Best Hindi Story : 2 करोड़ का इनामी डाकू बना शांतिदूत

Best Hindi Story : मध्य प्रदेश के जिला भिंड के गांव सिंहपुरा के रहने वाले सीधेसादे पंचम सिंह लड़ाईझगड़े से दूर रहकर शांतिपूर्वक जीवन गुजार रहे थे. उन्हें अपने परिवार की खुशियों से मतलब था, जिस में उन के मातापिता, एक भाई और एक बहन के अलावा पत्नी थी. शादी के कई साल बीत जाने के बाद भी वह पिता नहीं बन पाए थे. कदकाठी से मजबूत पंचम सिंह निहायत ही शरीफ और मेहनती आदमी थे. अपनी खेतीबाड़ी में जीतोड़ मेहनत कर के वह अपने परिवार को हर तरह से सुखी रखने की कोशिश कर रहे थे. अब तक उन की उम्र लगभग 35 साल हो चुकी थी.

लेकिन एक बार हुए झगड़े में पंचम सिंह की ऐसी जबरदस्त पिटाई हुई कि उन के बचने की उम्मीद नहीं रह गई. इस के बावजूद पुलिस ने पिटाई करने वालों के बजाय बलवा करने के आरोप में उन्हें ही जेल भेज दिया. प्रताडि़त किया अलग से. यह सन 1958 की बात है. दरअसल, गांव में पंचायत के चुनाव हो रहे थे. प्रचार अभियान जोरों पर था. पंचम की साफसुथरी छवि थी, जिस से गांव के ज्यादातर लोग उन्हें पसंद करते थे. इसलिए दबंग किस्म के लोगों की एक पार्टी ने चाहा कि वह उन के लिए प्रचार करें.

वे लोग गरीबों पर जुल्म किया करते थे, जो पंचम सिंह को पसंद नहीं था. लेकिन चाह कर भी वह इस बारे में कुछ नहीं कर सकते थे. उन्हें राजनीति में भी कोई विशेष रुचि नहीं थी, इसलिए उन्होंने उन का प्रचार करने से साफ मना कर दिया. तब उन्होंने उन्हें धमकाया. इस का परिणाम यह निकला कि वह उस प्रत्याशी के प्रचार में जुट गए, जो उन दबंगों के विरोध में खड़ा था. पंचम की निगाह में उस का जीतना गांव वालों के लिए अच्छा था. इस का असर यह हुआ कि उन दबंगों ने उन्हें अकेले में घेर कर इस तरह पीटा कि उन के पिता उन्हें बैलगाड़ी से अस्पताल ले गए, जहां 20 दिनों तक उन का इलाज चला.

इसी बीच उन पर झूठा मुकदमा दर्ज कर के पुलिस ने अस्पताल में उन के बैड पर पहरा लगा दिया. 20 दिनों बाद वह अस्पताल से डिस्चार्ज हुए तो उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. जमानत पर घर आने के बाद भी दबंग उन्हें परेशान करते रहे. घर वालों से भी मारपीट की गई, जिस में पिता ही नहीं, भाई और बहन भी घायल हुए.

इस मामले में पुलिस दबंगों के खिलाफ काररवाई करने के बजाय पंचम को ही दोषी ठहरा कर पकड़ ले गई. पुलिस ने उन्हें आदतन बलवाकारी कहना शुरू कर दिया, साथ ही कानूनी रूप से उन्हें ‘बाउंड’ करने की काररवाई भी शुरू कर दी. पुलिस की ओर से उन्हें धमकाया भी जाता रहा कि जल्दी ही उन्हें कई झूठे मुकदमों में फंसा दिया जाएगा, जिन में उन्हें जमानत मिलनी मुश्किल हो जाएगी. फिर वह सारी जिंदगी जेल में सड़ते रहेंगे.

पंचम सिंह को अपनी बरबादी साफ दिखाई देने लगी थी. पानी जब सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो दूसरा कोई उपाय न देख पंचम सिंह बीहड़ में कूद कर चंबल घाटी के कुख्यात दस्युसम्राट मोहर सिंह के गिरोह में शामिल हो गए. इस के बाद उन्होंने इस गिरोह की मदद से खुद को और घर वालों को पीटने वाले 12 लोगों को चुनचुन कर मौत के घाट उतार दिया. इसी एक कांड के बाद पूरे इलाके में पंचम सिंह के आतंक का डंका बजने लगा. इस के बाद किसी में इतना दम नहीं रहा कि उन के परिवार की ओर आंख उठा कर भी देख ले. किसी में इतनी हिम्मत नहीं रही कि उन के खिलाफ पुलिस में जा कर शिकायत कर दे.

चंबल के बीहड़ों के बारे में कहा जाता था कि वहां बंदूक की नोक पर समानांतर सत्ता चलती थी. चौथी तक पढ़े और मात्र 14 साल की उम्र में वैवाहिक बंधन में बंध गए पंचम सिंह ने एक ही झटके में इस कहावत को चरितार्थ कर दिया था. इस तरह एक शरीफ आदमी दिलेर डकैत बन कर कत्ल और लूटपाट करने लगा था. देखते ही देखते वह अनगिनत आपराधिक मामलों में नामजद हो गए. पुलिस उन्हें पकड़ने के लिए परेशान थी. उन की गिरफ्तारी के लिए अच्छाखासा इनाम रख दिया गया, जो बढ़तेबढ़ते 1970 तक 2 करोड़ तक पहुंच गया.  डाकू पंचम सिंह का नाम सब से ज्यादा वांछित दस्यु सम्राटों में आ गया था.

अब तक पंचम सिंह एक सिरफिरे दस्यु सम्राट के रूप में प्रसिद्ध हो गए थे. इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में उन्होंने उन्हें चैलेंज कर दिया था कि उन के इलाके में उन के बजाय उन की सरकार बेहतर चलेगी. इस से नाराज हो कर इंदिरा गांधी ने चंबल में बमबारी कर के डाकुओं का सफाया करने का आदेश दे दिया था, लेकिन बाद में इस आदेश को वापस ले कर डाकुओं से आत्मसमर्पण कराने पर विचार किया जाने लगा था.

आखिरकार इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण को डकैतों से आत्मसमर्पण कराने की जिम्मेदारी सौंपी. उन की पहल पर 3 मांगों की शर्त के साथ कई दस्यु सम्राट अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण को तैयार हो गए. अपनी आत्मा की आवाज पर सन 1972 में पंचम सिंह ने भी अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया था. उन लोगों पर लूटपाट और फिरौती के लिए अपहरण के अनगिनत मुकदमों के अलावा 125 लोगों की हत्या का मुकदमा चला.

अदालत ने इन आरोपों के आधार पर उन्हें फांसी की सजा सुनाई. पंचम सिंह का 556 डाकुओं का गिरोह था. इन सभी ने अपने सरदार के साथ आत्मसमर्पण किया था और अब इन सभी को एक साथ फांसी की सजा हुई थी. लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने फांसी का विरोध करते हुए इस के खिलाफ आवाज उठाने के अलावा संबंधित अदालतों में अपील भी की. उन का कहना था कि वह डकैतों से इसी शर्त पर आत्मसमर्पण करवाने में सफल हुए थे कि सरकार उन पर दया दिखाते हुए उन्हें सुधरने का मौका देगी.

इस के बाद सभी डकैतों की फांसी की सजा उम्रकैद में बदल दी गई थी. इस के साथ इन कैदियों की यह शर्तें भी स्वीकार कर ली गई थीं कि उन्हें खुली जेल में रह कर खेतीबाड़ी करते हुए परिवार के साथ सजा काटने का मौका दिया जाए. पंचम सिंह को उसी तरह के अन्य दुर्दांत कैदियों के साथ मध्य प्रदेश की खुली मूंगावली जेल में रखा गया. वहीं पर उन की जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा बीता.

एक बार ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा जीवन क्या है, विषय पर जेल में एक ऐसी प्रदर्शनी लगाई गई, जो निरंतर 3 सालों तक लगी रही. प्रदर्शनी द्वारा कैदियों को जीवन के उज्ज्वल पक्ष से संबंधित जानकारियां और शिक्षाएं भी दी जाती रहीं. कैदियों को न केवल राजयोग का अभ्यास कराया जाता था, आध्यात्मिक ज्ञान से सराबोर करने के प्रयास भी किए जाते रहे. इस से क्या हुआ कि अतीत के दुर्दांत डकैतों के जीवन में आध्यात्मिक उन्नति के चिह्न परिलक्षित होने लगे.

दस्यु सम्राट कहे जाने वाले पंचम सिंह भी उन्हीं में से एक थे. उन का कुछ ऐसा हृदय परिवर्तन हुआ कि अंततोगत्वा वह भी इसी राह पर चल पड़े. बाद में जब उन के अच्छे आचरण को देखते हुए उन की बाकी की सजा माफ कर दी गई तो वह कहीं और जाने के बजाय उन्हीं शिक्षाओं का हिस्सा बन कर शांतिदूत के रूप में इस का प्रचार करने लगे. इसी सिलसिले में कुछ समय पहले पंचम सिंह मोहाली के ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के सुखशांति भवन में आए. अपने जीवन के अनुभव बांटते हुए उन्होंने बताया कि अपने डकैत जीवन में भी वह समाजसेवा के कामों को तरजीह दिया करते थे.

उन के अधीन 3 राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कई इलाके थे, जहां के संपन्न लोगों से वह उन की कमाई का 10 फीसदी हिस्सा वसूल कर के उसी इलाके के गरीब परिवारों की लड़कियों की शादी पर खर्च करने के अलावा अस्पतालों और स्कूलों को दान कर दिया करते थे. डाकुओं के अपने नियम होते थे, जिन पर सभी डकैतों को निश्चित रूप से चलना होता था. पंचम सिंह के अनुसार, उन्होंने कभी भी बच्चों या महिलाओं को परेशान नहीं किया, न ही उन के गिरोह का कोई सदस्य किसी महिला को बुरी नजर से देखने का दुस्साहस कर सका. हां, जिस किसी ने भी उन की मुखबिरी की, उसे उन्होंने किसी भी कीमत पर नहीं बख्शा.

इस समय 94 साल के हो चुके पंचम सिंह के बताए अनुसार, उन की गिरफ्तारी पर 2 करोड़ का इनाम था, लेकिन वह कभी पकड़े नहीं गए. पुलिस से हुई एक मुठभेड़ में उन की दाईं बाजू में गोली लगी थी, वह तब भी बच निकले थे. अपने आत्मसमर्पण के बाद उन्होंने फूलन देवी, मलखान सिंह, सीमा परिहार और सुमेर गुर्जर का भी आत्मसमर्पण कराने में मदद की थी. इस के अलावा उन्होंने दक्षिण भारत के चंदन तस्कर वीरप्पन से मिल कर अभिनेता राजकुमार को उस के चंगुल से मुक्त करवाने में पुलिस की मदद की थी.

देश की युवा पीढ़ी के लिए उन का संदेश है कि विपरीत परिस्थितियों में भी वे कभी मर्यादा न खोएं. एकता, सत्य और दृढ़संकल्प हो कर जिस ने भी परिस्थितियों को अपने वश में किया, वह महान हुआ है. अपनी एक दिनचर्या बना कर उस पर दृढ़ता से अमल करना श्रेयस्कर रहता है. एक डाकू होने और हर पल विपरीत परिस्थितियों में जीने के बावजूद पंचम सिंह ने अपनी मर्यादा को बचाए रखा, यही उन के जीवन की सब से बड़ी उपलब्धि है. Best Hindi Story

Crime Story in Hindi : बच्चे की ख्वाहिश बनी जिंदगी की तबाही

Crime Story in Hindi : रमन की शादी हुए 6 साल हो गए, मगर अभी तक कोई औलाद नहीं हुई. चूंकि दोनों पतिपत्नी धार्मिक स्वभाव के थे, इसलिए वे देवीदेवता से मन्नतें मांगते रहते थे, लेकिन तब भी बच्चा न हुआ. तभी उन्हें पता चला कि एक चमत्कारी बाबा आए हैं. अगर उन का आशीर्वाद मिल जाए, तो बच्चा हो सकता है. यह जान कर रमन और उस की बीवी सीमा उस बाबा के पास पहुंचे. सीमा बाबा के पैरों पर गिर पड़ी और कहने लगी, ‘‘बाबा, मेरा दुख दूर करें. मैं 6 साल से बच्चे का मुंह देखने के लिए तड़प रही हूं.’’

‘‘उठो, निराश मत हो. तुम्हें औलाद का सुख जरूर मिलेगा…’’ बाबा ने कहा, ‘‘अच्छा, कल आना.’’

अगले दिन सीमा ठीक समय पर बाबा के पास पहुंच गई. बाबा ने कहा, ‘‘बेटी, औलाद के सुख के लिए तुम्हें यज्ञ कराना पड़ेगा.’’

‘‘जी बाबा, मैं सबकुछ करने को तैयार हूं. बस, मुझे औलाद हो जानी चाहिए,’’ सीमा ने कहा, तो बाबा ने जवाब दिया, ‘‘यह ध्यान रहे कि इस यज्ञ में कोई भी देवीदेवता किसी भी रूप में आ कर तुझे औलाद दे सकते हैं, इसलिए किसी भी हालत में यज्ञ भंग नहीं होना चाहिए, नहीं तो तेरे पति की मौत हो जाएगी.’’

‘‘जी बाबा,’’ सीमा ने कहा और बाबा के साथ एकांत में बने कमरे में चली गई. वहां बाबा खुद को भगवान बता कर उस के अंगों के साथ खेलने लगा. सीमा कुछ नहीं बोली. वह समझी कि बाबाजी उसे औलाद का सुख देना चाहते हैं, इसलिए वह चुपचाप सबकुछ सहती रही. लेकिन शरद ऐसे बाबाओं के चोंचलों को अच्छी तरह जानता था, इसलिए जब उस की बीवी टीना ने कहा, ‘‘हमें भी बच्चे के लिए किसी साधुसंत से औलाद का आशीर्वाद ले लेना चाहिए,’’ तब शरद बोला, ‘‘औलाद केवल साधुसंत के आशीर्वाद से नहीं होती है. इस के लिए जब तक पतिपत्नी दोनों कोशिश न करें, तब तक कोई बच्चा नहीं दे सकता.’’

‘‘मगर हम यह कोशिश पिछले 5 साल से कर रहे हैं. हमें बच्चा क्यों नहीं हो रहा है?’’ टीना ने पूछा.

‘‘इस की जांच तो डाक्टर से कराने पर ही पता चल सकती है कि हमें बच्चा क्यों नहीं हो रहा है. समय मिलते ही मैं डाक्टर से हम दोनों की जांच कराऊंगा.’’

टीना ने कहा, ‘‘ठीक है.’’

दोपहर को टीना की सहेली उस से मिलने आई, जो उसे एक नीमहकीम के पास ले गई. नीमहकीम ने टीना से कुछ सवाल पूछे, जिस का उस ने जवाब दे दिया. इस दौरान ही उस नीमहकीम ने यह पता लगा लिया था कि टीना को माहवारी हुए आज 14वां दिन है, इसलिए वह बोला, ‘‘तुम्हारे अंग की जांच करनी पड़ेगी.’’

‘‘ठीक है, डाक्टर साहब. मैं कब आऊं?’’ टीना ने पूछा.

‘‘जांच आज ही करा लो, तो अच्छा रहेगा,’’ नीमहकीम ने कहा, तो टीना राजी हो गई.

तब वह नीमहकीम टीना को अंदर के कमरे में ले गया, फिर बोला, ‘‘आप थोड़ी देर यहीं बैठिए और इस थर्मामीटर को 5 मिनट तक अपने अंग में लगाइए.’’

टीना ने ऐसा ही किया.

5 मिनट बाद डाक्टर आया. उस के एक हाथ में अंग फैलाने का औजार और दूसरे हाथ में एक इंजैक्शन था, जिस में कोई दवा भरी थी, जिसे देख कर टीना ने पूछा, ‘‘यह क्या है डाक्टर साहब?’’ ‘‘इस से तुम्हारे अंग की दूसरी जांच की जाएगी,’’ कह कर नीमहकीम ने टीना से थर्मामीटर ले लिया और टीना को मेज पर लिटा दिया. इस के बाद वह उस के अंग में औजार लगा कर जांच करने लगा.

जांच के बहाने नीमहकीम ने टीना के अंग में इंजैक्शन की दवा डाल दी और कहा, ‘‘कल फिर अपनी जांच कराने आना.’’ टीना अभी तक घबरा रही थी, मगर आसान जांच देख कर खुश हुई. फिर दूसरे दिन भी यही हुआ. मगर उस दिन इंजैक्शन को अंग में आगेपीछे चलाया गया था. इस के बाद उसे 14 दिन बाद आने को कहा गया.

टीना जब 14 दिन बाद नीमहकीम के पास गई, तब वह सचमुच मां बनने वाली थी.

यह जान कर टीना बहुत खुश हुई. मगर जब यही खुशी उस ने अपने पति शरद को सुनाई, तो वह नाराज हो गया.

‘‘बता किस के पास गई थी?’’ शरद चीख पड़ा.

‘‘यह मेरा बच्चा नहीं है. मैं ने कल ही अपनी जांच कराई थी. डाक्टर का कहना है कि मेरे शरीर में बच्चा पैदा करने की ताकत ही नहीं है. तब मैं बाप कैसे बन गया?’’ शरद ने कहा.

शरद के मुंह से यह सुनते ही टीना सब माजरा समझ गई. वह जान गई कि नीमहकीम ने जांच के बहाने उस के अंग में अपना वीर्य डाल दिया था. मगर अब क्या हो सकता था. टीना औलाद के नाम पर ठगी जा चुकी थी. आज के जमाने में औलाद पैदा करने की कई विधियों का विकास हो चुका है. परखनली से भी कई बच्चे पैदा हो चुके हैं. यह सब विज्ञान के चलते मुमकिन हुआ है. फिर भी लोग पुराने जमाने में जीते हुए ऐसे धोखेबाजों के पास बच्चा मांगने जाते हैं. इस से बढ़ कर दुख की बात और क्या हो सकती है. Crime Story in Hindi

Love Crime : जिस्म की खातिर किया इश्क

Love Crime : मीना अपने 3 भाईबहनों में सब से बड़ी ही नहीं, खूबसूरत भी थी. उस का परिवार औरैया जिले के कस्बा दिबियापुर में रहता था. उस के पिता अमर सिंह रेलवे में पथ निरीक्षक थे. उस ने इंटर पास कर लिया तो मांबाप उस के विवाह के बारे में सोचने लगे. उन्होंने उस के लिए घरवर की तलाश शुरू की तो उन्हें कंचौसी कस्बा के रहने वाले राम सिंह का बेटा अनिल पसंद आ गया.

जून, 2008 में मीना की शादी अनिल से हो गई. मीना सुंदर तो थी ही, दुल्हन बनने पर उस की सुंदरता में और ज्यादा निखार आ गया था. ससुराल में जिस ने भी उसे देखा, उस की खूबसूरती की खूब तारीफ की. अपनी प्रशंसा पर मीना भी खुश थी. मीना जैसी सुंदर पत्नी पा कर अनिल भी खुश था.

दोनों के दांपत्य की गाड़ी खुशहाली के साथ चल पड़ी थी. लेकिन कुछ समय बाद आर्थिक परेशानियों ने उन की खुशी को ग्रहण लगा दिया. शादी के पहले अनिल छोटेमोटे काम कर के गुजारा कर लेता था. लेकिन शादी के बाद मीना के आने से जहां अन्य खर्चे बढ़ ही गए थे, वहीं मीना की महत्त्वाकांक्षी ख्वाहिशों ने उस के इस खर्च को और बढ़ा दिया था. आर्थिक परेशानियों को दूर करने के लिए वह कस्बे की एक आढ़त पर काम करने लगा था.

आढ़त पर काम करने की वजह से अनिल को कईकई दिनों घर से बाहर रहना पड़ता था, जबकि मीना को यह कतई पसंद नहीं था. पति की गैरमौजूदगी में वह आसपड़ोस के लड़कों से बातें ही नहीं करने लगी थी, बल्कि हंसीमजाक भी करने लगी थी. शुरूशुरू में तो किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब उस की हरकतें हद पार करने लगीं तो अनिल के मातापिता से यह देखा नहीं गया और वे यह कह कर गांव चले गए कि अब वे गांव में रह कर खेती कराएंगे.

सासससुर के जाने के बाद मीना को पूरी आजादी मिल गई थी. अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए उस ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं तो उसे राजेंद्र जंच गया. फिर तो वह उसे मन का मीत बनाने की कोशिश में लग गई. राजेंद्र मूलरूप से औरैया का रहने वाला था. उस के पिता गांव में खेती कराते थे. वह 3 भाईबहनों में सब से छोटा था. बीकौम करने के बाद वह कंचौसी कस्बे में रामबाबू की अनाज की आढ़त पर मुनीम की नौकरी करने लगा था.

राजेंद्र और अनिल एक ही आढ़त पर काम करते थे, इसलिए दोनों में गहरी दोस्ती थी. अनिल ने ही राजेंद्र को अपने घर के सामने किराए पर कमरा दिलाया था. दोस्त होने की वजह से राजेंद्र अनिल के घर आताजाता रहता था. जब कभी आढ़त बंद रहती, राजेंद्र अनिल के घर आ जाता और फिर वहीं पार्टी होती. पार्टी का खर्चा राजेंद्र ही उठाता था.

राजेंद्र पर दिल आया तो मीना उसे फंसाने के लिए अपने रूप का जलवा बिखेरने लगी. मीना के मन में क्या है, यह राजेंद्र की समझ में जल्दी ही आ गया. क्योंकि उस की निगाहों में जो प्यास झलक रही थी, उसे उस ने ताड़ लिया था. इस के बाद तो मीना उसे हूर की परी नजर आने लगी थी. वह उस के मोहपाश में बंधता चला गया था.

एक दिन जब राजेंद्र को पता चला कि अनिल 2 दिनों के लिए बाहर गया है तो उस दिन उस का मन काम में नहीं लगा. पूरे दिन उसे मीना की ही याद आती रही. घर आने पर वह मीना की एक झलक पाने को बेचैन था. उस की यह ख्वाहिश पूरी हुई शाम को. मीना सजधज कर दरवाजे पर आई तो उस समय वह उसे आसमान से उतरी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी. उसे देख कर उस का दिल बेकाबू हो उठा.

राजेंद्र को पता ही था कि अनिल घर पर नहीं है, इसलिए वह उस के घर जा पहुंचा. राजेंद्र को देख कर मीना ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज तुम आढ़त से बड़ी जल्दी आ गए, वहां कोई काम नहीं था क्या?’’

‘‘काम तो था भाभी, लेकिन मन नहीं लगा.’’

‘‘क्यों?’’ मीना ने पूछा.

‘‘सच बता दूं भाभी.’’

‘‘हां, बताओ.’’

‘‘भाभी, तुम्हारी सुंदरता ने मुझे विचलित कर दिया है, तुम सचमुच बहुत सुंदर हो.’’

‘‘ऐसी सुंदरता किस काम की, जिस की कोई कद्र न हो.’’ मीना ने लंबी सांस ले कर कहा.

‘‘क्या अनिल भाई, तुम्हारी कद्र नहीं करते?’’

‘‘जानबूझ कर अनजान मत बनो. तुम जानते हो कि तुम्हारे भाई साहब महीने में 10 दिन तो बाहर ही रहते हैं. ऐसे में मेरी रातें करवटों में बीतती हैं.’’

‘‘भाभी जो दुख तुम्हारा है, वही मेरा भी है. मैं भी तुम्हारी यादों में रातरात भर करवट बदलता रहता हूं. अगर तुम मेरा साथ दो तो हमारी समस्या खत्म हो सकती है.’’ कह कर राजेंद्र ने मीना को अपनी बांहों में भर लिया.

मीना चाहती तो यही थी, लेकिन उस ने मुखमुद्रा बदल कर बनावटी गुस्से में कहा, ‘‘यह क्या कर रहे हो, छोड़ो मुझे.’’

‘‘प्लीज भाभी शोर मत मचाओ, तुम ने मेरा सुखचैन सब छीन लिया है.’’ राजेंद्र ने कहा.

‘‘नहीं राजेंद्र, छोड़ो मुझे. मैं बदनाम हो जाऊंगी, कहीं की नहीं रहूंगी मैं.’’

‘‘नहीं भाभी, अब यह मुमकिन नहीं है. कोई पागल ही होगा, जो रूपयौवन के इस प्याले के इतने करीब पहुंच कर पीछे हटेगा.’’ कह कर राजेंद्र ने बांहों का कसाव बढ़ा दिया.

दिखावे के लिए मीना न…न…न… करती रही, जबकि वह खुद राजेंद्र के शरीर से लिपटी जा रही थी. राजेंद्र कोई नासमझ बच्चा नहीं था, जो मीना की हरकतों को न समझ पाता. इस के बाद वह क्षण भी आ गया, जब दोनों ने मर्यादा भंग कर दी.

एक बार मर्यादा भंग हुई तो राजेंद्र को हरी झंडी मिल गई. उसे जब भी मौका मिलता, वह मीना के घर पहुंच जाता और इच्छा पूरी कर के वापस आ जाता. मीना अब खुश रहने लगी थी, क्योंकि उस की शारीरिक भूख मिटने लगी थी, साथ ही आर्थिक समस्या का भी हल हो गया था. मीना जब भी राजेंद्र से रुपए मांगती थी, वह चुपचाप निकाल कर दे देता था.

काम कोई भी हो, ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रहता. ठीक वैसा ही मीना और राजेंद्र के संबंधों में भी हुआ. उन के नाजायज संबंधों को ले कर अड़ोसपड़ोस में बातें होने लगीं. ये बातें अनिल के कानों तक पहुंची तो वह सन्न रह गया. उसे बात में सच्चाई नजर आई. क्योंकि उस ने मीना और राजेंद्र को खुल कर हंसीमजाक करते हुए कई बार देखा था. तब उस ने इसे सामान्य रूप से लिया था. अब पडोसियों की बातें सुन कर उसे दाल में काला नजर आने लगा था.

अनिल ने इस बारे में मीना से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘पड़ोसी हम से जलते हैं. राजेंद्र का आनाजाना और मदद करना उन्हें अच्छा नहीं लगता, इसलिए वे इस तरह की ऊलजुलूल बातें कर के तुम्हारे कान भर रहे हैं. अगर तुम्हें मुझ पर शक है तो राजेंद्र का घर आनाजाना बंद करा दो. लेकिन उस के बाद तुम दोनों की दोस्ती में दरार पड़ जाएगी. वह हमारी आर्थिक मदद करना बंद कर देगा.’’

अनिल ने राजेंद्र और मीना को रंगेहाथों तो पकड़ा नहीं था, इसलिए उस ने मीना की बात पर यकीन कर लिया. लेकिन मन का शक फिर भी नहीं गया. इसलिए वह राजेंद्र और मीना पर नजर रखने लगा. एक दिन राजेंद्र आढ़त पर नहीं आया तो अनिल को शक हुआ. दोपहर को वह घर पहुंचा तो उस के मकान का दरवाजा बंद था और अंदर से मीना और राजेंद्र के हंसने की आवाजें आ रही थीं. अनिल ने खिड़की के छेद से अंदर झांक कर देखा तो मीना और राजेंद्र एकदूसरे में समाए हुए थे.

अनिल सीधे शराब के ठेके पर पहुंचा और जम कर शराब पी. इस के बाद घर लौटा और दरवाजा पीटने लगा. कुछ देर बाद मीना ने दरवाजा खोला तो राजेंद्र कमरे में बैठा था. उस ने राजेंद्र को 2 तमाचे मार कर बेइज्जत कर के घर से भगा दिया. इस के बाद मीना की जम कर पिटाई की. मीना ने अपनी गलती मानते हुए अनिल के पैर पकड़ कर माफी मांग ली और आइंदा इस तरह की गलती न करने की कसम खाई.

अनिल उसे माफ करने को तैयार नहीं था, लेकिन मासूम बेटे की वजह से अनिल ने मीना को माफ कर दिया. इस के बाद कुछ दिनों तक अनिल, मीना से नाराज रहा, लेकिन धीरेधीरे मीना ने प्यार से उस की नाराजगी दूर कर दी. अनिल को लगा कि मीना राजेंद्र को भूल चुकी है. लेकिन यह उस का भ्रम था. मीना ने मन ही मन कुछ दिनों के लिए समझौता कर लिया था.

अनिल के प्रति यह उस का प्यार नाटक था, जबकि उस के दिलोदिमाग में राजेंद्र ही बसता था. उधर अनिल द्वारा अपमानित कर घर से निकाल दिए जाने पर राजेंद्र के मन में नफरत की आग सुलग रही थी. उन की दोस्ती में भी दरार पड़ चुकी थी. आमनासामना होने पर दोनों एकदूसरे से मुंह फेर लेते थे. मीना से जुदा होना राजेंद्र के लिए किसी सजा से कम नहीं था.

मीना के बगैर उसे चैन नहीं मिल रहा था. अनिल ने मीना का मोबाइल तोड़ दिया था, इसलिए उस की बात भी नहीं हो पाती थी. दिन बीतने के साथ मीना से न मिल पाने से उस की तड़प बढ़ती जा रही थी. आखिर एक दिन जब उसे पता चला कि अनिल बाहर गया है तो वह मीना के घर जा पहुंचा. मीना उसे देख कर उस के गले लग गई. उस दिन दोनों ने जम कर मौज की.

लेकिन राजेंद्र घर के बाहर निकलने लगा तो पड़ोसी राजे ने उसे देख लिया. अगले दिन अनिल वापस आया तो राजे ने उसे राजेंद्र के आने की बात बता दी. अनिल को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन वह चुप रहा. उसे लगा कि जब तक राजेंद्र जिंदा है, तब तक वह उस की इज्जत से खेलता रहेगा. इसलिए इज्जत बचाने के लिए उस ने अपने दोस्त की हत्या की योजना बना डाली.

उस ने मीना को उस के मायके दिबियापुर भेज दिया. उस ने उसे भनक तक नहीं लगने दी थी कि उस के मन में क्या चल रहा है. मीना को मायके पहुंचा कर उस ने राजेंद्र से पुन: दोस्ती गांठ ली. राजेंद्र तो यही चाहता था, क्योंकि दोस्ती की आड़ में ही उस ने मीना को अपनी बनाया था. एक बार फिर दोनों की महफिल जमने लगी.

एक दिन शराब पीते हुए राजेंद्र ने कहा, ‘‘अनिलभाई, तुम ने मीना भाभी को मायके क्यों पहुंचा दिया? उस के बिना अच्छा नहीं लगता. मुझे आश्चर्य इस बात का है कि उस के बिना तुम्हारी रातें कैसे कटती हैं?’’

अनिल पहले तो खिलखिला कर हंसा, उस के बाद गंभीर हो कर बोला, ‘‘दोस्त मेरी रातें तो किसी तरह कट जाती हैं, पर लगता है तुम मीना के बिना बेचैन हो. खैर तुम कहते हो तो मीना को 2-4 दिनों में ले आता हूं.’’

अनिल को लगा कि राजेंद्र को उस की दोस्ती पर पूरा भरोसा हो गया है. इसलिए उस ने राजेंद्र को ठिकाने लगाने की तैयारी कर ली. उस ने राजेंद्र से कहा कि वह भी उस के साथ मीना को लाने चले. वह उसे देख कर खुश हो जाएगी. मीना की झलक पाने के लिए राजेंद्र बेचैन था, इसलिए वह उस के साथ चलने को तैयार हो गया.

5 जुलाई, 2016 की शाम अनिल और राजेंद्र कंचौसी रेलवे स्टेशन पहुंचे. वहां पता चला कि इटावा जाने वाली इंटर सिटी ट्रेन 2 घंटे से अधिक लेट है. इसलिए दोनों ने दिबियापुर (मीना के मायके) जाने का विचार त्याग दिया. इस के बाद दोनों शराब के ठेके पर पहुंचे और शराब की बोतल, पानी के पाउच और गिलास ले कर कस्बे से बाहर पक्के तालाब के पास जा पहुंचे.

वहीं दोनों ने जम कर शराब पी. अनिल ने जानबूझ कर राजेंद्र को कुछ ज्यादा शराब पिला दी, जिस से वह काफी नशे में हो गया. वह वहीं तालाब के किनारे लुढ़क गया तो अनिल ने ईंट से उस का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी. राजेंद्र की हत्या कर के अनिल ने उस के सारे कपडे़ उतार लिए और खून सनी ईंट के साथ उन्हें तालाब से कुछ दूर झाडि़यों में छिपा दिया. इस के बाद वह ट्रेन से अपनी ससुराल दिबियापुर चला गया.

इधर सुबह कुछ लोगों ने तालाब के किनारे लाश देखी तो इस की सूचना थाना सहावल पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी धर्मपाल सिंह यादव फोर्स ले कर घटनास्थल पहुंच गए. तालाब के किनारे नग्न पड़े शव को देख कर धर्मपाल सिंह समझ गए कि हत्या अवैध संबंधों के चलते हुई है.

लाश की शिनाख्त में पुलिस को कोई परेशानी नहीं हुई. मृतक का नाम राजेंद्र था और वह रामबाबू की आढ़त पर मुनीम था. आढ़तिया रामबाबू को बुला कर राजेंद्र के शव की पहचान कराई गई. उस के पास राजेंद्र के पिता रामकिशन का मोबाइल नंबर था. धर्मपाल सिंह ने उसी नंबर पर राजेंद्र की हत्या की सूचना दे दी.

घटनास्थल पर बेटे की लाश देख कर रामकिशन फफक कर रो पड़ा. लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. धर्मपाल सिंह ने जांच शुरू की तो पता चला कि मृतक राजेंद्र कंचौसी कस्बा के कंचननगर में किराए के कमरे में रहता था. उस की दोस्ती सामने रहने वाले अनिल से थी, जो उसी के साथ काम करता था.

राजेंद्र का आनाजाना अनिल के घर भी था. उस के और अनिल की पत्नी मीना के बीच मधुर संबंध भी थे. अनिल जांच के घेरे में आया तो धर्मपाल सिंह ने उस पर शिकंजा कसा. उस से राजेंद्र की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो पहले वह साफ मुकर गया. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया.

उस ने बताया कि राजेंद्र ने उस की पत्नी मीना से नाजायज संबंध बना लिए थे, जिस से उस की बदनामी हो रही थी. इसीलिए उस ने उसे ईंट से कुचल कर मार डाला है. अनिल ने हत्या में प्रयुक्त ईंट तथा खून सने कपड़े बरामद करा दिए, जिसे उस ने तालाब के पास झाडि़यों में छिपा रखे थे.

अनिल ने हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया था. इसलिए धर्मपाल सिंह ने मृतक ने पिता रामकिशन को वादी बना कर राजेंद्र की हत्या का मुकदमा दर्ज कर अनिल को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. Love Crime

दोस्ती, प्यार और अपहरण

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 3

प्यारेलाल को जब पता चला कि रचना नाराज हो कर उन की बेटी के पास नवादा चली गई है तो उन्हें ज्यादा चिंता नहीं हुई. उन्होंने सोचा कि 2-4 दिन में गुस्सा शांत हो जाएगा तो वह लौट आएगी. बहन के यहां रह कर रचना अपने लिए नौकरी तलाशने लगी. थोड़ी कोशिश करने के बाद नांगलोई में एक होम्योपैथी फार्मेसी में उस की नौकरी भी लग गई.

रचना स्वच्छंद विचारों की थी, इसलिए नवादा में अपनी बहन से भी उस की नहीं बनी तो बहन का मकान छोड़ कर वह द्वारका सेक्टर-7 में किराए पर रहने लगी. अब द्वारका में उस से कोई कुछ कहनेसुनने वाला नहीं था. उस का जहां मन करता, घूमतीफिरती थी. फेसबुक और अन्य सोशल साइटों के जरिए नएनए दोस्त बनाना उसे अच्छा लगता था. सोशल साइट के जरिए उस की दोस्ती नाइजीरियन युवक चिनवेंदु अन्यानवु से हुई.

चिनवेंदु जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी से आईटी की पढ़ाई कर रहा था. धीरेधीरे उन की दोस्ती बढ़ती गई तो वह रचना से मिलने दिल्ली आने लगा. इस का नतीजा यह हुआ कि उन के बीच प्यार हो गया. यह प्यार शारीरिक संबंधों तक भी पहुंच गया. इस के बाद तो रचना उस की ऐसी दीवानी हुई कि अपनी नौकरी छोड़ कर उस के साथ जयपुर में लिव इन रिलेशन में रहने लगी. वह जयपुर में करीब एक साल रही.

चिनवेंदु का एक दोस्त था जेम्स विलियम. वह भी नाइजीरिया का ही रहने वाला था. वह ग्रेटर नोएडा के किसी इंस्टीट्यूट से पढ़ाई कर रहा था. जेम्स अकसर चिनवेंदु से मिलने जयपुर जाता रहता था, इसलिए वह रचना को भी जान गया था.

जयपुर से पढ़ाई पूरी करने के बाद चिनवेंदु रचना को ले कर ग्रेटर नोएडा पहुंच गया. वे दोनों जानते थे कि रचना सोशल साइट पर लोगों से दोस्ती करने में माहिर है. इसलिए दोनों युवकों ने लोगों से पैसे ऐंठने का नया आइडिया रचना को बताया तो रचना ने तुरंत हामी भर दी. फिर योजना बना कर किसी पैसे वाली पार्टी को फांसने का फैसला किया गया.

रचना ने सोशल साइट टैग्ड डौटकाम के जरिए नोएडा के मनीष नाम के युवक से दोस्ती की. मनीष को अपने जाल में पूरी तरह फांसने के बाद रचना ने उसे अपने कमरे पर बुलाया. बातचीत के बाद रचना और मनीष जब आपत्तिजनक स्थिति में पहुंच गए तो चिनवेंदु ने किसी तरह उन के फोटो खींच लिए. फिर क्या था, उन फोटोग्राफ के जरिए वह मनीष को ब्लैकमेल करने लगा. मगर मनीष ने पैसे देने के बजाय पुलिस को सूचना देने की धमकी दी.

इस से वे लोग डर गए और उन्होंने उसे कमरे से भगा दिया. पहला वार खाली जाने के बाद उन्होंने अब नया शिकार तलाशना शुरू किया. फिर रचना ने अगला शिकार गुड़गांव के रहने वाले जोगिंद्र को बनाया. जोगिंद्र से दोस्ती गांठने के बाद रचना ने उसे भी अपने कमरे पर बुलाया. उन्होंने जोगिंद्र को भी ब्लैकमेल करने की कोशिश की. लेकिन जोगिंद्र भी रचना और उस के साथियों की धमकी में नहीं आया. लिहाजा उन्होंने जोगिंद्र को भी कमरे से भगा दिया.

इस के बाद रचना और उस के साथियों ने दिल्ली के चित्तरंजन पार्क में एक कमरा किराए पर लिया. रचना और उस के साथियों के 2 वार खाली जा चुके थे. अब वे मोटे आसामी की फिराक में थे. टैग्ड डौटकाम के जरिए अब रचना नया मुर्गा फांसने में जुट गई. रचना ने अरुण वाही से दोस्ती कर ली. अरुण वाही लुधियाना के सुंदरनगर के रहने वाले थे. वह चार्टर्ड एकाउंटेंट थे. 46 साल के अरुण वाही भी रचना के जाल में फंस गए. दोनों ने एकदूसरे को नेट के जरिए अपने फोटो भी भेज दिए.

अरुण वाही उस पर एक तरह से मोहित हो गए थे. सोशल साइट के जरिए वह एकदूसरे से बात करते रहते थे. रचना ने अरुण वाही को दिल्ली मिलने के लिए बुलाया. 18 दिसंबर की रात को अरुण वाही की रचना से फोन पर 3 बार बात भी हुई थी. वह रचना से मिलने के लिए बेचैन थे, इसलिए 18 दिसंबर को सुबह 4 बजे लुधियाना से ट्रेन द्वारा दिल्ली के लिए निकल पड़े.

अरुण वाही को लेने रचना दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई थी. वह स्टेशन से उन्हें कमरे पर ले गई. वाही ने सोचा कि वह उस से एकांत में मन की बात करेंगे, इसलिए किराए की कार से रचना के साथ चित्तरंजन पार्क स्थित उस के कमरे पर पहुंचे. वहां भी चिनवेंदु ने रचना के साथ आपत्तिजनक हरकतें करते हुए वाही के फोटो खींच लिए. फिर उन का मोबाइल जब्त करने के बाद उन से 4 लाख रुपए की मांग की.

अरुण वाही एक इज्जतदार परिवार से थे, इसलिए उन्होंने मामले को दबाने के लिए पैसे देने की हामी भी भर ली. फिर पैसे हासिल करने के लिए वाही ने लुधियाना में रहने वाले अपने दोस्त राजेंदर सिंह का नंबर उन लोगों को बता दिया. चिनवेंदु भारत में रह कर हिंदी सीख गया था. उस ने ही वाही के फोन से राजेंदर सिंह से बात कर के अरुण वाही के बदले 4 लाख रुपए देने की मांग की. बाद में उन्होंने जब राजेंदर सिंह को बैंक एकाउंट नंबर भेजा तो वाही के बजाए अपना फोन नंबर प्रयोग किया. उसी के जरिए वे लोग पुलिस के चंगुल में फंस गए.

पुलिस ने 20 दिसंबर, 2013 को अभियुक्त रचना नायक राजपूत, चिनवेंदु अन्यानवु और जेम्स विलियम को गिरफ्तार कर तीसहजारी कोर्ट में ड्यूटी मजिस्ट्रेट के यहां पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उन के पास से विभिन्न कंपनियों के 46 सिमकार्ड, 2 लैपटौप, 5 मोबाइल फोन, एक कैमरा, 3 लाख 98 हजार 5 सौ रुपए नकद बरामद किए. उन से विस्तार से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. मामले की विवेचना एसआई घनश्याम किशोर कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित. राजेंदर सिंह और मनीष परिवर्तित नाम हैं.

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 2

सोनिया वाही को पति की चिंता खाए जा रही थी. जब उन्हें पता चला कि बैंक में पैसे डलवाने के लिए अपहर्त्ताओं ने बैंक एकाउंट नंबर दे दिए हैं तो वह राजेंदर सिंह पर दबाव बनाने लगीं कि जल्द से जल्द एकाउंट में पैसे जमा करा दें, ताकि पति जल्द घर आ जाएं.

राजेंदर सिंह दिल्ली पुलिस को बताए बिना उन के एकाउंट में पैसे जमा कराने के पक्ष में नहीं थे, इसलिए उन्होंने थानाप्रभारी राजकुमार से बात की. उन्होंने पुलिस को यह भी बता दिया कि अपहर्त्ता ने इस बार फोन अरुण वाही के नंबर से नहीं, बल्कि नए नंबर 8860103333 से किया था, इसी नंबर से मैसेज भी भेजा था.

पुलिस ने अपहर्त्ता के इस फोन नंबर को इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस पर लगा दिया. पुलिस नहीं चाहती थी कि अपहर्त्ता अरुण वाही को कोई क्षति पहुंचाएं, इसलिए उन्होंने राजेंदर सिंह से कह दिया कि वह अपहर्त्ताओं द्वारा भेजे गए दोनों बैंक खातों में 2-2 लाख रुपए जमा करा दें. पुलिस के कहने पर राजेंदर सिंह ने आईसीआईसीआई के दोनों खातों में 2-2 लाख रुपए जमा करा दिए.

पुलिस ने अपहर्त्ताओं द्वारा दिए गए खातों की जांच की तो पहला खाता इंफाल के रहने वाले किसी थांगन राकी नाम के व्यक्ति का और दूसरा इंफाल के ही लाइस रान थांबा का था. दिल्ली पुलिस ने इंफाल की पुलिस से जब इन के पते की जांच कराई तो पता चला कि इस पते पर इन नामों के लोग नहीं हैं. इस से यह पता चला कि दोनों बैंक खाते फरजी आईडी से खुलवाए गए थे.

अपहर्त्ताओं के जिस फोन को पुलिस ने सर्विलांस पर लगाया था, उस की लोकेशन भी दिल्ली के चित्तरंजन पार्क स्थित मंदाकिनी इनक्लेव की आ रही थी. इस के अलावा पुलिस ने इस नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवाई. काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पुलिस को एक फोन नंबर ऐसा मिला, जिस पर ज्यादा बात होती थी. वह नंबर था 8130973333. उधर पुलिस ने अरुण वाही के फोन की जो काल डिटेल्स निकलवाई थी, उस में इसी नंबर से 18 दिसंबर की रात को ढाई बजे, साढ़े 3 बजे और पौने 4 बजे बात हुई थी.

8130973333 नंबर अब पुलिस के शक के दायरे में आ गया था. पुलिस ने इस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में एक नंबर और मिला, जिस पर लगातार कई बार बातें हुई थीं. वह नंबर गुड़गांव के जोगिंद्र नाम के व्यक्ति का था. एक पुलिस टीम गुड़गांव रवाना कर दी गई. जोगिंद्र पुलिस टीम को मिल गया.

पुलिस ने जब उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि यह नंबर रचना नाम की एक लड़की का है. वह लड़की बड़ी शातिर है. वह सोशल साइट के जरिए पहले लोगों से दोस्ती करती है, उस के बाद उन्हें ब्लैकमेल कर पैसे ऐंठने की कोशिश करती है. जोगिंद्र ने बताया कि वह भी रचना का शिकार बन चुका है. उस ने पुलिस को रचना का फोटो भी उपलब्ध करा दिया.

जोगिंद्र से बात करने के बाद पुलिस के सामने पूरी कहानी साफ हो गई. पुलिस ने रचना का मोबाइल फोन मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. जांच के बाद पता चला कि उस ने फोन का सिम भी फरजी आईडी से लिया था. अब पुलिस के पास उस तक पहुंचने का जरिया केवल फोटो ही था.

2 दिन बीत गए थे, अरुण वाही के घर वालों को उन के बारे में कुछ पता नहीं लग रहा था. सोनिया वाही इस बात को सोचसोच कर परेशान थीं कि पता नहीं वह किस हाल में होंगे. इस मामले में लगी पुलिस भी उन के पास जल्द से जल्द पहुंचने का जरिया ढूंढ़ रही थी.

पुलिस को ध्यान आया कि अपहर्त्ताओं ने जब राजेंदर सिंह को फोन किए थे तो उन की लोकेशन चित्तरंजन पार्क में मंदाकिनी इनक्लेव की आ रही थी. पुलिस टीम रचना का फोटो ले कर दिल्ली के चित्तरंजन पार्क इलाके में पहुंच गई. मंदाकिनी इनक्लेव में पहुंच कर पुलिस ने कोठियों के बाहर तैनात सुरक्षा गार्डों को रचना का फोटो दिखा कर उन से पूछताछ की.

काफी मशक्कत के बाद एक सुरक्षा गार्ड ने लड़की का फोटो पहचान लिया. उस ने यह भी बता दिया कि यह लड़की 52/76 नंबर के मकान में रहती है. पुलिस जब वहां पहुंची तो उस मकान की तीसरी मंजिल पर रचना नाम की वही लड़की मिल गई, जिस का फोटो उन के पास था. उस के साथ 2 नाइजीरियन युवक भी थे.

उसी कमरे के एक कोने में अरुण वाही भी बैठे मिले. पुलिस के पास अरुण वाही का भी फोटो था, जो उन के बेटे निखिल ने दिया था. पुलिस ने सब से पहले अरुण वाही को अपने कब्जे में लिया. इस के बाद रचना सहित दोनों नाइजीरियन युवकों को हिरासत में ले लिया.

अरुण वाही को सकुशल बरामद कर के पुलिस खुश थी, क्योंकि पुलिस का पहला मकसद उन्हें सकुशल बरामद करना था. पुलिस तीनों को पूछताछ के लिए थाना जनकपुरी ले आई. रचना से जब पूछताछ की गई तो उस ने सारा सच उगल दिया. फिर उस ने सोशल साइट के जरिए लोगों को फांसने से ले कर उन्हें ब्लैकमेल करने तक की जो कहानी बताई, वह बड़ी दिलचस्प निकली.

रचना का पूरा नाम रचना नायक राजपूत था. वह मूलरूप से हरियाणा के शहर फरीदाबाद के रहने वाले प्यारेलाल की बेटी थी. प्यारेलाल की 7 बेटियां थीं, जिन में से रचना चौथे नंबर की थी. प्यारेलाल प्रौपर्टी डीलर थे. उसी से होने वाली आमदनी से वह घर का खर्च चलाते थे. अन्य बेटियों की तरह वह रचना को भी पढ़ाना चाहते थे, लेकिन रचना ने नौवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी.

वह अति महत्त्वाकांक्षी थी. कुछ दिन घर बैठने के बाद उस ने फरीदाबाद के ही एक प्रौपर्टी डीलर के यहां रिसैप्शनिस्ट की नौकरी कर ली. यह नौकरी रचना ने अपने शौक पूरे करने के लिए की थी. लेकिन प्यारेलाल को यह बात अच्छी नहीं लगी. उन्होंने उसे डांटा और उस की नौकरी छुड़वा दी. रचना को अपने पिता का यह तुगलकी फरमान अच्छा नहीं लगा. उन के दबाव में उस ने नौकरी तो छोड़ दी, लेकिन घर वालों से नाराज हो कर वह पश्चिमी दिल्ली के नवादा क्षेत्र में रहने वाली अपनी बहन के घर चली गई. यह करीब 5 साल पहले की बात है.

दोस्ती, प्यार और अपहरण – भाग 1

पंजाब के शहर लुधियाना के रहने वाले अरुण वाही पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट थे. उन का काम ही ऐसा था कि उन्हें औडिट करने के लिए विभिन्न कंपनियों, फर्मों में जाना पड़ता था. कभीकभी तो उन्हें औडिट के लिए लुधियाना से बाहर भी जाना पड़ता था.

18 दिसंबर, 2013 को भी वह लुधियाना से सुबह 4 बजे की ट्रेन पकड़ कर दिल्ली की किसी कंपनी का औडिट करने के लिए निकले. घर से निकलते समय उन्होंने पत्नी सोनिया वाही को बता दिया था कि वह दिल्ली से 1-2 दिन में लौटेंगे.

जिस दिन अरुण वाही दिल्ली के लिए निकले थे, उसी दिन दोपहर करीब 12 बजे लुधियाना में रहने वाले उन के एक दोस्त राजेंदर सिंह के पास फोन आया. राजेंदर सिंह पंजाब नेशनल बैंक में नौकरी करते थे. चूंकि फोन अरुण के नंबर से आया था, इसलिए उन्होंने काल रिसीव करते ही कहा, ‘‘पहुंच गए दिल्ली?’’

‘‘हां, यह दिल्ली पहुंच गए और अब हमारे कब्जे में हैं.’’ दूसरी तरफ से आई इस आवाज को सुन कर राजेंदर सिंह चौंके, क्योंकि वह आवाज अरुण की नहीं, किसी और की थी. राजेंदर सिंह ने उन से पूछा, ‘‘आप कौन हैं और कहां से बोल रहे हैं?’’

‘‘हम आबिद एंटरप्राइजेज, जनकपुरी दिल्ली से बोल रहे हैं. हम ने अरुण वाही को अपने पास ही रोक रखा है. अगर इन्हें छुड़ाना हो तो हमारे खाते में 4 लाख रुपए जमा करा दें, अन्यथा…’’

‘‘नहीं, आप अरुण को कुछ नहीं कहना. आप ने जितने पैसे मांगे हैं, मिल जाएंगे. लेकिन इस से पहले आप हमारी अरुण से बात तो करा दीजिए.’’ राजेंदर सिंह ने कहा.

‘‘हां, कर लीजिए उन से बात.’’ कहते हुए अपहर्त्ता ने फोन अरुण वाही को दे दिया. कुछ बातें कर के राजेंदर सिंह को जब यकीन हो गया कि जिन से वह बात कर रहे हैं, वह अरुण वाही ही हैं तो उन्होंने कहा, ‘‘देखो अरुण, मैं तुम से शौर्ट में बात करूंगा. अगर तुम्हें वहां कोई परेशानी न हो तो तुम न कहना और परेशानी हो तो हां में जवाब देना.’’

तब अरुण ने हां में जवाब दिया. इतना सुन कर वह समझ गए कि उन का दोस्त इस समय गहरे संकट में है. मामला गंभीर था, इसलिए राजेंदर सिंह ने अरुण वाही की पत्नी सोनिया वाही को फोन कर के पूरी बात बता दी.

पति के किडनैप हो जाने की खबर सुन कर सोनिया भी हैरान रह गईं कि पता नहीं किस ने यह किया होगा. वह राजेंदर सिंह से ही पूछने लगीं कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए? अरुण वाही का एक बेटा निखिल वाही भी चार्टर्ड एकाउंटेंट है. वह दिल्ली में ही था. सोनिया ने पति के किडनैपिंग की बात बेटे को बताई. निखिल उस समय नई दिल्ली एरिया में गोल डाकघर के पास स्थित एक कंपनी का औडिट कर रहा था. पिता के अपहरण की बात सुन कर वह घबरा गया.

चूंकि अपहरण की पहली काल पिता के दोस्त राजेंदर के मोबाइल पर आई थी, इसलिए उस ने सब से पहले उन्हीं से बात की. बातचीत में उसे जब पता चला कि अपहर्त्ताओं ने उस के पिता को दिल्ली में ही बंधक बना कर रखा है तो उस ने तुरंत दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन किया.

गोल डाकखाना क्षेत्र नई दिल्ली जिले में आता है, इसलिए अपहरण कर फिरौती मांगने की खबर पर नई दिल्ली जिला के थाना कनाट प्लेस की पुलिस हरकत में आ गई. पुलिस तुरंत निखिल के पास पहुंची तो निखिल को राजेंदर सिंह और अपनी मां से जो जानकारी मिली थी, दिल्ली पुलिस को बता दी.

पुलिस को निखिल से यह पता लगा कि उस के पिता को जनकपुरी स्थित आबिद एंटरप्राइजेज में बंधक बना कर रखा गया है. कनाट प्लेस के थानाप्रभारी ने जनकपुरी के थानाप्रभारी राजकुमार से फोन पर बात की और निखिल वाही को थाना जनकपुरी भेज दिया. वहां पर निखिल वाही की तरफ से अज्ञात लोगों के खिलाफ अपहरण कर फिरौती मांगने का मामला दर्ज कर लिया गया.

अपहरण का मामला बेहद संवेदनशील होता है. इस में पुलिस पर इस बात का दबाव रहता है कि किसी भी तरह अपहृत व्यक्ति को सहीसलामत बरामद किया जाए. थानाप्रभारी ने सीए के अपहरण की बात उपायुक्त रणवीर सिंह को बताई तो उन्होंने थानाप्रभारी राजकुमार के नेतृत्व में एक पुलिस पार्टी का गठन कर दिया, जिस में एसआई घनश्याम किशोर, हेडकांस्टेबल बिजेंद्र सिंह, ओमबीर सिंह आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम को बताया गया था कि अरुण वाही को जनकपुरी के आबिद एंटरप्राइजेज नाम की फर्म में बंधक बना कर रखा गया है, इसलिए पुलिस टीम इस नाम की फर्म को खोजने में लग गई. जनकपुरी कोई छोटामोटा इलाका नहीं है. पुलिस की जो एक टीम बनी थी, उस के लिए यह काम आसान नहीं था. फर्म का जल्द पता लगाने के लिए डीसीपी ने 6 टीमें और बनाईं और सभी को इस मामले में लगा दिया.

सभी पुलिस टीमें अलगअलग तरीकों से आबिद एंटरप्राइजेज नाम की फर्म को ढूंढ़ने लगीं, लेकिन इस नाम की फर्म कहीं नहीं मिली. अब पुलिस के पास अपहर्त्ताओं तक जाने के लिए कोई रास्ता भी नहीं था. उन्होंने राजेंदर सिंह के पास फिरौती का जो फोन किया था, वह अरुण वाही के फोन से किया गया और उस की लोकेशन दिल्ली के चित्तरंजन पार्क की आ रही थी. एक पुलिस टीम चित्तरंजन पार्क भेजी गई.

इसी बीच राजेंदर सिंह के मोबाइल पर अपहर्त्ताओं ने फोन कर के फिरौती की रकम 4 लाख से बढ़ा कर 6 लाख कर दी. दरअसल इस से पहले फोन करने पर राजेंदर सिंह ने 4 लाख रुपए देने में कोई आनाकानी नहीं की थी. अपहर्त्ताओं को लगा कि पार्टी मोटी है, इसलिए उन्होंने फिरौती की रकम बढ़ा दी.

इस पर राजेंदर सिंह ने कहा, ‘‘अभी हमारे पास 6 लाख रुपए नहीं हैं. हम 4 लाख रुपए भी इधरउधर से जुगाड़ कर के दे सकते हैं. अब आप यह बता दीजिए कि पैसे कहां पहुंचाने हैं?’’

‘‘आप को आने की जरूरत नहीं है. हम आप को बैंक का एकाउंट नंबर मैसेज कर देंगे, उसी में आप पैसे जमा करा देना. एकाउंट में पैसे जमा होते ही हम वाही को छोड़ देंगे.’’ कहने के बाद अपहर्त्ता ने आईसीआईसीआई बैंक के 2 एकाउंट नंबर राजेंदर सिंह के फोन पर मैसेज कर दिए. ये नंबर थे 246301500161 और 264301500653. राजेंदर सिंह को यह जानकारी मिल चुकी थी कि निखिल ने दिल्ली के थाना जनकपुरी में रिपोर्ट दर्ज करा दी है और दिल्ली पुलिस इस मामले में तेजी से काररवाई कर रही है. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद थानाप्रभारी राजकुमार राजेंदर सिंह से बात भी कर चुके थे.

अंधविश्वासी वकील की बलि

प्रयागराज में गंगा नदी के किनारे साधु आशीष दीक्षित अपने शिष्य नीतीश सैनी के साथ धीमे कदमों से चला जा रहा था. सर्दी की सुबह थी. धूप निकल चुकी थी,

फिर भी दोनों गेरूआ चादर ओढ़े सर्दी से बचते हुए बढ़ रहे थे. ऐसा लग रहा था मानो उन्हें कोई जल्दबाजी नहीं थी.

आशीष के हाथ में स्मार्टफोन था. उस पर एक वीडियो चल रही थी, जिसे दोनों गौर से देख रहे थे. अचानक शिष्य बोल पड़ा, ‘‘गुरुजी, जब बर्बरीक इतना ताकतवर था तब उस ने महाभारत के युद्ध में हिस्सा क्यों नहीं लिया?’’

‘‘क्योंकि श्रीकृष्ण जानते थे कि वह शिव का अवतार है और उसे दिव्य शक्ति प्राप्त है. उस के एक बाण से युद्ध का अंत हो सकता है.’’ गुरु आशीष ने बताया.

‘‘तब तो और अच्छी बात थी. भीम का पोता था, पांडव की तरफ से ही युद्ध लड़ता. और उस की जीत तुरंत हो जाती,’’ शिष्य नीतीश बोला.

‘‘ऐसा नहीं होता. उस की मां ने उस से वचन लिया था कि वह युद्ध में हमेशा कमजोर का साथ देगा. और उस वक्त कौरवों की सेना हार रही थी. इस कारण कृष्ण को पता था कि वह पांडवों की तरफ से युद्ध नहीं लड़ेगा.’’ गुरु ने समझाया.

‘‘फिर क्या हुआ गुरुजी?’’ नीतीश ने जिज्ञासावश पूछा.

‘‘वीडियो में देखो, सब पता चल जाएगा.’’

‘‘जी, गुरुजी.’’

उस के बाद दोनों ध्यान से वीडियो में महाभारत के बर्बरीक की कहानी देखने लगे. तब तक श्रीकृष्ण और बर्बरीक के बीच संवाद शुरू हो चुका था. वीडियो के खत्म होने के बाद आशीष ने कहा, ‘‘मुझे भी बर्बरीक की तरह दोबारा जिंदा होने की सिद्धि मिल चुकी है.’’

‘‘सच में गुरुजी?’’ नीतीश आश्चर्य से बोल पड़ा.

‘‘सच नहीं तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूं. मैं यहां हरिद्वार में घरबार, ऐशोआराम छोड़ कर ऐसे ही बैठा हुआ हूं. मैं ने काफी तपस्या की है. दैवीय शक्ति हासिल करने के लिए तंत्रमंत्र की कठिन साधना की है, अनुष्ठान किए हैं.’’ गुरु आशीष ने बताया.

‘‘तब तो आप भी दोबारा जिंदा हो सकते हैं?’’ शिष्य नीतीश बोला.

‘‘हां, क्यों नहीं!’’

‘‘अच्छा..?’’ नीतीश का मुंह खुला का खुला रह गया.

यह बात 8 दिसंबर, 2022 की थी. आशीष ने शिष्य नीतीश को एक योजना समझाते हुए कहा कि उसे ऐसी सिद्धि प्राप्त हो चुकी है, जिस से वह उस के जीवन के सारे कष्टों को दूर कर देगा. उसे केवल उस के इशारे पर वह सब करना होगा, जो वह बताएगा.

नीतीश ने गुरु आशीष की बातें मान लीं और अपने गुरु के कहे अनुसार कार्य करने को तैयार हो गया.

गुरु आशीष द्वारा बनाए गए कार्यक्रम के मुताबिक दोनों उसी रोज 8 दिसंबर, 2022 को प्रयागराज से विंध्यवासिनी मां के दर्शन करने के लिए निकल पड़े. वहां से लौटते समय उन के सारे पैसे खत्म हो गए थे. अगले रोज वे 9 दिसंबर को पैदल ही प्रयागराज के लिए चल दिए.

जब वे करछना थानांतर्गत मर्दापुर गांव पहुंचे, तब आशीष ने नीतीश को बताया कि मां विंध्यवासिनी देवी की कृपा से देवी शक्ति प्राप्त हो गई है. उसे भीतर से शक्ति का एहसास भी होने लगा है. इसी के साथ उस ने एक बार फिर महाभारत के बर्बरीक की चर्चा छेड़ दी.

कहने लगा, ‘‘अब मैं अपनी ही बलि दे सकता हूं और मुझे देवी दोबारा जिंदा कर देंगी. उस के बाद मैं किसी के भी दुखतकलीफ और दूसरी समस्याओं को दूर कर सकता हूं. तुम्हारी आर्थिक समस्या भी मैं दूर का दूंगा.’’

‘‘मुझे क्या करना होगा गुरुदेव?’’ नीतीश पूछा.

‘‘तुम्हें ठीक वैसे ही करना होगा, जैसा मैं बताऊंगा. वह भी आज ही रात में हो जाना चाहिए.’’ यह कहते हुए आशीष ने नीतीश को तांत्रिक पूजा और बलि के अनुष्ठान का एक वीडियो दिखाया.

उसी रात को नीतीश ने अपने गुरु के बताए तरीके के मुताबिक ठीक वैसा ही किया, जैसा उस ने वीडियो में देखा और समझाया था. तंत्रमंत्र की साधना संपन्न हुई और यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद नीतीश निश्चिंत भाव से अपने घर हरिद्वार लौट आया. इस से पहले उस ने पूजन सामग्री प्रयागराज गंगा में ही प्रवाहित कर दी थी.

आशीष के वादे के मुताबिक उसे अपने चेले नीतीश से प्रयागराज स्टेशन पर ही मिलना था. नीतीश के दिमाग में उथलपुथल मची हुई थी. तांत्रिक अनुष्ठान के बाद से ही मन में भय भी समाया हुआ था. देवी शक्ति के प्रभाव और चमत्कार के साथसाथ हत्या जैसे भय से वह परेशान हो गया था. हालांकि वह दोनों ही स्थितियों में अपने मन को समझाने की कोशिश कर रहा था.

यदि चमत्कार हुआ, तब गुरु के कहे मुताबिक उस के सारे दुखों का अंत हो जाना था और दैवीय चमत्कार नहीं हुआ तब भी उस का कोई अधिक नुकसान होने की बात नहीं थी. उस ने प्रयागराज जंक्शन पर अपने गुरु आशीष दीक्षित का 2 घंटे तक इंतजार किया, जब वह नहीं आया तब उस ने हरिद्वार की गाड़ी पकड़ ली.

यशपाल सैनी का पुत्र नीतीश सैनी हरिद्वार जनपद में लश्कर गांव का रहने वाला एक 22 वर्षीय युवक है. वह एक फाइनैंस कंपनी में काम करता था. जौब प्राइवेट थी, इस कारण वह अच्छी सरकारी नौकरी की तलाश में था. वह पैसा कमाना चाहता था, जो उसे इस प्राइवेट नौकरी में नहीं मिल पा रहा था.

उसे लगता था कि उस की जिंदगी में दैवीय शक्ति से आज नहीं तो कल जरूर चमत्कार होगा और तब उस की जिंदगी में बहार आ जाएगी. इसी चक्कर में एक दिन उस ने अपनी वह प्राइवेट नौकरी भी छोड़ दी.

नीतीश बन गया चेला

एक दिन यूं ही वह हरिद्वार में गंगा किनारे सीढि़यों पर उदास बैठा था. उस की मुलाकात आशीष दीक्षित से हो गई. वह साधु की वेशभूषा में था, लेकिन जब उस से बातों का सिलसिला शुरू हुआ तब उस ने पाया कि वह कोई साधारण साधु नहीं है.

साधु ने अपना नाम आशीष दीक्षित बताया और खुद को एक तपस्वी और तंत्रमंत्र साधक बताया. इसी के साथ उस ने कहा कि उसे उस जैसे ही एक नवयुवक की तलाश है, जो चेला बन कर उस के कामकाज और पूजापाठ के अनुष्ठानों में सहयोग कर सके. यदि वह इच्छुक हो तो उस के साथ रह सकता है.

नीतीश को साधु आशीष की बात पसंद आई और वह उस के साथ रहने को तैयार हो गया. किंतु उस ने अपनी मजबूरी बताई कि उस के पास पैसे नहीं हैं. वह बेरोजगार है. इस समस्या का समाधान भी आशीष ने ही निकाला और उस का सारा खर्च उठाने को तैयार हो गया.

यही नहीं, आशीष ने उसे अपना शिष्य बना लिया और उसे भरोसा दिया कि उस के तंत्रमंत्र से सारे कष्ट अवश्य दूर हो जाएंगे. घर की आर्थिक परिस्थितियों में भी सुधार हो जाएगा.

दोनों ने हरिद्वार में ही एक कमरा किराए पर ले लिया था. बहुत पूछने पर भी आशीष अपनी पिछली जिंदगी के बारे में उसे कुछ नहीं बताता था.

नीतीश 10 दिसंबर, 2022 को अपने घर हरिद्वार आ तो गया था, लेकिन वह भीतर से डरा था. वह एक अपराधबोध के द्वंद से भी जूझ रहा था. मन जब विचलित होने लगा, तब वह हरिद्वार से चल कर वाराणसी जा पहुंचा.

वहां भी ज्यादा समय तक नहीं रह पाया. उसी रोज कानपुर की राह पकड़ ली और फिर लखनऊ, आगरा होते हुए प्रयागराज में आ कर ठहर गया. इस का एक कारण यह भी था कि उस के गुरु आशीष ने उसे वहीं उस का इंतजार करने को कहा था.

आशीष तो नहीं आया, लेकिन हां उसे मोबाइल ट्रैकिंग के जरिए तलाशती हुई प्रयागराज पुलिस जरूर आ गई. प्रयागराज के  करछना थाने की पुलिस ने बगैर कुछ कहेसुने उसे दबोच लिया और उसे थाने ले आई.

इस तरह से पकड़े जाने पर नीतीश हक्काबक्का था, किंतु जब पता चला कि उस पर आशीष की हत्या का आरोप लगाया गया है तो वह बहुत डर गया.

दरअसल, नैनी के नंदन तालाब निवासी आशीष दीक्षित की सिरकटी लाश 10 दिसंबर को प्रयागराज-मिर्जापुर हाईवे पर मर्दापुर गांव के पास पाई गई थी. लाश तालाब के किनारे झाडि़यों में पड़ी थी.

रक्तरंजित लाश पहले दोपहर के समय उन लोगों ने देखी थी, जो मृत्युशैय्या बनाने के लिए बांस काटने के लिए लीलैंड सर्विस सेंटर के बगल में स्थित मर्दारपुर गांव के बंसवार में गए थे. उन्होंने जब लाश के करीब जा कर देखा तब भी वह उसे पहचान नहीं पाए थे. उस की गरदन कटी हुई थी और धड़ अलग पड़ा था. उन लोगों ने ही पुलिस कंट्रोलरूम के 112 नंबर पर काल कर जंगल में अज्ञात लाश होने की सूचना दी थी.

सूचना मिलते ही कुछ देर में 112 नंबर वैन में सवार सबइंसपेक्टर और सिपाही घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने इस सूचना को संबंधित थाना करछना को दे दी थी.

सूचना पा कर थाने से तुरंत इंसपेक्टर विश्वजीत सिंह दलबल के साथ पहुंच गए थे. करछना थानांतर्गत बंसवार में लाश मिलने की सूचना पूरे इलाके में फैल गई. देखते ही देखते तमाशबीनों की भीड़ जमा हो गई.

मृतक की शिनाख्त करने में पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ी. उस के कपड़ों की तलाशी ली तो उस की जेब से पर्स और आधार कार्ड मिल गया. उस से मृतक के निवास की जानकारी मिल गई.

इस सूचना को पा कर डीसीपी (यमुनापार) सौरभ दीक्षित के साथ दूसरे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए. मौके पर फोरैंसिक और डौग स्क्वायड की टीम भी आ गई.

घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया गया, जहां लाश के पास शराब की खाली बोतल, मुरझाए फूल, माला, लौंग, सुपारी, काली पीली सरसों के दाने मिले. इन चीजों को देख कर जांच में जुटे पुलिस अधिकारियों को समझते देर नहीं लगी कि मामला तंत्रमंत्र साधना और बलि देने का हो सकता है.

लाश की शिनाख्त के लिए वहां से बरामद आधार कार्ड से कई जानकारी मिल गईं. मृतक का नाम आशीष दीक्षित और उस का निवास स्थान प्रयागराज था.

पार्टी बनाने पर डूब गया कर्जे में

डीसीपी सौरभ दीक्षित ने इस केस को सुलझाने के लिए एक पुलिस टीम बनाई. टीम में इंसपेक्टर विश्वजीत सिंह, एसआई दिवाकर सिंह, अखिलेश कुमार राय, कांस्टेबल गब्बर, विजय बहादुर चौहान आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने मृतक के पते पर जा कर उस के बारे में पता किया. वहां उन्हें मृतक के बारे में कई जानकारी मिलीं. पता चला कि आशीष दीक्षित कई साल पहले ही घरबार छोड़ चुका था.

आशीष के परिवार में उस के पिता संतोष दीक्षित, पत्नी सुमन देवी और भाई रवि दीक्षित मिले. उन से पूछताछ में पुलिस को कई अहम जानकारी मिली.

उन लोगों से पूछताछ से पता चला कि आशीष दीक्षित एक अतिमहत्त्वाकांक्षी इंसान था, लेकिन अंधविश्वास से भी भरा हुआ था. पेशे से वकील था. जीवन में सफलता की सीढि़यां चढ़ने के लिए स्थानीय राजनीतिक गतिविधियों में भी शामिल था. उस ने जनाधार शक्ति नामक पार्टी का गठन भी किया था.

इस राजनीतिक पार्टी के विस्तार के लिए उस ने लोगों से चंदा लेना शुरू कर दिया था. पहले तो उस ने पार्टी को चलाने के लिए कुछ लोगों से कर्ज लिया, जो करीब 40 लाख रुपए तक हो गया था.

कर्ज देने वालों में मुकेश पाल नाम का व्यक्ति भी था. करीब 6 महीने में ही कर्ज देने वाले कर्ज का पैसा वापस मांगने लगे. इस संबंध में लोगों का जब दबाव बढ़ गया, तब वह काफी परेशान हो गया. और फिर मई 2022 में अपने घर से गायब हो गया.

एक तरह से वह प्रयागराज से फरार हो कर हरिद्वार चला गया था. वहां वह हरि की पौड़ी में साधु के वेश में रहने लगा. वहां रहते हुए वह लोगों की समस्याओं का समाधान बताने लगा. यही उस की आमदनी का जरिया बन गया. उसी दौरान उस ने तंत्रमंत्र की कुछ जानकारी ले ली.

उन्हीं दिनों उस की मुलाकात नीतीश सैनी से हो गई थी और उसे भी उस ने अपने अंधविश्वास की चपेट में ले लिया था. नीतीश उसी का चेला बन कर उस के साथ ही रहने लगा था. साथ ही आशीष खुद अंधविश्वास और पुनर्जन्म की चपेट में आ गया था. खुद को दैवीय शक्ति के प्रभाव का खास व्यक्ति समझ बैठा था.

खुद कटवा ली अपनी गरदन

वह बारबार नीतीश को कहता था कि उस पर देवी की खास कृपा है. वह भी महाभारत के बर्बरीक की तरह मर कर दोबारा जिंदा हो सकता है. जब यह बात नीतीश को बताई, तब पहली बार में उसे भी विश्वास नहीं हुआ, लेकिन धीरेधीरे कर उस ने नीतीश को अपने रंग में रंग लिया.

उन्हीं दिनों परिस्थतियां कुछ ऐसी बनीं कि आशीष ने अपनी योजना के बारे में नीतीश को बताया और इस के लिए राजी भी कर लिया. तब उस ने नीतीश से कहा था, ‘‘मुझे मार दो, मैं जिंदा हो जाऊंगा और तुम से हरिद्वार में ही मिलूंगा.’’

उस के कहे अनुसार ही नीतीश ने किया. इस बारे में नीतीश ने पुलिस को बताया कि वह कैसे उस के साथ अंधविश्वास की धारा में बह गया था. उस के कहे अनुसार करता चला गया था.

उस ने कहा था कि ‘मुझे दैवीय सिद्धियां प्राप्त हैं, अगर तुम मुझे मार दोगे तो मैं फिर से जिंदा हो जाऊंगा. बस, मेरा गला काट कर महाशक्तियों के साथ छोड़ देना. जिस के बाद मैं पुनर्जीवित हो कर वापस उस से आ कर मिलूंगा. उस ने यह भी कहा था कि मेरा गला काटने के बाद सभी वस्तुओं को गंगाजी में प्रभावित कर के वह हरिद्वार चला जाए. मैं वहीं आ कर उसे मिलूंगा.’

अपनी योजना का पूरा खाका खींचते हुए आशीष ने नीतीश को समझाया कि पूजा कैसे करनी है? उस का गला किस तरह से काटना है? उस के बाद क्या करना है? नीतीश के मुताबिक आशीष ने कहा था कि पूजापाठ करने के बाद जब मैं जमीन पर लेट जाऊंगा, तब करीब एक घंटे बाद तुम मुझे हिलाडुला कर देखना. अगर मेरे शरीर में कोई हलचल नहीं हो तो फौरन चापड़ से मेरी गरदन धड़ से अलग कर देना और मेरे खून से अपने माथे पर आभिषेक लगा कर मंत्रोच्चार करना.

उस के बाद चापड़ और सभी पूजन सामग्री गंगा किनारे प्रवाहित कर देना. इस के बाद तुम प्रयागराज स्टेशन पर पहुंचना. अगर मैं वहां घंटे भर के भीतर नहीं आऊं, तब तुम वहां से हरिद्वार चले जाना. जीवित हो कर मैं हरिद्वार में ही मिलूंगा.

आशीष ने नीतीश को यह भी कहा था, ‘‘मैं मां कामाख्या देवी के पास जीवित हो कर दर्शन प्राप्त कर तुम से फिर मिलूंगा.’’

यह सब सुन कर पहले तो नीतीश डर गया, लेकिन बाद में जब उस ने चमात्कारी प्रभाव से भविष्य सुधरने की बात की, तब वह तैयार हो गया.

उस के दिमाग में यह बात भी आई कि आशीष मरने के बाद दोबारा जिंदा हो गया तब वह उस का भविष्य बदल देगा, अगर जिंदा नहीं हो पाया तब उसे उस के पैसे नहीं लौटाने पड़ेंगे. जब वह आशीष के साथ था, तब उस का खर्च उसी ने उठाया था, जो कर्ज के तौर पर था. थोड़े दिनों बाद ही उस से पैसे मांगने लगा था.

घटना की रात तालाब के किनारे बांस की झाडि़यों के बीच में नीतीश के सामने आशीष ने तंत्र साधना की, शराब और दवा का सेवन किया. उस के बाद शराब पी. एक पैग शराब नीतीश ने भी पी. आशीष दवा खाने के बाद अपनी जैकेट और टीशर्ट उतार कर जमीन पर लेट गया.

आशीष के कहे अनुसार नीतीश ने उसे झकझोर कर देखा. उस के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई. उस के बाद नीतीश ने आशीष की गरदन पर चापड़ से वार कर दिया. उस की गरदन एक झटके में ही धड़ से अलग हो गई. आशीष ने जैसे मंत्र पढ़ने और रक्त का तिलक लगाने को कहा था, नीतीश ने ठीक वैसा ही किया.

पुलिस ने नीतीश के  कहे अनुसार, हत्या में इस्तेमाल चापड़ भी बरामद कर ली. इस पूरे मामले में मुख्य आरोपी नीतीश सैनी को बनाया गया. उसे भादंवि की धारा 302 के तहत सिविल कोर्ट में पेश किया गया, जहां से जिला कारागार नैनी भेज दिया गया.      द्य