि उस की शारीरिक भूख मिटने लगी थी, साथ ही आर्थिक समस्या का भी हल हो गया था. मीना जब भी राजेंद्र से रुपए मांगती थी, वह चुपचाप निकाल कर दे देता था.

काम कोई भी हो, ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रहता. ठीक वैसा ही मीना और राजेंद्र के संबंधों में भी हुआ. उन के नाजायज संबंधों को ले कर अड़ोसपड़ोस में बातें होने लगीं. ये बातें अनिल के कानों तक पहुंची तो वह सन्न रह गया. उसे बात में सच्चाई नजर आई. क्योंकि उस ने मीना और राजेंद्र को खुल कर हंसीमजाक करते हुए कई बार देखा था. तब उस ने इसे सामान्य रूप से लिया था. अब पडोसियों की बातें सुन कर उसे दाल में काला नजर आने लगा था.

अनिल ने इस बारे में मीना से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘पड़ोसी हम से जलते हैं. राजेंद्र का आनाजाना और मदद करना उन्हें अच्छा नहीं लगता, इसलिए वे इस तरह की ऊलजुलूल बातें कर के तुम्हारे कान भर रहे हैं. अगर तुम्हें मुझ पर शक है तो राजेंद्र का घर आनाजाना बंद करा दो. लेकिन उस के बाद तुम दोनों की दोस्ती में दरार पड़ जाएगी. वह हमारी आर्थिक मदद करना बंद कर देगा.’’

अनिल ने राजेंद्र और मीना को रंगेहाथों तो पकड़ा नहीं था, इसलिए उस ने मीना की बात पर यकीन कर लिया. लेकिन मन का शक फिर भी नहीं गया. इसलिए वह राजेंद्र और मीना पर नजर रखने लगा. एक दिन राजेंद्र आढ़त पर नहीं आया तो अनिल को शक हुआ. दोपहर को वह घर पहुंचा तो उस के मकान का दरवाजा बंद था और अंदर से मीना और राजेंद्र के हंसने की आवाजें आ रही थीं. अनिल ने खिड़की के छेद से अंदर झांक कर देखा तो मीना और राजेंद्र एकदूसरे में समाए हुए थे.

अनिल सीधे शराब के ठेके पर पहुंचा और जम कर शराब पी. इस के बाद घर लौटा और दरवाजा पीटने लगा. कुछ देर बाद मीना ने दरवाजा खोला तो राजेंद्र कमरे में बैठा था. उस ने राजेंद्र को 2 तमाचे मार कर बेइज्जत कर के घर से भगा दिया. इस के बाद मीना की जम कर पिटाई की. मीना ने अपनी गलती मानते हुए अनिल के पैर पकड़ कर माफी मांग ली और आइंदा इस तरह की गलती न करने की कसम खाई.

अनिल उसे माफ करने को तैयार नहीं था, लेकिन मासूम बेटे की वजह से अनिल ने मीना को माफ कर दिया. इस के बाद कुछ दिनों तक अनिल, मीना से नाराज रहा, लेकिन धीरेधीरे मीना ने प्यार से उस की नाराजगी दूर कर दी. अनिल को लगा कि मीना राजेंद्र को भूल चुकी है. लेकिन यह उस का भ्रम था. मीना ने मन ही मन कुछ दिनों के लिए समझौता कर लिया था.

अनिल के प्रति यह उस का प्यार नाटक था, जबकि उस के दिलोदिमाग में राजेंद्र ही बसता था. उधर अनिल द्वारा अपमानित कर घर से निकाल दिए जाने पर राजेंद्र के मन में नफरत की आग सुलग रही थी. उन की दोस्ती में भी दरार पड़ चुकी थी. आमनासामना होने पर दोनों एकदूसरे से मुंह फेर लेते थे. मीना से जुदा होना राजेंद्र के लिए किसी सजा से कम नहीं था.

मीना के बगैर उसे चैन नहीं मिल रहा था. अनिल ने मीना का मोबाइल तोड़ दिया था, इसलिए उस की बात भी नहीं हो पाती थी. दिन बीतने के साथ मीना से न मिल पाने से उस की तड़प बढ़ती जा रही थी. आखिर एक दिन जब उसे पता चला कि अनिल बाहर गया है तो वह मीना के घर जा पहुंचा. मीना उसे देख कर उस के गले लग गई. उस दिन दोनों ने जम कर मौज की.

लेकिन राजेंद्र घर के बाहर निकलने लगा तो पड़ोसी राजे ने उसे देख लिया. अगले दिन अनिल वापस आया तो राजे ने उसे राजेंद्र के आने की बात बता दी. अनिल को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन वह चुप रहा. उसे लगा कि जब तक राजेंद्र जिंदा है, तब तक वह उस की इज्जत से खेलता रहेगा. इसलिए इज्जत बचाने के लिए उस ने अपने दोस्त की हत्या की योजना बना डाली. उस ने मीना को उस के मायके दिबियापुर भेज दिया. उस ने उसे भनक तक नहीं लगने दी थी कि उस के मन में क्या चल रहा है. मीना को मायके पहुंचा कर उस ने राजेंद्र से पुन: दोस्ती गांठ ली. राजेंद्र तो यही चाहता था, क्योंकि दोस्ती की आड़ में ही उस ने मीना को अपनी बनाया था. एक बार फिर दोनों की महफिल जमने लगी.

एक दिन शराब पीते हुए राजेंद्र ने कहा, ‘‘अनिलभाई, तुम ने मीना भाभी को मायके क्यों पहुंचा दिया? उस के बिना अच्छा नहीं लगता. मुझे आश्चर्य इस बात का है कि उस के बिना तुम्हारी रातें कैसे कटती हैं?’’

अनिल पहले तो खिलखिला कर हंसा, उस के बाद गंभीर हो कर बोला, ‘‘दोस्त मेरी रातें तो किसी तरह कट जाती हैं, पर लगता है तुम मीना के बिना बेचैन हो. खैर तुम कहते हो तो मीना को 2-4 दिनों में ले आता हूं.’’ अनिल को लगा कि राजेंद्र को उस की दोस्ती पर पूरा भरोसा हो गया है. इसलिए उस ने राजेंद्र को ठिकाने लगाने की तैयारी कर ली. उस ने राजेंद्र से कहा कि वह भी उस के साथ मीना को लाने चले. वह उसे देख कर खुश हो जाएगी. मीना की झलक पाने के लिए राजेंद्र बेचैन था, इसलिए वह उस के साथ चलने को तैयार हो गया.

5 जुलाई, 2016 की शाम अनिल और राजेंद्र कंचौसी रेलवे स्टेशन पहुंचे. वहां पता चला कि इटावा जाने वाली इंटर सिटी ट्रेन 2 घंटे से अधिक लेट है. इसलिए दोनों ने दिबियापुर (मीना के मायके) जाने का विचार त्याग दिया. इस के बाद दोनों शराब के ठेके पर पहुंचे और शराब की बोतल, पानी के पाउच और गिलास ले कर कस्बे से बाहर पक्के तालाब के पास जा पहुंचे.

वहीं दोनों ने जम कर शराब पी. अनिल ने जानबूझ कर राजेंद्र को कुछ ज्यादा शराब पिला दी, जिस से वह काफी नशे में हो गया. वह वहीं तालाब के किनारे लुढ़क गया तो अनिल ने ईंट से उस का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी. राजेंद्र की हत्या कर के अनिल ने उस के सारे कपडे़ उतार लिए और खून सनी ईंट के साथ उन्हें तालाब से कुछ दूर झाडि़यों में छिपा दिया. इस के बाद वह ट्रेन से अपनी ससुराल दिबियापुर चला गया.

इधर सुबह कुछ लोगों ने तालाब के किनारे लाश देखी तो इस की सूचना थाना सहावल पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी धर्मपाल सिंह यादव फोर्स ले कर घटनास्थल पहुंच गए. तालाब के किनारे नग्न पड़े शव को देख कर धर्मपाल सिंह समझ गए कि हत्या अवैध संबंधों के चलते हुई है.

लाश की शिनाख्त में पुलिस को कोई परेशानी नहीं हुई. मृतक का नाम राजेंद्र था और वह रामबाबू की आढ़त पर मुनीम था. आढ़तिया रामबाबू को बुला कर राजेंद्र के शव की पहचान कराई गई. उस के पास राजेंद्र के पिता रामकिशन का मोबाइल नंबर था. धर्मपाल सिंह ने उसी नंबर पर राजेंद्र की हत्या की सूचना दे दी.

घटनास्थल पर बेटे की लाश देख कर रामकिशन फफक कर रो पड़ा. लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. धर्मपाल सिंह ने जांच शुरू की तो पता चला कि मृतक राजेंद्र कंचौसी कस्बा के कंचननगर में किराए के कमरे में रहता था. उस की दोस्ती सामने रहने वाले अनिल से थी, जो उसी के साथ काम करता था. राजेंद्र का आनाजाना अनिल के घर भी था. उस के और अनिल की पत्नी मीना के बीच मधुर संबंध भी थे. अनिल जांच के घेरे में आया तो धर्मपाल सिंह ने उस पर शिकंजा कसा. उस से राजेंद्र की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो पहले वह साफ मुकर गया. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया.

उस ने बताया कि राजेंद्र ने उस की पत्नी मीना से नाजायज संबंध बना लिए थे, जिस से उस की बदनामी हो रही थी. इसीलिए उस ने उसे ईंट से कुचल कर मार डाला है. अनिल ने हत्या में प्रयुक्त ईंट तथा खून सने कपड़े बरामद करा दिए, जिसे उस ने तालाब के पास झाडि़यों में छिपा रखे थे. अनिल ने हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया था. इसलिए धर्मपाल सिंह ने मृतक ने पिता रामकिशन को वादी बना कर राजेंद्र की हत्या का मुकदमा दर्ज कर अनिल को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. Crime Story in Hindi

True Crime in Hindi: 11 दूल्हों को लूटने वाली दुल्हन

True Crime in Hindi: 6 मई, 2018 का दिन था. सुबह के यही कोई 11 बज रहे थे. उत्तराखंड के जिला हरिद्वार के थाना पीरान कलियर के थानाप्रभारी देवराज शर्मा अपने औफिस में बैठे थे. तभी किसी व्यक्ति ने उन्हें फोन कर के कहा, ‘‘सर, मेरा नाम अशोक है और मैं धनौरी कस्बे में रहता हूं. मैं एक मामले में आप से बात करना चाहता हूं.’’

‘‘बताइए क्या मामला है?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

‘‘सर, मेरे साथ एक धोखाधड़ी हुई है.’’ अशोक ने बताया.

‘‘किस तरह की धोखाधड़ी हुई है आप के साथ?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, दरअसल बात यह है कि गत 2 मई, 2018 को ज्वालापुर के रहने वाले मेरे एक परिचित तथा उस के दोस्त मुकेश ने मेरी शादी रीता से कराई थी, जो जिला कोटद्वार के पौड़ी की रहने वाली थी. इस शादी के लिए मैं ने 2 लाख रुपए में अपनी प्रौपर्टी गिरवी रख कर लोन लिया था.’’ अशोक बोला.

‘‘इस के बाद क्या हुआ?’’ थानाप्रभारी देशराज शर्मा ने पूछा.

‘‘सर, इस शादी में मुकेश बिचौलिया था. उस ने मेरी शादी कराने के एवज में मुझ से 50 हजार रुपए नकद लिए थे. मुकेश ने मुझ से कहा था कि रीता एक गरीब घर की लड़की है. उस के पिता महेंद्र उस की शादी में ज्यादा रकम खर्च नहीं कर सकते. वह साधारण तरीके से शादी कर के बेटी के हाथ पीले करना चाहते हैं.’’ अशोक ने बताया.

‘‘क्या तुम ने मुकेश और महेंद्र से भी संपर्क किया था?’’ शर्मा ने पूछा.

‘‘नहीं सर, इस बीच हमारी बात सिर्फ मुकेश के माध्यम से ही चलती रही और महेंद्र से केवल उस दिन मुलाकात हुई थी, जिस दिन वह वरवधू को आशीर्वाद देने के लिए आया था. मुकेश ने यह शादी 2 अप्रैल को हरिद्वार की रोशनाबाद कोर्ट में कराई थी. इस के बाद मुकेश व महेंद्र हम से कभी नहीं मिले. शादी के 2 दिन बाद ही रीता हमारे घर से सोनेचांदी की सारी ज्वैलरी और नकदी ले कर भाग गई. रीता को हम ने कोटद्वार, ज्वालापुर, बिजनौर आदि कई जगहों पर तलाश किया, मगर हमें उस का कुछ भी पता नहीं चल सका. अब मुकेश का फोन  भी बंद है.’’ अशोक ने बताया.

‘‘तुम्हारी बातों से लग रहा है कि तुम शादी कराने वाले ठगों के गिरोह के चक्कर में फंस गए हो. इसीलिए उन्होंने अपने फोन भी बंद कर लिए हैं. अगर दुलहन रीता ठीक होती तो वह जेवर सहित क्यों भागती?’’ थानाप्रभारी बोले.

‘‘आप ठीक कह रहे हैं सर, अब मैं इन जालसाजों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराना चाहता हूं.’’ अशोक ने कहा.

‘‘ठीक है तुम धनौरी पुलिस चौकी चले जाओ. वहां के चौकी इंचार्ज रंजीत सिंह तोमर से मिल कर तुम अपनी रिपोर्ट दर्ज करा सकते हो.’’ थानाप्रभारी ने बताया.

पुलिस ने शुरू की जांच

इस के बाद अशोक धनौरी पुलिस चौकी पहुंचा और चौकी इंचार्ज रंजीत तोमर से मिल कर खुद के ठगे जाने की घटना सिलसिलेवार बता दी. अशोक की तहरीर पर चौकी इंचार्ज ने लुटेरी दुलहन रीता उर्फ पूजा, बिचौलिए मुकेश तथा रीता के तथाकथित बाप महेंद्र के खिलाफ भादंवि की धाराओं 420, 417, 406 तथा 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी ने चौकी प्रभारी रंजीत तोमर को ही इस केस की जांच करने के निर्देश दिए और इस केस की जानकारी सीओ (रुड़की) स्वप्न किशोर सिंह को भी दे दी.

7 मई की शाम को एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा और सीओ स्वप्न किशोर सिंह थाना पीरान कलियर पहुंचे. उन्होंने इस ठग गिरोह को पकड़ने के लिए थानाप्रभारी देशराज शर्मा व चौकी प्रभारी रंजीत तोमर के साथ मीटिंग की. मीटिंग में उन्होंने इस केस को खोलने के संबंध में कुछ दिशानिर्देश देते हुए कहा कि यह गिरोह अब जल्द ही आसपास के क्षेत्र में शादी के लिए किसी नए व्यक्ति को शिकार बनाएगा. आप अपने मुखबिरों को सतर्क कर दें. एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा ने थानाप्रभारी के नेतृत्व में एक टीम बनाई. इस टीम में एसआई रंजीत तोमर, चरण सिंह चौहान, अहसान अली, कांस्टेबल अरविंद, ब्रजमोहन, महिला कांस्टेबल सुषमा आदि को शामिल किया गया.

इस के बाद थानाप्रभारी और चौकी इंचार्ज ने अपने मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया और उन ठगों की तलाश में जुट गए. उन्होंने मुकेश के फोन नंबर को भी सर्विलांस पर लगा दिया. उन्हें तलाश करतेकरते 7 दिन बीत चुके थे. मगर अभी तक उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी. 17 मई, 2018 को एसआई रंजीत सिंह तोमर को एक मुखबिर ने उन ठगों के बारे में एक महत्त्वपूर्ण जानकारी दी. एसआई रंजीत तोमर ने इस सूचना से थानाप्रभारी और सीओ स्वप्न किशोर सिंह को भी अवगत करा दिया.

मुखबिर ने बताया था कि गैंग के सदस्य हरिद्वार के टिबड़ी इलाके में हैं. यह गिरोह कल रात ही राजस्थान के जयपुर शहर के रहने वाले संजय को शिकार बना कर लौटा है. रीता ने संजय से 2 दिन पहले ही शादी की थी. वह यहां से कहीं जाने की तैयारी में है. पुलिस क्षेत्राधिकारी स्वप्न सिंह ने पुलिस टीम को तुरंत टिबड़ी जाने के निर्देश दिए. पुलिस टीम ने मुखबिर द्वारा बताई गई जगह पर दबिश दी तो वहां पर मुकेश उर्फ यादराम, उस के बेटे अरुण, भोपाल और रीता उर्फ पूजा को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उन से पूछताछ की गई तो शादी कर के लूट का धंधा चलाने वाले इस गैंग की कहानी सामने आई, जो इस प्रकार निकली—

रीता उर्फ पूजा मूलरूप से जिला बिजनौर के कस्बा अफजलगढ़ की रहने वाली थी. उस का भाई राजू और पिता कृपाल सिंह गांव में खेतीबाड़ी करते थे. सन 2002 में पिता ने उस की शादी झाड़पुर निवासी पवन से कर दी. बाद में रीता 2 बेटों और एक बेटी की मां बनी. रीता के गलत चालचलन की वजह से सन 2013 में पवन ने उसे छोड़ दिया और बच्चों सहित उस से अलग रहने लगा था.

जिस्मफरोशी से आई ठगी के धंधे में

रीता की बदचलनी की वजह से पति से संबंध टूट जाने की बात उस के मायके वालों को भी पता चल गई थी इसलिए उस के मायके वालों ने भी उस से नाता तोड़ लिया था. रीता के भाई राजू का एक दोस्त था मुकेश जो कि बिजनौर के नरैना गांव का रहने वाला था. पति द्वारा छोड़े जाने के बाद रीता ने मुकेश के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ा ली थीं. मुकेश उस वक्त ज्वालापुर के कड़च्छ मोहल्ले में रहता था. साथसाथ रहने पर दोनों के नाजायज संबंध बन गए. मुकेश रीता के जरिए कमाई करना चाहता था, लिहाजा उस ने उसे जिस्मफरोशी के धंधे में धकेल दिया. वह उसे धंधा करने के लिए रात को होटलों में भेजता. 2 सालों तक उन का यह धंधा चलता रहा.

सन 2015 में मुकेश ने सोचा कि होटलों में जिस्मफरोशी के धंधे में पुलिस के छापे आदि का डर रहता है. पकडे़ जाने पर जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है. इसलिए मुकेश ने रीता से सलाह कर के यह धंधा बदलने का विचार किया. उस ने रीता से कहा कि वह उसे गरीब घर की लड़की बता कर उस की शादी ऐसे अमीर परिवार के युवकों से करा दिया करेगा, जिन की शादी नहीं हो रही हो. शादी के बाद वह उस परिवार के जेवर व नकदी ले कर रफूचक्कर हो जाया करेगी. रीता को मुकेश की यह सलाह पसंद आ गई और उन्होंने अपने इस नए धंधे को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया.

इस के बाद उन दोनों ने कुछ ऐसे लोगों को ढूंढना शुरू कर दिया जो किसी कारण से अपनी शादी बिरादरी में या अन्य कहीं नहीं कर पा रहे थे. शादी के समय मुकेश अधेड़ व्यक्ति भोपाल को रीता के बाप के रूप में पेश करता था. उसे फिल्मी स्टाइल में रीता के बाप का अभिनय करते हुए कन्यादान जैसी रस्में पूरी करनी होती थीं. इस काम के एवज में मुकेश उसे 2 हजार रुपए प्रति शादी देता था. मुकेश पहले तो किसी अमीर व्यक्ति से रीता की शादी करवाता, उस के बाद रीता अपने कथित पति के घर के जेवर व नकदी ले कर एकदो दिन में ही वहां से फुर्र हो जाती थी.

मुकेश व रीता के जालसाजी के इस धंधे में अकसर मुकेश का बेटा अरुण भी शामिल रहता था. मुकेश उसे भी ठगी की रकम में से हिस्सा देता था. शादी के नाम पर ठगी करने की लगभग 10 घटनाओं को वह अंजाम दे चुके थे. इस गिरोह में मुकेश का बेटा अरुण रीता का भाई बनता था. जबकि ज्वालापुर की लाल मंदिर कालोनी का रहने वाला भोपाल लड़की का फरजी पिता बनता था. रीता ने बताया कि अब तक वह गरीब लड़की बन कर उत्तर प्रदेश, राजस्थान व हरियाणा के 11 लोगों से शादी का नाटक कर के ठग चुकी है. वह यह धंधा पिछले 3 सालों से कर रही थी. ठगी के कुछ शिकार लोग लोकलाज के चलते पुलिस तक नहीं गए थे.

जिन लोगों ने पुलिस से शिकायत की थी तो पुलिस उन लोगों के पास तक नहीं पहुंच सकी. क्योंकि पुलिस को उन लोगों का पता मालूम नहीं था. रीता ने बताया कि सन 2017 में उस ने हरियाणा के जिला करनाल निवासी 2 युवकों को ठगा था. उन के यहां से भी वह लाखों रुपए की ज्वैलरी और नकदी ले कर रफूचक्कर हो गई थी. पिछले साल उस ने शिवदासपुर गांव तेलीवाला के युवक एस. कुमार को ठग कर उस के लगभग 50 हजार रुपए और जेवरों पर हाथ साफ किया था.

गत 24 अप्रैल, 2017 को मुकेश ने उस की शादी मुजफ्फरनगर जिले के गांव गुर्जरहेड़ी निवासी संदीप शर्मा से कराई थी. शादी के 2 दिन बाद ही वह रात को 3 बजे संदीप शर्मा के परिवार का मालपानी समेट खिसक गई थी.

मुकेश था आदतन अपराधी

कुछ महीने पहले ही मुकेश ने उस की शादी बिजनौर के सोनू के साथ कराई थी. उस शादी में भी वह 2 दिन बाद घर के जेवर व नकदी ले कर फरार हो गई थी. सोनू ने इस की शिकायत पुलिस से की तो एसआई मीनाक्षी गुप्ता को इस की जांच सौंपी गई. इस प्रकरण में मुकेश ने सोनू के घर वालों को वधू का नाम नेहा बताया था. पूछताछ में मुकेश ने भी बताया कि पहले उस की रीता के भाई राजू से गहरी दोस्ती थी. करीब 5 साल पहले जब रीता की बदचलनी की वजह से उस के भाई व बाप ने उस से नाता तोड़ लिया था तो वह उस के साथ रहने लगी थी. पहले वह दोनों कोटद्वार के कौडि़यों कैंप मोहल्ले में रहा करते थे. इस के बाद वह ज्वालापुर के मोहल्ला कड़च्छ में रहने लगे.

ठगी की रकम से डबल हिस्सा लेने के लिए मुकेश ने अपने बेटे अरुण को भी इस गैंग में शामिल कर लिया था. पुलिस को मुकेश के बारे में पता चला कि वह आपराधिक प्रवृत्ति का इंसान है. कोटद्वार के लकड़ी पड़ाव में सन 2011 में हुए डबल मर्डर में भी वह शामिल था. सन 2013 में एडीजे कोर्ट कोटद्वार से उसे आजीवन कारावास की सजा हो चुकी थी. आरोपी की अपील माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखंड, नैनीताल में विचाराधीन है. वर्तमान में मुकेश जमानत पर था.

इस गिरोह के गिरफ्तार होने की सूचना पर एसएसपी कृष्ण कुमार और एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा भी थाने पहुंच गए. एसएसपी ने प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर मीडिया को इस शातिर गैंग के बारे में जानकारी दी. पुलिस ने अभियुक्तों के पास से 35 हजार रुपए नकद, चांदी के गहने, मंगलसूत्र, बिछुए आदि बरामद किए. पूछताछ के बाद चारों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. केस की जांच एसआई रंजीत तोमर कर रहे थे. एसआई तोमर आरोपियों के शिकार सभी लोगों से संपर्क कर आरोपियों के खिलाफ साक्ष्य इकट्ठा कर रहे थे, जिस से उन्हें कोर्ट से उचित सजा मिल सके. True Crime in Hindi

पुलिस सूत्रों पर आधारित.

 

Hindi Story: IPS नवनीत सिकेरा – जानें ‘भौकाल’ वेब सीरीज के असली हीरो के बारे में

Hindi Story: इन दिनों ओटीटी प्लेटफार्म पर वेब सीरीज ‘भौकाल’ के दूसरे भाग की काफी चर्चा है. उस में यूपी के एक जांबाज आईपीएस को शातिर ईनामी अपराधियों से सामना करते दिखाया गया है. बात सितंबर 2003 की है, तब पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता बढ़ते अपराधों को ले कर बेहद परेशान थी. मुजफ्फरनगर के माथे पर तो क्राइम के कलंक का जैसे धब्बा लग चुका था. आए दिन अपहरण, हत्या, बलात्कार, लूट और डकैती की होने वाली ताबड़तोड़ वारदातों से समाजवादी पार्टी की मुलायम की सरकार पर लगातार आरोपों की बौछार हो रही थी.

मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को विधानसभा में विपक्षी राजनीतिक दलों के सवालों के जवाब देते नहीं बन पा रहा था. कारण था शातिरों के सक्रिय कई गैंग और उन की बेखौफ आपराधिक घटनाएं. वे अपराध को अंजाम देने से जरा भी नहीं हिचकते थे. मुख्यमंत्री ने पुलिस विभाग के आला अफसरों की गोपनीय बैठक बुलाई थी. उन के बीच फन उठाए अपराधों को ले कर गहन चर्चा हुई. बेकाबू अपराधों पर अंकुश लगाने के वास्ते कुछ नीतियां बनीं और कुछ जांबाज पुलिसकर्मियों की लिस्ट बनाई गई. उन्हीं में एक आईपीएस अधिकारी नवनीत सिकेरा का नाम भी शामिल था.

तुरंत उस निर्णय पर काररवाई की गई. अगले रोज ही आईपीएस नवनीत सिकेरा मुजफ्फरनगर के एसएसपी के पद पर तैनात कर दिए गए. तब डीआईजी मेरठ ने उन्हें पत्र सौंपते हुए कहा था, ‘इस देश में 2 राजधानियां हैं— एक दिल्ली जहां कानून बनाए जाते हैं, दूसरी मुजफ्फरनगर (क्राइम कैपिटल) जहां कानून तोड़े जाते हैं.’

यह कहने का सीधा और स्पष्ट निर्देश था कि कानून तोड़ने वाले को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाना चाहिए. दरअसल, 49 वर्षीय नवनीत सिकेरा उत्तर प्रदेश कैडर के 1996 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. इन दिनों वह उत्तर प्रदेश पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक हैं. इस से पहले वह इंसपेक्टर जनरल थे.

hindi-manohar-social-crime-story

वैसे तो उन्होंने आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. कंप्यूटर साइंस में बीटेक और एमटेक की डिग्री हासिल करने के बावजूद वह पिता को आए दिन मिलने वाली धमकियों की वजह से आईपीएस बनने के लिए प्रेरित हुए. हालांकि उन्होंने भारत में यूपीएससी की सब से बड़ी परीक्षा अच्छे रैंक के साथ पास की थी और आईएएस के लिए चुने गए थे.

सिकेरा की सूझबूझ और जांबाजी

आईआईटी रुड़की से इंजीनियरिंग और फिर आईपीएस बने नवनीत सिकेरा ने मुजफ्फरनगर का जिम्मा संभालने के तुरंत बाद इलाके में हुई मुख्य वारदातों की सूची के साथ उन के आरोपियों की डिटेल्स मंगवाई. यह देख कर उन्हें हैरानी हुई कि अधिकतर आरोपी हजारों रुपए के ईनामी भी थे. आरोपियों ने बाकायदा गैंग बना रखे थे. पुलिस की आंखों में धूल झोंकना उन के लिए बाएं हाथ का खेल था. यहां तक कि वे पुलिस पर भी हमला करने से नहीं चूकते थे.

उन्हीं बदमाशों में शौकीन, बिट्टू और नीटू कैल की पूरे जिले में दहशत थी. छपारा थाना क्षेत्र के गांव बरला के रहने वाले शौकीन पर 20 हजार रुपए का ईनाम घोषित था. इस के अलावा थाना भवन क्षेत्र के गांव कैल शिकारपुर निवासी बिट्टू और नीटू की आपराधिक वारदातों से भी जिले में दहशत फैली हुई थी. शौकीन ने गांव के ही 2 लोगों की हत्या के अलावा अपहरण और हत्या की कई वारदातों को अंजाम दिया था. सिकेरा ने कंप्यूटर साइंस की इंजीनियरिंग का इस्तेमाल शातिरों की आपराधिक गतिविधियों के साथ कनेक्ट करने में लगाया. सूझबूझ से अपनाई गई डेटा एनालिसिस की तकनीक क्राइम से निपटने में काम आई.

जल्द ही शातिरों के खिलाफ रणनीति बनाने में उन्हें पहली कामयाबी मिली और उन्होंने शौकीन को एनकाउंटर में मार गिराया. उस के बाद नीटू और बिट्टू भी मारे गए. दोनों वैसे शातिर थे, जिन पर पुलिस पर ही हमला कर कारबाइन भी लूटने के आरोप थे. उस के बाद वह सिकेरा से ‘शिकारी’ बन गए थे. यह संबोधन थाना भवन में बिट्टू कैल का एनकाउंटर करने पर तत्कालीन डीआईजी चंद्रिका राय ने दिया था. तब उन्होंने सिकेरा के बजाए नवनीत ‘शिकारी’ कह कर संबोधित किया था. हालांकि नवनीत सिकेरा 6 सितंबर, 2003 से ले कर पहली दिसंबर, 2004 तक मुजफ्फरनगर में एसएसपी पद पर रहे. इस दौरान उन्होंने कुल 55 शातिर और ईनामी बदमाशों को एनकाउंटर में ढेर कर दिया था.

एनकांउटर में मारे गए बदमाशों में पूर्वांचल के शातिर शैलेश पाठक, बिजनौर का छोटा नवाब, रोहताश गुर्जर, मेरठ का शातिर अंजार, पुष्पेंद्र, संदीप उर्फ नीटू कैल, नरेंद्र उर्फ बिट्टू कैल आदि शामिल थे. वैसे यूपी में उन के द्वारा कुल 60 एनकाउंटर करने का रिकौर्ड है.

सब से खतरनाक एनकाउंटर

मुजफ्फरनगर के छोटेमोटे बदमाशों के दबोचे जाने के बावजूद कई खूंखार शातिर बेखौफ छुट्टा घूम रहे थे. उन में कई जमानत पर छूटे हुए थे, तो कुछ दुबके थे. उन्हीं में शातिर रमेश कालिया का नाम भी काफी चर्चा में था. उस ने पुलिस की नाक में दम कर रखा था. वह भी ईनामी बदमाश था और फरार चल रहा था. रमेश कालिया लखनऊ का रहने वाला एक खतरनाक रैकेटियर था. उस का मुख्य धंधा उत्तर प्रदेश के कंस्ट्रक्टर और बिल्डरों से जबरन पैसा उगाही का था. साल 2002 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी. तब मुख्यमंत्री बनने पर मुलायम सिंह यादव के सामने प्रदेश की कानूनव्यवस्था को सुधारना बड़ी चुनौती थी.

सरकार के लिए कालिया नाक का सवाल बना हुआ था. उस ने पूरी राजधानी को अपने शिकंजे में ले रखा था. वह गैंगस्टर बना हुआ था. उस के माफिया राज की जबरदस्त दहशत थी. उस के गुंडे और शूटर बदमाशों द्वारा आए दिन लूटपाट, डकैती, हत्या और फिरौती की वारदातों से सामान्य नागरिकों में काफी दहशत थी, यहां तक कि राजनीतिक दलों के नेता तक उस के नाम से खौफ खाते थे.

और तो और, सितंबर 2004 में समाजवादी पार्टी के एमएलसी अजीत सिंह की हत्या का रमेश कालिया ही आरोपी था. अजीत सिंह की हत्या उन के जन्मदिन के मौके पर ही कर दी गई थी. इस कारण राज्य की चरमराई कानूनव्यवस्था और नागरिकों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े हो गए थे. तब तक नवनीत सिकेरा का नाम पुलिस महकमे में काफी लोकप्रिय हो चुका था. यह देखते हुए ही सिकेरा को उस के खात्मे की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

कालिया 14 साल की उम्र से ही क्राइम की दुनिया में था. उस उम्र में उस ने एक व्यक्ति पर जानलेवा हमला कर दिया था, जिस कारण वह पहली बार जेल गया था. जेल से छूटने के बाद लखनऊ के कुख्यात माफिया सूरजपाल के संपर्क में आ गया था. उस के साथ काफी समय तक रहते हुए वह शातिर बदमाश बन चुका था. वह कई आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो गया था.

सूरजपाल की मौत के बाद वह उस के गिरोह का सरगना भी बन गया था. इस तरह उस पर कुल 22 केस दर्ज हो गए थे, जिन में से 12 हत्याओं के अलावा 10 मामले हत्या का प्रयास करने के थे. उस पर कांग्रेसी नेता लक्ष्मी नारायण, सपा एमएलसी अजीत सिंह और चिनहट के वकील रामसेवक गुप्ता की हत्या का आरोप था. इस लिहाज से खूंखार कालिया को शिकंजे में लेना आसान नहीं था. उन दिनों सिकेरा की पोस्टिंग मुजफ्फरनगर के बाद मेरठ में हो चुकी थी. वहां भी लोग आपराधिक घटनाओं से त्रस्त थे. सिकेरा ने अपराधियों पर नकेल कसनी शुरू कर दी थी. उन का नाम लोगों ने सुन रखा था और उन से उम्मीदें भी खूब थीं.

उन्हीं दिनों प्रौपर्टी डीलर इम्तियाज ने कालिया द्वारा जबरन वसूली की मोटी रकम की शिकायत दर्ज करवाई थी. उन्होंने इस बारे में सिकेरा से मिल कर पूरी जानकारी दी थी कि वह पैसे के लिए कैसे तंग करता रहता है. प्रौपर्टी डीलर ने सिकेरा को जबरन वसूली संबंधी पूछताछ के सिलसिले में बताया था कि उन्होंने कालिया को 40 हजार रुपए दिए थे, जबकि उस की मांग 80 हजार रुपए की थी. कम रुपए देख कर वह गुस्से में आ गया था और उस पर पिस्तौल तान दी थी.

इम्तियाज की शिकायत पर सिकेरा ने वांटेड अपराधी को घेर कर दबोचने की योजना बनाई. उन्होंने पहले एक मजबूत टीम बनाई. टीम में जांबाज पुलिसकर्मियों को शामिल किया और सभी को पूरी प्लानिंग के साथ अच्छी ट्रेनिंग दी. सिकेरा को 12 फरवरी, 2005 को रमेश कालिया के निलमथा में होने की खबर मिली. यह सूचना उन्होंने तुरंत अपनी टीम के खास साथियों को बुला कर एनकाउंटर का प्लान बनाया. राजनेताओं के संरक्षण के चलते बेखौफ रमेश कालिया पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखने के साथ व्यापारियों से रंगदारी वसूला करता था. उस ने एक बिल्डर से 5 लाख रुपए की मांग की थी. इस के लिए निलमथा इलाके में निर्माणाधीन मकान पर बुलाया था.

बारातियों की वेशभूषा में किया एनकाउंटर

उस ने चारों ओर अपने साथियों को मुस्तैद कर रखा था. उस के अड्डे तक पहुंचने का कोई रास्ता नजर न आने पर सिकेरा ने पुलिस की नकली बारात की रूपरेखा तैयार की थी. बैंडबाजे के साथ बारात निलमथा में रमेश कालिया के अड्डे तक जा पहुंची. उस के बाद सिकेरा ने कालिया को दबोचने के लिए अनोखा प्लान बनाया. उन्होंने पुलिस टीम को बारातियों की वेशभूषा में निलमथा में भेज दिया. उन्हें यह भी मालूम हुआ था कि वह बारात लूटपाट की भी वारदातें कर चुका था. नकली बारात में एक महिला सिपाही सुमन वर्मा को दुलहन बना दिया गया. उन्हें काफी जेवर पहना दिए गए थे. चिनहट के इंसपेक्टर एस.के. प्रताप सिंह दूल्हे के गेटअप में थे.

hindi-manohar-social-crime-story

नाचतेगाते बारातियों ने कालिया को चारों तरफ से घेर लिया. उस ने रास्ता लेने के लिए गुस्से में पिस्तौल निकाल ली. वह अभी हवाई फायर करने वाला ही था कि बाराती बने पुलिसकर्मी ऐक्शन में आ गए. उस का भी वही हश्र हुआ, जो इस से पहले सिकेरा के हाथों अन्य बदमाशों का हुआ था. लगभग 20 मिनट तक चले इस औपरेशन में पुलिस और कालिया गिरोह के बीच 50 से अधिक गोलियां चली थीं. इस गोलीबारी में पुलिस ने रमेश कालिया को ढेर कर दिया था.

पुलिस महकमे में यह खबर आग की तरह फैल गई कि कालिया एनकाउंटर में मारा गया. यह खबर मीडिया में सुर्खियां बन गई. इसी के साथ आईपीएस सिकेरा के नाम एक और शाबाशी का तमगा जुड़ गया. तब तक वे 60 एनकाउंटर कर चुके थे. सिकेरा की 10 महीने की कप्तानी में इतने एनकाउंटर एक रिकौर्ड है. शिकायतों पर काररवाई करा कर उन्होंने नागरिकों का ऐसा विश्वास जीता कि शहर से ले कर गांव तक उन का खुद का नेटवर्क बन गया था. कालिया की मौत के बाद लोगों ने काफी राहत महसूस की.

सिकेरा का जब वहां से ट्रांसफर किया गया, तो लोगों को काफी सदमा लगा. वे नहीं चाहते थे कि सिकेरा कहीं और जाएं. उन की लोकप्रियता का यह आलम था कि शहर में उन्हें वापस बुलाने के लिए जगहजगह पोस्टर लगा दिए. इस सफलता के बाद आईपीएस नवनीत सिकेरा को सन 2005 में विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति का पुलिस पदक मिला था. मुजफ्फरनगर और लखनऊ के अलावा सिकेरा ने वाराणसी में भी एसएसपी के पद कार्य किया. उस के बाद सिकेरा ने जनपद मेरठ के एसएसपी के पद पर कार्यभार ग्रहण किया था.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी वह एसएसपी के पद पर तैनात रहे थे. उन की पोस्टिंग जहां भी हुई, वहां अपराधियों में खौफ बना रहा. उन का सन 2012 में डीआईजी के पद पर प्रमोशन हो गया था. उस के अगले साल 2013 में उन्हें  मेधावी सेवा हेतु राष्ट्रपति के पुलिस पदक से नवाजा गया था. उन्होंने 2 साल तक डीआईजी रह कर कार्य किया. फिर साल 2014 में वह आईजी बना दिए गए. सन 2015 में डीजीपी द्वारा उन्हें रजत पदक दिया गया. उस के बाद 2018 में डीजीपी द्वारा ही स्वर्ण पदक से नवाजा गया.

सुपरकौप बन कर उभरे सिकेरा

‘सुपर कौप’ बन कर उभरे आईपीएस नवनीत सिकेरा के उस दौर में हुए बदमाशों के खात्मे की कहानी को वेब सीरीज ‘भौकाल’ में दिखाया जा चुका है. इस में नवनीत सिकेरा के किरदार का नाम नवीन सिकेरा है, कुछ अन्य किरदारों के नाम भी बदल दिए गए हैं. यह सीरीज नवनीत सिकेरा के उस समय के कार्यकाल पर आधारित है, जब वह यूपी के मुजफ्फरनगर में बतौर एसएसपी तैनात हुए. उन की शादी डा. पूजा ठाकुर सिकेरा से हुई, जिन से एक बेटा दिव्यांश और एक बेटी आर्या है.

अपराधियों को नाकों चना चबाने पर मजबूर करने वाले नवनीत सिकेरा ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष कदम उठाया और वीमेन पावर हेल्पलाइन 1090 की शुरुआत की. इसे कारगर बनाने के लिए काउंसलिंग और सोशल साइटों का भी इस्तेमाल किया. इस से लड़कियों को काफी हिम्मत मिली. जिस की कमान बतौर आईजी के पद पर रहते हुए सिकेरा ने खुद संभाल रखी थी. वीमेन पावर लाइन-1090 शुरू होते ही पूरे प्रदेश में मशहूर हो गई. शहरों के अलावा गांव से भी महिलाओं द्वारा 1090 पर काल कर मदद मांगी जाने लगी.

प्राप्त जानकारी के अनुसार वीमन पावर लाइन में हर साल तकरीबन 2 लाख शिकायतें दर्ज होती हैं, जिस के निस्तारण के लिए एक टीम लगाई गई है. सिकेरा वीमेन पावर लाइन को अपने जीवन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानते हैं.

सिकेरा की सफलता के पीछे लंबा संघर्ष

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर से आने वाले नवनीत सिकेरा को लंबे संषर्घ का सामना करना पड़ा. पढ़ाई के दरम्यान कई बार उपेक्षा और तिरस्कार से जूझना पड़ा. शिक्षण संस्थानों के कर्मचारियों के रूखे व्यवहार के आगे तिलमिलाए, झल्लाहट हुई, किंतु उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत के बूते वह सब हासिल कर लिया, जिस की उन्होंने भी कल्पना नहीं की थी. एटा जिले में किसान मनोहर सिंह के घर जन्म लेने वाले नवनीत सिकेरा ने हाईस्कूल तक की पढ़ाई उसी जिले के एक सरकारी स्कूल से की थी. उन का घर छोटे से गांव में था. हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ने के कारण अंगरेजी भाषा पर उन की अच्छी पकड़ नहीं थी.

12वीं की पढ़ाई पूरी होने के बाद वह दिल्ली हंसराज कालेज में बी.एससी में प्रवेश के लिए गए. अंगरेजी पर अच्छी पकड़ नहीं आने के कारण कालेज के क्लर्क ने एडमिशन फार्म तक नहीं दिया. फार्म नहीं मिलने पर सिकेरा दुखी हो गए, किंतु हार नहीं मानी. खुद से किताबें खरीद कर पढ़ाई करने लगे. पहले अंगरेजी ठीक की. बाद में इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने लगे. उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से पहली बार में आईआईटी जैसी परीक्षा पास कर ली.

उन का नामांकन आईआईटी रुड़की में हो गया. वहां से उन्होंने कंप्यूटर सांइस ऐंड इंजीनियरिंग से बीटेक की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने अपना लक्ष्य एक अच्छा सौफ्टवेयर इंजीनियर बनने का बनाया. लगातार वह अपने लक्ष्य पर निशाना साधे रहे. बीटेक की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली आईआईटी में एमटेक में दाखिला ले लिया. एमटेक की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने पाया कि उन के पिता मनोहर सिंह के पास कुछ धमकी भरे फोन आते थे, जिस से वह बहुत परेशान हो जाते थे. उस के बाद जो वाकया हुआ, उस ने सिकेरा की जिंदगी ही बदल कर रख दी.

अपमान ने जगा दिया जज्बा

दरअसल, गांव में उन के पिता ने अपनी जमापूंजी से कुछ जमीन खरीदी थी. जिस पर असामाजिक तत्त्वों ने कब्जा कर लिया था. इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर गांव लौटे नवनीत पिता को ले कर थाना गए थे, लेकिन वहां पुलिस अधिकारी ने उन की कोई मदद नहीं की. उल्टे उन्हें ही बुराभला सुना दिया. जब पिता ने बेटे का परिचय एक इंजीनियर के रूप में देते हुए कहा कि उन का बेटा पढ़ालिखा है, तब पुलिस वाले ने एक और ताना मारा, ‘ऐसे इंजीनियर यूं ही बेगार फिरते हैं.’

इस घटना ने सिकेरा को अंदर से झकझोर कर रख दिया. उन्होंने एमटेक करने का विचार छोड़ दिया और देश की सब से प्रतिष्ठित सेवा यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी. शानदार रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली, उन्हें आईएएस के अच्छे रैंक के साथ प्रशासनिक पदाधिकारी की पेशकश की गई. लेकिन उन्होंने सबडिवीजनल औफिसर और कलेक्टर बनने के बजाय आईपीएस बनना पसंद किया. उन की हैदराबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में 2 साल की ट्रेनिंग हुई और वे 1996 बैच के आईपीएस अफसर बन गए.

उस के बाद उन की पहली पोस्टिंग बतौर आईपीएस अधिकारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में एएसपी के पद पर मिली. कुछ समय में उन का तबादला मेरठ हो गया. उस के बाद वे कुछ समय तक जनपद मुरादाबाद में एसपी रेलवे के पद पर रहे. वहां उन की तैनाती टैक्निकल सर्विसेज एसपी के पद पर की गई थी. सन 2001 में आईपीएस नवनीत सिकेरा को जीपीएस-जीआईएस आधारित आटोमैटिक वेहिकल लोकेशन सिस्टम विकसित करने के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने 5 लाख के पुरस्कार से सम्मानित किया था.

नवनीत सिकेरा के फेसबुक पेज उन के कारनामों से भरे पड़े हैं. अधिकतर पोस्ट उन्होंने खुद लिखे हैं. उन्होंने अपने पोस्ट के जरिए बताया है कि कैसे यूपी में पुलिस का चेहरा बदला और क्राइम को कंट्रोल में लाने में सफलता मिली. आईपीएस नवनीत सिकेरा की एक विशेष खूबी यह रही कि उन्होंने तकनीक को भी एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया. पुलिस को सर्विलांस की नई टैक्नोलौजी से परिचित करवाया. उन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने यूपी पुलिस को एक ऐसा तकनीकी मुखबिर देने का काम किया था, जब पुलिस विभाग में कंप्यूटरीकरण का नामोनिशान नहीं था.

वह  पुलिस के लिए सर्विलांस जैसा मुखबिर ले कर आए और इस का प्रयोग करते हुए मुजफ्फरनगर में बदमाशों के खौफ के गढ़ को ढहाने का काम किया. एनकाउंटर के दौरान उन्होंने बुलेटप्रूफ ट्रैक्टर से खूंखार बदमाशों को न केवल रौंद डाला, बल्कि छिटपुट बदमाशों को दुबकने पर मजबूर कर दिया. ऐसा उन्होंने फौरेस्ट कांबिंग के लिए किया था. बुलेटप्रूफ ट्रैक्टर पर वह एके-47 ले कर खुद सवार होते थे और जंगलों में छिपे बदमाशों को उन के अंजाम तक पहुंचा देते थे. Hindi Story

Supercop: परमबीर सिंह – ऐसे बने महाराष्ट्र के सुपरकौप

Supercop : परमबीर सिंह का जन्म 20 जून, 1962 को हरियाणा के फरीदाबाद स्थित पाओता मोहम्मदाबाद गांव के एक पंजाबी परिवार में हुआ था. उन के पिता होशियार सिंह जाति से गुर्जर हैं तथा हिमाचल प्रदेश में एक तहसीलदार थे और मां एक गृहिणी हैं. परमबीर सिंह के 2 भाईबहन भी हैं.

जन्म के कुछ समय बाद ही मां बच्चों को ले कर चंडीगढ़ आ गईं, क्योंकि हिमाचल में नौकरी कर रहे पिता को चंडीगढ़ आ कर परिवार से मिलने में सुविधा होती थी. इसीलिए परमबीर जन्म के बाद किशोरवय उम्र तक चंडीगढ़ में ही पलेबढ़े और वहीं पर उन की शुरुआती पढ़ाई हुई. उन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा डीएवी इंटरनैशनल स्कूल, अमृतसर, पंजाब से पूरी की. उस के बाद उन्होंने चंडीगढ़ विश्वविद्यालय, पंजाब में दाखिला लिया, जहां से उन्होंने समाजशास्त्र से एमए किया.

बचपन से ही उन का झुकाव सिविल सेवा की ओर था. 1988 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास की और एक आईपीएस अधिकारी के रूप में महाराष्ट्र कैडर से पुलिस में शामिल हो गए. अपनी 32 साल की सेवा में उन्होंने महाराष्ट्र में अपराध को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. परमबीर सिंह की सविता सिंह एक वकील हैं, जो एलआईसी हाउसिंग फाइनैंस लिमिटेड नामक एक निजी कंपनी की निदेशक हैं. सविता सिंह 5 कंपनियों में डायरेक्टर हैं. हालांकि एलआईसी हाउसिंग ने पिछले साल जब टीआरपी मामले में परमबीर सिंह सुर्खियों में आए तो जबरदस्ती उन से बोर्ड से इस्तीफा दिलवा दिया था.

सविता सिंह एक बड़ी कारपोरेट प्लेयर हैं. सविता इंडिया बुल्स ग्रुप की 2 कंपनियों में भी डायरेक्टर हैं. वह एडवोकेट फर्म खेतान एंड कंपनी में पार्टनर हैं. सविता कौंप्लैक्स रियल एस्टेट ट्रांजैक्शन और विवादों के लिए अपने ग्राहकों को सलाह देती हैं. वह ट्रस्ट डीड, रिलीज डीड और गिफ्ट डीड पर भी सलाह देती हैं. उन के ग्राहकों में ओनर, खरीदार, डेवलपर्स, कारपोरेट हाउसेज, घरेलू निवेशक और विदेशी निवेशक शामिल हैं.

hindi-manohar-social-crime-story

सविता सिंह ने हरियाणा की कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रैजुएट की डिग्री हासिल की है. इस के बाद उन्होंने मुंबई से ला में ग्रैजुएशन किया. वह 28 मार्च, 2018 को इंडिया बुल्स प्रौपर्टी की डायरेक्टर बनी थीं. यस ट्रस्टी में भी 17 अक्तूबर, 2017 को डायरेक्टर बनीं. वह इंडिया बुल्स असेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी में भी डायरेक्टर हैं. सोरिल इंफ्रा में भी डायरेक्टर थीं. सोरिल इंडिया बुल्स की ही कंपनी है. कहा जाता है कि वह खेतान से सालाना 2 करोड़ रुपए से ज्यादा कमाती हैं.

परमबीर के इकलौते बेटे रोहन सिंह की शादी राधिका मेघे से हुई थी, जो नागपुर के एक बहुत बड़े बिजनैसमैन सागर मेघे की बेटी हैं. परमबीर सिंह के बेटे रोहन की शादी बेंगलुरु में बहुत ही धूमधाम से हुई थी. रोहन की पत्नी राधिका बीजेपी के कद्दावर नेता दत्ता मेघे की पोती हैं. दत्ता मेघे विदर्भ के अलगाव आंदोलन के सब से बड़ा चेहरा थे.

राधिका के पिता सागर मेघे नागपुर में बिजनैसमैन हैं. वह लोकसभा चुनाव भी लड़े थे, पर हार गए. उन के चाचा समीर मेघे विधायक हैं. कहा जाता है कि शादी का पूरा खर्च मेघे परिवार ने उठाया था. बाद में रोहन के परिवार ने मुंबई में रिसैप्शन दिया था. परमबीर के एक भाई मनबीर सिंह भड़ाना हरियाणा के जानेमाने वकील तथा दूसरे हरियाणा प्रादेशिक सर्विस कमीशन के सब से युवा और सबसे लंबे अरसे तक सेवा करने वाले चेयरमैन रहे हैं. परमबीर सिंह की बेटी रैना विवाहित है और लंदन में एक कारपोरेट हाउस में नौकरी करती है.

1988 में अपने करियर की शुरुआत करने वाले परमबीर सिंह पुलिस सेवा की शुरुआत में जिला चंद्रपुर और जिला भंडारा के एसपी रह चुके हैं. वह मुंबई के कई जिलों में डीसीपी रह चुके हैं और हर तरह के अपराध पर उन की पैनी पकड़ रही है. वह एटीएस में डीआईजी के पद का कार्यभार भी संभाल चुके हैं. महाराष्ट्र के ला ऐंड और्डर के एडिशनल डीजीपी का पद भी संभाल चुके हैं. उन्हें 90 के दशक में स्पैशल औपरेशन स्क्वायड यानी एसओएस का गठन करने के लिए भी जाना जाता है.

इस फोर्स ने अंडरवर्ल्ड और अपराधियों का जितना एनकाउंटर किया है, वह एक रिकौर्ड है. अंडरवर्ल्ड डौन के विरुद्ध एसओजी ने कई बड़े और सटीक औपरेशन किए. परमबीर सिंह को सख्त और तेजतर्रार औफिसर माना जाता है, जो किसी भी परिस्थिति को बखूबी हैंडल करना जानते हैं. सितंबर 2017 में दाऊद इब्राहिम के भाई इकबाल कासकर की गिरफ्तारी के वक्त वह ठाणे के पुलिस कमिश्नर थे. इकबाल को बिल्डर से उगाही की धमकी के आरोप में ठाणे क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया था. 90 के दशक में मुंबई पुलिस ने जौइंट सीपी अरविंद इनामदार के निर्देशन में स्पैशल औपरेशन स्क्वायड बनाया था. परमबीर सिंह इस स्क्वायड के पहले डीसीपी थे. ठाणे के पुलिस कमिश्नर रहते हुए उन्होंने अपने कार्यकाल में एक हाईप्रोफाइल फरजी काल सेंटर रैकेट का परदाफाश भी किया था.

यह रैकेट अमेरिकी नागरिकों को अपने जाल में फंसाता था, जिस की वजह से एफबीआई की नजरों में था. काल रैकेट आरोपी सागर का खुलासा भी परमबीर सिंह ने ही किया था. नवी मुंबई में हुए दंगों के दौरान वह खुद दंगाग्रस्त इलाकों में गए और सभी संप्रदाय के लोगों को समझाबुझा कर हिंसा को काबू में किया था. अपने करियर में कई उपलब्धियां हासिल करने वाले परमबीर सिंह ने पुणे में अर्बन नक्सल नेटवर्क का भी खुलासा किया था.

परमबीर सिंह मुंबई के कई जोन्स के डीसीपी का पदभार संभाल चुके हैं. साथ ही मुंबई के वेस्टर्न रीजन जैसे हाईप्रोफाइल इलाके में उन्होंने एडिशनल कमिश्नर का पदभार भी संभाला. वह महाराष्ट्र और मुंबई को क्राइम फ्री बनाने की दिशा में हमेशा सक्रिय रहे हैं. परमबीर सिंह कई पुरस्कार व पदकों से सम्मानित हो चुके हैं, जिन में मेधावी सेवा व विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पदक शामिल हैं. Supercop

Suspense Crime Story: 4 करोड़ की चोरी का रहस्य

Suspense Crime Story: हरियाणा और पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ के सेक्टर 34 में एक्सिस बैंक का करेंसी चेस्ट है. इस में हर समय करोड़ों रुपए रहते हैं. इस चेस्ट से बैंक की ट्राइसिटी के अलावा हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब व जम्मूकश्मीर की शाखाओं को पैसा भेजा जाता है और वहां से आता भी है. हर समय करोड़ों रुपए रखे होने के कारण यहां सुरक्षा के भी काफी बंदोबस्त हैं. बैंक ने अपने सिक्योरिटी गार्ड तो लगा ही रखे हैं. साथ ही पंजाब पुलिस के जवान भी वहां हर समय तैनात रहते हैं.

इसी 11 अप्रैल की बात है. सुबह हो गई थी. कोई साढ़े 5-6 बजे के बीच का समय रहा होगा. सूरज निकल आया था, लेकिन अभी चहलपहल शुरू नहीं हुई थी. चेस्ट पर तैनात पंजाब पुलिस के जवानों को वहां रात में उन के साथ तैनात रहने वाला बैंक का सिक्योरिटी गार्ड सुनील नजर नहीं आ रहा था.

पुलिसकर्मियों ने एकदूसरे से पूछा, लेकिन किसी को भी सुनील के बारे में पता नहीं था. उन्हें बस इतना ध्यान था कि वह रात को ड्यूटी पर था. रात के 3-4 बजे के बाद से वह दिखाई नहीं दिया था. पुलिस के उन जवानों को चिंता हुई कि कहीं सुनील की तबीयत तो खराब नहीं हो गई? तबीयत खराब होने पर वह बैंक की चेस्ट में ही कहीं इधरउधर सो नहीं गया हो? यह बात सोच कर उन्होंने चेस्ट में चारों तरफ घूमफिर कर सुनील को तलाश किया, लेकिन न तो वह कहीं पर सोता मिला और न ही उस का कुछ पता चला.

सुनील की ड्यूटी रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक थी, लेकिन वह 2-3 घंटे से गायब था. वह किसी को कुछ बता कर भी नहीं गया था. एक पुलिस वाले ने उस के मोबाइल नंबर पर फोन किया, लेकिन उस का मोबाइल स्विच्ड औफ था. पुलिस वालों को पता था कि सुनील रोजाना अपनी पलसर बाइक से आता था. वह बैंक की चेस्ट के पीछे अपनी बाइक खड़ी करता था. उन्होंने उस जगह जा कर बाइक देखी, लेकिन वहां उस की बाइक भी नहीं थी.

अब पुलिस वालों की चिंता बढ़ गई. चिंता का कारण वहां रखी करोड़ों रुपए की रकम थी. उन्होंने बैंक के अफसरों को फोन कर सारी बात बताई. कुछ देर में बैंक के अफसर आ गए. उन्होंने चेस्ट में रखे रुपयों से भरे लोहे के बक्सों की जांचपड़ताल की. पहली नजर में नोटों के इन बक्सों में कोई हेराफेरी नजर नहीं आई. नोटों से भरे सभी बक्सों पर ताले लगे हुए थे. सरसरी तौर पर कोई गड़बड़ी नजर नहीं आ रही थी. दूसरी तरफ सुनील का पता नहीं चल रहा था. उस का मोबाइल बंद होना और बाइक बैंक के बाहर नहीं होने से संदेह पैदा हो रहा था कि कोई न कोई बात जरूर है. वरना सुनील ऐसे बिना बताए कैसे चला गया?

काफी सोचविचार के बाद अफसरों के कहने पर नोटों से भरे बक्सों को हटा कर जांच की गई. एक बक्से को हटा कर चारों तरफ से देखा तो उस का ताला लगा हुआ था, लेकिन वह बक्सा पीछे से कटा हुआ था. बक्से को काट कर नोट निकाले गए थे. सवाल यह था कि कितने नोट निकाले गए हैं? क्या ये नोट सुनील ने ही निकाले हैं? इस की जांचपड़ताल जरूरी थी. इसलिए बैंक अफसरों ने सेक्टर-34 थाना पुलिस को इस की सूचना दी.

hindi-manohar-social-crime-story

पुलिस ने आ कर जांचपड़ताल शुरू की. यह तो साफ हो गया कि बैंक की चेस्ट से बक्से को पीछे से काट कर नोट निकाले गए हैं. कितनी रकम निकाली गई है, इस सवाल पर बैंक वालों ने पुलिस के अफसरों से कहा कि सारे नोटों की गिनती करने के बाद ही इस का पता लग सकेगा.

पुलिस ने बैंक वालों से सुनील के बारे में पूछताछ की. बैंक के रिकौर्ड में सुनील के 2 पते लिखे थे. एक पता पंचकूला में मोरनी के गांव बाबड़वाली भोज कुदाना का था और दूसरा पता मोहाली के पास सोहाना गांव का. वह 3 साल से बैंक में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहा था. पुलिस अफसरों ने 2 टीमें सुनील के दोनों पतों पर भेज दीं.

सुरक्षा के लिहाज से बैंक की चेस्ट में भीतरबाहर कैमरे लगे हुए थे. पुलिस ने कैमरों की फुटेज देखी. इन फुटेज में सामने आया कि सुनील रात को बारबार बैंक के अंदर और बाहर आजा रहा था.

उस की चालढाल और हाथों के ऐक्शन से अंदाजा लग गया कि वह बैंक के अंदर से अपने कपड़ों के नीचे कोई चीज छिपा कर बारबार बाहर आ रहा था. कपड़ों के नीचे छिपे शायद नोटों के बंडल होंगे. बाहर वह इन नोटों के बंडलों को कहां रख रहा था, इस का पता नहीं चला. यह भी पता नहीं चला कि बैंक के बाहर उस का कोई साथी खड़ा था या नहीं. एक फुटेज में वह हाथ में एक बैग ले कर बाहर निकलता नजर आया.

सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद यह बात साफ हो गई थी कि सुनील ने योजनाबद्ध तरीके से बैंक की चेस्ट से रुपए चोरी किए थे. फुटेज में 10-11 अप्रैल की दरम्यानी रात 3 बजे के बाद वह नजर नहीं आया. इस का मतलब था कि रात करीब 3 बजे वह बैंक से रकम चोरी कर फरार हो गया था. बैंक वालों ने 5-6 घंटे तक सारी रकम की गिनती करने के बाद पुलिस अफसरों को बताया कि 4 करोड़ 4 लाख रुपए गायब हैं. यह सारी रकम 2-2 हजार रुपए के नोटों के रूप में थी. 4 पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में बैंक से 4 करोड़ रुपए से ज्यादा चोरी होने का पता चलने पर पुलिस भी हैरान रह गई.

शुरुआती जांच में यह अनुमान लगाया गया कि सुनील ने अपने किसी साथी के सहयोग से यह वारदात की है. अनुमान यह भी लगाया गया कि इतनी बड़ी रकम ले कर वह किसी चारपहिया वाहन से भागा होगा. फिर सवाल आया कि सुनील अगर चारपहिया वाहन से भागा था तो उस की बाइक बैंक के पीछे मिलनी चाहिए थी, लेकिन उस की बाइक वहां नहीं मिली थी. इस से यह बात स्पष्ट हो गई कि बाइक या तो वह खुद या उस का कोई साथी चला कर ले गया.

पुलिस ने बैंक की चेस्ट में उस रात ड्यूटी पर मौजूद पंजाब पुलिस के चारों जवानों के बयान लिए. बैंक वालों के भी बयान लिए. बैंक वालों से सुनील के यारदोस्तों और उस के आनेजाने के ठिकानों के बारे में पूछताछ की गई. तमाम कवायद के बाद भी पुलिस को ऐसी कोई बात पता नहीं चली, जिस से उस के बारे में कोई सुराग मिलता.

सुनील की बाइक का पता लगाने के लिए पुलिस ने खोजी कुत्ते की मदद ली. पुलिस का स्निफर डौग उस के बाइक खड़ी करने की जगह पर चक्कर लगाने के बाद कुछ दूर गया. इस के बाद लौट आया. इस से पुलिस को कुछ भी पता नहीं लग सका. पुलिस ने सुनील की बाइक का पता लगाने के लिए बसस्टैंड के आसपास और दूसरी जगहों की पार्किंग पर तलाश कराई, लेकिन पता नहीं चला. उस के मोबाइल की आखिरी लोकेशन भी बैंक की आई.

सुनील के गांव भेजी गई पुलिस की टीमें शाम को चंडीगढ़ लौट आईं. मोरनी के पास स्थित गांव बाबड़वाली भोज कुदाना में पता चला कि सुनील को गंदी आदतों के कारण उस के मांबाप ने कई साल पहले ही घर से बेदखल कर दिया था. इस के बाद सुनील ने भी गांव आनाजाना कम कर दिया था.

पिता राममूर्ति ने पुलिस को बताया कि सुनील 2011-12 में पढ़ने के लिए कालेज जाता था. उसी दौरान वह एक लड़की को भगा ले गया था और बाद में उस से शादी कर ली थी. सुनील की इस हरकत के बाद ही मांबाप ने उसे घर से निकाल दिया था. बाद में पता चला कि सुनील ने पत्नी को तलाक दे दिया था. बैंक में चोरी की वारदात से करीब 3 महीने पहले वह किसी काम से गांव जरूर आया था.

पुलिस जांचपड़ताल में जुट गई. सुनील के दोस्तों और जानपहचान वालों की सूची बनाई गई. उन से पूछताछ की गई. पता चला कि वह मोहाली में एक दोस्त के साथ पेइंगगेस्ट के तौर पर पीजी में रहता था. पीजी पर जांच में सामने आया कि वह रात को बैंक में ड्यूटी करने के बाद कई बार सुबह पीजी पर नहीं आता था. वारदात के बाद भी वह कमरे पर नहीं आया था. सुनील का सुराग हासिल करने के लिए पुलिस ने वारदात वाली रात बैंक के आसपास चालू रहे मोबाइल नंबरों का डेटा जुटाया. इन नंबरों की जांच की गई, लेकिन इन में से किसी भी नंबर से सुनील के मोबाइल पर बात नहीं हुई थी.

इस से पहले पुलिस यह मान रही थी कि वारदात में अगर सुनील के साथ दूसरे लोग भी शामिल हैं तो उन की मोबाइल पर आपस में कोई न कोई बात जरूर हुई होगी. इसी का पता लगाने के लिए बैंक के आसपास के मोबाइल टावरों से उस रात जुड़े रहे मोबाइल नंबरों की जांच की गई थी, लेकिन पुलिस का यह तीर भी खाली निकल गया. पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज से ही क्लू हासिल करने के मकसद से कई बार फुटेज देखी, लेकिन इस से भी ऐसी कोई बात सामने नहीं आई, जिस से सुनील का पता लगता या जांच का नया सिरा मिलता. पुलिस सभी पहलुओं को ध्यान में रख कर जांच में जुटी रही.

अधिकारी यह मान रहे थे कि सुनील ने इतनी बड़ी वारदात करने के लिए पूरी योजना जरूर बनाई होगी. ऐसा नहीं हो सकता कि अचानक ही उस रात उस ने चोरी की हो. इस नजरिए से पुलिस को यह संदेह भी हुआ कि अगर उस ने योजनाबद्ध तरीके से इतनी बड़ी वारदात की है, तो वह भारत से बाहर भी जा सकता है. इस शक की बुनियाद पर पुलिस ने सुनील का लुकआउट नोटिस जारी करवा कर एयरपोर्ट और बंदरगाहों को सतर्क कर दिया.

इस के साथ ही पुलिस इस बात की जांचपड़ताल में भी जुट गई कि क्या सुनील ने कोई पासपोर्ट बनवाया है या उस के पास पहले से पासपोर्ट तो नहीं है. 2 दिन तक जांच में प्रारंभिक तौर पर यही पता चला कि सुनील के नाम का कोई पासपोर्ट नहीं है. जांचपड़ताल में जुटी पुलिस को 14 अप्रैल को पता चला कि सुनील को 2-3 दिन के दौरान पंचकूला के पास रायपुररानी में देखा गया है. पुलिस ने रायपुररानी पहुंच कर सूचनाएं जुटाईं. इस के बाद उसी दिन चंडीगढ़ पुलिस की क्राइम ब्रांच ने चंडीगढ़ आते समय मनीमाजरा शास्त्रीनगर ब्रिज के पास सुनील को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल कर ली.

बाद में पुलिस ने उस की निशानदेही पर 4 करोड़ 3 लाख 14 हजार रुपए बरामद कर लिए. पुलिस के लिए यह बड़ी सफलता थी. चोरी हुए 4 करोड़ 4 लाख रुपए में केवल 86 हजार रुपए ही कम थे. पुलिस ने सुनील से पूछताछ की. पूछताछ में बैंक से इतनी बड़ी चोरी करने और उस के पकड़े जाने की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

मोरनी इलाके के गांव बाबड़वाली भोज कुदाना का रहने वाला 32 साल का सुनील एक्सिस बैंक में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता था. इस नौकरी से उस के शौक पूरे नहीं होते थे. घर वालों से उस के ज्यादा अच्छे संबंध नहीं थे. पत्नी से भी तलाक हो चुका था. वह शराब पीता था और महिलाओं से दोस्ती रखने के साथ दूसरे शौक भी करता था. उस के पास दूसरा कोई कामधंधा था नहीं, इसलिए पैसों के लिए हमेशा उस का हाथ तंग ही रहता था.

उसे पता था कि एक्सिस बैंक की जिस चेस्ट में वह नौकरी करता है, वहां हर समय करोड़ों रुपए बक्सों में भरे रहते हैं. वह सोचता था कि इन बक्सों से 20-30 लाख रुपए निकाल ले, तो उस की लाइफ बदल जाएगी. लेकिन बक्सों से नोट निकालना कोई आसान काम नहीं था. बैंक की चेस्ट में कड़ी सुरक्षा में नोटों के बक्से रहते थे. बक्सों पर ताले लगे होते थे. हर समय पुलिस का पहरा रहता था. चारों तरफ कैमरे लगे थे. वह यही सोचता रहता कि बक्सों से रुपए कैसे निकाले जाएं?

सुरक्षा के इतने तामझाम देख कर वह अपना मन मसोस कर रह जाता था. उसे लगता था कि सारे सपने अधूरे ही रह जाएंगे. तरहतरह की बातें सोच कर भले ही वह डर जाता था, लेकिन उस ने उम्मीदें नहीं छोड़ी थीं. वह मौके की तलाश में लगा रहता था. वह रात को कई बार शराब पी कर ड्यूटी देता था. 10 अप्रैल की रात भी वह शराब पी कर बैंक में ड्यूटी करने पहुंचा. रोजाना की तरह पंजाब पुलिस के जवान भी ड्यूटी पर आ गए. इन जवानों की ड्यूटी चेस्ट के बाहर रहती थी जबकि सुनील की ड्यूटी चेस्ट के अंदर तक रहती थी.

सुनील ने उस रात बैंक की चेस्ट में आनेजाने के दौरान देखा कि एक बक्सा पीछे से कुछ टूटा हुआ था. उस में से नोटों के पैकेट दिख रहे थे. यह देख कर सुनील को अपना सपना साकार होता नजर आया. उस ने तैनात पुलिसकर्मियों की नजर बचा कर उस बक्से का टूटा हुआ हिस्सा इतना तोड़ दिया कि उस में से नोटों के पैकेट आसानी से निकल सकें.

इस के बाद वह 2-3 बार बाहर तक आया और पुलिस वालों पर नजर डाली. उसे यह भरोसा हो गया कि ये पुलिस वाले उस पर किसी तरह का शक नहीं करेंगे. पूरी तरह यकीन हो जाने के बाद सुनील ने बक्से से नोटों के पैकेट निकाले और उन्हें अपने कपड़ों में छिपा कर बाहर आ गया. बाहर आ कर उस ने अपनी बाइक के पास वह नोटों के बंडल रख दिए.

करीब 20-30 मिनट के अंतराल में वह 5-6 चक्कर लगा कर 10-12 नोटों के बंडल बाहर ले आया. इस के बाद वह अपने पास रखे बैग में नोटों के बंडल रख कर बाहर ले आया. एक बंडल में 2-2 हजार के नोटों की 10 गड्डियां थीं. मतलब एक बंडल में 20 लाख रुपए थे. बैग में रख कर और कपड़ों में छिपा कर वह नोटों के 20 बंडल और 2 गड्डियां बाहर ला चुका था. ये सारे रुपए उस ने चेस्ट के बाहर छिपा दिए थे. तब तक रात के 3 बज चुके थे. अब वह जल्द से जल्द वहां से भाग जाना चाहता था.

उस ने मौका देखा. चेस्ट के बाहर पंजाब पुलिस के जवान सुस्ताते हुए बैठे थे. वह उन्हें बिना कुछ बताए चेस्ट के पीछे गया और छिपाए नोटों के बंडल बैग में रख कर अपनी बाइक ले कर चल दिया. कुछ दूर चलने के बाद उसने अपना मोबाइल तोड़ कर फेंक दिया ताकि पुलिस उस तक नहीं पहुंच सके. बाइक से वह हल्लोमाजरा गया. वहां जंगल में एक गड्ढा खोद कर उस ने एक प्लास्टिक की थैली में रख कर 4 करोड़ रुपए दबा दिए. बाकी के 4 लाख रुपए ले कर वह बाइक से पंचकूला के पास रायपुररानी पहुंचा. वहां एक होटल में जा कर रुक गया.

होटल के कमरे में नरम बिस्तरों पर भी उसे नींद नहीं आई. वह बेचैनी से करवटें बदलता रहा. उसे 2 चिंताएं सता रही थीं. पहली अपने पकड़े जाने की और दूसरी जंगल में छिपाए 4 करोड़ रुपए की. बेचैनी में वह होटल से निकल कर रायपुररानी के बसस्टैंड पर आ गया. उस ने पहले अपनी मनपसंद का नाश्ता किया. फिर 24 हजार रुपए का नया मोबाइल फोन खरीदा. उसे सब से ज्यादा चिंता 4 करोड़ रुपए की थी. इसलिए वह बाइक से वापस हल्लोमाजरा गया. वहां जंगल में जा कर उस ने वह जगह देखी, जहां रुपए छिपाए थे. रुपए सुरक्षित थे. वह बाइक से वापस रायपुररानी आ गया. बाजार में घूमफिर कर उस ने नए कपड़े खरीदे और नशा किया.

सुनील अपनी पत्नी से तलाक ले चुका था. वह महिलाओं से दोस्ती रखता था और शादी की एक औनलाइन साइट पर ऐक्टिव रहता था. वह लगातार तलाकशुदा महिलाओं से बातचीत करता रहता था. जांचपड़ताल के दौरान पुलिस को जब इन बातों का पता चला तो पुलिस ने उस के सोशल मीडिया अकाउंट को खंगाला. सोशल मीडिया अकाउंट से ही पुलिस को उस की लोकेशन का सुराग मिला और पता चला कि वह रायपुररानी में है. पुलिस ने उसे 14 अप्रैल, 2021 को गिरफ्तार कर उस के पास से 3 लाख 14 हजार रुपए बरामद किए. इस के बाद उस की निशानदेही पर हल्लोमाजरा के जंगल में गड्ढा खोद कर छिपाए गए 4 करोड़ रुपए बरामद कर लिए. पुलिस ने उसे अदालत से एक दिन के रिमांड पर लेने के बाद 16 अप्रैल को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया.

पूछताछ में सामने आया कि सुनील ने अकेले ही चोरी की वारदात की. पहले इस तरह के बड़े अपराध नहीं करने के कारण वारदात के बाद वह काफी डर गया. डर की वजह से वह न तो सो सका और न ही कहीं भाग सका. वह 4 करोड़ रुपयों की सुरक्षा की चिंता में चंडीगढ़, मोहाली और पंचकूला के आसपास ही घूमता रहा. प्रोफेशनल अपराधी नहीं होने के कारण वह न तो चोरी के रुपयों को ठिकाने लगा पाया और न ही अपने बचाव के बारे में सोच सका. दरअसल, चोरी की वारदात में उसे अपनी उम्मीद से बहुत ज्यादा एक साथ 4 करोड़ रुपए मिलने पर वह इतना बेचैन हो गया कि अपने शौक भी पूरे नहीं कर सका. Suspense Crime Story

Crime Story: दिखावटी रईस – निकला बड़ा ठग

Crime Story: कहते हैं कि इंसान बड़ा तिकड़मी होता है. कोई अपने तिकड़म अच्छे कामों के लिए लगाता है तो कोई अपने तिकड़म से दुनिया को झुकाने की फितरत रखता है. केरल के एक आदमी ने आसानी से पैसा कमाने के लिए जोरदार तिकड़म लगाया. 10 करोड़ की ठगी के मामले में 25 सितंबर, 2021 की रात को केरल की क्राइम ब्रांच ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तारी के बाद जब उस के कारनामों का खुलासा हुआ तो लोग उस की चर्चा करते नहीं थक रहे हैं. क्योंकि अपने तिकड़म से उस ने देश के जानेमाने ठग नटवरलाल को भी पीछे छोड़ने की कोशिश की है. 51 साल के उस आदमी का नाम है मोनसन मावुंकल. वह केरल के जिला अलप्पुझा के चेरथला का रहने वाला है. इस ठग ने स्वयंप्रसिद्धि द्वारा अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई थी.

अपनी वेबसाइट पर उस ने जरा भी कंजूसी किए बगैर बड़ी ही उदारता के साथ अपनी पहचान इस तरह दी थी— डा. मोनसन मावुंकल, प्राचीन और दुर्लभ वस्तुओं का अंतरराष्ट्रीय सौदागर. विश्व शांति के प्रणेता और वर्ल्ड पीस काउंसिल का मेंबर. प्रवासी मलयाली फैडरेशन पेट्रन, पुरातत्त्वविज्ञान के मास्टर, डाक्टरेट इन कौस्मेटोलौजी और उस में पोस्टडाक्टरल, शिक्षाशास्त्री, प्राचीन ज्वैलरी के निर्यातक, मोटिवेशनल स्पीकर और प्रख्यात यूट्यूबर.

यह आदमी काम क्या करता था? कोच्चि में एक आलीशान कोठी किराए पर ले कर उस में उस ने प्राचीन और दुर्लभ वस्तुओं का म्यूजियम बना रखा था. इस के अलावा कोठी के एक फ्लोर पर वह सौंदर्य चिकित्सा करता था. वहां एक स्पा भी था. कोठी के विशाल कंपाउंड में उस की लगभग 30 कारें खड़ी थीं. उस की कारों के इस काफिले में पोर्शे बाक्सटर, रोल्स रायस, रेंजरोवर, लैंडक्रूजर, डौज, मर्सिडीज एस क्लास और लेक्सस जैसी महंगीं कारें थीं.

उस के म्यूजियम में जो दुर्लभ चीजें थीं, वह सोनेचांदी की प्राचीन ज्वैलरी के अलावा देशी और विदेशी प्रवासियों को अमूल्य और दुर्लभ नमूने भी बेचता था. उस की सूची में ईसा मसीह जो कपड़े पहनते थे, उस का एक टुकड़ा, जीसस को धोखा देने के लिए घूल जुडासन ने जो 30 चांदी के सिक्के दिए थे, वे सिक्के. मोहम्मद पैगंबर जिस कटोरे में खाते थे, वह कटोरा. टीपू सुलतान का सिंहासन, लियोनार्डो दा विंची और राजा रवि वर्मा के बनाए असली चित्र, छत्रपति शिवाजी महाराज हमेशा अपने साथ जो भगवद्गीता रखते थे, वह भगवद् गीता, मोजिस का अधिकार दंड, नारायण गुरु की लाठी, त्रावणकोर के महाराजा का सिंहासन, विश्वप्रसिद्ध पैलेस का ओरिजिनल टाइटल डीड.

दुनिया की पहली ग्रामोफोन मशीन, बाइबल की सर्वप्रथम छपी पहली कौपी, सद्दाम हुसैन अपने साथ जो कुरान शरीफ रखता था, वह पवित्र कुरान शरीफ, केरल का प्रसिद्ध शबरीमाला मंदिर जब बना था, तब की उस की धार्मिक विधियों के लिए दस्तावेज के रूप में जो ताम्रपत्र बनाया गया था, वह दुर्लभ ताम्रपत्र, इस तरह की अनेक दुर्लभ प्राचीन चीजें मोनसन मावुंकल के खजाने में थीं. छोटे ग्राहकों के लिए हाथीदांत की कलाकृतियां और व्हेल मछली की हड्डियों से बने खिलौने भी उस के म्यूजियम में थे. फिल्मी हीरो जैसे लगने वाले और अपनी बोलने की कला से सामने वाले व्यक्ति को प्रभावित करने की उस में गजब की शक्ति थी.

इस के अलावा उस के इस म्यूजियम और वैभवशाली 30 कारों के काफिले के कारण किसी को भी प्रभावित करने में उसे जरा भी दिक्कत नहीं होती थी. 2-3 सशस्त्र बौडीगार्ड हमेशा उस के साथ रहते थे. प्रसिद्धि का भूखा मोनसन डौन की स्टाइल में अपने फोटो वेबसाइट और सोशल मीडिया पर अकसर डालता रहता था. सामान्य आदमी तो ठीक, केरल के फिल्मी कलाकार, राजनेता और बड़ेबड़े पुलिस अधिकारी भी उस का म्यूजियम देखने आते थे.

उस से मिलने वालों में राज्य के डीजीपी लोकनाथ बेहरा, असिस्टेंट आईजीपी मनोज अब्राहम, सुपरस्टार मोहनलाल, कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के. सुधाकरन, वर्तमान सरकार के मंत्री रोशी आंगस्टाइन, अहमद देवरकोविल, आईजी लक्ष्मण गुगुलोथ, पूर्व डीआईजी सुरेंद्रन, आईपीएस श्रीलेखा, सांसद हीबी एडन, पूर्व मंत्री मोना जोसेफ जैसे अनेक महारथियों के फोटोग्राफ्स उस के म्यूजियम में थे. इस तरह के वीआईपी मेहमानों के भव्य स्वागत में मोनसन मावुंकल कोई कसर नहीं छोड़ता था. इन लोगों के साथ के फोटो वह तुरंत सोशल मीडिया पर वायरल कर देता था. वह पुलिस अधिकारियों को छोटामोटा सामान उपहार में दे कर खुश रखता था.

पुलिस विभाग में चलने वाली चर्चाओं के अनुसार, मोनसन ने एक बड़े पुलिस अधिकारी को 55 लाख की कोरल एडमिरल कलाई घड़ी उपहार में दी थी. पुलिस विभाग से मधुर संबंध होने की वजह से उस की कोठी और अलप्पुझा जिले में स्थित उस के घर, दोनों जगहों पर पुलिस बीट बौक्स की व्यवस्था हो गई थी. आखिर यह ठग पकड़ा कैसे गया? जून, 2017 से नवंबर, 2020 के बीच मोनसन मावुंकल ने अलग अलग 6 लोगों से कुल 24 करोड़ रुपए उधार लिए थे. अंतरराष्ट्रीय हीरा व्यापारी और एंटीक बिजनैस डीलर के रूप में उस ने इन लोगों से अपना परिचय कराया था.

बाद में जब इन लोगों ने अपना पैसा वापस मांगना शुरू किया तो मोनसन मावुंकल इन से कहने लगा कि फारेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के अधिकारियों ने उस का पैसा रोक रखा है. उसे पाने के लिए केंद्र सरकार से उस की कानूनी लड़ाई चल रही है. उन लोगों को मोनसन की बात पर विश्वास नहीं था, इसलिए वे लोग उस के घर आए. आलीशान कोठी, लग्जरी कारों का काफिला, उस की आलीशान जीवनशैली और माननीय लोगों के साथ उस की फोटो देख कर उन्हें मोनसन की बात पर विश्वास हो गया. इस के अलावा विश्वास जमाने के लिए मोनसन मावुंकल ने उन लोगों को एचएसबीसी बैंक का स्टेटमेंट भी दिखाया.

मोनसन मावुंकल का पार्टनर कोई वी.आई. पटेल (यह वी.आई. पटेल कौन हैं, इस के बारे में केरल पुलिस आज तक पता नहीं कर सकी है) के साथ के उस के एकाउंट में छोटीमोटी नहीं, 2.62 लाख करोड़ की रकम जमा थी. मोनसन मावुंकल ने उन से यह भी कहा था कि 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल कर उस ने अपना पैसा पाने की बात भी की है. प्रवासी मलयाली फेडरेशन की वैश्विक महिला कोआर्डिनेटर रह चुकी अनीता पुल्लाइल इस समय इटली में रहती हैं. मोनसन मावुंकल के किसी लेनदार ने जब उन से व्यक्तिगत रूप से इस बारे में बात की तो उन्होंने सलाह दी कि उस चीटर के खिलाफ तुरंत पुलिस में शिकायत कर दीजिए. अगर आप को जरूरत महसूस हो तो मेरे नाम का भी उपयोग कर सकते हो.

अनीता ने यह भी कहा था कि पता चला है कि उस नालायक ने उस की कोठी में काम करने वाली नौकरानी की 17 साल की बेटी के साथ दुष्कर्म भी किया है. यह पता चलते ही उन्होंने उस शैतान से सारे संबंध तोड़ लिए हैं. इस के बाद उन लेनदारों ने मोनसन मावुंकल के खिलाफ शिकायत करने के साथसाथ उस शिकायत पर काररवाई के लिए राज्य के मुख्यमंत्री पी. विजयन के यहां शिकायत की. उन्हीं की शिकायत के आधार पर लोकल पुलिस को अंधेरे में रख कर राज्य की क्राइम ब्रांच ने इस मामले को अपने हाथ में लिया.

25 सितंबर, 2021 को मोनसन मावुंकल की बेटी की सगाई की आलीशान पार्टी थी. उसी रात क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने उसे गिरफ्तार कर लिया. जिस समय उसे गिरफ्तार किया गया, उस की जेब में 3 महंगे आईफोन, दाहिने हाथ में एप्पल की घड़ी, बाएं हाथ में सोने का वजनदार लकी ब्रेसलेट और गले में मोटी सी सोने की चेन थी. अपनी स्वयंप्रसिद्धि के कारण मोनसन मावुंकल ने केरल में ‘हू इज हू’ की सूची में स्थान प्राप्त कर लिया था. गिरफ्तारी के बाद मोनसन मावुंकल मीडिया में छा गया.

अखबारों और टीवी चैनलों में उस के नेताओं के साथ के संबंध और पुलिस अधिकारियों से सांठगांठ की चर्चा लगातार चलने लगी. उस के बाद बहुत बड़ा घोटाला सामने आया. इस के अलावा भी अनेक रहस्य बाहर आएंगे, ऐसा सभी को लग रहा है. फोटोग्राफ्स में जो महानुभाव थे, वे सब ढीले पड़ गए और अपनीअपनी सफाई देने लगे कि यह आदमी इतना बड़ा ठग है, उन्हें पता नहीं था. राज्य के डीजीपी लोकनाथ बेहरा ने तो मोनसन मावुंकल के म्यूजियम में महाराजा के स्टाइल में हाथ में तलवार के साथ पोज दिया था.

लोकनाथ इसी साल रिटायर हुए हैं. उन के रिटायर होने के बाद सरकार ने उन्हें तुरंत कोच्चि मेट्रो का मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया था. मोनसन मावुंकल के गिरफ्तार होते ही वह पत्नी की बीमारी का कारण बता कर अपने घर ओडिशा चले गए हैं. जैसेजैसे सच्चाई बाहर आने लगी, झूठ और मात्र झूठ के आधार पर खड़ा किया गया मोनसन मावुंकल का साम्राज्य भरभरा कर गिरने लगा. हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मोनसन मावुंकल ने किसी कालेज का मुंह नहीं देखा था. फिर भी उस के नाम के साथ डाक्टरेट की डिग्री लगी है. उस के म्यूजियम के खजाने में जो पौराणिक वस्तुएं थीं, वे ज्यादातर नकली थीं.

हाथीदांत और व्हेल की हड्डियों से बनी जो चीजें थीं, वे तिरुवनंतपुरम के एक कारीगर से ऊंट की हड्डियों से बनवाई गई थीं. उस कारीगर का भी इस पर पैसा बाकी है, इसलिए उस ने भी मुकदमा कर रखा है. उस की 30 कारों में से एक भी कार के पूरे कागज नहीं मिले. महंगी पोर्शे कार 2007 में करीना कपूर के नाम रजिस्टर्ड हुई थी. उस में पिता का नाम रणधीर कपूर और पता भी उन्हीं के घर का है. मोनसन मावुंकल की पत्नी शिक्षिका थी. 1981-82 में वे दोनों इडुक्की जिले के एक गांव में रहते थे. उस समय के उस के पड़ोसियों का कहना है कि मोनसन मावुंकल तो उन के गांव में इलैक्ट्रिशियन वायरमैन का काम करता था. 1998 में उस ने कोच्चि में पुरानी कारों के खरीदनेबेचने का धंधा शुरू किया. तभी चोरी की कार बेचने के आरोप में पुलिस ने उसे गिरफ्तार भी किया था.

छोटीमोटी धोखाधड़ी करते हुए उस ने एक पूरा आभासी साम्राज्य खड़ा कर लिया. अपने लेनदारों को मोनसन मावुंकल बड़े शान से 2.62 लाख करोड़ की जमा रकम वाला एचएसबीसी बैंक का स्टेटमेंट दिखाता था. पुलिस जांच में सामने आया है कि इस आदमी का तो बैंक में कोई एकाउंट ही नहीं है. कोफिन में अंतिम कील जैसी घटना उस की गिरफ्तारी के बाद बाहर आई. उस की कोठी में काम करने वाली नौकरानी की बेटी 17 साल की थी, तब मोनसन मावुंकल ने उस के साथ उच्च शिक्षा के लिए दाखिला दिलाने के नाम पर दुष्कर्म किया था. पुलिस से मोनसन मावुंकल के संबंधों के कारण वह गरीब पुलिस से शिकायत करने से डरती रही.

मोनसन मावुंकल पकड़ा गया तो उस ने एर्नाकुलम थाने में शिकायत की है कि अब तक उस के साथ दुष्कर्म का सिलसिला चलता रहा था. गिरफ्तारी के 2 दिन पहले भी उस नराधम ने उस लड़की के साथ दुष्कर्म किया था. क्राइम ब्रांच ने मोनसन मावुंकल के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 450, 506, 420, 421 के तहत कुल 14 एफआईआर दर्ज की हैं. इस में 19 अक्तूबर, 2021 को पोक्सो एक्ट के अंतर्गत भी मामला दर्ज किया गया था. डौन की तरह बौडीगार्ड के साथ मोनसन मावुंकल के फोटो खूब वायरल हुए थे. पुलिस जांच में पता चला कि सभी अंगरक्षकों के हाथों में जो हथियार दिख रहे थे, वे चाइनीज खिलौना राइफलें थीं. इस घटना का राजकीय प्रत्याघात भी जोरदार सामने आया है.

6 अक्तूबर, 2021 को केरल की विधानसभा में प्रश्नोत्तर के दौरान मोनसन मावुंकल एक बार फिर चर्चा में आया. राज्य के डीजीपी और अन्य उच्च अधिकारी मोनसन के म्यूजियम में क्या करने जाते थे, इस का जवाब देना मेरे लिए मुश्किल है. मुख्यमंत्री विजयन ने कहा. उन्होंने विश्वास दिलाया कि उस के दोनों घरों पर पुलिस बीट बौक्स की व्यवस्था किस ने कराई है, इस की जांच होगी.

विपक्षी नेता वी.डी. सतीश ने आक्रामक रुख अख्तियार करते हुए कहा है कि 2019 में पुलिस की इंटेलिजेंस विंग ने मोनसन मावुंकल को चीटर घोषित करते हुए जनवरी, 2020 में पूरी रिपोर्ट दी थी, फिर भी पुलिस ने उस के खिलाफ कुछ नहीं किया था. उसे राज्य के पुलिस अधिकारियों और सरकार की मदद मिलती रही थी. यह कह कर विपक्ष ने वाकआउट कर दिया था. लोगों को ठग कर इकट्ठा किया गया पैसा आखिर गया कहां? पुलिस अब इस दिशा में जांच कर रही है. पिछले 5 सालों में कोच्चि के पौश इलाके की प्रौपर्टी में जो बेनामी इनवैस्ट हुआ है, उस में सभी डीलरों का कहना है कि किसी ‘डाक्टर’ नाम के आदमी ने खासा बेनामी इनवैस्ट किया है.

पुलिस का मानना है कि वह डाक्टर कोई और नहीं, मोनसन मावुंकल ही होगा. इटली में रह रही अनीता पुल्लाइल भी पुलिस के शक के दायरे में है. वह बारबार केरल आ कर मोनसन मावुंकल से मिलती रहती थी. इस से पुलिस को आशंका है कि उस के माध्यम से मोनसन ने पैसा विदेश पहुंचाया है. पुलिस इस की भी जांच कर रही है. पुलिस का मानना है कि उन लेनदारों से अनीता ने जो शिकायत करने के लिए कहा था, उस समय मोनसन की पुलिस अधिकारियों से अच्छी सांठगांठ थी. इसलिए उन लोगों की शिकायत पर कुछ होगा नहीं, यह सोच कर उस ने यह सलाह दी थी.

दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिए, यह उक्ति मोनसन मावुंकल पर सच्ची ठहरती है. सारा नकली कारोबार कर के लोगों को ठगने और उन पर धाक जमाने के लिए नेताओं, अभिनेताओं और पुलिस अधिकारियों की तसवीरों का उपयोग किया, परंतु अंत में अपराध का घड़ा फूटा और अब वह नमूना जेल की सलाखें गिन रहा है.

Crime Story : पत्नियों की अदला बदली – पैसे वालों का खेल

Crime Story : नए साल में दूसरे रविवार का दिन था. तारीख थी 9 जनवरी. कोट्टायम जिले के करुक्चल थाने में करीब 30 वर्षीया रमन्ना (बदला हुआ नाम) सुबहसुबह अपने पति के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने आई थी. उस ने थानाप्रभारी से कहा, ‘‘साहब, मुझे पति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करानी है.’’ यह सुनते ही चाय पीते हुए थानाप्रभारी झल्ला गए. उन्होंने समझा कि कोई घरेलू हिंसा या दहेज आदि का मसला होगा. महिला की आगे की बातें सुनने के बजाय उन्होंने उसे डपट दिया, ‘‘जाओ, घर जाओ और पति या घर के किसी सदस्य को साथ ले कर आना. सुबहसुबह पति से झगड़ कर आ गई हो. समझा दूंगा उसे…’’

रमन्ना वहीं खड़ीखड़ी थानाप्रभारी को चाय पीते देखती रही. थानाप्रभारी फिर बोले, ‘‘समझदार दिखती हो. पढ़ीलिखी भी लगती हो. घरेलू झगड़े को क्यों बाजार में लाना चाहती हो?’’

‘‘साहबजी, आप जो समझ रहे हैं, बात वह नहीं है. किसी लेडी पुलिस से मेरी शिकायत लिखवा दीजिए. ‘भार्या माट्टल’ की शिकायत है.’’

रमन्ना की गंभीरता भरी बातों के साथ मलयाली शब्द भार्या माट्टल सुन कर थानाप्रभारी चौंक गए. इन शब्दों का अर्थ था बीवियों की अदलाबदली. दरअसल, ये 2 शब्द पुलिस के लिए अपराध की गतिविधियों में शामिल थे. भार्या माट्टल यानी वाइफ स्वैपिंग या बीवियों की अदलाबदली.

उन्होंने महिला को सामने की कुरसी पर बैठने को कहा. उस के बैठने पर पूछा, ‘‘चाय पियोगी, मंगवाऊं?’’

‘‘हां,’’ कहते हुए सिर हिला दिया.

थानाप्रभारी ने कांस्टेबल को आवाज लगाई, ‘‘अरे, सुनो जरा एक कप चाय और लाना. और हां, एसआई मैडम को भी डायरी ले कर बुला लाना.’’

थोड़ी देर में एक लेडी पुलिस सबइंसपेक्टर थानाप्रभारी के पास आ चुकी थीं. चाय की एक प्याली भी महिला के सामने रखी थी. थानाप्रभारी ने उसे पीने के लिए इशारा किया और लेडी एसआई को उस की शिकायत लिखने को कहा. फिर वह कुरसी से उठ खड़े हुए. जातेजाते पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘रमन्ना.’’

‘‘टाइटल क्या है?’’

‘‘नायर…रमन्ना नायर.’’

‘‘ठीक है, तुम आराम से चाय पियो और मैडम को पूरी बात बताओ,’’ यह कह कर थानाप्रभारी वहां से चले गए.

थोड़ी देर बाद थानाप्रभारी, लेडी एसआई और दूसरे पुलिसकर्मियों की मीटिंग हुई. तब तक रमन्ना थाने में ही ठहरी रही.

रमन्ना ने जो बात महिला एसआई को बताई थी, वह बड़ी गंभीर थी. सुन कर थानाप्रभारी भी आश्चर्यचकित हो गए थे कि क्या एक पति ऐसा भी कर सकता है. उन्होंने यह जानकारी डीएसपी (कांगनचेरी) आर. श्रीकुमार को दी तो डीएसपी ने इस मामले में उचित काररवाई करने के निर्देश दिए. थानाप्रभारी ने आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए एक पुलिस टीम बनाई. आरोपियों की गिरफ्तारियां भी जरूरी थी, ताकि मामले की तह तक पहुंचा जा सके.

मामला बेहद संवेदनशील था. संभ्रांत व्यक्तियों के चरित्र हनन, निजी संबंधों के साथसाथ पार्टनर एक्सचेंज रैकेट के अलावा अननेचुरल सैक्स से भी जुड़ा हुआ था. इसी शिकायत में मैरिटल रेप भी शामिल था. उल्लेखनीय है कि इस से पहले केरल के कायमकुलम में भी साल 2019 में ऐसा ही मामला सामने आ चुका था. उन दिनों कायमकुलम से 4 लोगों की गिरफ्तारी भी हुई थी. उस वक्त भी गिरफ्तार लोगों में से एक की पत्नी ने ही शिकायत दर्ज करवाई थी कि उसे पति ने ही 2 लोगों के साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया था. पति ने उसे दूसरे अजनबियों के साथ सोने के लिए दबाव बनाया था.

रमन्ना द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत भी काफी चौंकाने वाली थी. उस ने पति के खिलाफ शिकायत लिखवाई थी कि वह पति के दबाव में आ कर दूसरे मर्दों के साथ सोने को विवश हो गई थी, जबकि पति के साथ प्रेम विवाह हुआ था. शिकायत में यह भी कहा कि उस के साथ अप्राकृतिक सैक्स भी किया गया. एक समय में 3 मर्दों के साथ हमबिस्तर होना पड़ा. इसे अनैतिक यौनाचार की भाषा में गु्रप सैक्स कहना ज्यादा सही होगा. इस तरह से वह पति के अतिरिक्त कुल 9 अलगअलग मर्दों के सैक्स की सामग्री बन चुकी थी. वे सारे मर्द उस के पति के दोस्त थे. रमन्ना ने साफ लहजे में कहा कि पति को इस के बदले में पैसे मिले थे.

कोट्टायम जिले की पुलिस ने मामले को काफी गंभीरता से लेते हुए तुरंत छापेमारी की योजना बनाई और देखते ही देखते 7 लोगों को धर दबोचा. उस के बाद जो बड़े पैमाने पर सैक्स रैकेट का भंडाफोड़ हुआ, वह काफी सनसनीखेज और चौंकाने वाला था. उस की पूरे देश में चर्चा होने लगी.

hindi-manohar-social-crime-story

एक के बाद एक हुई गिरफ्तारियों के बाद एक बड़े सैक्स रैकेट का परदाफाश हुआ, जो सोशल साइट के विभिन्न प्लेटफार्मों के जरिए पतियों के ग्रुप द्वारा चलाए जा रहे थे. रिपोर्ट के मुताबिक करुक्चल में 7 लोगों को बीवियों की अदलाबदली के आरोप में 9 जनवरी को गिरफ्तार कर लिया गया था. उन में रमन्ना का पति भी था. गिरफ्तार किए गए लोग केरल के अलाप्पुझा, कोट्टायम और एर्नाकुलम के रहने वाले हैं. रिपोर्ट के मुताबिक इस रैकेट में बाकायदा वाट्सऐप पर ग्रुप बनाए गए थे, जिस से सैकड़ों लोग जुड़े हुए थे. इसी ग्रुप में आगे की योजना बनाई जाती थी. हैरानी की बात यह भी थी कि इस ग्रुप में केरल के एलीट क्लास के कई लोग भी शामिल थे.

इस पूरे मामले की तहकीकात के बाद चांगनचेरी के डिप्टी एसपी आर. श्रीकुमार ने बताया कि पहले तो वे इन ग्रुप्स में शामिल हो कर एकदूसरे से मिलते थे. बाद में निर्धारित ठिकाने पर सैक्स के लिए जुटते थे. इस के पीछे एक बड़ा रैकेट है. इस में कई और दूसरे लोगों की तलाश भी की जा रही है. पुलिस के अनुसार महिलाओं सहित भले ही कुछ समान विचारधारा वाले हों, लेकिन कुछ महिलाओं को उन के पतियों ने इस में जबरदस्ती शामिल कर रखा था. गिरफ्तार लोगों ने पूछताछ में बताया कि वे पहले टेलीग्राम और दूसरे मैसेंजर ग्रुप्स में शामिल होते हैं, और फिर 2 या 3 कपल आपस में मुलाकात करते हैं. इस के बाद महिलाओं की अदलाबदली होती है.

इन गिरफ्तारियों के बाद पुलिस ने ‘पार्टनर एक्सचेंज रैकट’ की तह में जा कर पता लगाया. पुलिस ने तहकीकात की तो पता चला कि ‘पार्टनर एक्सचेंज रैकेट’ के नेटवर्क का मुख्य आधार टेलीग्राम और मैसेंजर ऐप था, जिस में एक गिरोह के 1000 से अधिक कपल बताए जा रहे हैं. उन के द्वारा सैक्स के लिए बड़े स्तर पर महिलाओं की अदलाबदली की जा रही थी. इस रैकेट में पैसों का भी औनलाइन लेनदेन होता है. कई लोग पैसों के लिए अपनी पत्नियों को सिंगल पुरुषों के साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करते हैं, जबकि इस सैक्स में 2-3 पुरुष ही होते हैं.

पुलिस को जांच में पता चला कि इस रैकेट में राज्य के हर हिस्से के लोग शामिल थे, जिन में अधिकतर सदस्य धनवान और सुखीसंपन्न थे. सवाल सामान्य लोगों के जेहन में उठता रहता है कि पत्नियों की अदलाबदली क्यों और कैसे? वाइफ स्वैपिंग का एक पुराना इतिहास बहुपत्नी प्रथा के जमाने से रहा है. किंतु इस ने नए रूपरंग में 80-90 के दशक में एक यौन आनंद के तौर पर पैर पसारना शुरू कर दिया था. हालांकि इस में संभ्रांत किस्म के कपल ही शामिल हुए. इस के लिए उन्होंने बाकायदा पार्टियों का सहारा लिया. केरल का मामला भी बीवियों की अदलाबदली का ही है, लेकिन इसे पतियों ने कमाई का धंधा बना दिया, जिस में बीवी के नाम पर दूसरी सैक्स वर्कर को भी शामिल कर लिया गया था.

केरल की शिकायतकर्ता महिला रमन्ना की लव मैरिज हुई थी. खुशहाल जिंदगी गुजर रही थी. 2 बच्चे भी हुए. सब कुछ अच्छा चल रहा था. इस बीच पति की गल्फ में नौकरी लगी और वह विदेश चला गया. वहां पति को वाइफ स्वैपिंग के बारे में पता लगा. जब वापस केरल लौटा तब उस ने इस बारे में अपनी पत्नी को बताया. पत्नी ने इनकार कर दिया, लेकिन पति नहीं माना. उस ने काफी मना किया कि वह किसी और के साथ सैक्स नहीं करेगी, लेकिन पति के दबाव में आ कर ऐसा करने को राजी हो गई. पति द्वारा खुद को मारने की धमकी के इमोशनल ब्लैकमेलिंग के चलते न चाहते हुए भी मान गई.

उस के बाद से पति के दोस्तों के साथ सैक्स करने का सिलसिला शुरू हो गया. इस खेल के शुरू होते ही पति ने उसे डराधमका कर इसे कारोबार बना लिया. विरोध करने पर पति दूसरों के साथ किए गए उस के सैक्स वीडियो परिवार को दिखाने की धमकी दे दी. एक रोज पानी सिर से ऊपर तब चला गया, जब पति ने एक साथ 3 पुरुषों के साथ सैक्स करने के लिए भेज दिया. अप्राकृतिक सैक्स की पीड़ा से उस का शरीर जितना जख्मी हुआ, उस से कहीं अधिक उस का अंतरमन पीडि़त हो गया. और उस ने पति के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दी.

रमन्ना ने यह भी बताया कि उस जैसी कई पत्नियों को उन की इच्छा के विरुद्ध ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया, जो आत्महत्या कर सकती हैं. यहां तक कि उन पर ऐसा करने के लिए जबरन दबाव बनाया जाता है. इस स्तर पर जांच में पुलिस ने भी पाया कि डाक्टरों और वकीलों के अलावा कई पेशेवर इन सोशल मीडिया ग्रुप में शामिल थे और उन्होंने अपनी फरजी पहचान बना रखी थी. इन में से कई ग्रुप में 5,000 से अधिक सदस्य शामिल थे, जहां से ग्राहक मिलते थे. सभी फेक अकाउंट के साथ जुड़े हुए थे. इन में सिंगल लोगों को दूसरे सदस्यों की पत्नियों को शेयर करने के लिए मोटी रकम देनी पड़ती थी.

केरल के लिए वाइफ स्वैपिंग का मामला कोई नया नहीं है. इस के पहले भी साल 2013 में नेवी अफसरों की पत्नियों की अदलाबदली के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. यह घटना साल 2012 की है, जब एक लेफ्टिनेंट की पत्नी ने पति और सीनियर अफसर पर सैक्सुअल-मेंटल हैरेसमेंट और वाइफ स्वैपिंग के गंभीर आरोप लगाए थे. हालांकि बाद में कोई पुख्ता सबूत नहीं मिलने की वजह से मामला शांत पड़ गया था. दरअसल अपने पति को बचाने के लिए कोई भी महिला किसी और के खिलाफ मुंह नहीं खोल पाती है. लेकिन इस बार के नए मामले में पूरी तरह से एक बड़ा गिरोह सक्रिय हो चुका था. केरल में यह सब पिछले 3 सालों से चल रहा था.

बौक्स एक नजर वाइफ स्वैपिंग पर वाइफ स्वैपिंग ही बीवियों की अदलाबदली है, जो पतिपत्नी की रजामंदी से होता है. सैक्स के दौरान बीवियां बदलने का चलन गैरकानूनी और गैर सामाजिक हो कर भी छिपे रूप में बना हुआ है. अब लोगों ने इसे पैसा कमाने का एक जरिया भी बना लिया है. इस में सैक्शुअल रिलेशनशिप बनाने के लिए बीवियों को एक रात या फिर कुछ रातों के लिए अदलाबदली कर लिए जाते हैं. इसे अपनाने के कई तरीके अपनाए जाते हैं, जिस में लकी ड्रा महत्त्वपूर्ण होता है. इस के लिए कपल एक ही जगह पर जुटते हैं और अपनीअपनी गाडि़यों की चाबी एक जगह डाल देते हैं. फिर अंधेरे में सब एकएक कर चाबी उठाते हैं. ऐसे में हर किसी के हाथ में किसी और की चाबी आ जाती है.

जिसे जो चाबी हाथ लगती है वह उस की बीवी के साथ सैक्स करने के लिए आजाद होता है. इसी तरह से हर व्यक्ति दूसरे की बीवी को ले कर अलगअलग कमरों में चले जाते हैं. कुछ मामले में यह खेल एक ही हाल में एक साथ ग्रुप सैक्स के रूप में भी होता है. मजे की बात यह है इस के लिए बीवियां भी पहले से मन बनाए होती हैं.

इस से जुड़े लोगों का तर्क होता है कि ऐसा कर वे एकदूसरे की सैक्शुअल डिजायर को पूरी करते हैं. कुछ कपल्स का मानना है कि इस से उन के वैवाहिक जीवन की नीरसता में ताजगी वापस आ जाता है. दोनों में इस बात का कोई मलाल नहीं होता है कि दूसरे की पार्टनर के साथ सैक्स कर चुके हैं. इसे वे प्यार के नजरिए से नहीं, बल्कि सैक्स की अनुभूति के रूप में लेते हैं. इसे वैसे लोगों के लिए वरदान कहा जाता है, जो कभी एक वक्त में एक रिलेशन में नहीं रह पाते हैं.

बताया जाता है कि वाइफ स्वैपिंग की शुरुआत 16वीं सदी से बताई जाती है. सब से पहले जौन डी और एडवर्ज केल ने वाइफ स्वैपिंग की थी. ये दोनों ही ब्लैक मैजिक करते थे या कहें खुद को सेल्फ डिक्लेयर्ड स्पिरिट मीडियम बताते थे. इस स्वैपिंग में जौन की पत्नी जेन प्रेगनेंट भी हो गई थी. अधिकतर पश्चिमी देशों में यह आम बात हो चुकी है. भारत में इसे यौन अपराध की श्रेणी में रखा गया है. खासकर  भारतीय समाज में तो यह किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है. चाहे आपसी रजामंदी हो या नहीं.

वाइफ स्वैपिंग को यदि एक शादीशुदा महिला की इच्छा के बगैर कराया जाए और एक से अधिक लोगों के साथ संबंध बनाने पर मजबूर किया जाए तो मजबूर कराने वाले लोगों पर आईपीसी की धारा 323, 328, 376, 506 के तहत केस दर्ज किया जाता है. यदि उत्पीडि़त महिला की आपबीती पुलिस नहीं सुने, तो 156 (3) सीआरपीसी में जुडीशियल मजिस्ट्रैट के सामने एप्लिकेशन दे कर ऊपर दी गई धाराओं में एफआईआर दर्ज कराने के आदेश दिए जा सकते हैं.

इस मामले में पति पर रेप की धारा (376 आईपीसी) छोड़ कर बाकी सभी धाराओं में काररवाई की जा सकती है. सारे अपराध गैरजमानती होते हैं और इन अपराधों में महिला के सिर्फ यह कहने पर कि उस के साथ बिना सहमति के जोरजबरदस्ती से संबंध बनाए गए हैं, उस की गिरफ्तारी की जा सकती है. ऐसे अधिकतर मामलों में यह एक ट्रायल का विषय होता है, जिस में गवाही और क्रौस एग्जामिनेशन के बाद अदालत आरोपियों को सजा दे सकती है, या फिर सजा दे कर बरी भी कर सकती है.

उदाहरण के लिए यदि स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के लिए दंड के संबंध में 328 आईपीसी का इस्तेमाल होता है, जिस में नशीले पेय की मदद से महिला से शारीरिक संबंध स्थापित किया गया हो तो अधिकतम 10 साल तक की सजा और जुरमाना किया जा सकता है. इसी तरह से 376डी आईपीसी में गैंगरेप के मामलों में सजा मिलती है. इस कृत्य में शामिल हर व्यक्ति को न्यूनतम 20 साल तक की सजा मिल सकती है. Crime Story