बेईमान प्यार : बेमौत मारा गया परिवार – भाग 1

22 अगस्त, 2010 की सुबह 10 बजे पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना मिली कि हैबोवाल की दुर्गापुरी कालोनी की गली नंबर 5 के मकान नंबर- 7187/1 में 2 लोगों की हत्या हो गई है. सूचना मिलते ही थाना सलेम टाबरी के थानाप्रभारी इंसपेक्टर निर्मल सिंह, सीआईए इंचार्ज इंसपेक्टर हरपाल सिंह, इंसपेक्टर दविंद्र कुमार, एसएचओ डिवीजन नंबर 4 तथा दुर्गापुरी पुलिसचौकी इंचार्ज सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार मेरे पहुंचने से पहले ही घटनास्थल पर पहुंच गए थे. जिस मकान में हत्याएं हुई थीं, उस के बाहर लोगों की काफी भीड़ लगी थी.

पड़ोसियों ने बताया कि उन्होंने सुबह लगभग साढ़े 9 बजे मकान के भीतर तेज चीखों की आवाजें सुनी थीं. चूंकि उस वक्त अंदर तेज आवाज में टीवी चल रहा था, इसलिए यह समझना मुश्किल था कि आवाजें टीवी की थीं या मकान में रहने वालों की. मकान का दरवाजा अंदर से बंद था. थोड़ी देर बाद जब पड़ोसियों को लगा कि चीखें टीवी की नहीं, बल्कि उस में रहने वालों की थीं तो उन्होंने मुख्य द्वार तोड़ कर भीतर जा कर देखा.

अंदर अलगअलग कमरों में 2 लाशें पड़ी थीं. इस के बाद घटना की सूचना पुलिस को दी गई थी. मैं ने मकान के भीतर जा कर देखा. एक कमरे में अधेड़ उम्र की महिला की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. उस के शरीर पर तेजधार हथियार के कई घाव थे, जिस में से खून रिस रहा था. दूसरे कमरे में लगभग 40 वर्षीय एक व्यक्ति की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. उस के शरीर पर भी तेजधार हथियार के घाव थे. वह विकलांग था. उस की व्हीलचेयर वहीं पास में उलटी पड़ी थी. देखने से ही लग रहा था कि विकलांग होने के बावजूद उस ने हत्यारों का विरोध किया था. दोनों को ही बड़ी बेरहमी से मारा गया था.

मैं ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. कमरे में रखा टीवी अभी भी चल रहा था. मेरे इशारे पर सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार ने टीवी बंद कर दिया. क्राइम टीम और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को भी बुलाया गया था, साथ ही डौग स्क्वायड को भी. जासूस कुत्ते लाश को सूंघ कर मकान के पिछवाड़े जा कर रुक गए. संभवत: हत्यारे वहां से किसी सवारी में बैठ कर गए थे.

मकान की अच्छी तरह छानबीन की गई. लूटपाट के लक्षण दिखाई नहीं दे रहे थे. हत्याएं शायद आपसी रंजिश के कारण हुई थीं. टीवी के पास खून सना एक खंजरनुमा चाकू पड़ा था. मैं ने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को उसे संभाल कर रखने के लिए कहा. हत्याएं शायद चाकू से की गई थीं. मैं पुलिस टीम के साथ मुआयना कर रहा था कि पड़ोसियों से पता चला कि यहां सिर्फ हत्याएं ही नहीं हुई थीं, बल्कि इस परिवार के 2 अन्य लोग लापता भी थे.

इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने पूछताछ के आधार पर मुझे बताया कि इस परिवार के मुखिया का नाम रोशनलाल था और वह रेलवे से रिटायर्ड था. इस के पहले यह परिवार चंद्रनगर में रहता था. रोशनलाल की पत्नी का नाम शकुंतला था. दोनों की 4 संतानें थीं, जिन में सब से बड़ी 47 वर्षीया बेटी स्वीटी शादीशुदा थी और इंग्लैंड में रहती थी. दूसरे नंबर का बेटा राजेश कुमार उर्फ राजू अपाहिज था, लेकिन घर में काम कर के लगभग 10 हजार रुपए महीना कमा लेता था.

तीसरे नंबर की बेटी सीमा भी शादीशुदा थी, लेकिन 3 साल पहले पीलिया से उस की मृत्यु हो चुकी थी. सब से छोटी 36 वर्षीया निशा थी. बीए पास निशा किसी प्राइवेट कंपनी में कार्यरत थी. लगभग 2 महीने पहले इन लोगों ने अपना चंद्रनगर वाला मकान 70 लाख रुपए में बेचा था. लगभग डेढ़ महीने पहले ही यह परिवार इस मकान में रहने आया था. यह मकान उन्होंने 40 लाख रुपए में खरीदा था. कत्ल शकुंतला और राजेश कुमार उर्फ राजू का हुआ था. जबकि रोशनलाल और निशा गायब थे.

मैं ने इंसपेक्टर निर्मल सिंह को आदेश दिया कि लाशों का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दें. साथ ही इंसपेक्टर हरपाल सिंह से कहा कि पड़ोसियों से पूछताछ कर के बापबेटी की तलाश में संभावित जगहों पर छापे मारें. जबकि सबइंस्पेक्टर बिट्टन कुमार को मैं ने अस्पतालों, बसस्टैंड, रेलवे स्टेशन पर बापबेटी की तलाश करवाने तथा जिले के अन्य सभी थानों में उन का हुलिया बता कर वायरलैस मैसेज भिजवाने की जिम्मेदारी सौंपी.

चूंकि यह केस पुलिस कमिश्नर की नजर में आ गया था, इसलिए इन कामों से फारिग हो कर उन्हें रिपोर्ट देने मैं उन के औफिस पहुंच गया. मैं ने अपनी परेशानी बता कर उन से कहा, ‘‘सर, समस्या यह है कि यह परिवार मोहल्ले में नया है. पड़ोसियों को इन के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं है.’’

‘‘ठीक है, जैसा भी हो हर नजरिए से जांच करो. इस के लिए कई टीमें बना कर लगाओ. और हां, सब से जरूरी है बापबेटी का पता लगाना.’’

कमिश्नर साहब के पास से लौट कर मैं ने एक बार फिर घटनास्थल पर जा कर पड़ोसियों से पूछताछ की. काफी लंबी छानबीन के बाद काम की एक बात पता चली. मैं ने जब रोशनलाल के घर पर आनेजाने वाले लोगों की लिस्ट बनाई तो पता चला कि रमित कुमार भंडारी उर्फ रिकी नाम का एक युवक रोशनलाल के घर कुछ ज्यादा ही आताजाता था. मैं ने हरपाल सिंह से रमित के बारे पता लगाने को कहा.

हरपाल सिंह ने पता लगा कर बताया कि रमित कुमार भंडारी जस्स्यिं रोड, तरसेम कालोनी के मकान नंबर बी34/6614 में रहता था. वह रमित का मोबाइल नंबर भी ले आए थे. मेरे कहने पर सबइंसपेक्टर बिट्टन कुमार ने रमित को फोन किया, पर उस ने फोन नहीं उठाया. जब उसे कई बार फोन किया गया तो उधर से कंप्यूटराइज्ड आवाज आने लगी कि यह नंबर पहुंच के बाहर है.

काफी कोशिशों के बावजूद हमें तफ्तीश को आगे बढ़ाने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था. कह सकते हैं कि हम अंधेरे में तीर मार रहे थे. ऐसे में जांच आगे बढ़ाने के लिए हमें केवल रमित भंडारी ही एकमात्र सहारा नजर आ रहा था. हमारी सारी उम्मीदें उसी पर टिकी थीं. इसलिए हम उस का नंबर मिलाते रहे.

आखिर उस ने फोन उठा लिया. सबइंस्पेक्टर बिट्टन कुमार ने उसे मेरे औफिस आने को कहा. उस ने बताया था कि उस समय वह जालंधर में है और आधे घंटे में हाजिर हो जाएगा. मैं अपने औफिस में बैठा उस का इंतजार करता रहा.

इंसपेक्टर हरपाल सिंह ने कहीं से मृतका शकुंतला के मायके का पता ढूंढ़ निकाला था. उस के पिता जगतराम की फगवाड़ा में टेलरिंग की दुकान थी.  पता मिल गया तो इस घटना की सूचना मृतका के भाइयों अशोक, सुखविंदर और जसविंदर को दे दी गई थी.

                                                                                                                                             क्रमशः

मुझसे शादी करोगी?

25 सितंबर, 2020 की रात की बात है. रात 12 बजे 24 वर्षीय रेशमा शीलवंत चव्हाण अपनी मां के साथ देहू रोड पुलिस थाने पहुंची. रेखा शीलवंत मुंबई से 105 किलोमीटर दूर पूना शहर की रहने वाली थी. उन का घर आदर्श कालोनी में था. उन की कालोनी थाना देहू क्षेत्र में आता था. थाने की ड्यूटी पर मौजूद सबइंस्पेक्टर अशोक जगताप ने उन्हें सामने खाली पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया और उन के आने का कारण पूछा.

रेशमा चव्हाण ने अपने आने का जो कुछ कारण उन्हें बताया उसे सुन कर अशोक जगताप के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. उन्होंने बताया कि आधा घंटे पहले प्रशांत अपने 2 साथियों के साथ उन के घर आया था और उस ने उन की छोटी बहन प्रिया चव्हाण को अपने साथ चलने के लिए कहा.

प्रिया के मना करने पर वह उसे जबरन अपने साथ ले गया. सर, कुछ कीजिए. मुझे प्रशांत गायकवाड़ पर जरा भी भरोसा नहीं है. वह मेरी बहन प्रिया के साथ कुछ भी कर सकता है. उस की 2 माह की बेटी का रोरो कर बुरा हाल है. मामला काफी संगीन था. सबइंसपेक्टर अशोक जगताप ने रेशमा चव्हाण की तहरीर पर प्रिया चव्हाण के अपहरण का मुकदमा दर्ज कर लिया.

इस के साथ ही उन्होंने इस मामले की जानकारी थानाप्रभारी मनीष कल्याणकर इंसपेक्टर क्राइम पाडूरंग गोकणे, सबइंसपेक्टर छाया बोरकर के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी और रेशमा चव्हाण और उस की मां को आश्वासन दिया कि पुलिस जल्द से जल्द प्रिया को ढूंढ़ने की कोशिश करेगी.

वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन में सबइंस्पेक्टर अशोक जगताप ने अपने सहायकों के साथ अपनी तफ्तीश की रूपरेखा तैयार की और प्रिया चव्हाण अपहरण की तफ्तीश शुरू कर दी. प्रशांत गायकवाड़ के मिलने की जहांजहां संभावना थी वहांवहां छापा मारा गया, लेकिन वह उन के हाथ नहीं लगा.

देहूरोड पुलिस अधिकारियों को मामले की तफ्तीश शुरू किए अभी 12 घंटे भी नहीं हुए थे कि पुलिस कंट्रोल रूम से उन्हें एक बुरी खबर मिली. 26 सितंबर, 2020 को दोपहर कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि आदर्शनगर कालोनी की खाड़ी के पानी में एक महिला का शव तैर रहा है. आदर्श नगर इलाका देहूरोड पुलिस थाने के अंतर्गत आता था. इसलिए मामले की जानकारी देहूरोड पुलिस थाने को दे दी गई थी.

सूचना मिलते ही देहू रोड पुलिस थाने के सबइंसपेक्टर अशोक जगताप अपने सहायकों के साथ तुरंत घटना स्थल पर पहुंच गए. चूंकि रेशमा चव्हाण ने अपनी बहन प्रिया के अपहरण की शिकायत पहले ही थाने में दर्ज करवा रखी थी, इसलिए पुलिस टीम ने रेशमा चव्हाण को सूचना दे कर शिनाख्त के लिए घटनास्थल पर बुला लिया.  शव को देखते ही रेशमा चव्हाण दहाड़ मार कर रोने लगी. इस से पुलिस टीम को समझते देर नहीं लगी कि खाड़ी में पड़ा शव प्रिया चव्हाण का ही है. रेशमा चव्हाण को सांत्वना देने के बाद प्रिया के शव को बाहर निकलवा कर उस का निरीक्षण किया गया.

सबइंस्पेक्टर अशोक जगताप अभी शव का निरीक्षण और वहां एकत्र भीड़ से पूछताछ कर ही रहे थे कि मामले की जानकारी पा कर थानाप्रभारी मनीष कल्याणकर, इंसपेक्टर पांडुरंग गोकणे, महिला सबइंसपेक्टर छाया वारेक के साथ मौका ए वारदात पहुंच गए थे. उन के साथ फौरेंसिक टीम भी आ गई थी. शव की फौरेंसिक जांच के बाद थानाप्रभारी मनीष कल्याणकर ने अपने सहायकों के साथ शव का सरसरी निगाह से निरीक्षण किया. फिर लाश को पोस्टमार्टम के लिए स्थानीय सिविल अस्पताल भेज कर थाने  लौट आए.

मामला अब और गंभीर हो गया था. प्रशांत गायकवाड़ पर अब तक प्रिया चव्हाण के अपहरण तक का ही आरोप था. अब उस के विरूद्ध हत्या का भी मामला दर्ज कर लिया गया. थाने के वरिष्ठ अधिकारियों ने विचार कर मामले की तफ्तीश इंसपेक्टर पांडुरंग गोकणे और सबइंस्पेक्टर अशोक जगताप को सौंप दी.

सबइंसपेक्टर अशोक जगताप इस की तफ्तीश पहले ही कर रहे थे. लेकिन प्रशांत गायकवाड़ उन के हाथ नहीं आया था. फिर भी वह निराश नहीं थे. उन्हें अपने मुखबिरों पर पूरा भरोसा था. 27 सितंबर, 2020 को उन के एक मुखबिर ने बताया कि प्रशांत गायकवाड़ आज रात 3 बजे के आसपास पूना थरगांव के डांगे चौक पर अपनी पत्नी और बच्चों से मिलने के लिए आने वाला है.

सबइंसपेक्टर अशोक जगताप ने इस बात की जानकारी अपने वरीष्ठ अधिकारियों को दी और अपना जाल बिछा कर प्रशांत गायकवाड़ को हिरासत में ले लिया. पुलिस हिरासत में प्रशांत गायकवाड़ प्रिया अपहरण और हत्या के मामले में अपने आप को निर्दोष बता कर पुलिस को गुमराह करता रहा. लेकिन पुलिस की सख्ती के बाद वह ज्यादा देर न टिक सका. उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए प्रिया के अपहरण और हत्या के बारे में जो बताया वह काफी हैरान कर देने वाला था.

सूर्यकांत गायकवाड़ की गिनती पूना शहर के एक प्रतिष्ठित और संपन्न किसानों में होती थी. पूना शहर के देहूरोड पर शानदार बंगला और शहर के बाहर उन का एक फार्महाउस था. जहां उन की अच्छीखासी काश्तकारी थी. बंगले में सुखसुविधाओं की सारी चीजे मौजूद थीं. उन का बेटा प्रशांत बंगले में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था.

35 वर्षीय प्रशांत गायकवाड़ स्वस्थ सुंदर और महत्त्वाकांक्षी युवक था. वह सूर्यकांत गायकवाड़ का एकलौता और लाड़ला बेटा था. उसे किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. प्रशांत की शिक्षा पूरी होने के बाद उन्होंने थरगांव डांगे चौक पर रहने वाले अपने एक रिश्तेदार की बेटी से उस की शादी कर दी थी. समय के साथ वह 2 बच्चों का पिता बन गया. घर में सुंदर सुशील पत्नी होने के बावजूद जब वह किसी शादी प्रोग्राम था पार्टी में किसी संजीसंवरी युवती को देखता तो उस के मुंह में पानी आ जाता था और वह उसे पाने के लिए आतुर हो उठता था.

उस के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. 20 वर्षीय प्रिय शीलवंत चव्हाण जितनी सुंदर और खूबसूरत थी उतनी ही चंचल आधुनिक सभ्य समाज की युवती थी. वह किसी से भी बेझिझक बातें तो करती थी लेकिन अपनी मर्यादा में रहती थी. उस की बातें हर किसी को मोह लेती थीं. उस के पिता की मौत हो चुकी थी. परिवार संपन्न था, वह अपनी बड़ी बहन रेशमा और मां के साथ रहती थी.

सजीसंवरी प्रिया को प्रशांत गायकवाड ने अपने एक दोस्त की शादी के समारोह में देखा था. प्रिया की खूबसूरती देख कर प्रशांत गायकवाड़ उस का दीवाना हो गया. प्रिया शादी समारोह में जब तक रही प्रशांत गायकवाड़ की निगाहें उस का पीछा करती रहीं. प्रिया और उस के परिवार से प्रशांत गायकवाड़ का परिचय उस के दोस्त ने करवाया तो प्रशांत प्रिया के करीब आने की कोशिश करने लगा.

शादी समारोह खत्म होने के बाद प्रशांत ने प्रिया और उस की मां बहन को अपनी कार में लिफ्ट दे कर उन के घर छोड़ दिया. रास्ते में प्रिया चव्हाण उस की मां और बहन रेशमा चव्हाण प्रशांत गायकवाड़ की बातों और व्यवहार से इस तरह प्रभावित हुईं कि उसे अपने घर चायनाश्ते पर बुला लिया. प्रिया और उस के परिवार वालों के इस प्रस्ताव पर प्रशांत गायकवाड़ के मन में लड्डू फूटने लगे. प्रशांत गायकवाड़ यही चाहता था.

वह दूसरे दिन ही प्रिया से मिलने उस के घर पहुंच जाना चाहता था. लेकिन किसी तरह अपने मन को काबू कर वह एक सप्ताह बाद प्रिया के घर पहुंचा. यह संयोग ही था कि उस समय प्रिया घर में अकेली थी. प्रशांत गायकवाड़ के लिए यह समय सोने पर सुहागा था. उसे ऐसे ही मौके की तो तलाश थी. प्रशांत ने प्रिया से अधिकतर इधरउधर की बातें की और अपने आप को अनमैरिड बता कर प्रिया का मोबाइल नंबर ले लिया.

प्रिया का मोबाइल नंबर लेने के बाद प्रशांत प्रिया को अक्सर फोन करने लगा. नतीजा यह हुआ कि प्रशांत गायकवाड़ की मीठी लुभावनी बातें प्रिया के मन में धीरेधीरे घर करने लगीं और वह उस की तरफ आकर्षित हो गईं. प्रशांत गायकवाड़ यही चाहता भी था. वह मौका देख कर प्रिया को अपनी कार में बैठा कर लंबे सफर पर ले जाता. दोनों मौल में जा कर शौपिंग करते. प्रिया को वह अच्छेअच्छे उपहार देता था.

प्रिया इस बात से अनभिज्ञ थी कि प्रशांत गायकवाड़ सिर्फ उस के शरीर का भूखा है. प्रशांत ने कई बार मर्यादा की लक्ष्मण रेखा पार करने की कोशिश की, लेकिन प्रिया ने उसे रोक दिया. जब प्रशांत गायकवाड़ यह बात अच्छी तरह समझ गया कि प्रिया अपनी लक्ष्मण रेखा लांघने वाली नहीं है तो उस ने एक योजना के तहत अपनी पत्नी और बच्चों को उन के ननिहाल भेज कर प्रिया को जरूरी बात के लिए अपने बंगले पर बुलाया और नशे का शरबत पिला कर उस के साथ संबंध बनाए.

जब यह बात प्रिया को पता चली तो उसे नागवार लगा. बाद में जब यह बात प्रिया को मालूम हुई की प्रशांत गायकवाड़ शादीशुदा ही नहीं बल्कि 2 बच्चों का पिता भी है तो वह अपने आप को संभाल नहीं पाई और देहूरोड़ पुलिस थाने जा कर उस के विरूद्ध धोखा और बलात्कार की शिकायत दर्ज करवा दी. जिस से पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. यह मामला 2016 का था.

2 साल तक चले इस प्रकरण में जब प्रशांत गायकवाड़ को एहसास हो गया कि वह सजा के बिना नहीं बच सकता तो उस ने प्रिया से मेलमिलाप में ही अपनी भलाई समझी और प्रिया के घर जा कर उस से और उस की मांबहन से अपने किए की माफी मांगी. इतना ही नहीं, उस ने अपनी पत्नी को तलाक दे कर प्रिया से शादी करने का भी वादा किया. साथ ही उस ने मामले को वापस लेने की विनती भी की.

प्रशांत के अनुरोध पर प्रिया ने अपना भविष्य देखते हुए केश वापस ले कर प्रशांत गायकवाड़ को माफ कर दिया. वह पहले की तरह प्रशांत गायकवाड़ से मिलनेजुलने लगी. बीचबीच में जब प्रिया शादी की बात करती तो प्रशांत अपनी पत्नी से तलाक लेने का बहाना कर उसे टाल देता.समय अपनी गति से चलता रहा. प्रिया प्रशांत के बहकावे में आ कर अपने आप को भूल गई और गर्भवती हो गई. समय आने पर उस ने एक बच्ची को जन्म दिया.

बच्ची के जन्म के 2 माह बाद प्रिया ने जब अपनी शादी और बच्ची के भविष्य के लिए प्रशांत गायकवाड़ से बात की तो प्रशांत टालमटोल करता रहा. जिस से प्रिया और उस के परिवार वालों को उस की नीयत का पता चल गया. प्रिया की शादी और उस की बच्ची के हक का दबाव बनाने के लिए प्रिया की मां और बहन ने महिला संगठन का सहारा लिया.घटना के दिन जिस समय महिला संगठन प्रशांत गायकवाड़ के बंगले पर पहुंचा, उस समय प्रशांत घर पर नहीं था.

उन का सामना उस की पत्नी और बच्चों को करना पड़ा. संगठन की महिलाओं ने उसे जम कर लताड़ा. बंगले की खिड़की और बंगले में खड़ी कार के सारे शीशे तोड़ डाले और उस की पत्नी को चेतावनी दे कर निकल गईं कि अगर प्रशांत गायकवाड़ ने प्रिया से शादी नहीं की और बच्ची को पिता का नाम नहीं दिया तो दोबारा फिर आएंगी और अंजाम बुरा होगा.

पति प्रशांत के चरित्र और महिला संगठन की चेतावनी से उस की पत्नी बुरी तरह डर गई. उसे पति से नफरत हो गई. वह अपना सारा सामान और बच्चों को ले कर मायके जाने के लिए तैयार हो गई. शाम को प्रशांत गायकवाड़ घर आया तो घर की स्थित देख कर हैरान रह गया. पत्नी ने उसे आडे़ हाथों लेते हुए काफी खरीखोटी सुनाई और अपने दोनों बच्चों को ले कर उसी समय घर छोड़ कर मायके चली गई.

पत्नी के मायके जाने और अपने अपमान को वह सह नहीं सका. उस का खून खौल उठा और उस ने प्रिया चव्हाण के प्रति खतरनाक फैसला ले लिया. उस का मानना था कि न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी. रोजरोज की किटकिट खत्म हो जाएगी. अपने फैसले के अनुसार, प्रशांत गायकवाड़ ने अपने दो दोस्तों विक्रम रोकड़े और अभिजीत दड़े को अपनी मदद के लिए बुलाया और उन्हें अपने साथ ले कर रात को प्रिया चव्हाण के घर जा पहुंचा.

दोस्तों के साथ वह प्रिया को उठा कर आदर्श नगर कालोनी की खाड़ी के पास ले गया. उस ने प्रिया चव्हाण का गला दबा कर पहले उस की हत्या की और पहचान मिटाने के लिए वहां पड़े पत्थरों से उस के चेहरे को विकृत कर के खाड़ी के पानी में फेंक दिया. इस के बाद वह फरार हो गया.

प्रशांत सूर्यकांत गायकवाड़ से विस्तृत पूछताछ करने के बाद जांच अधिकारी अशोक जगताप ने उस के खिलाफ अपहरण के मुकदमे में धारा 302/201 और 364 और जोड़ दी. बाद में उन्होंने उस की निशानदेही पर उस के दोस्त के ठिकानों पर छापा मार कर विक्रम रोकड़े को तो अपनी गिरफ्त में ले लिया. लेकिन अभिजीत दड़े पुलिस टीम के पहुंचने के पहले ही फरार हो गया.

प्रशांत सूर्यकांत गायकवाड़ और विक्रम रोकड़े को पूना के मैट्रोपोलिटन मजिस्टै्रट के सामने पेश कर के यरवदा जेल भेज दिया गया. दोनों अभियुक्त जेल में हैं.

एयर होस्टेस का अधूरा प्यार

एक हत्या ऐसी भी

कत्ल का मुकदमा चल रहा हो तो उस का फैसला जानने के लिए काफी लोग उत्सुक रहते हैं. 12 मार्च, 2018 को चंडीगढ़ के सेशन जज बलबीर सिंह की अदालत के भीतरबाहर तमाम लोग एकत्र थे. वजह यह थी कि उन की अदालत में चल रहा कत्ल का एक मुकदमा अपने आखिरी पड़ाव पर आ पहुंचा था. लोग इस केस का फैसला सुनने को बेकरार थे.

इस केस की शुरुआत कुछ यूं हुई थी.

उस दिन किसी केस की छानबीन के सिलसिले में चंडीगढ़ के थाना सेक्टर-31 की महिला एसएचओ जसविंदर कौर अपने औफिस में मौजूद थीं. रात में ही करीब 45 वर्षीय शख्स ने आ कर उन से कहा, ‘‘मैडम, मेरा नाम दुर्गपाल है और मैं रामदरबार इलाके के फेज-2 के मकान नंबर 2133 में रहता हूं.’’

‘‘जी बताइए, थाने में कैसे आना हुआ, वह भी इस वक्त?’’ इंसपेक्टर जसविंदर कौर ने उस व्यक्ति को गौर से देखते हुए पूछा.

‘‘ऐसा है मैडमजी,’’ खुद को दुर्गपाल कहने वाले शख्स ने बताना शुरू किया, ‘‘हम 4 भाई हैं और मैं सब से बड़ा हूं. मेरी मां शारदा देवी मेरे से छोटे भाई राजबीर के साथ ग्राउंड फ्लोर पर रहती हैं. फर्स्ट फ्लोर पर मेरा सब से छोटा भाई विजय रहता है. मैं और तीसरे नंबर का भाई उदयवीर अपनीअपनी फैमिली के साथ टौप फ्लोर पर रहते हैं.’’

‘‘ठीक है, आप समस्या बताइए.’’

‘‘मैडम, हमारे घर के टौप फ्लोर पर 4 कमरे हैं. वहां सीढि़यों की तरफ वाले 2 कमरे मेरे पास हैं और उस के आगे वाले 2 कमरे मेरे भाई उदयवीर के पास.’’

‘‘आप के मकान और कमरों की बात तो हो गई, वह बताइए जिस के लिए आप को थाने आना पड़ा?’’ थानाप्रभारी जसविंदर कौर ने अपना लहजा थोड़ा बदला. लेकिन उस शख्स ने जैसे कुछ सुना ही नहीं.

उस ने अपनी बात बेझिझक जारी रखी, ‘‘मेरा भाई उदयबीर अपनी पत्नी प्रतिभा के साथ रहता था. दोनों की शादी को अभी कुल डेढ़ साल हुआ है. 10 जून, 2017 को मेरे पिता जंडियाल सिंह की मौत हो गई थी. कल मैं और मेरे तीनों भाई कुछ रिश्तेदारों के साथ हरिद्वार में पिताजी की अस्थियों का विसर्जन कर के रात करीब साढ़े 8 बजे घर लौटे थे.’’

‘‘आगे बताइए,’’ अब इंसपेक्टर जसविंदर कौर ने दुर्गपाल की बात में रुचि लेते हुए कहा.

‘‘हम लोग थकेहारे थे. घर आ कर खाना खाने के बाद सो गए थे. मैं घर के टौप फ्लोर पर बने कमरों के आगे गैलरी में सो रहा था. रात के एक बजे जब मैं गहरी नींद में था, तभी शोरशराबा सुन कर अचानक मेरी आंखें खुल…’’

दुर्गपाल की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि इंसपेक्टर जसविंदर कौर ने हाथ के इशारे से उसे रोक दिया. दरअसल, थानाप्रभारी के लिए कंट्रोलरूम से फोन आया था. इंसपेक्टर जसविंदर ने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से पीसीआर कांस्टेबल ओमप्रकाश था.

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उस ने कहना शुरू किया, ‘‘मैडम, रामदरबार इलाके से किसी के छत से गिराने की काल आई है. मौके पर पहुंच कर पता चला कि छत से गिरने वाले को अस्पताल ले जाया चुका था, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. उसे गिराने वाला फरार है. शुरुआती छानबीन में ही मामला कत्ल का लग रहा है, जिस के पीछे की वजह इश्क हो सकती है. केस आप के ही इलाके का है.’’

‘‘मरने वाले और मारने वाले के नाम वगैरह के बारे में पता चला?’’ इंसपेक्टर जसविंदर ने पूछा.

‘‘जी मैडम, सब पता कर लिया है. मरने वाले का नाम उदयवीर है और उसे छत से गिरा कर मारा है उस की पत्नी के कथित प्रेमी सतनाम ने.’’

‘‘ओके, तुम लोग अभी वहीं रुको, मैं पहुंचती हूं वहां.’’ कहते हुए इंसपेक्टर जसविंदर ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

उन्होंने सामने बैठे दुर्गपाल की ओर देख कर पूछा, ‘‘आप के भाई उदयवीर को सतनाम नामक शख्स ने छत से नीचे गिरा कर मार दिया और आप…’’

‘‘जी मैडम.’’ इंसपेक्टर जसविंदर की बात पूरी होने से पहले ही दुर्गपाल ने कहा.

‘‘तुम वहां रुकने के बजाय थाने चले आए?’’

‘‘मैडम, मैं ने तुरंत 100 नंबर पर फोन कर के घटना के बारे में बता दिया था. साथ ही आटोरिक्शा से भाई को सेक्टर-32 के सरकारी अस्पताल में पहुंचा भी दिया था. फिर यह सोच कर कि इस तरीके से पुलिस पता नहीं कब पहुंचेगी, मैं अपने दूसरे भाइयों को वहीं रुके रहने को बोल कर थाने चला आया.’’

‘‘कोई बात नहीं, पुलिस ने वहां पहुंच कर अपनी काररवाई शुरू कर दी है. तुम भी चलो हमारे साथ.’’ इस के बाद इंसपेक्टर जसविंदर कौर सबइंसपेक्टर राजवीर सिंह और सिपाही प्रमोद व नवीन के अलावा दुर्गपाल सिंह को साथ ले कर सरकारी गाड़ी से रामदरबार की ओर रवाना हो गईं.

घटनास्थल पर काफी भीड़ एकत्र थी. पीसीआर वाले भी वहीं थे. उन से जरूरी जानकारी लेने के बाद उन्हें वहां से रुखसत कर दिया गया. साथ ही सिपाही नवीन को वहां तैनात कर के इंसपेक्टर जसविंदर कौर अन्य लोगों के साथ सेक्टर-32 के सिविल अस्पताल चली गईं.

वहां उदयवीर को पहले ही मृत घोषित किया जा चुका था. थाना पुलिस ने अपनी आगे की काररवाई शुरू कर दी. एसआई राजबीर सिंह शव का पंचनामा बनाने लगे और जसविंदर कौर ने दुर्गपाल से उस की तहरीर ले कर एफआईआर दर्ज करवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी. दुर्गपाल ने अपनी तहरीर के शुरुआती हिस्से में वही सब दोहराया, जो वह पहले ही थाने में थानाप्रभारी जसविंदर कौर को बता चुका था. आगे उस ने जो कुछ बताया, वह कुछ इस तरह था—

शोरशराबा सुन कर जब मेरी आंखें खुलीं तो मैं ने देखा कि बहलाना में रहने वाला एक लड़का सतनाम सिंह अपने हाथ में बेसबाल बैट पकड़े मेरे भाई उदयवीर से लड़ता हुआ छत पर जा पहुंचा था. वह उदयवीर से मारपीट करते हुए उसे घसीट कर छत पर ले गया था. बीचबीच में उदयवीर भी उस का मुकाबला करने का प्रयास करते हुए उस पर हाथपैर से वार कर रहा था.

यह सब देख मैं भी तेजी से उन के पीछे छत पर चला गया. तब तक वे दोनों लड़ते हुए कौर्नर के मकानों की छत पर जा पहुंचे थे. ऐसा इसलिए था कि हमारी लाइन के मकानों व बैकसाइड वाले मकानों की छतें आपस में मिली हुई हैं. जिस वक्त वे दोनों लड़ते हुए मकान नंबर 2088 की छत पर पहुंचे तो मैं भी उन्हें छुड़ाने के लिए वहां जा पहुंचा. अभी मैं उन से थोड़े फासले पर था, जब मेरे कानों में सतनाम की आवाज पड़ी.

वह मेरे भाई से कह रहा था कि प्रतिभा हमेशा से उस की प्रेमिका रही है, उसे मजबूरी में उस से शादी करनी पड़ी थी. अब वह उसे आजाद कर दे, वरना वह उस की (मेरे भाई उदयवीर की) जान ले लेगा.

इस से पहले कि मैं भाई की मदद के लिए उस के पास पहुंच पाता, वह दीवार के एक कोने की तरफ हुआ और तभी सतनाम ने मौका देख कर उसे धक्का दे कर नीचे गिरा दिया. सतनाम सिंह ने मेरे भाई की पत्नी प्रतिभा के साथ लव अफेयर के चलते मेरे भाई को रास्ते से हटाने के लिए जान से मार दिया. उस के खिलाफ मामला दर्ज कर के सख्त काररवाई की जाए.

उसी रोज यह प्रकरण थाना सेक्टर-31 में भादंवि की धाराओं 302 एवं 456 के तहत दर्ज हो गया. यह 14 जून, 2017 की बात है. मौके की अन्य काररवाइयां पूरी कर के थाने लौटने के बाद पुलिस ने सतनाम सिंह को काबू करने की योजनाएं बनानी शुरू कीं. वारदात को अंजाम देने के बाद वह मौके से फरार होने में सफल हो गया था. लेकिन अपराध कर के भागने के 8 घंटे के भीतर ही पुलिस ने एक गुप्त सूचना के आधार पर उसे गिरफ्तार कर लिया.

अगले दिन अदालत से उस का कस्टडी रिमांड हासिल कर के उस से विस्तार से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने बताया कि वह चंडीगढ़ के गांव बहलाना के मकान नंबर 74 का रहने वाला था. यहीं की रहने वाली लड़की प्रतिभा से उसे प्यार हो गया था. मगर यह एकतरफा प्यार था, जिस में प्रतिभा ने कभी कोई रुचि नहीं दिखाई थी.

सतनाम सिंह ने उसे अपनी प्रेमिका घोषित करते हुए उस का पीछा नहीं छोड़ा था. इस से प्रतिभा खुद तो परेशान थी ही, उस के घर वाले भी फिक्रमंद होने लगे थे. उन के मन में यह भय समा गया था कि कहीं सतनाम उन की बेटी को उठा न ले जाए. इस की वजह यह भी थी कि सतनाम अपराधी किस्म का लड़का था. आखिर प्रतिभा के घर वालों ने रामदरबार के रहने वाले उदयवीर से उस की शादी कर दी.

सतनाम के बताए अनुसार प्रतिभा के घर वालों का डर एकदम सही निकला. वह वाकई उन की लड़की को अपहृत करने के प्रयास में था. यह अलग बात है कि अभी तक उसे सफलता नहीं मिल पाई थी. प्रतिभा की शादी के बाद तो उस के लिए यह काम और भी मुश्किल हो गया था.

देखतेदेखते इस शादी को डेढ़ साल गुजर गया. लेकिन सतनाम इस बीच प्रतिभा को भूल नहीं पाया. इस बीच उस ने एक दुस्साहस भरा काम यह भी किया कि उदयवीर से मिल कर उस से सीधे ही कह दिया, ‘‘प्रतिभा मेरी प्रेमिका थी और हमेशा रहेगी. तुम ने उस की मजबूरी का फायदा उठा कर उस की इच्छा के विरुद्ध शादी की है. तुम्हारी भलाई इसी में है कि उस से तलाक ले कर उसे मेरे हवाले कर दो, वरना मुझे तुम्हारा खून करना पड़ेगा.’’

उदयवीर ने इस बारे में अपने भाइयों को भी बताया और प्रतिभा से भी बात की. प्रतिभा ने पति को समझाया कि उस का सतनाम से प्रेमप्यार जैसा कभी कोई रिश्ता नहीं था. वह उस के पीछे पड़ कर नाहक उसे परेशान करता था. इस पर उदयवीर ने सतनाम को फोन कर के उसे लताड़ दिया.

बकौल सतनाम उस ने भी तय कर लिया कि आगे उसे कुछ भी करना पड़े, वह प्रतिभा को उठा ले जाएगा. बस, मौका मिलने भर की देर थी. यह मौका भी उसे जल्दी ही मिल गया. उदयवीर के पिता का देहांत हो गया और उन की अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने उसे अपने भाइयों व परिजनों के साथ हरिद्वार जाना पड़ा.

सतनाम ने पुलिस को बताया कि उसे 13 जून, 2017 की रात में प्रतिभा के घर पर अकेली होने की जानकारी मिली. आधी रात के बाद वह घर के पिछवाड़े से उस के पास जा पहुंचा. वहां जा कर देखा तो उस का पति भी उस की बगल में लेटा था. लेकिन सतनाम ने परवाह नहीं की और प्रतिभा के मुंह पर हाथ रख कर उसे कंधे पर लाद लिया. जब वह प्रतिभा को ले जाने लगा तो उदयवीर की आंखें खुल गईं. वह सतनाम पर झपटा तो प्रतिभा उस की पकड़ से छूट गई.

इस के बाद सतनाम और उदयवीर गुत्थमगुत्था हो गए. संभव था कि उदयवीर सतनाम पर हावी हो जाता और इस बीच उस के परिजन भी उस की मदद को आ जाते. लेकिन पता नहीं कैसे वहां पड़ा बेसबाल बैट सतनाम के हाथ लग गया और वह उसी से उदयवीर को पीटते हुए छत पर ले गया. वहां से सतनाम ने उसे नीचे गिरा दिया. वह मुंह के बल आ कर गिरा था.

सेक्टर-32 के सिविल अस्पताल के डा. मंडर रामचंद सने व डा. गौरव कुमार ने उदयवीर के शव का पोस्टमार्टम किया. उन्होंने उस के जिस्म पर छोटीबड़ी 10 चोटों का उल्लेख करते हुए मौत का कारण मानसिक आघात और फेफड़ों का बायां हिस्सा नष्ट होना बताया.

खैर, कस्टडी रिमांड की अवधि समाप्त होने पर पुलिस ने सतनाम को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में बुड़ैल जेल भेज दिया गया. इस के बाद समयावधि के भीतर उस के विरुद्ध आरोपपत्र तैयार कर 8 गवाहों की सूची के साथ प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी गीतांजलि गोयल की अदालत में पेश कर दिया. इस के बाद यह केस सेशन कमिट हो कर चंडीगढ़ के जिला एवं सत्र न्यायाधीश बलवीर सिंह की अदालत में विधिवत रूप से चला.

विद्वान न्यायाधीश ने दोनों पक्षों को गौर से सुनने और उपलब्ध साक्ष्यों की गहराई से जांच करने के बाद बचावपक्ष के वकील व पब्लिक प्रौसीक्यूटर के बीच हुई बहस के मुद्दों पर भी पूरा ध्यान दिया.

बहस के दौरान पब्लिक प्रौसीक्यूटर राजेंद्र सिंह ने दूसरे की औरत को अपना बनाने की एवज में उस के पति का कत्ल करने को ले कर जहां इसे अमानवीय एवं घिनौना अपराध बताया, वहीं बचावपक्ष के वकील यादविंदर सिंह संधू ने अपनी दलील से अभियोजन पक्ष का रुख पलटने का प्रयास किया. वकील संधू का कहना था कि मृतक के पिता की मौत के बाद संपत्ति विवाद को ले कर उस का अपने भाइयों से झगड़ा हो गया था. उन्होंने ही उसे छत से गिरा कर मौत के घाट उतारा है. सतनाम सिंह को इस केस में नाहक फंसा दिया है.

लेकिन एक अलग बात यह भी रही कि जहां अभियोजन पक्ष की ओर से 8 गवाह अदालत में पेश हुए, वहीं बचावपक्ष एक गवाह भी पेश नहीं कर पाया. बहरहाल, माननीय न्यायाधीश बलवीर सिंह ने 12 मार्च, 2018 को अभियुक्त सतनाम सिंह को भादंवि की धाराओं 302 एवं 456 का दोषी करार देते हुए अपना फैसला सुना दिया. इस केस में दी जाने वाली सजा की घोषणा 14 मार्च, 2018 को की गई.

14 मार्च को दोषी को सजा सुनाए जाने से पहले सजा के मुद्दे को सुना गया. दोषी ने बताया कि उस की मां की मौत हो चुकी है और अपने वृद्ध पिता हरबंस सिंह का वही अकेला सहारा है. वैसे भी वह अपनी बीए की पढ़ाई कर रहा था, जो पूरी कर के उसे नौकरी की तलाश करनी थी. इसलिए उसे कम से कम सजा सुनाई जाए.

जज साहब ने यह सब शांति से सुना, मगर उसी दिन दोपहर बाद अपना 27 पृष्ठ का फैसला सुनाते हुए दोषी सतनाम सिंह को धारा 302 के तहत उम्रकैद व 5 हजार रुपए जुरमाने और धारा 456 के अंतर्गत एक साल कैद की सजा सुनाई. दोषी ने जुरमाना भरने में अपने को असमर्थ बताया तो उस की कैद की सजा में 6 महीने की बढ़ोत्तरी कर दी गई.

जिस दिन सतनाम सिंह को न्यायिक हिरासत के तहत जेल भेजा गया था, तब से वह चंडीगढ़ की बुड़ैल जेल में ही बंद था. उस की जमानत नहीं हो पाई थी. अब उसे अदालत के फैसले के बाद फिर से उसी जेल में भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों एवं अदालत के फैसले पर आधारित

प्यार नहीं जुनून में हुए खून

राजमिस्त्री का काम करने वाले विजयपाल ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की दुनिया में ऐसा भयानक तूफान आएगा कि उस में सब कुछ नष्ट हो जाएगा. विजयपाल बचपन से ही अपनी ननिहाल गांव हसनपुर नंगला, पलवल, हरियाणा में रहता था. लगभग 22 साल पहले उस की शादी उत्तर प्रदेश के जिला गौतमबुद्ध नगर के कस्बा जेवर की राधा के साथ हुई थी.

राधा दुलहन बन कर हसनपुर आ गई तो विजयपाल के जीवन में बहार आई. शादी के बाद चूंकि खर्चे बढ़ गए थे, इसलिए वह अब और ज्यादा मेहनत करने लगा था. फिर राधा ने पूनम को जन्म दिया. पिता बन चुके विजयपाल के पैर जमीन पर ही नहीं पड़ते थे. सभी कुछ अच्छा हो रहा था.

एक आम आदमी की तरह विजयपाल दिन भर मेहनत करता और रात में उसी बिल्डिंग में अपने मजदूरों के साथ सो जाता. वह दूरदराज के ठेके लेने के कारण कईकई दिनों तक घर नहीं आ पाता था. पर उसे विश्वास था कि उस की पत्नी बच्चों की परवरिश भलीभांति कर लेगी.

समय बीतता गया और पूनम के अलावा राधा 4 और बच्चों की मां बन गई. अब विजयपाल को घर के बढ़ते खर्चे और बच्चों की पढ़ाई की चिंता होने लगी. पिछले कुछ दिनों से राधा पति से जिद करने लगी थी कि हरियाणा में रहने से तो अच्छा है कि उन्हें अब अपनों के बीच रहना चाहिए, क्योंकि विजयपाल जो अपने नानानानी के यहां रहता था, वे भी चल बसे थे. पत्नी की बात विजयपाल की भी समझ में आ गई.

उस ने अपने एक दोस्त से बात की, जो अलीगढ़ जिले के गांव सालपुर में रहता था. दोस्त ने उस से कहा कि वह उस के रहने और काम की व्यवस्था कर देगा. दोस्त से बात करने के बाद विजय ने राहत की सांस ली. वह कुछ साल पहले अपनी पत्नी और बच्चों के साथ गांव सालपुर में आ कर बस गया. यह गांव अलीगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 65 किलोमीटर दूर है. वहीं आसपास वह मकान बनाने के ठेके लेने लगा.

सालपुर से विजय की ससुराल करीब 25 किलोमीटर दूर थी. अत: विजयपाल इस बात से भी आश्वस्त था कि उस का परिवार अब अपनों के काफी करीब है. यह मानवीय सोच है कि हर कोई अपनों से सहायता और सहयोग की उम्मीद रखता है पर अपनों के बीच आने का फैसला विजयपाल को इतना महंगा पड़ेगा, उस ने कभी भी नहीं सोचा था.

विजयपाल अपने बच्चों को पढ़ालिखा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करना चाहता था. उस की बड़ी बेटी पूनम पढ़ाई में काफी अच्छी थी. काम की वजह से विजयपाल कईकई दिनों बाद ही घर आ पाता था.

उस के पीछे उस के घर में क्या हो रहा था, उसे कुछ पता नहीं था. वह एकदो दिन के लिए घर आता तो उसे घर पर सब कुछ सामान्य ही दिखता था. इस से उसे लगता कि सब कुछ ठीक चल रहा है. पर घर पर उस की बड़ी बेटी पूनम का अपनी मां राधा से जो टकराव पैदा हो गया था, वह आने वाले वक्त में क्या गुल खिलाएगा, यह कोई नहीं जान सका था.

4-5 साल पहले विजय का परिवार सालपुर में आ कर बस गया था. तब से पूनम यह महसूस कर रही थी कि उस की मां जब चाहे तब अपने मायके चली जाती है. कभीकभी पूनम को अपनी मां की हरकतों पर शक होता, लेकिन अभी वह बहुत छोटी थी इसलिए मां से कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी इतना ही नहीं, वह मां के बारे में पिता को कुछ नहीं बता पाती थी. पर उस के मन में मां के प्रति नफरत के बीज अंकुरित हो चुके थे.

society

पूनम ने इंटरमीडिएट की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास करने के लिए अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया था, पर समय कब करवट ले ले, पता ही नहीं चलता. पूनम पिछले कुछ समय से गांव में पड़ोस में रहने वाले प्रवेश कुमार को पसंद करने लगी थी. वह बीए तृतीय वर्ष में पढ़ रहा था. पढ़ाई के साथसाथ वह एक कोचिंग सेंटर में नौकरी भी करता था.

पूनम की मेहनत रंग लाई. उस ने इंटरमीडिएट की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर ली और उसे भी उसी कोचिंग सेंटर में काम मिल गया, जहां प्रवेश पढ़ाता था. पूनम भी एक तरह से अब एक टीचर बन गई थी.

पूनम और प्रवेश धीरेधीरे काफी करीब आने लगे थे. घर के माहौल से तंग आ कर पूनम जब प्रवेश कुमार के साथ थोड़ा समय बिता लेती तो खुद को सामान्य महसूस करती. पर प्रवेश को लगता कि पूनम किसी बात को ले कर परेशान रहती है. अभी तक पूनम और उस के बीच इतनी नजदीकियां नहीं थीं कि वह उस के मन की बात समझ पाता.

दरअसल पिछले कुछ समय से पूनम ने अपनी मां के व्यवहार में काफी बदलाव देखा. एक दिन जब वह कोचिंग सेंटर से घर लौटी तो देखा प्रताप उर्फ डिंपल और उस का भाई प्रभात उस के घर में बैठे हुए थे और उस की मां उन के साथ हंसहंस कर बातें कर रही थी. उन दोनों को देख कर पूनम सीधे अपने कमरे में चली गई तो राधा ने उस के कमरे में आ कर कहा, ‘‘क्या पढ़ाईलिखाई ने इतनी भी तमीज नहीं सिखाई कि मामा लोगों को नमस्ते भी कर लो.’’

‘‘कौन मामा?’’ पूनम ने गुस्से में कहा, ‘‘वो मेरे मामा कैसे हो सकते हैं, मैं सब कुछ जानती हूं मम्मी, तुम इन्हीं से मिलने के लिए जेवर जाती हो.’’

‘‘हां तो क्या मैं अपने मुंहबोले भाइयों से मिल भी नहीं सकती.’’

‘‘मुंहबोले भाई! मम्मी क्यों हमें धोखा दे रही हो. मैं इन्हें अच्छी तरह जानती हूं और फिर तुम्हारे क्या भाई नहीं हैं जो तुम ने इन को भाई बना लिया. देखो मम्मी, तुम जेवर जाती हो, खूब जाओ, पर इन का यहां आनाजाना मुझे पसंद नहीं है.’’ पूनम ने मन में दबी बात कह डाली. बेटी की बात सुन कर राधा हैरान रह गई और बाहर आ कर उस ने प्रताप से कहा, ‘‘पूनम काफी थकी हुई है, इसलिए मैं तुम लोगों के लिए चाय बना कर लाती हूं.’’

प्रताप उर्फ डिंपल और प्रभात सालियान निवासी खुशीराम के बेटे थे. खुशीराम बीडीओ था. प्रताप और प्रभात दोनों ही वैद्य थे, साथ ही दोनों भाई तंत्रमंत्र क्रियाओं से बीमार लोगों का इलाज करने का भी दावा करते थे. प्रभात ने तो मथुरा के गांव बाजना में किराए का मकान ले कर अपना धंधा जमा लिया था जबकि प्रताप ने सालपुर में अपनी दुकान खोल ली थी.

उस दिन के बाद दोनों भाइयों का राधा के पास आनाजाना होने लगा. वे उस की आर्थिक मदद भी करते रहते थे. राधा के उन दोनों भाइयों के साथ अवैध बन गए थे. पूनम को ये दोनों भाई फूटी आंख नहीं भाते थे. उस ने मां से कह भी दिया था कि इन का घर में आनाजाना ठीक नहीं है. पर मां ने उसे डांटते हुए कह दिया कि वह उस के जीवन में दखल न दे और केवल अपने काम से काम रखे.

मां की हरकतें पूनम के दिलोदिमाग में हलचल मचाए हुए थीं. ऐसे में वह क्या करे, यह उस की समझ में नहीं आ रहा था. पर हद तो तब हो गई जब एक दिन प्रताप ने पूनम के पास आ कर अचानक उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘हम में क्या बुराई है, जो तुम हम से दूर भागती हो?’’

प्रताप की इस हरकत पर पूनम को गुस्सा आ गया. वह अपनी मां से चिल्ला कर बोली, ‘‘मम्मी, अपने इस भाई को समझा लो वरना बहुत बुरा होगा.’’

प्रताप ने हैरानी से पूनम को देखा और बोला, ‘‘बड़ी चरित्रवान बनती है. तू क्या समझती है कि हमें तेरे बारे में कुछ पता नहीं है.’’

‘‘क्या पता है तुम्हें? और पता भी होगा तो फिर क्या कर लोगे तुम? देखो, जो तुम मेरी मां के भाई बनने का ढोंग कर रहे हो, वो सब मैं अच्छी तरह जानती हूं. तुम दोनों भाई मेरे परिवार से दूर ही रहो तो अच्छा है नहीं तो मैं अपने पापा को सब बता दूंगी.’’ पूनम गुस्से में बोली.

पूनम के तेवर देख प्रताप स्तब्ध रह गया लेकिन पूनम की बात पर उस की मां को गुस्सा आ गया. राधा ने पूनम को 2-4 तमाचे जड़ दिए. वह बोली, ‘‘तूने 2-4 किताबें क्या पढ़ लीं, अपनी औकात ही भूल गई.’’ पूनम भी कहां चुप रहने वाली थी. उस ने मां को फिर चेताया, ‘‘मम्मी, इन दोनों भाइयों से तुम दूर ही रहो तो अच्छा होगा वरना एक दिन तुम्हारे चालचलन ही हमें ले डूबेंगे.’’

उस दिन प्रताप और प्रभात तो वहां से चले गए पर जल्द ही उन्हें पता चल गया कि पूनम गांव के ही प्रवेश कुमार नाम के एक युवक से प्यार करती है. वे समझ गए कि प्रवेश ही पूनम की ताकत है. दोनों भाइयों को लगा कि राधा के साथ उन का जो खेल चल रहा है, उस में पूनम और प्रवेश कुमार सब से बड़ी बाधा हैं और वे दोनों उन के लिए खतरा हो सकते हैं. इसलिए जरूरी है कि उन दोनों को बदनामी का डर दिखा कर दूर कर दिया जाए.

एक दिन प्रवेश कुमार ने पूनम से कहा, ‘‘कल मुझे प्रताप ने रास्ते में रोक कर कहा था कि तू हमारी भांजी पूनम से मिलनाजुलना छोड़ दे वरना जिंदा नहीं छोड़ेंगे.’’

उस की बात पर मुझे गुस्सा आ गया था. तब मैं ने उस का गिरेबान पकड़ कर कह दिया था कि तुम दोनों भाई किस नीयत से राधा आंटी के पास जाते हो, इस की जानकारी मुझे है, पर पूनम को तुम दोनों ने कोई नुकसान पहुंचाने की कोशिश की तो मैं तुम दोनों को छोड़ूंगा नहीं.

‘‘मेरे तेवर देख कर प्रताप को शायद महसूस हो गया कि अगर राधा के साथ बने अवैध संबंधों की पोल खुल गई तो उन की सभी जगह बदनामी होगी. फिर उन की तंत्रमंत्र और वैद्य की दुकान भी बंद हो जाएगी. इस के बाद प्रताप मुझे देख लेने की धमकी दे कर चला गया.’’

प्रवेश ने अपनी प्रेमिका पूनम से कहा कि वह इन दोनों भाइयों से सतर्क रहे और अगर ये दोनों तुम्हें तंग करें तो तुम अपनी मां से शिकायत जरूर करना. इन से डरने की जरूरत नहीं है. पूनम जानती थी कि मां से शिकायत कर के कोई फायदा नहीं, क्योंकि वह जब मां के सामने ही उस के साथ छेड़छाड़ कर रहे थे तो उस समय भी मां ने उन से कुछ नहीं कहा था. इसलिए पूनम मां से चिढ़ती थी. पूनम ने तय कर लिया कि ऐसे माहौल में उसे खुद ही सतर्क रहना होगा.

मांबेटी दोनों के बीच काफी रस्साकशी चल रही थी. एक दिन राधा ने पूनम से कहा, ‘‘प्रवेश के साथ तेरी दोस्ती हमें पसंद नहीं है. वह अच्छा लड़का नहीं है.’’ गुस्से में भरी पूनम ने तय कर लिया कि इस बार वह अपने पापा को सब कुछ बता देगी पर काफी सोचविचार के बाद उसे लगा कि यदि मां ने उन्हें प्रवेश के साथ उस के संबंधों की बात बता दी तो पापा क्या करेंगे, इस की कल्पना करना भी मुश्किल था.

विजयपाल अपने घर से काफी दूर रह कर काम कर रहा था. उसे नहीं मालूम था कि उस के घर में क्या चल रहा है. मां और बहन की लड़ाई में छोटे बच्चे भी काफी सहमे रहते थे. इसी बीच एक रात प्रताप और प्रभात राधा के घर में ही रुक गए. तब पूनम ने राधा से कहा, ‘‘मां, ये तुम्हारे भाई लोग यहां रात में क्या कर रहे हैं?’’

राधा ने कहा, ‘‘तुझे शायद यह पता नहीं है कि जिन मामा लोगों से तू नफरत करती है न, वही हमारी जरूरतें पूरी कर रहे हैं. तेरे बाप जितने पैसे भेजते हैं, उस से घर का खर्च नहीं चल पाता.’’

‘‘मम्मी, तुम बहुत बुरी हो.’’ कह कर पूनम अपने कमरे में चली गई पर उस दिन प्रताप का इरादा कुछ दूसरा ही था. खाना खाने के बाद वह पूनम का हाथ पकड़ कर उस के साथ छेड़छाड़ करने लगा. गुस्से में भरी पूनम ने मां से कहा, ‘‘यही हैं तुम्हारे भाई. जैसा ये तुम्हारे साथ करते हैं, वही मेरे साथ करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगी.’’

कह कर पूनम ने एक जोरदार थप्पड़ प्रताप के गाल पर जड़ दिया. इस के बाद उस ने अपने कमरे में जा कर अंदर से कुंडी लगा ली. वह खूब रोई. फिर उस ने अपने प्रेमी प्रवेश को फोन कर के सारी बात बता दी.

पूनम की इज्जत खतरे में है, यह सोच कर प्रवेश गुस्से में भर उठा. वह सोचने लगा कि ऐसे में उसे क्या करना चाहिए. अगले दिन प्रताप प्रवेश को रास्ते में मिल गया. उस ने प्रवेश से कहा, ‘‘तू हमारी भांजी से दूर नहीं रहा तो तेरे लिए बहुत बुरा होगा. तेरे 10 अप्रैल को होने वाले इम्तिहान से पहले ही हम तुझे ऐसी सजा देंगे कि तू याद रखेगा. याद रखना कि हम तुझे इम्तिहान में नहीं बैठने देंगे.’’

प्रवेश की समझ में यह आने लगा था कि यदि वह खामोशी से बैठा रहा तो जरूर दोनों मौका पाते ही उसे कोई बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं. प्रवेश ने उसी समय तय कर लिया कि उस की प्रेमिका पर बुरी नजर रखने वालों को वह जिंदा नहीं छोड़ेगा.

इस के बाद उस ने एक देशी कट्टा और कारतूसों का इंतजाम किया. उस के सिर पर खून सवार था. वह पूनम से बहुत प्यार करता था. दोनों एक ही जाति के थे. अत: दोनों अपनी दुनिया बसाना चाहते थे. ऐसे में कोई उस की प्रेमिका के साथ छेड़छाड़ करे, यह बरदाश्त करना उस के लिए बहुत मुश्किल था.

पूनम मां और उस के मुंहबोले भाइयों से परेशान थी. चूंकि दोनों भाई उस की मां के प्रेमी थे, इसलिए वह उन के खिलाफ कुछ भी सुनना नहीं चाहती थी. प्रवेश ने जो योजना बना रखी थी, उस के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. उस के सिर पर तो खून सवार था.

27-28 मार्च, 2018 की रात को वह बिना किसी को कुछ बताए अपनी मोटरसाइकिल से मथुरा जिले के बाजना में पहुंच गया, जहां प्रभात उर्फ मोनू अपना क्लिनिक चलाता था और गांधी चबूतरा स्थित मुरारीलाल के मकान में किराए पर रहता था. सुबह 4 बजे के करीब प्रवेश ने प्रभात के दरवाजे पर दस्तक दी तो प्रभात ने दरवाजा खोला. सामने प्रवेश को देखते ही उसे पसीना आ गया. वह डर के मारे अंदर की ओर भागा. प्रवेश भी उस के पीछे भागा. भागते हुए ही उस ने प्रभात पर फायर कर दिया.

गोली की आवाज सुन कर सुबहसुबह टहलने के लिए जाने वाले लोग इकट्ठा हो गए. उन्हें देख कर प्रवेश वहां से भाग निकला. उसी समय किसी ने पुलिस को सूचना दे दी तो पुलिस भी वहां पहुंच गई. गोली लगने से घायल हो चुके प्रभात को वह एस.एन. मैडिकल कालेज ले गई. पुलिस ने अस्पताल में उसे भरती कर आवश्यक काररवाई शुरू कर दी.

लेकिन प्रवेश को अभी 2 खून और करने थे. वह मोटरसाइकिल से कुछ ही देर में राधा के घर पहुंच गया, जहां प्रताप उर्फ डिंपल और राधा आंगन में ही सो रहे थे. उस ने पहले गहरी नींद में सोए प्रताप को गोली मारी. गोली की आवाज से राधा की नींद खुल गई. प्रवेश को देख कर वह जान बचाने के लिए बाहर की ओर भागी पर प्रवेश ने उस के बाल पकड़ कर उस के सिर से तमंचा सटा कर उसे भी गोली मार दी.

फायरिंग की आवाज से पूरा मोहल्ला जाग गया और प्रवेश अपनी मोटरसाइकिल तेजी से चला कर कोतवाली टप्पल पहुंच गया,जहां मौजूद मुंशी से उस ने कहा कि कोतवाल साहब को बुलाओ, मुझे उन से बात करनी है. प्रवेश के हाथ में तमंचा देख कर मुंशी समझ गया कि यह कोई अपराध कर के आया है.

मुंशी ने उस का तमंचा एक तरफ रखवा कर उसे सामने की बेंच पर बैठा दिया. फिर मुंशी ने थानाप्रभारी प्रदीप कुमार सिंह को फोन कर के सारी बात बता दी. कुछ ही देर में थानाप्रभारी वहां आ गए. प्रवेश कुमार ने उन से कहा, ‘‘साहब, मैं 2 खून कर के आ रहा हूं. तीसरा मरा है या बच गया, मुझे पता नहीं.’’

उस समय प्रवेश के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी. थानाप्रभारी ने उस से पूछताछ की तो उस ने उन्हें सारी कहानी बता दी. इस के बाद थानाप्रभारी ने उसे हिरासत में ले लिया और वाकए से अपने उच्चाधिकारियों को भी सूचित कर दिया. इस के बाद थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए, जहां हायतौबा मची हुई थी. प्रताप उर्फ डिंपल की खून से लथपथ लाश चारपाई पर पड़ी हुई थी और राधा का शव आंगन में पड़ा हुआ था.

घटना की जानकारी मिलते ही आईजी डा. संजीव गुप्ता, एसएसपी राजेश पांडे, एसपी (देहात) यशवीर सिंह और खैर के विधायक अनूप सिंह भी मौके पर पहुंच गए.पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. पुलिस ने इस बारे में गांव वालों से भी पूछताछ की लेकिन गांव वाले मुंह खोलने को तैयार नहीं थे. पर मुखबिरों के जरिए पुलिस के सामने सारी कहानी आ गई.

सूचना मिलने पर घर पहुंचे विजयपाल से जब पुलिस ने पूछताछ की तो उस ने बताया कि उसे कुछ पता नहीं कि उस के घर में क्या खिचड़ी पक रही थी. घटना के 3 दिन बाद मृतक प्रताप उर्फ डिंपल के भाई राहुल ने इस हत्याकांड में राधा की बेटी पूनम की साजिश होने की बात बताई. उस ने यह भी कहा कि उस के भाइयों के राधा के साथ नाजायज संबंध होने वाली बात सरासर गलत है.  उस के भाइयों ने तो प्रवेश को पूनम से दूर रहने की चेतावनी दी थी.

एसएसपी ने बताया कि यह बात जांच के बाद ही पता चल सकेगी कि इस दोहरे हत्याकांड में पूनम की कोई भूमिका है भी या नहीं. पुलिस जांच में यह बात सामने आ चुकी थी कि प्रवेश ने मथुरा जा कर जिस प्रभात उर्फ मोनू को गोली मार कर घायल किया था, वह आपराधिक छवि वाला है. अलीगढ़ की क्राइम ब्रांच की टीम नौहझील (बाजना) की पुलिस के साथ मिल कर जांच कर रही थी.

   – कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दिल का मामला या कोई बड़ी साजिश

फेसबुकिया प्यार के चक्कर में न पड़ जाना

रात को घर के सारे काम निपटा कर रीतू फेसबुक खोल कर चैटिंग करने बैठती तो दूसरी ओर विनोद औनलाइन मिलता, जैसे वह पहले से ही रीतू का इंतजार कर रहा होता. उस से चैटिंग करने में विनोद को भी बड़ा आनंद आता था. रीतू की प्यार भरी बातों से विनोद की दिन भर की थकान दूर हो जाती थी. वह एक प्राइमरी स्कूल में सहायक अध्यापक था. वहां छोटेछोटे बच्चों को पढ़ाने में उस का दिमाग व शरीर थक जाता था, रीतू से चैटिंग कर के वह तरोताजा महसूस करता था.

विनोद की पत्नी मायके गई हुई थी, इसलिए घर की तनहाई उसे काटने दौड़ती थी. ऐसे में उसे रीतू से भरपूर चैटिंग करने का समय मिल जाता था. रीतू भी चैटिंग द्वारा एक हफ्ते में ही विनोद से काफी घुलमिल गई थी. उस दिन भी वह उस से चैटिंग कर रहा था, तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. उस ने पूछा, ‘‘हैलो, कौन?’’

‘‘हैलो…विनोदजी, मैं रीतू बोल रही हूं. वही रीतू, जिस से आप चैट कर रहे हो.’’ दूसरी तरफ से कहा गया.

‘‘अरे रीतूजी आप, आप को मेरा नंबर कहां से मिल गया?’’ खुश हो कर विनोद ने पूछा.

‘‘लगन सच्ची हो और दिल में प्यार हो तो सब कुछ मिल जाता है, नंबर क्या चीज है.’’ रीतू ने कहा.

बड़ी मीठी आवाज थी रीतू की. उस से बातें करते हुए विनोद को बहुत अच्छा लग रहा था, इसलिए उस ने चैटिंग बंद कर के पूछा, ‘‘रीतूजी, आप रहती कहां हैं?’’

‘‘वाराणसी में.’’ रीतू ने कहा.

‘‘वाराणसी में आप कहां रहती हैं?’’

‘‘सिगरा में.’’

‘‘रीतूजी, आप करती क्या हैं?’’

‘‘मैं एक नर्सिंगहोम में नर्स हूं.’’

‘‘आप तो नौकरी के साथ समाजसेवा भी कर रही हैं. आप मैरिड हैं या..?’’

‘‘हां, मैं मैरिड हूं और आप..?’’ रीतू ने पूछा.

‘‘शादी तो मेरी भी हो चुकी है, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘कुछ खास नहीं, दरअसल पत्नी मायके गई है, इसलिए घर में उदासी छाई है.’’

‘‘ओह, मैं तो अनहोनी समझ कर घबरा गई थी. विनोदजी, सही बात तो यह है कि मेरी शादी हुई जरूर है, पर पति के होते हुए भी मैं अकेली हूं. मेरी स्थिति तो उस धोबी की तरह है, जो पानी में खड़ा होते हुए भी प्यासा रहता है.’’ कहतेकहते रीतू उदास हो गई.

रीतू की वेदना सुन कर विनोद का भी अंतरमन आहत सा हो गया था. बातचीत के बाद दोनों ने वाट्सऐप से एकदूसरे को अपनेअपने फोटो भेज दिए. रीतू बहुत सुंदर थी. गोलमटोल चेहरे पर बड़ीबड़ी कजरारी आंखें, पतलेपतले होंठ, लंबेघने घुंघराले केश. उस की मोहिनी सूरत पर विनोद मुग्ध हो गया.

अब वह रोजाना रीतू से बातें करने के लिए बेचैन रहने लगा था. मोबाइल पर जो बात वह उस से खुल कर नहीं कह पाता था, उसे फेसबुक पर चैटिंग के दौरान कह देता था. विनोद को रीतू ने बताया था कि उस का पति मनोहरलाल शराबी है.

वह जुआ भी खेलता है और शराबियों के साथ आवारागर्दी करता है. रात को नशे में झूमता हुआ घर आ कर झगड़ा और गालीगलौज कर के सो जाता है.

रीतू को जो वेतन मिलता, उसे भी वह छीन लेता था. न देने पर उसे मारतापीटता था. मार के डर से वह अपना सारा वेतन उसे दे देती थी.

रीतू विनोद से अपनी कोई बात नहीं छिपाती थी. इस तरह विनोद को रीतू से अपनापन सा हो गया था. एक रात विनोद ने फोन कर के पूछा, ‘‘क्या कर रही हो?’’

‘‘तुम्हारी याद में बेचैन हूं और तुम से मिलने के लिए तड़प रही हूं. और तुम..?’’ उस ने भी विनोद से पूछा.

‘‘मेरी भी वही हालत है.’’ विनोद ने कहा.

‘‘जब ऐसी बात है तो मेरे पास आ जाओ न, दोनों का ही अकेलापन दूर हो जाएगा.’’

रीतू की बात सुन कर विनोद के शरीर में तरंग सी उठने लगी. मन की बेचैनी बढ़ गई. उस ने कहा, ‘‘मेरे आने का क्या फायदा, घर पर तुम्हारा पति मनोहर जो है.’’

‘‘तो क्या हुआ, तुम आओ तो सही. मैं कह दूंगी कि तुम मेरे मौसेरे भाई हो. वैसे भी वह कल गांव जा रहा है. गांव से लौटने में उसे 2-4 दिन तो लग ही जाएंगे. परसों इतवार है. तुम कल जरूर आ जाओ. ऐसा मौका जल्दी नहीं मिलेगा. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’

रीतू का फोन कटा तो विनोद की बेचैनी बढ़ गई. वह रात भर करवटें बदलता रहा. जबकि पत्नी से उस की रोज ही बातें होती थीं. वह भी आने के लिए उसे बारबार फोन कर रही थी. पत्नी की मां सीरियस बीमार न होती तो वह कब की आ गई होती.

विनोद की स्थिति उस चटोरे जैसी हो गई थी, जिसे बाहर के भोजन के सामने घर का भोजन फीका लगता है. फिर रीतू का मदभरा अतृप्त यौवन कहां हमेशा मिलने वाला था. विनोद की यही सोच उसे मदहोश किए जा रही थी. लिहाजा मन बना कर वह रविवार को रीतू से मिलने वाराणसी पहुंच गया. रीतू के बताए पते पर पहुंचने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई. थोड़ीबहुत परेशानी हुई तो उस ने रीतू से फोन कर के रास्ता पूछ लिया.

रीतू के घर आते हुए विनोद के मन में जो डर और झिझक थी, वह उस से मिल कर खत्म हो गई. उस समय उस के मन में एक सवाल यह था कि न जान न पहचान, केवल फेसबुक की दोस्ती ही तो है, कहीं उस के साथ कोई छलकपट न हो. उसी पल उस ने यह भी सोचा कि यदि ऐसा होता तो इस तरह खुल कर रीतू अपनी वेदना उस से न कहती.

इन्हीं सब उलझनों में पड़े विनोद ने जब रीतू के घर की घंटी बजाई तो रीतू न केवल तुरंत बाहर आई, बल्कि स्वागत करती हुई वह उस का हाथ पकड़ कर अंदर ले गई. उस के इस व्यवहार से उस के मन में जो डर था, वह पूरी तरह से दूर हो गया.

दूसरी मंजिल पर जहां रीतू रहती थी, वह 2 कमरों का सैट था. पूरा मकान करीने से सजा हुआ था, जिसे देख कर विनोद का मन खिल उठा. रीतू उस से मिल कर आनंदविभोर हो उठी थी. घर में रीतू को अकेली पा कर उस से आलिंगनबद्ध कर वह निहाल हो गया था. खातिरदारी और उस से लिपट कर बात करतेकरते दिन ढलने लगा तो विनोद ने इशारा करते हुए कहा, ‘‘रीतू, चलो अब बैडरूम में चलते हैं. क्योंकि मुझे वापस भी जाना है.’’

‘‘कहां वापस जाना है. आज रात तुम्हें मेरे साथ रहना होगा. फिर पता नहीं कब मिलना हो?’’ कह कर विनोद को आलिंगनबद्ध किए हुए रीतू उसे बैडरूम में ले गई.

डबलबैड पर दोनों सट कर लेट गए. विनोद उस के अंगों से खेलने लगा. वह उसे निर्वस्त्र करने लगा तो रीतू ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘इतनी भी क्या जल्दी है.’’

कमरा ट्यूबलाइट की दूधिया रौशनी से भरा हुआ था. इस से पहले कि विनोद कुछ और करता, पता नहीं कहां से मनोहर उस कमरे में आ टपका. उसे देखते ही विनोद सकपका गया. वह विनोद को घूरते हुए बोला, ‘‘तू कौन है रे, जो मेरे घर में आ कर मेरी पत्नी के साथ दुष्कर्म कर रहा है.’’

विनोद की तो जैसे सिट्टीपिट्टी बंध गई, उस का सारा रोमांस गायब हो गया. रीतू अपनी साड़ी ओढ़ कर एक कोने में सिमट गई. मनोहर ने पहले तो विनोद को खूब लताड़ा. फिर लातघूंसों से उस की पिटाई करते हुए पुलिस को फोन लगाने लगा.

विनोद उस के पैर पकड़ कर पुलिस न बुलाने की भीख मांगते हुए बोला, ‘‘मनोहरजी, इस में मेरी कोई गलती नहीं है. रीतू ने ही फेसबुक पर मुझ से दोस्ती कर के यहां बुलाया था.’’

‘‘चुप कमीने, मैं कुछ नहीं जानता. फेसबुक पर दोस्ती कर औरतों को प्रेमजाल में फांस कर रंगरलियां मनाने वाले, आज तेरी खैर नहीं है. जब पुलिस का डंडा पड़ेगा, तब सारा नशा उतर जाएगा.’’ कह कर वह फिर फोन मिलाने लगा.

‘‘नहीं मनोहरजी, मुझे छोड़ दो. मेरा भी परिवार है. मेरी सरकारी नौकरी है. मुझे पुलिस के हवाले करोगे तो मैं बरबाद हो जाऊंगा.’’ कह कर वह उस के पैरों पर गिर पड़ा.

विनोद के काफी हाथपैर जोड़ने पर मनोहर ने कहा, ‘‘अपनी इज्जत और नौकरी बचाना चाहता है तो अभी 2 लाख रुपए देने होंगे. नहीं तो मैं तुझे पुलिस के हवाले कर दूंगा.’’

कह कर मनोहर ने कमरे में लगा वीडियो कैमरा हाथ में ले कर उसे दिखाते हुआ कहा, ‘‘तेरी सारी हरकत इस कैमरे में कैद है, इसलिए पैसे जल्द दे दे, नहीं तो…’’

‘‘इतने पैसे मैं अभी कहां से लाऊं. मेरे पास तो अभी केवल 70 हजार रुपए हैं.’’ कह कर 2-2 हजार के 35 नोट पर्स से निकाल कर उस ने मनोहर के सामने रख दिए.

क्रोध से लाल होता हुआ मनोहर बोला, ‘‘70 हजार..? यह भी रख ले. 2 लाख कह दिया तो उतने ही चाहिए. नहीं तो जेल जाने की तैयारी कर ले.’’

विनोद गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘आप मुझ पर दया कीजिए भैया, मैं घर जा कर बैंक से पैसे निकाल कर कल आप को दे दूंगा.’’

‘‘बहाना कर के भागना चाहता है तू, मुझे मूर्ख समझता है क्या. अभी मेरे साथ एटीएम चल.’’ कह कर वह पास की मार्केट स्थित एटीएम बूथ पर ले गया और 24 हजार रुपए निकलवा लिए. इस से ज्यादा वह निकाल नहीं सकता था, क्योंकि नोटबंदी के बाद बैंकों ने नियम ही ऐसा बना दिया था.

24 हजार रुपए अपने पास रख कर मनोहर ने विनोद को चेतावनी दी, ‘‘1 लाख 6 हजार रुपए तू जल्द दे जाना, वरना यह वीडियो मेरे पास है. यह तुझे कभी भी जेल पहुंचा सकता है.’’

विनोद वहां से चला गया और अगले दिन अपने दोस्त से 1 लाख 6 हजार रुपए उधार ला कर उस ने मनोहर को दिए, तब मनोहर ने कैमरे से वह वीडियो डिलीट की.

वीडियो डिलीट होने पर विनोद ने राहत की सांस ली. इस फेसबुकिया प्यार ने विनोद को मानसिक रूप से तो परेशान किया ही, साथ ही 2 लाख रुपए भी पल्ले से देने पड़े. इस फेसबुकिया प्यार को वह जिंदगी भर नहीं भुला पाएगा.

एयर फोर्स सार्जेंट ने रची जर, जोरू और जमीन हथियाने की साजिश

सोनाली साव हत्याकांड : इश्किया गुरु का खूनी खेल – भाग 3

उस दिन के बाद से दीपक सोनाली को ट्यूशन पढ़ाने उस के घर कभी नहीं आया. अचानक उस के ट्यूशन पढ़ाना छोड़ देने से सोनाली के पापा सुनील थोड़ा परेशान हुए. उन्होंने इस विषय में ट्यूटर से बात भी की थी, लेकिन उस ने बहाना बनाते हुए समय का अभाव बताते हुए ट्यूशन छोडऩे का कारण बताया था.

सुनील को क्या पता था कि दीपक के नीयत में कितनी बड़ी खोट आ चुकी थी. जीवन संवारने के लिए जिस के हाथों में बेटी की डोर सौंपी थी, उसी के मन में पाप का काला परिंदा फडफ़ड़ाने लगा था. शुक्र तो सोनाली का कहिए, जो मर्यादा की डोर को चरित्र के मजबूत बंधन से बंधी थी कि खुद को पाकसाफ रहने दिया. ये सब घर वालों के अच्छे संस्कार की देन थी.

इतनी बड़ी बात हुई थी. सोनाली ने यह बात समझदारी के साथ खुद ही निबटा ली थी. यह बात न तो किसी और को शेयर की थी और न ही घर वालों से बताई थी. वह जानती थी कि अगर उस ने ये बात घर वालों से बता दी तो खामखा बड़ा हंगामा हो सकता है. इसलिए इसे यहीं पर विराम देने में समझदारी समझी. इस के बाद वह एक प्राइवेट स्कूट में पढ़ाने लगी.

सोनाली ने जिस सूझबूझ का परिचय दिया था, वह काबिलेतारीफ थी. ऐसा नहीं था कि दीपक ने सोनाली को भुला दिया हो, बल्कि उस के दिल में सोनाली के लिए और प्यार उमडऩे लगा था. उसे पाने की उस की हसरतें और जवां होती जा रही थीं. बस, उसे हासिल करने के लिए नित नईनई तरकीब सोचता रहता था, वक्तबेवक्त उसे फोन कर के अपने प्यार का इजहार करता था, लेकिन सोनाली का उस के लिए एक ही जवाब था- न.

जुनूनी आशिक बन गया दीपक साव

सनकी प्रेमी दीपक ने भी ठान लिया था कि सोनाली उस की नहीं हुई तो वह किसी और की भी दुनिया में नहीं हो सकती. वह उसी के लिए आई है और उसी की बन कर रहेगी. वह उस की नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं हो सकती. तब उसे मरना होगा. इस के अलावा उस के पास जीने के लिए दूसरा कोई रास्ता नहीं बचा है.

पागलपन की हद से भी ज्यादा दीपक साव शिष्या रह चुकी सोनाली से एकतरफा प्यार करता था. जब सोनाली ने उस का प्यार ठुकरा दिया तो वह ईष्र्या की आग में जलने लगा था. ईष्र्या की इसी आग में जलते दीपक ने खतरनाक फैसला ले लिया.

घटना से 6 महीने पहले यानी सितंबर 2022 में सुपारी किलर भरत कुमार उर्फ कारू निवासी मझलीटांड़, थाना डोमचांच को डेढ़ लाख रुपए में उस की हत्या की सुपारी दे दी और पेशगी के तौर पर उसे 50 हजार रुपए भी दे दिए. इश्क में पागल हुए दीपक साव का साथ रोहित मेहता ने दिया. सुपारी लेने के बाद अपने 4 साथियों संतोष मेहता और संजय मेहता के साथ मिल कर सोनाली की रेकी करने लगा.

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कहते हैं कि ‘जाको राखे साइयां, मार सके न कोय’, ये कहावत उस के साथ चरितार्थ हुई थी. 6 महीने बीत गए थे, मगर कारू अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सका था. फिर दीपक ने ही एक दांव चला. वह जानता था इन दिनों सोनाली के घर वाले आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. पैसों की उन्हें सख्त जरूरत है.

इसी बात का लाभ उठाते हुए दीपक ने सोनाली से बात की कि उस के जानपहचान का एक बैंक है, जो बिना किसी शर्त के लोन दे सकता है. अगर तुम लोन लेना चाहो तो मैं तुम्हें वह दिलवा सकता हूं. जबकि दीपक का किसी भी बैंक वाले से कोई परिचय नहीं था. उस ने सोनाली को झांसे में लेने के लिए पांसा फेंका था, जो सही जगह जा कर लगा था. सोनाली ने लोन लेने के लिए हामी भर दी थी क्योंकि उसे पैसों की सख्त जरूरत थी.

ट्यूटर ने की हत्या

बात 21 मार्च, 2023 की है. दीपक ने सोनाली को सुबह फोन कर उसे मिलने के लिए बीरजामू के पास बुलाया. उस दिन सोनाली ने स्कूल से छुट्ïटी ले ली थी और घर पर ही थी. करीब साढ़े 10 बजे सोनाली मां को ‘दीपक सर से मिलने जाना है’ बता कर अपना पर्स और मोबाइल साथ ले कर निकली. उस ने यह भी कहा कि वह काम पूरा होते ही घंटे-2 घंटे में घर वापस लौट आएगी.

सोनाली पैदल ही डेढ़ घंटे में बीरजामू पहुंची तो सडक़ के बाईं पटरी पर एक चार पहिया वाहन के पास ओट लगा कर दीपक खड़ा उसे देख कर मंदमंद मुसकरा रहा था तो सोनाली भी हौले से मुसकरा दी. फिर दीपक ने कार का दरवाजा बाहर खोल कर उसे बैठने का इशारा किया तो वह कार की आगे वाली सीट पर बैठ गई.

कार की ड्राइवर सीट पर रोहित मेहता बैठा था, जबकि पीछे की सीट पर भरत उर्फ कारू, संजय मेहता, संतोष मेहता और दीपक बैठा था. दीपक का इशारा मिलते ही कार फर्राटा भरने लगी थी. हालांकि पहले से कार में बैठे लोगों को देख कर सोनाली चौंकी थी, लेकिन बाद में दीपक ने सोनाली से अपना पुराना दोस्त कह कर परिचय दिया तो वह सामान्य दशा में आई थी.

रोहित जब कार ले कर सुनसान इलाके की ओर बढ़ा तो सोनाली घबरा गई और उस ने दीपक से पूछा कि वह उसे कहां ले कर जा रहा है. ये रास्ता तो शहर की ओर नहीं जाता है. इस पर दीपक ने जवाब दिया, “तुम ठीक सोचती हो. ये रास्ता शहर की ओर नहीं, मौत की ओर जाता है. अब बता तू मुझ से शादी करेगी कि नहीं? मेरी बनेगी कि नहीं.”

इस पर सोनाली बिदक गई, “हजार बार कह चुकी हूं, मैं तुम से न तो प्यार करती हूं और न ही शादी कर सकती. तुम ने मेरे साथ धोखा किया है.”

“क्या करूं मेरी जान, प्यार और जंग में सब जायज होता है. मैं ने तुम से पागलपन की हद से ज्यादा प्यार किया और तुम ने मेरे प्यार को नहीं समझा. तो सुन ले अगर तू मेरी नहीं हो सकती तो मैं तुझे किसी और की भी नहीं होने दूंगा. अब मरने के लिए तैयार हो जा हरामजादी.” कहते हुए सनकी प्रेमी दीपक ने पास में रखे मोबाइल चार्जर की केबिल से गला कस कर उसे मौत के घाट उतार दिया और गाड़ी नीरू पहाड़ी खदान की ओर चलने का इशारा किया.

रोहित ने वैसा ही किया जैसा दीपक ने करने को कहा. उस ने कार नीरू पहाड़ी खदान की ओर मोड़ दी. वह इलाका बिलकुल सुनसान था. खदान के पास पहुंच कर पांचों कार से बाहर निकले, कार में पहले से रखे प्लास्टिक की बड़े आकार की बोरी निकाली. उस में एक बड़े आकार का भारी पत्थर डाला फिर सोनाली की लाश तोड़मरोड़ कर उस बोरी में भरी और उसे रस्सी से कस कर बांध दिया.

एकतरफा प्यार में हत्या करने के बाद उन्होंने सोनाली की लाश ऊपर से नीचे खदान में फेंक दी. इस से पहले दीपक ने सोनाली का फोन अपने कब्जे में ले लिया था. लाश ठिकाने लगाने के बाद पांचों कार में सवार हुए और अपनेअपने घरों को लौट गए. फिर क्या हुआ, कहानी में वर्णन किया जा चुका है.

कथा लिखे जाने तक पांचों आरोपी दीपक कुमार साव, रोहित कुमार मेहता, भरत कुमार उर्फ कारू, संजय मेहता और संतोष मेहता जेल की सलाखों के पीछे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सोनाली साव हत्याकांड : इश्किया गुरु का खूनी खेल – भाग 2

टीचर सोनाली साव की हत्या से कोडरमा की जनता मर्माहत भी थी और आक्रोशित भी. 28 मार्च की शाम आक्रोशित लोगों ने बेहराडीह से शांति कैंडल मार्च निकाला और कोडरमा-जमुआ राष्ट्रीय राजमार्ग ले जा कर खत्म किया. सभी के मन में आक्रोश का लावा फूट रहा था. शांति मार्च के बीच वे हत्या में शामिल सभी आरोपियों को फांसी देने, पीडि़त परिवार को 25 लाख रुपए का मुआवजा, परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी और पुलिस की नाकामी के विरुद्ध नारेबाजी करते रहे.

बीचबीच में वे ‘सोनाली हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं’ के भी नारे लगा रहे थे. शांति मार्च का नेतृत्व पूर्व मुखिया राजेंद्र मेहता कर रहे थे. आंदोलित नागरिकों के भारी आक्रोश के चलते पुलिसप्रशासन की बुरी तरह छिछालेदर हो रही थी. स्थानीय नेताओं का बाकी के बचे तीनों आरोपियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का दबाव बना हुआ था.

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आखिरकार, अगले दिन यानी 29 मार्च, 2023 को तीनों आरोपियों भरत कुमार उर्फ कारू, संतोष मेहता और संजय मेहता को पुलिस ने उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वे तीनों शहर छोड़ कर कहीं भागने के फिराक में थे. पुलिस पूछताछ में तीनों आरोपियों ने भी सोनाली के अपहरण करने और बाद में हत्या करने का अपना जुर्म कुबूल कर लिया. पुलिस उन्हें भी अदालत के सामने पेश कर जेल भेज दिया.

पुलिस पूछताछ में शिक्षिका सोनाली साव उर्फ सोनी कुमारी के पाचों हत्यारों दीपक साव, रोहित मेहता, भरत उर्फ कारू, संतोष मेहता और संजय मेहता ने जो बयान दिए थे, उस के आधार पर दिल को कंपा देने वाली एकतरफा प्यार में मर्डर की जो कहानी सामने आई, वह कुछ ऐसी थी—

सोनाली दीपक कुमार से पढ़ती थी होम ट्यूशन

24 वर्षीय सोनाली साव उर्फ सोनी कुमारी मूलरूप से झारखंड के कोडरमा जिले के थाना डोमचांच स्थित कस्बा दाब रोड की रहने वाली थी. पिता सुनील कुमार साव प्राइवेट नौकरी कर के अपने 5 सदस्यीय परिवार का पालनपोषण कर रहे थे. वह इतना कमा लेते थे, जिस से किसी तरह परिवार का भरणपोषण हो जाता था, लेकिन बचत नहीं हो पाती थी यानी सुनील की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी.

सोनाली बच्चों में सब से बड़ी थी. वह मेधावी, मेहनती थी और बेहद जिजीविषा वाली थी. घर की माली हालत को समझती थी. एक दिन सोनाली ने मम्मीपापा से अपने मन की बात बताते हुए कहा, “मैं पढ़लिख कर कोई बड़ा अधिकारी बनना चाहती हूं.”

उस के पापा सुनील कुमार ने भी उस का उत्साह बढ़ाते हुए कहा, “बेटा, तुम जितना पढऩा चाहती हो, पढ़ो. पैसों की चिंता मत करना, वह सिरदर्द मेरा है. मैं किसी से भी कर्ज ले कर तुम्हें पढ़ाऊंगा, तुम्हारा सपना पूरा करूंगा, बेटा, तनिक भी तुम विचलित मत होना. तुम पढ़ो, सिर्फ पढ़ो.”

पिता ने सोनाली को जो हिम्मत और हौसला दिया था, उस से उस का उत्साह कई गुना बढ़ गया था और हिम्मत भी. उस दिन के बाद से सुनील ने घर पर बेटी के लिए एक ट्यूटर लगा दिया था ताकि बेटी के जीवन को वह संवार सकें और उस के सपनों को मुकम्मल राह दे सकें, जो उस ने देखा है. ये करीब 5 साल पहले की बात थी, वह ट्यूटर कोई और नहीं बल्कि दीपक कुमार साव ही था, जो डोमचांच के महयाडीह का रहने वाला था. तब दीपक का जलवा था. वह घरघर जा कर बच्चों को ट्यूशन देने का काम करता था. उस का पढ़ाया बच्चों के मस्तिष्क पर किसी बेहतरीन फिल्म की कहानी की तरह छप जाता था.

अपने कलात्मक व्यवहार से वह बच्चों को ऐसे मांजता था कि बच्चे तो बच्चे, उन के घर वाले भी उस के मुरीद हो जाते थे. तभी तो वह जिस घर में ट्यूशन शुरू करता था सालोंसाल उसी घर में ट्यूशन देता था. औसत कदकाठी, गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें, गोलमटोल चेहरा और कसरती बदन वाला दीपक आकर्षक व्यक्तित्व का धनी युवक था तो सोनाली भी कुछ कम नहीं थी.

करीब 5 फुट 6 इंच लंबी सोनाली भी खूबसूरती की मिसाल थी. उस का गोरा रंग और अंडाकार चेहरे पर जब मुसकान तैरती तो सामने वाला एक तरह से घायल हो जाता था. वह उम्र के जिस पड़ाव में आ कर वह खड़ी थी, अकसर वहां से लडक़ेलड़कियों के पांव फिसल जाते थे, लेकिन सुंदर और जहीन होते हुए भी सोनाली ने अपने पैरों को डगमगाने नहीं दिया था.

खैर, 12वीं क्लास में पढ़ रही सोनाली के सौंदर्य की खुशबू से आसपास के वातावरण महक उठा था. उस के इर्दगिर्द आवारा भंवरे मंडराने लगे थे, लेकिन उस ने दिल के दरवाजे पर मर्यादा का ताला बंद कर दिया था ताकि चुपके से कोई भी मनचला दिल के भीतर घुस न सके. दिल के दरवाजे पर भले ही सोनाली ने ताला जड़ दिया हो, लेकिन एक ऐसा भी भौंरा था, जो उस के तीखे और कजरारे नयनों के रास्ते उस के दिल में मुकाम बनाने की जुगत में परेशान रहता था. वह कोई और नहीं था बल्कि उसे ज्ञान का पाठ पढ़ाने वाला आशिकमिजाज ट्यूटर दीपक साव ही था.

गुलाब की कली सी खिली शिष्या सोनाली को जब से आशिकमिजाज गुरु दीपक ने देखा था, उस की सलोनी सूरत अपने दिल में बसा ली थी. ट्यूशन उसे पढ़ाता कम अपलक उसे निरंतर निहारता ज्यादा था. सोनाली कम समझदार नहीं थी, जो अपने ट्यूटर के इश्क को न समझती. वह तो शिष्य और गुरु की मर्यादा का पालन करती रही. गुरु के लिए उस के दिल में सिर्फ और सिर्फ सम्मान और अदब था, जबकि वह उसे और रूप में देख रहा था. उस के सम्मान को प्यार समझ बैठा था तो इस में सोलानी का क्या कुसूर था.

सोनाली से करने लगा एकतरफा प्यार

ट्यूटर दीपक अपनी शिष्या सोनाली से प्यार करने लगा था. उस का यह प्यार एकतरफा था. उस के हंस कर बोलने या बातचीत करने की अदा को वह प्यार समझ बैठा था. एक दिन मौका देख कर दीपक अपने प्यार का इजहार सोनाली से कर बैठा, “मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं सोनाली, मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता.” कहते हुए उस ने शिष्या सोनाली के दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए, “जब से तुम को देखा है, उसी दिन से मुझे तुम से प्यार हो चुका है.”

“ये क्या कह रहे हैं, सर.” सोनाली अपना हाथ छुड़ाती हुई बोली, “आप का दिमाग ठिकाने तो है न?”

“हां, मेरा दिमाग ठिकाने पर है और मैं भी, लेकिन मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता सोनाली, मेरे प्यार को अपनी स्वीकृति की मोहर लगा हो, प्लीज.”

“आज कह दिया तो कह दिया, पर आइंदा मेरे से ऐसीवैसी बातें मत करना, मैं ऐसीवैसी लडक़ी नहीं हूं. हमारे बीच में सिर्फ गुरु और शिष्या का रिश्ता है, बस. इस के अलावा मैं और किसी रिश्ते को नहीं जानती और न ही मेरे से कोई रिश्ता जोडि़एगा. गुरु होने के नाते मैं सिर्फ आप का सम्मान करती हूं. इस सम्मान व पवित्र रिश्ते को आप ने प्यार समझ लिया.”

सोनाली गुस्सा भी हुई और उसे रिश्तों की मर्यादा की झलक भी दिखाई.

“चाहे जो कह लो तुम, मैं तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं मानता. बस, इतना जानता हूं कि मैं तुम्हें दिल की गहराइयों से भी ज्यादा प्यार करता हूं और भविष्य में तुम से शादी करना चाहता हूं, बस.”

“ओफ्फोऽऽ” झुंझलाती हुई सोनाली आगे बोली, “आप ने पागलपन की सारी हदें पार कर दी हैं. कितनी बार कहूं, मैं आप से कोई प्यारव्यार नहीं करती और न ही इस गलतफहमी में रहिएगा कि मैं आप से प्यार करूंगी. मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूं, जहां हमें मर्यादा में रहना सिखाया जाता है, अपने गुरुओं का सम्मान करना सिखाया जाता है.”

“ऐसा कह कर मेरा दिल मत तोड़ो सोनाली. एक बार फिर मैं तुम से कहता हूं, मैं बहुत प्यार करता हूं तुम से और शादी भी तुम्हीं से करना चाहता हूं.”

“फिर तो इस जनम में संभव नहीं है, सर.”

“तुम्हारे सामने अपने प्यार की भीख मांगता हूं.”

“तब भी मेरी ओर से न है, मैं आप से प्यार नहीं करती, नहीं करती, नहीं करती. आप यहां से चले जाइए, फिर दोबारा लौट कर कभी मत आइएगा. नहीं तो मेरे मम्मीपापा ये प्यार वाली बात सुन लेंगे तो हम दोनों को जिंदा गाड़ देंगे. प्लीज सर, आप यहां से चले जाओ, मुझे आप से कोई रिश्ता नहीं रखना है, प्लीज प्लीज.” सोनाली ट्यूटर दीपक के सामने अपने दोनों हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई तो अपना सा मुंह ले कर दीपक को वहां से जाना ही पड़ा.

                                                                                                                                             क्रमशः