रूठी रानी उमादे : क्यों संसार में अमर है जैसलमेर की रानी

रेतीले राजस्थान को शूरवीरों की वीरता और प्रेम की कहानियों के लिए जाना जाता है. राजस्थान के इतिहास में प्रेम रस और वीर रस से भरी तमाम ऐसी कहानियां भरी पड़ी हैं, जिन्हें पढ़सुन कर ऐसा लगता है जैसे ये सच्ची कहानियां कल्पनाओं की दुनिया में ढूंढ कर लाई गई हों.

मेड़ता के राव वीरमदेव और राव जयमल के काल में जोधपुर के राव मालदेव शासन करते थे. राव मालदेव अपने समय के राजपूताना के सर्वाधिक शक्तिशाली शासक थे. शूरवीर और धुन के पक्के. उन्होंने अपने बल पर  जोधपुर राज्य की सीमाओं का काफी विस्तार किया था. उन की सेना में राव जैता व कूंपा नाम के 2 शूरवीर सेनापति थे.

यदि मालदेव, राव वीरमदेव व उन के पुत्र वीर शिरोमणि जयमल से बैर न रखते और जयमल की प्रस्तावित संधि मान लेते, जिस में राव जयमल ने शांति के लिए अपने पैतृक टिकाई राज्य जोधपुर की अधीनता तक स्वीकार करने की पेशकश की थी, तो स्थिति बदल जाती. जयमल जैसे वीर, जैता कूंपा जैसे सेनापतियों के होते राव मालदेव दिल्ली को फतह करने में समर्थ हो जाते.

राव मालदेव के 31 साल के शासन काल तक पूरे भारत में उन की टक्कर का कोई राजा नहीं था. लेकिन यह परम शूरवीर राजा अपनी एक रूठी रानी को पूरी जिंदगी नहीं मना सका और वह रानी मरते दम तक अपने पति से रूठी रही.

जीवन में 52 युद्ध लड़ने वाले इस शूरवीर राव मालदेव की शादी 24 वर्ष की आयु में वर्ष 1535 में जैसलमेर के रावल लूनकरण की बेटी राजकुमारी उमादे के साथ हुई थी. उमादे अपनी सुंदरता व चतुराई के लिए प्रसिद्ध थीं. राठौड़ राव मालदेव की शादी बारात लवाजमे के साथ जैसलमेर पहुंची. बारात का खूब स्वागतसत्कार हुआ. बारातियों के लिए विशेष ‘जानी डेरे’ की व्यवस्था की गई.

ऊंट, घोड़ों, हाथियों के लिए चारा, दाना, पानी की व्यवस्था की गई. राजकुमारी उमादे राव मालदेव जैसा शूरवीर और महाप्रतापी राजा पति के रूप में पाकर बेहद खुश थीं. पंडितों ने शुभ वेला में राव मालदेव की राजकुमारी उमादे से शादी संपन्न कराई.

चारों तरफ हंसीखुशी का माहौल था. शादी के बाद राव मालदेव अपने सरदारों व सगेसंबंधियों के साथ महफिल में बैठ गए. महफिल काफी रात गए तक चली.

इस के बाद तमाम घराती, बाराती खापी कर सोने चले गए. राव मालदेव ने थोड़ीथोड़ी कर के काफी शराब पी ली थी.

उन्हें नशा हो रहा था. वह महफिल से उठ कर अपने कक्ष में नहीं आए. उमादे सुहाग सेज पर उन की राह देखतीदेखती थक गईं. नईनवेली दुलहन उमादे अपनी खास दासी भारमली जिसे उमादे को दहेज में दिया गया था, को मालदेव को बुलाने भेजने का फैसला किया. उमादे ने भारमली से कहा, ‘‘भारमली, जा कर रावजी को बुला लाओ. बहुत देर कर दी उन्होंने…’’

भारमली ने आज्ञा का पालन किया. वह राव मालदेव को बुलाने उन के कक्ष में चली गई. राव मालदेव शराब के नशे में थे. नशे की वजह से उन की आंखें मुंद रही थीं कि पायल की रुनझुन से राव ने दरवाजे पर देखा तो जैसे होश गुम हो गए. फानूस तो छत में था, पर रोशनी सामने से आ रही थी. मुंह खुला का खुला रह गया.

जैसे 17-18 साल की कोई अप्सरा सामने खड़ी थी. गोरेगोरे भरे गालों से मलाई टपक रही थी. शरीर मछली जैसा नरमनरम. होंठों के ऊपर मौसर पर पसीने की हलकीहलकी बूंदें झिलमिला रही थीं होठों से जैसे रस छलक रहा हो.

भारमली कुछ बोलती, उस से पहले ही राव मालदेव ने यह सोच कर कि उन की नवव्याहता रानी उमादे है, झट से उसे अपने आगोश में ले लिया. भारमली को कुछ बोलने का मौका नहीं मिला या वह जानबूझ कर नहीं बोली, वह ही जाने.

भारमली भी जब काफी देर तक वापस नहीं लौटी तो रानी उमादे ने जिस थाल से रावजी की आरती उतारनी थी, उठाया और उस कक्ष की तरफ चल पड़ीं, जिस कक्ष में राव मालदेव का डेरा था.

उधर राव मालदे ने भारमली को अपनी रानी समझ लिया था और वह शराब के नशे में उस से प्रेम कर रहे थे. रानी उमादे जब रावजी के कक्ष में गई तो भारमली को उन के आगोश में देख रानी ने आरती का थाल यह कह कर ‘अब राव मालदेव मेरे लायक नहीं रहे,’ पटक दिया और वापस चली गईं.

अब तक राव मालदेव के सब कुछ समझ में आ गया था. मगर देर हो चुकी थी. उन्होंने सोचा कि जैसेतैसे रानी को मना लेंगे. भारमली ने राव मालदेव को सारी बात बता दी कि वह उमादे के कहने पर उन्हें बुलाने आई थी. उन्होंने उसे कुछ बोलने नहीं दिया और आगोश में भर लिया. रानी उमादे ने यहां आ कर यह सब देखा तो रूठ कर चली गईं.

सुबह तक राव मालदेव का सारा नशा उतर चुका था. वह बहुत शर्मिंदा हुए. रानी उमादे के पास जा कर शर्मिंदगी जाहिर करते हुए कहा कि वह नशे में भारमली को रानी उमादे समझ बैठे थे.

मगर उमादे रूठी हुई थीं. उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि वह बारात के साथ नहीं जाएंगी. वो भारमली को ले जाएं. फलस्वरूप एक शक्तिशाली राजा को बिना दुलहन के एक दासी को ले कर बारात वापस ले जानी पड़ी.

रानी उमादे आजीवन राम मालदेव से रूठी ही रहीं और इतिहास में रूठी रानी के नाम से मशहूर हुईं. जैसलमेर की यह राजकुमारी रूठने के बाद जैसलमेर में ही रह गई थीं. राव मालदेव दहेज में मिली दासी भारमली बारात के साथ बिना दुलहन के जोधपुर आ गए थे. उन्हें इस का बड़ा दुख हुआ था. सब कुछ एक गलतफहमी के कारण हुआ था.

राव मालदेव ने अपनी रूठी रानी उमादे के लिए जोधपुर में किले के पास एक हवेली बनवाई. उन्हें विश्वास था कि कभी न कभी रानी मान जाएगी.

जैसलमेर की यह राजकुमारी बहुत खूबसूरत व चतुर थी. उस समय उमादे जैसी खूबसूरत महिला पूरे राजपूताने में नहीं थी. वही सुंदर राजकुमारी मात्र फेरे ले कर राव मालदेव की रानी बन गई थी. ऐसी रानी जो पति से आजीवन रूठी रही.

जोधपुर के इस शक्तिशाली राजा मालदेव ने उमादे को मनाने की बहुत कोशिशें कीं मगर सब व्यर्थ. वह नहीं मानी तो नहीं मानी. आखिर में राव मालदेव ने एक बार फिर कोशिश की उमादे को मनाने की. इस बार राव मालदव ने अपने चतुर कवि आशानंदजी चारण को उमादे को मना कर लाने के लिए जैसलमेर भेजा.

चारण जाति के लोग बुद्धि से चतुर व वाणी से वाकपटुता व उत्कृष्ट कवि के तौर पर जाने जाते हैं. राव मालदेव के दरबार के कवि आशानंद चारण बड़े भावुक थे. निर्भीक प्रकृति के वाकपटु व्यक्ति.

जैसलमेर जा कर आशानंद चारण ने किसी तरह अपनी वाकपटुता के जरिए रूठी रानी उमादे को मना भी लिया और उन्हें ले कर जोधपुर के लिए रवाना भी हो गए. रास्ते में एक जगह रानी उमादे ने मालदेव व दासी भारमली के बारे में कवि आशानंदजी से एक बात पूछी.

मस्त कवि समय व परिणाम की चिंता नहीं करता. निर्भीक व मस्त कवि आशानंद ने भी बिना परिणाम की चिंता किए रानी को 2 पंक्तियों का एक दोहा बोल कर उत्तर दिया—

माण रखै तो पीव तज, पीव रखै तज माण.

दोदो गयंदनी बंधही, हेको खंभु ठाण.

यानी मान रखना है तो पति को त्याग दे और पति को रखना है तो मान को त्याग दे. लेकिन दोदो हाथियों को एक ही खंभे से बांधा जाना असंभव है.

आशानंद चारण के इस दोहे की दो पंक्तियों ने रानी उमादे की सोई रोषाग्नि को वापस प्रज्जवलित करने के लिए आग में घी का काम किया. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे ऐसे पति की आवश्यकता नहीं है.’’ रानी उमादे ने उसी पल रथ को वापस जैसलमेर ले चलने का आदेश दे दिया.

आशानंदजी ने मन ही मन अपने कहे गए शब्दों पर विचार किया और बहुत पछताए, लेकिन शब्द वापस कैसे लिए जा सकते थे. उमादे जो इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध है, अपनी रूपवती दासी भारमली के कारण ही अपने पति राजा मालदेव से रूठ गई थीं और आजीवन रूठी ही रहीं.

जैसलमेर आए कवि आशानंद चारण ने फिर रूठी रानी को मनाने की लाख कोशिश की लेकिन वह नहीं मानीं. तब आशानंदजी चारण ने जैसलमेर के राजा लूणकरणजी से कहा कि अपनी पुत्री का भला चाहते हो तो दासी भारमली को जोधपुर से वापस बुलवा लीजिए. रावल लूणकरणजी ने ऐसा ही किया और भारमली को जोधपुर से जैसलमेर बुलवा लिया.

भारमली जैसलमेर आ गई. लूणकरणजी ने भारमली का यौवन रूप देखा तो वह उस पर मुग्ध हो गए. लूणकरणजी का भारमली से बढ़ता स्नेह उन की दोनों रानियों की आंखों से छिप न सका. लूणकरणजी अब दोनों रानियों के बजाय भारमली पर प्रेम वर्षा कर रहे थे. यह कोई औरत कैसे सहन कर सकती है.

लूणकरणजी की दोनों रानियों ने भारमली को कहीं दूर भिजवाने की सोची. दोनों रानियां भारमली को जैसलमेर से कहीं दूर भेजने की योजना में लग गईं. लूणकरणजी की पहली रानी सोढ़ीजी ने उमरकोट अपने भाइयों से भारमली को ले जाने के लिए कहा लेकिन उमरकोट के सोढ़ों ने रावल लूणकरणजी से शत्रुता लेना ठीक नहीं समझा.

तब लूणकरणजी की दूसरी रानी जो जोधपुर के मालानी परगने के कोटड़े के शासक बाघजी राठौड़ की बहन थी, ने अपने भाई बाघजी को बुलाया. बहन का दुख मिटाने के लिए बाघजी शीघ्र आए और रानियों के कथनानुसार भारमली को ऊंट पर बैठा कर मौका मिलते ही जैसलमेर से छिप कर भाग गए.

लूणकरणजी कोटड़े पर हमला तो कर नहीं सकते थे क्योंकि पहली बात तो ससुराल पर हमला करने में उन की प्रतिष्ठा घटती और दूसरी बात राव मालदेव जैसा शक्तिशाली शासक मालानी का संरक्षक था. अत: रावल लूणकरणजी ने जोधपुर के ही आशानंद कवि को कोटडे़ भेजा कि बाघजी को समझा कर भारमली को वापस जैसलमेर ले आएं.

दोनों रानियों ने बाघजी को पहले ही संदेश भेज कर सूचित कर दिया कि वे बारहठजी आशानंद की बातों में न आएं. जब आशानंदजी कोटड़ा पहुंचे तो बाघजी ने उन का बड़ा स्वागतसत्कार किया और उन की इतनी खातिरदारी की कि वह अपने आने का उद्देश्य ही भूल गए.

एक दिन बाघजी शिकार पर गए. बारहठजी व भारमली भी साथ थे. भारमली व बाघजी में असीम प्रेम था. अत: वह भी बाघजी को छोड़ कर किसी भी हालत में जैसलमेर नहीं जाना चाहती थी.

शिकार के बाद भारमली ने विश्रामस्थल पर सूले सेंक कर खुद आशानंदजी को दिए. शराब भी पिलाई. इस से खुश हो कर बाघजी व भारमली के बीच प्रेम देख कर आशानंद जी चारण का भावुक कवि हृदय बोल उठे—

जहं गिरवर तहं मोरिया, जहं सरवर तहं हंस

जहं बाघा तहं भारमली, जहं दारू तहं मंस.

यानी जहां पहाड़ होते हैं वहां मोर होते हैं, जहां सरोवर होता है वहां हंस होते हैं. इसी प्रकार जहां बाघजी हैं, वहीं भारमली होगी. ठीक उसी तरह से जहां दारू होती है वहां मांस भी होता है.

कवि आशानंद की यह बात सुन बाघजी ने झठ से कह दिया, ‘‘बारहठजी, आप बड़े हैं और बड़े आदमी दी हुई वस्तु को वापस नहीं लेते. अत: अब भारमली को मुझ से न मांगना.’’

आशानंद जी पर जैसे वज्रपात हो गया. लेकिन बाघजी ने बात संभालते हुए कहा कि आप से एक प्रार्थना और है आप भी मेरे यहीं रहिए.

और इस तरह से बाघजी ने कवि आशानंदजी बारहठ को मना कर भारमली को जैसलमेर ले जाने से रोक लिया. आशानंदजी भी कोटड़ा गांव में रहे और उन की व बाघजी की इतनी घनिष्ठ दोस्ती हुई कि वे जिंदगी भर उन्हें भुला नहीं पाए.

एक दिन अचानक बाघजी का निधन हो गया. भारमली ने भी बाघजी के शव के साथ प्राण त्याग दिए. आशानंदजी अपने मित्र बाघजी की याद में जिंदगी भर बेचैन रहे. उन्होंने बाघजी की स्मृति में अपने उद्गारों के पिछोले बनाए.

बाघजी और आशानंदजी के बीच इतनी घनिष्ठ मित्रता हुई कि आशानंद जी उठतेबैठे, सोतेजागते उन्हीं का नाम लेते थे. एक बार उदयपुर के महाराणा ने कवि आशानंदजी की परीक्षा लेने के लिए कहा कि वे सिर्फ एक रात बाघजी का नाम लिए बिना निकाल दें तो वे उन्हें 4 लाख रुपए देंगे. आशानंद के पुत्र ने भी यही आग्रह किया.

कवि आशानंद ने भरपूर कोशिश की कि वह अपने कविपुत्र का कहा मान कर कम से कम एक रात बाघजी का नाम न लें, मगर कवि मन कहां चुप रहने वाला था. आशानंदजी की जुबान पर तो बाघजी का ही नाम आता था.

रूठी रानी उमादे ने प्रण कर लिया था कि वह आजीवन राव मालदेव का मुंह नहीं देखेगी. बहुत समझानेबुझाने के बाद भी रूठी रानी जोधपुर दुर्ग की तलहटी में बने एक महल में कुछ दिन ही रही और फिर उन्होंने अजमेर के तारागढ़ दुर्ग के निकट महल में रहना शुरू किया. बाद में यह इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध हुई.

राव मालदेव ने रूठी रानी के लिए तारागढ़ दुर्ग में पैर से चलने वाली रहट का निर्माण करवाया. जब अजमेर पर अफगान बादशाह शेरशाह सूरी के आक्रमण की संभावना थी, तब रूठी रानी कोसाना चली गई, जहां कुछ समय रुकने के बाद वह गूंदोज चली गई. गूंदोज से काफी समय बाद रूठी रानी ने मेवाड़ में केलवा में निवास किया.

जब शेरशाह सूरी ने मारवाड़ पर आक्रमण किया तो रानी उमादे से बहुत प्रेम करने वाले राव मालदेव ने युद्ध में प्रस्थान करने से पहले एक बार रूठी रानी से मिलने का अनुरोध किया.

एक बार मिलने को तैयार होने के बाद रानी उमादे ने ऐन वक्त पर मिलने से इनकार कर दिया.

रूठी रानी के मिलने से इनकार करने का राव मालदेव पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा और वह अपने जीवन में पहली बार कोई युद्ध हारे.

वर्ष 1562 में राव मालदेव के निधन का समाचार मिलने पर रानी उमादे को अपनी भूल का अहसास हुआ और कष्ट भी पहुंचा. उमादे ने प्रायश्चित के रूप में उन की पगड़ी के साथ स्वयं को अग्नि को सौंप दिया.

ऐसी थी जैसलमेर की भटियाणी उमादे रूठी रानी. वह संसार में रूठी रानी के नाम से अमर हो गईं.

2 करोड़ की फिरौती : बेटा बना मोहरा – भाग 1

अपहर्त्ताओं ने व्यापारी मुकेश लांबा के एकलौते बेटे आदित्य उर्फ आदि का अपहरण कर 2 करोड़ की मांग की. ताज्जुब की बात यह रही कि पुलिस के मुस्तैद रहते हुए भी अपहर्त्ता फिरौती की रकम ले गए. इस मामले में इसी तरह के और भी अनेक ऐसे सवाल रहे जो पुलिस काररवाई पर अंगुली उठा रहे हैं.

शाम को करीब 6 बजे का समय रहा होगा. सुमन रसोई में शाम का खाना बनाने की तैयारी  कर रही थी. सब्जी बनाने के लिए उसे जीरा चाहिए था. जीरा खत्म हो  गया था.

सुमन ने रसोई से ही बेटे आदित्य को आवाज दी, ‘‘आदि बेटे, किराने वाले की दुकान से जीरा ला दो.’’

13 साल का आदि उस समय मोबाइल पर गेम खेल रहा था. मां की आवाज सुन कर उसे झुंझलाहट हुई. उस ने ड्राइंगरूम से ही मां को आवाज दे कर कहा, ‘‘मम्मी, दीदी को भेज दो. मैं खेल रहा हूं.’’

अपने कमरे में पढ़ रही रितु ने छोटे भाई आदि की आवाज सुन ली. उस ने कहा, ‘‘मम्मी, मैं पढ़ रही हूं. यह मोबाइल में गेम खेल रहा है. इसे ही भेज दो.’’

‘‘बेटा आदि, तुम ही दुकान पर जा कर मुझे जीरा ला दो.‘‘ सुमन ने रसोई से बाहर निकल कर उसे 50 रुपए का नोट देते हुए कहा.

आदि मना नहीं कर सका. उस ने मां से पैसे लिए और घर से निकल गया. किराने की दुकान उन के घर के पास ही थी. घर के राशन की चीजें वह उसी से लाते थे.

आदि उस किराना की दुकान पर पहुंचा ही था कि उधर से गुजरती एक स्विफ्ट कार वहां रुकी. कार में सवार लोगों ने आदि को इशारे से अपने पास बुला कर कहा, ‘‘बेटा, यहां आसपास ही मुकेश लांबा रहते हैं, क्या आप को पता है, उन का घर कहां है?’’

मुकेश लांबा का नाम सुन कर आदि बोला, ‘‘वो तो मेरे पापा हैं.’’

‘‘अरे तुम मुकेश के बेटे हो.’’ कार में सवार एक आदमी ने आदि की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘बेटा हम आप के पापा के दोस्त हैं. हमें अपने घर ले चलो.’’

पापा के दोस्त होने की बात सुन कर आदि ने कहा, ‘‘चलो, मैं आप को घर ले चलता हूं.’’ यह कह कर आदि पैदल ही कार के आगे चलने लगा.

आदि को पैदल चलते देख कार में सवार एक आदमी ने खिड़की से बाहर सिर निकाल कर उसे आवाज दे कर कहा, ‘‘बेटा, तुम हमारे साथ कार में ही बैठ जाओ.’’

वैसे तो आदि का मकान वहां से 2-3 सौ मीटर दूर ही था. फिर भी आदि उन के साथ कार में पीछे की सीट पर बैठ गया.

कार में कुल 3 लोग थे. इन में एक कार चला रहा था. एक आगे की सीट पर और एक आदमी पीछे की सीट पर बैठा हुआ था. वे तीनों मास्क लगाए हुए थे. इसलिए उन के चेहरे साफ नजर नहीं आ रहे थे. आदि भी पीछे की सीट पर बैठ गया.

आदि के बैठते ही आगे बैठे आदमी ने कार चला रहे अपने साथी से कहा, ‘‘यार, मुकेश के घर चल रहे हैं, तो कुछ मिठाई ले चलते हैं.’’ इस बात पर पीछे बैठे उन के साथी ने भी सहमति जताई.

आदि क्या कहता, वह चुप रहा. वे लोग कार में आदि को साथ ले कर काफी देर तक इधरउधर घूमते रहे. उधर आदि जीरा ले कर घर नहीं पहुंचा तो सुमन बुदबुदाने लगी, ‘पता नहीं ये लड़का कहां किस से बातें करने में लग गया. मैं सब्जी बनाने को बैठी हूं और यह न जाने कहां रुक गया. कम से कम जीरा तो मुझे दे कर चला जाता.’

उधर वह लोग मिठाई की दुकान ढूंढने के बहाने कार को घुमाते रहे. बीच में मिठाइयों की कई दुकानें आईं, लेकिन उन्होंने मिठाई नहीं खरीदी. आखिर आदि ने उन से पूछ ही लिया कि अंकल आप को मिठाई खरीदनी है, तो कहीं से भी खरीद लो. मुझे घर जाना है. मम्मी ने मुझ से घर का कुछ सामान मंगाया है. मम्मी मेरा इंतजार कर रही होंगी.

‘‘लड़के, तू ज्यादा चपरचपर मत कर. चुपचाप बैठा रह.’’ कार में आगे की सीट पर बैठे आदमी ने उस से कहा, तो आदि सहम गया. उसे कुछ अनहोनी की आशंका हुई, लेकिन 13 साल का वह बालक क्या कर सकता था. पीछे बैठे आदमी ने उसे आंखें दिखाईं, तो वह सहम गया. कार के शीशे भी बंद थे. रात का अंधेरा भी घिर आया था.

कुछ देर बाद कार सुनसान रास्ते पर एक मकान के आगे जा कर रुकी. कार से उतर कर वे तीनों आदमी आदि को भी उस मकान में ले गए. एक आदमी ने आदि से उस की मां और पापा के मोबाइल नंबर पूछे. आदि ने दोनों के नंबर उन्हें बता दिए.

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शाम को करीब 7 बजे एक आदमी ने आदि की मां सुमन को मोबाइल पर काल कर कहा, ‘‘हम ने तुम्हारे बेटे का अपहरण कर लिया है. उसे जीवित देखना चाहती हो, तो 2 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो.’’

फोन सुन कर सुमन सन्न रह गई. वह काल करने वाले से बोली, ‘‘तुम कौन हो? मेरा बेटा कहां है?’’

‘‘तुम्हारा बेटा हमारे पास ही है. तुम पैसों का इंतजाम कर लो.’’ यह कह कर उस आदमी ने फोन काट दिया. दूसरी तरफ से सुमन हैलो.. हैलो.. ही करती रह गई.

बेटे आदि के अपहरण और 2 करोड़ रुपए मांगने की बात सुन कर सुमन रोने लगी. घर पर आदि के पापा मुकेश लांबा भी नहीं थे. सुमन ने रोतेरोते फोन कर उन्हें बेटे का अपहरण होने की बात बताई.

मुकेश तुरंत घर पहुंचे. उन्होंने पत्नी सुमन से सारी बातें पूछीं कि कैसे क्याक्या हुआ? आदि कहां गया था? अपहर्त्ताओं ने क्या कहा है? सुमन ने पति को सारी बातें बता दीं. यह बात 15 अक्तूबर, 2020 की है.

घटना मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर की है. शहर के धनवंतरी नगर में दुर्गा मंदिर के पास रहने वाले मुकेश लांबा माइनिंग विस्फोटक का काम करते थे. पहले वह ट्रांसपोर्ट का काम करते थे. मुकेश का कारोबार अब ठीकठाक चल रहा था. जिंदगी मजे से गुजर रही थी. घर में किसी बात की कमी नहीं थी.

विहान अपहरण केस : औपरेशन सी रिवर ऐसे हुआ कामयाब – भाग 1

गणतंत्र दिवस पर दिल्ली पुलिस की व्यस्तता बढ़ जाना स्वाभाविक होता है, कारण इस अवसर पर दिल्ली आने वाले वीआईपी विदेशी मेहमानों, वीवीआईपी और वीआईपी की सुरक्षा की जिम्मेदारी तो दिल्ली पुलिस को संभालनी ही होती है, साथ ही आतंकवादी गतिविधियों का खतरा अलग से बना रहता है.

इस बार तो इस मौके पर आसियान सम्मेलन भी था. बहरहाल, कहने का अभिप्राय यह है कि 26 जनवरी को होने वाले गणतंत्र दिवस के आयोजन की वजह से दिल्ली पुलिस स्थानीय नागरिकों की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती. ऐसे में कई बार ऐसी वारदातें हो जाती हैं, जो पीडि़तों के लिए तो दुखदायी होती ही हैं, पुलिस के लिए भी परेशानियां खड़ी कर देती हैं.

ऐसी ही एक वारदात गणतंत्र दिवस से एक दिन पहले यानी बीती 25 जनवरी को पूर्वी दिल्ली के जीटीबी इनक्लेव में घटी. समय था सुबह के साढ़े 7 बजे का. विवेकानंद स्कूल की बस छोटे बच्चों को ले कर स्कूल जा रही थी. इसी बस में कृष्णा मार्ग, न्यू मौडर्न कालोनी, शाहदरा निवासी करोड़पति व्यवसाई सन्नी गुप्ता का 5 वर्षीय बेटा और 7 साल की बेटी भी थे, जो शिवम डेंटल क्लीनिक के सामने से बस में बैठे थे.

विवेकानंद स्कूल की यह बस बच्चों को लेते हुए जब इहबास इलाके में एक बच्चे को लेने के लिए रुकी थी, तभी मोटरसाइकिल पर 2 युवक आए और बाइक खड़ी कर के हेलमेट पहने बस में चढ़ने लगे.

बस के गेट के पास खड़ी मेड ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उन में से एक युवक ने गाली देते हुए उसे साइड कर दिया. ड्राइवर नरेश थापा ने उन्हें टोका तो एक युवक ने उस के पैर में गोली मार दी. यह देख सारे बच्चे घबरा गए. तभी एक युवक ने आवाज दी, ‘‘विहान.’’

विहान पीछे की सीट पर अपनी बहन के साथ बैठा था, अपना नाम सुन कर वह खड़ा हो गया. युवक ने उसे गोद में उठा लिया और बस से उतरने लगा. बच्चे रोने लगे तो उस ने धमकी दी, ‘‘कोई भी रोया तो गोली मार दूंगा.’’ उस समय बस में 22 बच्चे थे.

अगले ही कुछ पलों में दोनों युवक विहान को ले कर मोटरसाइकिल से भाग निकले. जहां वारदात हुई, वह जगह सुनसान थी. जब तक लोग वहां पहुंचे, तब तक दोनों युवक आनंद विहार की ओर निकल गए. लोगों ने घायल ड्राइवर को जीटीबी अस्पताल पहुंचाया. फोन कर के स्कूल से दूसरी बस मंगवाई गई. साथ ही पुलिस को भी सूचना दे दी गई. विहान की बहन से नंबर ले कर उस के घर भी फोन किया गया.

विहान के मातापिता और अन्य घर वाले तत्काल घटनास्थल पर पहुंच गए. उन का बुरा हाल था. थाना जीटीबी इनक्लेव से पुलिस भी आ गई थी. पुलिस ने विहान के अपहरण की सूचना दर्ज कर के तफ्तीश शुरू कर दी. पुलिस 3 दिनों तक हर तरह से कोशिश करती रही, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

स्थानीय पुलिस की जांच के साथ जिला पुलिस का स्पैशल स्टाफ भी अपहर्त्ताओं की खोज में लगा था. पुलिस ने जिले के 125 मुखबिरों को अपराधियों की गतिविधियों का पता लगाने की जिम्मेदारी अलग से सौंप रखी थी.

तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों को दी जिम्मेदारी

जब थाना पुलिस और स्पैशल स्टाफ कुछ नहीं कर सका तो 28 जनवरी को विहान के अपहरण का मामला क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया. जौइंट पुलिस कमिश्नर आलोक कुमार ने अपने अधीनस्थ क्राइम ब्रांच के डीसीपी डा. जी. रामगोपाल नाइक को एक पुलिस टीम गठित कर के जल्द से जल्द मामले को सुलझाने को कहा.

डा. नाइक अपहरण मामलों के एक्सपर्ट हैं. वह विशाखापट्टनम के एक मशहूर व्यापारी के बेटे को सकुशल रिहा कराने के बाद चर्चा में आए थे. उन्होंने करीब 500 पुलिसकर्मियों की टीम को लीड करते हुए बच्चे को सकुशल बरामद किया था, इसलिए संयुक्त आयुक्त आलोक कुमार ने विहान के केस की जिम्मेदारी इन्हें सौंपी.

डीसीपी डा. जी. रामगोपाल नाइक ने क्राइम ब्रांच के एसीपी ईश्वर सिंह और इंसपेक्टर विनय त्यागी के साथ मीटिंग कर के रणनीति तैयार की कि बच्चे को सहीसलामत कैसे बरामद किया जाए. ईश्वर सिंह और विनय त्यागी दोनों ही बड़ेबड़े मामलों को सुलझाने में माहिर रहे हैं.

ईश्वर सिंह ने सन 2000 में क्रिकेट मैच फिक्सिंग के मामले को उजागर किया था, जिस में दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट टीम के कैप्टन हैंसी क्रोनिए सहित दरजनों लोग शामिल थे. इस के अलावा इन्होंने किडनैपिंग के भी दरजनों मामले सुलझाए थे.

जबकि इंसपेक्टर विनय त्यागी एनकाउंटर स्पैशलिस्ट रहे राजबीर सिंह की टीम का हिस्सा तो थे ही, उन्होंने 1999 में हुए मशहूर कार्टूनिस्ट इरफान हुसैन के मर्डर की गुत्थी सुलझा कर हत्यारों को भी गिरफ्तार किया था. इस के साथ ही विनय त्यागी ने ‘इंडियाज मोस्ट वांटेड’ सीरियल के निर्माता और एंकर सुहेब इलियासी को भी पत्नी के कत्ल के मामले में गिरफ्तार किया था.

बच्चे का पता लगाने और उसे सहीसलामत बचाने की जिम्मेदारी मिलते ही ईश्वर सिंह और विनय त्यागी ने करीब 50 लोगों की टीम गठित की, जिस में सबइंसपेक्टर अर्जुन, दिनेश, हवा सिंह, सुशील, एएसआई राजकुमार, मोहम्मद सलीम, हवलदार शशिकांत और श्यामलाल को शामिल किया गया. इस औपरेशन को नाम दिया गया ‘सी रिवर’.

60 लाख की मांगी फिरौती

28 जनवरी को क्राइम ब्रांच को केस सौंपा गया और उसी दिन अपहृत विहान के पिता सन्नी गुप्ता के फोन पर फोन कर के लड़की की आवाज में 60 लाख रुपए की फिरौती मांगी गई. इतना ही नहीं, अपहर्त्ताओं ने वाट्सऐप काल कर के बच्चे से बात भी कराई. इस वाट्सऐप काल में एक अपहर्त्ता का चेहरा भी नजर आया, पर उसे पहचाना नहीं जा सका.

अपहर्त्ताओं ने फिरौती की रकम देने के लिए विहान के घर वालों से 4 फरवरी को दिल्ली से कड़कड़डूमा क्षेत्र स्थित क्रौस रिवर मौल आने को कहा था. साथ ही उन्होंने यह भी चेतावनी दी थी कि पुलिस के चक्कर में न पड़ें वरना बच्चे को नुकसान हो सकता है. पीडि़त परिवार चाहता था कि किसी भी तरह उन का बच्चा सुरक्षित मिल जाए. वह फिरौती की रकम देने को तैयार थे.

परिजनों ने यह बात पुलिस को बता दी थी, इस पर पुलिस अधिकारियों ने अपहर्त्ताओं को घेरने की पूरी योजना बना ली. चूंकि अपहर्त्ताओं ने पैसे ले कर क्रौस रिवर मौल बुलाया था, इसलिए पुलिस ने इस औपरेशन का नाम रखा ‘सी रिवर’. पुलिस टीम इस मौल के आसपास तैनात हो गई. विहान के पिता को एक बैग में नोट के आकार की कागज की गड्डियां भर कर भेजा गया पर अपहर्त्ता वहां नहीं पहुंचे. शायद उन्हें वहां पुलिस के मौजूद होने का शक हो गया था.

अपहरण के मामले बड़े ही संवेदनशील होते हैं. ऐसे मामलों में पुलिस की पहली प्राथमिकता अपहृत व्यक्ति को सहीसलामत बरामद करने की होती है. इस के बाद अपहर्त्ताओं को गिरफ्तार करने की सोची जाती है. अपहर्त्ताओं के फिरौती की रकम न लेने आने के बाद पुलिस पता लगाने की कोशिश करने लगी कि बच्चे का अपहर्त्ता कौन हो सकता है.

इस से पहले थाना पुलिस की 6 टीमें पीडि़त परिवार, बस चालक, मेड, पड़ोसियों और बस में मौजूद बच्चों से पूछताछ कर चुकी थीं. थाना पुलिस ने 3 संदिग्ध लोगों की तलाश में नोएडा में भी छापेमारी की थी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. इस के बाद ही यह मामला क्राइम ब्रांच को सौंपा गया था. इस की एक वजह यह भी थी कि क्राइम ब्रांच के पास पर्याप्त तकनीकी संसाधन होते हैं.

क्राइम ब्रांच भी यह बात मान कर चल रही थी कि बच्चे के अपहरण में किसी नजदीकी का हाथ हो सकता है, क्योंकि विहान के पिता ने हाल ही में किसी प्रौपर्टी का सौदा किया था, जिस की रकम उन के घर में मौजूद थी. यह बात उन के किसी करीबी को ही पता हो सकती थी, इसलिए पुलिस किसी नजदीकी पर शक कर रही थी.

क्राइम ब्रांच ने शुरू की अपने तरीके से जांच

पुलिस ने परिवार के सभी सदस्यों सहित वर्तमान नौकरों, पूर्व नौकरों व ऐसे लोगों का ब्यौरा बनाया, जिन्हें बच्चे के व्यापारी पिता सन्नी गुप्ता की उच्च आर्थिक स्थिति की जानकारी थी. पुलिस ने ऐसे 200 लोगों की एक लिस्ट बनाई, जिन से पूछताछ की जा सके. इस के अलावा ऐसे मामलों में शामिल रहे बदमाशों का ब्यौरा भी डोजियर सेल से निकलवाया गया. उन में से जो बदमाश जेल से बाहर थे, उन में से ज्यादातर को हिरासत में ले कर पूछताछ की गई, पर कोई नतीजा नहीं निकला.

विहान को ले कर घर के सभी लोग चिंतित थे. उस की मां शिखा का तो रोरो कर बुरा हाल था. रोतेरोते उन की आंखें सूज गई थीं. चूंकि विहान के पिता एक व्यापारी थे, इसलिए व्यापारी वर्ग भी इस बात को ले कर आक्रोश में था. बच्चे की शीघ्र बरामदगी के लिए व्यापारियों ने विरोध प्रदर्शन भी किया.

जुर्म की दुनिया की लेडी डौन- भाग 1

शक्लसूरत से भले ही वह बहुत ज्यादा खूबसूरत नहीं है लेकिन वह है बहुत आकर्षक. कंधे तक झूलते बाल उसके सांवले लंबे चेहरे पर खूब फबते हैं.

उस की नाजुक कलाइयों में शायद ही कभी किसी ने चूडि़यां देखी हों, लेकिन एके 47 को वह खिलौना गन की तरह चलाती थी. नाम है उस का अनुराधा सिंह चौधरी. वह अकसर लोगों को पैंटशर्ट या टीशर्ट जींस जैसे वेस्टर्न लुक में नजर आई. साड़ी सरीखा कोई परंपरागत भारतीय परिधान पहने भी उसे किसी ने शायद नहीं देखा.

लंबी, दुबलीपतली, छरहरी 36 वर्षीय इस महिला के चेहरे से दुनिया भर की मासूमियत टपकती थी. लेकिन वह थी कितनी खूंखार, इस का अंदाजा उस के गुनाहों की लिस्ट देख कर लगाया जा सकता है.

राजस्थान के सीकर के गांव अलफसर के एक मध्यमवर्गीय जाट परिवार में जन्मी अनुराधा का घर का नाम मिंटू रखा गया था. जब वह बहुत छोटी थी तभी उस की मां चल बसी. पिता रामदेव की कमाई बहुत ज्यादा नहीं थी, इसलिए वह दिल्ली आ गए. मिंटू जैसेजैसे बड़ी और समझदार होती गई, उसे यह एहसास होता गया कि जिंदगी में अगर कुछ बनना है तो पढ़ाईलिखाई बहुत जरूरी है. लिहाजा उस ने दिल लगा कर पढ़ाई की और वक्त रहते बीसीए और फिर एमबीए की भी डिग्री ले ली.

पढ़ाई पूरी करने के बाद जब वह स्थाई रूप से सीकर वापस आई तो वही हुआ जो इस उम्र में लड़कियों के साथ होना आम बात है. अनुराधा को फैलिक्स दीपक मिंज नाम के युवक से प्यार हो गया और उस ने घर और समाज वालों के विरोध और ऐतराज की कोई परवाह नहीं की और दीपक से लवमैरिज कर ली.

यहां तक अनुराधा ने कुछ गलत नहीं किया था. दीपक के साथ वह खुश थी और आने वाली जिंदगी के सपने आम लड़कियों की तरह देखने लगी थी.

दीपक सीकर में ही शेयर ट्रेडिंग का कारोबार करता था. अब पढ़ीलिखी अनुराधा भी उस के काम में हाथ बंटाने लगी, लेकिन शेयर मार्किट में खुद के लाखों और अपने क्लाइंट्स के करोड़ों रुपए इन दोनों ने तगड़े मुनाफे की उम्मीद में लगवा दिए थे, जो नातुजर्बेकारी और जोश के चलते एक झटके में डूब गए.

लेनदारों के बढ़ते दबाव से निबटने के लिए अनुराधा ने जुर्म का रास्ता चुना, जिस ने उस की जिंदगी बदल डाली. अनुराधा की मुलाकात राजस्थान के हिस्ट्रीशीटर बलबीर बानूड़ा से हुई, जिस ने उस की मुलाकात आनंदपाल सिंह से करवा दी.

दोनों ने एकदूसरे को देखापरखा और देखते ही देखते अनुराधा की सारी परेशानियां दूर हो गईं.

आनंदपाल सिंह की दहशत राजस्थान में किसी सबूत या पहचान की मोहताज कभी नहीं रही. जिस के रसूख से सियासी गलियारे भी कांपते थे.

आनंद ने अनुराधा को जुर्म की दुनिया के गुर और उसूल सिखाए. अनुराधा ने देखा और महसूस किया कि आनंद अपने रुतबे और दहशत को कैश नहीं करा पाता और थोड़े से में ही संतुष्ट हो जाता है तो उस ने आनंद को बदलना शुरू कर दिया. देखते ही देखते आनंद का हुलिया, आदतें, रहनसहन सब बदल गया.

उधर जैसे ही दीपक को पत्नी के एक जरायमपेशा गिरोह में शामिल होने की बात पता चली तो उस ने उस से नाता तोड़ लिया.

अनुराधा अब न केवल बिनब्याही पत्नी की हैसियत से बल्कि तेजतर्रार आला दिमाग की मालकिन होने की वजह से भी आनंद के गिरोह में नंबर 2 की हैसियत रखने लगी थी, जिस ने जरूरत से कम समय में हथियार चलाना सीख लिया था. गैंग और अपराध की दुनिया से जुड़े लोग उसे मैडम मिंज भी कहने लगे थे.

अनुराधा ने सीखे अपराध के गुर

अब अनुराधा ही किए जाने वाले अपराधों की प्लानिंग करने लगी थी. आनंद एक बात अनुराधा को और अच्छे से सिखा चुका था कि अपराध की दुनिया उस कार सरीखी होती है, जिस में रिवर्स गियर नहीं होता.

अनुराधा जल्द ही पेशेवर मुजरिम बन गई थी और उस का नाम भी चलने लगा था. वह जहां से गुजरती थी वहां लोगों के सर अदब से झुकें न झुकें, खौफ से जरूर झुक जाते थे. अब वह धड़ल्ले से वारदातों को अंजाम देने लगी थी.

वह चर्चा और सुर्खियों में साल 2013 में तब आई थी, जब उस पर रंगदारी का पहला मामला दर्ज हुआ था. जिस पर पुलिस ने उस पर पहली दफा 10 हजार रुपए का ईनाम भी रखा था.

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राजस्थान में बवंडर उस वक्त खड़ा हुआ, जब एक चर्चित हत्याकांड के गवाह का अपहरण हो गया. दरअसल, 27 जून, 2006 को जीवनराम गोदारा नाम के शख्स की हत्या आनंद ने दिनदहाड़े कर दी थी, जिस से पूरा राज्य हिल उठा था.

जीवनराम का भाई इंद्रचंद्र गोदारा इस हत्याकांड का गवाह था, जिस की गवाही आनंद को लंबा नपवा देती. अपने आशिक को बचाने के लिए अनुराधा ने साल 2014 में इंद्रचंद्र को अगवा कर लिया और पुणे ले गई. जहां एक फ्लैट में उसे बंधक बना कर रखा गया था.

एक दिन मौका पा कर इंद्रचंद्र ने एक परची खिड़की से नीचे फेंक दी, जिस पर लिखा था, ‘मैं किडनैप हो गया हूं और मुझे यहां पर मदद की जरूरत है.’

परची जिस ने भी पढ़ी, उस ने औरों को बताया तो फ्लैट के बाहर भीड़ इकट्ठा हो गई और फ्लैट को घेर लिया. तब अनुराधा और उस के गुर्गे बमुश्किल वहां से भागने में कामयाब हो पाए थे.

जैसेतैसे बचतेबचाते वह राजस्थान वापस आ गई और आनंद के जेल में होने के चलते खुद उस का गैंग चलाने लगी. इस दौरान उस ने कारोबारियों को अगवा कर फिरौती से खूब पैसा कमाया.

लेकिन उसे झटका तब लगा जब पुलिस ने साल 2017 में एनकाउंटर में नाटकीय तरीके से आनंद पाल सिंह को मार गिराया. जिस के बाद डरीसहमी अनुराधा फरार हो गई. जान बचाने के खौफ और गैंग के टूट जाने से अनुराधा इधरउधर भागती रही.

इसी फरारी के दौरान सहारा ढूंढती अनुराधा लारेंस बिश्नोई गैंग में शामिल हो गई. मकसद था, जैसे भी हो पुलिस से बचना.

हालांकि जुर्म की दुनिया में भी उस के खासे चर्चे और किस्से फैल चुके थे. इस नए गिरोह से उस की पटरी ज्यादा नहीं बैठी और जल्द ही वह काला जठेड़ी उर्फ संदीप के संपर्क में आई.

आनंद की मौत से आया खालीपन उसे काला जठेड़ी से भरता नजर आया तो इस की वजहें भी थीं. अनुराधा बगैर किसी एंट्रेंस एग्जाम के जठेड़ी गैंग में न केवल शामिल हो गई, बल्कि देखते ही देखते इस गैंग में भी उस ने वही जगह और रुतबा हासिल कर लिए, जो उसे आनंद के गैंग में हासिल था. दोनों ने हरिद्वार के एक मंदिर में विधिविधान से शादी भी कर ली.

मुंगेर का चर्चित गोलीकांड : घटना से हुआ प्रसिद्ध समाज

जयकारा लगाते हुए माता के भक्त दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन के लिए दीनदयाल उपाध्याय चौक से बाटला चौक की ओर बढ़ते जा रहे थे. उस वक्त रात के साढ़े 11 बजे थे. सैकड़ों लोगों के पीछेपीछे सीआईएसएफ के जवान और जिले के कई थानों की फोर्स थी.

माता के भक्तों पर पुलिस का दबाव था कि वे जल्द से जल्द मूर्ति विसर्जित कर शहर को भीड़ से मुक्ति दें, ताकि चल रही चुनाव प्रक्रिया आसानी से कराई जा सके. हालांकि शांतिपूर्वक मूर्ति विसर्जन कराने के लिए पुलिस के पास 2 दिनों का पर्याप्त समय था, इस के बावजूद पुलिस जल्दबाजी में थी.

दरअसल, पुलिस का भारी दबाव लोगों पर इसलिए भी था क्योंकि शहर में चुनाव का दौर चल रहा था, दूसरे कोरोना प्रोटोकाल का चक्कर भी था. इसलिए एसपी लिपि सिंह चाहती थीं कि सब कुछ शांतिपूर्वक संपन्न हो जाए.  लोग माता का जयकारा लगाते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे.  लेकिन पुलिस के भारी दबाव से अचानक माहौल गरमा गया और भक्तों की ओर से किसी ने पुलिस पर पत्थर उछाल दिया.

पत्थर एक पुलिस वाले के सिर पर जा गिरा और वह जख्मी  हो गया.  एक तो पुलिस पहले से ही लोगों से नाराज थी. साथी को चोटिल देख कर पुलिस फोर्स आपे से बाहर हो गई. गुस्साई फोर्स ने भक्तों पर लाठियां बरसानी शुरू कर दीं. अचानक लाठीचार्ज से लोग मूर्ति को चौक के बीचोंबीच छोड़ जान बचा कर इधरउधर भागने लगे. साथ ही आत्मरक्षा में पुलिस पर पत्थर फेंकने लगे.

जवाबी काररवाई में पुलिस ने हवाई फायर किए. गोलियों की तड़तड़ाहट से भक्तों की भीड़ बेकाबू हो गई और इधरउधर भागने लगी. इसी भगदड़ में 21 साल के युवक अनुराग कुमार पोद्दार की गोली लगने से मौत हो गई.

एक युवक की मौत से माहौल और बिगड़ गया. शहर में अशांति की आग फैल गई. आग की लपटों पर काबू पाने के लिए रातोंरात शहर भर में चप्पेचप्पे पर भारी फोर्स लगा दी गई. जैसेतैसे रात बीती. पुलिस ने फोर्स के बल पर उपद्रवियों पर काबू तो पा लिया था, लेकिन माहौल तनावपूर्ण बना हुआ था. बिगडे़ माहौल के लिए शहरवासी पुलिस कप्तान लिपि सिंह को दोषी मान रहे थे. उन का कहना था पुलिस फोर्स के पीछे चल रही एसपी लिपि सिंह के आदेश पर ही पुलिस ने गोली चलाई थी, जिससे एक युवक की मौत हुई थी.

यह घटना बिहार के मुंगेर जिले के थाना कोतवाली क्षेत्र में 26 अक्तूबर, 2020 की रात में घटी थी. अगले दिन मृतक अनूप पोद्दार के पिता की तहरीर पर कोतवाली थाने में धारा 304 आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

इस के अलावा पब्लिक की ओर से 6 और मुकदमे दर्ज किए गए. मुकदमा दर्ज तो कर लिया गया, लेकिन इस काररवाई से उपजी चिंगारी अभी भी सुलग रही थी.

मुकदमा दर्ज होने के बावजूद आक्रोशित जनता एसपी लिपि सिंह को गिरफ्तार करने की मांग पर अड़ी हुई थी. जिस का खतरनाक नतीजा 29 अक्तूबर को वीभत्स तरीके से सामने आया, जिस के बारे में किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था.  पुलिस काररवाई से असंतुष्ट जनता ने पूरबसराय थाने को आग के हवाले कर दिया. साथ ही एसपी कार्यालय में काम भी अवरुद्ध कर दिया.

जब मामले की जानकारी डीआईजी मनु महाराज को मिली तो वह भारी फोर्स सहित मुंगेर जा पहुंचे और कानूनव्यवस्था अपने हाथों में ले कर दीनदयाल उपाध्याय चौक से बाटला चौक तक पैदल फ्लैग मार्च किया.

फ्लैग मार्च के दौरान नागरिकों से अपील की गई कि कानून अपने हाथों में न लें, पुलिस को अपने तरीके से काम करने दें, मृतक के साथ न्याय होगा, कानून पर विश्वास रखें.  मनु महाराज की अपील का नागरिकों पर असर पड़ा और वे अपनेअपने घरों को लौट गए. इस पर पुलिस की ओर से उपद्रवियों पर 9 मुकदमे दर्ज किए गए.  शहर का माहौल खराब था. घटना के लिए एसपी लिपि सिंह को दोषी ठहराया जा रहा था. यह मामला यहीं नहीं रुका, मगध के डीआईजी मनु महाराज से होते हुए बात चुनाव आयोग तक पहुंच गई थी.

चुनाव आयोग ने इस पर कड़ा एक्शन लेते हुए जिलाधिकारी राजेश मीणा और एसपी लिपि सिंह को तत्काल प्रभाव से पद से हटा कर वेटिंग लिस्ट में डाल दिया. इन दोनों पदों पर नई तैनाती कर दी गई.

नई जिलाधिकारी रचना पाटिल बनी तो मानवजीत सिंह ढिल्लो को एसपी की कमान मिली. उधर मगध डिवीजन के कमिश्नर सुशील कुमार को डीआईजी मनु महाराज ने घटना की जांच कर एक हफ्ते में रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया.

काररवाई चल ही रही थी कि पुलिस की पिटाई से घायल बड़ी दुर्गा महारानी के कार्यकर्ता शादीपुर निवासी कालू यादव उर्फ दयानंद कुमार ने मुंगेर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी न्यायालय में परिवाद दायर किया.  दायर वाद में कुल 7 आरोपी बनाए गए. आरोपियों के नाम थे लिपि सिंह (एसपी), खगेशचंद्र झा (सीओ), कृष्ण कुमार और धर्मेंद्र कुमार (एसपी के अंगरक्षक), संतोष कुमार सिंह (थानाप्रभारी कोतवाली), शैलेष कुमार (थानाप्रभारी कासिम बाजार) और ब्रजेश कुमार (थानाप्रभारी मुफस्सिल).  एसपी लिपि सिंह एक बार फिर चर्चाओं में आ गई थीं.

जलियावाला बाग कांड को याद कर के लोगों ने उन्हें जनरल डायर की उपाधि दी. हालांकि एसपी लिपि सिंह ने खुद पर लगाए गए आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा, ‘‘अनुराग की मौत पुलिस की गोली से नहीं हुई थी, बल्कि जुलूस में शामिल उपद्रवियों की ओर से की गई फायरिंग से हुई थी.

जांचपड़ताल में घटनास्थल से 3 देशी कट्टे और 12 खोखे मिले थे. पुलिस जांच चल रही है.’’  इस घटना में जांच का क्या नतीजा सामने क्या आया, कहानी यहीं ब्रेक कर के आइए जानते हैं लिपि सिंह के बारे में.  लेडी सिंघम कही जाने वाली आइपीएस लिपि सिंह मूलरूप से बिहार के नालंदा जिले के मुस्तफापुर गांव की रहने वाली हैं. इसी गांव के रहने वाले रामचंद्र प्रसाद सिंह (आर.सी.पी. सिंह) और गिरिजा सिंह की बेटी हैं लिपि सिंह.  आर.सी.पी. सिंह की 2 बेटियां हैं, जिन में लिपि सिंह बड़ी हैं और उस से छोटी दिल्ली में रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है.

आर.सी.पी. सिंह खुद आईएएस अधिकारी थे. उन का राजनीति में आना महज इत्तफाक था. दरअसल, उन्होंने सर्विस के दौरान यूपी काडर में लंबे समय तक काम किया. नीतीश कुमार जब केंद्र में मंत्री बने तो आर.सी.पी. सिंह दिल्ली में उन के प्राइवेट सेक्रेट्री थे. इस दौरान दोनों ने लंबे समय तक साथ काम किया.

साल 2005 में जब नीतीश कुमार पहली बार बिहार में मुख्यमंत्री बने, तब आर.सी.पी. सिंह मुख्य सचिव बन कर आए. कहा जाता है कि आर.सी.पी. सिंह ने नीतीश कुमार के कहने पर नौकरी छोड़ दी और जेडीयू पार्टी जौइन कर ली थी. नीतीश कुमार ने बाद में उन्हें राज्यसभा का सांसद बनाया और फिलहाल वह पार्टी में नंबर 2 की हैसियत रखते हैं.

आर.सी.पी. सिंह का परिवार शिक्षा का महत्त्व जानता था. खुद वह एक काबिल आईएएस अफसर थे और चाहते थे कि उन की बेटियां भी उन्हीं के नक्शेकदम पर चलें. बेटियों की शिक्षा पर उन्होंने पानी की तरह पैसा बहा कर उन्हें काबिल बनाया.  लिपि सिंह चाहती थी कि वह भी अपने पिता की ही तरह आईएएस अधिकारी बने. भविष्य संवारने के लिए उन्होंने दिल्ली का रुख किया. वहां हौस्टल में रह कर आगे की पढ़ाई जारी रखी और कंपटीशन की तैयारी में जुट गईं. उन्होंने 2015 में यूपीएससी की परीक्षा दी.

परीक्षा में लिपि का 114वां रैंक आया और 2016 में वह आईपीएस अफसर बनीं.  हालांकि इस से पहले भी लिपि का चयन इंडियन औडिट अकाउंट सर्विस में हुआ था. तब उन्होंने वाणिज्य सेवा में सफलता हासिल की थी और देहरादून में प्रशिक्षण के दौरान अवकाश ले कर दोबारा यूपीएससी की परीक्षा देनी चाही ताकि आईएएस या आईपीएस बन सकें, लेकिन लिपि को एकेडमी से छुट्टी नहीं मिली तो पक्के इरादों वाली लिपि ने इंडियन औडिट एकाउंट से इस्तीफा दे दिया और कंपटीशन की तैयारी में जुट गईं. फलस्वरूप उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली.  इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की भी शिक्षा ली थी.

सपनों को पूरा करने में पिता आर.सी.पी. सिंह का काफी योगदान रहा. लिपि को बेहतर भविष्य देने वाले उन के पिता गुरु भी थे. गुरुस्वरूप पिता ने बेटी को एक ही शिक्षा दी थी कि अपनी मंजिल पाने के लिए लक्ष्य को मन की आंखों से साधो. मंजिल खुदबखुद मिल जाएगी.   पिता का दिया गुरुमंत्र लिपि हमेशा याद रखती थी. लिपि सिंह संघर्षशील और कर्मठी युवती थी.

ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उन की पहली पोस्टिंग इन के गृह जनपद नालंदा में हुई थी. यह नालंदा जिले की पहली महिला आईपीएस अधिकारी बनी थीं. ट्रेनिंग में अच्छा काम करने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इन्हें बिहार कैडर अलाट किया था. कहा जाता है यह सब सांसद पिता आर.सी.पी. सिंह की बदौलत हुआ था.

आईपीएस लिपि सिंह ने पुलिस फोर्स जौइन करने के बाद कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. कानून के हिसाब से पुलिस महकमे, बालू माफिया और अपराधियों के खिलाफ उन का डंडा लगातार चलता रहा है. महज कुछ ही साल की सर्विस में इस लेडी अफसर ने ऐसा काम किया कि पुलिसकर्मी, बाहुबली से ले कर अपराधी तक खौफ खाने लगे.

जिस जिले में लिपि की तैनाती होती थी, वहां वह अपने विभाग के सिस्टम की गंदगी अपने तरीके से साफ करने में कोई कोताही नहीं बरतती थीं. नालंदा से लिपि सिंह का पहली बार स्थानांतरण पटना के बाढ़ सर्किल में हुआ.

लिपि सिंह बाढ़ इलाके की एडिशनल एसपी थीं. जिस क्षेत्र में इन का स्थानांतरण हुआ था, वहां बाहुबली विधायक अनंत सिंह का कानून चलता था.   लिपि का खौफ इतना था कि कोई इन के खिलाफ अपना मुंह तक नहीं खोलता था. इतना दबदबा कि लोग उन से डरते थे. उन के हुक्म के बिना पत्ता नहीं हिलता था.  एक दौर था जब अनंत सिंह नीतीश कुमार की सरकार में छोटे सरकार के नाम से जाने जाते थे. ऐसी जगह पर लिपि सिंह का स्थानांतरण होना दांतों के बीच जीभ के होने की तरह था.

आखिरकार जिस बात का डर था, हुआ वही. लिपि सिंह का कार्यकाल बाहुबली अनंत सिंह से टकराहट के साथ शुरू हुआ. दरअसल, 2019 में हुए आम चुनाव के दौरान अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी ने चुनाव आयोग में लिपि सिंह की शिकायत कर दी थी.  आरोप था कि लिपि सिंह अनंत सिंह के करीबियों को जानबूझ कर परेशान कर रही थीं.

इस के बाद चुनाव आयोग के आदेश पर लिपि सिंह का ट्रांसफर एंटी टेरेरिज्म स्क्वायड (एटीएस) में कर दिया गया. लेकिन चुनाव के बाद इन्हें एक बार फिर बाढ़ इलाके का सर्किल दे कर उसी पद पर यानी एडिशनल एसपी नियुक्त कर दिया गया.

लिपि सिंह को दोबारा उसी पद पर देख अनंत सिंह का लोहे का मजबूत किला हिल गया. इस के बाद लिपि सिंह ने लोहा लिया बाहुबली कहे जाने वाले विधायक अनंत सिंह से. खुद को बब्बर शेर समझने वाले अनंत सिंह लिपि सिंह के खौफ से डर कर घर छोड़ कर फरार होने पर मजबूर हो गए.

दरअसल, लिपि सिंह को मुखबिर के जरिए सूचना मिली थी कि बाहुबली विधायक अनंत सिंह ने अपने एक दुश्मन को मौत के घाट उतारने के लिए अपने गांव वाले घर नदवां में एके-47 राइफल, बड़ी मात्रा में कारतूस और देशी बम छिपा रखे हैं.   लिपि सिंह ने अनंत सिंह के पैतृक गांव नदवां में उन के घर पर छापेमारी की.

इस छापेमारी के दौरान एक एके-47 राइफल, 22 जिंदा कारतूस और 2 देशी बम बरामद हुए.  उस के बाद लिपि सिंह ने अनंत सिंह के खिलाफ यूएपीए यानी अनलाफुल एक्टीविटीज प्रिवेंशन ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद अनंत सिंह को गिरफ्तार किया जाना था. पुलिस उन की गिरफ्तारी के लिए पटना स्थित उन के सरकारी आवास पर गई, लेकिन अनंत सिंह फरार हो गए. उन पर काररवाई करने के लिए उन के दाहिने हाथ कहे जाने वाले लल्लू मुखिया के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया. पर पुलिस जब उसे गिरफ्तार करने पहुंची, तो वह भी गायब हो गया. फिर लिपि सिंह कोर्ट गईं और वहां से उन्होंने लल्लू मुखिया की संपत्ति कुर्क करने का आदेश ले लिया.

इस के लिए काररवाई भी शुरू कर दी गई. चूहेबिल्ली के इस खेल में लिपि सिंह ने अनंत सिंह को जेल भेज कर अपना लोहा मनवा लिया. उन्होंने दिखा दिया कि औरत कमजोर नहीं होती. जब वह कानूनी जामा पहने हो तो और भी नहीं. बिहार में आईपीएस लिपि सिंह अपने कारनामों से सुर्खियों में छाई रहने लगीं.

बहरहाल, लौह इरादों वाली अफसर लिपि सिंह ने चट्टान जैसे भारीभरकम अनंत सिंह को धूल चटा दी थी. अत्याधुनिक और खतरनाक असलहा एके-47, जिंदा कारतूस और बम बरामदगी के जुर्म में अब तक वह जेल में हैं.

इस मामले में अदालत में गवाही चल रही है. लिपि सिंह ने पहली बार अदालत में हाजिर हो कर अपना बयान दिया था.  इस मामले में आगे क्या होगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन मुंगेर गोलीकांड में सीआईएसएफ की ओर से की गई जांच में पुलिस की तरफ से 13 राउंड 5.56 एमएम इंसास राइफल से गोली चलाने का उल्लेख किया गया था और यह रिपोर्ट ईमेल के जरिए डीआईजी को भेज दी गई थी.

इस पूरे प्रकरण के बाद तत्काल आईपीएस लिपि सिंह और डीएम राजेश मीणा को पद से हटा कर प्रतीक्षा सूची में डाल दिया गया था. फिलहाल लिपि सिंह को सहरसा जिले की एसपी बना दिया गया है.

अपना ही तमाशा बनाने वाली एक लड़की : भाग 4

यह कह कर ऋषिराज वहां से चला गया. उस के जाने के बाद उर्वशी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया था. उर्वशी को एमएनआईटी छोड़ने के बाद ऋषिराज अपने फ्लैट पर पहुंचा और सामान समेट कर कमरे को खाली कर के फरार हो गया.

शुरुआती पूछताछ में उर्वशी ऋषिराज के बारे में कोई जानकारी होने से इनकार करती रही, लेकिन जब मोबाइल लोकेशन के आधार पर उसे पकड़ कर दोनों का आमनासामना कराया गया तो उर्वशी ने सारा सच उगल दिया.

पूछताछ में पता चला कि दोनों ब्लैकमेलिंग करने के लिए पहले युवकों को ढूंढते थे और फिर पुलिस में मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे कर उन से रकम ऐंठते थे. इस मामले में उर्वशी ने रिपोर्ट दर्ज कराते समय संदीप और ब्रजेश का नाम लिया था.

संदीप ने उर्वशी से उस की सहमति से शारीरिक संबंध बनाए थे. लेकिन संदीप से उर्वशी को कुछ नहीं मिला तो उस ने पुलिस के सामने संदीप का नाम ले लिया. संदीप खुद को बैंक मैनेजर का लड़का बताता था, इसलिए उर्वशी को उस से मोटी रकम मिलने की उम्मीद थी.

संदीप लांबा को जब इस षडयंत्र का पता चला तो उस ने जवाहर सर्किल थाने में खुद के साथ ब्लैकमेलिंग व आपराधिक षडयंत्र की लिखित रिपोर्ट दी. जांच में यह भी सामने आया कि उर्वशी ब्रजेश से भी पहले से ही अच्छी तरह परिचित थी. उन की फोन पर बातें होती रहती थीं. ऋषिराज ने ही ब्रजेश को उर्वशी से मिलवाया था. उर्वशी ब्रजेश को फोन कर के बुलाती थी, लेकिन वह उन के झांसे में नहीं आया.

पुलिस का कहना था कि ऋषिराज मीणा ने उर्वशी के साथ मिल कर लोगों को दुष्कर्म के केस में फंसाने की धमकी दे कर उन्हें ब्लैकमेल कर के मोटी रकम ऐंठने की योजना बनाई थी. ऋषिराज संदीप और ब्रजेश से करीब 5 लाख रुपए में सौदा करना चाहता था. इन पैसों से वह अपना कोई व्यापार करना चाहता था.

पुलिस ने षडयंत्र रच कर गैंगरेप की मनगढं़त कहानी बना कर झूठा मुकदमा दर्ज कराने, अवैध व फरजी आईडी से अलगअलग सिम व मोबाइल रखने और ब्लैकमेलिंग कर के धन ऐंठने के आरोप में उर्वशी और ऋषिराज मीणा को 13 जनवरी को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने इन के कब्जे से 6 मोबाइल फोन और 15 सिम बरामद किए. ऋषिराज मीणा सवाई माधोपुर जिले के वजीरपुर थाना इलाके के बढोद गांव के रहने वाले रामफल मीणा का बेटा था. उस के खिलाफ चोरी व गबन के 2 मामले पहले से दर्ज हैं.

पुलिस जांच में सामने आया है कि उर्वशी के जयपुर आने के बाद से ऋषिराज उस के साथ रिलेशनशिप में रह रहा था. उस ने लोगों को फंसाने के लिए घटना से 20 दिनों पहले ही प्रेमनगर में 8 हजार रुपए महीने पर किराए का फ्लैट लिया था. वह जल्दी ही उर्वशी से शादी करना चाहता था और उर्वशी के माध्यम से लोगों को दुष्कर्म के केसों में फंसा कर ब्लैकमेल करने के बाद मोटी रकम ऐंठ कर पैसे वाला बनना चाहता था.

इस के लिए उस ने उर्वशी का ब्रेनवाश भी कर दिया था. उर्वशी भी सहयोग करने के लिए तैयार हो गई थी. जांचपड़ताल में यह भी सामने आया है कि ऋषिराज और उर्वशी मिल कर आगरा और मैनपुरी में ब्लैकमेलिंग की 5 वारदात कर चुके थे. उर्वशी जब काशीपुर छोड़ कर आगरा आ गई थी तो ऋषिराज उस से मिलने आगरा जाया करता था.

पुलिस ने 14 जनवरी को ऋषिराज व उर्वशी को मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर के एक दिन के रिमांड पर लिया. पूछताछ में पता चला कि उर्वशी और उस के पिता के 4 बैंक खातों में करीब 5 लाख रुपए की रकम जमा है. पुलिस को शक है कि यह राशि ब्लैकमेलिंग की है.

उर्वशी ने इस रकम के बारे में पुलिस को बताया कि उस के पिता ने गांव में जमीन बेची थी, जबकि मैनपुरी से पुलिस को पता चला कि उर्वशी के पिता ने अभी तक कोई जमीन नहीं बेची है. उर्वशी के परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि बैंक खातों में 5 लाख रुपए जमा कर सके. इसलिए पुलिस इस रकम के बारे में भी जांच कर रही है.

पुलिस ने रिमांड अवधि पूरी होने पर 15 जनवरी को दोनों आरोपियों को फिर मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया. मजिस्ट्रैट ने ऋषिराज व उर्वशी को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया है. पुलिस उर्वशी की ओर से सदर थाने में दर्ज कराए गए मामले और जवाहर सर्किल थाने में संदीप लांबा की ओर से दर्ज कराए गए मामले की जांचपड़ताल कर रही है.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, उर्वशी परिवर्तित नाम है.

संत आसाराम : जिस ने आस्था को सब से बड़ी चोट पहुंचाई

17 अप्रैल, 1941 को बंटवारे से पहले के भारत के नवाबशाह जिले के बेराणी गांव, जो अब पाकिस्तान में है, वहां आसूमल सिरूमलानी का जन्म हुआ था. उस की मां का नाम महंगीबा एवं पिता का नाम थाऊमल सिरूमलानी था.

1947 में भारतपाक विभाजन के समय वह और उस के परिवार के सभी लोग भारत के गुजरात राज्य के अहमदाबाद में बस गए. धनवैभव सब कुछ छूट जाने के कारण परिवार आर्थिक संकट में फंस गया.

अहमदाबाद आने के बाद आजीविका के लिए थाऊमल ने शक्कर बेचने का धंधा शुरू किया. पिता के निधन के बाद, अपनी मां से ध्यान और आध्यात्मिकता की शिक्षा प्राप्त कर आसूमल ने घर छोड़ दिया और देश भ्रमण पर निकल गया. भ्रमण करतेकरते वह स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज के आश्रम नैनीताल पहुंच गए. नैनीताल में गुरु से दीक्षा लेने के बाद गुरु ने आसूमल को नया नाम दिया आसाराम.

इस के बाद आसाराम घूमघूम कर आध्यात्मिक प्रवचन के साथसाथ स्वयं भी गुरुदीक्षा देने लगा. उस के सत्संग में श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंचने लगे. आसाराम बापू पहली बार अगस्त, 2013 में कानून के शिकंजे में फंसा, जब उस के ऊपर जोधपुर में उस के ही आश्रम में 16 साल की एक लड़की के साथ अप्राकृतिक दुराचार के आरोप लगे.

लड़की के पिता ने दिल्ली जा कर पुलिस में इस कांड की रिपोर्ट दर्ज कराई. बाद में लड़की का बयान दर्ज कर सारा मामला राजस्थान पुलिस को ट्रांसफर कर दिया.

आसाराम को पूछताछ के लिए 31 अगस्त 2013 तक का समय देते हुए सम्मन जारी किया गया. इस के बावजूद जब वह हाजिर नहीं हुआ तो दिल्ली पुलिस ने उस के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 342 (गलत तरीके से बंधक बनाना), 376 (बलात्कार), 506 (आपराधिक हथकंडे) के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करने हेतु जोधपुर की अदालत में सारा मामला भेज दिया.

फिर भी आसाराम गिरफ्तारी से बचने के उपाय करता रहा. पहली सितंबर 2013 को राजस्थान पुलिस ने आसाराम को गिरफ्तार कर लिया . इस मामले में 25 अप्रैल, 2018 को आसाराम को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

साबरमती नदी के किनारे एक झोपड़ी से शुरुआत करने से ले कर देश और दुनियाभर में 400 से अधिक आश्रम बनाने वाले आसाराम ने 4 दशक में 10,000 करोड़ रुपए का साम्राज्य खड़ा कर लिया था. आसाराम बापू को अब तक दुष्कर्म के 2 मामलों में अदालत से सजा मिल चुकी है.

अध्यात्म यूनिवर्सिटी के नाम पर अय्याशी का घिनौना सच 

जिन दिनों देश में धर्म और अध्यात्म के नाम पर डेरा सच्चा सौदा प्रमुख बाबा राम रहीम के पाखंड और बड़ी संख्या  में महिलाओं के यौनशोषण की गूंज सुनी जा रही थी. उसी वक्त देश की राजधानी दिल्ली से एक ऐसे बाबा के रंगीन किस्से सामने आ रहे थे, जो महिलाओं को अध्यात्म दीक्षा के नाम पर उन का यौन शोषण करता था.

वीरेंद्र देव दीक्षित नाम के इस बाबा के आश्रमों से 190 नाबालिग व बालिग लड़कियों और महिलाओं को मुक्त  कराया गया, जिन्हें अध्यात्म के नाम पर यौनशोषण का शिकार बनाया गया था.

दिल्ली के रोहिणी, नांगलोई, द्वारका जैसे इलाकों में बड़े भूभाग पर आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के नाम से बने इन आश्रमों के अलावा देश के करीब 9 राज्यों में इस रंगीनमिजाज बाबा के 80 आश्रम थे.

वीरेंद्र देव दीक्षित उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जिले के गांव चौधरियान का रहने वाला है. 1975 में वीरेंद्र देव का अपने पिता से किसी बात को ले कर विवाद हो गया था.

इस से नाराज हो कर वह घर से निकल गया. इस के बाद उस ने गुजरात यूनिवर्सिटी में संस्कृत में शोध शुरू किया. बाद में वह राजस्थान के माउंट आबू में प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय से जुड़ गया, लेकिन जल्दी  ही उसे वहां से भगा दिया गया.

1984 में पिता की मृत्यु के बाद वीरेंद्र देव घर लौटा तो अपने पैतृक मकान में कुछ स्थानीय लोगों के सहयोग से आध्यात्मिक कार्यक्रम शुरू किया. कुछ समय बाद ही उस ने आश्रम का निर्माण कराया.

यह आश्रम पहली बार 1998 में तब चर्चा में आया जब 3 अलगअलग राज्यों के लोगों की शिकायतों पर पुलिस ने 3 लड़कियों को बरामद कर उसे व उस के कई सेवादारों को गिरफ्तार किया. इस के बाद उस ने खुद को बाबा के तौर पर स्थापित किया और देशभर में 80 आश्रम खोले.

12 नवंबर को यह मामला तब सामने आया, जब राजस्थान के झुंझनूं व दिल्ली के 2 परिवारों ने रोहिणी के आध्यात्मिक विश्वविद्यालय पहुंच कर हंगामा करते हुए आरोप लगाया कि उन की बेटी वहां जबरन कैद है और उन के साथ सैक्सुअल हिंसा होती है.

मामला बढ़ा तो फाउंडेशन फौर सोशल एम्पावरमेंट नाम के एनजीओ ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इस आश्रम के क्रियाकलापों की जांच की मांग की. हाईकोर्ट के आदेश पर आश्रम की छानबीन के लिए बनी कमेटी में दिल्ली पुलिस के अलावा दिल्ली महिला आयोग और शिकायकर्ता पक्ष तथा कुछ अन्य एजेंसियों के सदस्यों को भी शामिल किया गया.

21 दिसंबर से छापेमारी शुरू हुई तो आध्यात्मिक विश्वविद्यालय की सच्चाई सामने आई. दिल्ली के 8 आश्रमों से शुरू हुई जांच दूसरे राज्यों तक पहुंच गई. हर जगह एक ही शिकायत मिली कि आश्रमों में लड़कियों का यौन शोषण होता था. बाबा खुद उन्हें अपनी हवस का शिकार बनाता था.

हाईकोर्ट ने अपराध का दायरा बढ़ता देख इस मामले की छानबीन और वीरेंद्र देव को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करने का जिम्मा सीबीआई को सौंप दिया.

पैसे का गुमान : सस्ती दोस्ती की मिली सजा – भाग 3

4 साल पहले मुरादाबाद के रहने वाले नंदकिशोर से कुलदीप की मुलाकात एक वैवाहिक आयोजन के दौरान हुई थी. उस के बाद से दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे.

वैसे नंदकिशोर उर्फ नंदू चाऊ की बस्ती लाइनपार का रहने वाला था. उस के पिता मुरादाबाद रेलवे में टैक्नीशियन के पद पर थे, जो रिटायर हो चुके थे. नंदकिशोर खुद एमटेक की पढ़ाई पूरी कर एक दवा कंपनी में मैडिकल रिप्रजेंटेटिव का काम करता था. उस ने एक दवा कंपनी की फ्रैंचाइजी भी ले रखी थी और दवाओं का कारोबार शुरू किया था.

इस काम को शुरू करने के लिए उस ने 20 लाख का गोल्ड लोन ले रखा था. संयोग से लौकडाउन में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा था, जिस कारण वह लोन की किस्त नहीं जमा कर पाया था.

इस वजह से वह काफी परेशान चल रहा था. वह अपनी सारी तकलीफें कुलदीप को बताया करता था.

उस ने अपने कर्ज और किस्त नहीं जमा करने की मुसीबत भी बताई थी. उसे पता था कि कुलदीप का कारोबार अच्छी तरह से चल रहा है. इसे देखते हुए उस ने मदद के लिए उस के सामने हाथ फैला दिया.

उस से 65 हजार रुपए उधार मांगे और उसे विश्वास दिलाया कि पैसे जल्द वापस कर देगा. ज्यादा से ज्यादा 2 महीने का समय लगेगा. कुलदीप ने पैसे देने से इनकार तो नहीं किया, मगर वह कई दिनों तक उसे टालता रहा.

नंदकिशोर के बारबार कहने पर कुलदीप बोला, ‘‘यार तू तो पहले से ही कर्जदार है तो मेरा 65 हजार कैसे वापस कर पाएगा? और फिर तेरी इतनी औकात अभी नहीं है.’’

यह सुन कर पहले से ही टूट चुका नंदकिशोर बहुत मायूस हो गया. उस ने केवल इतना कहा कि यदि तुम्हें नहीं देना था तो पहले दिन ही मना कर देता.

यहां तक तो ठीक था. उन की दोस्ती पर जरा भी फर्क नहीं पड़ा. लेकिन कुलदीप बारबार उस के जले पर नमक छिड़कता रहा. एक दिन तो कुलदीप ने हद ही कर दी. एक पार्टी में नंदकिशोर की कई लोगों के सामने बेइज्जती कर दी.

पार्टी छोटेबड़े कारोबारियों की थी. इस में शामिल लोगों की अपनीअपनी साख थी. कौन कितनी हैसियत वाला है और कौन किस कदर भीतर से खोखला, इसे कोई नहीं जानता था. कहने का मतलब यह था कि सभी एकदूसरे की नजर में अच्छी हैसियत वाले थे.

पार्टी के दरम्यान कोरोना काल में कई तरह के बिजनैस में नुकसान होने की बात छिड़ी, तब कुलदीप ने नंदकिशोर पर ही निशाना साध दिया.

पहले तो उस ने सब के सामने कह दिया कि वह लाखों का कर्जदार बना हुआ है. यह बात कुछ लोगों को ही मालूम थी. इस भारी बेइज्जती से नंदकिशोर तिलमिला गया. उस वक्त तो खून का घूंट पी कर रह गया.

ऐसा कुलदीप ने उस के साथ कई बार किया. नंदकिशोर ने अपना गुनाह कुबूल करते हुए पुलिस को बताया कि कुलदीप पैसे के घमंड में चूर था. बड़ेबड़े दावे करना, बेइज्ज्ती करना उस के लिए मनोरंजन का साधन बन गया था.

उस ने बताया कि इस से वह काफी तंग आ चुका था. तभी उस ने निर्णय लिया वह कुलदीप को सबक जरूर सिखाएगा. उस ने कसम खाई और योजना बना कर उस में अपने बुआ के लड़के कर्मवीर उर्फ भोलू और रणबीर उर्फ नन्हे को शामिल  कर लिया. कर्मवीर और रणबीर दोनों सगे भाई थे.

योजना के अनुसार, कुलदीप की हत्या से कुछ दिन पहले नन्हे को बताया कि कुलदीप ने हाल में ही अपनी पोलो कार बेची है. उस से मिले 4 लाख रुपए उस के पास हैं. पैसा हड़पने में मदद करने पर उसे भी हिस्सेदार बनाया जाएगा. नन्हे इस के लिए तैयार हो गया.

नंदकिशोर ने कुलदीप को अच्छी हालत में मारुति स्विफ्ट कार दिलवाने का सपना दिखाया. उसी कार को दिखाने के बहाने से वह 4 जून, 2021 को अपनी बाइक से कुलदीप को ले कर कांठ में डेंटल हौस्पिटल के सामने पहुंच गया.

वहां पहले से ही नन्हे और भोलू एंबुलेंस ले कर उस का इंतजार कर रहे थे. एंबुलेंस भोलू चलाता था. वहां उस ने कहा कि आज ही बिजनौर जा कर पेमेंट करनी होगी. कुलदीप उस की बातों में आ गया. उस के साथ एंबुलेंस में बैठ गया. रास्ते में नंदकिशोर ने शराब की एक बोतल खरीदी. आगे चल कर स्यौहारा कस्बे में गाड़ी रोक कर तीनों ने शराब पी.

कुलदीप जब शराब के नशे में धुत हो गया, तब नंदकिशोर ने उस के साथ मारपीट शुरू कर दी. उस से बोला, ‘‘अगर वह अपनी जिंदगी बचाना चाहता है तो 4 लाख रुपए मंगवा ले.’’

मरता क्या न करता, कुलदीप ने अपनी पत्नी सुनीता को फोन कर पैसे दुकान पर मंगवा लिए. इधर नंदकिशोर ने कर्मवीर उर्फ भोलू को भेज कर दुकान से वह पैसे मंगवा लिए.

पैसा मिल जाने पर भी नंदकिशोर ने उसे नहीं छोड़ा. एंबुलेंस में औक्सीजन सिलेंडर का मीटर खोलने वाले औजार (स्पैनर) से उस ने कुलदीप के सिर पर कई वार कर दिए.

नशे की हालत में होने के कारण कुलदीप खुद को संभाल नहीं पाया. कुछ समय में ही उस की वहीं मौत हो गई.

बाद में कुलदीप की लाश को एंबुलेंस में डाल कर धामपुर, नगीना, नजीबाबाद और भी कई जगह ले कर घूमते रहे. अगले दिन 5 जून को रात के 8 बजे उन्होंने लाश को गंगाधरपुर के पर सड़क पर डाल कर दोनों मुरादाबाद वापस लौट आए.

मुरादाबाद पुलिस ने नंदकिशोर और उस के साथी से साढ़े 3 लाख रुपए बरामद कर लिए. पूछताछ में नंदकिशोर ने इस योजना में शामिल 2 और लोगों के नाम बताए. उस के बताए सुराग से एक पकड़ा गया, लेकिन रणबीर उर्फ नन्हे 50 हजार रुपए ले कर फरार हो चुका था.

बताते हैं कि कुलदीप के गले से हनुमान का 3 तोले का लौकेट भी गायब था. मुरादाबाद पुलिस ने 7 जून, 2021 को प्रैसवार्ता कर पूरी घटना की जानकारी दी.

 

सोनू पंजाबन : गोरी चमड़ी के कारोबार की बड़ी खिलाड़ी – भाग 3

सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन 2011 में प्रीति नाम की एक लड़की को खरीदने के आरोप में उसे 24 साल तक जेल की सलाखों के पीछे रहने की सजा मिलेगी, यह उस ने कभी नहीं सोचा था.

दरअसल, उन दिनों प्रीति 13 साल की थी. जब वह कोंडली में स्थित दिल्ली सरकार के स्कूल में 7वीं कक्षा में पढ़ती थी. गरीब परिवार में जन्मी प्रीति के पिता एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे.

अभावों में पलीबढ़ी लेकिन सूरत व शरीर से बेहद खूबसूरत प्रीति की दोस्ती स्कूल आतेजाते संदीप बेलवाल से हो गई, जो उस से 4-5 साल बड़ा था.

संदीप कभी उसे कार तो कभी मोटरसाइकिल से घुमाने लगा. संदीप से प्रभावित होने के बाद प्रीति उस के प्यार में कुछ ऐसी दीवानी हो गई कि वह उस पर आंख बंद कर के भरोसा करने लगी.

एक दिन इसी विश्वास में प्रीति संदीप के साथ उस के जन्मदिन की पार्टी मनाने नजफगढ़ में उस की किसी सीमा आंटी के पास चली गई. बस यही उस के जीवन की सब से बड़ी भूल थी.

संदीप ने उस दिन कोल्डड्रिंक में उसे कोई मदहोश करने वाली दवा पिला कर उस की इज्जत को तारतार कर दिया. इतना ही नहीं वह उसे सीमा आंटी के पास एक लाख रुपए में बेच कर चला गया. बाद में उसे पता चला कि सीमा आंटी देहव्यापार करने वाली औरत थी और संदीप उस के साथ जुड़ा था.

इस के बाद शुरू हुआ प्रीति की जिंदगी में हर रोज होने वाले यौनशोषण का ऐसा सिलसिला जो कई साल तक चला.  सीमा आंटी ने करीब एक साल तक जबरन प्रीति से जिस्मफरोशी का धंधा कराने के बाद उसे एक दिन साउथ दिल्ली में रहने वाली सोनू पंजाबन के सुपुर्द कर दिया.

सोनू ने सीमा को कितने नोट दिए ये तो नहीं पता, लेकिन सोनू पंजाबन ने 3 महीने तक प्रीति को अपने कई ग्राहकों के पास भेजा और उस की मोटी कीमत वसूली. लेकिन 3 महीने बाद वह उसे अपने साथ लखनऊ ले गई. यहां उस ने लाला नाम के एक कालगर्ल सरगना के हवाले कर दिया.

लाला ने 2 साल तक न जाने कितने लोगों से उस के जिस्म का सौदा किया. लाला ने इस के बाद प्रीति को दिल्ली में रहने वाली मधु आंटी को बेच दिया.

वहीं पर प्रीति की मुलाकात हरियाणा के रहने वाले सतपाल व राजपाल हुई दोनों रिश्ते में सगे भाई थे. लेकिन दोनों ही जिस्मफरोशी के धंधे के दलाल थे.

एक दिन राजपाल उसे मधु आंटी के चंगुल से मुक्त कराने का झांसा दे कर अपने साथ अपने गांव पानीपत ले गया, जहां 60 साल के राजपाल ने उस से जबरन शादी कर के अपनी बीवी के रूप में घर में रख लिया.

राजपाल पहले से शादीशुदा था. परिवार में 3 बेटियां और 2 बेटे थे. एक बेटे और 2 बेटियों की शादी हो चुकी थी. इस बीच प्रीति गर्भवती हो गई तो राजपाल ने शहर ले जा कर उस का जबरन गर्भपात करवा दिया. अपने गर्भपात के बाद प्रीति के मन में राजपाल के लिए भी खटास भर गई.

बस इसी के बाद एक दिन प्रीति राजपाल की गैरमौजूदगी में उस के घर से निकल भागी और पानीपत से दिल्ली जाने वाली बस में बैठ कर नजफगढ़ पहुंच गई. यह 28 अगस्त, 2014 की बात है जब नजफगढ़ पुलिस ने प्रीति को बदहाल हालत में बरामद किया और मदद करने के लिए उसे थाने ले आई.

वहीं पर प्रीति ने पुलिस को 3 साल में अपने साथ हुए उत्पीड़न की सारी कहानी सुनाई.

नजफगढ़ पुलिस ने प्रीति के बयान पर आईपीसी की धारा 363, 366, 342, 370, 370, 372, 373, 376, 34, 120बी और पोक्सो एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज कर लिया.

प्रीति के बयान मजिस्ट्रैट के सामने दर्ज कर पुलिस ने उसे वूमन शेल्टर होम भेज दिया, जहां उस की काउंसलिंग होने लगी. इधर प्रीति के बयान के आधार पर जब पुलिस पड़ताल शुरू हुई तो पता चला कि 2011 में पूर्वी दिल्ली के हर्ष विहार थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई गई थी.

सुराग लगातेलगाते पुलिस प्रीति के परिजनों तक पहुंच गई और बाद में उसे कोर्ट के आदेश से उस के मातापिता को सौंप दिया गया.

पिछले 4 सालों में प्रीति जिस्मफरोशी की दुनिया में रहने के कारण नशे की आदी हो चुकी थी. इसलिए परिवार के बीच आ कर बंदिशों में रहने के कारण जल्द ही उस का दम घुटने लगा. अगस्त, 2014 में ही एक दिन प्रीति अपने घर से किसी को बिना कुछ बताए फिर से गायब हो गई.

बेटी के दोबारा गायब होने से परिवार परेशान हो गया. प्रीति के पिता ने नजफगढ़ पुलिस से संपर्क कर जब प्रीति के फिर से गायब होने व उस के किडनैप होने की आशंका जताई.

इस के बाद नजफगढ़ पुलिस ने अपहरण का मामला दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी. लेकिन पुलिस की तमाम कोशिशों के बाद भी प्रीति का कोई सुराग नहीं मिला.

वक्त धीरेधीरे गुजरने लगा और प्रीति का रहस्यमय ढंग से गायब हो जाना एक मिस्ट्री बन गया. अगस्त 2017 में 3 साल बीत जाने के बाद तत्कालीन पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक ने इस मामले की जांच अपराध शाखा को सौंप दी.

जिस के बाद साइबर सेल के एसीपी संदीप लांबा की देखरेख में एक टीम बनाई गई. टीम में इंसपेक्टर उपेंद्र सिंह और लेडी सबइंसपेक्टर पंकज नेगी को शामिल किया गया.

इस टीम ने लंबी कवायद की और 23 नवंबर, 2017 को प्रीति को पानीपत के उस पार्लर से बरामद कर लिया, जहां वह नौकरी करती थी.

इस के बाद क्राइम ब्रांच ने एकएक कर उन लोगों को गिरफ्तार करने का सिलसिला शुरू किया जो प्रीति की जिंदगी को बरबाद करने के जिम्मेदार थे. पुलिस ने इस मामले में 2018 में सोनू पंजाबन के साथ संदीप बेदवाल को गिरफ्तार किया. उस के बाद राजपाल व सतपाल को गिरफ्तार किया.

बाद में लखनऊ से लाला नाम के दलाल की गिरफ्तारी की गई. इसी मामले में तेजी से सुनवाई करते हुए द्वारका कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए सोनू पंजाबन को 24 साल की सजा सुनाई.

देरसबेर सोनू पंजाबन अपनी सजा के खिलाफ अपील के बाद अदालत से जमानत ले कर सलाखों से बाहर आ ही जाएगी, लेकिन उस के बाद जिस्मफरोशी के कारोबार में उस की क्या भूमिका होगी, यह देखना होगा.द्य

—कथा पुलिस की जांच पर आधारित

लुधियाना के होटल में बिकता जिस्म

शहर में चल रहे जिस्मफरोशी के धंधे पर लगातार लुधियाना पुलिस शिकंजा कस रही है, लेकिन बारबार ऐसे मामले सामने आ ही जाते हैं. ऐसे ही एक मामले में एक मकान पर छापेमारी कर एक महिला को गिरफ्तार किया. वह ग्राहकों और लड़कियों को अपने घर पर ही बुलाती थी.

जबकि दूसरे मामले में 2 सितंबर, 2021 को पुलिस ने लुधियाना के बस स्टैंड के पास स्थित होटल पार्क ब्लू में रेड कर के वहां पर चल रहे देह व्यापार के अड्डे पर छापेमारी की. मौके पर पहुंची पुलिस पार्टी और सीआईए-2 टीम ने वहां पर ऐशपरस्ती कर रहे 6 युवक व 6 युवतियों को गिरफ्तार किया. मौका देख कर होटल का मालिक व मैनेजर पुलिस को गच्चा दे कर फरार हो गए.

घटना 2 सितंबर को शाम करीब पौने 8 बजे की है. थाना डिवीजन नंबर 5 व सीआईए-2 टीम बस स्टैंड के आस पास स्थित होटलों में रुटीन जांच करने पहुंची थी. उस दौरान पुलिस ने कई होटलों में जा कर चैकिंग की.

वहां रह रहे लोगों का रिकौर्ड चैक किया. इसी बीच पुलिस की टीम जब होटल पार्क ब्लू में पहुंची तो उस के अलगअलग कमरों में 6 जोड़े आपत्तिजनक स्थिति में पाए गए. जिन्हें साथ में आई महिला पुलिस ने हिरासत में ले लिया.

करीब एक साल पहले भी इसी होटल में पुलिस ने दबिश दे कर वहां रंगरलियां मना रहे कई जोड़ों को गिरफ्तार किया था. लुधियाना ही नहीं पंजाब के जालंधर व अन्य शहरों में भी देह व्यापार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं.

लुधियाना पुलिस ऐसे मामलों में काफी तेजी से काररवाई कर रही है लेकिन जालंधर पुलिस ऐसे मामलों में ढीली साबित हो रही है. जालंधर में कई होटलों, गेस्ट हाउसों व अन्य स्थानों पर ऐसे गलत धंधे चल रहे हैं, पर पुलिस मूकदर्शक बनी तमाशा देखती रहती है.

आटा-साटा कुप्रथा में पिसी सुमन

सहयोग: मनीष व्यास

सुमन 3 भाइयों के बीच अकेली बहन थी, इसलिए वह घर में सभी की लाडली थी. वह पढ़ाईलिखाई में होशियार थी लेकिन पिता की मृत्यु हो जाने के बाद वह ग्रैजुएशन से आगे नहीं पढ़ सकी.

अन्य लड़कियों की तरह सुमन ने भी रंगीन ख्वाब देखे थे. उस की चाहत थी कि उसे भी सपनों का राजकुमार मिलेगा, जो सुंदर और बांका होने के साथ पढ़ालिखा और उस का हर तरह से खयाल रखने वाला होगा.

जवान होने पर सुमन का रूपसौंदर्य निखर आया था. उस की मोहक मुसकान देख कर देखने वाला एकटक उसे ताकता रह जाता था. सुमन चौधरी जाट थी. इसलिए उस के रिश्तेदारों और उस की बिरादरी के कई लोग अपने घर की बहू बनाने को लालायित हो उठे.

रिश्तेदार सुमन के लिए अच्छेअच्छे रिश्ते लाने लगे. मगर सुमन के चाचा व भाइयों ने ये रिश्ते लौटा दिए और रिश्तेदारों से कहा, ‘‘सुमन का रिश्ता तो बचपन में ही तय हो चुका है. बात पक्की हो रखी है आटासाटा प्रथा के तहत.’’

तब रिश्तेदार शांत बैठ गए. सुमन जब 19 बरस की हो गई थी तो आज से 2 साल पहले उस की शादी तय कर दी गई. सुमन की शादी गांव भूणी जिला नागौर के नेमाराम चौधरी से तय कर दी. सुमन उस वक्त नहीं जानती थी कि उस का पति न केवल मामूली सा पढ़ालिखा है बल्कि उम्र में भी उस से दोगुना है और वह बकरियां चराने वाला व खेती करने वाला मजदूर है.

सुमन के चाचा और भाइयों ने सुमन के बदले 4 शादियों की सौदेबाजी की. वैसे भी राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में आज भी लड़की का रिश्ता उस के परिजन ही तय करते हैं. परिजन लड़की का रिश्ता जिस युवक से कर देते हैं, उसी से लड़की को शादी करनी पड़ती है. लड़की को भले ही वह लड़का पसंद न हो, मगर परिजनों द्वारा किए गए रिश्ते को लड़की को निभाना ही होता है.

सुमन के बदले हुईं 4 शादियां

सुमन भी ग्रामीण परिवेश की शर्मीली लड़की थी. उस ने सोचा था कि उस की पढ़ाई और उस की सुंदरता के अनुरूप हमउम्र युवक से शादी तय की होगी, मगर जब नेमाराम शादी करने हेमपुरा आया और दुलहन बना कर सुमन को अपने साथ भूणी गांव ले गया, तब सुमन को अपने पति की असलियत पता चली.

सुमन ससुराल चली तो गई लेकिन अपने भाग्य को कोसने लगी. मगर अब क्या हो सकता था. वह चुप लगा गई. सुमन की 2 ननदों की शादी गांव लिचाना जिला नागौर में सुमन के भाइयों के सालों से की गई.

इस शादी के बाद सुमन के 2 भाई उस की ननदों की 2 ननदों से शादी कर अपने घर हेमपुरा ले आए. सुमन को अब जा कर आटासाटा के खेल के बारे में पूरा पता लगा था.

सुमन को उस के पति नेमाराम ने एक दिन कहा, ‘‘तुझ से शादी करने के लिए मैं ने अपनी 2 बहनें तुम्हारे भाइयों के 2 सालों से ब्याही हैं. और मेरी बहनों की 2 ननदें तुम्हारे भाइयों से ब्याही हैं. यानी तेरे बदले 4 शादियों की सौदेबाजी हुई है. अब समझ गई न कि तेरी जैसी ग्रैजुएट और सुंदर लड़की की मुझ गंवार व उम्र में दोगुने से शादी किस कारण की गई. तेरे कारण 4 घर और बसे हैं.’’

सुन कर सुमन को सारा माजरा समझ में आ गया. उस के सगे भाइयों ने अपना घर बसाने के लिए उस का सौदा किया था. वह टूट गई. उसे रिश्ते बेमानी लगने लगे. उस के सगे भाइयों और चाचाताऊ ने अपने फायदे के लिए उसे एक ऐसे व्यक्ति के पल्लू से बांध दिया था, जो उस के किसी तरह काबिल नहीं था.

सुमन ने अपने आसपास अपने जाट समाज के अलावा अन्य कई जातियों में आटासाटा कुप्रथा का कुरूप चेहरा देखा था. उस ने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि वह भी इस प्रथा के तहत ऐसे व्यक्ति से ब्याह दी जाएगी जो उस के लायक नहीं होगा.

सुमन ने सोचा कि वह तलाक ले कर अपनी मरजी से शादी कर लेगी. मगर जब उसे पता चला कि उस की शादी से पहले ही नेमाराम के घर वालों ने यह भी शर्त रखी थी कि अगर शादी के बाद सुमन ने नेमाराम से तलाक लिया तो उस के बदले में की गई चारों शादियां टूट जाएंगी.

सुमन के तलाक लेने पर सुमन की ननदें और भाभियां भी तलाक ले लेंगी. यानी सुमन की शादी टूटने पर 4 शादियां और टूट जाएंगी. इस कारण सुमन ने तलाक लेने का खयाल अपने मन से निकाल दिया. वह अपनी सुख की खातिर 4 परिवार नहीं बिखरने देना चाहती थी.

सुमन अपने जीवन में सामंजस्य बिठाने की कोशिश करने लगी. इस के अलावा वह कुछ कर भी नहीं सकती थी. समय का पहिया अपनी गति से घूम रहा था. सुमन की शादी को सवा साल हो गया था.

उन्हीं दिनों नेमाराम ने सुमन से एक दिन कहा, ‘‘मैं इराक काम करने जा रहा हूं.’’

सुन कर सुमन बोली, ‘‘आप 3-4 साल बाद आओगे. मैं अकेली कैसे जी सकूंगी. आप इराक मत जाओ. हम यहीं पर कोई कामधंधा देख लेंगे.’’

‘‘तुम समझती क्यों नहीं, बड़ी मुश्किल से नंबर आया है. मैं किसी हाल में नहीं रुक सकता और तुम अकेली कहां हो, भरापूरा परिवार है तो सही.’’ नेमाराम ने कहा.

‘‘तुम्हें इराक में भी मजदूरी ही करनी है तो फिर यहीं रह कर करो न. तुम जितना कमाओगे, मैं उसी में खुश रहूंगी.’’ सुमन बोली.

‘‘सुमन, तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारा पति परदेश में कमाने जा रहा है. यह सब मैं अपने घरपरिवार के लिए ही तो कर रहा हूं.’’ नेमाराम ने समझाया.

सुमन ने खूब मिन्नतें कीं मगर नेमाराम नहीं माना और करीब 8 महीने पहले वह इराक चला गया. सुमन भरी दुनिया में तनहा और अकेली रह गई. वह टूट गई और कुछ दिन बाद ससुराल से मायके हेमपुरा आ गई.

सुमन मायके में रह रही थी. उस ने ससुराल का रास्ता भुला दिया था. उस का पति इराक जा बैठा था. वह शादीशुदा हो कर भी मायके में बैठी थी. उस की मायके में अब पहले जैसी इज्जत भी नहीं थी. उस की भाभियां उस से सीधे मुंह बात नहीं करती थीं. भाई भी उस से पल्ला झाड़ने लगे थे.

सुमन का छोटा भाई जरूर उस का लाडला था. दोनों भाईबहन अपना दुखसुख आपस में जरूर बांट लेते थे.

सुमन ने मन ही मन विचार किया कि वह शादीशुदा हो कर मायके में कितने दिन गुजारेगी. पति जाने कब इराक से लौटेगा. उस के जीने की इच्छा खत्म हो गई थी.

वह दुनियादारी को समझ गई थी. रिश्तेनाते सब मतलब के हैं. मतलब निकलने के बाद कोई उसे पूछ नहीं रहा था.

कुप्रथा ने झकझोर दिया सुमन को

इसी दौरान वह 28-29 जून, 2021 की रात को घर के पास वाले कुएं में कूद गई. सुमन के कुएं में कूदने पर घरपरिवार में हड़कंप मच गया. गांव वालों ने नावां थाने में सूचना दी और सुमन को कुएं से निकाला. वह उसे अस्पताल ले गए. लेकिन डाक्टर ने सुमन को मृत घोषित कर दिया.

सुमन के चाचा तब नावां थाने पहुंचे और थानाप्रभारी धर्मेश दायमा को तहरीर दे कर बताया कि पति के इराक जाने के बाद सुमन मायके आ कर रहने लगी. पिछले 4-5 दिनों से वह मानसिक रोगी और पागलों जैसी हरकतें कर रही थी. आज उस ने घर के पास बने कुएं में कूद कर आत्महत्या कर ली.

थानाप्रभारी धर्मेश दायमा रिपोर्ट दर्ज कर पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. गांव वालों से इस संबंध में बात करने के बाद वह अस्पताल पहुंचे और सुमन का पोस्टमार्टम करा कर शव परिजनों को सौंप दिया.

पुलिस इसे आत्महत्या मान कर जांच कर रही थी. वहीं परिजन सुमन को मानसिक रोगी व पागल बता कर आटासाटा के तहत हुई शादी की बात को दबाना चाहते थे.

मगर इसी दौरान सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल हो गई. वह सुमन का सुसाइड नोट था, जो उस ने आटासाटा कुप्रथा के खिलाफ लिखा था. आत्महत्या करने से पहले उस ने उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया था. उस ने उस में लिखा था—

मेरा नाम सुमन चौधरी है. मुझे पता है कि सुसाइड करना गलत है, पर सुसाइड करना चाहती हूं. मेरे मरने की वजह मेरा परिवार नहीं, पूरा समाज है, जिस ने आटासाटा नाम की कुप्रथा चला रखी है. इस में लड़कियों को जिंदा मौत मिलती है. लड़कियों ंको समाज के समझदार परिवार अपने लड़कों के बदले बेचते हैं.

समाज के लोगों की नजरों में तलाक लेना गलत है, परिवार के खिलाफ शादी करना गलत है तो फिर यह आटासाटा प्रथा भी गलत है. आज इस कुप्रथा के कारण हजारों लड़कियों की जिंदगी और परिवार बरबाद हो गए हैं.

इस कुप्रथा के कारण पढ़ीलिखी लड़कियों की जिंदगी खराब हो जाती है. इसी प्रथा के तहत 17 साल की लड़की की शादी 70 साल के बुजुर्ग से कर दी जाती है. केवल अपने स्वार्थ के कारण.

मैं चाहती हूं कि मेरी मौत के बाद यह बातें बनाने और मेरे परिवार वालों पर अंगुली उठाने के बजाय इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठाएं. इस प्रथा को बंद करने के लिए शुरुआत करनी होगी. मेरी हरेक भाइयों को अपनी बहन की राखी की सौगंध, अपनी बहन की जिंदगी खराब कर के अपना घर न बसाएं.

आज इस प्रथा के कारण समाज की सोच इतनी खराब हो गई है कि लड़की के पैदा होते ही तय कर लेते हैं कि इस के बदले किस की शादी करानी है.

सुसाइड नोट में सुमन ने लिखा कि आज समाज के लोगों से मेरी हाथ जोड़ कर विनती है इस प्रथा को बंद कर दें. मेरे मरने की वजह समाज है. सजा देनी है तो उन को दें.

और मेरी इच्छा है कि मेरी लाश को अग्नि मेरा छोटा भाई दे और कोई नहीं. मेरा पति भी नहीं. मेरे इन विचारों को सभी लोग अपने परिवार वालों में समझाएं व स्टेटस लगाएं.

सुमन ने अपने पापा के लिए आई लव यू लिखा और साथ ही कहा कि इस प्रथा के खिलाफ जानकारी स्कूलकालेज की पुस्तकों तथा अखबारों में दें, जिस से कुछ की जिंदगी बचेगी तो मैं सोचूंगी कि मेरी जिंदगी किसी के काम आ गई.

नावां थानाप्रभारी धर्मेश दायमा कथा लिखने तक सुमन सुसाइड मामले की जांच कर रहे थे. सुमन ने सुसाइड नोट में समाज को ही अपनी मौत का जिम्मेदार बताया है. उस ने व्यक्ति विशेष को मौत का जिम्मेदार नहीं बताया. इस कारण पुलिस भी इस मामले में कोई काररवाई कर पाएगी, यह लगता नहीं है.

जिंदा मौत है आटासाटा कुप्रथा

आटासाटा एक सामाजिक कुप्रथा है. इस के तहत किसी एक लड़की की शादी के बदले ससुराल पक्ष को भी अपने घर से एक लड़की की शादी उस के पीहर पक्ष में करानी होती है. इस में योग्यता और गुण नहीं बल्कि लड़की के बदले लड़की की सौदेबाजी होती है.

वर्तमान दौर में जब लड़कियों की बेहद कमी है तो कई समाज में इसे खुले तौर पर किया जाने लगा है. इस के चलते कई पढ़ीलिखी जवान लड़कियों की शादी अनपढ़ और उम्रदराज लोगों से कर दी जाती है. जिस के चलते सुमन जैसी अनेक लड़कियों की जिंदगी तबाह हो रही है.

सुमन के घर वाले उसे पागल और मानसिक बीमार भले ही अपने बचाव के लिए कह रहे हों लेकिन सुमन का सुसाइड नोट साफ इशारा कर रहा है कि वह आटासाटा कुप्रथा के चक्रव्यूह में ऐसी उलझी कि उसे अपनी मुक्ति के लिए मौत ही दिखी.

राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में समाज की कई जातियों में फैली इस कुप्रथा के बारे में लेखक ने पड़ताल की तो सामने आया कि आटासाटा एक ऐसी कुप्रथा है जहां लड़कियों की 2 नहीं 3 से 4 परिवारों के बीच सौदेबाजी होती है. वह भी सिर्फ इसलिए ताकि उन के नाकारा और उम्रदराज बेटे की शादी हो जाए.

और उन के घरपरिवारों में दूसरे जो लड़के हैं, जिन की किसी कारणवश शादी नहीं हो पा रही है, उन की भी शादी हो जाए.

वैसे राजस्थान के ज्यादातर गांवों में इस कुप्रथा का चलन है. ऐसे में पढ़ीलिखी लड़कियों की जिंदगी भी खराब हो रही है. इस कुप्रथा का एक दर्दनाक सच यह भी है कि बेटी होने से पहले ही उस का रिश्ता तय कर दिया जाता है.

कई बार ऐसा भी होता है कि बेटी नहीं होती तो रिश्तेदार की बेटी को दबावपूर्वक दिलाया जाता है. इस शर्त पर कि उन्हें भी वे बेटी दिलाएंगे.

ज्यादातर मामलों में लड़के और लड़की के बीच उम्र को भी नजरअंदाज कर  दिया जाता है और 21 साल की लड़की  45-50 साल के व्यक्ति से ब्याह दी जाती है.

कई मामलों में घर में बड़ी बहन होती है और भाई छोटा होता है. दोनों में 7-8 साल का अंतर होता है.

ऐसे में घर वाले बड़ी लड़की की तब तक शादी नहीं करते, जब तक उन का छोटा बेटा शादी लायक न हो जाए.

जब वह शादी लायक हो जाता है तो बड़ी बेटी के आटासाटा के बदले में उस की शादी की जाती है. ऐसे में बेटियों की उम्र निकलने के बाद उम्रदराज व्यक्ति से जबरदस्ती शादी कर दी जाती है.

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा का कहना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारा समाज अभी भी इस तरह की प्रथाओं का पालन कर रहा है. महिलाओं को अपना जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता है और हम अपनी बेटियों को नहीं खो सकते. राजस्थान सरकार को इस प्रथा को रोकने के लिए उपाय करने चाहिए.

राजस्थान महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष सुमन शर्मा ने इस बारे में कहा, ‘‘आटासाटा प्रथा बहुत ही कष्टदायक है, विशेषकर उन महिलाओं के लिए जिन का कुरीतियों के नाम पर पूरा जीवन ही कुरबान कर दिया गया हो.

‘‘जब मैं आयोग की अध्यक्ष थी तो मेरे पास आटासाटा से जुड़ी 4 बड़ी घटनाएं आई थीं जो इतनी पीड़ादायक थीं कि बेवजह 2 घरों की जिंदगियां बरबाद हो रही थीं. इस में कुछ लोगों को हम ने सजा भी दिलाई थी पर सीधे तौर पर इस में कोई कानून न होने से कोई सख्त काररवाई नहीं की जा सकती थी.

‘‘आजादी के बाद से महिलाओं के कल्याण के लिए कई सुधार हुए और कानूनी प्रावधान भी लाए गए पर दुर्भाग्य है कि अब तक आटासाटा पर रोकथान के लिए कोई कानून या नियमकायदे ही नहीं हैं. जबकि राजस्थान के कई इलाकों में ये बहुतायत से किया जा रहा है. सरकार को चाहिए कि इस कुप्रथा पर प्रभावी रोक लगाने के लिए जल्द से जल्द कानून बनाए जाए.’’