बेटी बनी पिता का काल : पैसो के लिए रिश्तों का खून

सुबह 6 बजे का समय था और तारीख थी 20 जुलाई, 2021. उत्तर प्रदश के जिला संभल के मुटेना गांव के पास दक्षिण की ओर खेत के बीचोबीच पेड़ से लाश लटकी हुई थी. उस के नीचे एक औरत और 2 लड़कियां विलाप कर रही थीं. उन के अलावा गांव के कुछ लोग भी मौजूद थे.

उसी गांव के ही एक व्यक्ति ने पुलिस को इस की सूचना दी थी. वहां मौजूद सभी को पुलिस के आने का इंतजार था, लेकिन वे आपस में कानाफूसी करते हुए अचरज भी जता रहे थे कि 60 साल से अधिक उम्र के इस सीधेसादे बुजुर्ग ने आखिर फांसी क्यों लगाई होगी? कैसे फंदा बनाया होगा? कैसे फांसी लगाई होगी?

कुछ देर में ही चौकी इंचार्ज 2 कांस्टेबलों के साथ वहां पहुंच गए थे. उन्होंने पहले आसपास के लोगों को वहां से हटाया. फिर पेड़ से लटकी लाश का गहराई से मुआयना किया. प्राथमिक छानबीन की और इस की सूचना रजपुरा के थानाप्रभारी को भी दे दी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी विद्युत गोयल उच्च अधिकारियों को सूचना भेज कर घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश नीचे उतरवाई और पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए संभल जिला मुख्यालय भेज दी. मृतक की पहचान मुटेना के हरपाल यादव के रूप में हुई.

पुलिस की निगाह में मामला आत्महत्या का लग रहा था. इसलिए पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. हालांकि वहां मौजूद कुछ लोगों ने हत्या किए जाने की आशंका जरूर जताई, लेकिन मृतक के घर वालों में से किसी ने भी किसी पर कोई आरोप नहीं लगाया.

हरपाल यादव के पास 30 बीघा खेती की जमीन थी. वह खेती कर अपने परिवार का गुजरबसर करते आ रहे थे. उन की 3 बेटियां नीतू, प्रीति व कविता थीं, जिन की परवरिश में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

हालांकि उन को बेटे की कमी भी खलती रहती थी. बेटा नहीं होने की टीस के चलते उन की एक आदत शराब पीने की भी लग गई थी. जबकि पत्नी लाजवंती उन से शराब छोड़ने को कहती रहती थी.

उन्होंने बड़ी बेटी नीतू की शादी कई साल पहले कर दी थी. कुछ समय से दूसरी बेटी प्रीति की शादी की चिंता सताने लगी थी. लाजवंती प्रीति के विवाह को ले कर कुछ ज्यादा चिंतित रहती थी, इस की वजह यह थी कि वह बाकी 2 बेटियों से अलग जिद्दी स्वभाव की थी. अपनी बात चाहे जैसे हो, मनवा कर ही दम लेती थी.

शादी की चिंता में घुले जा रहे मातापिता की समस्या का समाधान प्रीति ने खुद ही निकाल दिया था. उस ने अपनी मां को बताया कि वह अपनी ही जाति के बदायूं के रहने वाले धर्मेंद्र यादव नाम के लड़के को जानती है. उस ने उसे एक शादी में देखा था. उसे वह पसंद करती है.

प्रीति को उस के बारे जो जानकारी थी, मां को बता दी. मां लाजवंती ने यह जानकारी अपने पति को दे कर बताया कि धर्मेंद्र बदायूं जिले की इसलामनगर तहसील के पतीसा गांव का रहने वाला है. उस के 4 भाई और एक बहन है.

जल्द ही प्रीति के मातापिता ने धर्मेंद्र के परिवार वालों से मिल कर कोरोना काल में ही शादी तय कर दी, किंतु शादी की तारीख कोरोना की वजह से तय नहीं हो पाई थी.

प्रीति और धर्मेंद्र की शादी तय हो जाने के बाद वे मिलने को बेचैन हो गए थे, किंतु सामाजिक और पारिवारिक मानमर्यादा के चलते मिल नहीं पा रहे थे. दूसरा कोरोना काल की वजह से कहीं आनाजाना भी मुश्किल था.

दोनों की फोन पर बातें होने लगी थीं. उस के बाद उन की मिलने की इच्छा और प्रबल हो गई. एक दिन धर्मेंद्र ने प्रीति से मुलाकात करने का आग्रह किया. प्रीति भी इसी का इंतजार कर रही थी. धर्मेंद्र ने मिलने की जगह और समय बताया.

धर्मेंद्र से मिलने के बाद प्रीति उस पर फिदा हो गई. उसे अपने सपनों का शहजादा मिल गया था. इकहरे बदन के मजबूत कदकाठी वाले धर्मेंद्र के चेहरे पर गजब का आकर्षण धा. उस से बातें कर प्रीति बहुत प्रभावित हो गई. धर्मेंद्र भी प्रीति को देख कर लट्टू हो गया. जवानी से मदमस्त प्रीति को देखा तो एकटक से देखता ही रह गया.

उस की सुंदर काया, झलकती जवानी, इतरानेइठलाने की अदाएं धर्मेंद्र को बहुत पसंद आईं. उस रोज उन की छोटी से मुलाकात हुई, लेकिन बाद में दोनों ने मिलनेजुलने का सिलसिला बना लिया.

धीरेधीरे धर्मेंद्र का प्रीति के घर भी आनाजाना हो गया. प्रीति भी अपने होने वाले ससुराल घूम आई. धर्मेंद्र ने प्रीति से कहा कि वह काफी धूमधाम से पूरे जश्न के साथ शादी करना चाहता है.

जबकि कोरोना काल में शादी में लगी बंदिशों के चलते शादी की तारीखें टलती जा रही थीं. इस बीच उन के बीच वह सब भी हो गया, जो विवाह बाद होना चाहिए था.

उन की शादी अब महज विशेष औपचारिकता भर रह गई थी. दोनों  एकदूसरे के दीवाने हो गए थे. उन्होंने साथ जीनेमरने की कसमें भी खाई थीं.

शादी के इंतजार में 2 महीने और निकल गए. जून का महीना भी जाने वाला था. उन दिनों धर्मेंद्र प्रीति के पास आया हुआ था. प्रीति के घरवालों को उन के मिलनेजुलने से कोई आपत्ति नहीं थी. वह अकसर शाम तक ठहरता और फिर अपने घर चला जाता था.

उस दिन धर्मेंद्र ने प्रीति से अचानक कहा कि उसे कुछ खास बात करनी है. उस के साथ ही वह पूछ बैठा, ‘‘अच्छा प्रीति, एक बात बताओ…’’

‘‘क्या?’’ प्रीति उत्सुकता से बोली.

‘‘तुम्हारे पिताजी हमारी शादी में कितना रुपया खर्च करेंगे?’’

प्रीति याद करती हुई बोली, ‘‘नीतू दीदी की शादी में 3 लाख रुपया खर्च हुआ था. मेरी शादी में भी लगभग इतना तो खर्च करेंगे ही.’’

‘‘इतना पैसा जमा कर लिया होगा पिताजी ने?’’ धर्मेंद्र चिंता जताते हुए बोला.

‘‘इतनी रकम की व्यवस्था नहीं है,  फिर भी कुछ रिश्तेदारों से और कुछ खेती की जमीन पर बैंक से लोन लेने की तैयारी कर रहे हैं.’’ प्रीति बोली.

तभी धर्मेंद्र बोला, ‘‘3 लाख रुपए में क्या होगा. देखो मुझे अपना कोई कारोबार करने के लिए कम से कम 5 लाख रुपए चाहिए. बारात की अच्छी खातिरदारी होनी चाहिए. दहेज के जरूरी सामान के लिए भी 3 लाख रुपए कम पड़ जाएंगे. शादी के बाद कोई किसी का साथ नहीं देता. हम दोनों जो खुशहाल जिंदगी का तानाबाना बुन रहे हैं, सुनहरे सपने देख रहे हैं, वे सब पूरे नहीं हो सकेंगे.’’

‘‘इतना पैसा कहां से आएगा?’’ प्रीति चिंतित हो गई.

‘‘चिंता करने की जरूरत नहीं है. मेरे पास उस का समाधान है.’’ धर्मेंद्र बोला.

‘‘वह क्या?’’ प्रीति ने पूछा.

‘‘देखो पिताजी के पास 30 बीघा जमीन है. 3 बेटियां हैं. बेटा कोई है नहीं. हमारे हिस्से में भी 10 बीघा जमीन आएगी. उन्हें सिर्फ इतना करना है कि हमारे हिस्से की जमीन बेच कर रकम हमें दे दें.’’

धर्मेंद्र की बात प्रीति की समझ में तो आ गई पर दुविधा के साथ बोली, ‘‘लेकिन यह बात उन को कौन समझाएगा?’’

‘‘तुम, और कौन?’’

‘‘नहीं माने तो?’’

‘‘नहीं कैसे मानेंगे, तुम कोई गलत थोड़े कहोगी. ऐसा करने से उन के सिर पर कर्ज का कोई बोझ भी नहीं पड़ेगा. और वह अपनी तीसरी बेटी की भी शादी अच्छी तरह से कर लेंगे.’’

कुछ सोचती हुई प्रीति बोली, ‘‘अच्छा चलो, मैं आज ही उन से बात करूंगी.’’

थोड़ी देर रुक कर धर्मेंद्र चला गया. रात में पिता को खाना खिलाने के बाद प्रीति ने धर्मेंद्र ने जैसे कहा था, पिता को वैसे ही कह दिया.

संयोग से मां भी वहां मौजूद थी. हरपाल प्रीति की बात सुन कर अवाक रह गए.

उन्होंने तुरंत कहा, ‘‘देखो प्रीति, मैं तुम्हारी हर बात मान लेता हूं, लेकिन यह बात मुझे जरा भी पसंद नहीं है.’’

प्रीति ने पिता को समझाने की कोशिश की, ‘‘धर्मेंद्र कह रहे हैं कि 10 बीघा जमीन बेच ली जाए तो शादी ठीकठाक हो जाएगी. धर्मेंद्र को भी कोई कामधंधा करने के लिए रकम मिल जाएगी. वैसे भी तीनों बहनों के नाम 10 -10 बीघा जमीन तो आनी ही है.’’

दोबारा जमीन की बात सुन कर हरपाल आगबबूला हो गए. गुस्से में बोले, ‘‘जमीन मेरी मां है, तुम लोगों के कहने पर मैं अपनी मां को बेच दूं. ऐसा आज तक खानदान में न हुआ है और न आगे होगा.’’

इतना कह कर वह वहां से उठ कर चले गए. जातेजाते कह गए, ‘‘आइंदा अब इधर मत आना, मुझ से बात मत करना. तुम्हारी शादी तो मैं किसी तरह करवा ही दूंगा. उस के बाद समझो हमारा रिश्ता खत्म हो जाएगा.’’

प्रीति पिता की इस नाराजगी से काफी दुखी हो गई. उस ने पूरी बात अगले रोज धर्मेंद्र को फोन पर बताई. वह समझ नहीं पा रही थी क्या करे कि उस के पिता जमीन बेचने को तैयार हो जाएं.

एक हफ्ते तक बापबेटी के बीच कोई बातचीत नहीं हुई. धर्मेंद्र ने भी प्रीति की इस बीच कोई खोजखबर नहीं ली. आखिरकार प्रीति ने ही फोन कर धर्मेंद्र से हालचाल पूछा. फोन पर धर्मेंद्र काफी उखड़ाउखड़ा सा लगा. वह लापरवाही से बातें करता रहा.

प्रीति ने महसूस किया कि जैसे उस के मंगेतर धर्मेंद्र को उस से कोई लगाव नहीं रहा. किसी तरह से प्रीति अपने प्रेम और अंतरंग संबंधों का हवाला देते हुए धर्मेंद्र को मनाने में कामयाब रही.

वह धर्मेंद्र के प्रेम जाल में बुरी तरह फंस चुकी थी. धर्मेंद्र को अपना सब कुछ सुपुर्द कर चुकी थी. उस ने धर्मेंद्र को आश्वासन दिया कि वह कोई न कोई रास्ता निकाल लेगी, जिस से पिता उस के हिस्से की जमीन देने के लिए राजी हो जाएंगे.

इसी के साथ उस ने धर्मेंद्र को किसी जगह बैठ कर समस्या का समाधान निकालने का सुझाव दिया.

धर्मेंद्र प्रीति की बात मानते हुए उस से मिला. मिलते ही प्रीति उस के गले लग कर बोली, ‘‘गुस्सा थूक दो, आओ कोई तरीका निकालते हैं.’’

‘‘बुड्ढे ने तो सारा खेल बिगाड़ दिया. और ऐसा ही हाल रहा तो हम दोनों को वह जीते जी सुखी जीवन शुरू करने नहीं देगा.’’ धर्मेंद्र गुस्से में बोला.

‘‘तो फिर उन्हें रास्ते से ही हटा देते हैं.’’ प्रीति तुरंत बोली.

धर्मेंद्र अवाक रह गया, ‘‘यह तुम क्या कह रही हो? वो तुम्हारे पिता हैं.’’

‘‘पिता हैं तो क्या हुआ, तुम सही कह रहे हो, उन के जीते जी हमें सुखी जीवन नहीं नसीब होगा.’’

‘‘एक बार फिर समझाते हैं, मैं भी तुम्हारे साथ रहूंगा.’’ धर्मेंद्र बोला.

‘‘तुम इस में साथ मत दो, मैं ने जो योजना बनाई है उस में मेरी मदद करो.’’

उस के बाद प्रीति ने धर्मेंद्र को अपनी योजना बताई और दोनों ही उसे अंजाम देने की तैयारी में जुट गए.

योजना के मुताबिक दोनों ने मिल कर हरपाल को ठिकाने लगाने की पूरी तैयारी कर ली थी. उस के बाद जो घटित हुआ, उस का खुलासा पोस्टमार्टम रिपोर्ट और पुलिस की गहन तफ्तीश से सामने आ गया. वह इस प्रकार है—

19 अगस्त, 2021 को हरपाल खेतों पर काम करने के बाद घर आ रहे थे. रास्ते में  गांव का ही एक दोस्त मिल गया. वह शराब पीनेपिलाने वाला दोस्त था. दोनों ने एकांत में बैठ कर शराब पी. फिर हरपाल घर आ गए. तभी प्रीति ने बताया कि अभी उन से कोई मिलना चाहता है.

प्रीति अपने पिता को घर से दूर खड़े धर्मेंद्र के पास ले गई. वह बाइक ले कर खड़ा था. प्रीति अपने पिताजी को धर्मेंद्र के हवाले कर घर आ गई.

धर्मेंद्र हरपाल को उन के खेतों की तरफ ले गया, जहां उस का साथी गौरव मौजूद था. वहां बैठ कर हरपाल को और दारू पिलाई गई. जब वह नशे में काफी धुत हो गए, तब उन के सिर पर रौड मार कर हत्या कर दी.

हरपाल की मौत के बाद धर्मेंद्र ने पूरी बात फोन से प्रीति को बता दी. उन के द्वारा ही गले में फंदा डाले हरपाल के पेड़ पर लटके होने की खबर घर पहुंचा दी गई. प्रीति इस से पहले ही घटनास्थल पर पहुंच चुकी थी. फिर उन्होंने लाश पेड़ से इस तरह लटका दी जिस से मामला आत्महत्या का लगे.

हरपाल की लाश को पेड़ से लटकाने में काफी समय लग गया, लेकिन सुबह होने से पहले ही प्रीति ने सभी परिचितों को इस घटना की सूचना दे दी और वे आननफानन में घटनास्थल पर जा पहुंचे.

हत्या के इस मामले को आत्महत्या बनाने की कोशिश तो की गई थी, लेकिन धर्मेंद्र और उस के दोस्त इस में सफल नहीं हो पाए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ही इस का खुलासा हो गया. फिर पुलिस ने शक के आधार पर परिजनों से पूछताछ की, जिस में प्रीति का व्यवहार ही संदिग्ध दिखा.

उस के बयान के आधार पर पुलिस ने धर्मेंद्र को गिरफ्तार कर लिया. हरपाल के मर्डर केस का परदाफाश एसपी (संभल) चक्रेश मिश्रा द्वारा पत्रकार वार्ता में किया गया. पूरे हत्याकांड में प्रीति की साजिश होने के कारण 120बी आईपीसी के तहत प्रीति को भी नामजद किया गया है.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शरीरों के खेल में मासूम कार्तिक बना निशाना – भाग 1

परसराम महावर का परिवार हर तरह से खुशहाल था, जो भोपाल की सिंधी बाहुल्य बैरागढ़ स्थित राजेंद्र नगर के एक छोटे से मकान में रहता था. परसराम कपड़े की दुकान में काम करता था. बैरागढ़ का कपड़ा बाजार देश भर में मशहूर है, यहां देश के व्यापारी थोक और फुटकर खरीदारी करने आते हैं. परसराम सुबह 8-9 बजे दुकान पर चला जाता था और देर रात लौटना उस की दिनचर्या थी. घर में उस की 30 वर्षीय पत्नी कविता (बदला नाम) और 2 बच्चे 10 साल की कनक और 8 साल का बेटा कार्तिक था, जिसे भरत भी कहते थे.

सुबह के वक्त दोनों बच्चों को स्कूल भेज कर कविता घर के कामकाज में जुट जाती थी और दोपहर 12 बजे तक फारिग हो कर या तो पड़ोस में चली जाती थी या फिर अपने मोबाइल फोन पर गेम खेल कर वक्त गुजार लेती थी. दोपहर ढाई बजे बच्चे स्कूल से वापस आ जाते थे तो वह फिर उन के कामों में व्यस्त हो जाती थी. इस के बाद बच्चों के खेलने और ट्यूशन पढ़ने का वक्त हो जाता था.

एक लिहाज से परसराम और कविता का घर और जिंदगी दोनों खुशहाल थे, उस की पगार से घर ठीकठाक चल जाता था. शादी के 12 साल हो जाने के बाद पतिपत्नी का मकसद बच्चों को पढ़ालिखा कर कुछ बनाने भर का रह गया था. इन लोगों ने अपने बच्चों को नजदीकी क्राइस्ट स्कूल में दाखिल करा दिया था. हर मांबाप की तरह इन की इच्छा भी बच्चों को अंगरेजी स्कूल में पढ़ाने की थी, जिस वे फर्राटे से अंगरेजी बोलने लगें. कनक और कार्तिक जब स्कूल की यूनिफार्म के साथ टाई बेल्ट और जूते पहन कर जाते थे, तो परसराम के काम करने का उत्साह और बढ़ जाता था.

कपड़े की दुकान का काम कितना कठिन होता है, यह परसराम जैसे लोग ही बेहतर जानते हैं जो दिन भर ग्राहकों के सामने कपड़ों के थान और पीस खोल कर रखते हैं, फिर वापस तह बना कर उन्हें उन की जगह पर जमाते हैं. सीजन के दिनों में तो कर्मचारी कमर सीधी करने और बाथरूम जाने तक को तरस जाते हैं. सालों से कपड़े की दुकान में काम कर रहे परसराम को अपनी नौकरी से कोई शिकायत नहीं थी. रात को घर लौट कर उस की थकान बच्चों की बातों और खूबसूरत पत्नी के होंठों की मुसकराहट देख कर गायब हो जाती थी.

अच्छीभली गृहस्थी थी कविता और परसराम की

कविता कुशल गृहिणी थी, जो किफायत से खर्च कर के घर चला लेती थी. वह दूसरी औरतों की तरह फिजूलखर्ची नहीं करती थी. 12 साल के वैवाहिक जीवन में उस ने पति को किसी भी शिकायत का मौका नहीं दिया था. इस बात पर परसराम को गर्व भी होता था और पत्नी पर प्यार भी उमड़ आता था.

कुल जमा परसराम अपनी जिंदगी से खुश था, लेकिन बीती 8 जनवरी को उस की इन खुशियों को ऐसा ग्रहण लगा, जिस से शायद ही वह जिंदगी में कभी उबर पाए. उस दिन दोपहर करीब 3 बजे उस के पास कविता का फोन आया कि कनक तो आ गई है, लेकिन कार्तिक स्कूल से वापस नहीं लौटा है. फोन सुनते ही वह घबरा कर घर की तरफ भागा.

hindi-manohar-family-crime-story

कनक और कार्तिक दोनों एक ही औटो से स्कूल आतेजाते थे. दोनों के आनेजाने का वक्त तय था, सुबह 8 बजे जाना और दोपहर ढाई बजे लौट आना. लेकिन उस दिन कविता जब रोजाना की तरह घर के दरवाजे पर आई तो कविता ने कनक के साथ कार्तिक को नहीं देखा.

‘‘भाई कहां है?’’ पूछने पर कनक ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि वह तो नहीं आया. क्यों नहीं आया, इस सवाल का कनक कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाई तो कविता घबरा उठी.

इस पर उस ने औटो वाले से पूछा तो उस ने भी हैरानी से बताया कि आज तो कार्तिक स्कूल में दिखा ही नहीं और जल्दबाजी में उस ने भी ध्यान नहीं दिया.

इन जवाबों पर कविता को गुस्सा तो बहुत आया कि कार्तिक को छोड़ने की लापरवाही क्यों की, पर इस गुस्से को रोक कर उस ने पहले पति को फोन किया, फिर यह सोच कर बेचैन निगाहों से सड़क को निहारने लगी कि शायद कार्तिक आता दिख जाए.

हो न हो, वह बच्चों के साथ खेलने के कारण औटो में बैठना भूल गया हो या फिर स्कूल में ही किसी काम से रुक गया हो. कई तरह की शंकाओं, आशंकाओं से घिरी कविता परसराम के आने तक बेटे की सलामती की दुआ मांगती रही.

कोई खास वजह थी, जिस से परसराम और कविता दोनों जरूरत से ज्यादा आशंकित हो उठे थे. परसराम ने घर आतेआते फोन पर अपने भाई दिलीप को यह बात बताई तो वह भी चंद मिनटों में राजेंद्रनगर आ पहुंचा.

दोनों भाई भागेभागे क्राइस्ट मेमोरियल स्कूल पहुंचे और कार्तिक के बारे में पूछताछ की. वहां मौजूद सिक्योरिटी गार्ड और स्कूल स्टाफ ने बताया कि कार्तिक तो वक्त रहते चला गया था. इस जवाब पर परसराम का झल्लाना स्वाभाविक था, लेकिन स्कूल वालों से बहस करने के बजाय उस ने कार्तिक को ढूंढना ज्यादा बेहतर समझा और दोनों भाई उसे इधरउधर ढूंढने लगे. उन्होंने स्कूल से घर तक का रास्ता भी छाना. कई लोगों से कार्तिक के बारे में पूछताछ भी की लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

एक घंटे की खोजबीन के बाद परसराम ने बैरागढ़ थाने जा कर बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवा दी, जो एक जरूरी औपचारिकता वाली बात थी. कार्तिक को जान से भी ज्यादा चाहने वाले परसराम को चैन नहीं मिल रहा था, इसलिए रिपोर्ट दर्ज करने के बाद वह फिर बेटे को तलाशने में लग गया. उस ने बैरागढ़ की कोई गली नहीं छोड़ी.

कटवा दी जिंदगी की डोर : पत्नी और उस के प्रेमी ने ली जान – भाग 1

भारतीय खुफिया एजेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो यानी आईबी के सहायक तकनीकी सूचना अधिकारी चेतन प्रकाश गलाना बीती 14 फरवरी को 2 दिन की छुट्टी पर दिल्ली से अपने घर कोटा जिले की रामगंज मंडी आए थे. दिल्ली में वह अकेले रहते थे. उन के मातापिता रामगंज मंडी में और पत्नी अनीता 2 छोटे बेटों के साथ झालावाड़ में रहती थी.

चेतन आमतौर पर महीने में 1-2 बार छुट्टी पर घर आ जाते थे. जब भी वह घर आते तो रामगंज मंडी में रहने वाले मातापिता से मिलने जरूर जाते थे. उस दिन भी वह रामगंज मंडी में अपने घर वालों से मिल कर शाम 6 बजे की ट्रेन से झालावाड़ के लिए रवाना हुए थे. उन्हें करीब एक घंटे में झालावाड़ पहुंच जाना चाहिए था. जब रात 8 बजे तक चेतन घर नहीं पहुंचे तो उन की पत्नी अनीता ने अपने रिश्तेदारों को फोन कर के चेतन के बारे में बताया.

अनीता के कहने पर झालावाड़ की गायत्री कालोनी में रहने वाले रिश्तेदार मनमोहन मीणा ने चेतन की तलाश शुरू की. इसी खोजबीन में रात करीब साढ़े 8 बजे चेतन झालरापाटन-भवानी मंडी मार्ग पर रेलवे की रलायता पुलिया के पास बेहोश पड़े मिले. मनमोहन मीणा ने अनीता को चेतन के अचेत पड़े होने की सूचना दी. इस के बाद रिश्तेदार बेहोश चेतन को एआरजी अस्पताल ले गए. जांच के बाद डाक्टरों ने चेतन को मृत घोषित कर दिया.

संदिग्ध मौत का मामला होने की वजह से अस्पताल से पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने अस्पताल पहुंच कर शव का निरीक्षण किया, लेकिन शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं मिला.

पुलिस ने रलायता पुलिया के पास उस जगह का भी मौका मुआयना किया, जहां चेतन अचेत पड़े मिले थे. लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिस से पता चलता कि चेतन की मौत कैसे हुई. रिश्तेदारों की सूचना पर रामगंज मंडी से चेतन के मातापिता और अन्य घर वाले भी झालावाड़ आ गए.

पिता को था बेटे की हत्या का संदेह

चेतन के पिता महादेव मीणा ने झालावाड़ के थाना सदर में बेटे की संदिग्ध मौत का मामला दर्ज करा दिया. पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 174 में मामला दर्ज कर जांच शुरू की. पुलिस ने 15 फरवरी को चेतन के शव का मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम के बाद चेतन का विसरा जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेज दिया.

खुफिया अधिकारी की मौत का मामला होने के कारण पुलिस हर एंगल से जांच कर रही थी. इन में 3 मुख्य बिंदु थे, पहला हार्ट अटैक, दूसरा आत्महत्या और तीसरा हत्या. चेतन के शरीर पर चोट या हाथापाई के कोई निशान नहीं मिले थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी ऐसा कुछ नहीं बताया गया, जिस से मौत का रहस्य खुलता.

अब पुलिस के सामने सवाल यह था कि चेतन जब ट्रेन से झालावाड़ आ रहे थे तो वह रलायता पुलिया कैसे पहुंचे और उन की मौत कैसे हुई? पुलिस कई दिनों तक इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करती रही, लेकिन कोई ऐसी महत्त्वपूर्ण जानकारी नहीं मिली, जिस से चेतन की मौत के कारणों का पता चल पाता.

इस बीच, चेतन के पिता महादेव मीणा ने अदालत में इस्तगासा दायर कर दिया. इस्तगासे में कहा गया कि चेतन की सुनियोजित तरीके से हत्या की गई है. इस पर अदालत ने पुलिस को चेतन की हत्या का मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए. तब तक चेतन की हत्या को 3 महीने हो चुके थे.

अप्रैल के दूसरे सप्ताह में झालावाड़ के सदर थाने में अज्ञात लोगों के खिलाफ आईबी औफिसर चेतन प्रकाश गलाना की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. एसपी आनंद शर्मा ने चेतन की हत्या के मामले का खुलासा करने के लिए एडीशनल एसपी छगन सिंह राठौड़ के नेतृत्व में सदर थानाप्रभारी संजय मीणा, एएसआई अजीत मोगा, हैडकांस्टेबल मदन गुर्जर, कुंदर राठौड़, महेंद्र सिंह, हेमंत शर्मा और कुछ कांस्टेबलों की टीम गठित की.

पत्नी को किया गिरफ्तार

पुलिस की इस टीम ने चेतन प्रकाश की दिनचर्या के बारे में पता लगाया. इस के बाद उन के दोस्तों, परिचितों और दुश्मनी रखने वालों को चिह्नित कर के उन से पूछताछ की. इंटेलीजेंस ब्यूरो के दिल्ली कार्यालय में चेतन प्रकाश के साथी कर्मचारियों से भी पूछताछ की गई.

पुलिस टीम ने रामगंज मंडी, झालावाड़ रेलवे स्टेशन और रलायता पुलिया के आसपास घटनास्थल का कई बार दौरा कर के तथ्यों का पता लगाने का प्रयास किया. साइबर टीम ने कई जगह के मोबाइल टावरों का रिकौर्ड निकलवाया. साथ ही चेतन के घरपरिवार की पूरी जानकारी प्राप्त कर के घर वालों से भी पूछताछ की गई.

जांचपड़ताल में यह बात सामने आई कि चेतन के अपनी पत्नी अनीता के साथ संबंध अच्छे नहीं थे. इस के बाद पुलिस ने तकनीकी जांच और मुखबिरों की मदद से चेतन की मौत की कडि़यां जोड़नी शुरू कीं. लंबी चली जांचपड़ताल के बाद 25 जून को पुलिस ने आईबी औफिसर चेतन प्रकाश की हत्या के मामले में उन की पत्नी अनीता को गिरफ्तार कर लिया. अनीता से की गई पूछताछ में चेतन की हत्या की पूरी तसवीर सामने आ गई.

जांच में पता चला कि चेतन की हत्या पुलिस कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ ने अपने साथियों के साथ मिल कर सुनियोजित तरीके से की थी. चेतन की पत्नी अनीता भी पति की हत्या में शामिल थी. कांस्टेबल प्रवीण के चेतन की पत्नी अनीता से अवैध संबंध थे. इन संबंधों को ले कर चेतन का अपनी पत्नी अनीता से कई बार विवाद भी हुआ था.

चेतन को शक था कि छोटा बेटा उस का नहीं, बल्कि प्रवीण का है. चेतन ने छोटे बेटे का डीएनए टेस्ट कराने की बात कही थी. इस से अनीता और प्रवीण को अपने अवैध संबंधों का राज खुलने का डर था. इसी वजह से उन्होंने चेतन को रास्ते से हटाने का फैसला किया.

कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ ने अपने साथियों के सहयोग से चेतन को मौत के घाट उतारने के लिए 5 प्रयास किए थे. 3 बार की असफलता के बाद चौथी बार चेतन को दिल्ली में उन के घर पर मारने की योजना बनाई गई, लेकिन उस में भी कामयाबी नहीं मिली. अंतत: 5वीं बार वे चेतन को मौत की नींद सुलाने में कामयाब हो गए.

कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ पहले झालावाड़ पुलिस की स्पैशल टीम में तैनात था. बाद में वह प्रतिनियुक्ति पर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो यानी एसीबी में चला गया. एसीबी में भी वह झालावाड़ में ही तैनात रहा. पुलिस कांस्टेबल होने के कारण प्रवीण को आपराधिक पैंतरों की अच्छी जानकारी थी कि हत्या के मामले को साधारण मौत में कैसे दर्शाया जाए, वह अच्छी तरह जानता था. इस के लिए उस ने चेतन का अपहरण किया और उसे कैटामाइन इंजेक्शन की हैवी डोज दे कर मौत की नींद सुला दिया.

कैटामाइन इंजेक्शन प्रतिबंधित नशीली दवा है. यह बाजार में खुले तौर पर नहीं मिलती. कैटामाइन इंजेक्शन अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों में ही काम आता है. खास बात यह कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी इस इंजेक्शन के बारे में पता नहीं चल पाता.

पुलिस ने व्यापक जांचपड़ताल के बाद चेतन की हत्या के मामले में उस की पत्नी अनीता के साथसाथ अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया. इन आरोपियों से की गई पूछताछ और पुलिस की जांच में चेतन की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस तरह है. झालावाड़ में मंगलपुरा रोड पर रहने वाले रमेशचंद का बेटा प्रवीण राठौड़ जब पढ़ता था, तभी से अनीता उसे जानती थी.

बचपन के प्यार ने हिलोरें मारे तो बन गई हत्या की योजना

अनीता भी झालावाड़ में रहती थी. पढ़नेलिखने की उम्र में दोनों एकदूसरे को चाहने लगे थे. सन 2008 में अनीता का चयन अध्यापिका के पद पर हो गया. उसी साल प्रवीण राठौड़ की नौकरी भी राजस्थान पुलिस में लग गई.

चौधरी की भूलभुलैया : अपनी ही बनाई योजना में फंसा – भाग 1

उन दिनों मैं नजीबाबाद में तैनात था. एक दिन एक दोहरे हत्याकांड का मामला सामने आया. मैं एक कांस्टेबल को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गया. मई का महीना था. तेज गरमी पड़ रही थी. हत्या की वारदात चौधरी गनी के डेरे पर हुई थी, जो गांव टिब्बी का रहने वाला था. उस डेरे में नीची छतों के कमरे थे और एक कमरे में दोनों मृतकों की लाशें चारपाई पर रखी थीं, जो एक चादर से ढंकी थीं.

कमरे में जितने लोग थे, चौधरी ने सब को बाहर कर के दरवाजा बंद कर दिया. इस के बाद उस ने लाशों के ऊपर से चादर खींच दी. मेरी नजर लाशों पर पड़ी तो मैं ने शरम से नजरें दूसरी ओर फेर लीं. लाशें मर्द और औरत की थीं और दोनों नग्न हालत में एकदूसरे से लिपटे हुए थे. चौधरी ने कहा, ‘‘मैं ने इसीलिए सब को बाहर निकाला था.’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौन हैं ये दोनों?’’

उस ने मर्द की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह तो मुश्ताक है, मेरा नौकर और यह औरत बशारत की पत्नी सुगरा है.’’

मैं ने दोनों लाशों का बारीकी से निरीक्षण किया. जांच से पता लगा कि दोनों जब एकदूसरे में खोए हुए थे, तभी किसी ने दोनों पर पूरा रिवौल्वर खाली कर दिया था. दोनों के शरीर का ऊपरी भाग खून में नहाया हुआ था. पहली नजर में यह बदले की काररवाई लगती थी. दोनों जवान और सुंदर थे. देखने के बाद मैं ने लाशों पर चादर डाल दी.

‘‘यह किस का काम हो सकता है?’’ मैं ने चौधरी गनी से पूछा.

वह अपनी एक टांग को दबाते हुए बोला, ‘‘यह आप जांच कर के पता लगा सकते हैं.’’

‘‘लेकिन आप का दिमाग क्या कहता है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मुझे बशारत मतलब सुगरा के पति पर शक है.’’

‘‘क्या आप ने बशारत से पूछताछ की है?’’

‘‘मैं ने एक आदमी उस के घर भेजा था, लेकिन वह घर पर नहीं मिला.’’

‘‘इस का मतलब उसे अभी तक इस घटना का पता नहीं लगा.’’

‘‘मलिक साहब, वह खुद ही इधरउधर निकल गया होगा.’’

चौधरी की बात से मैं समझ गया कि वह बशारत को मुश्ताक और सुगरा का हत्यारा समझ रहा है. मैं ने उस की आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘चौधरी साहब, आप इस घटना के बारे में क्या जानते हैं?’’

‘‘कुछ ज्यादा नहीं.’’ उस का एक हाथ फिर अपनी बाईं टांग की ओर गया.

‘‘आप की टांग में क्या हो गया है, जो आप बारबार हाथ लगा रहे हैं.’’

‘‘मेरी टांग में कुछ दिनों से बहुत दर्द हो रहा है.’’ वह कुछ रुक कर बोला, ‘‘मैं तो यहां हवेली में आराम कर रहा था कि मुराद दौड़ते हुए आया. उस ने बताया कि मुश्ताक और सुगरा को किसी ने मार दिया है. मैं ने डेरे पर जा कर लाशों को देखा और एक आदमी बशारत को देखने के लिए भेज दिया. फिर हवेली पहुंच कर मंजूरे को आप के पास थाने भेजा और मुश्ताक की पत्नी को भी खबर कर दी. वह बेचारी रोपीट रही है.’’

मुश्ताक की पत्नी बिलकीस लाशों को देखने के लिए कहती रही, लेकिन मुराद ने उस से कह दिया कि जब तक पुलिस काररवाई नहीं हो जाती, वह उसे देखने नहीं देगा.

मैं ने जरूरी काररवाई कर के लाशों को जिला अस्पताल भिजवा दिया और कमरे की बारीकी से जांच की. कमरे में एक ओर खिड़की थी, खिड़की में कोई जाली या सरिए नहीं लगे थे. वहां एक चारपाई थी, जिस पर दोनों की लाशें रखी थीं.

चारपाई को रंगते हुए खून नीचे फर्श पर गिरा था, जो जम गया था. हत्या करने का कोई भी हथियार अथवा कोई भी ऐसी चीज नहीं मिली, जो हत्या की जांच में मदद कर पाती. कमरे के बाहर कुछ लोग खडे थे. मैं ने उन में से एक समझदार से आदमी की ओर इशारा कर के उसे बुलाया. मैं ने उस से पूछा, ‘‘चाचा, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘जी, रहमत…रहमत अली.’’

‘‘क्या तुम भी इसी गांव में रहते हो?’’

उस ने हां में जवाब दिया तो मैं ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चाचा, तुम मेरे साथ आओ.’’

मैं उसे एक कमरे में ले गया, जिस में खेती का सामान और कबाड़ रखा था. उस सामान में मैं हत्या करने वाला हथियार देख रहा था, साथ ही चाचा से भी बात कर रहा था.

इस के बाद मैं ने 2 और कमरों की तलाशी ली, लेकिन काम की कोई चीज नहीं मिली. मेरे पास सरकारी ताला था, मैं ने उस कमरे में ताला लगा कर उसे सील कर दिया, जिस में उन दोनों की लाशें मिली थीं.

कुछ और लोगों से बात कर के मैं रहमत को साथ ले कर डेरे से निकल कर टिब्बी गांव की ओर चल दिया. मैं चलतेचलते उस से बात कर रहा था. उस से काम की कई बातें पता लगीं, जो मैं आगे बताऊंगा.

चौधरी गनी ने मुझ से कहा था कि घटनास्थल से सीधा हवेली आऊं, लेकिन मैं ने पहले बशारत से मिलने की सोची. मैं पूछतेपूछते बशारत के घर तक पहुंच गया.

बशारत का घर गांव के बीचोबीच था, लेकिन वह घर में नहीं था. एक आदमी फरमान ने बताया कि वह खेतों में भी नहीं है. हम सब उस का इंतजार कर रहे हैं. उस ने गली में इधरउधर देखते हुए कहा, ‘‘आप अंदर आ जाएं सरकार, कुछ देर और खड़े रहे तो यहां मेला लग जाएगा.’’

‘‘तुम्हारे साढ़ू ने कारनामा ही ऐसा किया है, मेला तो लगेगा ही.’’

वह परेशान सा हो कर बोला, ‘‘समझ नहीं आ रहा, उस ने ऐसा काम कैसे कर दिया.’’

मैं अंदर एक कमरे में बैठ गया, जहां पहले से ही फरमान की पत्नी और बच्चे बैठे थे.

में ने उन्हें अपना परिचय दे कर बताया कि मैं कस्बा नजीबाबाद के थाने का इंचार्ज हूं. गांव टिब्बी मेरे ही थाने में आता है.

फरमान ने सिर हिला दिया, लेकिन उस की पत्नी कुबरा चुप नहीं रही. वह बोली, ‘‘थानेदार साहब, आप ने काररवाई करने में इतनी जल्दी क्यों की? कम से कम बशारत के आने का तो इंतजार कर लेते. लाशों को बाद में भी अस्पताल भिजवाया जा सकता था. हम अपनी बहन का मुंह भी नहीं देख सके.’’ इतना कह कर वह रोने लगी.

‘‘पागलों जैसी बातें न कर कुबरा, ऐसी हालत में उन का मुंह देखती. कुछ शरम है कि नहीं?’’ फरमान ने उसे झिड़का.

‘‘मैं गरमी की वजह से लाशों को अधिक देर तक नहीं रख सकता था.’’ मैं ने कुबरा से कहा, ‘‘तसल्ली रखो, पोस्टमार्टम के बाद लाशों को आप के हवाले कर दिया जाएगा, फिर आप अच्छी तरह अपनी बहन का मुंह देख लेना.’’

वह बोली, ‘‘थानेदार साहब हम चौधरियों के डेरे तक गए थे, लेकिन उस कमीने मुराद ने हमें कमरे के अंदर नहीं जाने दिया.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है कुबरा, हालात को समझने की कोशिश करो. तुम्हारी छोटी बहन ने ऐसी हरकत कर के हमारी नाक कटवा दी, अब तुम बाकी की कसर भी पूरी करना चाहती हो.’’ फरमान ने उसे डांटते हुए कहा.

मैं ने कुबरा को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘बीवी, मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं हूं, चौधरी गनी ने ही मुराद को वहां खड़ा किया था. मृतक मुश्ताक की पत्नी भी अपने पति का मुंह देखने वहां पहुंची थी, लेकिन मुराद ने उसे भी अंदर नहीं जाने दिया.’’ फरमान ने मेरी ओर देखते हुए कहा, ‘‘मलिक साहब, आप की बातों से लग रहा है कि आप इस हत्या में बशारत पर शक कर रहे हैं.’’

‘‘क्या मैं बशारत पर शक करने के मामले में सही नहीं हूं?’’ मैं ने उसे जवाब देने के बजाय उल्टा सवाल कर दिया.

मेरा सवाल सुन कर वह इधरउधर देखने लगा, फिर बोला, ‘‘मेरा मतलब यह है कि बशारत…इतना हिम्मत वाला नहीं है.’’

सुगरा यानी सुग्गी के बेखौफ व्यवहार के बारे में मुझे रहमत अली ने भी बताया था. अब फरमान की बातों से लग रहा था कि वह अपनी साली के कारनामों से खुश नहीं था.

‘‘फरमान, पत्नी का मामला ऐसा होता है कि कमजोर आदमी भी अपनी इज्जत के लिए टार्जन बन जाता है. अगर उस ने हत्या नहीं की तो गायब क्यों हो गया?’’

‘‘यह बात तो मेरी समझ में भी नहीं आ रही. मैं ने उसे खेतों में भी देखा और गांव में भी, लेकिन उस का कहीं पता नहीं लगा. वह आज बैलगाड़ी भी ले गया था. कह रहा था कि वापसी में अपने और मेरे जानवरों के लिए चारा ले आएगा, लेकिन अभी तक नहीं आया.’’

कुबरा कहने लगी, ‘‘हम भी बशारत के इंतजार में अपना घर छोड़े बैठे हैं, छोटे बच्चे की भी तो समस्या है.’’

‘‘कौन सा छोटा बच्चा?’’

वह बोली, ‘‘सुग्गी का एक ही तो बच्चा है नवेद. उसे किस के पास छोड़ें. फरमान कहते हैं इसे अपने साथ ले चलो, वैसे भी वह हमारे ही घर में रहता है.’’

मैं ने नवेद के बारे में कुरेद कर पूछा तो कुछ बातें सामने आने लगीं. कुबरा ने बताया, ‘‘आज दोपहर सुग्गी जब बशारत के लिए खेतों पर खाना ले कर जाने लगी तो उस ने 5 साल के नवेद को मेरे पास छोड़ दिया था. वह हमारे घर खुशी से रहता है.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या वह रोज इसी वक्त खाना ले कर जाती थी?’’

‘‘जी हां, वह इसी समय खाना ले कर जाती थी,’’ वह संकोच से बोली, ‘‘और जाते वक्त नवेद को हमारे घर छोड़ जाती थी.’’

‘‘क्या बात है कुबरा, तुम इतनी बेचैन क्यों हो?’’ मैं ने उस के अंदर की उलझन को पहचान कर कहा, ‘‘तुम मुझे उलझी हुई दिखाई दे रही हो. अगर कोई परेशानी हो तो बताओ.’’

‘‘दरअसल, मैं एक बात बताना भूल गई. पता नहीं उस बात का कोई महत्त्व है भी या नहीं.’’

मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘बताओ तो सही.’’

‘‘आज सुग्गी ने जाते हुए कहा था कि उसे वापस लौटने में देर हो जाएगी.’’ वह रोते हुए बोली, ‘‘मुझे क्या पता था कि उसे इतनी देर हो जाएगी कि वापस ही नहीं लौटेगी.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘कुबरा बीबी, यह बताओ सुग्गी ने यह क्यों कहा था कि देर हो जाएगी, क्या उस ने कारण बताया था?’’

उस ने आंसू पोंछते हुए कहा कि सुग्गी ने बताया था कि बशारत को खाना खिलाने के बाद वह चौधरियों की हवेली जाएगी.

मैं ने पूछा, ‘‘वह चौधरियों की हवेली क्यों जाना चाहती थी?’’

‘‘चौधरी गनी ने उसे किसी काम के लिए बुलाया था.’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौन सा काम?’’

‘‘यह तो उस ने नहीं बताया, लेकिन चौधरी गनी इस गांव के मालिक हैं, वह किसी को भी तलब कर सकते हैं.’’

मैं सोचने लगा, जब चौधरी गनी से मैं बात कर रहा था तो उस ने सुग्गी को बुलाने के बारे में नहीं बताया था. मुझे लगा कि कहीं कोई गड़बड़ जरूर है. मैं ने उस से पूछा, ‘‘सुग्गी से बुलाने की बात किस ने कही थी?’’

‘‘मासी मुखतारा आई थी.’’

‘‘मासी मुखतारा कौन है और कहां रहती है?’’

‘‘मासी मुखतारा हवेली में काम करती है और वहीं रहती है.’’

मैं ने मुखतारा को भी अपने दिमाग में रखा. इस से पहले 3 और नाम थे चौधरी गनी, बशारत और मुराद. यहां से निपट कर मुझे हवेली जाना था. मैं चौधरी गनी की हवेली की ओर जाने लगा तो फरमान भी मेरे साथ चलने लगा. तभी एक छोटा सा गोराचिट्टा बच्चा घर से निकल कर आया और बोला, ‘‘खालू, मेरे अब्बाअम्मा कब आएंगे?’’

फरमान चौधरी की हवेली तक मेरे साथ आया. मैं ने उस से कहा कि तुम बशारत के घर में ही रहना और जैसे ही वह आए, मुझे खबर कर देना. मैं इधर चौधरी की हवेली में बैठा हूं.

चौधरी ने बड़े तपाक से मेरा स्वागत किया. उस ने अपनी बैठक में बिठाया. उस की बैठक की सजावट देख कर लगा कि वास्तव में वह उस इलाके का राजा था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘मुराद कहां है?’’

चौधरी बोला, ‘‘वह डेरे पर गया है, मंजूर भी उस के साथ है. दोनों वहीं रहेंगे, सोएंगे भी वहीं.’’

‘‘डेरे के कमरे पर तो मैं ने ताला डाल दिया है.’’

‘‘वहां 2 कमरे और भी हैं. वैसे आजकल गरमी है, वे अहाते में ही सोते हैं.’’ इतना कह कर चौधरी ने पूछा, ‘‘आप बशारत के घर काफी देर तक रहे हैं, कोई नुक्ता हाथ लगा या नहीं?’’

‘‘हां, एक सिरा हाथ तो लगा है, देखो उस से काम चलता है या नहीं.’’

सुन कर चौधरी के कान खड़े हो गए. वह तुरंत बोला, ‘‘आप कौन से सिरे की बात कर रहे हैं?’’

‘‘चौधरी साहब, जो सिरा मेरे हाथ लगा है, उस के दूसरे किनारे पर आप खड़े हैं.’’

‘‘मतलब?’’ वह चौंका.

मैं ने क हा, ‘‘मुझे पता लगा है कि आप ने सुग्गी को कल दोपहर अपने डेरे पर बुलाया था.’’

उस के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. वह बोला, ‘‘आप को यह बात किस ने बताई?’’

‘‘पहले आप इस बात की पुष्टि करें, फिर उस का नाम बताऊंगा.’’

‘‘नहीं, मैं ने उसे नहीं बुलाया था.’’

मैं ने कहा, ‘‘आज दोपहर जब सुग्गी बशारत का खाना ले कर खेतों पर जा रही थी, तो उस ने अपने बेटे नवेद को फरमान के घर छोड़ा और उस की पत्नी कुबरा से कहा कि वापस लौटने में उसे देर हो जाएगी, क्योंकि उसे मासी मुखतारा ने कहा है कि चौधरी की हवेली जाना है.’’

वह गुस्से से बोला, ‘‘उस दुष्ट औरत ने झूठ बोला है, आप उसे जानते नहीं. वह औरत…लेकिन छोड़ो मरने वाले को बुरा नहीं कहना चाहिए.’’

‘‘तो चौधरी साहब आप इस बात से इनकार करते हैं कि मासी मुखतारा उसे बुलाने नहीं गई थी?’’

‘‘हां, बिलकुल मैं इनकार करता हूं. आप को अभी पता लग जाएगा.’’ उस ने मुखतारा को बुलाया तो वह तुरंत आ गई. देखने में वह बहुत तेज औरत लग रही थी. उस ने आते ही कहा, ‘‘नहीं, मैं ने कुछ नहीं कहा, पिछले 3 दिन से तो मैं ने सुग्गी की शक्ल भी नहीं देखी.’’

गायत्री की खूनी जिद : कैसे बलि का बकरा बन गया संजीव – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद में एक कस्बा है एटा इस कस्बे में थाना भी है. एटा कस्बे से कुछ दूर एक गांव है  नगलाचूड़. सोनेलाल अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. सोनेलाल के 3 बेटे थे गोपाल, कुलदीप और संजीव. इन के अलावा 2 बेटियां भी थीं. सोनेलाल के पास खेती की जमीन थी, जिस से उस के घरपरिवार का गुजारा बडे़ आराम से हो जाता था. सोनेलाल के बड़े बेटे गोपाल और एक बेटी की शादी हो चुकी थी.

शादी के बाद गोपाल अपने परिवार के साथ काम के लिए पंजाब गया था. वहां से वह कभीकभी ही घर आता था. सोनेलाल की एक बेटी और बेटा कुलदीप अपनी पढ़ाई कर रहे थे. जबकि संदीप अपने पिता के साथ खेती के कामों में हाथ बंटाता था. घर की व्यवस्था सोनेलाल की पत्नी सरला के जिम्मे थी. सरला चाहती थी कि संजीव का भी घर बस जाए इसलिए वह 24 साल के संजीव के लिए कोई लड़की देखने लगी.

इसी सिलसिले में रिजौर निवासी छबिराम नाम के एक रिश्तेदार ने रिजौर के ही रामबाबू शाक्य की बेटी गायत्री के बारे में बताया. छबिराम की मार्फत सोनेलाल ने रामबाबू से बात की.

उन्हें रामबाबू की बेटी गायत्री अपने बेटे संजीव के लिए सही लगी. दोनों ओर से चली बातचीत के बाद संजीव और गायत्री का रिश्ता तय कर के जल्द ही दोनों की शादी कर दी गई. यह लगभग डेढ़ साल पहले की बात है.

खूबसूरत गायत्री से शादी कर के संजीव ही नहीं बल्कि उस के घर वाले भी बहुत खुश थे. लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि आगे चल कर यही खूबसूरत दुलहन कितनी बड़ी मुसीबत बनने वाली है.

शादी के बाद गायत्री की शिकायत

गायत्री ससुराल आ तो गई थी पर उस के तेवर किसी की समझ में नहीं आ रहे थे. संजीव की मां सरला ने सोचा था कि बहू घर आ जाएगी तो सब कुछ ठीक हो जाएगा. घर की जिम्मेदारी बहू के हवाले कर के वह आराम करेगी, क्योंकि बड़ी बहू शादी के कुछ दिनों बाद ही गोपाल के साथ पंजाब चली गई थी. पर सरला का यह सपना अधूरा रहा. क्योंकि गायत्री पूरे दिन अपने कमरे में बैठी टीवी देखती रहती थी.

टीवी से फुरसत मिल जाती तो वह मोबाइल पर लग जाती. वह काफीकाफी देर तक किसी से बातें करती रहती थी. कुछ दिन तक तो सरला ने गायत्री से कुछ नहीं कहा. लेकिन जब पगफेरे के लिए उस का भाई टीटू उसे लेने आया तो सरला ने टीटू से कहा, ‘‘अपनी बहन को समझाओ. वह ससुराल में रहने का सलीका सीखे. यह इस घर की बहू है, इसे यहां बहू की तरह ही रहना होगा.’’

बहन की शिकायत सुन कर टीटू के माथे पर शिकन आ गई. उस ने घूर कर गायत्री की तरफ देखा लेकिन उस से कहा कुछ नहीं. टीटू के पिता बीमार रहते थे, इसलिए वह ही सब्जी की दुकान चलाता था. भाई के साथ गायत्री अपने मायके आ गई. घर पहुंचते ही टीटू ने अपनी मां रामश्री से कहा, ‘‘संभालो अपनी लाडली को, यह हमें जीने नहीं देगी.’’

गायत्री अपने कमरे में चली गई. इस के बाद रामश्री और टीटू देर तक बातें करते रहे. रामबाबू कुछ देर बाद घर आया तो उसे भी पता चल गया कि गायत्री के ससुराल वाले उस से खुश नहीं हैं. वह गुस्से में बोला, ‘‘हम ने तो सोचा था कि गायत्री शादी के बाद सुधर जाएगी, पर लगता है ये लड़की उन लोगों को भी नहीं जीने देगी.’’

दरअसल शादी के पहले से ही रामबाबू के घर में तनाव था. इस की वजह यह थी कि गायत्री संजीव से शादी करने से इनकार कर रही थी. पर घर वालों के सामने उस की एक नहीं चली. रामबाबू और रामश्री इस बात को ले कर बहुत चिंतित थे कि कहीं गायत्री की वजह से वह लोग किसी नई परेशानी में न पड़ जाएं.
रिजौर में ही रामबाबू के घर से कुछ दूरी पर किशनलाल का घर था. उस के बेटे रंजीत ने भी अपने घर वालों को परेशान कर रखा था. यूं तो किशनलाल के 4 बेटे थे, जिन में से 3 पढ़ेलिखे थे पर छोटे बेटे रंजीत का पढ़ाई में मन नहीं लगता था. वह सारे दिन गांव में अपने दोस्तों के साथ गपशप करता रहता था. वह अपने पिता के खेती के काम में भी हाथ नहीं बंटाता था.

रंजीत की जिंदगी में आई गायत्री

एक दिन अचानक रंजीत की नजर गायत्री से टकराई और वह उस की ओर खिंचता चला गया. वह उस से बात करने के लिए मौके की तलाश में था. एक दिन मोबाइल की दुकान पर उसे मौका मिल गया, जहां गायत्री अपना मोबाइल रीचार्ज कराने आई थी. उस से बात की शुरुआत करने का कोई बहाना चाहिए था. लिहाजा उस ने गायत्री से कहा, ‘‘गायत्री, देखें तुम्हारा मोबाइल किस कंपनी का है.’’

गायत्री ने उस के हाथ में मोबाइल दे दिया. रंजीत हाथ में मोबाइल ले कर देखते हुए बोला, ‘‘यह मोबाइल तो तुम्हारी तरह ही स्मार्ट है.’’

गायत्री ने उसे घूर कर देखा फिर खिलखिला कर हंसते हुए बोली, ‘‘तुम भी काफी स्मार्ट लगते हो.’’
सुन कर रंजीत की हिम्मत और बढ़ गई. गायत्री वहां से चलने लगी तो रंजीत ने कहा, ‘‘अगर आप बुरा न मानो तो मैं बाइक से तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा.’’

गायत्री मुसकराई और उस की बाइक पर बैठ गई. रंजीत बहुत खुश हुआ. पहली बार किसी लड़की ने उस की दोस्ती कबूल की थी.

‘‘रंजीत वैसे तुम आजकल क्या कर रहे हो.’’ गायत्री ने पूछा.

‘‘इंटरमीडिएट पास कर के घर पर ही मौज कर रहा हूं. वैसे भी तुम्हें तो पता ही है कि घर में किसी चीज की कमी तो है नहीं. जब जिम्मेदारी आ जाएगी, देखा जाएगा’’ रंजीत बोला, ‘‘गायत्री, क्या तुम अपना मोबाइल नंबर दे सकती हो?’’

‘‘हांहां क्यों नहीं, तुम मुझे अपना मोबाइल नंबर बताओ, मैं मिस्ड काल कर देती हूं.’’ गायत्री बिना किसी झिझक के बोली. बाइक चलातेचलाते रंजीत ने उसे अपना मोबाइल नंबर बता दिया. गायत्री ने तुरंत उस के नंबर पर मिस्ड काल दे दी. गायत्री ने अपने घर से कुछ पहले ही मोटरसाइकिल रुकवा ली और बाइक से उतर कर पैदल अपने घर चली गई ताकि कोई घर वाला उसे बाइक पर बैठे न देख ले. उसे उतार कर रंजीत भी मुसकराता हुआ अपने घर चला गया.

फिसलन भरे रास्तों की नायिका – भाग 1

बात 26 जुलाई, 2018 की है. कुछ चरवाहे भोगपुर डैम के पास अपने जानवर चरा रहे थे. तभी उन की नजर डैम के मछली झाला क्षेत्र में पानी पर तैरती एक लाश पर पड़ी. चरवाहों ने डैम के किनारे जा कर देखा तो लाश किसी युवक की थी.

एक चरवाहे ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. चूंकि यह इलाका जसपुर थाना कोतवाली के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से जसपुर कोतवाली को सूचना दे दी गई.

खबर मिलते ही थानाप्रभारी सुशील कुमार, परमापुर चौकी इंचार्ज वी.के. बिष्ट के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस के पहुंचने तक अंधेरा घिर आया था, मौके पर कोई भी व्यक्ति मौजूद नहीं था. पुलिस ने लाश डैम के पानी से बाहर निकलवाई. लाश की जांच की तो उस के कपड़ों से पहचान की कोई चीज नहीं मिली. लाश एक युवक की थी. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए काशीपुर भेज दी.

घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस जब थाने लौट रही थी, तो रास्ते में पड़ने वाले गांव गढ़ीनेगी पहुंच कर पुलिस ने वहां के लोगों को डैम में लाश मिलने की बात बताते हुए पूछा कि यहां का कोई युवक तो गायब नहीं है. पुलिस ने लोगों को मोबाइल में मौजूद मृत युवक के फोटो भी दिखाए. वहां मौजूद एक युवक ने उस फोटो को देखते ही कहा कि यह तो करनपुर के तोताराम का बेटा पप्पू सिंह है.

इस के बाद पुलिस करनपुर गांव में तोताराम के घर पहुंच गई. पुलिस ने पप्पू की पत्नी शशि से पप्पू के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि कल वह कहीं जाने की बात कह कर घर से निकले थे, तब से अभी तक नहीं लौटे हैं. पुलिस ने उसे बताया कि पप्पू की लाश भोगपुर डैम के मछली झाला क्षेत्र में पानी पर तैरती पाई गई है. यह सुन कर शशि दहाड़ मार कर रोने लगी. घर में रोने की आवाज सुन कर आसपड़ोस वाले भी वहां पहुंच गए.

पप्पू का बड़ा भाई राजपाल जोकि दूसरे मकान में रहता था. खबर सुन कर घर वालों के साथ पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गया. राजपाल ने लाश की शिनाख्त अपने भाई पप्पू सिंह के रूप में की. लाश की शिनाख्त कर राजपाल घर लौट आया. भाई की मौत को ले कर घर वाले सारी रात परेशान रहे.

भाई को संदेह था भाई की पत्नी पर

अगले दिन सुबह के समय राजपाल अपनी पत्नी के साथ भाई पप्पू के घर पहुंचा तो घर बिलकुल सुनसान पड़ा था. राजपाल ने पप्पू की बीवी शशि को आवाज लगाई तो कोई जवाब नहीं मिला. राजपाल और उस की बीवी ने अंदर जा कर देखा तो मृतक के दोनों बच्चे सोए हुए थे.

राजपाल ने शशि को आसपास तलाशा, लेकिन उस का कहीं भी पता नहीं चला. पति की मौत के बाद शशि के अचानक गायब हो जाने से लोग अपनी मानसिकता के अनुसार तरहतरह के कयास लगाने लगे.

उसी दौरान किसी ने बताया कि शशि अभी थोड़ी देर पहले घर के सामने खड़ी थी. यह जानकारी मिलने से यह तो साबित हो गया कि वह थोड़ी देर पहले ही घर से निकली है. राजपाल ने पड़ोसियों की मदद से उसे आसपास खोजने की कोशिश की तो वह जंगल की तरफ जाती हुई मिली.

राजपाल और उस के परिजनों ने उसे रोकने की कोशिश की तो वह जोरजोर से दहाड़ें मार कर रोते हुए कहने लगी कि जब उस का मर्द ही नहीं रहा तो वह जी कर क्या करेगी. उस ने बताया कि अब वह आत्महत्या कर के पति के पास जाना चाहती है. घर वालों को उस वक्त उसे समझा कर शांत करना ठीक लगा. उन लोगों ने घर वापस चलने को कहा तो उस ने जाने से साफ मना कर दिया. घर वाले उसे जैसेतैसे समझा कर घर वापस ले आए.

राजपाल सिंह पहले से ही शशि के त्रियाचरित्र को जानता था. उसे शक था कि हो न हो शशि ने ही उस के भाई को न मरवा दिया हो. राजपाल भाई के 12 वर्षीय बेटे राज को साथ ले कर अपने घर आ गया. घर जा कर  उस ने राज से उस के पापा के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि कल शाम भूपेंद्र अंकल घर आए थे.

वह पापा को किसी काम के बहाने घर से बाहर ले गए थे. उस के बाद पापा सारी रात घर नहीं आए. उस ने मम्मी से पापा के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि तुम्हारे पापा किसी काम से बाहर गए हैं. सुबह तक आ जाएंगे. इस के बाद मम्मी ने दोनों भाईबहन को सुला दिया था.

भाई के बेटे राज के द्वारा इतनी जानकारी मिलने से यह तो पक्का हो ही गया था कि पप्पू की हत्या में भूपेंद्र सिंह शामिल था. राजपाल ने यह बात वहां मौजूद अपने घर वालों को बता दी और पुलिस को भी सूचित कर दिया.

यह जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी सुशील कुमार महिला पुलिस के साथ मृतक के घर पहुंच गए. उन्होंने सब से पहले मृतक के बेटे राज से बात की तो उस ने वही सारी बात उन्हें बता दीं, जो अपने ताऊ राजपाल को बताई थीं. इस के बाद पुलिस ने शशि को एकांत में ले जा कर पूछताछ की.

शशि ने साफ शब्दों में कहा कि उस के पति की हत्या किस ने और क्यों की, इस बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है. पुलिस ने उस समय उस से सख्ती करनी जरूरी नहीं समझी. इस की जगह पुलिस ने उस के पड़ोसियों के साथसाथ उस के घर वालों से पूछताछ की.

पता चला काफी समय से गांव कलिया वाला टांडा निवासी भूपेंद्र सिंह का शशि के यहां आनाजाना था. वह वक्तबेवक्त आताजाता रहता था. इस बात की पुष्टि शशि के बेटे राज ने भी कर दी, जिस से साफ हो गया कि पप्पू अपनी पत्नी शशि और भूपेंद्र के बीच पनपे अवैध संबंधों की भेंट चढ़ गया था.

शशि ने स्वीकारा अपना अपराध

शशि के खिलाफ सबूत मिल चुके थे, इसलिए पुलिस उसे अपने साथ पुलिस चौकी पतरामपुर ले गई. पुलिस चौकी में की गई पूछताछ में भी वह मुंह खोलने को तैयार नहीं थी. इस पर पुलिस ने अपने गेम का अगला पासा फेंकते हुए कहा कि उस के बताने या न बताने से पुलिस को कोई फर्क नहीं पड़ता. उस के बेटे राज ने उस की सारी करतूतें बता दी हैं. वही इस केस का गवाह भी बनेगा.

यह सुनते ही शशि फफकफफक कर रोते हुए बोली, ‘‘साहब, इस में मेरा कोई कसूर नहीं है. मैं अपने आदमी को भला क्यों मारूंगी. यह सब भूपेंद्र का ही कारनामा है. वह काफी समय से मेरे पीछे पड़ा था. उस ने कई बार मुझ से शादी करने को भी कहा था. मैं ने इस के लिए मना किया तो उस ने मेरे पति की हत्या कर दी.’’

घातक निकली बीवी नंबर 2 – भाग 1

3 जुलाई, 2018 की बात है. शाम 6 बजे थाना सजेती का मुंशी अजय पाल रजिस्टर पर दस्तखत कराने थाना परिसर स्थित दरोगा पच्चालाल गौतम के आवास पर पहुंचा. दरोगाजी के कमरे का दरवाजा बंद था, लेकिन कूलर चल रहा था. अजय पाल ने सोचा कि दरोगाजी शायद सो रहे होंगे. यही सोचते हुए उस ने बाहर से ही आवाज लगाई, ‘‘दरोगाजी…दरोगाजी.’’

अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उस ने दरवाजे को अंदर की ओर धकेला. दरवाजा अंदर से बंद नहीं था, हलके दबाव से ही खुल गया. अजय पाल ने कमरे के अंदर पैर रखा तो उस के मुंह से चीख निकल गई. कमरे के अंदर दरोगा पच्चालाल की लाश पड़ी थी. किसी ने उन की हत्या कर दी थी.

बदहवास सा मुंशी अजय पाल थाना कार्यालय में आया और उस ने यह जानकारी अन्य पुलिसकर्मियों को दी. यह खबर सुनते ही थाना सजेती में हड़कंप मच गया. घबराए अजय पाल की सांसें दुरुस्त हुईं तो उस ने वायरलैस पर दरोगा पच्चालाल गौतम की थाना परिसर में हत्या किए जाने की जानकारी कंट्रोल रूम को और वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.

सूचना पाते ही एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिंह, एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव, सीओ आर.के. चतुर्वेदी, इंसपेक्टर दिलीप बिंद तथा देवेंद्र कुमार दुबे थाना सजेती पहुंच गए. पुलिस अधिकारी पच्चालाल के कमरे में पहुंचे तो वहां का दृश्य देख सिहर उठे.

कमरे के अंदर फर्श पर 58 वर्षीय दरोगा पच्चालाल गौतम की खून से सनी लाश पड़ी थी. अंडरवियर के अलावा उन के शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था. खून से सना चाकू लाश के पास पड़ा था. खून से सना एक तौलिया बैड पर पड़ा था. हत्यारों ने दरोगा पच्चालाल का कत्ल बड़ी बेरहमी से किया था.

पच्चालाल की गरदन, सिर, छाती व पेट पर चाकू से ताबड़तोड़ वार किए गए थे. आंतों के टुकड़े कमरे में फैले थे और दीवारों पर खून के छींटे थे. दरोगा पच्चालाल के शरीर के घाव बता रहे थे कि हत्यारों के मन में उन के प्रति गहरी नफरत थी और वह दरोगा की मौत को ले कर आश्वस्त हो जाना चाहते थे. बैड से ले कर कमरे तक खून ही खून फैला था.

छींटों के अलावा दीवार पर खून से सने हाथों के पंजे के निशान भी थे. इन निशानों में अंगूठे का निशान नहीं था. घटनास्थल को देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे दरोगा पच्चालाल गौतम ने हत्यारों से अंतिम सांस तक संघर्ष किया हो.

पुलिस अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि आईजी आलोक सिंह तथा एसएसपी अखिलेश कुमार भी थाना सजेती आ गए. वह अपने साथ फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड को लाए थे. दोनों पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो उन के माथे पर बल पड़ गए.

बेरहमी से किए गए इस कत्ल को अधिकारियों ने गंभीरता से लिया. फोरैंसिक टीम ने चाकू और कमरे की दीवार से फिंगरप्रिंट उठाए. डौग स्क्वायड ने घटनास्थल पर डौग को छोड़ा. डौग लाश व कमरे की कई जगहों को सूंघ कर हाइवे तक गया और वापस लौट आया. वह ऐसी कोई हेल्प नहीं कर सका, जिस से हत्यारे का कोई सूत्र मिलता.

कारण नहीं मिल रहा था बेरहमी से किए गए कत्ल का

मृतक पच्चालाल के आवास की तलाशी ली गई तो पता चला, हत्यारे उन का पर्स, घड़ी व मोबाइल साथ ले गए थे. किचन में रखे फ्रिज में अंडे व सब्जी रखी थी. कमरे में शराब व ग्लास आदि नहीं मिले, जिस से स्पष्ट हुआ कि हत्या से पहले कमरे में बैठ कर शराब नहीं पी गई थी.

अनुमान लगाया गया कि हत्यारा दरोगा पच्चालाल का बेहद करीबी रहा होगा, जिस से वह आसानी से आवास में दाखिल हो गया और बाद में उस ने अपने साथियों को भी बुला लिया.

आईजी आलोक सिंह तथा एसएसपी अखिलेश कुमार यह सोच कर चकित थे कि थाना कार्यालय से महज 20 मीटर की दूरी पर दरोगा पच्चालाल का आवास था. कमरे में चाकू से गोद कर उन की निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी गई और उन की चीखें थाने के किसी पुलिसकर्मी ने नहीं सुनीं, इस से पुलिसकर्मी भी संदेह के घेरे में थे.

लेकिन इस में यह बात भी शामिल थी कि दरोगा पच्चालाल गौतम के आवास में 2 दरवाजे थे. एक दरवाजा थाना परिसर की ओर खुलता था, जबकि दूसरा हाइवे के निकट के खेतों की ओर खुलता था. पता चला कि पच्चालाल के करीबी लोगों का आनाजाना हाइवे की तरफ खुलने वाले दरवाजे से ज्यादा होता था. हाइवे पर ट्रकों की धमाचौकड़ी मची रहती थी, जिस की तेज आवाज कमरे में भी गूंजती थी. संभव है, दरोगा की चीखें ट्रकों और कूलर की आवाज में दब कर रह गई हो और किसी पुलिसकर्मी को सुनाई न दी हो.

एसएसपी अखिलेश कुमार ने थाना सजेती के पुलिसकर्मियों से पूछताछ की तो पता चला कि दरोगा पच्चालाल गौतम मूलरूप से सीतापुर जिले के थाना मानपुरा क्षेत्र के रामकुंड के रहने वाले थे.

उन्होंने 2 शादियां की थीं. पहली पत्नी कुंती की मौत के बाद उन्होंने किरन नाम की युवती से प्रेम विवाह किया था. पहली पत्नी के बच्चे रामकुंड में रहते थे, जबकि दूसरी पत्नी किरन कानपुर शहर में सूर्यविहार (नवाबगंज) में अपने बच्चों के साथ रहती थी.

पारिवारिक जानकारी मिलते ही एसएसपी अखिलेश कुमार ने दरोगा पच्चालाल की हत्या की खबर उन के घर वालों को भिजवा दी. खबर मिलते ही दरोगा की पत्नी किरन थाना सजेती पहुंच गई. पति की क्षतविक्षत लाश देख कर वह दहाड़ मार कर रोने लगी. महिला पुलिसकर्मियों ने उसे सांत्वना दे कर शव से अलग किया.

कुछ देर बाद दरोगा के बेटे सत्येंद्र, महेंद्र, जितेंद्र व कमल भी आ गए. पिता का शव देख कर वे भी रोने लगे. पुलिसकर्मियों ने उन्हें धैर्य बंधाया और पंचनामा भर कर शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भेज दिया. आलाकत्ल चाकू को परीक्षण हेतु सील कर के रख लिया गया.

4 जुलाई, 2018 को मृतक पच्चालाल के शव का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम के बाद शव को पुलिस लाइन लाया गया, जहां एसएसपी अखिलेश कुमार, एसपी (ग्रामीण) प्रद्युम्न सिह व अन्य पुलिस अधिकारियों ने उन्हें सलामी दे कर अंतिम विदाई दी.

इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार, दिलीप बिंद व सजेती थाने के पुलिसकर्मियों ने पच्चालाल के शव को कंधा दिया. इस के बाद पच्चालाल के चारों बेटे शव को अपने पैतृक गांव  रामकुंड, सीतापुर ले गए, जहां बड़े बेटे सत्येंद्र ने पिता की चिता को मुखाग्नि दे कर अंतिम संस्कार किया. अंतिम संस्कार में किरन व उस के बच्चे शामिल नहीं हुए.

बेटी ने दी बाप के कत्ल की सुपारी : भाग 4

यदि वह उन्हें रास्ते से हटा दे तो वह उस के साथ शादी कर लेगी. काव्या ने समीर को ये भी लालच दिया कि सहारनपुर में उन का एक 100 वर्गगज का प्लौट है. अगर वो उस के पिता की हत्या कर देगा तो वह प्लौट वह उस के नाम कर देगी.

‘‘काव्या, ये तुम कैसी बात कर रही हो. ठीक है वो तुम लोगों के साथ सख्ती करते हैं, लेकिन इस का मतलब ये तो नहीं कि तुम उन की हत्या करने की बात सोचो.’’ समीर बोला.

‘‘समीर, तुम मेरी बात समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रहे हो. तुम्हें पता नहीं मेरा बाप इंसान नहीं है जानवर है, जानवर. वो सिर्फ मुझे ही नहीं मेरी बहन और मां को भी छोटीछोटी बात पर पीटता है.’’

काव्या ने समीर के सामने अपने पिता को ऐसे जल्लाद इंसान के रूप में पेश किया कि समीर को यकीन हो गया कि राकेश की हत्या के बाद ही काव्या और उस के घर वालों को चैन की सांस मिल सकेगी. लिहाजा उस ने काव्या से वादा किया कि वह किसी भी तरह उस के पिता की हत्या कर के रहेगा.

काव्या ने एक और बात कही, जिस से समीर का मनोबल और बढ़ गया. उस ने समीर को बताया कि उस के पिता कमेटी डालने का धंधा भी करते हैं, जिस की वजह से रोज उन के पास हजारों रुपए रहते हैं. काव्या ने उसे समझाया कि जब तुम उन्हें गोली मारो तो उन का बैग छीन कर भाग जाना, इस से लगेगा कि उन की हत्या लूट के लिए हुई है. और हां, बैग में जो भी रकम हो वो तुम्हारी.

इस के बाद समीर के सामने समस्या यह थी कि वह राकेश की हत्या करने के लिए हथियार कहां से लाए. लिहाजा उस ने काव्या से सवाल किया, ‘‘यार, तुम्हारे बाप को तो मैं मार दूंगा लेकिन समस्या ये है कि मेरे पास कोई पिस्तौल वगैरह तो है नहीं फिर मारूंगा कैसे?’’

‘‘तुम उस की फिक्र मत करो. कैराना में हुए दंगों के वक्त पापा ने अपनी हिफाजत के लिए एक तमंचा खरीदा था, साथ में कुछ कारतूस भी हैं. मैं 1-2 दिन में तुम्हें ला कर दे दूंगी. उसी से गोली मार देना उन को.’’

समीर न तो पेशेवर अपराधी था और न ही उस में अपराध करने की हिम्मत थी. इसलिए उस ने अपने चाचा अनीस के बड़े बेटे शादाब से बात की. वह समीर का ही हमउम्र था. दोनों की खूब पटती थी.

जब समीर ने अपनी मोहब्बत की मजबूरी शादाब के सामने बयां की तो वह भी पशोपेश में पड़ गया. समीर ने शादाब को ये भी बता दिया था कि इस काम को करने के बाद उसे न सिर्फ उस की मोहब्बत मिल जाएगी बल्कि सहारनपुर में 100 वर्गगज का एक प्लौट तथा वारदात के बाद कुछ नकदी भी मिलेगी, जिस में से वह उसे भी बराबर का हिस्सा देगा.

शादाब भी लड़कपन की उम्र से गुजर रहा था. लालच ने उस के मन में भी घर कर लिया. इसलिए उस ने समीर से कह दिया, ‘‘चल भाई, तेरी मोहब्बत के लिए मैं तेरा साथ दूंगा.’’

वारदात से 3 दिन पहले किसी बात पर राकेश ने फिर से अपनी पत्नी कृष्णा और बेटी काव्या की पिटाई कर दी. जिस के बाद काव्या को लगा कि अब पिता को रास्ते से हटाने में देर नहीं करनी चाहिए.

उस ने अगली सुबह ही समीर को फोन कर उसे एक जगह मिलने के बुलाया और वहां उसे घर में रखा पिता का तमंचा और 2 कारतूस ले जा कर सौंप दिए.

खेला मौत का खेल

उसी दिन उस ने अपने पिता की हत्या के लिए 7 अप्रैल की तारीख भी मुकर्रर कर दी. काव्या ने समीर से साफ कह दिया कि अब वह उस से उसी दिन मिलेगी जब वह उस के पिता की हत्या को अंजाम दे देगा. मोहब्बत से मिलने की आस में समीर ने भी अब देर करना उचित नहीं समझा.

7 अप्रैल को जब राकेश अपनी ड्यूटी पर गया तो उस दिन सुबह से ही समीर काव्या से लगातार फोन पर संपर्क में रहा. और दिन भर ये जानकारी लेता रहा कि उस के पिता दिल्ली से कब चलेंगे. काव्या वैसे तो अपने पिता को फोन नहीं करती थी, लेकिन उस दिन उस ने दिन में 2 बार उन्हें किसी न किसी बहाने फोन किया.

शाम को भी करीब साढे़ 8 बजे काव्या ने पिता को फोन कर के पूछा कि वह कहां हैं. राकेश ने बेटी को बताया कि वह ट्रेन में हैं. काव्या ने फोन करने की वजह छिपाने के लिए कहा कि इलैक्ट्रिक प्रेस का प्लग खराब हो गया है, जब वह घर आएं तो बिजली वाले की दुकान से एक प्लग लेते आएं.

बस ये जानकारी मिलते ही काव्या ने समीर को फोन कर के बता दिया कि उस के पिता रोज की तरह 9, सवा 9 बजे तक शामली स्टेशन पहुंच जाएंगे. जिस के बाद समीर भी शादाब को लेकर स्टेशन पहुंच गया.

रात को करीब साढ़े 9 बजे राकेश जब स्टेशन से बाहर आया तो समीर व शादाब उस का पीछा करने लगे. रास्ते में कई जगह ऐसा मौका आया कि एकांत पा कर वे राकेश पर गोली चलाने ही वाले थे कि अचानक किसी गाड़ी या राहगीर के आने पर वे राकेश को गोली न मार सके. इसी तरह पीछा करतेकरते दोनों राकेश के घर के करीब पहुंच गए.

इस दौरान राकेश ने बिजली की दुकान से इलैक्ट्रिक प्रेस का प्लग खरीदा और फिर घर की तरफ चल दिया. समीर को लगा कि अगर वह अब भी राकेश का काम तमाम नहीं कर सका तो मौका हाथ से निकल जाएगा और काव्या कभी उसे नहीं मिल सकेगी. उस ने तमंचा झट से शादाब के हाथ में थमा दिया और बोला, ‘‘ले भाई, मार दे इसे गोली.’’

सब कुछ अप्रत्याशित ढंग से हुआ. शादाब ने तमंचा हाथ में लिया और भागते हुए बराबर में पहुंच कर राकेश पर गोली चला दी. गोली मारने के बाद समीर और शादाब ने पलट कर यह भी नहीं देखा कि गोली राकेश को कहां लगी है और वो जिंदा है या मर गया.

बस उन्हें डर था कि वो कहीं पकड़े न जाएं, इसलिए वे तुरंत घटनास्थल से भाग गए. समीर ने सुरक्षित स्थान पर पहुंचते ही काव्या को फोन कर के सूचना दे दी कि उस ने उस के पिता को गोली मार दी है.

इस के बाद रात भर में काव्या और समीर के बीच कई बार बातचीत हुई. समीर को ये जान कर सुकून मिला कि गोली सही निशाने पर लगी और उस ने राकेश का काम तमाम कर दिया है.

समीर ने तमंचा और बचा हुआ एक कारतूस उसी रात घर के पास नाले के किनारे एक झाड़ी में छिपा कर रख दिया था, जिसे पुलिस ने गिरफ्तारी के बाद उस की निशानदेही पर बरामद कर लिया. पुलिस ने इस मामले में हत्या के अभियोग के अलावा समीर और शादाब के खिलाफ शस्त्र अधिनियम का मामला भी दर्ज कर लिया.

एक गोली ने खत्म की लव स्टोरी

विस्तृत पूछताछ के बाद थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह कालरा ने समीर और शादाब के साथ काव्या को भी हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.

लिहाजा 3 दिन तक जांच और कुछ अन्य साक्ष्य जुटाने के बाद थानाप्रभारी कालरा के निर्देश पर पुलिस टीम ने कृष्णा और वैशाली को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों ने पुलिस पूछताछ में राकेश की हत्या की साजिश में शामिल होने का अपराध कबूल कर लिया. पुलिस ने 17 अप्रैल को दोनों को जेल भेज दिया.

अनैतिक रिश्तों का विरोध करने वाले पति और पिता की हत्या की सुपारी देने वाली मां और बेटियां तो जेल में अपने किए की सजा भुगत ही रही हैं, लेकिन समीर ने प्रेम में अंधे हो कर अपने डाक्टर बनने के सपने को खुद ही तोड़ दिया.

कथा पुलिस की जांच और काररवाई पर आधारित

आखिरी फैसला : साधना बनी अपनों की कातिल

उस दिन सितंबर, 2020 की 10 तारीख थी. साधना ने फैसला कर रखा था कि मां का बताया व्रत जरूर रखेगी. मां के अनुसार, इस व्रत से सुंदर स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति होती है. लेकिन व्रत रखने से पहले ही लेबर पेन शुरू हो गया.

इस में उस के अपने वश में कुछ नहीं था, क्योंकि उसे 2 दिन बाद की तारीख बताई गई थी. निश्चित समय पर वह मां बनी, लेकिन पुत्र नहीं पुत्री की. तीसरी बार भी बेटी आई है, सुन कर सास विमला का गुस्से से सिर भन्ना गया. वह सिर झटक कर वहां से चली गई.

बच्ची के जन्म पर मां बिटोली आ गई थी. उस ने साधना को समझाया, ‘‘जी छोटा मत कर. बेटी लक्ष्मी का रूप होती है. क्या पता इस की किस्मत से मिल कर तेरी किस्मत बदल जाए.’’बेटी के मन पर छाई उदासी पर पलटवार करने के लिए मां बिटोली बोली, ‘‘आजकल बेटेबेटी में कोई फर्क नहीं होता. तेरी सास के दिमाग में पता नहीं कैसा गोबर भरा है जो समझती ही नहीं या जानबूझ कर समझना नहीं चाहती.’’

साधना क्या कर सकती थी. 2 की तरह तीसरी को भी किस्मत मान लिया. उसे भी बाकी 2 की तरह पालने लगी. वह भी बहनों की तरह बड़ी होने लगी.उस दिन अक्तूबर 2020 की पहली तारीख थी. सेहुद गांव निवासी कुलदीप खेतों से घर लौटा, तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने दरवाजा खुलवाने के लिए कुंडी खटखटाई, पर पत्नी ने दरवाजा नहीं खोला. घर के अंदर से टीवी चलने की आवाज आ रही थी.

उस ने सोचा शायद टीवी की तेज आवाज में उसे कुंडी खटकने की आवाज सुनाई न दी हो. उस ने एक बार फिर कुंडी खटखटाने के साथ आवाज भी लगाई. पर अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. कुलदीप का माथा ठनका. मन में घबराहट भी होने लगी.

उस के घर के पास ही भाई राहुल का घर था तथा दूसरी ओर पड़ोसी सुदामा का घर. भाई घर पर नहीं था. वह सुदामा के पास पहुंचा और बोला, ‘‘चाचा, साधना न तो दरवाजा खोल रही है और न ही कोई हलचल हो रही है. मेरी मदद करो.’’

कुलदीप पड़ोसी सुदामा को साथ ले कर भाई राहुल के घर की छत से हो कर अपने घर में घुसा. दोनों कमरे के पास पहुंचे तो मुंह से चीख निकल गई. कमरे के अंदर छत की धन्नी से लोहे के कुंडे के सहारे चार लाशें फांसी के फंदे पर झूल रही थीं. लाशें कुलदीप की पत्नी साधना और उस की बेटियों की थीं.

कुलदीप और सुदामा घर का दरवाजा खोल कर बाहर आए और इस हृदयविदारक घटना की जानकारी पासपड़ोस के लोगों को दी. उस के बाद तो पूरे गांव में सनसनी फैल गई और लोग कुलदीप के घर की ओर दौड़ पड़े. देखते ही देखते घर के बाहर भीड़ उमड़ पड़ी. जिस ने भी इस मंजर को देखा, उसी का कलेजा कांप उठा.

कुलदीप बदहवास था, लेकिन सुदामा का दिलोदिमाग काम कर रहा था. उस ने सब से पहले यह सूचना साधना के मायके वालों को दी, फिर थाना दिबियापुर पुलिस को.पुलिस आने के पहले ही साधना के मातापिता, भाई व अन्य घर वाले टै्रक्टर पर लद कर आ गए. उन्होंने साधना व उस की मासूम बेटियोें को फांसी के फंदे पर झूलते देखा तो उन का गुस्सा फूट पड़ा.

उन्होंने कुलदीप व उस के पिता कैलाश बाबू के घर जम कर उत्पात मचाया. घर में टीवी, अलमारी के अलावा जो भी सामान मिला तोड़ डाला. साधना के सासससुर, पति व देवर के साथ हाथापाई की.

साधना के मायके के लोग अभी उत्पात मचा ही रहे थे कि सूचना पा कर थानाप्रभारी सुधीर कुमार मिश्रा पुलिस टीम के साथ आ गए. उन्होंने किसी तरह समझाबुझा कर उन्हें शांत किया. चूंकि घटनास्थल पर भीड़ बढ़ती जा रही थी, अत: थानाप्रभारी मिश्रा ने इस घटना की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी और घटनास्थल पर अतिरिक्त पुलिस बल भेजने की सिफारिश की.

इस के बाद वह भीड़ को हटाते हुए घर में दाखिल हुए. घर के अंदर आंगन से सटा एक बड़ा कमरा था. इस कमरे के अंदर का दृश्य बड़ा ही डरावना था. कमरे की छत की धन्नी में लोहे का एक कुंडा था. इस कुंडे से 4 लाशें फांसी के फंदे से झूल रही थीं.

मरने वालो में कुलदीप की पत्नी साधना तथा उस की 3 मासूम बेटियां थीं. साधना की उम्र 30 साल के आसपास थी, जबकि उस की बड़ी बेटी गुंजन की उम्र 7 साल, उस से छोेटी अंजुम थी. उस की उम्र 5 वर्ष थी. सब से छोेटी पूनम की उम्र 2 माह से भी कम लग रही थी.

साड़ी के 4 टुकड़े कर हर टुकड़े का एक छोर कुंडे में बांध कर फांसी लगाई गई थी. कमरे के अंदर लकड़ी की एक छोटी मेज पड़ी थी. संभवत: उसी मेज पर चढ़ कर फांसी का फंदा लगाया गया था.

थानाप्रभारी सुधीर कुमार मिश्रा अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी सुनीति तथा एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित कई थानों की पुलिस ले कर घटनास्थल आ गए.उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने तनाव को देखते हुए सेहुद गांव में पुलिस बल तैनात कर दिया. उस के बाद घटनास्थल का निरीक्षण किया.

मां सहित मासूमों की लाश फांसी के फंदे पर झूलती देख कर एसपी सुनीति दहल उठीं. उन्होंने तत्काल लाशों को फंदे से नीचे उतरवाया. उस समय माहौल बेहद गमगीन हो उठा.मृतका साधना के मायके की महिलाएं लाशों से लिपट कर रोने लगीं. सुनीति ने महिला पुलिस की मदद से उन्हें समझाबुझा कर शवों से दूर किया.

फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. घटनास्थल पर मृतका का भाई बृजबिहारी तथा पिता सिपाही लाल मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने उन से पूछताछ की तो बृजबिहारी ने बताया कि उस की बहन साधना तथा मासूम भांजियों की हत्या उस के बहनोई कुलदीप तथा उस के पिता कैलाश बाबू, भाई राहुल तथा मां विमला देवी ने मिल कर की है.जुर्म छिपाने के लिए शवों को फांसी पर लटका दिया है. अत: जब तक उन को गिरफ्तार नहीं किया जाता, तब तक वे शवों को नहीं उठने देंगे. सिपाही लाल ने भी बेटे की बात का समर्थन किया.

बृजबिहारी की इस धमकी से पुलिस के माथे पर बल पड़ गए. लेकिन माहौल खराब न हो, इसलिए पुलिस ने मृतका के पति कुलदीप, ससुर कैलाश बाबू, सास विमला देवी तथा देवर राहुल को हिरासत में ले लिया तथा सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें थाना दिबियापुर भिजवा दिया.

सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस अधिकारियों ने कुलदीप के पड़ोसी सुदामा से पूछताछ की. सुदामा ने बताया कि कुलदीप जब खेत से घर आया था, तो घर का दरवाजा बंद था. दरवाजा पीटने और आवाज देने पर भी जब उस की पत्नी साधना ने दरवाजा नहीं खोला, तब वह मदद मांगने उस के पास आया. उस के बाद वे दोनों छत के रास्ते घर के अंदर कमरे में गए, जहां साधना बेटियों सहित फांसी पर लटक रही थी.

सुदामा ने कहा कि कुलदीप ने पत्नी व बेटियों को नहीं मारा बल्कि साधना ने ही बेटियों को फांसी पर लटकाया और फिर स्वयं भी फांसी लगा ली.

निरीक्षण और पूछताछ के बाद एसपी सुनीति ने मृतका साधना व उस की मासूम बेटियों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए औरैया जिला अस्पताल भिजवा दिया.

डाक्टरों की टीम ने कड़ी सुरक्षा के बीच चारों शवों का पोस्टमार्टम किया, वीडियोग्राफी भी कराई गई. इस के बाद रिपोर्ट पुलिस को सौंप दी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, मासूम गुंजन, अंजुम व पूनम की हत्या गला दबा कर की गई थी, जबकि साधना ने आत्महत्या की थी. रिपोर्ट से स्पष्ट था कि साधना ने पहले अपनी तीनों मासूम बेटियों की हत्या की फिर बारीबारी से उन्हें फांसी के फंदे पर लटकाया. उस के बाद स्वयं भी उस ने फांसी के फंदे पर लटक कर आत्महत्या कर ली. उस ने ऐसा शायद इसलिए किया कि वह मरतेमरते भी जिगर के टुकड़ों को अपने से दूर नहीं करना चाहती थी.

थाने पर पुलिस अधिकारियों ने कुलदीप तथा उस के मातापिता व भाई से पूछताछ की. कुलदीप के पिता कैलाश बाबू ने बताया कि कुलदीप व साधना के बीच अकसर झगड़ा होता था, जिस से आजिज आ कर उन्होंने कुलदीप का घर जमीन का बंटवारा कर कर दिया था. वह छोटे बेटे राहुल के साथ अलग रहता है. उस का कुलदीप से कोई वास्ता नहीं था.

पूछताछ के बाद पुलिस ने कैलाश बाबू उस की पत्नी विमला तथा बेटे राहुल को थाने से घर जाने दिया, लेकिन मृतका साधना के भाई बृजबिहारी की तहरीर पर कुलदीप के खिलाफ भादंवि की धारा 309 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली और उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में घर कलह की सनसनीखेज घटना सामने आई.

गांव अमानपुर, जिला औरेया का सिपाही लाल दिबियापुर में रेलवे ठेकेदार के अधीन काम करता था. कुछ उपजाऊ जमीन भी थी, जिस से उस के परिवार का खर्च आसानी से चलता था.

सिपाही लाल की बेटी साधना जवान हुई तो उस ने 12 फरवरी, 2012 को उस की शादी सेहुद गांव निवासी कैलाश बाबू के बेटे कुलदीप के साथ कर दी. लेकिन कुलदीप की मां विमला न बहू से खुश थी, न उस के परिवार से.

साधना और कुलदीप ने जैसेतैसे जीवन का सफर शुरू किया. शादी के 2 साल बाद साधना ने एक बेटी गुंजन को जन्म दिया. गुंजन के जन्म से साधना व कुलदीप तो खुश थे, लेकिन साधना की सास विमला खुश नहीं थी, क्योंकि वह पोते की आस लगाए बैठी थी. बेटी जन्मने को ले कर वह साधना को ताने कसने लगी थी.

घर की मालकिन विमला थी. बापबेटे जो कमाते थे, विमला के हाथ पर रखते थे. वही घर का खर्च चलाती थी. साधना को भी अपने खर्च के लिए सास के आगे ही हाथ फैलाना पड़ता था. कभी तो वह पैसे दे देती थी, तो कभी झिड़क देती थी. तब साधना तिलमिला उठती थी. साधना पति से शिकवाशिकायत करती, तो वह उसे ही प्रताडि़त करता.

गुंजन के जन्म के 2 साल बाद साधना ने जब दूसरी बेटी अंजुम को जन्म दिया तो लगा जैसे उस ने कोई गुनाह कर दिया हो. घर वालों का उस के प्रति रवैया ही बदल गया.

सासससुर, पति किसी न किसी बहाने साधना को प्रताडि़त करने लगे. सास विमला आए दिन कोई न कोई ड्रामा रचती और झूठी शिकायत कर कुलदीप से साधना को पिटवाती. विमला को साधना की दोनों बेटियां फूटी आंख नहीं सुहाती थीं. वह उन्हें दुत्कारती रहती थी.

बेटियों के साथसाथ वह साधना को भी कोसती, ‘‘हे भगवान, मेरे तो भाग्य ही फूट गए जो इस जैसी बहू मिली. पता नहीं मैं पोते का मुंह देखूंगी भी या नहीं.’’

धीरेधीरे बेटियों को ले कर घर में कलह बढ़ने लगी. कुलदीप और साधना के बीच भी झगड़ा होने लगा. आजिज आ कर साधना मायके चली गई. जब कई माह तक वह ससुराल नहीं आई, तो विमला की गांव में थूथू होने लगी.

बदनामी से बचने के लिए उस ने पति कैलाश बाबू को बहू को मना कर लाने को कहा. कैलाश बाबू साधना को मनाने उस के मायके गए. वहां उन्होंने साधना के मातापिता से बातचीत की और साधना को ससुराल भेजने का अनुरोध किया, लेकिन साधना के घर वालों ने प्रताड़ना का आरोप लगा कर उसे भेजने से साफ मना कर दिया.

मुंह की खा कर कैलाश बाबू लौट आए. उन्होंने वकील से कानूनी सलाह ली और फिर साधना को विदाई का नोटिस भिजवा दिया. इस नोटिस से साधना के घर वाले तिलमिला उठे और उन्होंने साधना के मार्फत थाना सहायल में कुलदीप तथा उस के घर वालों के खिलाफ घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज करा दिया. इस के अलावा औरैया कोर्ट में कुलदीप के खिलाफ भरणपोषण का मुकदमा भी दाखिल कर दिया.

जब कुलदीप तथा उस के पिता कैलाश बाबू को घरेलू हिंसा और भरणपोषण के मुकदमे की जानकारी हुई तो वह घबरा उठे. गिरफ्तारी से बचने के लिए कैलाश बाबू समझौते के लिए प्रयास करने लगे. काफी मानमनौव्वल के बाद साधना राजी हुई. कोर्ट से लिखापढ़ी के बाद साधना ससुराल आ कर रहने लगी.

कुछ माह बाद कैलाश बाबू ने घर, जमीन का बंटवारा कर दिया. उस के बाद साधना पति कुलदीप के साथ अलग रहने लगी. साधना पति के साथ अलग जरूर रहने लगी थी, लेकिन उस का लड़नाझगड़ना बंद नहीं हुआ था. सास के ताने भी कम नहीं हुए थे. वह बेटियों को ले कर अकसर ताने मारती रहती थी. कभीकभी साधना इतना परेशान हो जाती कि उस का मन करता कि वह आत्महत्या कर ले. लेकिन बेटियों का खयाल आता तो वह इरादा बदल देती.

10 सितंबर, 2020 को साधना ने तीसरी संतान के रूप में भी बेटी को ही जन्म दिया, नाम रखा पूनम. पूनम के जन्म से घर में उदासी छा गई. सब से ज्यादा दुख विमला को हुआ. उस ने फिर से साधना को ताने देने शुरू कर दिए. छठी वाले दिन साधना की मां विटोली भी आई. उस रोज विमला और विटोली के बीच खूब नोंकझोंक हुई. सास के ताने सुनसुन कर साधना रोती रही.

विटोली बेटी को समझा कर चली गई. उस के बाद साधना उदास रहने लगी. वह सोचने लगी क्या बेटी पैदा होना अभिशाप है? अब तक साधना सास के तानों और पति की प्रताड़ना से तंग आ चुकी थी.

अत: वह आत्महत्या करने की सोचने लगी. लेकिन खयाल आया कि अगर उस ने आत्महत्या कर ली तो उस की मासूम बेटियों का क्या होगा. उस का पति शराबी है, वह उन की परवरिश कैसे करेगा. वह या तो बेटियों को बेच देगा या फिर भूखे भेडि़यों के हवाले कर देगा.

सोचविचार कर साधना ने आखिरी फैसला लिया कि वह मासूम बेटियों को मार कर बाद में आत्महत्या करेगी.1 अक्तूबर, 2020 की सुबह 7 बजे कुलदीप खेत पर काम करने चला गया. उस के जाने के बाद साधना ने मुख्य दरवाजा बंद किया और टीवी की आवाज तेज कर दी. फिर उस ने साड़ी के 4 टुकड़े किए और इन के एकएक सिरे को मेज पर चढ़ कर छत की धन्नी में लगे लोहे के कुंडे में बांध दिया.

साड़ी के टुकड़ों के दूसरे सिरे को उस ने फंदा बनाया. उस समय गुंजन और अंजुम चारपाई पर सो रही थीं. साधना ने कलेजे पर पत्थर रख कर बारीबारी से गला दबा कर उन दोनों को मार डाला फिर उन के शवों को फांसी के फंदे पर लटका दिया.

21 दिन की मासूम पूनम का गला दबाते समय साधना के हाथ कांपने लगे आंखों से आंसू टपकने लगे. लेकिन जुनून के आगे ममता हार गई और उस ने उस मासूम को भी गला दबा कर मार डाला और फांसी के फंदे पर लटका दिया. इस के बाद वह स्वयं भी गले में फंदा डाल कर झूल गई.

घटना की जानकारी तब हुई जब कुलदीप घर वापस आया. पड़ोसी सुदामा ने घटना की सूचना मोबाइल फोन द्वारा थाना दिबियापुर पुलिस को दी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी सुधीर कुमार मिश्रा आ गए. उन्होंने शवों को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो घर कलह की घटना प्रकाश में आई.

2 अक्टूबर, 2020 को थाना दिबियापुर पुलिस ने अभियुक्त कुलदीप को औरैया कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

गहरी साजिश : परिवार हुआ शक का शिकार

सूरज की परेशानी की वजह थी दादा और बहन प्रीति की हुई रहस्यमय मौत. उसे शक था कि मौत स्वाभाविक नहीं, बल्कि साजिश परिवार द्वारा की गई है. जिसके कारण वह अपने घर में किसी को भी मन की बात बता नहीं पाया.

सोचसोच कर जब वह काफी परेशान रहने लगा तो एक दिन अपने नजदीकी थाना झबरेड़ा पहुंच गया. यह थाना उत्तराखंड के जिला हरिद्वार के अंतर्गत आता है.उस ने थानाप्रभारी रविंद्र कुमार से मुलाकात कर अपने मन की बात बताई. सूरज ने बताया कि वह मानकपुर आदमपुर में रहता है और एक कंपनी में काम करता है. उस ने बताया कि उस के दादा महेंद्र (70 साल) पूरी तरह स्वस्थ थे. वह 2 नवंबर, 2020 की रात को खाना खा कर सोए थे और अगली सुबह बिस्तर पर मृत मिले. इसी तरह 6 दिसंबर, 2020 की सुबह को उस की 21 वर्षीय बहन प्रीति भी बिस्तर पर मृत मिली. इन दोनों की स्वाभाविक मौत पर उसे शक है.

‘‘तुम्हारे घर में कौनकौन रहता है?’’ थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने उस से पूछा ‘‘सर अब तो मेरी परिवार में केवल मेरी बीबी रिया, मेरी 2 वर्षीया बेटी सोनी तथा मेरी मां कैमता ही हैं. वर्ष 2014 में मेरे पिता अरविंद कुमार की हार्टअटैक से मौत हो चुकी है.’’ सूरज ने बताया  ‘‘तुम्हारी शादी कब हुई थी?’’

‘‘सर मेरी शादी साल 2018 में सहारनपुर के गांव दुगचाड़ी निवासी रिया उर्फ अन्नू के साथ हुई थी. मेरे घर में दुलहन बन कर आने के बाद रिया अकसर चिल्लाने लगती थी और कहती थी कि मुझे कोई प्रेतात्मा बुला रही है. वह मुझे अपने साथ ले जाने के लिए कह रही है. इस तरह से रिया का चीखनाचिल्लाना अभी तक जारी है.’’ सूरज बोला ‘क्या तुम्हें किसी पर शक है?’’ रविंद्र कुमार ने पूछा.

‘‘हां सर, मुझे शादी के बाद से ही मेरी बीवी रिया द्वारा प्रेतात्मा का डर दिखा कर डराया जाता रहा है. इस के अलावा हमारे पड़ोस में रहने वाले युवक रोहित उर्फ राजू से मेरी बीबी रिया की नजदीकियां पिछले साल से काफी बढ़ गई हैं. मुझे कुछ महीने पहले मेरे पड़ोसियों से पता चला कि मेरी रात की ड्यूटी के दौरान रोहित अकसर हमारे घर आता है.’’ सूरज बोला‘तुम्हें अपनी पत्नी पर ही शक क्यों है?’’ रविंद्र कुमार बोले

‘‘10 दिन पहले रिया गांव दुगचाड़ी अपने स्थित मायके गई थी. इसी दौरान मैं कुशलक्षेम पूछने के लिए रिया का को फोन करता था, तो उस का नंबर कई बार 20-25 मिनट तक बिजी मिलता था. वह शायद अपने प्रेमी रोहित से ही बात करती होगी. मुझे शक है कि उसी ने ही कोई साजिश रची होगी.’’

इस के बाद थानाध्यक्ष रविंद्र कुमार ने सूरज से पूछ कर उस की बीवी रिया व उस का मोबाइल नंबर नोट कर लिया और उसे यह कहते हुए घर भेज दिया कि हम पहले इस प्रकरण की अपने स्तर से जांच कर लें, इस के बाद कानूनी काररवाई करेंगे. सूरज के जाने के बाद रविंद्र सिंह ने इस मामले की जानकारी सीओ अभय प्रताप सिंह व एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह को दी.

इस मामले में हरिद्वार के एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह ने रविंद्र कुमार से कहा कि चूंकि महेंद्र व प्रीति की मौत को सामान्य मानते हुए उन के परिजन पहले ही उन का अंतिम संस्कार कर चुके हैं, अत: अब इस मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट का तो प्रश्न ही नहीं उठता. फिलहाल तुम रिया व रोहित के मोबाईलों की पिछले 2 महीनों की कालडिटेस निकलवा लो और मुखबिरों से भी जानकारी हासिल करो.

रविंद्र कुमार ने ऐसा ही किया. 2 दिन बाद पुलिस को रिया व रोहित के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स भी मिल गई. पता चला कि रोहित और रिया की वक्तबेवक्त काफी देर तक बातें हुआ करती थीं. मुखबिरों से जानकारी मिली कि रोहित सहारनपुर के गांव मुंडीखेड़ी के रहने वाले रतन का बेटा है.

काफी पहले से वह अपने नाना के घर गांव मानकपुर आदमपुर में रहता है. रोहित अपराधी किस्म का है तथा उस के खिलाफ सहारनपुर व मुजफ्फरनगर जिलों के कई थानों में चोरी, जालसाजी व धमकी देने के मुकदमे दर्ज हैं.यह जानकारी थानाप्रभारी रविंद्र सिंह ने सीओ अभय प्रताप सिंह को दी, तो उन्होंने तत्काल रिया व रोहित को पूछताछ के लिए हिरासत में लेने के निर्देश दिए. तब रविंद्र कुमार ने सूरज को मिलने के लिए थाने में आने को कहा, लेकिन सूरज थाने नहीं आया.

इस के बाद 16 दिसंबर, 2020 को थानाप्रभारी रविंद्र कुमार, एसआई संजय नेगी, मोहन कठैत, कांस्टेबल नूर मलिक व मोहित ने रोहित को उस के घर के पास से गिरफ्तार कर लिया.थाने ला कर उस से महेंद्र व प्रीति की रहस्मय मौतों के बारे में पूछताछ की. पूछताछ के दौरान रोहित अनभिज्ञता जताता रहा. अगले दिन पुलिस ने रिया को भी उस के घर से हिरासत में ले लिया. थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने जब रोहित व रिया को आमनेसामने बैठा कर पूछताछ की तो दोनों थरथर कांपने लगे. इस के बाद रिया व रोहित ने महेंद्र व प्रीति की मौत के मामले में अपनी अपनी संलिप्तता स्वीकार कर ली.

रिया ने पुलिस को बताया कि काफी पहले से वह नशे की आदी थी और खुद पर प्रेतात्मा आने का नाटक करती रहती थी. पति सूरज उस की और कम ध्यान देता था. उस ने बताया कि वह अकसर पड़ोस में रहने वाले रोहित से बातें करती थी. धीरेधीरे उन दोनों में प्यार हो गया था. कुछ दिनों बाद दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए थे.

रिया ने बताया कि वह और रोहित नशे की गोलियों का सेवन करते थे. जिस दिन मेरा पति सूरज रात की ड्यूटी पर फैक्ट्री जाता था तो वह अपनी सास व ससुर को रात के खाने में नींद की गोलियां डाल कर खिला देती थी. जब वे दोनों नशे में सो जाते थे तो फोन कर के रोहित को अपने घर बुला लेती थी.लेकिन एक दिन रात को ददिया ससुर महेंद्र ने रोहित को घर से निकलते हुए देख लिया था. अपनी पोल खुलने के डर से वह घबरा गई और इस के बाद उस ने व रोहित ने ददिया ससुर महेंद्र की हत्या की योजना बनाई.

2 नवंबर, 2020 की रात को योजना के अनुसार, उस ने अपनी सास व ददिया ससुर महेंद्र के खाने में नींद की गोलियां मिला कर उन्हें खाना खिला दीं. उस दिन उस का पति सूरज रात की ड्यूटी पर फैक्ट्री गया हुआ था. उस रात रोहित उस के घर आ गया था. इस के बाद उन दोनों ने महेंद्र की तकिए से मुंह दबा कर हत्या कर दी.

इस के बाद दोनों ने महेंद्र के शव को चारपाई पर लिटा कर उन के ऊपर चादर डाल दी थी, जिस से परिजन उसे सामान्य मौत समझें और किसी को शक न हो. अगले दिन महेंद्र की मौत को सूरज और उस के घर वालों ने सामान्य मौत समझते हुए उन का अंतिम संस्कार कर दिया था.दादा महेंद्र की मौत के बाद सूरज ने फैक्ट्री जाना छोड़ दिया था और घर पर ही रहने लगा था. दादा की मौत के बाद सूरज को लगता था कि दादा महेंद्र एकदम ठीकठाक थे, कोई बीमारी भी नहीं थी तो अचानक उन की मृत्यु कैसे हो गई. वह दादा को बहुत चाहता था, इसलिए उन की मौत के बाद उसे बहुत दुख हुआ.

सूरज की एक बहन थी प्रीति, जो भटौल गांव में रहने वाले मामा के घर रह कर पढ़ाई कर रही थी. वह बीए अंतिम वर्ष में थी. सूरज ने उसे मामा के घर से बुला लिया.ददिया ससुर की हत्या के आरोप से रिया साफ बच गई थी क्योंकि घर वालों ने उन की मौत को स्वाभाविक मान लिया था, इसलिए रिया की हिम्मत बढ़ गई थी. प्रेमी रोहित से उस का मिलना पहले की तरह जारी रहा.

वह घर के सभी लोगों को खाने में नींद की गोलियां देने के बाद प्रेमी को अपने घर बुला लेती. लेकिन एक रात प्रीति की नींद खुल गई तो उस ने भाभी के कमरे से किसी मर्द की आवाज सुनी.प्रीति को शक हुआ कि जब सूरज भैया रात की ड्यूटी पर गए हैं तो भाभी के कमरे में मर्द कौन है. उस ने खिड़की से झांका तो कमरे में उस की भाभी रोहित के साथ मौजमस्ती कर रही थी.

इसी बीच रिया को आहट हुई तो वह फटाफट कपड़े पहन कर दरवाजे के बाहर आई तो उस ने प्रीति को वहां से अपने कमरे की तरफ जाते देखा. इस से रिया को शक हो गया कि प्रीति ने उसे रोहित के साथ देख लिया है.यह बात उस ने प्रेमी रोहित को बताई तो रोहित ने दादा की तरह प्रीति को भी ठिकाने लगाने की सलाह दी. रिया इस के लिए तैयार हो गई. इस के बाद रिया ने दादा महेंद्र की तरह प्रीति को भी ठिकाने लगाने की योजना बनाई ताकि प्रेमी से उस के मिलन में कोई बाधा न आए.

सूरज रात की ड्यूटी पर गया था. रिया ने मौका देख कर योजना के मुताबिक 5 दिसंबर, 2020 को अपनी सास व प्रीति के खाने में नींद की गोलियां मिला कर दे दीं. रात को जब प्रीति को नींद आ गई तो रिया ने रोहित के साथ मिल कर तकिए से प्रीति का दम घोट हत्या कर दी. इस के बाद रोहित चला गया. फिर रिया ने स्वयं पर प्रेतात्मा आने का नाटक करते हुए चीखनाचिल्लाना शुरू कर दिया. पति के घर आने पर उस ने कहा कि प्रीति को कुछ हो गया है.

रिया ने पुलिस को आगे बताया कि वह रोहित से अपने अवैध संबंधों को छिपाने के लिए खुद पर प्रेतात्मा के आने का नाटक करती रही थी. वह अपने पति के साथ खुश नहीं थी. उसे जब कभी पैसों की जरूरत होती तो वह सूरज से नहीं बल्कि रोहित से पैसे लेती थी. सूरज के साथ उस का वैवाहिक जीवन कभी सुखी नहीं रहा.रिया और उस के प्रेमी रोहित से पूछताछ के बाद पुलिस ने रिया की निशानदेही पर घटना में इस्तेमाल शेष बची नींद की गोलियां तथा गला दबाने में प्रयुक्त तकिया बरामद कर लिया.

पुलिस ने सूरज की तहरीर पर भादंवि की धाराओं 302, 201 व 120बी के तहत मामला दर्ज कर लिया. एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह ने अगले दिन कोतवाली रुड़की में आयोजित प्रैसवार्ता के दौरान महेंद्र व प्रीति की रहस्यमय मौतों का खुलासा किया.

आरोपी रिया व रोहित को मीडिया के सामने पेश किया गया. इस के बाद पुलिस ने रोहित व रिया को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया. कहते हैं कि गुनाह छिपाए नहीं छिपता. एक न एक दिन सामने आ ही जाता है. ऐसा ही कुछ रिया व रोहित के मामले में भी देखने को मिला. जब रात को महेंद्र ने रिया को रोहित के साथ देखा था तो दोनों ने पहले उन्हें रास्ते से हटा दिया तथा इस के बाद जब उन्हें रंगरलियां मनाते हुए प्रीति ने देखा, तो उन्होंने प्रीति को भी सुनियोजित ढंग से मार डाला था.

सूरज अपने दादा व बहन की मौत के कारण दुखी था और वह ड्यूटी पर भी नहीं जा रहा था, जबकि रिया भविष्य में अपने पति सूरज को भी मारने का तानाबाना बुन रही थी. यदि सूरज रिया की गतिविधियों पर शक होने के पर पुलिस के पास न जाता तो न ही ये केस खुलता और रिया व रोहित का अगला शिकार सूरज खुद बन जाता.

हरिद्वार के एसएसपी सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस ने महेंद्र व प्रीति की मौत से परदा उठाने वाली टीम को ढाई हजार रुपए का पुरस्कार देने की घोषणा की.