शिवानी भाभी : पति की कातिल

सिंहराज को शराब पीने की लत थी. उस की इसी लत के चलते उस के दोस्त देवेंद्र ने घर आना शुरू किया. उस की कुछ ही देर पहले शिवानी का अपने पति सिंहराज से झगड़ा हुआ था. वह आज की बात नहीं थी, हर रोज का वही हाल था. सिंहराज एक नंबर का पियक्कड़ था. आज फिर सुबह होते ही अद्धा ले कर बैठ गया था. शिवानी ने उसे टोका लेकिन वह कहां मानने वाला था. कुछ देर तक तो वह पत्नी की बातें सुनता रहा, मगर 2-4 पैग हलक से नीचे उतरते ही उस का दिमाग घूम गया. बिना कुछ कहे उस ने शिवानी की चोटी पकड़ कर उसे रुई की भांति धुन दिया. फिर अद्धा बगल में दबाए घर के बाहर चला गया.

28 वर्षीय सिंहराज सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर  जनपद के थाना चांदपुर के बागड़पुर गांव में रहता था. वह चांदपुर के एक ज्वैलर की गाड़ी चलाता था. उस के पिता किसान थे. भाईबहन सभी शादीशुदा थे और अपनेअपने परिवारों के साथ अलगअलग रहते थे.

सिंहराज सिंह का विवाह लगभग 4 वर्ष पूर्व पड़ोस के गांव केलनपुर निवासी शिवानी से हुआ था. शिवानी बीए पास थी. सुंदर पत्नी पा कर हाईस्कूल पास सिंहराज फूला नहीं समाया. आम नवविवाहितों की तरह उन दोनों के दिन सतरंगी पंख लगाए उड़ने लगे.

खूबसूरत बीवी पा कर सिंहराज खुद को दुनिया का सब से खुशनसीब व्यक्ति समझने लगा था. एक बेटी ने उस के घर जन्म ले कर उस की बगिया को महका दिया.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि वक्त ने करवट बदली. नौकरी से सिंहराज सिंह की इतनी आमदनी हो जाती थी कि दालरोटी चल सके. दिक्कत उस समय होने लगी, जब उसे शराब की लत लग गई.

शिवानी कुशल गृहिणी थी. कम आमदनी में ही उसे गृहस्थी चलाना  आता था, परंतु पति की शराब पीने की लत ने घर के बजट को गड़बड़ा दिया. फलस्वरूप शिवानी परेशान रहने लगी. उस ने पति को हर तरीके से समझाना चाहा. बेटी की भी दुहाई दी, लेकिन सिंहराज को बीवीबेटी से ज्यादा शराब प्यारी थी.

सिंहराज सुधरा तो नहीं, उलटे शिवानी की सीख ने उसे ढीठ जरूर बना दिया. परिणाम यह हुआ कि पहले केवल शाम को पीने वाला सिंहराज अब दिनरात शराब में डूबा रहने लगा. उसे न बीवी की फिक्र सताती, न ही बेटी की चिंता. वेतन के सारे पैसे वह बोतलों में ही गर्क कर देता.

वह नशे में इतना डूब चुका था कि नौकरी में भी लापरवाही बरतने लगा. पैसों की किल्लत होती तो घर के कीमती बरतन व कपड़े शराब की भेंट चढ़ जाते. शिवानी रोकती तो बुरी तरह पिटती. वह अपनी बदकिस्मती पर आंसू बहा कर रह जाती. बागड़पुर में ही रहता था देवेंद्र उर्फ बच्चू. वह अविवाहित था और अपने पिता सूरज सिंह के साथ खेती में हाथ बंटाता था. देवेंद्र और सिंहराज में दोस्ती थी. इसलिए देवेंद्र का सिंहराज के घर आनाजाना था.

देवेंद्र ही वह शख्स था, जिसे शिवानी से हमदर्दी थी. उस ने भी सिंहराज को शराब छोड़ने और गृहस्थी पर ध्यान देने की सलाह दी थी, लेकिन उस ने सारी नसीहत एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल दी थी. मियांबीवी के झगड़े की वजह से देवेंद्र कभीकभार ही सिंहराज के घर चला जाता था.

उस रोज भी देवेंद्र कई दिनों बाद सिंहराज के घर गया था. उस के पहुंचने से कुछ देर पहले ही सिंहराज शिवानी को पीट कर बाहर गया था. जब वह पहुंचा तो शिवानी रो रही थी. उस की नजर जैसे ही देवेंद्र पर पड़ी, वह अपने आंसू पोंछने लगी. फिर मुसकराने का प्रयास करते हुए बोली, ‘‘अरे तुम, आज यहां का रास्ता कैसे भूल गए?’’

‘‘सच पूछो भाभी तो आज भी नहीं आता,’’ देवेंद्र ने शिवानी की नम आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मगर तुम्हारा दर्द मुझ से नहीं देखा जाता, इसलिए आ जाता हूं. लगता है सिंहराज अपनी हरकतों से बाज नहीं आएगा.’’

‘‘किसी को क्या दोष देना देवेंद्र, जब अपनी ही किस्मत खोटी हो.’’

देवेंद्र और शिवानी हमउम्र थे और एकदूसरे की भावनाओं से अच्छी तरह परिचित थे. शिवानी जहां देवेंद्र की सादगी और भोलेपन पर फिदा थी, वहीं देवेंद्र उस की कोमल काया पर मोहित था.

शिवानी का पोरपोर जवानी से लबालब था. उस के तीखे नैननक्श एवं कटीली मुसकान किसी को भी घायल कर देने में समर्थ थी. लेकिन शराबी सिंहराज को प्यालों की गहराई मापने से फुरसत नहीं थी, वह पत्नी की आंखों के राज क्या समझता.

दूसरी ओर शिवानी की जिस्मानी ख्वाहिश पूरे जलाल पर थी. ऐसे में उस का झुकाव देवेंद्र की ओर होने में ज्यादा समय नहीं लगा. इधर देवेंद्र की हालत भी शिवानी से जुदा नहीं थी.

उस दिन शिवानी का रोना देख कर देवेंद्र तड़प उठा. उस ने भावावेश में शिवानी का हाथ पकड़ कर कहा,‘‘ऐसा न कहो भाभी, मैं सारी दुनिया की बातें तो नहीं जानता, लेकिन अपनी गारंटी देता हूं यदि तुम साथ दो तो सारी जिंदगी तुम पर वार दूंगा.’’

यह सुनना था कि शिवानी देवेंद्र से लिपट कर जारजार रोने लगी. देवेंद्र उसे कस कर भींचते हुए बोला,‘‘असल में, तुम गलत आदमी से बंध गई…खैर, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, तुम चाहो तो फिर से सब कुछ बदल सकता है.’’

शिवानी ने कुछ कहने के बजाय देवेंद्र को चूम लिया. शिवानी के चूमते ही देवेंद्र उसे किसी बावले की तरह यहांवहां चूमने लगा. शिवानी उस के अनाड़ीपने पर रोतेरोते मुसकरा उठी. उस ने खुद को देवेंद्र से अलग करते हुए पहले दरवाजा बंद किया, फिर मुसकरा कर हाथ पकड़ा और उसे अंदर के कमरे में ले गई.

कामना की आंच में देवेंद्र की कनपटियां सनसना रही थीं. शिवानी ने पहले देवेंद्र के कपड़े उतारे, फिर खुद भी बेलिबास हो गई. देवेंद्र शिवानी का तराशा हुआ बदन देख चकित रह गया.

शिवानी देवेंद्र की हालत देख कर मंदमंद मुसकराने लगी. फिर धीरेधीरे दोनों के बदन एकदूसरे से गुंथते गए और फिर उन के दरमियान सारे फासले मिट गए.

दोनों अलग हुए तो बहुत खुश थे. उन्होंने बदकिस्मती को धता बताते हुए अपने रिश्ते की नई बुनियाद रखी थी.

उस दिन के बाद देवेंद्र और शिवानी की दुनिया ही बदल गई. दोनों पतिपत्नी का सा व्यवहार करने लगे.

अब देवेंद्र शिवानी का तो खयाल रखता ही, उस की घरगृहस्थी का खर्च भी उठाने लगा.

शिवानी की बेजान दुनिया में फिर से जीवन लौट आया. अब बढि़या खाना पकता और सिंहराज के साथ देवेंद्र भी उस के साथ जम कर भोजन करता.

ऐसी बात नहीं कि सिंहराज देवेंद्र और शिवानी के रिश्तों से अंजान था, उसे सब कुछ पता था, लेकिन वह यही सोच कर खुश था कि उसे अब कोई शराब पीने से नहीं रोकता था, बल्कि पैसे कम पड़ने पर देवेंद्र उस की मदद ही कर दिया करता था. इन सब की एवज में सिंहराज ने देवेंद्र और शिवानी के रिश्ते को मौन स्वीकृति दे दी थी.

15 मार्च की सुबह धनौरा मार्ग पर मिर्जापुर गांव के पास एक अज्ञात युवक की लाश पड़ी थी. गांव के लोगों ने देखा तो इस की सूचना चांदपुर थाने को दे दी.

सूचना पा कर थाने से इंसपेक्टर लव सिरोही पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. मृतक की उम्र लगभग 25 से 30 वर्ष के बीच रही होगी.

उस के सिर के पिछले हिस्से में गहरा घाव था, जिस से खून काफी बहा था. किसी भारी ठोस वस्तु से प्रहार कर के उसे मौत के घाट उतारा गया प्रतीत हो रहा था. घटनास्थल का निरीक्षण करने पर कोई भी सुराग हाथ नहीं लगा.

इंसपेक्टर सिरोही ने वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करने को कहा तो पता चला कि मृतक बागड़पुर गांव का सिंहराज सिंह है.

पुलिस ने मृतक के परिजनों को सूचना भेजी तो परिजन वहां पहुंच गए. शिवानी पति की लाश के पास बैठ कर फूटफूट कर रोने लगी. सिंहराज के भाई सुशील ने अपने भाई की लाश की शिनाख्त कर ली. शिनाख्त होने के बाद इंसपेक्टर सिरोही ने आवश्यक पूछताछ की, उस के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

थाने वापस आ कर सुशील की लिखित तहरीर पुलिस ने अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

केस की जांच शुरू करते हुए इंसपेक्टर सिरोही ने सब से पहले मृतक सिंहराज की पत्नी शिवानी से पूछताछ की तो शिवानी ने बताया कि सिंहराज के किसी युवती से अवैध संबंध थे.

वह नशे का आदी था. नशे में वह उसे मारतापीटता था. सिंहराज हाईस्कूल पास था और वह बीए पास थी. इस के बावजूद भी वह अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए उस के साथ निभा रही थी. किसी ने भी उसे मारा हो, लेकिन उस के मरने से मुझे जिंदगी में सुकून मिल गया.

इंसपेक्टर सिरोही को उस की बातों में अपने पति के लिए बेपनाह नफरत की झलक मिली थी. इसलिए उन का शक शिवानी पर गया. इस के बाद उन्होंने शिवानी से उस का मोबाइल नंबर ले लिया. उस के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो शिवानी के नंबर पर एक नंबर से काफी काल होने का पता चला.

उस नंबर की जानकारी की गई तो वह  बागड़पुर गांव के देवेंद्र का निकला. देवेंद्र की जानकारी जुटाई तो पता चला कि देवेंद्र की दोस्ती मृतक सिंहराज से थी, देवेंद्र का उस के घर काफी आनाजाना था.

एक बार फिर इंसपेक्टर सिरोही ने शिवानी से पूछताछ की तो वह गोलमोल जबाव देने लगी. इंसपेक्टर सिरोही ने शिवानी का मोबाइल ले कर उस की जांच की तो पता चला कि वाट्सऐप पर शिवानी और देवेंद्र द्वारा एकदूसरे को भेजे गए फोटो डिलीट किए गए थे.

मोबाइल की गैलरी की जांच करने पर उस में शिवानी के जींस पहने कई फोटो देवेंद्र के साथ मिले, जिस के बाद इंसपेक्टर सिरोही ने शिवानी को हिरासत में ले लिया और थाने आ गए. वहां महिला कांस्टेबल की मौजूदगी में उस से कड़ाई से पूछताछ की तो शिवानी टूट गई. उस ने अपने प्रेमी देवेंद्र द्वारा अपने पति की हत्या करवाने की बात स्वीकार कर ली. इस के बाद देवेंद्र को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

सिंहराज की मूक सहमति पाते ही देवेंद्र और शिवानी की बांछें  खिल उठी थीं. शराब के नशे ने सिंहराज को बेगैरत बना दिया था, लेकिन एक दिन नशे की हालत में सिंहराज की गैरत जाग उठी. उस ने शिवानी को टोका, ‘‘शिवानी, बस बहुत हो चुका रासरंग अब और नहीं… आज के बाद तुम देवेंद्र से कोई रिश्ता नहीं रखोगी. बेहयाई की भी हद होती है.’’

सिंहराज के इस बदले हुए रूप ने शिवानी को हैरान कर दिया. उस ने पूछा,‘‘आज अचानक क्या हुआ तुम को?’’

सिंहराज शिवानी को घूर कर बोला,‘‘क्यों, समझ नहीं आ रहा क्या, या बेगैरती ने तुम्हारा भेजा चाट लिया है?’’

‘‘गैरत और बेगैरती की बातें तुम्हारे मुंह से अच्छी नहीं लगतीं. अच्छा होगा, अब इस मामले में न ही पड़ो,’’ आवेश में शिवानी की सांसें फूलने लगी थीं. क्षण भर रुक कर वह पुन: बोली, ‘‘जरा सोचो, बेगैरती का यह रास्ता मुझे किस ने दिखाया? तुम ने… अगर तुम अच्छे पति, बढि़या पिता और सच्चे इंसान होते तो मैं राह क्यों भटकती? अब कुछ भी नहीं हो सकता, क्योंकि अब तीर कमान से निकल चुका है.’’

‘‘मैं कुछ सुनना नहीं चाहता, आइंदा वही होगा, जो मैं चाहूंगा.’’ सिंहराज ने कड़े शब्दों में कहा.

‘‘असंभव, अब ऐसा नहीं हो सकता.’’ शिवानी के दो टूक जबाव से सिंहराज पागल हो उठा.

वह चीखते हुए उस पर झपटा,‘‘ठहर मैं अभी बताता हूं कि क्या हो सकता है और क्या नहीं हो सकता.’’

सिंहराज ज्यों ही शिवानी को पीटने दौड़ा, संयोग से तभी देवेंद्र वहां आ गया. पल भर में उस ने सारा माजरा समझ लिया और आगे बढ़ कर उस ने सिंहराज को धक्का दे कर गिरा दिया.

अचानक लगे धक्के से सिंहराज चारों खाने चित गिर गया. उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. खड़े होते हुए बोला,‘‘देवेंद्र खबरदार… जो हम दोनों के बीच आए…तुम्हारा सिर तोड़ दूंगा.’’

इतना सुनना था कि देवेंद्र सिंहराज पर टूट पड़ा. मुक्कों और लातों से उस की बुरी गत बना दी. जिंदगी भर पति से पिटने वाली शिवानी ने जब पति को पिटते देखा, तब उस के प्रतिशोध ने भी सिर उठा लिया. उस ने भी देवेंद्र के साथ पति सिंहराज पर हाथ आजमाए.

उस दिन की पिटाई पर सिंहराज ने दोनों को धमकी दी कि वह दोनों को अब जिंदा नहीं छोडे़गा. उस की इस धमकी ने शिवानी और देवेंद्र को सोचने पर मजबूर कर दिया. वह दोनों जानते थे कि सिंहराज नशे और गुस्से में कुछ भी कर सकता है. इसलिए दोनों ने सिंहराज के कुछ करने से पहले ही उसे खत्म करने का फैसला कर लिया. इस के लिए दोनों ने योजना बनाई.

14 मार्च, 2020 की शाम भी सिंहराज नशे में धुत था. योजना के तहत देर रात उसे देवेंद्र ने बहाने से गांव के बाहर बुलाया. उस के आने पर देवेंद्र ने चारा काटने वाली मशीन के हत्थे से उस पर वार किया.

सिंहराज बच कर भागा तो देवेंद्र ने उस का पीछा किया. लगभग 100 मीटर की दूरी पर सिंहराज की जैकेट को पीछे से देवेंद्र ने पकड़ कर उसे रोका और पीछे से ही मशीन के लोहे के हत्थे से उस के सिर के पिछले हिस्से पर वार कर दिया, जिस से सिंहराज जमीन पर गिर कर कुछ देर तड़पा, फिर मौत के आगोश में समा गया. सिंहराज की मौत की सूचना शिवानी को देने के बाद देवेंद्र अपने घर चला गया.

लेकिन दोनों पुलिस के शिकंजे से बच न सके. अभियुक्त देवेंद्र की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त लोहे का हत्था पुलिस ने बरामद कर लिया. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद शिवानी और देवेंद्र को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्यसत्यकथा, जून 2020

रिश्तों में सेंध : अपनी ही बहन की बनी हत्यारी

नहने सिंह मंडी से सब्जी ला कर गांव में बेचने का काम करता था. उस का बेटा रवि भी इस काम में उस की मदद करता था. लौकडाउन के चलते रोजाना की तरह नहने उस दिन भी सुबह सब्जी खरीदने के लिए टूंडला मंडी गया था. सुबह 7 बजे सब्जी ले कर वह वापस घर लौट आया.

तब तक घर के सभी सदस्य जाग गए थे, लेकिन घर में उसे अपनी बेटी कंचन दिखाई नहीं दी. उस ने पत्नी से पूछा, ‘‘कंचन कहां है?’’

पत्नी ने बताया कि छत पर सो रही है, अभी तक नीचे नहीं आई है.

उसे उठाने के लिए रवि ने आवाज दी, लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया. इस पर घरवाले छत पर गए. देखा चारपाई पर कंचन मुंह ढंके सो रही थी. पास जा कर उसे हिलाया. लेकिन वह नहीं उठी. गौर से देखा तो कंचन मरी पड़ी थी. यह घटना 15 मई, 2020 की है.

कंचन की मौत की बात सुनते ही घर में कोहराम मच गया. चीखपुकार का शोर सुन कर आसपास के लोग आ गए. नहने की बेटी की अचानक मौत होने से गांव में सनसनी फैल गई.

इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. कुछ ही देर में पचोखरा थानाप्रभारी संजय सिंह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया.

कंचन के घरवालों ने पड़ोसियों पर कंचन की हत्या करने का आरोप लगाया. कारण आपसी रंजिश थानाप्रभारी ने इस घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी थी. कुछ ही देर में एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह और सीओ अजय सिंह चौहान फोरैंसिक टीम के साथ मौकाएवारदात पर आ गए.

कंचन की लाश देख उस की मां और बहनें बिलखबिलख कर रो रही थीं. उन्हें मोहल्ले  की महिलाएं संभाल रही थीं. पुलिस अधिकारियों ने मकान की छत पर जा कर चारपाई पर पड़े कंचन के शव का बारीकी से निरीक्षण किया, फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए.

जांच के दौरान फोरैंसिक टीम प्रभारी कुलदीप चौहान ने देखा, मृतका की गरदन पर चोट का निशान था. मतलब कंचन की हत्या की गई थी. उस की हत्या किस ने और क्यों की, इस का जवाब किसी के पास नहीं था. लेकिन मृतका के पिता नहने चिल्लाचिल्ला कर अपनी बेटी की हत्या का आरोप पड़ोसियों पर लगा रहा था.

पूछताछ में मृतका के भाई रवि ने बताया कि वह रात में पड़ोस में गया हुआ था. वहां एक लड़की को सांप ने काट लिया था. वहां से वह रात 12 बज कर 5 मिनट पर घर आया.

सवा 12 बजे छत पर गया, वहां बहन कंचन चारपाई पर सो रही थी. उस समय वह जिंदा थी या मर चुकी थी, उसे पता नहीं. वह छत से नीचे आ कर सो गया. सुबह 7 बजे पता चला कि बहन की मौत हो गई है.

पुलिस ने इस संबंध में घर वालों से पूछताछ की. पिता नहने ने बताया कि सभी लोग मकान के चबूतरे पर सो रहे थे. गरमी की वजह से रात में कंचन घर की छत पर चली गई थी. सुबह वह मृत मिली. रात में सोते समय  पड़ोसियों ने छत पर जा कर कंचन की हत्या कर दी.

पुलिस ने शव कब्जे में ले लिया. फिर मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय भिजवा दी.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि कंचन की हत्या गला घोंटने से हुई थी. पुलिस ने मृतका के पिता नहने सिंह की तहरीर पर गांव के प्रणवीर यादव, उस की पत्नी गीता, प्रबल कुमार यादव व पीपी यादव के खिलाफ हत्या की आशंका का केस दर्ज कर लिया.

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि पड़ोसी उस से व उस के परिवार से  रंजिश रखते थे. इस के चलते बेटी कंचन की सोते समय गला दबा कर हत्या कर दी गई.

नहने सिंह अपने परिवार के साथ जिला फिरोजाबाद के गांव जारखी में रहता था. उस के 5 बच्चों में बेटी गीता सब से बड़ी थी, दूसरे नंबर का बेटा रवि था. इस से छोटी कंचन और शिवानी थीं. दोनों छोटी बहनें जवान थीं. नहने ने दोनों बहनों का रिश्ता तय कर दिया था.

29 जून को कंचन व शिवानी की बारात आनी थी. घर में खुशी का माहौल था और शादी की तैयारियां चल रही थीं.

सीओ अजय चौहान ने एसओजी टीम को भी इस घटना के खुलासे के लिए लगा दिया. एसओजी प्रभारी कुलदीप चौहान अपनी टीम सहित इस कार्य में जुट गए.

जांच के दौरान पुलिस ने पड़ोसियों से भी पूछताछ की. पूछताछ के दौरान पता चला कि दोनों बहनों कंचन व शिवानी की जून में शादी होने वाली थी. पुलिस ने प्रेम प्रसंग को ले कर भी जांच की. लेकिन उसे पता चला कि कंचन का किसी से कोई प्रेमप्रसंग नहीं चल रहा था.

जांच के दौरान पता चला कि मृतका कंचन के मोबाइल की काल डिटेल्स में एक नंबर ऐसा था, जिस पर कंचन की अकसर बात होती थी. उस नंबर पर बात भी काफी देर तक होती थी. पूछताछ पर पता चला कि यह नंबर कंचन के जीजा भूरा का था.

इस पर पुलिस ने मृतका के घरवालों से गहनता से पूछताछ की. पुलिस को पता चला कि नहने के 5 बच्चों में सब से बड़ी बेटी गीता शादीशुदा है. उस की शादी आगरा के थाना क्षेत्र गांव लड़ामदा में भूरा के साथ हुई थी. उस के 2 बच्चे भी हैं. वह पिछले 2 माह से अपने मायके जारखी में रह रही थी.

इस के बाद पुलिस ने गीता और उस के पति भूरा के संबंधों के बारे में जानकारी जुटाई. पुलिस को पता चला कि पतिपत्नी के बीच रिश्ते मधुर नहीं थे. छोटी बहन कंचन अपने जीजा से अकसर मोबाइल पर बात करती थी. पुलिस ने इस पहलू पर भी जानकारी जुटाई कि कहीं जीजासाली के बीच कोई खिचड़ी तो नहीं पक रही थी. कहीं कंचन पत्नी के बीच रोड़ा तो नहीं बन रही थी.

मृतका के पिता ने पड़ोस के 4 लोगों पर शक जताते हुए हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, लेकिन पुलिस और एसओजी टीम ने जब मामले की गहनता से जांच की तो बात कुछ और निकली.

बड़ी बहन गीता ने खून के रिश्तों को कलंकित होते देख अपनी छोटी बहन कंचन की गला दबा कर हत्या कर दी थी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने 20 मई, 2020 को बड़ी बहन गीता को छोटी बहन कंचन की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. गीता ने अपना जुर्म कबूल कर लिया.  गीता ने बहन की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी—

गीता की शादी 7-8 साल पहले हुई थी. छोटी बहन कंचन से पति भूरा के संबंध होने का गीता को शक था. शक की बुनियाद यह थी कि दोनों मोबाइल पर घंटों बात करते थे. इस के चलते उसे दोनों के बीच प्रेम संबंध होने का शक हो गया था. गीता ने पति से कई बार कंचन से बात करने को मना किया.  लेकिन उस का पति कंचन को ले कर उस के साथ आए दिन मारपीट करता था.

पिछले 2 महीने से गीता अपने मायके में रह रही थी. उस ने देखा कि यहां भी उस के पति और बहन कंचन के बीच काफी देर तक बातें होती थीं. दोनों मोबाइल पर चिपके रहते थे. यह बात गीता को नागवार गुजरती थी.

घटना से एक दिन पहले भी गीता का कंचन से विवाद हुआ था. गीता को यह बात बुरी लगती थी कि शादी तय हो जाने के बाद भी कंचन उस के पति से बात करती रहती है.

गीता को शक था कि जीजा से बात करने के लिए कंचन गरमी का बहाना कर छत पर चली गई है. वह रात में उस के पति से बात करेगी. उस दिन रात के समय उस का भाई रवि भी मोहल्ले में चला गया था. अच्छा मौका देख कर गीता छत पर गई. उस समय कंचन चारपाई पर गहरी नींद में सोई हुई थी. इसलिए उस ने छत पर अकेली सो रही कंचन का गला दबा कर उसे मौत के घाट उतार दिया. उस ने गला इतनी जोर से दबाया कि कंचन की चीख भी नहीं निकल सकी.

हत्या के बाद वह दबे पांव नीचे आ कर सो गई. सुबह कंचन की मौत की खबर पर दुख जताते हुए वह भी रोने का नाटक करती रही.

पुलिस ने गीता को बहन की हत्या के आरोप में गिरफ्तार करने के बाद न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

जीजा और साली का रिश्ता हंसीमजाक का होता है. जीजा से मोबाइल पर हंसहंस कर बात करना ही कंचन की मौत का कारण बन गया. गीता को अपनी बहन के चरित्र पर शक हो गया था, लेकिन शक दिनोंदिन इतना गहराता गया कि अंतत: उस ने उस की हत्या कर दी.

पुलिस ने युवती की हत्या की गुत्थी का घटना के 5 दिन बाद ही खुलासा कर दिया. गीता ने शक के चलते अपना परिवार उजाड़ लिया. नहने के घर में शादी की खुशियां मातम में बदल गईं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्यसत्यकथा, जून 2020

देवर की दीवानी

खूबसूरत नैननक्श वाली अमनदीप कौर लखीमपुर खीरी के थाना कोतवाली गोला के अंतर्गत आने वाले गांव रेहरिया निवासी सरदार बलदेव सिंह की बेटी थी. अमनदीप के अलावा बलदेव सिंह की 2 बेटियां और एक बेटा और था. वह उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में नौकरी करते थे. चूंकि वह सरकारी कर्मचारी थे, इसलिए उन्होंने अपने चारों बच्चों की परवरिश अच्छे तरीके से की थी.

अमनदीप कौर खूबसूरत लड़की थी. उसे सिनेमा देखना, सहेलियों के साथ दिन भर मौजमस्ती करना पसंद था. खुद को वह किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं समझती थी.

अमनदीप की आधुनिक सोच को देख कभीकभी बलदेव सिंह भी सोच में पड़ जाते थे. एक दिन अमनदीप की मां सुप्रीति कौर ने पति से कहा, ‘‘बेटी अब सयानी हो गई है. कोई अच्छे घर का लड़का देख कर जल्दी से इस के हाथ पीले कर दो तो अच्छा है.’’

पत्नी की बात बलदेव सिंह की समझ में आ गई. वह अमनदीप के लिए वर की तलाश में लग गए. इस काम के लिए बलदेव सिंह ने अपने रिश्तेदारों से भी कह रखा था. उन के दूर के एक रिश्तेदार ने उन्हें संदीप नाम के एक लड़के के बारे में बताया.

संदीप लखीमपुर खीरी की तिकुनिया कोतवाली के अंतर्गत आने वाले गांव रायपुर कल्हौरी के रहने वाले मेहर सिंह का बेटा था. मेहर सिंह के पास अच्छीखासी खेती की जमीन थी. संदीप के अलावा मेहर सिंह की 3 बेटियां व एक बेटा और था.

सन 2001 में मेहर सिंह ने पंजाब में हर्निया का औपरेशन कराया था, लेकिन औपरेशन के दौरान ही उन की मृत्यु हो गई थी. इस के बाद परिवार का सारा भार उन की पत्नी प्रीतम कौर पर आ गया था. उन्होंने बड़ी मुश्किलों से अपने बच्चों की परवरिश की. जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए, प्रीतम कौर उन की शादी करती रहीं.

संदीप की शादी के लिए बलदेव सिंह की बेटी अमनदीप कौर का रिश्ता आया. यह रिश्ता प्रीतम कौर और परिवार के अन्य लोगों को पसंद आया. तय हो जाने के बाद संदीप और अमनदीप का सामाजिक रीतिरिवाज से विवाह कर दिया गया. यह करीब 8 साल पहले की बात है.

कहा जाता है कि पतिपत्नी की जिंदगी में सुहागरात एक यादगार बन कर रह जाती है. लेकिन अमनदीप कौर के लिए यह काली रात साबित हुई. उस रात संदीप का जोश अमनदीप के लिए पानी का बुलबुला साबित हुआ, अमनदीप की खामोशी और संजीदगी उस के होंठों पर आ गई. वह नफरतभरी निगाहों से संदीप की तरफ देख कर बिफर पड़ी, ‘‘मुझे तुम से इस तरह ठंडेपन की उम्मीद नहीं थी.’’

पत्नी की बात से संदीप का सिर शर्मिंदगी से झुक गया. वह बोला, ‘‘दरअसल, मैं बीमार चल रहा हूं. शायद इसी कारण ऐसा हुआ. तुम चिंता मत करो, मैं जल्द ही तुम्हारे काबिल हो जाऊंगा.’’ संदीप ने सफाई दी.

इस के बाद संदीप ने अपने खानपान में सुधार किया. शराब का सेवन कम कर दिया, जिस का फल उसे जल्द ही मिला. वह पत्नी को भरपूर प्यार करने लायक बन गया. वक्त के साथ अमनदीप गर्भवती हो गई और उस ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम दलजीत रखा गया. इस के बाद उस ने एक बेटी सीरत कौर को जन्म दिया. इस वक्त दोनों की उम्र क्रमश: 6 और 4 साल है.

संदीप का परिवार बढ़ा तो खर्च भी बढ़ गया. वह पहले से और भी ज्यादा मेहनत करने लगा. जब वह शाम को थकहार कर घर लौटता तो शराब पी कर आता और खाना खा कर सो जाता. कभीकभी अमनदीप की चंचलता उसे विचलित जरूर कर देती, लेकिन एक बार प्यार करने के बाद संदीप करवट बदल कर सो जाता तो उस की आंखें सुबह ही खुलतीं.

लेकिन वासना की भूख ऐसी होती है कि इसे जितना दबाने की कोशिश की जाए, उतना ही धधकती है. अमनदीप अपनी ही आग में झुलसतीतड़पती रहती.

ऐसे में वह चिड़चिड़ी हो गई, बातबात में संदीप से उलझ जाती. शराब पी कर आता तो दोनों में जम कर बहस होती. कभीकभी संदीप उसे पीट भी देता था.

करीब 2 साल पहले संदीप की मां का देहांत हो गया था. घर पर संदीप, उस की पत्नी अमन और उस के बच्चे व छोटा भाई गुरदीप रहता था.

संदीप तो अधिकतर खेतों पर ही रहता था. वह कभी देर शाम तो कभी देर रात घर लौटता था. अमनदीप के दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे. घर पर रह जाते थे गुरदीप और अमनदीप. गुरदीप अमनदीप को संदीप से लाख गुना अच्छा लगने लगा था. गुरदीप जब भी काम से बाहर जाता तो अमनदीप उस के वापस आने के इंतजार में दरवाजे पर ही खड़ी रहती.

एक दिन अमनदीप जब इंतजार करतेकरते थक गई तो अंदर जा कर चारपाई पर लेट गई. कुछ ही देर में दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तो अमनदीप ने दरवाजा खोला और उसे अंदर आने को कह कर लस्तपस्त भाव में जा कर फिर लेट गई.

गुरदीप ने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभी, इस तरह क्यों पड़ी हो? लगता है अभी नहाई नहीं हो?’’

अमनदीप ने धीरे से कहा, ‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है, कुछ अच्छा नहीं लग रहा है.’’

गुरदीप ने जल्दी से झुक कर अमनदीप की नब्ज पकड़ कर देखा. उस के स्पर्श मात्र से अमनदीप के शरीर में झुरझुरी सी फैल गई. नसें टीसने लगीं और आंखें एक अजीब से नशे से भर उठीं. आवाज जैसे गले में ही फंस गई. उस ने भर्राए स्वर में कहा, ‘‘तुम तो ऐसे नब्ज टटोल रहे हो जैसे कोई डाक्टर हो.’’

‘‘बहुत बड़ा डाक्टर हूं भाभी,’’ गुरदीप ने हंस कर कहा, ‘‘देखो न, नाड़ी छूते ही मैं ने तुम्हारा रोग भांप लिया. बुखार, हरारत कुछ नहीं है. सीधी सी बात है, संदीप भैया सुबह काम पर चले जाते हैं तो देर शाम को ही लौटते हैं.’’

अमनदीप के मुंह का स्वाद जैसे एकाएक कड़वा हो गया. वह तुनक कर बोली, ‘‘शाम को भी वह लौटे या न लौटे, मुझे उस से क्या.’’

गुरदीप ने जल्दी से कहा, ‘‘यह बात नहीं है, वह तुम्हारा खयाल रखते हैं.’’

‘‘क्या खाक खयाल रखता है,’’ कहते ही उस की आंखों में आंसू छलछला आए.

भाभी अमनदीप को सिसकते देख कर गुरदीप व्याकुल हो उठा. कहने लगा, ‘‘रो मत भाभी, नहीं तो मुझे दुख होगा. तुम्हें मेरी कसम, उठ कर नहा आओ. फिर मन थोड़ा शांत हो जाएगा.’’

गुरदीप के बहुत जिद करने पर अमनदीप को उठना पड़ा. वह नहाने की तैयारी करने लगी तो वह चारपाई पर लेट गया. गुरदीप का मन विचलित हो रहा था. अमनदीप की बातें उसे कुरेद रही थीं. उस से रहा नहीं गया, उस ने बाथरूम की ओर देखा तो दरवाजा खुला था. गुरदीप का दिल एकबारगी जोर से धड़क उठा. उत्तेजना से शिराएं तन गईं और आवेग के मारे सांस फूलने लगी.

गुरदीप ने एक बार चोर निगाह से मेनगेट की ओर देखा, मेनगेट खुला मिला. उस ने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया और कांपते पैरों से बाथरूम के सामने जा खड़ा हुआ.

अमनदीप उन्मुक्त भाव से बैठी नहा रही थी. उस समय उस के तन पर एक भी कपड़ा नहीं था. निर्वसन यौवन की चकाचौंध से गुरदीप की आंखें फटी रह गईं. वह बेसाख्ता पुकार बैठा, ‘‘भाभी…’’

अमनदीप जैसे चौंक पड़ी, फिर भी उस ने छिपने या कपड़े पहनने की कोई आतुरता नहीं दिखाई. अपने नग्न बदन को हाथों से ढकने का असफल प्रयास करती हुई वह कटाक्ष करते हुए बोली, ‘‘बड़े शरारती हो तुम गुरदीप. कोई देख ले तो…कमरे में जाओ.’’

लेकिन गुरदीप बाथरूम में घुस गया और कहने लगा, ‘‘कोई नहीं देखेगा भाभी, मैं ने बाहर वाले दरवाजे में कुंडी लगा दी है.’’

‘‘तो यह बात है, इस का मतलब तुम्हारी नीयत पहले से ही खराब थी.’’

‘‘तुम भी तो प्यासी हो भाभी. सचमुच भैया के शरीर में तुम्हारी कामनाएं तृप्त करने की ताकत नहीं है.’’ कहतेकहते गुरदीप ने अमनदीप की भीगी देह बांहों में भींच ली और पागल की तरह प्यार करने लगा. पलक झपकते ही जैसे तूफान उमड़ पड़ा. जब यह तूफान शांत हुआ तो अमनदीप अजीब सी पुलक से थरथरा उठी.

उस दिन उसे सच्चे मायने में सुख मिला था. वह एक बार फिर गुरदीप से लिपट गई और कातर स्वर में कहने लगी, ‘‘मैं तो इस जीवन से निराश हो चली थी, गुरदीप. लेकिन तुम ने जैसे अमृत रस से सींच कर मेरी कामनाओं को हरा कर दिया.’’

‘‘मैं ने तो तुम्हें कई बार बेचैन देखा था, भाई से तृप्त न होने पर मैं ने तुम्हें रात में कई बार तन की आग ठंडी करने के लिए नंगा नहाते देखा है. तुम्हारी देह की खूबसूरती देख कर मैं तुम पर लट्टू हो गया था. मैं तभी से तुम्हारा दीवाना बन गया था. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं लेकिन तुम ने कभी मौका ही नहीं दिया.’’

‘‘बड़े बेशर्म हो तुम गुरदीप. औरत भी कहीं अपनी ओर से इस तरह की बात कह पाती है.’’

‘‘अपनों से कोई दुराव नहीं होता, भाभी. सच्चा प्यार हो तो बड़ी से बड़ी बात कह दी जाती है. आखिर भैया…’’

‘‘मेरे ऊपर एक मेहरबानी करो गुरदीप, ऐसे मौके पर संदीप की याद दिला कर मेरा मन खराब मत करो. हम दोनों के बीच किसी तीसरे की जरूरत ही क्या है. अच्छा, अब तुम कमरे में जा कर बैठो.’’

‘‘तुम भी चलो न.’’ कहते हुए गुरदीप ने अमनदीप को बांहों में उठा लिया और कमरे में ले जा कर पलंग पर डाल दिया. अमनदीप ने कनखी से देखते हुए झिड़की सी दी, ‘‘कपड़े तो पहनने दो.’’

‘‘क्या जरूरत है…आज तुम्हारा पूरा रूप एक साथ देखने का मौका मिला है तो मेरा यह सुख मत छीनो.’’

गुरदीप बहुत देर तक अमनदीप की मादक देह से खेलता रहा. एक बार फिर वासना का ज्वार आया और उतर गया.

लेकिन यह तो ऐसी प्यास होती है कि जितना बुझाने का प्रयास करो, उतनी और बढ़ती जाती है. फिर अमनदीप के लिए तो यह छीना हुआ सुख था, जो उस का पति कभी नहीं दे सका. वह बारबार इस अलौकिक सुख को पाने के लिए लालायित रहती थी.

दोनों इस कदर एकदूसरे को चाहने लगे कि अब उन्हें अपने बीच आने वाला संदीप अखरने लगा. हमेशा का साथ पाने के लिए संदीप को रास्ते से हटाना जरूरी था.

25 फरवरी, 2020 की रात संदीप शराब पी कर आया तो झगड़ा करने लगा. उस ने अमनदीप से मारपीट शुरू कर दी. इस पर अमनदीप ने गुरदीप को इशारा किया. इस के बाद अमनदीप ने गुरदीप के साथ मिल कर संदीप को मारनापीटना शुरू कर दिया.

किचन में पड़ी लकड़ी की मथनी से अमनदीप ने संदीप के सिर के पिछले हिस्से पर कई प्रहार किए. बुरी तरह मार खाने के बाद संदीप बेहोश हो गया. लेकिन सिर पर लगी चोट से काफी खून बह जाने से उस की मृत्यु हो गई.

संदीप की मौत के बाद दोनों काफी देर तक सोचते रहे कि अब वह क्या करें. इस के बाद सुबह होने तक उन्होंने फैसला कर लिया कि उन को क्या करना है.

सुबह दोनों बच्चों के साथ वह घर से निकल गए. साढ़े 11 बजे गुरदीप ने अपनी बड़ी बहन राजविंदर को फोन किया कि उस ने और अमनदीप ने संदीप को मार दिया है. कह कर काल काट दी और अपना फोन बंद कर लिया.

इस के बाद राजविंदर ने यह बात रोते हुए अपने पति रेशम सिंह को बताई. दोनों संदीप के मकान पर आए तो वहां संदीप की लाश पड़ी देखी. इस के बाद राजविंदर ने तिकुनिया कोतवाली में घटना की सूचना दी.

सूचना मिलते ही कोतवाली इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. मकान में घुसने पर पहले बरामदा था, उस के बाद सामने 2 कमरे और दाईं ओर एक कमरा था. सामने वाले बीच के कमरे में 3 चारपाई पड़ी थीं. कमरे के बीच में जमीन पर संदीप की लाश पड़ी थी. उस के सिर पर गहरी चोट थी, पुलिस ने सोचा कि शायद उसी चोट से अधिक खून बहने के कारण उस की मौत हुई होगी.

कमरे में ही खून लगी लकड़ी की मथनी पड़ी थी. इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद ने खून से सनी मथनी अपने कब्जे में ले ली. पूरा मौकामुआयना करने के बाद इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस के बाद कोतवाली आ कर राजविंदर कौर से पूछताछ की तो उन्होंने पूरी बात बता दी. राजविंदर की तरफ से पुलिस ने अमनदीप और गुरदीप सिंह के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस उन की तलाश में जुट गई.

इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद को एक मुखबिर से सूचना मिली कि अमनदीप और गुरदीप सिंह लखीमपुर की गोला कोतवाली के ग्राम महेशपुर फजलनगर में अपने रिश्तेदार देवेंद्र कौर के यहां शरण लिए हुए हैं.

इस सूचना पर पुलिस ने 3 फरवरी, 2020 को सुबह करीब सवा 5 बजे उस रिश्तेदार के यहां दबिश दे कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. कोतवाली ला कर जब उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने आसानी से अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या की वजह भी बयान कर दी.

आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद पुलिस ने हत्यारोपी गुरदीप सिंह और अमनदीप कौर को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, अप्रैल 2020

हक की लड़ाई : बेटे ने मांगा डेढ़ करोड़ का मुआवजा

कहते हैं कि कुछ रिश्ते खून के होते हैं बाकी सब संयोग से बनते हैं, लेकिन खास बात यह भी है कि रिश्तों की यह दुनिया जितनी सुकून देती है, उतनी ही उलझनें भी पैदा करती है. क्योंकि कभी रिश्ते फूलों की तरह महकते हैं तो कभी कांटे बन कर जिंदगी के सुख और चैन ही छीन लेते हैं.

लेकिन संयोग से बने रिश्तों से अलग कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं, जो बनते नहीं, बल्कि किन्हीं वजहों से बनाए जाते हैं. कुछ रिश्ते जताए जाते हैं तो कुछ सिर्फ दिखाए जाते हैं. ऐसा ही एक रिश्ता है एक मां और एक बेटे के बीच का, जिस का राज जब खुला तो मामला उच्च न्यायालय तक पहुंच गया.

आरती महास्कर वह नाम है, जो पिछले कई दिनों से मुंबई में ही नहीं बल्कि देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है. आरती पर आरोप है कि उन्होंने 38 साल पहले अपने ही बेटे श्रीकांत सबनीस को 2 साल की उम्र में चलती ट्रेन में जानबूझ कर छोड़ दिया और अभिनेत्री बनने के सपने लिए मायानगरी मुंबई आ गईं.

अब ऊषा सबनीस उर्फ आरती महास्कर की कहानी परदे के पीछे से झांक रही है. इतना ही नहीं, वह इंसानी रिश्तों की अहमियत और उन के बदलते मिजाज को ले कर तमाम सवाल खड़े कर रही है.

उन तमाम सवालों का जवाब क्या होगा? इसे कोई नहीं जानता, लेकिन बेटे ने जो सवाल खड़ा कर दिया, उस का जवाब दे पाना आरती महास्कर नाम की उस मां के लिए शायद बेहद मुश्किल हो गया है. क्या है श्रीकांत सबनीस की कहानी? इसे जानने के लिए हमें उस के अतीत के पन्नों को खंगालना होगा, वह कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

उस रोज जनवरी, 2020 की 6 तारीख थी. मुंबई उच्च न्यायालय परिसर में वादकारियों की चहलकदमी बदस्तूर जारी थी. सौम्य, सजीला, गोरा और गठीले बदन वाला बेहद हैंडसम श्रीकांत सबनीस न्यायाधीश ए.के. मेनन के कक्ष में उन के सामने सावधान की मुद्रा में खड़ा था. उस की उम्र यही कोई 40 वर्ष थी.

काला कोट पहने लगभग श्रीकांत की ही उम्र के एडवोकेट संजय कुमार, जो श्रीकांत के वकील थे, हाथों में फाइल लिए अपना नंबर आने की प्रतीक्षा में जज के सामने खड़े थे. फाइल के भीतर कुछ जरूरी दस्तावेज थे, उन्हीं दस्तावेजों की एकएक प्रति न्यायाधीश मेनन के सामने डेस्क पर रखी थी, जिन्हें जज साहब पढ़ने में तल्लीन थे.

सफेद रंग के पन्नों पर नीली स्याही से उकेरे गए शब्द जैसेजैसे श्री मेनन पढ़ते गए, आश्चर्य और हैरत के महासागर में डूबतेउतराते गए. शायद यह देश की पहली चौंकाने वाली घटना थी, जिस में याचिकाकर्ता श्रीकांत सबनीस ने अपनी सगी मां ऊषा सबनीस उर्फ आरती महास्कर से मानसिक आघात की क्षतिपूर्ति के बदले डेढ़ करोड़ रुपए का मुआवजा मांगा था.

मां से मांगे गए मुआवजे के पीछे रोंगटे खड़े कर देने वाली जो पीड़ा एक कहानी के रूप में परोसी, वाकई वह किसी रोमांचित कर देने वाली फिल्मी पटकथा से कम नहीं थी.

बात करीब 41 साल पहले सन 1978 के आसपास की है. पुणे (महाराष्ट्र) के दीपक सबनीस के साथ खूबसूरत ऊषा सबनीस दांपत्य सूत्र में बंधी तो उस का जीवन चांदनी की भीनी खुशबू की तरह महक उठा. घर में चारों ओर खुशियां छाई थीं. मां के समान दुलारने वाली सास थीं तो पिता की तरह प्यार देने वाले ससुर.

सखी समान राज छिपाने वाली हरदिल अजीज ननद थी तो सच्चे और वफादार दोस्तों के समान देवर, मिलाजुला कर घर के सदस्यों का भरपूर प्यार ऊषा के खाते में आया था.

कुल मिला कर ऊषा सबनीस वहां बहुत खुश थी. इन्हीं खुशियों के बीच वह एक बेटे की मां बन गई, जिस का नाम श्रीकांत सबनीस रखा. उन के जीवन में श्रीकांत के आने से चारों ओर बहार सी छा गई थी.

दीपक सबनीस पत्नी से खुश थे ही, बेटे के जन्म के बाद वह और निहाल हो गए. भौतिक सुखसुविधाओं की तमाम वस्तुएं घर में थीं, इसलिए उन्हें अब किसी और चीज की लालसा नहीं थी. उसी में वह खुशहाल जीवन जी रहे थे.

इस के विपरीत ऊषा की आकांक्षाएं अनंत थीं. बचपन से ही उस की ख्वाहिश रुपहले परदे पर खुद को दिखाने की थी. ऊषा फिल्मी दुनिया में जाना चाहती थी.

वह जब भी कोई फिल्म देखती तो अभिनेत्री के स्थान पर खुद को रख कर देखती थी. ऐसा कर के ऊषा के मन को भरपूर सुकून मिलता था और मन ही मन वह खूब खुश हुआ करती थी. खुली आंखों से देखे गए सपनों को वह पति से शेयर भी करती.

दीपक उस का मन रखने के लिए हां तो कह देता लेकिन सच्चे दिल से उसे पत्नी की ये बातें अच्छी नहीं लगती थीं. वह कभी नहीं चाहता था कि उस की पत्नी फिल्मी दुनिया की ओर रुख करे.

दीपक सबनीस यही चाहता था कि ऊषा एक कुशल गृहिणी की तरह घर में रह कर सासससुर और बच्चे की सेवा करे लेकिन ऊषा की सोच इस के विपरीत थी. उसे तो हीरोइन बनने की सनक सवार थी. इतना ही नहीं, उस ने ठान लिया था कि उसे अपने सपने पूरे करने के लिए राह की हर मुश्किलों को पार कर के आगे बढ़ते जाना है. इस बात को ले कर अकसर उस का पति दीपक से विवाद भी हो जाया करता था.

बात सन 1981 के सितंबर की है. आंखों में अभिनेत्री बनने के सपने लिए ऊषा 2 साल के बेटे श्रीकांत को अपने साथ ले कर पुणे से मुंबई चल दी थी. उस ने कहीं सुना था कि फिल्मी दुनिया में कुंवारियों को हीरोइन के रूप में तरजीह दी जाती है. हालांकि शरीर की कसावट से वह अविवाहित लगती थी, लेकिन वास्तव में उस के पास तो अपना खुद का बेटा था. बेटे को ले कर वह परेशान थी.

उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने 2 साल के बेटे का क्या करे? मुंबई पहुंच चुकी ऊषा की समझ में जब कुछ नहीं आया तो उस ने अपने दुधमुंहे बेटे श्रीकांत को जानबूझ कर ट्रेन के डिब्बे में किसी निर्मोही की तरह बिलखता छोड़ दिया और सपनों की तलाश में मायानगरी में गुम हो गई.

ट्रेन में 2 साल के रोते बच्चे की आवाज टीटीई के कानों के परदे से टकराई थी. बच्चे की करुण क्रंदन सुन कर टीटीई ने डिब्बे के अंदर झांका तो बच्चे को अकेला रोता देख कर उस का हृदय भर आया था.

ट्रेन में सवार सभी यात्री उस में से उतर कर अपनेअपने गंतव्य स्थान को जा चुके थे. 2 साल का बच्चा ही डिब्बे में अकेला मां की गोद पाने के लिए बिलख रहा था. उस की मां उस के आसपास कहीं नहीं दिख रही थी.

प्लेटफार्म पर मौजूद तमाम यात्रियों से उस ने बच्चे के बारे में पूछताछ की थी, लेकिन किसी ने उस नन्हीं सी जान को नहीं पहचाना. टीटीई की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? अंत में टीटीई ने बच्चे को राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) को सौंप दिया. जीआरपी ने लिखापढ़ी करने के बाद वह बच्चा अनाथाश्रम को सौंप दिया था.

दुधमुंहे श्रीकांत का अपना भरापूरा परिवार था. घर था, प्यार करने वाले दादादादी और पिता थे, फिर भी वह अनाथों की तरह अनाथाश्रम में पहुंच गया था. वहां वह अन्य अनाथ बच्चों की तरह पल रहा था. उन अजनबी चेहरों के बीच नन्हा श्रीकांत अपनों को तलाशता रहता. उन में उस का अपना कोई नहीं था. अनजान और अजनबी चेहरों को देख कर वह अकसर रोता ही रहता था.

अगले दिन स्थानीय अखबारों में नन्हें श्रीकांत के ट्रेन में पाए जाने की खबर प्रमुखता से प्रकाशित की गई थी. समाचारपत्रों के माध्यम से लावारिस श्रीकांत की तसवीर राजस्थान के एक दंपति ने भी देखी. उस दंपति की अपनी कोई औलाद नहीं थी, जिस के बाद उस दंपति ने श्रीकांत को गोद ले लिया.

बाद में यह जानकारी श्रीकांत की नानी को मिली तो वह तड़प कर रह गईं. उन्होंने राजस्थान के उस दंपति से श्रीकांत को मांगा तो उन्होंने बच्चा देने से इनकार कर दिया. तब नानी ने कोर्ट की शरण ली. आखिर उन्होंने 4 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ कर राजस्थानी दंपति से श्रीकांत को हासिल कर लिया. उस समय श्रीकांत करीब 6 साल का हो चुका था. इस के बाद वह अपनी नानी के पास ही पलाबढ़ा.

तकदीर का खेल देखिए, जिस मजबूत वृक्ष के सहारे श्रीकांत को घनी छाया मिल रही थी, वही उस से सदा के लिए छिन गई. सन 1991 में उस की नानी सदा के लिए दुनिया छोड़ गईं. नानी के देहांत के बाद वह अपनी मौसी आशा के साथ रहने लगा. अब तक श्रीकांत की जिंदगी खानाबदोश की जिंदगी हो गई थी.

मौसी आशा से उसे पिछली जिंदगी की सारी सच्चाई पता चली तो श्रीकांत का कलेजा फट गया. मां पर उसे काफी गुस्सा आया लेकिन वह नहीं जानता था कि इस वक्त उस की मां कहां हैं? लेकिन मन ही मन उस ने ठान लिया कि मां को एक न एक दिन जरूर ढूंढ़ निकालेगा. तब उस से अपनी त्रासद जिंदगी के एकएक पल का हिसाब मांगेगा.

नानी के बाद सहारा बनी मौसी आशा ने श्रीकांत को एक नई जिंदगी दी. सन 2006 में उन्होंने श्रीकांत की शादी करा दी. नई जिंदगी की शुरुआत श्रीकांत ने अपने तरीके से की. वह बतौर एक मेकअप आर्टिस्ट अपने पैरों पर मजबूती से खड़ा हो गया और मां की तलाश में पुणे से मुंबई आ गया.

मुंबई के जुहू में किराए का कमरा ले कर पत्नी के साथ रहने लगा. वह जानता था कि उस की मां मुबंई में रहती है. दिनरात वह यही कोशिश करता था कि किसी तरह उस की मां से मुलाकात हो जाए.

आखिर श्रीकांत की यह इच्छा भी पूरी हो गई. सन 2017 में श्रीकांत सबनीस को सोशल मीडिया की मदद से किसी तरह मां का पता चल गया. वह उस तक पहुंचा था. लेकिन मां की सच्चाई जान कर वह हैरान रह गया था. मां ऊषा सबनीस से अब आरती महास्कर बन चुकी थी और किसी धनाढ्य उदय महास्कर से शादी कर के अपना संसार बसा चुकी थी. ऊषा से आरती महास्कर का चोला ओढ़े ऊषा ने पति से अपना अतीत छिपा लिया था.

उस ने यह बात दूसरे पति से कभी नहीं बताई थी कि पुणे के रहने वाले दीपक सबनीस से उस की शादी हुई थी. उस से अपना एक बेटा भी है, जिसे उस ने हीरोइन बनने की लालसा में मुंबई की ट्रेन में लावारिस छोड़ दिया था.

आरती महास्कर उर्फ ऊषा सबनीस ने यह राज अपने सीने में हमेशा के लिए दफन कर लिया था और उदय महास्कर के साथ नई जिंदगी की पारी शुरू कर दी थी. बाद के दिनों में उस से 2 बच्चे भी हुए, जो आज भी हैं.

कहते हैं, ठान लो तो पत्थर के सीने से भी दूध निकाल सकते हैं. श्रीकांत ने ऐसा ही कुछ किया था. मौसी आशा द्वारा बताई अतीत को सच साबित करने के लिए श्रीकांत ने सोशल मीडिया का सहारा लिया और साथ ही अपने परिचितों से अपनी मां का पता लगाने का आग्रह भी किया. उस की मेहनत रंग लाई. डेढ़ साल बाद यानी सितंबर, 2018 में आखिरकार श्रीकांत ने मां ऊषा उर्फ आरती महास्कर का मोबाइल नंबर ढूंढ ही लिया.

उस ने मां से बात की. लेकिन मां आरती महास्कर ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. उस ने मां को याद दिलाने के लिए 38 साल पहले घटी पूरी घटना विस्तार से बताई तब जा कर उस की मां ऊषा सबनीस उर्फ आरती महास्कर ने यह तो स्वीकार किया कि वह उसी का बेटा है.

38 सालों से सीने में दबा राज अचानक सामने आया तो आरती महास्कर विचलित सी हो गई. वह सोच नहीं पा रही थी कि वह इस राज को राज कैसे रखेगी. बच्चों के सामने जब यह सच्चाई खुल कर आएगी तो क्या होगा? यह सोच कर आरती महास्कर कांप गई थी.

इस से पहले कि आरती की सच्चाई खुल कर सब के सामने आती, उस ने पति उदय महास्कर को सारी सच्चाई बता दी. किसी तरह पतिपत्नी ने मामला आपस में फिलहाल सुलझा लिया था. एक दिन आरती और उदय महास्कर ने श्रीकांत को अपने पास बुलाया और उसे समझाया कि यह बात उन के बेटों से कभी नहीं बताएगा कि वह उन्हीं का बेटा है, नहीं तो उन के घर में भूचाल आ जाएगा.

श्रीकांत को मां और सौतेले पिता से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वे उसे अपना बेटा नहीं स्वीकारेंगे. मां के इनकार से उस का कलेजा छलनीछलनी हो गया था. उसी समय उस ने फैसला किया कि वह मां को इतनी आसानी से नहीं छोड़ेगा.

38 सालों से जिस तरह वह अपनों के होते हुए भी उन के प्यार के लिए तरसा है, अनाथों की तरह यहांवहां जीया है, उन सब का हिसाब उन से जरूर लेगा. उस के बाद श्रीकांत मां के पास से लौट आया और मुंबई हाईकोर्ट की शरण में जा पहुंचा.

6 जनवरी, 2020 को श्रीकांत ने न्यायाधीश ए.के. मेनन की अदालत में एक याचिका दायर की. याचिका में उस ने लिखा था कि 38 साल पहले सन 1981 में मां ऊषा सबनीस उर्फ आरती महास्कर ने मुझे मुंबई (तब बंबई) स्टेशन पर ट्रेन में छोड़ दिया था.

मां भी यह मान चुकी थी कि ट्रेन में वह उसे छोड़ गई थी. मां ने यह तो माना कि वह उस का बेटा है. यह भी बताया कि कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों के चलते उसे छोड़ना पड़ा था, लेकिन वह अब मिलना नहीं चाहती.

तब मैं ने वहीं जा कर मां और अपने सौतेले पिता उदय महास्कर से मुलाकात की. वहां उन दोनों ने कहा कि वह अपनी सच्चाई उन के बच्चों के सामने नहीं बताए. मैं एक तो पहले से ही परेशान था, लेकिन अपनी मां और सौतेले पिता की यह शर्त सुन कर और ज्यादा परेशान हो गया.

याचिका में श्रीकांत ने कहा कि कोर्ट मां को मुझे अपना बेटा घोषित करने और यह ऐलान करने का आदेश दे कि उस ने 2 साल की उम्र में उसे छोड़ दिया था. मैं ने बरसों तक मानसिक आघात सहा है और असुविधाओं को झेला है.

मां से बिछुड़ने पर जिंदगी दर्दभरी हो गई. मां की ममता को अनाथों की तरह तरसा है. मातापिता के होते हुए भी अनाथों की तरह रहा हूं. तब तक भिखारी की तरह जीना पड़ा, जब तक अपनी नानी के पास नहीं पहुंच गया. जिस ममता के लिए मैं तरसा हूं, मुझे बेटे का दरजा न देने के एवज में डेढ़ करोड़ का मुआवजा दें.

याचिकाकर्ता श्रीकांत सबनीस ने आगे बताया कि मैं अपने अतीत से बेखबर था. मेरी मौसी ने मुझे अतीत की पूरी हकीकत बयान की.

इस के बाद सोशल मीडिया की मदद से किसी तरह मैं अपनी मां ऊषा तक पहुंचा, लेकिन अब मां ऊषा सबनीस से आरती महास्कर बन चुकी थी और अपने दूसरे पति उदय महास्कर के साथ संसार बसा चुकी थी. अपनी पहचान बताने के बावजूद आरती महास्कर ने उसे सब के सामने बेटा स्वीकारने से इनकार कर दिया.

इसी के बाद श्रीकांत ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और पिछले 38 साल तक झेले मानसिक संत्रास के लिए डेढ़ करोड़ रुपए के मुआवजे की भी मांग की.

इस घटना ने देश भर में सनसनी पैदा कर दी थी. इस के बाद श्रीकांत सबनीस और आरती महास्कर के बीच जंग शुरू हो गई थी. यह मामला अभी भी न्यायालय में चल रहा है. कथा लिखे जाने तक मुकदमे में काररवाई जारी थी.

—कथा सोशल मीडिया पर आधारित

सपनों के पीछे भागने का नतीजा

29दिसंबर, 2018. समय सुबह के 4 बजे. स्थान थाणे. मुंबई से सटे जनपद थाणे के सिविल अस्पताल से कासारवाडवली पुलिस को एक महत्त्वपूर्ण सूचना मिली, जिसे थाने में मौजूद इंसपेक्टर वैभव धुमाल ने गंभीरता से लिया. उन्होंने चार्जरूम की ड्यूटी पर तैनात एसआई संतोष धाडवे को बुला कर अस्पताल से मिली सूचना के बारे में बताया और केस डायरी तैयार करने का निर्देश दिया. साथ ही उन्होंने इस की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा पुलिस कंट्रोलरूम को भी दे दी.

थाने में सूचना दर्ज करवाने के बाद इंसपेक्टर वैभव धुमाल अपने सहायक इंसपेक्टर कैलाश टोकले, एसआई विनायक निबांलकर, संतोष धाडवे, कांस्टेबल राहुल दडवे, दिलीप भोसले, राजकुमार महापुरे और महिला कांस्टेबल मीना धुगे को साथ ले कर थाणे सिविल अस्पताल के लिए रवाना हो गए.

जिस समय पुलिस टीम अस्पताल परिसर में दाखिल हुई, तब तक डाक्टरों ने उस व्यक्ति को मृत घोषित कर दिया था, जिसे संदिग्ध अवस्था में अस्पताल लाया गया था और लाने वाले उसे अस्पताल में छोड़ कर गायब हो गए थे. पूछताछ करने पर पुलिस को पता चला कि मृतक को अस्पताल में उपचार के लिए रात के साढे़ 3 बजे लाया गया था.

उसे लाने वालों में एक सुंदर महिला और एक हट्टाकट्टा युवक था. उन का कहना था कि वह व्यक्ति घायल अवस्था में उन्हें कलवा बांध विलगांव की सुरंग के पास सड़क किनारे तड़पता हुआ मिला था. शायद वह किसी भारी वाहन की चपेट में आ गया होगा. इंसानियत के नाते वे उसे अस्पताल ले आए थे.

घायल की स्थित देख कर डाक्टर उस के उपचार में जुट गए. डाक्टर घायल के बारे में कुछ बताते उस से पहले ही उसे लाने वाली महिला और युवक दोनों अस्पताल से गायब हो गए. मृतक की उम्र 30 साल के आसपास थी. उस के सिर पर घाव और गले पर खरोचों के अलावा काले रंग का एक गहरा निशान भी था.

रहस्यमय लाश और अंजान महिला व युवक

अस्पताल के डाक्टरों और अस्पताल में तैनात पुलिस कांस्टेबल के बयानों के हिसाब से मामला काफी जटिल था. इंसपेक्टर वैभव धुमाल ने मृतक की लाश का बारीकी से निरीक्षण किया तो उन्हें ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं दिया जो महिला और उस के साथी युवक ने अस्पताल के डाक्टरों और कांस्टेबल को बताया था. बहरहाल प्राथमिक काररवाई के बाद इंसपेक्टर वैभव धुमाल ने लाश का पंचनामा बना कर उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और थाने लौट आए.

थाने लौट कर इंसपेक्टर वैभव धुमाल ने अपने सहायकों के साथ विचारविमर्श कर तफ्तीश की रूप रेखा तैयार की. इस के साथ ही उन्होंने इस बारे में डीसीपी अभिनाश आंमोरे, एसीपी महादेव भोर और थानाप्रभारी दत्तात्रेय ढोले को बता कर तफ्तीश शुरू कर दी.

जांच आगे बढ़ाने के लिए मृतक की शिनाख्त जरूरी थी. वह कौन था, कहां रहता था. उसे अस्पताल लाने वाली महिला और युवक कौन थे. जैसे कई सवाल थे, जिन का जवाब मिले बिना तफ्तीश आगे नहीं बढ़ सकती थी.

अस्पताल के सीसीटीवी के जो फुटेज मिले उन में मृतक और उसे लाने वालों की तसवीरें अस्पष्ट थीं. सारी कडि़यों को जोड़ना आसान तो नहीं था, लेकिन नामुमकिन भी नहीं था. सोचविचार कर इंसपेक्टर वैभव धुमाल ने अपने स्टाफ के अनुभवी कर्मचारियों की एक टीम तैयार की और उसे 2 भागों में बांट कर अलगअलग जिम्मेदारी सौंप दी.

पहली टीम को उन्होंने कलवा बांध विलगांव सुरंग के पास की सच्चाई का पता लगाने भेज दिया. जिस का जिक्र डाक्टर और कांस्टेबल के बयानों में आया था. दूसरी टीम को उन्होंने अस्पताल से मिले सीसीटीवी के उन फुटेज के आधार पर आसपास के गांवों में जा कर मृतक और उसे अस्पताल लाने वालों के बारे में जानकारी हासिल करने को कहा.  कहावत है कि विश्वास का वृक्ष कभी नहीं सूखता. इस मामले में भी यही हुआ.

पहली टीम बांध विलगांव से खाली हाथ लौट आई. बांध विलगांव के पास ऐसा कुछ नहीं हुआ था, जैसा उस महिला और युवक ने डाक्टरों को बताया था. इंसपेक्टर वैभव धुमाल को जो संदेह था सही निकला. इंसपेक्टर वैभव धुमाल को विश्वास था कि कोई न कोई राह जरूर निकलेगी.

शक की सूई सीधे हत्या की तरफ इशारा कर रह थी. यह बात पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गई थी. पता चला, उस के सिर पर घातक वार तो किया गया था, लेकिन उस की मौत गला घोंटने से हुई थी. साफ पता चल रहा था कि उस की बेरहमी से हत्या कर के पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की गई थी. इसी वजह से वह महिला और युवक शक के दायरे में आ गए.

पहली टीम को भले ही कोई सुराग नहीं मिला था, लेकिन दूसरी टीम खाली हाथ नहीं लौटी.

इस टीम ने उस औटो वाले को खोज निकाला, जिस के औटो से मृतक को अस्पताल लाया गया था. औटो वाले की निशानदेही पर पुलिस टीम मृतक के परिवार तक पहुंच गई.

उस के परिवार ने मृतक की शिनाख्त गोपी नाइक के रूप में की. गोपी नाइक पत्नी अैर बेटी के सथ घोड़बंदर रोड गायमुख इलाके की टीएमसी कालोनी में रहता था. वह थाणे म्युनिसिपल कारपोरेशन में नौकरी करता था.

इंसपेक्टर वैभव धुमाल ने तत्काल मृतक गोपी नाइक के भाई दिलीप नाइक और परिवार वालों से पूछताछ की. जब दिलीप नाइक को अस्पताल ले जा कर लाश दिखाई गई तो वह गोपी नाइक का शव देख कर फूटफूट कर रोने लगा.

दिलीप नाइक को अस्पताल की सीसीटीवी फुटेज दिखाई गई तो उस ने गोपी नाइक को अस्पताल लाने वाली महिला और उस के साथ के युवक को पहचान लिया. वह महिला मृतक की पत्नी प्रिया नाइक थी और उस के साथ वाला युवक उस का बौयफ्रैंड महेश कराले था.

पुलिस ने गोपी नाइक के भाई दिलीप नाइक की तहरीर पर केस दर्ज कर के शव गोपी नाइक को सौंप दिया. इंसपेक्टर वैभव धुमाल अपनी टीम के साथ जब गोपी नाइक के घर पहुंचे तो प्रिया घर में नहीं थी. पूछताछ में आसपड़ोस वालों ने बताया कि उन का घर पिछले 2-3 दिनों से बंद है. जब उन लोगों को यह जानकारी मिली कि गोपी नाइक की हत्या हो गई है, तो वे सन्न रह गए. उन का कहना था कि एक न एक दिन यह तो होना ही था. उन्होंने भी अंगुली प्रिया और महेश कराले की ओर उठाई.

खुलता गया रहस्य

पुलिस टीम को हत्या की सारी कडि़यों को जोड़ने के लिए साक्ष्यों की जरूरत थी. उन्होंने कालोनी के 2 व्यक्तियों को पंच बना कर घर की तलाशी ली तो घर की साफसफाई के बाद भी वहां गुनाह के निशान मिल ही गए, जिन्हें देख कर पुलिस टीम को यह समझने में देर नहीं लगी कि हत्या की साजिश घर के अंदर ही रची गई थी. घर के बैडरूम और बाथरूम के फर्श पर पडे़ खून के धब्बे हत्या की पूरी कहानी बयान कर रहे थे.

पुलिस टीम ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर के तेजी से तफ्तीश शुरू कर दी. पुलिस टीम ने प्रिया और महेश के सभी उन ठिकानों पर दबिश दी, जहांजहां उन के मिलने की संभावना थी. घटना को 36 घंटे से अधिक बीत गए थे. ऐसे में इस बात की पूरी संभावना थी कि प्रिया और महेश शहर छोड़ कर कहीं चले गए हों या शहर छोड़ने की कोशिश में हों.

यही सोच कर पुलिस टीमों ने शहर और जनपद की नाकेबंदी करा दी. साथ ही मुखबिरों को भी सचेत कर दिया गया. नतीजा यह निकला कि घटना के एक सप्ताह बाद पुलिस ने मुखबिरों की सूचना पर 5 जनवरी, 2019 की रात प्रिया नाइक और महेश कराले को उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वे अपने गांव से पैसों का जुगाड़ कर के महाराष्ट्र से बाहर भागने की तैयारी में थे.

मैट्रिक पास 28 वर्षीय प्रिया नाइक जितनी खूबसूरत और स्मार्ट थी, उतनी ही महत्त्वाकांक्षी भी थी. उस के सपने बहुत ऊंचे थे. शादी से पहले उस ने एक सुंदर स्वस्थ जीवनसाथी की कामना की थी. लेकिन उस के सपने उस समय धराशायी हो गए जब उस का विवाह उस के मनमुताबिक न हो कर दिव्यांग गोपी नाइक से हो गया.

गोपी और प्रिया का कोई मेल नहीं था. लेकिन परिवार की गरीबी और सामाजिक दबाव की वजह से उस ने समझौता कर लिया. गोपी को पति के रूप में स्वीकार कर वह अपनी गृहस्थी में रम गई.

गोपी नाइक थाणे म्युनिसिपल कारपोरेशन में चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी था. वह अपने परिवार के साथ कलवा के अंकलेश्वर नगर में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के मध्यम वर्गीय परिवार में पिता किसान नाइक, मां, बहन और एक भाई दिलीप नाइक था. भाईबहन सभी की शादी हो चुकी थी और सब सेटल थे.

किशन नाइक सीधेसादे प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. समाज में उन का मानसम्मान था. प्रिया उन के दूर के एक रिश्तेदार की बेटी थी. जिसे किशन नाइक ने स्वयं अपने बेटे गोपी नाइक के लिए चुना था. प्रिया जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर गोपी नाइक और उस का पूरा परिवार बहुत खुश था.

गोपी नाइक प्रिया को बहुत प्यार करता था और उस की हर खुशी का ध्यान रखता था. पूरे परिवार के दिन हंसीखुशी से बीत रहे थे. शादी के कुछ साल बाद गोपी नाइक को परिवार से अलग रहने के लिए जाना पड़ा.

उसे टीएमसी की तरफ से डा. भीमराव अंबेडकर कालोनी में मकान मिल गया था. यहां आने के कुछ दिनों बाद प्रिया ने एक बेटी को जन्म दिया. इस से गोपी और प्रिया का जीवन और भी हंसीखुशी से बीतने लगा. देखतेदेखते प्रिया की बेटी 7 साल की हो गई. वह सीनियर केजी में पढ़ रही थी. गोपी नाइक नौकरी कर रहा था और प्रिया कुशल गृहिणी की तरह घर संभाल रही थी.

मोबाइल ने बदल दी सोच और दुनिया

सामान्य रूप से चलते उन के दांपत्य जीवन के 8-10 साल कैसे निकल गए पता ही नहीं चला. इस की वजह गोपी का प्रिया के प्रति प्यार और विश्वास था. प्रिया भी गोपी के प्यार और अपनी गृहस्थी में डूबी थी. हालांकि कभीकभी गोपी की दिव्यांगत की सूई प्रिया के दिल में चुभ जाती थी. उस ने जवानी के चौखट पर खड़े हो कर जो सपना देखा था, वह पूरा नहीं हुआ था.

2016 में प्रिया नाइक का यह सपना उस समय अस्तित्व में आने लगा, जब उस के सामने 22 वर्षीय महेश कराले की तसवीर आई. महेश कराले ठीक वैसा ही था, जिस की प्रिया ने कभी कल्पना की थी. सुंदर आंखें, बलिष्ठ बाहें, गठीला बदन, चौड़ी छाती. प्रिया उस की दीवानी हो गई. धीरेधीरे प्रिया की इस दीवानगी ने गोपी और उस के बीच दरार पैदा कर दी. 2018 के मध्य में आ कर दरार इतनी बढ़ गई कि साल पूरा होतेहोते यह दरार गोपी नाइक के पूरे अस्तित्व को ही निगल गई.

22 वर्षीय महेश कराले और प्रिया नाइक की जानपहचान फेसबुक पर हुई थी. प्रिया नाइक जब से टीएमसी कालोनी में रहने आई थी, तब से उस के पास घर का ज्यादा काम नहीं था. बेटी को स्कूल और पति को काम पर भेजने के बाद वह घर में अकेली बोर हो जाती थी. थोड़ाबहुत समय टीवी के साथ जरूर गुजार लेती थी. लेकिन इस से मन को सुकून नहीं मिलता था. ऐसे में गोपी नाइक ने प्रिया को एक महंगा मोबाइल ला कर दे दिया. उस वक्त उस ने सोचा भी नहीं होगा कि वही मोबाइल उस के दांपत्य जीवन के मायने ही बदल देगा.

मोबाइल हाथ में आया तो प्रिया नाइक का दैनिक जीवन ही बदल गया. उस का मन घर के कामों में कम और मोबाइल में ज्यादा लगने लगा. वह फेसबुक पर अपना प्रोफाइल बना कर नएनए दोस्त बनाती और उन से चैटिंग करती. इसी के चलते वह महेश कराले की ओर आकर्षित हो गई. वह भूल गई कि वह 7 साल की बच्ची की मां और उस पर अटूट विश्वास करने वाले पति की पत्नी है.

महेश कराले का परिवार महाराष्ट्र के जनपद रायगढ़ के नेरल गांव का रहने वाला था. उस के पिता गोविंद कराले गांव के सम्मानित किसान थे. महेश कराले उन का सब से छोटा और लाडला बेटा था.

ग्रैजुएशन पूरा करने के बाद जब उसे मुंबई रेलवे बोर्ड में सर्विस मिली तो उस ने गांव से थाणे आ कर उपनगर कर्जत में किराए का एक कमरा ले लिया. प्रिया की तरह महेश भी फुरसत के समय फेसबुक में डूब जाता था. प्रिया का प्रोफाइल और फोटो देख कर वह इतना प्रभावित हुआ कि उस की दोस्ती की रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली.

फेसबुक के माध्यम से दोनों की 2 सालों तक दोस्ती चलती रही. दोनों फोन पर भी बातें करने लगे थे. मिलनेमिलाने की बात भी होने लगी. घटना से 6 महीने पहले दोनों एक तयशुदा जगह पर मिले और एकदूसरे के आगोश में सुकून खोज लिया. एक बार जब मर्यादा टूटी तो फिर यह एक आम सी बात हो गई. जब भी मौका मिलता दोनों अपनी जरूरतों को पूरा कर लेते थे.

शुरुआती कुछ दिनों तक प्रिया नाइक और महेश कराले का मिलनाजुलना पार्कों और रेस्टोरेंटों तक सी सीमित था. फिर धीरेधीरे यह सिलसिला प्रिया के घर तक पहुंच गया. चूंकि ऐसी बातें छिपती नहीं हैं, इसलिए इस की भनक आसपड़ोस के लोगों तक पहुंची तो उन में कानाफूसी होने लगी. यह भनक गोपी नाइक के कानों तक भी पहुंच गई.

उस ने जब प्रिया से सच्चाई जानने की कोशिश की तो उस ने बड़ी सफाई से इस बात को ऐसा घुमाया कि गोपी चुप रह गया. महेश कराले को उस ने अपना दूर का भाई बताया, जिस से बात वहीं खत्म हो गई.

प्रिया ने महेश कराले को अपना भाई बता कर अपने पापों को छिपाने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन इस में वह पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाई. उस के कारनामों का सच एक दिन सामने आ ही गया. प्रिया मोबाइल में सेव्ड उस के और महेश कराले के नंबर मैसेज और सेल्फी वगैरह ने हर राज से परदा उठा दिया.

सब कुछ देख कर गोपी नाइक का दिमाग घूम गया. प्रिया से उसे ऐसी उम्मीद नहीं थी. वह प्रिया को बहुत ही प्यार करता था. उस की सारी जरूरतें पूरी करता था. उस ने किसी तरह अपने आप को संभाला और इस मुद्दे पर प्रिया को आडे़ हाथों लिया. यही नहीं उस ने प्रिया का मोबाइल फोन भी ले लिया. इस के साथ ही वह प्रिया को मानसिक और शारीरिक रूप से टौर्चर भी करने लगा.

यह सब प्रिया और महेश की सहनशक्ति से बाहर हो गया था. तंग आ कर उन दोनों ने गोपी नाइक को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया. इसीलिए वह धीरेधीरे पति से दूरियां बढ़ाती गई. लेकिन सीधासादा गोपी इसे समझ नहीं पाया. जब तक यह सब उस की समझ में आया तब तक काफी देर हो चुकी थी.

हत्या की योजना के बाद

अपनी योजना के अनुसार घटना के एक सप्ताह पहले महेश कराले ने गोपी को अपने रास्ते से हटाने के लिए अपने एक परिचित कैमिस्ट की मदद से ढेर सारी नींद की गोलियां खरीदीं और ला कर प्रिया को दे दीं. साथ ही उसे समझा भी दिया कि मौका मिलते ही गोपी को कैसे देगी.

घटना के दिन प्रिया ने वैसा ही किया भी, जैसा महेश कराले ने कहा था. उस ने गोपी नाइक की बीयर में करीब 30 गोलियां डाल दीं. लेकिन पता नहीं क्यों गोपी नाइक पर नींद की गोलियों का उतना असर नहीं हुआ. जितना होना चाहिए था. वह अर्द्धनिद्रा में बैड पर पड़ा करवटें बदलता रहा. प्रिया ने जब यह बात महेश कराले को बताई तो वह गोपी के घर आ गया. उस ने साथ लाए फिनायल का इंजेक्शन गोपी के शरीर में लगा दिया.

जैसेजैसे समय बीत रहा था वैसेवैसे प्रिया और महेश कराले के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. उन की धड़कनें तब और बढ़ गईं जब गोपी पर फिनाइल के इंजेक्शन का भी कोई खास असर नहीं हुआ. वह बाथरूम में जा कर उल्टियां करने लगा. प्रिया और महेश से यह सब सहन नहीं हुआ तो दोनों ने गोपी को खुद मौत की नींद सुला दिया.

महेश कराले ने गोपी नाइक का गला पकड़ा और प्रिया ने घर के अंदर रखे लोहे की रौड से उस के सिर पर वार किया. इस के बावजूद गोपी अपने आप को बचाने के लिए बाथरूम से भाग कर बैडरूम में आया, लेकिन वह गिर कर बेहोश हो गया. उस के बेहोश होने के बाद भी महेश कराले और प्रिया ने अपनी तसल्ली के लिए एक बार फिर पूरी ताकत से उस का गला दबाया.

गोपी नाइक की बेरहमी से हत्या करने के बाद दोनों ने संतोष की सांस ली. इस के बाद दोनों गोपी के शव को ठिकाने लगाने के बारे में विचारविमर्श करने लगे. काफी सोचविचार के बाद दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि पुलिस को गुमराह करने के लिए गोपी को घायल बता कर थाणे सिविल अस्पताल ले जाएं और उसे डाक्टरों के हवाले कर के वहां से निकल लें.

इसी योजना के तहत रात 2 बजे दोनों मृत गोपी के लहूलुहान शव को स्कूटर पर लाद कर थाणे बांध विलगांव की सड़क पर ले गए. वहां गोपी के शव को लेटा कर महेश ने अपना स्कूटर पास की झाडि़यों में छिपा दिया.

वहां से आटो पकड़ कर दोनों गोपी नाइक के शव को अस्पताल ले गए और डाक्टरों के हवाले कर के वहां से निकल गए. दोनों अस्पताल और पुलिस कांस्टेबल की नजरों से तो बच कर निकल गए. लेकिन अस्पताल की तीसरी आंख से नहीं बच पाए.

अस्पताल से निकल कर प्रिया और महेश कराले गोपी के घर आए. उन्होंने घर के अंदर बैडरूम और बाथरूम के फर्श पर बिखरे खून की साफसफाई कर दी. साढ़े 5 बजे प्रिया ने अपनी बेटी को उठाया और घर में ताला लगा कर महेश कराले के साथ निकल गई. वहां से दोनों सीधे माथेरान हिल चले गए.

लेकिन पैसों की कमी की वजह से महेश प्रिया को ले कर अपने गांव आ गया. ताकि पैसों का जुगाड़ कर के प्रिया को कहीं दूर ले जा सके. दोनों कहीं जा पाते इस से पहले ही पुलिस के हत्थे चढ़ गए. दोनों ने योजना तो अच्छी बनाई थी, लेकिन उन का गुनाह छिप नहीं सका.

जांचअधिकारी इंसपेक्टर वैभव धुमाल ने प्रिया नाइक और महेश कराले से पूछताछ के बाद उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 228, 201 और 120बी के तहत मुकदमा दर्ज किया और उन्हें थाणे के मैट्रोपोलिटन मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- मनोहर कहानियां, अप्रैल 2019

 

हतभागी भाग्यश्री : पिता के फैसले ने की जिंदगी बर्बाद

मध्य महाराष्ट्र की कृष्णा नदी की सहायक नदियों के किनारे निचली पहाडि़यों की लंबी शृंखला है. इन की घाटियों में बसे बीड शहर की अपनी एक अलग पहचान है. पहले यह शहर चंपावती के नाम से जाना जाता था. बीड में अनेक धार्मिक और ऐतिहासिक इमारतें हैं. इस के अलावा यहां शैक्षणिक संस्थान और कालेज भी हैं, जहां आसपास के शहरों से हजारों लड़केलड़कियां पढ़ने के लिए आते हैं.
घटना 19 दिसंबर, 2018 की है. उस समय शाम के यही कोई पौने 6 बजे का समय था. बीड के जानेमाने आदित्य इलैक्ट्रौनिक टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग कालेज में सेमेस्टर परीक्षा का अंतिम पेपर चल रहा था, हजारों की संख्या में युवकयुवतियां परीक्षा दे रहे थे. इन्हीं में भाग्यश्री और सुमित वाघमारे भी थे. ये दोनों पतिपत्नी थे.
निर्धारित समय पर जब पेपर खत्म हुआ तो अन्य छात्रछात्राओं के साथ ये दोनों भी कालेज से बाहर आ गए. इन दोनों के चेहरों पर खुशी की चमक थी. मतलब उन का पेपर काफी अच्छा हुआ था, जिस की खुशी वह अपने सहपाठियों में बांट रहे थे.
लेकिन कौन जानता था कि उन के खिले चेहरों की खुशी सिर्फ कुछ देर की मेहमान है. परीक्षा के परिणाम आने के पहले ही उन की जिंदगी में जो परिणाम आने वाला था. वह काफी भयानक था. 15-20 मिनट अपने सहपाठियों से मिलनेजुलने के बाद दोनों पार्किंग में पहुंचे, जहां उन की स्कूटी खड़ी थी.
सुमित वाघमारे ने पार्किंग से अपनी स्कूटी निकाली और दोनों उस पर बैठ कर घर जाने के लिए निकल गए. 10 मिनट में वह नालवाड़ी रोड गांधीनगर चौक पर पहुंच गए. तभी उन की स्कूटी के सामने अचानक एक मारुति कार आ कर रुकी. उस वक्त सड़क कालेज के सैकड़ों छात्रों और भीड़भाड़ से भरी थी. मारुति कार उन की स्कूटी के सामने कुछ इस तरह आ कर रुकी थी कि वे दोनों रोड पर गिरतेगिरते बचे थे. इस के पहले कि वे संभल कर कुछ कहते, कार से 2 युवक निकल कर बाहर आ गए.
उन्हें देख कर भाग्यश्री और सुमित वाघमारे के होश उड़ गए. क्योंकि उन में से एकभाग्यश्री का भाई बालाजी लांडगे और दूसरा उस का दोस्त संकेत था. उन के इरादे कुछ ठीक नहीं लग रहे थे.
बालाजी लांडगे सुमित को खा जाने वाली नजरों से घूरे जा रहा था. भाग्यश्री अपने भाई के गुस्से को समझ रही थी. संभावना को देखते हुए भाग्यश्री अपने पति की रक्षा के लिए झट से पति के सामने आ खड़ी हुई. इस के बावजूद भी बालाजी लांडगे ने बहन को धक्का दे कर सुमित के सामने से हटाया और अपने दोस्त संकेत वाघ की तरफ इशारा कर के सुमित को पकड़ने के लिए कहा.
संकेत ने सुमित का कौलर पकड़ लिया. यह देख बालाजी बोला, ‘‘क्यों बे, मैं ने कहा था न कि मेरी बहन से दूर रहना, नहीं तो नतीजा बुरा होगा. लेकिन मेरी बातों का तुझ पर कोई असर नहीं हुआ. इस की सजा तुझे जरूर मिलेगी.’’

गुस्से में चाकू बना तलवार

इस के पहले कि सुमित कुछ कहता या संभल पाता, बालाजी लांडगे ने अपनी जेब से चाकू निकाला और सुमित पर हमला कर दिया. पति पर हमला होता देख भाग्यश्री चीखते हुए बोली, ‘‘भैया, सुमित को छोड़ दो. उस की कोई गलती नहीं है. सजा देनी है तो मुझे दो. मैं ने उसे प्यार और शादी के लिए मजबूर किया था. तुम्हें मेरी कसम है भैया. दया करो, बहन पर.’’
‘‘कैसी बहन, मेरी बहन तो उसी दिन मर गई थी, जब घर से भाग कर तूने इस से शादी की थी. जानती है तेरी इस करतूत से समाज और बिरादरी में हमारी कितनी बदनामी हुई. तूने परिवार को कहीं का नहीं छोड़ा. लेकिन मैं भी इसे नहीं छोड़ूंगा.’’ वह बोला.
अगले ही पल बालाजी लांडगे ने चाकू सुमित वाघमारे के पेट में उतार दिया. इस हमले से सुमित वाघमारे की मार्मिक चीख निकली और वह जमीन पर गिर कर तड़पने लगा. इस के बाद भी बालाजी लांडगे का गुस्सा शांत नहीं हुआ. वह सुमित वाघमारे पर तब तक वार करता रहा, जब तक कि उस की मौत न हो गई.
इस दौरान भाग्यश्री रहम की भीख मांगती रही. पति की जान बचाने के लिए वह मदद के लिए चीखतीचिल्लाती रही. लेकिन उस की सहायता के लिए कोई आगे नहीं आया. सुमित वाघमारे की हत्या करने के बाद बालाजी और उस का दोस्त संकेत दोनों वहां से चले गए.
अचानक घटी इस घटना को जिस ने भी देखा, स्तब्ध रह गया. शहर के बीचोबीच भीड़भाड़ भरे इलाके में घटी इस घटना से पूरे बीड शहर में सनसनी फैल गई. भाग्यश्री पति के शरीर से लिपट कर बुरी तरह चीखचिल्ला कर लोगों से सहायता मांग रही थी कि उस के पति को अस्पताल ले जाने में मदद करें. लेकिन मदद के लिए कोई आगे नहीं आया.
काफी हाथपैर जोड़ने के बाद आखिरकार एक आटो वाले को दया आई और वह सुमित वाघमारे को अपने आटो से जिला अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने सुमित को मृत घोषित कर दिया.
यह सुन कर भाग्यश्री अस्पताल में ही फिर से रोने लगी. अस्पताल स्टाफ ने उसे सांत्वना दी. पुलिस केस था, लिहाजा अस्पताल प्रशासन की सूचना पर पुलिस भी वहां पहुंच गई. भाग्यश्री ने अस्पताल से ही सुमित के घर वालों को फोन कर के उस की हत्या की खबर दे दी थी.
अस्पताल पहुंचे थाना विलपेठ के पीआई ने भाग्यश्री से बात की तो उस ने बता दिया कि उस के पति की हत्या उस के सगे भाई बालाजी लांडगे और उस के दोस्त संकेत ने की है. थानाप्रभारी ने यह सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.
कुछ ही देर में बीड शहर के एसपी जी. श्रीधर, एडीशनल एसपी वैभव कलुबर्मे, डीएसपी (क्राइम) सुधीर खिरडकर, पीआई घनश्याम पालवदे, एपीआई दिलीप तेजनकर, अमोल धंस, पंकज उदावत के साथ अस्पताल आ गए. उन्होंने मृतक के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. उस के शरीर पर तेज धार वाले हथियार के कई वार थे.
अस्पताल से पूछताछ करने के बाद पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पीआई फिर से अस्पताल गए. उन्होंने सुमित की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

औनरकिलिंग के चक्कर में हुई हत्या

भाग्यश्री ने अपने भाई बालाजी लांडगे और संकेत वाघ के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करवाने के बाद पुलिस को बताया कि जब से उस ने अपने परिवार के विरुद्ध जा कर सुमित वाघमारे से कोर्टमैरिज की थी, तब से उस के परिवार वाले अकसर सुमित को धमकियां देते आ रहे थे, जिस की उन्होंने करीब एक महीने पहले शिवाजी नगर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाई थी. लेकिन पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की तो बालाजी के हौसले बुलंद हो गए.
पुलिस को मामला औनरकिलिंग का लग रहा था. दिनदहाड़े हत्या होने की खबर जब शहर में फैली तो एसपी जी. श्रीधर ने लोगों को भरोसा दिया कि हत्यारों को जल्द पकड़ लिया जाएगा. उन्होंने उसी समय इस केस की जांच पुलिस डीएसपी (क्राइम) सुधीर खिरडकर को सौंप दी.
खिरडकर ने जांच का जिम्मा लेते ही स्थानीय पुलिस और क्राइम ब्रांच की कई टीमें बना कर तेजी से जांच शुरू कर दी. पुलिस ने सब से पहले शहर की नाकेबंदी कर के अभियुक्तों के बारे में अलर्ट जारी कर दिया.
घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई तो इस बात की पुष्टि हो गई कि वारदात को बालाजी लांडगे और संकेत वाघ ने ही अंजाम दिया था. लिहाजा पुलिस ने दोनों के फोन नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. साथ ही मुखबिरों को भी सजग कर दिया. लेकिन 3 दिनों तक पुलिस और क्राइम ब्रांच को कोई सफलता नहीं मिली.
जांच के दौरान पुलिस को जानकारी मिली कि सुमित वाघमारे की हत्या में बालाजी लांडगे के दोस्त कृष्णा क्षीरसागर और उस के भाई गजानंद क्षीरसागर ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. बालाजी और उस का दोस्त संकेत फरार हो चुके थे. लिहाजा पुलिस टीम ने दबिश दे कर कृष्णा क्षीरसागर और उस के भाई गजानंद क्षीरसागर को गिरफ्तार कर लिया.
कृष्णा क्षीरसागर और गजानंद क्षीरसागर ने क्राइम ब्रांच को बताया कि बालाजी लांडगे और संकेत वाघ पुणे होते हुए औरंगाबाद में एक मंत्री के घर गए हैं. यह सूचना मिलते ही क्राइम ब्रांच की टीम पुणे में उस मंत्री के घर पहुंच गई. पता चला कि टीम के आने के कुछ घंटे पहले ही दोनों वहां से अमरावती के लिए निकल गए थे.
आरोपी अमरावती शहर से बाहर न जा सकें, इस के लिए एसपी जी. श्रीधर ने अमरावती के पुलिस कमिश्नर से अभियुक्तों की गिरफ्तारी में मदद करने को कहा. तब पुलिस कमिश्नर ने अमरावती शहर की पुलिस के साथ जीआरपी को भी सतर्क कर दिया. जीआरपी ने बालाजी लांडगे और संकेत वाघ को अमरावती के बडनेरा रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद उन्होंने दोनों अभियुक्त क्राइम ब्रांच की जांच टीम को सौंप दिए.
क्राइम ब्रांच औफिस में बालाजी लांडगे से पूछताछ की तो उस ने आसानी से अपना गुनाह स्वीकार करते हुए अपनी बहन के सुहाग की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

25 वर्षीय सुमित वाघमारे महत्त्वाकांक्षी युवक था. मूलरूप से बीड तालखेड़ा, तालुका मांजल, गांव हमुनगोवा का रहने वाला था. उस के पिता शिवाजी वाघमारे गांव के जानेमाने किसान थे. गांव में उन की काफी प्रतिष्ठा थी. परिवार में उन की पत्नी के अलावा एक बेटी और बेटा सुमित वाघमारे थे.
शिवाजी वाघमारे उसे उच्चशिक्षा दिला कर कामयाब इंसान बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने सुमित का एडमिशन बीड शहर के आदित्य इलैक्ट्रौनिक टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग कालेज में करवाया. उस के रहने की व्यवस्था उन्होंने बीड शहर में ही रहने वाली अपनी साली के यहां कर दी थी. अपनी मौसी के घर रह कर सुमित इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने लगा.
इसी कालेज से भाग्यश्री लांडगे भी इंजीनियरिंग कर रही थी. दोनों एक ही कक्षा में थे, जिस से उन की अच्छी दोस्ती हो गई. उन की दोस्ती प्यार तक कब पहुंच गई, उन्हें पता ही नहीं चला.
दोनों के दिलों में प्यार के अंकुर फूटे तो वे एकदूसरे को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगे थे. उन्हें ऐसा लगने लगा जैसे दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हों.

पहले दोस्ती, फिर प्यार, बाद में शादी

समय धीरधीरे सरक रहा था. कालेज की पढ़ाई और परीक्षा में सिर्फ 6 महीने रह गए थे. दोनों ने फाइनल परीक्षा के बाद शादी करने का फैसला किया था, लेकिन इस के पहले ही भाग्यश्री के परिवार वालों को उस के और सुमित के बीच चल रहे प्यार की जानकारी हो गई, जिसे जान कर वे सन्न रह गए. उन्होंने भाग्यश्री के लिए जो सपना देखा था, वह टूट कर बिखरते हुए नजर आया.
मामला काफी नाजुक था. भाग्यश्री का फैसला उन की मानमर्यादा के खिलाफ था. लेकिन भाग्यश्री सुमित वाघमारे के प्यार में अंधी हो चुकी थी. फिर भी उन्होंने मौका देख कर भाग्यश्री को समझाने की काफी कोशिश की. उस के भाई बालाजी लांडगे को तो सुमित जरा भी पसंद नहीं था.
वह न तो उन की बराबरी का था और न ही उन की बिरादरी का. उस ने भाग्यश्री को न केवल डांटाफटकारा बल्कि बुरे अंजाम की चेतावनी भी दी. साथ ही यह भी कहा कि अगर उस ने अपनी राह और रवैया नहीं बदला तो उस का कालेज जाना बंद करा देगा.
घर और परिवार का माहौल बिगड़ते देख भाग्यश्री समझ गई कि घर वाले उस की शादी में जरूर व्यवधान डालेंगे. इसलिए किसी भी नतीजे की परवाह किए बगैर कालेज की परीक्षा के 3 महीने पहले उस ने अपने प्रेमी सुमित वाघमारे से कोर्टमैरिज कर ली. इतना ही नहीं, कुछ दिनों के लिए वह पति सुमित के साथ भूमिगत हो गई.
भाग्यश्री के अचानक गायब हो जाने के बाद उस के घर वालों की काफी बदनामी हुई. इतना ही नहीं, जब उन्हें पता चला कि उस ने सुमित से शादी कर ली है तो उन्हें बहुत गुस्सा आया. घर वालों ने दोनों को बहुत तलाशा. जब वे नहीं मिले तो सुमित वाघमारे को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने शिवाजी नगर थाने में सुमित के खिलाफ भाग्यश्री के अपहरण की शिकायत दर्ज करा दी.
पुलिस ने मामले में संज्ञान लेते हुए अपनी काररवाई शुरू कर दी. इसी बीच भाग्यश्री को पता चल गया कि पुलिस उन्हें तलाश रही है. लिहाजा अपनी शादी के एक महीने बाद भाग्यश्री और सुमित वाघमारे दोनों पुलिस के सामने हाजिर हो गए. दोनों ने अपने बालिग होने और शादी करने का प्रमाणपत्र पुलिस को दे दिया. साथ ही अपनी सुरक्षा की भी गुहार लगाई.
मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने भाग्यश्री के परिवार वालों को समझा दिया कि दोनों बालिग हैं, इसलिए उन की शादी कानूनन वैध है. इसलिए उन्हें किसी भी तरह तंग न किया जाए. अगर भाग्यश्री या उस के पति ने थाने में अपनी सुरक्षा आदि को ले कर कोई शिकायत की तो पुलिस को काररवाई करनी पड़ेगी.
लेकिन पुलिस की चेतावनी के बाद भी भाग्यश्री के परिवार वालों का रवैया नहीं बदला. उन के अंदर प्रतिशोध की चिंगारी सुलगती रही. भाग्यश्री के भाई बालाजी लांडगे ने भाग्यश्री और सुमित वाघमारे को घटना के एक महीने पहले सबक सिखाने की धमकी दी थी, जिस की शिकायत उन्होंने थाने में भी की थी.

प्रेमी युगल की शिकायत
के बावजूद कुछ नहीं हुआ

पुलिस में की गई इस शिकायत का भी बालाजी पर कोई असर नहीं हुआ. वह अपने परिवार की बेइज्जती पर भाग्यश्री को सबक सिखाना चाहता था. इस के लिए उस ने एक खतरनाक योजना तैयार की, जिस में उस ने अपने दोस्त संकेत वाघ, कृष्णा क्षीरसागर और गजानंद क्षीरसागर की मदद ली. उन्हें उन का काम समझा कर वह मौके की तलाश में रहने लगा था.
19 दिसंबर, 2018 को कृष्णा क्षीरसागर ने बालाजी लांडगे को बताया कि भाग्यश्री और सुमित वाघमारे अपनी परीक्षा देने के लिए कालेज आएंगे. खबर पाते ही बालाजी लांडगे अपनी योजना की तैयारी में लग गया. उस ने अपने दोस्त संकेत वाघ को उस की कार के साथ लिया और कालेज के पास आ कर परीक्षा खत्म होने का इंतजार करने लगा.
परीक्षा खत्म होने के बाद भाग्यश्री और सुमित वाघमारे जब अपनी स्कूटी से कालेज से घर के लिए निकले तो बालाजी लांडगे ने उन का रास्ता रोक लिया और देखते ही देखते बहन के सिंदूर को रक्त के कफन में लपेट दिया.
सुमित वाघमारे की हत्या के बाद संकेत वाघ और बालाजी लांडगे ने कार ले जा कर मित्रनगर छोड़ दी. वहां से वह गजानंद क्षीरसागर की स्कूटी से वाडा रेलवे स्टेशन गए, वहां से वे पुणे, औरंगाबाद और अमरावती पहुंचे, जहां वे रेलवे पुलिस के हत्थे चढ़ गए थे.
चारों गिरफ्तार अभियुक्तों से विस्तृत पूछताछ करने के बाद बीड क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने उन्हें विलपेठ पुलिस थाने के अधिकारियों को सौंप दिया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, मई 2019

नरमुंड का रहस्य-भाग 3 : पत्नी का खतरनाक अवैध संबंध

इस तरह टिंकू की हत्या से 4 लोगों को फायदा हो रहा था. पहला फायदा बबलू को था, क्योंकि उस की पत्नी से उस के अवैध संबंध थे. दूसरा फायदा छंगा को था, जिस ने 3 लाख रुपए में टिंकू की हत्या की बात तय कर के 2 लाख रुपए में अपने भतीजे को कौन्ट्रैक्ट दे दिया था. तीसरा फायदा शबाबुल को था, जिसे टिंकू की हत्या पर 2 लाख रुपए छंगा से मिलने थे और 2 लाख नरमुंड देने पर फरीद से मिलने थे. चौथा और सब से बड़ा फायदा गुलाब नबी और सालिम को था, क्योंकि उन्हें दिल्ली के तांत्रिक महफूज आलम से नरमुंड पहुंचाने पर 20 लाख रुपए मिलने थे और उन्होंने 2 लाख में शबाबुल से बात कर ली थी. उन्हें 18 लाख रुपए बच रहे थे.

इस के बाद बबलू टिंकू की हर गतिविधि पर नजर रखने लगा. उसे कहीं से पता चल गया था कि 9 सितंबर की रात टिंकू अपने खेत में पानी लगाने जाएगा. यह बात उस ने छंगा को बता दी. छंगा ने शबाबुल को सूचित कर दिया. पूरी योजना बना कर छंगा, शबाबुल, फरीद, गुलाब नबी और बबलू टिंकू के खेत के पास पहुंच गए. रास्ते में उन्होंने ठेके से शराब खरीदी. बबलू के अलावा उन सब ने खेत के किनारे बैठ कर शराब पी. योजना के अनुसार उन्होंने बबलू के हाथ बांघ कर वहीं बैठा दिया.

9 सितंबर, 2017 की शाम को खाना खाने के बाद यादराम ने अपने दोनों बेटों लक्ष्मण और ओमकार को खेत में पानी लगाने को कहा. क्योंकि उस दिन उन का तीसरा बेटा टिंकू डीसीएम गाड़ी में तोरई भर कर दिल्ली की आजादपुर मंडी गया था. लक्ष्मण और ओमकार अपने चचेरे भाई शिवम को भी साथ ले गए थे. वे अपने साथ टौर्च भी ले गए थे.

जब वे खेत पर पहुंचे तो उन्हें वहां 4 बदमाश मिले और बबलू उन के पास बैठा था. उस के हाथ पीछे की ओर बंधे थे. बदमाशों ने धमकी दे कर उन तीनों को भी बांध दिया. बबलू ने देखा कि उन तीनों में टिंकू नहीं है तो वह चौंका, क्योंकि उसी की हत्या के लिए तो उस ने यह ड्रामा रचा था. बदमाशों ने बबलू के साथ मंत्रणा की. बबलू ने जब देखा कि खेल बिगड़ रहा है तो उस ने बदमाशों को बता दिया कि इन में से जो बीच में है, उसी का काम तमाम कर दिया जाए. बीच में लक्ष्मण था.

इस के बाद एक बदमाश ने लक्ष्मण के हाथ खोल दिए और 3 लोग शबाबुल, फरीद और गुलाम नबी लक्ष्मण को अंधेरे में अपने साथ ले गए. छंगा राइफल लिए बाकी के पास खड़ा रहा. करीब 5 मिनट बाद वे लक्ष्मण को ले कर वापस आ गए. उन्होंने बबलू से फिर बात की और कहा कि लड़का अच्छा है. बबलू ने उन से कहा कि कोई बात नहीं, इसी का काम कर दो. तब शबाबुल, फरीद व गुलाम नबी लक्ष्मण को फिर जंगल में ले गए.

तीनों ने लक्ष्मण को जमीन पर गिरा दिया. लक्ष्मण जान पर खेल कर उन से भिड़ गया. पर वह अकेला तीनों का मुकाबला नहीं कर सका. लिहाजा बदमाशों ने उसे फिर नीचे गिरा दिया. वह उठ न सके, इस के लिए फरीद ने उस के पैर पकड़े और गुलाम नबी ने सिर के बाल पकड़ लिए. तभी शबाबुल ने फरसे से एक ही वार में उस का सिर धड़ से अलग कर दिया. लक्ष्मण चिल्ला भी न सका. उस का सिर कलम कर के वे उन बंधकों के पास आ कर बोले, ‘‘काम हो गया.’’

यह काम करने में उन्हें केवल 20 मिनट लगे थे. इस के बाद वे बंधकों को उलटा लिटा कर उन के ऊपर चादर डाल कर चले गए. वह चादर ओमकार अपने साथ घर से लाया था. शबाबुल ने लक्ष्मण का सिर गुलाम नबी तांत्रिक के हवाले कर दिया. गुलाम नबी ने कैमिकल का लेप लगा कर उस के सिर को डींगरपुर के जंगल में एक बेर के पेड़ के नीचे दबा दिया था.

करीब आधे घंटे बाद ओमकार, बबलू और शिवम ने किसी तरह खुद को खोला और तेजी से गांव की तरफ भागे. उन के शोर मचाने पर गांव वाले जंगल की तरफ बदमाशों की तलाश में निकले. जंगल में लक्ष्मण की लाश मिलने पर बबलू ने ही कुंदरकी पुलिस को फोन कर के सूचना दी थी.

इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने के बाद भी बबलू लक्ष्मण की अंतिम क्रिया तक में साथ रहा. सभी कर्मकांडों में उस ने अपना सहयोग दिया. लक्ष्मण की चिता के फूल चुनने के समय भी वह उस के घर वालों के साथ था.

गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों से पूछताछ कर पुलिस ने उन की निशानदेही पर फरसा भी बरामद कर लिया. अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने 2 अन्य अभियुक्तों इमरतपुर ऊधौ के राशिद और सालिम को भी गिरफ्तार कर लिया था. सालिम पूर्व ग्रामप्रधान था. इन सभी से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

फरार अभियुक्तों की तलाश में पुलिस ने कई स्थानों पर दबिशें डालीं, पर पुलिस को सफलता नहीं मिल सकी. इसी बीच अभियुक्त छंगा उर्फ अकबर ने 12 अक्तूबर, 2017 को मुरादाबाद की कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने कोर्ट में दरख्वास्त दे कर छंगा को पुलिस रिमांड पर लिया और पूछताछ कर के जेल भेज दिया था.

इस के अलावा पुलिस सीलमपुर दिल्ली के तांत्रिक महफूज आलम को भी तलाश रही थी, जिस ने 20 लाख रुपए में नरमुंड लाने की बात डींगरपुर के तांत्रिक गुलाम नबी से तय की थी. महफूज की गिरफ्तारी के बाद ही यह पता चल सकेगा कि तांत्रिक 20 लाख रुपए में उस कटे हुए सिर को खरीद कर क्या करता? पुलिस जब तांत्रिक के दिल्ली ठिकाने पर पहुंची तो वह फरार मिला. लोगों ने बताया कि महफूज तांत्रिक के पास देश के अलगअलग राज्यों से ही नहीं, बल्कि अरब के शेख भी आते थे.

इस से पुलिस को शक है कि कहीं तांत्रिक ने इस से पहले तो नरमुंड के लिए किसी की हत्या तो नहीं कराई थी. बहरहाल, पुलिस फरार अभियुक्तों की तलाश कर रही है.

नरमुंड का रहस्य-भाग 2 : पत्नी का खतरनाक अवैध संबंध

सर्विलांस से पकड़े गए लक्ष्मण के हत्यारे

पुलिस का पहला काम लक्ष्मण का सिर ढूंढना था. अपने स्तर से वह सिर तलाश रही थी. पीडि़त परिवार के दबाव में पुलिस बबलू को जब थाने बुलाती, कोई न कोई राजनैतिक रसूख वाला उस की हिमायत में थाने पहुंच जाता. पुलिस ने उस से सख्ती से भी पूछताछ की, पर रोरो कर वह खुद को निर्दोष बताता रहा.

इस के बाद उसे इस हिदायत के साथ छोड़ दिया गया कि वह गांव में ही रहेगा और जब भी जरूरत पड़ेगी, उसे थाने आना पड़ेगा. बबलू ने पूरे गांव व पुलिस से कहा था, ‘‘अगर लक्ष्मण की हत्या में मेरा हाथ पाया जाए तो मुझे सरेआम फांसी पर लटका देना. यह बात सभी जानते हैं कि मैं ने इस परिवार की कितनी मदद की है.’’

पुलिस ने बबलू का फोन सर्विलांस पर लगा रखा था. पिछले एक महीने में उस ने जिनजिन नंबरों पर बात की थी, वे सभी सर्विलांस पर थे. जांच में पता चला कि घटना से पहले बबलू के मोबाइल पर छंगा उर्फ अकबर, निवासी इमरतपुर ऊधौ, थाना मैनाठेर से बात हुई थी. पुलिस ने मुखबिर के द्वारा छंगा के बारे में पता कराया तो जानकारी मिली कि वह घर पर नहीं है.

इस हत्याकांड को 27 दिन हो चुके थे, परंतु लक्ष्मण का सिर नहीं मिला था. पुलिस की हिदायत की वजह से बबलू सतर्क था. वह कहीं आताजाता भी नहीं था.

6 अक्तूबर, 2017 को बबलू ने किसी से फोन पर कहा कि वह गांव शिमलाठेर के बाहर अमरूद के बगीचे में आ जाए, वहीं बात करेंगे. यह बात सर्विलांस टीम को पता चल गई. थानाप्रभारी ने मुखबिर से गांव के बाहर की अमरूद की बाग के बारे में पूछा और उस पर नजर रखने को कहा.

मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने गांव शिमलाठेर के बाहर अमरूद के बाग में दबिश दे कर वहां से बबलू के अलावा 3 अन्य लोगों को हिरासत में ले लिया, जबकि 3 लोग भाग गए. हिरासत में लिए गए लोगों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम शबाबुल निवासी इमरतपुर ऊधौ, फरीद निवासी लालपुर गंगवारी और गुलाम नबी निवासी डींगरपुर बताया.

उन्होंने बताया कि फरार होने वाले छंगा उर्फ अकबर, राशिद निवासी इमरतपुर ऊधौ और पिंटू उर्फ बिंटू निवासी दौलतपुर थे. उन सभी से पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो न सिर्फ उन्होंने लक्ष्मण की हत्या का अपराध स्वीकार किया, बल्कि उन की निशानदेही पर एक जगह गड्ढे में दबाया हुआ लक्ष्मण का सिर भी बरामद कर लिया. उस पर उन्होंने ऐसा कैमिकल लगा रखा था, जिस से वह करीब एक महीने तक जमीन में दबा रहने के बावजूद खराब नहीं हुआ था. लक्ष्मण की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी.

उत्तर प्रदेश के जनपद मुरादाबाद से कोई 18 किलोमीटर दूर है थाना कुंदरकी. इसी थाने के गांव शिमलाठेर में बबलू अपने परिवार के साथ रहता था. वह संपन्न आदमी था. उस के पास 4 ट्रैक्टर और 6 ट्रक हैं. वह टै्रक्टरों से खेतों की जुताई करता है और ट्रकों से मुरादाबाद के रेलवे माल गोदाम में आने वाले सीमेंट को अलगअलग गोदामों तक पहुंचवाता था. इस सब से उसे अच्छी कमाई हो रही थी.

लक्ष्मण का छोटा भाई टिंकू बबलू के ट्रक पर पल्लेदारी करता था. वह मेहनती और ईमानदार था. बबलू उस पर बहुत विश्वास करता था, जिस की वजह से उस का बबलू के घर भी आनाजाना था. बबलू अपने कामधंधे में व्यस्त रहता था, इसलिए बबलू की पत्नी कमलेश टिंकू से ही घर के सामान मंगाती थी. ऐसे में ही कमलेश के टिंकू से संबंध बन गए.

हालांकि दोनों की स्थिति में जमीनआसमान का अंतर था. कमलेश के सामने टिंकू की कोई औकात नहीं थी. इस के बावजूद कमलेश का टिंकू पर दिल आ गया था. शुरू में तो उन के संबंधों पर किसी को शक नहीं हुआ. लेकिन ऐसे संबंधों में कितनी भी सावधानी बरती जाए, देरसवेर उजागर हो ही जाते हैं. कमलेश और टिंकू के संबंधों की बात भी गांव में फैल गई.

3 लाख रुपए में टिंकू की मौत का सौदा

बबलू गांव का रसूखदार व्यक्ति था. टिंकू की वजह से उस की गांव में अच्छीखासी बदनामी हो रही थी. इसलिए उस ने तुरंत टिंकू को पल्लेदारी से हटा दिया. इस के बाद टिंकू का कमलेश के घर आनाजाना बंद हो गया. कमलेश किसी भी हाल में टिंकू को छोड़ना नहीं चाहती थी. लिहाजा फोन पर संपर्क कर के वह टिंकू को अपने खेतों पर बुला लेती. बबलू ने पत्नी को भी समझाया, पर वह नहीं मानी. इस पर बबलू ने टिंकू को ठिकाने लगवाने की ठान ली.

बबलू के गांव के नजदीक ही इमरतपुर ऊधौ गांव है. इसी गांव में अकबर उर्फ छंगा रहता था. वह वहां का माना हुआ बदमाश था. कई थानों में उस के खिलाफ दरजन भर मामले दर्ज थे. बबलू ने उस से बात कर 3 लाख रुपए में टिंकू की हत्या का सौदा कर डाला.

छंगा का एक भतीजा शबाबुल सुपारी किलर था. उस पर भी 10-12 केस चल रहे थे. छंगा ने शबाबुल से बात की. वह मुरादाबाद के जयंतीपुर में अपनी 2 बीवियों के साथ रहता था. उसे अपना मकान बनाने के लिए पैसों की जरूरत थी, इसलिए वह 2 लाख रुपए में टिंकू की हत्या करने को राजी हो गया.

चूंकि शबाबुल पेशेवर अपराधी था, इसलिए उसी बीच लालपुर गंगवारी के फरीद और डींगरपुर के गुलाम नबी ने शबाबुल से किसी नवयुवक के कटे हुए सिर की डिमांड की. इस के लिए उन्होंने शबाबुल को 2 लाख रुपए भी दे दिए. वह नरमुंड उन्हें सालिम के मार्फत दिल्ली के सीलमपुर में रहने वाले एक बड़े तांत्रिक महफूज आलम के पास पहुंचाना था. फरीद संपेरा और तांत्रिक है.

महफूज आलम ने नरमुंड पहुंचाने पर गुलाब नबी और सालिम को 20 लाख रुपए देने की बात कही थी. पर इन दोनों ने शबाबुल से 2 लाख रुपए में ही सौदा कर लिया था. तांत्रिक महफूज उस नरमुंड का क्या करता, यह किसी को पता नहीं था.

शबाबुल को दोहरा फायदा उठाने का मौका मिल गया था. उसे टिंकू की हत्या 2 लाख रुपए में करनी थी. उस का सिर काट कर गुलाम नबी को देना था यानी एक तीर से उस के 2 शिकार हो रहे थे.