रिश्तों का अर्मयादित घालमेल

शिवराज कुशवाहा जनपद हरदोई के गांव देहीचोर अंटवा में अपने परिवार के साथ रहते थे .काम था खेतीकिसानी का. परिवार में पत्नी कैलाशा देवी और 3 बेटे थे— अर्जुन, अमर सिंह और कैलाश. अर्जुन लखनऊ में एक ट्रैक्टर एजेंसी में काम करता था. अमर सिंह नोएडा की किसी फैक्टरी में कार्यरत था और कैलाश गांव में खेती करता था. शिवराज ने तीनों का विवाह कर के जमीन का बंटवारा कर दिया था. तीनों भाई परिवार के साथ अपनेअपने हिस्से में रहते थे. करीब 6 साल पहले अमर सिंह का विवाह विनीता से हुआ था. उस के 2 बच्चे थे. कैलाश की शादी 4 साल पहले कंचनलता से हुई थी. उस के 2 बच्चे थे.

घर से दूर नोएडा में रहने की वजह से अमर सिंह की पत्नी विनीता का गांव में मन नहीं लगता था. पति 2-3 महीने में घर का चक्कर लगाता था, फलस्वरूप विनीता पति से मिलने वाले सुख के लिए बेचैन रहती थी. काफी समय तक पति सुख से वंचित रहने के कारण उस का तन विद्रोह करने लगा था.

विनीता का देवर कैलाश घर पर ही रहता था. जब वह उस से हंसीमजाक करता तो कभीकभी अपनी सीमाएं लांघ जाता था. विनीता समझ गई कि कैलाश भले ही शादीशुदा है, लेकिन उसे शायद घर की दाल में मजा नहीं आ रहा, इसलिए वह बाहर की बिरयानी खाने की जुगत में है. इसी वजह से वह उस पर डोरे डालने की कोशिश कर रहा है.

कैलाश भी जानता था कि उस का बड़ा भाई अमर सिंह बाहर रहता है, इसलिए उस की भाभी प्यासी मछली की तरह तड़पती होंगी. वह अपनी भाभी को अपने आगोश में लेने के लिए सारे जतन कर रहा था.

विनीता भी उस की मंशा भांप कर खुश थी. क्योंकि उस प्यासी के लिए तो कुआं घर में ही मौजूद था, बाहर तलाशने की जरूरत नहीं थी. दोनों ही एकदूसरे में समाने को आतुर हुए तो विनीता ने मिलन का रास्ता भी बना लिया.

एक दिन दोपहर के समय विनीता चारपाई पर लेटी थी तभी कैलाश वहां आ गया. उसे देख कर विनीता पैरों में दर्द का बहाना कर के  कराहने लगी. उस ने साड़ी को घुटने तक खींच लिया. कैलाश ने उस की हालत देखी तो बोला, ‘‘क्या हुआ भाभी, ऐसे कराह क्यों रही हो?’’‘‘क्या बताऊं…पैरों में बड़ी जोर से दर्द हो रहा है.’’ विनीता अपने हाथ से दायां पैर दबाने की कोशिश करती हुई बोली. ‘‘अरे आप क्यों परेशान हो रही हैं, मैं दबा देता हूं पैर.’’ कह कर कैलाश उस के नग्न पैरों को अपने हाथों स दबाने लगा.

इस पर विनीता उस को तेल की शीशी देते हुए बोली, ‘‘इस तेल से मालिश कर दो, कुछ आराम मिल जाएगा.’ कैलाश ने उस के हाथों से तेल की शीशी ले कर थोड़ा तेल निकाला और भाभी के पैरों की मालिश करने लगा. पराए मर्द के हाथों के स्पर्श से विनीता के तन में चिंगारियां फूटने लगीं. तनबदन मचल उठा.

जैसेजैसे कैलाश मालिश कर रहा था, विनीता साड़ी को थोड़ाथोड़ा ऊपर खींचते हुए मालिश करने को कहती गई, ‘‘थोड़ा और ऊपर मालिश कर दो. जैसेजैसे मालिश कर रहे हो, दर्द नीचे से ऊपर की ओर बढ़ता जा रहा है.’’ मस्ती से सराबोर हो कर विनीता ने कहा. इस के बाद उस ने साड़ी को कूल्हों तक खींच लिया.

कैलाश कोई नादान नहीं था. वह भाभी की मंशा समझ गया और मालिश करतेकरते अपना नियंत्रण खोने लगा. उस के हाथ आगे बढ़ते गए. अंतत: विनीता ने उसे अपने ऊपर खींच लिया. उस के बाद उन के बीच की सारी दूरियां खत्म हो गईं और उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. इस के बाद दोनों के बीच संबंधों का यह सिलसिला चलने लगा.

लेकिन ऐसे संबंध एक न एक दिन उजागर हो ही जाते हैं. अमर सिंह को अपनी पत्नी व भाई के बीच के नाजायज संबंधों का पता चल गया तो वह गांव आ गया. उस ने गुस्से में विनीता को तो जम कर पीटा ही, कैलाश के साथ भी मारपीट की. विनीता और बच्चों को वह अपने साथ नोएडा ले गया.

विनीता के चले जाने के बाद कैलाश भी काम के सिलसिले में हैदराबाद चला गया. कैलाश की पत्नी कंचनलता 2 बच्चों के साथ घर पर रह रही थी. कंचनलता को घर में अकेले देख कर कैलाश का चचेरा भाई रमाकांत उस के पास आने लगा. रमाकांत पड़ोस में ही रहता था और अविवाहित था. उस की चाय समोसे की दुकान थी.

कंचनलता की कंचन काया छरहरी थी. रमाकांत उस पर आसक्त हो गया. 2 बच्चों की मां कंचनलता अपने हुस्न से तमाम लड़कियों को मात दे सकती थी.

खूबसूरत हुस्न की मालकिन कंचन पति कैलाश के बिना मुरझाईमुरझाई सी रहने लगी. वह हंसती तो लगता जैसे दिखावटी हंसी हंस रही हो. रमाकांत उस के मुरझाने का कारण बखूबी समझता था. इसलिए रमाकांत उस के पास जाता तो उसे हंसाने की कोशिश करता. कंचनलता को भी उस की बातें अच्छी लगती थीं. वह उस से घुलनेमिलने लगी.

एक दिन बातोंबातों में रमाकांत कंचनलता के दर्द को अपनी जुबां पर ले आया, ‘‘भाभी, मैं देख रहा हूं कि जब से कैलाश भैया गए हैं, तब से आप उदास सी रहने लगी हो.’’ ‘‘तो क्या करूं, उन के जाने पर नाचूं या हंसू?’’ कंचनलता ने बड़ी कड़वाहट से जवाब दिया  ‘‘आप को भी उन के साथ चले जाना चाहिए था, आखिर आप की भी अपनी कुछ जरूरतें और इच्छाएं हैं.’’  ‘‘उन को मेरी चिंता ही कहां है.’’ वह बुझे मन से बोली.

‘‘जब उन्हें आप की चिंता नहीं है तो आप भी अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जिओ. आप को भी पूरी आजादी है, मैं आप का हर तरह से साथ देने को तैयार हूं.’’ रमाकांत बोला.  यह सुन कर कंचनलता मुसकराई और अपनी नजरें झुका लीं.

रमाकांत ने अपने दाएं हाथ से कंचनलता की ठोढ़ी पकड़ कर चेहरा ऊपर उठाया और उस की आंखों में देखा. इस पर कंचनलता कुछ देर यूं ही उस की आंखों में देखती रही. फिर उस के अंदाज की कायल हो कर उस से लिपट गई.रमाकांत ने भी कंचनलता को अपनी बांहों में भर लिया. फिर उन के बीच की सारी मर्यादाएं टूट गईं, दोनों के जिस्म एक हो गए. उन के बीच यह खेल निरंतर खेला जाने लगा.

देश में लौकडाउन हुआ तो अमर सिंह को सपरिवार नोएडा से गांव आना पड़ा. कैलाश भी हैदराबाद से गांव वापस लौट आया. सभी के घर आ जाने के बाद कैलाश और विनीता ने मौका मिलने पर फिर से संबंध बनाने शुरू कर दिए.

कैलाश रोज रात में 11 बजे गर्रा नदी किनारे अपने मक्का के खेत की रखवाली के लिए चला जाता था और सुबह 4 बजे घर लौटता था. लेकिन 22 अगस्त, 2020 की सुबह कैलाश काफी देर तक घर नहीं लौटा तो कंचनलता उसे बुलाने खेतों पर गई. वहां खेत में उसे पति की लाश पड़ी मिली. उस ने रोतेपीटते घर वालों को घटना की सूचना दी. कुछ ही देर में घर वाले और गांव के लोग वहां एकत्र हो गए. कैलाश के दोनों भाई भी वहां पहुंच गए थे. वह समझ नहीं पा रहे थे कि कैलाश की हत्या किस ने कर दी. भाई अमर सिंह ने सांडी थाना पुलिस को घटना की सूचना दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर अखिलेश यादव पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थाने से रवाना होते समय उन्होंने उच्चाधिकारियों को घटना की सूचना दे दी थी.

घटनास्थल पर पहुंच कर इंसपेक्टर यादव ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक के सिर व हाथों पर किसी तेज धारदार हथियार के घाव थे. आसपास का निरीक्षण करने पर उन्हें कोई सुबूत हाथ नहीं लगा. उन्होंने कंचनलता, अमर सिंह व अन्य घरवालों से आवश्यक पूछताछ की.

इसी बीच एएसपी (पूर्वी) अनिल सिंह यादव और सीओ बिलग्राम एस.आर. कुशवाहा भी मौके पर पहुंच गए. उच्चाधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया, उस के बाद उन्होंने मृतक के घर वालों से पूछताछ की. फिर इंसपेक्टर अखिलेश यादव को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए.

घटनास्थल की जरूरी काररवाई पूरी करने के बाद इंसपेक्टर यादव ने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल स्थित मोर्चरी भेज दी और अमर सिंह को साथ ले कर थाने लौट गए.

थाने पहुंच कर उन्होंने अमर सिंह की तरफ से अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इंसपेक्टर यादव ने केस की जांच शुरू की. घर वालों ने मामला जमीनी रंजिश का बताया था, लेकिन वैसा लग नहीं रहा था. गांव वालों व पड़ोसियों से पूछताछ के बाद घटना की वजह कुछ और ही नजर आ रही थी इंसपेक्टर यादव ने कैलाश के घर आनेजाने वालों व घर के बराबर में रहने वाले कैलाश के भाईबंधुओं के बारे में पता किया, तब उन्हें पता चला कि लाश मिलने के एक दिन पहले रात में अमर सिंह और उस के चचेरे भाई रमाकांत को एक साथ गांव के बाहर जाते देखा गया था.

यह भी पता चला कि रमाकांत कैलाश की गैरमौजूदगी में उस के घर में ही घुसा रहता था. कैलाश के संबंध अमर सिंह की पत्नी से थे, जिस की वजह से अमर सिंह पत्नी को नोएडा ले गया था.

यह महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर यादव ने अमर सिंह और रमाकांत को 30/31 अगस्त की रात करीब ढाई बजे गांव बरोलिया के मंदिर के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी.

लौकडाउन में घर वापस आने के बाद कैलाश और विनीता में फिर से संबंध बनने लगे तो यह बात छिप न सकी. अमर सिंह को भी यह जानकारी मिल चुकी थी. अमर सिंह गुस्से से आगबबूला हो उठा.

उस ने अपने छोटे भाई कैलाश को काफी समझाया, पर उन दोनों पर उस के समझाने का कोई असर नहीं पड़ा. कैलाश बड़े भाई की बात मानने को तैयार नहीं था. ऐसे में अमर सिंह नेउसे मौत की नींद सुलाने का फैसला कर लिया.

एक बार अमर सिंह ने चचेरे भाई रमाकांत को कैलाश की पत्नी कंचनलता से संबंध बनाते देख लिया था. तब रमाकांत ने अमर सिंह से माफी मांग ली थी और अमर सिंह भी चुप हो गया. अमर सिंह को कैलाश की हत्या में साथ देने के लिए एक साथी की जरूरत थी. वह साथी उसे रमाकांत के रूप में मिल गया.

अमर सिंह ने भाई कैलाश की हत्या में रमाकांत से मदद मांगी तो वह मना करने लगा. इस पर अमर सिंह ने कहा कि उन दोनों के रास्ते का कांटा एक ही है. वह उसे इसलिए मारना चाहता है क्योंकि वह उस की पत्नी से संबंध बना कर उस का घर खराब कर रहा है. कैलाश के रास्ते से हटने पर उस का रास्ता साफ हो जाएगा, फिर वह बेरोकटोक कंचनलता से मिल सकेगा.

अमर सिंह की बात रमाकांत के भेजे में घुस गई और रमाकांत अमर सिंह का साथ देने को तैयार हो गया.  21 अगस्त, 2020 की रात 11 बजे कैलाश अपने मक्के की फसल की रखवाली के लिए घर से निकल गया. योजनानुसार रात साढे़ 12 बजे के करीब अमर सिंह और रमाकांत घर से निकले. दोनों अपने साथ एक कुल्हाड़ी भी लाए थे.

दोनों खेत पर पहुंचे तो कैलाश को गहरी नींद में सोते पाया. यह देख अमर सिंह ने कुल्हाड़ी से उस के सिर पर वार किया. इस के बाद उस ने कई वार किए. रमाकांत ने भी उस से कुल्हाड़ी ले कर उस पर कई वार किए.

लहूलुहान कैलाश चारपाई से नीचे गिर गया. लेकिन कुल्हाड़ी के अनगिनत वारों के कारण कैलाश की सांसें ज्यादा देर तक चल न सकीं और उस की मौत हो गई. उसे मौत के घाट उतारने के बाद उन्होंने अपने खून सने कपड़े उतारे और दूसरे कपड़े पहन कर रक्तरंजित कपड़ों और कुल्हाड़ी को एक जगह छिपा दिया और घर वापस लौट आए.

लेकिन गुनाह छिप न सका और वे पकड़े गए. उन की निशानदेही पर पुलिस ने कुल्हाड़ी और खून से सने कपड़े बरामद कर लिए. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के दोनोें को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, वहां से उन्हें जेल दिया गया.

सौजन्य: सत्यकथा, अक्टूबर 2020

संगीता की जिंदगी का खतरनाक मोड़

एक छात्रा की संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो गई है और उस के घर वाले आननफानन में उस का दाह संस्कार करने की तैयारी कर रहे हैं.

फोन करने वाले ने यह भी बताया कि छात्रा का किसी से प्रेम प्रसंग चल रहा था. हरथला पुलिस चौकी महानगर मुरादाबाद के थाना सिविललाइंस के अंतर्गत आती है. सूचना महत्त्वपूर्ण थी, इसलिए यह खबर थानाप्रभारी नवल मारवाह को देने के बाद चौकी इंचार्ज वीरेंद्र सिंह राणा सोनकपुर कालोनी पहुंच गए.

वहां जाने पर पता चला कि जबर सिंह की बेटी संगीता की मौत हुई है. एसआई वीरेंद्र सिंह जबर सिंह के घर पहुंच गए. वहां घर के बाहर कालोनी के काफी लोग जमा थे और अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी.

पुलिस को आया देख कर लोग आश्चर्यचकित हो कर देखने लगे. एसआई वीरेंद्र सिंह ने सब से पहले जबर सिंह से पूछताछ की. उस ने बताया कि उस की बेटी संगीता कई दिनों से  बीमार थी, जिस से बीती रात उस की मृत्यु हो गई.

लेकिन जब उन्होंने संगीत की लाश का मुआयना किया तो उस के गले पर दबाव जैसे निशान दिखाई दिए. इस से उन्हें यह मामला संदिग्ध लगा. उन्होंने पुलिस अधिकारियों के आने तक अंतिम संस्कार की काररवाई रुकवा दी. यह जानकारी उन्होंने थानाप्रभारी मारवाह को भी दे दी.

थानाप्रभारी ने इस घटना से उच्चाधिकारियों को अवगत करा दिया. चूंकि मामला मुरादाबाद शहर का था, इसलिए थानाप्रभारी नवल मारवाह के अलावा एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद, सीओ (सिविल लाइंस) दीपक भूकर भी मौके पर पहुंच गए.

मृतका संगीता की लाश का मुआयना करने के बाद एसपी अमित कुमार आनंद ने जबर सिंह से बात की तो उस ने उन्हें भी बेटी के मरने की वजह बीमारी बताई. लेकिन जब एसपी साहब ने उस से पूछा कि संगीता को इलाज के लिए किस डाक्टर के पास ले गए थे तो जबर सिंह चुप रह गया.

इस से पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि दाल में जरूर काला है. लिहाजा उन्होंने थानाप्रभारी को निर्देश दिए कि लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने की तैयारी करें. पोस्टमार्टम के बाद ही मौत की वजह पता चलेगी.

एसपी (सिटी) अमित कुमार के आदेश पर थानाप्रभारी ने संगीता की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. साथ ही उन्होंने मृतका के घर वालों के बयान भी दर्ज किए.

संगीता के घर वालों ने पुलिस को बताया कि कल रात घर के सभी लोग छत पर सोने चले गए थे. संगीता नीचे के कमरे में सो रही थी. सुबह जब सब छत से नीचे आए तो संगीता अपने बिस्तर पर मृत पड़ी मिली. रात में उस की मृत्यु कैसे हो गई, किसी को पता नहीं चला. बयान दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी थाने लौट गए.

17 जून की शाम को जब पुलिस को संगीता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो हकीकत सामने आ गई. रिपोर्ट में बताया गया था कि गला घोंट कर उस की हत्या की गई थी. इस से स्पष्ट हो गया कि संगीता के घर वाले पुलिस से झूठ बोल रहे थे. मृतका के शरीर पर चोटों के निशान भी पाए गए. यानी उस के साथ मारपीट भी की गई थी.

थानाप्रभारी ने इस बारे में एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद को अवगत कराया. उन के आदेश पर हरथला पुलिस चौकी इंचार्ज वीरेंद्र कुमार राणा की तरफ से थाने में अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

पुलिस को हत्या का शक संगीता के घर वालों पर ही था, लिहाजा पुलिस ने संगीता के पिता जबर सिंह को थाने बुला कर उस से सख्ती से पूछताछ की. उस ने बताया कि संगीता ने मोहल्ले में उस का जीना मुश्किल कर दिया था.

इसलिए उसे मारने के अलावा उस के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था. जबर सिंह से पूछताछ के बाद संगीता की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

जिला मुरादाबाद के सिविल लाइंस थानाक्षेत्र में एक कालोनी है सोनकपुर. इसी कालोनी में जबर सिंह अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी जगवती के अलावा एक बेटी व 2 बेटे थे. जबर सिंह राजमिस्त्री था. इसी काम से होने वाली आमदनी से उस ने अपने सभी बच्चों को पढ़ाया. संगीता बीए की पढ़ाई कर रही थी और पढ़ाई में काफी होशियार थी.

संगीता का एक दूर का रिश्तेदार था राजकुमार, जो उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में संविदा पर ड्राइवर था. वह भी उसी कालोनी में रहता था. उसका जबर सिंह के यहां खूब आनाजाना था. रिश्ते में वह संगीता का भाई लगता था. संगीता और राजकुमार हमउम्र थे, इसलिए उन दोनों की आपस में खूब पटती थी.

राजकुमार जब भी आता, संगीता से ही ज्यादा बतियाता था. इसी बातचीत के दौरान दोनों के बीच प्यार हो गया. दोनों यह भी भूल गए कि उन के बीच भाईबहन का रिश्ता है. पिछले 5 सालों से उन के बीच यह सिलसिला चल रहा था. इस दौरान उन्होंने अपनी हसरतें भी पूरी कर ली थीं. संगीता के घर वालों को इस की भनक तक नहीं लगी.

यह बात उन्हें तब पता चली जब संगीता के पिता जबर सिंह उस की शादी के लिए लड़का ढूंढने लगे. तब संगीता ने हिम्मत जुटा कर अपने घर वालों को बताया कि वह राजकुमार से प्यार करती है और उसी से शादी करेगी.

बेटी की यह बात सुन कर जबर सिंह के पैरों तले से जमीन खिसक गई. क्योंकि जिस के साथ वह शादी करने की बात कह रही थी, वह उन का रिश्तेदार था. रिश्तेदार के साथ उस की शादी कैसे हो सकती थी. वैसे भी वे दोनों आपस में भाईबहन थे. संगीता के मातापिता ने उसे बहुत समझाया लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रही.

घर वाले संगीता को लाख समझा रहे थे लेकिन वह अपनी जिद नहीं छोड़ रही थी. तब जबर सिंह ने राजकुमार के घर वालों से बात की और कहा कि वह राजकुमार को समझाएं कि वह संगीता का पीछा छोड़ दे. घर वालों ने जब राजकुमार को समझाया तो इतना हुआ कि उस ने संगीता के घर जाना बंद कर दिया. लेकिन कुछ दिनों बाद संगीता और राजकुमार ने घर के बाहर मिलना शुरू कर दिया.

किसी तरह जबर सिंह को यह बात पता चली तो उस ने अपने रिश्तेदारों और कालोनी के खास लोगों को बुला कर पंचायत बैठाई. पंचायत में संगीता और राजकुमार को भी बुलवाया गया. पंचायत के सामने दोनों ने वादा किया कि वे भविष्य में नहीं मिलेंगे. इस के बाद दोनों का मिलनाजुलना बंद हो गया. संगीता भी सामान्य हो कर घर के कामों में हाथ बंटाने लगी.

जब घर का माहौल सामान्य हो गया तो जबर सिंह संगीता के लिए फिर से वर की तलाश में जुट गया. इस की जानकारी संगीता को हुई तो उस ने फिर से अपना राग अलापना शुरू कर दिया. उस ने जिद पकड़ ली कि वह राजकुमार के अलावा हरगिज किसी और से शादी नहीं करेगी. यानी उस ने अपने घर वालों की चिंता फिर से बढ़ा दी. इतना ही नहीं, उस ने घटना से 8 दिन पहले खानापीना तक छोड़ दिया.

ऐसे में रिश्तेदारों और कालोनी की महिलाओं ने संगीता को समझाया, ‘‘तू जिस राजकुमार के साथ शादी करने की जिद कर रही है वह तो रोडवेज में केवल ड्राइवर है, वह भी ठेके पर. तू तो अच्छीखासी पढ़ीलिखी है तेरे लिए तो कोई ढंग की नौकरी वाला लड़का भी मिल जाएगा. इसलिए तू राजकुमार के चक्कर में मत पड़, बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे.’’

इतना समझाने के बाद भी वह टस से मस नहीं हुई. वह बोली, ‘‘मैं ने राजकुमार को अपना सब कुछ सौंप दिया है. या तो मर जाऊंगी या फिर शादी उसी से करूंगी.’’

लाख समझाने पर भी न तो उस ने खाना खाया और न ही राजकुमार से शादी करने की जिद छोड़ी. इसी दौरान मौका मिलने पर वह अपने घर से भाग कर प्रेमी राजकुमार के घर चली गई.

घर वालों के लिए यह बहुत बड़ा धक्का था. पिता जबर सिंह ने गुस्से में कह दिया कि वह चली गई तो आज से हमारा उस से कोई संबंध नहीं है. आसपड़ोस के लोगों और कुछ रिश्तेदारों ने जबर सिंह को समझाया कि जा कर अपनी बेटी को घर ले आओ, अभी कुछ नहीं बिगड़ा है.

कुछ ने सलाह दी कि पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दो. कुछ लोगों ने कहा कि रिपोर्ट लिखवाने से कोई फायदा नहीं है. दोनों बालिग हैं. अगर संगीता ने तुम्हारे खिलाफ बयान दे दिया तो तुम लोग उलटे फंस सकते हो.

ऐसे में जबर सिंह परेशान हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. उस ने अपनी पत्नी और बेटों से इस बारे में बात की. सभी ने यह निर्णय लिया कि राजकुमार के घर जा कर संगीता को घर लाया जाए, क्योंकि उस के वहां जाने के बाद बहुत बदनामी हो रही थी.

16 जून, 2020 को संगीता के घर वाले राजकुमार के घर पहुंचे. उन्होंने संगीता को समझाया कि वह अभी घर चले. पूरे रीतिरिवाज के साथ वह उस की शादी राजकुमार से कर देंगे. घर वालों पर विश्वास कर के संगीता उन के साथ घर आ गई.

घर आने पर घर वालों ने उसे समझाना चाहा कि वह राजकुमार से शादी करने की जिद छोड़ दे. इस बात पर घर वालों से उस का झगड़ा व मारपीट हुई.

संगीता के घर वाले उस से बहुत परेशान हो चुके थे, लिहाजा उन्होंने इस मामले को हमेशा के लिए खत्म करने की योजना बनाई. योजना के अनुसार, 17 जून की रात में जबर सिंह और उस के बेटे सचिन ने संगीता की गला घोंट कर हत्या कर दी.

हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश बैड पर डाल दी और सोने के लिए छत पर चले गए.

सुबह होते ही वे लोग छत से नीचे आए और घर में रोनाधोना शुरू हो गया. रोने की आवाज सुन कर मोहल्ले वाले जबर सिंह के घर पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि बीमारी की वजह से संगीता की मौत हो गई है. फिर आननफानन में संगीता के दाह संस्कार की तैयारी शुरू हो गई.

जब संगीता की मौत का पता उस के प्रेमी राजकुमार को लगा तो उस ने इस मामले की सूचना पुलिस चौकी हरथला में दी. उस के बाद पुलिस मौके पर पहुंची.

जबर सिंह से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के बेटे सचिन को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. इस के बाद पुलिस ने दोनों आरोपियों को 19 जून को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

घटना के बाद मुरादाबाद के नए एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने चार्ज संभाला तो उन्होंने नए पुराने केसों की फाइलें देखनी शुरू कीं.

जब उन्होंने संगीता मर्डर केस की फाइल का अवलोकन किया तो इस औनर किलिंग के मामले में उन्हें संगीता की मां जगवती की भी संलिप्तता नजर आई. एसएसपी के आदेश पर 29 जून को मृतका की मां जगवती को भी हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर उसी दिन जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, सितंबर 2020

रास न आया ब्याज

गांव पनवारी में रहने वाले सोहनवीर सिंह से हुआ था. सोहनवीर प्राइवेट नौकरी करता था. उस की इतनी कमाई नहीं थी कि घर का खर्च आसानी से चल पाता. चंचल इस से खुश नहीं थी लेकिन अपना भाग्य मान कर वह पति सोहनवीर के साथ निर्वाह कर रही थी.

सोहनवीर पत्नी भक्त था, वह चंचल से बेइंतहा प्यार करता था. पति के इस बर्ताव ने आहिस्ताआहिस्ता चंचल के स्वभाव को बदल दिया.

एक शाम जब सोहनवीर लौटा तो चंचल ने उसे हाथपैर धोने के लिए गरम पानी दिया. हाथमुंह धो कर सोहनवीर रसोई में चंचल के पास ही बैठ गया, जहां चंचल उस के लिए गरम रोटियां सेंक रही थी. खाना खा कर सोहनवीर उठा और बैड पर जा कर लेट गया. सारा काम खत्म करने के बाद चंचल भी उस के पास आ कर बैड पर लेट गई.

चंचल को पति के मुंह से शराब की गंध महसूस हुई तो बोली, ‘‘तुम ने शराब पी है?’’

‘‘हां आज ज्यादा ठंड लग रही थी इसीलिए, लेकिन कल से नहीं पीऊंगा, वादा करता हूं.’’ सोहनवीर गलती मान कर बोला.

‘‘आज माफ किए देती हूं, आइंदा शराब पी कर घर में आए तो घर में घुसने नहीं दूंगी. फिर ठंड में सारी रात बाहर ही ठिठुरते रहना, समझे.’’ चंचल ने आंखें दिखा कर कहा.

उस रात सोहनवीर ने चंचल से वादा तो किया कि दोबारा शराब को हाथ नहीं लगाएगा, लेकिन वो वादा रात के साथ ही कहीं खो गया. अगले दिन सोहनवीर शराब के नशे में घर लौटा तो पतिपत्नी के बीच कहासुनी हो गई. इस के बाद चंचल फिर से पति सोहनवीर से चिढ़ने लगी. अब सोहनवीर चंचल को जरा भी नहीं सुहाता था. वह उस से हमेशा कटीकटी रहने लगी.

सोहनवीर चूंकि चंचल का पति था, इसलिए वह चाहे जैसा भी था, उसे उस के साथ रहना ही था. दिन गुजरते गए, समय पंख लगा कर उड़ने लगा. लाख कोशिशों के बाद भी चंचल सोहनवीर की शराब छुड़वा पाने में असफल रही. समय के साथ चंचल एक बेटे और एक बेटी की मां भी बन गई.

इस बीच सोहनवीर शराब का आदी हो गया था. शराब के चक्कर में उस ने कई लोगों से पैसे भी उधार लिए थे. वह पहले उधार लिए गए पैसे चुका नहीं पाता था, फिर से उधार मांगने लगता था. इसी के चलते लोगों ने उसे उधार देना बंद कर दिया था.

लोग तगादा करते तो सोहनवीर उन के सामने आने से बचने लगा. इस पर लोग उस के घर के बाहर आ कर तगादा करने लगे. सोहनवीर घर नहीं होता तो लोग चंचल को ही बुराभला बोल कर चले जाते थे.

चंचल चुपचाप सब के ताने सुनती, फिर दरवाजा बंद कर के रोती रहती. पति से कुछ कहती तो उस के सितम उस के जिस्म पर उभर कर दिखाई देने लगते.

एक दिन दोपहर में सोहनवीर कमरे में खाना खा रहा था. तभी किसी ने जोरजोर से दरवाजे की कुंडी बजाई. सोहनवीर समझ गया कि कोई लेनदार दरवाजे पर आया है. उस ने चंचल से कहा, ‘‘तुम जा कर देखो और मुझे पूछे तो दरवाजे से ही चलता कर देना.’’

‘‘हां, यही काम तो है मुझे कि हर किसी से झूठ बोलती रहूं.’’ कह कर चंचल झल्ला कर उठी.

सोहनवीर उसे लाल आंखों से घूर रहा था. चंचल ने दरवाजा खोला तो सामने एक व्यक्ति खड़ा था. उसे देख कर चंचल ने पूछा, ‘‘आप कौन हैं?’’

‘‘मैं शिशुपाल सिंह हूं. कहां है सोहनवीर, जब से पैसा लिया है, दिखाई ही नहीं दे रहा.’’ शिशुपाल रूखे स्वर में बोला.

‘‘वो तो घर पर नहीं हैं, आप बाद में आ जाना.’’

‘‘मेरा यही काम है क्या. लोगों को पैसा दे कर भलाई करूं और जब पैसे लेने का वक्त आए तो देनदार घर से गायब मिले. कहे देता हूं, इस तरह नहीं चलेगा. अपने आदमी को कहना मेरा पैसा वापस कर दे, वरना अच्छा नहीं होगा.’’ शिशुपाल कड़क कर बोला.

‘‘आप नाराज क्यों होते हैं, वो आएंगे तो मैं बोल दूंगी. मैं ने तो आप को पहली बार देखा है.’’ चंचल बोली.

और भी हिदायतें दे कर शिशुपाल सिंह वहां से चला गया. चंचल ने दरवाजा बंद किया और फिर से आ कर रोटियां सेंकने लगी.

‘‘सारी उम्र लोगों की गालियां सुनवाते रहना लेकिन ये दारू मत छोड़ना.’’ चंचल गुस्से में पति से बोली.

‘‘ऐ तू मुझे आंखें दिखाती है, साली मैं तेरा मर्द हूं. जानती है पति परमेश्वर होता है. तू है कि मुझे ही आंखें दिखा रही है.’’ सोहनवीर चिल्ला कर बोला.

‘‘पति के अंदर परमेश्वर वाले गुण हों तभी तो. तुम में पति जैसा है कुछ.’’ चंचल बोली तो सोहनवीर उस के बाल पकड़ कर रसोई से बाहर ले आया और लातघूंसों से बुरी तरह पिटाई करने लगा.

चंचल रोतीबिलखती खुद को पति के हाथों से छुड़ाती रही लेकिन सोहनवीर उसे तब तक पीटता रहा, जब तक खुद थक नहीं गया. चंचल रात भर दर्द से तड़पती रही और सोहनवीर शराब पी कर एक ओर लुढ़क गया.

3-4 दिन बाद शिशुपाल एक बार फिर से पैसों की वसूली के लिए सोहनवीर के घर आया तो इत्तेफाक से दरवाजा खुला था. शिशुपाल भीतर घुसता चला आया. चंचल आइने में देख कर बाल संवार रही थी. शिशुपाल पर नजर पड़ी तो उस ने मुसकरा कर कहा, ‘‘अरे शिशुपालजी आप! अरे आप खड़े क्यों हैं, बैठिए न.’’

शिशुपाल चुप था और एकटक चंचल की ओर देख रहा था. चंचल उस के करीब आई और कुरसी उठा कर उस की ओर सरकाते हुए बोली, ‘‘आप बैठिए, मैं आप के लिए चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘नहीं, मुझे चाय नहीं पीनी. मैं तो सोहनवीर से मिलने आया था. कहां है वो मेरे पैसे कब देगा?’’ शिशुपाल ने पूछा.

‘‘आप के पैसे मिल जाएंगे, चिंता मत कीजिए.’’ चंचल अब भी मुसकरा रही थी. वह रसोई में चली गई और 2 कप चाय और प्लेट में बिस्कुट, नमकीन ले आई. उस ने शिशुपाल की ओर चाय का कप बढ़ाते हुए कहा, ‘‘कितने रुपए हैं आप के?’’

‘‘आप को नहीं मालूम.’’ शिशुपाल ने कप हाथ में ले कर पूछा.

‘‘जब पति पत्नी को सारी बातें बताए, तभी उसे हर बात की जानकारी रहती है. जो आदमी पत्नी को सिवाय पैर की जूती के कुछ नहीं समझता वो…खैर जाने दीजिए मैं भी कहां आप से अपना रोना ले कर बैठ गई.’’ चंचल बोल रही थी, शिशुपाल खामोशी से उस की बातें सुन रहा था.

काफी देर तक इंतजार के बाद भी सोहनवीर घर नहीं आया तो शिशुपाल जाने लगा. चंचल ने उसे थोड़ी देर और रुकने के लिए कहा, लेकिन वह नहीं रुका. चंचल ने उस का मोबाइल नंबर ले लिया और बोली, ‘‘वो आएंगे तो मैं आप को फोन कर के बता दूंगी.’’

शिशुपाल वहां से चला गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि सोहनवीर की पत्नी चंचल उस पर इतनी मेहरबान क्यों हो गई. फिर उस ने सिर को झटका और सोचने लगा कि उसे तो अपने पैसे चाहिए चाहे पत्नी दे या पति. सोचता हुआ वह अपने घर पहुंच गया.

शिशुपाल सिंह संपन्न किसान था. करीब 18 साल पहले उस का विवाह सीता से हुआ था. सीता से उसे 2 बेटे और एक बेटी हुई. करीब डेढ़ साल पहले आपसी विवाद के कारण सीता हमेशा के लिए घर छोड़ कर चली गई. शिशुपाल अकेला पड़ गया. गांव के लोगों को वह ब्याज पर पैसा देता था.

एक दिन सोहनवीर ने उस से किसी जरूरी काम के लिए पैसे उधार मांगे तो शिशुपाल ने दे दिए. पैसे उधार मिलने के बाद सोहनवीर ने शिशुपाल की तरफ जाना ही छोड़ दिया. काफी समय बीतने के बाद सोहनवीर शिशुपाल से नहीं मिला तो शिशुपाल सोहनवीर के घर तक पहुंच गया.

सोहनवीर घर पर नहीं मिला तो चंचल ने शिशुपाल की आवभगत की. शिशुपाल उस दिन ये कह कर चला गया कि 4 दिन बाद फिर आएगा.

4 दिन गुजर गए. चंचल को आज शिशुपाल का इंतजार था. पति और बच्चे तो सुबह ही चले गए थे. उन के जाने के बाद चंचल ने घर का सारा काम खत्म किया और खुद सजसंवर कर बैठ गई. अपने बताए समय पर शिशुपाल सोहनवीर के घर पहुंच गया. दरवाजे की कुंडी खड़की तो चंचल ने घड़ी की ओर देखा, ठीक 11 बज रहे थे.

चेहरे पर मुसकान बिखेर कर एक बार वह आइने के सामने आ कर मुसकराई, फिर मन ही मन लजाई, उस ने साड़ी के पल्लू से खुद को लपेटा और सामने के बालों को गोल कर गालों पर गिरा लिए. चंचल का निखरा गोरा बदन दूध की तरह दमक रहा था.

उस ने दरवाजा खोला तो सामने शिशुपाल खड़ा था. उसे देखते ही चंचल ने मुसकान बिखेरी और निगाहें नीची कर लीं. फिर आहिस्ता से बोली, ‘‘अंदर आइए न.’’

‘‘जी, सोहनवीर नहीं है क्या?’’ शिशुपाल ने हिचकिचा कर पूछा.

‘‘मैं तो हूं, आप की ही राह देख रही थी.’’ चंचल बोल पड़ी.

‘‘जी आप मेरी राह!’’ शिशुपाल चौंका तो चंचल ने बिना किसी हिचक के उसे हाथ बढ़ा कर अंदर आने का इशारा किया. शिशुपाल अंदर आ गया तो चंचल ने अंदर से कुंडी लगा दी और पलट कर शिशुपाल से बोली, ‘‘आप अभी तक खड़े हैं.’’

चंचल ने कुरसी निकाल कर देनी चाही तो शिशुपाल बोला, ‘‘आज मैं अपने पैसे ले कर ही जाऊंगा, बुलाओ सोहनवीर को जो मुंह छिपा कर बैठा है.’’

‘‘आप के तो दिमाग में दिन रात पैसा ही पैसा सवार रहता है. ये देखो कितना पैसा है मेरे पास.’’ चंचल ने स्वयं ही साड़ी का पल्लू हटा कर उस से कहा. यह देख शिशुपाल ठगा सा देखता रह गया. उस की निगाहें चंचल के तराशे हुए जिस्म पर थीं. वह अपलक देखे जा रहा था.

‘‘सचमुच सांचे में तराशा हुआ बदन है तुम्हारा.’’ शिशुपाल बोला.

चंचल ने झट से पल्लू से खुद को लपेट लिया. शिशुपाल चंचल के दिल की मंशा जान चुका था. उस ने चंचल को लपक कर अपनी ओर खींचा और बाजुओं में जकड़ लिया.

चंचल के सारे बदन में एक अजीब सा रोमांच उठने लगा. उस ने दोनों बांहें शिशुपाल के कंधों पर जमा लीं. शिशुपाल ने चंचल को बांहों में उठा कर पलंग पर लिटा दिया. वह सुहागन हो कर भी शादीशुदा औरत की सारी मर्यादाएं भूल कर वासना के अंधे कुंए में कूद पड़ी थी, जिस में कूदने के बाद चंचल ने असीम आनंद का अनुभव किया.

वह शिशुपाल की दीवानी हो गई. उस ने कहा, ‘‘अब बताओ इस दौलत में सुख है या फिर तुम्हारी तिजोरी वाली दौलत में?’’

‘‘सच कहूं तो मैं ने जब पहली बार तुम्हें देखा था तो तिजोरी की दौलत को भूल गया था और तुम्हारी इस दौलत का दीवाना हो गया था.’’

शिशुपाल की बांहों की गरमी पा कर चंचल को लगने लगा था कि अब उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गईं. चंचल अब शिशुपाल के वश में हो चुकी थी. जब जी करता दोनों एकदूसरे में समा जाते थे.

21 जुलाई, 2020 की सुबह शिशुपाल खेत से चारा लाने की बात कह कर घर से निकला लेकिन दोपहर तक नहीं लौटा. घरवालों ने उसे सभी जगह तलाशा, लेकिन कोई पता नहीं चला. कई दिन बाद भी जब शिशुपाल का पता नहीं लगा तो उस के भाई नवल सिंह ने 30 जुलाई को सिकंदरा थाने में शिशुपाल के गुम होने की सूचना दी. जिस पर इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने गुमशुदगी दर्ज कर जांच एसआई अमित कुमार को सौंप दी.

पुलिस ने हर जगह शिशुपाल का पता किया लेकिन कुछ पता नहीं लगा. इस पर पुलिस ने जानकारी जुटा कर पता किया कि शिशुपाल से कौनकौन मिलने आता है और शिशुपाल कहांकहां जाता था. इसी जांच में सोहनवीर पुलिस के शक के दायरे में आ गया. पता चला कि शिशुपाल हर रोज सब से ज्यादा समय सोहनवीर के घर बिताता था.

शिशुपाल और सोहनवीर के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स की जांच की गई तो जानकारी मिली कि घटना वाले दिन सुबह साढ़े 10 बजे दोनों के बीच बात हुई थी. फोन सोहनवीर ने किया था. उसी के बाद से शिशुपाल लापता हो गया था.

12 अगस्त, 2020 को इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने पुलिस टीम के साथ जा कर सोहनवीर सिंह को उस के घर से हिरासत में ले लिया. थाने  ला कर जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने शिशुपाल की हत्या कर देने की बात स्वीकार कर ली.

इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने उस की निशानदेही पर अंशुल एपीआई के पास निर्माणाधीन इमारत के पास सीवर नाले से शिशुपाल की लाश बरामद कर ली. लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद वह थाने लौट आए.

पुलिस ने सोहनवीर के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत मुकदमा दर्ज करने के बाद उस से विस्तृत पूछताछ की.

पूछताछ में पता चला कि शिशुपाल और चंचल के नाजायज रिश्ते की इमारत जैसेजैसे बनती गई, वह लोगों की नजरों में आने लगी थी. लोगों की नजरों में बात आई तो सोहनवीर तक पहुंचते देर नहीं लगी. तब सोहनवीर ने अपने घर की इज्जत पर हाथ डालने वाले शिशुपाल को जान से मार देने का फैसला कर लिया.

उस ने घटना से 1-2 दिन पहले मोबाइल पर शिशुपाल से बात की और कहा कि कुछ परेशानी थी, इस वजह से वह उस का पैसा नहीं दे पाया लेकिन अब जल्द ही दे देगा. शिशुपाल तो वैसे भी अपनी दी गई रकम का ब्याज उस की पत्नी के बदन से वसूल रहा था. इसलिए उस ने कह दिया कि ठीक है जब पैसा हो जाए दे देना.

21 जुलाई, 2020 की सुबह शिशुपाल चारा लाने के लिए घर से खेत की तरफ जाने के लिए निकला. वह खेत पर था तब करीब साढ़े 10 बजे सोहनवीर ने फोन कर के उसे मिलने के लिए बुलाया. शिशुपाल उस के पास पहुंचा तो सोहनवीर उसे अंशुल एपीआई के पास निर्माणाधीन इमारत में ले गया. वहीं पर उस ने कोल्ड ड्रिंक में कीटनाशक मिला कर शिशुपाल को पिला दी, जिसे पीने के कुछ ही देर में शिशुपाल की मौत हो गई. सोहनवीर ने शिशुपाल की लाश इमारत के पास वाले सीवर नाले में डाल दी और घर चला गया.

कागजी खानापूर्ति करने के बाद इंसपेक्टर अरविंद कुमार ने सोहनवीर को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में चंचल परिवर्तित नाम है)

सौजन्य: सत्यकथा, सितंबर 2020

प्रियंका का सत्यशील: क्या सच में पति की कातिल थी वो

सिक्सलेन बाईपास पर सांती पुल के पास सर्विस रोड पर एक युवक का शव पड़ा है. इस सूचना पर थानाप्रभारी मक्खनपुर विनय कुमार मिश्र पुलिस टीम ले कर रात में ही घटनास्थल पर पंहुच गए.

प्रभारी निरीक्षक ने शव व घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 28-29 साल के आसपास थी. शव देखने से ऐसा लग रहा था जैसे मृतक को किसी वाहन ने रौंदा हो.

उस की मौत हो चुकी थी. मृतक के सीधे हाथ की कलाई पर प्रमोद यादव गुदा (लिखा) हुआ था.

इस से यह तो पता चल गया कि मृतक का नाम प्रमोद यादव है लेकिन नाम से यह पता नहीं चल सकता था कि वह कहां का रहने वाला था.

इस बीच सुबह हो गई थी. सर्विस रोड पर पुलिस को देख आसपास के लोग एकत्र हो गए. पुलिस ने उन से शव की शिनाख्त कराने का प्रयास किया लेकिन कोई भी मृतक को नहीं पहचान सका. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने  मृतक की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फिरोजाबाद भेज दी.

पुलिस ने मृतक की शिनाख्त के लिए उस का फोटो और दाहिनी बांह जिस पर उस का नाम था, का फोटो सोशल मीडिया पर डाल कर शिनाख्त कराने का प्रयास किया. 17 जुलाई की सुबह मृतक की शिनाख्त फिरोजाबाद जिला के गांव जेबड़ा निवासी 30 वर्षीय सत्यशील उर्फ प्रमोद यादव के रूप में हो गई.

मृतक के घर वालों ने उस की शिनाख्त मोर्चरी जा कर की. जब गांव वालों को सत्यशील की मौत की बात पता चली, तो गांव में मातम छा गया. सत्यशील सीधासादा युवक था, वह रात में सांती पुल पर क्या करने गया था, यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही थी.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट देख कर पुलिस के होश उड़ गए. पुलिस जिसे अब तक दुघर्टना मान रही थी, वह हत्या थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में युवक की मौत का कारण विषैले  पदार्थ का सेवन और गला घोंटना बताया गया था.

मृतक की शिनाख्त होने के बाद 19 जुलाई को मृतक  के चाचा लालता प्रसाद ने थाना मक्खनपुर में प्रमोद की पत्नी प्रियंका और सत्यशील के ममेरे भाई मोहन सिंह के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई. मोहन सिंह गांव बनकट का रहने वला था.

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि मृतक सत्यशील के ममेरे भाई मोहन से मृतक की पत्नी प्रियंका के अवैध संबंध थे. इस की जानकारी सत्यशील को हो गई थी. इसे ले कर सत्यशील और प्रियंका में आए दिन झगड़ा होता था. रास्ते का कांटा निकालने के लिए दोनों ने षडयंत्र रच कर सत्यशील की हत्या करा दी है.

उधर पति की दुर्घटना में आकस्मिक मौत पर प्रियंका का रोरो कर बुरा हाल था. जबकि ससुराल वालों द्वारा पति की हत्या में उस का हाथ होने की बात से वह बुरी तरह आहत थी.

पुलिस ने चाचा की तहरीर पर भादंवि की धारा 302,201,120बी, 328, 34 के तहत हत्या का मुकदमा  दर्ज करने के बाद गहनता से जांच शुरू कर दी. इस संबंध में पुलिस ने सब से पहले मृतक की पत्नी प्रियंका से पूछताछ की. उस ने बताया, 15 जुलाई की शाम साढ़े 7 बजे सत्यशील किसी कारखाने में काम करने की बात करने के लिए घर से निकले थे.

जब वह देर रात तक लौट कर नहीं आए तो उसे चिंता हुई और उस ने रात में ही अपने मायके वालों को फोन कर इस संबंध में बताया था. उस ने मोहन से अवैध संबंधों की बात सिरे से नकार दी. उस ने पुलिस को बताया कि मोहन उस का ममेरा देवर है और सत्यशील से मिलने घर आता था. पुलिस ने प्रियंका के बयानों की सच्चाई जानने के लिए उस के मोबाइल को खंगाला. उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर शक के दायरे में आया, जिस पर प्रियंका सब से ज्यादा बातें करती थी.

पुलिस ने उस नंबर को ट्रेस किया तो नंबर मोहन का निकला. पता चला कि 15/16 जुलाई की घटना वाली रात प्रियंका और मोहन की कई बार बातें हुई थीं.

प्रियंका को संदेह के दायरे में लाने के लिए इतना ही काफी था. पुलिस ने उसे हिरासत में ले कर पूछताछ की. प्रियंका  बारबार अपने बयान बदलती रही. इस से वह पूरी तरह संदेह के घेरे में आ गई. महिला सिपाही ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो प्रियंका टूट गई. वह थाने में ही फूटफूट कर रोने लगी.

उस ने अपना जुर्म कबूल करते हुए पुलिस को बताया कि मोहन ने उसे 15 जुलाई को फोन किया था कि सत्यशील को शाम 7 बजे कारखाने में नौकरी की बात करने के बहाने मेरे पास पायनियर तिराहे पर भेज देना.

मोहन के कहे अनुसार उस ने पति को पायनियर तिराहे पर भेज दिया था. पति की हत्या कैसे और कहां करनी है, ये काम मोहन को करना था. पुलिस समझ गई कि सत्यशील की हत्या प्रियंका और उस के प्रेमी मोहन ने षडयंत्र रच कर योजनाबद्ध तरीके से की थी.

एसएसपी सचिंद्र पटेल ने इस केस के मुख्य आरोपी मोहन की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार को सौंपी. साथ ही उन्होंने क्षेत्राधिकारी शिकोहाबाद इंदुप्रभा सिंह और थाना मक्खनपुर के प्रभारी विनय कुमार मिश्र की मदद के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम के सहयोग के लिए सर्विलांस टीम को भी लगा दिया गया.

पुलिस टीम मुख्य आरोपी मोहन की गिरफ्तारी के लिए पूरी तैयारी के साथ जुट गई. क्योंकि उस की गिरफ्तारी के बाद ही हत्या के इस रहस्य से परदा उठ सकता था.

21 जुलाई को थानाप्रभारी विनय कुमार  मिश्र पुलिस टीम के साथ क्षेत्र में गश्त पर थे. तभी मुखबिर ने सूचना दी कि सत्यशील की हत्या में शामिल नामजद मोहन हाईवे स्थित उसायनी मंदिर पर खड़ा है.

इस सूचना पर पुलिस उसायनी मंदिर के पास पहुंच गई. वहां आरोपी मोहन कार के पास खड़ा था. पुलिस को देख कर वह भागने लगा साथ ही कार में बैठे उस के 2 अन्य साथी भी भागे. पुलिस ने घेराबंदी कर तीनों को गिरफ्तार कर लिया. मोहन सिंह के साथ पकड़े गए उस के दोस्त थे. इन में नीरज मिश्रा नगला सदा का रहने वाला था और जयवीर, गांव कुतकपुर जारखी में रहता था.

हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम में थानाप्रभारी विनय कुमार मिश्र, सब इंस्पेक्टर धीरेंद्र सिंह, कास्टेबल सुमनेश कुमार, राहुल चौधरी, पवन कुमार, महिला कास्टेबल रेनू सिंह शामिल थे.

पुलिस ने सत्यशील की हत्या में शामिल पत्नी प्रियंका उस के प्रेमी मोहन, दोस्त नीरज व जयवीर को गिरफ्तार कर के सभी से पूछताछ की. आरोपियों ने सत्यशील की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

एसएसपी सचिंद्र पटेल ने पुलिस लाइन, दबरई में प्रैसवार्ता में हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी. कहानी यह निकल कर सामने आई कि अपने पति सत्यशील के सीधेपन से प्रियंका शादी के 2 साल बाद ही ऊब गई थी. मोहन का प्रियंका के घर काफी दिनों से आनाजाना था.

23 साल का मोहन उम्र में प्रियंका से 2 साल छोटा था. वह रिश्ते में उस का ममेरा देवर था, प्रियंका उस की रोमाटिंक बातों में खूब रस लेती थी.

भाभी के प्रेम में दीवाना मोहन प्यार की राह में आ रहे कांटे को हटाने के लिए तैयार था. प्रियंका और मोहन ने मिल कर सत्यशील की हत्या का षडयंत्र रचा. मोहन ने इस में अपने 2 दोस्तों को भी शामिल कर लिया. हत्यारोपियों ने इस खौफनाक हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी—

उत्तर प्रदेश के शहर फिरोजाबाद का एक थाना है मक्खनपुर. जेबड़ा गांव इसी थाना क्षेत्र में आता है. सत्यशील उर्फ प्रमोद यादव अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी प्रियंका के अलावा 3 बेटियां और वृद्ध मां थीं.

सत्यशील मांबाप का इकलौता बेटा था. शादी से पहले वह अकसर गांव बनकट स्थित अपने मामा पप्पू के घर चला जाता था. वहां वह कईकई दिन ठहरता था. उस के मामा के दूसरे नंबर के 23 वर्षीय बेटे मोहन सिंह से उस की खूब पटती थी. सत्यशील के हाईस्कूल कर लेने के बाद घर वालों ने उस की शादी गांव भढ़ाईपुरा निवासी एक युवती से कर दी.

शादी के बाद सत्यशील के 2 बेटियां हुईर्ं. उस की बड़ी बेटी मानसी इस समय 7 साल की व मानवी 6 साल की हैं. तीसरी डिलीवरी के दौरान सत्यशील की पत्नी की मृत्यु हो गई. दोनों बेटियां छोटी थीं. उन की परवरिश करने वाला घर में कोई नहीं था. सत्यशील के पिता महेश चंद्र की मौत हो चुकी थी जबकि मां दिमाग से कमजोर होने के कारण घरगृहस्थी का काम नहीं कर पाती थी.

इस के चलते सत्यशील के ससुराल वालों ने 2 साल पहले उस की शादी गांव उतरारा की अपनी जानकार 25 वर्षीय प्रियंका से करा दी. प्रियंका की एक साल की एक बेटी है किट्टू.

 

सत्यशील के पास ढाई बीघा जमीन थी. वह अपनी खेती के साथ बटाई पर जमीन ले कर खेतीकिसानी करता था. इसी से उस के परिवार की गुजरबसर होती थी. सत्यशील ने बच्चों के लिए घर में गाय भी पाल ली थी. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था.

सत्यशील फसल की सिंचाई व देखभाल के लिए रात में अकसर खेतों पर चला जाता था. आराम करने के लिए खेतों पर झोपड़ी बनी थी. कभीकभी वह उस झोपड़ी में ही सो जाता था. सुबह होने पर वह घर आ जाता था.

ममेरे भाई मोहन के पास निजी टीयूवी कार थी, जिसे वह टैक्सी के रूप में चलाता था. वह अकसर सत्यशील के गांव जेबड़ा आताजाता रहता था. दोनों भाइयों में खूब पटती थी. प्रियंका मोहन की भाभी थी, सो दोनों अकसर एकदूसरे से दिल्लगी करते रहते थे.

बातों ही बातों में एक बार मोहन बोला, ‘‘भाभी, रात में भैया तो खेतों पर सोने चले जाते हैं, तुम्हें नींद कैसे आती है?’’

इंटरमीडिएट तक पढ़ी प्रियंका देवर की शरारत समझ कर भी अनजान बनी रही. बोली, ‘‘जैसे तुम्हें नींद आ जाती है वैसे ही मुझे आ जाती है.’’ प्रियंका ने कहा, ‘‘वैसे मोहन, अब तुम शादी कर लो.’’

एक दिन मोहन रात में गाड़ी चलाने के बाद सत्यशील के घर आ गया. सत्यशील खाना खा कर खेत की सिंचाई के लिए जाने वाला था. मोहन के आने पर उस ने प्रियंका से कहा, ‘‘कल्लू को खाना खिला देना.’’ फिर उस ने कल्लू से कहा, ‘‘मुझे खेत पर जाने के लिए देर हो रही है. इसलिए जाता हूं.’’

सत्यशील खेतों पर चला गया.  प्रियंका ने मोहन के लिए खाना बनाया. फिर देवर को बड़े प्यार से खिलाया. खाना खाते और बातचीत करते कब समय निकल गया दोनों को पता ही नहीं चला. प्रियंका ने मोहन से कहा, ‘‘रात ज्यादा हो गई है, सुबह चले जाना.’’

इस पर मोहन ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं अपनी गाड़ी में सो जाऊंगा.’’

इस पर प्रियंका ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम्हें घर में सोने के लिए कौन मना कर रहा है. इतना बड़ा घर है और सोओगे गाड़ी में.’’

प्रियंका की बातों से मोहन को मन की मुराद पूरी होती लगी. उस रात प्रियंका और मोहन दोनों अपनेअपने बिस्तर पर करवटें बदलबदल कर सोने का प्रयास करने लगे. मगर 2 जवान दिलों की बढ़ती धड़कनों ने उन्हें सोने नहीं दिया.

प्रियंका के पैरों की पायल की रूनझुन ने मोहन की आंखों से नींद उड़ा दी थी. आखिर जब मोहन से नहीं रहा गया तो वह अपने बिस्तर से उठ कर बोला, ‘‘भाभी, नींद नहीं आ रही क्या?’’

प्रियंका मुसकरा कर बोली, ‘‘तुम्हें आ रही है?’’

मोहन बोला, ‘‘तुम्हारे बिना कैसे आएगी?’’

फिर प्यासी नदी के 2 किनारों को मिलने में देर नहीं लगी. इस के बाद जब भी मौका मिलता दोनों मिल लेते थे. उन्हें रोकने टोकने वाला घर में कोई नहीं था.

लौकडाउन में तो मोहन रोज ही सत्यशील के घर जाता था. इस बीच सत्यशील कहीं भी आजा नहीं रहा था. यहां तक कि पुलिस के डर से रात में अपने खेतों पर सोने भी नहीं जाता था. इस के चलते प्रेमी युगल को क्वालिटी टाइम स्पेंड करने का मौका नहीं मिल पा रहा था. दोनों के दिलों में सुलग रही आग बाहर आने लगी थी.

बाद में दोनों ने राह के कांटे को हमेशा के लिए निकालने की खौफनाक साजिश रची. दोनों ने इस षडयंत्र को 15/16 जुलाई को अंजाम भी दे दिया.

मक्खनपुर क्षेत्र में कांच के कई कारखाने हैं. साजिश के तहत प्रियंका ने अपने पति सत्यशील से कहा, ‘‘तुम किसी कारखाने में काम कर लो. मोहन तुम्हारा काम लगवा देगा. इस से घर का खर्च भी अच्छी तरह चल जाएगा.’’

सीधासादा सत्यशील पत्नी की शतरंजी चाल को समझ नहीं पाया. प्रियंका ने 15 जुलाई की शाम साढ़े 7 बजे सत्यशील को काम के बहाने मोहन के पास भेज दिया.

पायनियर तिराहे पर मोहन पहले से ही अपनी कार में अपने 2 साथियों के साथ सत्यशील का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. जैसे ही वह वहां पहुंचा मोहन ने उसे कार में बैठा लिया. आगे चल कर मोहन ने एक होटल से कोल्ड ड्रिंक की 4 बोतलें खरीदीं. पीछे बैठे उस के दोनों साथियों ने पहले से साथ लाई नशे की गोलियां एक बोतल में मिला दीं.

आगे की सीट पर मोहन की बगल में बैठे सत्यशील को इस का पता नहीं चला. कोल्ड ड्रिंक पीने के कुछ देर बाद सत्यशील पर बेहोशी छाने लगी. मोहन का इशारा मिलते ही जयवीर व नीरज ने मिल कर सत्यशील के गले में पड़े सफेद रंग के अंगोछे से उस का गला दबा कर गाड़ी में ही हत्या करने की कोशिश की. लेकिन उस के मुंह से खून आने लगा.

इस पर मोहन गाड़ी को सांती पुल के नीचे ले गया और सत्यशील को सर्विस रोड पर फेंक दिया. उस की मौत की पुष्टि के लिए इन लोगों ने कार 2 बार उस के ऊपर चढ़ाई. जब उन्हें पूरी तसल्ली हो गई कि सत्यशील मर चुका है, तब मोहन ने प्रियंका को रात में ही फोन कर के बता दिया कि काम हो गया है. इस पर प्रियंका ने कहा, कार चढ़ाने के बाद तुम ने देख भी लिया है कि उस की मौत हुई या नहीं. मोहन ने उसे तसल्ली दी कि तुम किसी बात की चिंता मत करो. मोहन ने हत्या को दुर्घटना दिखाने के लिए सत्यशील के ऊपर 2 बार कार चढ़ाई थी.

मुख्य आरोपी मोहन ने हत्या की योजना में शामिल करने के लिए दोनों साथियों को 15 हजार रुपए देने का प्रलोभन दिया था. साथ ही नीरज मिश्रा को एक मोबाइल भी खरीद कर दिया था.

पुलिस ने उस मोबाइल के साथ ही मृतक का सैमसंग मोबाइल, प्रियंका का मोबाइल, मृतक की चप्पलें, हत्यारोपियों के कब्जे से खून से सना सत्यशील का गमछा, कोल्ड ड्रिंक की 4 बोतलें, हत्या में इस्तेमाल टीयूवी कार आदि चीजें बरामद कर लीं. पुलिस ने सत्यशील की हत्या करने के आरोप में प्रियंका, मोहन, नीरज व जयवीर को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

प्रियंका की बेटी किट्टू व गाय को प्रियंका की मां अपने साथ ले गई. जबकि पहली पत्नी के मायके वाले दोनों बेटियों को अपने साथ ले गए.

प्रियंका ने आशनाई के चक्कर में अपने सुहाग व सुखी गृहस्थी को अपने ही हाथों उजाड़ लिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

निशानेबाज का अपनो पर ही निशाना

पीयूष गोयल के सूचना अफसर के रूप में तैनात थे. जबकि उन का परिवार लखनऊ में रह रहा था. परिवार में उन की पत्नी मालिनी, बेटा सर्वदत्त और बेटी दीपा थी. उन की सरकारी कोठी प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास से करीब 30 मीटर दूर थी.

29 अगस्त, 2020 की बात है. 15 वर्षीय दीपा ने घबराई सी आवाज में अपनी नानी को फोन किया, ‘‘नानी जल्दी से एंबुलैंस ले कर आ जाओ, मां और भाई को चोट लगी है.’’ नानी का घर दीपा के घर से केवल 5 किलोमीटर दूर लखनऊ के गोमतीनगर में था.

दीपा की घबराई आवाज में यह सूचना पाते ही नानी चिंतित हो गईं. वह उसी समय पति विजय मिश्रा के साथ चल पड़ीं. करीब 10 मिनट में वह विवेकानंद मार्ग स्थित कोठी नंबर 9 पर पहुंच गईं.

वहां की हालत देख कर दोनों अवाक रह गए. कमरे में उन की 45 साल की बेटी मालिनी और 17 साल का नाती सर्वदत्त बैड पर खून में लथपथ पडे़ थे. दोनों की गोली मार कर हत्या की गई थी. सर्वदत्त को सिर पर गोली लगी थी, मालिनी को भी सिर के पास गोली लगी थी. वह करवट लेटी थीं. दीपा घबराई हुई थी और कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं थी.

नाना विजय मिश्रा ने तुरंत 112 नंबर पर डायल कर के इस की सूचना लखनऊ पुलिस को दी. इस के अलावा उन्होंने यह जानकारी दिल्ली में रह रहे अपने दामाद आरडी बाजपेई को भी दे दी. मामला हाईप्रोफाइल होने के कारण पुलिस आननफानन में कोठी नंबर 9 की तरफ रवाना हुई.

कोठी नंबर 9 अंगरेजों के जमाने की सरकारी कोठी है. यह रेलवे विभाग के अधिकारियोंं को ही रहने के लिए मिलती है. लालसफेद रंग में रंगी यह आलीशान कोठी दूर से ही नजर आती है. कोठी के सामने वीवीआईपी गेस्टहाउस है. बगल में लैरोटो स्कूल है.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के इतने सुरिक्षत इलाके में इस घटना से सभी के होश उड़ गए. वैसे भी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की हत्या एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. ऐसे में रेलवे में काम करने वाले ब्राह्मण जाति के एक बड़े अधिकारी के आवास में दिनदहाडे़ 2-2 हत्याएं होने से राजनीति गर्म हो गई.

आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने योगी सरकार में ब्राह्मण उत्पीड़न का मुद्दा उठा दिया. कांग्रेस नेता पिं्रयका गांधी ने महिलाओं के असुरक्षित होने का मुद्दा उठाया, जिस से योगी सरकार सकते में आ गई थी.

आर.डी. बाजपेई दिल्ली में रेल मंत्री पीयूष गोयल के सूचना अफसर के पद पर तैनात हैं. अपने अफसर के परिवार में हुए हादसे को संज्ञान में लेते हुए खुद पीयूष गोयल ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को फोन कर पूरे मामले की जानकारी ली.

कुछ ही देर में लखनऊ से ले कर दिल्ली तक हड़कंप मच गया. लखनऊ में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू है. पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय ने पूरे मामले की कमान स्वयं अपने हाथों में ले ली. लखनऊ पुलिस के सब से काबिल असफरों की टीम को इस मामले के खुलासे में लगाया दिया गया.

उत्तर प्रदेश के डीजीपी हितेश चंद्र अवस्थी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. डीसीपी (उत्तरी) शालिनी ने मामले में पूछताछ शुरू की. शनिवार-रविवार को उत्तर प्रदेश में 2 दिन का लौकडाउन होने के कारण दिल्ली से लखनऊ के बीच कोई हवाई सेवा नहीं थी. इस कारण आर.डी. बाजपेई को कार से सड़क मार्ग द्वारा लखनऊ के लिए निकलना पड़ा.

पुलिस के लिए सब से अजीब बात यह थी कि कोठी के अंदर जाने के 4 रास्ते थे. वहां आने और भागने का कोई सबूत पुलिस को नहीं दिख रहा था. घटना के समय घर में मां मालिनी, बेटा सर्वदत्त और बेटी दीपा ही मौजूद थी. उस समय दीपा बदहवास हालत में थी. घर के अंदर छानबीन से पुलिस को दीपा के बाथरूम में शीशे पर गोली चलने के निशान मिले. एक अलमारी खुली मिली. पर उस से कुछ गायब नहीं था.

बाथरूम के अंदर शीशे पर खाने वाले जैम से ‘डिसक्वालीफाइड ह्यूमन’ लिखा था. उसी जगह पर गोली मारी गई थी, जिस से शीशा टूट गया था. वहां पास ही मेज पर .22 बोर की एक पिस्टल रखी मिली. इसे ले कर पुलिस का शक दीपा पर ही गहराने लगा.

पुलिस ने जब भी दीपा से बात करनी चाही, वह दीवार की तरफ देख कर ‘भूत…भूत…’ चिल्लाने लगती थी. दीपा ने अपने दोनों हाथ अपनी पैंट की जेब में डाल रखे थे. लग रहा था जैसे वह कुछ छिपाने का प्रयास कर रही हो. वह अंगरेजी में पुलिस को जो बता रही थी, उस का अर्थ यह था कि रेशू एक भूत है. वह कई दिनों से उस के सपने में आता है. उस ने ही कहा था कि ऐसा करो. इस के बाद उस ने पिस्टल निकाली और शीशे पर ‘डिसक्वालीफाइड ह्यूमन’ लिख कर गोली मार दी.

पुलिस ने जब दीपा से हाथ खोलने को कहा तो वह मना करने लगी. ऐसे में उस के नाना विजय मिश्रा की मदद से हाथ खोला गया तो हाथ में कटने के निशान मिले, जिसे पट्टी से बांधा गया था. उस के हाथ पर 50 से अधिक घाव के निशान थे. इन में से कुछ निशान ताजा थे. दीपा ने बताया, ‘‘यह काम उस ने किया है, यह काम कोई बड़ा नहीं है. दुनिया भर में लाखों लोग ऐसा करते हैं.’’

दीपा की बातों और उस के हावभाव से उस की हालत अच्छी नहीं लग रही थी. पुलिस को यह भी पता चला कि दीपा को डिप्रेशन की बीमारी है, जिस का इलाज भी चला था. ऐसे में पुलिस उस से ज्यादा पूछताछ करने लगी. पुलिस ने उस से पूछना शुरू किया कि उस ने हाथ कैसे और किस चीज से काटे?

इस पर दीपा ने पुलिस को माचिस की डिब्बी में रखा ब्लेड दिखाया. इस के बाद पुलिस को दीपा पर ही अपने भाई और मां को गोली मारने का शक गहराया.

सारे सबूत दीपा की तरफ इशारा कर रहे थे. घटना के महज 4 घंटे के अंदर ही शाम के 7 बजे पुलिस ने पूरे मामले का खुलासा करते हुए दीपा को हत्या का आरोपी माना और उसे अपनी हिरासत में ले लिया.

दीपा के नाबालिग होने के कारण उसे आगे की पूछताछ के लिए थाने के बजाय उस के घर में ही रखा गया. पुलिस ने दीपा को मानसिक रूप से बीमार मान कर बहुत ही संवेदनशीलता के साथ पूछताछ शुरू की. मानसिक रोग के डाक्टर और काउंसलर से भी मदद ली गई.

शाम करीब 8 बजे दीपा के पिता आर.डी. बाजपेई जब दिल्ली से लखनऊ पहुंचे तो दीपा उन से लिपट कर रोने लगी. पिता के लिए यह बेहद मुश्किल समय था. वह पत्नी और बेटे के कत्ल के आरोप में अपनी ही बेटी को देख कर कुछ भी समझ पाने की हालत में नहीं थे. दीपा के लिए उन्होंने कितने सपने संजोए थे.

वह उसे शूटिंग की दुनिया में नाम कमाते देखना चाहते थे. शूटिंग की शौकीन दीपा पदक जीतने की जगह अपने ही लोगों को निशाना बना देगी, किसी ने नहीं सोचा था.

दीपा बहुत ही काबिल निशानेबाज थी. घरपरिवार ही नहीं, शूटिंग रेंज में उसे ट्रैनिंग देने वालों को भी यकीन था कि वह निशानेबाजी में बड़ा नाम कमाएगी. निशानेबाजी मंहगा खेल है, जिस में घरपरिवार का सहयोग ही नहीं आर्थिक रूप से सक्षम होना भी जरूरी होता है. दीपा के मामले में यह अच्छी बात थी. उस के पिता रेलवे के बड़े अधिकारी थे.

बेटी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ले जाने के लिए वह हर तरह की सुविधा जुटाने में सक्षम थे. आर.डी. बाजपेई का लखनऊ से दिल्ली ट्रांसफर हो गया था. वह जल्दी ही बेटी और परिवार को ले कर दिल्ली जाने वाले थे, जहां दीपा को शूटिंग की अच्छी ट्रेनिंग की सुविधा मिल जाती.

लखनऊ में बेटी की अच्छी ट्रेनिंग हो सके, इस के लिए आर.डी. बाजपेई ने विवेकानंद मार्ग स्थित अपनी कोठी के पीछे 10 मीटर एयर पिस्टल की शूटिंग रेंज बनवा दी थी. दीपा केवल शूटिंग में ही अव्वल नहीं थी, उसे पेंटिंग, डांस और म्यूजिक का भी शौक था. 7वीं कक्षा में पढ़ने के दौरान उस ने पेंटिग में बुक मार्क बनाने की राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में पुरस्कार हासिल किया था.

दीपा ने कुछ दिन शूटिंग की ट्रेनिंग दिल्ली के कर्णी सिंह शूटिंग रेंज में की थी. वह अपनी मां मालिनी के ही साथ कार से दिल्ली आतीजाती थी. कभीकभी उस के पिता उसे छोड़ने आते थे.

दीपा ने 10 साल की उम्र से शूटिंग करना शुरू किया था. 2 से 3 माह में ही वह राज्य स्तर की निशानेबाज बन गई थी. इस के बाद उस ने महाराष्ट्र और कोलकाता में भी राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया था. कई पदक जीते. दीपा शूटिंग में पश्चिम बंगाल की तरफ से खेलती थी. वह आसनसोल राइफल क्लब की मेंबर भी थी.

बंगाल की राज्य निशानेबाजी प्रतियोगिता में उस ने कई पुरस्कार जीते थे. दीपा .22 की 25 मीटर स्पर्धा, 10 मीटर और 25 मीटर एयर राइफल में भी हिस्सा लेती थी. .22 की 25 मीटर स्पर्धा में जब दीपा ने राज्य स्तर पर चैंपियनशिप जीती और जूनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पदक जीता तो उसे अपना हथियार खरीदने का लाइसैंस मिल गया था. तभी पिता ने उस के लिए पिस्टल खरीद दी थी.

दीपा को अंगरेजी उपन्यास पढ़ने का शौक था. कई बार वह खुद में गुमसुम सी दिखती थी. पिता के दिल्ली ट्रांसफर के समय स्कूल चल रहे थे. दीपा और उस का भाई सर्वदत्त बाजपेई स्कूल में पढ़ते थे.

दीपा कक्षा 9 में थी और भाई कक्षा 12 में. बीच सत्र में दिल्ली में बच्चों के एडमिशन में दिक्कत आ रही थी, इस कारण आर.डी. बाजपेई ने सोचा था कि जुलाई से जब सत्र शुरू होगा, पत्नी और बच्चों को अपने पास दिल्ली बुला लेंगे.

इसी बीच कोविड 19 का संकट पूरे विश्व में छा गया. लौकडाउन हो जाने पर स्कूलकालेज बंद हो गए. दीपा भी अकेली पड़ गई थी. वैसे भी दीपा दोस्त कम बनाती थी. वह अपने आप में ही मस्त रहती थी. जैसेजैसे लौकडाउन खुल रहा था, घर में इस बात की खुशी थी कि जल्द ही सभी दिल्ली चले जाएंगे.

घर में दिल्ली शिफ्ट होने की तैयारियां चल रही थीं. यह सोच रहा था. पर समय का चक्र किसी दूसरी दिशा में ही घूम रहा था, जिस का अंदाजा किसी को नहीं था. समय का तूफान अपनी गति से चल रहा था.

घर में सभी लोग अपनेअपने सामान की पैकिंग करने लगे थे. दीपा ने भी अपने दोस्तों से अपने सामान की पैकिंग में मदद करने के लिए कहा था. 29 अगस्त, 2020 शनिवार को दीपा के पिता आर.डी. बाजपेई का जन्मदिन था. रात को ही परिवार ने फोन से बात कर के उन्हें बधाई दी थी.

पत्नी मालिनी और दोनों बच्चों ने भी जन्मदिन की बधाई दी. आपस में तय हुआ कि आर.डी. बाजपेई शाम को दिल्ली में अपने जन्मदिन का केक काटेंगे और लखनऊ से घरपरिवार के लोग ‘हैप्पी बर्थडे’ का गीत गाएंगे. वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के जरिए बर्थडे पार्टी का पूरी थीम तैयार हो चुकी थी.

29 अगस्त की सुबह 9 बजे मालिनी ने अपनी बेटी दीपा और बेटे सर्वदत्त के साथ नाश्ता किया. इस के बाद दीपा अपने कमरे में चली गई. मालिनी और सर्वदत्त भी एक कमरे में ही बिस्तर पर सो गए. उस दिन शाम को बर्थडे पार्टी मनानी थी, लेकिन पार्टी मनाने की जगह दोनों के शव पोस्टमार्टम के लिए भेजे जा रहे थे.

हत्या का आरोप बेटी पर ही लगा, कोठी नंबर 9 में खुशियों की जगह मातम पसर गया. आर.डी. बाजपेई के लिए यह मुश्किल हो गया कि वह पत्नी और बेटे को न्याय दिलाने के लिए प्रयास करें या बेटी को बचाने के लिए.

आर.डी. बाजपेई व्यवहारकुशल और खुशदिल अफसरों में माने जाते हैं. वह उत्तर मध्य रेलवे जोन में सीपीआरओ के पद पर भी रह चुके हैं. बाजपेई 1998 बैच के आईआरटीएस अफसर हैं. आगरा, मालदा, आसनसोल जगहों पर उन्होंने उच्च पदों पर काम किया. वह उत्तर रेलवे लखनऊ में सीनियर डीसीएम भी रहे. लखनऊ में ट्रै्रनिंग सेंटर के बाद वह रेलवे बोर्ड दिल्ली में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर (इनफारमेशन) के पद पर काम कर रहे थे. उन की लोकप्रियता पूरे विभाग में थी.

आर.डी. बाजपेई ने अपनी छवि के अनुकूल नाजुक हालत में भी बेहद समझदारी भरा फैसला लेते हुए बेटी का साथ देना स्वीकार किया. बेटी को दोष देने की जगह वह उस के डिप्रेशन को ही गुनहगार मान रहे थे. 30 अगस्त को जब पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने मालिनी और बेटे सर्वदत्त का शव अंतिम क्रिया के लिए उन्हें सौंपा तो कलेजे पर पत्थर रख कर उन्होंने उन का दाहसंस्कार किया.

इस के बाद भी वह बेटी को हत्यारा मानने को तैयार नहीं थे. लखनऊ पुलिस में आर.डी. बाजेपई ने अपनी पत्नी और बेटे की हत्या के लिए अज्ञात लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई.

उधर पुलिस ने दीपा को हत्या का आरोपी मान कर उसे इलाज के लिए लखनऊ मैडिकल कालेज में भरती कराया. यहां से डाक्टरों की राय पर उसे बाल सुधार गृह भेज दिया गया.

पुलिस का दावा है कि दीपा मानसिक रूप से बीमार थी. उस का पहले इलाज भी चला था. लौकडाउन के समय उस ने भूतप्रेतों और अंधविश्वास के उपन्यास पढ़े, जिस से उस के मन में भूत की कहानियों ने घर बना लिया था, उसे लगता था कि उस के सपने में भूत आता है. वह जैसा कहता है, वह वैसा ही करती थी.

भूतप्रेत की कहानियां बच्चों के मन पर किस तरह से असर डालती हैं, लखनऊ का डबल मर्डर इस की मिसाल है. दीपा को लगता था कि रेशू नाम का भूत उस के सपने में आ कर उसे गाइड करता है. अपनी मां और भाई की हत्या के बाद भी दीपा कह रही थी कि ‘रेशू केम….एंड गाइड मी’.

रेशू तो नहीं आया पर दीपा अपना सुनहरा भविष्य और अपनी मांभाई को हमेशा के लिए खो बैठी है. इस घटना से पता चलता है कि भूतप्रेत की बात करना और उन की उपस्थिति को मानना एक तरह से मानसिक बीमारी है.

जब दीपा ने खुद अपने हाथ की नस काटनी शुरू की थी मानसिक बीमारी की वह खतरनाक अवस्था थी. उस समय अगर दीपा का उचित इलाज कराया गया होता तो अंत इतना खतरनाक नहीं होता.

—कहानी में नाबालिग दीपा की पहचान छिपाने के कारण उस का नाम बदला हुआ है.

सौजन्य: सत्यकथा, सितंबर 2020

घर-गृहस्थी से जेल अच्छी

कोतवाल हेमेंद्र सिंह नेगी देहात क्षेत्र के गांवों में गस्त कर रहे थे, तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी. नेगी ने मोबाइल स्क्रीन देखी, कोई अज्ञात नंबर था. इतनी रात में कोई यूं ही फोन नहीं करता. नेगी ने मोबाइल काल रिसिव की.

दूसरी ओर कोई अपरीचित था, जिस की आवाज डरीसहमी सी लग रही थी. हेमेंद्र सिंह के परिचय देने पर उस ने कहा, ‘‘सर, मेरा नाम अभिषेक है और मैं आप के थाना क्षेत्र के गांव झीबरहेडी से बोल रहा हूं. मुझे आप को यह सूचना देनी थी कि आधा घंटे पहले बदमाशों ने मेरे चचेरे भाई प्रदीप की हत्या कर दी है.’’

‘‘हत्या, कैसे? पूरी बात बताओ’’

‘‘सर मुझे हत्यारों की तो कोई जानकारी नहीं है, क्योंकि उस वक्त मैं गहरी नींद में था. करीब आधा घंटे पहले मेरे मकान की दीवार से किसी के कूदने की आवाज आई थी. मुझे लगा कि गांव में बदमाश आ गए हैं. मैं तुरंत नीचे आ कर दरवाजा बंद कर के लेट गया.

‘‘थोड़ी देर बाद चचेरे भाई प्रदीप के कराहने की आवाज आई तो मैं बाहर आया. मैं ने देखा कि प्रदीप लहूलुहान पड़ा था, उस के पेट, छाती व सिर पर धारदार हथियारों से प्रहार किए गए थे.’’ अभिषेक बोला.

‘‘फिर?’’

‘‘सर, फिर मैं ने अपने घरवालों को जगाया और प्रदीप को  तत्काल अस्पताल ले जाने को कहा. लेकिन हम प्रदीप को अस्पताल ले जाते, उस ने दम तोड़ दिया.’’ अभिषेक बोला.

‘प्रदीप किसान था?’ नेगी ने पूछा

‘नहीं सर प्रदीप स्थानीय श्री सीमेंट कंपनी में ट्रक चलाता था और गत रात ही वह देहरादून से लौटा था. रात को वह अकेला ही अपने घर की छत पर सो रहा था.’ अभिषेक बोला.

‘‘प्रदीप की गांव में किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी?’ नेगी ने पूछा.

‘‘नहीं सर वह तो हंसमुख स्वभाव का था और गांव के सभी बिरादरी के लोग उस की इज्जत करते थे. प्रदीप ज्यादातर अपने काम से काम रखने वाला आदमी था.’’ अभिषेक बोला.

‘‘ठीक है अभिषेक, पुलिस 15 मिनट में घटनास्थल पर पहुंच जाएगी.’’

कोतवाल हेमेंद्र नेगी ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया. नेगी ने सब से पहले लक्सर कोतवाली की चेतक पुलिस को गांव झीबरहेड़ी में प्रदीप के घर पहुंचने का आदेश दिया. फिर इस हत्या के बारे में सीओ राजन सिंह, एसपी देहात स्वप्न किशोर सिंह और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस. को सूचना दी.

नेगी गांव झीबरहेड़ी की ओर चल दिए. 20 मिनट बाद नेगी प्रदीप के घर पर पहुंच गए. उस समय सुबह के 4 बज गए थे और अंधेरा छंटने लगा था.

प्रदीप के घर में उस का शव आंगन में चादर से ढका रखा था, आसपास गांव वालों की भीड़ जमा थी. नेगी व चेतक पुलिस के सिपाहियों ने सब से पहले ग्रामीणों को वहां से हटाया. इस के बाद शव का निरीक्षण किया. हत्यारों ने प्रदीप की हत्या बड़ी बेरहमी से की थी.

बदमाशों ने प्रदीप का पूरा शरीर धारदार हथियारों से गोद डाला था. जब नेगी ने प्रदीप के बीबी बच्चों की बाबत, पूछा तो घर वालों ने बताया कि कई सालों से प्रदीप की बीबी ममता बच्चों के साथ अपने मायके बादशाहपुर में रहती है. घरवालों से नंबर ले कर नेगी ने ममता को प्रदीप की हत्या की जानकारी दी.

इस के बाद नेगी ने गांव वालों से प्रदीप की दिनचर्या के बारे में जानकारी ली और पूछा कि उस की गांव में किसी से दुश्मनी तो नहीं थी. नेगी का अनुमान था कि प्रदीप की हत्या का कारण रंजिश भी हो सकता है, क्योंकि यह मामला लूट का नहीं लग रहा था.

नेगी ग्रामीणों से प्रदीप के बारे में जानकारी जुटा ही रहे थे, कि सीओ राजन सिंह, एसपी देहात एसके सिंह और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस भी पहुंच गए. तीनों अधिकारियों ने वहां मौजूद ग्रामीणों से प्रदीप की हत्या के बारे में पूछताछ की.

इस के बाद अधिकारियों ने कोतवाल नेगी को प्रदीप के शव को पोस्टमार्टम के लिए जेएन सिन्हा स्मारक राजकीय अस्पताल रुड़की भेजने के निर्देश दिए और चले गए. शव को अस्पताल भेज कर नेगी थाने लौट आए. उन्होंने प्रदीप के भाई सोमपाल की ओर से धारा 302 के तहत हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और मामले की जांच शुरू कर दी. प्रदीप की हत्या का मामला थोड़ा पेचीदा था, क्योंकि न तो प्रदीप का कोई दुश्मन था और न लूट हुई थी.

अगले दिन 27 जून को एसपी देहात एसके सिंह ने इस केस का खुलासा करने के लिए लक्सर कोतवाली में मीटिंग की, जिस में सीओ राजन सिंह, कोतवाल हेमेंद्र नेगी, थानेदार मनोज नोटियाल, लोकपाल परमार, आशीष शर्मा, यशवीर नेगी सहित सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी, एएसआई देवेंद्र भारती व जाकिर आदि शामिल हुए.

एसके सिंह ने सीओ राजन सिंह के निर्देशन में इन सभी को जल्द से जल्द प्रदीप हत्याकांड का खुलासा करने के निर्देश दिए.

निर्देशानुसार सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी ने झीबरहेड़ी में घटी घटना का साइट सैल डाटा उठाया. साथ ही रात में हत्या के समय आसपास चले मोबाइलों की काल डिटेल्स खंगाली. इस के बाद पुलिस द्वारा उन मोबाइल नंबरों की पड़ताल की गई.

साथ ही बचकोटी ने सीआईयू के एएसआई देवेंद्र भारती व जाकिर को प्रदीप हत्याकांड की सुरागरसी करने के लिए सादे कपड़ों में झीबरहेड़ी भेजा.

सिपाहियों कपिलदेव व महीपाल को उन्होंने प्रदीप की पत्नी ममता के बारे में जानकारी जुटाने के लिए उस के मायके बादशाहपुर भेजा था.

इस का परिणाम यह निकला कि 28 जून, 2020 की शाम को पुलिस और सीआईयू के हाथ प्रदीप हत्याकांड के पुख्ता सबूत लग गए. पुलिस को जो जानकारी मिली, वह यह थी कि मृतक प्रदीप के साथ अमन भी ट्रक चलाता था. वह गांव हरीपुर, जिला सहारनपुर का रहने वाला था. इसी के चलते वह प्रदीप के घर आताजाता था. प्रदीप की पत्नी ममता का चालचलन ठीक नहीं था, इस वजह से पति पत्नी में अकसर मनमुटाव रहता था. घर में आनेजाने से अमन की आंखे ममता से लड़ गई थीं और वे दोनों प्रदीप की गैरमौजूदगी में रंगरलियां मनाने लगे थे.

गत वर्ष जब प्रदीप को ममता व अमन के अवैध संबंधों की जानकारी हुई तो उस ने दोनों को धमकाया भी, मगर 42 वर्षीया ममता अपने 23 वर्षीय प्रेमी अमन को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी. इस विवाद के चलते वह अपने बच्चों के साथ मायके बादशाहपुर जा कर रहने लगी थी.

उस के जाने के बाद प्रदीप अपने झीबरहेडी स्थित मकान पर अकेला रहने लगा. 29 जून, 2020 को पुलिस को प्रदीप की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई, जिस में उस की मौत का कारण शरीर पर धारदार हथियारों के प्रहारों से ज्यादा खून बहना बताया गया था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को अमन पर शक हो गया. दूसरी ओर सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी को जिस मोबाइल नंबर पर शक था, वह अमन का ही नंबर था.

सीआईयू ने अमन की गिरफ्तारी के लिए जाल बिछा दिया था. अमन को शाम को ही पुलिस ने लक्सर क्षेत्र से उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह ममता से मिलने जा रहा था.

अमन को पकड़ने के बाद पुलिस उसे कोतवाली ले आई. इस के बाद एसपी देहात एसके सिंह व सीओ राजन सिंह ने उस से प्रदीप की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की. अमन ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार है—

अमन ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि वह प्रदीप के साथ गत 3 वर्षो से ट्रक चलाता था. उस का प्रदीप के घर आना जाना होता रहता था. प्रदीप की बीवी ममता पति के रूखे व्यवहार से परेशान रहती थी. जब उस ने ममता से प्यार भरी बातें करनी शुरू कर दीं, तो वह भी उसी टोन में बतियाने लगी. तनीजा यह हुआ कि उस के ममता से अवैध संबंध बन गए.

यह जानकारी मिलने पर प्रदीप ने मुझे धमकी दी, जिस से मैं बुरी तरह डर गया. इस के बाद उस ने प्रदीप द्वारा दी गई धमकी की जानकारी ममता को दी. तब उस ने ममता की सहमति से प्रदीप की हत्या की योजना बनाई. 26 जून को उस ने प्रदीप के बेटे शकुन को फोन किया और उस से प्रदीप के बारे में पूछा.

शकुन के मुताबिक प्रदीप उस शाम घर पर ही था. रात 12 बजे मैं छुरी ले कर झीबरहेडी की ओर निकल गया. प्रदीप के मकान के पीछे खेत थे रात करीब 2 बजे वह खेतों की ओर से मकान पर चढ़ गया. उस समय प्रदीप मकान की छत पर अकेला बेसुध सोया पड़ा था. उसे देख कर उस का खून खौल गया.

इस के बाद उस ने पूरी ताकत लगा कर प्रदीप के गले पर वार करने शुरू कर दिए. उस ने प्रदीप के गले, सिर व पेट पर कई वार किए. इस के बाद वह मकान की छत से कूद कर, वापस लक्सर आ गया.

लक्सर से बादशाहपुर ज्यादा दूर नहीं था. इसलिए लक्सर पुलिस ममता को भी कोतवाली ले आई. जब ममता ने अमन को पुलिस हिरासत में देखा, तो वह सारा माजरा समझ गई और पुलिस के सामने अपने पति की हत्या का षडयंत्र रचने में अपनी संलिप्तता मान कर ली.

इस के बाद एसपी देहात एसके सिंह ने प्रदीप हत्याकांड का खुलासा होने और 2 आरोपियों के गिरफ्तार होने की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हरिद्वार सेंथिल अबुदई कृष्णाराज को दी.

30 जून, 2020 को एसपी देहात एसके सिंह ने लक्सर कोतवाली में प्रैसवार्ता के दौरान मीडियाकर्मियों को प्रदीप हत्याकांड के खुलासे की जानकारी दी. इस के बाद पुलिस ने अमन व ममता को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया.

3 बच्चों की मां होने के बाद भी ममता अमन के प्रेम में इस कदर डूबी कि उस ने पति की हत्या अपने प्रेमी से कराने में कोई संकोच नहीं किया, बल्कि इस हत्याकांड को छिपाए रखा. प्रदीप से ममता की शादी वर्ष 2001 में हुई थी. प्रदीप का 18 वर्षीय बेटा सन्नी हैदराबाद में कोचिंग कर रहा है और 17 साल की बेटी आंचल और 12 साल का बेटा शकुन मां ममता के साथ बादशाहपुर में रहते थे.

(पुलिस सूत्रों पर आधारित)

सौजन्य: सत्यकथा, जुलाई, 2020

घातक प्रेमी : शक ने किया प्रेमिका का कत्ल

सुबह होते ही गांव में शोर मचने लगा कि छत्रपाल अपनी प्रेमिका ननकी की हत्या कर फरार हो गया है, उस की लाश कमरे में पड़ी है. हल्ला होते ही गांव वाले ननकी के मकान की ओर दौड़ पड़े. गांव का प्रधान भी उन में शामिल था. गांव के पूर्वी छोर पर ननकी का मकान था. वहां पहुंच कर लोगों ने देखा, सचमुच ननकी की लाश कमरे में जमीन पर पड़ी थी. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि छत्रपाल ने ननकी की हत्या क्यों कर दी.

इसी बीच ग्राम प्रधान रामसिंह यादव ने थाना बिंदकी में फोन कर के इस हत्या की खबर दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी नंदलाल सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने महिला की हत्या किए जाने की खबर पुलिस अधिकारियों को दी फिर निरीक्षण में जुट गए. वह उस कमरे में पहुंचे जहां ननकी की लाश पड़ी थी. लाश के पास कुछ महिलाएं रोपीट रही थीं. पूछने पर पता चला कि मृतका अपने प्रेमी छत्रपाल के साथ रहती थी. उस का पति अंबिका प्रसाद करीब 5 साल पहले घर से चला गया था और वापस नहीं लौटा. मृतका के 2 बच्चे भी हैं, जो अपनी ननिहाल में रहते हैं.

मृतका ननकी की उम्र 35 वर्ष के आसपास थी. उस के गले में गमछा लिपटा था. लग रहा था जैसे उसी गमछे से गला कस कर उस की हत्या की गई हो. कमरे का सामान अस्तव्यस्त था. साथ ही टूटी चूडि़यां भी बिखरी पड़ी थीं. इस से लग रहा था कि हत्या से पहले मृतका ने हत्यारे से संघर्ष किया था.

थानाप्रभारी नंदलाल सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी प्रशांत कुमार वर्मा, एएसपी राजेश कुमार और सीओ योगेंद्र कुमार मलिक घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा मौके पर मौजूद मृतका के घरवालों तथा पासपड़ोस के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की.

मौके पर शारदा नाम की लड़की मिली. मृतका ननकी उस की मौसी थी. शारदा ने पुलिस को बताया कि वह कल शाम छत्रपाल के साथ मौसी के घर आई थी. खाना खाने के बाद वह कमरे में जा कर लेट गई. रात में किसी बात को ले कर मौसी और छत्रपाल में झगड़ा हो रहा था.

सुबह 5 बजे छत्रपाल बदहवास हालत में निकला और घर के बाहर चला गया. कुछ देर बाद मैं ननकी मौसी के कमरे में गई तो कमरे में जमीन पर मौसी मृत पड़ी थी. मैं बाहर आई और शोर मचाया. मैं ने फोन द्वारा अपने मातापिता और नानानानी को खबर दी तो वह सब भी आ गए.

मृतका की मां चंदा और बड़ी बहन बड़की ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि छत्रपाल ननकी के चरित्र पर शक करता था. मायके का कोई भी युवक घर पहुंच जाता तो वह उसे शक की नजर से देखता था और फिर झगड़ा तथा मारपीट करता था. इसी शक में छत्रपाल ने ननकी को मार डाला है. उस के खिलाफ सख्त काररवाई की जाए.

पूछताछ के बाद एएसपी ने थानाप्रभारी को निर्देश दिया कि शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद हत्यारोपी छत्रपाल को जल्द से जल्द गिरफ्तार करें. इस के बाद थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने मौके से सबूत अपने कब्जे में लिए और ननकी का शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फतेहपुर भिजवा दिया. फिर थाने आ कर शारदा की तरफ से छत्रपाल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज होते ही थानाप्रभारी ने हत्यारोपी छत्रपाल की तलाश शुरू कर दी. उन्होंने उस की तलाश में नातेरिश्तेदारों के घर सरसौल, बिंदकी, खागा और अमौली में छापे मारे, लेकिन छत्रपाल वहां नहीं मिला. तब उस की टोह में मुखबिर लगा दिए.

29 मई, 2020 की शाम 5 बजे खास मुखबिर के जरीए थानाप्रभारी नंदलाल सिंह को पता चला कि हत्यारोपी छत्रपाल इस समय बिंदकी बस स्टैंड पर मौजूद है. शायद वह कहीं भागने की फिराक में किसी साधन का इंतजार कर रहा है. यह खबर मिलते ही थानाप्रभारी आवश्यक पुलिस बल के साथ बस स्टैंड पहुंच गए.

पुलिस जीप रुकते ही बेंच पर बैठा एक युवक उठा और तेजी से सड़क की ओर भागा. शक होने पर पुलिस ने उस का पीछा किया और रामजानकी मंदिर के पास उसे दबोच लिया. उस ने अपना नाम छत्रपाल बताया. पूछताछ के लिए पुलिस उसे थाने ले आई.

थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने जब उस से ननकी की हत्या के बारे में पूछा तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब थोड़ी सख्ती बरती तो वह टूट गया और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस से की गई पूछताछ में ननकी की हत्या के पीछे की कहानी अवैध रिश्तों की बुनियाद पर गढ़ी हुई मिली—

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद का एक व्यापारिक कस्बा है अमौली. इसी कस्बे में चंद्रभान अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी चंदा के अलावा 2 बेटियां बड़की व ननकी और एक बेटा मोहन था. चंद्रभान कपड़े का व्यापार करता था.

इसी व्यापार से होने वाली कमाई से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. चंद्रभान की बड़ी बेटी बड़की जवान हुई तो उस ने उस का विवाह खागा कस्बा निवासी हरदीप के साथ कर दिया. बड़की से 4 साल छोटी ननकी थी. बाद में जब वह भी सयानी हुई तो वह उस के लिए भी सही घरबार ढूंढने लगा. आखिर उन की तलाश अंबिका प्रसाद पर जा कर खत्म हो गई.

अंबिका प्रसाद के पिता जगतराम फतेहपुर जनपद के गांव शाहपुर के रहने वाले थे. उन के 2 बेटे शिव प्रसाद व अंबिका प्रसाद थे. शिव प्रसाद की शादी हो चुकी थी. वह इलाहाबाद में नौकरी करता था और परिवार के साथ वहीं रहता था.

उन का छोटा बेटा अंबिका प्रसाद उन के साथ खेतों पर काम करता था. चंद्रभान ने अंबिका को देखा तो उस ने उसे अपनी बेटी ननकी के लिए पसंद कर लिया. बात तय हो जाने के बाद 10 जनवरी, 2004 को ननकी का विवाह अंबिका प्रसाद के साथ हो गया.

अंबिका प्रसाद तो सुंदर बीवी पा कर खुश था, लेकिन ननकी के सपने ढह गए थे. क्योंकि पहली रात को ही वह पत्नी को खुश नहीं कर सका. वह समझ गई कि उस के पति में इतनी शक्ति नहीं है कि वह उसे शारीरिक सुख प्रदान कर सके.

समय बीतता गया और ननकी पूजा और राजू नाम के 2 बच्चों की मां बन गई. बच्चों के जन्म के बाद परिवार का खर्च बढ़ गया. पिता जगतराम की भी सारी जिम्मेदारी अंबिका प्रसाद के कंधों पर थी, अत: वह अधिक से अधिक कमाने की कोशिश में जुट गया. अंबिका ने आय तो बढ़ा ली, लेकिन जब वह घर आता, तो थकान से चूर होता.

ननकी पति का प्यार चाहती थी. लेकिन अंबिका पत्नी की भावनाओं को नहीं समझता. कुछ साल इसी अशांति एवं अतृप्ति में बीत गए. इस के बाद ननकी अकसर पति को ताने देने लगी कि जब तुम अपनी बीवी को एक भी सुख नहीं दे सकते तो ब्याह ही क्यों किया.

बीवी के ताने सुन कर अंबिका कभी हंस कर टाल देता तो कभी बीवी पर बरस भी पड़ता. इन सब बातों से त्रस्त हो कर ननकी ने आखिर देहरी लांघ दी. उस की नजरें छत्रपाल से लड़ गईं.

छत्रपाल ननकी के घर से 4 घर दूर रहता था. उस के मातापिता का निधन हो चुका था. वह अपने बड़े भाई के साथ रहता था और मेहनतमजदूरी कर अपना पेट पालता था. ननकी के पति अंबिका प्रसाद के साथ वह मजदूरी करता था, इसलिए दोनों में दोस्ती थी.

दोस्ती के कारण छत्रपाल का अंबिका के घर आनाजाना था. वह ननकी को भाभी कहता था. हंसमुख व चंचल स्वभाव की ननकी छत्रपाल से काफी हिलमिल गई थी. देवरभाभी होने से उस का मजाक का रिश्ता था.

ननकी का खुला मजाक और उस की आंखों में झलकता वासना का आमंत्रण छत्रपाल के दिल में उथलपुथल मचाने लगा. वह यह तो समझ चुका था कि भाभी उस से कुछ चाहती है, लेकिन अपनी तरफ से पहल करने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी. दोनों खुल कर एकदूसरे से छेड़छाड़ व हंसीमजाक करने लगे. इसी छेड़छाड़ में एक दोपहर दोनों अपने आप पर काबू न रख सके और मर्यादा की सीमाएं लांघ गए.

उस रोज छत्रपाल पहली बार नशीला सुख पा कर फूला नहीं समा रहा था. ननकी भी कम उम्र का अविवाहित साथी पा कर खुश थी. बस उस रोज से दोनों के बीच यह खेल अकसर खेला जाने लगा. कुछ समय बाद छत्रपाल रात को भी चुपके से ननकी के पास आने लगा. ननकी के लिए अब पति का कोई महत्त्व नहीं रह गया था. उस की रातों का राजकुमार छत्रपाल बन गया था. छत्रपाल जो कमाता था, वह सब ननकी पर खर्च करने लगा था.

साल सवासाल तक ननकी व छत्रपाल के अवैध संबंध बेरोकटोक चलते रहे और किसी को भनक तक नहीं लगी. अपनी मौज में वह भूल गए कि इस तरह के खेल ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. इन के मामले में भी यही हुआ. हुआ यह कि एक रात पड़ोसन रामकली ने चांदनी रात में आंगन में रंगरलियां मना रहे छत्रपाल और ननकी को देख लिया. फिर तो उन दोनों की चर्चा पूरे गांव में होने लगी.

अंबिका प्रसाद पत्नी पर अटूट विश्वास करता था. जब उसे ननकी और छत्रपाल के नाजायज रिश्तों की जानकारी हुई तो वह सन्न रह गया. इस बाबत उस ने ननकी से जवाब तलब किया. ननकी भी जान चुकी थी कि बात फैल गई है, इसलिए झूठ बोलना या कुछ भी छिपाना फिजूल है. लिहाजा उस ने सच बोल दिया. ‘‘जो तुम बाहर से सुन कर आए हो, वह सब सच है. मैं बेवफा नहीं हुई बस छत्रपाल पर मन मचल गया.’’

‘‘ननकी, शायद तुम्हें अंदाजा नहीं कि मैं तुम्हें कितना चाहता हूं.’’ अंबिका प्रसाद बोला,  ‘‘मैं तुम्हारी गली माफ कर दूंगा बस, तुम छत्रपाल से रिश्ता तोड़ लो.’’

‘‘बदनाम न हुई होती तो जरूर रिश्ता तोड़ लेती. अब मैं गुनहगार बन चुकी हूं, इसलिए अब उसे नहीं छोड़ सकती.’’

अंबिका प्रसाद ने पत्नी को सही राह पर लाने की बहुत कोशिश की, मगर कामयाब नहीं हुआ. एक रात तो अंबिका ने ननकी और छत्रपाल को अपने घर में ही आपत्तिजनक हालत में देख लिया. अंबिका ने इस का विरोध किया तो शर्मसार होने के बजाय ननकी और छत्रपाल उसी पर हावी हो गए. ‘‘जो आज देखा है, वह हर रात देखोगे. देख सको तो घर में रहो, न देख सको तो घर छोड़ कर कहीं चले जाओ.’’

ननकी की सीनाजोरी पर अंबिका प्रसाद दंग रह गया. वह घर के बाहर आ गया और माथा पकड़ कर चारपाई पर बैठ गया. इस वाकये के बाद अंबिका को पत्नी से नफरत हो गई. अंबिका आंखों के सामने पत्नी की बदचलनी के ताने भला कब तक बरदाश्त करता. अत: जनवरी 2015 में ऐसे ही एक झगड़े के बाद उस ने घर छोड़ दिया और गुमनाम जिंदगी बिताने लगा.

अंबिका प्रसाद के घर छोड़ने के बाद छत्रपाल उस के घर पर कुंडली मार कर बैठ गया. उस ने उस की जर, जोरू और जमीन पर भी कब्जा कर लिया. ननकी अभी तक उस की प्रेमिका थी किंतु अब उस ने ननकी को पत्नी का दरजा दे दिया. यद्यपि छत्रपाल ने ननकी से न तो कोर्ट मैरिज की थी और न ही प्रेम विवाह किया था.

ननकी की बेटी अब तक 10 साल की उम्र पार कर चुकी थी, जबकि बेटा 5 साल का हो गया था. दोनों बच्चे छत्रपाल की अय्याशी में बाधक बनने लगे थे. अत: वह दोनों को पीटता था. ननकी को बुरा तो लगता था, पर वह मना नहीं कर पाती थी. बच्चों पर बुरा असर न पड़े, इसलिए ननकी ने दोनों बच्चों को अपनी मां के पास भेज दिया.

बच्चे चले गए तो ननकी और छत्रपाल के मिलन की बाधा दूर हो गई. अब वे स्वतंत्र रूप से रहने लगे. ननकी और छत्रपाल को साथसाथ रहते 4 साल बीत चुके थे.

इस बीच न तो ननकी का पति अंबिका प्रसाद वापस घर लौटा और न ही ननकी ने उस की कोई सुध ली. वह कहां है, किस परिस्थिति में है. इस की जानकारी न तो ननकी को थी और न ही किसी सगेसंबंधी को.

ननकी बच्चों से मिलने मायके अमौली जाती थी. फिर वहां कई दिन तक रुकती थी. इस से छत्रपाल को शक होने लगा था कि ननकी का मन उस से भर गया है और अब उस ने मायके में कोई नया यार बना लिया है. इस कारण वह मायके में डेरा जमाए रहती है.

इसे ले कर अब ननकी और छत्रपाल में झगड़ा होने लगा था. मायके का कोई भी व्यक्ति घर आता तो छत्रपाल उसे शक की नजर से देखता और उस के जाने के बाद ननकी के चरित्र पर लांछन लगाते हुए झगड़ा करता.

ननकी की बड़ी बहन बड़की खागा कस्बे में ब्याही थी. उस की बेटी का नाम शारदा था. शारदा अपनी मौसी से ज्यादा हिलीमिली थी सो उस ने ननकी से उस के घर आने की बात कही. ननकी ने शारदा की बात मान ली और उसे जल्द ही बुलाने की बात कही.

25 मई, 2020 की सुबह ननकी ने छत्रपाल को पैसे दे कर शारदा को बुलाने खागा भेज दिया. छत्रपाल खागा के लिए निकला तो ननकी के मायके से उस का पड़ोसी गोपाल आ गया. ननकी ने उसे घर के अंदर कर दरवाजा बंद कर लिया. ननकी का दरवाजा बंद हुआ तो पड़ोसी आपस में कानाफूसी करने लगे.

शाम 5 बजे छत्रपाल शारदा को साथ ले कर वापस आ गया. कुछ देर बाद छत्रपाल घर से निकला तो चुगलखोरों ने चुगली कर दी, ‘‘छत्रपाल तुम घर से निकले तभी कोई सजीला युवक आया. ननकी ने उसे घर के अंदर बुला कर दरवाजा बंद कर लिया था. बंद दरवाजे के पीछे क्या गुल खिला होगा, इसे बताने की जरूरत नहीं.’’

छत्रपाल पहले से ही ननकी पर शक करता था, पड़ोसियों की चुगली ने आग में घी डालने जैसा काम किया. गुस्से में छत्रपाल शराब ठेका गया और शराब पी कर घर लौटा. रात में कमरे में जब उस का सामना ननकी से हुआ तो उस ने ननकी के चरित्र पर अंगुली उठाई और उसे बदचलन, बदजात और वेश्या कहा.

इस पर दोनों में जम कर झगड़ा हुआ. झगड़े के दौरान ननकी के ब्लाउज से 5-5 सौ के 2 नोट नीचे गिर गए जो छत्रपाल ने उठा लिए थे. अब उसे पक्का विश्वास हो गया कि यह नोट अय्याशी के दौरान घर पर आए उस युवक ने दिए होंगे. शक का कीड़ा दिमाग में कुलबुलाया तो छत्रपाल का गुस्सा सातवें आसमान जा पहुंचा. उस ने ननकी को जमीन पर पटक दिया और फिर गमछे से गला कसने लगा. ननकी कुछ देर तड़पी फिर सदा के लिए शांत हो गई. हत्या करने के बाद छत्रपाल कमरे से निकला और फरार हो गया.

छत्रपाल से पूछताछ करने के बाद थानाप्रभारी नंदलाल सिंह ने 30 मई, 2020 को छत्रपाल को फतेहपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट पी.के. राय की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया. कथा संकलन तक उस की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. मृतका के बच्चे अपने नानानानी के पास रह रहे थे.       (कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

सौजन्य: सत्यकथा, जुलाई, 2020

तलाश लापता बेटे की : प्यार ने ली जान

हिंदू धर्म की एक दिक्कत यह है कि परिवार का कोई व्यक्ति लापता हो जाए, तो न तो उसका कर्मकांड किया जा सकता है और न ही उस की कोई रस्म निभाई जा सकती है, जबकि यह जरूरी होता है. क्योंकि किसी को मृत तभी माना जाता है जब उस का अंतिम संस्कार हो जाए.

जिला फिरोजाबाद के गांव गढ़ी तिवारी के रहने वाले मुन्नालाल के सामने यही समस्या थी. उस का बेटा संजय पिछले एक साल से लापता था.

उसे मुन्नालाल ने खुद ढूंढा, रिश्तेदार परिचितों ने ढूंढा, पुलिस ने ढूंढा, लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं चला. मुन्नालाल एक साल से थाने के चक्कर लगालगा कर थक गया था. पुलिस एक ही जवाब देती थी, ‘तुम्हारे बेटे को हम ने हर जगह ढूंढा. जिले भर के थानों को उस का हुलिया भेज कर मालूमात की, तुम ने जिस का नाम लिया उसी से पूछताछ की. अब बताओ क्या करें?’

‘‘आप अपनी जगह ठीक हैं. साहब जी, पर क्या करूं मेरे सीने में बाप का दिल है, जो बस इतना जानना चाहता है कि संजय जिंदा है या मर गया. अगर मर गया तो कम से कम उस के जरूरी संस्कार तो कर दूं. मेरा दिल तड़पता है उस के लिए.’’

मुन्नालाल ने कहा तो पास खड़ा एक उद्दंड सा सिपाही बोला, ‘‘ताऊ, तेरा बेटा पिछले साल 11 अप्रैल को गायब हुआ था. जिंदा होता तो लौट आता, तेरा इंतजार करना बेकार है.’’

‘‘साब जी, कह देना आसान है. कलेजे का टुकड़ा होता है, बेटा. मेरी तो मरते दम तक आंखें खुली रहेंगी उसे देखने के लिए.’’ मुन्नालाल ने कहा तो थानेदार ने सिपाही की ओर देख कर आंखे तरेरी. वह वहां से हट गया.

उस वक्त मुन्नालाल फिरोजाबाद के थाना बसई मोहम्मदपुर में बैठा था. वह कई महीने बाद यह सोच कर आया था कि संभव है, पुलिस ने उस का कोई पता लगाया हो. लेकिन उसे निराशा  ही मिली.

मुन्नालाल इसी थाना क्षेत्र के गांव गढ़ी तिवारी का रहने वाला था. उस का बेटा संजय 11 अप्रैल, 2018 की रात 8 बजे घर से फोन ले कर निकला था. जब वह घंटों तक वापस नहीं लौटा तो उस का फोन मिलाया गया, लेकिन फोन स्विच्ड औफ था. घर वालों ने गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर रात में ही संजय को ढूंढा. ढूंढने में रात गुजर गई पर संजय नहीं मिला.

लोगों की राय पर मुन्नालाल ने अगले दिन यानि 12 अप्रैल, 2018 को थाना बसई मोहम्मदपुर में अपने 22 वर्षीय बेटे संजय की संभावित हत्या की रिपोर्ट लिखा दी.

मुन्नालाल ने बेटे की हत्या का आरोप पड़ोसी गांव अंतै की मढ़ैया के रहने वाले हाकिम सिंह, उस के बेटे राहुल और बेटी सरिता पर लगाया. साथ ही थाना लाइन पार के गांव दत्तौंजी में रहने वाले जगदीश और अमृता उर्फ मुरारी पर भी संजय की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया. मुन्नालाल ने इन में सरिता को संजय की प्रेमिका॒ बताया था.

मुन्नालाल ने अपनी तहरीर में कहा था कि संजय और सरिता का प्रेमप्रसंग चल रहा था, जो उस के घर वालों को बुरा लगता था. जब सरिता ने उन की बात नहीं मानी तो उन लोगों ने सरिता से फोन करवा कर संजय को बुलाया और उस की हत्या कर लाश कहीं छिपा दी.

मुन्नालाल की इस तहरीर पर सरिता और उस के 4 घर वालों के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201 के तहत हत्या का केस दर्ज कर लिया गया.

केस दर्ज होने पर पुलिस ने छानबीन शुरू की. नामजद लोगों से अलगअलग पूछताछ की गई. काल डिटेल्स से पता चला कि घटना वाली रात करीब साढ़े 7 बजे सरिता ने संजय को फोन किया था. पुलिस ने सरिता से पूछताछ की तो उस ने बिना किसी झिझक के बता दिया कि उस ने संजय को फोन किया था. वह उस से मिलने आया भी. लेकिन मिलने के बाद वह अपने घर लौट गया था. उस ने यह भी कहा कि इस बात का उस के घर वालों को पता नहीं था.

संजय की काल डिटेल्स से भी यही पता चला था कि फोन बंद होने से पहले उस के फोन पर आखिरी काल सरिता की आई थी. सरिता ने यह बात खुद ही मान ली थी.

पुलिस ने अपने थाना क्षेत्र में तो खोजबीन की ही साथ ही जिले भर के थानों को संजय का फोटो और हुलिया भेज कर पड़ताल की, लेकिन संजय का कहीं कोई पता नहीं चला. जब दिन बीतते गए तो पुलिस भी हाथ समेट कर बैठ गई. मुन्नालाल बेटे का पता लगाने के लिए थाने के चक्कर लगाता रहा.

हर बार पुलिस उसे टरका कर घर भेज देती थी.

पुलिस की सोच थी कि सरिता से शादी न होने की वजह से संजय या तो घर छोड़ कर चला गया होगा या उस ने कहीं जा कर आत्महत्या कर ली होगी. सर्विलांस टीम भी इस मामले में कुछ नहीं कर सकीं. पुलिस अपनी इस सोच को कागजों पर तो उतार नहीं सकती थी. मामला संभावित हत्या का था और थाने में केस दर्ज था, इसलिए पुलिस का जोर मुन्नालाल पर ही चलता था. कुछ पुलिस वालों को तो वह बेचैन आत्मा और अछूत सा लगता था.

मुन्नालाल मन ही मन मान चुका था कि उस का बेटा संजय दुनिया में नहीं है, लेकिन उस की परेशानी यह थी कि वह उसे मरा भी नहीं मान सकता था. वह इस उम्मीद में थाने के चक्कर लगाता रहता था कि क्या पता जिंदा या मरे बेटे की कोई खबर मिल जाए.

लेकिन दिन पर दिन गुजरते गए संजय का कोई पता नहीं चला. ऐसे में मुन्नालाल और उस की पत्नी रोने के अलावा क्या कर सकते थे. पुलिस से उम्मीद थी, लेकिन वह भी हाथ समेट कर बैठ गई थी. अलमारी में पड़ी संजय मर्डर केस की फाइल धूल चाटने लगी. देखतेदेखते 2 साल होने को आए.

मुन्नालाल बेटे के लिए परेशान होतेहोते बुरी तरह टूट गया था. वह घर में रहता तब भी और बाहर रहता तब भी उसे बस बेटे की याद सताती रहती. उसे यह सोच कर सब से ज्यादा बुरा लगता कि वह बाप हो कर लापता बेटे के बारे पता नहीं लगा पाया.

इस बीच थाने और जिला स्तर पर कई अफसर और वरिष्ठ अधिकारी बदल गए थे. जो भी नया आता मुन्नालाल उसी को अपना दुखड़ा सुनाने पहुंच जाता. अब उसे इस बात की चिंता नहीं होती थी कि सामने वाला उस की सुन भी रहा है या नहीं.

इसी बीच किसी ने उसे राय दी कि वह फिरोजाबाद के एसएसपी सचिंद्र पटेल से मिले. मुन्नालाल ने एसएसपी साहब से मिल कर अपना रोना रोया. सचिंद्र पटेल को आश्चर्य हुआ कि एक पिता पौने 2 साल से पुलिस के पांव पखारता घूम रहा है और पुलिस ने उस के लिए कुछ नहीं किया. जबकि केस सीधासादा था.

सचिंद्र पटेल ने इस केस को सुलझाने की जिम्मेदारी एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार को सौंपी. साथ ही उन्होंने क्षेत्राधिकारी (सदर) हीरालाल कनौजिया और थाना बसई मोहम्मदपुर के प्रभारी निरीक्षक सर्वेश सिंह की मदद के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम के सहयोग के लिए सर्विलांस टीम को भी सहयोग करने का आदेश दिया गया.

इस पुलिस टीम ने नए सिरे से जांच शुरू की. इस के लिए टीम ने सब से पहले संजय के पिता मुन्नालाल और अन्य घर वालों से जरूरी जानकारियां जुटाईर्ं. फिर कुछ खास साक्ष्यों की कडि़यां जोड़नी शुरू कीं.

कुछ कडि़यां जुड़ती सी लगीं तो पुलिस टीम ने नामजद आरोपियों के मोबाइल फोनों की काल डिटेल्स चैक की. इस से पता चला कि घटना वाली रात 3 नामजद आरोपियों के फोनों की लोकेशन एक जगह पर थी.

यह इत्तेफाक नहीं हो सकता था. पुलिस ने उन तीनों को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की. उन तीनों ने यह स्वीकार कर लिया कि उन्होंने षड़यंत्र रच कर 11 अप्रैल, 2018 की रात संजय का मर्डर किया था. अंतत: उन तीनों की स्वीकारोक्ति के बाद शेष 2 आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया. इन लोगों ने संजय के कत्ल की जो कहानी बताई वह कुछ इस तरह थी.—

संजय पड़ोसी गांव गढ़ी तिवारी का रहने वाला था. वह अंतै की मढ़ैया में अपने परिचित से मिलने आता था. संजय के उस परिचित का घर सरिता के घर के पास में था. सरिता वहां आतीजाती थी. वहीं पर संजय और सरिता का परिचय हुआ.

धीरेधीरे दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हुए. बातें भी होने लगीं, फिर जल्दी ही दोनों प्रेमलहर में बह गए. लहरें जब तटबंध तोड़ने लगीं तो दोनों अपनेअपने गांव के सीमाने पर खेतों में मिलने लगे. दोनों ने तय किया कि उन की शादी में अगर घर वालों ने व्यवधान डाला तो घर छोड़ कर भाग जाएंगे और कहीं दूर जा कर शादी कर लेंगे.

गांवों में प्रेम प्यार या अवैध संबंधों की बातें छिपती नहीं हैं. जब किसी की आंखों देखी बात होंठों से उतरती है तो इन शब्दों के साथ कि किसी को बताना नहीं, लेकिन वही ना बताने वाली बात दिन भर में गांव के हर कान तक पहुंच जाती है.

सरिता और संजय के मामले में भी यही हुआ. इस के बाद सरिता को भला बुरा भी कहा गया और संजय से न मिलने की धमकी भी दी गई. लेकिन प्रेम का रंग हलका हो या गाढ़ा अपना रंग आसानी से नहीं छोड़ता.

चेतावनी के बाद भी संजय और सरिता मिलते रहे, भविष्य की भूमिका बनाते रहे. हां, दोनों ने अब सावधानी बरतनी शुरू कर दी थी.

इस के बावजूद बात फैल ही गई. इस से सरिता के परिवार की बदनामी हो रही थी. वे अगर संजय को कुछ कहते तो बदनामी उन्हीं की होती, इसलिए उन्होंने सरिता को डांटा, समझाया और पीटा भी. यह बात संजय के घर वालों को भी पता लग गई थी.

जब न सरिता मानी और न संजय तो सरिता के पिता हाकिम सिंह व भाई राहुल ने दत्तौंजी गांव के अमृता उर्फ मुरारी और जगदीश के साथ मिल कर संजय को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. इस के लिए तारीख तय की गई 11 अप्रैल, 2018 की रात.

इन लोगों ने उस दिन अंधेरा घिरने के बाद सरिता पर दबाव डाल कर संजय को फोन कराया. सरिता ने फोन पर संजय से कहा, ‘‘संजय, मैं बड़ी मुश्किल में हूं. घर वाले मुझे जान से मारने की धमकी दे रहे थे. मैं चोरीछिपे वहां से भाग कर गांव दत्तौंजी के बीहड़ में आ गई हूं.

‘‘जैसे भी हो तुम यहां आ जाओ, हम दोनें कहीं भाग चलेंगे और शादी कर लेंगे और हां, फोन साथ लाना, क्योंकि फोन होंगे तो एकदूसरे को ज्यादा ढूंढना नहीं पड़ेगा.’’

सरिता को मुसीबत में देख संजय बिना आगापीछा सोचे घर से भाग लिया. घर में किसी को कुछ बताया तक नहीं. उस के पास केवल फोन था. फोन संजय के पास भी था और सरिता के पास भी. दोनों दत्तौंजी गांव के बीहड़ में मिल गए. सरिता को देखते ही संजय ने गले से लगा किया. बोला, ‘‘मैं आ गया हूं, चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’

लेकिन सरिता कुछ नहीं बोली, उसे चुप देख संजय ने पूछा, ‘‘तुम चुप क्यों हो? मैं आ तो गया हूं, यहां से हम कहीं दूर चले जाएंगे.’’

‘‘ये क्या बोलेगी, बोलेंगे तो हम.’’ कहते हुए अगलबगल से 4 लोग निकल आए. संजय कुछ समझता इस से पहले ही उन्होंने मिल कर उसे दबोच लिया. उसे नीचे गिरा कर सरिता के सामने ही गोली मार दी. वह जिंदा न बच जाए, सोच कर उन्होंने साथ लाई कुल्हाड़ी से उस पर कई वार किए. इस के बाद यमुना किनारे के एक टीले पर गहरा गड्ढा खोदा और संजय की लाश और हत्या में इस्तेमाल असलहे वहीं दबा दिए.

संजय की हत्या का खुलासा होने पर पुलिस 4 आरोपियों को घटनास्थल पर ले गई. वहां जेसीबी मशीन से खुदाई कराने पर संजय का कंकाल, कुल्हाड़ी और तमंचा मिला. मृतक संजय के कपड़ों से उसे पहचाना गया. पुलिस ने कंकाल को फौरेसिंक जांच के लिए भेज दिया. डीएनए जांच के लिए मुन्नालाल का ब्लड लिया गया.

इस बीच सरिता की शादी हो चुकी थी और वह एक बेटी की मां बन गई थी. कोर्र्ट में पेश कर के जब चारों आरोपियों को जेल भेजा गया तो पांचवें आरोपी के रूप में सरिता को भी अपनी बेटी के साथ जेल जाना पड़ा.

मुन्नालाल जानता था कि उस का बेटा मार डाला गया है, लेकिन उस का मन नहीं मानता था. अब उस ने सब्र कर लिया है.

सौजन्य: सत्यकथा, जुलाई, 2020

इंसानी ज्वालामुखी : आक्रोश में आकर की पत्नी की हत्या

6 फरवरी, 2020 की बात है. दिन के करीब 11 बजे थे. महाराष्ट्र की उप राजधानी नागपुर शहर के सक्करदारा पुलिस थाने के सीनियर इंसपेक्टर अजीत सीद को एक अहम सूचना मिली. सूचना देने वाले ने फोन पर उन्हें बताया कि सुपर बाजार के दत्तात्रेय नगर स्थित देशमुख अपार्टमेंट की पहली मंजिल के फ्लैट नंबर 40 में कोई हादसा हो गया है. फ्लैट के अंदर से दुर्गंध आ रही है.

सीनियर इंसपेक्टर अजीत सीद ने इस सूचना को गंभीरता से लिया और अपने सहायक सबइंसपेक्टर प्रवीण बड़े, विनोद म्हात्रे और विजय मसराम को साथ ले कर तुरंत घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल सक्करदारा थाने से करीब एक किलोमीटर दूर था. पुलिस टीम को वहां पहुंचने में 10 मिनट का समय लगा. इस बीच यह खबर उस इलाके में आग की तरह फैल गई थी, भीड़ देख कर पुलिस टीम को समझते देर नहीं लगी कि उसे किस अपार्टमेंट में जाना है.

पुलिस टीम भीड़ को हटा कर फ्लैट नंबर 40 के सामने जा पहुंची. फ्लैट के दरवाजे पर ताला लटक रहा था. पड़ोसियों ने बताया कि फ्लैट भारतीय ज्ञानपीठ प्राइमरी स्कूल की हेडमिस्ट्रेस मंजूषा नाटेकर का है, जिस में वह अपने छोटे मामा अशोक काटे के साथ रहती थीं.

मंजूषा और जयवंत नाटेकर का एक बेटा है सुजय नाटेकर, जो अपनी पत्नी के साथ चंद्रपुर में रहता है. मंजूषा नाटेकर का एक भाई राजेश खड़खड़े पास ही के मानवेड़ा परिसर के एक अपार्टमेंट में किराए पर रहता है और नौकरी करता है.

फ्लैट की एक चाबी उस के पास रहती है. सूचना दे दी गई है, वह आता ही होगा. दुर्गंध चूंकि काफी तेजी थी, इसलिए पुलिस टीम ने नाक पर रूमाल बांध कर दरवाजा खोला तो अंदर का दृश्य दिल दहला देने वाला था.

फ्लैट के अंदर एक नहीं 2 शव पड़े थे. एक शव मंजूषा के मामा अशोक काटे का था, जो हौल में था, जबकि दूसरा शव फ्लैट की किचन में रक्त में डूबा मंजूषा नाटेकर का था. उस का बड़ी बेरहमी से कत्ल किया गया था. कत्ल संभवत: 2 दिन पहले हुए थे. शवों में सड़न पैदा हो गई थी और दुर्गंध फैल रही थी.

सीद ने घटना की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही फोरैंसिक टीम को भी मौकाएवारदात पर बुला लिया. सूचना मिलते ही पुलिस कमिश्नर डा. भूषण कुमार उपाध्याय, एडिशनल सीपी शशिकांत महावरकर, डीसीपी चिन्मय पंडित और डीसीपी (क्राइम) गजानन राजमने भी वहां आ गए.

फौरेंसिक टीम का काम खत्म होने के बाद वरिष्ठ अधिकारियों ने घटनास्थल की बारीकी से जांचपड़ताल की. पड़ोसियों के बयान दर्ज किए. घटनास्थल की सारी कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के शवों को पोस्टमार्टम के लिए नागपुर मैडिकल कालेज भेज दिया गया. मंजूषा नाटेकर के भाई राजेश खड़खडे़ को ले कर पुलिस थाने लौट आई.

पूछताछ में राजेश खडखड़े ने दोनों हत्याओं का आरोप सीधेसीधे अपने बहनोई जयवंत नाटेकर पर लगाया. उस का कहना था कि उस के बहनोई और बहन में अकसर लड़ाईझगड़े होते थे. मंजूषा नाटेकर के पड़ोसियों ने भी पूछताछ के दौरान यही बात पुलिस को बताई थी.

पड़ोसियों के अनुसार उस दिन पहले फ्लैट से तेजतेज आवाजें आती सुनाई दीं. हालांकि टीवी की तेज आवाज में बातें स्पष्ट नहीं सुनी जा सकीं. कुछ देर बाद जब टीवी की आवाज बंद हुई तो उन्होंने जयवंत नाटेकर को फ्लैट में ताला लगा कर बाहर जाते हुए देखा. शुरूआती जांचपड़ताल के बाद मंजूषा नाटेकर के पति जयवंत नाटेकर की गिरफ्तारी के बाद ही सामने आ सकती थीं.

जयवंत नाटेकर कहां होगा, इस की जानकारी किसी को नहीं थी. एक तरफ जहां इंसपेक्टर अजीत सीद अपने सहायकों के साथ मामले पर विचारविमर्श कर तफ्तीश की रूपरेखा तैयार कर रहे थे. वहीं दूसरी तरफ मामले की गंभीरता को देखते हुए सीपी डा. भूषण कुमार उपाध्याय ने तफ्तीश की जिम्मेदारी क्राइम ब्रांच के सबइंसपेक्टर राठौर, हेडकांस्टेबल आनंद जांमुले, गोविंद देशमुख्र कांस्टेबल राशिद, रोहन और संजय सोनपणे की टीम बना कर जांच शुरू कर दी.

क्राइम ब्रांच की टीम ने तफ्तीश का केंद्रबिंदु उन लोगों को बनाया, जिन से जयवंत के करीबी संबंध थे. इस का नतीजा भी जल्द सामने आ गया. उस के एक दोस्त ने बताया कि जयवंत नाटेकर के पास एक मोबाइल और 2 सिम थे. इन में से एक सिम का इस्तेमाल वह अपनी पत्नी मंजूषा से छिपा कर करता था.

वह अपने बेटे और बहू के साथ अपना दुखदर्द साझा करता था. जबकि दूसरे सिम से अपना दिल बहलाने के लिए खास दोस्तों से बात कर लिया करता था. क्राइम ब्रांच को दूसरे सिम कार्ड से कामयाबी मिली, क्योंकि पहला सिम कार्ड बंद था.

दूसरे सिम से जब जयवंत नाटेकर से संपर्क हुआ तो क्राइम ब्रांच की टीम ने अपना परिचय छिपा कर उस से इधरउधर की बात की. इस से उस की लोकेशन मिल गई. मोबाइल लोकेशन के आधार पर क्राइम ब्रांच ने जयवंत नाटेकर को रात 8 बजे उस समय दबोच लिया, जब वह नागपुर रेलवे स्टेशन पर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जाने के लिए अजमेर शरीफ की टिकट ले रहा था.

क्राइम ब्रांच की टीम ने जयवंत नाटेकर को गिरफ्तार कर अपने वरिष्ठ अधिकारियों के सामने खड़ा कर दिया. उस से विस्तार से पूछताछ की गई तो पता चला वह एक ऐसा पीडि़त पति था, जिस के अंदर का मर्द अचानक जाग गया था और वह उसी मर्दानगी में 2 कत्ल कर बैठा. जयवंत ने बिना किसी दबाव के अपना अपराध स्वीकार कर के पुलिस को अपने उत्पीड़न की पूरी कहानी बता दी, जो कुछ इस तरह थी—

चंद्रपुर निवासी 50 वर्षीय जयवंत नाटेकर सरल स्वभाव का व्यक्ति था. गांव के स्कूल से 10वीं जमात पास करने के बाद उसे चंद्रपुर की रेफ्रीजरेटर बनाने वाली एक कंपनी में वाहन चालक की नौकरी मिल गई. अच्छी नौकरी और वेतन होने के बाद परिवार वालों ने 1980 में उस की शादी नागपुर के भंडारा जवाहर नगर की मंजूषा खड़खड़े से कर दी.

45 वर्षीय मंजूषा खड़खड़े संपन्न परिवार की एकलौती बेटी थी. उस के 2 भाई थे संजय खड़खड़े और राजेश खड़खड़े. मंजूषा सब से छोटी थी. उस का बड़ा भाई संजय खड़खड़े अपने गांव में रह कर काश्तकारी करता था.

जबकि छोटा भाई राजेश खड़खड़े नागपुर की एक प्राइवेट कंपनी में सर्विस कर रहा था और दत्तात्रेय नगर, मानवेड़ा के एक अपार्टमेंट में किराए का फ्लैट ले कर रहता था. मंजूषा खड़खड़े जितनी स्वस्थ और सुंदर थी, उतनी ही स्मार्ट और महत्त्वाकांक्षी भी थी.

जयवंत नाटेकर से शादी होने के बाद उसे अपने सारे सपने बिखरते नजर आए. यह बात जब जयवंत नाटेकर को पता चली तो उस ने मंजूषा के सपनों को मरने नहीं दिया. उस ने मंजूषा की इच्छाओं को पूरा किया और उसे वह मुकाम दिलवाया जो वह चाहती थी. लेकिन उस के मन में पति के इस सहयोग की कोई कीमत नहीं थी.

वह वैसे भी अपनी पसंद और कल्पना के अनुसार पति न पा कर दुखी थी. प्रतिष्ठित स्कूल की नौकरी पाने के बाद वह गांव छोड़ कर नागपुर के दत्तात्रेय नगर जैसे पौश इलाके में आ कर रहने लगी.

मंजूषा नाटेकर और जयवंत का एक बेटा था सुजय. सरल स्वभाव का जयवंत मंजूषा की ज्यादतियों पर भी कुछ नहीं कहता था. नतीजा यह हुआ कि मंजूषा का हौसला बढ़ता गया और वह अपनी नारी मर्यादा को ही भूल गई.

इस का एहसास नाटेकर को तब हुआ जब एक हादसे के चलते दिसंबर, 2000 में उस की नौकरी चली गई. पेंशन के रूप में उसे सिर्फ 2000 रुपए मिलते थे, जिस की मंजूषा की नजर में कोई अहमियत नहीं थी. मंजूषा स्कूल की हेडमास्टर थी. मानसम्मान, अच्छा वेतन और समाज में उस की काफी इज्जत थी.

लेकिन घर में वह अपने पति नाटेकर के साथ नौकरों जैसा व्यवहार करती थी. घर के सारे काम झाड़ू, बर्तन, कपड़े धोने वगैरह के काम तो जयवंत को करने ही पड़ते थे, कभीकभी वह पति से अपनी मालिश तक करवाती थी. जयवंत के न करने पर वह उसे थप्पड़ तक जड़ देती थी.

इस के बावजूद भी मंजूषा का मन नहीं भरता तो वह अपने मायके वालों को बुला कर उन के सामने पति को अपमानित करती थी. मायके वाले उसी का पक्ष लेते और जयवंत को डांटतेफटकारते थे.

पिता के प्रति अपनी मां और उस के मायके वालों का बर्ताव देख बेटा सुजय नाटेकर दुखी हो जाता था. वह पिता के साथ हमदर्दी रखते हुए मां को समझाने की कोशिश करता, लेकिन मां पर इस का कोई असर नहीं होता था. इस की जगह मंजूषा कभीकभी उसे भी आडे़ हाथों लेती थी.

सुजय नाटेकर जवान हो गया था. पिता के प्रति मां का व्यवहार उस से देखा नहीं जाता था. वह जिस कालेज में पढ़ता था, उसी कालेज की एक लड़की से लवमैरिज कर के अपने पुश्तैनी घर चंद्रपुर चला गया.

जब कभी पिता की याद आती तो वह आ कर मिल लेता था. जब इस पर भी मां मंजूषा ने ऐतराज किया तो उस ने मां से छिपा कर पिता जयवंत को एक मोबाइल और 2 सिम ला कर दे दिए थे. जिस से चोरीछिपे पितापुत्र की बातें हो जाया करती थीं.

समय अपनी गति से दौड़ रहा था. 2019 में जब मंजूषा की मां का देहांत हुआ तो वह अपने मायके गई और लौटते समय अपने मामा अशोक काटे को साथ ले आई. पहले तो जयवंत पत्नी मंजूषा से ही परेशान था, अब उसे मंजूषा के मामा अशोक काटे से भी कोई राहत नहीं मिली. वह भी बहन के सुर से सुर मिलाने लगा. मामाभांजी के रोज के बर्ताव से जयवंत की सहनशक्ति जवाब दे गई. उस के अंदर इतना गुबार भर गया था, जो कभी भी ज्वालामुखी की तरह फट सकता था.

घटना के 2 दिन पहले 3 फरवरी, 2020 को सुबहसुबह स्कूल जाते समय मंजूषा ने अपनी 4 साडि़यां अलमारी से निकाल कर जयवंत के सामने डाल दीं और धो कर प्रेस करने को कहा. जयवंत पहले से ही त्रस्त था, उस ने इस काम के लिए इनकार कर दिया.

इस पर मंजूषा ने पति के गाल पर इतने जोर से थप्पड़ मारा कि उस का पूरा शरीर झन्ना कर रह गया. थप्पड़ जड़ कर मंजूषा बड़बड़ाती हुई किचन में चली गई. जयवंत कुछ देर गाल पर हाथ रखे खड़ा रहा. जयवंत को बरदाश्त नहीं हुआ. अचानक उस का पुरुषत्व जाग उठा.

टीवी की आवाज तेज कर के वह मंजूषा के पीछेपीछे किचन में गया और बदले में उस ने मंजूषा के गाल पर वैसा ही थप्पड़ जड़ दिया, जिस से मंजूषा तिलमिला कर रह गई. वह जयवंत का कालर पकड़ कर उस से उलझ गई.

इसी बीच जयवंत नाटेकर ने किचन में रखा सब्जी काटने वाला चाकू उठाया और मंजूषा पर कई वार कर दिए. मंजूषा की चीख सुन कर अशोक काटे उसे बचाने के लिए जब बैडरूम से बाहर आया तो जयवंत ने उस का भी वही हाल कर दिया जो मंजूषा का किया. दोनों बचाव के लिए चीखेचिल्लाए लेकिन उन दोनों की चीखें टीवी की तेज आवाज में दब कर रह गई थी.

मंजूषा और अशोक काटे को मौत की नींद सुलाने के बाद जयवंत ने राहत की सांस ली. कपड़े बदले और फ्लैट में ताला लगा कर 2 दिनों तक अपने एक पुराने दोस्त के पास रहा. उस के बाद उस ने अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए अजमेर जाने का फैसला किया. लेकिन जाने से पहले वह पकड़ा गया.

क्राइम ब्रांच की टीम ने अपनी तफ्तीश पूरी कर अभियुक्त जयवंत नाटेकर को थाना सक्करदारा को सौंप दिया. जहां की पुलिस ने उसे अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया. औरत अगर अपने ही घर में कांटे बिखेर दे तो उस के पांव कब तक सुरक्षित रह सकते हैं.

सौजन्य: सत्यकथा, अगस्त, 2020

प्यार की भोथरी धार : प्रेमी को दी मौत की सजा

उत्तर प्रदेश के शहर बरेली का एक थाना है बिशारतगंज. इस्माइलपुर गांव इसी थाना क्षेत्र में आता है. गुड्डू अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा बेटी बेबी और एक बेटा प्रकाश था. बेटी बीए फाइनल में पढ़ रही थी. गुड्डू खेतीकिसानी करता था. इसी से उस के परिवार की गुजरबसर होती थी.

बेबी के घर के पास गांव के 22 वर्षीय अमित गुप्ता की किराने की दुकान थी. बेबी घर का खानेपीने का सामान अमित की दुकान से लाती थी. इसी आनेजाने में वह मन ही मन अमित को पसंद करने लगी थी. लेकिन उस ने अपने मन की बात अमित पर जाहिर नहीं होने दी थी.

अमित के पिता रामकुमार का कई साल पहले निधन हो गया था, मां अभी थी. भाईबहनों से उस का परिवार भरा पूरा था. अमित का पढ़ाई में मन नहीं लगा तो उस ने परचून की दुकान खोल ली थी.

एक दिन बेबी जब अमित की दुकान पर पहुंची, तो वहां उस के अलावा कोई ग्राहक नहीं था. सौदा लेने के बाद चलते समय उस ने अमित से कहा, ‘‘तुम बहुत सुंदर हो.’’

अकसर ऐसी प्यार भरी बातें चाहने वाले लड़के अपनी प्रेमिका से कहते हैं. जबकि यहां यह बात एक युवती कह रही थी. सुन कर अमित के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई. उस ने भी मुसकरा कर कह दिया, ‘‘अच्छा…’’ और बेबी शरमा कर वहां से चली गई.

दुकान पर आतेजाते उसे अमित अच्छा लगने लगा था. काफी दिनों तक तो उस ने अपने दिल पर काबू रखा था. लेकिन उस दिन उस ने हिम्मत कर के अमित से सुंदर लगने वाली बात कह ही दी थी.

अब बेबी इसी ताक में रहने लगी कि जब अमित की दुकान पर कोई ग्राहक न हो तभी सामान लेने जाए. एक दिन उसे यह मौका मिल गया. सामान लेते समय अमित ने उस का हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘उस दिन तुम क्या कह रही थीं?’’

‘‘कुछ भी तो नहीं,’’ बेबी ने भोली बन कर हंसते हुए कहा, ‘‘तुम सच में बड़े भोले हो, तुम्हारी यह अच्छाई मुझे बहुत पसंद है.’’

अपनी प्रशंसा सुन कर अमित खुश हो गया. वह बोला, ‘‘बेबी तुम भी बहुत अच्छी लगती हो मुझे. जब भी तुम आती हो मेरे दिल की धड़कने बढ़ जाती हैं.

‘‘अच्छा…’’ इतना कह कर बेबी मुसकराती हुई वहां से चली गई.

बेबी और अमित करीबकरीब हमउम्र थे. दोनों के बीच बातचीत का दायरा बढ़ता गया और नजदीकियां सिमटती गईं. अमित जब भी बेबी को देखता, खुशी के मारे उस का दिल बागबाग हो उठता. बेबी भी अमित को देख कर खुश हो जाती थी.

धीरेधीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. जब तक दोनों एकदूसरे को देख नहीं लेते, दिलों को चैन नहीं मिलता था. दोनों के इस प्रेमप्रसंग की किसी को कानोंकान खबर नहीं लगी. यहां तक कि उन के घर वालों तक को भी नहीं.

बाद में दोनों दुकान के अलावा चोरीछिपे भी मिलने लगे. हालांकि दोनों की जाति अलगअलग थी, इस के बावजूद उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया था. एक बार बेबी ने अमित से पूछ लिया, ‘‘अमित, वैसे तो मैं जातपात में विश्वास नहीं करती, पर समाज से डर कर तुम मुझे कहीं भूल तो नहीं जाओगे?’’

इस पर अमित ने उस के होंठों पर हाथ रख कर चुप कराते हुए कहा, ‘‘बेबी, अगर हमारा प्यार सच्चा है तो चाहे कितनी भी बाधाएं आएं, हम जुदा नहीं होंगे.’’

दोनों ने फैसला किया कि एकदूसरे के लिए ही जिएंगे.

आखिर किसी तरह बेबी के घर वालों को पता चल गया कि उन की बेटी का गांव के ही दूसरी जाति के युवक से प्रेमप्रसंग चल रहा है. इस से घर वालों की चिंता बढ़ गई.

गुड्डू ने पत्नी से कहा कि वह बेटी पर ध्यान दे. उस के पांव बहक रहे हैं. हाथ से निकल गई या कोई ऊंचनीच कर बैठी तो समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. उसे अमित के करीब जाने से मना कर दे.

बेबी की मां ने समझदारी दिखाते हुए यह बात बेटी को सीधे तरीके से न कह कर अप्रत्यक्ष ढंग से समझाई. वह जानती थी कि बेटी सयानी हो चुकी है. सीधेसीधे बात करने से उसे बुरा लग सकता था. वैसे भी बेबी जिद्दी स्वभाव की थी, जो मन में ठान लेती थी, उसे पूरा करती थी.

बेबी अपनी मां की बात को अच्छी तरह समझ गई थी कि वह क्या कहना चाहती है. लेकिन उस के सिर पर अमित के इश्क का भूत सवार था. उसे अमित के अलावा किसी और की बात समझ में नहीं आती थी. उस ने मां से साफसाफ कह दिया कि वह अमित से प्यार करती है और शादी भी  उसी से करेगी.

अमित और बेबी जान चुके थे कि उन के प्यार के बारे में दोनों के घर वालों को पता लग चुका है. दोनों परिवार इस रिश्ते को किसी भी तरह स्वीकार नहीं करेंगे, इस बात को ले कर अमित काफी परेशान रहने लगा था.

बेबी किसी भी तरह अपने मांबाप की बात मानने को तैयार नहीं हुई. अमित और बेबी के प्रेम प्रसंग के चर्चे अब गांव में भी होने लगे थे. बात जब हद से आगे निकलने लगी तो गुड्डू ने बिरादरी में होने वाली बदनामी से बचने के लिए अपने चचेरे भाई सचिन से इस संबंध में बात की. निर्णय लिया गया कि बिना देरी किए बेबी के लिए लड़का तलाश कर उस के हाथ पीले कर दिए जाएं.

इस की भनक जब बेबी को लगी तो उस ने विरोध किया. उस ने कह दिया कि अभी वह पढ़ रही है. पढ़ाई पूरी नहीं हुई है. इसलिए शादी नहीं करेगी. वह पढ़ाई कर के नौकरी करना चाहती है.

लेकिन चाचा सचिन ने उस की बात का विरोध करते हुए कहा, ‘‘पढ़ाई का शादी से कोई संबंध नहीं होता. पढ़ने से तुम्हें ससुराल में भी कोई नहीं रोकेगा.’’

घर वालों ने भागदौड़ कर बदायूं के दातागंज में बेबी की शादी तय कर दी. एक माह बाद यानी 16 जून, 2020 को गांव में बेबी की बारात आनी थी.

जब अमित को इस बात का पता चला, तो उस का दिल टूट गया. उस ने बेबी के साथ भविष्य के जो सपने संजोए थे, बिखरते दिखे. एक दिन अमित बेबी के घर जा पहुंचा. उस ने बेबी के घर वालों को बताया कि वह और बेबी एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.

घर में मौजूद बेबी ने भी अमित के अलावा किसी दूसरे के साथ शादी करने से इनकार कर दिया. लेकिन बेबी के घर वालों के सामने अमित और बेबी की एक नहीं चली. घर वालों ने अमित से बेबी की शादी से साफ मना कर दिया. उन्होंने कहा कि बेबी की शादी अपनी जाति के लड़के से ही करेंगे.

बेबी की शादी में मात्र 2 दिन शेष रह गए थे. 2 दिन बाद प्रेमिका के घर शहनाइयां बजने वाली थीं. अमित को कुछ सूझ नहीं रहा था. उस की हालत पागलों जैसी हो गई थी. अमित की दुकान भी कई दिनों से बंद थी. उस का मन बेबी में अटका हुआ था. वह किसी तरह एक बार बेबी से मिल कर दिल की बात कहना चाहता था. लेकिन बेबी पर उस के घर वालों का कड़ा पहरा था.

बेबी के परिवार में खुशियों का माहौल था. शादी की तैयारियों में घर वालों के साथसाथ रिश्तेदार व गांव के परिचित भी लगे हुए थे. 14 जून की सुबह 5 बजे बेबी अपनी बुआ, तहेरी बहन और ताई के साथ खेतों की ओर निकली.

आधे घंटे बाद बेबी खेत से घर लौट रही थी. वह अपने घर के दरवाजे के पास पहुंची तभी अमित आ गया. उस ने बेबी से साथ चलने को कहा. पर बेबी ने उस के साथ जाने से मना कर दिया. अमित ने अपने प्यार की दुहाई दी, लेकिन बेबी पर कोई असर नहीं हुआ. इस से अमित आपा खो बैठा और साथ लाए तंमचे से बेबी के ऊपर फायर कर दिया.

गोली बेबी की कमर व बांह में लगी, वह चीख कर वहीं गिर पड़ी. बेबी को गोली मारने के बाद अमित तमंचा लहराता हुआ गांव के बाहर भागा. कुछ देर बाद पता चला कि अमित ने बेबी के घर से लगभग 400 मीटर दूर ग्राम प्रधान के घर के पास खाली मैदान में खुद को गोली मार ली है.

सुबहसुबह गांव में गोली चलने की आवाज सुन कर गांव वाले एकत्र हो गए. अमित की रक्तरंजित लाश देख कर गांव में हड़कंप मच गया, जिस ने भी यह दृश्य देखा वह सन्न रह गया. किसी ने अमित के घर वालों को घटना की जानकारी दे दी.

जानकारी मिलते ही अमित के घर वाले घटनास्थल की ओर दौड़े, अमित के सीने में गोली लगी थी. उस की मौत हो चुकी थी. लाश के पास ही तमंचा पड़ा था. अमित की मौत की खबर सुन कर उस की मां रोतेरोते बेहोश हो गई.

चौकीदार नत्थूलाल की सूचना पर थाने से पुलिस टीम के साथ एसआई खेम सिंह गांव इस्माइलपुर पहुंच गए. गांव की सीमा पर भीड़ जुटी थी.

एसआई ने मैदान में युवक की लाश के पास सिपाही तैनात करने के साथ ही घायल बेबी को एंबुलेंस से मझगवां अस्पताल भिजवाया, जहां से उसे जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया.

इस बीच जानकारी होने पर थानाप्रभारी राजेश कुमार सिंह व सीओ आंवला रामप्रकाश भी घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी ने पुलिस के आला अधिकारियों को भी घटना की जानकारी दे दी. इस पर एसएसपी शैलेश पांडेय व एसपी (देहात) संसार सिंह भी घटनास्थल पर आ गए. फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया गया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. साथ ही गांव वालों से पूछताछ भी की. मृतक व घायल युवती के घर वालों से भी घटना के संबंध में जानकारी हासिल की गई.

युवक के घर वालों ने जहां युवती के घर वालों पर औनरकिलिंग का आरोप लगाया, वहीं युवती के घर वालों ने बताया कि मृतक ने हमारी बेटी को गोली मार कर घायल किया और फिर खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली.

पुलिस ने मौकाएवारदात से 312 बोर का एक तमंचा बरामद किया. इस के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. फोरैंसिक टीम ने भी युवती के दरवाजे के पास से व युवक की लाश के आसपास जांच कर आवश्यक साक्ष्य जुटाए.

बेबी की गंभीर हालत को देखते हुए उसे जिला अस्पताल से एक निजी मिशन अस्पताल में ले जाया गया. इस सनसनीखेज घटना के बाद गांव में तनाव की स्थिति बन गई थी. इसे देखते हुए गांव में पुलिस फोर्स तैनात कर दी गई.

पुलिस भले ही प्रेमिका को गोली मार कर प्रेमी द्वारा खुदकुशी करने की बात कह रही थी, लेकिन गांव के बहुत से लोगों के गले यह बात नहीं उतर रही थी. उन का कहना था कि यदि अमित अपनी प्रेमिका को गोली मार कर उस के साथ अपना भी जीवन खत्म करना चाहता था तो उस ने खुदकुशी करने के लिए वहां से लगभग 400 मीटर दूर जगह क्यों चुनी.

दूसरी बात खुदकुशी करने वाला तमंचे से गोली अकसर अपनी कनपटी पर मारता है, जबकि अमित के सीने में गोली लगी थी. तमंचा उस के शव से 3 मीटर दूर पड़ा मिला. वहीं खोखा भी एक ही मिला, जबकि गोली 2 चली थीं. गांव में प्रेमप्रसंग में हत्या किए जाने का शक जाहिर किया जा रहा था.

बेबी की मां का कहना था कि प्रेम प्रसंग नहीं था. उन की बेटी व मृतक की बहन पक्की सहेली थीं. नौकरी के लिए फार्म भरने को बेटी ने उसे अपने प्रमाणपत्र दिए थे. मृतक की बहन अब उन्हें नहीं लौटा रही थी. जिन्हें न देने की वजह से दोनों परिवारों में तनातनी थी. बेबी अमित से प्यार नहीं करती थी.

अमित की मां के अनुसार युवती की शादी तय हो जाने व उस के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगाने से अमित मानसिक रूप से परेशान था. कुछ दिन पहले उस ने नींद की गोलियां खा कर भी जान देने की कोशिश की थी. वह बेबी से शादी करना चाहता था. लड़की भी अमित से शादी की जिद पर अड़ी थी. उस के घर वालों ने धमकी दी थी कि तुझे और अमित दोनों को मार देंगे. इस के बाद भी लड़की नहीं मान रही थी.

मां ने बताया कि सुबह अमित के पास वीरपाल प्रधान का फोन आया था. वह उसे बुला रहे थे, वह उसी समय घर से चला गया था. इस के बाद यह घटना हो गई.

वहीं पोस्टमार्टम हाउस पर पहुंचे अमित के बड़े भाई राजबाबू के अनुसार अमित पिछले 2 साल से बेबी के संपर्क में था, 3 माह पूर्व दोनों ने गुपचुप तरीके से कोर्टमैरिज कर ली थी. इस बात की जानकारी घटना से कुछ दिन पहले ही अमित ने घर वालों को दी थी. लेकिन हम ने उस की बात पर विश्वास नहीं किया था.

उधर युवती भी दूसरी जगह शादी नहीं करना चाहती थी. वह भी अमित से शादी की जिद पर अड़ी थी. उस ने अपने घर वालों से कह दिया था कि बारात लौटा दो. यह जानकारी मिलने पर बेबी के घर वालों ने प्रधान से साजिश कर पहले अपनी बेटी और फिर उस के भाई को गोली मार दी.

शाम को पोस्टमार्टम के बाद अमित के घर वालों ने मझगवां-आंवला मार्ग पर उस का शव रख कर हंगामा किया. घर वालों का आरोप था कि अमित की हत्या बेबी के घर वालों ने की है. पुलिस उन के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं कर रही है.

सूचना पर मौके पर पहुंचे एसडीएम कमलेश कुमार सिंह व सीओ रामप्रकाश ने उन्हें समझाया, लेकिन जब वे नहीं माने तब हलका बल प्रयोग कर उन्हें वहां से हटा दिया.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट में अमित द्वारा सल्फास खाने की भी पुष्टि हुई थी. रिपोर्ट के मुताबिक गोली ऐन दिल पर लगी थी, छर्रे आसपास भी धंसे थे. घायल युवती के पिता गुड्डू ने थाने में मृतक अमित व उस के भाइयों के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कराई.

बेबी के पिता की तहरीर पर पुलिस ने आत्महत्या करने वाले प्रेमी अमित सहित उस के भाइयों राजबाबू, अजय, सुमित, कल्लू व विनोद गुप्ता के खिलाफ जान से मारने की नीयत से हमला करने की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

वहीं एसआई खेम सिंह की ओर से भी मृतक पर अवैध तमंचा रखने तथा खुदकुशी करने की धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया गया. रिपोर्ट में मृतक पर एकतरफा प्यार करने का भी आरोप लगाया गया था.

इस तरह एक प्रेम कहानी का दर्दनाक अंत हो गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, अगस्त, 2020