
शिवनाथ तांत्रिक का वह कमरा, जहां वह तंत्रसाधना करता था, बहुत रहस्यमयी था. कमरे में काली की आदमकद मिट्टी की मूर्ति रखी थी, उस के गले में हड्डियों की माला पड़ी हुई थी.
कमरे के बीच में धूनी जली हुई थी, जिस में से इंसानी या किसी जानवर के मांस के जलने की सड़ांध आ रही थी. धूनी के पास एक आसन बिछा हुआ था, जिस के करीब पानी का एक कटोरा, कमंडल और हड्डी रखी हुई थी. घूनी के धुएं से कमरा काला पड़ चुका था.
कमरे में लाल रंग की रोशनी वाला बल्ब जल रहा था, जिस की मद्धिम रोशनी ने कमरे को रहस्यमयी बना दिया था.
शिवनाथ दुबलापतला, सांवली रंगत वाला इंसान था. उस के लंबे बाल कंधे तक झूल रहे थे, वह लाल रंग का कुरतापायजामा पहने हुए था. उस ने हाथों की अंगुलियों में राशिनग वाली अंगूठियां और दाएं हाथ में मोटा कड़ा पहना हुआ था. चेहरे से वह बहुत चालाक इंसान लग रहा था.
उस कक्ष में शिवनाथ के सामने बेहद खूबसूरत, छरहरे बदन वाली युवती बैठी हुई थी. वहां तंत्र क्रिया हो रही थी.
शिवनाथ उन दोनों को देख कर मुसकराया, ‘‘कैसे हो जयप्रकाश?’’
‘‘अच्छा हूं गुरुजी.’’ जयप्रकाश ने शिवनाथ के चरण छू कर कहा, ‘‘और तुम अशोक मीणा, यहां तक आने में कोई परेशानी तो नहीं हुई तुम्हें?’’ शिवनाथ ने अशोक की तरफ देखा.
शिवनाथ के मुंह से अपना परिचय सुन कर इस बार अशोक को कोई हैरानी नहीं हुई.
तांत्रिक शक्ति का यह चमत्कार वह जयप्रकाश द्वारा पहले भी देख चुका था. उस ने श्रद्धा से शिवनाथ के चरण स्पर्श कर के कहा, ‘‘हम आराम से यहां तक पहुंच गए हैं गुरुजी. रास्ते में कोई कष्ट नहीं हुआ.’’
‘‘बैठ जाओ. मैं इस पीडि़ता की क्रिया से निपटने के बाद तुम दोनों से बात करूंगा.’’ शिवनाथ ने कहा.
दोनों आसन ले कर बैठ गए.
‘‘बेटी, कल मैं ने तुम्हें कुछ चावल के दाने रुमाल में बांध कर दिए थे, वह साथ लाई हो तुम?’’ शिवनाथ ने युवती से पूछा.
‘‘हां महाराज.’’ युवती ने अपने सूट के गले में हाथ डाल कर एक सफेद रंग का रुमाल निकाल कर शिवनाथ के सामने रख दिया.
‘‘इसे खोल कर देखो, चावल सफेद हैं या उन का रंग बदल गया है?’’ शिवनाथ ने आदेश देते हुए कहा.
युवती ने रुमाल की गांठ खोली तो उस के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उमड़ आए. रुमाल में रखे चावलों का रंग सुर्ख लाल हो गया था.
‘‘यह तो लाल रंग के हो गए महाराज.’’ युवती हैरत से बोली.
शिवनाथ गंभीर हो गया, ‘‘तुम्हारा प्रेमी गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला पुरुष है, वह तुम से प्यार का ढोंग कर रहा है, उस के अन्य युवतियों से भी प्रेमिल संबंध हैं.’’
‘‘मुझे पहले ही शक था महाराज. योगेश मुझे बेवकूफ बना रहा है, वह मुझे मिलने का समय दे कर नहीं आता…’’
‘‘कैसे आएगा, दूसरी युवती का भूत जो उस के सिर पर सवार रहता है.’’ शिवनाथ ने कहने के बाद कंधे झटके, ‘‘चिंता मत करो. मेरे जिन्न उस का भूत उतार देंगे. बोलो, तुम्हें अपना प्रेमी चाहिए या इसे सबक सिखा कर छोड़ना पसंद करोगी?’’
‘‘मैं योगेश से बहुत प्यार करती हूं महाराज, उस के बगैर जिंदा नहीं रह सकती. आप तो उस का दिमाग ठीक कर दीजिए, योगेश हमेशा मेरा रहे, मैं यही चाहती हूं.’’ युवती ने भावुक स्वर में कहा.
शिवनाथ ने हवा में हाथ लहराया तो उस के हाथ में गुलाब का लाल फूल आ गया. फूल को उस ने युवती की तरफ बढ़ा दिया, ‘‘लो, यह फूल पानी में घोल कर योगेश को पिला देना, वह तुम्हें छोड़ कर किसी दूसरी लड़की के पास नहीं जाएगा. जाओ मौज करो.’’
‘‘आप की दक्षिणा देनी है महाराज, क्या सेवा करूं?’’ युवती ने पूछा.
‘‘मैं ने यह काम तुम्हारे लिए फ्री किया है, जब कभी आवश्यकता पड़ेगी दक्षिणा ले लूंगा.’’ शिवनाथ ने कहा तो युवती उस के चरणस्पर्श कर वहां से चली गई.
अशोक मीणा शिवनाथ के द्वारा हवा में हाथ लहरा कर फूल पकड़ लेने की क्रिया से हैरान था. हवा में गुलाब का फूल कहां से आया, उस की समझ में नहीं आया था. वह सोच में डूबा था कि शिवनाथ की आवाज ने उस की तंद्रा भंग कर दी.
‘‘कहो जयप्रकाश शर्मा, तुम्हारा कार्य कैसा चल रहा है?’’
‘‘बहुत अच्छा चल रहा है गुरुदेव.’’
‘‘कैसे आने का कष्ट किया तुम ने?’’
‘‘मैं अपने लिए नहीं आया हूं, मैं अशोक के लिए आप की शरण में आया हूं. मैं एकांत में आप से बात करना चाहता हूं.’’
‘‘आओ, हम भीतर के कक्ष में चल कर बात करते हैं.’’ शिवनाथ ने कहा और उठ कर खड़ा हो गया.
वह जयप्रकाश को साथ ले कर अंदर चला गया. अशोक वहीं बैठा उन के बाहर आने का इंतजार करता रहा. काफी देर बाद अंदर से जयप्रकाश बाहर आया. उस ने अशोक के कंधे पर हाथ रख कर आत्मीयता से पूछा, ‘‘बोर तो नहीं हुए अशोक?’’
‘‘नहीं महाराज.’’
‘‘मैं तुम्हारे ही काम के लिए गुरुजी को अंदर ले गया था. गुरुजी वह चमत्कारी बक्सा तुम्हें देने को मान गए हैं. लेकिन तुम्हें इस के लिए 3 लाख रुपए की दक्षिणा देनी होगी.’’
‘‘दे दूंगा महाराज, लेकिन वह चमत्कारी बक्सा मुझे गुरुजी दे तो देंगे न?’’ कुछ शंकित सा स्वर था अशोक का.
‘‘जब जयप्रकाश ने कह दिया तो मैं इस की बात कैसे काट दूं.’’ अंदर से शिवनाथ हाथ में एक लकड़ी का बक्सा ले कर आते हुए बोला. उस ने पास आ कर वह बक्सा अशोक को दे दिया.
यह एक वर्गफुट का चौकोर नक्काशीदार बक्सा था. देखने में वह काफी पुराना लगता था, लेकिन उस की मजबूती अभी भी बरकरार थी.
‘‘देखो अशोक, तुम्हें रोज सुबह स्नान कर के बक्से के आगे धूप जलानी होगी, फिर हाथ जोड़ कर कहना होगा, ‘अपना चमत्कार दिखाओ जादुई बक्से.’ यह तुम्हें जो देगा, चुपचाप रख लेना. इस का जिक्र बाहरी व्यक्ति से कभी मत करना. करोगे तो तुम्हारे मन की मुराद पूरी नहीं होगी.’’ शिवनाथ ने समझाते हुए कहा, ‘‘अब तुम जयप्रकाश के साथ अजमेर लौट जाओ. 3 लाख रुपए तुम इस के खाते में अजमेर पहुंच कर डाल देना.’’
‘‘ठीक है गुरुदेव,’’ अशोक ने खुशी से बक्सा अपने बैग में रखते हुए शिवनाथ के चरण स्पर्श किए और जयप्रकाश के साथ स्टेशन के लिए निकल पड़ा. उसी रात वे अजमेर जाने वाली ट्रेन में सवार हो गए.
अशोक मीणा को शिवनाथ तांत्रिक द्वारा जो बक्सा दिया गया था, उस ने 6 दिन तक पूरा चमत्कार दिखाया. उस में से 10 हजार रुपए 6 दिनों तक निकले. इस के बाद उस बक्से से रुपए निकलने बंद हो गए.
अशोक मीणा पूरी श्रद्धा से नहाधो कर बक्से के सामने धूप आदि जला कर ‘मुझे अपना चमत्कार दिखाओ जादुई बक्से’, कहता लेकिन बक्सा खाली रहता.
उस ने नोट देना अब बंद कर दिया था. अशोक मीणा ने परेशान हो कर यह बात जयप्रकाश शर्मा को बताई तो उस ने अशोक से कहा कि वह जा कर शिवनाथ से मिले, वही बताएंगे कि बक्से से नोट क्यों नहीं निकल रहे हैं.
अशोक मीणा को अकेले मुंबई में शाहपुरा जाना पड़ा. तांत्रिक शिवनाथ भी मिला. जब उसे चमत्कारी बक्से के काम न करने की बात अशोक ने बताई तो वह हैरानी जाहिर करते हुए बोला, ‘‘ऐसा होना तो नहीं चाहिए अशोक, अगर ऐसा हो रहा है तो देखना पड़ेगा. चूंकि अभी कोरोना काल चल रहा है, इस वजह से सभी देवालय बंद पडे़ हैं. ये खुलेंगे तो मैं इस को दुरुस्त कर के दे दूंगा. कोरोना संक्रमण फैल रहा है, इसलिए तुम अजमेर लौट आओ.’’
अशोक मीणा बक्सा शिवनाथ के पास छोड़ कर अजमेर आ गया.
यह मार्च 2020 की बात है. अशोक दीदारनाथ आश्रम में रोज हाजिरी देता और पंडित जयप्रकाश शर्मा से मिलता. एक दिन उस ने अशोक मीणा को बताया कि जमीन में एक जगह करोड़ों रुपए का सोना दबा हुआ है. यदि तुम एक लाख रुपया दोगे तो मैं तुम्हें 5 प्रतिशत का हिस्सेदार बना दूंगा. चूंकि मैं तुम्हारा हितैषी हूं, इसलिए यह औफर तुम्हें दे रहा हूं. सोच कर जबाब देना.
अशोक मीणा को लालच आ गया. उस ने उस के कहने पर तुरंत उस के एकाउंट में एक लाख रुपए जमा कर दिए.
अशोक मीणा के लालची मन को टटोल कर जयप्रकाश ने उस से सोने के हिस्से में सहभागी बनाने का लालच दे कर 14 लाख 95 हजार 255 रुपए अपने एकाउंट में जमा करवा लिए. 6 लाख 50 हजार जयप्रकाश ने अशोक से नकद ले लिए. यह रकम जमीन से सोना निकालने में मजदूरों की मेहनत और पूजापाठ के नाम पर ली थी.
अशोक मीणा मार्च 2019 से अक्तूबर 2022 तक जयप्रकाश को 41 लाख 45 हजार 235 रुपए दे चुका था. अब उसे अहसास होने लगा था कि वह जयप्रकाश और शिवनाथ तांत्रिक द्वारा ठगा गया है.
उस ने जयप्रकाश से अपना रुपया वापस मांगना शुरू किया तो जयप्रकाश टालमटोल करने लगा और फिर एक दिन वह केकड़ी से गायब हो गया.
14 जनवरी, 2023 को अशोक मीणा रोते हुए सिटी थाने में पहुंच गया. एसएचओ राजवीर सिंह को अशोक ने अपने ठगे जाने की पूरी कहानी बता कर जयप्रकाश शर्मा और शाहपुरा (ठाणे) के तांत्रिक शिवनाथ के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी.
एसएचओ राजवीर सिंह ने धूर्त तांत्रिकों के लिए छापेमारी शुरू करवा दी. शाहपुरा (ठाणे) में शिवनाथ तांत्रिक को गिरफ्तार करने के लिए मुंबई पुलिस से मदद मांगी गई, लेकिन वहां से बताया गया कि तांत्रिक शिवनाथ यहां से लापता हो गया है.
इन धूर्त तांत्रिकों ने केवल अशोक मीणा को ही ठगा होगा, यह बात एसएचओ राजवीर सिंह मानने को तैयार नहीं थे. दोनों तांत्रिकों ने और भी अनेक लोगों को चूना लगाया होगा, किंतु ये लोग जगहंसाई के डर से सामने नहीं आना चाहते थे.
जयप्रकाश तंत्र विघ्न से संबंधित एक यूट्यूब चैनल भी चलाता था.
आध्यात्मिक चमत्कारों और देवीदेवताओं में गहरी आस्था होने के कारण ये लोग चालाक मक्कार लोगों द्वारा ठग लिए जाते हैं. पीडि़त व्यक्ति जगहंसाई और शरम के कारण पुलिस के पास नहीं जाते, यह बात ठग तांत्रिक भलीभांति जानते हैं. इसी वजह से ये ठग कानून के शिंकजे में नहीं फंसते. ये ठग लोग धर्म की आड़ में भोलेभाले लोगों को आज भी ठग रहे हैं.
कथा लिखने तक पुलिस तथाकथित तांत्रिकों शिवनाथ और जयप्रकाश को उन के ठिकानों पर तलाश रही थी, लेकिन वे पुलिस को मिल नहीं सके. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों और पीडि़त से की गई बातचीत पर आधारित
भारत के कुछ खौफनाक सीरियल किलर्स के अपराधों के तौर तरीके और उन के द्वारा अंजाम दी गई वारदातों के बारे में सुन कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. उन्होंने अपने शैतानी दिमाग से डर की जो दहशत फैलाई थी, उस से न केवल सामान्य लोगों की जिंदगी आतंक और भय से गुजरने लगी थी, बल्कि पुलिस महकमा भी सकते में आ गया था.
वैसे अपराधियों को कानूनी शिकस्त मिली, वे सलाखों के पीछे पहुंचा दिए गए. बावजूद इस के नए सिरे से अपराध की घटनाएं होती रहीं. वैसे खूंखार अपराधियों की बात करें तो उन में रमन राघव, चार्ल्स शोभराज, साइनाइड मोहन, देवेंद्र शर्मा, मोहिंदर सिंह पंढेर, एम. जयशंकर, डाक्टर डेथ और संतोष पोल के नाम प्रमुख हैं.
इन में से कई अपराधियों पर फीचर फिल्में और टीवी सीरियल भी बन चुके हैं. जबकि एक सच्चाई तो यह भी है कि फिल्मों में उन के कुकर्मों और अपराधों को जितनी शिद्दत के साथ फिल्माया गया, वे उस से कहीं अधिक खूंखार और खौफनाक थे.
वैसे अपराधी देश के विभिन्न हिस्सों के रहे हैं. महानगर से ले कर छोटेमोटे कस्बाई इलाकों तक में उन का खौफ बना रहा है. उन में अधिकतर के अपराध सैक्स, हत्या और रेप जैसी वारदातों के रहे हैं.
रमन राघव : एक साइको किलर
मुंबई में 1960 के दशक का दौर था. तब बंबई नाम के इस महानगर में देश के कोनेकोने से लोग रोजगार की तलाश के लिए लगातार आ रहे थे. उन का वहां कोई ठौरठिकाना नहीं था, फिर भी उन के आने का सिलसिला बना हुआ था.
वे महानगर में जहांतहां किसी तरह से रहने की जगह बनाते जा रहे थे, जहां सिर्फ सिर छिपाने की जगह थी. दैनिक क्रिया के लिए सार्वजनिक शौचालय थे. नहानेधोने के लिए भी वैसी खुले में कोई जगह थी. सोने के लिए सड़कों का फुटपाथ भी उन के लिए कम पड़ने लगा था.
रोजगार का इंतजाम हो जाने के बाद लोग जैसेतैसे चकाचौंध की जिंदगी में किसी तरह से गुजारा कर ले रहे थे.
उन में अधिकतर गरीब और मजदूर किस्म के लोगों के छोटेछोटे परिवार थे. उन के नसीब में घरेलू परदा और सुरक्षा नाम मात्र की थी. वे कब किसी घटना या दुर्घटना के शिकार हो जाएं, कहना मुश्किल था. उन में या फिर उन से बाहर अपराधी किस्म के लोग भी थे, जिन की नजर भोलीभाली लड़कियों और अकेली औरतों पर रहती थी. ऐसा ही एक व्यक्ति रमन राघव था.
उस के बारे में बहुत अधिक रिकौर्ड तो नहीं है, सिवाय इस के कि उस ने कई जघन्य अपराध किए. हालांकि तब यह माना गया था कि वह दक्षिण भारत का रहने वाला था.
1965-66 के समय में मुंबई में फुटपाथ पर सोने वाले लोगों की हत्याओं की खबरों ने मुंबई पुलिस की नाक में दम कर रखा था. गरीब बस्तियों में उस के नाम का भय बना हुआ था. उस के ताबड़तोड़ अपराध ने सभी को सन्न कर दिया था. पुलिस उस के हुलिए तक से अनजान थी.
रात के अंधेरे में जब किसी बेसहारे की मौत हो जाती थी, तब पुलिस मरने वाले की शिनाख्त तो कर लेती थी, लेकिन उस हत्यारे तक नहीं पहुंच पाती थी. पुलिस को सभी कत्ल में एक जैसे तरीके के अलावा और कुछ नहीं मालूम हो पाया था. वह तरीका था लोगों के सिर पर किसी भारी चीज से हमला किया जाना. हत्यारा एक ही वार में व्यक्ति को मौत की नींद सुला देता था.
सिर्फ एक साल के अंदर ही करीब डेढ़ दरजन लोगों पर इस तरह के जानलेवा हमले हुए थे, जिन में 9 लोग मारे गए थे. इस अनजान हमलावर को पकड़ने में मुंबई पुलिस पूरी तरह से नाकाम थी. लोग शाम होते ही अपनेअपने घरों की ओर लौटने लगे थे.
स्थिति यहां तक आ गई थी कि लोग अपनी सुरक्षा के लिए साथ में लकड़ी या डंडा रखने लगे थे. उस के बाद कुछ समय तक वारदातें नहीं हुईं.
पुलिस जांच में जुटी थी और कई घायलों की मदद से इस हमलावर का स्केच बनवाया गया, जिस के आधार पर मुंबई क्राइम ब्रांच पुलिस के 27 अगस्त, 1968 को इस खूंखार हत्यारे रमन राघव को गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की.
पुलिस पूछताछ में उस ने बताया कि 3 साल के अपने आपराधिक जीवन में करीब 40 लोगों को मौत के घाट उतार चुका था. जबकि पुलिस का मानना था कि यह आंकड़ा और भी ज्यादा हो सकता है. पुलिस ने पूछताछ में यह भी पाया कि रमन ने फुटपाथ पर सोए बुजुर्ग महिला, पुरुष, युवा और बच्चों सभी को अपना शिकार बनाया.
पूछताछ के दौरान पुलिस ने जब उस की मैडिकल जांच करवाई, तब डाक्टरों के पैनल ने उसे मानसिक रूप से विकृत बताया. फिर निचली अदालत ने लंबी सुनवाई के बाद उसे मौत की सजा सुना दी. इस सब के बीच रमन राघव ने सजा के खिलाफ कोई अपील भी नहीं की. हाईकोर्ट ने 3 मनोवैज्ञानिकों के पैनल से उस के मानसिक स्तर की फिर से जांच कराई.
मनोचिकित्सकों के पैनल द्वारा किए गए कई घंटों के इंटरव्यू के बाद निष्कर्ष निकला कि वह दिमागी रूप से बीमार है. ऐसे में उस की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया. इस के बाद उसे पुणे की यरवदा जेल में भेज दिया गया, जहां कई सालों तक उस का इलाज भी चला. साल 1995 में साइको किलर रमन राघव की किडनी की बीमारी के चलते सस्सून अस्पताल में मौत हो गई.
साल 2016 में उस की जीवनी पर एक हिंदी फिल्म ‘रमर 2.0’ भी बनी थी, जिस में मुख्य भूमिका रघुवीर यादव ने निभाई थी. फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी एक अहम किरदार में थे.
डा. देवेंद्र शर्मा : बेरहमी से 100 जानें लेने वाला हैवान
सीरियल किलर डा. देवेंद्र शर्मा की हैवानियत को दिल्ली, गुड़गांव, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लोग 2 दशक बाद भी याद कर सिहर जाते हैं. उस के खौफनाक किस्सों में किडनी रैकेट, फरजी गैस एजेंसी और कारों की चोरी के कारनामे आज भी सब की जुबान पर हैं.
लोगों का कहना है कि उस ने 100 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया था, जिन में कैब ड्राइवर और दूसरी गाडि़यों के ड्राइवर थे. उन की लाशों को यूपी की मगरमच्छों वाली नहर में फेंक दिया था.
साल 2002 और 2004 के बीच उस के कारनामे ज्यादा चर्चित हुए. वह कारें और दूसरे वाहनों को चुराया करता था. उस ने करीब 40 ड्राइवरों को मौत के घाट उतार दिया था. हैरानी की बात यह थी कि वह एक आयुर्वेदिक चिकित्सक था. अपने पेशे से अलग लगातार आय के अन्य साधनों पर नजर रखे हुए था.
हत्याओं में से 50 को कुबूल करने के बाद उसे 2008 में मौत की सजा सुना दी गई थी. वह ऐसा सीरियल किलर था, जो 50 कत्ल करने के बाद उस की गिनती भूल गया था. बाद में उस ने माना कि वह 100 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है.
वह 2004 में पकड़ा गया था. फिर जेल में अच्छे बर्ताव के कारण उसे जनवरी 2020 में 20 दिन की पैरोल मिली थी. पैरोल खत्म होने के बाद भी वह जेल नहीं पहुंचा बल्कि वह दिल्ली के मोहन गार्डन में छिप कर रहने लगा. यहां वह एक बिजनसमैन को चूना लगाने वाला था, लेकिन पुलिस को उस के यहां होने की भनक लगी और आखिर में उसे पकड़ लिया गया. दिल्ली में पकड़े गए देवेंद्र को किडनी मामले का अपराधी करार दिया गया था.
देवेंद्र शर्मा डाक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद राजस्थान में निजी प्रैक्टिस करता था. उस में उतनी आमदनी नहीं हो पाती थी, जितने कि वह उम्मीद किए हुए था. साल 1984 में देवेंद्र शर्मा ने आयुर्वेदिक मेडिसिन में अपनी ग्रैजुएशन पूरी कर के राजस्थान में क्लीनिक खोला था. फिर 1994 में उस ने गैस एजेंसी के लिए एक कंपनी में 11 लाख रुपए का निवेश किया था. लेकिन कंपनी अचानक गायब हो गई, फिर नुकसान के बाद उस ने 1995 में फरजी गैस एजेंसी खोल ली.
उस के बाद शर्मा ने एक गैंग बनाया, जो एलपीजी सिलेंडर ले कर जाते ट्रकों को लूट लेता था. इस के लिए वे लोग ड्राइवर को मार देते और ट्रक को भी कहीं ठिकाने लगा देते. इस दौरान उस ने गैंग के साथ मिल कर करीब 24 मर्डर किए.
वह अपने पेशे से ही जुड़ कर पैसा कमाने का काम करने लगा. उस के पास उन मरीजों की संख्या अच्छीखासी थी, जिन की किडनी खराब हो चुकी थी. उन्हें वह आयुर्वेदिक दवाइयां दिया करता था. उस ने उपचार करते हुए देखा कि बहुतों की दोनों किडनियां खराब हैं, जिसे ट्रांसप्लांट करने की जरूरत है.
फिर क्या था, देवेंद्र शर्मा किडनी ट्रांसप्लांट गिरोह में शामिल हो गया. वह किडनी डोनर का इंतजाम करने लगा. कार के ड्राइवर को इस का निशाना बनाया और उन्हें मार कर जरूरतमंदों को उस की किडनी बेच कर मोटा पैसा बनाने लगा. इस काम में उसे दोहरा लाभ हुआ.
किडनी बेचने के साथसाथ देवेंद्र शर्मा ने लूटी हुई कारों से भी पैसे कमाए. उस ने 7 लाख रुपए प्रति ट्रांसप्लांट के हिसाब से 125 ट्रांसप्लांट करवाए. ड्राइवर की बौडी को नहर में फेंकने के बाद कैब को यूज्ड कार बता कर बेच देता.
वह फरजी गैस एजेंसी भी चलाने लगा. अपनी फरजी गैस एजेंसी के लिए जब उसे सिलेंडर चाहिए होते तो वह गैस डिलिवरी ट्रक को लूट लेता था और उस के ड्राइवर को मार देता था.
देवेंद्र ने पूरी गैंग तैयार कर रखी थी. वे गाडि़यों की लूट से ले कर लाश को ठिकाने लगाने के लिए उसे उत्तर प्रदेश में कासगंज स्थित हजारा नहर में फेंक दिया करता था. इस नहर में बड़ी संख्या में मगरमच्छ रहते हैं.
साइनाइड किलर मोहन : 20 महिलाओं की हत्या
सीरियल किलर मोहन कुमार को साइनाइड किलर के नाम से भी जाना जाता है. मोहन कुमार को 20 महिलाओं की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया था. उन महिलाओं के साथ यौन संबंध बनाने
के बाद, वह उन्हें गर्भनिरोधक गोलियां खिलाता था.
दरअसल, वे गर्भनिरोधक गोलियां नहीं, बल्कि साइनाइड की गोलियां हुआ करती थीं. उस ने ये जुर्म साल 2005 से 2009 के बीच किए थे. उस के बारे में कहा जाता है कि वह कई बैंक धोखाधड़ी और वित्तीय घोटालों में भी शामिल था. उसे दिसंबर 2013 में मौत की सजा सुनाई गई थी.
मोहिंदर सिंह पंढेर : निठारी हत्याकांड
साल 2005 और 2006 के बीच दिल्ली के नोएडा इलाके में निठारी हत्याकांड काफी चर्चा में रहा था. इस खौफनाक घटना की पूरे देश में बहुत चर्चा हुई. मोहिंदर सिंह पंढेर और सुरिंदर कोली दोनों पर निठारी में 16 से अधिक बच्चों की हत्या और बलात्कार का आरोप था.
मोहिंदर सिंह पंढेर दिल्ली के नोएडा का एक धनी व्यापारी था. 2005 से 2006 के बीच निठारी गांव के 16 लापता बच्चों की खोपड़ी उस के घर के पीछे एक नाले में मिली थी. उस इलाके के सभी लापता बच्चों की लाशें पंढेर के घर के पास ही मिली थीं.
पुलिस ने पंढेर और उस के नौकर सुरिंदर कोली को गिरफ्तार कर लिया. दोनों पर रेप, नरभक्षण और मानव अंगों की तस्करी का आरोप लगाया गया था. कुछ आरोप सही थे तो कई अफवाहें भी थीं. कोली और पंढेर दोनों को 2017 में मौत की सजा सुनाई गई थी.
एम. जयशंकर : रेप और मर्डर
एम. जयशंकर पर 30 महिलाओं से रेप और 15 महिलाओं की हत्या का आरोप था. उस ने 2008 से 2011 के बीच रेप और हत्या की घटनाओं को अंजाम दिया था. उस ने तामिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में 30 बलात्कार, 15 हत्याएं और कई डकैती की घटनाओं को अंजाम दिया था.
गिरफ्तारी के बाद उसे बंगलुरु की एक जेल में बंद कर दिया गया था. हालांकि उसे मानसिक रूप से बीमार भी बताया गया था. बाद में जेल से भागने के कई असफल प्रयासों के बाद एम. जयशंकर ने 2018 में आत्महत्या कर ली थी.
डाक्टर डेथ : महिलाओं को जिंदा दफनाने वाला
वैसे दुनिया भर में डाक्टर को प्राणरक्षक माना जाता है, लेकिन महाराष्ट्र के सातारा में एक ऐसा डाक्टर सामने आया, जिसे ‘डाक्टर डेथ’ का नाम दिया गया. इस डाक्टर की कहानी इतनी खौफनाक थी कि उस के कारनामे उजागर होते ही सभी चौंक पड़े थे.
डाक्टर ने पुलिस को बताया कि उस ने 5 औरतों को जिंदा दफना दिया था उन की कब्रों के ऊपर नारियल के पेड़ भी लगा दिए थे.
डाक्टर डेथ के इस सनकी रवैए का खुलासा 2016 में तब हुआ, जब उसे पुलिस ने एक कत्ल के मामले में गिरफ्तार किया था. महाराष्ट्र के पुणे से करीब 120 किलोमीटर दूर सातारा में रहने वाले इस कातिल डाक्टर की पहचान संतोष पोल के रूप में की गई थी.
कातिल डाक्टर ने पुलिस को अपने कुबूलनामे में बताया कि वह साल 2003 से ऐसी वारदातों को अंजाम देता आया है.
संतोष पोल पेशे से एलेक्ट्रोपैथ डाक्टर था और उस के पास बैचलर औफ इलैक्ट्रोहोमियोपैथी मैडिसिन एंड सर्जरी (बीईएमएस) की डिग्री थी. इस के अलावा उस ने मुंबई के घोटवडेकर अस्पताल में 8 साल तक नौकरी भी की थी.
वहां काम करने वाले वरिष्ठ डाक्टरों का मानना था कि वह मैडिकली सर्टिफाइड नहीं था. संतोष खुद को डाक्टर बताने के साथसाथ समाजसेवी और आरटीआई एक्टिविस्ट भी बताता था.
साल 2016 में वेलम गांव की आंगनबाड़ी कार्यकत्री मंगला जेधे लापता हो गई. उस के परिजनों ने इस का आरोप संतोष पर लगा दिया था. शिकायत में नामजद होने के बाद पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए बुलाया, लेकिन सबूत नहीं होने की वजह से उसे छोड़ दिया गया.
मामले की चल रही जांच में सामने आया कि मंगला के फोन की आखिरी लोकेशन संतोष पोल के फार्महाउस के पास दिखी और मंगला का फोन ज्योति नाम की नर्स के पास से बरामद किया गया.
इस के बाद पूछताछ में ज्योति ने बताया कि संतोष पोल ने ही मंगला जेधे की हत्या की और उस के शव को दफना दिया. उधर संतोष को जैसे ही यह सब पता चला तो वह मुंबई भाग गया. ज्योति के द्वारा बताई गई जगह पर खुदाई की गई, तो एक कंकाल बरामद हुआ और लैब रिपोर्ट्स में साबित हो गया कि वह कंकाल मंगला जेधे का ही था.
गिरफ्तारी के बाद संतोष ने बताया कि उस ने 13 सालों में 5 महिलाओं और एक पुरुष की हत्या की है. इस के बाद पुलिस के जरिए चारों महिलाओं के कंकाल बरामद कर लिए गए, लेकिन एक पुरुष का कंकाल बरामद नहीं हुआ.
संतोष ने उस की लाश नदी में फेंक दी थी. उस ने बताया कि वह महिलाओं को नशे का इंजेक्शन देता था, फिर नशे की हालत में रहने के दौरान ही उन्हें फार्महाउस में दफना देता था. साथ ही लाशों के सड़ने की गंध छिपाने के लिए उस ने कुछ मुर्गियां भी पाल रखी थीं. पुलिस ने इस ‘डाक्टर डेथ’ के घर से नशीली दवाएं, इंजेक्शन, ईसीजी मशीन और आरटीआई से जुड़े कुछ दस्तावेज बरामद किए थे.
संतोष ने बताया था कि वह हर हत्या के बाद एक जेसीबी बुलाता था और नारियल के पेड़ों को लगाने के लिए गड्ढे खुदवाता था, लेकिन इन गड्ढों में लाशें दफना कर उन के ऊपर नारियल के पेड़ लगा दिया करता था. द्य
बिहार में डेहरी औन सोन के रहने वाले मदन कुमार एक राष्ट्रीय अखबार के लिए ब्लौक लैवल के प्रैस रिपोर्टर का काम करते हैं. वे पत्रकारिता को समाजसेवा ही मानते हैं.
बेखौफ हो कर वे अपने लेखन से समाज को बदलना चाहते हैं, लेकिन उन के स्थानीय प्रभारी से यह दबाव रहता है कि खबर उन्हीं लोगों की दी जाए, जिन से उन्हें इश्तिहार मिलते हैं. जो इश्तिहार नहीं दे पाते हैं, उन की खबर बिलकुल नहीं दी जाए, भले ही खबर कितनी भी खास क्यों न हो.
मदन कुमार के प्रभारी उन लोगों के बारे में अकसर लिखते रहते हैं, जिन से उन्हें दान के तौर पर कुछ मिलता रहता है. भले ही वे लोग दलाली और भ्रष्टाचार कर के पैसा कमा रहे हैं. अपने ब्लौक के भ्रष्टाचारियों और दलालों की खबरों को ज्यादा अहमियत दी जाती है. उन के बारे में गुणगान पढ़ कर मन दुखी हो जाता है. कभीकभी तो उन के प्रभारी कुछ लोगों से मुंह खोल कर पैट्रोल खर्च, आनेजाने के खर्चे के नाम पर पैसे लेते रहते हैं.
वहीं मदन कुमार द्वारा काफी मेहनत और खोजबीन कर के लाई गई खबरों को नजरअंदाज कर दिया जाता है, न ही छापा जाता है या बहुत छोटा कर दिया जाता है, क्योंकि उन संस्थाओं से प्रभारी महोदय को नाराजगी पहले से रहती है या कोई ‘दान’ नहीं मिला होता है, इसलिए वे कुछ दिनों से अपने प्रभारी से बहुत नाराज हैं.
वे अकसर कहते हैं कि अब पत्रकारिता छोड़ कर दूसरा काम करना ठीक रहेगा और इस के लिए वे कोशिश भी कर रहे हैं. उन्हें इस प्रकार की दलाली पत्रकारिता से नफरत होती जा रही है.
मदन कुमार का कहना है, ‘‘अगर बेईमानी से ही कमाना है तो फिर पत्रकारिता में आने की क्या जरूरत है? बेईमानी के लिए बहुत सारे रास्ते खुले हुए हैं. और फिर मुंह खोल कर किसी से पैट्रोल और आनेजाने के खर्चे के नाम पर पैसे मांग कर अपना ही कद छोटा करते हैं.
‘‘आम लोग इस तरह के बरताव से सभी रिपोर्टरों को एक ही तराजू पर तौलते हैं, इसीलिए आज स्थानीय पत्रकारों को कोई तवज्जुह नहीं देता है. लोग उन्हें बिकाऊ और दो टके का सम झते हैं, जबकि पत्रकारिता देश का चौथा स्तंभ माना जाता है.
‘‘इस तरह के बेईमानों के साथ काम करने पर मन को ठेस पहुंचती है. ईमानदारी से काम करने वाले के दिल को यह सब कचोटता है, खासकर तब जब आप का बड़ा अधिकारी ही बेईमान हो. आप उस का खुल कर विरोध भी नहीं कर सकते हैं. विरोध करने का मतलब है, अपनी नौकरी को जोखिम में डालना.’’
औरंगाबाद के रहने वाले नीरज कुमार सरकारी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक हैं. सरकारी विद्यालय में बच्चों को मिड डे मील के लिए सरकार द्वारा चावल और पैसे दिए जाते हैं. उन के विद्यालय के प्रधानाध्यापक मिड डे मील के चावल और पैसे की हेराफेरी करते रहते हैं.
जब कभी बच्चों की लिस्ट बनानी हो, तो उसे नीरज कुमार ही तैयार करते हैं. वे जानते हैं कि गलत रिपोर्ट बना रहे हैं, फिर भी वे उस गलत रिपोर्ट का विरोध नहीं कर पाते हैं, क्योंकि उन्हें हर हाल में प्रधानाध्यापक की बात माननी पड़ती है.
एक बार प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को इस बारे में शिकायत की थी. तब प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी का कहना था, ‘आप अपने काम से मतलब रखिए. दूसरों के काम में अड़ंगा मत डालिए. आप सिर्फ अपने फर्ज को पूरा कीजिए.’
बाद में नीरज कुमार को पता चला कि इस हेराफेरी में प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को भी कमीशन के रूप में पैसा मिलता है. उन का कमीशन फिक्स है, इसलिए वे ऐसे शिक्षकों को हेराफेरी करने से रोकते नहीं हैं, बल्कि सपोर्ट करते हैं. इस सब में नाजायज कमाई करने का एक नैटवर्क बना हुआ है.
तब से नीरज कुमार अपने विद्यालय के गरीब बच्चों के निवाला की हेराफेरी करने वाले अपने प्रधानाचार्य का विरोध नहीं करते हैं. उन का कहना है, ‘‘मैं सिर्फ अपने फर्ज को पूरा करता हूं. यह हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है, इसलिए मैं इस के बारे में चुप रहता हूं.
‘‘मैं सिर्फ पढ़ानेलिखाने पर ध्यान देता हूं. मैं आर्थिक मामलों में कुछ भी दखलअंदाजी नहीं करता हूं, क्योंकि मैं जानता हूं कि ऐसा करने का मतलब है अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना यानी अपना ही नुकसान करना.
‘‘वैसे भी आप शिकायत करने किस के पास जाएंगे? जिन के पास भी जाएंगे यानी आप ऊपर के अधिकारी के पास जाएंगे तो उस की कमाई भी उस हेराफेरी से होती है, इसलिए वैसे लोग उस हेराफेरी को रोकने से तो रहे. बदले में आप का नुकसान भी कर सकते हैं. आप का ट्रांसफर करा देंगे.
‘‘आप को दूसरे मामले में फंसा कर नुकसान पहुंचाना चाहेंगे. अगर आप को शांति से नौकरी करनी है, तो अपना मुंह बंद रखना ही होगा.’’
इस तरह की बातों से यह साफ है कि जब बेईमानों के साथ काम करना पड़े या साथ देना पड़े, तो यह जरूरी है कि हम उन से अपनेआप को अलगथलग रखें. हमें जो काम और जिम्मेदारी दी गई है, उस को बखूबी निभाएं.
बेईमान सहकर्मी के बारे में जहांतहां शिकायत करना भी ठीक नहीं है. इस से आप की उस से दुश्मनी बढ़ने लगती है. शिकायत से कोई फायदा नहीं होता है. आप के बनेबनाए काम भी बिगड़ जाते हैं, इस से खुद का ही नुकसान होता है. आप दूसरों को सुधारने के फेर में खुद का ही नुकसान कर लेते हैं.
अगर आप अपनी भलाई चाहते हैं, तो ज्यादा रोकटोक न करें. उन की बेईमानी की कमाई में किसी तरह का अड़ंगा न डालें.
मुमकिन हो, तो उन्हें किसी दूसरे तरीके से बताने की कोशिश करें. अगर वे आप के इशारे को समझ जाते हैं, तो उचित है वरना अपने काम से मतलब रखें, क्योंकि उन का सीधा विरोध करने पर दुश्मनी महंगी पड़ सकती है.
किसी हिंदी फिल्म की शुरुआत के लिए भी शायद यह अति नाटकीय सीन लगे और निर्देशक आंख में इतने धूलझोंकू सीन को फिल्माने से मना कर दे, जैसी हकीकत पंजाब नैशनल बैंक की मुंबई स्थित ब्रेडी हाउस ब्रांच घोटाले से सामने आई है. जैसा कि बैंक के एमडी सुनील मेहता बताते हैं, ‘यह सब 2011 से ही चल रहा था और 3 जनवरी 2018 को 11,360 करोड़ रुपए के घोटाले के रूप में सामने आया.’
अब सामने कैसे आया, जरा यह भी देख लीजिए. कई महीने पहले नीरव मोदी के कुछ अधिकारी पंजाब नैशनल बैंक की ब्रैंडी हाउस शाखा पहुंचे. उन्होंने बैंक के मैनेजर से कहा कि उन्हें हांगकांग से कुछ सामान मंगाना है. सामान मंगाने के लिए उन्होंने बैंक से एलओयू यानी लेटर औफ अंडरटेकिंग जारी करने को कहा. उन्होंने ये लेटर औफ अंडरटेकिंग हांगकांग में मौजूद इलाहाबाद बैंक और एक्सिस बैंक के नाम पर जारी करने की गुजारिश की.
भारत में लेटर औफ अंटरटेकिंग का मतलब यह होता है कि किसी अंतरराष्ट्रीय बैंक या किसी भारतीय बैंक की अंतरराष्ट्रीय शाखा कारोबारी का अपना बैंक का साखपत्र जारी करता है, जिस का मतलब यह होता है कि आप इन साहब को इन की बताई हुई पार्टी को इतनी रकम का भुगतान कर दें. ये यह रकम 90 दिनों या अधिकतम 180 दिनों में लौटा देंगे. अगर ऐसा नहीं होता तो इस की भरपाई हम (यानी एलओयू या साखपत्र जारी करने वाला वाला बैंक) कर देंगे. यह शौर्ट टर्म लोन होता है.
इस लेटर के आधार पर कोई भी कंपनी दुनिया के किसी भी हिस्से में राशि को निकाल सकती है. इन एलओयू का इस्तेमाल ज्यादातर आयात करने वाली कंपनियां, विदेशों में भुगतान के लिए करती हैं. लेटर औफ अंडरटेकिंग किसी भी कंपनी को लेटर औफ कंफर्ट के आधार पर दिया जाता है. लेटर औफ कंफर्ट का मतलब होता है कि उसे कंपनी के स्थानीय बैंक की ओर से जारी किया गया है,यह उस कारोबार के लिए होता है, जो हो रहा होता है. यहां पीएनबी से यह गारंटी देने को कहा गया कि वह हांगकांग स्थित उन बैंकों को दे दे जिन का नाम ऊपर लिखा गया है.
पीएनबी ने हांगकांग में मौजूद इलाहाबाद बैंक को 5 और एक्सिस बैंक को 3 लेटर औफ अंडरटेकिंग जारी कर दिए. हांगकांग से करीब 280 करोड़ रुपए का सामान इंपोर्ट किया गया. कुछ महीने गुजर गए यानी वह पीरियड निकल गया, जितने दिनों बाद एलओयू के आधार पर भुगतान होना था.
अब 18 जनवरी को नीरव मोदी के कुछ अधिकारियों के साथ जिन बैंकों को एलओयू जारी किया गया था, उन के कुछ लोग बैंक पहुंचते हैं. वे अपने इंपोर्ट दस्तावेज दिखाते हुए कहते हैं कि पैसों का भुगतान कर दिया जाए. लेकिन अब वह बैंक मैनेजर नहीं है, जो इन के जारी करने के समय था. अत: वह कहता है कि जितना भी पैसा विदेश में भेजना है, उतना नकद जमा करना पड़ेगा.
कंपनियों के अधिकारियों ने फिर लेटर औफ अंडरटेकिंग दिखाया और उस के आधार पर पेमेंट करने को कहा. बैंक ने जब इन एलओयू की जांच शुरू की तो उन के होश उड़ गए. क्योंकि बैंक के रिकौर्ड में तो इन 8 लेटर औफ अंडरटेकिंग का कहीं जिक्र ही नहीं था. मतलब बैंक ने बिना कोई गारंटी लिए, बिना कुछ गिरवी रखे लेटर औफ अंडरटेकिंग जारी कर दिए थे. संक्षेप में यही पीएनबी घोटाला है, जिसे हीरा व्यापारी नीरव मोदी और उस के मामा मेहुल चौकसी ने अंजाम दिया है.
हकीकत पता चली तो मालूम हुआ घोटाला अरबों का है
बहरहाल, इस हकीकत के उजागर होने के बाद पीएनबी को तात्कालिक रूप से 280 करोड़ और जब पूरे मामले को खंगाला गया तो पता चला कि 11,360 करोड़ रुपए की चपत लग चुकी थी. इस के पता चलते ही पीएनबी के एमडी के मुताबिक, तुरंत संबंधित जांच एजेंसियों को इस की जानकारी दी गई. मगर सवाल यह है कि जब एलओयू मुंहजुबानी वायदे पर नहीं जारी किए जाते, बल्कि इस के पीछे कोई मजबूत गारंटी होती है तो फिर नीरव मोदी के मामले में ऐसा कैसे हुआ? आखिर कौन है ये नीरव मोदी?
नीरव मोदी हीरे की ज्वैलरी का बहुत बड़ा कारोबारी है, जोकि इस खुलासे के पहले ही समझा जाता है कि 1 जनवरी 2018 को 4 बड़े बड़े सूटकेसों के साथ हिंदुस्तान छोड़ चुका है, जिस के बारे में भारत सरकार के अधिकारियों का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि वह गया कहां या कहां है?
यह अलग बात है कि वह बैंक को लेटर भी लिख रहा है और धमकी भी दे रहा है. बहरहाल, ग्लैमर की दुनिया में भी इस 48 वर्षीय शख्स की खूब धाक थी. उस के नाम यानी ‘नीरव मोदी’ के नाम से हीरों का बड़ा ब्रांड है. कहा जाता है कि मेहमानों को लुभाने के लिए वह पेड़ों को भी हीरों से जड़ देता है. मौडल्स नीरव मोदी के करोड़ों के गहने पहन कर इतराती हैं. फिल्म एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा से ले कर सिद्धार्थ मल्होत्रा तक नीरव मोदी के लिए विज्ञापन कर चुके हैं.
48 साल के नीरव की तीन कंपनियां हैं, जिन में एक हीरों का कारोबार करने वाली ‘फायरस्टार डायमंड’और दूसरी खुद उसी के नाम की ‘नीरव मोदी’. इन्हीं 2 कंपनियों के जरिए ये घोटाला हुआ, जिस की तह में है महत्त्वाकांक्षा.
नीरव अपने ब्रांड, नीरव मोदी को दुनिया का सब से बड़ा लग्जरी ब्रांड बनाना चाहता था. वह दुनिया की डायमंड कैपिटल कहे जाने वाले बेल्जियम के एंटवर्प शहर के मशहूर डायमंड ब्रोकर परिवार से ताल्लुक रखता है. एक वक्त ऐसा था कि वह खुद ज्वैलरी डिजाइन नहीं करना चाहता था, लेकिन पहली ज्वैलरी डिजाइन करने के बाद उस ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
नीरव मोदी भारत की उस एकमात्र भारतीय ज्वैलरी ब्रांड का मालिक है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित है. उस के डिजाइन किए गए गहने हौलीवुड की हस्तियों से ले कर देशी धनकुबेरों की पत्नियों तक की शोभा बढ़ाते रहे हैं. उस के द्वारा डिजाइन किया गया गोलकोंडा नेकलेस 2010 में नीलामी के जरिए 16.29 करोड़ में बिका था. जबकि 2014 में उस के द्वारा डिजायन किया एक हीरा 50 करोड़ रुपए में नीलाम हुआ था.
अपनी ज्वैलरी ब्रांड के दम पर ही वह फोर्ब्स की भारतीय धनकुबेरों की 2017 की सूची में 84वें नंबर पर मौजूद था. उस की माली हैसियत लगभग 12 हजार करोड़ रुपए की है, जबकि माना जा रहा है कि उस की निजी कंपनी 149 अरब रुपए के आसपास की है. दिल्ली में नीरव मोदी का शोरूम डिफेंस कालोनी में है.
इस धनकुबेर ने जो घोटाला किया, उस के संबंध में पंजाब नैशनल बैंक से जो हकीकत बाहर आई है, वह यह है कि बैंक ने एलओयू जारी नहीं किए, बल्कि बैंक के 2 कर्मचारियों ने चोरी से फरजी एलओयू बना कर दिए. इन कर्मचारियों के पास स्विफ्ट सिस्टम का कंट्रोल था, जो 200 देशों की बैंकिंग गतिविधियों के लिए आधिकारिक तकनीक है.
बैंकों की दुनिया का यह एक अति सीक्रेट अंतरराष्ट्रीय कम्युनिकेशन सिस्टम है. यह दुनिया के सभी बैंकों को आपस में जोड़ता है. इस स्विफ्ट सिस्टम से जो संदेश जाते हैं, वो उत्कृष्ट तकनीक का इस्तेमाल करते हुए कोड में भेजे जाते हैं. एलओयू भेजना, खोलना, उस में बदलाव करने का काम इसी सिस्टम के जरिए किया जाता है. इसी कारण से जब इस सिस्टम के जरिए किसी बैंक को संदेश मिलता है तो उस बैंक को पता होता है कि ये आधिकारिक और सही संदेश है.
लेकिन नीरव को भेजे गए दस्तावेजों में असल में बैंक का कोई दस्तावेज था ही नहीं यानी इस के साथ बैंक ने उस व्यापारी को कोई लिमिट नहीं दी थी, ब्रांच मैनेजर ने स्विफ्ट सिस्टम से इसे भेजने वाले को कोई कागज हस्ताक्षर कर के नहीं दिया कि इसे आगे भेजा जाए. उन्होंने चुपचाप एलओयू भेज दिया. जबकि इस माध्यम से आए किसी संदेश पर कभी कोई बैंक शक नहीं करता. लेकिन बात यह है कि किसी सिस्टम को संभालने वाला आखिर कोई न कोई व्यक्ति ही तो होता है.
सब कुछ हुआ बैंककर्मियों की मदद से
माना जा रहा है कि पीएनबी में इस काम को करने वाले 2 लोग थे, एक क्लर्क जो इस में डेटा डालता था और दूसरा अधिकारी जो इस जानकारी की आधिकारिक पुष्टि करता था. दोनों मिल कर नीरव के लिए काम करते थे. यही नहीं अब पता चला है कि ये दोनों कई सालों तक इसी डेस्क पर काम कर रहे थे, जोकि नहीं होना चाहिए था. इस पद पर काम करने वालों की अदलाबदली होती रहनी चाहिए.
एक और बात है कि स्विफ्ट सिस्टम कोर बैंकिंग से नहीं जुड़ा था. क्योंकि कोर बैंकिंग में पहले एलओयू बनाया जाता है और फिर वह स्विफ्ट के मैसेज से चला जाता है. इस कारण कोर बैंकिंग में एक कौन्ट्रा एंट्री बन जाती है कि अमुक दिन बैंक ने अमुक राशि का कर्ज देने की मंजूरी दी है तो अगले दिन जब बैंक का मैनेजर अपनी फाइलें यानी बैलेंसशीट देखता तो उसे पता चल जाता है कि बैंक ने बीते दिन कितने कर्जे की मंज़ूरी दी है. लेकिन इस मामले में स्विफ्ट कोर बैंकिंग से जुड़ा हुआ नहीं था.
इन दोनों ने फरजी मैसेज को स्विफ्ट से भेजा, मैसेज भी गायब कर दिया और इस की कोर बैंकिंग में एंट्री नहीं की तो कुछ पता भी नहीं चला. बैंक का पूरा सिस्टम कैसे बाईपास हो गया, अगर कोई चोर कोई निशान या सबूत ना छोड़े तो उसे पकड़ना बहुत मुश्किल होता है. खासकर तब जब कोई संदेह भी नहीं कर रहा है.
कोई संदेह करे तो इस मामले में जांच की जा सकती है, लेकिन ऐसा कुछ हुआ ही नहीं. वो एक बैंक से पैसे लेते रहे और दूसरे को चुकाते रहे. आज 50 मिलियन के एलओयू खोले, जब तक अगले साल इसे चुकाने की बारी आई तो उन्होंने तब तक 100 मिलियन के और करा लिए. अब उन्होंने पहले लिए गए 50 मिलियन चुका दिए और अगला कर्ज़ किसी और बैंक से ले लिया गया. इस प्रकार से ये लेनदेन महीनों तक चलता रहा.
सवाल है कि इस पूरे खेल का माटरमाइंड कौन है? जैसेजैसे जांच आगे बढ़ रही है पता चल रहा है कि इस घोटाले का सूत्रधार नीरव मोदी नहीं बल्कि कोई और ही था. यह नीरव की अमेरिकन पत्नी एमी थी, जिस ने इस बड़े घोटाले की साजिश रची. यही नहीं, घोटाले का मास्टरमाइंड होने के साथ साथ नीरव के अमेरिका भागने के साजिश के पीछे भी एमी का ही दिमाग बताया जा रहा है.
माना जा रहा है कि यह बैंकिंग घोटाला हनीट्रैप के जरिए अंजाम दिया गया है. कुछ मौडल्स के जरिए बैंक के उच्च अधिकारियों को घोटाले में शामिल किया गया था. इन मौडल्स को हनीट्रैप के लिए कोऔर्डिनेट करने का काम एमी मोदी का था, जो नीरव मोदी और बौलीवुड के बीच एक कड़ी का काम कर रही थी.
वास्तव में पीएनबी की ब्रेडी फोर्ड ब्रांच के जिस पूर्व डिप्टी मैनेजर गोकुलनाथ शेट्टी को 17 फरवरी, 2018 को गिरफ्तार किया गया, 2013 में उस का ट्रांसफर इस ब्रांच से किया जाना था, जिसे रुकवा दिया गया. इस के बाद 2015 में 5 साल पूरे होने पर भी उस का ट्रांसफर ब्रांच से नहीं किया गया. सीबीआई अब ये पता लगाने की कोशिश कर रही है कि किस के इशारे पर शेट्टी का ट्रांसफर रोका गया.
वास्तव में गोकुलनाथ शेट्टी के ट्रांसफर को रुकवाने में भी मौडल्स और हनीट्रैप का इस्तेमाल हुआ. गोकुलनाथ शेट्टी ने एक बड़ा खुलासा किया है. उस के मुताबिक यह पूरा मामला पीएनबी के बड़े अधिकारियों की जानकारी में था. सीबीआई की तरफ से डायमंड किंग नीरव मोदी और गीतांजलि जेम्स के प्रमोटर मेहुल चौकसी के खिलाफ शिकायत के बाद एफआईआर दर्ज की गई है.
नीरव मोदी और मेहुल चौकसी इस घोटाले के मुख्य आरोपी हैं और उन्हें देखते ही पकड़ने के लिए लुकआउट नोटिस भी जारी किया जा चुका है. विदेश मंत्रालय ने नीरव मोदी और मेहुल चौकसी का पासपोर्ट निलंबित कर दिया है और इन के विदेशों के आउटलेट्स पर भी कारोबार न करने का आदेश दिया जा चुका है. रिजर्व बैंक ने स्पष्ट कर दिया है कि इस घोटाले में फंसी राशि का बोझ पीएनबी को खुद उठाना पड़ेगा.
सीबीआई जांच तो कर सकती है, पर पैसा नहीं ला सकती
यह मामला जनवरी में पकड़ा गया और 29 जनवरी, 2018 को इस की जांच सीबीआई से करवाने का अनुरोध किया गया. दूसरे सभी बैंकों ने सारी जिम्मेदारी पीएनबी पर ही डाली है कि उस की तरफ से जारी लेटर औफ अंडरटेकिंग (एलओयू) को सही मानते हुए नियमों के मुताबिक, संबंधित उद्योगपतियों की कंपनियों को फंड उपलब्ध कराए जा रहे थे. ऐसे में घाटा पूरी तरह से पीएनबी को उठाना पड़ेगा.
आरबीआई के सूत्रों का कहना है कि पीएनबी पर सख्ती दिखा कर देश के सभी बैंकों के सामने एक उदाहरण पेश करने की जरूरत है.
अगर यह मान भी लिया जाए कि दूसरे बैंक इस में शामिल थे, तब भी इस की शुरुआत पीएनबी की उस शाखा से हो रही थी, जहां से नीरव मोदी व अन्य रत्न व आभूषण कारोबारियों को नियमों की अनदेखी कर के हीरेमोती आयात करने के लिए लेटर औफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी किए जा रहे थे. इसलिए यह घाटा पीएनबी को ही उठाना चाहिए. घोटाले की राशि 11,360 करोड़ रुपए की है, जो पीएनबी के पूरे बाजार पूंजीकरण का तकरीबन एक तिहाई है.
नीरव ने राजस्थान में बिखेरी हीरों की चमक
देश के सब से बड़े बैंकिंग घोटाले को अंजाम देने वाले नीरव मोदी का राजस्थान से गहरा नाता रहा है. नीरव मोदी की कंपनी गीतांजलि जेम्स की जयपुर में 3 फैक्ट्रियां हैं. इन में 2 फैक्ट्रियां जयपुर के सीतापुरा औद्योगिक क्षेत्र में और एक सीतापुरा सेज में है. इन में आभूषण बनाने का काम होता है.
इस कंपनी के प्रमोटर मेहुल चौकसी हैं. इन फैक्ट्रियों पर 15 फरवरी को ईडी ने छापे मारे. इस के अगले दिन जयपुर में 2 अन्य ठिकानों पर ईडी ने छापे मारे. इन पांचों जगहों से 10 करोड़ 44 लाख करोड़ रुपए के हीरे, रंगीन रत्न, जवाहरात और आभूषण जब्त किए गए. साथ ही महत्त्वपूर्ण दस्तावेज भी जब्त किए गए. कंपनी का एक बैंक खाता फ्रीज किया गया. इस खाते में एक करोड़ से ज्यादा की रकम जमा थी.
इस बैंकिंग घोटाले में भरतपुर की लक्ष्मण मंदिर शाखा के मुख्य प्रबंधन आर.के. जैन और सर्किल कार्यालय में कार्यरत अधिकारी पी.सी. सोनी को भी निलंबित कर दिया गया है. ये दोनों अधिकारी मुंबई की ब्रेडी हाउस शाखा में कार्यरत रहे थे. बैंक प्रबंधन उन सभी अधिकारियों पर काररवाई कर रहा है, जो 2011 से अब तक मुंबई की ब्रेडी हाउस शाखा में कार्यरत रहे हैं.
बैंक प्रबंधन को शक है कि इन में कोई अधिकारी भले ही घोटाले में शामिल न हो, लेकिन जांच को प्रभावित कर सकता है. आर.के. जैन ब्रेडी हाउस शाखा में सन 2012 से 2015 तक सेकंड इंचार्ज के रूप में कार्यरत रहे थे. वे भरतपुर की रणजीत नगर कालोनी के रहने वाले हैं. पी.सी. मीणा अप्रैल, 2011 से नवंबर 2011 तक मुंबई की इसी शाखा में कार्यरत थे. वहां वे कौन्ट्रैक्टर औडिटर के पद पर कार्यरत थे. ये दोनों अधिकारी स्केल 4 के थे.
हीरे के कारोबार में पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाला नीरव मोदी भव्य पार्टियों व रईसों के साथ रहने का शौकीन है. उस ने करीब 2 साल पहले जोधपुर में अपने हीरों की चमक से लोगों को चकाचौंध कर दिया था. नीरव मोदी ने अपने ब्रांड के 5 साल पूरे होने पर मारवाड़ के ताज के रूप में मशहूर जोधपुर के उम्मेद भवन में देशविदेश की नामी हस्तियों के साथ 2 दिन के जश्न का आयोजन किया था.
इस आयोजन में फैशन डिजाइनर राघवेंद्र, कविता राठौड़, मनीष मल्होत्रा, योहानन, मिशेल पूनावाला, इशिता, राज, दीप्ति सालगांवकर, चिराग, तनाज जोशी, लीजा हेडन, निखिल व इलिना मेशवानी सहित देशविदेश की नामी मौडल्स ने भाग लिया था. इस जश्न में जोधपुर के पूर्व महाराजा गज सिंह भी खासतौर से शरीक हुए थे. नीरव मोदी ने इस मौके पर अपने ब्रांड के तहत तैयार किए गए हीरों के आभूषणों की प्रदर्शनी भी लगाई थी. इस प्रदर्शनी के दौरान देशविदेश की टौप मौडल्स ने नीरव के हीरे के आभूषण पहन कर कैटवाक किया था.
काश ! तभी चेत जाते
वैसे देश के बैंकिंग क्षेत्र को हिला देने वाले पीएनबी घोटाले की शुरुआत 2013 में इलाहाबाद बैंक की निदेशक मंडल की बैठक में ही हो गई थी. नई दिल्ली में हुई उस बैठक में गीतांजलि ज्वैलर्स के मालिक मेहुल चौकसी को 550 करोड़ रुपए देने को मंजूरी दी गई थी. मेहुल चौकसी रिश्ते में घोटालेबाज नीरव मोदी के मामा हैं.
बाद में मामाभांजे ने मिल कर बैकों को हजारों करोड़ का चूना लगाया. चौकसी को बैंक की हांगकांग शाखा से भुगतान किया गया था. इलाहाबाद बैंक पीएनबी सहित देश के 4 अन्य सरकारी बैंकों को लीड करता है. आभूषण कारोबारी नीरव मोदी और गीतांजलि, नक्षत्र और गिन्नी ज्वैलरी चेन चलाने वाले मेहुल चौकसी मूलत: गुजरात के हैं. दोनों मुंबई में रहते हैं.
नई दिल्ली के होटल रेडिसन में 14 सितंबर, 2013 को इलाहाबाद बैंक के निदेशक मंडल की बैठक हुई. इस में भारत सरकार की ओर से नियुक्त निदेशक दिनेश दुबे ने चौकसी को 550 करोड़ लोन देने का विरोध किया.
16 सितंबर को इस बैठक की जानकारी दुबे ने भारतीय रिजर्व बैंक के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर के.सी. चक्रवर्ती को दी. इस के बाद बैंक अधिकारियों को तलब भी किया गया, लेकिन इस के बावजूद मेहुल चौकसी को बैंक की हांगकांग शाखा से भुगतान कर दिया गया.
सवाल है अब पीएनबी एक झटके में इस राशि को किस तरह से उठाएगा. पीएनबी को इस राशि को इसी तिमाही में अपनी बैलेंसशीट में दिखाना होगा. इस बारे में पीएनबी, वित्त मंत्रालय और आरबीआई के बीच विचारविमर्श शुरू हो चुका है.
सूत्रों के मुताबिक एक सीधा उपाय यह है कि फिलहाल सरकार की तरफ से पीएनबी को दी जाने वाली पूंजीकरण की राशि बढ़ा दी जाए. दूसरा रास्ता यह है कि केंद्रीय बैंक की तरफ से पीएनबी के लिए विशेष उपाय किए जाएं.
क्योंकि छापों से जो 5100 और इस के बाद 650 करोड़ पकडे़ जाने के दावे किए गए वे सब झूठे हैं. मुश्किल से 1000 करोड़ ही बरामद होंगे.
रोटोमैक कंपनी के मालिक विक्रम कोठारी भी आए सीबीआई के शिकंजे में
डायमंड कारोबारी नीरव मोदी और मेहुल चौकसी के बाद कानपुर की रोटोमैक कंपनी के मालिक विक्रम कोठारी भी अचानक सुर्खियों में आ गए. आरोप है कि उन्होंने कई बैंकों को अरबों रुपए का चूना लगाया था.
रोटोमैक एक जानीमानी कंपनी है. इस कंपनी के मालिक विक्रम कोठारी ने इलाहाबाद बैंक, यूनियन बैंक, बैंक औफ इंडिया सहित कई सरकारी बैंकों से करीब 2919 करोड़ रुपए का लोन लिया था. यह लोन लेने के बाद उन्होंने न तो इस का ब्याज चुकाया और न ही मूलधन. बल्कि वह खुद भी सामने आने से बचते रहे. पिछले कुछ दिनों से इस बात की भी खबरें आनी शुरू हो गई थीं कि विक्रम कोठारी देश छोड़ कर जा चुके हैं.
सूद और मूलधन न मिलने पर पिछले साल बैंक औफ बड़ौदा ने विक्रम कोठारी को विलफुल डिफाल्टर घोषित कर दिया था. जब विक्रम कोठारी को इस बात की जानकारी हुई तो वह इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डी.बी. भोसले और जस्टिस यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने उन की याचिका मंजूर कर ली.
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्होंने बैंक को आदेश दिया कि विक्रम कोठारी की कंपनी को विलफुल डिफाल्टर लिस्ट से बाहर किया जाए. बैंक को माननीय हाईकोर्ट का आदेश मानने के लिए बाध्य होना पड़ा.
विक्रम कोठारी के खिलाफ बैंक द्वारा सीबीआई में शिकायत दर्ज कराई जा चुकी थी. सीबीआई को कोठारी की तलाश थी. 18 फरवरी को विक्रम कोठारी कानपुर में एक वैवाहिक समारोह में शामिल होने के लिए आए थे. सीबीआई को पता चला तो उस ने 19 फरवरी की रात 1 बजे उन के घर पर छापा मार कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.
2500 करोड़ का विलफुल डिफाल्टर चढ़ा सीबीआई के हत्थे
बैंकों से हजारों करोड़ रुपए का कर्ज लो और विदेश भाग जाओ. इस तरह की प्रवृत्ति वाले उद्योगपतियों की संख्या भारत में बढ़ती जा रही है. ऐसे उद्योगपति यह काम एक सोचीसमझी साजिश के तहत करते हैं. उन के फरार हो जाने के बाद बैंक और सरकार लकीर पीटती रह जाती हैं.
जिस तरह विजय माल्या बैंकों के 5600 करोड़ रुपए ले कर फरार हो गया, उसी तरह भारत के ही एक और उद्योगपति कैलाश अग्रवाल भी बैंकों से करीब ढाई हजार करोड़ रुपए का कर्ज ले कर फरार हो गए थे. देश के सब से बड़े विलफुल डिफाल्टर्स में से एक कैलाश अग्रवाल को सीबीआई ने 5 अगस्त, 2017 को गिरफ्तार किया था.
वरुण इंडस्ट्रीज के प्रमोटर्स कैलाश अग्रवाल और उन के पार्टनर किरण मेहता ने चेन्नै स्थित इंडियन बैंक से 330 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था. इस के अलावा उन्होंने एक सोचीसमझी साजिश के तहत अन्य बैंकों से भी 1593 करोड़ रुपए कर्ज लिए. सन 2007 से 2012 के बीच इन्होंने कई बैंकों से वरुण इंडस्ट्रीज और इस की सहयोगी कंपनी वरुण जूल्स के नाम पर 10 सरकारी बैंकों से करीब 1242 करोड़ रुपए का कर्ज लिया.
कैलाश अग्रवाल और किरण मेहता ने सरकारी बैंकों के अलावा प्राइवेट बैंक्स, फाइनेंस कंपनियों से भी लोन लिया. शेयर्स के बदले बाजार से भी इन्होंने काफी पैसा उठा लिया. लोन की राशि उन्होंने नहीं चुकाई, जिस से सन 2013 में ये डिफाल्टर हो गए. बैंकों ने इन के पास कई नोटिस भेजे, पर ये दोनों यहां होते, तब तो मिलते. दोनों कभी के विदेश जा चुके थे. मार्च 2013 में इंडियन बैंक एंप्लाइज एसोसिएशन द्वारा तैयार की गई विलफुल डिफाल्टर्स की सूची में इन दोनों उद्योगपतियों का नाम भी शामिल था. इंडियन बैंक की शिकायत पर सीबीआई ने वरुण इंडस्ट्रीज के प्रमोटर कैलाश अग्रवाल और किरण मेहता के खिलाफ आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और फरजीवाड़े का केस दर्ज कर लिया.
सीबीआई ने जांच की तो पता चला कि ये दोनों सब से बड़े विलफुल डिफाल्टर्स में से हैं. सब से बड़े विलफुल डिफाल्टर सूरत के डायमंड कारोबारी हैं, जिन पर 7 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है. दूसरे नंबर पर लंदन भागे विजय माल्या का नाम आता है, जिन पर 5600 करोड़ रुपए का कर्ज है. कैलाश अग्रवाल भी अपने साथी किरण मेहता के साथ दुबई भाग गए थे. तब से सीबीआई इन के पीछे लगी थी. 5 अगस्त, 2017 को कैलाश अग्रवाल जब दुबई से भारत लौटे, तो सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.
सरकार बैंकों को दे चुकी है ढाई लाख करोड़ से ज्यादा
कारपोरेट फ्रौड और बैड लोन की वजह से बैंकों की हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही है. पब्लिक सेक्टर बैंकों को एनपीए से उबारने के लिए सरकार प्रयासरत है. सरकार पिछले 11 सालों में बैंकों को ढाई लाख करोड़ से ज्यादा दे चुकी है, इस के बावजूद बैंक एनपीए से उबर नहीं पा रहे हैं.
बजट बनाते समय वित्त मंत्रियों के सामने 2 बड़ी समस्याएं होती हैं. पहली खर्च की जरूरत पूरी करना जिस से सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं को सुधारा जा सके और दूसरी राजकोषीय घाटे को कम करना. क्योंकि टैक्स का कलेक्शन काफी नहीं होता. इन के अलावा हाल के सालों में वित्त मंत्रालय के सामने एक और नई चुनौती उभर कर सामने आई है और वह चुनौती है सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को संभालने की.
पिछले 11 सालों में देश के 3 वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी, पी. चिदंबरम और अरुण जेटली पब्लिक सेक्टर बैंकों को एनपीए से उबारने के लिए 2.6 लाख करोड़ रुपए दे चुके हैं. यह राशि सरकार द्वारा इस साल ग्रामीण विकास के लिए आवंटित की गई राशि के दोगुने से ज्यादा है.
एसबीआई सहित अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक एनपीए के कारण पिछले 2 वित्त वर्ष से घाटे में हैं. बताया जाता है कि इस वित्त वर्ष में भी बैंकों के हालात सुधरते नहीं दिख रहे. भारतीय स्टेट बैंक ने पिछले 18 सालों में पहली बार तिमाही घाटा दर्ज किया.
यही हाल बैंक औफ बड़ौदा का है. सरकारी बैंकों का मानना है कि मुद्रा समेत कई सरकारी योजनाओं के लिए कर्ज देना पड़ रहा है, इस से भी स्थिति बिगड़ी है. जबकि आम लोगों का मानना है कि जब करोड़ों रुपए कर्ज के बकाएदार बैंकों को कर्ज नहीं लौटाएंगे तो बैंकों की स्थिति दयनीय तो होगी ही.
देशभर में जिस समस्या को ले कर आएदिन चर्चा होती रहती है और चिंता जताई जाती है उसे ले कर भोपाल के अभिभावक लंबे वक्त तक दहशत से उबर पाएंगे, ऐसा लग नहीं रहा. मार्च के महीने में एक के बाद एक 3 बड़े हादसे हुए जिन में मासूम बच्चियों को पुरुषों ने अपनी हवस का शिकार बनाया. ऐसे में शहर में हाहाकार मचना स्वाभाविक था.
हालत यह थी कि मांएं अपनी बच्चियों को बारबार बेवजह अपने सीने से भींच रही थीं तो पिता उन्हें सख्ती से पकड़े थे. समानता बस इतनी थी कि मांबाप देनों किसी पर भरोसा नहीं कर रहे थे. चिड़ियों की तरह चहकने वाली बच्चियों को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्यों मम्मीपापा एकाएक इतना लाड़प्यार जताते उन की निगरानी कर रहे हैं. समस्या देशव्यापी है.
कहीं कोई चिड़िया किसी गिद्ध का शिकार बनती है तो स्वभाविक तौर पर सभी का ध्यान सब से पहले अपनी बच्ची पर जाता है और लोग तरहतरह की आशंकाओं से घिर जाते हैं. बच्चियों के प्रति दुष्कर्म एक ऐसा अपराध है जिस से बचने का कोई तरीका कारगर नहीं होता है.
कैसे सुलझेगी और क्या है समस्या, इसे समझने के लिए भोपाल के हालिया मामलों पर गौर करना जरूरी है कि वे किन हालात में और कैसे हुए.
किडजी स्कूल
भोपाल के कोलार इलाके का प्रतिष्ठित स्कूल है किडजी. किडजी में अपने बच्चों को दाखिला दिला कर मांबाप उन के भविष्य और सुरक्षा के प्रति निश्ंिचत हो जाते हैं.
उस प्ले स्कूल की संचालिका हेमनी सिंह हैं. एक छोटी बच्ची के मांबाप ने उस का नर्सरी में 8 फरवरी को ही ऐडमिशन कराया था. इस बच्ची का बदला नाम परी है. परी जब स्कूल यूनिफौर्म पहन पहली दफा स्कूल गई तो मांबाप दोनों ने उसे लाड़ से निहारा.
पर परी पर बुरी नजर लग गई थी हेमनी सिंह के पति अनुतोष प्रताप सिंह की, जो खुद एक ऐसी ही छोटी बच्ची का पिता है. 24 फरवरी को परी के पिता ने कोलार थाने में अनुतोष के खिलाफ परी के साथ दुष्कर्म किए जाने की रिपोर्ट दर्ज कराई. परी के भविष्य, मांबाप की प्रतिष्ठा और कानूनी निर्देशों के चलते यहां पूरा विवरण नहीं दिया जा सकता पर परी के पिता की मानें तो परी दर्द होने की शिकायत कर रही थी.
परी एक पढ़ेलिखे और खुद को सभ्य समाज का नुमाइंदा व हिस्सा कहने वाले की हैवानियत का शिकार हुई है. अनुतोष प्रताप सिंह ने अपने रसूख और पहुंच के दम पर मामले को रफादफा करने और करवाने की कोशिश की.
उस के एक आईपीएस अधिकारी से पारिवारिक संबंध हैं, इसलिए पुलिस ने फौरन कोई कार्यवाही नहीं की. उलटे, थाने में उसे राजकीय अतिथियों जैसा ट्रीटमैंट दिया.
इस कांड पर हल्ला मचा और अखबारबाजी हुई, तब कहीं जा कर पुलिस हरकत में आई. उसे ससम्मान हिरासत में लिया गया. शुरुआत में पुलिस यह कह कर आरोपी को बचाने की कोशिश करती रही कि जांच चल रही है, मैडिकल परीक्षण हो गया है, सीसीटीवी फुटेज खंगाले जा रहे हैं लेकिन चूंकि आरोप साबित नहीं हुआ है, इसलिए आरोपी की गिरफ्तारी नहीं की गई है.
जब परी की मैडिकल जांच में दुष्कर्म की आधिकारिक पुष्टि हुई तो 28 फरवरी को पहली दफा पुलिस ने इस वहशी को यौनशोषण का आरोपी माना और उसे कोलार क्षेत्र के गिरधर परिसर स्थित किडजी प्ले स्कूल से गिरफ्तार किया.
परी के नाना ने मीडिया को बताया कि उन की नातिन के गुनहगार को महज इसलिए गिरफ्तार नहीं किया गया क्योंकि वह कोलार थाना प्रभारी गौरव सिंह बुंदेला का अच्छा दोस्त है. दबाव बढ़ता देख पुलिस विभाग को इस थाना प्रभारी को लाइन अटैच करना पड़ा.
आरोपी को अदालत में संदेह का लाभ मिले, इस बात के भी पूरे इंतजाम पुलिस वालों ने किए. मसलन, एफआईआर में आरोपी की पहचान व्हाट्सऐप के जरिए करवाई गई. 3 साल की एक बच्ची मुमकिन है घबराहट या डर के चलते पहचान में गड़बड़ा जाए और दुष्कर्मी को कानूनी शिकंजे से बचने का मौका मिल जाए, इस के लिए पुलिस ने कोई कसर नहीं छोड़ी जिसे ले कर पुलिस विभाग और सरकार आम लोगों के निशाने पर हैं.
अवधपुरी स्कूल
भोपाल के ही अवधपुरी इलाके के एक सरकारी स्कूल का 56 वर्षीय शिक्षक मोहन सिंह पिछले 4 महीनों से एक 11 वर्षीय छात्रा बबली (बदला नाम) का शारीरिक शोषण कर रहा था. इस का खुलासा 15 मार्च को हुआ.
बकौल बबली, उस के सर (मोहन सिंह) उसे बुलाते थे, फिर कान उमेठते थे और पीठ पर मारते थे. बबली ने यह बात मां को बताई थी पर उन्होंने यह कहते उस की बात पर ध्यान नहीं दिया कि वह पढ़ाई से जी चुराती होगी, इसलिए सर ऐसा करते हैं. बबली की मां मोहन सिंह के यहां नौकरानी थी, इसलिए उस ने कोई बात उन से नहीं की.
एक दिन सर ने बबली को अपने कमरे में झाड़ू लगाने के लिए बुलाया तो वह हैरान हुई कि जब इस काम के लिए मां हैं तो सर उसे क्यों बुला रहे हैं. वह तो पहले से ही उन्हें ले कर दहशत में थी. चूंकि मजबूरी थी, इसलिए वह डरतेडरते मोहन सिंह के कमरे में गई. पर साथ में एक सहेली को भी ले गई. लेकिन मोहन सिंह ने उस सहेली को भगा दिया.
सहेली चली गई तो मोहन सिंह ने अपना वहशी रंग दिखाते हुए कमरा अंदर से बंद कर लिया और जबरदस्ती बबली के कपड़े उतार दिए. इस के पहले वह अपने कपड़े उतार चुका था. इस के बाद उस ने बबली को अपनी तरफ खींच लिया. इसी दौरान किसी ने दरवाजा खटखटाया तो मोहन सिंह ने बबली को धमकी दी कि किसी को कुछ बताया तो स्कूल से निकाल दूंगा. डरीसहमी बबली खामोश रही क्योंकि वह पढ़ना चाहती थी.
मां ने बात नहीं सुनी तो बबली ने बूआ को सारी बात बताई. उन्होंने भाभी को समझाया तो दोनों बबली को ले कर मोहन सिंह के घर गईं जो भांप चुका था कि पोल खुल चुकी है, इसलिए इन्हें देखते ही भाग गया.
जब मामला उजागर हुआ तो पुलिस ने मोहन सिंह के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 376 और 342 के तहत मामला दर्ज कर लिया. 5 बच्चों के पिता मोहन सिंह की बड़ी बेटी की उम्र 30 साल है. अवधपुरी के प्राइमरी स्कूल में 15 बच्चियां पढ़ती हैं और 10 लड़के हैं. मोहन सिंह स्कूल का सर्वेसर्वा था. यह स्कूल 2 साल पहले शुरू हुआ है जिस में पढ़ने वाले छात्र गरीब घरों के हैं. बबली के पिता की मौत हो चुकी है और 7 भाईबहनों में यह छठे नंबर की है.
मोहन सिंह का मैडिकल देररात हुआ जबकि बबली और उस की मां, बूआ दोपहर साढ़े 4 बजे से देररात तक अवधपुरी थाने में भूखीप्यासी बैठी रहीं.
यानी पुलिस ने इस मामले में कोई गंभीरता नहीं दिखाई तो उस की मंशा पर सवालिया निशान लगना स्वभाविक है. दूसरी कक्षा में पढ़ रही छात्रा के साथ उस का शिक्षक अश्लील हरकतें करता था और दुष्कर्म भी किया, यह बात भी संवेदनशील पुलिस की निगाह में कतई नहीं थी.
शातिर दुष्कर्मी
15 मार्च के दिन एक और मासूम बच्ची, नाम आफिया, उम्र 6 वर्ष, ने फांसीं लगा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. आफिया की 3 बड़ी बहनों के मुताबिक, हादसे की शाम मम्मी सब्जी लेने बाजार गई थीं तब उस ने ऊपर कमरे में जा कर फांसी लगा ली.
भोपाल के लालघाटी इलाके के नजदीक के गांव बरेला निवासी अफजल खान मंगलवारा इलाके में चिकन शौप चलते हैं. घर में उन की पत्नी और 4 बेटियां रहती हैं.
एक 6 साल की बच्ची फांसी लगा कर जान दे सकती है, यह बात किसी के गले उतरने वाली नहीं थी. मौके पर पुलिस पहुंची तो कमरे में बहुत से कपड़े बिखरे पड़े थे. लोगों का यह शक सच निकला कि परी और बबली की तरह आफिया भी दुष्कर्म की शिकार हुई है और जुर्म छिपाने की गरज से उस की हत्या कर दी गई है.
शौर्ट पीएम रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हुई कि बच्ची के प्राइवेट पार्ट में जख्म हैं और उस के साथ प्राकृतिक व अप्राकृतिक कृत्य हुआ है. जाहिर है उस की मौत को खुदकुशी का रंग देने की कोशिश की गई थी जबकि 6 साल की बच्ची फांसी के फंदे की उतनी मजबूत गांठ नहीं लगा सकती जितनी की लगी हुई थी और दरवाजा खोल कर खुदकुशी नहीं करती.
आफिया के मामले में भी पुलिस की कार्यप्रणाली लापरवाहीभरी और शक के दायरे में रही. 15 मार्च को पुलिस की तरफ से कहा गया कि संभवतया उस के साथ बलात्कार नहीं हुआ है क्योंकि उस के प्राइवेट पार्ट पर कोई जख्म नहीं था.
4 दिनों में रिपोर्ट बदल गई तो सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि मासूमों के असुरक्षित होने की बहुत सी वजहों में से एक, पुलिस की भूमिका भी है. 22 मार्च को पुलिस वालों ने साबित भी कर दिखाया कि इस अबोध ने खुदकुशी की थी. उस की हत्या नहीं की गई थी. और न ही किसी तरह का दुष्कर्म उस के साथ हुआ था.
इन तीनों मामलों से उजागर यह भी हुआ कि लड़कियां कहीं सुरक्षित नहीं हैं, किसी ब्रैंडेड स्कूल में भी नहीं, न ही सरकारी स्कूल में और उस जगह भी जो सुरक्षा की गारंटी माना जाता है यानी घर में.
अबोध लड़कियां मुजरिमों के लिए सौफ्ट टारगेट होती हैं और हैरत की बात है कि अधिकांश दुष्कर्मी अधेड़ होते हैं और बच्ची अकसर इन के नजदीक होती हैं. इन्हें जरूरत एक अदद मौके की होती है जिस के लिए वे किसी इमारत को ज्यादा महफूज मानते हैं. खुले पार्क, सुनसान या फिर हाइवे पर बच्चियों के साथ दुष्कर्म के हादसे अपेक्षाकृत कम होते हैं.
एकांत इस तरह के हादसों में एक बड़ा फैक्टर है तो जाहिर है भेडि़ए की तरह घात लगाए ये दुष्कर्मी काफी पहले अपने दिमाग में बलात्कार का नक्शा खींच चुके होते हैं.
जब भी एकांत मिलता है तब वे अपनी हवस पूरी कर डालते हैं. साफ यह भी दिख रहा है कि अबोध लड़कियों के दुष्कर्मियों को किसी श्रेणी में रखा जा सकता. वे सूटेडबूटेड सभ्य से ले कर गंवारजाहिल कहे और माने जाने वाले तक होते हैं. कुत्सित मानसिकता के स्तर पर इन में कोई फर्क नहीं किया जा सकता.
क्या करें
भोपाल के हादसों से स्पष्ट हुआ कि मांबाप ने सावधानियां भी रखीं और लापरवाहियां भी की. परी और बबली के उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि अगर बच्ची किसी शिक्षक या दूसरे पुरुष के बाबत शिकायत कर रही है तो उसे किसी भी शर्त पर अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए.
भोपाल में मार्च के पूरे महीने इन मामलों की चर्चा रही पर कोई हल नहीं निकला. सारी बहस पुलिस की कार्यप्रणाली और दुष्कर्मियों की मानसिकता के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई.
एक गृहिणी वंदना रवे की मानें तो वे 2 बेटियों की मां हैं और इन हादसों के बाद से व्यथित हैं. पर उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा.
क्या सरकार सभी बच्चियों की हिफाजत की गारंटी ले सकती है, इस सवाल का जवाब भी शीशे की तरह साफ है कि नहीं ले सकती. इस मसले पर सरकार के भरोसे रहना व्यावहारिक नहीं है.
एक व्यवसायी रितु कालरा का कहना है कि बलात्कारियों को तुरंत फांसी पर चढ़ाया जाना जरूरी है जिस से दूसरे लोगों में खौफ पैदा हो और वे दुष्कृत्य करने से डरें.
लेखिका विनीता राहुरकर इस बात से सहमति जताते कानूनी सख्ती पर जोर देती यूएई की मिसाल देती हैं कि वहां इस तरह के मामले न के बराबर होते हैं जबकि हमारे देश क्या, शहर में ही, यह आएदिन की बात हो चली है. कुछ महिलाओं ने पौर्न साइट्स के बढ़ते चलन को इस की वजह माना तो कइयों ने पुरुषों के कामुक स्वभाव को इस के लिए जिम्मेदार ठहराया.
एक कठिनाई यह है कि अब एकल परिवारों के चलते कामकाजी मांबाप हमेशा चौबीसों घंटे बच्चों से चिपके नहीं रह सकते. इसी बात का फायदा दुष्कर्मी उठाते हैं. उन में और घात लगाए बैठे हिंसक शिकारियों में वाकई कोई फर्क नहीं होता, इसलिए रितु और विनीता की बात में दम है.
अगर अनुतोष प्रताप सिंह को अपराध साबित होने के 72 घंटों के अंदर फांसी दे दी गई होती तो क्या मोहन सिंह की हिम्मत बबली के साथ दुष्कर्म करने की होती. हालांकि निर्णायक तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता पर संभावना इस बात की ज्यादा है कि हां, वह हिचकता.
3 साल की परी को क्यों अदालत ला कर बयान देना पड़े, यह बात भी विचारणीय है कि दुष्कर्म के ऐसे मामलों में मां के बयान ही काफी हों.
क्या यह सभ्य समाज की निशानी है कि 3 साल की एक मासूम बच्ची, जो दुष्कर्म जैसे घृणित अपराध का शिकार हुई, को ही मुजरिमों की तरह अदालत में जाना पड़ा जहां वह दीनदुनिया से बेखबर, कागज की नाव से खेलते प्रतीकात्मक तौर पर यह बताती रही कि औरत की जिंदगी तो दुनिया में आने के बाद से ही कागज की नाव सरीखी होती है. पुरुष की कुत्सित मानसिकता का जरा सा प्रवाह ही उसे डुबो देने के लिए काफी है.
अपराधी को अपनी बात कहने, बचाव करने या सफाई का मौका ही न देना मुमकिन है कानूनन और मानव अधिकारों के तहत ज्यादती लगे पर यह हर्ज की बात नहीं. एकाध बेगुनाह फांसी चढ़ भी जाए तो बात ‘कोई बात नहीं’ की तर्ज पर हुई मानी जानी चाहिए. बजाय इस के कि बच्ची का बलात्कार होने के बाद ‘ऐसा तो होता रहता है’ कह कर अपनी सामाजिक जिम्मेदारी पूरी हुई मान ली जाए. एक मासूम के प्रति यह विचार नहीं रखना चाहिए कि वह किसी बदले, प्रतिशोध या किसी तरह के लालच के लिए पुरुष को फंसाने की बात सोच पाएगी.
कमजोरी, धर्म और महिलाएं
लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं, इस का सीधा सा मतलब यह शाश्वत सत्य है कि औरतें शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर कमजोर हैं. भोपाल की महिलाएं मानने को तैयार नहीं और देश की अधिसंख्य महिलाएं भी इस बात से सहमत नहीं होंगी कि महिलाओं के प्रति असम्मान और अपमान की शाश्वत मानसिकता में धर्म का बड़ा हाथ है. औरतों को तरहतरह से बेइज्जत करने के मर्द के डीएनए धर्म की देन हैं.
धर्म कहता है, स्त्री भोग्या है, पांव की जूती है, शूद्र है. फिर यही धर्म नारीपूजा का ढोंग करने लगता है. उसे देवी बताने लगता है. बात छोटी बच्चियों की करें तो नवरात्र के दिनों में घरघर में उन का पूजन होता है. उन्हें हलवापूरी खिलाया जाता है और उपहार व नकदी भी दी जाती है.
यह विरोधाभास देख लगता है कि बलि का बकरा तैयार किया जा रहा है. भोपाल के दुष्कर्म के मामलों के संदर्भ में यही धर्मशोषित महिलाएं चाहती हैं कि कृपया धर्म को बीच में न घसीटें, क्योंकि यह आस्था का विषय है.
पारिवारिक, सामजिक, प्रशासनिक और राजनीतिक वजहों से परे महिलाओं को अपनी दुर्दशा को धर्म के मद्देनजर भी देखना होगा, तभी बच्चियों की सुरक्षा को ले कर किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है.
आस्था की दुहाई देने वाली महिलाएं खुद दोयम दरजे की जिंदगी जी रही हैं तो क्या खाक वे बच्चियों की सुरक्षा पर ठोस कुछ बोल पाएंगी. असल दोष पुरुष की मानसिकता का है जो कानून या राजनीति से नहीं, बल्कि धर्म से होते हुए समाज में आई है.
लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था और अब तकनीक होने के चलते कोख में ही उन की कब्र बना दी जाती है. इन बातों की धर्म के मद्देनजर खूब आलोचना हुई कि लोग लड़का इसलिए चाहते हैं कि वह तारता है. अब बारी यह सोचने की है कि अब कहीं ऐसा इसलिए तो नहीं किया जा रहा कि मांबाप में यह डर बैठ गया हो कि जब वे बच्ची को सुरक्षित नहीं रख सकते तो उसे दुनिया में क्यों लाएं.
औरतें शिक्षित तो हुई हैं पर पर्याप्त जागरूक नहीं हो पाई हैं. अपने अधिकारों की उन की लड़ाई 8 मार्च के दिन ही शबाब पर होती है. वह भी शोपीस जैसी ही. न तो वे स्वाभिमानी हो पाई हैं और न ही आत्मनिर्भर हो गई हैं.
भोपाल के हादसों को ले कर कोई धरनाप्रदर्शन नहीं हुआ. खुद को मुख्यधारा में मानने वाली महिलाएं क्लबों और किटी पार्टी में व्यस्त रहीं. ऐसे में इन से क्या उम्मीद की जाए, सिवा इस के कि उन्हें इस समस्या से कोई सरोकार नहीं.
बच्चियां इस सांचे में इस लिहाज से फिट बैठती हैं कि उन्हें हिफाजत देने वाला पुरुष खुद बागड़ बन कर खेत को खा रहा है और कानून के नाम पर हायहाय मचाई जाती है जो आंशिक तौर पर सच भी है. पुरुष की सामंती और उद्दंड मानसिकता का धर्म के आगे नतमस्तक होना, मासूम बच्चियों को वासना की खाई में ढकेलने जैसी ही बात है.
कैसे हो हिफाजत
क्या मासूमों को हवस के इन शिकारियों से बचाया जा सकता है, यह सवाल बेहद गंभीर है जिस का जवाब यह निकलता है कि नहीं, आप कुछ भी कर लें, पूरे तौर पर बच्चियों को इन से बचाया नहीं जा सकता.
यह निष्कर्ष जाहिर है बेहद निराशाजनक है. पर ऐसे हादसों की संख्या कम की जा सकती है, इस के लिए इन टिप्स को ध्यान में रखना चाहिए :
– बच्ची को अकेला कभी न छोड़ें.
– किसी परिचित या अपरिचित पर कतई भरोसा न करें.
– स्कूल में वक्तवक्त पर जा कर बच्ची की निगरानी करें.
– बच्ची भयभीत या गुमसुम दिखे तो तुरंत उसे भरोसे में ले कर प्यार से उसे टटोलने की कोशिश करें कि माजरा क्या है. ऐसी हालत में उस के प्राइवेट पार्ट देखे जाना भी हर्ज की बात नहीं.
– चाचा ने भतीजी से या मामा ने किया भांजी का बलात्कार, जैसी हिला देने वाली खबरें अब बेहद आम हैं. जिन के चलते नजदीकी रिश्तेदारों पर ज्यादा ध्यान देना जरूरी है कि कहीं उन की निगाह बच्ची पर तो नहीं. उन की बौडी लैंग्वेज और हरकतें देख अंदाजा लगाया जा सकता है कि कहीं इस तरह का कोई कीड़ा उन के दिमाग में तो नहीं कुलबुला रहा.
– उसे अकेला न खेलने दें, निगरानी करते रहें, अंधेरा होने के बाद घर से बाहर न जाने दें, जैसी सावधानियों के साथ अहम बात यह है कि स्कूल में उस की 6-8 घंटे की जिंदगी है. इसलिए स्कूल चाहे प्राइवेट हो या सरकारी, यह जरूर सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वहां महिला कर्मचारियों की संख्या ज्यादा हो और इमारत में हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगे हों.
– स्कूल बस के कंडक्टर और ड्राइवरों की इस लिहाज से निगरानी करते रहना चाहिए कि इन्हें लड़कियों के प्राइवेट पार्ट्स से छेड़छाड़ करने का पूरा मौका मिलता है. अब जरूरत महसूस होने लगी है कि लड़कियां जिस वाहन में जाएं उस में एक महिला कर्मचारी की नियुक्ति अनिवार्य हो.
– लड़की को अगर होस्टल या झूलाघर में छोड़ना पड़े, तो उस की सतत निगरानी जरूरी है. बीते दिनों एक वीडियो वायरल हुआ था जिस में होस्टल या अनाथाश्रम में एक महिला एक छोटी बच्ची को जानवरों की तरह पीट रही थी. यह किस देश की घटना है, वीडियो से स्पष्ट नहीं है पर महिला बेहद व्याभिचारी भी है, यह भी दिखता है कि परपीड़न में उसे सुख मिलता है.
19मार्च, 2021 की रात 10 बजे शीला देवी अपने देवर आनंद प्रजापति के साथ जनता नगर चौकी पहुंचीं. उस समय इंचार्ज ए.के. सिंह चौकी पर मौजूद थे. उन्होंने शीला देवी को बदहवास देखा, तो पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम घबराई हुई क्यों हो? कोई गंभीर बात है क्या?’’
‘‘हां सर. हमें किसी अनहोनी की आशंका है.’’
‘‘कैसी अनहोनी? साफसाफ पूरी बात बताओ.’’
‘‘सर, दरअसल बात यह है कि रात 8 बजे मेरा बेटा शैलेश, उस का दोस्त अर्श गुप्ता व विनय घर पर नीचे कमरे में शराब पी रहे थे. कुछ देर बाद कमरे से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आईं. फिर वे लोग बाइक से कहीं चले गए.
‘‘उन के जाने के बाद मैं कमरे में गई, तो वहां खून से सनी चादर देखी. अनहोनी की आशंका से मैं घबरा गई. मैं ने इस की जानकारी पड़ोस में रहने वाले अपने देवर आनंद को दी, फिर उन के साथ सूचना देने आप के पास आ गई. आप मेरी मदद करें.’’
शीला देवी की बात सुनकर ए.के. सिंह को लगा कि जरूर कोई अनहोनी घटना घटित हुई है. उन्होंने यह सूचना बर्रा थानाप्रभारी हरमीत सिंह को दी फिर 2 सिपाहियों के साथ शीला देवी के बर्रा भाग 8 स्थित मकान पर पहुंच गए. उन के पहुंचने के चंद मिनट बाद ही थानाप्रभारी हरमीत सिंह भी आ गए.
हरमीत सिंह ने ए.के. सिंह के साथ कमरे का निरीक्षण किया तो सन्न रह गए. कमरे के फर्श पर खून पड़ा था और पलंग पर बिछी चादर खून से तरबतर थी. कमरे का सामान भी अस्तव्यस्त था. खून की बूंदें कमरे के बाहर गली तक टपकती गई थीं.
निरीक्षण के बाद हरमीत सिंह ने अनुमान लगाया कि कमरे के अंदर कत्ल जैसी वारदात हुई है या फिर गंभीर रूप से कोई घायल हुआ है. शैलेश और उस का दोस्त या तो लाश को ठिकाने लगाने गए हैं या फिर अस्पताल गए हैं. कहीं भी गए हों, वे लौट कर घर जरूर आएंगे. अत: उन्होंने घर के आसपास पुलिस का पहरा लगा दिया तथा खुद भी निगरानी में लग गए.
रात लगभग डेढ़ बजे शैलेश और उस का दोस्त अर्श गुप्ता वापस घर आए तो पुिलस ने उन्हें दबोच लिया और थाना बर्रा ले आए. दोनों के हाथ और कपड़ों पर खून लगा था. इंसपेक्टर हरमीत सिंह ने पूछा, ‘‘तुम दोनों ने किस का कत्ल किया है और लाश कहां है?’’
शैलेश कुछ क्षण मौन रहा फिर बोला, ‘‘साहब, मैं ने अपने बचपन के दोस्त विनय प्रभाकर का कत्ल किया है. वह बर्रा भाग दो के मनोहर नगर में रामजानकी मंदिर के पास रहता था. उस की लाश को मैं ने अर्श की मदद से रिंद नदी में फेंक दिया है. पैट्रोल खत्म हो जाने की वजह से हम ने विनय की मोटरसाइकिल खाड़ेपुर-फत्तेपुर मोड़ पर खड़ा कर दी और वापस लौट आए.’’
‘‘तुम ने अपने दोस्त का कत्ल क्यों किया?’’ थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने शैलेश से पूछा.
इस सवाल पर शैलेश काफी देर तक हरमीत सिंह को गुमराह करता रहा. पहले वह बोला, ‘‘साहब, नशे में गलती हो गई. हम ने उस का कत्ल कर दिया.’’
फिर बताया कि उस के मोबाइल फोन में उस की महिला मित्र की कुछ आपत्तिजनक फोटो थीं. उन फोटो को विनय ने धोखे से अपने मोबाइल फोन में ट्रांसफर कर लिया था. वह उन फोटो को सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी दे कर ब्लैकमेल कर रहा था, इसलिए हम ने उसे मार डाला.
लेकिन थानाप्रभारी हरमीत सिंह को उस की इन दोनों बातों पर यकीन नहीं हुआ. सच्चाई उगलवाने के लिए उन्होंने सख्ती की तो दोनों टूट गए.
फिर उन्होंने बताया कि उन्होंने 10 लाख रुपए की फिरौती मांगने के लिए विनय की हत्या की योजना बनाई थी. कुछ माह पहले संजीत हत्याकांड की तरह शव को ठिकाने लगाने के बाद उसी के मोबाइल फोन से उस के घर वालों को फोन कर फिरौती मांगने की योजना थी. उस ने दौलत की चाहत में दोस्त की हत्या की थी. लेकिन फिरौती मांगने के पहले ही वे पकड़े गए.
शैलेश व अर्श की जामातलाशी में उन के पास से 3 मोबाइल फोन मिले, जिस में एक मृतक विनय का था तथा बाकी 2 शैलेश व अर्श के थे. उन के पास एक पर्स भी बरामद हुआ जिस में मृतक का फोटो, आधार कार्ड तथा कुछ रुपए थे. बरामद पर्स मृतक विनय प्रभाकर का था.
शैलेश व अर्श गुप्ता की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल बांका तथा लाश ठिकाने लगाने में इस्तेमाल मोटरसाइकिल बरामद कर ली. बांका उस ने अपने कमरे में छिपा दिया था और पैट्रोल खत्म होने से उस ने मोटरसाइकिल खाड़ेपुर मोड़ पर खड़ी कर दी थी.
फिरौती और हत्या के इस मामले में थानाप्रभारी हरमीत सिंह कोई कोताही नहीं बरतना चाहते थे. क्योंकि इस के पहले संजीत अपहरण कांड में बर्रा पुलिस गच्चा खा चुकी थी. अपहर्त्ताओं ने फिरौती की रकम भी ले ली थी और उस की हत्या भी कर दी थी.
इस मामले में लापरवाही बरतने में एसपी व डीएसपी सहित 5 पुलिसकर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया था. अत: उन्होंने घटना की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी.
सूचना पा कर रात 3 बजे एसपी (साउथ) दीपक भूकर तथा डीएसपी विकास पांडेय थाना बर्रा पहुंच गए. उन्होंने घटना के संबंध में गिरफ्तार किए गए शैलेश व अर्श गुप्ता से विस्तार से पूछताछ की. फिर दोनों को साथ ले कर रिंद नदी के पुल पर पहुंचे. इस के
बाद कातिलों की निशानदेही पर नदी किनारे पड़ा विनय प्रभाकर का शव बरामद कर लिया.
विनय की हत्या बड़ी निर्दयतापूर्वक की गई थी. उस का गला धारदार हथियार से काटा गया था, जिस से सांस की नली कट गई थी और उस की मौत हो गई थी. मृतक विनय की उम्र 26 वर्ष के आसपास थी और उस का शरीर हृष्टपुष्ट था.
20 मार्च की सुबह 5 बजे बर्रा थाने के 2 सिपाही मृतक विनय के घर पहुंचे और उस की हत्या की खबर घर वालों को दी. खबर पाते ही घर व मोहल्ले में सनसनी फैल गई. घर वाले रिंद नदी के पुल पर पहुंचे. वहां विनय का शव देख कर मां विमला तथा बहन रीता बिलख पड़ीं. पिता रामऔतार प्रभाकर तथा भाई पवन की आंखों से भी अश्रुधारा बह निकली. पुलिस अधिकारियों ने उन्हे धैर्य बंधाया.
पवन ने एसपी दीपक भूकर को बताया कल शाम साढ़े 7 बजे किसी का फोन आने पर उस का भाई विनय यह कह कर अपनी पल्सर मोटरसाइकिल से घर से निकला था कि अपने दोस्त से मिलने जा रहा है. उस के बाद वह घर नहीं लौटा.
रात भर हम लोग उस के घर वापस आने का इंतजार करते रहे. उस का फोन भी बंद था. सुबह 2 सिपाही घर आए. उन्होंने विनय की हत्या की सूचना दी. तब हम लोग यहां आए. लेकिन समझ में नहीं आ रहा कि विनय की हत्या किस ने और क्यों की?
‘‘तुम्हारे भाई की हत्या किसी और ने नहीं, उस के बचपन के दोस्त शैलेश प्रजापति व उस के साथी अर्श गुप्ता ने की है. वह तुम लोगों से फिरौती के 10 लाख रुपए वसूलना चाहते थे. लेकिन शैलेश की मां ने ही उस का भांडा फोड़ दिया और दोनों पकड़े गए.’’
यह जानकारी पा कर पवन व उस के घर वाले अवाक रह गए. क्योंकि वे सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि शैलेश ऐसा विश्वासघात कर सकता है.
निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने शव को पोस्टमार्टम हाउस हैलट अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद वह शैलेश के उस कमरे में पहुंचे, जहां विनय का कत्ल किया गया था.
पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का निरीक्षण किया, वहीं फोरैंसिक टीम ने भी बेंजाडीन टेस्ट कर साक्ष्य जुटाए.
चूंकि आरोपियों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल बांका भी बरामद करा दिया था, अत: थानाप्रभारी हरमीत सिंह ने मृतक के भाई पवन को वादी बना कर भादंवि की धारा 302/201 तथा एससी/एसटी ऐक्ट के तहत शैलेश प्रजापति तथा अर्श गुप्ता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.
उन्हें न्यायसम्मत गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस पूछताछ में दौलत की चाहत में दोस्त की हत्या की सनसनीखेज घटना का खुलासा हुआ.
कानपुर शहर का एक बड़ी आबादी वाला क्षेत्र है-बर्रा. इस क्षेत्र के बड़ा होने से इसे कई भागों में बांटा गया है. रामऔतार प्रभाकर अपने परिवार के साथ इसी बर्रा क्षेत्र के भाग 2 में मनोहरनगर में जानकी मंदिर के पास रहते थे. उन के परिवार में पत्नी विमला के अलावा 2 बेटे पवन कुमार, विनय कुमार तथा बेटी रीता कुमारी थी. रामऔतार प्रभाकर आर्डिनैंस फैक्ट्री में काम करते थे. किंतु अब रिटायर हो चुके थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.
फैक्ट्री में रामऔतार प्रभाकर के साथ सोमनाथ प्रजापति काम करते थे. सोमनाथ भी बर्रा भाग 8 में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी शीला देवी के अलावा एकलौता बेटा शैलेश था. सोमनाथ भी रिटायर हो चुके थे. सोमनाथ बीमार रहते थे. उन्हें सुनाई भी कम देता था और दिखाई भी. उन की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी.
रामऔतार और सोमनाथ इस के पहले अर्मापुर स्थित फैक्ट्री की कालोनी में रहते थे. 3 साल पहले दोनों ने बर्रा क्षेत्र में जमीन खरीद ली थी और अपनेअपने मकान बना कर रहने लगे थे. मकान बदलने के बावजूद दोनों की दोस्ती में कमी नहीं आई थी. दोनों परिवार के लोगों का एकदूसरे के घर आनाजाना था.
रामऔतार का बेटा विनय और सोमनाथ का बेटा शैलेश बचपन के दोस्त थे. दोनों एकदूसरे के घर आतेजाते थे. विनय ने हाईस्कूल पास करने के बाद आईटीआई से मशीनिस्ट का कोर्स किया था. वह नौकरी की तलाश में था. जबकि शैलेश ड्राइवर बन गया था. वह बुकिंग की कार चलाता था.
शैलेश का एक अन्य दोस्त अर्श गुप्ता था. वह फरनीचर कारीगर था और गुजैनी गांव में रहता था. अर्श और शैलेश शराब के शौकीन थे. अकसर दोनों साथ पीते थे और लंबीलंबी डींग हांकते थे. उन दोनों ने विनय को भी शराब पीना सिखा दिया था. अब हर रविवार को शैलेश के घर शराब पार्टी होती थी. तीनों बारीबारी से पार्टी का खर्चा उठाते थे.
एक शाम खानेपीने के दौरान विनय ने शैलेश व अर्श को बताया कि उस की बहन रीता की शादी तय हो गई है. 27 अप्रैल को बारात आएगी. शादी में लगभग 10-12 लाख रुपया खर्च होगा. पिता व भाई ने रुपयों का इंतजाम कर लिया है. शादी की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं.
पैसा कहां से और कैसे आए, इस के लिए शैलेश और अर्श ने सिर से सिर जोड़ कर विचारविमर्श किया तो उन्हें विनय याद आया. विनय ने बताया था कि उस के यहां बहन की शादी है और घर वालों ने 10-12 लाख रुपए का इंतजाम किया है.
दौलत की चाहत में शैलेश व अर्श ने दोस्त के साथ छल करने और फिरौती के रूप में 10 लाख रुपया वसूलने की योजना बनाई. संजीत हत्याकांड दोनों के जेहन में था. उसी तर्ज पर उन दोनों ने विनय की हत्या कर के उस के घर वालों से फिरौती वसूलने की योजना बनाई.
योजना के तहत 19 मार्च, 2021 की रात पौने 8 बजे शैलेश ने अर्श के मोबाइल से विनय प्रभाकर के मोबाइल पर काल की और पार्टी के लिए घर बुलाया.
विनय की 5 दिन पहले ही लोहिया फैक्ट्री में नौकरी लगी थी. फैक्ट्री से वह साढ़े 7 बजे घर लौटा था कि 15 मिनट बाद शैलेश का फोन आ गया. पार्टी की बात सुन कर वह शैलेश के घर जाने को राजी हो गया.
रात 8 बजे विनय अपनी पल्सर मोटरसाइकिल से बर्रा भाग 8 स्थित शैलेश के घर पहुंच गया. उस समय कमरे में शैलेश व अर्श गुप्ता थे और पार्टी का पूरा इंतजाम था. इस के बाद तीनों ने मिल कर खूब शराब पी. विनय जब नशे में हो गया तो योजना के तहत अर्श व शैलेश ने उसे दबोच लिया और उस की पिटाई करने लगे.
विनय ने जब खुद को जाल में फंसा देखा तो वह भी भिड़ गया. कमरे से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. इसी बीच शैलेश ने कमरे में छिपा कर रखा बांका निकाला और विनय की गरदन पर वार कर दिया. विनय का गला कट गया और वह फर्श पर गिर पड़ा.
इस के बाद अर्श ने विनय को दबोचा और शैलेश ने उस की गरदन पर 2-3 वार और किए. जिस से विनय की गरदन आधी से ज्यादा कट गई और उस की मौत हो गई.
हत्या करने के बाद उन दोनों ने शव को तोड़मरोड़ कर चादर व कंबल में लपेटा और फिर विनय की मोटरसाइकिल पर रख कर रिंद नदी में फेंक आए. वापस लौटते समय उन की बाइक का पैट्रोल खत्म हो गया, इसलिए उन्होंने बाइक को खाड़ेपुर मोड़ पर खड़ा कर दिया. फिर पैदल ही घर आ गए.
घर पर उन के स्वागत के लिए बर्रा पुलिस खड़ी थी, जिस से वे पकड़े गए. दरअसल, शैलेश की मां शीला ने ही कमरे में खून देख कर पुलिस को सूचना दी थी, जिस से पुलिस आ गई थी.
21 मार्च, 2021 को थाना बर्रा पुलिस ने आरोपी शैलेश प्रजापति व अर्श गुप्ता को कोर्ट में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
राजस्थान में सूर्यनगरी के नाम से मशहूर जोधपुर शहर राजस्थान के वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गृहनगर है. जोधपुर के भीतरी शहर के खांडा फलसा थानांतर्गत कुम्हारियां कुआं इलाके में जटियों की गली में ओमप्रकाश प्रजापति का परिवार रहता है.
ओमप्रकाश के 3 बेटे बंसीलाल, मुरली व गोपाल हैं. सभी भाई पिता के साथ एक ही मकान में रहते हैं. परिवार हलवाई का काम करता है.
पिछले एक साल से कोरोना के कारण शादीब्याह कम होने से परिवार की आय भी प्रभावित हुई. बंसीलाल, मुरली व गोपाल तीनों शादीशुदा व बालबच्चेदार हैं. बंसीलाल के 2 बड़ी बेटियों के बाद 7 वर्ष पहले हिमांशु हुआ था.
बंसीलाल से छोटे भाई मुरली के एक बेटा व एक बेटी है. वहीं तीसरे भाई गोपाल के 3 बेटियां हैं. आपस में अनबन के चलते मुरली की पत्नी दोनों बच्चों को ले कर अपने पीहर चली गई थी.
हिमांशु ही पूरे घर में एकमात्र बेटा था. 15 मार्च, 2021 को दोपहर करीब 3 बजे अचानक हिमांशु कहीं लापता हो गया. परिजनों ने आसपास उस की तलाश की. मगर उस का कोई अतापता नहीं चला. हिमांशु के अचानक लापता होने से घर में कोहराम मच गया. किसी अनहोनी की आशंका से घर में मातम छा गया.
हिमांशु का पता नहीं चलने पर उस के पिता बंसीलाल प्रजापति थाना खांडा फलसा पहुंचे और थाने में बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. गुमशुदगी में बताया कि उन का 7 साल का बेटा हिमांशु 15 मार्च, 2021 की शाम 3 साढ़े 3 बजे के बीच खेलता हुआ घर के आगे गली से लापता हो गया. उस की हर जगह तलाश की लेकिन कोई पता नहीं चला.
बच्चे का कद 3 फीट 6 इंच है और रंग गोरा है. उस ने प्रिंटेड औरेंज टीशर्ट व नीली जींस पहन रखी थी. खांडा फलसा थानाप्रभारी दिनेश लखावत ने गुमशुदगी दर्ज कर बच्चे के लापता होने की खबर उच्चाधिकारियों को दे दी.
जोधपुर पूर्व पुलिस उपायुक्त धर्मेंद्र सिंह यादव ने तुरंत एडिशनल सीपी भागचंद्र, एसीपी राजेंद्र दिवाकर, दरजाराम बोस, देरावर सिंह सहित 5 थानाप्रभारियों व डीएसटी को अलगअलग जिम्मा सौंप कर तत्काल काररवाई करने के निर्देश दिए.
पुलिस टीमों ने अपना काम शुरू कर दिया. सब से पहले कुम्हारिया कुआं क्षेत्र के जटियों की गली में लगे 2 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकाली गई. हिमांशु फुटेज में वहां नजर आया. तब 2 बज कर 27 मिनट का समय था. इस के बाद आगे के पूरे इलाके के सीसीटीवी फुटेज देखे गए, मगर उन में हिमांशु कहीं नजर नहीं आया.
पुलिस ने परिजनों से भी पूछा कि फिरौती के लिए कोई फोन तो नहीं आया. उस समय तक कोई फोन नहीं आया था. पुलिस टीमें हिमांशु की खोजबीन में लगी थीं. मगर उस का पता नहीं चला.
17 मार्च, 2021 बुधवार को सुबह 11 बजे रातानाडा क्षेत्र जोधपुर स्थित रेंज आईजी नवज्योति गोगोई के बंगले की चारदीवारी के पास स्थित पोलो ग्राउंड के सूखे नाले में से भयंकर बदबू आ रही थी.
एक व्यक्ति ने असहनीय दुर्गंध की बात आईजी बंगले के संतरी को बताई. संतरी ने पुलिस को सूचना दी. रातावाड़ा पुलिस मौके पर पहुंची. सूखे नाले में आटे के कट्टे से दुर्गंध आ रही थी. आटे के कट्टे को खोल कर देखा तो उस में एक बच्चे का शव मिला.
शव मिलने की सूचना पर पुलिस के अधिकारी मौके पर पहुंचे. एफएसएल की टीम और डौग स्क्वायड को भी बुलाया गया. एफएसएल टीम ने वहां से साक्ष्य उठाए. शुरुआती जांच में सामने आया कि बच्चे की हत्या गला घोंट कर कर शव कट्टे में डाला गया था. कट्टे में टिफिन बैग भी मिला.
पुलिस ने काररवाई पूरी कर शव को पोस्टमार्टम के लिए मथुरादास माथुर मोर्चरी में रखवा दिया. थोड़ी देर बाद पता चला कि यह शव 3 दिन पहले लापता हुए हिमांशु प्रजापति का है.
मृतक हिमांशु के परिजन जब बच्चे का शव मिलने की खबर पा कर एमडीएम मोर्चरी पहुंचे और बच्चे का शव देखा. उन्होंने शिनाख्त कर दी कि शव हिमांशु का है.
3 दिन से लापता बच्चे का शव मिलने की खबर पा कर कुम्हारिया कुआं क्षेत्र में लोगों ने बाजार बंद कर दिया. महिलाओं ने सड़क जाम कर धरनाप्रदर्शन शुरू कर दिया. पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की जाने लगी.
पुलिस पिछले 3 दिनों से रातदिन हिमांशु की खोज में लगी थी, मगर उस का शव आज मिला. पुलिस कमिश्नर जोस मोहन ने सभी पुलिस अधिकारियों एवं थानेदारों की आपात बैठक बुला कर हर थाना क्षेत्र से एकएक टीम गठित कर करीब 10 पुलिस टीमों को अपनेअपने क्षेत्र के सीसीटीवी फुटेज जांचने को कहा.
कमिश्नर ने निर्देश दिया कि जल्द से जल्द हत्यारों को खोज निकाला जाए. हिमांशु का शव घर से 5 किलोमीटर दूर मिला था. उस का शव मिलने के बाद डीसीपी (पूर्व) धर्मेंद्र सिंह यादव ने जिले के अधिकारियों की बैठक ली और एडिशनल डीसीपी (पूर्व) भागचंद्र के नेतृत्व में अधिकारियों को जल्द से जल्द हत्यारों को पकड़ने की जिम्मेदारी सौंपी.
डीसीपी ने जांच अधिकारी को अपहरण वाले स्थान के आसपास के सीसीटीवी की फुटेज देखने व संदिग्ध वाहन और व्यक्ति का पता लगाने के निर्देश दिए. नारानाडा व बनाड़ थानाप्रभारी को शव मिलने वाली जगह के आसपास के फुटेज देखने व विश्लेषण करने पर लगाया गया.
डांगियावास थानाप्रभारी को अपहरण व शव मिलने वाले स्थान और समय के बीटीएस के अवलोकन की जिम्मेदारी सौंपी गई. महामंदिर थानाप्रभारी व टीम को सादे कपड़ों में मोर्चरी भेजा गया, ताकि परिजन व स्थानीय लोगों में शामिल संदिग्ध व्यक्ति का पता लगाया जा सके.
सहायक पुलिस आयुक्त (पूर्व) ने आटे के कट्टे की निर्माता कंपनी का पता लगाया, जो बोरानाडा में थी. कट्टे पर मिले बैच नंबर व तारीख से उस दुकान का पता चल गया, जहां वह कट्टा सप्लाई हुआ था. सब से महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी साइबर टीम को दी गई. उन्हें मृतक हिमांशु के दादा ओमप्रकाश के वाट्सऐप पर आए वर्चुअल नंबर का आईपी एड्रैस ट्रेस करने का जिम्मा दिया गया.
वर्चुअल नंबर होने के बावजूद साइबर टीम ने उसे ट्रेस कर लिया. यह नंबर मृतक हिमांशु के पड़ोस में रहने वाले किशन गोपाल सोनी का था. बता दें कि 15 मार्च, 2021 को हिमांशु के लापता होने के बाद अगले दिन 16 मार्च की रात 10 बज कर 20 मिनट पर हिमांशु के दादा ओमप्रकाश के वाट्सऐप पर वर्चुअल नंबर से 10 लाख फिरौती के मैसेज किए गए थे.
दादा ने संदेश नहीं पढ़े तो अपहर्ता ने 17 मार्च की सुबह 10 बज कर 23 मिनट पर पड़ोसी मुकेश फोफलिया को वर्चुअल नंबर से काल किया. उस ने कहा कि ओमप्रकाश को जो मैसेज भेजे गए हैं, वह पढ़ें.
साथ ही कहा कि 10 लाख रुपए ले कर चाचा मुरली नागौर रेलवे स्टेशन पर आ जाए. रुपए मिलने पर हिमांशु को सुरक्षित लौटाने का आश्वासन दिया गया था.
फिरौती न देने पर बच्चे की किडनी, हार्ट निकाल कर बेचने की धमकी दी गई थी. कहा गया था कि बच्चे के शरीर से अंग निकाल कर रुपए वसूल कर लेंगे. संदेश में धमकी दी गई थी कि पुलिस को सूचना नहीं देनी है.
अपहर्त्ताओं ने फिरौती के संदेशों में हिमांशु के पिता बंसीलाल व दादा के साथ चाचा मुरली का भी उल्लेख किया था. मुकेश फोफलिया ने यह जानकारी हिमांशु के परिजनों से साझा की.
ओमप्रकाश के मोबाइल पर भेजे मैसेज देखे गए. इसी दौरान हिमांशु का शव पुलिस को मिल गया था. तब मृतक हिमांशु के दादा ओमप्रकाश और पड़ोसी मुकेश ने पुलिस को इस की जानकारी दे दी थी.
साइबर टीम ने वर्चुअल नंबर ट्रेस कर के मैसेज और फोन करने वाले किशन गोपाल सोनी की पहचान कर ली. उधर आटे के कट्टे के संबंध में दुकानदार ने बताया कि ऐसा 25 किलो आटे का कट्टा हरेक तीसरे दिन किशन गोपाल सोनी ले जाता है.
मृतक हिमांशु का पड़ोसी किशन गोपाल का परिवार ठेले पर सब्जीपूड़ी बेचता है. किशन 25 किलो आटे का कट्टा लेता है. यह जानकारी मिलने पर पुलिस ने किशन सोनी के किराए के मकान में जा कर जांच की.
जांच के दौरान आटे के कट्टे और टिफिन सप्लाई करने वाला बैग मिले. ऐसे ही बैग व कट्टे में हिमांशु का शव बरामद हुआ था.
पुलिस टीम और साइबर टीम ने जांच की तो अपहरण व हत्या के शक की सुई किशन सोनी पर जा टिकी. हत्या के बाद किशन ने वर्चुअल नंबर हासिल कर फिरौती मांगी थी.
किशन सोनी ने 16 मार्च, 2021 को दिन भर वर्चुअल नंबर लेने के लिए मशक्कत की थी. नंबर हासिल होने पर उस ने उस नंबर को इंटरनेट से कनेक्ट किया और हत्या के बावजूद फिरौती मांगने के लिए दादा को मैसेज व मुकेश फोफलिया को काल की.
पुलिस का मानना है कि फिरौती मांगने के संदेश भ्रमित करने के लिए भेजे गए थे. खैर, जब पुलिस को यकीन हो गया कि किशन सोनी ही हिमांशु प्रजापति का अपहर्त्ता और हत्यारा है, तब पुलिस ने एमडीएम अस्पताल की मोर्चरी में सब से आगे रह कर प्रदर्शन कर रहे सोनी को धर दबोचा.
किशन मोर्चरी के बाहर धरनेप्रदर्शन में पुलिस प्रशासन के खिलाफ जम कर नारेबाजी और आरोपी को पकड़ने का नाटक कर रहा था. जब पुलिस ने उसे दबोचा तो किशन ने अपना मोबाइल वहीं पटक कर पैर से तोड़ना चाहा. मगर पुलिस पहले ही उस की कुंडली खंगाल चुकी थी. पुलिस ने किशन सोनी को हिरासत में लिया और खांडा फलसा थाने ला कर पूछताछ की.
पुलिस के आला अधिकारी भी पूछताछ करने पहुंचे. आरोपी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. किशन सोनी ने ही हिमांशु प्रजापति की अपने घर में 15 मार्च, 2021 की दोपहर बाद साढ़े 3 बजे पहले गला घोंट कर और फिर गमछे से रस्सी बना कर उसे गले में लपेटा और कस कर उसे मार डाला था. हत्या के बाद करीब एक घंटे तक वह शव के पास बैठा रहा और शव को ठिकाने लगाने की योजना बनाता रहा.
इस के बाद करीब पौने 5 बजे उस ने हिमांशु का शव आटे के कट्टे में डाला और नीचे तहखाने में ले जा कर रख दिया ताकि उस के परिवार को पता न चले.
शाम को 5 बजे किशन की मां और बहन जब पूरीसब्जी बेच कर घर लौटीं तब किशन शव वाले कट्टे के ऊपर टिफिन सप्लाई करने वाले थैले डाल कर मोटरसाइकिल पर वहां से 5 किलोमीटर दूर रातानाडा थानाक्षेत्र के आईजी के बंगले के पास पोलो मैदान के खाली नाले में सुनसान स्थान पर डाल आया.
उस ने हिमांशु की हत्या फिरौती वसूलने के लिए की थी. आरोपी किशन ने बताया कि उसका परिवार गरीब है और रोटियां बेच कर गुजारा करता है. आरोपी औनलाइन जुआ खेलता है. वह जुए में करीब 60 हजार रुपए हार गया था. हिमांशु 3 बजे खेलता हुआ जब अचानक उस के घर आया तो उस ने उसे आधा घंटा बहलाफुसला कर रोका.
बाद में जब हिमांशु घर जाने की जिद करने लगा तब उस ने हाथ आए शिकार को मौत की नींद सुला दिया. हिमांशु के हत्यारे के पकड़े जाने की खबर के बाद कुम्हारियां कुआं क्षेत्र में प्रदर्शन बंद हुआ. पुलिस ने मैडिकल बोर्ड से मृतक के शव का पोस्टमार्टम करा कर शव परिजनों को सौंप दिया.
खांडा फलसा क्षेत्र में हिमांशु की हत्या से लोग सन्न थे. मृतक के घर पर मातम छाया था. परिजनों ने मृतक का अंतिम संस्कार कर दिया. वहीं पुलिस ने आरोपी किशन गोपाल सोनी की गिरफ्तारी के बाद उस के खिलाफ खांडा फलसा थाने में अपहरण कर के फिरौती मांगने और हत्या करने का मामला दर्ज कर लिया.
पुलिस ने हिमांशु के हत्यारोपी किशन गोपाल सोनी निवासी कुम्हारिया कुआं, थाना खांडा फलसा, जोधपुर को कोर्ट में पेश कर 2 दिन के रिमांड पर ले कर पूछताछ की. पूछताछ में जो कहानी प्रकाश में वह आई, वह इस प्रकार है.
राजस्थान के बीकानेर शहर के सुनारों की गवार, बागड़ी मोहल्ला से सालों पहले सूरजरत्न सोनी जोधपुर आ बसे थे. सूरजरत्न ठेले पर सब्जीपूड़ी बेचते थे. इसी से अपने बीवीबच्चों का पालनपोषण करते थे. सूरजरत्न के बेटे किशन गोपाल ने एसी फ्रिज रिपेयरिंग का काम सीख लिया था. इस काम से उसे अच्छी आय होती थी.
सूरजरत्न की बीवी और बेटी उस के साथ सब्जीपूड़ी के ठेले पर उस की मदद करती थी. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि कोरोना काल आ गया. किशन का कामधंधा ठप हो गया. कई महीने तक कामधंधा बंद रहा. भूखों मरने की नौबत आ गई. किशन दिन भर मोबाइल में आंखें गड़ाए रहता. वह मोबाइल में दिन भर गेम खेलता रहता था. वह मोबाइल हैकर बन गया था.
उस के मोबाइल में पुलिस को ऐसेऐसे ऐप मिले जो मोबाइल हैक करने में प्रयुक्त होते हैं. किशन मोबाइल में औनलाइन जुआ खेलता था. इस से वह 50-60 हजार का कर्जदार हो गया था. रुपए मांगने वाले किशन को परेशान करने लगे. वह किसी भी तरह रुपए पाने की फिराक में था.
तभी 15 मार्च, 2021 को करीब 3 बजे खेलतेखेलते हिमांशु उर्फ लाडू उस के घर आ गया. मातापिता व बहन ठेले पर थे. किशन घर पर अकेला था. उस के शैतानी दिमाग ने साजिश रची और उस ने हिमांशु को कमरे में बंधक बना लिया.
मासूम हिमांशु रोनेचिल्लाने लगा तो किशन ने हाथों से उस का गला दबाया. वह बेहोश हो गया तो कपड़े से उस का गला घोंट कर मार डाला. उस ने शव आटे के कट्टे में बांधा और टिफिन सप्लई वाले बैग में डाला.
फिर अकेला ही मोटरसाइकिल पर रख दिनदहाड़े आईजी बंगले के पास जा कर सूखे नाले में फेंक आया. कुम्हारिया कुआं से ले कर जालोरी गेट, रातानाडा व पोलो मैदान तक के सीसीटीवी फुटेज में किशन के बयान की पुष्टि हुई.
उस ने यूट्यूब से वर्चुअल नंबर खोजे. शव ठिकाने लगाने के बाद वर्चुअल नंबर लेने के लिए अमेरिका का नंबर चयन किया. मोबाइल से ही पेटीएम से भुगतान किया. वर्चुअल नंबर मिलने पर उसे इंटरनेट से जोड़ कर वाट्सऐप डाउनलोड किया और उसी से उस ने मृतक के दादा ओमप्रकाश को मैसेज भेजे और पड़ोसी मुकेश फोफलिया को फोन किया.
किशन सोनी ने वर्चुअल नंबर लेने के बाद टैबलेट में वाट्सऐप इंस्टाल किया था. उस ने अपने मोबाइल के इंटरनेट से टैबलेट कनेक्ट कर मृतक के दादा को फिरौती के लिए वाट्सऐप मैसेज भेजे थे.
आरोपी किशन ने सुनियोजित तरीके से साजिश रची थी. उस के टैबलेट में कई ऐसे ऐप इंस्टाल मिले. उसे भ्रम था कि पुलिस वर्चुअल नंबर से आईडी तो ट्रेस कर लेती है, लेकिन इन ऐप से लोकेशन व आईपी एड्रेस लगातार बदलते रहेंगे और वह पकड़ में नहीं आएगा. मगर उस की यह होशियारी धरी रह गई. वह शिकंजे में आ ही गया.
आरोपी किशन के खिलाफ आरोपों को और मजबूत करने के लिए पुलिस के आग्रह पर एक बार फिर एफएसएल टीम घटनास्थल पर आई. उस ने किशन गोपाल सोनी के घर की जांच की और साक्ष्य जुटाए.
पुलिस रिमांड पर चल रहे किशन की निशानदेही पर पुलिस ने टैबलेट, शव छिपाने में प्रयुक्त कट्टे का हूबहू कट्टा, टिफिन बैग, हेलमेट व बाइक बरामद की.
हिमांशु का मुंह बंद कर के किशन उसे अलमारी में छिपाना चाहता था मगर हिमांशु के घर जाने की जिद करने पर उस ने उसे मार डाला और 5 बजे तक शव फेंक कर घर लौट आया. नहा कर किशन बाहर निकल गया. उस के बाद हिमांशु के परिजन उसे तलाशते मिले. किशन भी उन के साथ हिमांशु की तलाश में जुट गया.
हिमांशु के परिवार वाले इस आस में थे कि वह कहीं खेल रहा होगा जबकि किशन सोनी उस की हत्या कर शव तक ठिकाने लगा चुका था. कुछ दिनों से किशन 60 हजार रुपए का कर्ज उतारने के लिए अपहरण और फिरौती की योजना बना रहा था कि हिमांशु उस के घर आ गया था.
बस किशन ने आगापीछा सोचे बगैर उसे दबोच लिया और मार डाला. किशन को विश्वास था कि हिमांशु की फिरौती के 10 लाख रुपए उस के परिवार वाले उसे दे देंगे. मगर वह अपने ही बुने जाल में फंस गया.
रिमांड अवधि खत्म होने पर 20 मार्च, 2021 को पुलिस ने किशन को कोर्ट में पेश कर 3 दिन के रिमांड पर फिर लिया. पूछताछ पूरी होने पर किशन को 23 मार्च को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
गुरुदेव ने रात को भास्करानंद को एक लंबा भाषण पिला दिया था.‘‘नहीं, भास्कर नहीं, तुम संन्यासी हो, युवाचार्य हो, यह तुम्हें क्या हो गया है. तुम संध्या को भी आरती के समय नहीं थे. रात को ध्यान कक्ष में भी नहीं आए? आखिर कहां रहे? आगे आश्रम का सारा कार्यभार तुम्हें ही संभालना है.’’
भास्करानंद बस चुप रह गए. रात को लेटते ही श्यामली का चेहरा उन की आंखों के सामने आ गया तो वे बेचैन हो उठे.
आंख बंद किए स्वामी भास्करानंद सोने का अथक प्रयास करते रहे पर आंखों में बराबर श्यामली का चेहरा उभर आता.
खीझ कर भास्करानंद बिस्तर से उठ खड़े हुए. दवा के डब्बे से नींद की गोली निकाली. पानी के साथ निगली और लेट गए. नींद कब आई पता नहीं. जब आश्रम के घंटेघडि़याल बज उठे, तब चौंक कर उठे.
‘लगता है आज फिर देर हो गई है,’ वे बड़- बड़ाए.
पूजा के समय भास्करानंद मंदिर में पहुंचे तो गुरुदेव मुक्तानंद की तेज आंखें उन के ऊपर ठहर गईं, ‘‘क्यों, रात सो नहीं पाए?’’
भास्करानंद चुप थे.
‘‘रात को भोजन कम किया करो,’’ गुरुदेव बोले, ‘‘संन्यासी को चाहिए कि सोते समय वह टीवी से दूर रहे. तुम रात को भी उधर अतिथिगृह में घूमते रहते हो, क्यों?’’
भास्करानंद चुप रहे. वे गुरुदेव को क्या बताते कि श्यामली का रूपसौंदर्य उन्हें इतना विचलित किए हुए है कि उन्हें नींद ही नहीं आती.
गुरुदेव से बिना कुछ कहे भास्करानंद मंदिर से बाहर आ गए. तभी उन्हें आश्रम में श्यामली आती हुई दिखाई दी. उस की थाली में गुड़हल के लाल फूल रखे थे. उस ने अपने घने काले बालों को जूड़े में बांध कर चमेली की माला के साथ गूंथा था. एक भीनीभीनी खुशबू उन के पास से होती हुई चली जा रही थी. उन्हें लगा कि वे अभी, यहीं बेसुध हो जाएंगे.
‘‘स्वामीजी प्रणाम,’’ श्यामली ने भास्करानंद के चरणों में झुक कर प्रणाम किया तो उस के वक्ष पर आया उभार अचानक भास्करानंद की आंखों को स्फरित करता चला गया और वे आंखें फाड़ कर उसे देखते रह गए.
श्यामली तो प्रणाम कर चली गई लेकिन भास्करानंद सर्प में रस्सी को या रस्सी में सर्प के आभास की गुत्थी में उलझे रहे.
विवेक चूड़ामणि समझाते हुए गुरुदेव कह रहे थे कि यह संसार मात्र मिथ्या है, निरंतर परिवर्तनशील, मात्र दुख ही दुख है. विवेक, वैराग्य और अभ्यास, यही साधन है. इस विष से बचने में ही कल्याण है. पर भास्करानंद का चित्त अशांत ही रहा. उस रात भास्करानंद ने गुरुजी से अचानक पूछा था.
‘‘गुरुजी, आचार्य कहते हैं, यह संसार विवर्त है, जो है ही नहीं. पर व्यवहार में तो मच्छर भी काट लेता है, तो तकलीफ होती है.’’
‘‘हूं,’’ गुरुजी चुप थे. फिर वे बोले, ‘‘सुनो भास्कर, तुम विवेकानंद को पढ़ो, वे तुम्हारी ही आयु के थे जब शिकागो गए थे. गुरु के प्रति उन जैसी निष्ठा ही अपरिहार्य है.’’
‘‘जी,’’ कह कर भास्कर चुप हो गए.
घर याद आया. जहां खानेपीने का अभाव था. भास्कर आगे पढ़ना चाह रहा था, पर कहीं कोई सुविधा नहीं. तभी गांव में गुरुजी का आना हुआ. उन से भास्कर की मुलाकात हुई. उन्होेंने भास्कर को अपनी किताब पढ़ने को दी. उस के आगे पढ़ने की इच्छा जान कर, उसे आश्रम में बुला लिया. अब वह ब्रह्मचारी हो गया था.
भास्कर का कसा हुआ बदन व गोरा रंग, आश्रम के सुस्वादु भोजन व फलाहार से उस की देह भी भरने लग गई.
एक दिन गुरुजी ने कहा, ‘‘देखो भास्कर, यह इतना बड़ा आश्रम है, इस के नाम खेती की जमीन भी है. यहां मंत्री भी आते हैं, संतरी भी. यह सब इस आश्रम की देन है. यह समाज अनुकरण पर खड़ा है. मैं आज पैंटशर्ट पहन कर सड़क पर चलूं तो कोई मुझे नमस्ते भी नहीं करेगा. यहां भेष पूजा जाता है.’’
भास्कर चुप रह जाता. वेदांत सूत्र पढ़ने लगता. वह लघु सिद्धांत कौमुदी तो बहुत जल्दी पढ़ गया. संस्कृत के अध्यापक कहते कि अच्छे संन्यासी के लिए अच्छा वक्ता होना आवश्यक है और अच्छे वक्ता के लिए संस्कृत का ज्ञान आवश्यक है.
कर्नाटक की तेलंगपीठ के स्वामी दिव्यानंद भी आए थे. वे कह रहे थे, ‘‘तुम अंगरेजी का ज्ञान भी लो. दुनिया में नाम कमाना है तो अंगरेजी व संस्कृत दोनों का ज्ञान आवश्यक है. धाराप्रवाह बोलना सीखो. यहां भी ब्रांड ही बिकता है. जो बड़े सपने देखते हैं वे ही बड़े होते हैं.’’
भास्कर अवाक् था. स्वामीजी की बड़ी इनोवा गाड़ी पर लाल बत्ती लगी हुई थी. पुलिस की गाड़ी भी साथ थी. उन्होंने बहुत पहले अपने ऊपर हमला करवा लिया था, जिस में उन की पुरानी एंबैसेडर टूट गई थी. सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया था. उन के भक्तों ने सरकार पर दबाव बनाया, उन्हें सुरक्षा मिल गई थी. इस से 2 लाभ, आगे पुलिस की गाड़ी चलती थी तो रास्ते में रुकावट नहीं, दूसरे, इस से आमजन पर प्रभाव पड़ता है. भेंट जो 100 रुपए देते थे, वे 500 देने लग गए.
भास्कर समझ रहा था, जितना सीखना चाहता था, उतना ही उलझता जाता था. स्वामीजी के हाथ में हमेशा अंगरेजी के उपन्यास रहते या मोटीमोटी किताबें. वे पढ़ते तो कम थे पर रखते हमेशा साथ थे.
उस दिन उन से पूछा तो बोले, ‘‘बेटा, ये सरकारी अफसर, कालेज के प्रोफेसर, सब इसी अंगरेजी भाषा को जानते हैं. जो संन्यासी अंगरेजी जानता है उस के ये तुरंत गुलाम बन जाते हैं. समझो, विवेकानंद अगर बंगला भाषा बोलते और अमेरिका जाते तो चार आदमी भी उन्हें नहीं मिलते. अंगरेजी भाषा ने ही उन्हें दुनिया में पूजनीय बनाया. तुम्हारे ओशो भी इन्हीं भक्तों की कृपा से दुनिया में पहुंचे.
योग साधना से नहीं. किताबें तो वे पतंजलि पर भी लिख गए. खूब बोले भी पर खुद दुनिया भर की सारी बीमारियों से मरे. कभी किसी ने उन से पूछा कि आप ने जिस योग साधना की बातें बताईं, उन्हें आप ने क्यों नहीं अपनाया और आप का शरीर स्वस्थ क्यों नहीं रहा?
‘‘बातें हमेशा बात करने के लिए होती हैं. दूसरों को चलाओ, तुम चलने लगे तो तकलीफ होगी. इस जनता पर अंगरेजी का प्रभाव पड़ता है. तुम सीखो, तुम्हारी उम्र है.’’
भास्कर पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक गांव से आया था. गुरुजी उसे योग विद्या सिखा रहे थे. ब्रह्मसूत्र पढ़वा रहे थे. स्वामी दिव्यानंद उसे अंगरेजी भाषा में दक्ष करना चाह रहे थे.
बनारस में उस के मित्र जो देहात से आए थे उन्होंने एम.बी.ए. में दाखिला लिया था. दाखिला लेते ही रात को सोते समय भी वे मुश्किल से टाई उतारते थे. वे कहते थे, हमारी पहचान ड्रेसकोड से होती है.
स्वामीजी कह रहे थे, ‘‘संन्यासी की पहचान उस की मुद्रा है. उस का ड्रेसकोड है. उत्तरीय कैसे डाला जाए, सीखो. शाल कैसे ओढ़ते हैं, सीखो. रहस्य ही संन्यासी का धन है. जो भी मिलने आए उसे बाहर बैठाओ. जब पूरी तरह व्यवस्थित हो जाओ तब उसे पास बुलाओ. उसे लगे कि तुम गहरे ध्यान में थे, व्यस्त थे. उसे बस देखो, उसे बोलने दो, वह बोलताबोलता अपनी समस्या पर आ जाएगा.
उसे वहीं पकड़ लो. देखो, हर व्यक्ति सफलता चाहता है. उसी के लिए उस का सबकुछ दांव पर लगा होता है. तुम्हें क्या करना है, उस से अच्छा- अच्छा बोलो. यहां 10 आते हैं, 5 का सोचा हो जाता है. 5 का नहीं होता. जिन 5 का हो जाता है, वे अगले 25 से कहते हैं. फिर यहां 30 आते हैं. जिन का नहीं हुआ वे नहीं आएं तो क्या फर्क पड़ता है. सफलता की बात याद रखो, बाकी भूल जाओ.’’
भास्कर यह सब सुन कर अवाक् था.
स्वामी विद्यानंद यहां आए थे. गुरुजी ने उन के प्रवचन करवाए. शहर में बड़ेबड़े विज्ञापनों के बैनर लगे. उन के कटआउट लगे. काफी भक्तजन आए. भास्कर का काम था कि वह सब से पहले 100 व 500 रुपए के कुछ नोट उन के सामने चुपचाप रख आता था. वहां इतने रुपयों को देख कर, जो भी उन से मिलने आता, वह भी 100 व 500 रुपए से कम भेंट नहीं देता था.
भास्कर समझ गया था कि ग्लैमर और करिश्मा क्या होता है. ‘ग्लैमर’ दूसरे की आंख में आकर्षण पैदा करना है. स्वामीजी के कासमैटिक बौक्स में तरहतरह की क्रीम रखी थीं. वे खुशबू भी पसंद करते थे. दक्षिणी सिल्क का परिधान था. आने वाला उन के सामने झुक जाता था. पर भास्कर का मन स्वामी दिव्यानंद समझ नहीं पाए.
श्यामली के सामने आते ही भास्कर ब्रह्मसूत्र भूल जाता. वह शंकराचार्य के स्थान पर वात्स्यायन को याद करने लग जाता.
‘नहीं, भास्कर नहीं,’ वह अपने को समझाता. क्या मिलेगा वहां. समाज की गालियां अलग. कोई नमस्कार भी नहीं करेगा. 4-5 हजार की नौकरी. तब क्या श्यामली इस तरह झुक कर प्रणाम करेगी. इसीलिए भास्कर श्यामली को देखते ही आश्रम के पिछवाड़े के बगीचे में चला जाता. वह श्यामली की छाया से भी बचना चाह रहा था.
श्यामली अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. संस्कृत में उस ने एम.ए. किया था. रामानुजाचार्य के श्रीभाष्य पर उस ने पीएच.डी. की है तथा शासकीय महाविद्यालय में प्राध्यापिका थी. मातापिता दोनों शिक्षण जगत में रहे थे.
धन की कोई कमी नहीं. पिता ने आश्रम के पास के गांव में 20 बीघा कृषि योग्य भूमि ले रखी थी. वहां वे अपने फार्म पर रहा करते थे. श्यामली के विवाह को ले कर मां चिंतित थीं. न जाने कितने प्रस्ताव वे लातीं, पर श्यामली सब को मना कर देती. श्यामली तो भास्कर को ही अपने समीप पाती थी.
भास्कर मानो सूर्य हो, जिस का सान्निध्य पाते ही श्यामली कुमुदिनी सी खिल जाती थी. मां ने बहुत समझाया पर श्यामली तो मानो जिद पर अड़ी थी. वह दिन में एक बार आश्रम जरूर जाती थी.
उस दिन भास्कर दिन भर बगीचे में रहा था. वह मंदिर न जा कर पंचवटी के नीचे दरी बिछा कर पढ़ता रहा. ध्यान की अवस्था में भास्कर को लगा कि उस के पास कोई बैठा है.
‘‘कौन?’’ वह बोला.
पहले कोई आवाज नहीं, फिर अचानक तेज हंसी की बौछार के साथ श्यामली बोली, ‘‘मुझ से बच कर यहां आ गए हो संन्यासी?’’
‘‘श्यामली, मैं संन्यासी हूं.’’
‘‘मैं ने कब कहा, नहीं हो. पर मैंने श्रीभाष्य पर पीएच.डी. की है. रामानुजाचार्य गृहस्थ थे. वल्लभाचार्य भी गृहस्थ थे. उन के 7 पुत्र थे. उन की पीढ़ी में आज भी सभी महंत हैं. कहीं कोई कमी नहीं है. पुजापा पाते हैं. कोठियां हैं, जो महल कहलाती हैं. क्या वे संत नहीं हैं?’’
‘‘तुम चाहती क्या हो?’’
‘‘तुम्हें,’’ श्यामली बोली, ‘‘भास्कर, तुम मेरे लिए ही यहां आए हो. तुम जिस परंपरा में जा रहे हो वहां वीतरागता है, पलायन है. देखो, अध्यात्म का संन्यास से कोई संबंध नहीं है. यह पतंजलि की बनाई हुई रूढि़ है, जिसे बहुत पहले इसलाम ने तोड़ दिया था. हमारे यहां रामानुज और वल्लभाचार्य तोड़ चुके थे. गृहस्थ भी संन्यासी है अगर वह दूसरे पर आश्रित नहीं है. अध्यात्म अपने को समझने का मार्ग है. आज का मनोविज्ञान भी यही कहता है पर तुम्हारे जैसे संन्यासी तो पहले दिन से ही दूसरे पर आश्रित होते हैं.’’
‘‘तुम चाहती क्या हो?’’
‘‘जो तुम चाहते हो पर कह नहीं पाते हो, तभी तो मना कर रहे हो. यहां छिप कर बैठे हो?’’
भास्कर चुप सोचता रहा कि गुरुजी कह रहे थे कि इस साधना पथ पर विकारों को प्रश्रय नहीं देना है.
‘‘मैं तुम्हें किसी दूसरे की नौकरी नहीं करने दूंगी,’’ श्यामली बोली, ‘‘हमारा 20 बीघे का फार्म है. वहां योगपीठ बनेगा. तुम प्रवचन दो, किताबें लिखो, जड़ीबूटी का पार्क बनेगा. वृद्धाश्रम भी होगा, मंदिर भी होगा, एक अच्छा स्कूल भी होगा. हमारी परंपरा होगी. एक सुखी, स्वस्थ परिवार.
‘‘भास्कर, रामानुज कहते हैं चित, अचित, ब्रह्म तीनों ही सत्य हैं, फिर पलायन क्यों? हम दोनों मिल कर जो काम करेंगे, वह यह मठ नहीं कर सकता. यहां बंधन है. हर संन्यासी के बारे में सहीगलत सुना जाता है. तुम खुद जानते हो. भास्कर, मैं तुम से प्यार करती हूं. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. मैं तुम्हारा बंधन नहीं बनूंगी. तुम्हें ऊंचे आकाश में जहां तक उड़ सको, उड़ने की स्वतंत्रता दूंगी,’’ इतना कह श्यामली भास्कर से लिपट गई थी. वृक्ष और लता दोनों परस्पर एक हो गए थे. उस पंचवटी के घने वृक्षों की छाया में, जैसे समय भी आ कर ठहर गया हो. श्यामली ने भास्करानंद को अपनी बांहों के घेरे में ले लिया था.
दोनों की सांसें टकराईं तो भास्कर सोचने लगा कि स्त्री के बिना पुरुष अधूरा है.
पंचवटी के घने वृक्षों की छाया में दोनों शरीर सुख के अलौकिक आनंद से सराबोर हो रहे थे. गहरी सांसों के साथ वे हर बार एक नई ऊर्जा में तरंगित हो रहे थे.
थोड़ी देर बाद श्यामली बोली, ‘‘भास्कर, तुम नहीं जानते, इस मठ के पूर्व गुरु की प्रेमिका की बेटी ही करुणामयी मां हैं?’’
‘‘नहीं?’’
‘‘यही सच है.’’
‘‘नहीं, यह सुनीसुनाई बात है.’’
‘‘तभी तो पूर्व महंतजी ने गद्दी छोड़ी थी और अपनी संपत्ति इन को दे गए, अपनी बेटी को…’’
भास्कर चुप रह गया था. यह उस के सामने नया ज्ञान था. क्या श्यामली सही कह रही है?
‘‘भास्कर, यह हमारी जमीन है, हम यहां पांचसितारा आश्रम बनाएंगे. जानते हो मेरी दादी कहा करती थीं, ‘रोटी खानी शक्कर से, दुनिया ठगनी मक्कर से’ दुनिया तो नाचने को तैयार बैठी है, इसे नचाने वाला चाहिए. आश्रम ऐसा हो जहां युवक आने को तरसें और बूढ़े जिन के पास पैसा है वे यहां आ कर बस जाएं. मैं जानती हूं कि सारी उम्र प्राध्यापकी करने से कितना मिलेगा? तुम योग सिखाना, वेदांत पर प्रवचन देना, लोगों की कुंडलिनी जगाना, मैं आश्रम का कार्यभार संभाल लूंगी, हम दोनों मिल कर जो दुनिया बसाएंगे, उसे पाने के लिए बड़ेबड़े महंत भी तरसेंगे.’’
श्यामली की गोद में सिर रख कर भास्कर उन सपनों में खो गया था जो आने वाले कल की वास्तविकता थी.