
बौलीवुड के बादशाह शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को क्रूज पार्टी में मादक पदार्थ इस्तेमाल करने के आरोप में गिरफ्तार करने वाले नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेडे खुद आरोपों के घेरे में बुरी तरह फंस रहे हैं.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता और महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक ने समीर वानखेडे पर ड्रग्स रखवाने से ले कर चोरी और फरजीवाड़े तक के आरोप मढ़ दिए हैं.
इस से पूरे डिपार्टमेंट में खलबली मची हुई है. बौलीवुड अभिनेता के बेटे को गिरफ्तार करने पर जहां नारकोटिक्स विभाग चर्चा में था, वहीं अब समीर वानखेडे पर लग रहे संगीन आरोपों के कारण पूरा डिपार्टमेंट बैकफुट पर है.
क्रूज ड्रग्स केस में मुंबई की आर्थर रोड जेल में बंद आर्यन खान को तो 26 दिन बाद जमानत मिल गई. मगर समीर वानखेडे के खिलाफ विभागीय जांच और विजिलेंस की जांच शुरू हो चुकी है.
मुंबई पुलिस में भी दर्ज 4 एफआईआर की बिना पर ड्रग माफियाओं से उन के संबंध, धन उगाही और धोखाधड़ी की तफ्तीश हो रही है. यानी अब शिकारी अपने जाल में खुद बुरी तरह फंसता नजर आ रहा है.
नवाब मालिक ने समीर वानखेडे पर 26 आरोपों की एक लंबी चिट्ठी सोशल मीडिया पर जारी की है. उस के साथ ही समीर वानखेडे के नाम, धर्म, शादी आदि को ले कर उन का व्यक्तिगत जीवन सार्वजनिक होना शुरू हो गया है.
नवाब मलिक का आरोप है कि समीर वानखेड़े ने अपना धर्म और जाति छिपा कर नकली जाति प्रमाण पत्र के जरिए सरकारी नौकरी प्राप्त की है. नौकरी में रहते हुए समीर ने कई निर्दोष और मासूम लोगों को मादक पदार्थ निषेध अधिनियम के तहत गलत तरीके से फंसा कर जेल भेजा है.
वह अपनी पावर का इस्तेमाल धन उगाही के लिए करते हैं और इस तरह फिल्म इंडस्ट्री से उन्होंने काफी पैसा बनाया है. मलिक का आरोप है कि दीपिका पादुकोण जैसी ख्यात एक्ट्रैस से भी वानखेडे ने काफी पैसा ऐंठा है.
कहा जा रहा है कि नवाब मलिक ने समीर के खिलाफ आरोपों की जो चिट्ठी सार्वजनिक की है, वह उन को नारकोटिक्स डिपार्टमेंट के ही किसी शख्स ने भेजी है.
हालांकि मलिक ने उस शख्स के नाम का खुलासा अब तक नहीं किया है और चिट्ठी पर किसी के हस्ताक्षर भी नहीं हैं. मलिक ने अपने ट्विटर हैंडल से चिट्ठी साझा की है.
इस चिट्ठी की शुरुआत की लाइनों में कहा गया है, ‘मैं एनसीबी का कर्मचारी हूं और पिछले 2 सालों से मुंबई कार्यालय में कार्यरत हूं. पिछले साल जब एनसीबी को एक्टर सुशांत सिंह राजपूत मामले में ड्रग एंगल की जांच सौंपी गई, तब राजस्व खुफिया निदेशालय में काम कर रहे समीर वानखेड़े को एनसीबी के जोनल डायरेक्टर के पद पर जौइन कराया गया.’
चिट्ठी में आगे समीर वानखेड़े और एनसीबी अधिकारियों पर कई बौलीवुड सेलिब्रिटीज से पैसे मांगने और उन का उत्पीड़न करने के आरोप लगाए गए हैं.
चिट्ठी से यह भी पता चलता है कि तालाब में सिर्फ एक ही मछली तालाब को गंदा नहीं कर रही है, बल्कि समीर के साथ काम करने वाले अन्य अधिकारी, कर्मचारी भी हैं, जो उन के लिए और खुद के लिए अवैध धन उगाही करते हैं.
वे लोगों को मादक पदार्थ के झूठे केस में फंसाते हैं और छोड़ने की एवज में बड़ा अमाउंट मांगते हैं. जो नहीं दे पाते उन्हें जेल भेज दिया जाता है. समीर वानखेडे ने अपने कार्यकाल में ऐसे कई लोगों को जेल भेजा है.
चिट्ठी में आरोप है कि कार्डेलिया क्रूज पर जो छापा डाला था, उस में सभी पंचनामे एनसीबी मुंबई द्वारा लिखे गए थे. भाजपा के इशारे पर उन के 2 कार्यकर्ताओं ने समीर वानखेडे के साथ मिलीभगत से ड्रग केस बनाया है.
क्रूज पर एनसीबी के कर्मचारी एवं सुपरिटेंडेंट विश्व विजय सिंह, जांच अधिकारी आशीष रंजन, किरण बाबू, विश्वनाथ तिवारी और जूनियर इनवैस्टिगेटिंग औफिसर सुधाकर शिंदे, ओटीसी कदम, सिपाही रेड्डी, पी.डी. गोरे व विष्णु गीगा, ड्राइवर अनिल माने व समीर वानखेडे का निजी सचिव शरद कुमार व अन्य कर्मचारी अपने सामान में छिपा कर ड्रग ले गए थे, वह ड्रग उन्होंने मौका पा कर लोगों के निजी समान में रख दी.
उन्होंने बताया कि समीर वानखेडे को सर्च औपरेशन के दौरान कोई बौलीवुड कलाकार या मौडल मिलती है तो वह अपने पास रखा ड्रग उस का दिखा कर उसे आरोपी बना देते हैं. इस मामले में भी यही हुआ है.
समीर पिछले एक माह से भाजपा के 2 कार्यकर्ताओं— के.पी. गोसावी और मनीष भानुशाली के संपर्क में थे. क्रूज से जितने भी आदमी पकड़े गए थे, उन्हें एनसीबी औफिस लाया गया.
क्रूज से गिरफ्तार लोगों में से ऋषभ सचदेव, प्रतिमा व अगीर फरनीचरवाला को उसी रात दिल्ली से फोन आने पर छोड़ दिया गया. इस मामले में समीर वानखेडे की काल डिटेल्स चेक की जा सकती है.
अरबाज मर्चेंट के दोस्त अब्दुल से कोई ड्रग्स नहीं मिली थी, लेकिन समीर के कहने से उस पर भी ड्रग की रिकवरी दिखा दी गई. समीर ने इस केस में अपने (एनसीबी) कार्यालय के ड्राइवर विजय को पंच यानी गवाह बना दिया था, जबकि कानून कहता है कि गवाह स्वतंत्र होने चाहिए. यह सारा केस फरजी है. जो ड्रग प्राप्त हुई, वह समीर और उन के साथियों ने खुद प्लांट की थी.
आरोप यह भी है कि समीर वानखेड़े ने एनसीबी मुंबई में जब से कार्यभार संभाला, तब से जो भी केस एनसीबी ने किए हैं, उन में पकड़े गए लोगों से लगभग 25 खाली पेपरों पर हस्ताक्षर लिए जाते हैं और अपनी मनमरजी से पंचनामा बदल लिया जाता है.
हस्ताक्षर वाले खाली कागज एनसीबी के सभी इनवेस्टिगेटिंग औफिसर्स की मेज की दराज में रखे हैं व सुपरिटेंडेंट विश्व विजय सिंह की अलमारी में रखे हैं, जिन्हें छापा मार कर निकाल सकते हैं.
इस के साथ थोड़ी मात्रा में ड्रग्स भी समीर व विश्व विजय सिंह के कार्यालय के कमरे से बरामद की जा सकती है.
यह लंबाचौड़ा पत्र जो नवाब मलिक द्वारा सोशल मीडिया पर वायरल किया गया था, इस से यही लगता है कि इसे लिखने वाला नारकोटिक्स विभाग का ही कोई व्यक्ति है, इस में दोराय नहीं कि कोई घर का भेदी ही समीर वानखेडे की लंका ढहाने में लगा है.
मुंबई पुलिस के एसीपी स्तर के एक अधिकारी ने समीर वानखेडे के खिलाफ जबरन वसूली के आरोपों और अन्य मुद्दों की स्वतंत्र जांच शुरू कर दी है. वानखेड़े के खिलाफ मुंबई के अलगअलग थानों में 4 शिकायतें दर्ज की गई हैं.
मुंबई पुलिस ने शिकायतों की जांच के लिए 4 अधिकारियों को नियुक्त किया है. अतिरिक्त पुलिस आयुक्त दिलीप सावंत की देखरेख में यह जांच कराई जा रही है.
क्रूज ड्रग्स मामले में शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की गिरफ्तारी के बाद उस की रिहाई के लिए 25 करोड़ रुपए की रिश्वत मांगने के आरोप भी समीर वानखेडे पर लगे हैं, जिस की सतर्कता जांच शुरू हो चुकी है. इस में वानखेडे द्वारा गवाह बनाया गया भाजपा कार्यकर्ता किरण गोसावी बिचौलिए की भूमिका निभा रहा था.
एनसीबी की 5 सदस्यीय सतर्कता जांच टीम ने मुंबई पहुंच कर वानखेड़े के बयान दर्ज किए. टीम ने दक्षिण मुंबई के बलार्ड एस्टेट स्थित विभाग के दफ्तर से भी कुछ दस्तावेज व रिकौर्डिंग जब्त की हैं. सतर्कता जांच का नेतृत्व कर रहे एनसीबी के उपमहानिदेशक (उत्तरी क्षेत्र) ज्ञानेश्वर सिंह ने इस जांच से जुड़े सभी गवाहों को बुला कर उन के बयान दर्ज किए. समीर वानखेडे खुद को हिंदू बताते हैं. उन के पिता भी खुद को हिंदू कहते हैं मगर मंत्री नवाब मलिक ने समीर वानखेडे के निकाहनामे को सार्वजनिक कर के उन के धर्म पर सवाल खड़ा कर दिया है.
दरअसल, समीर की मां मुसलिम थीं और पिता हिंदू. समीर की पहली शादी एक मुसलिम लड़की शबाना कुरैशी से हुई थी. जिस से बाद में तलाक हो गया. 7 दिसंबर, 2006 को मुंबई में संपन्न यह शादी मुसलिम रीतिरिवाज से हुई थी और निकाहनामे पर समीर का नाम समीर दाऊद वानखेडे लिखा था. नीचे उर्दू में उन के हस्ताक्षर भी हैं.
निकाह कराने वाले काजी ने भी इस बात की तसदीक कर दी कि समीर की शादी मुसलिम तरीके से हुई थी. शरीयत के मुताबिक गैरमुसलिम का निकाह नहीं कराया जा सकता. तो जाहिर है इस के लिए समीर ने मुसलिम धर्म अपनाया होगा क्योंकि शरीयत के मुताबिक निकाह के लिए उन का मुसलिम होना जरूरी है.
निकाह के वक्त उन्होंने 33 हजार रुपए मेहर के रूप में अदा किए थे. उन के निकाहनामे में गवाह नंबर दो अजीज खान, जोकि मुसलिम हैं, समीर वानखेडे की बहन यास्मीन के पति हैं.
निकाह कराने वाले काजी ने भी कहा है कि समीर वानखेडे उस वक्त मुसलिम थे. ऐसे में अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र के आधार पर समीर वानखेडे ने सरकारी नौकरी कैसे पा ली, इस पर बवाल उठ खड़ा हुआ है.
नवाब मलिक का कहना है, ‘‘मैं वानखेडे के धर्म या उन के व्यक्तिगत जीवन को नहीं, बल्कि उन के कपटपूर्ण कृत्य को सामने लाना चाहता हूं, जिस के जरिए उन्होंने आईआरएस की नौकरी हासिल की और एक अनुसूचित जाति के व्यक्ति का हक मारा.’’
नवाब मलिक ने दावा किया है कि एनसीबी ने क्रूज पर छापेमारी नहीं की थी, बल्कि ट्रैप लगा कर कुछ लोगों को फंसाया गया है. और इस में समीर वानखेडे के साथ भाजपा के लोगों की मिलीभगत है.
मलिक कहते हैं कि अगर क्रूज की सीसीटीवी फुटेज खंगाले जाएं तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी. दरअसल क्रूज के जो वीडियो सोशल मीडिया और समाचार चैनलों पर दिखाई दे रहे हैं उस में एक दाड़ीवाला व्यक्ति अपनी मंगेतर के साथ वहां डांस करता नजर आ रहा है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक वह एक अंतरराष्ट्रीय ड्रग माफिया है और समीर वानखेडे का अच्छा दोस्त है, जो तिहाड़ और राजस्थान की जेलों में कई साल सजा काट चुका है.
मलिक पूछते हैं कि वह व्यक्ति वहां क्या कर रहा था? उस को समीर वानखेडे से बात करते भी देखा गया है. इस के अलावा 2 व्यक्ति जिन्हें एनसीबी ने अपना गवाह बनाया है, वे दोनों न सिर्फ भाजपा से जुड़े हुए हैं, बल्कि उन में से एक किरण गोसावी, जो इस मामले के उछलने के बाद लखनऊ से पुणे तक अपनी जान बचा कर भागता और छिपता फिरा और जिसे पुणे में गिरफ्तार कर लिया गया है. कहा जा रहा है कि आर्यन खान को छोड़ने की एवज में उसी ने शाहरुख खान से 25 करोड़ रुपए की डील करने की कोशिश की थी.
यह व्यक्ति एक वीडियो में आर्यन खान के पास बैठा अपने मोबाइल फोन पर आर्यन का बयान रिकौर्ड करते हुए दिख रहा है और एक अन्य वीडियो में वह आर्यन का हाथ पकड़ कर ले जाते हुए भी नजर आ रहा है.
सवाल यह है कि जब यह व्यक्ति न तो पुलिस का है और न नारकोटिक्स विभाग का, तो वह ये हरकतें किस हैसियत से कर रहा था.
बहरहाल, अब आर्यन खान सहित 5 अन्य मामलों की जांच समीर वानखेडे से हटा कर एसआईटी को सौंप दी गई है. इस स्पैशल जांच टीम का निर्देशन 1996 बैच के आईपीएस अधिकारी और एनसीबी के डीडीजी (औपरेशंस) संजय कुमार सिंह कर रहे हैं. देखना यह होगा कि इस जांच में समीर वानखेड़े पाकसाफ साबित होते हैं या नहीं.
30 अगस्त, 2021 को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार होने के कारण पुलिस स्टाफ ने सुबह भोर होने तक सुरक्षा इंतजामों में ड्यूटी दी थी. इसीलिए तरुण मन्ना 31 अगस्त की सुबह 9 बजे जब साउथ ईस्ट दिल्ली के सरिता विहार थाने में अपने भाई अरुण की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने गया तो उसे थानाप्रभारी अनंत गुंजन से मिलने के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ा. जब थानाप्रभारी अपने रेस्टरूम से तैयार हो कर औफिस में आए तो तरुण ने उन्हें अपने भाई के गायब होने की जानकारी दी. तब अनंत गुंजन ने तरुण से पूछा, ‘‘क्या हुआ तुम्हारे भाई को क्या घर में किसी से झगड़ा हो गया था.’’
‘‘नहीं सर, कोई झगड़ा नहीं हुआ था कल शाम को 5 बजे वह यह कह कर घर से बाहर गया था कि 10 मिनट में वापस लौट आएगा अपने दोस्त जस्सी से मिलने जा रहा है.
‘‘जब करीब एक घंटा हो गया और वह लौट कर नहीं आया तो हमें चिंता होने लगी. हम ने उस का फोन भी मिलाया लेकिन वह स्विच्ड औफ था. इसी दौरान उस के दोस्त जस्सी का फोन मेरी मां शांति देवी के फोन पर आया और उस ने कहा मीशा से बात करा दो.’’
तरुण मन्ना ने जब यह बताया कि अरुण के दोस्त जस्सी ने उस की मां शांति देवी से मीशा से बात कराने के लिए कहा था तो थानाप्रभारी अनंत गुंजन चौंक पड़े. क्योंकि बात तो अरुण के बारे में हो रही थी, लेकिन अचानक बीच में मीशा का जिक्र कहां से आ गया.
इसलिए उन्होंने तरुण को रोक कर पूछा, ‘‘एक मिनट ये मीशा कौन है? क्या यह तुम्हारे घर की कोई सदस्य है?’’
‘‘नहीं सर, अरुण ने ही अपना नाम बदल कर मीशा रख लिया था, इसलिए अब उसे मीशा कहते हैं.’’
एसएचओ अनंत गुंजन का दिमाग घूम गया. भला कोई लड़का लड़कियों वाला नाम क्यों रखेगा. अचानक पूरे मामले में उन की दिलचस्पी बढ़ गई.
तरुण मन्ना ने अरुण के मीशा बनने की जो कहानी बताई, वह भी दिलचस्प थी. लेकिन इस समय उन के लिए यह जानना जरूरी था कि अरुण उर्फ मीशा आखिर क्यों और कैसे लापता हो गया. तरुण ने बताया कि जस्सी का फोन आने के बाद उस की मां चौंक पड़ीं. क्योंकि मीशा तो उन से यह कह कर गई थी कि वह जस्सी से मिलने जा रही है और जस्सी पूछ रहा था कि मीशा कहां है?
तरुण के मुताबिक उस की मां ने जस्सी को बता दिया मीशा तो उस से मिलने की बात कह कर करीब एक घंटा पहले घर से निकली थी और अभी तक घर नहीं लौटी है.
यह बात सुन कर जस्सी भी हैरान रह गया क्योंकि मीशा तो उस से मिलने आई ही नहीं. फिर उस ने अपने परिवार वालों से झूठ क्यों बोला.
इसी तरह कई घंटे बीत गए, लेकिन मीशा घर नहीं लौटी. जैसेजैसे वक्त गुजरता रहा, घर वालों की चिंता बढ़ती गई. परिवार वालों को यह भी समझ नहीं आ रहा था कि कभी झूठ न बोलने वाला अरुण उर्फ मीशा ने घर से बाहर जाने के लिए जस्सी का नाम क्यों लिया था.
हैरानी वाली बात यह भी थी कि मीशा का फोन भी लगातार बंद आ रहा था. इस वजह से घर वालों को लग रहा था कि कहीं उस के साथ कोई अप्रिय घटना तो नहीं हो गई.
तरुण मन्ना, उस की मां और पिताजी ने एक के बाद एक शाम से रात तक अरुण उर्फ मीशा के सभी दोस्तों को फोन किए, लेकिन उस का कहीं कोई सुराग नहीं लगा.
पूरी रात उन की आंखों में ही बीत गई. मीशा पूरी रात घर नहीं लौटी. तरुण मन्ना और उस के पिता ने आसपड़ोस के लोगों से भी मीशा के लापता होने का जिक्र किया तो सब ने सलाह दी कि उस की थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी जाए.
इसी सलाह को मान कर तरुण मन्ना अपने एकदो पड़ोसियों को ले कर दक्षिणपूर्वी दिल्ली के सरिता विहार थाने पहुंचा था. सारी बात सुन कर थानाप्रभारी अनंत गुंजन ने तत्काल ड्यूटी अफसर को बुला कर अरुण उर्फ मीशा (26) के लापता होने की सूचना दर्ज करवा दी और उस की जांच का जिम्मा तेजतर्रार एएसआई सत्येंद्र सिंह को सौंप दिया.
उन्होंने तरुण मन्ना को भरोसा दिया कि पुलिस इस मामले में अरुण उर्फ मीशा के दोस्त जस्सी की भी जांच करेगी कि कहीं इस मामले में उस की तो कोई मिलीभगत नहीं है.
जांच का काम हाथ में लेते ही एएसआई सत्येंद्र ने गुमशुदगी के मामलों में की जाने वाली सारी औपचारिकताएं करनी शुरू कर दीं. उन्होंने दिल्ली के सभी थानों और पड़ोसी राज्यों को मीशा का हुलिया और उस की फोटो भेज कर लापता होने की सूचना दे दी. साथ ही उन्होंने गुमशुदगी के लिए बने नैशनल पोर्टल पर भी जानकारी डाल दी.
एएसआई सत्येंद्र सिंह ने मीशा की गुमशुदगी से जुड़े पैंफ्लेट और पोस्टर छपवा कर सभी थानों में भिजवा दिए. उन्होंने अरुण उर्फ मीशा के भाई तरुण व परिवार के दूसरे सदस्यों से भी पूछताछ की. मसलन, उस की किनकिन लोगों से दोस्ती थी, वह कहां नौकरी करता था, किन लोगों के साथ उस का मिलनाजुलना था और किसी से उस की दुश्मनी या कोई विवाद तो नहीं था, आदि.
जांच की इस काररवाई व पूछताछ में 2-3 दिन का वक्त गुजर गया. चूंकि घर वाले बारबार मीशा के लापता होने में जस्सी का हाथ होने की बात कह रहे थे. लिहाजा एएसआई सत्येंद्र ने मीशा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के साथ जस्सी का फोन नंबर ले कर उस के फोन की भी काल डिटेल्स निकलवा ली.
उन्होंने तरुण मन्ना से जस्सी का पता ले कर जस्सी को पूछताछ के लिए सरिता विहार थाने बुलवा लिया.
एएसआई सत्येंद्र ने जब जस्सी से पूछताछ शुरू की तो उस ने बिना लागलपेट के बता दिया कि जिस शाम मीशा अपने घर से लापता हुई, उस ने उसी समय मीशा को फोन जरूर किया था. उस वक्त वह घर पर ही थी.
जस्सी ने बताया, ‘‘सर उस वक्त मैं सरिता विहार इलाके में था. मैं ने मीशा को फोन कर के पूछा था कि अगर वह फ्री है और घर में कोई जरूरी काम नहीं है तो वह आली बसस्टैंड पर आ कर मिल ले. क्योंकि उस दिन जन्माष्टमी थी और मैं उस के साथ मंदिर घूमना चाहता था.’’
‘‘मीशा कितनी देर बाद आई?’’ एएसआई सत्येंद्र ने पूछा.
‘‘नहीं आई सर, मैं करीब एक घंटे तक वहां खड़ा रहा लेकिन मीशा नहीं आई. फिर मैं ने सोचा चलो घर तो पास में ही है, वहीं जा कर मीशा से मिल लेता हूं.’’
एक क्षण के लिए सांस लेने के लिए रुक कर जस्सी ने बताना शुरू किया, ‘‘सर, इसीलिए मैं ने मीशा का फोन लगा कर पूछना चाहा कि अगर वह नहीं आ सकती तो मैं खुद उस से मिलने के लिए घर आ जाता हूं. लेकिन सर उस का फोन भी स्विच्ड औफ मिला.
‘‘मैं ने कई बार फोन लगाया, लेकिन हर बार स्विच्ड औफ मिला तो हार कर मैं ने मीशा की मम्मी को फोन कर लिया और उन से पूछा कि मीशा कहां है. लेकिन सर, मुझे यह जान कर हैरानी हुई कि मीशा घर पर नहीं थी. पता चला कि वह मेरा फोन आने के कुछ देर बाद ही घर में यह बता कर कहीं चली गई थी कि वह जस्सी से यानी मुझ से मिलने जा रही है.’’
जस्सी ने पूरी कहानी साफ कर दी. और फिर एएसआई की तरफ सवालिया नजरों से देखते हुए कहने लगा, ‘‘सर, आप ही बताइए कि जब मीशा मेरी इतनी अच्छी दोस्त थी, हमारे बीच किसी तरह का कोई विवाद भी नहीं था. 2-4 दिन से नहीं करीब डेढ़दो साल से हम एकदूसरे के दोस्त हैं. मैं उस के घर भी आताजाता था. उस का मेरा कोई पैसे का लेनदेन भी नहीं था. कारोबारी दुश्मनी भी नहीं थी. तो फिर भला मैं उसे लापता या किडनैप क्यों करूंगा. और उस का किडनैप कर के क्या करूंगा. मैं तो खुद ही उस के लापता होने के बाद से बहुत परेशान हूं.’’ कहते हुए जस्सी की आंखें भर आईं.
पूछताछ करते हुए एएसआई सत्येंद्र लगातार जस्सी की आंखों को पढ़ रहे थे. उन्हें कहीं भी उस की बातों में झूठ नजर नहीं आया.
एएसआई सत्येंद्र ने जस्सी से मीशा के बारे में और भी कई तरह की जानकारी ली. मसलन दोनों की दोस्ती कब हुई. दोनों के बीच में किस तरह के रिश्ते थे.
जस्सी ने एएसआई सत्येंद्र को अपने और मीशा के बारे में सब कुछ बता दिया. कुल मिला कर एएसआई सत्येंद्र जस्सी से पूछताछ में संतुष्ट नजर आए.
एएसआई सत्येंद्र ने जस्सी को थानाप्रभारी अनंत गुंजन तथा अतिरिक्त थानाप्रभारी दिनेश कुमार तेजवान के सामने भी पेश किया. उन्होंने भी जस्सी से पूछताछ की, जिस में उस ने वही जवाब दिया जो उस ने एएसआई सत्येंद्र को दिया था.
इस दौरान एएसआई सत्येंद्र ने मीशा के फोन की काल डिटेल्स निकाल कर उस की जांचपड़ताल शुरू कर दी थी. जिस में एक बात की पुष्टि तो हो गई कि शाम के वक्त जस्सी ने मीशा को फोन किया था. फिर उस के आधा घंटे बाद मीशा का फोन बंद हो गया था.
अब तक की जांच में जस्सी के ऊपर शक करने की कोई वजह सामने नहीं आ रही थी.॒ लेकिन मीशा को फोन करने वाला आखिरी शख्स जस्सी ही था, इसलिए उसे आसानी से शक के दायरे से बाहर नहीं किया जा सकता था.
एएसआई सत्येंद्र ने मीशा के फोन की काल डिटेल्स में उस के फोन की आखिरी लोकेशन देखनी शुरू की तो पता चला कि फोन की लोकेशन करीब आधे घंटे बाद फरीदाबाद के सराय अमीन इलाके में थी. इस के बाद मीशा के फोन की लोकेशन बंद हो गई थी.
मतलब साफ था कि फरीदाबाद के सराय अमीन में मीशा के फोन को या तो तोड़ दिया गया या कहीं फेंक दिया गया.
मीशा के फोन की काल डिटेल्स के बाद एएसआई सत्येंद्र ने जस्सी के फोन की काल डिटेल्स की पड़ताल शुरू तो वह यह देख कर दंग रह गए कि जस्सी के फोन की लोकेशन भी वहांवहां थी, जहां मीशा के फोन की लोकेशन थी.
जिस वक्त मीशा के फोन की आखिरी लोकेशन फरीदाबाद के सराय अमीन में थी, ठीक उसी वक्त जस्सी के फोन की लोकेशन भी वहीं थी.
एएसआई सत्येंद्र को न जाने क्यों अचानक मीशा के साथ अनर्थ की आशंका होने लगी. वह समझ गए कि जस्सी पुलिस के साथ खेल खेल रहा है.
मीशा के परिवार वालों ने उस के खिलाफ जो शक जाहिर किया था, वह एकदम सही था. एएसआई सत्येंद्र ने अब तक हुई विवेचना के बारे में तत्काल थानाप्रभारी अनंत गुंजन को बताया तो वह भी समझ गए कि मीशा के परिजनों ने जस्सी पर अपहरण का जो शक जाहिर किया था एकदम सही था.
किडनैपिंग की पुष्टि हो चुकी थी. लिहाजा अनंत गुंजन ने मीशा के भाई तरुण मन्ना को थाने बुलवा लिया और उस की शिकायत के आधार पर उसी दिन यानी 5 सितंबर को सरिता विहार थाने में अपहरण 365 आईपीसी का मामला दर्ज कर लिया.
अब इस मामले की जांच एडीशनल एसएचओ दिनेश कुमार तेजवान को सौंपी गई. अपराध की गंभीरता को समझते हुए अनंत गुंजन ने दक्षिणपूर्वी जिले के डीसीपी आर.पी. मीणा और सरिता विहार के एसीपी बिजेंद्र सिंह को पूरे मामले से अवगत करा दिया.
थानाप्रभारी अनंत गुंजन ने जांच अधिकारी इंसपेक्टर तेजवान के सहयोग के लिए एएसआई सत्येंद्र के साथ हैडकांस्टेबल मनोज और अनिल को भी टीम में शामिल कर लिया.
जांच अधिकारी इंसपेक्टर तेजवान ने एएसआई सत्येंद्र से पूरे मामले की एकएक जानकारी ली और एक टीम को जस्सी को पकड़ने के लिए फरीदाबाद की शिव कालोनी रवाना किया, जहां वह रहता था.
लेकिन जस्सी को शायद तब तक इस बात का अहसास हो चुका था कि पुलिस उसे कभी भी गिरफ्तार कर सकती है. इसलिए जब पुलिस वहां पहुंची तो वह नहीं मिला. इंसपेक्टर तेजवान ने एएसआई सत्येंद्र को जस्सी की गिरफ्तारी के काम पर लगा दिया और खुद यह पता लगाने में जुट गए कि मीशा आखिर कहां है. वैसे अब तक पुलिस को यकीन हो चुका था कि हो न हो जस्सी ने शायद उस की हत्या कर दी है.
चूंकि मीशा के फोन की लास्ट लोकेशन फरीदाबाद के सराय अमीन इलाके की थी, इसलिए उन्होंने वहीं पर अपना सारा ध्यान केंद्रित कर दिया.
दिल्ली से लगते फरीदाबाद के सभी थानों में इस बात की जांचपड़ताल शुरू कर दी कि कहीं 30 तारीख से अब तक किसी लड़की का शव बरामद तो नहीं हुआ है. एनसीआर के सभी शहरों को जोड़ कर दिल्ली पुलिस के कुछ वाट्सऐप ग्रुप हैं, जिस में पुलिस अपराधियों से संबंधित किसी भी तरह की सूचना लेनेदेने का काम करती है.
इंसपेक्टर तेजवान ने इसी वाट्सऐप ग्रुप पर अरुण उर्फ मीशा की गुमशुदगी की जानकारी डाल कर फरीदाबाद पुलिस से जब जानकारी एकत्र करनी शुरू की तो पता चला की फरीदाबाद के सेक्टर-17 थाना क्षेत्र में पुलिस को एक नाले से 4 सितंबर, 2021 की सुबह एक लाश मिली थी.
वह लाश पूरी तरह सड़ चुकी थी. हालांकि वह लाश तो किसी पुरुष की थी, लेकिन उस के शरीर पर जो कपड़े थे वह महिलाओं वाले थे. तेजवान समझ गए कि हो न हो, ये लाश मीशा की ही होगी. उन्होंने मीशा के परिजनों को बुलवा लिया और उन्हें ले कर फरीदाबाद के सेक्टर-17 थाने पहुंच गए.
वहां सेक्टर-17 पुलिस ने उन्हें बताया कि 4 सितंबर को नाले से जो अज्ञात लाश मिली थी, उस को अभी अस्पताल में प्रिजर्व कर के रखा गया है. सेक्टर-17 थाना पुलिस के साथ इंसपेक्टर तेजवान और मीशा के परिजन जब सिटी हौस्पिटल पहुंचे तो वहां पोस्टमार्टम के बाद मुर्दाघर में जो लाश रखी थी, वह इतनी सड़गल चुकी थी कि उस की पहचान करना मुश्किल था.
लेकिन लाश के पहने हुए कपड़े देख कर मीशा की मां ने पहचान कर ली कि वह लाश मीशा की ही थी. इस के बाद पुलिस ने लाश की शिनाख्त की औपचारिकता पूरी कर ली.
फरीदाबाद पुलिस ने मीशा का शव उस के परिजनों को सौंप दिया, जिस का उन्होंने अंतिम संस्कार कर दिया गया.
चूंकि मीशा की लाश बरामद हो चुकी थी, अत: अब ये मामला हत्या का बन चुका था. इसलिए उन्होंने मुकदमे में हत्या की धारा 302 जोड़ दी.
अब पुलिस सरगरमी से जस्सी की तलाश कर रही थी, क्योंकि उसी के बाद साफ हो सकता था कि मीशा की हत्या क्यों और कैसे की गई.
पुलिस टीम लगातार जस्सी के फोन को सर्विलांस पर लगा कर यह पता लगा रही थी कि उस की लोकेशन कहां है.
आखिर पुलिस को सफलता मिल ही गई. 12 सितंबर को पुलिस टीम ने जस्सी को फरीदाबाद के पलवल शहर से गिरफ्तार कर लिया, वहां वह अपने एक रिश्तेदार के घर छिपा था.
पुलिस ने जब जस्सी से पूछताछ की तो मीशा हत्याकांड की चौंकाने वाली कहानी सामने आई.
जस्सी (24) का पूरा नाम सुमित पाठक है. बिहार के रहने वाले जस्सी के परिवार में मातापिता और एक बड़ा भाई और एक छोटी बहन है. पिता और भाई दोनों प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं.
साधारण परिवार का जस्सी शुरू से एक खास तरह की आदत का शिकार था. उसे बचपन से ही लड़कियों के बजाय लड़कों में दिलचस्पी थी. उस का सैक्स करने का तो मन करता, लेकिन लड़कियों के साथ नहीं बल्कि लड़कों के साथ. यही कारण था कि कई ट्रांसजेंडर से उस की दोस्ती हो गई थी. 12वीं तक पढ़ाई के बाद जस्सी ने फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा कर के फरीदाबाद के एक फैशन से जुड़े एनजीओ में नौकरी कर ली.
एनजीओ में नौकरी के कारण जस्सी को अकसर कई फैशन शो और प्रोग्राम में एनजीओ की तरफ से जाना पड़ता था. करीब 2 साल पहले जस्सी की मुलाकात अरुण से हुई. उम्र में अरुण उस से 2 साल बड़ा था. पहली बार हुई मुलाकात में ही जस्सी को पता चल गया कि अरुण जन्म से लड़का जरूर है, लेकिन हारमोंस से वह पूरी तरह लड़की है.
लड़कियों जैसे हावभाव, चलनेफिरने और बात करने में लड़कियों की तरह अदाएं दिखाना. पहनावा और मेकअप भी अरुण ऐसा करता कि देखने वाला पहली नजर में लड़की समझने की भूल कर लेता.
अरुण के परिवार में मातापिता और एक छोटे भाई तरुण के अलावा कोई नहीं था. पिता आली गांव में ही पान का खोखा लगाते थे, जबकि मां और भाई बदरपुर स्थित प्राइवेट कंपनियों में नौकरी करते थे.
अरुण के बचपन से ही लड़कियों की तरह व्यवहार करने और बदलते हारमोन को ले कर परिवार वाले भी परेशान थे. उन्होंने कई जगह उस का इलाज भी कराया, लेकिन जवान होते होते डाक्टरों ने जवाब दे दिया कि उस के हारमोन पूरी तरह बदल चुके हैं.
अरुण ने बड़े होने के बाद अपना नाम मीशा रख लिया और वह फरीदाबाद की ‘पहल’ एनजीओ में नौकरी करने लगा. मीशा और जस्सी की मुलाकात हुई तो जल्दी ही दोनों की दोस्ती घनिष्ठता में बदल गई.
क्योंकि जस्सी को तो लड़कों में ही अधिक रुचि थी. वहीं मीशा को भी किसी ऐसे दोस्त की तलाश थी, जिस को लड़की में नहीं बल्कि लड़कों या लड़की के भेष में छिपी आधीअधूरी लड़की में रुचि हो.
दोनों में जल्द ही जिस्मानी संबध भी बन गए. मीशा की ख्वाहिश थी कि वह अपना सैक्स परिवर्तन करवा कर पूरी तरह लड़की बन जाए. एक दिन उस ने अपनी यह ख्वाहिश अपने पार्टनर जस्सी से बताई तो जस्सी ने मेहनत से जो पैसे जोड़े थे, उस में से 50 हजार रुपए खर्च कर के अरुण के ऊपरी भाग यानी ब्रेस्ट का औपरेशन करवा दिया.
औपरेशन के बाद सीने पर लड़कियों जैसे उभार निकलते ही मीशा की खूबसूरती में चारचांद लग गए. इस के बाद तो अरुण ने खुद को सार्वजनिक रूप से मीशा के रूप में परिचित कराना शुरू कर दिया. मीशा और और जस्सी के सबंध इस के बाद और भी प्रणाढ़ हो गए. दोनों साथ घूमते, साथ फिल्में देखते. इतना ही नहीं, जस्सी का मीशा के घर पर भी बेरोकटोक आनाजाना शुरू हो गया था. मीशा के परिवार वालों ने भी इसे नियति मान लिया था. मीशा अब अपने लिंग का औपरेशन करवा कर पूरी तरह लड़की बनना चाहती थी.
हालांकि औपरेशन के बाद लड़कियों जैसे यौनांग तो एकदम तैयार नहीं हो पाते, लेकिन लिंग का औपरेशन करवा कर उस से अपने पुरुष होने की सजा से मुक्ति मिल जाती.
मीशा जस्सी से जिद करने लगी कि वह अपने निचले हिस्से का भी औपरेशन करवा कर पूरी तरह एक लड़की बनना चाहती है. वैसे जस्सी को उस के औपरेशन में कोई दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन मीशा की जिद और खुशी के लिए जस्सी ने हां कर दी.
जस्सी ने उस से कहा कि अगले कुछ महीनों में जब उस के पास पैसे इकट्ठा हो जाएंगे तो वह औपरेशन करवा देगा. क्योंकि इस में करीब एक लाख रुपए का खर्च डाक्टरों ने बताया था.
जस्सी मीशा के ऊपर दिल खोल कर पैसा खर्च करता था. जस्सी के परिवार को भी यह बात पता थी कि वह एक ऐसी लड़की से प्यार करता है जो न तो पूरी तरह लड़का है और न ही लड़की.
परिवार वालों ने ऐसा रिश्ता जोड़ने के लिए उसे मना भी किया, लेकिन उस ने परिवार की एक नहीं सुनी.
इसी दौरान पिछले कुछ महीनों से धीरेधीरे मीशा के व्यवहार में परिवर्तन आने लगा. वह क्लबों में जाने लगी. ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के बहुत सारे लोगों से उस की दोस्ती हो गई. वह उन के साथ नाइट पार्टियों में जाती. कुछ लोगों के साथ उस के घनिष्ठ संबध भी बन गए.
जब जस्सी को इस बात का अहसास होने लगा और उसे भनक लगी तो उस ने मीशा को रोकनाटोकना चाहा. लेकिन मीशा जिंदगी के जिस रास्ते पर चल पड़ी थी, वहां उस की मंजिल जस्सी नहीं था.
लिहाजा उस ने जस्सी से साफ कह दिया कि वह उसे अपनी प्रौपर्टी न समझे. वह किस के साथ घूमेगी, किस के साथ जाएगी, ये वह खुद तय करेगी.
जस्सी ने भी उस से एकदो बार कहा कि उस ने अपनी मेहनत की कमाई उस के औपरेशन और खर्चों पर इसलिए लुटाई थी ताकि वह उस की बन कर रहे. जस्सी ने उस से एक दिन गुस्से में यह तक कह दिया कि अगर वह उस की नहीं रहेगी तो किसी की नहीं रहेगी. लेकिन मीशा ने उस की बात हवा में उड़ा दी.
लेकिन यह बात मीशा ने अपनी मां को जरूर बता दी थी. जब जस्सी ने देखा कि मीशा पूरी तरह काबू से बाहर हो चुकी है. ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लोगों से मिलना देर रात तक उन के साथ पार्टी करना और मस्ती करना उस की आदत बन चुकी है तो उस ने तय कर लिया कि वह उस की हत्या कर देगा. इस के लिए उस ने पूरी साजिश रची. 30 अगस्त, 2021 को उस ने 4 बजे मीशा को फोन कर के उसे 10 मिनट के लिए घर के पास ही मिलने के लिए बुलाया.
मीशा जब उस से मिलने पहुंची तो वह उसे तुरंत मोटरसाइकिल पर बैठा कर यह कह कर अपने साथ ले गया कि अभी आधे घंटे में आते हैं. तुम्हारी किसी दोस्त से मुलाकात करानी है, जो तुम्हारे जैसा ही है. इसी उत्सुकता में मीशा विरोध न कर सकी.
वह 15 मिनट में ही मीशा को मोटरसाइकिल से दिल्ली से सटे फरीदाबाद के सराय अमीन इलाके में नाले के किनारे एक सुनसान जगह ले गया. वहां उस ने मीशा की गोली मार कर हत्या कर दी. मीशा का मोबाइल उस ने अपने हाथ में ले कर पहले ही बंद कर दिया था. हत्या करने के बाद उस ने शव को नाले में फेंक दिया. इस के बाद उस ने मीशा के मोबाइल का सिम निकाल कर तोड़ दिया और फोन तोड़ कर नाले में फेंक दिया. मीशा का शव नाले में बहते हुए 5 किलोमीटर दूर सेक्टर-17 थाने की सीमा में पहुंच गया, जिसे 5 सितंबर को वहां की पुलिस ने बरामद कर लिया.
मीशा की हत्या करने के बाद जस्सी फिर से मोटरसाइकिल से आली गांव पहुंचा, जहां से उस ने मीशा की मां को फोन कर के मीशा से बात कराने के लिए कहा. फिर वह घर चला गया. पुलिस ने पूछताछ के बाद जस्सी की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा और मोटरसाइकिल बरामद कर ली. पुलिस ने मीशा का मोबाइल बरामद करने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मिला.
पूछताछ के बाद पुलिस ने जस्सी को 13 सितंबर, 2021 को अदालत में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.
—कथा पुलिस की जांच, पीडि़त परिवार के कथन और आरोपी के बयान पर आधारित
परिवार में कुल 4 लोग थे. मुकेश, उन की पत्नी सुमन, बड़ी बेटी रितु और छोटा बेटा आदित्य. आदित्य को प्यार से घर के लोग आदि कहते थे. बेटा और बेटी दोनों पढ़ते थे.
बेटे आदि के अपहरण की बात जान कर मुकेश परेशान हो गए. अपहर्त्ता कौन थे, यह भी पता नहीं था. वे 2 करोड़ रुपए मांग रहे थे. भले ही मुकेश का कारोबार अच्छा चल रहा था, लेकिन 2 करोड़ की रकम कोई मामूली थोड़े ही थी. वे सोचने लगे कि क्या करें और क्या नहीं करें. उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था. आदि के अपहरण का पता चलने के बाद से मुकेश, उन की पत्नी और बेटी के आंसू नहीं रुक पा रहे थे.
मुकेश इसी बात पर सोचविचार कर रहे थे कि रात करीब 8 बजे उन के मोबाइल की घंटी बजी.
उन्होंने तुरंत काल रिसीव कर कहा, ‘‘हैलो.’’
दूसरी तरफ से धमकी भरी आवाज आई, ‘‘मुकेश, हम ने तुम्हारे बेटे का अपहरण कर लिया है. बेटे को जिंदा देखना चाहते हो तो 2 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो. ध्यान रखना पुलिस
को सूचना दी, तो तुम्हारा बेटा जिंदा नहीं बचेगा.’’
‘‘तुम कौन हो? मेरा बेटा कहां है और उस से मेरी बात कराओ?’’ मुकेश ने घबराई हुई आवाज में काल करने वाले से एक साथ कई सारे सवाल पूछे.
‘‘हम बहुत खतरनाक लोग हैं. तुम्हारा बेटा हमारे पास ही है, उस से बात भी करा देंगे. लेकिन तुम कल तक पैसों का इंतजाम कर लो.’’ काल करने वाले ने यह कह कर फोन काट दिया.
पहले सुमन और इस के बाद मुकेश के पास आए फोन से यह साफ हो गया था कि आदि का अपहरण हो गया है. लेकिन यह पता नहीं चला था अपहर्त्ता कौन हैं? वे 2 करोड़ रुपए की रकम मांग रहे थे, जो मुकेश की हैसियत से बहुत ज्यादा थी.
काफी सोचविचार के बाद मुकेश ने पुलिस को सूचना देने का फैसला किया और जबलपुर के संजीवनी नगर पुलिस थाने पहुंच कर उन्होंने रिपोर्ट दर्ज करा दी गई.
बच्चे के अपहरण और 2 करोड़ की फिरौती मांगने का पता चलने पर पुलिस अधिकारी धनवंतरी नगर में मुकेश लांबा के घर पहुंचे और घर वालों से पूछताछ कर बालक आदि की तलाश में जुट गए.
दूसरे दिन 16 अक्तूबर को मुकेश के मोबाइल पर अपहर्त्ताओं का फिर फोन आया. उन्होंने उस से रकम के बारे में पूछा. मुकेश ने उन से कहा कि उस के पास 2 करोड़ रुपए नहीं हैं. वह मुश्किल से 8-10 लाख रुपए का इंतजाम कर सकता है.
अपहर्त्ताओं ने कहा कि 2 करोड़ नहीं दे सकते, तो कुछ कम दे देना लेकिन 8-10 लाख से कुछ नहीं होगा. हम तुम्हें शाम को दोबारा फोन करेंगे, तब तक पैसों का इंतजाम कर लेना.
मुकेश ने अपहर्त्ताओं से हुई सारी बातें पुलिस को बता दीं. पुलिस ने उस मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया, जिस नंबर से मुकेश के पास अपहर्त्ताओं का फोन आया था. अपहर्त्ताओं ने तब तक 3 बार फोन किए थे. ये फोन एक ही नंबर से किए गए थे.
उसी दिन शाम को चौथी बार अपहर्त्ताओं का मुकेश के मोबाइल पर फिर फोन आया. मुकेश ने मिन्नतें करते हुए कहा कि मुश्किल से 8 लाख रुपए का इंतजाम हुआ है. ये पैसे तुम ले लो और मेरे बेटे को लौटा दो.
मुकेश ने कहा कि बेटे से मेरी एक बार बात तो करा दो. मुकेश के अनुरोध पर अपहर्त्ताओं ने आदि से उस की बात कराई. मोबाइल पर आदि रोतीबिलखती आवाज में कह रहा था, ‘‘पापा, इन की बात मान लो. ये लोग बहुत खतरनाक हैं, मुझे मार डालेंगे.’’
बेटे की आवाज सुन कर मुकेश को कुछ संतोष हुआ. मुकेश के काफी गिड़गिड़ाने पर अपहर्त्ता 8 लाख रुपए ले कर आदि को छोड़ने पर राजी हो गए. अपहर्त्ताओं ने मुकेश को उसी रात जबलपुर में पनागर से सिरोहा मार्ग पर एक जगह नाले के पास पैसों का बैग रख आने को कहा और यह भरोसा दिया कि पैसे मिलने के आधे घंटे बाद बच्चे को तुम्हारे घर के पास छोड़ देंगे.
अपहर्त्ताओं के 8 लाख रुपए लेने पर राजी हो जाने पर मुकेश को उम्मीद की कुछ किरण नजर आई. वह सोचने लगे कि यह बात पुलिस को बताए या नहीं. सोचविचार के बाद उन्होंने तय किया कि पुलिस को बताने में ही भलाई है, क्योंकि बेटे की वापसी का पुलिस को बाद में पता चलेगा, तो वे कई तरह के सवाल पूछेंगे. इसलिए मुकेश ने अपहर्त्ताओं से हुई सारी बात पुलिस को बता दी.
पुलिस अधिकारियों ने आपस में बातचीत कर फैसला किया कि मुकेश को 8 लाख रुपए एक बैग में ले कर तय जगह पर भेजा जाए. इस दौरान पुलिस दूर से निगरानी करती रहेगी. अपहर्त्ता जब पैसों का बैग लेने आएंगे, तो उन्हें वहीं से पकड़ लिया जाएगा.
उस रात तय समय और तय जगह पर मुकेश ने 8 लाख रुपयों से भरा बैग रख दिया. कहा जाता है कि इस दौरान आसपास पुलिस निगरानी कर रही थी. इस के बावजूद अपहर्त्ता पैसों का वह बैग ले गए और पुलिस को कुछ पता नहीं चल सका.
इधर, पैसों का बैग तय जगह पर छोड़ आने के बाद मुकेश और उस के घरवाले आदित्य के घर लौटने का इंतजार करते रहे. हरेक आहट पर उन की नजरें घर के गेट पर टिक जातीं. घर में मौजूद एक भी आदमी सो नहीं सका. पूरी रात बेचैनी से गुजर गई, लेकिन आदि नहीं आया.
मुकेश समझ नहीं पा रहे थे कि बेटा आदि वापस क्यों नहीं आया? अपहर्त्ताओं ने अपना वादा क्यों नहीं निभाया? क्या अपहर्त्ताओं को 8 लाख रुपए कम लगे या उन्होंने आदि को मार डाला?
17 अक्तूबर को आदित्य का अपहरण हुए तीसरा दिन हो गया था. पैसे भी चले गए थे और बेटा भी वापस नहीं आया तो मुकेश अपहर्त्ताओं के मोबाइल नंबर पर काल करने की कोशिश करते रहे, लेकिन वह नंबर नहीं मिल रहा था.
राजस्थान का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है. मेवाड़ और मारवाड़ की धरती शूरवीरता के लिए जानी जाती है. रेतीले धोरों और अरावली पर्वतमालाओं से घिरे इस सूबे के लोगों को भले ही जान गंवानी पड़ी, लेकिन युद्ध के मैदान में कभी पीठ नहीं दिखाई. इस के इतर राजस्थान की कुछ जनजातियां अपराध के लिए भी जानी जाती रही हैं.
लेकिन अब समय बदल गया है. ऐसे तमाम लोग हैं, जो कामयाब न होने पर अपने सपने पूरे करने के लिए जनजातियों की तरह अपराध की राह पर चल निकले हैं. अन्य राज्यों के लोगों की तरह राजस्थान के भी हजारों लोग भारत के दक्षिणी राज्यों में रोजगार की वजह से रह रहे हैं.
मारवाड़ के रहने वाले कुछ लोगों ने अपने विश्वस्त साथियों का गिरोह बना कर तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में करोड़ों की चोरी, लूट और डकैती जैसे संगीन अपराध किए हैं. ये वहां अपराध कर के राजस्थान आ जाते हैं और अपने गांव या रिश्तेदारियों में छिप जाते हैं. कुछ दिनों में मामला शांत हो जाता है तो फिर वहां पहुंच जाते हैं. उन्हें वहां किसी तरह की परेशानी भी नहीं होती, क्योंकि वहां रहतेरहते ये वहां की भाषा भी सीख गए हैं. स्थानीय भाषा की वजह से ये जल्दी ही वहां के लोगों में घुलमिल जाते हैं.
मारवाड़ के इन लुटेरों ने जब वहां कई वारदातें कीं तो वहां की पुलिस इन लुटेरों की खोजबीन करती हुई उन के गांव तक पहुंच गई. लेकिन राजस्थान पहुंचने पर दांव उल्टा पड़ गया. इधर 3 ऐसी घटनाएं घट गईं, जिन में लुटेरों को पकड़ने आई तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की पुलिस खुद अपराधी बन गई. यहां तक कि चेन्नै के एक जांबाज इंसपेक्टर को जान से भी हाथ धोना पड़ा.
चेन्नै के थाना मदुरहोल के लक्ष्मीपुरम की कडप्पा रोड पर गहनों का एक काफी बड़ा शोरूम है महालक्ष्मी ज्वैलर्स. यह शोरूम मुकेश कुमार जैन का है. वह मूलरूप से राजस्थान के जिला पाली के गांव बावरा के रहने वाले हैं. वह रोजाना दोपहर के 1 बजे के करीब शोरूम बंद कर के लंच के लिए घर चले जाते थे. कुछ देर घर पर आराम कर के वह शाम करीब 4 बजे शोरूम खोलते थे.
16 नवंबर, 2017 को भी मुकेश कुमार जैन अपना जवैलरी का शोरूम बंद कर के लंच करने घर चले गए थे. शाम करीब 4 बजे जब उन्होंने आ कर शोरूम खोला तो उन के होश उड़ गए. शोरूम की छत में सेंध लगी हुई थी. अंदर रखे डिब्बों से सोनेचांदी के सारे गहने गायब थे. 2 लाख रुपए रकद रखे थे, वे भी नहीं थे. मुकेश ने हिसाब लगाया तो पता चला कि साढ़े 3 किलोग्राम सोने और 5 किलोग्राम चांदी के गहने और करीब 2 लाख रुपए नकद गायब थे.
दिनदहाड़े ज्वैलरी के शोरूम में छत में सेंध लगा कर करीब सवा करोड़ रुपए के गहने और नकदी पार कर दी गई थी. चोरों ने यह सेंध ड्रिल मशीन से लगाई थी. उन्होंने गहने और नकदी तो उड़ाई ही, शोरूम में लगे सीसीटीवी कैमरे भी उखाड़ ले गए थे.
मुकेश ने वारदात की सूचना थाना मदुरहोल पुलिस को दी. पुलिस ने घटनास्थल पर आ कर जांच की. जांच में पता चला कि शोरूम की छत पर बने कमरे से ड्रिल मशीन द्वारा छेद किया गया था.
शोरूम के ऊपर बने कमरे में कपड़े की दुकान थी. वह दुकान नाथूराम जाट ने किराए पर ले रखी थी. वह भी राजस्थान के जिला पाली के गांव रामावास का रहने वाला था. उसी के साथ दिनेश और दीपाराम भी रहते थे. दिनेश थाना बिलाड़ा का रहने वाला था तो दीपाराम पाली के खारिया नींव का रहने वाला था. ये तीनों पुलिस को कमरे पर नहीं मिले. पुलिस ने शोरूम के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली तो पता चला कि मुकेश के ज्वैलरी शोरूम में नाथूराम और उस के साथियों ने ही लूट की थी.
लूट के 2 दिनों बाद चेन्नै पुलिस ने शोरूम के मालिक मुकेश जैन को साथ ले कर अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए राजस्थान के जिला पाली आ कर डेरा डाल दिया. पुलिस ने पूछताछ के लिए कुछ लोगों को पकड़ा भी, लेकिन नाथूराम जाट और उस के साथियों के बारे में कुछ पता नहीं चला तो चेन्नै पुलिस लौट गई.
11 दिसंबर, 2017 को एक बार फिर चेन्नै पुलिस पाली आई. इस टीम में इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन और इंसपेक्टर टी.एम. मुनिशेखर के अलावा 2 हैडकांस्टेबल अंबरोस व गुरुमूर्ति और एक कांस्टेबल सुदर्शन शामिल थे. यह टीम पाली के एसपी दीपक भार्गव से मिली तो उन्होंने टीम की हर तरह से मदद मरने का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा कि जब भी उन्हें काररवाई करनी हो, बता दें. स्थानीय पुलिस हर तरह से उन की मदद करेगी.
इस के बाद चेन्नै से आई पुलिस अपने हिसाब से आरोपियों की तलाश करती रही. पुलिस ने नाथूराम के 2 नजदीकी लोगों को हिरासत में ले कर उन से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि नाथूराम पाली में जैतारण-रामवास मार्ग पर करोलिया गांव में खारिया नींव के रहने वाले दीपाराम जाट के बंद पड़े चूने के भट्ठे पर मिल सकता है.
इस सूचना पर चेन्नै पुलिस ने पाली पुलिस को बिना बताए 12 दिसंबर की रात करीब ढाई-तीन बजे करोलिया गांव स्थित दीपाराम के चूने के भट्ठे पर बिना वर्दी के छापा मारा. पुलिस की यह टीम सरकारी गाड़ी के बजाय किराए की टवेरा कार से गई थी.
टीम की अगुवाई कर रहे इंसपेक्टर पेरियापांडियन और इंसपेक्टर मुनिशेखर के पास सरकारी रिवौल्वर थी. पुलिस टीम के पहुंचते ही भट्ठे पर बने एक कमरे में सो रहे लोग जाग गए. उस समय वहां 3 पुरुष, 6 महिलाएं और कुछ लड़कियां थीं. उन सब ने मिल कर लाठीडंडों से पुलिस पर हमला बोल दिया.
67 वर्षीय राजेंद्र व्यास मुंबई की ग्रांट रोड के एम.एस. अली मार्ग स्थित भारतनगर परिसर की सोसायटी में अपने परिवार के साथ रहते थे. वह मुंबई की एक मिल में नौकरी करते थे लेकिन मिल बंद हो जाने के कारण उन का झुकाव शेयर बाजार की तरफ हो गया था.
परिवार सुखी और संपन्न था. सोसायटी के लोगों में उन की इज्जत, मानसम्मान और प्रतिष्ठा थी. परिवार में उन की पत्नी सुरेखा व्यास के अलावा 2 बेटियां कीर्ति और शेफाली थीं. उन का कोई बेटा नहीं था, लेकिन उन्हें इस का कोई गम नहीं था. वह अपनी दोनों बेटियों को बेटों जैसा ही प्यार, दुलार करते थे. उन्होंने उन का पालनपोषण भी बेटों की तरह ही किया था.
राजेंद्र व्यास ने दोनों बेटियों को बेटों की तरह शिक्षित कर उन्हें उन के पैरों पर खड़ा किया था. बड़ी बेटी कीर्ति व्यास एमबीए, एलएलबी करने के बाद एक अच्छी पोस्ट पर काम कर रही थी. छोटी बेटी शेफाली भी एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी करती थी. सुरेखा गृहिणी के साथसाथ एक अच्छी मां थीं. उन्हें दोनों बेटियों से गहरा प्यार था.
परिवार में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी, दिन हंसीखुशी से बीत रहे थे. लेकिन इस साल मार्च महीने में उन के परिवार में एक ऐसी घटना घटी, जिस से पूरे परिवार में मातम छा गया था.
16 मार्च, 2018 की रात राजेंद्र व्यास और उन के परिवार पर भारी थी. उस दिन उन की बेटी कीर्ति सुबह पौने 9 बजे घर से औफिस जाने के लिए निकली थी और देर रात तक वापस नहीं लौटी. सुबह औफिस जाते समय वह किसी बात को ले कर थोड़ा परेशान जरूर थी, लेकिन उस ने परेशानी की वजह किसी से शेयर नहीं की थी. मां सुरेखा के पूछने पर उस ने मुसकरा कर बात टाल दी थी. मां ने भी इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था.
इंतजार की काली रात
दोपहर 12 बजे सुरेखा ने घर पर लगे वाईफाई का पासवर्ड जानने के लिए कीर्ति को फोन किया. लेकिन कीर्ति ने फोन रिसीव नहीं किया. उस का फोन कभी स्विच्ड औफ तो कभी आउट औफ कवरेज आ रहा था.
कई बार फोन करने के बाद भी जब कीर्ति का फोन नहीं लगा तो उन्होंने यह सोचा कि हो सकता है उस ने अपना फोन बंद कर रखा हो. क्योंकि कीर्ति कंपनी में एक बड़ी पोस्ट पर थी.
ऊपर से मार्च का महीना कंपनी की सालाना क्लोजिंग का होता है. वह किसी मीटिंग वगैरह में भी व्यस्त हो सकती थी. उन्होंने सोचा कि यदि वह मीटिंग में होगी तो मीटिंग के बाद खुद ही फोन कर लेगी. पर पूरा दिन बीत गया, न तो कीर्ति का फोन आया और न ही उस ने कोई मैसेज भेजा.
कीर्ति का पूरा परिवार तब परेशान हो गया, जब शेफाली अपने औफिस से घर लौट आई, जबकि कीर्ति का कहीं पता नहीं था. दोनों का औफिस आनेजाने का समय लगभग एक ही था. कीर्ति अपने समय की पाबंद थी.
इसके अलावा वह औफिस से 1-2 बार घर में फोन कर के घर वालों का हालचाल जरूर पूछ लिया करती थी. इस के अलावा अगर उसे देर से आना होता तो इस की जानकारी वह घर वालों को दे दिया करती थी.
लापता हुई कीर्ति
जैसेजैसे समय और रात गहरी होती जा रही थी, वैसेवैसे परिवार वालों का दिल बैठता जा रहा था. काफी समय निकल जाने के बाद भी जब कीर्ति घर नहीं पहुंची और न ही उस का कोई फोन आया तो घर वालों ने कीर्ति की कंपनी में फोन कर के उस के बारे में पूछा. वहां से पता चला कि कीर्ति तो आज औफिस आई ही नहीं थी.
यह सुन कर घर में कोहराम मच गया. परिवार के अलावा जिसे भी कीर्ति के औफिस न पहुंचने की खबर मिली, सब स्तब्ध रह गए. घर वालों के अलावा जानपहचान वाले भी कीर्ति की तलाश में लग गए. ऐसी कोई जगह नहीं बची, जहां कीर्ति को नहीं खोजा गया. कीर्ति के साथ काम करने वाले लोग भी घर वालों के साथ मिल कर उसे ढूंढ रहे थे.
सभी यह सोच कर परेशान थे कि कीर्ति सुबह पौने 9 बजे अपनी ड्यूटी के लिए निकली थी तो वह अपने औफिस न पहुंच कर कहां चली गई. सभी का मन किसी अनहोनी को ले कर अशांत था. वह रात कीर्ति के घर वालों के लिए बड़ी बेचैनी भरी गुजरी.
सुरेखा और उन की बेटी शेफाली के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. पिता राजेंद्र व्यास की हालत भी ठीक नहीं थी. सोसायटी वाले और उन के नातेरिश्तेदार उन्हें धीरज बंधा कर पुलिस के पास जाने की सलाह दे रहे थे.
28 वर्षीय कीर्ति व्यास ने अपनी पढ़ाई पूरी कर जब सर्विस की कोशिश की तो उस की योग्यता के आधार पर उसे बड़ी आसानी से अंधेरी पश्चिम लोखंडवाला स्थित एक जानीमानी कंपनी बीब्लंट (सैलून) में नौकरी मिल गई.
इस कंपनी की सीईओ और एमडी दोनों मशहूर फिल्म अभिनेत्री शबाना आजमी और जावेद अख्तर के बेटे फरहान अख्तर की पूर्वपत्नी अनुधा भवानी अख्तर थीं.
इस कंपनी का फिल्मी सितारों और बड़ेबड़े उद्योगपतियों के बीच एक बड़ा नाम है. यहां हेयर कटिंग और ब्यूटी के लिए आने वालों को 3 हजार से ले कर 10 हजार रुपए तक देने पड़ते हैं. इस कंपनी की दिल्ली, कोलकाता और चेन्नै सहित कई महानगरों में 50 से अधिक शाखाएं हैं, कंपनी का हेडऔफिस मुंबई में है.
यह कंपनी बड़े फिल्मी सितारों, उद्योगपतियों, टीवी कलाकारों आदि की हेयरकटिंग और ब्यूटी ड्रेसिंग का काम तो करती ही है, इस के अलावा टीवी और फिल्मों का फाइनैंस और ऐक्टिंग की कोचिंग क्लासें भी चलाती है.
यहां कोचिंग में आने वालों को 6 महीने की कोचिंग दी जाती है, जिस की फीस 3 लाख से ले कर 8 लाख रुपए के बीच होती है. कंपनी का सालाना टर्नओवर कई करोड़ का होता है.
अपहर्त्ताओं ने पीडि़त परिवार को 2 वीडियो और 6 फोटो भेजे थे, जिन्हें देख कर पूरा परिवार डर गया था. जो वीडियो भेजे थे, उन में विहान ‘पापा, आई लव यू’ बोल रहा था. वह कह रहा था, ‘डैडी, आप मुझे लेने आ जाओ. मुझे आप की बहुत याद आ रही है.’ परिवार वाले उन वीडियो को बारबार देखते थे. विहान की चिंता में घर वालों की नींद उड़ी हुई थी.
पुलिस ने शाहदरा, इहबास, मंडोली रोड के करीब 2500 सीसीटीवी कैमरों की सूची बनाई, जिन में से 250 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली भी गई. आखिर में साहिबाबाद बौर्डर पर लगे एक सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में बदमाश मोटरसाइकिल पर बच्चे को ले जाते दिखाई दिए. इस फुटेज से एक बदमाश की पहचान भी हुई.
दूसरी ओर डीसीपी जौय टिर्की और एसीपी संदीप लांबा की टेक्निकल टीम ने सर्विलांस, मोबाइल ट्रैकर से 35 टावरों के करीब 3 लाख नंबरों की जांच की.
3 लाख नंबरों में मिला अपहर्त्ता का नंबर
पुलिस टीम 3 लाख नंबरों की जांच करती रही. डंप डाटा में उसे 4 लोकेशन पर एक फोन नंबर कौमन मिला. उस फोन नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया गया. जांच में पता चला कि वह फोन नंबर नितिन शर्मा का है. पुलिस ने उस नंबर पर आने वाली काल्स को रिकौर्ड करना शुरू कर दिया. इस से यह जानकारी मिली कि फोनधारक कोड में बात करता है. इस से उस पर पुलिस का शक और बढ़ गया.
फोन सर्विलांस पर लगाने के बाद इस बात की पुष्टि तो हो गई थी कि फोनधारक का नाम नितिन शर्मा है, पर वह रहता कहां है, यह पता नहीं लग सका. क्योंकि जिस आईडी से उस ने फोन का सिमकार्ड लिया था, वह फरजी पाई गई. इतनी बड़ी दिल्ली में उस का पता लगाना आसान नहीं था.
इंसपेक्टर विनय त्यागी ने सबइंसपेक्टर अर्जुन सिंह, हवा सिंह, दिनेश, सुशील, एएसआई राजकुमार, मोहम्मद सलीम, हैडकांस्टेबल श्यामलाल व शशिकांत को जिम्मेदारी दी कि वह मुखबिरों से मिलने वाली जानकारी की पड़ताल करें.
पुलिस ने पूरी दिल्ली में मुखबिरों का जाल बिछा रखा था. सभी मुखबिरों को एक अपहर्त्ता का वह फोटो दे दिया गया, जिस में उस ने पीडि़त परिवार से व्हाट्सऐप पर बात की थी. वह फोटो साफ नहीं था. मुखबिरों के अलावा उस फोटो की एकएक कौफी पूर्वी दिल्ली और उत्तरपूर्वी दिल्ली के सभी बीट अफसरों को भी दे दी गई ताकि वे अपनेअपने क्षेत्र के लोगों को फोटो दिखा कर जानकारी हासिल कर सकें.
जांच टीम में जितने भी पुलिसकर्मी थे, सभी रातदिन एक किए हुए थे. इन में से कुछ पुलिसकर्मियों के परिवार में शादी थी, इस के लिए उन्होंने छुट्टी भी ले रखी थी, पर केस की संवेदनशीलता को देखते हुए वे छुट्टी पर नहीं गए. सभी की पहली प्राथमिकता केस को हल करने की थी. जौइंट सीपी आलोक कुमार जांच में जुटी सभी टीमों से संपर्क बनाए हुए थे. हर अपडेट वह पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक को दे रहे थे.
उधर पीडि़त परिवार के पास अपहर्त्ताओं की तरफ से फिरौती की और कोई काल नहीं आई. मामला मीडिया में ज्यादा हाईलाइट हो चुका था, इसलिए अपहर्त्ता शायद चौकस हो गए थे. ऐसे में पुलिस को इस बात की आशंका थी कि कहीं अपहर्त्ता बच्चे को नुकसान न पहुंचा दें.
इसी दौरान एक मुखबिर ने उस धुंधले फोटो को पहचान लिया. उस ने बताया कि वह नितिन शर्मा है जो गोकुलपुरी में रहता है. यह जानकारी पुलिस के लिए महत्त्वपूर्ण थी. मुखबिर द्वारा नितिन के घर का पता भी मिल गया था. लेकिन पुलिस अधिकारियों ने अपहृत विहान की सुरक्षा को देखते हुए नितिन के घर दबिश देना जरूरी नहीं समझा.
उधर सर्विलांस टीम नितिन के फोन पर होने वाली बातचीत पर नजर रखे हुए थी. तभी सर्विलांस टीम को पता चला कि नितिन सोमवार की रात को दिल्ली में होने वाले एक शादी समारोह में आ रहा है. मुखबिर द्वारा पुलिस को उस की स्विफ्ट कार का नंबर भी मिल गया था. पुलिस टीम ने मोबाइल लोकेशन के आधार पर उस का पीछा करना शुरू कर दिया. 5 फरवरी, 2018 की रात करीब साढ़े 11 बजे नितिन की कार सीमापुरी में कम्युनिटी ब्लौक के पास रुकी तो क्राइम ब्रांच की टीम ने उसे हिरासत में ले लिया.
हिरासत में लेते ही पुलिस ने सब से पहले उस से विहान के बारे में पूछा. नितिन ने बताया कि विहान सुरक्षित है. उसे बी-505 इबोनी अपार्टमेंट, शालीमार सिटी, साहिबाबाद में रखा गया है. जौइंट सीपी आलोक कुमार ने उसी समय डीसीपी जी. रामगोपाल नाइक के नेतृत्व में 16 सदस्यीय एक टीम नितिन के साथ शालीमार सिटी भेज दी. रात एक बजे टीम 5वीं मंजिल स्थित उस फ्लैट पर पहुंच गई.
बदमाशों ने कर दिया पुलिस को घायल
उस फ्लैट में अंदर की तरफ लकड़ी का दरवाजा था और बाहर लोहे की जाली वाला. पुलिस के सामने नितिन ने कोड में 3 बार दरवाजा खटखटाया. एक बदमाश ने जैसे ही लकड़ी वाला दरवाजा खोला तो अपने साथी नितिन को हथियारबंद पुलिस के बीच देख वह घबरा गया. तभी इंसपेक्टर विनय त्यागी ने कहा, ‘‘बच्चा पुलिस के हवाले कर दो, इसी में तुम्हारी भलाई है.’’
इंसपेक्टर विनय त्यागी दरवाजे के एकदम सामने थे. उन के बराबर में कमांडो कुलदीप था. उन के पीछे 6 अन्य पुलिसकर्मी एके 47 के साथ पोजीशन लिए खड़े थे. इंसपेक्टर त्यागी के ललकारने पर बदमाश ने फ्लैट के अंदर से कहा, ‘‘आप लोग यहां से चले जाओ वरना बच्चे की जान को खतरा हो सकता है.’’
इसी बीच लकड़ी का दरवाजा खोल कर बदमाश ने पुलिस पर फायरिंग कर दी. उस की एक गोली इंसपेक्टर विनय त्यागी और एक गोली कमांडो कुलदीप को लगी.
जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की. गोली लगने से एक बदमाश वहीं गिर गया, जबकि दूसरा लंगड़ाते हुए अंदर की तरफ भागा. उस के पैर में गोली लगी थी. बदमाशों की ओर से 5 राउंड फायरिंग की गई थी. गोली चलने से बाहर के लोहे वाले दरवाजे पर लगी जाली ढीली पड़ गई थी. फ्लैट के अंदर कोई हलचल न देख कर पुलिस ने ढीली पड़ चुकी लोहे की जाली को खींच कर मोड़ दिया और फिर अंदर हाथ डाल कर दरवाजे की सिटकनी खोल दी.
पोजीशन लेते हुए पुलिस फ्लैट में दाखिल हो गई. एक बदमाश फर्श पर पड़ा था, उस के सीने पर गोली लगी थी. उस की मौत हो चुकी थी. दूसरे बदमाश को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया. वह किचन में जा कर छिप गया था.
बच्चा छिपा बैठा था बैड के पीछे
जिस घायल बदमाश को हिरासत में लिया था, उस ने अपना नाम पंकज बताया और जिस बदमाश की मौत हुई थी, उस का नाम रवि था. पंकज को हिरासत में लेते ही डीसीपी डा. जी. रामगोपाल नाइक बच्चे को फ्लैट में ढूंढने लगे. वह बैड के पास छिपा मिला. बच्चा सहमा हुआ बैठा था.
डीसीपी ने विहान से कहा, ‘‘बेटा, मैं आप का चाचा हूं और पुलिस में हूं. आप को डैडी के पास ले जाने के लिए आया हूं.’’
यह कहते ही डीसीपी नाइक ने डरेसहमे विहान को गोद में उठा लिया, बच्चा उन से लिपट गया. विहान को सहीसलामत पा कर सभी ने राहत की सांस ली.
आखिर महाराष्ट्र हाईकोर्ट और मीडिया के सक्रिय होते ही 18 महीने बाद महाराष्ट्र के नवी मुंबई, कलंबोली पुलिस थाने के अफसरों ने 7 दिसंबर, 2017 की शाम को करीब 8 बजे अपने विभाग के शातिर और ऊंची पहुंच वाले अफसर अभय कुरुंदकर को उस के मीरा रोड स्थित घर से गिरफ्तार कर लिया.
अभय कुरुंदकर जिला ठाणे, पालघर के नवघर पुलिस थाने में बतौर इंचार्ज तैनात था. उस पर अपने ही विभाग की एक महिला अधिकारी अश्विनी बेंद्रे के अपहरण और हत्या जैसे गंभीर आरोप थे. अश्विनी बेंद्रे नवी मुंबई कोमोठे स्थित ह्यूमन राइट्स कमीशन औफिस में असिस्टेंट पुलिस इंसपेक्टर के रूप में तैनात थी.
25 वर्षीय अश्विनी राजू बेंद्रे मूलरूप से कोल्हापुर, तालुका आंधले, गांव हातकणगे की रहने वाली थी. वह 2007 के बैच की पुलिस अधिकारी थी. उस के पिता 1988 में आर्मी से रिटायर होने के बाद काश्तकारी में व्यस्त हो गए थे. परिवार में उन की पत्नी के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था. शिक्षा के साथ अश्विनी बेंद्रे हर काम में अपने छोटे भाई आनंद बेंद्रे और छोटी बहन से होशियार थी. चूंकि पिता आर्मी से थे, इसलिए वह बेटी की रुचि को देखते हुए उसे आर्मी या पुलिस सेवा में भेजना चाहते थे.
10वीं तक की शिक्षा अपने गांव के स्कूल से पूरी करने के बाद अश्विनी आगे की पढ़ाई के लिए अपने मामा के घर कोल्हापुर आ गई थी. उस के मामा कोल्हापुर में पुलिस अधिकारी थे. बीकौम करने के बाद वह एमपीएससी की तैयारी में जुट गई थी, लेकिन परीक्षा में शामिल होने से पहले ही उस के मातापिता ने राजकुमार उर्फ राजू गोरे से उस की शादी तय कर दी. 2005 में अश्विनी बेंद्रे विदा हो कर अपनी ससुराल चली गई.
सीधे और सरल स्वभाव का राजू गोरे अश्विनी बेंद्रे जैसी सुंदर पत्नी को पा कर बहुत खुश था. उसे जब यह मालूम हुआ कि अश्विनी बेंद्रे के मातापिता की इच्छा और अश्विनी की इच्छा पुलिस सेवा जाने की थी तो राजू गोरे ने पत्नी की इस इच्छा को पूरा करने के लिए हरसंभव सहयोग करने को कहा. पति के सहयोग से अश्विनी बेंद्रे ने एमपीएससी की परीक्षा में भाग लिया. यह परीक्षा उस ने अच्छे अंकों से पास की. इसी दौरान वह एक बेटी की मां भी बन गई.
नासिक में 6 माह की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद अश्विनी बेंद्रे की पहली नियुक्ति पुणे में सबइंसपेक्टर के पद पर हुई थी. उस के बाद उसे सांगली के पुलिस मुख्यालय में तैनात कर दिया गया था. सांगली मुख्यालय में अश्विनी बेंद्रे को अभी कुछ महीने ही हुए थे कि उस का ट्रांसफर सांगली की लोकल क्राइम ब्रांच में कर दिया गया, जहां उस की मुलाकात पीआई अभय कुरुंदकर से हुई. अभय कुरुंदकर एक शातिरदिमाग अफसर था.
भले ही अफसर हो, अकेली औरत कई बार शातिर लोगों के जाल में फंस जाती है
अश्विनी बेंद्रे उस वक्त अपनी भावनाओं को दबाए पति से दूर अकेले ही जिंदगी का सफर तय कर रही थी. वैसे तो अश्विनी बेंद्रे एक सशक्त महिला थी. लेकिन पीआई अभय कुरुंदकर के फेंके गए जाल में वह बड़ी आसानी से फंस गई.
पीआई अभय कुरुंदकर मूलरूप से कोल्हापुर जिले के कराड़ गांव का रहने वाला था. उस का बचपन गरीबी और संघर्षों में बीता था. उस के बचपन में ही पिता का निधन हो गया था. परिवार में मां के अलावा 2 भाई और एक बहन थी. पिता के निधन के बाद जब परिवार वालों ने गांव से निकाल दिया तो मां अपने तीनों बच्चों को ले कर आजरा गांव में अपनी बहन के यहां रहने लगी थी. मेहनतमजदूरी कर के उन्होंने अपने तीनों बच्चों की परवरिश की.
दोनों भाई पढ़ाईलिखाई में जितने होशियार थे, उतने ही मेहनती भी थे. वे पूरा मन लगा कर पढ़ाई करते थे और बाकी समय में मां का हाथ बंटाते थे. उन के गांव के सारे दोस्त शराब, जुआ और राहजनी जैसे अपराधों में लिप्त रहते थे लेकिन ये दोनों भाई इन चीजों से दूर रहते थे. आखिरकार दोनों की मेहनत और पढ़ाई रंग लाई और दोनों भाइयों को पुलिस विभाग में नौकरी मिल गई.
पुलिस में नौकरी लग जाने के बाद अभय कुरुंदकर जब अपने पुश्तैनी घर और गांव गया तो पता चला कि उस के चचेरे भाइयों ने उस की पुश्तैनी जमीन पर कब्जा कर लिया है. इतना ही नहीं, उन्होंने उस के पिता की सारी संपत्ति भी अपने नाम करवा ली थी.
यह जान कर अभय कुरुंदकर काफी आहत हुआ, लेकिन उस ने अपने मन ही मन तय कर लिया था कि खूब पैसा कमा कर वह अपना घर अपने पुश्तैनी गांव में ही बनवाएगा. और उस ने ऐसा ही किया भी. उस ने पुलिस विभाग में अपना कद बढ़ाना शुरू किया. इस काम में उसे कामयाबी भी मिली. शीघ्र ही उस की पैठ कुछ बड़े अधिकारियों और राजनीतिज्ञों तक हो गई थी
तत्कालीन मंत्री एकनाथ खड़से के भांजे ज्ञानेश्वर पाटिल उर्फ राजेश पाटिल से अभय कुरुंदकर की गहरी दोस्ती हो गई थी. कानून और राजनीति के बीच दोस्ती होने के कारण अभय कुरुंदकर ने गैरकानूनी काम करने शुरू कर दिए. वह दोनों हाथों से पैसे कमाने लगा. वह अपनी पहुंच का फायदा उठा कर अपना ट्रांसफर उन थानों में कराता रहा, जहां अच्छी कमाई होती थी.
अभय कुरुंदकर ने थोड़े ही दिनों में इतना पैसा कमा लिया कि उस ने अपने गांव में 6 बिस्वा जमीन खरीद कर एक आलीशान घर बनवाया. उस मकान में उस का परिवार रहने लगा. इस के अलावा उस ने आजरा के आंबोली गांव में 7 एकड़ जमीन ले कर अपना फार्महाउस बनवाया. इस बीच उस का प्रमोशन और ट्रांसफर होते रहे.
29 मई, 2006 को उस का प्रमोशन कर के उसे कुछ दिनों के लिए कमिश्नर औफिस के नियंत्रण कक्ष भेज दिया गया. लेकिन अपनी पहुंच के कारण उस ने एक महीने के अंदर ही अपना ट्रांसफर कुपवाड़ा में करवा लिया. यहां पर वह लगभग ढाई साल रहा. यहीं से प्रमोशन पा कर वह मिर्ज के ट्रैफिक विभाग में चला गया.
किशोरावस्था से ही जुर्म की दुनिया में दाखिल हो चुके काला पर हत्या, अपहरण लूटपाट, जमीनों पर जायजनाजायज कब्जे और फिरौती वगैरह के कोई 3 दरजन मामले दर्ज हो चुके थे. अनुराधा की आपराधिक जन्मपत्री से पूरे 36 गुण उस से मिले थे.
काला भी उस के व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ था और उस के आला खुराफाती दिमाग का कायल हो गया था. काला की दहशत अपने इलाकों में ठीक वैसी ही थी, जैसी राजस्थान में आनंद की थी.
दोनों को एकदूसरे की जरूरत थी, कारोबारी भी जिस्मानी भी और जज्बाती भी. काला के गिरोह के मेंबर भी अनुराधा के एके 47 चलाने की स्टाइल से इतने इंप्रैस थे कि उन्होंने उसे रिवौल्वर रानी का खिताब दे दिया था.
फिर जैसे ही सागर धनखड़ हत्याकांड में नामी पहलवान सुशील कुमार का नाम आया तो दिल्ली गरमा उठी, क्योंकि इस वारदात में गैंगस्टर नीरज बवाना और काला जठेड़ी का नाम भी आया. जेल में बंद सुशील पहलवान ने उस से अपनी जान को खतरा जताया था.
काला जठेड़ी की तलाश में जुटी स्पैशल सेल
अब पुलिस की स्पैशल सैल ने काला की तलाश को मुहिम की शक्ल दे दी तो वह अनुराधा के साथ भागता रहा. काला की तलाश में पुलिस की स्पैशल सैल जुटी तो अनुराधा फिर चिंतित हो उठी.
क्योंकि अगर आनंद की तरह काला भी किसी एनकाउंटर में मारा जाता तो वह फिर बेसहारा हो जाती. दूसरे गिरफ्तारी की तलवार अब उस के सिर पर भी लटकने लगी थी.
पुलिस को अंदेशा इन दोनों के नेपाल में होने का था, जबकि हकीकत में दोनों भारत भ्रमण करते आंध्र प्रदेश के अलावा पंजाब और मुंबई भी गए थे और बिहार के पूर्णिया में भी रुके थे. मध्य प्रदेश के इंदौर और देवास में भी इन्होंने फरारी काटी थी. हर जगह इन्होंने खुद को पतिपत्नी बताया और लिखाया था.
काला को घिरता देख अनुराधा ने 70-80 के दशक के मशहूर जासूसी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक के एक किरदार विमल का सहारा लिया, जिस ने पुलिस से बचने के लिए सरदार का हुलिया अपना लिया था.
अपनी नई पत्नी के कहने पर काला जठेड़ी विमल की तर्ज पर सरदार बन गया. उस ने अपना नया नाम पुनीत भल्ला और अनुराधा का नाम पूजा भल्ला रखा. सोशल मीडिया पर भी दोनों ने नए नामों से आईडी बना ली थी.
अनुराधा ने जठेड़ी गैंग के गुर्गों को यह हिदायत भी दी थी कि अगर उन में से कोई कभी पुलिस के हत्थे चढ़ जाए तो काला के बारे में यही बताए कि वह इन दिनों नेपाल में है और वहीं से गैंग चला रहा है. इस हिदायत का मकसद पुलिस को भटकाए और उलझाए रखना था.
आनंदपाल के गिरोह में रहते अनुराधा कई बार नेपाल भी गई थी और वहां के अड्डों से भी वाकिफ थी, इसलिए वह काला को भी 2 बार नेपाल ले गई थी. मकसद था विदेश भागने की संभावनाएं टटोलना और जमा पैसों की ट्रोल को रोकना.
अनुराधा के खुराफाती दिमाग का आनंद भी कायल था और अब काला भी हो गया था, जिसे अनुराधा ने सख्त हिदायत यह दे रखी थी कि वह भारत में फोन पर किसी से बात न करे जोकि आजकल पुलिस को मुजरिम तक पहुंचने का सब से आसान और सहूलियत भरा जरिया और रास्ता होता है.
अब काला को जिस से भी बात करनी होती थी तो वह विदेश में बैठे अपने किसी गुर्गें की मदद से करता था. काला और अनुराधा तक पहुंचने के लिए पुलिस की स्पैशल सेल ने लारेंस बिश्नोई को मोहरा बनाया जो जेल में बंद था.
पुलिस ने अपने मुखबिरों के जरिए बिश्नोई तक एक फोन पहुंचाया, जिस से वह अपने गुर्गों से बात करता रहा और पुलिस खामोशी से तमाशा देखती रही.
एक बार वही हुआ जो पुलिस चाहती थी कि बिश्नोई ने काला से भी बात कर डाली. उस का फोन सर्विलांस पर तो था ही जिस से उस के सहारनपुर के अमानत ढाबे पर होने की लोकेशन मिली.
पुलिस तुरंत हरकत में आई और आसानी से काला और अनुराधा को गिरफ्तार कर लिया. दोनों हतप्रभ थे. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि वे चूहेदानी में फंस चुके हैं.
बिलाशक पुलिस की स्पैशल सेल ने दिमाग से काम लिया, जिसे उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल बिश्नोई काला से जरूर बात करेगा और ऐसा हुआ भी.
किडनैपिंग क्वीन अर्चना शर्मा
अनुराधा जुर्म की दुनिया की छोटी मछली थी, जिस का हल्ला मीडिया ने ज्यादा मचाया क्योंकि आमतौर पर औरतों के बहुत ज्यादा क्रूर होने की उम्मीद कोई नहीं करता. लेकिन वक्तवक्त पर महिलाएं जुर्म की दुनिया में आ कर लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचती रही हैं. ऐसा ही एक नाम अर्चना शर्मा का है, जिसे किडनैपिंग क्वीन के खिताब से नवाज दिया गया.
अर्चना की कहानी एकदम फिल्मों सरीखी है. उज्जैन में एक मामूली पुलिस कांस्टेबल बालमुकुंद शर्मा के यहां जन्मी अर्चना भी अनुराधा की तरह पढ़ाईलिखाई में तेज थी, इसलिए सैंट्रल स्कूल के स्टाफ की चहेती भी थी.
4 भाईबहनों में सब से बड़ी अर्चना पेंटिंग की शौकीन थी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी. रामलीला में सीता का रोल निभाना उसे बहुत भाता था. सभी लोगों को उम्मीद थी कि महत्त्वाकांक्षी और बहुमुखी प्रतिभा की धनी यह लड़की एक दिन नाम करेगी.
अर्चना ने नाम किया, लेकिन जुर्म की दुनिया में. जिसे जान कर हर कोई दांतों तले अंगुली दबा लेता है. एक दिन अचानक उस ने पढ़ाई छोड़ देने का ऐलान कर दिया, जिस से घर वाले हैरान रह गए, उन्होंने उसे समझाया लेकिन वह टस से मस नहीं हुई.
असल में वह पिता की तरह पुलिस विभाग में नौकरी करना चाहती थी, जो उस ने कर भी ली. लेकिन जल्द ही वह इस नौकरी से ऊब गई और नौकरी छोड़ भी दी, जिस से गुस्साए घर वालों ने उस से नाता तोड़ लिया.
पुलिस की छोटे ओहदे की नौकरी में मेहनत के मुकाबले पगार कम मिलती थी, जबकि अर्चना का सोचना था कि वह इस से ज्यादा डिजर्व करती है. कुछ कर गुजरने की चाह लिए वह उज्जैन से भोपाल आ गई और वहां एक छोटी नौकरी कर ली.
मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल में पन्ना जिला मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर बड़खेरा गांव के पुरुषोत्तम की शादी की उम्र निकल चुकी थी. वह 33 साल का हो गया था. उस के पिता पंडित सुक्कन पटेरिया उस की शादी को ले कर बहुत चिंतित थे.
वह खेतीबाड़ी का काम करते थे. चिंता का एक कारण और था कि बड़े बेटे पुरुषोत्तम की शादी नहीं हो पाने के कारण उस से छोटे 2 भाइयों की उम्र भी निकलती जा रही थी.
पुरुषोत्तम के लिए उस की मां और पिता दोनों ही बहुत परेशान रहते थे. वे रिश्तेदारों की मदद से पुरुषोत्तम के लिए लड़की तलाश कर थक चुके थे. इस वजह से पुरुषोत्तम भी मानसिक तनाव में रहने लगा था.
उस की शादी नहीं हो पाने का एक कारण उस की पढ़ाई भी थी. वह कुल 10वीं जमात तक ही पढ़ा था. इसलिए उसे कोई लड़की ब्याहने को तैयार नहीं था.
लौकडाउन से पहले मार्च 2020 की बात है. पुरुषोत्तम टीकमगढ़ जिले के टीला गांव में एक रिश्तेदार के यहां गया था. वहीं उस की मुलाकात गांव के मुन्ना तिवारी से हुई.
उस ने बातचीत के दौरान मुन्ना तिवारी से कहा, ‘‘तिवारीजी, मेरे पिताजी मेरी शादी को ले कर परेशान रहते हैं. आप की नजर में कोई लड़की इधर हो तो बताइए.’’
मुन्ना तिवारी ने छूटते ही कहा, ‘‘क्यों नहीं भाई, लगता है तुम्हारी मुराद पूरी हो गई है. देखो, मेरी एक रिश्तेदारी में भी 30 साल की युवती पूजा कुंवारी बैठी है. तुम कहो तो मैं बात उस से करूं?’’
‘‘अरे तिवारीजी, इस में पूछने की क्या बाता है? आज ही बात करो न उस के पिता से.’’ पुरुषोत्तम चहकते हुए बोला.
‘‘उस के पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. इसी वजह से तो उस की शादी नहीं हो पा रही है. मैं देखता हूं, अगर तुम्हारी बात बन जाए तो अच्छा रहेगा.’’ मुन्ना तिवारी ने कहा.
‘‘उस की मां से बात कर लो न!’’ पुरुषोत्तम ने सुझाव दिया.
‘‘नहींनहीं, उन से डायरेक्ट बात करना सही नहीं होगा. पहले किसी नजदीकी रिश्तेदार से उन तक बात पहुंचानी होगी. तुम्हारे बारे में चर्चा करवानी होगी. अब देखना है कि कौन रिश्तेदार उन के सामने तुम्हारे और परिवार के बारे में तारीफ के पुल बांध सके.’’ तिवारी ने समझाया.
‘‘जैसा तुम उचित समझो, लेकिन जो भी करो जल्दी करो,’’ पुरुषोत्तम उम्मीद के साथ बोला.
‘‘ठीक है, होली के बाद देखता हूं.’’ वह बोला.
जैसा मुन्ना तिवारी ने कहा था, वैसा ही किया. होली के दूसरे दिन ही वह पूजा और उस की बहन भागवती मिश्रा को ले कर सुक्कन पटेरिया के घर पहुंच गया.
पुरुषोत्तम को आश्चर्य हुआ कि जिस युवती से उस की शादी की बात चलने वाली है, वह भी साथ आई थी. उस ने तिवारी की ओर आश्चर्य से देखा. तिवारी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘शुभ काम में देरी नहीं करनी चाहिए.’’
चायनाश्ते के बाद युवतयुवती को एक साथ बैठा दिया गया. उन्होंने एकदूसरे को सरसरी निगाह से देखापरखा. पुरुषोत्तम को गोरी, तीखे नाकनक्श वाली पूजा पहली ही नजर में भा गई.
पूजा की बहन भागवती ने भी पुरुषोत्तम को पसंद कर लिया. पूजा ने भी अपनी पसंद बहन को बता कर अपनी रजामंदी दे दी.
दूसरी तरफ अपने बेटे की शादी का सपना संजोए सुक्कन की पत्नी ने घर आए मेहमानों का खूब स्वागतसत्कार किया. उस ने मेहमानों के लिए तरहतरह के पकवान बना कर परोसे.
सुक्कन की पत्नी खुशी के मारे फूली नहीं समा रही थी. उस ने पति से होने वाली बहू को शगुन दे कर जल्दी से रिश्ता तय कर लेने को कहा. फिर पतिपत्नी ने शगुन के तौर पर पूजा की गोद में नारियल, कपड़े, फल और मिठाई भेंट कर दिए. पुरुषोत्तम ने उसे अंगूठी पहना कर सगाई की रस्म अदा कर दी. साथ में कुछ पैसे भी रख दिए.
सगाई की रस्म पूरा होने से पहले ही मुन्ना तिवारी ने पंडित सुक्कन पटेरिया को साफतौर पर बता दिया था कि पूजा के पिता जीवित नहीं हैं. उस के घर की माली हालत भी ठीक नहीं है, इसलिए शादी का खर्चा उन्हें ही उठाना पड़ेगा. सुक्कन लड़की वालों की हर शर्त मानने तैयार हो गया.
सगाई होते ही पुरुषोत्तम शादी के हसीन सपने संजोने लगा. जब से उस ने पूजा को देखा था, तभी से उस के मन में खुशियों के लड्डू फूटने लगे थे और वह उस के साथ जीवन की शुरुआत करने की योजनाएं बनाने लगा था.
रात को सोते समय पुरुषोत्तम अपनी होने वाली सुहागरात की कल्पना कर के खुश हो रहा था. फिल्मों की तरह उसे भी सपने में सुहागरात में गुलाब की पंखुडि़यों से सजी सेज पर बैठी लजातीशरमाती पूजा नजर आने लगी थी. इंतजार की घड़ी और निकट आ गई, लेकिन यह क्या अचानक कोरोना वायरस के कहर ने सभी को घरों में बंद कर दिया. सरकार ने लौकडाउन लगा दिया. पुरुषोत्तम एक बार फिर निराश हो गया. वह अपनी किस्मत को दोष देने लगा.
खैर, उसे अनलौक की प्रक्रिया शुरू होने तक इंतजार करना पड़ा, जिस की शुरुआत मई 2020 में हुई. प्रशासन की तरफ से शादीविवाह के सार्वजनिक व सामूहिक कार्यक्रमों में सीमित संख्या में लोगों के शामिल होने की अनुमति थी.
दोनों पक्षों की आपसी सहमति के बाद 29 मई, 2020 को शादी की तारीख तय हो गई. इसी में यह भी तय हुआ कि कम से कम मेहमानों को बुलाया जाएगा. पूजा और उस की बहन भागवती 28 मई को आशा दीक्षित के घर बड़खेरा गांव आ गए.
आशा पुरुषोत्तम की बुआ थी. वहीं 29 मई को 10-12 लोगों की मौजूदगी में सामाजिक रीतिरिवाज के अनुसार पुरुषोत्तम और पूजा का विवाह संपन्न हो गया.
सुक्कन पटेरिया ने अपनी बहू के लिए सोनेचांदी के जेवर दिए. विवाह के दूसरे दिन पूजा के साथ आई उस की बहन भागवती ने अपनी गरीबी का हवाला दे कर पुरुषोत्तम के पिता सुक्कन से 60 हजार रुपए मांगे. सुक्कन पटेरिया ने यह सोच कर सहज भाव से रुपए दे दिए कि होने वाली बहू के परिवार की मदद करने में क्या बुराई है.
पुरुषोत्तम की मां ने नईनवेली दुलहन का स्वागत पारिवारिक और सामाजिक रीतिरिवाज के साथ किया. घर में शादी के बाद की सारी रस्में चलती रहीं. पुरुषोत्तम को अपनी सुहागरात का बेसब्री से इंतजार था.
रात होते ही मेहमानों के सो जाने के बाद उस ने फिल्मी अंदाज में अपने फूलों से सजे कमरे में प्रवेश किया. सुहागसेज पर बैठी दुलहन का घूंघट हटा कर उस के हुस्न के तारीफों के पुल बांध दिए. किंतु अपने प्रेम प्रदर्शन के दौरान पुरुषोत्तम ने महसूस किया कि पूजा उस के प्रति रोमांचित नहीं थी. वह उस की तरह उमंग में नहीं थी.
हालांकि पुरुषोत्तम ने यह सोच कर पूजा के इस व्यवहार पर कोई ध्यान नहीं दिया कि शायद ऐसा शादी में थकान की वजह से हो. इसी तरह से लगातार 5 दिन निकल गए, लेकिन पूजा के रुख में बदलाव नहीं दिखा. उस के सुस्त और नीरस व्यवहार ने पुरुषोत्तम को आहत कर दिया था.
शादी के बाद छठवीं रात पुरुषोत्तम पूजा की बेरुखी से परेशान हो कर चुपचाप सो गया. सुबह 5 बजे जैसे ही उस की नींद खुली, तो पाया कि पूजा बिस्तर पर नहीं है.
कुछ देर तक उस का इंतजार किया. नहीं आने पर घर के दूसरे कमरे, बरामदे आदि के बाद बाथरूम में तलाश किया, लेकिन पूजा कहीं नहीं मिली.
उस के बाद बदहवास कमरे में आ कर बिछावन पर बैठ गया. जल्दी ही बैचनी की स्थिति में कमरे से निकल कर बाहर आया. इस बीच उस की मां जाग चुकी थी. उस ने मां से पूछा, ‘‘मां पूजा कहां है?’’
मां ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्यों कमरे में नहीं है क्या? बाथरूम में होगी.’’
जब पुरुषोत्तम ने अपनी मां को बताया कि पूजा घर में कहीं नहीं है, तब मांबेटे ने कमरे में जा कर देखा तो पाया कि पूजा का बैग और सूटकेस भी कमरे में नहीं था. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि पूजा उस के जेवरात और नकदी ले कर फरार हो चुकी है.
अचानक उन के दिमाग में लुटेरी दुलहन की कहानी कौंध गई. दुलहन के गायब होने की खबर जंगल की आग की तरह फैल गई. गांव में इस तरह की यह पहली घटना थी. पुरुषोत्तम और उस के घर वालों की बदनामी होने लगी. पुरुषोत्तम को समझ आ गया था कि उस के साथ शादी के नाम पर ठगी हुई है.
सुक्कन के परिवार ने मान लिया था कि वे लुटेरी दुलहन गैंग के शिकार हो चुके हैं. परंतु लोकलाज के चलते चुप रहे. उन्होंने सोचा कि गांव में जब यह बात फैलेगी तो कोई इस परिवार को लड़की नहीं ब्याहेगा.
वे पुलिस और अदालती चक्कर में नहीं पड़ना चाहते थे. इसलिए चुपचाप नुकसान और अपमान का घूंट पी कर रह गए. पुलिस में शिकायत नहीं करने की यही गलती आगे चल कर पूरे परिवार की परेशानी का सबब बन गई. आए दिन लुटेरी गैंग की तरफ से पुरुषोत्तम और उस के घर वालों से रुपयों की मांग होने लगी. तभी उन्हें मालूम हुआ कि भागवती ही गैंग की सरगना है.
वह पुरुषोत्तम को फोन कर धमकाते हुए बारबार रुपए की मांग करने लगी. वह हमेशा परिवार को दहेज मांगने के जुर्म में केस करने की धमकी देने लगी.
रोजरोज की इन धमकियों से तंग अकर पुरुषोत्तम 20 जून को गांव के सरपंच धीरेंद्र बाजपेई को साथ लेकर पन्ना के कोतवाली थाने गया. टीआई अरुण कुमार सोनी को पूरी बात बताई और इस साजिश की रिपोर्ट लिखाई.
थानाप्रभारी अरुण कुमार सोनी ने शादी के नाम पर ठगी करने वाली घटना की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी. पन्ना जिले के एसपी धर्मराज मीणा ने इस घटना को गंभीरता से लिया और तत्काल आरोपियों की गिरफ्तारी के निर्देश दिए. कारण पिछले एक साल के दौरान पन्ना में झूठी शादी रचाने के नाम पर ठगी की कई घटनाएं हो चुकी थीं. इस का परदाफाश करना किसी चुनौती से कम नहीं था.
धर्मराज मीणा ने टीआई अरुण कुमार सोनी और एसआई सोनम शर्मा के साथ एक विशेष टीम का गठन कर लुटेरी दुलहन गैंग का परदाफाश करने की जिम्मेदारी सौंप दी. पुलिस टीम ने अपने मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया.
23 जून, 2021 को पुलिस को एक मुखबिर के जरिए सूचना मिली कि धाम मोहल्ला के एक मकान में कुछ लोग रुके हुए हैं. उन के बीच चोरी के माल के बंटवारे को ले कर विवाद चल रहा है. तत्काल पुलिस टीम ने धाम मोहल्ला में मुखबिर के बताए मकान में दबिश दी. वहां से 6 पुरुष और 2 महिलाओं को संदेह के आधार पर दबोच लिया गया.
थाने ला कर जब उन से पूछताछ की तो पता चला कि वे मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लोग हैं और वह लुटेरी दुलहन के गैंग के हैं. उन्होंने यह भी बताया कि वे भोलेभाले लोगों के घर में शादी रचा कर पहले उन का विश्वास जीतते हैं, फिर पैसे, गहनों का पता चलने पर मौका पा कर भाग जाते हैं.
पकड़ी गई महिलाओं से पूछताछ में यह भी पता चला कि वह लुटेरी दुलहन बन कर कई घटनाओं को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुकी हैं. पुलिस पूछताछ में जो कहानी सामने आई, उसे सुन कर भ्रष्टाचार के वैसे कारनामे का भी खुलासा हुआ, जिसे सरकार काफी सुरक्षित मानती आई है. जैसे आधार कार्ड का बनाया जाना. यह जान कर पुलिस टीम भी हैरान रह गई.
गिरोह की मुख्य सरगना छतरपुर के बिल्हा गांव की भागवती ठाकुर उर्फ भग्गो थी, जो बारबार अपना सरनेम बदल लेती थी. लौकडाउन के पहले सभी रीवा में किराए के मकान में रहते थे.
वहीं से भागवती के गिरोह के लोग मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के आसपास के जिलों में चोरियां करते थे. चोरी की घटनाओं को अंजाम देने के बाद उस के मन में शादी कर के भाग जाने का आइडिया आया.
भागवती ने जिस पूजा नाम की युवती का रिश्ता पुरुषोत्तम से करवाया था, उस का वास्तविक नाम इंद्रा यादव निकला. पुरुषोत्तम को अपने जाल में फांसने के लिए उस ने इंद्रा को पूजा तिवारी के रूप में पेश किया था.
भागवती के बनाए प्लान के मुताबिक वह शादी के 5 दिन बाद जेवरात और नकदी ले कर घर से भाग गई थी. 30 साल की पूजा उर्फ इंद्रा यादव उत्तर प्रदेश के झांसी के रहने वाले स्वामी यादव की बेटी है. वह ऐसी 4 शादियां कर चुकी थी, जो समाजपरिवार की निगाह में मान्य थीं, लेकिन वह उस के लिए महज एक ढोंग ही था.
गिरोह का एक सदस्य इसरार खान निवासी इटावा (उत्तर प्रदेश) लैपटाप और प्रिंटर की मदद से गिरोह में शामिल लोगों के नकली आधार कार्ड बनाने का काम करता था.
ये लोग शादी के लिए रिश्ता तय करते समय रिश्ते के हिसाब से अपनी जाति और नाम बदल लेते थे. आधार कार्ड में फोटो व नामपता देख कर किसी को इन पर शक भी नहीं होता था. उन्होंने 2015 में आई एक फिल्म ‘डौली की डोली’ से प्रेरणा ली थी. फिल्म असली अंदाज में डौली झूठी शादियां रचाती है. शादी की रात ही लड़के और उस के परिवार की कीमती चीजों को चुरा कर भाग जाती है.
पन्ना पुलिस ने जिन लुटेरी दुलहनों को पकड़ा था, वे भी झूठी शादी रचा कर कुछ दिनों तक घर में रहती थीं और फिर मौका पा कर कीमती सामान ले कर रफूचक्कर हो जाती थीं.
पुलिस ने दोनों के साथ जिन 6 अन्य आरोपियों को गिरफ्तार किया, उस में आसिफ, कमलेश केवट, रम्मू, मुन्ना तिवारी, रामजी भी थे. सभी सदस्य अलगअलग भूमिकाएं निभाते थे. पुलिस ने उन के कब्जे से एक तमंचा, एक जीवित कारतूस, 5 किलोग्राम चांदी और करीब 160 ग्राम सोने के जेवरात, फरजी आधार कार्ड, एक लैपटाप, एक प्रिंटर सहित करीब 14 लाख 25 हजार रुपए का माल बरामद किया.
यह गैंग पकड़े जाने से पहले तक बुंदेलखंड, सतना, दमोह, छतरपुर, रीवा, कटनी, उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में चोरी, ठगी की करीब 21 वारदातों को अंजाम दे चुका था.
पुलिस हिरासत में लिए गए लोगों से जब अन्य घटनाओं के संबंध में पूछताछ की गई तब उन्होंने पन्ना के 5, पवई के 7, सिमरिया के 6, अमानगंज के 2 और धरमपुर के एक मामले में शामिल होना कुबूल कर लिया. पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद कोर्ट के आदेश पर उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया.