नोटिस का जवाब खून से : मैनेजर के पद ने ली जान – भाग 1

67  वर्षीय राजेंद्र व्यास मुंबई की ग्रांट रोड के एम.एस. अली मार्ग स्थित भारतनगर परिसर की सोसायटी में अपने परिवार के साथ रहते थे. वह मुंबई की एक मिल में नौकरी करते थे लेकिन मिल बंद हो जाने के कारण उन का झुकाव शेयर बाजार की तरफ हो गया था.

परिवार सुखी और संपन्न था. सोसायटी के लोगों में उन की इज्जत, मानसम्मान और प्रतिष्ठा थी. परिवार में उन की पत्नी सुरेखा व्यास के अलावा 2 बेटियां कीर्ति और शेफाली थीं. उन का कोई बेटा नहीं था, लेकिन उन्हें इस का कोई गम नहीं था. वह अपनी दोनों बेटियों को बेटों जैसा ही प्यार, दुलार करते थे. उन्होंने उन का पालनपोषण भी बेटों की तरह ही किया था.

राजेंद्र व्यास ने दोनों बेटियों को बेटों की तरह शिक्षित कर उन्हें उन के पैरों पर खड़ा किया था. बड़ी बेटी कीर्ति व्यास एमबीए, एलएलबी करने के बाद एक अच्छी पोस्ट पर काम कर रही थी. छोटी बेटी शेफाली भी एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी करती थी. सुरेखा गृहिणी के साथसाथ एक अच्छी मां थीं. उन्हें दोनों बेटियों से गहरा प्यार था.

परिवार में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी, दिन हंसीखुशी से बीत रहे थे. लेकिन इस साल मार्च महीने में उन के परिवार में एक ऐसी घटना घटी, जिस से पूरे परिवार में मातम छा गया था.

16 मार्च, 2018 की रात राजेंद्र व्यास और उन के परिवार पर भारी थी. उस दिन उन की बेटी कीर्ति सुबह पौने 9 बजे घर से औफिस जाने के लिए निकली थी और देर रात तक वापस नहीं लौटी. सुबह औफिस जाते समय वह किसी बात को ले कर थोड़ा परेशान जरूर थी, लेकिन उस ने परेशानी की वजह किसी से शेयर नहीं की थी. मां सुरेखा के पूछने पर उस ने मुसकरा कर बात टाल दी थी. मां ने भी इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था.

इंतजार की काली रात

दोपहर 12 बजे सुरेखा ने घर पर लगे वाईफाई का पासवर्ड जानने के लिए कीर्ति को फोन किया. लेकिन कीर्ति ने फोन रिसीव नहीं किया. उस का फोन कभी स्विच्ड औफ तो कभी आउट औफ कवरेज आ रहा था.

कई बार फोन करने के बाद भी जब कीर्ति का फोन नहीं लगा तो उन्होंने यह सोचा कि हो सकता है उस ने अपना फोन बंद कर रखा हो. क्योंकि कीर्ति कंपनी में एक बड़ी पोस्ट पर थी.

ऊपर से मार्च का महीना कंपनी की सालाना क्लोजिंग का होता है. वह किसी मीटिंग वगैरह में भी व्यस्त हो सकती थी. उन्होंने सोचा कि यदि वह मीटिंग में होगी तो मीटिंग के बाद खुद ही फोन कर लेगी. पर पूरा दिन बीत गया, न तो कीर्ति का फोन आया और न ही उस ने कोई मैसेज भेजा.

कीर्ति का पूरा परिवार तब परेशान हो गया, जब शेफाली अपने औफिस से घर लौट आई, जबकि कीर्ति का कहीं पता नहीं था. दोनों का औफिस आनेजाने का समय लगभग एक ही था. कीर्ति अपने समय की पाबंद थी.

इसके अलावा वह औफिस से 1-2 बार घर में फोन कर के घर वालों का हालचाल जरूर पूछ लिया करती थी. इस के अलावा अगर उसे देर से आना होता तो इस की जानकारी वह घर वालों को दे दिया करती थी.

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लापता हुई कीर्ति

जैसेजैसे समय और रात गहरी होती जा रही थी, वैसेवैसे परिवार वालों का दिल बैठता जा रहा था. काफी समय निकल जाने के बाद भी जब कीर्ति घर नहीं पहुंची और न ही उस का कोई फोन आया तो घर वालों ने कीर्ति की कंपनी में फोन कर के उस के बारे में पूछा. वहां से पता चला कि कीर्ति तो आज औफिस आई ही नहीं थी.

यह सुन कर घर में कोहराम मच गया. परिवार के अलावा जिसे भी कीर्ति के औफिस न पहुंचने की खबर मिली, सब स्तब्ध रह गए. घर वालों के अलावा जानपहचान वाले भी कीर्ति की तलाश में लग गए. ऐसी कोई जगह नहीं बची, जहां कीर्ति को नहीं खोजा गया. कीर्ति के साथ काम करने वाले लोग भी घर वालों के साथ मिल कर उसे ढूंढ रहे थे.

सभी यह सोच कर परेशान थे कि कीर्ति सुबह पौने 9 बजे अपनी ड्यूटी के लिए निकली थी तो वह अपने औफिस न पहुंच कर कहां चली गई. सभी का मन किसी अनहोनी को ले कर अशांत था. वह रात कीर्ति के घर वालों के लिए बड़ी बेचैनी भरी गुजरी.

सुरेखा और उन की बेटी शेफाली के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. पिता राजेंद्र व्यास की हालत भी ठीक नहीं थी. सोसायटी वाले और उन के नातेरिश्तेदार उन्हें धीरज बंधा कर पुलिस के पास जाने की सलाह दे रहे थे.

28 वर्षीय कीर्ति व्यास ने अपनी पढ़ाई पूरी कर जब सर्विस की कोशिश की तो उस की योग्यता के आधार पर उसे बड़ी आसानी से अंधेरी पश्चिम लोखंडवाला स्थित एक जानीमानी कंपनी बीब्लंट (सैलून) में नौकरी मिल गई.

इस कंपनी की सीईओ और एमडी दोनों मशहूर फिल्म अभिनेत्री शबाना आजमी और जावेद अख्तर के बेटे फरहान अख्तर की पूर्वपत्नी अनुधा भवानी अख्तर थीं.

इस कंपनी का फिल्मी सितारों और बड़ेबड़े उद्योगपतियों के बीच एक बड़ा नाम है. यहां हेयर कटिंग और ब्यूटी के लिए आने वालों को 3 हजार से ले कर 10 हजार रुपए तक देने पड़ते हैं. इस कंपनी की दिल्ली, कोलकाता और चेन्नै सहित कई महानगरों में 50 से अधिक शाखाएं हैं, कंपनी का हेडऔफिस मुंबई में है.

यह कंपनी बड़े फिल्मी सितारों, उद्योगपतियों, टीवी कलाकारों आदि की हेयरकटिंग और ब्यूटी ड्रेसिंग का काम तो करती ही है, इस के अलावा टीवी और फिल्मों का फाइनैंस और ऐक्टिंग की कोचिंग क्लासें भी चलाती है.

यहां कोचिंग में आने वालों को 6 महीने की कोचिंग दी जाती है, जिस की फीस 3 लाख से ले कर 8 लाख रुपए के बीच होती है. कंपनी का सालाना टर्नओवर कई करोड़ का होता है.

विहान अपहरण केस : औपरेशन सी रिवर ऐसे हुआ कामयाब – भाग 2

अपहर्त्ताओं ने पीडि़त परिवार को 2 वीडियो और 6 फोटो भेजे थे, जिन्हें देख कर पूरा परिवार डर गया था. जो वीडियो भेजे थे, उन में विहान ‘पापा, आई लव यू’ बोल रहा था. वह कह रहा था, ‘डैडी, आप मुझे लेने आ जाओ. मुझे आप की बहुत याद आ रही है.’ परिवार वाले उन वीडियो को बारबार देखते थे. विहान की चिंता में घर वालों की नींद उड़ी हुई थी.

पुलिस ने शाहदरा, इहबास, मंडोली रोड के करीब 2500 सीसीटीवी कैमरों की सूची बनाई, जिन में से 250 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली भी गई. आखिर में साहिबाबाद बौर्डर पर लगे एक सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में बदमाश मोटरसाइकिल पर बच्चे को ले जाते दिखाई दिए. इस फुटेज से एक बदमाश की पहचान भी हुई.

दूसरी ओर डीसीपी जौय टिर्की और एसीपी संदीप लांबा की टेक्निकल टीम ने सर्विलांस, मोबाइल ट्रैकर से 35 टावरों के करीब 3 लाख नंबरों की जांच की.

3 लाख नंबरों में मिला अपहर्त्ता का नंबर

पुलिस टीम 3 लाख नंबरों की जांच करती रही. डंप डाटा में उसे 4 लोकेशन पर एक फोन नंबर कौमन मिला. उस फोन नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया गया. जांच में पता चला कि वह फोन नंबर नितिन शर्मा का है. पुलिस ने उस नंबर पर आने वाली काल्स को रिकौर्ड करना शुरू कर दिया. इस से यह जानकारी मिली कि फोनधारक कोड में बात करता है. इस से उस पर पुलिस का शक और बढ़ गया.

फोन सर्विलांस पर लगाने के बाद इस बात की पुष्टि तो हो गई थी कि फोनधारक का नाम नितिन शर्मा है, पर वह रहता कहां है, यह पता नहीं लग सका. क्योंकि जिस आईडी से उस ने फोन का सिमकार्ड लिया था, वह फरजी पाई गई. इतनी बड़ी दिल्ली में उस का पता लगाना आसान नहीं था.

इंसपेक्टर विनय त्यागी ने सबइंसपेक्टर अर्जुन सिंह, हवा सिंह, दिनेश, सुशील, एएसआई राजकुमार, मोहम्मद सलीम, हैडकांस्टेबल श्यामलाल व शशिकांत को जिम्मेदारी दी कि वह मुखबिरों से मिलने वाली जानकारी की पड़ताल करें.

पुलिस ने पूरी दिल्ली में मुखबिरों का जाल बिछा रखा था. सभी मुखबिरों को एक अपहर्त्ता का वह फोटो दे दिया गया, जिस में उस ने पीडि़त परिवार से व्हाट्सऐप पर बात की थी. वह फोटो साफ नहीं था. मुखबिरों के अलावा उस फोटो की एकएक कौफी पूर्वी दिल्ली और उत्तरपूर्वी दिल्ली के सभी बीट अफसरों को भी दे दी गई ताकि वे अपनेअपने क्षेत्र के लोगों को फोटो दिखा कर जानकारी हासिल कर सकें.

जांच टीम में जितने भी पुलिसकर्मी थे, सभी रातदिन एक किए हुए थे. इन में से कुछ पुलिसकर्मियों के परिवार में शादी थी, इस के लिए उन्होंने छुट्टी भी ले रखी थी, पर केस की  संवेदनशीलता को देखते हुए वे छुट्टी पर नहीं गए. सभी की पहली प्राथमिकता केस को हल करने की थी. जौइंट सीपी आलोक कुमार जांच में जुटी सभी टीमों से संपर्क बनाए हुए थे. हर अपडेट वह पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक को दे रहे थे.

उधर पीडि़त परिवार के पास अपहर्त्ताओं की तरफ से फिरौती की और कोई काल नहीं आई. मामला मीडिया में ज्यादा हाईलाइट हो चुका था, इसलिए अपहर्त्ता शायद चौकस हो गए थे. ऐसे में पुलिस को इस बात की आशंका थी कि कहीं अपहर्त्ता बच्चे को नुकसान न पहुंचा दें.

इसी दौरान एक मुखबिर ने उस धुंधले फोटो को पहचान लिया. उस ने बताया कि वह नितिन शर्मा है जो गोकुलपुरी में रहता है. यह जानकारी पुलिस के लिए महत्त्वपूर्ण थी. मुखबिर द्वारा नितिन के घर का पता भी मिल गया था. लेकिन पुलिस अधिकारियों ने अपहृत विहान की सुरक्षा को देखते हुए नितिन के घर दबिश देना जरूरी नहीं समझा.

उधर सर्विलांस टीम नितिन के फोन पर होने वाली बातचीत पर नजर रखे हुए थी. तभी सर्विलांस टीम को पता चला कि नितिन सोमवार की रात को दिल्ली में होने वाले एक शादी समारोह में आ रहा है. मुखबिर द्वारा पुलिस को उस की स्विफ्ट कार का नंबर भी मिल गया था. पुलिस टीम ने मोबाइल लोकेशन के आधार पर उस का पीछा करना शुरू कर दिया. 5 फरवरी, 2018 की रात करीब साढ़े 11 बजे नितिन की कार सीमापुरी में कम्युनिटी ब्लौक के पास रुकी तो क्राइम ब्रांच की टीम ने उसे हिरासत में ले लिया.

हिरासत में लेते ही पुलिस ने सब से पहले उस से विहान के बारे में पूछा. नितिन ने बताया कि विहान सुरक्षित है. उसे बी-505 इबोनी अपार्टमेंट, शालीमार सिटी, साहिबाबाद में रखा गया है. जौइंट सीपी आलोक कुमार ने उसी समय डीसीपी जी. रामगोपाल नाइक के नेतृत्व में 16 सदस्यीय एक टीम नितिन के साथ शालीमार सिटी भेज दी. रात एक बजे टीम 5वीं मंजिल स्थित उस फ्लैट पर पहुंच गई.

बदमाशों ने कर दिया पुलिस को घायल

उस फ्लैट में अंदर की तरफ लकड़ी का दरवाजा था और बाहर लोहे की जाली वाला. पुलिस के सामने नितिन ने कोड में 3 बार दरवाजा खटखटाया. एक बदमाश ने जैसे ही लकड़ी वाला दरवाजा खोला तो अपने साथी नितिन को हथियारबंद पुलिस के बीच देख वह घबरा गया. तभी इंसपेक्टर विनय त्यागी ने कहा, ‘‘बच्चा पुलिस के हवाले कर दो, इसी में तुम्हारी भलाई है.’’

इंसपेक्टर विनय त्यागी दरवाजे के एकदम सामने थे. उन के बराबर में कमांडो कुलदीप था. उन के पीछे 6 अन्य पुलिसकर्मी एके 47 के साथ पोजीशन लिए खड़े थे. इंसपेक्टर त्यागी के ललकारने पर बदमाश ने फ्लैट के अंदर से कहा, ‘‘आप लोग यहां से चले जाओ वरना बच्चे की जान को खतरा हो सकता है.’’

इसी बीच लकड़ी का दरवाजा खोल कर बदमाश ने पुलिस पर फायरिंग कर दी. उस की एक गोली इंसपेक्टर विनय त्यागी और एक गोली कमांडो कुलदीप को लगी.

जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की. गोली लगने से एक बदमाश वहीं गिर गया, जबकि दूसरा लंगड़ाते हुए अंदर की तरफ भागा. उस के पैर में गोली लगी थी. बदमाशों की ओर से 5 राउंड फायरिंग की गई थी. गोली चलने से बाहर के लोहे वाले दरवाजे पर लगी जाली ढीली पड़ गई थी. फ्लैट के अंदर कोई हलचल न देख कर पुलिस ने ढीली पड़ चुकी लोहे की जाली को खींच कर मोड़ दिया और फिर अंदर हाथ डाल कर दरवाजे की सिटकनी खोल दी.

पोजीशन लेते हुए पुलिस फ्लैट में दाखिल हो गई. एक बदमाश फर्श पर पड़ा था, उस के सीने पर गोली लगी थी. उस की मौत हो चुकी थी. दूसरे बदमाश को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया. वह किचन में जा कर छिप गया था.

बच्चा छिपा बैठा था बैड के पीछे

जिस घायल बदमाश को हिरासत में लिया था, उस ने अपना नाम पंकज बताया और जिस बदमाश की मौत हुई थी, उस का नाम रवि था. पंकज को हिरासत में लेते ही डीसीपी डा. जी. रामगोपाल नाइक बच्चे को फ्लैट में ढूंढने लगे. वह बैड के पास छिपा मिला. बच्चा सहमा हुआ बैठा था.

डीसीपी ने विहान से कहा, ‘‘बेटा, मैं आप का चाचा हूं और पुलिस में हूं. आप को डैडी के पास ले जाने के लिए आया हूं.’’

यह कहते ही डीसीपी नाइक ने डरेसहमे विहान को गोद में उठा लिया, बच्चा उन से लिपट गया. विहान को सहीसलामत पा कर सभी ने राहत की सांस ली.

रहस्यों में उलझी पुलिस अधिकारी की मर्डर मिस्ट्री – भाग 1

आखिर महाराष्ट्र हाईकोर्ट और मीडिया के सक्रिय होते ही 18 महीने बाद महाराष्ट्र के नवी मुंबई, कलंबोली पुलिस थाने के अफसरों ने 7 दिसंबर, 2017 की शाम को करीब 8 बजे अपने विभाग के शातिर और ऊंची पहुंच वाले अफसर अभय कुरुंदकर को उस के मीरा रोड स्थित घर से गिरफ्तार कर लिया.

अभय कुरुंदकर जिला ठाणे, पालघर के नवघर पुलिस थाने में बतौर इंचार्ज तैनात था. उस पर अपने ही विभाग की एक महिला अधिकारी अश्विनी बेंद्रे के अपहरण और हत्या जैसे गंभीर आरोप थे. अश्विनी बेंद्रे नवी मुंबई कोमोठे स्थित ह्यूमन राइट्स कमीशन औफिस में असिस्टेंट पुलिस इंसपेक्टर के रूप में तैनात थी.

25 वर्षीय अश्विनी राजू बेंद्रे मूलरूप से कोल्हापुर, तालुका आंधले, गांव हातकणगे की रहने वाली थी. वह 2007 के बैच की पुलिस अधिकारी थी. उस के पिता 1988 में आर्मी से रिटायर होने के बाद काश्तकारी में व्यस्त हो गए थे. परिवार में उन की पत्नी के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था. शिक्षा के साथ अश्विनी बेंद्रे हर काम में अपने छोटे भाई आनंद बेंद्रे और छोटी बहन से होशियार थी. चूंकि पिता आर्मी से थे, इसलिए वह बेटी की रुचि को देखते हुए उसे आर्मी या पुलिस सेवा में भेजना चाहते थे.

10वीं तक की शिक्षा अपने गांव के स्कूल से पूरी करने के बाद अश्विनी आगे की पढ़ाई के लिए अपने मामा के घर कोल्हापुर आ गई थी. उस के मामा कोल्हापुर में पुलिस अधिकारी थे. बीकौम करने के बाद वह एमपीएससी की तैयारी में जुट गई थी, लेकिन परीक्षा में शामिल होने से पहले ही उस के मातापिता ने राजकुमार उर्फ राजू गोरे से उस की शादी तय कर दी. 2005 में अश्विनी बेंद्रे विदा हो कर अपनी ससुराल चली गई.

सीधे और सरल स्वभाव का राजू गोरे अश्विनी बेंद्रे जैसी सुंदर पत्नी को पा कर बहुत खुश था. उसे जब यह मालूम हुआ कि अश्विनी बेंद्रे के मातापिता की इच्छा और अश्विनी की इच्छा पुलिस सेवा जाने की थी तो राजू गोरे ने पत्नी की इस इच्छा को पूरा करने के लिए हरसंभव सहयोग करने को कहा. पति के सहयोग से अश्विनी बेंद्रे ने एमपीएससी की परीक्षा में भाग लिया. यह परीक्षा उस ने अच्छे अंकों से पास की. इसी दौरान वह एक बेटी की मां भी बन गई.

नासिक में 6 माह की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद अश्विनी बेंद्रे की पहली नियुक्ति पुणे में सबइंसपेक्टर के पद पर हुई थी. उस के बाद उसे सांगली के पुलिस मुख्यालय में तैनात कर दिया गया था. सांगली मुख्यालय में अश्विनी बेंद्रे को अभी कुछ महीने ही हुए थे कि उस का ट्रांसफर सांगली की लोकल क्राइम ब्रांच में कर दिया गया, जहां उस की मुलाकात पीआई अभय कुरुंदकर से हुई. अभय कुरुंदकर एक शातिरदिमाग अफसर था.

भले ही अफसर हो, अकेली औरत कई बार शातिर लोगों के जाल में फंस जाती है

अश्विनी बेंद्रे उस वक्त अपनी भावनाओं को दबाए पति से दूर अकेले ही जिंदगी का सफर तय कर रही थी. वैसे तो अश्विनी बेंद्रे एक सशक्त महिला थी. लेकिन पीआई अभय कुरुंदकर के फेंके गए जाल में वह बड़ी आसानी से फंस गई.

पीआई अभय कुरुंदकर मूलरूप से कोल्हापुर जिले के कराड़ गांव का रहने वाला था. उस का बचपन गरीबी और संघर्षों में बीता था. उस के बचपन में ही पिता का निधन हो गया था. परिवार में मां के अलावा 2 भाई और एक बहन थी. पिता के निधन के बाद जब परिवार वालों ने गांव से निकाल दिया तो मां अपने तीनों बच्चों को ले कर आजरा गांव में अपनी बहन के यहां रहने लगी थी. मेहनतमजदूरी कर के उन्होंने अपने तीनों बच्चों की परवरिश की.

दोनों भाई पढ़ाईलिखाई में जितने होशियार थे, उतने ही मेहनती भी थे. वे पूरा मन लगा कर पढ़ाई करते थे और बाकी समय में मां का हाथ बंटाते थे. उन के गांव के सारे दोस्त शराब, जुआ और राहजनी जैसे अपराधों में लिप्त रहते थे लेकिन ये दोनों भाई इन चीजों से दूर रहते थे. आखिरकार दोनों की मेहनत और पढ़ाई रंग लाई और दोनों भाइयों को पुलिस विभाग में नौकरी मिल गई.

पुलिस में नौकरी लग जाने के बाद अभय कुरुंदकर जब अपने पुश्तैनी घर और गांव गया तो पता चला कि उस के चचेरे भाइयों ने उस की पुश्तैनी जमीन पर कब्जा कर लिया है. इतना ही नहीं, उन्होंने उस के पिता की सारी संपत्ति भी अपने नाम करवा ली थी.

यह जान कर अभय कुरुंदकर काफी आहत हुआ, लेकिन उस ने अपने मन ही मन तय कर लिया था कि खूब पैसा कमा कर वह अपना घर अपने पुश्तैनी गांव में ही बनवाएगा. और उस ने ऐसा ही किया भी. उस ने पुलिस विभाग में अपना कद बढ़ाना शुरू किया. इस काम में उसे कामयाबी भी मिली. शीघ्र ही उस की पैठ कुछ बड़े अधिकारियों और राजनीतिज्ञों तक हो गई थी

तत्कालीन मंत्री एकनाथ खड़से के भांजे ज्ञानेश्वर पाटिल उर्फ राजेश पाटिल से अभय कुरुंदकर की गहरी दोस्ती हो गई थी. कानून और राजनीति के बीच दोस्ती होने के कारण अभय कुरुंदकर ने गैरकानूनी काम करने शुरू कर दिए. वह दोनों हाथों से पैसे कमाने लगा. वह अपनी पहुंच का फायदा उठा कर अपना ट्रांसफर उन थानों में कराता रहा, जहां अच्छी कमाई होती थी.

अभय कुरुंदकर ने थोड़े ही दिनों में इतना पैसा कमा लिया कि उस ने अपने गांव में 6 बिस्वा जमीन खरीद कर एक आलीशान घर बनवाया. उस मकान में उस का परिवार रहने लगा. इस के अलावा उस ने आजरा के आंबोली गांव में 7 एकड़ जमीन ले कर अपना फार्महाउस बनवाया. इस बीच उस का प्रमोशन और ट्रांसफर होते रहे.

29 मई, 2006 को उस का प्रमोशन कर के उसे कुछ दिनों के लिए कमिश्नर औफिस के नियंत्रण कक्ष भेज दिया गया. लेकिन अपनी पहुंच के कारण उस ने एक महीने के अंदर ही अपना ट्रांसफर कुपवाड़ा में करवा लिया. यहां पर वह लगभग ढाई साल रहा. यहीं से प्रमोशन पा कर वह मिर्ज के ट्रैफिक विभाग में चला गया.

जुर्म की दुनिया की लेडी डौन – भाग 2

किशोरावस्था से ही जुर्म की दुनिया में दाखिल हो चुके काला पर हत्या, अपहरण लूटपाट, जमीनों पर जायजनाजायज कब्जे और फिरौती वगैरह के कोई 3 दरजन मामले दर्ज हो चुके थे. अनुराधा की आपराधिक जन्मपत्री से पूरे 36 गुण उस से मिले थे.

काला भी उस के व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ था और उस के आला खुराफाती दिमाग का कायल हो गया था. काला की दहशत अपने इलाकों में ठीक वैसी ही थी, जैसी राजस्थान में आनंद की थी.

दोनों को एकदूसरे की जरूरत थी, कारोबारी भी जिस्मानी भी और जज्बाती भी. काला के गिरोह के मेंबर भी अनुराधा के एके 47 चलाने की स्टाइल से इतने इंप्रैस थे कि उन्होंने उसे रिवौल्वर रानी का खिताब दे दिया था.

फिर जैसे ही सागर धनखड़ हत्याकांड में नामी पहलवान सुशील कुमार का नाम आया तो दिल्ली गरमा उठी, क्योंकि इस वारदात में गैंगस्टर नीरज बवाना और काला जठेड़ी का नाम भी आया. जेल में बंद सुशील पहलवान ने उस से अपनी जान को खतरा जताया था.

काला जठेड़ी की तलाश में जुटी स्पैशल सेल

अब पुलिस की स्पैशल सैल ने काला की तलाश को मुहिम की शक्ल दे दी तो वह अनुराधा के साथ भागता रहा. काला की तलाश में पुलिस की स्पैशल सैल जुटी तो अनुराधा फिर चिंतित हो उठी.

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क्योंकि अगर आनंद की तरह काला भी किसी एनकाउंटर में मारा जाता तो वह फिर बेसहारा हो जाती. दूसरे गिरफ्तारी की तलवार अब उस के सिर पर भी लटकने लगी थी.

पुलिस को अंदेशा इन दोनों के नेपाल में होने का था, जबकि हकीकत में दोनों भारत भ्रमण करते आंध्र प्रदेश के अलावा पंजाब और मुंबई भी गए थे और बिहार के पूर्णिया में भी रुके थे. मध्य प्रदेश के इंदौर और देवास में भी इन्होंने फरारी काटी थी. हर जगह इन्होंने खुद को पतिपत्नी बताया और लिखाया था.

काला को घिरता देख अनुराधा ने 70-80 के दशक के मशहूर जासूसी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक के एक किरदार विमल का सहारा लिया, जिस ने पुलिस से बचने के लिए सरदार का हुलिया अपना लिया था.

अपनी नई पत्नी के कहने पर काला जठेड़ी विमल की तर्ज पर सरदार बन गया. उस ने अपना नया नाम पुनीत भल्ला और अनुराधा का नाम पूजा भल्ला रखा. सोशल मीडिया पर भी दोनों ने नए नामों से आईडी बना ली थी.

अनुराधा ने जठेड़ी गैंग के गुर्गों को यह हिदायत भी दी थी कि अगर उन में से कोई कभी पुलिस के हत्थे चढ़ जाए तो काला के बारे में यही बताए कि वह इन दिनों नेपाल में है और वहीं से गैंग चला रहा है. इस हिदायत का मकसद पुलिस को भटकाए और उलझाए रखना था.

आनंदपाल के गिरोह में रहते अनुराधा कई बार नेपाल भी गई थी और वहां के अड्डों से भी वाकिफ थी, इसलिए वह काला को भी 2 बार नेपाल ले गई थी. मकसद था विदेश भागने की संभावनाएं टटोलना और जमा पैसों की ट्रोल को रोकना.

अनुराधा के खुराफाती दिमाग का आनंद भी कायल था और अब काला भी हो गया था, जिसे अनुराधा ने सख्त हिदायत यह दे रखी थी कि वह भारत में फोन पर किसी से बात न करे जोकि आजकल पुलिस को मुजरिम तक पहुंचने का सब से आसान और सहूलियत भरा जरिया और रास्ता होता है.

अब काला को जिस से भी बात करनी होती थी तो वह विदेश में बैठे अपने किसी गुर्गें की मदद से करता था. काला और अनुराधा तक पहुंचने के लिए पुलिस की स्पैशल सेल ने लारेंस बिश्नोई को मोहरा बनाया जो जेल में बंद था.

पुलिस ने अपने मुखबिरों के जरिए बिश्नोई तक एक फोन पहुंचाया, जिस से वह अपने गुर्गों से बात करता रहा और पुलिस खामोशी से तमाशा देखती रही.

एक बार वही हुआ जो पुलिस चाहती थी कि बिश्नोई ने काला से भी बात कर डाली. उस का फोन सर्विलांस पर तो था ही जिस से उस के सहारनपुर के अमानत ढाबे पर होने की लोकेशन मिली.

पुलिस तुरंत हरकत में आई और आसानी से काला और अनुराधा को गिरफ्तार कर लिया. दोनों हतप्रभ थे. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि वे चूहेदानी में फंस चुके हैं.

बिलाशक पुलिस की स्पैशल सेल ने दिमाग से काम लिया, जिसे उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल बिश्नोई काला से जरूर बात करेगा और ऐसा हुआ भी.

किडनैपिंग क्वीन अर्चना शर्मा

अनुराधा जुर्म की दुनिया की छोटी मछली थी, जिस का हल्ला मीडिया ने ज्यादा मचाया क्योंकि आमतौर पर औरतों के बहुत ज्यादा क्रूर होने की उम्मीद कोई नहीं करता. लेकिन वक्तवक्त पर महिलाएं जुर्म की दुनिया में आ कर लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचती रही हैं. ऐसा ही एक नाम अर्चना शर्मा का है, जिसे किडनैपिंग क्वीन के खिताब से नवाज दिया गया.

अर्चना की कहानी एकदम फिल्मों सरीखी है. उज्जैन में एक मामूली पुलिस कांस्टेबल बालमुकुंद शर्मा के यहां जन्मी अर्चना भी अनुराधा की तरह पढ़ाईलिखाई में तेज थी, इसलिए सैंट्रल स्कूल के स्टाफ की चहेती भी थी.

4 भाईबहनों में सब से बड़ी अर्चना पेंटिंग की शौकीन थी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी. रामलीला में सीता का रोल निभाना उसे बहुत भाता था. सभी लोगों को उम्मीद थी कि महत्त्वाकांक्षी और बहुमुखी प्रतिभा की धनी यह लड़की एक दिन नाम करेगी.

अर्चना ने नाम किया, लेकिन जुर्म की दुनिया में. जिसे जान कर हर कोई दांतों तले अंगुली दबा लेता है. एक दिन अचानक उस ने पढ़ाई छोड़ देने का ऐलान कर दिया, जिस से घर वाले हैरान रह गए, उन्होंने उसे समझाया लेकिन वह टस से मस नहीं हुई.

असल में वह पिता की तरह पुलिस विभाग में नौकरी करना चाहती थी, जो उस ने कर भी ली. लेकिन जल्द ही वह इस नौकरी से ऊब गई और नौकरी छोड़ भी दी, जिस से गुस्साए घर वालों ने उस से नाता तोड़ लिया.

पुलिस की छोटे ओहदे की नौकरी में मेहनत के मुकाबले पगार कम मिलती थी, जबकि अर्चना का सोचना था कि वह इस से ज्यादा डिजर्व करती है. कुछ कर गुजरने की चाह लिए वह उज्जैन से भोपाल आ गई और वहां एक छोटी नौकरी कर ली.

लौकडाउन की लुटेरी दुल्हन : कैसे आई पुलिस की गिरफ्त में

मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल में पन्ना जिला मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर बड़खेरा गांव के पुरुषोत्तम की शादी की उम्र निकल चुकी थी. वह 33 साल का हो गया था. उस के पिता पंडित सुक्कन पटेरिया उस की शादी को ले कर बहुत चिंतित थे.

वह खेतीबाड़ी का काम करते थे. चिंता का एक कारण और था कि बड़े बेटे पुरुषोत्तम की शादी नहीं हो पाने के कारण उस से छोटे 2 भाइयों की उम्र भी निकलती जा रही थी.

पुरुषोत्तम के लिए उस की मां और पिता दोनों ही बहुत परेशान रहते थे. वे रिश्तेदारों की मदद से पुरुषोत्तम के लिए लड़की तलाश कर थक चुके थे. इस वजह से पुरुषोत्तम भी मानसिक तनाव में रहने लगा था.

उस की शादी नहीं हो पाने का एक कारण उस की पढ़ाई भी थी. वह कुल 10वीं जमात तक ही पढ़ा था. इसलिए उसे कोई लड़की ब्याहने को तैयार नहीं था.

लौकडाउन से पहले मार्च 2020 की बात है. पुरुषोत्तम टीकमगढ़ जिले के टीला गांव में एक रिश्तेदार के यहां गया था. वहीं उस की मुलाकात गांव के मुन्ना तिवारी से हुई.

उस ने बातचीत के दौरान मुन्ना तिवारी से कहा, ‘‘तिवारीजी, मेरे पिताजी मेरी शादी को ले कर परेशान रहते हैं. आप की नजर में कोई लड़की इधर हो तो बताइए.’’

मुन्ना तिवारी ने छूटते ही कहा, ‘‘क्यों नहीं भाई, लगता है तुम्हारी मुराद पूरी हो गई है. देखो, मेरी एक रिश्तेदारी में भी 30 साल की युवती पूजा कुंवारी बैठी है. तुम कहो तो मैं बात उस से करूं?’’

‘‘अरे तिवारीजी, इस में पूछने की क्या बाता है? आज ही बात करो न उस के पिता से.’’ पुरुषोत्तम चहकते हुए बोला.

‘‘उस के पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. इसी वजह से तो उस की शादी नहीं हो पा रही है. मैं देखता हूं, अगर तुम्हारी बात बन जाए तो अच्छा रहेगा.’’ मुन्ना तिवारी ने कहा.

‘‘उस की मां से बात कर लो न!’’ पुरुषोत्तम ने सुझाव दिया.

‘‘नहींनहीं, उन से डायरेक्ट बात करना सही नहीं होगा. पहले किसी नजदीकी रिश्तेदार से उन तक बात पहुंचानी होगी. तुम्हारे बारे में चर्चा करवानी होगी. अब देखना है कि कौन रिश्तेदार उन के सामने तुम्हारे और परिवार के बारे में तारीफ के पुल बांध सके.’’ तिवारी ने समझाया.

‘‘जैसा तुम उचित समझो, लेकिन जो भी करो जल्दी करो,’’ पुरुषोत्तम उम्मीद के साथ बोला.

‘‘ठीक है, होली के बाद देखता हूं.’’ वह बोला.

जैसा मुन्ना तिवारी ने कहा था, वैसा ही किया. होली के दूसरे दिन ही वह पूजा और उस की बहन भागवती मिश्रा को ले कर सुक्कन पटेरिया के घर पहुंच गया.

पुरुषोत्तम को आश्चर्य हुआ कि जिस युवती से उस की शादी की बात चलने वाली है, वह भी साथ आई थी. उस ने तिवारी की ओर आश्चर्य से देखा. तिवारी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘शुभ काम में देरी नहीं करनी चाहिए.’’

चायनाश्ते के बाद युवतयुवती को एक साथ बैठा दिया गया. उन्होंने एकदूसरे को सरसरी निगाह से देखापरखा. पुरुषोत्तम को गोरी, तीखे नाकनक्श वाली पूजा पहली ही नजर में भा गई.

पूजा की बहन भागवती ने भी पुरुषोत्तम को पसंद कर लिया. पूजा ने भी अपनी पसंद बहन को बता कर अपनी रजामंदी दे दी.

दूसरी तरफ अपने बेटे की शादी का सपना संजोए सुक्कन की पत्नी ने घर आए मेहमानों का खूब स्वागतसत्कार किया. उस ने मेहमानों के लिए तरहतरह के पकवान बना कर परोसे.

सुक्कन की पत्नी खुशी के मारे फूली नहीं समा रही थी. उस ने पति से होने वाली बहू को शगुन दे कर जल्दी से रिश्ता तय कर लेने को कहा. फिर पतिपत्नी ने शगुन के तौर पर पूजा की गोद में नारियल, कपड़े, फल और मिठाई भेंट कर दिए. पुरुषोत्तम ने उसे अंगूठी पहना कर सगाई की रस्म अदा कर दी. साथ में कुछ पैसे भी रख दिए.

सगाई की रस्म पूरा होने से पहले ही मुन्ना तिवारी ने पंडित सुक्कन पटेरिया को  साफतौर पर बता दिया था कि पूजा के पिता जीवित नहीं हैं. उस के घर की माली हालत भी ठीक नहीं है, इसलिए शादी का खर्चा उन्हें ही उठाना पड़ेगा. सुक्कन लड़की वालों की हर शर्त मानने तैयार हो गया.

सगाई होते ही पुरुषोत्तम शादी के हसीन सपने संजोने लगा. जब से उस ने पूजा को देखा था, तभी से उस के मन में खुशियों के लड्डू फूटने लगे थे और वह उस के साथ जीवन की शुरुआत करने की योजनाएं बनाने लगा था.

रात को सोते समय पुरुषोत्तम अपनी होने वाली सुहागरात की कल्पना कर के खुश हो रहा था. फिल्मों की तरह उसे भी सपने में सुहागरात में गुलाब की पंखुडि़यों से सजी सेज पर बैठी लजातीशरमाती पूजा नजर आने लगी थी. इंतजार की घड़ी और निकट आ गई, लेकिन यह क्या अचानक कोरोना वायरस के कहर ने सभी को घरों में बंद कर दिया. सरकार ने लौकडाउन लगा दिया. पुरुषोत्तम एक बार फिर निराश हो गया. वह अपनी किस्मत को दोष देने लगा.

खैर, उसे अनलौक की प्रक्रिया शुरू होने तक इंतजार करना पड़ा, जिस की शुरुआत मई 2020 में हुई. प्रशासन की तरफ से शादीविवाह के सार्वजनिक व सामूहिक कार्यक्रमों में सीमित संख्या में लोगों के शामिल होने की अनुमति थी.

दोनों पक्षों की आपसी सहमति के बाद 29 मई, 2020 को शादी की तारीख तय हो गई. इसी में यह भी तय हुआ कि कम से कम मेहमानों को बुलाया जाएगा. पूजा और उस की बहन भागवती 28 मई को आशा दीक्षित के घर बड़खेरा गांव आ गए.

आशा पुरुषोत्तम की बुआ थी. वहीं 29 मई को 10-12 लोगों की मौजूदगी में सामाजिक रीतिरिवाज के अनुसार पुरुषोत्तम और पूजा का विवाह संपन्न हो गया.

सुक्कन पटेरिया ने अपनी बहू के लिए सोनेचांदी के जेवर दिए. विवाह के दूसरे दिन पूजा के साथ आई उस की बहन भागवती ने अपनी गरीबी का हवाला दे कर पुरुषोत्तम के पिता सुक्कन से 60 हजार रुपए मांगे. सुक्कन पटेरिया ने यह सोच कर सहज भाव से रुपए दे दिए कि होने वाली बहू के परिवार की मदद करने में क्या बुराई है.

पुरुषोत्तम की मां ने नईनवेली दुलहन का स्वागत पारिवारिक और सामाजिक रीतिरिवाज के साथ किया. घर में शादी के बाद की सारी रस्में चलती रहीं. पुरुषोत्तम को अपनी सुहागरात का बेसब्री से इंतजार था.

रात होते ही मेहमानों के सो जाने के बाद उस ने फिल्मी अंदाज में अपने फूलों से सजे कमरे में प्रवेश किया. सुहागसेज पर बैठी दुलहन का घूंघट हटा कर उस के हुस्न के तारीफों के पुल बांध दिए. किंतु अपने प्रेम प्रदर्शन के दौरान पुरुषोत्तम ने महसूस किया कि पूजा उस के प्रति रोमांचित नहीं थी. वह उस की तरह उमंग में नहीं थी.

हालांकि पुरुषोत्तम ने यह सोच कर पूजा के इस व्यवहार पर कोई ध्यान नहीं दिया कि शायद ऐसा शादी में थकान की वजह से हो. इसी तरह से लगातार 5 दिन निकल गए, लेकिन पूजा के रुख में बदलाव नहीं दिखा. उस के सुस्त और नीरस व्यवहार ने पुरुषोत्तम को आहत कर दिया था.

शादी के बाद छठवीं रात पुरुषोत्तम पूजा की बेरुखी से परेशान हो कर चुपचाप सो गया. सुबह 5 बजे जैसे ही उस की नींद खुली, तो पाया कि पूजा बिस्तर पर नहीं है.

कुछ देर तक उस का इंतजार किया. नहीं आने पर घर के दूसरे कमरे, बरामदे आदि के बाद बाथरूम में तलाश किया, लेकिन पूजा कहीं नहीं मिली.

उस के बाद बदहवास कमरे में आ कर बिछावन पर बैठ गया. जल्दी ही बैचनी की स्थिति में कमरे से निकल कर बाहर आया. इस बीच उस की मां जाग चुकी थी. उस ने मां से पूछा, ‘‘मां पूजा कहां है?’’

मां ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्यों कमरे में नहीं है क्या? बाथरूम में होगी.’’

जब पुरुषोत्तम ने अपनी मां को बताया कि पूजा घर में कहीं नहीं है, तब मांबेटे ने कमरे में जा कर देखा तो पाया कि पूजा का बैग और सूटकेस भी कमरे में नहीं था. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि पूजा उस के जेवरात और नकदी ले कर फरार हो चुकी है.

अचानक उन के दिमाग में लुटेरी दुलहन की कहानी कौंध गई. दुलहन के गायब होने की खबर जंगल की आग की तरह फैल गई. गांव में इस तरह की यह पहली घटना थी. पुरुषोत्तम और उस के घर वालों की बदनामी होने लगी. पुरुषोत्तम को समझ आ गया था कि उस के साथ शादी के नाम पर ठगी हुई है.

सुक्कन के परिवार ने मान लिया था कि वे लुटेरी दुलहन गैंग के शिकार हो चुके हैं. परंतु लोकलाज के चलते चुप रहे. उन्होंने सोचा कि गांव में जब यह बात फैलेगी तो कोई इस परिवार को लड़की नहीं ब्याहेगा.

वे पुलिस और अदालती चक्कर में नहीं पड़ना चाहते थे. इसलिए चुपचाप नुकसान और अपमान का घूंट पी कर रह गए. पुलिस में शिकायत नहीं करने की यही गलती आगे चल कर पूरे परिवार की परेशानी का सबब बन गई. आए दिन लुटेरी गैंग की तरफ से पुरुषोत्तम और उस के घर वालों से रुपयों की मांग होने लगी. तभी उन्हें मालूम हुआ कि भागवती ही गैंग की सरगना है.

वह पुरुषोत्तम को फोन कर धमकाते हुए बारबार रुपए की मांग करने लगी. वह हमेशा परिवार को दहेज मांगने के जुर्म में  केस करने की धमकी देने लगी.

रोजरोज की इन धमकियों से तंग अकर पुरुषोत्तम 20 जून को गांव के सरपंच धीरेंद्र बाजपेई को साथ लेकर पन्ना के कोतवाली थाने गया. टीआई अरुण कुमार सोनी को पूरी बात बताई और इस साजिश की रिपोर्ट लिखाई.

थानाप्रभारी अरुण कुमार सोनी ने शादी के नाम पर ठगी करने वाली घटना की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी. पन्ना जिले के एसपी धर्मराज मीणा ने इस घटना को गंभीरता से लिया और तत्काल आरोपियों की गिरफ्तारी के निर्देश दिए. कारण पिछले एक साल के दौरान पन्ना में झूठी शादी रचाने के नाम पर ठगी की कई घटनाएं हो चुकी थीं. इस का परदाफाश करना किसी चुनौती से कम नहीं था.

धर्मराज मीणा ने टीआई अरुण कुमार सोनी और एसआई सोनम शर्मा के साथ एक विशेष टीम का गठन कर लुटेरी दुलहन गैंग का परदाफाश करने की जिम्मेदारी सौंप दी. पुलिस टीम ने अपने मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया.

23 जून, 2021 को पुलिस को एक मुखबिर के जरिए सूचना मिली कि धाम मोहल्ला के एक मकान में कुछ लोग रुके हुए हैं. उन के बीच चोरी के माल के बंटवारे को ले कर विवाद चल रहा है. तत्काल पुलिस टीम ने धाम मोहल्ला में मुखबिर के बताए मकान में दबिश दी. वहां से 6 पुरुष और 2 महिलाओं को संदेह के आधार पर दबोच लिया गया.

थाने ला कर जब उन से पूछताछ की तो पता चला कि वे मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लोग हैं और वह लुटेरी दुलहन के गैंग के हैं. उन्होंने यह भी बताया कि वे भोलेभाले लोगों के घर में शादी रचा कर पहले उन का विश्वास जीतते हैं, फिर पैसे, गहनों का पता चलने पर मौका पा कर भाग जाते हैं.

पकड़ी गई महिलाओं से पूछताछ में यह भी पता चला कि वह लुटेरी दुलहन बन कर कई घटनाओं को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुकी हैं. पुलिस पूछताछ में जो कहानी सामने आई, उसे सुन कर भ्रष्टाचार के वैसे कारनामे का भी खुलासा हुआ, जिसे सरकार काफी सुरक्षित मानती आई है. जैसे आधार कार्ड का बनाया जाना. यह जान कर पुलिस टीम भी हैरान रह गई.

गिरोह की मुख्य सरगना छतरपुर के बिल्हा गांव की भागवती ठाकुर उर्फ भग्गो थी, जो बारबार अपना सरनेम बदल लेती थी. लौकडाउन के पहले सभी रीवा में किराए के मकान में रहते थे.

वहीं से भागवती के गिरोह के लोग मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के आसपास के जिलों में चोरियां करते थे. चोरी की घटनाओं को अंजाम देने के बाद उस के मन में शादी कर के भाग जाने का आइडिया आया.

भागवती ने जिस पूजा नाम की युवती का रिश्ता पुरुषोत्तम से करवाया था, उस का वास्तविक नाम इंद्रा यादव निकला. पुरुषोत्तम को अपने जाल में फांसने के लिए उस ने इंद्रा को पूजा तिवारी के रूप में पेश किया था.

भागवती के बनाए प्लान के मुताबिक वह शादी के 5 दिन बाद जेवरात और नकदी ले कर घर से भाग गई थी. 30 साल की पूजा उर्फ इंद्रा यादव उत्तर प्रदेश के झांसी के रहने वाले स्वामी यादव की बेटी है. वह ऐसी 4 शादियां कर चुकी थी, जो समाजपरिवार की निगाह में मान्य थीं, लेकिन वह उस के लिए महज एक ढोंग ही था.

गिरोह का एक सदस्य इसरार खान निवासी इटावा (उत्तर प्रदेश) लैपटाप और प्रिंटर की मदद से गिरोह में शामिल लोगों के नकली आधार कार्ड बनाने का काम करता था.

ये लोग शादी के लिए रिश्ता तय करते समय रिश्ते के हिसाब से अपनी जाति और नाम बदल लेते थे. आधार कार्ड में फोटो व नामपता देख कर किसी को इन पर शक भी नहीं होता था. उन्होंने 2015 में आई एक फिल्म ‘डौली की डोली’ से प्रेरणा ली थी. फिल्म असली अंदाज में डौली झूठी शादियां रचाती है. शादी की रात ही लड़के और उस के परिवार की कीमती चीजों को चुरा कर भाग जाती है.

पन्ना पुलिस ने जिन लुटेरी दुलहनों को पकड़ा था, वे भी झूठी शादी रचा कर कुछ दिनों तक घर में रहती थीं और फिर मौका पा कर कीमती सामान ले कर रफूचक्कर हो जाती थीं.

पुलिस ने दोनों के साथ जिन 6 अन्य आरोपियों को गिरफ्तार किया, उस में आसिफ, कमलेश केवट, रम्मू, मुन्ना तिवारी, रामजी भी थे. सभी सदस्य अलगअलग भूमिकाएं निभाते थे. पुलिस ने उन के कब्जे से एक तमंचा, एक जीवित कारतूस, 5 किलोग्राम चांदी और करीब 160 ग्राम सोने के जेवरात, फरजी आधार कार्ड, एक लैपटाप, एक प्रिंटर सहित करीब 14 लाख 25 हजार रुपए का माल बरामद किया.

यह गैंग पकड़े जाने से पहले तक बुंदेलखंड, सतना, दमोह, छतरपुर, रीवा, कटनी, उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में चोरी, ठगी की करीब 21 वारदातों को अंजाम दे चुका था.

पुलिस हिरासत में लिए गए लोगों से जब अन्य घटनाओं के संबंध में पूछताछ की गई तब उन्होंने पन्ना के 5, पवई के 7, सिमरिया के 6, अमानगंज के 2 और धरमपुर के एक मामले में शामिल होना कुबूल कर लिया. पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद कोर्ट के आदेश पर उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

विकास दुबे : नेताओं और पुलिसवालों की छत्रछाया में बना गैंगस्टर – भाग 1

पुरानी कहावत है कि पुलिस वालों से न दोस्ती अच्छी न दुश्मनी, लेकिन विकास दुबे ने दोनों ही कर ली थीं. कई थानों के पुलिस वाले उस के दरबार में जीहुजूरी करते थे, तो कुछ ऐसे भी थे जिन की वरदी उस की दबंगई पर भारी पड़ती थी. ऐसे ही थे बिल्हौर के सीओ देवेंद्र मिश्रा.

विकास ने अपने ही गांव के राहुल तिवारी की जमीन कब्जा ली थी. इतना ही नहीं, उस पर जानलेवा हमला भी किया था. राहुल अपनी शिकायत ले कर थाना चौबेपुर गया, लेकिन चौबेपुर थाने के इंचार्ज विनय तिवारी विकास के खास लोगों में से थे. उन्होंने राहुल की शिकायत सुनने के बजाय उसे भगा दिया.

इस पर राहुल बिल्हौर के सीओ देवेंद्र मिश्रा से मिला. उन्होंने विनय तिवारी को फोन कर के रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश दिया तो उस की रिपोर्ट दर्ज हो गई. लेकिन इस पर कोई एक्शन नहीं लिया गया. बाद में राहुल तिवारी ने सीओ देवेंद्र मिश्रा को खबर दी कि विकास दुबे गांव में ही है.

देवेंद्र मिश्रा ने यह सूचना एसएसपी दिनेश कुमार पी. को दी. विकास दुबे कोई छोटामोटा अपराधी नहीं था. अलगअलग थानों में उस के खिलाफ हत्या सहित 60 आपराधिक मुकदमे दर्ज थे. ऊपर से उसे राजनीतिक संरक्षण भी मिला हुआ था.

एसएसपी दिनेश कुमार पी. ने देवेंद्र मिश्रा को निर्देश दिया कि आसपास के थानों से फोर्स मंगवा लें और छापा मार कर विकास दुबे को गिरफ्तार करें. इस पर देवेंद्र मिश्रा ने बिठूर, शिवली और चौबेपुर थानों से पुलिस फोर्स मंगा ली. गलती यह हुई कि उन्होंने चौबेपुर थाने को दबिश की जानकारी भी दी और वहां से फोर्स भी मंगा ली. विकास दुबे को रात में दबिश की सूचना थाना चौबेपुर से ही दी गई, जिस की वजह से उस ने भागने के बजाय पुलिस को ही ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया.

इस के लिए उस ने फोन कर के अपने गिरोह के लोगों को अपने गांव बिकरू बुला लिया. सब से पहले उस ने जेसीबी मशीन खड़ी करवा कर उस रास्ते को बंद किया जो उस के किलेनुमा घर की ओर आता था. फिर अंधेरा घिरते ही अपने लोगों को मय हथियारों के छतों पर तैनात कर दिया. विकास खुद भी उन के साथ था.

योजनानुसार आधी रात के बाद सरकारी गाडि़यों में भर कर पुलिस टीम के 2 दरजन से अधिक जवान तथा अधिकारी बिकरू गांव में प्रविष्ट हुए. लेकिन जैसे ही पुलिस की गाडि़यां विकास के किले जैसे मकान के पास पहुंचीं तो घर की तरफ जाने वाले रास्ते में जेसीबी मशीन खड़ी मिली, जिस से पुलिस की गाडि़यां आगे नहीं जा सकती थीं. निस्संदेह मशीन को रास्ता रोकने के लिए खड़ा किया गया था.

सीओ देवेंद्र मिश्रा, दोनों थानाप्रभारियों कौशलेंद्र प्रताप सिंह व महेश यादव और कुछ स्टाफ को ले कर विकास दुबे के घर की तरफ चल दिए. बाकी स्टाफ से कहा गया कि जेसीबी मशीन को हटा कर गाडि़यां आगे ले आएं.

सीओ साहब जिस स्टाफ को ले कर आगे बढ़े थे, उस के चंद कदम आगे बढ़ाते ही अचानक पुलिस पर तीन तरफ से फायरिंग होने लगी. गोलियां विकास के मकान की छत से बरसाई जा रही थीं. अचानक हुई इस फायरिंग से बचने के लिए पुलिस टीम के लोग इधरउधर छिपने की जगह ढूंढने लगे.

पूरा गांव काफी देर तक गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंजता रहा. काफी देर बाद जब गोलियों की तड़तड़ाहट बंद हुई तो पूरे गांव में सन्नाटा छा गया.

सीओ देवेंद्र मिश्रा सहित 8 पुलिस वाले शहीद

दबिश देने पहुंची पुलिस टीम पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई गई थीं, उस में से बिल्हौर के सीओ देवेंद्र कुमार मिश्रा, एसओ (शिवराजपुर) महेश यादव, चौकी इंचार्ज (मंधना) अनूप कुमार, सबइंस्पेक्टर (शिवराजपुर) नेबूलाल, थाना चौबेपुर का कांस्टेबल सुलतान सिंह, बिठूर थाने के कांस्टेबल राहुल, जितेंद्र और बबलू की गोली लगने से मौत हो गई थी.

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अचानक हुई ताबड़तोड़ गोलीबारी में बिठूर थाने के एसओ कौशलेंद्र प्रताप सिंह को जांघ और हाथ में 3 गोली लगी थीं. दरोगा सुधाकर पांडेय, सिपाही अजय सेंगर, अजय कश्यप, चौबेपुर थाने का सिपाही शिवमूरत और होमगार्ड जयराम पटेल भी गोली लगने से घायल हुए थे.

खास बात यह कि चौबेपुर थाने के इंचार्ज विनय तिवारी और उन की टीम में एक सिपाही शिवमूरत के अलावा कोई घायल नहीं हुआ था. शिवमूरत को भी उस की गलती से गोली लगी. दरअसल, पहले से जानकारी होने की वजह से चौबेपुर की टीम जेसीबी से आगे नहीं बढ़ी थी.

बदमाशों की इस दुस्साहसिक वारदात की जानकारी रात में ही एसएसपी दिनेश कुमार को दी गई. वे एसपी (पश्चिम) डा. अनिल कुमार समेत 3 एसपी और कई सीओ की फोर्स के साथ बिकरू पहुंच गए.

एसओ (बिठूर) समेत गंभीर रूप से घायल 6 पुलिसकर्मियों को रात में ही रीजेंसी अस्पताल में भरती कराने के लिए कानपुर भेज दिया गया. इस वारदात की सूचना मिलते ही आईजी जोन मोहित अग्रवाल और एडीजी जय नारायण सिंह तत्काल लखनऊ से कानपुर के लिए रवाना हो गए. गांव में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए 4 कंपनी पीएसी भी बुलवा ली गई थी.

दूसरी तरफ घटना के बाद कानपुर, कानपुर देहात, कन्नौज, फर्रुखाबाद, इटावा, औरैया की सभी सीमाएं सील कर के पुलिस ने कौंबिंग औपरेशन शुरू कर दिया. कौंबिंग के दौरान बिठूर के एक खेत में छिपे 2 बदमाश पुलिस को दिखाई दे गए. दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं.

एनकाउंटर में दोनों बदमाश ढेर हो गए. इन में एक हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे का मामा प्रेम प्रकाश पांडेय था और दूसरा उस का चचेरा भाई अतुल दुबे. सीओ देवेंद्र मिश्रा का क्षतविक्षत शव प्रेम प्रकाश के घर में ही मिला था. लूटी गई 9 एमएम की पिस्टल भी प्रेम प्रकाश की लाश के पास मिली.

प्रदेश ही नहीं, पूरा देश हिल गया था

सुबह का उजाला बढ़ते ही प्रदेश के एडीजी (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार तथा स्पैशल टास्क फोर्स के आईजी अमिताभ यश भी अपनी सब से बेहतरीन टीमों को ले कर बिकरू गांव पहुंच गए. विकास दुबे के बारे में मिली सभी जानकारी ले कर एसटीएफ की कई टीमें उसी वक्त कानपुर, लखनऊ तथा अन्य शहरों के लिए रवाना कर दी गईं.

प्रदेश के डीजीपी एच.सी. अवस्थी के लिए यह घटना बड़ी चुनौती थी. उन्होंने विकास दुबे को जिंदा या मुर्दा लाने वाले को 50 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की. फिर वह लखनऊ से सीधे कानपुर के लिए रवाना हो गए.

प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस अधिकारियों को सख्त आदेश दिए कि किसी भी हालत में इस घटना के लिए जिम्मेदार अपराधियों को उन के अंजाम तक पहुंचाया जाए.

मुख्यमंत्री ने सभी शहीद 8 पुलिस वालों के परिवारों को एकएक करोड़ रुपए की आर्थिक मदद देने की भी घोषणा की.

दूसरी तरफ इस घटना के बाद गुस्से में भरी पुलिस की टीमों ने विकास दुबे की तलाश में ताबड़तोड़ काररवाई शुरू कर दी थी. पुलिस की एक टीम ने सुबह 7 बजे विकास के लखनऊ के कृष्णानगर स्थित घर पर दबिश दी.

आसपास के लोगों से पता चला कि विकास यहां अपनी पत्नी रिचा दुबे, जो जिला पंचायत सदस्य थी, 2 बेटों आकाश और शांतनु के साथ रहता था.

पुलिस को 24 घंटे की पड़ताल के बाद बहुत सारी ऐसी जानकारियां हाथ लगीं, जिस से एक बात साफ हो गई कि विकास दुबे ने उस रात बिकरू गांव में उसे गिरफ्तार करने पहुंची पुलिस पार्टी पर हमला अचानक ही नहीं किया था, बल्कि चौबेपुर थाने के अफसरों की शह पर उस ने पुलिस टीम को मार डालने की पूरी तैयारी की थी.

घायल पुलिसकर्मियों ने जो बताया, उस से एक यह बात भी पता चली कि अचानक हुई ताबड़तोड़ फायरिंग से बचने के लिए पुलिसकर्मियों ने जहां भी छिप कर जान बचाने की कोशिश की उन्हें ढूंढढूंढ कर मारा गया. इसलिए पुलिस को बिकरू के हर घर की तलाशी लेनी पड़ी.

पुलिस पार्टी पर हमला करने वाले बदमाशों ने हमले के बाद वारदात में मारे गए पुलिसकर्मियों की एके-47 राइफल, इंसास राइफल, दो 9 एमएम की पिस्टल तथा एक ग्लोक पिस्टल लूट ली थीं.

छानबीन में यह बात सामने आ रही थी कि चौबेपुर के थानाप्रभारी विनय कुमार तिवारी ने विकास दुबे को दबिश की सूचना दी थी. तह तक जाने के लिए अधिकारियों ने चौबेपुर एसओ विनय तिवारी की कुंडली खंगालनी शुरू कर दी. पता चला विनय तिवारी के विकास दुबे से बेहद आत्मीय रिश्ते थे. 2 दिन पहले भी वे विकास दुबे से मिलने उस के गांव आए थे.

वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम ने भी विनय तिवारी से विकास दुबे के रिश्तों को ले कर पूछताछ की.

इसी थाने के एक अन्य एसआई के.के. शर्मा समेत थाने के सभी कर्मचारियों की विकास दुबे से सांठगांठ का पता चला तो पुलिस ने विकास दुबे के मोबाइल की सीडीआर निकलवा कर उस की जांचपड़ताल शुरू की.

पता चला घटना वाली रात चौबेपुर एसओ विनय तिवारी की विकास दुबे से कई बार बात हुई थी. लिहाजा उच्चाधिकारियों के आदेश पर विनय तिवारी को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया गया, जबकि एसएसपी ने इस थाने के सभी 200 पुलिस वालों को लाइन हाजिर कर दूसरा स्टाफ नियुक्त कर दिया.

विकास दुबे हालांकि इतना बड़ा डौन नहीं था कि पूरे प्रदेश या देश में लोग उस के नाम को जानते हों. लेकिन उस की राजनीतिक पैठ और दुस्साहस ने उसे आसपास के इलाके में इतना दबंग बना दिया था, जिस से उसे पुलिस को घेर कर उन पर हमला करने का हौसला मिला.

किशोरावस्था में ही बन गया था गुंडा

विकास ने गुंडागर्दी तभी शुरू कर दी थी जब वह रसूलाबाद में चाचा प्रेम किशोर के यहां रह कर पढ़ता था. जब उस की शिकायत घर तक पहुंची तो प्रेम किशोर ने उसे वापस बिकरू जाने को कह दिया. उसे चाचा ने घर से निकाला तो वह मामा के यहां जा कर रहने लगा.

यहीं रहते उस ने ननिहाल के गांव गंगवापुर में पहली हत्या की. तब वह मात्र 18 साल का था. लेकिन इस हत्याकांड में वह सजा से बच गया. यहीं से विकास के आपराधिक जीवन की शुरुआत हुई और वह दिनबदिन बेकाबू होता गया.

विदेशियों से साइबर ठगी : कैसे आए पुलिस की गिरफ्त में

यश दिल्ली की झिलमिल कालोनी में रहता था. इस साल मार्च में दोबारा हुए लौकडाउन से वह काफी टूट चुका था. नौकरी मिलने की दूरदूर तक उम्मीद नजर नहीं आ रही थी. बेरोजगारी से बुरी तरह परेशान चल रहा था. वैसे उस के पास शेफ का डिप्लोमा था, लेकिन रेस्टोरेंट का काम बंद होने के चलते उसे कहीं काम नहीं मिल पा रहा था.

क्या करे, क्या नहीं करे, इसी उधेड़बुन में वह खोया हुआ अंधेरा होने पर भी पास के पार्क में चिंतित बैठा था. तभी जेब में रखे फोन की घंटी बजी. यश कुछ सेकेंड के लिए रुका. सोचा, किसी कर्ज देने वाले का फोन होगा.

कुछ देर घंटी बजने के बाद उस ने राहत की सांस ली और जेब से फोन निकाल कर देखा. फोन पर आई काल को ले कर उस की जो आशंका थी, उस से उसे राहत मिली. कारण काल किसी कर्ज देने वाले की नहीं, बल्कि उस के एक करीबी दोस्त रवि की थी. रवि को हाल में ही जयपुर में नौकरी मिली थी. यश ने उसे तुरंत कालबैक किया.

‘‘हैलो रवि! कैसे हो भाई?’’

‘‘मैं तो मजे में हूं, तू बता, कहीं नौकरी मिली या नहीं?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘क्या बताऊं अपने बारे में? पहले जैसी ही हालत है. रेस्टोरेंट खुले तब न कहीं काम मिले.’’ यश निराशाभरी आवाज में बोला.

‘‘तू मेरे साथ काम करेगा?’’ रवि ने पूछा.

‘‘यह भी पूछने की बात है?’’ यश ने तपाक से कहा.

‘‘लेकिन नौकरी काल सेंटर की है.’’ रवि ने बताया.

‘‘काल सेंटर की! मैं तो उस बारे में कुछ जानता ही नहीं. तो फिर कैसे?’’ यश ने सवाल किया.

‘‘तू हां तो बोल, मैं जानता हूं कि तू कर लेगा. तुझे फर्राटेदार अंगरेजी बोलनी आती ही है. इसलिए ठीकठाक पैसा मिल जाएगा,’’ रवि ने समझाया.

‘‘मुझे जयपुर आना होगा?’’ यश ने पूछा.

‘‘मैं तुझे एक एड्रेस वाट्सएप करता हूं. वहां जो भी हो उस से जा कर मिल लेना. मेरा रेफरेंस देना. समझ, तेरा काम हो जाएगा… और हां, अपना रेज्यूमे के साथ एक पासपोर्ट साइज फोटो और एड्रेस प्रूफ के लिए कुछ भी रख लेना,’’ रवि ने बताया.

कुछ सेकेंड बाद ही यश के मोबाइल पर दक्षिणपुरी दिल्ली का एक एड्रेस आया. उस में मोबाइल नंबर भी था. यश ने तुरंत उस नंबर पर फोन किया. जैसा रवि ने कहा था, उसे अच्छा रिस्पांस मिला और अगले रोज मिलने का समय तय हो गया.

सिर्फ 2 दिनों के भीतर ही उसे नौकरी के लिए पुष्कर बुला लिया गया. यश और उस के परिवार को काफी आश्चर्य हुआ कि उसे नौकरी मिल गई.

यश ने राहत की सांस ली कि चलो रेस्टोरेंट न सही कहीं तो नौकरी मिली. उस ने सोचा कि कुछ दिन इस नौकरी के बाद अपने सीखे हुए काम की नौकरी कर लेगा. एक सप्ताह की ट्रेनिंग के बाद उसे पुष्कर भेज दिया गया.

पुष्कर राजस्थान का धार्मिक तीर्थस्थल होने के साथसाथ पर्यटन स्थल भी है. वहां विदेशी पर्यटकों का आनाजाना लगा रहता है. इस कारण एक से बढ़ कर एक रिसौर्ट और होटल बने हुए हैं.

यश को एक और आश्चर्य हुआ, क्योंकि उसे पुष्कर के एक रिसौर्ट ‘द नेचर रिट्रीट’ में ठहराया गया था. अनलौक नियमों से मिली कुछ ढील के चलते उस के कुछ कमरे कामकाज के लिहाज से खोले गए थे. वहीं एक दूसरे रिसौर्ट ‘रौक्स और वुड’ में उस का दोस्त रवि ठहरा हुआ था.

यश के कमरे में एक मंहगा लैपटौप, हैडफोन और एक स्मार्टफोन रखा था. रिफ्रैशमेंट के लिए चायकौफी के साथसाथ स्नैक्स और बिस्किट के भी इंतजाम थे. यह सब देख कर यश बहुत खुश हुआ. उस ने नौकरी को ले कर जैसा सोचा था, उसे उस से भी बेहतर लगा था.

ट्रेनिंग के दौरान ही उसे बता दिया गया था कि उस का काम वर्क फ्रौम होम के तहत किया जाना है. डेटा आदि की सुरक्षा के दृष्टिकोण से कंपनी के कर्मचारियों को होटल के कमरे में तमाम तकनीकी सुविधाएं उपलब्ध करवा दी गई हैं. फिर भी उसे कोई डाउट हो तो कंपनी के एचआर से उस का क्लैरिफिकेशन कर सकता है. यह जुलाई 2021 के दूसरे सप्ताह की बात है.

यश ने कुछ दिनों में ही काल सेंटर के कामकाज को समझ लिया था. काल के लिए उसे जो भी नंबर मिलते, उस के क्लाइंट को पूरी तरह संतुष्ट करने के बाद ही दम लेता था.

फिक्स मंथली सैलरी के अलावा क्लाइंट से बात करने के एवज में कमीशन भी मिलता था, जिस से बीते 2 महीने में उसे अच्छीखासी राशि मिल गई थी. वह उस के उम्मीद से कहीं अधिक थी. इस कारण उसे काल सेंटर का जौब रास आने लगा था.

उस रोज 7 अक्तूबर की सुबहसुबह अचानक यश के कमरे का किसी ने दरवाजा खटखटाया. गहरी नींद में सो रहा यश हड़बड़ा कर उठा. एक घंटा पहले ही वह रात की शिफ्ट की ड्यूटी पूरी कर सोया था. उस ने अनिद्रा की हालत में दरवाजा खोला.

दरवाजे पर पुलिस को देख कर कुछ पूछता, इस से पहले ही 2-3 पुलिसकर्मी कमरे में घुस आए. उन्होंने झटपट बेड पर रखे लैपटौप और मोबाइल फोन को उठा कर उन्हें समेटना शुरू कर दिया. एक कांस्टेबल यश की बांह पकड़ कर बोला, ‘‘शर्टपैंट पहन लो और मेरे साथ थाने चलो.’’

‘‘मगर क्यों?’’ यश ने सिर्फ इतना ही पूछा कि लैपटौप संभालने वाले पुलिसकर्मी ने कहा, ‘‘यहां छापेमारी हुई है. तुम्हारे काल सेंटर के खिलाफ कंप्लेन है. जो कुछ भी कहना है, वह थाने में कहना. चलो, लाओ तुम्हारा अपना मोबाइल फोन कहां है? वह भी दो.’’

‘‘जी, वो तो आप ने ले रखा है.’’ यश बोला.

‘‘…और कंपनी का मोबाइल?’’ पुलिसकर्मी ने सवाल किया.

‘‘जी, वह चार्ज हो रहा है.’’ दाईं ओर चार्जर पौइंट की ओर इशारा करते हुए यश बोला. पुलिस ने उस मोबाइल को भी अपने कब्जे में ले लिया.

‘‘कंपनी का कोई दूसरा डिवाइस या फाइल वगैरह भी है?…उसे भी दो.’’

‘‘कोई और डिवाइस नहीं है सर, सिर्फ एक फाइल है,’’ बैड के नीचे से नीले रंग की एक फाइल निकालते हुए यश बोला.

थोड़ी देर में पुलिस यश को रिसौर्ट के रिसैप्शन पर ले आई. वहां उस के कुछ और साथियों को पुलिस ने पकड़ रखा था. उन्हीं में रवि भी था. वहीं उसे मालूम हुआ कि दोनों रिसौर्ट में पुलिस ने छापेमारी की है और कुल 18 लोगों को पकड़ लिया है.

छापेमारी कथित काल सेंटर द्वारा फरजीवाड़ा करने की शिकायत पर की गई थी. पुलिस हिरासत में लिए गए युवाओं में एक युवती भी थी. सभी के लैपटौप, मोबाइल और हेडफोन के अलावा माडम, राउटर एवं दूसरे उपकरण भी जब्त कर लिए गए थे.

दरअसल, अजमेर जिले में स्थित पुष्कर की पुलिस को जयपुर हेडक्वार्टर से सूचना मिली थी कि वहां 2 रिसौर्ट में फरजी काल सेंटर चलाया जा रहा है. सेंटर के कर्मचारी वर्क फ्रौम होम के तहत जौब कर रहे हैं.

वे विदेशियों से औनलाइन फ्रौड के धंधे में लिप्त हैं. काल सेंटर के कर्मचारी उन्हें अमेजन का प्रतिनिधि बताते हैं. कुछ कर्मचारी खुद को इनकम टैक्स का अधिकारी भी बताते हैं.

इसी शिकायत के आधार पर पुलिस ने दोनों रिसौर्ट पर दबिश दी थी और सेंटर के कर्मचारियों को पकड़ लिया था. उन की ठगी का शिकार होने वाले अमेरिका और आस्ट्रेलिया के लोग थे.

पुलिस सभी को पुष्कर थाने ले आई. उन से पूछताछ से मालूम हुआ कि सभी 10वीं-12वीं तक ही पढ़े हैं, लेकिन वे फर्राटेदार अंगरेजी बोलते हैं. कुछ तो अमेरिकन और ब्रिटिश अंगरेजी दोनों बोलने में माहिर थे.

हैरानी की बात यह थी उन में से कोई भी स्थानीय नहीं था. यहां तक कि जयपुर का भी नहीं था. सभी दिल्ली, गजियाबाद, मुंबई, कोटा, पटना, नागौर और गुजरात के आनंद के थे. उन्हें सेंटर में कुछ माह पहले ही जौब मिली थी. सभी लंबे समय से बेरोजगार थे.

फरजीवाड़े के लिए सेंटर के संचालक ने विदेशी साइटों पर जा कर उन का डेटा खरीदा था. फिर काल या मैसेजिंग के जरिए उन से संपर्क किया और विविध औफर के साथ ठगी को अंजाम दिया. इस काम के लिए नियुक्त किए गए युवाओं को 25 हजार रुपए मंथली सैलरी पर रखा गया था. साथ ही उन्हें इंसेंटिव भी मिलता था.

इस तरह से एक कर्मचारी को 70-80 हजार रुपए तक मिल जाते थे. कुछ लोग एक महीने में एक लाख रुपए तक इंसेंटिव पा चुके थे. यह उन के द्वारा क्लाइंट के संतुष्ट होने और उन के काम से ठगी गई रकम पर निर्भर करता था.

सभी के नाम दोनों रिसौर्ट के अलगअलग कमरे बुक थे. एक तरह से उन का वही औफिस और रहने का ठिकाना था. कमरे में ही खानेपीने की तमाम सुविधाएं उपलब्ध करवा दी गई थीं. सेंटर के ये सारे इंतजाम पिछले जून माह से किए गए थे.

अगस्त के महीने में जयपुर की पुलिस को उस सेंटर की संदिग्ध गतिविधियों की सूचना मिली थी. उस के बाद से ही जयपुर पुलिस ने अजमेर और पुष्कर की पुलिस को अलर्ट कर दिया था. इस की तहकीकात की जिम्मेदारी एएसपी (ग्रामीण) सुमित मेहरड़ा, आईपीएस को सौंपी गई थी.

उस के बाद ही मौका देख कर पुलिस ने 7 अक्तूबर को दोनों रिसौर्ट पर अचानक रेड डाली, जिस में सेंटर के कर्मचारी पकड़े गए और उन से ठगी के कई दस्तावेज भी हाथ लगे.

उन दस्तावेजों और लैपटौप से मिली जानकारियों के आधार पर ठगी का पूरा मामला सामने आ गया. ठगी के तरीके का खुलासा हो गया. कुछ बातें जौब करने वाले सेंटर के कर्मचारियों ने बताईं. हालांकि कर्मचारियों की आईडेंटिटी में किसी भी तरह की हेराफेरी या फरजीवाड़ा नहीं किया गया था.

पूछताछ में पुलिस को मालूम हुआ कि वे ठगी को किस तरह से अंजाम देते थे. दूर बैठे विदेशियों को फोन पर इस तरह की बातें करते थे, जिस से वे सेंटर द्वारा बुने गए ठगी के जाल में फंस जाते थे. हालंकि इस की पूरी जानकारी सेंटर के उन युवाओं को भी नहीं होती थी कि उन के काम से कोई ठगा जा रहा है.

उन के सभी क्लाइंट आस्ट्रेलिया और अमेरिका के थे. उन्हें वे इनकम टैक्स औफिसर की हैसियत से फोन करते थे या फिर मैसेज भेजते थे. वे कहते थे कि उन के 4-5 साल की औडिट रिपोर्ट में कई खामियां हैं, उसे वे तुरंत सही करवा लें, वरना उन्हें भारी जुरमाना भरना पड़ सकता है.

इसी के साथ उन्हें एक राशि बताई जाती थी और कहा जाता था, वह उन की पिछली गलतियों के लिए निर्धारित किया गया फाइन है. उसे भर देने पर वित्तीय कानून के मुताबिक भविष्य में किसी भी तरह के मुकदमे की काररवाई से बचे रहेंगे.

उस के बाद विदेश में बैठा वह व्यक्ति सेंटर के खाते में पैसा ट्रांसफर कर देता था, जो लाखों में होता था.

अमेरिका के लिए ठगी का तरीका अलग तरह का था. वहां के क्लाइंट के लिए सेंटर के कर्मचारी खुद को अमेजन कंपनी के रिप्रजेंटेटिव कहते थे.

इस के लिए सेंटर के संचालक द्वारा पहले से कर्मचारियों को अलगअलग एग्जीक्यूटिव के रूप में पोस्ट बंटे होते थे. उन से कहा जाता था कि आप ने अमेजन कंपनी का जो सामान खरीदा है, उस बारे वे कुछ विशेष जानकारी बताना चाहते हैं.

उन के द्वारा मना करने पर कहा जाता था कि उन का सिस्टम पहले सामान की खरीद के बारे में दिखा रहा है. इस तरह से उन्हें बातोंबातों किसी गिफ्ट या पहले के किसी औफर को ठुकराने या लौटाने का जिक्र कर उलझा देते थे.

कुछ समय में ही क्लाइंट उस के झांसे में आ जाता था. फिर अमेजन अकाउंट हैक होने की बात कर उस का आईपी एड्रेस आदि ले लेते थे. यहां तक कि एनीडेस्क का इस्तेमाल कर सीधे उस के कंप्यूटर, लैपटौप या मोबाइल में घुस जाते थे.

इस घुसपैठ के बाद क्लाइंट को हैकिंग का भय दिखाया जाता था और छुटकारा पाने के एवज में एक रकम मांगी जाती थी. बदले में उन्हें अमेजन के कूपन का औफर दिया जाता था और उन का यूनिक नंबर ले कर डालर में मोटी राशि सेंटर के अकाउंट में ट्रांसफर करवा ली जाती थी.

काल सेंटर के इशारे पर ऐसा करने वाले युवाओं को इस का जरा भी अंदेशा नहीं था कि उन के द्वारा पुष्कर में बैठ कर सात समंदर पार के लोगों को चूना लगाया जा रहा है और इस जालसाजी की आंच में वे भी झुलस जाएंगे.

औनलाइन ठगी का कारनामा ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया. कारण स्मार्ट टेक्नोलौजी की वजह से  पुलिस के इंटेलिजेंस और साइबर सेल को इस की भनक लगने में जरा भी देरी नहीं हुई. ठगे गए विदेशियों की शिकायत पर पुलिस के दोनों सेल ने तत्परता दिखाई.

इंटेलिजेंस के डीजी उमेश मिश्रा और पुलिस आईजी एस. सेंगाथिर ने इस पर गहन विचारविमर्श के बाद मामले की तह तक जाने के लिए अजमेर के एसपी जगदीश चंद्र शर्मा को काररवाई करने का निर्देश दे दिया.

इंटेलिजेंस और पुलिस के आला अधिकारियों के निर्देश पर इंटेलिजेंस के इंसपेक्टर महेंद्र शर्मा और प्रशिक्षु आईपीएस सुमित महरड़ा के नेतृत्व में पुलिस टीमों का गठन किया गया. जिन में पुष्कर थाने के थानाप्रभारी सुनील बेड़ा के साथ एसआई मुकेश यादव, नरेंद्र सिंह, पवन शर्मा, हैडकांस्टेबल सरफराज आदि शामिल किए गए.

इस के अलावा जयपुर की इंटेलिजेंस टीम में इंसपेक्टर महेंद्र शर्मा, एसआई गंगा सिंह गौड़, हैडकांस्टेबल विजय खंडेलवाल, सिपाही राजेंद्र तोगड़ा, फिरोज भाटी के साथ अजमेर के इंसपेक्टर नरेंद्र शर्मा, पुष्कर के एएसआई शक्ति सिंह भी शामिल थे.

पुलिस की दोनों टीमों ने 2 दिनों तक सेंटर के गिरोह पर कड़ी नजर रखी और फिर उन्हें धर दबोचा. बाद में एक अन्य अरोपी सौरभ शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने जिन लोगों को गिरफ्तार किया, पूछताछ में उन के नाम यश खन्ना, झिलमिल कालोनी, नई दिल्ली. रवि कुमार मल्हार, लोघी कालोनी, नई दिल्ली. अभिषेक मीणा, दक्षिणपुरी, नई दिल्ली. तुषार बारोदिया, श्रीनाथपुरम, कोटा. कृष शुक्ला, वंदना एन्कलेव, गाजियाबाद. स्वाति सिलश्वाल, संगम विहार, नई दिल्ली. विकास समारिया, उद्योग नगर कोटा. विकास राजपुरोहित, खाती टिब्बा, मकराना, नागौर. राहुल जुल्हा, हौज खास, नई दिल्ली. राहुल राज, बिहार. लक्ष्मण राउत, भायंदर ईस्ट, मुंबई. दर्शन दवे, आनंद, गुजरात. रोहन यादव, मीरा रोड, मुंबई. बाबर शेख, मीरा रोड ईस्ट, मुंबई. कमल राठौड़, गोकुल धाम, मुंबई. राहुल राज, प्रगति विहार, अजमेर. विनीत उर्फ विक्की, लोहा खान अजमेर. तेजदीप, जवाहर नगर.

सभी आरोपियों के खिलाफ पुष्कर थाने में आईपीसी की धारा 419, 420,120बी और आईटी ऐक्ट की धारा 46 , 65, 66सी, 66डी में मुकदमे दर्ज कर दिए गए. उन्हें कोर्ट में पेश कर रिमांड पर ले लिया गया. उन से कड़ी पूछताछ की गई.

पूछताछ में सभी आरोपियों ने अपनेअपने राज खोले. उन्हीं में गिरोह का सरगना दिल्ली निवासी राहुल ने भी राज खोलते हुए बताया कि उस ने किन वजहों से ऐसा किया.

राहुल ने बताया कि कोरोना काल में उस के बिजनैसमैन पिता की मौत हो गई थी और 15 लाख रुपए के कर्ज में आ गया था. उसे चुकाने के लिए उसे आमदनी का कोई जरिया नहीं सूझ रहा था. उस के बाद ही उस ने पुष्कर में काल सेंटर खोला था.

करीब साढ़े 3 महीने से होटल में कमरा बुक कर रखा था. सेंटर चलाने के लिए दोनों होटल के सभी कमरे बुक कर लिए थे, ताकि वहां वे अपना काम बेरोकटोक कर सके.

इस तरह से काम शुरू होते ही आय होने लगी और कुछ महीने में ही उस ने 40 लाख रुपए से अधिक की रकम जुटा ली. पकड़े जाने तक वह करीब साढ़े 3 करोड़ रुपए की ठगी कर चुका था.

काल सेंटर चलाने के लिए राहुल ने स्थानीय लोगों को जानबूझ कर स्टाफ नहीं बनाया, बल्कि स्टाफ के जानकार की मदद से ही उस की संख्या बढ़ाई.

कुछ लोगों को औनलाइन वैकेंसी के जरिए जौब मिला था. उन्हें अपने स्तर से एक सप्ताह की ट्रेनिंग दी और काम के मुताबिक ब्रेनवाश कर दिया.

विदेशियों से क्या बात करनी है, कैसे समझाना है, कैसे पेश आना आदि की वाकायदा एक स्क्रिप्ट तैयार की गई थी. इस के अलावा औनलाइन डाटा मुहैया करवाने वाली कंपनियों से उस ने अमेरिका और आस्ट्रेलिया के आम नागरिकों के डाटा खरीद लिए थे.

यश की तरह काम करने वाले सभी कर्मचारी अनजाने में सेंटर से जुड़ गए थे. सभी में एक समानता थी कि वे बेरोजगार थे और कोरोना काल की वजह से उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिल रही थी.

वे सैलरी और इंसेंटिव के लालच में आ कर हजारों किलोमीटर दूर जा कर भी काल सेंटर में काम करने को राजी हो गए थे. पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें जेल भेज दिया.

फरजी काल सेंटर में काम करने वाले 17 युवकों और एक युवती ने भले ही बेरोजगारी दूर करने के लिए द नेचर स्ट्रीट को चुना हो, लेकिन उन्हें मोहरा बना कर कंपनी ने विदेशियों को जिस तरह से चूना लगाया गया, वह बेरोजगारों के लिए भी एक सबक बन गया. कथा लिखे जाने तक आरोपियों को जमानत नहीं मिल पाई थी.

जिस्म के धंधे में धकेली 200 लड़कियां

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा गठित स्पैशल इनवैस्टिगेशन टीम (एसआईटी) के आला अधिकारियों द्वारा भोपाल में सितंबर 2021 के अंतिम सप्ताह में एक अहम बैठक की गई. इस दौरान मानव तस्करी समेत हनीट्रैप के बढ़ते मामले को ले कर चिंता जताई गई.

राज्य में विगत कुछ माह में ऐसे मामले बढ़ गए थे. राजधानी भोपाल और दूसरे बड़े शहर इंदौर एवं ग्वालियर में एमएलए, एमपी, ब्यूरोक्रेट, बिजनैसमैन या बड़े उद्योगपति को लड़की द्वारा सैक्स जाल में फंसाने और उन से वसूली की कई शिकायतें आ चुकी थीं. अधिकतर मामलों में लड़की द्वारा फार्महाउस, गेस्ट हाउस, रेंटेड फ्लैट या होटल के कमरे में अवैध सैक्स के वीडियो छिपे कैमरे से बनाए जाते थे. फिर उन से मोटी रकम वसूली जाती थी. इस काम को बड़े ही सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया जा रहा था.

जबकि पुलिस के बड़े अफसरों पर ऐसे गिरोह को धर दबोचने का पौलिटिकल प्रेशर भी बना हुआ था. कब कौन किस तरह से हनी ट्रैप का शिकार हो जाए, कहना मुश्किल था. वे टेक्नोलौजी, ऐप्स और सोशल साइटों का इस्तेमाल करते हुए बच निकलते थे.

इसी तरह पिछले कुछ महीनों से आए दिन होटल, गेस्टहाउस, स्पा और मसाज सेंटर से सैक्स रैकेट का भी भंडाफोड़ हो रहा था. दूसरे राज्यों से आई जिस्फरोशी में लिप्त लड़कियां वहां से पकड़ी जा रही थीं, लेकिन उन का सरगना गिरफ्त से बाहर था. 2-3 से ले कर कभी 11, तो कभी 15 या 21 पकड़ी गई लड़कियों में अधिकतर बांग्लादेश की होती थीं.

वे वहां तक कैसे पहुंचीं, उन का मुखिया कौन है, उन के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं होती थी. यहां तक कि वे ठीक से हिंदी भी नहीं बोल पाती थीं. अपना सही पताठिकाना तक नहीं बता पाती थीं.

इन्हीं सब बातों को ले कर एसआईटी की बुलाई गई विशेष बैठक में बडे़ अफसरों ने इंदौर, भोपाल और ग्वालियर की पुलिस को आड़ेहाथों लिया था. उन्हें जबरदस्त डांट पिलाई थी.

उसी सिलसिले में सैंडो, आफरीन, बबलू सरकार, दिलीप बाबा, प्रमोद पाटीदार, उज्ज्वल ठाकुर एवं विजयदत्त उर्फ मुनीरुल रशीद का नाम भी सामने आया. पता चला कि मुनीरुल ही इस गैंग का सरगना है. उसे मुनीर कह कर बुलाते थे.

इस पर यह सवाल भी उठा कि मुनीर पिछले 11 महीने से क्यों फरार है, जबकि उस पर 10 हजार रुपए का ईनाम भी है. वह पकड़ा क्यों नहीं गया?

उल्लेखनीय है कि पिछले साल दिसंबर में इंदौर के विजय नगर और लसूडि़या इलाके में सैक्स रैकेट के खिलाफ औपरेशन चलाया गया था. तब कुल 15 लड़कियां पकड़ी गई थीं.

उन से मिली जानकारी के आधार पर ही उन आरोपियों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे. उस वक्त मुख्य आरोपी मुनीर भाग निकला था. उसे पकड़ने के लिए 10 हजार रुपए ईनाम की भी घोषणा की गई थी.

उस के बाद ही इंदौर में हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट और मानव तस्करी की जांच के लिए डीआईजी ने दिसंबर 2020 में ही एसआईटी बनाई थी. इस में पूर्व क्षेत्र के एएसपी राजेश रघुवंशी, विजय नगर सीएसपी राकेश गुप्ता, एमआईजी टीआई विजय सिसौदिया और विजय नगर टीआई तहजीब काजी को रखा गया था.

फिर एसआईटी ने सैक्स रैकेट के खिलाफ एक अभियान छेड़ दिया था और जगहजगह सैक्स रैकेट के अड्डों पर लगातार छापेमारी की गई थी, लेकिन मुनीर पकड़ा नहीं जा सका था. वह पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर हमेशा बच निकलता था.

एसआईटी को मुनीर के सूरत में छिपे होने की सूचना मिली थी. वह बारबार अपना ठिकाना बदलने में माहिर था, उस की लोकेशन की पूरी जानकारी पुख्ता होने के बाद ही एसपी ने उसे पकड़ने के निर्देश दिए.

इस के लिए टीम ने एक सप्ताह तक सूरत में डेरा डाल दिया. टीम को बताया गया था कि वह अपना धंधा वीडियो कालिंग के जरिए करता है. वाट्सऐप से मैसेज करता है.

इसे ध्यान में रखते हुए उस की ट्रैकिंग पूरी मुस्तैदी के साथ मोबाइल टेक्नोलौजी का इस्तेमाल करते हुए की जानी चाहिए. जरा सी भी चूक या नजरंदाजी से वह बच निकल सकता था.

टीम के एक्सपर्ट पुलिसकर्मियों ने आखिरकार मोबाइल लोकेशन के आधार पर मुनीर को 30 सितंबर, 2021 की रात को पकड़ ही लिया.

पकड़े जाने पर उस ने पहले तो अपनी पहचान छिपाने की हरसंभव कोशिश की, किंतु इस में वह सफल नहीं होने पर तुरंत रुपए ले कर छोड़ने का दबाव बनाया. इस में भी उसे सफलता नहीं मिली. अंतत: टीम उसे पकड़ कर पहली अक्तूबर को इंदौर के पुलिस हैडक्वार्टर ले आई.

इंदौर में एसआइटी के सामने सख्ती से पूछताछ में उस ने कई ऐसे राज खोले, जिसे सुन कर सभी को काफी हैरानी हुई. उस ने मानव तस्करी से ले कर लड़कियों को डरानेधमकाने, प्रताडि़त करने, यौन उत्पीड़न किए जाने, बांग्लादेश का बौर्डर पार करवाने, देह के बाजार के लिए बिकाऊ बनाने के वास्ते ट्रेनिंग देने और कानून को झांसा देने के लिए फरजी शादियां करने तक के कई खुलासे किए. उस के अनुसार जो तथ्य सामने आए वे इस प्रकार हैं.

मूलत: बांग्लादेश का रहने वाला विजयदत्त उर्फ मुनीरुल रशीद उर्फ मुनीर पिछले 5 सालों से मानव तस्करी के धंधे में था. बांग्लादेश के जासोर में उस का पुश्तैनी घर है. गर्ल्स स्मगलिंग में तो वह एक माहिर और मंझा हुआ खिलाड़ी था.

उस की नजर हमेशा बांग्लादेश के उन गरीब परिवारों पर टिकी रहती थी, जिन में लड़कियां होती थीं. उन की उम्र 16-17 के होते ही उन के परिवार वालों को भारत में काम दिलाने के बहाने अच्छी कमाई का लालच दे कर मना लेता था.

शक से बचने के लिए कई बार लड़कियों को वह दुलहन बना कर लाता था. इस के लिए बाकायदा निकाहनामा साथ रखता था, लड़की का पासपोर्ट और टूरिस्ट वीजा बनने में अड़चन नहीं आती थी, भारत में ला कर उन्हें लड़कियों की मांग के आधार पर मुंबई, आगरा, अहमदाबाद, सूरत, इंदौर, भोपाल, दिल्ली आदि में सप्लाई कर देता था.

वह भारत में रहते हुए भारत-बांग्लादेश के पोरस बौर्डर पर बने नाले या तार के बाड़ों से हो कर गुप्त रास्ते से पश्चिम बंगाल से सटे बांग्लादेश आताजाता रहता था. इस कारण अपने पसंद की लड़कियों को भी आसानी से बौर्डर पार करवा लेता था.

लड़कियों को एक दिन अपने पास के गांव में एजेंटों के यहां ठहरा देता था.  उन्हें वहां 15 दिनों तक छोटे कपड़े पहना कर रखा जाता और उन्हें हल्दी की उबटन भी लगाई जाती ताकि वे मौडर्न और खूबसूरत दिखें. फिर पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद ला कर उन्हें महाराष्ट्र और गुजरात में पहले से तैनात एजेंटों को 75 से एक लाख रुपए में बेच देता था.

कुंवारी लड़कियों की कीमत अधिक मिलती थी. कुछ लोग उन लड़कियों का नकली आधार कार्ड और दूसरे कागजात बनाने का काम भी करते थे. एजेंट उन्हें ग्राहकों के सामने पेश करने से पहले दुलहन की तरह सजाता था. हलका मेकअप करने और अच्छे ग्लैमरस कपड़ों में रईस ग्राहकों के पास भेज देता था.

हालांकि इस के लिए सभी लड़कियों को नौकरी के लिए इंटरव्यू का झांसा ही दिया जाता था. जो ऐसा करने से इनकार करती थी या भागने का प्रयास करती थी, उन्हें भूखाप्यासा कमरे में बंद रखा जाता था. बाद में उसे मजबूरन देहव्यापार के धंधे में उतरना पड़ता था.

इंदौर के विजय नगर में छापेमारी के दौरान पकड़ी गई 11 लड़कियों में एक लड़की ने पुलिस को अपनी आपबीती सुनाई थी. उस ने बताया था कि साल 2009 में वह 15 साल की थी. उस की मां का निधन हो गया था. तब वह नौवीं कक्षा में पढ़ रही थी. पिता पहले ही गुजर चुके थे.

मां की मौत के बाद वह एकदम से अनाथ हो गई थी. पढ़ाई बंद चुकी थी. पढ़ना चाहती थी. स्कूल की फीस भरने की चिंता में वह एक दिन पेड़ के नीचे बैठी रो रही थी.

तभी उस के पास एक युवती आई. उस से बोली कि बांग्लादेश में कुछ नहीं रखा है. यहां से अच्छा भारत है. वहां बहुत तरह के काम मिल जाते हैं. कंपनियों में अच्छी नौकरी मिल जाती है. कुछ नहीं हुआ तो मौल या बड़ेबड़े होटलों या अस्पतालों में काम मिल जाता है.

वहां चाहे तो पढ़ाई भी कर सकती है. वहां दूसरे देशों से आए लोगों के लिए सरकार ने कई शहरों में शेल्टर बना रखे हैं. दिल्ली में तो बांग्लादेशियों के रहने का एक बड़ा मोहल्ला तक बसा हुआ है. इसी के साथ युवती ने अपने बारे में बताया कि भारत अकसर आतीजाती रहती है. वहीं उस ने एक युवक से शादी कर ली है. वह भी बांग्लादेशी है. बिल्डिंग बनाने की ठेकेदारी का काम करता है. अच्छी आमदनी हो जाती है.

दूर बैठे एक युवक की तरफ इशारा करते उस ने लड़की को बताया कि वह उस का शौहर है. उस युवती ने लड़की को उस की भी अच्छी शादी हो जाने के सपने दिखाए. उस ने कहा कि भारत में रह रहे बांग्लादेश के कई अविवाहित युवक चाहते हैं कि वह अपने ही देश की लड़की से शादी करे.

वह लड़की न केवल पूरी तरह से उस युवती और युवक की बातों में आ गई, बल्कि वह उन के साथ भारत जाने को राजी भी हो गई. उसे अगले रोज सूरज निकलने से पहले इंडोबांग्ला बौर्डर तक पहुंचने के लिए कहा गया.

उस ने ऐसा ही किया, किंतु उसे बौर्डर तक पहुंचने में पूरी रात पैदल चलना पड़ा. वहीं युवकयुवती उस का इंतजार करते हुए मिल गए और उसे बौर्डर पार करवा दिया.

कुछ समय बाद ही लड़की उन के साथ मुर्शिदाबाद चली गई. वहीं उसे एक दूसरे आदमी के यहां ठहराया गया और एकदूसरे को मियांबीवी बताने वाले दंपति चले गए. दोनों फिर लड़की को कभी नहीं मिले.

लड़की को जिस व्यक्ति के पास ठहराया गया था, वहां अगले रोज एक दूसरा युवक आया. उस का परिचय मुनीर नाम के व्यक्ति से करवाया गया. उस के साथ लड़की का निकाह करवा दिया गया. लड़की को बताया गया कि इस से उस के भारत में रहने और ठहरने का प्रमाणपत्र बन जाएगा.

फिर मुनीर नवविवाहिता लड़की के साथ गुजरात के सूरत शहर चला आया. मुनीर ने लड़की को अपने साथ 2 दिनों तक एक किराए के कमरे में रखा. इस बीच मुनीर ने उसे छुआ तक नहीं. उसे सिर्फ इतना बताया गया कि दोनों को मुंबई जाना है.

तीसरे दिन मुनीर ने लड़की को एक व्यक्ति के हाथों बेच दिया. लड़की को कहा कि उसे उस के साथ जाना होगा, वहीं उस की नौकरी लग जाएगी. सूरत का कुछ जरूरी काम निपटा कर 2 दिन बाद वह भी आ जाएगा. लड़की को मुनीर भी दोबारा कभी नहीं मिला.

इस बात को मुनीर ने भी पूछताछ के दौरान स्वीकार कर लिया था. उस ने बताया कि तब उस का इस धंधे में रखा गया पहला कदम ही था, जिस में उसे सफलता मिलने के बाद उस का उत्साह बढ़ गया था.

मुनीर ने बताया कि वह इसी तरह करीब 200 लड़कियों से शादी कर चुका है, लेकिन उसे याद भी नहीं है कि वे लड़कियां इस समय कहां हैं. लड़कियों को ट्रैप करने और उन्हें बहलाफुसला कर अपने जाल में फंसाने के लिए वह तरहतरह के तरीके अपनाता था.

मोबाइल के सहारे वह सारा काम निपटाता था, लेकिन हर महीने 2 महीने पर नया सिम बदल लेता था. उस का टारगेट होता था कि हर महीने कम से कम 50 लड़कियों को बांग्लादेश से ट्रैप करे और उन्हें मानव तस्करी में शामिल एजेंटों के हाथों बेच डाले.

इसी के साथ उस ने स्वीकार कर लिया कि वह 200 से अधिक लड़कियों को जिस्मफरोशी में धकेल चुका है. देखते ही देखते वह पुलिस की निगाह में बांग्लादेशी लड़कियों का एक बडा तस्कर बन चुका था. छापेमारी के दौरान जब भी बांग्लादेशी लड़कियां गिरफ्तार होतीं, तब उस का नाम जरूर आता था.

मुनीर ने बताया कि उस ने इंदौर में अड्डा जमाने के लिए यहीं के लसूडि़या थानाक्षेत्र के रहने वाले एजेंट सैजल से संपर्क किया था. सैजल ने कुछ साल पहले ही मुंबई के दलाल जीवन बाबा की बेटी से शादी की थी.

इस के बाद वह इंदौर आ गया. फिर जीवन बाबा ने उसे लड़कियों की दलाली के काम में शामिल कर लिया.

मुनीर का एक बड़ा नेटवर्क था, जिस में ज्यादातर पुरुष थे, लेकिन उन में 20 फीसदी के करीब महिलाएं भी थीं. एजेंट महिलाएं बांग्लादेश में लड़कियों को फंसाने और बांग्लादेश के गांवों से बौर्डर तक पहुंचाने या फिर भारत में बौर्डर के पास के इलाके मुर्शिदाबाद तक लाने का ही काम करती थीं.

वे औरतें बौर्डर पर तैनात बीएसएफ के जवानों के लिए खानेपीने का सामान ला कर देती थीं. बदले में लड़कियों को बौर्डर पार करने की थोड़ी छूट मिल जाती थी.

एजेंटों द्वारा लड़कियों को मानव तस्करी के लिए जैसोर और सतखिरा से बांग्लादेश में गोजादंगा और हकीमपुर लाया जाता है. कारण वहां के बौर्डर पर कंटीले तारों के बाड़ नहीं लगे हैं. साथ ही वहां की अबादी भी घनी है. इस कारण रोजाना की जरूरतों के लिए भारत और बांग्लादेश में लोगों का आनाजाना लगा रहता है.

उसे बेनोपोल बौर्डर के नाम से जाना जाता है, दक्षिणपश्चिम के  इस हिस्से में खुली जमीन होने के कारण लोग बौर्डर को आसानी से पार लेते हैं. बौर्डर पर पकड़े जाने पर लोग 200 से 400 टका (बांग्लादेश की मुद्रा) दे कर आसानी से छूट जाते हैं.

मानव तस्करी के लिए बदनाम अन्य जिलों में कुरीग्राम, लालमोनिरहाट, नीलफामरी, पंचगढ़ी, ठाकुरगांव, दिनाजपुर, नौगांव, चपई नवाबगंज और राजशाही भी है.

पुलिस ने विजय दत्त उर्फ मुनीरुल रशीद उर्फ मुनीर से पूछताछ करने के बाद उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

अतीक अहमद : खूंखार डौन की बेबसी – भाग 1

उत्तर प्रदेश के माफिया डौन अतीक अहमद की 300 करोड़ की 27 से अधिक संपत्तियों पर योगी सरकार ने बुलडोजर चलवा दिया है. जबकि अतीक अहमद इस समय गुजरात के अहमदाबाद की साबरमती जेल में बंद है.

यह माफिया डौन 5-5 बार उत्तर प्रदेश विधानसभा का इलाहाबाद पश्चिमी सीट से चुनाव जीत कर विधायक, तो एक बार इलाहाबाद की फूलपुर संसदीय सीट से सांसद रह चुका है. अतीक अहमद पर इस समय हत्या, अपहरण, वसूली, मारपीट सहित 188 मुकदमे दर्ज हैं. जून, 2019 से अतीक अहमद गुजरात के अहमदाबाद की साबरमती जेल में हाई सिक्युरिटी जोन में बंद है.

माफिया डौन अतीक अहमद का इतना आतंक है कि उत्तर प्रदेश की 4-4 जेलें उसे संभाल नहीं सकीं. इन जेलों के जेलरों ने स्वयं सरकार से कहा कि हम इस डौन को नहीं संभाल सकते.

इस का कारण यह था कि अतीक जब उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया की जेल में बंद था, तब उस ने अपने गुंडों से लखनऊ के एक बिल्डर मोहित जायसवाल को जेल में बुला कर बहुत मारापीटा था और उस से उस की प्रौपर्टी के कागजों पर दस्तखत करा लिए थे.

अतीक अहमद ने अपना आतंक फैलाने के लिए इस मारपीट का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया था, जिस से लोगों में उस की दहशत बनी रहे. इस वीडियो को देखने के बाद राज्य में हड़कंप मचा तो अतीक अहमद को देवरिया की जेल से बरेली जेल भेजा गया. पर बरेली जेल के जेलर ने स्पष्ट कह दिया कि इस आदमी को वह नहीं संभाल सकते.

लोकसभा के चुनाव सामने थे. अतीक को कड़ी सुरक्षा में रखना जरूरी था. इसलिए इस के बाद उसे इलाहाबाद की नैनी जेल में शिफ्ट किया गया. उधर देवरिया जेल कांड का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया. कोर्ट ने सीबीआई को मुकदमा दर्ज कर जांच के आदेश दिए.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अतीक अहमद, उस के बेटे के अलावा 4 सहयोगियों सहित 10-12 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ. जब अतीक के सारे कारनामों की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने 23 अप्रैल, 2019 को यूपी सरकार को अतीक अहमद को राज्य के बाहर किसी अन्य राज्य की जेल में शिफ्ट करने का आदेश दिया.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भेजा गुजरात

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 3 जून, 2019 को उत्तर प्रदेश सरकार ने गुजरात सरकार के नाम 3 लाख रुपए का ड्राफ्ट जमा करा कर अतीक को फ्लाइट से अहमदाबाद भेजा. फिलहाल वह गुजरात के अहमदाबाद की साबरमती जेल में बंद है.

यह 3 लाख रुपए का ड्राफ्ट अतीक अहमद को जेल में रखने का मात्र 3 महीने का खर्च था. उस के बाद हर 3 महीने पर अतीक अहमद को अहमदाबाद की जेल में रखने का खर्च उत्तर प्रदेश का कारागार विभाग गुजरात सरकार को भेजता है.

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पिछले 40 सालों में अतीक अहमद ने अपनी धाक राजनीतिक पहुंच के बल पर ऐसी बनाई है कि उस के सामने कोई आंख मिला कर बात करने का साहस नहीं कर सकता. 5 फुट 6 इंच की ऊंचाई और जबरदस्त शरीर वाले अतीक अहमद की आंखें ही इतनी खूंखार हैं कि किसी को उस के सामने देख कर बात करने का साहस ही नहीं होता.

अतीक अहमद के सामने जो भी सीना तान कर आया, उस की हत्या करा दी गई. उस पर 6 से अधिक हत्या के मामले चल रहे हैं. इस डौन के गैंग में 120 से भी अधिक शूटर हैं. पुलिस ने अतीक अहमद के गैंग का नाम आईएस (इंटर स्टेट) 227 रखा है. इस के गैंग का मुख्य कारोबार इलाहाबाद और आसपास के इलाके में फैला है. अतीक अहमद ने साबित कर दिया है कि पुलिस गुलाम है और सरकार के नेता वोट के लालच में कुछ भी कर सकते हैं. किसी भी डौन को नेता बना सकते हैं. अतीक अहमद की कहानी में मोड़ 1979 से आया.

10 अगस्त, 1962 को पैदा हुए अतीक अहमद के पिता इलाहाबाद में तांगा चलाते थे. इलाहाबाद के मोहल्ला चकिया के रहने वाले फारुक तांगे वाले के रूप में मशहूर पिता के संघर्ष को अतीक ने करीब से देखा था. हाईस्कूल में फेल हो जाने के बाद उस ने पढ़ाई छोड़ दी थी. 17 साल की उम्र में उस पर कत्ल का पहला इल्जाम लगा था. उस के बाद वह अपराध की दुनिया में कूद पड़ा.

यह तब की बात है, जब इलाहाबाद में नए कालेज बन रहे थे, उद्योग लग रहे थे. जिस की वजह से खूब ठेके बंट रहे थे. तभी कुछ नए लड़कों में अमीर बनने का ऐसा चस्का लगा कि वे अमीर बनने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. कुछ भी यानी हत्या, अपहरण और रंगदारी की वसूली.

अमीर बनने का चस्का अतीक को भी लग चुका था. 17 साल की उम्र में ही उस पर एक कत्ल का इल्जाम लग चुका था, जिस की वजह से लोगों में उस की दहशत बैठ गई थी. उस का भी धंधा चल निकला. वह ठेके लेने लगा, रंगदारी वसूली जाने लगी.

उस समय इलाहाबाद का डौन चांदबाबा था. पुराने शहर में उस का ऐसा खौफ था कि उस के सामने किसी की बोलने की हिम्मत नहीं होती थी. चौक और रानीमंडी के उस के इलाके में पुलिस भी जाने से डरती थी. कहा जाता है कि उस के इलाके में अगर कोई खाकी वर्दी वाला चला जाता था तो बिना पिटे नहीं आता था.

तब तक अतीक 20-22 साल का ठीकठाक गुंडा माना जाने लगा था. चांदबाबा का खौफ खत्म करने के लिए नेता और पुलिस एक खौफ को खत्म करने के लिए दूसरे खौफ को शह दे रहे थे. इसी का नतीजा था कि अतीक बड़े गुंडे के रूप में उभरने लगा. परिणाम यह निकला कि वह चांदबाबा से ज्यादा पुलिस के लिए खतरा बनता गया.

अतीक ने बना लिया अपना गैंग

अतीक अहमद ने इलाहाबाद में अपना गैंग बना लिया था. अपने इसी गैंग की मदद से वह इलाहाबाद के लिए ही नहीं, अगलबगल के कस्बों के लिए भी आतंक का पर्याय बन गया था. केवल गैंग बना लेना ही बहादुरी नहीं होती, गैंग का खर्च, उन के मुकदमों का खर्च, हथियार खरीदने के लिए पैसे आदि की भी व्यवस्था करनी होती है. इस के लिए अतीक गैंग की मदद से इलाहाबाद के व्यापारियों का अपहरण कर फिरौती तो वसूलता ही था, शहर में रंगदारी भी वसूली जाने लगी थी.

इस तरह अतीक अहमद पुलिस के लिए चांदबाबा से भी ज्यादा खतरनाक बन गया था. पुलिस उसे और उस के गैंग के लड़कों को गलीगली खोज रही थी.

आखिर एक दिन पुलिस बिना लिखापढ़ी के अतीक को उठा ले गई. उसे कहां ले जाया गया, कुछ पता नहीं था. यह सन 1986 की बात है.

उस समय राज्य में वीर बहादुर सिंह की सरकार थी तो केंद्र में राजीव गांधी की. अतीक को पुलिस कहां ले गई, इस की किसी को खबर नहीं थी. सभी को लगा कि अब उस का खेल खत्म हो चुका है.

काफी खोजबीन की गई. जब कहीं उस का कुछ पता नहीं चला तो इलाहाबाद के ही एक कांग्रेसी सांसद को सूचना दी गई. कहा जाता है कि वह सांसद राजीव गांधी के बहुत करीबी थे. उन्होंने राजीव गांधी से बात की. दिल्ली से लखनऊ फोन आया और लखनऊ से इलाहाबाद.