ठग बिल्डरों को बचाने वाले कानून के रखवाले

जमीनों पर जबरन कब्जा करने वाले दबंगों, अपराधियों और धोखेबाज बिल्डरों का साथ देने वाले पुलिस वालों के सिर पर कानून की तलवार लटक गई है. पटना के सभी ठग बिल्डरों, प्रोपर्टी डीलरों और जमीन माफिया का कच्चाचिट्ठा तैयार किया जा रहा है.

पटना के थानों में दर्ज जमीनों पर जबरन कब्जा करने वाले बिल्डरों, अपराधियों और उन का साथ देने वाले भ्रष्ट पुलिस वालों की फाइल तैयार करने की कवायद शुरू की गई है.

पुलिस के पास लगातार ऐसी शिकायतें आ रही थीं कि कुछ पुलिस वाले दबंगों के साथ मिल कर कीमती जमीनों पर गैरकानूनी तरीके से कब्जा कर रहे हैं.

दबंग अपराधी किसी भी जमीन पर अपना खूंटा गाड़ देते हैं और जमीन मालिक को औनेपौने भाव में जमीन बेचने का दबाव बनाते हैं. कई बिल्डर और प्रोपर्टी डीलर तो ग्राहकों के लाखों रुपए ठग कर फ्लैट देने में भी आनाकानी कर रहे हैं.

जब कोई पीडि़त ग्राहक या जमीन मालिक पुलिस से गुहार लगाता है, तो दबंगों पर कार्यवाही करने के बजाय भ्रष्ट पुलिस वाले उलटे जमीन मालिक को ही समझातेधमकाते हैं कि जो पैसा मिल रहा है, उतने में ही जमीन बेच दो, वरना अपराधी जबरन कब्जा कर लेंगे और जमीन के एवज में कुछ भी नहीं मिलेगा.

डीआईजी शालीन के आदेश पर सभी थानों के दागी पुलिस वालों की पहचान शुरू कर दी गई है.

मिसाल के तौर पर कंकड़बाग महल्ले के एक रिटायर्ड अफसर ने मकान बनवाया था और उन के बच्चे बिहार से बाहर नौकरी करते थे. एक दबंग ने उन से मकान बेचने को कहा. जब उन्होंने मकान नहीं बेचा, तो उस दबंग ने अपने गुरगों के साथ उन के घर पर धावा बोल दिया और घर में रखा सामान उठा कर बाहर फेंकने लगा.

उस रिटायर्ड अफसर ने पुलिस के पास गुहार लगाई, पर एफआईआर दर्ज करने के बजाय पुलिस वालों ने उन से कहा कि जितना रुपया मिल रहा है, उतने में मकान बेच दो. ज्यादा जिद और थानाकचहरी करोगे, तो आप को कुछ भी नहीं मिलेगा.

पिछले साल ऐसे मामलों में शामिल तकरीबन 6 पुलिस वालों को सस्पैंड किया गया था, इस के बाद भी पुलिस वालों ने कोई सबक नहीं सीखा है.  राजीव नगर थाना, सचिवालय थाना, गांधी मैदान थाना समेत कई थानों के पुलिस वाले ऐसे केसों में शामिल पाए गए हैं.

पिछले साल राजीव नगर थाने के तब के थाना इंचार्ज सिंधुशेखर पर कानूनी कार्यवाही की गई थी. इसी तरह दीदारगंज थाने के इंस्पैक्टर मुखलाल पासवान को सस्पैंड किया गया था. दोनों पर आरोप था कि उन्होंने जबरन जमीन बिकवाने के लिए दबंगों का साथ दिया था.

मोकामा के विधायक के बौडीगार्ड रह चुके विपिन सिंह को अपहरण के मामले में शामिल रहने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. वहीं सचिवालय थाने के सिपाही दीपक कुमार को अपहरण के मामले में शामिल रहने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. जक्कनपुर थाने के एक सिपाही को खुलेआम रंगदारी मांगने के आरोप में सस्पैंड किया गया था.

पुलिस सूत्रों की मानें, तो पटना और दूसरे कई शहरों में कई धोखेबाज और ठग बिल्डरों पर नकेल कसने के लिए बिल्डरों के केसों की समीक्षा, वारंट जारी होने, गिरफ्तारी के हालात पैदा होने, बेल बौंड का सत्यापन कराए जाने को ले कर बिल्डरों में हड़कंप मचा हुआ है. इन से बचने के लिए कई बिल्डर पुलिस वालों की मदद ले रहे हैं.

इन केसों की समीक्षा में डीआईजी शालीन को थाना लैवल पर ही मामलों को दबाने, जमीन माफिया और ठग बिल्डरों से मिलीभगत के संकेत मिल थे.

ठग बिल्डरों के बेल बौंड के सत्यापन का काम शुरू कर दिया गया है. जांच में यह पता करने की कोशिश की जा रही है कि किनकिन लोगों ने झूठे कागजात लगा कर कोर्ट को गुमराह कर जमानत हासिल की थी. पता चलने पर ऐसे लोगों पर केस दर्ज होगा.

बिल्डर अनिल सिंह के केस में फर्जी कागजात सामने आने पर डीआईजी ने कुल 30 केसों में आरोपित पटना के बिल्डरों के बेल बौंड की समीक्षा करने का आदेश जारी किया है.

जमीन पर जबरन कब्जे को ले कर रक्सौल में हुई गोलीबारी के तार पटना के बेऊर जेल से जुड़ने लगे हैं. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, गोलीबारी करने वाले गिरोह का सरगना कई मामलों में जेल में बंद है. उस के इशारे पर ही रक्सौल में जमीन कब्जाने की कोशिश की गई थी. इस मामले में फिलहाल 12 लोगों को पकड़ा गया है. गिरफ्तार अपराधियों ने ही बेऊर जेल में बंद सरगना का नाम लिया है.

पुलिस सूत्रों की मानें, तो अपराधियों के लिए रक्सौल में एक होटल बुक कराने का काम पटना पुलिस के ही एक सिपाही ने किया था. उस सिपाही ने अपने आई कार्ड की फोटोकौपी होटल में जमा करा कर 3 कमरे बुक किए थे. पुलिस इस मामले में सिपाही के शामिल होने की जांच कर रही है.

पटना सैंट्रल के डीआईजी शालीन ने बताया कि सभी थानों से ऐसे पुलिस वालों की लिस्ट मांगी गई है, जो माफिआ से सांठगांठ कर उन की मदद करते रहे हैं. आरोप साबित होने पर उन पर कानूनी कार्यवाही की जाएगी. अगर किसी जमीन मालिक को जमीन के मामले में कोई पुलिस वाला धमकी दे या किसी के खिलाफ एफआईआर न लिखे, तो सीधे डीआईजी से शिकायत की जा सकती है.

पुलिस ने उन बिल्डरों, प्रोपर्टी डीलरों और जमीन माफिया पर नकेल कसने की कवायद शुरू की है, जो फ्लैट, मकान या जमीन देने के नाम पर ग्राहकों से मोटी रकम वसूल चुके हैं, इस के बाद भी ग्राहकों को फ्लैट या जमीन नहीं दे रहे हैं.

कई बिल्डर तो ग्राहकों के साथ मारपीट कर रहे हैं और धमका रहे हैं. ग्राहक जब पुलिस थाने में केस करता है, तो बिल्डर मामले की जांच कर रहे अफसर की मुट्ठी गरम कर केस दबा रहे हैं.

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, हर थाने में ऐसे 10-12 मामले हैं, जिन पर पुलिस ने कार्यवाही नहीं की है. अब हर थाने से रिपोर्ट मांगी गई है कि किसकिस बिल्डर, प्रोपर्टी डीलर और जमीन माफिया पर केस दर्ज हैं? किसकिस के खिलाफ अदालत से वारंट जारी हुआ है? किसकिस थाने में कितनों के खिलाफ मामले दर्ज हैं और उस का केस नंबर क्या है? किस तारीख को किनकिन धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है?

एक ताजा मामले में बिल्डर अब्दुल खालिद के खिलाफ कोर्ट से जारी गिरफ्तारी वारंट को 6 महीने तक दबा कर रखने के आरोप में पटना के शास्त्री नगर थाने में तैनात दारोगा पर पुलिस महकमे ने कार्यवाही शुरू कर दी है. डीआईजी शालीन ने एसएसपी को आदेश दिया है कि उस दारोगा पर तुरंत कार्यवाही की जाए.

इस मामले का खुलासा तब हुआ, जब 2 औरतें दारोगा के खिलाफ शिकायत ले कर डीआईजी के पास पहुंची थीं. उन औरतों ने कहा कि फ्लैट देने के नाम पर बिल्डर अब्दुल खालिद ने उस से लाखों रुपए ले लिए हैं, पर पिछले कई महीनों से वह फ्लैट देने में टालमटोल कर रहा है.

पुलिस ने जांच की, तो पता चला कि उस बिल्डर के खिलाफ पिछले 6 महीने से कोर्ट से वारंट निकला हुआ था, पर दारोगा उसे दबा कर बैठा रहा.

पटना में जिन बिल्डरों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, उन की समीक्षा की गई. दर्ज मामलों में अगर कोई बिल्डर जमानत पर है, तो उस के बेलर की जांच की जाएगी. बिल्डर अनिल सिंह का मामला सामने आने के बाद सभी बिल्डरों पर दर्ज मामलों की लिस्ट तैयार की जा रही है.

29 मामले ऐसे सामने आए हैं, जिन की पड़ताल की जा रही है. जांच में अगर पाया गया कि किसी ने फर्जी बेलर के जरीए जमानत ली है, तो बिल्डर के खिलाफ धोखाधड़ी का नया केस भी दर्ज किया जाएगा. बेलर के खिलाफ भी गलत जानकारी देने का केस दर्ज होगा.

28 अप्रैल, 2016 को एक्जिबिशन रोड पर एक जमीन को ले कर पैदा हुए विवाद में अनिल सिंह और लोकल लोगों के खिलाफ जम कर मारपीट और आगजनी हुई थी. वारदात के बाद बिल्डर और उस के गुरगों के खिलाफ गांधी मैदान थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी. वारदात के बाद ही अनिल सिंह फरार हो गया था, पर उस के पिछले रिकौर्ड की जांच में पुलिस ने पाया कि पिछले 2 मामलों में उस के बेलर ने गलत जानकारी दी थी.

गांधी मैदान थाने में दर्ज केस नंबर 331/2014 में जमानत पर चल रहे अनिल सिंह के बेलर नरेंद्र उर्फ नरेश कुमार चौधरी की खोज शुरू हुई. बेल बौंड में नरेश का पता आकाशवाणी रोड, आशियाना मोड़, राजीव नगर, पटना लिखा हुआ है. पुलिस ने जब उस पते पर नरेश कुमार की खोज की, तो उस नाम का कोई आदमी ही नहीं मिला.

इसी तरह आलमगंज थाने में दर्ज केस नंबर 211/2013 के मामले में भी अनिल सिंह ने फर्जी तरीके से जमानत ली है. कोर्ट को गुमराह करने और फर्जी तरीके से जमानत लेने के मामले में अनिल सिंह पर स्पीडी ट्रायल चलेगा.

यह केस हत्या की कोशिश, मारपीट और आर्म्स ऐक्ट के तहत दर्ज किया गया था.

सांसद मनोज तिवारी भी फंसे?

भारतीय जनता पार्टी के सांसद और भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार मनोज तिवारी पर रियल ऐस्टेट कंपनी का गलत प्रचार करने के आरोप में पटना के गांधी मैदान थाने में केस दर्ज किया गया है. मनोज तिवारी समेत रियल ऐस्टेट कंपनी के मैनेजिंग डायरैक्टर और डायरैक्टर समेत 9 लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी का केस दर्ज हुआ है.

मनोज तिवारी इस कंपनी के ब्रांड अंबैसडर हैं. यह केस पटना हाईकोर्ट के वकील चंद्रभूषण वर्मा की बीवी मीना रानी सिन्हा ने दर्ज कराया है. उन्होंने बताया कि कंपनी ने बिना खरीदे ही जमीन बेच डाली. जब वे अपनी जमीन पर कब्जा करने मनेर गईं, तो पता चला कि वह जमीन कंपनी की नहीं है. कंपनी ने वादा किया था कि जमीन नहीं देने की हालत में वह सूद के साथ पूरी रकम वापस करेगी. वे कंपनी से पिछले कई महीनों से अपनी मूल रकम 6 लाख, 58 हजार वापस मांग रही हैं, पर कंपनी रकम नहीं दे रही है.

इस बारे में मनोज तिवारी ने बताया कि वे पिछले 10 सालों से इस कंपनी के ब्रांड अंबैसडर हैं. अगर किसी की शिकायत सही है, तो वे समस्या का निबटारा करते हैं. एक शिकायतकर्ता का पैसा वापस करने के लिए चैक तैयार किया गया है और किसी की कोई शिकायत होगी, तो उस का भी निबटारा किया जाएगा

सोने की मोहरों से भरे घड़े

कमरे का वातावरण रहस्यमय था. लाल रंग का मद्धिम रोशनी वाला बल्ब टिमटिमा रहा था. कमरे के एक कोने में बिछी काली दरी पर एक बाबाजी बैठे थे. उन की उम्र 35 से 40 साल के बीच रही होगी. वह साधुसंन्यासियों या तांत्रिकों जैसे कपड़े पहनने के बजाय पैंटशर्ट पहने था. सिर पर गुलाबी रंग की पगड़ी बांधे उस बाबा के सामने 30-32 साल का एक युवक बैठा था. उस के पीछे 2 अन्य लोग भी बैठे थे. उन की उम्र 55-60 साल रही होगी. सामने गद्दी पर बैठे बाबा ने थोड़ी सख्त आवाज में पूछा, ‘‘आप लोग घर के आंगन की मिट्टी लाए हैं?’’

बाबाजी के सामने बैठे युवक ने झट से अपने हाथ में थामी कपड़े की छोटी सी पोटली बाबा की ओर बढ़ा दी. उस में शायद मिट्टी थी. बाबा ने पोटली से चुटकी भर मिट्टी निकाल कर अपनी हथेली पर रख कर उसे सूंघा. उस के बाद हैरानी से आंखें फाड़ कर सामने बैठे युवक को घूरते हुए कहा, ‘‘हूं…मैं ने पहले ही कहा था कि जरूर कोई बला है. अब पता चला कि वह बला नहीं, बल्कि शेषनाग बैठा है धन पर कुंडली मारे.’’

‘‘शेषनाग…धन…कुंडली..? हम कुछ समझे नहीं बाबाजी.’’ सामने बैठे युवक ने ही नहीं, उस के पीछे बैठै दोनों लोगों ने हैरानी से कहा.

‘‘अरे भाई, तुम लोग तो बड़े भाग्यशाली हो, तुम्हारे घर के अंदर बहुत बड़ा खजाना दबा है.’’ बाबा ने उन्हें समझाते हुए कहा.

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं बाजाजी, हम कुछ समझ नहीं पाए? हमारे घर की समस्याएं, परेशानियां..?’’

‘‘सब इसी खजाने की वजह से है.’’ बाबा ने उन की बात बीच में ही काटते हुए कहा, ‘‘वह खजाना इन समस्याओं के माध्यम से बारबार चेतावनी दे रहा है कि मुझे बाहर निकालो. लेकिन बात तुम लोगों की समझ में नहीं आ रही है. खैर, कोई बात नहीं, अब तुम मेरे पास आ गए हो तो समझ लो कि तुम्हारे भाग्य खुल गए.’’

‘‘लेकिन बाबाजी, हमें क्या पता कि हमारे घर में खजाना कहां गड़ा है?’’ युवक ने कहा.

‘‘यह काम तुम्हारा नहीं है. कहीं खजाने के चक्कर में अपने घर को मत खोद डालना. गड़ा धन ऐसे नहीं मिल जाता. उस के लिए बड़ी पूजा करनी पड़ती है. तरहतरह के उपाय और साधना करनी पड़ती है. इस के लिए काफी रुपए खर्च करने पड़ेंगे. अगर बिना पूजापाठ के धन निकालने की कोशिश की गई तो परिवार तबाह हो जाता है.

‘‘तुम्हारे घर के अंदर 16 मटके दबे हुए हैं, जिन में सोने की मोहरें भरी हैं. एक बात और ध्यान से सुन लो, मैं श्री गुरुनानक देवजी का वंशज हूं. वह बेदी थे और मैं भी बेदी हूं, इसीलिए यह काम पूरी दुनिया में सिर्फ मैं ही कर सकता हूं. दूसरा कोई माई का लाल पैदा नहीं हुआ, जो यह काम कर सके. समझे कि नहीं?’’

‘‘नहीं महाराज, हम खुद धन निकालने की कैसे सोच सकते हैं, क्योंकि हमें कहां पता है कि मटके कहां गड़े हैं? अब आप ही बताइए कि इस काम में कितना खर्च आएगा?’’

‘‘लगभग 3 लाख रुपए तो खर्च हो ही जाएंगे. और सुनो, अगर यह काम इसी सप्ताह शुरू नहीं हुआ तो धन तो जाएगा ही, तुम्हारा सब सत्यानाश कर के जाएगा. इसलिए यह काम 2-4 दिनों में ही शुरू करना होगा.’’ बाबा ने चेतावनी देते हुए कहा.

बाबा की बात सुन कर युवक और उस के पीछे बैठे दोनों लोगों ने एक साथ कहा, ‘‘ठीक है बाबाजी, हम 2 दिनों में रुपयों की व्यवस्था कर के आते हैं.’’

इस के बाद तीनों बाबा को प्रणाम कर के चले गए.

करतारपुर और कपूरथला के बीचोबीच कपूरथला के थाना सदर का एक गांव है कोट करार. इसी गांव में सरदार तरसेम सिंह पत्नी और 2 बेटों हरजिंदर सिंह तथा चरणजीत सिंह के साथ रहते थे. उन के पास भले ही जमीन ज्यादा नहीं थी, पर उन के यहां किसी चीज की कमी नहीं थी.

दोनों बेटों को उन्होंने 12वीं तक पढ़ा कर समय से उन की शादियां कर दी थीं. शादी के बाद दोनों बेटे टैंपो खरीद कर चलाने लगे थे. कुछ सालों पहले तरसेम और उन की पत्नी की मौत हो गई थी.

दोनों भाइयों की कमउम्र में ही शादियां हो गई थीं, इसलिए उन्हें बच्चे भी जल्दी हो गए थे. इस समय हरजिंदर का बेटा 12वीं में पढ़ रहा है तो चरणजीत का 9वीं में. वैसे तो दोनों भाइयों को किसी चीज की कमी नहीं थी, पर इधर कुछ दिनों से उन के सारे काम उलटेपुलटे हो रहे थे.

यह इत्तफाक था या कुछ और कि पूरे परिवार को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि आखिर यह हो क्या रहा है? उन के बने काम भी एकदम से बिगड़ने लगे थे. घर का वातावरण भी नकारात्मक हो गया था. परिवार के सदस्यों को बुरे और डरावने सपने आने लगे थे.

हालांकि यह सब मात्र संयोग था, लेकिन वहम हो जाए तो उस का इलाज किसी के पास नहीं है. ऐसे में किसी ने कह दिया कि यह सब किसी ऊपरी साए की वजह से हो रहा है तो सब ने मान भी लिया. फिर तो सभी ने यही माना कि बिना किसी उपचार के यह ठीक नहीं होगा.

चरणजीत के चाचा परमजीत सिंह भी गांव में ही रहते थे. उन के एक मित्र थे जसवीर सिंह. वह काफी समझदार और अनुभवी आदमी थे. उन्होंने किसी अखबार में एक इश्तहार देखा था, जिस में लिखा था, ‘बनते काम बिगड़ते हों, ऊपरी हवा का चक्कर हो, संतान हो कर गुजर जाती हो, बीमारी या मुकदमेबाजी हो, दुश्मनों का भय या फिर काम बंद हो, हर समस्या का समाधान, हर मुसीबत से शर्तिया छुटकारा. एक बार अवश्य मिलें. नोट: कृपया आने से पहले फोन अवश्य कर लें.’

समाचारपत्र में छपा यह विज्ञापन देख कर जसवीर सिंह ने यह बात अपने मित्र परमजीत को बता कर कहा, ‘‘क्यों न तुम्हारे भतीजों को इस के यहां दिखाया जाए, शायद उन की समस्या का समाधान हो ही जाए?’’

‘‘बात तो तुम ठीक कह रहे हो. जाने में कोई हर्ज भी नहीं है.’’ परमजीत सिंह ने कहा था.

दरअसल, उन्हें भी यह बात जंच गई थी. उस समय हरजिंदर घर पर नहीं था. उन्होंने छोटे भतीजे चरणजीत से बात की और उसे साथ चलने को राजी कर लिया. हालांकि वह बड़े भाई से पूछे या सलाह किए बिना जाना नहीं चाहता था, पर चाचा की वजह से वह इनकार भी नहीं कर सका.

24 दिसंबर, 2016 को चरणजीत सिंह, जसवीर सिंह और परमजीत सिंह समाचारपत्र में दिए पते के अनुसार फ्लैट-2055 नियर बीएमसी स्कूल, चंडीगढ़ रोड, लुधियाना पहुंच गए.

चलने से पहले जसवीर ने फोन कर दिया था. वहां पहुंचने पर तीनों की मुलाकात रविंदर सिंह बेदी नामक सिख युवक से हुई. वह खुद को तंत्रमंत्र, ज्योतिष आदि का विशेषज्ञ बताता था. इन लोगों की समस्या सुन कर उस ने इन्हें अगले दिन घर की मिट्टी ले कर आने को कहा. इस तरह ये लोग 2-3 दिनों तक कपूरथला से लुधियाना आतेजाते रहे.

26 दिसंबर, 2016 को रविंदर सिंह बेदी ने चरणजीत से उस के घर में खजाना दबे होने की बात बता कर उसे निकालने के लिए पूजा के लिए 3 लाख रुपए का खर्च बताया.

चरणजीत का बड़ा भाई हरजिंदर गाड़ी ले कर बाहर गया था. उस के वापस आने का कोई निश्चित दिन नहीं था. दूसरी ओर रविंदर के कहे अनुसार, एक भी दिन देर करना उचित नहीं था. अकेले कोई फैसला लेने में चरणजीत को मुश्किल हो रही थी. दूसरी ओर चाचा और जसवीर सिंह बारबार कह रहे थे कि वह चिंता न करे, सब ठीक हो जाएगा.

दिमाग पर ज्यादा जोर न देते हुए चरणजीत ने रुपयों का इंतजाम किया और 28 दिसंबर, 2016 को चाचा परमजीत और जसवीर सिंह के साथ अपनी अल्टो कार से लुधियाना रविंदर के यहां पहुंच गया. रविंदर ने कहा, ‘‘मैं कोई भी काम गलत या कच्चा नहीं करता. हर काम लिखित और गारंटी के साथ करता हूं. इसलिए पहले कोर्ट चल कर इस काम को करने के लिए एग्रीमेंट बनवाते हैं.’’

जसवीर, परमजीत और चरणजीत ने बहुत कहा कि उन्हें उस पर पूरा विश्वास है, लेकिन रविंदर ने उन की एक नहीं सुनी. वह तीनों को लुधियाना की न्यू कोर्ट ले गया और नोटरी के माध्यम से चरणजीत की अल्टो कार अपने नाम पर यह कह कर ट्रांसफर करवा ली कि अभी उसे इस की जरूरत है. काम हो जाने के बाद वह उसे वापस कर देगा.

जिस एग्रीमेंट के लिए रविंदर उन्हें कोर्ट ले गया था, वह पीछे रह गया. कोर्ट से लौट कर चरणजीत सिंह ने 50-50 हजार कर के 2 लाख रुपए रविंदर बेदी को नकद दे दिए. इस के अलावा उस ने चरणजीत से हजारों रुपए के महंगे स्टोन, पुखराज, पन्ना, नीलम आदि मंगवाए.

रविंदर बेदी का कहना था कि पूजा के समय ये स्टोन पूजा वाले स्थान पर रखे जाएंगे. जिस जगह खजाना दबा होगा, ये स्टोन अपने आप चल कर उस जगह को बताएंगे. उस दिन के बाद चरणजीत को वे स्टोन खजाने का पता क्या बताते, रविंदर बेदी खुद ही गायब हो गया.

चरणजीत लुधियाना स्थित रविंदर बेदी के घर के चक्कर लगालगा कर थक गया, उसे न उस की कार मिली और न खजाना. उस के रुपए भी चले गए. रविंदर का कुछ अतापता नहीं था, काफी चक्कर लगाने के बाद एक दिन बेदी मिला भी तो सिवाय आश्वासन के उस ने कुछ नहीं दिया. उस ने कहा, ‘‘चिंता करने की जरूरत नहीं है. शुभ मुहूर्त आते ही वह पूजा शुरू कर के तुम्हें राजा बना देगा.’’

इस के बाद न कभी वह शुभ मुहूर्त आया और न ही चरणजीत राजा बन सका. धीरेधीरे चरणजीत की समझ में आ गया कि रविंदर बेदी ने उसे ठग लिया है. एक दिन वह अपने बड़े भाई हरजिंदर और 2 रिश्तेदारों को साथ ले कर रविंदर बेदी के घर पहुंचा. उस ने अपनी कार और 2 लाख रुपए वापस मांगे.

रविंदर ने उन्हें टका सा जवाब देते हुए कहा, ‘‘कैसे रुपए? जो रुपए तुम ने दिए थे, वे पूजापाठ की सामग्री में खर्च हो गए. रही बात कार की तो उसे खुद तुम ने मुझे बेचा था. बाबाजी की सेवा के लिए.’’

रविंदर की बात सुन कर चरणजीत सिंह के पैरों तले से जमीन खिसक गई. दुख तो उसे 2 लाख रुपयों का भी था, लेकिन कार की चिंता अधिक थी, क्योंकि कार उस ने एचडीएफसी बैंक से फाइनैंस करवाई थी, जिस की किस्तें वह अभी भी भर रहा था.

वह समझ गया कि खजाने का लालच दे कर रविंदर ने उस के साथ जबरदस्त चीटिंग की है. एक बार और उस ने बेदी से निवेदन करते हुए कहा कि उसे खजानावजाना कुछ नहीं चाहिए. वह उस की कार और 2 लाख रुपए लौटा दे. इस के बाद वह उस के द्वारा ठगी का किसी के सामने जिक्र नहीं करेगा.

चरणजीत का इतना कहना था कि रविंदर आगबबूला हो उठा. उस ने चरणजीत को धमकी देते हुए कहा, ‘‘चुपचाप शराफत से चले जाओ, वरना पुलिस को बुला कर बंद करवा दूंगा.’’

‘‘कमाल है, एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी. ठगा भी मैं ही गया हूं और तुम बंद भी मुझे ही कराओगे. बदमाशी की भी हद होती है. अब मैं पुलिस के पास जाता हूं.’’

‘‘जाओ, शौक से जाओ. पुलिस थानों में मेरी इतनी चलती है कि वहां कोई तुम्हारी बात नहीं सुनेगा. तुम्हें पता नहीं कि मैं पुलिस को हफ्ता देता हूं.’’

सच पूछो तो उस समय रविंदर बेदी की धमकी से चरणजीत डर गया था. उस ने घर जा कर यह बात अपने बड़े भाई और रिश्तेदारों को बताई. तब सब ने यही सलाह दी कि उसे पुलिस के पास जाना चाहिए. लेकिन सब ने सोचा कि एक बार और रविंदर के पास जा कर बात कर लेनी चाहिए. पर जब वे रविंदर के फ्लैट पर पहुंचे तो उस ने कोई बात सुने बिना सभी को धमका कर भगा दिया.

पूरे 6 महीने हो गए थे चरणजीत को रविंदर के पीछे भटकते हुए. हार कर लुधियाना के थाना डिवीजन-7 में जा कर उस ने थानाप्रभारी सतवंत सिंह को अपने साथ रविंदर बेदी द्वारा की गई ठगी की पूरी कहानी सुना दी. चरणजीत की पूरी बात सुन कर सतवंत सिंह ने एएसआई सुखविंदर सिंह को बुला कर यह मामला उन के हवाले कर काररवाई करने को कहा.

सुखविंदर सिंह चरणजीत की शिकायत पर काररवाई करते हुए सिपाही बलबीर सिंह को रविंदर बेदी के घर बुलाने भेजा, ताकि आमनेसामने बैठ कर बात की जा सके.

दरअसल, ऐसे मामलों में काफी हद तक पीडि़त खुद ही दोषी होता है, जो अंधविश्वास के झूठे मायाजाल में फंस कर अपना नुकसान कर बैठता है. सोचना चरणजीत को चाहिए था कि उस के घर से लगभग 150 किलोमीटर दूर बैठा आदमी यह बात कैसे जान गया कि उस के घर में खजाना दबा है. लालच और अंधविश्वास में ही उलझ कर चरणजीत जैसे लोग रविंदर बेदी जैसे फरेबी तांत्रिकों के मायाजाल में फंस कर उल्लू बन जाते हैं.

बहरहाल, सुखविंदर सिंह के बुलवाने पर रविंदर बेदी थाने नहीं आया. वह घर से ही गायब हो गया. पुलिस उस की तलाश करती रही. पुलिस अपना काम अपने तरीके से कर रही थी. कार और 2 लाख रुपए तो चरणजीत के फंसे हुए थे, इसलिए वह और उस के रिश्तेदार गुपचुप तरीके से रविंदर के घर की निगरानी कर रहे थे.

एक दिन रविंदर बेदी कपड़े और कुछ रुपए लेने जैसे ही घर आया, चरणजीत और उस के रिश्तेदारों को देख कर ठिठका. वह शहर छोड़ कर भाग जाना चाहता था. चरणजीत और उस के रिश्तेदारों को देख कर वह गली में भागा, पर चरणजीत और उस के रिश्तेदारों ने दौड़ा कर उसे पकड़ लिया. इस में मोहल्ले वालों ने भी उन की मदद की. क्योंकि मोहल्ले वाले भी उस की ठगी के धंधे से अच्छी तरह परिचित थे. सभी रविंदर को पकड़ कर थाने ले गए.

रविंदर का साथी कमल शर्मा उर्फ ड्राइवर भी पकड़ा गया था. वह रविंदर के हर काम में उस का सहायक था. चरणजीत की कार भी रविंदर ने उसी के नाम करवाई थी. थाने पहुंच कर रविंदर ने नौटंकी शुरू कर दी. काफी देर तक उस की नौटंकी चलती रही.

कभी वह कहता कि अपनी तंत्रमंत्र की ताकत से सभी को भस्म कर देगा तो कभी कहता कि वह इन के 2 लाख रुपए किस्तों में लौटा देगा. रही बात कार की तो इसे उस ने चरणजीत से खरीदी थी, जिस के उस के पास बाकायदा कागज हैं.

लेकिन पुलिस ने न उस की बातों पर ध्यान दिया और न नौटंकी पर. 16 मई, 2017 को अपराध संख्या 109/2017 पर भादंवि की धारा 420, 406, 120बी के तहत उस के और उस के साथी कमल शर्मा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर अदालत में पेश कर के एक दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

लेकिन रिमांड अवधि में पुलिस उस से ज्यादा जानकारी हासिल नहीं कर सकी. रिमांड खत्म होने पर उसे अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया था. बाद में चरणजीत ने अपनी कोशिश से उस से कार वापस ली थी.

इस मामले में चरणजीत का कहना है कि पुलिस ने उस की बात ठीक से नहीं सुनी. लेकिन पुलिस ऐसे मामलों में कर भी क्या सकती है?

पुलिस या कानून किसी से नहीं कहता कि लालच में अपना सब कुछ लुटा दो. यहां तो हर कोई लूटने को बैठा है. लुटने वाले को भी तो कुछ सोचना चाहिए.

लुटना या बचना आदमी के अपने हाथ में है. कुदरत ने हर इंसान को बराबर दिमाग दिया है. अगर कोई फंसाने के लिए दिमाग लगाता है तो सामने वाले को बचने के लिए अपने दिमाग का उपयोग करना चाहिए. ऐसे में अगर कोई फंस जाता है तो वह भी कम दोषी नहीं है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अपराध, कानून, सजा : कातिलों को मिली सजा

दुनिया के खूबसूरत माने जाने वाले केंद्रशासित आधुनिक शहर चंडीगढ़ के सैक्टर-22 में एक जानामाना रेस्टोरेंट है नुक्कड़ ढाबा. इस रेस्टोरेंट का खाना इतना लजीज है कि दूरदूर से लोग यहां खाना खाने आते हैं, जिस की वजह से वहां हमेशा ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है.

इसी रेस्टोरेंट के मालिक जोगिंदर सिंह की 20 साल की बेटी मनीषा सिंह सैक्टर-34 के एक इंस्टीट्यूट से आर्किटैक्चर का कोर्स कर रही थी. पढ़ने में वह ठीकठाक थी, इसलिए वह एक अच्छी आर्किटैक्ट बनना चाहती थी. 2 भाइयों की एकलौती बहन मनीषा काफी खूबसूरत थी. पिता जोगिंदर सिंह को अपनी इस एकलौती बेटी से लगाव तो था ही, साथ ही नाज भी था कि आगे चल कर वह खानदान का नाम रौशन करेगी.

लेकिन यह सोच कर उन का मन उदास भी हो जाता था कि बेटियां तो पराया धन होती हैं. पढ़ाई पूरी होने के बाद वह मनीषा की शादी कर देंगे तो वह उन्हें छोड़ कर अपनी ससुराल चली जाएगी.

खैर, रोज की तरह 18 अक्तूबर, 2014 की सुबह मनीषा इंस्टीट्यूट जाने के लिए घर से निकली. उस दिन शनिवार था, इसलिए दोपहर तक उसे घर वापस आ जाना था. लेकिन वह शाम तक भी नहीं लौटी तो घर में सभी को उस की चिंता हुई. चिंता की वजह यह थी कि उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ बता रहा था.

जोगिंदर सिंह ने तुरंत इस बात की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को देने के साथ गुमशुदगी एवं किडनैपिंग की आशंका संबंधी एक लिखित शिकायत सैक्टर-22 की पुलिस चौकी जा कर दे दी. यह चौकी सैक्टर-17 स्थित थाना सैंट्रल के अंतर्गत आती थी, इसलिए थाना सैंट्रल में इस की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

पुलिस रात भर मनीषा की तलाश करती रही. जब सफलता नहीं मिली तो पुलिस ने अगले दिन उस के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर खंगाली. इस से पता चला कि वह शनिवार को सुबह से ही रजत के संपर्क में थी. 21 वर्षीय रजत बेनीवाल चंडीगढ़ के सैक्टर-51ए में रहता था और पंजाब यूनिवर्सिटी के इवनिंग कालेज में बीए द्वितीय वर्ष का छात्र था.

संदेह के आधार पर पुलिस ने रजत को हिरासत में ले कर औपचारिक पूछताछ तो की ही, उस के मोबाइल फोन की लोकेशन भी निकलवाई. इस से पता चला कि उस के और मनीषा के मोबाइल फोन की लोकेशन एक साथ थी.

इसी जानकारी के आधार पर पुलिस ने रजत को विधिवत गिरफ्तार कर पूछताछ शुरू की. पहले तो वह पुलिस को बहकाने की कोशिश करता रहा, लेकिन 2 घंटे की सघन पूछताछ में आखिर उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि मनीषा ने किसी नशीले पदार्थ का सेवन कर लिया था, जिस से उस की मौत हो गई थी. डर की वजह से उस ने उस की लाश को चंडीगढ़ से 40 किलोमीटर दूर ले जा कर राजपुरा रोड के एक गंदे नाले में फेंक दिया था.

पुलिस को रजत के इस बयान में पूरी तरह से सच्चाई नजर नहीं आ रही थी. इस के बावजूद डीएसपी सैंट्रल डा. गुरइकबाल सिंह सिद्धू के नेतृत्व में सैंट्रल थाना के कार्यकारी थानाप्रभारी इंसपेक्टर जसबीर सिंह और सैक्टर-22 चौकीप्रभारी देशराज सिंह के अलावा एक विशेष टीम रजत को ले कर राजपुरा रोड पर कस्बे बनूड़ से होते हुए शंभु बैरियर के समीप स्थित गांव टेपला पहुंची, जहां वह बदबूदार गंदा नाला था.

रजत की निशानदेही पर आधे घंटे की कोशिश के बाद गंदे नाले के पास से मनीषा की लाश बरामद की ली गई. लाश पूरी तरह से कीचड़ से सनी थी. पुलिस ने मनीषा के घर वालों को फोन कर के वहीं बुला कर लाश की शिनाख्त करा ली. शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए चंडीगढ़ के सैक्टर-16 स्थित जनरल अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दिया.

पुलिस का मानना था कि रजत ने मनीषा की मौत की जो वजह बताई थी, वह सही नहीं हो सकती. इस मामले में अकेला रजत ही नहीं शामिल था, बल्कि कुछ अन्य लोग भी उस के साथ थे. पुलिस यह मान कर चल रही थी कि मनीषा की मौत का रहस्य काफी गहरा है.

चंडीगढ़ लौट कर रात में एक बार फिर रजत से गहन पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने चौंकाने वाला जो खुलासा किया, उस के अनुसार, इस वारदात में उस के अलावा 2 अन्य लोग शामिल थे. वे थे— चंडीगढ़ के सैक्टर-56 का रहने वाला कमल सिंह और मोहाली के फेज-10 का रहने वाला दिलप्रीत सिंह. 29 साल का कमल सिंह एक रेस्तरां का मालिक होने के साथसाथ शादीशुदा ही नहीं, एक बच्चे का बाप भी था. 22 साल का दिलप्रीत सिंह इंटीरियर डिजाइनिंग का डिप्लोमा कर रहा था.

पुलिस ने उन दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया था. दोनों से हुई पूछताछ में पता चला कि दिलप्रीत मृतका मनीषा का बौयफ्रैंड था. उसी ने उस की जानपहचान अपने दोस्तों रजत और कमल से कराई थी. पुलिस को दिए अपने बयानों में उन्होंने बताया था कि 18 अक्तूबर, 2014 को चारों एक पार्टी में गए थे, जहां सब ने ड्रग्स लिया और शराब भी पी.

सभी आ कर गाड़ी में बैठे थे, तभी अचानक मनीषा की मौत हो गई. इस के बाद वे उस की लाश को ले कर पहले पल्सौरा गांव गए. वहां उन्हें लाश को ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला तो वे लाश को ले कर राजपुरा रोड पर स्थित गंदे नाले पर पहुंचे और वहीं लाश को एक कपड़े में लपेट कर फेंक दिया.

20 अक्तूबर, 2014 को तीनों अभियुक्तों को जिला अदालत में पेश कर के एक दिन के कस्टडी रिमांड पर लिया गया. उसी दिन सैक्टर-16 के जीएमएसएच अस्पताल में मनीषा की लाश का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम के बाद लाश घर वालों के हवाले कर दी गई. लाश पर चोट का कोई निशान नहीं था. उस समय मौत की वजह भी स्पष्ट नहीं हो सकी थी. सीएफएसएल जांच के लिए मृतका के शरीर के कुछ हिस्सों के अलावा विसरा सुरक्षित कर लिया गया था.

21 अक्तूबर को सैक्टर-25 के श्मशानगृह में मनीषा के घर वालों ने उस का दाहसंस्कार कर दिया. उस समय वहां कुछ पत्रकार भी मौजूद थे, जिन से मनीषा के घर वालों ने कहा था कि पुलिस वाले कुछ भी कहें, पर साफ है कि मनीषा की हत्या की गई है, वह भी रंजिशन एवं योजनाबद्ध तरीके से.

क्योंकि मनीषा किसी भी तरह का नशा नहीं करती थी. वह इस तरह के लड़कों के साथ कहीं जाती भी नहीं थी. कमल ने योजनाबद्ध तरीके से उन से बदला लेने के लिए मनीषा की हत्या की थी. क्योंकि एक साल पहले वह उन के ढाबे पर खाना खाने आया था.

तब उस ने बिल न अदा करते हुए उन के ढाबे पर काम करने वाले एक लड़के के साथ मारपीट की थी. उस के बाद उन लोगों ने भी उसे उस की बदतमीजी का थोड़ा सबक सिखाया था. उस ने उस समय काफी बेइज्जती महसूस की थी. अपनी उसी बेइज्जती का बदला लेने के लिए उस ने योजना बना कर दिलप्रीत, जो मनीषा के इंस्टीट्यूट में पढ़ता था, के जरिए मनीषा का अपहरण कर योजनाबद्ध तरीके से उस की हत्या कर दी थी.

दूसरी ओर पुलिस ने जो जांच की थी, उस के अनुसार, रजत, कमल और दिलप्रीत ड्रग्स के आदी थे. मोबाइल पर संदेश भेज कर किसी जिंदर नामक शख्स से उन्होंने ड्रग्स मंगवाया था. जिंदर के बारे में इन्हें ज्यादा जानकारी नहीं थी. हां, पूछताछ में यह जरूर पता चला है कि अभियुक्त कमल पर थाना सैक्टर-39 में हत्या का एक मुकदमा दर्ज था, जो अदालत में विचाराधीन है.

अभियुक्तों का कहना था कि मनीषा भी कभीकभी ड्रग्स लेती थी. उस दिन भी उन चारों ने नशे के लिए एक साथ ड्रग्स लिया था. तभी ओवरडोज की वजह से मनीषा की मौत हो गई थी. उस के बाद डर की वजह से उन्होंने उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए गंदे नाले में फेंक दिया था.

पुलिस की इस कहानी से मनीषा के घर वाले कतई सहमत नहीं थे. उन्होंने पत्रकारों के माध्यम से पुलिस के सामने सवाल खड़े किए थे कि क्या पुलिस ने इस बात की जांच की है कि जिसे ड्रग्स की ओवरडोज से मौत माना जा रहा है, कहीं वह ड्रग्स दे कर हत्या करने का मामला तो नहीं है?

नशेबाजों ने उस की 2 लाख रुपए की ज्वैलरी हथियाने के लिए तो उस की हत्या नहीं की, जो उस ने उस दिन पहन रखी थी? योजना बना कर मनीषा का अपहरण तो नहीं किया गया? कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रभावी परिवारों के लड़कों के पकड़े जाने से पूरी कहानी बदल दी गई हो?

चंडीगढ़ में आम चर्चा थी कि वहां ड्रग पैडलर्स का पूरा रैकेट सक्रिय है. ड्रग्स ओवरडोज मामलों में पहले भी वहां कुछ मौतें हो चुकी थीं. कहीं ऐसा तो नहीं कि मनीषा को उस रैकेट की जानकारी हो गई थी और इसी वजह से उसे मौत की नींद सुला दिया गया हो? लगातार हो रही इस तरह की मौतों के बाद भी पुलिस नशे के सौदागरों की धरपकड़ कर उन के खिलाफ सख्त काररवाई क्यों नहीं कर रही?

चंडीगढ़ में एक प्रतिष्ठित संस्था है फौसवेक (फेडरेशन औफ सेक्टर वेलफेयर एसोसिएशंज). इस संस्था के सदस्यों ने साफ कहा था कि वे नशे से जुड़े लोगों को पकड़ कर पुलिस के पास ले जाते हैं और पुलिस वाले अकसर उन्हें चेतावनी दे कर छोड़ देते हैं.

मनीषा के मामले को ले कर शहर में प्रदर्शन होते रहे, कैंडल मार्च निकाले जा रहे थे, लेकिन पुलिस ने अपने ढंग से काररवाई करते हुए मनीषा की मौत के ठीक 81 दिनों बाद 8 जनवरी, 2015 को रजत, कमल और दिलप्रीत के खिलाफ आरोपपत्र तैयार कर के अदालत में पेश कर दिया. यह चार्जशीट नशे की अहम धाराओं के तहत दाखिल की गई थी.

लेकिन अदालती काररवाई अपने ढंग से चली. मामले की गहराई में जाने का प्रयास करते हुए अदालत ने तीनों आरोपियों के खिलाफ 4 फरवरी, 2015 को गैरइरादतन हत्या, सबूतों से छेड़छाड़ और किडनैपिंग की धाराओं के आरोप तय कर दिए. सुनवाई की अगली तारीख 24 फरवरी तय की गई.

उस दिन चंडीगढ़ की अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अंशु शुक्ला की अदालत में केस की विधिवत सुनवाई शुरू हुई. सुनवाई के पहले दिन मृतका के भाई 25 वर्षीय ऋषभ सिंह ने अपना बयान दर्ज कराया कि घटना वाले दिन सुबह कार से उस की बहन को लिवाने दिलप्रीत आया था. घर के बाहर मनीषा ने कुछ देर उस से बातचीत की और फिर वह इंस्टीट्यूट जाने की बात कह कर गाड़ी में बैठ गई. कार में पहले से ही 2 अन्य लोग मौजूद थे.

इस के बाद अदालत में मौजूद तीनों अभियुक्तों की उस ने पहचान भी की. इस के बाद केस की तारीख पड़ी 12 मार्च, 2015 को. उस दिन आरोपी दिलप्रीत के वकील तरमिंदर सिंह ने अदालत में अरजी दायर कर के मनीषा के फोन की जांच कराने की मांग की, जो स्वीकार कर ली गई.

लेकिन अगले दिन जब मनीषा का मोबाइल फोन कोर्ट में पेश किया गया तो उस का लौक नहीं खोला जा सका. इस पर मुकदमा 20 मार्च तक के लिए टल गया. कोर्ट ने सीएफएसएल को मोबाइल फोन भेज कर उस की जांच रिपोर्ट सौंपने को कहा.

20 मार्च को यह रिपोर्ट पेश नहीं हो सकी तो अगली तारीख 31 मार्च की पड़ी. उस दिन केस के जांच अधिकारी ने सीएफएसएल की ओर से 5 सीडीज में दिया गया मोबाइल का डाटा कोर्ट को सौंपा. इस के बाद लगातार कई पेशियों तक अन्य गवाहों के बयान दर्ज करने के अलावा उन का क्रौस एग्जामिनेशन हुआ.

6 जून, 2015 को सीएफएसएल ने मनीषा की जनरल विसरा रिपोर्ट अदालत में पेश कर दी, जिस में बताया गया था कि मौत से पहले उस के साथ रेप और अननैचुरल सैक्स किया गया था. वहीं विसरा से एक आरोपी का सीमन भी बरामद कर प्रिजर्व किया गया था. अब आगे तीनों आरोपियों से इस का मिलान कराया जाना था. इस के अलावा सीएफएसएल ने मनीषा के जिस्म के कुछ हिस्सों की गहन जांच के आधार पर अपनी एक विशेष रिपोर्ट भी तैयार की थी.

इस रिपोर्ट के आने के बाद पुलिस की आरोपियों से मिलीभगत अथवा पूछताछ में की गई ढील अब पूरी तरह से सामने आ गई थी. इन तमाम मुद्दों पर बहस होने के बाद 24 जुलाई, 2015 को मामले की सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने इस केस में सामूहिक दुराचार और आपराधिक दुराचार के अलावा आपराधिक साजिश रचने की धाराएं क्रमश: 376डी, 377 एवं 120बी जोड़ने की अपील अदालत से की. तीनों आरोपियों का डीएनए सैंपल लेने की भी बात कही गई.

इस विशेष रिपोर्ट में मनीषा की मौत का कारण इंट्राक्रैनियल हैमरेज बताया गया था. सेरोलौजिकल जांच में उस के गुप्तांगों में वीर्य मिला था. विसरा जांच के रासायनिक विश्लेषण में मनीषा के शरीर में 85.57 प्रतिशत इथाइल अल्कोहल की मात्रा पाई गई थी. वहीं नार्पसेयूडोफिड्राइन नामक साइकोट्रोपिक सब्सटांस (नशीला पदार्थ) के मौजूद होने की बात भी कही गई थी. इस सब के अलावा हिस्टोपैथोलौजी रिपोर्ट में ब्रौंकोन्यूमोनिया एवं माइक्रोवेसिकुलर स्टीटोसिस मिलने की बात भी पता चली थी.

सरकारी वकील ने जो नई धाराएं इस केस में जोड़ने की दरख्वास्त अदालत से की थी, उस का विरोध करते हुए बचाव पक्ष के वकील इंदरजीत बस्सी ने अदालत से कहा कि धाराओं में संशोधन अथवा बढ़ोत्तरी की अरजी मान्य नहीं है. केस की जांच करने वालों ने अपनी जांच पूरी कर के चार्जशीट दायर की है और इस समय केस गवाहियों की स्टेज पर है.

अपने इस विरोध के संबंध में बचावपक्ष के वकील ने अपने ये नुक्ते अदालत के सामने रखे थे—

मृतका के साथ यौन प्रताड़ना के मुद्दे पर किसी भी गवाह ने अभी तक अपना बयान दर्ज नहीं कराया है. अभियोजन पक्ष की कहानी के हिसाब से कहीं भी इस का जिक्र नहीं किया गया कि आरोपियों के पीडि़ता के साथ यौनसंबंध बने थे. अभियोजन पक्ष के अनुसार, मृतका खुद आरोपियों के साथ गई थी, जिस में कहीं भी जबरदस्ती का कोई आरोप नहीं लगाया गया है.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतका के जिस्म पर कहीं भी चोट के निशान नहीं थे, जिस से उस के साथ जबरदस्ती की बात साबित नहीं होती. सीएफएसएल रिपोर्ट और चार्जशीट में इस बात का जिक्र नहीं है कि यौनसंबंध कब और किस समय बने थे? डीएनए प्रोफाइल के तहत अभियोजन पक्ष ने आरोपियों के ब्लड सैंपल लेने के लिए अरजी दायर की है, ताकि वीर्य से इस का मिलान किया जा सके. ऐसे में यह प्रतीत होता है कि अभियोजन पक्ष खुद इस बात को ले कर संशय में है कि यह वीर्य किस का है?

यह बहस भी कुछ दिनों तक चलती रही. 29 जुलाई को विद्वान जज अंशु शुक्ला ने इस मुद्दे पर और्डर पास किया कि दुराचार और कुकर्म की अतिरिक्त धाराएं जोड़ने पर फैसला अभियुक्तों की ब्लड सैंपल रिपोर्ट और डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट के आने के बाद होगा. इस के लिए तारीख दी गई 29 अक्तूबर, 2015. लेकिन उस दिन रिपोर्ट न आने की वजह से सुनवाई टल गई.

बाद में रिपोर्ट आई तो नई धाराएं जोड़ कर अदालत की काररवाई फिर से शुरू हुई. देखतेदेखते एक साल से अधिक का समय गुजर गया. 31 जनवरी, 2017 को अदालत ने अपनी काररवाई मुकम्मल कर के इस केस के तीनों अभियुक्तों को दोषी करार दे कर सजा सुनाने की तारीख 4 फरवरी, 2017 तय कर दी.

इस तरह सक्षम एडीजे अंशु शुक्ला ने केस से जुड़े 17 गवाहों के बयान एवं साक्ष्यों के आधार पर अपने 160 पृष्ठों के फैसले में 4 फरवरी, 2017 को मनीषा सिंह केस के तीनों अभियुक्तों रजत बेनीवाल, कमल सिंह और दिलप्रीत सिंह को सामूहिक दुष्कर्म, अप्राकृतिक यौनसंबंध, गैरइरादतन हत्या और आपराधिक साजिश के आरोप में 20-20 साल की कैद के अलावा तीनों को 5 लाख 22 हजार रुपए प्रति दोषी जुरमाने की सजा सुनाई. अदालत के इस फैसले के खिलाफ दोषियों ने समयावधि के भीतर हाईकोर्ट में अपील की है, जो विचाराधीन है.

बहरहाल, मनीषा के पिता द्वारा जारी किया गया यह संदेश काबिलेगौर है कि अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने के लिए मातापिता कोशिश तो करें, लेकिन बच्चे किसी के बहकावे में न आ सकें, इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है. अगर उन की आदतों या व्यवहार में जरा भी बदलाव नजर आए तो बच्चों को एक दोस्त की तरह समझा कर किसी के बहकावे में आने से रोकें. आप का बच्चा कितना भी सही क्यों न हो, उसे बहकाने वाले तब तक उस का पीछा नहीं छोड़ते, जब तक वह उन के जाल में फंस नहीं जाता.

कंगाल करने वाला कौलसेंटर : ठगी का नया तरीका

जयपुर के रहने वाले चरण सिंह शेखावत उस दिन घरेलू काम में व्यस्त थे, तभी उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. उन्होंने मोबाइल की स्क्रीन पर नजर डाली. जिस नंबर से फोन आ रहा था, वह नंबर उन का जानापहचाना नहीं था. उन्हें वह नंबर राजस्थान से बाहर का लगा. उन का बात करने का मन नहीं था, फिर भी उन्होंने यह सोच कर अनमने मन से फोन रिसीव किया कि फोन किसी परिचित का न हो. फोन रिसीव कर के उन्होंने जैसे ही कान से लगाया, दूसरी ओर से युवती की खनकती सी आवाज आई, ‘‘सर, आप जयपुर से चरण सिंह शेखावतजी बोल रहे हैं न?’’

‘‘जी, मैं चरण सिंह ही बोल रहा हूं.’’ उन्होंने युवती के सवाल पर सहज भाव से जवाब दिया.

‘‘सर, मैं नोएडा से इंडो सफायर जर्नीज लिमिटेड कंपनी से बोल रही हूं,’’ दूसरी ओर से युवती ने कहा, ‘‘हमारी कंपनी शेयर मार्केट से जुड़ी हुई है. हमारी कंपनी की नजर में ऐसी कुछ कंपनियां हैं, जिन में निवेश करने पर आप का पैसा एक साल में ही लगभग दोगुना हो सकता है.’’

एक साल में पैसा दोगुना होने की बात में दिलचस्पी लेते हुए चरण सिंह ने युवती से कई सवाल पूछे. उन के हर सवाल का जवाब उस ने आत्मविश्वास से दे कर उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘सर, आप पूरी तरह से निश्चिंत रहिए, आप का पैसा पूरी तरह सुरक्षित रहेगा. फिर भी अगर आप को किसी तरह की कोई शंका है तो मैं आप की बात कंपनी के बौस से करा दूंगी.’’

‘‘ठीक है, आप मेरी बात अपनी कंपनी के किसी बड़े औफिसर से करा देना. उस के बाद मैं विचार करूंगा.’’ चरण सिंह ने कहा. इसी के साथ नोएडा से आया फोन कट गया.

यह बात कोई दोढाई साल पहले की है. नोएडा से आए उस फोन के एकदो दिन बाद ही चरण सिंह शेखावत के मोबाइल पर फिर फोन आया. इस बार नंबर दूसरा था. दूसरी ओर से अनजान युवती बड़ी ही शिष्टता से हिंदी और अंगरेजी में बोल रही थी. चरण सिंह के हैलो कहते ही उस युवती ने कहा, ‘‘सर, मैं नोएडा से इंडो सफायर जर्नीज लिमिटेड कंपनी से बोल रही हूं. मैं कंपनी की वाइस चेयरपरसन हूं. एकदो दिन पहले आप की हमारी कंपनी की एग्जीक्यूटिव से बात हुई थी.’’

‘‘जी, नोएडा से एक फोन आया था,’’ चरण सिंह ने कहा, ‘‘एक लड़की बता रही थी कि शेयर कंपनियों में निवेश करने पर एक साल में ही रकम दोगुनी हो जाएगी.’’

‘‘सर, हमारी एग्जीक्यूटिव ने आप को बिलकुल सही बताया है.’’ दूसरी ओर से उस वाइस चेयरपरसन युवती ने कहा.

‘‘ऐसा कैसे संभव है कि एक साल में ही हमारा पैसा दोगुना हो जाएगा?’’ चरण सिंह ने थोड़ा हैरानी से पूछा.

युवती ने चरण सिंह की शंका को दूर करते हुए कहा, ‘‘सर, आप को पता ही होगा कि शेयर मार्केट में लिस्टेड कई कंपनियां ऐसी हैं, जिन के शेयरों के भाव एक साल में ही दोगुने से भी ज्यादा हो जाते हैं. हमारी कंपनी ने शेयर मार्केट के कई विशेषज्ञ हायर किए हुए हैं. वही विशेषज्ञ हमें बताते हैं कि आजकल किन कंपनियों में निवेश करने का अच्छा मौका है. हम आप जैसे लोगों से पैसा जुटा कर वैसी ही कंपनियों में निवेश करते हैं. उस के बदले जो रिटर्न मिलता है, वह हम अपने कस्टमर को दिलाते हैं. हमारी कंपनी इस काम का केवल कमीशन लेती है. यह आप के लिए अच्छा मौका है. आप हमारी कंपनी के साथ जुड़ कर शेयर मार्केट में निवेश कर के अच्छा रिटर्न हासिल कर सकते हैं.’’

‘‘ठीक है, मैं इस विषय पर सोच कर एकदो दिन में आप को बताता हूं.’’ चरण सिंह ने कहा.

अधेड़ उम्र के चरण सिंह शेखावत को शेयर मार्केट के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं थी, लेकिन इतना तो पता ही था कि शेयर मार्केट में ऐसी कई कंपनियां हैं, जिन के शेयरों के भाव बहुत तेजी से चढ़तेगिरते रहते हैं. उन्होंने इस बारे में अपने एकदो परिचितों से बात की तो उन्होंने भी यही कहा कि शेयर कंपनियों में निवेश करने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन कोई भी निवेश करने से पहले उस कंपनी के बारे में अच्छी तरह से पता जरूर कर लेना.

चरण सिंह शेखावत कुछ समय पहले ही सरकारी नौकरी से रिटायर हुए थे. वह राजस्थान सरकार की सैकेंड ग्रेड की नौकरी में थे. रिटायर होने पर उन्हें ग्रैच्युटी एवं पीएफ वगैरह की एक बड़ी रकम मिली थी. वह रकम उन के बैंक खाते में जमा थी, जिसे वह कहीं निवेश करना चाहते थे. वह चाहते थे कि किसी ऐसी कंपनी में उन का पैसा निवेश किया जाए, जिस से उन्हें अच्छा रिटर्न मिलता रहे, ताकि बुढ़ापे में उन्हें किसी तरह की परेशानी न हो और जिंदगी आराम से गुजर सके.

कुछ दिनों बाद नोएडा की उस कंपनी से एक बार फिर चरण सिंह के मोबाइल पर फोन आया. इस बार तीसरे नंबर से फोन किया गया था. फोन करने वाली युवती ने अपना परिचय दे कर पूछा, ‘‘सर, आप ने शेयर बाजार की कंपनियों में निवेश के बारे में क्या विचार किया?’’

‘‘निवेश तो हम कर देंगे, लेकिन इस बात पर कैसे भरोसा किया जाए कि मुझे एक साल में करीब दोगुना रिटर्न मिल जाएगा?’’ चरण सिंह ने चिंता जाहिर करते हुए पूछा.

‘‘सर, आप निश्चिंत रहिए. हमारी कंपनी बाकायदा आप को लिखित पेपर्स देगी, जिस में साफ लिखा होगा कि हम आप के पैसों का शेयर मार्केट में लिस्टेड कंपनियों में निवेश करेंगे और अच्छा रिटर्न दिलवाएंगे.’’ युवती ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा.

‘‘चलो ठीक है, आप की बात मान लेता हूं. लेकिन हमें करना क्या होगा?’’ चरण सिंह ने पूछा.

‘‘सर, आप को पहले हमारी कंपनी में रजिस्ट्रेशन करवाना होगा.’’ युवती ने कहा.

‘‘ठीक है, आप हमारा रजिस्ट्रेशन कर दीजिए.’’ चरण सिंह ने कहा.

‘‘सर, कंपनी में रजिस्ट्रेशन कराने के लिए आप को 12 हजार रुपए जमा कराने होंगे.’’ युवती ने कहा, ‘‘आप चाहें तो यह पैसा हमारी कंपनी के बैंक खाते में औनलाइन जमा करा सकते हैं. आप हमारा बैंक एकाउंट नंबर नोट कर लीजिए.’’

चरण सिंह ने बैंक एकाउंट नंबर नोट करते हुए कहा, ‘‘ठीक है, मैं एकदो दिन में आप की कंपनी के खाते में रजिस्ट्रेशन फीस के 12 हजार रुपए जमा करा दूंगा.’’

चरण सिंह ने युवती द्वारा बताए बैंक एकाउंट में 12 हजार रुपए औनलाइन जमा करा दिए. पैसे जमा कराने के कुछ समय बाद ही उन के मोबाइल पर मैसेज आ गया कि उन का कंपनी में रजिस्टे्रशन हो गया है. उन्हें कंपनी की ओर से एक रजिस्ट्रेशन नंबर भी दिया गया.

कंपनी में रजिस्ट्रेशन होने के बाद चरण सिंह को कंपनी से फोन कर के शेयर मार्केट की अलगअलग लिस्टेड कंपनियों के नाम बता कर उन्हें निवेश की सलाह देते हुए रकम की मांग की जाती रही. इस में खास बात यह रही कि चरण सिंह के पास जब भी नोएडा की उस कंपनी से फोन आता था, नए नंबर से ही आता था. चरण सिंह ने इस बात पर कभी ध्यान नहीं दिया. उन्होंने भरोसा करते हुए अलगअलग समय पर 42 लाख रुपए से ज्यादा की रकम नोएडा की उस कंपनी के बैंक खातों में जमा करा दी.

इस बीच कूरियर से चरण सिंह के पास कागजात भी आते रहे. उन कागजातों में बताया गया था कि कंपनी ने उन की रकम का निवेश शेयर मार्केट की कंपनियों में कर दिया है. बारबार मोटी रकम जमा कराने के बाद जब समय पर रिटर्न नहीं मिला तो चरण सिंह परेशान हुए.

उन्होंने न जाने कितनी बार उन नंबरों पर फोन किया, जिन से उन के पास फोन आते थे. उन नंबरों पर बात करने से चरण सिंह को कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. हर बार उन्हें यह कह कर टरका दिया जाता था कि आप को जल्दी ही अच्छा रिटर्न मिल जाएगा. आप का पैसा जल्दी ही आप के बैंक खाते में आ जाएगा.

लंबे इंतजार के बाद भी जब चरण सिंह को कोई रिटर्न नहीं मिला तो उन्हें शक हुआ. उन्होंने अपने रिश्तेदारों और परिचितों से इस बारे में सलाह ली, तब परिचितों ने ठगी की आशंका जताते हुए पुलिस से मदद लेने की सलाह दी.

इसी साल 24 अप्रैल को चरण सिंह अपने कुछ परिचितों के साथ जयपुर दक्षिण के थाना अशोक नगर पहुंचे और थानाप्रभारी को सारी बात बताई. उन की बात सुन कर थानाप्रभारी को तुरंत अहसास हो गया कि चरण सिंह के साथ ठगी हुई है. उन्होंने उसी दिन उन की रिपोर्ट भादंवि की धारा 420 एवं 120बी के तहत दर्ज कर ली.

शेयर मार्केट में निवेश के बाद अच्छे रिटर्न का औफर दे कर लोगों से ठगी करने के इस तरह के एकदो अन्य मामले कुछ दिनों पहले ही जयपुर पुलिस की जानकारी में आए थे. चरण सिंह के साथ 42 लाख रुपए से ज्यादा की ठगी हुई थी. जयपुर के पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने अपने मातहत अधिकारियों को इस तरह सूचना प्रौद्योगिकी की नई तकनीकों के जरिए आर्थिक अपराध करने वालों का पता लगाने का आदेश दिया.

पुलिस कमिश्नर के निर्देशन में अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) प्रफुल्ल कुमार एवं पुलिस उपायुक्त (अपराध) डा. विकास पाठक ने कार्ययोजना बना कर पुलिस की एक टीम गठित की. इस टीम में सहायक पुलिस आयुक्त (अन्वेषण) पुष्पेंद्र सिंह, इंसपेक्टर राजकुमार, मुकेश चौधरी, एसआई मनोज कुमार, कृष्ण कुमार, हरि सिंह के अलावा सिपाही राजेश, अभिमन्यु कुमार सिंह, महेंद्र कुमार, बसंत सिंह, बिश सिंह, श्रीमती नीरज एवं श्रीमती मुकेश को शामिल किया गया.

इस टीम में क्राइम ब्रांच की तकनीकी शाखा एवं संगठित अपराध शाखा के अधिकारियों को भी शामिल किया गया. इस टीम ने कई दिनों की जांच के बाद पता लगा लिया कि अभियुक्त संगठित तरीके से कालसैंटर की आड़ में अपराधों को अंजाम दे रहे हैं. ये अभियुक्त सफेदपोश बन कर अलगअलग कंपनियों की आड़ में नोएडा में कालसैंटर चला कर धोखाधड़ी कर लोगों से करोड़ों रुपए की ठगी कर रहे हैं.

व्यापक जांच के बाद जयपुर पुलिस की टीम ने 15 जून, 2017 को नोएडा पुलिस की मदद से नोएडा के सेक्टर-2 स्थित प्लौट नंबर ए-74 में बनी बिल्डिंग से संचालित इंडो सफायर जर्नीज लिमिटेड कंपनी के कालसैंटर पर छापा मारा. वहां 2 दरजन से ज्यादा लड़कियां काम कर रही थीं.

पुलिस ने जांच के बाद इस कंपनी के 5 निदेशकों को गिरफ्तार कर लिया, जिन में मोहम्मद इकराम निवासी शाहीन बाग, ओखला, नई दिल्ली, मोहम्मद आमिर निवासी बाटला हाउस, जामियानगर, नई दिल्ली, शाहिद खान एवं मोहम्मद यामीन निवासी ग्राम शीलपुर, पोस्ट कुबाकी, जिला मुरादाबाद तथा मेहराज आलम निवासी इंदिरापुरम, गाजियाबाद शामिल थे.

जयपुर कमिश्नरेट ने इस कालसैंटर पर छापे के दौरान सिम सहित 37 मोबाइल फोन एवं 24 सिम अलग से, 5 लैपटौप, 1 लाख रुपए नकद, 23 इंटरकौम फोन व वौकीटौकी, कई मोहरों सहित ढेर सारे दस्तावेज बरामद किए थे.

नोएडा से पांचों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर पुलिस जयपुर ले आई. पुलिस ने इन से कड़ी पूछताछ के आधार पर सुनील कुमार देवतवाल को गिरफ्तार किया. सुनील कुमार मूलत: राजस्थान के करौली जिले के टोडाभीम कस्बे का रहने वाला था. आजकल वह जयपुर में जगतपुरा में रह रहा था. इन सभी अभियुक्तों से पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

सुनील कुमार देवतवाल कुछ सालों पहले आईसीआईसीआई बैंक में दिल्ली के स्टेट हैड मार्केटिंग के पद पर काम करता था. इस से पहले उस ने आदित्य बिड़ला, अमेरिकन एक्सप्रैस, यस बैंक आदि में भी काम किया था. आईसीआईसीआई बैंक में जब वह स्टेट हैड मार्केटिंग था, तब मोहम्मद इकराम उस के पास सहायक के रूप में काम करता था.

बाद में सुनील कुमार ने आईसीआईसीआई बैंक की नौकरी छोड़ दी और दिल्ली में स्टार ट्रैवल्स नाम से कंपनी खोली. यह कंपनी ज्यादा नहीं चली. इस में उसे घाटा होने लगा तो उस ने यह कंपनी बंद कर दी. इस के बाद उस ने जयपुर की पौश कालोनी सी स्कीम के सुभाषमार्ग पर 506 अलौकिक हाइट्स में एक्सरोस टूर्स एवं एक्सपीयर मैक्स ट्रैवल्स नामक कंपनी खोली.

दूसरी ओर मोहम्मद इकराम ने भी सुनील कुमार के नौकरी छोड़ने के बाद आईसीआईसीआई बैंक की नौकरी छोड़ दी थी. फिर भी दोनों एकदूसरे के संपर्क में बने रहे. चूंकि सुनील कुमार देवतवाल कई नामी बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों में काम कर चुका था, इसलिए उस के पास इन कंपनियों का करोड़ों कस्टमर्स का डाटाबेस था. इन के अलावा भी उस ने कई कंपनियों का डाटा जुटा रखा था. इस तरह करीब 20 कंपनियों का डाटाबेस उस ने अवैध तरीके से हासिल किया हुआ था.

मोहम्मद इकराम को पता था कि सुनील कुमार के पास करोड़ों लोगों का डाटाबेस है. इस में उन लोगों के नामपते व फोन नंबरों के अलावा उन की वित्तीय स्थिति का आकलन था. इकराम शातिर दिमाग था. उस ने आसान तरीके से लोगों को ठग कर पैसा कमाने की योजना बना डाली. इस के लिए उस ने कुछ साथियों की मदद से सुनील से वह डाटाबेस खरीद लिया. करोड़ों लोगों का डाटाबेस हाथ में आने के बाद उस ने अपने भरोसे के साथियों के साथ मिल कर औनलाइन ठगी का धंधा शुरू कर दिया.

पहले उन्होंने छोटे स्तर पर ठगी का धंधा शुरू किया. इस के लिए उन्होंने इंडो सफायर जर्नीज लिमिटेड, सेमटेक्स ट्रैवल, सेमटेक्स फाइनेंसर्स, इंडो सफायर कंसडिंग प्रा.लि. आदि कंपनियां बनाईं. शेयर मार्केट की कंपनियों में निवेश के नाम पर लोगों को ठगने का उन का धंधा चल निकला तो इन्होंने नोएडा के सेक्टर-2 में एक कालसैंटर बना लिया. इस कालसैंटर के आलीशान दफ्तर से 3 दरजन से ज्यादा लड़केलड़कियों को नौकरी पर रखा गया.

ये लड़केलड़कियां लोगों को फोन कर के अपनी लच्छेदार बातों से शेयर मार्केट में निवेश के लिए फांसते थे. ये सभी अवैध तरीके से जुटाए बैंकों व वित्तीय संस्थाओं के डाटा के जरिए ऐसे लोगों को तलाशते थे.

ऐसे लोगों की जानकारी हासिल कर के  ये उसे अपने कालसैंटर के जरिए फोन करते और लगातार संपर्क में रह कर उसे निवेश करने के लिए प्रेरित करते. कालसैंटर से जो फोन किए जाते थे, वे फरजी आईडी से हासिल सिम से किए जाते थे, ताकि पुलिस इन तक पहुंच न सके. जयपुर के रहने वाले चरण सिंह शेखावत को इस कालसैंटर के जरिए 24 अलगअलग मोबाइल नंबरों से फोन किए गए थे.

कोई भी आदमी जब इन की बातों में फंस जाता था तो सब से पहले वे उस से कंपनी में रजिस्ट्रेशन के नाम पर 12 हजार रुपए अपने बैंक खाते में औनलाइन जमा कराते थे. इस के बाद फाइल चार्ज और फिर धीरेधीरे निवेश के नाम पर रकम ऐंठते रहते थे. अपने शिकार से ये पूरी रकम औनलाइन ही ट्रांसफर कराते थे. ठगी की राशि जमा कराने के लिए इन लोगों ने सैंट्रल बैंक औफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, सिंडिकेट बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, एसबीबीजे, इंडसइंड बैंक, आईडीबीआई बैंक, एक्सिस बैंक और स्टेट बैंक औफ इंडिया में खाते खुलवा रखे थे. ये सभी खाते अभियुक्तों ने खुद और परिवार वालों के नाम खुलवा रखे थे.

पुलिस जांच में पता चला है कि इन लोगों ने 23 बैंक खातों में पिछले 6 महीने में लगभग 6 करोड़ रुपए की रकम जमा करवाई थी. शिकार से बैंक खाते में रकम जमा कराने के बाद ये चैक से रकम निकाल लेते थे. सभी खातों से ज्यादातर रकम निकाल ली गई थी. पुलिस ने अभियुक्तों के बैंक खातों में जमा 12 लाख 50 हजार रुपए की रकम सीज कराई है.

पूछताछ में पता चला है कि पकड़े गए लोगों ने पिछले करीब एक साल में राजस्थान सहित देश के 23 राज्यों में 256 फरजी मोबाइल नंबरों से 4 हजार 879 से अधिक फोन किए थे. इन में 414 फोन राजस्थान में किए गए थे. राजस्थान का एक भी ऐसा जिला नहीं बचा, जहां इन लोगों ने फोन कर के ठगी न की हो.

इन के पास से डेबिटक्रैडिट कार्ड होल्डर्स, डाक्टर्स, इंश्योरेंस, एटीएम, इनवेस्टर्स, एनआरआई, बजाज अलायंज, सिटी बैंक, होंडा और हुंडई गाड़ी खरीदने वालों के डाटा भी मिले हैं.

गिरफ्तार किए गए सुनील कुमार से इलैक्ट्रौनिक डिवाइस में सैकड़ों फाइलें मिली हैं, जिन में एकएक फाइल में 6 लाख से 20 लाख लोगों तक का डाटा है. एक फाइल में एयरटेल पोस्टपेड मोबाइल धारक 20 लाख उपभोक्ताओं का डाटा मिला है. इन फाइलों में ऐसी भी जानकारी है कि किस आदमी ने किस बैंक या इंश्योरेंस कंपनी से कौन सी पौलिसी करवाई है. वह उस का कितना प्रीमियम देता है. उस आदमी का नामपता, मोबाइल नंबर के साथ अन्य जानकारियां भी हैं.

पूछताछ में सुनील कुमार ने बताया कि वह भी नोएडा जैसा कालसैंटर जयपुर में खोलना चाहता था, लेकिन पुलिस ने उसे पकड़ लिया. सुनील कुमार ने जयपुर में ट्रैवल एजेंसी के नाम से ठगी की थी. वह जयपुर के अशोकनगर एवं थाना ज्योतिनगर में सन 2016 में दर्ज धोखाधड़ी के मामले में जेल जा चुका है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. पीडि़त का नाम बदला हुआ है.

अखिला से हादिया : अंगारों से शोलों तक

अखिला से हादिया बनी केरल की लड़की कुएं से निकल कर खाई में जा रही है. अदालत में अपनी आजादी की बात करने वाली हादिया धर्म की जकड़न में खुद ही फंसती नजर आ रही है. 27 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने हादिया को आगे की पढ़ाई करने की अनुमति देने का फैसला सुना कर एक तरह से उसे उस के मातापिता की कैद से आजादी दिला दी और शायद अगली सुनवाई तक अदालत उसे अपने मुसलिम पति के साथ रहने की आजादी भी दे दे पर जिस तरह की मजहबी मानसिकता और वेशभूषा में वह कोर्ट में दिखाई दे रही है,

वह आजादी का नहीं, गुलामी का रास्ता है, रोशनी का नहीं, अंधेरे कैदखाने का रास्ता है. हैरत यह है कि वह इस के लिए उतावली है. एक धर्म बदल कर दूसरे धर्म में जाना और स्वतंत्रता की मांग करना हैरानी की बात है क्योंकि धर्म तो औरत का गुलाम बनाए रखते हैं.

अखिला नाम बदल कर हादिया बनी यह युवती हिंदू धर्म का पाखंडी दलदल छोड़ कर मुसलिम मुल्लेमौलवियों के रहमोकरम व फतवों की गुलामी की बेडि़यां धारण कर रही है. बुर्के में कैद हो कर आजादी मांग रही है, वाह हादिया!

कोट्टायम जिले के वैकुम में थिरुमनी वेंकितापुरम गांव के एक हिंदू परिवार में जन्मी 24 वर्षीय अखिला अपने मातापिता की इकलौती बेटी है. हादिया ने 12वीं तक पढ़ाई अपने घर पर रह कर की थी. बाद में उस ने तमिलनाडु के सलेम में शिवराज होम्योपैथी मैडिकल कालेज में दाखिला लिया.

सीमा सुरक्षा बल यानी बीएसएफ से रिटायर्ड के एम अशोकन ने जनवरी 2016 को बेटी अखिला के लापता होने का मामला दर्ज कराया था. अखिला अपनी 2 सहेलियां फसीना और जसीना के साथ रह रही थी. लापता होने के कुछ दिनों बाद अखिला अपने कालेज में हिजाब पहने नजर आई. उस के हिंदू दोस्तों ने उस के पिता अशोकन को सूचना दी. अशोकन उस के निवास पर पहुंचे तो वह गायब हो चुकी थी.

पिता अशोकन ने फसीना और जसीना के पिता अबूबकर के खिलाफ मामला दर्ज कराया कि उन्होंने बेटी को गायब करा दिया है. पुलिस ने अबूबकर को गिरफ्तार भी किया पर कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल सका और अखिला का पता नहीं लगाया जा सका.

बाद में अखिला के एक इसलामिक चैरिटेबल ट्रस्ट सत्य सरणी में रहने का पता चला. इस पर अशोकन ने केरल उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की. अशोकन ने आरोप लगाया कि उन की बेटी को धर्म परिवर्तन करा कर विदेश भेजने का षडयंत्र किया गया है और शादी के नाम पर उसे आतंकवादी संगठन आईएसआईएस में धकेला जा रहा है.

अखिला सत्य सरणी संस्था के राष्ट्रीय महिला मोरचा की अध्यक्ष ए एस जैनबा के पास रह रही थी. इस अवधि में उस ने अपना नाम हादिया कर लिया. केरल उच्च न्यायालय में पेश होने के दौरान हादिया के साथ जैनबा जाती थी. हादिया ने अदालत से कहा कि वह अपनी इच्छा से जैनबा के साथ रह रही है.

अगस्त 2016 में हाईकोर्ट में अशोकन ने दूसरी याचिका दायर की जिस में कहा कि उन की बेटी को भारत से बाहर ले जाया जा रहा है. हालांकि, हादिया ने इस से इनकार कर दिया था. उस ने कहा कि उस के पास पासपोर्ट ही नहीं है.

अगली सुनवाई पर वह अपने पति शफीन जहां के साथ अदालत में नजर आई. 9 दिसंबर, 2016 को अखिला ने शफीन जहां से मुसलिम धर्म के अनुसार शादी कर ली. शफीन जहां ने कहा कि पिछले अगस्त माह में एक मुसलिम विवाह वैबसाइट के जरिए हादिया से मुलाकात हुई थी. उस समय वह खाड़ी में काम करता था. नवंबर में जब वह छुट्टी पर घर आया तो अपने दोस्त के घर पर हादिया से मिला. वह उस की पृष्ठभूमि से परिचित था और मालूम था कि अदालत में उस को ले कर बंदी प्रत्यक्षीकरण मामला चल रहा है.

अखिला ने बाद में केरल हाईकोर्ट में कहा था कि उस का पढ़ाई के समय अपनी मुसलिम दोस्तों फसीना औैर जसीना के साथ रहते हुए उस का इसलाम धर्म की ओर झुकाव हो गया. दोनों मित्रों द्वारा समय से नमाज पढ़ने और उन के अच्छे चरित्र से वह प्रभावित थी. उस ने अदालत से यह भी कहा था कि इसलामिक पुस्तकें पढ़ने और वीडियो देखने के बाद उस ने इसलाम धर्म अपनाया. वह 3 वर्षों से इसलाम का अनुसरण कर रही थी पर उस के पिता अशोकन इसलामी तरीके से प्रार्थना करने पर उसे चेतावनी देते थे.

दोस्तों के साथ रहने के दौरान फसीना के पिता अबूबकर उसे मल्लापुरम जिले के पेसिंथलाण्णा में किम नामक धार्मिक संस्था में ले कर गए पर उसे वहां प्रवेश दिए जाने से इनकार कर दिया गया. बाद में अखिला कोझिकोड में एक इसलामिक सैंटर में गई. वहां उस से एक हलफनामा लिखवाने के बाद बाहरी उम्मीदवार के तौर पर भरती कर लिया गया. हलफनामे में लिखवाया गया कि वह अपनी मरजी से इसलाम धर्म स्वीकार कर रही है.

हादिया घर छोड़ने और इसलाम अपनाने के बाद जैनबा के साथ रहने लगी. जैनबा पीएफआई की राष्ट्रीय महिला विंग की अध्यक्ष थी. एनआईए का दावा है कि पौपुलर फ्रंट औफ इंडिया यानी पीएफआई एक इसलामिक संगठन है. पीएफआई और उस के साथी भारत में आतंकवादी वारदात करने की योजना बना रहे हैं.

शादी पर विवाद

हादिया के पति शफीन जहां पर आरोप था कि वह सोशल डैमोके्रटिक पार्टी औफ इंडिया यानी एसडीपीआई का सक्रिय सदस्य है. यह संगठन पीएफआई से संबद्ध बताया जाता है. एसडीपीआई पीएफआई का राजनीतिक मोरचा है और कहा जाता है कि वह हिंदू लड़कियों को फंसा पर आतंकवादी संगठन में भरती कराता है.

केरल हाईकोर्ट में हादिया ने यह भी कहा था कि उस ने एक मुसलिम विवाह वैबसाइट पर अपना विवाह प्रस्ताव डाला था. उसी के माध्यम से शफीन जहां का प्रस्ताव आया था. शफीन कोल्लम का रहने वाला ग्रेजुएट युवा है.

शादी से नाराज अखिला के पिता अशोकन ने इसे लव जिहाद बताया था. आतंकवाद के मामलों में जांच करने वाली प्रमुख एजेंसी राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए की मई 2017 में केरल उच्च न्यायालय में दी गई रिपोर्ट के आधार पर हादिया की शादी को रद्द कर दिया गया था. एनआईए द्वारा अदालत से कहा गया कि हादिया की शादी एक वैवाहिक वैबसाइट के जरिए तय की गई, वह गलत थी. असली मकसद शादी के नाम पर आतंकवादी संगठन के लिए सक्रिय सदस्यों की तलाश करना था और वह उस में फंस गई.

कोर्ट की टिप्पणी का विरोध

25 मई को केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस निकाह को शून्य करार देते हुए हादिया को उस के हिंदू अभिभावकों की अभिरक्षा में देने का आदेश दिया था. जस्टिस सुरेंद्र मोहन और जस्टिस अब्राहम मैथ्यू ने टिप्पणी करते हुए आदेश दिया था कि 24 साल की युवती कमजोर और जल्द चपेट में आने वाली होती है और उस का कई तरीके से शोषण किया जा सकता है. शादी उस के जीवन का सब से अहम फैसला होता है, इसलिए वह सिर्फ अभिभावकों की सक्रिय संलिप्तता से ही लिया जा सकता है.

बाद में केरल हाईकोर्ट की इस विवादित टिप्पणी का विरोध हुआ और फैसला आने के बाद मुसलिम कट्टरपंथी संगठनों ने केरल हाईकोर्ट के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था.

इस फैसले पर हादिया ने कहा था कि वह 24 वर्षीया भारतीय है. पिछले कई महीनों से वह घर में गिरफ्तार है. अदालत ने उस की आस्था और पसंद के अनुसार जीने के अधिकार को क्यों अस्वीकार कर दिया? हादिया ने अदालत से यह भी कहा था कि शिव शक्ति योग केंद्र के कार्यकर्ताओं ने उसे प्रताडि़त किया और वे उस का वापस हिंदू धर्म में परिवर्तन कराना चाहते थे. उस के पिता अशोकन ने उन लोगों से ऐसा करने का अनुरोध किया था.

शिव शक्ति योग केंद्र हिंदू लड़कियों द्वारा मुसलिम युवकों से शादी कर लेने के बाद उन्हें वापस हिंदू धर्र्म में लाने के लिए केरल में बदनाम है. इस संगठन ने केरल में ऐसे कई मामलों को अपने हाथ में लिया है.

बाद में हादिया के पति शफीन ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और कहा कि हाईकोर्ट ने बिना किसी कानूनी अधिकार के निकाह को शून्य करार दिया है. याचिका में कहा गया था कि यह फैसला आजाद देश की महिलाओं का असम्मान करता है क्योंकि इस ने महिलाओं के बारे में सोचविचार करने के अधिकार को छीन लिया है और यह उन्हें कमजोर करने व उन के खुद के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए.

हादिया ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उसे आजादी चाहिए. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने हादिया के पिता से उसे कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया था. कोर्ट ने बताया था कि वह हादिया की मानसिक स्थिति के बारे में जानना चाहता है.

उधर, उस के पिता अशोकन ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में आरोप लगाया कि हादिया का कथित पति शफीन कट्टर दिमाग का है और उस के आतंकवादी संगठन से रिश्ते हैं. अशोकन ने आरोप लगाया कि शफीन जहां मानसी बुराक का दोस्त है जिस के खिलाफ आतंकवादियों से संबंध होने के मामले में एनआईए ने चार्जशीट दाखिल की है. बहुत सारे फेसबुक पोस्ट इस के सुबूत हैं कि मानसी बुराक की कट्टर सोच पर याचिकाकर्ता ने खुशी जताई थी. इस के अलावा वह लगातार फेसबुक पर बुराक से बातचीत करता था.

सुप्रीम कोर्ट और हादिया

27 नवंबर को सुप्रीम कोर्र्ट ने हादिया से बातचीत शुरू की. सवाल किया कि आप ने किस स्कूल से पढ़ाई की? आप ने डाक्टरी पेशे को कैसे चुना? क्या आप दूसरों को दवा भी देती हैं? आप की भविष्य की क्या योजना है?

हादिया ने कहा कि उसे 11 महीनों से मातापिता की गैरकानूनी हिरासत में रखा गया है. उस ने बीएचएमएस किया है पर वह इंटर्नशिप नहीं कर पाई. वह इसे पूरा करना चाहती है. कोर्ट ने पूछा कि अगर सरकार खर्चा दे तो क्या वह पढ़ाई जारी रखना चाहती है? इस पर हादिया ने कहा, ‘‘मेरे पति मेरा खर्च उठा सकते हैं. सरकारी पैसे की जरूरत नहीं है.’’

इस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हादिया को मातापिता की हिरासत से रिहा करने का आदेश दिया. कोर्ट ने कालेज में स्थानीय अभिभावक के बारे में हादिया से पूछा तो उस ने अपने पति का नाम लिया पर जज ने कहा, ‘‘पति होस्टल में नहीं रह सकता. कोई पति अपनी पत्नी का अभिभावक नहीं हो सकता. मैं भी अपनी पत्नी का अभिभावक नहीं हूं.’’

तमिलनाडु स्थित शिवराज होम्योपैथी कालेज के डीन को अभिभावक नियुक्त करते हुए अदालती पीठ ने डीन को हादिया की किसी भी समस्या को सुलझाने की छूट दी है. हादिया अपनी पढ़ाई करने के लिए उक्त कालेज चली गई है और उसे होस्टल मुहैया करा दिया गया है. वहां वह 11 महीने की इंटर्नशिप पूरा करेगी.

सुप्रीम कोर्ट में भी हादिया के पिता अशोकन ने विदेश में बसे मानसी बुराक के बारे में कहा कि वह आईएसआईएस का सदस्य है और हादिया के पति शफीन के बीच उस की बातचीत का लिखित रूप कोर्ट में पेश किया. अशोक ने अदालत से कहा कि शफीन के संबंध पौपुलर फ्रंट औफ इंडिया नाम के संगठन से हैं जो जमीनी स्तर पर सिखापढ़ा कर किशोरों को कट्टर बनाने की बड़ी साजिश कर रहा है.

उधर, एनआईए इसे लव जिहाद बताने पर अड़ा रहा. उस ने दलील दी कि ऐसे 10 और मामलों की जांचें की जा रही हैं. उस के पास ठोस सुबूत हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पहले एनआईए की जांच में कुछ जानकारियां मिलें तो फिर आगे की सुनवाई करेंगे.

सवाल यह नहीं है कि एक युवती किसी अपराधी से प्रेम या विवाह कर सकती है या नहीं? तिहाड़ जेल में बंद कुख्यात चार्ल्स शोभराज से मिलने उस की नेपाली प्रेमिका जाया करती थी और वह उस से शादी करना चाहती थी. अबू सलेम के अपराधी होते हुए भी मोनिका बेदी के साथ प्रेम संबंध बना रहा. एक बालिग युवती को अपने बारे में फैसले करने का कानूनन हक है, फिर भी अंधी आस्था में डूबी दिख रही हादिया का जीवन धर्म बदल कर शादी के बाद सुखी रह पाएगा, यह सवाल है.

एक धर्म का लबादा त्याग कर दूसरे का धारण कर पति के साथ रहने को हादिया स्वतंत्रता मान रही है. हादिया किस आजादी की बात कर रही है? वह स्त्री को शिकंजे में रखने वाले एक दकियानूसी धर्म को छोड़ कर दूसरे कट्टर मजहब की ओर जा रही है जहां चारों ओर रोशनी नहीं, अंधेरे का साम्राज्य है. एक ऐसा मजहब जहां औरत की आजादी दिवास्वप्न है.

हादिया जिस पोशाक में अदालतों में जा रही है वह पोशाक भारत की नहीं, घोर मजहबी कट्टरपंथियों द्वारा थोपी गई पैर के अंगूठे से ले कर सिर की चोटी न दिखाई देने वाली पोशाक है जो शायद उस ने खुद अपनी स्वतंत्रता से नहीं, किसी मुल्लामौलवी के हुक्म से पहनी है. यह पोशाक दकियानूसी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक जैसे देशों में पहनी जाती है पर वहां भी अब ऐसी पोशाक औरतें त्याग रही हैं.

सवाल केवल औरत की लिबर्टी का नहीं है. वह इस तथाकथित आजादी के बाद भी क्या स्वतंत्र है?

अदालतों के सभी फैसले जरूरी नहीं कि सही हों. सुप्रीम कोर्ट तक ने अपने कुछ निर्णय कुछ सालों बाद बदले हैं. हम अदालतों को सांप्रदायिक नहीं कह रहे हैं. लेकिन सवाल यह है कि अदालतों के फैसलों से क्या औैरत को वास्तविक आजादी, राहत मिलती है?

कानून कोई गारंटी नहीं

संविधान पीठ ने इसी साल 22 अगस्त को तीन तलाक को अवैध करार देते हुए सरकार से कानून बनाने को कहा था. इस पर केंद्र ने एक बार में तीन तलाक को खत्म करने के लिए नए कानून का मसौदा तैयार किया है. ‘द मुसलिम वूमेन प्रोटैक्शन औफ राइट्स औन मैरिज बिल’ नाम से जाना जाने वाला यह कानून क्या मुसलिम औरत के परिवार के लिए उस की जिंदगी को खुशहाल बना पाने की गारंटी हो सकता है?

तीन तलाक और हादिया मामला एकजैसा ही है. सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को अमानुषिक बता कर असंवैधानिक करार तो दे दिया पर क्या औरत को तलाक नाम के खौफ से मुक्ति मिल जाएगी? सुप्रीम कोर्ट के आदेश से औरत के जीवन से तलाक यानी अलगाव यानी परिवार का टूट जाना, बिखर जाने का सिलसिला खत्म हो जाएगा?

तीन तलाक के मामले को ही लें. क्या तीन तलाक मामले में औरत की समस्या हल हो गई? 3 तलाक पर कानून बनने से क्या तलाक होने बंद हो जाएंगे? क्या फर्क पड़ता है कोई तीन बार तलाक बोले या एक बार?

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर कहा था कि यह औरत की स्वतंत्रता का हनन है. उसे न्याय के लिए अपील करने के अधिकारों पर अंकुश है.

सवाल यह है कि क्या हादिया को वास्तविक लिबर्टी मिल पाएगी? एक अंधरे से निकल कर दूसरी अंधेरी गुफा में चले जाना क्या स्त्री की वास्तविक तरक्की है? स्त्री को रोशनी की राह कौन दिखाएगा? हादिया एक धर्म की अंधी गुफा से निकल कर दूसरे धर्म की कालकोठरी की ओर जा रही है जहां सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा है. एक स्त्री की जिंदगी के लिए जिस वास्तविक रोशनी की जरूरत है वह वहां नहीं है. वह रोशनी क्या अदालत दिखा पाएगी?

धर्म के दुकानदारों के स्वार्थ

ऐसे मामलों में औरतें धर्म व सांप्रदायिकता का महज हथियार बनी दिखाई देती हैं. और वह हथियार केवल धर्म के दुकानदारों के लिए फायदेमंद साबित होता है. धर्म की खाने वाले यही तो चाहते हैं. उन्हें स्त्री की आजादी से कोई मतलब नहीं है. उस की तरक्की से कोई वास्ता नहीं है. बस, उन के धर्म का परचम लहराता दिखाईर् देना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा ग्राहक उन की दुकानों पर आएं. इस पूरे मामले में हलाल सिर्फ हादिया हुई है.

आजादी कहां है? उसे अपना नाम अखिला से बदल कर हादिया करना पड़ा. इस में उस की अपनी मरजी कहां है? यह तो धर्म की मरजी है.

हादिया, असली आजादी क्या है? औरत को गुलाम बना कर रखने वाला मजहब चाहे कोई भी हो, वहां आजादी महज खामखयाली है. हादिया स्वयं मानसिक गुलामी की जकड़न में बुरी तरह फंसी दिखती है. उस की असली आजादी बुर्का उतार फेंकने में है. धर्म की संकीर्ण सोच के दायरे से बाहर निकलने में असली आजादी है. न जाने कितनी हादियाएं अब तक इस बात को समझ ही नहीं पाई हैं. इसीलिए, वे गुलाम हैं. असली आजादी धर्म से बाहर निकलने से ही हासिल हो सकती है.

एक थीं नूर इनायत खान

नूर इनायत खान का नाम द्वितीय विश्व महायुद्ध के इतिहास में गुप्तचर के रूप में शहीद होने के कारण स्वर्णाक्षरों में अंकित है. नूर इनायत खान का पूरा नाम नूर उन निसा इनायत खान था. उन के पिता हजरत इनायत खान भारतीय तथा मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के वंशज थे. उन की मां अमेरिकी थीं. नूर 4 भाई बहनों में सब से बड़ी थीं. उन का जन्म 1 जनवरी, 1914 को मास्को में हुआ था. नूर के पिता सूफी मतावलंबी तथा धार्मिक शिक्षक थे. उन्होंने भारत के सूफी मत का पाश्चात्य देशों में प्रचारप्रसार किया. नूर की रुचि अपने पिता की भांति, संगीतकला के माध्यम से पिता की विरासत को आगे बढ़ाने में थी.

पहले विश्वयुद्ध के बाद नूर के पिता परिवार सहित मास्को से लंदन आ गए थे. नूर का बचपन वहीं बीता. नाटिंगहिल के एक नर्सरी स्कूल में उन की पढ़ाई शुरू हुई. 1920 में वे सब फ्रांस में पैरिस के निकट सुरेसनेस में रहने लगे. 1927 में पिता की मृत्यु के बाद 13 साल की छोटी सी उम्र में ही नूर के कंधों पर मां और 3 छोटे भाईबहनों की जिम्मेदारी आ गई.

स्वभाव से शांत, शर्मीली, संवेदनशील नूर ने जीविका के लिए संगीत को माध्यम चुना. वे पियानो पर सूफी संगीत का प्रचारप्रसार करने लगीं. वीणा बजाने में भी वे निपुण थीं. उन्होंने कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां लिखीं, साथ ही साथ, फ्रैंच रेडियो में भी वे नियमित रूप से योगदान करने लगीं. 1939 में जातक कथाओं से प्रेरित हो कर उन्होंने ट्वंटी जातका टेल्स लिखी.

crime

लंदन में पुस्तक का प्रकाशन हुआ. द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने पर वे अपने परिवार के साथ समुद्रीमार्ग से ब्रिटेन के फ्रालमाउथ कार्नवाल आ गईं.

संवेदनशील, शांतिप्रिय, सूफीवाद की अनुयायी नूर को नाजियों द्वारा किए जा रहे क्रूर, बर्बर अत्याचारों से गहरा आघात पहुंचा. उन्होंने अपने छोटे भाई के साथ मिल कर नाजी अत्याचारों के विरुद्ध लड़ने का फैसला किया.

नूर ने 19 नवंबर, 1940 को ब्रिटेन की एयरफोर्स में महिला सहायक के रूप में कार्यभार संभाला. वहां पर उन्होंने वायरलैस औपरेटर का प्रशिक्षण लिया. जून 1941 में बमवर्षक प्रशिक्षण विद्यालय की चयनसमिति के समक्ष सशस्त्र बल अधिकारी पद के लिए आवेदनपत्र प्रस्तुत किया. वहां पर सहायक अनुभाग अधिकारी के पद पर उन की नियुक्ति हो गई.

फ्रैंच भाषा की अच्छी जानकारी होने के कारण ‘स्पैशल औपरेशंस ग्रुप’ के अधिकारियों का ध्यान उन की तरफ गया. उन को वायरलैस औपरेशन के द्विभाषी अनुभवी गुप्तचर के रूप में प्रशिक्षित किया गया. जून 1943 में वे डायना राउडेन (कोड नेम पादरी), सेसीली लेफोर्ट (कोड नेम एलिस शिक्षक) के साथ फ्रांस आ गई. उन का कोड नेम मेडेलीन था. वे फ्रांसिस सुततील (कोड नेम प्रोस्पर) के नेतृत्व में काम करने लगीं.

नूर एक चिकित्सकीय नैटवर्क में नर्स के रूप में शामिल हो गईं. वे वेश बदल कर भिन्नभिन्न स्थानों से ब्रिटिश अधिकारियों को महत्त्वपूर्ण सूचनाएं भेजने लगीं. द्वितीय विश्वयुद्ध में वे पहली एशियन महिला गुप्तचर थीं. नूर विंस्टन चर्चिल के विश्वासपात्रों में से एक थीं. उन्होंने 3 महीने से ज्यादा समय तक अपना गुप्त नैटवर्क चलाया. वे ब्रिटेन में नाजियों की गुप्त जानकारी भेजती रहीं. एक कामरेड की गर्लफ्रैंड ने ईर्ष्या के कारण उन की जासूसी की और उन को पकड़वा दिया. 13 अक्तूबर, 1943 को उन्हें जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.

खतरनाक कैदी के रूप में उन को भीषण यातनाओं से गुजरना पड़ा. उन्होंने 2 बार जेल से भागने की कोशिश की लेकिन बंदी बना ली गईं.

गेस्टोपो के पूर्व अधिकारी हैंस किफर ने उन से गुप्त सूचनाएं प्राप्त करने का अथक प्रयास किया लेकिन नूर के मुंह से वे कुछ भी नहीं उगलवा पाए. 25 नवंबर, 1943 को एसओई गुप्तचर जौन रेनशा और लियोन के साथ वे सिचरहिट्टसडिंट्स, पैरिस के हैडक्वार्टर से भाग निकलीं. लेकिन ज्यादा दूर तक भाग नहीं सकीं और पकड़ ली गईं. 27 नवंबर, 1943 को नूर को पैरिस से जरमनी ले जाया गया. वहां उन्हें फोर्जेम जेल में रखा गया. वहां भी अधिकारियों ने उन को कठोर यातनाएं दीं. भेजी गई गुप्त सूचनाओं की जानकारी प्राप्त करने के प्रयास किए, लेकिन नूर ने कोई राज नहीं खोला.

11 सितंबर, 1944 को नूर को 3 और साथियों के साथ जरमनी के डकाऊ यातना शिविर में ले जाया गया.

13 सितंबर, 1944 को चारों के सिर पर गोली मारने का आदेश हुआ. पहले नूर के 3 अन्य साथियों के सिर पर गोली मार कर मौत की नींद सुला दिया गया. उस के बाद जरमनी फोर्स ने नूर को डराधमका कर ब्रिटेन भेजे गए संदेशों के बारे में जानकारी हासिल करनी चाही लेकिन निर्भीक, साहसी नूर ने अंत तक कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. हार कर सिर में गोली मार कर उन की भी हत्या कर दी गई.

अंतिम सांस लेने से पहले नूर के होंठों पर एक शब्द था-स्वतंत्रता. लाख कोशिशों के बावजूद जरमन सैनिक राज उगलवाने की बात तो दूर, उन का असली नाम तक नहीं जान पाए थे. मृत्यु के समय उन की आयु केवल 30 साल की थी. वास्तव में वे एक शेरनी थीं, जिन्होंने आखिरी सांस तक अपना मुंह नहीं खोला.

सम्मान

  • इस भारतीय महिला गुप्तचर को मरणोपरांत 1949 में जौर्ज क्रौस से सम्मानित किया गया
  • फ्रांस ने उन्हें अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान क्रोक्स डी गेयर प्रदान किया.
  • मेंसेंड इन डिस्पैचीज (ब्रिटिश गैलेंटरी अवार्ड).

स्मारक

लंदन के गौर्डन स्क्वैयर में नूर की तांबे की प्रतिमा स्थापित की गई है. यह वह जगह है जहां पर नूर बचपन में रहती थीं. यह पहला अवसर है जब ब्रिटेन में किसी मुसलिम अथवा एशियाई महिला की प्रतिमा स्थापित की गई है. 8 नवंबर, 2012 को प्रतिमा को अनावृत किया गया था. महारानी एलिजाबेथ की द्वितीय बेटी राजकुमारी एनी ने अनावरण किया था. इस प्रतिमा का निर्माण लंदन के कलाकार न्यूमेन ने किया है.

भारतीय मूल की पत्रकार श्रावणी बासु ने नूर की जीवनी को अपनी किताब स्पाई प्रिंसेस यानी जासूस राजकुमारी नूर इनायत खान में संजोने का प्रयास किया है. ब्रिटिश साम्राज्य की विरोधी होने के बावजूद नूर ने ब्रिटेन के लिए जासूसी कर एक अद्वितीय मिसाल कायम की थी.

राजसमंद लाइव मर्डर : लव जिहाद नहीं धर्म जिहाद

जिस धार्मिक तालीबानी खतरे का डर था वह अपने घिनौने रूप में सामने है. पिछले कुछ सालों से फैलाया जा रहा नफरत का बीज अब फल बन कर गिरने लगा है. इस के नतीजे में वह घिनौना चेहरा सामने खड़ा है जिस को देख पाना किसी भी इनसान के लिए मुश्किल है.

21वीं सदी के भारत में 69 सालों के लोकतंत्र का अगर यही हासिल है तो उस का पूरा बनने पर ही सवाल खड़ा हो जाता है. राजस्थान के राजसमंद से सामने आई  एक वारदात और उस की आग की लपटों में कोई एक बेबस इनसान नहीं, बल्कि देश का पूरा संविधान व लोकतंत्र जल रहा है.

यह इनसानियत को शर्मसार करने वाली वह तसवीर है, जो बताती है कि अब कुछ बचा नहीं है. अगर बचे हैं तो सिर्फ अपराधी गिरोह और उन का नंगा नाच जो धर्म का वेश धर कर पूरी इनसानियत को लील जाने के लिए तैयार हैं.

राजसमंद की एक वारदात की तसवीरें और वीडियो वायरल हुए. जिहाद का बदला लेने के लिए एक मुसलमान मजदूर की वहशी तरीके से हत्या कर उस की लाश को जला दिया गया.

खबरों के मुताबिक, पश्चिम बंगाल के मालदा का एक मजदूर राजसमंद में अपने परिवार के साथ मजदूरी करता था. हत्या करने वाले शख्स ने उसे काम देने के बहाने अपने पास बुलाया. हत्यारे का नाम शंभुलाल रैगर है. उस ने 50 साल के एक अधेड़ आदमी, जिस का नाम मोहम्मद अफराजुल बता रहे हैं, की पहले कुल्हाड़ी और तलवार से बेरहमी से हत्या की, फिर उस की लाश को जला दिया गया.

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इस पूरी वारदात का शंभुलाल ने अपने एक दोस्त की मदद से न केवल वीडियो बनाया, बल्कि उस ने हत्या और लाश को जलाने की बात को भी माना.

इस वीडियो में दिखा कि अफराजुल आगे चल रहे थे और उन के पीछे शंभुलाल था. मौका पाते ही शंभुलाल ने पीछे से अफराजुल पर हमला कर दिया. इस हमले में उन पर 1-2 नहीं बल्कि कई बार वार किया गया. उस के बाद शंभुलाल ने अपनी मोटरसाइकिल से तलवार निकाल ली और अफराजुल का गला काट दिया.

इस के पहले अफराजुल लगातार उस से अपनी जान की भीख मांग रहे थे, लेकिन शंभुलाल पर इस का कोई असर नहीं पड़ता दिखा. फिर शंभुलाल ने अफराजुल को आग के हवाले कर दिया.

वीडियो में शंभुलाल ने हत्या की बात कबूल की है. उस ने कहा कि यह तुम्हारी हालत होगी. ये हमारे देश में लव जिहाद करते हैं. अगर ऐसा करोगे तो हर जिहादी की हालत ऐसी ही होगी. जिहाद खत्म कर दो.

इस के अलावा एक दूसरे वायरल वीडियो में एक शख्स ने कहा कि यह हत्या हिंदुत्व को बचाने के लिए की गई है. उस शख्स ने कहा कि मेवाड़ को बचाना है. मेवाड़ को एक हो कर इसलामिक जिहाद को यहां से निकालना है, इसलिए मेवाड़ के सभी भाईबहनो, मैं ने जो किया है चाहे अच्छा है या गलत है, लेकिन मुझे जो लगा मैं ने किया.

बोया बीज बबूल का…

तमाम तरह के धर्म अब इनसानियत के दुश्मन बन चुके हैं. इसलाम के आदेश के मुताबिक मुसलमानों ने तलवारें उठाईं. आज अफगानिस्तान, पाकिस्तान में रोज चरमपंथियों द्वारा इनसानियत का कत्ल किया जा रहा है.

अमेरिकी राष्ट्रपति ने यरुशलम को इजरायल की राजधानी यों ही नहीं बताया है. यरुशलम को ले कर जो लड़ाइयां हुई थीं उन को दोबारा जिंदा किया जा रहा है. धर्म के नाम पर इनसानियत की हत्या करने की साजिश रची जा रही है और यह भूख सिर्फ और सिर्फ सब से ताकतवर दिखने व पूंजी लूटने की है. जो खुद अपनेआप को नहीं बचा पाया, उस के मानने वाले दावा तो दुनिया को बचाने का काम कर रहे हैं लेकिन बहुत खूनखराबा सदियों तक यीशु के इन्हीं मानने वालों ने किया है.

भारत की हालत भी ज्यादा अच्छी नहीं रही है. वर्ण भेद के आधार पर ब्राह्मण धर्म की सोच भी इनसानियत को कमजोर करने वाली रही है. ब्राह्मण धर्म के जोरजुल्म की मारी जनता ने बगावत कर बौद्ध परंपरा अपना ली तो पुष्यमित्र शुंग द्वारा सत्ता हथियाने के बाद बौद्धों पर जुल्म करने का सिलसिला चल पड़ा था.

जब भी ब्राह्मण धर्म कमजोर हुआ तो इस देश में शांति रही और जब भी ब्राह्मण धर्म मजबूत हुआ, बहुसंख्यक जनता पर जुल्म ढहाए गए. इतिहास इन के जुल्मों की कथाओं से भरा पड़ा है. तेल की कड़ाहियों में बौद्धों को जिंदा डाल कर मारा गया था. दलितों को कभी इनसान ही नहीं माना गया था. आज इन के 33 करोड़ देवीदेवता धर्म बचाने में नाकाम हो गए हैं, लेकिन अनोखी बात देखो कि एक अंबेडकर का लिखा ग्रंथ इस देश को चला रहा है. यह इन लोगों को फूटी आंख नहीं सुहाता है.

आजादी के आंदोलन के समय भी धर्मांधता के कीचड़ में पूरा का पूरा आंदोलन फंसा हुआ था. दलितों को अंगरेजी राज में खुली हवा में सांस लेने की छूट मिली थी. वे किसी भी हालत में इसे खोना नहीं चाहते थे और उन की लड़ाई की अगुआई अंबेडकर कर रहे थे.

अंगरेजों की विदाई के बाद ब्राह्मणवादी पूरी तरह सत्ता पर कब्जा करना चाहते थे इसलिए तमाम हिंदू संगठन इस के जुगाड़ में लग गए थे. मुसलिमों की अगुआई जिन्ना जैसे लोग कर रहे थे. हक की आड़ में ब्राह्मणों व मुसलमानों ने अपनेअपने धर्म के आधार पर देश का बंटवारा करा दिया था. बेचारे दलित, किसान और आदिवासी कहां जाते?

दलितों के लिए तो अंबेडकर ने संविधान में पुख्ता इंतजाम किए लेकिन तालीम की कमी में वे ज्यादा समझ नहीं पाए. किसान तो बेचारे सदियों से अनाथ ही थे और आजादी के बाद भी अनाथ से ही हो कर रह गए.

अब राजसमंद कांड में सीधेतौर पर तो कोई हिंदूवादी संगठन जिम्मेदार नहीं है लेकिन इन हिंदूवादी संगठनों द्वारा 90 साल से की जा रही मेहनत का नतीजा इसे जरूर माना जा सकता है.

बाबरी मसजिद ढहाने के बाद इस में एकाएक तेजी आई थी जिस में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने भी खूब सहयोग दिया.

जब धर्म के नाम पर नफरत के बीज बोए जाएंगे तो उन्हीं के नतीजे दरिंदों की इस तरह की दरिंदगी के रूप में ही सामने आएंगे. इस वारदात के समर्थक दूसरी वारदातों के उदाहरण दे कर कट्टर सोच को ढो रहे हैं.

धर्म के नाम पर जो हत्या, मारपीट व भेदभाव की घटनाएं हो रही हैं उन के कुसूरवारों को अदालत जाना भी नहीं पड़ रहा. पर जो उन की पोलपट्टी खोलते हैं उन पर मुकदमे दर्ज हो जाते हैं. धर्म इनसानियत का हत्यारा है, पर इस पर लगाम लगाने की कभी किसी में हिम्मत नहीं है.

गहरी साजिश की बूराजसमंद में अफराजुल के परिवार ने हत्यारों के लिए फांसी की सजा की मांग की है. उन्होंने कहा है कि जिन लोगों ने उन की जानवरों की तरह हत्या की है और फिर उन की वीडियो को पूरी दुनिया में दिखाया है उन्हें सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए.

अफराजुल की बीवी गुलबहार ने कहा, ‘‘मैं उन लोगों के लिए फांसी की सजा चाहती हूं जिन्होंने मेरे पति की इतने घिनौने तरीके से हत्या की है. मैं इंसाफ चाहती हूं. वे इसलिए मारे गए क्योंकि वे मुसलिम थे.’’

3 बेटियों के पिता अफराजुल को अपनी छोटी बेटी की शादी के लिए घर लौटना था. परिवार के सदस्यों के मुताबिक, अफराजुल पिछले 12 सालों से राजस्थान में मजदूरी कर रहे थे. हर 2 महीने के बाद वे घर चले आते थे.

उन के पास जमीन का एक टुकड़ा था लेकिन उस से परिवार का भरणपोषण नहीं हो पाता था.

अफराजुल की भतीजी जीनत खान ने कहा, ‘‘इस में गहरी साजिश की बू आ रही है और कई बड़े लोग शामिल हैं. एक मजदूर भला क्या कर सकता है? जिस तरह से सोशल मीडिया पर इसे फैलाया गया है, उस से लगता है कि इस के पीछे एक गहरी साजिश है.’’

बहुत से लोगों ने शंभुलाल की तसवीर ‘माई हीरो शंभु भवानी’ के साथ अपने ट्विटर या फेसबुक के लिए प्रोफाइल फोटो डाला है. इन समर्थकों के नाम के साथ लगी जाति की पहचान करने पर चौंकाने वाला सच सामने आता है.

इस हत्याकांड का समर्थन कर रहे लोगों में से 95 फीसदी ऊंची जाति के हिंदू हैं जो शंभुलाल रैगर नामक एक दलित की हरकत को जायज ठहरा रहे हैं.

लोगों के बीच यह झूठ फैलाया जा रहा है कि आतंकी हमले का शिकार हुए बंगाली मजदूर अफराजुल ने हत्यारे शंभुलाल की बहन से शादी कर रखी थी और उसे भगा कर पश्चिम बंगाल ले गया था, जबकि सच तो यह है कि कातिल की बहन तो छोडि़ए उस की किसी रिश्तेदार से भी पीडि़त का कोई संबंध नहीं था. वे तो हत्यारे शंभुलाल को ठीक से जानते तक नहीं थे. उन्हें कातिल ने महज मुसलमान होने की वजह से हमले का शिकार बनाया और बड़ी बेरहमी से पहले तो काटा और फिर जला डाला.

इस वारदात को सिर्फ सनकी आदमी की सनक में किया गया आम अपराध बता देना नफरत के उन कारोबारी संगठनों की तरफदारी करना है जो अपनी जहरीली सोच से कमजोर दिमाग के नौजवानों को फंसा कर आत्मघाती दस्ते तैयार कर रहे हैं.

राजसमंद हत्याकांड यह भी साबित करता है कि दलित नौजवानों का तालिबानीकरण किया जा रहा है. उन के जरीए मौत के सौदागर अपना आतंकी खेल खेलने में कामयाब हो रहे हैं. इस से ऊंची जाति के सांप्रदायिक लोग एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश कर रहे हैं.

वे दलितों और मुसलमानों को आमनेसामने की एक न खत्म होने वाली लड़ाई में झोंक कर खुद महफूज होने की कोशिश में हैं. इसी के साथ वे दलित नौजवानों को अपराधी बनाने का काम भी कर रहे हैं ताकि वे हत्या, दंगे, लूट, हमले जैसी वारदातें करते रहें और जेलों में बरसों सड़ते रहें. इस तरह एक शख्स ही नहीं बल्कि उस का पूरा परिवार ही बरबाद हो जाए.

दलितों और मुसलिमों को आपसी लड़ाई में धकेल कर भारत के कट्टर लोग सारे साधनों व संसाधनों पर काबिज हो कर अमीरी भोगते रहना चाहते हैं. यह एक घिनौनी साजिश है. इस के शिकार दलित हो चुके हैं.

दलित नौजवानों को बड़े पैमाने पर उन उग्र संगठनों से जोड़ा जा रहा है जिन के जरीए हिंसक वारदातें कराई जा सकें. हुड़दंग करने, दंगे फैलाने, त्रिशूल बांटने, शस्त्र पूजा कराने, चाकूबाजी और मुकदमे कराने, हत्याएं कराने व जेल भेजने के लिए ये नए बने कट्टर बहुत काम आते हैं.

हालांकि ये तभी तक हिंदू माने जाते हैं जब तक सामने मुसलमान हो या चुनाव होने हों. बाकी समय में इन को नीच हिंदू के तौर पर ही माना जाता है. धर्म की प्रयोगशाला में आज दलितों की औकात लैबोरेटरी में चीरफाड़ किए जाने वाले मेढ़कों जैसी हो गई है.

एक फर्जी किस्म की ऊपरीऊपरी कुछ मिनटों की इज्जत मिल जाने और थोड़ेबहुत पैसे पा कर आज के भटके दलित नौजवान अपनी जान पर खेल कर हमलावर तक बनने को तैयार हैं. वे कुछ भी सोचविचार नहीं कर पा रहे हैं. उन पर हिंदुत्व इतना हावी हो गया है कि वे खुद को धर्मयोद्धा समझ कर मरनेमारने पर उतारू हैं.

आज देश का दलित किशोर और नौजवान जिंदा बम बन कर खुदकुशी की राह पर चल पड़ा है. उन्हें धर्म से इतना भर दिया गया है कि भस्मासुर बन कर खुद का ही नुकसान कर रहे हैं. वे अब मनु के गीत गा रहे हैं. आरक्षण हटाने की मांग भी वे अब कर रहे हैं.