दोस्ती, प्यार और अपहरण

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 3

प्यारेलाल को जब पता चला कि रचना नाराज हो कर उन की बेटी के पास नवादा चली गई है तो उन्हें ज्यादा चिंता नहीं हुई. उन्होंने सोचा कि 2-4 दिन में गुस्सा शांत हो जाएगा तो वह लौट आएगी. बहन के यहां रह कर रचना अपने लिए नौकरी तलाशने लगी. थोड़ी कोशिश करने के बाद नांगलोई में एक होम्योपैथी फार्मेसी में उस की नौकरी भी लग गई.

रचना स्वच्छंद विचारों की थी, इसलिए नवादा में अपनी बहन से भी उस की नहीं बनी तो बहन का मकान छोड़ कर वह द्वारका सेक्टर-7 में किराए पर रहने लगी. अब द्वारका में उस से कोई कुछ कहनेसुनने वाला नहीं था. उस का जहां मन करता, घूमतीफिरती थी. फेसबुक और अन्य सोशल साइटों के जरिए नएनए दोस्त बनाना उसे अच्छा लगता था. सोशल साइट के जरिए उस की दोस्ती नाइजीरियन युवक चिनवेंदु अन्यानवु से हुई.

चिनवेंदु जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी से आईटी की पढ़ाई कर रहा था. धीरेधीरे उन की दोस्ती बढ़ती गई तो वह रचना से मिलने दिल्ली आने लगा. इस का नतीजा यह हुआ कि उन के बीच प्यार हो गया. यह प्यार शारीरिक संबंधों तक भी पहुंच गया. इस के बाद तो रचना उस की ऐसी दीवानी हुई कि अपनी नौकरी छोड़ कर उस के साथ जयपुर में लिव इन रिलेशन में रहने लगी. वह जयपुर में करीब एक साल रही.

चिनवेंदु का एक दोस्त था जेम्स विलियम. वह भी नाइजीरिया का ही रहने वाला था. वह ग्रेटर नोएडा के किसी इंस्टीट्यूट से पढ़ाई कर रहा था. जेम्स अकसर चिनवेंदु से मिलने जयपुर जाता रहता था, इसलिए वह रचना को भी जान गया था.

जयपुर से पढ़ाई पूरी करने के बाद चिनवेंदु रचना को ले कर ग्रेटर नोएडा पहुंच गया. वे दोनों जानते थे कि रचना सोशल साइट पर लोगों से दोस्ती करने में माहिर है. इसलिए दोनों युवकों ने लोगों से पैसे ऐंठने का नया आइडिया रचना को बताया तो रचना ने तुरंत हामी भर दी. फिर योजना बना कर किसी पैसे वाली पार्टी को फांसने का फैसला किया गया.

रचना ने सोशल साइट टैग्ड डौटकाम के जरिए नोएडा के मनीष नाम के युवक से दोस्ती की. मनीष को अपने जाल में पूरी तरह फांसने के बाद रचना ने उसे अपने कमरे पर बुलाया. बातचीत के बाद रचना और मनीष जब आपत्तिजनक स्थिति में पहुंच गए तो चिनवेंदु ने किसी तरह उन के फोटो खींच लिए. फिर क्या था, उन फोटोग्राफ के जरिए वह मनीष को ब्लैकमेल करने लगा. मगर मनीष ने पैसे देने के बजाय पुलिस को सूचना देने की धमकी दी.

इस से वे लोग डर गए और उन्होंने उसे कमरे से भगा दिया. पहला वार खाली जाने के बाद उन्होंने अब नया शिकार तलाशना शुरू किया. फिर रचना ने अगला शिकार गुड़गांव के रहने वाले जोगिंद्र को बनाया. जोगिंद्र से दोस्ती गांठने के बाद रचना ने उसे भी अपने कमरे पर बुलाया. उन्होंने जोगिंद्र को भी ब्लैकमेल करने की कोशिश की. लेकिन जोगिंद्र भी रचना और उस के साथियों की धमकी में नहीं आया. लिहाजा उन्होंने जोगिंद्र को भी कमरे से भगा दिया.

इस के बाद रचना और उस के साथियों ने दिल्ली के चित्तरंजन पार्क में एक कमरा किराए पर लिया. रचना और उस के साथियों के 2 वार खाली जा चुके थे. अब वे मोटे आसामी की फिराक में थे. टैग्ड डौटकाम के जरिए अब रचना नया मुर्गा फांसने में जुट गई. रचना ने अरुण वाही से दोस्ती कर ली. अरुण वाही लुधियाना के सुंदरनगर के रहने वाले थे. वह चार्टर्ड एकाउंटेंट थे. 46 साल के अरुण वाही भी रचना के जाल में फंस गए. दोनों ने एकदूसरे को नेट के जरिए अपने फोटो भी भेज दिए.

अरुण वाही उस पर एक तरह से मोहित हो गए थे. सोशल साइट के जरिए वह एकदूसरे से बात करते रहते थे. रचना ने अरुण वाही को दिल्ली मिलने के लिए बुलाया. 18 दिसंबर की रात को अरुण वाही की रचना से फोन पर 3 बार बात भी हुई थी. वह रचना से मिलने के लिए बेचैन थे, इसलिए 18 दिसंबर को सुबह 4 बजे लुधियाना से ट्रेन द्वारा दिल्ली के लिए निकल पड़े.

अरुण वाही को लेने रचना दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई थी. वह स्टेशन से उन्हें कमरे पर ले गई. वाही ने सोचा कि वह उस से एकांत में मन की बात करेंगे, इसलिए किराए की कार से रचना के साथ चित्तरंजन पार्क स्थित उस के कमरे पर पहुंचे. वहां भी चिनवेंदु ने रचना के साथ आपत्तिजनक हरकतें करते हुए वाही के फोटो खींच लिए. फिर उन का मोबाइल जब्त करने के बाद उन से 4 लाख रुपए की मांग की.

अरुण वाही एक इज्जतदार परिवार से थे, इसलिए उन्होंने मामले को दबाने के लिए पैसे देने की हामी भी भर ली. फिर पैसे हासिल करने के लिए वाही ने लुधियाना में रहने वाले अपने दोस्त राजेंदर सिंह का नंबर उन लोगों को बता दिया. चिनवेंदु भारत में रह कर हिंदी सीख गया था. उस ने ही वाही के फोन से राजेंदर सिंह से बात कर के अरुण वाही के बदले 4 लाख रुपए देने की मांग की. बाद में उन्होंने जब राजेंदर सिंह को बैंक एकाउंट नंबर भेजा तो वाही के बजाए अपना फोन नंबर प्रयोग किया. उसी के जरिए वे लोग पुलिस के चंगुल में फंस गए.

पुलिस ने 20 दिसंबर, 2013 को अभियुक्त रचना नायक राजपूत, चिनवेंदु अन्यानवु और जेम्स विलियम को गिरफ्तार कर तीसहजारी कोर्ट में ड्यूटी मजिस्ट्रेट के यहां पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उन के पास से विभिन्न कंपनियों के 46 सिमकार्ड, 2 लैपटौप, 5 मोबाइल फोन, एक कैमरा, 3 लाख 98 हजार 5 सौ रुपए नकद बरामद किए. उन से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. मामले की विवेचना एसआई घनश्याम किशोर कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित. राजेंदर सिंह और मनीष परिवर्तित नाम हैं.

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 2

सोनिया वाही को पति की चिंता खाए जा रही थी. जब उन्हें पता चला कि बैंक में पैसे डलवाने के लिए अपहर्त्ताओं ने बैंक एकाउंट नंबर दे दिए हैं तो वह राजेंदर सिंह पर दबाव बनाने लगीं कि जल्द से जल्द एकाउंट में पैसे जमा करा दें, ताकि पति जल्द घर आ जाएं.

राजेंदर सिंह दिल्ली पुलिस को बताए बिना उन के एकाउंट में पैसे जमा कराने के पक्ष में नहीं थे, इसलिए उन्होंने थानाप्रभारी राजकुमार से बात की. उन्होंने पुलिस को यह भी बता दिया कि अपहर्त्ता ने इस बार फोन अरुण वाही के नंबर से नहीं, बल्कि नए नंबर 8860103333 से किया था, इसी नंबर से मैसेज भी भेजा था.

पुलिस ने अपहर्त्ता के इस फोन नंबर को इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगा दिया. पुलिस नहीं चाहती थी कि अपहर्त्ता अरुण वाही को कोई क्षति पहुंचाएं, इसलिए उन्होंने राजेंदर सिंह से कह दिया कि वह अपहर्त्ताओं द्वारा भेजे गए दोनों बैंक खातों में 2-2 लाख रुपए जमा करा दें. पुलिस के कहने पर राजेंदर सिंह ने आईसीआईसीआई के दोनों खातों में 2-2 लाख रुपए जमा करा दिए.

पुलिस ने अपहर्त्ताओं द्वारा दिए गए खातों की जांच की तो पहला खाता इंफाल के रहने वाले किसी थांगन राकी नाम के व्यक्ति का और दूसरा इंफाल के ही लाइस रान थांबा का था. दिल्ली पुलिस ने इंफाल की पुलिस से जब इन के पते की जांच कराई तो पता चला कि इस पते पर इन नामों के लोग नहीं हैं. इस से यह पता चला कि दोनों बैंक खाते फरजी आईडी से खुलवाए गए थे.

अपहर्त्ताओं के जिस फोन को पुलिस ने सर्विलांस पर लगाया था, उस की लोकेशन भी दिल्ली के चित्तरंजन पार्क स्थित मंदाकिनी इनक्लेव की आ रही थी. इस के अलावा पुलिस ने इस नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवाई. काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पुलिस को एक फोन नंबर ऐसा मिला, जिस पर ज्यादा बात होती थी. वह नंबर था 8130973333. उधर पुलिस ने अरुण वाही के फोन की जो काल डिटेल्स निकलवाई थी, उस में इसी नंबर से 18 दिसंबर की रात को ढाई बजे, साढ़े 3 बजे और पौने 4 बजे बात हुई थी.

8130973333 नंबर अब पुलिस के शक के दायरे में आ गया था. पुलिस ने इस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में एक नंबर और मिला, जिस पर लगातार कई बार बातें हुई थीं. वह नंबर गुड़गांव के जोगिंद्र नाम के व्यक्ति का था. एक पुलिस टीम गुड़गांव रवाना कर दी गई. जोगिंद्र पुलिस टीम को मिल गया.

पुलिस ने जब उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि यह नंबर रचना नाम की एक लड़की का है. वह लड़की बड़ी शातिर है. वह सोशल साइट के जरिए पहले लोगों से दोस्ती करती है, उस के बाद उन्हें ब्लैकमेल कर पैसे ऐंठने की कोशिश करती है. जोगिंद्र ने बताया कि वह भी रचना का शिकार बन चुका है. उस ने पुलिस को रचना का फोटो भी उपलब्ध करा दिया.

जोगिंद्र से बात करने के बाद पुलिस के सामने पूरी कहानी साफ हो गई. पुलिस ने रचना का मोबाइल फोन मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. जांच के बाद पता चला कि उस ने फोन का सिम भी फरजी आईडी से लिया था. अब पुलिस के पास उस तक पहुंचने का जरिया केवल फोटो ही था.

2 दिन बीत गए थे, अरुण वाही के घर वालों को उन के बारे में कुछ पता नहीं लग रहा था. सोनिया वाही इस बात को सोचसोच कर परेशान थीं कि पता नहीं वह किस हाल में होंगे. इस मामले में लगी पुलिस भी उन के पास जल्द से जल्द पहुंचने का जरिया ढूंढ़ रही थी.

पुलिस को ध्यान आया कि अपहर्त्ताओं ने जब राजेंदर सिंह को फोन किए थे तो उन की लोकेशन चित्तरंजन पार्क में मंदाकिनी इनक्लेव की आ रही थी. पुलिस टीम रचना का फोटो ले कर दिल्ली के चित्तरंजन पार्क इलाके में पहुंच गई. मंदाकिनी इनक्लेव में पहुंच कर पुलिस ने कोठियों के बाहर तैनात सुरक्षा गार्डों को रचना का फोटो दिखा कर उन से पूछताछ की.

काफी मशक्कत के बाद एक सुरक्षा गार्ड ने लड़की का फोटो पहचान लिया. उस ने यह भी बता दिया कि यह लड़की 52/76 नंबर के मकान में रहती है. पुलिस जब वहां पहुंची तो उस मकान की तीसरी मंजिल पर रचना नाम की वही लड़की मिल गई, जिस का फोटो उन के पास था. उस के साथ 2 नाइजीरियन युवक भी थे.

उसी कमरे के एक कोने में अरुण वाही भी बैठे मिले. पुलिस के पास अरुण वाही का भी फोटो था, जो उन के बेटे निखिल ने दिया था. पुलिस ने सब से पहले अरुण वाही को अपने कब्जे में लिया. इस के बाद रचना सहित दोनों नाइजीरियन युवकों को हिरासत में ले लिया.

अरुण वाही को सकुशल बरामद कर के पुलिस खुश थी, क्योंकि पुलिस का पहला मकसद उन्हें सकुशल बरामद करना था. पुलिस तीनों को पूछताछ के लिए थाना जनकपुरी ले आई. रचना से जब पूछताछ की गई तो उस ने सारा सच उगल दिया. फिर उस ने सोशल साइट के जरिए लोगों को फांसने से ले कर उन्हें ब्लैकमेल करने तक की जो कहानी बताई, वह बड़ी दिलचस्प निकली.

रचना का पूरा नाम रचना नायक राजपूत था. वह मूलरूप से हरियाणा के शहर फरीदाबाद के रहने वाले प्यारेलाल की बेटी थी. प्यारेलाल की 7 बेटियां थीं, जिन में से रचना चौथे नंबर की थी. प्यारेलाल प्रौपर्टी डीलर थे. उसी से होने वाली आमदनी से वह घर का खर्च चलाते थे. अन्य बेटियों की तरह वह रचना को भी पढ़ाना चाहते थे, लेकिन रचना ने नौवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी.

वह अति महत्त्वाकांक्षी थी. कुछ दिन घर बैठने के बाद उस ने फरीदाबाद के ही एक प्रौपर्टी डीलर के यहां रिसैप्शनिस्ट की नौकरी कर ली. यह नौकरी रचना ने अपने शौक पूरे करने के लिए की थी. लेकिन प्यारेलाल को यह बात अच्छी नहीं लगी. उन्होंने उसे डांटा और उस की नौकरी छुड़वा दी. रचना को अपने पिता का यह तुगलकी फरमान अच्छा नहीं लगा. उन के दबाव में उस ने नौकरी तो छोड़ दी, लेकिन घर वालों से नाराज हो कर वह पश्चिमी दिल्ली के नवादा क्षेत्र में रहने वाली अपनी बहन के घर चली गई. यह करीब 5 साल पहले की बात है.

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 1

पंजाब के शहर लुधियाना के रहने वाले अरुण वाही पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट थे. उन का काम ही ऐसा था कि उन्हें औडिट करने के लिए विभिन्न कंपनियों, फर्मों में जाना पड़ता था. कभीकभी तो उन्हें औडिट के लिए लुधियाना से बाहर भी जाना पड़ता था.

18 दिसंबर, 2013 को भी वह लुधियाना से सुबह 4 बजे की ट्रेन पकड़ कर दिल्ली की किसी कंपनी का औडिट करने के लिए निकले. घर से निकलते समय उन्होंने पत्नी सोनिया वाही को बता दिया था कि वह दिल्ली से 1-2 दिन में लौटेंगे.

जिस दिन अरुण वाही दिल्ली के लिए निकले थे, उसी दिन दोपहर करीब 12 बजे लुधियाना में रहने वाले उन के एक दोस्त राजेंदर सिंह के पास फोन आया. राजेंदर सिंह पंजाब नेशनल बैंक में नौकरी करते थे. चूंकि फोन अरुण के नंबर से आया था, इसलिए उन्होंने काल रिसीव करते ही कहा, ‘‘पहुंच गए दिल्ली?’’

‘‘हां, यह दिल्ली पहुंच गए और अब हमारे कब्जे में हैं.’’ दूसरी तरफ से आई इस आवाज को सुन कर राजेंदर सिंह चौंके, क्योंकि वह आवाज अरुण की नहीं, किसी और की थी. राजेंदर सिंह ने उन से पूछा, ‘‘आप कौन हैं और कहां से बोल रहे हैं?’’

‘‘हम आबिद एंटरप्राइजेज, जनकपुरी दिल्ली से बोल रहे हैं. हम ने अरुण वाही को अपने पास ही रोक रखा है. अगर इन्हें छुड़ाना हो तो हमारे खाते में 4 लाख रुपए जमा करा दें, अन्यथा…’’

‘‘नहीं, आप अरुण को कुछ नहीं कहना. आप ने जितने पैसे मांगे हैं, मिल जाएंगे. लेकिन इस से पहले आप हमारी अरुण से बात तो करा दीजिए.’’ राजेंदर सिंह ने कहा.

‘‘हां, कर लीजिए उन से बात.’’ कहते हुए अपहर्त्ता ने फोन अरुण वाही को दे दिया. कुछ बातें कर के राजेंदर सिंह को जब यकीन हो गया कि जिन से वह बात कर रहे हैं, वह अरुण वाही ही हैं तो उन्होंने कहा, ‘‘देखो अरुण, मैं तुम से शौर्ट में बात करूंगा. अगर तुम्हें वहां कोई परेशानी न हो तो तुम न कहना और परेशानी हो तो हां में जवाब देना.’’

तब अरुण ने हां में जवाब दिया. इतना सुन कर वह समझ गए कि उन का दोस्त इस समय गहरे संकट में है. मामला गंभीर था, इसलिए राजेंदर सिंह ने अरुण वाही की पत्नी सोनिया वाही को फोन कर के पूरी बात बता दी.

पति के किडनैप हो जाने की खबर सुन कर सोनिया भी हैरान रह गईं कि पता नहीं किस ने यह किया होगा. वह राजेंदर सिंह से ही पूछने लगीं कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए? अरुण वाही का एक बेटा निखिल वाही भी चार्टर्ड एकाउंटेंट है. वह दिल्ली में ही था. सोनिया ने पति के किडनैपिंग की बात बेटे को बताई. निखिल उस समय नई दिल्ली एरिया में गोल डाकघर के पास स्थित एक कंपनी का औडिट कर रहा था. पिता के अपहरण की बात सुन कर वह घबरा गया.

चूंकि अपहरण की पहली काल पिता के दोस्त राजेंदर के मोबाइल पर आई थी, इसलिए उस ने सब से पहले उन्हीं से बात की. बातचीत में उसे जब पता चला कि अपहर्त्ताओं ने उस के पिता को दिल्ली में ही बंधक बना कर रखा है तो उस ने तुरंत दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन किया.

गोल डाकखाना क्षेत्र नई दिल्ली जिले में आता है, इसलिए अपहरण कर फिरौती मांगने की खबर पर नई दिल्ली जिला के थाना कनाट प्लेस की पुलिस हरकत में आ गई. पुलिस तुरंत निखिल के पास पहुंची तो निखिल को राजेंदर सिंह और अपनी मां से जो जानकारी मिली थी, दिल्ली पुलिस को बता दी.

पुलिस को निखिल से यह पता लगा कि उस के पिता को जनकपुरी स्थित आबिद एंटरप्राइजेज में बंधक बना कर रखा गया है. कनाट प्लेस के थानाप्रभारी ने जनकपुरी के थानाप्रभारी राजकुमार से फोन पर बात की और निखिल वाही को थाना जनकपुरी भेज दिया. वहां पर निखिल वाही की तरफ से अज्ञात लोगों के खिलाफ अपहरण कर फिरौती मांगने का मामला दर्ज कर लिया गया.

अपहरण का मामला बेहद संवेदनशील होता है. इस में पुलिस पर इस बात का दबाव रहता है कि किसी भी तरह अपहृत व्यक्ति को सहीसलामत बरामद किया जाए. थानाप्रभारी ने सीए के अपहरण की बात उपायुक्त रणवीर सिंह को बताई तो उन्होंने थानाप्रभारी राजकुमार के नेतृत्व में एक पुलिस पार्टी का गठन कर दिया, जिस में एसआई घनश्याम किशोर, हेडकांस्टेबल बिजेंद्र सिंह, ओमबीर सिंह आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम को बताया गया था कि अरुण वाही को जनकपुरी के आबिद एंटरप्राइजेज नाम की फर्म में बंधक बना कर रखा गया है, इसलिए पुलिस टीम इस नाम की फर्म को खोजने में लग गई. जनकपुरी कोई छोटामोटा इलाका नहीं है. पुलिस की जो एक टीम बनी थी, उस के लिए यह काम आसान नहीं था. फर्म का जल्द पता लगाने के लिए डीसीपी ने 6 टीमें और बनाईं और सभी को इस मामले में लगा दिया.

सभी पुलिस टीमें अलगअलग तरीकों से आबिद एंटरप्राइजेज नाम की फर्म को ढूंढ़ने लगीं, लेकिन इस नाम की फर्म कहीं नहीं मिली. अब पुलिस के पास अपहर्त्ताओं तक जाने के लिए कोई रास्ता भी नहीं था. उन्होंने राजेंदर सिंह के पास फिरौती का जो फोन किया था, वह अरुण वाही के फोन से किया गया और उस की लोकेशन दिल्ली के चित्तरंजन पार्क की आ रही थी. एक पुलिस टीम चित्तरंजन पार्क भेजी गई.

इसी बीच राजेंदर सिंह के मोबाइल पर अपहर्त्ताओं ने फोन कर के फिरौती की रकम 4 लाख से बढ़ा कर 6 लाख कर दी. दरअसल इस से पहले फोन करने पर राजेंदर सिंह ने 4 लाख रुपए देने में कोई आनाकानी नहीं की थी. अपहर्त्ताओं को लगा कि पार्टी मोटी है, इसलिए उन्होंने फिरौती की रकम बढ़ा दी.

इस पर राजेंदर सिंह ने कहा, ‘‘अभी हमारे पास 6 लाख रुपए नहीं हैं. हम 4 लाख रुपए भी इधरउधर से जुगाड़ कर के दे सकते हैं. अब आप यह बता दीजिए कि पैसे कहां पहुंचाने हैं?’’

‘‘आप को आने की जरूरत नहीं है. हम आप को बैंक का एकाउंट नंबर मैसेज कर देंगे, उसी में आप पैसे जमा करा देना. एकाउंट में पैसे जमा होते ही हम वाही को छोड़ देंगे.’’ कहने के बाद अपहर्त्ता ने आईसीआईसीआई बैंक के 2 एकाउंट नंबर राजेंदर सिंह के फोन पर मैसेज कर दिए. ये नंबर थे 246301500161 और 264301500653. राजेंदर सिंह को यह जानकारी मिल चुकी थी कि निखिल ने दिल्ली के थाना जनकपुरी में रिपोर्ट दर्ज करा दी है और दिल्ली पुलिस इस मामले में तेजी से काररवाई कर रही है. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद थानाप्रभारी राजकुमार राजेंदर सिंह से बात भी कर चुके थे.

अंधविश्वासी वकील की बलि

प्रयागराज में गंगा नदी के किनारे साधु आशीष दीक्षित अपने शिष्य नीतीश सैनी के साथ धीमे कदमों से चला जा रहा था. सर्दी की सुबह थी. धूप निकल चुकी थी,

फिर भी दोनों गेरूआ चादर ओढ़े सर्दी से बचते हुए बढ़ रहे थे. ऐसा लग रहा था मानो उन्हें कोई जल्दबाजी नहीं थी.

आशीष के हाथ में स्मार्टफोन था. उस पर एक वीडियो चल रही थी, जिसे दोनों गौर से देख रहे थे. अचानक शिष्य बोल पड़ा, ‘‘गुरुजी, जब बर्बरीक इतना ताकतवर था तब उस ने महाभारत के युद्ध में हिस्सा क्यों नहीं लिया?’’

‘‘क्योंकि श्रीकृष्ण जानते थे कि वह शिव का अवतार है और उसे दिव्य शक्ति प्राप्त है. उस के एक बाण से युद्ध का अंत हो सकता है.’’ गुरु आशीष ने बताया.

‘‘तब तो और अच्छी बात थी. भीम का पोता था, पांडव की तरफ से ही युद्ध लड़ता. और उस की जीत तुरंत हो जाती,’’ शिष्य नीतीश बोला.

‘‘ऐसा नहीं होता. उस की मां ने उस से वचन लिया था कि वह युद्ध में हमेशा कमजोर का साथ देगा. और उस वक्त कौरवों की सेना हार रही थी. इस कारण कृष्ण को पता था कि वह पांडवों की तरफ से युद्ध नहीं लड़ेगा.’’ गुरु ने समझाया.

‘‘फिर क्या हुआ गुरुजी?’’ नीतीश ने जिज्ञासावश पूछा.

‘‘वीडियो में देखो, सब पता चल जाएगा.’’

‘‘जी, गुरुजी.’’

उस के बाद दोनों ध्यान से वीडियो में महाभारत के बर्बरीक की कहानी देखने लगे. तब तक श्रीकृष्ण और बर्बरीक के बीच संवाद शुरू हो चुका था. वीडियो के खत्म होने के बाद आशीष ने कहा, ‘‘मुझे भी बर्बरीक की तरह दोबारा जिंदा होने की सिद्धि मिल चुकी है.’’

‘‘सच में गुरुजी?’’ नीतीश आश्चर्य से बोल पड़ा.

‘‘सच नहीं तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूं. मैं यहां हरिद्वार में घरबार, ऐशोआराम छोड़ कर ऐसे ही बैठा हुआ हूं. मैं ने काफी तपस्या की है. दैवीय शक्ति हासिल करने के लिए तंत्रमंत्र की कठिन साधना की है, अनुष्ठान किए हैं.’’ गुरु आशीष ने बताया.

‘‘तब तो आप भी दोबारा जिंदा हो सकते हैं?’’ शिष्य नीतीश बोला.

‘‘हां, क्यों नहीं!’’

‘‘अच्छा..?’’ नीतीश का मुंह खुला का खुला रह गया.

यह बात 8 दिसंबर, 2022 की थी. आशीष ने शिष्य नीतीश को एक योजना समझाते हुए कहा कि उसे ऐसी सिद्धि प्राप्त हो चुकी है, जिस से वह उस के जीवन के सारे कष्टों को दूर कर देगा. उसे केवल उस के इशारे पर वह सब करना होगा, जो वह बताएगा.

नीतीश ने गुरु आशीष की बातें मान लीं और अपने गुरु के कहे अनुसार कार्य करने को तैयार हो गया.

गुरु आशीष द्वारा बनाए गए कार्यक्रम के मुताबिक दोनों उसी रोज 8 दिसंबर, 2022 को प्रयागराज से विंध्यवासिनी मां के दर्शन करने के लिए निकल पड़े. वहां से लौटते समय उन के सारे पैसे खत्म हो गए थे. अगले रोज वे 9 दिसंबर को पैदल ही प्रयागराज के लिए चल दिए.

जब वे करछना थानांतर्गत मर्दापुर गांव पहुंचे, तब आशीष ने नीतीश को बताया कि मां विंध्यवासिनी देवी की कृपा से देवी शक्ति प्राप्त हो गई है. उसे भीतर से शक्ति का एहसास भी होने लगा है. इसी के साथ उस ने एक बार फिर महाभारत के बर्बरीक की चर्चा छेड़ दी.

कहने लगा, ‘‘अब मैं अपनी ही बलि दे सकता हूं और मुझे देवी दोबारा जिंदा कर देंगी. उस के बाद मैं किसी के भी दुखतकलीफ और दूसरी समस्याओं को दूर कर सकता हूं. तुम्हारी आर्थिक समस्या भी मैं दूर का दूंगा.’’

‘‘मुझे क्या करना होगा गुरुदेव?’’ नीतीश पूछा.

‘‘तुम्हें ठीक वैसे ही करना होगा, जैसा मैं बताऊंगा. वह भी आज ही रात में हो जाना चाहिए.’’ यह कहते हुए आशीष ने नीतीश को तांत्रिक पूजा और बलि के अनुष्ठान का एक वीडियो दिखाया.

उसी रात को नीतीश ने अपने गुरु के बताए तरीके के मुताबिक ठीक वैसा ही किया, जैसा उस ने वीडियो में देखा और समझाया था. तंत्रमंत्र की साधना संपन्न हुई और यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद नीतीश निश्चिंत भाव से अपने घर हरिद्वार लौट आया. इस से पहले उस ने पूजन सामग्री प्रयागराज गंगा में ही प्रवाहित कर दी थी.

आशीष के वादे के मुताबिक उसे अपने चेले नीतीश से प्रयागराज स्टेशन पर ही मिलना था. नीतीश के दिमाग में उथलपुथल मची हुई थी. तांत्रिक अनुष्ठान के बाद से ही मन में भय भी समाया हुआ था. देवी शक्ति के प्रभाव और चमत्कार के साथसाथ हत्या जैसे भय से वह परेशान हो गया था. हालांकि वह दोनों ही स्थितियों में अपने मन को समझाने की कोशिश कर रहा था.

यदि चमत्कार हुआ, तब गुरु के कहे मुताबिक उस के सारे दुखों का अंत हो जाना था और दैवीय चमत्कार नहीं हुआ तब भी उस का कोई अधिक नुकसान होने की बात नहीं थी. उस ने प्रयागराज जंक्शन पर अपने गुरु आशीष दीक्षित का 2 घंटे तक इंतजार किया, जब वह नहीं आया तब उस ने हरिद्वार की गाड़ी पकड़ ली.

यशपाल सैनी का पुत्र नीतीश सैनी हरिद्वार जनपद में लश्कर गांव का रहने वाला एक 22 वर्षीय युवक है. वह एक फाइनैंस कंपनी में काम करता था. जौब प्राइवेट थी, इस कारण वह अच्छी सरकारी नौकरी की तलाश में था. वह पैसा कमाना चाहता था, जो उसे इस प्राइवेट नौकरी में नहीं मिल पा रहा था.

उसे लगता था कि उस की जिंदगी में दैवीय शक्ति से आज नहीं तो कल जरूर चमत्कार होगा और तब उस की जिंदगी में बहार आ जाएगी. इसी चक्कर में एक दिन उस ने अपनी वह प्राइवेट नौकरी भी छोड़ दी.

नीतीश बन गया चेला

एक दिन यूं ही वह हरिद्वार में गंगा किनारे सीढि़यों पर उदास बैठा था. उस की मुलाकात आशीष दीक्षित से हो गई. वह साधु की वेशभूषा में था, लेकिन जब उस से बातों का सिलसिला शुरू हुआ तब उस ने पाया कि वह कोई साधारण साधु नहीं है.

साधु ने अपना नाम आशीष दीक्षित बताया और खुद को एक तपस्वी और तंत्रमंत्र साधक बताया. इसी के साथ उस ने कहा कि उसे उस जैसे ही एक नवयुवक की तलाश है, जो चेला बन कर उस के कामकाज और पूजापाठ के अनुष्ठानों में सहयोग कर सके. यदि वह इच्छुक हो तो उस के साथ रह सकता है.

नीतीश को साधु आशीष की बात पसंद आई और वह उस के साथ रहने को तैयार हो गया. किंतु उस ने अपनी मजबूरी बताई कि उस के पास पैसे नहीं हैं. वह बेरोजगार है. इस समस्या का समाधान भी आशीष ने ही निकाला और उस का सारा खर्च उठाने को तैयार हो गया.

यही नहीं, आशीष ने उसे अपना शिष्य बना लिया और उसे भरोसा दिया कि उस के तंत्रमंत्र से सारे कष्ट अवश्य दूर हो जाएंगे. घर की आर्थिक परिस्थितियों में भी सुधार हो जाएगा.

दोनों ने हरिद्वार में ही एक कमरा किराए पर ले लिया था. बहुत पूछने पर भी आशीष अपनी पिछली जिंदगी के बारे में उसे कुछ नहीं बताता था.

नीतीश 10 दिसंबर, 2022 को अपने घर हरिद्वार आ तो गया था, लेकिन वह भीतर से डरा था. वह एक अपराधबोध के द्वंद से भी जूझ रहा था. मन जब विचलित होने लगा, तब वह हरिद्वार से चल कर वाराणसी जा पहुंचा.

वहां भी ज्यादा समय तक नहीं रह पाया. उसी रोज कानपुर की राह पकड़ ली और फिर लखनऊ, आगरा होते हुए प्रयागराज में आ कर ठहर गया. इस का एक कारण यह भी था कि उस के गुरु आशीष ने उसे वहीं उस का इंतजार करने को कहा था.

आशीष तो नहीं आया, लेकिन हां उसे मोबाइल ट्रैकिंग के जरिए तलाशती हुई प्रयागराज पुलिस जरूर आ गई. प्रयागराज के  करछना थाने की पुलिस ने बगैर कुछ कहेसुने उसे दबोच लिया और उसे थाने ले आई.

इस तरह से पकड़े जाने पर नीतीश हक्काबक्का था, किंतु जब पता चला कि उस पर आशीष की हत्या का आरोप लगाया गया है तो वह बहुत डर गया.

दरअसल, नैनी के नंदन तालाब निवासी आशीष दीक्षित की सिरकटी लाश 10 दिसंबर को प्रयागराज-मिर्जापुर हाईवे पर मर्दापुर गांव के पास पाई गई थी. लाश तालाब के किनारे झाडि़यों में पड़ी थी.

रक्तरंजित लाश पहले दोपहर के समय उन लोगों ने देखी थी, जो मृत्युशैय्या बनाने के लिए बांस काटने के लिए लीलैंड सर्विस सेंटर के बगल में स्थित मर्दारपुर गांव के बंसवार में गए थे. उन्होंने जब लाश के करीब जा कर देखा तब भी वह उसे पहचान नहीं पाए थे. उस की गरदन कटी हुई थी और धड़ अलग पड़ा था. उन लोगों ने ही पुलिस कंट्रोलरूम के 112 नंबर पर काल कर जंगल में अज्ञात लाश होने की सूचना दी थी.

सूचना मिलते ही कुछ देर में 112 नंबर वैन में सवार सबइंसपेक्टर और सिपाही घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने इस सूचना को संबंधित थाना करछना को दे दी थी.

सूचना पा कर थाने से तुरंत इंसपेक्टर विश्वजीत सिंह दलबल के साथ पहुंच गए थे. करछना थानांतर्गत बंसवार में लाश मिलने की सूचना पूरे इलाके में फैल गई. देखते ही देखते तमाशबीनों की भीड़ जमा हो गई.

मृतक की शिनाख्त करने में पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ी. उस के कपड़ों की तलाशी ली तो उस की जेब से पर्स और आधार कार्ड मिल गया. उस से मृतक के निवास की जानकारी मिल गई.

इस सूचना को पा कर डीसीपी (यमुनापार) सौरभ दीक्षित के साथ दूसरे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए. मौके पर फोरैंसिक और डौग स्क्वायड की टीम भी आ गई.

घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया गया, जहां लाश के पास शराब की खाली बोतल, मुरझाए फूल, माला, लौंग, सुपारी, काली पीली सरसों के दाने मिले. इन चीजों को देख कर जांच में जुटे पुलिस अधिकारियों को समझते देर नहीं लगी कि मामला तंत्रमंत्र साधना और बलि देने का हो सकता है.

लाश की शिनाख्त के लिए वहां से बरामद आधार कार्ड से कई जानकारी मिल गईं. मृतक का नाम आशीष दीक्षित और उस का निवास स्थान प्रयागराज था.

पार्टी बनाने पर डूब गया कर्जे में

डीसीपी सौरभ दीक्षित ने इस केस को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर विश्वजीत सिंह, एसआई दिवाकर सिंह, अखिलेश कुमार राय, कांस्टेबल गब्बर, विजय बहादुर चौहान आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने मृतक के पते पर जा कर उस के बारे में पता किया. वहां उन्हें मृतक के बारे में कई जानकारी मिलीं. पता चला कि आशीष दीक्षित कई साल पहले ही घरबार छोड़ चुका था.

आशीष के परिवार में उस के पिता संतोष दीक्षित, पत्नी सुमन देवी और भाई रवि दीक्षित मिले. उन से पूछताछ में पुलिस को कई अहम जानकारी मिली.

उन लोगों से पूछताछ से पता चला कि आशीष दीक्षित एक अतिमहत्त्वाकांक्षी इंसान था, लेकिन अंधविश्वास से भी भरा हुआ था. पेशे से वकील था. जीवन में सफलता की सीढि़यां चढ़ने के लिए स्थानीय राजनीतिक गतिविधियों में भी शामिल था. उस ने जनाधार शक्ति नामक पार्टी का गठन भी किया था.

इस राजनीतिक पार्टी के विस्तार के लिए उस ने लोगों से चंदा लेना शुरू कर दिया था. पहले तो उस ने पार्टी को चलाने के लिए कुछ लोगों से कर्ज लिया, जो करीब 40 लाख रुपए तक हो गया था.

कर्ज देने वालों में मुकेश पाल नाम का व्यक्ति भी था. करीब 6 महीने में ही कर्ज देने वाले कर्ज का पैसा वापस मांगने लगे. इस संबंध में लोगों का जब दबाव बढ़ गया, तब वह काफी परेशान हो गया. और फिर मई 2022 में अपने घर से गायब हो गया.

एक तरह से वह प्रयागराज से फरार हो कर हरिद्वार चला गया था. वहां वह हरि की पौड़ी में साधु के वेश में रहने लगा. वहां रहते हुए वह लोगों की समस्याओं का समाधान बताने लगा. यही उस की आमदनी का जरिया बन गया. उसी दौरान उस ने तंत्रमंत्र की कुछ जानकारी ले ली.

उन्हीं दिनों उस की मुलाकात नीतीश सैनी से हो गई थी और उसे भी उस ने अपने अंधविश्वास की चपेट में ले लिया था. नीतीश उसी का चेला बन कर उस के साथ ही रहने लगा था. साथ ही आशीष खुद अंधविश्वास और पुनर्जन्म की चपेट में आ गया था. खुद को दैवीय शक्ति के प्रभाव का खास व्यक्ति समझ बैठा था.

खुद कटवा ली अपनी गरदन

वह बारबार नीतीश को कहता था कि उस पर देवी की खास कृपा है. वह भी महाभारत के बर्बरीक की तरह मर कर दोबारा जिंदा हो सकता है. जब यह बात नीतीश को बताई, तब पहली बार में उसे भी विश्वास नहीं हुआ, लेकिन धीरेधीरे कर उस ने नीतीश को अपने रंग में रंग लिया.

उन्हीं दिनों परिस्थतियां कुछ ऐसी बनीं कि आशीष ने अपनी योजना के बारे में नीतीश को बताया और इस के लिए राजी भी कर लिया. तब उस ने नीतीश से कहा था, ‘‘मुझे मार दो, मैं जिंदा हो जाऊंगा और तुम से हरिद्वार में ही मिलूंगा.’’

उस के कहे अनुसार ही नीतीश ने किया. इस बारे में नीतीश ने पुलिस को बताया कि वह कैसे उस के साथ अंधविश्वास की धारा में बह गया था. उस के कहे अनुसार करता चला गया था.

उस ने कहा था कि ‘मुझे दैवीय सिद्धियां प्राप्त हैं, अगर तुम मुझे मार दोगे तो मैं फिर से जिंदा हो जाऊंगा. बस, मेरा गला काट कर महाशक्तियों के साथ छोड़ देना. जिस के बाद मैं पुनर्जीवित हो कर वापस उस से आ कर मिलूंगा. उस ने यह भी कहा था कि मेरा गला काटने के बाद सभी वस्तुओं को गंगाजी में प्रभावित कर के वह हरिद्वार चला जाए. मैं वहीं आ कर उसे मिलूंगा.’

अपनी योजना का पूरा खाका खींचते हुए आशीष ने नीतीश को समझाया कि पूजा कैसे करनी है? उस का गला किस तरह से काटना है? उस के बाद क्या करना है? नीतीश के मुताबिक आशीष ने कहा था कि पूजापाठ करने के बाद जब मैं जमीन पर लेट जाऊंगा, तब करीब एक घंटे बाद तुम मुझे हिलाडुला कर देखना. अगर मेरे शरीर में कोई हलचल नहीं हो तो फौरन चापड़ से मेरी गरदन धड़ से अलग कर देना और मेरे खून से अपने माथे पर आभिषेक लगा कर मंत्रोच्चार करना.

उस के बाद चापड़ और सभी पूजन सामग्री गंगा किनारे प्रवाहित कर देना. इस के बाद तुम प्रयागराज स्टेशन पर पहुंचना. अगर मैं वहां घंटे भर के भीतर नहीं आऊं, तब तुम वहां से हरिद्वार चले जाना. जीवित हो कर मैं हरिद्वार में ही मिलूंगा.

आशीष ने नीतीश को यह भी कहा था, ‘‘मैं मां कामाख्या देवी के पास जीवित हो कर दर्शन प्राप्त कर तुम से फिर मिलूंगा.’’

यह सब सुन कर पहले तो नीतीश डर गया, लेकिन बाद में जब उस ने चमात्कारी प्रभाव से भविष्य सुधरने की बात की, तब वह तैयार हो गया.

उस के दिमाग में यह बात भी आई कि आशीष मरने के बाद दोबारा जिंदा हो गया तब वह उस का भविष्य बदल देगा, अगर जिंदा नहीं हो पाया तब उसे उस के पैसे नहीं लौटाने पड़ेंगे. जब वह आशीष के साथ था, तब उस का खर्च उसी ने उठाया था, जो कर्ज के तौर पर था. थोड़े दिनों बाद ही उस से पैसे मांगने लगा था.

घटना की रात तालाब के किनारे बांस की झाडि़यों के बीच में नीतीश के सामने आशीष ने तंत्र साधना की, शराब और दवा का सेवन किया. उस के बाद शराब पी. एक पैग शराब नीतीश ने भी पी. आशीष दवा खाने के बाद अपनी जैकेट और टीशर्ट उतार कर जमीन पर लेट गया.

आशीष के कहे अनुसार नीतीश ने उसे झकझोर कर देखा. उस के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई. उस के बाद नीतीश ने आशीष की गरदन पर चापड़ से वार कर दिया. उस की गरदन एक झटके में ही धड़ से अलग हो गई. आशीष ने जैसे मंत्र पढ़ने और रक्त का तिलक लगाने को कहा था, नीतीश ने ठीक वैसा ही किया.

पुलिस ने नीतीश के  कहे अनुसार, हत्या में इस्तेमाल चापड़ भी बरामद कर ली. इस पूरे मामले में मुख्य आरोपी नीतीश सैनी को बनाया गया. उसे भादंवि की धारा 302 के तहत सिविल कोर्ट में पेश किया गया, जहां से जिला कारागार नैनी भेज दिया गया.      द्य

30 साल बाद लिया पत्रकार की हत्या का बदला

अजमेर छावनी बोर्ड के पार्षद रह चुके 70 वर्षीय सवाई सिंह अपने बेटे की शादी का निमंत्रण देने के लिए 7 जनवरी, 2023 को बंसेली गांव स्थित युवराज फोर्ट रिजार्ट गए थे. उस समय दिन का करीब एक बज चुका था. वहां उन के दोस्त राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड कर्मचारी संघ के पूर्व अध्यक्ष दिनेश तिवाड़ी (68) और खलील पुष्कर मौजूद थे.

तीनों एकदूसरे का हालसमाचार लेते हुए शादी के बारे में बातें कर रहे थे. सवाई सिंह के बेटे की 16 जनवरी को शादी थी. उस वक्त सब कुछ सामान्य था. चारों हलकेफुलके माहौल में परिवार समाज के साथसाथ प्रदेश, देश की राजनीति की भी चर्चा कर रहे थे. कुछ समय में ही अचानक कुछ बदमाश रिजार्ट में घुस आए और उन पर दनादन फायरिंग शुरू कर दी.

उन के निशाने पर कौन थे, कौन नहीं समझना मुश्किल था. तभी एक गोली सवाई सिंह के सिर में जा धंसी और वह वहीं गिर गए. उस धुआंधार फायरिंग में दिनेश तिवाड़ी को भी गोली लग गई. गोली चलने की आवाज सुन कर रिजार्ट के कर्मचारी और सुरक्षाकर्मी दौड़ते हुए उस ओर आ गए.

हमलावर उन्हें देख कर भागने लगे. वे 3 की संख्या में थे. उन में से 2 भागने में सफल हो गए, जबकि एक मौके पर ही दबोच लिया गया.

संयोग से खलील को गोली नहीं लगी थी, जबकि सवाई सिंह पूरी तरह से बेसुध जमीन पर गिरे हुए थे. उन के सिर से काफी खून रिस कर जमीन पर फैल गया था. तिवाड़ी भी पेट पकड़े वहीं जमीन पर गिरे हुए थे, किंतु वह होश में थे. सभी घायलों को तुरंत जेएलएन अस्पताल ले जाया गया.

साथ ही दिनदहाड़े हुई इस वारदात की सूचना भी पुष्कर थाने को दे दी गई. एसएचओ डा. रवीश सामरिया सूचना पाते ही दलबल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां दबोचे गए एक आरोपी सूर्य प्रताप सिंह को हिरासत में ले लिया और आगे की तहकीकात के लिए एसएचओ अस्पताल जा पहुंचे.

तब तक घायलों में सवाई सिंह को डाक्टर मृत घोषित कर चुके थे, जबकि दिनेश तिवाड़ी का इलाज चल रहा था. वह होश में थे. गोली उन के पेट में लगी थी. उन के बयानों के आधार पर सूर्य प्रताप सिंह, धर्म प्रताप सिंह और अन्य एक अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज किया गया.

पूर्व पार्षद सवाई सिंह की मौत की खबर कुछ मिनटों में ही पूरे शहर में फैल गई. स्थानीय नेता और उन के परिवार के लोग भागेभागे अस्पताल पहुंच गए. इस वारदात के बारे में सीओ छवि शर्मा, अजमेर के एसपी चूनाराम जाट, एएसपी वैभव शर्मा, प्रशिक्षु आईपीएस सुमित मेहरड़ा समेत गंज के एसएचओ महावीर प्रसाद ने भी घटनास्थल और अस्पताल आ कर मामले का जायजा लिया. पुलिस को शुरुआती जानकारी घायल दिनेश तिवाड़ी से मिल गई थी.

घटनास्थल पर मौजूद खलील ने भी हमले से संबंधित कई जानकारियां दीं. उन्होंने बताया कि सभी रिजार्ट के स्विमिंग पूल के पास बैठे चाय पी रहे थे. तभी 3 युवक हथियार ले कर अचानक वहां आ धमके थे. उन से कोई पूछताछ होती, इस का उन्होंने मौका ही नहीं दिया.

उन के बयान लेने के बाद सवाई सिंह का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. उसी रोज पोस्टमार्टम हो जाने के बाद शव परिजनों को भी सौंप दिया गया.

इस घटना में मारे गए सवाई सिंह इलाके के एक बहुचर्चित शख्स थे. वह 1990 के दशक में अजमेर छावनी बोर्ड के पार्षद थे. अपने दोस्त दिनेश तिवाड़ी को बेटे की शादी का कार्ड देने के लिए पुष्कर गए हुए थे. वहीं उन पर जानलेवा हमला हुआ था और उन की मौत हो गई थी.

वारदात की जांचपड़ताल के दरम्यान पुलिस को अधिक भागदौड़ नहीं करनी पड़ी, क्योंकि तीनों हमलावार पकड़े जा चुके थे, जिन में एक व्यक्ति हमले के बाद चिल्लाने लगा था, ‘‘मैं ने पिता की मौत का बदला ले लिया… आज मेरी कसम पूरी हुई.’’

जांच अधिकारी के सामने हमलावर सूर्यप्रताप सिंह खुद सब कुछ बताने को तैयार था कि उस ने सवाई सिंह को गोली क्यों मारी.

दरअसल, उस ने 30 साल पहले अपने पिता की हत्या का बदला लिया था. उस के पिता मदन सिंह एक स्थानीय पत्रकार थे, जिन की हत्या कर दी गई थी, उस वक्त वह बच्चा था.

इस तरह पुराने हत्याकांड की उलझी हुई गुत्थी भी इस से जुड़ गई थी, जिस के मुख्य आरोपी सवाई सिंह थे, किंतु वह दूसरे आरोपियों की तरह बरी कर दिए गए थे. उस हत्याकांड की कहानी से जुड़ी इस वारदात की कहानी इस प्रकार सामने आई—

बात अप्रैल-मई 1992 के महीने की है. उन दिनों अजमेर शहर में एक सैक्स स्कैंडल की चर्चा लोगों की जुबान पर थी. इस स्कैंडल में 100 से अधिक छात्राओं के साथ ब्लैकमेलिंग की चर्चा अखबारों की सुर्खियां बन गई थीं. वे अजमेर के एक नामी गर्ल्स हौस्टल की छात्राएं थीं, जो राजस्थान और दूसरे पड़ोसी प्रदेशों के विभिन्न इलाकों से आई थीं.

यौन शोषण की शिकार कुछ लड़कियां अपनी आपबीती पुलिस को भी सुना चुकी थीं. उस स्कैंडल में लिप्त लोगों के गिरेबान तक पुलिस के हाथ नहीं पहुंच पा रहे थे. इस मामले पर कुछ स्थानीय पत्रकार और अखबार भी नजर गड़ाए हुए थे. उन्हीं में एक पत्रकार मदन सिंह भी थे. वह एक स्थानीय अखबार ‘लहरों की बरखा’ के संपादक थे.

मदन सिंह ने इस अखबार में छात्राओं के सैक्स स्कैंडल की सीरीज छापनी शुरू कर दी थी. हर सीरीज में पुलिस, प्रशासन और दूसरे सफेदपोश राजनेताओं के इस में शामिल होने का खुलासा किया जाने लगा था. इस तरह की सीरीज 2-4 ही नहीं, बल्कि सितंबर 1992 के पहले सप्ताह तक कुल 76 सीरीज छापी गई थीं.

यह आखिरी सीरीज साबित हुई. कारण 4 सितंबर, 1992 को संपादक मदन सिंह पर रात के 10 बजे हमलावरों ने गोलियों की बौछार कर दी थी. उस वक्त वह अपने स्कूटर में पैट्रोल भरवाने घर से निकले ही थे. हमलावर श्रीनगर रोड पर अंबेसडर कार में सवार थे. हमले से घायल होने पर मदन सिंह ने बचाव के लिए पास के नाले में छलांग लगा दी थी, हमलावर उन्हें मरा समझ फरार हो गए थे. उन्हें जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में भरती करवाया गया.

मदन सिंह को बचा लिया गया था. कई दिनों तक उन का इलाज चलता रहा. वे धीरेधीरे स्वस्थ हो रहे थे. तभी 11 सितंबर को अस्पताल के वार्ड में ही रात के अंधेरे में मौका देख कर हथियारों से लैस 4-5 हमलावर फिर आ धमके. वे कंबल से अपना चेहरा ढंके हुए थे.

आते ही उन्होंने सो रहे मदन सिंह पर फायरिंग कर दी और फरार हो गए. इस हमले में उन्हें 5 गोलियां लगी थीं. तब उन्हें बचाया नहीं जा सका. उन की 3 दिन बाद ही मौत हो गई.

इस हमले की एकमात्र चश्मदीद उन की मां घीसी कंवर थीं. उन की रिपोर्ट के आधार पर कांग्रेस के पूर्व विधायक डा. राजकुमार जायसवाल, पूर्व पार्षद सवाई सिंह, नरेंद्र सिंह समेत अन्य लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मामला दर्ज किया गया था.

मामला एक पत्रकार की हत्या का था, इस कारण पुलिस और प्रशासन पर काफी दबाव था. फिर भी आरोपी पकड़े जाने के बावजूद तुरंत जमानत पर छूटते रहे. जिन की अदालत में पेशी हुई और सबूत के अभाव में वे बरी होते चले गए.

मदन सिंह के परिवार में उन की पत्नी और 2 बेटे धर्मप्रताप 8 साल का और सूर्यप्रताप 7 साल के थे. उन्होंने अपने पिता पर हमला भले ही नहीं देखा था, लेकिन उन की अस्पताल में दर्दनाक मौत को जरूर महसूस किया था. तभी से उन के मन में बदले की भावना भर गई थी.

दूसरी तरफ पुलिस की लापरवाही और गवाहों के लगातार बदलने से आरोपियों पर कानूनी शिकंजा कमजोर पड़ गया था. समय बीतने के साथ सूर्यप्रताप किशोरावस्था पार कर 18 साल का नवयुवक बन गया था. इसी के साथ उस के मन में दबी पिता के हत्यारे से बदले की भावना भी मजबूत हो गई थी.

गर्म खून के जोश में आ कर उस ने अपने मन की बात एक साल छोटे भाई को बताई. उस ने बड़े भाई की इच्छा के साथ अपनी सहमति जता दी. उन्हें एक दिन मौका भी मिल गया और उन्होंने एक आरोपी शिवहरे को घात लगा कर दबोच लिया. उस की लातघूंसे से जम कर पिटाई कर दी. उस के हाथपैर तोड़ डाले.

इस हमले से शिवहरे बुरी तरह से घायल हो गया था. उस का अस्पताल में इलाज चला जरूर, लेकिन वह बच नहीं पाया. तब बात आईगई हो गई. इस से दोनों भाइयों के कलेजे में थोड़ी ठंडक महसूस हुई, फिर भी बदले की चिंगारी सुलगती रही.

दोनों ने पूरे 10 साल तक अपने सीने में सुलगती चिंगारी को दबाए रखा. इस बीच वे मुख्य आरोपियों में डा. राजकुमार जायसवाल और सवाई सिंह को निशाना बनाए रहे. आखिरकार एक दिन उन्हें मौका मिल ही गया.

अजमेर के रीजनल कालेज के सामने एक रेस्टोरेंट में उन नेताओं पर दोनों भाइयों ने ठीक उसी तरह से हमला कर दिया, जिस तरह से उस के पिता पर हुआ था.

इस बार दोनों भाइयों की किस्मत ने साथ नहीं दिया. जायसवाल और सिंह का इस हमले में बाल भी बांका नहीं हुआ, उल्टे दोनों भाई जानलेवा हमले के आरोप में गिरफ्तार कर लिए गए. हालांकि वे जल्द ही जमानत पर छूट भी गए.

जहां तक मदन सिंह की हत्या की बात है तो उस मामले में कई तरह ही अड़चनें थीं. उस हत्याकांड से जुड़े वकील अजय प्रताप वर्मा के अनुसार मदन सिंह पर 2 बार जानलेवा हमले हुए थे. पहली बार बाजार के हमले की रिपोर्ट अलवर गेट थाने में दर्ज हुई थी, जबकि दूसरी बार उन पर हमला अस्पताल में हुआ था. उस की रिपोर्ट सदर कोतवाली (अब कोतवाली) में दर्ज की गई थी. बाद में दोनों मामलों को जोड़ कर जांच की गई थी.

मदन सिंह के अस्पताल में इलाज चलने संबंधी बातें और उन की मां के बयानों के आधार जांच की प्रक्रिया बहुत आगे तक नहीं बढ़ पाई थी. अदालत में उसे ले कर कई विरोधाभास पैदा हो गए थे.

मामला हाईकोर्ट तक जा पहुंचा था, लेकिन उस के द्वारा वारदात को रीक्रिएट करने के बाद तैयार की गई रिपोर्ट से चश्मदीद गवाहों के बयान मेल नहीं खाने के कारण आरोपी 2004 में बरी हो गए थे. उस दौरान सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में की गई थी. हालांकि बरी होने के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की जा चुकी है, जो  लिखे जाने तक लंबित थी.

सवाई सिंह और दूसरे रसूख वाले आरोपी यह मान कर चल रहे थे कि उन्हें मदन सिंह हत्याकांड से छुटकारा मिल गया है. सवाई सिंह के बेटे सूर्यदेव सिंह तंवर की 15 जनवरी, 2023 को शादी होनी थी, जिस का उन्होंने स्नेह भोज 16 जनवरी को रखा था.

सवाई सिंह की मौत से दिवंगत पत्रकार मदन सिंह के बेटे खुश हैं कि उन्होंने अपने पिता के हत्यारे को मौत के घाट उतार दिया. यहां तक कि उस की पत्नी नीमा शेखावत ने भी मीडिया के सामने इस बाबत खुशी जताई.

पुलिस जांच के बाद अजमेर एसपी चूनाराम जाट ने बताया कि सवाई सिंह से बदला लेने के लिए सूर्यप्रताप ने इलाके के नामी बदमाश आकाश सोनी से शूटर्स मांगे थे.

उस के बाद उन्होंने अपनी योजना में भरतपुर के शूटर कपिल और विकास को शामिल कर लिया था. सूर्यप्रताप ने उन्हें अजमेर में ठहराया था. उस के बाद उस ने अपने भाई धर्मप्रताप और विनय प्रताप सिंह के साथ मिल कर सवाई सिंह के बारे में जानकारी दी. उस की तसवीरें दिखा कर पहचान करवाई. पूरी तैयारी के बाद सूर्यप्रताप, धर्मप्रताप और विनय प्रताप ने दोनों शूटर्स को रिजार्ट में ले जा कर हमला बोल दिया.

इस तरह से इस हमले में 5 लोगों को आरोपी बनाया गया है. कथा लिखे जाने तक सभी आरोपियों के खिलाफ काररवाई पूरी नहीं हो पाई थी.     द्य

बाबाओं के वेश में ठग

पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, नागौर व पाली जिलों में भगवा कपड़े पहने बाबा दानदक्षिणा लेते दिख जाएंगे. पश्चिमी जिलों के हजारों गांवढाणियों में अकसर ऊपर वाले या दुखदर्द दूर करने के नाम पर ये भगवाधारी ठगी करते फिरते हैं.

4-5 के समूह में ये बाबा गांवकसबों में घूम कर लोगों के हाथ देख कर उन की किस्मत चमकाने के नाम पर मनका या अंगूठी देते हैं और बदले में 2-3 हजार रुपए तक ऐंठ लेते हैं. गांवदेहात के लोग इन बाबाओं की मीठीमीठी बातों में आ कर ठगे जा रहे हैं.

अचलवंशी कालोनी, जैसलमेर में रहने वाले दिनेश के पास नवरात्र में 4-5 बाबा पहुंचे. उन बाबाओं ने दुकानदार दिनेश को चारों तरफ से घेर लिया. एक बाबा दिनेश का हाथ पकड़ कर देखने लगा. उस बाबा ने हाथ की लकीरों को पढ़ते हुए कहा, ‘‘बच्चा, किस्मत वाला है तू. मगर कुछ पूजापाठ करनी होगी. पूजापाठ कराने से धंधे में जो फायदा नहीं हो रहा, वह बाधा दूर हो जाएगी. तुम देखना कि पूजापाठ के बाद किस्मत बदल जाएगी.’’

बाबा एक सांस में यह सब कह गया. दिनेश कुछ बोलता, उस से पहले ही दूसरे बाबा ने फोटो का अलबम आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘बेटा, ये फोटो देख. ये पुलिस सुपरिंटैंडैंट और कलक्टर हैं. ये हमारे चेले हैं. अब तो तुम मान ही गए होगे कि हम ऐरेगैरे भिखारी नहीं हैं.’’

दिनेश ने अलबम देखा, तो उस की आंखें फटी रह गईं. उन फोटो में वे बाबा पुलिस अफसरों, नेताओं व दूसरे बड़े सरकारी अफसरों के साथ खड़े थे. बाबा उन्हें अपना चेला बता रहे थे.

दिनेश का धंधा चल नहीं रहा था. इस वजह से वह ठग बाबाओं की बातों में आ गया.

उन बाबाओं ने 25 सौ रुपए नकद, 5 किलो देशी घी, 10 किलो शक्कर, 5 किलो तेल, 5 किलो नारियल और अगरबत्ती, धूप, कपूर, सिंदूर, मौली व चांदी के 5 सिक्के पूजा के नाम पर लिए और तकरीबन 8 हजार रुपए का चूना लगा कर चलते बने.

दिनेश अब पछता रहा है कि उस ने क्यों उन ठग बाबाओं पर भरोसा किया. छोटी सी दुकान से महीनेभर में जो मुनाफा होता था, वह बाबा ले गए. अब दिनेश औरों से कह रहा है कि वे बाबाओं के चंगुल में न फंसें.

दिनेश की तरह महेंद्र भी बाबाओं की ठगी के शिकार हो चुके हैं. वे पोखरण में अपनी पत्नी सुनीता के साथ रहते हैं. उन की शादी को 10 साल हो चुके हैं, मगर उन्हें अब तक औलाद का सुख नहीं मिला है. दोनों ने खूब मंदिरों के चक्कर काटे और तांत्रिकओझाओं की शरण में गए, मगर कहीं से उन्हें औलाद का सुख नहीं मिला.

ऐसे में एक दिन जब बाबा उन के पास पहुंचे और महेंद्र से कहा कि उन की किस्मत में औलाद का सुख तो है, मगर कुछ पूर्वजों की आत्माएं इस में रोड़ा अटका रही हैं. उन आत्माओं की शांति के लिए पूजा करनी होगी.

महेंद्र अपने जानने वालों और आसपड़ोस के लोगों के तानों से परेशान थे. बाबाओं ने मोबाइल फोन में बड़े अफसरों व मंत्रियों के साथ अपने फोटो दिखाए, तो महेंद्र को लगा कि जब इतने बड़े अफसर इन बाबाओं के चेले हैं, तो जरूर ये बाबा पहुंचे हुए हैं.

महेंद्र बाबा से बोला, ‘‘मैं मंदिरों के चक्कर में लाखों रुपए उड़ा चुका हूं. आप लोगों पर मुझे भरोसा है. मुझे पूजापाठ के लिए कितना खर्च करना होगा?’’

तब एक बाबा ने कहा, ‘‘आप हमें 11 हजार रुपए दे दें. इन रुपयों से हम पूजापाठ का सामान खरीद कर पूजा कर देंगे. अगली बार जब हम आएंगे, तो तुम औलाद होने की खुशी में हमें 51 हजार रुपए दोगे. यह हमारा वादा है.’’

बस, उस बाबा की बातों में आ कर महेंद्र 11 हजार रुपए गंवा बैठे. ऐसे बाबाओं की ठगी के हजारों किस्से हर रोज होते हैं. बाड़मेर जिले की पचपदरा थाना पुलिस ने ऐसे ही 6 ठग बाबाओं को 18-19 सितंबर, 2017 को पचपदरा कसबे से अपनी गिरफ्त में लिया. किसी ने फोन कर के थाने में सूचना दी थी कि बाबाओं ने लोगों को ठगने का धंधा चला रखा है. ये लोग पीडि़तों को झूठे आश्वासन दे कर उन से जबरदस्ती रुपए ऐंठ रहे हैं.

पचपदरा थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने पुलिस टीम के साथ दबिश दे कर 6 बाबाओं को पकड़ लिया. उन ठग बाबाओं को थाने ला कर पूछताछ की गई. जो बात सामने आई, उसे सुन कर हर कोई हैरान रह गया.

दरअसल, वे लोग नागा बाबा के वेश में दिनभर लोगों को नौकरी दिलाने, घरों में सुखशांति, औलाद का सुख हासिल करने के साथ ही कई तरह के झांसे दे कर नगीने, अंगूठी व मनका वगैरह बेच कर ठगी करते थे. कई लोगों के हाथ देख कर उन्हें किस्मत बताते थे. दिन में लोगों से ठगी कर के जो रकम ऐंठते थे, रात में उसे शराब पार्टी, नाचगाने में उड़ाते थे.

पचपदरा पुलिस ने जिन 6 ठग बाबाओं को गिरफ्तार किया, वे सभी सीकरीगोविंदगढ़ के रहने वाले सिख परिवार से थे.

पूछताछ में ठग बाबाओं ने पुलिस को बताया कि सीकरीगोविंदगढ़ के तकरीबन ढाई सौ परिवार इसी तरह साधुसंत बन कर ठगी का काम करते हैं. अलगअलग जगहों पर घूम कर ये बड़े अफसरों को धार्मिक बातों में उलझा कर उन के साथ फोटो खिंचवाते हैं और फिर वे इन फोटो को दिखा कर गांव वालों को बताते हैं कि ये सब उन के भक्त हैं और इस तरह भोलेभाले लोगों को ठग कर रुपए ऐंठ लेते थे. शाम को वे शराब पार्टियां करते थे.

पुलिस ने उन बाबाओं के कब्जे से मोबाइल फोन बरामद किए, जिन में कई बेहूदा नाचगाने और शराब पार्टी के फोटो थे. साथ ही, कई अश्लील क्लिपें भी बरामद हुईं.

इन बाबाओं ने खुद को गुजरात में जूना अखाड़े का साधु बताया. थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने कवाना मठ के महंत परशुरामगिरी महाराज, जो जूना अखाड़ा में पदाधिकारी भी हैं, को थाने बुलवा कर इन गिरफ्तार बाबाओं के बारे में पूछा, तो इन बाबाओं के फर्जीवाड़े की पोल खुल गई.

इस के बाद बाबाओं ने मुकरते हुए कहा कि वे तो उदासीन अखाड़े से हैं. इस पर महंत परशुरामगिरी ने बाबाओं से उदासीन अखाड़े के बारे में पूछताछ की, तो वे जवाब न दे सके. इस के बाद पुलिस ने इन्हें हिरासत में ले लिया.

ये ठग बाबा पूरे राजस्थान में घूमते थे और लोगों को झांसे में ले कर शिकार बनाते थे. महंगी गाडि़यों और शानदार महंगे कपड़ों में इन बाबाओं के फोटो देख कर पुलिस भी हैरान रह गई.

ये सब बाबा इतने अमीर हैं. इन के घर पक्के हैं. इन के पास गाडि़यां भी हैं. इन को बगैर कोई काम किए लोगों के अंधविश्वास के चलते लाखों रुपए की महीने में कमाई हो जाती थी.

पचपदरा थानाधिकारी देवेंद्र कविया ने इन ठग बाबाओं के बारे में कहा, ‘‘इन के बरताव से पता चला कि ये फर्जी पाखंडी संत हैं. ऐसे लोगों से बच कर रहना चाहिए.’’