जब दोस्ती पर भारी पड़ गया शराब का नशा

उड़ीसा के रहने वाले 25 साल के कुमार मांझी की अपने से 10 साल बड़े सीतापुर निवासी पूरन से गहरी दोस्ती थी. दोनों साथ मिल कर कोई छोटामोटा काम करते और जो कमाते, उसी से गुजरबसर करते थे. इन के परिवार भी थे, लेकिन दोनों ही घर वालों के साथ नहीं रहते थे. ये दिन भर में जो कमाते थे, शाम को सीतापुर रोड पर कूड़ाखाना के पास स्थित देशी शराब के ठेके पर जा कर शराब में उड़ा देते थे.

मांझी और पूरन की दोस्ती इतनी गहरी थी कि दोनों को ही एकदूसरे के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता था. यहां तक कि उन्हें परिवार की भी कमी नहीं खलती थी. दोनों की उम्र में 10 साल का अंतर था, लेकिन वे लगते हमउम्र थे. इन की गहरी दोस्ती होने की वजह यह थी कि दोनों ही आपस में एक जैसा व्यवहार करते थे. दोनों की पसंद भी एक जैसी थी.

कई बार मांझी और पूरन के अन्य साथी इन के साथ रहना चाहते या बात करना चाहते तो दोनों ही उन से कन्नी काट लेते थे. दोनों ही पक्के शराबी थे. बिना शराब के वे एक भी दिन नहीं रह सकते थे. लेकिन शराब पीने के बाद अकसर दोनों में लड़ाई हो जाती थी. कई बार मारपीट भी हो जाती थी, इस के बावजूद दोनों देर तक एकदूसरे से अलग नहीं रह पाते थे.

रात में लड़ाई होती थी तो सवेरा होतेहोते सब ठीक हो जाता था. यह देख कर उन के अन्य दोस्त कहते भी थे कि मांझी और पूरन कब लड़ते हैं, पता ही नहीं चलता, सवेरे दोनों का चायनाश्ता एक साथ होता है. इस के बाद वे साथसाथ ही काम पर जाते थे.

पूरन और कुमार मांझी ने उस रात भी जम कर शराब पी थी. इस के बाद दोनों में लड़ाई शुरू हो गई. बात बढ़ी तो पूरन ने कहा, ‘‘मांझी, तू कभी पैसे खर्च नहीं करता. हमेशा मेरे पैसे ही खर्च कराता है.’’

‘‘हमारे बीच पैसा आ गया, इस का मतलब हमारी दोस्ती खतम.’’ मांझी ने कहा.

‘‘भई, दोस्ती रहे या खतम हो जाए, हम इस बारे में कुछ नहीं जानते. हम तो यह जानते हैं कि पैसे का सही से हिसाब होना चाहिए. पिछली बार के 100 रुपए अभी तक तुम ने नहीं दिए हैं.’’ पूरन ने कहा.

‘‘लेकिन मैं ने तो कई बार पैसे खर्च किए हैं, उन का क्या होगा?’’ मांझी ने कहा.

इस के बाद उन के बीच बात बढ़ गई. दोनों ही नशे में थे. ऐसे में आगापीछा सोचे बगैर आपस में हाथापाई करने लगे. मारपीट में उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि वे क्या कर रहे हैं. मांझी ज्यादा नशे में था, इसलिए पूरन ने उसे पीट दिया. मारपीट कर के पूरन बैठ गया. नशे की वजह से उसे झपकी आ गई.

नशा कम होने पर मांझी थोड़ा होश में आया तो उसे याद आया कि पूरन ने उसे मारा था. उसे गुस्सा आ गया और ईंट उठा कर उस ने पूरन के सिर पर दे मारी. तब उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि इस से पूरन मर भी सकता है.

रात में दोनों रघुवर पैलेस के पास खाली प्लौट में बैठे थे. सवेरे 4 बजे कुमार मांझी इंजीनियरिंग कालेज चौराहे पर स्थित अनिल की दुकान पर पहुंचा. दोनों अकसर यहीं चायनाश्ता करते थे. कुमार के कपड़ों में खून लगा देख कर अनिल ने पूछा, ‘‘तेरे कपड़ों में खून कहां से लगा, पूरन कहां गया?’’

मांझी ने कहा, ‘‘कल रात पूरन से सौ रुपए को ले कर लड़ाई हो गई थी. वह मुझे बेईमान कह रहा था. जब मैं ने उसे सच बताया तो वह झगड़ा करने लगा. झगड़ा ज्यादा बढ़ा तो मैं ने ईंट से मार कर उस की हत्या कर दी. लेकिन अनिल भाई, अब मुझे अपनी गलती का अहसास हो रहा है. उस की मौत का मुझे पछतावा हो रहा है.’’

उस से कुछ कहने के बजाय अनिल ने उसे दुकान पर बैठा दिया और पुलिस को सूचना देने के लिए फोन करने लगा. लेकिन दूसरी ओर से फोन उठा ही नहीं. करीब 7 बजे अनिल ने रघुवर पैलेस के मैनेजर वीरेंद्र को घटना की सूचना दी तो वीरेंद्र ने जानकीपुरम थाने में तैनात सबइंसपेक्टर को फोन कर के इस बात की जानकारी दे दी.

इस के बाद 9 बजे पुलिस मौके पर पहुंची और लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस में पुलिस को कुछ समय लग गया. तब तक कुमार मांझी को पूरी तरह होश आ गया था. होश में आने के बाद उसे पता चला कि मामला पुलिस तक पहुंच गया है तो पुलिस की मार की डर से वह कांपने लगा.

दोस्त की हत्या के साथसाथ पुलिस की मार का डर उसे सताने लगा. वहां मौजूद लोगों ने जब उसे बताया कि हत्या के बाद फांसी हो सकती है तो वह काफी डर गया. हत्या के आरोप में मिलने वाली सजा के डर से वह जंगल की ओर भागा.

अनिल ने मांझी को भागते देखा तो उसे पकड़ने के लिए शोर मचाने लगा. आसपास के लोगों ने उस का पीछा किया. लेकिन तब तक वह गुडंबा के जंगल में घुस गया, जहां एक पेड़ के पीछे छिप गया. पुलिस अन्य लोगों को साथ मिल कर मांझी की तलाश करती रही. करीब आधे घंटे की मशक्कत के बाद मांझी को पकड़ लिया गया और थाने लाया गया.

थाना जानकीपुरम के थानाप्रभारी इंसपेक्टर सतीश सिन्हा ने बताया कि अपने दोस्त की हत्या के आरोप में पकड़े गए कुमार मांझी ने स्वीकार कर लिया है कि सौ रुपए के विवाद में उस ने दोस्त की हत्या को अंजाम दिया था.

शुक्रवार की रात कुमार मांझी से मृतक पूरन ने सौ रुपए उधार मांगे थे. पैसे न होने पर कुमार ने देने से मना कर दिया, जिसे ले कर दोनों के बीच कहासुनी हो गई. बात हाथापाई तक पहुंच गई. मारपीट के दौरान कुमार ने ईंट से पूरन के सिर पर कई वार कर दिए, जिस से उस की मौके पर ही मौत हो गई.

मांझी और पूरन की दोस्ती पर शराब का नशा भारी पड़ा. अगर दोनों शराब न पीते होते तो सौ रुपए जैसी मामूली रकम के लिए मांझी अपने सच्चे दोस्त की हत्या कतई नहीं कर सकता था. पूछताछ के बाद पुलिस ने कुमार मांझी को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस और पब्लिक से मिली जानकारी के आधार पर

11 दुल्हों की फरेबी दुलहन की कहानी

देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा शहर में कारखानों और बड़ीबड़ी कंपनियों के तमाम औफिस हैं, जिन में काम करने के लिए देश के अलगअलग राज्यों से आए लोग यहां रह रहे हैं. रहने  वालों की संख्या बढ़ती गई तो फ्लैट कल्चर कायम हुआ. जिन में रहने वाले लोग एकदूसरे से ज्यादा मतलब नहीं रखते.  इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि लोग निजी जिंदगी में किसी की दखलंदाजी पसंद नहीं करते.

ऐसे में किस फ्लैट में कौन रहता है और कौन क्या करता है, पड़ोसियों तक को पता नहीं होता. नोएडा शहर के ही सैक्टर-120 स्थित जोडिएक अपार्टमेंट सोसाइटी भी इस आधुनिक हकीकत से अलग नहीं थी. 17 दिसंबर, 2016 की सुबह पुलिस की 2 गाडि़यां सोसाइटी में आ कर रुकीं. पुलिस ने गेट पर तैनात सुरक्षाकर्मियों से कुछ पूछताछ की और फिर एक सुरक्षाकर्मी को साथ ले कर सीधे 11वीं मंजिल पर बने फ्लैट नंबर-1104 के सामने जा पहुंची.

पुलिस के इशारे पर सुरक्षाकर्मी ने दरवाजे के ठीक बराबर में लगी डोरबैल बजाई तो अंदर से किसी लड़की की आवाज आई, ‘‘कौन है?’’

सुरक्षाकर्मी ने जवाब में कहा, ‘‘दरवाजा खोलिए मैम, मैं गार्ड हूं.’’

‘‘क्या बात है?’’

‘‘आप से कोई मिलने आया है.’’ गार्ड ने कहा.

कुछ पलों की खामोशी के बाद एक लड़की ने दरवाजा खोला तो दरवाजे पर पुलिस वालों को देख कर उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. वह कुछ समझ पाती, उस के पहले ही एक पुलिसकर्मी ने पूछा, ‘‘मेघा कहां है?’’

पुलिस वाले के इस सवाल पर वह चौंकी, लेकिन तुरंत ही संभलने की कोशिश करते हुए जवाब देने के बजाए सवाल दाग दिया, ‘‘एक्सक्यूजमी सर, कौन मेघा? मैं समझी नहीं. आप शायद गलत जगह आ गए हैं. यहां कोई मेघा नहीं रहती.’’

लड़की के जवाब से एकबारगी पुलिसकर्मी सकते में आ गए. लेकिन अगले ही पल उस ने कहा, ‘‘यह नाटक बंद करो और जल्दी बताओ कि मेघा कहां है?’’

वह लड़की कोई जवाब देती, उस के पहले ही पुलिसकर्मी फ्लैट में दाखिल हो गए. अंदर बैडरूम में एक लड़की एक युवक के साथ बैठी टीवी देख रही थी. पुलिसकर्मियों की नजर जैसे ही उस लड़की पर पड़ी, उन के चेहरे पर मुसकान तैर गई. जबकि लड़की ने हारे हुए जुआरी की तरह दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया.

उस की हालत देख कर उस पुलिसकर्मी ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, ‘‘यहां भी तुम शादी करने आई होगी मेघा? चलो, बहुत शादियां कर लीं, अब बाकी का वक्त जेल में बिता लेना.’’

लड़की हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए सर, अब आगे से ऐसी गलती नहीं करूंगी.’’ पुलिसकर्मियों ने उस की बातों को नजरअंदाज करते हुए फ्लैट में रहने वाले तीनों लोगों को कस्टडी में ले कर औपचारिक पूछताछ की. इस के बाद पुलिस तीनों को थाना फेज-2 ले आई, जहां उन से लंबी पूछताछ की गई. गिरफ्तार तीनों लोगों में मेघा भार्गव, उस की बहन प्राची और जीजा देवेंद्र शर्मा शामिल थे.

अगले दिन मेघा की गिरफ्तारी अखबारों और समाचार चैनलों की सुर्खियां बन गई. इस की वजह यह थी कि मेघा कोई मामूली लड़की नहीं थी. उस ने 11 लोगों से शादी कर के उन से करीब एक करोड़ रुपए से ज्यादा की ठगी की थी. लोग उस की सुंदरता के जाल में आसानी से फंस जाते थे. उसे ले कर ढेरों अरमान सजाते थे, जबकि वह शादी की शहनाई में धोखे की धुन बजाती थी.

उन की नईनवेली दुलहन मेघा फरेबी होती थी और वह कुछ ही दिनों में पूरे परिवार को नींद की गोलियां खिला कर घर में रखी नकदी और गहने ले कर रफूचक्कर हो जाती थी. इस के बाद ऐशपरस्त जिंदगी जीने वाली मेघा एक बार फिर नए दूल्हे की तलाश में निकल पड़ती थी. सिलसिला था कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा था.

केरल के त्रिवेंद्रम में भी मेघा फरेब का ऐसा ही खेल खेल कर आई थी. नोएडा पुलिस की मदद से उसे गिरफ्तार करने  वाली केरल पुलिस ही थी. उस के कारनामे से हर कोई दंग था. तीनों आरोपियों को केरल ले जाना था, लिहाजा पुलिस ने तीनों को सूरजपुर स्थित न्यायालय में पेश किया और कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के उन्हें साथ ले कर केरल के लिए रवाना हो गई. सचमुच इस लुटेरी दुलहन का हर कारनामा चौंकाने वाला था.

27 वर्षीया मेघा भार्गव मूलरूप से भोपाल के अशोकनगर निवासी उमेश भार्गव की 4 बेटियों में तीसरे नंबर के बेटी थी. उस ने एमबीए की पढ़ाई की थी. वह शुरू से ही शातिर दिमाग और महत्वाकांक्षी थी. उस के ऐशपरस्ती के जो सपने थे, वे साधारण जिंदगी में कभी पूरे नहीं हो सकते थे. लेकिन वह अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी.

करीब 6 साल पहले मेघा ने केतन नामक युवक से एक कालेज में एडमीशन कराने के नाम पर 80 हजार रुपए ले लिए थे. लेकिन एडमीशन नहीं हो सका तो केतन अपने रुपए वापस मांगने लगा. मेघा ने रुपए लौटाने में आनाकानी की तो उस ने उस के खिलाफ ठगी का मामला दर्ज करा दिया. दरअसल, मेघा का मकसद उसे धोखा देना ही था. पुलिस ने इस मामले में उस के खिलाफ कोई काररवाई नहीं की तो केतन न्यायालय चला गया.

इस के बाद मेघा का परिवार मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के गोयल विहार में शिफ्ट हो गया. लेकिन केतन ने उस का पीछा नहीं छोड़ा. अंत में पुलिस से दबाव  डलवा कर उस ने अपनी रकम वसूल कर ही ली. मेघा ने पीछा छुड़ाने के लिए यह रकम कर्ज ले कर अदा की थी. कर्ज अदा करने के लिए उस ने एक संस्थान में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी कर ली. समय अपनी गति से चलता रहा. करीब 2 साल पहले मेघा की मुलाकात महेंद्र बुंदेला से हुई. समाज में ऐसे शातिर लोगों की कमी नहीं है, जो महत्वाकांक्षी लोगों का इस्तेमाल अपने हिसाब से करने में माहिर होते हैं.

मेघा के रंगढंग और पैसे की जरूरतों को देख कर महेंद्र समझ गया कि यह ऐसी लड़की है, जो पैसों के लिए कुछ भी कर सकती है. मौका देख कर उस ने मेघा से कहा, ‘‘मेघा, तुम ऐश की जिंदगी जीना चाहती हो न?’’

‘‘बिलकुल.’’ मेघा की आंखों में एकाएक चमक आ गई. ‘‘मेरे पास एक आइडिया है. तुम चाहो तो महीने भर में ही इतनी रकम कमा सकती हो कि पूरे साल मेहनत कर के भी उतना नहीं कमा सकती. लेकिन इस के लिए मैं जिस से कहूं, तुम्हें उस से शादी करनी होगी. वहां से जो माल मिलेगा, उस में मुझे आधा हिस्सा देना होगा.’’

‘‘क…क्या,’’ मेघा चौंकी, ‘‘लेकिन मैं अभी शादी नहीं करना चाहती.’’

‘‘शादी तो एक नाटक होगी, लेकिन उसी से तुम अमीर बन सकती हो.’’ महेंद्र ने उसे समझाया, ‘‘मैं किसी ऐसे अमीर को पकडूंगा, जिस की शादी नहीं हो रही होगी. शादी के बाद उस के माल पर हाथ साफ कर के तुम दूर निकल जाना.’’

मेघा को महेंद्र की यह योजना पसंद आ गई. इस के बाद महेंद्र एक ऐसा तलाकशुदा आदमी ढूंढ कर लाया, जो शादी के लिए काफी परेशान था. महेंद्र ने उसे मेघा की फोटो दिखा कर किसी दूसरे राज्य की अनाथ लड़की बताया. फोटो देखते ही उस ने मेघा को पसंद कर लिया तो उस ने दोनों की मुलाकात करा दी. मेघा सुंदर भी थी और पढीलिखी भी. उस आदमी की जिंदगी में जैसे खुशियों की बहार खुद चल कर आ रही थी. महेंद्र ने कहा कि लड़की जल्द से जल्द शादी करना चाहती है, क्योंकि उसे पति के रूप में सहारा चाहिए. इस पर वह आदमी और भी खुश हुआ. इस मौके को वह हाथ से जाने नहीं देना चाहता था, इसलिए जल्दी ही महेंद्र ने एक मंदिर में उन का विवाह करा दिया.

विवाह के अभी 10 दिन ही बीते थे कि मेघा एक रात करीब साढ़े 11 लाख रुपए की नकदी ले कर लापता हो गई. उस आदमी ने महेंद्र से संपर्क किया तो उस ने हाथ खड़े कर दिए. उस ने कहा कि उस अनाथ लड़की से उस की जानपहचान जरूर थी, लेकिन वह कहां की रहने वाली थी, इस बारे में उसे पता नहीं था. यह उस आदमी की शराफत थी  कि उस ने पुलिस में शिकायत नहीं की. जैसा तय था, मेघा ने आधी रकम महेंद्र को दे दी.

इस के बाद मेघा मुंबई चली गई. कुछ दिन मस्ती में गुजारने के बाद उस ने नया शिकार तलाश कर लिया और इस नए शिकार को उस ने 40 लाख रुपए का चूना लगाया. मेघा को ठगी का यह अनोखा धंधा रास आ गया. अब तक वह इतनी तेज हो गई थी कि उस ने महेंद्र का साथ छोड़ दिया और खुद ही अपने लिए दूल्हे ढूंढने लगी.

उस ने पुणे के एक अमीर परिवार के अपाहिज लड़के से शादी कर के वहां 90 लाख रुपए का चूना लगाया. इस के बाद उस ने मुंबई छोड़ दी. इस बीच मेघा की बड़ी बहन प्राची का विवाह देवेंद्र से हो चुका था. मेघा के धंधे से वे वाकिफ थे. रुपयों के लालच में वे भी उस की फितरत में शामिल हो गए.

कभी पैसोंपैसों के लिए मोहताज रहने वाली मेघा नोटों से खेलने लगी. वह अच्छा खाने और महंगे कपड़े पहनने की शौकीन थी. बड़े शहरों में घूमने के लिए हवाई जहाज की यात्राएं करती थी. मेघा सौ, 5 सौ के नोट टिप में दे दिया करती थी.

उस का कोई स्थाई ठिकाना नहीं था. वह शादियों के विज्ञापन देने वाली इंटरनेट बेवसाइट्स पर शिकार की तलाश करती थी. खास बात यह थी कि वह पैसे वाले तलाकशुदा और विकलांगों से ही शादी करती थी. इस की वजह यह थी कि उन्हें अच्छी लड़की मिल रही होती थी. ऐसे जरूरतमंद लोग ज्यादा छानबीन किए बिना शादी के लिए आसानी से तैयार हो जाते थे.

मेघा की बहन और जीजा भावी दूल्हे के परिवार से मिलते थे और माली हालत का अंदाजा लगा कर ही रिश्ता पक्का करते थे. रिश्ता पक्का होते ही शादी की जल्दी करते थे. वह अपनी कमजोर माली हालत का परिचय देते तो शादी का खर्च भी लड़के वाले ही उठाते थे. जिन की माली हालत लूटने लायक नहीं होती थी, वहां वे कोई न कोई बहाना बना कर रिश्ता तोड़ देते थे.

मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के अलावा राजस्थान और बिहार में भी मेघा ने लोगों को अपना शिकार बनाया था. परिवार के नाम पर मेघा की शादी में बहन और जीजा ही शामिल होते थे. कुछ मामलों में वह खुद को अनाथ और दुखियारी लड़की बता कर अकेली ही रिश्ता पक्का कर लेती थी. वह हंसमुख स्वभाव की थी, इसलिए शादी के बाद दूल्हे के घर वालों से मीठीमीठी बातें कर के घुलमिल जाती थी.

ससुराल वाले तो अपनी नईनवेली दुलहन की तारीफ करते नहीं थकते थे कि उन के नसीब अच्छे थे, जो गुणी बहू मिली. रुपए और गहने कहां रखे होते थे, इस की वह जल्दी से जल्दी जानकारी हासिल कर लेती थी. उस में एक खास बात यह थी कि वह घर में खाना बनाने का काम भी जल्दी ही संभाल लेती थी.

ऐसा कर के वह एक तीर से 2 शिकार करती थी. एक तो लड़के वाले उस के कामकाज की प्रशंसा कर के विश्वास करने लगते थे, दूसरे उसे नींद की गोलियां मिलाने में सुविधा हो जाती थी. वह ऐसी अदाकारा बन चुकी थी कि सभी उस पर पूरी तरह विश्वास कर बैठते थे. वारदात करने से पहले वह बहन और जीजा को बता देती थी, जिस से तय समय पर वे घर के बाहर पहुंच जाते थे. इस के बाद मेघा सामान समेट कर उन के साथ निकल जाती थी.

प्रत्येक वारदात के बाद मेघा अपने मोबाइल का सिमकार्ड तोड़ कर फेंक देती थी. कुछ लोगों ने पुलिस में शिकायतें भी कीं, लेकिन पुलिस कभी उस तक पहुंच नहीं पाई. इस से उस के हौसले बढ़ते गए. पिछले साल मेघा अपनी बहन और जीजा के साथ केरल पहुंची. मेघा ने अपने पुराने अंदाज में शादी कर के 4 लोगों को ठगा. कुछ महीने पहले उस ने त्रिवेंद्रम के लौरेन जोसटिस से शादी की.

शादी के 20 दिनों बाद ही वह करीब 15 लाख के माल पर हाथ साफ कर के भाग निकली. उस के शिकार हुए लोग लुटने के बाद सिर पीट कर रह जाते थे, लेकिन लौरेन सिर पीटने वालों में नहीं थे. उन्होंने सीधा पुलिस का रुख किया और मेघा के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने मामले को गंभीरता लिया और इस केस की जांच का जिम्मा इंसपेक्टर टी. सज्जी को सौंपा गया. कुछ समय मुंबई में रहने के बाद मेघा, प्राची और देवेंद्र नोएडा आ कर रहने लगे.

यह इत्तेफाक ही था कि अभी तक मेघा कभी पकड़ी नहीं गई थी. उस का सोचना था कि उस का जन्म ही शादी की चाह रखने वाले लोगों को ठगने के लिए हुआ है. तीनों फ्लैट में गुमनाम जिंदगी जी रहे थे और किसी से कोई वास्ता नहीं रखते थे. आसपास के लोगों को खबर भी नहीं थी कि वहां शादी के नाम पर अपने हाथों में मक्कारी की मेहंदी लगाने वाली जालसाज दुलहन रहती है.

नोएडा में भी वे नए शिकार की तलाश में जुट गए थे. उधर केरल पुलिस ने ठगी के इस मामले को चुनौती के रूप में लिया. उस ने मेघा के फोटो हासिल करने के साथ ही उस के मोबाइल नंबर को हासिल कर के उस की कौल डिटेल्स निकलवाई. उन की गहराई से जांचपड़ताल की गई. उस में 2 नंबर मिले, जिन पर उस की सब से ज्यादा बातें हुई थीं. इन तीनों की लोकेशन भी साथसाथ होती थी. यही दोनों नंबर उस की बहन और जीजा के थे. लेकिन परेशानी की बात यह थी कि तीनों ही नंबर बंद कर दिए गए थे.

जिन मोबाइल हैंडसेट में ये नंबर इस्तेमाल होते थे, उन पर कोई दूसरा नंबर भी नहीं चल रहा था. लेकिन एक महीने बाद एक मोबाइल हैंडसेट में नया नंबर चल गया. जांच में यह नंबर मेघा के जीजा देवेंद्र का निकला. इस नंबर के संपर्क में 2॒ नंबर और आए. पुलिस समझ गई कि ये मेघा और प्राची के नंबर हैं.

पुलिस ने इन नंबरों की लोकेशन पता कराई तो वह नोएडा की मिली. इस के बाद पुलिस ने तीनों ही नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया. बहुत जल्दी साफ हो गया कि ये नंबर शादी के नाम पर ठगी करने वाली तिगड़ी के हैं. मेघा कोई नया शिकार फांस कर नंबर बदल सकती थी, इसलिए उसे जल्दी गिरफ्तार करना जरूरी था.

इंसपेक्टर टी. सज्जी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम नोएडा आ पहुंची और एसएसपी धर्मेंद्र यादव से मिली. एसएसपी ने एसपी (सिटी) दिनेश यादव को मदद करने के निर्देश दिए. उन्होंने फेज-2 थानाप्रभारी उम्मेद सिंह को केरल से आई पुलिस टीम के साथ लगा दिया. पुलिस ने पहले सुरागसी की, उस के बाद सोसाइटी जा कर तीनों को गिरफ्तार कर लिया.

मेघा के पकड़े जाने के बाद केरल के वे अन्य लोग भी सामने आ गए हैं, जिन्हें मेघा ने ठगा था. पुलिस ने मेघा, प्राची और देवेंद्र को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया था. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी. मेघा ने अपनी महत्वाकांक्षाओं को काबू में रखा होता और पढ़ाई का सही इस्तेमाल किया होता तो आज उसे जेल जाने की नौबत न आती.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बच्चों की सुरक्षा के लिए सतर्कता जरूरी

7 साल का प्रद्युम्न ठाकुर गुड़गांव के ख्यातिप्राप्त रायन इंटरनैशनल स्कूल की कक्षा 2 का छात्र था. रोजाना की तरह गत 8 सितंबर को मां ने प्यार से तैयार कर उसे पढ़ने के लिए स्कूल भेजा. पिता द्वारा प्रद्युम्न को स्कूल में पहुंचाने के आधे घंटे के अंदर घर पर फोन आ गया कि बच्चे के साथ हादसा हो गया है. प्रद्युम्न को संदिग्ध परिस्थितियों में ग्राउंडफ्लोर पर मौजूद वाशरूम में खून से लथपथ मृत अवस्था में पाया गया. देखने से स्पष्ट था कि उस की हत्या की गई है. उस पर 2 बार चाकू से वार किए गए थे. अत्यधिक खून बहने से उस की मौत हो गई.

प्रारंभिक जांच में बस कंडक्टर को दोषी पाया गया मगर बाद की जांच में उसी स्कूल की 11वीं कक्षा के एक छात्र को हिरासत में लिया गया. आरोपी छात्र ने स्वीकार किया कि महज परीक्षा की तिथि और टीचर पेरैंट्स मीटिंग की तारीख आगे बढ़वाने के मकसद से उस ने, जानबूझ कर, इस घटना को अंजाम दिया.

वैसे, इस केस में स्कूल प्रशासन पर सुबूत छिपाने के इलजाम भी लगे और एक बार फिर स्कूलों में बच्चों की लचर सुरक्षा व्यवस्था की हकीकत सामने आ गई.

बच्चों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा करता ऐसा ही मामला द्वारका, दिल्ली के एक स्कूल का है. यहां 4 साल की बच्ची के साथ यौनशोषण की घटना सामने आई. आरोप बच्ची की ही कक्षा में पढ़ने वाले 4 साल के बच्चे पर लगा. छोटी सी बच्ची से बलात्कार का एक मामला 14 नवंबर को दिल्ली के अमन विहार इलाके में भी सामने आया. यह नाबालिग बच्ची अपने मातापिता के साथ किराए के मकान में रहती थी. आरोपी युवक उसी मकान में पहली मंजिल पर रहता था.

दिल्ली के एक स्कूल में 5 साल की बच्ची के साथ स्कूल के चपरासी द्वारा बलात्कार की घटना ने भी सभी को स्तब्ध कर दिया. इन घटनाओं ने स्कूल परिसरों में बच्चों की सुरक्षा को ले कर कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं. स्कूल परिसरों में मासूम लड़कियां ही नहीं, लड़के भी यौनशोषण के शिकार हो रहे हैं.

इस संदर्भ में सभी राज्य सरकारों, स्कूल प्रशासनों और मातापिता को सतर्क होने की जरूरत है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न घट सकें.

स्कूल की जिम्मेदारियां

कोई भी मातापिता जब अपने बच्चे के लिए किसी स्कूल का चुनाव करते हैं तो स्कूल की आधारभूत संरचना और वहां की पढ़ाई के स्तर को जांचने के साथ ही उन का विश्वास भी होता है जो उन्हें किसी विशेष स्कूल को अपने बच्चे के लिए चुनने हेतु प्रेरित करता है. ऐसे में स्कूल प्रशासन की पूरी जिम्मेदारी बनती है कि वह न सिर्फ बेहतरीन शिक्षा उपलब्ध कराए, बल्कि मातापिता के विश्वास पर भी खरा उतरे.

मातापिता की जिम्मेदारियां

हर मातापिता का कर्तव्य है कि वे घरबाहर अपने बच्चों की सुरक्षा को ले कर सतर्क रहें. घर के बाद बच्चे सब से अधिक समय स्कूल में बिताते हैं. ऐसे में स्कूल परिसर में बच्चों की सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा है. द्य मातापिता को चाहिए कि जिस स्कूल में वे बच्चे को दाखिल कराने जा रहे हैं, वहां की सुरक्षा व्यवस्था की वे विस्तृत जानकारी लें.

हमेशा टीचरपेरैंट्स मीटिंग में जाएं और बच्चों की सुरक्षा से संबंधित कोई कमी नजर आए तो टीचर से उस की चर्चा जरूर करें. द्य बच्चों से स्कूल में उन के अनुभवों के बारे में खुल कर चर्चा करें. अगर अचानक बच्चा स्कूल जाने से घबराने लगे या उस के नंबर कम आने लगें तो इन संकेतों को गंभीरता से लें और इन का कारण जानने का प्रयास करें.

बच्चों को अच्छे और बुरे टच के बारे में समझाएं ताकि यदि कोई उन्हें गलत मकसद से छुए तो वे शोर मचा दें. द्य बच्चों को यह भी समझाएं कि यदि कोई बच्चा उन्हें डराधमका रहा है तो वे टीचर या मम्मीपापा को सारी बात बताएं.

बच्चों को मोबाइल और दूसरी कीमती चीजें स्कूल न ले जाने दें. द्य अगर आप के बच्चे का व्यवहार कुछ दिनों से बदलाबदला नजर आ रहा है, वह आक्रामक होने लगा है या ज्यादा चुप रहने लगा है तो इस की वजह जानने का प्रयास करें.

रोज स्कूल से आने के बाद बच्चे का बैग चैक करें. उस के होमवर्क, क्लासवर्क और ग्रेड्स पर नजर रखें. उस के दोस्तों के बारे में भी सारी जानकारी रखें. द्य छोटे बच्चे को बस में चढ़नाउतरना सिखाएं.

बसस्टौप पर कम से कम 5 मिनट पहले पहुंचें. द्य आप अपने बच्चों को सिखाएं कि किसी आपातकालीन स्थिति में किस तरह के सुरक्षात्मक कदम उठाए जा सकते हैं. हो सके तो बच्चों को सैल्फडिफैंस के गुर, जैसे मार्शल आर्ट व कराटे वगैरा सिखाएं.

मनोवैज्ञानिक पहलू तुलसी हैल्थ केयर, नई दिल्ली के मनोचिकित्सक डा. गौरव गुप्ता बताते हैं कि गुड़गांव के प्रद्युम्न केस की बात हो या 4 साल की बच्ची का यौनशोषण, इस तरह की घटनाएं बच्चों में बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति व गलत कामों के प्रति आकर्षण को चिह्नित करती हैं.

इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि आज लोगों के पास वक्त कम है. हर कोई भागदौड़भरी जिंदगी में व्यस्त है. संयुक्त परिवारों की प्रथा खत्म होने के कगार पर पहुंच चुकी है. नतीजा यह है कि बच्चों का लालनपालन एक मशीनी प्रक्रिया के तहत हो रहा है. परिवार वालों के साथ रह कर जीवन की वास्तविकताओं से अवगत होने और टीवी धारावाहिक व फिल्में देख कर जिंदगी को समझने में बहुत अंतर है. एकाकीपन के माहौल में पल रहे बच्चों के मन की बातों और कुंठाओं को समझना जरूरी है. मांबाप द्वारा बच्चों के आगे झूठ बोलने, बेमतलब की कलह और विवादों में फंसने, छोटीछोटी बातों पर हिंसा करने पर उतारू हो जाने जैसी बातें ऐसी घटनाओं का सबब बनती हैं क्योंकि बच्चे बड़ों से ही सीखते हैं.

स्कूल भी पीछे कहां हैं? स्कूल आज शिक्षाग्रहण करने का स्थान कम, पैसा कमाने का जरिया अधिक बन गए हैं. स्कूल का जितना नाम, उतनी ही महंगी पढ़ाई. जरूरी है कि शिक्षा प्रणाली में बाल मनोविज्ञान का खास खयाल रखा जाए. अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. यदि हम सब आज भी अपनी आने वाली पीढ़ी के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझें और उसे सही ढंग से निभाएं तो अवश्य ही हम उन्हें बेहतर भविष्य दे सकते हैं.

साइबर बुलिंग

बुलिंग का अर्थ है तंग करना. इतना तंग करना कि पीडि़त का मानसिक संतुलन बिगड़ जाए. बुलिंग व्यक्ति को भावनात्मक और दिमागी दोनों ही तौर पर प्रभावित करती है. बुलिंग जब इंटरनैट के जरिए होती है तो इसे साइबर बुलिंग कहते हैं.

साइबर बुलिंग के कहर से भी स्कूली बच्चे सुरक्षित नहीं हैं. हाल ही में 174 बच्चों पर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, 17 फीसदी बच्चे बुलिंग के शिकार हैं. स्टडी में पाया गया कि 15 फीसदी बच्चे शारीरिक तौर पर भी बुलिंग के शिकार हो रहे हैं. इस में मारपीट की धमकी प्रमुख है. लड़कियों की तुलना में लड़के इस के ज्यादा शिकार होते हैं.

अपराध के बढ़ते मामले चिंताजनक

एनसीआरबी द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2015 और 2016 के बीच बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या में 11 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. क्राइ यानी चाइल्ड राइट्स ऐंड यू द्वारा किए गए विश्लेषण दर्शाते हैं कि पिछले एक दशक में बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराध तेजी से बढ़े हैं. 2006 में 18,967 से बढ़ कर 2016 में यह संख्या 1,06,958 हो गई. राज्यों के अनुसार बात करें तो 50 फीसदी से ज्यादा अपराध केवल 5 राज्यों उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में दर्ज किए गए है. उत्तर प्रदेश 15 फीसदी अपराधों के साथ इस सूची में सब से ऊपर है. वहीं महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश क्रमश: 14 और 13 फीसदी अपराधों के साथ ज्यादा पीछे नहीं हैं.

अपराध की प्रवृत्ति और कैटिगरी की बात करें तो सूची में सब से ऊपर अपहरण रहा. 2016 में दर्ज किए गए कुल अपराधों में से लगभग आधे अपराध इसी प्रवृत्ति (48.9 फीसदी) के थे. इस के बाद अगली सब से बड़ी कैटिगरी बलात्कार की रही. बच्चों के खिलाफ दर्ज किए गए 18 फीसदी से ज्यादा अपराध इस श्रेणी में दर्ज किए गए.

2 करोड़ का इनामी डाकू बन गया शांतिदूत

मध्य प्रदेश के जिला भिंड के गांव सिंहपुरा के रहने वाले सीधेसादे पंचम सिंह लड़ाईझगड़े से दूर रहकर शांतिपूर्वक जीवन गुजार रहे थे. उन्हें अपने परिवार की खुशियों से मतलब था, जिस में उन के मातापिता, एक भाई और एक बहन के अलावा पत्नी थी. शादी के कई साल बीत जाने के बाद भी वह पिता नहीं बन पाए थे.

कदकाठी से मजबूत पंचम सिंह निहायत ही शरीफ और मेहनती आदमी थे. अपनी खेतीबाड़ी में जीतोड़ मेहनत कर के वह अपने परिवार को हर तरह से सुखी रखने की कोशिश कर रहे थे. अब तक उन की उम्र लगभग 35 साल हो चुकी थी.

लेकिन एक बार हुए झगड़े में पंचम सिंह की ऐसी जबरदस्त पिटाई हुई कि उन के बचने की उम्मीद नहीं रह गई. इस के बावजूद पुलिस ने पिटाई करने वालों के बजाय बलवा करने के आरोप में उन्हें ही जेल भेज दिया. प्रताडि़त किया अलग से. यह सन 1958 की बात है.

दरअसल, गांव में पंचायत के चुनाव हो रहे थे. प्रचार अभियान जोरों पर था. पंचम की साफसुथरी छवि थी, जिस से गांव के ज्यादातर लोग उन्हें पसंद करते थे. इसलिए दबंग किस्म के लोगों की एक पार्टी ने चाहा कि वह उन के लिए प्रचार करें.

वे लोग गरीबों पर जुल्म किया करते थे, जो पंचम सिंह को पसंद नहीं था. लेकिन चाह कर भी वह इस बारे में कुछ नहीं कर सकते थे. उन्हें राजनीति में भी कोई विशेष रुचि नहीं थी, इसलिए उन्होंने उन का प्रचार करने से साफ मना कर दिया. तब उन्होंने उन्हें धमकाया.

इस का परिणाम यह निकला कि वह उस प्रत्याशी के प्रचार में जुट गए, जो उन दबंगों के विरोध में खड़ा था. पंचम की निगाह में उस का जीतना गांव वालों के लिए अच्छा था. इस का असर यह हुआ कि उन दबंगों ने उन्हें अकेले में घेर कर इस तरह पीटा कि उन के पिता उन्हें बैलगाड़ी से अस्पताल ले गए, जहां 20 दिनों तक उन का इलाज चला.

इसी बीच उन पर झूठा मुकदमा दर्ज कर के पुलिस ने अस्पताल में उन के बैड पर पहरा लगा दिया. 20 दिनों बाद वह अस्पताल से डिस्चार्ज हुए तो उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. जमानत पर घर आने के बाद भी दबंग उन्हें परेशान करते रहे. घर वालों से भी मारपीट की गई, जिस में पिता ही नहीं, भाई और बहन भी घायल हुए.

इस मामले में पुलिस दबंगों के खिलाफ काररवाई करने के बजाय पंचम को ही दोषी ठहरा कर पकड़ ले गई. पुलिस ने उन्हें आदतन बलवाकारी कहना शुरू कर दिया, साथ ही कानूनी रूप से उन्हें ‘बाउंड’ करने की काररवाई भी शुरू कर दी. पुलिस की ओर से उन्हें धमकाया भी जाता रहा कि जल्दी ही उन्हें कई झूठे मुकदमों में फंसा दिया जाएगा, जिन में उन्हें जमानत मिलनी मुश्किल हो जाएगी. फिर वह सारी जिंदगी जेल में सड़ते रहेंगे.

पंचम सिंह को अपनी बरबादी साफ दिखाई देने लगी थी. पानी जब सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो दूसरा कोई उपाय न देख पंचम सिंह बीहड़ में कूद कर चंबल घाटी के कुख्यात दस्युसम्राट मोहर सिंह के गिरोह में शामिल हो गए. इस के बाद उन्होंने इस गिरोह की मदद से खुद को और घर वालों को पीटने वाले 12 लोगों को चुनचुन कर मौत के घाट उतार दिया.

इसी एक कांड के बाद पूरे इलाके में पंचम सिंह के आतंक का डंका बजने लगा. इस के बाद किसी में इतना दम नहीं रहा कि उन के परिवार की ओर आंख उठा कर भी देख ले. किसी में इतनी हिम्मत नहीं रही कि उन के खिलाफ पुलिस में जा कर शिकायत कर दे.

चंबल के बीहड़ों के बारे में कहा जाता था कि वहां बंदूक की नोक पर समानांतर सत्ता चलती थी. चौथी तक पढ़े और मात्र 14 साल की उम्र में वैवाहिक बंधन में बंध गए पंचम सिंह ने एक ही झटके में इस कहावत को चरितार्थ कर दिया था.

इस तरह एक शरीफ आदमी दिलेर डकैत बन कर कत्ल और लूटपाट करने लगा था. देखते ही देखते वह अनगिनत आपराधिक मामलों में नामजद हो गए. पुलिस उन्हें पकड़ने के लिए परेशान थी. उन की गिरफ्तारी के लिए अच्छाखासा इनाम रख दिया गया, जो बढ़तेबढ़ते 1970 तक 2 करोड़ तक पहुंच गया.  डाकू पंचम सिंह का नाम सब से ज्यादा वांछित दस्यु सम्राटों में आ गया था.

अब तक पंचम सिंह एक सिरफिरे दस्यु सम्राट के रूप में प्रसिद्ध हो गए थे. इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में उन्होंने उन्हें चैलेंज कर दिया था कि उन के इलाके में उन के बजाय उन की सरकार बेहतर चलेगी. इस से नाराज हो कर इंदिरा गांधी ने चंबल में बमबारी कर के डाकुओं का सफाया करने का आदेश दे दिया था, लेकिन बाद में इस आदेश को वापस ले कर डाकुओं से आत्मसमर्पण कराने पर विचार किया जाने लगा था.

आखिरकार इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण को डकैतों से आत्मसमर्पण कराने की जिम्मेदारी सौंपी. उन की पहल पर 3 मांगों की शर्त के साथ कई दस्यु सम्राट अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण को तैयार हो गए. अपनी आत्मा की आवाज पर सन 1972 में पंचम सिंह ने भी अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया था. उन लोगों पर लूटपाट और फिरौती के लिए अपहरण के अनगिनत मुकदमों के अलावा 125 लोगों की हत्या का मुकदमा चला.

अदालत ने इन आरोपों के आधार पर उन्हें फांसी की सजा सुनाई. पंचम सिंह का 556 डाकुओं का गिरोह था. इन सभी ने अपने सरदार के साथ आत्मसमर्पण किया था और अब इन सभी को एक साथ फांसी की सजा हुई थी.

लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने फांसी का विरोध करते हुए इस के खिलाफ आवाज उठाने के अलावा संबंधित अदालतों में अपील भी की. उन का कहना था कि वह डकैतों से इसी शर्त पर आत्मसमर्पण करवाने में सफल हुए थे कि सरकार उन पर दया दिखाते हुए उन्हें सुधरने का मौका देगी.

इस के बाद सभी डकैतों की फांसी की सजा उम्रकैद में बदल दी गई थी. इस के साथ इन कैदियों की यह शर्तें भी स्वीकार कर ली गई थीं कि उन्हें खुली जेल में रह कर खेतीबाड़ी करते हुए परिवार के साथ सजा काटने का मौका दिया जाए.

पंचम सिंह को उसी तरह के अन्य दुर्दांत कैदियों के साथ मध्य प्रदेश की खुली मूंगावली जेल में रखा गया. वहीं पर उन की जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा बीता.

एक बार ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा जीवन क्या है, विषय पर जेल में एक ऐसी प्रदर्शनी लगाई गई, जो निरंतर 3 सालों तक लगी रही. प्रदर्शनी द्वारा कैदियों को जीवन के उज्ज्वल पक्ष से संबंधित जानकारियां और शिक्षाएं भी दी जाती रहीं. कैदियों को न केवल राजयोग का अभ्यास कराया जाता था, आध्यात्मिक ज्ञान से सराबोर करने के प्रयास भी किए जाते रहे. इस से क्या हुआ कि अतीत के दुर्दांत डकैतों के जीवन में आध्यात्मिक उन्नति के चिह्न परिलक्षित होने लगे.

दस्यु सम्राट कहे जाने वाले पंचम सिंह भी उन्हीं में से एक थे. उन का कुछ ऐसा हृदय परिवर्तन हुआ कि अंततोगत्वा वह भी इसी राह पर चल पड़े. बाद में जब उन के अच्छे आचरण को देखते हुए उन की बाकी की सजा माफ कर दी गई तो वह कहीं और जाने के बजाय उन्हीं शिक्षाओं का हिस्सा बन कर शांतिदूत के रूप में इस का प्रचार करने लगे.

इसी सिलसिले में कुछ समय पहले पंचम सिंह मोहाली के ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के सुखशांति भवन में आए. अपने जीवन के अनुभव बांटते हुए उन्होंने बताया कि अपने डकैत जीवन में भी वह समाजसेवा के कामों को तरजीह दिया करते थे.

उन के अधीन 3 राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कई इलाके थे, जहां के संपन्न लोगों से वह उन की कमाई का 10 फीसदी हिस्सा वसूल कर के उसी इलाके के गरीब परिवारों की लड़कियों की शादी पर खर्च करने के अलावा अस्पतालों और स्कूलों को दान कर दिया करते थे.

डाकुओं के अपने नियम होते थे, जिन पर सभी डकैतों को निश्चित रूप से चलना होता था. पंचम सिंह के अनुसार, उन्होंने कभी भी बच्चों या महिलाओं को परेशान नहीं किया, न ही उन के गिरोह का कोई सदस्य किसी महिला को बुरी नजर से देखने का दुस्साहस कर सका. हां, जिस किसी ने भी उन की मुखबिरी की, उसे उन्होंने किसी भी कीमत पर नहीं बख्शा.

इस समय 94 साल के हो चुके पंचम सिंह के बताए अनुसार, उन की गिरफ्तारी पर 2 करोड़ का इनाम था, लेकिन वह कभी पकड़े नहीं गए. पुलिस से हुई एक मुठभेड़ में उन की दाईं बाजू में गोली लगी थी, वह तब भी बच निकले थे.

अपने आत्मसमर्पण के बाद उन्होंने फूलन देवी, मलखान सिंह, सीमा परिहार और सुमेर गुर्जर का भी आत्मसमर्पण कराने में मदद की थी. इस के अलावा उन्होंने दक्षिण भारत के चंदन तस्कर वीरप्पन से मिल कर अभिनेता राजकुमार को उस के चंगुल से मुक्त करवाने में पुलिस की मदद की थी.

देश की युवा पीढ़ी के लिए उन का संदेश है कि विपरीत परिस्थितियों में भी वे कभी मर्यादा न खोएं. एकता, सत्य और दृढ़संकल्प हो कर जिस ने भी परिस्थितियों को अपने वश में किया, वह महान हुआ है. अपनी एक दिनचर्या बना कर उस पर दृढ़ता से अमल करना श्रेयस्कर रहता है.

एक डाकू होने और हर पल विपरीत परिस्थितियों में जीने के बावजूद पंचम सिंह ने अपनी मर्यादा को बचाए रखा, यही उन के जीवन की सब से बड़ी उपलब्धि है.

खून : अवैध संबंधों का फलितार्थ!

छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा में एक ऐसी ही घटना घटित हुई है जिसे देखने पर विचार करना पड़ता है कि शराब किस तरह छत्तीसगढ़ के गरीब आदिवासियों को  बर्बाद कर रही है. एक “शराब विक्रेता” आदिवासी महिला के घर शराब पीने के लिए गए एक वृद्ध को  अपनी जान से हाथ धोना पड़ गया.

गांव के ही  युवक से अवैध संबंध रखने वाली इस महिला के पति ने अपने भाई के साथ पत्नी की हत्या करने हमला कर दिया… लेकिन नशे में धुत्त होकर सोए वृद्ध को अपनी पत्नी समझकर  टांगिया से वार कर वृद्ध पिअकड़ को वहीं ढेर कर दिया. यही नहीं पास में ही सोया प्रेमी भी उनके गुस्से का शिकार हुआ लेकिन शोर मचाकर जान बचा नौ दो ग्यारह हो गया.

इस संपूर्ण हत्याकांड में महत्वपूर्ण यह बात रही की शराब बेचकर जीवन यापन करने वाली पत्नी दूसरे कमरे में सोने के कारण बाल बाल बच गई. शायद इसीलिए कहते हैं जाकर राखे साइयां मार सके ना कोई.

पति पत्नी और “वो” का किस्सा

छत्तीसगढ़ के औघोगिक जिला कोरबा  के आदिवासी बाहुल्य पाली थाना क्षेत्र के ग्राम बांधाखार  स्थित नीम चौक निवासी वृद्ध चमरा सिंह नामक व्यक्ति की  विगत 17 सितंबर को रक्त रंजित लाश गांव के मीना बाई कोल के घर में मिली थी. इस मामले की गुत्थी पुलिस ने अंततः सुलझा ली.

थाना प्रभारी लीलाधर राठौर ने हमारे संवाददाता को बताया कि मृतक के पुत्र मनोहर सिंह मरावी (35 वर्ष) के द्वारा उसके पिता की 16 सितंबर की रात 7-8 बजे घर से निकलने और अधिकतर मीना बाई कोल के यहां जाकर शराब पीने के लिए जाने व घर वापस नहीं लौटने की सूचना दी गई थी.

17 सितंबर को सुबह 8 बजे ग्राम सरपंच तानू सिंह मरावी ने मनोहर को उसके पिता के मीना बाई के घर में लहूलुहान मृत हालत में पड़े होने की सूचना दी. मनोहर सिंह वहां पहुंचा तो मीना बाई के घर के एक कमरे में चमरा सिंह मृत पड़ा था और उसके सिर पर गंभीर चोट थी. मीना बाई और पड़ोसी घायल शिव सिंह वहां कुर्सी पर बैठे मिले.शिव सिंह के गले, पीठ और सीने में चोट थी.

मामले में पुलिस ने  जब मीना बाई व शिव सिंह से  पूछताछ की तो संपूर्ण मामला सामने आ गया – घटना  की रात मीना का पति गोरेलाल (45 वर्ष )और उसका भाई मूरित राम कोल( 30 वर्ष) दोनों पिता सुरूज लाल, है निवासी ग्राम बांधाखार शराब के नशे में धुत्त होकर मीना की हत्या करने की नीयत घर पहुंचे थे.

जांच अधिकारी राठौर ने बताया कि दोनों भाई कमरे में घुसे जहां औंधे मुंह वृद्ध चमरा सिंह सोया हुआ था और पास ही  शिव सिंह सोया था.वृद्ध को अपनी पत्नी मीना समझकर गोरेलाल ने टांगी से लगातार 3 वार किया तो तत्काल  उसकी मौत हो गई. इसके बाद शिव सिंह का गला काटने टांगी चलाया लेकिन शिव की नींद उचट गई और बचाव किया. उसके कंधे व गर्दन में जख्म आए हैं.

शिव ने जोर-जोर से शोर मचाया तो गोरेलाल व मूरित राम भाग निकले.इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मीना बाई अपने मकान के ही एक अन्य कमरे में बच्चे के साथ सोई हुई थी. थाना प्रभारी लीलाधर राठौर ने आरोपियों को गिरफ्तार कर हत्या में प्रयुक्त टांगी को जब्त कर दोनों को जेल दाखिल कराया.बताया गया कि महिला का उसके पति गोरेलाल से वैवाहिक संबंध  ठीक नहीं था.

पत्नी की शराब बेचने वाले अन्य हरकतों से गोरेलाल परेशान भी रहता था .उसने शिव सिंह के साथ पत्नी को आपत्तिजनक हालत में पकड़ भी लिया था तब दोनों घर से भाग गए थे. इस मामले में गोरेलाल ने पंचायत भी बुलाई पर पत्नी ने पंचायत की बात नहीं मानी और अपने पति को ही घर से मारपीट कर निकाल दिया.

अपने घर में रह रहे गोरेलाल ने सबक सिखाने की ठान रखी थी और 16 सितंबर को शिव सिंह के संबंध में पता चला कि वह उसके घर जाने वाला है तब उसे खत्म करने के लिए गोरेलाल ने अपने भाई मूरित राम से मदद मांगी और सनसनीखेज वारदात कर डाली.

पुलिस अधिकारी विवेक शर्मा के अनुसार उनके 20 वर्ष के कार्यकाल में अनेक घटनाओं को उन्होंने निकट से देखा है जिसमें अवैध संबंधों के कारण हत्याएं हुई जिसके मूल में शराब भी एक कारक रहा. उच्च न्यायालय के अधिवक्ता बीके शुक्ला बताते हैं कि आदिवासी बाहुल्य होने के कारण छत्तीसगढ़ में शराब एक बहुत बड़ा कारण हत्या का मैं मानता हूं अच्छा हो सरकार इस पर अंकुश लगाने का निर्णय ले.