चार्ल्स शोभराज : नेपाल से छूटा, फ्रांस में बसा – भाग 2

पहला प्यार और पहला अपराध

जिंदगी का सफर और अपनी मंजिल खुद तय करने की चुनौती से जूझता शोभराज, जैसा कि ऐसे मामलों में डर रहता है, अपराध की तरफ चल पड़ा और इतनी तेजी से चला कि लोग ताकते रह गए. क्योंकि शोभराज ने कभी मुड़ कर अपने नन्हे कदमों के निशान भी नहीं देखे.

अब दुनिया खुली किताब की शक्ल में शोभराज की आंखों के सामने थी, जिसे अपने मुताबिक पढ़ने और समझने की आजादी उसे थी. एक आवारा किशोर कैसे दुनिया को पढ़ता और समझता है, यह जल्द ही उस के पहले अपराध ने जता दिया, जो बहुत मामूली था.

कोई नौकरी या मेहनत वाला काम उस ने नहीं चुना, बल्कि युवा जीवन या करिअर कुछ भी कह लें, की शुरुआत साल 1963 में 19 साल की उम्र में पेरिस के एक घर में चोरी कर की. इस जुर्म में पहली दफा उसे जेल हुई और कुछ महीनों की सजा काटने के बाद वह रिहा भी हो गया.

इन कुछ महीनों ने ही उस की आने वाली जिंदगी की कहानी लिख दी. जेल में उस का वास्ता कई पेशेवर अपराधियों से पड़ा, जिन से बजाय सबक लेने के, शोभराज ने अपराध की दुनिया का सिलेबस पढ़ते हुए नएनए गुर सीखे.

यह वक्त हिंदी फिल्मों के उन दृश्यों सरीखा था, जिन में जेल में सजा काटने आए कम उम्र अपराधी को लंबी सजा काट रहे खतरनाक और खूंखार मुजरिम ट्रेनिंग देते यह भी बताते और सिखाते हैं कि अपराध करने के बाद कानून और पुलिस से कैसे बचा जाता है. जेल से इस शौर्ट टर्म कोर्स को पूरा करने के बाद शोभराज जब बाहर आया तो न केवल उस की दुनिया बदल गई थी बल्कि वह भी बहुत कुछ बदल गया था.

अब वह बड़ीबड़ी चोरियां करने लगा था. पेरिस के कई नामी मुलजिम उस के दोस्त बन गए थे, लिहाजा उस का नाम भी बड़े अपराधियों में शुमार होने लगा था. इसी दौरान शोभराज को पहली दफा प्यार हुआ जो मन और तन दोनों की मांग और जरूरत बन गया था.

कई बार अपराध की शुरुआत करने वालों को प्रेमिका सलीके और संस्कार वाली मिल जाए तो वे अपनी राह बदल भी देते हैं. लेकिन शोभराज को जिस युवती शातल डेस्त्रायार्स से प्यार हुआ, उस ने कोई दुहाई शराफत और मेहनत की जिंदगी जीने की नहीं दी. उलटे जिस दिन उस ने अपनी इस पहली प्रेमिका को पार्क में प्रपोज किया, उसी दिन पुलिस ने उसे धर लिया.

इस दिलचस्प घटना में शोभराज जब शातल से मिल कर पार्क के बाहर उस के ही साथ बाहर निकला तो फिल्मी स्टाइल में पुलिस ‘यू आर अंडर अरेस्ट’ कहते उस के स्वागत में तैयार खड़ी थी.

दरअसल, जिस बाइक से शोभराज शातल से मिलने गया था, वह उस ने 2 दिन पहले ही चुराई थी. नतीजतन वह फिर जेल की सलाखों के पीछे था. जब छूट कर बाहर आया तो शाटल उस के इंतजार में खड़ी थी. जल्द ही दोनों ने शादी कर ली और फिर दोनों को एक खूबसूरत बेटा हुआ, जिस का नाम उन्होंने प्यार से फ्रैंक रखा.

यह रिश्ता ज्यादा चला नहीं और 1969 में दोनों अलग हो गए. ठीक वैसे ही जैसे कभी शोभराज के मांबाप हेचर्ड और त्रान अलग हुए थे. लेकिन इन के अलग होने की वजह बनी निहायत ही खूबसूरत युवती चैंटल काम्पेग्नन, जो पेरिस की रहने वाली थी और धार्मिक प्रवृत्ति की थी.

चैंटल पर शोभराज इस तरह फिदा हुआ कि उस ने पहली पत्नी और बेटे को छोड़ दिया और 8 महीने बाद चैंटल से शादी कर ली. यह भी बड़ी फिल्मी सी बात है कि इन दोनों की शादी के ठीक एक दिन पहले शातल ने शोभराज की दूसरी संतान को जन्म दिया. यह बेटी थी जिस का नाम म्यूरिल अनौक रखा गया.

अब तक शोभराज जुर्म की दुनिया में जानापहचाना जाने लगा था, क्योंकि अब वह बड़ी वारदातों को अंजाम देने लगा था. उस ने अपना कार्यक्षेत्र भी बढ़ा लिया था. दूसरी पत्नी चैंटल तो और उस्ताद निकली जो जुर्म के रास्ते पर भी उस की संगिनी थी.

पेरिस से सीधे मुंबई में डाला डेरा

दोनों अब पेरिस में मशहूर हो गए थे, इसलिए पहचाने जाने का डर हर वक्त उन पर  मंडराता रहता था. साल 1970 के लगभग इन दोनों ने फ्रांस ही छोड़ने का फैसला ले लिया. तब चैंटल गर्भवती थी.

दोनों ने दुनिया का नक्शा खोला और मुंबई पर गोल घेरा बना कर वहां जा कर डेरा भी डाल दिया. इस मायानगरी के बारे में गलत नहीं कहा जाता कि यह जोखिम उठाने वाले हिम्मती लोगों को निराश नहीं करती.

कुछ दिन दोनों ने मुंबई की आबोहवा सूंघी, लेकिन चैंटल का मन मुंबई में लगा नहीं. यहीं उस ने एक सुंदर बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम शोभराज ने उषा रखा. भारतीय नाम रखने के पीछे उस की मंशा क्या थी, यह तो वह भी नहीं समझ पाया कि यह पिता के वतन के प्रति लगाव है या माहौल का असर है.

अभी उषा को गोद में आए चंद दिन ही हुए थे कि एकाएक ही चैंटल ने शोभराज से साफसाफ कह दिया कि अब अपराधों में उस का साथ देना तो दूर की बात है, वह उसे भी अपराध नहीं करने देगी.

इस हृदय परिवर्तन की कोई घोषित वजह नहीं थी, लेकिन यह एक ठीक और सही वक्त पर लिया गया समझदारी भरा फैसला था. क्योंकि दोनों जुर्म की दुनिया में इतने दूर नहीं आए थे कि शरीफों की दुनिया में वापस न जा पाएं.

शोभराज पत्नी की बात मान लेता तो तय है कि एक सुखद और बेहतर गृहस्थ जीवन जी रहा होता. लेकिन उस का खुराफाती दिमाग जिस में तरहतरह के कीड़े बिलबिला रहे थे, इस के लिए तैयार नहीं हुआ.

चैंटल ने भी त्रिया हठ की तर्ज पर साफसाफ चेतावनी दे दी कि या तो मुझे चुन लो या फिर अपराधों को. तो बिना वक्त गंवाए शोभराज ने जुर्म का रास्ता चुना. इस पर हताश और निराश हो कर चैंटल वापस फ्रांस लौट गई और आइंदा कभी शोभराज से न मिलने की कसम खा ली.

शोभराज की सेहत और इरादों पर पत्नी के यूं खफा हो कर चले जाने का रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा. उलटे वह एक बंधन से आजाद हो गया. इसी आजादी ने एक ऐसे अपराधी को जन्म दिया, जिस के कारनामे और करतूतें देख हर किसी ने दांतों तले अंगुली दबा ली.

देखते ही देखते चार्ल्स शोभराज जुर्म की दुनिया का ऐसा बादशाह बन गया, जिस के नाम से समूचे एशिया की पुलिस अलर्ट हो गई थी.

स्ट्रीट जस्टिस : सजा देने का नया तरीका – भाग 2

पुलिस की एक टीम ने मौके पर पहुंच कर बिना देर किए एंबुलेंस बुला कर जल्दी से जल्दी विनोद को अस्पताल ले जाने की व्यवस्था की. लेकिन लोगों के भारी विरोध के चलते पुलिस को इस काम में एक घंटे का समय लग गया. इस बीच विनोद के शरीर से लगातार खून बहता रहा. हालांकि उस हालत में भी वह पुलिस वालों को घटना के बारे में बताता रहा, जिसे एएसआई गुरमेज सिंह दर्ज करते रहे.

ठीक एक घंटे बाद एंबुलेंस विनोद को ले कर तलवंडी साबो के सरकारी अस्पताल के लिए रवाना हुई तो लोगों का समूह उस के पहुंचने से पहले ही वहां पहुंच कर अस्पताल के मुख्य गेट को घेर कर खड़ा हो गया. यहां भी एंबुलेंस का घेराव कर के विनोद को अस्पताल के भीतर नहीं जाने दिया गया. लोगों ने एंबुलेंस को लगातार 3 घंटे तक घेरे रखा.

काफी मशक्कत के बाद पुलिस किसी तरह विनोद को फरीदकोट के सरकारी मैडिकल कालेज एवं अस्पताल ले जाने में सफल हो पाई. लेकिन तब तक विनोद ने दम तोड़ दिया था. एएसआई गुरमेज सिंह के पास उस का बयान दर्ज था. उसी बयान को तहरीर के रूप में ले कर पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ कत्ल का मुकदमा दर्ज कर लिया.

अगली सुबह पुलिस मामले की जांच के लिए गांव भागीवांदर पहुंची तो वहां अजीब नजारा सामने आया. 4 हजार की आबादी वाले इस गांव के तमाम लोग इस अपराध की स्वीकृति के साथ आत्मसमर्पण को तैयार थे कि ड्रग सप्लायर विनोद का कत्ल उन सब ने मिल कर किया था.

उन लोगों में बुजुर्ग, जवान, पुरुषमहिलाओं के अलावा किशोर और छोटेछोटे बच्चे तक शामिल थे. सभी अपनी गिरफ्तारी देने को तो तैयार थे. उन का कहना था कि एक ड्रग सप्लायर को इस तरह मारने का उन्हें कोई अफसोस नहीं है. आगे भी इस इलाके में नशा बेचने वाले का यही हश्र होगा.

स्थिति को देखते हुए पुलिस के लिए गांव के किसी शख्स से पूछताछ करना तो दूर की बात, मामले की जांच तक करना मुश्किल हो गया. इस के बाद पुलिस ने गांव लेलेवाल पहुंच कर विनोद के परिवार वालों से संपर्क किया. वे सभी अपने घर में दुबके बैठे थे. हालांकि पुलिस वालों पर उन्होंने अपनी भड़ास खूब निकाली. उन लोगों को डर था कि कहीं उन पर भी जानलेवा हमला न हो जाए.

उन लोगों की आशंका जायज थी. लिहाजा उन के घर पर पुलिस का सशस्त्र दस्ता तैनात कर दिया गया. उसी दिन फरीदकोट मैडिकल कालेज में डाक्टरों के एक पैनल ने विनोद की लाश का पोस्टमार्टम कर के उसे पुलिस वालों को सौंप दिया.

पुलिस ने लाश लेने का संदेश विनोद के घर वालों तक पहुंचा दिया, लेकिन उन लोगों ने यह कह कर शव लेने से इनकार कर दिया कि पुलिस उन्हें न्याय दिलाने की जरा भी कोशिश नहीं कर रही है.

एएसआई गुरमेज सिंह को दिए अपने बयान में विनोद ने उस पर हमला करने वालों के नाम स्पष्ट बताए थे. वे अच्छीखासी संख्या में इकट्ठा हो कर आए थे. उन के पास मारक हथियार भी थे. जबकि पुलिस ने केवल धारा 302 (हत्या) का मुकदमा अज्ञात हमलावरों के खिलाफ दर्ज किया था और अब इस लोमहर्षक हत्याकांड के असली मुजरिमों को बचाने की पूरी कोशिश कर रही है.

पुलिस ने इस बारे में समझाने की कोशिश की तो वे भड़क उठे थे. बाद में उन का कहना था कि समुद्र में रह कर मगरमच्छों से बैर न रखने वाले मुहावरे का हवाला दे कर पुलिस ने उन्हें कथित आरोपियों से समझौता कर लेने की सलाह दी थी. विनोद की 3 बहनों बबली, वीरपाल और अमनदीप कौर ने पहले तो रोरो कर आसमान सिर पर उठाया, उस के बाद पंखों से लटक कर आत्महत्या करने की कोशिश भी की.

पुलिस ने तत्काल एक्शन लेते हुए उन की यह कोशिश नाकाम कर दी. पर यह मामला घर वालों की ओर से कुछ ज्यादा ही गंभीर होने लगा था. अब तक तमाम लोग उन की हिमायत में भी आ गए थे और पुलिस के खिलाफ आवाज बुलंद करने लगे थे.

उन का कहना था कि किसी को इस तरह सरेआम मार दिया गया तो पुलिस को हत्यारों के दबाव में न आ कर अपनी काररवाई करनी चाहिए. कायदे से मुकदमा दर्ज कर के वांछित अभियुक्तों को नामजद कर उन्हें गिरफ्तार करना चाहिए. इस तरह तो दबंग लोग कानून को धता दिखा कर कुछ भी मनमानी करने लगेंगे.

प्रियंका को मिला मौत का शेयर – भाग 2

आशीष साहू ने आत्मविश्वास से लबरेज हो कर कहा, ‘‘हंडरेड परसेंट, मैं तुम्हें शेयर मार्केट में कमा कर ही दूंगा मगर…’’

‘‘मगर…मगर क्या?’’ प्रियंका आशंकित हुई.

आशीष साहू ने कहा, ‘‘चलो कोई बात नहीं, मैं देख लूंगा तुम्हें नुकसान नहीं होने दूंगा.’’

उसे लगा कि कहीं वह यह कह देगा कि शेयर में नुकसान भी हो जाता है कभीकभी तो प्रियंका शायद उस से आगे बात भी न करे.

आशीष साहू से बात कर के प्रियंका को आज एक नई मंजिल दिखाई देने लगी. उस ने फैसला किया कि वह भी शेयर मार्केट में रुपए लगाएगी और आशीष जैसा शेयर मार्केट का सधा हुआ खिलाड़ी जब उसे मिल गया है तो वह कमा कर देगा ही देगा.

प्रियंका ने कुछ ही दिनों में 5 लाख रुपए उस के अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए और कहा, ‘‘यह पैसे हैं मैं ने किसी तरह इकट्ठे कर के रखे थे, तुम्हें दे रही हूं.’’

‘‘प्रियंका, तुम ने मुझ पर विश्वास किया है, मैं तुम्हें देखना कैसे कमा कर दूंगा.’’ आशीष ने विश्वास दिलाया.

आगे कुछ एक ऐप पर शेयर मार्केट का खेल चलने लगा. प्रियंका उसे रुपए देती और आशीष कुछ समय बाद उसे उस का लाभांश देता तो प्रियंका खुशी से झूम उठती.

आशीष साहू ने धीरेधीरे प्रियंका सिंह का विश्वास पूरी तरह हासिल कर लिया. प्रियंका भी आंखें बंद कर के उस पर विश्वास करने लगी थी.

वह यह मानती थी कि आशीष साहू उस के साथ कभी भी कोई धोखा नहीं कर सकता और इसी विश्वास की बुनियाद पर प्रियंका सिंह ने मां और अन्य जानपहचान वालों से पैसे ले कर आशीष को धीरेधीरे 15 लाख रुपए शेयर मार्केट में इनवैस्ट करने के लिए दे दिए.

इस के बाद इस कहानी में एक नया मोड़ आ गया. एक महीने का लंबा समय हो गया था, आशीष साहू ने उसे शेयर से कमाए पैसे नहीं दिए तो कुछ दिन तक तो प्रियंका यह सोच कर चुप थी कि आशीष खुद फोन कर के उसे खुशखबरी देगा और रुपए उस के अकाउंट में ट्रांसफर करवाएगा.

मगर जब सब्र की सीमा खत्म हो गई तो आखिर प्रियंका सिंह ने आशीष को फोन कर के कहा, ‘‘आशीष, क्या बात है, मुझे घर जाना है और तुम हो कि कई दिनों से मौनी बाबा बन कर बैठ गए हो.’’

आशीष साहू ने तत्काल बात बनाते हुए कहा, ‘‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है, मैं आज आप को पेमेंट दूंगा.’’

मगर उस दिन भी आशीष ने रुपए नहीं दिए तो प्रियंका ने दूसरे दिन फिर फोन पर झल्लाते हुए कहा, ‘‘आशीष, तुम्हें क्या हो गया है मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हो?’’

आशीष साहू ने सौरी बोलते हुए कहा, ‘‘आज निश्चित रूप से आप को पेमेंट मिल जाएगी. दरअसल, अचानक बाहर चला गया था.’’

प्रियंका को धीरेधीरे एहसास होने लगा था कि मामले में कुछ तो पेंच है. आशीष साहू अब पहले जैसी बात और व्यवहार नहीं कर रहा है. फिर सोचा हो सकता है किसी तकलीफ में होगा, बता नहीं रहा है. मगर उस के रुपए वह कभी भी हड़पने का प्रयास नहीं करेगा.

यह सोच कर के प्रियंका सिंह को अच्छा लगा और वह अपने रोजाना के काम में लग गई. दोपहर में जब प्रियंका सिंह आशीष के मैडिकल स्टोर पर पहुंची तो आशीष ने उस का स्वागत किया और बताया कि अभी 5 मिनट में रुपए तुम्हारे अकाउंट में ट्रांसफर करवा देगा.

प्रियंका सिंह के लिए आशीष ने कुछ खाने के लिए स्नैक्स और काफी मंगा ली. कुछ देर दोनों बातें करते रहे. थोड़ी ही देर में प्रियंका के मोबाइल में मैसेज आ गया कि उस के अकाउंट में 4 लाख रुपए आ चुके हैं. इस पर प्रियंका ने आशीष साहू से कहा, ‘‘मेरी परीक्षाएं 20 अक्तूबर को खत्म हो चुकी हैं और मैं  बेवजह तुम्हारे कारण यहीं टिकी हुई हूं.’’

आशीष साहू ने प्रियंका को विश्वास दिलाते हुए कहा, ‘‘तुम घर जाओ, 24 को दीपावली है. मैं त्यौहार के एकदो दिन बाद सारा पैसा आप के खाते में लाभ सहित डलवा दूंगा.’’

प्रियंका के सामने और कोई दूसरा चारा नहीं था. उस ने मन ही मन कुछ सोचा और कहा, ‘‘ठीक है, दीपावाली के एकदो दिन बाद मुझे पूरा पैसा मिल जाना चाहिए.’’

आशीष साहू हंसते हुए बोला, ‘‘मैं ने जो भी कहा है हमेशा उस पर खरा उतरा हूं.’’

प्रियंका ने भी चेहरे पर मुसकराहट लाते हुए कहा, ‘‘मुझे तुम पर विश्वास है. मगर दीपावाली के बाद देखो फिर आगे गड़बड़ नहीं होनी चाहिए.’’ यह कह कर प्रियंका सिंह वहां से चली गई.

16 नवंबर, 2022 बुधवार का शीत भरा दिन था. लोग दिन में भी ठिठुर रहे थे. छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर कोतवाली के टीआई प्रदीप आर्य शहर में गश्त कर रहे थे. तभी लगभग शाम 3 बजे उन के मोबाइल पर एक फोन आया.

उन्होंने रिसीव किया तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘सर, मैं हिमांशु सिंह भिलाई से आया हुआ हूं, आप से मिलना चाहता हूं. दरअसल, मेरी बहन 2 दिनों से लापता है.’’

टीआई प्रदीप आर्य ने कहा, ‘‘मैं आधे घंटे में थाने पहुंच रहा हूं. आप लड़की का फोटो और सारी डिटेल ले कर आ जाओ.’’

कुछ देर बाद जब टीआई प्रदीप आर्य थाने पहुंचे तो हिमांशु रोआंसे स्वर में बोला, ‘‘सर, मैं ही हिमांशु हूं, आप से बात हुई थी. मेरी बहन प्रियंका सिंह 15 नवंबर से लापता है. उस से कोई बातचीत नहीं हो पा रही है, फोन भी बंद है.’’

इस के बाद उस ने प्रियंका सिंह के कुछ फोटो और अन्य दस्तावेज सामने रख दिए.

टीआई प्रदीप आर्य ने उस से विस्तृत जानकारी ली और कहा, ‘‘हिमांशु, तुम चिंता मत करो. पुलिस जल्दी ही प्रियंका के बारे में जरूर पता लगाएगी.’’

दो जासूस और अनोखा रहस्य – भाग 2

‘’साहिल, उठो, आज सोते ही रहोगे क्या ’’

अनीता की आवाज सुन कर साहिल उनींदा सा बोला, ‘‘क्या मां, तुम भी न, आज छुट्टियों का पहला दिन है. आज तो चैन से सोने दो.’’

‘‘ठीक है, सोते रहो, मैं तो इसलिए उठा रही थी कि फैजल तुम से मिलने आया था. चलो, कोई बात नहीं, उसे वापस भेज देती हूं.’’ फैजल का नाम सुनते ही साहिल झटके से उठा, ‘‘फैजल आया है  इतनी सुबहसुबह, जरूर कोई खास बात है. मैं देखता हूं,’’ वह उठा और दौड़ता हुआ बाहर के कमरे में पहुंच गया.

‘‘क्या बात है, फैजल, कोई केस आ गया क्या ’’

‘‘अरे भाई, केस से भी ज्यादा धांसू बात है मेरे पास,’’ हाथ में पकड़ी चिट्ठी को लहराते हुए फैजल बोला, ‘‘देखो, अनवर मामूजान का लैटर आया है, वही जो रामगढ़ में रहते हैं. उन्होंने छुट्टियां बिताने के लिए हम दोनों को वहां बुलाया है. बोलो, चलोगे ’’

‘‘नेकी और पूछपूछ  यह भी कोई मना करने वाली बात है भला. वैसे भी अगर हम ने मना किया, तो मामू का दिल टूट जाएगा न,’’ कहतेकहते साहिल ने ऐसी शक्ल बनाई कि फैजल की हंसी छूट गई.

‘‘अच्छा, जाना कब है  तैयारी भी तो करनी होगी न ’’ साहिल ने पूछा.

‘‘चार दिन बाद मामू के एक दोस्त अब्बू की दुकान से कपड़ा लेने यहां आ रहे हैं. 2 दिन वे यहां रुकेंगे और वापसी में हमें अपने साथ लेते जाएंगे,’’ फैजल ने बताया.

‘‘हुर्रे…’’ साहिल जोर से चिल्लाया, ‘‘कितना सुंदर है पूरा रामगढ़. वहां नदी में मछलियां पकड़ना और स्विमिंग करना, सारा दिन गलियों में मटरगश्ती करना, मामू की खुली गाड़ी में खेतों के बीच घूमना और सब से बढ़ कर मामी के बनाए स्वादिष्ठ व्यंजन खाना. इस बार तो छुट्टियों का मजा आ जाएगा.’’

साहिल और फैजल दोनों बचपन के दोस्त थे. दिल्ली के मौडल टाउन इलाके में वे दादादादी के समय से बिलकुल साथसाथ वाली कोठियों में दोनों परिवार रहते आ रहे थे. दोस्ती की यह गांठ तीसरी पीढ़ी तक आतेआते और मजबूत हो गई थी. दोनों को एकदूसरे के बिना पलभर भी चैन नहीं आता था. लगभग एक ही उम्र के, एक ही स्कूल में 10वीं क्लास में पढ़ते थे दोनों. साहिल एकदम गोराचिट्टा और थोड़ा भारी बदन का था. उस की गहरी, काली आंखें और सपाट बाल उस के अंडाकार चेहरे पर खूब फबते थे. ऊपर से वह चौकोर फ्रेम का मोटे शीशे वाला चश्मा पहनता था जो उस की पर्सनैलिटी में चार चांद लगा देता था.

दूसरी तरफ फैजल एकदम दुबलापतला था और उस के गाल अंदर पिचके हुए थे. उस के घुंघराले ब्राउन बाल थे और आंखें गहरी नीली. सांवला रंग होने के बावजूद उस के चेहरे में ऐसी कशिश थी कि देखने वाला देखता ही रह जाता था.

दोनों को बचपन से ही जासूसी का बड़ा शौक था. दोनों का एक ही सपना था कि बड़े हो कर उन्हें स्मार्ट और जीनियस जासूस बनना है इसीलिए हर छोटीबड़ी बात को बारीकी से देखना उन की आदत बन गई थी. एक बार पड़ोस के घर से कुछ सामान चोरी हो जाने पर दोनों ने खेलखेल में जासूस बन कर चोरी की तहकीकात कर कुछ ही घंटे में जब घर के माली को सुबूतों सहित चोर साबित कर दिया था, तोे सब हैरान रह गए थे. घर वालोें के साथसाथ पुलिस इंस्पैक्टर आलोक जो उस केस पर काम कर रहे थे, ने भी उन की बड़ी तारीफ की थी. फिर तो छोटेमोटे केसों के लिए इंस्पैक्टर उन्हें बुला कर सलाह भी लेने लगे थे.

साहिल के घर के पिछवाड़े एक छोटा सा कमरा था जिसे उन्होंने अपनी वर्कशौप बना लिया था. एक आधुनिक कंप्यूटर में अपराधियों की पहचान करने से संबंधित कई सौफ्टवेयर उन्होंने डाल रखे थे, जो केसों को सौल्व करने में उन के काम आते थे.

कंप्यूटर के अलावा उन के पास स्पाई कैमरे, नाइट विजन ग्लासेज, मैग्नीफाइंग ग्लास, स्पाई पैन, पावरफुल लैंस वाली दूरबीन और लेटैस्ट मौडल के मोबाइल भी थे जो समयसमय पर उन के काम आते थे. उन के जासूसी के शौक को देखते हुए साहिल के बैंक मैनेजर पिता ने बचपन से ही उन्हें कराटे की ट्रेनिंग दिलवानी शुरू कर दी थी और 8वीं क्लास तक आतेआते दोनों ब्लैक बैल्ट हासिल कर चुके थे.

अनवर मामूजान के यहां वे दोनों पहले भी एक बार जा चुके थे और दोनों को वहां बड़ा मजा आया था. सो इस बार भी वे वहां जाने के लिए बड़े उत्साहित थे. सोमवार की सुबह खुशीखुशी घर वालों से विदा ले कर दोनों गाड़ी में बैठे व रामगढ़ के लिए रवाना हो गए.

जब वे रामगढ़ पहुंचे तो उस समय शाम के 4 बज रहे थे. हौर्न की आवाज सुनते ही उन के मामूजान अनवर और मामी सकीना अपने दोनों बच्चों जुनैद और जोया के साथ गेट पर आ खड़े हुए. दोनों बच्चे दौड़ कर उन से लिपट गए, ‘‘भाईजान, आप हमारे लिए क्या गिफ्ट लाए हैं ’’ 9 साल की जोया ने पूछा.

‘‘आप अपने वे जादू वाले पैन और कैमरे लाए हैं कि नहीं  मैं ने आप को फोन कर के याद दिलाया था,’’ 11 साल का जुनैद अधीरता से बोला.

‘‘अरे भई, लाए हैं, सबकुछ लाए हैं, पहले घर के अंदर तो घुसने दो,’’ फैजल हंसते हुए बोला, ‘‘आदाब मामू, आदाब मामीजान.’’

‘‘अरे मामू, आप आज क्लिनिक नहीं गए ’’ अनवर मामू के पैर छूने को झुकता हुआ साहिल बोला.

‘‘नहीं, तुम दोनों के आने की खुशी में जनाब क्लिनिक से छुट्टी ले कर घर में ही बैठे हैं,’’ मुसकराते हुए सकीना मामी बोलीं, ‘‘चलो, अंदर चल कर थोड़ा फ्रैश हो लो तुम लोग, फिर गरमागरम चायनाश्ते के साथ बैठ कर बातें करेंगे.’’

अपना ही तमाशा बनाने वाली एक लड़की – भाग 2

पुलिस ने औटो चालकों से पूछताछ शुरू की. जयपुर में करीब 8 हजार औटो हैं, लेकिन उन में किसी का भी वेरिफिकेशन नहीं है. उर्वशी ने पुलिस को हरेपीले औटो के बारे में बताया था. ये हरेपीले औटो सीएनजी से चलते हैं. ऐसे औटो की संख्या भी हजारों में है. पुलिस ने युवती के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर उस की भी जांच की, साथ ही मोबाइल टावर के आधार पर आरोपियों का पता लगाने की भी कोशिश की गई.

अपराधों के मामले में राजस्थान पहले ही सुर्खियों में है. इस घटना से जयपुर में कानूनव्यवस्था पर सवालिया निशान लग गए थे. दिन भर इलैक्ट्रौनिक चैनलों पर युवती से दरिंदगी की खबरें चलती रहीं. लोगों में भी सरकार के प्रति आक्रोश उभरने लगा. उसी दिन शाम को दीनदयाल वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म की घटना के विरोध में स्टैच्यू सर्किल पर कैंडल मार्च निकाला.

11 जनवरी को देश भर की मीडिया में छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म की घटना सुर्खियों में छाई रही. इस से पुलिस की किरकिरी हुई. सरकार की भी बदनामी हुई. स्थिति को देखते हुए पुलिस महानिदेशक मनोज भट्ट ने जयपुर के पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल को आरोपियों का जल्द से जल्द पता लगाने को कहा. रात भर की जांच के बाद दूसरे दिन सुबह से ही पुलिस की अलगअलग टीमें मामले की तह में जाने के लिए पूरे उत्साह से जुट गईं. आरोपी औटोचालक का पता लगाने के लिए पूरे शहर में अभियान चलाया गया. औटोचालक यूनियनों के पदाधिकारियों से बात की गई. उर्वशी ने रेलवे स्टेशन से औटो में बैठने के बाद सिंधी कैंप, नारायण सिंह सर्किल आदि जिन रास्तों से औटो के जाने की बात बताई थी, उन तमाम रास्तों की सीसीटीवी फुटेज खंगाली गई.

पुलिस की एक टीम पीडि़त छात्रा उर्वशी को ले कर शहर में उस जगह का पता लगाने का प्रयास करती रही, जहां पीडि़ता ने सामूहिक दुष्कर्म की बात बताई थी. पीडि़ता को उस के बताए रास्ते में आने वाले पार्क व जगहजगह खाली पड़े प्लौट, पार्क दिखाए गए, लेकिन उर्वशी ने किसी भी प्लौट या पार्क की पहचान नहीं की.

इस तरह दिन भर खाक छानने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला. इस बीच राज्य महिला आयोग ने स्वत: संज्ञान ले कर पुलिस महानिदेशक को छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म के आरोपियों को शीघ्र गिरफ्तार करने को कहा, साथ ही सार्वजनिक स्थानों पर लगे सीसीटीवी कैमरे चालू हैं या नहीं, इस की भी रिपोर्ट मांगी.

दूसरे दिन का नतीजा शून्य रहने पर जांच में लगे पुलिस अधिकारियों ने मीटिंग कर के पूरे मामले पर फिर से गंभीरता से विचार किया. इस विचारविमर्श में यह बात सामने आई कि ट्रेन से स्टेशन पर उतरते ही उर्वशी ने अपने भाई को फोन कर के कहा था कि घर पहुंचने में देर हो जाएगी, वह खाना खा कर सो जाए.

उस ने घर लेट पहुंचने की बात क्यों कही थी? इस के अलावा अकेली लड़की होने के बावजूद वह औटो में 3 लड़कों के साथ क्यों बैठी? इतनी कड़ाके की ठंड में रात भर वह पार्क में कैसे रही? दुष्कर्म करने वाले उसे पार्क में छोड़ कर क्यों नहीं गए? उन्होंने उसे एमएनआईटी पर ले जा कर क्यों छोड़ा? आरोपी उस का मोबाइल छीन कर क्यों नहीं ले गए?

ये सवाल उभरे तो पुलिस ने नए सिरे से जांच करने का फैसला किया. इस के अलावा यह भी आशंका जताई गई कि कहीं कोई व्यक्ति अलवर से ही तो उर्वशी का पीछा नहीं कर रहा था, जिस ने जयपुर पहुंच कर अपने साथियों की मदद से दरिंदगी की हो. इस का पता लगाने के लिए एक पुलिस टीम अलवर स्टेश्न पर सीसीटीवी कैमरों की जांच के लिए भेजी गई.

तीसरे दिन पुलिस ने नए सिरे से जांच शुरू की. उर्वशी के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगाली गई. उस की 9 जनवरी को जिन लोगों से बातें हुई थीं, उन से पूछताछ की गई. उर्वशी से भी अलगअलग तरीके से पूछताछ की गई. उस के परिचित युवकों से भी पूछताछ की गई. इस सारी मशक्कत से पुलिस को उम्मीद की कुछ किरणें नजर आईं तो वह उसी दिशा में आगे बढ़ती गई. युवती के परिवार के बारे में जांच के लिए एक टीम उत्तर प्रदेश के मैनपुरी शहर भेजी गई.

पुलिस अब कामयाबी की दिशा में आगे बढ़ रही थी. पुलिस ने उन दोनों युवकों संदीप और ब्रजेश का भी पता लगा लिया, जिन के नाम उर्वशी ने बताए थे. पुलिस अब आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए सबूत जुटाने में लग गई. तीसरे दिन रात भर और चौथे दिन दोपहर तक की जांच के बाद पुलिस ने उर्वशी द्वारा बताए गए गैंपरेप की गुत्थी सुलझा ली. 13 जनवरी को जयपुर पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने प्रैस कौन्फ्रैंस की, जिस में गैंगरेप के मामले का परदाफाश किया गया.

पुलिस कमिश्नर ने बताया कि उक्त युवती ने नर्सिंग के छात्र को ब्लैकमेल कर के 5 लाख रुपए वसूलने के लिए अपहरण और गैंगरेप की झूठी कहानी अपने बौयफ्रैंड के साथ मिल कर रची थी. पुलिस ने इस मामले में उर्वशी और उस के बौयफ्रैंड ऋषिराज मीणा को गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस कमिश्नर ने बताया कि करीब 3 सौ पुलिस अधिकारियों ने करीब 80 घंटे तक लगातार जांच कर के जानकारी जुटाई और इस मामले का परदाफाश किया.

पुलिस की ओर से उर्वशी व ऋषिराज मीणा से की गई पूछताछ और व्यापक जांच में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह अनैतिक काम से लोगों को ब्लैकमेल कर के पैसा कमाने की कहानी थी.

उर्वशी अपने पिता व भाईबहनों के साथ उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में रहती थी. उस की मां की कुछ समय पहले मौत हो गई थी. उस के पिता मानसिक रूप से कमजोर थे. परिवार की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी. उर्वशी के 2 भाई और 2 बहनें हैं.

करीब 2 साल पहले घर में उर्वशी का अपने अविवाहित भाई से झगड़ा हो गया था. तब वह नाराज हो कर अपनी बुआ के पास काशीपुर चली गई थी. काशीपुर में रहते हुए वह प्राइवेट ग्रैजुएशन की तैयारी करने लगी, साथ ही वह सरकारी नौकरी पाने के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगी.

करीब 5-6 महीने पहले ऋषिराज मीणा किसी काम से काशीपुर गया था, जहां उस की मुलाकात उर्वशी से हुई. उर्वशी उसे स्वच्छंद लड़की लगी. 2-4 दिन वहां रहने के दौरान ऋषिराज की उर्वशी से घनिष्ठता हो गई. दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए. बाद में ऋषिराज जयपुर आ गया. इस के बाद भी उर्वशी और ऋषिराज में लगातार बातें होती रहीं.

उर्वशी आगरा जा कर रहने लगी तो उस दौरान भी ऋषिराज की उस से लगातार बातें होती रहीं. कई बार बातोंबातों में उर्वशी ने ऋषिराज को अपनी पारिवारिक स्थिति अच्छी नहीं होने और नौकरी करने की बात बताई. इस पर ऋषिराज ने उसे जल्दी ही रेलवे में नौकरी लगवाने का विश्वास दिलाया.

घटना से करीब ढाई-3 महीने पहले ऋषिराज ने उर्वशी को फोन कर के कहा कि वह जयपुर आ जाए. वह उसे किराए का मकान दिलवा देगा. जयपुर में रहेगी तो नौकरी तलाशने में आसानी रहेगी. ऋषिराज के कहने पर उर्वशी जयपुर आ गई. ऋषिराज ने जगतपुरा की सरस्वती कालोनी में उसे किराए का मकान दिलवा दिया. ऋषिराज तो उर्वशी का पहले से ही परिचित था. जयपुर में उस की कई अन्य युवकों से भी दोस्ती हो गई. युवकों से दोस्ती के चलते मकान मालिक ने उसे निकाल दिया.

100 करोड़ की फिरौती का फंडा – भाग 2

पुलिस ने नीता पांडेय से पूछताछ की तो उस ने कहा कि अगर सारिका गुप्ता को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी. लेकिन पुलिस ऐसा करने से कतरा रही थी, क्योंकि ऐसा करने पर उस पर अंगुली उठ सकती थी. जबकि पुलिस पर इस मामले को सुलझाने का काफी दबाव था. अधिकारी भी मामले को सुलझाने में लगी टीमों पर दबाव बनाए हुए थे.

पुलिस ने संजीव के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि उस पर कमेटी और सोसायटी मैंबरों का करोड़ों का कर्ज था. पैसे वाले लोगों ने अपना चोरी का पैसा उस की कमेटी में लगा रखा था. उन्हें जब लगा कि उन का पैसा डूबने वाला है तो परेशान हो कर वे अपना पैसा उस से वापस मांगने लगे थे, जबकि उस के पास लौटाने के लिए पैसा नहीं था. उस ने कमेटी और सोसायटी का पैसा अपनी अय्याशी और शानोशौकत में उड़ा दिया था.

पुलिस जांच में एक आदमी ने बताया कि उस ने संजीव को 23 जुलाई को फिरोजाबाद में देखा था. इस से पुलिस को लगा कि संजीव का अपहरण नहीं हुआ है. वह अपहरण का नाटक कर रहा है. वह देश छोड़ कर भाग न जाए, पुलिस ने उस का पासपोर्ट जब्त कर लिया था.

पुलिस ने शहर के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली तो सारी पोल खुल गई. संजीव अपनी कार में अकेला ही नजर आ रहा था. गभाना में जहां उस की कार मिली थी, वहां एक पंक्चर बनाने वाले ने भी बताया था कि इस कार से एक ही आदमी उतरा था और कार लौक कर के वह चला गया था.

आखिर 28 जुलाई को एसटीएफ की टीम ने नाटकीय ढंग से संजीव गुप्ता को पानीपत के होटल स्वर्ण महल से बरामद कर लिया और फिरोजाबाद ला कर 29 जुलाई की सुबह एसएसपी अजय कुमार पांडेय के सामने पेश कर दिया. इस तरह संजीव गुप्ता की सकुशल बरामदगी से पुलिस ने राहत की सांस ली.

पुलिस की मेहनत तो सफल हो गई थी, पर उस की अपहरण की कहानी पर किसी को विश्वास नहीं था. संजीव गुप्ता ने कहा कि एसटीएफ और एसएसपी साहब ने उसे बचा लिया. अपनी बात कहते हुए वह कभी रोने लगता था तो कभी हंसने लगता था. उस के बताए अनुसार, जब वह मीटिंग खत्म कर के होटल सागर रत्ना से निकला और बाहर खड़ी कार में बैठा तो पीछे छिप कर बैठे एक युवक ने उस की पीठ पर पिस्टल सटा कर चुपचाप गाड़ी चलाते रहने को कहा.

रास्ते में 2-3 लोग और बैठ गए. उन्होंने उस का फोन ले कर उस की पत्नी को 100 करोड़ की फिरौती का संदेश भेजा. लेकिन वह अपनी इस बात पर टिका नहीं रह सका. बारबार बयान बदलता रहा. पुलिस को पहले से ही उस पर शक था, बयान बदलने से शक और बढ़ गया. इस के बावजूद पुलिस तय नहीं कर पा रही थी कि उस के साथ क्या किया जाए? अब तक उस की मदद के लिए तमाम लोग आ गए थे.

पुलिस के पास अभी संजीव के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं थे, इसलिए सबूतों के अभाव में पुलिस ने उस के खिलाफ कोई काररवाई न करते हुए उसे उस के घर वालों के हवाले कर दिया. पुलिस की यह हरकत लोगों को नागवार गुजरी, क्योंकि सभी जानते थे कि संजीव का अपहरण नहीं हुआ था. उस ने खुद ही अपने अपहरण का नाटक किया था.

सब से ज्यादा विरोध तो नीता पांडेय ने किया. उस ने संजीव से जान का खतरा बताते हुए उसे जेल भेजने की गुहार लगाई. संजीव को पुलिस ने घर भेज दिया तो वही नहीं, उस के घर वाले भी खुश थे कि उन का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया. लेकिन पुलिस की स्थिति संदिग्ध होने लगी थी, इसलिए पुलिस अभी चुप नहीं बैठी थी.

अगले दिन आईजी मथुरा अशोक जैन फिरोजाबाद आए तो स्थिति बदलने लगी. पुलिस को होटल सागर रत्ना के गार्ड ने बताया था कि उस दिन संजीव गुप्ता ने उस होटल में कोई मीटिंग नहीं की थी. एक आदमी ने बताया था कि संजीव उस दिन अकेला ही कार में था. होटल के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में भी संजीव अकेला ही कार में दिखाई दिया था.

एसटीएफ टीम ने उस कार को भी ढूंढ निकाला, जिस में संजीव जम्मू में अकेला घूमता रहा था. 22 जुलाई यानी संजीव के लापता होने वाले दिन उस की लोकेशन एटा, अलीगढ़ की मिली थी. 24 जुलाई को वह जम्मू में था. एसटीएफ टीम जब वहां होटल में पहुंची तो वह वहां से निकल चुका था. इस तरह के सारे सबूत जुटा कर पुलिस ने उस के खिलाफ काररवाई करने का मन बना लिया.

अब तक संजीव गुप्ता और सारिका गुप्ता की स्थिति काफी बदल चुकी थी. जो लोग उन की मदद के लिए खड़े रहते थे, अब उन्होंने दूरियां बना ली थीं. लोगों ने उन के नंबर ब्लौक कर दिए थे. लोग इस अपहरण के ड्रामे से हैरान थे, इसलिए लोग अब किसी तरह के पचड़े में नहीं पड़ना चाहते थे.

31 जुलाई की शाम को इंसपेक्टर अरुण कुमार सिंह संजीव गुप्ता की कोठी पर पहुंचे और संजीव गुप्ता तथा सारिका गुप्ता से अलगअलग पूछताछ की. संजीव और उस के घर वालों ने तो समझा था कि सब ठीक हो गया है, पुलिस को उन्होंने गुमराह कर दिया है, पर ऐसा नहीं था.

1 अगस्त, 2017 को पुलिस ने संजीव गुप्ता, सारिका गुप्ता, उस के भांजे विप्लव गुप्ता तथा सारिका के भाई सागर गुप्ता को हिरासत में ले कर थाने ले आई. अधिकारियों के सामने जब इन से अलगअलग पूछताछ शुरू हुई तो पुलिस की सख्ती के आगे सभी टूट गए और उन की जुबान खुल गई. संजीव को जब सीसीटीवी कैमरों की फुटेज दिखाई गई तो वह फूटफूट कर रोने लगा.

संजीव ने पुलिस को सारी कहानी सचसच बता दी. उस ने बताया कि लेनदारों तथा नीता पांडेय से छुटकारा पाने के लिए उस ने अपनी पत्नी सारिका, भांजे विप्लव और साले सागर के साथ मिल कर अपने अपहरण की योजना बनाई थी. नीता पांडेय और उस के पति को फंसा कर वह विदेश भाग जाना चाहता था.

पूछताछ के बाद पुलिस ने संजीव के बयानों के आधार पर सारिका, विप्लव और सागर के खिलाफ भादंवि की धारा 419, 420, 467, 468, 469, 471, 500, 507, 120बी, 34, 182, 186 और 187 के तहत मुकदमा दर्ज कर चारों को जेल भेज दिया. इस पूछताछ में संजीव गुप्ता ने जो बताया, उस के अनुसार, कहानी कुछ इस प्रकार थी.

चांद की चाहत में थानेदार – भाग 2

एसीबी की टीम अपने काम में जुट गई. थानाप्रभारी कमलदान चारण की तलाशी में टीम को एक लाख रुपए का वह चैक मिल गया, जो जकिया ने दिया था. टीम ने कमलदान चारण को गिरफ्तार कर लिया. देर रात तक एसीबी की टीम जकिया के घर फर्द बनाने और जब्ती वगैरह की काररवाई में लगी रही.

थानाप्रभारी कमलदान चारण से की गई पूछताछ और एसीबी की जांचपड़ताल में जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी.

इसी साल 3 जून को थाना राजीव गांधी नगर के थानाप्रभारी कमलदान चारण ने मुखबिर की सूचना पर पंकज वैष्णव और गणपत बिश्नोई को एक किलोग्राम अफीम ले जाते हुए गिरफ्तार किया था. पंकज वैष्णव जकिया का पति था. वह अफीम ये लोग होंडा सीआरवी कार में रख कर ले जा रहे थे.

थाने ले जा कर दोनों से पूछताछ की गई तो गणपत ने खुद को इंजीनियरिंग का छात्र बताया और छोड़ देने की गुहार लगाई. थानाप्रभारी ने गणपत के घर वालों को थाने बुला लिया. बाद में सौदेबाजी कर के उस ने गणपत को छोड़ दिया.

पंकज वैष्णव ने बताया कि होंडा सीआरवी कार उस की पत्नी जकिया चौहान की है. इस के बाद थानाप्रभारी ने जकिया को थाने बुला लिया. जकिया कमलदान चारण से अपने पति पंकज को छोड़ देने की सिफारिश करने लगी.

कमलदान चारण ने कहा कि उस के पास से एक किलोग्राम अफीम मिली है, इसलिए इसे जेल जाना ही पड़ेगा, साथ ही केस चलने तक कार भी नहीं छोड़ी जाएगी.

जकिया ने पुलिस के एक दलाल से बात की तो उस के कहने पर थानाप्रभारी इस बात पर सहमत हो गए कि कार को मुकदमे में नहीं दिखाएंगे, लेकिन इस के लिए 2 लाख रुपए खर्च करने होंगे. जकिया ने कहा कि उस के पास इतनी रकम नहीं है तो बिचौलिए ने कहा कि थानाप्रभारी इस से कम में नहीं मानेगा. परेशान हो कर जकिया ने किसी तरह एक लाख रुपए का इंतजाम किया. 1 लाख रुपए नकद और एक लाख रुपए का चैक जकिया ने बिचौलिए के जरिए थानाप्रभारी कमलदान चारण को दे दिए.

थानेदार ने वह चैक इस शर्त पर लिया था कि एक लाख रुपए नकद देने के बाद वह उसे वह चैक लौटा देगा. थानाप्रभारी ने पंकज कुमार वैष्णव और गणपत बिश्नोई को कार में एक किलोग्राम अफीम के साथ पकड़ा था. पर रिश्वत में मोटी रकम मिलने के बाद उस ने गणपत और होंडा सीआरवी कार को रिपोर्ट में शामिल नहीं किया था. उस ने 3 जून, 2017 को केवल पंकज कुमार वैष्णव के खिलाफ ही राजीवगांधी नगर थाने में मुकदमा दर्ज कराया.

आमतौर पर एनडीपीएस एक्ट के मामले की जांच एसीपी द्वारा दूसरे थाने के समकक्ष अधिकारी को दी जाती है. लेकिन कमलदान चारण ने एसीपी (प्रतापनगर) स्वाति शर्मा को ऐसी पट्टी पढ़ाई कि उन्होंने इस मामले की जांच राजीव गांधी नगर थाने के ही एसआई को सौंप दी. इस की वजह यह थी कि पहली ही मुलाकात में कमलदान जकिया चौहान की खूबसूरती पर मर मिटा था.

इस के लिए उस ने जकिया से वादा भी किया था कि वह इस मामले में उस के पति को छुड़वाने की हरसंभव कोशिश करेगा. जकिया से बातें करने के लिए उस ने उस का मोबाइल नंबर ले लिया था.

कार भले ही छूट गई थी, लेकिन जकिया का पति पंकज जेल में बंद था. जकिया उसे जल्द से जल्द छुड़ाना चाहती थी. परेशानी यह थी कि एनडीपीएस एक्ट के मामले में जल्दी से जमानत नहीं होती. फिर पंकज के पास पुलिस ने एक किलोग्राम अफीम दिखाई थी.

कानून के जानकारों का कहना था कि 250 ग्राम तक अफीम बरामद होने पर सजा का प्रावधान कम है, लेकिन कौमर्शियल क्वालिटी की ज्यादा मात्रा में बरामद अफीम के मामले में 10 से 20 साल तक की सजा का प्रावधान है. इसी कारण जकिया चिंतित थी. वह पंकज की जल्द से जल्द जमानत कराने की कोशिश में जुटी थी. इस के लिए वह कभी कमलदान चारण को फोन करती तो कभी थाने जा कर उस से जमानत में मदद करने की गुहार लगाती.

कमलदान चारण जकिया की इस मजबूरी का फायदा उठाना चाहता था. वह जकिया को हासिल करने की कोशिश करने लगा. उस ने जकिया से यह भी कह दिया कि वह पंकज से बरामद अफीम की मात्रा 200 ग्राम दिखा देगा, जिस से उस की जमानत जल्द हो जाएगी.

पंकज को जेल भेजने के एकदो दिन बाद ही कमलदान चारण जकिया से प्यारमोहब्बत की बातें करने लगा. वह उसे वाट्सऐप पर ‘आई लव यू’ के अलावा तरहतरह के मैसेज भेजने लगा. वह जकिया की खूबसूरती की तारीफें करता और कहता कि पति को छुड़वाने के लिए उसे कुछ तो कंप्रोमाइज करना ही पड़ेगा.

उस की इस तरह की बातों से जकिया समझ गई कि उस की नीयत ठीक नहीं है. उस की बातों से वह डर गई. उस का दिन का चैन और रातों की नींद उड़ गई. उस का मन तो कर रहा था कि वह उस के सामने जा कर सीधे उस के गाल पर चांटा जड़ दे. पर वह ऐसा नहीं कर सकती थी.

वह कमलदान चारण को सबक सिखाने के बारे में सोचने लगी. एक तरफ पति की चिंता थी और दूसरी तरफ अस्मत बचाने का संघर्ष. वह चाहती थी कि चारण को ऐसा सबक मिले कि वह जिंदगी भर याद रखे. इस के लिए उस ने अपने कैफे में काम करने वाले सब से विश्वासपात्र गणपत बिश्नोई को कमलदान की गलत नीयत की बात बताई.

गणपत को पता था कि थानाप्रभारी ने उसे अफीम के मामले में छोड़ने के लिए घर वालों से मोटी रकम ली थी. इसलिए वह भी उसे सबक सिखाना चाहता था. उस ने अपने परिचित एसीबी के एक अधिकारी से बात की. उस की सलाह पर जकिया ने 9 जून, 2017 को एसीबी में थानाप्रभारी कमलदान चारण के खिलाफ रिश्वत और अस्मत मांगने की शिकायत कर दी.

एसीबी ने उसी दिन शिकायत का सत्यापन कराया. इस सत्यापन में जकिया और थानाप्रभारी कमलदान चारण की कार में बैठ कर की गई सौदेबाजी की सारी बातें रिकौर्ड की गईं. कमलदान जकिया से कह रहा था, ‘मुझे तुम से दोस्ती और प्यार हो गया है. इसलिए तुम ने जो एक लाख रुपए का चैक दिया है, उसे मैं वापस कर दूंगा.’ जकिया ने ये सारी बातें रिकौर्ड कर ली थीं. इस बातचीत में चारण ने यह भी कहा था कि वह 10 से 12 जून तक गांव जाने की वजह से छुट्टी पर रहेगा. गांव से लौटने पर वह उस के पास एंजौय करने आएगा.

तांत्रिक जलेबी बाबा : औरतों पर डोरे डालने का बुरा नतीजा – भाग 2

अमर पुरी ने उसे अपना चेहरा गौर से देखते पाया तो वह चौंकते हुए बोला, ‘‘मेरे चेहरे पर क्या तलाश कर रहे हैं आप? क्या मैं आप को जानापहचाना लग रहा हूं?’’

‘‘मैं तुझ से पहले कभी नहीं मिला, यहां तेरा चेहरा देख कर रुक गया. तेरे ललाट की रेखाएं देखने के बाद मेरे पांव खुदबखुद रुक गए हैं.’’ वह व्यक्ति गंभीर स्वर में बोला.

‘‘ऐसा क्या लिखा है मेरे ललाट

पर?’’ अमर पुरी ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘तेरे ललाट की रेखाएं कह रही हैं कि तेरा जन्म जलेबियां तलने के लिए नहीं हुआ है. तू तो लोगों का भला करने के लिए पैदा हुआ है.’’

अमर पुरी हंस पड़ा. हंसते हुए ही बोला, ‘‘यहां मेरा खुद का भला नहीं हो पा रहा है. मैं लोगों का भला कैसे करूंगा?’’

‘‘तेरे माथे की रेखाएं तो यही कह रही हैं बेटा.’’ वह व्यक्ति पहले की अपेक्षा और अधिक गंभीर हो गया, ‘‘तू लोगों का भला ही करेगा, लोग तेरे नाम की माला जपेंगे और तेरे चरणों की धूल अपने माथे से लगाएंगे.’’

नागा बाबा की भविष्यवाणी से हुआ प्रभावित अमर पुरी को लगा, यह कोई पहुंचा हुआ संत है, तभी ऐसी बातें कर रहा है. उस ने जलेबी तलना बंद कर दीं. हाथ पानी से धोने के बाद वह तौलिए से हाथ साफ कर के उस व्यक्ति से बोला, ‘‘आप यहां आ कर बैठिए, आप की रहस्यमयी बातों ने मेरी जिज्ञासा बढ़ा दी है. आप बैठ कर बताइए, आप कौन हैं और मेरे विषय में ऐसी अजीब भविष्यवाणी किस आधार पर कर रहे हैं?’’

वह व्यक्ति आ कर अंदर रखी कुरसी पर बैठ गया. फिर उस ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मैं नागा बाबा हूं. मुझे इसी नाम से पुकार सकते हो तुम. मैं ने बरसों कठोर साधाना कर के तंत्रमंत्र विद्या सीखी है. उसी तंत्रमंत्र विद्या के बूते मैं ने तुम्हारे ललाट की रेखाएं पढ़ी हैं, तुम जलेबी तलने के लिए पैदा नहीं हुए हो. तुम्हारे ललाट की रेखाएं बता रही हैं कि तुम एक पहुंचे हुए संत महात्मा बनोगे, लोग तुम्हारे चरण धो कर पीएंगे.’’

‘‘लेकिन मुझ में तो ऐसा कोई गुण है नहीं नागा बाबा कि लोग मेरे चरण धो कर पीएं. मैं तो एक साधारण सा व्यक्ति हूं.’’ अमर पुरी विनम्र भाव से बोला.

‘‘तुम्हारे ललाट की रेखाएं जो कह रही हैं, मैं ने वही बताया है. एक साधारण व्यक्ति से पहुंचे हुए संत कैसे बनोगे, यह तुम्हें वक्त बताएगा. वक्त बदलेगा, अवश्य बदलेगा, तुम्हें इंतजार करना पड़ेगा और प्रयास भी.’’ नागा बाबा ने कहा और उठ कर खड़ा हो गया.

‘‘बाबा, आप बैठिए और मुझे कुछ सेवा करने का मौका दीजिए.’’ अमर पुरी उस नागा बाबा को उठता देख कर जल्दी से बोला.

‘‘नहीं बेटा, मैं तुझ से सेवा नहीं करवाऊंगा, मेरे पास समय नहीं है चलता हूं.’’ नागा बाबा ने कहा और लंबेलंबे कदम बढ़ाता हुआ वहां से आगे बढ़ गया.

अमर पुरी उसे हैरान नजरों से देखता रहा, जब वह आंखों से ओझल हो गया तो अमर पुरी उस के द्वारा की गई भविष्यवाणी की गहराई से उतर कर सोचने लगा कि वह कब और किस प्रकार पहुंचा हुआ संत बनेगा. काफी सोचने के बाद भी उसे कुछ रास्ता नजर नहीं आया तो भट्ठी जला कर वह फिर से जलेबी तलने लगा.

इसे अमर पुरी की किस्मत का खेल कहें या कुछ और. उस नागा बाबा के अपने जीवन में आने के बाद अमर पुरी का मन जलेबी बेचने के धंधे से ऊबने लगा. एक दिन उस ने अपना स्टाल बंद कर दिया और टोहाना छोड़ कर लापता हो गया.

2 साल बाद अमर पुरी फिर से टोहाना में प्रकट हुआ. उस वक्त उस का हुलिया पूरी तरह बदला हुआ था. उस के चेहरे पर दाढ़ीमूंछ थी और सिर के बाल बढ़े हुए थे. ललाट पर लंबा तिलक, शरीर पर सफेद धोतीकुरता और कंधे पर जरी की किनारी वाला दुपट्टा पड़ा था. उस का व्यक्तित्व इस वेश में बहुत प्रभावशाली लग रहा था.

अंधविश्वास में जीने वालों को लगा निचोड़ने

टोहाना में आ कर उस ने एक मंदिर में डेरा डाल लिया और वहां आने वाले भक्तों की समस्याओं का समाधान करने का धंधा शुरू कर दिया. इस के लिए उस ने कुछ निठल्ले व्यक्तियों को पैसों का लालच दे कर अपने आप को सिद्ध तांत्रिक और बड़ा ज्योतिषी बतलाने का प्रचार आरंभ करवा दिया.

उस के द्वारा निर्धारित व्यक्ति मंदिर में आने वाले भक्तों को अमर पुरी को पहुंचा हुआ सिद्ध पुरुष बता कर उस के द्वारा सफल उपाय करने की बातें बता कर फांसते और अमर पुरी के पास भेज देते. न जाने कैसे पांचवीं

फेल अमर पुरी ने तंत्रमंत्र की कुछ किताबों को पढ़ कर कच्चापक्का ज्ञान हासिल कर लिया था.

अशिक्षित ही नहीं, पढ़ेलिखे लोग भी जो अंधविश्वास के अंधेरे में जीते आ रहे थे, अमर पुरी को अपनी समस्याएं बता कर उपाय पूछते.

सड़क पर जलेबी का स्टाल लगाने वाला अमर पुरी बातूनी और चंट चालाक बन चुका था. अपनी बातों के चक्रव्यूह में वह उन अज्ञानी, पढ़ेलिखे लोगों को ऐसा फांसता कि वह मोटा चढ़ावा चढ़ा कर अपनी समस्याओं का उपाय पूछते और उन का समाधान ले कर वापस लौट जाते.

यह एक कटु सत्य है कि यदि 10-15 लोगों पर अपने तंत्रमंत्र का हुनर दिखाया जाए तो उन में से 2-4 पर उस का मानसिक प्रभाव अवश्य पड़ता है. जिन्हें लाभ पहुंचता था, वह अमर पुरी की तंत्रविद्या का खूब बखान करते. इस से अमर पुरी को चढ़ावा चढ़ाने वालों की संख्या बढ़ती गई.

मंदिर में अमर पुरी के पास आने वालों से अव्यवस्था फैलने लगी तो पुजारी ने अमर पुरी को मंदिर के बाहर अपनी दुकान लगाने के लिए कह दिया. अमर पुरी ने मंदिर के साथ में खाली पड़ा एक कमरा किराए पर ले लिया और अपने अधकचरे ज्ञान की दुकान उस कमरे में चलाने लगा.

अमर पुरी का यह काम जम गया. पैसा बरसने लगा तो उस के पुराने व्यसनों ने सिर उठाना शुरू कर दिया. वह कीमती सिगरेट और शराब पीने लगा. उस के गुर्गे या यूं कह लिया जाए उस के कथित धर्मशिष्यों की मंडली उस के इर्दगिर्द रात को जमा होती तो फिर शौक का धुआं कमरे में उड़ाया जाता.

देशभर में फैला शातिर ठगों का जाल

भविष्य को सुरक्षित करने के लिए बीमा पौलिसी कराना आम बात है. अपनी अपनी आर्थिक स्थिति के हिसाब से ज्यादातर लोग बीमा पौलिसी खरीदते हैं. इसके लिए सरकारी, गैरसरकारी कंपनियां और बैंक अपने नियमों के हिसाब से पौलिसी करते हैं. उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर के पल्लवपुरम निवासी अंबरीश गुप्ता ने भी एक नामी प्राइवेट बैंक से 14 बीमा पौलिसी करा रखी थीं, जिन की कीमत 54 लाख रुपए थी.

16 सितंबर, 2016 की एक शाम अंबरीश घर पर ही थे. अचानक उन के मोबाइल पर एक अंजान नंबर से फोन आया. उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से एक व्यक्ति की आवाज सुनाई दी, ‘‘हैलो गुड इवनिंग सर, आप अंबरीशजी बोल रहे हैं न?’’

‘‘जी हां, आप कौन?’’

‘‘सर, मैं आईसीआईसीआई के फंड डिपार्टमैंट से औफीसर राहुल बात कर रहा हूं.’’ फोनकर्ता ने अपना परिचय दिया तो वह थोड़ा सतर्क हो गए, क्योंकि उन की बीमा पौलिसी इसी कंपनी में थी. उन्होंने जिज्ञासावश पूछा, ‘‘बताइए, राहुलजी.’’

‘‘सर, आप को बताना चाहता हूं कि आप की पौलिसी की कीमत अब 75 लाख रुपए हो गई है. अब आप को पूरे 21 लाख रुपए का मुनाफा होगा.’’ उस ने गर्मजोशी से बताया तो अंबरीश के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव उभर आए.

‘‘धन्यवाद, यह तो मेरे लिए बहुत खुशी की बात है.’’

‘‘लेकिन एक प्रौब्लम है सर.’’

‘‘कैसी प्रौब्लम?’’ अंबरीश को एकाएक झटका सा लगा.

‘‘दरअसल सर, हमें आज रात शेयर मार्केट में गिरावट आने के संकेत मिले हैं. अगर ऐसा हुआ तो पौलिसी की वैल्यू 75 लाख से गिर कर केवल 43 लाख रह जाएगी. आप समझ सकते हैं कि शेयर बाजार का उतारचढ़ाव किसी के हाथ में नहीं होता.’’

‘‘यह तो वाकई परेशानी की बात है.’’

‘‘बिलकुल सर, लेकिन आप हमारे रौयल कस्टमर हैं. आप को सूचना देना हम ने अपना फर्ज समझा. हम चाहते हैं, आप को पौलिसी से भरपूर फायदा हो. आप अपनी पौलिसी को तत्काल बंद करने की अनुमति दें तो इस नुकसान से बच सकते हैं. 3 महीने के अंदर कंपनी आप को पूरे 75 लाख रुपए देगी.’’

उस की बात सुन कर अंबरीश ने तेजी से दिमाग दौड़ाया. इस में कोई बुराई नहीं थी. उन्हें 54 लाख के बदले 75 लाख रुपए मिल जाने थे. यानी उन्हें शुद्ध 21 लाख रुपए का फायदा हो रहा था. कुछ पल की खामोशी के बाद वह बोले, ‘‘पैसा तो मुझे मिल जाएगा, लेकिन मैं पौलिसी भी जारी रखना चाहता हूं.’’

‘‘आप इस की फिक्र न करें सर, हम आप को नई पौलिसी दे देंगे. बैंक से आप को कल फोन आ जाएगा.’’

‘‘ओके.’’ अंबरीश ने फोन रख दिया.

बैंक के औफीसर ने खुद काल की थी, जिस से यह बात साफ थी कि बैंक उन का हित चाहता था. वह सोच कर मन ही मन खुश हुए कि घाटे से बच गए. वाकई यह खुशी की ही बात थी.

अगले दिन बैंक से एक लड़की का फोन आया तो उस ने उन्हें कुछ आकर्षक लाभ वाली पौलिसियों के बारे में समझाया. साथ ही यह भी बताया कि उन्हें 21 लाख का जो मुनाफा होने जा रहा है, उतने रुपए उन्हें जमा कराने होंगे. यह रकम बैंक द्वारा उन्हें 3 महीनों में लौटा दी जाएगी. इस के बाद कई दिनों तक बातों का सिलसिला चलता रहा. मुनाफे के लालच में अंबरीश मोटी रकम का ख्वाब देख रहे थे. उन्होंने न केवल 21 लाख रुपए फोनकर्ताओं द्वारा बताए गए खातों में जमा किए बल्कि नई पौलिसी के रुपए भी जमा कर दिए.

अलगअलग समय पर कभी इनकम टैक्स, कभी सिक्योरिटी मनी तो कभी पौलिसी के नाम पर अंबरीश ने करीब 80 लाख रुपए जमा करा दिए. 2 महीने बाद दिसंबर में रकम वापसी की बात आई तो फोनकर्ता आश्वासन देने वाला अंदाज अपनाने लगे. जिन लोगों के फोन उन के पास आते रहे थे, उन्होंने धीरेधीरे उन से संपर्क करना छोड़ दिया. दिसंबर के अंतिम सप्ताह में अंबरीश ने कई लोगों से विचारविमर्श किया. जिस के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचे कि उन्हें ठगा गया है.

इस बात का अहसास होते ही उन की रातों की नींद उड़ गई. मामला मोटी रकम का था. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि वह इस तरह ठगी का शिकार हो जाएंगे. उन्होंने इस बारे में एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ से मुलाकात कर के शिकायत की.

मामला साइबर अपराध से जुड़ा हुआ था. निस्संदेह वह किसी पेशेवर रैकेट का शिकार हुए थे. यह भी तय था कि अंबरीश जैसे न जाने कितने लोग इस तरह ठगी का शिकार हुए होंगे. मामला गंभीर था, लिहाजा उन्होंने मुकदमा दर्ज कर के तत्काल काररवाई करने के निर्देश दिए. एसएसपी के निर्देश पर अंबरीश की तरफ से पल्लवपुरम थाने में ठगी का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. अंबरीश ने जिन खातों में पैसा जमा किया था उन की और उन मोबाइल नंबरों की डिटेल्स थानाप्रभारी सतेंद्र प्रकाश को उपलब्ध करा दी, जिन पर उन की बात होती रही थी.

मामला चूंकि साइबर क्राइम का था लिहाजा एसपी (सिटी) आलोक प्रियदर्शी व सीओ (क्राइम) ज्ञानवती देवी के निर्देश पर यह केस साइबर सेल को स्थानांतरित कर दिया गया. साइबर सेल के प्रभारी कर्मवीर सिंह ने अपने साथी पुलिसकर्मियों सोनू कुमार, उमेश वर्मा, कपिल कुमार, विजय कुमार व केस के जांच अधिकारी विनोद कुमार त्रिपाठी के साथ मामले की जांच शुरू कर दी.

पुलिस बैंक खातों के जरिए धोखाधड़ी करने वालों तक आसानी से पहुंच सकती थी, लिहाजा इसी दिशा में जांच आगे बढ़ाई गई. जिन खातों के जरिए पैसे लिए गए थे, उन में एक खाता गाजियाबाद जिले की बैंक शाखा में किसी हरलीन कौर के नाम पर था.

पुलिस टीम गाजियाबाद पहुंची और हरलीन का पता हासिल करने के साथ ही खाते की डिटेल्स भी प्राप्त कर ली. हरलीन के खाते में लाखों के लेनदेन का ब्यौरा दर्ज था. इस से यह बात साफ हो गई कि यह रैकेट बड़े पैमाने पर लोगों को अपना शिकार बना रहा था.

पुलिस ने उन सभी मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स और पते हासिल कर लिए जिन से अंबरीश को फोन किए जाते थे. हालांकि ऐसे सभी नंबर बंद हो चुके थे. ये सभी नंबर फरजी आईडी पर लिए गए थे, लेकिन जिन मोबाइल हैंडसेट में वे नंबर इस्तेमाल हुए थे, उन पर अब दूसरे नंबर चल रहे थे. सर्विलांस की मदद से पुलिस ने ऐसे सभी नंबरों का इस्तेमाल करने वालों का ब्यौरा हासिल कर लिया.

6 जनवरी, 2017 को पुलिस टीम गाजियाबाद जा पहुंची. सादे कपड़ों में कुछ पुलिसकर्मी राजनगर स्थित एक औफिस में पहुंचे. वहां कई युवक व एक युवती काम कर रहे थे. उन के अंदर दाखिल होते ही कुरसी पर बैठे एक युवक ने पूछा, ‘‘कहिए?’’

‘‘हमें आप के बौस से मिलना है?’’ एक पुलिस अफसर ने कहा.

‘‘क्या काम है?’’

‘‘काम बड़ा है, इसलिए हम उन्हें ही बताएंगे. वैसे क्या नाम है आप के बौस का?’’

‘‘जी, शमशेर सर.’’

कुछ ही देर में उस युवक ने उन लोगों को एक केबिन में भेज दिया. अंदर बैठे एक युवक ने रिवौल्विंग चेयर पर झूलते हुए पूछा, ‘‘बताइए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

‘‘हमें अपने रुपए वापस चाहिए.’’

‘‘मतलब?’’ वह चौंका.

‘‘हम मेरठ से आए हैं और अंबरीश के रिश्तेदार हैं. बीमा पौलिसी का रुपया है, इतना तो आप समझ ही गए होंगे.’’ यह सुन कर उस युवक को बिजली जैसा झटका लगा. वह उन्हें अर्थपूर्ण नजरों से देखने लगा. उस के चेहरे का रंग उड़ा हुआ सा नजर आ रहा था.

‘‘मैं कुछ समझा नहीं…’’ उस ने अंजान बनने का नाटक किया.

‘‘हमारे साथ चलिए, हम सब समझा देंगे.’’ कहने के साथ ही पुलिस ने उसे और वहां मौजूद उस के साथियों को हिरासत में ले लिया. इस बीच वर्दीधारी पुलिसकर्मी भी वहां आ गए थे.

औपचारिक पूछताछ में पुलिस ने सभी के नामपते मालूम किए. उन की बातों से यह साफ हो गया था कि वे लोग ठगी की कंपनी चला रहे थे. गिरफ्तार लोगों में शमशेर उर्फ बबलू, पंकज धरेजा, राज सिंघानिया, सुधांशु उर्फ रोहित, अजय शर्मा व हरलीन कौर शामिल थे. इन में शमशेर दिल्ली के मालवीय नगर, पंकज फरीदाबाद, हरियाणा और अन्य सभी गाजियाबाद के रहने वाले थे. पुलिस ने मौके से कई लैपटौप, 7 मोबाइल फोन, बैंकों की पासबुक, चैकबुक, कई एटीएम कार्ड और अन्य कई दस्तावेज बरामद किए.

पुलिस सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर के मेरठ ले आई और उन से विस्तार से पूछताछ की. पूछताछ में एक ऐसे गिरोह की कहानी निकल कर सामने आई जो बीमा कराने वाले लोगों को सपने दिखा कर ठगी का गोरखधंधा कर रहा था. एक दसवीं पास युवक ने अपने साथियों के साथ मिल कर सपनों का ऐसा जाल बुना कि उस में कई लोग फंस गए.

दरअसल, शमशेर उर्फ बबलू महज 10वीं पास युवक था. समाज में ऐसे युवाओं की कोई कमी नहीं है, जो आधुनिकता की चकाचौंध से प्रभावित हो कर सोचने लगते हैं कि वे थोड़ी कोशिश करें तो बहुत कम समय में सफलताओं की इमारत खड़ी कर सकते हैं. उन की चाहत होती है कि उन के पास सभी भौतिक सुविधाएं और ढेर सारी दौलत हो. महत्त्वाकांक्षाओं की हवाएं जब दिलोदिमाग में सनसनाती हैं तो सोच खुदबखुद बदल जाती है. सोच की यह चाहत उन्हें इसलिए बुरी नहीं लगती, क्योंकि इसी के चलते उन्हें ख्वाबों में कल्पनाओं के खूबसूरत महल नजर आने लगते हैं.

शमशेर भी कुछ ऐसी ही सोच का शिकार था. उस का ख्वाब था कि किसी भी तरह उस के पास इतनी दौलत हो कि जिंदगी ऐशोआराम से बीते. वक्त के दरिया में तैराकी करते हुए उस ने दिनरात बहुत दिमाग दौड़ाया. यह अलग बात थी कि उसे कुछ समझ नहीं आया. नौकरी के लिए भी उस ने कई जगह हाथपैर मारे.

जब उसे मनमुताबिक नौकरी नहीं मिली तो उस ने एक फाइनैंस कंपनी में बतौर क्लर्क नौकरी शुरू कर दी. यह कंपनी लोगों को बैंकों से लोन दिलाने का काम करती थी. इस के बदले वह उन लोगों से तयशुदा कमीशन लेती थी, जिन का लोन पास कराया जाता था. दरअसल, यह कंपनी लोगों को सपने दिखा कर ठगती थी. कुछ समय शमशेर ने एक बीमा कंपनी में भी नौकरी की.

शमशेर को ठगी की राह आसान लगी. उस ने कुछ ऐसा ही करने की ठान ली और नौकरी छोड़ दी. इंसान जैसा होता है, उसे वैसे ही लोग भी मिल जाते हैं. शमशेर ने इस मुद्दे पर कुछ दोस्तों से बात की तो उन लोगों ने बीमा पौलिसी कराने वाले लोगों को ठगने की योजना बनाई.

उस ने अपने साथी आशीष, सुमित, दिनेश, संजू चौहान के साथ मिल कर बीमा एजेंटों को लालच दे कर कुछ बीमा पौलिसी धारकों का ब्यौरा हासिल किया. इस के बाद वे उन्हें फोन कर के लालच के जाल में फंसाते और अपने खातों में पैसा जमा करा लेते. उन्हें कामयाबी मिली तो उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

बाद में उन्होंने अपने साथी राज सिंघानिया, पंकज धरेजा, सुधांशु, अजय व हरलीन कौर को भी अपने साथ जोड़ लिया. सभी महत्त्वाकांक्षी थे और करोड़पति बनने का सपना संजोए हुए थे. इन में पंकज ने बीकौम व हरलीन ने बीटेक की शिक्षा हासिल की हुई थी. जबकि बाकी सभी 10वीं या 12वीं तक पढ़े थे. राज सिंघानिया खुद भी बीमा एजेंट था.

खास बात यह भी थी कि सुमित व दिनेश एक ऐसी कंपनी में नौकरी कर चुके थे, जिस के पास एक दरजन से ज्यादा पौलिसी करने वाली कंपनियां जुड़ी हुई थीं. इन लोगों ने शातिराना अंदाज में वहां से डाटा चोरी कर लिया.

शुरुआत में गिरोह की ठगी का शिकार हुए लोगों ने ठगी की शिकायत पुलिस से नहीं की तो उन के हौसले बढ़ गए. उन्हें लगा कि देश में लोगों को लालच दे कर ठगने का काम सब से आसान है. उन्होंने गाजियाबाद में अपना औफिस बना लिया. साथ ही फरजी पतों पर कई मोबाइल नंबर हासिल कर लिए. फिर वे फोन कर के अपने शिकार से बेहद लुभावनी बातें करते और उन्हें दिन में ही उन के ही पैसे से  जिंदगी को जन्नत बनाने के सुनहरे ख्वाब दिखाते. स्वार्थसिद्धि के लिए उन की बातें व योजनाएं इतनी लच्छेदार होती थीं कि अच्छेभले आदमी की सोच कुंद हो जाए.

उन का ठगी का धंधा चल निकला. उन का शिकार हुआ जो व्यक्ति अपनी रकम वापस पाने के लिए फोन कर के परेशान करता था, उस नंबर को वे हमेशा के लिए बंद कर देते थे. ऐसा कर के उन्हें मोबाइल नंबरों से पकड़े जाने का डर नहीं रहता था. कई बीमा पौलिसी धारक ऐसे भी होते थे जो 2 नंबर की रकम से मोटी पौलिसी खरीदते थे. भेद खुलने के डर से वे ठगी का शिकार हो कर भी चुप रह जाते थे. गिरोह के निशाने पर ऐसे लोग ही ज्यादा होते थे, जिन की पौलिसी लाखों में होती थी. इन ठगों ने खूब कमाई की. सभी लोग लग्जरी लाइफ जीते थे.

राज सिंघानिया जिस फ्लैट में रहता था, उस का किराया ही 20 हजार रुपए महीना था. इतना ही नहीं, वह अपने नौकर को 8 हजार रुपए महीना वेतन देता था. उस ने गाजियाबाद के पौश एरिया में अपना साइबर कैफे भी खोल लिया. दूसरी ओर शमशेर ने दिल्ली में भी अपना औफिस बना लिया. वह शानदार जिंदगी जीता था. शिकार बने लोगों का पैसा हरलीन के खाते में जमा कराया जाता था.

हरलीन कुल जमा रकम का 35 फीसदी कमीशन लेती थी. ठगी के खेल का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज सिंघानिया के खाते में करीब एक साल में 4 करोड़ रुपए का ट्रांजैक्शन हुआ था. इन लोगों का धंधा अनवरत चलता रहता, लेकिन अंबरीश ने शिकायत की तो इन की करतूतों का भंडाफोड़ हो गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने लिखापढ़ी कर के सभी आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानत नहीं हो सकी थी. पुलिस शेष आरोपियों की तलाश कर रही थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कैसे लुटा 27 किलो सोना

21 जुलाई, 2017 की बात है. जयपुर पुलिस उस दिन कुछ ज्यादा ही चाकचौबंद थी. उस दिन भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 3 दिन के दौरे पर जयपुर आ रहे थे. इसी के मद्देनजर पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल उस दिन जल्दी उठ गए थे. उन्होंने अपने मातहत वरिष्ठ अधिकारियों को वायरलैस और फोन पर आवश्यक निर्देश दिए ताकि किसी भी तरह की गड़बड़ी की कोई गुंजाइश न रहे. सीआईडी, इंटेलीजेंस और पुलिस की विशेष शाखा के जवान अपनेअपने मोर्चे पर नजरें जमाए हुए थे. शहर के प्रमुख मार्गों पर पुलिस ने नाकेबंदी कर रखी थी ताकि आपराधिक प्रवृत्ति के लोग बाहर से शहर में आ न सकें.

दोपहर करीब पौने 2 बजे के आसपास पुलिस कमिश्नर अग्रवाल जब अपने औफिस में बैठे थे, तभी उन्हें जयपुर शहर में एक बड़ी वारदात की सूचना मिली. मातहत अधिकारियों ने बताया कि मानसरोवर में मुथूट फाइनैंस की शाखा में दिनदहाड़े डकैती हुई है. 4 बदमाश करोड़ों रुपए का सोना और लाखों रुपए नकद लूट ले गए हैं.

वारदात की सूचना मिलने पर पुलिस कमिश्नर खीझ उठे. शहर में सभी प्रमुख जगहों पर पुलिस तैनात होने के बावजूद बदमाश करोड़ों रुपए का सोना लूट ले गए थे. खास बात यह थी कि जयपुर में दिनदहाड़े बैंक लूट के 28 घंटे बाद ही गोल्ड लूट की बड़ी वारदात हो गई थी. पुलिस कमिश्नर ने अपने गुस्से पर काबू पाते हुए अधिकारियों को तुरंत मौके पर भेजा. साथ ही शहर के सभी मार्गों पर कड़ी नाकेबंदी कराने के भी निर्देश दिए.

मुथूट फाइनैंस की शाखा जयपुर के मानसरोवर इलाके में रजतपथ चौराहे पर पहली मंजिल पर है. उस दिन दोपहर करीब एक बजे की बात है. उस समय लंच शुरू होने वाला था. मुथूट के कार्यालय में मैनेजर सत्यनारायण तोषनीवाल अपने केबिन में बैठे थे. बंदूकधारी गार्ड दीपक सिंह गेट पर खड़ा था. कर्मचारी टीना शर्मा एवं मीनाक्षी अपने काउंटरों पर बैठी थीं. 2 ग्राहक नंदलाल गुर्जर और घनश्याम खत्री भी मुथूट के औफिस में मौजूद थे. मुथूट के उस औफिस में कुल 5 कर्मचारी थे. उस दिन एक कर्मचारी फिरोज छुट्टी पर था.

इसी दौरान एक युवक मुथूट के कार्यालय में आया. युवक ने सिर पर औरेंज कलर की कैप लगा रखी थी. उस ने अपने गले में पहनी एक चेन महिला कर्मचारी मीनाक्षी को दिखाई और कहा कि सोने की इस चेन के बदले मुझे लोन चाहिए, कितना लोन मिल सकता है?

मीनाक्षी उस युवक को दस्तावेज लाने की बात कह रही थी, तभी हेलमेट पहने 2 युवक अंदर आए. इन के तुरंत बाद चेहरे पर रूमाल बांधे तीसरा युवक अंदर गेट के पास आ कर खड़ा हो गया. उन तीनों युवकों के आने पर चेन दिखा रहा वह युवक भी उन के साथ हो गया.

उन में से हेलमेटधारी बदमाशों ने पिस्तौल निकाल ली और वहां मौजूद कर्मचारियों और ग्राहकों को धमका कर चुपचाप एक कोने में बैठने को कहा. इतनी देर में गेट के पास चेहरे पर रूमाल बांधे खड़े बदमाश ने गार्ड दीपक सिंह से उस की बंदूक छीन ली और उसे जमीन पर बैठने को कहा. बदमाशों के डर से गार्ड चुपचाप नीचे बैठ गया.

society

कर्मचारियों व ग्राहकों को धमकाने के बाद पिस्तौल लिए एक बदमाश मैनेजर तोषनीवाल के पास पहुंचा. बदमाश ने उन की कनपटी पर पिस्तौल तानते हुए स्ट्रांगरूम की चाबी मांगी. मैनेजर ने चिल्लाते हुए अपने केबिन से निकल कर भागने की कोशिश की, लेकिन गेट पर खड़े बदमाश ने उन से मारपीट की और बंदूक दिखा कर अंदर धकेल दिया. साथ ही गोली मारने की धमकी भी दी.

खुद को चारों तरफ से घिरा देख कर भी मैनेजर ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने बदमाशों को गुमराह करने के लिए कहा, ‘‘मेरे पास एक ही चाबी है. स्ट्रांगरूम 2 चाबियों से खुलता है. दूसरी चाबी कैशियर के पास है, वह बैंक गया हुआ है.’’

बदमाशों ने मैनेजर से एक ही चाबी ले कर स्ट्रांगरूम खोलने की कोशिश की. मामूली कोशिश के बाद स्ट्रांगरूम खुल गया तो 2 बदमाशों ने स्ट्रांगरूम का सोना और नकदी निकाल कर अपने साथ लाए एक बैग में भर ली. 2 बदमाश जब स्ट्रांगरूम से बैग में सोना भर रहे थे तो मैनेजर ने बदमाशों से खुद को बीमार बताते हुए बाथरूम जाने देने की याचना की. इस पर बदमाशों ने मैनेजर को बाथरूम जाने दिया. मैनेजर सत्यनारायण तोषनीवाल ने बाथरूम में घुसते ही अंदर से गेट बंद कर लिया.

कंपनी के बाथरूम में इमरजेंसी अलार्म लगा हुआ था, मैनेजर ने वह अलार्म बजा दिया. साथ ही उन्होंने बाथरूम से ही मुथूट फाइनैंस कंपनी के जयपुर के ही एमआई रोड स्थित कार्यालय और पुलिस कंट्रोल रूम को फोन भी कर दिया. अलार्म बजने पर दोपहर करीब 1.22 बजे चारों बदमाश सोना व नकदी ले कर तेजी से सीढि़यों से नीचे उतर कर चले गए. बाद में पता चला कि बदमाश 2 मोटरसाइकिलों पर आए थे और मोटरसाइकिलों पर ही चले गए थे.

सूचना मिलने पर डीसीपी क्राइम डा. विकास पाठक, एसीपी देशराज यादव के अलावा मानसरोवर थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. एफएसएल टीम और डौग स्क्वायड को भी मौके पर बुला लिया गया. पुलिस ने जांचपड़ताल की. कर्मचारियों व वारदात के दौरान मौजूद रहे ग्राहकों से पूछताछ की.

पुलिस ने मौके पर एक काउंटर से दस्ताने बरामद किए. ये दस्ताने एक बदमाश छोड़ गया था. मैनेजर ने स्ट्रांगरूम और अन्य नकदी का हिसाबकिताब लगाने के बाद प्रारंभिक तौर पर पुलिस अधिकारियों को बताया कि बदमाश 31 किलोग्राम सोना और 3 लाख 85 हजार रुपए नकद लूट ले गए थे.

मैनेजर ने पुलिस को बताया कि अलार्म बज जाने से लुटेरे करीब 10 करोड़ रुपए कीमत का 35 किलो सोना नहीं ले जा सके थे. वारदात के समय स्ट्रांगरूम में 65 किलो से ज्यादा सोना रखा था. लुटेरे अपने साथ 2-3 बैग लाए थे, लेकिन वे एक बैग में ही सोना भर पाए थे, तभी अलार्म बज गया और जल्दी से भागने के चक्कर में वे बाकी सोना छोड़ गए.

मुथूट कंपनी की इस शाखा से करीब ढाई हजार ग्राहक जुडे़ हुए थे. लुटेरे इन में से करीब एक हजार ग्राहकों का सोना ले गए थे. हालांकि बाद में कंपनी के अधिकारियों ने सारा रिकौर्ड देखने के बाद बताया कि लूटे गए सोने का वजन करीब 27 किलो था.

वारदात के बाद मुथूट की महिला कर्मचारी टीना शर्मा बहुत डरी हुई थी. गर्भवती टीना शर्मा वारदात के बारे में पुलिस को बताते हुए रोने लगी. कर्मचारियों में से मीनाक्षी ने बताया कि बदमाश बोलचाल से उत्तर प्रदेश या हरियाणा के लग रहे थे. उन में एक की उम्र करीब 35 साल थी, जबकि बाकी लुटेरे 25 से 30 साल के थे.

मानसरोवर के भीड़भाड़ वाले इलाके में दिनदहाड़े इतनी बड़ी लूट हो गई, लेकिन किसी को इस का पता तक नहीं चला. इस का कारण यह था कि मुथूट फाइनैंस के पहली मंजिल स्थित औफिस में पहुंचने के लिए सीढि़यां दुकानों के पीछे से हैं. मानसरोवर में रजतपथ चौराहे के कौर्नर पर 2 मंजिला इमारत में ग्राउंड फ्लोर पर भारतीय स्टेट बैंक की शाखा और कपड़ों के शोरूम हैं. पहली मंजिल पर मणप्पुरम गोल्ड लोन कंपनी और एक तरफ मुथूट फाइनैंस के औफिस हैं. यह पूरा इलाका भीड़भाड़ वाला है.

पुलिस ने मुथूट फाइनैंस कार्यालय में तथा आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगाले. इन फुटेज में सब से पहले अंदर आए औरेंज टोपी वाले बदमाश का चेहरा साफ नजर आ रहा था. बाकी तीनों बदमाशों की कदकाठी और हावभाव ही नजर आए थे. आसपास की फुटेज से पता चला कि बदमाश 2 मोटरसाइकिलों से आए थे. उन की मोटरसाइकिलों पर नंबर नहीं थे. इन्हीं मोटरसाइकिलों से वे सोना और नकदी ले कर भाग गए थे.

मुथूट के औफिस से लूटपाट के बाद सीढि़यों से उतरते हुए बदमाशों ने स्ट्रांगरूम की चाबी फेंकी थी. चाबी को सूंघ कर पुलिस के डौग ने बदमाशों का उन की गंध के आधार पर पीछा किया. डौग स्क्वायड रजतपथ चौराहे से मध्यम मार्ग से हो कर स्वर्णपथ चौराहे पर पहुंचा. वहां से वह न्यू सांगानेर रोड की तरफ गया, लेकिन कुछ देर पहले तेज बारिश होने से वहां पानी भर गया था.

इस से डौग स्क्वायड को बदमाशों की आगे की गंध नहीं मिल सकी. बदमाशों की तलाश में पुलिस ने शहर में चारों तरफ कड़ी नाकेबंदी कराई, लेकिन लुटेरों का कोई सुराग नहीं मिला. कंपनी के गार्ड को थाने ले जा कर पुलिस ने पूछताछ की, लेकिन उस से भी कुछ खास जानकारी नहीं मिली. अंतत: पुलिस ने उसे छोड़ दिया. पुलिस ने कंपनी के अन्य कर्मचारियों की भूमिका की भी जांचपड़ताल की.

दूसरी ओर, लूट की वारदात होने के बाद मुथूट फाइनैंस में सोने के जेवर रख कर लोन लेने वाले ग्राहकों का तांता लग गया. ये ग्राहक अपने सोने के जेवर लूटे जाने की बात से चिंतित थे. इस पर कंपनी के अधिकारियों ने ग्राहकों को बताया कि लूटे गए सोने का बीमा करवाया हुआ है. किसी भी ग्राहक का नुकसान नहीं होने दिया जाएगा.

मुथूट फाइनैंस से करीब 8 करोड़ का सोना और इस से एक दिन पहले आदर्श नगर के राजापार्क में धु्रव मार्ग स्थित यूको बैंक की तिलक नगर शाखा में हुई 15 लाख रुपए की लूट ने जयपुर पुलिस की नींद उड़ा दी थी.

पुलिस ने बदमाशों की तलाश में जयपुर शहर सहित आसपास के जिलों में नाकेबंदी कराई, लेकिन बदमाशों का पता नहीं चला. पुलिस ने अनुमान लगाया कि लुटेरे जयपुर-आगरा हाईवे या जयपुर-दिल्ली हाईवे पर हो कर निकल भागे थे.

इन दोनों हाईवे की दूरी बैंक से दो-ढाई किलोमीटर है. जिस तरीके से वारदात हुई थी, उस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि बदमाशों ने कई दिन रैकी होगी. यह भी अनुमान लगाया गया कि बदमाशों के कुछ अन्य सहयोगी भी थे, जो बाहर खडे़ रह कर नजर रखे हुए थे.

society

पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने मातहत अधिकारियों की बैठक कर वारदात का पता लगाने के लिए विशेष टीम का गठन किया. मुथूट फाइनैंस में हुई 8 करोड़ के सोने की लूट का राज फाश करने की जिम्मेदारी डीसीपी क्राइम डा. विकास पाठक, डीसीपी साउथ योगेश दाधीच और एसओजी के एएसपी करण शर्मा के नेतृत्व वाली टीम को सौंपी गई. पुलिस ने पूरे राजस्थान सहित उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व हरियाणा पुलिस से लूट और डकैती की वारदातों और उन्हें अंजाम देने वाले गिरोहों की जानकारी मांगी.

पुलिस को शक था कि वारदात करने वाले बदमाश लूटे गए सोने को कहीं किसी कंपनी में गिरवी न रख दें. पुलिस राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों में संचालित ऐसी कंपनियों से संपर्क बनाए हुए थे. जयपुर में कुछ साल पहले गोल्ड लोन फर्म में हुई डकैती के लूटे गए सोने को बदमाशों ने दूसरी गोल्ड लोन कंपनी में गिरवी रख कर रकम ले ली थी.

दिलचस्प बात यह है कि देश का करीब 47 प्रतिशत सोना केरल की 3 कंपनियों मुथूट फाइनैंस, मणप्पुरम फाइनैंस व मुथूट फिनकौर्प के पास है. सितंबर 2016 तक इन कंपनियों के पास 263 टन सोना था. सोने की कीमत 7 खरब 36 अरब 40 करोड़ रुपए आंकी गई थी. इन में मुथूट फाइनैंस की गोल्ड होल्डिंग करीब 150 टन है. यह सोना कई अमीर देशों के स्वर्ण भंडार से भी ज्यादा है. मणप्पुरम फाइनैंस के पास 65.9 टन एवं मुथूट फिनकौर्प के पास 46.88 टन सोना होने का अनुमान है. जबकि भारत की कुल गोल्ड होल्डिंग 558 टन है.

देश की सब से बड़ी गोल्ड फाइनैंसिंग कंपनी के रूप में पहचान रखने वाली मुथूट फाइनैंस कंपनी की विभिन्न शाखाओं में 4 साल के दौरान लूट व डकैती की 7 वारदातें हुई हैं. इन में करीब डेढ़ क्विंटल सोना लूटा गया है. सन 2013 में 21 फरवरी को लखनऊ में इस कंपनी की शाखा से 6 करोड़ रुपए से ज्यादा का करीब 20 किलो सोना लूटा गया था. सन 2015 में 22 फरवरी को ढाई करोड़ रुपए से अधिक के करीब 10 किलो सोने की डकैती हुई. वर्ष 2016 में 30 जनवरी को पश्चिम बंगाल के चौबीस परगना जिले में 9 करोड़ रुपए मूल्य का 30 किलो सोना लूटा गया.

पिछले साल ही 16 मई, 2016 को पंजाब के पटियाला में करीब 3 करोड़ रुपए के 11 किलो सोने की लूट हुई. 28 दिसंबर, 2016 को हैदराबाद में 12 करोड़ रुपए का करीब 40 किलो सोना लूटा गया. 23 फरवरी, 2017 को पश्चिम बंगाल के पूर्वी कोलकाता स्थित बेनियापुकुर में 5 करोड़ से ज्यादा के करीब 20 किलो सोने की डकैती हुई.

जयपुर पुलिस ने 21 जुलाई, 2017 को मुथूट फाइनैंस की शाखा से करीब 27 किलो सोना लूटने के मामले में 21 अगस्त, 2017 को बिहार की राजधानी पटना से 3 आरोपियों शुभम उर्फ सेतू उर्फ शिब्बू भूमिहार, पंकज उर्फ बुल्ला यादव और विशाल कुमार उर्फ विक्की उर्फ रहमान यादव को गिरफ्तार किया. ये तीनों आरोपी बिहार के वैशाली जिले के हाजीपुर के रहने वाले थे. इन लोगों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने यह वारदात गिरोह के सरगना सुबोध उर्फ राजीव और अन्नू उर्फ राहुल के साथ मिल कर की थी. लूट का सोना सुबोध के पास था.

योजना के अनुसार, इन लोगों ने 3 जुलाई को जयपुर आ कर मुथूट की शाखाओं की रैकी की. इस में मानसरोवर की शाखा को वारदात के लिए चुना गया. इस के बाद वारदात के लिए उन्होंने आगरा से एक नई और एक पुरानी मोटरसाइकिल खरीदी. इस के बाद वारदात से 5 दिन पहले राजस्थान के टोंक जिले के कस्बा निवाई पहुंच कर शुभम, पंकज व विशाल ने खुद को नेशनल हाईवे बनाने वाली कंपनी का अधिकारी बता कर निवाई में साढ़े 4 हजार रुपए महीना किराए पर मकान लिया था.

निवाई में उन्होंने दिल्ली से एक कार मंगवाई. यह पुरानी कार 40 हजार रुपए में खरीदी गई थी. 21 जुलाई को कार व चालक को निवाई में छोड़ कर वहां से 2 मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर विशाल, सुबोध, अन्नू व शुभम जयपुर में मानसरोवर स्थित मुथूट फाइनैंस की शाखा पर पहुंचे.

सब से पहले विशाल अंदर घुसा. फिर सुबोध, अन्नू व शुभम अंदर गए. सुबोध व अन्नू ने बैग में सोना भरा. वारदात के बाद भागने के लिए इन्होंने पहले ही गूगल मैप देख कर रूट तय कर लिया था. वारदात के बाद विशाल व सुबोध एक मोटरसाइकिल से निवाई पहुंचे और कार में सोना रख कर पटना चले गए.

अन्नू व शुभम दूसरी मोटरसाइकिल से जयपुर से अजमेर पहुंचे और हाईवे पर बाइक छोड़ कर बस से आगरा गए. आगरा से ये लोग पटना चले गए. रैकी करने जयपुर आने और वारदात के बाद पटना में व्यवस्था संभालने में पंकज जुटा हुआ था. इस वारदात के लिए सुबोध ने अन्नू को 8 लाख रुपए, विशाल को 5 लाख और शुभम को एक लाख रुपए दिए थे.

3 आरोपियों की गिरफ्तारी के 2 दिन बाद पुलिस ने चौथे आरोपी अन्नू को यूपी की एसटीएफ की मदद से झारखंड के धनबाद से पकड़ लिया. बाद में 20 जनवरी, 2018 को जयपुर पुलिस ने पटना एसटीएफ की मदद से मुथूट फाइनैंस से सोना लूट के मास्टरमाइंड सुबोध सिंह उर्फ राजीव को पकड़ लिया. उस की निशानदेही पर 15 किलो सोना बरामद किया गया. सुबोध ने नागपुर व कोलकाता में भी डकैती की वारदातें करना कबूल किया.

society

पुलिस का मानना है कि वह करीब 15 साल से इस तरह की वारदातें कर रहा है. उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक व छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों की पुलिस उसे तलाश रही थी. इस से पहले वह छत्तीसगढ़ में पकड़ा जा चुका था. 10-12 साल पहले सुबोध ने चेन्नै में बैंक लूटा था, तब वहां की पुलिस ने मुठभेड़ में उस के 3-4 साथी मार दिए थे, लेकिन सुबोध बच गया था.

सुबोध की निशानदेही पर पुलिस ने वह कार भी बरामद कर ली, जिस में सोना रख कर वह निवाई से पटना गया था. सुबोध के भाई रणजीत सिंह पर बिहार में हजारों लोगों से ठगी करने का आरोप है.

सुबोध पटना जिले का टौपर स्टूडेंट था. 10वीं में उस के 94 प्रतिशत अंक आए थे, लेकिन उसे नेपाल में कैसीनो जाने का शौक लग गया, जिस में वह लाखों रुपए हार गया था. इस के बाद उस ने लूट की वारदातें शुरू कीं. फिर गिरोह बना कर बैंक व गोल्ड लोन कंपनियों में डकैती डालने लगा. अब उस की महत्त्वाकांक्षा बिहार में चुनाव लड़ने की थी.

2 फरवरी को पुलिस ने इस मामले में पटना के रहने वाले छठे आरोपी राजसागर को गिरफ्तार कर लिया. वह लग्जरी कारों से अपने साथियों को घटनास्थल पर छोड़ने व वारदात के बाद वापस ले जाने का काम करता था. उस के खिलाफ लूट व डकैती के कई मामले दर्ज हैं. राजसागर ही सुबोध को कार से निवाई से पटना ले गया था.

– कथा पुलिस सूत्रों व विभिन्न रिपोर्ट्स पर आधारित