बदनामी का डर : प्रेमी बना ब्लैकमेलर – भाग 1

श्वेता बिस्तर पर लेटी जरूर थी, लेकिन नींद न आने की वजह से वह बारबार लंबी सांसें छोड़ कर करवट बदल रही थी. बेचैनी ज्यादा बढ़ जाती तो उठ कर कमरे में ही टहलने  लगती. उस के मन में जो जबरदस्त  अंर्तद्वंद्व चल रहा था, वह उस के चेहरे पर साफ झलक रहा था. उस ने जो गलती की थी, उसी के पश्चाताप की आग में वह जल रही थी. जैसे ही वह अपने अतीत में झांकती, इतना डर जाती कि सांसें तेजतेज चलने लगतीं. इस के बाद वह सोचने लगती कि अतीत में की गई गलती से वह वर्तमान में कैसे छुटकारा पाए. यही बात उस की समझ में नहीं आ रही थी, जो उस की बेचैनी का सबब बनी हुई थी.

श्वेता ने जो गलती की थी, उस बात पर उसे बेहद अफसोस था. उसी गलती ने आज उसे ऐसी जगह पर ला कर खड़ा कर दिया था, जहां से उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था. जिंदगी उसे मौत से भी बदतर लग रही थी. इसलिए वह मौत के बारे में सोचने लगी थी, क्योंकि मौत ही अब उसे इस समस्या और चिंता से मुक्ति दिला सकती थी.

लंबी सांस ले कर श्वेता ने खिड़की से दूर क्षितिज की ओर देखा. बाहर गहरा अंधकार और सन्नाटा पसरा हुआ था. एक गलती की वजह से ठीक वैसा ही अंधकार और सन्नाटा उस के जीवन में भी पसर गया था, जिस के लिए वह स्वयं दोषी थी. अगर वह अपनी बेलगाम इच्छाओं और कामनाओं को काबू रखती तो शायद आज यह दिन उसे न देखना पड़ता.

बिना पतवार की नाव की तरह वह भटकतेभटकते एक ऐसे भंवर में फंस गई थी, जहां से निकलने का उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. ऐसे में ही कभी वह अपने 4 वर्षीय बेटे हितेन के बारे में सोचती तो कभी पति साहिल के बारे में. साहिल सिंह सारी चिंताओं से मुक्त एकदम शांति से बिस्तर पर लेटा सो रहा था.

कल तक जो साहिल उसे गंवार, साधारण और भोंदू नजर आ रहा था, इसी वजह से वह उस से घृणा करती थी. आज उसी भोंदू साहिल पर उसे प्यार आ रहा था. लेकिन अब अफसोस इस बात का था कि उस के पास उस से प्यार करने का वक्त नहीं था. अब न ही वह उस से दुख प्रकट कर सकती थी, न ही उस का घर बरबाद होने से बचा सकती थी. समय उस की उच्च महत्त्वाकांक्षाओं और हाईसोसायटी के साथ उस के हाथों से सरक गया था.

श्वेता के पास अब पछताने के अलावा कुछ नहीं बचा था. यहां तक कि उस के पास अपनी गलती का प्रायश्चित करने का भी समय नहीं रह गया था. उस की यह हालत कई दिनों से थी. लेकिन आज जो हुआ था, उस ने उस की बेचैनी को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया था. वह अजीब कशमकश में फंसी थी.

बात ऐसी थी कि चाह कर भी वह यह राज किसी को नहीं बता सकती थी. श्वेता जानती थी कि उस ने बहुत बड़ी गलती की थी, लेकिन अब उसे सुधारने का न कोई रास्ता था न समय. वह कई दिनों से उसी गलती की वजह से परेशान थी, जो उस के चेहरे पर साफ झलक भी रही थी. उसे परेशान देख कर साहिल ने पूछा भी था. हर बार वह ‘कोई खास बात नहीं है’, कह कर टाल दिया था.

दरअसल, साहिल अपने कामों में कुछ अधिक ही व्यस्त रहता था, इसलिए श्वेता को बिलकुल समय नहीं दे पाता था. श्वेता के ठीक से जवाब न देने से उसे लगा कि कहीं उसी की वजह से तो वह परेशान नहीं है. इसलिए 10 मार्च की दोपहर को जब वह खाना खाने घर आया तो उस ने कहा, ‘‘श्वेता, आज रात का खाना केवल मां और बाबूजी के लिए ही बनाना. हम दोनों बाहर खाने चलेंगे.’’

अशोक कुमार सिंगला जगराओं शहर के किराना के थोक व्यापारी थे. जगराओं के आतुवाला चौक में उन की बहुत बड़ी दुकान थी. उन का यह व्यवसाय पुश्तैनी था. शहर में उन की गिनती बड़े व्यापारियों में होती थी. जगराओं जैसे छोटे शहर के वह बड़े व्यापारी थे. पास में पैसा था, इसलिए शहर में इज्जत भी थी और रुतबा भी था.

अशोक कुमार सिंगला के परिवार में पत्नी कुसुम के अलावा बेटी शिखा तथा बेटा साहिल सिंह उर्फ रिकी था. शहर के पौश इलाके ग्रेवाल कालोनी में 5 सौ वर्गमीटर में उन की 2 मंजिला विशाल कोठी थी. बेटी की शादी के बाद साहिल पढ़ाई पूरी कर के पिता के साथ दुकान पर बैठने लगा तो वह उस की शादी के बारे में सोचने लगे थे.

2-4 लड़कियां देखने के बाद अशोक कुमार सिंगला ने साहिल की शादी लुधियाना के रहने वाले बृजभूषण गोयल की बेटी श्वेता को पसंद कर के उस के साथ कर दी थी. बृजभूषण का लुधियाना में कपड़े रंगने का व्यवसाय था. श्वेता के अलावा उन का भी एक ही बेटा था गौरव.

लुधियाना जैसे महानगर में पलीबढ़ी श्वेता को जगराओं जैसा छोटा शहर देहात जैसा लगता था. उस का वश चलता तो वह एक पल भी जगराओं में न रुकती. लेकिन मांबाप की इज्जत की खातिर वह स्वयं को ससुराल में व्यवस्थित करने की कोशिश करने लगी थी. इस में वह काफी हद तक सफल भी हो गई थी.

श्वेता को एक बेटा पैदा हुआ तो उस का नाम हितेन रखा गया. चूंकि श्वेता उच्चशिक्षा प्राप्त थी और उस ने महानगर और कालेज की रंगीनियों में दिन गुजारे थे, इसलिए कभीकभी न चाहते हुए भी उस के मन को भटका देते थे. घर में पड़ेपड़े श्वेता का दम घुटने लगा तो उस ने लैपटौप खरीद लिया. नेट लगवा कर वह उसी पर समय काटने लगी.

कोई चिंता उसे थी नहीं, उतनी बड़ी कोठी में सास कुसुम के अलावा और कोई नहीं होता था. वह भी ज्यादातर बीमार ही रहती थीं.  नेट से भी मन भर जाता तो श्वेता समय काटने के लिए कार ले कर निकल पड़ती. जगराओं में ऐसा कुछ था नहीं, जहां वह समय गुजारती. इसलिए वह लुधियाना चली जाती. सिंगला परिवार इस का बुरा भी नहीं मानता था.

श्वेता खुले विचारों की आधुनिक युवती थी, जिस से वह आजाद पंछी की तरह हवा में उड़ना चाहती थी. जबकि उस की ससुराल वाले धार्मिक प्रवृत्ति के थे, इसलिए वो आजकल की चकाचौंध और फैशनपरस्ती से काफी दूर थे. यही वजह थी कि ससुराल उसे कैदखाने की तरह लगती थी.

श्वेता कुछ मांबाप की इज्जत का खयाल कर रही थी तो कुछ समाज का, इसीलिए वह साहिल के साथ दांपत्य की गाड़ी खींच रही थी. क्योंकि साहिल उसे भोंदू, गंवार और बेवकूफ लगता था. शायद इसीलिए एक दिन दांपत्य की इस गाड़ी को ऐसा झटका लगा कि श्वेता की गाड़ी दूसरी पटरी पर चली गई.

पिछले साल मई में श्वेता के भाई गौरव की शादी थी. उस के भाई की शादी थी, इसलिए शादी में शामिल होने के लिए वह तो आई ही थी, पति और सासससुर भी शादी में शामिल होने आए थे. यह शादी लुधियाना के गुलमोहर पैलेस में हो रही थी. इसी शादी में श्वेता की मुलाकात हितेश जिंदल से हुई.

आगे क्या हुआ? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग…

किसी एक की नहीं हुई अनारकली – भाग 3

अनारकली की बात पर बलराम ने भी बहस करनी जरूरी नहीं समझी. वह उसे समझाने की कोशिश करने लगा. पर उसी समय उस ने यह जरूर तय कर लिया था कि इस धोखेबाज औरत को वह सबक जरूर सिखाएगा. और यह काम उस के साथ रह कर संभव हो सकता था.

बलराम के दिल में कसक तो थी ही. वह बस मौके का इंतजार कर रहा था. बात 2 दिसंबर, 2016 की है. दोपहर के समय बलराम दशघरा गढ़ी स्थित अपने कमरे पर आया. उस के दिल में अनारकली के प्रति गुस्सा तो भरा ही हुआ था. बलराम ने उस के चरित्र को ले कर बात शुरू की तो अनारकली भड़क गई. दोनों तरफ से गरमागरमी होने लगी. तभी बलराम कमरे में स्लैब पर रखा अपना हथौड़ा उठा लिया और उस का एक वार उस के सिर पर किया.

हथौड़े के वार से अनारकली बेहोश हो कर गिर पड़ी और उस के सिर से खून निकलने लगा. इस के बाद उस ने उस की पीठ पर भी हथौड़े से कई वार किए. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

अनारकली की हत्या करने के बाद बलराम को तसल्ली हुई पर उस के सामने समस्या यह आ गई कि लाश को ठिकाने कैसे लगाए.

कुछ देर सोचने के बाद वह कमरे में रखा किचन में प्रयोग होने वाला चाकू उठा लाया. उस चाकू से उस ने अनारकली को कूल्हे के ऊपर से काट कर 2 हिस्सों में कर दिया. कमरे में बड़ेबड़े 2 ट्रैवल बैग रखे थे. उन में रखे कपड़े निकाल दिए. इस के बाद उस ने उन में लाश के टुकड़े रख दिए. फिर उस ने कमरे का खून साफ किया. अब वह अंधेरा होने का इंतजार करने लगा.

अंधेरा होने पर उस ने वह बैग उठाया, जिस में अनारकली का सिर और धड़ वाला भाग रखा था. उस बैग को रिक्शे में ले कर वह कैप्टन गौड़ मार्ग पर नाले के पास स्थित बसस्टैंड पर उतर गया. कुछ देर वहां बैठने के बाद जब उसे आसपास कोई दिखाई नहीं दिया तो उस ने उस बैग को नाले के किनारे झाडि़यों में डाल दिया.

एक बैग को ठिकाने लगाने के बाद वह कमरे पर आया और दूसरे बैग को रिक्शे में ले कर कैप्टन गौड़ मार्ग पर स्थित मसजिद के पास उतर गया.

फिर वहां से कुछ मीटर आगे चल कर उस ने वह बैग भगेल मंदिर के पास पुलिया के नीचे गिरा दिया. वह इलाका श्रीनिवासपुरी क्षेत्र में आता है. वहां से बह रहे बड़े नाले में 2 छोटे नाले भी जुड़े हुए हैं. वह बैग जिस में अनारकली के कूल्हे और पैर वाला भाग था, लुढ़क कर एक छोटे नाले के किनारे पहुंच गया.

दोनों बैग ठिकाने लगाने के बाद बलराम ने राहत की सांस ली. फिर कमरे की सफाई कर के खून से सनी चादर कूड़े के ढेर पर फेंक आया. इस के बाद वह ताला लगा कर अपने एक जानकार के यहां चला गया.

नोटबंदी के बाद जिस तरह जगहजगह नोट पड़े होने की खबरें सामने आई हैं, उसी तरह नाले के पास झाडि़यों में पड़े उस बैग को किसी व्यक्ति ने लालच में आ कर खोला होगा. पर नोटों की जगह उस में लाश देख कर उसे जरूर पसीना आ गया होगा. डर की वजह से वह बैग को खुला छोड़ कर भाग गया.

उधर भगेल मंदिर के पास छोटे नाले के पास जो बैग गिरा था, उसे कुत्तों ने फाड़ कर उस में से लाश निकाल कर खा ली. केवल एक टांग पर कुछ मांस बचा था. जानवरों की खींचातानी में वह हिस्सा नाले में गिर गया.

पुलिस ने एम्स की मोर्चरी में लाश के जो 2 हिस्से रखवाए थे, उन की डीएनए जांच की गई तो वह दोनों एक ही महिला के पाए गए. बलराम से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हथौड़ा और चाकू भी कमरे से बरामद कर लिया. खून से सनी चादर जहां फेंकी थी, पुलिस उसे वहां ले कर गई पर नगर निगम की गाड़ी वहां के कूड़े को ले जा चुकी थी, जिस से वह चादर वहां नहीं मिल सकी. पुलिस ने बलराम को भादंवि की धारा 302, 201 के तहत गिरफ्तार कर के साकेत कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी अर्चना बेनीवाल की कोर्ट में पेश कर उसे 2 दिनों के रिमांड पर लिया.

रिमांड अवधि में संबंधित स्थानों की तसदीक कराने के बाद उसे फिर से कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक बलराम जेल में बंद था. मामले की विवेचना इंसपेक्टर राजेश मौर्य कर रहे हैं.

कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

किसी एक की नहीं हुई अनारकली – भाग 2

अब तक की जांच में मृतका के साथ रहने वाले बलराम पर ही शक जा रहा था, क्योंकि वह गायब था. पुलिस टीम उसे ढूंढने में जुट गई. इस काम में पुलिस ने अपने मुखबिरों को भी लगा दिया. प्रवीण ने पुलिस को बताया था कि मृतका अनारकली का एक बेटा भी है जो चेन्नै में रहता है. पुलिस ने प्रवीण से उस का, अनारकली और उस के बेटे का फोन नंबर ले लिया. तीनों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

इस के अलावा इन तीनों नंबरों के द्वारा जिन नंबरों से बात होती थी, उन की भी जांच की. इस जांच में अनारकली के फोन नंबर की लोकेशन उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले की आ रही थी.

अनारकली के इस नंबर से जिनजिन नंबरों से संपर्क हुआ था, उन सब को जांच के दायरे में लिया गया. इन में से एक नंबर दिल्ली के संगम विहार इलाके का मिला. संगम विहार के जिस व्यक्ति का यह नंबर था, वह एक औटो ड्राइवर था. पुलिस उस तक पहुंच गई. उस से पूछताछ की गई तो वह पुलिस को बेकसूर लगा.

उधर पुलिस की बलराम को ढूंढने की कोशिश जारी थी. फिर 7 दिसंबर, 2016 को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर बलराम को दिल्ली के नेहरू प्लेस मैट्रो स्टेशन के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि अनारकली उस के साथ 20 साल से लिवइन रिलेशन में रहती थी. पर उस ने हालात ऐसे खड़े कर दिए थे कि उसे उस की हत्या के लिए मजबूर होना पड़ा. बलराम ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, चौंकाने वाली निकली.

अनारकली उर्फ अन्नू मूलरूप से चेन्नै की रहने वाली थी. उस के मातापिता बेहद गरीब थे, इस वजह से वह नहीं पढ़ सकी. उस के मोहल्ले की कई लड़कियां दिल्ली में नौकरी या फिर दूसरे कामधंधे करती थीं. अनारकली जब करीब 16 साल की हुई तो उस के पिता ने उसे काम करने के लिए मोहल्ले की लड़कियों के साथ दिल्ली भेज दिया.

वह कोई पढ़ीलिखी तो थी नहीं, जिस से उस की कहीं नौकरी लग जाती. कुछ कोठियों में उसे झाड़ूपोंछा आदि का काम जरूर मिल गया. बाद में उसे और कोठियों में भी काम मिलते चले गए. कई जगह काम करने से उसे महीने की अच्छी कमाई होने लगी. उन पैसों में से वह कुछ पैसे अपने मांबाप के पास भेज देती थी.

दिल्ली में साल भर काम करने के बाद अनारकली काफी चालाक हो गई थी. अब वह पहले वाली सीधीसादी अन्नू नहीं रह गई थी. उसी दौरान 17 साल की अनारकली उर्फ अन्नू की मुलाकात दुरक्कन नाम के युवक से हुई जो दिल्ली में एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. दुरक्कन 20-22 साल का युवक था. वह भी चेन्नै का रहने वाला था, इसलिए दोनों के बीच जल्द ही दोस्ती हो गई जो बाद में प्यार में बदल गई. अपने कामधंधे से निपटने के बाद दोनों मिलतेमिलाते रहते थे.

अनारकली अपने मांबाप से भले ही सैकड़ों किलोमीटर दूर रह कर अपने प्रेमी के साथ मौजमस्ती कर रही थी, इस के बावजूद भी इस की जानकारी उस के घर वालों को हो गई थी. इस बारे में जब उन्होंने अनारकली से बात की तो उस ने साफसाफ बता दिया कि वह दुरक्कन से शादी करना चाहती है. घर वालों ने उस की बात मानते हुए दुरक्कन से उस की शादी कर दी. इस के बाद वह पति के साथ दिल्ली में रहने लगी.

अनारकली और उस का पति दोनों कमा रहे थे, इसलिए उन की घरगृहस्थी बड़े आराम से चल रही थी. इसी दौरान वह एक बेटे की मां बन गई, जिस का नाम श्रीनिवासन रखा. प्यार से सभी उसे सनी कहते थे. शादी के 7-8 साल बाद दुरक्कन पत्नी को अकेला छोड़ कर कहीं चला गया. अनारकली ने अपने स्तर से जब पति के बारे में पता लगाया तो जानकारी मिली कि उस का किसी और लड़की से चक्कर चल रहा था. वह उस लड़की को ले कर चेन्नै भाग गया है. पति के इस विश्वासघात से अनारकली को बड़ा दुख हुआ.

वह दिल्ली में बेटे सनी के साथ अकेली थी. उस ने सनी को अपने मायके भेज दिया ताकि वह अपने नानानानी की देखरेख में पढ़ाई पूरी कर सके. अनारकली की उम्र उस समय करीब 24-25 साल थी. यह उम्र अकेले काटे से नहीं कटती. पति उसे धोखा दे कर चला गया था. उसी दौरान उस की मुलाकात बलराम नाम के व्यक्ति से हो गई.

बलराम प्लंबर था. वह मूलरूप से उड़ीसा के केंद्रपाड़ा जिले का रहने वाला था. वह शादीशुदा था, उस की पत्नी उड़ीसा में ही रहती थी. धीरेधीरे दोनों इतने नजदीक आ गए कि उन्होंने साथसाथ रहने का फैसला कर लिया. वे दोनों दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना अमर कालोनी के गांव दशघरा गढ़ी में लिवइन रिलेशन में रहने लगे.

अनारकली ने घरों में काम करना बंद कर दिया. वह ईस्ट औफ कैलाश में स्थित नर्सरी के पास फुटपाथ पर चाय की दुकान चलाने लगी. बलराम का साथ मिलने पर अनारकली के जीवन में खुशहाली लौट आई थी. करीब 20 साल तक दोनों लिवइन रिलेशन में रहते रहे.

इस बीच बलराम समयसमय पर उड़ीसा स्थित अपनी पत्नी और बच्चों से मिलने चला जाता था. उस के 2 बेटियां और एक बेटा था. बीवी और जवान बच्चों को इस बात की भनक तक नहीं लग सकी थी कि वह दिल्ली में किसी औरत के साथ रह रहा है.

करीब डेढ़ महीने पहले बलराम उड़ीसा से दिल्ली लौटा तो अनारकली का व्यवहार कुछ बदला हुआ था. हालांकि अनारकली का सारा खर्च वह खुद उठाता था, इस के बावजूद भी वह उस के साथ रूखा व्यवहार कर रही थी. इतना ही नहीं, वह बिस्तर पर भी उसे अपने पास नहीं फटकने देती थी. बलराम को शक हो गया कि जरूर इस के किसी और से संबंध हो गए हैं. वह पता लगाने में जुट गया कि ऐसा कौन आदमी है.

बलराम ने जल्द ही इस बारे में जानकारी जुटा ली. उसे पता चला कि अनारकली के एक नहीं बल्कि 2 औटो ड्राइवरों से नाजायज संबंध हैं. यह जानकारी मिलते ही बलराम के तनबदन में आग सी लग गई. उस का मन तो कर रहा था कि वह अनारकली को अभी ऐसी सजा दे, जिसे वह जिंदगी भर न भूल सके. पर वह कोई बात सोच कर अपना गुस्सा पी गया.

उस ने शाम को अनारकली से उस के बदले व्यवहार के बारे में बात की तो वह उस के साथ लड़ने को आमादा हो गई. दोनों में कुछ देर बहस हुई और मामला शांत हो गया.

एक दिन बलराम दोपहर के समय कमरे पर पहुंचा तो दरवाजा अंदर से बंद मिला. किवाड़ के बीच में जो दरार थी, उस पर आंख गड़ा कर देखा तो कमरे के अंदर जल रही ट्यूबलाइट की रोशनी में सारा नजारा दिख गया. अनारकली एक व्यक्ति के साथ आपत्तिजनक स्थिति में थी. इस के बाद तो बलराम का शक विश्वास में बदल गया.

बलराम ने दरवाजा खटखटाने के बजाय अनारकली को फोन लगाया तो उस ने स्क्रीन पर नंबर देखने के बाद अपना फोन स्विच्ड औफ कर दिया. इस के अलावा उस ने कमरे में जल रही ट्यूबलाइट भी बंद कर दी.

तब बलराम ने दरवाजा खटखटाया. करीब 4-5 मिनट बाद अनारकली ने दरवाजा खोला तो सामने बलराम को देख कर उस के होश उड़ गए. उसी दौरान कमरे में अनारकली के साथ जो युवक था, वह वहां से भाग गया. तब बलराम ने उस से उस युवक के बारे में पूछा तो अनारकली बोली, ‘‘कोई भी हो, तुम्हें उस से क्या मतलब?’’

‘‘मेरे होते हुए तुम किसी और को यहां नहीं बुला सकती.’’ वह बोला.

‘‘क्यों, मैं ने तुम्हारे साथ क्या शादी की है जो मुझ पर इस तरह से हुकुम चला रहे हो. अपनी जिंदगी मैं अपनी तरह से जिऊंगी. इस में कोई भी दखलअंदाजी नहीं कर सकता. इसलिए बेहतर यही है कि तुम इस मुद्दे पर ज्यादा बात मत करो.’’ अनारकली ने जवाब दिया.

बलराम उस का मुंह देखता रह गया. बात भी सही थी, उस ने अनारकली से शादी थोड़े ही की थी. दोनों का स्वार्थ था, इसलिए वे साथसाथ रह रहे थे. बलराम से जब उस का मन भर गया तो उस ने किसी और के साथ नजदीकी बना ली.

किसी एक की नहीं हुई अनारकली – भाग 1

3 दिसंबर, 2016 को सुबह करीब साढ़े 10 बजे दक्षिणपूर्वी दिल्ली के अमर कालोनी थाने के ड्यूटी अफसर को पुलिस कंट्रोलरूम से सूचना मिली कि कैप्टन गौड़ मार्ग पर नाले के किनारे बैग में किसी की लाश पड़ी है. उस दिन थानाप्रभारी उदयवीर सिंह किसी काम से बाहर गए हुए थे. उन की गैरमौजूदगी में थाने का चार्ज इंसपेक्टर राजेश मौर्य संभाले हुए थे. बैग में लाश मिलने की सूचना मिलते ही इंसपेक्टर राजेश मौर्य एसआई मनोज कुमार, हैडकांस्टेबल सुरेंद्र सिंह और महावीर सिंह को ले कर सूचना में बताए पते की तरफ निकल गए.

कैप्टन गौड़ मार्ग पर स्थित वह नाला थाने से करीब 2 किलोमीटर दूर था, इसलिए पुलिस टीम करीब 10 मिनट में ही वहां पहुंच गई. वहां पहले से काफी लोग खड़े थे. भीड़ को देख कर उधर से गुजरने वाले वाहन चालक भी वहां रुकरुक कर जा रहे थे. सभी लोग नाले के किनारे झाड़ी के पास पड़े उस काले रंग के ट्रैवल बैग को देख रहे थे. उस बैग का फ्लैप खुला हुआ था, जिस से उस में रखी लाश साफ दिखाई दे रही थी.

नोटबंदी के बाद जिस तरह आए दिन कूड़े के ढेर या अन्य जगहों पर करोड़ों रुपए मिलने के समाचार आ रहे हैं, उसी तरह इस बड़े बैग को भी नाले के किनारे किसी व्यक्ति ने देखा होगा तो पैसे मिलने की संभावना को देखते हुए उस ने इस बैग का फ्लैप खोल कर देखा होगा. लाश देख कर उस के होश फाख्ता हो गए होंगे. फिर वह बैग को ऐसे ही खुला छोड़ कर भाग गया होगा. लेकिन यह पता नहीं लग पा रहा था कि उस में रखी लाश किसी आदमी की है या किसी महिला की.

इंसपेक्टर राजेश मौर्य ने उस बैग का ऊपरी मुआयना कर के सूचना डीसीपी रोमिल बानिया, एसीपी सतीश केन, थानाप्रभारी उदयवीर सिंह के अलावा क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को दे दी. वहां मौजूद सभी लोग आपस में यही बातें कर रहे थे कि पता नहीं इस बैग में किस की लाश है. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के आने के बाद बैग से जब लाश निकाली गई तो सभी हैरान रह गए.

किसी महिला की लाश का वह कूल्हे से ऊपर का हिस्सा था. बाकी नीचे का हिस्सा वहां नहीं था. वह औरेंज कलर की नाइटी पहने हुए थी. उस के सिर पर किसी भारी चीज से वार करने की चोट थी. उस की कलाई पर कलावा बंधा था. इस के अलावा हाथ की एक अंगुली में अंगूठी थी और गले में पीले रंग का धागा पड़ा हुआ था. महिला की उम्र यही कोई 40-45 साल थी.

बैग से या उस महिला की लाश से कोई ऐसी चीज नहीं मिली जिस से उस की शिनाख्त हो सके. वहां जितने भी लोग खड़े थे, उन में से कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका. इस से यही अनुमान लगाया गया कि शायद यह किसी दूसरे इलाके की होगी. पुलिस ने मृतका का पेट के नीचे का हिस्सा आसपास की झाडि़यों में तलाशा पर वह वहां नहीं मिला.

उसी दौरान डीसीपी रोमिल बानिया, एडिशनल डीसीपी राजीव रंजन, एम. हर्षवर्धन, एसीपी सतीश केन आदि भी वहां पहुंच गए. उन्होंने भी लाश का मुआयना किया और इंसपेक्टर राजेश मौर्य को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए. पुलिस ने जरूरी काररवाई करने के बाद लाश के आधे हिस्से को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की मोर्चरी में रखवा दिया.

पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर मृत महिला की शिनाख्त की काररवाई शुरू कर दी. पुलिस ने महिला की लाश के फोटो लगे 4 हजार पैंफ्लेट छपवा कर इलाके में सार्वजनिक स्थानों पर चिपकवा दिए.

इतना ही नहीं, समस्त थानों में सूचना भेज कर यह भी पता लगाने की कोशिश की कि इस हुलिया से मिलतीजुलती कोई महिला लापता तो नहीं है. थानाप्रभारी उदयवीर सिंह जो बाहर गए हुए थे, लाश मिलने की खबर पा कर शाम तक थाने लौट आए. अगले दिन भी पुलिस टीम हर संभावित तरीकों से पता लगाने लगी कि आखिर यह महिला है कौन. पर कहीं से भी उस के बारे में कुछ भी पता नहीं लगा.

4 दिसंबर, 2016 को दोपहर 12 बजे पुलिस कंट्रोलरूम से थाना अमर कालोनी में सूचना मिली कि श्रीनिवासपुरी के क्यू ब्लौक में पास भगेल मंदिर के पास छोटे नाले में किसी महिला का पेट से नीचे का भाग पड़ा हुआ है. थानाप्रभारी उदयवीर सिंह और इंसपेक्टर राजेश मौर्य 15-20 मिनट में ही भगेल मंदिर के पास पहुंच गए.

क्योंकि एक दिन पहले उन्होंने जिस महिला की लाश बरामद की थी, उस का भी पेट से नीचे का हिस्सा गायब था. पुलिस जब भगेल मदिर के पास पहुंची तो वास्तव में वहां किसी महिला के पेट के नीचे का हिस्सा नाले में पड़ा हुआ था. उस के एक पैर पर मांस नहीं था. शायद उसे कुत्तों ने खा लिया होगा.

नाले के पास एक काले रंग का बैग पड़ा हुआ था. उस पर खून के निशान से लगा कि लाश का वह हिस्सा उसी बैग में रख कर लाया गया होगा. जिस जगह से पुलिस ने एक दिन पहले महिला का धड़ बरामद किया था, यह जगह वहां से कोई आधा किलोमीटर दूर थी. जरूरी काररवाई कर के उसे भी पुलिस ने एम्स की मोर्चरी में रखवा दिया. पुलिस ने नाले के पास से महिला का जो धड़ बरामद किया था, यह हिस्सा उसी महिला का है या नहीं, यह बात डाक्टरी जांच के बाद ही पता लग सकती थी.

बहरहाल, अब पुलिस का पहला मकसद मृतका की शिनाख्त करवाना था. पुलिस के पास लाश के जो फोटो थे, उन्हीं के माध्यम से वह उस की शिनाख्त में जुट गई. बीट का हरेक पुलिसकर्मी अपनेअपने इलाके के लोगों को वह फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछने लगा. हैडकांस्टेबल सुरेंद्र भी इसी काम में लगे हुए थे. फोटो देख कर उन्हें अमर कालोनी क्षेत्र के ही एक व्यक्ति ने बताया कि यह महिला तो अन्नू की तरह लग रही है.

‘‘अन्नू…यह अन्नू कौन थी और कहां रहती थी?’’ हैडकांस्टेबल सुरेंद्र ने उस से पूछा.

‘‘सर, यह दशघरा गढ़ी गांव में ही कहीं रहती थी. पर मैं इस के एक रिश्तेदार प्रवीण को जानता हूं जो सपना सिनेमा के पास साउथ इंडियन व्यंजन की रेहड़ी लगाता है.’’ वह व्यक्ति बोला.

सुरेंद्र को यह सुन कर खुशी हुई कि शायद यहां से कुछ बात बन सकती है. वह उस व्यक्ति को ले कर थाना अमर कालोनी क्षेत्र में स्थित सपना सिनेमा के पास ले गए. प्रवीण वहीं मिल गया. हैडकांस्टेबल सुरेंद्र ने प्रवीण को महिला की लाश का फोटो दिखाया तो उस ने उसे पहचानते हुए कहा कि यह अनारकली उर्फ अन्नू हैं. रिश्ते में यह उस की मौसेरी सास (सास की छोटी बहन) हैं.

सुरेंद्र ने यह जानकारी थानाप्रभारी उदयवीर सिंह और इंसपेक्टर राजेश मौर्य को दी. दोनों पुलिस अधिकारी प्रवीण के पास ही पहुंच गए. पुलिस प्रवीण को ले कर दशघरा गढ़ी स्थित अनारकली के कमरे पर पहुंची. पर उस का कमरा बाहर से बंद मिला. करीब 45 कमरों वाला वह मकान श्रीराम नाम के एक शख्स का था. पुलिस ने श्रीराम को बुला कर बात की तो उस ने बताया कि अनारकली एक मद्रासन थी जो करीब 3 महीने पहले उस के यहां आई थी.

इस के साथ बलराम नाम का एक बंदा और रहता था. यह सन 2010 में भी इसी मकान में 6-7 महीने रह कर गई थी. उस समय भी बलराम इस के साथ रहता था. जिस कमरे में अनारकली रहती थी, उस के आसपास के कमरों में रहने वाले लोगों ने बताया कि यह 2 दिसंबर से दिखाई नहीं दे रही.

वहां खड़ेखड़े पुलिस को अनारकली के कमरे से बदबू आती महसूस हुई. पुलिस ने भगेल मंदिर के पास से महिला के पेट से नीचे वाला जो हिस्सा बरामद किया था, उस की अभी डाक्टरी रिपोर्ट नहीं आई थी इसलिए कहा नहीं जा सकता था कि वह उसी की लाश का हिस्सा है. थानाप्रभारी को लगा कि कहीं अनारकली की लाश का आधा भाग इस कमरे में तो नहीं रखा है, इसलिए उन्होंने मकान मालिक और अन्य लोगों के सामने कमरे का ताला तोड़ कर कमरे में खोजबीन की तो वहां सूखी हुई मछलियां मिलीं. वह बदबू उन्हीं से आ रही थी.

कमरे की जांच के दौरान दीवार पर खून के कुछ छींटे भी दिखे. वे छींटे मानव खून के थे या नहीं, यह जांच के बाद ही पता चल सकता था. लिहाजा उन्होंने फोरैंसिक विभाग को फोन कर दिया. डा. नरेश कुमार के नेतृत्व में एक फोरैंसिक टीम वहां आ गई. टीम को दीवार पर 6 जगह खून के छींटे मिले. इस के अलावा एलपीजी के छोटे सिलेंडर पर भी खून के छींटे मिले. कमरे में 3 चाकू मिले. फोरैंसिक टीम ने कमरे से सबूत इकट्ठे कर लिए.

मांगा सुहाग मिली मौत – भाग 3

आखिर जब नहीं रहा गया तो एक रात बिस्तर पर उस ने पति को समझाने की कोशिश की, ‘‘तुम जिस रास्ते पर चल रहे हो, वह अच्छा नहीं है. तुम उस दो टके की औरत के पीछे ऐसे दीवाने हो गए हो, जैसे कोई पागल सांड़ भरी बाजार में बलबला उठता है. मेरा नहीं तो कम से कम अपने बेटे के बारे में सोचो. कल जब वह बड़ा होगा तो तुम्हारा नाम ले कर लोग ताना नही मारेंगे.’’

प्रेम केसरवानी समझ गया कि पत्नी को सब पता चल गया है. वह सिर झुकाए बैड पर बैठा रहा. संगीता आगे बोली, ‘‘आखिर सुशीला में कौन से मोती जड़े हैं? क्या मुझ से ज्यादा उस के अंदर तुम्हें गरमी मिलती है? प्रेम, मैं तुम्हारी पत्नी हूं और सुशीला… सुशीला गंदी नाली का कीड़ा है. वह औरत लटकेझटके दिखा कर तुम्हें तो चूस ही रही है. साथ में तुम्हारी दौलत पर भी उस की नजर लगी हुई है.’’

संगीता ने हर तरह से पति को समझाया, लेकिन संगीता की कोई बात प्रेम की खोपड़ी में नहीं घुसी. उस ने बातें एक कान से सुनीं और दूसरे से निकाल दीं. दरअसल, सुशीला की चाहत में वह इतना आगे निकल चुका था कि वहां से पीछे लौटना अब उस के बस की बात नहीं थी. फिर भी संगीता ने पति का साथ नहीं छोड़ा और उस के पीछे पड़ी रही. सुशीला और प्रेम केसरवानी लव अफेयर की कहानी आगे बढ़ती रही. एकदूसरे को पाने के लिए वे दोनों हमेशा छटपटाते रहते और जब कभी एकांत में मिलने का अवसर मिलता तो आंधीतूफान की तरह एकदूसरे में समा जाते थे. तन की आग बुझ जाती, किंतु मन की प्यास हमेशा बनी रहती.

जैसेजैसे दिन बीतते जा रहे थे, वैसेवैसे संगीता की चिंता बढ़ती जा रही थी. उसे सब कुछ गंवारा था, लेकिन सुहाग का बंटवारा मंजूर न था. इसी चिंता में एक रोज संगीता सुशीला की पान की दुकान पर जा पहुंची. वहां उस ने सुशीला को खूब खरीखोटी सुनाई और पति से दूर रहने की चेतावनी दी. सुशीला मुंहफट थी. संगीता की चेतावनी से न वह डरी न सहमी. वह बेहयाई से बोली, ‘‘अपने खसम को अपने पल्लू से बांध कर रखो. मैं उसे बुलाने नहीं जाती, बल्कि वही कुत्ते की तरह दुम हिलाता हुआ मेरी चौखट पर आ जाता है. समझा देना उसे कि वह मेरे घर न आया करे.’’

संगीता ने मुंहफट औरत के मुंह लगना उचित नहीं समझा और वापस घर आ गई. वह अपनी किस्मत पर रोती रही. इधर प्रेम को पता चला कि संगीता उस की प्रेमिका की दुकान पर उलाहना देने गई थी तो उस का गुस्सा बढ़ गया. देर रात जब वह घर आया तो उस की संगीता से तकरार हुई और नौबत मारपीट तक आ गई. धीरेधीरे पतिपत्नी के बीच दूरियां और बढ़ गईं. प्रेम को इस के बावजूद कोई परवाह नहीं थी. तब संगीता ने भी अपना दिल कठोर कर लिया. उसे अब अपने बेटे की चिंता थी. उस ने सब कुछ नियति पर छोड़ दिया था.

इधर सुशीला ने संगीता को फटकार तो दिया था, लेकिन उस के मन में डर समा गया था कि कहीं संगीता का विरोध भारी न पड़ जाए और वह प्रेम को उस से छीन ले. इसी डर के चलते उस शाम वह प्रेम के साथ रेस्टोरेंट पहुंची थी और अपनी चिंता से प्रेम को अवगत कराते हुए संगीता के डर से निजात दिलाने की बात कही थी.

सुशीला रखैल के बजाय बनना चाहती थी पत्नी…

सुशीला चालाक औरत थी. वह प्रेम की रखैल बन कर नहीं रहना चाहती थी. बल्कि उस की पत्नी बनने का सपना संजोने लगी थी. इस सपने को पूरा करने के लिए वह तानाबाना बुनने लगी थी. हालांकि प्रेम सुशीला का पूरा खर्च उठाता था और आर्थिक मदद भी करता था, लेकिन सुशीला इस से संतुष्ट नहीं थी.

एक रोज शाम को प्रेम केसरवानी सुशीला के घर पहुंचा तो घर पर वह अकेली थी. उस के बच्चे ननिहाल गए थे. प्रेम को देख कर सुशीला बहुत खुश हुई. दोनों कुछ देर हंसतेबतियाते रहे फिर साथ बैठ कर खाना खाया. उस रोज सुशीला ने मीट पकाया था, सो खाते वक्त उस ने मीट पकाने के लिए सुशीला की जम कर तारीफ की. रात 10 बजे प्रेम घर जाने लगा तो उस ने बहाने से उसे रोक लिया. प्रेम भी यही चाहता था, इसलिए वह रुक गया. थोड़ी देर बाद दोनों बिस्तर पर पहुंच गए.

सुशीला कुछ देर प्रेम की बांहों में मचलती रही फिर बोली, ‘‘प्रेम एक बात पूछूं, सचसच बताना.’’

“पूछो, क्या जानना चाहती हो?’’

“तुम मुझ से जिस्मानी प्यार करते हो या सच्चा प्यार…’’

“मैं तुम से सच्चा प्यार करता हूं. यकीन न हो तो आजमा कर देख लो.’’ प्रेम बिना सोचेसमझे बोल गया.

“तो फिर कल बारादेवी मंदिर चलो और मां को साक्षी मान कर मेरी मांग में सिंदूर भर दो. अब मैं तुम्हारी रखैल बन कर नहीं, बल्कि पत्नी बन कर रहना चाहती हूं. पत्नी का दरजा मिल जाएगा तो तुम्हारी धनदौलत और मकान पर भी मेरा हक होगा.’’ सुशीला की बात सुन कर प्रेम सन्न रह गया. वह जान गया कि सुशीला के मन में लालच समा गया है. वह उस की पत्नी बनने और संपत्ति हथियाने का ख्वाब देखने लगी है. प्रेम शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे का बाप भी था. अत: वह सुशीला की बात कैसे मान लेता.

प्रेम कुछ देर सोचता रहा फिर बोला, ‘‘सुशीला, मुुझे कुछ वक्त दो ताकि मैं तुम्हारा ख्वाब पूरा कर सकूं. क्योंकि सब जानते हैं कि एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं. संगीता तुम्हें सौतन के रूप में कभी स्वीकार नहीं करेगी. कहीं अलग प्लौट मकान ले कर तुम्हें बसाना होगा.’’

“ठीक है, मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं. लेकिन जल्दी ही इंतजाम करो.’’ इस के बाद प्रेम केसरवानी परेशान रहने लगा. उस ने सुशीला से मिलनाजुलना भी कम कर दिया. अब वह तभी उस के घर जाता, जब वह जिद कर उसे बुलाती. हर बार वह अपनी बात मनवाने का दबाव डालती.

दे दी हत्या की सुपारी…

प्रेम केसरवानी का एक दोस्त राजेश गौतम उर्फ छोटू था. वह पनकी में रहता था और अपराधी किस्म का था. एक शाम प्रेम ने उसे सीटीआई चौराहा स्थित शराब ठेके पर बुला लिया. वहां बैठ कर पहले दोनों ने शराब पी, फिर प्रेम ने उसे अपनी समस्या बताई और किसी तरह समस्या से निजात दिलाने की बात कही. दोस्त की समस्या से छोटू के माथे पर बल पड़ गए. लेकिन उस ने प्रेम को निजात दिलाने का भरोसा दिया.

मांगा सुहाग मिली मौत – भाग 4

एक रोज प्रेम केसरवानी किसी काम से पनकी गया तो उसे छोटू की याद आ गई. तब उस से मिलने उस के घर जा पहुंचा. राजेश गौतम उर्फ छोटू उस समय घर पर ही था. बातचीत करते हुए प्रेम ने पूछा, ‘‘छोटू, तुम ने हमारी समस्या का कोई हल ढूंढा या फिर यूं ही आश्वासन दे रहे थे?’’

“तुम्हारी समस्या का एक ही हल है कि तुम अपनी प्रेमिका सुशीला का काम तमाम करा दो. लेकिन इस के लिए तुम्हें पैसा खर्च करना पड़ेगा,’’ छोटू ने प्रेम को सुझाव दिया. “ठीक है, मैं तैयार हूं.’’ इस के बाद प्रेेम ने सुशीला की हत्या की सुपारी 70 हजार रुपए में राजेश गौतम उर्फ छोटू को दे दी.

रकम मिलने के बाद छोटू ने हत्या की योजना बनाई और रुपयों का लालच दे कर अपने अपराधी दोस्त अजय, दिनेश व सनी को शामिल कर लिया. ये तीनों मन्नीपुरवा (मैथा) के रहने वाले थे. हत्या की योजना बनाने के बाद राजेश गौतम ने प्रेम को वह सुनसान जगह दिखा दी, जहां सुशीला को ठिकाने लगाना था. उस ने दिन, तारीख व समय भी निश्चित कर दिया. सुशीला को उस स्थान तक लाने की जिम्मेदारी प्रेेम को सौंपी गई.

योजना के तहत 3 दिसंबर, 2022 की शाम 4 बजे प्रेम सुशीला की पान की दुकान पर पहुंचा और प्लौट देखने के लिए साथ चलने को कहा. सुशीला ने दुकान बंद की और प्रेम की स्कूटी पर बैठ कर चल दी. प्रेम सूरज छिपने तक सुशीला को इधरउधर घुमाता रहा, फिर किसान नगर होता हुआ जामू नहर पुल के पास पहुंचा. यहां राजेश गौतम उर्फ छोटू अपने साथी अजय, दिनेश व सनी के साथ खड़ा था. अब तक हलका अंधेरा छा चुका था.

प्रेमी ने कराया मर्डर…

सुशीला जैसे ही प्रेम की स्कूटी से उतरी, तभी राजेश व उस के साथियों ने उसे दबोच लिया और अजय ने तमंचा निकाल कर उस के सीने में 2 फायर झोंक दिए. सुशीला की मौके पर ही मौत हो गई. प्रेम दूर खड़ा करीब 10 मिनट तक देखता रहा कि सुशीला की सांसें चल रही हैं या नहीं. जब उसे विश्वास हो गया कि सुशीला की सांसें थम गई हैं तब वह भी वहां से फरार हो गया. हत्या के बाद राजेश व उस के साथी भी फरार हो गए. प्रेमिका की हत्या हो जाने के बाद प्रेम ने राहत की सांस ली यानी प्रेमी कातिल बन गया.

सुबह जामू गांव के बाहर नहर पुल के पास झाडिय़ों के किनारे कुछ लोगों ने एक महिला की लाश देखी तो उन्होंने सूचना ग्राम प्रधान जनार्दन सिंह को दी. ग्राम प्रधान ने थाना विधनू पुलिस को खबर दी तो मौके पर एसएचओ योगेश सिंह, एसीपी (नौबस्ता) अभिषेक कुमार तथा एडिशनल डीसीपी अंकिता शर्मा आ गईं. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर डौग स्क्वायड व फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. सभी अपनेअपने काम में जुट गए. पुलिस

अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तो पता चला कि महिला की हत्या सीने में गोली मार कर की गई थी. उस की उम्र 40 वर्ष के आसपास थी. वह पीले रंग की साड़ी व गुलाबी रंग का स्वेटर पहने थी. महिला की शिनाख्त नहीं हो पाई थी. तब पुलिस ने उस के शव को पोस्टमार्टम हाउस हैलट अस्पताल भेज दिया.

इधर रात 10 बजे तक जब सुशीला घर नहीं पहुंची तो उस के बेटे को चिंता हुई. वह और उस की बहन रात भर मां के आने का इंतजार करते रहे. सुबह वे दोनों मां की पान की दुकान पर पहुंचे तो दुकान बंद थी. मां का जब पता नहीं चला तो बेटा थाना गुजैनी जा पहुंचा. उस ने थानाप्रभारी को मां के लापता होने की बात बताई. थाने में उसे पता चला कि विधनू थाना पुलिस ने एक अज्ञात महिला की लाश बरामद की है. तब वह थाना विधनू पहुंच गया.

एसएचओ योगेश सिंह ने जब उसे लाश की फोटो दिखाई तो वह फफक पड़ा और बताया कि यह लाश उस की मां सुशीला की है. लाश की शिनाख्त होने के बाद एसएचओ योगेश सिंह ने मृतका के बेटे से सहानुभूतिपूर्वक पूछताछ की तो पता चला कि वरुण विहार (बर्रा) का रहने वाला प्रेम केसरवानी उन के घर आताजाता था. मां सुशीला से उस की दोस्ती थी. वह रात में भी उस के घर रुक जाता था. इस से पुलिस को यह शक हो गया कि सुशीला के प्रेमी ने ही मर्डर कराया है.

प्रेम केसरवानी शक के दायरे में आया तो योगेश सिंह ने उस की तलाश शुरू कर दी. फिर छापा मार कर उसे उस के घर से ही हिरासत में ले लिया. प्रेम केसरवानी को थाना विधनू लाया गया. उस से जब सख्ती से पूछताछ की गई तो तो उस ने सारा रहस्य उगल दिया. प्रेम ने बताया कि सुशीला से उस का नाजायज रिश्ता था, लेकिन वह उस पर पत्नी का दरजा देने का दबाव बना रही थी और संपत्ति में हक मांग रही थी. इसी कारण उस की हत्या की सुपारी अपने दोस्त पनकी निवासी राजेश गौतम उर्फ छोटू को 70 हजार रुपए में दी. उस ने अपने साथी अजय, दिनेश व सनी के साथ मिल कर सुशीला की हत्या कर दी.

इस के बाद एसएचओ योगेश सिंह ने अपनी पुलिस टीम के साथ छापा मार कर पहले राजेश गौतम उर्फ छोटू को भाटिया तिराहा से गिरफ्तार किया. फिर उस के साथी सनी व अजय गौतम को गड़ेवा नहर पुल के समीप धर दबोचा. राजेश, अजय व सनी ने भी सुशीला की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन का एक साथी दिनेश पुलिस के हाथ नहीं आया.

अजय गौतम के पास से पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त .315 बोर का एक तमंचा तथा 2 जिंदा कारतूस बरामद किए. प्रेम ने भी अपनी स्कूटी बरामद करा दी. कानपुर (विधनू) के सुशीला मर्डर केस की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने सभी आरोपियों को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. एक अन्य आरोपी दिनेश फरार था. पुलिस उसे तलाश रही थी.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मांगा सुहाग मिली मौत – भाग 2

सुशीला उम्र मेंं उस से बड़ी थी, इसलिए प्रेम उसे भाभी कहता था और हंसीमजाक भी कर लेता था. सुशीला उस के मजाक का बुरा नहीं मानती थी. अब वह उस के घर भी आने लगा था. सुशीला का सौंदर्य उसे विचलित भी करने लगा था. हंसीमजाक के दौरान प्रेम उस के शरीर को स्पर्श करने से भी नहीं चूकता था. सुशीला बुरा मानने के बजाय मुसकरा कर कह देती, ‘‘आजकल तुम बड़े शरारती हो गए हो. ऐसी हरकतें अच्छी नहीं होतीं. कोई देख लेगा तो..?’’

“कोई देख लेगा तो क्या हो जाएगा भाभी?’’ प्रेम पूछ बैठता.

“तुम्हारा तो कुछ नहीं होगा प्रेम, लेकिन मैं बदनाम हो जाऊंगी.’’ हालांकि सुशीला प्रेम की हरकतों से मन ही मन खुश होती थी और उस का शरीर रोमांच से भर उठता था. प्रेम का घर आना सुशीला को अच्छा लगने लगा था. वह जब भी आता, उस के बच्चों को खानेपीने की कुछ चीजें जरूर लाता, जिस से बच्चे भी उस से घुलमिल गए थे.

एक दिन प्रेम उस के घर आया हुआ था, तभी सुशीला नहा कर बाथरूम से निकली थी. उस के बदन पर पानी की बूंदें मोती की तरह चमक रही थीं. प्रेम को देख कर सुशीला बड़ी अदा के साथ जुल्फों को झटक कर अंदर वाले कमरे में चली गई. कुछ देर बाद सुशीला आई और चाय बना कर लाई. दोनों ने साथ बैठ कर चाय पी, साथ में मुसकरा कर 2-4 बातें कीं. प्रेम उस की इन्हीं अदाओं पर मर मिटा. सुशीला जब हंसती थी तो लगता था, जैसे चूडिय़ां खनक उठी हों. उभारों की बनावट कुछ ऐसी थी जैसे लगता था कि यौवन चोली फाड़ कर बाहर आ जाएगा. यह सब प्रेम के दिमाग में बस गया था.

उस दिन प्रेम का काम में मन नहीं लगा और रात को भी उसे नींद नहीं आई. बिस्तर पर पूरी रात वह करवटें बदलता रहा. पत्नी संगीता ने 2-4 बार पूछा भी था कि आखिर बात क्या है तो उसे बहुत बुरा लगा था. प्रेम चाहता था कि उस की कल्पनाओं में कोई खलल न डाले और वह सुशीला के साथ सपने सजाता रहे. सुबह हुई, तब भी प्रेम का मन किसी काम में नहीं लगा. वह अपनी गोदाम पर गया जरूर था, लेकिन उस का दिलदिमाग सुशीला के घर पर ही था. उस के एकएक अंग प्रेम की आंखों के सामने मचल उठते थे. मन करता कि वह अभी उठे और सुशीला के पास पहुंच जाए.

शुरू हुई अवैध संबंधों की कहानी…

उधर सुशीला का भी कुछ यही हाल था. प्रेम जिन लच्छेदार बातों का सिलसिला वहां छोड़ कर आया था, सुशीला अभी तक उसी में उलझी हुई थी. दिनरात प्रेम केसरवानी की बातें उस के कानों में शहद की तरह टपकती रहतीं और उस पर मदहोशी का आलम छाया रहता. सोतेजागते अब उस की नजरों के आगे प्रेम ही प्रेम दिखाई पड़ता.

दरअसल, सुशीला तन्हा जिंदगी बिता रही थी. पति से अब उसे कोई मतलब न था. अत: वह प्रेम में पति का अक्स तलाशने लगी थी. मोहब्बत की यही तो निशानी है. हीररांझा, लैलामजनूं और न जाने कितने प्रेमीप्रेमिका चाहत की मंजिल पाने को कुरबान हो गए. अब सुशीला और प्रेम भी उसी रास्ते पर चल पड़े थे. रात होते ही सुशीला का दिल मचलने लगता, तनमन बेकाबू हो उठता और इच्छा होती कि प्रेम उसे अपनी बांहों में भर कर खूब प्यार करे.

एक रोज सुबह प्रेम केसरवानी अपनी दुकान जा रहा था. वह विल्स चौराहा पहुंचा तो देखा कि सुशीला की पान की दुकान बन्द है. वह सोचने लगा, ‘‘सुशीला तो सुबह 10 बजे के पहले ही दुकान पर आ जाती थी, फिर आज बंद क्यों है? कहीं कुछ..?’’ मन में उलटेसीधे विचार आए तो प्रेम ने अपनी स्कूटी सुशीला के घर की ओर मोड़ दी. चंद मिनटों में ही वह सुशीला के घर पहुंच गया. सुशीला घर में बैड पर लेटी थी. वह उसे देख कर तड़प उठा, ‘‘यह क्या सुशीला, तुम्हारा चेहरा इतना उतरा हुआ क्यों है? तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

“नहींनहीं, बस यूं ही थोड़ा बुखार आ गया था.’’ सुशीला ने बिस्तर से उठने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘तुम खड़े क्यों हो? बैठो न प्रेम.’’

“बच्चे दिखाई नहीं पड़ रहे हैं. कहीं गए हैं क्या?’’ प्रेम ने दाएंबाएं नजर दौड़ा कर पूछा.

“बेटी स्कूल गई है और बेटे को सामान लेने बाजार भेजा है.’’

प्रेम को लगा कि यह उचित मौका है. आज उसे अपने दिल की बात कह देनी चाहिए. वह धीरे से बैड पर उसी के बगल में बैठ गया और एकटक उसे निहारने लगा. सुशीला ने उसे इस तरह निहारते देखा तो बोली, ‘‘प्रेम, तुम मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो. दिल में जो भी बात हो, बता दो.’’

“बता दूं?’’ कहते हुए प्रेम एकदम उस के चेहरे पर झुक गया. उस की आंखों में उसी की तसवीर थी. सुशीला की सांसें गरम हो उठीं. दिल की धडक़नें बढ़ गईं. प्रेम का अंगअंग भी फडक़ने लगा. मदहोशी के आलम में उस का एक हाथ सुशीला के कमर में पहुंच गया और दूसरा छाती पर रेंगने लगा तो सुशीला के भीतर जैसे तूफान मचल उठा. वह सिसियाकर प्रेम से लिपट गई, ‘‘बस, अब और अधिक मत तड़पाओ.’’

प्रेम केसरवानी तो यही चाहता था. सुशीला का आमंत्रण पाते ही उस ने उसे अपनी बलिष्ठ भुजाओं में जकड़ लिया. सुशीला भी उस से लता की भांति लिपट गई. दोनों के बीच खड़ी शर्मोहया की दीवार कुछ ही पलों में तहसनहस हो गई. उन के बीच एक बार अनैतिक संबंध कायम हुए तो फिर यह सिलसिला शुरू हो गया. जब भी समय मिलता वे दोनों एकदूसरे में समा जाते. फिर भी लोगों को उन के प्रेम संबंधों का पता चल ही गया. वे जान गए कि सुशीला और प्रेम के बीच नाजायज रिश्ता है. लेकिन लोगों की परवाह न सुशीला ने की और न ही प्रेम ने. वे दोनों अपनी ही मस्ती में डूबे रहे.

प्रेम की पत्नी को लग गई अवैध संबंधों की भनक…

सुशीला से प्रेम का रिश्ता जुड़ा तो उस की अपनी पत्नी संगीता में दिलचस्पी कम हो गई. वह उस की उपेक्षा करने लगा. प्रेम कभी घर आता तो कभी नहीं भी आता. संगीता पूछती तो बहाना बना देता. संगीता ने जब इस की वजह जाननी चाही तो उस के हाथों के तोते उड़ गए. पता चला कि प्रेम आजकल सुशीला नाम की औरत के साथ अपनी खुशियां बांटता है. तब तो संगीता के होश उड़ गए. वह सोचने लगी कि आखिर सुशीला में ऐसा क्या है, जो उस में नहीं है. संगीता का सिर चकराने लगा. उसे अपनी हरीभरी दुनिया उजड़ती नजर आने लगी.

मांगा सुहाग मिली मौत – भाग 1

कानपुर शहर के दक्षिण में बने एक रेस्टोरेंट की केबिन में बैठे प्रेम और सुशीला अपलक एकदूसरे की आंखों में झांक रहे थे. उन्होंने एकदूसरे का हाथ ऐसे पकड़ रखा था, जैसे आज के बाद फिर कभी न मिलने का डर सता रहा हो. काफी देर तक उन के बीच खामोशी छाई रही, फिर सुशीला ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘प्रेम, तुुम पास होते हो तो जिंदगी बहुत सुहानी लगती है. दिल करता है कि बस यूं ही तुम्हारी आंखों में झांकते हुए तमाम उम्र गुजार दूं.’’

सुशीला के दिल में एक अजीब सी बेचैनी थी. होंठ थरथरा रहे थे. कहने लगी, ‘‘मैं जानती हूं कि तुम मुझे अपनी जान से भी ज्यादा चाहते हो. फिर भी न जाने क्यों मेरा दिल घबरा रहा है. ऐसा लग रहा है प्रेम, जैसे तुम मुझ से बहुत दूर जाने वाले हो.’’ सुशीला की आंखें भर आई थीं. उस ने धीरे से अपना सिर प्रेम की छाती पर टिका दिया था, ‘‘तुम कुछ बोलते क्यों नहीं? खामोश क्यों हो? तुम्हारी खामोशी तो मुझे आने वाले किसी तूफान का दस्तक दे रही है.’’

“घबराओ मत सुशीला, धैर्य रखो और हिम्मत से काम लो.’’ प्रेम ने सुशीला की जुल्फों में अपनी अंगुलियां फिराते हुए कहा, ‘‘मैं जानता हूं कि तुम्हारे डर की वजह क्या है, तुम संगीता के बारे में सोच रही हो न?’’

सुशीला चौंक पड़ी, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

“वह मेरी पत्नी है और तुम मेरी धडक़न. मैं खुद से ज्यादा तुम्हें जानता हूं. तुम्हारी इन आंखों में कौन सा सपना है, मुझे सब पता है.’’

“तुम सही कह रहे हो प्रेम, लेकिन संगीता के डर से निजात भी तुम्हीं दिला सकते हो, सिर्फ तुम ही.’’

सुशीला उत्तर प्रदेश के कानपुर (देहात) के गजनेर कस्बा के रहने वाले रामकुमार की बड़ी बेटी थी. उस से छोटी शीला थी. सुशीला का कोई भाई नहीं था, इसलिए उन दोनों बहनों को ही घरपरिवार वाले लडक़ों की तरह चाहते थे. पिता रामकुमार व चाचा शिवकुमार, सुशीला व शीला से बहुत प्यार करते थे. उन दोनों की छोटी से छोटी फरमाइश का उन्हें पूरा खयाल रहता था.

रामकुमार की बड़ी बेटी सुशीला दिखने में सुंदर थी. प्रकृति ने न केवल उसे रूपसौंदर्य से सजाया था, बल्कि उसे स्वभाव भी बड़ा मिलनसार दिया था. उस का यही मोहक अंदाज हर किसी के मन को मोह लेता था. उस का यह माधुर्य रूप जहां युवकों की आंखों में यौवन का खुमार पैदा करता था, वहीं उस की सहेलियों में इष्र्या की भावना. सुशीला इन सभी बातों को समझते हुए भी अपने आप में मस्त रहती थी. जब भी उस की कोई सहेली कुछ व्यंग्य करती तो वह उसे हंस कर टाल देती थी.

महत्त्वाकांक्षी थी सुशीला…

बेटी के शरीर पर यौवन का भार लदता देख कर उस के पिता ने उस की शादी कानपुर शहर के बर्रा भाग 8 निवासी रामबाबू उर्फ पप्पू से कर दी. पप्पू मूलरूप से औरैया जिले के गांव मटेरा का रहने वाला था. मातापिता गांव में रहते थे. उन के पास खेती की जो थोड़ीबहुत जमीन थी, उस की खेती से घर का खर्च चलाते थे. पप्पू रोजीरोटी की तलाश में कानपुर शहर आ गया था. वह दादा नगर स्थित गत्ता बनाने वाली फैक्ट्री में काम करता था.

रामबाबू उर्फ पप्पू गठीला युवक था. सुशीला के रूप में सुंदर पत्नी पा कर वह निहाल हो गया था. विवाह के शुरुआती दिनों में पतिपत्नी के बीच शारीरिक आकर्षण ही प्रमुख रहता है. तब मन में झांकने की फुरसत नहीं होती. बस, दोनों एकदूसरे को अच्छे लगते हैं. ऐसा ही रामबाबू और सुशीला के बीच भी हुआ. लेकिन जब धीरेधीरे शारीरिक आकर्षण ठंडा पड़ा तो रामबाबू को पता चल गया कि सुशीला बहुत महत्त्वाकांक्षी किस्म की औरत है. वह रामबाबू से तरहतरह की फरमाइशें करने लगी.

प्राइवेट नौकरी करने वाला रामबाबू उस की हर फरमाइश पूरी करने में असमर्थ था. सुशीला इस बात को नहीं समझती थी बल्कि लड़ाईझगड़े पर उतर आती थी. कुछ ही सालों में दोनों का दांपत्य जीवन कड़वाहट से भर गया. कई बार तो दोनों में मारपीट तक हो जाती और फिर महीनों तक बोलचाल बंद रहती. इसी बीच सुशीला 2 बच्चों की मां बन गई. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी सुशीला के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया.

पारिवारिक कलह से निजात पाने के लिए रामबाबू उर्फ पप्पू ने शराब का सहारा लिया. बाद में वह उस का आदी हो गया. खालिस शराब और घर की किचकिच से उस का स्वास्थ्य गिरता चला गया. इस का नतीजा यह हुआ कि उस की नौकरी छूट गई, वह दरदर भटकने लगा और एकएक पैसे को मोहताज हो गया. पत्नी सुशीला ने भी उस से किनारा कर लिया था. अत: रामबाबू अपने गांव में आ कर रहने लगा और पिता के साथ खेती के काम में हाथ बंटाने लगा. उस ने भी पत्नी से किनारा कर लिया.

सुशीला ने भी पति की कोई सुध नहीं ली और वह दोनों बच्चों के साथ रहने लगी. बच्चों के पालनपोषण के लिए उस ने दादानगर स्थित प्लास्टिक की एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली. लेकिन फैक्ट्री में उस का ज्यादा दिनों तक मन नहीं लगा, अत: उस ने नौकरी छोड़ कर बर्रा के विल्स चौराहे पर पान की दुकान खोल ली. शुरू में तो दुकान कम चली, लेकिन बाद में ग्राहकों की संख्या बढ़ती गई और दुकान से आमदनी होने लगी.

सुशीला 30 साल की उम्र पार कर चुकी थी, इस के बावजूद भी उस की खूबसूरती में कोई खास कमी नहीं आई थी. उस का मांसल शरीर तथा बड़ीबड़ी आंखें किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम थीं. वह सजधज कर पान की दुकान पर बैठती थी. उस ने अपने कुशल व्यवहार से ग्राहकों का मन मोह लिया था.

एक रोज प्रेम केसरवानी नाम का युवक उस की दुकान पर पान खाने आया तो पहली ही नजर में सुशीला उस के दिल में उतर गई. इस के बाद वह अकसर सुशीला की दुकान पर आने लगा. पान खाने का तो बहाना होता, उस का असली मकसद होता सुशीला का दीदार करना और उस से हंसीठिठोली करना. सुशीला भी उस से खुल गई थी और उस की लच्छेदार बातों में दिलचस्पी लेने लगी थी.

सुशीला को चाहने लगा प्रेम…

प्रेम केसरवानी वरुण विहार (बर्रा) में रहता था. वह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप था. उस की शादी संगीता से हुई थी. संगीता सांवले रंग की जरूर थी, लेकिन नाकनक्श अच्छा था. संगीता ने विवाह के पहले जैसे राजकुमार की कल्पना की थी, प्रेम ठीक उसी के अनुरूप था. उस का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से गुजर रहा था. प्रेम केसरवानी कबाड़ का व्यवसाय करता था. इस काम में उस की अच्छी कमाई होती थी. इसी कमाई से उस ने दोमंजिला मकान बनवा लिया था और एक गोदाम भी किराए पर ले लिया था. वह अय्याश प्रवृत्ति का था. औरत उस की कमजोरी थी. घर में जवान बीवी होने के बावजूद वह बाहर ताकझांक करता रहता था.

कनाडा से बुला कर शादी, फिर हत्या – भाग 4

सुनील ने बताया कि वह अपनी हर बात मोनिका पर थोप देता था. अपनी बात मानने का उस पर दबाव डालता था. भावनात्मत्क उत्पीडऩ करने के साथसाथ शारीरिक तकलीफें भी देने लगा था. यहां तक कि उस की बात नहीं मानने पर अपनी लाइसेंसी पिस्तौल भी दिखा चुका था. पूछताछ के सिलसिले में उस ने कुबूल कर लिया कि मोनिका के कनाडा जाने के अगले रोज से ही वह उसे पाने के लिए बेचैन हो गया था.

वह एक विक्षिप्त प्रेमी की तरह बन चुका था. ठीक उसी तरह जैसे प्यार में लोग कभीकभी सारी हदें पार कर देते हैं. उस ने भी वही सब किया. उस ने मोनिका के प्यार में जीनेमरने की कसमें खाई थीं और उस से हर हाल में शादी रचाना चाहता था.

इस के चलते ही मोनिका के कनाडा जाने के कुछ दिनों बाद ही उस ने परिवार में एक हादसा होने का बहाना बना कर उसे वापस भारत बुलवा लिया. वहां से उस ने उसे अपने परिजनों के पास जाने नहीं दिया. जबरन अपने बनाए ठिकाने पर ले कर चला गया.

सुनील और मोनिका ने कर ली थी शादी

मोनिका 5 जनवरी, 2022 को कनाडा बिजनैस मैनेजमेंट का कोर्स करने गई थी, लेकिन सुनील ने 22 जनवरी को ही कनाडा से उसे वापस भारत बुला लिया था. इस के बाद उन्होंने 29 जनवरी, 2022 को गाजियाबाद के आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली थी.

शादी के बाद 30 जनवरी को मोनिका फिर कनाडा चली गई थी, लेकिन सुनील ने उसे फिर भारत बुला लिया और कनाडा वापस जाने नहीं दिया. इस दौरान मोनिका के कनाडा आनेजाने का सारा खर्च सुनील ने ही उठाया था. सुनील मोनिका को अपने साथ ले गया था, दोनों अलगअलग जगहों पर रहने लगे थे. कुछ दिनों बाद उन के बीच अनबन होने लगी.

सुनील ने पुलिस को बताया कि मोनिका कहती कि उस ने अगर शादी की है, तब इसे सार्वजनिक करे और लोगों के सामने पतिपत्नी की तरह रहे. इस पर सुनील अपनी पहली पत्नी का हवाला देता था और उस से तलाक लेने का आश्वान देता रहा. जबकि मोनिका अलग रहते हुए सुनील के बदले तेवर से परेशान हो चुकी थी. उस की कोई वैध शादी नहीं थी, जो वह कानून का सहारा लेती. सुनील उस पर मानसिक दबाव बनाए हुए था.

विरोध करने पर उस के घर वालों को जान से मारने की धमकी दे कर उसे चुप करा देता था. जिस के चलते उन के बीच झगड़ा होने लगा था. जून में ही जब सुनील मोनिका को अपने साथ कार में बैठा कर गड़ी झंझारा स्थित फार्महाउस की तरफ जा रहा था तो रास्ते में उन का फिर किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया. इस पर सुनील ने तैश में आ कर मोनिका की कार में ही अवैध पिस्तौल से 2 गोलियां मार कर हत्या कर दी थी.

गोली मार कर मोनिका की हत्या करने के बाद शाम को सुनील उस के शव को कार में ही ले कर फार्महाउस पहुंच गया था. जिस के बाद उस ने मोनिका के शव को फार्महाउस में ही गड्ïढा खोद कर उस में दबाने की योजना बनाई, लेकिन अकेला वह गड्ढा खोदने में असमर्थ था. इस कारण उस ने मोनिका के शव को कार में छोड़ कर उसे पूरी तरह से ढंक दिया.

फार्महाउस में दफना दी गई मोनिका

अगली सुबह उस ने मजदूरों को बुलाया और सेफ्टी टैंक का निर्माण करवाने की बात कह कर उन से कई फीट गहरा गड्ढा खुदवा दिया. मजदूरों के चले जाने के बाद शाम के समय उस ने मोनिका के शव को कार से निकाल कर उसे गड्ढे में दबा दिया. गड्ढे की मिट्टी को पूरी तरह से समतल करने के बाद सुनील ने उस के ऊपर घास भी लगवा दी, ताकि किसी को इस बारे में शक न हो. इस तरह सुनील बेफिक्र हो गया था.

सुनील द्वारा मोनिका के अपहरण और उस की हत्या की बात कुबूल करने के बाद मोनिका मर्डर केस का खुलासा हो चुका था. भिवानी सीआईए-2 प्रभारी रविंद्र कुमार ने उस के बयान को कलमबद्ध करने के बाद अदालत में पेश कर दिया. वहां से उसे 10 दिन के रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस सुनील से वारदात में इस्तेमाल अवैध हथियार और कार को भी बरामद करने के प्रयास में जुट गई.

मोनिका हत्याकांड के मामले में आरोपी सुनील ने मोनिका की हत्या की असली वजह बता दी थी. शादी के बाद वह मोनिका के साथ कनाडा जा कर वहीं शिफ्ट होना चाहता था, लेकिन वह गन्नौर में ही रहने की जिद पर अड़ गई थी. मोनिका उसे उस की पहली पत्नी सोनिया को छोडऩे के लिए मजबूर कर रही थी.

मोनिका उस के बच्चों के साथ उस के घर में ही रहना चाहती थी. सुनील ने उसे समझाने की कोशिश की कि वह दूसरा घर खरीद लेंगे और उस में रहेंगे, लेकिन वह नहीं मानी. इसी बात पर उन का झगड़ा हो गया और विवाद इतना बढ़ गया कि उस ने उस की हत्या कर दी.

वह मोनिका की हत्या करने के बाद समालखा, उत्तर प्रदेश में अलगअलग ठिकाने बदलता रहा. मोनिका की लाश को गड्ढा खुदवा कर निकाल लिया गया. पोस्टमार्टम के दौरान मोनिका की खोपड़ी में फंसी गोली मिल गई. पुलिस ने गड्ढे से बरामद युवती के अवशेषों का डीएनए का सैंपल भी जांच के लिए भिजवा दिया.

जांच में पाया गया कि उस की कार गन्नौर अथारिटी में रजिस्टर्ड है. पुलिस ने सुनील से वह देशी पिस्तौल भी बरामद कर ली, जिस से उस ने मोनिका की हत्या की थी. उस के बारे में उस ने बताया कि उस ने पिस्तौल सहारनपुर में रहने वाले अपने एक दोस्त से ली थी. इस जानकारी के बाद पुलिस अब उस के दोस्त के बारे में भी पता लगाने में जुट गई थी.

कथा लिखे जाने तक मोनिका का पासपोर्ट, लैपटाप, सोने की अंगूठी, कपड़ों से भरे बैग, सोने की चेन बरामद नहीं हो पाई थी. मृतका के मौसेरे भाई प्रदीप ने बताया कि उन्होंने भिवानी की सीआईए-2 को जिन संदिग्ध व्यक्तियों के नाम दिए हैं, उन से उन्हें जान का खतरा है. उन्हें उन व्यक्तियों द्वारा उसे व उस के घर वालों पर हमला होने का डर सता रहा है. इसे ले कर उस ने पुलिस आयुक्त से मिल कर सुरक्षा की मांग की.

शर्तों वाला प्यार : प्रेमी ने किया वार – भाग 4

14 अप्रैल को मंधना स्थित गेस्ट हाउस में पहले गोद भराई की रस्म पूरी हुई फिर देर शाम धूमधाम से तिलक समारोह संपन्न हुआ. इस समारोह में हरिओम और सोनू भी शामिल हुए. समारोह के दौरान सोनू ने अन्नपूर्णा से मिलने का भरसक प्रयास किया, लेकिन वह मिल न सकी.

राकेश के घर में शादी की चहलपहल शुरू हो गई थी. रिश्तेनातेदारों के आने का सिलसिला शुरू हो गया था. घर में मंडप गड़ चुका था और मंडप के नीचे ढोलक की थाप पर मंगल गीत गाए जाने लगे थे.

इधर ज्योंज्यों शादी की तारीख नजदीक आती जा रही थी, त्योंत्यों सोनू की बेचैनी बढ़ रही थी. उसे अन्नपूर्णा की बेवफाई पर गुस्सा भी आ रहा था. आखिर जब उस की बेचैनी ज्यादा बढ़ी तो उस ने अन्नपूर्णा से आखिरी बार आरपार की बात करने का निश्चय किया.

उस ने इस बाबत अपने दोस्त विनीत और शुभम से बात की तो दोनों उस का साथ देने को राजी हो गए. विनीत नारामऊ में रहता था और उस की मोबाइल शौप थी. जबकि शुभम पंचोर रोड पर रहता था. दोनों को जब भी पैसों की जरूरत पड़ती, सोनू उन की मदद कर देता था. जिस से वह उस के अहसान तले दबे थे.

16 अप्रैल, 2019 की रात 8 बजे सोनू मोटरसाइकिल से अन्नपूर्णा के घर के पास पहुंचा. उस के साथ उस के दोस्त विनीत और शुभम भी थे. सोनू ने मोटरसाइकिल सड़क किनारे ठेली लगा कर अंडे बेचने वाले के पास खड़ी कर दी. फिर उस ने विनीत को समझाबुझा कर अन्नपूर्णा को बुलाने भेजा.

विनीत अन्नपूर्णा के घर पहुंचा तो संयोग से वह उसे घर के बाहर ही मिल गई. विनीत ने उसे सोनू का संदेश दे कर साथ चलने को कहा. लेकिन अन्नपूर्णा ने साथ जाने और सोनू से बात करने से साफ इनकार कर दिया. इस पर विनीत ने अपने फोन पर अन्नपूर्णा की बात सोनू से कराई.

अन्नपूर्णा ने सोनू से फोन पर बात की और मिलने से साफ इनकार कर दिया. इस पर सोनू ने उस से कहा कि वह आखिरी बार उस से मिलना चाहता है. साथ ही धमकी भी दी कि यदि वह उस से मिलने न आई तो वह शादी वाले दिन ही उस के घर पर आत्महत्या कर लेगा.

प्रेमी बन गया कातिल

अन्नपूर्णा सोनू की धमकी से डर गई और उस से आखिरी बार मिलने को राजी हो गई. अन्नपूर्णा विनीत के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर सोनू के पास पहुंची. सोनू अन्नपूर्णा और अपने दोनों दोस्तों के साथ मोटरसाइकिल से दलहन अनुसंधान केंद्र के पास लिंक रोड पर पहुंच गया. वहां उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. तब तक रात के 9 बज चुके थे और लिंक रोड पर सन्नाटा पसरा था.

विनीत और शुभम तो मोटरसाइकिल से उतर कर किनारे खड़े हो गए. जबकि सोनू अन्नपूर्णा से बतियाने लगा. बातचीत के दौरान सोनू बोला, ‘‘अन्नपूर्णा तुम ने मेरे साथ बेवफाई क्यों की? प्यार मुझसे किया और शादी किसी और से कर रही हो, ऐसा नहीं हो सकता. मैं ने तुम पर लाखों रुपए खर्च किए हैं. उपहार में ज्वैलरी दी है. या तो तुम मेरे रुपए ज्वैलरी वापस कर दो या फिर मुझ से शादी करो.’’

सोनू की बात सुन कर अन्नपूर्णा गुस्से में बोली, ‘‘सोनू, रुपए ज्वैलरी दे कर तुम ने मुझ पर कोई एहसान नहीं किया है. उस के बदले तुम ने मेरे शरीर का भी तो शोषण किया था. अब हिसाबकिताब बराबर. मेरा रास्ता अलग और तुम्हारा रास्ता अलग.’’

‘‘अन्नू, अभी हिसाबकिताब बरबार नहीं हुआ है. तुम मेरी दुलहन नहीं हुई तो मैं तुम्हें किसी और की दुलहन नहीं बनने दूंगा.’’ इतना कह कर सोनू ने मोटरसाइकिल से लोहे की रौड निकाली जिसे वह साथ लाया था और अन्नपूर्णा के सिर पर भरपूर प्रहार कर दिया. अन्नपूर्णा जमीन पर बिछ गई. इस के बाद उस ने 2-3 प्रहार और किए.

इसी बीच उस की नजर ईंट पर पड़ी. उस ने ईंट से प्रहार कर उस का सिर मुंह, कुचल डाला. उस ने हाथ व कमर पर भी प्रहार किए. अन्नपूर्णा कुछ देर तड़पी फिर सदा के लिए शांत हो गई. सोनू का रौद्र रूप देख कर विनीत और शिवम डर गए. इस के बाद सोनू दोस्तों के साथ घटनास्थल से भाग गया.

इधर सुबह 8 बजे दलहन अनुसंधान केंद्र के सुरक्षाकर्मी के.पी. सिंह ने लिंक रोड के किनारे एक युवती की लाश पड़ी देखी तो यह सूचना थाना बिठूर पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही बिठूर थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह घटनास्थल पहुंचे और जांच शुरू कर दी.

लेकिन पुलिस जांच में उलझ गई. आखिर 3 महीने बाद अन्नपूर्णा की हत्या का खुलासा हुआ और कातिल पकड़े गए. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर लोहे की रौड, खूनसनी ईंट तथा सोनू की मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली.

3 अगस्त, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त सोनू, विनीत व शुभम को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित