ढाबे से आमदनी बढ़ी तो संतोष की फिजूलखर्ची भी बढ़ गई. वह अपनी आमदनी का ज्यादातर हिस्सा दोस्तों के साथ शराब पीने आदि पर खर्च करने लगा. यानी उस का हाल आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपैया वाली हो गई थी.
जितना वो कमाता नहीं था, उस से ज्यादा खर्च कर देता था. धंधे में व्यस्त होने की वजह से उस का गांव में आनाजाना भी कम हो गया था. वह कभीकभी ही गांव जाता था. उस ने गांव से अपना रिश्ता लगभग तोड़ सा लिया था. वह केवल पैसे लेने के लिए ही गांव जाता था.
श्याम का एक दोस्त था रिंकू मिश्रा, जो जानकीपुरम में रहता था. वह भी पहले श्याम के साथ ही ढाबे पर काम करता था. श्याम किसी वजह से उस का ढाबा छोड़ कर कहीं चला गया तो संतोष के सामने ढाबा चलाने की समस्या खड़ी हो गई. क्योंकि वह खाना बनाना नहीं जानता था. इसलिए उस ने रिंकू मिश्रा को बुला लिया. रिंकू ढाबा चलाने में संतोष का सहयोगी बन गया. दोनों को ही शराब पीने की आदत थी. ऐसे में उन की जोड़ी जम गई.
पत्नी से दूर रहने की वजह से संतोष का मन औरत के लिए बेचैन रहता था. उस के मन में जवानी की उमंगें हिलोरें मारने लगी थीं. चूंकि संतोष खूब बनठन कर रहता था इसलिए रिंकू उसे बहुत पैसे वाला समझता था. रिंकू उस के पैसे से खुद भी मजे करना चाहता था और संतोष को भी कराना चाहता था. संतोष ने मन की बात रिंकू को बताई तो वह संतोष को देहधंधा करने वाली औरतों के पास ले जाने लगा. दोनों ही वहां मस्ती करते.
एक दिन संतोष ने रिंकू से कहा, ‘‘रिंकू भाई, सही कहूं तो इन औरतों के पास आने से तन की प्यास तो बुझ जाती है. पर मन में कोई सुख महसूस नहीं होता. हो सके तो कोई परमानेंट इंतजाम करो.’’
‘‘ठीक है संतोष भाई, मैं तुम्हारे लिए कोई परमानेंट इंतजाम करता हूं.’’ रिंकू ने उसे भरोसा दिलाया.
संतोष के ढाबे पर रिंकी तिवारी नाम की एक युवती आती थी. वह काकोरी गांव की रहने वाली थी. उस की शादी हरदोई के रहने वाले प्रेम कुमार के साथ हुई थी. लेकिन शादी के कुछ साल के अंदर ही उस का अपने पति से झगड़ा हो गया तो वह वापस मायके आ गई. वह लखनऊ आतीजाती रहती थी. इसी दौरान रिंकी की मुलाकात रिंकू हुई.
रिंकी कुछ दिन रिंकू के जानकीपुरम स्थित मकान में किराएदार के रूप में भी रही. रिंकू ने रिंकी को संतोष के बारे में बताया. रिंकी भी चाहती थी कि वह किसी पैसे वाले के साथ बंधे. एक दिन रिंकू ने एकांत में रिंकी की मुलाकात संतोष से करा दी. 40 साल का संतोष 22 साल की रिंकी से मिल कर बहुत खुश हुआ. चूंकि दोनों को ही एकदूसरे के साथ की जरूरत थी. इसलिए बहुत जल्द ही उन के बीच दोस्ती हो गई.
रिंकी को मर्दों की कमजोरी का पता था. वह संतोष के करीब जाने से पहले उसे अच्छी तरह से तौल लेना चाहती थी. कई बार संतोष ने उस के करीब जाने की कोशिश की तो रिंकी ने अपने मन की बात बताते हुए कहा, ‘‘संतोष, मैं तुम्हें प्यार करती हूं, मैं भी तुम को पाना चाहती हूं. पर मेरी इच्छा है कि पहले हम शादी कर लें. जिस से मुझे तुम्हारे सामने शर्मिंदा न होना पड़े.’’
रिंकी की बात संतोष को समझ आ गई. वह इस के लिए तैयार हो गया. उस ने सोचा कि राजकुमारी गांव में बच्चों को देखभाल करती रहेगी और रिंकी उस के साथ लखनऊ में रहेगी. वह रिंकी से बोला, ‘‘हम लोग कोई अच्छा सा समय देख कर शादी कर लेते हैं.’’
रिंकी भी यही चाहती थी. दोनों ने एक मंदिर में जा कर शादी कर ली. फिर रिंकी उस के साथ ही रहने लगी.
रिंकी से शादी करने की बात ज्यादा दिनों तक छिपी न रह सकी. कुछ दिनों में इस की जानकारी उस के घर वालों को भी हो गई. गांव में रह रही संतोष की पत्नी राजकुमारी को जब पता चला कि पति ने शहर में दूसरी शादी कर ली है, तो उसे बहुत दुख हुआ. मगर अब उस के सामने आंसू बहाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था. क्योंकि परिजनों के कहने के बाद भी वह रिंकी को छोड़ने को तैयार नहीं था. इस तरह एक तरफ शहर में रह कर संतोष मौजमस्ती करता रहा और दूसरी तरफ गांव में बैठी उस की ब्याहता अपनी किस्मत पर आंसू बहाती रही थी.
इसी दौरान 18 मार्च, 2014 को थाना गाजीपुर के इस्माइलगंज में लखनऊ-फैजाबाद राजमार्ग पर केटीएल वर्कशाप के पास एक अधबने मकान में एक आदमी की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. खबर पाते ही थानाप्रभारी नोवेंद्र सिंह सिरोही, एसएसआई आर.आर. कुशवाह और कुछ सिपाहियों के साथ वहां पहुंच गए.
लाश एक 40-45 साल के आदमी की थी. उस के शरीर पर कोई घाव वगैरह नहीं था. थाना प्रभारी ने वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे न पहचान सका. तब पुलिस ने पंचनामा तैयार कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया.
2 दिन बाद लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उस में मृतक के मरने की वजह श्वांस नली दबाने से होता बताया गया. यानी उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. उस के पेट में एल्कोहल भी पाया गया.
थाना प्रभारी नोवेंद्र सिंह ने हत्या के इस मामले की जांच करनी शुरू कर दी. लेकिन उन के सामने सब से बड़ी समस्या लाश की शिनाख्त की थी. अभी तक उन्हें यह पता नहीं लग सका था कि वह लाश किस की थी? थानाप्रभारी ने लाश मिलने की सूचना एसपी ट्रांसगोमती हबीबुल हसन, सीओ गाजीपुर विशाल पांडेय और लखनऊ के एसएसपी प्रवीण कुमार को भी दे दी थी.
लाश के पास से ऐसा कोई सुराग नहीं मिला था जिस के सहारे जांच आगे बढ़ सके. वह आदमी जो कपड़े पहने था, थानाप्रभारी ने उन की गंभीरता से जांच की तो उन्हें उस की कमीज पर टेलर का नाम दिखा. कमीज पर लगे लेबल पर टेलर का नाम ‘न्यू फैंसी टेलर गोसाईंगंज’ लिखा था. लखनऊ के आसपास के जिलों में गोसाईंगंज नाम के 3 बाजार हैं. पहला लखनऊ जिले में है, दूसरा सुल्तानपुर में और तीसरा फैजाबाद जिले में है.
थानाप्रभारी ने इन बाजारों में ‘न्यू फैंसी टेलर’ का पता लगाना शुरू किया. लखनऊ जिले के गोसाईंगंज बाजार में पुलिस ‘न्यू फैंसी टेलर’ नाम के दरजी की दुकान पर पहुंची. पता चला वह दुकान बहुत पुरानी है. उस दरजी ने शर्ट देखते ही बता दिया कि वह लेबल उस के यहां का नहीं है.
इस के बाद पुलिस गाजीपुर पहुंची. वहां रूप कुमार नाम का टेलर मिला. उस ने शर्ट देखते ही बता दिया, ‘‘साहब, यह तो कल्लू भाई की शर्ट है.’’
रूप कुमार कल्लू को अच्छी तरह से जानता था, इसलिए वह बोला, ‘‘साहब, मुझे याद है कि इस शर्ट का कपड़ा वह लखनऊ के किसी मौल से लाए थे.’’
पुलिस ने जब उस से कल्लू भाई का पता मालूम लिया तो टेलर ने बता दिया कि वह यहीं के नूरपुर बेहटा गांव में रहते हैं. पहले वह यहीं रहते थे लेकिन कुछ दिनों से वह लखनऊ जा कर रहने लगे थे. वैसे गांव में उन के मातापिता वगैरह रहते हैं.
अशोक उर्फ चौटाला ने उस नंबर पर 1 नवंबर, 2014 की सुबह, दोपहर, शाम और रात में फोन कर के काफी देर तक बातें की थीं. इस के अलावा इसी नंबर पर उस ने 2 नवंबर की सुबह 5 बजे, 11 बजे और शाम 6 बजे बातें की थीं. उसी दिन सुबह सवा 7 बजे मामन की हत्या हुई थी.
इस के बाद अशोक उर्फ चौटाला की उसी नंबर पर 25 दिसंबर से ले कर 28 दिसंबर, 2014 तक कुल 13 बार बातें हुईं थीं. इस के बाद 13 जनवरी से ले कर 17 जनवरी, 2015 तक 8 बार बातें हुई थीं. जिस नंबर पर बातें हुई थीं, वह नंबर रिलायंस का था. अशोक कुमार ने रिलायंस से इस नंबर के बारे में पता किया तो बताया गया कि वह नंबर उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के रहने वाले नीतू उर्फ काला का है.
हत्या में जिस मोटरसाइकिल का उपयोग हुआ था, वह भी बिजनौर की थी, इसलिए अशोक कुमार को लगा कि हत्या नीतू उर्फ काला ने ही की है. उन्होंने बिजनौर पुलिस से संपर्क कर के नीतू उर्फ काला के बारे में जानकारी मांगी तो पता चला कि 26 वर्षीय नीतू उर्फ काला पेशेवर अपराधी है. उस के खिलाफ उत्तर प्रदेश और हरियाणा के अनेक थानों में लूट, हत्या, हत्या की कोशिश और रंगदारी के कई मुकदमे दर्ज थे. काला कई बार जेल भी जा चुका था. उस समय वह जमानत पर छूटा हुआ था. बिजनौर पुलिस ने उसे जिला बदर कर रखा था.
जब अशोक उर्फ चौटाला पूरी तरह संदेह के घेरे में आ गया तो अशोक कुमार ने अपने कुछ मुखबिर मामन के बेटे अशोक के पीछे लगा दिए. आखिर एक दिन उन्हें किसी मुखबिर से पता चला कि अशोक की शराब के ठेके पर 2 लोगों से झड़प हो रही थी. वे लोग उस से अपने पैसे मांग रहे थे, जो अशोक ने हत्या के एवज में देने का वादा किया था.
इस के बाद अशोक कुमार ने उन दोनों लोगों के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वे दोनों नीतू उर्फ काला और हरियाणा के सोनीपत का रहने वाला सुपारी किलर जितेंद्र उर्फ ङ्क्षटकू थे. यह भी जानकारी मिली कि जितेंद्र काला का जिगरी दोस्त है. उस पर भी हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश में कई संगीन अपराधों के मुकदमे दर्ज हैं. ये दोनों मिल कर अपराध करते हैं.
इस के बाद अशोक कुमार ने अपनी टीम के साथ हर उस जगह छापा मारा, जहां काला और ङ्क्षटकू मिल सकते थे. लेकिन वे कहीं नहीं मिले. अलबत्ता इस काररवाई में यह जरूर पता चला कि ङ्क्षटकू दिल्ली के छावला स्थित गांव ख्याला खुर्द में किराए का मकान ले कर रहता है, जबकि काला दिल्ली के नरेला के सैक्टर ए-6 के पौकेट 1 में मकान नंबर 167 में किराए पर रहता है. लेकिन दोनों वहां भी नहीं मिले.
इसी बीच पुलिस को पता चला कि मृतक मामन के बेटे अशोक ने 90 लाख में 2 एकड़ जमीन बेची है. मामन का बेटा शक के दायरे में आया था तो अशोक कुमार ने उन की बेटी सोनम के सोनीपत स्थित घर जा कर पूछताछ की थी. इस पूछताछ में उन्होंने जरा भी यह जाहिर नहीं होने दिया था कि उन्हें उस के भाई पर शक है. उन का पहला सवाल था,
“तुम्हारे पिता की किसी से ऐसी कोई दुश्मनी तो नहीं थी, जिस की वजह से उन की हत्या की गई हो?”
“पापा बहुत अच्छे इंसान थे,” सोनम ने कहा, “वह हर किसी के दुखसुख में खड़े रहते थे. भला ऐसे आदमी की किसी से क्या दुश्मनी हो सकती थी?”
“फिर भी उन की हत्या हो गई. हत्या की कोई तो वजह होगी? तुम्हारे ख्याल से क्या वजह हो सकती है?” अशोक कुमार ने पूछा.
सोनम कुछ क्षण सिर नीचा किए बैठी रही. उस के बाद गहरी सांस ले कर बोली, “क्या कहूं सर, मेरे ख्याल से पापा की हत्या संपत्ति की वजह से हुई है. मेरा भाई बहुत ज्यादा लाड़प्यार की वजह से बिगड़ गया था. वह अय्याश और नशेबाज है. जुआ भी खेलता है. उस की इन गलत आदतों की वजह से पापा ने उसे और उस की पत्नी को अलग मकान दे कर घर से निकाल दिया था. कोई कारोबार करने के लिए उसे 6-7 लाख रुपए भी दिए थे. भाई ने कारोबार करने के बजाय वे रुपए अपने गलत शौकों में उड़ा दिए. उस के बाद वह लोगों से कर्ज ले कर खर्च करता रहा. पता चला है कि इस समय एक करोड़ के करीब कर्ज है. कर्ज देने वाले उसे परेशान कर रहे थे.”
“तुम्हारे कहने का मतलब है कि तुम्हारे भाई ने पिता की हत्या कराई है?”
“मुझे तो ऐसा ही लगता है.”
“तुम्हारे पिता के पास कितनी संपत्ति होगी?”
“कई मकान, सैकड़ों एकड़ जमीन, करोड़ों का बैंक बैलेंस. कुल मिला कर सौ करोड़ से ज्यादा की संपत्ति होगी.”
“इतनी संपत्ति के लिए तो तुम भी पिता की हत्या करवा सकती हो?”
“मैं पापा की हत्या क्यों कराऊंगी. सारी संपत्ति तो वैसे ही वह मेरे नाम करने जा रहे थे.”
“यह बात तुम्हारे भाई को पता थी?”
“जी पता थी. इस बात को ले कर वह अकसर पापा और मुझ से झगड़ा भी करता रहता था. पापा ने उस से कह भी दिया था कि वह उसे एक पैसा नहीं देंगे.”
इस के बाद उन्होंने अशोक उर्फ चौटाला की तलाकशुदा पत्नी रोशनी के घर जा कर पूछताछ की थी. रोशनी ने बताया था कि अशोक शराबी, जुआरी, बाजारू औरतों के पास जा कर मुंह काला करने वाला बदतमीज इंसान है. ऐसे आदमी के साथ कौन औरत गुजारा कर सकती है. परेशान हो कर उस ने भी तलाक ले लिया.
उस के ससुर बहुत अच्छे आदमी थे. अपने गलत शौक पूरे करने के लिए अशोक उन से पैसे मांगता था. पैसे न मिलने पर वह उन के साथ गालीगलौज करता था. कई बार उस ने उन्हें जान से मरवाने की धमकी भी दी थी. जरूर उसी ने उन की हत्या कराई होगी.
अशोक कुमार ने ये सारी बातें एसीपी जितेंद्र ङ्क्षसह को बताईं तो उन्होंने तुरंत अशोक उर्फ चौटाला को हिरासत में लेने का आदेश दे दिया. इस के बाद 22 सितंबर, 2015 को अशोक कुमार की टीम अशोक उर्फ चौटाला को हिरासत में ले कर नेहरू प्लेस स्थित थाना क्राइम ब्रांच ले आई, जहां उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की जाने लगी. पुलिस के पास उस के खिलाफ सारे सबूत थे ही, मजबूरन उसे अपना अपराध स्वीकार कर के सच बताना पड़ा.
इस के बाद पुलिस टीम ने अशोक उर्फ चौटाला की निशानदेही पर जितेंद्र उर्फ ङ्क्षटकू और नीतू उर्फ काला को भी दिल्ली के छावला इलाके से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने 23 सितंबर, 2015 को तीनों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के अदालत में पेश किया, जहां से पूछताछ के लिए तीनों को एक दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया.
रिमांड के दौरान पुलिस ने नीतू और ङ्क्षटकू की निशानदेही पर गांव ख्याला खुर्द के एक बाग से हत्या में प्रयुक्त गुप्ती बरामद कर ली. रिमांड खत्म होने पर तीनों को 24 सितंबर, 2015 को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. हत्याभियुक्तों के बयान के आधार पर मामन की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी:
मामन पुश्तैनी रईस थे, लेकिन वह उन रईसों में नहीं थे, जो विरासत में मिली धनसंपत्ति से ऐश करते हैं. उन्होंने पुरखों से मिली धनसंपत्ति का सदुपयोग करते हुए उस में इजाफा ही किया था. उन की पत्नी की मौत तभी हो गई थी जब बेटा अशोक 14 साल का और बेटी सोनम 11 साल की थी. लोगों के कहने पर भी उन्होंने दूसरी शादी नहीं की थी और बच्चों को खुद ही पालने लगे थे. अधिक लाड़प्यार की वजह से बेटा अशोक बिगड़ गया था.
‘‘बाबूजी, आप की पूरी जिंदगी इसी खेती किसानी में निकल गई.
बदले में क्या मिला? न तो अच्छा जीवन जी सके और न ही कोई ऐसा काम किया जिस से दुनिया में आप का नाम हो. आप की जिंदगी इस गांव में ही सिमट कर रह गई है. कभी शहर में रह कर देखो तब महसूस होगा कि यहां के जीवन और वहां के जीवन में कितना फर्क है?’’ संतोष ने अपने पिता महाराज बख्श सिंह से कहा. वह पिता को बाबूजी कहता था.
महाराज बख्श सिंह लखनऊ जिले से 26 किलोमीटर दूर गोसाईंगंज इलाके के नूरपूर बेहटा गांव में रहते थे. उन के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी, इसलिए उन की गिनती गांव के प्रतिष्ठित किसानों में होती थी. गांव में रहने के नाते उन का जीवन सरल और सीधा था.
उन्होंने संतोष को पढ़ाना चाहा, लेकिन जब उस का पढ़ाईलिखाई में मन नहीं लगा तो उन्होंने कम उम्र में ही उस की शादी मोहनलालगंज की रहने वाली राजकुमारी के साथ कर दी थी. शादी हो जाने के बाद संतोष अपनी घरगृहस्थी में रम गया. बाद में राजकुमारी 2 बेटों की मां भी बनी. इस के बाद तो उन के घर में खुशियां और बढ़ गईं. बच्चे बड़े हुए तो उन का दाखिला गांव के ही स्कूल में करा दिया.
संतोष गांव में रह कर पिता के साथ खेती करता था, लेकिन खेती के काम में उस का मन नहीं लगता था. इस के अलावा उसे एक गलत लत यह लग गई थी कि उस ने अपने यारदोस्तों के साथ शराब पीनी शुरू कर दी थी. शुरू में महाराज बख्श सिंह ने उसे काफी समझाया था, लेकिन उस ने पिता की बात को अनसुना कर दिया था.
संतोष रोज शराब पी कर वह घर लौटता और पत्नी के साथ झगड़ता था. इस से पत्नी भी परेशान हो गई थी. संतोष का गांव में मन नहीं लगता था. वह चाहता था कि अपने परिवार के साथ शहर में रहे. इस की वजह यह थी कि उस के गांव की जमीन के भाव काफी बढ़ चुके थे. जिस की वजह से गांव के कुछ लोग अपनी खेती की जमीन बेच कर शहर चले गए थे. शहर जा कर उन्होंने अपने निजी कामधंधे शुरू कर दिए और वहां मजे की जिंदगी गुजार रहे थे. बच्चों के दाखिले भी उन्होंने अच्छे स्कूलों में करा रखे थे. उन की देखादेखी संतोष भी शहर जाना चाहता था. इसीलिए वह बारबार पिता पर जमीन बेचने का दबाव डाल रहा था.
महाराज बख्श सिंह जानते थे कि बेटे को दुनियादारी की अभी इतनी समझ नहीं है. वह शहरी जिंदगी के रहनसहन और चकाचौंध की ओर खिंचा जा रहा है इसलिए उन्होंने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा अपना गांव और अपना खेत ही अपनी पहचान होती है. शहर में कामधंधा करना तो ठीक है पर अपने खेत बेच कर वहां रहना मेरे लिए संभव नहीं है. इसलिए मैं तुझ से भी यही कहना चाहता हूं कि ऐसी बातें मन से निकाल कर यहीं काम में मन लगा.’’
‘‘बाबूजी, हम ने नहर के किनारे वाली 4 बीघा जमीन का सौदा कर लिया है. 60 लाख रुपए मिल जाएंगे. इस पैसे से मैं आप को नया काम कर के दिखा दूंगा. तब आप को लगेगा कि मेरी बात में कितना दम है.’’
‘‘बेटा, तुम्हारी बात में कोई दम नहीं है. तुम शराब के नशे में गलत कदम उठा रहे हो. जमीन बेच कर तुम सारा घरपरिवार बरबाद कर दोगे.’’ महाराज बख्श सिंह बेटे को समझा रहे थे. आवाज सुन कर संतोष की पत्नी राजकुमारी भी वहां आ गई. ससुर की बात पूरी होने से पहले ही वह बोली, ‘‘बाबूजी, आप इन की बातों में मत आना. इन के शराबी यारदोस्तों ने ही इन्हें यह सलाह दी होगी.’’
पत्नी के बीच में बोलने पर संतोष उस के ऊपर बिफर पड़ा, ‘‘मेरी तरक्की से तुझे क्या परेशानी हो रही है. तू नहीं चाहती कि मैं यहां से शहर जाऊं और अच्छी जिंदगी गुजरबसर करूं. तू ने मेरे पैरों में परिवार की बेडि़यां डाल रखी हैं. लेकिन तू अच्छी तरह जान ले कि मैं ने गांव की जमीन बेच कर शहर में काम करने की ठान ली है. अब मुझे इस काम से कोई नहीं रोक सकता.’’ इस के बाद संतोष और राजकुमारी के बीच कहासुनी शुरू हो गई. बेटेबहू की लड़ाई देख कर 70 साल के महाराज सिंह बरामदे में पड़ी चारपाई पर बैठ गए.
बेटे की ऐसी जिद देख कर उन्हें घरपरिवार का भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा था. वह समझ रहे थे कि बेटा जिद्दी है. वह मानेगा नहीं. इसलिए वह राजकुमारी को ही समझाते हुए बोले, ‘‘बहू इस के मुंह मत लग, जो करता है करने दे. ठोकर खाएगा तो इसे समझ आ जाएगी. शहर में रह कर कामधंधा चलाना कोई आसान काम नहीं. हम ने बहुतों को बरबाद होते देखा है.’’
‘‘बाबूजी शहर जा कर बहुत लोग बन भी गए हैं, उन की जानकारी आप को नहीं है. कुछ अच्छा भी सोचा करें.’’ इतना कह कर संतोष गुस्से में बाहर चला गया. जिस जमीन को बेचने की बात संतोष कर रहा था वह असल में उस के ही नाम थी. पहले वह जमीन ऊसर थी लेकिन अब वहां से सड़क निकल गई तो उस की कीमत बढ़ गई है.
महाराज बख्श सिंह सोचने लगे कैसी विडंबना है कि शहर के लोग महंगी कीमत में जमीन खरीद कर गांवों से जुड़ना चाहते हैं और गांव के लोग जमीन बेच कर शहरों की चकाचौंध में फंसना चाहते हैं. चूंकि संतोष को शहर जाने की सनक सवार थी, इसलिए उस ने अपनी जमीन बेच दी. महाराज सिंह ने उसी समय समझदारी दिखाते हुए जमीन की कीमत का बड़ा हिस्सा संतोष के बेटों के नाम पर बैंक में जमा कर दिया. उन्होंने संतोष को केवल 4 लाख रुपए ही दिए.
संतोष के पास पैसा आ चुका था. इसलिए वह काम की तलाश में लखनऊ चला गया. उसे किसी कामधंधे की जानकारी तो थी नहीं इसलिए लखनऊ जाने के बाद भी वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या काम शुरू करे? ज्यादा से ज्यादा उस ने ढाबा और होटल ही देखे थे और उन के बारे में थोड़ीबहुत जानकारी थी.
शहर में उसे ऐसी कोई जगह नहीं मिली जहां वह अपना काम शुरू कर सके. एकदो जगह उस ने देखी भी लेकिन उन का किराया बहुत ज्यादा था. शहर में ढाबा खोलना उस के बूते के बाहर था. उसे शहर के बाहर बसी कालोनियों में ढाबा खोलना और चलाना आसान लग रहा था.
संतोष पहले जब कामधंधे की तलाश में लखनऊ आता तो वहां वह एक ढाबे पर खाना खाता था. उस की जानपहचान उस ढाबे पर खाना बनाने वाले श्याम कुमार से थी. संतोष ने उसी के साथ काम शुरू करने की योजना बनाई.
वह श्याम के पास पहुंच कर बोला, ‘‘श्याम भाई, तुम बहुत अच्छा खाना बनाते हो. मुझे उम्मीद है कि यहां तुम जितनी मेहनत करते हो, उस के अनुसार तुम्हें पैसे भी नहीं मिलते होंगे. मैं भी एक ढाबा खोलना चाहता हूं और चाहता हूं कि उस ढाबे को हम दोनों मिल कर चलाएं.’’
यह सुन कर श्याम खुश हो गया. उसे फ्री में बिजनेस करने का मौका मिल रहा था. इसलिए उस ने संतोष के साथ काम करने की हामी भर ली. उस ने कहा, ‘‘संतोष भाई, यहां तो कोई ऐसी जगह नहीं है जहां ढाबा खोला जा सके लेकिन जानकीपुरम इलाके में सेक्टर-2 के पास एक ढाबा है. वो ढाबा इस समय चल नहीं रहा है. तुम कहो तो मैं बात करूं?’’
‘‘ठीक है, तुम बात करो हम मिल कर उस ढाबे को चलाएंगे.’’ संतोष ने कहा तो श्याम ने उस ढाबे के मालिक से बात कर ली. वह उन्हें अपना ढाबा किराए पर देने के लिए राजी हो गया. इस के बाद दोनों ही उस ढाबे को चलाने लगे. दोनों की मेहनत से काम चल निकला.
62 वर्षीय मामन जमींदार परिवार से थे, इसलिए इलाके के लोग उन का काफी सम्मान करते थे. इस उम्र में भी वह पूरी तरह स्वस्थ थे. इस की वजह यह थी कि वह बहुत ही अनुशासित जीवन जीते थे. वह हर रोज सुबह घर से काफी दूर स्थित पार्क में टहलने जाते थे और अपने हर मिलने वाले का कुशलक्षेम पूछते हुए 7, साढ़े 7 बजे तक घर लौटते थे.
2 नवंबर, 2014 की सुबह जब वह पार्क में टहल कर सवा 7 बजे घर लौट रहे थे तो गली में एक पल्सर मोटरसाइकिल उन के सामने आ कर इस तरह रुकी कि वह उस से टकरातेटकराते बचे. मोटरसाइकिल पर 2 युवक सवार थे. उन के चेहरों पर रूमाल बंधे थे. युवकों की यह हरकत मामन को नागवार गुजरी तो उन्होंने युवकों को डांटने वाले अंदाज में कहा, “यह कैसी बदतमीजी है, तुम्हारे मांबाप ने तुम्हें यह नहीं सिखाया कि बुजुर्गों से किस तरह पेश आना चाहिए?”
“सिखाया तो था, लेकिन हम ने सीखा ही नहीं,” मोटरसाइकिल चला रहे युवक ने हंसते हुए कहा, “ताऊ, हम ने तो एक ही बात सीखी है, पैसा लो और खेल खत्म कर दो.”
“क्या मतलब?” मामन ने हकबका कर पूछा.
मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे युवक ने उतरते हुए कहा, “ताऊ मतलब बताने से अच्छा है, कर के ही दिखा दूं.”
इसी के साथ उस ने हाथ में थामी गुप्ती निकाल कर मामन के पेट में घुसेड़ दी. चीख कर मामन जमीन पर बैठ गए. उस वक्त वह इस तरह घिरे थे कि भाग भी नहीं सकते थे. उन की चीख सुन कर कुछ लोग घरों से निकल आए. तभी मोटरसाइकिल पर सवार युवक ने पिस्तौल लहराते हुए धमकी दी, “अगर कोई भी नजदीक आया तो गोली मार दूंगा.”
उस की इस धमकी से किसी की आगे आने की हिम्मत नहीं पड़ी. इस बीच वह युवक मामन पर गुप्ती से लगातार वार करता रहा. वह चीखते रहे, छटपटाते रहे. लेकिन वह उन्हें गुप्ती से तब तक गोदता रहा, जब तक उन की मौत नहीं हो गई. जब उसे लगा कि मामन मर चुके हैं तो वह कूद कर मोटरसाइकिल पर बैठ गया. उस के बाद मोटरसाइकिल पर सवार युवक तेजी से मोटरसाइकिल चलाता हुआ चला गया.
मामन इलाके के जानेमाने और सम्मानित व्यक्ति थे. उन की हत्या की खबर पलभर में पूरे इलाके में फैल गई. जहां हत्या हुई थी, थोड़ी ही देर में वहां भारी भीड़ जमा हो गई. किसी ने इस घटना की सूचना फोन से थाना नरेला को दे दी.
इलाके के एक सम्मानित व्यक्ति की हत्या होने की सूचना से थाना नरेला की पुलिस तुरंत हरकत में आ गई. थाने से एएसआई राजेंद्र सिंह, महिला सिपाही मधुबाला, अभिमन्यु एवं बीट के सिपाहियों को तुरंत घटनास्थल पर भेजा गया. राजेंद्र सिंह ने घटनास्थल एवं शव का निरीक्षण कर के वहां एकत्र लोगों से पूछताछ की. इस के बाद औपचारिक काररवाई निपटा कर उन्होंने लाश को पोस्टमार्टम के लिए राजा हरिश्चंद्र अस्पताल भिजवा दिया.
थाना नरेला पुलिस की जांच का सिलसिला काफी लंबा चला. इस के बावजूद पुलिस न हत्या की वजह जान सकी और न हत्यारों का सुराग लगा सकी. मामन की हत्या जिन 2 युवकों ने की थी, उन्होंने चेहरों पर रूमाल बांध रखे थे, इसलिए हत्या के समय घटनास्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शी पुलिस को उन के बारे में कुछ भी नहीं बता सके थे. हां, किसी ने उस पल्सर मोटरसाइकिल का नंबर जरूर बता दिया था, जिस से दोनों हत्यारे भागे थे.
पुलिस ने उस नंबर की मोटरसाइकिल के बारे में पता किया तो पता चला कि वह उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर की थी. उस के मालिक ने स्थानीय थाने में 1 नवंबर, 2014 को मोटरसाइकिल की चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा रखी थी. बाद में 13 नवंबर, 2014 को वह नरेला के जंगल से बरामद हो गई थी.
दिल्ली के नरेला स्थित गांव बांकनेर के ममनीरपुर रोड पर मामन का आलीशान मकान था. उस इलाके में मामन के 5 अन्य मकान थे, जिन में तमाम किराएदार रहते थे. हर महीने किराए के रूप में उन्हें करीब 3 लाख रुपए मिलते थे. इस के अलावा उन के पास सैकड़ों एकड़ खेती की जमीन थी. साथ ही वह ब्याज पर पैसा देने का काम भी करते थे. ब्याज के भी उन्हें लाखों रुपए मिलते थे.
मामन के परिवार में एक बेटा अशोक उर्फ चौटाला और एक बेटी सोनम थी. उन की पत्नी की मौत तब हो गई थी, जब बेटी 11 साल की और बेटा 14 साल का था. सयानी होने पर सोनम की शादी उन्होंने हरियाणा के सोनीपत निवासी सत्येंद्र से कर दी थी. अशोक का विवाह उन्होंने दिल्ली के बसंतकुंज के रहने वाले हरिप्रसाद की बेटी रोशनी से किया था. लेकिन अशोक से रोशनी की पटरी नहीं बैठी. वह तलाक ले कर मायके में रहने लगी.
अदालत के आदेश पर उसे हर महीने 20 हजार रुपए गुजाराभत्ता मिलता था, जिसे अशोक हर माह अदालत में जमा करता था. अशोक राजा हरिशचंद्र अस्पताल में सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी करता था. मतभेदों के चलते मामन ने उसे घर से निकाल दिया था. वह मामन के बनवाए दूसरे मकान में अकेला रहता था.
मामन काफी मिलनसार थे. उन की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. दुश्मनी होती भी कैसे, वह हर किसी के सुखदुख में खड़े रहते थे. किसी बीमार को इलाज के लिए पैसों की जरूरत होती अथवा किसी की बेटी की शादी होती तो वह बिना ब्याज के पैसा देते थे. जितनी हो सकती थी, मदद भी करते थे. इसी वजह से इलाके के लोग उन की इज्जत करते थे. ऐसे आदमी की किसी से ऐसी क्या दुश्मनी हो सकती थी, यह बात पुलिस समझ नहीं पा रही थी.
थाना नरेला पुलिस ने अपने स्तर से काफी छानबीन की, लेकिन वह हत्यारों का सुराग नहीं लगा सकी. जब थाना पुलिस इस मामले में कुछ नहीं कर सकी तो 13 फरवरी, 2015 को यह मामला दिल्ली की अपराध शाखा को सौंप दिया गया. अपराध शाखा के जौइंट कमिश्नर रविंद्र कुमार ने थाना नरेला पुलिस द्वारा की गई जांच का अध्ययन करने के बाद यह केस क्राइम ब्रांच के एडिशनल कमिश्नर अजय कुमार को सौंप दिया. अजय कुमार ने इस मामले की जांच के लिए क्राइम ब्रांच के डीसीपी राजीव कुमार के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में क्राइम ब्रांच के एसीपी जितेंद्र ङ्क्षसह, इंसपेक्टर अशोक कुमार आदि को शामिल किया गया.
थाना नरेला पुलिस ने अपनी जांच की जो फाइल तैयार की थी, इंसपेक्टर अशोक कुमार ने उसे ध्यान से पढ़ा. उन्हें इस बात पर हैरानी हुई कि थाना पुलिस ने मामन , उन के बेटे अशोक, बेटी सोनम व सोनम के पति के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच करने की जहमत नहीं उठाई थी, जबकि आजकल तमाम केसों का खुलासा मोबाइल फोन से ही हो जाता है.
अशोक कुमार ने तुरंत मृतक मामन, उन के बेटे अशोक उर्फ चौटाला, बेटी सोनम और उस के पति सत्येंद्र के मोबाइल नंबरों को सॢवलांस पर लगवाने के साथ उन के नंबरों की 1 नवंबर से 15 नवंबर, 2014 तक की काल डिटेल्स निकलवाई. उन्होंने तीनों की काल डिटेल्स को ध्यान से देखी तो मामन के बेटे अशोक उर्फ चौटाला की काल डिटेल्स में एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर उन्हें संदेह हुआ.
जगजीवन राम रात्रे की आंखें गुस्से से लाल थीं, उस ने पत्नी की गरदन दबोचते हुए गुस्से में लाल आंखों से कहा, “देखो धन्नू, मैं तुम्हें अंतिम चेतावनी देता हूं, तुम नहीं सुधरी तो अनर्थ हो जाएगा. इतने साल हो गए तुम्हें, इतना भी नहीं पता कि मुझे क्या पसंद है और क्या नहीं.”
गला दबाए जाने से धनेश्वरी की आंखें निकली जा रही थीं और मुंह से शब्द नहीं फूट रहे थे. अचानक जगजीवन ने उसे छोड़ कर के पास रखी एक थाली उठा ली और उस से उस की पीठ पर दनादन पिटाई करने लगा. फिर उस ने थाली फेंक दी. इस के बाद वहीं बैठ कर लंबीलंबी सांसें लेने लगा.
तीखे नाकनक्श की धनेश्वरीबाई का 10 साल पहले 24 मई, 2013 को कोयला खान में फिटर पद पर कार्यरत जगजीवन राम रात्रे के साथ सामाजिक रीतिरिवाजों के साथ विवाह हुआ था. समय पर उस के 2 बच्चे हुए. पति के हाथों पिटने के बाद वह आंसू बहाते हुए अपने रोजाना के कामकाज में लग गई. यह धनेश्वरी की नियति बन गई थी. वह अकसर पति के गुस्से का शिकार हो जाती. घरेलू ङ्क्षहसा से धनेश्वरीबाई परेशान हो चुकी थी.
छोटी सी भी गलती पति को बरदाश्त नहीं थी, वह लाख चाहती कि यह नौबत न आए, मगर कुछ न कुछ नुक्स निकाल कर जगजीवन राम पत्नी हाथ उठा दिया करता. धनेश्वरी भीतर ही भीतर कुढ़ती रहती और सोचती कि वह इस रोजरोज की पति की पिटाई से किस तरह बच जाए.
उसे अपनी बहन भुवनेश्वरी की याद आती, उस का पति सरकारी नौकरी में नहीं है मगर कम पैसों में भी किस तरह दोनों सुखी जीवन जी रहे हैं. और एक वह है जो पति की अच्छीखासी कमाई के बावजूद जीवन से निराश होती चली जा रही है. आखिर क्या करे, जिस से पति की पिटाई से छुटकारा मिल जाए, यह बात वह अकसर सोचती थी.
पत्नी को रुई की तरह धुन देता था जगजीवन राम
आखिरकार एक दिन उस के मन में विचार आया कि रोजरोज की इस मार खाने से अच्छा तो यह है कि उस का पति ही इस दुनिया से चला जाए तो कितना अच्छा हो. यह विचार उस के मन में आते ही वह भीतर तक दुखी भी हो गई और सोचने लगी कि वह ये बात कैसे सोच सकती है. जैसा भी है, जगजीवन उस का सुहाग है उस के बच्चों का बाप है.
जगजीवन राम रात्रे ऊर्जा नगर कालोनी के क्वार्टर में पत्नी धनेश्वरी और 2 बच्चों के साथ रहता था. वह अकसर शराब पीता और तनख्वाह में मिले पैसों को दोस्तों के साथ पार्टी कर के उड़ा दिया करता. इसी वजह से उस के कई दोस्त बन गए थे, जो अकसर घर पर आया करते थे. घर पर ही पार्टी हुआ करती थी.
मार्च 2023 के एक दिन जगजीवन राम रात्रे को किसी बात पर गुस्सा आ गया और वह दोस्तों के सामने ही धनेश्वरी पर बरसते हुए उस की पिटाई करने लगी. पहले तो किसी ने कुछ नहीं कहा, मगर जब जगजीवन रात्रे हद पार करने लगा तो उस के साथ काम करने वाला रमेश सूर्यवंशी उठ खड़ा हुआ और कंधे से पकड़ जगजीवन राम को धनेश्वरी बाई रात्रे से दूर हटा कर नाराजगी जताते हुए बोला,
“यह क्या नौटंकी कर रहे हो जगजीवन, पत्नी पर हाथ उठाना, यह तो बहुत ही गलत है. देखो तुम्हारे बच्चे भी कैसे डरेसहमे खड़े हैं.”
यह देख कर जगजीवन रात्रे मानो गुस्से से उबल पड़ा और चीख कर बोला, “देखो , तुम हमारे दोस्त हो और हमारे बीच में मत आओ.”
बदमाश तुषार सोनी ने लिया धनेश्वरी का पक्ष
इसी दौरान वहां से गुजर रहा तुषार सोनी उर्फ गोपी भी आ कर कुछ लोगों के साथ तमाशा देखने लगा था. जगजीवन राम की बातें सुन कर के रमेश सूर्यवंशी ने विरोध करते हुए कहा, “अगर तुम अपनी पत्नी के साथ हमारे सामने जानवरों की तरह व्यवहार करोगे तो यह हम, कम से कम मैं तो बरदाश्त नहीं कर सकता. पतिपत्नी का मामला है मगर यह आपस में घर का मामला होना चाहिए. जब हम घर आए हुए हैं तो ऐसा व्यवहार करना, यह हमारा भी अपमान है.”
इस पर तुषार सोनी ने भी सामने आ कर रमेश का समर्थन किया और जगजीवन राम की बात का जोरदार विरोध करते हुए कहा, “पत्नी से मारपीट करना अच्छी बात नहीं है, इस से घर का माहौल खराब होता है.”
तुषार सोनी उर्फ गोपी पास के ही कृष्णानगर में रहता था और उस के आपराधिक चरित्र के कारण सभी उसे अच्छी तरह जानते थे. उस के वहां रहने से जगजीवन राम सहम सा गया था. अब जगजीवन राम रात्रे की बोलती बंद हो गई थी. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहे.
जगजीवन राम को निरुत्तर देख कर के तुषार सोनी का हौसला बढ़ गया. उस ने सधे हुए शब्दों में कहा, “आप हम से बड़े हो, आप को हम क्या कहेंगे. मगर मैं आज की स्थिति देख कर कह सकता हूं कि ऐसा करना आप को शोभा नहीं देता है.”
इस घटना को बीते हुए कई दिन हो गए, एक दिन तुषार सोनी के मोबाइल पर घंटी बजी तो उस ने काल रिसीव किया तो दूसरी तरफ से महिला की आवाज आई. वह बोली, “भैया, मैं धनेश्वरी बोल रही हूं जगजीवन राम की पत्नी. मैं आप से मिलना चाहती हूं.”
“हां भाभी, आप अगर मिलना चाहती हैं तो शाम को कृष्णानगर चौक के पान ठेले पर मैं रहूंगा आ जाइएगा.” तुषार सोनी ने सम्मानपूर्वक कहा. शाम को धनेश्वरी कृष्णानगर चौक के पान ठेले पर पहुंच गई.
वहां उसे तुषार सोनी मिल गया तो वह बोली, “भैया क्या बोलूं, आप के भैया उस दिन जब आप ने उन्हें रोका था तो वह डर गए थे, लेकिन अब वह मुझ से बुरी तरह मारपीट करने लगे हैं. भैया, मैं तो किसी दिन मर जाऊंगी, इन की मार खातेखाते मैं तो अब तंग आ चुकी हूं मुझे बचा लो.” कह कर धनेश्वरी रोने लगी.
“देखो भाभी, आप चिंता मत करो. मैं हूं न, मैं जगजीवन को समझा लूंगा.”
यह सुन कर धनेश्वरी की आंखें भर आईं. वह बोली, “मैं कितना चाहती हूं कि उन्हें गुस्सा न आए, मगर छोटीछोटी बातों पर चिल्लाने लगते हैं और मारपीट शुरू कर देते हैं. यह बात मैं ने कभी अपने मायके तक में नहीं बताई है. भैया, मैं क्या करूं, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है?”
तुषार सोनी ने अधिकार जताते हुए कहा, “आप चिंता मत करो, मैं देख लूंगा.”
इस पर धनेश्वरी दुखी होते हुए बोली, “जगजीवन कभी भी नहीं समझेगा, वह ऐसा ही है. वह एक पत्थर बन चुका है, इसलिए वह कभी नहीं सुधर सकता. मैं ने कितने प्यार से उसे समझाने की कोशिश की, बच्चों की भी कसम दी मगर…”
“फिर इस का एक ही रास्ता है…” कह कर के तुषार सोनी मौन हो गया.
धनेश्वरी ने उस की और देखते हुए कहा, “और क्या रास्ता है भैया, बताओ मैं आप की हर बात मानूंगी.”
तुषार सोनी ने धीरे से कहा, “ऐसा है तो जगजीवन को तुम्हारे रास्ते से हमेशा के लिए मैं हटा दूंगा. इस के बाद तुम्हें उस की जगह कोयला खदान (एसईसीएल) की सरकारी नौकरी भी मिल जाएगी, फिर तुम मजे से अपना जीवन बिताना.”
पति को मरवाने का बना लिया प्लान
कुछ सोचविचार कर के धनेश्वरी इस के लिए तैयार हो गई. तब तुषार सोनी ने उस की ओर देखते हुए कहा, “इस के बदले में मुझे क्या मिलेगा, यह भी बता दो.”
“क्या चाहिए तुम्हें, बताओ कितने पैसे चाहिए, मैं दूंगी.”
यह सुन कर के तुषार ने कहा, “देखो भाभी, मुझे 5 लाख देने होंगे. अभी मुझे 50 हजार रुपए तुम दे दो, काम करने के बाद बाकी रुपए और दे देना. तुम्हें दुखी देख कर के मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूं, मुझे रुपएपैसों का लालच नहीं है.”
इस पर धनेश्वरी कुछ सोच कर तैयार हो गई. और दूसरे दिन अपने कुछ गहने बेच कर 50 हजार रुपए तुषार सोनी के हाथ में रख दिए. मगर तुषार सोनी दूसरे ही दिन एक पुराने वारंट में पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया, लेकिन जल्द ही वह जमानत पर जेल से बाहर आ गया.
बुधवार 23-24 मई, 2023 की रात लगभग साढ़े 12 बजे जगजीवन राम रात्रे पत्नी धनेश्वरी और बच्चों के साथ बिस्तर पर लेटा हुआ था कि दरवाजे पर दस्तक हुई. जगजीवन राम उठा और दरवाजा खोला. सामने तुषार सोनी खड़ा था. जगजीवन राम को देखते ही तुषार सोनी ने कहा, “भैया, एक बहुत जरूरी बात तुम्हें तुम्हारी पत्नी के बारे में बताना चाहता हूं.”
देर रात को इस तरह तुषार सोनी का आना और आश्चर्यचकित कर देने वाले अंदाज में पत्नी की बात छेडऩा जगजीवन राम रात्रे को चकित कर गई और वह उस की और देखता रह गया. तुषार सोनी ने कहा, “मुझे पहले पानी पिलाओ.”
कुछ विचार करता हुआ जगजीवन राम घर के भीतर चला गया. तुषार सोनी की आहट सुन कर धनेश्वरी मन ही मन खुश होते हुए पति से बोली, “इतनी रात कौन आया है?”
पत्नी की बातें सुनीअनसुनी कर के जगजीवन राम ने फ्रिज से ठंडे पानी की बोतल निकाली, फिर दरवाजा बंद कर बाहर चला गया. जैसे ही बोतल ले कर के जगजीवन राम आया, तुषार सोनी ने मौका देख कर उस पर कुल्हाड़ी से लगातार वार करने लगा और वह तब तक उसे मारता रहा, जब तक कि उस की मौत न हो गई.
इधर कमरे के भीतर धनेश्वरी बाई रात्रे पति के चीखने की आवाज सुन कर मुसकरा रही थी. दोनों ही बच्चे गहरी नींद में सोए हुए थे. पति का मर्डर हो जाने के बाद धनेश्वरी बहुत खुश हुई.
रात लगभग 3 बजे थाना दीपका के एसएचओ अविनाश सिंह के मोबाइल की ङ्क्षरगटोन बजने लगी. नींद उचाट हुई तो घड़ी की ओर देखते हुए फोन को रिसीव किया. दूसरी तरफ थाने के स्टाफ ने बताया कि ऊर्जा नगर में एक शख्स की हत्या हो गई है, लोगों की भीड़ वहां उमड़ी पड़ी है.
पुलिस जुटी जांच में
थाने में शिवकांत कुर्रे ने आ कर के घटना की जानकारी दी थी. मर्डर की खबर मिलते ही एसएचओ अविनाश सिंह तत्काल तैयार हुए और घटनास्थल पर पहुंच गए. ऊर्जा नगर में स्थित जगजीवन राम के क्वार्टर के बाहर कुछ लोगों की भीड़ लगी हुई थी, उन्होंने मुआयना किया तो देखा कि जगजीवन राम रात्रे खून से लथपथ मृत अवस्था में पड़ा हुआ था.
पास में ही बच्चों के साथ बैठी उस की हत्यारी पत्नी धनेश्वरी बाई रात्रे पति की सालगिरह पर मौत दे कर घडिय़ाली आंसू बहा रही थी. घटना के संबंध में उस ने बताया कि कुछ लोग आए थे और पति को मार कर चले गए. वह डर की वजह से कमरे के भीतर ही थी और पति के चिल्लाने की आवाज सुनी थी.
एसएचओ ने घटना की जानकारी एसपी उदय किरण को दी और तत्काल फोरैंसिक टीम, डौग स्क्वायड को बुलवा लिया गया. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई पूरी कर जगजीवन राम रात्रे के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.
दीपका कोयला अंचल अपनी शांति व्यवस्था के लिए जाना जाता है. रोजाना लाखों टन कोयला यहां से देश के विभिन्न राज्यों में भेजा जाता है. कोयला भरे सैकड़ों ट्रक यहां से विभिन्न राज्यों के लिए जाते हैं. मगर हत्या की वारदात एसएचओ के लिए एक चुनौती बन कर के सामने थी. हत्या के कारणों के विभिन्न कोणों पर उन्होंने नजर डाली और यह पता लगाने की कोशिश की कि क्या जगजीवन राम की किसी से दुश्मनी थी.
धनेश्वरी ने बताया कि इस की उसे कोई भी जानकारी नहीं है. एसएचओ ने धनेश्वरी के मोबाइल को ट्रेस किया, मगर उस में कहीं कोई साक्ष्य नहीं मिला. जगजीवन राम रात्रे के दोस्तों से बात की गई. उन्होंने भी कोई ऐसा सूत्र नहीं दिया, जिस से जांच आगे बढ़ती.
पुलिस को जगजीवन राम के मोबाइल से भी कोई सूत्र नहीं मिल पा रहा था. अविनाश सिंह ने धनेश्वरी और बच्चों से पूछताछ की. बच्चे भी कुछ नहीं बता पा रहे थे. ऐसे में उन्होंने मनोवैज्ञानिक तरीके से धनेश्वरी से पूछताछ करनी शुरू की. बातचीत करने से धीरेधीरे जो बातें सामने आने लगीं, उस से उन्हें लगा कि हत्या पर से परदा उठ सकता है.
दोपहर को एक मुखबिर ने उन्हें बताया कि उस ने घटना से पहले शाम के समय तुषार सोनी को धनेश्वरी के साथ बातचीत करते देखा गया था. तुषार सोनी पुलिस के रडार पर पहले से ही था. उस का नाम हत्या के इस घटनाक्रम में सामने आते ही एसएचओ को यह एहसास होने लगा कि कहीं न कहीं हत्या में उसी का हाथ हो सकता है.
पुलिस पूछताछ में धनेश्वरी कई प्रकार के सचझूठ बताती रही. अंतत: सख्ती से पूछताछ के बाद उस ने सारा राज उगल दिया. उस ने बताया कि उस ने ही तुषार सोनी के द्वारा पति की हत्या कराई थी. पूछताछ में उस ने बताया कि करीब 10 साल पहले आज ही के दिन 24 मई, 2013 को उस का जगजीवन राम से विवाह हुआ था. मगर उस का पति उस के साथ अकसर मारपीट करता था. इस के बाद धनेश्वरी ने फूटफूट कर रोते हुए सारी कहानी बयां कर दी. उस ने बताया कि आज शादी की सालगिरह के दिन ही मैं ने पति को मौत का तोहफा दे दिया.
हत्या के बाद 6 हजार रुपए नगद रात को ही तुषार सोनी को देने की बात भी उस ने स्वीकार की. पुलिस हत्या के आरोपी तुषार सोनी को पहले ही हिरासत में ले चुकी थी. तुषार की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में उपयोग की गई कुल्हाड़ी, खून से रंगे हुए कपड़े और एक बाइक भी बरामद कर ली.
पुलिस ने शुक्रवार 26 मई, 2023 को 32 वर्षीय धनेश्वरी बाई रात्रे 21 वर्षीय तुषार सोनी उर्फ गोपी निवासी कृष्णा नगर, थाना दीपका को भादंवि धारा 302, 120 (बी), 34 के तहत गिरफ्तार कर लिया. दोनों आरोपियों को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, कटघोरा के समक्ष पेश किया गया, जहां से दोनों को ही जेल भेज दिया गया.
—कथा पुलिस सूत्रों से बातचीत पर आधारित
लाखन भी गांव में ही रहता था, इसलिए उस का अंकुर और उस के चाचा का अकसर आमनासामना हो जाया करता था. यही नहीं, वह उन्हें देख कर अपनी मूंछों पर ताव भी दिया करता था. गांव में वैसे भी पहले से उन की बहुत बदनामी हो चुकी थी. लाखन की यह हरकत उन के गुस्से में आग में घी डालने का काम करती थी. जब यह उन के बरदाश्त से बाहर हो गया, तब अंकुर ने अपने चाचा और चचेरे भाई के साथ मिल कर लाखन को जिंदा नहीं रहने देने की सौगंध खा ली.
तीनों ने लखन को रास्ते से हटाने के लिए उस की गतिविधियों पर नजर रखनी शुरू कर दी. उस की दिनचर्या मालूम करने के बाद वारदात के दिन 5 अप्रैल, 2023 की शाम को उन्होंने देखा कि लाखन बस स्टैंड के पास राधेश्याम राठौर के मकान के सामने ट्रैक्टर ट्रौली से गेहूं खाली कर रहा है. उस के आसपास कोई और नहीं था. तीनों ने मौका देख कर उस पर हमला कर दिया. पुलिस को इस हत्याकांड का कोई भी चश्मदीद नहीं मिला था, जबकि हत्या की साजिश पहले ही बना ली गई होगी.
लाखन की हत्या जिस जगह पर हुई थी, उस के पास में ही आरोपी प्रेम सिंह की दूध डेयरी भी थी. पुलिस को पता चला कि शायद इसी दुकान पर बैठ कर हत्या की योजना बनाई गई होगी, क्योंकि दुकान में पहले से ही पिस्टल और सब्बल रखा हुआ था. लाखन को घेर कर यहीं से हथियार निकाले गए थे.
मिटा दिया बहन का सिंदूर
उस दिन लाखन गांव के राधेश्याम राठौर के खेत पर गेहूं निकाल रहा था. वह ट्रैक्टर ट्रौली में गेहूं ले कर धानोदा गांव के बस स्टैंड के पास स्थित राधेश्याम के घर के सामने पहुंचा ही था, तब शाम के लगभग साढ़े 7 बजे थे. लाखन ने ट्रौली से गेहूं खाली करना शुरू ही किए थे कि आरोपी अचानक से आ गए थे.
अंकुर दौड़ कर डेयरी से पिस्टल ले आया था. उस ने लाखन की ओर फायर किया था. गोली उस की कमर में लगी थी और लाखन ट्रौली के पास ही सटे खंभे के पास गिर गया था. इस के बाद एक आरोपी दौड़ा और डेयरी से सब्बल निकाल ले आया. फिर तीनों उस पर टूट पड़े थे. उन्होंने सब्बल और पत्थर से उस पर जानलेवा हमला कर दिया था. इस के बाद अंकुर ने फिर से उस पर गोली दाग दी.
लाखन पूरी तरह से निढाल जमीन पर गिर गया था. सब्बल चाचा के लडक़े के हाथ में था, जिसे छुड़ा कर अंकुर ने उस पर इतनी जोर से वार किया कि सब्बल गले के आरपार हो गया. उस दिन गांव में अनेक शादियां थीं. हत्याकांड के बाद काफी दहशत फैल गई. बैंडबाजे सब कुछ बजने बंद हो गए. पूरे गांव में सन्नाटा पसर गया. न कोई शादी में शामिल हुआ, न कोई दावत खाने गया. परिवार वालों ने ही जैसेतैसे रस्में निभाईं.
इस घटना से पहले लाखन के पिता बहादुर सिंह नीतू के परिवार से मिल रही धमकियों से बेहद डरे हुए थे. जिस के चलते वह घर के पास ही मंदिर में जा कर रहने लगे थे. लाखन उन का इकलौता बेटा था. उस की मौत से उन का बुरा हाल हो गया था. मां का भी रोरो कर बुरा हाल हो गया था.
हत्याकांड के बारे में लाखन की मां श्याम कुंवर ने बताया कि बेटे ने नीतू से लव मैरिज की थी, जो दोनों की पसंद की थी. फिर भी बहू नीतू के घर वाले बेटे को जान से मारने की धमकी दे रहे थे. नीतू प्रेग्नेंट थी. लाखन के जिम्मे ही मातापिता, पत्नी नीतू और बहन की जिम्मेदारी थी. लाखन की मौत के बाद 4 लोगों की जिंदगी पूरी तरह से बिखर गई. नीतू के नाराज भाइयों ने ही उस के पति की हत्या की थी. वह उस का पहला और आखिरी प्यार था.
नीतू ने बताया कि घर वालों ने उस की मरजी के खिलाफ उस की शादी राजेंद्र से कर दी थी. पति की शराब की लत से रिश्ता बिगड़ गया था. इस बीच इन 5 सालों में एक बेटा और एक बेटी का जन्म भी हुआ. कोरोना काल में पिता भगवान सिंह की मौत के बाद ससुराल वालों के तेवर बदल गए. वे आए दिन किसी न किसी बात पर विवाद करते थे. पति नशे में धुत हो कर छोटीछोटी बातों पर पीटता. जब बात बरदाश्त से बाहर हो गई तो दोनों बच्चों को रावतपुरा गांव छोड़ कर मायके धानोदा आ गई थी.
लाखन की बहन ने भी नीतू के भाइयों पर हत्या का आरोप लगाया. उस ने भी बताया कि भाभी के घरवालों को यह शादी अपनी इज्जत पर दाग जैसी लग रही थी. उन्होंने इसी का बदला लिया.
माचलपुर एसएचओ जितेंद्र अजनारे के सामने मृतक लाखन की बहन सपना की तरफ से नामजद रिपोर्ट दर्ज कर ली. हत्या के तीनों आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में अंकुर परिवर्तित नाम है.