मसाज पार्लर की आड़ में जिस्म का धंधा – भाग 2

‘‘एक महत्त्वपूर्ण जानकारी हाथ लगी है सर, सोचा आप के काम आएगी इसलिए आ गया.’’ राजवीर बोलते हुए एसएचओ तोमर के सामने आ गया और उन के सामने बैठ गया.

‘‘बताओ, वह कौन सी महत्त्वपूर्ण जानकारी है?’’ रविंद्र तोमर ने राजवीर के चेहरे पर नजरें जमा कर जिज्ञासा भरे स्वर में पूछा.

‘‘सर, पहाड़गंज में देशबंधु गुप्ता रोड पर टी-229 में एक गोल्डन यूनिसैक्स सैलून ऐंड स्पा है. उस स्पा में मालिश की आड़ में देह व्यापार का धंधा किया जा रहा है.’’

एसएचओ ने चौंक कर राजवीर को कुछ पल देखते रहे, फिर गंभीर स्वर में पूछा, ‘‘खबर पक्की या…’’

‘‘खबर पक्की है सर, इस की सत्यता का प्रमाण यह है कि मैं ने तालाब से मछली पकड़ने के लिए 5 सौ रुपए खर्च किए हैं.’’

‘‘यानी तालाब में डुबकी लगा कर आ रहे हो?’’ एसएचओ तोमर रहस्य भरे स्वर में बोले और हंस पड़े, ‘‘चिंता मत करो, तुम्हें 5 सौ रुपए मिल जाएंगे, साथ में तुम्हारा ईनाम भी.’’

‘‘थैंक्यू सर,’’ राजवीर बोला, ‘‘मैं ने उसे स्पा को चलाने वाले व्यक्ति का नाम भी मालूम कर लिया है.’’

‘‘क्या नाम है स्पा मालिक का?’’

‘‘मोहम्मद तसलीम नाम है सर, यदि स्पा पर रेड डाली जाए तो वहां मालिश की आड़ में देह परोसने वाली युवतियों के साथ उन युवकों को भी पकड़ा जा सकता है, जो वहां काम कर रहे हैं और वह युवक भी पकड़ में आ सकते हैं, जो स्पा में मालिश करवाने के बहाने मौजमस्ती करने आए हुए हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ रविंद्र कुमार तोमर ने जेब से पर्स निकाल कर 5-5 सौ रुपए के दो नोट निकाल कर राजवीर की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह लो तुम्हारा ईनाम.’’

राजवीर ने नोट ले कर उन्हें सैल्यूट किया और उन के कक्ष से बाहर निकल गया.

एसएचओ तोमर के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण खबर थी. उन्होंने तुरंत डीसीपी (मध्य जिला) श्वेता चौहान को फोन कर के गोल्डन यूनिसैक्स सैलून ऐंड स्पा में देह मालिश की आड़ में चल रहे देह व्यापार की जानकारी दी.

डीसीपी श्वेता चौहान ने इस जानकारी को गंभीरता से लेते हुए स्पैशल स्टाफ के एसीपी अजय सिंह के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर के उन्हें रात में ही गोल्डन यूनिसैक्स सैलून ऐंड स्पा पर रेड डालने का आदेश दे दिया.

एसएचओ श्री तोमर के नेतृत्व में डीसीपी ने जिस टीम का गठन किया था, उस में एसीपी अजय सिंह, स्पैशल स्टाफ के इंचार्ज शैलेंद्र सिंह, एसएचओ (पहाड़गंज) रविंद्र कुमार तोमर, एसआई रवि चौधरी, मुरीजा, एएसआई राकेश कुमार, कैलाश, शिवराज और एसआई जे.एस. त्यागी (ड्राइवर), हैडकांस्टेबल परमपाल और महिला कांस्टेबल पायल को शामिल किया गया था.

यह पुलिस टीम रात में ही प्राइवेट गाडि़यों द्वारा पहाड़गंज के देशबंधु गुप्ता रोड पर स्थित गोल्डन यूनिसैक्स सैलून एंड स्पा के लिए रवाना हो गई.

एसएचओ रविंद्र कुमार तोमर ने हैडकांस्टेबल करमपाल को अपने हस्ताक्षरयुक्त 4 नोट 5-5 सौ रुपए के दे कर अच्छे से समझा कर स्पा के अंदर डिकोय कस्टमर बना कर भेज दिया.

करमपाल किसी मनचले युवक की तरह स्पा में घुसा और सीधे स्पा के रिसैप्शन काउंटर पर पहुंच गए. रिसैप्शन काउंटर पर एक युवक बैठा हुआ था. वह करमपाल को देख कर अभिवादन करते हुए खड़ा हो गया, ‘‘आप का हमारे स्पा मसाज पार्लर में स्वागत है. कहिए, आप की क्या सेवा की जाए?’’

करमपाल ने काउंटर पर झुक कर पहले इधरउधर देखा जैसे इत्मीनान कर लेना चाहता हो कि उन की बातें कोई दूसरा नहीं सुन रहा है. इत्मीनान हो जाने पर उस ने बहुत दबी हुई आवाज में कहा, ‘‘सर्दी का मौसम है श्रीमान, मसाज के लिए कपड़े उतारना क्या ठीक रहेगा?’’

‘‘हमारे केबिन में सर्दी का क्या काम जनाब, जवान और खूबसूरत युवती की गरम हथेलियां जब आप की देह पर फिसलेंगी तो आप का शरीर खुदबखुद गरम हो जाएगा.’’ रिसैप्शनिस्ट ने रहस्यमयी अंदाज में कहते हुए करमपाल की हथेली दबा दी, ‘‘वैसे आप को यदि अधिक सर्दी लगती है तो उसे दूर करने का साधन भी है हमारे यहां.’’

‘‘रियली!’’ करमपाल खुश होते हुए बोला, ‘‘क्या रूम हीटर लगा रखे हैं आप ने?’’

‘‘अरे नहीं जनाब,’’ करमपाल की बात पर रिसैप्शनिस्ट हंस पड़ा, ‘‘रूम हीटर से भी अधिक गरमी देने वाली कमसिन लड़कियां हैं हमारे यहां.’’

‘‘ओह! अब समझा मैं.’’ करमपाल मुसकराया, ‘‘क्या मुझे उन का दीदार करने का मौका मिलेगा?’’

‘‘बेशक, आप जैसे कस्टमरों को खुश करने की पूरी कोशिश रहती है हमारी. आप दीदार करेंगे, पसंद करेंगे तभी तो हमारा स्पा चलेगा.’’ रिसैप्शनिस्ट ने

कहने के साथ काउंटर पर लगी कालबेल बजा दी.

अंदर के रूम से एक खूबसूरत युवती निकल कर वहां आ गई.

‘‘आप ने याद किया सर?’’ उस ने पतलेपतले होंठ हिलाए.

‘‘आलिया, तुम मोहिनी को बुला कर लाओ.’’ रिसैप्शनिस्ट ने कहा.

आलिया अंदर गई और कुछ ही देर में मोहिनी को साथ ले कर बाहर आ गई.

दोनों युवतियां जवान और सुंदर थीं. उन्होंने उस वक्त जो कपड़े पहने हुए थे, उन से उन के अर्द्धनग्न बदन दिखाई दे रहा था. दोनों ने मैनेजर की ओर देखा.

रिसैप्शनिस्ट ने करमपाल को इशारा किया, ‘‘आप पसंद कर लीजिए साहब.’’

करमपाल ने पलट कर दोनों युवतियों को गहरी नजरों से परखा. उन्हें मोहिनी अधिक आकर्षक लगी तो उस की ओर इशारा कर दिया, ‘‘इन की कीमत बोलिए आप?’’

‘‘मसाज और उस के साथ मौजमस्ती करने के 2 हजार रुपए देने पड़ेंगे आप को,’’ रिसैप्शनिस्ट ने बताया.

‘‘ठीक है,’’ बगैर किसी सौदेबाजी के करमपाल ने कहा और पैंट की जेब से अपना पर्स निकाल कर 5-5 सौ के 4 नोट निकाल कर रिसैप्शनिस्ट की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘मैं मसाज नहीं करवाऊंगा, मुझे केवल…’’

‘‘समझगया सर, जो सेवा आप चाहते हैं वही मिलेगी,’’ रिसैप्शनिस्ट मुसकरा कर बोला, ‘‘लेकिन फिर भी लगेगा 2 हजार ही.’’

‘‘2 हजार में सौदा बुरा नहीं है,’’ करमपाल ने कहा और मोहिनी की ओर बढ़ गया.

मोहिनी उसे साथ ले कर एक केबिन में आ गई. उस केबिन में एक पलंग पड़ा हुआ था, जिस पर मुलायम सफेद रंग का गद्दा बिछा था, सिरहाने की ओर 2 तकिए बड़े सलीके से रखे गए थे.

करमपाल ने केबिन का दरवाजा बंद कर लिया और मोहिनी के गले में बाहें डाल कर उसे अपनी ओर खींचा तो मोहिनी उसे धकेल कर थोड़ी बेरुखी से बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हैं आप?’’

‘‘मैं ने तुम्हारे साथ बैठने की कीमत अदा की है मिस मोहिनी.’’

‘‘वह कीमत तो मसाज की थी, मेरे साथ बैठोगे तो उस की अलग से फीस देनी होगी.’’ मोहिनी ने बताया.

‘‘यह तो धोखा है. आप के मैनेजर को मैं ने पूरे 2 हजार दिए हैं, इस में मसाज के साथ तुम्हारी देह कीमत भी जोड़ दी गई है.’’

‘‘नहीं, मैं एक्स्ट्रा चार्ज लूंगी.’’ मोहिनी रूखी आवाज में बोली, ‘‘अगर आप मसाज करवाना चाहते हैं तो कहिए, मैं मसाज करने को तैयार हूं.’’

मोहिनी की इस बात पर करमपाल नाराज हो गया.

‘‘मैं मैनेजर से बात करता हूं,’’ वह केबिन का दरवाजा खोल कर बोला.

12 लाख के पैकेज वाले बाल चोर – भाग 2

इस के अलावा पुलिस की सर्विलांस टीम 19-20 जून की रात के डंप डाटा की जांच में जुट गई. पुलिस ने सब से पहले यह पता लगाया कि काम्या पैलेस का इलाका किनकिन मोबाइल टावरों के संपर्क में आता है. इस के बाद यह जानकारी हासिल की गई कि उस टावर के संपर्क में उस रात कितने फोन थे. पता चला कि उस रात कई हजार फोन वहां के फोन टावरों के संपर्क में थे. इसी को डंप डाटा कहा जाता है.

पुलिस को पता लग चुका था कि चोरी करने वाले लड़के मध्य प्रदेश के हो सकते हैं, इसलिए उस डंप डाटा से उन मोबाइल नंबरों को चिह्नित किया गया, जो उस रात मध्य प्रदेश के नंबरों के संपर्क में थे. ऐसे 300 फोन नंबर सामने आए. सर्विलांस टीम ने उन फोन नंबरों की जांच की. अब तक पुलिस को एक  नई जानकारी यह मिल गई थी कि मध्य प्रदेश के जिला राजगढ़ के थाना पचौड और बोड़ा के गुलखेड़ी और कडि़या ऐसे गांव हैं, जहां के गैंग बच्चों के सहयोग से शादी समारोह आदि के मौकों पर चोरियां करते हैं.

यह जानकारी मिलते ही एसीपी (औपरेशन) राजेंद्र सिंह ने 26 जून, 2017 को एक टीम मध्य प्रदेश के लिए भेज दी. टीम में इंसपेक्टर सतीश कुमार, एसआई अरविंद कुमार, एएसआई महेंद्र यादव आदि को शामिल किया गया था. टीम ने सब से पहले राजगढ़ जिले में रहने वाले मुखबिर को चोरों के फोटो दिखाए. उस मुखबिर ने 2-3 घंटे में ही पता लगा कर बता दिया कि ये लड़के गुलखेड़ी और कडि़या गांव के हैं और ये दोनों गांव थाना बोड़ा के अंतर्गत आते हैं.

यह जानकारी टीम के लिए अहम थी. इस जानकारी से उन्होंने एसीपी राजेंद्र सिंह को अवगत करा दिया. उन के निर्देश पर टीम थाना बोड़ा पहुंची. वहां के थानाप्रभारी को टीम ने दिल्ली में हुई घटना के बारे में बताते हुए अभियुक्तों को गिरफ्तार करने में मदद मांगी. थानाप्रभारी ने बताया कि यहां पर कभी मुंबई की तो कभी पंजाब की तो कभी उत्तराखंड तो कभी यूपी की पुलिस आती रहती है. पर चाह कर भी वह इन गांवों में दबिश डालने नहीं जा सकते.

इस की वजह यह है कि इन गांवों में सांसी रहते हैं. जब पुलिस इन के यहां पहुंचती है तो गांव के आदमी और औरतें यहां तक कि बच्चे भी इकट्ठा हो कर पुलिस पर हमला कर देते हैं. महिलाएं पुलिस से भिड़ जाती हैं. कभीकभी ये लोग आपस में ही किसी के पैर पर देसी तमंचे से गोली चला देते हैं. इसलिए इन गांवों में पुलिस नहीं जाती.

थानाप्रभारी ने बताया कि कुछ दिनों पहले पंजाब पुलिस भी आई थी. पूर्व मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला के परिवार की शादी में किसी ने नकदी और ज्वैलरी का बैग उड़ा दिया था. पंजाब पुलिस भी ऐसे ही वापस लौट गई थी.

स्थानीय पुलिस की मदद के बिना किसी भी राज्य की पुलिस सीधे दबिश नहीं दे सकती. दिल्ली पुलिस की टीम असमंजस में पड़ गई कि ऐसी हालत में क्या किया जाए? सीधे दबिश दे कर दिल्ली पुलिस कोई लफड़ा नहीं करना चाहती थी. पुलिस टीम को यह तो पता चल ही गया था कि सूटकेस चुराने वाले बच्चे किस गांव के हैं. अब पुलिस टीम ने उसी मुखबिर की सहायता से उन चोरों के बारे में अन्य जानकारी निकलवाई.

मुखबिर ने बताया कि इन गांवों में चोरों के अनेक गैंग हैं. चूंकि बच्चों पर कोई शक नहीं करता, इसलिए ये लोग अपने रिश्तेदारों या गांव के दूसरे लोगों के बच्चों को साल भर या 6 महीने के कौंट्रैक्ट पर ले लेते हैं. यह कौंट्रैक्ट लाखों रुपए का होता है. उन बच्चों को ट्रेनिंग देने के बाद उन के सहयोग से ही विवाह पार्टियों में चोरियां करते हैं. दिल्ली में जिन बच्चों ने सूटकेस चुराया था, वे बच्चे राका और नीरज के गैंग में काम करते हैं और राका इस समय अपने घर पर नहीं है. वह दिल्ली के पौचनपुर में कहीं किराए पर रहता है.

यह जानकारी ले कर पुलिस टीम दिल्ली लौट आई. पौचनपुर गांव दक्षिणपश्चिम जिले के द्वारका सेक्टर-23 के पास है. अपने स्तर से पुलिस राका को खोजने लगी. कई दिनों की मशक्कत के बाद पहली जुलाई, 2017 को पुलिस ने उसे ढूंढ निकाला.

राका को हिरासत में ले कर पुलिस ने उस से काम्या पैलेस में हुई चोरी के बारे में सख्ती से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती के आगे राका ने अपना मुंह खोल दिया. उस ने स्वीकार कर लिया कि काम्या पैलेस की शादी में उसी की गैंग के बच्चों ने सूटकेस चुराया था. बच्चों के अलावा नीरज भी गैंग में शामिल था. इस के बाद उस ने चोरी की जो कहानी बताई, वह दिलचस्प कहानी इस प्रकार थी—

मध्य प्रदेश के जिला राजगढ़ के थाना बोड़ा के अंतर्गत स्थित हैं कडि़या और गुलखेड़ी गांव. दोनों ही गांव की आबादी करीब 5-5 हजार है. राका गुलखेड़ी गांव का रहने वाला था, जबकि नीरज गांव कडि़या में रहता था. इन दोनों गांवों की विशेषता यह है कि यहां पर सांसी जाति के लोग रहते हैं. बताया जाता है कि यहां के ज्यादातर लोग चोरी करते हैं. इन के निशाने पर अकसर शादी समारोह होते हैं. एक खास बात यह होती है कि इन के गैंग में छोटे बच्चे या महिलाएं भी होती हैं.

चूंकि समारोह आदि में बच्चे आसानी से हर जगह पहुंच जाते हैं, जो आराम से बैग या सूटकेस चोरी कर गेट के बाहर पहुंचा देते हैं. ये बच्चे कोई ऐसेवैसे नहीं होते, उन्हें बाकायदा चोरी करने की ट्रेनिंग दी जाती है. जिन बच्चों को गैंग में रखा जाता है, उन के चुनाव का तरीका भी अलग है.

खिलाड़ियों का खिलाड़ी : भ्रष्टाचार की कहानी – भाग 2

एसीबी ने जयपुर में राजस्थान के जलदाय विभाग के चीफ इंजीनियर आर.के. मीणा को 10 लाख रुपए और एडिशनल चीफ इंजीनियर सुबोध जैन को 5 लाख रुपए की रिश्वत लेने के आरोप में 19 जुलाई, 2016 को गिरफ्तार किया था. आरोप था कि यह रिश्वत एसपीएमएल कंपनी के अधिकारियों ने इन दोनों इंजीनियरों को दी थी.

एसीबी ने उसी दिन दोनों आरोपी इंजीनियरों के जयपुर स्थित आवासों की तलाशी ली तो चीफ इंजीनियर आर.के. मीणा के घर से एसीबी को 12.41 लाख रुपए नकद और प्रौपर्टी के कागजात मिले थे. एडिशनल चीफ इंजीनियर सुबोध जैन के आवास से 9 लाख रुपए नकद, प्रौपर्टी के दस्तावेज एवं ढाई लाख रुपए से ज्यादा की ज्वैलरी मिली थी. दोनों के एकएक बैंक लौकर भी मिले थे.

सुबोध जैन राजस्थान की पिछली कांग्रेस सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री प्रमोद जैन भाया के ओएसडी (औफिसर औन स्पैशल ड्यूटी) भी रहे थे. वह सरकार की ओर से विभिन्न मामलों की स्टडी के लिए जापान सहित कई देशों की यात्रा कर चुके थे.

जलदाय विभाग की ओर से जैन को आईएएस कैडर देने का प्रस्ताव भेजा गया था. अगर वह गिरफ्तार न होते तो बेटे को वकालत की मास्टर डिग्री की पढ़ाई के लिए एडमिशन दिलाने 22 जुलाई, 2016 को सिंगापुर जाने वाले थे. रिश्वत की रकम वह सिरहाने रख कर सोते थे. एसीबी की काररवाई के दौरान वह बैड पर मुंह ढक कर पड़े थे.

दोनों इंजीनियरों के पकड़े जाने से एक दिन पहले चंबल नादौती वाटर सप्लाई योजना सवाई माधोपुर के सुपरिंटेंडेंट इंजीनियर उदयभानु माहेश्वरी ने इसी कंपनी के अधिकारियों से 15 लाख रुपए की रिश्वत ली थी. उस समय वह एसीबी की पकड़ में नहीं आए थे. हालांकि कुछ दिनों बाद उन्होंने एसीबी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था. एसीबी ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया था.

इस मामले में एसीबी ने जलदाय विभाग के 3 इंजीनियरों आर.के. मीणा, सुबोध जैन और उदयभानु माहेश्वरी के अलावा एसपीएमएल कंपनी के डाइरेक्टर ऋषभ सेठी और वाइस प्रेसीडेंट केशव गुप्ता सहित 4 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था. इन में केशव गुप्ता कंपनी का राजस्थान का काम संभालते थे.

सब से पहले 2 इंजीनियरों की गिरफ्तारी के तुरंत बाद पूछताछ में ऋषभ सेठी का नाम सामने आने पर उच्चाधिकारियों ने अलवर से एसीबी की टीम को ऋषभ सेठी को गिरफ्तार करने के लिए गुड़गांव भेज दिया था. अलवर की एसीबी टीम गुड़गांव के थाना सुशांतलोक पुलिस को साथ ले कर एसपीएमएल कंपनी के औफिस पहुंची, लेकिन तब तक सेठी फरार हो चुके थे.

एसीबी की जांच में सामने आया कि एसपीएमएल कंपनी के अधिकारियों ने जलदाय विभाग के अधिकारियों को अपने करोड़ों रुपए के बिल पास करवाने, वर्क और्डर जारी करवाने एवं कंपनी के प्रोजैक्ट्स में सहयोग करने के लिए रिश्वत दी थी. रिश्वत की यह राशि एसपीएमएल कंपनी के वाइस प्रेसीडेंट केशव गुप्ता के कहने पर कंपनी के सहायक महाप्रबंधक प्रफुल्ल मोरेश्वर ने जलदाय विभाग के अधिकारियों को दी थी.

यह बात भी सामने आई थी कि जलदाय विभाग के कुछ अधिकारी प्रोजैक्ट हासिल करने वाली कंपनियों एवं फर्मों से 15 फीसदी तक कमीशन के रूप में लेते थे. एसपीएमएल कंपनी को भरतपुर में पाइपलाइन बिछाने एवं मेंटीनेंस का 250 करोड़ रुपए का टेंडर मिलने वाला था. इस के अलावा राजस्थान के अन्य जिलों में एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के प्रोजैक्ट मिलने वाले थे.

इस हिसाब से रिश्वत की राशि करोड़ों रुपए में होती है. प्रोजैक्ट हासिल करने के लिए कंपनी के प्रतिनिधियों की जलदाय विभाग के कई अधिकारियों से बातचीत चल रही थी. कंपनी तथा जलदाय विभाग के अधिकारियों के फोन एसीबी ने सर्विलांस पर लगा रखे थे. इसी से रिश्वत के इस खेल का खुलासा हुआ था. एसीबी ने रिश्वत देने के आरोप में एसपीएमएल कंपनी के सहायक महाप्रबंधक प्रफुल्ल मोरेश्वर को 19 जुलाई, 2016 को गिरफ्तार कर लिया था.

एसपीएमएल कंपनी बौंबे स्टौक एक्सचेंज व एनएसई में सूचीबद्ध है. कंपनी ने दिल्ली सहित देश के विभिन्न राज्यों में जलदाय, सीवरेज सहित इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े कई बड़े प्रोजैक्ट हासिल कर रखे थे. राजस्थान में इस कंपनी के हजारों करोड़ रुपए के नएपुराने प्रोजैक्ट चल रहे थे. रिश्वत मामले में नाम आने से इस कंपनी के शेयर के भाव तुरंत गिर गए थे.

कंपनी ने मार्च, 2016 में समाप्त वित्त वर्ष में 1407 करोड़ रुपए की कुल संचालन आय अर्जित की थी. कंपनी ने सन 2016 में ही टाटा प्रोजैक्ट्स के साथ मिल कर राजस्थान अरबन ड्रिंकिंग वाटर, सीवरेज ऐंड इंफ्रास्ट्रक्चर कार्पोरेशन से प्रदेश के 11 शहरों में सीवरेज सिस्टम के निर्माण और ट्रीटेड वेस्ट वाटर से जुड़े 1275 करोड़ रुपए के प्रोजैक्ट हासिल किए थे.

बाद में एसीबी ने इस मामले में एसपीएमएल कंपनी के जयपुर औफिस में काम करने वाले सहायक महाप्रबंधक आकाशदीप तोतला को नवंबर, 2016 के पहले सप्ताह में गिरफ्तार कर लिया था. इस रिश्वत प्रकरण में नामजद किए गए मुख्य सूत्रधार एसपीएमएल कंपनी के डाइरेक्टर ऋषभ सेठी एवं वाइस प्रेसीडेंट केशव गुप्ता की गिरफ्तारी के लिए एसीबी ने कई बार गुड़गांव सहित अन्य जगहों पर छापे मारे, लेकिन वे पकड़ में नहीं आए.

बाद में एसीबी ने अदालत से सेठी और गुप्ता की गिरफ्तारी के लिए वारंट हासिल कर लिए थे. कंपनी के ये दोनों अधिकारी फरार थे. यह उसी बीच की बात है, जब शंकरदत्त शर्मा के नाम से सनी पांड्या के पास फोन आया था. पांड्या ने एसपीएमएल कंपनी के अधिकारियों के जरिए पता कराया कि क्या एसीबी के एसपी शंकरदत्त शर्मा इस तरह फोन कर के 10 करोड़ रुपए मांग सकते हैं?

कंपनी के अधिकारियों ने बताया कि एसपी शंकरदत्त शर्मा ईमानदार अधिकारी हैं. वह इस तरह की हरकत कतई नहीं कर सकते. अगर लेनदेन से काम बनता तो उन के 2 अफसरों को गिरफ्तार न किया जाता और न ही कंपनी के डाइरेक्टर और वाइस प्रेसीडेंट के खिलाफ एफआईआर दर्ज होती.

काफी सोचविचार कर एक दिन बाद सनी पांड्या ने सीबीआई में इस की शिकायत कर दी और वह रिकौर्डिंग भी सौंप दी, जो उन्होंने 10 करोड़ रुपए मांगने वाले से बात की थी. सीबीआई ने पांड्या की ओर से सौंपी गई रिकौर्डिंग को सुन कर जांच शुरू कर दी, क्योंकि उसे यह मामला संदिग्ध लग रहा था. शुरुआती जांच के बाद सीबीआई ने इस मामले की जानकारी राजस्थान के एंटी करप्शन ब्यूरो यानी एसीबी के पुलिस महानिदेशक को दे दी.

पेचीदा एवं तकनीकी मामला होने की वजह से एसीबी के आईजी सचिन मित्तल ने इस मामले की जांच शुरू कर दी. एसपी शंकरदत्त शर्मा के मोबाइल नंबर एवं एसीबी मुख्यालय के लैंडलाइन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो साफ हो गया कि एसपी शंकरदत्त शर्मा के नाम से किसी अन्य आदमी ने फरजी तरीके से फोन कर के 10 करोड़ रुपए मांगे थे.

बंटी और बबली ले डूबा लालच – भाग 2

डीसीपी वंदिता राणा ने एसएचओ रमेश सैनी को निर्देश दिए कि ब्लैकमेलर को प्लानिंग के तहत ट्रैप की काररवाई से दबोचो. एसएचओ ने डीसीपी के निर्देशानुसार नोट के साइज की कागज की कटिंग करा कर गड्डियां बना लीं. वह गड्डियां एक बैग में भर कर दीपक माहेश्वरी से कहा कि इन्हें विद्याधर नगर की उसी जगह पर रखें.

दीपक माहेश्वरी कागज से भरा बैग ले कर अपनी गाड़ी से उस जगह पर पहुंचे और बैग रख दिया. बैग रख कर दीपक माहेश्वरी वहां से चले गए. एसएचओ रमेश सैनी वहां से थोड़ी दूर पुलिस टीम के साथ छिप कर ब्लैकमेलर का इंतजार करने लगे.

थोड़ी देर बाद एक युवक वहां आता दिखा. वह दाएंबाएं देख कर बैग के पास आया और बैग उठा कर चलने लगा. तभी पुलिस टीम ने उस युवक को धर दबोचा.

पुलिस को देख कर उस युवक की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. पुलिस उसे हिरासत में ले कर थाने आ गई. वहां पर उस से पूछताछ की गई तो उस ने अपना नाम राहुल बोहरा बताते हुए जुर्म कुबूल कर के ठगी की सहयोगी प्रियंका मेघवाल के बारे में बता दिया. पुलिस टीम ने तत्काल प्रियंका को गिरफ्तार कर लिया और उसे भी थाने ले आई.

थाने में दोनों ब्लैकमेलर प्रेमियों से पूछताछ की. पूछताछ में बंटी और बबली बने ठग प्रेमी युगल राहुल बोहरा और प्रियंका ने जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार से है—

राहुल बोहरा (26) निवासी जगदीश कालोनी, निवारू रोड, झोटवाड़ा, जयपुर में रहता था. वह सीए फाइनल ईयर का स्टूडेंट है.

राहुल की गर्लफ्रैंड प्रियंका (24 वर्ष) निवासी डीडवाना, नागौर, राजस्थान की है, लेकिन इस समय वह निवारू रोड, करधनी जयपुर में रह रही है. प्रियंका पिछले साल से दीपक माहेश्वरी की कंपनी में अकाउंटेंट के पद पर जौब कर रही थी. वह अपने घर गांव डीडवाना से दूर जयपुर में रह कर जौब कर के अपने परिवार का भरणपोषण कर रही थी.

जयपुर रह कर वह जौब तो कर रही थी. मगर महंगाई के दौर में उसे जितना वेतन मिलता था, वह नाकाफी था. मगर वह करती भी तो क्या? दीपक माहेश्वरी की साइन बोर्ड बनाने की फैक्ट्री में राहुल की बहन भी नौकरी करती थी. राहुल अकसर अपनी बहन को फैक्ट्री तक बाइक पर छोड़ता था और ड्यूटी औफ होने पर उसे लेने भी जाता था. राहुल की बहन और प्रियंका अच्छी दोस्त बन गई थीं.

राहुल बोहरा जब अपनी बहन को फैक्ट्री तक छोड़ता व लाने जाता था, तब उस की बहन ने राहुल से प्रियंका की मुलाकात कराई थी. राहुल और प्रियंका में पहले दोस्ती हुई और फिर एकदूसरे से प्यार करने लगे.

दोनों हमउम्र थे और दोनों के विचार भी एकदूजे से मिलते थे. दोस्ती के बाद दोनों प्रेमपथ पर बढ़े. तब एकदूसरे से खुल कर बतियाने लगे.

एक रोज जब दोनों प्रेमी मिले तो राहुल ने एकांत के क्षणों में पूछा, ‘‘प्रियंका, तुम अकाउंटेंट हो. तुम्हें अपने मालिक के चालचरित्र व कामधंधे के बारे में सब कुछ पता होगा. यह भी बताओ कि तुम्हारा बौस रंगीनमिजाज का व्यक्ति है या नहीं? कंपनी में भी कुछ न कुछ गड़बड़ वगैरह होती होगी?’’

‘‘बौस दीपक के साथ अकसर कंपनी की एक लड़की आतीजाती है.’’ प्रियंका ने राहुल को बताया.

उस लड़की का नाम प्रियंका ने राहुल को बता कर कहा, ‘‘दीपक सर के साथ यह लड़की अकसर कंपनी के टूर के लिए कई दिनों तक दूसरे शहरों में साथ जाती है. लगता है कुछ गड़बड़ इन दोनों के बीच है.’’

‘‘बस, मिल गया ब्लैकमेल करने का तरीका. प्रियंका, तुम कंपनी की हरेक डिटेल प्रतिदिन की मुझे देना. फिर मैं ऐसा जुगाड़ करूंगा कि हमारी गुरबत चंद दिनों में दूर हो जाएगी. दीपक सेठ वैसे डरपोक है ही. उन्हें लड़की के साथ जाने की क्रमवार बातें बता कर धमकाने पर वह लाखों रुपए एक झटके में अपनी इज्जत की खातिर जरूर देगा. फिर उन रुपयों से हम दोनों ऐश की जिंदगी बिताएंगे.’’

राहुल ने प्रियंका को बहका कर रुपयों का लालच दे कर अपने रंग में रंग लिया. प्रियंका भी राहुल की दोस्ती व उसके साथ बढ़ते प्रेमिल रिश्तों के कारण अपने मालिक के साथ विश्वासघात करने पर उतारू हो गई थी. वह राहुल को कंपनी की और दीपक माहेश्वरी की एकएक पर्सनल और औफिशियल जानकारी देने लगी.

उन दोनों ने करोड़पति बिजनेसमैन दीपक माहेश्वरी को ठगने का ऐसा तरीका अपनाने के लिए कई वेब सीरीज और आपराधिक सीरियल देख कर ब्लैकमेल करने का प्लान बनाया.

2 साल पहले तक प्रियंका मेघवाल कारोबारी दीपक माहेश्वरी की फैक्ट्री में काम करती थी. प्रियंका मेघवाल 4 साल पहले दीपक की फैक्ट्री में जौब पर लगी थी. 2 साल जौब करने के बाद राहुल से दोस्ती व लव अफेयर के बाद प्रियंका ने घटना से महीना भर पहले वहां से जौब छोड़ दी थी.

प्रियंका और राहुल ने ब्लैकमेल करने की योजना बनाई. उन्होंने आखिर में खत के जरिए दीपक माहेश्वरी को ब्लैकमेल करने की योजना बनाई, ताकि पुलिस उन तक कभी न पहुंच पाए.

फर्जी MBBS दाखिले : करोड़ों लूटे – भाग 1

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद शहर में रहने वाला चंद्रेश गुप्ता अपने कमरे में बैठा सुबह की चाय का इंतजार कर रहा था, उसे नौकरी का इंटरव्यू देने के लिए 9 बजे घर से निकलना था. चंद्रेश ने इसी साल मेरठ से बीएससी की थी, नोएडा की एक फार्मा कंपनी में नौकरी के लिए निकली वैकेंसी के लिए आवेदन भी कर दिया था. उसे इंटरव्यू का लैटर मिल गया था, इसलिए वह नहाधो कर तैयार बैठा था. एकाएक उस के कानों में भाभी रमा की दर्दभरी चीख सुनाई पड़ी, ‘‘ऊई मांऽऽ.’’

‘‘क्या हुआ भाभी?’’ चंद्रेश घबरा कर किचन की तरफ दौड़ते हुए चिल्लाया.

‘‘अंगुली कट गई लाला.’’ रमा अपनी बाईं हाथ की एक अंगुली को दूसरे हाथ से दबाए हुए दर्द भरे स्वर में बोली.

चंद्रेश ने भाभी की कटी अंगुली से खून टपकता देखा तो वह घबरा कर बोला, ‘‘क्या करती हो भाभी? कैसे काट ही अंगुली?’’

‘‘प्याज काट रही थी लाला. सोचा था, तुम्हारे लिए परांठे और आलू की भुजिया बना दूं. इंटरव्यू देने जा रहे हो, पता नहीं कितना समय लग जाए. नाश्ता कर के जाना जरूरी है.’’ रमा दर्द से कराहते हुए बोली.

‘‘आप अंगुली दबा कर रखो, मैं फर्स्टएड बौक्स ले कर आता हूं.’’ चंद्रेश ने कहा और तेजी से कमरे की तरफ लपक कर गया.

उस ने दराज में रखा फर्स्टएड बौक्स निकाला और किचन में ले आया. उस ने बौक्स में से एंटीसेप्टिक क्रीम, डिटोल और कौटन पट्टी निकाली. पहले कौटन पर डिटोल लगा कर रमा की अंगुली से बह रहे खून को कौटन से साफ किया. डिटोल से खून रोकने के बाद चंद्रेश ने साफ कौटन पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाई और कटी अंगुली पर पट्टी बांध दी.

रमा बड़े गौर से अपने देवर द्वारा अपनी की अंगुली पर पट्टी बांधते हुए देख रही थी. पट्टी हो गई तो रमा मुसकरा कर बोली, ‘‘तुम तो पूरे डाक्टर बन गए हो लाला.’’

‘‘कहां भाभी?’’ चंद्रेश गहरी सांस भर कर बोला, ‘‘भैया से कितनी बार कहा है कि जब साइंस सबजेक्ट से ग्रैजुएशन करवा दिए हो तो मुझे डाक्टरी की पढ़ाई भी करवा दो, लेकिन भैया हैं कि सुनते ही नहीं.’’

‘‘डाक्टरी कोई हजार 2 हजार में थोड़ी होती है लाला. सुना है, इस में 80-90 लाख रुपया लग जाता है. इतना रुपया तुम्हारे भैया सात जन्म कमाने के बाद भी इकट्ठा नहीं कर सकते. फैजाबाद में जो खेत पड़ा है, वह बेचा नहीं जा सकता. तुम्हारे भैया ने अपनी तनख्वाह में तुम्हें ग्रैजुएशन करवा दिया है. अब कहीं 10-12 हजार की नौकरी कर लो, इस घर के खर्च को ठीकठाक चलाने के लिए इतना ही काफी रहेगा.’’

‘‘अच्छा भाभी.’’ चंद्रेश ने मुसकरा कर कहा और इंटरव्यू के लिए निकल गया.

‘‘लाला, बाहर कुछ खा जरूर लेना, भूखे मत रहना.’’ भाभी ने कहा.

‘‘खा लूंगा भाभी, आप आराम कीजिए. दोपहर में चावल वगैरह बना कर आप खा लेना. शाम को मैं होटल से रोटीसब्जी लेता आऊंगा.’’ चंद्रेश ने कहा.

हरीराम उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद में रहते थे. मूलत: वह फैजाबाद के रहने वाले थे, वहां पुश्तैनी घर और खेतीबाड़ी थी. खेती की फसल से उन के परिवार का खर्च चलता था. परिवार में पत्नी माया और 2 बेटे दयाशंकर और चंद्रेश थे. गाजियाबाद में उन के बहनोई रहते थे. उन के कहने पर 10 साल पहले वह पुश्तैनी मकान बेच कर गाजियाबाद आ बसे थे.

चंद्रेश बनना चाहता था डाक्टर

यहां एक कंपनी में वह काम पर लग गए और बेटों को उच्च शिक्षा दिलाने की मंशा से उन्हें अच्छे स्कूलों में दाखिला दिला दिया. दयाशंकर 12वीं क्लास तक ही पढ़ पाया. अपनी रिटायरमेंट के बाद उन्होंने दया को अपनी कंपनी में काम पर लगा दिया और उस की शादी रमा से कर दी. चूंकि हरीराम और पत्नी माया बूढ़े हो गए थे. अब दोनों घर में ही पड़े रहते थे.

घर के खर्च की जिम्मेदारी दया ने संभाल ली थी. वह चंद्रेश को खूब पढ़ाना चाहता था ताकि वह किसी अच्छी सरकारी पोस्ट पर नौकरी कर के घर खर्च में उस का सहयोग करे.

चंद्रेश मेरठ के डिग्री कालेज से बीएससी करने के बाद एमबीबीएस की पढ़ाई करना चाहता था, लेकिन उस के लिए लाखों रुपया चाहिए था. फैजाबाद में जो खेत पड़ा था, वह बटाई पर दिया हुआ था, उस के रुपयों से गाजियाबाद में हरीराम के परिवार का खर्च चल रहा था. उसे बेचा नहीं जा सकता था. बेचते भी तो 20-30 लाख रुपया ही मिलता, लेकिन उस से एमबीबीएस की पढ़ाई नहीं हो पाती, घर में खर्चे की परेशानी पैदा होती सो अलग.

इसलिए चंद्रेश ने एमबीबीएस करने का विचार त्याग कर सरकारी नौकरी के लिए भागदौड़ शुरू कर दी थी. परंतु बहुत कोशिश के बाद भी जब सरकारी नौकरी नहीं मिली तो चंद्रेश ने प्राइवेट कंपनी की ओर रुख कर लिया था.

आज उसे फार्मा टेक्ट कंपनी में इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था. ठीक समय पर वह उस कंपनी में पहुंच गया, लेकिन इंटरव्यू के नाम पर खानापूर्ति कर के उसे वापस लौटा दिया गया. मालूम हुआ कि कंपनी में काम कर रहे किसी व्यक्ति ने मोटी रकम कंपनी के एमडी की जेब में डाल कर अपने भतीजे को रिक्त पड़ी एकाउंटेंट की नौकरी पर लगवा दिया है.

चंद्रेश निराश हो कर घर लौट रहा था कि उस की मुलाकात अपने एक जिगरी दोस्त राजवीर से हो गई. राजवीर उस से बड़ी गर्मजोशी से मिला, ‘‘कैसे हो चंद्रेश? यह शक्ल पर 12 क्यों बज रहे हैं तुम्हारे?’’ राजवीर ने पूछा.

‘‘किस्मत की मार पड़ती है तो ऐसे ही 12-13 बजते हैं राजवीर.’’ चंद्रेश के स्वर में असंतोष था.

‘‘किस्मत को मत कोसो यार, आज नहीं तो कल तुम्हें नौकरी मिल ही जाएगी. आओ, किसी रेस्तरां में बैठ कर चाय पीते हैं.’’ राजवीर ने कहा और चंद्रेश को ले कर एक रेस्तरां में आ गया.

चाय के साथ उस ने 2 प्लेट समोसे का भी और्डर दे कर चंद्रेश के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘तुम्हारा एमबीबीएस करने का सपना था, उस का क्या हुआ?’’

‘‘उस के लिए बहुत मोटी रकम चाहिए राजवीर, हमारे पास इतना रुपया नहीं है. तभी तो मैं नौकरी के लिए भागदौड़ कर रहा हूं.’’

जानलेवा फेसबुक फ्रैंडशिप

आजकल तकरीबन हर कोई सोशल मीडिया खासतौर से फेसबुक, ट्विटर और ह्वाट्सऐप पर मौजूद है. कई लोगों के लिए इन साइटों पर रहना जरूरत की बात है, तो ज्यादातर लोग इन के जरीए अपना वक्त काटते हैं.

हैरानी की बात है कि अब तेजी से लड़कियां भी फेसबुक पर दिख रही हैं. बड़े शहरों की लड़कियों को पछाड़ते हुए अब देहातों और कसबों की लड़कियां भी फेसबुक पर अकाउंट खोल कर दोस्त बनाने लगी हैं और उन से चैट यानी लिखित में बातचीत करने लगी हैं.

फेसबुक पर दोस्त बना कर उन से चैट करने पर घर वालों को कोई खास एतराज नहीं होता, क्योंकि उन्हें स्मार्टफोन और कंप्यूटर की ज्यादा जानकारी नहीं होती, इसलिए लड़कियां बेखौफ हो कर अपने बौयफ्रैंड से बातें करती हैं.

ये बातें कभीकभी ऐसे जुर्म की भी वजह बन जाती हैं, जिस से नादान लड़कियां मुसीबत में पड़ जाती हैं, इसलिए अब जरूरी हो चला है कि फेसबुक का इस्तेमाल सोचसमझ कर और एहतियात बरतते हुए किया जाए, नहीं तो हालात मध्य प्रदेश के इंदौर की प्रिया जैसे भी हो सकते हैं.

आशिक बना कातिल

17 साला प्रिया इंदौर के गीता नगर इलाके के कृष्णा नगर अपार्टमैंट्स में तीसरी मंजिल पर रहती थी. हाईस्कूल में पढ़ रही प्रिया पढ़ाई की अहमियत समझती थी, इसलिए इंजीनियर बनने की अपनी ख्वाहिश पूरी करने के लिए उस ने अभी से आईआईटी की भी तैयारी शुरू कर दी थी और कोचिंग क्लास में  जाती थी.

प्रिया के पिता श्याम बिहारी रावत एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में काम करते हैं और मां किरण पेशे से ब्यूटीशियन हैं. हालांकि ये लोग कोई बहुत बड़े रईस नहीं हैं, लेकिन इज्जत से गुजारे लायक कमाई आराम से हो जाती थी. पूजा इन दोनों की एकलौती लड़की थी.

दूसरी लड़कियों की तरह पूजा भी फेसबुक का इस्तेमाल करती थी और उस के कई दोस्त भी बन गए थे.

प्रिया जानती थी कि फेसबुक पर लड़कों या अनजान लोगों से दोस्ती करना अब खतरे से खाली बात नहीं, इसलिए वह ऐसी फ्रैंड रिक्वैस्ट मंजूर नहीं करती थी, जिन में सामने वाला जानपहचान का न हो.

एक दिन पूजा को प्रियांशी नाम की लड़की ने फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी, तो उस ने इसे मंजूर कर लिया, क्योंकि प्रियांशी लड़की थी और उस की प्रोफाइल भी प्रिया को ठीकठाक लगी थी.

धीरेधीरे प्रिया और प्रियांशी की फेसबुक पर दोस्ती गहराने लगी और दोनों चैटिंग करने लगीं. इस दौरान प्रिया ने प्रियांशी से कई दिली बातें कीं और अपना और अपनी मम्मी का मोबाइल नंबर भी उसे दे दिया.

लेकिन एक दिन प्रियांशी की हकीकत प्रिया के सामने खुल ही गई कि वह लड़की नहीं, बल्कि लड़का है. उस का असली नाम अमित यादव है. वह 24 साल का है और पेशे से सौफ्टवेयर इंजीनियर है.

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अमित ने असलियत बताते हुए प्रिया से मुहब्बत का इजहार किया, तो धोखा खाई प्रिया तिलमिला उठी और उस ने अमित का अकाउंट ब्लौक कर दिया.

गूजरखेड़ी गांव का रहने वाला अमित अब तक प्रिया, उस के घर और स्वभाव के बारे में चैट के जरीए प्रिया से ही काफीकुछ जानकारी हासिल कर चुका था, इसलिए उस ने प्रिया के मोबाइल पर फोन कर उस से अपनी मुहब्बत का इजहार किया. तब भी प्रिया ने उसे झिड़क दिया.

जब प्रिया ने अमित का फोन रिसीव करना बंद कर दिया, तो एकतरफा प्यार में पागल इस सिरफिरे आशिक ने मैसेज भेजने शुरू कर दिए.

प्रिया को अब समझ आ गया था कि धोखे या गलती से ही सही, वह एक गलत और झक्की नौजवान से फेसबुक पर दोस्ती कर के फंस चुकी है, तो उस ने पीछा छुड़ाने के लिए उस पर ध्यान देना ही बंद कर दिया.

इस अनदेखी और बेरुखी से अमित और भी तिलमिला गया, जो यह मान कर चल रहा था कि चूंकि वह प्रिया से प्यार करता है, इसलिए यह उस की जिम्मेदारी है कि वह भी उसे प्यार करे. हालांकि उसे मन में कहीं न कहीं एहसास होने लगा था कि प्रिया सख्तमिजाज और उसूलों वाली लड़की है.

हिम्मत न हारते हुए अमित ने प्रिया की मां किरण को फोन किया और सारी बात बताई. इस पर किरण ने प्रिया से पूछा, तो उस ने मां को साफसाफ बता दिया कि अमित एक धोखेबाज लड़का है, जिस ने लड़की बन कर फेसबुक पर उस से दोस्ती की और अब जबरदस्ती प्यारमुहब्बत की बातें कर रहा है.

बेरहमी आशिक की

मां किरण ने आजकल के जमाने को देख शुरू में तो बेटी की तरह ही अमित को झिड़क दिया.

यह देख कर अमित गिड़गिड़ाया, ‘‘आंटी, मुझे बस एक बार प्रिया से बात कर लेने दें, फिर मैं कभी फोन नहीं करूंगा.’’

दुनिया देख चुकीं किरण यहीं गच्चा खा गईं. उन्होंने सोचा था कि लड़का एकतरफा प्यार में पागल हो गया है और कहीं ऐसा न हो कि गुस्से में आ कर बेटी को कोई नुकसान पहुंचा दे, इसलिए जब

27 सितंबर, 2016 की सुबह उस का दोबारा फोन आया, तो उन्होंने उसे घर आने की इजाजत दे दी, लेकिन इस शर्त पर कि बात दरवाजे के बाहर से ही होगी.

अमित तो मानो इसी फिराक में था, इसलिए वह किरण की हर बात मानता गया और सुबह के तकरीबन 10 बजे उन के घर पहुंच गया.

जब किरण ने उसे दरवाजे से ही टरकाना चाहा, तो वह फिर दुखी होने की ऐक्टिंग करते हुए बोला, ‘‘यहां बाहर खड़ेखड़े क्या बात होगी. अंदर आने दें तो इतमीनान से बात कर लूंगा.’’

किरण ने उसे अंदर आने दिया. अंदर आ कर अमित ने बाथरूम जाने की बात कही और बाथरूम में चला भी गया.

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अंदर कमरे में प्रिया स्कूल जाने के लिए अपना बैग लगा रही थी कि अमित ने बगैर कुछ कहे या मौका दिए पीछे से चाकू निकाल कर उस पर जानलेवा हमला कर दिया.

प्रिया हमले से घबराई और चीखी तो किरण उस के कमरे की तरफ भागीं, पर जब तक अमित प्रिया पर चाकू के दर्जनभर वार कर चुका था, जो पीठ के अलावा पेट, सीने और चेहरे पर लगे थे.

बदहवास सी किरण बेटी को बचाने बीच में आईं, तो अमित ने उन पर भी हमला बोल दिया. मौका पा कर प्रिया बाथरूम में जा घुसी और डर के मारे भीतर से दरवाजा बंद कर लिया.

शोर सुन कर अपार्टमैंट्स के कई लोग किरण के फ्लैट की तरफ भागे, तो उन्होंने हाथ में चाकू लिए एक नौजवान यानी अमित को भागते देखा. दूसरी मंजिल पर आ कर उस ने भीड़ देखी, तो अपने बचाव के लिए वह नीचे कूद गया.

इधर लोग किरण के घर में गए और हालात देख कर बाथरूम का दरवाजा तोड़ा. वहां प्रिया बेहोश पड़ी थी. लोगों ने तुरंत पुलिस को खबर की और प्रिया को कार में डाल कर अस्पताल की तरफ भागे, पर इलाज के दौरान ही प्रिया ने दम तोड़ दिया.

अमित नीचे कूद तो गया, लेकिन उस के हाथपैर की हड्डियां टूट गईं, इसलिए भाग नहीं सका और गिरफ्तार हो गया. उसे जेल वार्ड में रखा गया.

अमित अपने बयानों में पुलिस को यह कहते हुए बरगलाने की कोशिश करने लगा कि प्रिया उस पर जबरदस्ती करने का झूठा इलजाम लगा रही थी और उसी ने 100 नंबर पर फोन कर पुलिस को बुलाया था.

पर यह बहानेबाजी ज्यादा नहीं चली और जल्दी ही एकतरफा प्यार में पगलाए इस आशिक का जुर्म सामने आ गया.

प्रिया के पिता श्याम बिहारी ने जब बेटी की हत्या की खबर सुनी, तो सदमे के चलते वे बेहोश हो गए और होश में आते ही हत्यारे अमित को फांसी की सजा देने की मांग करने लगे.

एहतियात बरतना है जरूरी

जिस ने भी इस अपराध के बारे में सुना, वह सन्न रह गया और फेसबुक जैसी साइट को कोसता नजर आया कि आजकल यह जुर्म का नया जरीया बन गया है, इसलिए लड़कियों को जरा संभल कर रहना चाहिए.

बात सच भी है, क्योंकि लड़कियां फेसबुक पर ज्यादा से ज्यादा फ्रैंड्स बनाना अपनी शान की बात समझती हैं. हालांकि प्रिया ने अमित को लड़की समझ कर उस से दोस्ती की थी, पर इस हादसे से लगता है कि फेसबुक का इस्तेमाल करते समय लड़कियों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, नहीं तो वे भी प्रिया की तरह किसी हादसे या जुर्म का शिकार हो सकती हैं:

* यह जरूरी नहीं कि जो फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज रही है, ये हकीकत में लड़की हो, इसलिए उसे प्रोफाइल की बारीकी से जांच कर लेनी चाहिए कि फैमिली फोटो डाले गए हैं या नहीं.  कितने फ्रैंड्स कौमन हैं. अगर कौमन फ्रैंड्स न हों या कम हों, तो भी फ्रैंड रिक्वैस्ट कबूल नहीं करनी चाहिए.

* किसी भी अनजान शख्स की फ्रैंड रिक्वैस्ट कबूल न करें.

* अपने प्रोफाइल में मोबाइल नंबर नहीं डालना चाहिए, न ही चैटिंग में किसी को देना चाहिए.

* अगर सामने वाली लड़की ज्यादा अपनापन दिखाए, तो चौकन्ना हो जाएं. अकसर जब 2 अनजान लड़कियां दोस्त बनती हैं, तो एकदूसरे से यह जरूर पूछती हैं कि तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड है क्या? तुम ने कभी सैक्स किया है क्या? ऐसी बातें करने वाली लड़की को भाव नहीं देना चाहिए.

* घर का पता किसी को न दें.

* फेसबुक का पासवर्ड भी किसी को न दें.

* फ्रैंड कहीं बाहर होटल या पार्क वगैरह में मिलने बुलाए, तो सख्ती दिखाते हुए मना कर देना चाहिए. आजकल लोग गिरोह बना कर भी फेसबुक पर भोलीभाली लड़कियों को फांसने लगे हैं.

* अगर यह पता चल जाए कि सामने जो लड़की थी, वह असल में लड़का है, तो उस से धीरेधीरे कन्नी काटनी चाहिए. ब्लौक कर देने या भड़कने से गुस्से में आ कर लड़का कोई भी खतरनाक कदम उठा सकता है.

* इस के बाद भी बात न बने, तो मांबाप या घर के बड़ों को भरोसे में लेते हुए सारी बात बता देनी चाहिए.

हम तुम साइबर कैफे में बंद हों और…

एक लड़की और एक लड़का साइबर कैफे के काउंटर पर पहुंचे. लड़के की उम्र 18 से 20 साल के बीच की थी. लड़की ने दुपट्टे से अपना चेहरा ढक रखा था. लड़का भी कैप और बड़ा सा काला चश्मा लगाए हुए था.

काउंटर पर बैठे शख्स ने उन्हें देखा और पूछा, ‘‘कितने घंटे?’’

लड़का बोला, ‘‘एक घंटा.’’

इस के बाद लड़के ने अपनी जेब से सौ रुपए का एक नोट उसे थमाया और वह जोड़ा एक छोटे से कमरे में दाखिल हो गया और अंदर से किवाड़ बंद कर लिया.

काउंटर पर बैठे आदमी ने उस जोड़े से न तो पहचानपत्र लिया और न ही रजिस्टर में उन का नामपता दर्ज किया, जबकि आईटी ऐक्ट के तहत यह जरूरी है.

हर साइबर कैफे के नोटिस बोर्ड पर पहचानपत्र की फोटोकौपी जमा करने, पोर्न साइट नहीं देखने और न डाउनलोड करने की हिदायत लिखी रहती है, लेकिन उस पर शायद ही अमल किया जाता हो.

बिहार की राजधानी पटना समेत हर शहर में ज्यादातर साइबर कैफे में सैक्स का खेल धड़ल्ले से चल रहा है. अगस्त महीने में एक लड़की के साथ हुए गैंग रैप के मामले में एक साइबर कैफे को चलाने वाले अनिल कुमार की गिरफ्तारी हो चुकी है.

पटना में कंकड़बाग, एक्जिबिशन रोड, अशोक राजपथ, राजेंद्र नगर, राजा बाजार के तकरीबन 15 साइबर कैफे का मुआयना करने के बाद यह साफ हो गया कि कैफे संचालक रुपयों के लालच में साइबर कैफे के बंद केबिनों में रंगरलियां मनाने की खुली छूट दे रहे हैं.

आमतौर पर साइबर कैफे में एक घंटे की फीस 20 रुपए होती है, लेकिन जोड़े एक घंटे के लिए केबिन में बंद होने के सौ रुपए तक दे देते हैं.

पटना में तो पुलिस की सख्ती की वजह से ज्यादातर कैफे वालों ने केबिनों से दरवाजे और परदे तो हटा दिए हैं, पर बाकी शहरों में ऐसा नहीं हो सका है.

पटना कालेज में पढ़ने वाले एक प्रेमी जोड़े का दर्द है कि बड़े शहरों में तो प्रेमी जोड़े पार्कों, मैट्रो, मल्टीप्लैक्सों, सुपर मार्केट वगैरह में 2-3 घंटे साथ गुजार लेते हैं. लेकिन पटना जैसे छोटे शहरों में इस तरह की सुविधा नहीं है.

छोटा शहर होने की वजह से किसी न किसी गली, सड़क, मार्केट में जोड़ों के पहचान वाले या रिश्तेदार घूमते मिल जाते हैं. इस डर से प्रेमी बेखौफ हो कर साथ समय नहीं गुजार पाते हैं.

कुछ जोड़ों से पूछा गया कि पुलिस की रोक के बाद भी वे क्यों साइबर कैफे के केबिनों में बैठते हैं और उस में क्या करते हैं?

इस सवाल पर एक छात्र तैश में आ कर बोला कि लड़का और लड़की साइबर कैफे में जाते हैं, तो पुलिस को इस से क्यों एतराज है? यह जरूरी नहीं है कि साइबर कैफे में जाने वाला हर नौजवान जोड़ा प्रेम करने के लिए ही वहां जाता है. कई जोड़ों के घरों पर कंप्यूटर और इंटरनैट की सुविधा नहीं है, तो वे किसी इम्तिहान का नतीजा देखने, नौकरियों के बारे में पता करने या पढ़ाई से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी हासिल करने के लिए साइबर कैफे जाते हैं, पर पुलिस छापामारी के दौरान कैफे में मौजूद हर जोड़े को एक ही डंडे से हांकने लगती है.

इस बारे में पटना के सिटी एसपी चंदन कुशवाहा कहते हैं कि आईटी ऐक्ट (सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000) के तहत साइबर कैफे में सैक्स करने, सैक्स वीडियो या आपत्तिजनक सामग्री डाउनलोड या अपलोड करने पर कानूनी कार्यवाही की जाती है. इस ऐक्ट की धारा 78 के तहत इंस्पैक्टर लैवल के अफसर को जांच का हक मिला हुआ है. धारा 80 के तहत आईटी ऐक्ट का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ पुलिस को बगैर वारंट के किसी को गिरफ्तार करने या छापा मारने का अधिकार मिला हुआ है.

आईटी मामलों के जानकार मयंक बताते हैं कि आईटी ऐक्ट की धाराएं इतनी लचीली और पेचीदा हैं कि पुलिस किसी भी साइबर मामले को अपराध बता कर उस के खिलाफ कार्यवाही कर सकती है.

मगध महिला कालेज की बीए सैकंड ईयर की एक छात्रा पुलिस के इस रवैए पर तैश में कहती है कि पुलिस बड़े और खतरनाक अपराधियों को तो पकड़ नहीं पाती है, जिस की भड़ास वह साइबर कैफे या पार्कों में बैठे जोड़ों पर निकालती है.

अपराधियों को पकड़ने में अकसर नाकाम रहने वाली पुलिस साथ घूम रहे या पार्कों या कैफे में बैठे जोड़ों के साथ अपराधियों से भी बदतर सुलूक करती है. यह क्या गैरकानूनी नहीं है?

बालिग लड़का और लड़की अगर एकसाथ घूम रहे हैं, तो पुलिस को क्या परेशानी है? किसी पब्लिक प्लेस पर बैठ कर किसी तरह का भोंड़ा या भड़काऊ प्रदर्शन गैरकानूनी है. साइबर कैफे के केबिन में अगर कोई जोड़ा प्यार के गीत गा रहा हो, तो पता नहीं पुलिस को क्या परेशानी होने लगती है?

साइबर कैफे के केबिन में बैठना किसी भी नजर से गैरकानूनी नहीं है. आईटी ऐक्ट के तहत कैफे में बैठने वाले हर किसी से उस के पहचानपत्र की फोटोकौपी रिकौर्ड में रखना जरूरी है. अमूमन कैफे चलाने वाले लोगों से न तो उन के पहचानपत्र की फोटोकौपी लेते हैं और न ही उन का नामपता रजिस्टर में लिखते हैं.

रिटायर्ड पुलिस अफसर एके सिंह कहते हैं कि साइबर कैफे में आए हर आदमी से उस का पहचानपत्र लेना संचालक का काम है. अगर किसी का पहचानपत्र नहीं लिया गया है, तो इस के लिए संचालक खुद ही जिम्मेदार है, न कि ग्राहक. पैसों के लालच में संचालक पहचानपत्र नहीं लेते हैं.

पुलिस अफसरों का कहना है कि अपराधी किसी भी साइबर कैफे से किसी शख्स को जान से मारने की धमकी देने, रंगदारी वसूलने और किसी भी तरह के अपराध से जुड़ा ईमेल कर सकते हैं.

पहचानपत्र की फोटोकौपी और उन के आनेजाने का समय रिकौर्ड में नहीं रखने पर कैफे संचालक भी फंस सकते हैं. सभी तरह का रिकौर्ड रखने पर कैफे संचालक तो कानून के फंदे में फंसेंगे ही, साथ ही पुलिस को भी मुजरिम तक पहुंचने में आसानी होती है.

पुलिस ने सभी साइबर कैफे संचालकों को केबिन और परदे हटाने का आदेश दिया है, इस के बाद भी केबिन के अंदर और परदों के पीछे इश्कबाजी का खेल बेधड़क चल रहा है.

एक साइबर कैफे के स्टाफ ने बताया कि पुलिस साइबर कैफे के संचालकों को नियमकायदों पर अमल करने की घुट्टी तो पिलाती है, लेकिन करारे नोट की चमक के आगे खुद ही कानून को भूल जाती है. हर कैफे वाले को हर महीने ‘चढ़ावा’ चढ़ाने के लिए मजबूर किया जाता है और इस के लिए इलाके के हिसाब से ‘चढ़ावा’ भी फिक्स कर रखा है.

स्टेज डांसर : जान पर खेल कर करती हैं मनोरंजन

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले की बात है. शादी का दावत समारोह चल रहा था. एक तरफ दावत में आए लोग लजीज खाने का स्वाद ले रहे थे, तो दूसरी तरफ मस्त अदाओं का जादू बिखेरती एक स्टेज डांसर अपने डांस से सब के दिल खुश कर रही थी. कई लोग शराब के नशे में स्टेज के नीचे डांस कर रहे थे. पूरी तरह से मस्ती भरा माहौल था.

डांस के लिए अलगअलग गानों की फरमाइश भी हो रही थी. इस बीच ‘नथनियां पे गोली मारे सैयां हमार..’ गाना बजने लगा. स्टेज पर अपने दिलकश अंदाज दिखाती वह डांसर गाने की धुन पर लहराने लगी. उस की मस्त अदाओं का जादू नीचे डांस कर रहे लोगों पर छाने लगा.

एक नौजवान पर यह नशा कुछ इस कदर छाया कि वह अपने साथ लाई बंदूक लहराते हुए डांस करने लगा और डांस करतेकरते डांसर के करीब जाने लगा.  डांसर स्टेज पर डांस कर रही थी और वह नौजवान नीचे था. नाचतेनाचते उस की बंदूक का ऊपरी नली वाला हिस्सा डांसर की स्कर्ट के नीचे पहुंच जाता था.

डांसर ने जब यह देखा, तो वह स्टेज पर पीछे की तरफ खिसक गई. उस के संकेत पर गाने के बोल बदल गए, पर वह नौजवान उसी गाने को फिर से बजाने की बात करने लगा. उस की जिद पर ‘नथनियां पे गोली मारे सैयां हमार…’ गाना दोबारा बजने लगा. डांसर अनमनी सी डांस करने लगी.

अब वह नौजवान स्टेज पर चढ़ कर उस डांसर के साथ डांस करने लगा. इस से परेशान हो कर वह स्टेज से वापस जाने लगी, तो उस नौजवान ने बंदूक लहराते हुए उसे रोका. जब वह नहीं रुकी, तो उस पर गोली चला दी.

इस कांड में अच्छी बात यह रही कि गोली डीजे के स्पीकर पर जा लगी. हां, गोली चलने से शादी समारोह में हंगामा जरूर मच गया.

लेकिन एक डांसर…

गोली चले और डांसर को न लगे, ऐसा हर बार नहीं होता है. 3 नवंबर, 2016 को पंजाब के भटिंडा में मैरिज पैलेस हाल में एक शादी समारोह में डांसर कुलविंदर कौर 3 लड़कियों के साथ स्टेज पर डांस कर रही थी. डांस पंजाबी गानों पर हो रहा था.

डांस करने वाली लड़कियों ने शालीन कपड़े पहन रखे थे. इस के बाद भी समारोह में हिस्सा ले रहे बहुत से लोग उन डांसरों को देखदेख कर मस्त हो रहे थे. कई तो ऐसे थे, जो डांसरों के ग्रीनरूम में घुसे जा रहे थे. उन में से एक लक्की उर्फ बिल्ला भी था. वह डांसर कुलविंदर कौर के ग्रीनरूम में घुस कर उस से अपने साथ डांस करने को कहने लगा. कुलविंदर कौर ने उसे समझाया, पर वह माना नहीं.

थोड़ी देर बाद बिल्ला ग्रीनरूम से बाहर चला आया और जब कुलविंदर कौर डांस करने आई, तो वह अपनी बंदूक लहरा कर डांस करने लगा.

वह बीचबीच में बंदूक दिखा कर कुलविंदर कौर को डराने की कोशिश कर रहा था. कुलविंदर ने जब उस की ओर ध्यान नहीं दिया, तो बिल्ला ने डांस करतेकरते अपनी बंदूक से गोली चला दी. गोली सीधी कुलविंदर कौर को जा लगी और वह वहीं स्टेज पर गिर गई.

गोली की आवाज गाने की तेज आवाज में तुरंत समझ में नहीं आई. स्टेज के पास खड़े लोगों ने कुलविंदर के शरीर को घसीट कर स्टेज से नीचे किया. इसी बीच चारों तरफ अफरातफरी मच गई. बिल्ला भाग गया.

कुलविंदर कौर की एक साथी डांसर पूजा ने बताया कि बिल्ला कुलविंदर को पहले से परेशान कर रहा था. डीजे वालों ने उसे मना कर दिया था, इस के बाद भी वह माना नहीं. डीजे वालों ने आयोजकों से भी शिकायत की, पर वे लोग कुछ कर नहीं सके.

पुलिस ने 3 दिन बाद बिल्ला को पकड़ लिया और जेल भेज दिया.

दर्ज न करा सकी मुकदमा

 मुंबई की एक डांसर रेखा को डीजे चलाने वाले कई लोग बुलाते थे. उसे एक डांस के 10 हजार रुपए मिलते थे. वह मुंबई से बाहर भी डांस करने जाती थी. एक बार में वह हफ्तेभर के लिए अपने कार्यक्रम बनाती थी और 70 से 80 हजार रुपए कमा कर वापस मुंबई चली जाती थी.

एक बार रेखा समस्तीपुर, बिहार में शादी में डांस करने गई, तो कुछ लोग उस से मिले और पैसे दे कर सैक्स करने का औफर दिया. रेखा को यह सब पसंद नहीं था. उस ने मना कर दिया. इस के बाद वह स्टेज पर डांस करने लगी. रात में 2 बजे उस का काम खत्म हुआ, तो वह डीजे वालों की कार से वापस अपने होटल जाने लगी.

रास्ते में 5 लोग आए और उस की गाड़ी को रोक लिया. उन्होंने डीजे वालों को जान से मारने की धमकी दे कर रेखा को उठा कर अपनी कार में डाल लिया. जातेजाते वे लोग डीजे वालों से कह गए, ‘अगर किसी को बताया, तो रेखा को मार देंगे. अगर चुप रहे, तो रेखा को यहीं छोड़ जाएंगे.’

रेखा भी कुछ नहीं कर सकी. उन लोगों ने रेखा को 2 दिन तक अपने पास रखा और उस के साथ रेप किया. 2 दिन बाद रात को रेखा को वहीं छोड़ दिया गया, जहां से उसे उठाया था.

रेखा होटल गई. वह पुलिस में शिकायत दर्ज कराना चाहती थी, पर डीजे वालों ने उसे मना किया. तब मजबूरी में वह चुप हो गई. रेखा अब बिहार ही नहीं, उत्तर प्रदेश के किसी भी कार्यक्रम में नहीं जाती है.

डांसर को दी धमकी

भोजपुरी फिल्मों में डांस करने वाली एक लड़की शादी के समारोह में गैस्ट बन कर डांस करने गई थी. वहां उसे कुछ खास लोगों के सामने ही डांस करने को कहा गया था. गैस्ट हाउस के कमरे में एक जगह डांस हो रहा था. कई लोग डांसर से चिपकचिपक कर डांस करने लगे.

डांस करते समय एक नौजवान डांसर के बेहद करीब आ कर डांस करने लगा. डांसर ने उस को अपने से दूर करने की कोशिश की, इस के बाद भी वह नहीं माना और डांसर के अंगों को यहांवहां छूने लगा.

डांसर ने उसे मना किया, तो रिवौल्वर निकाल कर उस की कनपटी पर लगा दी. यह बात आयोजक और गैस्ट हाउस के मालिक तक पहुंच गई. वे लोग भाग कर आए, तो डांसर की जान बच सकी.

डांसर रेखा कहती है, ‘‘डांसर भले ही सब के मनोरंजन का ध्यान रख कर स्टेज पर अपनी कला दिखाती हो, पर नशे में चूर देखने वालों की नजर में उस की कीमत देह बेचने वाली जैसी होती है. उन्हें लगता है कि डांसर का परिवार नहीं होता. वह अच्छे चालचलन वाली नहीं होती है. ऐसे लोग डांसर की तुलना धंधे वाली से करते हैं.

‘‘इस के उलट डांसर अपनी मेहनत से पैसे कमाती है. उस का भी पसीना निकलता है. डांस करना उस का पेशा होता है. उस के पास सरकारी नौकरी नहीं होती. उसे समाज से भी सिक्योरिटी नहीं मिलती.

‘‘स्टेज डांस से लोगों का मनोरंजन होता है, पर डांसर की जान पर बनी रहती है. लोग यह नहीं सोचते कि अपने घरपरिवार को पालने के लिए डांसर ऐसा करती है.’’

शर्म से झुक गया शहर

लखनऊ के एक रिसोर्ट में पार्टी चल रही थी. पार्टी में डांस और खाना परोसने के लिए कुछ लड़कियों को इवैंट मैनेजर ने बुलाया था. पार्टी के लिए हाल के साथ 3 कमरे भी किराए पर लिए गए थे.

पार्टी के समय ही कुछ लोगों ने नशे में डांस कर रही लड़कियों और खाना परोस रही लड़कियों से छेड़छाड़ शुरू कर दी. जब लड़कियों ने विरोध किया, तो उन को एक कमरे में जबरन बंद कर उन के साथ जोरजबरदस्ती शुरू कर दी.

लड़कियों ने किसी तरह से इस बात की जानकारी इवैंट मैनेजर को दी, तब जा कर वे अपनी जान बचा सकीं.

इस बात की शिकायत लखनऊ पुलिस से की गई. पुलिस ने रिसोर्ट के मैनेजर और पार्टी के आयोजकों समेत वहां मौजूद कई लोगों के खिलाफ मुकदमा कायम किया.

पुलिस की तेजी के चलते लड़कियों की इज्जत बच गई. इस के बाद भी घटना की जानकारी जब लोगों के सामने आई, तो अदब के शहर में रहने वालों का सिर शर्म से झुक गया. लखनऊ भी ऐसे शहरों की लाइन में खड़ा हो गया, जिस में बाकी शहर खड़े थे.

लखनऊ में डांस शो का आयोजन करने वाले एक इवेंट मैनेजर कहते हैं, ‘‘डांस करने वाली लड़कियों को ले कर समाज की सोच में बदलाव आने के साथ ही साथ ऐसे लोगों में कानून का डर होना चाहिए. डांसर के साथ इस तरह की घटनाएं ज्यादातर ऐसे प्रदेशों में होती हैं, जहां की कानून व्यवस्था खराब है. जहां शिकायत करने पर पुलिस समय पर नहीं पहुंचती है.

‘‘महाराष्ट्र और दूसरी जगहों पर उत्तजेक डांस होने के बाद भी कोई घटना नहीं होती, वहीं दूसरी तरफ पंजाब में शालीन कपड़े पहन कर डांस करने वाली डांसर पर गोली चल जाती है. इस की चर्चा एक  महीने के बाद तब होती है, जब घटना का वीडियो वायरल होता है.’’

लेनदेन पर मनमानी

केवल डांस देखते समय ही मनमानी नहीं होती है, बल्कि डांस के बदले पैसा देते समय भी इवैंट मैनेजर और डांस ग्रुप चलाने वालों को तरहतरह से परेशान किया जाता है.

आगरा की रहने वाली सरिता डांस ग्रुप चलाती हैं. उन के ग्रुप में 4 लड़कियां और 3 लड़के होते हैं. वे अपने शो के लिए 35 से 50 हजार रुपए लेती हैं.

सरिता कहती हैं, ‘‘डांस ग्रुप को बुक कराते समय लोग पूरा पैसा नहीं देते. कई बार कुछ पैसे दे कर बाकी का चैक दे देते हैं, जो बाउंस हो जाता है. ऐसे में पैसा लेने के लिए हमें कईकई चक्कर लगाने पड़ते हैं.

‘‘कई बार लोग पैसा देने के नाम पर डांसर लड़कियों के साथ सैक्स संबंध बनाने का दबाव डालते हैं. परेशानी की बात यह है कि कई डांस ग्रुप वाले ज्यादा पैसा लेने के लिए ऐसे समझौते कर जाते हैं, जिस से दूसरों पर भी ऐसा करने का दबाव बनता है.’’

डांस ग्रुप में डांस करने वाली एक लड़की विशाखा बताती है, ‘‘स्टेज पर डांस करते समय या पार्टी में डांस के समय लोग चाहते हैं कि डांसर कम से कम कपड़े पहने. कई बार तो ऐसे कपड़ों को पहनने की डिमांड करते हैं, जिन को पहन कर डांस करना मुनासिब नहीं होता है.

‘‘डांस ग्रुप चलाने वाले लोग पैसा कमाने के लिए हर तरह के समझौते करते हैं. हमें तो कम पैसे मिलते हैं, पर सब से ज्यादा मुसीबत हमें ही झेलनी पड़ती है. डांस करने वाली ज्यादातर लड़कियां कम उम्र की होती हैं. उन में उतना अनुभव भी नहीं होता. इस वजह से वे हालात को संभाल नहीं पाती हैं.’’

किसी डांसर को तमाम तरह के समझौते करने पड़ते हैं, तब कहीं उस को चार पैसे मिलते हैं. डांस ग्रुप के लोग भी उसे तब तक ही बुलाते हैं, जब तक वह नई रहती है.

डांस ग्रुप चलाने वाले लोग कई बार डांसर को बंधुआ मजदूर की तरह रखना चाहते हैं. वे यह कोशिश करते हैं कि डांसर केवल उन के ग्रुप के साथ ही डांस करे. जब डांसर ज्यादा पैसे देने वाले दूसरे ग्रुप के साथ जाना चाहती है, तो वे लोग उस का विरोध करते हैं.

विशाखा बताती है कि डांसर के सामने भी तमाम परेशानियां होती हैं, इस के बाद भी वह खुल कर अपनी बात कह नहीं पाती है. अगर कोई डांसर अपने साथ हुई वारदात की शिकायत करती है, तो डीजे चलानेवाले और डांस ग्रुप चलाने वाले उसे झगड़ा करने वाली मान कर उस के साथ काम नहीं करते. ऐसे में डांसर भी छोटीछोटी वारदातों में चुप रह जाती है.

(जिन डांसरों से बात हुई है, उन के नाम बदल दिए गए हैं)     

चार्ल्स शोभराज : नेपाल से छूटा, फ्रांस में बसा – भाग 1

जितने भी जघन्य अपराध चार्ल्स शोभराज ने किए, उन के लिए एक हद तक ही उसे दोषी ठहराया जा सकता है. क्योंकि गलत नहीं कहा जाता कि मां के पेट से कोई मुजरिम नहीं बल्कि एक बच्चा पैदा होता है, जो कच्ची मिट्टी की तरह होता है. जैसी परवरिश, माहौल और हालात उसे मिलते हैं, वह उन में ढलता जाता है.

चार्ल्स शोभराज बीती 21 दिसंबर को 19 साल की लंबी सजा काटने के बाद नेपाल की एक जेल से रिहा हुआ. वह जुर्म की दुनिया में एक किंवदंती बन चुका है, जो रिहाई के बाद भी सुर्खियों में रहा.

उसे देख कर लगता नहीं कि वह कभी खूंखार और पेशेवर मुजरिम रहा होगा. जब वह जेल से बाहर आया तो एक संभ्रांत, रईस और समझदार बुजुर्ग लग रहा था. एकदम फिट चुस्तदुरुस्त ठीक वैसा ही जैसा अपनी जवानी के दिनों में दिखता था. एक कामयाब स्मार्ट बिजनैसमैन, एक मौडल या फिर कोई बड़ा आफीसर.

चार्ल्स की जिंदगी की कहानी वाकई फिल्मों जैसी है, जिस में उतारचढ़ावों की भरमार है. उस में रहस्य है, रोमांच है, उस से भी ज्यादा रोमांस है, हिंसा है, चालाकी भी है. और यह खतरनाक मैसेज भी कि जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास और जोखिम भी कभीकभी दुनिया, समाज, सभ्यता और शांति के लिए खतरा बन जाते हैं, बशर्ते उन्हें सही दिशा न मिले तो. यही सब चार्ल्स के साथ हुआ था.

शोभराज एक अंतरराष्ट्रीय प्रेम कथा का पात्र है जिस का पूरा नाम चार्ल्स गुरुमुख शोभराज होतचंद भवनानी कभी हुआ करता था. कहानी 1940 के दशक से शुरू होती है, जब पूरी दुनिया अस्थिरता के दौर से गुजर रही थी. लोग कमाने, खाने और सेटल होने की चिंता में यहां से वहां पलायन कर रहे थे. भारत भी इस से अछूता नहीं था.

इसी दौर में बड़ी तादाद में भारतीय रोजगार की तलाश में यूरोप और दीगर देशों की तरफ भाग रहे थे, जिन्हें गिरमिटिया के खिताब से नवाजा गया था.

ऐसा ही एक महत्त्वाकांक्षी शख्स था शोभराज हेचर्ड भवनानी, जो सिंधी समुदाय से था. पेशे से दरजी और कपड़ा व्यवसायी. भवनानी 1940 के लगभग वियतनाम गए थे और फिर वहीं के हो कर रह गए.

उन्होंने दक्षिणी वियतनाम के सब से बड़े शहर साइगन में डेरा डाला और थोड़ाबहुत पैसा कमाने के बाद जैसा कि आमतौर पर विदेश जाने वाले लोग करते हैं, प्यार करने लगे. उन की प्रेमिका का नाम था त्रान लोआंग फुन, वह पेशे से सेल्सगर्ल थी.

साइगन शहर, जो अब हो ची मिन्ह के नाम से जाना जाता है, में हेचर्ड ने टेलरिंग की दुकान खोल ली जो ठीकठाक चलती थी. हेचर्ड और त्रान एकदूसरे से प्यार करने लगे, लेकिन उन्होंने शादी नहीं की बल्कि लिविंग टुगेदर में रहे. इन दोनों के प्यार की निशानी एक बेटे की शक्ल में 6 अप्रैल, 1944 को दुनिया में आई, जिसे आज दुनिया चार्ल्स शोभराज के नाम से जानती है.

मांबाप के प्यार से वंचित रहा बचपन

इस वक्त में वियतनाम में कुछ भी ठीक नहीं था. देश फ्रांस से आजाद होने के लिए छटपटा रहा था. राजनीतिक और सामाजिक अस्तव्यस्तता के अलावा हिंसा के चलते लोग सहज तरीके से न तो रह पा रहे थे और न ही बेफिक्री से जी पा रहे थे.

शोभराज चूंकि फ्रांसीसी उपनिवेश में पैदा हुआ था, इसलिए कानून के मुताबिक उसे फ्रांस की नागरिकता मिल गई. यह बाद की बात है कि वह किसी सीमा से बंधा नहीं रहा बल्कि जुर्म के लिए उस ने आधी दुनिया की सैर की और जहां भी गया, वहीं खौफनाक वारदातों को अंजाम दिया और अपने नाम और काम के झंडे गाड़ कर आया.

बचपन में वह उतना ही मासूम था, जितना कि संकर नस्ल के एक बच्चे को होना चाहिए. लेकिन उस की मासूमियत परवान नहीं चढ़ पाई. क्योंकि जल्द ही हेचर्ड और त्रान अलग हो गए. तब शोभराज की उम्र इतनी नहीं थी कि वह साथ रहने के और अलगाव के रत्ती भर भी माने समझता.

हालांकि चार्ल्स शोभराज बनने के बाद भी शायद ही वह कभी समझ पाया हो कि मांबाप अलग क्यों हो गए थे और क्यों पिता ने उसे कभी अपनाया नहीं, जिस के सीने से लगने के लिए वह जिंदगी भर तरसता रहा.

हेचर्ड और त्रान को अलग होने का कोई मलाल नहीं हुआ. शोभराज मां के हिस्से में आया जिस ने फ्रांसीसी सैन्य अधिकारी अलफोंस डार्यु से शादी कर ली. जो एक तरह से शोभराज का सौतेला लेकिन ऐसा वैधानिक पिता हो गया, जिस ने कभी उसे अपना नाम नहीं दिया.

हालांकि सौतेले पिता की तरह अलफोंस ने कभी शोभराज के प्रति क्रूरता नहीं दिखाई, लेकिन कभी पिता की तरह दुलारा भी नहीं. पत्नी के प्रेमी का बेटा होने के नाते शोभराज बस उस के लिए था, इस से ज्यादा कुछ नहीं था. यानी वह पिता के प्यार और गोद से महरूम रहा और यह बात जिंदगी भर शोभराज को सालती भी रही.

लेकिन धीरेधीरे शोभराज का मन सौतेले पिता के प्रति भी आक्रोश से भरने लगा. क्योंकि वह अपने सगे बेटे यानी शोभराज के सौतेले भाई आंद्रे को तो प्यार करते थे. मां का झुकाव भी आंदे्र की तरफ बढ़ने लगा था. यही आंद्रे जवान हो कर शोभराज के कई अपराधों में सहयोगी भी रहा.

दुनिया समझते और होश संभालते शोभराज के लिए यह सब असहनीय और तकलीफदेह था, जो अपने आप से ही सवाल करता रहता था कि आखिर मेरा कसूर क्या है, जो मुझे मांबाप का प्यार नहीं मिला. मुझे किस गलती की सजा भुगतनी पड़ रही है.

एक उपेक्षित और त्रासद बचपन गुजारने के बाद शोभराज जब किशोर हुआ तो उस ने सवाल पूछना, रोनागाना और झींकना छोड़ दिया और अपने कदम जुर्म की दुनिया में दाखिल कर दिए. पर यह एहसास तब उसे भी नहीं रहा होगा कि वह बड़ा नामी चर्चित और कुख्यात मुजरिम बन जाएगा.

इस के पहले चार्ल्स को एक फ्रेंच बोर्डिंग स्कूल भेजा गया था, जो उस के लिए एक बेकार की जगह थी. वहां उस का मन नहीं लगा और अकसर वह गैरहाजिर रहता था और जब हाजिर रहता था तो टीचर्स के लिए खासी सिरदर्दी पैदा करता रहता था.

अकसर जो बच्चे उपेक्षा और मांबाप की मजबूरी में पलते हैं, उन की जिंदगी आसान नहीं होती. वे प्रतिशोध और भड़ास से भरे होते हैं. यही शोभराज के साथ हो रहा था, जिस के सिर पर किसी का हाथ नहीं था. कोई संरक्षण नहीं था.

स्ट्रीट जस्टिस : सजा देने का नया तरीका – भाग 1

पंजाब में पिछले लंबे अरसे से नशा भारी परेशानी का सबब बना हुआ है. इस बार सूबे में कांग्रेस की सरकार बनने के पीछे का मुख्य कारण भी यही था. क्योंकि कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में पंजाब से नशे को समूल खत्म करने का वादा किया था.

17 मार्च, 2017 को पंजाब राजभवन में प्रदेश के 26वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेते समय कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस की इस घोषणा को एक बार फिर से दोहराया था कि आने वाले एक महीने में उन की सरकार पंजाब से नशे का नामोनिशान मिटा देगी.

इस के बाद जल्दी ही एडीजीपी हरप्रीत सिंह सिद्धू की अगुवाई में एक स्पैशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन किया गया, जिस में करीब 2 दर्जन आईपीएस और पीपीएस अधिकारियों के अलावा अन्य अफसरों को शामिल किया गया. इन का काम युद्धस्तर पर काररवाई कर के नशा कारोबारियों को काबू कर के पंजाब से ड्रग्स के धंधे को पूरी तरह मिटाना था.

एसटीएफ को मुखबिरों से इस तरह की जानकारी मिलती रहती थी कि पंजाब में ड्रग्स के धंधे के पीछे न केवल एक बड़ा माफिया काम कर रहा है, बल्कि कई बड़े कारोबारी और पुलिसकर्मी भी इस काम में लगे हैं. बीते 3 सालों में पंजाब पुलिस के ही 61 कर्मचारी नशे का धंधा करने के आरोप में गिरफ्तार किए जा चुके हैं. इन में इंटेलीजेंस के कर्मचारियों के अलावा होमगार्ड के जवान, सिपाही, हवलदार और डीएसपी जैसे अधिकारी तक शामिल थे.

लेकिन मुख्यमंत्री के आदेश पर बनी हाईप्रोफाइल एसटीएफ के हत्थे अभी तक कोई भी नशा कारोबारी नहीं चढ़ा. थाना पुलिस द्वारा नशे के छोटेमोटे धंधेबाजों को नशे की थोड़ीबहुत खेप के साथ अलगअलग जगहों से धरपकड़ जरूर चल रही थी. पर एसटीएफ का कोई कारनामा अभी सामने नहीं आया.

crime

शायद ये लोग छोटी मछलियों के बजाय किसी बड़े मगरमच्छ पर जाल फेंकने की फिराक में थे. जो भी हो, आम लोग इस बुरी लत से परेशान थे. पुलिस पर से भी लोगों का विश्वास उठता जा रहा था. बड़ेबड़े कथित ड्रग स्मगलर अदालत से बाइज्जत बरी हो रहे थे. इस समस्या का कोई सीधा समाधान नजर नहीं आ रहा था. जबकि नशे की चपेट में आ कर घर के घर बरबाद हो रहे थे.

बरसों पहले पंजाब में पनपे आतंकवाद पर जब काबू पाना मुश्किल हो गया था तो लोगों ने अपने दम पर आतंकियों से लोहा ले कर उन्हें धराशाई करना शुरू कर दिया था. इस का बहुत ही अच्छा परिणाम भी सामने आया था. जागरूक एवं दिलेर किस्म के लोगों द्वारा उठाए गए इस कदम ने आतंकवाद के ताबूत में आखिरी कील का काम किया था.

अब नशे के मुद्दे पर भी तमाम लोगों की सोच इसी तरह की बनने लगी थी. यहां हम जिस युवक का जिक्र कर रहे हैं, उस का नाम विनोद कुमार उर्फ सोनू अरोड़ा था. उस पर नशे का कारोबार करने का आरोप था.

बताया जाता है कि बठिंडा के कस्बा तलवंडी साबो और आसपास के इलाकों में नशा सप्लाई कर के उस ने तमाम युवकों को नशे की लत लगा दी थी. इन इलाकों के लोग उस से बहुत परेशान थे और उसे समझासमझा कर थक चुके थे. उस पर किसी के कहने का कोई असर नहीं हो रहा था. धमकाने पर भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था.

पास ही के गांव भागीवांदर के लोग तो उस से बेहद खफा थे. वहां के कई आदमी उस के खिलाफ शिकायतें ले कर पुलिस के पास गए थे. पुलिस उस के खिलाफ केस दर्ज कर भी लेती थी, लेकिन वह अदालत से जमानत पर छूट जाता था. नशा तस्करी के 5 केस उस पर दर्ज थे.

विनोद कई बार जेल जा चुका था, लेकिन जमानत पर छूटते ही फिर से इस गलीज धंधे में लग जाता था. 22 मई, 2017 को पुलिस ने उस के पिता विजय कुमार पर भी स्मैक का केस दर्ज किया था, जिस के बाद से वह मौडर्न जेल, गोबिंदपुरा में बंद था.

8 जून, 2017 की बात है. सुबह करीब 9 बजे का वक्त था. विनोद अपनी मोटरसाइकिल पर तलवंडी साबो से अपने गांव लेलेवाल जा रहा था. इस गांव में जाने के लिए मुख्य सड़क से लिंक रोड मुड़ती है. विनोद उसी लिंक रोड पर पहुंचा था कि स्कौर्पियो गाड़ी व टै्रक्टर ट्रौली पर सवार दर्जनों लोगों ने पास आ कर उसे चारों तरफ से घेर लिया. उन के पास पिस्तौलें, लोहे की मोटीमोटी छड़ें, हैंडपंप के हत्थे और गंडासे वगैरह थे.

अनहोनी को भांप कर विनोद फिल्मी अंदाज से बचताबचाता लेलेवाल की ओर भागा. पीछा कर रहे लोग उधर भी उस का पीछा करते रहे. उस समय उस की मोटरसाइकिल की रफ्तार बहुत तेज थी, जिस की वजह से वह अपने घर पहुंच गया. लेकिन मोटरसाइकिल से उतर कर विनोद घर के भीतर घुस पाता, उस के पहले ही लोगों ने उसे पकड़ कर पीटना शुरू कर दिया. इस के बाद उसे स्कौर्पियो में डाल कर गांव भागीवांदर ले गए.

वहां खुले रास्ते पर लिटा कर पहले तो उन्होंने उस की जम कर बेरहमी से पिटाई शुरू कर दी. उस के बाद गंडासे से उस का एक हाथ और दोनों पैर काट दिए. यह सब करते समय कई लोगों ने इस घटना की वीडियो बना कर इस चेतावनी के साथ सोशल मीडिया पर डाल दिया कि आगे से जो भी नशे के धंधे में लिप्त पाया जाएगा, उस का ऐसा ही हश्र होगा. क्योंकि पंजाब से नशा मिटाने का अब और कोई रास्ता नहीं बचा है.

इस बीच जमीन पर लहूलुहान पड़ा विनोद उन लोगों से दया की भीख मांगता रहा, लेकिन किसी को उस पर दया नहीं आई. लोग उस पर फब्तियां कस रहे थे कि अब वह अपने उन आकाओं को क्यों नहीं बुलाता, जिन के साथ मिल कर ड्रग्स का धंधा कर के उन की नौजवान पीढ़ी को नशे के अग्निकुंड में झोंक रहा था.

विनोद पर तरस खाना तो दूर की बात, पूरा गांव यही चाह रहा था कि वह तिलतिल कर के मौत के आगोश में समाए और उस के इस लोमहर्षक अंत का नजारा वे लोग भी देखें, जो नशे के हक में हैं. जमीन पर लहूलुहान पड़ा विनोद शायद कुछ देर बाद वहीं दम तोड़ भी देता, लेकिन किसी तरह बात पुलिस तक पहुंच गई.