Crime Stories: पहली ही रात भागी दुल्हन

Crime Stories: 26 साल के छत्रपति शर्मा की आंखों में नींद नहीं थी. वह लगातार अपनी नईनवेली बीवी प्रिया को निहार रहा था. जैसे ही प्रिया की नजरें उस से टकराती थीं, वह शरमा कर सिर झुका लेती थी. 20 साल की प्रिया वाकई खूबसूरती की मिसाल थी. लंबी, छरहरी और गोरे रंग की प्रिया से उस की शादी हुए अभी 2 दिन ही गुजरे थे, लेकिन शादी के रस्मोरिवाज की वजह से छत्रपति को उस से ढंग से बात करने तक का मौका नहीं मिला था.

छत्रपति मुंबई में स्कूल टीचर था. उस की शादी मध्य प्रदेश के सिंगरौली शहर के एक खातेपीते घर में तय हुई थी और शादी मुहूर्त 23 नवंबर, 2017 का निकला था. इस दिन वह मुंबई से बारात ले कर सिंगरौली पहुंचा और 24 नवंबर को प्रिया को विदा करा कर वापस मुंबई जा रहा था. सिंगरौली से जबलपुर तक बारात बस से आई थी. जबलपुर में थोड़ाबहुत वक्त उसे प्रिया से बतियाने का मिला था, लेकिन इतना भी नहीं कि वह अपने दिल की बातों का हजारवां हिस्सा भी उस के सामने बयां कर पाता.

बारात जबलपुर से ट्रेन द्वारा वापस मुंबई जानी थी, जिस के लिए छत्रपति ने पहले से ही सभी के रिजर्वेशन करा रखे थे. उस ने अपना, प्रिया और अपनी बहन का रिजर्वेशन पाटलिपुत्र एक्सप्रैस के एसी कोच में और बाकी बारातियों का स्लीपर कोच में कराया था. ट्रेन रात 2 बजे के करीब जब जबलपुर स्टेशन पर रुकी तो छत्रपति ने लंबी सांस ली कि अब वह प्रिया से खूब बतियाएगा. वजह एसी कोच में भीड़ कम रहती है और आमतौर पर मुसाफिर एकदूसरे से ज्यादा मतलब नहीं रखते. ट्रेन रुकने पर बाराती अपने स्लीपर कोच में चले गए और छत्रपति, उस की बहन और प्रिया एसी कोच में चढ़ गए. छत्रपति की बहन भी खुश थी कि उस की नई भाभी सचमुच लाखों में एक थी. उस के घर वालों ने शादी भी शान से की थी.

जब नींद टूटी तो…

कोच में पहुंचते ही छत्रपति ने तीनों के बिस्तर लगाए और सोने की तैयारी करने लगा. उस समय रात के 2 बजे थे, इसलिए डिब्बे के सारे मुसाफिर नींद में थे. जो थोड़ेबहुत लोग जाग रहे थे, वे भी जबलपुर में शोरशराबा सुन कर यहांवहां देखने के बाद फिर से कंबल ओढ़ कर सो गए थे. छत्रपति और प्रिया को 29 और 30 नंबर की बर्थ मिली थी.

जबलपुर से जैसे ही ट्रेन रवाना हुई, छत्रपति फिर प्रिया की तरफ मुखातिब हुआ. इस पर प्रिया ने आंखों ही आंखों में उसे अपनी बर्थ पर जा कर सोने का इशारा किया तो वह उस पर और निहाल हो उठा. दुलहन के शृंगार ने प्रिया की खूबसूरती में और चार चांद लगा दिए थे. थके हुए छत्रपति को कब नींद आ गई, यह उसे भी पता नहीं चला. पर सोने के पहले वह आने वाली जिंदगी के ख्वाब देखता रहा, जिस में उस के और प्रिया के अलावा कोई तीसरा नहीं था.

जबलपुर के बाद ट्रेन का अगला स्टौप इटारसी और फिर उस के बाद भुसावल जंक्शन था, इसलिए छत्रपति ने एक नींद लेना बेहतर समझा, जिस से सुबह उठ कर फ्रैश मूड में प्रिया से बातें कर सके. सुबह कोई 6 बजे ट्रेन इटारसी पहुंची तो प्लैटफार्म की रोशनी और गहमागहमी से छत्रपति की नींद टूट गई. आंखें खुलते ही कुदरती तौर पर उस ने प्रिया की तरफ देखा तो बर्थ खाली थी. छत्रपति ने सोचा कि शायद वह टायलेट गई होगी. वह उस के वापस आने का इंतजार करने लगा.

ट्रेन चलने के काफी देर बाद तक प्रिया नहीं आई तो उस ने बहन को जगाया और टायलेट जा कर प्रिया को देखने को कहा. बहन ने डिब्बे के चारों टायलेट देख डाले, पर प्रिया उन में नहीं थी. ट्रेन अब पूरी रफ्तार से चल रही थी और छत्रपति हैरानपरेशान टायलेट और दूसरे डिब्बों में प्रिया को ढूंढ रहा था. सुबह हो चुकी थी, दूसरे मुसाफिर भी उठ चुके थे. छत्रपति और उस की बहन को परेशान देख कर कुछ यात्रियों ने इस की वजह पूछी तो उन्होंने प्रिया के गायब होने की बात बताई. इस पर कुछ याद करते हुए एक मुसाफिर ने बताया कि उस ने इटारसी में एक दुलहन को उतरते देखा था.

इतना सुनते ही छत्रपति के हाथों से जैसे तोते उड़ गए. क्योंकि प्रिया के बदन पर लाखों रुपए के जेवर थे, इसलिए किसी अनहोनी की बात सोचने से भी वह खुद को नहीं रोक पा रहा था. दूसरे कई खयाल भी उस के दिमाग में आजा रहे थे. लेकिन यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी कि आखिरकार प्रिया बगैर बताए इटारसी में क्यों उतर गई? उस का मोबाइल फोन बर्थ पर ही पड़ा था, इसलिए उस से बात करने का कोई और जरिया भी नहीं रह गया था. एक उम्मीद उसे इस बात की तसल्ली दे रही थी कि हो सकता है, वह इटारसी में कुछ खरीदने के लिए उतरी हो और ट्रेन चल दी हो, जिस से वह पीछे के किसी डिब्बे में चढ़ गई हो. लिहाजा उस ने अपनी बहन को स्लीपर कोच में देखने के लिए भेजा. इस के बाद वह खुद भी प्रिया को ढूंढने में लग गया.

भुसावल आने पर बहन प्रिया को ढूंढती हुई उस कोच में पहुंची, जहां बाराती बैठे थे. बहू के गायब होने की बात उस ने बारातियों को बताई तो बारातियों ने स्लीपर क्लास के सारे डिब्बे छान मारे. मुसाफिरों से भी पूछताछ की, लेकिन प्रिया वहां भी नहीं मिली. प्रिया नहीं मिली तो सब ने तय किया कि वापस इटारसी जा कर देखेंगे. इस के बाद आगे के लिए कुछ तय किया जाएगा. बात हर लिहाज से चिंता और हैरानी की थी, इसलिए सभी लोगों के चेहरे उतर गए थे. शादी की उन की खुशी काफूर हो गई थी.

प्रिया मिली इलाहाबाद में, पर…

इत्तफाक से उस दिन पाटलिपुत्र एक्सप्रैस खंडवा स्टेशन पर रुक गई तो एक बार फिर सारे बारातियों ने पूरी ट्रेन छान मारी, लेकिन प्रिया नहीं मिली. इस पर छत्रपति अपने बड़े भाई और कुछ दोस्तों के साथ ट्रेन से इटारसी आया और वहां भी पूछताछ की, पर हर जगह मायूसी ही हाथ लगी. अब पुलिस के पास जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था. इसी दौरान छत्रपति ने प्रिया के घर वालों और अपने कुछ रिश्तेदारों से भी मोबाइल पर प्रिया के गुम हो जाने की बात बता दी थी.

पुलिस वालों ने उस की बात सुनी और सीसीटीवी के फुटेज देखी, लेकिन उन में कहीं भी प्रिया नहीं दिखी तो उस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली. इधर छत्रपति और उस के घर वालों का सोचसोच कर बुरा हाल था कि प्रिया नहीं मिली तो वे घर जा कर क्या बताएंगे. ऐसे में तो उन की मोहल्ले में खासी बदनामी होगी. कुछ लोगों के जेहन में यह बात बारबार आ रही थी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रिया का चक्कर किसी और से चल रहा हो और मांबाप के दबाव में आ कर उस ने शादी कर ली हो. फिर प्रेमी के साथ भाग गई हो. यह खयाल हालांकि बेहूदा था, जिसे किसी ने कहा भले नहीं, पर सच भी यही निकला.

पुलिस वालों ने वाट्सऐप पर प्रिया का फोटो उस की गुमशुदगी के मैसेज के साथ वायरल किया तो दूसरे ही दिन पता चल गया कि वह इलाहाबाद के एक होटल में अपने प्रेमी के साथ है. दरअसल, प्रिया का फोटो वायरल हुआ तो उसे वाट्सऐप पर इलाहाबाद स्टेशन के बाहर के एक होटल के उस मैनेजर ने देख लिया था, जिस में वह ठहरी हुई थी. मामला गंभीर था, इसलिए मैनेजर ने तुरंत प्रिया के अपने होटल में ठहरे होने की खबर पुलिस को दे दी.

एक कहानी कई सबक

छत्रपति एक ऐसी बाजी हार चुका था, जिस में शह और मात का खेल प्रिया और उस के घर वालों के बीच चल रहा था, पर हार उस के हिस्से में आई थी. इलाहाबाद जा कर जब पुलिस वालों ने उस के सामने प्रिया से पूछताछ की तो उस ने दिलेरी से मान लिया कि हां वह अपने प्रेमी राज सिंह के साथ अपनी मरजी से भाग कर आई है. और इतना ही नहीं, इलाहाबाद की कोर्ट में वह उस से शादी भी कर चुकी है. बकौल प्रिया, वह और राज सिंह एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करते हैं, यह बात उस के घर वालों से छिपी नहीं थी. इस के बावजूद उन्होंने उस की शादी छत्रपति से तय कर दी थी. मांबाप ने सख्ती दिखाते हुए उसे घर में कैद कर लिया था और उस का मोबाइल फोन भी छीन लिया था, जिस से वह राज सिंह से बात न कर पाए.

4 महीने पहले उस की शादी छत्रपति से तय हुई तो घर वालों ने तभी से उस का घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था. लेकिन छत्रपति से बात करने के लिए उसे मोबाइल दे दिया जाता था. तभी मौका मिलने पर वह राज सिंह से भी बातें कर लिया करती थी. उसी दौरान उन्होंने भाग जाने की योजना बना ली थी. प्रिया के मुताबिक राज सिंह विदाई वाले दिन ही जबलपुर पहुंच गया था. इन दोनों का इरादा पहले जबलपुर स्टेशन से ही भाग जाने का था, लेकिन बारातियों और छत्रपति के जागते रहने के चलते ऐसा नहीं हो सका. राज सिंह पाटलिपुत्र एक्सप्रैस ही दूसरे डिब्बे में बैठ कर इटारसी तक आया और यहीं प्रिया उतर कर उस के साथ इलाहाबाद आ गई थी.

पूछने पर प्रिया ने साफ कह दिया कि वह अब राज सिंह के साथ ही रहना चाहती है. राज सिंह सिंगरौली के कालेज में उस का सीनियर है और वह उसे बहुत चाहती है. घर वालों ने उस की शादी जबरदस्ती की थी. प्रिया ने बताया कि अपनी मरजी के मुताबिक शादी कर के उस ने कोई गुनाह नहीं किया है, लेकिन उस ने एक बड़ी गलती यह की कि जब ऐसी बात थी तो उसे छत्रपति को फोन पर अपने और राज सिंह के प्यार की बात बता देनी चाहिए थी.

छत्रपति ने अपनी नईनवेली बीवी की इस मोहब्बत पर कोई ऐतराज नहीं जताया और मुंहजुबानी उसे शादी के बंधन से आजाद कर दिया, जो उस की समझदारी और मजबूरी दोनों हो गए थे.

जिस ने भी यह बात सुनी, उसी ने हैरानी से कहा कि अगर उसे भागना ही था तो शादी के पहले ही भाग जाती. कम से कम छत्रपति की जिंदगी पर तो ग्रहण नहीं लगता. इस में प्रिया से बड़ी गलती उस के मांबाप की है, जो जबरन बेटी की शादी अपनी मरजी से करने पर उतारू थे. तमाम बंदिशों के बाद भी प्रिया भाग गई तो उन्हें भी कुछ हासिल नहीं हुआ. उलटे 8-10 लाख रुपए जो शादी में खर्च हुए, अब किसी के काम के नहीं रहे.

मांबाप को चाहिए कि वे बेटी के अरमानों का खयाल रखें. अब वह जमाना नहीं रहा कि जिस के पल्लू से बांध दो, बेटी गाय की तरह बंधी चली जाएगी. अगर वह किसी से प्यार करती है और उसी से शादी करने की जिद पाले बैठी है तो जबरदस्ती करने से कोई फायदा नहीं, उलटा नुकसान ज्यादा है. यदि प्रिया इटारसी से नहीं भाग पाती तो तय था कि मुंबई जा कर ससुराल से जरूर भागती. फिर तो छत्रपति की और भी ज्यादा बदनामी और जगहंसाई होती.

अब जल्द ही कानूनी तौर पर भी मसला सुलझ जाएगा, लेकिन इसे उलझाने के असली गुनहगार प्रिया के मांबाप हैं, जिन्होंने अपनी झूठी शान और दिखावे के लिए बेटी को किसी और से शादी करने के लिए मजबूर किया. इस का पछतावा उन्हें अब हो रहा है. जरूरत इस बात की है कि मांबाप जमाने के साथ चलें और जातिपांत, ऊंचनीच, गरीबअमीर का फर्क और खयाल न करें, नहीं तो अंजाम क्या होता है, यह प्रिया के मामले से समझा जा सकता है. – कथा में प्रिया परिवर्तित नाम है. Crime Stories

Crime News: जिगोलो बनने के चक्कर में हो गया अपहरण

Crime News: सोहेल हाशमी रोजाना की तरह 8 अक्तूबर, 2016 को भी अपने घर आए अखबार को पढ़ रहा था. अखबार पढ़ते पढ़ते उस की नजर एक पेज पर छपे विज्ञापन पर पड़ी. उस विज्ञापन को पढ़ कर सोहेल चौंका. लिखा था मेल एस्कौर्ट बन कर रोजाना 25 हजार रुपए कमाएं. सोहेल जानता था कि जिस तरह कालगर्ल्स होती हैं, उसी तरह का काम मेल एस्कौर्ट का होता है. विज्ञापन में जो आमदनी दी गई थी, वह उसे आकर्षित कर रही थी.

28 वर्षीय सोहेल ने उस विज्ञापन को कई बार पढ़ा. उस समय वह आर्थिक परेशानी से जूझ रहा था. अपने परिवार के साथ वह दिल्ली के शाहदरा की बिहारी कालोनी स्थित जिस 2 कमरों के मकान में रहता था, उस का किराया भी वह कई महीनों से नहीं दे पाया था. उस के दिमाग में आया कि अगर वह मेल एस्कौर्ट का काम शुरू कर दे तो उसे अलग अलग महिलाओं के साथ मौजमस्ती करने को तो मिलेगा ही, साथ ही मोटी कमाई भी होगी, इसलिए वह मानसिक रूप से यह काम करने के लिए तैयार हो गया.

विज्ञापन में जो फोन नंबर दिया गया था, सोहेल ने उस नंबर पर फोन किया. उस नंबर पर घंटी तो गई, पर किसी ने फोन नहीं उठाया. उस ने यह कोशिश कई बार की, पर किसी ने भी उस की काल रिसीव नहीं की तो वह निराश हो गया. बड़ी उम्मीद के साथ सोहेल ने फोन किया था. फोन रिसीव न होने से वह मन ही मन विज्ञापन देने वाले को कोसने लगा. अगले दिन सोहेल घर के किसी काम में व्यस्त था, तभी उस के मोबाइल की घंटी बजी. स्क्रीन पर आए नंबर को देख कर उस की आंखों में चमक आ गई. वह नंबर वही था, जिस पर उस ने एक दिन पहले फोन किया था. सोहेल ने झट से काल रिसीव कर के बात की. फोन करने वाले ने उसे मेल एस्कौर्ट अर्थात जिगोलो का मतलब समझाया तो सोहेल ने कह दिया कि वह यह काम करने को तैयार हैं.

इस के बाद फोन करने वाले ने कहा, ‘‘एक अंतरराष्ट्रीय प्रोजैक्ट के सिलसिले में विदेशी आए हैं. आप को उन के साथ जाना है. लेकिन इस से पहले इंटरव्यू देना होगा. अगर आप इंटरव्यू में पास हो गए तो समझो ऐश और कैश दोनों मिलेंगे.’’

सोहेल सिर्फ यह देख रहा था कि जिगोलो बनने से क्या क्या फायदे हैं, इसलिए वह खुश हो कर बोला, ‘‘मैं इंटरव्यू के लिए तैयार हूं, मुझे कहां आना होगा?’’

‘‘आप कल उत्तर प्रदेश के कस्बा गजरौला पहुंच जाओ. वहां पहुंच कर फोन कर देना. हमारा आदमी औफिस तक ले आएगा.’’ फोन करने वाले ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं कल गजरौला पहुंच जाऊंगा.’’ सोहेल ने खुश हो कर कहा.

अगले दिन सोहेल इंटरव्यू देने के लिए तैयार हुआ और शाहदरा से बस द्वारा आनंद विहार पहुंच गया. वहां से उस ने गजरौला जाने वाली बस पकड़ी और ढाई घंटे में गजरौला पहुंच गया. उस ने उस नंबर पर फोन कर के अपने गजरौला पहुंचने की खबर दे दी.

कुछ देर बाद सोहेल के पास 2 मोटरसाइकिल सवार पहुंचे. उन्होंने उस का बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया. साथ ही खुद को एक ऐसी कंपनी का कर्मचारी बताया, जिस में विदेशी काम करते थे. दोनों युवक सोहेल को मोटरसाइकिल पर बिठा कर सूरज ढलने तक इधरउधर गांव में घुमाते रहे, अंधेरा होने पर वे उसे जंगल में ले गए. सोहेल ने जंगल में जाने के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उन का औफिस एक खेत में इसलिए बनाया गया है, ताकि आसपास के गांवों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिल सकें. कुछ देर में वे उसे खेत में बने एक ट्यूबवैल के कमरे पर ले कर पहुंचे. लेकिन वहां औफिस जैसा कुछ नहीं था.

इस से पहले कि सोहेल उन दोनों से कुछ पूछता, उन्होंने उसे कमरे में धकेल कर उस की पिटाई शुरू कर दी. उन्होंने उस की कनपटी पर पिस्तौल रख कर धमकी दी कि अगर उस ने भागने की कोशिश की तो उसे गोरी मार दी जाएगी. सोहेल समझ गया कि वह गलत लोगों के बीच फंस गया है. उन के चंगुल से निकलना उसे मुश्किल लग रहा था. थोड़ी देर में 3 युवक और आ गए. उन के हाथों में तलवारें थीं. उन्हें देख कर सोहेल डर से कांपते हुए जान की भीख मांगने लगा. तभी एक युवक ने उस के गले पर तलवार रख कर उस का मोबाइल फोन छीन लिया.

इस के बाद वे उस की मां का नंबर पूछ कर चले गए. जो 2 युवक कमरे में बचे थे, वे सोहेल को रात भर तरहतरह से प्रताडि़त करते रहे. अगले दिन उन लोगों ने सोहेल की मां को फोन कर के 12 लाख रुपए की फिरौती मांगी. घर वालों को जब पता चला कि सोहेल का अपरहण हो चुका है तो वे घबरा गए. 12 लाख रुपए की फिरौती देना उन के वश की बात नहीं थी, इसलिए उन्होंने थाना शाहदरा की पुलिस को इस की सूचना दे दी. पुलिस ने वह फोन नंबर नोट कर लिया, जिस से फिरौती के लिए फोन आया था. पुलिस ने सोहेल के घर वालों से कह दिया कि वे अपहर्त्ताओं से संपर्क बनाए रखें.

थानाप्रभारी ने यह सूचना ईस्ट दिल्ली के डीसीपी ऋषिपाल को दी तो उन्होंने एक पुलिस टीम बना कर शीघ्रता से जरूरी काररवाई करने के निर्देश दिए. एसआई विजय बालियान के नेतृत्व में गठित टीम मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर गजरौला पहुंच गई. अंतत: टेक्निकल सर्विलांस की मदद से दिल्ली पुलिस की टीम ने खेतों के बीच बने ट्यूबवैल के एक कमरे से सोहेल को अपहर्त्ताओं के चंगुल से सकुशल बरामद कर लिया. दोनों अपहर्त्ता भी पकड़े गए. उन की निशानदेही पर पुलिस ने उन के 3 अन्य साथियों को भी गिरफ्तार कर लिया.

जिगोलो बनने के चक्कर में सोहेल को क्या क्या यातनाएं झेलनी पड़ीं, उन्हें याद कर के वह सिहर उठता है. उस ने तौबा कर ली है कि पैसे कमाने के लिए वह इस तरह का कोई हथकंडा नहीं अपनाएगा. Crime News

Crime News: आशिक बन गया ब्लैकमेलर – दोस्त की दगाबाजी

Crime News: कभी दोस्ती तो कभी तथाकथित प्यार के झांसे में आ कर कई लड़कियां ब्लैकमेलरों के चक्कर में फंस जाती हैं. मतलब शरीर ही नहीं, उन से पैसे भी मांगे जाते हैं.

‘‘तुझे क्या लगता है कि आत्महत्या कर लेने से तेरी समस्या दूर हो जाएगी?’’

‘‘समस्या दूर हो या न हो, लेकिन मैं हमेशा के लिए इस दुनिया से दूर हो जाऊंगी. तू नहीं जानती नेहा मेरा खानापीना, सोना यहां तक कि पढ़ना भी दूभर हो गया है. हर वक्त डर लगा रहता है कि न जाने कब उस का फोन आ जाए और वह मुझे फिर अपने कमरे में बुला कर…’’ कहते हुए रंजना (बदला नाम) सुबक उठी तो उस की रूममेट नेहा का कलेजा मुंह को आने लगा. उसे लगा कि वह अभी ही खुद जा कर उस कमबख्त कलमुंहे मयंक साहू का टेंटुआ दबा कर उस की कहानी हमेशा के लिए खत्म कर दे, जिस ने उस की सहेली की जिंदगी नर्क से बदतर कर दी है.

अभीअभी नेहा ने जो देखा था, वह अकल्पनीय था. रंजना खुदकुशी करने पर आमादा हो आई थी, जिसे उस ने जैसेतैसे रोका था लेकिन साथ ही वह खुद भी घबरा गई थी. उसे इतना जरूर समझ आ गया था कि अगर थोड़ा वक्त रंजना से बातचीत कर गुजार दिया जाए तो उस के सिर से अपनी जिंदगी खत्म कर लेने का खयाल उतर जाएगा. लेकिन उस की इस सोच को कब तक रोका जा सकता है. आज नहीं तो कल रंजना परेशान हो कर फिर यह कदम उठाएगी. वह हर वक्त तो रूम पर रह नहीं सकती.

रंजना को समझाने के लिए वह बड़ेबूढ़ों की तरह बोली, ‘‘इस में तेरी तो कोई गलती नहीं है, फिर क्यों किसी दूसरे के गुनाह की सजा खुद को दे रही है. यह मत सोच कि इस से उस का कुछ बिगड़ेगा, उलटे तेरी इस बुजदिली से उसे शह और छूट ही मिलेगी. फिर वह बेखौफ हो कर न जाने कितनी लड़कियों की जिंदगी बरबाद करेगा, इसलिए हिम्मत कर के उसे सबक सिखा. यह बुजदिली तो कभी भी दिखाई जा सकती है. जरा अंकलआंटी के बारे में सोच, जिन्होंने बड़ी उम्मीदों और ख्वाहिशों से तुझे यहां पढ़ने भेजा है.’’

रंजना पर नेहा की बातों का वाजिब असर हुआ. उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘फिर क्या रास्ता है, वह कहने भर से मानने वाला होता तो 3 महीने पहले ही मान गया होता. जिस दिन वह तसवीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा, उस दिन मेरी जिंदगी तो खुद ही खत्म हो जाएगी. जिन मम्मीपापा की तू बात कर रही है, उन पर क्या गुजरेगी? वे तो सिर उठा कर चलने लायक तो क्या, कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेंगे.’’

‘‘एक रास्ता है’’ नेहा ने मुद्दे की बात पर आते हुए कहा, ‘‘बशर्ते तू थोड़ी सी हिम्मत और सब्र से काम ले तो यह परेशानी चुटकियों में हल हो जाएगी.’’ माहौल को हलका बनाने की गरज से नेहा ने सचमुच चुटकी बजा डाली.

‘‘क्या, मुझे तो कुछ नहीं सूझता?’’

‘‘कोड रेड पुलिस. वह तुझे इस चक्रव्यूह से ऐसे निकाल सकती है कि सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.’’

कोड रेड पुलिस के बारे में रंजना ने सुन रखा था कि पुलिस की एक यूनिट है जो खासतौर से लड़कियों की सुरक्षा के लिए बनाई गई है और एक काल पर आ जाती है. ऐसे कई समाचार उस ने पढ़े और सुने थे कि कोड रेड ने मनचलों को सबक सिखाया या फिर मुसीबत में पड़ी लड़की की तुरंत मदद की.

रंजना को नेहा की बातों से आशा की एक किरण दिखी, लेकिन संदेह का धुंधलका अभी भी बरकरार था कि पुलिस वालों पर कितना भरोसा किया जा सकता है और बात ढकीमुंदी रह पाएगी या नहीं. इस से भी ज्यादा अहम बात यह थी कि वे तसवीरें और वीडियो वायरल नहीं होंगे, इस की क्या गारंटी है.

इन सब सवालों का जवाब नेहा ने यह कह कर दिया कि एक बार भरोसा तो करना पड़ेगा, क्योंकि इस के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. मयंक दरअसल उस की बेबसी, लाचारगी और डर का फायदा उठा रहा है. एक बार पुलिस के लपेटे में आएगा तो सारी धमाचौकड़ी भूल जाएगा और शराफत से फोटो और वीडियो डिलीट कर देगा, जिन की धौंस दिखा कर वह न केवल रंजना की जवानी से मनमाना खिलवाड़ कर रहा था, बल्कि उस से पैसे भी ऐंठ रहा था.

कलंक बना मयंक

20 वर्षीय रंजना और नेहा के बीच यह बातचीत बीती अप्रैल के तीसरे सप्ताह में हो रही थी. दोनों जबलपुर के मदनमहल इलाके के एक हौस्टल में एक साथ रहती थीं और अच्छी फ्रैंड्स होने के अलावा आपस में कजिंस भी थीं. रंजना यहां जबलपुर के नजदीक के एक छोटे से शहर से आई थी और प्रतिष्ठित परिवार से थी. आते वक्त खासतौर से मम्मी ने उसे तरहतरह से समझाया था कि लड़कों से दोस्ती करना हर्ज की बात नहीं है, लेकिन उन से तयशुदा दूरी बनाए रखना जरूरी है.

बात केवल दुनिया की ऊंचनीच समझाने की नहीं, बल्कि अपनी बड़ी हो गई नन्हीं परी को आंखों से दूर करते वक्त ढेरों दूसरी नसीहतें देने की भी थी कि अपना खयाल रखना. खूब खानापीना, मन लगा कर पढ़ाई करना और रोज सुबहशाम फोन जरूर करना, जिस से हम लोग बेफिक्र रहें.

यह अच्छी बात थी कि रंजना को बतौर रूममेट नेहा मिली थी, जो उन की रिश्तेदार भी थी. जबलपुर आकर रंजना ने हौस्टल में अपना बोरियाबिस्तर जमाया और पढ़ाईलिखाई और कालेज में व्यस्त हो गई. मम्मीपापा से रोज बात हो जाने से वह होम सिकनेस का शिकार होने से बची रही. जबलपुर में उस की जैसी हजारों लड़कियां थीं, जो आसपास के इलाकों से पढ़ने आई थीं, उन्हें देख कर भी उसे हिम्मत मिलती थी. मम्मी की दी सारी नसीहतें तो उसे याद रहीं लेकिन लड़कों वाली बात वह भूल गई. खाली वक्त में वह भी सोशल मीडिया पर वक्त गुजारने लगी तो देखते ही देखते फेसबुक पर उस के ढेरों फ्रैंड्स बन गए. वाट्सऐप और फेसबुक से भी उसे बोरियत होने लगी तो उस ने इंस्टाग्राम पर भी एकाउंट खोल लिया.

इंस्टाग्राम पर वह कभीकभार अपनी तसवीरें शेयर करती थी, लेकिन जब भी करती थी तब उसे मयंक साहू नाम के युवक से जरूर लाइक और कमेंट मिलता था. इस से रंजना की उत्सुकता उस के प्रति बढ़ी और जल्द ही दोनों में हायहैलो होने लगी. यही हालहैलो होतेहोते दोनों में दोस्ती भी हो गई. बातचीत में मयंक उसे शरीफ घर का महसूस हुआ तो शिष्टाचार और सम्मान का पूरा ध्यान रखता था. दूसरे लड़कों की तरह उस ने उसे प्रपोज नहीं किया था.

मयंक बुनने लगा जाल

20 साल की हो जाने के बाद भी रंजना ने कोई बौयफ्रैंड नहीं बनाया था, लेकिन जाने क्यों मयंक की दोस्ती की पेशकश वह कुबूल कर बैठी, जो हौस्टल के रूम से बाहर जा कर भी विस्तार लेने लगी. मेलमुलाकातों और बातचीत में रंजना को मयंक में किसीतरह का हलकापन नजर नहीं आया. नतीजतन उस के प्रति उस का विश्वास बढ़ता गया और यह धारणा भी खंडित होने लगी कि सभी लड़के छिछोरे टाइप के होते हैं. मयंक भी जबलपुर के नजदीक गाडरवारा कस्बे से आया था. यह इलाका अरहर की पैदावार के लिए देश भर में मशहूर है. बातों ही बातों में मयंक ने उसे बताया था कि पढ़ाई के साथसाथ वह एक कंपनी में पार्टटाइम जौब भी करता है, जिस से अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठा सके.

अपने इस बौयफ्रैंड का यह स्वाभिमान भी रंजना को रिझा गया था. कैंट इलाके में किराए के कमरे में रहने वाला मयंक कैसे रंजना के इर्दगिर्द जाल बुन रहा था, इस की उसे भनक तक नहीं लगी. दोस्ती की राह में फूंकफूंक कर कदम रखने वाली रंजना को यह बताने वाला कोई नहीं था कि कभीकभी यूं ही चलतेचलते भी कदम लड़खड़ा जाते हैं. इसी साल होली के दिनों में मयंक ने रंजना को अपने कमरे पर बुलाया तो वह मना नहीं कर पाई. उस दिन को रंजना शायद ही कभी भूल पाए, जब वह आगेपीछे का बिना कुछ सोचे मयंक के रूम पर चली गई थी. मयंक ने उस का हार्दिक स्वागत किया और दोनों इधरउधर की बातों में मशगूल हो गए. थोड़ी देर बाद मयंक ने उसे कोल्डड्रिंक औफर किया तो रंजना ने सहजता से पी ली.

रंजना को यह पता नहीं चला कि कोल्डड्रिंक में कोई नशीली चीज मिली हुई है, लिहाजा धीरेधीरे वह होश खोती गई और थोड़ी देर बाद बेसुध हो कर बिस्तर पर लुढ़क गई. मयंक हिंदी फिल्मों के विलेन की तरह इसी क्षण का इंतजार कर रहा था. शातिर शिकारी की तरह उस ने रंजना के कपड़े एकएक कर उतारे और फिर उस के संगमरमरी जिस्म पर छा गया.

कुछ देर बाद जब रंजना को होश आया तो उसे महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ हुई है. पर क्या हुई है, यह उसे तब समझ में नहीं आया. मयंक ने ऐसा कुछ जाहिर नहीं किया, जिस से उसे लगे कि थोड़ी देर पहले ही उस का दोस्त उसे कली से फूल और लड़की से औरत बना चुका है. दर्द को दबाते हुए लड़खड़ाती रंजना वापस हौस्टल आ कर सो गई. कुछ दिन ठीकठाक गुजरे, लेकिन जल्द ही मयंक ने अपनी असलियत उजागर कर दी. उस ने एक दिन जब ‘उस दिन’ का वीडियो और तसवीरें रंजना को दिखाईं तो उसे अपने पैरों के नीचे से जमीन खिसकती नजर आई. खुद की ऐसी वीडियो और फोटो देख कर शरीफ और इज्जतदार घर की कोई लड़की शर्म से जमीन में धंस जाने की दुआ मांगने लगती. ऐसा ही कुछ रंजना के साथ हुआ.

दोस्त नहीं, वह निकला ब्लैकमेलर

वह रोई, गिड़गिड़ाई, मयंक के पैरों में लिपट गई कि वह यह सब वीडियो और फोटो डिलीट कर दे. लेकिन मयंक पर उस के रोनेगिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं हुआ. तुम आखिर चाहते क्या हो, थकहार कर उस ने सवाल किया तो जवाब में ऐसा लगा मानो सैकड़ों प्राण, अजीत, रंजीत, प्रेम चोपड़ा और शक्ति कपूर धूर्तता से मुसकरा कर कह रहे हों कि हर चीज की एक कीमत होती है जानेमन. यह कीमत थी मयंक के साथ फिर वही सब अपनी मरजी से करना जो उस दिन हुआ था. इस के अलावा उसे पैसे भी देने थे. अब रंजना को समझ आया कि उस का दोस्त या आशिक जो भी था, ब्लैकमेलिंग पर उतारू हो आया है और उस की बात न मानने का खामियाजा क्याक्या हो सकता है, इस का अंदाजा भी वह लगा चुकी थी.

मरती क्या न करती की तर्ज पर रंजना ने उस की शर्तें मानते हुए उसे शरीर के साथसाथ 10 हजार रुपए भी दे दिए. लेकिन उस ने उस की तसवीरें और वीडियो डिलीट नहीं किए. उलटे अब वह रंजना को कभी भी अपने कमरे पर बुला कर मनमानी करने लगा था. साथ ही वह उस से पैसे भी झटकने लगा था. रंजना चूंकि जरूरत से ज्यादा झूठ बोल कर मम्मीपापा से पैसे नहीं मांग सकती थी, इसलिए एक बार तो उस ने मम्मी की सोने की चेन चुरा कर ही मयंक को दे दी. रंजना 3 महीने तक तो चुपचाप मयंक की हवस पूरी कर के उसे पैसे भी देती रही, लेकिन अब उसे लगने लगा था कि वह एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस गई है, जिस से निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. ऐसे में उस ने अपनी जिंदगी खत्म करने का फैसला ले लिया.

नेहा अगर वक्त रहते न बचाती तो वह अपने फैसले पर अमल भी कर चुकी होती. लेकिन नेहा ने उसे न केवल बचा लिया, बल्कि मयंक को भी उस के किए का सबक सिखा डाला. नेहा ने कोड रेड पुलिस टीम को इस ब्लैकमेलिंग के बारे में जब विस्तार से बताया तो टीम ने रंजना को कुछ इस तरह समझाया कि वह आश्वस्त हो गई कि उस की पहचान भी उजागर नहीं होगी और वे फोटो व वीडियो भी हमेशा के लिए डिलीट हो जाएंगे. साथ ही मयंक को उस के जुर्म की सजा भी मिलेगी. कोड रेड की इंचार्ज एसआई माधुरी वासनिक ने रंजना को पूरी योजना बताई, जिस से मय सबूतों के उसे रंगेहाथों धरा जा सके. इतनी बातचीत के बाद रंजना का खोया आत्मविश्वास भी लौटने लगा था.

योजना के मुताबिक फुल ऐंड फाइनल सेटलमेंट के लिए 26 अप्रैल को रंजना ने मयंक को भंवरताल इलाके में बुलाया. सौदा 20 हजार रुपए में तय हुआ. उस वक्त सुबह के कोई 6 बजे थे, जब मयंक पैसे लेने आया. कोड रेड के अधिकारी पहले ही सादे कपड़ों में चारों तरफ फैल गए थे. माधुरी वासनिक फोन पर रंजना के संपर्क में थीं. जैसे ही मयंक रंजना के पास पहुंचा तो पुलिस वालों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया. शुरू में तो वह माजरा समझ ही नहीं पाया और दादागिरी दिखाने लगा. लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि सादा लिबास में ये लोग पुलिस वाले हैं तो उस के होश फाख्ता हो गए. जल्द ही वह सच सामने आ गया जो मयंक के कैमरे में कैद था.

मयंक का मोबाइल देखने के बाद जब इस बात की पुष्टि हो गई कि रंजना वाकई ब्लैकमेल हो रही थी तो बहुत देर से उस का इंतजार कर रहे पुलिस वालों ने उस की सड़क पर ही तबीयत से धुनाई कर डाली. पुलिस ने उसे कई तमाचे रंजना से भी पड़वाए, जिन्हें मारते वक्त उस के चेहरे पर प्रतिशोध के भाव साफसाफ दिख रहे थे. तमाशा देख कर भीड़ इकट्ठी होने लगी तो पुलिस वाले मयंक को जीप में बैठा कर थाने ले गए और उस पर बलात्कार और ब्लैकमेलिंग का मामला दर्ज कर के उसे हवालात भेज दिया.

फिल्म अभी बाकी है

ब्लैकमेलिंग की एक कहानी का यह सुखद अंत हर उस लड़की के नसीब में नहीं होता जो किसी मयंक के जाल में फंसी छटपटा रही होती है और थकहार कर खुदकुशी करने के अलावा उसे कोई रास्ता नजर नहीं आता. इस मामले से यह तो सबक मिलता है कि लड़कियां अगर हिम्मत से काम लें और पुलिस वालों के साथसाथ घर वालों को भी सच बता दें, तो बड़ी मुसीबत से बच सकती हैं. नेहा की दिलेरी और समझ रंजना के काम आई, इस से लगता है कि सहेलियों को भी भरोसे में ले कर ब्लैकमेलरों को सबक सिखाया जा सकता है.

ऐसी हालत में आत्महत्या करना समस्या का समाधान नहीं है. समाधान है ब्लैकमेलर्स को उन की मंजिल हवालात और अदालत का रास्ता दिखाना. मगर इस के पहले यह भी जरूरी है कि अकेले रह रहे लड़कों पर भरोसा कर के उन से अकेले में न मिला जाए. Crime News

Crime Stories: औरतों के साथ घिनौनी वारदात जारी

Crime Stories: इस वारदात को अंजाम देने में गांव के वार्ड सदस्य और सरपंच भी शामिल थे. मां बेटी ने स्थानीय थाने में मामला दर्ज कराया जहां वार्ड पार्षद मोहम्मद खुर्शीद, सरपंच मोहम्मद अंसारी, मोहम्मद शकील, मोहम्मद इश्तेखार, मोहम्मद शमशुल हक, मोहम्मद कलीम के साथसाथ दशरथ ठाकुर को मुलजिम बनाया गया.

वैसे, पुलिस सुपरिंटैंडैंट मानवजीत सिंह ढिल्लों के मुताबिक मोहम्मद शकील और दशरथ ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया गया था.

महिला आयोग की अध्यक्ष दिलमणि मिश्रा ने उस इलाके का दौरा किया और वे पीडि़ता से मिल कर उस की हरमुमकिन मदद करने और इंसाफ दिलाने की कोशिश कर रही हैं. केंद्रीय महिला आयोग को भी इस मामले की जानकारी दी गई है.

डीएम राजीव रोशन ने इस वारदात की निंदा करते हुए कहा है कि यह घिनौना अपराध है. कुसूरवारों को बख्शा नहीं जाएगा. हर हाल में कड़ी कार्यवाही होगी.

पत्थरदिल होते लोग

इस तरह की वारदातें जब कहीं होती हैं तो अच्छेखासे जागरूक लोग भी चुप्पी साध लेते हैं. अगर लोकल लोग इस का विरोध करते तो शायद इस तरह की वारदात नहीं घटती. अगर दबंगों का मनोबल इसी तरह बढ़ता गया तो वह दिन दूर नहीं जब निहायत कमजोर लोगों की जिंदगी हमआप जैसों की चुप्पी की वजह से दूभर हो जाएगी.

आज हमारे समाज में इतनी गिरावट आती जा रही है कि किसी औरत को नंगा कर के घुमाना, उस के साथ छेड़छाड़ करना और रेप तक करते हुए उस का वीडियो वायरल करना आम बात हो गई है.

समाज को धार्मिक और संस्कारी बनाने का ठेका लेने वाले साधुसंन्यासी और मौलाना इन वारदातों पर चुप्पी साधे रहते हैं. अभी हाल के दिनों में वैशाली, आरा, रोहतास, जहानाबाद, कैमूर, मधुबनी, गया और नालंदा में औरतों को नंगा कर के सरेआम सड़कोंगलियों में घुमाए, पीटे और सताए जाने की कई वारदातें हो चुकी हैं और यह सिलसिला जारी है.

अगर हम हाल के कुछ सालों की वारदातें देखें तो वर्तमान समाज की नंगी तसवीरें हमारे सामने दिखाई पड़ती हैं:

* 20 अगस्त, 2018. बिहार के आरा जिले के बिहियां इलाके में एक नौजवान की हत्या में शामिल होने के शक में उग्र भीड़ ने एक औरत को नंगा कर के उसे पीटते हुए सरेआम पूरे बाजार में घुमाया.

* 17 अगस्त, 2017. उत्तर प्रदेश के इटावा में दबंगों ने औरतों को पीटते हुए नंगा किया.

* 9 अगस्त, 2017. महाराष्ट्र में एक औरत को नंगा कर के घुमाया गया. उस औरत की गलती यह थी कि उस ने एक प्रेमी जोड़े को आपस में मिलाने का काम किया था.

* 22 अप्रैल, 2017. एक पिता ने प्रेम करने के एवज में अपनी ही बेटी को नंगा कर के घुमाया.

* 1 मई, 2014. बैतूल के चुनाहजुरि गांव में एक औरत के बाल मूंड़ कर उसे नंगा कर के पीटते हुए पूरे गांव में घुमाया. उस औरत का गुनाह यह था कि उस की छोटी बहन ने दूसरी जाति के लड़के के साथ शादी कर ली थी.

* 19 दिसंबर, 2010. पश्चिम बंगाल में एक औरत को पंचायत के फैसले के मुताबिक उस की पिटाई करते हुए नंगा कर के घुमाया गया. उस औरत पर आरोप था कि उस का किसी के साथ नाजायज रिश्ता था.

* खड़गपुर के पास मथकथ गांव में एक औरत को नाजायज रिश्ता बनाने के आरोप में उस की नंगा कर के पिटाई की गई.

इन वारदातों में ज्यादातर नौजवान शामिल रहते हैं जो औरतों के साथ बदतमीजी करने से ले कर उन के बेहूदा वीडियो बनाने तक में शामिल होते हैं. हमारे समाज के इन नौजवानों को क्या हो गया है जो ये अपने गुरु और अपने मातापिता की इज्जत तक का थोड़ा सा भी खयाल नहीं रखते हैं? मातापिता भी इस में बराबर के कुसूरवार हैं जो लड़कियों को तो बातबात पर तमीज सिखाते रहते हैं, लेकिन लड़कों को नहीं.

क्या यह सब बढ़ती धार्मिक  पाखंडीबाजी का नतीजा नहीं है जिस के मुताबिक औरतों को पैर की जूती माना गया है? राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2012 से 2015 तक औरतों के विरुद्ध अपराधों की तादाद में 34 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. दुष्कर्म के मामले में मध्य प्रदेश 4,391, महाराष्ट्र 4,144, राजस्थान 3,644, उत्तर प्रदेश 3,025, ओडिशा 2,251, दिल्ली 2,199, असम 1,733, छत्तीसगढ़ 1,560, केरल 1,256, पश्चिम बंगाल 1,129 के आंकड़े चौंकाते हैं. निश्चित रूप से यह एक सभ्य समाज की तसवीर तो नहीं हो सकती.

सवाल यह है कि धर्म, नैतिकता और शर्मिंदगी क्या सिर्फ लड़कियों के लिए है? जन्म से ले कर मरने तक किसी औरत के अपने मातापिता, पति और बेटे के अधीन ही जिंदगी बिताने की परंपरा आज भी सदियों से चली आ रही है.

यह ठीक है कि अब लड़कियों की जिंदगी में बदलाव आया है. आज वे भी हर क्षेत्र में परचम लहरा रही हैं, लेकिन आज भी उन के साथ दोयम दर्जे का ही बरताव होता है. जब एक लड़की के साथ बलात्कार की वारदात होती है तो परिवार और समाज द्वारा इज्जत के नाम पर उस की चर्चा और मुकदमा तक नहीं किया जाता है, जिस की वजह से बलात्कारी का मनोबल बढ़ जाता है.

इस से दुनियाभर में हमारे देश की कैसी इमेज बन रही है, क्या हमारे नेताओं को इस पर चिंता करने की जरूरत महसूस नहीं होती है?

भारत विश्व गुरु बनने की बात करता है और ऐसा होना भी चाहिए, लेकिन क्या हम 8 साल की मासूम बच्ची के साथ रेप कर के विश्व गुरु बन जाएंगे या रेप के बाद विचारधारा और धर्म पर राजनीति कर के?

जिस देश में स्कूलों और कालेजों में टीचरों की घोर कमी हो, अस्पतालों के हालात देख कर ही लोग बीमार दिखने लगते हों, बेरोजगारों की एक लंबी भीड़ हो और क्वालिटी ऐजुकेशन के नाम पर खिचड़ी खिला कर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जाता हो, क्या हम ऐसे माहौल में विश्व गुरु बनने के हकदार हैं?

जिस देश में वोट पाने के लिए नेता हेट स्पीच देने में वर्ल्ड रिकौर्ड बना चुके हों, जिस देश के नेता धर्म के नाम पर अपनी राजनीति चमकाते हों और जरूरत पड़ने पर धर्म के नाम पर नौजवानों की बलि चढ़ा देते हों, क्या ऐसी करतूतों से भारत की छवि विश्व जगत में खराब नहीं हुई है?

भारत में हो रही बलात्कार की वारदातें, चौकचौराहे पर गुस्साई भीड़ द्वारा लगातार की जा रही हत्याएं व सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों द्वारा प्रैस कौंफ्रैंस कर के लोकतंत्र को बचाने की गुहार लगाना, क्या संचार क्रांति के इस दौर में हमारे देश के लिए इस सब पर सोचविचार करने का यह सही समय नहीं है? कई देशों ने अपने नागरिकों को अकेले भारत आने के बारे में चेतावनी देना शुरू कर दिया है.

भीड़ आखिर इतनी अराजक क्यों हो रही है? कानून को हाथ में लेने के लिए उसे कौन बोल या उकसा रहा है? शक के आधार पर या पंचायत के फैसले पर किसी औरत को नंगा कर के उस को पीटा जाना किसी लिहाज से जायज नहीं है, क्योंकि सरकार के तथाकथित समर्थकों को सोशल मीडिया पर मांबहन की गालियां देने का जो लाइसैंस दिया गया है वह अब सड़कों पर अपना असली रंग दिखाने लगा है.

यह सब इस देश के लिए बहुत बड़ा खतरा है. ऐसी वारदातों में कभीकभार ऐसी औरतें भी निशाने पर ले ली जाती हैं, जिन का कोई कुसूर नहीं होता है. वे ऐसे लोगों के गुस्से की भेंट चढ़ जाती हैं, जो उन्हें जानते तक नहीं हैं. औरत को देवी का रूप बताने और उस की पूजा का ढोंग करने वाले इस देश के लोगों का यही चरित्र है. Crime Stories

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)

Real Crime Stories : बेखबर न रहें औरत समझ कर

Real Crime Stories : दीवाली का समय था. लखनऊ के भूतनाथ बाजार की हर दुकान में ग्राहकों की भीड़ लगी थी. सेल्समैन हर ग्राहक को बड़ी लालसाभरी नजरों से देख रहा था. उसे उम्मीद थी कि हर ग्राहक कुछ न कुछ खरीदारी जरूर करेगा, जिस से न केवल दुकानदारी होगी बल्कि उसे भी ज्यादा कमीशन मिलेगा. तभी एक ज्वैलरी शौप में 3 महिलाएं दाखिल होती हैं.

तीनों महिलाएं पहाड़ी वेशभूषा में हैं. सिर पर टोपी भी लगा रखी है. आमतौर पर धारणा होती है कि पहाड़ी लोग मेहनती और ईमानदार होते हैं. ऐसे में उन पर शंका की गुंजाइश कम होती है. तीनों महिलाएं सोने के जेवर देखने लगीं. कई तरह के जेवर देखे. मोलतोल किया. कुछ देर बाद जेवर पसंद न आने की बात कह कर वे दुकान से बाहर चली गईं.

जेवर दिखाने वाले सेल्समैन ने जब अपने जेवर रखने शुरू किए तो उसे पता चला कि 2 जोड़ी कंगन यानी 4 कंगन गायब हो चुके थे. सेल्समैन उन तीनों महिलाओं के झांसे में आ चुका था. मामला पुलिस तक गया. पुलिस की जांच में दुकान में लगे सीसीटीवी फुटेज में पाया गया कि कंगन उन महिलाओं ने ही चोरी किए थे. कुछ समय पहले इसी तरह एक ज्वैलरी शौप में एक लड़का और एक लड़की आए.

सोने की चेन खरीदने की बात की. सेल्समैन ने सोने की चेन दिखानी शुरू की. लड़की ने मुसलिमों वाला बुरका पहन रखा था. कई तरह के जेवर देखने के बाद उन लोगों ने 10 हजार रुपए की एक चेन खरीदी और चले गए. सेल्समैन को उस समय तक कुछ पता ही नहीं चल पाया था. बुरका पहने उस लड़की ने सोने के तमाम जेवर अपने पास रख लिए थे. पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज को देख कर उस को पकड़ा.

लड़की लखनऊ से 60 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले की रहने वाली थी. उस का नाम ज्योति था. वह अपने प्रेमी के साथ मुंबई भाग गई थी. मुंबई जा कर जब पैसों की जरूरत महसूस हुई तो उस ने अपने प्रेमी के साथ इस तरह की घटनाएं करनी शुरू कीं. वह अपनी वेशभूषा बदलबदल कर अलगअलग शहरों में ऐसी घटनाओं को अंजाम देने लगी.

सोच का लाभ उठाने की कोशिश

अपराध की दुनिया में छोटीबड़ी तमाम तरह की ऐसी घटनाएं घटने लगी हैं जिन में महिलाएं शामिल होती हैं. ऐसे में जरूरी है कि महिला समझ कर बेखबर न रहें. महिलाएं भी वैसे ही अपराध की घटनाओं को अंजाम दे सकती हैं जैसे कोई दूसरा अपराधी देता है. दरअसल, महिलाओं को ले कर एक सोच बनी हुई है कि वे गलत काम नहीं कर सकतीं, क्रूर नहीं हो सकतीं और आपराधिक घटनाओं में हिस्सेदारी नहीं कर सकतीं.

ऐसे तमाम मामलों की जांच करने वाले पुलिस अधिकारी कहते हैं, ‘‘महिलाएं अगर काम करने की ठान लें तो वे अपराध की हर गतिविधि में शामिल हो सकती हैं. महिला अपराधियों से घटना की सचाई कुबूल करवा पाना ज्यादा कठिन होता है. वे अपनी मार्मिक बातों के साथ ही साथ आंसुओं से भी जांच की दिशा को भटकाने का काम करती हैं. महिलाओं के प्रति समाज में जो सोच बनी है उस का वे लाभ लेने की कोशिश करती हैं.’’

बात केवल साधारण चोरी और धोखा देने की नहीं है. हत्या, अपहरण और देहधंधा चलाने जैसे गंभीर अपराधों में भी महिलाओं की भूमिका दिखती रही है. खासकर अवैध संबंधों के खुलने पर जिस तरह से वे आक्रामक  हो कर अपराध करती हैं, यह सोचने की बात है.

न रहें बेखबर

औरत अपराध नहीं कर सकती, यह धारणा बनानी गलत है. जिस तरह से समाज की सोच और नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है, उस का प्रभाव महिलाओं पर भी पड़ रहा है. गुस्से और जरूरत के चलते वे भी अपराध की दलदल में धंसती जा रही हैं. ऐसे में इन से बेखबर रहने की जरूरत नहीं है. समाजशास्त्री डा. प्रभावती राय कहती हैं, ‘‘महिलाएं जब तरक्की की राह में आगे बढ़ रही हैं तो दुनियाभर की बुराइयां भी उन में आने लगी हैं. वे पहले जैसी संवेदनशील सोच से बाहर निकल रही हैं. वे वैसे ही अपराध कर रही हैं जैसे कोई पुरुष करता है. अपराध करने वाले इंसान की सोच एक जैसी ही होती है, उस में आदमी और औरत का फर्क खत्म हो चला है.’’

महिला अपराधों पर अध्ययन करने वाली वकील कीर्ति जायसवाल कहती हैं, ‘‘कई बार तो अपराध का ग्लैमर भी महिलाओं को लुभाता है. दूसरे, अब महिलाओं की जरूरतें भी बढ़ गई हैं. चोरी, लूट और धोखाधड़ी जैसे अपराधों में तो ज्यादातर महिलाएं पुरुषों के कहने पर ही आती हैं.

पुरुष अपराधी महिलाओं की छवि का लाभ उठाने के लिए उन को आगे कर देते हैं जिस से उन का काम करना सरल हो जाए. महिलाएं शुरुआत में थोड़े से लालच में इस तरह के काम करने लगती हैं. लेकिन एक बार अपराध की दलदल में फंसने के बाद वे इस से दूर नहीं जा पाती हैं और  अपराधियों का मोहरा बन कर रह जाती हैं.’’

कीर्ति बताती है, ‘‘हम ने कई ऐसे मामले भी देखे हैं जहां महिलाएं शातिर अपराधियों की तिकड़म का शिकार हो जाती हैं. उन को जबरन अपराध में फंसा दिया जाता है. यह बात सच है कि अपराध में औरतों की भूमिका बढ़ती जा रही है. यह समाज के लिए सोचने की बात है.’’

बचना सरल नहीं

अपराध करने से पहले औरतों को यह लगता है कि वे अपराध कर के बच सकती हैं. लेकिन अब ऐसा नहीं है. जिस तरह से पुलिस की जांच से ले कर मीडिया की रिपोर्ट तक में महिला अपराधी होने पर मामला बढ़ जाता है. महिला अपराधी के शामिल होने से घटना पर मीडिया का रुख अलग ही हो जाता है.

उस घटना को स्पैशल दरजा हासिल हो जाता है. जिस से पुलिस पर दबाव पड़ता है और उसे घटना की तहकीकात जल्द से जल्द करनी होती है. यह बात ठीक है कि कुछ अपराधों में यदि महिला की उम्र कम है तो उस की पहचान को छिपाने की कोशिश मीडिया द्वारा की जाती है लेकिन उस के बाद भी महिला अपराधी के शामिल होने से घटना को ज्यादा कवरेज मिलने लगती है.

इसलिए अब यह नहीं सोचना चाहिए कि औरत होने का लाभ मिल सकेगा. महिलाओं को ऐसे अपराधों में शामिल होने से बचने की कोशिश करनी चाहिए. अपराध में शामिल होने से अपराधी के परिवार को तमाम तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. अगर अपराधी महिला हो तो ये मुश्किलें और बढ़ जाती हैं.

इस से न केवल उस को बल्कि उस के घर वालों को भी समाज के सामने शर्मिंदा होना पड़ता है. आज भी समाज में पुरुषप्रधान सोच है. यहां पर औरत के अपराध करने को अलग नजर से देखा जाता है. उस की अलग आलोचना होती है. औरत की आलोचना करते समय उस के घरपरिवार और बच्चों को भी शामिल कर लिया जाता है.

महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज्यादा संवेदनशील होती हैं इसलिए उन को अपराध के लिए सरलता से उकसाया जा सकता है. जरूरी है कि महिलाएं किसी भी तरह की आपराधिक घटना में पड़ने से पहले अपने घरपरिवार, बच्चों और खुद के बारे में जरूर सोचें. अपराध कर के बचना सरल नहीं है.

समाज में होती बेइज्जती

महिलाओं के अपराधी होने से समाज में घरपरिवार की इज्जत को बहुत नुकसान होता है. उन को सही निगाह से नहीं देखा जाता. थानाकचहरी और अस्पताल में जब जांच और पूछताछ के नाम पर महिलाओं को पेश किया जाता है तो उन को गिरी हुई नजर से देखा जाता है. महिलाओं के करीबी से करीबी दोस्त तक उन से पल्ला झाड़ने लगते हैं. बहुत मजबूरी में घर के लोग ही उन का साथ देते हैं.

ऐसी महिलाओं को कचहरी से जेल और अस्पताल लाने, ले जाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाली महिला सिपाही दुर्गेश कुमारी कहती हैं, ‘‘जेल में पहले से बंद महिला अपराधी नई आने वाली महिला अपराधी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती है. जब उन को कचहरी में पेश किया जाता है तो वहां वकील से ले कर दूसरे लोग भी ऐसी महिलाओं को अच्छी नजरों से नहीं देखते हैं.’’पुलिस के एक अधिकारी कहते हैं ‘‘हत्या के एक मामले में जांच करते समय हम ने महिला आरोपी के परिवार वालों को भी बुलाया था. उन के  सामने महिला आरोपी ने अपना अपराध कुबूल किया.

जिस समय महिला अपराधी ने अपराध कुबूल किया, उस के घर वाले बाहर टीवी पर देख रहे थे. वे रोने लगे. महिला आरोपी के परिवार की महिलाएं तो उसे बुराभला भी कहने लगी थीं. ऐसे में अगर बाद में महिला आरोप से मुक्त भी हो जाए तो भी उस की सचाई को कोई महसूस नहीं करता.’’

महिला के अपराध में शामिल होने का सब से बड़ा प्रभाव उस के बच्चों पर पड़ता है. वे घरपरिवार, गलीमहल्ले से ले कर स्कूल तक में अलगथलग पड़ जाते हैं. एक ऐसे ही बच्चे ने मां के जेल जाने के बाद स्कूल जाना बंद कर दिया.

उस के घर वालों ने उसे बहुत समझाया. इस के बाद भी वह स्कूल नहीं गया. उस ने कहा, ‘मुझे स्कूल के सभी बच्चे चिढ़ाते हैं. वे कहते हैं कि मेरी मां ने अपराध किया है.’ बहुत प्रयासों के बाद भी जब यह बच्चा स्कूल नहीं गया तो उस की एक साल की पढ़ाई खराब हो गई. अगले साल उस का ऐडमिशन दूसरे शहर के स्कूल में कराया गया. इस के बाद भी वह बच्चा हमेशा गुमसुम सा रहता और दूसरे बच्चों के बीच जाने से बचता रहता.

एक स्कूल की पिं्रसिपल कहती हैं, ‘‘हमें ऐसे बच्चों को संभालने में बड़ा प्रयास करने की जरूरत होती है. बच्चे मां के सब से करीब होते हैं. इस कारण से उन पर मां के कामकाज का सब से अधिक प्रभाव पड़ता है. देश की कानून व्यवस्था ऐसी है कि जिस में न्याय देर से होता है. ऐसे में अगर महिला अपराध से मुक्त भी हो जाए तो उस के खोए हुए मानसम्मान को वापस नहीं लौटाया जा सकता है. मीडिया और दूसरी जगहों पर उन खबरों को जगह कम ही दी जाती है जिन में महिला अपराध से मुक्त हो जाती हैं. ऐसे में समाज को सच का पता ही नहीं चल पाता है.’

महिलाओं को अपराध से खुद को अलग रखना चाहिए.  किसी के बहकावे और षड्यंत्र में शामिल नहीं होना चाहिए. महिलाओं के अपराध में शामिल होने से केवल उन का भविष्य ही खराब नहीं होता, उन के  घरपरिवार और बच्चोंका भविष्य भी प्रभावित होता है. ऐसे में जरूरी है कि  महिलाएं खुद ही अपराधों से दूर रहें ताकि उन का जीवन सुखमय रहे, घरपरिवार का मानसम्मान बना रहे और बच्चों का भविष्य उज्ज्वल रहे, साथ ही समाज व वातावरण भी खुशनुमा बना रहे.

Real Crime News : सरपंच न बनने पर बना जल्लाद

सोमवार 6 दिसंबर, 2021 का दिन था. कड़कड़ाती ठंड छत्तीसगढ़ की हवाओं को सर्द बनाए हुए थी. शाम के लगभग 7 बज रहे थे. इंजीनियर शिवांग चंद्राकर अपने फार्महाउस से धीमी गति से बाइक चलाते हुए अपने घर मरौदा की ओर जा रहा था. तभी उस ने देखा कि कोई उसे हाथ दे रहा है, सामने अशोक खड़ा था. उसे देख कर शिवांग ने बाइक रोक दी. शिवांग अशोक देशमुख को अच्छी तरह जानता था, जिसे वह अच्छी तरह जानता था. अशोक ने शिवांग चंद्राकर ने कहा, ‘‘भाई, मेरी बाइक खराब हो गई है. क्या तुम मुझे लिफ्ट दे सकते हो?’’

शिवांग चंद्राकर जानता था कि अशोक  गांव का नामचीन व्यक्ति है, उस की उस से कभी नहीं बनी. मगर इंसानियत भी कोई चीज होती है, यह सोच कर उस ने मुसकरा कर  कहा, ‘‘हांहां क्यों नहीं भाई, आओ बैठो बताओ कहां चलना है.’’

यह सुनना था कि अशोक देशमुख उछल कर शिवांग की बाइक पर बैठ गया.

अशोक ने शिवांग के कंधे पर हाथ रखा तो उसे महसूस हुआ मानो उस के हाथ में कोई कठोर चीज है. शिवांग को जाने क्यों महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ है, मगर अब वह क्या कर सकता था. चुपचाप बाइक चला रहा था, देखा सामने 2 लोग और खड़े मिले. वह भी उसे रुकने के लिए इशारा कर रहे थे.

उन्हें देख कर के शिवांग ने बाइक की गति तेज कर दी. मगर अशोक ने कंधे पर थपथपा कर कहा, ‘‘नहींनहीं, रुको.’’

मजबूर शिवांग ने बाइक रोकी. वही दोनों लोग उस के पास आ गए जो हाथ के इशारे से बाइक रुकवा रहे थे. शिवांग उन्हें थोड़ाथोड़ा जानता था.

तभी अशोक देशमुख ने शिवांग को कस कर पीछे से जकड़ लिया. शिवांग को महसूस हुआ मानो वह किसी बड़े खतरे में फंस चुका है. थोड़ी ही देर में उस के मस्तिष्क में अशोक देशमुख के साथ सारे विवाद घूमने लगे. उस ने अशोक के चंगुल से छूटने की कोशिश की. लेकिन उस ने पूरी ताकत से उसे जकड़ रखा था इसलिए छूट नहीं सका. इसी बीच सामने खड़े दोनों व्यक्तियों ने आगे बढ़ कर उसे पकड़ा. उन में से एक ने उस के गले में नायलोन की रस्सी डाल कर कस दी. थोड़ी ही देर में दम घुटने से शिवांग की मौत हो गई.

इस के बाद अशोक देशमुख ने अपने साथियों के साथ मिल कर शिवांग के हाथ और पैर पकड़ कर लाश झाडि़यों के पास डाल दी. फिर अशोक अपने साथियों से बोला, ‘‘तुम लोग यहां रुको, मैं अभी कार ले कर आता हूं.’’

उस के दोनों साथियों में एक बसंत साहू था और दूसरा विक्की उर्फ मोनू देशमुख.

इस पर बसंत साहू ने कहा, ‘‘भैया जल्दी आना, यहां लोग आतेजाते रहते हैं किसी को भी शक हो सकता है.’’

‘‘हां, मैं जल्द ही कार ले कर आता हूं.’’

अशोक तेजी से चला गया. थोड़ी ही देर में अपनी कार ले कर के वहां आ गया और तीनों ने मिल कर शिवांग चंद्राकर के शव को कार की डिक्की में डाल दिया.

अशोक देशमुख कार चलाते हुए झरझरा में हरीश पटेल की खाली पड़ी जमीन पर ले गया. वहां हार्वेस्टर चलने से गड््ढे बने हुए थे. एक गड्ढे में शिवांग की लाश जलाने की व्यवस्था उन्होंने पहले ही कर रखी थी.

वहीं दोनों अन्य आरोपी अपनी मोटर बाइक से आ गए. फिर तीनों ने मिल कर मिट्टी का तेल डाल कर शिवांग चंद्राकर के शव में आग लगा दी. दिसंबर का महीना था. लोग भीषण ठंड के कारण अपनेअपने घरों में दुबके हुए थे. कहीं ऐसे में लोगों को आग जलती हुई दिखती है तो दूसरे लोग यही समझते हैं कि ठंड दूर करने के लिए किसी ने अलाव जला रखा है. यही वजह थी कि जब ये लोग शिवांग के शव को जला रहे थे तो लोगों ने कोई शक नहीं किया. जब आग बुझी तो शिवांग का शव आधा जल चुका था. तब वह उसे मिट्टी से ढक कर अपनेअपने घर चले गए.

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का चंदखुरी गांव अपनी खेतीकिसानी के कारण जिले भर में प्रसिद्ध है. लगभग 3 हजार की जनसंख्या का यह हरित अनुपम गांव शहर से लगा हुआ है. यहां के धनाढ्य लोगों को दाऊजी कह कर सम्मान के साथ संबोधित किया जाता है. अधिकांश लोगों का जीवनयापन खेतीकिसानी और शहर में नौकरी से गुजरबसर करना होता है. 31 वर्षीय अशोक देशमुख गांव की राजनीति करते हुए खेतीकिसानी करता था. हाल ही में हुए ग्राम पंचायत चुनाव में वह सरपंच का चुनाव चंद मतों से हार गया था. जिस का दोषी वह शिवांग चंद्राकर और उस के परिवार को ही मानता था. यही कारण था कि अशोक शिवांग से बदला लेने का मौका ढूंढ रहा था.

उस ने गांव के ही रहने वाले अपने खास दोस्त विक्की उर्फ मोनू देशमुख (20 वर्ष) और बसंत साहू (उम्र 24 वर्ष) जोकि गांव चंद्रपुरी में ही रहते थे, से एक दिन मौका देख कर बात की.

‘‘यार मोनू, आज मैं सरपंच होता, मेरी गांव में अच्छीखासी चलती. दो पैसे कमाता, तुम लोगों को भी हमेशा खिलातापिलाता, मगर एक आदमी की वजह से पूरा प्लान धरा का धरा रह गया.’’

इस पर मोनू और बसंत साहू ने उस की ओर देखा तो मोनू ने कहा, ‘‘भैया, मैं जानता हूं लेकिन अब क्या किया जा सकता है. चुनाव में इस ने तो आप का बैंड बजा दिया.’’

यह सुन कर के अशोक ने कहा, ‘‘अगर तुम लोग मेरे सच्चे दोस्त हो तो मेरा साथ दो, मैं इस को ऐसा सबक सिखाऊंगा कि जिंदगी में कभी हमारा कोई विरोध नहीं करेगा.’’

‘‘क्याक्या करना होगा, बताओ.’’

इस पर विक्की उर्फ मोनू ने गुस्से से भर कर  कहा, ‘‘शिवांग के बड़े भाई धर्मेश ने मुझे थप्पड़ मारा था, इसलिए मैं भी इन से बदला लेना चाहता हूं. मैं तुम्हारे साथ हूं. शिवांग इंजीनियर क्या बन गया है, इस के घर के लोग अपने आप को बड़ा आदमी समझने लगे हैं.’’

यह सुन कर अशोक खुश होते हुए बोला, ‘‘बस, मेरे दोस्त, तुम ने मेरा दिल जीत लिया. मैं एक योजना बनाता हूं और इस को सबक सिखाते हैं.’’

इस पर बसंत साहू  ने कहा, ‘‘हां, क्या है आखिर तुम्हारी योजना, भाई. बताओ?’’

‘‘यह बात है तो सुनो. मेरे दिमाग में बहुत दिनों से एक कीड़ा कुलबुला रहा है. सरपंच चुनाव में तो हार गया हूं. मगर इन से हम 25-50 लाख रुपए वसूल सकते हैं. इस से तुम दोनों की भी जिंदगी बन जाएगी. फिर जिंदगी भर ऐश करोगे.’’

यह सुन कर के दोनों खुशी से उछल पड़े और एक साथ बोले, ‘‘ऐसा है तो हम तुम्हारे साथ हैं जब जैसा कहोगे वैसा करेंगे.’’

7 दिसंबर, 2021 सुबह लगभग 11 बज रहे थे कि थाना पुलगांव के टीआई नरेश पटेल के पास 2 लोग आए.

उन में से एक ने थानाप्रभारी से कहा, ‘‘साहब, मैं दीपराज चंद्राकर हूं और गांव चंदखुरी से आया हूं. मेरा भांजा शिवांग चंद्राकर कल शाम से लापता है उस का कोई पता नहीं चल रहा है.’’ यह कहते दीपराज रोआंसा हो गया. उस की आंखें भर आई थीं. थानाप्रभारी नरेश पटेल मामले की गंभीरता को समझ कर उन्हें भरोसा दिलाते हुए बोले, ‘‘तुम लोग चिंता मत करो, हम पूरी मदद करेंगे. तुम अभी गुमशुदगी दर्ज करवाओ.’’

इस के बाद दीपराज ने शिवांग चंद्राकर की गुमशुदगी दर्ज करा दी. गुमशुदगी दर्ज होने के पुलिस ने अपने स्तर से इंजीनियर शिवांग को ढूंढना शुरू कर दिया. एक हफ्ता बीत गया था. शिवांग चंद्राकर का कहीं कोई पता नहीं चल रहा था. रिश्तेदारों के यहां मातापिता ने पता किया, मगर शिवांग की कोई जानकारी नहीं मिल रही थी. धीरेधीरे लोगों में आक्रोश पैदा हो रहा था कि पुलिस शिवांग को आखिर क्यों नहीं ढूंढ पा रही है. मामला उच्च अधिकारियों तक पहुंचा. जब स्थिति बिगड़ने लगी तो पुलिस के आईजी ओ.पी. पाल के निर्देश पर एसएसपी ने केस को गंभीरता से लिया. इस के अलावा उस के पैंफ्लेट छपवा कर बताने वाले को 10 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की.

टीम में थानाप्रभारी नरेश पटेल, गौरव तिवारी, एसआई डुलेश्वर सिंह चंद्रवंशी, एएसआई राधेलाल वर्मा, नरेंद्र सिंह राजपूत, समीत मिश्रा, अजय सिंह, हैडकांस्टेबल संतोष मिश्रा, कांस्टेबल जावेद खान, प्रदीप सिंह, जगजीत सिंह, धीरेंद्र यादव, चित्रसेन, केशव साहू, लव पांडे, अलाउद्दीन, हीरामन, तिलेश्वर राठौर को शामिल किया गया. इस सब के बावजूद पुलिस को शिवांग चंद्राकर की गुमशुदगी के बारे में कहीं कोई सुराग नहीं मिल रहा था और पुलिस हाथ पर हाथ धरे मानो बैठी हुई थी कि 5 जनवरी, 2022 को शिवांग चंद्राकर के बड़े भाई धर्मेश चंद्राकर ने थानाप्रभारी को सनसनीखेज जानकारी दी.

धर्मेश ने बताया, ‘‘सर, झरझरी कैनाल रोड के पास एक खेत में एक कंकाल और हड्डियां मिली हैं, टाइमैक्स घड़ी मिली है, जले हुए कपड़े हैं, देख कर लगता है कि यह शिवांग के ही होंगे.’’

थानाप्रभारी नरेश पटेल ने यह जानकारी उच्चाधिकारियों को दी. इस के बाद पुलिस अधिकारी फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां खुदाई कर के अस्थियां और एक मानव मुंड बरामद किया. फोरैंसिक विशेषज्ञ मोहन पटेल ने सूक्ष्मता से जांच शुरू की. कंकाल और जले हुए कपड़ों व बालों के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता था कि यह आखिर किस का शव है. शिवांग चंद्राकर का पूरा परिवार चिंतित था और लोगों द्वारा यह कयास लगाया जा रहा था कि यह शिवांग का कंकाल और अवशेष हो सकता है.

नरेश पटेल ने उच्चाधिकारियों को जानकारियां दे कर अवशेष की जांच डीएनए हेतु रायपुर भेजने की काररवाई शुरू कर दी.

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इस के साथ ही जिले भर में यह चर्चा होने लगी कि 6 दिसंबर को लापता हुए शिवांग चंद्राकर की जब कोई जानकारी नहीं मिल रही है तो जरूर 5 जनवरी को मिले हुए कंकाल से उस का संबंध हो सकता है. इस संदर्भ में स्थानीय समाचार पत्रों में भी इसी तरह की खबरें प्रकाशित हो रही थीं. और जब डीएनए जांच रिपोर्ट सामने आई तो यह स्पष्ट हो गया कि वह अस्थियां शिवांग की ही हैं. पुलिस के सामने अब इस केस को खोलने की चुनौती थी. इस के लिए 5 जांच टीमें बनाई गईं और आईजी ओ.पी. पाल और एसएसपी बद्रीनारायण मीणा ने पुलिस टीमों के साथ मीटिंग करने के बाद दिशानिर्देश दिए.

पुलिस ने इस केस में करीब 500 लोगों से पूछताछ की. पुलिस ने जोरशोर से विवेचना प्रारंभ कर दी. पुलिस ने इसी दरमियान छत्तीसगढ़ के चंद्रखुरी गांव के रहने वाले अशोक देशमुख से भी पूछताछ की. पुलिस को पता चला था कि सरपंच के चुनाव में अशोक की शिवांग से खटपट हुई थी. लेकिन अशोक खुद को बेकुसूर बताता रहा. पुलिस ने उस के फोन की काल डिटेल्स की जांच की तो पाया कि उस दिन वह अपने घर में ही था. ऐसे में वह पुलिस की जांच से बाहर हो गया था.

इसी दरमियान एक दिन दूसरे संदिग्ध आरोपी विक्की उर्फ मोनू देशमुख से जब पूछताछ चल रही थी तो वह टूट गया. उस ने पुलिस को बताया कि शिवांग चंद्राकर की हत्या उस ने अशोक देशमुख  और बसंत साहू के साथ मिल कर की थी. पुलिस को उस ने अपने बयान में बताया कि शिवांग चंद्राकर के भाई धर्मेश ने एक विवाद में उसे थप्पड़ जड़ दिया था. जिस का बदला लेने के लिए वह अशोक देशमुख के साथ इस हत्याकांड में शामिल हो गया था. उस ने अपने इकबालिया बयान में यह भी बता दिया कि अशोक देशमुख पिछला पंचायत पंच चुनाव हारने के कारण शिवांग चंद्राकर से बदला लेना चाहता था और उस से 30 लाख रुपए  फिरौती की योजना बनाई थी.

मगर पुलिस की सक्रियता और गांव का सख्त माहौल देखते हुए उन लोगों ने फिरौती की योजना को दरकिनार कर के मौन रहना ही उचित समझा था. यह जानकारी मिलने के बाद तत्परता दिखाते हुए टीआई नरेश पटेल की टीम ने उसी रात अशोक देशमुख और विक्की चंद्राकर को हिरासत में ले लिया और जब इन दोनों से पूछताछ की तो दोनों ही पुलिस जांच के सामने टूट गए और सब कुछ सचसच बयां कर दिया. अशोक देशमुख ने बताया कि पंचायत चुनाव में वह सरपंच का चुनाव लड़ रहा था. मगर शिवांग देशमुख के पिता राजेंद्र देशमुख के कारण वह चुनाव हार गया था.

इस के साथ ही रेगहा में स्थित 15 एकड़ के कृषि फार्महाउस का विवाद भी इस का एक कारण था, जिसे राजेंद्र चंद्राकर ने उस से हथिया लिया था. यहां एक रोचक बात यह भी सामने आई कि जांच में यह पाया गया कि अशोक देशमुख घर पर ही था तो फिर अब कैसे हत्यारा हो गया. पुलिस ने उस की पत्नी रजनी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि पति घर पर ही था. मोबाइल में 7 मिस काल दिखाई दे रही थीं. अब सवाल यह था कि आखिर जब अशोक घर पर था तो पत्नी ने काल क्यों किया था और अशोक ने काल रिसीव क्यों नहीं कीं.

अशोक ने इस संदर्भ में खुलासा करते हुए बताया कि शिवांग चंद्राकर की हत्या के लिए उस ने लंबे समय तक एक योजना बनाई थी कि किस तरह हम हत्या के इस केस से बच सकते हैं और फिरौती भी हासिल कर सकते हैं? इसी तारतम्य में यह सोचीसमझी योजना बनाई गई थी कि हत्या के दिन मोबाइल को घर में रखना है. ताकि कभी पुलिस वेरिफिकेशन हो तो एक नजर में यह माना जाए कि वह तो घर पर ही था. फिर भला हत्या कैसे कर सकता है. इस तरह आरोपियों ने इंजीनियर शिवांग की बाइक पर लिफ्ट ले कर एकांत में गला घोट कर हत्या कर दी थी.

जांच के बाद पुलिस ने हत्याकांड में प्रयुक्त कार, मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली. गला घोटने में प्रयुक्त हुई नायलौन की रस्सी भी आरोपियों की निशानदेही पर बरामद कर ली. तीनों आरोपियों अशोक देशमुख पुत्र रामनारायण देशमुख, विक्की उर्फ मोनू देशमुख और बसंत साहू को भादंवि की धारा 364, 365, 201, 120बी और 302 के तहत मामला दर्ज कर के 10 फरवरी, 2022 को गिरफ्तार कर लिया और अगले दिन 11 फरवरी को उन्हें मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, दुर्ग, छत्तीसगढ़ के समक्ष पेश किया.

जहां मामले की गंभीरता को देखते हुए मजिस्ट्रैट ने तीनों आरोपियों को जेल भेजने का आदेश जारी कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों और चर्चा पर आधारित

True crime Story in Hindi : नाबालिग के यौन शोषण की कभी न खत्म होने वाली कहानी

True crime Story in Hindi : कहा जाता है- हरि अनंत हरि कथा अनंता वैसे ही समाज की आम भाषा में यह कहा जा सकता है – नाबालिक के यौन शोषण की कहानी  अनंत है. यह सच है कि इसके लिए सरकार ने नियम कायदे बना दिए हैं कानून बन चुका है. और जब बच्चों के साथ यौन शोषण करने वालों में कोई कोई पुलिस पकड़ में आता है तो चर्चा का सबब बन जाता है कि कैसा अनर्थ हो रहा है.कुल मिलाकर के यह बात दोहराई जाती है कि नाबालिग के यौन शोषण की कहानी अनंत है

आइए… आज इस रिपोर्ट में हम इस महत्वपूर्ण सामाजिक मसले पर ऐसे पक्ष उlद्घाटित कर रहे हैं जो आपको चौकाएंगे. दरअसल, बच्चों के शोषण की अनेक घटनाएं हो रही हैं ऐसे में इस महत्वपूर्ण मसले पर सामाजिक दृष्टिकोण से हर एक तरीके से रोक लगाने की आवश्यकता है. यहां यह बताना भी लाजिमी होगा कि 10 मासूम बच्चों में  सिर्फ 7 बच्चे यौन शोषण के आज भी शिकार हो रहे हैं और नाम मात्र के मामले ही सामने आ रहे हैं उसके अनुसार बच्चों के साथ दुष्कर्म करने वाले आसपास के परिजन परिवारिक इष्ट मित्र ही पाए गए हैं.

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इसलिए इसी रिपोर्ट के माध्यम से आपको सावधान करते हुए कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दी जा रही है. जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर हमारे परिवार में नन्हे बच्चे हैं तो हम जागरूक रहे, हमारी जागरूकता के बगैर बच्चों के साथ यौन शोषण संभव हो सकता है.

और नाबालिग की शादी कर दी!

ऐसे ही एक सनसनीखेज मामले में छत्तीसगढ़  के जिला रायगढ़ के थाना  लैलूंगा की पुलिस द्वारा एक बालिका को परवरिश व घरेलू काम कराने के नाम पर सुन्दरगढ़ (ओडिशा) ले जाकर उसकी जबरजस्ती युवक के साथ शादी कराने वाले आरोपी पिता-पत्र को ओडिशा से पकड़ लिया गया है. हमारे  संवाददाता को  जांच अधिकारी लक्ष्मण प्रसाद पटेल ने बताया  – बालिका की मां  दिनांक 15 मई को थाना लैलूंगा में  रिपोर्ट दर्ज कर बताई कि रोजी मजदूरी का काम कर अपने बच्चों का पालन पोषण कर ती है. करीब चार माह पहले सुन्दरगढ़, ओडिशा में रहने वाला ईश्वर महाकुल  उसकी पंद्रह वर्षीय बेटी रानी (काल्पनिक नाम)  को अपने साथ ले गया और वादा किया कि बालिका घर का काम काज करेगी, मैं उसे बेटी की तरह रख कर पढ़ाऊंगा.

भरोसा कर महिला  ने अपने परिवारवालों से सलाह लेकर जान परिचित होने के कारण उस व्यक्ति के साथ बेटी को भेज दिया. कुछ माह बाद अपने रिस्तेदारो के साथ अपनी बेटी को देखने सुंदरगढ़ ओडिशा गई तो  देखा ईश्वर महाकुल के घर में बालिका से बहुत ज्यादा काम कराया जा रहा था, यही नही नाबालिक बालिका की शादी  ईश्वर महाकुल ने अपने बेटे गणेश बारीक के साथ जबरजस्ती करा दी है.

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यह सब देख कर बालिका की मां भौचक्र रह गई. सबसे बड़ा अपराध यह की बालिका के  परिवारवालों को कथित विवाह की जानकारी भी नहीं दी गई . और जब महिला ने अपनी बेटी को अपने साथ लेकर अपने घर लैलूंगा जाऊंगी कहा तो उसे झगड़ा कर भगा दिया गया . अंततः महिला ने बेटी का शोषण किये जाने के संबंध में थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस के समक्ष यह मामला आया तो जिला रायगढ़ पुलिस ने मामला पंजीबद्ध कर लिया.
जांच अधिकारी लक्ष्मण प्रसाद पटेल ने बताया आरोपी पिता-पुत्र  आरोपी ईश्वर बारीक पिता चक्रधर बारीक उम्र 50 वर्ष उसके पुत्र गणेश बारीक उम्र 21 साल दोनों निवासी ग्राम कुराई महकुलपारा थाना तलसरा जिला सुन्दरगढ़ ओडिशा को हिरासत में लेकर उनके बयान लिए गए और गंभीर अपराध पाए जाने पर मामला पंजीबद्ध किया गया. प्रकरण में साक्ष्य के आधार पर आरोपियों के विरूद्ध धारा 9, 10 बालविवाह प्रतिषेध अधिनियम, 4, 8 पास्को एक्ट जोड़ी गई है. True crime Story in Hindi

MP News : साधना पटेल नहीं बन पाई बैंडिट क्वीन

MP News : पिछड़े तबके के बुद्धिविलास पटेल मध्य प्रदेश के विंघ्य इलाके के चित्रकूट के गांव बगहिया पुरवा के बाशिंदे थे. उन की 3 औलादों में साधना सब से बड़ी थी. हालांकि साधना पढ़ाईलिखाई में होशियार थी, लेकिन उस की ख्वाहिश जिंदगी में कुछ ऐसा करने की थी, जिस से लोग उसे याद रखें.

जिस उम्र में लड़कियां कौपीकिताबें सीने से लगाए शोहदों से बचती जमीन में आंखें धंसाए स्कूल जा रही होती थीं, उस उम्र में साधना अपने किसी बौयफ्रैंड के साथ जंगल में कहीं मौजमस्ती कर रही होती थी. जाहिर है कि बहुत कम उम्र में ही वह रास्ता भटक बैठी थी तो इस के जिम्मेदार पिता बुद्धिविलास भी थे, जिन के घर आएदिन डाकुओं का आनाजाना लगा रहता था. नामी और इनामी डाकू चुन्नी पटेल का तो उन से इतना याराना था कि जिस दिन वह घर आता था, तो तबीयत से दारू, मुरगा की पार्टी होती थी.

चुन्नी पटेल को साधना चाचा कह कर बुलाती थी और अकसर उस की उंगलियां बंदूक से खेला करती थीं. साधना की हरकतें देख चुन्नी पटेल अकसर कहा करता था कि एक दिन यह लड़की पुतलीबाई से भी बड़ी डाकू बनेगी. ऐसा हुआ भी और उजागर 18 नवंबर, 2019 को हुआ, जब सतना पुलिस ने 50,000 इनामी की इस दस्यु सुंदरी, जिसे ‘जंगल की शेरनी’ भी कहा जाता था, को कडियन मोड़ के जंगल से गिरफ्तार कर लिया.

ऐसे बनी डाकू

एक मामूली से घर की बला की खूबसूरत दिखने व लगने वाली साधना पटेल के डाकू बनने की कहानी भी उस की जिंदगी की तरह कम दिलचस्प नहीं. कम उम्र में ही साधना पटेल को सैक्स का चसका लग गया था, जिस से पिता बुद्धिविलास परेशान रहने लगे थे. बेटी को रास्ते पर लाने के लिए उन्होंने उसे अपनी बहन के घर भागड़ा गांव भेज दिया, लेकिन इस से कोई फायदा नहीं हुआ. उलटे, वह यह जान कर हैरान हो उठी कि चुन्नी चाचा का आनाजाना यहां भी है और उन के उस की बूआ से नाजायज संबंध हैं. तब साधना को पहली बार सैक्स को ले कर मर्दों की कमजोरी सम झ आई थी.

लेकिन सैक्स की अपनी लत और कमजोरी से वह कोई सम झौता नहीं कर पाई. बूआ के यहां कोई रोकटोक नहीं थी, इसलिए उस के जिस्मानी ताल्लुकात एक ऐसे नौजवान से बन गए, जो उस का मुंहबोला भाई था. एक दिन बूआ ने हमबिस्तरी करते दोनों को रंगेहाथ पकड़ लिया, तो साधना घबरा उठी. साधना को डर था कि बूआ के कहने पर चुन्नीलाल उसे और उस के आशिक को मार डालेगा, इसलिए वह जान बचाने के लिए बीहड़ों में कूद पड़ी.

यह साल 2015 की बात है, जब उस की मुलाकात नामी डकैत नवल धोबी से हुई. नवल धोबी औरतों के मामले में बड़ा सख्त था. उस का मानना था कि औरतें डाकू गिरोहों की बरबादी की बड़ी वजह होती हैं, इसलिए वह गिरोह में उन्हें शामिल नहीं करता था. कमसिन साधना पटेल को देखते ही नवल धोबी का मन डोल उठा और अपने उसूल छोड़ते हुए उस ने साधना को न केवल गिरोह में, बल्कि जिंदगी में भी शामिल कर लिया. अब तक साधना कपड़ों की तरह आशिक बदलती रही थी, लेकिन नवल की हो जाने के बाद उस ने इसी बात में बेहतरी और भलाई सम झी कि अब कहीं और मुंह न मारा जाए. कुछ दिन बड़े इतमीनान और सुकून से कटे.

इसी दौरान साधना ने डकैती के कई गुर और सलीके से हथियार चलाना सीखा. नवल के साथ मिल कर उस ने कई वारदातों को अंजाम भी दिया. नवल के साथ साधना का नाम भी चल निकला, लेकिन एक दिन पुलिस ने नवल को कई साथियों समेत गिरफ्तार कर लिया, जिस से उस का गिरोह तितरबितर हो उठा. नवल की गिरफ्तारी साधना की बैंडिट क्वीन बन जाने की ख्वाहिश पूरी करने वाली साबित हुई.

साधना ने गिरोह के बाकी सदस्यों को ले कर अपना खुद का गिरोह बना डाला और बेखौफ हो कर वारदातों को अंजाम देने लगी. गिरोह के सभी सदस्य हालांकि उसे ‘साधना जीजी’ कहते थे, लेकिन कई मर्दों से वह सैक्स संबंध बनाती रही.

फिर आया एक मोड़

अपना खुद का गिरोह बनाने के शुरुआती दौर में साधना रंगदारी वसूलती थी, लेकिन यह भी उसे सम झ आ रहा था कि अगर नामी डाकू बनना है और खौफ बनाए रखना है तो जरूरी है कि किसी ऐसी वारदात को अंजाम दिया जाए जिस की चर्चा दूरदूर तक हो. इसी गरज से साल 2018 में साधना ने नयागांव थाने के तहत आने वाले पालदेव गांव के छोटकू सेन को अगवा कर लिया. छोटकू सेन से वह गड़े खजाने के बारे में पूछती रहती थी. लेकिन वह कुछ नहीं बता पाया तो साधना ने बेरहमी से उस की उंगलियां काट दीं.

साधना की गिरफ्त से छूट कर छोटकू ने उस के खिलाफ मामला दर्ज कराया तो इस कांड की चर्चा वाकई वैसी ही हुई जैसा कि वह चाहती थी. इस कांड के बाद साधना के नाम का सिक्का बीहड़ों में चल निकला और इसी दौरान उस की जिंदगी में पालदेव गांव का ही नौजवान छोटू पटेल आया. छोटू के पिता ने बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में लिखाते समय उस के अगवा हो जाने का अंदेशा जताया था.

कुछ दिनों बाद पुलिस को पता चला कि छोटू साधना का नया आशिक है और उसे अगवा नहीं किया गया है, बल्कि वह अपनी मरजी से साधना के साथ रह रहा है, तो पुलिस ने उसे भी डकैत घोषित कर उस के सिर 10,000 रुपए का इनाम रख दिया. छोटू 6 अगस्त, 2019 को गायब हुआ था, लेकिन हकीकत में इस के पहले भी वह साधना से मिला करता था और दोनों जंगल में रंगरलियां मनाते थे. बाद में छोटू गांव वापस लौट आता था.

सच जो भी हो, लेकिन यह तय है कि साधना वाकई छोटू से दिल लगा बैठी थी और उस की ख्वाहिश पूरी करने के लिए कभीकभी जींसशर्ट उतार कर साड़ी भी पहन लेती थी. छोटू भी उस पर जान देने लगा था, इसलिए उस के साथ रहने लगा था. सितंबर, 2019 में पुलिस ने नामी और 7 लाख रुपए के इनामी डाकू बबली कोल को उस के साथ व साले लवकेश को ऐनकाउंटर में मार गिराया तो राज्य में खासी हलचल मची थी. बबली कोल गिरोह के दबदबे और चर्चों के चलते साधना को कोई भाव नहीं देता था. अब तक हालांकि उस के खिलाफ आधा दर्जन मामले दर्ज हो चुके थे, लेकिन बबली के कारनामों के सामने वे कुछ भी नहीं थे.

बहरहाल, बबली कोल की मौत के बाद विंध्य के बीहड़ों में 21 साला साधना का एकछत्र राज हो गया, लेकिन जिस फुरती से पुलिस डाकुओं का सफाया कर रही थी, उस से घबराई साधना पटेल को अंडरग्राउंड हो जाना ही बेहतर लगा. छोटू के साथ वह  झांसी और दिल्ली में रही और पूरी तरह घरेलू औरत बन कर रही. हालांकि यह जिंदगी वह 4 महीने ही जी पाई. बड़े शहरों के खर्चे भी ज्यादा होते हैं, लिहाजा जब पैसों की तंगी होने लगी, तो उस ने फिर वारदात की योजना बनाई और बीहड़ लौट आई.

पुलिस को मुखबिरों के जरीए जब यह बात मालूम हुई तो उस ने जाल बिछा कर 17 नवंबर, 2019 को उसे गिरफ्तार कर लिया. उत्तर प्रदेश में भी साधना पटेल कई वारदातों को अंजाम दे चुकी थी, लेकिन वहां किसी थाने में उस के खिलाफ किसी ने मामला दर्ज नहीं कराया था. इस के बाद भी पुलिस ने उस पर 30,000 रुपए के इनाम का ऐलान किया था.

अब साधना पटेल जेल में बैठी मुकदमोें की सुनवाई और सजा के इंतजार में काट रही है, लेकिन उस की कहानी बताती है कि उस के डाकू बनने में सब से बड़ी गलती तो उस के पिता की ही है, जिन की मौत के बाद साधना बेलगाम हो गई थी.

Bihar Crime News : मौत का सौदागर – लालच ने बनाया हत्यारा

Bihar Crime News : 25नंवबर, 2020 को देव दिवाली का त्यौहार होने के कारण एक ओर जहां रतलाम के लोग अपने आंगन में गन्ने से बने मंडप तले शालिग्राम और तुलसी का विवाह उत्सव मना रहे थेवहीं दूसरी ओर शहर भर के बच्चे दीवाली की बची आतिशबाजी खत्म करने में लगे थे. चारों तरफ धूमधड़ाके का माहौल था. लेकिन इस से अलग औद्योगिक थाना इलाके में कब्रिस्तान के पास बसे राजीव नगर में युवक बेवजह ही सड़क पर यहां से वहां चक्कर लगाते हुए कालोनी के एक तिमंजिला मकान पर नजर लगाए हुए थे.

 

यह मकान गोविंद सेन का था. लगभग 50 वर्षीय गोविंद सेन का स्टेशन रोड पर अपना सैलून था. उन का रिश्ता ऐसे परिवार से रहा जिस के पास काफी पुश्तैनी संपत्ति थी. पारिवारिक बंटवारे में मिली बड़ी संपत्ति के कारण उन्होंने राजीव नगर में यह आलीशान मकान बनवा लिया था. इस की पहली मंजिल पर वह स्वयं 45 वर्षीय पत्नी शारदा और 21 साल की बेटी दिव्या के साथ रहते थे. जबकि बाकी मंजिलों पर किराएदार रहते थे. उन की एक बड़ी बेटी भी थीजिस की शादी हो चुकी थी.

इस परिवार के बारे में आसपास के लोग जितना जानते थेउस के हिसाब से गोविंद सिंह की पत्नी घर पर अवैध शराब बेचने का काम करती थी. जबकि उन की बेटी को खुले विचारों वाली माना जाता था. लोगों का मानना था कि दिव्या एक ऐसी लड़की है जो जवानी में ही दुनिया जीत लेना चाहती थी. उस की कई युवकों से दोस्ती की बात भी लोगों ने देखीसुनी थी. पिता के सैलून चले जाने के बाद वह दिन भर घर में अकेली रहती थी. मां शारदा और बेटी दिव्या से मिलने आने वालों की कतार लगी रहती थी. मोहल्ले वाले यह सब देख कर कानाफूसी करने के बाद हमें क्या करना’ कह कर अनदेखी करते देते थे.

25 नवंबर की रात जब चारों ओर देव दिवाली की धूम मची हुई थी. राजीव नगर की इस गली मे घूम रहे युवक कोई साढे़ बजे के आसपास गोविंद के घर के सामने से गुजरे और सीढ़ी चढ़ कर ऊपर चले गए. सामने के मकान से देख रहे युवक ने जानबूझ कर इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया. जबकि उन का चौथा साथी गोविंद के घर जाने के बजाय कुछ दूरी पर जा कर खड़ा हो गया. रात कोई सवा बजे थकाहारा गोविंद दूध की थैली लिए घर लौटा. गोविंद सीढि़यां चढ़ कर ऊपर पहुंच गया. इस के कुछ देर बाद वे तीनों युवक उन के घर से निकल कर नीचे आ गए.

जिस पड़ोसी ने उन्हें ऊपर जाते देखा थासंयोग से उस ने तीनों को वापस उतरते भी देखा तो यह सोच कर उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई कि घर लौटने पर उन युवकों को अपने घर में मौजूद देख कर गोविंद सेन की मन:स्थिति क्या रही होगी. तीनों युवकों ने नीचे खड़ी दिव्या की एक्टिवा स्कूटी में चाबी लगाने की कोशिश कीलेकिन संभवत: वे गलत चाबी ले आए थे. इसलिए उन में से एक वापस ऊपर जा कर दूसरी चाबी ले आयाजिस के बाद वे दिव्या की एक्टिवा पर बैठ कर चले गए.

26 नवंबर की सुबह के बजे रतलाम में रोज की तरह सड़कों पर आवाजाही शुरू हो गई थी. लेकिन गोविंद सेन के घर में अभी भी सन्नाटा पसरा हुआ था. कुछ देर में उन के मकान में किराए पर रहने वाली युवती ज्वालिका अपने कमरे से बाहर निकल कर दिव्या के घर की तरफ गई. दिव्या की हमउम्र ज्वालिका एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करती थी. गोविंद की बेटी भी एक निजी कालेज से बीएससी की पढ़ाई के साथ नर्सिंग का कोर्स कर रही थी. महामारी के कारण आजकल क्लासेस बंद थींइसलिए वह अपनी बड़ी बहन की कंपनी में नौकरी करने लगी थी.

ज्वालिका और दिव्या एक ही एक्टिवा इस्तेमाल करती थीं. जब जिस को जरूरत होतीवही एक्टिवा ले जाती. लेकिन इस की चाबी हमेशा गोविंद के घर में रहती थी. सो काम पर जाने के लिए एक्टिवा की चाबी लेने के लिए ज्वालिका जैसे ही गोविंद के घर में दाखिल हुईचीखते हुए वापस बाहर आ गई. उस की चीख सुन कर दूसरे किराएदार भी बाहर आ गए. उन्हें पता चला कि गोविंद के घर के अंदर गोविंदउस की पत्नी और बेटी की लाशें पड़ी हैं. घबराए लोगों ने यह खबर नगर थाना टीआई रेवल सिंह बरडे को दे दी.

कुछ ही देर में वह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और मामले की गंभीरता को देखते हुए इस तिहरे हत्याकांड की खबर तुरंत एसपी गौरव तिवारी को दी. कुछ ही देर में एसपी गौरव तिवारी एएसपी सुनील पाटीदारएफएसएल अधिकारी अतुल मित्तल एवं एसपी के निर्देश पर माणकचौक के थानाप्रभारी अयूब खान भी मौके पर पहुंच गए. तिहरे हत्याकांड की खबर पूरे रतलाम में फैल गईजिस से मौके पर जमा भारी भीड़ जमा हो गई. मौकाएवारदात की जांच में एसपी गौरव तिवारी ने पाया कि शारदा का शव बिस्तर पर पड़ा थाजिस के सिर में गोली लगी थी.

उन की बेटी दिव्या की लाश किचन के बाहर दरवाजे पर पड़ी थी. दिव्या के हाथ में आटा लगा हुआ था और आधे मांडे हुए आटे की परात किचन में पड़ी हुई थी. इस से साफ हुआ कि पहले बिस्तर पर लेटी हुई शारदा की हत्या हुई होगी. गोली की आवाज सुन कर दिव्या बाहर आई होगी तो हत्यारों ने उसे भी गोली मार दी होगी. गोविंद की लाश दरवाजे के पास पड़ी थीइस का मतलब उस की हत्या सब से बाद में हुई थी. उन के पैरों में जूते थे और हाथ में दूध की थैली.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे हत्या करने के बाद भागना चाहते होंगेलेकिन भागते समय ही गोविंद घर लौट आएजिस से उन की भी हत्या कर दी गई होगी. पड़ोसियों ने गोविंद को बजे घर आते देखा था. उस के बाद लोगों को घर से बाहर जाते देखा. इस से यह साफ हो गया कि शारदा और दिव्या की हत्या बजे के पहले की गई होगी. जबकि गोविंद की हत्या बजे हुई होगी. पुलिस ने जांच शुरू की तो गोविंद सेन के परिवार के बारे में जो जानकरी निकल कर सामने आईउस से पुलिस को शक हुआ कि हत्याएं प्रेम प्रसंग या अवैध संबंध को ले कर की गई होंगी.

लेकिन गोविंद के एक रिश्तेदार ने इस बात को पूरी तरह गलत करार देते हुए बताया कि गोविंद ने कुछ ही समय पहले 30 लाख रुपए में गांव की अपनी जमीन बेची थी. दूसरा घटना के दिन ही शारदा और दिव्या ने डेढ़ लाख रुपए की ज्वैलरी की खरीदारी की थीजो घर में नहीं मिली. इस कारण पुलिस लूट के एंगल से भी जांच करने में जुट गई. चूंकि मौके पर संघर्ष के निशान नहीं थे और हत्यारे गोविंद की बेटी की एक्टिवा भी साथ ले गए थे. इस से यह साफ हो गया कि वे जो भी रहे होंगेपरिवार के परिचित रहे होंगे और उन्हें गाड़ी की चाबी रखने की जगह भी मालूम थी.

हत्यारों ने वारदात का दिन देव दिवाली का सोचसमझ कर चुना. इसलिए आतिशबाजी के शोर में किसी ने भी पड़ोस में चलने वाली गोलियों की आवाज पर ध्यान नहीं दिया था. मामला गंभीर था इसलिए आईजी राकेश गुप्ता ने मौके का निरीक्षण करने के बाद हत्यारों की गिरफ्तारी पर 30 हजार रुपए के ईनाम की घोषणा कर दी.

वहीं एसीपी गौरव तिवारी ने 10 थानों के टीआई और लगभग 60 पुलिसकर्मियों की एक टीम गठित कर दीजिस की कमान  थानाप्रभारी अयूब खान को सौंपी गई. इस टीम ने इलाके के पूरे सीसीटीवी कैमरे खंगालेइस के अलावा घटना के समय राजीव नगर में स्थित मोबाइल टावर के क्षेत्र में सक्रिय 70 हजार से अधिक फोन नंबरों की जांच शुरू की.

दिव्या को एक बोल्ड लड़की के रूप में जाना जाता था. उस की कई लड़कों से दोस्ती थी. कुछ दिन पहले उस ने एक अलबम मैनूं छोड़ के…’ में काम किया था. इस अलबम में भी उस की एक दुर्घटना में मौत हो जाती है. पुलिस ने उस के साथ काम करने वाले युवक अभिजीत बैरागी से भी पूछताछ की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. घटना वाले दिन से ले कर चंद रोज पहले तक दिव्या ने जिन युवकों से फोन पर बात की थीउन सभी से पुलिस ने पूछताछ की. गोविंद सेन की एक्टिवा देवनारायण नगर में लावारिस खड़ी मिली. तब पुलिस ने वहां भी चारों ओर लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज जमा कर हत्यारों का पता लगाने की कोशिश शुरू की.

जिस में दोनों जगहों के फुटेज से संदिग्ध युवकों की पहचान कर ली गईजिन्हें घटना से पहले इलाके में पैदल घूमते देखा गया था. और बाद में वही युवक दिव्या की एक्टिवा पर जाते हुए सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए. जाहिर है हर बड़ी घटना के आरोपी भले ही कितनी भी दूर क्यों न भाग जाएंवे घटना वाले शहर में पुलिस क्या कर रही है. इस बात की जानकारी जरूर रखते हैंयह बात एसपी गौरव तिवारी जानते थे. इसलिए उन्होंने जानबूझ कर जांच के दौरान मिले महत्त्वपूर्ण सुराग को मीडिया के सामने नहीं रखा था.

दरअसलजब पुलिस सीसीटीवी के माध्यम से हत्यारों के भागने के रूट का पीछा कर रही थी तभी देवनारायण नगर में आ कर दोनों संदिग्धों ने दिव्या की एक्टिवा छोड़ दी थी. वहां पहले से एक युवक स्कूटर ले कर खड़ा थाजिसे ले कर वे वहां से चले गए. जबकि स्कूटर वाला युवक पैदल ही वहां से गया था. इस से एसपी को शक था कि तीसरा युवक स्थानीय हो सकता हैजो आसपास ही रहता होगा. बात सही थीवह अनुराग परमार उर्फ बौबी थाजो विनोबा नगर में रहता था.

इंदौर से बीटेक करने के बाद भी उस के पास कोई काम नहीं था. वह इस घटना में शामिल था और पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. इसलिए जब उसे पता चला कि पुलिस को उस का कोई फुटेज नहीं मिला तो वह लापरवाही से घर से बाहर घूमने लगा. जिस के चलते नजर गड़ा कर बैठी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर पूछताछ की. उस से मिली जानकारी के दिन बाद ही पुलिस ने दाहोद (गुजरात) से लाला देवल निवासी खरेड़ी गोहदा और वहीं से रेलवे कालोनी रतलाम निवासी गोलू उर्फ गौरव को गिरफ्तार कर लिया. उन से पता चला कि पूरी घटना का मास्टरमांइड दिलीप देवले हैजो खरेड़ी गोहद का रहने वाला है.

यही नहीं पूछताछ में यह भी साफ हो गया कि जून 20 में दिलीप देवल ने ही अपने ताऊ के बेटे सुनीत उर्फ सुमीत चौहान निवासी गांधीनगररतलाम और हिम्मत सिंह देवल निवासी देवनारायण के साथ मिल कर डा. प्रेमकुंवर की हत्या की थी. जिस से पुलिस ने सुनीत और हिम्मत को भी गिरफ्तार कर लिया. इन से पता चला कि तीनों हत्याएं लूट के इरादे से की गई थीं. दिलीप के बारे में पता चला कि वह रतलाम में ही छिप कर बैठा है. पुलिस को यह भी पता चला कि वह मिडटाउन कालोनी में किराए के मकान में रह रहा है. और पुलिस तथा सीसीटीवी कैमरे से बचने के लिए पीछे की तरफ टूटी बाउंड्री से आताजाता है.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने पीछे की तरफ खाचरौद रोड पर उसे घेरने की योजना बनाईजिस के चलते दिसंबर, 2020 को वह पुलिस को दिख गया. पुलिस टीम ने उसे ललकारा तो दिलीप ने पुलिस पर गोलियां चलानी शुरू कर दींजवाबी काररवाई में पुलिस ने भी गोलियां चलाईं. कुछ ही देर में मास्टरमाइंड दिलीप मारा गया. इस प्रकार असंभव से लगने वाले तिहरे हत्याकांड के सभी आरोपियों को पुलिस ने महज दिन में सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. इस में टीम प्रभारी अयूब खान और एसआई सहित पुलिसकर्मी भी घायल हुए.

लौकडाउन में घर में सैलून चलाना महंगा पड़ा गोविंद को गोविंद सेन पिछले 22 साल से स्टेशन रोड पर सैलून चलाते थे. लौकडाउन के दौरान वह चोरीछिपे अपने घर बुला कर लोगों की कटिंग करते रहे. दिलीप भी उन से कटिंग करवाने घर जाया करता था. जहां उस ने गोविंद की अमीरी देख कर उन्हें शिकार बनाने की योजना बनाई थी. दिलीप के साथियों ने बताया कि शारदा और दिव्या की हत्या करने की योजना तो वे पहले से ही बना कर आए थे. लेकिन अंतिम समय में गोविंद भी अपनी दुकान से लौट कर आ गए थे. इसलिए उन की भी हत्या करनी पड़ी. आरोपियों ने बताया कि उस के घर से उन्हें 30 लाख रुपए मिलने की उम्मीद थी. लेकिन उन्हें केवल 20 हजार नकद और कुछ जेवर ही मिले थे.

दिलीप अपने कारनामों का कोई सबूत नहीं छोड़ना चाहता था. इसलिए लूट के दौरान सामने वाले की सीधे हत्या कर देता था. दिलीप अब तक एक ही तरीके से हत्याएं कर चुका थाइसलिए पुलिस उसे साइकोकिलर मानती थी. दिलीप के साथियों का कहना था कि पुलिस से बचने के लिए हत्या तो करनी ही पड़ेगी मर्डर इज मस्ट. Bihar Crime News

Short love Story in Hindi : प्यार का ऐसा अंजाम तो सपने में भी नहीं सोचा

Short love Story in Hindi : सोशल मीडिया पर जहां मी टू जैसे कैंपेन चल रहे हैं, वहीं एक मौडल को इस की कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी. वजह, फेसबुक फ्रैंड ने ही मौडल बनने आई कुलीग के साथ ऐसी हरकत कर डाली कि उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. मलाड (पश्चिम) में माइंडस्पेस के पास झाड़ियों के बीच ट्रैवल बैग में 20 साल की मौडल की लाश मिलने से हड़कंप मच गया. बैग के अंदर एक महिला की लाश थी जिस के सिर पर चोट थी. उस के शव को कुशन और बेडशीट से कवर किया हुआ था.

हालांकि सीसीटीवी फुटेज में एक कार दिखी है जिस के अंदर बैठे एक शख्स ने सड़क किनारे सूटकेस फेंका था. इसी के आधार पर पुलिस ने आरोपी की पहचान की और उसे उस की बिल्डिंग से पकड़ लिया गया. आरोपी की पहचान 20 साला मुजम्मिल सईद के रूप में हुई. आरोपी सेकंड ईयर का छात्र है. वह मिल्लत नगर अंधेरी (पश्चिम) में रहता था. वहीं मृतका का नाम मानसी दीक्षित है जो राजस्थान से मुंबई मौडल बनने का सपना ले कर आई थी.

पुलिस के मुताबिक, मानसी राजस्थान के कोटा शहर की रहने वाली थी, आरोपी मुजम्मिल सईद हैदराबाद का रहने वाला है. मानसी आरोपी से इंटरनेट के जरीए मिली थी. दोनों ने अंधेरी स्थित आरोपी के फ्लैट में मुलाकात की थी. दोपहर में दोनों के बीच किसी बात पर बहस हो गई, जिस के बाद मुजम्मिल सईद ने गुस्से में मानसी को किसी चीज से सिर पर मारा जिस से उस की मौत हो गई.

घटना को अंजाम देने के बाद सईद ने मानसी के शव को बैग में भरा और अंधेरी से मलाड तक एक प्राइवेट कैब बुक की. इस के बाद उस ने मलाड के माइंडस्पेस के पास झाड़ियों में बैग को फेंक दिया और वहां से फरार हो गया. पुलिस को इस घटना की जानकारी कैब ड्राइवर ने दी. कैब ड्राइवर ने सईद को झाड़ियों में बैग फेंक कर आटोरिक्शा में फरार होते देखा था. पुलिस ने तुंरत मौके पर पहुंच कर मामले की जांच शुरू की और मानसी का शव बरामद कर लिया.

मुजम्मिल ने बताया कि हादसे के दौरान मानसी उस के फ्लैट में थी. उस ने गुस्से में मानसी के सिर पर स्टूल मार दिया जिस से अनजाने में मानसी की मौत हो गई. आरोपी ने हत्या की बात कबूल कर ली है.