विहान अपहरण केस : औपरेशन सी रिवर ऐसे हुआ कामयाब – भाग 3

डीसीपी डा. नाइक ने अपहृत हुए विहान को सहीसलामत बरामद करने की सूचना संयुक्त आयुक्त आलोक कुमार को देते हुए कहा कि सर औपरेशन ‘सी रिवर’ सक्सेसफुल. यह खबर मिलते ही आलोक कुमार खुश होते हुए बोले, ‘‘वैल डन.’’

पुलिस को अपहरण का यह केस खोलने में भले ही 12 दिन लग गए लेकिन इस में सब से बड़ी सफलता यह रही कि विहान को पुलिस ने सहीसलामत बरामद कर लिया और अपहर्त्ता भी पकड़े गए.

5 वर्षीय विहान को बरामद करने के बाद पुलिस डाक्टरी जांच के लिए उसे जीटीबी अस्पताल ले गई. डाक्टरों ने विहान के कई तरह के टेस्ट किए. उधर डीसीपी ने रात 1 बज कर 5 मिनट पर विहान के दादा अशोक गुप्ता को फोन किया, ‘‘मैं डीसीपी राम नाइक बोल रहा हूं. बच्चा मिल गया है.’’

यह सूचना पाते ही अशोक गुप्ता चहक उठे. उन्होंने तुरंत अपने बेटे सन्नी और बहू शिखा को बताया तो उन के चेहरे खिल गए. मारे खुशी के शिखा की आंखों में आंसू भर आए. इस के बाद शिखा ने उसी समय यह जानकारी अपने मायके वालों को दे दी. घर के सभी लोग जीटीबी अस्पताल पहुंच गए. शिखा ने बेटे को देखते ही उसे उठा कर सीने से चिपका लिया.

विहान भी मां की गोद में आ कर खूब रोया. रोते हुए वह बोला, ‘‘अंकल और आंटी बहुत गंदे थे. अंकल शराब पीते थे. एक दिन उन्होंने मुझे थप्पड़ भी मारा था.’’

औपरेशन सी रिवर में एक अपहर्त्ता रवि मारा गया था, जबकि नितिन शर्मा और पंकज गिरफ्तार किए जा चुके थे. पंकज घायल हो गया था. पुलिस ने उसे जीटीबी अस्पताल में भरती करा दिया था. 7 फरवरी, 2018 को उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गई. पुलिस ने दोनों बदमाशों से विहान अपहरण के बारे में पूछताछ की तो चौंकाने वाली जानकारी मिली. पता चला कि इन बदमाशों ने उस के अपहरण की साजिश 6 महीने पहले रची थी.

मास्टरमाइंड निकला नितिन शर्मा

इस पूरे मामले का मास्टरमाइंड 28 वर्षीय नितिन कुमार शर्मा था, जो उत्तरपूर्वी दिल्ली के गोकुलपुरी का रहने वाला था. संस्थागत रूप से उस ने 10वीं तक पढ़ाई की थी. इस के बाद वह ओपन स्कूल से 12वीं की पढ़ाई कर रहा था. उसे बनठन कर रहने का शौक था. घर वाले कब तक उस के शौक पूरा करते, लिहाजा वह यारदोस्तों से पैसे ले कर अपने खर्चे पूरे करने लगा.

नितिन के पिता ममराज पिछले 30 सालों से ढाबा चला रहे थे. जब नितिन पर कर्ज बढ़ने लगा तो वह अपने पिता के ढाबे पर बैठने लगा. कई साल पहले ममराज परिवार से अलग हो गए तो नितिन अपने भाई नवीन के साथ ढाबा चलाने लगा. नवीन अपनी मां के साथ यमुना विहार में रहता था, जबकि नितिन पत्नी के साथ गोकुलपुरी में.

ढाबे का काम जम गया तो अच्छी आमदनी होने लगी. नितिन धीरेधीरे लोगों का कर्ज चुकाने लगा. करीब एक साल से उस के ढाबे पर गोकुलपुरी का रहने वाला पंकज भी काम करने लगा था. 21 साल का पंकज दिन में उस के ढाबे पर काम करता और कभी शादीपार्टी वगैरह में उसे वेटर का काम मिल जाता तो रात में वह वेटर का काम भी कर लेता था.

वेटर का काम उसे गोकुलपुरी के ही रहने वाले रवि के पिता के सहयोग से मिलता था. उस के पिता वेटर सप्लाई का काम करते थे. इस तरह रवि से भी उस की दोस्ती हो गई थी. पंकज नितिन का अच्छा दोस्त था. बाद में उस की रवि से भी दोस्ती हो गई थी. ढाबे से नितिन को अच्छी कमाई हो ही रही थी. उस कमाई को नितिन अपने दोस्तों के साथ पार्टी में खर्च कर देता था. इस के अलावा नितिन की कई गर्लफ्रैंड थीं, उन पर भी वह खूब खर्च करता था.

अंधाधुंध खर्च करने की वजह से नितिन पर कर्ज और बढ़ने लगा. बाद में उस के पास लोग तगादे के लिए आने लगे. उन से बचने के लिए वह पूरे समय ढाबे पर भी नहीं बैठ पाता था, जिस से उस की आमदनी दिनोंदिन कम होती गई. एक दिन नितिन ने अपने दोस्तों पंकज और रवि के साथ बात की कि आमदनी कैसे बढ़ाई जाए. दोनों दोस्तों ने अलगअलग सुझाव दिए, जो नितिन को पसंद नहीं आए.

सोचसमझ कर किया विहान को टारगेट

नितिन कोई ऐसा काम करना चाह रहा था, जिस से एक ही झटके में उसे इतनी कमाई हो जाए जिस से कर्ज चुकाने के बाद बचे पैसों से वह कोई ढंग का बिजनैस शुरू कर सके. इस पर पंकज ने किसी अमीर घर के बच्चे का अपहरण करने का सुझाव दिया. पंकज का यह सुझाव नितिन की समझ में आ गया. इस के बाद वे ऐसी आसामी के बारे में सोचने लगे, जिस के बच्चे का अपहरण कर के फिरौती में 50-60 लाख रुपए लिए जा सकें.

नितिन अपने ढाबे का सामान अशोक गुप्ता की दुकान से लाता था, जो न्यू मौडर्न शाहदरा की गली नंबर-3 में रहते थे. वह अशोक गुप्ता के पूरे परिवार को अच्छी तरह जानता था. गुप्ता परिवार आर्थिक रूप से संपन्न था. उन के पोतेपोती दोनों स्कूल जाते थे.

दोनों बच्चे विवेकानंद स्कूल में पढ़ते थे. स्कूल की बस दोनों बच्चों को लेने आती थी. तीनों ने अशोक के 4 साल के पोते विहान का अपहरण करने का इरादा बना लिया. इस से पहले कि वे योजना को अंजाम देते, दिसंबर, 2017 में पंकज गाड़ी चोरी के एक मामले में जेल चला गया.

करीब 10 दिन बाद पंकज जमानत पर जेल से बाहर आया, तब तक नितिन ने सारी प्लानिंग कर ली थी कि कहां से बच्चे को उठाना है और अपहरण के बाद उसे कहां रखना है.

नितिन ने करीब 6 महीने पहले शालीमार सिटी के इबोनी अपार्टमेंट में एक फ्लैट साढ़े 10 हजार रुपए महीने के किराए पर ले लिया था. उसी फ्लैट पर वह दोस्तों के साथ अय्याशी करता था. यह फ्लैट पटपड़गंज स्थित तरंग अपार्टमेंट में रहने वाली सुशीला का था. नितिन ने फ्लैट मालकिन को बताया था कि उस का गांधीनगर में रेडीमेड गारमेंट का कारोबार है.

इलाके की अच्छी तरह रैकी करने के बाद 25 जनवरी, 2018 को रवि और पंकज वारदात को अंजाम देने के लिए निकले. नियत समय पर विहान स्कूल बस में अपनी 7 साल की बहन के पास बैठ गया. उस समय स्कूल बस शिवम डेंटल क्लीनिक के पास खड़ी थी. रवि और पंकज मोटरसाइकिल द्वारा बस के पास पहुंच गए, लेकिन वहां भीड़भाड होने की वजह से उन्होंने वारदात को अंजाम नहीं दिया.

अतीक अहमद : खूंखार डौन की बेबसी – भाग 2

उस के बाद पुलिस ने उसे छोड़ दिया. लेकिन ऐसे ही नहीं. अतीक भेष बदल कर अपने एक साथी के साथ बुलेट से कचहरी पहुंचा. उस ने एक पुराने मामले की जमानत तुड़वा कर आत्मसमर्पण कर दिया और जेल चला गया. उस के जेल जाते ही पुलिस उस पर टूट पड़ी. उस पर एनएसए लगा दिया. इस से लोगों को लगा कि अतीक बरबाद हो गया है.

एक साल बाद वह जेल से बाहर आ गया. उसे कांग्रेसी सांसद का साथ मिल ही रहा था, जिस की वजह से वह जिंदा बचा था. इस बात से अतीक को पता चल गया था कि उसे अब राजनीति ही बचा सकती है. फिर उस ने किया भी यही.

1989 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होना था. अतीक अहमद ने इलाहाबाद पश्चिमी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पर्चा भर दिया. सामने उम्मीदवार के रूप में था चांदबाबा. चांदबाबा और अतीक में अब तक कई बार गैंगवार हो चुकी थी.

अपराध जगत में अतीक की तरक्की चांदबाबा को खल रही थी. चांदबाबा के आतंक से छुटकारा पाने के लिए आम लोगोें ने ही नहीं, पुलिस और राजनीतिक पार्टियों ने भी अतीक अहमद का समर्थन किया. परिणामस्वरूप चांदबाबा चुनाव हार गया. इस तरह अतीक अहमद पहली बार विधायक बन गया.

विधायक चुने जाने के कुछ ही महीनों बाद अतीक अहमद ने चांदबाबा की भरे बाजार हत्या करा दी. इस के बाद चांदबाबा के पूरे गैंग का सफाया हो गया. कुछ मारे गए तो कुछ भाग गए. जो बचे वे अतीक के साथ मिल गए.

अब इलाहाबाद पर एकलौते डौन अतीक अहमद का राज हो गया. अतीक अहमद ने अपना एक पूरा गैंग बना लिया. उसे राजनीतिक सपोर्ट भी मिल रहा था. विधायक बनने के बाद तो व्यापारियों का अपहरण, रंगदारी की वसूली, सरकारी ठेके लेना अतीक अहमद का धंधा बन गया.

अतीक अहमद का इलाहाबाद में ऐसा आतंक छा गया था कि इलाहाबाद पश्चिमी सीट से लोग चुनाव में विधायकी का टिकट लेने से खुद ही मना कर देते थे.

राजनीति में आने के बाद ज्यादातर अपराधी धीरेधीरे अपराध करना छोड़ देते हैं, पर अतीक के मामले में इस का उल्टा था. अतीक भले ही नेता बन गया था, लेकिन उस ने अपनी माफिया वाली छवि नहीं बदली.

सफेदपोश बनने के बाद उस के द्वारा किए जाने वाले अपराध और बढ़ गए थे. राजनीति की आड़ में वह अपना आपराधिक साम्राज्य और मजबूत करता रहा. यही वजह है कि उस पर दर्ज होने वाले ज्यादातर आपराधिक मुकदमे विधायक, सांसद रहते हुए ही दर्ज हुए.

वह अपने विरोधियों को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ता था. कोई एक अपराध नहीं था उस का. 1999 में चांदबाबा की हत्या, 2002 में नस्सन की हत्या, 2004 में मुरली मनोहर जोशी के करीबी बताए जाने वाले भाजपा नेता अशरफ की हत्या, 2005 में राजू पाल की हत्या उस के खाते में दर्ज हुईं.

जो भी अतीक के खिलाफ सिर उठाता था, वह मारा जाता था. इलाहाबाद के कसारी मसारी, बेली गांव, चकिया, मरियाडीह और धूमनगंज इलाके में उस की अक्सर गैंगवार होती रहती थी.

विधायक बनने के बाद अतीक ने अपराध करना और बढ़ा दिया था. 1991 और 1993 के विधानसभा के चुनाव में भी अतीक अहमद निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधायक चुना गया.

1996 के विधानसभा के चुनाव में मुलायम सिंह ने अतीक अहमद को अपनी समाजवादी पार्टी से टिकट दिया. इस तरह चौथी बार अतीक अहमद समाजवादी पार्टी से फिर विधायक चुना गया.

बाद में किसी वजह से अतीक अहमद के समाजवादी पार्टी से संबंध बिगड़ गए तो 1999 में अतीक अहमद अपना दल में शामिल हो गया. सोनेलाल पटेल द्वारा बनाई गई पार्टी अपना दल में अतीक अहमद 1999 से 2003 तक इलाहाबाद का पार्टी का जिला अध्यक्ष रहा. 1999 में उस ने अपना दल से चुनाव लड़ा, परंतु हार गया. उस के बाद 2003 में फिर एक बार अपना दल के टिकट से अतीक अहमद पांचवीं बार विधायक बना.

विदेशी गाडि़यों और हथियारों का शौक

जिस सांसद ने अतीक पर हाथ रखा था, वह इलाहाबाद के बड़े कारोबारी थे. कहते हैं कि उस समय शहर में सिर्फ उन्हीं के पास निसान और मर्सिडीज जैसी विदेशी गाडि़यां थीं. लेकिन जल्दी ही अतीक को भी इस का चस्का लग गया. विधायक बनने के कुछ ही दिनों बाद उस ने भी विदेशी गाड़ी खरीद ली. जल्दी ही उस का नाम सांसद से भी बड़ा हो गया.

सांसद को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने विदेशी गाडि़यां रखनी ही छोड़ दीं. गाडि़यों के बाद नंबर था हथियारों का. इस तरह के आदमी को तो वैसे भी हथियारों की जरूरत होती है. उस ने विदेशी हथियार खरीदने शुरू किए. उस ने विदेशी गाडि़यों का तो पूरा काफिला ही खड़ा कर दिया था.  अतीक चकिया तक ही सीमित नहीं रहना चाहता था. इसलिए वह विरोधियों को खत्म कर देता था.

अतीक अहमद का एक रहस्य और भी दिलचस्प है. वह चुनाव के दौरान चंदा किसी को फोन कर के या डराधमका कर नहीं मांगता था. वह शहर के पौश इलाके में बैनर लगवा देता था कि आप का प्रतिनिधि आप से सहयोग की अपेक्षा रखता है. इस के बाद लोग खुद ही अतीक के औफिस में चंदा पहुंचा देते थे.

अगर अतीक को अपने गुर्गों को कोई संदेश देना होता तो वह बाकायदा अखबारों में विज्ञापन निकलवा देता कि क्या करना है और क्या नहीं करना.

उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी. 2004 में लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई. मुलायम सिंह को बाहुबली नेताओं की जरूरत थी. मुलायम सिंह के कहने पर अतीक अहमद फिर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गया तो इलाहाबाद की फूलपुर संसदीय सीट से सपा ने अतीक अहमद को उम्मीदवार बनाया. अतीक अहमद चुनाव जीत गया और सांसद बन गया.

अतीक अहमद के सांसद बन जाने पर इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा की सीट खाली हो गई. इस पर अतीक अहमद ने अपने भाई अशरफ को चुनाव लड़ाया. अशरफ के सामने एक समय अतीक अहमद का ही दाहिना हाथ रहे राजू पाल को बहुजन समाज पार्टी ने उम्मीदवार बनाया. उस समय राजू पाल पर 25 मुकदमे दर्ज थे. इस चुनाव में अतीक का भाई अशरफ 4 हजार वोटों से चुनाव हार गया और राजू पाल चुनाव जीत गया.

राजू पाल की यह जीत अतीक अहमद से हजम नहीं हुई और परिणाम आने के महीने भर बाद यानी नवंबर, 2004 में राजू पाल के औफिस के पास बमबाजी और फायरिंग हुई. दिसंबर में उस की गाड़ी पर फायरिंग हुई. पर इन दोनों हमलों मे वह बच गया.

25 जनवरी, 2005 को राजू पाल की कार पर एक बार फिर हमला हुआ. इस में राजू पाल को कई गोलियां लगीं. हमलावर फरार हो गए. गोलीबारी में घायल राजू पाल के साथी उसे टैंपो से अस्पताल ले जा रहे थे तो हमलावरों को लगा कि राजू पाल अभी जिंदा है तो उस पर दोबारा हमला किया गया. इस बार उस पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई गईं. जब तक राजू जीवनज्योति अस्पताल पहुंचता, उस की मौत हो चुकी थी. उसे 19 गोलियां लगी थीं.

इस हत्या का एक कारुणिक पहलू यह था कि हत्या के 9 दिन पहले ही राजू पाल की शादी हुई थी. उस की पत्नी पूजा पाल ने अतीक, उस के भाई अशरफ, फरहान और आबिद समेत कई लोगों पर नामजद हत्या का मुकदमा दर्ज कराया.

दिल्ली में बार बालाओं की हुक्का, शराब और शबाब पार्टी

अगस्त माह के अंतिम हफ्ते में एक दिन दिल्ली के राजगढ़ एक्सटेंशन के रहने वाले मनु अग्निहोत्री के मोबाइल फोन की घंटी बजी. फोन रश्मि का था. उस ने अपनी खनकती आवाज में पूछा, ‘‘सर जी, काम कब से शुरू करवा रहे हो?’’

‘‘उम्मीद है अगले हफ्ते से… और सुन तुम्हें कितनी बार कहा है इस नंबर पर फोन मत किया कर.’’ मनु डपटते हुए बोला.

‘‘क्या करूं, मजबूरी में करना पड़ा. कोई काम नहीं है. कर्ज भी बहुत हो गया है.’’ रश्मि बोली.

‘‘ठीक है, ठीक है. तुम्हारे संपर्क में कितनी और लड़कियां हैं?’’ मनु ने पूछा.

‘‘10-12 तो हो ही जाएंगी.’’

‘‘सब को तैयार कर लो. अगले हफ्ते से रेस्टोरेंट और बार खुलने वाले हैं. मैं ने पता कर लिया है.’’ मनु बोला.

‘‘वही पहले वाला काम करना है?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘हांहां, वही. डांसिंग का है, साथ में थोड़ी शराब भी परोस देना. नशेडि़यों का दिल बहला देना.’’

‘‘उस से अधिक कुछ और नहीं न! कितने पैसे मिल जाएंगे?’’ रश्मि तपाक से पूछ बैठी.

‘‘तुम सवाल बहुत करती हो. अभी तो मैं इंतजाम में लगा हुआ हूं.’’ मनु ने समझाया.

‘‘फिर भी कुछ तो बताओ, तभी तो लड़कियों को तैयार रखूंगी.’’

‘‘सभी फ्रैश होनी चाहिए. एकदम से झकास. लेटेस्ट मौडल की. पढ़ीलिखी दिखने वाली. समझ गई न.’’ मनु बोला.

‘‘मेरे पास अभी एक से बढ़ कर  एक मौडल हैं, उन के सामने हीरोइनें और प्रोफैशनल मौडल फेल हो जाएंगी.’’ रश्मि चहकती हुई बोली.

‘‘चल, चल. अब फोन बंद कर, लगता है किसी क्लाइंट का फोन आ रहा है. बाद में बात करता हूं.’’ यह कहते हुए मनु ने आने वाले काल का फोन रिसीव कर लिया.

‘‘हैलो कौन?… अरे तुम. मैं तुम्हारे फोन का ही इंतजार कर रहा था. तुम ने नया नंबर ले लिया क्या? बताओ कुछ इंतजाम हुआ.’’ मनु ने जिज्ञासा से पूछा.

‘‘हां, हो गया है, लेकिन सौरी यार पहाड़गंज या कनाट प्लेस में नहीं हो पाया.’’ फोन करने वाला मनु का खास दोस्त था. उस के भरोसे मनु के कई कामधंधे चलते थे. वह जिस काम में लगता था, उसे पूरा कर के ही दम लेता था. उसे मनु ने एक ऐसा रेस्टोरेंट रेंट पर लेने का काम सौंपा था, जहां वह पार्टियां आर्गनाइज कर सके. उसी बारे में उस के दोस्त ने फोन किया था.

मनु ने उस से उत्सुकता से पूछा, ‘‘तो कहां इंतजाम किया है?’’

‘‘शाहदरा के पास कृष्णा नगर में. अच्छा रेस्टोरेंट है… और हम लोगों के काम के हिसाब से सेफ भी.’’ मनु को बताया.

‘‘नाम क्या है? लोकेशन कैसी है? …आसपास का माहौल किस तरह का है? ‘‘द टाउंस कैफे नाम का रेस्टोरेंट मंदिर मार्ग पर लाल क्वार्टर में स्थित है. वहीं पर फर्स्ट फ्लोर पर अपना काम चलेगा. वहां सब कुछ सही है. लेकिन एक ही समस्या है कि उस के पास अभी पूरे कागज नहीं है.’’

‘‘तो कैसे होगा?’’ मनु ने पूछा.

‘‘अरे वह सब तो उस के मालिक का मसला है, हमें क्या? हमें रेंट देना है.’’ दोस्त के कहने पर मनु ने आगे के अपने इंतजाम के बारे में जानकारी दी. बातोंबातों में लड़कियों के बारे में भी थोड़ी बातें बता दीं.

‘‘तू तो इस का बड़ा खिलाड़ी है. तो फिर बुकिंग शुरू कर दूं?’’ कहते हुए मनु का दोस्त हंसने लगा.

मनु के धंधे में जितने भी लोग जुड़े हुए थे, उन से मनु के दोस्त की तरह ही संबंध रहते थे. मुन्ना भी उस के खास दोस्तों में से एक था.

एक दिन मुन्ना दिल्ली के कनाट प्लेस में स्थित एक छोटे से रेस्टोरेंट में अपने दोस्त अमित के साथ डिनर कर रहा था. अमित केरल का रहने वाला था. वह किसी काम से दिल्ली आया था. उसी दौरान अमित ने उस से कहा, ‘‘यार, मुझे मिनिस्ट्री से एक प्रोजैक्ट पास कराना है.’’

मुन्ना ने उसे आश्वासन दिया था, ‘‘तू चिंता क्यों कर रहा है, हो जाएगा. क्योंकि मिनिस्ट्री में मेरी अच्छी जानपहचान है. मैं तेरा काम करा दूंगा.’’ मुन्ना ने भरोसा दिया.

‘‘जितनी जल्द हो सके, करा दे. वैसे एक बात बताऊं, जिस अधिकारी के हाथ में मेरा काम है, वह अय्याश किस्म का है. इसलिए उस के लिए शराब के साथसाथ कुछ और शबाब का इंतजाम भी करना होगा.’’

‘‘अभी तेरे सामने बात करता हूं.’’ यह कहते हुए मुन्ना ने बाएं हाथ से टेबल पर रखे अपने मोबाइल से एक नंबर पर काल लगाई. वह नंबर मनु का था.

काल रिसीव होने के बाद तुरंत स्पीकर औन कर दिया.  बोला, ‘‘हैलो मुन्ना भाई, कैसे हो?’’

उधर से आवाज आई, ‘‘अरे भाई तुम्हें मैं ने कितनी बार समझाया है स्पीकर औन कर बातें मत किया करो.’’

‘‘सौरी यार, दरअसल खाना खा रहा था.’’ इसी के साथ मुन्ना ने स्पीकर बंद किया और बाएं हाथ से ही फोन को कान से लगा लिया.

‘‘अरे मैं पूछ रहा था कि तुम्हारा बार में पार्टी वाला काम शुरू हुआ या नहीं?’’

‘‘बस, एक दिन और इंतजार कर लो.’’

‘‘एक क्लाइंट से एडवांस ले लूं. हम 3 लोग रहेंगे. बाकी सब ठीक है न.’’ मुन्ना बोला.

‘‘उसे रेडी कर ले. बाकी बाद में बात करता हूं.’’ मनु ने कहा.

मनु की तरफ से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद मुन्ना अमित को देख कर बोला, ‘‘लीजिए, मैं ने आधे मिनट में इंतजाम कर दिया, और बोलो.’’

सब कुछ सही चलने लगा. उस ने बर्थडे पार्टी के नाम पर ग्राहकों को हुक्का, शराब और डांस के नाम पर बुलाना शुरू कर दिया था. बार में कुछ लड़कियों को देह दिखाने वाली ड्रैस पहना कर शराब परोसने के लिए लगा दिया गया था, जबकि कुछ लड़कियां म्यूजिक की धुन पर डांस करती थीं.

इस के लिए बाकायदा डांसिंग फ्लोर बनाई थी. चारों तरफ से डांसर पर रंगीन रोशनियां बरस रही थीं, उस में लड़कियों के उभार, सुडौल जांघें, चिकनी कमर, अधखुली पीठ,

सपाट पेट की नाभि की झलक दिख जाती थी. एकदो लड़कियों ने नाभि पर झुमकेनुमा जेवर लटका रखे थे. लड़कियां बीचबीच में उस की ओर अंगुली से अश्लील इशारे कर शराब पी रहे ग्राहकों को बुला लेती थीं.

2 सितंबर, 2021 को भी सामने की दीवार पर बड़ेबड़े उभरे सुनहरे अक्षरों में ‘हैप्पी बर्थडे’ लिखा हुआ था, लेकिन जन्मदिन किस का था, पता नहीं. कहीं किसी भी टेबल पर केक काटे जाने का नामोनिशान भी नहीं था. उस की जगह हुक्के जरूर रखे थे. टेबल के चारों ओर 2-3 की संख्या मे बैठे ग्राहक हुक्के की पाइप एकदूसरे के साथ शेयर कर रहे थे.

बीचबीच में शराब परोसने वाली लड़कियां वहां से गुजर जाती थीं. कुछ समय बाद कुछ ग्राहक भी डांसिंग फ्लोर पर पहुंच चुके थे. उन के आते ही एक लड़की ने अपनी मादक अदा से नाचना शुरू कर दिया था.

एक ग्राहक उस की कमर में हाथ डालने वाला ही था कि दूसरी लड़की ने उस का हाथ पकड़ कर प्यार से अपने चारों ओर घुमा लिया. कुल मिला कर पूरा दृश्य किसी 80-90 के दशक की फिल्मों जैसा ही दिख रहा था.

इस पार्टी की बात यहीं खत्म नहीं हुई. इस की भनक कृष्णानगर थाने के ड्यूटी औफिसर एसआई इमरोज को भी लग गई थी. उन्हें पता चला कि लाल क्वार्टर मार्केट में कुछ लड़के और लड़कियां शराब की पार्टी कर रहे हैं.

ड्यूटी औफिसर ने यह जानकारी थानाप्रभारी रजनीश कुमार को दी. चूंकि मामला गंभीर था, इसलिए थानाप्रभारी ने एसीपी डा. चंद्रप्रकाश को भी इस से अवगत करा दिया.

इस के बाद थानाप्रभारी रजनीश कुमार एसआई नरेश कुमार, जयदीप, अरुण भाटी आदि के साथ रेस्टोरेंट पहुंच गए. उन्होंने देखा कि रेस्टारेंट के फर्स्ट फ्लोर पर कुछ लड़केलड़कियां एक साथ बैठे थे. एक बार काउंटर लगा था. कुछ लोग शराब पी रहे थे. टेबलों पर हुक्के भी रखे हुए थे. और लोग उस की पाईप से कश लगा रहे थे.

कुछ लोगों से पूछने पर उन्होंने बताया कि वे पार्टी सेलिब्रेट करने आए थे. वे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे थे. लेकिन डांस करती लड़कियां, हुक्के और शराब कुछ और ही कहानी बयां कर रही थीं.

इस के बाद रेस्टोरेंट में पुलिस टीम ने छापेमारी कर दी. छापेमारी में अवैध रूप से शराब व हुक्के की पार्टी का गंभीर मामला सामने आया. पुलिस ने मौके से हुक्के और शराब की बोतलें बरामद कीं.

साथ ही संचालक और कर्मचारियों के साथ ही मौके पर मौजूद कुल 32 लोगों को गिरफ्तार कर लिया, जिन में 8 लड़कियां थीं. पुलिस सभी को थाने ले आई. उन से की गई पूछताछ में पता चला कि संचालक मनु अग्निहोत्री ने पार्टी दी थी, जिस में कर्मचारी और उस के जानकार शामिल हुए थे.

पुलिस ने वहां से भारी मात्रा में शराब की बोतलें, हुक्के आदि बरामद किए. इस की सूचना पुलिस को रात के 2 बजे मिली थी. इन में से कोई भी कोरोना नियमों का पालन नहीं कर रहा था. किसी के चेहरे पर मास्क नहीं था. पुलिस के अनुसार, संचालक मनु से शराब परोसने, हुक्का बार चलाने का लाइसैंस और देर रात तक पार्टी का अनुमति पत्र दिखाने को कहा गया तो उस के पास ये दस्तावेज नहीं थे.

इस के बाद पुलिस ने रेस्तरां में मौजूद सभी लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 188, 269, 270, 285 के तहत गिरफ्तार कर सभी 32 लोगों के कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. बताया जाता है कि मनु अग्निहोत्री के दिल्ली के पहाड़गंज और कनाट प्लेस में कई रेस्तरां हैं.

रहस्यों में उलझी पुलिस अधिकारी की मर्डर मिस्ट्री – भाग 2

2 जून, 2010 में अभय कुरुंदकर की बदली स्थानीय आर्थिक अपराध शाखा में पीआई के पद पर कर दी गई. यहीं पर अभय कुरुंदकर की मुलाकात एपीआई अश्विनी बेंद्रे से हुई और वह उस का पहली ही नजर में उस का दीवाना हो गया. कुछ ही दिनों में उसे अश्विनी बेंद्रे की कमजोरी पता लग गई.

वह उन दिनों जिस वियोग की ज्वाला में जल रही थी, उस पर अभय कुरुंदकर ने धीरेधीरे मरहम लगाना शुरू किया. उस का मरहम काम कर गया. दोनों को जब मालूम हुआ कि वह एक ही जिले के रहने वाले हैं तो नजदीकियां और बढ़ गईं. धीरेधीरे उन के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी.

भ्रष्ट अफसर की सोच हमेशा गलत ही चलती है

उन दिनों अश्विनी बेंद्रे सांगली से रोजाना अपनी ड्यूटी के लिए अपडाउन किया करती थी, जिस के कारण उन्हें काफी परेशानी होती थी. अभय कुरुंदकर ने सहानुभूति दिखाते हुए क्राइम ब्रांच औफिस के करीब ही यशवंतनगर में अपनी पहचान के एक राजनैतिक कार्यकर्ता की मदद से अश्विनी बेंद्रे को एक मकान किराए पर दिलवा दिया और खुद भी पास के विश्राम बाग में रहने लगा. कुरुंदकर को सरकारी गाड़ी मिली हुई थी, लेकिन वह सरकारी गाड़ी का उपयोग न कर के अपनी खुद की कार से औफिस आताजाता था. वह अश्विनी को भी अपने साथ कार में बिठा कर औफिस ले आता था.

अपने से 14 साल छोटी अश्विनी बेंद्रे को 55 वर्षीय पीआई अभय कुरुंदकर ने बड़ी ही चतुराई से अपने प्रेमजाल में उलझा लिया था. शादी का वादा कर वह उस की भावनाओं से खेलने लगा. जबकि वह स्वयं एक शादीशुदा और 2 बेटोंबेटियों का पिता था. उधर अश्विनी बेंद्रे एक बच्ची की मां होते हुए भी परकटे परिंदे की तरह पीआई अभय कुरुंदकर की बांहों में गिर गई.

धीरेधीरे वह अपने पति राजू गोरे से विमुख होने लगी. कह सकते हैं कि वह अभय कुरुंदकर के साथ जिंदगी के नए ख्वाब देखने लगी थी. इस बात की जानकारी जब राजू गोरे को हुई तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. पहले तो राजू गोरे को इस बात का यकीन ही नहीं हुआ, क्योंकि वह अपनी पत्नी को काफी समझदार और सुलझी हुई मानता था, लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो राजू गोरे और परिवार वालों के होश उड़ गए थे.

पहले तो राजू गोरे और अश्विनी बेंद्रे के परिवार वालों ने अश्विनी को काफी समझाया, लेकिन वह पीआई अभय कुरुंदकर  के प्यार में डूबी हुई थी. इसलिए उस पर ससुराल वालों की बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. वह अभय कुरुंदकर से लवमैरिज करने के लिए तैयार थीं. बेटी पर मां के भटकने का कोई प्रभाव न पड़े, इसलिए राजू गोरे उस के पास से अपनी बेटी को ले गया. बेटी के जाने के बाद अश्विनी पूरी तरह आजाद हो गई.

वह अपने प्रेमी अभय कुरुंदकर के साथ ही रहने लगी. उस के साथ वह खुश थी लेकिन उस की यह खुशी अधिक दिनों तक कायम नहीं रही. उसे शीघ्र ही इस बात का पता चल गया कि वह चालाक और मक्कार किस्म का व्यक्ति है. उस का प्यार और शादी का वादा केवल एक छलावा था. शादी के नाम से वह चिढ़ जाता था. कभीकभी तो वह अश्विनी बेंद्रे से मारपीट तक कर बैठता था. अश्विनी के विरोध करने पर वह उसे और उस के पति को गायब करवा देने की धमकियां देता था.

अभय कुरुंदकर टौर्चर करता था अश्विनी बेंद्रे को

सन 2013 में अश्विनी बेंद्रे को अभय कुरुंदकर के टौर्चर से थोड़ी राहत तब मिली, जब अश्विनी का ट्रांसफर रत्नागिरि हो गया. अभय कुरुंदकर भी ठाणे जिले के पालघर स्थित नवघर पुलिस थाने में चला गया. इस के बावजूद अभय कुरुंदकर ने अश्विनी का पीछा नहीं छोड़ा. उसे जब भी मौका मिलता, वह उस के पास पहुंच जाता था और उसे परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ता था.

अपने रसूख के दम पर वह अश्विनी और उस के परिवार के साथ कुछ भी कर सकता था. उस के डर से अश्विनी ने उस के खिलाफ सारे सबूत इकट्ठे करने शुरू कर दिए. अपने घर सीसीटीवी कैमरा भी लगवा लिया, जिस का सारा रिकौर्ड वह अपने लैपटाप में रखने लगी थी.

पालघर के नवधर पुलिस थाने में डेढ़ साल तक रहने के बाद अभय कुरुंदकर ने अपनी बदली क्राइम ब्रांच में करा ली थी. अब वह फिर से अश्विनी बेंद्रे के करीब आ गया था. अश्विनी उस के व्यवहार से तंग थी. वह उस से दूर रहने की कोशिश करने लगी. प्रमोशन होने के बाद वह भी एपीआई बन चुकी थी.

सन 2016 में अश्विनी बेंद्रे ने अपना ट्रांसफर ठाणे के नवी मुंबई कलंबोली स्थित कामोठे के ह्यूमन राइट्स कमीशन में करा लिया था. वह अपने परिवार वालों के बीच लौट आई थी. यह बात पीआई अभय कुरुंदकर को हजम नहीं हुई. वह अश्विनी से चिढ़ गया. इस का नतीजा यह हुआ कि एक दिन अचानक अश्विनी गायब हो गई.

18 अप्रैल, 2016 को अश्विनी बेंद्रे ने अपने परिवार वालों के साथ बाहर खाना खाने का प्रोग्राम बनाया. परिवार वाले उस का इंतजार करते रहे लेकिन वह नहीं आई. इस बीच उस का फोन भी बंद हो गया. लेकिन परिवार वालों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. उन का मानना था कि वह किसी इमरजेंसी काम में फंस गई होगी. लेकिन 15 दिनों के बाद घर वालों के पास ह्यूमन राइट्स कमीशन के औफिस से फोन आया. उन्होंने बताया कि अश्विनी बेंद्रे अपनी ड्यूटी पर नहीं आ रही है.

औफिस से अश्विनी के गायब होने की जानकारी मिलते ही पूरे परिवार में हड़कंप मच गया. अश्विनी बेंद्रे के पिता ने तुरंत नवी मुंबई कलंबोली पुलिस थाने में फोन कर के अश्विनी बेंद्रे की गुमशुदगी की सूचना दे दी.

उन्होंने कहा कि उन की पत्नी अस्पताल में भरती है और वह खुद थाने आने की स्थिति में नहीं हैं, इसलिए उन की बेटी की गुमशुदगी दर्ज कर के जरूरी काररवाई की जाए. यह जानकारी उन्होंने अपने बेटे आनंद बेंद्रे को भी दे दी. आनंद तुरंत अपनी गुमशुदा बहन की तलाश में जुट गया.

आनंद को उस की बहन अभय कुरुंदकर की ज्यादती के बारे में बताती रहती थी, इसलिए उस ने सीधेसीधे पीआई अभय कुरुंदकर पर बहन का अपहरण कर के उस की हत्या करने की आशंका जाहिर की. वह उस के खिलाफ सबूत भी इकट्ठा करने लगा. उस ने लैपटाप में रिकौर्डिंग और अन्य सबूत पुलिस को मुहैया करा दिए. चूंकि अभय कुरुंदकर पीआई था, इसलिए उस ने अपने प्रभाव से डेढ़ साल तक मामले को लटकवाए रखा.

ऊंची राजनीतिक पहुंच की वजह से अभय कुरुंदकर अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों को भी नहीं मानता था. वह अपने मन की करता था. 2010 से 2013 के बीच पीआई अभय कुरुंदकर आर्थिक अपराध शाखा में रहा था, तब उस ने कई मामलों की गोपनीय जानकारी लीक कर दी थी. इस बात की जानकारी जब तत्कालीन डीसीपी दिलीप सावंत को हुई तो उन्होंने 9 मई, 2013 को अभय के खिलाफ कोल्हापुर के स्पैशल डीजीपी और डीजीपी को जांच के लिए एक रिपोर्ट भेजी. लेकिन उस का कोई असर नहीं हुआ था.

पीआई अभय कुरुंदकर की जांच होने के बजाय उस का ट्रांसफर सांगली के तांसगांव थाने में कर दिया गया. लेकिन वह वहां नहीं गया बल्कि तत्कालीन गृहमंत्री आर.आर. पाटील से मिल कर अपना ट्रांसफर रद्द करवा लिया. डीसीपी दिलीप सावंत के बारबार यह रिपोर्ट देने के बावजूद पीआई अभय कुरुंदकर द्वारा विभाग की महत्त्वपूर्ण जानकारी बाहर जाती रही. उस के खिलाफ कोई काररवाई नहीं हुई.

मामला एक सीनियर पुलिस अफसर का था, अत: कलंबोली के थानाप्रभारी पोकरे ने इसे गंभीरता से लिया. उन्होंने उस की जांच शुरू कर दी. उन्होंने काफी हद तक इस मामले को हल भी कर लिया था, लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों के सहयोग के बिना मामला आगे नहीं बढ़ सका. 3 महीने का समय निकल जाने के बाद जब केस की जांच आगे नहीं बढ़ी तो अश्विनी बेंद्रे के घर वाले परेशान हो गए.

16 सितंबर, 2016 को आनंद बेंद्रे ने बहनोई राजू गोरे के साथ नवी मुंबई के कमिश्नर हेमंत नगराले से मुलाकात की. जरूरी काररवाई करने का आश्वासन देने के बजाय कमिश्नर हेमंत नगराले ने उन्हें यह कह कर डराया कि उन की जान को खतरा है, वे संभल कर रहें.

पुलिस कमिश्नर से उन्हें इस तरह की उम्मीद नहीं थी. उन की बातों से साफ जाहिर हो रहा था कि इस मामले को ले कर पुलिस गंभीर नहीं है. उन के इस रवैए से निराश हो कर अश्विनी बेंद्रे के घर वालों ने 8 अक्तूबर, 2016 को अदालत का दरवाजा खटखटाया.

विकास दुबे : नेताओं और पुलिसवालों की छत्रछाया में बना गैंगस्टर – भाग 2

1990 में गांव नवादा के चौधरियों ने विकास के पिता की बेइज्जती कर दी थी. उसे पता चला तो उस ने उन्हें उन के घर से निकालनिकाल कर पीटा. ऐसा कर के उस ने चौबेपुर क्षेत्र में अपनी दबंगई का झंडा बुलंद कर दिया.

करीब 20 साल पहले विकास ने मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के बुढ़ार कस्बे की रिचा निगम उर्फ सोनू से कानपुर में लव मैरिज की थी. रिचा के पिता और घर वाले इस शादी के खिलाफ थे. उन के विरोध करने पर विकास ने गन पौइंट पर शादी की. फिलहाल उस की पत्नी रिचा जिला पंचायत सदस्य थी.

बुलंद हौसलों के बीच 1991 में उस ने अपने ही गांव के झुन्ना बाबा की हत्या कर दी. इस हत्या का मकसद था बाबा की जमीन पर कब्जा करना.

इस के बाद विकास ने कौन्ट्रैक्ट किलिंग वगैरह शुरू की. उस ने 1993 में रामबाबू हत्याकांड को अंजाम दिया.

झगड़ा, मारपीट, लोगों से रंगदारी वसूलना और कमजोर लोगों की जमीनों पर कब्जे करना उस का धंधा बन चुका था. उस के रास्ते में जो भी आता, वह उसे इतना डरा देता कि वह उस के रास्ते से हट जाता. अगर कहीं कुछ परेशानी होती तो हरिकृष्ण श्रीवास्तव का एक फोन उस का कवच बन जाता.

नेताओं की छत्रछाया में पला गैंगस्टर विकास

1996 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले हरिकृष्ण श्रीवास्तव ने बीजेपी छोड़ कर बीएसपी का दामन थाम लिया और उन्हें पार्टी ने चौबेपुर विधानसभा सीट से टिकट दे दिया. जबकि भाजपा ने संतोष शुक्ला को टिकट दिया. हरिकृष्ण श्रीवास्तव और भाजपा के संतोष शुक्ला के बीच तगड़ा मुकाबला हुआ.

इस चुनाव में विकास दुबे ने इलाके के एकएक प्रधान, ग्राम पंचायत और ब्लौक के सदस्यों को डराधमका कर अपने गौडफादर हरिकृष्ण श्रीवास्तव के पक्ष में मतदान करने को मजबूर कर दिया. इसी चुनाव के दौरान संतोष शुक्ला और विकास दुबे के बीच कहासुनी भी हो गई थी, कड़े मुकाबले के बावजूद हरिकृष्ण श्रीवास्तव इलेक्शन जीत गए.

विकास और उस के गुर्गे जीत का जश्न मना रहे थे, तभी संतोष शुक्ला वहां से गुजरे. विकास ने उन की कार रोक कर गालीगलौज शुरू कर दी. दोनों तरफ से जम कर हाथापाई हुई. इस के बाद विकास ने संतोष शुक्ला को खत्म करने की ठान ली.

5 साल तक संतोष शुक्ला और विकास के बीच जंग जारी रही. इस दौरान दोनों तरफ के कई लोगों की जान गई. 1997 में कुछ समय के लिए बीजेपी के सर्मथन से बसपा की सरकार बनी और मायावती मुख्यमंत्री बन गईं. हरिकृष्ण श्रीवास्तव को स्पीकर बनाया गया.

बस फिर क्या था विकास दुबे की ख्वाहिशों को पंख लग गए. उस ने हरिकृष्ण श्रीवास्तव को राजनीतिक सीढ़ी बना कर बसपा और भाजपा के कई कद्दावर नेताओं से इतनी नजदीकियां बना लीं कि उस के एक फोन पर ये कद्दावर नेता उस की ढाल बन कर सामने खड़े हो जाते थे, क्योंकि उन सब ने देख लिया था कि विकास राजनीति करने वाले लोगों के लिए वोट दिलाने वाली मशीन है.

विकास ने साल 2000 में ताराचंद इंटर कालेज पर कब्जा करने के लिए शिवली थाना क्षेत्र में कालेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की गोली मार कर हत्या कर दी थी. इस मामले में गिरफ्तार हो कर जब वह कुछ दिन के लिए जेल गया तो उस ने जेल में बैठेबैठे कानपुर के शिवली थानाक्षेत्र में रामबाबू यादव की हत्या करा दी. लेकिन जेल में बंद होने के कारण पुलिस इस मामले में उसे दोषी साबित नहीं कर सकी.

सिद्धेश्वर केस में विकास को उम्रकैद की सजा हुई लेकिन उस ने हाईकोर्ट से जमानत हासिल कर ली, जिस के बाद उस की अपील अभी तक अदालत में विचाराधीन है.

दुश्मनी ठानने के बाद विकास गोली से बात करता था

शिवली विकास के गांव बिकरू से 3 किलोमीटर दूर है. यहां के लल्लन वाजपेई 1995 से 2017 तक पंचायत अध्यक्ष रहे. जब उन का कार्यकाल समाप्त हुआ तो उन्होंने अगला चुनाव लड़ने का फैसला किया.

विकास इस चुनाव में अपने किसी आदमी को अध्यक्ष पद का चुनाव लड़वाना चाहता था. उस ने लल्लन के लोगों को डरानाधमकाना शुरू किया. लल्लन ने उसे रोका तो वह विकास की आंखों में चढ़ गए और उस ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली. ब्राह्मण बहुल इस क्षेत्र में पिछड़ों की हनक को कम करने के लिए विकास कई नेताओं की नजर में आ गया था और वे उसे संरक्षण देने लगे थे.

इसी क्षेत्र में कांग्रेस के पूर्व विधायक थे नेकचंद पांडेय. विकास की दबंगई देख कर उन्होंने उसे राजनीतिक संरक्षण देना शुरू कर दिया. तब वह खुल कर अपनी ताकत दिखाने लगा. उस की दबंगई का कायल हो कर भाजपा के चौबेपुर से विधायक हरिकृष्ण श्रीवास्तव ने भी उस के सिर पर हाथ रख दिया.

हरिकृष्ण श्रीवास्तव उसी इलाके में जनता दल, जनता पार्टी से भी विधायक रह चुके थे. इलाके में उन का दबदबा था. उन्होंने चौबेपुर में अपनी राजनीतिक धमक मजबूत करने के लिए विकास दुबे को अपनी शरण में ले लिया.

हरिकृष्ण श्रीवास्तव के खिलाफ चुनाव लड़ने के दौरान बीजेपी के नेता संतोष शुक्ला विकास के दुश्मन बन गए. लल्लन और संतोष शुक्ला के करीबी संबंध थे. उन्हीं दिनों भाजपा और बसपा की मिलीजुली सरकार बनी तो मुख्यमंत्री बने कल्याण सिंह. कल्याण सिंह ने संतोष शुक्ला को श्रम संविदा बोर्ड का चेयरमैन बना कर राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया था, जिस से संतोष शुक्ला और लल्लन वाजपेई दोनों की ही इलाके में हनक बढ़ गई थी.

हालांकि लखनऊ के कुछ प्रभावशाली भाजपा नेताओं ने संतोष शुक्ला और विकास के बीच सुलह कराने की कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं हुए. दरअसल, संतोष शुक्ला ने सत्ता की हनक के बल पर विकास का एनकाउंटर कराने की योजना बना ली थी. एक तो लल्लन वाजपेई की मदद करने के कारण दूसरे अपने एनकाउंटर की साजिश रचने की भनक पा कर विकास को खुन्नस आ गई. उस ने संतोष शुक्ला को खत्म करने का फैसला कर लिया.

नवंबर 2001 में जब संतोष शुक्ला शिवली में एक सभा को संबोधित कर रहे थे, तभी विकास अपने गुर्गों के साथ वहां आ धमका और संतोष शुक्ला पर फायरिंग शुरू कर दी. जान बचाने के लिए वह शिवली थाने पहुंचे, लेकिन विकास वहां भी आ धमका और इंसपेक्टर के रूम में छिपे बैठे संतोष को बाहर ला कर मौत के घाट उतार दिया.

जिस तरह पुलिस की मौजूदगी में संतोष शुक्ला की हत्या की गई थी, उस ने पूरे प्रदेश में सनसनी फैला दी थी, इस के बाद पूरे इलाके में विकास की दहशत फैल गई.

संतोष शुक्ला के मर्डर के बाद पुलिस विकास दुबे के पीछे पड़ गई. कई माह तक वह फरार रहा. सरकार ने उस के सिर पर 50 हजार का इनाम घोषित कर दिया था. पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने के डर से उस ने एक बार फिर अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल किया. वह अपने खास भाजपा नेताओं की शरण में चला गया. उन्होंने उसे अपनी कार में बैठा कर लखनऊ कोर्ट में सरेंडर करवा दिया.

कुछ माह जेल में रहने के बाद विकास की जमानत हो गई. बाहर आते ही उस ने फिर अपना आतंक फैलाना शुरू कर दिया. विकास के गैंग के लोगों तथा राजनीतिक संरक्षण देने वालों ने संतोष शुक्ला हत्याकांड में चश्मदीद गवाह बने सभी पुलिसकर्मियों को इतना आतंकित कर दिया कि सभी हलफनामा दे कर गवाही से मुकर गए.

अगला निशाना लल्लन वाजपेई पर

फलस्वरूप विकास दुबे संतोष शुक्ला हत्याकांड से साफ बरी हो गया. लेकिन इस के बावजूद विकास दुबे के मन में लल्लन वाजपेई को सबक ना सिखा पाने की कसक रह गई थी. क्योंकि उस के साथ शुरू हुई राजनीतिक रंजिश में ही उस ने संतोष शुक्ला की हत्या की थी, इसीलिए वह मौके का इंतजार करने लगा.

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जल्द ही उसे यह मौका भी मिल गया. 2002 में पंचायत चुनाव से पहले एक दिन लल्लन के घर पर चौपाल लगी थी. 5 लोग बैठे थे. शाम 7 बजे का समय था. अचानक घर के बगल वाले रास्ते से और सामने से कुछ लोग मोटरसाइकिल से आए और बम फेंकना शुरू कर दिया.

साथ ही फायरिंग भी की. दरवाजे की चौखट पर बैठे लल्लन जान बचाने के लिए अंदर भागे. उन की जान तो बच गई लेकिन इस हमले में 3 लोगों की मौत हो गई. गोली लगने से लल्लन का एक पैर खराब हो गया था.

इस हमले में कृष्णबिहारी मिश्र, कौशल किशोर और गुलाटी नाम के 3 लोग मारे गए. पुलिस में हत्या का मामला दर्ज हुआ, जिस में विकास दुबे का भी नाम था. लेकिन आरोप पत्र दाखिल करते समय पुलिस ने उस का नाम हटा दिया था.

विकास दुबे ने इस हत्याकांड को जिस दुस्साहस से अंजाम दिया था, सब जानते थे. फिर भी वह अपने रसूख से साफ बच गया था. जबकि अन्य लोगों को सजा हुई. इस के बाद तो उस के कहर और डर के सामने सब ने हथियार डाल दिए.

बिकरू और शिवली के आसपास के क्षेत्रों में विकास की दहशत इस कदर बढ़ गई थी कि उस के एक इशारे पर चुनाव में वोट डलने शुरू हो जाते थे. सरकार बसपा, भाजपा या समाजवादी पार्टी चाहे किसी की भी रही  विकास को राजनीतिक संरक्षण देने वाले नेता खुद उस के पास पहुंच जाते थे.

2002 में जब प्रदेश में बसपा की सरकार थी, तो उस का सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रिनयां, चौबेपुर के साथसाथ कानपुर नगर में भी चलने लगा था. विकास ने राजनेताओं के संरक्षण से राजनीति में एंट्री की और जेल में रहने के दौरान शिवराजपुर से नगर पंचायत का चुनाव जीत लिया.

इस से उस के हौसले और ज्यादा बुलंद हो गए. राजनीतिक संरक्षण और दबंगई के बल पर आसपास के 3 गांवों में उस के परिवार की ही प्रधानी कायम रही. विकास ने राजनीतिक जड़ें मजबूत करने के लिए लखनऊ में भी घर बना लिया, जहां उस की पत्नी रिचा दुबे के अलावा छोटा बेटा रहता था, जो लखनऊ के एक इंटर कालेज में पढ़ रहा था जबकि उस का बड़ा बेटा ब्रिटेन से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है.

समीर वानखेडे : शिकारी बन रहा शिकार

बौलीवुड के बादशाह शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को क्रूज पार्टी में मादक पदार्थ इस्तेमाल करने के आरोप में गिरफ्तार करने वाले नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेडे खुद आरोपों के घेरे में बुरी तरह फंस रहे हैं.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता और महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक ने समीर वानखेडे पर ड्रग्स रखवाने से ले कर चोरी और फरजीवाड़े तक के आरोप मढ़ दिए हैं.

इस से पूरे डिपार्टमेंट में खलबली मची हुई है. बौलीवुड अभिनेता के बेटे को गिरफ्तार करने पर जहां नारकोटिक्स विभाग चर्चा में था, वहीं अब समीर वानखेडे पर लग रहे संगीन आरोपों के कारण पूरा डिपार्टमेंट बैकफुट पर है.

क्रूज ड्रग्स केस में मुंबई की आर्थर रोड जेल में बंद आर्यन खान को तो 26 दिन बाद जमानत मिल गई. मगर समीर वानखेडे के खिलाफ विभागीय जांच और विजिलेंस की जांच शुरू हो चुकी है.

मुंबई पुलिस में भी दर्ज 4 एफआईआर की बिना पर ड्रग माफियाओं से उन के संबंध, धन उगाही और धोखाधड़ी की तफ्तीश हो रही है. यानी अब शिकारी अपने जाल में खुद बुरी तरह फंसता नजर आ रहा है.

नवाब मालिक ने समीर वानखेडे पर 26 आरोपों की एक लंबी चिट्ठी सोशल मीडिया पर जारी की है. उस के साथ ही समीर वानखेडे के नाम, धर्म, शादी आदि को ले कर उन का व्यक्तिगत जीवन सार्वजनिक होना शुरू हो गया है.

नवाब मलिक का आरोप है कि समीर वानखेड़े ने अपना धर्म और जाति छिपा कर नकली जाति प्रमाण पत्र के जरिए सरकारी नौकरी प्राप्त की है. नौकरी में रहते हुए समीर ने कई निर्दोष और मासूम लोगों को मादक पदार्थ निषेध अधिनियम के तहत गलत तरीके से फंसा कर जेल भेजा है.

वह अपनी पावर का इस्तेमाल धन उगाही के लिए करते हैं और इस तरह फिल्म इंडस्ट्री से उन्होंने काफी पैसा बनाया है. मलिक का आरोप है कि दीपिका पादुकोण जैसी ख्यात एक्ट्रैस से भी वानखेडे ने काफी पैसा ऐंठा है.

कहा जा रहा है कि नवाब मलिक ने समीर के खिलाफ आरोपों की जो चिट्ठी सार्वजनिक की है, वह उन को नारकोटिक्स डिपार्टमेंट के ही किसी शख्स ने भेजी है.

हालांकि मलिक ने उस शख्स के नाम का खुलासा अब तक नहीं किया है और चिट्ठी पर किसी के हस्ताक्षर भी नहीं हैं. मलिक ने अपने ट्विटर हैंडल से चिट्ठी साझा की है.

इस चिट्ठी की शुरुआत की लाइनों में कहा गया है, ‘मैं एनसीबी का कर्मचारी हूं और पिछले 2 सालों से मुंबई कार्यालय में कार्यरत हूं. पिछले साल जब एनसीबी को एक्टर सुशांत सिंह राजपूत मामले में ड्रग एंगल की जांच सौंपी गई, तब राजस्व खुफिया निदेशालय में काम कर रहे समीर वानखेड़े को एनसीबी के जोनल डायरेक्टर के पद पर जौइन कराया गया.’

चिट्ठी में आगे समीर वानखेड़े और एनसीबी अधिकारियों पर कई बौलीवुड सेलिब्रिटीज से पैसे मांगने और उन का उत्पीड़न करने के आरोप लगाए गए हैं.

चिट्ठी से यह भी पता चलता है कि तालाब में सिर्फ एक ही मछली तालाब को गंदा नहीं कर रही है, बल्कि समीर के साथ काम करने वाले अन्य अधिकारी, कर्मचारी भी हैं, जो उन के लिए और खुद के लिए अवैध धन उगाही करते हैं.

वे लोगों को मादक पदार्थ के झूठे केस में फंसाते हैं और छोड़ने की एवज में बड़ा अमाउंट मांगते हैं. जो नहीं दे पाते उन्हें जेल भेज दिया जाता है. समीर वानखेडे ने अपने कार्यकाल में ऐसे कई लोगों को जेल भेजा है.

चिट्ठी में आरोप है कि कार्डेलिया क्रूज पर जो छापा डाला था, उस में सभी पंचनामे एनसीबी मुंबई द्वारा लिखे गए थे. भाजपा के इशारे पर उन के 2 कार्यकर्ताओं ने समीर वानखेडे के साथ मिलीभगत से ड्रग केस बनाया है.

क्रूज पर एनसीबी के कर्मचारी एवं सुपरिटेंडेंट विश्व विजय सिंह, जांच अधिकारी आशीष रंजन, किरण बाबू, विश्वनाथ तिवारी और जूनियर इनवैस्टिगेटिंग औफिसर सुधाकर शिंदे, ओटीसी कदम, सिपाही रेड्डी, पी.डी. गोरे व विष्णु गीगा, ड्राइवर अनिल माने व समीर वानखेडे का निजी सचिव शरद कुमार व अन्य कर्मचारी अपने सामान में छिपा कर ड्रग ले गए थे, वह ड्रग उन्होंने मौका पा कर लोगों के निजी समान में रख दी.

उन्होंने बताया कि समीर वानखेडे को सर्च औपरेशन के दौरान कोई बौलीवुड कलाकार या मौडल मिलती है तो वह अपने पास रखा ड्रग उस का दिखा कर उसे आरोपी बना देते हैं. इस मामले में भी यही हुआ है.

समीर पिछले एक माह से भाजपा के 2 कार्यकर्ताओं— के.पी. गोसावी और मनीष भानुशाली के संपर्क में थे. क्रूज से जितने भी आदमी पकड़े गए थे, उन्हें एनसीबी औफिस लाया गया.

क्रूज से गिरफ्तार लोगों में से ऋषभ सचदेव, प्रतिमा व अगीर फरनीचरवाला को उसी रात दिल्ली से फोन आने पर छोड़ दिया गया. इस मामले में समीर वानखेडे की काल डिटेल्स चेक की जा सकती है.

अरबाज मर्चेंट के दोस्त अब्दुल से कोई ड्रग्स नहीं मिली थी, लेकिन समीर के कहने से उस पर भी ड्रग की रिकवरी दिखा दी गई. समीर ने इस केस में अपने (एनसीबी) कार्यालय के ड्राइवर विजय को पंच यानी गवाह बना दिया था, जबकि कानून कहता है कि गवाह स्वतंत्र होने चाहिए. यह सारा केस फरजी है. जो ड्रग प्राप्त हुई, वह समीर और उन के साथियों ने खुद प्लांट की थी.

आरोप यह भी है कि समीर वानखेड़े ने एनसीबी मुंबई में जब से कार्यभार संभाला, तब से जो भी केस एनसीबी ने किए हैं, उन में पकड़े गए लोगों से लगभग 25 खाली पेपरों पर हस्ताक्षर लिए जाते हैं और अपनी मनमरजी से पंचनामा बदल लिया जाता है.

हस्ताक्षर वाले खाली कागज एनसीबी के सभी इनवेस्टिगेटिंग औफिसर्स की मेज की दराज में रखे हैं व सुपरिटेंडेंट विश्व विजय सिंह की अलमारी में रखे हैं, जिन्हें छापा मार कर निकाल सकते हैं.

इस के साथ थोड़ी मात्रा में ड्रग्स भी समीर व विश्व विजय सिंह के कार्यालय के कमरे से बरामद की जा सकती है.

यह लंबाचौड़ा पत्र जो नवाब मलिक द्वारा सोशल मीडिया पर वायरल किया गया था, इस से यही लगता है कि इसे लिखने वाला नारकोटिक्स विभाग का ही कोई व्यक्ति है, इस में दोराय नहीं कि कोई घर का भेदी ही समीर वानखेडे की लंका ढहाने में लगा है.

मुंबई पुलिस के एसीपी स्तर के एक अधिकारी ने समीर वानखेडे के खिलाफ जबरन वसूली के आरोपों और अन्य मुद्दों की स्वतंत्र जांच शुरू कर दी है. वानखेड़े के खिलाफ मुंबई के अलगअलग थानों में 4 शिकायतें दर्ज की गई हैं.

मुंबई पुलिस ने शिकायतों की जांच के लिए 4 अधिकारियों को नियुक्त किया है. अतिरिक्त पुलिस आयुक्त दिलीप सावंत की देखरेख में यह जांच कराई जा रही है.

क्रूज ड्रग्स मामले में शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की गिरफ्तारी के बाद उस की रिहाई के लिए 25 करोड़ रुपए की रिश्वत मांगने के आरोप भी समीर वानखेडे पर लगे हैं, जिस की सतर्कता जांच शुरू हो चुकी है. इस में वानखेडे द्वारा गवाह बनाया गया भाजपा कार्यकर्ता किरण गोसावी बिचौलिए की भूमिका निभा रहा था.

एनसीबी की 5 सदस्यीय सतर्कता जांच टीम ने मुंबई पहुंच कर वानखेड़े के बयान दर्ज किए. टीम ने दक्षिण मुंबई के बलार्ड एस्टेट स्थित विभाग के दफ्तर से भी कुछ दस्तावेज व रिकौर्डिंग जब्त की हैं. सतर्कता जांच का नेतृत्व कर रहे एनसीबी के उपमहानिदेशक (उत्तरी क्षेत्र) ज्ञानेश्वर सिंह ने इस जांच से जुड़े सभी गवाहों को बुला कर उन के बयान दर्ज किए. समीर वानखेडे खुद को हिंदू बताते हैं. उन के पिता भी खुद को हिंदू कहते हैं मगर मंत्री नवाब मलिक ने समीर वानखेडे के निकाहनामे को सार्वजनिक कर के उन के धर्म पर सवाल खड़ा कर दिया है.

दरअसल, समीर की मां मुसलिम थीं और पिता हिंदू. समीर की पहली शादी एक मुसलिम लड़की शबाना कुरैशी से हुई थी. जिस से बाद में तलाक हो गया. 7 दिसंबर, 2006 को मुंबई में संपन्न यह शादी मुसलिम रीतिरिवाज से हुई थी और निकाहनामे पर समीर का नाम समीर दाऊद वानखेडे लिखा था. नीचे उर्दू में उन के हस्ताक्षर भी हैं.

निकाह कराने वाले काजी ने भी इस बात की तसदीक कर दी कि समीर की शादी मुसलिम तरीके से हुई थी. शरीयत के मुताबिक गैरमुसलिम का निकाह नहीं कराया जा सकता. तो जाहिर है इस के लिए समीर ने मुसलिम धर्म अपनाया होगा क्योंकि शरीयत के मुताबिक निकाह के लिए उन का मुसलिम होना जरूरी है.

निकाह के वक्त उन्होंने 33 हजार रुपए मेहर के रूप में अदा किए थे. उन के निकाहनामे में गवाह नंबर दो अजीज खान, जोकि मुसलिम हैं, समीर वानखेडे की बहन यास्मीन के पति हैं.

निकाह कराने वाले काजी ने भी कहा है कि समीर वानखेडे उस वक्त मुसलिम थे. ऐसे में अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र के आधार पर समीर वानखेडे ने सरकारी नौकरी कैसे पा ली, इस पर बवाल उठ खड़ा हुआ है.

नवाब मलिक का कहना है, ‘‘मैं वानखेडे के धर्म या उन के व्यक्तिगत जीवन को नहीं, बल्कि उन के कपटपूर्ण कृत्य को सामने लाना चाहता हूं, जिस के जरिए उन्होंने आईआरएस की नौकरी हासिल की और एक अनुसूचित जाति के व्यक्ति का हक मारा.’’

नवाब मलिक ने दावा किया है कि एनसीबी ने क्रूज पर छापेमारी नहीं की थी, बल्कि ट्रैप लगा कर कुछ लोगों को फंसाया गया है. और इस में समीर वानखेडे के साथ भाजपा के लोगों की मिलीभगत है.

मलिक कहते हैं कि अगर क्रूज की सीसीटीवी फुटेज खंगाले जाएं तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी. दरअसल क्रूज के जो वीडियो सोशल मीडिया और समाचार चैनलों पर दिखाई दे रहे हैं उस में एक दाड़ीवाला व्यक्ति अपनी मंगेतर के साथ वहां डांस करता नजर आ रहा है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक वह एक अंतरराष्ट्रीय ड्रग माफिया है और समीर वानखेडे का अच्छा दोस्त है, जो तिहाड़ और राजस्थान की जेलों में कई साल सजा काट चुका है.

मलिक पूछते हैं कि वह व्यक्ति वहां क्या कर रहा था? उस को समीर वानखेडे से बात करते भी देखा गया है. इस के अलावा 2 व्यक्ति जिन्हें एनसीबी ने अपना गवाह बनाया है, वे दोनों न सिर्फ भाजपा से जुड़े हुए हैं, बल्कि उन में से एक किरण गोसावी, जो इस मामले के उछलने के बाद लखनऊ से पुणे तक अपनी जान बचा कर भागता और छिपता फिरा और जिसे पुणे में गिरफ्तार कर लिया गया है. कहा जा रहा है कि आर्यन खान को छोड़ने की एवज में उसी ने शाहरुख खान से 25 करोड़ रुपए की डील करने की कोशिश की थी.

यह व्यक्ति एक वीडियो में आर्यन खान के पास बैठा अपने मोबाइल फोन पर आर्यन का बयान रिकौर्ड करते हुए दिख रहा है और एक अन्य वीडियो में वह आर्यन का हाथ पकड़ कर ले जाते हुए भी नजर आ रहा है.

सवाल यह है कि जब यह व्यक्ति न तो पुलिस का है और न नारकोटिक्स विभाग का, तो वह ये हरकतें किस हैसियत से कर रहा था.

बहरहाल, अब आर्यन खान सहित 5 अन्य मामलों की जांच समीर वानखेडे से हटा कर एसआईटी को सौंप दी गई है. इस स्पैशल जांच टीम का निर्देशन 1996 बैच के आईपीएस अधिकारी और एनसीबी के डीडीजी (औपरेशंस) संजय कुमार सिंह कर रहे हैं. देखना यह होगा कि इस जांच में समीर वानखेड़े पाकसाफ साबित होते हैं या नहीं.

2 करोड़ की फिरौती : बेटा बना मोहरा – भाग 2

परिवार में कुल 4 लोग थे. मुकेश, उन की पत्नी सुमन, बड़ी बेटी रितु और छोटा बेटा आदित्य. आदित्य को प्यार से घर के लोग आदि कहते थे. बेटा और बेटी दोनों पढ़ते थे.

बेटे आदि के अपहरण की बात जान कर मुकेश परेशान हो गए. अपहर्त्ता कौन थे, यह भी पता नहीं था. वे 2 करोड़ रुपए मांग रहे थे. भले ही मुकेश का कारोबार अच्छा चल रहा था, लेकिन 2 करोड़ की रकम कोई मामूली थोड़े ही थी. वे सोचने लगे कि क्या करें और क्या नहीं करें. उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था. आदि के अपहरण का पता चलने के बाद से मुकेश, उन की पत्नी और बेटी के आंसू नहीं रुक पा रहे थे.

मुकेश इसी बात पर सोचविचार कर रहे थे कि रात करीब 8 बजे उन के मोबाइल की घंटी बजी.

उन्होंने तुरंत काल रिसीव कर कहा, ‘‘हैलो.’’

दूसरी तरफ से धमकी भरी आवाज आई, ‘‘मुकेश, हम ने तुम्हारे बेटे का अपहरण कर लिया है. बेटे को जिंदा देखना चाहते हो तो 2 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो. ध्यान रखना पुलिस

को सूचना दी, तो तुम्हारा बेटा जिंदा नहीं बचेगा.’’

‘‘तुम कौन हो? मेरा बेटा कहां है और उस से मेरी बात कराओ?’’ मुकेश ने घबराई हुई आवाज में काल करने वाले से एक साथ कई सारे सवाल पूछे.

‘‘हम बहुत खतरनाक लोग हैं. तुम्हारा बेटा हमारे पास ही है, उस से बात भी करा देंगे. लेकिन तुम कल तक पैसों का इंतजाम कर लो.’’ काल करने वाले ने यह कह कर फोन काट दिया.

पहले सुमन और इस के बाद मुकेश के पास आए फोन से यह साफ हो गया था कि आदि का अपहरण हो गया है. लेकिन यह पता नहीं चला था अपहर्त्ता कौन हैं? वे 2 करोड़ रुपए की रकम मांग रहे थे, जो मुकेश की हैसियत से बहुत ज्यादा थी.

काफी सोचविचार के बाद मुकेश ने पुलिस को सूचना देने का फैसला किया और जबलपुर के संजीवनी नगर पुलिस थाने पहुंच कर उन्होंने रिपोर्ट दर्ज करा दी गई.

बच्चे के अपहरण और 2 करोड़ की फिरौती मांगने का पता चलने पर पुलिस अधिकारी धनवंतरी नगर में मुकेश लांबा के घर पहुंचे और घर वालों से पूछताछ कर बालक आदि की तलाश में जुट गए.

दूसरे दिन 16 अक्तूबर को मुकेश के मोबाइल पर अपहर्त्ताओं का फिर फोन आया. उन्होंने उस से रकम के बारे में पूछा. मुकेश ने उन से कहा कि उस के पास 2 करोड़ रुपए नहीं हैं. वह मुश्किल से 8-10 लाख रुपए का इंतजाम कर सकता है.

अपहर्त्ताओं ने कहा कि 2 करोड़ नहीं दे सकते, तो कुछ कम दे देना लेकिन 8-10 लाख से कुछ नहीं होगा. हम तुम्हें शाम को दोबारा फोन करेंगे, तब तक पैसों का इंतजाम कर लेना.

मुकेश ने अपहर्त्ताओं से हुई सारी बातें पुलिस को बता दीं. पुलिस ने उस मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया, जिस नंबर से मुकेश के पास अपहर्त्ताओं का फोन आया था. अपहर्त्ताओं ने तब तक 3 बार फोन किए थे. ये फोन एक ही नंबर से किए गए थे.

उसी दिन शाम को चौथी बार अपहर्त्ताओं का मुकेश के मोबाइल पर फिर फोन आया. मुकेश ने मिन्नतें करते हुए कहा कि मुश्किल से 8 लाख रुपए का इंतजाम हुआ है. ये पैसे तुम ले लो और मेरे बेटे को लौटा दो.

मुकेश ने कहा कि बेटे से मेरी एक बार बात तो करा दो. मुकेश के अनुरोध पर अपहर्त्ताओं ने आदि से उस की बात कराई. मोबाइल पर आदि रोतीबिलखती आवाज में कह रहा था, ‘‘पापा, इन की बात मान लो. ये लोग बहुत खतरनाक हैं, मुझे मार डालेंगे.’’

बेटे की आवाज सुन कर मुकेश को कुछ संतोष हुआ. मुकेश के काफी गिड़गिड़ाने पर अपहर्त्ता 8 लाख रुपए ले कर आदि को छोड़ने पर राजी हो गए. अपहर्त्ताओं ने मुकेश को उसी रात जबलपुर में पनागर से सिरोहा मार्ग पर एक जगह नाले के पास पैसों का बैग रख आने को कहा और यह भरोसा दिया कि पैसे मिलने के आधे घंटे बाद बच्चे को तुम्हारे घर के पास छोड़ देंगे.

अपहर्त्ताओं के 8 लाख रुपए लेने पर राजी हो जाने पर मुकेश को उम्मीद की कुछ किरण नजर आई. वह सोचने लगे कि यह बात पुलिस को बताए या नहीं. सोचविचार के बाद उन्होंने तय किया कि पुलिस को बताने में ही भलाई है, क्योंकि बेटे की वापसी का पुलिस को बाद में पता चलेगा, तो वे कई तरह के सवाल पूछेंगे. इसलिए मुकेश ने अपहर्त्ताओं से हुई सारी बात पुलिस को बता दी.

पुलिस अधिकारियों ने आपस में बातचीत कर फैसला किया कि मुकेश को 8 लाख रुपए एक बैग में ले कर तय जगह पर भेजा जाए. इस दौरान पुलिस दूर से निगरानी करती रहेगी. अपहर्त्ता जब पैसों का बैग लेने आएंगे, तो उन्हें वहीं से पकड़ लिया जाएगा.

उस रात तय समय और तय जगह पर मुकेश ने 8 लाख रुपयों से भरा बैग रख दिया. कहा जाता है कि इस दौरान आसपास पुलिस निगरानी कर रही थी. इस के बावजूद अपहर्त्ता पैसों का वह बैग ले गए और पुलिस को कुछ पता नहीं चल सका.

इधर, पैसों का बैग तय जगह पर छोड़ आने के बाद मुकेश और उस के घरवाले आदित्य के घर लौटने का इंतजार करते रहे. हरेक आहट पर उन की नजरें घर के गेट पर टिक जातीं. घर में मौजूद एक भी आदमी सो नहीं सका. पूरी रात बेचैनी से गुजर गई, लेकिन आदि नहीं आया.

मुकेश समझ नहीं पा रहे थे कि बेटा आदि वापस क्यों नहीं आया? अपहर्त्ताओं ने अपना वादा क्यों नहीं निभाया? क्या अपहर्त्ताओं को 8 लाख रुपए कम लगे या उन्होंने आदि को मार डाला?

17 अक्तूबर को आदित्य का अपहरण हुए तीसरा दिन हो गया था. पैसे भी चले गए थे और बेटा भी वापस नहीं आया तो मुकेश अपहर्त्ताओं के मोबाइल नंबर पर काल करने की कोशिश करते रहे, लेकिन वह नंबर नहीं मिल रहा था.

मारवाड़ के लुटेरों पर पुलिस का दांव – भाग 1

राजस्थान का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है. मेवाड़ और मारवाड़ की धरती शूरवीरता के लिए जानी जाती है. रेतीले धोरों और अरावली पर्वतमालाओं से घिरे इस सूबे के लोगों को भले ही जान गंवानी पड़ी, लेकिन युद्ध के मैदान में कभी पीठ नहीं दिखाई. इस के इतर राजस्थान की कुछ जनजातियां अपराध के लिए भी जानी जाती रही हैं.

लेकिन अब समय बदल गया है. ऐसे तमाम लोग हैं, जो कामयाब न होने पर अपने सपने पूरे करने के लिए जनजातियों की तरह अपराध की राह पर चल निकले हैं. अन्य राज्यों के लोगों की तरह राजस्थान के भी हजारों लोग भारत के दक्षिणी राज्यों में रोजगार की वजह से रह रहे हैं.

मारवाड़ के रहने वाले कुछ लोगों ने अपने विश्वस्त साथियों का गिरोह बना कर तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में करोड़ों की चोरी, लूट और डकैती जैसे संगीन अपराध किए हैं. ये वहां अपराध कर के राजस्थान आ जाते हैं और अपने गांव या रिश्तेदारियों में छिप जाते हैं. कुछ दिनों में मामला शांत हो जाता है तो फिर वहां पहुंच जाते हैं. उन्हें वहां किसी तरह की परेशानी भी नहीं होती, क्योंकि वहां रहतेरहते ये वहां की भाषा भी सीख गए हैं. स्थानीय भाषा की वजह से ये जल्दी ही वहां के लोगों में घुलमिल जाते हैं.

मारवाड़ के इन लुटेरों ने जब वहां कई वारदातें कीं तो वहां की पुलिस इन लुटेरों की खोजबीन करती हुई उन के गांव तक पहुंच गई. लेकिन राजस्थान पहुंचने पर दांव उल्टा पड़ गया. इधर 3 ऐसी घटनाएं घट गईं, जिन में लुटेरों को पकड़ने आई तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की पुलिस खुद अपराधी बन गई. यहां तक कि चेन्नै के एक जांबाज इंसपेक्टर को जान से भी हाथ धोना पड़ा.

चेन्नै के थाना मदुरहोल के लक्ष्मीपुरम की कडप्पा रोड पर गहनों का एक काफी बड़ा शोरूम है महालक्ष्मी ज्वैलर्स. यह शोरूम मुकेश कुमार जैन का है. वह मूलरूप से राजस्थान के जिला पाली के गांव बावरा के रहने वाले हैं. वह रोजाना दोपहर के 1 बजे के करीब शोरूम बंद कर के लंच के लिए घर चले जाते थे. कुछ देर घर पर आराम कर के वह शाम करीब 4 बजे शोरूम खोलते थे.

16 नवंबर, 2017 को भी मुकेश कुमार जैन अपना जवैलरी का शोरूम बंद कर के लंच करने घर चले गए थे. शाम करीब 4 बजे जब उन्होंने आ कर शोरूम खोला तो उन के होश उड़ गए. शोरूम की छत में सेंध लगी हुई थी. अंदर रखे डिब्बों से सोनेचांदी के सारे गहने गायब थे. 2 लाख रुपए रकद रखे थे, वे भी नहीं थे. मुकेश ने हिसाब लगाया तो पता चला कि साढ़े 3 किलोग्राम सोने और 5 किलोग्राम चांदी के गहने और करीब 2 लाख रुपए नकद गायब थे.

दिनदहाड़े ज्वैलरी के शोरूम में छत में सेंध लगा कर करीब सवा करोड़ रुपए के गहने और नकदी पार कर दी गई थी. चोरों ने यह सेंध ड्रिल मशीन से लगाई थी. उन्होंने गहने और नकदी तो उड़ाई ही, शोरूम में लगे सीसीटीवी कैमरे भी उखाड़ ले गए थे.

मुकेश ने वारदात की सूचना थाना मदुरहोल पुलिस को दी. पुलिस ने घटनास्थल पर आ कर जांच की. जांच में पता चला कि शोरूम की छत पर बने कमरे से ड्रिल मशीन द्वारा छेद किया गया था.

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शोरूम के ऊपर बने कमरे में कपड़े की दुकान थी. वह दुकान नाथूराम जाट ने किराए पर ले रखी थी. वह भी राजस्थान के जिला पाली के गांव रामावास का रहने वाला था. उसी के साथ दिनेश और दीपाराम भी रहते थे. दिनेश थाना बिलाड़ा का रहने वाला था तो दीपाराम पाली के खारिया नींव का रहने वाला था. ये तीनों पुलिस को कमरे पर नहीं मिले. पुलिस ने शोरूम के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली तो पता चला कि मुकेश के ज्वैलरी शोरूम में नाथूराम और उस के साथियों ने ही लूट की थी.

लूट के 2 दिनों बाद चेन्नै पुलिस ने शोरूम के मालिक मुकेश जैन को साथ ले कर अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए राजस्थान के जिला पाली आ कर डेरा डाल दिया. पुलिस ने पूछताछ के लिए कुछ लोगों को पकड़ा भी, लेकिन नाथूराम जाट और उस के साथियों के बारे में कुछ पता नहीं चला तो चेन्नै पुलिस लौट गई.

11 दिसंबर, 2017 को एक बार फिर चेन्नै पुलिस पाली आई. इस टीम में इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन और इंसपेक्टर टी.एम. मुनिशेखर के अलावा 2 हैडकांस्टेबल अंबरोस व गुरुमूर्ति और एक कांस्टेबल सुदर्शन शामिल थे. यह टीम पाली के एसपी दीपक भार्गव से मिली तो उन्होंने टीम की हर तरह से मदद मरने का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा कि जब भी उन्हें काररवाई करनी हो, बता दें. स्थानीय पुलिस हर तरह से उन की मदद करेगी.

इस के बाद चेन्नै से आई पुलिस अपने हिसाब से आरोपियों की तलाश करती रही. पुलिस ने नाथूराम के 2 नजदीकी लोगों को हिरासत में ले कर उन से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि नाथूराम पाली में जैतारण-रामवास मार्ग पर करोलिया गांव में खारिया नींव के रहने वाले दीपाराम जाट के बंद पड़े चूने के भट्ठे पर मिल सकता है.

इस सूचना पर चेन्नै पुलिस ने पाली पुलिस को बिना बताए 12 दिसंबर की रात करीब ढाई-तीन बजे करोलिया गांव स्थित दीपाराम के चूने के भट्ठे पर बिना वर्दी के छापा मारा. पुलिस की यह टीम सरकारी गाड़ी के बजाय किराए की टवेरा कार से गई थी.

टीम की अगुवाई कर रहे इंसपेक्टर पेरियापांडियन और इंसपेक्टर मुनिशेखर के पास सरकारी रिवौल्वर थी. पुलिस टीम के पहुंचते ही भट्ठे पर बने एक कमरे में सो रहे लोग जाग गए. उस समय वहां 3 पुरुष, 6 महिलाएं और कुछ लड़कियां थीं. उन सब ने मिल कर लाठीडंडों से पुलिस पर हमला बोल दिया.